Nizam Ul Islam Ebook Hindi 2024

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निज़ामुल

इस्लाम

मार्च 2023
निज़ामुल इस्लाम - 2 -
Contents
1. तरीक़ुल ईमान ..........................................................................- 12 -
1.1 अल्लाह तआला पर ईमान का तरीका ......................................................... - 13 -

1.2 इंसान, हयात, कायनात मोहताज हैं .........................................................- 14 -

1.3 फितरी ईमान और फिजदान (emotions) ................................................... - 17 -

1.4 ईमान अक्ल और दलील पर आधाफरत है ...................................................... - 18 -

1.5 रसूलों की ज़रूरत .......................................................................... - 20 -

1.6 क़ुरआन के अल्लाह का कलाम होने का सबूत ................................................. - 21 -

2. अल कज़ा वल क़दर ..................................................................- 27 -


2.1 कज़ा ....................................................................................... - 30 -

इंसानी ज़ज़दगी के दो दायरे ................................................................... - 31 -

इंसान पर हािी रहने िाला दायरा ............................................................. - 31 -

क़ज़ा - इंसान पर मुसल्लत दायरा............................................................. - 32 -

2.2 क़दर ...................................................................................... - 34 -

क़दर : अफिया और इंसान के अंदर मुतय्यन खाफसयात (attribute) ......................... - 34 -

िोह दायरा फजस पर इंसान हािी होता है ..................................................... - 35 -

अफिया की खाफसयतें (attributes) और इंसान की फजफबफल्लयात (instincts) और फजस्मानी हाजात


खुद अमल को जन्म नही दे ती ................................................................ - 36 -

खैर और िर की तारीि ..................................................................... - 37 -

फजफबफल्लयात (मूल-प्रिती) इंसान को अमल करने पर मजबूर नही करती - अमल अक़्ल के िैसले
और इंसानी इरादे का नतीजा है .............................................................. - 38 -

इल्मुल्लाह और इरादतुल्लाह इस्नान को अमल पर मजबूर नही करता ........................... - 39 -

कज़ा ि क़दर के मसले को सही तरह से समझने का िायदा - अमल मे मोहताती और तक़िा - 40 -

निज़ामुल इस्लाम - 3 -
3. इस्लाम की फिक्री फक़यादत .........................................................- 41 -
3.1 क़ौफमयत का रब्त........................................................................... - 42 -

3.2 मसफलहती रब्त और रूहानी रब्त (Bond of Interest and Spiritual Bond) ............... - 43 -

3.2.1 मसफलहत (िायदे और निा) का रब्त (बंधन) ........................................ - 44 -

3.2.2 रुहाफनयत का रब्त (बंधन) ............................................................ - 44 -

3.3 फिचाराधारा का रब्त (Ideological Bond) ................................................. - 45 -

3.3.1 फिचारधारा (मब्दे ) की बुफनयाद ........................................................ - 45 -

3.3.2 फिचारधारा के सही होने के बुफनयादी उसूल ........................................... - 46 -

3.4 दु फनया में तीन मबादी (फिचारधाराऐं) ...................................................... - 47 -

3.5 सरमायादाफरयत (पूज


ं ीिाद) की बुफनयाद और उसूल ...................................... - 48 -

3.5.1 पूंजीिाद मे चार फक़स्म की आज़ाफदयााँ ................................................. - 48 -

3.5.2 लोकतंत्र का सरमायादाफरयत से ताल्लुक़ ............................................... - 49 -

3.5.3 पूंजीिादी मब्दा और लादीफनयत के अक़ीदे के ज़हू र (उदय) का कारण ............... - 49 -

3.5.4 सेक्यूलफरज़्म का दीन का फज़मनी (आंफिक) ऐतराि मगर दु फनयािी फज़न्दगी का ज़ज़दगी से
पहले और बाद से कोई तआल्लुक़ नहीं ......................................................... - 51 -

3.5.5 लादीफनयत : दीन फसिफ िदफ और उसके ख़ाफलक़ के दरफमयान तआल्लुक़ है और दु फनयािी
मामलात से दीन (धमफ) का कोई ताल्लुक़ नही .................................................. - 51 -

3.6 इश्ततराक़ी मब्दा (साम्यिाद / Communist Ideology) .................................... - 52 -

3.6.1 इश्ततराक़ी मब्दा फिक्र (फिचार) को फदमाग पर माद्दे का अक़्स (प्रफतज़बब) मानता है .... - 52 -

3.7 सरमायादाफरयत और इश्ततराफकयत के कुछ उसूलो मे समानता ............................ - 53 -

3.7.1 कानूनसाज़ी का मनबा (स्त्रोत) इंसान और उसकी अक्ल को मानते है .................. - 53 -

3.7.2 खुिी का तसव्िुर “फजस्मानी लज़्ज़तों” को पूरा करना है ............................... - 53 -

3.7.3 इंसान को िख्सी आज़ादी (व्यफिगत स्ितंत्रता) फमलनी चाफहए ....................... - 53 -

3.8 समाज के बारे मे पूंजीिाद और साम्यिाद मे अलग अलग तसव्िुर .......................... - 54 -

3.8.1 पूंजीिाद मे समाज का नज़फरया ........................................................ - 54 -

3.8.2 समाजिाद मे समाज का नज़फरया........................................................ - 54 -

3.9 इस्लाम मब्दे की रूहानी बुफनयाद: खाफलक़ का मखलूक़ से ताल्लुक़ ......................... - 56 -

निज़ामुल इस्लाम - 4 -
3.9.1 इंसान अपने आमाल मे अल्लाह तआला के 'अिाफमर और निाही' (commands and
prohibition) में मुक़य्यद है .................................................................. - 56 -

3.9.2 समाज की फहिाज़त के आला मक़ाफसद इंसानी अक़्ल नही बश्ल्क अल्लाह के अिाफमर ि निाही
से तैय हों .................................................................................... - 57 -

3.9.3 इस्लाम ने फजस्मानी ज़रुफरयात और फजफबल्लतों हाजात (आितयकताओं) को पूरा करने की


ज़मानत दी है ................................................................................ - 58 -

3.10 इस्लामी मे िदफ (व्यफि) और समाज का तसव्िुर (अिधारणा) ............................ - 58 -

3.10.1 समाज की इस्लामी तारीि (पफरभाषा) और तसव्िुर .................................. - 60 -

3.10.2 फसयादा (‫ سياده‬- Sovereignty या इफक़्तदारे आला) िरीयत को हाफसल है ना फक फरयासत


और उम्मत को ................................................................................ - 61 -

3.10.3 इस्लाम एक अक़ीदा भी है और फनज़ामें हयात (system of life) है ..................... - 61 -

3.10.4 इस्लामी दाित को पेि करने का तरीक़ा ............................................. - 62 -

3.11 सरमायादाफरयत और इश्ततराक़ी मब्दे का अक़ीदा ......................................... - 62 -

3.12 इस्लाम का अक़ीदा ....................................................................... - 63 -

3.13 कम्यूफनज़्म, पूंजीिाद और इस्लाम से फनज़ाम कैसे िूटता है ............................... - 63 -

3.13.1 कम्यूफनज़्म के अक़ीदे से फनज़ाम (व्यिस्था) कैसे िूटता है ............................ - 63 -

3.13.2 सरमायादाफरयत के अक़ीदे से फनज़ाम (व्यिस्था) कैसे िूटती है ...................... - 64 -

3.13.2 इस्लाम के अक़ीदे से फनज़ाम (व्यिस्था) कैसे िूटती है ............................... - 64 -

3.14 फज़न्दगी में आमाल (कमफ) के फलए कसौटी ................................................ - 64 -

3.14.1 मुआिरे (समाज) के बारे में कम्युफनज़्म का नु िा-ए-नज़र ............................ - 65 -

3.14.2 मुआिरे (समाज) के बारे में पूंजीिाद का नुिा-ए-नज़र ............................. - 65 -

3.14.3 मुआिरे (समाज) के बारे में इस्लाम का नुिा-ए-नज़र ............................... - 65 -

3.15 फनज़ाम को नाफिज़ करना ................................................................ - 66 -

3.15.1 कम्यूफनज़्म मे फनज़ाम को नाफिज़ करना .............................................. - 66 -

3.15.2 सरमायादाफरयत मे फनज़ाम को नाफिज़ करना ........................................ - 66 -

3.15.3 इस्लाम मे फनज़ाम को नाफिज़ करना ................................................. - 67 -

3.16 इस्लाम की फिक्री फक़यादत इंसानी फितरत के मुिाफिक कैसे हैं ? ........................ - 68 -

3.17 पूज
ं ीिादी फिक्री फक़यादत इंसानी फितरत के फिपरीत कैसे हैं ? ........................... - 69 -

निज़ामुल इस्लाम - 5 -
3.18 कम्यूफनज़्म की फिक्री फक़यादत इंसानी फितरत के फिपरीत कैसे हैं ? ...................... - 70 -

3.19 इस्लामी फिक्री फक़यादत ही सही फिक्री फक़यादत है ........................................ - 71 -

3.19.1 कम्यूफनज़्म के मुताफबक फिक्र (फिचार) फदमाग पर माद्दे का प्रफतफबम्ब (अक़्स) होता है .. - 71 -

3.19.2 फिक्र (फिचार / अिधारणा) पैदा होने के फलये साफबक़ा मालूमात (previous information)
का होना ज़रूरी है ........................................................................... - 72 -

3.19.3 फजफबफल्लयाती बताि (instinctual behavious) और बौफिक प्रफकया मे िकफ .......... - 73 -

3.19.4 सरमायादाराना (पूंजीिादी) फिक्री फक़यादत मबनी बर अक़्ल नही है ................. - 74 -

3.19.5 इस्लामी फिक्री फक़यादत ही मबनी बर अक्ल (अक़्ल पर आधाफरत है ................... - 74 -

3.20 क्या मुसलमानों ने कभी इस्लाम को अमलन नाफिज़ भी फकया? ........................... - 76 -

इस्लामी फिक्री फक़यादत की अमली कामयाबी .................................................. - 82 -

इस्लाम की तारीख (इफतहास) के मुताले से पहले फकन चीज़ो को ध्यान मे रखे .................. - 86 -

फनज़ाम को समझने की बुफनयाद तारीख और फिक़ह नही है बश्ल्क कानूनी मसदर (स्त्रोत) है ... - 87 -

4. इस्लामी दावत को पेश करने की कैफियत.......................................- 93 -


मुसलमानों की फनिातेसाफनया इस्लामी फिक्री क़ायदे (ideology) को अपनाने से ही मुश्म्कन है - 93 -

इस्लाम की दाित के फलये इस्लाम को िैचाफरक नेतृत्ि (intellectual leadership) के तौर पर पेि
करना ज़रूरी है .............................................................................. - 94 -

दाित पहु ंचाने मे ज़माने और क़ौमों की तब्दीली का कोई फलहाज़ नही है - इस्लामी फिक्र से टकराने
िाले हर तरह के नज़फरयात को चेलेंज फकया जायेगा ......................................... - 94 -

दाित पहु चाने मे लोगों की मुिाफिक़त और मुखाफलित का फलहाज़ नही है - मब्दा पर इश्स्तक़ामत
ज़रूरी ....................................................................................... - 95 -

रसूलुल्लाह ‫ صلى هللا عليه وسلم‬ने तने तन्हा तमाम मबादी को चेलेंज फकया और अपने मब्दे पर क़ायम रहे
.............................................................................................. - 96 -

दाित का अमल मौजूदा (प्रचफलत) राय आम्मा, अक़ाईद और अदयान को चेलेंज है .......... - 96 -

इस्लाम की दाित काफमल अक़ीदा और मुकम्मल इस्लाम के फनिाज़ की दाित हो ............ - 97 -

दाित से जुडा हु आ हर अमल एक मुतय्यन नसबुल-ऐन के फलये होना चाफहये ................ - 98 -

इस्लाम की तरि दाित (1) इस्लामी फरयासत के ज़फरये इस्लाम का फनिाज़ करने, (2) इस्लामी
फज़न्दगी की नये फसरे से आग़ाज़ करने और (3) पूरी दु फनया तक इस्लाम के पैगाम को ले जाए के
फलये हो ...................................................................................... - 98 -

निज़ामुल इस्लाम - 6 -
दाित - ग़लत तसव्िुरात को सही करना और लोगों की मुश्तकलात का हल पेि करने िाले तमाम
फनज़ामें फज़न्दगी पर आधाफरत हो ............................................................. - 99 -

फसफ्िाते हाफमल्लीने दाित - (1) अपने नुिूस के अंदर कमाल का हु सूल (2) हक़ीक़त की खोज
लगाना (3) हर अजनबी फिक्र से अपने आप को पाक-साि रखना (4) अपने अफ्कार साि और
िफ्िाि रखना ............................................................................. - 102 -

फसफ्िाते हाफमल्लीने दाित - (5) फज़म्मे दारी को अल्लाह की तरि से िज़फ समझना (6) उन्हे अल्लाह
की रज़ा के खाफतर क़ुबूल करना (7) अपने आमाल का बदला फसिफ अल्लाह से चाहना........ - 102 -

5. इस्लामी तहज़ीब .................................................................... - 103 -


5.1 हदारा (तहज़ीब या culture) और मदफनय्या (तमद्दुन या material progress) फक तारीि . - 103
-

5.2 साईंस और टे क्नोलोजी पर मब्नी तमद्दुन को अपनाना जाईज़ है जबफक तहज़ीब पर मब्नी तमद्दुन को
अपना हराम है .............................................................................. - 103 -

5.3 फकसी भी गैर-इस्लामी तहज़ीब को अपनाना जाईज़ नही है ............................. - 104 -

5.4 मगफरबी तहज़ीब - (1) दीन से दु फनया के मामलात को अलग करने पर बनी है .......... - 104 -

5.5 मगफरबी तहज़ीब - (2) मनिअत (िायदे ) और लज़्ज़तों को हााँफसल करना ही पूरी फज़न्दगी का
मक़्सद है और आमाल का मे यार है .......................................................... - 104 -

5.6 मगफरबी तहज़ीब - (3) रूहानी क़द्र (values) िदफ तक महदू द (4) अखलाक़ी और इंसानी क़द्र
का कोई िजूद नहीं ......................................................................... - 105 -

5.7 इस्लामी तहज़ीब फक रूहानी बुफनयाद - (1) अल्लाह की खालफक़यत और सय्यदना मुहम्मद ‫صلى‬
‫ هللا عليه وسلم‬फक फरसालत..................................................................... - 105 -

5.8 इस्लामी तहज़ीब - (2) रूह (spirit) और माद्दे (matter) से फमल कर बनी है ........... - 106 -

5.9 इस्लामी तहज़ीब - (3) आमाल का मुहर्ररक (प्रेरक) अम्रो निाही और अल्लाह की रज़ा है - 106 -

5.10 आमाल के इरादे का इन्हे सार क़ीमतों (values) पर है - रूहानी, इन्सानी, माद्दी और अखलाक़ी
............................................................................................. - 106 -

5.11 क़ीमत माद्दी ............................................................................ - 107 -

5.12 रूहानी और इंसानी क़ीमत ............................................................ - 107 -

5.13 इस्लामी तहज़ीब की बुफनयाद है मग़फरबी तहज़ीब की बुफनयाद से फबल्कुल फिपरीत है - तस्िीर
साज़ी और औरत की फमसाल ................................................................ - 107 -

5.14 आम तमद्दुनी अफिया जाईज़ है जबफक खास तमद्दुनी अफिया को अपनाना हराम है ..... - 108 -

निज़ामुल इस्लाम - 7 -
5.15 सांइस और टे कनोलोजी से िजूद मे आने िाली तमद्दुनी अफिया को अपनाना जाईज़ है क्योंकी
यह फकसी खास तहज़ीब की पैदािार नहीं है ................................................. - 109 -

5.16 मग़फरबी तहज़ीब : (अ) दु फनयािी उमूर की दीन से जुदाई को अपनी बुफनयाद करार दे ती है जो
इंसानी फितरत के फबल्कुल फखलाि है (ब) मनिअत ही को एक इंसान का दू सरे इंसान से तआल्लुक़
गरदानती है................................................................................. - 109 -

5.17 मग़फरबी तहज़ीब : (5) इस्तेमाफरयत (imperialism) भी एक स्िभाफिक बात है (6) इसमे
अखलाक हमेंिा डांिाडोल रहते है ...........................................................- 110 -

5.18 इस्लामी तहज़ीब - (4) मुसलमानों और ग़ैर-मुश्स्लमो में कभी िक़फ नहीं फकया (5) जो तमाम
क़ीमतों को पूरा करती है (6) खुिी ि सआदत के मायनी अल्लाह तआला की खु िनूदी का हु सूल है . -
110 -

6. इस्लामी फनज़ाम ..................................................................... - 112 -


6.1 इस्लाम के आने का मक़सद इंसान के अपने ख़ाफलक़, अपने नफ़्स और दू सरे इंसानो के साथ
तआल्लुक़ात को मुनज्ज़म (व्यिश्स्थत) करना है ..............................................- 112 -

6.2 इस्लाम में मजहबी (धार्रमक) लोग और दु फनयािी लोग के नाम की फगरोह बन्दी नहीं है ...- 112 -

6.3 रूहाफनयत - खाफलक़ के साथ मखलूक़ के ताल्लुक़ात की समझ को कहते है ..............- 113 -

6.4 इंसान का बनाया हु आ फनज़ाम आपसी तिािुत (टकराि), इश्ख्तलािात और तज़ाद (परस्पर
फिरोध) का फिकार होता है ..................................................................- 113 -

6.5 इस्लामी तहज़ीब : रूह (spirit) के माद्दा (matter/पदाथफ) के साथ इश्म्तज़ाज (फमलान) है .- 113
-

6.6 अमल माद्दा (matter) है और उस अमल की अंजाम दे ही के िि अल्लाह तआला के साथ ताल्लुक़
का इदराक़ रूह (spirit) है ................................................................. - 114 -

6.7 रूहानी पहलू, रूह और रूहाफनयत का मिहू म ......................................... - 114 -

6.8 गैर-इस्लामी तहज़ीब - कायनात के दो अजज़ा (तत्ि) : (1.) मरई (अदृतय) जो रुह है (2)
गैर-मरई (स्पष्ट) जो माद्दा है .................................................................- 115 -

6.9 इसाईयत में सत्ता का दो अथोफरटीस मे बटिारा - रुहानी (पोप) और दु फनयािी (क़ैसर) .- 115 -

6.10 मगफरबी तहज़ीब का अक़ीदा यानी 'सेक्यूलफरज़्म' का जन्म रुहानी और दु फनयािी अथोफरटी के
बीच अलैदगी के नतीजे से हु आ ..............................................................- 116 -

6.11 सेक्यूलफरज़्म का दाई साम्राज्यिाद का ऐजेंट (प्रफतफनधी) है .............................- 116 -

6.12 इंसान के अंदर रूहानी ज़ुहद (बुलंदी / ascension) और माद्दी (भौफतक) रुझानात नही बश्ल्क
फजस्मानी हाजात और फजफबल्लतें है ............................................................- 116 -

निज़ामुल इस्लाम - 8 -
6.13 रूह के सही मायने ......................................................................- 117 -

6.14 फज़फबल्ल्तो को अल्लाह के फनज़ामे के मुताफबक पूरा करना ही रूह या रूहानी पहलू है .....- 117 -

6.15 मुसलमान के फलये आमाल के अंजामदे ही मे रूह (अल्लाह से ताल्लुक़) का फलहाज़ ज़रूरी है - 118
-

6.16 माद्दा और रूह को फमलाना िज़फ है ......................................................- 118 -

6.17 इस्लामी फनज़ाम को मुल्लाईयत (spiritual authority / धमफतंत्र) और दु नयिी हु कूमत


(temporal authority) मे बांटना हराम है ....................................................- 118 -

6.18 क़ुरआने करीम और हदीस िरीि, इंसान के मुआमलात को बहैफसयते इंसान के हल करने के
फलये आम मआनी पर मुततफमल है ............................................................- 119 -

6.19 इस्लामी फनज़ाम तफ्सीली अहकामात को अख़ज़ करने का काम मुज्तहे दीन पर छोड़ा गया है . -
120 -

6.20 मुजतफहद का काम : (1) पैदा-िुदा मुश्तकल की अच्छी तरह तहक़ीक़ (2) मुश्तकल से
मुताफल्लक़ िरई नुसूस का मुताला (3) िरई दलाईल से हु क्मे िरई का इश्स्तम्बात ........... - 120 -

6.21 इस्लाम इंसानी मसाईल (समस्याओं) को फसिफ इंसानी मानता है ना की इक़फतसादी (आर्रथक)
मसला या इजफतमाई (सामुफहक) या हु कूमती मसला (समस्या) ............................. - 120 -

7. हु क्मे शरई ............................................................................ - 122 -


7.1 हु क्मे िरई की तारीि ................................................................... - 122 -

7.2 क़तई हु क्म मो दो राय नही होती यानी इश्ज्तहाद नहीं फकया जाता ...................... - 122 -

7.3 ज़न्नी हु क्म मे एक से ज़्यादा राय होती है यानी इश्ज्तहाद होता है ........................ - 122 -

7.4 फरिायत या दलालत मे से फकसी एक मे भी ज़न आने से हु क्मे िरई ज़न्नी हो जाता है फजसमे राय
के इश्ख्तलाि की गुंजाईि होती है .......................................................... - 123 -

