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उराखड मु त िवविवालय

हानी
DVS-104

वातु म िविभ न साधन एवं अ य िवचार


मानिवक िव ाशाखा
योितष िवभाग
तीनपानी बाईपास रोड, ॉसपोट नगर के पीछे
उराखड मु िविवालय, ह!"ानी, नैनीताल - 263139
फोन नं .05946- 261122 , 261123
टॉल #$ न0 18001804025
Fax No.- 05946-264232, E-mail- info@uou.ac.in
http://uou.ac.in
अययन बोड (फरवरी-2020)
अय ोफे सर देवी साद िपाठी
कुलपित, उराखड मु त िवविवालय अय, वातश ु ा िवभाग, ी लालबहादरु शाी
हानी राि"#य सं कृ त िवापीठ, नई िद ली।

ोफे सर एच.पी. शुल - (सयं ोजक) ोफे सर िवनय कुमार पाडेय


िनदेशक, मानिवक िवाशाखा *योितष िवभागाय, सं0िव0ध0िव संकाय,
उ0म0ु िव0िव0, ह ानी काशी िह.दू िवविवालय, वाराणसी।

डॉ. नदन कुमार ितवारी ोफे सर रामराज उपायाय


अिसटे ट ोफे सर एवं समवयक, योितष िवभाग अय, पौरोिह2य िवभाग, LBS, नई िद ली
उराखड मु त िवविवालय, ह ानी।

पाठ्य#म स$पादन, संयोजन एवं समवयक (वा'तु शा')


डॉ. नदन कुमार ितवारी
अिसटे.ट 5ोफे सर एवं सम.वयक, *योितष िवभाग
उराखड मु त िवविवालय, ह ानी
इकाई ले ख न खड इकाई सं ,या
ोफे सर -याम देव िम. 1 1,2,3,4
अय, *योितष िवभाग
के .8ीय संकृ त िवविवालय
जयपरु प:रसर, जयपरु ।
डॉ. नदन कुमार ितवारी 2 1,2,3,4
अिसटे.ट 5ोफे सर एवं सम.वयक, *योितष िवभाग
उराखड मु त िवविवालय, ह ानी – नैनीताल
डॉ. कृ2ण कुमार भागव 3 1,2,3,4,5,6
अिसटे.ट 5ोफे सर (वातु)
राि"#य संकृ त िवविवालय
ित;पित – आ.=5देश

कापीराइट @ उराखड म> ु िव?िवालय


काशन वष - 2021 काशक - उराखड मु त िवविवालय, ह ानी।
मु7क: - सहारनपुर इलेिक ेस, वोमन जी रोड, सहारनपुर ISBN NO. -
नोट : - ( इस पु तक के समत इकाईय के लेखन तथा कॉपीराइट सबं ंधी िकसी भी मामले के िलये सबं ंिधत इकाई लेखक िजमेदार होगा । िकसी भी
िववाद का िनतारण नैनीताल िथत उ$च &यायालय अथवा ह)*ानी स+ीय &यायालय म, िकया जायेगा।)
वा तु म िविभन साधन एवं अय िवचार DVS-104
अनुम
थम खड – वगाय, िपड साधन एवं गृहदै=य िनधारण पृ> - 2

इकाई 1: वग िवचार 3-22


इकाई 2: इटाय एवं न िनधारण 23-38
इकाई 3: िपड साधन 39-51
इकाई 4: गृह का दै)य िव*तार िनधारण 52-69
ि?तीय खड – वा'तुपद ?ार िनधारण, भेद, 'व@प एवं मुहABािद िवचार प>ृ - 70
इकाई 1: वा*तपु द ार िनधारण 71-84
इकाई 2: ार के भेद 85-98
इकाई 3: म-ु य ार का *व.प 99-110
इकाई 4: ार*थापन महु 0 111-122
तृतीय खड - पृ>- 123
इकाई 1: गृहायु िवचार 124-138
इकाई 2: जल*थापन िनधारण 139-155
इकाई 3: गृहदशा िवचार 156-169
इकाई 4: गृहदोष िवचार 170-188
इकाई 5 : गृहदोष िनवारण 189-203
इकाई 6: वा*तुशाि3त 204-228
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104

वा#तु शा#' म) िड,लोमा


(DVS-20)
चतुथF पH
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार
DVS-104

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 1


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104

ख0ड – 1
वगा3य, िप0ड साधन एवं गृहदै@य3 िनधा3रण

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 2


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
इकाई - १ वग3-िवचार
इकाई का िनIपण
१.१ L"तावना
१.२ उNे>य
१.३ वा"तु के आधारभूत तUव
१.४ वगF-िवचार
१.४.१ Lयोजन
१.४.२ "व[प
१.४.२.१ बृह_ा"तुमाला के अनसु ार
१.४.२.२ भपू ालव`लभ के अनसु ार
१.५ िदशा-िवचार
१.५.१ महु d9िF च*तामिण का मत
१.५.२ भूपालव`लभ का वचन
१.५.३ वा"तसु ौgय का मत
१.६ कािकणी-िवचार
१.६.१ बृह_ा"तुमाला का मत
१.६.२ कािकणी-साधन
१.६.२.१ Lथम उदाहरण
१.६.२.२ ि_तीय उदाहरण
१.७ kह-दशािवचार
१.७.१ बृह_ा"तुमाला
१.७.२ दशासाधनिविध
१.८ सारांश
१.९ शnदावली
१.१० बोध Lpq के उ9र
१.११ स*दभF k*थ सचू ी
१.१२ सहायक k*थ सचू ी
१.१३ िनब*धाrमक Lp
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 3
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
१.१ K#तावना –
िLय अsयेताओ!ं वा"त-ु शाv िडwलोमा पाठ्यzम के चतथु F पH के Lथम ख;ड म' आपका
"वागत है । इस ख;ड म' हम भारतीय-वा"त-ु शाv के मलू िस~ा*तq म' से एक वगF-िवचार पर िव"तार
से चचाF कर' गे । जैसा िक आप सभी को अवगत है िक वैिदक-काल म' य€ का महUव सवाFिधक था
िजसके िलए अलग-अलग Lकार क• िचितयq, कु;डq और मंडपq का िनमाFण िकया जाता था । यह
िनमाFण िबना वा"तु के €ान के सभं व नह„ था । इसिलए वा"त-ु िव€ान आर…भ से ही वैिदक-सािहrय
का अिभ*न अंग होते ह†ए अथवFवेद के उपवेद के [प म' प‡रगिणत है । एवं ‘"थापrय-वेद’ के [प म'
इसक• Lितˆा और आदर है। यही कारण है िक यह सनातन-पर…परा क• €ान-िव€ान-धारा का एक
महUवपणू F िह"सा है।
िLय अsयेताओ!ं जैसा िक आप जानते ह‰, वा"त-ु शाv, िव€ान क• वह पर…परा है िजसम'
गृह, Lासाद (महल), देवालय, उ?ान, वापी, िविवध-म;डप, नगर इrयािद के िनमाFण का अsययन
करते ह‰ । िक*तु, िकसी भी Lकार के वा"तु के िनमाFण म' कुछ आधारभूत बात' sयान म' रखनी होती ह‰,
िजन पर अनेकq वा"त-ु शाvीय िनयम और िस~ा*त बड़ी ही Œढ़ता से िटके ह‰ । ऐसे ही कुछ आधारभूत
तUवq िजनम' ‘वगF-िवचार’, ‘इ•ाय-साधन’, ‘इ•-न“H-िनधाFरण’ और ‘गृह-िप;ड-साधन’ का "थान
Lमखु है, के अsययन हेत,ु आपके पाठ्यzम के चतथु F पH के इस ख;ड म' इन िवषयq को सि…मिलत
िकया गया है । इन मूल तUवq के आधार पर आगे जो िवषय िवचारणीय होते ह‰ उनम' क“q, _ारq आिद
क• दै•यF अथाFत् ल…बाई और िव"तृित अथाFत् आयाम (चौड़ाई) का िवचार सबसे महUवपणू F है । जब
तक वगF-आय-िप;ड का िवचार नह„ होगा तब तक िनम—य (बनाए जाने वाले) शाला क• ल…बाई और
चौड़ाई का भी िनधाFरण संभव नह„ है और उसके िबना _ार, अिल*द, आंगण, वातायन, Lतोली इrयािद
का िनमाFण तो भल ू ही जाइए । अत: यह ख;ड िवषय-वा"तु क• Œि• से अrय*त ही महUवपणू F और
उपादेय है ।
Lथम ख;ड क• इस Lथम इकाई म' वा"तु के मल ू तUवq म' से एक ‘वगF’ का िवचार िकया
जाएगा । वगF का िवचार कै से करते ह‰? वगF का "व[प =या है? इसके आधार पर "थान-िवशेष म'
िनवास, िदशा, श`य आिद का €ान िकस Lकार िकया जाता है इन सभी िवषयq का िव"तारपवू क F
अsययन आप इस इकाई म' कर' गे, िजससे िक भारतीय-वा"तुशाv म' ‘वगF-िवचार’ के "व[प, Lयोजन
और महUव को "प• [प से रे खािं कत कर सकने म' आपको मदद िमलेगी। इस ख;ड के पाँचq इकाईयq
म' काल-zम से ›योितष के LवतFक आचायœ के िवषय म' आप अsययन कर' गे । इस Lथम इकाई म'

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वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
ऋिष लगध, आचायF वराहिमिहर एवं िस~ा*त ›योितष के आचायF आयFभŸ के िवषय म' चचाF क•
जाएगी ।

१.२ उNेPय –
L"तुत इकाई के अsययन के बाद आप –

· वा"तु के कुछ आधारभतू िस~ा*तq का नामो`लेख कर सकने म' समथF हो सक' गे ।


· वा"त-ु शाv म' ‘वगF’ के "व[प को समझ सकने म' कुशल हो सक' गे ।
· वा"तु म' वगF क• भिू मका को Lकट करने म' समथF हो सक' गे ।
· ¢यि£-िवशेष के िनवास हेतु "थान-िवशेष लाभदायक है या नह„ इसका िनधाFरण कर सकने
म' कुशल हो सक' गे ।
· वगाFनसु ार िदशा के िनधाFरण म' िनपणु हो सक' गे ।
· वा"त-ु िनमाFण के पवू F भूिम के नीचे ि"थत श`य क• ि"थित का िनधाFरण कर सकने म' समथF
हqगे ।
१.३ वा#तु के आधारभूत तUव -
िमHq! Lrयेक शाv, चाहे वह ›योितष हो, ¢याकरण हो, दशFन हो या िफ़र वा"तु ही =यंू न
हो, सभी कुछ आधारभतू तUवq और मल ू िस~ांतq पर ही िटकते ह‰, अ*यथा उनक• शाvीयता ही
स*देह के घेरे म' रहती है । जहां तक Lp वा"तु का है, इसके आधारभतू तUवq के िबना तो इसक• थोड़ी
भी गित नह„ है । अत: वा"तु-शाv म' Lवेश क• कंु जी ह‰ – ये आधारभतू तUव । इन तUवq म' ‘वगF’,
‘आय’, ‘िप;ड’, ‘वा"त-ु पद-िव*यास’ का "थान सवाFिधक महUवपणू F है । सामा*य से सामा*य और
िवशेष से िवशेष वा"तु के भी िनमाFण के पवू F इन तUवq पर िवचार अrय*त आव>यक है, अ*यथा
िकतना भी स*ु दर आप भवन, शालाएं इrयािद बनवा ल', इन तrवq के स…यक् अनुशीलन और
िzया*वयन के अभाव म' वा"तु का सौgय आिद Lयोजन कतई िस~ नह„ हो सके गा । यिद इन
आधारभतू तUवq के Lयोजन पर एक Œि• डाल' तो िन¦य ही इनके महUव को समझा जा सके गा । जहां
तक Lp वगF का है, इसका सबसे पहले उपयोग, kाम या नगर-िवशेष म' ¢यि£-िवशेष के रहने क•
अनक ु ू लता का िनधाFरण करना है । वा"तु म' इस िनधाFरण क• ‘कािकणी’ सं€ा है । ¢यि£ और kाम या
नगर के नाम के आधार पर उन दोनq का वगF िनधाF‡रत िकया जाता है, िजसके आधार पर उस kाम या
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वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
नगर म' ¢यि£-िवशेष का वास अनक ु ू ल है या नह„ इसका िनधाFरण िकया जाता है । अमक ु ¢यि£ का
िकसी kाम या नगर म' रहना लाभLद है भी िक नह„, यह जाने िबना ही वहां वा"तु के िनमाFण क• =या
साथFकता रह जाती है? अगर आप यह कह' िक यिद उस ¢यि£-िवशेष क• आजीिवका ही उस kाम
या नगर म' िनि¦त हो तो िफर ऐसे म' वगF-िवचार अLासंिगक है, तो यह कहना भी उिचत नह„ है। इसके
पीछे दो तकF िदए जा सकते ह‰ । पहला, जहां kाम-िवशेष या नगर-िवशेष को rयागने का कोई िवक`प
ही नह„ है वहां नामाधा‡रत वगF के अनसु ार यिद स…पणू F नगर या kाम अनक ु ू ल नह„ हो तो िफ़र वह ऐसे
मोह`ले या वाडF म' रहे िजसका वगF उस ¢यि£ को अनक ु ू ल पड़ता हो। और, दसू रा अनक ु ू लता-
Lितकूलता का पहले से ही €ान हो जाने पर, अिधक सचेत होकर ¢यि£ के कायF करने क• स…भावना
बढ़ जाती है।
जहां तक Lp ‘आय’ का है, यह भी वा"त-ु शाv का अित महUवपणू F तUव है। य?िप वा"तु
के जानकार जानते ह‰ िक इस Lसगं म' Lय£ ु ‘आय’ शnद आजीिवकोपाजFन अथाFत् ‘कमाई’
(earning) इस अथF म' Lय£ ु नह„ ह†आ है, बि`क यह बनाए जाने वाले वा"तु क• ल…बाई और चौड़ाई
पर िनधाF‡रत वह आधारभतू तUव है िजनके आधार पर पवू ाFिद िदशाओ ं म' िनम—य वा"तु क• शुभता और
अशभु ता का िनधाFरण िकया जाता है। ‘sवज’, ‘ध¯ू ’ आिद ये ८ आय न के वल समाज के िविवध
वगœ के वा"त-ु िनधाFरण म' महUवपणू F भिू मका िनभाते ह‰ बि`क, वा"तु म' िनिमFत अलग-अलग शालाओ ं
और यहां तक िक इन शालाओ ं म' Lयोग म' लाई जाने वाली व"तुओ ं यथा आलमारी, पीिठका, चारपाई
आिद के िनमाFण म' भी ये आय सामान [प से उपयोगी और महUवपणू F ह‰।
एक अ*य महUवपणू F िवचारणीय आधारभूत तUव है – ‘वा"त-ु िप;ड’। ‘िप;ड’ एक गिणतीय
मान है िजसका साधन इ• आय और इ• न“H के आधार पर िकया जाता है। इसके साधन क• अनेक
िविधयां वा"तु के k*थq म' Lा° होती ह‰, िजनम' म'घनाथ, गणेश दैव€, आगिु ल, सधु ाकर ि_वेदी आिद
के मत उ`लेखनीय ह‰ । ‘िप;ड’ के आधार पर ही िकसी वा"तु के sवजािद आय, ¢यय, अंश, वार,
±¢य, ऋण, न“H आिद का िनधाFरण होता है । िन²कषFत: यह िकसी भी वा"तु के िनमाFण म' अrय*त
महUवपणू F आयाम है।
‘वा"त-ु पद-िव*यास’ तो खैर भारतीय-वा"त-ु शाv क• आrमा ही जािनए। अंkेज़ी भाषा म'
इसके िलए ‘sight-planning’ शnद Lयोग म' लाया जाता है िक*त,ु यह भाषा*तरण कह„ से भी इस
तUव के साथ *याय नह„ करता है। घर, देवालय, महल, तालाब आिद िजस वा"तु का िनमाFण करना
हो, उसके अनसु ार, वा"तु को १००, ८१, ६४ इrयािद िविवध ख;डq म' िवभािजत करके Lrयेक खंड
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वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
म' एक-एक देवता क• "थापना ही सामा*यतया भारतीय-वा"त-ु शाv म' ‘वा"तु-पद-िव*यास’ कहा
जाता है। इन ख;डq के आधार पर ही वा"त-ु पद क• ‘शतपद-वा"त-ु चz’, ‘एकाशीित-वा"तुपद-चz’,
चत²ु षि•-वा"तपु द-चz’ इrयािद अनेकq स€ं ाएँ ह‰। िक*तु यह खेद का िवषय है िक वा"त-ु पद-िव*यास
को समझने म' Lाय: आधिु नक और पारंप‡रक दोनq ही Lकार के िव_ान् गलती करते ह‰। िजस Lकार,
आधिु नक Œि•कोण से इसे माH (वा"तु का) न=शा ‘lay-out’ कहना कथमिप उिचत नह„ है, ठीक
उसी Lकार, माH कमFकाडं क• िवषय-वा"तु मानकर के वल इस िव*यास या मडं ल म' "थािपत देवताओ ं
क• पजू ा कर देना भी इस िनतांत मािमFक िवचार के साथ *याय करना नह„ है।
िLय अsयेताओ!ं ऊपर िजतने भी महUवपणू F वा"तशु ाvीय-तUवq का उ`लेख और सिं “°
संकेत िकया गया है, उनम' ‘वा"त-ु पद-िव*यास’ को छोड़कर शेष सभी तUवq का अsययन इस खंड म'
आप कर' गे। यहाँ इनका उ`लेख माH इनक• पृˆभूिम तैयार करना था, जो िक इनके महUव को इिं गत
कर सके । तो आइए एक-एक करके इन तUवq का िव"तारपवू Fक अsययन कर' ।

१.४ वग3-िवचार -
िLय अsयेता! अभी तक हमने भारतीय वा"त-ु शाv के कुछ महUवपणू F तUवq पर एक
िसंहावलोकन िकया, िजनम' Lथम तUव ‘वगF’ है। ...आइए अब हम इस तUव पर िव"तार से चचाF करते
ह‰।
‘वगF’ यह शnद अपने आप म' गुण-धमF इrयािद िविवध मानकq के आधार पर िवभाजन को
सिू चत करता है । तब Lp यह है िक Lसंग म' Lय£
ु ‘वगF’ शnद से िकस Lकार का िवभाजन Lकट
िकया गया है? इस वग¾करण का आधार =या है? वगF का Lयोजन =या है? आइए एक-एक करके इन
Lpq के उ9र ढूँढते ह‰ ।
१.४.१ #वIप
"वरq और ¢यंजनq का ›योितष और वा"तु म' एक महUवपणू F "थान है। इन दोनq के ही बह†त
सारे सHू इन वणœ पर ही िटके ह‰। वा"त-ु शाv के तो आर…भ म' ही इनका महUव ‘वगF-िवचार’ के [प
म' ŒÀगोचर है ही। अकारािद वणœ के आधार पर िकसी भी ¢यि£, kाम, नगर या वा"तु का वगF िनधाF‡रत
िकया जाता है । इससे यह "प• है िक ¢यि£ इrयािद के वगF-िनधाFरण म' उनके नामq क• भूिमका
महUवपणू F है । नाम के Lथम अ“र के आधार पर िकसी ¢यि£ आिद का =या वगF है यह तय होता है।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 7


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
यह वगF सgं या म' ८ ह‰ जो इस Lकार ह‰ – गÂड़, िवडाल (िब`ला), िसंह, Ãान (कु9ा), सपF, मषू क,
मृग और मेष। ये आठq वगF नाम के आ?“र के आधार पर तय िकये जाते ह‰। उदाहरण के तौर पर,
यिद िकसी का नाम ‘अन*त’ है तो ‘अ’ वणF से नाम का आर…भ होने के कारण उसका ‘गÂड़’ वगF है।
इसी Lकार यिद िकसी मिहला का नाम चंि±का है तो नाम का आ? वणF ‘च’ होने के कारण उसका
वगF ‘िसंह’ होगा। इसी Lकार आगे भी समझना चािहए।
अब Lp यह है िक इन वगœ का Lयोजन =या है?
१.४.२. Kयोजन
इन वगœ के आधार पर अनक ु ू ल या Lितकूल िदशा का िनधाFरण िकया जाता है। इसके िलए
Lrयेक वगF क• एक िदशा िनधाF‡रत है। इसका अsययन आप अगले पाठ्यिबंदु म' कर' गे।
इन वगœ के आधार पर ही ‘कािकणी-िवचार’ सभं व है। जैसा िक पवू F म' भी म‰ने बताया िक
िकसी भी kाम या नगर म' रहने के पवू F यह िवचार करना िक ‘वह kाम या नगर उस ¢यि£ के िलए
उिचत है अथवा नह„’ इसे ही ‘कािकणी’ कहते ह‰। इसका सिव"तार वणFन आप इसी अsयाय म' आगे
के िबदं ओ
ु ं म' पढ'गे।
kहq क• दशा का िनधाFरण भी गÂड़ आिद वगœ के आधार पर ही तय होता है। अत: इस िबंदु
क• भी चचाF इसी अsयाय म' क• जाएगी।
इसके अित‡र£ चयिनत भिू म पर वा"त-ु िनमाFण के पवू F, उस भिू म का श`य-शोधन िकया
जाता है। ‘श`य’ से अिभLाय है Lािणयq के कंकाल, चमF आिद। भिू म के िकतने नीचे िकस Lािण-
िवशेष का श`य है, इसका €ान अकारािद के वणœ के आधार पर तय िकया जाता है। इस पर भी
िव"तृत चचाF इस अsयाय म' क• जाएगी। तो, आइए एक-एक करके इन िवषयq पर चचाF कर' ।
१.४.२.१ बृहYा#तुमाला के अनुसार
िLय अsयेता! बृह_ा"तुमाला पं रामिनहोर ि_वेदी जी के _ारा वा"तुशाvीय-िनयमq का एक संkहाrमक
k*थ है। इस k*थ म' अनेकq आचायœ के वा"त-ु िवषयक-मतq का संकलन िव_ान् kंथकार ने िकया है।
य?िप k*थार…भ म' ही वगœ के "वािमयq और िदशाओ ं का उ`लेख िकया है
िक*तु आगे श`यािधकार म' वगF के "व[प का िन[पण Äोकांश म' िकया गया है –
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 8
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
“आ-का-चा-टा-ए-त-शा-पा-यवगाF:............”
आ = अवगF अथाFत् अ, ई, उ, ऋ, लृ; का = कवगF अथाFत् क, ख, ग, घ, ङ; चा
= चवगF अथाFत् च, छ, ज, झ, ञ; टा = टवगF अथाFत् ट, ठ, ड, ढ, ण; ए = एवगF अथाFत् ए,
ऐ, ओ, औ; त = तवगF अथाFत् त,थ,द,ध,न; शा = श, ष, स, ह; पा = पवगF अथाFत् प, फ,
ब, भ, म; य = यवगF अथाFत् य, र, ल, व ।
य?िप श`यािधकार के उ£ Äोकाश ं म' ‘एवगF’ को एक अित‡र£ वगF के [प म' बताकर श`य-
िन²कासन और शोधन हेतु ९ वगF बनाए गए ह‰ तथािप, उ£ Äोकांश म' किथत इस अित‡र£ ‘ए’वगF
को हटा द' तो कुल ८ वगF ही सभी वा"त-ु स…ब*धी िवचारq के िलए "वीकायF िकए गए ह‰ ।
ऊपर बताए गए अकारािदवणœ के वगœ का िनधाFरण िकया गया है । इन आठ वगœ के "वामी इस Lकार
बताए गए ह‰ -
वगा3[क#य पतयो ग\डो िवडाल:, िसंह#तथैव शुनकोरगमूषकै णा:।
मेष: aमेण गिदता: खलु पूव3तोऽिप, य: पcचम: स dरपुरेष बुधैिव3वeय3:।।
LितपदाथF –
अ•क"य वगF"य = आठ वगœ के समहू के , पतय: = "वामी, zमेण = zमानसु ार, गÂड़, िवडाल
(िब`ला), िसहं , शनु क: = कु9ा, उरग: = सापं , मषू क: = चहू ा, एण: = िहरन, मेष: = बकरा, गिदता:
= कहे गए ह‰।
पवू Fतोऽिप (गिदता:) = ये सभी मेषािद zम से पवू ाFिद िदशाओ ं के "वामी ह‰ ।
य: पÍचम: = इन वगœ म' (गणना म' zम से यह जो पाचं वा)ं है, स: ‡रप:ु एव = वही शHु है; एष: बधु ै:
िवव›यF: = यही (पÍचम) जो वैरी है उसे िव_ानq के _ारा rया›य बताया गया है ।
उदाहरण के तौर पर यिद कह' तो ‘गÂड़’ से पाचं वां ‘सपF’ उस (गÂड़) का वैरी है । इसी Lकार, िवडाल
(िब`ले) से पांचवां चहू ा, ‘िसंह’ से पांचवां ‘िहरन’ उसका वैरी है । अत: अपने पांचव' वगF वाले "थान,
वगF, िदशा का rयाग करना चािहए।
अकारािद-वगF-बोधक-सा‡रणी

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 9


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104

वण3 अ, ई, उ, क, ख, ग, च, छ, ज, ट, ठ, ड, ढ, त,थ,द,ध, श, ष, स, प, फ, ब, य, र,
ऋ, लृ, ए, घ, ङ झ, ञ ण न ह भ, म ल, व
ऐ, ओ, औ
वग3 गÂड़ िवडाल िसहं कु9ा सापं चूहा िहरन बकरा
वैरी सांप चूहा िहरन बकरा गÂड़ िवडाल िसहं कु9ा
१.४.२.२ भूपालवfलभ के अनुसार
भपू ालव`लभ म' विणFत अ• वगF, पहले बताए गए आठ वगœ के समान ही ह‰, के वल
सं€ा-भेद ही कह„-कह„ है। k*थ के अनसु ार आठq वगF इस Lकार से ह‰ -
वगgशा#ताhय3माजा3रिसंहiासप3मूषका: ।
इभेणौ पूव3त#तेषां #ववगा3त् पcचमो dरपु: ।।
वग—शा: = वगœ के "वामी, (zमश:) ताÎयF: = गÂड़, माजाFर: = िब`ला (या िब`ली), िसंह:,
Ãा = कु9ा, सपF:, मषू क: = चहू ा, इभ: = हाथी, एण: = िहरन (ह‰) ।
पवू Fत: = ये सभी zम से पवू ाFिद-िदशाओ ं के "वामी ह‰ ।
"ववगाFत् = अपने वगF से, (िगनकर zमश:) पÍचमो = पांचवां, तेषाम् = इन गÂड़ आिद का,
‡रप:ु = शHु होता है ।

बोध Kl
L.१ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं

(क) ‘अनभु व’ का वगF ‘माजाFर’ है ()
(ख) ‘िशवकुमार’ का वगF ‘मूषक’ है ()
(ग) ‘नीरज’ का वगF ‘सपF’ है ()
(घ) ‘िसहं ’ वगF का वैरी ‘मषू क’ वगF है ()
(ङ) ‘Ãान’ वगF का वैरी ‘िहरण’ वगF है ()
अÐयास Lp

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 10


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
L.१ अकारािद वणœ के गÂड़ आिद वगœ के िवषय म' िलख' ।
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__________________________________________________________
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१.५ िदशा-िवचार
िLय अsयेताओ!ं पहले आपने पढ़ा क• अकारािद-वणœ के अनुसार गÂड़ आिद वगœ का
िनधाFरण िकया जाता है । इन वगœ के तो ›योितष-शाv म' कई Lयोजन ह‰ । व"तुत: ›योितष के कई
िस~ातं q के मलू म' यही गÂड़-आिद वगF ही ह‰, िक*तु वा"त-ु शाv म' भी इन वगœ का अितशय महUव
है । इन वगœ के आधार पर ही पवू ाFिद िदशाओ ं का िनधाFरण वा"तु के अलग-अलग Lसंगq म' करके
तदन[ ु प शभु ाशभु -¢यवहार या अनक
ु ू लता तय क• जाती है । तो आइए, देख', िकस Lकार वगœ क•
िदशाओ ं का िनधाFरण शाvq ने िकया है ।
१.५.१ मुहop3िचqतामिण का मत
रामाचायF ने वा"तLु करण म' वगœ और उनके वै‡रयq का उ`लेख करते ह†ए अंितम चरण म'
उनक• िदशाओ ं का भी नामोÒचारण संकेत माH से ही िकया है, जो इस Lकार है -
...................................’बिलन: "यरु ै *±्या:’ ।
बिलन: = (पवू F म' किथत वगF) बली, "य:ु = होव', ऐ*±्या: = पवू F आिद िदशाएं (िदशाओ ं म')

अब चूंिक इ*± पवू F िदशा के "वामी माने गए ह‰ अत: ‘ऐ*±्य’ शnद पवू F िदशा का वाचक है।
यहाँ ‘ऐ*±्य’ शnद म' Lय£
ु बह†वचन अ*य िदशाओ ं का, वगœ के zमानसु ार, संकेत करता है ।
१.५.२ भूपालवfलभ का वचन
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 11
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
य?िप ‘भूपालव`लभ’ के मत को पहले ही िबंदु म' कह िदया गया है तथािप पुन: िदङ्िनधाFरण
के zम म' इसे दहु राया जा रहा है -
.......... पवू Fत"तेषां......... ।
तेषाम् = इन गÂड़ आिद वगœ का, पवू Fत: = पवू F िदशा से (आर…भ करके "वािमrव होता है)।
१.५.३ वा#तस
ु ौrय का मत
वा"तुसौgय म' श`य€ान-Lकरण म' अवगाFिदयq के गÂड़ इrयािद "वामी बताने के zम म'
kंथकार ने इन वगœ क• िदशा का भी संकेत म' उ`लेख िकया है । k*थो£ वचन इस Lकार है –
अकारािदषु सव—षु िदÎव•ासु यथाzमात् ।
अथाFत् अकारािद वगœ म' zमश: ८ िदशाओ ं म' "वािमrव-¢यव"था है । कहने का ताrपयF यही
है िक अकार इrयािद आठq वगF zम से पवू F, आÀनेय, दि“ण, वाय¢य, पि¦म, नैऋrय, उ9र, ईशान
इन ८ िदशाओ ं के "वामी ह‰।
अकारािद वगœ क• िदक्-"वािमrव-बोधक-तािलका
वणF अ, ई, उ, क, ख, ग, च, छ, ज, ट, ठ, ड, त,थ,द, श, ष, स, प, फ, य, र,
ऋ, लृ, ए, घ, ङ झ, ञ ढ, ण ध,न ह ब, भ, ल, व
ऐ, ओ, म

वगF गÂड़ िवडाल िसहं कु9ा सापं चहू ा िहरन बकरा
िदशा पवू F आÀनेय दि“ण वाय¢य पि¦म नैऋrय उ9र ईशान
बोध Kl
L.२ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं

(च) "वर ताÎयF वगF म' पिठत नह„ ह‰ ()
(छ) अकारािद वगœ क• सgं या ८ है ()
(ज) वा"तसु ौgय के श`यािधकार म' वगœ क• िदशाओ ं का उ`लेख है ()

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 12


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
(झ) णकार वणF Ãान वगF म' प‡रगिणत नह„ है ()
(ञ) मेष वगF उ9र िदशा का "वामी है ()
अsयास Kl
L.२ गÂड़ आिद वगœ क• िदशा के िवषय म' िलख' ।
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१.६ कािकणी-िवचार
‘ककते गणनाकाले चÍचलीभवित इित कािकणी’ अथाFत् गणना के समय जो ि"थर नह„ है।
कािकणी के िलए ऐसा =यंू कहा गया िक जो चल है । कारण यह है िक Lाचीन-काल म' ¢यवहार म'
Lयोग लाई जाने वाली म±ु ा क• ‘कािकणी’ सं€ा ह‰ । अब चिंू क धन चल होता है कभी एक-समान
नह„ रहता है। ¢यापारी हो या kाहक सभी के पास जो भी धन है वह zय-िवzय म' सतत Lयोग म' आने
के कारण कभी भी ि"थर अथाFत् एक-समान नह„ रहता है, घटता-बढ़ता रहता है। यही कारण है िक
Lाचीन काल म' जो म±ु ा थी उसक• ‘कािकणी’ सं€ा थी। ‘कािकणी’ का मान ‘लीलावती’ म' इस
Lकार बताया गया है –
‘वराटकानां दशकYयं यत् सा कािकणी ताv पणvतw:’
अथाFत् २० वराटक = १ कािकणी
४ कािकणी = १ पण
तब Lp यह है िक इस ‘कािकणी’ का यहाँ वा"तु म' िकस-Lकार का उपयोग होता है? तो
िमHq! बात यह है िक यहाँ Lय£
ु ‘कािकणी’ शnद व"तुत: उपल“ण अथाFत् संकेत माH है।
यह शnद लाभ-हािन का संकेत कर रहा है । कािकणी व"तुत: िकसी भी kाम-िवशेष या नगर-िवशेष

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 13


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
म' िकसी भी ¢यि£ के िनवास के िनणFय म' सहायक होती है । और इस िनणFय के मूल म' यह िज€ासा
िछपी है िक अमकु kाम या नगर म' िकसी भी ¢यि£ का रहना लाभ-दायक है या नह„ ।
इस Œि• से तो यह अrयंत महUवपणू F िवषय ह†आ । =यंिू क यिद गणना के _ारा इस बात का
पहले ही मन²ु य पता लगा ले िक अमक ु "थान पर रहना उसके िलए लाभLद है या हािनLद तो उसी के
अनसु ार "थान-िवशेष म' वा"तु-िनमाFण के िवषय म' वह िवचार करे अ*यथा अ*यH िनवास पर िवचार
करे ।
चंिू क इसके _ारा सबसे पहले उस kाम या नगर का चयन करना होता है जहां पर वा"त-ु
िनमाFण अनक ु ू ल और लाभLद हो इसीिलए वा"तु के kंथq म' सबसे पहले ‘कािकणी-िवचार’ ही िकया
जाता है ।
१.६.१ बृहYा#तुमाला का मत
बृह_ा"तुमालाकार कािकणी पर िवचार करते ह†ए कहते ह‰ –
#ववगx िYगुणीकृyय परवगgण योजयेत् ।
अ[िभ#तु हरेzागं योऽिधक: स ऋणी भवेत् ।।
LितपदाथF – "ववगFम् = अपने वगF को, ि_गुणीकृ rय = दगु नु ा करके , परवग—ण = दसू रे के वगF
से, योजयेत् = जोडे । अ•िभ"तु हरे Óागं = िफर उसमे आठ का भाग देने पर जो शेष रहता है उसे
‘कािकणी’ कहते ह‰ । योऽिधक: = िजसक• कािकणी अिधक होती है, स ऋणी भवेत् = वह ऋणी
(कजFदार) होता है, योऽिधक: स ऋणी भवेत् ।
िLय अsयेता! यहां Äोक म' जो वगF शnद आया है उसका आशय पूवF म' चिचFत अकारािद
वणœ पर आधा‡रत वगF ही है। यहाँ जो ‘"ववगF’ और ‘परवगF’ क• बात कही गयी है उसका अिभLाय
है वह ¢यि£ िजसे िकसी kाम या नगर म' रहना है, उसके नाम के आ?“र के आधार पर ही उसका
वगF िनधाF‡रत होता है, िजसे Äोक म' ‘"ववगF’ शnद से कहा गया है । और पर-वगF से ताrपयF उस kाम
या नगर के नाम के आ?“र से आधा‡रत वगF से है जहां ¢यि£ को रहना है । और इन दोनq के वगœ
का िनधाFरण हो जाने पर िफर Äोक म' बतायी गयी रीित के अनसु ार ¢यि£ और "थान के वगF से दोनq
क• कािकणी का साधन करने के बाद ¢यि£ या नगर म' से िकसी एक के ऋणी होने का िनणFय िलया
जाता है ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 14


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
१.६.२ कािकणी-साधन
LितपदाथF से य?िप यह िवषय "प• ही है तथािप चंिू क कािकणी के साधन म' गिणत अपेि“त
है अत: उदाहरणq के िबना इसका Lrय“-€ान हो पाना किठन हो जाता है । इसिलए आप लोगq क•
सिु वधा के िलए यहां दो उदाहरण L"तुत िकए जा रहे ह‰, िजससे िवषय अिधक "प• हो सके और इसी
का अनसु रण करके आप भी कािकणी का साधन कर सक' ।
१.६.२.१ Kथम उदाहरण
मान लीिजए ‘माधव’ को यह िनणFय लेना है िक ‘जयपरु ’ म' उसका िनवास लाभ-
Lद होगा या नह„ । तो इसके िलए ¢यि£ और "थान दोनq क• कािकणी का €ान कर' गे ।
‘माधव’ का आ?“र मा (या म) पवगF का वणF होने से उसका वगF ‘मूषक’ ह†आ िजसक•
संgया ६ है। ‘जयपरु ’ का आ?“र ‘ज’ चवगF का वणF है, अत: इसका वगF ‘िसहं ’ ह†आ, िजसक•
संgया ३ है। यिद माधव क• कािकणी का साधन कर' गे तो माधव का वगF ‘"ववगF’ होगा और जयपरु
का वगF ‘परवगF’ होगा । इसी Lकार, यिद जयपरु क• कािकणी का िवचार कर' गे तो जयपुर का वगF
‘"ववगF’ और माधव का वगF ‘परवगF’ होगा ।
माधव क• कािकणी – (६ × २) + ३ = १५;
१५/८ = शेष ७, माधव क• कािकणी
जयपरु क• कािकणी – (३ × २) + ६ = १२
१२/८ = शेष ४, जयपरु क• कािकणी
‘योऽिधक: स ऋणी भवेत्’ के अनसु ार, चिंू क माधव क• कािकणी अिधक है अत: माधव
ऋणी है।
िन²कषF [प म', जयपरु का माधव पर ऋण होने के कारण, यिद माधव इस नगर म' रहता है तो
उसके िलए लाभLद ि"थित नह„ होगी ।
१.६.२.२ िYतीय उदाहरण

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 15


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
मान लीिजए िक ‘कोिकला’ को यह िनणFय लेना है िक ‘दमोह’ म' रहना उसके िलए लाभदायक है
अथवा नह„ तो इसके िलए पुन: ¢यि£ और "थान क• कािकणी का िवचार कर' गे। ‘कोिकला’ का
आ?“र ‘को (या क) कवगF का वणF होने से ‘िवडाल’ वगF का ह†आ िजसक• संgया २ है । ‘दमोह’
का आ?“र ‘द’ तवगF का वणF होने से ‘सपF’ वगF का ह†आ िजसक• सgं या ५ है ।
कोिकला क• कािकणी – (२ × २) + ५ = ९;
९/२ = शेष १, कोिकला क• कािकणी
दमोह क• कािकणी – (५ × २) + २ = १२;
१२/८ = शेष ४, दमोह क• कािकणी
यहां चंिू क ‘दमोह’ क• कािकणी, ‘कोिकला’ क• कािकणी से अिधक है अत: दमोह ऋणी ह†आ ।
फलत: यिद कोिकला दमोह म' रहती है तो यह "थान उसके िलए लाभLद रहेगा।

बोध Kl
L.३ िन…निलिखत Lpq के उ9र द' –
(क) ____________ गणनाकाले चÍचलीभवित इित कािकणी ।
(ख) वराटकानां ___________ यत् सा कािकणी ।
(ग) "ववगÖ ि_गुणीकृ rय ___________ योजयेत् ।
(घ) योऽिधक: स ___________ भवेत् ।
(ङ) फूलच*± का वगF _______ है ।
अsयास Kl
L.३ कािकणी के आधार पर यः िन[िपत कर' िक ‘सरु े श’ का ह`_ानी म' िनवास लाभLद है अथवा
नह„ ।
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वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
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१.७ }ह-दशािवचार
िLय अsयेता! मन²ु य अपने जीवन म' वा"त-ु िनमाFण (चाहे वह घर हो या देवालय या िफर
बावड़ी, कँू आ आिद =यंू न हो) बार-बार नह„ करवाता है, =यंिू क इसम' अrयिधक धन, Ùम और समय
लगता है । इसके अित‡र£ यह ि"थर स…पि9 है, अत: Lितकूल प‡रणाम िमलने पर, इस वा"तु को
कह„ "थाना*त‡रत भी नह„ िकया जा सकता है । अत: वा"तु-िनमाFण कराने वाले ¢यि£ का उसके
िचर-"थाियrव के बारे म' सोचना अrय*त "वाभािवक है । िचर-"थाियrव म' वा"तु-िनमाFण-िविध एवं
Lयो›य-व"तु के यथोिचत होने के बाद भी यिद उिचत काल म' वा"त-ु िनमाFण आर…भ नह„ ह†आ या
अनकु ू ल समय म' _ार-"थापन, वा"त-ु LवेशािदकायF नह„ ह†ए तो भी उस वा"तु का िचर-"थाियrव
संशयाrमक ही रहेगा ।
इस अनक ु ू ल काल-िनधाFरण के अनेक Lकार और चरण ह‰ वा"त-ु िनमाFण के दौरान, िजनम'
आर…भ म' ही एक महUवपूणF िनधाFरकतUव ‘kहदशा-िवचार’ है ।
१.७.१ बृहYा#तुमाला
बृह_ा"तमु ाला k*थ के आर…भ म' ही kह क• दशा और फल क• चचाF क• गयी है ।
यहां उ£ दशा, kहq क• दशाएं िवंशो9री दशा के समान ही ह‰ ।
गजशरp3यु गु ाiमहीगण ु ा िYसिहता मघवािदिदिश aमात् ।
गृहपतेरिभधापुरिदd€ता नव•ता भवन#य दशा भवेत् ।।
सूयgqदुभौमा#yवगुजीवमqदसौ‚याv के तुभ3गृ ुज: aमेण ।
षड्िदङ्नगाधyृ यवनीiराङ्कचq„ा#स…नखा#तद†दा: ।।
#वे‡वेषु वष3Kिमतेषु तेषां दशाफलं त' िनवािसनां च ।
तदुpरादुpरतो दशेशफलं िवकf,यं च दशाaमेण ।।
LितपदाथF: - मघवािदिदिश = मघवा अथाFत् इ*±, जो िक पवू F िदशा के "वामी ह‰ उस पवू F

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 17


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
िदशा म', zमात् = zम से, गजशर9Fयु ुगाÃमहीगुणा ि_सिहता = गज ८, शर ५, ऋतु ६, यगु
४, अिÃ २, मही १, गुण ३ और ि_ २ ये अङ्क मानना चािहए ।
िदशाओ ं के अंकŠ क‹ Kदिश3का साdरणी
वणF अ, ई, उ, क, ख, च, छ, ट, ठ, त,थ, श, ष, प, फ, य, र,
ऋ, लृ, ए, ग, घ, ज, झ, ड, ढ, द,ध, स, ह ब, भ, ल, व
ऐ, ओ, औ ङ ञ ण न म
िदशा पवू F आÀनेय दि“ण नैऋFrय पि¦म वाय¢य उ9र ईशान
अकं ८ ५ ६ ४ ७ १ ३ २

गृहपतेरिभधापरु िद‡Úता = गृह"वामी के नाम (के आ?“र से LदिशFत वगF) का अङ्क और


परु के नाम (के आ?“र से LदिशFत वगF) का अङ्क एवं िदशा के अङ्क (का योग), नवÛता = नौ ९
से भाग देने पर, भवन"य दशा भवेत् = शेष-त`ु य kह क• दशा होती है ।
सयू —*दभु ौमा"rवगुजीवम*दसौ…या¦ के तभु Fगृ जु : zमेण = (दशा के ) zम से सयू F, च*±मा,
मङ्गल, अगु अथाFत् राह†, जीव अथाFत् गÂु , म*द अथाFत् शिन, सौ…य अथाFत् बुध, के तु और भृगुज
अथाFत् शz
ु इन kहq क• दशाएं zमानसु ार आती ह‰ ।
षड्िदङ्नगाधृrयवनीÃराङ्कच*±ाघना"स°नखा"तदnदा: = (ऊपर बाते गए) kहq क• दशा
के वषF zमश: षट् ६, िदङ् १०, नग ७, आधृित १८, अवनीÃर अथाFत् नृप १६, अङ्कच*± १९,
अघना १७, स° ७, नख २० ह‰ ।
"वे²वेषु वषFLिमतेषु = अपने-अपने दशा के इन वषœ म', तेषां दशाफलं = उन kहो क• दशा के
फल, तH िनवािसनां च = उस घर (वा"तु) म' िनवास करने वाले को भोगना पड़ता है ।
च दशाzमेण = और, ऊपर बताए गए kहq क• दशा-zम के अनसु ार zमश:, तद9ु राद9ु रतो
दशेशफलं िवक`wयं = एक kह के बाद दसू रे kह क• दशा एवं अ*तदFशा आिद के फलq का िवचार
करना चािहए ।
१.७.२ दशासाधनिविध
िLय अsयेता! िजस Lकार ज*म-कुदाली म' kहq क• दशा-अ*तदFशा आिद के आधार पर फल के

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 18


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
काल का िनधाFरण करते ह‰ ठीक उसी Lकार जब गृह आिद वा"तु का िनमाFण करते ह‰ तब उस गृह के
दशा-अंतदFशा के आधार पर उसम' रहने वाले ¢यि£ को वा"त-ु िनमाFण काल के आधार पर समय-
समय पर शभु या अशभु फल भोगना पड़ता है । तब यहाँ एक िज€ासा उठती है िक कु;डली म' तो
चं±ाधा‡रत न“Hq के आधार पर दशा-अ*तदFशा काल का िनधाFरण िकया जाता है िक*तु गृह िनमाFण
के समय दशा एवं अ*तदFशा के िनधाFरण का मापदंड =या है?
इसी Lp का उ9र बृह_ा"तुमालाकार देते ह†ए कहते ह‰ िक िजस ¢यि£ के वा"तु का िनमाFण
होना है अथाFत् जो उस वा"तु का "वामी है उसके नाम के आ?“र के आधार पर उसक• वगF क• िदक्
संgया €ात कर लेनी चािहए, िफ़र िजस नगर म' उसे वा"तु का िनमाFण करना है उस नगर नाम के
आ?“र के आधार पर उसक• भी वगF क• िदक् संgया €ात कर लेनी चािहए और िफर िदशा के अंक,
िजसका िक पवू F के िबदं ु म' भी उ`लेख िकया गया है उसके अक
ं का €ान करने के बाद इन तीनो ही
अंकq का योग करना चािहए । िफर योग को ९ से भाग देने पर जो शेष आए उस अंक के अनसु ार zम
से kहq क• दशा-अ*तदFशा आिद का िनधाFरण करना चािहए।
आइए, एक उदाहरण के माsयम से इसे समझने का Lयास करते ह‰ ।
मान लीिजए ‘जयपरु ’ म' ‘अिनमेष’ को ‘उ9र’ िदशा म' मकान बनाना है, तो ऐसे म' वा"त-ु
िनमाFण के समय िकस kह क• दशा चलेगी? यह Lp है ।
‘अिनमेष’ का आ?“र ‘अ’ है, िजसका वगF ‘अवगF’ होने के कारण उसक• िदक् सgं या – ८
‘जयपरु ’ का आ?“र ‘ज’ है, िजसका वगF ‘चवगF’ होने के कारण उसक• िदक् सgं या – ६
उ9र िदशा का अक
ं –३
८+६+३ = १७/९, शेष ८
शेष ८ होने के कारण के तु क• महादशा म' वा"तु-िनमाFण होगा, जो िक ७ वषF का होगा ।
इसी Lकार यिद दसू रा उदाहरण ल' जहां ‘निलनी’ को ‘लखनऊ’ म' ‘पूवF’ िदशा म' मकान बनाने या
खरीदने पर िवचार करना है ।
‘निलनी’ का आ?“र ‘न’ है, िजसका वगF ‘तवगF’ होने के कारण उसक• िदक् सgं या – ७

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 19


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
‘लखनऊ’ का आ?“र ‘ल’ है, िजसका वगF ‘लवगF’ होने के कारण उसक• िदक् सgं या – ३
‘पवू F’ िदशा का अंक – ८
७+३+८ = १८/९, शेष ०
शेष ० होने के कारण शुz क• महादशा म' वा"तु-िनमाFण होगा, जो िक २० वषF का होगा ।

बोध Kl
L.४ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं –
(क) ‘पवू F’ िदशा का अंक ७ है । () (ङ) (×)
(ख) ‘दि“ण’ िदशा का अंक ६ है । ()
(ग) ‘नैऋFrय’ का अंक ८ है। ()
(घ) ‘लवगF’ क• िदक् सgं या ३ है। ()
(ङ) शेष ८ होने पर गुÂ क• महादशा आर…भ होगी । ()
अsयास Kl
L.४ वेदाङ्ग›योितष म' विणFत यगु के स…वrसरq और उनके देवताओ ं के नाम िलख' ।
__________________________________________________________
__________________________________________________________
__________________________________________________________
__________________________________________________________

१.८ सारांश –
आठ वगœ के समहू के "वामी zमानसु ार गÂड़, िवडाल (िब`ला), िसहं , शनु क (कु9ा), उरग
(सांप), मषू क (चूहा), एण (िहरन), मेष (बकरा) कहे गए ह‰। ये सभी मेषािद zम से पवू ाFिद िदशाओ ं के
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 20
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
"वामी ह‰ । इन वगœ म' गणना म' zम से जो पांचवां है वही शHु है इसे िव_ानq के _ारा rया›य बताया
गया है । उदाहरण के तौर पर ‘गÂड़’ से पांचवां ‘सपF’ उस (गÂड़) का वैरी है । इसी Lकार, िवडाल
(िब`ले) से पाचं वां चहू ा, ‘िसहं ’ से पाचं वां ‘िहरन’ उसका वैरी है । अत: अपने पाचं व' वगF वाले "थान,
वगF, िदशा का rयाग करना चािहए । अकार इrयािद आठq वगF zम से पवू F, आÀनेय, दि“ण, वाय¢य,
पि¦म, नैऋrय, उ9र, ईशान इन ८ िदशाओ ं के "वामी ह‰। कािकणी-साधन के िलए अपने वगF को
दगु ुना करके , दसू रे के वगF से जोडे । िफर उसमे आठ का भाग देने पर जो शेष रहता है उसे ‘कािकणी’
कहते ह‰ । िजसक• कािकणी अिधक होती है, वह ऋणी (कजFदार) होता है । वा"त-ु िनमाFण-काल क•
दशा-अ*तदFशा िनधाFरण के िलए गृह"वामी के नाम (के आ?“र से LदिशFत वगF) का िदक् अङ्क
और परु के नाम (के आ?“र से LदिशFत वगF) का िदक् अङ्क एवं िदशा के
अङ्क के योग को ९ से भाग देने परशेष-तु`य kह क• दशा होती है ।

१.९ श†दावली –
िवडाल: = िब`ला
शनु क: = कु9ा
उरग: = सांप
मषू क: = चहू ा
एण: = िहरन
ताÎयF: = गÂड़
माजाFर: = िब`ला (या िब`ली) िसंह:
इभ: = हाथी
गृहपतेरिभधा = गृह-"वामी का नाम
अगु: = राह†
१.१० बोध KlŠ के उpर -
L.१ (क) (×) (ख) (√) (ग) (√) (घ) (×) (ङ) (×)

L.२ (क) (×) (ख) (√) (ग) (√) (घ) (×) (ङ) (×)
L.३ (क) ककते
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 21
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
(ख) दशक_यम्
(ग) परवग—ण
(घ) ऋणी
(ङ) िहरण

L.४ (क) (×) (ख) (√) (ग) (×) (घ) (√) (ङ) (×)

१.११ सqदभ3 }qथ सच


ू ी–
१. राम मनोहर ि_वेदी (२०१२) बृह_ा"तुमाला, चौख…बा सरु भारती k*थमाला, चौख…बा
सरु भारती Lकाशन, वाराणसी ।
२. कमलाका*त श=ु ल (१९९९), टोडरम`लिवरिचतं वा"तुसौgयं,
स…पणू ाFन*दस"ं कृ तिवÃिव?ालय:, वाराणसी ।
३. डा. मरु लीधर चतवु —दी (२००७), रामदीनिवरिचतं बृहNैव€रÍजनम्
Ùीधरीिह*दी¢याgयासिहतम,् मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी ।

१.१२ सहायक }qथ सच


ू ी–
१. डा. अशोक थापिलयाल (२०११), वा"तLु बोिधनी, भारतीय ›योितष, अमर k*थ
पिnलके श*स, िद`ली ।

१.१३ िनबqधाyमक Kl –
१. अकारािदवगÜ के "वामी और िदशा पर Lकाश डािलए ।
२. ‘हरीश’ और ‘कोलकाता’ क• कािकणी का साधन करके यह बताएँ िक इनम' से कौन ऋणी
रहेगा?
३. ‘च*±भागा’ यिद ‘चे*नई’ म' ‘ईशान’ िदशा म' वा"त-ु िनमाFण करे तो कौन से गृह क• दशा म' वा"तु
का िनमाFण आर…भ होगा?
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 22
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
इकाई - २ इ‡टाय एवं न•' िनधा3रण
इकाई क‹ Iपरेखा
२.१ L"तावना
२.२ उNे>य
२.३ आय के Lकार एवं िदशा
२.३.१ टोडरान*द का मत
२.४ आय का साधन
२.४.१ टोडरानदं का मत
२.४.२ रामाचायF का मत
२.५ आय का "व[प
२.५.१ बृह_ा"तुमाला के अनुसार
२.६ वणF के आधार पर आय-िवचार
२.६.१ बृह_ा"तुमाला के अनुसार
२.७ रािश के आधार पर आय-िवचार
२.८ आय का फल
२.८.१ टोडरान*द का मत
२.८.२ बृह_ा"तुमाला के अनुसार
२.९ आय के आधार पर वा"तु का िनधाFरण
२.९.१ विसˆ का मत
२.९.२ Òयवन का मत
२.१० इ•ाय-इ•न“H-िनधाFरण
२.१०.१ विसˆ का मत
२.११ सारांश
२.१२ शnदावली
२.१३ बोध Lpq के उ9र
२.१४ स*दभF k*थ सचू ी
२.१५ सहायक k*थ सचू ी
२.१६ िनब*धाrमक Lp
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 23
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
२.१ K#तावना –
िLय अsयेताओ!ं वा"तु-शाv िडwलोमा पाठ्यzम के चतुथF पH के ि_तीय ख;ड म' आपका
"वागत है । इस ख;ड म' हम भारतीय-वा"त-ु शाv के मल ू िस~ा*तq म' से दो – ‘इ• आय’ और ‘इ•
न“H’ पर िव"तार से चचाF कर' गे । जैसा िक म‰ने िपछले पाठ म' यह बात कही थी िक िकसी भी Lकार
के वा"तु के िनमाFण म' कुछ आधारभतू बात' sयान म' रखनी होती ह‰, िजन पर अनेकq वा"त-ु शाvीय
िनयम और िस~ा*त बड़ी ही Œढ़ता से िटके ह‰ । ऐसे ही कुछ आधारभूत तUवq म' Lमुख ह‰ ‘इ•ाय-
साधन’ और ‘इ•-न“H-िनधाFरण’ । आय और न“H के आधार पर गृह के िप;ड का साधन िकया
जाता है। इसके साथ ही ¢यय, अश ं , आय,ु Ýवु ािद गृहq के Lकार इrयािद अनेकq िवचार आय और
न“H के िनधाFरण पर ही िटके ह‰।
Lथम ख;ड क• इस ि_तीय इकाई म' वा"तु के मूल तUवq म' से एक ‘आय’ का िवचार िकया
जाएगा । आय का िवचार कै से करते ह‰? इसके िकतने Lकार ह‰? इसके आधार पर जाित-कारकrव,
रािश के आधार पर शुभाशुभrव आिद का €ान िकस Lकार िकया जाता है इन सभी िवषयq का
िव"तारपवू क
F अsययन आप इस इकाई म' कर' गे, िजससे िक भारतीय-वा"तश ु ाv म' ‘आय-िवचार’ के
"व[प, Lयोजन और महUव को "प• [प से रे खांिकत कर सकने म' आपको मदद िमलेगी। इसके
अलावा इस इकाई म' इ•-न“H पर भी चचाF क• जाएगी ।
२.२ उNेPय –
L"तुत इकाई के अsययन के बाद आप –
· आयq के Lकारq का नामो`लेख कर सकने म' समथF हो सक' गे ।
· आय के शभु ाशभु rव के "व[प को समझ सकने म' कुशल हो सक' गे ।
· जाितयq व आय के स…ब*ध को Lकट करने म' समथF हो सक' गे ।
· रािश-िवशेष म' आय-िवशेष लाभदायक है या नह„ इसका िनधाFरण कर सकने म' कुशल हो
सक' गे ।
· इ•-न“H के िनधाFरण म' िनपणु हो सक' गे ।
२.३ आय के Kकार एवं िदशा -
िमHq! जहां तक Lp ‘आय’ का है, यह भी वा"त-ु शाv का अित महUवपणू F तUव है ।
‘शnदक`प±ुम’ के अनसु ार ‘आय’ शnद का अथF है - धनागम, Lाि° और लाभ । िक*तु ये सभी

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 24


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
अथF अपने पणू F "व[प म' वा"तश
ु ाvीय-आय क• अवधारणा को अिभ¢य£ नह„ करते ह‰। इसका
कारण यह है िक sवां“ इrयािद सभी आय लाभLद नह„ होते ह‰। अब Lp यह है क• कौन-कौन से
आय लाभLद और कौन से हािनLद होते ह‰? यह कै से िनधाF‡रत होता है िक अमक
ु आय लाभLद या
हािनLद होता है? और सबसे महUवपणू F क• आय िकतने Lकार का होता है?
तो आइए, सबसे पहले आय के भेद पर टोडरान*द जी के मत को जानते ह‰ ।
२.३.१ टोडरानqद का मत -
टोडरान*द ने आय का साधन करने के साथ-साथ इसके भेद का नामो`लेख भी िकया है।
उनके अनसु ार,

................................”•वजा“ा#ते #यरु [धा।।


•वजो ध•ू ो हdरiागौ: खरेभौ वायसोऽ[म: ।
पूवा3िदिद•ु चा[ानां •वजादीनामवि#थित: ।।
LितपदाथF – ते sवजा?ा: अ•धा "य:ु = वे sवजािद आय संgया म' ८ ह‰ । sवजो ध¯ू ो ह‡रÃागौ: खरे भौ
वायसोऽ•म: = १. sवज, २. ध¯ू , ३. ह‡र: अथाFत् िसहं , ४. Ãा अथाFत् कु9ा, ५. गौ: अथाFत् गाय, ६.
खर: अथाFत् गधा, ७. इभ: अथाFत् हाथी, ८. वायस: अथाFत् कौआ ।
च = और (इन आयq के भेद के साथ-साथ), sवजादीनाम् अ•ानां = sवज आिद इन आठ
आयq क•, पवू ाFिदिद“ु = पवू F इrयािद िदशाओ ं म', अवि"थित: = ि"थित (होती है) ।

•वजािद आयŠ के भेद और उनक‹ िदशाएं


आय sवज ध¯ू ह‡र (िसंह) Ãान गौ खर इभ वायस
(गधा) (हाथी) (कौआ)
िदशा पवू F आÀनेय दि“ण नैऋrय पि¦म वाय¢य उ9र ईशान

२.४ आय का साधन
िमHq! कौन सा आय लाभLद है और कौन सा नह„, इस िवषय पर िवचार करने के पवू F पहले
यह जान लेना उिचत होगा िक िनमाFण िकए जाने वाले वा"तु का आय sवज है, ध¯ू है, sवा“
ं है या
कुछ और? तब Lp यह है िक वा"तु के आय के भेद-िवशेष को कै से जान'?
व"तुत: वा"त-ु शाvीय kंथq म' ‘आय’ के साधन को लेकर कुछ Þम क• ि"थित Lतीत होती

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 25


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
है । आचायF टोडर वा"तु के “ेHफल के आधार पर आय का साधन करने का सूH रखते ह‰ । आय के
आधार पर िप;ड का साधन बताया गया है । और िप;ड के €ान के आधार पर आय के €ान क• बात
क• गयी है । LथमŒ•या यहां Þमाrमक ि"थित Lतीत होती है िक*त,ु ऐसा है नह„ =यqिक आय और
िप;ड का अ*यो*याÙयrव व"तुत: गिणत क• श~ ु ता को परखने क• एक Lिzया-माH है । यह कुछ
उसी Lकार है जैसे भाग क• Lिzया म' भागफल और भाजक म' पर"पर गुणा करके शेष जोड़ने पर यह
यिद भा›य के तु`य हो जाता है तो भाग-Lिzया श~ ु मानी जाती है । ठीक इसी Lकार ‘आय’ के
साधन म' ‘िप;ड’ का उपयोग करने पर जो ‘आय’ आता है यिद उसी ‘आय’ के आधार पर ‘िपंड’ का
साधन करने पर वही ‘िप;ड’ आए जो आय के साधन म' Lयोग म' लाया गया, तो ‘आय’ और ‘िप;ड’
इन दोनq के साधन क• Lिzया दोषरिहत मानी जानी चािहए ।
तब ऐसे म' Lp उठता है, िक दोनq के अ*यो*याÙयrव क• ि"थित म' पहले िकसका साधन
िकया जाए? और वो भी कै से? ऐसे म' दो बात' sयान म' रखनी होगी । पहली यह िक ‘आय’ के साधन
के पवू F अभी• आय का िनधाFरण िकया जाता है, िजसका आधार अलग-अलग वा"तु के िलए िनधाF‡रत
िकए गए अलग-अलग आय का िस~ातं है । उदाहरण के तौर पर, सभी Lकार के वा"तु के िलए
‘sवज’ आय अनक ु ू ल होता है । आसनािद के िनमाFण के िलए ‘िसंह’ आय िनधाF‡रत िकया गया है ।
इससे िजस वा"तु का िनमाFण करना अभी• हो उसके िलए िनधाF‡रत आय ही ‘इ•-आय’ कहलाता है
। दसू री बात यह है िक, इ• आय का एक बार िनधाFरण करने के बाद उसी के अनक ु ू ल ‘िप;ड’ का
साधन करना चािहए । और ‘िप;ड’ के साधन के अन[ ु प वा"तु का “ेHफल भी रखना चािहए तािक
“ेHफल के आधार पर पूवF-िनधाF‡रत अभी•-आय ही Lा° हो। और इसी Lकार “ेHफल के आधार पर
‘आय-साधन’ को टोडरान*द जी ने िन[िपत िकया है ।

