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सड़क शोधपत्र संकलन

वर्ष 2023

सीएसआईआर-केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान


नई दिल्ली -110025
सीएसआईआर - सीआरआरआई

सड़क शोधपत्र संकलन 2023


सीएसआईआर-केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान की वार्षिक शोध पत्रिका

“वैज्ञानिकों का दे श के प्रति दायित्व बहुत विशाल है, संभवत: जितना वे समझते


हैं उससे भी कहीं अधिक.... तथा यद्यपि मौलिक वैज्ञानिक अनुसंधान आदि बहुत
अच्छा है और मौलिक अनुसंधान में और अधिक प्रयास करने एवं निवेश करने की
आवश्यकता भी है, वैज्ञानिकों को सामाजिक समस्याओं के समाधान भी उपलब्ध
कराने होंगे।”
श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी
अध्यक्ष
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद

“विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की प्रगति विश्वविदित है और समाज की


आज की अधिकांश समस्याओं का समाधान विज्ञान के पास है।”
जितेंद्र सिंह
उपाध्यक्ष
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद

“सीएसआईआर के सभी संगठन पिछले 75 वर्षों से राष्ट्र के आमजन के विकास


के लिए कार्य कर रहे हैं तथा भविष्य में भी निरंतर राष्ट्र की प्रगति एवं विकास में
अपना योगदान दे ते रहेंगे।”
डॉ. एन कलैसेल्वी
महानिदे शक
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद

सीएसआईआर-केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान


(आईएसओ प्रमाणित आर एंड डी प्रयोगशाला)

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 1


सीएसआईआर - सीआरआरआई

प्रस्तावना
सड़क शोधपत्र संकलन आज के तकनीकी युग में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को जन-जन

प्रवेशांक 2023 तक पहुँचाने की महती आवश्यकता अनुभव की जा रही है।


लेकिन यह कार्य तभी संभव हो सकता है जब विज्ञान के विषयों
संरक्षक को मातृभाषा या राजभाषा के माध्यम से सामान्य जन तक
डॉ. मनोरंजन परिड़ा पहुँचाया जाए। इस दिशा में प्रगति करने के लिए हमें अपने
निदे शक अनुसंधान एवं विकास कार्यों को राजभाषा में व्यक्त करने
तकनीकी परामर्श व प्रकाशन समिति के लिये स्वेच्‍छा से प्रवृत्त होना चाहिये। हर्ष का विषय है कि
श्री जी के साहू सीएसआईआर-केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक
मुख्य वैज्ञानिक, बीईएस
एवं तकनीकविद् इस कार्य में सदै व अग्रसर रहते हैं।
डा कंवर सिंह
वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक, जीटीई वर्तमान में कार्यरत सभी वैज्ञानिकों, अभियंताओं तथा
शोधकर्ताओं ने राजभाषा हिंदी में विज्ञान लेखन के अपने
श्री सुनील जैन
मुख्य वैज्ञानिक, पीईडी उत्तरदायित्व का बखूबी निर्वहन किया है और विभिन्न विषयों
पर गुणवत्तापूर्ण शोधपत्र लिखे हैं। बड़ी संख्या में उनसे प्राप्त
श्री सुभाष चंद
वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक, टीईएस
शोधपत्रों में से समिति ने सर्वोत्तम शोधपत्रों का चयन किया है
तथा चयनित शोधपत्रों का यह संकलन ‛सड़क शोधपत्र संकलन
श्री संजय चौधरी
वर्ष 2023’ के रुप में आपके सम्मुख है।
हिंदी अधिकारी, संपादक व संयोजक

विशेष सहयोग तकनीकी परामर्श व प्रकाशन समिति ने विभिन्न शोधपत्रों में


डॉ. प्रदीप कुमार से सर्वश्रेष्ठ का चयन करने के लिए अनेक मानदं डों पर प्रत्येक
मुख्य वैज्ञानिक, पीईडी शोधपत्र का मूल्यांकन किया तथा तदुपरांत इनमें से 12
गुणवत्तापूर्ण शोधपत्रों को संकलन 2023 में शामिल करने के
योग्य पाया।

नई शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं को जो महत्व दिया जा रहा


है, उसे दे खते हुए शोधपत्र संकलन में सम्मिलित शोधपत्र हमारे
दे श के हिंदी भाषी छात्रों एवं युवा शोधकर्ताओं के लिए उनके
वैज्ञानिक चिन्तन, मनन तथा अनुसंधान कार्य में आधार सामग्री
के रूप में उपयोगी बन सकें । कोई संदेह नहीं कि इस दिशा
में संस्थान के निदे शक महोदय का मार्गदर्शन महत्वपूर्ण सिद्ध
हुआ है।

संस्थान से "सड़क शोधपत्र संकलन वर्ष 2023" का प्रकाशन


इसी लक्ष्य को दृष्टि में रखकर किया जा रहा है। संकलन
2023 से सम्बद्ध तकनीकी परामर्श समिति आशा करती है
कि यह प्रकाशन अपने उद्दे श्यों में सफल होगा तथा वैज्ञानिकों,
अभियंताओं, छात्रों एवं प्रशिक्षुओं को प्रेरणा प्रदान करने में
सीएसआईआर-केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान प्रासंगिक भूमिका का निर्वाह कर सकेगा।
नई दिल्ली -110025
तकनीकी परामर्श व प्रकाशन समिति

2 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

सीएसआईआर-सीआरआरआई 1का 1परचय

सीएसआईआर-सीआरआरआई सड़कों, पुलों और सड़क परिवहन के क्षेत्रों में अनुसंधान एवं


विकास गतिविधियों को चलाने के लिए एक प्रमुख राष्ट्रीय अनुसंधान संगठन है। यह अपने
ग्राहकों को उच्चतम स्तर की पेशेवर परामर्श भी प्रदान करता है। इसकी स्थापना 1952 में
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की एक घटक प्रयोगशाला के रूप में
की गई थी। यह संस्थान निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन से 5 किलोमीटर की दूरी पर दिल्ली-मथुरा
रोड (एनएच-2) पर एक विशाल और सुरम्य परिसर में स्थित है, जिसमें सड़कों और रनवे,
यातायात और परिवहन, पुल और भू-तकनीकी आदि पहलुओं से संबंधित अनुसंधान और
परामर्श गतिविधियों को संपन्न करने के लिए विशाल और अद्वितीय प्रकृति की विभिन्न प्रकार
की बुनियादी सुविधाएं हैं। संस्थान में सात अनुसंधान एवं विकास प्रभाग, आठ अनुसंधान एवं
विकास प्रबंधन प्रभाग और आठ प्रशासनिक प्रभाग हैं।
हमारे वैज्ञानिक नए उदीयमान और उभरते क्षेत्रों की खोज करने तथा जटिल सिविल
प्रो. (डॉ.) मनोरंजन परिड़ा
निदे शक इंजीनियरिंग समस्याओं को हल करने में फील्ड इंजीनियरों, उपयोगकर्ता विभागों
और एजेंसियों को मार्गदर्शन प्रदान करने में हमेशा अग्रणी रहे हैं। संस्थान ने कई
प्रौद्योगिकियां विकसित की हैं और उन्हें व्यावसायीकरण के लिए लाइसेंस दिया है। मोबाइल ब्रिज इंस्पेक्शन यूनिट (एमबीआईयू)
का स्वदे शी विकास; आवृत्ति के आधार पर शोर अवरोधों का विकास; कार ड्राइविंग सिम्युलेटर का विकास; सूरत, गुजरात
में भारत की पहली स्टील स्लैग रोड का विकास; पैच-फिल और मोबाइल कोल्ड मिक्सर सह पेवर का विकास ऐसी ही कुछ
विकसित प्रौद्योगिकियां हैं। संस्थान ने भारतीय राजमार्ग क्षमता मैनुअल (इंडो-एचसीएम) का पहला संस्करण विकसित किया है
जिसका उपयोग दे श में योजनाकारों और सलाहकारों द्वारा किया जा रहा है।
सीएसआईआर-सीआरआरआई की तकनीकी विशेषज्ञता और प्रयोगशाला सुविधाओं तक पहुंच प्रदान करते हुए उपयोगकर्ता
एजेंसियों को सीएसआईआर-सीआरआरआई के विशिष्ट कौशल और तकनीकी सेवाओं का लाभ दे ने के लिए सड़क सुरक्षा के
लिए हम नागपुर और तेलंगाना के साथ एक अद्वितीय सहयोगात्मक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) संचालित परियोजना,
iRASTE पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा, सीएसआईआर-सीआरआरआई प्रायोजित और सहयोगी परियोजनाओं के
माध्यम से राजमार्ग इंजीनियरिंग के प्रमुख क्षेत्रों में उपयोगकर्ता समर्थित अनुसंधान एवं विकास कार्य भी करता है। यूएनडीपी,
डब्ल्यूएचओ, ईएससीएपी, विश्व बैंक और एडीबी जैसे कई अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और कुछ विदे शी सरकारों ने समय-समय पर
विभिन्न परियोजनाओं के लिए सीएसआईआर-सीआरआरआई की सेवाओं का लाभ उठाया है। इसके अलावा, सीएसआईआर-
सीआरआरआई ने परिवहन इंजीनियरिंग, कुट्टिम डिजाइन और प्रदर्शन मूल्यांकन, सेतु इंजीनियरिंग, भू-तकनीकी इंजीनियरिंग,
पर्यावरण, सड़क सुरक्षा और सड़क व परिवहन आदि से संबंधित क्षेत्रों पर विशेष जोर दे ने के साथ इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी और
विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट गुणवत्ता वाली जनशक्ति को बढ़ावा दे ने के लिए आईआईटी और एनआईटी जैसे कुछ प्रमुख शैक्षणिक
संस्थानों के साथ सहयोग किया है।
हमारे संस्थान के वैज्ञानिकों को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मान्यताएँ प्राप्त होती हैं, वे महत्वपूर्ण समितियों में विशेषज्ञ सदस्यों के
रूप में कार्य करते हैं और भारतीय सड़क कांग्रेस (आईआरसी)/ भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस)/सड़क परिवहन और राजमार्ग
मंत्रालय (MoRTH), भारत सरकार के लिए मानक/प्रक्रिया संहिता/मैनुअल/दिशानिर्दे श/विशिष्टताओं की तैयारी में योगदान दे ते हैं।
उपयोगकर्ता एजेंसियों/संगठनों के इंजीनियरों को प्रशिक्षण प्रदान करके मानव संसाधनों का कौशल विकास करना हमारे संस्थान
के अनुसंधान और विकास कार्यक्रम का एक अभिन्न अंग है। सीएसआईआर-सीआरआरआई ने सड़क सुरक्षा ऑडिट और इसके
संबंधित पहलुओं के क्षेत्रों में हर साल विभिन्न नियमित, अनुकूलित प्रशिक्षण कार्यक्रमों के साथ-साथ मॉर्थ (MoRTH) द्वारा
अनुमोदित विशेष 15-दिवसीय प्रमाणन पाठ्यक्रम आयोजित किए। सीएसआईआर-सीआरआरआई में अब तक 29,000 से
अधिक सेवारत राजमार्ग इंजीनियरों को प्रशिक्षित किया जा चुका है।
हमारे अनुसंधान एवं विकास का ध्यान हमेशा ट्रांसलेशनल अनुसंधान पर रहा है जो प्राकृतिक सामग्री के न्यूनतम उपयोग और
पर्यावरण पर न्यूनतम प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना अधिकतम सुरक्षा, अपशिष्ट पदार्थों और एआई/एमएल सक्षम उपकरणों/
तकनीकों के अधिकतम उपयोग के साथ दे श में गुणवत्तापूर्ण सड़कों और राजमार्गों के विकास और प्रबंधन में योगदान दे सके।
यह कार्य काफी चुनौतीपूर्ण है लेकिन हमारे पास इस चुनौती से निपटने की क्षमता और सामर्थ्य है। दे श में बेहतर गुणवत्ता, सस्ती
और सुरक्षित सड़कों के निर्माण और प्रबंधन के लिए उपकरण/तकनीक विकसित करने के लिए ठोस प्रयास किए जा रहे हैं।

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 3


सीएसआईआर - सीआरआरआई

सड़क शोधपत्र संकलन 2023


विषय सूची
क्र. शोधपत्र पृष्ठ सं.

इमेज प्रोसेसिंग तकनीक का उपयोग करते हुए सड़क की सतह के दोषों का


1. 5
स्वचालित मूल्यांकन के लिए तकनीक का विकास - डॉ. प्रदीप कुमार

2. सुनम्य कुट्टिम पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव - डॉ. अभिषेक मित्तल एवं गजेंद्र कुमार 12

सड़क अनुरक्षण हेतु बिटु मिन पायस आधारित ऊर्जा दक्ष मृदु तप्त मिश्रण प्रौद्योगिकी
3. 16
- सौरभ कुमार वर्मा, डॉ. शिक्षा स्वरुपाकर

4. स्थिरीकृत कुट्टिम – संधारणीय कुट्टिम - डॉ. अंबिका बहल, सौरभ कुमार वर्मा 23

भूमि की तरंगों की प्रकृति - आलोक रंजन, डॉ. अनिल कुमार सिन्हा, विजय कुमार
5. 28
कन्नौजिया

पीजोइलेक्ट्रिक ट्रांसड्यूसर के उपयोग से पुलों में पूर्व-तनाव बल के आकलन करने का


6. 35
एक किफायती विकल्प - डॉ. नवीत कौर, श्वेता गोयल, कमल आनंद, गणेश कुमार साहू

शून्य उत्सर्जन वाहनों और किफायती ड्राइविंग पद्धति का उपयोग करके वाहन कार्बन
7. 44
डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने की रणनीतियां - डॉ. रवींद्र कुमार, सुभाष चंद

सदियों पुराने रेलवे पुल के द्वारा बढ़े हुए भार को उठाने की क्षमता का आकलन
8. 52
- डॉ. राजीव गोयल

अनुभवी ड्राइवरों का ध्यान भटकना : आई-ट्रै कर से अध्ययन - कामिनी गुप्ता,


9. 59
डॉ. नीलिमा चक्रवर्ती, अमित अग्रवाल, डॉ. ए मोहन राव, राजन वर्मा

10. नैनो कणों के दुष्प्रभावों (एक्सपोजर) का आकलन - डॉ. रीना सिंह, नेहा चौधरी 70

आत्म-उपचार (सेल्फ-हीलिंग) सामग्री : गड्ढा मुक्त सड़कों के लिए एक उपादान


11. 84
- डॉ. रीना सिंह, टी.लक्ष्मी, नेहा चौधरी

महानगरों में बस चालक दुर्घटनाओं की आवृत्ति घटना का सांख्यिकीय मूल्यांकन


12. 91
- प्रीति सिन्हा, डॉ. पद्मा सीतारामन, डॉ. एस. लक्ष्मी

4 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

इमेज प्रोसेसिंग तकनीक का उपयोग करते हुए सड़क की सतह के दोषों का


स्वचालित मूल्यांकन के लिए तकनीक का विकास
डॉ. प्रदीप कुमार, मुख्य वैज्ञानिक, कुट्टिम मूल्यांकन प्रभाग
सार
यह नितांत आवश्यक है कि जो सड़कें हमारी राष्ट्रीय संपत्ति हैं, उनका रखरखाव, प्रबंधन और संचालन एक कुशल, प्रभावी
और किफायती तरीके से किया जाए ताकि उपयोग-क्षमता का सर्वोत्तम स्तर प्राप्त किया जा सके। सड़क की सतह की
स्थिति के आधार पर सड़क रेटिंग प्रणाली, मुख्य रूप से सड़क की मरम्मत के बारे में सही निर्णय लेने में मदद करती है
जिसके लिए सामान्य रखरखाव, ओवरले या पुनर्निर्माण की आवश्यकता होती है। तकनीकी विकास ने ऐसे तरीके तैयार
किए हैं जो राजमार्गों की उच्च रिज़ॉल्यूशन वाली डिजिटल छवियों को स्वचालित रूप से कैप्चर करने के लिए उपकरण और
विशेष सॉफ़्टवेयर का उपयोग करके सड़कों का शीघ्रता से निरीक्षण कर सकते हैं और सड़क की सतह के दोषो को पहचानने
और मापने के लिए उनका विश्लेषण कर सकते हैं। ये शोध पेपर एक वाहन आधारित स्वचालित सड़क सर्वेक्षण प्रणाली
का उपयोग करके सड़क की सतह की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए वीडियो छवियों के स्वचालित अधिग्रहण और
विश्लेषण के लिए नई तकनीक प्रस्तुत करता है। सड़क की सतह की कमियों के प्रकार, गंभीरता और वितरण का मूल्यांकन
करने के लिए इन छवियों का विश्लेषण किया जा सकता है। राजमार्ग की गति से सड़क की सतह की छवियों को कैप्चर
करने के लिए पेवमेंट इमेजिंग प्रणाली का विवरण और इमेज प्रोसेसिंग तकनीक का उपयोग करके सड़क की सतह के दोषो
के स्वत: परिमाणीकरण की दिशा में किए गए शोध की समीक्षा पर भी चर्चा की गई है।
परिचय
सड़क की सतह की स्थिति का डेटा, सड़क निर्माण गुणवत्ता के बारे में प्रारंभिक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। यह सुरक्षा और
दीर्घकालिक प्रदर्शन के साथ-साथ रखरखाव और पुनर्वास प्राथमिकताओं को स्थापित करने के मामले में निर्णय लेने में भी
सहायता करता है। सड़क की सतह की स्थिति का आकलन करने का मूल उद्दे श्य मौजूदा दोषों (दरारें, गड्ढा आदि) के प्रकार
और सीमा का निर्धारण करना है ताकि रखरखाव का काम समय पर किया जा सके। सड़क की स्थिति डेटा का उपयोग सड़क
में संरचनात्मक और कार्यात्मक कमियों की पहचान करने के लिए किया जाता है। इस डेटा और अन्य सम्बंधित जानकारी के
आधार पर, सड़क की सतह के दोषों के संभावित कारणों और सुधारात्मक उपायों का उचित चयन आम तौर पर किया जाता है।
पिछले दो दशकों में, विभिन्न एजेंसियों ने सड़क की सतह के दोषों की पहचान, वर्गीकरण और मात्रा निर्धारित करने के लिए
स्वचालित या अर्ध-स्वचालित तरीके विकसित करने का प्रयास किया है। अधिकांश राजमार्ग एजेंसियाँ सड़क पर गश्त करके
सड़क की सतह की स्थिति का डेटा एकत्र करने के लिए मैनुअल श्रम (पारंपरिक तरीका) का उपयोग कर रही हैं। सीमित
संख्या में राजमार्ग एजेंसियाँ अर्ध-स्वचालित सर्वेक्षण प्रणालियों का उपयोग कर रही हैं।
दुनिया भर के शोधकर्ताओं ने उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले डिजिटल कैमरों, लेजर-आधारित सिस्टम, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम
(जीपीएस) और इमेज प्रोसेसिंग टू ल की मदद से मोबाइल डेटा संग्रह प्रणाली का उपयोग करके सड़क की सतह की दरारों
को स्वचालित रूप से पहचानने और वर्गीकृत करने में पर्याप्त प्रगति की है। अत्याधुनिक तकनीक, सड़क की सतह के डेटा
को इकट्ठा करने के लिए उच्च-रिज़ॉल्यूशन छवियों या लेजर प्रौद्योगिकी का उपयोग करती है और सड़क की सतह की 2-डी
और 3-डी विशेषताओं के आधार पर सड़क की सतह की दरारों का पता लगाने के लिए भू-स्थानिक तकनीकों का उपयोग
करती है।

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 5


सीएसआईआर - सीआरआरआई

स्वचालित सड़क सर्वेक्षण प्रणाली का उपयोग कर सड़कों का मूल्यांकन


एक स्वचालित सड़क सर्वेक्षण प्रणाली नवीनतम सर्वेक्षण तकनीकों के उपयोग पर आधारित है, जिसमें लेजर सिस्टम,
जीपीएस और वीडियो इमेज प्रोसेसिंग टू ल्स आदि का उपयोग किया जाता है (चित्र 1) । राजमार्गों के लिए सड़क की स्थिति
से सम्बंधित डेटा के स्वत: संग्रह के लिए एक विशेष प्रकार के सर्वेक्षण वाहन का उपयोग किया जाता है। इन्वेंट्री डेटा में
सड़क की सतह की असमतलता, सड़क ज्यामितीय (ग्रेडिएंट, क्षैतिज वक्रता और क्रॉस ढलान) , स्प्रेड लेजर का उपयोग
करके रट गहराई, औसत प्रोफ़ाइल गहराई और जीपीएस
निर्दे शांक (दे शांतर, अक्षांश और ऊंचाई) आदि का माप
शामिल है।

चित्र 1 में लेजर प्रोफिलोमीटर (वाहन के सामने) और फ्रंट


वीडियो कैमरा (वाहन के शीर्ष पर) के साथ सर्वेक्षण वाहन
का सामने का दृश्य दिखाया गया है, जिसका उपयोग
अंतर्राष्ट्रीय असमतलता सूचकांक, मीन प्रोफाइल डेप्थ और
चित्र 1: स्वचालित सड़क सर्वेक्षण प्रणाली कैरिजवे वीडियोग्राफी के लिए किया जाता है।

पेवमेंट इमेजिंग सिस्टम का उपयोग करके सड़क की सतह की स्थिति का मूल्यांकन


जीपीएस द्वारा सर्वेक्षण किए गए अध्ययन क्षेत्र का एक दृश्य चित्र 2 में दिखाया गया है। सड़क की सतह के दोषों की मात्रा
के मूल्यांकन के लिए पेवमेंट इमेजिंग सिस्टम का उपयोग किया जाता है। इन तकनीकों में सड़क की सतह के मूल्यांकन के
लिए दो कैमरों का उपयोग शामिल है। जैसा कि चित्र 3 में दिखाया गया है, दो कैमरे लगातार सड़क की सतह की उच्च-
रिज़ॉल्यूशन वाली ब्लैक एंड व्हाइट कैलिब्रेटे ड छवियों (ज्ञात लंबाई और चौड़ाई के साथ) का उत्पादन करते हैं, जो वाहन
की गति के दौरान 3.5 मीटर की पूरी लेन चौड़ाई को कवर करती हैं। विभिन्न सतह दोषों का मापन (क्रैकिंग, रवेलिंग, पैचिंग
और पॉट होल आदि) इमेज प्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर की मदद से किया जाता है।

चित्र 2: जीपीएस द्वारा सर्वेक्षण किए गए अध्ययन क्षेत्र का एक दृश्य चित्र 3: पेवमेंट इमेजिंग सिस्टम

6 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

सड़क सतह की छवियों का विश्लेषण


सड़क की सतह की छवियों का अध्ययन सड़क खंड के सभी छह लेन के लिए पेवमेंट इमेजिंग सिस्टम में स्थापित दो लाइन
स्कैन कैमरा आधारित सड़क इमेजिंग सिस्टम का उपयोग करके एकत्र किया जाता है। क्योकि एक कैमरे द्वारा कवर किया
गया क्षेत्र 2.0 मीटर x 2.0 मीटर है। इसलिए 3.5 मीटर या 3.75 मीटर की एक पूरी लेन चौड़ाई को कवर करने के लिए
विश्लेषण से पहले दोनों कैमरों से एकत्र की गई छवियों को एक साथ जोड़ा जाता है। चूंकि अनुदैर्ध्य दिशा में प्रति छवि की
लंबाई 2.0 मीटर है, इसलिए एक लेन के लिए प्रति किमी जुड़े हुए चित्रों की संख्या 500 है और 23 किमी के पूरे छह लेन
खंड के लिए, जुड़े हुए चित्रों की कुल संख्या 69000 है। इसलिए, सबसे पहले इन सभी 69000 जुड़े हुए चित्रों को सतह के
दोषो की मात्रा के लिए जांचना होता है, जो एक समय लेने वाली प्रक्रिया है।
संपूर्ण सड़क की सतह की छवि डेटा के

विश्लेषण में भारी समय की आवश्यकता )
दे शांतर ऊँचाई दोष

को ध्यान में रखते हुए, मुख्य रूप से दरार 17.781 28.4546471 N 77.4698334 E 180.7 दरार

और गड्ढों के लिए, सतह के दोषो की मात्रा 16 .138 28.4653988 N 77.4582367 E 180.7 दरार
15.221 28.4704628 N 77.4508133 E 181.2
के मापन के लिए, प्रदर्शन उद्दे श्य के लिए, दरार
14.368 28.4757805 N 77.4445343 E 182.0
सड़क खंड के केवल एक लेन के छवि
दरार
12.300 28.488161 IN 77.4286804 E 182.5 दरार
डेटा का विश्लेषण किया गया हैं। सड़क 11.199 28.4946575 N 77.4201355 E 182.3 दरार
के खराब सतह क्षेत्रों के स्थान के बारे में 10.473 28.4976559 N 77.4135208 E 182.7 दरार
जानकारी तालिका 1 में प्रस्तुत की गई है। 9.143 28.5025806 N 77.4010696 E 188.2 दरार
प्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर का उपयोग करके 6.991 28.5138836 N 77.3836823 E 189.7 दरार

दरारों और गड्ढों के क्षेत्रफल के मापन के 4.302 28.5291557 N 77.3624802 E 199.1 दरार


2.207 28.5404682 N 77.3452377 E 193.6
लिए उपयोग की जाने वाली तकनीक के दरार
0.337 28.5514908 N 77.3307877 E 194.6
स्क्रीन शॉट् स को क्रमशः चित्र 4 (ए) और
दरार
0.296 28.5517616 N 77.3304977 E 195.2
4 (बी) में दिखाया गया है और परिणाम
तालिका 2 में दिखाए गए हैं। तालिका 1: विभिन्न दोष प्रकारों के जीपीएस स्थान

चित्र 4 (ए): प्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर का उपयोग करके दरार के चित्र 4 (बी) : प्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर का उपयोग करके गड्ढे के
क्षेत्रफल का मापन क्षेत्रफल का मापन

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 7


सीएसआईआर - सीआरआरआई

तालिका 2: विभिन्न स्थानो पर दोषो की मात्रा

स्थान (किलोमीटर) फ्रेम नंबर दरार (वर्गमीटर) गड्ढा (वर्गमीटर)


17.812 3264 1.66
17.810 3265 1.11
16.141 4101 6.44
16.139 4102 5.70
16.137 4103 1.12
16.125 4109 5.98
15.214 4565 0.90
15.212 4566 1.72
15.120 4612 2.25
15.116 4614 1.92
15.114 4615 2.19
15.108 4618 1.40
15.088 4628 1.93
15.086 4629 1.54
14.363 4991 0.54
12.396 6026 0.11
8.960 7696 0.38
4.295 10031 1.23
4.293 10032 1.92
4.279 10039 0.35
4.269 10044 1.98
4.263 10047 2.50
4.253 10052 1.54
4.251 10053 1.22
4.213 10072 3.19
4.211 10073 1.87
4.168 10095 1.83
0.453 11955 0.41
0.356 12003 2.31
0.354 12004 2.06
0.346 12008 0.86
0.344 12009 0.75
0.340 12011 2.49
0.336 12013 1.67
0.334 12014 1.77
0.332 12015 1.75
0.330 12016 0.69
0.286 12038 0.10

8 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

अनुसंधान क्रियाविधि

दरार निगरानी का पूर्ण स्वचालन एक चुनौतीपूर्ण छवि प्रसंस्करण समस्या है, क्योंकि ज्यादातर मामलों में दरारें पतली,
अनियमित रेखाओं के रूप में दिखाई दे ती हैं, जो एक मजबूत, बनावट वाले पृष्ठभूमि त्रुटि में दबी होती हैं । सड़क की सतह
की छवि में मोटे तौर पर तीन घटक होते हैं; (i) पृष्ठभूमि, (ii) पृष्ठभूमि त्रुटि, और (iii) दोष। एक आदर्श सड़क सतह छवि में,
प्रत्येक पिक्सेल के चमक स्तर को संबंधित ग्रे स्तर पर रैखिक रूप से मैप करने की आवश्यकता होती है। दरार की पहचान
के लिए एक प्राथमिक संकेत यह है कि एक दरार को उसके अंधेरे (टोन अंतर) द्वारा पृष्ठभूमि से अलग किया जा सकता है।
जब गहरे रंग के पिक्सेल एक पतली पट्टी के पैटर्न में ज्यामितीय रूप से जुड़े होते हैं, तो ये पिक्सेल एक दरार का संकेत दे
सकते हैं। इसलिए डार्क ऑब्जेक्ट्स और उनकी लंबाई, चौड़ाई और कंट्रास्ट का पता लगाना पूरी प्रक्रिया का पहला और
सबसे महत्वपूर्ण कदम है।

यह दे खा गया है कि अलग-अलग दिन के प्रकाश की स्थिति के कारण कुछ छवियों में अन्य शेष छवियों के समान रोशनी
की स्थिति नहीं होती है। इसलिए, छवियों को आगे संसाधित करने से पहले रोशनी के प्रभाव को दूर करने की योजना बनाई
गई है। इसलिए रोशनी के प्रभाव को दूर करने के लिए रेडियोमेट्रिक सुधार छवियों पर लागू होते हैं। रेडियोमेट्रिक सुधार लागू
करने के बाद, छवियों में समान रोशनी की स्थिति दिखाई दे ती है। दरारों और गड्ढों के क्षेत्रफल की गणना के लिए सड़क की
सतह की छवियों का विश्लेषण करने के लिए इमेज प्रोसेसिंग टू ल्स पर आधारित एक नई पद्धति विकसित की गई है।

इस शोध में दरारों और गड्ढों के क्षेत्रफल की गणना के लिए सड़क की सतह की छवियों का विश्लेषण करने के लिए इमेज
प्रोसेसिंग टू ल्स पर आधारित एक नई पद्धति विकसित की है।

प्रस्तावित कार्यप्रणाली कंट्रास्ट स्ट्रेचिंग, एज डिटे क्शन, थ्रेशोल्डिंग, रूपात्मक संचालन और सतह दोष (दरार और गड्ढे) के
क्षेत्रफल का प्रतिनिधित्व करने वाले पिक्सल के माप पर आधारित है। इमेज प्रोसेसिंग से पहले और बाद में सतह की छवियाँ
क्रमशः चित्र 5 (ए) और (बी) में दिखाई जाती हैं।

कंट्रास्ट स्ट्रेचिंग (जिसे अक्सर सामान्यीकरण प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है) एक साधारण छवि वृद्धि तकनीक है जो
एक छवि में तीव्रता मूल्यों (डीएन वैल्यू) की सीमा को ‘खींच’ करके कंट्रास्ट को बेहतर बनाने का प्रयास करती है, जिसमें
मूल्यों की वांछित सीमा होती है, उदाहरण, पिक्सेल वैल्यू की पूरी श्रृंखला । खराब रोशनी, इमेजिंग सेंसर में डायनेमिक
रेंज की कमी या लेंस मापदं डों की गलत सेटिंग के कारण कम कंट्रास्ट इमेज मिल सकती हैं। कंट्रास्ट स्ट्रेचिंग के पीछे का
विचार प्रोसेस्ड इमेज में इंटेंसिटी लेवल की डायनामिक रेंज को बढ़ाना है। उदाहरण के लिए, 8-बिट सिस्टम में छवि प्रदर्शन
अधिकतम 256 (0-255) ग्रे स्तर दिखा सकता है। यदि रिकॉर्ड की गई छवि में ग्रे स्तरों की संख्या कम सीमा में फैली हुई
है, तो छवियां धुंधली हो सकती हैं और ग्रे स्तरों की संख्या को व्यापक श्रेणी में विस्तारित करके वृद्धि की आवश्यकता हो
सकती है। इस प्रक्रिया को कंट्रास्ट स्ट्रेचिंग कहा जाता है। परिणामी छवि, वस्तु और पृष्ठभूमि के बीच उन्नत कंट्रास्ट प्रदर्शित
करती है।

जब मूल छवि में डीएन वैल्यू ग्रे स्तरों की कुल सीमा को भरने के लिए समान रूप से विस्तारित होते हैं, तो परिवर्तन को
रैखिक विपरीत खिंचाव कहा जाता है। यदि DN पिक्सेल का डिजिटल नंबर है, तो DNst एन्हांस्ड आउटपुट इमेज में
संबंधित DN है, DNmax और DNmin मूल छवि में अधिकतम और न्यूनतम DN मान हैं, रैखिक कंट्रास्ट स्ट्रेचिंग को
संख्यात्मक रूप से समीकरण (1) द्वारा दर्शाया जा सकता है।

DNst = [255 x (DN - DNmin)] / (DNmax - DNmin)……………………….. समीकरण (1)

जहां DNmin-DNmax की श्रेणी में DN मान आउटपुट छवि में 0-255 की सीमा तक पुन: स्के ल किए जाते हैं।
कंट्रास्ट स्ट्रेचिंग ऑपरेशन ग्रेस्के ल इमेज पर दो पास में लागू किया जाता है। पहले पास में, एल्गोरिथ्म छवि में न्यूनतम और
अधिकतम तीव्रता मानों की गणना करता है, और छवि के माध्यम से दूसरे पास में, उपरोक्त सूत्र सभी पिक्सेल पर लागू
होता है। इस चरण में ग्रे स्तर की छवियों को इसकी दृश्य गुणवत्ता और मशीन पहचान सटीकता में सुधार करने के लिए
बढ़ाया जाता है।

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 9


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(ए) मूल छवि (बी) संसाधित छवि

चित्र 5: ऐलीगेटर दरार सतह का मूल्यांकन

ऐलीगेटर दरारों के मामले में गड्ढों और छोटे टू टे हुए ब्लॉकों की सीमा, दरार क्षेत्रफल का पता लगाने के लिए छवि में संभावित
किनारों को चिह्नित करने के लिए कैनी फिल्टर लगाया जाता है। दरार क्षेत्रफल का पता लगाने के लिए छवि में संभावित
किनारों को चिह्नित करने के लिए कैनी फिल्टर लगाया जाता है। एल्गोरिथ्म 5 चरणों में चलता है:
1. सपाट करना 2. ग्रेडिएंट ढूँ ढना 3. गैर-अधिकतम दमन 4. डबल थ्रेसहोल्डिंग 5. हिस्टैरिसीस द्वारा एज ट्रै किंग
किनारों का पता लगाने के बाद, एक उपयुक्त थ्रेशोल्ड मान निर्धारित किया जाता है ताकि थ्रेशोल्ड के नीचे ग्रे स्तर वाले
पिक्सेल को दोष पिक्सेल के रूप में वर्गीकृत किया जा सके और थ्रेशोल्ड से अधिक ग्रे स्तर मान वाले पिक्सेल पृष्ठभूमि
को असाइन किए जा सकें। साधारण थ्रेशोल्डिंग द्वारा निर्मित द्विआधारी क्षेत्र पृष्ठभूमि त्रुटि और बनावट से विकृत होते हैं।
रूपात्मक छवि प्रसंस्करण छवि के रूप और संरचना के हिसाब से इन खामियों को दूर करने के लक्ष्यों का पीछा करता है।
अंत में, सतह दोषों के क्षेत्रफल का प्रतिनिधित्व करने वाले पिक्सल की गणना करके दरारें के क्षेत्रफल का अनुमान लगाया
जा सकता है।
इसी तरह के प्रयास गड्ढों के क्षेत्रफल का मूल्यांकन करने के लिए किए गए थे। इमेज प्रोसेसिंग से पहले और बाद में गड्ढे की
छवियाँ क्रमशः चित्र 6 (ए) और (बी) में दिखाई जाती हैं।

(ए) मूल छवि (बी) संसाधित छवि


चित्र 6: गड्ढों के क्षेत्रफल का मूल्यांकन

सड़क की सतह की दरारों और गड्ढों के स्वचालित मूल्यांकन के लिए विकसित पद्धति को विभिन्न सड़क सतह छवियों के
लिए लागू किया गया है। परिणामों से पता चलता है कि इस अध्ययन में विकसित पद्धति का उपयोग, अच्छी दिन की रोशनी
की स्थिति में उच्च-रिज़ॉल्यूशन लाइन स्कैन कैमरों का उपयोग करके एकत्र की गई छवियों के द्वारा दरारों और गड्ढों के
क्षेत्रफल के स्वचालित माप के लिए 90-95% सटीकता के भीतर किया जा सकता हैं।

10 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


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निष्कर्ष
¾ नए तकनीकी विकास ने ऐसे तरीके तैयार किए हैं, जो उच्च-रिज़ॉल्यूशन डिजिटल छवियों को स्वचालित रूप से
कैप्चर करने के लिए उपकरण और विशेष सॉफ़्टवेयर का उपयोग करके सड़कों का शीघ्रता से निरीक्षण कर सकते
हैं, जिनका उपयोग सड़क की सतह की कमियों के प्रकार को पहचानने और मापने के लिए किया जा सकता है। ऐसी
प्रणाली अधिक गति और सटीकता के साथ सामान्य यातायात की गति को प्रभावित किए बिना बड़ी मात्रा में डेटा
एकत्र कर सकती है।
¾ जीपीएस आधारित सर्वेक्षण प्रणालियाँ अनुरक्षण उद्दे श्यों के लिए आवश्यक विभिन्न दोषों (दरार, गड्ढे आदि) के सटीक
स्थानों की पहचान करने में उपयोगी हैं।
¾ इमेज प्रोसेसिंग तकनीक का उपयोग दरारों और गड्ढों के क्षेत्रफल के स्वचालित मूल्यांकन के लिए किया जा सकता है।
दरारों और गड्ढों के मापन के लिए विकसित पद्धति के आधार पर, सड़क नेटवर्क के त्वरित और सटीक मूल्यांकन के
लिए उपकरण विकसित किए जा सकते हैं।
¾ भविष्य में, एक मजबूत मूल्यांकन प्रणाली विकसित करने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है जो बहुत
खराब से लेकर बहुत अच्छी स्थिति तक सभी प्रकार की सड़क की सतह का मूल्यांकन कर सके।
संदर्भ
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Australia, 2011.

2. Canny, J. (1986), “A Computational Approach to Edge Detection,” in IEEE Transactions on Pattern


Analysis and Machine Intelligence, Volume PAMI-8, No. 6, pp. 679-698.
3. Efford, N. (2000), “Digital Image Processing – a practical introduction using Java”, Pearson Education
Limited, England.
4. Huang, Y., Xu, B., (2005), “An Automatic Pavement Surface Distress Inspection System”, Journal of
ASTM International, November/December 2005, vol.2, no.10,pp. 1-11.
5. IRC, (1982), “Code of Practice for Maintenance of Bituminous surfaces of Highways”. The Indian
Roads Congress, Publication No. 82, 1982.
6. Jensen, J.R. (2005), “Introductory digital image processing: Remote sensing, Image processing”,
Prentice Hall Publications.
7. Kelvin C.P. W., (2008), “Automated Pavement Distress Survey through Stereovision”, Final Report for
Highway IDEA Project 88.
8. Kelvin C.P. W., Gong, W., Elliott, R.P., (2004), “A Feasibility Study on Data Automation for
Comprehensive Pavement Condition Survey”, The 6th International Conference on Managing
Pavements, 19 – 24 October 2004, Brisbane Convention & Exhibition Centre, Queensland, Australia.
9. Kumar, P., (2019), “Pavement Condition Evaluation and Classification Using Geospatial Tools”, PhD
Thesis, Indian Institute of Technology Roorkee, Roorkee.
10. Ouyang, A., Luo, C., Zhou, C., (2011), “Surface Distresses Detection of Pavement Based on Digital
Image Processing”, International Federation for Information Processing 2011, pp. 368-375.
11. Wirth, M.A. (2004), “Morphological Image Analysis”, PhD Thesis, Computing and Information Science
Image Processing Group, University of Guelph.
12. Yao, X., Yao, M., Bugao, X, “Automated Measurements of Road Cracks Using Line-scan Imaging”,
Journal of Testing & Evaluation, vol.39, no.4, pp.1-9.