7.5 हु क्मे िरई (िरीअत या िारे का हु क्म) फसिफ इश्ज्तहाद से ही मालूम होता है ............ - 123 -

7.6 मुजतफहद के अपने इजफतहाद के अखज़ करने के बाद फकसी दू सरे की तक़लीद करन जाईज़
नही फसिाऐ कुछ खास सूरतों के............................................................. - 123 -

7.6.1 अव्िल: दू सरे मुज्तफहद की दलील के क़िी होने के ज़ाफहर होने के बाद ............... - 124 -

7.6.2 दोम: दू सरे मुजतफहद की 'हक़ीक़त से ज्यादा आगही' या 'िरई अफदल्ला के मुताफल्लक़ उसका
िहम ज्यादा क़िी' होने के एहसास के बाद ................................................. - 124 -

7.6.3 सोम: मुसलमानो को जमा करने िाकी राय के मुक़ाबले मे ............................ - 124 -

7.6.4 चहारम: ख़लीिा के तबन्नी-िुदा िरई हु क्म की इताअत मुजतफहद पर भी लाफज़म है - 124 -

निज़ामुल इस्लाम - 9 -
7.7 ग़ैर-मुजतफहद के फलये तक़लीद जाईज़ है .............................................. - 125 -

7.8 मुक़फल्लद की दो फकस्में हैं : मुत्तबीअ और आम्मी। ........................................... - 125 -

7.8.1 मुत्तबीअ : दलील की मारित के बाद मुज्तफहद की तक़लीद (अनुसरण) करता है .... - 125 -

7.8.2 आम्मी : दलील को समझे बग़ैर ही मुज्तफहद की तक़लीद करने िाला ................. - 126 -

7.9 मुक़फल्लद एक मसले के सारे िुरूअ पर एक ही मुजतफहद (मज़हब) की तक़लीद कर सकता है


और इसमे दू सरे मुजतफहद की तकलीद जाईज़ नहीं......................................... - 126 -

7.10 मुक़फल्लद का मुख्तफलि मसाईल पर अलग अलग मुजतफहदीन (मज़ाफहब) की तक़लीद करना
जाईज़ है .................................................................................... - 126 -

8. अहकामे शफरया की फक़स्में ........................................................ - 128 -


8.1 अहकामें िरई - िज़फ, हराम, मंदूब, मकरूह, मुबाह ................................... - 128 -

8.2 िज़फ की तारीि - िैल के करने मे तलब जाफज़म (खास तौर से ज़ोर दे कर मााँग) का पाया जाना
............................................................................................. - 128 -

8.3 मंदूब की तारीि - िैल के करने मे तलब गैर-जाफज़म (आम अंदाज़ मे मााँग) का पाया जाना ... -
129 -

8.4 हराम की तारीि - िैल को तकफ करने (छोडने) मे तलब जाफज़म (खास तौर से ज़ोर दे कर
मााँग) का पाया जाना ........................................................................ - 129 -

9. सुन्नत .................................................................................. - 130 -


10. रसूलुल्लाह ‫ صلى هللا عليه وسلم‬के अिआल को बतौरे नमूना इख्ततयार करना- 131 -

11. अहकामें शफरया की तबन्नी (Adoption) ................................... - 134 -

12. दस्तूर व क़ानून ................................................................... - 137 -


13. मसौदा- ए -दस्तूर ................................................................ - 144 -
13.1 आम अहकामात .......................................................................... - 144 -

13.2 फनज़ामें हु कूमत .......................................................................... - 146 -

13.3 ख़लीिा ................................................................................. - 148 -

13.4 मुआफिने तििीज़ (Delegated Assistant) ............................................. - 154 -

13.5 मुआफिने तनिीज़ (Execution Assistant) .............................................. - 156 -

13.6 िाली (गिनफर) ........................................................................... - 157 -

निज़ामुल इस्लाम - 10 -
13.7 अमीरे फजहाद ............................................................................ - 159 -

13.8 िोबाए दाखली अमन ि सलामती .........................................................- 161 -

13.9 िोबाऐ खाफरजा (Department of Foreign Affairs) ..................................... - 162 -

13.10 उद्योग फिभाग (Department of Industries) ........................................... - 162 -

13.11अदफलया (Judiciary) .................................................................. - 163 -

13.12 इन्तेजामी ढााँचा )The State Departments( ........................................... - 167 -

13.13 बैतुलमाल (राजकोष /Treasury) ...................................................... - 168 -

13.14 मीफडया (Media) ...................................................................... - 168 -

13.15 मजफलसे उम्मत )Ummah Council( ................................................... - 170 -

13.15 सामाफजक व्यिस्था (Social System) ................................................. - 173 -

13.16 आथफव्यिस्था (Economic System) ................................................... - 175 -

13.17 फिक्षा नीफत (Education System) ..................................................... - 185 -

13.18 फिदे ि राजनीफत (Foreign Policy) ..................................................... - 187 -

14. इस्लाम में अख़लाक़ .............................................................. - 190 -


खुलासाए कलाम .............................................................................. - 201 -

निज़ामुल इस्लाम - 11 -
1. तरीक़ुल ईमान

इां
साि अपिी फिक्र की बुनियाद पर निशातेसानिया (ُ‫ َي ْن َهض‬तरक्की या revival and
progress) हाांनसल करता है जो हयात, कायिात और बिी िौ इन्साि के बारे में
और इस दुनियावी नज़न्दगी से पहले और बाद से इि तमाम के ताल्लुक़ के बारे में
रखता है। र्ुिााँर्े तरक्की (निशातेसानिया) के नलए इां साि की मौजूदा फिक्र में जामेंअ
(नवस्तृत) और बुनियादी तब्दीली लािा और उसकी जगह दूसरी फिक्र पैदा करिा
निहायत ज़रूरी है। क्योंफक फिक्र ही वोह र्ीज़ है जो अनशया (वस्तुओं) के बारे में
तसव्वुरात )‫ (مفاهيم‬पैदा करती है और उि तसव्वुरात को एक मरकज़ (के न्र) पर जमा
करती है। इां साि नज़न्दगी के बारे में अपिे तसव्वुरात के मुतानबक़ ही अपिे रवय्ये को
ढालता है। पस इां साि एक शख्स के बारे में मुहब्बत के तसव्वुरात रखता है तो उसके
साथ वैसा ही रवय्या इनख्तयार करता है। इसी तरह नजस शख्स के बारे में ििरत के
तसव्वुरात रखता है तो उसके साथ सुलूक भी उसी फकस्म का करता है। और नजस शख्स
को वोह िहीं जािता और उसके बारे में कोई तसव्वुरात िहीं रखता तो इां साि उस के
साथ रवय्या भी उसी तरह का रखेगा। गोया इां साि का रवय्या उसके तसव्वुरात के साथ
जुडा हुआ है। पस जब हम इां साि के पस्त रवय्ये को तबदील करके उसे बुलांद रवय्ये
वाला बिािा र्ाहे तो सबसे पहले हमें उसके तसव्वुरात को तबदील करिा पडेगा।
सुरह रअद : आयत 11 में इरशादे बारी तआला है:

ُ ْ ‫اُبأ َ ْنف ِس ِه‬


﴾‫م‬ ِ ‫اُبق َْو ٍمُ َح َََّتُي َغ َِِّيواُ َم‬
ِ ‫ُاَللُالُي َغ ِ َِّيُ َم‬
َ ََّ ‫﴿إِ ََّن‬
“अल्लाह तआला फकसी क़ौम की हालत को उस वक्त तक िहीं बदलता तब तक
वोह उस र्ीज़ को िा बदलें जो उिके अपिे िुिूस में है।”
तसव्वुरात को बदलिे का एक ही रास्ता है और वोह यह की दुनियावी नज़न्दगी के बारे
में फिक्र पैदा की जाये। ताके उसके ज़ररये दुनियावी नज़न्दगी के बारे में सही तसव्वुरात
पैदा हो जाएां। दुनियावी नज़न्दगी के बारे में फिक्र उस वक्त तक ितीजाखेज़ तौर पर

निज़ामुल इस्लाम - 12 -
मरकू ज़ िहीं हो सकती जब तक कायिात, इां साि, हयात के मुतानल्लक़ और दुनियावी
नज़न्दगी से क़ब्ल और बाद के साथ इि सब के ताल्लुक़ के बारे में फिक्र पैदा िा हो जाऐ।
यह फिक्र कायिात, इां साि और हयात से मावरा के बारे में एक मुकम्मल फिक्र देिे से पैदा
होती है, क्योंफक यह ही मुकम्मल फिक्र वो फिक्री बुनियाद है नजस पर नज़न्दगी के बारे में
तमाम अफ्कार की इमारत तामीर होती है। इि अनशया के बारे में मुकम्मल िुक्ता-ए-
िज़र देिा ही इां साि के सब से बडे सवाल (यािी उकदतुल कु बरा या अक़ीदे) का हल है।
नजस वक्त यह सवाल हल हो जाए, बाकी सवाल भी हल हो जाएांगे क्योंफक बाक़ी सवाल
या तो इसी सवाल का जुज़ है या वोह इसकी िरोआत (peripheral) हैं। लेफकि यह हल
उस वक्त तक सही तरक्की (िहज़ा या निशातेसानिया) तक िहीं पहुाँर् सकता जब तक की
यह हल एक सही हल िा हो जो इां सािी फितरत के ऐि मुआफिक हो, अक़्ल को क़ाइल
करें और फदल को इनममिाि बख्शे।
कायिात, इां साि और हयात के बारे में फिक्रे मुस्तिीर (रोशि फिक्र) के बग़ैर इस सहीह
हल तक पहुांर्िा मुमफकि िहीं। इसनलए निशातेसानिया की ख्वानहश रखिे वालों और
तरक्की की राह पर र्लिे वालों को सबसे पहले इस सवाल को रोशि फिक्र
(फिक्रेमुसतिीर) के ज़ररये हल करिा र्ानहए। ये हल ही अक़ीदा है और यही वोह फिक्री
बुनियाद है नजस पर तज़े नज़न्दगी और नज़न्दगी के निज़ामो के बारे में हर िु रोई फिक्र की इमारत
तामीर है।

1.1 अल्लाह तआला पर ईमान का तरीका


इस्लाम इस उकदतुलकु बरा की तरि मुतवज्जोह हुआ और इां साि के सामिे इस मसले का
ऐसा हल पेश फकया, जो फितरत के ऐि मुवाफिक़ है, अक्ल को क़ाइल करता है और फदल
को इनममिाि बख़्शता है। इस्लाम िे अपिे अन्दर दानखल होिे को इस हल के अक़ली
इकरार पर मौकू ि (के नन्रत) फकया है। यही वजह है की इस्लाम एक ही बुनियाद यािी
अक़ीदे पर क़ायम है। वो अक़ीदा यह है फक इस कायिात, इां साि और हयात से मावरा
(परे ) एक ख़ानलक़ मौजूद है नजसिे इि सब को और हर र्ीज़ को पैदा फकया है। वोह
ख़ानलक़ अल्लाह तआला है। वोह अनशया को अदम से वुजूद में लाया। उस का वुजूद एक
लाज़मी अम्र है। वोह मख़लूक़ िहीं है वरिा वोह ख़ानलक़ िा होता। यह अम्र की वोह

निज़ामुल इस्लाम - 13 -
ख़ानलक़ है इस बात का तक़ाज़ा करता है की वोह ग़ैर मख़लूक़ हो। यह अम्र उसके वजूद
की लाज़नमयत का तक़ाज़ा भी करता है क्योंफक तमाम अनशया अपिे वुजूद के नलये उसकी
मोहताज हैं और वोह फकसी का मोहताज िहीं।

1.2 इंसान, हयात, कायनात मोहताज हैं


जहााँ तक अनशया के नलए एक ऐसे ख़ानलक़ के वुजूद की ज़रुरत का ताल्लुक़ है तो यह
इसनलए है के वोह तमाम अनशया नजि का अक्ल इदराक़ (बोध or perception) करती
है, मसलि इां साि, हयात और कायिात सब की सब महदूद (सीनमत), आनजज़ (मजबूर)
और िाफक़स (कमज़ोर) और मोहताज है। पस इां साि महदूद हैं क्योंफक वोह हर र्ीज़ में
एक हद तक ही जा सकता है, उससे ताजावुज़ िहीं कर सकता। नलहाज़ा वोह महदूद है।
नज़न्दगी भी महदूद है, क्योंफक इसका मज़हर ही इिफिरादी (वयनक्तगत) है और हवास
के ज़ररये इस बात का मुशानहदा (अिुभव) फकया जाता है फक यह एक िदच के अन्दर ही
खमम हो जाती है। नलहाज़ा यह भी महदूद है, कायिात भी महदूद है क्योंफक यह ऐसे
अजसाम (नजस्मों) का मजमुआ है नजसमें हर नजस्म महदूद है और महदूद अनशया का
मजमुआ भी लानजमी तौर पर महदूद होता है। यही वजह है के इां साि कायिात और
हयात सब के सब क़तई तौर पर महदूद हैं। जब हम एक महदूद र्ीज़ पर ग़ौर करते है तो
मालूम होता है फक वोह अज़ली (हमेंशा से) िहीं है। क्योंफक वोह अगर अज़ली होती तो
महदूद िा होती। नलहाज़ा महदूद र्ीज़ लाज़मी तौर पर फकसी और की मख़लूक़ होगी
और वह ज़ात ही इां साि, हयात और कायिात की ख़ानलक़ है। फिर यह ख़ानलक़ या तो
फकसी और की मख़लूक़ होगा या खुद अपिा ही ख़ानलक़ होगा या फिर वह अज़ली होगा
नजसके वजूद का होिा एक लाज़मी अम्र हो। उसका फकसी और की मख़लूक़ होिा बानतल
है क्योंफक इस सूरत में वोह महदूद ठहरे गा। िीज़ अपिे आप का ख़ानलक़ होिा भी बानतल
है, क्योंफक इस सूरत में वह एक ही वक्त में अपिा ख़ानलक़ और अपिे आप की मख़लूक़
होगा, और यह भी बानतल है। नलहाज़ा यह ख़ानलक़ अज़ली और वानजबुल वुजूद ही हो
सकता है और यह ख़ानलक़ अल्लाह तआला है।
इां साि के हवास नजि र्ीज़ों को महसूस करते है महज़ उि र्ीज़ों के वुजूद से ही एक
सानहबे अक़्ल शख्स इस बात का इदराक़ करता है फक इिका कोई ख़ानलक़ है। क्योंफक इि

निज़ामुल इस्लाम - 14 -
तमाम अनशया में इस अम्र का मुशानहदा फकया जा सकता है फक यह िाफक़स व आनजज़
है और फकसी ज़ात की मोहताज है, नलहाज़ा यह क़तई तौर पर मख़लूक़ हैं। यही वजह
फक इस ितीजे तक पहुांर्िे के नलये की खानलके मुदनब्बर की ज़ात मौजूद है; कायिात,
इां साि और हयात में से फकसी एक की तरि निगाह डालिा ही कािी है। पस कायिात में
मौजूद नसतारो में से फकसी एक नसतारे पर निगाह डालिा या नज़न्दगी की फकसी सूरतों
में से फकसी भी सूरत के बारे में गौरो खोज़ करिा, और इां साि के फकसी पहलू का भी
अध्ययि करिा अल्लाह तआला के वुजूद के हक़ में क़तई दलील है। र्ुिााँर्े हम देखते हैं
की कु रािे करीम इि अनशया की तरि तवज्जोहह फदलाता है और इां साि को दावत देता
है फक वोह अपिे माहौल और उस से ताल्लुक़ रखिे वाली र्ीज़ो पर िज़र डाले और यह
देखे फक फकस तरह यह अनशया फकसी ज़ात की मोहताज है, तो इसके ितीजे में इां साि
एक खानलक़े मुदनब्बर के वुजूद का मुकम्मल तौर पर इदराक़ करे । इस बारे में सैंकडो
आयात वाररद हुई है। सूरे आले इमराि आयत-190 में इरशाद है :

ُ‫ُألول‬
ُ ِ ‫ات‬ٍ ‫ُآلي‬
َ ‫ار‬ ِ ‫الفُا ُلل ََّ ْي ِل َُوال َن ََّه‬
ِ ‫األر ِض َُوا ْخ ِت‬
ْ ‫ات َُو‬
ِ ‫او‬ ََّ ‫إِ ََّن ُِِفُ َخل ْ ِق‬
َ ‫ُالس َم‬
ُ‫اب‬
ِ ‫األل َْب‬
“बेशक आसमाि और ज़मीि के पैदा करिे और फदि रात के अदल बदल कर
आिे जािे में अक़्लवालो के नलए निशानियााँ है।“
सूरे रोम, आयत-22 में इरशाद है :

ُ‫األر ِض َُوا ْخ ِتالفُأَل ِْس َن ِتك ْم َُوأَل َْوا نِك ْم‬


ْ ‫ات َُو‬
ِ ‫او‬
َ ‫ُالس َم‬ َ ‫َو ِم ْن‬
ََّ ‫ُآياتِهُِ َخلْق‬
ُ‫ي‬
َ ‫اتُلِل َْعا لِ ِم‬
ٍ ‫ُآلي‬
َ ‫ك‬ َ ِ‫إِ ََّن ُِِفُ َذ ل‬
“और उसकी निशानियो में से आसमािो और ज़मीि की तख़लीक़ है और
तुम्हारी ज़बािो और रां गो का मुख्तनलि होिा।”
सूरे ग़ानशया, आयात - 17-22, में इरशाद है :

निज़ामुल इस्लाम - 15 -
ُ ْ ‫ونُإِ ََلُاإل ِب ِلُك َْي َفُخلِق‬ َ ُ ‫َلُالسما ِءُكَي َفُر ِفع‬
‫َت‬ َ ‫ت أفَالُ َي ْنظر‬ْ َ ْ َ ََّ ُ َ ِ‫َوإِ ََلُ َوإ‬
ُ‫ح ْت‬ ْ ‫الُك َْي َفُن ِص َب ْتُ َُوإِ ََل‬
ُ َ ‫ُاألر ِضُك َْي َفُس ِط‬ ِ ‫الْ ِج َب‬
“भला यह िहीं देखते फक ऊाँट कै से पैदा फकया गया? आसमािो को कै से बुलदां
फकया गया? और पहाड कै से खडे फकये गये? और ज़मीि को कै से हमवार फकया
गया?
सूरे ताररक़, आयात 5-7, में इरशाद है :

ُ ٍ ‫بُ خل َِقُ ِم ْنُ َما ٍءُ َُداف‬


ُ‫ِق فَل َْي ْنظ ِرُاإل ْن َسانُ ِم ََّمُخل َِق‬ َّ ‫ي‬
ِ ْ ‫ُالص ُل‬ ِ ْ ‫َي ْخرجُ ِم ْنُ َب‬
ُ‫ب‬ َ ََّ ‫و‬
ِ ِ‫الَتائ‬ َ
“इां साि को सोर्िा र्ानहए फक वोह फकस र्ीज़ से पैदा फकया गया? इां साि की
पैदाइश उस उछलिे वाले पािी से हुइ जो छाती और पसनलयों के दरनमयाि
से निकलता है”
सूरे बक़रा, आयत - 164, में इरशाद है :

ُ‫ار َُوالْفل ِْكُا ُلََّ ِِت‬ِ ‫الفُا ُلل ََّ ْي ِل َُوال َن ََّه‬ ِ ‫األر ِض َُوا ْخ ِت‬ ْ ‫ات َُو‬ ِ ‫او‬ ََّ ‫إِ ََّن ُِِفُ َخل ْ ِق‬
َ ‫ُالس َم‬
ُ‫ُالس َما ِءُ ِم ْنُ َما ٍء‬
ََّ ‫ُاَللُ ِم َن‬ ََّ ‫َّاس َُو َماُأ َ ُْن َز َل‬َ ‫يُِفُال َْب ْح ِر ُِب َماُ َي ْن َفعُال َن‬
ِ ‫َت ْج ِر‬
ُ‫اح‬ ُ
‫ي‬ ‫ر‬ ‫ل‬ ‫ُا‬ ‫يف‬ ‫ر‬ ‫ص‬ ‫ت‬
َ ‫ُو‬ ‫ة‬
ٍ َّ ‫ب‬ ‫ا‬ ‫د‬ ُ ‫ل‬ ‫ك‬ُ ‫ن‬ ‫م‬
ِ
ُ ُ ‫ا‬ ‫يه‬ ‫ف‬
ِ ُ ‫ث‬َّ ‫ب‬ ‫اُو‬ ‫ه‬ ِ ‫ت‬ ‫و‬‫م‬ُ ‫د‬ ‫ع‬ ‫ب‬ ُ ‫ض‬ ‫ُِاألر‬
‫ه‬ ‫اُب‬ ‫ي‬‫ح‬ َ ‫فَأ‬
ِ َ َِّ ِ ِ ْ َ َ َ َّ ِ ْ َ َ ََ َ َْ َْ ْ َ َ ِ َ ْ
ُ‫ون‬
َ ‫اتُلِق َْو ٍمُ َي ْع ِقل‬
ٍ ‫األر ِضُآل َي‬
ْ ‫ُالس َما ِء َُو‬
ََّ ‫ي‬ ََّ ‫ابُالْم َس‬
َ ْ ‫خ ِرُ َب‬ ِ ‫لس َح‬
ََّ ‫ َوا‬
“इसमें कोई शक िहीं फक आसमािों और ज़मीि की पैदाइश में, रात फदि के
अदल बदल के आिे जािे में, और उि कनततयों में जो इां साि के ििे (िायदे) के
नलए समांदरो में दौडती फिरती है और उस बाररश के पािी में नजसे अल्लाह
तआला िानज़ल करता है फक नजससे ज़मीि मुदाच होिे के बाद िई नज़न्दगी
हानसल करती है, नजसकी वजह से र्ोपाए ज़मीि पर िै ले हुए हैं, और हवाओं