२.४.१ टोडरानqद का मत
ऊपर के Äोक म' जहां टोडरान*द जी ने आयq के Lकार बताए ह‰ उसी Äोक के
आर…भ म' उनके साधन क• भी बात आचायF ने कही है ।
िव#तारेण हतं दै@यx िवभजेद[िभ#तत: ।
य˜छे षं स भवेदायो •वजा“ा#ते #युर[धा ।।
Kितपदाथ3 – िव"तारे ण हतं दै•यÖ = िजस वा"तु के आय का साधन करना हो उसके िव"तार
अथाFत् चौड़ाई को दै•यF अथाFत् ल…बाई से गणु ा करके , तत: अ•िभ: िवभजेत् = उस गुणनफल को ८
से भाग देने पर, यÒछे षं = जो शेष बचे उसके अनसु ार, स आयो भवेत् = वही आय

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 26


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
होवे । ते sवजा?ा अ•धा "य:ु = वे sवजािद आय ८ ह‰ ।
अब यहां ये समझना होगा िक वा"तु के अन[ ु प ही आय का िनधाFरण करना चािहए । एक
बार आय तय हो जाने पर िफर उसी के अनसु ार वा"तु क• ल…बाई-चौड़ाई भी ऐसी रख' िक शेष के [प
म' पवू F-िनधाF‡रत आय Lा° होवे ।
उदाहरण
माना िकसी आयताकार वा"तु क• ल…बाई २५ हाथ और चौड़ाई २१ हाथ है ।
टोडरानंद के मतानसु ार इस वा"तु का आय जानने के िलए -
ल…बाई २५ × चौड़ाई २१ = ५२५
५२५/८ = लिnध: ६५, शेषं ५ अत: शेष के अनुसार इस वा"तु क• ‘गौ’ आय होगी

२.४.२ रामाचाय3 का मत
‘महु d9िF च*तामिण’ k*थ के रचियता रामाचायF जी ने आय, ¢यय, वार, ±¢य इrयािद
के साधन
को "प• करने के zम म' अधोिलिखत Äोक म' ‘आय’ के साधन को भी िन[िपत िकया है । अत:
स…पणू F Äोक का LितपदाथF न करते ह†ए यहाँ के वल आय-स…ब*धी अंश का ही शnदाथF िकया जा रहा
है। सपं णू F Äोक का अथF Lसंगवशात बाद म' िकया जाएगा।
िप0डे नवा................................ग3ुिणते aमेण ।
िवभािजते नाग.........................v ।। आयो.......... ।
Kितपदाथ3 – िप;डे = िजस वा"तु का िनमाFण िकया जाना है, उसके िप;ड को, zमेण = zम
से (चिंू क अ*य वारािदयq के भी साधन का उ`लेख इसी एक Äोक म' िकया है, िजसके आिद म'
‘आय’ के साधन का िवचार िकया गया है, उसके zम म') नव गुिणते = ९ से गिु णत करके , च = और
(गुणा करने के बाद) िवभािजते नाग = नाग अथाFत् ८ से भाग देने पर, (उस वा"तु का) आय: = ‘आय’
िनधाF‡रत िकया जा सकता है।
अब Lp यह है िक यह ‘िप;ड’ =या बला है?
व"तुत: इ• आय और इ• न“H के आधार पर िप;ड का साधन िकया जाता है । िप;ड-साधन
क• अनेकq िविधयां वा"त-ु शाvीय kथं q म' अलग-अलग आचायœ क• िमलाती ह‰ । िप;ड-साधन के
िवषय म' अगले अsयाय म' िव"तार से चचाF क• जाएगी। यहां उदाहरण के िलए एक ‘िप;ड-मान’ क•
क`पना कर ली जाती है।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 27


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
उदाहरण
माना ‘िप;ड’ २१० है । २१०× ९ = १८९०
१८९०/८ = लिnध: २३६, शेषं २, अत: शेष के अनसु ार वा"तु क• आय ‘धमू ’ है।
बोध Kl
L.१ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं

(ट) ‘आय’ के ९ भेद ह‰ ()
(ठ) ‘िसहं ’ आय क• िदशा दि“ण है ()
(ड) ‘खर’ आय क• अनक ु ू ल िदशा पवू F है ()
(ढ) आय-साधन हेतु ल…बाई और चौड़ाई के गणु नफल को ८ से भाग देना चािहए ()
(ण) शेष ४ हो तो ‘Ãान’ आय होगा ()
अÐयास Lp
L.१ कि`पत ‘िप;डमान’ के आधार पर आय का साधन कर' ।
__________________________________________________________
__________________________________________________________
_________________________________________________________
__________________________________________________________

२.५ आय का #वIप
Lrयेक आय का अपना एक "व[प है जो िक वा"तु एवं फल क• Œि• से अrय*त महUवपणू F
है । िजस आय का जैसा नाम वैसा ही उसका "व[प समझना चािहए । "व[प या Lकृ ित के आधार
पर नामकरण क• यह पर…परा सनातन सं"कृ ित म' आिदकाल से ही चली आ रही है । भगवान् ‘हनमु ान’
का नाम उनके हनु के "व[प के कारण ही िमला । इसी Lकार भगवान् गणेश का ‘एकद*त’ यह नाम
या िफ़र उनके िपता महादेव का ‘नीलकंठ’ यह नाम उनके अपने-अपने "व[प के कारण ही पड़ा है ।
आय के "व[प पर िवचार ‘बृह_ा"तुमाला’ k*थ म' िमलता है ।
२.५.१ बृहYा#तुमाला के अनुसार
k*थकार ने इन आयq के "व[प पर Lकाश डाला है जो िक अrय*त ही िविचH एवं रह"याrमक है।
k*थानसु ार –

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 28


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
•वां•: िशिfपतपि#वनां िहतकर#तेषां मुखं नामवद्,
•वां•: काकमुखो िवडालवदनो धूमो •वजो मानुष: ।
सवg पि•पदा हरेdरव गला ह#ता नर#येव तत,्
Kितपदाथ3: -
sवां“: िशि`पतपि"वनां िहतकर: = िश`पकारq और तपि"वयq के िलए ‘sवां“’ आय
लाभLद होता है । तेषां मख
ु ं नामवद् = इन sवां“ आिद आयq का मख ु उनके नाम के अन[
ु प होता है
। sवां“: काकमुखो = ‘sवां“’ आय का मख ु कौवे के समान, िवडालवदनो धूमो = ‘धूम’ का मुख
िब`ले के समान होता है। sवजो मानषु : = ‘sवज’ आय का मुख मन²ु य के सामान होता है । शेष सभी
आयq यथा ‘िसंह’, ‘गौ’, ‘Ãान’ आिद का मख ु उनके नाम के अनु[प ही होता है । सव— पि“पदा =
िक*तु इन सभी आयq के पैर प“ी के पैर के समान होते ह‰ । और हरे ‡रव गला = इन सभी आयq के धड़
‘िसंह’ के धड़ के समान होता है । तथा तत् = उन सभी आयq के , ह"ता नर"येव = हाथ मन²ु य के हाथq
के समान समझना चािहए।

आय-#वIप-बोधक-साdरणी
आय sवज धमू िसहं Ãान गौ गधा गज sवां“
मखु मन²ु य िवडा िसंह कु9ा गाय गधा हाथी कौआ

धड़ िसंह िसंह िसहं िसहं िसहं िसंह िसंह िसहं
पैर प“ी प“ी प“ी प“ी प“ी प“ी प“ी प“ी

बोध Kl
L.२ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं

(क) ‘ध¯ू ’ का मख
ु िवडाल के समान है () (√) (×) (√) (×) (√)
(ख)‘िसहं ’ आय का पैर िसहं के समान है ()
(ग) ‘sवज’ आय का धड़ िसहं के समान है ()
(घ) ‘खर’ आय का पैर प“ी के समान नह„ है ()
(ङ) ‘sवां“’ आय का पैर प“ी के समान है ()
अÐयास Lp
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 29
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
L.२ िविवध आयq के "व[प के िवषय म' िलख' ।
__________________________________________________________
__________________________________________________________
__________________________________________________________

२.६ वण3 के आधार पर आय-िवचार


िLय अsयेताओ!ं आयq के िनधाFरण के कई सारे आधार वा"तु के kंथq म' िमलते ह‰, िजनम'
एक Lमखु आधार है ‘वणF’ के आधार पर ‘आय-िवचार’ । अथाFत् कौन सा आय िकस वणF के िलए
सवाFिधक उपय£ु है इस िवषय पर अपने िवचार बृह_ा"तुमालाकार ने िकया है ।
२.६.१ बृहYा#तुमाला के अनुसार
अ}जानां •वजाय: #यात् •वजकुcजरगोमृगा: ।
•'#य •वजिसहं ेभा वैPय#य शभ ु दा: #मतृ ा: ।।
•वजो मृगािद: शू„ाणां सवgषां वृषभ: शुभ: ।
हीनजाते: समा देया:.... ।।

Kितपदाथ3: -
अkजानां = ßाàणq का, sवजाय: = आय ‘sवज’, "यात् = हो । “H"य = “िHय वणF का
(आय), sवजकुÍजरगोमृगा: = sवज, हाथी, गौ या मृग (यहां ‘मृग’ से ‘खर’ आय का kहण िकया
गया है), वै>य"य = वै>य वणF का, sवजिसंहभे ा = sवज, िसहं या गज आय म' से कोई एक, शभु दा: =
शभु फल देने वाला हो । श±ू ाणां = श±ू वणF के िलए, sवजो मृगािद: = sवज आय एवं मृग (‘खर’
आय के िलए Lय£ ु ), हाथी और कौआ इन आयq का भी Lयोग शभु फल देने वाला है । सव—षां =
सभी वणœ का (के िलए), वृषभ: शभु : = गो या वृष आय शभु फल देने वाला हो । हीनजाते: = इन
चारq के अित‡र£ मन²ु यq के िलए, समा देया: = सम सgं या वाला आय शुभ फल देने वाला हो ।
इस Lकार यिद sयान से िवचार कर' तो sवज आय सभी के िलए लाभLद माना गया है । एवं
गज आय ßाàण को छोड़कर शेष सभी वणœ के िलए शभु है । ‘मृग’ इस शnद से यहां ‘खर’ आय का
kहण करना चािहए । वै>य और श±ू इन दोनq ही वणœ के िलए खर और sवां“ (कौआ) दोनq ही आय
शभु फल देने वाले ह‰ ।
२.७ रािश के आधार पर आय-िवचार
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 30
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
िLय अsयेता! के वल वणF के आधार पर ही नह„ अिपत,ु वा"तुिवदq ने रािशयq के आधार पर
भी आय का िनधाFरण िकया है । वा"तुशाvीय-िस~ा*त के अनसु ार, अलग-अलग रािशयq के िलए
अलग-अलग आय शभु फल देने वाले होते ह‰ । तो िकस रािश के िलए कौन सा आय शभु है और
कौन सा नह„? आइए, इस िवषय पर k*थकार के मत को जानते ह‰ ।
२.७.१ बृहYा#तुमाला के अनुसार
कक3 वृिvकमीनानां •वजाय: शुभदो मत: ।
वृषभाय: शुभ: Kोšो मेषिसहं धनुभ3ृताम् ।।
तुलािमथुनकु‚भानां गजायो वािcछतKद: ।
वृषकqयामृगाणाcच िसंहाय: शुभदो भवेत् ।।

Kितपदाथ3: -
ककF वृि¦कमीनानां = ककF , वृि¦क और मीन रािश वालq का (के िलए), sवजाय: = ‘sवज’
आय, शभु दो मत: = शभु फल देने वाला कहा गया है । मेषिसहं धनभु Fतृ ाम् = मेष, िसहं और धनषु
धारण करने वाले अथाFत् धनु रािश वालq का (के िलए), वृषभाय: = ‘वृषभ’ अथाFत् ‘गौ’ आय, शभु :
Lो£: = शभु फल देने वाला कहा गया है । तुलािमथुनकु…भानां = तुला, िमथुन और कु…भ रािश वालq
का (के िलए), गजायो = गज आय, वािÍछतLद: = इिÒछत फल देने वाला होता है । च = और,
वृषक*यामृगाणाम् = वृष, क*या और मृग अथाFत् मकर रािश वालq का (के िलए), िसंहाय: शभु दो
भवेत् = िसंह आय शभु फल देने वाला होता है ।
यिद आप sयान से देख' और आपको ›योितष के साधारण िनयमq का भी €ान हो तो आप
यह आसानी से समझ सकते ह‰ िक ऊपर कहे गए Äोक म' भी एक िनि¦त Lितमान (Pattern) िदखाई
पड़ता है । व"तुत: ककF , वृि¦क और मीन इन रािशयq का ßाàण वणF होता है । अत: िजन जातकq
क• उ£ ßाàण रािश हो उनके िलए ‘sवज’ सं€क आय शभु फल देने वाला होता है । इसी Lकार
मेष, िसहं और धनु इन तीनq रािशयq का “िHय वणF है, िजनके िलए गौ (वृष) आय शभु फल देने
वाला है । वृष, क*या और मकर रािशयां वै>य वणF वाली होने के कारण ‘िसंह’ आय वाली ह‰ । तथा
िमथुन, तुला और कु…भ ये तीनq ही श±ू वणF वाली रािशयां ह‰, िजनके िलए ‘गज’ आय शुभ फल देने
वाला होता है ।

रािश-आधाdरत-शुभ-आय-बोधक-साdरणी

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 31


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
रािश मेष, िसंह, धनु वृष, क*या, मकर िमथनु , ु ा, ककF , वृि¦क,
तल
कु…भ मीन
वणF “िHय वै>य श±ू ßाàण
शभु आय sवज गौ िसंह गज

बोध Kl
L.३ िन…निलिखत Lpq के उ9र द' –
(च) ____________ sवजाय: "यात् ।
(छ) सव—षां ____________ शभु : ।
(ज) ककF वृि¦कमीनानां _____________ शुभदो मत: ।
(झ) ___________ शुभ: Lो£ो मेषिसंहधनुभFतृ ाम् ।
(ञ) वृषक*यामृगाणाÍच ________ शभु दो भवेत् ।
अÐयास Lp
L.३ रािश के आधार पर आय के शभु ाशुभ का िनधाFरण कर' ।
____________________________________________________
____________________________________________________
____________________________________________________
____________________________________________________

२.८ आय का फल
िLय िमH! य?िप वणF एवं रािश के आधार पर आय क• शभु ता का वणFन जो पवू F म' िकया
गया है उसे भी आय के फल के [प म' समझ सकते ह‰, तथािप वा"तु के kंथq म' इन आयq के फलq
का िव"तारपवू क
F वणFन हम' Lा° होता है । इनम' टोडरान*द इrयािद आचायœ के मत Lमुख ह‰ । आइए,
इन आचायœ के मतq के आलोक म' आय के फल के िवषय म' िव"तार से जानने का Lयास करते ह‰ ।
२.८.१ टोडरानqद का मत –
टोडरान*द ने सभी आयq का एक ही Äोक म' फल बताया है, जो िक िवषय क• Œि• से
सामा*य-"तर का कहा जा सकता है, जबिक कुछ आचायœ म' िव"तारपवू क F अलग-अलग आयq के
फल बताए ह‰। टोडरान*द के अनसु ार,
क‹ित3: शोको जयो वैरं धनं िनध3नता सुखम् ।
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 32
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
रोगvेित गृहार‚भे •वजादीनां फलं aमात।् ।
गृहार…भ के समय, यिद ये sवज आिद आय ह‰ तो जो फल बताया गया है उसे नीचे LदिशFत
सा‡रणी के _ारा समझा जा सकता है ।
•वजािद आयŠ के फल क‹ बोधक-तािलका
आय sवज धमू िसंह Ãान गाय खर (मृग) गज कौआ
फल क•ितF शोक जय वैर धन िनधFनता सखु रोग

२.८.२ बृहYा#तुमाला के अनुसार –


•वजे बह›धनं Kोšं ध•ू े चैव œमो भवेत् ।
िसहं े च िवरला लhमी iाने च कलहो भवेत् ।।
धनं धाqयं वृषे चैव खरे षु •ीिवनाशनम् ।
गजाrये प'ु लाभv •वां•े सव3' शूqयता ।।
#व#व#थाने •वजः Ÿे ो गज: िसहं #तथा वषृ : ।
•वज: सव3गतो देयो वृषं नाqय' दापयेत् ।।
Kितपदाथ3: -
sवजे बह†धनं Lो£ं = (वा"तु का) sवज आय होने पर अrयिधक माHा म' धन Lा° होता है
ऐसा कहा गया है, धू¯े चैव Þमो भवेत् = और ध¯ू आय होने पर Þम या संशय क• ि"थित बनती है ।
िसंहे च िवरला लÎमी = िसंह आय होने पर धनागम क• कमी हो जाती है, Ãाने च कलहो भवेत् =
Ãान आय होने पर पर"पर कलह या झगड़े क• ि"थित बनती है । धनं धा*यं वृषे चैव = और वृष नामक
आय म' धन और धा*य के आगम या वृि~ का फल Lा° होता है, खरे षु vीिवनाशनम् = ‘खर’ आय
होने पर vी का िवनाश होता है । च = और, गजाgये पHु लाभ: = गज-सं€क आय होने पर पुH का
लाभ होता है, sवां“े सवFH श*ू यता = ‘sवां“’ आय होने पर सब Lकार से श*ू यता या खालीपन रहता
है । "व"व"थाने Ùेˆो = जो-जो आय जहां-जहां पर अथाFत् िजस वा"तु म' अनक ु ू ल माना गया है वह
आय उस वा"तु के िलए Ùेˆ माना जाना चािहए, (िफर भी) sवजः गज: िसंह"तथा वृष: Ùेˆ: = sवज,
गज, िसंह और वृष (गो) आय Ùेˆ माने जाने चािहए । sवज: सवFगतो देयो = ‘sवज’ आय सभी वा"तु
के िलए Lश"त माना गया है, वृषं ना*यH दापयेत् = ‘वृष’ आय जहां अथाFत् िजस वा"तु के िलए शभु
माना गया है उससे अ*यH वृष आय का उपयोग नह„ करना चािहए।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 33


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
२.९ आय के आधार पर वा#तु का िनधा3रण
यिद आय के शभु और अशभु फल पर िवचार कर' तो इससे िनिहताथF यह िनकलता है िक
Lrयेक आय Lrयेक वा"तु के िलए नह„ है । यानी दसू रे शnदq म' कह', तो Lrयेक वा"तु के िनमाFण के
पवू F यह तय कर लेना आव>यक है िक इस वा"तु के िलए आय-िवशेष उिचत या अनक ु ू ल है या नह„
। इस िवषय पर वा"तश ु ािvयq ने Lकाश डाला है, िजनम' से, पाठ-िव"तार के भय से आचायF Ùी विसˆ
जी एवं आचायF Òयवन जी के मत को यहाँ उप"थािपत िकया जाता है ।
२.९.१ विस का मत
आचायF विसˆ ने Lrयेक आय के अनसु ार वा"तु का िनधाFरण करते ह†ए कहा है -
गजाये वा •वजाये वा गजानां सदनं शुभम् ।
अiालयं •वजाये च खराये वृषभेऽिप वा ।।
उ‡¡ाणां मिqदरं कायx गजाये च वृषे •वजे ।
पशु-स¢-वषृ ाये च •वजाये वा शभ ु Kदम् ।।
श£यासु वृषभ: श#त: पीठे िसंह: शुभKद: ।
उšानाम,यनš ु ानां मिqदराणां •वज: शुभ: ।।
Kितपदाथ3 –
गजाये वा sवजाये वा = ‘गज’ अथवा ‘sवज’ आय म', गजानां सदनं = हि"त-शाला अथाFत्
हािथयq का िनवास-"थान, शभु म् = शभु होता है । अÃालयं = अÃशाला अथाFत् घोड़q का अ"तबल,
sवजाये च खराये वृषभेऽिप वा = sवज, खर अथवा वृष (गो) आय म' (शभु फल देता है) । उ²âाणां
मि*दरं कायÖ = ऊंटq के रहने का "थान, गजाये च वृषे sवजे = गज, वृषा या sवज आय म' शुभ होता है
। पश-ु सã = पशओ ु ं अथाFत् सभी Lकार के पशु जहां रह' (जैसे िचिड़याघर इrयािद), वृषाये च sवजाये
वा = वृष अथवा sवज आय म', शभु Lदम् = शभु फल देता है । शäयासु = शäया (पलंग) का िनमाFण,
वृषभ: श"त: = वृष आय म' Lश"त होता है, पीठे = पीिठका अथाFत् मेज, कुस¾, टेबल आिद के िनमाFण
म', िसंह: शभु Lद: = िसंह आय शभु फल देता है । उ£ानामwयन£ ु ानां मि*दराणां = इसके अित‡र£
जो घर (िनवास-"थान या वा"तु) इस Äोक म' अLrय“ [प से कहे गए ह‰ या नह„ कहे गए ह‰ उन
सबके िनमाFण के िलए, sवज: शभु : = ‘sवज’ आय शभु फल देने वाला होता है ।
२.९.२ ˜यवन का मत -
वृषं िसंहं गजं द“ात् Kासादे पुरमिqदरे ।।
व•ेषु धम3शालायां कु‚भ#त‚भे •वजे •वज: ।
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 34
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
गोगजो भूगृहे देय: साधारणतृणौकिस ।।
मq'े श•े रथे िसंहो भा0डागारे शुभो गज: ।
धाqया‚बु#थानगोiेभशालायां वषृ भ: शभ ु : ।।
Kितपदाथ3 –
Lासादे परु मि*दरे = महलq, नगरq और मि*दरq के िनमाFण म' वृष, िसंह और गज आय
का Lयोग िकया जाना चािहए । वvेषु धमFशालायां कु…भ"त…भे sवजे = वvq, धमFशाला, घड़े, खभं q
और sवजq के िनमाFण म' sवज आय का Lयोग करना चािहए । भूगहृ े = भूिम और गृह के िनमाFण म',
गोगजो देय: = गौ और गज आय का उपयोग होना चािहए । साधारणतृणौकिस म*Hे शvे रथे =
साधारण अ*नागार के िनमाFण म', मनन अथाFत् िच*तन, sयान आिद के Lयोग हेतु बनाए जाने वाले घर
के िनमाFण म', िसहं : = िसहं आय का उपयोग करना चािहए । भा;डागारे = भाडं ार-गृह (Store-room)
के िनमाFण म', शभु ो गज: = गज आय शभु फल देने वाला होता है । धा*या…बु"थानगोÃेभशालायां =
धा*यागार (धान रखने का "थान), अ…बु"थान अथाFत् जल रखने का "थान जैसे जलाशय, टंक•
इrयािद, गोशाला, अÃशाला और हि"तशाला के िनमाFण म', वृषभ: शभु : = वृष आय शभु फल देने
वाला है ।

२.१० इ[ाय-इ[न•'िनधा3रण
िLय अsयेता! इ• आय और इ• न“H कोई अलग व"तु नह„ है । व"तुत: आप िजस Lकार
के वा"तु का िनमाFण करना चाहते ह‰, उसके अनसु ार आप "वयं जब ‘आय’ का अथवा ‘न“H’ का
िनधाFरण करते ह‰ उसे ही इ•-आय और इ•-न“H कहते ह‰ । जैसे मान लीिजए िक मुझे भांडार-गृह का
िनमाFण करना है तो उसके िलए इ• आय ‘गज’ होगा, =यंिू क गज आय ही इसके िलए शुभ होता है ।
ठीक इसी Lकार जो न“H, न“H-मेलापक के अनसु ार, आपके ज*म-न“H के अनक ु ू ल है वही ‘इ•-
न“H’ कहलाता है ।
२.१०.१ विस का मत
इ•-न“H के िनधाFरण म' विसˆ जी के न“H-मेलापक स…ब*धी मत को सदैव sयान रखना चािहए –
गहृ ेश-गहृ योभ¥¦यं मिृ त##यािqनयमेन तु ।
गृहेश#य वदेिqनyयं विस ो मुिनर§वीत् ।।
Kितपदाथ3 –

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 35


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
गृहश
े -गृहयोभæ=यं = गृहशे अथाFत् घर का जो "वामी है (यहां घर शnद से सभी Lकार
के वा"तु क kहन करना चािहए) और घर के न“Hो का एकrव हो जाता है अथाFत् दोनq के ही न“H
एक ही होते ह‰ तो, तु = तो, िनयमेन = वा"तश ु ाvीय-िनयमानसु ार, गृहशे "य = गृहपित क•, मृित""यात्
= मृrयु हो जाए, ऐसा, िनrयं वदेत् = िनrय ही अथाFत् िन"संकोचपूवक F ›योितषी या वा"तुव9े ा कहे,
विसˆो मिु नरßवीत् = ऐसा विसˆ मिु न ने कहा है ।
उदाहरण के िलए यिद गृह"वामी और गृह दोनq का ही न“H ‘अिÃनी’ हो तो ऐसे म' अशुभ
फल िमलने क• संभावना बढ़ जाती है ।
बोध Kl
L. ४ िन…निलिखत Lpq के उ9र द' –
(क) धनं ____________ सख ु म् ।
(ख) ध¯ू े चैव ____________भवेत् ।
(ग) _____________ vीिवनाशनम् ।
(घ) शäयासु वृषभ: श"त: __________ िसहं : शभु Lद: ।
(ङ) गृहश े -गृहयोभæ=यं __________"यान् िनयमेन तु ।
अÐयास Lp
L.४ Òयवन के मत म' आय के आधार पर वा"तु के शभु ाशभु का िनधाFरण कर' ।
___________________________________________________
____________________________________________________
____________________________________________________
____________________________________________________

२.११ सारांश –
sवज, ध¯ू , िसंह, Ãान, गौ, गधा, हाथी, और कौआ इन आठ आयq क• zमश: पवू F इrयािद
िदशाओ ं म', ि"थित होती है । टोडरान*द जी ने ल…बाई और चौड़ाई के आधार पर आय-साधन के
तरीके को बताते ह†ए कहा िक िजस वा"तु के आय का साधन करना हो उसक• ल…बाई और चौड़ाई
का पर"पर गुणा करके गणु नफल म' ८ से भाग देने पर जो शेष बचे उसके अनसु ार, वा"तु के sवजािद
आय ८ िनकलते ह‰ । रामाचायF ने िप;ड के आधार पर आय-साधन का सHू बताते ह†ए कहा िक िजस
वा"तु का िनमाFण िकया जाना है, उसके िप;ड को ९ से गिु णत ८ से भाग देने पर, (उस वा"तु का)

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 36


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
आय: = ‘आय’ िनधाF‡रत िकया जा सकता है । sवां“ आिद पश-ु प“ी-सं€क आयq का मुख उनके
नाम के अन[ ु प तथा शेष का मखु मन²ु य के अन[
ु प होता है । िक*तु इन सभी आयq के पैर, प“ी के
पैर के समान तथा धड़ ‘िसहं ’ के समान तथा हाथ, मनु²य के हाथq के समान समझने चािहए। जातक
एवं उसक• रािश के वणF के आधार पर आयq का शभु ाशुभफल जानना चािहए । गृहार…भ के समय,
यिद ये sवज आिद आय ह‰ तो उनका फल zमश: क•ितF, शोक, जय, वैर, धन, िनधFनता, सख ु एवं रोग
है । ‘गज’ अथवा ‘sवज’ आय म', हािथयq का िनवास-"थान शभु होता है । घोड़q का अ"तबल, sवज,
खर अथवा वृष (गो) आय म' शभु फल देता है । इसी Lकार अ*यH भी समझना चािहए ।
२.१२ श†दावली –
ह‡र: = िसंह
Ãा = कु9ा
खर: = गधा
इभ: = हाथी
वायस: = sवां“ = कौआ
उरग: = सांप
िव"तारे ण = चौड़ाई से
हतं = गुणा िकया
दै•यFम् = ल…बाई (को)
नाग: = ८
िवडालवदन: = िब`ले के मुख के समान मख ु वाला
हरे ‡रव = िसंह के समान
कुÍजर: = हाथी
धनुभFतृ ाम् = धनुष धारण करने वालq का
Lासादे = महल म'
तृणौकिस = तृण (भूंसा आिद) रखने वाले घर म'

२.१३ बोध KlŠ के उpर -


L.१ (क) (×) (ख) (√) (ग) (×) (घ) (√) (ङ) (√)

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 37


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
L.२ (क) (√) (ख) (×) (ग) (√) (घ) (×) (ङ) (√)
L.३ (क) अkजानाम्
(ख) वृषभ:
(ग) sवजाय:
(घ) वृषभाय:
(ङ) िसंहाय:
L.४ (क) िनधFनता
(ख) Þमो
(ग) खरे षु
(घ) पीठे
(ङ) मृित:

२.१४ सqदभ3 }qथ सूची –


१. राम मनोहर ि_वेदी (२०१२) बृह_ा"तुमाला, चौख…बा सुरभारती k*थमाला, चौख…बा
सरु भारती Lकाशन, वाराणसी ।
२. कमलाका*त श=ु ल (१९९९), टोडरम`लिवरिचतं वा"तसु ौgय,ं
स…पणू ाFन*दस"ं कृ तिवÃिव?ालय:, वाराणसी ।
३. डा. मरु लीधर चतवु द— ी (२००७), रामदीनिवरिचतं बृहNैव€रÍजनम्
Ùीधरीिह*दी¢याgयासिहतम,् मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी ।

२.१५ सहायक }qथ सच


ू ी–
१. डा. अशोक थापिलयाल (२०११), वा"तLु बोिधनी, भारतीय ›योितष, अमर k*थ
पिnलके श*स, िद`ली ।
२.१६ िनबqधाyमक Kl –
१. sवजािद आयq क• िदशा पर Lकाश डािलए।
२. टोडरान*द के मतानसु ार, आय का सोदाहरण साधन क‡रए।
३. वा"तु के िनधाFरण म' आय क• भिू मका "प• क‡रए।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 38


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
इकाई ३ – िप0डसाधन
इकाई का िनIपण
३.१ L"तावना
३.२ उNे>य
३.३ िप;ड का "व[प
३.३.१ “ेHफल
३.३.२ “ेHफल और िप;ड म' अभेद
३.४ िप;ड का साधन
३.४.१ म'घनाथ का मत
३.४.१.१ सूH
३.४.१.२ Lथम उदाहरण
३.४.१.३ ि_तीय उदाहरण
३.४.२ गणेश दैव€ का मत
३.४.२.१ सHू
३.४.२.२ Lथम उदाहरण
३.४.३ çागिु ल का मत
३.४.३.१ सHू
३.४.३.२ Lथम उदाहरण
३.४.३.३ ि_तीय उदाहरण
३.५ सारांश
३.६ शnदावली
३.७ बोध Lpq के उ9र
३.८ स*दभF k*थ सचू ी
३.९ सहायक k*थ सचू ी
३.१० िनब*धाrमक Lp


उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 39


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
३.१ K#तावना –
िLय अsयेताओ!ं वा"तु-शाv िडwलोमा पाठ्यzम के चतथु F पH के ि_तीय ख;ड क• तृतीय
इकाई म' आपका "वागत है। गत पाठ म' हमने वा"त-ु शाv के एक महUवपणू F तUव ‘आय’ पर िवचार
िकया। हमने जाना िक sवज आिद आठq आयq क• िदशा =या है? उनके साधन के Lकारq को भी
जाना। रािश और वणF के आधार पर अनक ु ू ल वा"तु पर भी चचाF गत पाठ म' क• गयी है। इसम' हमने
जाना िक sवज आय सभी वगœ और रािशयq के िलए शभु फल देने वाला होता है। वा"त-ु िवशेष के
िलए आय-िवशेष अनक ु ू ल और शभु फल देने वाला होता है इसका भी €ान हम' गत पाठ म' ह†आ।
वतFमान पाठ म' हम िप;ड के साधन पर िवचार कर' गे। िप;ड वा"त-ु शाv म' अrय*त महUवपणू F
"थान रहता है =यqिक इसी के आधार पर आय, वार, अंश, ±¢य, ऋण आिद वा"तु के आधारभूत
तrवq का िनधाFरण िकया जाता है। यह िप;ड-साधन िकतना महUवपणू F है इस बात का अनमु ान इसी से
लगाया जा सकता है िक अनेकq आचायœ ने िप;ड-साधन पर अपने िवचार रखे ह‰ और उनके साधन-
सHू य?िप िभ*न-िभ*न ह‰ तथािप िप;ड का मान समान ही िनकलता है । इसके अित‡र£ एक से अिधक
िप;ड-साधन क• बात भी आचायœ ने क• है। तो आइए, इस महUवपणू F िवषय पर बात करते ह‰।

३.२ उNेPय –
L"तुत इकाई के अsययन के बाद आप –
· िप;ड क• प‡रभाषा दे सकने म' समथF हो सक' गे।
· म'घनाथ के िप;ड-साधन को समझ सकने म' कुशल हो सक' गे।
· गणेशदैव€ के िपंड-साधन क• िविध को Lकट करने म' समथF हो सक' गे।
· çागिु ल के िपंड-साधन क• िविध को सोदाहरण कर सकने म' कुशल हो सक' गे।
· सधु ाकर ि_वेदी के िप;ड-साधन क• िविध को सोदाहरण समझा सकने म' िनपणु हो सक' गे।
· िप;ड के आधार पर आयािद-साधन को सोदाहरण L"ततु कर सकने म' द“ हो सक' गे।
३.३ िप0ड का #वIप -
िमHq! ‘िप;ड’ वा"त-ु शाv का एक महUवपणू F तUव है। इसके आधार पर आय, अंश,
±¢य, न“H आिद अनेकq िनणाFयक तUव िनधाF‡रत िकए जाते ह‰। यह िप;ड =या तUव है? इसका
साधन कै से होता है ? और इसके आधार पर अ*य तUवq का €ान कै से करते ह‰?

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 40


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
३.३.१ •े'फल
‘िप;ड’ का तािUवक िववेचन करने के zम म' आचायœ के िजतने भी मत िमलते ह‰, उन सभी से जो
सकं े त िनकलता है उसके अनसु ार िप;ड को वा"तु का ‘“ेHफल’ कहा जा सकता है । य?िप यह बात
सभी आकार-Lकार के वा"तु के िलए एकदम उिचत Lतीत नह„ होती है तथािप, Lाय: वा"तु
आयताकार या वगाFकार होता है, िजसके िलए ‘िप;ड’ क• ‘“ेHफल’ स€ं ा उिचत एवं गिणतीय
िस~ातं q के अन[ ु प कही जा सकती है। बृह_ा"तुमाला म' ‘“ेHफल’ का "व[प इस Lकार है –
•े'े भवेत् •े'फलं चतुभ3ुजे,
तyकोिटदोराहितमेव आयते ।
Kितपदाथ3 –
चतभु Fजु े आयते “ेHे = चतभु जFु आयत “ेH म', तrकोिटदोराहितमेव = उसक• भजु ा और कोिट
अथाFत् ल…बाई और चौड़ाई का पर"पर गुणन, “ेHफलं भवेत् = “ेHफल कहते ह‰।
ल…बाई (कोिट) × चौड़ाई (भुज) = “ेHफल
उदाहरण –
यिद िकसी आयताकार वा"तु क• ल…बाई २५ हाथ और चौड़ाई २१ हाथ हो तो
उसका “ेHफल -
२५ × २१ = ५२५ हाथ होगा ।

३.३.२ •े'फल और िप0ड म) अभेद


अब Lp यह है िक “ेHफल क• इस प‡रभाषा के आलोक म' यह कै से कहा जा सकता है यह
“ेHफल ही ‘िप;ड’ इस नाम से वा"तश ु ाvीय kथं q म' अिभिहत है । व"ततु : इसका कारण रामाचायF
और çागिु ल के _ारा किथत िप;ड-साधन के सHू q म' िनिहत Äोकांश है ।
३.३.२.१ रामाचाय3 का मत
िप;ड-साधन के zम म' रामाचायF कहते ह‰ –
......दै@य3•y#यािY#तृितिव3#तृित•˜च दै@य3ता ।
Kितपदाथ3 –
दै•यFÛत् = (िप;ड को) ल…बाई से भाग देने पर, िव"तृित: "यात् = चौड़ाई
का €ान होवे, च = और इसी Lकार, (िप;ड को) िव"तृितÛत् = चौड़ाई से भाग
देने पर, दै•यFता = ल…बाई का €ान हो।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 41


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
यिद इस Äोक के अथF को सHू [प म' Lकट कर' तो यह इस Lकार से होगा –
िप;ड िप;ड
= चौड़ाई; और इसी Lकार = ल…बाई
ल…बाई! चौड़ाई
इन सHू q को देखकर गिणत का सामा*य िव?ाथ¾ भी यह समझ सकता है िक प“ा*तर
के िनयम से इन सHू q का "व[प यह होगा –
िप;ड = चौड़ाई × ल…बाई
और चंिू क “ेHफल का भी यही सHू है इसिलए आयताकार वा"तु के िलए “ेHफल
ही िप;ड है ऐसा कहना यिु £पणू F है ।
३.४ िप0ड का साधन
िLय अsयेता! िप;ड के साधन हेतु म'घनाथ, çागिु ल, रामाचायF, सधु ाकर आिद के मत
Lमखु ता से िमलते ह‰ । इन मतq म' साधन हेतु गिणतीय-Lिzया म' कुछ न कुछ िवषमताएं Œि•गोचर
होती ह‰ । िक*तु Lाय: सभी आचायœ ने िपंड-साधन म' इ• आय और इ• न“H का आÙय िलया है ।
आय और न“H के िवषय म' गत पाठq म' आपने अsययन िकया ही है । लेिकन पनु :"मारणाथF
इतना बता देना ही पयाF° है िक’ sवज’, ‘ध¯ू ’, ‘िसंह’ इrयािद जो ८ आय पवू F म' कहे गए ह‰ उन आयq
म' वणF और रािश के आधार पर तथा िजस Lकार के वा"तु का िनमाFण करना हो उसके आधार पर
िजस आय का चयन या िनधाFरण िकया जाता है उसे ही ‘इ• आय’ कहा जाता है । उदाहरण के तौर
पर यिद ‘ककF ’ रािश वाले ‘ßाàण’ वणF के ¢यि£ को वा"तु ‘गृह’ का िनमाFण करना है तो उसके िलए
सवFथा उपय£ ु आय ‘sवज’ होने के कारण इ• आय ‘sवज’ ह†आ। ऐसे ही यिद गृह बनाने वाले ¢यि£
का न“H ‘प²ु य’ तो मेलापक के आधार पर गृह के न“H का िनधाFरण करना चािहए । इसके िलए िजस
समय गृहारंभ कर' गे उस समय का न“H ही गृह का ‘इ• न“H’ होगा । तो आइए एक-एक करके
आचायœ के िपंड-साधन क• िविध को उदाहरण के साथ जान' ।
३.४.१ मेघनाथ का मत -
म'घनाथ ने िपडं के साधन हेतु सHू का िन[पण िकया है। उ*हqने इ• आय और न“H
के आधार पर िप;ड का साधन बताया है । उनके अनसु ार,
इ[भाyयि[घातेय आय#तेनोिनतेऽ[क:।
ि'•fल†धहतागािiयतु े चे[ायभं भवेत।् ।

Kितपदाथ3 –

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 42


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
इ•भाrयि•घातेय: = अrयि• अथाFत् १७ (‘अrयि•’ सं€क छ*द म' १७ वणF होते ह‰ इसिलए
‘अrयि•’ शnद से १७ संgया का kहण होता है।) से घात अथाFत् गिु णत इ• न“H, आय: = (से) जो
आय Lा° ह†आ, तेनोिनतेऽ•क: = उस (गणु नफल से Lा°) आय को ‘इ•आय’ से घटाकर, िHÛ`लnध
= (शेष को) ३ से भाग देने पर Lा° लिnध (को), हतागािÃ = अग अथाFत् पवFत ७ (पवFतो क• सgं या
७ मानी गयी है) अिÃ २ (अिÃनीकुमार जडु ु वा होने के कारण, इस शnद से २ संgया का kहण करते
ह‰) अग¦अिæ इित ‘अगािÃ’ अथाFत् इन दोनq से ¢य£ सgं याओ ं को एक साथ िलखने पर
‘अगािÃ’ पद से २७ संgया का kहण करना चािहए, ‘हतागािÃ’ अथाFत् २७ से गुणा करने पर, च =
और (जो गणु नफल Lा° ह†आ उसम'), यतु े इ•ायभं = इ• आय के गुणनफल को जोड़ने पर, भवेत् =
‘िप;ड’ होवे ।

३.४.१.१ सू' –
इ• न“H × १७ = Lथम गुणनफल
Lथम गणु नफल ÷ ८ = लिnध: शेषं च
इ• आय – शेष = अ*तर (शेष से कम होने पर इ• आय + ८ करके उसम'
शेष घटाएं)
अ*तर ÷ इ• आय = लिnध (शेष बचने पर अतं र म' ८ जोड़कर पनु : ३ से
भाग द')
लिnध × २७ = ि_तीय गणु नफल
Lथम गुणनफल + ि_तीय गणु नफल = िप;ड

३.४.१.२ Kथम उदाहरण


माना ‘इ•न“H’ ४ है । १७ × ४ = ६८ (Lथम गुणनफल)
६८ ÷ ८ = लिnध: ८, शेषं ४
‘इ• आय’ ३ है, जो अ• (८) भ£ Lथम गुणनफल से Lा° शेष (४) से
कम है।
अत: इ• आय म' ८ जोड़कर ३ + ८ = ११ नवीन इ• आय Lा° िकया
(नवीन आय) ११ – (शेष) ४ = ७ अ*तर

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 43


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
अ*तर ÷ इ• आय = ७ ÷ ३, यहां ३ से भाग देने पर िनरk नह„ होता अथाFत्
शेष रह जाता है
अत: िनरk-करणाथF, अ*तर + ८ (आय) = ७ + ८ = १५ नवीन अ*तर
नवीन अ*तर/इ• आय = १५ ÷ ३ = लिnध ५
लिnध ५ × २७ = १३५ (ि_तीय गणु नफल)
Lथम गुणनफल + ि_तीय गणु नफल = ६८ + १३५ = २०३ ‘िप;ड’

३.४.१.३ िYतीय उदाहरण


माना ‘इ• न“H’ १५ और ‘इ• आय’ ८ है ।
१७ × १५ = २५५ (Lथम गणु नफल)
२५५ ÷ ८ = लिnध: ३१, शेषं ७
‘इ• आय’ ८ है,
आय: – शेषं = ८ – ७ = १
अ*तर ÷ इ• आय = १ ÷ ३, यहां ३ से भाग देने पर िनरk नह„ होता अथाFत्
शेष रह जाता है
अत: िनरk-करणाथF, अ*तर + ८ (आय) = १ + ८ = ९ नवीन अ*तर
नवीन अ*तर ÷ इ• आय = ९ ÷ ३ = लिnध ३
लिnध ३ × २७ = ८१ (ि_तीय गुणनफल)
Lथम गुणनफल + ि_तीय गणु नफल = २५५ + ८१ = ३३६ ‘िप;ड’

बोध Kl
L.१ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं

(त) ‘अrयि•’ म' १८ वणF होते ह‰ ()
(थ) ‘अगािÃ’ से २७ संgया अिभLेत है ()
(द) िप;ड साधन म' ‘इ• आय’ क• आव>यकता नह„ है ()
(ध) वगाFकार वा"तु म' िप;ड और “ेHफल म' अभेद होता है ()
(न) िप;ड म' ल…बाई का भाग देने पर चौड़ाई का €ान होता है ()

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 44


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
अsयास Kl
L.१ म'घनाथ के अनसु ार िप;ड का साधन कर' ।
__________________________________________________________
__________________________________________________________
__________________________________________________________
__________________________________________________________

३.४.२ गणेश दैव¨ का मत –


गणेश दैव€ ने भी िपंड के साधन हेतु सHू L"तुत िकया है। य?िप उ*हqने भी इ•
आय और इ• न“H के आधार पर ही िप;ड का साधन बताया है तथािप इनका सHू म'घनाथ के सHू
से िभ*न है ।
नागा@ने[ायाUयजेिद[मृ•ं नोचेzाढ्याYेदषड@नं च सायम् ।
त[ं षट्#वग¥: फलं #यादमी[ाय•ªyथं तzूप«¬यक ु ् पनु #तु ।।
Kितपदाथ3
नागा•ने•ायात् = नाग अथाFत् ८ से गुिणत ‘इ• आय’ से, इ•मृ“ं = ‘इ• न“H’ को,
rयजेत्, घटाए । नोचेद् = यिद ८ × इ• आय से न घटे तब, भाढ्यात् = भं अथाFत् न“H २७ आढ्य
अथाFत् जोड़कर (घटाए), (अ*तर म') वेदषद•नं = वेदषट् ६४ से गणु ा कर (दे और) सायम् = आयसिहतं
अथाFत् उसम' आय जोड़ दे। (इस योग म') त•ं षट्"वगæ: = षट्"वगF अथाFत् २१६ से भाग देने पर, फलं
"याद = यहां ‘फल’ से अिभLाय ‘शेष’ है, अमी•ाय“Ürथं = यही इ• आय और इ• न“H से उrप*न
‘िप;ड’ होगा । पनु "तु = और इस ‘िप;ड’ से आगे िफर और ‘िप;ड’ Lा° करने हq तो, तद् = (इ•
आय गिु णत इस) ‘िप;ड’ को, भपू ŒÀयक ु ् = भपू Œक् २१६ म' जोड़ दे ।

३.४.२.१ सू'
{८ × इ• आय} – इ• न“H = अ*तर
न घटने पर, {८ × इ• आय} म' २७ जोड़कर, २७ + {८ × इ•आय} –
इ• न“H
अतं र × ६४ = गणु नफल
गुणनफल + इ• आय = योगफल

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 45


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
योगफल ÷ २१६ = शेष तु`य ‘िप;ड’

३.४.२.२ उदाहरण
माना ‘इ• आय’ ३ और ‘इ•न“H’ ४ है ।
{८ × ३ = २४} – ४ = २० अ*तर
२० × ६४ = १२८० गुणनफल
१२८० + ३ = १२८३ योगफल
१२८३ ÷ २१६ = ५ लिnध:, २०३ शेष
अत: ‘िप;ड’ २०३

बोध Kl
L.२ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं

(क) {८ × इ• आय} – इ• न“H ()
(ख) ‘इ• न“H’ के न घटने पर कुछ नह„ कर' गे ()
(ग) ‘वेदषड•न’ म' आय को जोड' ()
(घ) त•ं अथाFत् जोड़ना ()
(ङ) ‘भूपŒक्’ अथाFत् २१६ ()

अsयास Kl
L.२ गणेश दैव€ के अनसु ार िप;ड का साधन कर' ।
__________________________________________________________
__________________________________________________________
_________________________________________________________
_________________________________________________________

३.४.३ ®ागुिल का मत –

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 46


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
महु d9F क`प±ुम के रचियता Ùी िवêल दीि“त के गÂु ‘çागिु ल दैव€ ने भी िपंड के साधन हेतु सHू
L"तुत िकया है।
¯येके[•3हतािYबाणशिशनोऽyय[्या यतु ा#तेऽिप च,
¯येके[ायहतैकनागसिहता: ष0मू˜छ3 नािभह3ता:।
शेषं •े'फलं भवेदिभमतं #वे[ायन•'गं,
#याNै@यx तदभी[िव#तृित•तं दै@यª°ृतं िव#तृित:।।
Kितपदाथ3
¢येके•“F = िवगतं एकं य"मात् इ•“ाFत् अथाFत् िजस इ• न“H से १ कम हो (इ•
न“H – १), हताि_बाणशिशनो = ि_२बाण५शिशनो१ अनया १५२ संgयया हत: गिु णत: अथाFत्
अ*तर १५२ से गुणा कर' को अrय•्या यतु ा: = अrयि• १७ (छ*द-िवशेष िजसमे १७ वणF होते ह‰)
इससे जोड़ दे, ¢येके•ाय = िवगतं एकं इ•ायात् य"मात् (इ• आय - १), इसम', हतैकनाग = एक१ नाग
८ एकनाग ८१ से गुणा कर' , सिहता: = पवू F म' Lा° योगफल और इस गुणनफल को जोड़ दे, इस योग
को, ष;मÒू छF नािभहFता: = २१६ से भाग दे, तो शेषं = शेष "वे•ायन“Hगं = इ• आय और इ• न“H
से स…ब*धी, अिभमतं “ेHफलं = अभी• “ेHफल ‘िप;ड’, भवेत् = हो । तदभी•िव"तृितÛतं = अभी•
“ेHफल ‘िप;ड’ को िव"तृित चौड़ाई से गुणा करने पर, दै•यÖ "यात् = ल…बाई हो (िमले), दै•यÜ~तृ ं =
दै•यF अथाFत् ल…बाई से िप;ड को भाग देने पर, िव"तृित: = चौड़ाई िमले ।
३.४.३.१ सू'
इ• न“H – १ = अ*तर
अंतर × १५२ = Lथम गुणनफल
Lथम गणु नफल + १८ = Lथम योगफल
इ• आय – १ = अ*तर
अ*तर × ८१ = ि_तीय गुणनफल
Lथम योगफल + ि_तीय गणु नफल = ि_तीय योगफल
ि_तीय योगफल ÷ २१६ = शेष तु`य ‘िप;ड’

३.४.३.२ Kथम उदाहरण


माना ‘इ• आय’ ३ और ‘इ•न“H’ ४ है ।
इ• न“H ४ – १ = ३ अ*तर

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 47


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
३ × १५२ = ४५६ गुणनफल
४५६ + १७ = ४७३ Lथम योगफल
इ• आय ३ – १ = २
२ × ८१ = १६२
४७३ + १६२ = ६३५
६३५ ÷ २१६ = २ लिnध:, २०३ शेष
अत: ‘िप;ड’ २०३

३.४.३.३ िYतीय उदाहरण


माना ‘इ• न“H’ १५ और ‘इ• आय’ ८ है ।
इ• न“H १५ – १ = १४ अ*तर
१४ × १५२ = २१२८ गुणनफल
२१२८ + १७ = २१४५ Lथम योगफल
इ• आय ८ – १ = ७
७ × ८१ = ५६७
२१२८ + ५६७ = २६९५
२६९५ ÷ २१६ = १२ लिnध:, २०३ शेष
अत: ‘िप;ड’ १०३
बोध Kl
L.३ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं

(च) ¢येके•“Fहताि____________शिशनो ()
(छ) ¢येके•ायहतैक_____________सिहता ()
(ज) ष;मÒू छF नािभ:___________ ()
(झ) शेषं ___________भवेदिभमतं ()
(ञ) "याद् _________ तदभी•िव"तृितÛतं ()

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 48


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
अsयास Kl
L.३ çागिु ल के अनसु ार िप;ड का साधन कर' ।
__________________________________________________________
__________________________________________________________
_________________________________________________________
__________________________________________________________

३.११ सारांश –
आयताकार या वगाFकार वा"तु के िलए ‘िप;ड’ क• ‘“ेHफल’ स€ं ा उिचत एवं गिणतीय िस~ांतq के
अन[ ु प कही जा सकती है । िप;ड को ल…बाई से भाग देने पर चौड़ाई का €ान होता है और इसी Lकार
िप;ड को चौड़ाई से भाग देने पर ल…बाई का €ान होता है । म'घनाथ के िपंड-साधन-सHू के अनसु ार,
१७ गुिणत इ• न“H म' ८ का भाग देने पर जो शेष उसे ‘इ•आय’ से घटाकर जो अंतर Lा° होता है
उसे इ• आय से भाग देने पर जो लिnध Lा° होती है उसे २७ से गुणा करने पर जो गणु नफल उसे १७
गिु णत इ• न“H म' जोड़ने पर िप;ड का €ान होता है । गणेश दैव€ के अनसु ार ८ गिु णत इ• आय म'
से इ• न“H घटाने पर जो अ*तर Lा° होता है उसे ६४ से गुना करके गुणनफल Lा° होता है । इस
गुणनफल म' इ• आय को जोड़ने पर जो योगफल उसे २१६ से भाग देने पर शेषतु`य ‘िप;ड’ का €ान
Lा° होता है । çागिु ल के अनसु ार, इ• न“H म' १ घटाकर जो अतं र Lा° होता है उसे १५२ से गणु ा
करने पर Lथम गुणनफल Lा° होता है । इसम' १८ जोड़ने पर Lथम योगफल Lा° होता है । इसी Lकार
इ• आय म' १ घटाकर जो अंतर Lा° होता है उसे ८१ से गुणा करने पर ि_तीय गणु नफल Lा° होता है
। इस ि_तीय गुणनफल म' Lथम योगफल को जोड़ने पर ि_तीय गणु नफल Lा° होता है । इसे २१६ से
भाग देने पर जो शेष Lा° होता है उसे ‘िप;ड’ कहते ह‰ ।

३.१२ श†दावली –

इ•भात् = इ• न“H से
अगािÃ = २७
नागा•ने•ायात् = ८ गुिणत आय से
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 49
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
ऋ“म् = न“H
भाढ्यात् = २७ जोड़ने से
वेदषड•नं = ६४ गिु णत
त•ं = िवभािजत
भूपŒक् = २१६
दै•यFम् = ल…बाई (को)
¯येके[•3हतािYबाणशिशनोऽyय[्या युता#तेऽिप च,
¯येके[ायहतैकनागसिहता: ष0मू˜छ3 नािभह3ता:।
शेषं •े'फलं भवेदिभमतं #वे[ायन•'गं,
¢येके•“F = इ• न“H - १
अrय•्या = १८ के _ारा
¢येके•ाय = इ• आय – १
एकनागसिहता = ८१ जोड़ने पर
ष;मÒू छF नािभहFता: = २१६ के _ारा भाग देने पर

३.१३ बोध KlŠ के उpर -


L.१ (क) (×) (ख) (√) (ग) (×) (घ) (√) (ङ) (√)
L.२ (क) (√) (ख) (×) (ग) (√) (घ) (×) (ङ) (√)
L.३ (क) बाण
(ख) नाग
(ग) हता:
(घ) “ेHफलम्
(ङ) दै•यFम्

३.१४ सqदभ3 }qथ सच


ू ी–
१. राम मनोहर ि_वेदी (२०१२) बृह_ा"तुमाला, चौख…बा सुरभारती k*थमाला, चौख…बा
सरु भारती Lकाशन, वाराणसी ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 50


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
२. कमलाका*त श=ु ल (१९९९), टोडरम`लिवरिचतं वा"तुसौgयं,
स…पणू ाFन*दस"ं कृ तिवÃिव?ालय:, वाराणसी ।
३. डा. मरु लीधर चतवु द— ी (२००७), रामदीनिवरिचतं बृहNैव€रÍजनम्
Ùीधरीिह*दी¢याgयासिहतम,् मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी ।

३.१५ सहायक }qथ सच


ू ी–
१. डा. अशोक थापिलयाल (२०११), वा"तLु बोिधनी, भारतीय ›योितष, अमर k*थ
पिnलके श*स, िद`ली ।

३.१६ िनबqधाyमक Kl –
१. िप;ड-साधन म' म'घनाथ के मत पर Lकाश डािलए ।
२. िप;ड-साधन म' गणेश दैव€ के मत पर Lकाश डािलए ।
३. िप;ड-साधन म' çागिु ल के मत पर Lकाश डािलए ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 51


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
इकाई - ४ गहृ का दै@य3िव#तार-िनधा3रण
इकाई का िनIपण
४.१ L"तावना
४.२ उNे>य
४.३ दै•यF-िव"तृित
४.४ दै•यF-िव"तृित के आधार पर राजगृहq के भेद
४.४.१ क>यप के मतानसु ार
४.५ दै•यF-िव"तृित के आधार पर सेनापितगृहq के भेद
४.५.१ वा"तसु ौgय के मतानसु ार
४.६ दै•यF-िव"तृित के आधार पर म*Hी-गृहq के भेद
४.६.१ वा"तुसौgय के मतानुसार
४.७ दै•यF-िव"तृित के आधार पर दैव€-परु ोिहत-वै?गृहq के Lमाण
४.७.१ वा"तुसौgय के मतानसु ार
४.८ दै•यF-िव"तृित के आधार पर चातुवF;यF-गृहq के Lमाण
४.८.१ वा"तुसौgय के मतानसु ार
४.९ साराश
४.१० शnदावली
४.११ बोध Lpq के उ9र
४.१२ स*दभF k*थ सचू ी
४.१३ सहायक k*थ सचू ी
४.१४ िनब*धाrमक Lp

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 52


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
४.१ K#तावना –
िLय अsयेताओ!ं वा"त-ु शाv िडwलोमा पाठ्यzम के चतुथF पH के Lथम ख;ड क• चतथु F
और अि*तम इकाई म' आपका "वागत है। इस इकाई म' िविभ*न-Lकार के गृहq के दै•यF और िव"तार
के िवषय म' चचाF कर' गे। गत पाठ म' हमने वा"तु के िपंड के िवषय म' िव"तार से चचाF क•। हमने म'घनाथ,
रामाचायF, çागिु ल के मतानसु ार िपडं -साधन के सHू q को जाना । हमने देखा िक सभी आचायœ के सHू q
म' िभ*नता है। एक अ*य बात जो महUवपणू F है िजसक• ओर रामाचारी और çागिु ल ने अपने-अपने
सHू q म' संकेत िकया वो यह है वा"तु के दैÀयF और िव"तृित का गुणनफल ‘िप;ड’ कहलाता है।
िप;ड = दै•यF × िव"तृित
और चंिू क “ेHफल का भी यही सHू है इसिलए आयताकार वा"तु के िलए “ेHफल ही िप;ड
है ऐसा कहना यिु £पणू F है । अब Lp यह है िक इस बात म' Lमाण =या है? तो इसके िलए पूववF पाठ
म' ही रामाचायF के मत को उ~तृ िकया गया है, जहां वह कहते ह‰ -
......दै@य3•y#यािY#तृितिव3#तृित•˜च दै@य3ता।
अथाFत् िप;ड को दै•यF (ल…बाई) से भाग देने पर, िव"तृित: (चौड़ाई) और इसी Lकार, िप;ड
को िव"तृित (चौड़ाई) से भाग देने पर, दै•यFता (ल…बाई) का €ान होता है।
४.२ उNेPय –
L"तुत इकाई के अsययन के बाद आप –
· वा"तु के दै•यF का €ान कर सकने म' समथF हो सक' गे।
· वा"तु क• िव"तृित का €ान कर सकने म' कुशल हो सक' गे।
· िविवध Lकार के वा"तु (गृह) के दै•यF और िव"तृित का िनधाFरण कर सकने म' कुशल हो
सक' गे।
४.३ दै@य3-िव#तिृ त -
िमHq! कोई भी वा"तु अ¢य£ तो नह„ होता। Lrयेक वा"तु का कुछ न कुछ "व[प अव>य
होता है। वह "व[प िकसी न िकसी आकार म' प‡रसीिमत होता है। यह आकार मgु य [प से दै•यF
अथाFत् ल…बाई और िव"तृित अथाFत् चौड़ाई से िनधाF‡रत होता है। दसू रे शnदq म' कहdं तो िकसी भी
वा"तु क• आकृ ित के मल ू म' उसके दै•यF और िव"तृित ही ह‰। वा"तु के आकार के अनसु ार इनका
Lमाण िभ*न-िभ*न होता है। गृह के दै•यF और िव"तृित का मान Lाचीन kंथq म' ‘ह"त’ के आधार पर,