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 11


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सुनम्य कुट्टिम पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव


डॉ. अभिषेक मित्तल, प्रधान वैज्ञानिक एवं गजेंद्र कुमार, वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी, सुनम्य कुट्टिम प्रभाग
1. परिचय
तापमान और मौसम के पैटर्न में दीर्घकालिक बदलाव को जलवायु परिवर्तन कहा जाता है। यह प्राकृतिक घटना जैसेकि
सौर चक्र में बदलाव के माध्यम से शुरू हो सकता है। जलवायु परिवर्तन से संबंधित विज्ञान का आकलन करने के लिए
संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था, इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने मानवीय गतिविधियों को जलवायु
परिवर्तन (IPCC, 2012) के प्राथमिक कारण के रूप में आरोपित किया है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार
जलवायु परिवर्तन के संकेतक के तौर पर ग्रीन हाउस गैस में वृद्धि, समुद्र के जल स्तर का बढ़ना, समुद्र की गर्मी व समुद्र का
अम्लीकरण शामिल है। यूनाइटे ड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटे न के मौसम विभाग द्वारा जारी विश्व के औसत तापमान में वृद्धि को
नीचे चित्र 1 में दर्शाये गए ग्राफ की मदद से समझा जा सकता है।

चित्र 1: पूर्व औद्योगिक स्थितियों (1850-1900)एवं (1850-2021) के बीच छ: डाटा सेट का वैश्विक औसत तापमान का अंतर

इस चित्र से यह समझा जा सकता है कि विश्व का औसत तापमान औद्योगीकरण के पश्चात लगभग 1.13C बढ़ गया
है। जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिमों में अधिक लगातार और तीव्र सूखा, तूफान, गर्मी की लहरें, समुद्र का बढ़ता स्तर,
ग्लेशियरों का पिघलना और महासागरों का गर्म होना शामिल हैं। ये वर्तमान जोखिम हैं, जलवायु परिवर्तन के भविष्य के
अनुमान और भी अधिक डरावने हैं। तालिका 1 जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप वैश्विक परिवर्तनों का सार प्रस्तुत
करती है। ऐसी प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियाँ न केवल मनुष्य को प्रभावित करती हैं, बल्कि समग्र रूप से परिवहन क्षेत्र
और विशेष रूप से सड़कों के लिए गंभीर रूप से हानिकारक हैं।
तालिका 1: मुख्य प्रत्याशित वैश्विक जलवायु संबंधी परिवर्तनों की सूची (Dawson 2014)

सबसे संभावित परिदृश्य परिमाणीकरण 2010 तक


तापमान में वृद्धि 1.1 – 6.4 °C
समुद्र तल में वृद्धि 18 – 60 cm
बर्फ के जलाशयों का पिघलना मात्रा निर्धारित नहीं #
चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि मात्रा निर्धारित नहीं #
यूरोप में वार्षिक शुद्ध : 0-15 %
वर्षा में वृद्धि
यूएसए में वार्षिक शुद्ध: -20 to +20%
विकिरण शक्ति में वृद्धि मानवजनित : 0.6 – 6.4 W/m2
उच्च अक्षांश मृदाओं में मौसमी विगलन परत की मोटाई में वृद्धि मात्रा निर्धारित नहीं #
# इंगित करता है कि प्रभाव निश्चित है लेकिन मूल्य की गणना विश्वसनीय रूप से नहीं की गई है या बहुत व्यापक रूप से भिन्न है।

12 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

जलवायु परिवर्तन से जुड़ी तीन परिवहन संवेदनशीलता हैं (Mills and Andrey 2002) -
क) अवसंरचना (सड़कों सहित): सड़क नेटवर्क की योजना, डिजाइन, निर्माण और रखरखाव
ख) संचालन: दक्षता, गतिशीलता, सुरक्षा, पर्यावरण और सामाजिक बाह्यताएं (सोशल एक्सटरनेलिटिज), और
ग) मांग: स्थान, समय, मोड और सेक्टर
यह शोधपत्र सामग्री, डिजाइन, निर्माण और रखरखाव पहलुओं की दृष्टि से कुट्टिमों पर तापमान में परिवर्तन (जलवायु
परिवर्तन के कारण) के प्रभावों पर केंद्रित है। इन पहलुओं के लिए संबंधित विचारों की व्याख्या बाद के खंडों में की गई है।
2. सड़क सामग्री के लिए विचार
एक सुनम्य कुट्टिम आमतौर पर वांछित विनिर्दे श आवश्यकताओं को पूरा करने वाली विभिन्न सामग्रियों की विभिन्न परतों
से बना होता है। सुनम्य कुट्टिम के लिए, मोटे बिटु मिनस परतों (एक या अधिक) के साथ निचली परतों में आमतौर पर
पहनने वाले पाठ्यक्रम के रूप में दानेदार सामग्री का उपयोग किया जाता है। कम यातायात अनुप्रयोगों के लिए, एक पतली
बिटु मिनस सतह (प्रीमिक्स कालीन या सतह ड्रेसिंग) प्रदान की जाती है। उच्च शक्ति वाले कुट्टिम के लिए स्थिर आधारों और
उप-आधारों का उपयोग किया जाता है।
कुट्टिमों को दै निक और मौसमी दोनों तरह के तापमान में व्यापक बदलाव को सहना पड़ता है। तापमान में भिन्नता कुट्टिम
सामग्री के चयन और विशिष्टताओं को प्रभावित करती है। तापमान का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव बिटु मिनस परत पर पड़ता
है, क्योंकि बिटु मेन एक तापमान संवेदनशील सामग्री है। पर्यावरण के संपर्क में आने पर बिटु मेन पुराना हो जाता है और
वाष्पशील हो जाता है, कठोर हो जाता है, भंगुर हो जाता है और फिर फट जाता है।
उच्च तापमान डामर परत की कठोरता और ताकत को कम करता है। यह कमी कुट्टिम की प्रतिबल-विकृति प्रतिक्रिया को
सीमित करने की ओर ले जाती है और कुट्टिम संरचना की भार फैलाने की क्षमता को कम करती है (AASHTO, 2009)।
इसके अलावा, उच्च तापमान स्थायी विरूपण (या रटिंग) का विरोध करने के लिए बिटु मिनस कुट्टिम की क्षमता को कम
करता है। जब जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान बढ़ता है, तो बिटु मिनस परतों में अधिक तापीय तनाव प्रेरित होते हैं,
जिसके परिणामस्वरूप कुट्टिम संरचना में थर्मल क्रैकिंग बढ़ जाती है (Qiao 2020)। इसके अलावा, उच्च तापमान के
कारण बिटु मिनस मिश्रण की उम्र बढ़ने की दर तेज होती है, और भंगुरता के कारण कुट्टिमों में दरार पड़ने की संभावना
अधिक हो जाती है। अधिक तापमान होने पर सड़क की ऊपरी सतह पर अधिक म्रदुकांक बिन्दु वाला डामर प्रयोग में लाना
पड़ता है जोकि कम म्रदुकांक बिन्दु वाले डामर से महंगा होता है। इससे सड़क की कुल लागत बढ़ने की संभावना है।

कुल मिलाकर, उच्च तापमान कुट्टिम के जीवन को कम करता है और अधिक बार-बार रखरखाव की मांग करता है जैसे कि
फिर से सील करना/पुनर्जीवित करना।
3. कुट्टिम डिजाइन के लिए विचार
भारतीय परिस्थितियों के लिए, कुट्टिम को श्रांति (फटीग) और स्थायी विरूपण (या रटिंग) विफलता के लिए डिज़ाइन किया
जाता है। श्रांति (फटीग) विफलता के लिए बिटु मिनस परत के तल पर क्षैतिज तन्यता स्ट्रेन एवं रटिंग विफलता के लिए
सबग्रेड के शीर्ष पर वर्टिकल कंप्रेसिव स्ट्रेन को विचार में लिया जाता है | रटिंग विफलता ट्रैफिक लोड के कारण बिटु मिनस
सतह के भीतर संचित प्लास्टिक (स्थायी) विरूपण के कारण हो सकती है। श्रांति (फटीग) विफलता के लिए बिटु मिनस परत
के तल पर क्षैतिज तन्यता स्ट्रेन स्वीकार्य तन्यता स्ट्रेन से कम होना चाहिए।
श्रांति (फटीग) प्रदर्शन बिटु मिनस मिश्रणों के लचीला मापांक और मिश्रण डिजाइन गुणों से प्रभावित होता है। बिटु मिनस
मिश्रणों के लचीले मापांक मान तालिका 2 (IRC: 37-2018) में नीचे दिए गए हैं।

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 13


सीएसआईआर - सीआरआरआई

तालिका 2 : बिटु मिनस परतों के सांकेतिक लचीले मापांक मान (IRC:37-2018)

औसत वार्षिक कुट्टिम तापमान (°C)


मिश्रण प्रकार
20 25 30 35 40
VG10 बिटु मिन के साथ BC और DBM 2300 2000 1450 1000 800
VG30 बिटु मिन के साथ BC और DBM 3500 3000 2500 2000 1250
VG40 बिटु मिन के साथ BC और DBM 6000 5000 4000 3000 2000
संशोधित बिटु मिन के साथ BC 5700 3800 2400 1600 1300
VG10 बिटु मिन के साथ BM 500 MPa (35 °C पर)
VG30 बिटु मिन के साथ BM 700 MPa (35 °C पर)

जैसाकि उपरोक्त तालिका से दे खा जा सकता है, बिटु मिनस मिश्रण के मापांक मान तापमान में वृद्धि के साथ घटते हैं।
कुट्टिम डिजाइन के प्रयोजन के लिए, 35 डिग्री सेल्सियस के अनुरूप मापांक मान का चयन किया जाता है जो मैदानी
इलाकों में प्रचलित जलवायु परिस्थितियों के लिए औसत वार्षिक कुट्टिम तापमान के करीब है। हिमाच्छादित क्षेत्रों के लिए,
20 डिग्री सेल्सियस पर मापांक मूल्यों को डिजाइन उद्दे श्य के लिए माना जाता है।
जलवायु परिवर्तन का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव पूरे विश्व में उच्च तापमान के रूप में प्रकट हो रहा है। चित्र 1 दे श भर के विभिन्न
शहरों के लिए रिकॉर्ड किए गए उच्च तापमान को प्रस्तुत करता है। आंकड़ों पर करीब से नजर डालने पर पता चलता है कि
जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदे श के उत्तरी क्षेत्रों
और दे श के दक्षिणी हिस्से को छोड़कर पूरे दे श में अत्यधिक
उच्च तापमान दर्ज किया गया।
जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि के साथ,
कुट्टिम डिजाइन तापमान को उच्च मूल्य में स्थानांतरित
करने की आवश्यकता हो सकती है। किसी को डिज़ाइन
तापमान की पहचान करने की आवश्यकता होगी
जिसका उपयोग डिज़ाइन के उद्दे श्य के लिए किया
जाना चाहिए। जब डिजाइन के लिए उच्च तापमान
पर विचार किया जाता है, बिटु मिनस मिश्रणों के कम
मॉड्यूलस मूल्यों के कारण कुट्टिम की समग्र मोटाई बढ़
जाएगी अथवा हमें बिटु मिनस मिश्रणों में उच्च मापांक
चित्र 1 : भारत भर के विभिन्न शहरों के लिए उच्च तापमान बिटु मेन का प्रयोग करना पड़ेगा।
दिखाने वाला मानचित्र (HT Media, 2022)

4. निर्माण और रखरखाव के लिए विचार


बढ़े हुए तापमान के लिए मोटी सरंचना और बेहतर गुणवत्ता वाली सामग्री के उपयोग की आवश्यकता होगी जो उच्च
तापमान के प्रभावों का विरोध करने में सक्षम हों। भारी वाहन भार के साथ उच्च तापमान को पारंपरिक फ़र्श ग्रेड बिटु मेन के
बजाय बहुलक संशोधित बिटु मेन का उपयोग करने के लिए पहनने वाली सतहों की आवश्यकता हो सकती है। चौराहों और
पुल डेक स्लैब पर, मैस्टिक डामर को एक अच्छा विकल्प माना जा सकता है। यह एक औद्योगिक ग्रेड बिटु मेन (आमतौर
पर 85/25 बिटु मेन का उपयोग किया जाता है) से युक्त एक शून्य-रहित द्रव्यमान होता है, जिसे मैस्टिक कुकर में तैयार
किया जाता है (मैस्टिक कुकर के नए संस्करण गैर-प्रदूषणकारी होते हैं) और इसे मैन्युअल रूप से या यांत्रिक पेवर के साथ
रखा जा सकता है। कठोर ग्रेड औद्योगिक बाइंडर उच्च वायुमंडलीय तापमान भिन्नताओं का विरोध करने में सक्षम है। इसके
अतिरिक्त कठोर ग्रेड औद्योगिक बाइंडर को गर्म करने के लिया अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है ।
बढ़े हुए तापमान के साथ, रखरखाव गतिविधियाँ क बढ़ने की उम्मीद है। इससे रखरखाव गतिविधियों की लागत में वृद्धि
14 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023
सीएसआईआर - सीआरआरआई

होगी। गर्मी व अधिक धूप की दशा में उच्च तापमान की विस्तारित अवधि के दौरान, संघनन की प्रक्रिया में सड़क के
प्रोफाइल को बनाए रखना मुश्किल होगा क्योंकि मिश्रण काफी लंबे समय तक काम करने योग्य रहता है (Willway T.
el al., 2008)। साथ ही, सड़क के यातायात के लिए खोले जाने के बाद भी हॉट मिक्स डामर (HMA) मिक्स भी उच्च
तापमान बनाए रख सकता है, जिसके परिणामस्वरूप लोडेड वाहनों की आवाजाही के कारण अत्यधिक रटिंग होती है।
कुल मिलाकर, इससे समान यातायात स्तरों के लिए अधिक कुट्टिम का महंगा निर्माण होगा और कुट्टिम के रखरखाव की
लागत में भी वृद्धि होगी।
5. जलवायु परिवर्तन के अन्य प्रभाव
उच्च तापमान जलवायु परिवर्तन से जुड़ा एकमात्र जोखिम नहीं है। जलवायु परिवर्तन से जुड़े अन्य जोखिमों में अधिक
लगातार और तीव्र सूखा, तूफान, गर्मी की लहरें, समुद्र का बढ़ता स्तर, पिघलते ग्लेशियर और गर्म होते महासागर शामिल
हैं। ये घटनाएँ किसी न किसी रूप में कुट्टिम के प्रदर्शन को भी प्रभावित करेंगी। समुद्र का स्तर बढ़ने से विशेष रूप से तटीय
क्षेत्रों में जल स्तर या जल स्तर में वृद्धि होगी। बिटु मिनस कुट्टिम की निचली परतों में उपयोग की जाने वाली अनबाउं ड
दानेदार सामग्री पानी के बढ़ते स्तर के कारण इस तरह की नमी की विविधता के प्रति अधिक संवेदनशील होती है, उच्च नमी
सामग्री के परिणामस्वरूप इन परतों की ताकत कम हो जाती है। अधिक वर्षा के कारण बिटु मिनस सतह, ग्रेन्युलर सतह
में पानी जाने की संभावना बढ़ जाएगी। वर्षा की अधिकता सतह की परतों में विपट्टन (स्ट्रिपिंग) और विघटन (रेवलिंग)
का कारण बन सकती है। इसको रोकने के लिए विपट्टनरोधी (एंटी स्ट्रिपिंग) मिश्रण का प्रयोग पुनः सड़क की लागत को
बढ़ा सकता है। निर्माण के दौरान खारे पानी का उपयोग (अर्थात सूखे के कारण) कुट्टिम सामग्री में नमक के संचय के
परिणामस्वरूप हो सकता है और बंध विशेषताओं को प्रभावित कर सकता है। नमक की उपस्थिति भी मिट्टी की उपश्रेणी में
सिकुड़न/प्रफुल्लित व्यवहार को बढ़ा सकती है और सामग्री भर सकती है जिसके परिणामस्वरूप कुट्टिम में अधिक दरार पड़
सकती है और अधिक रखरखाव गतिविधियों की आवश्यकता होती है।
6. अंतिम शब्द
चूंकि जलवायु परिवर्तन का कुट्टिम के प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, इसलिए इन प्रभावों को कम करने के लिए
उपयुक्त अनुकूलन किए जाने चाहिए। कम संतृप्ति स्तर बनाए रखने के लिए बेहतर गुणवत्ता वाली सामग्री, उचित जल
निकासी और उप-सतह जल निकासी का उपयोग, बेहतर डिजाइन, निर्माण और रखरखाव प्रथाओं को विकसित करने और
अपनाने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को दूर करने के लिए यह आवश्यक है।
संदर्भ
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Impacts”, The Potential Impacts of Climate Change on Transportation, Workshop Proceedings,
Brookings Institution, Washington, D.C., United States Department of Transportation.
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Transport Research Laboratory, London, UK.
3. IPCC (2012), “Managing the Risks of Extreme Events and Disasters to Advance Climate Change
Adaptation”, Special Report of the Intergovernmental Panel on Climate Change, Cambridge University
Press, New York, US.
4. Dawson, A. (2014), “Anticipating and Responding to Pavement Performance as Climate Changes”,
In K. Gopalakrishnan, W. J. Steyn, & J. Harvey (Eds.), Climate Change, Energy, Sustainability and
Pavements (127-157). Springer. https://doi.org/10.1007/978-3-662-44719-2_4
5. AASHTO (2009), “Mechanistic-Empirical Pavement Design Guide (MEPDG)”, American Association
of State Highway and Transportation Officials, National Cooperative Highway Research Program:
Washington, DC, USA, 2009.
6. Qiao, Yaning, Dawson, Andrew R., Parry, Tony, Flintsch, Gerardo and Wang, Wenshun (2020), “Flexible
Pavements and Climate Change : Comprehensive Review and Implications”, Sustainability,12(1057), MDPI.
7. https://public.wmo.int/en/media/press-release/four-key-climate-change-indicators-break-records-2021.

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 15


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सड़क अनुरक्षण हेतु बिटु मिन पायस आधारित ऊर्जा


दक्ष मृदु तप्त मिश्रण प्रौद्योगिकी
सौरभ कुमार वर्मा, तकनीकी सहायक एवं डॉ. शिक्षा स्वरुपा कर, प्रधान वैज्ञानिक, सुनम्य कुट्टिम प्रभाग
1. परिचय
राजमार्ग अभियन्ता एवं शोधकर्ता सदै व से ही बिटु मिनस सड़क निर्माण एवं अनुरक्षण के दौरान कार्बन उत्सर्जन में कमी
करने एवं ऊर्जा दक्ष विधियों एवं सामग्रियों को विकसित करने हेतु उत्सुक रहे हैं। गर्म मिश्रण प्रौद्योगिकी, एक परम्परागत
सामग्री एवं विधि हैं। परम्परागत गर्म मिश्रित तकनीकी की कुछ कमियाँ अधोलिखित हैं।

•-उच्च ध्वनि एवं वायु प्रदूषण • ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन • स्थायित्व के साथ समझौता
•-अत्यधिक ऊर्जा खपत एवं • मजदूरों हेतु असुरक्षित
शीत मिश्रण डामर (Cold Mix Asphalt – CMA) एवं मृदु तप्त मिश्रण डामर (Mild Warm Mix Asphalt -
MWMA) को परम्परागत गर्म मिश्रण डामर (Hot Mix Asphalt – HMA) के स्थान पर एक विकल्प के रूप में प्रयोग
किया जाता है, जिसे हाल ही में राष्ट्रीय विशिष्ठता भी प्राप्त हुई है। इन मिश्रणों के प्रमुख तत्वों में रोड़ी, पायस एवं भरण
सामग्री (Filler Material) है, जिन्हें शीत मिश्रण की स्थिति में परिवेशिक तापमान जबकि मृदु तप्त मिश्रण की स्थिति में
50०C तापमान पर मिश्रित किया जाता है। ये सामग्रियाँ तकनीकी विकास के प्रयोग से आवश्यकता से कम तापमान पर
उत्पादित एवं संघनित (Compact) की जाती हैं। ये मिश्रण निर्माण एवं ऊर्जा लागत में कमी करने, निर्माण की दक्षता एवं
गुणवत्ता में सुधार करने, तथा न्यूनतम उत्सर्जन के माध्यम से पर्यावरणीय प्रबंधन में सुधार एवं एक स्वास्थ्यपूर्ण कार्यक्षेत्र
बनाने की क्षमता प्रदान करते हैं। ये लाभ, राजमार्गीय पेशों एवं सड़क निर्माण उद्योगों को मृदु तप्त एवं शीत मिश्रण निर्माण
तकनीकियों की ओर आकर्षित करते हैं। इन सामग्रियों के प्रयोग के परिणामतः बेहतर संघनन, मिश्रण को लंबे दूरियों
तक ले जा सकने की क्षमता और न्यूनतम जरण के कारण कुट्टिम स्थायित्व में सुधार अपेक्षित है। मृदु तप्त मिश्रित डामर
अपने विस्तारित शीतन समय के कारण भारत में किसी भी मौसम में कम तापमान पर सड़क बिछाने एवं मरम्मत के लिए
सफलतापूर्वक प्रयोग किए जा सकते हैं। हाल ही में, शीत मिश्रित डामर, मृदु तप्त मिश्रित डामर एवं शीत पुनर्चक्रण हेतु
बंधक सामग्री के रूप में बिटु मिन पायस का प्रयोग किया गया है।
परम्परागत शीत मिश्रित तकनीकी के कुछ अलाभ जैसे खराब लेपन (Coating), अत्यधिक उपचारण समय एवं अपर्याप्त
संघनन के कारण अधिक समय के लिए उच्च अंतरावकाश इत्यादि हैं जिसके कारण मृदु तप्त मिश्रित डामर की आवश्यकता
महसूस होती हैं जो कि मध्यम व शीत तापमान वाले क्षेत्रों में एक बेहतर विकल्प हो सकता है।

2. प्रायोगिक अध्ययन
2.1. सामग्रियाँ
बिटु मिनस मिश्रणों को प्रयोग से पूर्व, उसकी उपयुक्तता जाँचने हेतु सामग्रियों का परीक्षण करना आवश्यक है। यह परिच्छे द
रोड़ी एवं बिटु मिन पायस पर किए जाने वाले विभिन्न परीक्षणों से संबंधित है। खनिज रोड़ी एक संरचना/ढांचा बनाते हैं, जो
बिटु मिनस बंधक को स्थायित्व एवं सामर्थ्य प्रदान करता है। इस अध्ययन में प्रयुक्त रोड़ी दिल्ली के निकट स्थानीय खदान से
ली गई है। रोड़ी पर किए गए विभिन्न परीक्षणों के परिणाम सारणी 1 में प्रदर्शित है। नमूनों को तैयार करने हेतु SS-2 श्रेणी के
धनायनिक बिटु मिन पायस का प्रयोग किया गया है। IS : 8887-2004 के मानकों के अनुसार बिटु मिन पायस के गुणों की
जाँच की गई, सारणी 2 में वर्णित हैं।

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सारणी 1: खनिज रोड़ी के परीक्षण के परिणाम

मॉर्थ (MoRTH),
परीक्षण परीक्षण विधि परिणाम 2001 के अनुसार
आवश्यक विनिर्देश
Aggregate Impact Value, % IS 2386 (Part IV) 21.6 30 अधिकतम
Water Absorption Value, % IS 2386 (Part III) 0.7 2 अधिकतम
Specific Gravity IS 2386 (Part II) 2.66 2.5-3.0
Combined (EI + FI) Index, % IS 2386 (Part I) 25.2 30 अधिकतम
Stripping, % IS 6241 98 न्यूनतम शेष लेपन 95
सारणी 2: धनायनिक बिटु मिन पायस के परीक्षण के परिणाम

परिणाम IS 8887 – 2004 के


क्र. परीक्षण
SS-2 श्रेणी का बिटु मिन पायस अनुसार संस्तुति
1 Residue on 600 micron IS sieve (% mass) 0.025 0.05 Max.
Viscosity by Say bolt Furol Viscometer,
2 108 30-150
seconds at 250C
3 Storage stability after 24 hrs. %, max. 0.4 1.0
4 Particle charge +ve +ve
2.2. विधियाँ
क्रियाविधियों के विवरण निम्न अनुच्छेदों में दिये गए है:
2.2.1 अप्रत्यक्ष तनन सामर्थ्य (Indirect Tensile Test – ITS):
यह परीक्षण विधि एक संपीड़न परीक्षक मशीन के दो क्षैतिज अक्षों पर लगे प्लेटों के मध्य अनुकूलित एवं बगैर अनुकूलित
दोनों प्रकार के बिटु मिनस मिश्रित नमूनों पर एक व्यासीय संपीड़न बल के अनुप्रयोग से अप्रत्यक्ष तनन विभाजन सामर्थ्य की
जाँच करती हैं। परीक्षण 25० C तापमान पर 5 घंटे तक अनुकूलित नमूनों पर किया गया तथा जिस भार पर नमूना विफल
होता है, उसे विफलता भार लिया गया है।
नमूने का अप्रत्यक्ष तनन सामर्थ्य निम्न प्रकार आकलित किया जाता है: -
T=2P/πdt ……समी०.(2)

Where,
T = अप्रत्यक्ष तनन सामर्थ्य kg/sq.cm में P = नमूने का विफलता भार kg में
t = नमूने की मोटाई cm में d = नमूने का व्यास cm में
2.2.2. जल संवेदनशीलता (तनन सामर्थ्य अनुपात परीक्षण)
आर्द्रता क्षरण से सहबद्ध एक व्यापक स्थायित्व समस्या जिसे आमतौर पर स्ट्रिपिंग के नाम से जाना जाता है। स्ट्रिपिंग में जल
या जल वाष्प बिटु मिन फिल्म एवं रोड़ी के मध्य आ जाती है, जिससे रोड़ी एवं बिटु मिन बंधक फिल्म के मध्य के आसंजक

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बल टू टने लगते हैं। इसे ज्ञात करने के लिए, प्रयोगशाला में परीक्षण किया जाता है, इस प्रकार के परीक्षण में प्रयुक्त सिद्धान्त
में विनिर्दे शों के अनुसार मिश्रण अभिकल्पन एवं न्यूनतम अनुमन्य सामर्थ्य के साथ तुलना करके अनुकूलित एवं नियंत्रित
अथवा बगैर अनुकूलित नमूनों के सामर्थ्य अनुपात का निर्धारण किया जाता है। परीक्षण को ASTM D 4867 के विनिर्दे शों
के अनुसार किया जाता है। तैयार नमूनों को दो उपभागों में बाँट कर, एक उपभाग को सूखा रखा गया जबकि दूसरे उपभाग
को आर्द्र अनुकूलित एवं जल के साथ आंशिक संतृप्त किया जाता है। आर्द्र उपभाग का शुष्क उपभाग के सापेक्ष आर्द्र क्षरण
क्षमता, नमूने का तनन सामर्थ्य अनुपात दर्शाता हैं। शुष्क उपभाग 25०C में 20 मिनट तक पानी में गीला किया होता है,
आर्द्र उपभाग के अनुकूलन के लिए इसे पहले जल में 40०C तापमान पर 24 घंटे तक तत्पश्चात 25०C तापमान पर 1 घंटे
के लिए पानी में रखा जाता है। प्रत्येक उपभाग का तनन सामर्थ्य का निर्धारण उसके तनन विभाजन सामर्थ्य से किया जाता
है। नमूने का तनन सामर्थ्य अनुपात (Tensile Strength Ratio - TSR) निम्न समीकरण से आकलित किया जाता है।
TSR=(T_wet/T_dry )*100 ………Eq.(3)
जहाँ , Twet अनुकूलित नमूने का औसत अप्रत्यक्ष तनन सामर्थ्य
Tdry बगैर अनुकूलित नमूने का औसत अप्रत्यक्ष तनन सामर्थ्य
2.2.3. गतिशील विसर्पण परीक्षण (Dynamic Creep Test)
गतिशील विसर्पण परीक्षण में, नमूने पर परीक्षण अवधि के दौरान परिवर्तनशील अक्षीय भार लगाया जाता है। उक्त परीक्षण
Universal Testing Facility पर NCHRP 9-19 के अनुसार किया गया। परीक्षण के दौरान, 11 kPa से 69 kPa
का चक्रीय प्रतिबल और 0.9 सेकंड के विराम अवधि एवं 0.1 सेकंड के भार अवधि पर हवेरसाइन कंपन लगाया गया।
अधिकतम 10000 चक्रण के पश्चात संचित स्थायी विकृति (Strain) को दर्ज किया गया।
2.2.4. सुनम्यता मापांक परीक्षण (Resilient Modulus Test)
सुनम्यता मापांक, कुट्टिम के पुनरावर्तित ट्रैफिक भारण की स्थिति में कुट्टिम व्यवहार का विश्लेषण कर उसके कार्यक्षमता
के निर्धारण मे महत्वपूर्ण प्राचल (Parameter) है। यह परीक्षण Universal Testing मशीन के प्रयोग से ASTM D
4123-82 के विनिर्दे शानुसार आवर्तित भार की दशा में अप्रत्यक्ष तनन सामर्थ्य द्वारा मापा गया।
2.2.5. व्हील ट्रै किंग परीक्षण
Rutting, कुट्टिम में पहिये के भार के कारण होने वाले स्थायी विकृति के कारण होती हैं। बिटु मिनस मिश्रणों का स्थायी
विकृति के प्रति संवेदनशीलता को व्हील ट्रैकिंग उपकरण द्वारा मापा जाता है। व्हील ट्रैकिंग परीक्षण एक भंजक परीक्षण है,
जिसमें एक भारित पहिया एक आयताकार परीक्षण नमूने के प्रत्यक्ष संपर्क में रहता है। परीक्षण को BS: 598-1998 के
अनुसार किया गया। 45०C तापमान पर पहिये के 20,000 फेरों के पश्चात Rut गहराई को मापा गया।
2.3. मिश्रण अभिकल्पन
2.3.1. रोड़ी का श्रेणीकरण
मिश्रण अभिकल्पन से पूर्व रोड़ी का श्रेणीकरण मॉर्थ (MoRTH), 2001 के 5 वें संस्करण के संघनित बिटु मिनस मैकडम
(DBM) के विनिर्दे शों के अनुसार किया गया, जिसका विवरण सारणी 3 मे प्रस्तुत है।

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सारणी 3: रोड़ी का श्रेणीकरण

छलनी आकार मिमी % पारक Passing


Sieve Size mm Grading of blend Specified Grading
37.5 100 100
26.5 100 90-100
19 83 71-95
13.2 68 56-80
4.75 46 38-54
2.36 36 28-44
0.3 14 7-21
0.075 5 2-8
2.3.2 मिश्रण तापमान की उपयुक्तता
इस अध्ययन का उद्दे श्य 50०C के मृदु तापमान पर मिश्रण को तैयार करना, बिछाना एवं संघनित करना है। बिटु मिनस
मिश्रण को 50०C तापमान पर मिश्रित करने के लिए, विभिन्न आकार के मिश्रित रोड़ी को पायस के साथ भिन्न भिन्न
तापमान पर रोड़ी के अनुकूलन हेतु मिश्रित किया गया। शीत मिश्रित नमूनों को परिवेशिक तापमान पर बनाया गया।
2.3.3 मिश्रण निर्माण
इस प्रकार के मिश्रणों हेतु कोई मानक मिश्रण विधि नहीं हैं। इस अध्ययन में अपनायी गई अभिकल्पन विधि निम्न चरणों में
उल्लिखित हैं:
•-प्रारम्भिक बिटु मिन पायस मात्रा का आकलन समीकरण 1 के अनुसार (Needham, 1996)
P= (0.05A+0.1B+0.5C) × (0.7) (1)
जहाँ:
P = प्रारम्भिक अवशिष्ट बिटु मिन सामग्री का कुल मिश्रण द्रव्यमान के सापेक्ष प्रतिशतता
A = खनिज रोड़ी प्रतिशतता > 2.36mm
B = खनिज रोड़ी प्रतिशतता <2.36 and >0.075mm
C = खनिज रोड़ी प्रतिशतता < 0.075mm
•-अप्रत्यक्ष तनन सामर्थ्य के परिणाम से उपयुक्त जल एवं पायस मात्रा का निर्धारण
•-गायरेट्री संकुचक के प्रयोग से विनिर्दिष्ट अंतरावकाश में मिश्रण का संघनन
2.4. नमूने का निर्माण
मृदु तप्त मिश्रण डामर के तैयारी के लिए, मिश्रित रोड़ी को 60०C तापमान पर 30 मिनट तक तथा बिटु मिन पायस को
50०C तापमान पर ओवन में गरम किया गया। इसके साथ ही, मिश्रण बनाने के बाद पानी की आवश्यक मात्रा को रोड़ी में
मिलाया गया। तत्पश्चात बिटु मिन पायस को डालकर लगभग 1 मिनट तक रोड़ी पर बेहतर लेपन हेतु मिलाया गया। जिसके
बाद गायरेट्री संकुचक से संघनन के पश्चात नमूने को 50०C तापमान पर 4 घंटे तक ओवन में रखा गया। संघनित मिश्रण

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को एक ओवन में 40०C तापमान पर 72 घंटे तक उपचारित किया गया। शीत मिश्रित नमूनों को भी उपरोक्त प्रकार से
परिवेशिक तापमान पर बनाया गया।

आकृति 1 : जल मिश्रण का आईटीएस पर प्रभाव आकृति 2: पायस मात्रा का आईटीएस पर प्रभाव

3. परिणाम एवं निष्कर्ष


3.1. जल मात्रा उपयुक्तता
पायस मात्रा को 9%, अंतरावकाश 5%, भंजन समय 2 घंटे एवं उपचारण समय को 24 घंटे रखते हुए जल
की उपयुक्त मात्रा ज्ञात करने के लिए मिश्रण में जल की मात्रा को 0 से 4% तक बढ़ाया गया। आकृति
1 में शुष्क ITS माप एवं जल की मात्रा प्रदर्शित हैं। आकृति 1 से ऐसा पाया गया कि, जल कि मात्रा बढ़ाने से पहले
तो शुष्क ITS मापन बढ़ता है और फिर घटने लगता है।
3.2. बिटु मिन पायस उपयुक्तता
जल मात्रा को 3%, अंतरावकाश 5%, भंजन समय 2 घंटे और उपचारण समय 24 घंटे रखकर बिटु मिन पायस कि उपयुक्त
मात्रा ज्ञात करने के लिए बिटु मिन पायस को 7 से 10 % तक बढ़ाया गया। आकृति 2 से 9% पायस मात्रा को उपयुक्त पाया
गया।
3.3. तनन सामर्थ्य अनुपात
2.5% जल एवं 8.5% बिटु मिन पायस युक्त सभी मिश्रण के तनन सामर्थ्य अनुपात 80% से ऊपर प्राप्त हुए जो आर्द्र क्षरण
के प्रति स्वीकार्य प्रतिरोध प्रदर्शित करते हैं। मिश्रणों के परिणाम सारणी 4 में प्रदर्शित हैं। मृदु तप्त मिश्रित डामर का ITS
परिमाण शीत मिश्रित डामर के तुलना में अधिक है। 90% से अधिक प्रतिधारण ITS स्वीकार्य आर्द्रता प्रतिरोध प्रदर्शित
करते हैं।
सारणी 4: शीत एवं मृदु तप्त मिश्रित डामर का तनन सामर्थ्य अनुपात

Tensile Strength
Mix. Dry ITS (kg/sq.cm) Wet ITS (kg/sq.cm)
Ratio (%)
CMA 5.03 4.02 80.96
MWMA 6.37 5.76 93.18

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3.4. गतिशील विसर्पण परीक्षण 3.5. सुनम्यता मापांक परीक्षण


शीत एवं मृदु तप्त मिश्रित डामर पर परीक्षण किया गया 40०C से कम कुट्टिम तापमान के लिए सुनम्यता मापांक
जिनके कुल स्थायी विकृति का परिणाम आकृति 3 में परिमाण पर तापमान से संबन्धित परिणाम IRC:37-2012
प्रदर्शित है। के विनिर्दे शानुसार स्वीकार्य है। आकृति 4 में शीत एवं मृदु
तप्त मिश्रित डामर के 25०C, 35०C एवं 45 ०C पर
सुनम्यता मापांक परीक्षण के प्रभाव प्रदर्शित है3.6. रट

आकृति 3: विभिन्न तापमान पर विकृति (%)


की तुलना
आकृति 4: शीत एवं मृदु तप्त मिश्रित डामर के सुनम्यता मापांक
पर तापमान का प्रभाव

गहराई अध्ययन
आकृति 5 में ये दे खा जा सकता है कि शीत मिश्रण के
खराब ससंजन के कारण रट गहराई अधिक है, जबकि मृदु
तप्त मिश्रण में ये कम है।

आकृति 5: रट गहराई मूल्यों की तुलना

4. सारांश
प्रायोगिक अध्ययन से निम्न निष्कर्ष प्राप्त हुए है :
¾ मृदु तप्त मिश्रित डामर, सड़क निर्माण एवं मरम्मत हेतु टिकाऊ और ऊर्जा दक्ष प्रतीत होते हैं।
¾ परीक्षण परिणामों में ये पाया गया कि मृदु तप्त मिश्रित डामर के लिए 50०C उपयुक्त तापमान है।
¾ मृदु तप्त मिश्रित डामर को निर्माण के विभिन्न तहों के लिए बेहतर पाया गया। 30०C से कम तापमान के क्षेत्र में
सभी ट्रैफिक परिस्थितियों में इनका प्रयोग किया जा सकता है। 40०C से कम तापमान के क्षेत्र में मध्यम ट्रैफिक
परिस्थितियों मे तथा 50०C से कम तापमान के क्षेत्र में निम्न ट्रैफिक परिस्थितियों मे इनका प्रयोग किया जा सकता है।
¾ मृदु तप्त मिश्रित डामर को गर्म मिश्रित डामर से बेहद कम तापमान पर उत्पादित एवं प्रसारित किया गया, अतः गर्म
मिश्रित डामर कि तुलना में यह काफी ऊर्जा दक्ष तकनीक है।

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 21


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5. संदर्भ
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22 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


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स्थिरीकृत कुट्टिम – संधारणीय कुट्टिम


डॉ. अंबिका बहल, प्रधान वैज्ञानिक एवं सौरभ कुमार वर्मा, तकनीकी सहायक, सुनम्य कुट्टिम प्रभाग

परिचय
वर्तमान समय में बहुत सी एजेंसियां, कंपनियाँ, संगठन, संस्थाएँ एवं राजकीय निकाय अपने व्यवसाय के संचालन एवं अपनी
गतिविधियों के प्रबंधन में संधारणीयता के सिद्धांतो को अपना रही हैं। विश्व के तेजी से बढ़ते हुए वृहत अर्थव्यवस्था के रूप
में, भारत अब संधारणीय विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं को साकार करने के लिए तैयार है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा तय
किए गए 17 संधारणीय विकास लक्ष्य (SDG) में संधारणीय अवसंरचनाएं एवं जलवायु परिवर्तन एक अहम लक्ष्य है। भारत
सरकार इन संधारणीय विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पहले से ही नीतियाँ बना चुकी हैं और अवसंरचनात्मक क्षेत्रों
में इसे तेजी से लागू करने हेतु प्रयासरत है। किसी राष्ट्र का सड़कमार्ग निकाय उसके अवसंरचनात्मक विकास का एक अहम
हिस्सा होता है। यह न केवल वस्तुओं के परिवहन की सुगमता को बढ़ाकर दे श की व्यापक अर्थव्यवस्था को बल दे ता है,
अपितु इसके कई सामाजिक लाभ (जैसे : विद्यालयों, कार्यक्षेत्रों, सेवाओं की पहुँच; पर्यटन; एवं सामान्य आवागमन) भी है।
समय के साथ साथ सड़क एवं राजमार्ग निर्माण एवं अभिकल्पन के सिद्धांतों में परिवर्तन आया है और अभी मौजूदा समय
में कुट्टिमों के कार्यकाल को बढ़ाने एवं उनके स्थायित्व से बिना समझौता किए पतले एवं मितव्ययी कुट्टिमों के निर्माण पर
विशेष बल दिया जा रहा है। विश्व भर में सड़कों सहित और भी अधिक संधारणीय अवसंरचनाओं को विकसित करने हेतु
प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। संधारणीय सड़कों के निर्माण में जिन महत्वपूर्ण घटकों पर विचार किया जाना
अनिवार्य है, वो स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों का प्रयोग कर प्राकृतिक रोड़ी पर निर्भरता को कम करना तथा परिवहन
संबंधी ऊर्जा व्यय, डामर मिश्रण उत्पादन एवं निर्माण तापमानों में कमी करना, पर्यावरण हितैषी निर्माण सामग्री एवं विधियों
का प्रयोग करना तथा कुट्टिम सामग्रियों के पुनः उपयोग/पुनर्चक्रण जैसे पहलू है।
हाल ही में निर्माण गतिविधियों में आयी तेजी के कारण सामग्रियों के मांग में वृद्धि हुई है, ऐसे प्राकृतिक रूप से उपलब्ध
सामग्रियों जैसे पत्थर, रोड़ी इत्यादि का ह्रास हो रहा है। द्रव्यमान एवं आयतन के हिसाब से कुट्टिम का एक वृहत हिस्सा
रोड़ी से बना है, जो कुट्टिमों के बाध्य (Bound) एवं अबाध्य (Unbound) परतों में प्रयुक्त होता है। हालांकि रोड़ियों
की कीमत अपेक्षाकृत कम होती है, फिर भी इतने वृहत मात्रा में प्रयोग होने के कारण सड़क निर्माण के दौरान होने वाले
खर्च तथा संधारणीयता से होने वाले रोड़ी की बचत पर विचार किया जाए तो ये कुट्टिम निर्माण लागत में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाते हैं। भारत में परिवहन एवं राजमार्ग एजेंसियां स्वाभाविक रूप से होने वाली गैर-नवीकरणीय संसाधनों के उपयोग को
कम करने के उद्दे श्य से निर्माण के वैकल्पिक तरीकों की खोज करके सड़क की व्यापक संधारणीयता में सुधार एवं वृद्धि की
दिशा में पहले से ही प्रगतिशील है।
एक 4 लेन राजमार्ग निर्माण में प्रति किमी0 लगभग 12000 टन रोड़ी की आवश्यकता होती हैं, जिसमें करीब करीब 500
ट्रक लोड होते हैं, इस आकलन का एक बड़ा हिस्सा जो कि लगभग 80% तक होता है, अबाध्य परतों जैसे दानेदार उप
आधार (GSB) तथा वेट मिक्स मैकडम (WMM) में प्रयोग होता है। चूंकि अबाध्य परतों में नए रोड़ियों के कुल आवश्यकता
के 80% तक खपत होती हैं, जिस कारण राजमार्ग उद्योगों का उद्दे श्य इन परतों में नए रोड़ियों के प्रयोग को कम करने
की दिशा में हैं। कुट्टिम निर्माण की परम्परागत पद्धति में एक भरपूर मात्रा में सामग्रियों एवं ऊर्जा की आवश्यकता होती
हैं। इसलिए भारत के सड़कों के निर्माण में ईंधन एवं रोड़ियों के खपत को कम करने के क्रम में पुनर्चक्रण एवं स्थिरीकरण
प्रौद्योगिकियों को अपनाया जाना चाहिए। इसके साथ ही दे श के विभिन्न स्थानों पर रोड़ियों की कमी भी इन सामग्रियों को
लंबी दूरी तक ढ़ोने हेतु विवश करती हैं। कुट्टिमों के निर्माण एवं अनुरक्षण हेतु स्थिरीकृत एवं पुनर्चक्रित सामग्रियों के लिए
स्थिरीकरण प्रौद्योगिकी का प्रयोग पश्चिमी दे शों मे आधुनिक भारी यातायात वाहक सड़कों के दीर्घकालिक क्षमताओं में सुधार
करने एवं पूरे कार्यकाल के दौरान व्यापक लागत को कम करने में मितव्ययी पद्धति के रूप में स्वीकारा गया है।

