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DVS 104
DVS 104
हानी
DVS-104
ख0ड – 1
वगा3य, िप0ड साधन एवं गृहदै@य3 िनधा3रण
१.२ उNेPय –
L"तुत इकाई के अsययन के बाद आप –
१.४ वग3-िवचार -
िLय अsयेता! अभी तक हमने भारतीय वा"त-ु शाv के कुछ महUवपणू F तUवq पर एक
िसंहावलोकन िकया, िजनम' Lथम तUव ‘वगF’ है। ...आइए अब हम इस तUव पर िव"तार से चचाF करते
ह‰।
‘वगF’ यह शnद अपने आप म' गुण-धमF इrयािद िविवध मानकq के आधार पर िवभाजन को
सिू चत करता है । तब Lp यह है िक Lसंग म' Lय£
ु ‘वगF’ शnद से िकस Lकार का िवभाजन Lकट
िकया गया है? इस वग¾करण का आधार =या है? वगF का Lयोजन =या है? आइए एक-एक करके इन
Lpq के उ9र ढूँढते ह‰ ।
१.४.१ #वIप
"वरq और ¢यंजनq का ›योितष और वा"तु म' एक महUवपणू F "थान है। इन दोनq के ही बह†त
सारे सHू इन वणœ पर ही िटके ह‰। वा"त-ु शाv के तो आर…भ म' ही इनका महUव ‘वगF-िवचार’ के [प
म' ŒÀगोचर है ही। अकारािद वणœ के आधार पर िकसी भी ¢यि£, kाम, नगर या वा"तु का वगF िनधाF‡रत
िकया जाता है । इससे यह "प• है िक ¢यि£ इrयािद के वगF-िनधाFरण म' उनके नामq क• भूिमका
महUवपणू F है । नाम के Lथम अ“र के आधार पर िकसी ¢यि£ आिद का =या वगF है यह तय होता है।
वण3 अ, ई, उ, क, ख, ग, च, छ, ज, ट, ठ, ड, ढ, त,थ,द,ध, श, ष, स, प, फ, ब, य, र,
ऋ, लृ, ए, घ, ङ झ, ञ ण न ह भ, म ल, व
ऐ, ओ, औ
वग3 गÂड़ िवडाल िसहं कु9ा सापं चूहा िहरन बकरा
वैरी सांप चूहा िहरन बकरा गÂड़ िवडाल िसहं कु9ा
१.४.२.२ भूपालवfलभ के अनुसार
भपू ालव`लभ म' विणFत अ• वगF, पहले बताए गए आठ वगœ के समान ही ह‰, के वल
सं€ा-भेद ही कह„-कह„ है। k*थ के अनसु ार आठq वगF इस Lकार से ह‰ -
वगgशा#ताhय3माजा3रिसंहiासप3मूषका: ।
इभेणौ पूव3त#तेषां #ववगा3त् पcचमो dरपु: ।।
वग—शा: = वगœ के "वामी, (zमश:) ताÎयF: = गÂड़, माजाFर: = िब`ला (या िब`ली), िसंह:,
Ãा = कु9ा, सपF:, मषू क: = चहू ा, इभ: = हाथी, एण: = िहरन (ह‰) ।
पवू Fत: = ये सभी zम से पवू ाFिद-िदशाओ ं के "वामी ह‰ ।
"ववगाFत् = अपने वगF से, (िगनकर zमश:) पÍचमो = पांचवां, तेषाम् = इन गÂड़ आिद का,
‡रप:ु = शHु होता है ।
बोध Kl
L.१ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं
–
(क) ‘अनभु व’ का वगF ‘माजाFर’ है ()
(ख) ‘िशवकुमार’ का वगF ‘मूषक’ है ()
(ग) ‘नीरज’ का वगF ‘सपF’ है ()
(घ) ‘िसहं ’ वगF का वैरी ‘मषू क’ वगF है ()
(ङ) ‘Ãान’ वगF का वैरी ‘िहरण’ वगF है ()
अÐयास Lp
१.५ िदशा-िवचार
िLय अsयेताओ!ं पहले आपने पढ़ा क• अकारािद-वणœ के अनुसार गÂड़ आिद वगœ का
िनधाFरण िकया जाता है । इन वगœ के तो ›योितष-शाv म' कई Lयोजन ह‰ । व"तुत: ›योितष के कई
िस~ातं q के मलू म' यही गÂड़-आिद वगF ही ह‰, िक*तु वा"त-ु शाv म' भी इन वगœ का अितशय महUव
है । इन वगœ के आधार पर ही पवू ाFिद िदशाओ ं का िनधाFरण वा"तु के अलग-अलग Lसंगq म' करके
तदन[ ु प शभु ाशभु -¢यवहार या अनक
ु ू लता तय क• जाती है । तो आइए, देख', िकस Lकार वगœ क•
िदशाओ ं का िनधाFरण शाvq ने िकया है ।
१.५.१ मुहop3िचqतामिण का मत
रामाचायF ने वा"तLु करण म' वगœ और उनके वै‡रयq का उ`लेख करते ह†ए अंितम चरण म'
उनक• िदशाओ ं का भी नामोÒचारण संकेत माH से ही िकया है, जो इस Lकार है -
...................................’बिलन: "यरु ै *±्या:’ ।
बिलन: = (पवू F म' किथत वगF) बली, "य:ु = होव', ऐ*±्या: = पवू F आिद िदशाएं (िदशाओ ं म')
।
अब चूंिक इ*± पवू F िदशा के "वामी माने गए ह‰ अत: ‘ऐ*±्य’ शnद पवू F िदशा का वाचक है।
यहाँ ‘ऐ*±्य’ शnद म' Lय£
ु बह†वचन अ*य िदशाओ ं का, वगœ के zमानसु ार, संकेत करता है ।
१.५.२ भूपालवfलभ का वचन
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 11
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
य?िप ‘भूपालव`लभ’ के मत को पहले ही िबंदु म' कह िदया गया है तथािप पुन: िदङ्िनधाFरण
के zम म' इसे दहु राया जा रहा है -
.......... पवू Fत"तेषां......... ।
तेषाम् = इन गÂड़ आिद वगœ का, पवू Fत: = पवू F िदशा से (आर…भ करके "वािमrव होता है)।
१.५.३ वा#तस
ु ौrय का मत
वा"तुसौgय म' श`य€ान-Lकरण म' अवगाFिदयq के गÂड़ इrयािद "वामी बताने के zम म'
kंथकार ने इन वगœ क• िदशा का भी संकेत म' उ`लेख िकया है । k*थो£ वचन इस Lकार है –
अकारािदषु सव—षु िदÎव•ासु यथाzमात् ।
अथाFत् अकारािद वगœ म' zमश: ८ िदशाओ ं म' "वािमrव-¢यव"था है । कहने का ताrपयF यही
है िक अकार इrयािद आठq वगF zम से पवू F, आÀनेय, दि“ण, वाय¢य, पि¦म, नैऋrय, उ9र, ईशान
इन ८ िदशाओ ं के "वामी ह‰।
अकारािद वगœ क• िदक्-"वािमrव-बोधक-तािलका
वणF अ, ई, उ, क, ख, ग, च, छ, ज, ट, ठ, ड, त,थ,द, श, ष, स, प, फ, य, र,
ऋ, लृ, ए, घ, ङ झ, ञ ढ, ण ध,न ह ब, भ, ल, व
ऐ, ओ, म
औ
वगF गÂड़ िवडाल िसहं कु9ा सापं चहू ा िहरन बकरा
िदशा पवू F आÀनेय दि“ण वाय¢य पि¦म नैऋrय उ9र ईशान
बोध Kl
L.२ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं
–
(च) "वर ताÎयF वगF म' पिठत नह„ ह‰ ()
(छ) अकारािद वगœ क• सgं या ८ है ()
(ज) वा"तसु ौgय के श`यािधकार म' वगœ क• िदशाओ ं का उ`लेख है ()
१.६ कािकणी-िवचार
‘ककते गणनाकाले चÍचलीभवित इित कािकणी’ अथाFत् गणना के समय जो ि"थर नह„ है।
कािकणी के िलए ऐसा =यंू कहा गया िक जो चल है । कारण यह है िक Lाचीन-काल म' ¢यवहार म'
Lयोग लाई जाने वाली म±ु ा क• ‘कािकणी’ सं€ा ह‰ । अब चिंू क धन चल होता है कभी एक-समान
नह„ रहता है। ¢यापारी हो या kाहक सभी के पास जो भी धन है वह zय-िवzय म' सतत Lयोग म' आने
के कारण कभी भी ि"थर अथाFत् एक-समान नह„ रहता है, घटता-बढ़ता रहता है। यही कारण है िक
Lाचीन काल म' जो म±ु ा थी उसक• ‘कािकणी’ सं€ा थी। ‘कािकणी’ का मान ‘लीलावती’ म' इस
Lकार बताया गया है –
‘वराटकानां दशकYयं यत् सा कािकणी ताv पणvतw:’
अथाFत् २० वराटक = १ कािकणी
४ कािकणी = १ पण
तब Lp यह है िक इस ‘कािकणी’ का यहाँ वा"तु म' िकस-Lकार का उपयोग होता है? तो
िमHq! बात यह है िक यहाँ Lय£
ु ‘कािकणी’ शnद व"तुत: उपल“ण अथाFत् संकेत माH है।
यह शnद लाभ-हािन का संकेत कर रहा है । कािकणी व"तुत: िकसी भी kाम-िवशेष या नगर-िवशेष
बोध Kl
L.३ िन…निलिखत Lpq के उ9र द' –
(क) ____________ गणनाकाले चÍचलीभवित इित कािकणी ।
(ख) वराटकानां ___________ यत् सा कािकणी ।
(ग) "ववगÖ ि_गुणीकृ rय ___________ योजयेत् ।
(घ) योऽिधक: स ___________ भवेत् ।
(ङ) फूलच*± का वगF _______ है ।
अsयास Kl
L.३ कािकणी के आधार पर यः िन[िपत कर' िक ‘सरु े श’ का ह`_ानी म' िनवास लाभLद है अथवा
नह„ ।
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१.७ }ह-दशािवचार
िLय अsयेता! मन²ु य अपने जीवन म' वा"त-ु िनमाFण (चाहे वह घर हो या देवालय या िफर
बावड़ी, कँू आ आिद =यंू न हो) बार-बार नह„ करवाता है, =यंिू क इसम' अrयिधक धन, Ùम और समय
लगता है । इसके अित‡र£ यह ि"थर स…पि9 है, अत: Lितकूल प‡रणाम िमलने पर, इस वा"तु को
कह„ "थाना*त‡रत भी नह„ िकया जा सकता है । अत: वा"तु-िनमाFण कराने वाले ¢यि£ का उसके
िचर-"थाियrव के बारे म' सोचना अrय*त "वाभािवक है । िचर-"थाियrव म' वा"तु-िनमाFण-िविध एवं
Lयो›य-व"तु के यथोिचत होने के बाद भी यिद उिचत काल म' वा"त-ु िनमाFण आर…भ नह„ ह†आ या
अनकु ू ल समय म' _ार-"थापन, वा"त-ु LवेशािदकायF नह„ ह†ए तो भी उस वा"तु का िचर-"थाियrव
संशयाrमक ही रहेगा ।
इस अनक ु ू ल काल-िनधाFरण के अनेक Lकार और चरण ह‰ वा"त-ु िनमाFण के दौरान, िजनम'
आर…भ म' ही एक महUवपूणF िनधाFरकतUव ‘kहदशा-िवचार’ है ।
१.७.१ बृहYा#तुमाला
बृह_ा"तमु ाला k*थ के आर…भ म' ही kह क• दशा और फल क• चचाF क• गयी है ।
यहां उ£ दशा, kहq क• दशाएं िवंशो9री दशा के समान ही ह‰ ।
गजशरp3यु गु ाiमहीगण ु ा िYसिहता मघवािदिदिश aमात् ।
गृहपतेरिभधापुरिदd€ता नव•ता भवन#य दशा भवेत् ।।
सूयgqदुभौमा#yवगुजीवमqदसौ‚याv के तुभ3गृ ुज: aमेण ।
षड्िदङ्नगाधyृ यवनीiराङ्कचq„ा#स…नखा#तद†दा: ।।
#वे‡वेषु वष3Kिमतेषु तेषां दशाफलं त' िनवािसनां च ।
तदुpरादुpरतो दशेशफलं िवकf,यं च दशाaमेण ।।
LितपदाथF: - मघवािदिदिश = मघवा अथाFत् इ*±, जो िक पवू F िदशा के "वामी ह‰ उस पवू F
बोध Kl
L.४ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं –
(क) ‘पवू F’ िदशा का अंक ७ है । () (ङ) (×)
(ख) ‘दि“ण’ िदशा का अंक ६ है । ()
(ग) ‘नैऋFrय’ का अंक ८ है। ()
(घ) ‘लवगF’ क• िदक् सgं या ३ है। ()
(ङ) शेष ८ होने पर गुÂ क• महादशा आर…भ होगी । ()
अsयास Kl
L.४ वेदाङ्ग›योितष म' विणFत यगु के स…वrसरq और उनके देवताओ ं के नाम िलख' ।
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१.८ सारांश –
आठ वगœ के समहू के "वामी zमानसु ार गÂड़, िवडाल (िब`ला), िसहं , शनु क (कु9ा), उरग
(सांप), मषू क (चूहा), एण (िहरन), मेष (बकरा) कहे गए ह‰। ये सभी मेषािद zम से पवू ाFिद िदशाओ ं के
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 20
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
"वामी ह‰ । इन वगœ म' गणना म' zम से जो पांचवां है वही शHु है इसे िव_ानq के _ारा rया›य बताया
गया है । उदाहरण के तौर पर ‘गÂड़’ से पांचवां ‘सपF’ उस (गÂड़) का वैरी है । इसी Lकार, िवडाल
(िब`ले) से पाचं वां चहू ा, ‘िसहं ’ से पाचं वां ‘िहरन’ उसका वैरी है । अत: अपने पाचं व' वगF वाले "थान,
वगF, िदशा का rयाग करना चािहए । अकार इrयािद आठq वगF zम से पवू F, आÀनेय, दि“ण, वाय¢य,
पि¦म, नैऋrय, उ9र, ईशान इन ८ िदशाओ ं के "वामी ह‰। कािकणी-साधन के िलए अपने वगF को
दगु ुना करके , दसू रे के वगF से जोडे । िफर उसमे आठ का भाग देने पर जो शेष रहता है उसे ‘कािकणी’
कहते ह‰ । िजसक• कािकणी अिधक होती है, वह ऋणी (कजFदार) होता है । वा"त-ु िनमाFण-काल क•
दशा-अ*तदFशा िनधाFरण के िलए गृह"वामी के नाम (के आ?“र से LदिशFत वगF) का िदक् अङ्क
और परु के नाम (के आ?“र से LदिशFत वगF) का िदक् अङ्क एवं िदशा के
अङ्क के योग को ९ से भाग देने परशेष-तु`य kह क• दशा होती है ।
१.९ श†दावली –
िवडाल: = िब`ला
शनु क: = कु9ा
उरग: = सांप
मषू क: = चहू ा
एण: = िहरन
ताÎयF: = गÂड़
माजाFर: = िब`ला (या िब`ली) िसंह:
इभ: = हाथी
गृहपतेरिभधा = गृह-"वामी का नाम
अगु: = राह†
१.१० बोध KlŠ के उpर -
L.१ (क) (×) (ख) (√) (ग) (√) (घ) (×) (ङ) (×)
L.२ (क) (×) (ख) (√) (ग) (√) (घ) (×) (ङ) (×)
L.३ (क) ककते
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 21
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
(ख) दशक_यम्
(ग) परवग—ण
(घ) ऋणी
(ङ) िहरण
L.४ (क) (×) (ख) (√) (ग) (×) (घ) (√) (ङ) (×)
१.१३ िनबqधाyमक Kl –
१. अकारािदवगÜ के "वामी और िदशा पर Lकाश डािलए ।
२. ‘हरीश’ और ‘कोलकाता’ क• कािकणी का साधन करके यह बताएँ िक इनम' से कौन ऋणी
रहेगा?
३. ‘च*±भागा’ यिद ‘चे*नई’ म' ‘ईशान’ िदशा म' वा"त-ु िनमाFण करे तो कौन से गृह क• दशा म' वा"तु
का िनमाFण आर…भ होगा?
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 22
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
इकाई - २ इ‡टाय एवं न•' िनधा3रण
इकाई क‹ Iपरेखा
२.१ L"तावना
२.२ उNे>य
२.३ आय के Lकार एवं िदशा
२.३.१ टोडरान*द का मत
२.४ आय का साधन
२.४.१ टोडरानदं का मत
२.४.२ रामाचायF का मत
२.५ आय का "व[प
२.५.१ बृह_ा"तुमाला के अनुसार
२.६ वणF के आधार पर आय-िवचार
२.६.१ बृह_ा"तुमाला के अनुसार
२.७ रािश के आधार पर आय-िवचार
२.८ आय का फल
२.८.१ टोडरान*द का मत
२.८.२ बृह_ा"तुमाला के अनुसार
२.९ आय के आधार पर वा"तु का िनधाFरण
२.९.१ विसˆ का मत
२.९.२ Òयवन का मत
२.१० इ•ाय-इ•न“H-िनधाFरण
२.१०.१ विसˆ का मत
२.११ सारांश
२.१२ शnदावली
२.१३ बोध Lpq के उ9र
२.१४ स*दभF k*थ सचू ी
२.१५ सहायक k*थ सचू ी
२.१६ िनब*धाrमक Lp
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 23
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
२.१ K#तावना –
िLय अsयेताओ!ं वा"तु-शाv िडwलोमा पाठ्यzम के चतुथF पH के ि_तीय ख;ड म' आपका
"वागत है । इस ख;ड म' हम भारतीय-वा"त-ु शाv के मल ू िस~ा*तq म' से दो – ‘इ• आय’ और ‘इ•
न“H’ पर िव"तार से चचाF कर' गे । जैसा िक म‰ने िपछले पाठ म' यह बात कही थी िक िकसी भी Lकार
के वा"तु के िनमाFण म' कुछ आधारभतू बात' sयान म' रखनी होती ह‰, िजन पर अनेकq वा"त-ु शाvीय
िनयम और िस~ा*त बड़ी ही Œढ़ता से िटके ह‰ । ऐसे ही कुछ आधारभूत तUवq म' Lमुख ह‰ ‘इ•ाय-
साधन’ और ‘इ•-न“H-िनधाFरण’ । आय और न“H के आधार पर गृह के िप;ड का साधन िकया
जाता है। इसके साथ ही ¢यय, अश ं , आय,ु Ýवु ािद गृहq के Lकार इrयािद अनेकq िवचार आय और
न“H के िनधाFरण पर ही िटके ह‰।
Lथम ख;ड क• इस ि_तीय इकाई म' वा"तु के मूल तUवq म' से एक ‘आय’ का िवचार िकया
जाएगा । आय का िवचार कै से करते ह‰? इसके िकतने Lकार ह‰? इसके आधार पर जाित-कारकrव,
रािश के आधार पर शुभाशुभrव आिद का €ान िकस Lकार िकया जाता है इन सभी िवषयq का
िव"तारपवू क
F अsययन आप इस इकाई म' कर' गे, िजससे िक भारतीय-वा"तश ु ाv म' ‘आय-िवचार’ के
"व[प, Lयोजन और महUव को "प• [प से रे खांिकत कर सकने म' आपको मदद िमलेगी। इसके
अलावा इस इकाई म' इ•-न“H पर भी चचाF क• जाएगी ।
२.२ उNेPय –
L"तुत इकाई के अsययन के बाद आप –
· आयq के Lकारq का नामो`लेख कर सकने म' समथF हो सक' गे ।
· आय के शभु ाशभु rव के "व[प को समझ सकने म' कुशल हो सक' गे ।
· जाितयq व आय के स…ब*ध को Lकट करने म' समथF हो सक' गे ।
· रािश-िवशेष म' आय-िवशेष लाभदायक है या नह„ इसका िनधाFरण कर सकने म' कुशल हो
सक' गे ।
· इ•-न“H के िनधाFरण म' िनपणु हो सक' गे ।
२.३ आय के Kकार एवं िदशा -
िमHq! जहां तक Lp ‘आय’ का है, यह भी वा"त-ु शाv का अित महUवपणू F तUव है ।
‘शnदक`प±ुम’ के अनसु ार ‘आय’ शnद का अथF है - धनागम, Lाि° और लाभ । िक*तु ये सभी
२.४ आय का साधन
िमHq! कौन सा आय लाभLद है और कौन सा नह„, इस िवषय पर िवचार करने के पवू F पहले
यह जान लेना उिचत होगा िक िनमाFण िकए जाने वाले वा"तु का आय sवज है, ध¯ू है, sवा“
ं है या
कुछ और? तब Lp यह है िक वा"तु के आय के भेद-िवशेष को कै से जान'?