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 53


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
जबिक परु के दै•यF और िव"तृित का मान ‘योजन’ के आधार पर िनधाF‡रत िकया गया है। आधिु नक
मान से यिद ‘ह"त’ और ‘योजन’ क• तल ु ना कर' तो इसके अनसु ार –
१ ह"त = २ िवति"त = १/२ मीटर
िवति"त को िह*दी म' ‘िब9ा’ कहते ह‰ ।
१ योजन = ८ िक.मी. से १६ िक.मी. (अलग-अलग काल म' गिणत€q ने योजन के
अलग-अलग मान बताए ह‰ । भा"कराचायF ने योजन का मान ८ िक.मी. माना है तो
के रल के गिणत€ परमेÃर और नीलकंठ आिद ने इसका मान १३ से १६ िक.मी.
तक माना है ।)
राजगृहq के दै•यF और िव"तृित का मान सामा*य गृहq के दै•यF और िव"तृित से िभ*न होने के कारण
उनके आकारq म' िभ*नता होती है। इस पाठ म' हम िविवध गृहq के दै•यF और िव"तृित के मान पर
वा"त-ु शाv के िनयमq के आलोक म' िवचार कर' गे।
४.४ दै@य3-िव#तृित के आधार पर राजगृहŠ के भेद
राजगृह अथाFत् राजा का घर या आवास । सामा*य तौर पर हम इसे ‘Lासाद’ नाम से जानते
ह‰। इसके पयाFयवाची शnद ‘ह…यF’, ‘सौध’ ह‰ । िह*दी म' इसके िलए Lचिलत शnद ‘महल’ है । िमHq!
राजाओ ं के Lासाद सामा*य गृह क• अपे“ा िविश• होते ह‰, यह कोई अलग से कथनीय िवषय नह„ है।
इन Lासादq म' राजा के िनवास-"थान के अित‡र£ अ*य गृह भी होते ह‰ िजनम' ‘रिनवास’ या ‘अ*त:पुर’,
Lह‡रयq का िनवास, सेवकq का आवास इrयािद Lमख ु ह‰ । इन सभी का बड़े ही िव"तार से वणFन
वा"तश ु ाvीय kथं q म' िमलता है। आपके पाठ्यzम को Œि•गत करते ह†ए उन सभी िवषयq का यहां
िव"तार से वणFन करना अनिु चत एवं अस…भवLाय है। एतदथF आगामी क“ाओ ं म' ‘समरांगण सHू धार’,
‘मयमत’, ‘अपरािजतपृÒछा’ इrयािद kंथq का अsययन करना उिचत होगा। िक*तु इस पाठ म' राजाओ ं
उनके मि*Hयq इrयािद के गृह के दै•यF-िव"तृित का िन[पण िकया जाएगा।
४.४.१ कPयप के मतानुसार
वा"तु इrयािद िव?ाओ ं के महान आचायF क>यप ऋिष ने राजा इrयािद के पांच
Lकार के गृहq का िन[पण िकया है, जो zमश: - १. उ9मो9म, २. उ9म, ३. मsयम, ४. अधम, और
५. अधमाधम । ये सभी कोिटयां उनके दै•यF और िव"तृित के आधार पर िनधाF‡रत क• गयी ह‰ । आचायF
क>यप कहते ह‰ –
अ[ोpरं ह#तशतं िव#तारं नपृ मिqदरम् ।
कायx Kधानमqयािन तथा[ा[ोिनतािन तु ।।
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 54
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
ु ं दै@यx तेषां Kकfपयेत् ।
िव#तारं पादसंयš
एवं पcच नृप: कुया3त् गृहाणां च पथृ क्-पृथक् ।।
Kितपदाथ3 –
Lधानं = Lधान कोिट के (उ9मो9म) नृपमि*दरम् = राजा के घर (क•), िव"तारं =
चौड़ाई, अ•ो9रं ह"तशतं = १०८ हाथ, कायÖ = करनी चािहए, अ*यािन तु = और ऊपर बताई गयी
५ कोिटयq म' से शेष Lकार के गृहq क• चौड़ाई तो, तथा•ा•ोिनतािन = उसी Lकार ८-८ हाथ कम
करनी चािहए । तेषां = इन पाचं q Lकार के गृहq क•, दै•यÖ = ल…बाई, िव"तारं पादसंय£
ु ं = उनक•

चौड़ाई के सवा (१ ) गिु णत, Lक`पयेत् = कि`पत करनी चािहए ।

एवं = इस Lकार, नृपगृहाणां = राजा के घरq (के ), पृथक्-पृथक् = दै•यF और िव"तृित के
अलग-अलग भेद च पÍच कुयाFत् = ५ भेद ह‰ ।
क>यप ऋिष ने चौड़ाई के मान को तो "प• [प से कहा िक*तु ल…बाई के मान को संकेत [प
म' ही कहा। इसका कारण =या है? यिद इस पर िवचार कर' तो इसका मुgय कारण ल…बाई और चौड़ाई
के एक शाÃत स…ब*ध क• ओर सक ं े त करना है । घिनˆ या अ*यो*यािÙत स…ब*ध Lाय: इसी Lकार
से ¢य£ िकये जाते ह‰ । एक के €ान से दसू रे क• स9ा का €ान कराने के पीछे िचंतन यही है िक उन
दोनq के िनकटवत¾ स…ब*धq को Lकट िकया जा सके ।
तो िफर Lp उठता है िक =या ल…बाई और चौड़ाई का यह स…ब*ध जो िक क>यप ऋिष के
_ारा बताया गया है यह सभी Lकार के वा"तु के िलए एक-समान है? तो इसके उ9र म' यही कहा जा
सकता है िक कम-से-कम आयताकार वा"तु के िवषय म' इस Lकार का स…ब*ध उिचत ही है जो िक
न के वल वा"तु के एक स*ु दर "व[प को सम“ L"तुत करता है अिपतु वा"तुशाvीय िनयमq के आलोक
म' उ£ ल…बाई और चौड़ाई के वा"तु म' िनवास का फल भी शभु और सकाराrमक होता है। अत: इस
Lकार के संकेताrमक कथन का अिभLाय यही है िक गृह कै सा भी हो उसक• ल…बाई और चौड़ाई
अिनयत नह„ रहनी चािहए।
जैसा िक क>यप ऋिष ने कहा उसके अनसु ार राजगृह के जो ५ भेद बताए गए ह‰ उनम' सवFÙेˆ

‘उ9मो9म’ या ‘Lधान’ स€ं क भेद क• चौड़ाई १०८ हाथ तथा चौड़ाई के मान क• सवा (१ ) गुिणत

या दसू रे शnदq म' कह' तो चौड़ाई के मान से चतथु ाÖश अिधक ल…बाई होती है ।
उ9मो9म (Lधान) राजगृह क• चौड़ाई = १०८ हाथ
ल…बाई = १०८ + १०८/४

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 55


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
= १०८ + २७
= १३५ हाथ
उ9मो9म या Lधान गृह क• ल…बाई और चौड़ाई बताने के बाद शेष ४ Lकार के गृहq क•
ल…बाई और चौड़ाई के िवषय म' क>यप ऋिष ने ‘अ•ा•ोिनत’ संकेत माH िकया है । इस संकेत का
अिभLाय भी Lधान गृह से अ*य गृहq के स…ब*ध को बताना और उनके ल…बाई-चौड़ाई क• िनयतता
को Lकट करना है । यिद इन िविवध Lकार के गृहq म' पर"पर स…ब*ध नह„ होगा तो उनके मानq म' एक
अिनयतता का दोष आ जाएगा । इस दोष से बचाने के िलए ही आचायF क>यप ने इन पांचq भेदq को
उ£ Lकार से संकेत [प म' अिभ¢य£ िकया ।
‘अ•ा•ोिनत’ का अिभLाय है पहले या उ9मो9म (Lधान) कोिट के राजगृह क• तुलना म'
उससे िन…न कोिट का गृह चौड़ाई क• Œि• से ८-८ हाथ कम होता है । और चौड़ाई के सवागिु णत
ल…बाई का संकेत शेष कोिटयq म' भी पवू Fवत समझना चािहए । इस िहसाब से,
उ9म कोिट के राजगृह क• चौड़ाई = १०८ – ८ = १०० हाथ
ल…बाई = १०० + १००/४
= १०० + २५ हाथ = १२५ हाथ
इन पाँचq भेदq को एक तािलका के _ारा इस Lकार से िन[िपत िकया जा सकता है –
राजगहृ ल‚बाई चौड़ाई
उ9मो9म (Lधान) १३५ हाथ १०८ हाथ
उ9म १२५ हाथ १०० हाथ
मsयम ११५ हाथ ९२ हाथ
अधम १०५ हाथ ८४ हाथ
अधमाधम ९५हाथ ७६ हाथ

यहां जो एक िवशेष बात कहनी है वो यह है िक वतFमान समय म' ‘राजगृह’ का अिभLाय


‘रा²âपित’, एवं ‘रा›यपाल’ के आवास ह‰ । हालािं क इस Ùेणी म' ‘Lधानम*Hी’ या ‘मgु यमHं ी’ के
आवास को नह„ रखा जा सकता है तथािप वतFमान राजनैितक एवं सामािजक प‡रLेÎय म' जबिक
‘Lधाम*Hी’ और ‘मुgयम*Hी’ के पद अिधक Lासंिगक और जनो*मख ु ी हो गए ह‰ उनके भी आवासq
का मान कमोबेश ‘रा²âपित’ या ‘रा›यपाल’ के आवासq के अन[ ु प रखा जा सकता है । अ*यथा
उिचत तो यही है िक इनके आवासq के मान ‘Lधान सिचवq’ के आवासq के मान के सामान हq ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 56


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
बोध Kl
L.१ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं

(ऩ) ‘ह"त’ का मान १ मीटर के तु`य है ()
(प) ‘उ9मो9म’ नृपगृह क• चौड़ाई १०८ ह"त है ()
(फ) ल…बाई का मान चौड़ाई के सवागिु णत होता है ()
(ब) ‘मsयम’ राजगृह क• ल…बाई १२५ हाथ है ()
(भ) ‘अधमाधम’ राजगृह क• चौड़ाई ८६ हाथ है ()
अÐयास Lp
L.१ दै•यF और िव"तृित के आधार पर िक*ह„ ३ Lकार के राजगृहq का मान िलख' ।
__________________________________________________________
__________________________________________________________
_______________________________________________________
__________________________________________________________

४.५ दै@य3-िव#तृित के आधार पर सेनापितगृहŠ के भेद


िLय अsयेताओ!ं पहले आपने पढ़ा िक राजा के गृह के आकृ ितवशात् ५ भेद ह‰ । इस आकृ ित-
भेद के मल
ू म' दै•यF (ल…बाई) और िव"तृित (चौड़ाई) ही है । िजस Lकार राजा के घर के ५ भेद बताए
गए ह‰ ठीक उसी Lकार सेनापित के भी घर क• ५ कोिटयां बताई गयी ह‰ । िन¦य ही इन भेदq के मल ू
म' भी वा"तु के दै•यF और िव"तृित ही ह‰ ।
४.५.१ वा#तस ु ौrय के मतानस ु ार
वा"तुसौgय म' टोडरमल ने सेनापित के गृह-भेदq का िन[पण करते ह†ए कहा –
षड्िभ: षड्िभह²ना सेनापितस¢नां चतु:षि[: ।
एवं पcच गृहािण षड्भागसमिqवतं दै@य3म् ।।
Kितपदाथ3: -
एवं = इसी Lकार (िजस Lकार राजा के अलग-अलग मान भेद से ५ Lकार के गृह
बताए गए ह‰), सेनापितसãनां = सेनापितयq के घरq के , पÍच गृहािण = ५ Lकार के घर बताए गये ह‰,
षड्िभ: षड्िभह¾ना = वे सभी Lकार चौड़ाई म' zमश: ६-६ हाथ छोटे होते चले जाते ह‰ । चत:ु षि•: =

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 57


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
(सेनापित-गृह क• चौड़ाई) ६४ हाथ होती है । षड्भागसमि*वतं दै•यFम् = चौड़ाई के मान म' षˆांश
(१/६) जोड़ देने पर ल…बाई का मान €ात होता है।
िमHq! जैसा िक Lाचीन भारतीय पर…परा रही है िवषयq को सHू [प म' रखा जाता रहा है ।
थोड़ा कहकर बह†त समझने का गुण भारतीय-िश“ण-प~ित के मgु य ल“णq म' अ*यतम रहा है । एक
बार जब ऋिष ने राज के ५ Lकार के गृहq को िव"तार से बता िदया तब शेष सेनापित आिद के गृहq
को उसी के अन[ ु प समझ लेना चािहए । यही कारण है िक िव"तारपवू क F Œ•ातं कहने के उपरा*त
आचायF शेष िवषयq को संकेत [प म' ही L"तुत करते ह‰ ।
सेनापित-िवषयक उप‡रिलिखत Äोक म' भी इसी पर…परा का अनसु रण ऋिष ने िकया है ।
इसके अनसु ार सेनापित के भी गृह के ५ भेद ह‰ जो िक zमश: चौड़ाई म' ६-६ हाथ छोटे होते जाते ह‰।
आचायF ने Lधान गृह क• चौड़ाई ६४ हाथ बताई है । िफर उप‡रिलिखत िनयमानसु ार उससे अवर गृह
क• चौड़ाई ६ हाथ कम अथाFत् ५८ हाथ होगी ।
इसी Lकार गृहq क• ल…बाई के िवषय म' संकेत करते ह†ए कहते ह‰ िक सेनापित के ‘उ9मो9म’
या ‘Lधान’ गृह क• ल…बाई उसक• चौड़ाई के षˆ अश ं (१/६) से अिधक होती है । अथाFत् यिद चौड़ाई
के मान म' उसका छठा भाग (१/६) जोड़ िदया जाए तो उस गृह क• ल…बाई का €ान हो जाता है ।
सेनापित के ‘उ9मो9म’ या ‘Lधान’ गृह क• चौड़ाई = ६४ हाथ
सेनापित के ‘उ9मो9म’ या ‘Lधान’ गृह क• ल…बाई = ६४ + ६४/६ हाथ
= ६४ + १०.१६
= ७४.१६ हाथ अथाFत् ७४ हाथ १६ अंगुल
सेनापित के ‘उ9म’ गृह क• चौड़ाई = ६४ – ६ = ५८ हाथ
सेनापित के ‘उ9म’ गृह क• ल…बाई = ५८ + ५८/६
= ५८ + ९.१६
= ६७.१६ हाथ अथाFत् ६७ हाथ १६ अंगुल
सेनापित पcचिवध-गहृ -मान तािलका
सेनापितगृह ल‚बाई चौड़ाई
उ9मो9म (Lधान) ७४.१६ हाथ ६४ हाथ
उ9म ६७.१६ हाथ ५८ हाथ
मsयम ६०.१६ हाथ ५२ हाथ
अधम ५३.१६ हाथ ४६ हाथ
अधमाधम ४६.१६ हाथ ४० हाथ
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 58
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104

यहां उ£ ‘सेनापित’ के गृह के मान के समान व9Fमान समय के सेनापितयq के आवासq के


मान समझ सकते ह‰ ।
बोध Kl
L.२ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं

(म) सेनापितयq के गृहq क• चौड़ाई zमश: ८-८ हाथ कम होती है ()
(य) सेनापित के Lधान गृह क• चौड़ाई ६४ हाथ होती है ()
(र) सेनापित-गृह क• चौड़ाई से षˆाश ं अिधक ल…बाई होती है ()
(ऱ) सेनापित के ‘मsयम’ गृह क• ल…बाई १०० हाथ है ()
(ल) सेनापित के ‘अधम’ गृह क• चौड़ाई ५० हाथ है ()
अÐयास Lp
L.२ सेनापित-गृह के िवषय म' िलख' ।
__________________________________________________________
__________________________________________________________
__________________________________________________________
__________________________________________________________

४.६ दै@य3-िव#तृित के आधार पर मq'ी-गृहŠ के भेद


सिचव अथाFत् म*Hी के गृहq के भी ५ Lकार वा"तुशाvीय k*थq म' िमलते ह‰ । ये गृह भी पवू F
क• ही भािं त दै•यF और िव"तृित के मान के आधार पर वग¾कृ त ह‰ । टोडरान*द ने ‘वा"तसु ौgयम’् म'
उनका वणFन िकया है ।
४.६.१ वा#तुसौrयं के मतानुसार
षि[vतिु भ3ह²ना वेPमािन पcच सिचव#य ।
#वा[ांशयुता दै@यx ........ ।।

Kितपदाथ3

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 59


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
सिचव"य = मि*Hयq के , पÍच वे>मािन = ५ Lकार के घर बताए गए ह‰ । षि•: =
घर क• चौड़ाई ६० हाथ (होती है), चतिु भFह¾ना = शेष घरq क• चौड़ाई zमश: ४-४ हाथ कम
(होती है) । "वा•ांशयतु ा दै•यÖ = घर क• ल…बाई उसक• चौड़ाई के मान से अ•माश ं (१/८)
अिधक होती है ।
मंिHयq के घरq के जो मान बताए गए ह‰ उनम' ‘उ9मो9म’ या ‘Lधान’ घर क• चौड़ाई
६० हाथ होती है । शेष घरq क• चौड़ाई Lधान घर क• चौड़ाई क• तल ु ना म' zमश: ४-४ हाथ
कम होती है । मंिHयq के घरq क• चौड़ाई म' उनका अ•मांश (१/८) यिद जोड़ िदया जाए तो
ल…बाई का मान Lा° होता है ।
म*Hी के ‘उ9मो9म’ या ‘Lधान’ गृह क• चौड़ाई = ६० हाथ
म*Hी के ‘उ9मो9म’ या ‘Lधान’ गृह क• ल…बाई = ६० + ६०/८ हाथ
= ६० + ७.१२
= ६७.१२ हाथ अथाFत् ६७ हाथ १२ अंगुल
म*Hी के ‘उ9म’ गृह क• चौड़ाई = ६० – ४ = ५६ हाथ
म*Hी के ‘उ9म’ गृह क• ल…बाई = ५६ + ५६/८
= ५६ + ७
= ६३ हाथ
मq'ी के पcचिवध-गृह-मान क‹ तािलका
मq'ीगृह ल‚बाई चौड़ाई
उ9मो9म (Lधान) ६७.१२ हाथ ६० हाथ
उ9म ६३ हाथ ५६ हाथ
मsयम ५८.१२ हाथ ५२ हाथ
अधम ५४ हाथ ४८ हाथ
अधमाधम ४९.१२ हाथ ४४ हाथ

यहां उ£ ‘म*Hी’ के गृह के मान के समान व9Fमान समय के मि*Hयq के आवासq के मान
समझ सकते ह‰।

बोध Kl
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 60
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
L.३ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं

(क) म*Hी के गृहq क• चौड़ाई zमश: ६-६ हाथ कम होती है ()
(ख) मHं ी के Lधान गृह क• चौड़ाई ६० हाथ होती है ()
(ग) म*Hी-गृह क• चौड़ाई से अ•मांश अिधक ल…बाई होती है ()
(घ) म*Hी के ‘मsयम’ गृह क• चौड़ाई ६० हाथ है ()
(ङ) मHं ी के ‘अधम’ गृह क• ल…बाई ५० हाथ है ()
अÐयास Lp
L.३ म*Hी-गृह के Lकारq का िन[पण कर' ।
____________________________________________________
____________________________________________________
____________________________________________________
____________________________________________________

४.७ दै@य3-िव#तृित के आधार पर दैव¨-परु ोिहत-वै“गृहŠ के Kमाण


दैव€, परु ोिहत और वै? ये तीनq ही िकसी भी रा›य के अrयाव>यक अंग ह‰ । ये तीनq ही
हमारे ¢यावहा‡रक जीवन के अिभ*न अंग ह‰ । कारण यह है िक ›योितषी के िवना राजा, रा›य और
Lजा के भिव²यो*मख ु ी शभु -अशभु फल का प‡र€ा न और सक ं े त कौन करे गा? इसी Lकार िबना
िचिकrसक के तो आप समाज म' रहने क• क`पना भी नह„ कर सकते ह‰ । ठीक इसी तरह =या सनातन-
सं"कृ ित के सभी िनrय-नैिमि9क अनˆु ान, जप-ताप-होम-अचFन, गभाFधा से लेकर अंrयेि• तक के
सं"कार इन सभी का िzया*वयन िबना परु ोिहत के सभं व नह„ है ।
अत: इनके महUव को समझते ह†ए वा"तुशाv के सभी kंथq म' इनके आवास पर िवचार िकया
गया है ।
४.७.१ वा#तस ु ौrयं के अनस ु ार
चyवाdरंश°ीनाvतुvतुिभ3#तु पcच याविदित ।
षड्भागयुता दै@या3 दैव¨पुरोधसोिभ3षज: ।।
Kितपदाथ3

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 61


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
दैव€परु ोधसोिभFषज: = दैव€ अथाFत् ›योितषी, परु ोधा अथाFत् पुरोिहत और िभषक्
अथाFत् वै? इन तीनq के , तु = तो,चतु¦तुिभF: हीना = zमश: ४-४ हाथ कम, पÍच यावत् = ५ भेद
(घरq के ह‰), चrवा‡रंशद् = Lधान गृह क• चौड़ाई ४० हाथ, षड्भागयतु ा दै•याF = चौड़ाई अपने षˆाशं
अथाFत् छठे िह"से (१/६) से अिधक होने पर ल…बाई ।
यहां गौर करने वाली बात यह है िक इन तीनq ही के गृह क• ल…बाई एक-समान रखी
गयी है, जो इस बात का Lतीक है िक इन तीनq का ही सामान महUव अपनी पर…परा म' माना
गया है । इनके घरq के जो मान बताए गए ह‰ उनम' ‘उ9मो9म’ या ‘Lधान’ घर क• चौड़ाई ४०
हाथ होती है । शेष घरq क• चौड़ाई Lधान घर क• चौड़ाई क• तल ु ना म' zमश: ४-४ हाथ कम
होती है । इनके घरq क• चौड़ाई म' उनका षˆांश (१/६) यिद जोड़ िदया जाए तो ल…बाई का
मान Lा° होता है ।
›योितषी आिद के ‘उ9मो9म’ या ‘Lधान’ गृह क• चौड़ाई = ४० हाथ
›योितषी आिद के ‘उ9मो9म’ या ‘Lधान’ गृह क• ल…बाई = ४० + ४०/६ हाथ
= ४० + ६.१६
= ४६.१६ हाथ अथाFत् ४६
हाथ १६ अंगुल
›योितषी आिद के ‘उ9म’ गृह क• चौड़ाई = ४० – ४ = ३६ हाथ
›योितषी आिद के ‘उ9म’ गृह क• ल…बाई = ३६ + ३६/६
= ३६ + ६
= ४२ हाथ
eयोितषी आिद के पcचिवध-गहृ -मान क‹ तािलका
eयोितषी/पुरोिहत/वै“ ल‚बाई चौड़ाई
गृह
उ9मो9म (Lधान) ४६.१६ हाथ ३२ हाथ
उ9म ४२ हाथ २८ हाथ
मsयम ३७.८ हाथ २४ हाथ
अधम ३२.१६ हाथ २० हाथ
अधमाधम २८ हाथ १६ हाथ

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 62


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
यहां उ£ ‘›योितषी आिद’ के गृह के मान के समान व9Fमान समय के ›योितषी, वा"तुवे9ा,
डा=टर, वै€ािनक, याि*Hक इrयािद के आवासq के मान समझ सकते ह‰।
बोध Kl
L.४ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं

(क) ›योितषी के गृहq क• चौड़ाई zमश: ४-४ हाथ कम होती है ()
(ख) िचिकrसक के Lधान गृह क• ल…बाई ४६.१६ हाथ होती है ()
(ग) परु ोिहत-गृह क• चौड़ाई से षˆांश अिधक ल…बाई होती है ()
(घ) ›योितषी के ‘मsयम’ गृह क• चौड़ाई ३० हाथ है ()
(ङ) िचिकrसक के ‘अधमाधम’ गृह क• ल…बाई २५ हाथ है ()
अÐयास Lp
L.४ वा"तुव9े ा के सभी गृहq के Lमाण बताइए ।
_________________________________________________________
__________________________________________________________
__________________________________________________________
__________________________________________________________

४.८ दै@य3-िव#तृित के आधार पर चातुव30य3-गृहŠ के Kमाण


चातुवF;यF से अिभLाय ßाàण-“िHय-वै>य-श±ू इन वणœ से है। समाज म' इन सभी वणœ का
अपना-अपना अलग "थान और महUव है। इन सभी वणœ म' कोई भी ऐसा नह„ है जो दसू रे क• तल ु ना
म' कमतर है। ये चारq ही सनातन स"ं कृ ित के चार मजबतू पाए ह‰ िजनम' िकसी भी एक क• कमज़ोरी
संपणू F पर…परा व स"ं कृ ित को िनबFल बनाता है। अत: आचायœ ने सभी के आवास के Lमाण क• चचाF
वा"तश ु ाvीय k*थq म' क• है।
४.८.१ वा#तस ु ौrय के अनस ु ार
टोडरान*द ने ‘वा"तुसौgयं’ म' गृहq के Lमाणq क• चचाF बड़े ही िव"तार से क• है । वह„ पर
इन वणœ के गृह-Lमाण भी उ*हqने िन[िपत िकए ह‰। उनके अनसु ार –
चातुव30य3¯यासो Yाि'ंशत् #या˜चतुvतुह²ना।
आषोडशािदित परं qयनू तरमतीवहीनानाम।् ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 63


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
सदशांशं िवKाणां •'#या[ांशसंयुतदै@य3म।्
षड्भागयुतं वैPय#य भवित शू„#य पादयुतम।् ।
Kितपदाथ3
चातुवF;यF¢यासो = चारो ही वणœ के गृह का ¢यास (यहां ¢यास का अिभLाय चौड़ाई से है), _ािHंशत्
= ३२ हाथ, "यात् = हो, चत¦ु तुह¾ना = Lधान घर क• तल ु ना म' शेष गृह zमश: ४-४ हाथ छोटे होते
ह‰। आषोडशािदित परं *यनू तरमतीवहीनानाम् = १६ हाथ से कम *यनू ता क• चौड़ाई वाला घर हीन
कहलाता है। िवLाणां सदशाश ं ं दै•यFम् = ßाàण वणF के घर क• ल…बाई,उनक• चौड़ाई के दशांश अथाFत्
दसव' िह"से (१/१०) से अिधक होती है। “H"या•ांशसंयुतदै•यFम् = “िHय के गृह क• ल…बाई उसक•
चौड़ाई से १/८ गुनी अिधक होती है, वै>य"य षड्भागयतु ं = वै>य के गृह क• चौड़ाई म' उसका छठवां
िह"सा १/६ जोड़ने पर उसक• ल…बाई और इसी Lकार श±ू "य पादयतु म् = श±ू के गृह क• चौड़ाई म'
उसका चतुथाÖश (१/४) जोड़ने पर उसके गृह क• ल…बाई Lा° होती है।
िLय अsयेता! यहां कुछ िवषयq का "प• होना अrयाव>यक है। चारq वणœ के गृह-प‡रमाण के वणFन
म' ‘चत¦ु तहु ¾ना’ और ‘आषोडशािदित’ ये पद सक ं े त [प म' ह‰ िजसका "प•ीकरण अrयाव>यक है।
जैसा िक अभी तक आपने पढ़ा िक नृप इrयािद सभी के ५ Lकार के गृहq का िन[पण िकया गया है
उसके अनसु ार =या ßाàण आिद वणœ के भी ५ Lकार के गृहq का वणFन इन Äोकq म' िन[िपत िकया
गया है?
तो िमHq! इसका रह"य ऊपर के दो पदq म' िनगिू हत है। यहां ‘चत¦ु तुह¾ना’ इस पद का अथF दो स*दभœ
म' kहण िकया जाना चािहए। पहला िक ßाहमणािद Lrयेक वणF के िविवध गृहq क• चौड़ाई zमश: ४-
४ हाथ कम होती है। दसू रा अथF यह है िक ßाहमण आिद वणœ के Lधान गृह क• चौड़ाई ३२ हाथ से
आर…भ करके zमश: ४-४ हाथ कम होती है।
अथाFत् ßाàण के ‘उ9मो9म’ गृह क• चौड़ाई =३२ हाथ
“िHय के ‘उ9मो9म’ गृह क• चौड़ाई = (३२-४) २८ हाथ
वै>य के ‘उ9मो9म’ गृह क• चौड़ाई = (२८-४) २४ हाथ
श±ू के ‘उ9मो9म’ गृह क• चौड़ाई = (२४-४) २० हाथ
‘आषोडशािदित’ इस पद म' िनिहताथF यह है िक वणF कोई भी हो िक*तु उसके घर क• चौड़ाई १६ हाथ
से कम नह„ होना चािहए। अब चिंू क सभी वणœ के Lधान गृह क• चौड़ाई एक समान नह„ है अत: सभी
के गृह-Lकारq क• संgया म' भी भेद होना अव>य…भावी है। ऐसी ि"थित म' यिद Lrयेक वणF के गृह के
िवषय म' सÎू मता से िवचार कर' *यनू तम सीमा १६ हाथ तक ßाहमण-वणF के ५ गृह-

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 64


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
भेद Lा° होते ह‰ िजनक• चौड़ाई zमश: ३२ हाथ, २८, २४, २०, १६ हाथ है।
“िHय-वणF के ४ गृह-भेद Lा° होते ह‰ िजनक• चौड़ाई zमश: २८, २४, २० और
१६ हाथ ह‰।
वै>य वणF के ३ गृह-भेद Lा° होते ह‰ िजनक• चौड़ाई zमश: २४, २० और १६ हाथ
ह‰ ।
और श±ू वणF के २ गृह-भे Lा° होते ह‰ िजनक• चौड़ाई zमश: २०हाथ और १६
हाथ ह‰ ।
आइए, उदाहरण के तौर पर इन ßाàण आिद वणœ के एक-एक गृह क• ल…बाई-
चौड़ाई का मान िनकालते ह‰ –
ßाàण वणF के ‘उ9मो9म’ या ‘Lधान’ गृह क• चौड़ाई = ३२ हाथ
ßाàण वणF के ‘उ9मो9म’ या ‘Lधान’ गृह क• ल…बाई = ३२ + ३२/१० हाथ
= ३२ + ३.४.४८
= ३५.४.४८ हाथ अथाFत् ३५ हाथ ४ अगं ल ु ४८
¢यंगुल
ßाàण वणF के ‘उ9म’ गृह क• चौड़ाई = ३२-४ = २८ हाथ
ßाàण वणF के ‘उ9म’ गृह क• ल…बाई = २८ + २८/१० हाथ
= २८ + २.१९.१२
= ३०.१९.१२ हाथ अथाFत् ३५ हाथ १९ अंगल ु १२
¢यंगुल
§ा´ण वण3 के पcचिवध-गहृ -मान क‹ तािलका
§ा´ण गृह ल‚बाई चौड़ाई
उ9मो9म (Lधान) ३५.४.४८ हाथ ३२ हाथ
उ9म ३०.१९.१२ हाथ २८ हाथ
मsयम २६.९.३६ हाथ २४ हाथ
अधम २२ हाथ २० हाथ
अधमाधम १७.१४.२४ हाथ १६ हाथ

“िHय वणF के ‘उ9मो9म’ या ‘Lधान’ गृह क• चौड़ाई = २८ हाथ


“िHय वणF के ‘उ9मो9म’ या ‘Lधान’ गृह क• ल…बाई = २८ + २८/८ हाथ
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 65
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
= २८ + ३.१२
= ३१.१२ हाथ अथाFत् ३१ हाथ १२ अंगल

“िHय वणF के ‘उ9म’ गृह क• चौड़ाई = २४ हाथ
“िHय वणF के ‘उ9म’ गृह क• ल…बाई = २४ + २४/८ हाथ
= २४ + ३
= २७ हाथ
•ि'य वण3 के चतुिव3ध-गृह-मान क‹ तािलका
•ि'य गृह ल‚बाई चौड़ाई
उ9मो9म (Lधान) ३१.१२ हाथ २८ हाथ
उ9म २७ हाथ २४ हाथ
मsयम २२.१२ हाथ २० हाथ
अधम १८ हाथ १६ हाथ

वै>य वणF के ‘उ9म’ गृह क• चौड़ाई = २४ हाथ


वै>य वणF के ‘उ9म’ गृह क• ल…बाई = २४ + २४/६ हाथ
= २४ + ४
= २८ हाथ
वैPय वण3 के ि'िवध-गृह-मान क‹ तािलका
वैPय गृह ल‚बाई चौड़ाई
उ9म २८ हाथ २४ हाथ
मsयम २३.८ हाथ २० हाथ
अधम १८.१६ हाथ १६ हाथ

श±ू वणF के ‘Lधान’ गृह क• चौड़ाई = २० हाथ


वै>य वणF के ‘Lधान’ गृह क• ल…बाई = २० + २०/४ हाथ
= २० + ५
= २५ हाथ
शू„ वण3 के िYिवध-गृह-मान क‹ तािलका
शू„ गहृ ल‚बाई चौड़ाई

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 66


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
Lधान २५ हाथ २० हाथ
गौण २० हाथ १६ हाथ

बोध Kl
L.५ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं

(क) ßाहमण के पचं िवध-गृहq क• चौड़ाई zमश: ४-४ हाथ कम होती है ()
(ख) “िHय के Lधान गृह क• ल…बाई ३३.१२ हाथ होती है ()
(ग) “िHय के मsयम गृह क• चौड़ाई २० हाथ होती है ()
(घ) वै>य के ‘मsयम’ गृह क• ल…बाई २४.८ हाथ है ()
(ङ) श±ू के ‘गौण’ गृह क• ल…बाई २० हाथ है ()
अÐयास Lp
L.५ वै>य वणF के सभी गृहq के Lमाण बताइए ।
__________________________________________________________
__________________________________________________________
__________________________________________________________
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४.९ साराश
ं –
राजा इrयािद के पाचं Lकार के गृहq का िन[पण िकया है, जो zमश: - १. उ9मो9म, २. उ9म, ३.
मsयम,
४. अधम, और ५. अधमाधम । ये सभी कोिटयां उनके दै•यF और िव"तृित के आधार पर िनधाF‡रत क•
गयी ह‰ । राजगृह के जो ५ भेद बताए गए ह‰ उनम' सवFÙेˆ ‘उ9मो9म’ या ‘Lधान’ सं€क भेद क• चौड़ाई

१०८ हाथ तथा चौड़ाई के मान क• सवा (१ )गुिणत या दसू रे शnदq म' कह' तो चौड़ाई के मान से

चतथु ाÖश अिधक ल…बाई होती है । सेनापित के भी गृह के ५ भेद ह‰ जो िक zमश: चौड़ाई म' ६-६ हाथ
छोटे होते जाते ह‰ । आचायF ने Lधान गृह क• चौड़ाई ६४ हाथ बताई है । इसी Lकार सेनापित के गृहq
क• चौड़ाई के मान म' उसका छठा भाग (१/६) जोड़ िदया जाए तो उस गृह क• ल…बाई का €ान हो
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 67
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
जाता है । मंिHयq के घरq के जो मान बताए गए ह‰ उनम' ‘उ9मो9म’ या ‘Lधान’ घर क• चौड़ाई ६०
हाथ होती है । शेष घरq क• चौड़ाई Lधान घर क• चौड़ाई क• तल ु ना म' zमश: ४-४ हाथ कम होती है
। मिं Hयq के घरq क• चौड़ाई म' उनका अ•माश ं (१/८) यिद जोड़ िदया जाए तो ल…बाई का मान Lा°
होता है । ›योितषी, पुरोिहत और वै? इन तीनq के ‘उ9मो9म’ या ‘Lधान’ घर क• चौड़ाई ४० हाथ
होती है । शेष घरq क• चौड़ाई Lधान घर क• चौड़ाई क• तल ु ना म' zमश: ४-४ हाथ कम होती है ।
इनके घरq क• चौड़ाई म' उनका षˆाश ं (१/६) यिद जोड़ िदया जाए तो ल…बाई का मान Lा° होता है ।
ßाàण आिद वणœ के Lधान गृह क• चौड़ाई zमश: ३२ हाथ, २८ हाथ, २४ हाथ, २० हाथ होती है
और Lधान घर क• तल ु ना म' शेष गृह zमश: ४-४ हाथ छोटे होते ह‰ । ßाàण वणF के घर क• ल…बाई,
चौड़ाई के दशांश अथाFत् दसव' िह"से (१/१०) से अिधक “िHय के गृह क• ल…बाई उसक• चौड़ाई से
१/८ गनु ी अिधक, वै>य के गृह क• चौड़ाई म' १/६ िह"सा जोड़ने पर उसक• ल…बाई और शू± के गृह
क• चौड़ाई म' उसका चतथु ाÖश (१/४) जोड़ने पर उसके गृह क• ल…बाई Lा° होती है ।
४.१० श†दावली –
अ•ो9रं = १०८ नृपमि*दरम् ।
िव"तारं = चौड़ाई
अ•ा•ोिनतािन = ८-८ कम
पादसंय£ ु ं = एक चौथाई अिधक जुड़ा (सवा)
सãनां = घरq के
चत:ु षि•: = ६४ ।
षड्भागसमि*वतं = १/६ िह"सा जुड़ा
दै•यFम् = ल…बाई
वे>मािन = घर
"वा•ांशयतु ा = अपने अ•मांश १/८ से जड़ु ा
परु ोधस: = परु ोिहत का
िभषज: = वै? का
आषोडशात् = १६ से लेकर
*यनू तरम् = कम
सदशांशं = दशांश १/१० से य£ु
“H"य = “िHय का
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 68
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
अ•ांशसंयुतं = १/८ जुड़ा
४.११ बोध KlŠ के उpर -
L.१ (क) (×) (ख) (√) (ग) (√) (घ) (×) (ङ) (×)
L.२ (क) (×) (ख) (√) (ग) (√) (घ) (×) (ङ) (×)
L. ३ (क) (×) (ख) (√) (ग) (√) (घ) (×) (ङ) (×)
L. ४ (क) (√) (ख) (√) (ग) (√) (घ) (×) (ङ) (×)
L.५ (√) (ख) (×) (ग) (√) (घ) (×) (ङ) (√)

४.१२ सqदभ3 }qथ सच


ू ी–
१. राम मनोहर ि_वेदी (२०१२) बृह_ा"तुमाला, चौख…बा सरु भारती k*थमाला, चौख…बा
सरु भारती Lकाशन, वाराणसी ।
२. कमलाका*त श=ु ल (१९९९), टोडरम`लिवरिचतं वा"तुसौgयं,
स…पणू ाFन*दस"ं कृ तिवÃिव?ालय:, वाराणसी ।
३. डा. मरु लीधर चतुव—दी (२००७), रामदीनिवरिचतं बृहNैव€रÍजनम्
Ùीधरीिह*दी¢याgयासिहतम,् मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी ।
४.१३ सहायक }qथ सच
ू ी–
१. डा. अशोक थपिलयाल (२०११), वा"तLु बोिधनी, भारतीय ›योितष, अमर k*थ
पिnलके श*स, िद`ली ।
४.१४ िनबqधाyमक Kl –
१. राजगृह के सभी भेदq पर Lकाश डािलए ।
२. म*Hी के सभी Lकार के गृहq के प‡रमाण को "प• कर' ।
३. ßाàण वणF के सभी गृह-भेदq को िव"तार से िन[िपत क•िजए ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 69


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104

ख0ड – 2
वा#तुपद Yार िनधा3रण, भेद, #वIप एवं महु p
o ा3िद िवचार

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 70


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
इकाई - १ वा#तुपद Yार िनधा3रण
इकाई क‹ संरचना
१.१ L"तावना
१.२ उNे>य
१.३ वा"तपु द _ार िनधाFरण
१.३.१ एकाशीित, चत:ु षि• आिद वा"तु पद _ार िनधाFरण
१.३.२ िदशाओ ं का _ार फल िवचार
१.३.३ _ार वेध फल
१.४ साराश

१.५ पा‡रभािषक शnदावली
१.६ बोध L>नq के उ9र
१.७ स*दभF k*थ सचू ी
१.८ सहायक पाठ्यसामkी
१.९ िनब*धाrमक L>न

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 71


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
१.१ K#तावना
L"ततु इकाई वा"तश
ु ा"H म' िडwलोमा पाठ्यकम के चतुथF पH DVS-104 से स…बि*धत है।
इस इकाई का शीषFक है – वा"तपु द _ार िनधाFरण। इससे पवू F क• इकाईयq म' आपने वगF, आय तथा
िप;डािद साधन का अsययन कर िलया है। अब आप वा"तुपद _ार िनधाFरण का अsययन करने जा
रहे ह‰।
वा"तु शा"H के अ*तगFत _ार िनधाFरण अrय*त महrवपणू F िवषय माना गया है। गृहिनमाFण म'
वा"तपु द _ार िनधाFरण का िनणFय िविभ*न [पq म' हम' अsययनोपरा*त Lाwत होता है। यथा -
रािशपरrवेन, आयपरrवने, वणाFयपरrवेन आिद इrयािद।

वा"तपु द _ार का िनधाFरण कै से होता है? इसके कौन-कौन से Lमख


ु घटक ह‰? इसका Lयोजन
एवं महrव =या है? आिद इrयािद तrस…बि*धत सम"त L>नq के समाधानाथF इस इकाई का हम सब
अsययन करते ह‰।

१.२ उNेPय
इस इकाई के अsययन के प>चात् आप जान ल'गे िक –

Ø वा"तु पद _ार िनधाFरण =या है।


Ø _ार का िनधाFरण कै से करते है।
Ø गृहिनमाFण म' _ार का महrव =या है।
Ø वा"तु शा"H म' _ार स…बि*धत मgु य िवषय कौन-कौन से है।
१.३ वा#तुपद Yार िनधा3रण

‘_ार िनधाFरण’ वा"तु शा"H का अrय*त महrवपणू F िवषय है। वा"तपु द _ार िनधाFरण के _ारा
शा"Hानसु ार िनिणFय कर गृह का मgु य _ार का िनमाFण िकया जाता है। गृहश
े (गृह का "वामी) के
रािशवशाद् _ारिदिÀवभाग का िनधाFरण करते ह†ए ›योितिनFब*धकार कहते ह‰ िक –
कुलीरािलझषाणां च पूव3Yारं शुभावहम।्

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 72


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
कqयामकरय¬ु मानां दि•णYारिम‡टदम।् ।
तुलाकु‚भवृषाणां च पिvमािभमुखं #मृतम।्
‚यYारं शभ ु ाय #याqमेषिसहं धनभ ु 3ृताम।् ।
अथाFत् ककF , वृि¦क और मीन रािशवालq के िलए पवू Fिदशा म', क*या, मकर और िमथुन रािशवालq
के िलए दि“ण िदशा म', तुला, कु…भ और वृष रािशवालq के िलये पि¦म िदशा म' एवं मेष, िसंह और
धनुरािशवालq के िलए उ9र िदशा म' _ार मकान का मख ु बनाना उ9म फलदायक होता है।
इसी सqदभ3 म) ‘वा#तुराजवfलभ’ }qथकार का िवशेष कथन है –
राशीनामिलमीनिसंहभवनं पूवा3नतं शोभन।ं
कqयाकक3 टनaरािशगृिहणां या‚याननं मिqदरम।् ।
राशेध3िqवतल ु ायगु #य सदनं श#तं Kतीचीमख ु ।ं
पुंसां कु‚भवृषाजरािशजनुषां सौ‚याननं #याद् गृहम।् ।
वृि¦क, मीन और िसहं रािशवालq के िलए पवू Fिदशा म', क*या, ककF और मकर रािश वालq के िलए
दि“ण िदशा म', धन,ु तल ु ा और िमथनु रािश वालq के िलए पि¦म िदशा म' और कु…भ, वृष तथा
मेषरािशवालq के िलए उ9र िदशा म' मकान का दरवाजा बनाना उ9म होता है।
‘वृहNैव¨रंजन’ के रचियता आचाय3 रामदीन दैव¨ Yारा िलिखत वण3 आधाdरत िविभqन रािश
वालŠ के िलए गृह Yार िनण3य –
पूवg §ा´णराशीनां वैPयानां दि•णेशुभम।्
शू„ाणां पिvमे Yारं नृपाणामुpरे मतम।् ।
ßाàण रािश (ककF , वृि¦क, मीन) वालq के िलए गृह _ार पवू F म', “िHय रािश (वृष, क*या एवं
मकर) वालq के िलए उ9र म', वै>य रािश (िमथनु , तल ु ा, कु…भ) वालq के िलए दि“ण म' तथा श±ू
रािश (मेष, िसहं एवं धन)ु वालq के िलए पि¦म िदशा म' गृह _ार बनाना शभु फल देने वाला होता है।
राजाओ ं के िलए उ9र िदशा म' गृह_ार बनाना उ9म होता है।
#प‡टाथ3 चa -
पूव3 दि•ण पिvम उpर िदशा
ककF , वृि¦क, मीन क*या, मकर, िमथनु तुला, कु…भ, वृष मेष, िसहं धनु eयोितिन3बqधो¦त
वृि¦क, मीन, िसहं क*या, ककF , मकर धनु, तल ु ा, िमथनु मेष, वृष, कु…भ वा#तरु ाजवfलभो¦त
ßàणरािश४,८,१२ वै>य रािश२,६,१० श±ू रािश३,७,११ नृप रािश १,५,९ वृहNैव¨रंजनो¦त

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 73


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
अब आय परyवेन ‘Yार िनण3य’ कहते है –
सव3Yारइह•वजोवIणिद¬Yारं च िहyवा हdर:।
Kा¬Yारो वृषभो गजो यम सुरेशाशामुख: #या˜छुभ:।।
अथाFत् sवज आय वाले गृह म' सभी िदशाओ ं म' _ार रखना शभु द होता है। िसहं आय के िलए पि¦म
से इतर िदशाओ ं म', वृष आय के िलए पवू F िदशा म', गज आय के िलए पवू F और दि“ण िदशाओ ं म'
_ार शभु होता है।
वणा3यपरyवेन गृहYार िनण3य –
•वजे Kती˜यां मुखम}जानामुदगं मुखं भूिमभृतां च िसंहे।
िवशोवषृ े Kा¬वदनं गजेतु श„ू #य या‚यां िह समामनिqत।।
ßाàण वणF और sवज आय वाले गृह म' पि¦म क• ओर, “िHय वणF और िसंह आय के िलए उ9र
िदशा म', वै>य वणF और वृष आय के िलए पूवF िदशा म' और श±ू वणF और गज आय के िलए दि“ण
िदशा म' गृह _ार करना शभु फलदायी है।
गृह _ार ल…बाई और चौड़ाई म' ही बनाना उ9म होता है। कोणq म' _ार नह„ बनाना चािहए। वह अशभु
फलदायी होता है। जैसा िक कहा भी है –
Yारमायात: कायx प'ु पौ'धनKदम।्
िव#तारकोणं Yारं यद् दु:खशोकभयKदम।् ।
दीवार के मsय म' _ार बनाना आचायœ _ारा िनषेध िकया गया है। साथ ही _ार के उपर भी _ार नह„
बनाना चािहए। यथा – िभिpम•ये कृतं Yारं „¯यधाqयिवनाशनम।् आवहेत् कलहं शोकं नारीवा3
स‚Kदूषयेत्।। Yार#योपरियद्Yारं Yारं Yार#यस‚मुखम।् न कायx ¯ययदं य˜च संकटं
तNdर„कृत।् ।

१.३.१ एकाशीित, चतु:षि[ आिद वा#तुपद िनधा3रण


आइए अब हम वा"तु म' एकाशीित पद, ३२ बाçकोण म' ि"थत देवताओ ं तथा चत:ु षि• पद िवभाग
आिद का अsययन करते ह‰।
एकाशीितिवभागे दश दश पवू ªpरायता रेखा:।
अqतwयोदश सुरा Yाि'ंशYा®कोण#था:।।
अथाFत् एकाशीित ८१ पद का वा"तु बनाने के िलए १० रे खा पवू F-पि¦म और १० रे खा उ9र दि“ण

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 74


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
को बनाना चािहए ऐसा करने से ८१ को²ठक हो जाय'गे उनम' भीतर १३ देवता और बाहर ३२ देवता
होते ह‰।
sयान देने योÀय बात यह है िक वा"तपु जू न के समय ४५ देवताओ ं का ८१ को²ठक के अ*दर
िव*यास करना पड़ता है। इस अिभLाय से यहाँ ४५ देवताओ ं का उ`लेख िकया है। िक*तु _ार म' बाहरी
३२ देवताओ ं के भागq का ही Lयोजन पड़ता है। इसिलये यहाँ आगे के वल उ*ह„ का िवभाग zम
आपके €ानाथF L"ततु है –

चa म) ि#थत ३२ §ा®कोण#थ देवता –


िशिखपय3qयजयqतेq„सyया भृशोऽqतdर•Pच।
ऐशाqयािद aमशो दि•णपवू gऽिनल: कोणे।।
पूषािवतथवृहy•तयमगqधवा3rयभंगराजगमृगा:।
िपतृदौवाdरकसु}ीवकुसुमदqताऽ‚बुपyयसुरा:।।
शेषोऽथ पापयhमा रोग: कोणे ततोऽिहमुrयौ च।
भfलाटसोमभज ु गा#ततोऽिदितिदितdरित aमश:।।
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 75
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
उ=त एकाशीित (८१) को²ठक के वा"तपु द म' ईशान कोण से आर…भ करके अिÀन कोण तक १ िशिख,
२ पयF*य, ३ जय*त, ४ इ*±, ५ सयू ,F ६ सrय, ७ भृश, ८ आकाश इन आठो देवताओ ं का और पवू F
तथा दि“ण (अिÀन कोण) म' ९ वायु का भाग होता है। उसके बाद अिÀन कोण से नैऋFrय कोण तक
१० पषू ा, ११ िवतथ, १२ वृहr“त, १३ यम, १४ ग*धवF, १५ भृगं राज, १६ मृग, १७ िपतृ, इनका िफर
नैऋF¢य कोण से वाय¢य कोण तक १८ दौवा‡रक, १९ सkु ीव, २० प²ु पद*त, २१ व[ण, २२ असरु ,२३
शोष,२४ पाप और २५ रोग इनका उसके बाद वाय¢य कोण से ईशान कोण तक २६ अिह, २७ मुgय,
२८ भ`लाट, २९ सोम, ३० सपF, ३१ अिदित और ३२ िदित इन देवताओ ं का भाग zम से होता है।
नवगुणसू'िवभ¦ताqय‡टगण ु ेनाऽथवा चतु:ष‡ठे ।
Yारािण यािन तेषामनलादीनां फलोपनय:।।
अनलभयं #'ीजननं Kभतू धनतां नरेq„वाfलsयम् ।
aोधपरता नतृ yवं aौयx चौयx च पूवgण ।।
अfपसतु yवं Kै‡यं, नीचyवं भhयपानसतु विृ °:।
रौ„ं कृत@नमधनं सुतवीय3@नं च या‚येन।।
सतु पीडाdरपवु ृि°न3सतु धनाि…: सतु ाथ3फलस‚पत।्
धनस‚पqनपृ ितभयं धनh◌ायो राग इyपरे ।।
बधवqधोdरपुवृि°: सुतधनलाभ: सम#तगुणस‚पत।्
प'ु धनाि…व¥रं सुतेन: दोषा: ि•यां नै:#वम।् ।
नव गिु णत सHू से िवभािजत कर ८१ पद म' अथवा अ²टगुिणत सHू से 64 पद म' िशिख आिद
देवताओ ं के िवभाग होते ह‰। उनम' _ार बनाने के फल कहते ह‰।
पवू F िदशा म' Lथम िशिख भाग म' _ार बनाने से अिÀनभय 2- पयF*त भाग म' _ार बनाने से
क*याओ ं का ज*म, 3- जय*त भाग म' _ार बनानेसे Lचरु धन लाभ, 4- इ*± के भाग म' _ार बनाने से
राजकृ पा, 5- सयू F भाग म' _ार बनाने से zोधािध=य, 6- सrय भाग म' _ार बनाने से झूठ क• अिधकता,
7- भृश भाग म' _ार बनाने से zुरता, 7- आकाश भाग म' _ार करने से चौरभय होता है।
दि“ण िदशा म' 1- वायु भाग म' _ार बनाने से स*तित क• अ`पता, 2- पषू ा या पौ²ण भाग म'
_ार बनाने से दास वृि9, 3- िवतथ भाग म' _ार बनाने से नीच वृि9, 4- वृहr“तभाग म' _ार बनाने से
भÎय, पान और पHु q क• वृि~ होती है। 5- यम के भाग म' _ार बनाने से अशुभ फल क• Lाि°, 6-

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 76


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
गंधवF के अंश म' _ार बनाने से कृ त•नता, 7- भृड.गराज के भाग म' _ार करने से दा‡र±य, 8- मृग के
भाग म' _ार बनाने से स*तित और पराzम क• हािन होती है।
पिÙम िदशा म' 1- िपतृ भाग म' _ार बनाने से सतं ित क²ट, 3- दौवा‡रक म' बनाने से शHओु ं
क• वृि~, 3- सkु ीव भाग म' _ार बनाने से धन और पHु क• अLाि°, 4- कुसमु द*त नामक भाग म' बनाने
से पHु ािद तथा धनधा*य क• अिभवृि~, 5- व[ण भाग म' बनाने से धन Lाि°, 6- असरु भाग म' बनाने
से राजभय, 7- शेष भाग म' बनाने से धन“य 8- पाप प“ भाग म' बनाने से रोगािद का भय होता है।
उrतर िदशा म' 1- रोग भाग म' _ार बनाने से वध और ब*धन क• Lाि° होती है। 2- सापF भाग म' _ार
बनाने से शHुविृ ~ 3- मgु य भाग म' _ार बनाने से धनलाभ 4- भ`लाट भाग म' _ार बनाने से गुण और
स…पि9 का लाभ 5- सौ…य भाग म' बनाने से पHु धन क• वृि~, 6- भौजड.ग नामक भाग म' _ार बनाने
से पHु से िवरोध, 7- आिदrय भाग म' _ार बनाने से "Hी को क²ट 8- िदित भाग म' _ार बनाने से िनधFनता
होती है।
३२ पद िवभाग
पूव3
१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८
३२

३१ १०
३० ११
२९ १२

२८ १३
२७ १४
२६ १५
२५ २३ २२ २१ २० १९ १८ १६
१७
२४
पिvम
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 77
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
उपर ३२ _ारq का zमश: फल कहा गया है। जैसे िक पवू F म' Lथम िशिख भाग म' _ार बनाने से भय २
म' पयF*त भाग म' _ार बनाने से क*या सतं ित, ३ जय*त भाग म' Lचरु धन लाभ आिद सम"त फल,
"प²ट है आप सभी समझ ही गये हqगे। उपर “ेH म' दािहन' ओर दि“ण तथा बाय' और उ9र िदशा kहण
करना चािहए।
उपय3ु¦त संदभ3 म) िन‚न बचन भी „‡ट¯य है-
पूवा30यैशाqयां या‚या¬नेरययां दि•णािनजानीयात।्
Yारािण नैऋ3ताy पिvमाqयुद¦#थािनवाय¯याम।् ।
आ¬नेयमि¬नभयं पाज3qयं#'ीKसूितदं Yारम।्
Kचुरधनदं जयqतं नपृ वfलभकाdर माहेq„म।् ।
शौयgaोध: Kचुर: सyयऽनतृ वािदतं भृशेकौय3म।्
चौयx तथाqतdर•े Kा¬Yारािण Kिद‡टािन।।
वाय¯येऽfपसुतyवं Kै‡यं पी‡णेऽथनीचता िवतथे।
ब¹'पानपु'ं वृहy•ते या‚यािप रौ„म।् ।
गाqधवg गqधलं नपृ चौय3भयाय भगृं राजाrयम।्
मृगमिप सुतवीय3@नं दि•णतो Yारिनदgश:।।
िप'ये शरीरपीडा दौवाdरकसंि¨ते च dरपुवृि°:।।
सु}ीव धनहािन: पु'धनाढयं कुसुमदqतम।्
वाIणमथ3 िनचयदं नृपभयदं चासुर िविनिद‡ं टम।् ।
शोषं धनहािनकरं बह›रोगं पापयhमाrयम् ।।
रोगमखं बधबqधदमाyमजवैरािभवृि°दं नागम् ।
मुrयं धनसतु वृि°दमनेककfयाणदं च भfलाटम् ।।
सौ‚यं धनप'ु करं भौजड.गे प'ु वैरdरपुवृि°:।
अिदतौ #'ीदोषा: #यिु द3तौ धनं स•यं याित।।
६४ पद िवभाग –
अ‡टा‡टकपदमथवा कृyवा रेखाPच कोणगाि#तय3क्।
§´ा चतु‡पदोऽि#मqनध3पदा §´कोण#था:।।
अ‡टौ च बिह‡कोणेबध3पदा#तदुभयि#थता: साधा3:।
उ¦तेsयो ये शेषा#ते िYपदा िवंशित#ते च।।
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 78
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
अथाFत् ६४ पद का वा"तु बनाने के िलए पवू F िविध से ९ रे खाय' पवू F पि¦म

१.३.२ िदशाओ ं का Yार फल िवचार -


पूव3Yार फलम्
अिनलभयं •ीजqम Kभतू धनता नर)„तो लि†धः।
aोधािधकyवमनतृ ं aौधं चौय3 aमाyपवू g3।।
पवू F िदशा के Lथम दरवाजे का नाम िशिख होता है, इसम' दरवाजा रखने पर वायु का भय
होता है। दसू रे का पजF*य, इसम' बनाने पर क*या का ज*म होता है। तीसरे का नाम जय*त होता है
इसम' दरवाजा रखने पर धन क• अिधकता होती है। चौथे का नाम इ*± है, इसम' रखने पर राजिLयता
होता है। पाँचव' का नाम सयू F हाता है इसम' बनाने पर zोध क• अिधकता होती है। छठे का नाम सrय
होता होता है। इसम' इसम' असrयता, सातव' का नाम भृश होता है, इसम' zुरता और आठव' का नाम
अ*त‡र“ होता है उसम' दरवाजा बनाने पर चोरी होती है।
वृहyसंिहता }qथ म) Kितपािदत गृहYार फल
दि•ण Yार फल -

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 79


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
अfपसुतyवं Kै‡यं नीचyवं भhयपानसुतवृि°ः।
रौ„ं, कृत@नमधनं सतु वीय3@नं च या‚येन ।।
दि“ण म' अिनल पद म' _ार हो तो कम पHु , पषू ा पद म' हो तो दासभाव, िवतथ म' हो तो
नीच कमF व नीच आचरण, वृहr“त पर हो तो अ*न क• बह†तायात व पHु वृि~, यम पर हो तो
अशभु , ग*धवF पर हो तो कृ त•नता, भृगं राज पर हो तो िनधFनता और मृग पर हो तो पHु क• शि£ का
íास होता है।

पिvमYारफलम्
सुतपीडा dरपुवृि°न3 सुतधनाि…ः सुताथ3फलस‚पत।्
धनस‚पिpनृपितभयं धन•यो रोग इyयपरे ।।
िपतर पद _ार हो तो पHु q का क•, दौवा‡रक पद हो तो शHु वृि~, सkु ीव पद म' _ार हो तो
धन व पHु वृि~, प²ु पद*त म' _ार हो तो सतु ाथFफल, व[णपद म' हो तो धनाि° असरु पद हो तो
राजभय, शोष पद हो तो धन नाश तथा पापयÎमा पद म' _ार हो तो रोगभय होता है।
उpरYारफलम्
वधबqधो dरपुवृि°ः सुतधनलाभः सम#तगुणस‚पत।्
प'ु धनाि…व¥रं सतु ेन दोषाः ि•या नैः#वम् ।।
उ9र िदशा म' रोग पद पर _ार हो तो मृrयु ब*धन, सपFपद म' _ार हो तो शHु वृि~, मgु य पद
म' _ार हो तो धन व पHु का लाभ, भ`लाट पद _ार हो तो सब गुण व स…पि9याँ, सोम पर _ार हो तो
पH से _ेष, चरक पद पर _ार हो तो सतु दोष अिदित पद म' _ार हो तो vी _ारा क•, िदित म' _ार हो
तो िनधFनता होती है।
तुला, मेष, वृष, वृि¦क रािश के सयू F म' दि“ण, उ9र िदशा म' दरवाजे का मुख रखना चािहए। इसके
िवपरीत रािशयq के सयू F म' मीन-धन-ु क*या म' जो मकान बनता है वह बुि~हीन रोग व शोक य£ ु
होता है।
महिष3 गग3 के मत से Yार न•' -
कृिpकाभगमैq„ं च िवशाखा च पनु व3सःु ।
ित‡यो ह#त#तथाऽऽ„ाx च aमात् पूवgषु िनिद3शेत।् ।
िच'ा िवशाखा पौ‡णं च नैऋ3तं यमदैवतम्।
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 80
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
वैiदेवािiनं मै'ं aमाद् दि•णसंिŸतम।् ।
िप यं Kो पदाय3‚णमाषाढं च िYदैवतम।्
वाIणािiनसािव'ं aमात् पिvम सिं Ÿतम।् ।
#वाyया»े षािभिजyसौ‚यं वै‡णवं वासवं तथा।
या‚यं §ा´ं aमात् सौ‚यYारेषु च िविनिद3शेत।् ।
पवू F िदशा म' ईशान से चलकर Lदि“णा zम से कृ ि9का, प.ू फा., ›येˆा, िवशाखा, पनु वFस,ु
प²ु य, ह"त, आ±ाF ये पूवF िदशा के _ार न“H ह‰। िचHा, िवशाखा, रे वती, मल
ू , भरणी, उ. षा., अिÃनी,
अनरु ाधा ये दि“ण िदशा के _ार न“H ह‰। मघा, उ. भा. उ. फा. उ. षा. िवशाखा, शतिभषा, अिÃनी,
ह"त, ये पि¦म िदशा के _ार न“H ह‰। "वाती, Äे षा, अिभिजत,् मृगिशरा, Ùवण, ›येˆा, भरणी,
रोिहणी ये उ9र िदशा के _ार न“H ह‰। _ार न“H व गृह "वामी से च*±मा व तारा क• अनक ु ू लता
देखकर _ार िनि¦य करना चािहए। आय का िवचार (sवजािद) भी आव>यक है।
१.३.३ Yारवेध का फल -
माग3तIकोणकूप#त‚भœमिव°मशभ ु दं Yारम।्
उ˜¼ायाद् िYगुणिमतां yय¦yवा भूिमं न दोषाय ।।
दरवाजे के सामने मागF (सीधा Vertical गिलयारा), पेड़, कोना, कुआँ, ख…भा, पानी
िनकलने का "थान (नाली) हो तो अशभु होता है। लेिकन दरवाजे क• ऊँ चाई से दगु नी दरू ी पर उ£
चीज' हq तो वेध दोषकारक नह„ माना जाता है। यह दरू ी भवन क• ऊँ चाई क• दगु नी न होकर दरवाजे
क• ऊँ चाई से दगु नी होनी चािहए।
नारायण मत म) -
कोणा•वœमकूपकद3 - मतIYा#तंभदेवेि•तं।
स¢ो˜चं िYगुणािधकांतरभवे वेधे न दोषः िकल।।
मागF, Þम (कुलाल चzािद), कुआ, क•चड़, वृ“ _ार*तर, ख…भा, देवमि*दर से िव~ घर
का मखु नह„ बनाना चािहये और घर क• ऊँ चाई से दगू नी दरू ी होने पर ये दोष दाता नह„ होते ह‰।
Yारो˜¼ायिYगिु णतां भिू मं yय¦yवा बिहः ि#थतः।
न दोषाय भवेYेधो गृह#य गृिहणोऽथवा ।।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 81