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 23


सीएसआईआर - सीआरआरआई

स्थिरीकृत कुट्टिमों की अवधारणा सड़क निर्माण, पुनर्वास एवं अनुरक्षण, पर्यावरणीय दृष्टि से टिकाऊ, मितव्ययी एवं
तीव्र समाधानों को अपनाने पर केन्द्रित है। नए IRC विनिर्दे शों के प्रकाशन के साथ, कुट्टिमों हेतु सामर्थ्य एवं स्थायित्व
आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु स्थिरीकरण तकनीक के संयोजन के साथ वैकल्पिक सामग्रियों को उपयोग करने का अवसर है।
IRC 37:2018 सुनम्य कुट्टिमों में सीमेंट उपचारित आधार या उपआधार को सम्मिलित किए जाने की गुंजाइश प्रदान करता
है। हालांकि इस प्रौद्योगिकी के लाभों के प्रति जागरूकता में कमी तथा क्षेत्रीय क्षमता मूल्यांकन डेटा के अभाव में भी इन
कुट्टिमों का व्यावहारिकता में प्रयोग काफी सीमित है।
स्थिरीकरण को एक ऐसे प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके अंतर्गत कुट्टिम सामग्रियों अथवा मृदा
सामग्रियों की आंतरिक गुणों को स्थिरीकारक बंधक (Binder) एवं दानेदार सामग्री के योजन से इसके प्रचालन, भू-
वैज्ञानिक एवं जलवायवीय परिस्थितियों के अनुरूप अपेक्षित क्षमता को प्राप्त करने हेतु प्रतिस्थापित किया जाता है।
कुट्टिम स्थिरीकरण प्रौद्योगिकी को नए कुट्टिम निर्माण के साथ साथ पुराने खराब हो चुके कुट्टिमों के पुनर्वास हेतु भी किया
जा सकता है। स्थिरीकृत सामग्रियों का विनिर्माण दो क्रियाविधियों में से किसी एक के प्रयोग से किया जा सकता है: संयंत्र
मिश्रित या स्थल निर्मित। सड़क स्थिरीकरण हेतु प्रयोग किए जाने वाले बंधकों में चूना, पोर्टलैंड सीमेंट, सीमेंटयुक्त मिश्रण,
राख, बिटु मिनस सामग्री ( जिसमें फोमड बिटु मिन एवं बिटु मिन पायस भी शामिल है तथा इसमें अक्सर द्वितीयक बंधक के
रूप में चूना या सीमेंट प्रयुक्त होता है। ) और कार्बनिक व बहुलक यौगिक युक्त रासायनिक योजक मुख्यतः सम्मिलित हैं।
योजक स्थिरीकरण को सीमेंट, चूना, राख अथवा इन सामग्रियों के संयोजन को मिट्टी के साथ एक निश्चित अनुपात में मिला
कर प्राप्त किया जाता है। योजकों के अनुपात या मात्रा एवं उसका चुनाव मृदा वर्गीकरण एवं गुणवत्ता में वांछित सुधार के
श्रेणी पर निर्भर करता है।
परम्परागत सड़क निर्माण गैर-नवीकरणीय संसाधनों के उत्खनन पर निर्भर करता है: स्थिरीकरण प्रक्रियाओं को उन क्षेत्रों के
लिए विकसित किया गया है जहाँ इन संसाधनों को प्राप्त कर पाना मुश्किल है। अतीत में जहाँ इन संसाधनों के संरक्षण हेतु
विशेष रूप से थोड़े बहुत प्रयास किए गए थे वहाँ ये आसानी से उपलब्ध प्रतीत होते हैं। सड़क निर्माण में लगे अभियन्ताओं
एवं अभिकल्पनकर्ताओं के लिए यह एक निश्चित रूपेण दायित्व है कि वो इन मूल्यवान संसाधनों को आने वाली पीढ़ियों हेतु
संरक्षित करने पर विचार करें। मिट्टी के मिश्रण में एक उपयुक्त स्थिरीकारक शामिल करने से इसकी सामर्थ्य और कठोरता
बढ़ जाती है, जिससे इसे आधार तह में उपयोग किया जा सकता है। रासायनिक स्थिरीकारक के रूप में प्रयुक्त होने में
पोर्टलैंड सीमेंट, कैल्शियम क्लोराइड, बुझा हुआ चूना और कोल उड़न राख शामिल हैं। बिटु मिनस स्थिरीकरण के लिए
डामर इमल्शन और फोमिंग डामर का उपयोग किया जाता है, सीमेंट का उपयोग कई तकनीकी, आर्थिक और पर्यावरणीय
लाभ प्रदान करता है। इसके परिणामतः ऐसे कुट्टिम प्राप्त होते हैं जो अधिक टिकाऊ, न्यूनतः क्षरणीय एवं जल प्रतिरोधी
होते हैं, तथा उच्च यातायात भार के कारण प्रतिबल को सहन कर सकते हैं। सीमेंट स्थिरीकृत आधार परत की स्लैब जैसी
विशेषताएं जैसे सबग्रेड (आधार) की विफलता, गड्ढे के बनने और कुट्टिम की सड़क की खुरदरेपन को कम करती हैं। इससे
अभिकल्पित कुट्टिम की मोटाई भी कम हो जाती है। शोध बताते हैं कि, RAP और रोड़ी के साथ तैयार मिश्रण में सीमेंट
के अनुपात में वृद्धि UCS में वृद्धि दर्शाती है। संकोचन दरारों को बनने से रोकने के लिए प्रयोगशाला में उपचारित स्लैब
की सामर्थ्य और स्थायित्व के आधार पर सीमेंट की उपयुक्त स्थिरीकारक सामग्री की गणना की जाती है। सीएसआईआर
– केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीआरआरआई) ने विभिन्न सड़क निर्माण, अनुरक्षण, पुनर्वास एवं
अद्यतन परियोजनाओं में स्थिरीकरण तकनीकी के प्रयोग हेतु सिफ़ारिश किया है। यह लेख भारत में NH – 344A के
अद्यतन एवं पुनर्वास के वृत्त अध्ययन का प्रस्तुतीकरण हैं।
पंजाब में राष्ट्रीय महामार्ग NH – 344A का पुनर्वास एवं अद्यतन
विचाराधीन परियोजना पंजाब राज्य में राष्ट्रीय महामार्ग NH – 344A खंड को 4 लेन करने की है। खंड की कुल लंबाई
लगभग 81 किमी थी तथा अभिकल्पित यातायात 100 MSA के आस पास है। खंड के पुनर्वास और चौड़ीकरण के लिए
उपयुक्त कुट्टिम डिजाइन दे ने के लिए, साइट का एक विस्तृत दौरा किया गया था। कुट्टिम की विभिन्न परतों से मौजूदा कुट्टिम

24 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

सामग्री को चूर्णित किया गया और स्थिरीकरण की उपयुक्तता का पता लगाने और नए कुट्टिम के निर्माण में उस सामग्री का
पुन: उपयोग करने के लिए मूल्यांकन के लिए प्रयोगशाला में ले जाया गया।
सीमेंट स्थिरीकृत आधार में प्रयुक्त सामग्री में तीन घटक रोड़ी, सीमेंट तथा पानी शामिल हैं। मिश्रण अभिकल्पन के दौरान
विचार किए जाने वाले कारकों में ग्रेडेशन, घनत्व, सूचकांक गुण और सामर्थ्य शामिल हैं। इनमें से ग्रेडेशन सबसे महत्वपूर्ण
कारक है। आम तौर पर ऐसा कण आकार वितरण जो अधिकतम घनत्व दे ता हो, पर विचार करते हैं। MoRTH विनिर्दे शों
(5वां संशोधन) के अनुसार सीमेंट बंधित सामग्री के लिए ग्रेडेशन को अपनाया गया है। आधार परत में उपयोग हेतु सीमेंट
के साथ उपचारित की जाने वाली सामग्रियों की भौतिक आवश्यकताओं को MoRTH विनिर्दे शों (5वां संशोधन) के ग्रेडिंग
अनुच्छेद 401.2.2 के अनुसार किया गया। नीचे दी गई तालिका 1 सीमेंट स्थिरीकृत आधार (CTB) मिश्रण के लिए अपनाई
जाने वाली सामग्री के ग्रेडेशन एवं उसके अनुपात को दर्शाती है।
तालिका 1: सीमेंट के साथ स्थिरीकरण के लिए सामग्री की ग्रेडिंग सीमाएं

आईएस छलनी आकार परास (रेंज) के भीतर उप आधार/आधार से बड़े पैमाने पर गुजरने का प्रतिशत
53.00 मिमी 100
37.5 मिमी 95-100
19.0 मिमी 45-100
9.5 मिमी 35-100
4.75 मिमी 25-100
400 माइक्रॉन 8-65
300 माइक्रॉन 5-40
75 माइक्रॉन 0-10

कुट्टिम के मितव्ययी निर्माण एवं लंबे व बेहतर कार्यकाल हेतु GSB के स्थल निर्मित स्थिरीकरण पद्धति को अपनाया गया।
स्थल निर्मित स्थिरीकरण एक ऐसी विधि है जिसमें GSB परत को बाइंडर और पानी के साथ चूर्णित किया जाता है, और
तत्पश्चात उसे उपचारित किया जाता है, जिससे कि अंतिम उत्पाद के रूप में CTSB प्राप्त होता है। तस्वीर 1 GSB परत के
स्थिरीकरण के लिए GSB तह की तैयारी को दर्शाता है।

चित्र 1: GSB तह की तैयारी चित्र 2 : सीमेंट का प्रसार

इस कार्य में 2% सीमेंट को तैयार GSB के ऊपर पहले से फैलाया जाता है (चित्र 2)। सीमेंट के फैलाव के पश्चात स्थिरक पूर्व
प्रसरित सीमेंट के साथ GSB को पानी डालते हुए चूर्णित करता है। मिश्रण को एक ही बार में बिछाया एवं संकुचित किया
गया था।
सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 25
सीएसआईआर - सीआरआरआई

चित्र 3: GSB का स्थिरीकरण

वांछित सामर्थ्य को बढ़ाने अथवा प्राप्त करने के लिए दानेदार उप-आधार परत में सीमेंट जैसे योजक मिलाये जाते हैं।
तालिका 2 स्थिरीकृत कुट्टिम के लिए अपनाए गए अभिकल्पन को दर्शाता है। चित्र 4 में संकुचित GSB सतह का दृश्य
दिखाया गया है।

तालिका 2: कुट्टिम अभिकल्पन

परत विनिर्देश परम्परागत कुट्टिम मोटाई, मिमी0 स्थिरीकृत कुट्टिम मोटाई, मिमी0

Granular Sub Base (GSB) 200 250 (CTSB)


Granular Base 250 150
Dense Bituminous Macadam (DBM) 110 90
Bituminous Concrete (BC) 50 50

चित्र 4 संकुचन के बाद स्थिरीकृत सतह

26 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

निष्कर्ष
स्थिरीकरण प्रक्रिया के परिणामस्वरूप निर्माण समय की बचत, नए रोड़ियों का न्यूनतम उपयोग, सामग्रियों का कम परिवहन
और कई अन्य पर्यावरणीय लाभ हुए। एक 80 किमी (4 लेन) की परियोजना में स्थिरीकरण तकनीक को अपनाकर लगभग
3240 टन समतुल्य CO2 उत्सर्जन को रोका गया जिसका अर्थ कम प्रदूषण है। लगभग 3.5 लाख टन रोड़ियो की बचत की
गई। संधारणीय एवं मितव्ययी होने के कारण सीटीएसबी निर्माण दुनिया भर में बढ़ रहा है। हालांकि अभी भी इस मिश्रण
के क्षमता के बारे में अनुमान लगा पाने की दिशा में कार्य शेष है, उपयोगकर्ता दिशानिर्दे श और विनिर्दे श उद्योग के नवाचार
के अनुरूप एवं शोध के आधार पर विकसित किए गए हैं। मिश्रण अभिकल्पन, कुट्टिम अभिकल्पन एवं सामग्री विशेषताओं
संबंधी व्यावहारिक मार्गदर्शन को अपनाते हुए स्थिरीकरण प्रौद्योगिकी का व्यापक कार्यान्वयन एवं प्रसार, संधारणीय कुट्टिमों
की दिशा में पहला कदम हैं।
आभार
लेखक परियोजना के काम के दौरान मैसर्स विट् गन इंडिया प्राइवेट लिमिटे ड के समूह द्वारा प्राप्त समर्थन के लिए उनका
आभार व्यक्त करते हैं। लेखक एवं उपरोक्त शोध को प्रायोजित करने वाली संगठन इस पत्र में उल्लिखित किसी भी
स्वामित्व वाले उत्पादों या तकनीकों का समर्थन नहीं करते हैं। ये यहाँ केवल इसलिए प्रदर्शित हैं क्योंकि इस लेख में इनका
उल्लेख किया जाना अनिवार्य था।
संदर्भ
1. AASTHO (American Association of State Highway & Transportation Officials) (2001) T 180: Modified
Method of Test for the Moisture–Density Relations of Soils. AASTHO, Washington, DC, USA.

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3. Reddy, M., Reddy, A., Reddy, K. S., and Pandey, B. B. (2013). Recycling of an Urban Road using
Foam Bitumen: An Indian Experience. In Transportation Research Board 92nd Annual Meeting
(No. 13-3740), Washington, DC.

4. Thom, N., (2008), Principles of Pavement engineering. London: Thomas Telford Ltd.

5. Chandra, Satish., Behl, Ambika. (2019) “Recycling of Pavements – A Sustainable Process For
Rehabilitation And Upgrading”, CE&CR Magazine, February, 54-58.

6. IRC SP 89-2010- Guidelines for Soil and Granular Material Stabilization using Cement, Lime & Fly-ash.

7. IRC SP 89-2018 (PART-II)- Guidelines for the design of Stabilized Pavements.

8. IRC:SP:20-2002 – Rural Roads Manual.

9. IRC:SP:72-2015 – Guidelines for the Design of Flexible Pavements for Low Volume Rural Roads(First
Revision).

10. IRC 37:2018- Guidelines for the Design of Flexible Pavements

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 27


सीएसआईआर - सीआरआरआई

भूमि की तरंगों की प्रकृति


आलोक रंजन (पूर्व प्रधान वैज्ञानिक), डॉ. अनिल कुमार सिन्हा, वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक,
विजय कुमार कन्नौजिया, वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी, भू-तकनीकी अभियांत्रिकी प्रभाग

सारांश
भूमि के अंदर विक्षोभ उत्पन्न कर भूमि की तरंगों के संचरण का अध्ययन किया जा सकता है। भारी वाहनों की गति, भारी
उपकरणों की घूर्णन गति एवं दबाव के किसी भी अंतर का संचार भूमि के अंतर्गत तरंग-गति के रूप में होता है। इस तरह से
उत्पन्न तरंगें सतह के नीचे प्राथमिक या द्वितीयक तरंगों के रूप में होती हैं। प्राथमिक तरंगें दबाव के अंतर के रूप में संचारित
होती हैं एवं सतही तरंगें सतह पर स्थित अनियमितताओं से उत्पन्न तरंगों के व्यतिकरण के फलस्वरूप संचारित होती हैं। इन
तरंगों की प्रकृति का अध्ययन करना ही वर्तमान शोध-पत्र का उद्येश्य है। शोध-पत्र के माध्यम से यह भी दिखाने का प्रयास
किया गया है कि समान अवस्थाओं में लिए गए प्रेक्षण एकसमान एवं संगत परिणाम दे ते हैं।
1.0 परिचय
प्राथमिक तरंगें या द्वितीयक तरंगें, दोनों सूक्ष्म स्तर पर माध्यम के अंदर उत्पन्न होती हैं, अतः उनको आंतरिक-तरंगों की श्रेणी
में रखा जाता है। ऐसी तरंगें माध्यम के अंदर विस्तारण या विरूपण उत्पन्न कर सकती हैं। सतह की तरंगें अत्यंत उच्च ऊर्जा
से युक्त होती हैं एवं बाह्य-संरचनाओं पर उनका ही प्रभाव पड़ता है,अतः इन्हीं तरंगो की प्रकृति का अध्ययन किया जाता है।
विभिन्न संरचनाओं का अभिकल्प भी इन्हीं तरंगों के तरंगदै र्घ्य के रूप में किया जाता है। रैले-तरंगें जो एक प्रकार की सतह-
तरंग हैं, सतह पर उनका संचारण एक पीछे लौटनेवाले दीर्घवृत्त के रूप में होता है।
2.0 क्षेत्र-परीक्षण का विवरण
तरंगों की प्रकृति के अध्ययन के लिए केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान परिसर के अंतर्गत एक परीक्षण-पट्टिका को तैयार
किया गया। इस पट्टिका को निम्न चित्र (चित्र संख्या-1) के माध्यम से दिखाया गया है:
इस पट्टिका की लंबाई को 30.0 मी० एवं चौड़ाई को 10.0
मी० रखा गया। कंपन के स्रोत के रूप में कंपन-यंत्र एवं एक
भार को निश्चित ऊँचाई से गिरानेवाले यंत्र का प्रयोग किया
गया। सक्रिय-अवरुद्धता के लिए कंपन-यंत्र का प्रयोग किया
गया एवं यंत्र के मध्य-बिंदु से होकर गुजरनेवाली रेखा से
45 अंश के कोण पर आनत दो सरल रेखाओं पर विभिन्न
दूरियों पर संवेदकों को रखा गया। कंपन-यंत्र को विभिन्न
आवृत्तिओं पर चलाकर संवेदकों से प्राप्त त्वरण के मापों
को सारणीबद्ध किया गया। गर्त्त को रिक्त अवस्था में एवं
चित्र संख्या 1: संस्थान के परिसर में गर्त्त की स्थिति
प्रतिस्थापन्न पदार्थों से भरने के बाद, पूर्वनिर्धारित स्थानों पर
पठन लिए गए एवं ऊर्जा के क्षय का आकलन किया गया। निष्क्रिय-अवरुद्धता के लिए एक आयताकार गर्त्त का निर्माण
किया गया जिसकी लम्बाई 2.1 मी० एवं गहराई 1.2 मी० रखी गई।गर्त्त के मध्य-बिंदु से होकर गुजरनेवाली सरल रेखा पर
विभिन्न दूरियों पर भार को एक निश्चित ऊँचाई से गिराया गया। संवेदकों को गर्त्त के मध्यबिंदु से 10.0 सें० मी० की दूरी पर

मुख्य शब्द : विक्षोभ (Disturbance), व्यतिकरण (Interference), प्राथमिक एवं द्वितीयक (Primary & Secondary), विस्तारण (Elongation),
सक्रिय अवरुद्धता (Active Isolation), निष्क्रिय अवरुद्धता (Passive Isolation), मानक वेधन परीक्षण (Standard Penetration Test).

28 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

रखकर ऊर्जा-क्षय का आकलन किया गया। दोनों स्थानों पर निर्मित गर्त्त के समीप मानक-वेधन परीक्षण किए गए जिन्हें
चित्रों (चित्र संख्या-2 एवं 3) में दिखाया गया है।

चित्र संख्या-2 चित्र संख्या-3

दोनों गर्त्तों के पास घनत्त्व परीक्षण भी किए गए।


2.1 प्रायोगिक- परीक्षण का मूल सिद्धान्त: भूमि की सतह पर एवं उसके अंदर अनेक अनियमितताएँ उपस्थित हैं एवं
तरंगो का संचारण उन्हीं की उपस्थिति में होता है, अतः ऐसी ही परिस्थितियां उत्पन्न कर तरंगों के व्यवहार का अध्ययन किया
जाता है। सतह पर गर्त्त का निर्माण किया जाता है एवं उनके द्वारा उत्पन्न रोध का अध्ययन किया जाता है।
2.2 प्रायोगिक परिणाम: Love-wave समीकरण के आधार पर यदि ऊपर की 8.25 मी० गहराई को दो तहों में बाँट
दिया जाए तो दोनों तहों की दृढ़ता का अनुपात 3/2 आता है। अर्थात यदि ऊपर वाले तल की दृढ़ता 2 है तो नीचेवाले की 3
है। सक्रिय-अवरुद्धता वाले प्रयोग में ऊपरी सतह के लिए आवृत्ति का मान 48.0 Hz है एवं तरंगदै र्घ्य का मान 4.0 मी० है।
निष्क्रिय-अवरुद्धता वाले गर्त्त के पास औसत अपरूपण वेग का मान 144.0 मी०/से० है एवं तरंगदै र्घ्य का मान 2.0 मी० है,
अतः आवृत्ति का मान 72.0 Hz होगा।

चित्र संख्या-4 चित्र संख्या-5

ऊपर के चित्र में तरंगदै र्घ्य को दो समान अवस्था में कंपन करनेवाली स्थितिओं के रूप में परिभाषित किया गया है। चित्र से
स्पष्ट हो जाता है कि गर्त्त से दूर से आनेवाली तरंगदै र्घ्य का मान 4.0 मी० एवं नजदीक आने पर यह मान 2.0 मी० हो जाता

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 29


सीएसआईआर - सीआरआरआई

है (चित्र संख्या-4)। यदि गर्त्त के समीप किए गए वेधन-परीक्षण से प्राप्त अपरूपण वेग का मान 145 मी०/से० को गणना के
लिए लिया जाए तो आवृत्तिओं के मान क्रमश: 36.0 Hz एवं 72.0 Hz प्राप्त होते हैं।
2.3 सतह पर अपरूपण-वेग के परिणामों में समानता: गर्त्त से विभिन्न दूरियों पर क्षेत्र-घनत्त्व परीक्षण किए गए एवं प्राप्त
परिणामों को सारणीबद्ध किया गया
(सारणी संख्या-1)

शुष्क क्षेत्र-घनत्त्व (इकाई भार का समवेत क्षेत्र घनत्त्व का मान


घनत्त्व परीक्षण के स्थान की स्थिति
मान, ग्राम/घन सें० मी० में) (ग्राम/घन सें मी० में)
1. परीक्षण-पट्टिका के मध्य में 1.40 1.43, 2.28%
2. परीक्षण-पट्टिका के मध्य में 1.44 1.47, 2.32%
3. अर्ध-वृत्ताकार गर्त्त से 2.5 मी० की दूरी पर 1.23 1.25, 1.68%
4.आयताकार गर्त्त से 5.7 मी० की दूरी पर 1.22 1.25, 2.24%
5. आयताकार गर्त्त से 1.5 मी० की दूरी पर 1.32 1.35, 1.66%
6.आयताकार गर्त्त से 0.5 मी० की दूरी पर 1.16 1.18, 1.53%

परीक्षण-पट्टिका के इस खंड के लिए प्रत्यास्थता-गुणांक के निर्धारण के लिए हल्के संघातमापी उपकरण की सहायता ली
गई एवं विभिन्न स्थानों पर प्रेक्षण लिए गए। प्रत्यास्थता-गुणांक के मान में परिवर्त्तन 40.0 MPa से 80.0 MPa तक हुआ।
अतः पूरे खंड के लिए औसत-मान 60.0 MPa लिया जा सकता है। मिट्टी के लिए यदि प्वान्सो-अनुपात(ⱱ= 0.3) हो तो
दृढ़ता-गुणांक का मान निम्नलिखित संबंध से निकाला जा सकता है :
G = E/ 2. (1+ⱱ) = 60.0/ (2.0). (1+0.3) = 60/(2.6)= 23.10 MPa
=(23.10 x 103 ) kPa
ऊपर की सारणी से मिट्टी का समवेत घनत्त्व (ƴb) = 1.32 g/cc
इन सारे प्राचलों के निर्धारण के उपरांत अपरूपण-वेग का मान निम्नलिखित समीकरण द्वारा प्राप्त किया जा सकता है:
Vs = Sqrt( G / Ꝭb ) = Sqrt [23.10x103 )/(1.32)]
= 132.29 मी०/से॰
आयताकार-गर्त्त वाले स्थान के पास वेधन-परीक्षण द्वारा प्राप्त अपरूपण-वेग का मान 0.25 मी० गहराई पर145.0 मी०/
से० है जो सैद्धांतिक-मान 132.29 के काफी निकट है।

3.0 विभिन्न स्थितियो में प्रत्यास्थता-गुणांक एवं आवृत्ति का मापन


प्रत्यास्थता-गुणांक का मापन संघातमापी एवं मानक-वेधन परीक्षण की सहायता से अलग-अलग अवस्थाओं में किया गया।
इन प्रेक्षणों पर आधारित निष्कर्षों में समानता पाई गई। दोनों परीक्षणों पर आधारित अपरूपण-वेग एक-दूसरे के काफी
निकट थे। लेकिन त्रि-अक्षीय परीक्षण से निर्धारित प्रत्यास्थता-गुणांक के मान के साथ पूर्व-परीक्षणों का अनुपात 250 था।
इस अनुपात को समरूपता के सिद्धांत के आधार पर समझा जा सकता है। प्रत्यास्थता-गुणांक को प्रतिबल एवं विकृति
के अनुपात में मापा जाता है। प्रतिबल को बल एवं अनुप्रस्थ-काट क्षेत्रफल के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जाता
है। क्षेत्रफल में रैले-तरंगदै र्घ्य-लम्बाई दो बार शामिल है। अतः अधिकतम अनुपात 100 हो सकता है एवं तरंगों के लिए
आकृति-गुणांक का मान 2.5 होता है जो गोलाकृति के लिए उपयुक्त होता है। इन दोनों गुणांकों के गुणनफल का अधिकतम
मान 250 होगा। अतः स्थैतिक एवं गतिज अवस्थाओं में लिए गए प्रेक्षणों का अधिकतम अनुपात 250 ही होगा जो हमें

30 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

क्षेत्र-परीक्षण से प्राप्त होता है। इसीतरह विभिन्न स्प्रिंग की सहायता से आवृत्ति के मान निर्धारित किए गए एवं डाटालॉगर-
यंत्र से भी आवृत्ति का मान निर्धारित किया गया। प्रेक्षणों के आधार पर आवृत्तिओं के मान में 10 का अनुपात पाया गया।
केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान परिसर में स्थित क्षेत्र-परीक्षण-स्थल में प्रत्यास्थता-गुणांक के गहराई के साथ विचरण को
निम्नांकित चित्र के द्वारा दर्शाया गया है (चित्र संख्या: 6 एवं चित्र संख्या-7)

चित्र संख्या-6 चित्र संख्या-7

4.0 सक्रिय-अवरुद्धता के लिए संवेदकों का व्यवस्थापन


इस परीक्षण के लिए एक अर्द्ध-वृत्ताकार गर्त्त का निर्माण किया गया जिसका आंतरिक-व्यास 2.4 मी०, बाह्य-व्यास 4.0
मी० एवं चौड़ाई 0.8 मी० रखी गई। इस अर्ध-वृत्ताकार गर्त्त के केंद्र पर एक यांत्रिक कंपन-मापी यंत्र को व्यवस्थित किया
गया जिसमें विभिन्न आवृत्तिओं पर कंपन करने की व्यवस्था
थी। यह कंपन-मापी एक कंक्रीट-ब्लाक पर व्यवस्थित था।
इसके आधार के मध्य-बिन्दु से होकर गुजरनेवाली रेखा से
45 अंश के कोण पर आनत दो रेखाओं पर विभिन्न दूरियों
पर संवेदकों को रखा गया। कुल 9 संवेदकों को तीनों
रेखाओं पर मध्य-बिन्दु से बराबर दूरी पर रखा गया। तीन
संवेदकों को गर्त्त के आंतरिक भाग एवं 6 संवेदकों को D=4.00 m
45 o

बाह्य भाग में व्यवस्थित किया गया। विभिन्न आवृत्तिओं पर D=1.2 m

कंपनमापी को चलाकर सभी संवेदकों के पठन लिए गए।


यह कार्य गर्त्त-निर्माण के पहले एवं बाद में किया गया। सय 1पृथकरण 1हेतु योजना

संवेदकों से प्राप्त त्वरण के मान में प्रतिशत कमी को दे खा


म रत 1ग 1का 1य

गया एवं अपेक्षित 70 % ह्रास से तुलना किया गया। गर्त्त- 1m


1m 1m 1m

निर्माण से पहले क्षेत्र-परीक्षण किए गए एवं त्वरण-आयाम


के क्षय के लिए समीकरण प्राप्त किए गए। त्वरण-आयाम-
क्षय के समीकरण गर्त्त-निर्माण के पहले एवं बाद में भी प्राप्त
D=2.0 m

किए गए। संवेदकों के स्थापन एवं क्षय-समीकरणों को चित्रों


की सहायता से दिखाया गया है (चित्र संख्या-9 एवं चित्र
1.4 m

संख्या-10)।
ग 1का 1अनुथ-काट

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 31


सीएसआईआर - सीआरआरआई

चित्र संख्या-9 चित्र संख्या-10

4.1 निष्क्रिय-अवरुद्धता के लिए संवेदकों का व्यवस्थापन


इस परीक्षण के लिए सक्रिय-अवरुद्धता वाले स्थान से 20.0 मी० की दूरी पर एक आयताकार गर्त्त का निर्माण किया गया।
इस गर्त्त की लंबाई 2.1 मी० एवं गहराई 1.2 मी० रखी गई (चित्र संख्या-11)। गर्त्त के दोनों तरफ एवं बिलकुल आमने-
सामने दो संवेदकों को रखा गया। गर्त्त के मध्य-बिन्दु से होकर जानेवाली रेखा पर विभिन्न-दूरियों को चिन्हित किया गया एवं
उन स्थितिओं पर निश्चित ऊँचाई से एक निश्चित भार को गिराया गया। इस तरह से भूमि के अंतर्गत ऊर्जा उत्पन्न कर गर्त्त के
दोनों तरफ त्वरणमापी-संवेदकों के पठन लिए गए। आयाम के प्रतिशत कमी को ऊर्जा-क्षय के रूप में दे खा गया एवं इसे
निर्धारित किया गया (चित्र संख्या-12)।

काले गोलाकृतय से संवेदक क


 त 1को 1दशाया 1गया 1है

1m 1m 1m 1m 1m

चित्र संख्या-11 निष्क्रय अवरुद्धता के लिए प्रयुक्त गर्त्त का रेखाचित्र चित्र संख्या-12

32 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

सारणी संख्या-2

गर्त्त से 1.0 मी० की दूरी गर्त्त को पार करने


गर्त्त/परीक्षण
उपयुक्त समीकरण पर त्वरण का आयाम के बाद त्वरण के आयाम
स्थल की स्थिति
(मी०/से०2) में में % कमी
Y= 22.32
गर्त्त के बिना
exp (-0.82x) 9.83 10
परीक्षण-स्थल
96.4
exp(-0.10x),
178.4 18.07
exp(-0.10x), (सभी मानों का औसत)
गर्त्त की उपस्थिति में 1394exp(-0.37x),
18
109.6exp (-0.11x),
1574 exp(-0.33x)

Y= 3.562(x2) – 57.83(x)+247.8
प्रतिस्थापन्न- पदार्थों Y= 2.964(x2) -54.47(x)+256.3
195.31 195
की उपस्थिति में Y= 2.441(x2) – 43.42(x) +228.7

4.2 क्षेत्र में अन्यत्र निर्मित आयताकार गर्त्त में गहराई के साथ त्वरण-आयाम का विचरण
निष्क्रिय अवरुद्धता की स्थिति में ऊपर के चित्र एवं सारणी को दे खकर यह स्पष्ट हो जाता है कि गर्त्त को पार करने के बाद
त्वरण का आयाम बढ़ जाता है एवं गर्त्त से दूरी बढ़ने पर घटता है। गर्त्त की गहराई बढ़ने पर एवं बिलकुल उसके पास 0.5
मी० तक जाने के उपरांत ही उसे पार करने के बाद त्वरण के आयाम में वृद्धि होती है। गर्त्त से अन्य दूरियों पर स्थित स्थानों
पर संघात के उपरांत तरंग को गर्त्त पार करने में आयाम में कमी होती है।

चित्र संख्या-13

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 33


सीएसआईआर - सीआरआरआई

महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष
(i) एक तरह की परिस्थितियो में किए गए परीक्षण संगत परिणाम दे ते हैं। मानक-वेधन परीक्षण से प्राप्त एवं सक्रिय एवं
निष्क्रिय-अवरुद्धता वाले प्रेक्षणों में समानता है।
(ii) महत्त्वपूर्ण निष्कर्षों के लिए संगत गर्त्त के पास ही मानक-वेधन परीक्षण करना उचित है।
(iii) प्रत्यास्थता-गुणांक का मान जो मानक-वेधन-परीक्षण से प्राप्त होता है एवं जो संघात-मापी- यंत्र से प्राप्त होता है,
संगत परिणाम दे ते हैं।

संदर्भ-सूची:
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34 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

पीजोइलेक्ट्रिक ट्रांसड्यूसर के उपयोग से पुलों में पूर्व-तनाव बल के


आकलन करने का एक किफायती विकल्प
डॉ. नवीत कौर, वरिष्ठ वैज्ञानिक, बीईएस प्रभाग; श्वेता गोयल, प्रोफेसर, थापर इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टे क्नोलॉजी, पटियाला,
कमल आनंद, छात्र, थापर इंस्टीट्यूट एवं गणेश कुमार साहू, मुख्य वैज्ञानिक, बीईएस प्रभाग

सार
इलेक्ट्रोमैकेनिकल इम्पीडेंस (ईएमआई) तकनीक पर आधारित स्वास्थ्य निगरानी पिछले दो दशकों में पारंपरिक निगरानी
तकनीकों में एक आशाजनक तकनीक के रूप में उभरी है। यह पेपर ईएमआई तकनीक के माध्यम से पीजोइलेक्ट्रिक पैच
का उपयोग करके प्री-स्ट्रेस्ड रीइन्फोर्स्ड कंक्रीट (पीएससी) सेतु में अवशिष्ट पोस्ट-टें शनिंग बल की निगरानी के लिए एक
प्रयोगात्मक और सांख्यिकीय जांच प्रस्तुत करता है। लेड जिरकोनेट टाइटे नेट (पीजेडटी) सेंसर सामान्य लोड सेल पर लगाये
गये और उनके ईएमआई सिग्नेचर प्रयोगशाला में एक प्रतिबाधा विश्लेषक (ई 4980 एएल की साइट) का उपयोग करके
विभिन्न अक्षीय भार मानों के लिए 20 किलोहर्ट्ज़ से 250 किलोहर्ट्ज़ की आवृत्ति रेंज में 0 से लेकर 42 टन तक के लिए
प्राप्त किए गए थे। तीन पीजेडटी आधारित लोड़ सेल के लिए प्रयोगशाला में एक आकलन मॉडल विकसित किया गया।
कैलिब्रेटे ड पीजेडटी-आधारित लोड सेल चार-स्पैन निरंतर पीएससी पुल पर स्थापित किए गए थे ताकि इसके पुनर्वास के
दौरान बाहरी रूप से लगाये गये पोस्ट-टें शन बल का अनुमान लगाया जा सके। एक बार पोस्ट-टें शन केबल पर पूरा लोड
लगाने के बाद और फिर 24 घंटे की लोडिंग के बाद ईएमआई सिग्नेचर प्राप्त किए गए। विकसित मूल्यांकन मॉडल और
पीजेडटी-आधारित लोड सेल के मूल माध्य वर्ग विचलन (आरएमएसडी) मूल्यों का उपयोग करते हुए पोस्ट-टें शन केबल
में अवशिष्ट भार का आकलन किया गया था और यह वाणिज्यिक लोड सेल द्वारा प्राप्त भार से 14 प्रतिशत कम त्रुटि पर
प्राप्त किया गया । इसलिए यह तकनीक संरचना की बढ़ती उम्र के दौरान अवशिष्ट पूर्व-तनाव बल के आकलन के लिए
व्यावसायिक रूप से उपलब्ध महंगे लोड सेल के उपयोग की तुलना में पीएससी पुलों में अवशिष्ट पोस्ट टें शनिंग बल के
आकलन के लिए बहुत कम लागत के समाधान के रूप में कार्य कर सकती है।

कीवर्ड:
विद्युत प्रतिबाधा (ईएमआई), प्री-स्ट्रेस्ड कंक्रीट (पीसी), स्वास्थ्य की निगरानी, पीजोइलेक्ट्रिक लोड सेल अवशिष्ट तनाव बल

1 परिचय
प्रबलित कंक्रीट (आरसी) संरचनाओं के जीवन च� के दौरान वे विभिन्न प्रकार के गतिशील भार (जैसे हवा, भूकंप, और
वाहन-प्रेरित कंपन) और पर्यावरणीय जोखिम (जैसे थर्मल ग्रेडिएंट, सल्फे ट अटै क, और जंग) के कारण तनाव के अधीन
होते हैं। इन कारकों के कारण संरचना की क्षमता उम्र बढ़ने के साथ कम हो जाती है जो एक विनाशकारी विफलता का
कारण बन सकती है (वुडवर्ड एट अल 1989)। स्टील में पेश किए गए उच्च तनाव के स्तर के कारण प्रेस्ट्रेस्ड कंक्रीट
संरचनाओं की विफलता अधिक महत्वपूर्ण है] जिससे संरचना का अधिक गंभीर पतन होता है। इस प्रकार इन सिविल
संरचनाओं के महत्व को इसकी जीवन च� और पर्यावरणीय गिरावट के संदर्भ में प्रतिष्ठित कंक्रीट (पीएससी) संरचनाओं के
संरचनात्मक प्रदर्शन के लिए प्रभावी मूल्यांकन और निरंतर निगरानी की आवश्यकता है। (जुआन एट अल। 2009, यी एट
अल। 2013, गुओ एट अल। 2017) .
विद्युत यांत्रिक प्रतिबाधा तकनीक (ईएमआई) पिछले दो दशकों से इंजीनियरिंग संरचनाओं के प्रभावी संरचनात्मक
स्वास्थ्य निगरानी (एसएचएम) के लिए एक आशाजनक तकनीक के रूप में उभरी है। यह एक ट्रांसड्यूसर द्वारा संवेदन

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 35


सीएसआईआर - सीआरआरआई

और क्रियान्वित करने की अपनी संयुक्त क्रिया, व्यापक आवृत्ति रेंज, अच्छे रेस्पांष, और कम लागत वाली पीजोइलेक्ट्रिक
सामग्री-आधारित सेंसर के कारण है। इस तकनीक में लेड जिरकोनेट टाइटे नेट (पीजेडटी) ट्रांसड्यूसर का उपयोग किया
जाता है जो या तो सतह से बंधे होते हैं या संरचना के अंदर एम्बेडेड होते हैं। पीजेडटी पैच एक सेट फ़्रीक्वेंसी रेंज पर एक
प्रतिबाधा विश्लेषक के माध्यम से विद्युत रूप से उत्साहित होते है और इस प्रकार सरचना से एडमिटेें ष सिग्नेचर प्राप्त किये
जाते है।
हाल ही में कई शोधकर्ताओं ने पीएससी पुलों में कई क्षति परिदृश्यों की निगरानी के लिए ईएमआई तकनीक लागू की है।
यहां यह स्पष्ट करने की आवश्यकता है कि ईएमआई तकनीक वैकल्पिक (गतिशील) सिग्नल को मापने पर आधारित है
फिर भी यह प्रीस्ट्रेस्ड लोड की निगरानी के लिए समान रूप से उपयुक्त हो सकती है। (किम एट अल। 2009 गुयेन एट अल
2012 ह्यून एट अल।) ईएमआई तकनीक अलग-अलग संरचनात्मक मापदं डों के कारण होने वाले प्रवाहकत्त्व सिग्नेचर में
परिवर्तन की मात्रा निर्धारित करने पर आधारित है। जैसा कि संरचना में प्रतिष्ठित भार भिन्न होता है संरचनात्मक पैरामीटर
(सामान्य लोड सेल) जिस पर पीजेडटी सेंसर संलग्न है बदल दिया जाएगा जिससे ईएमआई तकनीक का उपयोग करके
मात्रा निर्धारित किया जा सकता है। किम एट अल। (2009) ने प्रयोगशाला में एक स्टैं ड-अलोन 6 मीटर लंबे पीएससी
गर्डर में एम्बेडेड सिंगल टें डन में प्रेस्ट्रेस लॉस का आकलन करने के लिए कंपन-प्रतिबाधा आधारित पद्धति का प्रस्ताव रखा।
लेखकों ने टेे डण और एंकरिंग मेम्बर में प्रेस्ट्रेस हानि की पहचान करने के लिए इलेक्ट्रो-मैकेनिकल प्रतिबाधा सुविधाओं
में परिवर्तन का उपयोग करते हुए एक एल्गोरिदम बनाया। गुयेन एट अल। (2012) ने प्रयोगशाला में एक स्टैं ड-अलोन
पीएससी गर्डर में दोनों सिरों पर बेयरिंग प्लेट् स द्वारा टेे डन डाले 6.4 मीटर के सिंगल टें डन केबल पर संलग्न टें डन-एंकरेज
कनेक्शन में वायरलेस प्रतिबाधा-आधारित प्रेस्ट्रेस लॉस मॉनिटरिंग के लिए एक स्मार्ट पीजेडटी-इंटरफ़ेस प्रस्तुत किया।
अध्ययन में प्रेस्ट्रेस हानि के कारण प्रतिबाधा भिन्नता का अनुमान लगाने के लिए फ़्रीक्वेंसी शिफ्ट और प्रतिबाधा सिगनेचर
के क्रॉस सहसंबंध विचलन का उपयोग किया गया था। हुइन्ह एट अल। (2014) ने उसी माउं टेबल पीजेडटी-इंटरफ़ेस के
प्रदर्शन का मूल्यांकन किया जैसा कि गुयेन एट अल द्वारा उपयोग किया गया था। (2012) टे डन-एंकरेज में प्रतिबाधा
निगरानी के लिए जैसा कि गुयेन एट अल द्वारा उपयोग किया गया था। (2012)। PZT- इंटरफ़ेस के परिमित तत्व मॉडल
को ट्यून किया गया था क्योंकि इसके प्रतिबाधा सग्नेचर समान पैटर्न के साथ प्रयोगात्मक परीक्षा परिणामों से मिले थे। बाद
में, लेखक हुइन्ह एट अल। (2015) ने एक ही माउं टेबल पीजेडटी-इंटरफ़ेस की स्थानीय गतिशील विशेषताओं को निर्धारित
करने के लिए संख्यात्मक और प्रयोगात्मक जांच करने के लिए अपने अध्ययन को बढ़ाया। उन्होंने टें डन-एंकरेज सिस्टम पर
प्रतिबाधा निगरानी पर अपने प्रदर्शन का सत्यापन किया। मिन एट अल (2016) ने टें डन के तन्यता बल का आकलन करने
और कई पीजोइलेक्ट्रिक पैच के साथ प्रतिबाधा तकनीक का उपयोग करके एंकरेज के आसपास के क्षेत्र में होने वाली क्षति
का पता लगाने के लिए एक नई और प्रभावी पद्धति का भी प्रस्ताव रखा। लेखकों ने प्रयोगशाला में एक स्टील टे स्ट फ्रेम में
एक अनबाउं ड 19-स्ट्रैंड एंकरेज सिस्टम पर प्रयोग किया और दे खा कि प्रस्तावित योजना शेष तन्यता बलों का काफी सटीक
अनुमान दे ती है। Huynh और Kim (2017) ने PZT इंटरफ़ेस के माध्यम से PSC गर्डर में प्रेस्ट्रेस्ड बल की प्रतिबाधा
निगरानी पर तापमान प्रभाव को मापने के लिए एक ही प्रयोगात्मक सेटअप के साथ अपने अध्ययन (ऊपर उद्धृत) को
बढ़ाया। इसलिए तनाव के बाद के संरचनात्मक सदस्यों में शेष तन्यता बलों और क्षति की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए
इस पद्धति में व्यावहारिक उपयोग के लिए काफी संभावनाएं हैं।
हालांकि शोधकर्ताओं ने प्रेस्ट्रेस्ड बल के आकलन के लिए पीजोइलेक्ट्रिक आधारित ईएमआई तकनीक की खोज की है,
हालांकि, उनका अध्ययन या तो विश्लेषणात्मक है या स्टैं ड-अलोन प्रयोगशाला आकार के नमूनों तक ही सीमित है। यह पेपर
मुख्य रूप से समानांतर मुख्य गर्डरों और कनेक्टिं ग क्रॉस गर्डरों की संख्या से युक्त वास्तविक जीवन चार स्पैन पीएससी
ब्रिज में पीजेडटी ट्रांसड्यूसर का उपयोग करके प्रेस्ट्रेस लोड मॉनिटरिंग की व्यवहार्यता पर केंद्रित है। इस अध्ययन का उद्दे श्य
'प्रौद्योगिकी तैयारी स्तर (टीआरएल) 4' से 'टीआरएल 9' तक प्रेस्ट्रेस बल की निगरानी के लिए पीजोइलेक्ट्रिक आधारित