निज़ामुल इस्लाम - 16 -
के हैर िै र में और बादलों के आसमाि और ज़मीि के दरनमयाि मुसख्खर रहिे
में अक्ल वालो के नलए निशानियााँ है।”
इि आयात के अलावा फदगर कई आयात में इां साि को, अनशया, अपिे माहौल और मुताल्लेकात पर
गहरी िज़र डालिे की दावत दी गई है, नजिसे इांसाि खानलके मुदनब्बर के वुजूद पर इनस्तदलाल कर
सकता है, ताफक अल्लाह तआला पर उसका ईमाि पुख्ता, अक्ली और दलील पर आधाररत हो।

1.3 फितरी ईमान और फवजदान (emotions)


जी हााँ ! अगर्े ख़ानलक़ पर ईमाि लािा हर इां साि के अन्दर एक क़ु दरती र्ीज़ है। मगर
नवजदाि (emotions /भाविाएां) इां साि को उस ईमाि तक पहुर्ाता है। लेफकि नसिच
नवजदािी तरीक़े से हाांनसल होिे वाला ितीजा क़ानबले ऐतबार िहीं होता है और िा ही
यह ितीजा पाऐदार होता है। क्योंफक नवजदाि पर आधाररत ईमाि ऐसी र्ीज़ों को ईमाि
में शानमल करिे की वजह बि जाता है नजि का हकीकत में कोई वुजूद िहीं होता। लेफकि
इसके बावुजूद नवजदाि उन्हे ईमाि लािे के नलए लाज़मी खयाल करता है। यों इां साि
कु फ्र या गुमराही में जा नगरता है। बुतपरस्ती, खुराित, ओहाम (वहम) नवजदाि की ही
ग़लती का ितीजा हैं। यही वजह है के इस्लाम िे नसिच नवजदाि को ईमाि का तरीका
करार िहीं फदया, फक कहीं इां साि अल्लाह तआला के नलए ऐेसी नसिात िा ठहराले जो
शािे माबूफदयत के मुतािाफकज़ (नवपरीत) हों। या कहीं अल्लाह को माद्दी अनशया
(भौनतक वस्तुओं) में मुजनस्सम (बिा हुआ) िा समझ बैठे या कही माद्दी अनशया की
इबादत से अल्लाह तआला के तकरुच ब (निकटता) को मुमफकि िा समझिे लगे नजसके
ितीजे में कु फ्र या नशकच कर बैठे या ऐसे ओहाम और खुराित में िां स जाऐ जो इमािे
साफदक़ के मिािी हैं। इसनलए इस्लाम िे नवजदाि के साथ अक्ल के इस्तेमाल को लाज़मी
करार फदया और अल्लाह तआला पर ईमाि लािे के नलए अक्ल के इस्तेमाल को ज़रूरी
क़रार फदया। अक़ीदे में तक़लीद (अिुसरण) से मिा फकया और अल्लाह तआला पर ईमाि
लािे के नलए नसिच अक्ल को िै सला कु ि करार फदया।
सूरे आले इमराि, आयत:190, में इरशाद है :

निज़ामुल इस्लाम - 17 -
ُ‫ُألول‬
ِ ‫ات‬ ِ ‫الفُال ُل ََّ ْي ِل َُوال َن ََّه‬
ٍ ‫ارُآل َي‬ ِ ‫األر ِض َُوا ْخ ِت‬
ْ ‫ات َُو‬
ِ ‫او‬ ََّ ‫إِ ََّن ُِِفُ َخل ْ ِق‬
َ ‫ُالس َم‬
ُ‫اب‬
ِ ‫األل َْب‬
“बेशक आसमािो और ज़मीि की पैदाइश में और फदि रात के अदल बदल कर
आिे जािे में अक्ल वालो के नलए निशानियााँ हैं।”

1.4 ईमान अक्ल और दलील पर आधाफरत है


इसनलए हर मुसलमाि का ईमाि लाजमी तौर पर गोरो -फिक्र और बहसो-िज़र की
बुनियाद पर होिा र्ानहए। अल्लाह तआला पर ईमाि लािे में नसिच अक्ल को िै सलाकु ि
बिािा र्ानहए। कु रािे मजीद की कई सूरतो में ऐसी सैकडों आयात हैं जो अल्लाह तआला
के क़वािीि का मुशानहदा करिे और अल्लाह तआला पर ईमाि लािे के नलए रहिुमाई
हानसल करिे की खानतर कायिात में गौरो-फिक्र की दावत देती हैं।
यह सब की सब आयात इां साि को गहरी सोर्-नवर्ार और गौरो-खोज़ की दावत देती हैं।
ताफक इसका ईमाि अक्ल और दलील पर मबिी हो। यह आयात इां साि को डराती है फक
वो अपिे बाप-दादा के अक़ाइद और आमाल को गौरो-फिक्र, तहक़ीक़ (खोज) व जाइज़ा
और उि के दुरुस्त होिे के मुतानल्लक़ खुद ऐतमाद (भरोसा) हानसल फकए बग़ैर क़ु बूल
िा करे । यह है वोह ईमाि ! नजस की इस्लाम दावत देता है। यह वोह ईमाि िहीं नजसको
इमािुल ‘अजाइज़’ यािी बूढो का ईमाि कहते है, बल्की यह उस रोशि फिक्र रखिे वाले
सानहबे यक़ीि शख्स का ईमाि होता है जो िज़र और फिक्र से काम लेता है और गौरो-
ख़ोज करता है। फिर इसी फिक्रो-िज़र और बहसो तिकीर के ज़ररये वोह उस अल्लाह
तआला पर इमािो यकीि तक पहुाँर्ता है जो बेपिाह कु दरत का मानलक है।
अगरर्े अल्लाह पर ईमाि तक पहुाँर्िे के नलए इां साि पर अक्ल का इस्तेमाल िज़च है
लेफकि इां साि के नलए उस ज़ात का इहाता करिा मुमफकि िहीं जो उसके हवास और
अक्ल से बालातर है। इसकी वजह यह है फक इां सािी अक्ल सीनमत है। और एक सीनमत
ताक़त र्ाहे फकतिी ही आला हो जाए और उसकी योग्यता में फकतिा ही इज़ािा हो
वोह सीनमत ही रहती है और अपिी हद से आगे िहीं बड सकती है। र्ुिार्े इां साि की

निज़ामुल इस्लाम - 18 -
समझ की ताक़त सीनमत है। मालूम हुआ की इां साि अल्लाह तआला की ज़ात को समझिे
में लार्ार है। और अल्लाह तआला की हक़ीक़त को समझिे से भी लार्ार है क्योंफक
अल्लाह तआला कायिात, इां साि और हयात से परे है और इां सािी अक्ल फकसी ऐसी र्ीज़
को िहीं समझ सकती जो उस से परे हो। इसनलए वोह अल्लाह तआला की ज़ात को
समझिे में लार्ार है। लेफकि यहााँ पर यह भी िहीं कहा जा सकता फक अगर इां साि की
अक्ल अल्लाह तआला की ज़ात को समझिे में लार्ार है तो फिर इां साि अक्ली तौर पर
अल्लाह तआला पर ईमाि कै से लाए ? क्योंफक अल्लाह तआला पर ईमाि लािे का
मतलब है फक अल्लाह तआला के वुजूद पर ईमाि लािा, और अल्लाह तआला के वुजूद
का अिुभव उसकी मखलूकात (प्रानणयों) के वुजूद के अिुभव के ज़ररये होता है, और
उसकी मखलूकात कायिात, इां साि और हयात हैं, और इि मखलूकात का अिुभव अक़्ल
के दायरे में हैं। इसनलए अक्ल िे इि सब का इदराक़ (बोध) फकया और इिकी समझ के
ितीजे में अपिे ख़ानलक़ की मौजूदगी का भी इदराक़ फकया और वोह ख़ानलक़ अल्लाह
तआला है। र्ुिााँर्े अल्लाह के वुजूद पर ईमाि अक्ली और अक्ल के दायरे के अदांर है।
इसके बर नखलाि अल्लाह तआला की ज़ात का इदराक़ िा मुमफकि हैं। क्योंफक अल्लाह
तआला की ज़ात कायिात, इां साि और हयात से परे है। नलहाज़ा वोह अक्ल से भी परे है।
अक्ल के नलए यह िा मुमफकि है फक वोह अपिे से परे फकसी र्ीज़ का इदराक़ कर सके ।
अक्ल की यह आनजज़ी यािी अपिे से परे को समझिे में लार्ार होिा ईमाि को ताक़त
पहुाँर्ाती हैं। यह फकसी फकस्म के शक का सबब िहीं बि सकती। क्योंफक जब अल्लाह पर
हमारा ईमाि अक्ली हो तो उसके वुजूद का इदराक़ भी कानमल होगा। जब अल्लाह
तआला के वुजूद के बारे में हमारा शऊर अक्ली हो तो अल्लाह तआला के वुजूद के बारे
में हमारा यह शऊर यक़ीिी होगा। इससे हमें एक मुकम्मल समझ और ख़ानलक़ की तमाम
तर नसफ्िात (गुणों) के हवाले से यक़ीिी शऊर हानसल होता है नजस से हमें यह यक़ीि
होता है की हम अल्लाह पर मज़बूत ईमाि रखिे के बावजूद अल्लाह तआला की हक़ीक़त
को समझिे की हरनगज़ ताक़त िहीं रखते। पस हम पर लानज़म है की हम हर उस र्ीज़
को तसलीम करें नजसकी अल्लाह िे हमें खबर दी है और नजसको समझिे या उसकी
समझ तक पहुाँर्िे से हमारी अक्ल अयोग्य है। और यह इां सािी अक्ल की अपिी फितरी
आनजजी की वजह से है ज़ो अपिे सीनमत और निस्बती पैमािों के ज़ररये अपिे से परे को
िहीं समझ सकती। क्योंफक इसके समझ के नलए ऐसे पैमािो की ज़रूरत है जो िा तो

निज़ामुल इस्लाम - 19 -
निस्बती हो और िा सीनमत हों और यह एक ऐसी र्ीज़ है नजसका इां साि िा मानलक है
और िा कभी मानलक बि सकता है।

1.5 रसूलों की ज़रूरत


अब रही रसूलो की ज़रूरत के सबूत की बात! तो यह बात सनबत हो र्ुकी है इां साि
अल्लाह तआला की मख़लूक़ (रर्िा) है और तदय्युि (ताज़ीम और इबादत करिे की
र्ाहत) इां साि के अांदर एक फितरी र्ीज़ है। क्योंफक यह नजनबल्लतों में से एक नजनबल्लत
(मूलपवचती) है। इां साि अपिी फितरत के नलहाज़ से अपिे ख़ानलक़ की तकदीस ( पूजा)
करता है और ये तकदीस ही इबादत है। यही इां साि और ख़ानलक़ के दरनमयाि ताल्लुक़
है और अगर इस ताल्लुक़ को बग़ैर फकसी निज़ाम के छोड फदया जाए तो यह परे शािी
और ग़ैर-ख़ानलक़ की इबादत की तरि ले जायेगा। र्ुिााँर्े लानज़म है की यह ताल्लुक़ एक
सही निज़ाम के ज़ररये मुिज्ज़म हो और यह निज़ाम कोई इां साि िहीं बिा सकता। क्योककां
वोह ख़ानलक़ की हक़ीक़त का इदराक़ (बोध) ही िहीं कर सकता तो उसके साथ ताल्लुक़
के नलए निज़ाम फकस तरह बिाएगा? नलहाज़ा यह निज़ाम ख़ानलक़ ही बिा सकता है।
फिर ख़ानलक इस निज़ाम को इां सािो तक कै से पहुाँर्ाएगा? पस अल्लाह के दीि (निज़ाम)
को लोगों तक पहुाँर्ािे के नलए रसूलो की ज़रूरत है।
इां सािो के नलए रसूलो की ज़रूरत की यह भी दलील है फक अपिी नजनबल्लतों और
नजस्मािी हाजात (instincts and organic needs) को पूरा करिा इां साि की ज़रूरत
है। अगर यह नजनबल्लतों और नजस्मािी हाजात का पूरा करिा बग़ैर फकसी निज़ाम के
हो तो यह ग़लत और नखलािे मामूल होिे की वजह से इां साि की बदबख्ती का सबब
बि सकता है। नलहाज़ा एक ऐसे निज़ाम की ज़रूरत है जो इां साि की नजनबल्लतों और
नजस्मािी हाजात को मुिज्ज़म अांदाज से पूरा करे और यह निज़ाम इां साि िहीं बिा
सकता। क्योककां इां सािी नजनबल्लतों और नजस्मािी हाजात को सांघरठत करिे के बारे में
उसकी समझ तिावुत (दूररयााँ), इखनतलाि (मतभेद) और नवरोधाभास से दो-र्ार होता
रहता है। इसी तरह वोह उस माहोल से भी प्रभानवत होता है नजसमें वोह रह रहा हैं।
पस अगर निज़ाम का बिािा इां साि पर छोड फदया जाए तो इस निज़ाम में तिावुत
(दूरीयााँ), इनख्तलाि (मतभेद) और तज़ाद (opposite) होगा और यह इां साि की

निज़ामुल इस्लाम - 20 -
बदबख्ती का सबब बि जाएगा। र्ुिााँर्े निज़ाम अल्लाह तआला ही की तरि से हो सकता
है।

1.6 क़ुरआन के अल्लाह का कलाम होने का सबूत


और जहाां तक क़ु रआि का अल्लाह की फकताब होिे के सबूत का ताल्लुक़ है तो बात यह
है फक क़ु रआि एक फकताब है जो अरबी ज़बाि में है नजसे मुहम्मद ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬ले
कर आये। नलहाज़ा या तो यह फकताब अहले अरब की तरि से होगी या मुहम्मद ‫صىل اهلل‬
‫ عليه وسلم‬की तरि से, या फिर अल्लाह तआला की तरि से। इि तीिो के अलावा यह
फकताब फकसी और की जानिब से िहीं हो सकती क्योंफक इसकी ज़बाि भी अरबी है और
उसलूब (शैली) भी।
अब जहााँ तक क़ु रआि का अहले अरब की जानिब से होिे का ताल्लुक़ है तो यह ग़लत है
क्योंफक क़ु रआि िे अरब को र्ैलेंज फकया फक वोह इस जैसी फकताब ला कर फदखाये।
सूरे हूद, आयत -13 में इरशाद है :

ُ‫ق ْلُفَأْتواُ ِب َع ْش ِرُس َو ٍرُ ِمثْلِ ِه‬


“आप कह दीनजए फक इस जैसी दस सूरते ले आओ”

सूरे यूिुस, आयत - 38, में इरशाद है :

ُ‫ور ٍةُ ِمثْلِ ِه‬‫س‬ ‫ُب‬‫ا‬ ‫و‬‫ت‬ْ ‫قلُفَأ‬


َ ِ ْ
“आप कह दीनजए फक इस जैसी एक सूरत ही ले आओ”
अहले अरब िे इस जैसा कलाम लािे की सर तोड कोनशश की लेफकि िाकाम हुए। मालूम
हुआ फक यह अरबों का कलाम िहीं वरिा वो इस जैसा कलाम लािे में आनजज िहीं होते
और िा ही र्ैलेंज का जवाब देिे में िाकाम होते। यह कहिा फक क़ु रआि मुहम्मद ‫صىل اهلل‬
‫ عليه وسلم‬की बिाई हुई फकताब है, तो यह भी बानतल है। क्योंफक मुहम्मद ‫صىل اهلل عليه‬

निज़ामुल इस्लाम - 21 -
‫ وسلم‬भी एक अरबी थे और एक शख्स र्ाहे फकतिा ही ज़हीि व तेज़ फदमाग़ क्यो िा हो,
वोह एक इां साि और अपिे समाज और क़ौम का एक व्यनक्त ही होता है। र्ुिााँर्े जब अरब
क़ु रआि की तरह का क़लाम िहीं ला सकते तो यह बात मुहम्मद अरबी ‫صىل اهلل عليه وسلم‬
पर भी साफदक़ आती है फक आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬भी इसकी जैसी नमसाल िहीं ला सकते।
नलहाज़ा क़ु रआि मुहम्मद ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬की जानिब से भी िहीं। इसके अलावा मुहम्मद
‫ صىل اهلل عليه وسلم‬की सही आहादीस भी मौजूद है, जो मुतवानतर ररवायात के ज़ररये से
हम तक पहुाँर्ी है और जो यकीिि सच्ची हैं। जब फकसी भी हदीस का फकसी आयत से
मुवाज़िा फकया जाए और देखा जाऐ तो मालूम होता है फक दोिों के उसलूब में कोइे
मुशानबहत (समािता) िहीं। हालाांफक आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬नजस वक्त िानज़ल होिे वाली
आयात की नतलावत िरमाया करते थे उसी वक्त यह अहादीस भी बयाि िरमाया करते
थे। फिर भी उिके उसलूब में बहुत बडा िकच है। इां साि का कलाम, र्ाहे वोह फकतिा ही
मुतिव्वे (नभन्न) क्यों िा हो उसमें उसलूब की मुशानबहत ज़रूर होती है और क़ु रआि और
हदीस में उसलूब की मुशानबहत नबल्कु ल िहीं। तो मालूम हुआ फक क़ु रआि मुहम्मद ‫صىل‬
‫ اهلل عليه وسلم‬का कलाम हरनगज िहीं क्योंफक दोिों के दरनमयाि वाज़ेह और सरीह िक़च
है। बावुजूद यह के अरब वाले अरबी कलाम के असालीब (शैलीयों) के मानहर थे लेफकि
उन्होिे कभी यह दावा िहीं फकया फक यह मुहम्मद ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬का कलाम है, या
आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬की गुफ्तगू से मुशानबहत रखता है। अलबत्ता उन्होंिे यह दावा
ज़रूर फकया फक यह क़ु रआि मुहम्मद ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬एक िसरािी गुलाम जब्र से सीख
कर तैयार करते हैं। इसनलए अल्लाह तआला िे उिके इस दावे को रद्द करते हुए सूरे
िहल, आयत - 103 में इरशाद िरमाया:

ُِ‫ون ُُإِل َْيه‬‫د‬‫ح‬ِ ْ ‫ل‬ ‫ي‬ ُ‫ي‬‫ذ‬ َّ َ ‫ل‬ ‫ا‬ ُ ‫ان‬ ‫س‬ ِ ‫ل‬ُ ‫ر‬ ‫ش‬
َ ‫ب‬ ُ ‫ه‬‫َّم‬
ُ ِ ‫ل‬‫ع‬ ‫ُي‬ ‫ا‬ ‫م‬َّ ‫ن‬
َ ‫ُإ‬ ‫ون‬‫ول‬ ‫ق‬ ‫ُي‬‫م‬ ‫ه‬َّ ‫ن‬
َ َ ‫و لَقَدُ َنعل َمُأ‬
َ ِ َ ٌ َ َ َ ِ َ َ ْ ْ ْ َ
َ
ُ ٌ ‫انُ َع َر ِبٌَُّم ِب‬
‫ي‬ ٌ ‫أ ْع َجم ٌ َِّي َُو َهذَ اُلِ َس‬
“और बेशक हम जािते हैं फक वोह कहते हैं फक इसे एक इां साि क़ु रआि नसखाता
है, उस शख्स की ज़बाि नजसकी तरि यह इस क़ु रआि को मिसूब करते हैं,
अजमी हैं। हालाांफक यह क़ु रआि एक साि और वाज़ेह अरबी ज़बाि में है।”