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
_ार क• ऊँ चाई से ि_गुिणत भूिम को छोड़कर बाहर क• भूिम पर _ारवेध नह„ होता है। वेध
से ताrपयF ठीक सामने होने से है। दरवाजे के सामने खड़ी रे खाrमक ि"थित हो तो गली, नाली आिद
वेध दोषकारक होती है।
र½यािव°ं Yारं नाशाय कुमारदोषदं तIणा।
पड्.कYारे शोको ¯ययोऽ‚बुिनः•ािविण Kोšः।।
कूपेनाप#मारो भवित िवनाशv देवतािव°े।
#त‚भेन •ीदोषाः कुलनाशो §´णािभमुखे।।
गिलयारे से वैध हो तो गृह"वामी के िलए िवनाश कारक। पेड़ से वैध हो तो घर के बालकq
के िलए दोष कारक, क•चड़ व पानी के "थान से वैध हो तो शोक कारक तथा नाली का वेध हो तो
खबू धन ¢यय होता है। कुआँ हो तो मानिसक अि"थरता, िमग¾ आिद। दरवाजे के ठीक सामने देव
Lितमा हो तो गृह"वामी का िवनाश। ख…बा हो तो िvयq के िलए दोष कारक। ßàा "थान (भीतर
से) या बाहर ßàा क• Lितमा से वेध हो तो कुलनाश होता है।

बोध KPन : -
1. िन…न म' ‘झष’ का शािnदक अथF है?
क. मीन ख. वृष ग. तुला घ. िमथुन
2. मकर और िमथनु रािश वालq के िलए िकस िदशा म' _ार बनाना शभु होता है?
क. पवू F म' ख. पि¦म म' ग. उ9र म' घ. दि“ण म'
3. वृहNैव€रंजन k*थ के रचियता कौन है?
क. वराहिमिहर ख. भा"कर ग. रामदीन दैव€ घ. वासदु वे
4. िन…न म' “िHय रािशयाँ कौन-कौन सी है?
क. िमथनु , ककF एवं िसहं ख. वृष, क*या एवं मकर ग. तल ु ा, वृि¦क एवं मेष घ. कोई नह„
5. _ार के उपर _ार बनाना कै सा होता है।
क. शभु ाशभु ख. शभु ग. अशभु घ. कोई नह„
6. एकाशीित पद चz म' बाहर देवताओ ं क• सgं या िकतनी है?
क. ३३ ख. ३४ ग. ३२ घ. ३०

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 82


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
१.४ सारांश
इस इकाई के अsययन के प>चात् आपने जान िलया है िक ‘_ार िनधाFरण’ वा"तु शा"H का
अrय*त महrवपणू F िवषय है। वा"तपु द _ार िनधाFरण के _ारा शा"Hानसु ार िनिणFत कर गृह का मgु य _ार
का िनमाFण िकया जाता है। गृहश े (गृह का "वामी) के रािशवशाद् _ारिदिÀवभाग का िनधाFरण करते ह†ए
›योितिनFब*धकार कहते ह‰ िक – ककF , वृि¦क और मीन रािशवालq के िलए पवू Fिदशा म', क*या, मकर
और िमथनु रािशवालq के िलए दि“ण िदशा म', तुला, कु…भ और वृष रािशवालq के िलये पि¦म िदशा
म' एवं मेष, िसहं और धनरु ािशवालq के िलए उ9र िदशा म' _ार मकान का मख ु बनाना उ9म फलदायक
होता है। इसी स*दभF म' ‘वा"तुराजव`लभ’ k*थकार का िवशेष कथन है – वृि¦क, मीन और िसहं
रािशवालq के िलए पवू Fिदशा म', क*या, ककF और मकर रािश वालq के िलए दि“ण िदशा म', धनु,
तुला और िमथनु रािश वालq के िलए पि¦म िदशा म' और कु…भ, वृष तथा मेषरािशवालq के िलए उ9र
िदशा म' मकान का दरवाजा बनाना उ9म होता है।
‘वृहNैव€रंजन’ के रचियता आचायF रामदीन दैव€ _ारा िलिखत वणF आधा‡रत िविभ*न रािश वालq
के िलए गृह _ार िनणFय – ßाàण रािश (ककF , वृि¦क, मीन) वालq के िलए गृह _ार पवू F म', “िHय
रािश (वृष, क*या एवं मकर) वालq के िलए उ9र म', वै>य रािश (िमथनु , तल ु ा, कु…भ) वालq के िलए
दि“ण म' तथा श±ू रािश (मेष, िसहं एवं धन)ु वालq के िलए पि¦म िदशा म' गृह _ार बनाना शभु फल
देने वाला होता है। राजाओ ं के िलए उ9र िदशा म' गृह_ार बनाना उ9म होता है।
१.५ पाdरभािषक श†दावली
अिल – वृि¦क रािश।
झष – मीन।
गृहेश – गृह का "वामी।
िदग् – िदशा।
गृह Yार – घर का _ार।
धनाि… – धन क• Lाि°।
dरपु – शH।ु
एकाशीित – ८१ संgया

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 83


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
१.६ बोध KPनŠ के उpर
१. क
२. घ
३. ग
४. ख
५. ग
६. ग
१.७ सqदभ3 }qथ सच
ू ी
वृह_ा"तमु ाला – ह‡रशक ं र पाठक
वा"तसु ार: - Lोफे सर देवीLसाद िHपाठी
वा"तरु rनाकर – िव*sये>वरी Lसाद ि_वेदी
१.८ सहायक पाठ्यसाम}ी
मयमतम्
वा"तरु ाजव`लभ
१.९ िनबqधाyमक KPन
१. _ार िनणFय का उ`लेख क•िजये।
२. एकाशीित वा"तु पद चz का सिचH वणFन क•िजये।
३. _ािHंशत् वा"तु पद चz का Lितपादन क•िजये।
४. _ार फल का िव"तृत वणFन क•िजये।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 84


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104

इकाई – २ Yार के भेद


इकाई क‹ संरचना
२.१ L"तावना
२.२ उNे>य
२.३ _ार के भेद
२.३.१ आठ _ारq का फल
२.३.२ वणF के आधार पर _ार के भेद
२.३.३ _ार िनमाFण स…बि*धत दोष
२.३.४ _ार वेध
२.४ सारांश
२.५ पा‡रभािषक शnदावली
२.६ बोध L>नq के उ9र
२.७ स*दभF k*थ सचू ी
२.८ सहायक पाठ्यसामkी
२.९ िनब*धाrमक L>न

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 85


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
२.१ K#तावना
L"ततु इकाई वा"तश
ु ा"H म' िडwलोमा पाठ्यकम के चतुथF पH DVS-104 क• ि_तीय ख;ड
क• दसू री इकाई से स…बि*धत है। इस इकाई का शीषFक है – _ार के भेद। इससे पवू F क• इकाईयq म'
आपने ‘वा"तपु द _ार िनधाFरण’ का अsययन कर िलया है। अब आप _ार के भेद का अsययन करने
जा रहे ह‰।
वा"तु शा"H के अ*तगFत गृहिनमाFण क• पर…परा म' _ार का योगदान अrय*त महrवपणू F
बतलाया गया है। िदग तथा वणF के अनसु ार _ार के िविभ*न [पq का उ`लेख हम' िमलता है।
आइए L"ततु इकाई म' हम सब वा"तश
ु ा"Hो=त _ार के िविभ*न भेदq को यहाँ समझने का
Lयास करते ह‰।

२.२ उNेPय
इस इकाई के अsययन के प>चात् आप जान ल'गे िक –

Ø वा"तशु ा"Hा*तगFत मgु यत: _ार के िकतने भेद है।


Ø गृहिनमाFण म' _ार का िनणFय कै से करते ह‰।
Ø _ार का Lयोजन एवं महrव =या है।
Ø _ार का फल =या है।
२.३ Yार के भेद
अब तक आप सभी ने वा"तपु द _ार िनधाFरण के बारे म' अsययन िकया। अब आप गृह िनमाFण
म' _ारq के भेद के बारे म' जानकारी Lाwत करने जा रहे ह‰। सामा*यतया जब आप गृह का िनमाFण करते
ह‰ तो भूिम और "थान के अनसु ार तथा "व-"व सुिवधानसु ार गृह म' _ार का िनमाFण करते ह‰। कुछ लोग
मgु य _ार (Lवेश _ार) के अित‡र=त भी गृह के पीछे का _ार, दािहन' ओर _ार तथा बाय„ ओर _ार के
साथ-साथ अ*या*य _ार का भी िनमाFण करते ह‰, पर*तु शा"H ‘_ार िनमाFण’ के स*दभF म' हम' =या
आदेश करता ह‰ इसका यहाँ हम सभी अsययन करने जा रहे ह‰।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 86


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
सवFLथम _ार तथा उसके भेद के बारे म' हम' िन…निलिखत सामा*य िनयम जान लेना चािहए –
Ø _ार के ऊपर _ार नह„ बनाना चािहए।
Ø यिद _ार के ऊपर _ार हो तो ऊपर वाला _ार छोटा होना चािहए।
Ø यिद घर म' एक ही _ार देना हो तो पवू F िदशा का _ार Ùे²ठ होता है।
Ø दो _ार बनाना हो तो पवू F और पि¦म _ार बनवाना चािहए।
Ø यिद तीन _ार बनाना हो तो िकसी भी तीन िदशा म' बनाया जा सकता है, पर*तु मgु य _ार
दि“ण िदशा म' नह„ बनाना चािहए – जैसा िक आचायœ का भी कथन है – मल
ू _ारं दि“णे
वजFनीयम्।
Ø भवन के चारq कोनq म' _ार नह„ बनाना चािहए। इससे कोणवेध लगता है।
Ø घर के _ार को हमेशा भीतर क• ओर खोलना चािहए।
Ø _ार का "वयं ब*द होना कुल का नाशक होता है – िपिहते "वयं कुलिवनाश:।
Ø भवन म' सभी दरवाजq क• ऊँ चाई एक जैसी होनी चािहए। अिधक ऊॅ चाई वाला _ार राजा
एवं द"यु से भय उrप*न करता है। गृहपित क• ऊँ चाई से कम ऊँ चा _ार िवपि9 उrप*न करता
है। १५०,१४०,१३०,११६,१०९, एवं ८० अगं ल ु का ऊँ चा _ार उ9म होता है। २४ अगं ल

= १ हाथ = डेढ़ फ•ट।

अब _ार तथा उसके भेदाभेद के स*दभF म' आइए िव"तारपूवFक जानकारी Lाि° करते ह‰।
_ार वणFन करते ह†ए आचायF कथन है िक –
Yारमायात: कायx प'ु पौ'धनKदम।्
िव#तारकोणYारं यNु:खशोकभयKदम।् ।
अथाFत् भूख;ड के आयाम (चौड़ाई) म' िकया ह†आ _ार "थापन पHु , पौH और धन को देने वाला होता
है। िव"तार एवं कोण म' "थािपत _ार द:ु ख, शोक और भय को Lदान करता है।
अत: भख ू ;ड (जहाँ गृह िनमाFण करना हो) का अ²टधा िवभाजन कर यहाँ सभी िदशाओ ं म' Lदि“णा
zम से एक-एक Lको²ठq का आपक• जानकारी के िलए फलादेश िकया जा रहा है –
चारŠ िदशाओ ं म) Ÿे‡ठ Yार #थान के वल सात ही माने गये ह¾। ये ह¾ – जयqत, इq„, वृहy•',

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 87


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
व\ण, मुrय, भfलाट और सोम।
वा"तु का आठ ख;ड िवभाजन हो अथवा नौ ख;ड िवभाजन हो इन दोनq Lिzयाओ ं म' _ार क•
"थापना जय*त आिद सात भागq म' ही होती है। अ²ट ख;ड िवभाजन के आधार पर _ार "थापना का
िन…नवत् "व[प बनता है –

उपर के “ेH म' िदए गए रे खािं कत भाग म' ही _ार बनाना चािहए।
साधारण या िन…न कोिट के _ार अrय*त आव>यक होने पर ही बनाना चािहए। ये काम चलाने वाले
हो सकते ह‰। उदाहरण के िलए आप नीचे िदये गये “ेH को देख सकते ह‰ -

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 88


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104

Ø पजF*य भाग म' _ार बनाने से घर म' क*याओ ं क• वृि~ होती है।
Ø सयू F भाग म' _ार बनाने से गृह सद"यq म' zोध क• वृि~ होती है।
Ø सrय के भाग म' _ार बनाने से झूठ बोलने म' वृि~ होती है।
Ø दौवा‡रक के भाग म' _ार बनाने से अrयिधक ¢यय क• वृि~ होती है।
Ø सपF के भाग म' _ार बनाने से पHु से कलह क• वृि~ होती है।
Ø इसके अित‡र=त शेष भागq म' _ार िनमाFण विजFत होता है।

२.३.१ आठ YारŠ का फल –
दु:खशोकौ धनKाि…न3पृ पजू ा मह°नम।्
#'ीजqम प'ु ता हािन: KाचीYारफलािन वै।।
िनधनं बqधनं भीित: पु'ावाि…ध3नागम:।
यशोलाभPचौरभयं ¯यािधभीितPच दि•णे।।
श'ुवृि°: पु'हािनल3hमीKाि…ध3नागम:।
सौभा¬यं धनलाभPच दु:खं शोकPच पिvमे।।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 89


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
िन:#वं #'ीदूषणं हािन: संपyKाि…: सुखागम:।
दु:खागम: श'ुबाधा चोpर#यां िदिश aमात।् ।
अथाFत् पवू F िदशा के आठ ख;डq म' "थािपत होने वाले _ार िन…नवत् प‡रणाम देते ह‰ – द:ु ख, शोक,
धनलाभ, नृपप›ू यता, िवशालधन, "Hीवृि~, पHु Lाि°, हािन। दि“ण िदशा के आठ ख;डq म' "थािपत
होने वाले _ार िन…नवत् प‡रणाम देते ह‰ – मृrय,ु ब*धन, भय, पHु Lाि°, धनागम, यशलाभ, चोरभय
और रोगभय। पि¦म िदशा के आठ ख;डq म' "थािपत होने वाले _ार िन…नवद् प‡रणाम देते ह‰ –
शHवु िृ ~, पHु हािन, लÎमीLाि°, धनागम, सौभाÀय, धनलाभ, द:ु ख तथा शोक। उ9र िदशा के आठ
ख;डq म' "थािपत होने वाले _ार िन…नवद् प‡रणाम देते ह‰ – द‡र±ता, िvयq म' दोष, हािन, स…पि9,
लाभ, सख ु ागम, द:ु खागम तथा शHबु ाधा।
िव#तारिYगणु ोyसेधं Yारं तिYषमायतम।्
पिvमे दि•णे चािप कपाटं च शुभKदम।् ।
_ार िनमाFण म' िव"तार से दो गुना अिधक ऊँ चाई होनी चािहए। गृह का _ार िवषम और आयत होना
चािहए। पि¦म और दि“ण िदशा म' भी िकवाड़ (_ार) लगाना शभु कारी होता है।
Lायश: लोगq म' धारणा होती है िक दि“ण और पि¦म िदशा क• ओर मgु य_ार का िनमाFण नह„ करना
चािहए पर*तु िनधाF‡रत को²ठक म' _ार िनमाFण सभी िदशाओ ं म' होता है।
२.३.२ वण3 के आधार पर Yार के भेद –
¯यासगृहािण च िव“ािYपादनामुदि¬दशा“ािन।
िवशतां यथा भवनं भविqत ताqयेव दि•णत:।।
अथाFत् ßाàणािद वणœ के िलए उ9रािद िदशाओ ं म' _ारवाला गृह शभु दायक होता है। इसका अथF है
िक ßाàण को गृह का _ार उ9र मख ु का, “िHय को पवू F िदशा का, वै>य को दि“ण िदशा का और
श±ू को पि¦म िदशा का _ार बनाना चािहये।
िवशेष – मकान के दािहन' तरफ ५ िह"सा और बाय„ ओर ३ िह"सा छोड़कर बीच वाले िह"से म' _ार
बनाना शभु कारी होता है। गृह म' Lवेश करते समय जो भाग दािहने ओर पड़े वही दािहना होता ह‰ और
गृह से मन²ु य के िनकलते समय जो बायाँ भाग पड़' वह„ गृह का भी बायाँ भाग होगा।
_ार िनमाFण के समय उ=त बातq का sयान रखना आव>यक है।
वा#तुराजवfलभ }qथ म) दस Kकार के Yार –
दै@यg साध3शतांगुलं च दशिभह²नं चतुधा3 िविध:।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 90


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
Kो¦तPचाऽथ शतं yवशीितसिहतं यु¦तं नवyया शतम।् ।
तYyषोडशिभ: शतं च नविभय3ु¦तं तथाऽशीितकम।्
Yारं मy#यमताऽनस ु ाdर दशकं यो¬यं िवधेयं बध
ु ै:।।
Lथम १५० अंगुल का और दसू रे इrयािद zम से १०,१० अंगल ु कम अथाFत् दसू रा १४० अंगुल का,
तीसरा, १३० अंगल ु का, चौथा १२० अंगुल का। पाँचवाँ १८० अंगुल छठा १९० अंगुल सातवाँ
११६ अंगुल, आठवाँ १०९ अंगुल, नवाँ ८० अंगुल और दसवाँ ११० अंगुल का _ार होता है। यह
मत मूलत: मr"य परु ाण का ह‰।
Yार के अभाव म) गवा• (झरोखा या िखड़क‹) काय3
Yारं चतुिव3धं Kो¦तं वा#तुसa
ं ािqतमायजम।्
कृyवा चाqयतमं मुrयं गवा•ा“ै: परािण च।।
>लोक का अथF है िक वा"त-ु स…ब*धी, मास-स…ब*धी, न“H-स…ब*धी और आय स…ब*धी ये ४
Lकार के _ार होते ह‰। इनम' िकसी को मुgय मान के उसी ओर सदर दरवाजा बनाना चािहये और शेष
िदशा म' गवा“ (झरोखा-िखड़क•) बनाना चािहये।
Yार संrया –
एकं Yारं Kांगमुखं शोभनं #या˜चातुव3¦'ं धातृभूतेशजैने।
यु¬मं Kा˜यां पिvमेऽथ ि'के षु मूलYारं दि•णे वज3नीयम।् ।
यिद मकान म' एक ही दरवाजा बनाना हो तो पवू F िदशा म' बनाना उ9म होता है। ßàा, भूतेश और जैन
इनके मि*दर म' चारq ओर _ार बनाना Ùे²ठ होता है। यिद मकान म' दो ओर दरवाजा बनाना हो तो पवू F
और पि¦म िदशा म' कदािप दरवाजा नह„ बनाना चािहये।
िवशेष –
बह›Yारे‡विलqदेषु न Yारिनयम: #मृत:।
तथोपसदने जीणg Yारे सqधारणेऽिप च।।
िजसम' बह†त से _ार और आिल*द हq उस मकान म' _ार का कोई िनयम नह„ अथाFत् िजस ओर चाहे
दरवाजा बनवाय'। मgु य गृह के अित‡र=त अ*य गृहq म' भी _ार का कोई िनयम नह„ है। वहाँ यथा[िच
_ार बनवाना चािहये।
२.३.३ Yार िनमा3ण स‚बिqधत दोष –
नवं पुराणसंयु¦yमqयं #वािमनिम˜छित।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 91


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
अधो}ं राजद0डाय िव°ं Yारंिवगिह3तम।् ।
नवं पुराणसंयु¦तं „¯यं तु किलकारकम।्
न िमŸजाित„¯योyथं Yारं वा वेPम वा शभ ु म।् ।
इसका अथF है िक नवीन _ार परु ाने _ार से संय=ु त होने पर दसू रे "वामी क• इÒछा करता है। नीचे से
ऊपर िव~ _ार राज द;ड देने वाला होता है और वह िनि*दत कहा गया है। नया ±¢य परु ाने से संय=ु त
होने पर किल-कारक अथाFत् झगड़ा करने वाला होता है और िमÙजाित के ±¢य से िनिमFत _ार अथवा
वे>म अशभु कहा गया है।
दोषयु¦त Yार –
#वयमÁ ु ािटतं Yारमु˜चाटनकरं भवेत।्
धन•द् बqधुवैरं #यादथवा किलकारकम।् ।
#वयं यत् िपिहतं Yारं तद् भवेद् बह›दु:खदम।्
सश†दं भयकृत् पादशीतलं गभ3पातनम्।।
अथाFत् अपने आप उðािटत _ार उÒचाटनकारी होता है। वह धन-“य, ब*ध-ु वैर अथवा कलह करने
वाला होता है। जो _ार अपने आप ब*द हो जाता है वह बड़ा द:ु खदायी होता है। आवाज के साथ ब*द
होने वाला _ार भी भयकारक, पाद-शीतल और गभF पातक होता है।
अशुभ Yार कथन –
•ुzयKदमा•मा नं तं कु†जं कुलिवनाशनम।्
अyयथx पीिडंतं पीडां करोyयqतनतं •यम।् ।
Kवासो बा®िवनते िद¬œाqते द#युतो भयम।्
मूलYारं •यं कुया3द् िव°ं Yाराqतरेण यत।् ।
_ार के आsमात होने पर “धु ा का भय उपि"थत होता है। टेढ़ा होने पर कुल िवनाश होता है,
अितपीिडत ़ _ार पीड़ा करने वाला और अ*त नत _ार “यकारी कहा गया है। बाहर से झक ु ा ह†आ _ार
Lवास कारक होता है एवं िदÀÞा*त _ार से द"यओ ु ं से भय कहा गया है। मल ू _ार यिद दसू रे _ार से िव~
हो जाता है तो “य करता है।
yयाeय Yार –
कृशं िवकृतमyयु˜चं करालं िशिथलं पृथ।ु
वaं िवशालमुpानं शूला}ं ¹#वकुि•कम्।।
#वपादचिलतं ¹#वं हीनकणx मुखानतम।्
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 92
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पाPव3गं सू'मागा3˜च œ‡टं Yारं न शोभनम।् ।
तत् करोित •यं घोरं िवनाशं #वािमस‚पद:।।
अथाFत् कृ श, िवकृ त, अrयÒु च, कराल, िशिथल, पृथ,ु वz, िवशाल, उ9ान, "थूलाk, "वकुि“क,
"वपाद-चिलत, íसव, हीन-कणF, मुखानत, पा>वFग, सHू मागF,Þ²ट ऐसे _ार शुभ नह„ कहे गये ह‰।
ऐेसे _ार घोर नाश करने वाले एवं "वामी क• सपं दाओ ं का िवनाश करने वाले कहे गये ह‰ और उसम'
रहने वालq के िलए सदैव कलह उपि"थत रहता है। अत: ऐसे _ार का सदैव rयाग करना चािहए।
२.३.४ Yार वेध –
Kवासो भृyयजो Yेषो िव°े चyवरर½यया।
नाशं „¯यं •वजािव°ं वृ•ेण िशशदु ू षकम।् ।
पंकिव°े भवे˜छोक: सिललwािविण ¯यय:।
कूपेन िव°ेऽप#मारो िवनाशो दैवतेन च।।
#त‚भेन दूषणं #'ीणां §´णा तु कुल•य:।
मानादsयिधके Yारे राजतो जायते भयम।् ।
¯यसनं मानतो हीने चौरे sयPच भयं भवेत।् ।
अथाFत् चौराहे क• गली से िव~ _ार Lवास और नौकरq से _ेष समपु ि"थत करता है। sवजा से िव~
_ार ±¢य का नाश करता है तथा वृ“ से िव~ होने पर िशशओ ु ं को दोषदायक होता है। क•चड़ से िव~
होने पर शोक, जल से ¢यय, कूप से अप"मार िमरगी और दैवत से िव~ होने पर िवनाश, खभं q से
िव~ होने पर िvयq का दषू ण, ßà से िव~ होने पर कुल का नाश – ये दोष कहे गये ह‰। Lमाण से
अिधक _ार िनमाFण राजा का भय उपि"थत करता है। मान से कम _ार ¢यसन और चोरq से भय
उपि"थत करता है।
¯याधय: Pवœिव°ेन धन#य च पdर•य:।
देव•वजेन बqध: #यात् सभयैPवय3सं•य:।।
सिqनपातभयं वा,या तुfया «‡टyवमाकृते।
„ुक कुलालचaे ण दाdर„यं वाdरणा भवेत।् ।
¯यािध\क् िकंचकूटे न आपाके न सुत•य:।
िनPचतोदूखलेन #याि˜छलया चाPमरी भवेत।् ।
तोयभा0डेन दुम3q'ी भ#मना चाश3सो गृही।।
दाdर„यं छायया िव°े भवेद् Yारे कुटुि‚बन:।।
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वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
#थल#यqदनवfमीकै िव3देशगमनं भवेत।् ।
अथाFत् >वÞ से िव~ होने पर _ार ¢यािधयाँ लाता है और धन का “य करता है। देव-sवज से ब*धन
और भय के साथ ऐ>वयF का नाश बताया गया है। वापी-वेध से सि*नपात भय बताया गया है। कुलाल
चz से Ûदय रोग, जल से दा‡र±य, कचकूट से रोग और ¢यािधयाँ तथा आपाक से पुHनाश, उदखल ू
से िनधFनता और िशला से अ"मरी रोग, जल के घड़े से दमु F*Hी और भ"म से बवासीर आिद दोष बताये
गये ह‰। इसी Lकार छाया से िव~ _ार म' गृह"वामी के िलए दा‡र±य उपि"थत होता है और "थल-
"य*दन तथा बांबी आिद से िवदेश गमन Lाwत होता है।
एकाशीितवा#तुपदचa –
एकाशीितपदं कुया3yyKाकारािधि तां ि•ितम।्
म•येन च पदं §´#थानं तिqनधनKदम।् ।
दगु F या भवन का िनमाFण पृòवी पर ८१ पद वा"तचु z के अनसु ार करना चािहये। वा"तु के मsय "थान
को ßà"थान कहा जाता है। ßà "थान पर िनमाFण करने से मृrयु क• Lाि° होती है।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 94


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104

Yाि'ंशदश ं ा पैशा˜या: Kाकाराय समीपगा:।


एतेषु गृहिनमा3णं शोकरोगभयKदम।् ।
भवन के समीप ३२ अंशाrमक Lको²ठ पैशािचक ह‰। इनम' गृहार…भ करने से शोक, रोग एवं भय होता
है। वा"तु के भीतर दोनq कणF रे खाय' जहाँ Lको²ठq से िमलती ह‰, वे "थान ममF ह‰ तथा मsयवितFनी रे खाय'
िशरा होती ह‰। ये ३२ भाग ह‰ – िशिखी, पजF*य, जय, इ*±, सयू ,F सrय, भृश, आकाश, अिनल, पषू ा,
िवतथ, वृहr“त, यम, ग*धवF, भृंग मृग, िपतर, दौवा‡रक, सkु ीव, प²ु पद*त, व[ण, असरु , शोष, पाप,
रोग, नाग, मgु य, भ`लाट, कुबेर, शैल, अिदित, िदित।
िवशेष –
िभिpम•ये कृतं Yारं „¯यधाqयिवनाशनम।्
आवहेyकलहं शोकं नारीवा3 संKदूषयेत।् ।
अथाFत् िभि9 के बीच म' _ार बनाने से धन,धा*य इrयािद का नाश होता है। अथवा सवFदा कलह होता
रहता है या िvयq म' दोष पैदा हो जाता है।
_ार "थान –
म•यYारं तु देवानां िYजानामवनीभृताम।्
शेषाणामिप सवgषामुपम•यं िवधीयते।।
अथाFत् देव, ßाàणq एवं राजाओ ं का _ार मsय म' तथा शेष मन²ु यq के आवास का _ार मsय भाग के
पा>वF म' होना चािहये।
बोध KPन –
1. यिद गृह म' एक ही _ार बनाना हो तो िकस िदशा म' _ार बनाना Ùे²ठ होता है।
क. पवू F ख. पि¦म ग. दि“ण घ. उ9र
2. मgु य _ार िकस िदशा म' नह„ बनाना चािहये।
क. पि¦म ख. दि“ण ग. पवू F घ. उ9र
3. sवजा से िव~ _ार का =या फल है।
क. राज सख ु ख. ±¢य नाश ग. मान हािन घ. समृि~ Lाि°
4. वा"तरु ाजव`लभ k*थानसु ार _ार के िकतने भेद बतलाये गये ह‰।
क. ५ ख. १० ग. १५ घ. २०
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 95
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
5. सपF के भाग म' _ार िनमाFण का =या फल होता है।
क. लÎमी Lाि° ख. ±¢यनाश ग. पHु से कलह घ. राजसख

6. भीि9 के मsय म' _ार बनाने से =या होता है।
क. अचल सख ु ख. ±¢य Lाि° ग. स*तान सख
ु घ. धन नाश

२.४ सारांश
इस इकाई के अsययन के प>चात् आपने जान िलया है िक सामा*यतया जब आप गृह का
िनमाFण करते ह‰ तो भिू म और "थान के अनसु ार तथा "व-"व सुिवधानसु ार गृह म' _ार का िनमाFण करते
ह‰। कुछ लोग मgु य _ार (Lवेश _ार) के अित‡र=त भी गृह के पीछे का _ार, दािहन' ओर _ार तथा बाय„
ओर _ार के साथ-साथ अ*या*य _ार का भी िनमाFण करते ह‰, पर*तु शा"H ‘_ार िनमाFण’ के स*दभF म'
हम' =या आदेश करता ह‰ इसका यहाँ हम सभी अsययन करने जा रहे ह‰।
सवFLथम _ार तथा उसके भेद के बारे म' हम' सामा*य िनयम जान लेना चािहये िक – _ार के ऊपर _ार
नह„ बनाना चािहए। यिद _ार के ऊपर _ार हो तो ऊपर वाला _ार छोटा होना चािहए। यिद घर म' एक
ही _ार देना हो तो पवू F िदशा का _ार Ùे²ठ होता है। दो _ार बनाना हो तो पवू F और पि¦म _ार बनवाना
चािहए। यिद तीन _ार बनाना हो तो िकसी भी तीन िदशा म' बनाया जा सकता है, पर*तु मgु य _ार
दि“ण िदशा म' नह„ बनाना चािहए – जैसा िक आचायœ का भी कथन है – मल ू _ारं दि“णे वजFनीयम्।
भवन के चारq कोनq म' _ार नह„ बनाना चािहए। इससे कोणवेध लगता है। घर के _ार को हमेशा भीतर
क• ओर खोलना चािहए। _ार का "वयं ब*द होना कुल का नाशक होता है – िपिहते "वयं कुलिवनाश:।
भवन म' सभी दरवाजq क• ऊँ चाई एक जैसी होनी चािहए। अिधक ऊॅचाई वाला _ार राजा एवं द"यु से
भय उrप*न करता है। गृहपित क• ऊँ चाई से कम ऊँ चा _ार िवपि9 उrप*न करता है।
१५०,१४०,१३०,११६,१०९, एवं ८० अंगुल का ऊँ चा _ार उ9म होता है। २४ अंगुल = १ हाथ =
डेढ़ फ•ट। _ार वणFन करते ह†ए आचायF कथन है िक –
Yारमायात: कायx प'ु पौ'धनKदम।्
िव#तारकोणYारं यNु:खशोकभयKदम।् ।
अथाFत् भूख;ड के आयाम (चौड़ाई) म' िकया ह†आ _ार "थापन पHु , पौH और धन को देने वाला होता
है। िव"तार एवं कोण म' "थािपत _ार द:ु ख, शोक और भय को Lदान करता है।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 96


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
२.५ पाdरभािषक श†दावली
भखू ;ड – भिू म का भाग या टुकड़ा।
आयाम – चौड़ाई।
गृहपित – गृह का "वामी।
िदग् – िदशा।
गृह Yार – घर का _ार।
मुrय Yार – Lवेश _ार।
िव#तार – ल…बाई ।
Yाि'ंशत् – ३२।

२.६ बोध KPनŠ के उpर


१. क
२. ख
३. ख
४. ख
५. ग
६. घ
२.७ सqदभ3 }qथ सूची
वृह_ा"तमु ाला – ह‡रशंकर पाठक
वा"तसु ार: - Lोफे सर देवीLसाद िHपाठी
वा"तरु rनाकर – िव*sये>वरी Lसाद ि_वेदी
वा"तिु व?ा – आचायF कामे>वर उपाsयाय
२.८ सहायक पाठ्यसाम}ी
मयमतम् – टीकाकार – डॉ. शैलजा पा;डेय
वा"तरु ाजव`लभ -
वा"तLु बोिधनी – टीकाकार – िवनोद शा"Hी

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 97


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
२.९ िनबqधाyमक KPन
१. _ार भेद का उ`लेख क•िजये।
२. वा"तरु ाजव`लभ म' विणFत दस _ारq का वणFन क•िजये।
३. _ािHंशत् वा"तु पद चz का Lितपादन क•िजये।
४. _ार फल का िव"तृत वणFन क•िजये।
५. _ार वेध का िव"तृत वणFन कर' ।
६. _ार स…बि*धत दोषq का Lितपादन क•िजये।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 98


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
इकाई – ३ मुrय Yार का #वIप
इकाई क‹ संरचना
३.१ L"तावना
३.२ उNे>य
३.३ मgु य _ार का "व[प
३.३.१ मgु य _ारq के अ*य भेद
३.३.२ मgु य _ार स›जा
३.४ सारांश
३.५ पा‡रभािषक शnदावली
३.६ बोध L>नq के उ9र
३.७ स*दभF k*थ सचू ी
३.८ सहायक पाठ्यसामkी
३.९ िनब*धाrमक L>न

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 99


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
३.१ K#तावना
L"ततु इकाई वा"तश
ु ा"H म' िडwलोमा पाठ्यकम के चतथु F पH DVS-104 से स…बि*धत है।
इस इकाई का शीषFक है – मgु य _ार का "व[प। इससे पूवF क• इकाईयq म' आपने _ार िनधाFरण एवं
_ार भेद का अsययन कर िलया है। अब आप मgु य _ार का "व[प कै सा होना चािहए, इसका अsययन
करने जा रहे ह‰।
मgु य _ार से ताrपयF घर के मुgय Lवेश भाग से है। मgु य _ार कै सा होना चािहए? उसका
दै•यF-िव"तार िकतना होना चािहए? उसका शा"Hीय "व[प =या है? गृह िनमाFण म' मुgय _ार का =या
Lयोजन व महrव है? आिद इrयािद सम"त िवषयq का Lितपादन आपके €ानाथF इस इकाई म' िकया
जा रहा है।
आइए हम सब वा"तश
ु ा"Hो=त मgु य _ार का "व[प के िवषय म' जानने का Lयास करते ह‰।

३.२ उNेPय
इस इकाई के अsययन के प>चात् आप जान ल'गे िक –

Ø गृह म' मgु य _ार का "व[प कै सा होता है।


Ø मgु य _ार का वा"तु शा"Hीय अिभमत =या है।
Ø मgु य _ार का Lयोजन =या है।
Ø मgु य _ार "व[प िनधाFरण के महrवपूणF घटक =या है।
३.३ मुrय Yार का #वIप
शा"H वचन है िक - [प बदलता है "व[प नह„। अत: वा"तुशा"H के अनसु ार भी गृह िनमाFण
क• पर…परा म' मुgय _ार का [प तो आव>यकतानसु ार प‡रवतFन िकया जा सकता है, िक*तु मgु य _ार
का शा"Hोिचत "व[प अप‡रवतFनशील है। मgु य _ार हेतु सवFÙे²ठ ‘सात #थान’ बतलाय' गय' ह‰ –
जय*त, इ*±, वृहr“त, व[ण, मgु य, भ`लाट तथा सोम भाग। इ*ह„ "थानq पर ही गृह का मुgय _ार
सवÜ9म बतलाया गया है। आचायœ _ारा मgु य _ार को हमेशा सजाकर रखने का िवधान कहा गया है।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 100


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
वा"तरु ाजव`लभकार ने तो मgु य _ार को दि“ण िदशा म' कभी भी िनिमFत नह„ करने का अपना मत
Lकट िकया है। यथा - मलू _ारं दि“णे वजFनीयम।्
मgु य _ार हमेशा दो प`लq कपाटq वाला होना चािहये। मुgय _ार को मागFवेध, वृ“वेध, कोणवेध,
कूपवेध, "त…भवेध, नालीवेध, मंिदरवेध से मु=त होना चािहए। ये सभी वेध खतरनाक होते ह‰। िजस
वा"तखु ;ड म' अनेक मागF Lवेश करते हq अथवा जो वा"तुख;ड मागFवेध दोष से k"त हो उस पर भवन
नह„ बनाना चािहए। गृहिनमाFण म' मुgय _ार का महrव इतना बड़ा होता है िक जब तक गृह का मgु य
_ार नह„ बनता तब तक गृहLवेश का कायF भी सभं व नह„ हो पाता।

मgु य _ार िकसी भी भवन का एक अrय*त महrवपणू F भाग या िह"सा होता है, यह सवFिविदत है। इसक•
"थापना एवं ि"थित का िनणFय गृह"वामी के िलए भी अrय*त आव>यक होता है। वा"तश ु ा"H के
अनसु ार _ार क• ि"थित के िविवध भेद है।
मgु य _ार क• ि"थित अथाFत् भूख;ड के मुख क• ि"थित गृह"वामी क• रािश के अनुसार होना चािहये।
Lाचीन k*थq म' अलग-अलग रािश के जातकq के अनसु ार मgु य _ार क• िदशा के बारे म' िनद—िशत
िकया गया है। Lाचीन k*थ ›योितिनFब*ध, वा"तरु ाजव`लभ एवं वृहNैव€रंजन के मतानसु ार िविभ*न
मेषािद रािशयq के जातकq के िलए _ार क• िदशा के स*दभF म' िनद—श िन…न Lकार से है –

· ›योितिनFब*धो=त – इसके अनसु ार ककF , वृि¦क और मीन रािश वालq के िलए पवू F िदशा
म' तथा तुला, कु…भ व वृष रािश वालq के िलए पि¦म िदशा म' एवं मेष, िसंह व धनु रािश
वालq के िलए उ9र िदशा म' _ार अथाFत् गृह का मख
ु बनाना उ9म होता है।
· वा"तरु ाजव`लभो=त – वृि¦क, मीन और िसंह रािश वालq के िलए पवू F िदशा, क*या ककF
व मकर रािश वालq के िलए दि“ण िदशा म' धन,ु तुला, िमथुन रािश वालq के िलए पि¦म
िदशा म' और कु…भ, वृष तथा मेष रािश वालq के िलए उ9र िदशा म' मकान का _ार बनाना
Ùे²ठ होता है।
· वृहNैव€रंजन – पवू — ßàाणराशीनां वै>यानां दि“णे शुभम्।
श±ू ाणां पि¦मे _ारं नृपाणामु9रे "मृतम।् ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 101


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
ßाàण रािश अथाFत् ककF , वृि¦क व मीन रािश वालq के पवू F िदशा म', वै>य रािश अथाFत् वृष, क*या
व मकर वालq को दि“ण िदशा म', श±ू रािश अथाFत् िमथुन, तुला व कु…भ रािश वालq को पि¦म
िदशा म' एवं “िHय रािश अथाFत् मेष, िसंह व धनु रािश वालq के िलए उ9र िदशा म' घर का _ार बनाना
उ9म होता है।
िदशा पवू F दि“ण पि¦म उ9र
k*थ

›योितिनFब*ध ककF क*या तुला मेष


वृि¦क मकर कु…भ िसहं
मीन िमथुन वृष धनु
वा"तरु ाजव`लभ वृि¦क क*या धनु मेष
मीन ककF तुला वृष
िसंह मकर िमथुन कु…भ
वृहNैव€रंजन ßाàण वै>य श±ू “िHय
रािश रािश रािश रािश

य?िप उपयF=ु त कई िवक`प शा"Hq म' उपलnध ह‰ पर*तु वृहNैव€रंजन _ार िनद—िशत भेद सवFमा*य माना
जाता है, इसक• पिु • के िलए वा"तुाLदीप म' कहा गया है –
"याrLाÚ† खं ßाàणरािशसÓ चोदÚ† खं “िHयरािशकानाम्।
वै>य"य €ेयं यमिदंगमुखं िह शू±ािभधानामथF पि¦मा"यम्।।
एक "थूल Lमाण के [प म' कहा गया है िक मgु य _ार भवन के मsय म' नह„ होना चािहये। यह भवन
क• मsय रे खा क• बांयी तरफ होना चािहये। इसक• सही ि"थित €ात करने के िलए भवन क• चौड़ाई
को ९ बराबर िह"सq म' बाँटा जाता है। िफर दॉयी तरफ से ५ भाग एवं बाँयी तरफ से ३ भाग छोड़कर
अथाFत् बॉंयी तरफ से चौथे भाग म' _ार "थापना शभु मानी जाती है।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 102


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
नवगृह िविध भख
ू ;ड के सामने वाले भाग अथाFत् चौड़ाई को ९ समान भागq म' िवभ=त करके बॉयी
ओर से Lथम भाग म' zमश: सयू ,F च*± इrयािद kहq क• ि"थित मानी गयी है।

सड़क

सयू F च*± मंगल बुध ग[


ु शz
ु शिन राह† के तु

भखू ;ड
िजस गृह के “ेH म' मgु य _ार बनाया जायेगा। उस “ेH का kह, भवन म' रहने वालq पर,
अपने "वभाव के अनसु ार शभु , अशभु Lभाव डालता है। मgु य _ार के िलए बधु , गÂु , शz
ु , “ेH
उ9म व सयू ,F च*±, मगं ल, शिन, राह† एवं के तु “ेH rया›य माने जाते ह‰।

८१ वगœ वाले परमशाियकम् पद िव*यास पर कुल ४५ देवता ि"थत होते ह‰ इनम' से बाहरी सीमा पर
३२ वगœ म' ३२ देवता ि"थत है। इन देवताओ ं के वगœ पर मुgय _ार क• ि"थित के िभ*न-िभ*न फल
कहे गये ह‰ जो िन…न Lकार है –
पद…शाियकम् पद िव*यास

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 103


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
पवू F िदशा :-
अिनलभयं "Hीजननं Lभूतधनता नरे *±वा`लÐयम।्
zोधपरतानृतrवं zोयF चौयÖ च पवू ण— ।।
1. िशिख – इस वगF पर मुgय _ार बनाने से द:ु ख एवं अिÀन से
2. +९६ भय होता है।
3. पजF*य – इस वगF पर _ार बनाने से क*या रrन म' वृि~ एवं िनधFनता होती है।
4. जय*त – इस वगF पर _ार बनाने से धनागम होता है।
5. इ*± – इस वगF पर _ार बनाने से राज स…मान म' वृि~ एवं यश Lाि° होती है।
6. सयू F – इस वगF पर _ार बनाने से धन Lाि° पर*तु zोध क• अिधकता रहती है।
7. सrय – इस वगF पर _ार बनाने से चोरी, क*याओ ं क• वृि~ एवं असrय भाषण क• अिधकता
होती है।
8. Þश – इस वगF पर _ार बनाने से पHु हािन व zूरता उrप*न होती है।
9. ¢योम – इस वगF पर _ार बनाने से चोरी का भय होता है।
दि“ण िदशा : -
अ`पसतु rवं Lे²यं नीचrवं भÎयपानसतु वृि~:।
रौ±ं कृ त•नमघनं सतु वीयF•नं च या…येन।।
1. अिनल :- इस वगF पर _ार बनाने से पHु स*तान म' कमी तथा मृrयु होती है।
2. पषू ा – इस वगF पर _ार बनाने से दासrव व ब*धन क• Lाि° होती है।
3. िवतथ – इस वगF पर _ार बनाने से नीचता एवं भय क• वृि~ होती है।
4. सोम – इस वगF पर _ार बनाने से धन एवं पHु लाभ होता है।
5. यम – इस वगF पर _ार बनाने से अशािं त होती है।
6. ग*धवF – इस वगF पर _ार बनाने से यश वृि~, िनभFयता पर*तु कृ त•नता बढ़ती है।
7. भृंगराज – इस वगF पर _ार बनाने से िनधFनता, चोर भय होता है।
8. मृग – इस वगF पर _ार बनाने से पHु नाश एवं रोग भय होता है।
पि¦म िदशा –
सतु पीड़ा‡रपवु िृ ~नF सतु धनाि°: सतु ाथFफलस…पत्।
धनस…प*ननृपितभयं धन“यो रोग इrयपरे ।।
1. िपतर – इस वगF पर _ार बनाने से पHु “य, िनधFनता एवं शHओ ु ं से भय रहता है।
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 104
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
2. _ारपाल – इस वगF पर _ार बनाने से भायाF द:ु ख तथा भय होता है।
3. सkु ीव – इस वगF पर _ार बनाने से धन वृि~ होती है।
4. प²ु पद*त – इस वगF पर _ार बनाने से पHु तथा धन क• वृि~ होती है।
5. व[ण – इस वगF पर _ार बनाने से धन तथा सौभाÀय क• उ9रो9र वृि~ होती है।
6. असरु – इस वगF पर _ार बनाने से राजभय तथा मानिसक संताप होता है।
7. शोष – इस वगF पर _ार बनाने से धन का नाश एवं द:ु खq क• Lाि° होती है।
8. पापयÎमा – इस वगF पर _ार बनाने से रोग भय एवं मन का उÒचाटन होता है।

उ9र िदशा –
वधव*धो ‡रपुविृ ~: सतु धनलाभ: सम"तगुणस…पत्।
पHु धनाि°वæर सतु ेन दोषा: िvया नै:"वम।् ।
1. रोग – इस वगF पर _ार बनाने से मृrय,ु ब*धन, "Hीहािन एवं िनधFनता होती है।
2. नाग – इस वगF पर _ार बनाने से शHवु िृ ~, िनबFलता एवं भय होता है।
3. मgु य – इस "थान पर _ार बनाने से पHु - धनािद लाभ होता है।
4. भ`लाट – इस "थान पर _ार बनाने से धन- धा*य तथा स…पि9 क• वृि~ होती है।
5. सोम – इस "थान पर _ार बनाने से पHु , धनागम एवं सवFसमृि~ होती है।
6. मृग – इस वगF पर _ार बनाने से शHभु य तथा राजभय होता है।
7. अिदित – इस वगF पर _ार बनाने से कुल क• िvयq म' दोष, शHभु य एवं मानिसक अशािं त
होती है।
8. िदित – इस वगF पर _ार बनाने से धनागम एवं सवF समृि~ म' [कावट होती है।
३.३.१ मुrय YारŠ के अqय भेद –
1. स¢य _ार – Lथम _ार से Lवेश के बाद भीतरी _ार यिद दॉयी तरफ पड़े तो उसे स¢य _ार
कहते है। ऐसे _ार से सखु धन-धा*य एवं पHु -पौHािद व सवFसमृि~ होती है।
2. अपस¢य _ार – यिद Lथम _ार से Lवेश के उपरो=त भीतरी _ार यिद बॉयी तरफ ि"थत हो तो
_ार को अपस¢य कहते है। अपस¢य _ार से धन क• कमी ब*ध-ु बा*धवq क• कमी, "Hी क•
दासता तथा रोग वृि~ होती है। वा"तश ु ा"H के अनसु ार वामावतF _ारा सदा िवनाशकारक और
स¢य सदा क`याणकारक होता है।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 105


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
3. मgु य _ार क• चौखट – मgु य _ार क• चौखट "थाापना के िलए ितिथ के अनसु ार फल िन…न
Lकार से है –
पंचमी ितिथ म' _ार "थापना करने से धन लाभ, इसके अित‡र=त सwतमी, अ²टमी, नवमी
ितिथयॉं भी शभु होती है। Lितपदा ितिथ को _ार "थापना करने से द:ु ख क• Lाि° होती है।
अत: यह विजFत है। तृतीया म' रोग, चतथु ¾ म' भय, ष²ठी म' कुलनाश, दशमी म' धननाश
और पिू णFमा-अमाव"या म' वैरकारक होती है।
भवेrपूषणी मैHप²ु ये च शाzे करे दôिचHाऽिनले चािदतौ च।
ग[
ु >च*±शz ु ाकF सौ…ये च वारे ितथौ न*दपणू ाFजया _ारशारंखा।।
4. रे वती, अनरु ाधा, प²ु य, ›ये²ठा, ह"त, अिÃनी, िचHा, "वाती और पनु वFसु न“H, रिव,
सोम, बुध, ग[ ु , शz ु वार तथा न*दा, जया व पणू ाF ितिथयॉं _ार "थापना म' शभु होती है।
5. मेष, िसंह, धनु रािश वालq के िलए उ9र, वृष, क*या, मकर रािश वालq के िलए दि“ण,
िमथुन, तुला, कु…भ रािश वाले जातकq के िलए पि¦म व ककF व मीन रािश वालq के िलए
पवू F िदशा म' _ार बनाना शभु होता है।
6. िदशाओ ं के आधार पर "थािपत मुrय Yार का फल इस Lकार है –
पवू F – इस िदशा म' ि"थत _ार ‘िवजय _ार’ कहलाता है। यह सवFH िवजय करने वाला
सख ु दायक एवं शुभफल देने वाला होता है।
दि“ण – इस िदशा म' ि"थत _ार ‘यम_ार’ कहलाता है। जो संघषF कराने वाला तथा िvयq
के िलए द:ु खदायी होता है।
पि¦म – इस िदशा म' ि"थत _ार ‘मकर _ार’ कहलाता है। जो आल"यLद तथा िवशेष
Lयrन करने पर िस~ देने वाला है।
उ9र – इस िदशा म' ि"थत _ार कुबेर _ार कहलाता है। जो सवFसमृि~ एवं सुख देने वाला
होता है।
7. _ार क• ऊँ चाई, चौड़ाई से दगु नी से अिधक होना चािहये।
8. मागF, वृ“, कूप, "त…भ से वेधय=ु त _ार अशभु होता है िक*तु _ार क• ऊँ चाई से दगु ुनी दरू ी
पर ये सब हो तो उ=त दोष नह„ होते ह‰।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 106


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
9. दरवाजा यिद अपने-आप खल ु ता हो तो ‘उ*माद’ रोग होता है। "वयं ब*द हो तो कुल नाश,
Lमाण से अिधक हो तो राजभय, Lमाण से कम हो तो चोर भय व शारी‡रक क²ट होता है।
_ार के उपर _ार शभु नह„ होता है। _ार का झक ु ाव गृह के अ*दर के तरफ हो तो गृह"वामी
का मरण होता है। यिद बाहर क• तरफ झुकाव हो तो परदेश म' िनवास करता है।
10. वाय¢य िदशा म' _ार वाले गृह म', गृह"वामी बह†त कम ही रह पाते है एवं दि“ण िदशा वाले
मकान अिधक बेचे जाते है।
11. _ार सरलता से खल ु ना चािहए। _ार खुलने पर ककF श sविन गृह"वामी के िलए शुभ नह„
होती है। _ार के कपाट आपस म' टकराने नह„ चािहए, टकराने वाले _ार पा‡रवा‡रक झगड़े
का कारण बन सकते है।
12. मgु य _ार को छोड़कर भवन म' _ारq क• सgं या सम होनी चािहए। िवषम संgया अशुभ
होती है। साथ ही इनक• कुल सgं या १०,२०,३० नह„ होना चािहए।
13. _ार"योप‡र यद् _ारं _ारं _ार"य स…मखु ।ं न कायÖ ¢ययदं यÒच सकं टं तN‡र±कृ त।् ।
अथाFत् _ार के उपर _ार और _ार के सामने _ार का _ार ¢यय कराने वाला और द‡र±ता का
देने वाला होता है।
३.३.२ मुrय Yार सeजा : -
मgु य Lवेश _ार पर िन…न Lतीक "थािपत करना शभु होता है।
v कुल देवता क• मिू तF
v _ार के दोनq तरफ पहरे दार
v शखं व पãिनिध
v गाय-बछड़ा
v लÎमी जी
v कमल के आसन पर शुभ आठ Lतीकq क• माला – अ²टमंगल
v गणेश जी क• मिू तF
v काले घोड़े क• नाल
v भगवद् Lितमा

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 107


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
बोध KPन –
1. मgु य _ार िनमाFण हेतु िन…न म' कौन सा "थान बतलाया गया है।
क.जय*त ख. सोम ग. भ`लाट घ. उपयF=ु त सभी
2. पवू F िदशा म' ि"थत _ार को =या कहते है।
क.िवजय ख. यम ग. मकर घ. कोई नह„
3. वा"तरु ाजव``भ k*थ के अनुसार वृि¦क, मीन और िसहं रािश वालq के िलए िकस िदशा म'
गृह का मgु य _ार बनाना चािहये।
क.दि“ण ख. पि¦म ग. पवू F घ. उ9र
4. वा"तरु ाजव`लभ k*थानसु ार _ार के िकतने भेद बतलाये गये ह‰।
क.५ ख. १० ग. १५ घ. २०
5. मgु य _ार को छोड़कर भवन म' _ारq क• सgं या =या होनी चािहए। ।
क. िवषम ख. सम ग. बराबर घ. कोई नह„
6. पचं मी ितिथ म' _ार "थापना करने का =या फल है।
क.धन लाभ ख. सख
ु ग. स*तान सखु घ. धन नाश

३.४ सारांश
इस इकाई के अsययन के प>चात् आपने जान िलया है िक शा"H वचन है िक - [प बदलता
है "व[प नह„। अत: वा"तश ु ा"H के अनुसार भी गृह िनमाFण क• पर…परा म' मgु य _ार का [प तो
आव>यकतानसु ार प‡रवतFन िकया जा सकता है, िक*तु मgु य _ार का शा"Hोिचत "व[प
अप‡रवतFनशील है। मgु य _ार हेतु सवFÙे²ठ ‘सात #थान’ बतलाय' गय' ह‰ – जय*त, इ*±, वृहr“त,
व[ण, मgु य, भ`लाट तथा सोम भाग। इ*ह„ "थानq पर ही गृह का मgु य _ार सवÜ9म बतलाया गया
है। आचायœ _ारा मgु य _ार को हमेशा सजाकर रखने का िवधान कहा गया है। वा"तरु ाजव`लभकार
ने तो मgु य _ार को दि“ण िदशा म' कभी भी िनिमFत नह„ करने का अपना मत Lकट िकया है। यथा
- मलू _ारं दि“णे वजFनीयम।्
मgु य _ार हमेशा दो प`लq कपाटq वाला होना चािहये। मुgय _ार को मागFवेध, वृ“वेध, कोणवेध,
कूपवेध, "त…भवेध, नालीवेध, मंिदरवेध से मु=त होना चािहए। ये सभी वेध खतरनाक होते ह‰। िजस

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 108


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
वा"तखु ;ड म' अनेक मागF Lवेश करते हq अथवा जो वा"तुख;ड मागFवेध दोष से k"त हो उस पर भवन
नह„ बनाना चािहए। गृहिनमाFण म' मुgय _ार का महrव इतना बड़ा होता है िक जब तक गृह का मgु य
_ार नह„ बनता तब तक गृहLवेश का कायF भी सभं व नह„ हो पाता।

मgु य _ार िकसी भी भवन का एक अrय*त महrवपणू F भाग या िह"सा होता है, यह सवFिविदत है। इसक•
"थापना एवं ि"थित का िनणFय गृह"वामी के िलए भी अrय*त आव>यक होता है। वा"तश ु ा"H के
अनसु ार _ार क• ि"थित के िविवध भेद है।
मgु य _ार क• ि"थित अथाFत् भूख;ड के मुख क• ि"थित गृह"वामी क• रािश के अनुसार होना चािहये।

३.५ पाdरभािषक श†दावली


सवFिविदत – सभी के _ारा जाना गया।
भूख;ड – भूिम का भाग या टुकड़ा।
िह#सा – भाग।
गृहपित – गृह का "वामी।
Iप – प‡रवतFनशील
गृह Yार – घर का _ार।
मुrय Yार – Lवेश _ार।
#वIप – अप‡रवतFनशील।
एकाशीित – ८१।

३.६ बोध KPनŠ के उpर


१. घ
२. क
३. ग
४. ख
५. क
६. क
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 109
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
३.७ सqदभ3 }qथ सच
ू ी
वृह_ा"तमु ाला – ह‡रशक ं र पाठक
वा"तसु ार: - Lोफे सर देवीLसाद िHपाठी
वा"तरु rनाकर – िव*sये>वरी Lसाद ि_वेदी
वा"तLु बोिधनी – आचायF िवनोद शा"Hी
३.८ सहायक पाठ्यसाम}ी
मयमतम् – टीकाकार – डॉ. शैलजा पा;डेय
वा"तरु ाजव`लभ -
वा"तLु बोिधनी – टीकाकार – िवनोद शा"Hी
३.९ िनबqधाyमक KPन
१. मgु य _ार से =या ताrपयF है। "प²ट क•िजये।
२. मgु य _ार के "व[प का वणFन क•िजये।
३. मgु य _ार का शुभाशुभ फल िलिखये।
४. मgु य _ार के भेदाभेद का िन[पण क•िजये।
५. मgु य _ार स›जा का Lितपादन क•िजये।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 110


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
इकाई – ४ Yार#थापन महु op3
इकाई क‹ संरचना
४.१ L"तावना
४.२ उNे>य
४.३ _ार "थापन महु d9F
४.३.१ _ार चz
४.३.२ _ार िवषय म' िवशेष िवचार
४.४ सारांश
४.५ पा‡रभािषक शnदावली
४.६ बोध L>नq के उ9र
४.७ स*दभF k*थ सचू ी
४.८ सहायक पाठ्यसामkी
४.९ िनब*धाrमक L>न

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 111


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
४.१ K#तावना
DVS-104 के ि_तीय ख;ड क• चतथु F इकाई म' आप सभी अsयेताओ ं का "वागत है। इस
इकाई का शीषFक है – _ार "थापन महु d9।F इससे पूवF क• इकाईयq म' आपने _ार िनधाFरण, _ार भेद तथा
मgु य _ारािद स…बि*धत िवषयq का अsययन कर िलया है। अब आप वा"तपु द _ार "थापन महु d9F का
अsययन करने जा रहे ह‰।
वा"तु शा"H के अ*तगFत _ार "थापन का अrय*त महrव बतलाया गया है। गृहिनमाFण क•
Lिzया म' _ार "थापन एक महrवपणू F घटक है। मुgय _ार गृह का Lवेश होता है तथा इसका Lभाव
गृहपित एवं गृह म' िनवास करने वाले Lrयेक सद"यq पर भी पड़ता है। अत: वा"तश ु ा"H म' किथत
िनयम एवं शुभ महु dतF के अनसु ार ही गृह म' _ार "थापन का कायF करना कराना चािहए।

आइए हम सब _ार िनणFय, _ार के भेद एवं मgु य _ार के प>चात् अब _ार "थापन िवधान
का अsययन करते ह‰।