व"तुत: वा"त-ु शाvीय kंथq म' ‘आय’ के साधन को लेकर कुछ Þम क• ि"थित Lतीत होती
२.४.१ टोडरानqद का मत
ऊपर के Äोक म' जहां टोडरान*द जी ने आयq के Lकार बताए ह‰ उसी Äोक के
आर…भ म' उनके साधन क• भी बात आचायF ने कही है ।
िव#तारेण हतं दै@यx िवभजेद[िभ#तत: ।
य˜छे षं स भवेदायो •वजा“ा#ते #युर[धा ।।
Kितपदाथ3 – िव"तारे ण हतं दै•यÖ = िजस वा"तु के आय का साधन करना हो उसके िव"तार
अथाFत् चौड़ाई को दै•यF अथाFत् ल…बाई से गणु ा करके , तत: अ•िभ: िवभजेत् = उस गुणनफल को ८
से भाग देने पर, यÒछे षं = जो शेष बचे उसके अनसु ार, स आयो भवेत् = वही आय
२.५ आय का #वIप
Lrयेक आय का अपना एक "व[प है जो िक वा"तु एवं फल क• Œि• से अrय*त महUवपणू F
है । िजस आय का जैसा नाम वैसा ही उसका "व[प समझना चािहए । "व[प या Lकृ ित के आधार
पर नामकरण क• यह पर…परा सनातन सं"कृ ित म' आिदकाल से ही चली आ रही है । भगवान् ‘हनमु ान’
का नाम उनके हनु के "व[प के कारण ही िमला । इसी Lकार भगवान् गणेश का ‘एकद*त’ यह नाम
या िफ़र उनके िपता महादेव का ‘नीलकंठ’ यह नाम उनके अपने-अपने "व[प के कारण ही पड़ा है ।
आय के "व[प पर िवचार ‘बृह_ा"तुमाला’ k*थ म' िमलता है ।
२.५.१ बृहYा#तुमाला के अनुसार
k*थकार ने इन आयq के "व[प पर Lकाश डाला है जो िक अrय*त ही िविचH एवं रह"याrमक है।
k*थानसु ार –
आय-#वIप-बोधक-साdरणी
आय sवज धमू िसहं Ãान गौ गधा गज sवां“
मखु मन²ु य िवडा िसंह कु9ा गाय गधा हाथी कौआ
ल
धड़ िसंह िसंह िसहं िसहं िसहं िसंह िसंह िसहं
पैर प“ी प“ी प“ी प“ी प“ी प“ी प“ी प“ी
बोध Kl
L.२ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं
–
(क) ‘ध¯ू ’ का मख
ु िवडाल के समान है () (√) (×) (√) (×) (√)
(ख)‘िसहं ’ आय का पैर िसहं के समान है ()
(ग) ‘sवज’ आय का धड़ िसहं के समान है ()
(घ) ‘खर’ आय का पैर प“ी के समान नह„ है ()
(ङ) ‘sवां“’ आय का पैर प“ी के समान है ()
अÐयास Lp
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 29
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
L.२ िविवध आयq के "व[प के िवषय म' िलख' ।
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Kितपदाथ3: -
अkजानां = ßाàणq का, sवजाय: = आय ‘sवज’, "यात् = हो । “H"य = “िHय वणF का
(आय), sवजकुÍजरगोमृगा: = sवज, हाथी, गौ या मृग (यहां ‘मृग’ से ‘खर’ आय का kहण िकया
गया है), वै>य"य = वै>य वणF का, sवजिसंहभे ा = sवज, िसहं या गज आय म' से कोई एक, शभु दा: =
शभु फल देने वाला हो । श±ू ाणां = श±ू वणF के िलए, sवजो मृगािद: = sवज आय एवं मृग (‘खर’
आय के िलए Lय£ ु ), हाथी और कौआ इन आयq का भी Lयोग शभु फल देने वाला है । सव—षां =
सभी वणœ का (के िलए), वृषभ: शभु : = गो या वृष आय शभु फल देने वाला हो । हीनजाते: = इन
चारq के अित‡र£ मन²ु यq के िलए, समा देया: = सम सgं या वाला आय शुभ फल देने वाला हो ।
इस Lकार यिद sयान से िवचार कर' तो sवज आय सभी के िलए लाभLद माना गया है । एवं
गज आय ßाàण को छोड़कर शेष सभी वणœ के िलए शभु है । ‘मृग’ इस शnद से यहां ‘खर’ आय का
kहण करना चािहए । वै>य और श±ू इन दोनq ही वणœ के िलए खर और sवां“ (कौआ) दोनq ही आय
शभु फल देने वाले ह‰ ।
२.७ रािश के आधार पर आय-िवचार
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 30
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
िLय अsयेता! के वल वणF के आधार पर ही नह„ अिपत,ु वा"तुिवदq ने रािशयq के आधार पर
भी आय का िनधाFरण िकया है । वा"तुशाvीय-िस~ा*त के अनसु ार, अलग-अलग रािशयq के िलए
अलग-अलग आय शभु फल देने वाले होते ह‰ । तो िकस रािश के िलए कौन सा आय शभु है और
कौन सा नह„? आइए, इस िवषय पर k*थकार के मत को जानते ह‰ ।
२.७.१ बृहYा#तुमाला के अनुसार
कक3 वृिvकमीनानां •वजाय: शुभदो मत: ।
वृषभाय: शुभ: Kोšो मेषिसहं धनुभ3ृताम् ।।
तुलािमथुनकु‚भानां गजायो वािcछतKद: ।
वृषकqयामृगाणाcच िसंहाय: शुभदो भवेत् ।।
Kितपदाथ3: -
ककF वृि¦कमीनानां = ककF , वृि¦क और मीन रािश वालq का (के िलए), sवजाय: = ‘sवज’
आय, शभु दो मत: = शभु फल देने वाला कहा गया है । मेषिसहं धनभु Fतृ ाम् = मेष, िसहं और धनषु
धारण करने वाले अथाFत् धनु रािश वालq का (के िलए), वृषभाय: = ‘वृषभ’ अथाFत् ‘गौ’ आय, शभु :
Lो£: = शभु फल देने वाला कहा गया है । तुलािमथुनकु…भानां = तुला, िमथुन और कु…भ रािश वालq
का (के िलए), गजायो = गज आय, वािÍछतLद: = इिÒछत फल देने वाला होता है । च = और,
वृषक*यामृगाणाम् = वृष, क*या और मृग अथाFत् मकर रािश वालq का (के िलए), िसंहाय: शभु दो
भवेत् = िसंह आय शभु फल देने वाला होता है ।
यिद आप sयान से देख' और आपको ›योितष के साधारण िनयमq का भी €ान हो तो आप
यह आसानी से समझ सकते ह‰ िक ऊपर कहे गए Äोक म' भी एक िनि¦त Lितमान (Pattern) िदखाई
पड़ता है । व"तुत: ककF , वृि¦क और मीन इन रािशयq का ßाàण वणF होता है । अत: िजन जातकq
क• उ£ ßाàण रािश हो उनके िलए ‘sवज’ सं€क आय शभु फल देने वाला होता है । इसी Lकार
मेष, िसहं और धनु इन तीनq रािशयq का “िHय वणF है, िजनके िलए गौ (वृष) आय शभु फल देने
वाला है । वृष, क*या और मकर रािशयां वै>य वणF वाली होने के कारण ‘िसंह’ आय वाली ह‰ । तथा
िमथुन, तुला और कु…भ ये तीनq ही श±ू वणF वाली रािशयां ह‰, िजनके िलए ‘गज’ आय शुभ फल देने
वाला होता है ।
रािश-आधाdरत-शुभ-आय-बोधक-साdरणी
बोध Kl
L.३ िन…निलिखत Lpq के उ9र द' –
(च) ____________ sवजाय: "यात् ।
(छ) सव—षां ____________ शभु : ।
(ज) ककF वृि¦कमीनानां _____________ शुभदो मत: ।
(झ) ___________ शुभ: Lो£ो मेषिसंहधनुभFतृ ाम् ।
(ञ) वृषक*यामृगाणाÍच ________ शभु दो भवेत् ।
अÐयास Lp
L.३ रािश के आधार पर आय के शभु ाशुभ का िनधाFरण कर' ।
____________________________________________________
____________________________________________________
____________________________________________________
____________________________________________________
२.८ आय का फल
िLय िमH! य?िप वणF एवं रािश के आधार पर आय क• शभु ता का वणFन जो पवू F म' िकया
गया है उसे भी आय के फल के [प म' समझ सकते ह‰, तथािप वा"तु के kंथq म' इन आयq के फलq
का िव"तारपवू क
F वणFन हम' Lा° होता है । इनम' टोडरान*द इrयािद आचायœ के मत Lमुख ह‰ । आइए,
इन आचायœ के मतq के आलोक म' आय के फल के िवषय म' िव"तार से जानने का Lयास करते ह‰ ।
२.८.१ टोडरानqद का मत –
टोडरान*द ने सभी आयq का एक ही Äोक म' फल बताया है, जो िक िवषय क• Œि• से
सामा*य-"तर का कहा जा सकता है, जबिक कुछ आचायœ म' िव"तारपवू क F अलग-अलग आयq के
फल बताए ह‰। टोडरान*द के अनसु ार,
क‹ित3: शोको जयो वैरं धनं िनध3नता सुखम् ।
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 32
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
रोगvेित गृहार‚भे •वजादीनां फलं aमात।् ।
गृहार…भ के समय, यिद ये sवज आिद आय ह‰ तो जो फल बताया गया है उसे नीचे LदिशFत
सा‡रणी के _ारा समझा जा सकता है ।
•वजािद आयŠ के फल क‹ बोधक-तािलका
आय sवज धमू िसंह Ãान गाय खर (मृग) गज कौआ
फल क•ितF शोक जय वैर धन िनधFनता सखु रोग
२.१० इ[ाय-इ[न•'िनधा3रण
िLय अsयेता! इ• आय और इ• न“H कोई अलग व"तु नह„ है । व"तुत: आप िजस Lकार
के वा"तु का िनमाFण करना चाहते ह‰, उसके अनसु ार आप "वयं जब ‘आय’ का अथवा ‘न“H’ का
िनधाFरण करते ह‰ उसे ही इ•-आय और इ•-न“H कहते ह‰ । जैसे मान लीिजए िक मुझे भांडार-गृह का
िनमाFण करना है तो उसके िलए इ• आय ‘गज’ होगा, =यंिू क गज आय ही इसके िलए शुभ होता है ।
ठीक इसी Lकार जो न“H, न“H-मेलापक के अनसु ार, आपके ज*म-न“H के अनक ु ू ल है वही ‘इ•-
न“H’ कहलाता है ।
२.१०.१ विस का मत
इ•-न“H के िनधाFरण म' विसˆ जी के न“H-मेलापक स…ब*धी मत को सदैव sयान रखना चािहए –
गहृ ेश-गहृ योभ¥¦यं मिृ त##यािqनयमेन तु ।
गृहेश#य वदेिqनyयं विस ो मुिनर§वीत् ।।
Kितपदाथ3 –
२.११ सारांश –
sवज, ध¯ू , िसंह, Ãान, गौ, गधा, हाथी, और कौआ इन आठ आयq क• zमश: पवू F इrयािद
िदशाओ ं म', ि"थित होती है । टोडरान*द जी ने ल…बाई और चौड़ाई के आधार पर आय-साधन के
तरीके को बताते ह†ए कहा िक िजस वा"तु के आय का साधन करना हो उसक• ल…बाई और चौड़ाई
का पर"पर गुणा करके गणु नफल म' ८ से भाग देने पर जो शेष बचे उसके अनसु ार, वा"तु के sवजािद
आय ८ िनकलते ह‰ । रामाचायF ने िप;ड के आधार पर आय-साधन का सHू बताते ह†ए कहा िक िजस
वा"तु का िनमाFण िकया जाना है, उसके िप;ड को ९ से गिु णत ८ से भाग देने पर, (उस वा"तु का)
३.२ उNेPय –
L"तुत इकाई के अsययन के बाद आप –
· िप;ड क• प‡रभाषा दे सकने म' समथF हो सक' गे।
· म'घनाथ के िप;ड-साधन को समझ सकने म' कुशल हो सक' गे।
· गणेशदैव€ के िपंड-साधन क• िविध को Lकट करने म' समथF हो सक' गे।
· çागिु ल के िपंड-साधन क• िविध को सोदाहरण कर सकने म' कुशल हो सक' गे।
· सधु ाकर ि_वेदी के िप;ड-साधन क• िविध को सोदाहरण समझा सकने म' िनपणु हो सक' गे।
· िप;ड के आधार पर आयािद-साधन को सोदाहरण L"ततु कर सकने म' द“ हो सक' गे।
३.३ िप0ड का #वIप -
िमHq! ‘िप;ड’ वा"त-ु शाv का एक महUवपणू F तUव है। इसके आधार पर आय, अंश,
±¢य, न“H आिद अनेकq िनणाFयक तUव िनधाF‡रत िकए जाते ह‰। यह िप;ड =या तUव है? इसका
साधन कै से होता है ? और इसके आधार पर अ*य तUवq का €ान कै से करते ह‰?
Kितपदाथ3 –
३.४.१.१ सू' –
इ• न“H × १७ = Lथम गुणनफल
Lथम गणु नफल ÷ ८ = लिnध: शेषं च
इ• आय – शेष = अ*तर (शेष से कम होने पर इ• आय + ८ करके उसम'
शेष घटाएं)
अ*तर ÷ इ• आय = लिnध (शेष बचने पर अतं र म' ८ जोड़कर पनु : ३ से
भाग द')
लिnध × २७ = ि_तीय गणु नफल
Lथम गुणनफल + ि_तीय गणु नफल = िप;ड
बोध Kl
L.१ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं
–
(त) ‘अrयि•’ म' १८ वणF होते ह‰ ()
(थ) ‘अगािÃ’ से २७ संgया अिभLेत है ()
(द) िप;ड साधन म' ‘इ• आय’ क• आव>यकता नह„ है ()
(ध) वगाFकार वा"तु म' िप;ड और “ेHफल म' अभेद होता है ()
(न) िप;ड म' ल…बाई का भाग देने पर चौड़ाई का €ान होता है ()
३.४.२.१ सू'
{८ × इ• आय} – इ• न“H = अ*तर
न घटने पर, {८ × इ• आय} म' २७ जोड़कर, २७ + {८ × इ•आय} –
इ• न“H
अतं र × ६४ = गणु नफल
गुणनफल + इ• आय = योगफल
३.४.२.२ उदाहरण
माना ‘इ• आय’ ३ और ‘इ•न“H’ ४ है ।
{८ × ३ = २४} – ४ = २० अ*तर
२० × ६४ = १२८० गुणनफल
१२८० + ३ = १२८३ योगफल
१२८३ ÷ २१६ = ५ लिnध:, २०३ शेष
अत: ‘िप;ड’ २०३
बोध Kl
L.२ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं
–
(क) {८ × इ• आय} – इ• न“H ()
(ख) ‘इ• न“H’ के न घटने पर कुछ नह„ कर' गे ()
(ग) ‘वेदषड•न’ म' आय को जोड' ()
(घ) त•ं अथाFत् जोड़ना ()
(ङ) ‘भूपŒक्’ अथाFत् २१६ ()
अsयास Kl
L.२ गणेश दैव€ के अनसु ार िप;ड का साधन कर' ।
__________________________________________________________
__________________________________________________________
_________________________________________________________
_________________________________________________________
३.४.३ ®ागुिल का मत –
३.११ सारांश –
आयताकार या वगाFकार वा"तु के िलए ‘िप;ड’ क• ‘“ेHफल’ स€ं ा उिचत एवं गिणतीय िस~ांतq के
अन[ ु प कही जा सकती है । िप;ड को ल…बाई से भाग देने पर चौड़ाई का €ान होता है और इसी Lकार
िप;ड को चौड़ाई से भाग देने पर ल…बाई का €ान होता है । म'घनाथ के िपंड-साधन-सHू के अनसु ार,
१७ गुिणत इ• न“H म' ८ का भाग देने पर जो शेष उसे ‘इ•आय’ से घटाकर जो अंतर Lा° होता है
उसे इ• आय से भाग देने पर जो लिnध Lा° होती है उसे २७ से गुणा करने पर जो गणु नफल उसे १७
गिु णत इ• न“H म' जोड़ने पर िप;ड का €ान होता है । गणेश दैव€ के अनसु ार ८ गिु णत इ• आय म'
से इ• न“H घटाने पर जो अ*तर Lा° होता है उसे ६४ से गुना करके गुणनफल Lा° होता है । इस
गुणनफल म' इ• आय को जोड़ने पर जो योगफल उसे २१६ से भाग देने पर शेषतु`य ‘िप;ड’ का €ान
Lा° होता है । çागिु ल के अनसु ार, इ• न“H म' १ घटाकर जो अतं र Lा° होता है उसे १५२ से गणु ा
करने पर Lथम गुणनफल Lा° होता है । इसम' १८ जोड़ने पर Lथम योगफल Lा° होता है । इसी Lकार
इ• आय म' १ घटाकर जो अंतर Lा° होता है उसे ८१ से गुणा करने पर ि_तीय गणु नफल Lा° होता है
। इस ि_तीय गुणनफल म' Lथम योगफल को जोड़ने पर ि_तीय गणु नफल Lा° होता है । इसे २१६ से
भाग देने पर जो शेष Lा° होता है उसे ‘िप;ड’ कहते ह‰ ।
३.१२ श†दावली –
इ•भात् = इ• न“H से
अगािÃ = २७
नागा•ने•ायात् = ८ गुिणत आय से
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 49
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
ऋ“म् = न“H
भाढ्यात् = २७ जोड़ने से
वेदषड•नं = ६४ गिु णत
त•ं = िवभािजत
भूपŒक् = २१६
दै•यFम् = ल…बाई (को)
¯येके[•3हतािYबाणशिशनोऽyय[्या युता#तेऽिप च,
¯येके[ायहतैकनागसिहता: ष0मू˜छ3 नािभह3ता:।
शेषं •े'फलं भवेदिभमतं #वे[ायन•'गं,
¢येके•“F = इ• न“H - १
अrय•्या = १८ के _ारा
¢येके•ाय = इ• आय – १
एकनागसिहता = ८१ जोड़ने पर
ष;मÒू छF नािभहFता: = २१६ के _ारा भाग देने पर
३.१६ िनबqधाyमक Kl –
१. िप;ड-साधन म' म'घनाथ के मत पर Lकाश डािलए ।
२. िप;ड-साधन म' गणेश दैव€ के मत पर Lकाश डािलए ।
३. िप;ड-साधन म' çागिु ल के मत पर Lकाश डािलए ।
Kितपदाथ3
यहां उ£ ‘म*Hी’ के गृह के मान के समान व9Fमान समय के मि*Hयq के आवासq के मान
समझ सकते ह‰।
बोध Kl
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 60
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
L.३ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं
–
(क) म*Hी के गृहq क• चौड़ाई zमश: ६-६ हाथ कम होती है ()
(ख) मHं ी के Lधान गृह क• चौड़ाई ६० हाथ होती है ()
(ग) म*Hी-गृह क• चौड़ाई से अ•मांश अिधक ल…बाई होती है ()
(घ) म*Hी के ‘मsयम’ गृह क• चौड़ाई ६० हाथ है ()
(ङ) मHं ी के ‘अधम’ गृह क• ल…बाई ५० हाथ है ()
अÐयास Lp
L.३ म*Hी-गृह के Lकारq का िन[पण कर' ।
____________________________________________________
____________________________________________________
____________________________________________________
____________________________________________________
बोध Kl
L.५ िन…निलिखत वा=यq म' सही के आगे (√) का और गलत के आगे (×) का िचÏ लगाएं
–
(क) ßाहमण के पचं िवध-गृहq क• चौड़ाई zमश: ४-४ हाथ कम होती है ()
(ख) “िHय के Lधान गृह क• ल…बाई ३३.१२ हाथ होती है ()
(ग) “िHय के मsयम गृह क• चौड़ाई २० हाथ होती है ()
(घ) वै>य के ‘मsयम’ गृह क• ल…बाई २४.८ हाथ है ()
(ङ) श±ू के ‘गौण’ गृह क• ल…बाई २० हाथ है ()
अÐयास Lp
L.५ वै>य वणF के सभी गृहq के Lमाण बताइए ।
__________________________________________________________
__________________________________________________________
__________________________________________________________
__________________________________________________________
४.९ साराश
ं –
राजा इrयािद के पाचं Lकार के गृहq का िन[पण िकया है, जो zमश: - १. उ9मो9म, २. उ9म, ३.