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सीएसआईआर - सीआरआरआई

इलेक्ट्रोमैकेनिकल तकनीक का विस्तार करना है। टीआरएल को नासा द्वारा किसी भी तकनीक की तैयारी के स्तर को दर्शाने
के लिए परिभाषित किया गया है। टीआरएल 4 'प्रयोगशाला परीक्षणों में सिस्टम फंक्शन दिखाने वाले एकीकरण स्तर' को
दर्शाता है और टीआरएल 9 'परिचालन वातावरण में सिद्ध वास्तविक प्रणाली' को दर्शाता है। व्यावसायिक रूप से उपलब्ध
लोड सेल एक महंगी तकनीक है (इसमें प्रयुक्त प्रत्येक लोड सेल की लागत) यह अध्ययन: यूएसडी 650) पीएससी ब्रिज
की बढ़ती उम्र के दौरान अवशिष्ट पूर्व-तनाव बल के आकलन के लिए। वर्तमान कार्य का प्रमुख योगदान मौजूदा वास्तविक
जीवन पीएससी पुल में प्रेस्ट्रेस लोड का अनुमान लगाने के लिए सस्ती पीजेडटी-आधारित लोड सेल को नियोजित करना है,
जो अपनी क्षमता को बढ़ाने के लिए बाहरी रूप से तनावग्रस्त था। इस अध्ययन में पीजोइलेक्ट्रिक पैच को तीन सामान्य लोड
सेल पर लगाया गया था और प्रयोगशाला में कैलिब्रेट किया गया था और फिर ईएमआई तकनीक का उपयोग करके पोस्ट-
टें शनिंग बल की निगरानी के लिए वास्तविक जीवन पीएससी पुल में असर प्लेट के साथ पीजेडटी-आधारित लोड सेल लगाए
गए थे। हालांकि इस अध्ययन में वाणिज्यिक लोड सेल पर पीजोइलेक्ट्रिक पैच जुड़े हुए हैं हालांकि इसी तरह के परिणाम की
उम्मीद की जाती है यदि वे एंकर ब्लॉक पर उसी तरह बंधे होते हैं जैसे वे पूर्व में संलग्न थे। यह तकनीक उसी उद्दे श्य के लिए
महंगे लोड सेल के उपयोग की तुलना में पीएससी पुलों में अवशिष्ट पोस्ट टें शनिंग बल के आकलन के लिए बहुत कम लागत
के समाधान के रूप में कार्य कर सकती है।

2. प्रयोगशाला में PZT-आधारित लोड सेल का कैलिब्रेशन


PZT- आधारित लोड कोशिकाओं को पहले प्रयोगशाला में कैलिब्रेट किया गया था ताकि बाद में इस अध्ययन में विचार
किए गए PSC ब्रिज में अवशिष्ट बल के आकलन के लिए उनका उपयोग किया जा सके। PZT- आधारित लोड सेल के
कैलिब्रेट के लिए विस्तृत प्रयोगात्मक सेट-अप चित्र 1 में दिखाया गया है। 10×10×0.3 मिमी आकार के PZT सेंसर (PIC
151, PI सिरेमिक 2019) सामान्य रूप से उपलब्ध लोड सेल पर सतह से बंधे थे ( ELC30S, Encardio Rite) दो-भाग
(राल और हार्डनर) अर्ल्डाइट एपॉक्सी चिपकने वाला (मोहराना और भल्ला 2012) का उपयोग किया गया पीजोइलेक्ट्रिक
सेंसर और एडहेसिव के गुण तालिका 1 में सूचीबद्ध हैं। दो पीजोइलेक्ट्रिक पैच S1 और S2 (प्रत्येक) तीन अलग-अलग
लोड सेल अर्थात् LC1, LC2 और LC3 से जुड़े थे जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। 1 ([k) और (x)। S1 और S2 एक
दूसरे के सामने लोड सेल की बाहरी सतह पर बंधे थे। PZT पैच का ईएमआई हस्ताक्षर प्रतिबाधा विश्लेषक (E4980AL,
Keysight) के माध्यम से 20 kHz से 250 kHz की आवृत्ति रेंज में 0 टन से लेकर 42 टन तक के विभिन्न अक्षीय भार
मानों के लिए यूनिवर्सल टे स्टिंग मशीन (Shimadzu UH-2000KNIR) का उपयोग करके प्राप्त किया गया था। सामान्य
लोड सेल द्वारा अनुमानित लोड के मूल्यों को एक एनकार्डियो रीट डेटा लॉगर का उपयोग करके लॉग किया गया था।

चित्र संख्या 1. (क) प्रायोगिक सेट अप (ख) संपीड़न के तहत लोड सेल (ग ) लोड कोशिकाओं पर पीजेडटी पैच के स्थान को दर्शाने
वाला योजनाबद्ध आरेख
सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 37
सीएसआईआर - सीआरआरआई

तालिका 1: PIC-151 और एपोक्सी के तकनीकी विवरण

Properties Symbol PIC 151 Epoxy

Density ρ 7800 kg/m3 1200 kg/m3

Relative permittivity ε33/ ε0 2400 -

Dielectric loss factor tan δ 0.02 -

d31 -2.1 x 10-10 mV -


Piezo electric strain coefficient
d13 5.0 x 10-10 mV

S11 1.5 x 10-11 m2/V -


Elastic compliance coefficient
S33 1.9 x 10-11 m2/V

Young’s modulus YE 6.9 x 1010N/m2 9.79 x 108 N/m2

इस अध्ययन में विचार किए गए वास्तविक जीवन पीएससी पुल में 30 टन का पूर्ण भार लगाया जाना था। तदनुसार, उद्दे श्य
के लिए, लोड सेल पर बंधे पीजोइलेक्ट्रिक पैच के ईएमआई सिग्नेचर लिए गए थे। चूंकि कंक्रीट में dzhi और सिकुड़u ds
dkj.k प्रीस्ट्रेसिंग स्टील में छू ट सहित कई नुकसानों के कारण पीएससी पुल की बढ़ती उम्र के साथ प्रेस्ट्रेसिंग लोड धीरे-धीरे
कम हो जाता है, इस प्रकार लोडिंग को 1 टन के अंतराल पर 42 टन से घटाकर 35 टन कर दिया गया और फिर ए 25 टन
पर रीडिंग और लोड को पूरी तरह से मुक्त करने के बाद अंतिम रीडिंग ली गई। पीएससी पुल (कृष्णराजू 2018) के जीवन
के दौरान पूर्व निर्धारित बल में लगभग 10% की हानि को ध्यान में रखते हुए, 42 टन से 35 टन के बीच के अंतराल को
चुना गया था। प्रवेश के वास्तविक भाग यानी चालन का अध्ययन केवल प्रायोगिक अध्ययन के लिए किया गया था क्योंकि
यह मेजबान संरचना में परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील है (अन्नमदास एट अल। 2012)। दुर्भाग्य से, दोनों लोड सेल
LC1 और LC2 के लिए सेंसर S2 ने खराबी शुरू कर दी। चूंकि कुल चार सेंसर ठीक से काम करने की स्थिति में थे, इसलिए
लेखकों ने अलग-अलग लोड सेल पर स्थापित अन्य शेष सेंसर के साथ अध्ययन जारी रखने का फैसला किया। अलग-अलग
लोड मानों के लिए LC1_S1, LC2_S1, LC3_S1 और LC3_S2 के लिए चालन प्लॉट fp= में प्लॉट किए गए हैं। कंडक्टैं स
प्लॉट का ज़ूम किया गया दृश्य स्पष्टता के लिए भी दिखाया गया है।

(क) (ख)

38 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

(ग) (घ)
चित्र संख्या 2 - कंडक्टैं स प्लाट (क) LC1_S1, (ख) LC2_S1, (ग) LC3_S1and (घ)LC3_S2

रूट मीन स्क्वायर विचलन (आरएमएसडी) पर आधारित मूल्यांकन मॉडल तीन वाणिज्यिक लोड सेल पर बंधे प्रत्येक
पीजोइलेक्ट्रिक सेंसर के लिए उत्पन्न और मान्य किए गए थे। आरएमएसडी को व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है और
किन्हीं दो सिग्नेचर (कौर एट अल। 2015, 2017) के बीच भिन्नता की मात्रा के आकलन के लिए उपयोग किया जाता है।
वर्तमान अध्ययन में, Eq में परिभाषित RMSD सूचकांक। (2), माना आवृत्ति रेंज के लिए PZT- आधारित लोड सेल से
प्राप्त कंडक्टैं स flXuspj का मूल्यांकन करने के लिए अपनाया गया था।

(2)

यहाँ, पूर्ण भार (42 टन) के लिए kth आवृत्ति पर चालन मान को दर्शाता है और kth आवृत्ति पर किसी भी भार के लिए
चालन मान को दर्शाता है जो क्रमशः 42 टन से कम है, और k = 1, 2, 3, ।, n उन आवृत्तियों को इंगित करता है जिन पर
चाल सिग्नेचर का मूल्य izkIr किया गया था। दोहराव के लिए, तीन अलग-अलग लोड सेल पर बंधे चार अलग-अलग सेंसर
के लिए रीडिंग के तीन सेट लिए गए थे। तीन सेटों के लिए लागू लोड के fy, आरएमएसडी मान चित्र में प्लॉट किए गए हैं। 3.
रीडिंग के विभिन्न सेटों के लिए सबसे उपयुक्त द्विघात वक्रों का प्रतिनिधित्व करने वाली बिंदीदार रेखाओं का उपयोग नीचे
दिए गए मूल्यांकन मॉडल को प्राप्त करने के लिए किया गया था। चार पीजोइलेक्ट्रिक सेंसरों के लिए उतराई के सभी सेटों में
प्राप्त परिणामों के बीच एक अच्छा स्तर का समझौता दे खा गया है। आरएमएसडी (%) और एप्लाइड लोड (एल, टन में) के
बीच व्युत्पन्न सहसंबंध के आधार पर, क्रमशः LC1_S1, LC2_S1, LC3_S1 और LC3_S2 का उपयोग करते हुए पीएससी
ब्रिज में अवशिष्ट प्रीस्ट्रेसिंग बल के आकलन के लिए निम्नलिखित मॉडल विकसित किए गए थे:

LC1_S1 L = 0.069 आरएमएसडी2 - 9.27आरएमएसडी + 43.43 (3)


LC2_S1 L = -1.37 आरएमएसडी2 - 11.22आरएमएसडी + 42.97 (4)
LC3_S1 L = -0.51 आरएमएसडी2 - 12.72आरएमएसडी + 43.49 (5)
LC3_S2 L = 0.57 आरएमएसडी2 - 13.45 आरएमएसडी + 43.30 (6)

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 39


सीएसआईआर - सीआरआरआई

(क) (ख)

(ग) (घ)

चित्र संख्या 3 : (क) एलसी 1_एस 1, (ख) एलसी 2_एस 1, (ग) एलसी 3_एस 1 और (घ) एलसी 3_एस 2 के लिए एप्लाइड लोड बनाम
आरएमएसडी (बिंदीदार रेखाएं सर्वोत्तम फिट द्विघात वक्र का प्रतिनिधित्व करती हैं)

3. पुल में अवशिष्ट पोस्ट-टें शन बल का आकलन


इस अध्ययन में भारत के नई दिल्ली में स्थित चित्र 4 में दर्शाए अनुसार सराय काले खां पुल का चयन किया गया था। यह पुल
लगभग 15 साल पुराना पीएससी पुल है जिसमें तीन पीएससी गर्डरों पर चार निरंतर स्पैन हैं। इस पर बढ़े हुए ट्रैफिक लोड
को पूरा करने के लिए अपनी ताकत बढ़ाने के लिए पुल को पोस्ट टें शनिंग करके पुनर्वास किया गया था। केबल 1 और केबल
2 में दो टें डन (प्रत्येक) एक सीधी प्रोफ़ाइल और लंबाई 120 मीटर के साथ थे। केबल 3 में चार शामिल थे प्रत्येक अवधि के
मध्य में एक विचलनकर्ता द्वारा प्रदान की गई एक परवलयिक प्रोफ़ाइल वाले टें डन (जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। 4)।
एक सिंगल टें डन जैक (चित्र 5 में दिखाया गया है) का उपयोग करके घाट P5 पर पुल के एक तरफ पोस्ट-टें शनिंग किया गया
था। इसलिए, घाट P5 को सक्रिय अंत के रूप में नामित किया गया था और इसके विपरीत, पियर P1 को मृत अंत कहा
गया था। केबल्स 1, केबल 2 और केबल 3 को प्रत्येक टें डन पर क्रमशः 220 किग्रा/सेमी2 (10.38 टन), 220 किग्रा/सेमी2
(10.38 टन) और 160 किग्रा/सेमी2 (7.59 टन) का दबाव डालकर पोस्ट-टें टेड किया गया। चित्र में दिखाए गए अनुसार
एक छोर पर एक जैक द्वारा। 5. तीन PZT- आधारित लोड सेल (LC_1, LC_2 और LC_3) जैसा कि चित्र में दिखाया गया
है। पुल के बाहरी पोस्ट-तनाव वाले केबलों में लोड का आंकलन करने के लिए सक्रिय अंत (पियर पी 5) पर केबल 3 पर 5
स्थापित किए गए थे। अनुमानित लोड की तुलना सामान्य लोड सेल द्वारा दिए गए लोड मानों से भी की गई थी।

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सीएसआईआर - सीआरआरआई

(क) (ख)
चित्र संख्या 4. (क) सराय काले खान ब्रिज, नई दिल्ली का सामान्य दृश्य (ख) एकष्टरनल प्रीटे सिग केबल का प्रोफाइल

चित्र संख्या 5. प्रायोगिक सेटअप सिंगल टें डन जैक का उपयोग करके पुल में स्थापित पीजेडटी-आधारित लोड सेल के लिए डेटा
अधिग्रहण दिखा रहा है।

3.2 परिणाम और चर्चा


लोड सेल पर बंधे PZT पैच का ईएमआई सिग्नेचर साइट पर प्रतिबाधा विश्लेषक (E4980AL, Keysight) के माध्यम
से 20 kHz से 250 kHz (प्रयोगशाला में जांच के समान) की आवृत्ति रेंज में प्राप्त किया गया था। यह अध्ययन अगस्त,
2019 के महीने में आयोजित किया गया था। नई दिल्ली (स्थल स्थान) में महीने के दौरान औसत तापमान 35 डिग्री
सेल्सियस दर्ज किया गया था। प्रयोगशाला की स्थिति में विकसित अंशांकन मॉडल का तापमान लगभग 25 डिग्री सेल्सियस
था। पीआई सिरेमिक द्वारा दिए गए PIC151 (इस अध्ययन में प्रयुक्त) के विनिर्दे शों में, यह दे खा गया कि पीजोइलेक्ट्रिक
चार्ज गुणांक d31 में परिवर्तन के लिए तापमान भिन्नता 25 डिग्री सेल्सियस से 35 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान सीमा
के लिए लगभग नगण्य है। इस प्रकार, वर्तमान अध्ययन के लिए हम प्रीस्ट्रेस लोड मॉनिटरिंग के लिए पीजेडटी-आधारित
लोड सेल का उपयोग करने की सिफारिश करेंगे यदि साइट स्थान में परिवेश का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से कम है
क्योंकि तापमान भिन्नता को 0 डिग्री सेल्सियस से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच उपेक्षित किया जा सकता है। इसके विनिर्दे शों
के आधार पर। जब केबल 3 के सभी चार टें डन पर पूरा लोड लगाया गया था तब ईएमआई सिग्नेचर कैप्चर किए गए थे
और यह चरण दिन 1 रीडिंग के रूप में नामित था । पठन का दूसरा सेट 24 घंटों के बाद हासिल किया गया था और इसे
दूसरे दिन की रीडिंग के रूप में नामित किया गया था। RMSD मानों की गणना Eq का उपयोग करके दिन 2 के कंडक्टैं स
सिग्नेचर के लिए की गई थी। (2) दिन 1 को आधार रेखा मानकर यह माना जाता है कि 2 दिन पर तनाव के बाद के बल में
सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 41
सीएसआईआर - सीआरआरआई

नगण्य नुकसान होता है। आरएमएसडी मूल्यों का उपयोग आगे ईक द्वारा दिए गए अंशांकन मॉडल का उपयोग करके केबल
3 में लोड का आंकलन किया गया था। (3) से (6)। इसके अलावा, पीजेडटी-आधारित लोड सेल द्वारा अनुमानित लोड की
तुलना सामान्य लोड सेल से प्राप्त की गई थी और चित्र में प्लॉट की गई थी। 6. लोड के लिए सर्वोत्तम मिलान के साथ सभी
तीन लोड सेल के लिए दो मानों के बीच एक स्वीकार्य मिलान दे खा जाता है। सेल LC2. इसने पूर्व-तनावग्रस्त कंक्रीट पुलों में
अवशिष्ट पूर्व-तनाव बल की निगरानी की व्यवहार्यता स्थापित की।
इस अध्ययन की व्यावहारिकता में सुधार के
लिए, लोड कोशिकाओं के बजाय एंकर ब्लॉक
की परिधि पर सेंसर लगाने की सिफारिश की
जाती है, जिस तरह से इसे बाद में संलग्न किया
गया था ताकि पीजोइलेक्ट्रिक सेंसर संपीड़ित
तनाव का अनुभव करे। इसके बाद ईएमआई
तकनीक का उपयोग करके अवशिष्ट पोस्ट
टें शनिंग बल का आकलन करके केलिब्रेटे ड
किया जा सकता है। यह पीएससी ब्रिज की
बढ़ती उम्र के दौरान अवशिष्ट पूर्व-तनाव बल के
आकलन के लिए व्यावसायिक रूप से उपलब्ध चित्र संख्या 6: PZT- आधारित लोड सेल और सामान्य लोड सेल द्वारा
अनुमानित लोड की तुलना
महंगे लोड सेल के विकल्प के रूप में कार्य करेगा।

4. निष्कर्ष
मौजूदा पीएससी पुल में पूर्व-तनाव बल के आकलन के लिए सामान्य लोड सेल और पीजोइलेक्ट्रिक सेंसर का वास्तविक समय
संयोजन इस पेपर में प्रस्तुत किया गया है। प्रयोगशाला में लागू लोड के आधार पर मूल्यांकन मॉडल और तीन वाणिज्यिक लोड
सेल पर बंधे विभिन्न पीजोइलेक्ट्रिक पैच के लिए विभिन्न ईएमआई सिग्नेचर के लिए व्युत्पन्न आरएमएसडी मान प्रयोगशाला में
प्राप्त किए गए थे। सिस्टम में 16.7% (35 टन के अनुरूप) की प्रेस्ट्रेस हानि होने तक सभी पीजोइलेक्ट्रिक सेंसर (LC3_S1 को
छोड़कर) के लिए त्रुटि मान 4% से कम (लगभग) थे। इसलिए, तकनीक में वास्तविक संरचनाओं में प्रेस्ट्रेस नुकसान का अनुमान
लगाने की क्षमता है, जो 10% से कम होने की उम्मीद है।लोड सेल पर बंधे प्रत्येक सेंसर के लिए किए गए रीडिंग के तीन अलग-
अलग सेटों के सहसंबंध (सीसी) के गुणांक का निर्धारण करके मूल्यांकन मॉडल की पुनरावृत्ति की जाँच की गई थी। चित्र 4 में
दिए गए सीसी के उच्च मूल्यों (> सभी मामलों के लिए 96.91%) ने प्रयोगशाला में मूल्यांकन मॉडल की पुनरावृत्ति की स्थापना
की। PZT- आधारित लोड सेल की पुनरावृत्ति की सफलतापूर्वक जाँच करने के बाद, उन्हें बाद में पुल के बाहरी पोस्ट-टें शन केबल
में लोड का आकलन करने के लिए सराय काले खां पुल, नई दिल्ली, भारत में स्थापित किया गया था। PZT- आधारित लोड
सेल और वाणिज्यिक लोड सेल द्वारा अनुमानित लोड के बीच एक स्वीकार्य मेल दे खा गया। इसने PZT- आधारित लोड सेल का
उपयोग करके पूर्व-तनावग्रस्त कंक्रीट पुलों में अवशिष्ट पूर्व-तनाव बल की निगरानी की व्यवहार्यता स्थापित की। हालांकि इस
अध्ययन में वाणिज्यिक लोड सेल पर पीजोइलेक्ट्रिक पैच जुड़े हुए हैं, हालांकि इसी तरह के परिणाम की उम्मीद की जाती है यदि
वे एंकर ब्लॉक पर उसी तरह बंधे होते हैं जैसे वे पूर्व में संलग्न थे। यह एक ही उद्दे श्य के लिए महंगे लोड सेल के उपयोग की तुलना
में पीएससी पुलों में अवशिष्ट पोस्ट टें शनिंग बल के आकलन के लिए बहुत कम लागत समाधान के रूप में कार्य कर सकता है।

स्वीकृतियाँ

लेखक पुल साइट पर प्रयोग में मदद करने के लिए पीडब्ल्यूडी अधिकारियों के आभारी हैं। हम इस शोध कार्य को पूरा करने के
लिए श्री प्रदीप कुमार, श्री योगेंद्र सिंह, श्री शशि भूषण, श्री विजय कुमार और श्री सुमित धीमान द्वारा प्रदान की गई सहायता के

42 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

लिए भी स्वीकार करते हैं। इस कार्य को विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग [DST/INSPIRE/04/2015/000545] द्वारा समर्थित
किया गया था।

लेखकों का योगदान
नवीत कौर: संकल्पना और कार्य का निष्पादन और हिंदी प्रूफ संपादन
श्वेता गोयल: पेपर एडिटिंग
कमल: साइट पर निष्पादन
जीके साहू: साइट पर निष्पादन और समन्वय
संदर्भ
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सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 43


सीएसआईआर - सीआरआरआई

शून्य उत्सर्जन वाहनों और किफायती ड्राइविंग पद्धति का उपयोग करके


वाहन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन को कम करने की रणनीतियाँ
डॉ. रवींद्र कुमार, मुख्य वैज्ञानिक, टीपीई डिवीजन
एवं सुभाष चंद, वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक, टीईएस डिवीजन
सार
वाहनों का उत्सर्जन एक गंभीर पर्यावरणीय चिंता है, क्योंकि यह मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। वाहन CO2
ग्रीनहाउस प्रभाव और ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख कारकों में से एक है। वाहनों से होने वाले CO2 उत्सर्जन को कम करने और
हरित और स्वच्छ पर्यावरण को संरक्षित करने का एक तरीका शून्य-उत्सर्जन वाहनों (इलेक्ट्रिक वाहन- ईवी-EV) और दूसरा
तरीका किफायती ड्राइविंग प्रथाओं का उपयोग करना है। इस अध्ययन का उद्दे श्य भविष्य के वर्षों में वाहनों से होने वाले
कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन के प्रभावों को कम करने के लिए वर्तमान वर्षों में लागू की जा सकने वाली सर्वोत्तम
रणनीतियों का पता लगाना है। अध्ययन के लिए, हमने भविष्य के वर्षों में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन की
प्रवृत्ति की भविष्यवाणी करने के लिए छह परिदृश्य (एक यथास्थिति/BAU और अन्य पांच लक्षित परिदृश्य) तैयार किए हैं।
हमने मौजूदा आंतरिक दहन इंजन (आईसीई- Internal Combustion Engine- ICE) वाहनों के लिए उत्सर्जन को
कम करने के तरीकों का पता लगाने की भी कोशिश की। हमने SCC (सोशल-कॉस्ट ऑफ कार्बन) मान का उपयोग करके
विभिन्न परिदृश्यों की कार्बन डाइऑक्साइड CO2 लागत का भी अनुमान लगाया। इस अध्ययन के परिणाम से पता चला कि
किफायती ड्राइविंग के उपयोग के साथ-साथ वाहन बेड़े के 100% विद्युतीकरण के कार्यान्वयन से भविष्य में वाहन CO2
की अधिकतम मात्रा कम हो सकती है। इसके अलावा, यदि हम वर्तमान आंतरिक दहन इंजन (ICE ) वाहनों के ईंधन और
CO2 उत्सर्जन को कम करने के लिए किफायती ड्राइविंग विधियों को अपनाते हैं, तो हम परिवहन क्षेत्र में उत्सर्जन में कमी
प्राप्त कर सकते हैं और वर्तमान समय में ICE ऑटोमोबाइल के कारण वायु प्रदूषण की समस्याओं को कम कर सकते हैं।
1 परिचय
ऑटोमोबाइल दुनिया भर में Green House Gas Emission -GHG(जीएचजी) उत्सर्जन का प्राथमिक स्रोत हैं, जिसमें
चीन, अमेरिका और भारत तीन मुख्य योगदानकर्ता हैं, क्योंकि वे क्रमशः 25.9%, 13.87% और 7.45% उत्सर्जित करते
हैं (खुराना एट अल।, 2019)। 2015 में वैश्विक परिवहन क्षेत्र में कुल ईंधन दहन CO2 उत्सर्जन का 24% हिस्सा था
(अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, 2017)। भारत में तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण, जनसंख्या अपनी यात्रा की मांग में वृद्धि
का अनुभव कर रही है, जो परिवहन क्षेत्र के लिए ऊर्जा की उत्पन्न करने के लिए गैर-नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों पर सीधे
दबाव डाल रही है। ईंधन (पेट्रोल और डीजल) की मांग में यह वृद्धि बिजली की खपत में वृद्धि के लिए जिम्मेदार है। वाहन
की आबादी में वृद्धि के साथ, वायु प्रदूषकों और वाहन के निकास से निकलने वाली GHG गैसों की सांद्रता में वृद्धि हुई
है। भारत का परिवहन क्षेत्र कुल ऊर्जा का 16.9% लगभग खपत करता है (रामचंद्र और श्वेतमाला, 2009)। भारत का
परिवहन क्षेत्र मुख्य रूप से आंतरिक दहन इंजन (ICE) वाहनों पर आधारित है, जो इसे GHG उत्सर्जन में एक प्रमुख
योगदानकर्ता बनाता है। सड़क परिवहन उच्चतम उत्सर्जन यानी 80% जिम्मेदार है, जबकि रेल और वायु क्रमशः 13% और
6% जिम्मेदार हैं । (ऊर्जा और संसाधन संस्थान, 2006) । वैश्विक तापमान में तेजी से वृद्धि ने वैश्विक स्तर पर जीवाश्म
ईंधन के उपयोग और उनसे जुड़े उत्सर्जन में कमी की आवश्यकता पैदा की है, और परिवहन क्षेत्र के क्षेत्र में स्वच्छ ऊर्जा
आधारित नवाचारों को उत्पन्न करने की आवश्यकता पैदा की है।
भारत अपने जीएचजी उत्सर्जन को कम करने के लिए भी चिंतित है और 2030 तक अपने जीएचजी उत्सर्जन को 2005
के स्तर से 33 से 35% कम करने के लिए प्रतिबद्ध है (नीति आयोग और विश्व ऊर्जा परिषद, 2018)। सरकार वाहनों के

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निर्माण को आईसीई वाहनों से इलेक्ट्रिक वाहनों (इलेक्ट्रिक वाहन-EV) में बदलना चाहती है क्योंकि ये अधिक कुशल और
पर्यावरण के अनुकूल हैं। यह सीधे तौर पर तेल बिलों को 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक कम करने, जीएचजी उत्सर्जन
को 37% तक कम करने और ईंधन के आयात पर निर्भरता को कम करने में मदद करेगा और कच्चे तेल की कीमतों और
वायु प्रदूषण के खिलाफ सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करेगा (खुराना एट अल, 2019)।
भारत सरकार ने पिछले कुछ दशकों में और हाल के वर्षों में जीएचजी उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए
दे श में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री का समर्थन करने के लिए कुछ नीतियां अपनाई हैं। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय
ने सभी प्रकार के इलेक्ट्रिक वाहनों के वितरण को बढ़ावा दे ने, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए अनुसंधान और विकासात्मक
गतिविधियाँ करने के लिए दे श के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदे शों में वर्ष 2010-2011 और 2011-2012 में भूतल
परिवहन के लिए वैकल्पिक ईंधन (AFST) कार्यक्रम शुरू किया।
यह योजना इलेक्ट्रिक वाहन के प्रौद्योगिकी विकास और मांग निर्माण पर केंद्रित थी। यह इलेक्ट्रिक वाहन के लिए चार्जिंग
इंफ्रास्ट्रक्चर को भी बढ़ावा दे ता है। चरण-1 के तहत लगभग 2.8 लाख हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों को 359 करोड़
रुपये की मांग प्रोत्साहन द्वारा सहायता प्रदान की है, जिसके परिणामस्वरूप 50 मिलियन लीटर ईंधन की बचत होती
है और 124 मिलियन किलोग्राम CO2 की कमी होती है। हालांकि, दूसरे चरण के तहत, दिसंबर 2019 तक पंजीकृत
उपयोगकर्ता को लगभग 5500 इलेक्ट्रिक वाहन बेचे जा चुके हैं (वर्ष 2019 भारी उद्योग मंत्रालय, 2019)। 2018 में,
भारत के लिए राष्ट्रीय ऊर्जा भंडारण मिशन (एनईएसएम) की स्थापना के लिए एक मसौदे का प्रस्ताव करने के लिए नवीन
और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था। इसका उद्दे श्य 2022 तक भारत को उन्नत
ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकियों के निर्माण में अग्रणी बनाना है। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने भारत को
इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिजाइन और विनिर्माण (ईएसडीएम) के लिए एक नेता के रूप में बनाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स, 2019
पर राष्ट्रीय नीति का प्रस्ताव दिया है। मुख्य रूप से चिपसेट सहित मुख्य घटकों के विकास और उद्योगों के लिए वैश्विक स्तर
पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए अनुकूल वातावरण बनाने पर ध्यान केंद्रित करता है। यह नीति परोक्ष रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों
के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी प्रगति में मदद करेगी।
भारत के कई राज्यों जैसे दिल्ली, उत्तर प्रदे श, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु ने भी इलेक्ट्रिक
वाहनों को बढ़ावा दे ने के लिए अपनी इलेक्ट्रिक वाहन नीति जारी की है। भारत सरकार ने भारत चरण उत्सर्जन
मानकों (बीएसईएस) जैसे बीएस I, II, III, IV, और VI (यूरोपीय उत्सर्जन मानदं डों के समान) के रूप में जाना जाने
वाला उत्सर्जन मानदं ड भी स्थापित किया, जिससे वायु प्रदूषकों के उत्सर्जन को नियंत्रित किया जा सके। वायु प्रदूषण
की समस्याओं को कम करने के लिए वातावरण में आईसीई वाहन, SIAM (सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल
मैन्युफैक्चरर्स की जानकारी के अनुसार, भारत 2000 के रूप में जाना जाने वाला BS I मानक पहली बार वर्ष 2000 में
दे श भर में पेश किया गया था, जब 2001 में BS-II उत्सर्जन मानदं ड अस्तित्व में आया था।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (दिल्ली) और दे श के कुछ राज्यों के लिए, बाद में अप्रैल 2005 में इसे पूरे दे श में लागू किया गया।
अप्रैल 2005 को, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (दिल्ली) और 11 अन्य शहरों के लिए बीएस III उत्सर्जन मानदं ड भी लागू हुए
और बाद में इसे अप्रैल 2010 में दे श भर में अपनाया गया। उसी वर्ष बीएस IV उत्सर्जन मानदं ड राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र
(दिल्ली) के लिए पेश किए गए थे और 13 अन्य शहरों और इसे अप्रैल 2017 को राष्ट्रव्यापी के लिए अपनाया गया था ।
भारत सरकार ने अप्रैल 2020 से पूरे दे श के लिए बीएस VI मानदं ड शुरू करने की घोषणा की है। एक बार बीएसवीआई
उत्सर्जन मानक पेश किए जाने के बाद, पीएम उत्सर्जन में दो से 89 प्रतिशत की कमी आई है, NOx उत्सर्जन में भी
76% की कमी आएगी। कारों के मामले में, 82% PM उत्सर्जन और 68% NOx उत्सर्जन में कमी का अनुमान है
(Vashist et al., 2017)।

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 45


सीएसआईआर - सीआरआरआई

सड़क की गुणवत्ता, वाहन की उम्र, ईंधन के प्रकार, वाहन की गति आदि जैसे वाहनों के उत्सर्जन के लिए कई कारक
जिम्मेदार हैं। ICE(आईसीई) वाहनों द्वारा वायु प्रदूषण को कम करने के लिए, इको-ड्राइविंग प्रथाएं सबसे अच्छा विकल्प
हो सकती हैं। इको-ड्राइविंग इस तरह से वाहन चलाने के लिए, जो ईंधन की खपत, प्रदूषण, जीएचजी के उत्सर्जन को कम
कर सके और ड्राइविंग द्वारा दुर्घटनाओं के जोखिम को भी कम कर सके, परिभाषित किया जा सकता है (वाडा एट अल।,
2011; डिसूजा एट अल, 2007; अरोकियाराज एट अल, 2018) । इको-ड्राइविंग व्यवहार और प्रशिक्षण प्रथाओं से ईंधन
की बचत में 11 से 50% तक सुधार हो सकता है (पाठक एट अल, 2011)।
इको-ड्राइविंग और CO2 में कमी का सामाजिक-लाभ भी है। कार्बन की सामाजिक लागत का मूल्यांकन जलवायु परिवर्तन
व्यवधान की सीमांत लागत है, यह किसी भी जलवायु नीति मूल्यांकन का एक महत्वपूर्ण घटक है (जेन एट अल।, 2018)।
कार्बन की सामाजिक लागत (Social Cost of Carbon-SCC-एससीसी) जलवायु व्यवधान (या लाभ) से जुड़े एक
अतिरिक्त टन कार्बन डाइऑक्साइड (tCO2) के उत्सर्जन से उत्पन्न होने वाली आर्थिक लागत है (रिक एट अल।, 2018)।
यह बताया गया कि कार्बन उत्सर्जन की भारत की दे श-स्तरीय सामाजिक लागत 86 डॉलर प्रति टन CO2 पर सबसे अधिक
थी। इसका तात्पर्य है कि प्रत्येक अतिरिक्त टन CO2 का उत्सर्जन करने से भारतीय अर्थव्यवस्था को 86 डॉलर का नुकसान
होगा (रिक एट अल, 2018)।
इस पत्र का उद्दे श्य, भारत के परिवहन क्षेत्र के वाहनों के उत्सर्जन को कम करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहन (EV) की भूमिका
का आकलन करना है और हम मुख्य रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों और इको-ड्राइविंग विधियों को अपनाने के लिए विभिन्न
परिदृश्यों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, ताकि सर्वोत्तम रणनीति का पता लगाया जा सके। भविष्य के वर्षों में वाहनों के उत्सर्जन
की समस्या को कम करने के लिए भारत में लागू किया गया। कागज एससीसी मूल्य का उपयोग करके इन परिदृश्यों के
कार्यान्वयन के कारण CO2 लागत बचत भी प्रस्तुत करता है। इस पत्र की संरचना परिचय, साहित्य समीक्षा, कार्यप्रणाली,
परिणाम, चर्चा और फिर निष्कर्ष के रूप में प्रस्तुत की गई।
2 सामग्री और तरीके
वाहनों का उत्सर्जन परिवहन के प्रकार, ईंधन के प्रकार, दहन इंजन के प्रकार, वाहन की आयु आदि जैसे कई कारकों पर
निर्भर करता है (रामचंद्र और श्वेतमाला, 2009)। यात्री और मालवाहक वाहन मुख्य रूप से डीजल ईंधन पर चलते हैं और
निजी दोपहिया (2W) और तिपहिया (3W) मुख्य रूप से पेट्रोल ईंधन पर चलते हैं।
भारत में, डीजल वाहनों के लिए आयु सीमा 10 वर्ष है जबकि गैसोलीन वाहनों के लिए 15 वर्ष है ("दिल्ली में मोटर वाहनों
के स्क्रैपिंग के लिए दिशानिर्दे श 2018 , परिवहन विभाग, 2018)। भारत में भविष्य के वर्षों के लिए CO2 उत्सर्जन की
प्रवृत्ति की भविष्यवाणी करने के लिए, हमने 2017 से 2019 तक विभिन्न प्रकार के वाहनों की संख्या अर्थात डीजल कार,
पेट्रोल कार, 2W, 3W, ट्रक और बसों का द्वितीयक डेटा एकत्र किया और डेटा को 2050 तक एक्सट्रपलेशन किया। । फिर
विभिन्न परिदृश्यों के लिए 2017 से 2050 तक CO2 के वर्ष-वार उत्सर्जन की गणना की।
3.1 विभिन्न प्रकार के वाहनों से ऑन-रोड (सड़क) उत्सर्जन की गणना
वाहन संख्या और एक वर्ष में प्रति वाहन प्रकार में तय की गई दूरी के आधार पर सड़क उत्सर्जन की मात्रा निर्धारित की गई
थी, जिसे समीकरण संख्या द्वारा दिया जा सकता है। (1)
Ei=Σ (वाहन j× Dj) ×Ei.j.km -----------------------------------------(1)
जहाँ Ei = वाहन से उत्सर्जित यौगिक का उत्सर्जन (i), वाहन j = वाहनों की संख्या प्रति प्रकार (j), Dj = एक वर्ष में विभिन्न

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वाहन प्रकार (j) में तय की गई दूरी,