४.२ उNेPय
इस इकाई के अsययन के प>चात् आप जान ल'गे िक –
Ø _ार "थापन िकसे कहते है।
Ø _ार "थापन कै से करना चािहए।
Ø _ार "थापन का शभु ाशभु महु d9F कौन सा है।
Ø गृह िनमाFण म' _ार "थापन का =या महrव है।
Ø वा"तु शा"H के अनतगFत ‘_ार "थापन’ का Lयोजन =या है।
४.३ Yार #थापन मुहop3
गृह िनमाFण के अ*तगFत _ारq के िविवध िवषयq का €ान करते ह†ए अब हम सभी _ार "थापन
के िलए शा"Hो=त शभु ाशभु महु d9F का अsययन करने जा रहे ह‰।
आचायF रामदैव€ महु d9िF च*तामिण k*थ म' ‘Yार#थापन मुहop3’ का Lितपादन करते ह†ए कहते है िक
– अिiनी चोpरा ह#तप‡ु यŸुितमृगेषु च। रोिह0यां #वाितभेऽqyये च YारKशाखां Kरोपयेत।् ।
अथाFत् अिÃनी, तीनो उ9रा, ह"त, प²ु य, Ùवण, मृगिशरा, रोिहणी, "वाती और रे वती इन ११ न“Hq
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 112
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
म' _ार "थापना करना चािहए।
महु d9मF =ु तावली का कथन है –
भवेyपषू णी मै'प‡ु ये च शाaे करे दwिच'ाऽिनले चािदतौ च।
गु\Pचq„शुaाक3 सौ‚ये च वारे ितथौनqदपूणा3जया YारKशाखा।।
इसका अथF है िक रे वती, अनरु ाधा, प²ु य, ›ये²ठा, ह"त, अिÃनी, िचHा, "वाती, पनु वFसु इन ९ न“Hq
म', वृह"पित, च*±, शz ु , सयू F, बुध इन वारq म' और न*दा १,६,११, पणू ाF ५,१०,१५ और जया ३,८,१३
इन ितिथयq म' _ार Lशाखा का "थापना करना उ9म होता है।
Ãुवभे शुभवारे च ि#थरल¬ने शुभे ितथौ।
Yारं #था,यं मृगं िच'ं वगx सपं ि°व°3न:।।
Ýवु सं€क (तीनq उ9रा और रोिहणी), ि"थर रािश लÀन शभु ितिथ म' _ार"थापन शभु होता है। तथा
मृगिशरा, िचHा म' कुल व स…पि9 क• वृि~ करने वाला होता है।
चरि#थरे च न•'े बुधशुaिदने ितथौ।
शभ ु े कपाटयोग: #याद्िY#वभावोदये गहृ म।् ।
चर-ि"थर सं€क न“H बुध, शz ु , शभु ितिथ एवं ि_"वभाव लÀन म' _ार (चौखट) लगाना शभु होता
है।
eयोितKकाश का कथन –
अ#तदोषो' न }ा®: Kित दैविसको बुधै:।
ना#तदोष: सदा भानोन3 मै'ेq„#य नीचता।।
िव_ानजनq को _ार "थापन म' Lितिदनीय अ"तदोष नह„ kहण करना चािहए। सयू F का अ"त दोष एवं
िमH व नीचrव दोष भी नह„ होता है।

Yार#थापना म) शुभन•' –
Yार#थापनन•'ा0यु˜यqतेिiिन चोyतरा:।
#वातौ पूि‡ण च रोिह0यां Yारशाखावरोपणम।् ।
अिÃनी, तीनq उrतरा, "वाती, रोिहणी ये न“H _ार"थापन के िलये शभु होते है।
Yार#थापना के िलए ितिथिवचार: -
पचं मी धनदा चैव मिु ननqदवसौ शभ ु म।्
Kितपyसु न कyत3¯यं कृते दु:खमवा,नयु ात।् ।
िYतीयायां „¯यहािन: पशुप'ुिवनाशनम।्
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 113
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
तृतीया रोगदा ¨ेया चतुथ² भंगकाdरणी।।
कुल•यं तथा ष‡ठी दशमी धननािशनी।
िवरोधकृदमा पण ू ा3 न#या˜छाखावरोपणम।् ।
पंचमी ितिथ म' _ार "थापन करने से धन लाभ, इसके अित‡र=त सwतमी, अ²टमी, नवमी ितिथयॉं भी
शभु है। Lितपदा ितिथ को _ार "थापन करने से द:ु ख Lाि° होती है, अत: यह विजFत है। तृतीया म' रोग
चतथु F म' भगं , ष²ठी म' कुलनाश, दशमी म' धन नाश और पिू णFमा, अमाव"या वैरकारक होती है।

Lश"त _ार "थापना –


पवू ाFदौ िHषडायपंचमलवे _ा: स¢यतqको~तृ े।
वैsये_यश ं मिु Òõतािnधलवका सवाFसु िद“िु दता।।
गृह क• ल…बाई को ९ से भाग देकर पवू ाFिद िदशा क• भीत म' दरवाजा वाम भाग से ३।६।५।५ वे भाग
म' बनवाना चािहये। अथाFत् पूवF िदशा म' तीसरे म', दि“ण म' छठे म' पि¦म और उ9र िदशा के पाँचव'
िह"से म' दरवाजा बनाना चािहये। या सभी िदशाओ ं म' चौथे भाग म' दो भाग त`ु य उँचा िनमाFण कराना
चािहए।
दै•य— नवांशाrपदमH स¢याद_् ारं शभु ं Lाक् िHचतथु Fभागे।
चतथु Fष²ठे िदिश दि“ण"यां प>चाÒचत:ु पचं मके तथोदक्।।
घर क• ल…बाई के ९ भाग करके बाय„ ओर से पवू F िदशा म' पहले के दो िह"से छोड़कर तीसरे चौथे
भाग म', दि“ण म' चौथे, छठे भाग म' और पि¦म उ9र म' चौथे पॉंचवे भाग म' दरवाजा बनाना चािहये।
_ारमायामत: कायÖ पHु पौHधनLदम।्
िव"तारकोणं _ारं य: द:ु खशोकभयLदम।् ।
आयाम दै•यF से दरवाजा बनाने पर पHु , पौH व धन क• Lाि° और चौड़ाई के कोण म' दरवाजा िनमाFण
कराने पर द:ु ख, शोक, भय क• Lाि° होती है।
िव>वकमाF Lकाश म' –
गृहमsये कृ तं _ारं ±¢यधा*यिवनाशनम।्
गृह म' मsय भाग म' दरवाजा रखने पर धन, अ*न का नाश होता है।
देवागारे िवहारे च Lजायां मडं पेषु च।
Lतो`यां च मखे चैव मsये _ारं िनवेशयेत्।।
देवमि*दर, िबहार, सिू त, म;डप, Lतोिल और य€ म' बीच म' ही दरवाजे का िनमाFण कराना चािहये।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 114


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
भार_ाज –
िशरा ममाFिण वंशा>च नालमsयं च सवFश:।
िवहाय वा"तमु sयं च _ारािण िविनवेशयेत।् ।
गृह वा"तु म' िशरो, ममF, वंश व नाल के बीच को छोड़कर _ार बनाना चािहये।
_ार चzम् –
िदनककरिकरणाzातं “Fतो _ारचzे यगु युगयमवेदि_ि_वेदि_रामै:।
िमतमुडुगणभगं िव*यसेदsू वFतांतिनFयममिखलिदगं नाwयध: कोणभंसत्।।
सयू F िजस न“H म' हो उससे दरवाजे के उपरी भाग से ४।४।२।४।२।२।४।२।३ न“Hq का *यास सम"त
िदशाओ ं म' दरवाजा बनाने पर करना चािहये। इसम' कोण"थ व देहली के न“H म' दरवाजा बनाना
अशभु होता है।
रामदैव€ का मत –
सयू F“ाFयगु भै: िशर"यथफलं लÎमी: तत: कोणभै
नाFग[ै _सनं ततो गजिमतै: शाखासु सौgयं भवेत्।
देह`यां गुणभैमFतृ ेगFहृ पतेमFsयि"थतेव—दभै:।
सौgयं चzिमदं िवलो=य सिु धया _ारं िवधेयं शभु म्।।
घर के दरवाजे को िजस िदन रखना हो उस िदन सयू F िजस न“H म' हो उससे िदन न“H तक आगे बताई
ह†ई रीित से उसे देखकर शभु होने पर रखना चािहए। जैसे पहले के चार ४ िशर *यास करने पर, इनम'
िदन न“H हो तो लÎमी क• Lाि° होती है। इसके बाद के दो-दो न“H कोणq म' "थािपत करने पर इनम'
िदन न“H हो तो उसम' मकान "वामी का उ_ास होता है अथाFत् चारq चौखट म' होने पर सख ु , इसके
प>चात् ३ न“H देहली म' होने से मािलक का मरण, पनु : ४ न“H मsय म' "थािपत करने पर िदन न“H
होने पर दरवाजा रखने पर "वामी को सख ु िमलता है।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 115


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
_ारचzफल -
"थान िशर कोण शाखा देहली मsय
२७ न“H ४ ८ ८ ३ ४
फल लÎमी Lाि° उ_ास सौgय मरण सखु

४.३.१ Yार (देहली) चa –


मलू े भौमे िHऋ“ं गृहपितमरणं पंचगभF सख ु ं "या
*मsये देया²टऋ“ं धनसख ु सख ु दं पÒु छदेश²े टहािन:।
प>चाNेया²टऋ“ं गृहपितसख ु दं भाÀयपHु ाथFिदेयं
सयू ाF“ाFÒच*±ऋ“ं Lितिदन गणयेÓौमचzं िवलो=य।।
देहली के मलू म' भौम के न“H से ३ न“H "थािपत करने पर इ*ह„ म' िदन न“H हो तो मकान मािलक
क• मृrय,ु इसके बाद ५ न“H गभF के न“H म' होने पर सुख, तrप>चात् ४ चार न“H मsय न“H म' हो
तो धन-पHु सुख क• लिnध, इसके बाद के ८ न“H पÒु छ के न“H म' हािन और इसके पीछे के ८ न“H
पीठ के िदन न“H हो तो भाÀय वृि~, पHु , धन क• Lाि° होती है।
"प²टाथF चz –
"थान मल
ू गभF मsय पÒु छ पृ²ठ
२८ न“H ३ ५ ४ ८ ८
फल "वामी मरण सतु सख ु धन सतु सख ु हािन सखु

महु 9d क
F `प±ुम –
सयू F“ाF?गु नागा²टगुणदवेदै: शुभाशुभम्।
िशर: कोण_ारशाखा देहलीमsयगै: zमात्।।
४।८।८।३।४ न“H तक कपाटचz म' सयू F के न“H से म"तक, कोण, दरवाजq क• चौखट, देहली और
मsय म' zम से "थािपत करके शभु ाशभु समझकर आदेश देना चािहए।
"प²ट चz -
सयू F न“H से "थान िशर कोण शाखा देहली मsय
२७ न“H ४ ८ ८ ३ ४
फल शभु अशभु शभु अशभु शभु

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 116


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
गृह म' _ार"थापन का कायF आचायœ के _ारा Lrयेक वणœ के िलये पृथक् – पृथक् कहा गया है । यथा
-
पवू g §ा´णराशीनां वैPयानां दि•ण शभु म् ।
शू„ाणां पिvमे Yार नृपाणामुyतरे मतम् ।।
ßाàण रािश के िलये पूवF_ार, “िHयरािश के िलये उrतर _ार वै>य रािश के िलये दि“ण _ार और
श±ू रािश के िलये पि¦म _ार शभु है ।
महेPवर मत म) Yार िवचार –
सव3Yार इह•वजो वIणिद¬Yारं च िहyवा हdर: ।
Kा¬Yारो वृषभोगजोयमसुरेशाशामुख: #या˜छुभ: ।।
पवू FविणFत sवज आय को सभी िदशाओ ं म' _ार शभु होता है, िसंह आय को पि¦म के अित‡र=त अ*य
_ार भी शभु होते है । वृष आय को पवू F_ार और गज आय को दि“ण और पवू F _ार शभु होते है
आयवण3«‡ट्या Yार िवचार –
•वजे Kती˜यां मख ु म}जाना
मुद€›खं भूिमभृतां च िसंहे ।
िवशो वृषे Kा¬वदनं गजे तु
शू„#य या‚यां िह समामनिqत ।।
sवज आय और ßाàण वणF को पि¦म मख ु _ार िसंह आय, “िHय वणF का उrतर _ार, वृष आय,
वै>य वणF को पवू F मख
ु _ार और गजआय, शू± जाित को दि“ण मख ु _ार शभु होता है ।
मात30डो¦त Yारिवचार –
पूवा3दौ ि'षडथ3पcचमलवेYा: स¯यतोङ्कौ°ृते ।
दै@यg ¯“शं समिु ˜„ताि†धलवके सवा3सिु द•िू तदता ।।
वराहिमिहरो¦त Yारवेध फलम् –
माग3 तI कोण कूप #त‚भ œम िव°मशुभदं Yारम् ।
उ˜¼ायाद्िYगुणिमतां yय¦yवा भूिमं न दोषाय ।।
मागF, वृ“ , कोण, कूप,"त…भ, चz से वेधय=ु त _ार अशभु होता है । िक*तु _ार क• उँ चाई से दरू ी पर
ये सब हq तो उ=त दोष नह„ होते ।
िवशेष फल िवचार –
र½या िव°ं Yारं नाशाय कुमारदोषदं तIणा ।
पङ्Yारे शोको¯ययोऽ‚बु िन:wािविणKो¦त: ।।
कूपेनाप#मारो भवित िवनाशPच देवतािव°े ।
#त‚भेन #'ीदोषा: कुलनाशो §ा´णािभमख ु े ।।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 117


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
मागF से वेध य=ु त गृह _ार गृहपित का नाश करता है । वृ“ से वेध य=ु त गृह _ार बालकq के िलये अिहत
कारक होता है, पक ं िव~ _ार शोक करता है । जल िनकलने वाले मागF से िव~ _ार धन ¢यय कराता
है, कँु ए से िव~ _ार अप"मार रोग देता है, देव मिू तF से िव~_ार िवनाश कारक होता है । "त…भ िव~
_ार "Hी को द>ु च‡रH बनाता है, ßाàण से िव~ _ार कुल नाश कराता है ।
४.३.२ Yार िवषय म) िवशेष िवचार –
उqमाद: #वयम° ु ािटतेऽथ िपिहते #वयं कुलिवनाश:।
मानािधके नपृ भयं द#युभयं ¯यसनमेव नीचे च।।
Yार Yार#योपdर यyतqन िशवाय शंकटं य˜च।
आ¯याyतं •ुzयं कु†जं कुलनाशनं भवित।।
पीडाकरमितपीिडतमqतिवनतं भवेदभावाय।
वा®िवनते Kवासो िद¬œाqते द#युिभ: पीडा।।
दरवाजा यिद अपने आप खल ु ता हो तो उ*माद रोग होता है । "वयं ब*द हो तो कुल नाश, Lमाण से
अिधक हो तो राजभय, Lमाण से कम हो तो चोर भय और शारी‡रक क²ट होता है । _ार के उपर _ार
शभु नह„ होता है । मोटाई म' कम_ार भी अÒछा नह„ होता, जो अिधक मोटा दरवाजा होता है वह
भखू का भय कराता है । यिद टेढ़ा हो तो कुल का नाश करता है _ार पर यिद गल ू र का पेड़ हो तो
गृहपित को क²ट देता है । गृह के भीतर झक ु ाव हो तो गृहपित का मरण होता है यिद बाहर क• ओर
झुका हो तो परदेश म' िनवास करता है और यिद दसू री िदशा म' झक ु ा हो तो चोर पीड़ादायक होता है
त' िवशेष िवचार: -
मूलYारं नाqयैYा3रैरिभसqदधीत Iप°3या3 ।
घटफलप'Kमथािदिभ‡च तqमंगलैिvनयु ात् ।।
Lधान _ार क• रचना िजस Lकार क• गई हो अ*य _ारq क• भी उसी Lकार करे और उसको कलश,
Ùीफल, लता, पH एवं िसंह आिद के िचHq से अलंकृत करना चािहये ।
वृहyसंिहतो¦त YारŠ का शुभाशुभफल –
अिनलभयं #'ीजननं Kभूतधनता नरेq„वाfलsयम् ।
aोधपरतानतृ yवं aौयx चौयx च पवू gण ।।
गृह िभि9 दीवार के 9 िवभाग करने से Lrयेक िभि9 म' आठ – आठ _ार होते है इस Lकार चारq
िभि9यq के 32 _ार होते है । पूवF के 8 _ारq का फल Lथम िशिख_ार से वायु भय, ि_तीय पजF*य _ार
से क*या लाभ, तृतीय जय*त _ार से धनलाभ, चतुथF इ*± _ार से राजिLयता, पंचम सयू F _ार से zोध
क• अिधकता, ष²ठ सrय _ार से असrयता, सwतम भृश_ार से zूरता और अ²टम अ*त‡र“ _ार से चौर
भय होता है ।
अfपसुतyवं Kै‡यं नीचyवं भhयपानसुतवृि°: ।
रौ„ं कृत@नमधतं सुतवीय3@नं च या‚येन ।।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 118


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
दि•ण के 8 YारŠ का फल – Lथम अिनल _ार से पHु q क• सgं या म' कभी ि_तीय पौ²ण _ार से
दासवृि9, तृतीय िवघ_ार से नीचता, चतथु F वृहr“त _ार से भÎयपान, पHु वृि~, पचं म या…य _ार से
अशभु , ष²ठ ग*धवF_ार से कृ त•न, सwतम भृंगराज _ार से धन हीनता और अ²टम मृग_ार से बल नाश
होता है ।
सुतपीडाdरपुवृि°न3सुतधनाि…: सुताथ3फलस‚पत् ।
धनस‚पqनपृ ितभयं धन•यो रोग इyयपरे ।।
पिvम के 8 YारŠ का फल – Lथम िपतृ_ार से पHु क²ट, ि_तीय दौवा‡रक _ार से शHवु िृ ~, तृतीय
सkु ीव _ार से धन, पHु हािन, चतुथF कुसभु द*त _ार से पHु धन फल क• Lाि°, पचं म व[ण _ार से धन-
स…पि9, ष²ठ असरु _ार से राजभय, सwतम शोष _ार से धन नाश, और अ²टम पापयÎमा _ार से रोग
भय होता है ।
वधवqधो dरपुवृि°: सुतधनलाभ: सम#तगुण स‚पत।्
प'ु धनाि…व¥रं सतु ेन दोषा: िwया नै:#वम।् ।
उyतर के 8 YारŠ का फल –
Lथम रोग _ार से बध – ब*धन, ि_तीय सापF _ार से ‡रपुविृ ~, तृतीय मgु य _ार से पHु धन लाभ, चतुथF
भ`लाट _ार से सद – गणु – स…पि9, पचं म सौÐय _ार से पHु धन लाभ, ष²ठ भजु ंग _ार से पHु वैर,
सwतम आिदrय _ार से "Hीज*म दोष और अ²टम िदित _ार से िनधFनता होती है।
रामदैव¨ के मत मे Yार चaम् –
सूय3•ा3“ुगभै: िशर#यथ फलं लhमी#तत: कोणभै।
ना3गैIYसनं ततो गजिमतै: शाखासु सौrयं भवेत।् ।
देहfयां गुणभैमिृ तग3हृ पतेम3•यि#थतैवgदभै:।
सौrयं चaिमदं िवलो¦य सुिधया Yारं िवधेयं शुभम।् ।
सयू F के न“H से _ारचz का िवचार करके _ार िनमाFण करने से लÎमी Lाि°, 8 न“H कोण म' द' इनसे
उ_ास (परदेश जाने क• इÒछा) 8 न“H शाखा म' दे इनसे सख ु िफर 3 न“H देहली म' द', इसम'
गृहपित क• मृrय,ु 4 न“H बीच म' द' इनसे सख ु Lाि° होता है। इस चz के _ारा िनमाFण शुभ होता है।
बोध KPन
1. _ार"थापन के िलए Lश"त न“H है।
क. तीनq उ9रा ख. ह"त ग. अिÃनी घ. सभी
2. जया स€ं क ितिथ कौन है।
क. १,११,६ ख. २,७,१२ ग. ३,८,१३ घ.९,४,१४
3. दरवाजा यिद अपने आप खल ु ता हो तो कौन सा रोग होता है?

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 119


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
क. उ*माद रोग ख. मानिसक रोग ग. नेH रोग घ. कोई नह„
4. पि¦म के आठ _ारq के फल म' Lथम _ार का फल है?
क. पHु क• ख. पrनी क²ट ग. िपता क²ट घ. पित क²ट
5. महु d9िF च*तामिण के Lणेता कौन है।
क. नारायण ख. राम दैव€ ग. के शव घ. पृथयु शस
6. महु d9मF =ु तावली के अनसु ार िकतने न“Hq म' _ार"थापन Lश"त होता है।
क. ११ ख.९ ग. ७ घ. १२

४.४ सारांश
इस इकाई के अsययन के प>चात् आपने जान िलया है िक आचायF रामदैव€ महु d9िF च*तामिण k*थ म'
‘Yार#थापन मुहop3’ का Lितपादन करते ह†ए कहते है िक – अिiनी चोpरा ह#तप‡ु यŸुितमृगेषु
च। रोिह0यां #वाितभेऽqyये च YारKशाखां Kरोपयेत।् । अथाFत् अिÃनी, तीनो उ9रा, ह"त, प²ु य,
Ùवण, मृगिशरा, रोिहणी, "वाती और रे वती इन ११ न“Hq म' _ार "थापना करना चािहए।
महु d9मF =ु तावली के अनुसार रे वती, अनरु ाधा, प²ु य, ›ये²ठा, ह"त, अिÃनी, िचHा, "वाती, पनु वFसु इन
९ न“Hq म', वृह"पित, च*±, शz ु , सयू F, बधु इन वारq म' और न*दा १,६,११, पणू ाF ५,१०,१५ और
जया ३,८,१३ इन ितिथयq म' _ार Lशाखा का "थापना करना उ9म होता है।
Ãुवभे शुभवारे च ि#थरल¬ने शुभे ितथौ।
Yारं #था,यं मगृ ं िच'ं वगx सपं ि°व°3न:।।
Ýवु सं€क (तीनq उ9रा और रोिहणी), ि"थर रािश लÀन शुभ ितिथ म' _ार"थापन शभु होता है। तथा
मृगिशरा, िचHा म' कुल व स…पि9 क• वृि~ करने वाला होता है।
चर-ि"थर सं€क न“H बुध, शz ु , शभु ितिथ एवं ि_"वभाव लÀन म' _ार (चौखट) लगाना शभु होता
है।
िव_ानजनq को _ार "थापन म' Lितिदनीय अ"तदोष नह„ kहण करना चािहए। सयू F का अ"त दोष एवं
िमH व नीचrव दोष भी नह„ होता है।
४.५ पाdरभािषक श†दावली
Ùिु त – Ùवण।
मृग – मृगिशरा।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 120


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
Ãुव सं¨क – तीनq उ9रा और रोिहणी।
चौखट – _ार।
िY#वभाव – ३,६,९,१२
पौ²ण – रे वती।
Yार "थापन– _ार क• "थापना।
मुहop3 – शभु ाशुभ समय।

४.६ बोध KPनŠ के उpर


१. घ
२. क
३. ग
४. क
५. ख
६. ख

४.७ सqदभ3 }qथ सच


ू ी
वृह_ा"तमु ाला – ह‡रशक ं र पाठक
वा"तसु ार: - Lोफे सर देवीLसाद िHपाठी
वा"तरु rनाकर – िव*sये>वरी Lसाद ि_वेदी
४.८ सहायक पाठ्यसाम}ी
मयमतम् – टीकाकार – डॉ. शैलजा पा;डेय
वा"तरु ाजव`लभ -
वा"तLु बोिधनी – टीकाकार – िवनोद शा"Hी

४.९ िनबqधाyमक KPन


१. _ार "थापना महु 9d F िलिखये।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 121


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
२. महु d9Fम=ु तावली के अनसु ार _ार "थापन का वणFन क•िजये।
३. महु d9िF च*तामिण म' विणFत _ार"थापन का उ`लेख क•िजये।
४. दि“ण, पि¦म, उ9र एवं पवू F िदशा का फल िलिखये।
५. िविभ*न मतानसु ार _ार िवचार का Lितपादन क•िजये।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 122


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104

ख0ड – 3
गृहायु, दोष व वा#तुशािqत िवचार

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 123


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
इकाई – १ गृहायु िवचार

इकाई क• सरं चना-


१.१ L"तावना
१.२ उNे>य
१.३ गृहायु िवचार
१.३.१- गृह क• आयु अ"सी वषF Lमाण के योग
१.३.२- गृह-आयु शत(100) वषF Lमाण के योग
१.३.३ - गृह क• आयु ि_शत(200) वषF के योग
१.३.४ – गृह क• आयु सहv (1000) वषाFrमक
१.३.५ – शीö न• होने वाले गृह के योग
१.३.६ – अ*य गृह संबंधी योग
१.३.७ – गृहिप;ड _ारा गृह-आयु का €ान
१.४ साराश

१.५ पा‡रभािषक शnदाबली
१.६ अÐयास Lpq के उ9र
१.७ सदं भF k*थ सचू ी
१.८ सहायक पाठ्यसामkी
१.९ िनब*धाrमक Lp

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 124


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
१.१ K#तावना-

वा"तु शाv मानव के क`याण का मागF Lश"त करता है अतः मेरा िवÃास है िक आपक•
वा"तु शाv म' अrयंत Âिच है इसी कारण आप सभी लोग इस महrवपूणF पाठ्यzम को पढ़ रहे ह‰ । हम
सभी जानते ह‰ िक मानव क• मुgय आव>यकताओ ं म' भोजन िनवास एवं वv Lमख ु ह‰, िजनम' िनवास
का "थान अrयतं महrवपणू F "थान है, =यqिक कोई भी मानव या Lाणी एक िनि¦त िनवास "थान पर
सरु ि“त एवं भयम£ ु वातावरण म' िनवास करना चाहता है िजससे िक वह अपने इस जीवन म'
पा‡रवा‡रक सद"यq के साथ सुख पवू Fक एवं आनंदमय जीवन यापन का िनवाFह कर सक' वा"तु शाv
इ*ह„ िस~ांतq का Lितपादन करता है िक मन²ु य को िकस Lकार अिधकािधक सरु ि“त एवं सख ु मय
गृह िनमाFण क• संक`पना Lा° हो सके िजससे िक वह अपने अभी• को Lा° कर सक' । L"तुत इकाई
के माsयम से मन²ु य _ारा बनाए जाने वाले अपने सपनq के घर क• आयु का €ान अथाFत घर क• आयु
िकतनी होगी इसका €ान हम L"तुत इकाई म' Lा° कर' गे, =यqिक Lrयेक मन²ु य चाहता है िक जो गृह
िनमाFण वह कर आ रहा है, वह सरु ि“त एवं दीघFकालीन रहे । वा"तु शाv एवं ›योितष शाv म' िकस
Lकार के योग से गृह आयु का €ान िकया जाता है एवं िकन योगq से घर क• आयु अrयंत कम होती
है या शीö ही न• हो जाती है इन सब का अsययन हम L"तुत इकाई म' कर' गे।
१.२ उNेPय –
L"ततु इकाई के अsययन के बाद आप –
· वा"तु शाv के महrव को समझ सक' गे।
· गृह क• आयु के िवषय म' €ान Lा° कर' गे ।
· गृह क• आयु का साधन िकस Lकार िकया जाता है इस िवषय म' भी आप जान
जाएंगे।
· यह समझ जाएंगे िक गृह क• आयु के वषF Lमाण िकतने Lकार के हो सकते ह‰ ।
· यह बता सक' गे िक गृह शीö न• होगा या उसक• आयु दीघF रहेगी ।
१.३ गृहायु िवचार –
वा"तु शाv के िस~ातं q के अनसु ार मन²ु य _ारा बनाए जाने वाले गृह क• आयु का िवचार
वा"तु शाv म' िकया गया है । मानव क• एक "वाभािवक िज€ासा होती है िक वह जो कोई भी कायF
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 125
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
कर रहा है उसका फल उसे अÒछा Lा° हो एवं वह दीघFकाल तक रहे । वतFमान समय म' मन²ु य के
जीवन म' गृह िनमाFण क• संक`पना एक "वwन क• भांित होती है । जब भी मन²ु य गृह का िनमाFण करना
चाहता है तो वह इस Lकार के गृह का िनमाFण करना चाहता है िक वह भवन Lाकृ ितक उrपातq से
सरु ि“त रहे एवं उसके _ारा बनाए जाने वाला भवन दीघFकालीन अविध तक सरु ि“ता रहे िजससे िक
उस म' िनवास करने वाले मनु²य भयम£ ु वातावरण म' दीघF काल क• अविध तक भवन का सख ु Lा°
कर सके । इसी भावना के मल ू म' वा"तु शाv एवं ›योितष शाv के माsयम से हम बनाए जाने वाले
भवन क• आयु का €ान भी कर सकते ह‰, अथाFत भवन िजस काल िवशेष म' बनाया जा रहा है उसके
अनसु ार ताrकािलक kह ि"थित के अनुसार तथा गृह िप;ड (गृह “ेHफल ) के अनुसार भवन क• आयु
का िवचार हमारे kंथq म' िकया गया िजसका अsययन हम िन…निलिखत िबंदओ ु ं के माsयम से कर
सकते ह‰ –
१.३.१ - गृह क‹ आयु अ#सी वष3 Kमाण के योग-
भवन क• आयु के 80 वषF Lमाण के योग हमारे शाv kंथq म' Lा° होते ह‰ इसके अनसु ार
िवÃकमF -Lकाश म' बताया गया है िक िजस समय गृह का िनमाFण कायF Lारंभ िकया जा रहा हो अथाFत
गृह िनमाFण के आरंभ काल क• लÀन के समय चतथु F भाव म' गÂु एवं दशम भाव म' च±ं तथा Àयारवे
भाव म' मंगल एवं सूयF हो तो उस भवन क• आयु 80 वषF क• होती है यथा-
िशवके eयेऽ‚बरे चq„े लाभे च कुजभा#करौ |
Kार‚भः िaयते य#य अशीyयायुः aमाद् भवेत् ||1
इसी योग को हम गृह िनमाFण काल क• ताrकािलक लÀन कु;डली के माsयम से जान सकते है यथा

1
!व#कम&'
काशः तत
ृ ीयोऽ1यायः 2ो० 25

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 126


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
म०,स.ू

गÂु च*±

इसी Lकार गृह क• आयु के 80 वषF Lमाण का एक अ*य योग भी Lा° होता है िजसके अनुसार िजस
समय गृहारंभ िकया जा रहा हो उस समय क• लÀन दो पाप kहq के बीच म' हो तथा उस पर शभु kहq
क• Œि• ना हो, शिन अ•म भाव म' हो तो इस योग म' िनिमFत गृह क• आयु 80 वषF क• होती है | यथा-
पापाqतरगते ल¬ने न च सौ‚ययुते ि•ते |
अ[म#थे अक3 प'ु े च अशीyय†दाद िवहqयते ||2

मङ् गल
रा

च गृहार…भ लÀन गु Â

शिन के . स.ू बु शु

2
!व#कम&'काशः तत
ृ ीयोऽ1यायः 2ो० ३६

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 127


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
१.३.२- गृह-आयु शत(100) वष3 Kमाण के योग -
गृह क• आयु का Lमाण 100 वषœ का भी होता है इसके िस~ांत हमारे आचायœ ने Lितपािदत
िकए ह‰ िक गृहारंभ कालीन लÀन म' यिद गÂु बैठा हdं और सयू F छठे भाव म' िव?मान हो तथा बधु स°म
भाव म' हो, शz
ु चौथे भाव म' हो तथा शिन तीसरे घर म' हो तो ऐसे योग म' िनिमFत kह क• आयु 100
वषF क• होती है यथा िवÃकमाF Lकाश म' बताया गया है-
गु\ल3¬ने रिवः ष े “नू े सौ‚ये सख ु े िसते |
तृतीय#थेऽक3 प'ु े च तÇृहं शतमायुषम् ||3
यथा उदाहरण कु;डली के माsयम से –

गृहार…भलÀन
शिन
गु Â

शz

बुध

सूयF

एक अ*य योग के अनसु ार भी गृह क• आयु 100 वषF क• होती है जैसे गृहारंभ कालीन लÀन म' शz ु
िव?मान हो, बुध दशम भाव म' हो, सयू F एकादश भाव म' तथा गÂु क' ± म' हो तो ऐसी अव"था म' गृह
क• आयु एक 100 वषF क• होती है । यथा –
भृगलु 3¬नेऽ‚बरे सौ‚ये लाभ#थाने च भा#करे |
गु\ः के q„गतो य' शतवषा3िण ित ित ||4
इसी योग को बृह_ा"तुमाला मे इस Äोक के माsयम से बताया गया है यथा-

3
!व#कम&'काशः तत
ृ ीयोऽ1यायः 2ो० 23
4
!व#कम&'काशः तत
ृ ीयोऽ1यायः 2ो० 24

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 128


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
ल¬ना‚बरायेषुभृगु¨भानुिभः के q„े गुरौवष3शतायुरालयम् |5
यथा उदाहरण कु;डली के माsयम से -

गृहार…भलÀन
सूयF
शz

गु Â बुध

एवमेव गृहारंभ कालीन लÀन म' शिन हो तथा स°म भाव म' मंगल हो एवं उस पर शुभ kहq
क• Œि• ना हो तो इस योग म' भी गृह क• आयु का Lमाण भी 100 वषœ का होता है । यथा-
मqदे ल¬नगते चैव कुजे स…म संि#थते |
शुभैरवीि•ते वािप शतवषा3िण हqयते ||6
१.३.३ - गृह क‹ आयु िYशत(200) वष3 के योग – गृह आयु के िवचार के zम म' 200 वषF भी
kह के आयु का Lमाण शाvq म' बताया गया है यथा िवÃकमाF Lकाश के अनसु ार गृहारंभ कालीन
लÀन म' शz
ु िव?मान हो पांचवे भाव म' गÂु हो छठे भाव म' मगं ल तथा तृतीय भाव म' सयू F बैठा हो तो
इस योग म' बनने वाला गृह 200 वषœ तक बना रहता है
ल¬ने भृगौ प'ु गेeये ष े भौमे तृतीयगे|
रवौ य#य गृहार‚भः स च ित े˜छतYयम् ||7

5
वह
ृ दवा<तुमाला 2ो ८५
6
!व#कम&'काशः तत
ृ ीयोऽ1यायः 2ो० ३७
7
िवÃकमFLकाशः तृतीयोऽsयायः Äो० 26
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 129
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
यथा उदाहरण कु;डली के माsयम से -

सयू F गृहारंभ कालीन


लÀन, शz ु

गु Â

भौम

इसी Lकार एक अ*य योग के माsयम से भी भवन क• आयु का Lमाण 200 वषF का होता है या था
गृहारंभ कालीन लÀन म' गÂु तथा शz
ु दोनq िवराजमान हो मगं ल छठे भाव म' बैठा हो तथा सयू F Àयारहव' भाव
म' बैठा हो तो भी गृह क• आयु 200 वषF क• होती है ।
ल¬न#थौ गु\शुaौ च dरपरु ािशगते कुजे | सयू g लाभगते य#य िYशा†दािन ित ित ||8
कु0डली के मा•यम से -
गृहारंभ कालीन
सूयF
लÀन, गुÂ, शz

गह
ृ ारDभ लFन
गृह क• आयु का 200 वषF Lमाण का एक अ*यशH
ु योग भी बताया गया है िजसके अनुसार शभ
ु kह
"वरािश या उÒच रािश के होकर लÀन म' अथवा क' ± म' बैठे हो तो ऐसे योग म' िजस घर क• न„व रखी जाती
है वह 200 वषF पयÖत बना रहता है । जैसे भौम

8
िवÃकमFLकाशः तृतीयोऽsयायः Äो० 27
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 130
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
#वो˜चे #वभवने सौ‚यैल3¬न#थे वािप के q„गैः |
Kार‚भः िaयते य#य स ित ित शतYयम् ||9

4 2
3
5 बधु शुz
1

12
6

7
9 गुJ 11

8 10

अsयासKl – 1
िन…निलिखत Lpो मे सrय या असrय का चयन क•िजये -

1. गृहार…भकालीन लÀन के आधार पर गृह क• आयु का िनधाFरण िकया जाता है |


2. गृह िनमाFण के आरंभ काल क• लÀन के समय चतथु F भाव म' गÂु एवं दशम भाव म' चं± तथा 11 वे
भाव म' मंगल एवं सयू F हो तो उस भवन क• आयु 80 वषF क• होती है |
3. भृगु शnद का अथF गÂु होता है |
4. गृहार…भकाल म' शभु kह "वरािश या उÒच रािश के होकर लÀन म' अथवा क' ± म' बैठे हो तो भवन
क• आयु 200 वषF होती है |

9
!व#कम&'काशः तत
ृ ीयोऽ1यायः 2ो० 29

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 131


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
5. गृहारंभ कालीन लÀन म' यिद गÂु बैठा हdं और सयू F छठे भाव म' िव?मान हो तथा बुध स°म भाव म'
हो शz
ु चौथे भाव म' हो तथा शिन तीसरे घर म' हो तो ऐसे योग म' िनिमFत kह क• आयु 200 वषF
होती है |
१.३.४ – गृह क‹ आयु सह• (1000) वषा3yमक- शाvq म' भवन क• आयु 1000 वषF Lमाण क• भी
बताई गई है अथाFत शभु िवशेष काल म' िकया गया गृहारंभ से गृह आयु 1000 वषF तक क• हो सकती है ।
जैसे गृह आरंभ क• लÀन म' "वरािश या उÒच रािश का शz
ु बैठा हो अथवा चतुथF भाव म' "वरािश या उÒच
रािश का गÂु बैठा हdं तथा "वरािश या उÒच रािश का होकर शिन Àयारहव' भाव म' बैठा हो तो kह क• आयु
या ि"थित 1000 वषF से भी अिधक क• होती है | यथा –
#वो˜च#थो वा भगृ ल
ु 3¬ने #वो˜चे जीवे सख
ु ि#थते | #वो˜चे लाभगते मqदे सह•ाणां समाि#थितः ||
कु;डली _ारा योग क• ि"थित –
योग-1 योग - 2

1 11 8
10
लFन 12
2 10 11 9 लFन 7 शP
शH

3 6
9 12

4 8 1 3
6

5 7 2 4

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 132


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
योग-3 योग-4

2 12 10 8

3 1 9 गुJ
11 11 7 शPन
लFन

12 6
4 गुJ 10
शH

3 5
5 7 9 1

6 8 2 4

१.३.५ – शीÍ न[ होने वाले गहृ के योग - गृह आयु िवचार के Lसगं म' हम सामा*य जीवन म' देखते ह‰
िक भवन िनमाFण तो अÒछी तरह से ह†आ लेिकन िकसी कारणवश वह शीö ही न• हो जाता है इसम' कह„
ना कह„ कोई योग िवशेष कारण रहता है । हमारे शाv-k*थq म' भवन के शीö न• होने के योग का Lमाण भी
बताया गया है जैसे यिद लÀन म' “ीण च±ं मा (कृ ²ण प“ क• साधF स°मी से श=ु ल प“ क• साधF स°मी तक
का) तथा अ•म भाव म' मगं ल िव?मान हो तो इस योग म' Lारंभ िकया गया गृह शीö ही न• हो जाता है ।
यथा -

ल¬नगे शिशिन •ीणे मृyयु#थाने च भूसुते |


Kार‚भः िaयते य#य शीÍं ति° िवनPयित ||10
१.३.६ – अqय गृह सबं ंधी योग - गृह िनमाFण म' कुछ विजFत योग भी बताए गए ह‰ । इन योगq के अनसु ार
यिद भवन "वामी क• कंु डली म' भवन िनमाFण के समय िजस kह क• दशा चल रही हो और वह भवन िनमाFण

10
िवÃकमFLकाशः तृतीयोऽsयायः Äो० 38
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 133
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
समय म' िनबFल हो तथा उसके वणF का "वामी kह िनबFल हो साथ ही सयू F पीिड़त न“H म' हो तो गृह
िनमाFण ना कर' ।
दशापतौ बलैह²ने वण3नाथे तथैव च |
पीिडत•3गते सूयg न िवद•याyकदाचन ||11
इसी Lकार कई बार हम' ऐसा देखने को भी Lा° होता है िक गृह का िनमाFण तो हमारे _ारा
कराया जाता है लेिकन िकसी प‡रि"थित वश आप उस भवन का सख ु भोग नह„ कर पाते ह‰ इसका
मgु य कारण ज*म कंु डली म' हमारी kह ि"थित भी होती है जैसे यिद एक भी kह ज*म कंु डली म' शHु
नवाशं का होकर दशम या स°म भाव म' बैठा हो तथा गृह कताF के वणF ßा…हण आिद का "वामी kह
यिद िनबFल हो तो वह गृह िनमाFण के उपरांत दसू रे के हाथ म' चला जाता है |
१.३.७ – गृहिप0ड Yारा गृह-आयु का ¨ान – गृह क• आयु का िनधाFरण गृहिप;ड के माsयम से भी िकया
जाता है । इस िविध के अनुसार भवन के िप;ड या “ेHफल को आठ से गुणा करके 120 से भाग देने पर शेष
मान के बराबर गृह क• आयु होती है । जब तक आयु क• समाि° न हो तब तक घर शभु या पूणाFयु य£
ु मकान
शभु होता है । यथा –
गृह#य िप0डं गजिभिव3ग0ु यं िवभािजतं शूqयिदवाकरे ण ।
य˜छे षमायुः किथतं मुनीq„ैरायु‡य भवने शुभं #यात् ॥12
स'ू – गृहिप;ड (“ेHफल) x 8 / 120 = गृह आयु Lमाण

उदाहरण – जैसे गृह का िप;ड मान (“ेHफल ) = 40 X 30 = 1200 ह"तवगF है । तो सHू ानुसार

(1200 X 8 ) / 120 = 9600 / 120 = 80 वषF अतः 1200 ह"त वगF वाले भवन क• आयु 80 वषF क• ह†ई

गहृ आयु क‹ अqय िविध तथा गृह िवनाश का कारण – ह"ताrमक गृहिप;ड या “ेHफल को 8 से गुणा
कर 60 से िवभ£ करने पर Lा° लिnध को 10 से गणु ा करने पर गृह क• आयु का मान वषœ म' Lा° होता है ।
भाग देने पर जो शेष बचे उसम' पाँच से भाग देने पर जो शेष हो उसके zम से अथाFत 1 शेष बचे तो

11
िवÃकमFLकाशः तृतीयोऽsयायः Äो० 39
12
बृहदवा"तुमाला गणनािवचार Äो॰ 29
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 134
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
पृòवी तrव से दो शेष बचे तो जल तrव से तीन शेष बचे तो अिÀन तrव से चार शेष बचे तो वायु तrव
से श*ू य शेष बचे तो आकाश तrव के _ारा गृह आयु पणू ाF होने पर गृह का िवनाश हो जाता है । पृòवी
तrव आए तो परु ाना होकर घर िगर जाता है , जल तrव हो तो जल के _ारा घर का िवनाश, वायु तrव
हो तो घर के अंगq( लकड़ी, दीवाल आिद) म' रोग हो जाने से घर िगर जाता है , आकाश तrव हो तो
आयु पणू F होने पर गृह श*ू य हो जाता है । यथा –
ह#ताyमकं •े'फलं गजाहतं संवyसरैभा3िजतल†धकं यत् ।
तyखेqदुगु0यं भवन#य जीवनं य˜छे िषतं भुत•तं िवलीयते ॥
पिृ थ¯यापोऽनलो वायरु ाकाश इित पcचिभः ।
गृह#यायुिष संपूणg िवकारो जायते Ãुवम् ॥13
अsयासKl – 2
‡र£ "थान क• पिू तF क•िजये –
1- शz
ु क' ± या लÀन म' ................. रािश का हो तो भवन क• आयु 1000 वषF क• होती है |
2- चतुथF भाव म' ................ kह उÒच का हो तो भवन क• आयु 1000 वषF क• होती है |
3- उÒच का शिन एकादश भाव म' िवराजमान हो तो गृह क• आयु ........... वषF क• होती है |
4- गृह िवनाश Lिzया म' यिद वायु तrव शेष [प म' Lा° हो तो गृह का िवनाश गृह म' ................होने
से होता है |
5- कृ ²ण प“ क• सा~F स°मी से शु=ल प“ क• सा~F स°मी तक चं± ..........रहता है |

१.४ सारांश

सारांश [प म' L"ततु इकाई के अsययन के प¦ात हम यह €ात कर चक ु े ह‰ िक गृह क•


िनमाFण कालीन जो लÀन होती है उसके अनसु ार तथा kहq क• ि"थित के अनसु ार उस गृह क• आयु
का Lमाण िभ*न-िभ*न वषœ म' Lा° होता है अथाFत गृह िनमाFण कालीन लÀन ि"थित के अनसु ार कुछ
योग 80 वषF क• आयु के Lमाण के Lा° होते ह‰, कुछ योग 100 वषF गृह क• आयु के Lमाण के होते
13
बृहदवा"तमु ाला गणनािवचार Äो॰ 31-30
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 135
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
ह‰, कुछ योग(kह ि"थित ) गृह क• आयु 200 वषF Lमाण के भी शाvq म' Lितपािदत िकए गए ह‰ एवं
कुछ योग या kह ि"थित म' तो िकया गया गृह िनमाFण कायF से गृह क• आयु 1 हजार से अिधक वषF
Lमाण क• होती है | इसका Lमाण आज भी हम देख पाते है िक कई वषœ पवू F बनाए गए मिं दर , िकला
इrयािद आज भी सरु ि“त अव"था म' िदखाई देते है । साथ ही साथ शीö न• होने वाले भवन के योग
भी शाvq म' बताए गए ह‰ एवं kहq क• पर"पर ि"थित वशात् भवन िनमाFण के प¦ात भी उसका सख ु
Lा° नह„ कर पाना इस Lकार के योगो का भी उ`लेख हमारे शाvq म' Lा° होता है । साथ ही साथ
गृहिप;ड _ारा भी गृह आयु का िवचार शाvq मेन िकया गया है । अतः मनु²य को चािहए क• जब भी
वह गृह िनमाFण का कायF आरंभ करने जा रहा हो उस समय ताrकािलक kह ि"थित का िवचार करना
अrयाव>यक है =यqिक वह अपने परू े जीवन क• संिचत िनिध को अपने "वwन Âपी गृह के िनमाFण म'
लगाता है यिद उस गृह िनमाFण का फल उसे शभु Lा° ना हो उस मन²ु य के िलए यह अrयतं क• कर
होता है वा"तु शाv एवं ›योितष शाv इ*ह„ बातq का मागFदशFन करता है । अतः मन²ु य को अव>य
ही शाvो£ िविध से गृह िनमाFण करना चािहये । िजससे वह गृह का सखु परु ी तरह से Lा° कर सके ।

१.५ पाdरभािषक श†दाबली

1- गृहायु – गृह अथवा भवन क• आयु अथाFत भवन िकतने वषF तक सरु ि“त रहेगा|
2- पाप}ह – राहd, मंगल, शिन, के तू तथा सयू F ›योितष शाv म' पापkह माने जाते ह‰ |
3- पापाqतरगते- पाप kहq के मsय म' अथाFत भाव के अगले एवं िपछले भाव म' पाप kह हो|
4- गृहार‚भकालीन ल¬न – िजस समय भवन का िनमाFण कायF Lार…भ िकया जाता है उस
समय क• लÀन |
5- •ीणचं„ – च*± क• सामा*यतः दो अव"थाये रहती है एका पणू F चं± एवं एक “ीण च±ं |
कृ ²ण प“ क• सा~F स°मी से श=ु ल प“ क• सा~F स°मी तक च±ं “ीण रहता है | अथाFत
उसका बल कम रहता है |
6- #वो˜च – kह क• उÒच अव"था या रािश जैसे सयू F क• "वोÒच रािश मेष है |
7- #वरािश- kह िजस रािश का "वामी होता है वह उसक• "वरािश होती है जैसे – सयू F क•
िसंह "वरािश है |
8- क) „ – कंु डली म' 1-4-7-10 भाव क' ± भाव होते ह‰ |

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 136


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
१.६ अsयास KlŠ के उpर

अsयास 1-
1- सrय , 2 –सrय, 3- असrय, 4- सrय, 5- असrय |
अsयास -2
1- उÒच , 2- गÂु , 3- 1000 वषF , 4 –रोग , 5 – “ीण च*± |
१.७ संदभ3 }qथ सच
ू ी-

(क) मल ू लेखक – िवÃकमाF , स…पादक एवं टीकाकार –महिषF अभय काrयायन ,


िवÃकमFLकाशः(२०१३) तृतीतोऽsयायः Äो २३-३९ , चौखबं ा सरु भारती Lकाशन,
वाराणसी |
(ख) मलू लेखक – Ùीरामिनहोर ि_वेदी संकिलत, टीकाकार –डा ßàान*द िHपाठी एवं डा
रिव शमाF , वृह_ा"तुमाला(२०१८ ) गणनािवचार Äो ८२-८६ , चौखंबा सुरभारती
Lकाशन, वाराणसी |
(ग) मल ू लेखक – Ùीरामदैव€ , टीकाकार – Lो. रामच*±
पा;डेय,महु dतिF च*तामिणः(२००९) वा"तLु करण , चौख…बा कृ ²णदास अकादमी,
वाराणसी |
नोट -अ*य संदभÜ का उ~रण Lrयेक संदभF के पृˆ पर है |

१.८ सहायक पाठ्यसाम}ी -

मयमतम् – मयमिु न
बृहrसंिहता – वराहिमिहर
बृह›जातकम् – वराहिमिहर
वा"तुसारः – Lो. देवीLसादिHपाठी

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 137


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
१.९ िनबqधाyमक Kl -
1. वा"तु शाv के अनसु ार गृहायु के ८० वषF Lमाण के योग को बताइये ।
2. गृह क• आयु १०० वषF क• कब होती है ।
3. वा"तु शाv (›योितष ) के अनुसार शीö गृह न• होने के कारण बताइये ।
4. गृह िप;ड_ारा गृह आयु €ान Lिzया को उदाहरण सिहत िलिखए ।
5. गृहायु पर सिं “° िनब*ध िलिखये ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 138


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
इकाई - २ जल#थापन िनधा3रण

इकाई क‹ सरं चना-


२.१ L"तावना
२.२ उNे>य
२.३ जल"थापन िनधाFरण
२.३.१-आवास आिद म' भिू मगत जल का िनधाFरण
२.३.२-पानी क• टंक• इrयािद क• ¢यव"था
२.३.३ जल िनकासी
२.३.४ जलाशय महु dतF ( जलाशय, कूप, बो‡रङ्ग, नलकूप)
२.४ सारांश
२.५ पा‡रभािषक शnदाबली
२.६ अÐयास Lpq के उ9र
२.७ संदभF k*थ सचू ी
२.८ सहायक पाठ्यसामkी
२.९ िनब*धाrमक Lp

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 139


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
२.१ K#तावना-

आप लोगो को वा"तु शाv म' Âिच है यह मेरा िवÃास है इसी कारण आप वा"तु शाv के
इस पाठ्यzम को पढ रहे ह‰ । वतFमान काल म' वा"तु शाv क• मह9ा से आप लोग भलीभाित प‡रिचत
है । मानव जीवन म' वा"तु शाv अrयंत उपयोगी शाv है । हम सभी जानते ह‰ िक हमारा यह शरीर
पचं महाभतू q ( पृòवी, जल, अिÀन, आकाश, वाय)ु से िमलकर बना है । िजस Lकार मानव जीवन म'
इन पंचमहाभतू q का सामजं "य आव>यक है उसी Lकार इस पृòवी एवं हमारे घर म' भी इन पंचमहाभतू q
का सामÍज"य आव>यक है । पंचमहाभतू q म' भी जल का अrयंत महrवपूणF "थान है । =यqिक कहा
जाता है िक “जल ही जीवन है” । अतः L"तुत इकाई म' आप जान'गे िक वा"तु के अनसु ार
जल"थापन िनधाFरण के िस~ा*त =या ह‰ एवं घर म' िकस Lकार घर म' जल क• "थापना क• जानी
चािहए तथा पानी क• टंक•, भूिमगत जल क• ¢यव"था, जल िनकासी के िविभ*न िस~ांत =या है ।
२.२ उNेPय –
L"तुत इकाई के अsययन के बाद आप –
v समझ सक' गे िक पंचमहाभूतq का मानव जीवन म' =या महrव है ।
v वा"तु शाv म' जल"थापन िनधाFरण के महrव को जान सक' गे ।
v यह बता सक' गे िक घर म' भिू मगत जल क• ¢यव"था कहाँ क• जाती है ।
v समझ जाएँगे िक पानी क• टंक• इrयािद का उिचत "थान घर म' कहाँ होता है ।
v जल िनकासी क• ¢यव"था िकस Lकार क• जाती है इस बार' म' आप अवगत हो
जाएँगे ।
v जलाशय महु dतF के िवषय मे अवगत हो जायेगे ।
२.३ जल#थापन िनधा3रण –
उदके न िवना वृिpना3ि#त लोकYये सदा ।
त#माeजलाशयाः काया3ः प\ु षेण िवपिvता ॥
अि¬न[ोमसमः कूपः सोiमेधसमो मरौ ।
कूपः KवृUपानीयः सवx हरित दु‡कृतम् ॥
कूपकृy#वग3मासा“ सवा3qभोगानपु ाlुते ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 140


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
त'ािप भोगनैप0ु यं #थानाsयासाyKक‹ित3तम् ॥14
इहलोक म' िबना जल के जीवन िनवाFह नही हो सकता इसिलये िव_ान् पÂु ष को जलाशय
बनबाना चािहये । एक कूप बनवा देने से अिÀन•ोम के त`ु य फल िमलता है । वही कूप यिद मÂभिु म
म' बनबाया जाय तो अÃमेध य€ के बराबर फल होता है । बनाये ह†ये कूप म' यिद प²ु कल जल(अथाFत
पयाF°) रहे िजससे लोगो क• तृि° होती रहे तो बनबाने वाले के संपणू F द²ु कमF न• हो जाते है । कूप बनाने
वाला "वगF म' जाकर नाना Lकार के सख ु q को भोगता है । यिद वह कूप िनजFल देश म' हो तो बह†त
काल तक बनबाने वाले को "वगF म' रहना पडता है । इस Lकार हमारे शाvो म' जल एवं जलाशय
िनमाFण क• मिहमा को बताया गया है ।
वा"तु शाv पÍचमहाभतू q के सामजं "य से गृहिनमाFण अथवा वा"तु के िस~ांतq का Lितपादन
करता है । पचं महाभतू q म' जल का अrयतं महrवपणू F "थान होता है । हमारे दैिनक जीवन म' भी जल
का अrय*त महrवपणू F "थान है । जल के िबना जीवन क• सक ं `पना भी सभं व नह„ है । जल का Lयोग
पयाFवरण म' बह†त Lकार से िकया जाता है चाहे पीने के िवषय म' हो या दैिनक िzयाओ ं के संपादन म'
हो, कृ िष कायF, पयाFवरण को सतं िु लत बनाने म' भी जल का अrय*त महrवपणू F "थान है । हम जानते
है िक पृòवी पर जल के अनेक Ùोत है िजनम' सागर, निदयां, वषाF का जल, भिू मगत जल इrयािद Lमख ु
ह‰ । इसी जल के "थान से संबिधत िनयमq का Lितपादन हमारे वा"तु शाv म' अrय*त समीचीनतया
िकया गया है । िजसके प‡रपालन से मानव जीवन और सख ु मय व ¢यवि"थत बनता है । उ*ह„ िनयमq
के बारे म' हम L"तुत इकाई म' िव"तृत [प से अsययन कर' गे ।
२.३.१-आवास आिद म) भूिमगत जल का िनधा3रण –
भूिमगत-जल से ताrपयF पृòवी के गभF म' िव?मान जल रािश से है । Lाचीन काल से ही भूिमगत
जल से सबं ि*धत िनमाFण होते आ रहे ह‰ िजनम' कूप Lमख ु है आधिु नक यगु म' भिू मगत जल
के िलये बो‡रंग, या भूिमगत ट'क का िनमाFण कायF िकया जाता है । इसी भूिमगत जल हेतु वा"तु शाv
म' ¢यापक िवचार िकया गया है एवं सभी आचायÜ ने एकमत से भिू मगत जल हेतु ईशान, पवू F, उ9र,
और पि¦म िदशा को अित उ9म माना है । वा"तव म' ईशान के "वामी महादेव भगवान िशव है और
संपणू F िवÃ म' जल से उनका अिभषेक होता है अतः उ*हे जल अrय*त िLय है । कहा भी गया है िक -
“जलधारा िशविKया”

14
वा"तरु rनाकर जलाशयLकरण Äो 01 से 03 तक
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 141
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
िशव और जल का यह पार"प‡रक संब*ध ईशान म' जल ¢यव"था को प‡रप•ु करता है । पवू F
–उ9र म' भिू मगत जल के "थान का कारण वा"तु शाv के मूल िस~ा*त के कारण है । वा"तु शाv का
मलू िस~ा*त है िक wलवrव के अनसु ार सवFदा भिू म का पवू Ü9र भाग नीचा रहना चािहये । यह एक
Lिस~ िस~ा*त है इसी कारण भिू मगत जल का सवÜ9म "थान ईशान िदशा (कोण) को माना जाता
है । पि¦म िदशा के "वामी वÂण है जो "वयम् जल के देवता है अतः भूिमगत जल का "थान पि¦म
म' भी शुभ माना गया है । आवास या भवन के िविभ*न "थान म' भूिमगत जल के िनमाFण के फल का
िववेचन महु †तिF च*तामिण म' िन…नवत् िकया गया है –

कूपे वा#तोम3•यदेषे थ3नाश#yवैशाqयादौ पुि[रैiय3वृि°ः |


सनू ोना3शः •ीिवनाशो मिृ तv सपं yपीडा श'तु ः #या˜चसौrयम् ||15
अथाFत् यिद वा"तु (गृह िप;ड ) के मsय म' भिू मगत जल यथा कूप, बो‡रंग या नलकूप हो तो
गृह "वामी का धननाश, ईशान कोण म' हो तो पिु •, पवू F म' ऐÃयFविृ ~ , अिÀन कोण म' पHु नाश, दि“ण
म' vीनाश, नैऋrय कोण म' मृrय,ु पि¦म म' सपं ि9, वाय¢य म' शHपु ीडा तथा उ9र म' िदशा म' सख ु क•
Lाि° होती है |
यथा तािलका माsयम से भूिमगत जल िनमाFण (कूप, बो‡र*ग, नलकूप ) आिद का फल -
िदशा मsय ईशान पवू F आÀनेय दि“ण नैऋrय पि¦म वाय¢य उ9र

फल धननाश पिु • ऐÃयF पHु नाश vीनाश मृrयु संपि9 शHभु य सौgय

िचH के माsयम से िविभ*न िदशाओ ं मे कूपािद का शभु ाशभु rव-

15
मुहूतR& चTतामUणः वा<तु'करण 2ो० 20

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 142


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104

ईशान पवू F आÀनेय


शभु शभु अशभु
(पिु • ) (ऐÃयF ) (पHु नाश )

शभु अशभु अशभु


उ9र दि“ण
(सख
ु ) (धनहािन ) (vी नाश )

अशभु शभु अशभु


(शHभु य ) (धन लाभ ) (मृrयु )

वाय¢य पि¦म नैऋrय

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 143


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
िन…न िलिखत "थानो म' भिू मगत जल िनमाFण िकया जाना चािहये –

पवू F
ईशान

उ9र दि“ण

पि¦म

भवन म' कूपािद के िनमाFण के समय िन…निलिखत बातq को अव>य sयान रखना चािहये –
1.- घर म' मgु य _ार से Lवेश करते ही जल का बो‡रंग या कूप नह„ करना चािहये ।
2.- भवन के ßà"थल (मsय"थल) पर कभी भी जल के बो‡रंग हेतु गड्डा नह„ करना चािहये ।
3.- आÀनेय, दि“ण, नैऋrय, और वाय¢य म' भिू मगत जल िनमाFण कायF नह„ करना चािहये ।
4.- ईशान, पवू F, उ9र और पि¦म भूिमगत जल के िलये उ9म "थान है ।
5.- जल का बो‡रंग कभी भी दीवार के िब`कुल पास नही करना चािहये ।
अsयास Kl -1
िन…निलिखत Lpq म' सrय या असrय का चयन क•िजये -
1. भूिमगत जल के अ*तगFत कूप आता है ।
2. कूपािद का िनमाFण दि“ण िदशा मे शभु होता है ।
3. ईशान –पूवF उ9र भिू मगत जल के िलये उपयु£ "थान नह„ है ।
4. ßà"थल हमेशा ‡र£ रहना चािहये ।
5. भूिमगत जल का िनमाFण पि¦म िदशा म' करने से संपि9 का नाश होता है |
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 144
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
२.३.२ घर मे जलसं}ह का #थान -
जल Lाि° के "थान का तो वा"तु शाv म' अrय*त महrव है ही, साथ ही साथ वा"तु के अनुसार
जल सkं ह के "थान का भी िवशेष महrव होता है । बृहrसंिहता म' जलसंkह के िवषय मे बताया गया है िक

Kा˜यािद#थे सिलले सतु हािन: िशिखभयं dरपभ
ु यं च |
•ीकलहः •ीदौ[्यं नै#¯यं िवpाyमजिववृि°ः ||16
अथाFत् यिद पवू F िदशा म' जल सkं ह करने से पHु हािन, आÀनेय कोण म' जल संkह से आग का डर , दि“ण
म' िvयq म' कलह, पि¦म म' vीयो म' दःु शीलता वाय¢य म' िनधFनता, उ9र म' धनवृि~ और ईशान म' पHु वृि~
होती है । िचH के माsयम से वा"तु (घर ) म' जल संkह का फल िन…न Lकार से है |