मsयम,
४. अधम, और ५. अधमाधम । ये सभी कोिटयां उनके दै•यF और िव"तृित के आधार पर िनधाF‡रत क•
गयी ह‰ । राजगृह के जो ५ भेद बताए गए ह‰ उनम' सवFÙेˆ ‘उ9मो9म’ या ‘Lधान’ सं€क भेद क• चौड़ाई
१
१०८ हाथ तथा चौड़ाई के मान क• सवा (१ )गुिणत या दसू रे शnदq म' कह' तो चौड़ाई के मान से
४
चतथु ाÖश अिधक ल…बाई होती है । सेनापित के भी गृह के ५ भेद ह‰ जो िक zमश: चौड़ाई म' ६-६ हाथ
छोटे होते जाते ह‰ । आचायF ने Lधान गृह क• चौड़ाई ६४ हाथ बताई है । इसी Lकार सेनापित के गृहq
क• चौड़ाई के मान म' उसका छठा भाग (१/६) जोड़ िदया जाए तो उस गृह क• ल…बाई का €ान हो
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 67
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
जाता है । मंिHयq के घरq के जो मान बताए गए ह‰ उनम' ‘उ9मो9म’ या ‘Lधान’ घर क• चौड़ाई ६०
हाथ होती है । शेष घरq क• चौड़ाई Lधान घर क• चौड़ाई क• तल ु ना म' zमश: ४-४ हाथ कम होती है
। मिं Hयq के घरq क• चौड़ाई म' उनका अ•माश ं (१/८) यिद जोड़ िदया जाए तो ल…बाई का मान Lा°
होता है । ›योितषी, पुरोिहत और वै? इन तीनq के ‘उ9मो9म’ या ‘Lधान’ घर क• चौड़ाई ४० हाथ
होती है । शेष घरq क• चौड़ाई Lधान घर क• चौड़ाई क• तल ु ना म' zमश: ४-४ हाथ कम होती है ।
इनके घरq क• चौड़ाई म' उनका षˆाश ं (१/६) यिद जोड़ िदया जाए तो ल…बाई का मान Lा° होता है ।
ßाàण आिद वणœ के Lधान गृह क• चौड़ाई zमश: ३२ हाथ, २८ हाथ, २४ हाथ, २० हाथ होती है
और Lधान घर क• तल ु ना म' शेष गृह zमश: ४-४ हाथ छोटे होते ह‰ । ßाàण वणF के घर क• ल…बाई,
चौड़ाई के दशांश अथाFत् दसव' िह"से (१/१०) से अिधक “िHय के गृह क• ल…बाई उसक• चौड़ाई से
१/८ गनु ी अिधक, वै>य के गृह क• चौड़ाई म' १/६ िह"सा जोड़ने पर उसक• ल…बाई और शू± के गृह
क• चौड़ाई म' उसका चतथु ाÖश (१/४) जोड़ने पर उसके गृह क• ल…बाई Lा° होती है ।
४.१० श†दावली –
अ•ो9रं = १०८ नृपमि*दरम् ।
िव"तारं = चौड़ाई
अ•ा•ोिनतािन = ८-८ कम
पादसंय£ ु ं = एक चौथाई अिधक जुड़ा (सवा)
सãनां = घरq के
चत:ु षि•: = ६४ ।
षड्भागसमि*वतं = १/६ िह"सा जुड़ा
दै•यFम् = ल…बाई
वे>मािन = घर
"वा•ांशयतु ा = अपने अ•मांश १/८ से जड़ु ा
परु ोधस: = परु ोिहत का
िभषज: = वै? का
आषोडशात् = १६ से लेकर
*यनू तरम् = कम
सदशांशं = दशांश १/१० से य£ु
“H"य = “िHय का
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 68
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
अ•ांशसंयुतं = १/८ जुड़ा
४.११ बोध KlŠ के उpर -
L.१ (क) (×) (ख) (√) (ग) (√) (घ) (×) (ङ) (×)
L.२ (क) (×) (ख) (√) (ग) (√) (घ) (×) (ङ) (×)
L. ३ (क) (×) (ख) (√) (ग) (√) (घ) (×) (ङ) (×)
L. ४ (क) (√) (ख) (√) (ग) (√) (घ) (×) (ङ) (×)
L.५ (√) (ख) (×) (ग) (√) (घ) (×) (ङ) (√)
ख0ड – 2
वा#तुपद Yार िनधा3रण, भेद, #वIप एवं महु p
o ा3िद िवचार
१.२ उNेPय
इस इकाई के अsययन के प>चात् आप जान ल'गे िक –
‘_ार िनधाFरण’ वा"तु शा"H का अrय*त महrवपणू F िवषय है। वा"तपु द _ार िनधाFरण के _ारा
शा"Hानसु ार िनिणFय कर गृह का मgु य _ार का िनमाFण िकया जाता है। गृहश
े (गृह का "वामी) के
रािशवशाद् _ारिदिÀवभाग का िनधाFरण करते ह†ए ›योितिनFब*धकार कहते ह‰ िक –
कुलीरािलझषाणां च पूव3Yारं शुभावहम।्
२८ १३
२७ १४
२६ १५
२५ २३ २२ २१ २० १९ १८ १६
१७
२४
पिvम
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 77
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
उपर ३२ _ारq का zमश: फल कहा गया है। जैसे िक पवू F म' Lथम िशिख भाग म' _ार बनाने से भय २
म' पयF*त भाग म' _ार बनाने से क*या सतं ित, ३ जय*त भाग म' Lचरु धन लाभ आिद सम"त फल,
"प²ट है आप सभी समझ ही गये हqगे। उपर “ेH म' दािहन' ओर दि“ण तथा बाय' और उ9र िदशा kहण
करना चािहए।
उपय3ु¦त संदभ3 म) िन‚न बचन भी „‡ट¯य है-
पूवा30यैशाqयां या‚या¬नेरययां दि•णािनजानीयात।्
Yारािण नैऋ3ताy पिvमाqयुद¦#थािनवाय¯याम।् ।
आ¬नेयमि¬नभयं पाज3qयं#'ीKसूितदं Yारम।्
Kचुरधनदं जयqतं नपृ वfलभकाdर माहेq„म।् ।
शौयgaोध: Kचुर: सyयऽनतृ वािदतं भृशेकौय3म।्
चौयx तथाqतdर•े Kा¬Yारािण Kिद‡टािन।।
वाय¯येऽfपसुतyवं Kै‡यं पी‡णेऽथनीचता िवतथे।
ब¹'पानपु'ं वृहy•ते या‚यािप रौ„म।् ।
गाqधवg गqधलं नपृ चौय3भयाय भगृं राजाrयम।्
मृगमिप सुतवीय3@नं दि•णतो Yारिनदgश:।।
िप'ये शरीरपीडा दौवाdरकसंि¨ते च dरपुवृि°:।।
सु}ीव धनहािन: पु'धनाढयं कुसुमदqतम।्
वाIणमथ3 िनचयदं नृपभयदं चासुर िविनिद‡ं टम।् ।
शोषं धनहािनकरं बह›रोगं पापयhमाrयम् ।।
रोगमखं बधबqधदमाyमजवैरािभवृि°दं नागम् ।
मुrयं धनसतु वृि°दमनेककfयाणदं च भfलाटम् ।।
सौ‚यं धनप'ु करं भौजड.गे प'ु वैरdरपुवृि°:।
अिदतौ #'ीदोषा: #यिु द3तौ धनं स•यं याित।।
६४ पद िवभाग –
अ‡टा‡टकपदमथवा कृyवा रेखाPच कोणगाि#तय3क्।
§´ा चतु‡पदोऽि#मqनध3पदा §´कोण#था:।।
अ‡टौ च बिह‡कोणेबध3पदा#तदुभयि#थता: साधा3:।
उ¦तेsयो ये शेषा#ते िYपदा िवंशित#ते च।।
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 78
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
अथाFत् ६४ पद का वा"तु बनाने के िलए पवू F िविध से ९ रे खाय' पवू F पि¦म
पिvमYारफलम्
सुतपीडा dरपुवृि°न3 सुतधनाि…ः सुताथ3फलस‚पत।्
धनस‚पिpनृपितभयं धन•यो रोग इyयपरे ।।
िपतर पद _ार हो तो पHु q का क•, दौवा‡रक पद हो तो शHु वृि~, सkु ीव पद म' _ार हो तो
धन व पHु वृि~, प²ु पद*त म' _ार हो तो सतु ाथFफल, व[णपद म' हो तो धनाि° असरु पद हो तो
राजभय, शोष पद हो तो धन नाश तथा पापयÎमा पद म' _ार हो तो रोगभय होता है।
उpरYारफलम्
वधबqधो dरपुवृि°ः सुतधनलाभः सम#तगुणस‚पत।्
प'ु धनाि…व¥रं सतु ेन दोषाः ि•या नैः#वम् ।।
उ9र िदशा म' रोग पद पर _ार हो तो मृrयु ब*धन, सपFपद म' _ार हो तो शHु वृि~, मgु य पद
म' _ार हो तो धन व पHु का लाभ, भ`लाट पद _ार हो तो सब गुण व स…पि9याँ, सोम पर _ार हो तो
पH से _ेष, चरक पद पर _ार हो तो सतु दोष अिदित पद म' _ार हो तो vी _ारा क•, िदित म' _ार हो
तो िनधFनता होती है।
तुला, मेष, वृष, वृि¦क रािश के सयू F म' दि“ण, उ9र िदशा म' दरवाजे का मुख रखना चािहए। इसके
िवपरीत रािशयq के सयू F म' मीन-धन-ु क*या म' जो मकान बनता है वह बुि~हीन रोग व शोक य£ ु
होता है।
महिष3 गग3 के मत से Yार न•' -
कृिpकाभगमैq„ं च िवशाखा च पनु व3सःु ।
ित‡यो ह#त#तथाऽऽ„ाx च aमात् पूवgषु िनिद3शेत।् ।
िच'ा िवशाखा पौ‡णं च नैऋ3तं यमदैवतम्।
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 80
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
वैiदेवािiनं मै'ं aमाद् दि•णसंिŸतम।् ।
िप यं Kो पदाय3‚णमाषाढं च िYदैवतम।्
वाIणािiनसािव'ं aमात् पिvम सिं Ÿतम।् ।
#वाyया»े षािभिजyसौ‚यं वै‡णवं वासवं तथा।
या‚यं §ा´ं aमात् सौ‚यYारेषु च िविनिद3शेत।् ।
पवू F िदशा म' ईशान से चलकर Lदि“णा zम से कृ ि9का, प.ू फा., ›येˆा, िवशाखा, पनु वFस,ु
प²ु य, ह"त, आ±ाF ये पूवF िदशा के _ार न“H ह‰। िचHा, िवशाखा, रे वती, मल
ू , भरणी, उ. षा., अिÃनी,
अनरु ाधा ये दि“ण िदशा के _ार न“H ह‰। मघा, उ. भा. उ. फा. उ. षा. िवशाखा, शतिभषा, अिÃनी,
ह"त, ये पि¦म िदशा के _ार न“H ह‰। "वाती, Äे षा, अिभिजत,् मृगिशरा, Ùवण, ›येˆा, भरणी,
रोिहणी ये उ9र िदशा के _ार न“H ह‰। _ार न“H व गृह "वामी से च*±मा व तारा क• अनक ु ू लता
देखकर _ार िनि¦य करना चािहए। आय का िवचार (sवजािद) भी आव>यक है।
१.३.३ Yारवेध का फल -
माग3तIकोणकूप#त‚भœमिव°मशभ ु दं Yारम।्
उ˜¼ायाद् िYगुणिमतां yय¦yवा भूिमं न दोषाय ।।
दरवाजे के सामने मागF (सीधा Vertical गिलयारा), पेड़, कोना, कुआँ, ख…भा, पानी
िनकलने का "थान (नाली) हो तो अशभु होता है। लेिकन दरवाजे क• ऊँ चाई से दगु नी दरू ी पर उ£
चीज' हq तो वेध दोषकारक नह„ माना जाता है। यह दरू ी भवन क• ऊँ चाई क• दगु नी न होकर दरवाजे
क• ऊँ चाई से दगु नी होनी चािहए।
नारायण मत म) -
कोणा•वœमकूपकद3 - मतIYा#तंभदेवेि•तं।
स¢ो˜चं िYगुणािधकांतरभवे वेधे न दोषः िकल।।
मागF, Þम (कुलाल चzािद), कुआ, क•चड़, वृ“ _ार*तर, ख…भा, देवमि*दर से िव~ घर
का मखु नह„ बनाना चािहये और घर क• ऊँ चाई से दगू नी दरू ी होने पर ये दोष दाता नह„ होते ह‰।
Yारो˜¼ायिYगिु णतां भिू मं yय¦yवा बिहः ि#थतः।
न दोषाय भवेYेधो गृह#य गृिहणोऽथवा ।।
बोध KPन : -
1. िन…न म' ‘झष’ का शािnदक अथF है?
क. मीन ख. वृष ग. तुला घ. िमथुन
2. मकर और िमथनु रािश वालq के िलए िकस िदशा म' _ार बनाना शभु होता है?
क. पवू F म' ख. पि¦म म' ग. उ9र म' घ. दि“ण म'
3. वृहNैव€रंजन k*थ के रचियता कौन है?
क. वराहिमिहर ख. भा"कर ग. रामदीन दैव€ घ. वासदु वे
4. िन…न म' “िHय रािशयाँ कौन-कौन सी है?
क. िमथनु , ककF एवं िसहं ख. वृष, क*या एवं मकर ग. तल ु ा, वृि¦क एवं मेष घ. कोई नह„
5. _ार के उपर _ार बनाना कै सा होता है।
क. शभु ाशभु ख. शभु ग. अशभु घ. कोई नह„
6. एकाशीित पद चz म' बाहर देवताओ ं क• सgं या िकतनी है?