Ei.j.km = वाहन के प्रकार से यौगिक (i) का उत्सर्जन (j) प्रति चालित किलोमीटर (रामचंद्र और श्वेतमाला, 2009)।
ऑन-रोड उत्सर्जन की गणना के लिए, हम विभिन्न वाहनों को ईंधन प्रकार यानी (पेट्रोल, डीजल और इलेक्ट्रिक) के आधार
पर विभाजित करते हैं। हमने गणना में वाहनों की स्क्रैपिंग(कबाड़ ) को भी लिया है अर्थात; पेट्रोल वाहन हर 15 साल बाद
कबाड़ होंगे जबकि डीजल वाहन हर 10 साल बाद कबाड़ होंगे। हमने यह मान लिया है कि ईवीए का ऑन-रोड उत्सर्जन
शून्य है और यदि वे ICE (आईसीई) वाहनों की जगह लेते हैं तो वे कुल ऑन-रोड उत्सर्जन को कम करने में मदद करेंगे।
3.2 वाहन निर्माण से अंतर्निहित (एम्बेडेड) CO2 उत्सर्जन की गणना
जो वाहन के निर्माण से जुड़ा अंतर्निहित CO2 को संदर्भित करता है। सुलिवन एट अल।, 2010 वाहनों के निर्माण में
उपयोग की जाने वाली कुल ऊर्जा का 50% पावर ग्रिड से आता है। जिस दे श में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों का
व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, उसमें निर्मित वाहन उस दे श में निर्मित उसी वाहन की तुलना में अधिक CO2 गहन
होगा, जो नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करता है। आमतौर ईवी के निर्माण से आईसीई वाहनों की तुलना में अधिक
CO2 का उत्पादन होता है। (Qiao et al., 2017) ने अपने अध्ययन में बताया कि एक इलेक्ट्रिक वाहन का निर्माण
लगभग 14.6 tCO2 उत्सर्जित करता है, जबकि ICE वाहन 9.2 tCO2 उत्सर्जित करता है। और ICE वाहनों (हिल एट
अल।, 2019) के उत्पादन से 8.7 tCO2 का उत्सर्जन, लेकिन एक समान आकार के EV के उत्पादन के परिणामस्वरूप
CO2 का उत्सर्जन 15.5 tCO2 होगा। रिकार्डो की रिपोर्ट से पता चलता है कि ICE और EV वाहनों के निर्माण से क्रमशः
5.6 और 8.8 tCO2 का उत्पादन हुआ। ICE और EV वाहनों के अंतर्निहित CO2 की गणना के लिए, हमने इन पेपर्स से
अंतर्निहित CO2 का औसत मान लिया है, तो, प्रति EV निर्माण में 12.9 tCO2 उत्सर्जित होता है और 7.8 tCO2 प्रति
ICE वाहन निर्माण में उत्सर्जित होता है।
3.3 वाहनों से कुल उत्सर्जन की गणना
कुल उत्सर्जन का तात्पर्य ऑन-रोड उत्सर्जन और अंतर्निहित उत्सर्जन के योग से है। इस पेपर के लिए, हमने वर्ष 2017
से 2050 तक वर्ष-वार ऑन-रोड उत्सर्जन की गणना की है और विभिन्न परिदृश्यों के तहत प्रति वाहन निर्माण से जुड़े
अंतर्निहित उत्सर्जन की गणना की है और फिर इस गणना का उपयोग प्रति वर्ष कुल उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए किया है।
3.4 पर्यावरण ड्राइविंग (इको-ड्राइविंग) अपनाने के कारण CO2 कमी की गणना
कई अध्ययनों से पता चला है कि इको-ड्राइविंग प्रथाओं/प्रशिक्षण से ऑटोमोबाइल से कार्बन उत्सर्जन कम हो सकता है।
इको ड्राइविंग के टिप्स नीचे चित्र 1 में दिखाए गए हैं (अरोकियाराज एट अल।, 2018) ने अपने अध्ययन में निष्कर्ष निकाला
कि इको-ड्राइविंग व्यवहार रणनीतियाँ कार्बन-उत्सर्जन को 16% तक कम कर दें गी और ईंधन की खपत को बचाएंगी। इस
पेपर के लिए, हम इको-ड्राइविंग के कारण CO2 में कमी के लिए समान मान का उपयोग करते हैं और विभिन्न परिदृश्यों में
उत्सर्जन की गणना करते हैं क्योंकि उन्होंने भारतीय ड्राइवरों पर अपना अध्ययन किया है।
3.5 विभिन्न परिदृश्यों के कार्यान्वयन के कारण CO2 लागत बचत की गणना
कार्बन उत्सर्जन भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है। लाभ-लागत अध्ययन में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में
परिवर्तन के कारण जलवायु परिवर्तन पर नीति के प्रभाव के मौद्रिक मूल्य को मापने के लिए SCC का उपयोग किया जाता
है। उत्सर्जन में वृद्धि करने वाली नीतियों के लिए, उत्सर्जन में अपेक्षित वृद्धि (टन में) को SCC मूल्य से गुणा किया जाता है
और फिर परिणाम का उपयोग उस नीति की कुल अनुमानित लागत के हिस्से के रूप में किया जाता है। जबकि, प्रदूषण को
कम करने वाली नीतियों के मामले में, प्रदूषण में कमी को SCC मान से गुणा किया जाता है और परिणाम का उपयोग उस

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 47


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नीति के अनुमानित लाभों के लिए किया जाता है (रेनर्ट एंड किंगडन, 2019)। भारत के लिए दे श-स्तरीय SCC उत्सर्जन
उच्चतम यानि रुपये 6858 प्रति टन CO2 होने का अनुमान लगाया गया था। इसका मतलब है कि भारत को प्रत्येक
अतिरिक्त टन CO2 उत्सर्जित करने से रुपये 6858 का नुकसान होगा (रिक एट अल।, 2018)। हमने विभिन्न परिदृश्यों
की CO2 लागत बचत की गणना के लिए भी इसी पद्धति का उपयोग किया है, यानी (टन में उत्सर्जन में वृद्धि या कमी ×
एससीसी SCC) = नीति या परिदृश्य की लागत अंतर्निहित CO2 के प्रभाव को वाहन के पूरे जीवनकाल में अंतर्निहित
CO2 को लागू करके EVs और ICE के कई जीवन चक्र आकलनों में सुधार किया जाता है।

चित्र 1. इको ड्राइविंग के टिप्स

3.6 कुल CO2 उत्सर्जन पर EV अपनाने का प्रभाव


अंतर्निहित CO2 के प्रभाव को वाहन के पूरे जीवनकाल में अंतर्निहित CO2 को लागू करके EVs और ICE के कई जीवन
चक्र आकलनों में सुधार किया जाता है। यद्यपि यह तय करने के लिए एक वैध दृष्टिकोण है कि वाहन कार्बन तटस्थ है या
नहीं, यह नीति के कुल CO2 प्रभाव का मूल्यांकन करते समय एक अच्छा दृष्टिकोण नहीं है। एक वाहन के निर्माण की
अवधि के दौरान, विनिर्माण से उत्पादित CO2 को उसके जीवनकाल के दौरान जारी नहीं किया जाएगा; इस प्रकार, CO2
का प्रभाव निर्माण के समय ही होगा (हिल एट अल।, 2019)।
कुल CO2 उत्सर्जन पर EV अपनाने का प्रभाव जैसा कि चित्र 2 में दिखाया गया है, यह दर्शाता है कि 2035 से पहले
परिदृश्य (Scenario) 1, 2 और 3 के उत्सर्जन में थोड़ा अंतर है क्योंकि ICE वाहनों का सबसे बड़ा अनुपात है जो कुल
CO2 उत्सर्जन में लगातार वृद्धि कर रहे हैं। हालाँकि, जैसा हम 2035 से ICE वाहनों के उत्पादन को रोक रहे हैं और
अधिक इलेक्ट्रिक वाहनों को पेश कर रहे हैं, परिदृश्य 2 और 3 क्रमशः परिदृश्य 1 की तुलना में कुल CO2 उत्सर्जन में

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सबसे बड़ी कमी दिखाते हैं। दूसरी ओर, यदि हम आर्थिक वृद्धि के साथ वाहनों के विद्युतीकरण के साथ ड्राइविंग करना
जैसा कि परिदृश्य 5 और 6 में दिखाया गया है, तो वाहनों से CO2 के उत्सर्जन में अधिकतम कमी होती है। इस परिणाम से
पता चलता है कि इलेक्ट्रिक वाहनों के कार्यान्वयन के साथ-साथ इको-ड्राइविंग से परिवहन CO2 उत्सर्जन को कम करने में
मदद मिलेगी और जलवायु परिवर्तन की समस्याओं को कम करने में मदद मिलेगी।

चित्र 2. कुल CO2 उत्सर्जन पर EV अपनाने का प्रभाव

ऑन-रोड उत्सर्जन की गणना से पता चलता है कि परिदृश्य -2 (2034 के बाद कोई नया आईसीई उत्पादन नहीं) और
परिदृश्य -3 (2034 के बाद ईंधन का 100% विद्युतीकरण) के मामले में, 2034 के बाद कार्बन उत्सर्जन में कमी 7.73%
है। परिदृश्य -1 (बीएयू-BAU- हमेशा की तरह व्यापार) की तुलना है । जबकि चित्र 2 में दिखाए गए अनुसार कुल CO2
उत्सर्जन की गणना से पता चलता है कि 2034 के बाद, परिदृश्य-2 और परिदृश्य-3 को लागू करने के बाद कार्बन-उत्सर्जन
में कमी क्रमशः 7.737% और 7.733% है। परिणाम बताते हैं कि 2034 के बाद 100% विद्युतीकरण को बढ़ावा दे ने के
बाद हम परिवहन क्षेत्र द्वारा 2035 में कार्बन-उत्सर्जन के 7.7% तक कम कर सकते हैं और कार्बन उत्सर्जन में यह कमी
आने वाले वर्षों में लगातार बढ़े गी।
अरोकियाराज एट अल, 2018 ने अपने अध्ययन में निष्कर्ष निकाला कि इको-ड्राइविंग व्यवहार रणनीतियाँ कार्बन-उत्सर्जन
को 16% तक कम कर दें गी और ईंधन की खपत को बचाएंगी। वाहनों के विद्युतीकरण के साथ ईको-ड्राइविंग रणनीति के
संयोजन के परिणाम, जैसा कि परिदृश्य 4, 5 और 6 में दिखाया गया है, यह दर्शाता है कि 2034 के बाद, ऑन-रोड और
कुल-CO2 उत्सर्जन दोनों में 84% की कमी होगी।
परिदृश्य 1 (BAU-बीएयू) की तुलना में परिदृश्य 4 दूसरी ओर, परिदृश्य 5 और 6 परिदृश्य 1 (बीएयू) की तुलना में
85.23% (ऑन-रोड और कुल उत्सर्जन दोनों में) की कमी दर्शाता है। इस अध्ययन के परिणाम से पता चलता है कि यदि
हम केवल 100% विद्युतीकरण की शुरुआत करते हैं और 2034 के बाद नए ICE वाहनों का उत्पादन बंद कर दे ते हैं तो
हम 2035 में 7.7% कार्बन कटौती प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन यदि हम दोनों रणनीतियों को अपनाते हैं, अर्थात 100%
विद्युतीकरण और किफायती(ECO) ड्राइविंग एक साथ, तभी हम 2035 में अधिकतम कार्बन कमी यानी 85.23% हासिल
कर सकते हैं।
रीटमैन एट अल , 2020 ने अपने अध्ययन में निष्कर्ष निकाला कि भारत में 2018 से 2035 तक CO2 उत्सर्जन में
परिवर्तन 129.5% है। हमारे अध्ययन में हमने पाया कि परिदृश्य 1 में 2018 से 2035 तक CO2 उत्सर्जन में कमी 1.35%

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 49


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है (यह कमी अधिक ऊर्जा कुशल ICE वाहनों और उत्सर्जन-मानदं डों में बदलाव के कारण है) जबकि परिदृश्य 2 और 3
में यह कमी 8.98% है उन्होंने यह भी निष्कर्ष निकाला कि भारत 2035 में कार इन्वेंट्री के EV शेयर के 50% तक पहुंच
जाएगा। इस पेपर में हमने पाया कि यदि वर्ष 2035 में हम ईवी वाहनों से आईसीई वाहनों के उत्पादन को स्विच करते हैं,
तभी हम CO2 उत्सर्जन में उच्चतम कमी प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि, भारत में, इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सबसे बड़ी
बाधा परिवहन क्षेत्र के लिए ऊर्जा उत्पादन के लिए संसाधनों का सतत उपयोग है। चूंकि भारत में ऊर्जा उत्पादन में कोयले
की हिस्सेदारी 56 फीसदी है, इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन में और वृद्धि से CO2 की अधिक वृद्धि होगी, जैसा कि हमारे
अध्ययन में हमने पाया कि ईवी उत्पादन, आईसीई वाहनों के उत्पादन की तुलना में अधिक CO2 का उत्सर्जन करता है।
इसलिए, भारत CO2 के इस कमी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है यदि यह एक साथ ईवी बिक्री को बढ़ाता है और ऊर्जा के
अधिक नवीकरणीय स्रोतों की ओर बढ़ता है (रिटमैन एट अल, 2020)

4 निष्कर्ष
अध्ययन उन रणनीतियों पर केंद्रित था जिन्हें वाहनों से CO2 उत्सर्जन को कम करने के लिए अपनाया जा सकता है।
इसका परिणाम यह है कि यदि हम आने वाले वर्षों में लगातार मोटर वाहनों का उपयोग करते हैं तो आने वाले वर्षों में ऑन-
रोड CO2 उत्सर्जन और अधिक तेजी से बढ़े गा और हम CO2 के न्यूनीकरण लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाएंगे। इसलिए,
बाजार में अधिक संख्या में शून्य-उत्सर्जन वाहनों को पेश करने और वाहन उपयोगकर्ताओं के बीच ईको-ड्राइविंग प्रथाओं को
प्रोत्साहित करने की तत्काल आवश्यकता है।
इस अध्ययन के परिणाम से, हम अनुशंसा कर सकते हैं, कि भारत के परिवहन क्षेत्र को डीकार्बोनाइज (किसी पदार्थ से
आलात अंश हटाना) करने और ऑटोमोबाइल के कारण ग्रीनहाउस गैस के प्रभाव को कम करने के लिए एकमात्र संभावित
रणनीति इलेक्ट्रिक वाहनों और इको-ड्राइविंग के उपयोग में वृद्धि है। इसके अलावा, इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण के दौरान
CO2 के प्रभाव को कम करने और साथ ही ICE वाहनों की ईंधन दक्षता बढ़ाने के लिए पर्यावरण ड्राइविंग (इको-ड्राइविंग)
प्रथाओं को बढ़ावा दे ने के लिए अक्षय ऊर्जा संसाधनों की ओर बढ़ने की आवश्यकता है।

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सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 51


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सदियों पुराने रेलवे पुल के द्वारा बढ़े हुए भार को


उठाने की क्षमता का आकलन
डॉ. राजीव गोयल, मुख्य वैज्ञानिक, बीईएस प्रभाग

1.0 परिचय
भारत में, पहली यात्री ट्रेन वर्ष 1853 में मुंबई और ठाणे के बीच चली थी। तब से, ट्रेनों की संख्या (यात्री और माल गाड़ी)
और आवृत्ति में जबरदस्त वृद्धि हुई है। अधिक माल को तेज गति से परिवहन करने के लिए, भारतीय रेलवे ने मालगाड़ी के
प्रत्येक वैगनों को उनकी वहन क्षमता से 8 टन अधिक ओवरलोड करने व 2 टन भार की सहिष्णुता की योजना बनाई, जिसे
CC+8+2 कहा गया।
रेलवे नेटवर्क में कई ऐसे पुल हैं जो 100 साल से भी अधिक पुराने हैं। ऐसे पुलों में से, एक स्टील पुल को CC+8+2 लोडिंग
का भार को उठाने की क्षमता का आंकलन करने के लिए चुना गया। यह लेख, इस पुल के सुपरस्ट्रक्चर के महत्वपूर्ण मेम्बर्स
में विभिन्न लोडिंग स्थितियों के कारण तनाव / विस्थापन, फटिग (fatigue) आदि के परिणामों को प्रस्तुत करता है।
1.0 पुल का विवरण
कटनी शहर, मध्य प्रदे श के पास रोहरी में दो समानांतर स्टील ट्रस पुल (Steel Truss Bridge) हैं। इन दो समानांतर
पुलों में से, छोटी ऊंचाई वाला पुल वर्ष 1904 में बनाया गया था। इसी पुल को वर्तमान अध्ययन के लिए चुना गया। इस पुल
का सुपरस्ट्रक्चर, 33.45 मीटर लंबाई के स्टील ट्रस (truss) से बना है, जो स्टील रॉकर और रोलर (Steel Rocker and
Roller) बेयरिंग पर टीका है। । पुलों के अबटमेंट (abutment), पत्थर की चिनाई से बने हैं। पुलों के विशिष्ट दृश्य चित्र-1
से चित्र-5 में दिखाए गए हैं।

2.0 अध्ययन का उद्दे श्य


अध्ययन का उद्दे श्य प्रस्तावित ओवरलोड वैगनों की मालगाड़ी के तहत पुल की संरचनात्मक प्रभावकारिता की जांच करना
है, जिसमें सामने दो WAG7 लोकोमोटिव इंजन + बीच मे 58 ओवरलोडेड लोडेड BOXN वैगन (CC + 8 + 2) + पीछे
दो WAG7 लोकोमोटिव इंजन शामिल हैं। इस उद्दे श्य को प्राप्त करने के लिए, निम्नलिखित योजना के अनुसार कार्य किया
गया:
•- विभिन्न लोडिंग स्थितियों के तहत ट्रस के महत्वपूर्ण मेम्बर्स के अधिकतम तनाव और विस्थापन का आकलन करने के
लिए विश्लेषणात्मक अध्ययन
•- फील्ड अध्ययन जिसमें विभिन्न लोडिंग स्थितियों के तहत स्थापित सेंसर की रीडिंग को रिकॉर्ड करने के साथ-साथ
तनाव / विस्थापन को मापने के लिए पुल के महत्वपूर्ण मेम्बर्समें सेंसर की स्थापना शामिल है
•- प्रयोगशाला में पुल के स्टील मेम्बर्स में से एक मेम्बर पर फटिग (fatigue) का अध्ययन
फील्ड अध्ययन करने के लिए, भारतीय रेलवे द्वारा एक टे स्ट ट्रेन, जिसमे सामने में दो WAG7 लोकोमोटिव इंजन + बीच
मे 58 ओवरलोडेड लोडेड BOXN वैगन (CC + 8 + 2) + पीछे दो WAG7 लोकोमोटिव इंजन, की व्यवस्था की गई। इस
टे स्ट ट्रेन में इस्तेमाल किए गए प्रत्येक लोकोमोटिव का वजन 112.81 टन था और वैगनों का वजन 83.32 टन से 83.76
टन तक था। टे स्ट ट्रेन का कुल वजन 5290 टन था। चित्र-6 में पुल को पार करते समय, टे स्ट ट्रेन का दृश्य है।

52 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


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अध्ययन के लिए
चुना गया पुल

चित्र-1: रोहारी पुल

चित्र-2: अध्ययन के लिए चुने गए पुल के दृश्य

चित्र-3: अबटमेंट से लिया गया पुल के नीचे का दृश्य चित्र- : पुल का ईलिवेसन (Elevation)

चित्र-5: पुल के अबटमेंट का दृश्य चित्र-6: पुल के ऊपर टे स्ट ट्रे न का दृश्य

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 53


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3.0 विश्लेषणात्मक अध्ययन


संरचनात्मक विश्लेषण के लिए पुल के सुपरस्ट्रक्चर को मॉडल करने के लिए, FEM आधारित सॉफ्टवेयर RM2006 का
उपयोग किया गया। चित्र-7 से चित्र-10 मे, इस पुल के विभिन्न मेम्बर्स की नंबरिंग दर्शाई गई है।

चित्र-7: अपस्ट्रीम ट्रस के विभिन्न मेम्बर्स की नंबरिंग

चित्र-8: डाउनस्ट्रीम ट्रस के विभिन्न मेम्बर्स की नंबरिंग

चित्र-9: ट्रस के नीचे के विभिन्न मेम्बर्स की नंबरिंग

चित्र-10: ट्रस के ऊपर के विभिन्न मेम्बर्स की नंबरिंग

भारतीय रेलवे द्वारा पुलों को, निम्नलिखित मूविंग लोड (moving load) के लिए डिज़ाइन किया जाता है:
¾ भारी खनिज लोडिंग (एचएमएल लोडिंग): 30.0 टन लोकोमोटिव इंजन का एक्सल लोड और 12.0 टन / मी का
ट्रेन लोड
¾ संशोधित बीजी लोडिंग (एमबीजी लोडिंग)-1987: 25.0 टन लोकोमोटिव इंजन का एक्सल लोड और 8.25 टन/ मी
का ट्रेन लोड
¾ बीजीएमएल-1926: 22.9 टन लोकोमोटिव इंजन का एक्सल लोड और 7.67 टन/मीटर का ट्रेन लोड

54 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


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मूविंग लोड विश्लेषण के लिए, Bridge Rules [1] में दिए गए फ़ार्मुलों का उपयोग करके डायनेमिक ऑग्मेंटेशन (सीडीए)
के गुणांक का अनुमान लगाया गया व निम्नलिखित लोडिंग के लिए पुल के सुपरस्ट्रक्चर का संरचनात्मक विश्लेषण किया गया:
¾ लोड -1: एचएमएल लोडिंग + 0.345 सीडीए के कारण लंबवत लोड
¾ लोड -2: एमबीजी-1987 लोडिंग + 0.345 सीडीए के कारण लंबवत लोड
¾ लोड -3: बीजीएमएल -1926 लोडिंग + 0.408 सीडीए के कारण लंबवत लोड
¾ लोड-4: टे स्ट ट्रेन + 0.345 सीडीए के कारण लंबवत लोड
¾ लोड -5: 10-40 किमी प्रति घंटे की गति से चलने वाली टे स्ट ट्रेन + 0.10 सीडीए के कारण लंबवत भार
¾ लोड -6: 60 किमी प्रति घंटे की गति से चलने वाली टे स्ट ट्रेन + 0.1656 सीडीए के कारण लंबवत भार
¾ लोड -7: एचएमएल लोडिंग + 0.345 सीडीए के कारण लंबवत व अनुदैर्ध्य लोड
¾ लोड -8: एमबीजी-1987 लोडिंग + 0.345 सीडीए के कारण लंबवत व अनुदैर्ध्य लोड
¾ लोड -9: बीजीएमएल -1926 लोडिंग + 0.408 सीडीए के कारण लंबवत व अनुदैर्ध्य लोड
¾ लोड -10: टे स्ट ट्रेन + 0.345 सीडीए के कारण लंबवत व अनुदैर्ध्य लोड
4.0 फील्ड में अध्ययन
4.1 इं�ट�मेंटेशन योजना
इं�ट�मेंटेशन स्कीम का उद्दे श्य, पुल के घटकों में विभिन्न संरचनात्मक मापदं डों की माप और निगरानी करना है । इं�ट�मेंटेशन
और माॅनिटरिंग की प्रकृति के आधार पर, इं�ट�मेंटेशन की योजना को निम्नलिखित घटकों में विभाजित किया गया है:
y ब्रिज सुपरस्ट्रक्चर में तनाव / विस्थापन
y अबटमेंट में तनाव
4.2 उपकरणों का विवरण
वाइब्रेटिंग वायर (VW) सेंसर ऑनसाइट हैंडलिंग / इंस्टॉलेशन के लिए बहुत मजबूत होते हैं और तार की ज्यादा लंबाई होने
के बावजूद, आउटपुट सिग्नल मे कोई क्षरण नहीं होता है, इसलिए VW सेंसर का उपयोग तनाव के साथ-साथ विस्थापन
के मापन के लिए भी किया जाता है। ट्रस के विभिन्न महत्वपूर्ण मेम्बर्स में सतही तनावों को स्ट्रेन इंटेलीड्यूसर के माध्यम से
प्राप्त किया गया। इन गेजों (gauges) के कुछ स्थान, चित्र-11 से चित्र-12 में दिखाए गए हैं। सुपरस्ट्रक्चर के डाइनैमिक
विस्थापन को मापने के लिए, विस्थापन ट्रांसड्यूसर (displacement transducer) को लगाया गया। टे स्ट ट्रेन की
आवाजाही के कारण अबटमेंट पर अनुदैर्ध्य बलों के प्रभाव की निगरानी के लिए, अबटमेंट में स्ट्रेन इंटेलीड्यूसर (Strain
Intelliducers) लगाए गये। कुछ स्थापित गेजों को चित्र-13 में दिखाए गए हैं। स्वचालित डेटा अधिग्रहण के लिए, सभी
स्थापित गेजों को कंप्यूटर नियंत्रित डेटा लॉगर (चित्र-14) से जोड़ा गया।

चित्र-11: अपस्ट्रीम ट्रस में स्ट्रे न इंटेलीड्यूसर के लगाने के स्थान

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 55


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चित्र-12: डाउनस्ट्रीम ट्रस में स्ट्रे न इंटेलीड्यूसर के लगाने के स्थान

चित्र-13: ट्रस के विभिन्न मेम्बर्स में में स्ट्रे न इंटेलीड्यूसर के दृश्य

चित्र-14: कंप्यूटर नियंत्रित डेटा लॉगर का दृश्य

4.3 टे स्ट ट्रे न की विभिन्न लोडिंग


पुल के सुपरस्ट्रक्चर को टे स्ट ट्रेन के चलने के निम्नलिखित तरीके से जांच की गई:
¾ स्टेटिक लोड केस (स्पैन पर आगे के दोनों लोकोमोटिव इंजन)
¾ 5 किमी प्रति घंटे के रफ्तार से टे स्ट ट्रेन का पुल के ऊपर से चलना

56 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

¾ 20 किमी प्रति घंटे के रफ्तार से टे स्ट ट्रेन का पुल के ऊपर से चलना


¾ 45 किमी प्रति घंटे के रफ्तार से टे स्ट ट्रेन का पुल के ऊपर से चलना
¾ 50 किमी प्रति घंटे के रफ्तार से टे स्ट ट्रेन का पुल के ऊपर से चलना
¾ 58 किमी प्रति घंटे के रफ्तार से टे स्ट ट्रेन का पुल के ऊपर से चलना
¾ स्टील रॉकर बेयरिंग से टे स्ट ट्रेन की शुरुआत
¾ स्टील रोलर बेयरिंग से टे स्ट ट्रेन की शुरुआत
¾ बिना किसी ब्रेक बाइंडिंग के अधिकतम त्वरण शक्ति पर पुल के पास से टे स्ट ट्रेन की शुरुआत - स्टील रॉकर बेयरिंग
से टे स्ट ट्रेन की शुरुआत
¾ चार वैगनों के ब्रेक बाइंडिंग के साथ अधिकतम त्वरण शक्ति पर पुल के पास से टे स्ट ट्रेन की शुरुआत - स्टील रॉकर
बेयरिंग से टे स्ट ट्रेन की शुरुआत
¾ 50 किमी प्रति घंटे के रफ्तार से चलने वाली टे स्ट ट्रेन पर सम्पूर्ण सर्विस ब्रेक लगाना
¾ 20 किमी प्रति घंटे के रफ्तार से चलने वाली टे स्ट ट्रेन पर डायनेमिक ब्रेक लगाना

5.0 स्टील के नमूने का फटिग अध्ययन और भौतिक गुण


संरचनात्मक स्टील मेम्बर में से, एक मेम्बर को फटिग अध्ययन के लिए और प्रयोगशाला में इसकी रासायनिक संरचना और
अन्य संरचनात्मक गुणों का आकलन करने के लिए पुल से लिया गया। इस रासायनिक विश्लेषण से स्टील में कम कार्बन
वाला स्टील पाया गया। ASTM E8 [2] के अनुसार स्टील के नमूने पर तन्यता परीक्षण किया गया। स्टील के नमूने पर
फटिग अध्ययन करने के लिए, एस-एन वक्र (S-N Curve) का तरीका अपनाया गया है जिसमे अधिकतम 20,00,000
चक्रों (Cycles) तक की सहनशक्ति सीमा की पहचान करने के लिए परीक्षण किए गए।

6.0 चर्चा
इस पुल पर किए गये अध्ययन के नतीजों के आधार पर, निम्नलिखित टिप्पणियां की जाती हैं:
¾ टे स्ट ट्रेन के गुजरने के कारण पुल के मध्य भाग में मापा गया ऊर्ध्वाधर विस्थापन 12.5 मिमी है ,जो अनुमेय विस्थापन
से कम है।
¾ पुल की मापी गई डाइनैमिक विशेषताओं को सैद्धांतिक अध्ययन से प्राप्त नतीजों के तुलनीय पाया गया है।
¾ इस पुल के महत्वपूर्ण मेम्बर्स (U2-U3, L2-L3, L0-U1, L3-U4 और L6-U5) में अलग-अलग गति से परीक्षण
ट्रेनों के गुजरने के कारण मापा गया अधिकतम तनाव, संबंधित सैद्धांतिक रूप से गणना किए गए अक्षीय तनाव से
कम है। L0-L1, L5-L6 और L3-U3 मेम्बर्स में, चरम गतिशील तनाव सैद्धांतिक लोगों के साथ तुलनीय हैं।
¾ 58 किमी प्रति घंटे के रफ्तार से चलने वाली टे स्ट ट्रेन के लिए सुपरस्ट्रक्चर के महत्वपूर्ण मेम्बर्स के लिए CDA की
गणना की गई है। परीक्षण ट्रेन की सभी गति के लिए महत्वपूर्ण मेम्बर्स के लिए सीडीए मान अलग-अलग पाए गए।
¾ सैद्धांतिक विश्लेषण के परिणाम बताते हैं कि सुपरस्ट्रक्चर में अधिकतम तनाव एचएमएल लोडिंग के कारण होता है।
L2-L3 मेम्बर में 91.96 MPa के कुल अधिकतम तन्यता तनाव की गणना की जाती है, जबकि U2-U3 मेम्बर में
कुल अधिकतम संपीड़ित तनाव 126.51 MPa है। 60 किमी प्रति घंटे के रफ्तार से चलने वाली टे स्ट ट्रेन के तहत,

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 57


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L2-L3 मेम्बर में 55.20 MPa का कुल अधिकतम तन्यता तनाव पाया जाता है, जबकि 75.77MPa का कुल
अधिकतम संपीड़न तनाव U2-U3 मेम्बर में पाया जाता है। ये सभी अधिकतम तनाव 140 एमपीए के स्वीकार्य तनाव
से काफी नीचे हैं।
¾ 58 किमी प्रति घंटे के रफ्तार से चलने वाली टे स्ट ट्रेन के तहत मापा गया अधिकतम कंप्रेसिव और टे न्साइल तनाव
क्रमशः 50 MPa और 30 MPa पाया गया। ये मान क्रमशः 40 MPa और 70 MPa में बदल गए, जब टे स्ट ट्रेन
पर फुल-सर्विस ब्रेक लगाए गए। यह दे खा गया है कि 50 किमी प्रति घंटे के रफ्तार से चलने वाली टे स्ट ट्रेन पर फुल-
सर्विस ब्रेक लगाने के कारण L0-L1 मेम्बर में तन्यता तनाव में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
¾ फटिग अध्ययन में स्टील मेम्बर का नमूना 240 MPa पर 20,00,000 से अधिक चक्रों तक टिका रहा।

7.0 निष्कर्ष
इस पुल पर विश्लेषणात्मक अध्ययन FEM आधारित RM 2006 सॉफ्टवेयर का उपयोग करके किया गया था। फील्ड
अध्ययन के लिए, विभिन्न मेम्बर्स में सेंसर लगाए गए थे और टे स्ट ट्रेन के गुजरने के विभिन्न मामलों के तहत इन सेंसर से डेटा
एकत्र किया गया। पुल के एक स्टील मेम्बर पर प्रयोगशाला में फटिग के लिए भी अध्ययन किया गया।
विश्लेषणात्मक, फील्ड और प्रयोगशाला में किए गये अध्ययनों के आधार पर, टे स्ट ट्रेन की विभिन्न लोडिंग की स्थिति में
तनाव, अनुमेय तनाव से कम पाए गए। अधिकतम विस्थापन भी अनुमेय सीमा के भीतर था। फटिग अध्ययनों से, स्टील के
नमूने की सहनशक्ति सीमा 240 MPa पर ठीक पाई गई। टे स्ट ट्रेन के गुजरने के कारण एबटमेंट में अतिरिक्त तनाव बहुत
कम पाया गया। चूंकि टे स्ट ट्रेन के गुजरने की विभिन्न लोडिंग स्थिति के तहत स्टील मेम्बर्स में अधिकतम तनाव का स्तर भी
सहनशक्ति सीमा से काफी नीचे है, अतः यह अनुमान लगाया गया कि यह पुल प्रस्तावित CC+8+2 लोडिंग को सुरक्षित
रूप से ले सकता है।

8.0 आभार
लेखक, इस लेख को प्रकाशित करने की अनुमति दे ने के लिए निदे शक, सीआरआरआई को धन्यवाद दे ते हैं। लेखक,
इस अध्ययन के वित्तपोषण के लिए भारतीय रेलवे के पश्चिम मध्य रेलवे मंडल का विशेष आभारी है। फील्ड अध्ययन,
विश्लेषणात्मक अध्ययन और प्रयोगशाला अध्ययन करने में संस्थान व रेलवे के अधिकारियों का उनके द्वारा दिये गये सहयोग
का हृदय से धन्यवाद।

9.0 संदर्भ
1. (2005), "पुलों के सुपरस्ट्रक्चर और सबस्ट्रक्चर के डिजाइन के लिए भार निर्दिष्ट करने और मौजूदा पुलों की ताकत का आकलन करने के
लिए नियम " भारतीय रेलवे मानक (पुल नियम), अनुसंधान डिजाइन और मानक संगठन, लखनऊ, भारत।

2. ASTM E8, "धातु सामग्री के तनाव परीक्षण के लिए मानक परीक्षण विधियाँ", ASTM इंटरनेशनल, अमेरिका।

58 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


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अनुभवी ड्राइवरों का ध्यान भटकना: आई-ट्रै कर से अध्ययन


कामिनी गुप्ता, वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी, टीईएस प्रभाग; अमित अग्रवाल, असिस्टें ट प्रोफेसर,
आई.आई.टी. रुड़की; डॉ. नीलिमा चक्रवर्ती, मुख्य वैज्ञानिक; डॉ. ए. मोहन राव, वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक;
राजन वर्मा, तकनीकी अधिकारी, यातायात इंजीनियरिंग और सुरक्षा प्रभाग
सार
हर साल सड़क हादसों में एक लाख से ज्यादा लोग मारे जाते हैं और कई लोग घायल होते हैं। ऐसे कई कारक हैं, जो
सड़क यातायात की दुर्घटनाओ की संभावना को प्रभावित करते हैं और उनमें से कई सड़क उपयोगकर्ताओं के दुर्घटना या
दुर्घटनाओ की संभावना को टाला जा सकता है। यातायात में व्याकुलता के कारण होने वाली दुर्घटना एक और जोखिम है,
जो योजनाकारों और नीति-निर्माताओं के लिए एक और प्रमुख चिंता का विषय है। चालक का ध्यान भंग विभिन्न कारकों
/ स्रोतों से हो सकता है, जो वाहन के अंदर या वाहन के बाहर से भी हो सकता है। सड़क के किनारे भवन/संरचना/लोगों/
गतिविधियों/बिलबोर्डों (अर्थात सड़क के किनारे विज्ञापन) के कारण बाहरी विकर्षण (उत्पन्न हो सकते हैं और एक चालक
उनकी ओर आकर्षित होता है। वर्तमान अध्ययन में बाहरी कारकों (जैसे, निर्माण स्थल) के कारण अनुभवी ड्राइवरों के
व्याकुलता पैटर्न का अध्ययन करने का प्रयास करता है। केस स्टडी को दिल्ली में आश्रम चौराहे के रूप में चुना गया है। उस
निर्माण स्थल का सड़क सुरक्षा ऑडिट किया गया था। पहनने योग्य आई ट्रैकर का उपयोग करके ड्राइवरों के व्याकुलता
पैटर्न को पकड़ लिया गया है और पूर्वनिर्धारित क्षेत्रों के लिए संसाधित किया गया है। एप्रोच ट्रांजिशन, वर्किंग और टर्मिनल
ट्रांजिशन जोन के लिए फिक्सेशन पैटर्न का विश्लेषण किया गया। अध्ययन से पता चलता है कि अत्यधिक कुशल चालक
केवल निर्माण स्थल से मामूली रूप से प्रभावित होते हैं; हालाँकि, यदि सड़क सुरक्षा ऑडिट की सिफारिशों को सही ढं ग से
लागू किया जाता है, तो चालक की व्याकुलता को और कम किया जा सकता है।
कीवर्ड : सड़क सुरक्षा, आई-ट्रैकर, निर्माण स्थल, व्याकुलता

1. परिचय
1.1 पार्श्वभूमि:

दुनिया में दुर्घटनाओं से संबंधित लगभग 11% मौतें भारत में होती हैं, यानी हर साल लगभग 1,50,000 व्यक्तिजो दे श के
सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.77% है [10]। अधिक गति लापरवाही से वाहन चलाना, शराब पीकर गाड़ी चलाना,
गलत दिशा में, सिग्नल-जंपिंग आदि दुर्घटनाओं के मुख्य कारण हैं। लगभग 65% दुर्घटनाएं सीधी सड़क वाले हिस्से पर हुईं,
जहां चालक कम चौकस (या विचलित) हो जाते हैं। आमतौर पर, एक ड्राइवर को ड्राइविंग की पूरी यात्रा कि अवधि के लिए
ध्यान दे ने की आवश्यकता होती है, अधिक स्पष्ट रूप से यातायात के साथ-साथ अन्य सड़क-उपयोगकर्ताओं के लिए भी
सावधानी रखने की आवश्यकता है। सड़क के संकेत, यातायात संकेत, सड़क की सतह/गड्ढे, सतह पर रेत / बजरी, आदि।
सड़क सुरक्षा प्रबंधन, सुरक्षित सड़कें और गतिशीलता, सुरक्षित वाहन, सड़क उपयोगकर्ता व्यवहार और दुर्घटना के बाद की
दे खभाल सड़क सुरक्षा के पांच स्तंभ हैं। भारत अपनी सड़क सुरक्षा चुनौती से निपटने के लिए साहसिक और अभिनव कदम
उठा रहा है।
1.2 चालक व्याकुलता:

व्याकुलता प्रमुख कारक है और यह आजकल विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण भी है, जहां प्रौद्योगिकियों का एक व्यापक स्पेक्ट्रम
(जैसे, टच स्क्रीन पैनल का उपयोग या इन-फोटे नमेंट सिस्टम, मार्ग नेविगेशन के लिए डिजिटल मानचित्रों का उपयोग,
तापमान को समायोजित करना, आदि) को कार के वातावरण में पेश किया गया है जो डैश माउं टेड या पहनने योग्य हो
सकता है। यह व्याकुलता संज्ञानात्मक (ड्राइविंग से मन दूर), मैनुअल (स्टीयरिंग से हाथ हटाकर), श्रवण और दृश्य (सड़क
से दूर आंखें) हो सकती है। वाहन प्रौद्योगिकी में स्वचालन के परिणामस्वरूप, माध्यमिक कार्यों के कारण होने वाले विभिन्न

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 59


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प्रकार के व्याकुलता, जिन्हें ड्राइवरों को प्रबंधित करना होता है, पिछले कुछ वर्षों में बढ़े हैं, इसलिए विचलित ड्राइविंग
या कभी-कभी सड़क परिदृश्यों के कारण बढ़ रहा है। व्याकुलता प्रतिक्रिया समय में वृद्धि की ओर ले जाती है और लंबे
समय तक प्रतिक्रिया समय दुर्घटनाओं को बढ़ा सकता है। कुछ अध्ययनों ने ड्राइविंग सिमुलेटर [3,4,15] का उपयोग
करके प्रतिक्रिया समय पर प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए ड्राइवरों के व्यवहार का अध्ययन किया। इसी तरह, चौधरी
और वेलागा [4] ने मोबाइल फोन के उपयोग के दौरान पैदल यात्री क्रॉसिंग घटना का अध्ययन करने के लिए ड्राइविंग
सिम्युलेटर का इस्तेमाल किया। ड्राइविंग के दौरान साधारण बातचीत, जटिल बातचीत, सरल टे क्स्टिं ग और जटिल टे क्स्टिं ग
के लिए प्रतिक्रिया समय में 40%, 95%, 137% और 204% की वृद्धि पाई गई [4]। स्पष्ट रूप से, बढ़ी हुई प्रतिक्रिया
समय व्याकुलता का परिणाम है। चालक का ध्यान भंग होना भी सड़क दुर्घटनाओं का एक सामान्य कारण है, इसलिए इस
अध्ययन में आई ट्रैकर का उपयोग करके दिल्ली में एक निर्माण स्थल पर चालक का ध्यान भटकाने पर ध्यान केंद्रित किया
गया है।
1.3 नेत्र ट्रै किंग का उपयोग करते हुए पिछले अध्ययन:

ड्राइविंग सिम्युलेटर [4,2,1] का उपयोग करके ड्राइवरों के प्रतिक्रिया समय, गति, लेन की स्थिति, आदि (यानी, प्रदर्शन के
उपाय) का अध्ययन करने के लिए कई अध्ययनों का प्रयास किया गया है। कुछ अन्य अध्ययनों ने ड्राइविंग सिम्युलेटर और
वास्तविक दुनिया की स्थितियों में मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं पर ध्यान दिया [6]। ड्राइविंग सिमुलेटर के अलावा, थकान,
व्याकुलता, लापरवाही आदि के मामले में पैटर्न को समझने के लिए ड्राइवरों की आंखों की गति का अध्ययन किया जा
सकता है। कुछ अध्ययनों में मनोवैज्ञानिक कारकों, विकर्षण आदि का अध्ययन करने के लिए आई-ट्रैकर का उपयोग करने
का प्रयास किया गया है। आमतौर पर, ऐसे उद्दे श्यों के लिए दो उपकरणों का उपयोग किया जाता है, अर्थात् चश्मा और
डैशबोर्ड-आधारित। पूर्व को चालक के सिर पर हेलमेट या नियमित चश्मे के रूप में रखा जाता है। उत्तरार्द्ध अधिक उपयुक्त
है, जब चालक के साथ कोई शारीरिक संपर्क नहीं किया जाना चाहिए, अर्थात, वाहन के डैशबोर्ड पर स्थापित और हेलमेट/
ग्लास/डैशबोर्ड में लगाए गए सेंसर आंखों की गति को ट्रैक करते हैं। विभिन्न अध्ययनों की समीक्षा प्रस्तुत की गई है, जिसका
उद्दे श्य आंखों के संज्ञानात्मक कार्य को समझना, आंखों की गति के पैटर्न को प्रदर्शित करना है [7]। फरहटर के अनुसार,
अध्ययन विभिन्न ड्राइविंग स्थितियों के तहत विभिन्न आई-ट्रैकर्स के उपयोग को प्रदर्शित करता है। साहित्य में आंखों के
निर्धारण, टकटकी पैटर्न / दिशा, प्रतिक्रिया समय, नीरस ड्राइविंग स्थितियों के प्रभाव आदि की समझ का अभाव है। कुछ
अध्ययनों में नियंत्रित वातावरण (यानी, एक ड्राइविंग सिम्युलेटर) के तहत आई-ट्रैकर का उपयोग किया गया है [12,9] .
पिछला अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है कि आई-ट्रैकिंग ड्राइवर के संज्ञानात्मक भार का अनुमान प्रदान कर सकती
है। बाद का अध्ययन रेसिंग सिम्युलेटर का उपयोग करके आई-ट्रैकर का उपयोग करके रेसिंग और गैर-रेसिंग ड्राइवरों के
प्रतिक्रिया समय की तुलना करता है। एक अध्ययन में, जो ड्राइविंग सिम्युलेटर पर नियंत्रित परिस्थितियों में FACELab
आई-ट्रैकर का उपयोग करता है, ने पाया कि पुराने (अनुभवी) ड्राइवरों के लिए निर्धारण समय युवा (नए) ड्राइवरों की तुलना
में अधिक लंबा है [5]। इसी तरह, PERCLOS (समय के साथ पुतली के बंद होने का प्रतिशत) और ACES (औसत आँख
बंद करने की गति) को एक एल्गोरिथ्म का प्रस्ताव दे ने के लिए जोड़ा जाता है, जो चालक की थकान का पता लगाता है
[8]। नीरस ड्राइविंग स्थितियों के कारण थकान एक बड़ी समस्या है।इसी तरह, एक अन्य अध्ययन में यह दिखाया गया है
कि आंखों की निगरानी की मदद से सड़क सुरक्षा की दिशा में बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता का मूल्यांकन किया जा सकता
है [16]।कुल मिलाकर, बहुत कम अध्ययनों ने आंखों की गति का अध्ययन करने के लिए आई-ट्रैकर का उपयोग करने का
प्रयास किया है, विभिन्न परिस्थितियों में ड्राइवरों के टकटकी पैटर्न (जैसे, वाहन-स्वचालन के कारण व्याकुलता, थकान,
सड़कों के किनारे निर्माण कार्य, आदि) एक अध्ययन में, भारतीय ड्राइवरों को सिम्युलेटर ड्राइविंग और आई-ट्रैकर पहनकर
वाहन चलाने के लिए कहा गया। अध्ययन ने उल्लंघनों का अध्ययन करने का प्रयास किया [13]। इसी तरह, एक अन्य
अध्ययन ने ड्राइविंग सिम्युलेटर [14] का उपयोग करके भारत की सड़कों पर विकर्षण पैटर्न का अध्ययन करने का प्रयास
किया। लेखकों ने पाया कि सभी ड्राइवरों का टकटकी प्रतिशत 90% से ऊपर था और औसत निर्धारण अवधि 25-30, 31-
35 और 36-40 के लिए थी जो क्रमशः 73%, 70% और 80% हैं।
60 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023
सीएसआईआर - सीआरआरआई

2 अध्ययन का उद्दे श्य:


इस कार्य का उद्दे श्य एक धमनी के साथ निर्माण कार्य के कारण वास्तविक परिस्थितियों में बहुत अनुभवी (विशेषज्ञ) चालकों
की व्याकुलता का अध्ययन करना है। इसके लिए फील्ड में आई ट्रैकर का उपयोग करके आंखों की गति संबंधी आंकड़े एकत्र
किए गये। आंखों पर नज़र रखने का उपयोग करते हुए चालक की व्याकुलता की समीक्षा वास्तविक परिस्थितियों में आई-
ट्रैकर का उपयोग करके व्याकुलता अध्ययन की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है । [11]
3 अध्ययन क्षेत्र और कार्यप्रणाली:
3.1 साइट चयन:

प्रस्तुत अध्ययन के लिए दिल्ली स्थित आश्रम चौराहे का चयन किया गया है। यह बहुत अधिक यातायात की सेवा करता है
और पीक आवर्स के दौरान स्टॉप एंड गो की स्थिति रखता है। चित्र 1 साइट को दिखाता है। एक फ्लाईओवर पहले से ही
काम कर रहा है और इस स्थान के रूप में एक अंडरपास का निर्माण किया जा रहा है। अंडर पास की लंबाई 300 मीटर
है। फ्लाईओवर के लंबवत दो अप्रोच आर्म्स, फरीदाबाद साइड और इंडिया गेट साइड हैं, जिसमें निर्माण के दौरान एप्रोच-
आधारित सिग्नल हैं। प्रत्येक दृष्टिकोण पर, एक संकेत स्थापित किया जाता है, जो गोल संकेतों के रूप में कार्य कर रहा है।
निर्माण स्थल बेहद असुरक्षित है। कार्य क्षेत्रों में, अनुशंसित दिशानिर्दे शों (आईआरसी: एसपी: 55-2014) का सकताई से
पालन नहीं किया गया (खंड 3)। इस प्रकार, सड़क उपयोगकर्ता, विशेष रूप से, गैर-मोटर चालित उपयोगकर्ता असुरक्षित हैं।
संपूर्ण ड्राइविंग यात्रा के दौरान पांच अलग-अलग क्षेत्रों पर विचार किया जाता है। ये हैं, एप्रोच ट्रांजिशन जोन, वर्किंग जोन,
दो ट्रैफिक सिग्नल (भोगल और आश्रम मेट्रो स्टेशन के नजदीक) और टर्मिनेशन (या टर्मिनल ट्रांजिशन जोन)। चित्र 2 पांच
अलग-अलग क्षेत्रों को दर्शाता है। चूंकि अध्ययन का प्राथमिक फोकस निर्माण स्थल पर ध्यान भंग करना है, विश्लेषण के
लिए केवल तीन क्षेत्रों का उपयोग किया गया वे है दृष्टिकोण संक्रमण क्षेत्र, कार्य क्षेत्र और टर्मिनल क्षेत्र।
3.2 चालक चयन:

इस अध्ययन में 7 कुशल पुरुष, 25-40 वर्ष, ड्राइवरों का चयन किया गया है। ये ड्राइवर बहुत अनुभवी और ड्राइविंग उनकी
लंबी अवधि की नौकरी का हिस्सा है। औसत वार्षिक माइलेज चालित 150,000 किमी है और औसत ड्राइविंग अनुभव
11.5 वर्ष है। कीस्टोन आई व्यूअर का उपयोग सभी पहलुओं में ड्राइवरों की दृष्टि का परीक्षण करने के लिए किया जाता है।
सभी ड्राइवरों के पास दृष्टि की स्वीकार्य सीमा थी। इन ड्राइवरों को आंखों पर नज़र रखने वाला चश्मा पहनने के लिए कहा
गया था (प्रयोगात्मक सेट अप के लिए धारा 2.3 दे खें) और पूर्वनिर्धारित मार्ग पर कार चलाने के लिए कहा गया। चित्र 1बी
में चिह्नित क्षेत्र यात्रा का चयनित खंड है। सभी वाहन चालक अलग-अलग समय पर एक ही मार्ग का अनुसरण करे।

(ए) आश्रम चौराहे का दृश्य (बी) निर्माण स्थल सहित चयनित खंड के लिए अंकन
चित्र 1: आश्रम चौराहा, दिल्ली और विश्लेषण के लिए विभिन्न क्षेत्र

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 61


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चित्र 2: अध्ययन के लिए रुचि का क्षेत्र

3.3 इन-फील्ड प्रायोगिक सेट अप:


आई-ट्रैकर एक ऐसा उपकरण है जिसे सिम्युलेटर पर या वास्तविक दुनिया की स्थितियों में ड्राइविंग करते समय नियमित
चश्मे के रूप में उपयोग किया जा सकता है। इसका उपयोग साइकिल या मोटरसाइकिल की सवारी करते समय भी किया
जा सकता है। सबसे पहले प्रत्येक प्रतिभागी के लिए डिवाइस को स्व-कैलिब्रेट किया जाता है। डिवाइस एक रिकॉर्डिंग
यूनिट (पॉकेट-फ्रेंडली) से जुड़ा है, जो मेमोरी कार्ड में डेटा को ऑन-द-स्पॉट स्टोर करता है। सबसे पहले, ड्राइवर ड्राइविंग
सिम्युलेटर और/या नियंत्रित स्ट्रेच पर अभ्यास सत्र से गुजरता है ताकि ड्राइवर डिवाइस के साथ सहज हो जाएं। इस अध्ययन
में, Tobii Pro Glasses २.१ का उपयोग किया गया है (चित्र 3 दे खें)। इसमें 4 नेत्र कैमरे (प्रत्येक तरफ 2 सेन्सर),
जायरोस्कोप और एक्सेलेरोमीटर सेंसर, ९० डिग्री क्षेत्र के दृश्य के साथ बाहरी दृश्य कैमरा है

चित्र 3: टोबी प्रो आई ट्रै कर कंट्रोलर और चश्मा Tobii Pro Lab2

62 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

3.4 डेटा निकालना:


डेटा का विश्लेषण करने के लिए, रिकॉर्ड किए गए डेटा को एक समर्पित सॉफ़्टवेयर Tobii Pro Lab2 का उपयोग करके
संसाधित किया जाता है। आई-ट्रैकर मट्रिक्स के निष्कर्षण के लिए मैन्युअल प्रयासों की आवश्यकता होती है (अर्थात,
रिकॉर्ड किए गए वीडियो में से एक असतत स्क्रीन का पहला चयन, स्क्रीनशॉट पर टकटकी और निर्धारण पैटर्न की घटनाएँ
बनाना, हीटमैप बनाना, आदि)। इसलिए परिणाम तीन एओआई के लिए तैयार किए जाते हैं। निम्नलिखित माप निकाले
जाते हैं:
¾ आंखों की गति का प्रकार: आंखें नहीं मिलीं, अवर्गीकृत, थैली (आंखों की तेज गति), निर्धारण।
¾ टकटकी नमूना प्रतिशत (रिकॉर्डिंग का वह भाग जिसके लिए एक या दोनों आंखें मिलीं); 50 हर्ट्ज आवृत्ति वाले एक
आई ट्रैकर में प्रति सेकंड 50 नमूने होते हैं, यह संभावना नहीं है कि 100% नमूनों का उपयोग पलक झपकने या
किसी अन्य कारणों से टकटकी बिंदुओं की गणना के लिए किया जा सकता है।
¾ भारित टकटकी के नमूने: 100% दोनों आंखें पूरी रिकॉर्डिंग के लिए मिलीं, 50% -¿ 50% रिकॉर्डिंग के लिए दोनों
आंखें और आधी रिकॉर्डिंग के लिए एक आंख
4 सड़क सुरक्षा ऑडिट:
एक निर्माण स्थल पर सुरक्षा चिंताओं की पहचान करने के लिए प्रयोग से पहले एक सड़क सुरक्षा ऑडिट किया गया था।
आमतौर पर, IRC:SP:55-2014 कार्य क्षेत्रों में यातायात प्रबंधन को संबोधित करने के लिए दिशानिर्दे श प्रदान करता है
और IRC:SP:88-2019 सड़क सुरक्षा ऑडिट के लिए दिशानिर्दे श प्रदान करता है। कुछ सुरक्षा चिंताओं को चित्र 4 में
दिखाया गया है। सड़क सुरक्षा ऑडिट के निष्कर्षों और जोखिम स्तरों को तालिका 1 में सारणीबद्ध किया गया है। स्पष्ट रूप
से, यदि किसी सुरक्षा चिंताओं के लिए जोखिम का स्तर बहुत अधिक है तो ये आवश्यक हैं और इन्हें तुरंत ठीक किया जाना
चाहिए। उच्च जोखिम स्तर की चिंताएं अत्यधिक वांछनीय हैं।

चित्र 4: सड़क सुरक्षा ऑडिट के दौरान पहचानी गई सुरक्षा संबंधी चिंताएं

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 63


सीएसआईआर - सीआरआरआई

तालिका 1: साइट पर सड़क सुरक्षा लेखापरीक्षा के निष्कर्ष

सुरक्षा चिंताएं जोखिम का स्तर


यातायात प्रबंधन योजना गायब है कार्य क्षेत्र की पूर्व सूचना लापता शेवरॉन और खतरे
के निशान लापता कार्य क्षेत्र को यातायात से अलग करने के लिए जीआई शीट (बहुत बहुत ऊँचा
खतरनाक लगाई है)

कार्य क्षेत्र को यातायात से अलग करने के लिए जीआई शीट (बहुत खतरनाक लगाई है) ऊँचा

अधूरा ज़ेबरा क्रॉसिंग ऊँचा

अनुचित अग्रिम चेतावनी क्षेत्र अनुचित दृष्टिकोण संक्रमण टे परिंग ऊँचा

कोई नई जर्सी बाधा नहीं सड़क की बदहाली डायवर्जन के गलत संकेत एनएमटी
ऊँचा
प्रयोक्ताओं के लिए नहींअनुचित सुविधा

5 परिणाम:
5.1 निर्माण गतिविधियों का प्रभाव:
ड्राइवर में से किसी एक का वीडियो डेटा एप्रोच ज़ोन, वर्किंग ज़ोन, टर्मिनल ट्रांज़िशन ज़ोन को कैप्चर करने में सक्षम नहीं है,
इस प्रकार, विश्लेषण से बाहर रखा गया है। विश्लेषण के लिए, 6 ड्राइवरों के डेटा का उपयोग किया जाता है। पांच ड्राइवरों
ने एक ही रास्ते का इस्तेमाल किया और एक चालक पहले तीन क्षेत्रों से गुजरा (यानी, सीधे इंडिया गेट की ओर गया, चित्र 1
दे खें)। लगभग 600 मीटर लंबाई के पांच क्षेत्रों (एप्रोच से टर्मिनल तक) को कवर करने का औसत समय 9 मिनट 17 सेकंड
है। यह 6 मिनट 25 सेकेंड से लेकर 12 मिनट 38 . तक है सेकंड, जो आम तौर पर लगभग 1-1.5 मिनट लेना चाहिए।
स्पष्ट रूप से, उच्च यात्रा समय निर्माण गतिविधियों और यातायात संकेतों के कारण भीड़भाड़ का परिणाम है।

चित्र 5: विभिन्न क्षेत्रों और पूरी यात्रा के लिए नमूना प्रतिशत दे खें

चित्र 5 विभिन्न क्षेत्रों और पूरी यात्रा के लिए टकटकी नमूना प्रतिशत के बॉक्स प्लॉट दिखाता है। यह संख्या% में दी गई है,
और सक्रिय दे खने का प्रतिनिधित्व करती है, यानी, रिकॉर्डिंग का हिस्सा जिसके लिए एक या दोनों आंखें मिलीं। कम मान
संभवतः आंखों का झपकना, सिर हिलाना, कम रोशनी या अन्य कारणों से हो सकता है और वाहन चलाते समय अवांछनीय
है। चित्र 5 से, यह दे खा जा सकता है कि ट्रैफिक सिग्नल को छोड़कर टकटकी का नमूना प्रतिशत बहुत अधिक है। ट्रैफिक
सिग्नल पर, यानी एक स्थिर स्थिति में, यह सबसे अधिक संभावना है कि ड्राइवर आराम करने के लिए आंखें बंद कर रहे होंगे
या कैमरे के दे खने के क्षेत्र से दूर दे ख रहे होंगे।
64 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023
सीएसआईआर - सीआरआरआई

चित्र 6 काम करने, यातायात संकेत 1 और टर्मिनल संक्रमण क्षेत्रों के लिए गेज प्लॉट का उपयोग करके उत्पादित गर्मी के
नक्शे (Heat Maps)दिखाता है। हीट मैप उन बिंदुओं को दिखाता है जहां ड्राइवर दे ख रहा था। लाल रंग एक बिंदु पर उच्च
आवृत्ति को दर्शाता है। चित्र 6a और 6c से, यह दे खा जा सकता है कि चालक अधिक विचलित है और टर्मिनल ट्रांज़िशन
ज़ोन की तुलना में अप्रोच ज़ोन में कई अधिक बिंदुओं को दे ख रहा है। टर्मिनल ट्रांज़िशन ज़ोन में, ड्राइवर सड़क पर अधिक
चौकस रहता है। इसके अलावा, ट्रैफिक सिग्नल के लिए हीट मैप (चित्र 6बी दे खें) इंगित करता है कि चालक ट्रैफिक सिग्नल
को दे खने का प्रयास कर रहा है और साथ ही, वह फ्लाईओवर पर आवाजाही के कारण विचलित हो रहा है।
5.2 हितों के क्षेत्र के लिए विश्लेषण:
इन चालकों के विकर्षण पैटर्न को समझने के लिए, रुचियों के तीन क्षेत्रों को परिभाषित किया गया है

(ए) कार्य क्षेत्र के लिए हीट मैप (ए) दृष्टिकोण क्षेत्र में एओआ

(बी) ट्रैफिक सिग्नल 1 जोन के लिए हीट मैप (बी) कार्य क्षेत्र में एओआई

(सी) टर्मिनल ट्रांजिशन जोन के लिए हीट मैप (सी) टर्मिनल संक्रमण क्षेत्र में एओआईचित्र
चित्र 6: विभिन्न क्षेत्रों में चालक का हीट मैप चित्र 7: व्याकुलता विश्लेषण के लिए परिभाषित रुचियों का क्षेत्र

ये एप्रोच जोन, वर्किंग जोन और टर्मिनल जोन में हैं। इनमें से प्रत्येक क्षेत्र में, प्रत्येक फ्रेम के लिए, एक क्षेत्र निर्दिष्ट किया
जाता है (बहुभुज की तरह), जहां निर्धारण की संख्या, निर्धारण अवधि आदि की गणना की जाती है। निर्माण स्थल के

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 65


सीएसआईआर - सीआरआरआई

कारण विकर्षण की पहचान करने के लिए क्षेत्र का चयन किया जाता है। चित्र 7 तीन क्षेत्रों के लिए रुचि के क्षेत्रों को
दर्शाता है।

चित्र 8: AoIs में अंतराल समय और निर्धारण अवधि

छह ड्राइवरों के लिए अंतराल समय, निर्धारण अवधि चित्र 8 में दिखाई गई है। पहला प्रत्येक क्षेत्र में एक ड्राइवर द्वारा
बिताया गया समय है और बाद वाला समय हितों के पूर्व-परिभाषित क्षेत्र में निर्धारण का समय है (चित्र 7 दे खें)। निर्धारण
अवधि जितनी अधिक होगी, चालक उतना ही अधिक विचलित होगा। चित्र 8 से, यह दे खा जा सकता है कि एक ड्राइवर को
छोड़कर सभी क्षेत्रों में निर्धारण की अवधि काफी कम है, जिसका निर्धारण कार्य क्षेत्र में अधिक है। दिलचस्प बात यह है कि
एप्रोच ज़ोन में तीन ड्राइवर, टर्मिनल ट्रांज़िशन ज़ोन में दो ड्राइवर और वर्किंग ज़ोन में एक ड्राइवर बिल्कु ल भी विचलित नहीं
होते हैं। इन ड्राइवरों के लिए फिक्सेशन की संख्या भी बहुत कम है, यह इंगित करता है कि निर्माण स्थल के कारण कुशल
ड्राइवर बहुत कम विचलित होते हैं। ये ड्राइवर सड़क पर ज्यादा फोकस करते हैं।
5.3 संयुक्त ताप मानचित्र:
पांच क्षेत्रों में समग्र व्याकुलता पैटर्न को दे खने के लिए, अलग-अलग ड्राइवरों के हीट मैप्स को एक छवि में लगाया जाता है।
3 अंतिम हीट मैप्स को चित्र 9 में दिखाया गया है। निम्नलिखित दे खा जा सकता है:
¾ ये सुपरइम्पोज़्ड हीट मैप्स इस तथ्य के कारण अनुमानित हैं कि किसी भी दो ड्राइवरों में समान स्थानिक प्रक्षेपवक्र नहीं
हो सकते हैं।
¾ निर्माण गतिविधियों ने अत्यंत कुशल चालक को मामूली रूप से प्रभावित किया है। इसका मतलब है कि नौसिखिए
चालक सबसे अधिक प्रभावित होंगे और इससे दुर्घटनाएं हो सकती हैं।
¾ ट्रैफिक सिग्नल 2 'यू' मोड़ के तुरंत बाद है (चित्र 1 दे खें), जिससे विविधीकरण हुआ है। इससे वाहन चालकों में
असमंजस की स्थिति का पता चलता है। ऐसे में ट्रैफिक सिग्नल को फिर से डिजाइन करना पड़ सकता है।
¾ टर्मिनल ट्रांजिशन जोन में लगभग सभी ड्राइवर बहुत फोकस्ड होते हैं, यानी कंस्ट्रक्शन गतिविधियों के अभाव में
ड्राइवर फोकस करते हैं।

66 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


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(ए) दृष्टिकोण संक्रमण क्षेत्र (बी) कार्य क्षेत्र

(सी) ट्रैफिक सिग्नल 1 (डी) ट्रैफिक सिग्नल 2

(ई) टर्मिनल संक्रमण क्षेत्र


चित्र 9: वर्तमान अध्ययन में विचार किए गए पांच क्षेत्रों के लिए संयुक्त ताप मानचित्र

6 निष्कर्ष:
ड्राइविंग करते समय ध्यान भंग करने वाली गतिविधियां आम हैं और इसके परिणामस्वरूप ड्राइविंग त्रुटियां हो सकती हैं, जो
अंततः सड़क उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा को प्रभावित करती हैं। चालक के जोखिम के रूप में व्याकुलता (अन्दर या बाहरी
करणों से हो सकती है) अधिक है तो प्रतिकूल परिणामों को कम करने के लिए शिक्षा और नवीन प्रवर्तन प्रथाओं को शामिल
करने वाली नीतियों की आवश्यकता होती है।
वर्तमान अध्ययन में आई-ट्रैकर डिवाइस का उपयोग करके सड़क के किनारे निर्माण कार्य के कारण अनुभवी ड्राइवरों की
व्याकुलता को दे खने का प्रयास किया गया है। इस अध्ययन में यह पता चला है कि
¾ लगभग 600 मीटर लंबाई के पांच क्षेत्रों (एप्रोच से टर्मिनल तक) को कवर करने का औसत समय 9 मिनट 17
सेकंड है, जिसमें आमतौर पर लगभग 1-1.5 मिनट लगते हैं। यह निर्माण गतिविधियों और ट्रैफिक सिग्नल के कारण
भीड़भाड़ के कारण है।
सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 67
सीएसआईआर - सीआरआरआई

¾ निर्माण स्थल पर, IRC:SP:88-2019 और IRC:SP:55-2014 द्वारा सड़क सुरक्षा दिशानिर्दे शों का पालन नहीं किया
गया, जिससे सड़क उपयोगकर्ताओं के लिए जोखिम बढ़ जाता है।
¾ निर्धारण की अवधि जितनी अधिक होगी, चालक उतना ही अधिक विचलित होगा। एक चालक को छोड़कर, जिसका
निर्धारण कार्य क्षेत्र में अधिक है, अन्य सभी चालकों पर निर्माण कार्य का मामूली प्रभाव पड़ता है। यह उनके व्यापक
अनुभव का प्रभाव होने की संभावना है।
¾ ड्राइवर अधिक विचलित होते हैं और टर्मिनल ट्रांज़िशन ज़ोन की तुलना में एप्रोच ज़ोन में कई अधिक बिंदुओं को दे खते
हैं।
¾ आश्रम चौराहे के पास ट्रैफिक सिग्नल, जो ‘यू’ मोड़ के तुरंत बाद होता है (चित्र 1 दे खें), जिससे विविध टकटकी लगी
है। इससे वाहन चालकों व राहगीरों के बीच असमंजस की स्थिति का पता चलता है।
¾ संक्षेप में, चयनित साइट पर, चयनित ड्राइवर बहुत कम विचलित थे क्योंकि वे कुशल ड्राइवर हैं। इस प्रकार इस
अध्ययन में प्राप्त परिणामों को नौसिखिए/अप्रशिक्षित ड्राइवरों के ध्यान भंग करने के अध्ययन के संदर्भ के रूप में
इस्तेमाल किया जा सकता है, जिनके सबसे अधिक प्रभावित होने की संभावना है और जिससे दुर्घटनाएं हो सकती हैं।
समय की कमी के कारण, चयनित नमूना आकार केवल सात ड्राइवर और समान आयु वर्ग (वाणिज्यिक श्रेणी) के ड्राइवर
थे। भविष्य में, अधिक नमूना आकार (पुरुष और महिला ड्राइवर; नौसिखिए और अनुभवी) को विभिन्न पर्यावरणीय सेटिंग्स
के साथ नकली और साथ ही क्षेत्र की स्थितियों में लिया जा सकता है।
सन्दर्भ:

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सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 69


सीएसआईआर - सीआरआरआई

नैनोकणों के दुष्प्रभावों (एक्सपोजर) का आकलन


डॉ. रीना सिंह, प्रधान वैज्ञानिक एवं नेहा चौधरी, तकनीशियन, परिवहन योजना और पर्यावरण प्रभाग
सार
नैनोटे क्नोलॉजी के क्षेत्र में प्रगति से स्वास्थ्य, भोजन, दवा, उपभोक्ता, पर्यावरण और इलेक्ट्रॉनिक्स सहित लगभग सभी
क्षेत्रों में नवाचार (इनोवैशन, innovation) का मार्ग प्रशस्त हुआ है। इसके असाधारण भौतिक और रासायनिक गुणों
के कारण नैनो प्रौद्योगिकी आधारित उत्पादों की मांग है। इस मांग के कारण इंजीनियर नैनोकणों(ईएनपी,ENPs)/नैनो
सामग्री (nanomaterials) का बहिर्वाह दिन-ब-दिन बढ़ रहा है और इसने निर्मित/संश्लेषित नैनोकणों/ नैनोपार्टिकल्स
के विस्तारित निर्माण और उपयोग को प्रेरित किया है। नैनो TiO2, सिल्वर (Ag) और गोल्ड (Au) नैनोपार्टिकल्स(एनपी,
NP) व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले ईएनपी हैं क्योंकि 50% से अधिक उपभोक्ता और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों
में इनका प्रभुत्व है। वैश्विक बाजार में, धातु और धातु ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स आधारित उत्पाद उपभोक्ता/इलेक्ट्रॉनिक
वस्तुओं का लगभग 50% हिस्सा हैं और इसलिए यह अध्ययन करने के लिए ईएनपी के महत्वपूर्ण वर्ग में हैं। इनके संश्लेषण
(synthesis), परिवहन (transportation), उपयोग(use) और निपटान (disposal) के दौरान, इन ईएनपी का एक
महत्वपूर्ण हिस्सा पर्यावरण में जारी किया जाता है जो अंततः मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
संश्लेषण (synthesis) के अलावा, इन नैनोकणों का उपयोग विभिन्न पर्यावरणीय उपचारों के लिए भी किया जाता है जैसे
जल उपचार, स्वयं सफाई पेंट का उपयोग करके वायु प्रदूषण को कम करना, जिससे यह अनजाने में स्रावित (release)
होता है और अंत में पर्यावरण के दूषित होने का कारण बनता है । आज तक हमारे पास पर्यावरण में जारी इन नैनोपार्टिकल्स
की मात्रा निर्धारित करने के लिए पर्याप्त डेटा नहीं है। हालांकि नैनोटे क्नोलॉजी की प्रगति एक समय में बड़ी मात्रा में हुई है,
ईएनपी के विषाक्त प्रभावों ( toxic effect) और खतरों के बारे में हमारी अंतर्दृष्टि उनके निर्माण और उपयोग की गति
के पीछे एक लंबा रास्ता तय करती है। पारिस्थितिक तंत्र (ecosystem) और मानव स्वास्थ्य पर उनके संभावित प्रभाव
के कारण विभिन्न जैविक और पर्यावरणीय प्रणालियों में कई विषाक्तता जांच की गई है। इन ईएनपी द्वारा मानव स्वास्थ्य
को होने वाले खतरों के बारे में बहुत कम जानकारी है। इसलिए, पर्यावरण में नैनोमटे रियल्स के एक्सपोजर (exposure)
का मूल्यांकन और विषाक्तता (toxicity) का अध्ययन अपेक्षाकृत नई और ध्यान दे ने वाली चिंता का विषय है क्योंकि
इनसे उत्पन्न पर्यावरणीय प्रभाव को कम समझा जाता है। इन कणों के संभावित स्वास्थ्य प्रभाव को समझने के लिए इन
ईएनपी (ENPs) के मानव जोखिम (एक्सपोज़र) को समझना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन पर अभीतक बहुत कम शोध
किया गया है। इस लेख में हमने ईएनपी की दो महत्वपूर्ण श्रेणियों की विषाक्तता (टाक्सिसटी, toxicity) और जोखिम
मूल्यांकन(इक्स्पोश़र असेस्मन्ट, exposure assessment) की समीक्षा की हैं: धातु और धातु ऑक्साइड आधारित
ईएनपी (एमईएनपी और एमओईएनपी) क्योंकि इन ईएनपी की विषाक्तता के बारे में हमारे ज्ञान में काफी अंतर है।
कीवर्ड:
इंजीनियर नैनोपार्टिकल्स (ENPs), मेटल नैनोपार्टिकल्स (MNPs), मेटल ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स (MONPs), सिल्वर
(Ag) और गोल्ड (Au) नैनोपार्टिकल्स, TiO2 नैनोपार्टिकल्स, विषाक्तता, स्वास्थ्य प्रभाव
परिचय
कम से कम एक आयाम ( डाईमेन्शन) में 1 से 100 nm (एनएम) की आकार सीमा में कुछ भी, नैनोकणों की श्रेणी में
आता है [1]। ये कण अपने विशाल आकर समकक्षों (बल्क काउं टरपार्ट, bulk counterpart) की तुलना में असामान्य
भौतिक और रासायनिक व्यवहार दिखाते हैं, जैसे एल्यूमीनियम( Aluminum) धातु इस स्तर पर सोने (Gold) की तरह
व्यवहार करना शुरू कर दे ती है [1-5]। इस पैमाने पर, एल्यूमीनियम को नया सोना भी माना जाता है, क्योंकि एल्यूमीनियम

70 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

के ऑप्टिकल गुण (optical properties) सोने के समान व्यवहार दिखाते हैं और इसीलिए इस पैमाने पर कीमती सोने
की धातु को विभिन्न प्लास्मोनिक (Plasmonic) अनुप्रयोगों के लिए एल्यूमीनियम द्वारा प्रतिस्थापित ( रीप्लैस ) किया जा
सकता है और वास्तव में इसे प्रतिस्थापित ( रीप्लैस ) किया जा रहा है। [2]। नैनोमटे रियल्स की यह असाधारण गुण उन्हें
लगभग सभी क्षेत्रों में उपयोगी बनाता है, जैसे कि कटै लिसीस (catalysis), सेंसिंग (sensing), चिकित्सा क्षेत्र (clinical
trials), सौंदर्य प्रसाधन (cosmetics), ऑप्टिकल डिवाइस (optical devices), निर्माण सामग्री (construction
materials), आदि [6-11]। लगभग सभी तकनीक अब अपने उत्पाद के लिए नैनो तकनीक का उपयोग करती हैं, जैसे
सैमसंग इंडिया (Samsung India), रेफ्रिजरेटर, वॉशिंग मशीन, एयर कंडीशनर में सिल्वर नैनोपार्टिकल्स (Ag NPs) का
उपयोग करती है, क्योंकि सिल्वर नैनोपार्टिकल्स बैक्टीरिया के श्वसन(respiration) को रोकते हैं [12]। इसके अलावा
रूम प्यूरीफायर में, अल्ट्रा फाइन पार्टिकल्स और वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउं ड्स (VOCs) [13] को हटाने के लिए सिल्वर
और कार्बन आधारित नैनोपार्टिकल्स का उपयोग किया जाता है। कॉस्मेटिक उद्योग सनस्क्रीन लोशन और डेंटल फिलिंग
[14-17] के लिए धातु ऑक्साइड आधारित नैनोकणों जैसे ZnO ( Zinc Oxide) और TiO2 ( Titanium Dioxide)
का उपयोग करता है। हालांकि, कई गुण जो ईएनपी को सभी उल्लिखित अनुप्रयोगों के लिए इतना अनूठा और उपयोगी
बनाते हैं, साथ ही ये साइटोटोक्सिक (cytotoxic) और जीनोटॉक्सिक (genotoxic) प्रभाव, सूजन, डीएनए क्षति
(DNA mutation), फेफड़ों के फाइब्रोसिस, कोशिका मृत्यु (cell death) [18-25] के कारण मानव स्वास्थ्य को भी
नुकसान पहुंचा सकते हैं।
मानवीय गतिविधियां और प्राकृतिक प्रक्रियाएं दोनों नैनोपार्टिकल्स (NPs) का उत्पादन करती हैं, जैसे ज्वालामुखी की
धूल, सड़क की धूल, महीन रेत, वायरस और बैक्टीरिया प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले नैनोपार्टिकल्स [14,15, 26-31]
की श्रेणियों में आते हैं। मानव निर्मित नैनोपार्टिकल्स दो श्रेणियों में आते हैं: आकस्मिक और इंजीनियर नैनोकण (ENPs)
(चित्र 1)। आकस्मिक नैनोपार्टिकल्स मानवीय गतिविधियों के उपोत्पाद हैं, जैसे डीजल ईंधन जलाने से ब्लैक कार्बन, बहुत
सारे दहन उत्पाद (combustion products), निर्माण और विध्वंस गतिविधियाँ, अपशिष्ट उत्पाद (नैनोडिवाइस के
निपटान से नैनोवेस्ट), जंग बनना (corrosion products) आदि [24, 32-34]। इंजीनियर नैनोपार्टिकल्स कुछ विशेष
अनुप्रयोगों के लिए मानव द्वारा जानबूझकर संश्लेषित (synthesis) किया जाता है (निर्मित नैनोपार्टिकल्स जैसे TiO2,
कार्बन नैनोट्यूब (CNTs), सिंगल और मल्टीवॉल कार्बन नैनोट्यूब (SWNTs and MWNTs), फुलरीन (Fullerene),
ग्रेफीन (Graphene), सिल्वर (Ag), एल्युमिनियम (Al) और गोल्ड (Au) नैनोपार्टिकल्स, आदि हैं) । नैनोमटे रियल्स के
कचरे (waste) को नैनो डिवाइसेस के उपयोग या पुनर्चक्रण के दौरान और साथ ही नैनोमैटेरियल्स के निर्माण के दौरान
पर्यावरण में छोड़ दिया जाता है। शामिल कणों के छोटे आकार और उच्च सतह क्षेत्र (high surface area) के कारण,
इस तरह के रिलीज (release) खतरनाक हो सकते हैं क्योंकि वे हवा में तैरते (सस्पेंडेड, suspended) होते हैं, जहां
घर्षण (फ्रिक्शन, friction) और सतह तनाव (सरफेस टें शन, surface tension) जैसे बल अक्सर गुरुत्वाकर्षण बलों
(ग्रैविटे शनल फ़ोर्स) पर हावी रहते हैं, रासायनिक रूप से परिवर्तित हो सकते हैं, और हवा और पानी की गुणवत्ता को
प्रभावित कर सकते हैं। साथ ही में नैनोमटे रियल्स के कचरे (nanowaste) मिट्टी में जमा हो जाते है। इसके अलावा,
ENPs को सीधे या परोक्ष रूप से मानव, पशु और पौधों की कोशिकाओं में आसानी से ले जाया जा सकता है, और
यह अज्ञात दुष्प्रभाव पैदा कर सकता है। चूंकि नैनो टे क्नोलॉजी अभी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है, इसलिए जीवों और
पर्यावरण पर ENPs के संभावित हानिकारक प्रभावों का विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है।
नैनोमटे रियल्स का उत्पादन हाल के वर्षों में एक घातीय दर से बढ़ रहा है, और 2020 से 2027 तक 13.1 प्रतिशत वार्षिक
दर से विस्तार होने की उम्मीद है। नैनोमटे रियल्स के उत्पादन और उपयोग में अपेक्षित बड़ी वृद्धि के कारण, नैनोमटे रियल्स
के लिए मानव और पर्यावरणीय जोखिम में वृद्धि हुई है। संभावना है, परिणामस्वरूप, नैनोमटे रियल्स की तेजी से जांच की
जा रही है, और नैनोपार्टिकल्स के संभावित नकारात्मक प्रभावों के बारे में बहस हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ी है। विभिन्न

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 71


सीएसआईआर - सीआरआरआई

रासायनिक संरचना वाले नैनोपार्टिकल्स में विभिन्न जैविक प्रभाव [14, 33, 48-51] दिखाई दे ते हैं। क्रियाशील प्रजातियों
(स्पीशीज़) को बनाने के लिए नैनोकणों की प्रवृत्ति और इसकी ऑक्सीकरण अवस्था जैसे रासायनिक मापदं डों को भी
विषाक्तता [16-17, 30, 52-55] को प्रभावित करने के लिए दिखाया गया है। नैनोकणों की घुलनशीलता (solubility)
भी विषाक्तता मूल्यांकन ( टाक्सिसटी असेस्मन्ट) [15] में एक प्रमुख भूमिका निभाती है। एक और अनसुलझा मुद्दा
खतरनाक प्रभावों और खुराक (डोज)के बीच में है, यह एक चिंता जो ईएनपी के लिए अनूठी है [२३]। कई अध्ययनों से
पता चला है कि ईएनपी खुराक (डोज) की परिभाषा के लिए सबसे अच्छा मेट्रिक्स हैं, और इस तरह से परिभाषित खुराक
(डोज) का प्रभाव के साथ सबसे अच्छा संबंध है, एक सार्थक खुराक-प्रभाव वक्र (dose effect curve) [23, 33, 43]।
ईएनपी और नैनोटे क्नोलोजी के बारे में सबसे गंभीर स्वास्थ्य और सुरक्षा मुद्दों में से कई उनके संश्लेषण (synthesis) और
उपयोग के दौरान व्यावसायिक और अन्य प्रकार के ईएनपी(ENPs) एक्सपोजर के स्तर की समझ में कमी से उत्पन्न होते
हैं। इस उद्दे श्य के लिए ईएनपी(ENPs) मापन और ईएनपी(ENPs) के विषाक्त परिणामों ( toxic effects) के बीच की
कड़ी को समझना आवश्यक है, हालांकि वर्तमान में इसकी कमी है। यद्यपि ईएनपी के विधि और परिवहन (transport
phenomena ) पर विभिन्न रिपोर्टें हैं, इनकी विषाक्तता और स्वास्थ्य प्रभावों पर कुछ विवरण वर्तमान में उपलब्ध हैं।
ईएनपी के कई पहलुओं पर जानकारी का अभाव है जैसे कि नैनोकचरे का उपयोग और प्रबंधन, उपयोग में आने वाले
अधिकांश ईएनपी का जीवन चक्र (life cycle), मानव ऊतकों (human tissues) को विषाक्तता(toxicity), या
जोखिम मूल्यांकन (रिस्क असेसमेंट) करने के लिए उचित दिशानिर्दे श। विभिन्न ईएनपी की विशिष्ट विषाक्तता (टाक्सिसटी
(toxicity)) पर सटीक जानकारी की मात्रा के बावजूद, कोई सुव्यवस्थित विषाक्तता (टाक्सिसटी) डेटाबेस नहीं है,
जिससे ENP जोखिम (रिस्क) और सुरक्षा मूल्यांकन (सेफ्टी असेसमेंट, safety assessment) चुनौतीपूर्ण हो जाता
है, खासकर क्योंकि अधिकांश सामग्रियों में व्यावसायिक स्थानों या अन्य परिवेश में ENP जोखिम की जानकारी नहीं होती
है। यह स्थिति इस तथ्य से परिलक्षित होती है कि किसी भी ENP के लिए कोई व्यावसायिक जोखिम सीमा (आक्यपेशनल
एक्सपोज़र लिमिट (OEL)) (ओईएल) परिभाषित नहीं की गई है। नतीजतन, कार्यस्थल में, उपभोक्ता उत्पादों में इन
ENP की सुरक्षा और पर्यावरणीय प्रभाव पैदा करने की चिंता स्वाभाविक है। जबकि कई विस्तृत (बल्क) सामग्रियों की
विषाक्तता व्यापक रूप से प्रलेखित है, यह अज्ञात है कि किस सांद्रण (concentration) या आकार में, वही सामग्री
उनके नैनोस्कोपिक आयामों (डाईमेन्शन) के कारण नए विषाक्त गुणों को प्रदर्शित करना शुरू कर दे ती है। नैनोमटे रियल्स
उत्पादन और विषाक्तता आकलन पर वर्तमान डेटा के बीच एक महत्वपूर्ण विसंगति है। विषाक्तता (toxicity) डेटा का
आभाव नैनोपार्टिकल्स के सुरक्षित डिजाइन को प्रतिबंधित कर सकती है। इसलिए इस लेख में, हमने पर्यावरण के लिए बड़े
पैमाने पर औद्योगिक अनुप्रयोगों (जैसे TiO2, धातु आधारित और कुछ धातु ऑक्साइड) के लिए उपयोग किए जाने वाले
ईएनपी(ENPs) के विषाक्तता मूल्यांकन (toxicity assessment) की व्याख्या की हैं।
2. इंजीनियर नैनोपार्टिकल्स (ईएनपी (ENPs)): स्रोत और परिवर्तन
इंजीनियर नैनोमटे रियल्स (ईएनपी) ऐसे नैनोमैटेरियल्स हैं जो मनुष्यों द्वारा निर्मित या सृजित किए गए हैं। नैनो-सक्षम
वस्तुओं के पूरे जीवन चक्र के दौरान, ईएनपी को बिंदु (पॉइंट) और गैर-बिंदु (नॉन पॉइंट) स्रोतों (चित्र 2) दोनों से आन्तरिक
(इंडोर, indoor) वायु और बाहरी (एम्बिएंट, ambient) वातावरण में छोड़ा जाता है। विनिर्माण संयंत्र, परिवहन
प्रक्रियाएं, अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र, अपशिष्ट भस्मीकरण (incineration) और लैंडफिल साइट ईएनपी के सभी बिंदु
(पॉइंट) स्रोत हैं [26]। ईएनपी मुख्य रूप से कार्बन, धातु और धातु-ऑक्साइड, अर्धचालक (क्वांटम डॉट् स (QD) और
पॉलिमर (डेंड्रिमर)) [56-57] से बने होते हैं। बाजार में विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स और उपभोक्ता क्षेत्रों में धातु और
धातु ऑक्साइड आधारित नैनोमटे रियल्स की मांग बहुत अधिक है और 2022 तक 25 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का
अनुमान है। वातावरण में मौजूद होने पर ईएनपी को उनके आकार और व्यवहार के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
छोटे कण (20nm से कम) गुच्छे (clumping) और संकुलन (agglomeration) के लिए प्रवण होते हैं। बड़े कण