ईशान पवू F आÀनेय

शभु अशभु अशभु


( पHु वृि~ ) (पHु हािन ) (अिÀन भय )

शभु अशभु
उ9र ( धनवृि~ ) (शHु भय ) दि“ण

अशभु शभु अशभु


( िनधFनता ) ( vीयो मे दःु शीलता ) (vीयो मे कलह )

वाय¢य पि¦म नैऋrय

16
बह
ृ Xसं[हता वा<तु!व\ा1यायः - 2ोक ११९

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 145


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104

यहाँ एक बात sयान रखने योÀय होती है िक घर के छत पर यिद जल संkह करना हो यथा पानी
क• टंक• इrयािद तो उसके िलये हम' वा"तु शाv के मलू िस~ा*त को अव>य sयान म' रखना चािहये
अथाFत् वा"तु शाv का मूल िस~ा*त है िक भवन का पूवF उ9र भाग नीचा और पि¦म भाग उ*नत
होना चािहये । अतः ऐसा कोई भी िनमाFण जो भवन के दि“ण पि¦म भाग को उ*नत करे वह वा"त-ु
स…मत और जो भवन के उ9र-पवू F भाग को उ*नत करे वह वा"तु िनयम के िवÂ~ है अतःभवन म'
ओवरहैड टंक• का िनमाFण भी भवन के दि“ण पि¦म या नैऋrय कोण म' ही करना चािहये । पानी क•
टंक• के िनमाFण म' िन…न बातq का sयान रखना चािहये -
1. पानी क• ओवरहैड टंक• सदैव दि“ण, पि¦म या नैऋrय कोण म' ही करे ।
2. पवू F-उ9र तथा ईशान म' कभी भी पानी क• ओवरहैड टंक• नही रखनी चािहये ।
3. यिद प‡रि"थित वश पूवF, उ9र या ईशान म' पानी क• टंक• रखनी पडे तो दि“ण पि¦म भाग
म' कोई क“ या इस Lकार कोई िनमाFण कायF करना चािहये जो पानी क• टंक• से उ*नत हो ।
2.3.3 जल िनकासी – िजस Lकार हम' वा"तु शाv के अनसु ार जल के vोत का िनमाFण उिचत
िदशा या "थान म' करना चािहये उसी Lकार जल क• िनकासी भी महrवपणू F है । यथा-
गहृ ाद् वाdर िन#सारणाथx Kकुया3द् िबलं पवू 3 का ािदके तyफलं च |
शुभं चाशुभं दुखदं पु'हािनः समं शोभनं वृि°दं प'ु दं च ||17
अथाFत् घर के जल क• िनकासी के िलये पवू F, ईशान, वाय¢य एवं पि¦म िदशा उिचत है । शेष
िदशा अथाFत् आÀनेय, दि“ण, और नैऋrय िदशा से जल िनकासी अशभु फल देने वाली होती है ।
इसका िदशा के अनसु ार फल =या होता है यह हम िन…नचz के माsयम से समझ सकते है -
िदशा फल
पवू F शभु

आÀनेय अशभु ,धन“य

दि“ण दख

नैऋrय पHु हािन

17
वा<तुमाUण`यरaाकर

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 146


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
पि¦म समफल
वाय¢य शभु
उ9र राज स…मान
ईशान सख
ु - सपं ित

अsयास Kl- 2
‡र£ "थान क• पिू तF क•िजये –
1. पवू F िदशा म' जल सkं ह का फल ............. होता है ।
2. वाय¢य कोण से जल िनकासी का फल ......... होता है ।
3. पानी क• ओवरहैड टंक• का िनमाFण .............िदशाओ ं म' शभु होता है ।
4. वाय¢य म' जल सkं ह .......... कारक होता है ।
5. पवू F िदशा से जलिनकासी ............ होती है ।

२.३.४. जलाशय महु oत3 एवं कूप चa –


कूप-चa –कूप (कुआँ) आिद खदु वाते समय कूप चz का िवचार अव>य करना चािहये । कूप चz
के अनसु ार िविभ*न kहq क• न“H ि"थित के अनसु ार वतFमान न“H अनसु ार जल िवचार िकया जाता
है अथाFत् जल क• Lाि° कै सी होगी "वाद कै सा होगा इसका िवचार कूप चz के माsयम से िकया
जाता है । यथा सवFLथम सूयF न“H के अनसु ार कूप चz के अनसु ार जल का िवचार करे तो, सयू F न“H
से (सयू F िजस न“H म' हो ) तीन न“H तक यिद वतFमान न“H (च*± न“H ) हो तो इस समय यिद
कुआँ खोदा जाये तो इसे मsय भाग का जल कहते है एवं "वािद• जल क• Lाि° होती है । एवं तीन
न“H के बाद अथाFत् सूयF न“H से वतFमान न“H चार न“H से 6 न“H तक रहे तो पवू F िदशा म' (कूप
के ) जल क• Lाि° होगी है एवं इससे "व`प जल क• Lाि° होती है । इसे िव"तृत [प से िन…न चz के
माsयम से समझ सकते है |

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 147


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
सूय3 न•' से कूपचa18
िदशा न•' फल
मsय 3 "वािद• जल
पवू F 3 "व`प जल
आÀनेय 3 "वािद• जल
दि“ण 3 जल- नाश
नैऋrय 3 "वािद• जल
पि¦म 3 “ार-जल
वाय¢य 3 शीतल-जल
उ9र 3 िमिÙत-जल
ईशान 3 “ार-जल

नोट - िदशा से ताrपयF कूप के िकस भाग से जल Lाि° से है ।


रोिहणी न•' से कूप चa - रोिहणी न“H के अनुसार भी कूप चz का िनमाFण िकया जाता है ।
अथाFत् रोिहणी न“H से वतFमान न“H क• ि"थित के अनुसार कूपािद के जल का िवचार िकया जाता
है जैसे – रोिहणी न“H से वतFमान िदन के न“H तक िगने, Lथम तीन न“H मsय म' 3-3 पूवाFिद आठ
िदशा-िविदशाओ ं म' रख' । zमशः फल 3 "वादु जल, 3 खि;डत जल, 3 सुजल, 3 िनजFल, 3 अमृत
जल, 3 शोभन जल, 3 जलहािन, 3 "वादु जल, 3 “ार अ`प एवं तीÎण जल होता है |
यथा चz के माsयम से

18
कुपेकFभा*मsयगतैसिvिभभै: "वाददू कं पवू Fिदिश िHिभिvिभः |
"व`पं जलं "वादजु लं जल“यं "वाददू कं “ारजलं च िमिÙतम् ||
(वृह_ा"तुमाला दकागFलं Äो०११६)
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 148
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
रोिहणी न•' से कूप चa19

िदशा न•' फल

मsय 3( रोिहणी, मृगिशरा आ±ाF ) "वािद• जल

पूवF 3(पनु वFस,ु प²ु य, आÄेषा ) "व`प जल

आÀनेय 3(मघा, प.ू फा०,उ० फा०) "वािद• जल

दि“ण 3(ह"त, िचHा, "वाती जल- नाश

नैऋrय 3(िवशाखा, अन.ु , ›येˆा ) "वािद• जल

पि¦म 3(मल
ू , प०ू षा०, उ०षा०) “ार-जल

वाय¢य 3(Ùवण,धिनˆा, शतिभषा ) शीतल-जल

उ9र 3(प०ू भा०, उ०भा०, रे वती ) िमिÙत-जल

ईशान 3(अिÃनी, भरणी, कृ ितका ) “ार-जल

भौम न•' से कूप चa - भौम न“H से भी कूप चz के िनमाFण का फल शाvो म' बताया गया है
अथाFत् भौम न“H से वतFमान न“H तक िगनने से यिद Lथम न“H हो तो जल से वध का भय एवं
उसके बाद अिkम 5 न“Hq तक िसि~ इसी Lकार आगे का भी फल बताया गया है जो हम िन…न
तािलका से समझ सकते है यथा –
भौम न•' से कूप चa20

19
वह
ृ bा<तुमाला दकाग&लं 2ो०११७- १२०
20
वह
ृ bा<तुमाला दकाग&लं 2ो-१२१

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 149


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104

न•' फल

1 जल से वध

5 िसि~

4 अभ*ग

3 अिसि~

3 रोग

4 यश

3 यश,Lिसि~

4 जल-भङ्ग

राहo न•' से कूप चa – राहd न“H से कूपािद का िवचार िकया जाता है । राहd न“H से वतFमान न“H
(च*± न“H ) तक िगनने पर 3 न“H पूवाFिद िदशाओ ं मे एवं अि*तम 4 न“H म' मsय मे जानकर
शभु ाशभु फल इस Lकार समझना चािहये यथा –

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 150


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
राह न•' से कूप चa21

िदशा न•' फल
पवू F 3 शोक
आÀनेय 3 जल लाभ
दि“ण 3 "वामी मृrयु
नैऋrय 3 दःु ख
पि¦म 3 सख

वाय¢य 3 जल-वृि~
उ9र 3 िनजFलम्
ईशान 3 जल-िसि~
मsय 4 सजल

िविभqन- कूपचaŠ का Kयोजन – उपयF£


ु कूप-चzq का Lयोजन यह है िक यिद उपयF£
ु Lकार से वतFमान
न“H म' िकये जाने वाले कूप खदु वाने के कायF म' यिद सभी Lश"त आये तो िनि¦त ही वहाँ जल क• Lाि°
अव>य होगी । यथा वा"तुरrनाकर म' कहा गया है िक –
रोिह0यृ•ाyसूया3भाद् भौमभा˜च राहो ऋ•ाद् ग0यते कूपचaम|्
यि#मqकाले सव3मेतyKश#तं ति#मqभमू ौ िनज3लायां जलyवम् ||22

21
वह
ृ bा<तुमाला दकाग&लं 2ो-१२२-१२५

22
वा<तुरaाकर जलाशय'करणम ् 2ो ३६

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 151


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
जलाशय मुहoत3- शभु समय म' िकये गये कायF शभु फल दायक होते है । अतः ›योितष एवं वा"तु शाv म'
महु dतF का िवशेष महrव होता है । िकसी भी कायF का यिद शभु ार…भ शभु मुहdतF म' हो तो वह िनि¦त ही
फलLदायक होता है, अतः जलाशय िनमाFण म' भी शभु महु dतF का िवचार करना आव>यक होता है ।
कूपािद के महु dतF के िवषय म' बृह_ा"तुमाला म' बताया गया है िक –
िच'ा #वाितपनु व3सु मगृ िशरो मल
ु ािiनीरोिहणी-
ह#ताः पु‡यधिन कं शतिभषक् िम'ोpरारे वती |
एतेषु Ÿवणािqवतेषु मकरे ल¬ने च कु‚भे झषे
वापीकूपजलाशयािदखननं श#तं Kश#ते िदने ||23
अथाFत् िचHा, "वाती, पनु वFस,ु मृगिशरा, मल
ू , अिÃनी, रोिहणी, ह"त, प²ु य, धिनˆा, शतिभषा,
अनुराधा, तीनq उ9रा, रे वती, Ùवण न“Hq म' मकर, कु…भ, मीन लÀन म' शुभ िदनq म' कूपािद का िनमाFण शभु
होता है ।
िव"तार से कूपािद आर…भ महु dतF िन…नवत है –
1. उ9रायण म' (चैH मास को छोडकर), पृòवी शयन न“H न हो अथाFत् अभी• न“H सयू F न“H (सयू F
िजस न“H म' हो ) से 5, 7, 9, 12, 19, 26 वा न“H न हो अथाFत् इन न“Hो म' पृòवी शयन करती
है ।
2. न•' - िचHा, "वाती, पनु वFस,ु मृगिशरा, मल
ू , अिÃनी ,रोिहणी, ह"त, प²ु य, धिनˆा, शतिभषा,
अनरु ाधा, तीनो उ9रा, रे वती, Ùवण इन न“Hो म' कूपािद का आर…भ शभु होता है ।
3. ितिथ – 2, 3, 5, 6, 7, 13, 15 ितिथयq म' कूपार…भ शभु होता है ।
4. वार- सोम, बुध, गÂु एवं शz
ु वार ।
5. ल¬न – 2, 3, 4, 6, 7, 9, 10, 11, 12 लÀन हो एवं शभु kह के *± व पाप kह िHषडाय म' हो ।

अsयास Kl – 3

23
बह
ृ bा<तुमाला दकाग&लम 2ो० १३६-१३७

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 152


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
िन…निलिखत Lpो म' सrय या असrय का चयन क•िजये -
1. कूप चz मgु य [प से चार Lकार से बनाये जाते है ।
2. रोिहणी चz के अनसु ार यिद मृगिशरा म' जलाशय का िनमाFण िकया जाये तो "वािद•
जल क• Lाि° होती है ।
3. उ9रायण म' जलाशय का आर…भ नह„ करना चािहये ।
4. िचHा न“H म' कूपािद का िनमाFण शभु दायक होता है ।
5. जलाशय िनमाFण कािलक लÀन म' शभु kहो क• ि"थित के *± मे अशभु फल दायक होती
है ।

२.४ सारांश -
L"तुत इकाई के अsययन के प¦ात आपने वा"तु शाv के अनसु ार जल"थापन से संबिधत
िस~ा*तq को जाना । वा"तु के अनसु ार भिू मगत जल िनधाFरण के अपने िस~ा*त ह‰ यथा इसके िलये
Lश"त िदशा ईशान, पवू F, उ9र एवं पि¦म िदशा को उपय£ ु बताया गया है । इसी Lकार जल सkं ह के
िवषय म' भी कुछ िवशेष बातq को आपने जाना जैसे यिद सामा*य [प से भवन म' जल संkह करना हो
तो ईशान एवं उ9र िदशा को Lश"त बताया गया है । इसी Lकार यिद पानी क• टंक• इrयािद के माsयम
से भवन के ऊपर यिद जल संkह करना हो तो दि“ण, पि¦म या नैऋrय िदशा म' करना चािहये यहाँ
वा"तु शाv के मल ू िस~ा*त के अनसु ार पानी क• टंक• आिद का िनमाFण िकया जाता है । इसी Lकार
भवन के बाहर जल िनकासी के िवषय म' भी आपने इस इकाई म' जाना यथा जल िनकासी पवू F, पि¦म,
वाय¢य, उ9र, ईशान िदशा म' होना चािहये । इसी zम म' जलाशय के महrव एवं कूप चz के िस~ा*त
से अवगत ह†ये, िजसम' मgु य [प से 4 Lकार से कूप चz का अवलोकन करना चािहये यथा सयू F
न“H से कूप चz, भौम(मङ्गल ) न“H से कूप चz, रोिहणी न“H से कूप चz, राहd न“H से कूप
चz इन चारq न“H से यिद Lश"त योग Lा° होता है तो उस "थान पर िनि¦त ही जल क• Lाि° होती
है । साथ ही साथ जल Lाि° के भी कुछ योग से अवगत ह†ये एवं अ*त म' जलाशय आिद के िनमाFण
के शभु मुहdतF को जाना । इस Lकार जैसे मानव जीवन म' जल का िकतना महrवपणू F "थान होता है एवं
उस जल से सबं ि*धत िनयमो का gयाल रखकर कायF िकया जाये तो वह िनि¦त ही मानव के क`याण
का मागF Lश"त करता है ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 153


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
२.५ पाdरभािषक श†दाबली -

जल-#थापन –= जल के "थान या जल का vोत ।


उदक = जल ।
भिू मगत जल = भिू म के गभF से Lा° होने वाला जल यथा –कूप (कुआँ ) बो‡रंग, नलकूप
इrयािद ।
जल-िनकासी = भवन से जल के बाहर जाने का मागF ।
कूप- चa = जल हेतु उपय£ ु "थान के €ान का बोधक चz ।
मुहoत3 = जलाशय आिद के िनमाFण कायF हेतु उपय£ु काल को बताने वाला ।
उpरायण = सयू F जब मकर रािश से क*या रािश मे रहता है उस काल को उ9रायण कहते है।
िविदशा = चार मgु य िदशाओ ं के मsय वाले कोण को ईशान आिद िविदशा कहते है ।
२.६ अsयास KlŠ के उpर –
अsयास Kl - 1
1-सrय, 2 –असrय , 3 – असrय , 4 - सrय, 5- सrय |
अsयास Kl- 2
1-अशभु (पHु हािन ), 2 –शुभ , 3 –दि“ण,पि¦म, नैऋrय , 4 - अशभु , 5- शभु |
अsयास Kl – 3
1-सrय, 2 –सrय , 3 – असrय , 4 - सrय, 5-असrय |
२.७ संदभ3 }qथ सच
ू ी-

(घ) मलू लेखक – Ùी िव*sयेÃरीLसादि_वेदी, वा"तुरrनाकर (२०१४) जलाशयLकरण


Äो 01 से 03 तक , चौख…बा स"ं कृ त सीरीज आिफस, वाराणसी ।
(ङ) मल ू लेखक – वराहिमिहर, टीकाकार –पि;डत अÒयतु ान*द झा, बृहrसिं हता(२०११)
वा"तुिव?ाsयायः Äो ११९ , चौखंभा िव?ा भवन,वाराणसी ।
(च) मल ू लेखक – Ùीरामिनहोर ि_वेदी संकिलत, टीकाकार –डा ßàान*द िHपाठी एवं डा
रिव शमाF , वृह_ा"तमु ाला(२०१८ ) दकागFलं Äो०११६ , चौखबं ा सरु भारती
Lकाशन, वाराणसी ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 154


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
(छ) मल
ू लेखक – Ùीरामदैव€ , टीकाकार – Lो. रामच*±
पा;डेय,महु dतिF च*तामिणः(२००९) वा"तLु करण Äो० 20, चौख…बा कृ ²णदास
अकादमी, वाराणसी ।
नोट -अ*य संदभÜ का उ~रण Lrयेक संदभF के पृˆ पर है ।
२.८ सहायक पाठ्यसाम}ी -
भारतीय वा"तु शाv – Lो. शक
ु देव चतवु द— ी
िवÃकमाF Lकाश – अभय काrयायन
मयमतम-् Ùीभोजदेव
गृह वा"तु का शाvीय िवधान – डा देशब*धु शाvी
२.९ िनबqधाyमक Kl -
1. वा"तु शाv के अनसु ार जलाशय के महrव को समझाइये |
2. भूिमगत जल िनमाFण के िवषय मे िव"तृत िववेचन करे |
3. कूप-चz पर िटwपणी िलखे |
4. िचH के माsयम से जलसkं ह के "थान एवं पानी क• टक• आिद के "थान के िवषय मे
िलखे |
5. जलाशय महु dतF को िलिखये |

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 155


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
इकाई – ३ गहृ दशा िवचार
इकाई क‹ सरं चना-
३.१ L"तावना
३.२ उNे>य
३.३ गृहदशािवचार
३.३.०१. दशा"वÂप एवं दशा के भेद
३.३.०२. िवशq9रीय दशा िवचार
३.३.०३. गृहदशा- िवंशो9रीयदशा
३.३.०४. अ•ो9रीयदशा िवचार
३.३.०५. गृहदशा- अ•ो9रीयदशा
३.४ सारांश
३.५ पा‡रभािषक शnदावली
३.६ अÐयास Lpq के उ9र
३.७ सदं भF k*थ सचू ी
३.८ सहायक पाठ्यसामkी
३.९ िनब*धाrमक Lp

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 156


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
३.१ K#तावना -
›योितष शाv एवं वा"तु शाv के महrव एवं मुgय िस~ांतq से आप भलीभाँित प‡रिचत है ऐसा
मेरा िवÃास है। L"तुत इकाई का शीषFक ‘गृहदशािवचार’ है। आप ›योितष शाv के अनसु ार दशा
प~ित से प‡रिचत हqगे। हम सभी जानते है िक एक समय या काल या घटना क• ि"थित िवशेष को
दशा कहा जाता है। दशा प~ित के अनसु ार ही kह अपनी Lकृ ित के अनसु ार समय िवशेष म' िवशेष
फलLद होते ह‰। ›योितष शाv म' दशाये कई Lकार क• होती है जैसे - िवशq9रीय दशा, अ•q9रीय,
योिगनी दशा, िपडं दशा इrयािद। इसम' भी मgु यतया िवशq9रीय दशा का Lचलन एवं उपयोग अिधक
िकया जाता है। िवशq9रीय दशा के अंतगFत महादशा, अंतदFशा, Lrयंतरदशा, िवदशा एवं उपदशा होती
है। इनके अनसु ार ही kह दशा अनसु ार सÎू मतम काल का फलकथन िकया जाता है। िजस मानव क•
दशा अंतदFशा का िवचार िकया जाता है उसी Lकार गृह क• दशा का भी िवचार िकया जाता है। अथाFत
गृह क• दशा के अनसु ार उस गृह का फल कै सा होगा इसका िचंतन L"तुत इकाई म' हम कर' गे। साथ
ही साथ गृह दशा के आनयन क• िविध तथा शभु एवं अशभु दशा के िवषय म' भी अsययन कर' गे ।
एवं गृह दशा के भेद िकतने होते है तथा कौन सी गृह दशा का Lयोगा अिधक िकया जाता है इसका
€ान भी हम L"ततु इकाई म' kहण कर' गे।

३.२ उNेPय
L"तुत इकाई के अsययन के बाद आप –
v दशा के "व[प एवं दशा के भेद का €ान Lा° होगा।
v kहq के दशा वषF Lमाण का €ान होगा।
v गृह दशा के बारे म' €ान होगा।
v गृह दशा क• साधन िविध से अवगत हqगे।
v गृह क• दशा के अनसु ार गृह के शभु ाशुभ फल Lिzया से अवगत हqगे।
३.३ गृहदशा िवचार -
›योितषशाv के अनुसार घटनाओ ं के काल को िनधाF‡रत करने वाली प~ित को दशा प~ित
कहा जाता है। दशा शnद का अथF ि"थित, अव"था, अथवा प‡रि"थित है। दशा शnद का वा"तिवक
अथF उस अÒछी, बुरी या सामा*य ि"थित या प‡रि"थित से है जो जीवन के िकसी भी िवभाग से संबंध
रखती ह†ई िकसी समय िवशेष म' पाई जाये। िकसी िवशेष समय म' =या =या और कै सी कै सी घटनाएँ

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 157


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
घट सकती है इस बात का िनणFय ›योितष शाv म' मौिलक [प से कंु डली म' kहq क• अÒछी एवं बुरी
ि"थित पर िनभFर करता है। =यqिक ज*मकालीन kह ि"थित के अनसु ार भिव²य म' उनक• दशा के
अनसु ार ही kह शभु ाशभु फल देते ह‰। ज*मकालीन kह ि"थित का अथF समझने का €ान ही ›योितष
शाv म' कुशलता का ?ोतक होता है । इस kह ि"थित के €ान शैली म' दशा प~ित का िवशेष महrव
है । जब िकसी kह क• महादशा होती है तब मानो उस kह का रा›य चल रहा होता है । जैसी kह क•
Lकृ ित या गुण होगा उसके दशा काल म' ¢यि£ के जीवन म' उस Lकार क• घटनाये घटती है।
३.३.०१ दशा #वIप एवं दशा के भेद
बृहतप् ाराशर होराशाv आिद k*थq म' अनेकLकार क• दशाओ ं का उ`लेख Lा° होता है
जैसे – 1 िवशq9रीय दशा 2- अ•q9रीय 3- योिगनी दशा 4- िपंड दशा 5- चz दशा 6- चरदशा 7-
क' ±दशा, 8-काल दशा इrयािद ह‰ । इस Lकार क• कुल 38 दशाओ ं का िववरण k*थq म' Lा° होता है
। इन दशा भेदq म' िवंशो9रीय दशा, अ•ो9रीय दशा, योिगनी दशा आिद का ¢यवहार वतFमान म'
अिधक िकया जाता है । इसम' भी िवशेषकर िवंशो9रीय दशा का ही Lचलन सामा*यतया अिधक होता
है ।
३.३.०२.िवशŠpरी दशा िवचार - िवंशो9रीय दशा म' आयु 120 वषF मानकर kहq के काल का
िवभाजन िकया जाता है | दशाएँ पाँच Lकार क• होती है – महादशा, अंतर दशा, Lrयंतर दशा, िवदशा,
और उपदशा । यहाँ हम महादशा के िवषय म' अsययन कर' गे । कृ ि9का न“H से आर…भ कर के नव
नव न“H क• 3 आवृि9 म' िगनने पर zम से सयू F, चं± ,मंगल , राहd, गÂु , शिन, बुध, के तू और शz

दशा"वामी होते है । इनके दशा वषF zमशः 6, 10, 7, 18, 16, 19, 17, 7, 20 होते है । इस Lकार
कुल 120 वषF महादशा म' होते ह‰ । जातक के ज*म समय के काल म' िकस

कृ ि9का, आ±ाF, पनु ॰, प॰ू फा॰,


रोिहणी, प²ु य, आÄे षा, मघा,
उ॰ मृग॰,िचHा, "वाती िवशा॰, प॰ू
न•' ह"त, अनु॰, ›ये>ठा, मल ू ,
फा॰, धिनˆा , प॰ू शा॰,
Ùवण उ॰भा॰ रे वती अिÃनी
उ॰ षा॰ शत॰ भा॰ भरणी

दशा#वामी सयू F च*± मंगल राहd गÂु शिन बुध के तु शz



दशा वष3 6 10 7 18 16 19 17 7 20

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 158


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
अथाFत यिद िकसी जातक का ज*म कृ ितका न“H म' ह†आ है तो उस समय उसक• सयू F क• महादशा
चल रही है इसके बाद अ*य kहq क• महादशा रहेगी । ज*म काल म' भ£
ु दशा एवं भोÀय दशा का €ान
भयात एवं भभोग के माsयम से िकया जाता है । अथाFत भ£ ु दशा €ान के िलए महादशा वषF म'
पलाrमक भयात का गुणा करके पलाrमक भभोग से भाग देने पर kह क• दशा के भ£ ु वषF का मान
आ जाता है । एवं भु£ दशा मान को kह के दशा वषF Lमाण से घटाने पर kह का भोÀय दशा Lमाण
आ जाता है ।
सHू – महादशा का भु£मान = पलाrमक भयात x महादशा वषF Lमाण( ज*म कािलक kह के ) /
पलाrमक भभोग
महादशा का भोÀय मान = महादशा वषF Lमाण( ज*म कािलक kह के ) – भ£ ु दशा मान ।
उदाहरण - िदनाङ्क- 21-07-2020 Ùावण श=ु ल Lितपदा समय सायं – 6-00 बजे सयु Üदय 5-19
Lातः "थान –वाराणसी ऋिषके श पंचांग अनुसार -

इ•काल साधन –
ज*म समय = 18 -00
सयू Üदय – 5-19
इ•काल =12- 41 घ;टा / िम० = 31- 42 घटी /पल
वतFमान न“H - प²ु य आज का स…पणू F मान = 40-28 घटी / पल

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 159


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
गत न“H पनु वFसु गत िदन पनु वFसु का मान = 41-11 घटी / पल
अतः गत िदन प²ु य न“H का मान = 60 -00
- 41-11
वतFमान न“H प²ु य का गत िदन मान = 18- 49
इ•काल = + 31- 42
भयात् = 50- 31
भभोग साधन
वतFमान न“H का गत िदन मान = 18- 49
वतFमान न“H - प²ु य आज का स…पणू F मान = + 40-28 घटी /पल
भभोग 59- 17 घटी /पल
ज*म न“H – प²ु य अतः वतFमान दशा शिन क• है एवं शिन के दशा वषF = 19 वषF

भयात् = 50- 31 घटी पल = 3031पलाrमक भयात्


भभोग = 59- 17 घटी पल = 3557 पलाrमक भभोग
सHू ानसु ार- पलाrमक भयात् = 3031 X 19 = 57589 / 3557 पलाrमक भभोग

3557 ) 57589 (16 वषF


- 3557
= 22019
- 21342
= XX677
X 12
3557 ) 8124 ( 2 माह
- 7114

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 160


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
= 1010
X 30
3557 ) 30300 ( 8 िदन
-28456
X 1844
X 60
3557 )110640 ( 31 घटी
- 10671
X X 3920
- 3557
363
अतः शिन क• भोÀय दशा का मान =
वषF - मास - िदन - घटी
शिन दशा वषF = 19 - 00 - 00 - 00
शिन क• भ£
ु दशा का मान = - 16 - 2 - 8 - 31
शिन क• भोÀय दशा का मान = 2- 09 - 17- 29
३.३.०३. गहृ दशा- िवश
ं ोpरीयदशा -
kाम या नगर के िजस िकसी भी भाÀय िदशा म' िनवास का फल दशा के माsयम से भी €ात
िकया जाता है इस दशा का €ान िन…न Lकार से िकया जाता है यथा अकारािद जो वगF ह‰ उनके zम
से 8, 5,6, 4, 7, 1, 3, 2 यह "वर अंक होते ह‰ इसके प¦ात kाम, िदशा और िनवास कताF के वगœ
के "वर अक ं को जोड़कर 9 का भाग देने पर जो शेष संgया बचती है उसक• दशा zमशः एक से शेष
तो सयू F क• दशा, दो शेष बचे तो चं± क•, तीन शेष बचे तो भौम क•, चार शेष बचे तो राह† क•, 5
शेष बचे तो बृह"पित क•, छह से से बचे तो शिन क•, 7 शेष बचे तो बधु क•, 8 शेष बचे तो के तु क•,
तथा 0 शेष बचे तो शz ु क• दशा होती है । सभी kहq के दशा वषF Lमाण इस Lकार ह‰ सयू F के 6,
चं± के 10, भौम के 7 राह† के 18, वृह"पित के 16, शिन के 19, बधु के 17, के तु के 7 शz
ु के 20
वषF । इनम' आई ह†ई दशा से उ9रो9र zम से दशा फल क• क`पना करनी चािहए यथा सूयF क• दशा

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 161


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
म' मानिसक उि_Àनता, चं± क• दशा म' धन क• पणू तF ा, भौम दशा म' भय से ¢याकुलता, राह† क• दशा
म' "वा"òय हािन व पीड़ा, बृह"पित क• दशा म' सुख , शिन क• दशा म' रोग, बुध क• दशा म' सख
ु , के तु
क• दशा म' दख
ु , शzु क• दशा म' आनदं क• Lाि° होती है अथाFत शभु kहq क• दशा म' शभु फल एवं
अशभु kहq क• दशा म' उस kाम म' िनवास करने पर अशुभ फल Lा° होता है – यथा –

गजशरp3यु ुगाiमहीगुणा िYसिहता मघवािदिदिश aमात ॥


गृहपतेरिभधापुरिदd€ता नव•ता भवन#य दशा भवेत् ॥
अथा[वगा3ः aमतोऽ[वाण तका3ि†धस…ेqदुगुणािiिभv ।
न}ृ ामिद¬वण3िमताडवयोगे सूया3Nशेशाः नविभिव3भšात् ॥
सयू gqदुभौमा#yवगज ु ीवमqदसौ‚याv के तभ ु गृ 3ुजः aमेण ।
षड्िदङ्नगाधyृ यवनीiराq¦चq„ाघना#स…खा#तद†दाः ॥
#वे‡वेशु वष3Kिमतेषु तेषां दशाफलं त' िनवािसनां च।
तदुpरादुpरतो दशेशफलं िवकf,यं च दशाaमेण ।।24

यथा चz के माsयम से-

िदशा पवू F आÀनेय दि“ण नैऋrय पि¦म वाय¢य उ9र ईशान


अ वगF
(अ, इ, च वगF ट वगF
क वगF त वगF प वगF य वगF श वगF
उ, ऋ, ए च,छ, (ट, ठ,
वग3 क ,ख, (त, थ, प, फ, य, र , श , ष,
, ऐ, ओ, ज, झ , ड, ढ,
ग, घ, ङ द, ध, न) ब, भ, म ल, व स, ह
औ, ञ ण)
अ,ं अः)
अङ्क 8 5 6 4 7 1 3 2

24
बह
ृ दवा<तुमाला, fलोक सं .21-24

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 162


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
एवं उपयF£
ु चz के अनसु ार दशा साधन के उपरांत दशा का फल भी इस Lकार होता है जैसे सयू F क• दशा
आए तो मानिसक उि_Àनता, च*± क• दशा म' धन Lाि°, मंगल क• दशा म' अिÀन से हािन, राहd क• दशा म'
"वा"òय पीड़ा, गÂु क• दशा म' सुख, शिन क• दशा म' रोग, बुध क• दशा म' सख
ु , के तू क• दशा म' दःु ख, शz

क• दशा म' आनंद क• Lाि° होती है । यथा बृहदवा"तु माला के अनुसार –

उिY¬निचpः पdरपूण3िवpो वÂqयिभभूतो eवरपीिडताङ्ग: ।

ु ाढ्यो दुःखािqवतः सव3सुखािqवतv ॥ 25


सौrयािqवतो रोगयुत: सख

यथा दशाफल िववरण तािलका के माsयम से -

दशा aम, दशावष3 एवं दशा फल तािलका

दशा aम सयू F च*± भौम राहd गÂु शिन बधु के तु शz



दशा वष3 6 10 7 18 16 19 17 7 20

अिÀन ›वर
दशा फल उ_ेग धनय£
ु सख
ु रोग सख
ु दःु ख आन*द
भय पीडा

उदाहरण – सरू त नगर म' रोिहत नामक ¢यि£ को नगर के ईशान कोण म' गृह बनबाना है तो उस समय गृह
क• दशा का €ान उपयF£
ु िस~ा*त के अनसु ार हम इस Lकार कर सकते है यथा –
सरू त (श वगF ) का अंक = 2
रोिहत (य वगF ) का अंक = 3
ईशान कोण का अंक = 2

25
बह
ृ दवा<तुमाला, fलोक सं .25

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 163


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
अतः 2+3+2 = 7 / 9 = लिnध 0 एवं शेष 7 अतः उस समय बुध क• दशा है जो िक शभु दायक है जो िक
17 वषF तक रहेगी उसके बाद के तू क• दशा रहेगी इसी zम म' आगे भी फल को जानना चािहए | अतःआगत
दशा म' मकान बनबाना एवं उसके बाद िनवास करना शभु दायक रहेगा ।
2- इसी Lकार एक अ*य उदाहरण के माsयम से - देहरादनू नगर म' गणेश को नगर के उ9र िदशा म' गृह
बनबाना है तो उस समय गृह क• दशा का €ान तथा उसका शभु ाशभु rव उरय£
ु िस~ा*त के अनसु ार िन…नवत
कर सकते है –
देहरादनू (त वगF ) का अक
ं =7
गणेश ( क वगF ) का अंक = 5
उ9र िदशा का अक
ं =3
अतः 7+5+3 = 15 / 9 = लिnध 1 एवं शेष 6 अतः उस समय शिन क• दशा है जो िक रोग कारक है जो
िक 19 वषF तक रहेगी उसके बाद बधु क• दशा रहेगी िजसका फल शभु होता है । इसी zम म' आगे भी फल
को जानना चािहए | अतःआगत दशा म' मकान बनबाना रोगकारक एवं उसके बाद क• दशा(बुध ) शभु दायक
रहेगी ।

भवन क‹ दशा क‹ गणना कब से आरंभ करे – भवन क• दशा का आरंभ कब से िकया जाए इस िवषय
म' kंथq म' ›यादा Lकाश नह„ डाला गया है एवं इस संदभF म' मता*तर भी Lा° होते ह‰ यथा –
1- कुछ आचायœ के अनसु ार भवन के िशला*यास से भवन क• दशा क• गणना क• जाती है ।
2- अ*य कुछ आचायœ का मत है िक भवन के पणू F िनमाFण होने के प¦ात वा"तु शांित के अनंतर जब
गृह म' Lवेश िकया जाता हा तब से गृह क• दशा क• गणना क• जानी चािहए ।
3- वा"तु शांित हो या नह„ हो लेिकन जब भवन का पणू F िनमाFण हो जाए तब से गृह दशा क• गणना
होनी चािहए ।
उपयF£
ु तीनq िस~ांतq म' से अंितम िस~ा*त के अनुसार गृहदशा का िनधाFरण िकया जाना चािहए।
अsयासKl – 1

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 164


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
िन…निलिखत Lpो मे सrय या असrय का चयन क•िजये -

1. िवंशो9रीय दशा के अ*तगFत 5 दशाये ( महादशा, अ*तदFशा, Lrय*तर दशा, िवदशा, तथा उपदशा)
आती ह‰ ।
2. िवश
ं ो9रीय दशा का वषF Lमाण 108 वषF का होता है ।
3. त वगF का "वरांक 7 होता है ।
4. उ9र िदशा का "वराक
ं 5 होता है ।
5. गÂु kह क• दशा सख
ु कारक होती है ।

३.०३.०४. अ[ोpरीदशा िवचार - अ•ो9री दशा एवं िवश


ं ो9रीय दशा म' िकसका Lयोग फल कथन के
िलए िकया जाना चािहए इसके बारे म' हमारे शाvq म' Lमाण Lा° होता है िक िकसी जातक का ज*म यिद
श=ु ल प“ म' हो तो अ•ो9री दशा से फल कह' और यिद िकसी जातक का ज*म कृ ²ण प“ म' हो तो िवंशो9रीय
दशा से फल कहना चािहए एवं कुछ आचायœ का मत है िक कृ ²ण प“ म' िदन म' तथा श=ु ल प“ म' रािH म'
ज*म हो तो अ•ो9री दशा से फल कहना चािहए । अ•ो9री दशा म' कुल 108 वषF होते ह‰ तथा दशा का काल
पणू F हो जाने पर पनु ः Lारंभ वाली दशा से इसका काल पनु ः Lारंभ हो जाता है । इस दशा म' अिभजीत सिहत
28 न“Hq से दशा का €ान िकया जाता है तथा इसक• दशा के वल आठ kहq क• होती है, के तु kह क• दशा
नह„ होती जबिक िवश
ं ो9रीय दशा म' ऐसा नह„ होता है वहां 9 kहq क• दशा होती है । अ•ो9री दशा का zम
भी िवंशो9री दशा के zम से िभ*न होता है एवं इसका आनयन न“H के अनसु ार पृथक पृथक होता है िन…न
सारणी के माsयम से हम अ•ो9री दशा का €ान समझ सकते ह‰ –
}ह दशा aम दशा वष3 जqम न•' न•' सr
ं या
सयू F 6 आ±ाF- पनु वFस-ु प²ु य- आÄे षा 4
मघा- पवू ाF फा`गनु ी-
च*± 15 3
उ9राफा`गनु ी

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 165


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
मंगल 8 ह"त –िचHा – "वाती –िवशाखा 4
बधु 17 अनरु ाधा- ›येˆा –मल
ू 3
शिन 10 पवू ाFषाड़ा- उ षा- अिभिजत- Ùवण 4
बृह"पित 19 धिनˆा- शतिभषा- पवू ाF भा±पद 3
राहd 12 उ भा – रे वती- अिÃनी-भरणी 4
शz
ु 21 कृ ि9का –रोिहणी – मृगिशरा 3

३.३.०५. गृहदशा- अ[ोpरीयदशा – गृह क• अ•ो9रीय दशा क• गणना या साधन के िलए भी ऊपर िदये
गए चz और सHू का उपयोग िकया जाता है । अथाFत kाम या नगर के वगF का "वराक
ं , िदशा के वगF का
"वरांक एवं िनवासकताF के नाम के वगF का "वरांक का योग करके उसम' 8 से भाग देने पर जो शेष बचे तो
िन…निलिखत अनुसार अ•ो9रीय दशा के समझना चािहए यथा –
1 शेष बचे तो सयू F क• दशा = 6 वषF
2 शेष बचे तो च*± क• दशा = 15 वषF
3 शेष बचे तो मगं ल क• दशा = 8 वषF
4 शेष बचे तो बुध क• दशा = 17 वषF
5 शेष बचे तो शिन क• दशा = 10 वषF
6 शेष बचे तो गÂु क• दशा = 19 वषF
7 शेष बचे तो राहd क• दशा = 12 वषF
0 शेष बचे तो शz
ु क• दशा = 21 वषF
उपयF£
ु दशा फल का िवचार kहq के अनुसार जानना चािहए अथाFत शभु kहq क• दशा रहने पर
शभु फल एवं पापkहq क• दशा अशभु फल देने वाली होती है । यथा वा"तुरrनाकर म' कहा गया है िक –
गजशरp3यु ुगाiमहीगुणा िYसिहता मघवािदिदिश aमात ॥
गृहपतेरिभधापुरिदd€ता वसु•ता भवन#य दशा भवेत् ॥

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 166


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
रिविनशाकरमङ्गलचq„जाः शिनबृह#पितराह›किव}हाः ॥26
उदाहरण - देहरादनू नगर म' गणेश को नगर के उ9र िदशा म' गृह बनबाना है तो उस समय गृह क• अ•ो9रीय
दशा का €ान तथा उसका शभु ाशभु rव उपयF£
ु िस~ा*त के अनुसार िन…नवत कर सकते है –
देहरादनू (त वगF ) का अंक = 7
गणेश ( क वगF ) का अक
ं =5
उ9र िदशा का अंक = 3
अतः 7+5+3 = 15 / 8 = लिnध 1 एवं शेष 7 अतः उस समय राहd क• दशा है जो िक अशभु कारक है जो
िक 12 वषF तक रहेगी उसके बाद शz
ु क• दशा रहेगी िजसका फल शभु होता है । इसी zम म' आगे भी फल
को जानना चािहए | अतः आगत दशा म' मकान बनबाना अशभु कारक एवं उसके बाद क• दशा (शz
ु )
शभु दायक रहेगी ।
अsयासKl – 2
‡र£ "थान क• पिू तF क•िजये –
1- अ•ो9रीय दशा का वषF Lमाण ............................ होता है ।
2- अ•ो9रीय दशा का आरंभ .......................... न“H के zम से होता है ।
3- अ•ो9रीय दशा म' शिन का दशा वषF Lमाण ......................... होता है ।
4- अ•ो9रीय दशा म' कुल ...................................kहq क• दशा होती है ।
5- गृह दशा म' राहd क• दशा का फल ........................... होता है ।
३.४ सारांश -
L"तुत इकाई के अsययन के उपरांत हमने जाना िक दशा =या होती है एवं इसके Lमुख भेद
कौन कौन से होते है तथा इनमे से मgु य [प से िवंशq9रीय दशा एवं अ•ो9रीय दशा का Lयोग अिधक
िकया जाता है । उसम' भी मgु य [प से िवंशq9रीय दशा का Lयोग सवाFिधक िकया जाता है ।
िवंशq9रीय दशा का वषF Lमाण १२० वषF तथा अ•ो9रीय दशा का वषF Lमाण १०८ वषF का होता है
। न“H के अनुसार भी दोनq दशाओ ं का आनयन िभ*न िभ*न न“H से होता है जैसे िवंशq9रीय दशा

26
वा"तरु rनाकर Äोक सgं या 41
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 167
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
का आरंभ कृ ि9का न“H से गणना करके तथा अ•ो9रीय दशा क• गणना आ±ाF न“H से क• जाती है।
गृह दशा का िवशq9रीय दशा के अनसु ार आनयन kाम या नगर के वगF का "वरांक, िदशा के वगF का
"वराकं एवं िनवासकताF के नाम के वगF का "वराक ं का योग करके उसम' ९ से भाग देने से शेष के
अनसु ार िकया जाता है तथा अ•ो9रीय दशा के अनसु ार गृह दशा का आनयन kाम या नगर के वगF
का "वरांक, िदशा के वगF का "वरांक एवं िनवासकताF के नाम के वगF का "वरांक का योग करके उसम'
८ से भाग देने से शेष के अनसु ार िकया जाता है । गृहा दशा का आरंभ सामा*यतया गृह िनमाFण के
अनंतर ही िकया जाना चािहए । साथ ही साथ L"तुत इकाई म' गृह क• दशा के शभु ाशभु फल िवचार
क• भी हमने जाना अथाFत गृहा पर िजस Lकार के kह क• दशा होगी उस समय उस kह म' वास का
फल भी कुछ उस Lकार ही होगा ।
३.५ पाdरभािषक श†दावली
िवशŠpरीय दशा – दशा भेद के अतं गFत एक दशा जो १२० वषF Lमाण क• होती है । एवं
वतFमान म' kहदशा म' सबसे ›यादा उपयोग इसी दशा का होता है ।
अ[ोpरीय दशा - दशा भेद के अंतगFत एक दशा जो १०८ वषF Lमाण क• होती है । इसम' ८
kहq क• दशा होती है के तू क• दशा नह„ होती है ।
गृह दशा – भवन क• दशा या भवन के िनमाFण काल से अिkम वषœ तक िकन िकन kहq क•
दशा उस गृह पर रहेगी िजसके कारण उस गृह म' िनवास का फल का िवचार िकया जाता है ।
३.६ अsयास KlŠ के उpर
अsयास 1-
1- सrय , 2 –असrय, 3- सrय, 4- असrय, 5- सrय ।
अsयास -2
1- 108 वषF , 2- आ±ाF , 3- 10 वषF , 4 –8 kहq क• , 5 – अशभु ।
३.७ संदभ3 }qथ सूची
1- मलू लेखक – Ùीरामिनहोर ि_वेदी संकिलत, टीकाकार –डा ßàान*द िHपाठी एवं डा रिव
शमाF , वृह_ा"तुमाला(२०१८ ) गणनािवचार Äो ८२-८६ , चौखंबा सरु भारती Lकाशन,
वाराणसी ।
2- मल
ू लेखक – Ùी िव*sयेÃरी Lसाद , वा"तरु rनाकर (_ादश सं"करण) (२०१४) चौख…बा
सं"कृ त सीरीज आिफस, वाराणसी ।
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 168
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
3- मल
ू लेखक – सrयदेव शमाF , बृहद भारतीय कंु डली िव€ान (नतू न स"ं करण २००२ ,जगदीश
सं"कृ त प"ु तकालय, जयपरु ।
नोट -अ*य सदं भÜ का उ~रण Lrयेक सदं भF के पृˆ पर है |

३.८ सहायक पाठ्यसाम}ी -


१- बृहrपाराशरहोराशाv – पाराशर
२- वा"तुसारः – Lो. देवीLसादिHपाठी
३- वा"तु रrनावली –Ùी जीव नाथ दैव€
४- िवÃकमF Lकाश – िवÃकमाF
३.९ िनबqधाyमक Kl
१- दशा का "व[प एवं भेद के बारे म' िलिखए ।
२- ›योितष शाvानुसार िवशq9रीय दशा के बारे म' िलिखए ।
३- गृह दशा पर िटwपणी िलिखए ।
४- अ•ो9रीय दशा को "प• क•िजये ।
५- L"तुत इकाई का सारांश अपने शnदq म' िलिखए ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 169


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
इकाई – ४ गहृ दोष िवचार

इकाई क‹ संरचना-
४.१ L"तावना
४.२ उNे>य
४.३ गृहदोष िवचार
४.३.१- भिू म के दोष
1- wलवrव दोष
2- वीिथ के अनुसार भूिम के दोष
3- पृˆ भाग के अनुसार rया›य भिू म
4- भिू म के आकार सबं ंिध दोष
5- श`य दोष
४.३.२-ममF वेध दोष
४.३.३-मgु य _ार संबंिध दोष
४.३.४ _ार वेध दोष
४.३.५ िविभ*न िदशाओ ं के दोष
४.३.६ वृ“ संबंिध दोष
४.३.७ गृह िनमाFण Lिzया म' मुहdतF संबंिध दोष
४.४ सारांश
४.५ पा‡रभािषक शnदाबली
४.६ अÐयास Lpq के उ9र
४.७ संदभF k*थ सचू ी
४.८ सहायक पाठ्यसामkी
४.९ िनब*धाrमक Lp

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 170


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
४.१ K#तावना -
आप वा"तु शाv के मgु य िस~ांतq से प‡रिचत हqगे ऐसा मेरा िवÃास है। L"तुत इकाई का
शीषFक “गृहदोष िवचार” है । हम सभी जानते है िक हमारे शाvq म' जो िस~ा*त या िनयम Lितपािदत
िकए जाते ह‰ वे पनु तः वै€ािनक होते ह‰ एवं उनके अनसु ार िकया गया कायF सुख -समृि~ दायक, शाि*त
दायक एवं शभु कारक होते ह‰ । एवं उन िनयमq के िवÂ~ िकया गया कायF दोषकारक होते ह‰ । L"ततु
इकाई के माsयम से भी हम वा"तु शाv के अनसु ार जो गृह के मgु य दोष होते ह‰ उनका िवचार कर' गे
। जैसे भूिम के जो शभु ल“ण या िस~ा*त बताए गए है उनके िवपरीत जो िनयम होते है वे दोष कारक
होते है जैसे भिू म के िस~ा*त म' भिू म का wलवrव (ढलान) पवू F उ9र एवं इशान िदशा म' शभु कारक
माना जाता है इसके िवपरीत यिद भूिम का wलवrव यिद दि“ण नैऋrय या पि¦म हो तो वह दोष
कारक होता है । इसी Lकार वा"तु शाv म' कई दोष बताए गए ह‰ िजनका अsययान हम L"ततु इकाई
म' कर' गे ।

४.२ उNेPय –
L"तुत इकाई के अsययन के बाद आप –
v वा"तु शाv के मgु य गृहदोष से अवगत हो पाएंगे।
v भूिम के Lमखु दोष से प‡रिचत हो पाएंगे।
v कौन सा वृ“ िकस िदशा म' दोष कारक होता है इसका €ान Lा° कर' गे।
v मgु य _ार एवं _ार वेध तथा ममF वेध के िवषय म' जानकारी Lपट कर' गे।
v िदशाओ ं के िविभन दोष एवं महु dतF सबं ि*ध दोषq से अवगत हो पाएगं े।
४.३ गहृ दोष िवचार

४.३.१- भूिम के दोष –


गृह दोष िवचार zम म' भवन िनमाFण हेतु भिू म क• ही आव>यकता होती है। यिद भिू म दोष
कारक

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 171


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
होगी तो िनि¦त [प से उस प बनने वाला भवन भी दोष कारक होगा। वा"तु शाv म' भिू म के शभु
और अशभु या दोष के €ान के िलए िविभ*न िस~ा*त बताए गये ह‰ उनका अsययन हम L"तुत इकाई
के माsयम
से कर' गे ।
1- ,लवyव दोष – गृह दोष िवचार के अंतगFत भूिम के w`वrव या ढलान के अनसु ार भूिम का
शभु ाशभु rव या दोष आिद िवचार िकया जाता है । अथाFत् भूिम का ढलान िकस िदशा उ9म माना गया
है एवं िकस िदशा म' दोष कारक माना गया है, इसका िवचार वा"तु शाv म' बड़े ही उ9म तरीके से
िकया गया है । सामा*यतः आठq िदशाओ ं (चार मgु य िदशा एवं चार िविदशा) म' भूिम का wलवrव या
ढलान का शभु ाशभु फल zमश: इस Lकार है- पवू F िदशा क• ओर यिद भिू म का ढलान हो तो वैसी
भिू म अrयतं शभु होती है जो िक धन-दायक होती है, यिद भख ू डं या wलाट या भिू म का ढलान अिÀन
कोण म' तो वैसी भिू म का फल अÒछा नह„ होता है उसम' दाह इrयािद क• संभावना रहती है दि“ण
िदशा म' यिद भूिम का wलवrव हो तो मृrय,ु नैऋrय कोण म' धन का नाश, पि¦म िदशा म' पHु क•
हािन, वाय¢य कोण म' यिद भिू म का ढलान हो तो परदेश म' िनवास, उ9र िदशा म' यिद wलवrव हो तो
धन का आगम एवं ईशान कोण म' यिद ढलान हो तो िव?ा का लाभ होता है यिद भख ू ंड के मsय म'
गड्ढा हो या ढलान हो तो वैसी भिू म भी क•दायक होती है । इस Lकार हम यह कह सकते ह‰ िक
के वल पवू F ईशान एवं उ9र िदशा म' भिू म का ढलान शभु दायक होता है तथा अ*य िदशाओ ं म' यिद
भूिम का ढलान हो तो वह दोषकारक या अशुभ फलदायक होता है जब भी भख ू ंड का चयन करना हो
तो उसम' यह िनि¦त करना होगा िक भूिम का ढलान उ9र, ईशान या पवू F िदशा म' हो । यथा –
िŸयं दाहं तथा मृyयुं धनहािनं सुत•यं । Kवासं धनलाभं च िव“ालाभं aमेण च ॥
िवद•यादिचरेणैव पूवा3िद,लवतो मही । म•य,लवा मही ने[ा न शुभा ,लवततपरा ॥27

27
बह
ृ दवा<तुमाला 2ोक 35-36

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 172


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104

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इसी तरह भूिम का िदशा एवं कोणq के मsय भाग म' भी wलवrव या भूख;ड का भाग उठा
ह†आ या ऊंचा रहता है वैसे भखू ;ड क• स€ं ा तथा उसका शुभ एवं अशुभ फल भी वा"तु शाv म'
बताया गया है इसके अनसु ार भूख;ड के दोष क• €ान करना चािहये यथा-28

aम
वा#तु स¨ं ा ,fवyव (ढलान ) उqनित (ऊँ चा) फल (Kभाव)
सr
ं या
पि¦म एवं वाय¢य के मsय पवू F और आÀनेय के
01 िपतामह वा"तु शभु भख
ू ;ड
wलवrव या ढलान मsय का भाग ऊँचा
02 सपु थ पि¦म –वाय¢य दि“ण –आÀनेय Lश"त (शभु )

28
वह
ृ दवा<तुमाला 2ोक 46-64

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 173


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104

03 दीघाFयु उ9र- ईशान दि“ण –नैऋrय कुल वृि~

04 प;ु यक पवू F –ईशान पि¦म –नैऋrय शभु

05 अपथ पवू 3 –आ¬नेय पिvम –वाय¯य श'तु ा ,कलह

06 रोगकृत् दि•ण –आ¬नेय उpर –वाय¯य रोग

07 अग3ल दि•ण –नैऋyय उpर –ईशान महापाप (अशुभ )

08 Pमशान पिvम –नैऋyय ईशान –पवू 3 कुलनाशक


नैऋyय, ईशान,
09 शोक वा#तु आ¬नेय स‚ं पिp नाशक
वाय¯य कोण मे ऊची
ईशान, आ¬नेय ,
10 iमख
ु वा#तु नैऋyय दdर„
पिvम
कृ िष योÀय भूिम,
11 ßà•न पवू F –वाय¢य नैऋrय, आÀनेय, ईशान
िनवास हेतु अशभु
12 "थावर नैऋrय, ईशान, वाय¢य आÀनेय शभु

13 "थि;डल आÀनेय ,वाय¢य ,ईशान नैऋrय शभु

14 शा0डुल आ¬नेय ,नैऋyय ,वाय¯य ईशान अशभ


ु (िनवास )
ßाàणो के िलये
15 स"ु थान वा"तु वाय¢य आÀनेय ,नैऋrय, ईशान
शभु
नैऋrय ,वाय¢य , एवं
16 सतु ल वा"तु पवू F “िHयो के िलये शभु
पि¦म
17 चर वा"तु दि“ण उ9र ,ईशान , वाय¢य वै>यो के िलये शभु

18 Ã - मख
ु पि¦म ईशान, पवू F ,आÀनेय श±ू ो के िलये शभु

2- वीिथ के अनुसार भूिम के दोष - भिू म के दोष के अंतगFत भिू म के wलवrव एवं उ*नित ( ऊँची ) अथाFत्
िदशा िवशेष म' ढलान एवं िदशा िवशेष का भाग या ख;ड भिू म का उठा ह†आ या ऊँचा हो तो उसक• िवशेष

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 174


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
स€ं ा -वीिथ स€ं ा वा"तु शाv म' बतायी गयी है एवं एवं इसके अनसु ार िकस िदशा िवशेष म' भिू म का ढलान
एवं एक िदशा िवशेष म' भिू म का उठा होना शभु फल दायक एवं दोषकारक माना गया है इसका िववरण हम
िन…न तािलका के माsयम से समझ सकते है । यथा –29
उqनित (ऊँ ची
,लवyव (ढलान )
वीिथ स¨ं ा भिू म/भाग ) फल
(िदशा)
िदशा
गोवीिथ पवू F पि¦म धनदायक
जलवीिथ पिvम पूव3 अथ3 नाश
यमवीिथ दि•ण उpर मृyयु दायक
गजवीिथ उ9र दि“ण धन दायक
भतू वीिथ नैऋrय कोण ईशान कोण धनहािन
अि¬न (आ¬नेय
नागवीिथ वाय¯य परदेश वास
कोण )
वैiानरी अि¬नकोण वाय¯य दाह
धनवीिथ ईशान कोण नैऋrय कोण िव?ा लाभ

3- पृ भाग के अनस
ु ार yयाeय भिू म - वा"तु शाv म' भिू म के दोष या शभु ता का €ान भिू म के पृˆ के
अनुसार भी िकया जाता है अथाFत् भिू म का जो पृˆीय भाग होता है वह िदशा िवशेष म' ऊंचा नीचा होने के
कारण उसक• िविभ*न Lकार क• स€ं ा क• जाती है एवं उसके अनुसार उसका फल कथन भी िकया जाता है
। जैसे चार Lकार से पृˆ के अनुसार भूिम का वग¾करण िकया गया है । यथा –
1. गजपृˆभिू म 2. कूमFपˆृ भिू म 3. दैrय पृˆभिू म 4. नागपृˆभिू म
1. गजपृ भूिम- ऐसी भिू म जो दि“ण पि¦म नैऋrय एवं वाय¢य कोण म' ऊंचे आकार क• हो अथाFत् इन
िदशाओ ं म' भिू म का भाग ऊँचा हो तो वैसी भिू म को गजपृˆभिू म कहते ह‰ । गजपृˆभिू म पर िनवास करने से

29
वह
ृ दवा<तुमाला 2ोक 41-45

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 175


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
लÎमी, धन तथा आयु क• वृि~ होती है अथाFत् गजपृˆभिू म शाvq म' अrयंत शुभ मानी गई है ऐसी भिू म पर
गृह िनमाFण Lश"त माना गया है ।
दि•णे पिvमे चैव नैऋ3yये वायुकोणके । एिभ\˜चा यदाभूिमग3जपृ ाऽिभधीयते ॥
गजपृ े भवेYास: स लhमीधनपूdरतः। आयुवृि°करो िनyयं जायते ना' संशयः ॥30
2. कूम3पृ भिू म - कूमFपˆृ भिू म उसे कहते ह‰ जो मsय भाग म' ऊंची हो और चारq िदशाओ ं म' नीची हो अथाFत्
भख
ू ंड का बीच का िह"सा उठा ह†आ हो और बाक• सभी िह"से नीचे हो । कूमFपˆृ भिू म पर िनवास करने से
Lितिदन उrसाह एवं धन-धा*य क• वृि~ होती है अथाFत् कूमFपˆृ भिू म भी शाvq म' शभु मानी गई है ।
म•येyयु˜च भवे“' नीचं चैव चतुिद3शम् । कूम3पृ ा भवेद् भूिम#त' वासौ िवधीयते ॥
कूम3पृ े भवेYासो िनyयोyसाहसख ु ं धनम॥् 31
ु Kदः । धनधाqयं भवेp#य िनिvतं िवपल
3. दैyय पृ भूिम - ऐसी भूिम जो पवू F, ईशान तथा आÀनेय कोण म' ऊंची और पि¦म म' नीची भिू म हो वैसी
भिू म को दैrय पृˆभिू म कहते ह‰ । दैrयपृˆ भिू म पर भवन िनमाFण करने से गृह म' लÎमी कभी Lवेश नह„ करती
और धन, पHु , पशओ
ु ं का भी िवनाश होता है । अतः दैrय पृˆभिू म िनिं दत भिू म मानी जाती है |
पवू ा3ि¬नश‚भक
ु ोणेषु उqनितv यदा भवेत् । पिvमे च यदा नीचं दैyयपृ ोिभधीयते ॥
दैyयपृ े भवेYासो लhमीना3याित मिqदरे । धनपु'पशुनां च हािनरेव न संशयः ॥32
4. नागपृ भिू म -पि¦म क• ओर लबं ी दि“ण तथा पि¦म म' ऊंची भिू म को नागपृˆभिू म कहते ह‰ ।
नागपृˆभिू म म' िनवास करने से मन का उÒचाटन होता है अथाFत् मन म' शांित नह„ रहती है । नाग पृˆभिू म पर
िनवास करने से गृह "वामी क• मृrय,ु vी हािन, पHु नाश और शHओ
ु ं का भय बना रहता है । नागपृˆभिू म
भी िनि*दत भिू म मानी जाती है |
पूव3पिvमयोद²घª दि•णोpर उ˜चकः। नागपृ ं िवजानीयात् कत3ु\˜चाटनं भवेत् ॥
नागपृ े यदा वासो मृyयरेव न संशयः । पyनीहािनः पु'हािनः श'ुवृि°ः पदे पदे ॥33

30
बृहदवा"तुमाला Äोक 82-83
31
बह
ृ दवा<तुमाला 2ोक 84-85
32
बह
ृ दवा<तुमाला 2ोक 86-87
33
बह
ृ दवा<तम
ु ाला 2ोक 88-89