निज़ामुल इस्लाम - 22 -
जब यह सानबत हो गया फक क़ु रआि िा तो अहले अरब का कलाम हैं और िा ही मुहम्मद
‫ صىل اهلل عليه وسلم‬का तो यह यकीिि अल्लाह का कलाम है, और जो इसको लेकर आये
हैं, यह उिके हक़ में एक मोनजज़ा है।
र्ूाँफक मुहम्मद ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬अल्लाह के रसूल हैं। इसको लेकर आये और यह क़ु रआि
अल्लाह का कलाम और अल्लाह की शरीअत है और अल्लाह की शरीअत को कोई िबी
और रसूल ही लेकर आता है तो क़तई तौर पर और अक्ली दलील के ज़ररये मालूम हुआ
फक मुहम्मद‫ صىل اهلل عليه وسلم‬अल्लाह के रसूल हैं।
यह है अल्लाह तआला पर ईमाि, मुहम्मद ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬की ररसालत और क़ु रआि के
कलामुल्लाह होिे की अक्ली दलील! नलहाज़ा मालूम हुआ फक अल्लाह तआला पर ईमाि
अक्ल के ज़ररऐ होिा र्ानहए और और ज़रूरी है की यह ईमाि अक्ली हो। क्योंफक यही
वोह बुनियाद है नजस पर तमाम ग़ैबी उमूर (र्ीज़ों) पर ईमाि क़ायम है और हर उस
र्ीज़ पर ईमाि क़ायम है नजसकी अल्लाह तआला िे खबर दी है। जब हम अल्लाह तआला
और उसकी नसफ्िाते माबूफदयत पर ईमाि लाए है, तो लाज़मी तौर पर हमें उि र्ीज़ो
पर भी ईमाि लािा र्ानहए, नजिकी हमें अल्लाह तआला िे खबर दी है। र्ाहे अक्ल
उिको समझ सकती हो, या यह अक्ल से परे हों। क्योंफक उिके बारे में अल्लाह ही िे
खबर दी है। इसनलए उि र्ीज़ो पर भी ईमाि लािा िजच है, नजिका नजक्र क़ु रआि या
अहादीसे मुतवानतर में है। जैसा की क़यामत का फदि, जन्नत, जहन्नुम, अज़ाब, मलायका,
नजि और शयातीि, नहसाब-फकताब वगैरा। यह ईमाि अगरर्े िक़ली (transmitted)
और समई तरीक़े पर है ,लेफकि दरअसल यह अक्ली ईमाि है। क्योंफक इसकी बुनियाद
को अक्ली तौर पर सानबत फकया जा र्ुका है। यही वजह है फक हर मुसलमाि का अक़ीदा
अक्ल की बुनियाद पर या उस र्ीज़ की बुनियाद पर होिा र्ानहए, नजसकी असास अक्ल
पर हो। पस मुसलमाि को र्ानहए की वोह हर उस र्ीज़ पर ईमाि रखे, जो अक़्ल के
ज़ररये या क़तई (definitive) और यक़ीिी समाअत के ज़ररये सानबत हो। दूसरे अलिाज़ो
में वोह क़ु रआि या हदीसे मुतवानतर (क़तई अहादीस) से सानबत हो। जो र्ीज़ इि दोिों
(क़ु रआि और सुन्नते क़तई) से सानबत िा हो उस पर ईमाि रखिा हराम है। क्योंफक
अक़ीदे की दलील क़तई ही हो सकती है।
यही वजह है फक नज़न्दगी से क़ब्ल यािी अल्लाह तआला, और नज़न्दगी के बाद यािी
क़यामत पर ईमाि लािा िज़च है। अल्लाह तआला के अवानमर व िवाही (commands

निज़ामुल इस्लाम - 23 -
and prohibitions) नज़न्दगी से पहले का इस नज़न्दगी के साथ और इसी तरह मख़लूक़
के साथ ताल्लुक़ क़ायम करते है। और इां साि के दुनिया में फकये गये आमाल के मुहानसबे
से हयाते दुनिया का दुनियावी नज़न्दगी के बाद के साथ ताल्लुक़ क़ायम होता है, यािी
इस दुनियावी नज़न्दगी का क़यामत से ताल्लुक़ क़ायम होता है। क्योंफक यह यक़ीिी बात
है की इस मौजूदा नज़न्दगी का अपिे से क़ब्ल और बाद के साथ ताल्लुक़ है। और ज़रूरी
है के इां साि के आमाल इस ताल्लुक़ में बन्धे हुए हों। पस इां साि नज़न्दगी में अल्लाह तआला
के निज़ामों के मुतानबक़ र्ले और यह ईमाि रखे फक क़यामत के फदि इससे दुनियावी
आमाल के मुतानल्लक़ पूछताछ होगी।
इस बहस से कायिात, हयात और इां साि से पहले के बारे में रोशि फिक्र (फिक्रेमुस्तिीर)
पैदा हो गई है और इस तरह नज़न्दगी से क़ब्ल और बाद के बारे में और इस दुनियावी
नज़न्दगी के अपिे से क़ब्ल और बाद के साथ ताल्लुक़, के बारे में रोशि फिक्र पैदा हो गई।
और यूाँ उक़दतुल कु बरा इस्लामी अक़ीदे के ज़ररये जामें तौर पर हल हो गया।
जब इां साि इस हल तक पहुांर् जाता है, तब दुनियावी नज़न्दगी के बारे में फिक्र की तरि
मुतवज्जोह होता है। फिर उस के ितीजे में वोह सच्चे तसव्वुरात तक पहुाँर्ता है। मालूम
हुआ फक यही हल वोह बुनियाद है नजस पर वोह मब्दा (ideology) क़ायम है, जो िहज़ा
(‫ نهضا‬निशाते सानिया) के तौर पर इनख्तयार फकया जाता है। और यही वोह बुनियाद है
नजस पर इस आयनडयोलोजी की तहज़ीब (हदारा - ‫ ) حضارۃ‬क़ायम है। यही वोह असास
(बुनियाद) है, नजस से उसके निज़ाम िू टते है और यही वोह असास है, नजस पर ररयासत
की बुनियाद बिती है। पस मालूम हुआ फक नजस असास पर इस्लाम की बुनियाद क़ायम
है, वोह फिक्र (‫ )فکرہ‬और तरीका ) ‫ (طريقة‬दोिों के नलहाज़ से यही इस्लामी अक़ीदा है।

ُِ‫ابُالََّ ِذيُ َن ََّز َلُع َََلُ َُرسولِه‬ ‫ت‬


َ ‫ك‬ ْ ‫ل‬ ‫ا‬ ‫ُِو‬ ‫ه‬ ِ ‫ل‬ ‫و‬‫س‬ ‫ر‬‫ُِو‬‫اَلل‬َّ ‫ُب‬ ‫ا‬ ‫و‬‫ن‬‫م‬ِ ‫ُآ‬ ‫ا‬ ‫و‬ ‫ن‬ ‫م‬ ‫ُآ‬ ‫ن‬ ‫ي‬ ‫ذ‬ َّ َ ‫ل‬ ‫اُا‬ ‫ه‬َّ ‫ي‬َ ‫ياُأ‬
ِ ِ َ ََ َ ِ َ َ ِ َ َ
ُِ‫اَلل َُِو َمالئِ َك ِته َُِوكت ِب ِهُ َورسلِه‬ ََّ ‫كف ُْر ُِب‬ ْ ‫ابُالََّ ِذيُأ َ ْن َز َلُ ِم ْنُق َْبل َُو َم ْنُ َي‬ ِ ‫َوالْ ِك َت‬
‫يدا‬
ً ‫ُضالالُ َب ِع‬ َ ‫ل‬ ََّ ‫َوال َْي ْو ِمُاآل ِخ ِرُفَق َْدُ َض‬
“ऐईमाि वालों! ईमाि लाओ अल्लाह तआला पर, उस के रसूलों पर ,उस की
फकताब पर, जो उस िे अपिे रसूल पर िानज़ल िरमाइ है और उि फकताबों

निज़ामुल इस्लाम - 24 -
पर, नजन्हें अल्लाह तआला िे इससे पहले िानज़ल िरमाया है। और जो कोई
इिकार करे गा अल्लाह तआला, उसके मालायका, उसकी फकताबों, उसके रसूलों
और आनखरत के फदि का, तो वोह बहुत दूर की गुमराही में मुबनतला हो
जाऐगा।” सूरह निसा, आयत-136:
यह बात तो सानबत हो र्ुकी है फक इस्लाम की आयनडयोलोजी पर ईमाि एक हतमी
र्ीज़ है नलहाज़ा लानज़म है फक मुसलमाि पूरी शरीअत पर मुकम्मल ईमाि लाए, क्योंफक
यह शरीअत कु रािे पाक में है और इसको मुहम्मद ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬लेकर आये हैं। वरिा
इां साि काफिर होगा। नलहाज़ा अहकामें शररया (‫)احکام شرعيۃ‬, यािी उि अहकाम का जो
क़तई (निनित तौर) पर सानबत हैं, उिका इिकार कु फ्र है, र्ाहे उि अहकामात का
ताल्लुक़ इबादत से हो या मुआमलात )‫ (معامالت‬से हो, उकु बात (सजाओं) से हो या
मतुमात (खािे पीिे की र्ीज़ों) से।
पस नजस तरह इस आयत का इां कार कु फ्र है:

﴾َ‫واُالصال ُة‬
ََّ ‫﴿ َوأ َ ِقيم‬
“िमाज़ क़ायम करो।”
(तजुचमा मआिी-ए-क़ु रआि, सूरा बक़रा, आयत - 43)
नबल्कु ल इसी तरह इस आयत का इां कार भी कु फ्र है:

﴾‫ُاَللُال َْب ْي َع َُو َح ََّر َمُال َِّر َبا‬ ََّ ‫﴿ َوأ َ َح‬
ََّ ‫ل‬
अल्लाह िे नतजारत को हलाल कर फदया और सूद को हराम कर फदया।
तजुचमा मआिी-ए-क़ु रआि, सूरा बक़रा, आयत - 275)
और नजस तरह इस आयत का इां कार कु फ्र है फक:

﴾‫ارقَةُفَاق َْطعواُأ َ ْي ِد َيه َما‬


ِ ‫الس‬
ََّ ‫ارق َُو‬
ِ ‫الس‬
ََّ ‫﴿ َو‬
“र्ोर र्ाहे मदच हो या औरत, दोिों के हाथ काट दो”
(तजुचमा मआिी-ए-क़ु रआि, सूरा - अल मायदा, आयत - 38)

निज़ामुल इस्लाम - 25 -
इस तरह इस आयत का इां कार भी कु फ्र है:

﴾‫ُاَلل‬
ُِ ََّ ‫ِي‬ ََّ ‫ْني ِر َُو َماُأه‬
ِ ْ ‫ِلُلِ َغ‬ ََّ ‫﴿ح َِّر َم ْتُعَل َْيكمُال َْم ْي َتة َُو‬
ِ ْ ‫الدم َُو لَ ْحمُا ُلْ ِخ‬
“तुम पर मुदाचर, खूि, नखन्जीर का गोतत और ग़ैरुल्लाह के िाम का जबीहा
हराम कर फदया गया है।”
(तजुचमा मआिी-ए-क़ु रआि, सूरा - अल मायदा, आयत - 3)

और शरीअत पर ईमाि अक्ल पर मोकू ि िहीं। बल्की अल्लाह तआला के हर हुक्म को


बग़ैर फकसी शशोपांज के माििा र्ानहए :

ْ َ ‫اُش َج َرُ َب ْي‬


ُ‫هَنُث ََّمُالُ َي ِجدواُ ِِف‬ َ ‫يم‬ َ ‫ونُ َح َََّتُي َح ِ َّكم‬
َُ ‫وكُ ِف‬ َ ‫كُالُي ْؤ ِمن‬ َ َ ‫﴿ف‬
َ ‫الُو َر َِّب‬
﴾‫يما‬ َ ‫أ َ ْنف ِس ِه ْمُ َح َر ًجاُ ِم َمَّاُق‬
ً ِ‫َض ْي َت َُو ي َسلِ َّمواُ َت ْس ُل‬
"ऐ मुहम्मद (‫ )ص ىل اهلل عليه وسلم‬आपके रब की कसम! यह उस वक्त तक मोनमि
िहीं हो सकते जब तक फक यह आपको अपिे इनख्तलािात में िै सला करिे
वाला िा बिा लें। फिर जब आप िै सला करें तो यह अपिे अांदर कोई नगरािी
महसूस िा करें । बनल्क इि िै सलो के सामिे सर निगूाँ हो जाएां।”
(तजुचमा मआिी-ए-क़ु रआि, सूरा - अनन्नसा, आयत - 65)

निज़ामुल इस्लाम - 26 -
2. अल कज़ा वल क़दर

सू रे आले इमराि में अल्लाह तआला का हुक्म है:

﴾‫ُاَللُِ ِك َتا ًباُم َؤ ََّجال‬ َ


َ ‫َانُلِ َن ْف ٍسُأ ْنُ َتم‬
ََّ ‫وتُإِال ُِب ِإ ْذ ِن‬ َ ‫﴿ َو َماُك‬
“कोई जािदार अल्लाह के हुक्म के बग़ैर िहीं मरता और इसकी मौत
का वक्त तयशुदा होता है”। (तजुम
च ा मआिी-ए-क़ु रआि, सूरा आले इमराि:
आयत-145)

सूरे अल आराि में इरशाद है :

ُ‫ون َُسا َع ًة َُوال‬‫ر‬ ‫خ‬


ِ ْ ‫﴿و لِك لُأ َّم ٍةُأَجلُفَإ َذاُجاءُأَجلهمُالُيستأ‬
َ َ ْ َ ْ َ َ َ ِ ٌ َ َ َّ ِ َ
﴾‫ون‬
ُ َ ‫َي ْس َت ْق ِدم‬
“हर उम्मत के नलये एक अजल (मुकरच र वक्त) है बस जब उिकी अजल आ जाती
है तो वह उस से एक पल भी आगे पीछे िहीं हो सकते।”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे अल आराि: आयत-34)
सूरे अल हदीद में इरशाद है :

ُ‫ابُ ِم ْنُق َْب ِلُأ َ ْن‬


ٍ ‫ت‬
َ ‫ك‬
ِ ُ ‫ُِف‬‫ال‬
ِ ِ ْ‫ُإ‬ ‫م‬ ‫ك‬ ‫س‬ِ ‫ف‬ ‫ن‬
ْ َ ‫﴿ماُأَصابُ ِمنُم ِصيب ٍةُِفُاألر ِضُوالُِفُأ‬
ِ َ ْ ِ َ ْ َ َ َ
﴾‫ِي‬ ََّ ‫كُع َََل‬
ٌُ ‫ُاَللُِ َي ِس‬ َ ‫َن‬
َ ِ‫ْبأ َهاُإِ ََّنُ َذ ل‬
َْ
“जो भी आित पडती है ज़मीि में या तुम्हारी जािो में हमिे इसको पैदा करिे
से पहले ही नलख फदया है, यकीिि यह अल्लाह के नलये आसाि है।”
सूरहॅ अत्तौबा में इरशाद है :

निज़ामुल इस्लाम - 27 -
ُ‫ُاَللُِفَل ْ َي َت َوكُ ََّ ِل‬
ََّ ‫اُوع َََل‬
َ ‫ُاَللُلَ َناُه َوُ َُم ْوال َن‬ َ ‫﴿ق ْلُلَ ْنُي ِص‬
َ ‫يب َناُإِالُ َماُ َك َت‬
ََّ ‫ب‬
﴾‫ون‬
ُ َ ‫الْم ْؤ ِمن‬
“कह दीनजये हम पर कोई मुसीबत िहीं आती मगर वह जो अल्लाह तआला िे
हमारे नलये नलख दी हो बेशक वह अल्लाह हमारा निगेहबाि है और मोनमिो
को उसी पर भरोसा करिा र्नहये।
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे अत्तोबा: आयत-51)
सूरे सबा में इरशादे बारी तआला है :

ُ‫ُالسا َعةُق ْلُ َب ََل َُو َر ِ َّبُلَ َتأْتِ َي َنَّك ْمُ ُعَا لِ ِم‬ ََّ َ َ ‫ا‬ ‫ن‬‫ي‬ ِ ‫ت‬ ْ ‫﴿وقَالُالََّذينُ َكفَرواُالُتأ‬
َ ِ َ َ
ُ‫ُاألر ِض َُوالُأ َ ْص َغرُُ ِم ْن‬ ْ ‫ات َُوال ُِِف‬ ِ ‫او‬ ُ ََّ ‫بُالُ َي ْعزبُ َع ْنهُ ِمثْقَالُ َذ ََّر ٍة ُِِف‬
َ ‫ُالس َم‬ ِ ‫الْ َغ ْي‬
﴾‫ي‬ ُ ٍ ‫ابُم ِب‬ ‫ت‬
َ ‫ك‬
ِ ُ ‫ُِف‬ ‫ال‬‫ُإ‬ ‫ْْب‬ ‫ك‬ َ ‫َذ لِكُوالُأ‬
ٍ ِ ِ َ َ َ
“अल्लाह से कोई जराच बराबर र्ीज़ भी छु पी िहीं है र्ाहे वह आसमािो में हो
या ज़मीि में और िा उस जरे से भी कोई छोटी या बडी र्ीज़ है, जो फकताबे
मुबीि में िा हो।”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे सबा: आयत-3)
सूरे अिआम में है :

ِ ‫﴿ َوه َوُالََّ ِذي َُي َت َوفََّا ك ْم ُِبا لل ََّ ْي ِل َُو َي ْعل َمُ َُماُ َج َر ْحت ْم ُِبال َن ََّه‬
ُ‫ارُث ََّمُ َي ْب َُعثك ْم‬
ُ‫ِفيهُِلِي ْق ََضُأ َ َج ٌلُم َس ً ًَّمُث ََّمُإِل َْيهُِ َم ْر ِجعكُ ْمُث ََّمُي َن َِّبئك ْم ُِب َماُك ْنت ْم‬
﴾‫ون‬ ُ َ ‫َت ْع َمل‬
“अल्लाह तो वह है जो रात को तुम्हे मौत देता है, और जािता है जो कु छ तुम
फदि में कर र्ुके हो, और फिर तुम्हे जगा देता है ताफक नमयादे मुअय्यि पूरी

निज़ामुल इस्लाम - 28 -
कर दी जाये, फिर उसी की तरि तुम लौटाए जाओगे, फिर वह तुम्हे उस र्ीज़
की खबर देगा जो कु छ तुम करते रहे हो।”
(तजुचमा मआिी-ए-क़ु रआि, सूरे अिआम: आयत-60)
और सूरे निसा में है:

ُ‫هْب َُس ِ َّي َئ ٌة‬


ْ ْ ‫اَلل َُِوإِ ْنُت ِص‬ ُِ ‫ُح َس َن ٌةُ َيقولواُ َه ِذهُِ ِم ْنُ ِع ْن‬
ََّ ُ‫د‬ ْ ْ ‫﴿ َوإِ ْنُت ِص‬
َ ‫هْب‬
َ ‫الُ َهؤال ِءُالْق َْو ِمُالُ َُيكَاد‬
ُ‫ون‬ ِ ‫ُاَللُفَ َم‬ َّ ٌ ‫َيقولواُ َه ِذهُِ ِم ْنُ ِع ْن ِد َكُق ْلُك‬
ُِ ََّ ‫لُ ِم ْنُ ِع ْن ِد‬
﴾‫ُح ِديثًا‬
َ ‫ون‬
َ ‫َي ْفقَه‬
“और अगर इन्हे कोई भलाई पहुांर्े तो यह कहते हैं फक यह अल्लाह की तरि से
है और अगर कोई बुराई पहुांर्े तो कहते हैं फक यह तेरी तरि से है, कह दीनजए
फक सब कु छ अल्लाह की तरि से है सो इि लोगों का क्या हाल है फक बात को
समझिे वाले भी िहीं लगते।” (तजुम च ा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे निसा:
आयत-78)
यह और इि जैसी दूसरी आयात से बहुत से लोग कज़ा व क़दर के बारे में ऐसे इनस्तदलाल
(बहस) करते हैं नजिसे गुमाि होता है फक इां साि अपिे कामो को अांजाम देिे में मजबूर
है, और उसके तमाम कामों की अांजाम देही लाजमि अल्लाह तआला के इरादे और मरजी
से होता है, और अल्लाह ही इां साि और उसके आमाल (कामो) का ख़ानलक़ है, अपिे इस
कौल के सबूत में वह अल्लाह तआला के इस इरशाद को पेश करते हैं।

﴾‫ون‬
ُ َ ‫اَللُ َخل َ َقك ْم َُو َماُ َت ْع َمل‬
ََّ ‫﴿ َو‬
“अल्लाह तआला िे तुम्हें पैदा फकया और तुम्हारे आमालों को भी।”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे: अस्सािात, आयत-96)
इसी तरह वोह कु छ अहादीसों से भी इस्तदलाल करते है जैसा फक रसूलुल्लाह (ُ‫صَلُاهلل‬
‫ )عليهُوسلم‬का यह कौल है,

निज़ामुल इस्लाम - 29 -
“रूहुलकु दुस िे यह बात मेंरे फदल में डाल दी के कोई ज़ीरूह उस वक्त तक िहीं मर
सकता, जब तक फक वह अपिे ररज्क़, अपिी अजल और इसी तरह जो कु छ उसके नलये
मुकरच र कर फदया गया है उसे पूरा िा कर ले।”

2.1 कज़ा
कज़ा व क़दर का मसला इस्लामी मकानतबे फिक्र में एक मारे कतुल आरा (कई राय) मसला
रहा है। इस मसले के बारे में अहले सुन्नत की राय का खुलासा यह है फक इां साि को अपिे
अिआल में कसबे इनख्तयारी हानसल है और इसी कसबे इनख्तयारी की बुनियाद पर
उसका मुहानसबा होगा। मोअतनजला की राय का सार यह है फक इां साि ही अपिे अिआल
(actions) का ख़ानलक़ है और इां साि का मुहासबा इस वजह से होगा फक वोह अपिे
अिआल का खुद मोनजद है। इस मसले में जबररया की राय का निर्ोड यह है फक अल्लाह
तआला ही बन्दे और उसके अिआल का ख़ानलक़ है। इसनलए बन्दे को अपिे अिआल
(actions) पर कोई इनख्तयारी िहीं, बनल्क वोह नसिच मजबूर है। बन्दे की नमसाल उस
(पररन्दे के ) की सी है जो फिज़ा में हो और नजसको हवाऐं नजधर र्ाहें उडा रही हों।
कज़ा व क़दर के मसले के बारे में एक बारीक बीि इस बात को जाि जाऐगा की इस
मसले के मुतानल्लक़ िहम हानसल करिे के नलये इस मसले की बुनियाद को समझा
समझिा ज़रूरी है। बन्दे के अिआल इस मसले की बुनियाद िहीं की खुद बन्दा अपिे
िे अल (action) का ख़ानलक़ है, या अल्लाह तआला उसके िे ल का ख़ानलक़ है। िा यह
बुनियाद अल्लाह तआला का इल्म है की अल्लाह पहले से यह जािता था की यह बन्दा
क्या अमल करे गा, यािी अल्लाह तआला के इल्म िे बन्दे का इहाता फकया हुआ है, िा
यह बुनियाद अल्लाह तआला का इरादा है, जो बन्दे के िे ल से मुतानल्लक़ हो, इस तरह
फक जब अल्लाह का इरादा हो तो वोह िे ल ज़रूर प्रकट होगा, िा वोह बुनियाद यह है
फक बन्दे का यह िे ल लोहे-महिू ज में नलखा हुआ है, तो बन्दा लाजमि इस काम को सर
अांजाम देगा।
जी हााँ! यह र्ीज़े इस बहस की बुनियाद हरनगज िहीं, क्योंफक सवाब व अज़ाब के हवाले
से इि मुआमलात का इस नवषय से कोई ताल्लुक़ िहीं, बनल्क इि र्ीज़ों का ताल्लुक़

निज़ामुल इस्लाम - 30 -
अमल की अांजाम देही, हर शय (र्ीज़) का इहाता करिे वाले इल्म, तमाम मुमफकिात से
मुतानल्लका अल्लाह के इरादे और लोहे महिू ज के तमाम र्ीज़ों पर आधाररत होिे से है।
यह ताल्लुक़ एक अलग नवषय है, और यह अमल के ितीजे में अज़ाब या सवाब से नबल्कु ल
जुदा नवषय है, यािी यहााँ बहस का नवषय है फक क्या इां साि अपिे अमल अांजाम देही में
मजबूर है या मुखतार, र्ाहे इस का यह अमल अच्छा हो या बुरा ? और क्या उसे अमल
की अांजाम देही या अमल को तकच करिे का इनख्तयार हानसल है या िहीं ?