72 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

(>2,000nm) मोटे होते हैं और अवसादन (sedimentation) या गुरुत्वाकर्षण निपटान (gravitational setting)
के अधीन होते हैं। मध्यम आकार के कण (>20nm और 2000 nm) अधिक समय तक वातावरण में रहते हैं।

पयावरण 1नैनोकण
(Environmental
Nanoparticles)

ाकृतक 1नैनोमटे रय­स इंजीनयर 1नैनोमटे रय­स


(Natural Nanomaterials) Engineered Nanomaterials (ENPs)

अप–श˜ धातु आधा रत काबन 1आधा रत


दहन 1उ‘पाद जंग 1उ‘पाद नैनोपा£ट¤क­स धातु आ«साइड
उ‘पाद नैनोकण
(combustion (Corrosion (CNT, SWNT, ( TiO2, ZnO,
(Waste ( Ag, Fe, Au
products) products) MWNT, Carbon CeO2)
products)
नैनोकण) fiber, Graphene)

चित्र 1: इंजीनियर नैनोकणों के स्रोत और श्रेणियाँ

TiO2 अनुप्रयोगों के संदर्भ में सबसे व्यापक रूप से उत्पादित और उपयोग किया जाने वाला ENPs है, जिसकी वार्षिक
उत्पादन मात्रा ६०,००० से १५०,००० टन [14,20] तक है। TiO2 आमतौर पर विभिन्न उत्पादों जैसे, सेल्फ क्लीनिंग
पेंट्स( self cleaning paints), सेल्फ क्लीनिंग ग्लास (self cleaning glass), कॉस्मेटिक्स, एयर प्यूरीफिकेशन,
व्हाइटनिंग एजेंट्स, सन ब्लॉक्स, आदि में फोटोकैटलिटिक सामग्री ( photocatalytic materials) का उपयोग किया
जाता है [11,13,58]। TiO2 के बाद, सिल्वर नैनोपार्टिकल्स (Ag ENP) अपने अद्वितीय जीवाणुरोधी और प्लास्मोनिक
गुणों के कारण उपभोक्ता, स्वास्थ्य और इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले ENPs का एक अन्य
वर्ग है [59-60]। Ag ENP का अनुमानित वैश्विक उत्पादन प्रति वर्ष 400 से 800 टन है। पर्यावरण में ENP कैसे व्यवहार
करते हैं, यह निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है जैसे प्रकार, विशेषताए (आकार और सतह के गुण), नैनोकणों को
बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली प्रक्रिया और जिस माध्यम में इसे फैलाया जाता है और माध्यम के भौतिक-रासायनिक
गुण (पीएच (pH), आयनिक ताकत (ionic strength) और विघटित आर्गेनिक कार्बनिक सामग्री) [61]। ये ईएनपी
पर्यावरण में विभिन्न प्रकार के घुलित पदार्थ, अकार्बनिक या कार्बनिक रसायनों के साथ परस्पर क्रिया करते हैं, जिससे
नैनोमटे रियल्स एकत्रीकरण गतिकी (ऐग्रगेशन डाइनैमिक्स, aggregation dynamics) और फलस्वरूप स्थिरता
प्रभावित होती है (चित्र 3)। कई परिवर्तन (आंकड़े 2, 3, और 4) पर्यावरण और जैविक दोनों प्रणालियों में हो सकते
हैं, जिसमें बायोमैक्रोमोलेक्यूल्स (biomacromolecules), रेडॉक्स प्रतिक्रियाओं (redox reactions), एकत्रीकरण
(aggregation) और विघटन (dissolution) [15] के साथ प्रतिक्रियाएं शामिल हैं। रासायनिक परिवर्तन (chemical
changes), एकत्रीकरण(aggregation) और पृथक्करण (separation) कुछ ऐसी प्रक्रियाएं हैं जिनसे ईएनपी
पर्यावरण में समय के साथ गुजरता है। ईएनपी का एक्सपोजर और, अंततः, इसकी इकोटॉक्सिकोलॉजिकल क्षमता
(ecotoxicological capacity) इन प्रक्रियाओं और ईएनपी रिलीज [15] के बीच पारस्परिक प्रभाव से निर्धारित होती
है। इनके परिवर्तन, परिवहन और जोखिम को प्रभावित करने वाले सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक इनकी कोलाइडल
स्थिरता (colloidal stability) है। पर्यावरण में ENP का परिवहन प्राकृतिक कार्बनिक पदार्थ (natural organic
matter) (NOM) की उपस्थिति से प्रभावित होता है। NOM नैनोकणों के सोखने के लिए एक सतह प्रदान करता है।
इस सोखने के परिणामस्वरूप ENPs का सतह आवेश (सरफेस चार्ज) और आवेश (चार्ज डेंसिटी) घनत्व भिन्न होता है, जो
उनके परिवहन और प्रतिक्रियाशीलता को प्रभावित कर सकता है [16-17]।

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चित्र 2: पर्यावरण में इंजीनियर नैनोकणों (ईएनपी, ENPs) के स्रोत और मार्ग। एम। बालौशा, वाई। यांग, एमई वेंस, बीपी कोलमैन,
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इन सामग्रियों से जुड़े पर्यावरणीय और मानव स्वास्थ्य खतरों की पर्याप्त भविष्यवाणी करने के लिए हमें ENP संक्रमणों
/ परिवर्तनों की अपनी समझ को व्यापक बनाना चाहिए। विलयन(dissolution), सल्फाइडेशन (sulfidation),
एकत्रीकरण, और मैक्रोमोलेक्यूल्स और अणुओं/आयनों को सोखना, साथ ही ऑक्सीकरण और कमी (रेडॉक्स) घटनाएं,
पर्यावरण और जैविक प्रणालियों (चित्रा 4) में सभी आम हैं। विलयन(dissolution) का महत्व मेटल ऑक्साइड
नैनोपार्टिकल्स (MONPs) के प्रकार और उनकी भौतिक-रासायनिक विशेषताओं से भी निर्धारित होता है। कुछ परिवर्तनो
द्वारा पर्यावरण में ENP की दृढ़ता (पर्सिस्टन्स, pertinence) को कम करने की क्षमता हो सकती है जैसे ZnO
नैनोपार्टिकल्स का विघटन (dissolution) होना । इनके पूरे जीवन चक्र पर ईएनपी के जोखिम और जैविक परिणामों
दोनों पर परिवर्तनों का प्रभाव अभी भी काफी हद तक अज्ञात है। इन मेटल ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स (MONPs) के
पर्यावरणीय और मानव स्वास्थ्य प्रभावों का आकलन करने के लिए तीव्र और दीर्घकालिक एक्सपोजर से विभिन्न
जोखिम मार्गों (एक्सपोज़र रूट) और विषाक्त प्रभावों को समझना आवश्यक है। उदाहरण के लिए, धात्विक चांदी के
नैनोपार्टिकल्स, वातावरण में ऑक्सीकृत हो जाएंगे और सल्फिडाइज्ड हो सकते हैं [15]। सल्फिडेशन कण की एकत्रीकरण
स्थिति, सतह आवेश, साथ ही साथ Ag+ आयनों (ions) को छोड़ने (release) की उनकी क्षमता को प्रभावित करता है,
जिससे उनकी स्थायित्व और विषाक्तता [15,32,42] प्रभावित होती है। सामग्री के इस वर्ग में विषाक्तता (poisoning)
अक्सर विषाक्त धनायन (टॉक्सिक कैटाइअन, toxic cations) के विघटन (dissolution) और रिलीज के माध्यम से
व्यक्त की जाती है, जिसके परिणामस्वरूप कम दृढ़ता लेकिन उच्च विषाक्तता (high toxicity) होती है। जारी किए गए
ENP के पर्यावरणीय भाग्य (environmental fate), जैवउपलब्धता (bioavailability) और विषाक्तता (toxicity)
को समझने के लिए, उनके व्यवहार की जांच करना महत्वपूर्ण है।
एक फोटोकैटलिटिक (photocatalytic) धातु ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स जब UV (ultraviolet light) प्रकाश
के संपर्क में आते हैं, तो प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजातियां (ROS, rective oxygen species) उत्पन्न होती हैं,
जिससे जीवित जीवों पर प्रभाव पड़ता है [24]। फोटोअक्सीडेशन/रिडक्शन (photooxidation/photoreduction),
फोटोलायिसिस ( photolysis), और फोटोकटै लिसीस (photocatalysis) महत्वपूर्ण रासायनिक परिवर्तन हैं जो
ENPs कोटिंग, ऑक्सीकरण अवस्था(oxidation state), फ्री रेडिकल उत्पादन ( free radical generation) और
पर्यावरणीय दृढ़ता (environmental sustainibility) को प्रभावित करते हैं [14,23,42]। प्रकाश के संपर्क में आने
पर और अंधकार में फोटोकैटलिटिक सामग्री की विषाक्तता बहुत भिन्न होती है। UV प्रकाश की उपस्थिति कुछ ईएनपी
[42,62] की विषाक्तता को भी प्रभावित करती है। ENP कोटिंग्स, ऑक्सीकरण स्थिती, आरओएस उत्पादन (ROS) और
दृढ़ता पर फोटो-प्रेरित (फोटो इन्डू स्ट, photoinduced) प्रतिक्रियाओं का प्रभाव महत्वपूर्ण हो सकता है। सूर्य के प्रकाश
के संपर्क में आने पर कई ENPs फोटोएक्टिव (photoactive) हो जाते हैं और ROS उत्पन्न करते हैं। फोटोकैटलिटिक
सामग्री को सूर्य के प्रकाश द्वारा ऑक्सीकृत या कम किया जा सकता है, जिससे उनकी रेडॉक्स अवस्था (redox state),
आवेश और इसलिए उनकी विषाक्तता क्षमता (toxicity potential) में परिवर्तन होता है। कण मापदं डों का निर्धारण
(जैसे, कण आकार ( size), कैपिंग एजेंट (capping agent), आदि) और पर्यावरण चर (variables) (जैसे, रेडॉक्स
स्थिति और मुक्त सल्फाइड ( free sulfides) की उपलब्धता जो उनके विघटन (dissolution) और/या सल्फाइडेशन
दरों को प्रभावित करते हैं) पर्यावरण के लिए उनकी क्षमता का आकलन करने के लिए महत्वपूर्ण है। ENPs का
एकत्रीकरण सतह क्षेत्र (सरफेस एरिया, surface area) को आयतन प्रभाव (वॉल्यूम इफ़ेक्ट, volume effect) तक
कम कर दे ता है।कुल आकार में यह वृद्धि छिद्रित माध्यम, अवसादन (सेडमन्टैशन, sedimentation), प्रतिक्रियाशीलता
(रीऐक्टिवटी, reactivity), जीव अवशोषण (ऑर्गनिज़म अब्ज़ॉर्प्शन, organism absorption ) और विषाक्तता (
टाक्सिसटी, toxicity) [63-64] में उनके गतिविधि पर प्रभाव डालती है। इसके अलावा, उपभोक्ता उत्पादों (TiO2 and
ZnO) में सबसे व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले मेटल ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स (MONPs), आरओएस(ROS)

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उत्पादन है और धातु आयन विघटन के कारण विशेष चिंता का विषय हैं। अन्य ने पाया कि एंटीऑक्सिडेंट पॉलिमर
(antoixidant polymers) के साथ लेपित मेटल ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स ((MONPs) ने आरओएस ((ROS) के
गठन को कम करके विषाक्तता को कम किया। MONPs के कोटिंग्स और आकारिकी (मॉर्फालजी,morphology)
के प्रकार भी जीवों की विषाक्तता को प्रभावित करते हैं [53]। उपयोग किए गए MONPs के प्रकार, साथ ही साथ
कल्चर मीडियम संरचना ( medium, composition), एक्सपोज़र समय (exposure time) और MONP सान्द्रण
(कान्सन्ट्रेशन, concentration) सहित अन्य कारक, यह निर्धारित करते हैं कि वे कोशिकाओं के लिए साइटोटोक्सिक
( cytotoxic) या जीनोटॉक्सिक ( genotoxic) हैं [56, 32]। विषाक्तता, मेटल ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स से धातु
आयनों के निकलने, आरओएस की उत्पत्ति ( ROS formation) / या फोटोलिसिस के कारण है। इस प्रकार, जोखिम
(एक्सपोजर) को कम करने के तरीकों की जांच करने के लिए, रिलीज तंत्र ( release mechanism) और परिवर्तन
प्रक्रियाओं (transformation process) की समझ बढ़ाने के लिए, और उपभोक्ता / बाजार उत्पादों में आमतौर पर
उपयोग किए जाने वाले ENPs के विषाक्तता आकलन का समर्थन करने के लिए अनुसंधान आवश्यक है।
3. एक्सपोजर आकलन
ENPs मनुष्यों के श्वसन (respiration) और जठरांत्र (गैस्ट्रोइन्टेस्टनल, gastrointestinals) प्रणाली के लिए एक
सीधा खतरा हैं क्योंकि ENPs जठरांत्र (गैस्ट्रोइन्टेस्टनल) और श्वसन प्रणाली के माध्यम से रक्तप्रवाह (bloodflow)
में अवशोषित होने के बाद मानव अंगों में प्रवेश करते हैं [24, 48]। पौधे (plants), सूक्ष्मजीव (microorganism)
और पशु के अंग सभी ENPs को स्टोर करते हैं, जिसे पूरे खाद्य श्रृंखला ( food chain) में ले जाया और जमा किया
जा सकता है [42]। मानव और जैविक प्रणालियों में आकस्मिक प्रवेश के अलावा, ENPs को जानबूझकर चिकित्सीय
(थेरप्यूटिक, therapeutic) और नैदानिक (डाइअग्नास्टिक, diagnostics) उद्दे श्यों के लिए मनुष्यों में इंजेक्ट किया
जाता है। नतीजतन, जैविक प्रणालियों के साथ ईएनपी सम्बन्ध अनिवार्य (inescabale) है। ईएनपी एक अलग अलग
मार्ग से शरीर प्रणाली में प्रवेश कर सकते हैं जैसे हवा में सांस लेते समय, खाद्य पदार्थों का सेवन, पीने का पानी, कॉस्मेटिक
उत्पादों और दवाओं को लेने या लगाने से। तीन मुख्य प्रवेश माध्यम, श्वसन पथ के माध्यम से साँस लेना, त्वचा के माध्यम
से पारगमन( Transudation, ट्रैन्सुडेशन), और पाचन तंत्र के माध्यम से अंतर्ग्रहण ( इन्जेस्चन, Ingestion) (चित्र
5) [47,49] हैं। नैनोकणों से संपर्क , विकास और उत्पादन के साथ-साथ सिस्टम में प्रत्यक्ष अंतर्ग्रहण ( Ingestion
इन्जेस्चन) या अंतः क्षेपण (इंजेक्शन, injection) और अपशिष्ट निपटान( waste disposal) जैसे अनुप्रयोगों के दौरान
भी हो सकता है। अंतःशिरा ( इन्ट्रवीनस, intravenous), ट्रांसडर्मल ( transdermal), चमड़े के नीचे (सब्क्यूटे नीअस,
subcutaneous), साँस लेना (इन्हलैशन, inhalation), अंतर्गर्भाशयी (इंट्रापेरीटोनिअल, intraperitonial) और
मुख द्वारा जोखिम (एक्सपोज़र, exposure) के कुछ अन्य तरीके हैं [23-24]। हालांकि मनुष्य में जोखिम (एक्सपोज़र,
exposure) के सबसे आम मार्ग है साँस लेना, अंतर्ग्रहण (इन्जेस्चन), त्वचा से संपर्क , और अंतःस्रावी (इन्ट्रवीनस)
इंजेक्शन हैं, Au, Ag और TiO2 का विवो(in-vivo) साक्ष्य चूहों का साँस लेना और अंतःश्वासनलीय का टपकाना है.
ये एक्सपोजर उन्हें पर्यावरण में बने रहने और निर्माण करने में सक्षम बना सकते हैं, जिससे वे खाद्य श्रृंखला (food
chain) में घुसपैठ कर सकते हैं और अजैविक और जैविक दोनों घटकों को प्रभावित कर सकते हैं। पर्यावरण में अन्य
प्रजातियां, जैसे शैवाल और मछली, मेटल नैनोपार्टिकल्स (MNPs) को अवशोषित करने की अधिक संभावना रखते
हैं, जिसे बाद में जानवरों और मनुष्यों द्वारा उपभोग किया जा सकता है। अंतःशिरा ( इन्ट्रवीनस, intravenous) और
मौखिक तरीकों पर जांच की जा रही है, जो नैनोमेडिसिन में प्रासंगिकता (relevence) के अधिकांश ENPs के लिए
अधिक प्रासंगिक (relevent) हैं। नैनोस्ट्रक्चर को प्रोटीन और कोशिकाओं जैसे जैविक घटकों के साथ अंतःक्रिया(
interaction)के माध्यम से शरीर में अवशोषित किया जा सकता है और फिर विभिन्न अंगों में स्थानांतरित किया जा
सकता है, जहां वे एक ही संरचना में रह सकते हैं या परिवर्तित हो सकते हैं। चित्र 5 विभिन्न पैमानों पर जैविक प्रणालियों के

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साथ ENPs की अंतःक्रिया( interaction) को दर्शाता है। ईएनपी में अंग कोशिकाओं में प्रवेश करने और जबतक किसी
दुसरे अंग पर स्थान्तरित नही होते अन्य अंगों पर डटे रहने और अज्ञात समय तक रहने की क्षमता होती है।
संभव है कि पूरे शरीर में उनका वितरण उनके आकार और सतह की विशेषताओं द्वारा निर्धारित होता है। चूँकि कण का
आकार घटने के साथ-साथ प्रति इकाई द्रव्यमान में सतह क्षेत्र बढ़ता है, नैनोकणों के शरीर में अधिक रासायनिक और
जैविक गतिविधि होने की उम्मीद है। नतीजतन, छोटे नैनोकण अपने बड़े समकक्षों की तुलना में अधिक हानिकारक हो
सकते हैं। माना जाता है कि छोटे नैनोकण बड़ी कोशिकाओं की तुलना में तेजी से कोशिकाओं द्वारा ग्रहण किया जाता है
[17]। श्वसन तंत्र ( respiratory systems) में कणों के आकार का शरीर में उनके संरचनात्मक फैलाव पर और साथ
ही फेफड़ों में उनके संचय (अक्यूम्यलेशन, accumulation) पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है (चित्र 6)। फेफड़ों का महत्व
इस तथ्य से उपजा है कि ENP एक एरोसोल ( aerosol) के रूप में शरीर में सबसे आसानी से प्रवेश करता है, जिससे
वे उचित आकार के होने पर फेफड़ों के वायुकोशीय क्षेत्र तक पहुंच सकते हैं। सुलभ, बड़े सतह क्षेत्र के कारण फेफड़े दवा
वितरण के लिए एक आशाजनक मार्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं और क्योंकि वायु-रक्त अवरोध अपेक्षाकृत पतला है [65]।
~ 34 nm से बड़े नैनोकण फेफड़ों में लगातार बने रहते है [65]। जब व्यास ~ 6 एनएम से नीचे हो जाता है तब लगभग
आधे नैनोपार्टिकल्स वायुकोशीय वायुक्षेत्र (alveolar region) से रक्तप्रवाह में तेजी से प्रवेश करते हैं और ज्यादातर
वृक्क निस्पंदन (रेनल फ़िल्टररेशन, renal filtration) [65] के माध्यम से शरीर से साफ हो जाते हैं। कुल मिलाकर, कण
आकार वितरण (पार्टिकल डिस्ट्रब्यूशन, particles distribution) का वायुमार्ग में नैनोकणों के संभावित लक्ष्य क्षेत्रों पर
महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। फेफड़ों में कणों का जमाव (deposition) एक एरोसोल में कणों के गतिशील (dynamic)
व्यवहार के साथ-साथ मूल कणों के समूहन (agglomeration) या एकत्रीकरण (aggregation) के कारण कण
आकार में परिवर्तन से प्रभावित होता है [23]।
अंत में, कण आकार का प्रभाव इस बात पर पड़ता है कि कण फेफड़ों में कितनी गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं। जब कण
फेफड़ों में जैविक वातावरण के संपर्क में आते हैं, तो वे सर्फे क्टें ट (surfactant) में एल्ब्यूमिन और ( albumin) प्रोटीन
जैसे जैव-अणुओं से घिरे होंगे। इससे कण का व्यास बढ़ाता है, वायुमार्ग में कण की काईनेटिक्स (रासायनिक या जैव
रासायनिक प्रतिक्रिया) को प्रभावित करता है, जैसे कि श्वसन मार्ग की दीवार या मैक्रोफेज (macrophages) में प्रभाव
पड़ता है, या फिर वायुकोशीय क्षेत्र तक पहुंचता है, जहां इसे वायुकोशीय मैक्रोफेज द्वारा फैगोसाइट (phagocytes)
किया जा सकता है या वायुकोशीय दीवार से होकर प्रवेश कर सकता है और प्रणालीगत परिसंचरण (systematic
circulation) में प्रवेश करता है (चित्र 6)। बड़े कणों को नाक या ऊपरी श्वसन पथ में रोक लिया जाता है और मैक्रोफेज
द्वारा वायुमार्ग से निकाला जाता है, और बाद में निगल लिया जाता है [47, 66] (चित्र 6)। एयरब्लड बैरियर को पार
करने के बाद, सांसो द्वारा खीचे गए नैनोकण रक्त परिसंचरण में पता लगाने योग्य स्तर तक पहुँच जाते है और विशिष्ट
कोशिकाओं और ऊतकों में प्रवेश करने को दिखाया गया है (चित्र 6)। कृंतक (रोडन्ट) और मानव फेफड़े का वायुकोशीय
क्षेत्र दसियों नैनोमीटर की सीमा में छोटे ENP के जमाव का प्रमुख स्थल है। कुछ nm की सीमा (रेंज) में एल्वियोली तक
पहुंचने वाली सबसे छोटी ENP, वायुकोशीय दीवार से गुजर सकती है और प्रणालीगत परिसंचरण में प्रवेश कर सकती है।
(चित्र 6)। कई ENPs में उच्च सतह प्रतिक्रियाशीलता (हाई सरफेस रेअक्टिविटी) होती है, जो उत्तेजन और जमाव स्थल पर
ROS के गठन का कारण बन सकती है, जिसके परिणामस्वरूप स्थानीय क्षति [24,64,66] हो सकती है। ENP का एक
छोटा प्रतिशत जो वायुकोशीय क्षेत्र तक पहुंचता है, लसीका (लिम्फेटिक, lymphotic) और रक्त के माध्यम से आंतरिक
अंगों और अंग प्रणालियों तक जा सकता है, जिससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष मार्गों से नुकसान हो सकता है। इसके अलावा,
यहां तक कि ENP स्थानान्तरण की अनुपस्थिति में, प्रणालीगत परिसंचरण (सिस्टेमिक सर्कु लेशन) में उत्तेजक मध्यस्थों की
निर्गमन प्रणालीगत नुकसान हो सकता है। उपभोक्ताओं के लिए, जोखिम (एक्सपोज़र) का जठरांत्र मार्ग (गेस्ट्रो इन्टेस्टनल)
अधिक हावी है। हालांकि, फुफ्फु सीय (pulmonary) मार्ग की तुलना में, यह श्रमिकों के लिए कम प्रासंगिक माना जाता

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है। यह ध्यान दे ने योग्य है कि म्यूकोसिलरी एस्के लेटर कोशिकाएं मौखिक गुहा (कैविटी) में साँस द्वारा अंदर लिए नैनोकणों के
एक महत्वपूर्ण हिस्से को को साफ करती हैं, जिन्हें बाद में निगल लिया जाता है और जठरांत्र (गेस्ट्रो इन्टेस्टनल) संबंधी मार्ग
में अवशोषित कर लिया जाता है [67]। त्वचा पर जमा ENPs संभावित रूप से हाथ से मुंह तक के संपर्क के माध्यम से पेट
के लुमेन में प्रवेश कर सकते हैं। आंत में प्रवेश करने के बाद ENPs के स्थानीय हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं। चूंकि मानव
शरीर का सबसे बड़ा अंग त्वचा है, इसलिए ENPs के त्वचीय जोखिम के संभावित महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जाना
चाहिए। हालांकि, इस बात
का कोई पुख्ता सबूत नहीं
है कि ENP क्षतिग्रस्त या
घायल या सूजन वाली त्वचा
के माध्यम से प्रणालीगत
परिसंचरण में प्रवेश कर
सकता है [68]। हालांकि,
यह संभव है कि त्वचा का
नैनोकणों से एक्सपोजर
नैनोकणों का त्वचा की
सतही परतों में प्रवेश, डर्मिस
में प्रवेश का कारण बनेगा,
जिससे स्थानीय उत्तेजक चित्र 5: जैविक प्रणालियों के साथ नैनोकणों की विभिन्न अंतःक्रिया क्यू। म्यू, जी। जियांग, एल।
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(इन्फ्लैमटॉरी) प्रतिक्रिया शुरू नैनोकणों और जैविक प्रणालियों के बीच बातचीत का रासायनिक आधार, रसायन। रेव।, 2014,
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चित्र 6. फेफड़ों के माध्यम से नैनोमटे रियल्स (एनएम) का एक्सपोजर। रिफ्रेंस से अनुकूलित [६६], वी. स्टोन एट अल, नैनोमटे रियल्स
वर्सेज एम्बिएंट अल्ट्राफाइन पार्टिकल्स: एन अपॉर्चुनिटी टू एक्सचेंज टॉक्सिकोलॉजी नॉलेज, एनवायरन। स्वास्थ्य। परिप्रेक्ष्य।, 2017,
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निष्कर्ष
इक्कीसवीं सदी में नैनो तकनीक की मांग के साथ, लगभग हर क्षेत्र में नैनोकणों के संश्लेषण और अनुप्रयोग में नाटकीय
वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप उन व्यावसायिक अनुप्रयोगों का तेजी से विकास हुआ है जो निर्मित / इंजीनियर
नैनोकणों (ENPs) की एक विस्तृत श्रृंखला का उपयोग करता है। नैनो-प्रौद्योगिकी के लिए व्यापक स्वीकार्यता प्राप्त करने
के लिए नैनोकणों के निर्माण, विपणन, उपयोग, जोखिम मूल्यांकन और प्रबंधन के बीच संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है। पर्याप्त
नियम और कानून के आभाव से नैनो तकनीक के उपयोग से महत्वपूर्ण समस्याएं हो सकती हैं, जिससे पर्यावरण और
मानव जाति को अपरिवर्त्य, क्षति हो सकती है। उत्पादित नैनोकणों के निर्माण, उपयोग और निपटान के परिणामस्वरूप
अंततः हवा, मिट्टी और जलीय प्रणालियों में अनपेक्षित रिसाव होगा, जिससे एक संभावित पर्यावरणीय खतरा पैदा होगा।
आकृति, आकार, सतह आवेश, क्रिस्टल प्रकार, संरचना जैसे भौतिक रासायनिक मापदं डों की प्रकृति का इसकी विषाक्तता
पर प्रभाव पड़ता है। विभिन्न जानवरों, पौधों और मानव कोशिकाओं के साथ हुए प्रयोगों ने संकेत दिया है कि ENP का
विभिन्न प्रकार के सेलुलर मार्गों ( cellular pathways) के माध्यम से विषाक्तता का कारण बनता है जो ईएनपी के
आकार, आकृति, सतह क्षेत्र, एकत्रीकरण क्षेत्र और सतही आवेश से संबंधित हैं। जिन प्रक्रियाओं से नैनोकणों का विभिन्न
पारिस्थितिक तंत्रों तक पहुंचने के बाद हानिकारक प्रभाव पैदा होते हैं, उन्हें भविष्य में और अधिक शोध की आवश्यकता
होगी। इस पेपर ने समीक्षा की कि कैसे धातु और धातु ऑक्साइड नैनोकणों की पौधों, मनुष्यों और जानवरों में विषाक्तता
की अलग-अलग डिग्री हो सकती है।
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सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 83


सीएसआईआर - सीआरआरआई

आत्म-उपचार (सेल्फ-हीलिंग) सामग्री:


गड्ढा मुक्त सड़कों के लिए एक उपादान
डॉ. रीना सिंह, प्रधान वैज्ञानिक, टी.लक्ष्मी, रिसर्च स्कॉलर एवं
नेहा चौधरी, तकनीशियन, परिवहन योजना और पर्यावरण प्रभाग
सार
भारत सरकार वर्तमान में सड़क के रखरखाव और बुनियादी ढांचे के विकास पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। सड़क
सामग्री की गुणवत्ता, बिटु मेन बाइंडर और एग्रीगेट के बीच कमजोर आसंजन (ऐड् हीश़न), तापमान, आर्द्रता आदि जैसे अन्य
कारकों के बीच बढ़ते ट्रैफिक लोड के परिणामस्वरूप सड़के खराब हो रही है, यह बार बार होने वाली समस्या है जिसे अभी
तक ठीक नहीं किया गया है। यदि वर्तमान फुटपाथ की गुणवत्ता और प्रदर्शन को उचित रूप से संबोधित नहीं किया जाता है
तो यह एक अनसुलझा मुद्दा रह सकता है। डामर आमतौर पर अपने अच्छे विस्कोइलास्टिक गुणों के कारण सड़क फुटपाथ
में उपयोग किया जाता है, और जब इसमें संशोधन किया जाता है, तो इसने दरारों के बेहतर आत्म-उपचार (सेल्फ-हीलिंग)
का प्रदर्शन किया है। डामर संशोधन में उपयोग किए जाने वाले नैनोमैटेरियल्स ने शुरुआती दरार का पता लगाने और उनका
उपचार गुणों का प्रदर्शन किया है। यह शोध पत्र नैनोमैटेरियल्स/पॉलिमर नैनोकम्पोजिट और इसके अद्वितीय स्व-चिकित्सा
गुणों के साथ डामर के नैनोमोडिफिकेशन पर केंद्रित है।
मुख्य शब्द: ऐस्फॉल्ट; बिटु मेन-नैनोकम्पोजिट; आत्म-दरार उपचार; हीलिंग एजेंट आदि ।

परिचय
यह सर्वविदित है कि सिंथेटिक सामग्री का व्यापक रूप से वास्तविक जीवन में उपयोग किया जाता है, लेकिन बाहरी क्षति और
रिकवरी के कारण उनका जीवनकाल कम होता है, जो उनकी उच्च प्रतिस्थापन लागत (रिप्लेस्मन्ट कॉस्ट) का मुख्य कारण है।
हालांकि, यह स्पष्ट है कि जैविक सामग्री, जैसे कि मानव त्वचा और छिपकली पूंछ, स्वाभाविक रूप से पुनर्जीवित होती हैं। यह
अवधारणा स्व-उपचार सामग्री की धारणा को जन्म दे ती है, जो स्वचालित रूप से क्षति का पता लगाती है और कुछ चिकित्सकों
की पूर्ति करके या अनायास ठीक होकर किसी भी परिस्थिति में इससे उबर जाती है। स्व-चिकित्सा सामग्री अत्यधिक
विश्वसनीय हैं, इसे थोड़ा रखरखाव की आवश्यकता है और इसका विस्तारित जीवनकाल है। इन सामग्रियों की विशेषताएं
शोधकर्ताओं को इस क्षेत्र में अनुसंधान करने और कंपोजिट और धातुओं जैसी अन्य सामग्रियों को बनाने के लिए बाध्य करती
हैं। विभिन्न सामग्रियों में पुनर्प्राप्ति के लिए विभिन्न प्रक्रियाएं होती हैं; मुख्य रूप से उन्हें आंतरिक और बाहरी आत्म-चिकित्सकों
में विभाजित किया जा सकता है। आंतरिक सामग्री पॉलिमर, धातुओं या अन्य सामग्रियों के बीच मौजूद सहसंयोजक बंधनों को
पुनर्व्यवस्थित करके स्वाभाविक रूप से ठीक या ठीक हो जाती है। बाहरी सामग्रियों को संवहनी और कैप्सूल-आधारित नेटवर्क
(चित्र 1) में शामिल किया जाता है। विनिर्माण प्रक्रिया के दौरान, एक उपचार पदार्थ (कैप्सूल, संवहनी नेटवर्क , या नैनोकणों)
को सामग्री में इंजेक्ट किया जाता है । जब सामग्री में दरार पड़ती है, कैप्सूल और वैस्कु लर नेटवर्क फट जाता है और दरार की
सतह में उपचार पदार्थ कैपलेरी प्रभाव द्वारा पहुँचता है और और क्षति वाले पृष्ट को भर दे ता है और सतह की अखंडता बहाल
होती है । भविष्य में इन सामग्रियों के लिए अनुप्रयोग अत्याधिक हैं, और अध्ययन स्वयं अत्याधुनिक है। निर्माण-क्षेत्र उन क्षेत्रों
में से एक है जहां स्व-चिकित्सा सामग्री एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वर्तमान में, स्व-चिकित्सा सामग्री का विकास पहले
चरण में है जहां उन्हें प्रयोगशाला में तैयार किया जा रहा है। ये सामग्रियां अभी तक विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए व्यावसायिक
रूप से उपलब्ध नहीं हैं। स्व-चिकित्सा कंपोजिट की उपचार क्षमताओं को बढ़ाने के लिए पिछले कुछ दशकों में कई अध्ययन
किए गए हैं। हालांकि, इस तकनीक को वास्तविक दुनिया में सफलतापूर्वक लागू करने से पहले कई बाधाओं को अभी भी दूर
करने की आवश्यकता है।

84 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

चित्र 1: स्वयं चिकित्सा सामग्री के विभिन्न तंत्र

सड़के अपनी गतिशील प्रकृति के कारण सामग्री के प्रकार और गुणवत्ता, निर्माण विधियों, रखरखाव की लागत और
पर्यावरणीय परिस्थितियों जैसे कारकों के कारण समस्याओं का सामना करती हैं, अत्यधिक वाहनों के तनाव, सूरज
की रोशनी के संपर्क में आने से, पानी के भितर जाने से, असमान विस्तार और संकुचन के कारण मौसमी परिवर्तनों के
कारण, सड़के बड़ी/मामूली दरारें, गड्ढे आदि का अनुभव करते हैं। मैनुअल आवधिक (पिरीआडिक) निरीक्षण और मरम्मत
आवश्यक है क्योंकि प्रारंभिक चरण में दरारें पता लगाना मुश्किल है; स्व-उपचार सामग्री मरम्मत तंत्र शुरू करती है इस
प्रकार माइक्रोस्के ल स्तर पर सूक्ष्म-क्षति का जवाब दे ती है [इंदिरा, वी और अभिता, के., 2021]। ये माइक्रोक्रै क यांत्रिक
गुणों को कमजोर कर सकते हैं, संरचना में प्रवेश करने और संरचना को खराब करने के लिए पानी के अणुओं के लिए मार्ग
बनाकर स्थायित्व को कम कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप डामर कंक्रीट अलग हो सकता है और सबग्रेड को नुकसान
हो सकता है। फुटपाथ की बाहरी सतह पर प्रमुख दरारें और गड्ढे दे खे जा सकते हैं और उनकी मरम्मत या ठीक किया जा
सकता है, लेकिन फुटपाथ की आंतरिक सतह में होने वाली उन मामूली दरारों पर किसी का ध्यान नहीं जाता है और उन्हें
मरम्मत के बिना छोड़ दिया जाता है। इसलिए, शोधकर्ता स्व-उपचार तकनीकों के साथ आए हैं ताकि ये फुटपाथ बड़ी और
मामूली दरारों दोनों को ठीक कर सकें और इस प्रकार फुटपाथों के जीवन काल में सुधार कर सकें और बार-बार मरम्मत की
रखरखाव लागत को भी कम कर सकें। नैनोस्के ल स्तर पर दरारों को नियंत्रित करने के लिए सामग्री के आंतरिक व्यवहार का
अध्ययन करना बहुत महत्वपूर्ण है।
डामर सड़क में नैनो टे क्नोलॉजी
नैनोमैटेरियल्स नैनो स्के ल (1 एनएम = 10-9 मीटर) में कम से कम एक आयाम के साथ भौतिक पदार्थ हैं। नैनो टे क्नोलॉजी
की परिचय के साथ नैनो टे क्नोलॉजी का निरूपण, भविष्यवाणी, नैनोस्के ल स्तर पर भौतिक गुणों का नियंत्रण अब संभव है।
अब यांत्रिक, ऊष्मीय और अवरोधक गुणों में सुधार के लिए पाॅलिमर मैट्रिक्स के संशोधन पर शोध किया जा रहा है[खलील
तबाताबाई और फरहाद तबाताबाई, 2019] पदार्थों को सुदृढ़ करने की उनकी क्षमता के कारण माइक्रोलेवल क्रै क निर्धारण
और उपचार के लिए नैनोमैटेरियल्स का उपयोग, नैनो टे क्नोलॉजी का उपयोग करके डामर प्रकृति में सुधार, नैनो सुदृढीकरण
(रीइन्फॉर्स) के छोटे प्रतिशत का उपयोग करके थर्माप्लास्टिक पॉलिमर की कम्प्रेसिव और शियर स्ट्रेंथ में वृद्धि इत्यादि
पर अनुसन्धान हो रहा है [पापाडिमिट्रोपोलोस, वीसी एट अल 2018] । नैनो टे क्नोलॉजी माइक्रो और नैनोस्के ल पॉलिमर
चेन इंटरैक्शन को समझने में सक्षम बनाती है जो शोधकर्ताओं को विभिन्न अनुप्रयोगों वाले उन्नत स्व-उपचार पॉलिमर को
डिजाइन करने में मदद करती है [जोसेफ डी 2005।
पॉलिमर नैनोकम्पोजिट (पीएनसी) दो या दो से अधिक सामग्रियों का मिश्रण है, जिसमें पाॅलिमर मैट्रिक्स के रूप में कार्य
करता है और 100 एनएम से कम आयामों के साथ फैला हुआ चरण होता है, जिसमें व्यक्तिगत नैनोकणों को मैट्रिक्स
पाॅलिमर में सजातीय (होमोजीनियसली) रूप से फैलाया जाता है।

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 85


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पॉलिमर नैनोकम्पोजिट (पीएनसी) पारंपरिक कंपोजिट की तुलना में हल्के होते हैं, बेहतर अवरोधक गुणों और संभावित
रूप से उच्च तन्यता (टे न्सल) और ऊष्मीय गुणों के साथ-साथ उत्कृष्ट ज्वलनशीलता और बायोडिग्रेडेबल की अधिक
बायोडिग्रेडेबिलिटी होती है। पाॅलिमर में नैनोफिलर्स को जोड़कर यांत्रिक, ऊष्मीय, अवरोधक और ज्वलनशीलता गुणों में
सुधार किया जा सकता है।
चित्र 2 पाॅलिमर के आत्म-उपचार क्रियावली को दर्शाता है। जब क्षति होती है, तो पॉलिमर सक्रिय हो जाते हैं। पाॅलिमर तब
तेजी से क्षतिग्रस्त स्थान पर जाता है। पाॅलिमर क्षतिग्रस्त क्षेत्र तक पहुंचने के बाद रासायनिक उपचार प्रक्रिया शुरू होती है।
ये पॉलिमर पोलीमराइजेशन, उलझाव और प्रतिवर्ती क्रॉस-लिंकिंग के माध्यम से उपचार को प्रेरित करते हैं, जो कैप्सूल-
आधारित [कांग, जे एट अल 2019], संवहनी-आधारित, और आंतरिक (प्रसार या विघटन और सुधार) उपचार तंत्र के
माध्यम से होता है। कमरे के तापमान पर आगे बढ़ने के लिए माइक्रोकैप्सूल उपचार के लिए, एक कैटलिस्ट (अक्सर मोम से
बना) प्रतिक्रिया की ऊर्जा अवरोध को कम करने और मोनोमर को गर्मी के अलावा पॉलीमराइज करने की अनुमति दे ने के
लिए एम्बेडेड होता है, जिससे रीऐक्टन्ट कैप्सूल के भीतर मोनोमेरिक रह सकते हैं। यह कैटलिस्ट मोनोमर और कैटलिस्ट को
तब तक अलग रखता है जब तक कि प्रतिक्रिया फ्रैक्चर द्वारा सहायता प्राप्त न हो। एनकैप्सुलेटेड उपचार सामग्री जारी की
जाती है और पाॅलिमर मैट्रिक्स में कैटलिस्ट के साथ अंत:क्रिया करती है।