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 176


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
4- भूिम के आकार संबंिध दोष - वा"तु शाv म' भिू म के दोष का िवचार उसके आकार के कारण भी
िकया जाता है । िन…निलिखत आकार के भख
ू ंड दोष कारक माने जाते ह‰ ।
1-चaाकार भूिम – वह भूिम जो चz के आकार क• हो अथाFत बह†त सी भुजाए िदखती हो गोलाई िलए
ह†ये हो चzाकार भूिम कहलाती है । यह भूिम अशभु भिू म मानी गई है ।

2- िवषमाकार भूिम – भिू म का आकार िवषम हो अथाFत समान नही हो िवषमाकार भिू म कहलाती है ।
यह भिू म भी अशभु होती है ।

3-ि'कोणाकार भिू म – िHभजु के आकार क• भिू म िHकोणाकार भिू म कहलाती है । यह भिू म भी िनिं दत
भिू म मानी जाती है ।

4-शकटाकार भूिम – गाड़ी क• तरह भिू म को शकटाकर भिू म कहा जाता है यह भी अशभू भिू म है ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 177


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104

5- द0डाकार भूिम – दडं के आकार क• भिू म । यह भूखंड भी िनिं दत माना जाता है।

6- सूपाकारभूिम – सपू े के आकार के समान िदखाई देने वाला भूखंड सपू ाकार भख
ू ंड माना जाता है
ऐसा भूखंड भी अशभु माना गया है ।

7-धनुषाकार भूिम – धनुष के आकार क• तरह आकृ ित वाली भिू म धनुषाकार भूिम कहलाती है िनवास
हेतु यह भी अशभु मानी जाती है ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 178


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104

7- मदृ गं ाकार भिू म- मृदगं ाकर भिू म भी वा"तु शाv म' िनिं दत भिू म मानी जाती है ।

9- ¯यजनाकार भूिम - ¢यजनाकार भिू म अशभु फल दायक होती है ।

सामा*य से भख
ू ;ड का िव"तार यिद ईशानकोण-उ9र या पूवF िदशा म' हो तो वह भख
ू ;ड शभु एवं भाÀयLद होता
है। यथा -

उ9र उ9र

पूवF
पूवF

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 179


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104

इसी Lकार यिद भखू ;ड का िव"तार यिद नैऋrय, वाय¢य, या आÀनय कोण म' हो तो वैसे भख
ू ंड दोष कारक माने
जाते ह‰ जैसे -

नोट िदशा €ान - उ9र

पि¦म पूवF

दि“ण

5- शfय दोष - श`य य£


ु भिू म अथाFत हड्िडयq से य£
ु भिू म दीमक इrयािद से य£
ु भिू म, ऊंची नीची भिू म
अशभु भिू म ह‰ अथाFत इस Lकार क• भिू मयq म' भवन िनमाFण नह„ करना चािहए यह भिू म आयु एवं धन का
नाश कर आती है । यथा –
#फुिटता च सशfया च वfमीका रोिहणी तथा । दूरतः पdरहत3¯या कत3ुरायुध3नापहा ॥34
उपयF£
ु भिू म के अनसु ार उनका फल भी पृथक-पृथक बताया गया है जैसे फटी ह†ई भिू म यिद हो तो
उससे मरण, ऊषर (अनुपजाउ भूिम ) भिू म से धन नाश, श`य य£
ु या हड्डी य£
ु भिू म से =लेश, ऊंची नीची
भिू म से शHु वृि~, शमशान जैसी भिू म से भय, दीमक इrयािद से ¢या° भिू म म' िवपि9, गड्ढq वाली भिू म से
िवनाश और कूमाFकार अथाFत जो बीच म' उठी हो वैसी भिू म से धन नाश होता है |
#फुिटता मरणं कुया3दूषरा धननािशनी । सशfया ¦लेशदा िनyयं िवषमा श'वु िध3नी ॥

34
बृहदवा"तमु ाला Äोक 79
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 180
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
चैyये भयं गृहकृतो वfमीके #वकुले िवपत् । गता3यांतु िवनाशः #यात् कुमा3कारे धन•यः ॥35
इस Lकार भूिम म' भवन िनमाFण से पवू Fश`य शोधन अव>य करना चािहए िजससे वह भिू म श`य दोष
से म£
ु हो जाए एवं वह शभु फल दायक हो ।
४.३.२-मम3 वेध दोष – वा"तु पÂु ष के ममF "थान िसर , मख ु , Ûदय , दोनq "तन, और िलंग ये ममF
"थान है तथा पद िव*यास के अनसु ार रोग से लेकर अिनल तक , िपता से िशखी तक , िवतथ से शोष
तक ,मgु य से Þश ू तक , जयंत से भृगं राज तक , और अिदित से सkु ीव तक िव"तृत सHू q का जो नौ
"थानq म' "पशF होता है वह वे "पशF "थान वा"तु पÂु ष के अित ममF "थान होते ह‰ ( नीचे एकाशीित पद
वा"तु चz िदया ह†आ है उसमे पद िव*यास के अनुसार समझ सकते ह‰ ) । ये नौ अित ममF "थान ßà
"थान म' आते ह‰ । इन ममF "थानq म' कोई भी िनमाFण कायF नह„ करना चािहए अथाFत िपलर आिद इन
ममF "थानq म' न आए । ßà"थल हमेशा ‡र£ रहना चािहए । यही ममF वेध दोष कहलाता है । अत एव
यथा संभव इन ममF "थानq म' िनमाFणकायF से बचना चािहए ।
अsयासKl – 1
िन…निलिखत Lpो मे सrय या असrय का चयन क•िजये -
6. भूिम का wलवrव ईशान कोण म' शभु होता है ।
7. भूिम का िव"तार आÀनेय कोण म' शभु माना जाता है ।
8. शकटाकर भिू म शभु मानी जाती है ।
9. गजपृˆ भिू म दोष कारक मानी जाती है ।
10. वा"तु पÂु ष के Ûदय को भी ममF "थान माना जाता है |
४.३.३-मुrय Yार सबं ंिध दोष –
भवन म' मुgय _ार का अrयंत महrवपूणF "थान होता है इसके िलए वा"तु पद िव*यास के
अनसु ार Lrयेक िदशा के भवन के िलए कुछ िनि¦त भाग म' मgु य _ार बनाना चािहए अ*य पदq म'
बनाया गया _ार दोषकरक होता है यथा एलाशीित पद िव*यास के अनसु ार मgु य _ार के िलए शभु
"थान । जो गाहे है वह शभु है आँय अशुभ "थान या दोष कारक "थान होते ह‰ ।

35
बृहदवा"तुमाला Äोक 80-81
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 181
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104

एकाशीित-पदवा*तुिव,यास

उpर
वाय¯य
रोग नाग भ`लाट सोम भजु ग िदित अिÀन
मgु य अिदित
पापयÎमा ± आपवrस पजF*य

पòृ वीधर
शोष राजयÎमा जय*त

असरु
इ*±
पिvम
वÂण िमH ßàा अयFमा रिव

प²ु पद*त सrय

सkु ीव जय सिवतृ भृश


िवव"वान्
दौवा‡रक सािवH आकाश
भृङ्गराज िवतथ
मृग ग*धवF यम गृह“त पूषा अिनल
िपतृगण

नैऋrय दि“ण
शान
४.३.४ Yार वेध दोष – वेध शnद का शािnदक अथF Âकावट या िकसी के मsय म' कोई व"तु आ
जाना वेध कहलाता है । यह वेध वा"तु दोष कारक होता है, िजसका फल गृह"वामी या प‡रवार म' रहने
वाले अ*य सद"यq को भी भोगना पड़ता है । कुछ _ार वेध इस Lकार से ह‰ –
1- मgु य _ार के सामने कोई भी बड़ा वृ“ नह„ होना चािहए इससे संतान प“ क• हािन होती है ।
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 182
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
2- मgु य _ार के िब`कुल सामने गलीया रा"ता हो िजससे सीधे घर म' Lवेश होता है तो यह भी _ार
वेध
होता है इस Lकार का _ार वेध गृह"वामी को मृrयु अथवा क• देता है ।
3- मgु य _ार के सामने दलदल इrयािद नह„ होना चािहए यह धन धन का ¢यय कराता है ।
4- मgु य _ार के ठीक सामने कुआ नह„ होना चािहए , इससे िमग¾ इrयािद क• बीमारी होने क• संभावना
रहती है ।
5- मgु य _ार के ठीक सामने मंिदर भी नह„ होना चािहए यह भी अशुभ कारक माना गया है ।
6- हमेशा मgु य _ार वा"तु पद के कोण म' नह„ बनाना चािहए यह भी अशुभ कारक माना गया है ।
7- मgु य _ार क• ठीक सामने अपने मकान या दसू रे के मकान क• सीिढ़यां हो तो भी यह वेध कारक
माना गया है ।
8- मgु य _ार िब`कुल सीधा होना चािहए आगे पीछे इस का झुकाव नह„ होना चािहए यह भी एक
Lकार का वेद दोष माना जाता है ।
४.३.५ िविभqन िदशाओ ं के दोष - वा"तु शाv के मgु य िस~ातं िवषयq म' िदशा िवचार का अrयतं
महrवपूणF "थान है । =यqिक वा"तु शाv के िविभ*न kंथq म' भवन म' बनाए जाने वाले िविभ*न Lकार
के क“ इrयािद के िलए िदशा िवशेष का िनधाFरण िकया गया है, यिद वह िनमाFण िदशा िवशेष के
अनसु ार नह„ िकया जाए तो इससे वा"तु दोष उrप*न होता है । zमशः पवू ाFिद 8 िदशाओ ं के दोष िन…न
वत है -
1- पूव3 िदशा के दोष - पवू F िदशा के "वामी इ±ं एवं सयू F है । पवू F िदशा से भवन म' िविभ*न Lकार के
रोगq या क•टाणु नाशक पराब‰गनी िकरणq का Lवेश सीधा होता है अतः पूवF मख ु ी _ार एवं िखड़क•,
साथ ही साथ पवू F िदशा म' भवन का wलवrव (ढलान ) एवं भवन का अिधकतम खल ु ा भाग और नीचा
िनमाFण भाग वा"तु स…मत माना जाता है । जबिक पवू F िदशा म' गृह"वामी का शयनक“, शौचालय,
छत और तल का शेष घर से ऊंचा होना भवन क• पवू F िदशा म' िकया गया अिधकतम िनमाFण वा"तु
दोष माना जाता है ।अतः इस Lकार के दोष से बचना चािहए
2- आ¬नेय िदशा के दोष - पवू F और दि“ण के मsय क• िदशा आÀनेय िविदशा या आÀनेय कोण
कहलाती है । इस िदशा के "वामी गणेश एवं शुz है । यह अिÀन के िलए सवÜ9म "थान है अतः रसोई
क“ (िकचन) के िलए यह अrयतं उपय£ ु "थान है । इसके साथ ही साथ िव?तु सबं धं ी िजतने उपकरण
होते ह‰ वह भी इसी िदशा म' "थािपत करने चािहए । आÀनेय िदशा म' जल का सkं ह दोष कारक माना
जाता है । इस िदशा म' भवन का मgु य _ार भी वा"तु दोष का एक Lमख ु कारण है । नैऋrय कोण क•

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 183


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
अपे“ा इसका ऊंचा होना भी दोष कारक माना जाता है, साथ ही साथ इस िदशा म' दि“ण क• ओर
या आÀनेय क• ओर भवन का िव"तार होना भी वा"तु दोष कारक है ।
3-दि•ण िदशा के दोष - दि“ण िदशा के "वामी यम एवं kह "वामी मगं ल है । भवन क• इस िदशा
म' िकया गया िनमाFण कायF पूवF तथा उ9र क• तल ु ना म' ऊंचा होना चािहए । भवन क• दि“णी दीवार
ऊंची तथा भारी होना शभु दायक माना गया है । इस िदशा म' गृह"वामी का शयनक“ अrयंत उपय£ ु
"थान होता है ।इस िदशा म' कुआं और ट्यबू वेल या पजू ा क“ एवं अsययन क“ या गड्ढा होना वा"तु
दोष उrप*न करता है ।
4-नैऋyय िदशा के दोष - दि“ण एवं पि¦म के मsय क• िदशा नैऋrय िदशा कहलाती है । इसके
"वामी नैऋित एवं kह "वामी राह† है । यह िदशा भारी व"तुओ ं के भंडारण हेतु उ9म मानी जाती है ।
इस िदशा का तल और छत भवन के बाक• भागq से अिधक ऊंचे होने चािहए । शयन क“ का िनमाFण
भी इस िदशा म' उ9म माना गया है । इस िदशा म' ढलान रसोईघर, सेिwटक ट‰क, कुआ या िकसी भी
Lकार का गड्ढा वा"तु दोष कारक माना जाता है ।
5- पिvम िदशा के दोष - इस िदशा के "वामी वÂण और kह "वामी शिन है । इस िदशा म' सयू F का
Lकाश *यनू तम Lा° होना चािहए अतः िखड़िकयां यथासंभव नह„ होनी चािहए । यह िदशा भोजन
क“ के िलए उपय£ ु है । इस िदशा म' भवन का ढलान होना, मgु य _ार होना, शयनक“ होना वा"तु
दोष पैदा करता है ।
6- वाय¯य िदशा के दोष - दि“ण एवं उ9र के मsय क• िदशा वाय¢य िदशा कहलाती है । इसके
"वामी वायु एवं kह "वामी च±ं मा है । यह िदशा अितिथ क“, सेिwटक ट‰क और पेड़ पौधq के िलए
उपय£ ु मानी जाती है । इस िदशा म' अsययन क“ वा"तु दोष कारक है ।
7-उpर िदशा के दोष - उ9र िदशा के "वामी कुबेर और kह "वामी बधु है । इस िदशा म' धन सkं ह,
अsययन क“, पजू ा क“, उ9म माना गया है । इस िदशा म' मgु य _ार, िखड़िकयां इrयािद शभु मानी
जाती है । इस िदशा म' रसोईघर शौचालय होना या परु ानी भारी व"तु होना वा"तु दोष कारक मानी
जाती है ।
8- ईशान िदशा के दोष - उ9र एवं पवू F के मsय क• िदशा ईशान िदशा कहलाती है । इसके "वामी
िशव और kह "वामी बृह"पित ह‰ । इस िदशा म' मुgय _ार िखड़िकयां, खल ु ापन, ढलान, पजू ाघर,
ट्यबू वेल या जल इrयािद क• ¢यव"था होना अrयतं शभु माना जाता है ।इस िदशा म' शौचालय, पानी
क• ऊंची टंक•, ऊंची दीवार या इस िदशा का तल शेष भवन से ऊंचा होना वा"तु दोष कारक माना
जाता है ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 184


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
४.३.६ वृ• संबंिध दोष – भवन के िकस भाग म' कौन से वृ“ दोष कारक होते ह‰ इसका िचंतन भी
वा"तु शाv म' अrयंत समीचीनतया िकया गया है इसके अनसु ार पवू F म' बरगद का वृ“ विजFत या
अशभु माना जाता है इसी Lकार दि“ण म' पाकड़ का वृ“, तथा पि¦म म' पीपल का वृ“ और उ9र
िदशा म' गल
ू र का वृ“ विजFत है । यथा-
अiyथः पवू 3तो धqयो दि•ण#यामुदु‚बरः। qय}ोथ पिvमे Ÿे ः ,ल•ोऽ,युतरतः शुभः ॥
qयो}ोधः पुवतो वeयª दि•णे ,ल• एव च । अiyथः पिvमे भागे ®p ु रे चा,युदु‚बरः ॥36
उपयF£
ु िनिष~ िदशाओ ं म' इन वृ“q का जो फल Lा° होता है वह इस Lकार है पि¦म िदशा
म' ि"थत पीपल के कारण अिÀन का भय, एवं दि“ण िदशा म' ि"थत पाकड़ के वृ“ से Lमाद, पवू F म'
ि"थत बरगद के वृ“ से शv भय, एवं उ9र म' ि"थत गूलर के वृ“ से उदर रोग होता है | अतः इन
िदशाओ ं म' उपयF£
ु िनिष~ वृ“q को नह„ लगाना चािहए उन वृ“q को उनक• िदशा के अनसु ार ही गृह
के आस पास लगाना चािहये । यथा –
अiyथोऽ ि¬नभयं कुया3त् ,ल•ः कुया3त् Kमादकम् । qय}ोधः श•संपातं कुि•रोगमुदु‚बरः ॥37
४.३.७ गृह िनमा3ण Kिaया म) मुहoत3 स‚ं बिqध दोष – गृहारंभ तथा गृह पृवेश तथा अ*य गृह संबि*ध
िनमाFण कायF शुभ महु dतF म' ही करना चािहए । =यqिक हम सभी जानते ह‰ िक शभु महु dतF म' िकया गया
कायF शभु फलदायक होता है एवं अशभु महु dतF म' िकया गया कायF िविभ*न Lकार क• सम"याओ ं को
उrप*न करता है । शाvq म' Lrयेक कायF के िलए शभु महु dतF बताए ह‰ तथा कायF िवशेष के िलए िनंिदत
समय भी बताया गया है अतः सवFदा िनिं दत समय का rयाग करना चािहए एवं शभु काल का kहण
करना चािहए । यथा उदाहरण "व[प गृह िनमाFण हेतु –
1 – गृहारंभ हमेशा िदन म' ही करना चािहए ।
2- चातुमाFस म' गृहारंभ नह„ करना चािहए ।
3- भूिम शयन काल म' भी गृहारंभ नह„ करना चािहए ।
4- गृहारंभ शzु एवं गÂु के अ"त रहते ह†ये नह„ करना चािहए ।
5- गृहारंभ के काल म' गृहा "वामी क• रािश से चं±मा 4-8-12 वे "थान म' नही होना चािहए ।
6- गृहारंभ के समय शभु kह क' ± तथा िHकोण "थान म' शभु दायक तथा पाप kह िHषडाय "थान म'
शभु माने जाते ह‰ ।
7- गृह Lवेश म' इrयािद का िवचार भी अव>य करना चािहए ।

36
वह
ृ दवा<तुमाला 2ोक 71-72
37
बह
ृ दवा<तुमाला 2ोक 73

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 185


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
इस Lकार गृहारंभ एवं गृह Lवेश शुभ महु रd ता म' ही करना चािहए अ*यथा यह भी एक दोष माना जाता
आ है ।
अsयासKl – 2
‡र£ "थान क• पिू तF क•िजये –
8- पवू F िदशा के ............................. इन पदq म' मgु य _ार शुभ होता है । जयंत, इ±ं
9- मgु य _ार के सामने ................. होने से सतं ान प“ क• हािन होती है । बड़ा वृ“
10- जो भूिम पवू F म' नीचे तथा पि¦म म' ऊंची हो वैसी भूिम क• स€ं ा ............ होती है । गोवीिथ
11- पवू F िदशा म' .........................का वृ“ दोष कारक होता है । बरगद
12- गÂु एवं शz ु के ................. रहये ह†ये गृहारंभ नह„ करना चािहए ।

४.४ सारांश -
L"ततु इकाई के माsयम से हमने जाना क• गृह दोष मुgय [प से कौन कौन से होते ह‰ । सबसे
पहले गृह िनमाFण से पवू F भूिम के ही िविभ*न Lकार के दोष बताए गए है जैसे wलवrव दोष , भूिम के
आकार ज*य दोष, िव"तार संबंधी दोष , श`य दोष , िदशा के अनसु ार अशुभ वृ“ अथाFत िकस िदशा
म' कौन सा वृ“ दोष कारक होता है, मgु य _ार सबं धं ी दोष , _ार वेध दोष ,ममF वेध दोष, िविभ*न
िदशाओ ं के दोष, महु तd ाFिद दोष। एवं इकाई अsययन के प¦ात यह भी जाना क• जो िस~ा*त या िनयम
शाvq म' बताए जाते ह‰ उनके िवÂ~ िकया गया कोई भी कायF साम*य [प से दोष कारक होता है ।
सामा*य [प से तो कुछ कायF िदशा िवशेष म' िनिष~ बताए ही गए है यथा कभी भी ईशान कोण म'
शौचालय का िनमाFण नह„ होना चािहए यह Lमख ु दोष होता है । एवं कुछ सामा*य िनयम होते है िजनके
अनसु ार िदशा िवशेष का फल सामा*य रहता है अथाFत न ›यादा शभु कारक एवं न अिधक हािन
कारक इस Lकार के वचन के अनसु ार हम गृह िनमाFण कर सकते ह‰ परंतु जो िब`कुल िनिष~ िनयम
बताए गाय' है उनके अनसु ार िनमाFण कभी भी नह„ करना चािहए । अतः हमेशा गृह िनमाFण वा"तु शाv
के िनयमानसु ार ही करना चािहए िजससे अिधकािधक शुभ फल क• Lाि° हो सके ।
४.५ पाdरभािषक श†दाबली
wलवrव – "थान िवशेष का एक ओर नीचा होना । (ढलान )
श`य – भूिम के अंदर िव?मान अविश• (अशुभफल दायक ) पदाथF । (हड्डी )
वेध – िकसी व"तु के _ारा अ*य व"तु के भीच म' आमा या Âकावट पैदा करना ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 186


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
ममF "थान – वा"तु पÂु ष के कुछ "थान जैसे िसर, मख
ु , Ûदय , दोनq "तन, और िलगं ये ममF "थान है।
पद वा"तु – वा"तु पÂु ष म;डल । वतFमान म' भवन क• Lा=क`पना अथाFत वा"तु योजना वा"तु पद
िव*यास है । इनके कई भेद होते ह‰ जैसे एकाशीित पद वा"तु , शतपद वा"तु , चतुषि• पद वा"तु
इrयािद।

४.६ अsयास KlŠ के उpर


अsयास 1-
2- सrय , 2 –असrय, 3- असrय, 4- असrय, 5- सrय ।
अsयास -2
1-जयतं एवं इ±ं , 2- बड़ा वृ“ , 3- गोवीिथ , 4 –बरगद , 5 – अ"त ।
४.७ सदं भ3 }qथ सच
ू ी
(ज) मलू लेखक – िवÃकमाF , स…पादक एवं टीकाकार –महिषF अभय काrयायन ,
िवÃकमFLकाशः(२०१३), चौखबं ा सरु भारती Lकाशन, वाराणसी |
(झ) मल ू लेखक – Ùीरामिनहोर ि_वेदी संकिलत, टीकाकार –डा ßàान*द िHपाठी एवं डा
रिव शमाF , वृह_ा"तुमाला(२०१८ ) , चौखंबा सरु भारती Lकाशन, वाराणसी |
(ञ) मल ू लेखक – Ùीरामदैव€ , टीकाकार – Lो. रामच*±
पा;डेय,महु dतिF च*तामिणः(२००९) वा"तLु करण , चौख…बा कृ ²णदास अकादमी,
वाराणसी |
नोट -अ*य संदभÜ का उ~रण Lrयेक संदभF के पृˆ पर है |

४.८ सहायक पाठ्यसाम}ी -


मयमतम् – मयमिु न
बृहrसंिहता – वराहिमिहर
वा"तु शाv – डा शािलनी खरे
वा"तसु ारः – Lो. देवीLसादिHपाठी

४.९ िनबqधाyमक Kl

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 187


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
1- भिू म के Lमख ु दोष िलिखए ।
2- ममF वेध दोष के बारे म' िलिखए ।
3- महु dतF सबं धं ी दोष के बारे म' िलिखए ।
4- _ार संबंधी दोष को समझाइए ।
5- L"तुत इकाई का सारांश अपने शnदq म' िलिखए ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 188


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
इकाई - ५ गृहदोष िनवारण
इकाई क‹ संरचना-

५.१ L"तावना
५.२ उNे>य
५.३ गृहदोष िनवारण
५.३.१- भूिम के दोष का िनवारण
५.३.२ िविभ*न िदशाओ ं के दोषq का िनवारण
५.३.३ शौचालय सबं धं ी दोष का िनवारण
५.३.४ सीढ़ी से उrप*न दोष का िनवारण
५.३.५ सयू F वेध दोष का िनवारण
५.३.६ रसोईघर संबंधी दोष का िनवारण
५.३.७ सामा*य गृहदोष िनवारण के उपाय
५.४ सारांश
५.५ पा‡रभािषक शnदाबली
५.६ अÐयास Lpq के उ9र
५.७ संदभF k*थ सचू ी
५.८ सहायक पाठ्यसामkी
५.९ िनब*धाrमक Lp

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 189


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
५.१ K#तावना –
आप सभी वा"तु शाv के Lमुख िस~ांतq से प‡रिचत हqगे ऐसा मेरा पणू F िवÃास है। एवं साथ ही
साथ वा"तु के कुछ Lमुख दोषq का भी आपको €ान होगा। L"तुत इकाई का शीषFक “गृहदोष
िनवारण” है। हम सभी जानते ह‰ िक वतFमान प‡रLेÎय म' "थान का अभाव होने के कारण पणू F वा"तु
स…मत गृह िनमाFण संभव नह„ हो पाता है। वा"तु शाv के सभी िस~ांतq का हम गृह िनमाFण म' उिचत
Lयोग नह„ कर पाते ह‰ । कई Lकार क• सावधािनयां रखते ह†ए भी कुछ ना कुछ दोष अव>य रह जाते
ह‰। सामा*य [प से वा"तु शाv के कई दोष बताए गए ह‰ जैसे भिू म के दोष, िदशाओ ं के दोष, िविभ*न
Lकार के िनमाFण संबंधी दोष, इन दोनq का िनवारण शाvो£ प~ित से िकस Lकार िकया जाए यह
महrवपूणF Lp होता है। =यqिक मानव इस जीवन म' सुख पवू क
F जीवन यापन करना चाहता है। यिद वह
दोष य£ु भवन म' िनवास करे गा तो िनि¦त तौर पर उसका मन कह„ ना कह„ अशांत बना रहेगा। अतः
दोष य£ ु भवन के िनवारण उपाय अव>य जानने चािहए । L"तुत इकाई के माsयम से हम गृहदोष
िनवारण के उपाय को जान'गे।

५.२ उNेPय -

L"तुत इकाई के अsययन के बाद आप –


Ø वा"तु शाv के मgु य गृहदोष से अवगत हो पाएंगे ।
Ø भूिम के Lमखु दोष से प‡रिचत हो पाएंगे तथा उनके िनवारण के उपाय को जान'गे।
Ø शौचालय संब*धी दोषq के िनवारण को जान'गे।
Ø रसोईघर, सीढ़ी इrयािद दोषो के उपाय का €ान Lा° कर' गे ।
Ø सामा*य वा"तु दोष दरू करने के उपाय को जान'गे ।
५.३ गृहदोष िनवारण –
L"ततु शीषFक के माsयम से हम गृह के िविभ*न दोषq एवं उनके िनवारण के िवषय म' अsययन कर' गे ।
५.३.१- भूिम के दोष का िनवारण- गृह िनमाFण के िलए भूिम के कुछ Lमख ु दोषq का िवचार करना
अrयंत आव>यक है यह दोष है भूिम म' घनrव न होना या पोली होना, श`य दोष, अनिु चत ढलान
(wलवrव), वेध एवं िनिष~ आकार आिद । इन दोषq का िनवारण इस Lकार िकया जा सकता है

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 190


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
Ø यिद भिू म ठोस न हो या उसम' दीमक, च„टी एवं अजगर के िबल हो अथवा राख, भसू ा, रे त
या कपड़ा हो अथवा उस जमीन म' श`य हो तो ऐसी भिू म पर मकान नह„ बनवाना चािहए ।
यिद ऐसी जगह पर भवन बनाना अrयाव>यक हो तो भूिम को साढ़े तीन हाथ (लगभग 6 फुट
) गहरा खदु वा कर उसका मलबा िनकालकर अÒछी िमŸी या पrथर के छोटे टुकड़े से भरवा
कर उस पर मकान बनाया जा सकता है । इस िवषय म' वा"तु kंथq का सवF स…मत [प से
िनद—श यह है िक दरार वाली चलने वाली दीमक वाली पोली और बह†त ऊंची नीची फटी
या दरारवाली, उबड़-खाबड़ जमीन को छोड़ देना ही Ùेय"कर है । यथा-
#फुिटता च सशfया च वfमीका रोिहणी तथा |
दूरतः पdरहत3¯या कत3ुरायुध3नापहा ||38
Ø भूिम का ढलान पूवF और उ9र िदशा क• ओर होना शभु माना जाता है तथा भूिम का ढलान
पि¦म एवं दि“ण िदशा क• ओर िनिष~ माना गया है । इसी Lकार भूखंड के बीच म' या
दि“ण एवं पि¦म म' गड्ढा होना अशभु होता है इस Lकार का भख ू डं भवन िनमाFण के िलए
अÒछा नह„ होता । यिद इस Lकार के भख ू ंड पर आवासीय, ¢यवसाियक, औ?ोिगक, या
धािमFक िकसी भी Lकार का भवन बनाना आव>यक हो तो wलॉट पर िचकनी िमŸी डालकर
गड्ढq को भरवा देना चािहए और उसका ढलान सिु वधा अनसु ार पवू F या उ9र िदशा क• ओर
कर देना चािहए िजससे भूिम के wलवrव दोष का िनवारण हो जाता है ।
Ø यिद भख ू ंड के सामने मिं दर, धमF"थल, खंबा, कुआं अथवा चौराहा हो तो तो भख ू डं पर वेध
होता है, और यहां मकान बनाने से अनेक Lकार क• परे शािनयां पैदा होती है । सामा*यतया
ऐसे भख ू ंड पर गृह नह„ बनवाना चािहए । यिद ऐसे भूखंड पर भवन बनाना आव>यक हो तो
वेध क• िदशा को छोड़कर अ*य शभु िदशा म' मgु य_ार रखना चािहए ।
Ø भखू डं वगाFकार, आयताकार, वृ9ाकार एवं भ±ासन सभी Lकार के भवनq को बनाने के िलए
शभु होते ह‰ । भूखंड का िव"तार ईशान कोण को छोड़कर अ*य सभी कोणq पर अशुभ माना
गया है । इसी Lकार कटान आÀनेय एवं वाय¢य के अलावा अ*य कोणq पर अशभु माना जाता
है । सामा*यतया िव"तार या कटाने वाले भख ू डं q को छोड़कर शभु आकार वाले भख ू डं पर
िनमाFण करना चािहए । यिद िव"तार या कटान वाले भूखंड पर िनिष~ आकार वाले भूखंडपर

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वा<तुरaाकरः 2ोक ६१

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 191


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
मकान बनाना आव>यक हो तो उसम' सधु ार कर उसक• आकृ ित चौकोर कर लेनी चािहए ।
जैसे –
पवू F पवू F

उ9र दि“ण उ9र


दि“ण

पि¦म पि¦म

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 192


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
पवू F

नोट - िदशा €ान - उ9र दि“ण

पि¦म

िनिष~ आकृ ितयq के भखू ंडq पर िनमाFण नह„ करना चािहए उ*ह' छोड़ देना अÒछा होता है िकंतु आज
क• प‡रि"थितयq के कारण यिद उन पर भवन बनाना आव>यक हो तो उन म' िन…न Lकार से सधु ार कर
लेना चािहए िजससे िक भख ू ंड चौकोर बन जाए जैसे –

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 193


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104

(उपयF£ ु भूखंडq म' अपेि“त सुधार िकया जैसे zमशः िचHानुसार िHकोणाकार भख ू ंड म', शकटाकार
भखू डं ा म', िसहं मखु ी भूखडं म', शपू ाFकार भखू ंड म', चzाकार भख ू ंड म', मृदगं ाकार भखू डं म', िवषम
बाह† भख ू ंड म' । ) इस Lकार िनिष~ आकार वाले भूखंड म' से चौकोर आकार िनकालने या सधु ार
करने के बाद बची जमीन म' पूवF उ9र क• ओर घास, पौधq क• =यारी, आिद पि¦म दि“ण म' बड़े पेड़
लगाए जा सकते ह‰ िकंतु सधु ार से बची जमीन पर िकसी भी Lकार का िनमाFण कायF नह„ कराना चािहए

५.३.२ िविभqन िदशाओ ं के दोषŠ का िनवारण -
ईशान कोण (िदशा) के दोष का िनवारण – उ9र - पवू F के मsय कोण या िदशा को ईशान कोण
(िदशा) कहते ह‰ । इस िदशा के "वामी िशव एवं बृह"पित है । ईशान कोण को भगवान िशव के कारण
पिवH माना गया है अतः पूजा घर ईशान म' रखना Ùेˆ माना जाता है ईशान कोण के िलए वा"तु स…मत
िनद—श दोष एवं उनके िनवारण का िवचार हम िन…न Lकार से कर सकते ह‰ -सामा*यतः ईशान मख ु ी
भवन शभु माना जाता है, इस िदशा म' खल ु ापन एवं िनमाFण *यनू तम होने चािहए, भवन का ढलान इसी

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 194


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
िदशा म' होना चािहए, ईशान म' िव"तार भी शभु माना गया है । कुआँ व ट्यबू वेल हेतु यह उपय£ ु
िदशा मानी गई है । पूजा घर हेतु भी यह अrयंत उपय£ ु "थान है, साथ ही साथ तलघर के िलए भी
उपय£ ु "थान है । लेिकन यिद ईशान कोण कटा हो, ईशान का भाग ऊंचा हो, िनमाFण के कारण ईशान
कोण ढक गया हो, शौचालय यहां पर बना हो, उÒचीकृ त पानी क• टंक• हो, उ9र पवू F क• चारदीवारी
ऊंची हो तो यह ईशान िदशा का दोष होता है । इसका िनवारण इस Lकार से करना चािहए िक ईशान
कोण को "वÒछ रख', इस खुला हवादार एवं Lकािशत रख', Lवेश _ार पर "वि"तक लगाए, वा"तु दोष
िनवारण यंH लगाए, िशव उपासना एवं üत करना चािहए ।
पूव3 िदशा के दोष का िनवारण – पवू F िदशा के "वामी इ±ं एवं सयू F kह है । पवू F िदशा से Lातः काल
क• िकरण' भवन म' Lवेश करती है, इन िकरणq म' पराब‰गनी िविकरण क• अिधकता होती है जो क•टाणु
नाशक होती है । पवू F िदशा म' _ार एवं िखड़क• होनी चािहए, भवन का wलवrव पवू F िदशा म' रहना
चािहए । इस िदशा म' खल ु ापन अिधक होना चािहए, चारदीवारी अपे“ाकृ त नीची होनी चािहए,
अsययन के िलए यह िदशा उपयु£ मानी जाती है । पवू F िदशा के दोषq पर िवचार कर' तो यह िदशा
िनमाFण के कारण ढक• हो, इसका तल यिद ऊंचा हो, शौचालय इस िदशा म' बनाया गया हो, गृह"वामी
का शयनक“ यिद पवू F िदशा म' हो इrयािद पवू F िदशा के दोष होते है । इन दोषq के िनवारण के िलए
इस िदशा को "वÒछ, खुली एवं Lकािशत रखना चािहए शौचालय दि“ण पि¦म या वाय¢य म' "थािपत
करना चािहए गृह"वामी का शयनक“ को नैऋrय कोण म' "थािपत कर' । सयू F यंH क• "थापना करनी
चािहए ।
आ¬नेय कोण (िदशा) के दोष का िनवारण – पवू F एवं दि“ण िदशा के मsय का कोण आÀनेय कोण
कहलाता है । इस िदशा के "वामी गणेश एवं kह"वामी शz ु है । यह कोण रसोईघर के िलए सबसे
उपय£ु "थान माना जाता है, िव?तु उपकरणq के िलए भी यह शभु माना गया है । इस िदशा म' िनमाFण
अव>य होना चािहए, आÀनेय भाग पवू F क• तल ु ना म' अिधक उ*नत होना चािहए । आÀनेय कोण के
दोषq पर यिद िवचार कर' तो इस िदशा म' जल सkं ह दोष कारक माना गया है, भवन का मgु य _ार भी
इस िदशा म' दोष उrप*न करता है, आÀनेय कोण का दि“ण िदशा म' िव"तार होना भी दोष कारक है ।
इन दोषq के िनवारण के िलए मgु य _ार पर हरे रंग के वा"तु दोष नाशक गणपित "थािपत करना चािहए।
गणपित क• पजू ा करनी चािहए एवं बुधवार का üत करना चािहए ।
दि•ण िदशा के दोष का िनवारण – दि“ण िदशा के "वामी यम एवं kह"वामी मंगल है । भवन का
इस िदशा का भाग पवू F एवं उ9र क• तल
ु ना म' अिधक ऊंचा होना चािहए । इस भाग म' खुलापन न हो
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 195
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
अथाFत िनमाFण कायF अव>य कराया जाना चािहए । गृह"वामी के शयनक“ के िलए यह सबसे उपय£ ु
िदशा होती है । दि“णी दीवार अपे“ाकृ त भारी होनी चािहए । दि“णी चारदीवारी ऊंची होनी चािहए।
दि“ण िदशा के के िनमाFण सबं धं ी दोषq पर िवचार कर' तो दि“णी भाग उ9र-पवू F क• अपे“ाकृ त यिद
नीचा होता है तो यह दोष कारक माना गया है । यहां पर कुआं एवं ट्यबू वेल भी दोष कारक माना
गया है, दि“णी भाग को खुला नह„ होना चािहए, भवन के सामने गड्ढा हो तो वह भी दोष कारक
माना गया है । पजू ा क“ एवं अsययन क“ दि“ण िदशा म' िनिष~ माना जाता है । इनके दोषq के
िनवारण के िलए _ार पर दि“णावत¾ संडू वाले गणपित "थािपत करना चािहए । _ार पर मंगल यHं
लगाना चािहए । दि“ण िदशा म' बड़े-बड़े पेड़ लगाने चािहए । उÒचीकृ त पानी क• टंक• को इसी िदशा
म' "थािपत करना चािहए ।
नैऋyय कोण (िदशा) के दोष का िनवारण – दि“ण एवं पि¦म िदशा के मsय का कोण नैऋrय
कोण कहलाता है । इस िदशा के "वामी नैऋती एवं kह"वामी राह† है । इस िदशा म' गृह"वामी का
शयनक“ सबसे उ9म माना गया है । नैऋrय कोण कभी भी खाली नह„ रहना चािहए । उÒचीकृ त पानी
का भंडारण हेतु यह Ùेˆ "थान है । भारी व"तुओ ं के िलए भी यह कोण उपय£
ु माना गया है । इस भाग
का तल भख ू ंड म' सबसे ऊंचा रहना चािहए । नैऋrय म' िव"तार नह„ होना चािहए । नैऋrय कोण के
दोषq पर िवचार कर' तो इस िदशा म' यिद कुआं हो तो वह दोष कारक माना गया है । रसोईघर या
सेिwटक ट‰क भी दोष कारक माना गया है । ढलान भी नैऋrय कोण म' दोष कारक होता है । नैऋrय
कोण खुला होना भी दोष कारक है । इन दोषq को दरू करने के िलए घर म' राह† यHं "थािपत करना
चािहए । _ार पर गणपित जी क• "थापना करनी चािहए । िदशा दोष नाशक यंH एवं इ±ं ाणी यHं "थािपत
करना चािहए । इस िदशा म' बड़े-बड़े पेड़ लगाने चािहए ।
पिvम िदशा के दोष का िनवारण – पि¦म िदशा के "वामी वÂण एवं kह "वामी शिन है । यह
िदशा भोजन क“ के िलए सबसे उपयु£ मानी गई है । पि¦मी भाग का तल नैऋrय से नीचा एवं
वाय¢य से ऊंचा होना चािहए । इस िदशा म' िखड़िकयq क• सgं या कम होने चािहए । अपराÏ सयू F क•
िकरणq म' इýं ारे ड िविकरण को रोकने के िलए इस िदशा म' िनमाFण अव>य करवाना चािहए । इस िदशा
से संबंिधत दोष पर यिद हम िवचार कर' तो इस िदशा म' शयनक“ या "नान kह यिद हो तो वह दोष
कारक माना गया है । पानी का ढलान पि¦म िदशा म' दोष कारक होता है । इन दोषq के शमन के िलए
वÂण यंH क• "थापना करनी चािहए । बड़े वृ“q को भी पि¦मी िदशा म' लगाया जाना चािहए ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 196


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
वाय¯य कोण (िदशा) के दोष का िनवारण – उ9र पि¦म के मsय के कोण को वाय¢य कोण कहते
ह‰ । इस िदशा के "वामी वायु एवं का kह"वामी चं±मा है । इस िदशा म' िववाह योÀय क*या के िलए
शयनक“ अrयतं उपय£ ु माना गया है, सेिwटक ट‰क का िनमाFण भी इस िदशा म' उपय£ ु माना जाता
है । अितिथ क“ के िलए भी यह "थान उपय£ ु माना गया है । पेड़ पौधq के िलए भी शभु "थान माना
जाता है । इस िदशा के दोषq पर िवचार कर' तो पि¦म म' वाय¢य म' भख ू ंड का िव"तार अिधक होना
दोष कारक माना गया है । दोष के िनवारण पर यिद िवचार िकया जाए तो भवन म' चं± यHं "थािपत
करना चािहए । गणपित जी क• आराधना करनी चािहए, एवं हनमु ान जी क• उपासना करनी चािहए ।
उpर िदशा के दोष का िनवारण – उ9र िदशा के "वामी धन के देवता कुबेर एवं का kह"वामी बधु
है । यह िदशा धन देवता क• िदशा है । अतः इसे "वÒछ एवं अपे“ाकृ त खल ु ी रखनी चािहए । धन
संkह क“ के िलए यह उपय£ ु िदशा मानी गई है । उ9री भाग पवू ¾ तल के अन[ु प परंतु दि“ण पि¦म
क• अपे“ा नीचा होना चािहए । पानी का ढलान भी इस िदशा म' उ9म माना गया है । अsययन क“,
कायाFलय, पजू ा क“, काउंटर इrयािद के िलए यह Ùेˆ िदशा मानी गई है । मgु य _ार एवं िखड़िकयq
के िलए भी यह "थान उपय£ ु माना गया है । इस िदशा के दोष पर िवचार कर' तो यहां पर रसोई घर
का िनमाFण दोष कारक माना गया है, उ9री भाग का कटा होना, परु ानी एवं भारी व"तुओ ं को उ9र
िदशा क• ओर रखना, शौचालय इrयािद का िनमाFण उ9र िदशा म' दोष कारक माना जाता है । दोषq
के िनवारण के िलए बुध यंH क• "थापना करनी चािहए । गणेश जी क• उपासना करनी चािहए । हरी
घास लगाई जानी चािहए ।
अsयासKl – 1
िन…निलिखत Lpq म' सrय या असrय का चयन क•िजये -
11. सामा*यत: भिू म यिद पोली हो, राख़ या भसू ा हो अथवा भिू म म' श`य हो तो वैसी भिू म म'
गृह िनमाFण नह„ करना चािहए।
12. भूिम के श`यािद दोष भूिम को 6 फ•ट खोदकर "वÒछ िमŸी डलवाने से दरू हो जाते ह‰ ।
13. भिू म का ढलान दि“ण एवं पि¦म िदशा का शभु माना जाता है ।
14. नैऋrय िदशा के "वामी मंगल है ।
15. उ9र िदशा के दोष के िनवारण गणेश उपासना से दरू होते ह‰ ।

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५.३.३ शौचालय संबंधी दोष का िनवारण – भवन म' शौचालय का िनमाFण वा"तु शाv के
िनयमानसु ार ही िकया जाना चािहए । वा"तु शाv के अनुसार शौचालय क• सही िदशा दि“ण व
नैऋrय के मsय म' बताई गई है कभी-कभी "थान न होने पर इसे वाय¢य या पि¦म िदशा म' भी बनवाया
जा सकता है । परंतु ईशान कोण म' पर कभी भी शौचालय नह„ होना चािहए । शौचालय के पाट क•
¢यव"था इस Lकार से होने चािहए िक बैठने वाले का मख ु उ9र या दि“ण िदशा क• ओर रहे ।
शौचालय म' जल का "थान उ9र पवू F म' रहे । कभी भी शौचालय रसोईघर एवं पजू ा घर के ऊपर नह„
बनाना चािहए । िकसी भी भवन के एकदम Lारंभ है या एकदम अिं तम िसरे पर भी शौचालय नह„
बनवाना चािहए । वा"तु शाv म' िजतना महrव पजू ा घर को दी गई है उतनी ही मह9ा शौचालय को
भी दी गई है, =यqिक पजू ा घर म' मन क• शांित एवं शौचालय म' तन क• शांित होती है । इसीिलए
शौचालय को वा"तु स…मत "थान पर ही बनाना चािहए यहां पर हम' शौचालय कहां बनाए इस बात से
अिधक sयान यह रखना चािहए िक कहां नह„ बनाना चािहए अतः शौचालय को ईशान व अिÀन कोण
पर कभी भी नह„ बनवाया जाना चािहए यिद पर प‡रि"थितवश बनाना आव>यक हो रहा हो तो पवू ¾
भाग या उ9री भाग का नौ खडं करके एक भाग छोड़कर बनवाना चािहए कहने का ताrपयF है िक सीधा
सीधा अिÀन कोण एवं ईशान कोण पर नह„ बनवाना चािहए ।
५.३.४ सीढ़ी से उyपqन दोष का िनवारण- भवन म' सीिढ़यq क• सgं या सदा सम रखनी चािहए ।
सीिडयो क• सgं या का योग करके 3 से भाग देने पर 2 शेष नह„ बचना चािहए इसम' कई शाvq म'
अलग-अलग मत ह‰ परंतु हम यहां वृहदवा"तमु ाला के अनसु ार जो इ±ं ,यम एवं राजा zमशः एक दो
व तीन (श*ू य) शेष आने पर कहा गया है अथाFत यहां यम का शेष नह„ बचना चािहए यह अनथF
सचू क है । उनके ऊपर सीड़ी का आरोहण या अवरोहण नह„ होना चािहए । सीढ़ी क• सgं या सम या
िवषम भी हो सकती है परंतु उनका योग करके 3 से उसे भाग देने पर दो शेष नह„ बचना चािहए ।
सीढ़ी सदा दाएं घमू ते ह†ए बनवानी चािहए, यिद िकसी कारणवश सीड़ी वामावतF बन गई हो तो वहां
पर एक "वि"तक लगा देना चािहए । सीढ़ी का छत पर िनकास पवू F या उ9र क• तरफ शभु माना गया
है पि¦म म' भी कर सकते ह‰ परंतु भूलकर भी दि“ण म' नह„ करना चािहए । सीढ़ी म' यिद सgं या दोष
हो तो एक संgया घटा या बढ़ा लेनी चािहए सीिढ़यां सदा घर के अंदर ही पीछे क• तरफ बनवानी
चािहए । घर के सामने सीड़ी नह„ रहनी चािहए । Lवेश _ार के ठीक सामने सीड़ी न रहे । घर के मsय
म' भी सीढ़ी नह„ होनी चािहए । इसे दि“ण पि¦म म' ही बनवाना चािहए । ईशान कोण पर भी सीढ़ी
नह„ होनी चािहए । एक सीढ़ी से दसू री सीड़ी के मsय 9 इचं का अंतर होना चािहए । सीड़ी के नीचे

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पजू ा घर एवं शौचालय नह„ बनाना चािहए । सीढ़ी का आरंभ िHकोण से नह„ करना चािहए न ही
घुमावदार सीिढ़यां बनानी चािहए ।

५.३.५ सूय3 वेध दोष का िनवारण- यिद िकसी भूखंड क• लबं ाई पवू F-पि¦म म' अिधक हो एवं उ9र
दि“ण म' कम चौडा हो एवं लबं ाई िलए ह†ए हो तो ऐसी भिू म व भवन को सयू F वेधीय भवन कहा जाता
है, वा"तव म' इसे बह†त शभु नह„ माना जाता है =यqिक सूयF का Lकाश बह†त कम माHा म' Lा° होता
है । ऐसा भूिम या भखू ंड रहने पर उस िनमाFण को चं± वेध म' बनवाना चािहए उ9र दि“ण लंबा, पवू F
पि¦म चौड़ा, यिद यह संभव न हो तो चौकोर भवन बनाए, यिद यह भी संभव ना हो तो कम से कम
भवन का मsय भाग अथाFत आंगन को च±ं वेध म' बना द' । यह भी संभव ना हो पा रहा हो तो भिू म क•
लबं ाई देखकर उसे दो या तीन िजतने भी भाग म' बाटं ने से वह चं± वेध हो जाए वहां नीचे ताबं े का तार
डलवा कर द' यह भूिम के ऊपर से लाल रंग का प'ट या टाइ`स का Lयोग कर बॉडFर जैसे बना द' ऐसा
करने से भिू म का दोष दरू हो जाता है एवं सूयF वेध का जो फल जैसे अि"थरता, कलह, लÎमी आिद
क• सभं ावना समा° हो जाती है ।
५.३.६ रसोईघर संबंधी दोष का िनवारण – मानव शरीर को "व"थ बनाए रखने म' भोजन का
अrयिधक महrव होता है, अतः भवन म' पाकशाला का िनमाFण भी वा"तु शाv के अनसु ार होना
अrयाव>यक माना गया है । िजससे िक हम भवन म' रहने वाले सभी सद"य "व"थ रहे । वा"तु शाv
म' दि“ण पूवF अथाFत आÀनेय कोण का "वामी अिÀनदेव को माना गया है, अतः यहां पर पाकशाला
बनाना अrयतं उपय£ ु है । =यqिक अिÀन म' तेज, Lकाश, क•टाणु नाशक, पकाने आिद क• “मता
होती है । इसिलए हमारे ऋिष-मिु नयq ने अिÀन कोण को ही पाकशाला हेतु उपय£ ु माना है । सही िदशा
म' भोजन पकाने से खाने वाले ¢यि£ भी अÒछी बुि~ व बल के होते ह‰ यहां पर कुछ बातq का अव>य
sयान रखना चािहए िजससे पाकशाला से कोई दोष उrप*न न हो- भोजन पकाते समय बनाने वाले का
मgु य सदा पवू F म' रहना चािहए । पीने का पानी व िसंक का आिद रसोईघर के ईशान कोण म' रहना
चािहए । च`ू हा पाकशाला के अिÀन कोण म' रहे, पानी के "थान एवं च`ू हे म' कम से कम 7 फ•ट क•
दरू ी रहे । "थान अभाव होने पर हम वाय¢य कोण म' भी पाकशाला बना सकते ह‰ परंतु ईशान एवं नैऋrय
कोण पर भल ू कर भी नह„ बनाना चािहए । भारी बतFन रसोईघर के दि“ण भाग म' रखे । खा? सामkी
को उ9र िदशा म' रखना चािहए । भोजन पकाने के बाद चू`हे पर बतFन नह„ छोड़ना चािहए । रसोईघर
को Lकाश य£ ु खल
ु ा ह†आ हवादार रखना चािहए । रसोई घर म' िबजली का ब`ब व ट्यबू लाइट सदा
आÀनेय कोण पर ही लगाना चािहए । पाकशाला का दरवाजा पवू F म' नह„ रखना चािहए, ना ही च`ू हा
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 199
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
सीधा दरवाजे के सामने रहे । रसोईघर क• दीवार का रंग पीला रहना चािहए । पाकशाला म' यिद ý•ज़
रखना हो तो उसे कभी भी नैऋrय या ईशान म' नह„ रखना चािहए, इसके अित‡र£ और कह„ रखा
जा सकता है डायिनगं टेबल सदा आयताकार रहना चािहए । डाइिनगं टेबल को पि¦म िदशा म' रखना
चािहए भोजन करते समय मुख पवू F िदशा क• तरफ रहे । जूठे बतFनq को नैऋrय कोण पर रखना चािहए
। रसोई घर यिदवाय¢य म' होगा तो वहां भोजन शीö समा° होता है अतः कम से कम गैस चू`हा
रसोईघर के अिÀन कोण म' रखकर भोजन पकाया जाय तो कुछ दोष दरू होता है ।

५.३.७ सामाqय गृह दोष िनवारण के उपाय –


Ø भवन म' वा"तु दोष होने पर उिचत यही है िक उसे यथासंभव वा"तु शाv के अनुसार ठीक
कर लेना चािहए अथवा उस मकान को बेचकर दसू रा मकान अथवा जमीन खरीद लेना
चािहए ।
Ø जहां तक सभं व हो सके िनिमFत मकान म' तोड़फोड़ नह„ करना चािहए तोड़फोड़ करने से
वा"तु भंग का दोष लगता है ।
Ø घर के परु ाने होने पर दीवार के िगर जाने पर अथवा िछ*न-िभ*न होने पर उसे सोने से बने ह†ए
हाथी दांत अथवा गोशृंग से वा"तु पूजन पवू कF िगराने से वा"तु भंग का दोष नह„ लगता है ।
Ø घर म' अखंड [प से रामच‡रतमानस के 9 पाठ लगातार नौ िदन तक करने से वा"तु जिनत
दोष दरू हो जाते ह‰।
Ø मgु य _ार के ऊपर िसंदरू से "वि"तक का िच*ह बना है यह िच*ह 9 अंगुल लबं ा तथा 9
अगं लु चौड़ा होना चािहए घर म' जहा-ं जहां वा"तु दोषq वहां वहां यह िच*ह बनाया जा सकता
है ।
Ø इनके साथ साथ िविभ*न अवसरq पर वा"तु पूजन एवं वा"तु शांित कराते रहना चािहए ।

अsयासKl – 2
‡र£ "थान क• पिू तF क•िजये –
13- वा"तु दोष के िनवारण हेतु रामच‡रत मानस का पाठ लगातार ............................. िदन
तक कराना चािहए ।
14- रसोईघर म' जल का "थान ........................... कोण म' रहना चािहए।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 200


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
15- शौचालय कभी भी ............ ................ कोण म' नह„ बनबानी चािहए ।
16- सीढ़ी क• सgं या म' ....................................का अश
ं अशुभ होता है ।
17- सामा*यत: वा"तु दोष दरू करने के िलए मुgय _ार के सामने ......................... का िच*ह
बनवाना चािहए ।

५.४ सारांश –
इस Lकार हम कह सकते ह‰ िक हम' यथा संभव वा"तु शाv के िस~ांतq के अनसु ार ही गृह
िनमाFण कराना चािहए । =यqिक मन²ु य अपने जीवन म' अपनी पणू F शि£ का Lयोग अÒछे वातावरण
म' ही कर सकता है यिद उसे वातावरण समिु चत नह„ िमलता है तो वह अवसाद पवु क F अपने जीवन
को जीता है । वतFमान काल म' मन²ु य के िलए घर का अrयंत महrवपूणF "थान है यिद भवन म' िकसी
Lकार का दोष रहता है तो उसे अपने जीवन म' अनेक Lकार के क•q का सामना करना पड़ता है । अतः
यथा संभव गृह दोषq का िनवारण शाvो£ प~ित से करना चािहए । जैसे वा"तु दोष को दरू करने के
िलए घर म' अखडं [प से रामच‡रतमानस के 9 पाठ करने से वा"तु जिनत दोष दरू हो जाते ह‰।
मgु य _ार के ऊपर िसंदरू से "वि"तक का िच*ह बना है यह िच*ह 9 अंगुल लंबा तथा 9 अंगल ु चौड़ा
होना चािहए घर म' जहा-ं जहां वा"तु दोषq वहां वहां यह िच*ह बनाया जा सकता है । इनके साथ साथ
िविभ*न अवसरq पर वा"तु पजू न एवं वा"तु शािं त कराते रहना चािहए । इस Lकार L"ततु इकाई म' गृह
दोष के िनवारण को समझ कर भवन म' वा"तु दोष को दरू करना चािहए ।
५.५ पाdरभािषक श†दाबली -
ि'कोणाकार भूखंड - िHकोण (िHभुज ) क• आकृ ित वाला भूखंड ।
शूपा3कार भूखंड – सपु े के आकार वाला भूखंड या भूिम ।
वा#तु भगं – िकसी िनमाFण को तोड़कर बनाना वा"तु भगं कहलाता है ।
दि•णावत3 - दि“ण िदशा क• ओर घूमा ह†आ होना ।
सूय3 वेध - भूखंड क• लंबाई पवू F-पि¦म म' अिधक हो एवं उ9र दि“ण म' कम चौडा हो एवं लंबाई
िलए ह†ए हो तो ऐसी भिू म को सयू F वेधीय भिू म कहते ह‰ ।

५.६ अsयास KlŠ के उpर-

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 201


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
अsयास Kl - 1
1-सrय, 2 –सrय , 3 – असrय , 4 - असrय, 5- सrय ।
अsयास Kl- 2
1- नौ िदन तक, 2 –ईशान कोण, 3 – ईशान कोण एवं आÀनेय कोण म' , 4 - यम,
5- "वि"तक िच*ह ।

५.७ संदभ3 }qथ सूची


(ट) मल ू लेखक – िवÃकमाF , स…पादक एवं टीकाकार –महिषF अभय काrयायन ,
िवÃकमFLकाशः(२०१३), चौखंबा सरु भारती Lकाशन, वाराणसी |
(ठ) मल ू लेखक – Ùीरामिनहोर ि_वेदी संकिलत, टीकाकार –डा ßàान*द िHपाठी एवं डा
रिव शमाF , वृह_ा"तमु ाला(२०१८ ) , चौखबं ा सरु भारती Lकाशन, वाराणसी |
(ड) मल ू लेखक – Ùीरामदैव€ , टीकाकार – Lो. रामच*±
पा;डेय,महु dतिF च*तामिणः(२००९) वा"तLु करण , चौख…बा कृ ²णदास अकादमी,
वाराणसी |
(ढ) मलू लेखक – Lो शक ु देव चतुवद— ी, भारतीय वा"तुशाv (वतFमान संदभF म' समk
प‡रशीलन ) (2004 ), Ùी लालबहादरु शाvी रा²âीय स"ं कृ त िव?ापीठ नव देहली ।

५.८ सहायक पाठ्यसाम}ी -


मयमतम् – मयमिु न
बृहrसंिहता – वराहिमिहर
वा"तु शाv – डा शािलनी खरे
वा"तुसारः – Lो. देवीLसादिHपाठी

५.९ िनबqधाyमक Kl
1. भिू म के Lमख
ु दोष एवं उनके िनवारण िलिखए ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 202


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
2. रसोईघर संबंधी दोष एवं सीढ़ी संबंधी दोष एवं उनके समाधान िलिखए।
3. िविभ*न िदशाओ ं के दोष एवं उनके उपाय िलिखए।
4. गृह दोष के सामा*य उपायq को िलिखए ।
5. L"तुत इकाई का सारांश अपने शnदq म' िलिखए ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 203


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
इकाई - ६ वा#तु शािqत
इकाई क‹ सरं चना-
६.१ L"तावना
६.२ उNे>य
६.३ वा"तुशाि*त
६.३.१- वा"तुपजू न का महrव
६.३.२ वा"तुपजू न कब कर'
६.३.३ वा"तु शांित हेतु पजू न सामाkी
६.३.४ वा"तु शांित िविध
६.३.५ सामा*य पजू ा िविध ( पंचाग पजू न )
६.३.६ िविभ*न मडं लq के चz
६.४ सारांश
६.५ पा‡रभािषक शnदाबली
६.६ अÐयास Lpq के उ9र
६.७ सदं भF k*थ सचू ी
६.८ सहायक पाठ्यसामkी
६.९ िनब*धाrमक Lp

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 204


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
६.१ K#तावना -
L"तुत इकाई का शीषFक वा"तु शांित है । इस इकाई के अsययन के पवू F आप सभी वा"तु शाv
के मgु य िस~ातं q से अवगत हो चक
ु े है । व"ततु ः वा"तु शाv म' वा"तु शानि"त का िवशेष महrव है
=यqिक मन²ु य जब भी गृह िनमाFण करता है तब उससे जाने या अनजाने म' कुछ न कुछ Hिु ट या दोष
अव>य हो जाते ह‰ उन दोषq के शमन एवं िनिमFत भवन आिद म' सख ु मय जीवन यापन हेतु वा"तु शांित
अव>य कराई जताई है । L"तुत इकाई के माsयम से हम वा"तु पजू न के महrव तथा वा"तु शािं त क•
सामा*य Lिzया से अवगत हqगे ।