इंसानी ज़ज़दगी के दो दायरे


अिआल को बारीक बीिी से देखिे वाला अिुभव कर सकता है फक इां साि दो दायरों में
नज़न्दगी गुजारता है। एक दायरे पर इां साि खुद हावी है, यह वोह दायरा है जो इां साि के
तसरूचिात के तहत आता है। और इस दायरे में रहते हुए इां साि जो अिआल सरअांजाम
देता है उि पर इां साि को इनख्तयार हानसल होता है। दूसरा दायरा वोह है जो इां साि पर
हावी है, यािी इस दायरे के अांदर नजतिे भी अिआल आते हैं उि पर इां साि को कोई
इनख्तयार हानसल िहीं, ख्वाह यह अिआल इां साि की तरि से हो या यह खुद इां साि पर
वाक़े हों।

इंसान पर हावी रहने वाला दायरा


पस वोह अिआल जो उस दायरे में आते हैं, जो इां साि पर हावी है और नजिमें इां साि का
कोई अमल दखल िहीं, या उि के रोिुमा होिे से इां साि को कोई सरोकार िहीं, इि
अिआल की दो फक़स्में है, एक वोह फकस्म है नजसका निज़ामें कायिात तक़ाज़ा करता है।
दूसरी फकस्म उि अिआल की है, जो इां साि की कु दरत में िहीं, और इां साि उि को टाल
भी िहीं सकता लेफकि निजामें कायिात उि का तक़ाज़ा िहीं करता। जहााँ तक उि
अिआल का ताल्लुक़ है, नजि का निज़ामें कायिात तक़ाज़ा करता है तो इां साि इिके
सामिे सर निगूाँ होता है और मजबूरि उि के मुतानबक़ र्लता है। क्योंफक इां साि को तो
कायिात और हयात के साथ एक मख़सूस निज़ाम के मुतानबक़ ही र्लिा है जो तब्दील
िहीं होता। इां साि उसकी मुख़ानलित िहीं कर सकता। इसनलए इस दायरे के अिआल
इां साि के इरादे से बाहर है। इां साि को हर हाल में उस के मुतानबक़ र्लिा है, और इस

निज़ामुल इस्लाम - 31 -
दायरे में उसे कोई इनख्तयार हानसल िहीं जैसा फक इां साि दुनिया में अपिे इरादे के बग़ैर
आया और यहााँ से अपिी मरज़ी के बग़ैर र्ला जाएगा। इां साि अपिे नजस्म के बल बूते
पर हवा में उड िहीं सकता है और ि ही प्राकर्तचक तौर पर पािी पर र्ल सकता है। इसी
तरह अपिी आखों का रां ग खुद िहीं बिा सकता। िा अपिे सर को जैसा र्ाहे वैसा बिा
सकता है, और िा ही अपिे नजस्म को अपिी मज़ी के मुतानबक़ जैसे र्ाहे बिा सकता है।
इि तमाम कामों को करिे वाला नसिच अल्लाह तआला है। इि कामों में मख़लूक़ (बन्दे)
का कोई अमल दखल िहीं होता। क्योंफक अल्लाह तआला ही िे निजामें कायिात को
बिाया है, और अल्लाह तआला ही िे इसको मुिज़्ज़म फकया है। र्ुिााँर्े इां साि इसके
मुतानबक़ र्लता है और इसकी नखलािवज़ी करिे की ताकत िहीं रखता ?
वह अिआल जो इां साि की ताकत से बाहर हैं और वह उिको टाल भी िहीं सकता और
वो निज़ामें कायिात में से भी िहीं है यह वो अिआल हैं नजिका इां साि मजबूरि इरतेकाब
करता है या यह इां साि पर जबरि वाक़े अ होते है और इां साि इिसे बर् भी िहीं सकता
मसलि एक शख्स दीवार पर से दूसरे शख्स पर नगरे नजस के ितीजे में दूसरा शख्स मर
जाऐ या कोई शख्स फकसी पररन्दे पर गोली र्लाए लेफकि यह गोली पररन्दे के बजाए
फकसी ऐसे शख्स को जा लगे नजस को गोली र्लािे वाला शख्स जािता भी िा हो और
वह मर जाए, इसी तरह रे ल गाडी या मोटरकार का हादसा हो जाए या जहाज फकसी
ऐसी िन्नी खराबी की वजह से नगर कर तबाह हो जाए नजस का इजाला मुमफकि िहीं
था र्ुिााँर्े इस हादसे या नगरिे की वजह से उसमें सवार अिराद हलाक हो जाएां, यह
या इसी फकस्म का कोई और वाक्या पेश आ जाए तो यह अिआल ख्वाह इां साि की
जानिब से हुए हों या इां साि के ऊपर वाक़े हुए हों, और अगरर्े निज़ामें कायिात इिका
तक़ाज़ा िहीं करता लेफकि र्ूांकी यह इन्साि की जानिब से या उसके ऊपर उसके इरादे
के बग़ैर वाक़े हुए हैं नलहाजा यह इां सािी कु दरत व ताकत से बाहर हैं। पस यह अिआल
उस दायरे में दानखल हैं जो इां साि पर हावी हैं।

क़ज़ा - इंसान पर मुसल्लत दायरा


जो अिआल उस दायरे में दानखल हैं जो इां साि पर मुसल्लत (हावी) हैं तो उिको कज़ा
कह जाता है। क्योंफक उि तमाम अिआल को घरटत करिे का िै सला नसिच अल्लाह
तआला ही करता है। नलहाज़ा उि कामों के नलये इां साि से सवाल जवाब िहीं होगा ख्वाह

निज़ामुल इस्लाम - 32 -
इन्साि के नलये इि में फकतिा ही िायदा या िुकसाि और पसन्द या िापसन्दगी की बात
क्यों ि हो यािी इां साि की तिसीर के मुतानबक़ उिमें फकतिा ही ख़ैर व शर क्यों िा हो
क्योफक उि अिआल में पाए जािे वाले ख़ैर व शर को नसिच अल्लाह ही जािता है, इां साि
उि अिआल पर असरअन्दाज़ िहीं हो सकता। इां साि को तो उि अिआल का इल्म होता
है और िा ही उिके वुजूद में आिे का र्ुिााँर्े इां साि उिको रोकिे या उि से बर्िे फक
ताकत भी िहीं रखता, इां साि पर लानज़म है फक वह उस बात पर ईमाि रखे के यह कज़ा
है और अल्लाह (सुबहािहू-व-तआला) की जानिब से है।

निज़ामुल इस्लाम - 33 -
2.2 क़दर
अब रही बात क़दर की! तो यह बात ज़ानहर है के तमाम अिआल, र्ाहे वह उस दायरे
से ताल्लुक़ रखते हों जो इन्साि पर हावी हैं या उस दायरे के मातहत हों वे नजस पर
इां साि हावी है कायिात, इां साि और हयात के जररए वाक़े अ होते हैं या कायिात इन्साि
और हयात पर वाक़े अ होते हैं।

क़दर : अफशया और इंसान के अंदर मुतय्यन खाफसयात


(attribute)
अल्लाह तआला वे उि तमाम अनशया के नलए कु छ खानसयते मुतय्यि की है। मसलि
अल्लाह तआला िे आग में जलािे की खानसयत रख दी, लकडी में जलिे की नसफ्ित रख
दी और छु री में काटिे की तासीर (नवशेषता) रख दी, फिर अल्लाह तआला िे इि
खानसयतों को उि र्ीज़ों के नलये लानज़म क़रार दे फदया और यह र्ीज़ें कभी भी इि
खानसयतो की नखलािवरजी िहीं करती। जब कभी यह अनशया अपिी फितरत की
नखलािवरजी करती है तो उस वक्त अल्लाह तआला िे इिकी यह खानसयत छीि की
होती है और उस वक्त यह एक नखलािे मामूल (supernatural) अम्र होता है। यह
अनम्बया से बतौरे मौजज़ा साफदर होता है, नजस तरह अल्लाह तआला िे अनशया के
अन्दर खानसयतें पैदा िरमाई हैं, इसी तरह इन्सािों के अन्दर नजनबल्लतें और नजस्मािी
हाजात रख दी हैं। फिर उि नजनबल्लतों और नजस्मािी हाजात के अन्दर भी अनशया के
खानसयतों के मानिन्द कु छ मुतय्यि खानसयात पैदा कर दी हैं। र्ुिााँर्े अल्लाह तआला िे
नजनबल्लतें िो में जजांसी मैलाि (sexual inclination) तखलीक कर फदया, नजस्मािी
हाजात में बाज़ खानसयात रख दीं, मसलि भूख, प्यास वगैरा। फिर निजामें कायिात के
मुतानबक़ इिको लानज़म बिा फदया। पस अनशया और इां साि की नजनबल्लत व नजस्मािी
हाजात के अांदर यह मुतय्यि खानसयात, नजन्हे अल्लाह तआला िे ही पैदा िरमाया है
‘क़दर’ कहलाती है, क्योंफक अल्लाह ही िे र्ीज़ों, नजनबल्लतों और नजस्मािी हाजात की
रर्िा की और उिके अांदर उिकी खुसूनसयात के अांदाजे (यािी क़दर) मुकरच र कर फदये।

निज़ामुल इस्लाम - 34 -
यह खुसूनसयात खुद इि अनशया की पैदा करदा िहीं और िा ही बांदे को इिसे कोई
सरोकार है और िा बांदे का इसमें कोई अमल-दखल है। इां साि को इस बात पर ईमाि
रखिा र्ानहए फक नसिच अल्लाह ही िे इि अनशया के अांदर खानसयात वफदयत िरमा दी
है, इि खनसयातों के अांदर यह क़ाबनलयत है फक इां साि इिके वास्ते से अल्लाह तआला के
अहकामात के मुवाफिक़ भी अमल कर सकता है, जो के ख़ैर है अल्लाह के अहकामात के
मुखानलि भी अमल कर सकता है, जो के शर है। ख्वाह अल्लाह तआला का यह हुक्म इि
अनशया (वस्तुओं) को उिकी खुसूनसयात के मुतानबक़ इस्तेमाल करिे के हवाले से हो या
नजनबल्लतों और नजस्मािी हाजात को पूरा करिे के नलहाज़ से हो। अगर यह अिआल
अल्लाह के अवानमर व िवाही के मुतानबक़ होंगे, तो ख़ैर कहलाऐंगे, और अगर अल्लाह
के अवानमर व िवाही के नखलाि होंगे तो शर (बुराई) के ज़ुमरे में आयेंगे।
यहीं से मालूम हुआ फक वोह अिआल, जो उस दायरे में से हैं, जो इां साि पर हावी हैं, वोह
अल्लाह की तरि से हैं, ख्वाह वोह ख़ैर हो या शर । वोह खानसयतें, जो वस्तुओं ,
नजनबल्लतों और नजस्मािी हाजात में पायी जाती हैं, वोह भी अल्लाह की तरि से हैं,
ख्वाह उिका ितीजा ख़ैर हो या शर। यही वजह है के मुसलमाि को कज़ा पर ईमाि
रखिा र्ानहए कता िज़र इस बात के की वह ख़ैर हो या शर। यािी वोह यह यक़ीि रखे
फक वोह अिआल, जो इां साि के दायरे इनख्तयार से बाहर हैं, वोह अल्लाह फक तरि से
हैं, और इसी तरह क़दर के ख़ैर व शर के भी अल्लाह के तरि से होिे पर ईमाि रखे।
दूसरे शब्दों में यह ईमाि रखें फक र्ीज़ों के अांदर मौजूद खानसयते प्राकर्तचक तौर से अल्लाह
की तरि से हैं, ख्वाह उिका ितीजा ख़ैर हो या शर, और इां साि उि पर असर अन्दाज़
िहीं हो सकता। पस इां साि की अजल (मौत का मुकरच र वक्त) इसका ररज़्क और इसकी
रूह सब अल्लाह की क़ु दरत में है । नजस तरह नजनबल्लतें िो के अांदर पाया जािे वाला
जजांसी मैलाि, नजनबल्लते बका के अांदर मौजूद नमनल्कयत (सम्पत्ती) की ख्वानहश और
इसी तरह नजस्मािी हाजात जैसे के भूख और प्यास, सब के सब अल्लाह की तरि से हैं।

वोह दायरा फजस पर इंसान हावी होता है


यह तमाम अनशया की खानसयतों के बारे में और उि अिआल के बारे में था जो उस
दायरे में है जो इां साि पर हावी है । जहााँ तक दूसरे दायरे का ताल्लुक़ है, नजस पर इां साि
खुद हावी है, तो यह वोह दायरा है फक नजसके अांदर इां साि अपिे इनख्तयार करदा निज़ाम

निज़ामुल इस्लाम - 35 -
के मुतानबक़ इनख्तयारी तौर पर र्लता है, ख्वाह यह निज़ाम अल्लाह तआला की मुकरच र
करदा शरीअत हो या कोई और निज़ाम। यही अिआल का वोह दायरा है, नजसमें
अिआल इां साि से साफदर होते हैं, या उस पर वाक़े होते हैं, और उसके अपिे इरादे से
होते हैं। पस जब वोह र्ाहता है, र्लता है, खाता है, पीता है और सिर करता है। और
अगर िा र्ाहे तो उि अिआल से रुक जाता है। वोह जब र्ाहता है आग के ज़ररये आग
लगाता है, छु री से काटता है, और नजस तरह र्ाहता है, िौ की हाजत, नमनल्कयत की
हाजत को पूरा करता है और पेट की भूख को नमटाता है। यािी वोह जो अमल र्ाहे करता
है और नजस अमल से र्ाहे, रुक जाता है। नलहाज़ा इस दायरे के अिआल के बारे में वोह
जवाबदेह होगा।

अफशया की खाफसयतें (attributes) और इंसान की फजफबफल्लयात


(instincts) और फजस्मानी हाजात खुद अमल को जन्म नही दे ती
अगरर्े इि अनशया की खानसयते, नजनबल्लतें और नजस्मािी हाजात के खानसयतें अल्लाह
तआला ही िे मुक़रच र (मुक़द्दर) फक हैं, और इि खानसयतों को उि र्ीज़ों के नलए लानज़म
कर फदया है, और उि खानसयतों का अिआल के िताइज पर बडा असर है, लेफकि यह
खनसयातें बज़ाते खुद अमल को जन्म िहीं देती। बनल्क इां साि इन्हें इस्तेमाल करते हुए
उिके ज़ररये आमाल सर अांजाम देता है। पस नजनबल्लते िो के अांदर मौजूद जजांसी रुजहाि
में ख़ैर व शर दोिों तरह की क़ाबनलयत मौजूद है। इसी तरह नजस्मािी हाजत के अांदर
मौजूद भूख में ख़ैर व शर दोिों फकस्म की क़ाबनलयत पाई जाती है। लेफकि ख़ैर व शर का
काम करिे वाला इां साि है, िा के नजनबल्लत या नजस्मािी हाजत। फिर अल्लाह तआला
िे इां साि को तमीज़ करिे वाली अक्ल से िवाज़ा है, और अक्ल से तबइ तौर पर तमीज़
करिे और इदराक़ करिे की सलानहयत रखी है । और अल्लाह तआला िे इां साि को ख़ैर
व शर दोिों तरह के रास्ते बता फदये हैं।
इरशादे बारी तआला है:

ُ ِ ‫﴿ َو َه َد ْي َناهُال ََّن ْج َد ْي‬


﴾‫ن‬
“हमिे उसे दोिों िुमाया रास्ते बता फदये हैं।”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे अल-बलद, आयत:10)

निज़ामुल इस्लाम - 36 -
और अल्लाह तआला िे इां साि में गुिाहों और तकवा के कामों का इदराक़ करिे की
सलानहयत रखी है :
सूरे शम्स में इरशाद है :

﴾‫اُو َتق َْوا َها‬ ‫ه‬‫ور‬‫ج‬‫ف‬ ُ ‫ا‬ ‫ه‬ ‫م‬ ‫ْه‬ ‫ل‬َ ‫﴿فَأ‬
َ َ َ َََ
“उसिे इससे िु जूर व तकवा का इल्हाम कर फदया।”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे अल-शम्स, आयत:08)

खैर और शर की तारीि
पस जब इां साि अपिी नजनबल्लतों और नजस्मािी हाजात को अल्लाह तआला के अवानमर
व िवाही के मुतानबक़ पूरा करता है तो यह काम ख़ैर (अच्छा) होता है, और इां साि तकवा
की राह पर गामज़ि होता है। लेफकि जब इां साि अपिी नजनबल्लतो और नजस्मािी हाजात
को अल्लाह तआला के अवानमर व िवाही से मुाँह मोडकर पूरा करता है तो यह िे ल शर
(बुरा) बि जाता है और यूाँ इां साि गुिाहों के रास्ते पर र्लता है। बहरहाल इि तमाम
अिआल में इां साि ही से इस खैर और शर का ज़ुहूर होता है। इां साि जब अल्लाह तआला
के अवानमर व िवाही के मुआफिक अपिी नजनबल्लतों और नजस्मािी हाजात को पूरा
करता है तो उस का यह िे ल खैर होता है। जब इां साि अपिी नजनबल्लतो और नजस्मािी
हाजात को अल्लाह तआला के अवानमर व िवाही के बर नखलाि पूरा करता है तो उस
का यह िे ल शर बि जाता है। इस बुनियाद पर इां साि का उि अिआल के बारे में
मुहानसबा होगा, जो उस दायरे में हैं, नजस पर यह इां साि हावी है। इसके ितीजे में उसे
अज़ाब या सवाब नमलेगा, क्योंफक उसिे बग़ैर फकसी जबरदस्ती के , इनख्तयारी तौर पर
यह अिआल सर अांजाम फदये।