क. ३३ ख. ३४ ग. ३२ घ. ३०
२.२ उNेPय
इस इकाई के अsययन के प>चात् आप जान ल'गे िक –
अब _ार तथा उसके भेदाभेद के स*दभF म' आइए िव"तारपूवFक जानकारी Lाि° करते ह‰।
_ार वणFन करते ह†ए आचायF कथन है िक –
Yारमायात: कायx प'ु पौ'धनKदम।्
िव#तारकोणYारं यNु:खशोकभयKदम।् ।
अथाFत् भूख;ड के आयाम (चौड़ाई) म' िकया ह†आ _ार "थापन पHु , पौH और धन को देने वाला होता
है। िव"तार एवं कोण म' "थािपत _ार द:ु ख, शोक और भय को Lदान करता है।
अत: भख ू ;ड (जहाँ गृह िनमाFण करना हो) का अ²टधा िवभाजन कर यहाँ सभी िदशाओ ं म' Lदि“णा
zम से एक-एक Lको²ठq का आपक• जानकारी के िलए फलादेश िकया जा रहा है –
चारŠ िदशाओ ं म) Ÿे‡ठ Yार #थान के वल सात ही माने गये ह¾। ये ह¾ – जयqत, इq„, वृहy•',
उपर के “ेH म' िदए गए रे खािं कत भाग म' ही _ार बनाना चािहए।
साधारण या िन…न कोिट के _ार अrय*त आव>यक होने पर ही बनाना चािहए। ये काम चलाने वाले
हो सकते ह‰। उदाहरण के िलए आप नीचे िदये गये “ेH को देख सकते ह‰ -
Ø पजF*य भाग म' _ार बनाने से घर म' क*याओ ं क• वृि~ होती है।
Ø सयू F भाग म' _ार बनाने से गृह सद"यq म' zोध क• वृि~ होती है।
Ø सrय के भाग म' _ार बनाने से झूठ बोलने म' वृि~ होती है।
Ø दौवा‡रक के भाग म' _ार बनाने से अrयिधक ¢यय क• वृि~ होती है।
Ø सपF के भाग म' _ार बनाने से पHु से कलह क• वृि~ होती है।
Ø इसके अित‡र=त शेष भागq म' _ार िनमाFण विजFत होता है।
२.३.१ आठ YारŠ का फल –
दु:खशोकौ धनKाि…न3पृ पजू ा मह°नम।्
#'ीजqम प'ु ता हािन: KाचीYारफलािन वै।।
िनधनं बqधनं भीित: पु'ावाि…ध3नागम:।
यशोलाभPचौरभयं ¯यािधभीितPच दि•णे।।
श'ुवृि°: पु'हािनल3hमीKाि…ध3नागम:।
सौभा¬यं धनलाभPच दु:खं शोकPच पिvमे।।
२.४ सारांश
इस इकाई के अsययन के प>चात् आपने जान िलया है िक सामा*यतया जब आप गृह का
िनमाFण करते ह‰ तो भिू म और "थान के अनसु ार तथा "व-"व सुिवधानसु ार गृह म' _ार का िनमाFण करते
ह‰। कुछ लोग मgु य _ार (Lवेश _ार) के अित‡र=त भी गृह के पीछे का _ार, दािहन' ओर _ार तथा बाय„
ओर _ार के साथ-साथ अ*या*य _ार का भी िनमाFण करते ह‰, पर*तु शा"H ‘_ार िनमाFण’ के स*दभF म'
हम' =या आदेश करता ह‰ इसका यहाँ हम सभी अsययन करने जा रहे ह‰।
सवFLथम _ार तथा उसके भेद के बारे म' हम' सामा*य िनयम जान लेना चािहये िक – _ार के ऊपर _ार
नह„ बनाना चािहए। यिद _ार के ऊपर _ार हो तो ऊपर वाला _ार छोटा होना चािहए। यिद घर म' एक
ही _ार देना हो तो पवू F िदशा का _ार Ùे²ठ होता है। दो _ार बनाना हो तो पवू F और पि¦म _ार बनवाना
चािहए। यिद तीन _ार बनाना हो तो िकसी भी तीन िदशा म' बनाया जा सकता है, पर*तु मgु य _ार
दि“ण िदशा म' नह„ बनाना चािहए – जैसा िक आचायœ का भी कथन है – मल ू _ारं दि“णे वजFनीयम्।
भवन के चारq कोनq म' _ार नह„ बनाना चािहए। इससे कोणवेध लगता है। घर के _ार को हमेशा भीतर
क• ओर खोलना चािहए। _ार का "वयं ब*द होना कुल का नाशक होता है – िपिहते "वयं कुलिवनाश:।
भवन म' सभी दरवाजq क• ऊँ चाई एक जैसी होनी चािहए। अिधक ऊॅचाई वाला _ार राजा एवं द"यु से
भय उrप*न करता है। गृहपित क• ऊँ चाई से कम ऊँ चा _ार िवपि9 उrप*न करता है।
१५०,१४०,१३०,११६,१०९, एवं ८० अंगुल का ऊँ चा _ार उ9म होता है। २४ अंगुल = १ हाथ =
डेढ़ फ•ट। _ार वणFन करते ह†ए आचायF कथन है िक –
Yारमायात: कायx प'ु पौ'धनKदम।्
िव#तारकोणYारं यNु:खशोकभयKदम।् ।
अथाFत् भूख;ड के आयाम (चौड़ाई) म' िकया ह†आ _ार "थापन पHु , पौH और धन को देने वाला होता
है। िव"तार एवं कोण म' "थािपत _ार द:ु ख, शोक और भय को Lदान करता है।
३.२ उNेPय
इस इकाई के अsययन के प>चात् आप जान ल'गे िक –
मgु य _ार िकसी भी भवन का एक अrय*त महrवपणू F भाग या िह"सा होता है, यह सवFिविदत है। इसक•
"थापना एवं ि"थित का िनणFय गृह"वामी के िलए भी अrय*त आव>यक होता है। वा"तश ु ा"H के
अनसु ार _ार क• ि"थित के िविवध भेद है।
मgु य _ार क• ि"थित अथाFत् भूख;ड के मुख क• ि"थित गृह"वामी क• रािश के अनुसार होना चािहये।
Lाचीन k*थq म' अलग-अलग रािश के जातकq के अनसु ार मgु य _ार क• िदशा के बारे म' िनद—िशत
िकया गया है। Lाचीन k*थ ›योितिनFब*ध, वा"तरु ाजव`लभ एवं वृहNैव€रंजन के मतानसु ार िविभ*न
मेषािद रािशयq के जातकq के िलए _ार क• िदशा के स*दभF म' िनद—श िन…न Lकार से है –
· ›योितिनFब*धो=त – इसके अनसु ार ककF , वृि¦क और मीन रािश वालq के िलए पवू F िदशा
म' तथा तुला, कु…भ व वृष रािश वालq के िलए पि¦म िदशा म' एवं मेष, िसंह व धनु रािश
वालq के िलए उ9र िदशा म' _ार अथाFत् गृह का मख
ु बनाना उ9म होता है।
· वा"तरु ाजव`लभो=त – वृि¦क, मीन और िसंह रािश वालq के िलए पवू F िदशा, क*या ककF
व मकर रािश वालq के िलए दि“ण िदशा म' धन,ु तुला, िमथुन रािश वालq के िलए पि¦म
िदशा म' और कु…भ, वृष तथा मेष रािश वालq के िलए उ9र िदशा म' मकान का _ार बनाना
Ùे²ठ होता है।
· वृहNैव€रंजन – पवू — ßàाणराशीनां वै>यानां दि“णे शुभम्।
श±ू ाणां पि¦मे _ारं नृपाणामु9रे "मृतम।् ।
य?िप उपयF=ु त कई िवक`प शा"Hq म' उपलnध ह‰ पर*तु वृहNैव€रंजन _ार िनद—िशत भेद सवFमा*य माना
जाता है, इसक• पिु • के िलए वा"तुाLदीप म' कहा गया है –
"याrLाÚ† खं ßाàणरािशसÓ चोदÚ† खं “िHयरािशकानाम्।
वै>य"य €ेयं यमिदंगमुखं िह शू±ािभधानामथF पि¦मा"यम्।।
एक "थूल Lमाण के [प म' कहा गया है िक मgु य _ार भवन के मsय म' नह„ होना चािहये। यह भवन
क• मsय रे खा क• बांयी तरफ होना चािहये। इसक• सही ि"थित €ात करने के िलए भवन क• चौड़ाई
को ९ बराबर िह"सq म' बाँटा जाता है। िफर दॉयी तरफ से ५ भाग एवं बाँयी तरफ से ३ भाग छोड़कर
अथाFत् बॉंयी तरफ से चौथे भाग म' _ार "थापना शभु मानी जाती है।
सड़क
भखू ;ड
िजस गृह के “ेH म' मgु य _ार बनाया जायेगा। उस “ेH का kह, भवन म' रहने वालq पर,
अपने "वभाव के अनसु ार शभु , अशभु Lभाव डालता है। मgु य _ार के िलए बधु , गÂु , शz
ु , “ेH
उ9म व सयू ,F च*±, मगं ल, शिन, राह† एवं के तु “ेH rया›य माने जाते ह‰।
८१ वगœ वाले परमशाियकम् पद िव*यास पर कुल ४५ देवता ि"थत होते ह‰ इनम' से बाहरी सीमा पर
३२ वगœ म' ३२ देवता ि"थत है। इन देवताओ ं के वगœ पर मुgय _ार क• ि"थित के िभ*न-िभ*न फल
कहे गये ह‰ जो िन…न Lकार है –
पद…शाियकम् पद िव*यास
उ9र िदशा –
वधव*धो ‡रपुविृ ~: सतु धनलाभ: सम"तगुणस…पत्।
पHु धनाि°वæर सतु ेन दोषा: िvया नै:"वम।् ।
1. रोग – इस वगF पर _ार बनाने से मृrय,ु ब*धन, "Hीहािन एवं िनधFनता होती है।
2. नाग – इस वगF पर _ार बनाने से शHवु िृ ~, िनबFलता एवं भय होता है।
3. मgु य – इस "थान पर _ार बनाने से पHु - धनािद लाभ होता है।
4. भ`लाट – इस "थान पर _ार बनाने से धन- धा*य तथा स…पि9 क• वृि~ होती है।
5. सोम – इस "थान पर _ार बनाने से पHु , धनागम एवं सवFसमृि~ होती है।
6. मृग – इस वगF पर _ार बनाने से शHभु य तथा राजभय होता है।
7. अिदित – इस वगF पर _ार बनाने से कुल क• िvयq म' दोष, शHभु य एवं मानिसक अशािं त
होती है।
8. िदित – इस वगF पर _ार बनाने से धनागम एवं सवF समृि~ म' [कावट होती है।
३.३.१ मुrय YारŠ के अqय भेद –
1. स¢य _ार – Lथम _ार से Lवेश के बाद भीतरी _ार यिद दॉयी तरफ पड़े तो उसे स¢य _ार
कहते है। ऐसे _ार से सखु धन-धा*य एवं पHु -पौHािद व सवFसमृि~ होती है।
2. अपस¢य _ार – यिद Lथम _ार से Lवेश के उपरो=त भीतरी _ार यिद बॉयी तरफ ि"थत हो तो
_ार को अपस¢य कहते है। अपस¢य _ार से धन क• कमी ब*ध-ु बा*धवq क• कमी, "Hी क•
दासता तथा रोग वृि~ होती है। वा"तश ु ा"H के अनसु ार वामावतF _ारा सदा िवनाशकारक और
स¢य सदा क`याणकारक होता है।
३.४ सारांश
इस इकाई के अsययन के प>चात् आपने जान िलया है िक शा"H वचन है िक - [प बदलता
है "व[प नह„। अत: वा"तश ु ा"H के अनुसार भी गृह िनमाFण क• पर…परा म' मgु य _ार का [प तो
आव>यकतानसु ार प‡रवतFन िकया जा सकता है, िक*तु मgु य _ार का शा"Hोिचत "व[प
अप‡रवतFनशील है। मgु य _ार हेतु सवFÙे²ठ ‘सात #थान’ बतलाय' गय' ह‰ – जय*त, इ*±, वृहr“त,
व[ण, मgु य, भ`लाट तथा सोम भाग। इ*ह„ "थानq पर ही गृह का मgु य _ार सवÜ9म बतलाया गया
है। आचायœ _ारा मgु य _ार को हमेशा सजाकर रखने का िवधान कहा गया है। वा"तरु ाजव`लभकार
ने तो मgु य _ार को दि“ण िदशा म' कभी भी िनिमFत नह„ करने का अपना मत Lकट िकया है। यथा
- मलू _ारं दि“णे वजFनीयम।्
मgु य _ार हमेशा दो प`लq कपाटq वाला होना चािहये। मुgय _ार को मागFवेध, वृ“वेध, कोणवेध,
कूपवेध, "त…भवेध, नालीवेध, मंिदरवेध से मु=त होना चािहए। ये सभी वेध खतरनाक होते ह‰। िजस
मgु य _ार िकसी भी भवन का एक अrय*त महrवपणू F भाग या िह"सा होता है, यह सवFिविदत है। इसक•
"थापना एवं ि"थित का िनणFय गृह"वामी के िलए भी अrय*त आव>यक होता है। वा"तश ु ा"H के
अनसु ार _ार क• ि"थित के िविवध भेद है।
मgु य _ार क• ि"थित अथाFत् भूख;ड के मुख क• ि"थित गृह"वामी क• रािश के अनुसार होना चािहये।
आइए हम सब _ार िनणFय, _ार के भेद एवं मgु य _ार के प>चात् अब _ार "थापन िवधान
का अsययन करते ह‰।
४.२ उNेPय
इस इकाई के अsययन के प>चात् आप जान ल'गे िक –
Ø _ार "थापन िकसे कहते है।
Ø _ार "थापन कै से करना चािहए।
Ø _ार "थापन का शभु ाशभु महु d9F कौन सा है।
Ø गृह िनमाFण म' _ार "थापन का =या महrव है।
Ø वा"तु शा"H के अनतगFत ‘_ार "थापन’ का Lयोजन =या है।
४.३ Yार #थापन मुहop3
गृह िनमाFण के अ*तगFत _ारq के िविवध िवषयq का €ान करते ह†ए अब हम सभी _ार "थापन
के िलए शा"Hो=त शभु ाशभु महु d9F का अsययन करने जा रहे ह‰।
आचायF रामदैव€ महु d9िF च*तामिण k*थ म' ‘Yार#थापन मुहop3’ का Lितपादन करते ह†ए कहते है िक
– अिiनी चोpरा ह#तप‡ु यŸुितमृगेषु च। रोिह0यां #वाितभेऽqyये च YारKशाखां Kरोपयेत।् ।
अथाFत् अिÃनी, तीनो उ9रा, ह"त, प²ु य, Ùवण, मृगिशरा, रोिहणी, "वाती और रे वती इन ११ न“Hq
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 112
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
म' _ार "थापना करना चािहए।
महु d9मF =ु तावली का कथन है –
भवेyपषू णी मै'प‡ु ये च शाaे करे दwिच'ाऽिनले चािदतौ च।
गु\Pचq„शुaाक3 सौ‚ये च वारे ितथौनqदपूणा3जया YारKशाखा।।
इसका अथF है िक रे वती, अनरु ाधा, प²ु य, ›ये²ठा, ह"त, अिÃनी, िचHा, "वाती, पनु वFसु इन ९ न“Hq
म', वृह"पित, च*±, शz ु , सयू F, बुध इन वारq म' और न*दा १,६,११, पणू ाF ५,१०,१५ और जया ३,८,१३
इन ितिथयq म' _ार Lशाखा का "थापना करना उ9म होता है।
Ãुवभे शुभवारे च ि#थरल¬ने शुभे ितथौ।
Yारं #था,यं मृगं िच'ं वगx सपं ि°व°3न:।।
Ýवु सं€क (तीनq उ9रा और रोिहणी), ि"थर रािश लÀन शभु ितिथ म' _ार"थापन शभु होता है। तथा
मृगिशरा, िचHा म' कुल व स…पि9 क• वृि~ करने वाला होता है।
चरि#थरे च न•'े बुधशुaिदने ितथौ।
शभ ु े कपाटयोग: #याद्िY#वभावोदये गहृ म।् ।
चर-ि"थर सं€क न“H बुध, शz ु , शभु ितिथ एवं ि_"वभाव लÀन म' _ार (चौखट) लगाना शभु होता
है।
eयोितKकाश का कथन –
अ#तदोषो' न }ा®: Kित दैविसको बुधै:।
ना#तदोष: सदा भानोन3 मै'ेq„#य नीचता।।
िव_ानजनq को _ार "थापन म' Lितिदनीय अ"तदोष नह„ kहण करना चािहए। सयू F का अ"त दोष एवं
िमH व नीचrव दोष भी नह„ होता है।
Yार#थापना म) शुभन•' –
Yार#थापनन•'ा0यु˜यqतेिiिन चोyतरा:।
#वातौ पूि‡ण च रोिह0यां Yारशाखावरोपणम।् ।
अिÃनी, तीनq उrतरा, "वाती, रोिहणी ये न“H _ार"थापन के िलये शभु होते है।
Yार#थापना के िलए ितिथिवचार: -
पचं मी धनदा चैव मिु ननqदवसौ शभ ु म।्
Kितपyसु न कyत3¯यं कृते दु:खमवा,नयु ात।् ।
िYतीयायां „¯यहािन: पशुप'ुिवनाशनम।्
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 113
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
तृतीया रोगदा ¨ेया चतुथ² भंगकाdरणी।।
कुल•यं तथा ष‡ठी दशमी धननािशनी।
िवरोधकृदमा पण ू ा3 न#या˜छाखावरोपणम।् ।
पंचमी ितिथ म' _ार "थापन करने से धन लाभ, इसके अित‡र=त सwतमी, अ²टमी, नवमी ितिथयॉं भी
शभु है। Lितपदा ितिथ को _ार "थापन करने से द:ु ख Lाि° होती है, अत: यह विजFत है। तृतीया म' रोग
चतथु F म' भगं , ष²ठी म' कुलनाश, दशमी म' धन नाश और पिू णFमा, अमाव"या वैरकारक होती है।
महु 9d क
F `प±ुम –
सयू F“ाF?गु नागा²टगुणदवेदै: शुभाशुभम्।
िशर: कोण_ारशाखा देहलीमsयगै: zमात्।।
४।८।८।३।४ न“H तक कपाटचz म' सयू F के न“H से म"तक, कोण, दरवाजq क• चौखट, देहली और
मsय म' zम से "थािपत करके शभु ाशभु समझकर आदेश देना चािहए।
"प²ट चz -
सयू F न“H से "थान िशर कोण शाखा देहली मsय
२७ न“H ४ ८ ८ ३ ४
फल शभु अशभु शभु अशभु शभु
४.४ सारांश
इस इकाई के अsययन के प>चात् आपने जान िलया है िक आचायF रामदैव€ महु d9िF च*तामिण k*थ म'
‘Yार#थापन मुहop3’ का Lितपादन करते ह†ए कहते है िक – अिiनी चोpरा ह#तप‡ु यŸुितमृगेषु
च। रोिह0यां #वाितभेऽqyये च YारKशाखां Kरोपयेत।् । अथाFत् अिÃनी, तीनो उ9रा, ह"त, प²ु य,
Ùवण, मृगिशरा, रोिहणी, "वाती और रे वती इन ११ न“Hq म' _ार "थापना करना चािहए।
महु d9मF =ु तावली के अनुसार रे वती, अनरु ाधा, प²ु य, ›ये²ठा, ह"त, अिÃनी, िचHा, "वाती, पनु वFसु इन
९ न“Hq म', वृह"पित, च*±, शz ु , सयू F, बधु इन वारq म' और न*दा १,६,११, पणू ाF ५,१०,१५ और
जया ३,८,१३ इन ितिथयq म' _ार Lशाखा का "थापना करना उ9म होता है।