६.२ उNेPय
L"तुत इकाई के अsययन के बाद आप –
Ø वा"तु शाv म' वा"तु पजू न के महrव से अवगत हqगे।
Ø वा"तु पूजन कब क• जाती है इसका €ान Lा° होगा ।
Ø वा"तु शांित क• िविध से अवगत हqगे ।
Ø वा"तु पूजन म' Lय£ु होने वाली सामkी का €ान होगा
Ø सामा*य पजू न क• िविध का €ान होगा ।
६.३ वा#तश
ु ािqत –
L"तुत इकाई म' हम वा"तु शांित Lिzया एवं इसके महrव को zमब~ तरीके से जान'गे।
६.३.१- वा#तुपूजन का महyव - वा"तु का ताrपयF िनवास योÀय संक`पना से है। हमारा शरीर पांच
मgु य पदाथœ से बना ह†आ होता है और वा"तु का स…ब*ध इन पाँचq ही तrवq से माना जाता है। कई
बार ऐसा होता है िक हमारा घर हमारे शरीर के अनक ु ू ल नह„ होता है तब यह हम' Lभािवत करता है
और इसे वा"तु दोष बोला जाता है। अ=सर हम महससू करते ह‰ िक घर म' =लेश रहता है या िफर हर
रोज कोई न कोई नक ु सान घर म' होता रहता है। िकसी भी कायF को पूरा करने म' बह†त सारी किठनाइयq
का सामना करना पड़ता है। घर म' मन नह„ लगता एक नकाराrमकता क• मौजदू गी महससू होती है।
इन सब प‡रि"थितयq के पीछे वा"तु संबंिध दोष हो सकते ह‰ । हम माने या न माने लेिकन वा"तुशाv
क• हमारे जीवन म' बह†त महrवपणू F भूिमका है। यह हर रोज हमारे जीवन को Lभािवत कर रहा होता
है। घर म' मौजदू इ*ह„ वा"तु दोषq को दरू करने के िलये जो पजू ा क• जाती है उसे वा"तु शािं त पजू ा
कहते ह‰ । मा*यता है िक वा"तु शांित पजू ा से घर के अंदर क• सभी नकाराrमक शि£यां दरू हो जाती
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 205
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
ह‰ और घर म' सख ु -समृि~ आती है। वा"तु शांित पूजा िदशाओ ं के देवता, Lकृ ित के पांच तrवq के
साथ-साथ Lाकृ ितक शि£यq और अ*य संबंिधत बलq क• पजू ा है । वा"तु शाv के िकसी भी Lकार
के दोष को दरू करने के िलए हम वा"तु शािं त करते ह‰, चाहे वह भिू म और भवन, Lकृ ित या पयाFवरण
हो । वा"तु शाv _ारा भवन क• संरचना म' बड़े बदलाव और िवनाश को रोकने के िलए पजू ा क• जाती
है । गृहLवेश पजू ा से पहले लोग वा"तु पूजा करते ह‰ ।
यः पज
ू येYा#तुमनqयभ¦yया न त#य दुःखं भवतीह िकिcचत्
जीवyयसौ वष3शतं सुखेन #वगg नरि#त ित कfपमेकम्
अथाFत जो ¢यि£ अन*य भि£ व Ù~ा के साथ वा"तु का पूजन करता है उसे कभी दःु ख Lा° नह„
होता और वह शतायु होकर क`प पयÖत "वगF म' वास करता है । वा"तु पजू ा का मन²ु यq और देवताओ ं
से सीधा सबं धं है । Lाचीन वेदq के अनसु ार वा"तु शाv एक िव€ान है जो िकसी ¢यि£ को लाभ Lा°
करने म' मदद करता है । एवं जो ¢यि£ वा"तु पूजन नह„ करता जो िकसी वा"तु शाvी सHू धार को
नेहीन बल ु ाता उसके अनुसार कायF व पूजन नह„ करता वह सात ज*मq तक कोडी होता है एवं नरक
का भागी बनता है । यथा –
वा#तुपूजािवहीनv सु'धारैिव3ना तथा
स…जqम भवेyकुि सततं नरकमÓजेत्
वा#तुपूजन के लाभ -

v खराब वा"तु के कुLभाव को कम करता है।


v आपके घर या कायाFलय के सभी कोनq को मंजूरी देता है।
v मानिसक शािं त देता है।
v सौभाÀय म' वृि~।
v इसके अलावा, यह एक ¢यि£ को अिधक बुि~मान बनाता है और उसके िदमाग से बीमार
िवचारq को साफ करता है।
v आपको और आपके प‡रवार को आsयािrमक आनदं देता है।
v िकसी भी नए घर म' Lवेश करने से पहले गृह वा"तु पूजन करवाया जाता है। गृह वा"तु पूजन
का Lभाव घर पर और घर म' रहने वाले लोगq के जीवन पर काफ• सकाराrमक पड़ता है। जो
लोग गृह वा"तु पजू न करवाते ह‰ उन लोगq के गृह शातं रहते ह‰ और उनका जीवन सखु से कट
जाता है।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 206


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
v गृह वा"तु पूजन का Lभाव घर म' रहने वाले हर सद"य पर पड़ता है और घर के हर सद"य को
जीवन म' कामयाबी िमलती है।
v गृह वा"तु पज ू न करवाने से लÎमी मां "थाई [प से आपके घर म' िनवास कर लेती ह‰ और
आपको कभी भी धन क• कमी नह„ होती है।
६.३.२ वा#तुपूजन कब कर) - वा"तु Lाि° के िलए अनˆु ान, भूिम पजू न, न„व खनन, कुआं खनन,
िशला*यास, _ार "थापन व गृह Lवेश आिद अवसरq पर वा"तु देव पजू ा का िवधान है । घर के िकसी
भी भाग को तोड़ कर दोबारा बनाने से वा"तु भंग दोष लग जाता है। इसक• शांित के िलए वा"तु देव
पजू न िकया जाता है । इसके अित‡र£ भी यिद आपको लगता है िक िकसी वा"तु दोष के कारण
आपके घर म' कलह, धन हािन व रोग आिद हो रहे ह‰ तो आपको नवkह शांित व वा"तु देव पजू न
करवा लेना चािहए । िकसी शभु िदन को वा"तु पजू न कराना चािहए । इसका मgु य उNे>य िनमाFण म'
िकसी भी Hिु ट और पृòवी क• Lाकृ ितक ऊजाF के Lवाह म' िकसी भी बाधा से बचना है। इसके अलावा,
ये बाधाएं आमतौर पर वा"तुदोष बन जाती ह‰ िजससे िनवािसयq म' मानिसक परे शानी हो सकती है।
हम' Lकृ ित और पयाFवरण _ारा नकाराrमक प‡रि"थितयq से बचने के िलए वा"तु शािं त करनी चािहए।
सामा*यत: िन…निलिखत अवसरq पर वा"तु पूजन करानी चािहये -

Ø नए भवन म' Lवेश करने के समय ।


Ø जब कोई पुराना घर खरीदता है ।
Ø कभी कोई ¢यि£ घर या ¢यावसाियक "थानq का नवीनीकरण करता है ।
Ø कमरे और इमारतq क• आतं ‡रक ¢यव"था म' Hिु टयां ।
Ø जब हम िनयिमत [प से 10 साल से रह रहे ह‰ ।
Ø लंबे समय तक िवदेश याHा से वापस आने के बाद ।
Ø सबसे पहले, लोग इसे एक सरं चना के भीतर वा"तदु ोष को दरू करने के िलए करते ह‰ ।
Ø वे माफ• माँगने के िलए भी करते ह‰ यिद भवन के िनमाFण के दौरान Lकृ ित, पौधq या पेड़q के
िकसी भी जीव को न• कर िदया गया हो ।
Ø भवन के रहने वालq को परेशान करने वाली िकसी भी ताकत या ऊजाF के ग"ु से को शांत
करने के िलए।
Ø अÒछे "वा"òय और धन के िलए वा"तुपÂु ष का आशीवाFद Lा° करना ।
Ø संरचना का सही उपयोग करने के िलए ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 207


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
६.३.३ वा#तु शांित हेतु पज
ू न साम}ी -
१.र£च*दन, २. Ãेतच*दन, ३. श~ ु क"तूरी के शर, ४. रोरी, ५. अबीर, ६. ब=ु का, ७. नारा (
र£सHू ), ८. िस*दरू , ९. कपूर, १०. Âई, ११. धूप गÀु गुल, १२. सपु ारी-१५०, १३. पंचमेवा, १४.
पान बीड़ा, १५. लÿग, १६. इलायची, १७. जािवHी, १८. गरी का गोला-५, १९. पीली सरसq,
२०. ना‡रयल ( पूणाFह†rयथF ), २१. श~ ु मध-ु १०० kाम, २२. दीपशलाका २३. रंग-लाल, पीला,
हरा, ध¯ू ,पीला, काला, अथवा ह`दी क• बुकनी, म'हदी क• बुकनी, सÂु - आटी का बीया, मंगू क•
दाल, मसरू क• दाल, गेहd,ँ २४. प²ु प, प²ु पमाला,२५. पÍच प`लव-वट, पीपल, पाकड़, गल ू र तथा
आम क• डािलया, २६. नवkह-सिमधा-यदार, पलास,खैर, िचिचड़ा, पीपल,गूलर, समी, २७.
वा"तुदवे -सिमधा ( य€ीय काˆ ) - वट, पीपल एवं पाकड़ क• िबना चीरी किनिˆकामाH मोटी,
सीधी, िबना घनु ी Lादेश माH ल…बी-६००। २८. िब`व-५ या िब`वबीज-५, २९. ऋतफ ु ल-के ला,
आम, जामनु , अंगूर, सेव, स*तरा, नारंगी, दािडम (अनार), अम[द, कसे[,लीची आिद ( जो
उपलnध हो)। ३०. ना*दीÙा~ाथF-आदी, मनु =का, आँवला, वvोपवv-८-८, य€ोपवीत-८
जोड़ा, Ãेतप²ु प, गोदÀु ध, जव।, ३१. य€कायाFथF-कुश-१५० तथा दवू ाÖकुर, ३२. आचायFवरणाथF-
िविश• धोती, दपु Ÿा, अंगोछा, खड़ाऊ, ±ा“ क• माला, जपमाला, जनेऊ, क…बलासन, लोटा,
िगलास । अ*य ßाàणवरणाथF-पंचपाH, आचमनी । ३३. देवताओ ं के अपFणाथF वv- Lधान
देवता के िलए-धोती, दपु Ÿा ( रे शमी ) । वेदी के िलए-वv, लाल वv,पताका बड़ी-१. झ;डी—
लाल, पीली, हरी, Ãेत, कृ ²ण । तथा झ;डी लगाने के िलए ड;डा ।
अsयासKl – 1
िन…निलिखत Lpq म' सrय या असrय का चयन क•िजये -
16. वा"तु पूजन कराने से वा"तु ज*य दोषq का शमन होता है ।
17. गृह Lवेश म' वा"तु पूजन नह„ करानी चािहए ।
18. परु ाने घर खरीदने पर वा"तु पूजन कराई जानी चािहए ।
19. पवू F एवं उ9र के मsय वाय¢य कोण होता है ।
20. लबं े समय से िवदेश याHा के बाद घर म' Lवेश करते समय वा"तु पूजन कराई जानी चािहए।
६.३.४ वा#तु शांित िविध39 - वा"तु शाv के अनुसार जब गृह का िनमाFण पणू F हो जाए तब उसम'
रहने से पवू F वा"तश
ु ातं ी अव>य कर आनी चािहए एवं शभु महु तd ाF देखकर गृह Lवेश करना चािहए िबना

39
वा"तुसार डा शािलनी खरे –

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 208


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
वा"तश ु ांित कराए भवन म' कभी भी िनवास नह„ करना चािहए । गृह Lवेश के िदन से पवू F िकसी शभु
िदन म' गृह"वामी अपनी पrनी के साथ उ9रािभमख ु हो आसन पर बैठे एवं सवFLथम "वयं क• शिु ~
कर' अथवा िकसी योÀय ßाàण _ारा यह कृ rय करावे एवं शाvो£ मHं का उÒचारण कर' । तrप¦ात्
आसन क• शिु ~ कर' । उसके बाद अपनी धमF भायाF को दाँए बैठाकर ितलक लगाकर गाँठ जोड़ देना
चािहए । िफर जल से ३ बार आचमन कर' । िफर ह"त शिु ~ कर' ह"त शिु ~ के बाद दीपक जलाकर
चावल क• तेड़ी बनाकर कलश के दाँए तरफ रख' । िफर प²ु प, अ“त, कुश, ±¢य, सपु ारी, एवं जल
हाथ म' लेकर संक`प लेव' एवं उसे गणेश जी के पास रख द'। तrप¦ात् िदk“ा हेतु एक दोने म' पीली
सरसq, अ“त, ±¢य एवं तीन धागे का पीला रंगा ह†आ कÒचा सतू व कलावा बाँए हाथ पर रखकर
उसको दाँए हाथ से ढक द' िफर आचायF _ारा शाvो£ मHं ोÒचारण करते ह†ए दसो िदशाओ ं म' पीली
सरसq व अ“त को छोड़ते जाँए । बचे ह†ए को गणेश जी के स…मख ु रख द'। कलावे को आचायF _ारा
अपने दाँए हाथ म' एवं पrनी के बाँए हाथ म' बँधवा ल' । उसके बाद "वि"तवाचन कह'गे िजसे पूजा कताF
_ारा बाँए हाथ पर अ“त रख कर दाँए हाथ से गणेश जी के सम“ छोड़ते जाँएगे । "वि"तवाचन के
प¦ात िकसी भी कायF क• िनिवF•न समाि° हेतु सवFLथम गणपित पजू न िकया जाता है । गणपित पजू न
के प¦ात कलश "थापना कर' गे च*दन, रोली इrयािद से अ•दल कमल बनाकर उसके ऊपर कलश
को शाvो£ मHं ोÒचारण के साथ "थािपत कर' गे । इस िzया म' पहले भूिम का "पशF िफर कलश का
"पशF करके कलश म' जल भर' गे । र“ा लपेट'गे । कलश म' प²ु प, पचं प`लव इrयािद लगाँएगे कलश म'
पंचरrन पूंगीफल स°मृितका, Ùीफल इrयािद रखने के प¦ात सभी देवताओ का आवाहन कर' गे िफर
पंचोपचार या षोडशोपचार िविध से पूजा कर LाथFना कर' गे । कलश "थापना के प¦ात् नवkह क•
"थापना क• जाती है । इसम' Ãेत वv पर नौ ख;ड करके मsय म' सयू F-सयू F से दाँए मंगल, अिÀन कोण
म' च*±मा, ईशान म' बधु उ9र म' गÂु पवू F म' शz
ु , सयू F से पि¦म म' शिन, नैऋrय म' राह† वाय¢य म' के तु
को "थािपत कर' । इसके प“ात संक`प लेकर पंचोपचार से नवkह क• पूजा कर अ“त आिद
मHं ोÒचारण कर पंचोपचार या दशोपचार से पूजन कर अ“त छोड़े । प²ु प छोड़े । इतना करने के प¦ात्
गौयाFिदमातृका पजू न करना चािहए, इसम' वेदी पर लाल वv िबछा कर १६ कोˆक बनाए जाते ह‰
िजनक• zमश मंHी _ारा आवाहन "थान एवं षोडश या दशोपचार से पजू न िकया जाता है । इसके
प¦ात् स°घृतमातृका पूजन करने का िवधान है । इसम' Ãेत वv पीठे िबछाकर उस पर घी व िस*दरू
को िमलाकर ७ रे खा ख„चते ह‰ । सातq रे खाओ ं पर _ारा पजू न अचFन कर' गे। इसी के साथ एक अ*य
"थान पर अ*य सभी देवताओ ं का िजनका भी sयान आव' आवाहन व पजू न कर' गे । पजू न कर
प²ु पांजिल से LाथFना क• । तrप¦ात् मgु य_ार के कलशािद कदली के खंभे, ब*दनवार क• गंध मgु य

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 209


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
धपू ािद से पंचोपचार पजू न कर' । तrप¦ात् वÂण देवता का आवाहन कर नलपजू ा कर' । मHं _ारा
पंचोपचार पूजन कर' । िफर LाथFना कर वा"तुदवे का पूजन सभी देवताओ ं के नाम के साथ कर' । यह
षोडेशोपचार से होनी चािहए। इसके प¦ात् सrयनारायण भगवान क• कथा करानी चािहए । कथा के
बाद हवन हो । हवन म' सभी देवी देवताओ ं व वा"तुपÂु ष के सभी नामq से आह†ित देनी चािहए । अ*त
म' पूणाFह†ित सख
ू े ना‡रयल से करनी चािहए । हवन क• राख को म"तक गदFन व बाह†, Ûदय म' लगाना
चािहए । इसके बाद LाथFना कर Lदि“णा कर' शािं त पाठ से अिभिसचं न कर' । गोदान का संक`प एवं
आचायF क• दि“णा, का संक`प ल' । ßाàण भोज का संक`प ल' । तrप¦ात िवसजFन कर आसन के
नीचे जल िगराकर उसे म"तक व च“ओ ु ं म' लगाव' । उसके बाद आचायF जी यजमान को ितलक
लगाव'-र“ा बाँधे पrनी को ना‡रयल व फल गोद म' डालकर गोदी भर' िफर आश¾वचन कह' । ±¢य रख'
। गृह"वामी के सम“ कुल देवता का कलश एवं गृह "वािमनी के सम“ कुल देवी का कलश रखकर
षोडशोपचार िविध _ारा पूजन कराव' । दसू रे िदन "वयं उस कलश को उठाकर सपrनीक गीत, वा?,
आिद के साथ अपने गृह म' कुल देवता क• "थापना कर' । गृह"वामी पिविH धारण कर आचमन करे
एवं आचायF जी "वि"तवाचन कर सक ं `प ल' । िविध पवू क
F शाvो£ मHं q _ारा आचायF जी उपरो£
सभी िzयाओ ं को स…प*न करा कर “मा LाथFना अव>य कर' । तrप¦ात गृह"वामी के हाथ से कुश जल
व पूँगीफल _ारा संक`प कर ßाàणq को दि“णा द' ।
(Lrयेक पजू ा िविध म' आचायF जी योÀय आचायF _ारा करायी जानी चािहए । कमF का;ड का िवषय है
यहाँ पजू ा िविध सामाqय Iपा म) बताई गई है ।)
वा#तु शािqत म) िद¦पाल एवं •वजा िवचार -वा"तु शाि*त म' जहाँ पर वेदी बनायी गई है वह„ पर
कलश "थापना करके उस पूणF पाH के ऊपर िदÀपालq क• पूजा करनी चािहए । दशो िदगपाल क•
अkिलिखत मHं q _ारा पजू ा करनी चािहए।
१ ॐ लं इ*±ाय सप‡रवाराय नमः।
२ ॐ यं यमाय सप‡रवाराय नमः ।
३ ॐ वं व[णाय सप‡रवाराय नमः ।
4 ॐ कुबेराय सप‡रवाराय नमः।
5 ॐ बं ßàणे सप‡रवाराय नमः ।
६ ॐ वां वÏने सप‡रवाराय नमः ।
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 210
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
7 ॐ नै नैऋrयाय सप‡रवाराय नमः ।
8 ॐ वां वायवे सप‡रवाराय नमः ।
९ ॐ ऐशानाय सप‡रवाराय नमः ।
१० ॐ अन*ताय सप‡रवाराय नमः ।
इ*ह„ मHं ो _ारा पंचोपचार अथवा दशोपचार से पजू ा करने के प¦ात् ऐसा कह'
अनया पूजया दशिद¦पालदेवताः Kीयqताम,्
Kसqना वरदा भवqतु कfयाणम#तु ।
इसके बाद अ“त एवं प²ु प समिपFत कर द' ।

•वजा िवचार-पजू न के बाद दशो िदशाओ ं म' sवजा लगायी जाती है िजनका अलग अलग रंग होता
है ।

ईशान कोण (शंकर ) – लाल / सफे द


पवू F (इ*± ) – पीला
अिÀन कोण ( अिÀन ) - लाल
दि“ण ( यम ) - काला
नैऋrय ( िन‡रित) - काला
पि¦म (वÂण ) - सफे द
वाय¢य ( वायु ) - ध¯ू वणF/ हरा/ पीला
उ9र ( कुबेर, सोम ) - सफे द
पवू F व ईशान के मsय (ßàा ) – लाल
पि¦म व नैऋrय के मsय (अनंत ) – नीला / हरा
वा#तु शांित म) वा#तु मंडल का िवचार -

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 211


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
वा"तु मंडल के संदभF म' पवू F म' ही िव"तृत [प म' बताया जा चुका है। पर*तु िफर भी यहाँ सं“ेप म'
उ`लेख िकया जा रहा है, गृह के वा"तु शांित म' ८१ पद म;डल बनाया जाता ह‰ । म;डल के सभी
५३ (45 मgु य देवता व 8 अ*य देवता ) देवताओ ं का िविधवत पजू न िकया जाता है । सभी का
नाम लेकर जैसॐ े भभू Fवु : "व: िशखने नमः ॐ भूभFवु : "व: पजF*ते नमःॐ भूभुFव: "व: जय*ते
नमःॐ भूभFवु : "व: इ*±े नमः
........................ आिद के माsयम से पजू न िकया जाता है ।
वा#तु बिल िवधान - वा"तु म;डल के सभी देवताओ ं क• िभ*न-िभ*न खा? पदाथœ से बिल (भोजन) दी
जाती है जैसे -

देवता बिल देवता बिल


१. अिÀन घृतय£
ु नैवे? २७. वासिु क घी
२. पजF*य घृतय£ु ओदन २८. मगंू और ओदन
भ`लाटक
३. जय आटे का कछुआ २९. सोम घृत, खीर
४. इ*± आटे का व! ३०. भग साठी के चावलक• पीठी
५. सयू F स9ू ३१. अिदित पोिलका
६. सrय घी, गेहdँ ३२. िदित परू ी
७. भृश अ*न ३३. यम दधू

८. अ*तरी“ पड़ू ी ३४. दही


आपवrस
९. वायु स9ू ३५. सािवHी लड्डू और कुश िमिÙत ओदन

१०.पूषा लावा ३६. सिवता गड़ु िमिÙत पआ



११. िवतथ चना, ओदन ३७. जय घृत,च*दन
१२. बृहत् “H मध,ु अ*न ३८. लाल च*दन, खीर
िवव"वान्
१३. यम फल का गूदा और ३९. इ*± घृत एवं ह‡रताल य£
ु ओदन
ओदन
१४. ग*धवF सगु ि*धत ओदन ४०. िमH घृत िमिÙत ओदन

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 212


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
१५. भृङ्गराज भृङ्िगका ४१. ± घृत और खीर
१६. मृग जौ का स9ू ४२. कÒचे और पके फल का गदू ा
राजयÎमा
१७. िपतर िखचड़ी ४३. पृòवीधर मासं ख;ड और कु…हड़ा
१८. दौवा‡रक द*तकाˆ तथा आटे ४४. अयFमा श=कर, खीर, पÍचपाक जौ, ितल,
क• बिल अ“त, चÂ
१९. सkु ीव पआ
ू ४५. ßàा िविवध Lकार के भÎय-भो›य
पदाथF
२०. प²ु पद*त खीर ४६. चरक• पãके शर य£
ु ओदन घृत
२१. वÂण सवु णFमय पीठी ४७. िवदारी िमिÙत ओदन तथा ह‡र±ा य£ु
ओदन
२२. असरु मिदरा ४८. पतू ना दही,ओदन,हड्िडयq के टुकड़े
२३. शेष घृतय£
ु ओदन ४९. खीर
पापरा“सी
२४. पापयÎमा जौ का अ*न
२५. रोग घी का लड्डू
२६. नाग प²ु प, फल

वा#तु शांित हेतु शंकु रोपण िविध - शंकु एक िपरािमड के आकार का यंH होता है िजसे िशला*यास
से पवू F भिू म के ßà "थान पर नीचे भिू म पर लगा देना चािहए यह इस Lकार से लगे िक शंकु का
ऊपरीिब*दु ßà "थान के ठीक मsय म' ही पड़े । इस Lकार से करने से भवन क• Lाकृ ितक आपदाओ ं
से भी र“ा होती है जैस-े भक
ू …प, िबजली, बाढ़, आँधी, तूफान आिद एवं वा"तदु ोष को भी दरू करता
है । इस Lकार घर म' धनाrमक ऊजाF म' वृि~ होती है शंकु व िपरािमड के "थान पर इसी Lकार से हम
Ùी यHं क• भी "थापना कर सकते ह‰ जो वा"तु दोष को दरू करता है। (गृह Lवेश के समय गृह के चारq
कोणq पर क•ल का रोपण भी िकया जाता है िजससे गृह क• सभी Lकार से सरु “ा रहे ।)
गृह Kवेश िविध – वा"तु शांित के बाद गृह Lवेश पूजा करनी चािहए । गृह Lवेश पूजा िविध zम
िन…नवत है –
शाि*त पाठ, Lधान सक ं `प, गणेश-अिं बका का पजू न, कलश पजू न , प;ु याह वाचन, स°घृतमातृका
पजू न , आय²ु य मHं जप, नंदी Ùा~, आचायाFिद वरण, अिÀन "थापन, चारq कोणq पर क•ल का "थापन
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 213
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
, क•ल पर उड़द दिध क• बिल, वा"तु चz "थापन, वा"तु चz पजू न, दश –िद=पाल पजू न, नवkह
"थापन, नवkह पूजन, नवkह का हवन, िद=पाल का हवन, वा"तु पÂु ष के मHं q _ारा हवन, िHसHू ी
धागा (लाल, काला , सफे द ) गृह के चारq तरफ बाधं े । बाधं ते समय अिवÒछ*न, दÀु ध धारा चारq
कोणq पर िगराते जाएँ, गृहोपकरणq का पजू न, देव पजू न ।

6.3.5 सामाqय पूजा िविध - पजू न म' षोडशोपचार या पÍचोपचार अचFन का zम सामा*यतः
Lचिलत है । अतः तrसबंधी मंH का िववरण िकया जा रहा है । पÂु षस£ ू के षोडश मHं और [±स£ू
के नम"ते ±. आिद षोडश मHं q से भी सभी देव पूजन म' अचFन करने क• सामा*य िविध है। sयात¢य
है िक पजू न के इस Lकरण के अÐयास से संक`प िवशेष का प‡रवतFन करके िविवध पजू ा के आयोजन
सामा*य [प से कराये जा सकते ह‰। Lrयेक पजू ारंभ के पवू F िन…नािं कत आचार-अव>य करने चािहये-
आrमशिु ~, आसन शिु ~, पिवH धारण, पृòवी पजू न, संक`प, दीप पूजन, शंख पजू न, घंटा पजू न और
"वि"तवाचन तrप¦ात् ही देव पजू न Lार…भ करना चािहए। शभु मूहdतF म' श~ ु वv धारण करके यजमान
पजू ा के िलए म;डप म' आये। यथासभं व श~ ु Ãेत वv धारण करना उ9म होता है। तदन*तर आrम
शिु ~ के िलए आचमन कर' ।
ॐ के शवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः। तीन बार आचमन कर आगे िदये
मHं पढ़कर हाथ धो ल'। ॐ िव²णवे नमः।। पनु ः बाय' हाथ म' जल लेकर दािहने हाथ से अपने ऊपर
और पजू ा सामkी पर िन…न Äोक पढ़ते ह†ए िछड़क' ।
ॐ अपिवHः पिवHो वा सवाFव"थां गतोऽिप वा। यः "मरे त् प;ु डरीका“ं स बाçाÐय*तरः शिु चः।।
ॐ प;ु डरीका“ः पनु ात,ु ॐ प;ु डरीका“ः पनु ातु ॐ प;ु डरीका“ः पनु ात।ु
आसन शिु ~-नीचे िलखा मंH पढ़कर आसन पर जल िछड़के -
ॐ पृिòव! rवया धृता लोका देिव ! rवं िव²णनु ा धृता। rवं च धारय मां देिव ! पिवHां कुÂ
चासनम।् ।
िशखाबqधन- ॐ मान"तोके तनये मानऽआयिु ष मानो गोषु मानोऽअÃेषरु ी‡रषः। मानो¢वीरान्
±भािमनो¢वधीहFिव²म*तः सदिमUवा हवामहे ।
ॐ िच±ूिपिण महामाये िद¢यतेजः समि*वते।
ितˆ देिव िशखाब~े तेजोवृि~ं कु²व मे।।
कुश धारण- िन…न मHं से बाय' हाथ म' तीन कुश तथा दािहने हाथ म' दो कुश धारण कर' । ॐ
पिवHो"थो वै²ण¢यौ सिवतु¢वFः Lसवऽउrपनु ा…यिÒछ±ेण पिवHोण सयू F"य रि>मिभः। त"य ते पिवHपते

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 214


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
पिवHपतू "य यrकामः पुनेतÒछके यम।् पुनः दाय' हाथ को पृòवी पर उलटा रखकर ॐ पृिथ¢यै नमः इससे
भूिम क• पÍचोपचार पजू ा का आसन शिु ~ कर' । पनु ः ßाàण यजमान के ललाट पर कंु कुम ितलक
कर' ।
यजमान ितलक - ॐ आिदrया वसवो ±ा िवÃेदवे ा मÂ"णाः। ितलक*ते LयÒछ*तु
धमFकामाथFिस~ये।
उसके बाद यजमान आचायF एवं अ*य ऋिrवजq के साथ हाथ म' प²ु पा“त लेकर "वrययन पढ़े ।
ॐ आ नो भ„ाः aतवो यqतु िवiतोऽद†धासोऽ परीतास उिzदः।
देवा नो यथा सदिमद् वृधे असqनKायुवो रि•तारो िदवे िदवे।।
देवानां भ„ा सुमितऋ3जूयतां देवाना ◌ँ राितरिभ नो िनवत3ताम्।
देवाना ◌ँ सrयमपु सेिदमा ¯वयं देवा न आयःु Kितरqतु जीवसे।।
ताqपूव3या िनिवदा हoमहे वयं भगं िम'ामिदितं द•मिŸधम।्
अय3मणं व\ण ◌ँ सोममिiना सर#वती नः सुभगा मय#करत्।।
तqनो ¯वातो मयोभु वातु भेषजं तqमाता पिृ थवी तिyपता “ौः।
तद् }ावाणः सोमसुतो मयोभुव#तदिiना शृणुतं िध‡0या युवम्।।
तमीशानं जगत#त#थुष#पितं िधयिcजqवमवसे हoमहे वयम्।
पषू ा नो यथा वेदसामसद् वध ृ े रि•ता पायुरद†धः #व#तये।।
#वि#त न इq„ो वृ°Ÿवाः #वि#त नः पूषा िवiवेदाः।
#वि#त न#ताÕयो अdर[नेिमः #वि#त नो बृह#पितद3धातु।।
पृषदiा म\तः पृिlमातरः शुभं यावानो िवदथेषु ज¬मयः।
अि¬निज3Öा मनवः सरू च•सो िवiे नो देवा अवसागमिqनह।।
भ„ं कणgिभः शृणुयाम देवा भ„ं पPयेमा•िभय3ज'ाः।
ि#थरै रङ्गै#त[ु › वा ◌ँ स#तनुिभ¯य3शेमिह देविहतं यदायुः।।
शतिमqनु शरदो अिqत देवा य'ा नvaा जरसं तनूनाम।्
प'ु सो य'ा िपतरो भविqत मा नो म•या रीdरषतायुग3qतोः।।
अिदित“×रिदितरqतdर•मिदितमा3ता स िपता स पु'ाः।
िवiे देवा अिदितः पcचजना अिदितजा3तमिदितज3िनyवम।् ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 215


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
ॐ ?ौः शाि*तर*त‡र“ Ủ शाि*तः पृिथवी शाि*तरापः शाि*तरोषधयः शाि*त¢वFन"पतयः शाि*तिवFÃेदवे ाः
शाि*तßFàशाि*तः सवÖ Ü शाि*तः शाि*तरे व शाि*तः सामा शाि*तरे िध।। यतो यतः समीहसे ततो नोऽअभयं
कु[। शं नः कुÂ LजाÐयोऽभयं नः पशnु Ðयः।। सश
ु ाि*तभFवतु ।।
हाथ म' िलए प²ु प और अ“त गणेश एवं गौरी पर चढ़ा द'। पनु ः हाथ म' प²ु प अ“त आिद लेकर मंगल
Äोक पढ़े।
Ùीम*महागणािधपतये नमः। लÎमीनारायणाÐयां नमः। उमामहेÃराÐयां नमः। वाणीिहर;यगभाFÐयां नमः।
शचीपरु *दराÐयां नमः। मातािपतृचरणकमलेÐयो नमः। इ•देवताÐयो नमः। कुलदेवताÐयो नमः। kामदेवताÐयो
नमः। वा"तुदवे ताÐयो नमः। "थानदेवताÐयो नमः। सव—Ðयो देवेÐयो नमः। सव—Ðयो ßाàणेÐयो नमः।
िवiेशं माधवं ढुि0ढं द0डपािणं च भैरवम् ।
वqदे काशØ गुहां गङ्गां भवानØ मिणकिण3काम् ।। 1।।
वaत0ु ड ! महाकाय ! कोिटसूय3समKभ ! ।
िनिव3@नं कु\ मे देव ! सव3कायgषु सव3दा ।। 2।।
सुमुखvैकदqतv किपलो गजकण3कः ।
ल‚बोदरv िवकटो िव@ननाशो िवनायकः ।। 3।।
धू•के तगु 3णा•य•ो भालचq„ो गजाननः ।
Yादशैतािन नामािन यः पठे ˜छृणुयादिप ।। 4।।
िव“ार‚भे िववाहे च Kवेशे िनग3मे तथा ।
सङ्}ामे सङ्कटे चैव िव@न#त#य न जायते ।। 5।।
शु¦ला‚बरधरं देवं शिशवणx चतभ
ु 3ुजम् ।
Kसqनवदनं •यायेत् सव3िव@नोपशाqतये ।। 6।।
अभीि,सताथ3-िस°îथx पूिजतो यः सुराऽसुरैः ।
सव3िव@नहर#त#मै गणािधपतये नमः ।। 7।।
सव3मङ्गलमाङ्गfये िशवे सवा3थ3सािधके ! ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 216


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
शर0ये 'य‚बके गौdर नारायिण ! नमोऽ#तु ते ।। 8।।
सव3दा सव3कायgषु नाि#त तेषाममङ्गलम् ।
येषां •िद#थो भगवान् मङ्गलायतनो हdरः ।। 9।।
तदेव ल¬नं सिु दनं तदेव ताराबलं चq„बलं तदेव ।
िव“ावलं दैवबलं तदेव लhमीपते तेऽङ्िÍयगु ं #मरािम।। 10।।
लाभ#तेषां जय#तेषां कुत#तेषां पराजयः ।
येषािमqदीवरPयामो •दय#थो जनाद3नः ।। 11।।
य' योगेiरः कृ‡णो य' पाथª धनुध3रः ।
त' Ÿीिव3जयो भिू तÃ\् वा नीितम3ितम3म ।।12।।
अनqयािvqतयqतो मां ये जनाः पय3ुपासते ।
तेषां िनyयािभयुšानां योग•ेमं वहा‚यहम् ।। 13।।
#मृतेः सकलकfयाणं भाजनं य' जायते ।
प\ु षं तमजं िनyयं §जािम शरणं हdरम् ।। 14।।
सवg‡वार‚भकायgषु 'यि•भुवनेiराः ।
देवा िदशqतु नः िसि°ं §´ेशानजनाद3नाः ।। 15।।
हाथ म) िलये अ•त-प‡ु प को गणेशाि‚बका पर चढ़ा द)।
सक
ं fप - दािहने हाथ म' जल, अ“त, प²ु प और ±¢य लेकर सक
ं `प करे ।
ॐ िव²णिु वF²णिु वF²णःु ॐ "वि"त Ùीम*मक
ु *दसिÒचदान*द"या€या LवतFमान"या? ßàणो ि_तीये पराध—
ं rक`पानां मsये अ•मे ÙीÃेतबाराहक`पे
एकपÍचाश9मे वष— Lथममासे Lथमप“े Lथमिदवसे _ािHश
"वाय…भवु ािदम*वतराणां मsये स°मे वैव"वतम*व*तरे कृ त-Hोता-_ापर- किलस€ं ानां चतुयुFगानां मsये वतFमाने
अ•ािवश
ं िततमे किलयगु े तrLथमचरणे तथा पÍचाशrकोिटयोजनिव"तीणF-
भमू ;डला*तगFतस°_ीपमsयवितFिन ज…बू_ीपे तHािप Ùीगङ्गािदस‡रिÓः पािवते परम-पिवHे भारतवष—
आयाFवताF*तगFतकाशी-कु“ेH-प²ु कर-Lयागािद-नाना-तीथFय£
ु कमFभमू ौ मsयरे खाया मsये अमक
ु िदÀभागे

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 217


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
अमक
ु “ेHे ßàावताFदमुकिदÀभागा- वि"थतेऽमक
ु जनपदे त›जनपदा*तगFते अमक
ु kामे
Ùीगङ्गायमनु योरमक
ु िदÀभागे ÙीनमFदाया अमुकLदेशे देवßाàाणानां सि*नधौ Ùीम*नृपितवीरिवzमािदrय-
समयतोऽमक
ु संgयाप‡रिमते LवतFमानवrसरे Lभवािदषिˆस…वrसराणां मsये अमक
ु नाम स…वrसरे ,
अमक
ु ायने, अमक
ु गोले, अमक
ु ऋतौ, अमक
ु मासे, अमक
ु प“े, अमक
ु ितथौ, अमक
ु वासरे ,
यथांशकलÀनमहु तd Fन“Hायोगकरणाि*वत.अमक
ु रािशि"थते Ùीसयू —, अमक
ु रािशि"थते च*±े, अमक
ु रािश"थे
देवगरु ौ, शेषेषु kहेषु यथायथारािश"थानि"थतेष,ु सrसु एवं kहगणु िविश•ेऽि"म*शभु “णे
अमक
ु गोHोऽमक
ु श…माF वमाF-ग°ु -दास सपrनीकोऽहं Ùीअमक
ु देवताLीrयथFम् अमक
ु कामनया ßाàण_ारा
कृ त"यामुकम*Hपरु ¦रण"य सङ्गतािस~îथF- ममक
ु संgयया प‡रिमतजपदशाश
ं -होम-तNशांशतपFण-तNशांश-
ßाàण-भोजन [पं कमF क‡र²ये।
अथवा –
ममाrमनः Ùिु त"मृितपरु ाणो£फलLाwrयथÖ सकुटु…ब"य सप‡रवार"य ि_पदचतु²पदसिहत"य सवाF‡र•िनरसनाथÖ
सवFदा शभु फलLाि°मनोिभ- लिषतिसि~पवू Fकम् अमुकदेवताLीrयथÖ होमकमाFहं क‡र²ये। अ“त सिहत जल
भिू म पर छोड़'।
पनु ः जल आिद लेकर- तदङ्गrवेन िनिवFsनतािस~îथÖ Ùीगणपrयािदपजू नम् आचायाFिदवरणÍच क‡र²ये।
तHादौ दीपशख
ं घ;टा?चFनं च क‡र²ये।
इसके बाद कमFपाH म' थोड़ा गंगाजल छोड़कर ग*धा“त, प²ु प से पजू ा कर LाथFना कर' ।
ॐ गङ्गे च यमनु े चैव गोदाव‡र! सर"वित!।
न…मFद!े िस*धु कावे‡र! जलेऽि"मन् सि*निधं कुÂ।।
अि"मन् कलशे सवाFिण तीथाF*यावाहयािम नम"करोिम।
कमFपाH का पजू न करके उसके जल से सभी पजू ा व"तुओ ं को स„चे।
घृतदीप-(eयोित) पूजन-

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 218


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
विNदैवrयाय दीपपाHय नमः-से पाH क• पजू ा कर ईशान िदशा म' घी का दीपक जलाकर अ“त के
ऊपर रखकर ॐ अिÀन››यÜित››योितरिÀनः "वाहा सयू Ü ››योित››योितः सयू Fः "वाहा । अिÀन¢वFÒचÜ
››योित¢वFÒचFः "वाहा सयू Ü¢वचÜ››योित¢वFÒचFः "वाहा ।। ››योितः सäू यFः सäू यÜ ››योितः "वाहा।
भो दीप देव[प"rवं कमFसा“ी çिव•नकृ त् । यावrपजू ासमाि°ः "या9ावदHा ि"थरो भव।।
ॐ भभू वFु ः "वः दीप"थदेवतायै नमः आवाहयािम सवÜपचाराथ— ग*धा“तप²ु पािण समपFयािम नम"करोिम।
शंखपूजन - शंख को च*दन से लेपकर देवता के वाय„ ओर प²ु प पर रखकर
ॐ शख
ं ं चq„ाक3 दैवyयं व\णं चािधदैवतम।्
पृ े Kजापितं िव“ाद}े गङ्गासर#वती।।
'ौलो¦ये यािन तीथा3िन वासदु वे #य चा¨या।
शंखे ित िqत वै िनyयं त#मा˜छंखं Kपूजयेत।् ।
yवं परु ा सागरोyपqनो िव‡णनु ा िवधतृ ः करे ।
निमतः सव3देवैv पाÚजqय! नमोऽ#तुते।।
पाÍचज*याय िवãहे पावमानाय धीमिह त*नः शख
ं ः Lचोदयात।् ॐ भभू वF ः "वः शख
ं "थदेवतायै नमः
शंख"थदेवतामावाहयािम सवÜपचाराथ— ग*धप²ु पािण समपFयािम नम"करोिम। शंख मु±ा कर' ।
घ0टा पज
ू न-ॐ सवFवा?मयीघ;टायै नमः,
आगमाथ3qतु देवानां गमनाथ3qतु र•साम।्
कु\ घ0टे वरं नादं देवता#थानसिqनधौ।।
ॐ भभू वFु ः "वः घ;टा"थाय गÂडाय नमः गÂडमावाहयािम सवÜपचाराथ— ग*धा“तप²ु पािण समपFयािम।
गÂडम±ु ा िदखाकर घ;टा बजाऐ।ं दीपक के दािहनी ओर "थािपत कर द'। ॐ ग*धवFदवै rयाय धपू पाHाय नमः
इस Lकार धपू पाH क• पजू ा कर "थापना कर द'।
गणेश गौरी पूजन -हाथ म' अ“त लेकर-भगवान् गणेश का sयान-
गजाननं भूतगणािदसेिवतं किपyथज‚बूफलचा\भ•णम।्
उमासुतं शोकिवनाशकारकं नमािम िव@नेiरपादपङ्कजम।् ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 219


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
गौरी का •यान -
नमो दे¯यै महादे¯यै िशवायै सततं नमः।
नमः Kकृyयै भ„ायै िनयताः Kणताः #म ताम।् ।
Ÿी गणेशाि‚बकाsयां नमः, •यानं समप3यािम।
गणेश का आवाहन-
हाथ म' अ“त लेकर ॐ गणानां rवा गणपित ◌ँ हवामहे िLयाणां rवा िLयपित ◌ँ हवामहे िनधीनां rवा
िनिधपित ◌ँ हवामहे वसो मम। आहमजािन गभFधमा rवमजािस गभFधम।् ।
एçेिह हेर…ब महेशपHु ! सम"तिव•नौघिवनाशद“ !।
माङ्ग`यपजू ाLथमLधान गृहाण पजू ां भगवन् ! नम"ते।।
ॐ भभू वFु ः "वः िसि~बुि~सिहताय गणपतये नमः, गणपितमावाहयािम, "थापयािम, पजू यािम च।
हाथ के अ“त को गणेश जी पर चढ़ा द'। पनु ः अ“त लेकर गणेशजी क• दािहनी ओर गौरी जी का आवाहन
कर' ।
गौरी का आवाहन -
ॐ अ…बे अि…बके ऽ…बािलके न मा नयित क¦न।
सस"rयÃकः सभु ि±कां का…पीलवािसनीम।् ।
हेमाि±तनयां देव„ वरदां शङ्करिLयाम्।
ल…बोदर"य जनन„ गौरीमावाहया…यहम।् ।
ॐभभू वFु ः "वः गौयæ नमः, गौरीमावाहयािम, "थापयािम,
पजू यािम च।
Kित ा- ॐ मनो जिू तजषFु तामा›य"य बृह"पितयF€िममं तनोrव‡र•ं य€ ◌ँ सिममं दधातु।
िवÃे देवास इह मादय*तामो 3 …Lितˆ।।
अ"यै Lाणाः Lितˆ*तु अ"यै Lाणाः “र*तु च।
अ"यै देवrवमचाFयै मामहेित च क¦न।।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 220


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
गणेशाि…बके ! सLु ितिˆते वरदे भवेताम।्
Lितˆापवू Fकम् आसनाथ— अ“तान् समपFयािम गणेशाि…बकाÐयां नमः।
(आसन के िलए अ“त समिपFत करे )।
पा?, अsयF, आचमनीय, "नानीय और पनु राचमनीय हेतु जल
ॐ देव"य rवा सिवतःु LसवेऽिÃनोबाFहІ यां प²ू णो ह"ताÐयाम।् ।
एतािन पा?ा$याचमनीय"नानीयपनु राचमनीयािन समपFयािम गणेशाि…बकाÐयां नमः।
दु¬ध#नान-ॐ पय: पृिथ¢यां पय ओषधीषु पयो िद¢य*त‡र“े पयो धाः पय"वतीः। Lिदशः स*तु मçम।् ।
ु ू तं सव—षां जीवनं परम्।
कामधेनुसमÓ
पावनं य€हेतु¦ पयः "नानाथFमिपFतम।् ।
ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, पयः "नानं समपFयािम।
दिध#नान - ॐ दिधzा¢णो अका‡रषं िज²णोरÃ"य वािजनः।
सरु िभ नो मख
ु ाकरrLण आयू ◌ँ िष ता‡रषत्।।
पयस"तु समुÓूतं मधरु ा…लं शिशLभम।्
दsयानीतं मया देव! "नानाथÖ Lितगृçताम।् ।
ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, दिध"नानं समपFयािम।
(पनु ः जल "नान कराय'।)
घृत #नान - ॐ घृतं िमिम“े घृतम"य योिनघृFते िÙतो घृत…व"य धाम।
अनु²वधमा वह मादय"व "वाहाकृ तं वृषभ वि“ ह¢यम।् ।
नवनीतसमrु प*नं सवFसतं ोषकारकम्।
घृतं तÐु यं Lदा"यािम "नानाथÖ Lितगृçताम।् ।
ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, घृत"नानं समपFयािम।
(पनु ः जल "नान कराय'।)
मधु#नान -ॐ मध¢ु वाताऽऋतायते मध“
ु रि*त िस*धवः। माsवीनFः

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 221


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
स*rवोषधीः मधनु £मुतोषसो मधमु rपािथFव ◌ँ रजः।
मध?ु ौर"तु नः िपता मधमु ा*नो ¢वन"पित…मFधमु ाँऽ2 अ"तु सयू Fः माsवीगाFवो भव*तु नः।।
ु ू तं स"ु वादु मधरु ं मध।ु तेजः पिु •करं िद¢यं "नानाथÖ Lितगृçताम।् ।
प²ु परे णसु मÓ
ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, मध"ु नानं समपFयािम।
(पनु ः जल "नान कराय'।)
शक3 रा#नान - ॐ अपा ◌ँ रसम_ु यस Ü सयू — स*त ◌ँ समािहतम्।
अपा Ủ रस"य यो रस"तं वो गृ%ा…य9ु ममपु यामगृहीतोऽसी*±ाय rवा ज•ु ं गृ%ा…येष ते योिन‡र*±ाय rवा
ज•ु तमम।् ।
ु ू तां शकF रां पुि•दां शभु ाम।् मलापहा‡रकां िद¢यां "नानाथÖ Lितगृçताम।् ।
इ“रु ससमÓ
ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, शकF रा"नानं समपFयािम।
(पनु ः जल "नान कराय'।)
पcचामृत#नान - ॐ पÍचन?ः सर"वतीमिप यि*त सÙोतसः। सर"वती तु पÍचधा सोदेशेऽभवrस‡रत्।।
ु ं "नानाथÖ Lितगृçताम।् ।
पÍचामृतं मयानीतं पयो दिध घृतं मध।ु शकF रया समाय£
ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, पÍचामृत"नानं समपFयािम।
शु°ोदक#नान- ॐ श~
ु वालः सवFश~
ु वालो मिणवाल"तऽआिÃनाः >येतः >येता“ोऽÂण"ते ±ाय पशपु तये
कणाFयामा अविल°ारौ±ा नभो[पाः पाजF*याः।।
गङ्गे च यमुने चैव गोदावdर सर#वित।
नम3दे िसqधुकावेdर #नानाथx Kितगृ®ताम।् ।
ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, श~
ु ोक"नानं समपFयािम।
आचमन - श~
ु ोकदक"नाना*ते आचमनीयं जलं समपFयािम।
(आचमन के िलए जल द'।)
व•- ॐ यवु ा सवु ासाः प‡रवीत आगात् स उ Ùेयान् भवित जायमानः।
तं धीरासः कवय उ*नयि*त "वाsयो3 मनसा देवय*तः।।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 222


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
शीतवातो²णसHं ाणं ल›जाया र“णं परम्।
देहालङ्करणं वvामतः शाि*तं LयÒछ मे।।
ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, वvां समपFयािम।
वvा*ते आचमनीयं जलं समपFयािम।
वv के बाद आचमन के िलए जल दे।
उपव•- ॐ सजु ातो ›योितषा सह शमF व[थमाऽसदr"वः। वासो अÀने िवÃ[प ◌ँ सं ¢यय"व िवभावसो।।
य"याभावेन शाvो£ं कमF िकिÍच*न िसsयित। उपवvं LयÒछािम सवFकमाFपकारकम।् ।
ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, उपवvं समपFयािम।
उपवv न हो तो र£ सHू अिपFत करे ।
आचमन -उपवv के बाद आचमन के िलये जल द'।
य¨ोपवीत - ॐ य€ोपवीतं परमं पिवHां LजापतेयFrसहजं परु "तात् । आय²ु यम&यं LितमÍु च शÞु ं
य€ोपवीतं बलम"तु तेजः।।
ु ं िHगणु ं देवतामयम।्
य€ोपवीतमिस य€"य rवा य€ोपवीततेनोपनçािम । नविभ"त*तिु भयF£
उपवीतं मया द9ं गृहाण परमेÃर !।। ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, य€ोपवीतं समपFयािम।
आचमन -य€ोपवीत के बाद आचमन के िलये जल द'।
चqदन - ॐ rवां ग*धवाF अखनँ"rवािम*±"rवां बृह"पितः। rवामोषधे सोमो राजा िव_ान् यÎमादमÒु यत।।
Ùीख;डं च*दनं िद¢यं गधं ाढ्यं समु नोहरम्। िवलेपनं सरु Ùेˆ! च*दनं Lितगृçताम।् ।
ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, च*दनानुलेपनं समपFयािम।
अ•त- ॐ अ“*नमीमद*त çव िLया अधूषत। अ"तोषत "वभानवो िवLा निवˆया मती योजाि*व*± ते
हरी।।
अ“ता¦ सरु Ùेˆ कुङ्कुमा£ाः सश
ु ोिभताः। मया िनवेिदता भ=rया गृहाण परमेÃर।।
ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, अ“तान् समपFयािम।
प‡ु पमाला- ॐ ओषधीः Lित मोदsवं प²ु पवतीः Lसवू रीः। अÃा इव सिजrवरीव¾Âधः पारिय²णवः।।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 223


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
मा`यादीिन सगु *धीिन मालrयादीिन वै Lभो। मयाहतािन प²ु पािण पजू ाथÖ Lितगृçताम।् ।
ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, प²ु पमालां समपFयािम।
दूवा3 - ॐ का;डाrका;डाrLरोह*ती पÂषः पÂष"प‡र। एवा नो दवू — LतनुसहÙेण शतेन च।।
दवू ाFङ्कुरान् सहु ‡रतानमृतान् मङ्गलLदान् । आनीतां"तव पजू ाथÖ गृहाण गणनायक!।।
ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, दवू ाFङ्कुरान् समपFयािम।
िसqदूर-ॐ िस*धो‡रव Lाsवने शूघनासो वातLिमयः पतयि*त य'ाः।
घृत"य धारा अÂषो न वाजी काˆा िभ*द*निू मFिभः िप*वमानः।।
िस*दरू ं शोभनं र£ं सौभाÀयं सख
ु वधFनम्। शभु दं कामदं चैव िस*दरू ं Lितगृçताम।् ।
ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, िस*दरू ं समपFयािम।
अबीर गुलाल आिद नाना पdरमल „¯य-
ॐ अिह‡रव भोगैः पय—ित बाह†ं ›याया हेितं प‡रबाधमानः। ह"त•नो िवÃा वयनु ािन िव_ान् पमु ान् पमु ा सं प‡र
पातु िवÃतः।।
अबीरं च गल
ु ालं च ह‡र±ािदसमि*वतम।् नाना प‡रमलं ±¢यं गृहाण परमेÃर!।।
ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, नानाप‡रमल±¢यािण समपFयािम।
सगु ि*ध±¢य ॐ अिह‡रव0 इस पवू Ü£ मHं से चढ़ाये
ु ं महाप‡रमलाÓुतम्। ग*ध±¢यिमदं भ=rया द9ं वै प‡रगृçताम।् ।
िद¢यग*धसमाय£
ॐ भभू वFु ः"वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, सगु ि*ध±¢यं समपFयािम।
धूप-ॐ धरू िस धळ
ू धवू F*तं धख ू Fयं वयं धवू ाम॑ ः। देवानामिस विNतम
ू तF ं योऽ"मान् धवू Fित तं धख
सि"नतम पिLतमं ज•ु तमं देवहdतमम।् । वन"पितरसोÓतो ग*धाढ्यो ग*ध उ9मः।
आ यः सवFदवे ानां धपू ोऽयं Lितगृçताम।् । ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, धपू माöापयािम।
दीप-ॐ अिÀनोित›योितरिणनः "वाहा सयू Ü ›योितयÜितः सयू Fः "वाहा।
अिÀनवF! ›योितवFचFः समाहा सगू Ü वच¾ ›योितवFयF "वाहा।।
›योितF सयू Fः सयू Ü ›योित "वाहा।। सा›यं च वितFसंय£
ु ं विहना योिजतं मया।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 224


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
दीपं गृहाण देवेश Hौलौ=यितिमरापहम् ।।भ=rया दीपं LयÒछािम देवाय परमाrमने।
Hािह मां िनरयाद् घोराद् दीप›योितनFमोऽ"तु ते।। ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, दीपं दशFयािम।
ह#तK•ालन-ॐ Ûषीके शाय नमः' कहकर हाथ धो ले।
नैवे“-प²ु प चढ़ाकर बाय„ हाथ से पिू जत घ;टा बजाते ह†ए।
ॐ नाÐया आसीद*त‡र“ शीणÜ ?ौः समवतFत।
पदÐ् यां भिू मिदFशः ÙोHा9था लोकाँ2 अक`पयन्।।
ॐ Lाणाय "वाहा। ॐ अपानाय "वाहा। ॐ समानाय "वाहा।
ॐ उदानाय "वाहा। ॐ ¢यानाय "वाहा।
शकF राख;डखा?ािन दिध“ीरघृतािन च। आहारं भÎयभो›यं च नैव?े ं Lितगृçताम।् ।
ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, नैवे?ं िनवेदयािम। नैवे?ा*ते आचमनीयं जलं समपFयािम।
ऋतफ
ु ल - ॐ याः फिलनीयाF अफला अप²ु पा या¦ पिु ²पणीः। बृह"पितLसतू ा"ता नो मÍु च*rव हसः।।
इदं फलं मया देव"थािपतं परु त"तव। तेन मे सफलावाि°भFवे›ज*मिन ज*मिन।।
ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, ऋतफ
ु लािन समपFयािम।
फला*ते आचमनीयं जलं समपFयािम। जल अिपFत करे । ॐ मsये-मsये पानीयं
समपFयाम…. । उ9रापाशन समपयािम ह"तL“ालन समपFयािम मख
ु L“ालन समपFयािम।
करोYत3न-ॐ अशनु ा ते अशःु पृÒयतां पÂषा पÂः। ग*ध"ते सोममवतु मदाय रसो अÒयतु ः।।
च*दनं मलयोÓुतं क"तयू ाFिदसमि*वतम।् करो_तFनकं देव गृहाण परमेÃर।।
ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, करो_तFनकं च*दनं समपFयािम।
ता…बूल-ॐ यrपÂु षेण हिवषा देवा य€मत*वत। वस*तोऽ"यासीदा›यं kी²म इsमः शर~िवः।।
ु ं ता…बूलं Lितगृçताम।् ।
पगू ीफलं महिN¢यं नागव`लीदलैयFतु म्। एलािदचूणFसंय£
ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, मख
ु वासाथFम् एलालवगं पगू ीफलसिहतं ता…बूलं
समपFयािम।
(इलायची, लौग-सपु ारी के साथ ता…बूल अिपFत करे ।)

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 225


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
दि•णा-ॐ िहर;यगभFः समवतFताkे भतू "य जातः पितरे क आसीत्। स दाधार पृिथव„ ?ामतु ेमा क"मै देवाय
हिवषा िवधेम।।
िहर;यगभFगभF"थ हेमबीजं िवभावसोः।
अन*तप;ु यफलदमतः शाि*त LयÒछ म।।
ॐ भभू वFु ः "वः गणेशाि…बकाÐयां नमः, कृ तायाः पजू ायाः सा";ु याथ— ±¢यदि“णां समपFयािम।
(±¢य दि“णा समिपFत करे ।)
िवशेषा½य3-ता¯पाH म' जल, च*दन, अ“त, फल, फूल, दवू ाF और दि“णा रखकर अ•यFपाH को
हाथ म' लेकर िन…निलिखत म*H पढ़':-
ॐ र“ र“ गणाsय“ र“ Hौलो=यर“क। भ£ानामभयं कताF Hाता भव भवाणFवात।् ।
_ैमातुर कृ पािस*धो पा;मातुराkज Lभो!। वरद"rवं वरं देिह वािÍछतं वािÍछताथFद।।
गृहाणाsयिममं देव सवFदवे नम"कृ तम् । अनेन सफलायेण फलदोऽ"तु सदा मम ।
अsयासKl – 2
‡र£ "थान क• पिू तF क•िजये –
18- वा"तु दोष के िनवारण हेतु ............................ पजू न करानी चािहए ।
19- पवू F िदशा के "वामी ............................... ह‰ ।
20- दि“ण िदशा म' .......................... रंग क• sवजा लगाई जाती है ।
21- सामा*यत: गृह Lवेश के समय ..............................म;डल बनया जाता है ।
22- अिÀन देवता का भो›य ................................... है ।
६.४ सारांश –
L"ततु इकाई के अsययन के प¦ात हमने जाना क• सामा*यत: नए भवन म' Lवेश करने के समय,
या जब कोई पुराना घर खरीदता है अथवा कभी कोई ¢यि£ घर या ¢यावसाियक "थानq का
नवीनीकरण करता है तब, कमरे और इमारतq क• आंत‡रक ¢यव"था म' Hिु टयां , जब हम िनयिमत [प
से 10 साल से रह रहे ह‰ , लबं े समय तक िवदेश याHा से वापस आने के बाद , सरं चना का सही उपयोग
करने के िलए वा"तु पूजन अव>य करानी चािहए । िबना वा"तु पूजन कराये गृह म' Lवेश करने से कई

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 226


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
Lकार क• सम"याओ ं का जीवन म' सामना करना पड़ता है । साथ ही साथ हमने यह भी जाना क• वा"तु
शांित क• Lिzया =या है एवं षोडशोपचार से जो पूजन क• जाती है उसक• िवध को भी जाना । एवं
वा"तु पजू न के महrव से भी अवगत ह†ये ।

६.५ पाdरभािषक श†दाबली –


वा#तु शांित = िविभ*न Lकार के वा"तु ज*य दोषq को दरू करने के िलए वा"तु शांित क• जाती
है (एक पजू ा िवशेष ) षोडशोपचार = पजू न करने क• एक Lिzया ( 16 उपचारq के माsयम
से )

६.६ अsयास KlŠ के उpर-


अsयास Kl - 1
1-सrय, 2 –असrय , 3 – सrय , 4 - असrय, 5- सrय ।
अsयास Kl- 2
1- वा"तु पूजन, 2 –इ±ं , 3 – काले, 4 - एकाशीित पद म;डल 5- घृतय£
ु नैवे?।

६.७ संदभ3 }qथ सूची


(क) मलू लेखक – िवÃकमाF , स…पादक एवं टीकाकार –महिषF अभय काrयायन ,
िवÃकमFLकाशः(२०१३), चौखंबा सरु भारती Lकाशन, वाराणसी |
(ख) मल ू लेखक – Ùीरामिनहोर ि_वेदी संकिलत, टीकाकार –डा ßàान*द िHपाठी एवं डा
रिव शमाF , वृह_ा"तुमाला(२०१८ ) , चौखंबा सरु भारती Lकाशन, वाराणसी |
(ग) मल ू लेखक – Ùीरामदैव€ , टीकाकार – Lो. रामच*±
पा;डेय,महु dतिF च*तामिणः(२००९) वा"तLु करण , चौख…बा कृ ²णदास अकादमी,
वाराणसी |
(घ) मल ू लेखक – Lो शक ु देव चतवु द— ी, भारतीय वा"तश
ु ाv (वतFमान सदं भF म' समk
प‡रशीलन ) (2004 ), Ùी लालबहादरु शाvी रा²âीय स"ं कृ त िव?ापीठ नव देहली ।
(ङ) वा"तु शाv – डा शािलनी खरे
(च) गृह Lवेश प~ित – Ùी िव*sयेÃरी Lसाद ि_वेदी ।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 227


वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
६.८ सहायक पाठ्यसाम}ी -
मयमतम् – मयमिु न
बृहrसंिहता – वराहिमिहर
वा"तसु ारः – Lो. देवीLसादिHपाठी

६.९ िनबqधाyमक Kl
1- वा"तु पजू न के महrव को िलिखए।
2- वा"तु पजू न कब करानी चािहए ।
3- वा"तु पूजन म' Lय£ु क• जाने वाली सामkी िलिखए।
4- वा"तु शांित िविध को िलिखए।
5- L"तुत इकाई का सारांश अपने शnदq म' िलिखए।

उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 228

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