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Shareef Auratein Aur Filmi Duniya

Shahadat Hasan “Manto”

जब से हिन्दु स्तानी सनअत-ए-ह़िल्म साज़ी ने कुछ वुसअत इख़्तियार की िै , समाज के बेशतर


िलक ़ों में ये सवाल बिस का बाइस बना हुआ िै हक शरी़ि औरत ़ों क इस मुल्की सनअत से
इख़्तिराक करना चाहिए या निी ़ों।

बाअज़ असिाब इस सनअत क कसहबय ़ों और बाज़ारी औरत ़ों की 'नजासत' से पाक करने
के पेश-ए-नज़र इस बात के िक में िैं हक शरी़ि औरतें बेश अज़ बेश हसनेमा के नुकरई पदे
पर आने की क हशश करें , लेहकन इसके साथ िी साथ बाअज़ िज़रात ऐसे भी िैं ज हसनेमा
लाईन से शरी़ि औरत ़ों का इख़्तिराक एक लम्हे के हलए गवारा निी ़ों करते और उसे एक
गुनाि-ए-कबीरा समझते िैं ।

मज़े की बात ये िै हक अव्वल अलज़कर मुल्की सनअत क पाक करने के शानदार जज़्बे के
ज़ेर-ए-असर ये भूल जाते िैं हक हजस नजासत क व एक चेिरे से दू र करना चािते िैं । दू सरे
चेिरे पर वैसी की वैसी जमी रिती िै । ह़िल्मी कारखान ़ों से कसहबय ़ों क बािर हनकाल दे ने से
व बाज़ार ब़ोंद निी ़ों ि ते जिा़ों ये औरतें मदों के पास अपनी अजनास ़िर ि करती िैं ।

मुअखर-उज़-हज़क्र ज स्टू हिय की ग़ोंदी ह़िज़ा में शरी़ि औरत ़ों क जाने की इजाज़त निी ़ों
दे ते, इस मजल्ला व मुतिरर जज़्बे की हशद्दत के बाइस ये िकीकत हबल्कुल भूल जाते िैं हक व
बद-चलन औरतें ज हसनेमा के पदों पर आती िैं और हजनके गान ़ों और ऐख़्तट़ोंग से व अपने
थके हुए हदमाग ़ों क राित बख़्शते िैं , हजनके आर्र से व इल्म िाहसल करते िैं , हकसी ज़माने
में शरी़ि औरतें िी थी ़ों।

अगर चकले की क ई औरत अपना कार बार छ ड़कर हकसी ह़िल्म क़ोंपनी में दाहखल ि
जाती िै और इस नई लाईन में अपना काम ब-तरीक-ए-अिसन करती िै त िमें या आपक
उसके इस इकदाम पर एतराज़ करने का क ई िक िाहसल निी ़ों। बाज़ारी औरतें समाज की
पैदावार िैं और समाज के वज़अ कदार कवानीन की खाद उनकी परवररश करती िै , हिर क्या
वजि िै हक उन्हें बेगाना तसव्वुर हकया जाये और क्य ़ों उनकी मौत की तदबीरें स ची जाए़ों
जबहक व समाज का एक हिस्सा िैं , उसके हजस्म का एक उज़्व िैं, अगर उनक अच्छा बनाना
दरकार िै त सारे हजस्म के हनज़ाम क दरुस्त करने की ज़रूरत िै, जब तक समाज अपने
कवानीन पर अज सर-ए-नौ गौर ना करे गा व 'नजासत' दू र ना ि गी ज तिज़ीब-ओ-तमद्दु न
के इस ज़माने में िर शिर और िर बस्ती के अ़ोंदर मौजूद िै ।

सा़ों स का ज़ीर बम कायम रखने के हलए दफ़्तर का बे-ज़रर कलकर सारा हदन हिसाब की जा़ोंच
िड़ताल करता िै और सैंकड़ ़ों कागज़ हसयाि करता िै । ठीक उसी तरि हज़़ोंदा रिने के हलए
शिर काम-ए-़िर श हदन-भर कानून के साय तले शराब बेचता िै । द न ़ों का मकसद एक िै ।
रास्ते जुदा-जुदा िैं बहुत मुख़्तककन िै हक अगर िमारे दफ़्तर के बेज़रर कलकर क ऐसे ज़राएअ
मयस्सर आते या िालात कुछ इस हकस्म के ि ते त व मय-़िर शी शुरू कर दे ता। क्या वजि
िै हक औरत ़ों का हजस्म बेचना िैरत और ऩिरत से दे खा जाता िै । ऐसी औरत ़ों का वजूद
िरहगज़ िरहगज़ िै रत-खेज़ या ऩिरत-अ़ोंगेज़ निी ़ों िै ।

िमारी शरी़ि औरत ़ों की शरा़ित इसहलए बरकरार िै हक उन्ह न


़ों े हबलकुल जुदा हकस्म के
मािौल में परवररश पाई। वाहलदै न के साया-ए-आहत़ित से हनकल कर व अपने कमाऊ
शौिर ़ों के पास चली आई़ों और हज़़ोंदगी के पुर-पेंच रास्त ़ों से हबलकुल अलग थलग रिी ़ों।