निज़ामुल इस्लाम - 37 -
फजफबफल्लयात (मूल-प्रवती) इंसान को अमल करने पर मजबूर
नही करती - अमल अक़्ल के िैसले और इंसानी इरादे का
नतीजा है
नजनबल्लतें और नजस्मािी हाजात की खानसयते अगरर्े अल्लाह की जानिब से हैं, उिकी
ख़ैर व शर की क़ाबनलयत भी अल्लाह ही की तरि से है, लेफकि अल्लाह तआला िे इस
खानसयतों को इस तरह िहीं बिाया फक अमल की अदायगी के वक्त यह खानसयत इां साि
को अल्लाह की रज़ा या िाराज़गी के मुतानबक़ अपिे इस्तेमाल पर मज़बूर करे , ख्वाह
इस का ताल्लुक़ खैर हो या शर। जैसा के जलािे की नसित है। यह नसित इस तरह िहीं
के इां साि को फकसी र्ीज़ को जलािे पर मजबूर करती हो, र्ाहे वोह अमल अल्लाह की
खुशिूदी का हो या उसकी िाराजी का, यािी वोह अमल ख़ैर हों या शर। यह खानसयतें
तो इस तरह है फक इां साि अमल की अांजाम देही के वक्त नजस तरह र्ाहे उिको काम में
ला सकता है। जब अल्लाह तआला िे इां साि को पैदा िरमाया और उसके अांदर यह
नजनबल्लते और हाजात पैदा िरमा दी, फिर उसे तमीज़ करिे वाली अक्ल अता कर दी,
और उसे इनख्तयार दे फदया फक वोह नजस अमल को र्ाहे करें और नजस से र्ाहे इजनतिाब
(फकिारा) करें और फकसी काम के करिे या छोडिे पर उसे मजबूर िहीं फकया, और
अनशया और नजनबल्लतों और नजस्मािी हाजात की खानसयात को ऐसा िहीं बिाया फक
िे ल को सर अांजाम देते वक्त या इससे फकिाराकशी इनख्तयार करते हुए यह खानसयत
इां साि को मजबूर करे । यूाँ इां साि फकसी िे ल को बजा लािे या उससे दस्तकश होिे में
बाइनख्तयार है, क्योंफक अल्लाह तआला िे उसे िक़च करिे वाली अक्ल से िवाज़ा है, और
उसे शरई तौर पर नज़म्मेदार कर फदया है। इसनलए अच्छा अमल करिे की सूरत में उसके
नलए सवाब है, क्योंफक उसकी अक्ल िे अल्लाह के अवानमर को इनख्तयार फकया और
उसके िवाही से इजनतिाब फकया। इसी तरह बुरा अमल करिे की सूरत में वोह सज़ा का
मुस्तनहक़ है, क्योंफक उसकी अक्ल िे अल्लाह के अवानमर की मुख़ानलित करिे को
इनख्तयार फकया और नजनबल्लतों और नजस्मािी हाजात को अल्लाह के बताऐ हुए रास्ते
से हट कर पूरा फकया। इसनलए इस अमल पर उसे सज़ा देिा ऐि अदल व इां साि है,
क्योंफक वोह अमल करिे में बाइनख्तयार था, फकसी नलहाज़ से भी मजबूर िा था। कज़ा

निज़ामुल इस्लाम - 38 -
व क़दर का इससे कोई ताल्लुक़ िहीं, बनल्क मसला यह है फक बांदे िे खुद अपिे इनख्तयार
से कोई अमल फकया और वोह अपिे अमल के बारे में जवाबदेह होगा:

َّ ‫﴿ك‬
﴾‫لُ َن ْف ٍس ُِب َماُك ََس َب ْت َُر ِهي َن ٌُة‬
“हर इां साि अपिे कसब अमल के हाथों नगरवी है।” (तजुम
च ा मआिीऐ क़ु रआिे
करीम, सूरे मुदनस्सर, आयत: 38)

इल्मुल्लाह और इरादतुल्लाह इस्नान को अमल पर मजबूर नही


करता
अब रही बात अल्लाह तआला के इल्म की! तो अल्लाह का इल्म कभी भी बांदे को फकसी
अमल के करिे पर मजबूर िहीं करता, क्योंफक अल्लाह को यह मालूम था फक यह बांदा
अपिे इनख्तयार ही से यह अमल करे गा, इां साि का अमल अल्लाह के इल्म की बुनियाद
पर िहीं, बनल्क अल्लाह को अजल से यह इल्म होता है फक यह इां साि यह अमल करे गा,
और जहााँ तक लोहे महिू ज का ताल्लुक़ है तो इस से मुराद भी यही है की अल्लाह तआला
का इल्म हर र्ीज़ पर इहाता फकये हुए है।
जहााँ तक अल्लाह के इरादे का ताल्लुक़ है तो यह भी बांदे को फकसी अमल पर मजबूर िहीं
करता, बनल्क अल्लाह के इरादे का यह मतलब है फक कायिात में अल्लाह तआला के
इरादे के बग़ैर कोई र्ीज़ वुजूद में िहीं आ सकती, यािी कोई र्ीज़ अल्लाह के इरादे के
बग़ैर जबरदस्ती आलामें वुजूद में िहीं आ सकती। यािी कोई र्ीज़ कायिात में अल्लाह
के इरादे के बग़ैर ज़बरदस्ती घरटत िहीं हो सकती। पस जब बांदा कोई अमल करता है,
तो अल्लाह तआला बन्दे को िा तो उस से रोकता है िा उसे उसके करिे पर मजबूर करता
है, बनल्क उसे बाइनख्तयार छोड देता है। यह अम्र (बन्दे को बाइनख्तयार छोडिा) अल्लाह
के इरादे से है, िा फक अल्लाह िे इां साि को मजबूर कर फदया, बांदे का िे ल खुद उसके
अपिे इनख्तयार से है, और अल्लाह के इरादा कभी भी उसे अमल पर मजबूर िहीं करता।

निज़ामुल इस्लाम - 39 -
कज़ा व क़दर के मसले को सही तरह से समझने का िायदा -
अमल मे मोहताती और तक़वा
यह है कज़ा व क़दर का मसला! यह इां साि को अच्छे कामों को सर अांजाम देिे और बुरे
कामों से रोकिे पर अमादा करता है, क्योंफक इां साि को मालूम होता है फक अल्लाह देख
रहा है और वोह हमारी पूाँछगज करे गा, अल्लाह िे उसे अमल के करिे और छोडिे का
इनख्तयार फदया है। पस इां साि अिआल की अांजाम देही के वक़्त इस इनख्तयार को अच्छे
तरीक़े से इस्तेमाल िहीं करे गा तो उसके नलए हलाकत और शदीद तरीि अज़ाब होगा।
यही वजह है फक एक सच्चा और कज़ा व क़दर की हक़ीक़त को समझिे वाला, अल्लाह की
दी हुइ अक्ल और इनख्तयार की िेमत की हक़ीक़त को पहर्ाििे वाला मोनमि इां नतहाइ
मोहतात और अल्लाह से सख्त डरिे वाला होता है। वोह अल्लाह के अवानमर को बजा
लािे वाला और अल्लाह के अज़ाब से डरते हुए और जन्नत की उम्मीद रखते हुए, अल्लाह
के मिा फकये हुए कामों से रुकता है। इससे बढ़कर अल्लाह की खुशिुदी हाांनसल करिे के
नलए, जो अस्ल मक़सद है, हमेंशा िेक आमाल की लगि में रहता है।

निज़ामुल इस्लाम - 40 -
3. इस्लाम की फिक्री
फक़यादत
(इस्लाम का वैर्ाररक िेतमृ व /The Intellectual Leadership of


Islam)
ब इां साि फिक्री पस्ती (वैर्ाररक पति) में मुनब्तला हो जाता है तो उसमें
वतिपरस्ती (nationalism- ‫ )رابطه الوطنه‬का जज़बा पैदा हो जाता है।
इसकी वजह यह है फक वह एक ही सरज़मीि पर रह रहे होते है और उसी के
साथ नर्मट कर रह जाता हैं। र्ुिााँर्े इां साि अपिे अांदर मौजूद नजनबल्लते बका (survival
instinct) की नगररफ्त में आ जाता है और यह नजनबल्लते बका उसे अपिे मुल्क और
सरज़मीि का फदिा (रक्षा) करिे पर मजबूर कर देती है, जहााँ पर यह नज़न्दगी गुजार
रहा होता है। यही से वतनियत का ररतता जन्म लेता है। वति के साथ यह ररतता और
तआल्लुक़ तमाम तआल्लुक़ात में कमजोर तरीि और पस्ततरीि तआल्लुक़ होता है। अपिे
वति के साथ यह सांबन्ध और नमलाि तो हैवािात और पररन्दों के अन्दर भी मौजूद होता है, और
इसका इज़हार हमेंशा जज़बाती अन्दाज़ में होता है। इस जज़बे और तआल्लुक़ का इज़हार नसिच
उस वक्त होता है जब कोई अज़िबी दुशमि वति पर हमलावर हो या वति पर क़ब्ज़ा कर लेता
है। लेफकि जब जब वति दुतमि से सलामत हो महिू ज़ हो जाये तो यह ररतता कमज़ोर पड जाता
है और इस 'तआल्लुक़ का अमल' (सम्बन्ध की प्रनतफक्रया) उस वक्त खमम हो कर रह जाता है जब
बाहरी दुतमि को मार भगाया जा र्ुका हो या बाहर निकाला जा र्ुका हो। यही वजह है फक यह
बहुत कमजोर और पस्त तआल्लुक़ और रब्त (सांबांध/Bond) है।

निज़ामुल इस्लाम - 41 -
3.1 क़ौफमयत का रब्त
इसी तरह जब इां सािी फिक्र (नवर्ार) तांग और महदूद हो जाती है तो इां साि के अांदर
कौनमयत का तआल्लुक़ (‫ )رابطه القوميه‬परवाि र्डता है। क़ौम के साथ यह तआल्लुक़ और
लगाव खािदािी ताल्लुक़ की एक ज्यादा वसी (नवस्तृत) शक्ल है। इसकी वजह यह है फक
जब नजनबल्लते बका (survival instinct) इां साि के अांदर अपिी जडेां मज़बूत कर लेती
है, तो उसके अांदर ग़लबे (प्रभुमव) और नसयादत (सरदारी) की मोहब्बत उभर आती है।
एक पस्त फिक्र के हानमल शख्स के अांदर यह मुहव्बत व्यनक्तगत िोइय्यत की हुआ करती
है। फिर जब इस इां साि के अांदर ज़रा बेदारी और फिक्र (नवर्ारों) की बुलन्दी पैदा होती
है तो उसकी हुब्बे नसयादत में भी वुसअत (नवस्तार) आ जाती है, और यूाँ अपिे कु न्बे और
खािदाि की नसयादत और फक़यादत (िेतृमव) उसका िसबुलएि (objective/उद्देतय) बि
जाता है। फिर जब उसे यह मुकाम हानसल हो जाता है, तब वह अपिे इलाक़े पर अपिी
क़ौम की नसयादत क़ायम करिे की कोनशश करता है। फिर जब उसे यह मुकाम भी हानसल
हो जाता है तब वह अपिी क़ौम की नसयादत को दूसरी क़ौमों पर हावी करिे की सोर्ता
है। र्ुिााँर्े एक खािदाि के 'अिराद' (लोगों) के अांदर नसयादत व फक़यादत को हानसल
करिे के नलए झगडे अमुमि हो जाते हैं। फिर जब उस खािदाि का कोई व्यनक्त बाक़ी
लोगों पर ग़ानलब (हावी) आ जाता है और उसकी नसयादत मज़बूत हो जाती है तो उस
खािदाि और दूसरे खािदािों के दर्मचयाि कशमकश शुरु हो जाती है यहाां तक के एक
खािदाि या मुख्तनलि खािदािों से सम्बन्ध रखिे वाले लोगों के एक नगरोह की सरदारी
क़ायम हो जाती है। यह ही वजह है फक इस तआल्लुक़ और रब्त के हानमल अिराद के
अांदर असनबयत )‫ عصبيه‬/साांप्रदानयकता/Sectarianism) कू ट-कू ट कर भरी होती है, और
उि लोगों के अांदर बाक़ी लोगों के नखलाि कु छ लोगों की मदद करिे की ख्वानहश और
जज़्बा परवाि र्ढ़ता है। र्ुिााँर्े यह रब्त और सम्बन्ध (कौमपरस्ती) एक 'ग़ैर-इां सािी
राब्ता' और तआल्लुक़ है। नलहाज़ा इस फकस्म के रब्त में अगर बाहरी नववादो (external
conflicts) और र्ुिौनतयों का सामिा िा भी करिा पडे तो अांदरूिी नबखराव (internal
feuds) और झगडे तो हमेंशा होते ही रहते हैं।
इस बुनियाद पर कहा जा सकता है फक ‘‘रब्ते वतनियत’’ (देशभनक्त का सम्बन्ध/
patriotic bond) तीि कारणों की नबिा पर ग़लत रब्त या तआल्लुक़ है :

निज़ामुल इस्लाम - 42 -
(1) यह रब्त एक पस्त रब्त और तआल्लुक़ है। नलहाज़ा जब लोग निशाते सानिया
(पुिचअवस्था) के रास्ते पर र्लिा र्ाहे तो यह उन्हें मरबूत (अिुगृनहत/बाांधिा/bind) और
मुिज्ज़म (सांघरठत) िहीं कर सकता।
(2) यह एक जज़बाती रब्त और तआल्लुक़ है, जो अपिी ज़ात (व्यनक्तमव /personal
self) के हवाले से नजनबल्लते बका से पैदा होता है, और जज़्बाती रब्त हमेंशा तब्दीली व
पररवतचि का नशकार बिा रहता है। इसनलए यह इां सािों के दरनमयाि नस्थर रब्त व
तआल्लुक़ का कारण िहीं बि सकता।
(3) यह एक वक्ती और आरजी (अस्थाई) रब्तो तआल्लुक़ है जो फदिा (रक्षाममक) की
हालत में तो पाया जाता है, लेफकि अमि व सुकूि की हालत में िहीं पाया जाता ।
इसनलए यह बिी िो इां साि के बीर् रब्त व तआल्लुक़ बििे के क़ानबल िहीं हो सकता।
इसी तरह कौमी रब्त भी तीि कारणों से िानसद और ग़लत रब्त है :
(1) यह एक कबाइली जज़्बा है इसनलए जब इां साि निशाते सानिया
(पुिचअवस्था/Rehabilitation) के रास्ते पर र्लिा र्ाहे तो यह उन्हे जोडकर िहीं रख
सकता।
(2) यह एक जज़्बाती िोइय्यत का रब्त और ताल्लुक़ है जो नजनबल्लतें बका से पैदा होता
है और इसी से दूसरो पर ग़लबा हाांनसल करिे की मुहब्ब्त जन्म लेती है।
(3) यह एक ग़ैर-इां सािी रब्त है क्योंफक यह प्रभुमव पािे के नलए लोगों के दर्मचयाि झगडे
और तिाज़ात (नववाद) पैदा करिे का कारण बिता है इसनलए यह भी इां सािो के बीर्
'रब्ते बाहमी' बििे का अहल िहीं।

3.2 मसफलहती रब्त और रूहानी रब्त (Bond of


Interest and Spiritual Bond)
इसी तरह के 'िानसद रवाब्त' (कमज़ोर सम्बन्धों) में एक मसनलहत का राब्ता (िायदे का
सम्बन्ध/bond of interest ‫ )رابطه المصلحيه‬है और दूसरा रूहािी राब्ता (spiritual
bond ‫ )رابطه الروحيه‬नजससे कोई निज़ाम िहीं िू टता। कु छ लोग ख्याल करते है फक यह

निज़ामुल इस्लाम - 43 -
दोिों इां सािो के बीर् आपसी रब्त और तआल्लुक़ का कारण हो सकते हैं, लेफकि यह
सरासर ग़लत है।

3.2.1 मसफलहत (िायदे और निा) का रब्त (बंधन)


जहााँ तक मसनलहत (िायदे और ििा) के रब्त (bond) और तआल्लुक़ की बात है तो
यह भी एक वक्ती रब्त होिे की वजह से िोए इां सािी के बीर् रब्तो तआल्लुक़ का अहल
िहीं। क्योंफक यह रब्त बडे िायदे के सामिे छोटे िायदे को दाव पर लगा देिे का नशकार
बिा रहता है। इसनलए एक मसनलहत को दूसरी पर तरजीह देते वक्त यह रब्त हमेंशा
मिक़ू द (अनस्थर) होता है। और जब िायदे एक दूसरे से अलग हो जाते है, तो यह रब्त
भी खमम हो जाता है। इस तरह लोग एक दूसरे से जुदा हो जाते हैं। इसके अलावा जब
िायदे पूरे हो जाएां तो इस रब्त का अांत हो जाता है। इसनलए इस रब्त को लोगों के बीर्
आपसी तआल्लुक़ का कारण जाििा लोगों के नलए इन्तेहाई खतरिाक है।

3.2.2 रुहाफनयत का रब्त (बंधन)


जहााँ तक उस रूहािी रब्त की बात है, नजससे कोई निज़ाम पैदा िहीं होता, तो वह रब्त
हालते तदय्युि (religiousness) में ज़ानहर होता है। लेफकि कारज़ारे हयात में इसका
कोई फकरदार िहीं होता। यह ही वजह है फक यह रब्त भी एक अधूरा और गैरअमली रब्त
है। र्ुिााँर्े यह भी नज़न्दगी की समस्याओं और मुआमलात में उिके दरनमयाि रब्तो
तआल्लुक़ बििे के लायक िहीं, और इसी वजह से ‘िसरािी अक़ीदा’ यूरोपी क़ौमों और
नगरोहों के दर्मचयाि 'रब्ते बाहमी' (आपसी सम्बन्ध) की वजह िहीं बि सका, बावुजूद ये
फक उि सब क़ौमों िे इस अक़ीदे को अपिाया है। इसकी वजह यह है फक यह एक ऐसा
रब्त है, नजसमें से कोई निज़ाम िहीं निकलता।

निज़ामुल इस्लाम - 44 -
3.3 फवचाराधारा का रब्त (Ideological Bond)
र्ुिााँर्े जब लोग निशातेसानिया (revival - ‫ نهضه‬/पुिचअवस्था/पुिचजागरण) की राह पर
र्लिा र्ाहें तो नज़क्र फकये गये तमाम रवाब्त (bonds) इां सािों को आपस में जोड िहीं
सकते इसके नवपरीत नज़न्दगी में इां सािों को आपस में जोडे रखिे का सही तरीि रब्त
नसिच उस अक़्ली अक़ीदे (rational doctrine) का रब्त हो सकता है, नजसके अांदर से
कोई निज़ाम िू टता है और यह नसिच एक मब्दा (‫مبداء‬/नवर्ारधारा ideology) का रब्त
ही हो सकता है।
मब्दा से मुराद वह अक़्ली अक़ीदा है, नजससे कोई निज़ाम िू टता है। अक़ीदा कायिात,
इां साि, हयात और उससे पहले व बाद के इस दुनियावी नज़न्दगी के साथ तआल्लुक़ के
बारे में कु ल्ली फिक्र (नवस्तृत नवर्ार/comprehensive idea) को कहा जाता है। जहााँ
तक इस अक़ीदे से िू टिे वाले निज़ाम का तआल्लुक़ है, तो यह इां साि की मुनतकलात के
हल, उस हल को िाफिज़ करिे की कै फियत, अक़ीदे की नहिाज़त और मब्दा को आगे पेश
करिा इसमें शानमल होता है। इस हल को िाफिज़ करिे की कै फियत, आयनडयोलोजी
की नहिाज़त और उसको आगे पेश करिा ‘तरीक़ा’ (method - ‫ )طريقه‬कहलाता है।
अक़ीदा और हल को ‘फिक्र (idea - ‫ )فكره‬कहा जाता है। मालूम हुआ फक आयनडयोलोजी
'फिक्र और तरीक़े ' का नमश्रण है।

3.3.1 फवचारधारा (मब्दे ) की बुफनयाद


अब यह मब्दा फकसी शख्स के ज़हि में या तो 'वह्यी' (Divine Revelation) की बुनियाद
पर पैदा होगा, नजसकी तब्लीग़ करिे का उसे हुक्म फदया गया हो, या फकसी शख्स की
'ग़ैर-मामूली ज़हाित' की वजह से उसके ज़हि में पैदा होगी। सहीतरीि मब्दा वही मब्दा
है जो फकसी इां साि के ज़हि में वहीए इलाही के ज़ररये से पैदा हुआ हो। क्योंफक यह मब्दा
उस ज़ात की तरि से है, जो कायिात, इां साि और हयात का ख़ानलक़ है। नलहाज़ा नसिच
यही मब्दा सही और क़तई (definitive) है। वह मब्दा जो फकसी इां साि के ज़हि में उसकी
ग़ैर-मामूली ज़हाित की वजह से पैदा होता है, वह गलत मब्दा है। क्योंफक यह अक्ल से
पैदा होता है और अक्ल महदूद है, जो तमाम कायिात का अहाता करिे में असक्षम है।

निज़ामुल इस्लाम - 45 -
इसके बानतल होिे की एक वजह यह भी है फक इां सािों में पाए जािे वाला तांज़ीमी िहम
(समझ) हमेंशा तिावुत (नभन्िता), इनख्तलाि (मतभेद) और तिाकु ज़
(नवरोधाभास/contradictions) का नशकार बिा रहता है। और यह उस मुआशरे
(समाज) से भी प्रभानवत होता है नजसमें वह रह रहा होता है। इसनलए इस िहम के
ितीजे के तौर पर पैदा होिे वाला मुतिाफकज़ निज़ाम (नवरोधाभासी व्यवस्था) इां सािी
बदबख्ती पर खमम होगा । इसनलये इां साि के ज़हि से जन्म लेिे वाली आयनडयोलोजी
अपिे अक़ीदे और इस अक़ीदे से िू टिे वाले निज़ाम के एतबार से बानतल होगी।
इसी बुनियाद पर कहा जा सकता है फक मब्दा की बुनियाद कायिात, इां साि और हयात
के बारे में कु ल्ली फिक्र (comprehensive idea -/ ‫ )الفكره الکليه‬है। इस आयनडयोलोजी
में ऐसे तरीक़े का पाया जािा एक लाज़मी बात है, जो उसे नज़न्दगी के मैदाि में िाफिज़
करे और वुजूद बख्शे। इसके तरीक़े के बग़ैर कोई आयनडयोलोजी वुजूद में िहीं आ सकती।
कायिात, इां साि और हयात के बारे में कु ल्ली फिक्र आयनडयोलोजी की बुनियाद होती
है और यही कु ल्ली फिक्र इस आयनडयोलोजी का अक़ीदा है, और यही इसका फिक्री क़ायदा
और फिक्री फक़यादत (वैर्ाररक िेतृमव/ intellectual leadership) कहा जाता है। इसकी
बुनियाद पर इां साि की फिक्री जुहत और नज़न्दगी के बारे में उसका िुक्ताए िज़र
(दृनिकोण) तय होता है। यही तमाम नवर्ारों की बुनियाद है और इसी से नज़न्दगी की
तमाम मुनतकलात का हल निकलता है। जबके फिक्र के नलए तरीक़े का होिा इसनलए
लाज़मी और ज़रूरी है फक वह निज़ाम, जो अक़ीदे से निकलता है, अगर उसमें मुनतकलात
के हल की तििीज़, अक़ीदे की नहिाज़त और दावत को पेश करिे की कै फियत शानमल
िा हो, तो यह महज़ एक िज़ी और खयाली िलसिा (mythical philosophy) बिकर
रह जाएगा, जो फकताबों के अांदर तो मौजूद होगा लेफकि नज़न्दगी के मैदाि में इसका
कोई फकरदार और असर िा होगा। र्ुिााँर्े मब्दे के अांदर अक़ीदे का होिा लाज़मी है और
समस्याओं के हल के नलए एक तरीक़े का होिा भी लाज़मी है।