Ãुवभे शुभवारे च ि#थरल¬ने शुभे ितथौ।
Yारं #था,यं मगृ ं िच'ं वगx सपं ि°व°3न:।।
Ýवु सं€क (तीनq उ9रा और रोिहणी), ि"थर रािश लÀन शुभ ितिथ म' _ार"थापन शभु होता है। तथा
मृगिशरा, िचHा म' कुल व स…पि9 क• वृि~ करने वाला होता है।
चर-ि"थर सं€क न“H बुध, शz ु , शभु ितिथ एवं ि_"वभाव लÀन म' _ार (चौखट) लगाना शभु होता
है।
िव_ानजनq को _ार "थापन म' Lितिदनीय अ"तदोष नह„ kहण करना चािहए। सयू F का अ"त दोष एवं
िमH व नीचrव दोष भी नह„ होता है।
४.५ पाdरभािषक श†दावली
Ùिु त – Ùवण।
मृग – मृगिशरा।
ख0ड – 3
गृहायु, दोष व वा#तुशािqत िवचार
वा"तु शाv मानव के क`याण का मागF Lश"त करता है अतः मेरा िवÃास है िक आपक•
वा"तु शाv म' अrयंत Âिच है इसी कारण आप सभी लोग इस महrवपूणF पाठ्यzम को पढ़ रहे ह‰ । हम
सभी जानते ह‰ िक मानव क• मुgय आव>यकताओ ं म' भोजन िनवास एवं वv Lमख ु ह‰, िजनम' िनवास
का "थान अrयतं महrवपणू F "थान है, =यqिक कोई भी मानव या Lाणी एक िनि¦त िनवास "थान पर
सरु ि“त एवं भयम£ ु वातावरण म' िनवास करना चाहता है िजससे िक वह अपने इस जीवन म'
पा‡रवा‡रक सद"यq के साथ सुख पवू Fक एवं आनंदमय जीवन यापन का िनवाFह कर सक' वा"तु शाv
इ*ह„ िस~ांतq का Lितपादन करता है िक मन²ु य को िकस Lकार अिधकािधक सरु ि“त एवं सख ु मय
गृह िनमाFण क• संक`पना Lा° हो सके िजससे िक वह अपने अभी• को Lा° कर सक' । L"तुत इकाई
के माsयम से मन²ु य _ारा बनाए जाने वाले अपने सपनq के घर क• आयु का €ान अथाFत घर क• आयु
िकतनी होगी इसका €ान हम L"तुत इकाई म' Lा° कर' गे, =यqिक Lrयेक मन²ु य चाहता है िक जो गृह
िनमाFण वह कर आ रहा है, वह सरु ि“त एवं दीघFकालीन रहे । वा"तु शाv एवं ›योितष शाv म' िकस
Lकार के योग से गृह आयु का €ान िकया जाता है एवं िकन योगq से घर क• आयु अrयंत कम होती
है या शीö ही न• हो जाती है इन सब का अsययन हम L"तुत इकाई म' कर' गे।
१.२ उNेPय –
L"ततु इकाई के अsययन के बाद आप –
· वा"तु शाv के महrव को समझ सक' गे।
· गृह क• आयु के िवषय म' €ान Lा° कर' गे ।
· गृह क• आयु का साधन िकस Lकार िकया जाता है इस िवषय म' भी आप जान
जाएंगे।
· यह समझ जाएंगे िक गृह क• आयु के वषF Lमाण िकतने Lकार के हो सकते ह‰ ।
· यह बता सक' गे िक गृह शीö न• होगा या उसक• आयु दीघF रहेगी ।
१.३ गृहायु िवचार –
वा"तु शाv के िस~ातं q के अनसु ार मन²ु य _ारा बनाए जाने वाले गृह क• आयु का िवचार
वा"तु शाv म' िकया गया है । मानव क• एक "वाभािवक िज€ासा होती है िक वह जो कोई भी कायF
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 125
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
कर रहा है उसका फल उसे अÒछा Lा° हो एवं वह दीघFकाल तक रहे । वतFमान समय म' मन²ु य के
जीवन म' गृह िनमाFण क• संक`पना एक "वwन क• भांित होती है । जब भी मन²ु य गृह का िनमाFण करना
चाहता है तो वह इस Lकार के गृह का िनमाFण करना चाहता है िक वह भवन Lाकृ ितक उrपातq से
सरु ि“त रहे एवं उसके _ारा बनाए जाने वाला भवन दीघFकालीन अविध तक सरु ि“ता रहे िजससे िक
उस म' िनवास करने वाले मनु²य भयम£ ु वातावरण म' दीघF काल क• अविध तक भवन का सख ु Lा°
कर सके । इसी भावना के मल ू म' वा"तु शाv एवं ›योितष शाv के माsयम से हम बनाए जाने वाले
भवन क• आयु का €ान भी कर सकते ह‰, अथाFत भवन िजस काल िवशेष म' बनाया जा रहा है उसके
अनसु ार ताrकािलक kह ि"थित के अनुसार तथा गृह िप;ड (गृह “ेHफल ) के अनुसार भवन क• आयु
का िवचार हमारे kंथq म' िकया गया िजसका अsययन हम िन…निलिखत िबंदओ ु ं के माsयम से कर
सकते ह‰ –
१.३.१ - गृह क‹ आयु अ#सी वष3 Kमाण के योग-
भवन क• आयु के 80 वषF Lमाण के योग हमारे शाv kंथq म' Lा° होते ह‰ इसके अनसु ार
िवÃकमF -Lकाश म' बताया गया है िक िजस समय गृह का िनमाFण कायF Lारंभ िकया जा रहा हो अथाFत
गृह िनमाFण के आरंभ काल क• लÀन के समय चतथु F भाव म' गÂु एवं दशम भाव म' च±ं तथा Àयारवे
भाव म' मंगल एवं सूयF हो तो उस भवन क• आयु 80 वषF क• होती है यथा-
िशवके eयेऽ‚बरे चq„े लाभे च कुजभा#करौ |
Kार‚भः िaयते य#य अशीyयायुः aमाद् भवेत् ||1
इसी योग को हम गृह िनमाFण काल क• ताrकािलक लÀन कु;डली के माsयम से जान सकते है यथा
–
1
!व#कम&'
काशः तत
ृ ीयोऽ1यायः 2ो० 25
गÂु च*±
इसी Lकार गृह क• आयु के 80 वषF Lमाण का एक अ*य योग भी Lा° होता है िजसके अनुसार िजस
समय गृहारंभ िकया जा रहा हो उस समय क• लÀन दो पाप kहq के बीच म' हो तथा उस पर शभु kहq
क• Œि• ना हो, शिन अ•म भाव म' हो तो इस योग म' िनिमFत गृह क• आयु 80 वषF क• होती है | यथा-
पापाqतरगते ल¬ने न च सौ‚ययुते ि•ते |
अ[म#थे अक3 प'ु े च अशीyय†दाद िवहqयते ||2
मङ् गल
रा
च गृहार…भ लÀन गु Â
शिन के . स.ू बु शु
2
!व#कम&'काशः तत
ृ ीयोऽ1यायः 2ो० ३६
गृहार…भलÀन
शिन
गु Â
शz
ु
बुध
सूयF
एक अ*य योग के अनसु ार भी गृह क• आयु 100 वषF क• होती है जैसे गृहारंभ कालीन लÀन म' शz ु
िव?मान हो, बुध दशम भाव म' हो, सयू F एकादश भाव म' तथा गÂु क' ± म' हो तो ऐसी अव"था म' गृह
क• आयु एक 100 वषF क• होती है । यथा –
भृगलु 3¬नेऽ‚बरे सौ‚ये लाभ#थाने च भा#करे |
गु\ः के q„गतो य' शतवषा3िण ित ित ||4
इसी योग को बृह_ा"तुमाला मे इस Äोक के माsयम से बताया गया है यथा-
3
!व#कम&'काशः तत
ृ ीयोऽ1यायः 2ो० 23
4
!व#कम&'काशः तत
ृ ीयोऽ1यायः 2ो० 24
गृहार…भलÀन
सूयF
शz
ु
गु Â बुध
एवमेव गृहारंभ कालीन लÀन म' शिन हो तथा स°म भाव म' मंगल हो एवं उस पर शुभ kहq
क• Œि• ना हो तो इस योग म' भी गृह क• आयु का Lमाण भी 100 वषœ का होता है । यथा-
मqदे ल¬नगते चैव कुजे स…म संि#थते |
शुभैरवीि•ते वािप शतवषा3िण हqयते ||6
१.३.३ - गृह क‹ आयु िYशत(200) वष3 के योग – गृह आयु के िवचार के zम म' 200 वषF भी
kह के आयु का Lमाण शाvq म' बताया गया है यथा िवÃकमाF Lकाश के अनसु ार गृहारंभ कालीन
लÀन म' शz
ु िव?मान हो पांचवे भाव म' गÂु हो छठे भाव म' मगं ल तथा तृतीय भाव म' सयू F बैठा हो तो
इस योग म' बनने वाला गृह 200 वषœ तक बना रहता है
ल¬ने भृगौ प'ु गेeये ष े भौमे तृतीयगे|
रवौ य#य गृहार‚भः स च ित े˜छतYयम् ||7
5
वह
ृ दवा<तुमाला 2ो ८५
6
!व#कम&'काशः तत
ृ ीयोऽ1यायः 2ो० ३७
7
िवÃकमFLकाशः तृतीयोऽsयायः Äो० 26
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 129
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
यथा उदाहरण कु;डली के माsयम से -
गु Â
भौम
इसी Lकार एक अ*य योग के माsयम से भी भवन क• आयु का Lमाण 200 वषF का होता है या था
गृहारंभ कालीन लÀन म' गÂु तथा शz
ु दोनq िवराजमान हो मगं ल छठे भाव म' बैठा हो तथा सयू F Àयारहव' भाव
म' बैठा हो तो भी गृह क• आयु 200 वषF क• होती है ।
ल¬न#थौ गु\शुaौ च dरपरु ािशगते कुजे | सयू g लाभगते य#य िYशा†दािन ित ित ||8
कु0डली के मा•यम से -
गृहारंभ कालीन
सूयF
लÀन, गुÂ, शz
ु
गह
ृ ारDभ लFन
गृह क• आयु का 200 वषF Lमाण का एक अ*यशH
ु योग भी बताया गया है िजसके अनुसार शभ
ु kह
"वरािश या उÒच रािश के होकर लÀन म' अथवा क' ± म' बैठे हो तो ऐसे योग म' िजस घर क• न„व रखी जाती
है वह 200 वषF पयÖत बना रहता है । जैसे भौम
8
िवÃकमFLकाशः तृतीयोऽsयायः Äो० 27
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 130
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
#वो˜चे #वभवने सौ‚यैल3¬न#थे वािप के q„गैः |
Kार‚भः िaयते य#य स ित ित शतYयम् ||9
4 2
3
5 बधु शुz
1
12
6
7
9 गुJ 11
8 10
अsयासKl – 1
िन…निलिखत Lpो मे सrय या असrय का चयन क•िजये -
9
!व#कम&'काशः तत
ृ ीयोऽ1यायः 2ो० 29
1 11 8
10
लFन 12
2 10 11 9 लFन 7 शP
शH
ु
3 6
9 12
4 8 1 3
6
5 7 2 4
2 12 10 8
3 1 9 गुJ
11 11 7 शPन
लFन
12 6
4 गुJ 10
शH
ु
3 5
5 7 9 1
6 8 2 4
१.३.५ – शीÍ न[ होने वाले गहृ के योग - गृह आयु िवचार के Lसगं म' हम सामा*य जीवन म' देखते ह‰
िक भवन िनमाFण तो अÒछी तरह से ह†आ लेिकन िकसी कारणवश वह शीö ही न• हो जाता है इसम' कह„
ना कह„ कोई योग िवशेष कारण रहता है । हमारे शाv-k*थq म' भवन के शीö न• होने के योग का Lमाण भी
बताया गया है जैसे यिद लÀन म' “ीण च±ं मा (कृ ²ण प“ क• साधF स°मी से श=ु ल प“ क• साधF स°मी तक
का) तथा अ•म भाव म' मगं ल िव?मान हो तो इस योग म' Lारंभ िकया गया गृह शीö ही न• हो जाता है ।
यथा -
10
िवÃकमFLकाशः तृतीयोऽsयायः Äो० 38
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 133
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
समय म' िनबFल हो तथा उसके वणF का "वामी kह िनबFल हो साथ ही सयू F पीिड़त न“H म' हो तो गृह
िनमाFण ना कर' ।
दशापतौ बलैह²ने वण3नाथे तथैव च |
पीिडत•3गते सूयg न िवद•याyकदाचन ||11
इसी Lकार कई बार हम' ऐसा देखने को भी Lा° होता है िक गृह का िनमाFण तो हमारे _ारा
कराया जाता है लेिकन िकसी प‡रि"थित वश आप उस भवन का सख ु भोग नह„ कर पाते ह‰ इसका
मgु य कारण ज*म कंु डली म' हमारी kह ि"थित भी होती है जैसे यिद एक भी kह ज*म कंु डली म' शHु
नवाशं का होकर दशम या स°म भाव म' बैठा हो तथा गृह कताF के वणF ßा…हण आिद का "वामी kह
यिद िनबFल हो तो वह गृह िनमाFण के उपरांत दसू रे के हाथ म' चला जाता है |
१.३.७ – गृहिप0ड Yारा गृह-आयु का ¨ान – गृह क• आयु का िनधाFरण गृहिप;ड के माsयम से भी िकया
जाता है । इस िविध के अनुसार भवन के िप;ड या “ेHफल को आठ से गुणा करके 120 से भाग देने पर शेष
मान के बराबर गृह क• आयु होती है । जब तक आयु क• समाि° न हो तब तक घर शभु या पूणाFयु य£
ु मकान
शभु होता है । यथा –
गृह#य िप0डं गजिभिव3ग0ु यं िवभािजतं शूqयिदवाकरे ण ।
य˜छे षमायुः किथतं मुनीq„ैरायु‡य भवने शुभं #यात् ॥12
स'ू – गृहिप;ड (“ेHफल) x 8 / 120 = गृह आयु Lमाण
उदाहरण – जैसे गृह का िप;ड मान (“ेHफल ) = 40 X 30 = 1200 ह"तवगF है । तो सHू ानुसार
(1200 X 8 ) / 120 = 9600 / 120 = 80 वषF अतः 1200 ह"त वगF वाले भवन क• आयु 80 वषF क• ह†ई
।
गहृ आयु क‹ अqय िविध तथा गृह िवनाश का कारण – ह"ताrमक गृहिप;ड या “ेHफल को 8 से गुणा
कर 60 से िवभ£ करने पर Lा° लिnध को 10 से गणु ा करने पर गृह क• आयु का मान वषœ म' Lा° होता है ।
भाग देने पर जो शेष बचे उसम' पाँच से भाग देने पर जो शेष हो उसके zम से अथाFत 1 शेष बचे तो
11
िवÃकमFLकाशः तृतीयोऽsयायः Äो० 39
12
बृहदवा"तुमाला गणनािवचार Äो॰ 29
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 134
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
पृòवी तrव से दो शेष बचे तो जल तrव से तीन शेष बचे तो अिÀन तrव से चार शेष बचे तो वायु तrव
से श*ू य शेष बचे तो आकाश तrव के _ारा गृह आयु पणू ाF होने पर गृह का िवनाश हो जाता है । पृòवी
तrव आए तो परु ाना होकर घर िगर जाता है , जल तrव हो तो जल के _ारा घर का िवनाश, वायु तrव
हो तो घर के अंगq( लकड़ी, दीवाल आिद) म' रोग हो जाने से घर िगर जाता है , आकाश तrव हो तो
आयु पणू F होने पर गृह श*ू य हो जाता है । यथा –
ह#ताyमकं •े'फलं गजाहतं संवyसरैभा3िजतल†धकं यत् ।
तyखेqदुगु0यं भवन#य जीवनं य˜छे िषतं भुत•तं िवलीयते ॥
पिृ थ¯यापोऽनलो वायरु ाकाश इित पcचिभः ।
गृह#यायुिष संपूणg िवकारो जायते Ãुवम् ॥13
अsयासKl – 2
‡र£ "थान क• पिू तF क•िजये –
1- शz
ु क' ± या लÀन म' ................. रािश का हो तो भवन क• आयु 1000 वषF क• होती है |
2- चतुथF भाव म' ................ kह उÒच का हो तो भवन क• आयु 1000 वषF क• होती है |
3- उÒच का शिन एकादश भाव म' िवराजमान हो तो गृह क• आयु ........... वषF क• होती है |
4- गृह िवनाश Lिzया म' यिद वायु तrव शेष [प म' Lा° हो तो गृह का िवनाश गृह म' ................होने
से होता है |
5- कृ ²ण प“ क• सा~F स°मी से शु=ल प“ क• सा~F स°मी तक चं± ..........रहता है |
१.४ सारांश
1- गृहायु – गृह अथवा भवन क• आयु अथाFत भवन िकतने वषF तक सरु ि“त रहेगा|
2- पाप}ह – राहd, मंगल, शिन, के तू तथा सयू F ›योितष शाv म' पापkह माने जाते ह‰ |
3- पापाqतरगते- पाप kहq के मsय म' अथाFत भाव के अगले एवं िपछले भाव म' पाप kह हो|
4- गृहार‚भकालीन ल¬न – िजस समय भवन का िनमाFण कायF Lार…भ िकया जाता है उस
समय क• लÀन |
5- •ीणचं„ – च*± क• सामा*यतः दो अव"थाये रहती है एका पणू F चं± एवं एक “ीण च±ं |
कृ ²ण प“ क• सा~F स°मी से श=ु ल प“ क• सा~F स°मी तक च±ं “ीण रहता है | अथाFत
उसका बल कम रहता है |
6- #वो˜च – kह क• उÒच अव"था या रािश जैसे सयू F क• "वोÒच रािश मेष है |
7- #वरािश- kह िजस रािश का "वामी होता है वह उसक• "वरािश होती है जैसे – सयू F क•
िसंह "वरािश है |
8- क) „ – कंु डली म' 1-4-7-10 भाव क' ± भाव होते ह‰ |
अsयास 1-
1- सrय , 2 –सrय, 3- असrय, 4- सrय, 5- असrय |
अsयास -2
1- उÒच , 2- गÂु , 3- 1000 वषF , 4 –रोग , 5 – “ीण च*± |
१.७ संदभ3 }qथ सच
ू ी-
मयमतम् – मयमिु न
बृहrसंिहता – वराहिमिहर
बृह›जातकम् – वराहिमिहर
वा"तुसारः – Lो. देवीLसादिHपाठी
आप लोगो को वा"तु शाv म' Âिच है यह मेरा िवÃास है इसी कारण आप वा"तु शाv के
इस पाठ्यzम को पढ रहे ह‰ । वतFमान काल म' वा"तु शाv क• मह9ा से आप लोग भलीभाित प‡रिचत
है । मानव जीवन म' वा"तु शाv अrयंत उपयोगी शाv है । हम सभी जानते ह‰ िक हमारा यह शरीर