चित्र 2: स्व-चिकित्सा पाॅलिमर प्रणाली (ए) एनकैप्सुलेटेड माइक्रोकैप्सूल


के माध्यम से और (बी) प्रतिवर्ती बांड के साथ [कांग, जे एट अल 2019।

बाहरी उत्तेजक के लिए नैनोमैटेरियल्स की बेहतर प्रतिक्रिया, सहसंयोजक बंधन (कोवलेंट बांड) गठन, इंटरमॉलिक्युलर
पारस्परिक क्रिया, बड़े सतह क्षेत्र, समृद्ध कार्यात्मक समूहों और पॉलिमर में अद्वितीय गुण नैनोमैटेरियल्स और नैनोस्ट्रक्चर
के गठन से कार्यात्मक नैनोमटे रियल्स उपचार प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाते हैं, जहां, पाॅलिमर को तोड़ने पर टू टे हुए
रासायनिक और भौतिक बंधनों के सुधार के परिणामस्वरूप उत्तेजक ऑप्टिकल, विद्युत, और यांत्रिक गुण, और सतह
कार्यात्मकता की आत्म-चिकित्सा होती है, । इसलिए, उपचार प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए, नैनोस्के ल स्तर पर
सतह क्षेत्र, गतिशीलता आदि जैसी उनकी इंटरफेशियल विशेषताओं को समझकर नैनोमैटेरियल्स के उचित उपयोग की
आवश्यकता होती है।

86 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


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स्व-चिकित्सा तकनीक
उपचार तकनीकों और एजेंटों के उचित चयन में डामर सड़क में दरारों को ठीक करने की क्षमता हो सकती है, जिसका अर्थ
है कि हील और सील विधि डामर सड़क रखरखाव के लिए आशाजनक हो सकती है।
प्रयुक्त प्रमुख तकनीक
नैनोमैटेरियल्स
नैनोफिलर्स स्व-उपचार गुणों (नैनो-सिलिका, ग्राफीन, कार्बन नैनोट्यूब (सीएनटी), सिरेमिक ऑक्साइड और नैनोसेल्यूलोज)
को भी बढ़ावा दे सकते हैं। नैनोमैटेरियल्स के उपयोग में दरारों को भरने के लिए बिखरे हुए पार्टिकुलेट चरण शामिल होते हैं
क्योंकि वे मैट्रिक्स और नैनोकणों के बीच थैलेपी और एन्ट्रापी इंटरैक्शन के आधार पर दरारों के के आस-पास पृथक होते हैं,
इस प्रकार सतह के अणुओं की यादृच्छिकता ( रैन्डम्नस) को बढ़ाकर और आणविक प्रसार में तेजी लाकर तेजी से उपचार
को बढ़ावा दे ते हैं, उदाहरण के लिए, नैनो मिट्टी, सीएनटी आदि एक अध्ययन से पता चला है कि ग्राफीन अनुकूल
परिस्थितियों में खुद को ठीक और मरम्मत कर सकता है। जब ग्राफीन को धातुओं (पैलेडियम और निकल) युक्त इलेक्ट्रॉन

चित्र 3: ग्राफीन में मरम्मत तंत्र

बीम के अधीन किया गया था, तो ग्राफीन और धातु की अशुद्धियों के बीच पारस्परिक क्रिया के परिणामस्वरूप नैनोहोल का
विकास हुआ। ग्राफीन पर धातु परमाणुओं को जुटाने के लिए एक इलेक्ट्रॉन बीम का उपयोग किया जाता है, छे द उत्पादन
सी-सी बॉन्ड के धातु उत्प्रेरित टू टने के कारण होता है क्योंकि यह कार्बन परमाणुओं और बॉन्ड एक्सचेंज की कार्रवाई को
ढीला करता है (चित्र 3)। जब ये धातुएं मौजूद नहीं होती हैं, तो हाइड्रोकार्बन (ग्राफीन) में अंतराल को गैर-षट् भुज (नॉन
हेक्सागॉन) कॉन्फ़िगरेशन के साथ बदलकर मरम्मत करने की क्षमता होती है। इसके अलावा, कार्बन परमाणु ग्राफीन षट् भुज
संरचना की मरम्मत करते हैं, छल्ले पैदा करके उपचार शुरू करने के लिए प्रेरित करते हैं, जो बॉन्ड रोटे शन द्वारा खुद को
पुनर्गठित करते हैं, षट् भुजों की एक निरंतर जाली बनाते हैं, जैसा कि स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी द्वारा अध्ययन किया
गया है।
इन्डक्शन हीटिंग
यान गोंग एट और अन्य द्वारा अध्ययन ने दिखाया है कि विद्युत प्रवाहकीय कार्बन फाइबर संशोधित डामर मिश्रण बीम के
माइक्रोवेव उपचार प्रदर्शन ने फटा डामर कंक्रीट [गोंग एट अल] की आंशिक पुन:प्राप्ति और उपचार प्रक्रिया का कारण
बना। बिटु मेन-थर्माप्लास्टिक बाइंडर के इन्डक्शन हीटिंग ने डामर मिश्रण में उच्च तन्यता (हाई टें साइल) ताकत और उच्च
दरार-उपचार प्रकृति दिखाई। चूंकि फिलर दरारों के चारों ओर एक लूप बनाते हैं, संचालन सामग्री का उष्मीय प्रभाव प्रसार

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सीएसआईआर - सीआरआरआई

का कारण बनता है और दरारें बंद कर दे ता है। जब चुंबकीय इन्डक्शन और संचालन सामग्री को कॉइल के पास रखा जाता
है, तो एडी करन्ट सामग्री पर प्रतिरोध पर कार्य करती हैं और गर्मी पैदा करती हैं, जो डामर को पिघला दे ती है और दरारें बंद
कर दे ती हैं।

चित्र 4: इन्डक्शन हीटिंग और कैप्सूल आधारित उपचार के तहत डामर कंक्रीट का हीलिंग व्यवहार [सन एट अल 2018।

चित्र 4 बताता है कि, डामर फटीग बार-बार तनाव (स्ट्रेस) के कारण होती है और तापमान के साथ बदलती रहती है। किसी
दिए गए बाहरी भार के परिणामस्वरूप बाइन्डर में उत्पन्न तनाव तब बदल जाएगा जब ज्यामिति जहां इसे लागू किया जाता
है, बदल जाता है। यह टू टने का कारण बनता है और जो कम आणविक भार के टु कड़े उत्पन्न करता है जो फ्रैक्चर सतह
पर रहते हैं।किसी दिए गए बाहरी भार के परिणामस्वरूप बाइन्डर में उत्पन्न तनाव तब बदल जाएगा जब ज्यामिति जहां
इसे लागू किया जाता है, बदल जाती है। यह टू टने का कारण बनता है जो कम आणविक भार के टु कड़े उत्पन्न करता है जो
फ्रैक्चर सतह तक रहते है । इन्डक्शन हीटिंग एक कुशल विधि है जो डामर सामग्री की उपचार क्षमता में सुधार करती है और
इस तरह डामर सड़क के जीवन का विस्तार करती है। समय के साथ धीरे-धीरे बाइन्डर बहता है, अगर सड़क को उचित
तापमान पर गर्म किया जाता है और इस बाइन्डर को कैपलेरी बल द्वारा टू टे हुए पृष्ठ में खींचा जाता है। यदि बंद दरार पक्षों
या सूक्ष्म-रिक्तियों (माइक्रो वोइडस) के बीच डामर अणुओं के संलिप्तता अपर्याप्त हैं, तो क्रै क किए गए क्षेत्र के अंदर प्रसार
संतुलन (डिफ्यूश़न ईक्वलिब्रीअम) और यादृच्छिकीकरण (रैंडोमाइज़ेशन) तक पहुंचने के लिए लंबे समय तक समय की
आवश्यकता होती है। इस समय, डामर के भीतर एक लंबा पाॅलिमर अणु सतह के पास संलिप्त हो जाता है। टू टी हुई सतहों
के आणविक पुनर्गठन, विश्राम और उपचार सामग्री की यांत्रिक विशेषताओं को बहाल करते हैं। आणविक प्रसार के आधार
पर, स्व-उपचार प्रक्रिया और पॉलिमर के अंतर प्रसार से पता चलता है कि उपचार में सतह के पुनर्गठन, सतह दृष्टिकोण,
गीला विसरण और यादृच्छिकीकरण (रैंडोमाइज़ेशन) के पांच अनुक्रमिक चरण शामिल हैं, सतहों का पालन करने के बीच
अंतरंग इंटरफेशियल संपर्क का उत्पादन करते हैं, सामग्री की अंतर्निहित ताकत को बहाल करते हैं [सूर्य एट अल. 2018।
माइक्रो कैप्सूल का उपयोग करके
उच्च तापीय चालकता (कान्डक्टिवटी) के कारण, ऑयल रेजुवेनटर वाले ग्राफीन माइक्रोकैप्सूल ने कम तापमान पर डामर के
नमूनों में अधिक आत्म-चिकित्सा का प्रभावशाली प्रदर्शन किया हैं। [गोंग एट अल 2021] बड़े कैप्सूल बड़ी मात्रा में तेल ले
जा सकते हैं, हालांकि वे छोटे की तुलना में कम शक्तिशाली होते हैं। जब दरारें दिखाई दे ती हैं, तो माइक्रोकैप्सूल रीनूअबल
रसायनों को जारी करके ठीक कर दे ते है । इन रसायनों को तब जारी किया जाता है जब टिप तनाव कैप्सूल को तोड़ दे ता

88 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

है, गीला और प्रसार को प्रेरित करता है और डामर को अपनी विशेषताओं को बहाल करने की अनुमति दे ता है। छोटे कैप्सूल
बड़े की तुलना में अधिक कुशल और मजबूत होते हैं, और अतिरिक्त माइक्रोकैप्सूल की उपस्थिति सड़क की गुणवत्ता को
कम करती है।
जैसा कि चित्र 5 से पता चलता है, जब एक मॉडल किसी भी प्रकार की क्षति के संपर्क में आता है तो यह संरचना के भीतर
दरार के गठन का कारण बन सकता है। समय बीतने के साथ ये दरारें, दरारों की वृद्धि का कारण बनती हैं। इसके रास्ते
में ये बढ़ती दरारें माइक्रोकैप्सूल के संपर्क में आती हैं जो संरचना के भीतर एम्बेडेड होती हैं। इन माइक्रोकैप्सूल में हीलिंग
एजेंट होता है जो की मुक्त हो जाता है जब
दरार माइक्रोकैप्सूल को तोड़ती है। यह उपचार
एजेंट अपने गतिशील चरण में दरार के माध्यम
से बहता है। कैटलिस्ट जो भीतर मौजूद होते हैं,
कैटलिस्ट के संपर्क में आने पर उपचार एजेंट की
पोलीमराइजेशन प्रतिक्रिया शुरू करते हैं। यह
प्रतिक्रिया बान्ड फॉर्मैशन की शुरुआत करती है
और इस प्रकार दरार वाली सतह को सील कर
दे ती है [इस्लाम, एस और भट, जी. 2021।
माइक्रोकैप्सूल के माइक्रोमैकेनिकल गुण कैप्सूल
के आकार और खोल की मोटाई पर निर्भर
करते हैं जो बहु-आत्म-उपचार (मल्टी सेल्फ
हीलिंग) को बढ़ा सकते हैं। इन कायाकल्प
एजेंटों द्वारा कैपलैरिटी और डिफ्यूश़न संचार
की प्रकृति ने आत्म-चिकित्सा व्यवहार दिखाया।
माइक्रोकैप्सूल की प्रमुख गुण यह है कि वे अंडे
की तरह होते हैं जिसमें एक खोल की दीवार के
अंदर तरल भरा उपचार एजेंट होता है जो यांत्रिक
क्षति तक तरल भरे कोर की रक्षा करता है।

चित्र 5: माइक्रोकैप्सूल द्वारा स्व-चिकित्सा तंत्र प्रक्रिया


[इस्लाम, एस और भट, जी. 2021।

निष्कर्ष:
नैनो टे क्नोलॉजी में पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने की क्षमता है। उनकी अनूठी संरचना, रासायनिक गतिविधि और
सतह के गुणों के कारण, नैनोमैटेरियल्स और नैनोस्ट्रक्चर ने आत्म-उपचार क्षमताओं को सक्षम करने की अपनी उत्कृष्ट
क्षमता का प्रदर्शन किया है।

संदर्भ

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Conference Series: Materials Science and Engineering (Vol. 1114, No. 1, p. 012081). IOP Publishing.
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सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 89


सीएसआईआर - सीआरआरआई

2. Khalil Tabatabaie and FarhadTabatabaie., 2019. Assessment of Nanomaterials Use in Asphalt,


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90 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

महानगरों में बस चालक दुर्घटनाओं की आवृत्ति


घटना का सांख्यिकीय मूल्यांकन
प्रीति सिन्हा, तकनीकी अधिकारी, डॉ. पद्मा सीतारमन, प्रधान वैज्ञानिक, परिवहन योजना और पर्यावरण प्रभाग,
डॉ. एस.लक्ष्मी, प्रोफेसर, परिवहन इंजीनियरिंग विभाग, कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, अन्ना विश्वविद्यालय, चेन्नै

सार
यातायात दुर्घटना वितरण पर अक्सर सकारात्मक रूप से विषमता के संदर्भ में चर्चा की जाती है, उदाहरण के लिए पॉइसन
(जैसे आर्थर और डोवरस्पाइक), जो दुर्घटनाओं के विश्लेषण के लिए सांख्यिकीय तरीकों का उपयोग करने की सीमा को
निर्धारित करता है। समय अवधि और दुर्घटना संख्या (मिलर और शूस्टर) के बीच सहसंबंध की पहचान करने का प्रयास
किया गया था और एक सहसंबंध स्थापित किया गया था, हालांकि बहुत दृढ़ता से नहीं। दुर्घटनाओं के सांख्यिकीय विश्लेषण
के दौरान यह दे खा जाता है कि विश्लेषण के परिणाम अलग-अलग स्थानों पर भिन्न होते हैं और एक विशिष्ट क्षेत्र के डेटा के
विशिष्ट सेट के लिए अद्वितीय होते हैं। इस अध्ययन में, विभिन्न आयु समूहों के ड्राइवरों और चेन्नई के मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट
कॉरपोरेशन (एमटीसी) बसों के पुराने ड्राइवरों के बीच दुर्घटनाओं के पैटर्न वितरण का आकलन करने की परिकल्पना की
गई है। अध्ययन में एक परिकल्पना का परीक्षण करने का प्रस्ताव है कि ड्राइवरों द्वारा शामिल दुर्घटनाओं की प्रकृति और
उनके आयु समूह वितरण एक दूसरे पर निर्भर हैं। ड्राइवरों की उम्र और दुर्घटनाओं की आवृत्ति के बीच एक संबंध स्थापित
किया गया है और ड्राइवरों द्वारा सड़क दुर्घटनाओं में शामिल होने की आवृत्ति की प्रवृत्ति को सांख्यिकीय रूप से तैयार किया
गया है।
1 प्रस्तावना
1.1 चेन्नई
चेन्नई दे श के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित तमिलनाडु राज्य की राजधानी है। सूचना प्रौद्योगिकी सहित प्रमुख व्यवसायों की
स्थापना के साथ, पिछले दो दशकों में महानगरीय क्षेत्र में जनसंख्या में तेजी से वृद्धि दे खी गई है। नतीजतन, शहर के सड़क
नेटवर्क को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें भारी मात्रा में यातायात के साथ भीड़भाड़ वाली मुख्य
सड़कें हैं।
चेन्नई दो प्रकार की सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों के माध्यम से परिवहन की सार्वजनिक जरूरतों को पूरा करता है जिसमें
बस पारगमन और उपनगरीय रेल प्रणाली शामिल है। इसके अलावा, निजी वाहन जैसे कार और दोपहिया वाहन और ऑटो
रिक्शा जैसे पैरा-ट्रांजिट सिस्टम भी परिवहन प्रणाली का काफी हद तक समर्थन करते हैं। आज तक, लगभग 40 प्रतिशत
कम्यूटर ट्रिप, बसों में निर्मित किए जाने का अनुमान लगाया गया है।
1.2 महानगर परिवहन निगम (एमटीसी)
मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन तमिलनाडु राज्य के स्वामित्व वाली ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन की बसें हैं जो चेन्नई के भीतर
संचालित होती हैं। वे शहर के भीतर एकमात्र सार्वजनिक बस वाहक हैं क्योंकि कंपनी चलाने और शैक्षणिक संस्थान चलाने
वाली बसों के अलावा किसी भी निजी ऑपरेटर को शहर और महानगर क्षेत्र के भीतर अपने छात्रों के लिए यात्राएं चलाने की
अनुमति नहीं है। चेन्नई में विभिन्न माध्यमों द्वारा साझा की गई कुल यात्राओं के प्रतिशत का पता लगाने के लिए और चेन्नई के
महानगरीय क्षेत्र के मॉडल हिस्से में एमटीसी बसों के महत्व का आकलन करने के लिए तालिका 1 को नीचे दिखाया गया है।
यह तालिका से स्पष्ट रूप से निकाला जा सकता है कि यात्रा का एक बड़ा हिस्सा चेन्नई में बसों द्वारा किया जाता है।

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 91


सीएसआईआर - सीआरआरआई

तालिका 1: चेन्नई में मोडल स्प्लिट के परिवर्तन में रुझान

विभिन्न माध्यमों द्वारा साझा की गई कुल यात्राओं का प्रतिशत


Mode (प्रकार)
1970 1984 1992
Bus 41.5 45.53 37.9
Train 11.5 9.03 4.1
Car Van Jeep 3.2 1.45 1.5
Two Wheelers 1.7 3.24 7
Bicycle 21.3 10.7 14.2
Walk 20.7 28.07 29.5
Others 0.1 1.98 1
IPT(Auto CR) NA NA 4.8
Source: CTTS (1992-1995)
बसों के बेड़े के आकार में वृद्धि और प्रतिदिन किए जाने वाले यात्री में संबंधित परिवर्तन, तालिका 2 में दिया गया है।
तालिका 2. पिछले दशक में एमटीसी विशेषताओं की विविधता

Year Routes Fleet Passengers per day


(in lakhs)
1987-88 326 2100 29.25
1988-89 350 2202 31.25
1989-90 416 2298 31.76
1990-91 439 2296 34.38
1991-92 484 2353 35.42
1992-93 489 2325 36
1993-94 523 2336 36.8
1994-95 509 2356 38.95
1995-96 492 2540 37.85
1996-97 518 2701 39.4
1997-98 570 2894 40.13
1998-99 568 2806 42.18
1999-2000 564 2845 41.83
2000-2001 580 2816 39.7
2001-2002 571 2834 35.93
2002-2003 547 2773 35.09
SOURCE : MTC, Chennai

92 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

बेड़े के आकार और प्रतिदिन ले जाने वाले यात्रियों में भिन्नता एमटीसी बस संचालन की उतार-चढ़ाव वाली प्रकृति को दर्शाती
है, लेकिन यह जनता के 'दिन-प्रतिदिन' और 'कभी-कभी' आने में एमटीसी बसों के महत्व को भी दोहराती है।
चेन्नई ट्रैफिक पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार, यह दे खा गया है कि चेन्नई में कुल दुर्घटना परिदृश्य में बसें लगभग 5% हैं।
हालांकि एक सकुशल और सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन यात्रियों की संख्या में वृद्धि सुनिश्चित करता है। इसके मद्देनजर
विशेष रूप से बस दुर्घटनाओं की जटिल प्रकृति को समझने के लिए एक अध्ययन किया गया है।
2 कला की स्थिति
इस संदर्भ में किए गए कुछ शोध कार्यों पर प्रकाश डाला गया है। Zeeger et.al.(1995) ने रिपोर्ट की गई बस दुर्घटनाओं
का गंभीर मूल्यांकन करके पांच अमेरिकी राज्यों में वाणिज्यिक बस दुर्घटनाओं की विशेषताओं की जांच की। अध्ययन ने
पारगमन बस दुर्घटनाओं पर कई कारकों के प्रभाव का प्रदर्शन किया, जिसमें दे री का समय, बिजली की स्थिति, मौसम और
सड़क की स्थिति, बस मॉडल वर्ष, चालक की उम्र और अनुभव, सड़क की ज्यामिति और दुर्घटना के प्रकार शामिल हैं।
अध्ययन ने बस यातायात दुर्घटनाओं से निपटने के लिए कुछ सड़क उपचारात्मक उपायों का सुझाव दिया। M.M.Hamed
ने जॉर्डन में वाणिज्यिक मिनी बस दुर्घटनाओं का विश्लेषण किया। यह अध्ययन मिनी बस सेवाओं पर केंद्रित है जो
अनियमित शेड्यूल टाइमिंग और अनियमित स्टॉपेज को चिन्हित करता है। ड्राइवरों के प्रश्नावली सर्वेक्षण से एकत्र किए गए
नमूनों के विश्लेषण से पता चला कि एक वाहन दुर्घटना की तुलना में कई वाहन दुर्घटनाएं होने की संभावना अधिक थी।
पूल किए गए डेटा के दुर्घटनाओं के वितरण में दो शिखर थीं एक सुबह और एक दोपहर में। चांग ने ओहियो में सार्वजनिक
बस दुर्घटना विशेषताओं का अध्ययन किया। इस अध्ययन में, ओहियो में स्थानीय सार्वजनिक एजेंसियों द्वारा संचालित या
प्रायोजित निश्चित मार्ग और मांग उत्तरदायी सेवा की पेशकश करने वाले अट्ठावन पारगमन प्रणालियों का अध्ययन किया
गया था। उपरोक्त अध्ययन ने दो प्रकार के डेटा एकत्र किए 1. ट्रांजिट बस दुर्घटनाएं और 2. एक्सपोजर डेटा। भिन्न भिन्न
मौसम की स्थितियों में बस दुर्घटना की घटनाओं का अध्ययन करने के लिए जलवायु संबंधी आंकड़ों की भी आवश्यकता
थी। अध्ययन में विश्लेषण किए गए वैरिएबल थे दुर्घटना का महीना, दुर्घटना का दिन, दुर्घटना का वर्ष, सप्ताह का दिन,
दिन का समय, प्रकाश की स्थिति, वाहन का प्रकार, मौसम की स्थिति, सड़क की स्थिति, दुर्घटना का स्थान, दुर्घटना का
प्रकार और दुर्घटना की गंभीरता। वाणिज्यिक बस दुर्घटनाओं से संबंधित अन्य अध्ययन फ्रूइन के हैं, जिसमें यह संकेत दिया
गया है कि बस से संबंधित कई दुर्घटनाएं अन्य वाहनों, पैदल चलने वालों या स्थिर वस्तुओं के शामिल होने के कारण नहीं
होती हैं, बल्कि यात्रियों के चढ़ने और उतरने जैसे कारकों के कारण होती हैं। यात्री सुरक्षा में सुधार के लिए कई उपायों का
सुझाव दिया गया था जैसे कि आंतरिक सतहों पर यात्री प्रभाव को कम करने के लिए बेहतर इंटीरियर और सीट डिजाइन,
दूर की ओर बस स्टॉप और पर्याप्त यात्री लोडिंग क्षेत्र आदि। जैकब्स और ड्रोनिंग ने एक साल की दिल्ली परिवहन निगम
बस दुर्घटनाओं का भी विश्लेषण किया। होने वाली दुर्घटनाओं के प्रकार, इसमें शामिल सड़क उपयोगकर्ताओं के वर्ग और
दुर्घटना की गंभीरता को प्रभावित करने वाले कारकों की पहचान करना। दुर्घटना दर पर प्रशिक्षण, अनुभव और काम करने
की स्थिति के प्रभाव का आकलन करने के लिए लगभग 581 डीटीसी बस चालकों को शामिल करते हुए साक्षात्कार भी
आयोजित किए गए थे।
3 कार्यप्रणाली और डेटा संग्रह
चेन्नई में, मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (MTC) परिवहन प्रणाली की रीढ़ है। यह अधिकांश 'दिन-प्रतिदिन' के साथ-
साथ 'सामयिक' यात्रियों की परिवहन आवश्यकताओं को पूरा करता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि प्रत्येक चालक
के काम के घंटों की संख्या में एकरूपता है और साथ ही उनके द्वारा तय की गई दूरी की मात्रा अधिकांश चालकों के लिए
समान रहती है, यह उचित समझा गया है कि उपरोक्त बस परिवहन निगम का चयन किया जाए। चेन्नई शहर की महानगरीय
सीमा के भीतर संचालित दुर्घटना आवृत्ति की घटनाओं के मूल्यांकन के लिए आवश्यक प्रासंगिक डेटा 2001, 2002 और

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 93


सीएसआईआर - सीआरआरआई

2003 की तीन वर्षों की अवधि के लिए एकत्र किया गया था। इस अध्ययन में एकत्र किए गए आंकड़ों में ड्राइवरों की उम्र,
दुर्घटनाओं की गंभीरता, दुर्घटना की तारीख, दुर्घटना का समय और मरने वालों की संख्या। दुर्घटनाओं की गंभीरता को तीन
श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया था, अर्थात् घातक, गंभीर चोट (जीआई) और मामूली चोट। एकत्रित आँकड़ों की सामान्य
विशेषताएँ चित्र 1 और 2 में दर्शाई गई हैं।

चित्र 1: समय के साथ दुर्घटनाओं की भिन्नता चित्र 2: उम्र के साथ ड्राइवरों की दुर्घटनाओं की प्रकृति में भिन्नता

4. विश्लेषण
4.1 दुर्घटना की गंभीरता
इसकी गंभीरता के आधार पर हादसों का आंकलन किया जाता है। मूल परिकल्पना का परीक्षण करने के लिए डेटा का
विश्लेषण किया गया था कि ड्राइवरों का आयु समूह दुर्घटनाओं की गंभीरता से स्वतंत्र है। तालिका 3 में दिखाए गए अनुसार
डेटा को अलग किया गया है।

S.No Severity of Accident Age Group of Drivers Total

25-35 36-45 46-58

1 Fatal 45 85 51 181

2 Grievous Injury GI 67 108 63 238

3 Minor 191 297 178 666

Total 303 490 292 1085

तालिका 3: ड्राइवरों के विभिन्न आयु समूहों द्वारा की गई दुर्घटना की गंभीरता की दे खी गई संख्या


जैसा कि उल्लेख किया गया है, शून्य परिकल्पना को आयु समूह के रूप में कहा गया है और ड्राइवरों द्वारा एक-दूसरे से
स्वतंत्र होने के कारण होने वाली दुर्घटनाओं की गंभीरता और वैकल्पिक परिकल्पना दुर्घटना की गंभीरता ड्राइवरों के आयु
वर्ग से संबंधित है। दुर्घटना की गंभीरता के आयु वर्गीकरण से स्वतंत्र होने की स्थिति में, गंभीरता के आधार पर दुर्घटना
संख्या का वितरण सभी परिभाषित आयु समूहों अर्थात 181:238:666 के लिए समान अनुपात का पालन करना चाहिए।
उपरोक्त संबंध का उपयोग करते हुए, विभिन्न आयु समूहों के तहत विभिन्न प्रकार की दुर्घटनाओं की अपेक्षित संख्या पाई
गई, जैसा कि तालिका 4 में दिखाया गया है।

94 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

तालिका 4: ड्राइवरों के विभिन्न आयु समूहों द्वारा किए गए दुर्घटना की गंभीरता की अपेक्षित संख्या

Age Group of Drivers


S.No Severity of Accident
25-35 36-45 46-58

1 Fatal 51 82 49

2 GI 66 107 64

3 Minor 186 301 179

ड्राइवरों के आयु वर्ग और दुर्घटनाओं की गंभीरता के बीच किसी भी संबंध के अस्तित्व का मूल्यांकन करने के लिए, बाद में एक ची स्क्वायर परीक्षण
किया गया।

यहां ही ꭓ2(obs)=1.08. 5% के महत्व के स्तर और 4 की स्वतंत्रता की डिग्री के लिए ꭓ2(critical)=9.49. जैसा


ꭓ2(obs)<ꭓ2(critical), आयु वर्ग और दुर्घटनाओं की गंभीरता एक दूसरे से स्वतंत्र होने वाली शून्य परिकल्पना को
स्वीकार किया जाता है।

उपरोक्त विश्लेषण एक स्पष्ट संकेत दे ता है कि जब एमटीसी बसें सड़क दुर्घटनाओं में शामिल होती हैं तो उम्र का कारक नहीं
आता है और यह कि एक पुराने चालक के घातक दुर्घटना होने की प्रायिकता उतनी ही होती है जितनी कि एक युवा चालक
द्वारा एक घातक दुर्घटना या इसके विपरीत होने की संभावना है।
4.2 दुर्घटनाओं की घटनाएं
ड्राइवरों की उम्र और दुर्घटनाओं की संख्या के बीच संबंधों का विश्लेषण करने के लिए पियरसन प्रोडक्ट मोमेंट कोरिलेशन
कोईफिशिएंट (r) आयु समूह और दुर्घटनाओं की संख्या के बीच किसी भी रैखिक संबंध की उपस्थिति का मूल्यांकन करने
के लिए निर्धारित किया गया था। पियर्सन प्रोडक्ट मोमेंट कोरिलेशन कोईफिशिएंट , r, एक आयाम रहित सूचकांक है जो
-1.0 से 1.0 (दोनों सहित ) तक होता है और दो डेटा सेटों के बीच एक रैखिक संबंध की सीमा को दर्शाता है।

माना डेटा सेट के लिए पियरसन प्रोडक्ट मोमेंट कोरिलेशन कोईफिशिएंट(r) का मूल्य -0.24 पाया गया जो ड्राइवरों के आयु
समूह और दुर्घटनाओं की इसी संख्या के बीच थोड़ा कमजोर रैखिक संबंध की उपस्थिति को इंगित करता है।
ड्राइवरों की उम्र और दुर्घटनाओं की संख्या के बीच कोरिलेशन भी कोवेरिएंस का उपयोग करके स्थापित किया गया है।
कोरिलेशन और कोवेरिएंस उपकरण दोनों का उपयोग एक ही सेटिंग में किया जा सकता है, जब हमारे पास व्यक्तियों के
एक समूह पर 'n' विभिन्न माप के वैरिएबल दे खे जाते हैं। अंतर यह है कि कोरिलेशन कोईफिशिएंट -1 और +1 के बीच
हैं। संगत कोवेरिएंस को मापा नहीं जाता है। कोरिलेशन कोईफिशिएंट और कोवेरिएंस दोनों उस क्षेत्र के माप हैं जिस तक
दो वैरिएबल "एक साथ भिन्न” होते हैं।

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 95


सीएसआईआर - सीआरआरआई

डेटा सेट के लिए कोवेरिएंस -44.09 पाया गया जो ड्राइवरों की आयु और दुर्घटनाओं की संख्या के बीच एक रैखिक संबंध
की उपस्थिति को दर्शाता है।
इसी तरह का विश्लेषण इस बात पर जोर दे ने के लिए किया गया था कि ड्राइवरों की उम्र और दुर्घटनाओं की संख्या के बीच
रैखिक संबंध मजबूत नहीं है, लेकिन रिग्रेशन विश्लेषण का उपयोग करके किया गया था। R2 का मान उपयोग रैखिक
संबंध निर्धारित करने के लिए किया गया था और इसे 0.058 पाया गया था। R2 का मान 0.058 फिर से एक रैखिक संबंध
का संकेत है, हालांकि दो डेटा सेटों के बीच एक मजबूत प्रकृति नहीं है
उपरोक्त विश्लेषणों से यह स्पष्ट है कि चालकों की आयु का न तो दुर्घटनाओं की संख्या से और न ही चालकों द्वारा की गई
दुर्घटनाओं की गंभीरता से कोई महत्वपूर्ण संबंध है।
4.3 दुर्घटना वितरण पैटर्न
इस प्रकार ड्राइवरों के बीच दुर्घटनाओं का वितरण पैटर्न प्रत्येक डेटा सेट के लिए अद्वितीय है। एमटीसी बस चालकों के
बीच दुर्घटनाओं के वितरण पैटर्न कि खोजके लिए, अध्ययन के लिए उपलब्ध डेटा सेट का विश्लेषण किया गया था। इससे
विश्लेषक को उपलब्ध डेटा सेट के भीतर दुर्घटनाओं की घटना को समझने में सक्षम होने की उम्मीद है और इसलिए डेटा
सेट के बाद रुझानों के निर्माण में मदद मिलती है। चूंकि दुर्घटना की घटना को शहरी संदर्भ में एक दुर्लभ घटना माना जाता
है, इसका विश्लेषण पॉइसन वितरण द्वारा किया जाता है। इस अध्ययन के लिए दुर्घटनाओं की घटना के आधार पर डेटा को
अलग किया गया था और ड्राइवरों के बीच दुर्घटनाओं के वितरण पैटर्न का आकलन किया गया था। परिणाम तालिका 5 में
दिखाए गए हैं।
तालिका 5 में 48.88, ꭓ2 का मान दिखाया गया है, हालांकि 8 की स्वतंत्रता की डिग्री के लिए मान ꭓ2 और 5% का महत्व
स्तर 15.51 है। उपरोक्त से, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ड्राइवरों के बीच दुर्घटनाओं का वितरण पॉइसन वितरण
पैटर्न का पालन नहीं करता है। इस घटना को दुर्घटनाओं के कम विचरण और बड़ी संख्या में ऐसे ड्राइवरों के लिए जिम्मेदार
ठहराया जा सकता है, जिनकी डेटासेट में कोई दुर्घटना नहीं हुई है। यह पहले के अध्ययन (वाह्लबर्ग ) द्वारा पुष्टि की गई है
जो यह दर्शाता है कि थोड़े समय (जैसे 3 वर्ष) के डेटा सेट में बड़े पैमाने पर ऐसे ड्राइवर शामिल होंगे, जिनकी कोई दुर्घटना
नहीं हुई है और यह किसी भी उच्च श्रेणी के लिए तेजी से गिरती संख्या है। डेटा सेट द्वारा पॉइसन वितरण से वितरण पैटर्न
के विचलन का परिणाम है।
पॉइसन वितरण से विचलन दे खा जा सकता है यदि हम 3 या अधिक दुर्घटनाओं में शामिल ड्राइवरों की संख्या पर विचार
करें। यदि नमूना पॉइसन वितरण का पालन करता तो 3 या अधिक दुर्घटनाओं में शामिल ड्राइवरों की अपेक्षित संख्या 5.32
होती। हालांकि, तीन या अधिक दुर्घटनाओं में शामिल ड्राइवरों की संगत दे खी गई संख्या पंद्रह पाई गई है जो ड्राइवरों की
अपेक्षित संख्या से काफी भिन्न हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि तीन या अधिक दुर्घटनाएं करने वाले ड्राइवरों की एक
बड़ी संख्या पॉइसन वितरण पैटर्न का पालन नहीं करती है। उपरोक्त पैटर्न को ध्यान में रखते हुए, डेटा सेट से उच्च दुर्घटना
जोखिम वाले ड्राइवरों को हटाने और बाद में पॉइसन वितरण पैटर्न के मौजूदगी के विश्लेषण के लिए विवेकपूर्ण महसूस
किया गया था।

96 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

तालिका 5: ड्राइवरों के बीच दुर्घटनाओं के पॉइसन वितरण के लिए परीक्षण

Observed Number of Expected Frequency, (Oj-Ej)^2/Ej


No of Accidents Poisson Probability
Drivers frequency, Oj Ej (observed)

0 5790 0.839 5658.95 3.0349

1 838 0.147 992.67 24.0981

2 101 0.013 87.06 2.2306

3 15 0.001 5.09 19.2882

4 0 0.000 0.22 0.2233

5 0 0.000 0.01 0.0078

6 0 0.000 0.00 0.0002

7 0 0.000 0.00 0.0000

8 0 0.000 0.00 0.0000

9 0 0.000 0.00 0.0000

10 0 0.000 0.00 0.0000

6744 1.00 6744.00 48.88

तदनुसार, डेटा सेट का विश्लेषण तीन या अधिक दुर्घटनाओं में शामिल ड्राइवरों की संख्या का पता लगाने के लिए किया गया
था, जिन्हें दो आयु समूहों अर्थात 40 तक और 40 से ऊपर में वर्गीकृत किया गया था। यह ध्यान रखना दिलचस्प था कि
40 वर्ष से कम आयु वर्ग के ड्राइवरों ने 40 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के ड्राइवरों की तुलना में तीन या अधिक दुर्घटनाएं कीं।
(तालिका 6)।
तालिका 6: दुर्घटनाओं में शामिल ड्राइवरों का आयु समूह

Number of accidents
Age of Drivers
1 2 3 or more

Above the age of 40 406 48 4

Below the age of 40 442 49 10

तालिका 6 से, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उच्च दुर्घटना जोखिम वाले चालक मुख्य रूप से 40 वर्ष से कम आयु
के चालक थे। इस परिकल्पना की पुष्टि करने के लिए कि डेटा सेट से तीन या अधिक दुर्घटनाओं के कारण उच्च दुर्घटना
जोखिम वाले ड्राइवरों के उन्मूलन के परिणामस्वरूप दुर्घटनाओं का पॉइसन वितरण पैटर्न होगा, 40 वर्ष से कम आयु के
ड्राइवर, जो तीन या तीन में शामिल पाए गए थे। मौजूदा डेटा सेट से अधिक दुर्घटनाओं को समाप्त कर दिया गया। कम
जोखिम वाले ड्राइवरों अर्थात 40 वर्ष से अधिक आयु के ड्राइवरों के डेटा सेट का मूल्यांकन किया गया था और परिणाम
तालिका 7 में सारणीबद्ध हैं।

सड़क शोधपत्र संकलन, 2023 | 97


सीएसआईआर - सीआरआरआई

तालिका 7: 40 वर्ष से अधिक आयु के ड्राइवरों के बीच दुर्घटनाओं का पॉइसन वितरण

Number of Observed Poisson Expected (Oj-Ej)^2/Ej ꭓ2 (critical)


Accidents Number of Probability Numbers, Ej (observed)
Drivers, Oj
0 2542 0.84 2527.62 0.0818
1 406 0.14 433.07 1.6916
2 48 0.01 37.10 3.2029
3 4 0.00 2.12 1.6703
4 0 0.00 0.09 0.0908
5 0 0.00 0.00 0.0031
6 0 0.00 0.00 0.0001
7 0 0.00 0.00 0.0000
8 0 0.00 0.00 0.0000
9 0 0.00 0.00 0.0000 15.51

10 0 0.00 0.00 0.0000


3000 1.00 3000.00 6.74

तालिका 7 में 6.74 का 2 (दे खा गया) मान दिखाया गया है, हालांकि 8 की स्वतंत्रता की डिग्री के लिए 2 का मान और 5%
का महत्व स्तर 15.51 है। उपरोक्त से, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ड्राइवरों के बीच दुर्घटनाओं का वितरण उच्च
जोखिम वाले ड्राइवरों के उन्मूलन पर पॉइसन वितरण पैटर्न का पालन करता है।
5 निष्कर्ष
इस अध्ययन में दुर्घटनाओं की बारंबारता और उन्हें करने वाले चालकों के बीच संबंध को समझने का प्रयास किया गया
था। दुर्घटनाओं की आवृत्ति और उन्हें करने वाले ड्राइवरों के बीच एक ठोस संबंध पर पहुंचने के विभिन्न क्रम परिवर्तन और
संयोजनों का मूल्यांकन किया गया है, अर्थात् दुर्घटना की गंभीरता या दुर्घटना की संख्या और वितरण के साथ ड्राइवरों की
उम्र के बीच एक संबंध स्थापित करने का प्रयास करना। चालकों के बीच हादसों के बारे में पेपर में किए गए सांख्यिकीय
विश्लेषण आम मिथक को तोड़ते हैं कि दुर्घटनाओं की गंभीरता और ड्राइवरों के आयु वर्ग अन्योन्याश्रित हैं। किया गया ची
स्क्वायर परीक्षण यह स्थापित करने में सक्षम था कि दुर्घटनाओं की गंभीरता ड्राइवरों के आयु वर्ग से स्वतंत्र है। अध्ययन
विभिन्न विश्लेषणों के माध्यम से यह भी इंगित करता है कि दुर्घटनाओं की संख्या का ड्राइवरों के आयु वर्ग के साथ एक
रैखिक संबंध है, हालांकि सहसंबंध मजबूत नहीं है।
‘दुर्घटना जैसी दुर्लभ/विघटित घटनाओं का वितरण पॉइसन वितरण है’, यह कथन उस स्थिति में गलत हो जाता है जब
कम समय से डेटा सेट किया जाता है जिसमें उच्च दुर्घटना जोखिम वाले ड्राइवर शामिल होते हैं और उसी का उन्मूलन डेटा
के भीतर पॉइसन वितरण के योग्यता को सक्षम बनाता है। इसलिए दुर्घटनाओं की सही प्रवृत्ति पर पहुंचने के लिए दुर्घटना
विश्लेषण के लिए बड़े डेटा सेट का उपयोग करने की आवश्यकता है।
6 स्वीकृतियां
लेखक, डेटा के संग्रह की अनुमति के लिए पूर्व एमडी, एसईटीसी, श्री एलापन और एमडी, एमटीसी, श्री मयप्पन के आभारी
हैं। डेटा संग्रह के दौरान एमटीसी के कर्मचारियों के योगदान को कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार किया जाता है।

98 | सड़क शोधपत्र संकलन, 2023


सीएसआईआर - सीआरआरआई

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सीएसआईआर - सीआरआरआई

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CSIR- CENTRAL ROAD RESEARCH INSTITUTE
दिल्ली-मथुरा मार्ग, डाकघर सीआरआरआई, नई दिल्ली -110025
वेबसाइट : www.crridom.gov.in

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