हजन 'शरी़ि औरत '़ों क वाहलदै न का साया आहत़ित ना हमला। ज तालीम से बे-बिरा रिी ़ों,
हजनक खुद अपना पेर् भरने का सामान करना पड़ा व सड़क के पत्थर की तरि जुदा ि
गई़ों। उन्हें ला-म िाला ठ करें खाना पड़ी। कुछ मुकाबले की ताब ना ला कर मर गई़ों। कुछ
सड़क ़ों पर भीक मा़ोंगने लगी ़ों, कुछ िस्पताल ़ों में दाहखल ि गई़ों। कुछ मेिनत मज़दू री के
ज़ररये से अपना पेर् पालने लगी ़ों और कुछ हज़़ोंदगी की एक आग से गुज़र कर एक ऐसे त़ोंदूर में
जा हगरी ़ों ज िमेशा गमर रिता िै , यानी व वैश्या बन गई़ों।

वैश्या पैदा निी ़ों ि ती, बनाई जाती िैं या खुद बनती िै । हजस चीज़ की मा़ों ग ि गी म़ोंिी में ज़रूर
आएगी। मदर की ऩिसानी खाहिशात की मा़ोंग औरत िै ख़्वाि व हकसी शक्ल में ि , चुना़ों चे
इस मा़ों ग का असर ये िै हक िर शिर में क ई ना क ई चकला मौजूद िै , अगर आज ये मा़ोंग दू र
ि जाये त ये चकले खुद-ब-खुद गायब ि जाए़ों गे। ज नज़ररया िमारे नाम हनिाद वकार
पस़ोंद िज़रात ने वैश्याओ़ों के मुताख़्तल्लक कायम कर रखा िै , बुहनयादी तौर पर गलत िै । इसमें
अपने ज़ाती वकार, ज़ाती ताज़्ज़ुज़ और ज़ाती तशख़्खुस बरकरार रखने के जज़्बे के हसवा
और कुछ भी निी ़ों। चूूँहक मदर के िाथ में अक्सर-ओ-बेशतर इख़्तियारात की बागि र िै ,
इसहलए व उससे नाजायज़ ़िायदा उठाता िै । स साइर्ी के उसूल ़ों के मुताहबक मदर मदर
रिता िै ख़्वाि उस की हकताब-ए-हज़़ोंदगी के िर वरक पर गुनाि ़ों की हसयािी हलहप ि , मगर
व औरत ज हसिर एक मतरबा जवानी के बेपनाि जज़्बे के ज़ेर-ए-असर हकसी और लालच में
आकर या हकसी मदर की ज़बरदस्ती का हशकार ि कर एक लम्हे के हलए अपने रास्ते से िर्
जाये, औरत निी ़ों रिती। उसे िकारत-ओ-ऩिरत की हनगाि ़ों से दे खा जाता िै । स साइर्ी उस
पर व तमाम दरवाज़े ब़ोंद कर दे ती िै ज एक हसयाि-पेशा मदर के हलए खुले रिते िैं ।

मैं पूछता हूँ अगर औरत की इस्मत िै त क्या मदर इस गौिर से खाली िै ? अगर औरत इस्मत
बािा ि सकती िै त क्या मदर निी ़ों ि ता? अगर इन सवाल ़ों का जवाब इस्बात में िै त क्या
वजि िै हक िमारे तीर ़ों का रुख हस़िर औरत की तऱि ि ता िै ।

किा जाता िै हक स्टू हिय में वैश्याओ़ों का दाहखला ब़ोंद कर हदया जाये। क्या ये किना दबी
ज़बान में इस बात का इकरार निी ़ों हक मदों क अपने आप पर काबू निी ़ों िै और क्या ये इस
िकीकत का सबूत निी ़ों हक मदर औरत के मुकाबले में बहुत ज़्यादा कमज़ र और आसानी से
बिक जाने वाला िै ।

स्टू हिय में औरत ़ों और मदों का यकजा रिना ज़रूरी िै । ़िरीकैन का बािमी इख़्तिलात
खुशगवार नताइज का मूहजब ि सकता िै , अगर हजस्मानी खाहिशात की तकमील क ह़िल्म
लाईन का एक लाहज़मी जुज़ ख़्याल ना हकया जाये, अगर मदर अपने जज़्बात काबू में रखे त
औरत क हशश के बावजूद ह़िज़ा मुकद्दर निी ़ों कर सकती।

ज िज़रात शरी़ि औरत ़ों क ह़िल्म लाईन में हशरकत की दावत दे ते िैं । मैं उनसे दरयाफ़्त
करना चािता हूँ हक शरा़ित से उनकी क्या मुराद िै । क्या व औरत ज कानून की इस दु हनया
में सर-ए-बाज़ार अपना माल बेचती िै और क ई ध का निी ़ों दे ती, शरी़ि निी ़ों िै ।