पचं महाभतू q ( पृòवी, जल, अिÀन, आकाश, वाय)ु से िमलकर बना है । िजस Lकार मानव जीवन म'
इन पंचमहाभतू q का सामजं "य आव>यक है उसी Lकार इस पृòवी एवं हमारे घर म' भी इन पंचमहाभतू q
का सामÍज"य आव>यक है । पंचमहाभतू q म' भी जल का अrयंत महrवपूणF "थान है । =यqिक कहा
जाता है िक “जल ही जीवन है” । अतः L"तुत इकाई म' आप जान'गे िक वा"तु के अनसु ार
जल"थापन िनधाFरण के िस~ा*त =या ह‰ एवं घर म' िकस Lकार घर म' जल क• "थापना क• जानी
चािहए तथा पानी क• टंक•, भूिमगत जल क• ¢यव"था, जल िनकासी के िविभ*न िस~ांत =या है ।
२.२ उNेPय –
L"तुत इकाई के अsययन के बाद आप –
v समझ सक' गे िक पंचमहाभूतq का मानव जीवन म' =या महrव है ।
v वा"तु शाv म' जल"थापन िनधाFरण के महrव को जान सक' गे ।
v यह बता सक' गे िक घर म' भिू मगत जल क• ¢यव"था कहाँ क• जाती है ।
v समझ जाएँगे िक पानी क• टंक• इrयािद का उिचत "थान घर म' कहाँ होता है ।
v जल िनकासी क• ¢यव"था िकस Lकार क• जाती है इस बार' म' आप अवगत हो
जाएँगे ।
v जलाशय महु dतF के िवषय मे अवगत हो जायेगे ।
२.३ जल#थापन िनधा3रण –
उदके न िवना वृिpना3ि#त लोकYये सदा ।
त#माeजलाशयाः काया3ः प\ु षेण िवपिvता ॥
अि¬न[ोमसमः कूपः सोiमेधसमो मरौ ।
कूपः KवृUपानीयः सवx हरित दु‡कृतम् ॥
कूपकृy#वग3मासा“ सवा3qभोगानपु ाlुते ।
14
वा"तरु rनाकर जलाशयLकरण Äो 01 से 03 तक
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 141
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
िशव और जल का यह पार"प‡रक संब*ध ईशान म' जल ¢यव"था को प‡रप•ु करता है । पवू F
–उ9र म' भिू मगत जल के "थान का कारण वा"तु शाv के मूल िस~ा*त के कारण है । वा"तु शाv का
मलू िस~ा*त है िक wलवrव के अनसु ार सवFदा भिू म का पवू Ü9र भाग नीचा रहना चािहये । यह एक
Lिस~ िस~ा*त है इसी कारण भिू मगत जल का सवÜ9म "थान ईशान िदशा (कोण) को माना जाता
है । पि¦म िदशा के "वामी वÂण है जो "वयम् जल के देवता है अतः भूिमगत जल का "थान पि¦म
म' भी शुभ माना गया है । आवास या भवन के िविभ*न "थान म' भूिमगत जल के िनमाFण के फल का
िववेचन महु †तिF च*तामिण म' िन…नवत् िकया गया है –
फल धननाश पिु • ऐÃयF पHु नाश vीनाश मृrयु संपि9 शHभु य सौgय
15
मुहूतR& चTतामUणः वा<तु'करण 2ो० 20
पवू F
ईशान
उ9र दि“ण
पि¦म
भवन म' कूपािद के िनमाFण के समय िन…निलिखत बातq को अव>य sयान रखना चािहये –
1.- घर म' मgु य _ार से Lवेश करते ही जल का बो‡रंग या कूप नह„ करना चािहये ।
2.- भवन के ßà"थल (मsय"थल) पर कभी भी जल के बो‡रंग हेतु गड्डा नह„ करना चािहये ।
3.- आÀनेय, दि“ण, नैऋrय, और वाय¢य म' भिू मगत जल िनमाFण कायF नह„ करना चािहये ।
4.- ईशान, पवू F, उ9र और पि¦म भूिमगत जल के िलये उ9म "थान है ।
5.- जल का बो‡रंग कभी भी दीवार के िब`कुल पास नही करना चािहये ।
अsयास Kl -1
िन…निलिखत Lpq म' सrय या असrय का चयन क•िजये -
1. भूिमगत जल के अ*तगFत कूप आता है ।
2. कूपािद का िनमाFण दि“ण िदशा मे शभु होता है ।
3. ईशान –पूवF उ9र भिू मगत जल के िलये उपयु£ "थान नह„ है ।
4. ßà"थल हमेशा ‡र£ रहना चािहये ।
5. भूिमगत जल का िनमाFण पि¦म िदशा म' करने से संपि9 का नाश होता है |
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 144
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
२.३.२ घर मे जलसं}ह का #थान -
जल Lाि° के "थान का तो वा"तु शाv म' अrय*त महrव है ही, साथ ही साथ वा"तु के अनुसार
जल सkं ह के "थान का भी िवशेष महrव होता है । बृहrसंिहता म' जलसंkह के िवषय मे बताया गया है िक
–
Kा˜यािद#थे सिलले सतु हािन: िशिखभयं dरपभ
ु यं च |
•ीकलहः •ीदौ[्यं नै#¯यं िवpाyमजिववृि°ः ||16
अथाFत् यिद पवू F िदशा म' जल सkं ह करने से पHु हािन, आÀनेय कोण म' जल संkह से आग का डर , दि“ण
म' िvयq म' कलह, पि¦म म' vीयो म' दःु शीलता वाय¢य म' िनधFनता, उ9र म' धनवृि~ और ईशान म' पHु वृि~
होती है । िचH के माsयम से वा"तु (घर ) म' जल संkह का फल िन…न Lकार से है |
शभु अशभु
उ9र ( धनवृि~ ) (शHु भय ) दि“ण
16
बह
ृ Xसं[हता वा<तु!व\ा1यायः - 2ोक ११९
यहाँ एक बात sयान रखने योÀय होती है िक घर के छत पर यिद जल संkह करना हो यथा पानी
क• टंक• इrयािद तो उसके िलये हम' वा"तु शाv के मलू िस~ा*त को अव>य sयान म' रखना चािहये
अथाFत् वा"तु शाv का मूल िस~ा*त है िक भवन का पूवF उ9र भाग नीचा और पि¦म भाग उ*नत
होना चािहये । अतः ऐसा कोई भी िनमाFण जो भवन के दि“ण पि¦म भाग को उ*नत करे वह वा"त-ु
स…मत और जो भवन के उ9र-पवू F भाग को उ*नत करे वह वा"तु िनयम के िवÂ~ है अतःभवन म'
ओवरहैड टंक• का िनमाFण भी भवन के दि“ण पि¦म या नैऋrय कोण म' ही करना चािहये । पानी क•
टंक• के िनमाFण म' िन…न बातq का sयान रखना चािहये -
1. पानी क• ओवरहैड टंक• सदैव दि“ण, पि¦म या नैऋrय कोण म' ही करे ।
2. पवू F-उ9र तथा ईशान म' कभी भी पानी क• ओवरहैड टंक• नही रखनी चािहये ।
3. यिद प‡रि"थित वश पूवF, उ9र या ईशान म' पानी क• टंक• रखनी पडे तो दि“ण पि¦म भाग
म' कोई क“ या इस Lकार कोई िनमाFण कायF करना चािहये जो पानी क• टंक• से उ*नत हो ।
2.3.3 जल िनकासी – िजस Lकार हम' वा"तु शाv के अनसु ार जल के vोत का िनमाFण उिचत
िदशा या "थान म' करना चािहये उसी Lकार जल क• िनकासी भी महrवपणू F है । यथा-
गहृ ाद् वाdर िन#सारणाथx Kकुया3द् िबलं पवू 3 का ािदके तyफलं च |
शुभं चाशुभं दुखदं पु'हािनः समं शोभनं वृि°दं प'ु दं च ||17
अथाFत् घर के जल क• िनकासी के िलये पवू F, ईशान, वाय¢य एवं पि¦म िदशा उिचत है । शेष
िदशा अथाFत् आÀनेय, दि“ण, और नैऋrय िदशा से जल िनकासी अशभु फल देने वाली होती है ।
इसका िदशा के अनसु ार फल =या होता है यह हम िन…नचz के माsयम से समझ सकते है -
िदशा फल
पवू F शभु
दि“ण दख
ु
नैऋrय पHु हािन
17
वा<तुमाUण`यरaाकर
अsयास Kl- 2
‡र£ "थान क• पिू तF क•िजये –
1. पवू F िदशा म' जल सkं ह का फल ............. होता है ।
2. वाय¢य कोण से जल िनकासी का फल ......... होता है ।
3. पानी क• ओवरहैड टंक• का िनमाFण .............िदशाओ ं म' शभु होता है ।
4. वाय¢य म' जल सkं ह .......... कारक होता है ।
5. पवू F िदशा से जलिनकासी ............ होती है ।
18
कुपेकFभा*मsयगतैसिvिभभै: "वाददू कं पवू Fिदिश िHिभिvिभः |
"व`पं जलं "वादजु लं जल“यं "वाददू कं “ारजलं च िमिÙतम् ||
(वृह_ा"तुमाला दकागFलं Äो०११६)
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 148
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
रोिहणी न•' से कूप चa19
िदशा न•' फल
पि¦म 3(मल
ू , प०ू षा०, उ०षा०) “ार-जल
भौम न•' से कूप चa - भौम न“H से भी कूप चz के िनमाFण का फल शाvो म' बताया गया है
अथाFत् भौम न“H से वतFमान न“H तक िगनने से यिद Lथम न“H हो तो जल से वध का भय एवं
उसके बाद अिkम 5 न“Hq तक िसि~ इसी Lकार आगे का भी फल बताया गया है जो हम िन…न
तािलका से समझ सकते है यथा –
भौम न•' से कूप चa20
19
वह
ृ bा<तुमाला दकाग&लं 2ो०११७- १२०
20
वह
ृ bा<तुमाला दकाग&लं 2ो-१२१
न•' फल
1 जल से वध
5 िसि~
4 अभ*ग
3 अिसि~
3 रोग
4 यश
3 यश,Lिसि~
4 जल-भङ्ग
राहo न•' से कूप चa – राहd न“H से कूपािद का िवचार िकया जाता है । राहd न“H से वतFमान न“H
(च*± न“H ) तक िगनने पर 3 न“H पूवाFिद िदशाओ ं मे एवं अि*तम 4 न“H म' मsय मे जानकर
शभु ाशभु फल इस Lकार समझना चािहये यथा –
िदशा न•' फल
पवू F 3 शोक
आÀनेय 3 जल लाभ
दि“ण 3 "वामी मृrयु
नैऋrय 3 दःु ख
पि¦म 3 सख
ु
वाय¢य 3 जल-वृि~
उ9र 3 िनजFलम्
ईशान 3 जल-िसि~
मsय 4 सजल
21
वह
ृ bा<तुमाला दकाग&लं 2ो-१२२-१२५
22
वा<तुरaाकर जलाशय'करणम ् 2ो ३६
अsयास Kl – 3
23
बह
ृ bा<तुमाला दकाग&लम 2ो० १३६-१३७
२.४ सारांश -
L"तुत इकाई के अsययन के प¦ात आपने वा"तु शाv के अनसु ार जल"थापन से संबिधत
िस~ा*तq को जाना । वा"तु के अनसु ार भिू मगत जल िनधाFरण के अपने िस~ा*त ह‰ यथा इसके िलये
Lश"त िदशा ईशान, पवू F, उ9र एवं पि¦म िदशा को उपय£ ु बताया गया है । इसी Lकार जल सkं ह के
िवषय म' भी कुछ िवशेष बातq को आपने जाना जैसे यिद सामा*य [प से भवन म' जल संkह करना हो
तो ईशान एवं उ9र िदशा को Lश"त बताया गया है । इसी Lकार यिद पानी क• टंक• इrयािद के माsयम
से भवन के ऊपर यिद जल संkह करना हो तो दि“ण, पि¦म या नैऋrय िदशा म' करना चािहये यहाँ
वा"तु शाv के मल ू िस~ा*त के अनसु ार पानी क• टंक• आिद का िनमाFण िकया जाता है । इसी Lकार
भवन के बाहर जल िनकासी के िवषय म' भी आपने इस इकाई म' जाना यथा जल िनकासी पवू F, पि¦म,
वाय¢य, उ9र, ईशान िदशा म' होना चािहये । इसी zम म' जलाशय के महrव एवं कूप चz के िस~ा*त
से अवगत ह†ये, िजसम' मgु य [प से 4 Lकार से कूप चz का अवलोकन करना चािहये यथा सयू F
न“H से कूप चz, भौम(मङ्गल ) न“H से कूप चz, रोिहणी न“H से कूप चz, राहd न“H से कूप
चz इन चारq न“H से यिद Lश"त योग Lा° होता है तो उस "थान पर िनि¦त ही जल क• Lाि° होती
है । साथ ही साथ जल Lाि° के भी कुछ योग से अवगत ह†ये एवं अ*त म' जलाशय आिद के िनमाFण
के शभु मुहdतF को जाना । इस Lकार जैसे मानव जीवन म' जल का िकतना महrवपणू F "थान होता है एवं
उस जल से सबं ि*धत िनयमो का gयाल रखकर कायF िकया जाये तो वह िनि¦त ही मानव के क`याण
का मागF Lश"त करता है ।
३.२ उNेPय
L"तुत इकाई के अsययन के बाद आप –
v दशा के "व[प एवं दशा के भेद का €ान Lा° होगा।
v kहq के दशा वषF Lमाण का €ान होगा।
v गृह दशा के बारे म' €ान होगा।
v गृह दशा क• साधन िविध से अवगत हqगे।
v गृह क• दशा के अनसु ार गृह के शभु ाशुभ फल Lिzया से अवगत हqगे।
३.३ गृहदशा िवचार -
›योितषशाv के अनुसार घटनाओ ं के काल को िनधाF‡रत करने वाली प~ित को दशा प~ित
कहा जाता है। दशा शnद का अथF ि"थित, अव"था, अथवा प‡रि"थित है। दशा शnद का वा"तिवक
अथF उस अÒछी, बुरी या सामा*य ि"थित या प‡रि"थित से है जो जीवन के िकसी भी िवभाग से संबंध
रखती ह†ई िकसी समय िवशेष म' पाई जाये। िकसी िवशेष समय म' =या =या और कै सी कै सी घटनाएँ
इ•काल साधन –
ज*म समय = 18 -00
सयू Üदय – 5-19
इ•काल =12- 41 घ;टा / िम० = 31- 42 घटी /पल
वतFमान न“H - प²ु य आज का स…पणू F मान = 40-28 घटी / पल
24
बह
ृ दवा<तुमाला, fलोक सं .21-24
अिÀन ›वर
दशा फल उ_ेग धनय£
ु सख
ु रोग सख
ु दःु ख आन*द
भय पीडा
उदाहरण – सरू त नगर म' रोिहत नामक ¢यि£ को नगर के ईशान कोण म' गृह बनबाना है तो उस समय गृह
क• दशा का €ान उपयF£
ु िस~ा*त के अनसु ार हम इस Lकार कर सकते है यथा –
सरू त (श वगF ) का अंक = 2
रोिहत (य वगF ) का अंक = 3
ईशान कोण का अंक = 2
25
बह
ृ दवा<तुमाला, fलोक सं .25
भवन क‹ दशा क‹ गणना कब से आरंभ करे – भवन क• दशा का आरंभ कब से िकया जाए इस िवषय
म' kंथq म' ›यादा Lकाश नह„ डाला गया है एवं इस संदभF म' मता*तर भी Lा° होते ह‰ यथा –
1- कुछ आचायœ के अनसु ार भवन के िशला*यास से भवन क• दशा क• गणना क• जाती है ।
2- अ*य कुछ आचायœ का मत है िक भवन के पणू F िनमाFण होने के प¦ात वा"तु शांित के अनंतर जब
गृह म' Lवेश िकया जाता हा तब से गृह क• दशा क• गणना क• जानी चािहए ।
3- वा"तु शांित हो या नह„ हो लेिकन जब भवन का पणू F िनमाFण हो जाए तब से गृह दशा क• गणना
होनी चािहए ।
उपयF£
ु तीनq िस~ांतq म' से अंितम िस~ा*त के अनुसार गृहदशा का िनधाFरण िकया जाना चािहए।
अsयासKl – 1
1. िवंशो9रीय दशा के अ*तगFत 5 दशाये ( महादशा, अ*तदFशा, Lrय*तर दशा, िवदशा, तथा उपदशा)
आती ह‰ ।
2. िवश
ं ो9रीय दशा का वषF Lमाण 108 वषF का होता है ।
3. त वगF का "वरांक 7 होता है ।
4. उ9र िदशा का "वराक
ं 5 होता है ।
5. गÂु kह क• दशा सख
ु कारक होती है ।
३.३.०५. गृहदशा- अ[ोpरीयदशा – गृह क• अ•ो9रीय दशा क• गणना या साधन के िलए भी ऊपर िदये
गए चz और सHू का उपयोग िकया जाता है । अथाFत kाम या नगर के वगF का "वराक
ं , िदशा के वगF का
"वरांक एवं िनवासकताF के नाम के वगF का "वरांक का योग करके उसम' 8 से भाग देने पर जो शेष बचे तो
िन…निलिखत अनुसार अ•ो9रीय दशा के समझना चािहए यथा –
1 शेष बचे तो सयू F क• दशा = 6 वषF
2 शेष बचे तो च*± क• दशा = 15 वषF
3 शेष बचे तो मगं ल क• दशा = 8 वषF
4 शेष बचे तो बुध क• दशा = 17 वषF
5 शेष बचे तो शिन क• दशा = 10 वषF
6 शेष बचे तो गÂु क• दशा = 19 वषF
7 शेष बचे तो राहd क• दशा = 12 वषF
0 शेष बचे तो शz
ु क• दशा = 21 वषF
उपयF£
ु दशा फल का िवचार kहq के अनुसार जानना चािहए अथाFत शभु kहq क• दशा रहने पर
शभु फल एवं पापkहq क• दशा अशभु फल देने वाली होती है । यथा वा"तुरrनाकर म' कहा गया है िक –
गजशरp3यु ुगाiमहीगुणा िYसिहता मघवािदिदिश aमात ॥
गृहपतेरिभधापुरिदd€ता वसु•ता भवन#य दशा भवेत् ॥
26
वा"तरु rनाकर Äोक सgं या 41
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 167
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
का आरंभ कृ ि9का न“H से गणना करके तथा अ•ो9रीय दशा क• गणना आ±ाF न“H से क• जाती है।
गृह दशा का िवशq9रीय दशा के अनसु ार आनयन kाम या नगर के वगF का "वरांक, िदशा के वगF का
"वराकं एवं िनवासकताF के नाम के वगF का "वराक ं का योग करके उसम' ९ से भाग देने से शेष के
अनसु ार िकया जाता है तथा अ•ो9रीय दशा के अनसु ार गृह दशा का आनयन kाम या नगर के वगF
