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निहित हित
निहित हित
परिचय
किसी अनिर्दिष्ट अवधि पर किसी व्यक्ति के पक्ष में किया गया हित या किसी निश्चित घटना के घटित होने की स्थिति को प्राय:
निहित हित कहा जाता है।
संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 19 निहित हित की अवधारणा से संबंधित है।
TPA की धारा 19 में कहा गया है कि जहाँ कि किसी संपत्ति-अंतरण से किसी व्यक्ति के पक्ष में उस संपत्ति में कोई
हित, वह समय विनिर्दिष्ट किये बिना, जब से वह प्रभावी होगा, या शब्दों में यह विनिर्दिष्ट करते हुए कि वह तत्काल या
किसी ऐसी घटना होने पर, जो अवश्यंभावी है, प्रभावी होगा, सृष्ट किया जाता है, वहाँ जब तक कि अंतरण के निबंधनों से
प्रतिकू ल आशय प्रतीत न होता हो ऐसा हित निहित हित है। निहित हित कब्ज़ा अभिप्राप्त करने से पहले अंतरिती की
मृत्यु हो जाने से विफल नहीं हो जाता।
स्पष्टीकरण- के वल ऐसे उपबन्ध से, जिसके द्वारा हित का उपभोग मुल्तवी किया जाता है, या उसी संपत्ति में कोई पूर्विक
हित किसी अन्य व्यक्ति के लिये दिया जाता या आरक्षित किया जाता है, या उस संपत्ति से उद्भूत आय को उस समय तक
संचित किये जाने का निदेश किया जाता है, जब तक उपभोग का समय नहीं आ जाता, या के वल ऐसे किसी उपबंध से
कि यदि कोई विशेष घटना घटित हो जाए तो वह हित किसी अन्य व्यक्ति को संक्रांत हो जाएगा यह आशय कि
हित निहित नहीं होगा अनुमित न किया जाएगा।
दृष्टांत:
A, B को 100 रुपए का उपहार देता है जो उसे C की मृत्यु पर दिया जाना है। इसमें B का एक निहित हित शामिल है,
क्योंकि इस घटना में C की मृत्यु सुनिश्चित है।
A, आय में से कु छ ऋणों का भुगतान करने के लिये पूरी संपत्ति B को हस्तांतरित कर देता है और फिर संपत्ति C को सौंप
देता है। इसमें C के पास निहित हित है क्योंकि यह ऋण के भुगतान को स्थगित कर देता है लेकिन हित तुरंत
निहित हो जाता है।
निर्णयज विधि:
लछमन लाल पाठक बनाम बलदेव लाल थाथवारी (1917) के मामले में एक व्यक्ति ने किसी अन्य व्यक्ति के पक्ष में
उपहार विलेख हस्तांतरित किया, लेकिन उसे निर्देश दिया कि जब तक अंतरक की मृत्यु नहीं हो जाती, तब तक उसे उस
संपत्ति पर कब्ज़ा नहीं मिलेगा। अंतरिती का निहित हित होगा, भले ही उसके उपभोग का अधिकार स्थगित कर
दिया गया हो।