3.3.2 फवचारधारा के सही होने के बुफनयादी उसूल


एक मब्दा नजसके अक़ीदे से निज़ाम पैदा होता है, उसमें नसिच फिक्र और तरीक़े का पाया
जािा इस बात की दलील िहीं फक वह मब्दा लाज़मि सही मब्दा है। बनल्क इसका मतलब

निज़ामुल इस्लाम - 46 -
नसिच यह है फक वह मब्दा हो सकता है, इसका और कोई मतलब िहीं। जहााँ तक मब्दे के
सही या बानतल होिे का ताअल्लुक़ है तो इसका दारोमदार अक़ीदे पर होता है। जो र्ीज़
फकसी आयनडयोलोजी के सहीह या बानतल होिे पर दलालत करती है वोह इस
आयनडयोलोजी का अक़ीदा है क्योफक अक़ीदा ही वह फिक्री क़ायदा (intellectual
basis - ‫ )القاعده الفكريه‬है जो तमाम नवर्ारों के नलए बुनियाद होता है और इसके ज़ररये
तमाम िुक़ता-ए-िज़र (दृनिकोण) तय होते है और इसी से हर मसले का हल और तरीक़ा
िू टता है। पस अगर यह 'फिक्री उसूल' (यािी अक़ीदा) दुरुस्त हो तो वोह आयनडयोलोजी
दुरुस्त आयनडयोलोजी होती है और अगर यह फिक्री क़ायदा ग़लत हो तो आयनडयोलोजी
भी ग़लत होती है। अगर फिक्री क़ायदा (उसूल) इां साि की फितरत (प्रकृ नत/Nature) के
अिुसार हो, और अक्ल पर आधाररत हो, तो वह दुरुस्त उसूल होता है। और अगर यह
उसूल इां सािी फितरत के मुखानलि हो और उसकी बुनियाद अक्ली िा हो तो यह बानतल
क़ायदा है।
इसी क़ायदे का इां सािी फितरत (प्रकृ नत) के अिुसार होिे का मतलब यह है फक यह क़ायदा
इां सािी फितरत में पाइ जािे वाली ‘नजनबल्लते तदय्युि’ के साथ समािता रखता हो।
यािी यह अक़ीदा इां साि की कमज़ोरी को और इां साि का एक खानलके मुदनब्बर की तरि
रुजू करिे की कै फियत को तस्लीम करता हो। इसके अक्ल पर आधाररत होिे का मतलब
यह है फक वह मबिी बर “माद्दा” (पदाथच पर आधाररत) या मबिी बर ‘‘हले वस्त’’
(समझौते पर आधाररत) िा हो।

3.4 दु फनया में तीन मबादी (फवचारधाराऐं)


इस वक्त जब हम पूरी दुनिया पर िज़र डालते हैं तो हमें नसिच तीि मबादी (नवर्ारधाराएां
/ideologies) िज़र आते हैं:
1. सरमायादाररयत (Capitalism - पूांजीवादी व्यवस्था),
2. इनततराफकयत (Communism - समाजवाद),
3. इस्लाम,

निज़ामुल इस्लाम - 47 -
पहले दोिों नवर्ारधाराओं की हानमल कोई एक या एक से ज्यादा देश दुनियााँ में मौजूद
हैं। लेफकि तीसरे मब्दे की हानमल कोई देश इस वक्त दुनिया में मौजूद िहीं। अलबत्ता
मुख्तनलि क़ौमों के अांदर इसके माििे वाले और अलमबरदार अिराद (कई व्यनक्त)
मौजूद हैं। र्ुिााँर्े इस अन्दाज में यह मब्दा पूरी दुनिया में मौजूद है।

3.5 सरमायादाफरयत (पूंजीवाद) की बुफनयाद


और उसूल
जहााँ तक सरमायादाररयत का तआल्लुक़ है तो यह 'दीि के नज़न्दगी से जुदा' होिे की
बुनियाद पर क़ायम है। यही फिक्र इसका अक़ीदा है और यही इसकी फिक्री फक़यादत
(वैर्ाररक िेतृमव /intellecuatual leadership-‫ )قياده فكريه‬और फिक्री क़ायदा
(वैर्ाररक आधार /intellectual basis -‫ ) قاعده افكريه‬है। इस फिक्री क़ायदे (वैर्ाररक
नसद्ाांत) के मुतानबक़ नज़न्दगी के नलए निज़ाम रर्िे का काम नसिच इां साि का है और
इसकी रू से इां साि के नलए लानज़म है की वोह आजाफदयों की नहिाज़त करे ।

3.5.1 पूंजीवाद मे चार फक़स्म की आज़ाफदयााँ


और वह आज़ाफदयााँ यह है:
(1) आज़ाफदऐ अक़ीदा,
(2) आज़ाफदऐ राय,
(3) आज़ाफदऐ नमनल्कयत, और
(4) आज़ाफदऐ शनख्सयत
र्ुिााँर्े आज़ाफदऐ नमनल्कयत (सांपनत्त की आज़ादी) ही से पूांजीवादी निज़ाम वजूद में आया।
इस मब्दा की िुमायातरीि र्ीज़ नसिच और नसिच सरमायादाररयत है और यही वह वाज़ेह
तरीि (अनत स्पि) र्ीज़ है जो इस मब्दे के अक़ीदे से पैदा होती है। र्ुिााँर्े इस उसूल के

निज़ामुल इस्लाम - 48 -
तहत फक ‘‘फकसी र्ीज़ का िाम उसकी िुमायातरीि जड या नहस्से से रखा जाता है’’। इस
मब्दे का िाम सरमायादाररयत (पूांजीवाद) रखा गया।

3.5.2 लोकतंत्र का सरमायादाफरयत से ताल्लुक़


जहााँ तक लोकतांत्र (जम्हूररयत) की बात है, नजसे इस मब्दे िे इनख्तयार कर रखा है तो
यह आयनडयेलोजी के उस पहलू से पैदा होती है की इां साि को खुद अपिे नलए निज़ाम
रर्िे करिे का हक़ है, इसनलए अवाम ही ताक़त का सरर्तमा हैं। वो ही अपिी हुकू मत
र्लािे के नलए तिख्वाहदार हाफकम मुकरच र करते हैं और जब र्ाहते हैं उिसे हुकू मत
छीि लेते हैं। अवाम अपिे नलए नजस तरह का क़ािूि र्ाहती है उिसे लागू करवा लेती
है। क्योंफक हुक्मरािी करिा जिता और शासक के बीर् एक तरह का ‘अक़्दे मुलाज़मत’
(contract of employment) होता है। इसनलए हाफकम नसिच उस निज़ाम के मुतानबक़
हुकू मत करता है नजसे अवाम उसके नलए जारी करती है।
जम्हूररयत अगरर्े इस मब्दे से है लेफकि वह इस मब्दे में इनक़्तसादी निज़ाम (आर्थचक
व्यवस्था) से ज्यादा िुमायााँ िहीं। इसकी दलील यह है फक पनतर्म में पूांजीवादी व्यवस्था
ही हुक्मरािी पर असरअांदाज है। इस हद तक की उि देशों में, जहॉ सरमायादारािा
आयनडयोलोजी को इनख्तयार फकया गया है, वहॉ वास्तनवक हाफकम सरमायादार
(पूांजीपनत) ही होते हैं। इसके अलावा जम्हूररयत इस मब्दे के साथ खास भी िहीं क्योंफक
साम्राज्यवादी भी जम्हूररयत के दावेदार हैं और वह भी यह कहक़र धोखा देते हैं फक
हुक्मरािी अवाम की है। र्ुिााँर्े इस मब्दे को सरमायादारािा आयनडयोलोजी कहिा ही
दुरुस्त है।

3.5.3 पूंजीवादी मब्दा और लादीफनयत के अक़ीदे के ज़हू र


(उदय) का कारण
यह मब्दा का आगाज़ वहााँ से शुरू हुआ जब यूरोप और रूस के बादशाह और शासक
जिता के इस्तेहसाल (शोषण), उि पर ज़ुल्म ढािे और उिका खूि र्ूसिे के नलए दीि
(धमच) को ज़ररए के तौर पर इस्तेमाल करते थे। इस काम के नलए वह धार्मचक लोगों को

निज़ामुल इस्लाम - 49 -
उपकरणों के तौर पर इस्तेमाल फकया करते थे नजसके ितीजे में एक खौििाक फकस्म की
कशमकश और तसादुम (टकराव) बरपा हो गया। इस दौराि ऐसे फिलोसिर और
मुिफक्कर (बुनद्जीवी/thinkers) पैदा हुए नजन्होंिे नसरे से दीि का ही इां कार कर फदया।
इिमें से कु छ लोग अगरर्े दीि का एतराि करते थे, लेफकि वह दीि को दुनियावी
मामलात (सन्साररक़ फक्रया-कलापों) से अलग करिे के क़ायल थे। यहााँ तक फक ज्यादातर
फिलोसिर और मुिक्करीि इस राय पर राज़ी हो गए फक दीि को नज़न्दगी से अलग कर
फदया जािा र्ानहए। इसका क़ू दरती ितीजा यह निकला की दीि को ररयासत से भी
अलग कर फदये जािे का िज़ररया पैदा हो गया। उिके िज़दीक यह राय पुख्ता हो गई फक
मज़हब के इक़रार या उसके इन्कार की बहस में पडिा ही िहीं र्ानहए और बात नसिच
इस िुक्ते (नबन्दु) तक सीनमत हो गई फक दीि को नज़न्दगी से जुदा कर देिा बहरहाल
ज़रूरी है। फिर यह फिक्र उि धार्मचक लोगो के , जो हर र्ीज़ को दीि के िाम पर अपिे
अधीि रखिा र्ाहते थे, और उि फिलोसिर (िलसिी) और अरबाबे फिक्र (वैर्ारक /
thinkers) के , जो दीि और मज़हबी लोगो के प्रभुमव और हुकू मत के मुिफकर थे, बीर्
एक दरनमयािी हल “हले वस्त या समझौता” करार पाई। इस तरह इसके बाद में आिे
वाले नगरोहों िे मज़हब के इन्कार पर इसरार करिा छोड फदया। लेफकि तय करा फदया
फक नज़न्दगी में इसका कोई अमल दखल िहीं होगा।
र्ुिााँर्े इस तरह अनखरकार मज़हब को नज़न्दगी से जुदा कर फदया गया। पस वह अक़ीदा
नजसको पूरे पनतर्म िे क़ु बूल कर रखा है, वह यही 'दीि का दुनियााँ से जुदा होिे' का
अक़ीदा है। यही अक़ीदा वह फिक्री बुनियाद है, नजस पर उसके तमाम अफ्कार (नवर्ार
/ thoughts) क़ायम हैं। यही अक़ीदा उस बुनियाद को तय करता है नजस पर इां साि की
फिक्री नसम्त (फदशा) तय होती है और समाज और नज़न्दगी के बारे में इन्साि का दृनिकोण
तय होता है और इसी की बुनियाद पर नज़न्दगी की तमाम मुनतकलात हल की जाती हैं।
यह ही वह 'फिक्री फक़यादत' (वैर्ाररक िेतृमव) है, नजसका पनतर्म अलमबरदार है और
इसी की तरि पूरी दुनिया को दावत दे रहा है।

निज़ामुल इस्लाम - 50 -
3.5.4 सेक्यूलफरज़्म का दीन का फज़मनी (आंफशक) ऐतराि मगर
दु फनयावी फज़न्दगी का ज़ज़दगी से पहले और बाद से कोई
तआल्लुक़ नहीं
नज़न्दगी के मैदाि से दीि के अलग होिे के अक़ीदे में नज़मिी (आांनशक) तौर पर यह
ऐतराि (सहमती) पाया जाता है फक दीि िाम की कोई र्ीज़ मौजूद है। यािी कायिात,
हयात, इां साि और क़यामत के फदि का वुजूद है। क्योंफक दीि दरअसल इसी र्ीज़ का
िाम है। यह ऐतराि ही इस कायिात, इां साि, हयात के दुनियावी नज़न्दगी से पहले और
बाद से तआल्लुक़ को एक फिक्र की शक्ल देता है। पूांजीवादी फिक्री फक़यादत दीि के वुजूद
का इन्कार िहीं करती, जब वोह दीि को दुनियावी नज़न्दगी से अलग करिे की बात
करती है तो यह दीि का नज़मिी (आनन्शक रुप से) इसका ऐतराि करती है, गोया की
जब दीि के वुजूद का ऐतराि करती है तो उसके साथ यह फिक्र भी देती है फक दुनियावी
नज़न्दगी का अपिे कब्ल और बाद से कोई तआल्लुक़ िहीं।

3.5.5 लादीफनयत : दीन फसिफ िदफ और उसके ख़ाफलक़ के


दरफमयान तआल्लुक़ है और दु फनयावी मामलात से दीन (धमफ) का
कोई ताल्लुक़ नही
दीि पर मुततनमल नज़न्दगी का भी दुनियााँ से कोई ताअल्लुक़ िहीं, बनल्क दीि नसिच िदच
और उसके ख़ानलक़ के दरनमयाि तआल्लुक़ है। र्ुिााँर्े यह “दुनियावी उमूर से दीि की
जुदाई” का अक़ीदा अपिे 'जामें मिहूम' (नवस्तृत तसव्वुर) के साथ कायिात, हयात और
इां साि के बारे में एक हमागीर कु ल्ली फिक्र बि गया है। इससे मालूम होता है फक
सरमायादारािा आयनडयोलोजी, नजस तौर पर फक हमिे इसे बयाि फकया, दूसरे
आयनडयोलोजीज़ की तरह एक नस्थर आयनडयोलोजी है।

निज़ामुल इस्लाम - 51 -
3.6 इख्ततराक़ी मब्दा (साम्यवाद / Communist
Ideology)
जहााँ तक इनततराफक़यत (समाजवाद)1 का तआल्लुक़ है, नजससे कम्यूनिज़्म (साम्यवाद)
भी पैदा हुआ, तो उसका िज़ररया यह है फक कायिात, इां साि और हयात नसिच माद्दा
(पदाथच / matter) है और वह माद्दा ही तमाम अनशया (वस्तुओं) की बुनियाद है। इसी के
इरनतका (क्रनमक नवकासवाद/evolution) से वस्तुए अनस्तमव में आती हैं। माद्दे के अलावा
कोई दूसरी र्ीज़ है ही िहीं। यह ही माद्दा अज़ली (अिांत/eternal) और कदीम (pre-
existent) है, फकसी िे इसको वुजूद िहीं बख्शा (indispensible - ‫)واجب الوجود‬। यािी
यह फकसी की मख़लूक़ (creation) िहीं। यह ही वजह है फक समाजवाद वस्तुओं के फकसी
ख़ानलक़ (रनर्यता/creator) के मखलूक (रर्िा) होिे का इां कार करते हैं। दूसरे शब्दों में
वह वस्तुओं के रूहािी पहलू (spiritual aspect) का इां कार करते हैं। बनल्क वह इसके
माििे को नज़न्दगी के नलए एक खतरा समझते हैं। र्ुिााँर्े वह दीि को क़ौमों के नलए
अिीम करार देते हैं, जो उन्हें मदहोश करके अमल से रोकती है। इिके िजदीक माद्दे के
नसवा फकसी दूसरी र्ीज़ का कोई वुजूद िहीं।

3.6.1 इख्ततराक़ी मब्दा फिक्र (फवचार) को फदमाग पर माद्दे का


अक़्स (प्रफतज़बब) मानता है
हत्ता के वह फिक्र (thought) को भी फदमाग पर माद्दे का अक्स (प्रनतजबांब) ही करार देते
हैं। इसी बुनियाद पर वह माद्दे को ‘‘अनसलुल फिक्र’’ (originator of thought) कहते
हैं। उिके िज़दीक पदाथच ही वस्तुओं की असल बुनियाद है नजसके नवकास से वस्तुऐ
अनस्तमव में आती हैं। इसी बुनियाद पर वह ख़ानलक़ के अनस्तमव का इां कार करते है, और
माद्दे को अज़ली (eternal/हमेंशा रहिे वाला) ख्याल करते हैं। र्ुिााँर्े वह माकब्ल अज़-
हयात (नज़न्दगी से पहले) और माबाद अज़-हयात (नज़न्दगी के बाद) का इां कार करते हैं
और नसिच दुनियावी नज़न्दगी पर यकीि रखते हैं।
1
उर्ू द मे socialism और communism र्ोनो के लिये एक ही िफ्ज़ इश्तिराक्यि इस्िेमाि होिा है . communism सोलियलिज़्म की
ही एक ककस्म है । हहिंर्ी मे सोिलिज़्म को समाजवार् और कम्यदननज़्म को साम्यवार् कहा जािा है ।

निज़ामुल इस्लाम - 52 -
3.7 सरमायादाफरयत और इख्ततराफकयत के कुछ
उसूलो मे समानता
3.7.1 कानूनसाज़ी का मनबा (स्त्रोत) इंसान और उसकी अक्ल
को मानते है
बावुजूद यह फक दोिों मबादी (ideologies) इां साि, कायिात और हयात के बारे में
बुनियादी इनख्तलाि रखती हैं, लेफकि इस बात पर मुत्तफिक़ (सहमत व राज़ी) है फक
इां साि के नलए बुलांदो-बरतर इक़दार (values/मूल्यों) के पैमािे बिािा इां साि का अपिा
काम है।

3.7.2 खुशी का तसव्वुर “फजस्मानी लज़्ज़तों” को पूरा करना है


और खुशी का तसव्वुर उिके िज़दीक़ यह है की “नजस्मािी’’ लज्ज़तो को ज्यादा से ज्यादा
पूरा फकया जाए। यही खुशी हानसल करिे का ज़ररया है बनल्क खुशी बज़ाते खुद इसी
र्ीज़ का िाम है।

3.7.3 इंसान को शतसी आज़ादी (व्यफिगत स्वतंत्रता) फमलनी


चाफहए
यह दोिों इस बात पर भी सहमत हैं फक इां साि को शख्सी आज़ादी (व्यनक्तगत स्वतांत्रता)
देिी र्ानहए, ताफक इां साि नजस र्ीज़ में अपिी सआदत समझे, उसमें अपिी ख्वानहश
और इरादे के मुतानबक़, जैसे र्ाहे इस्तेमाल करे । यह ही वजह है फक ज़ानत (व्यनक्तगत)
तरज़े-अमल या शख्सी आज़ादी को इि दोिो आयनडयोलोजीज़ में मुकद्दस (पनवत्र) मािा
गया है।

निज़ामुल इस्लाम - 53 -
3.8 समाज के बारे मे पूंजीवाद और साम्यवाद मे
अलग अलग तसव्वुर
दोिों मबादी 'िदच' (व्यनक्त) और मुआशरे (समाज) के बारे में इनख्तलाि रखती हैं।

3.8.1 पूंजीवाद मे समाज का नज़फरया


र्ुिााँर्े पूांजीवाद (capitalism) इिफिराफदयत (व्यनक्तमववाद/individualism) का
िज़ररया पेश करती है। इसका खयाल है फक समाज अिराद (कई लोगों) से नमलकर
बिता है। यह मुआशरे को दूसरा दरज़ा और असल एहनमयत व्यनक्त को देती है। यही
वजह है फक यह िदच की आज़ाफदयों की नहिाज़त को लानज़म करार देती है। इसके ितीजे
के तौर पर इस मब्दा में, नजस तरह अक़ीदे की आजादी मुक़द्दस है, उसी तरह आर्थचक
आजादी भी मुक़द्दस है। इस िलसिे की रूह से िदच पर फकसी फकस्म की पाबाांदी िहीं
होिा र्ानहए। अगरर्े आज़ाफदयों की ज़माित (गारन्टी) मुहय्या करिे के नलए ररयासत
की जानिब से िदच पर कु छ पाबनन्दयााँ आइद की जाती है और इि पाबांफदयों को ररयासत
नसपाही की क़ु व्वत और क़ािूि के ज़ोर पर लागू करती हैं, लेफकि इसके िजदीक ररयासत
की हैनसयत एक ज़रीये की सी है, िा फक ग़ायत और उद्देतय (objective) की। क्योंफक
इनक्तदारे आला (समता) नबलआनखर अिराद के पास होता है और ररयासत इसकी मानलक
िहीं होती। नलहाज़ा समायादाररयत नजस फिक्री फक़यादत (intellectual leadership)
की अलमबरदार है, वह दीि का दुनियावी नज़न्दगी से अलग फकया जािा है। इस फिक्री
फक़यादत को बुनियाद बिाते हुए सरमायादाररयत अपिे निज़ामो को िाफिज़ करती है,
उसी की तरि वह दावत देती और उसी को वह हर जगह िाफिज़ करिा र्ाहती है।