का "वरांक, िदशा के वगF का "वरांक एवं िनवासकताF के नाम के वगF का "वरांक का योग करके उसम'
८ से भाग देने से शेष के अनसु ार िकया जाता है । गृहा दशा का आरंभ सामा*यतया गृह िनमाFण के
अनंतर ही िकया जाना चािहए । साथ ही साथ L"तुत इकाई म' गृह क• दशा के शभु ाशभु फल िवचार
क• भी हमने जाना अथाFत गृहा पर िजस Lकार के kह क• दशा होगी उस समय उस kह म' वास का
फल भी कुछ उस Lकार ही होगा ।
३.५ पाdरभािषक श†दावली
िवशŠpरीय दशा – दशा भेद के अतं गFत एक दशा जो १२० वषF Lमाण क• होती है । एवं
वतFमान म' kहदशा म' सबसे ›यादा उपयोग इसी दशा का होता है ।
अ[ोpरीय दशा - दशा भेद के अंतगFत एक दशा जो १०८ वषF Lमाण क• होती है । इसम' ८
kहq क• दशा होती है के तू क• दशा नह„ होती है ।
गृह दशा – भवन क• दशा या भवन के िनमाFण काल से अिkम वषœ तक िकन िकन kहq क•
दशा उस गृह पर रहेगी िजसके कारण उस गृह म' िनवास का फल का िवचार िकया जाता है ।
३.६ अsयास KlŠ के उpर
अsयास 1-
1- सrय , 2 –असrय, 3- सrय, 4- असrय, 5- सrय ।
अsयास -2
1- 108 वषF , 2- आ±ाF , 3- 10 वषF , 4 –8 kहq क• , 5 – अशभु ।
३.७ संदभ3 }qथ सूची
1- मलू लेखक – Ùीरामिनहोर ि_वेदी संकिलत, टीकाकार –डा ßàान*द िHपाठी एवं डा रिव
शमाF , वृह_ा"तुमाला(२०१८ ) गणनािवचार Äो ८२-८६ , चौखंबा सरु भारती Lकाशन,
वाराणसी ।
2- मल
ू लेखक – Ùी िव*sयेÃरी Lसाद , वा"तरु rनाकर (_ादश सं"करण) (२०१४) चौख…बा
सं"कृ त सीरीज आिफस, वाराणसी ।
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 168
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
3- मल
ू लेखक – सrयदेव शमाF , बृहद भारतीय कंु डली िव€ान (नतू न स"ं करण २००२ ,जगदीश
सं"कृ त प"ु तकालय, जयपरु ।
नोट -अ*य सदं भÜ का उ~रण Lrयेक सदं भF के पृˆ पर है |
इकाई क‹ संरचना-
४.१ L"तावना
४.२ उNे>य
४.३ गृहदोष िवचार
४.३.१- भिू म के दोष
1- wलवrव दोष
2- वीिथ के अनुसार भूिम के दोष
3- पृˆ भाग के अनुसार rया›य भिू म
4- भिू म के आकार सबं ंिध दोष
5- श`य दोष
४.३.२-ममF वेध दोष
४.३.३-मgु य _ार संबंिध दोष
४.३.४ _ार वेध दोष
४.३.५ िविभ*न िदशाओ ं के दोष
४.३.६ वृ“ संबंिध दोष
४.३.७ गृह िनमाFण Lिzया म' मुहdतF संबंिध दोष
४.४ सारांश
४.५ पा‡रभािषक शnदाबली
४.६ अÐयास Lpq के उ9र
४.७ संदभF k*थ सचू ी
४.८ सहायक पाठ्यसामkी
४.९ िनब*धाrमक Lp
४.२ उNेPय –
L"तुत इकाई के अsययन के बाद आप –
v वा"तु शाv के मgु य गृहदोष से अवगत हो पाएंगे।
v भूिम के Lमखु दोष से प‡रिचत हो पाएंगे।
v कौन सा वृ“ िकस िदशा म' दोष कारक होता है इसका €ान Lा° कर' गे।
v मgु य _ार एवं _ार वेध तथा ममF वेध के िवषय म' जानकारी Lपट कर' गे।
v िदशाओ ं के िविभन दोष एवं महु dतF सबं ि*ध दोषq से अवगत हो पाएगं े।
४.३ गहृ दोष िवचार
27
बह
ृ दवा<तुमाला 2ोक 35-36
%
"
इसी तरह भूिम का िदशा एवं कोणq के मsय भाग म' भी wलवrव या भूख;ड का भाग उठा
ह†आ या ऊंचा रहता है वैसे भखू ;ड क• स€ं ा तथा उसका शुभ एवं अशुभ फल भी वा"तु शाv म'
बताया गया है इसके अनसु ार भूख;ड के दोष क• €ान करना चािहये यथा-28
aम
वा#तु स¨ं ा ,fवyव (ढलान ) उqनित (ऊँ चा) फल (Kभाव)
सr
ं या
पि¦म एवं वाय¢य के मsय पवू F और आÀनेय के
01 िपतामह वा"तु शभु भख
ू ;ड
wलवrव या ढलान मsय का भाग ऊँचा
02 सपु थ पि¦म –वाय¢य दि“ण –आÀनेय Lश"त (शभु )
28
वह
ृ दवा<तुमाला 2ोक 46-64
18 Ã - मख
ु पि¦म ईशान, पवू F ,आÀनेय श±ू ो के िलये शभु
2- वीिथ के अनुसार भूिम के दोष - भिू म के दोष के अंतगFत भिू म के wलवrव एवं उ*नित ( ऊँची ) अथाFत्
िदशा िवशेष म' ढलान एवं िदशा िवशेष का भाग या ख;ड भिू म का उठा ह†आ या ऊँचा हो तो उसक• िवशेष
3- पृ भाग के अनस
ु ार yयाeय भिू म - वा"तु शाv म' भिू म के दोष या शभु ता का €ान भिू म के पृˆ के
अनुसार भी िकया जाता है अथाFत् भिू म का जो पृˆीय भाग होता है वह िदशा िवशेष म' ऊंचा नीचा होने के
कारण उसक• िविभ*न Lकार क• स€ं ा क• जाती है एवं उसके अनुसार उसका फल कथन भी िकया जाता है
। जैसे चार Lकार से पृˆ के अनुसार भूिम का वग¾करण िकया गया है । यथा –
1. गजपृˆभिू म 2. कूमFपˆृ भिू म 3. दैrय पृˆभिू म 4. नागपृˆभिू म
1. गजपृ भूिम- ऐसी भिू म जो दि“ण पि¦म नैऋrय एवं वाय¢य कोण म' ऊंचे आकार क• हो अथाFत् इन
िदशाओ ं म' भिू म का भाग ऊँचा हो तो वैसी भिू म को गजपृˆभिू म कहते ह‰ । गजपृˆभिू म पर िनवास करने से
29
वह
ृ दवा<तुमाला 2ोक 41-45
30
बृहदवा"तुमाला Äोक 82-83
31
बह
ृ दवा<तुमाला 2ोक 84-85
32
बह
ृ दवा<तुमाला 2ोक 86-87
33
बह
ृ दवा<तम
ु ाला 2ोक 88-89
2- िवषमाकार भूिम – भिू म का आकार िवषम हो अथाFत समान नही हो िवषमाकार भिू म कहलाती है ।
यह भिू म भी अशभु होती है ।
3-ि'कोणाकार भिू म – िHभजु के आकार क• भिू म िHकोणाकार भिू म कहलाती है । यह भिू म भी िनिं दत
भिू म मानी जाती है ।
4-शकटाकार भूिम – गाड़ी क• तरह भिू म को शकटाकर भिू म कहा जाता है यह भी अशभू भिू म है ।
5- द0डाकार भूिम – दडं के आकार क• भिू म । यह भूखंड भी िनिं दत माना जाता है।
6- सूपाकारभूिम – सपू े के आकार के समान िदखाई देने वाला भूखंड सपू ाकार भख
ू ंड माना जाता है
ऐसा भूखंड भी अशभु माना गया है ।
7-धनुषाकार भूिम – धनुष के आकार क• तरह आकृ ित वाली भिू म धनुषाकार भूिम कहलाती है िनवास
हेतु यह भी अशभु मानी जाती है ।
7- मदृ गं ाकार भिू म- मृदगं ाकर भिू म भी वा"तु शाv म' िनिं दत भिू म मानी जाती है ।
सामा*य से भख
ू ;ड का िव"तार यिद ईशानकोण-उ9र या पूवF िदशा म' हो तो वह भख
ू ;ड शभु एवं भाÀयLद होता
है। यथा -
उ9र उ9र
पूवF
पूवF
इसी Lकार यिद भखू ;ड का िव"तार यिद नैऋrय, वाय¢य, या आÀनय कोण म' हो तो वैसे भख
ू ंड दोष कारक माने
जाते ह‰ जैसे -
पि¦म पूवF
दि“ण
34
बृहदवा"तमु ाला Äोक 79
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 180
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
चैyये भयं गृहकृतो वfमीके #वकुले िवपत् । गता3यांतु िवनाशः #यात् कुमा3कारे धन•यः ॥35
इस Lकार भूिम म' भवन िनमाFण से पवू Fश`य शोधन अव>य करना चािहए िजससे वह भिू म श`य दोष
से म£
ु हो जाए एवं वह शभु फल दायक हो ।
४.३.२-मम3 वेध दोष – वा"तु पÂु ष के ममF "थान िसर , मख ु , Ûदय , दोनq "तन, और िलंग ये ममF
"थान है तथा पद िव*यास के अनसु ार रोग से लेकर अिनल तक , िपता से िशखी तक , िवतथ से शोष
तक ,मgु य से Þश ू तक , जयंत से भृगं राज तक , और अिदित से सkु ीव तक िव"तृत सHू q का जो नौ
"थानq म' "पशF होता है वह वे "पशF "थान वा"तु पÂु ष के अित ममF "थान होते ह‰ ( नीचे एकाशीित पद
वा"तु चz िदया ह†आ है उसमे पद िव*यास के अनुसार समझ सकते ह‰ ) । ये नौ अित ममF "थान ßà
"थान म' आते ह‰ । इन ममF "थानq म' कोई भी िनमाFण कायF नह„ करना चािहए अथाFत िपलर आिद इन
ममF "थानq म' न आए । ßà"थल हमेशा ‡र£ रहना चािहए । यही ममF वेध दोष कहलाता है । अत एव
यथा संभव इन ममF "थानq म' िनमाFणकायF से बचना चािहए ।
अsयासKl – 1
िन…निलिखत Lpो मे सrय या असrय का चयन क•िजये -
6. भूिम का wलवrव ईशान कोण म' शभु होता है ।
7. भूिम का िव"तार आÀनेय कोण म' शभु माना जाता है ।
8. शकटाकर भिू म शभु मानी जाती है ।
9. गजपृˆ भिू म दोष कारक मानी जाती है ।
10. वा"तु पÂु ष के Ûदय को भी ममF "थान माना जाता है |
४.३.३-मुrय Yार सबं ंिध दोष –
भवन म' मुgय _ार का अrयंत महrवपूणF "थान होता है इसके िलए वा"तु पद िव*यास के
अनसु ार Lrयेक िदशा के भवन के िलए कुछ िनि¦त भाग म' मgु य _ार बनाना चािहए अ*य पदq म'
बनाया गया _ार दोषकरक होता है यथा एलाशीित पद िव*यास के अनसु ार मgु य _ार के िलए शभु
"थान । जो गाहे है वह शभु है आँय अशुभ "थान या दोष कारक "थान होते ह‰ ।
35
बृहदवा"तुमाला Äोक 80-81
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 181
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
एकाशीित-पदवा*तुिव,यास
उpर
वाय¯य
रोग नाग भ`लाट सोम भजु ग िदित अिÀन
मgु य अिदित
पापयÎमा ± आपवrस पजF*य
पòृ वीधर
शोष राजयÎमा जय*त
असरु
इ*±
पिvम
वÂण िमH ßàा अयFमा रिव
नैऋrय दि“ण
शान
४.३.४ Yार वेध दोष – वेध शnद का शािnदक अथF Âकावट या िकसी के मsय म' कोई व"तु आ
जाना वेध कहलाता है । यह वेध वा"तु दोष कारक होता है, िजसका फल गृह"वामी या प‡रवार म' रहने
वाले अ*य सद"यq को भी भोगना पड़ता है । कुछ _ार वेध इस Lकार से ह‰ –
1- मgु य _ार के सामने कोई भी बड़ा वृ“ नह„ होना चािहए इससे संतान प“ क• हािन होती है ।
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 182
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
2- मgु य _ार के िब`कुल सामने गलीया रा"ता हो िजससे सीधे घर म' Lवेश होता है तो यह भी _ार
वेध
होता है इस Lकार का _ार वेध गृह"वामी को मृrयु अथवा क• देता है ।
3- मgु य _ार के सामने दलदल इrयािद नह„ होना चािहए यह धन धन का ¢यय कराता है ।
4- मgु य _ार के ठीक सामने कुआ नह„ होना चािहए , इससे िमग¾ इrयािद क• बीमारी होने क• संभावना
रहती है ।
5- मgु य _ार के ठीक सामने मंिदर भी नह„ होना चािहए यह भी अशुभ कारक माना गया है ।
6- हमेशा मgु य _ार वा"तु पद के कोण म' नह„ बनाना चािहए यह भी अशुभ कारक माना गया है ।
7- मgु य _ार क• ठीक सामने अपने मकान या दसू रे के मकान क• सीिढ़यां हो तो भी यह वेध कारक
माना गया है ।
8- मgु य _ार िब`कुल सीधा होना चािहए आगे पीछे इस का झुकाव नह„ होना चािहए यह भी एक
Lकार का वेद दोष माना जाता है ।
४.३.५ िविभqन िदशाओ ं के दोष - वा"तु शाv के मgु य िस~ातं िवषयq म' िदशा िवचार का अrयतं
महrवपूणF "थान है । =यqिक वा"तु शाv के िविभ*न kंथq म' भवन म' बनाए जाने वाले िविभ*न Lकार
के क“ इrयािद के िलए िदशा िवशेष का िनधाFरण िकया गया है, यिद वह िनमाFण िदशा िवशेष के
अनसु ार नह„ िकया जाए तो इससे वा"तु दोष उrप*न होता है । zमशः पवू ाFिद 8 िदशाओ ं के दोष िन…न
वत है -
1- पूव3 िदशा के दोष - पवू F िदशा के "वामी इ±ं एवं सयू F है । पवू F िदशा से भवन म' िविभ*न Lकार के
रोगq या क•टाणु नाशक पराब‰गनी िकरणq का Lवेश सीधा होता है अतः पूवF मख ु ी _ार एवं िखड़क•,
साथ ही साथ पवू F िदशा म' भवन का wलवrव (ढलान ) एवं भवन का अिधकतम खल ु ा भाग और नीचा
िनमाFण भाग वा"तु स…मत माना जाता है । जबिक पवू F िदशा म' गृह"वामी का शयनक“, शौचालय,
छत और तल का शेष घर से ऊंचा होना भवन क• पवू F िदशा म' िकया गया अिधकतम िनमाFण वा"तु
दोष माना जाता है ।अतः इस Lकार के दोष से बचना चािहए
2- आ¬नेय िदशा के दोष - पवू F और दि“ण के मsय क• िदशा आÀनेय िविदशा या आÀनेय कोण
कहलाती है । इस िदशा के "वामी गणेश एवं शुz है । यह अिÀन के िलए सवÜ9म "थान है अतः रसोई
क“ (िकचन) के िलए यह अrयतं उपय£ ु "थान है । इसके साथ ही साथ िव?तु सबं धं ी िजतने उपकरण
होते ह‰ वह भी इसी िदशा म' "थािपत करने चािहए । आÀनेय िदशा म' जल का सkं ह दोष कारक माना
जाता है । इस िदशा म' भवन का मgु य _ार भी वा"तु दोष का एक Lमख ु कारण है । नैऋrय कोण क•
36
वह
ृ दवा<तुमाला 2ोक 71-72
37
बह
ृ दवा<तुमाला 2ोक 73
४.४ सारांश -
L"ततु इकाई के माsयम से हमने जाना क• गृह दोष मुgय [प से कौन कौन से होते ह‰ । सबसे
पहले गृह िनमाFण से पवू F भूिम के ही िविभ*न Lकार के दोष बताए गए है जैसे wलवrव दोष , भूिम के
आकार ज*य दोष, िव"तार संबंधी दोष , श`य दोष , िदशा के अनसु ार अशुभ वृ“ अथाFत िकस िदशा
म' कौन सा वृ“ दोष कारक होता है, मgु य _ार सबं धं ी दोष , _ार वेध दोष ,ममF वेध दोष, िविभ*न
िदशाओ ं के दोष, महु तd ाFिद दोष। एवं इकाई अsययन के प¦ात यह भी जाना क• जो िस~ा*त या िनयम
शाvq म' बताए जाते ह‰ उनके िवÂ~ िकया गया कोई भी कायF साम*य [प से दोष कारक होता है ।
सामा*य [प से तो कुछ कायF िदशा िवशेष म' िनिष~ बताए ही गए है यथा कभी भी ईशान कोण म'
शौचालय का िनमाFण नह„ होना चािहए यह Lमख ु दोष होता है । एवं कुछ सामा*य िनयम होते है िजनके
अनसु ार िदशा िवशेष का फल सामा*य रहता है अथाFत न ›यादा शभु कारक एवं न अिधक हािन
कारक इस Lकार के वचन के अनसु ार हम गृह िनमाFण कर सकते ह‰ परंतु जो िब`कुल िनिष~ िनयम
बताए गाय' है उनके अनसु ार िनमाFण कभी भी नह„ करना चािहए । अतः हमेशा गृह िनमाFण वा"तु शाv
के िनयमानसु ार ही करना चािहए िजससे अिधकािधक शुभ फल क• Lाि° हो सके ।
४.५ पाdरभािषक श†दाबली
wलवrव – "थान िवशेष का एक ओर नीचा होना । (ढलान )
श`य – भूिम के अंदर िव?मान अविश• (अशुभफल दायक ) पदाथF । (हड्डी )
वेध – िकसी व"तु के _ारा अ*य व"तु के भीच म' आमा या Âकावट पैदा करना ।
४.९ िनबqधाyमक Kl
५.१ L"तावना
५.२ उNे>य
५.३ गृहदोष िनवारण
५.३.१- भूिम के दोष का िनवारण
५.३.२ िविभ*न िदशाओ ं के दोषq का िनवारण
५.३.३ शौचालय सबं धं ी दोष का िनवारण
५.३.४ सीढ़ी से उrप*न दोष का िनवारण
५.३.५ सयू F वेध दोष का िनवारण
५.३.६ रसोईघर संबंधी दोष का िनवारण
५.३.७ सामा*य गृहदोष िनवारण के उपाय
५.४ सारांश
५.५ पा‡रभािषक शnदाबली
५.६ अÐयास Lpq के उ9र
५.७ संदभF k*थ सचू ी
५.८ सहायक पाठ्यसामkी
५.९ िनब*धाrमक Lp
५.२ उNेPय -
38
वा<तुरaाकरः 2ोक ६१
पि¦म पि¦म
पि¦म
िनिष~ आकृ ितयq के भखू ंडq पर िनमाFण नह„ करना चािहए उ*ह' छोड़ देना अÒछा होता है िकंतु आज