अगर शरा़ित के मअनी बा-इस्मत ि ने के हलए जाते िैं त मैं उन ल ग ़ों से ज शरी़ि औरत ़ों
क ह़िल्म स्टू हिय में दाहखल ि ने की दावत दे ते िैं । ये पूछना चािता हूँ हक व ऐटर े स के हलए
बा-इस्मत ि ना क्य ज़रूरी ख़्याल करते िैं ...? क्या जज़्बात-हनगारी और तम्सील-हनगारी के
हलए औरत में इस्मत की बरकरारी ज़रूरी िै ? अगर उनका यिी ख़्याल िै त ये हबलकुल
बाहतल िै और उनके इदराक की कमज़ री का बाइस िै ।
जज़्बात हनगारी और ऐख़्तट़ोंग के हलए ऐटर और ऐटर े स क दु हनया के बेशतर नशेब-ओ-
़िराज़ से आगाि ि ना अज़-बस ज़रूरी िै । क ई शरी़ि औरत कैमरे के सामने अपने ़िज़ी
आहशक की जुदाई के असरात अपने चेिरे पर पैदा निी ़ों कर सकती जब तक व इसी हकस्म
के िाहदसे से पिले द -चार ना ि चुकी ि , ज औरत गम से ना-आशना िै व गम के असरात
खुद पर हकस तरि तारी कर सकती िै ।'

ऐटर े स बनने से पेशतर औरत क इश्क़-ओ-मुिब्बत की तख़्तखखय ़ों और हमठास ़ों के अलावा
और बहुत सी चीज़ ़ों से आश्ना ि ना चाहिए। इसहलए हक जब व कैमरे के सामने आए त अपने
कैरे टर क अच्छी तरि अदा कर सके।

िकायक िमारे सामने िैं । इन पर पदारप शी निी ़ों की जा सकती, अगर िमें ह़िल्मी ़िन की
तरक़्की मकसूद िै , अगर िम इस ़िन क चमकाना चािते िैं और उसे गलत खुतूत पर
चलाने के मुतमन्नी निी ़ों िैं त िमें अपनी नज़र बुल़ोंद रखना पड़े गी। गुनाि या सवाब इन्सान की
ज़ात से मुताख़्तल्लक िै, इससे ़िन का क ई वास्ता निी ़ों, ह़िल्म लाईन पर शरी़ि औरत ़ों का
कब्जा ि या गैर शरी़ि औरत ़ों का। मतलब हसिर इससे िै हक िमारी हिल्में हज़़ोंदगी की
आईना-ए-दार ि ।

मैं ये निी ़ों किता हक हुस्न-़िर शी और हजस्- िर शी अच्छी चीज़ िै । मैं इस बात की वकालत
भी निी ़ों करता हक इन वैश्याओ़ों क ह़िल्म क़ोंपहनय ़ों में जौक दर जौक दाहखल ि ना चाहिए।
मैं ज कुछ किना चािता हूँ या ज कुछ मैं कि चुका हूँ हनिायत वाहज़ि और सा़ि िै ।

कामयाब ऐटर े स बनने के हलए िर औरत क आज़मूदा-ए-कार ि ना चाहिए। ये बहुत ज़रूरी


िै हक व तस्वीर-ए-हज़़ोंदगी के रौशन-ओ-तारीक द न ़ों पिलूओ़ों से आश्ना ि । उसके आबगीना
हदल पर अगर िाहदसात ने लकीरें निी ़ों खी ़ोंची ़ों, अगर उसके िाह़िज़े की तिी पर मुतनव्वेअ
िवाहदस के नुकूश मौजूद निी ़ों त व हकसी सूरत में अच्छी और कामयाब मुमाहसला निी ़ों बन
सकती। जैसा हक मैं इससे पेशतर हलख चुका हूँ । ऐटर े स बनने के हलए औरत क हज़़ोंदगी की
सदर और गमर लिर ़ों से वाहक़ि ि ना बेिद ज़रूरी िै ।

ऐटर े स चकले की वैश्या ि या हकसी बा-इज़्ज़त और शरी़ि घराने की औरत, मेरी नज़र ़ों में व
हस़िर ऐटर े स िै । उसकी शरा़ित या राज़-ओ-इल्लत से मुझे क ई सर कार निी ़ों। इसहलए हक
़िन इन ज़ाती उमूर से बहुत बालातर िै ।
चकले की वैश्या हनिायत बुल़ोंद पाया अदीब ि सकती िै । उसके ख़्यालात-ओ-अफ़्कार से
बनी नौअ-ए-इन्सान क ़िायदा पहु़ोंच सकता िै और एक गैर िस्ती तालीम-या़िता औरत की
शरा़ित हनिायत िी म िहलक नताइज का मूहजब ि सकती िै ।

बगावत फ़्ा़ों स में पिली ग ली पेररस की एक वैश्या ने अपने सीने पर खाई थी। अमृतसर में
जहलया़ों वाला बाग के खूनी ़ों िाहदसे की इख़्तिदा उस नौजवान के खून से हुई थी ज एक वैश्या
के बतन से था।

खाकसाराूँ जिा़ों रा ब-िकारत मगर


तू चे दानी हक दरी ़ों गदर सवारे बाशद

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