क• प‡रि"थितयq के कारण यिद उन पर भवन बनाना आव>यक हो तो उन म' िन…न Lकार से सधु ार कर
लेना चािहए िजससे िक भख ू ंड चौकोर बन जाए जैसे –
(उपयF£ ु भूखंडq म' अपेि“त सुधार िकया जैसे zमशः िचHानुसार िHकोणाकार भख ू ंड म', शकटाकार
भखू डं ा म', िसहं मखु ी भूखडं म', शपू ाFकार भखू ंड म', चzाकार भख ू ंड म', मृदगं ाकार भखू डं म', िवषम
बाह† भख ू ंड म' । ) इस Lकार िनिष~ आकार वाले भूखंड म' से चौकोर आकार िनकालने या सधु ार
करने के बाद बची जमीन म' पूवF उ9र क• ओर घास, पौधq क• =यारी, आिद पि¦म दि“ण म' बड़े पेड़
लगाए जा सकते ह‰ िकंतु सधु ार से बची जमीन पर िकसी भी Lकार का िनमाFण कायF नह„ कराना चािहए
।
५.३.२ िविभqन िदशाओ ं के दोषŠ का िनवारण -
ईशान कोण (िदशा) के दोष का िनवारण – उ9र - पवू F के मsय कोण या िदशा को ईशान कोण
(िदशा) कहते ह‰ । इस िदशा के "वामी िशव एवं बृह"पित है । ईशान कोण को भगवान िशव के कारण
पिवH माना गया है अतः पूजा घर ईशान म' रखना Ùेˆ माना जाता है ईशान कोण के िलए वा"तु स…मत
िनद—श दोष एवं उनके िनवारण का िवचार हम िन…न Lकार से कर सकते ह‰ -सामा*यतः ईशान मख ु ी
भवन शभु माना जाता है, इस िदशा म' खल ु ापन एवं िनमाFण *यनू तम होने चािहए, भवन का ढलान इसी
५.३.५ सूय3 वेध दोष का िनवारण- यिद िकसी भूखंड क• लबं ाई पवू F-पि¦म म' अिधक हो एवं उ9र
दि“ण म' कम चौडा हो एवं लबं ाई िलए ह†ए हो तो ऐसी भिू म व भवन को सयू F वेधीय भवन कहा जाता
है, वा"तव म' इसे बह†त शभु नह„ माना जाता है =यqिक सूयF का Lकाश बह†त कम माHा म' Lा° होता
है । ऐसा भूिम या भखू ंड रहने पर उस िनमाFण को चं± वेध म' बनवाना चािहए उ9र दि“ण लंबा, पवू F
पि¦म चौड़ा, यिद यह संभव न हो तो चौकोर भवन बनाए, यिद यह भी संभव ना हो तो कम से कम
भवन का मsय भाग अथाFत आंगन को च±ं वेध म' बना द' । यह भी संभव ना हो पा रहा हो तो भिू म क•
लबं ाई देखकर उसे दो या तीन िजतने भी भाग म' बाटं ने से वह चं± वेध हो जाए वहां नीचे ताबं े का तार
डलवा कर द' यह भूिम के ऊपर से लाल रंग का प'ट या टाइ`स का Lयोग कर बॉडFर जैसे बना द' ऐसा
करने से भिू म का दोष दरू हो जाता है एवं सूयF वेध का जो फल जैसे अि"थरता, कलह, लÎमी आिद
क• सभं ावना समा° हो जाती है ।
५.३.६ रसोईघर संबंधी दोष का िनवारण – मानव शरीर को "व"थ बनाए रखने म' भोजन का
अrयिधक महrव होता है, अतः भवन म' पाकशाला का िनमाFण भी वा"तु शाv के अनसु ार होना
अrयाव>यक माना गया है । िजससे िक हम भवन म' रहने वाले सभी सद"य "व"थ रहे । वा"तु शाv
म' दि“ण पूवF अथाFत आÀनेय कोण का "वामी अिÀनदेव को माना गया है, अतः यहां पर पाकशाला
बनाना अrयतं उपय£ ु है । =यqिक अिÀन म' तेज, Lकाश, क•टाणु नाशक, पकाने आिद क• “मता
होती है । इसिलए हमारे ऋिष-मिु नयq ने अिÀन कोण को ही पाकशाला हेतु उपय£ ु माना है । सही िदशा
म' भोजन पकाने से खाने वाले ¢यि£ भी अÒछी बुि~ व बल के होते ह‰ यहां पर कुछ बातq का अव>य
sयान रखना चािहए िजससे पाकशाला से कोई दोष उrप*न न हो- भोजन पकाते समय बनाने वाले का
मgु य सदा पवू F म' रहना चािहए । पीने का पानी व िसंक का आिद रसोईघर के ईशान कोण म' रहना
चािहए । च`ू हा पाकशाला के अिÀन कोण म' रहे, पानी के "थान एवं च`ू हे म' कम से कम 7 फ•ट क•
दरू ी रहे । "थान अभाव होने पर हम वाय¢य कोण म' भी पाकशाला बना सकते ह‰ परंतु ईशान एवं नैऋrय
कोण पर भल ू कर भी नह„ बनाना चािहए । भारी बतFन रसोईघर के दि“ण भाग म' रखे । खा? सामkी
को उ9र िदशा म' रखना चािहए । भोजन पकाने के बाद चू`हे पर बतFन नह„ छोड़ना चािहए । रसोईघर
को Lकाश य£ ु खल
ु ा ह†आ हवादार रखना चािहए । रसोई घर म' िबजली का ब`ब व ट्यबू लाइट सदा
आÀनेय कोण पर ही लगाना चािहए । पाकशाला का दरवाजा पवू F म' नह„ रखना चािहए, ना ही च`ू हा
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 199
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
सीधा दरवाजे के सामने रहे । रसोईघर क• दीवार का रंग पीला रहना चािहए । पाकशाला म' यिद ý•ज़
रखना हो तो उसे कभी भी नैऋrय या ईशान म' नह„ रखना चािहए, इसके अित‡र£ और कह„ रखा
जा सकता है डायिनगं टेबल सदा आयताकार रहना चािहए । डाइिनगं टेबल को पि¦म िदशा म' रखना
चािहए भोजन करते समय मुख पवू F िदशा क• तरफ रहे । जूठे बतFनq को नैऋrय कोण पर रखना चािहए
। रसोई घर यिदवाय¢य म' होगा तो वहां भोजन शीö समा° होता है अतः कम से कम गैस चू`हा
रसोईघर के अिÀन कोण म' रखकर भोजन पकाया जाय तो कुछ दोष दरू होता है ।
अsयासKl – 2
‡र£ "थान क• पिू तF क•िजये –
13- वा"तु दोष के िनवारण हेतु रामच‡रत मानस का पाठ लगातार ............................. िदन
तक कराना चािहए ।
14- रसोईघर म' जल का "थान ........................... कोण म' रहना चािहए।
५.४ सारांश –
इस Lकार हम कह सकते ह‰ िक हम' यथा संभव वा"तु शाv के िस~ांतq के अनसु ार ही गृह
िनमाFण कराना चािहए । =यqिक मन²ु य अपने जीवन म' अपनी पणू F शि£ का Lयोग अÒछे वातावरण
म' ही कर सकता है यिद उसे वातावरण समिु चत नह„ िमलता है तो वह अवसाद पवु क F अपने जीवन
को जीता है । वतFमान काल म' मन²ु य के िलए घर का अrयंत महrवपूणF "थान है यिद भवन म' िकसी
Lकार का दोष रहता है तो उसे अपने जीवन म' अनेक Lकार के क•q का सामना करना पड़ता है । अतः
यथा संभव गृह दोषq का िनवारण शाvो£ प~ित से करना चािहए । जैसे वा"तु दोष को दरू करने के
िलए घर म' अखडं [प से रामच‡रतमानस के 9 पाठ करने से वा"तु जिनत दोष दरू हो जाते ह‰।
मgु य _ार के ऊपर िसंदरू से "वि"तक का िच*ह बना है यह िच*ह 9 अंगुल लंबा तथा 9 अंगल ु चौड़ा
होना चािहए घर म' जहा-ं जहां वा"तु दोषq वहां वहां यह िच*ह बनाया जा सकता है । इनके साथ साथ
िविभ*न अवसरq पर वा"तु पजू न एवं वा"तु शािं त कराते रहना चािहए । इस Lकार L"ततु इकाई म' गृह
दोष के िनवारण को समझ कर भवन म' वा"तु दोष को दरू करना चािहए ।
५.५ पाdरभािषक श†दाबली -
ि'कोणाकार भूखंड - िHकोण (िHभुज ) क• आकृ ित वाला भूखंड ।
शूपा3कार भूखंड – सपु े के आकार वाला भूखंड या भूिम ।
वा#तु भगं – िकसी िनमाFण को तोड़कर बनाना वा"तु भगं कहलाता है ।
दि•णावत3 - दि“ण िदशा क• ओर घूमा ह†आ होना ।
सूय3 वेध - भूखंड क• लंबाई पवू F-पि¦म म' अिधक हो एवं उ9र दि“ण म' कम चौडा हो एवं लंबाई
िलए ह†ए हो तो ऐसी भिू म को सयू F वेधीय भिू म कहते ह‰ ।
५.९ िनबqधाyमक Kl
1. भिू म के Lमख
ु दोष एवं उनके िनवारण िलिखए ।
६.२ उNेPय
L"तुत इकाई के अsययन के बाद आप –
Ø वा"तु शाv म' वा"तु पजू न के महrव से अवगत हqगे।
Ø वा"तु पूजन कब क• जाती है इसका €ान Lा° होगा ।
Ø वा"तु शांित क• िविध से अवगत हqगे ।
Ø वा"तु पूजन म' Lय£ु होने वाली सामkी का €ान होगा
Ø सामा*य पजू न क• िविध का €ान होगा ।
६.३ वा#तश
ु ािqत –
L"तुत इकाई म' हम वा"तु शांित Lिzया एवं इसके महrव को zमब~ तरीके से जान'गे।
६.३.१- वा#तुपूजन का महyव - वा"तु का ताrपयF िनवास योÀय संक`पना से है। हमारा शरीर पांच
मgु य पदाथœ से बना ह†आ होता है और वा"तु का स…ब*ध इन पाँचq ही तrवq से माना जाता है। कई
बार ऐसा होता है िक हमारा घर हमारे शरीर के अनक ु ू ल नह„ होता है तब यह हम' Lभािवत करता है
और इसे वा"तु दोष बोला जाता है। अ=सर हम महससू करते ह‰ िक घर म' =लेश रहता है या िफर हर
रोज कोई न कोई नक ु सान घर म' होता रहता है। िकसी भी कायF को पूरा करने म' बह†त सारी किठनाइयq
का सामना करना पड़ता है। घर म' मन नह„ लगता एक नकाराrमकता क• मौजदू गी महससू होती है।
इन सब प‡रि"थितयq के पीछे वा"तु संबंिध दोष हो सकते ह‰ । हम माने या न माने लेिकन वा"तुशाv
क• हमारे जीवन म' बह†त महrवपणू F भूिमका है। यह हर रोज हमारे जीवन को Lभािवत कर रहा होता
है। घर म' मौजदू इ*ह„ वा"तु दोषq को दरू करने के िलये जो पजू ा क• जाती है उसे वा"तु शािं त पजू ा
कहते ह‰ । मा*यता है िक वा"तु शांित पजू ा से घर के अंदर क• सभी नकाराrमक शि£यां दरू हो जाती
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 205
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
ह‰ और घर म' सख ु -समृि~ आती है। वा"तु शांित पूजा िदशाओ ं के देवता, Lकृ ित के पांच तrवq के
साथ-साथ Lाकृ ितक शि£यq और अ*य संबंिधत बलq क• पजू ा है । वा"तु शाv के िकसी भी Lकार
के दोष को दरू करने के िलए हम वा"तु शािं त करते ह‰, चाहे वह भिू म और भवन, Lकृ ित या पयाFवरण
हो । वा"तु शाv _ारा भवन क• संरचना म' बड़े बदलाव और िवनाश को रोकने के िलए पजू ा क• जाती
है । गृहLवेश पजू ा से पहले लोग वा"तु पूजा करते ह‰ ।
यः पज
ू येYा#तुमनqयभ¦yया न त#य दुःखं भवतीह िकिcचत्
जीवyयसौ वष3शतं सुखेन #वगg नरि#त ित कfपमेकम्
अथाFत जो ¢यि£ अन*य भि£ व Ù~ा के साथ वा"तु का पूजन करता है उसे कभी दःु ख Lा° नह„
होता और वह शतायु होकर क`प पयÖत "वगF म' वास करता है । वा"तु पजू ा का मन²ु यq और देवताओ ं
से सीधा सबं धं है । Lाचीन वेदq के अनसु ार वा"तु शाv एक िव€ान है जो िकसी ¢यि£ को लाभ Lा°
करने म' मदद करता है । एवं जो ¢यि£ वा"तु पूजन नह„ करता जो िकसी वा"तु शाvी सHू धार को
नेहीन बल ु ाता उसके अनुसार कायF व पूजन नह„ करता वह सात ज*मq तक कोडी होता है एवं नरक
का भागी बनता है । यथा –
वा#तुपूजािवहीनv सु'धारैिव3ना तथा
स…जqम भवेyकुि सततं नरकमÓजेत्
वा#तुपूजन के लाभ -
39
वा"तुसार डा शािलनी खरे –
•वजा िवचार-पजू न के बाद दशो िदशाओ ं म' sवजा लगायी जाती है िजनका अलग अलग रंग होता
है ।
वा#तु शांित हेतु शंकु रोपण िविध - शंकु एक िपरािमड के आकार का यंH होता है िजसे िशला*यास
से पवू F भिू म के ßà "थान पर नीचे भिू म पर लगा देना चािहए यह इस Lकार से लगे िक शंकु का
ऊपरीिब*दु ßà "थान के ठीक मsय म' ही पड़े । इस Lकार से करने से भवन क• Lाकृ ितक आपदाओ ं
से भी र“ा होती है जैस-े भक
ू …प, िबजली, बाढ़, आँधी, तूफान आिद एवं वा"तदु ोष को भी दरू करता
है । इस Lकार घर म' धनाrमक ऊजाF म' वृि~ होती है शंकु व िपरािमड के "थान पर इसी Lकार से हम
Ùी यHं क• भी "थापना कर सकते ह‰ जो वा"तु दोष को दरू करता है। (गृह Lवेश के समय गृह के चारq
कोणq पर क•ल का रोपण भी िकया जाता है िजससे गृह क• सभी Lकार से सरु “ा रहे ।)
गृह Kवेश िविध – वा"तु शांित के बाद गृह Lवेश पूजा करनी चािहए । गृह Lवेश पूजा िविध zम
िन…नवत है –
शाि*त पाठ, Lधान सक ं `प, गणेश-अिं बका का पजू न, कलश पजू न , प;ु याह वाचन, स°घृतमातृका
पजू न , आय²ु य मHं जप, नंदी Ùा~, आचायाFिद वरण, अिÀन "थापन, चारq कोणq पर क•ल का "थापन
उ9राख;ड म=ु त िव>विव?ालय 213
वा"तु म' िविभ*न साधन एवं अ*य िवचार DVS-104
, क•ल पर उड़द दिध क• बिल, वा"तु चz "थापन, वा"तु चz पजू न, दश –िद=पाल पजू न, नवkह
"थापन, नवkह पूजन, नवkह का हवन, िद=पाल का हवन, वा"तु पÂु ष के मHं q _ारा हवन, िHसHू ी
धागा (लाल, काला , सफे द ) गृह के चारq तरफ बाधं े । बाधं ते समय अिवÒछ*न, दÀु ध धारा चारq
कोणq पर िगराते जाएँ, गृहोपकरणq का पजू न, देव पजू न ।
6.3.5 सामाqय पूजा िविध - पजू न म' षोडशोपचार या पÍचोपचार अचFन का zम सामा*यतः
Lचिलत है । अतः तrसबंधी मंH का िववरण िकया जा रहा है । पÂु षस£ ू के षोडश मHं और [±स£ू
के नम"ते ±. आिद षोडश मHं q से भी सभी देव पूजन म' अचFन करने क• सामा*य िविध है। sयात¢य
है िक पजू न के इस Lकरण के अÐयास से संक`प िवशेष का प‡रवतFन करके िविवध पजू ा के आयोजन
सामा*य [प से कराये जा सकते ह‰। Lrयेक पजू ारंभ के पवू F िन…नािं कत आचार-अव>य करने चािहये-
आrमशिु ~, आसन शिु ~, पिवH धारण, पृòवी पजू न, संक`प, दीप पूजन, शंख पजू न, घंटा पजू न और
"वि"तवाचन तrप¦ात् ही देव पजू न Lार…भ करना चािहए। शभु मूहdतF म' श~ ु वv धारण करके यजमान
पजू ा के िलए म;डप म' आये। यथासभं व श~ ु Ãेत वv धारण करना उ9म होता है। तदन*तर आrम
शिु ~ के िलए आचमन कर' ।
ॐ के शवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः। तीन बार आचमन कर आगे िदये
मHं पढ़कर हाथ धो ल'। ॐ िव²णवे नमः।। पनु ः बाय' हाथ म' जल लेकर दािहने हाथ से अपने ऊपर
और पजू ा सामkी पर िन…न Äोक पढ़ते ह†ए िछड़क' ।
ॐ अपिवHः पिवHो वा सवाFव"थां गतोऽिप वा। यः "मरे त् प;ु डरीका“ं स बाçाÐय*तरः शिु चः।।
ॐ प;ु डरीका“ः पनु ात,ु ॐ प;ु डरीका“ः पनु ातु ॐ प;ु डरीका“ः पनु ात।ु
आसन शिु ~-नीचे िलखा मंH पढ़कर आसन पर जल िछड़के -
ॐ पृिòव! rवया धृता लोका देिव ! rवं िव²णनु ा धृता। rवं च धारय मां देिव ! पिवHां कुÂ
चासनम।् ।
िशखाबqधन- ॐ मान"तोके तनये मानऽआयिु ष मानो गोषु मानोऽअÃेषरु ी‡रषः। मानो¢वीरान्
±भािमनो¢वधीहFिव²म*तः सदिमUवा हवामहे ।
ॐ िच±ूिपिण महामाये िद¢यतेजः समि*वते।
ितˆ देिव िशखाब~े तेजोवृि~ं कु²व मे।।
कुश धारण- िन…न मHं से बाय' हाथ म' तीन कुश तथा दािहने हाथ म' दो कुश धारण कर' । ॐ
पिवHो"थो वै²ण¢यौ सिवतु¢वFः Lसवऽउrपनु ा…यिÒछ±ेण पिवHोण सयू F"य रि>मिभः। त"य ते पिवHपते
६.९ िनबqधाyमक Kl
1- वा"तु पजू न के महrव को िलिखए।
2- वा"तु पजू न कब करानी चािहए ।
3- वा"तु पूजन म' Lय£ु क• जाने वाली सामkी िलिखए।
4- वा"तु शांित िविध को िलिखए।
5- L"तुत इकाई का सारांश अपने शnदq म' िलिखए।