3.8.2 समाजवाद मे समाज का नज़फरया


इनततराफकयत (समाजवाद), नजसमें कम्यूनिज़्म भी शानमल है, की राय यह है फक
मुआशरा (समाज) एक ऐसा उमूमी मजमुआ है, जो इां सािो और उिके फितरत (प्रकृ नत)

निज़ामुल इस्लाम - 54 -
के साथ सम्बन्धों पर मुततनमल(बिा) है। यह तआल्लुक़ात हतमी और तयशुदा होते हैं,
और इिके सामिे इां सािो को हतमी और मेंकेनिकी (mechanic/तकिीकी) अांदाज में
झुकिा पडता है। यह सबका सब मजमुआ (फितरत, इां साि और तआल्लुक़ात) एक ही
इकाइ से है और यह एक मजमुआ है फक नजसके नहस्से एक दूसरे से अलग अलग िहीं है।
'फितरत' (प्रकृ नत) इन्साि की शनख्सयत का एक नहस्सा है नजसे इां साि अपिी ज़ात में
उठाए हुए है। इस नलहाज़ से इां साि जब भी तरक्की करता है तो वह अपिी शनख्सयत के
इस पहलू यािी फितरत से नर्मटा हुआ होता है। क्योंफक फितरत के साथ इां साि का
तआल्लुक़ जैसे फकसी शैय (र्ीज़) का अपिे साथ ताल्लुक़। र्ुिार्े वह पूरे मुआशरे को एक
‘‘मजमुआए वानहद’’ (one unit/एक इकाई) समझता है, नजसके तमाम पहलू एक साथ
नमलकर तरक्की करते हैं। 'िदच' समाज का ताबे होकर इस तरह गरफदश करता है नजस
तरह पनहये के तार साथ पनहये के साथ गरफदश करते है। इसनलए उिके िज़दीक 'िदच' के
नलए अक़ीदे की आज़ादी (freedom of religion) या आर्थचक आजादी (economic
freedom) का कोई वजूद िहीं। क्योंफक अक़ीदा भी ररयासत की मज़ी के साथ मुक़य्यद
है और इनक्तसाद (अथचव्यवस्था) भी। इसनलए इस मब्दा में ररयासत को मुक़द्दस समझा
जाता है। इसी माद्दी (पदार्थचक) िलसिे से निज़ामें हयात (system of life/जीवि
व्यवस्था) िू टते और इनक्तसादी निज़ाम (economic system) को तमाम निज़ामो की
बुनियाद करार फदया जाता है और तमाम निज़ामें हयात के नलए इसको ‘‘मुज़नहरे आम’’
समझा जाता है। नलहाज़ा वह इनततराक़ी मब्दा, नजसमें कम्यूनिज़्म भी है, नजस फिक्री
फक़यादत का हानमल है वह माफद्दयत (पदाथचवाद /materialism) और माद्दी (पदार्थचक)
तरक्की और इरनतका (materialistic evolution) ही है। इस माफद्दयत की बुनियाद पर
वह अपिे निज़ामें हयात के मुतानबक़ हुकू मत करता है, इसी की तरि वह दावत देता है
और इसी को हर जगह िाफिज़ करिे के नलए कोनशश में लगे हैं।

निज़ामुल इस्लाम - 55 -
3.9 इस्लाम मब्दे की रूहानी बुफनयाद: खाफलक़
का मखलूक़ से ताल्लुक़
इस्लाम का जहााँ तक तआल्लुक़ है, तो वह बताता है फक इस कायिात, हयात और इां साि
के पीछे एक ख़ानलक़ है और उसी िे इि तमाम र्ीजों को पैदा फकया है। वह अल्लाह
तआला है। इसनलए इस्लाम की बुनियाद और असास अल्लाह तआला के वजूद पर यक़ीि
रखिा है। यही अक़ीदा अनशया के रूहािी (spiritual-अध्यानममक) पहलू को तय करता
है। रूहािी पहलू से मुराद नसिच यह है फक इां साि, हयात (जीवि), और कायिात (सृिी)
एक रनर्यता की रर्िा हैं। कायिात का अपिे मखलूक़ होिे के िाते से, खानलक़ के साथ
तआल्लुक़, कायिात का रूहािी पहलू है। इसी तरह हयात का अपिे ख़ानलक़ (अल्लाह
तआला) के साथ तआल्लुक़ इसका रूहािी पहलू हैं। और इसी तरह इां साि का खानलक़ के
साथ तआल्लुक़ इां साि का रुहािी पहलू है। इससे मालूम हुआ फक रूह (आममा) से मुराद
इां साि का अपिे ख़ानलक़ के साथ पाए जािे वाले इस तआल्लुक़ को समझिा है।
अल्लाह पर ईमाि के साथ मुहम्मद ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬की ररसालत और क़ु रआि के
कलामुल्लाह होिे पर ईमाि भी वानजब है। पस हर उस र्ीज़ पर ईमाि लािा वानजब
है, नजसको क़ु रआि िे बयाि फकया है। र्ुिााँर्े इस्लाम का अक़ीदा इस बात की माांग
करता है फक जीवि से पहले फकसी ऐसी ज़ात का पाया जािा ज़रूरी है नजस पर ईमाि
लािा अनिवायच है और वह अल्लाह तआला की ज़ात है। इस तरह दुनियावी नज़न्दगी के
बाद पर भी ईमाि लािा ज़रूरी है और वह क़यामत का फदि है।

3.9.1 इंसान अपने आमाल मे अल्लाह तआला के 'अवाफमर और


नवाही' (commands and prohibition) में मुक़य्यद है
इस्लामी अक़ीदा इस बात की माांग भी करता है फक इां साि इस दुनियावी नज़न्दगी में
अल्लाह तआला के 'अवानमर और िवाही’ (commands and prohibition) में मुक़य्यद
है'। यही इस हयाते दुनिया का अपिे माकब्ल (before life) से ताल्लुक़ है। इसी तरह
इां साि का नहसाब अवानमर की इमतेबा (अिुसरण) और िवाही से इजतेिाब

निज़ामुल इस्लाम - 56 -
(फकिाराकशी) करिे या िा करिे के हवाले से फकया जायेगा और यही दुनियावी नज़न्दगी
का अपिे बाद के साथ तआल्लुक़ है। इसनलए मुसलमाि के नलए ज़रूरी है फक वह फकसी
भी अमल को सरअांजाम देते वक़्त अपिे साथ इस रब्तो तआल्लुक़ का इदराक़
(perception/ ज्ञाि/ बोध) करे , ताफक उसके आमाल अल्लाह तआला के 'अवानमर और
िवाही' के मुतानबक़ हों। र्ुिााँर्े माद्दे (पदाथच) के साथ रूह के इमतेजाज (नमश्रण/
mixing) का यही मआिी है फक आमाल को अल्लाह तआला के अवानमरो िवाही के
मुतानबक़ बजा लाया जाए। आमाल की असल ग़ायत और मक़सूद अल्लाह तआला की
रज़ा को हानसल करिा है और आमाल के अदा करिे के दौराि इसका िोरी
(immediate) मक़सद वह कीमत है, जो इस अमल के ितीजे में हानसल होती है।

3.9.2 समाज की फहिाज़त के आला मक़ाफसद इंसानी अक़्ल नही


बख्ल्क अल्लाह के अवाफमर व नवाही से तैय हों
इसनलए समाज की नहिाज़त के नलए बुलांद मक़ानसद (लक्ष्य), इां साि के अपिे वज़ाकदाच
(रर्े हुए/ legislate) िहीं होिा र्ानहए, बनल्क यह अल्लाह तआला के अवानमर व
िवाही की रूह से तय होिे र्ानहए जो हमेंशा एक जैसे रहते है, िा तब्दील होते हैं और
िा उिकी तावील हो सकती है। पस इां साि, इां सािी अक़्ल, इां सािी शराित, इां साि की
ज़ात, व्यनक्तगत सांपनत्त, दीि, अमिो-आमाि, और ररयासत मुआशरे (समाज) की
नहिाज़त के नलए बुलांद मक़ानसद हैं। इिमें तब्दीली और तरक्की िहीं होती। फिर इि उच्य
उद्देशय की नहिाज़त की खानतर इस्लाम िे सख्त फकस्म की सज़ाऐ रखी है और 'दाइमी
मक़ानसद' (नस्थर/मज़बूत लक्ष्यों) की नहिाज़त के नलए हुदूद और उकू बात
(punishment) जारी फकये गए हैं। इि बुलांद मक़ानसद की नहिाज़त वानजब है क्योंफक
यह अल्लाह तआला के अवानमरो-िवाही (commands and prohibitions) हैं। यह
नहिाज़त इसनलए वानजब करार िहीं दी गई फक इिकी कोई माद्दी (भौनतक) कीमत
हानसल होती है। इस तरह मुसलमाि और ररयासत अपिे तमाम आमाल को अल्लाह
तआला के अवानमरो-िवाही के मुतानबक़ बजा लाते है। क्योंफक अल्लाह तआला के
अवानमरो-िवाही ही हैं नजिके ज़ररये इां साि के तमाम मुआमलात मुिज़्ज़म (सांघरठत)
होिे र्ानहए। आमाल को अल्लाह तआला के अवानमरो-िवाही के मुतानबक़ बजा लािा

निज़ामुल इस्लाम - 57 -
ही दरअसल वह र्ीज़ है जो मुसलमािो के अांदर इनममिाि पैदा करती है। पस मालूम
हुआ फक इां साि की सआदत (कामयाबी) इसमें िहीं फक इां सािी नजस्म को खूब सेर फकया
जाए और उसे नजस्मािी लज़्ज़तों को पूरा फकया जाऐ बनल्क इां सािी खुशिसीबी नसिच
अल्लाह तआला की रज़ा में है।

3.9.3 इस्लाम ने फजस्मानी ज़रुफरयात और फजफबल्लतों हाजात


(आवतयकताओं) को पूरा करने की ज़मानत दी है
जहााँ तक नजस्मािी ज़रुररयात और नजनबल्लतों का तआल्लुक़ है, तो इस्लाम िे इिको
इस अांदाज में सांघरठत (organize) फकया है फक इस तिज़ीम में हर फकस्म की हाजात,
मसलि पेट की भूख, नजबल्लतो की हाजत और रूह की हाजत को सेर करिे की ज़माित
दी है। इस्लाम िे यह तांजीम इस तरह िहीं की फक एक भूख या हाजत को पूरा करिे के
नलए दूसरी को कु रबाि कर फदया हो, या कु छ को आजाद छोड कर बाकी सबको दबा
फदया हो ‘या सबको बेलगाम छोड फदया हो। बनल्क इस्लाम िे एक बडे ही नवस्तृत व्यवस्था
के ज़ररये इि सबको इस तरह सेर फकया है और इसका ऐसा इां तेज़ाम फकया है ‘जो इां साि
के नलए खुशगवारी और राहत मुहय्या करता है। वो इां साि की नजबल्लतों को लगाम देकर
इां साि को ‘हैवानियत के गढ्े में नगरिे से रोकता है।

3.10 इस्लामी मे िदफ (व्यफि) और समाज का


तसव्वुर (अवधारणा)
इस तांजीम की ज़माित देिे के नलए इस्लाम जमाअत को इस िज़र से देखता है फक ये एक
ऐसा कु ल है ‘नजसके अांग एक दूसरे से अलग-अलग िहीं होते! इस तरह इस्लाम िदच
(व्यनक्त) को इस िज़र से देखता है फक ‘िदच इस जमाअत का ऐसा अांग होता है जो कभी
भी इससे जुदा िहीं होता’। लेफकि व्यनक्त के जमाअत का अांग होिे का ये मतलब िहीं है
फक इसकी ये जुज़नवयत ऐसी हो जैसा फक पनहये के तार पनहये का एक अांग हुआ करते है।
बनल्क ये उस कु ल (whole) का इस तरह अांग होता है नजस तरह के हाथ अपिे नजस्म

निज़ामुल इस्लाम - 58 -
का जुज़ (अांग) होता है। र्ुिााँर्े इस्लाम िे िदच की निगरािी इस हवाले से की है फक ये
जमाअत का एक नहस्सा है और इससे अलग-थलग िहीं। वोह इस हैनसयत से िदच पर
तवज्जोह देता है की जमाअत की नहिाज़त हो सके । उसी वक़्त इस्लाम जमाअत की भी
निगरािी करता है और वोह उसे तवज्जोह और इिायत का नवषय इस हैनसयत से िहीं
बिाता फक ये एक कु ल है नजसके अजज़ा (नहस्से) िहीं है बनल्क इस्लाम उसे एक ऐसा कु ल
समझता है जो अपिे अजज़ा (अांगों) यािी अिराद पर मुततनमल है। इस इिायत और
तवज्जोह के ितीजे में, जमाअत का जुज़ होिे की हैनसयत से, अिराद की भी खुद-ब-खुद
नहिाज़त हो जाती है। यही वजह है फक रसूलल्लाह ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬िे िरमाया :

ُ‫ُمُاِ ۡس َت َه َّم ۡوُاُع َََل‬ َ ‫لوا ِق ِعُ ُِف‬ ‫ی‬


ٍ ‫يهاُ َک َمثَ ِلُق َۡو‬ َ ۡ ‫(( َمثَلُا ۡلقَائِ ِمُع یََلُحدوُ ِدُالل َّ ِہ َُوا‬
ُ‫ابُ َبعضهم‬ َ َ‫اُوُ َبعضهمُ َس ِفي َن ٍةُف‬
َ ‫اص‬ ُ ِ ‫انُالََّ ِذي َن‬
َ ‫ُف ۡ اَعۡ َال َه‬ َ َ‫س َفل ََهاُفَك‬
ُۡ َ ‫ا‬
ُ ‫ائُ َم َّر ۡوُاُع ی‬
‫ََلُ َمنُفَ ۡوُ ِق ِهم‬ ۡ ‫فَقَالو اَس َفلِ َهاُاِ َذ‬: ُ‫لَوا َّنَا َخ َر ُقۡ َنا‬
ِ ‫اس َتسقَوُاُ ِم َنُال َۡم‬
ِ ‫َوُ َماُا َ َراد ۡوُاُ َهلَک ۡوُ َت َرک ۡوُاه ۡمُ ن ۡوُ ِذُ َم ۡنُفَ ۡو ُقَ َنا۔ُفَاِ ۡنُ ِفي َن ِص‬
َ ‫يب َناُ َخرُق‬
ُ‫ًاُوُل َۡم‬
ُ‫ا۔ُواِ ۡن‬
َ ‫يع‬ ً ‫ُج ِم‬ ُِ ‫ُج ِم ۡي ًعا)) أ َخذ ۡوُاُع َََلُا َ ۡي ِد‬
َ ‫يه ۡمُ ا‬ َ ‫َن َج ۡوُاُ َو َن َج ۡوُا‬
“हुदूदल्ु लाह को क़ायम करिे वाले और इिकी नखलाि वरज़ी करिे वालों की
नमसाल उस नगरोह की सी है नजसिे कतती के ऊपर और िीर्े जगह पािे के
नलये कु रआ अांदाजी की। पस इिमें से कु छ अिराद तो कतती के ऊपर वाले
नहस्से में र्ले जाएां और कु छ िीर्े रह जाएां। सो जो लोग निर्ले नहस्से में हों
जब वो अपिी प्यास बुझािे के नलए ऊपर वालों के पास पािी लेिे के नलए
जाएां और इिसे (ऊपर वालों) से कहें फक अगर आप हमें निर्ले नहस्से में सुराख
कर लेंिे दे तो आप भी तकलीि से बर् जाएांग।े अब अगर ऊपर वाले इन्हे इससे
बाज़ िा रखें और आजाद छोड दें तो िीर्े वाले और ऊपर वाले दोिों हलाक
हो जाएांग।े और अगर वो िीर्े वालों को रोके गें तो दोिों निजात पाऐंगे”।
िदच और जमात का यह िुक्तए िज़र समाज के बारे में एक नवशेष तसव्वुर वुजूद में लाता
है। एक जमात के अांग होिे के िाते अिराद के नलये ज़रूरी है फक उिके पास कई नवर्ार

निज़ामुल इस्लाम - 59 -
हों जो उन्हें आपस में बाांधे रखें और वह उिके मुतानबक़ नज़न्दगी गुजारें । इसी तरह यह
भी ज़रूरी है फक उि सबके पास एक जैसे मशाइर (एहसासात-‫ )مشاعر‬हों, नजिसे वह
प्रभानवत भी हों और उिकी तरि नमलाि भी रखें। इसी तरह उि सब पर एक ही निज़ाम
लागू हो, जो उिकी नज़न्दगी की तमाम समस्याओं को हल करे ।

3.10.1 समाज की इस्लामी तारीि (पफरभाषा) और तसव्वुर


इसनलए मालूम हुआ फक समाज अिराद (लोगों /individuals), इां सािी अफ्कार
(नवर्ारों /thoughts), एहसासात (emotions) और निज़ाम (system) पर मुततनमल
होता है और इां साि अपिी नज़न्दगी में इि नवर्ारों, एहसासात और निज़ाम में मुक़य्यद
होता है।
नलहाज़ा एक मुसलमाि अपिी नज़न्दगी में हर नलहाज़ से इस्लाम के साथ बांधा हुआ है
और उसके नलए इसमें कोई आजादी िहीं। र्ुिााँर्े मुसलमाि का अक़ीदा इस्लाम की हदो
के अांदर क़ै द है और वोह फकसी भी तरीक़े से आजाद िहीं। यही वजह है फक मुसलमाि के
नलए मुतद
च होिा बहुत बडा जुमच है। अगर तौबा िा करे तो वह सज़ा का मुस्तनहक़ हो
जाता है। इसी तरह एक मुसलमाि का शख्सी पहलू (personal aspect) भी इस्लामी
निज़ाम में क़ै द हो जाता है। इसीनलये नज़िा को एक बहुत बडा जुमच समझा जाता है,
नजसकी सज़ा अवाम के सामिे फकसी फक़स्म की िरमी या शिक़त के नबिा नमलती है,
िरमाया गया:

َ ْ ‫اُطاۗ ِى َف ٌةُ َِّم َنُالْم ْؤ ِم ِن‬


ُ‫ي‬ َ ‫ُ َو ل َْي ْش َه ْدُعَذَ ا َبه َم‬
‘‘और उि दोिों ज़ािी और ज़ानिया को सज़ा देते वक्त मुसलमािों की एक
जमात मौजूद होिा र्ानहए।’’
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे िूर, आयत: 2)
इसी तरह शराब खोरी एक जुमच है, नजसकी सज़ा नमलेगी। दूसरों पर ज़ुल्म और ज़्यादती
को भी जुमच करार फदया गया है। इस ज़ुल्म और ज्यादती की अपिे एतबार से मुख्तनलि
सज़ाऐ हैं। मसलि कज़ि, क़मल वगैरा। इसी तरह आर्थचक पहलू भी शरई अहकाम के

निज़ामुल इस्लाम - 60 -
साथ मुक़य्यद हैं और उसके असबाब नसिच वही हो सकते है, नजिको शरह िे मुबाह करार
फदया हो और नजिकी पररभाषा शरीअत में इिफिरादी नमनल्कयत (व्यनक्तगत सांपनत्त) मे
की है। दर हक़ीक़त यह इिफिरादी नमनल्कयत भी शारे अ (‫ َش َرع‬- legislator) की तरि
से वोह इजाज़त है, जो उसिे फकसी र्ीज़ से ििा उठािे के नलए दी है र्ुिााँर्े शरीअत
की इि हदो से निकलिा भी जुमच है, नजसकी मुख्तनलि सूरतें और फकस्में हो सकती है,
जैसे र्ोरी, ग़सब वगैरा। नलहाज़ा एक ऐसी ररयासत का पाया जािा इन्तेहाइ ज़रूरी है
जो इस िदच और जमाअत की नहिाज़त कर सकें , और जमाअत पर निज़ाम को एक जैसा
िाफिज़ कर सके । र्ुिााँर्े यह भी ज़रूरी है फक इस आयनडयोलोजी के माििे वालों पर
आयनडयोलोजी के असरात भी पाए जाते हों, ताफक नहिाज़ती अमल खुद लोगो की
जानिब से तबई (स्वाभानवक) तौर पर अांजाम पा सकें । इसनलए आयनडयोलोजी ही वह
र्ीज़ है जो मुआशरे को पाबांद और महिू ज रखती है जबफक ररयासत उि अहकामात को
लागू करती है जो इस आयनडयोलोजी से प्राप्त फकये जाते हैं।

3.10.2 फसयादा (‫ سياده‬- Sovereignty या इफक़्तदारे आला)


शरीयत को हाफसल है ना फक फरयासत और उम्मत को
मालूम हुआ फक नसयादा (‫ سياده‬- Sovereignty या इनक़्तदारे आला) शरीयत को हानसल
है िा फक ररयासत और उम्मत को। अगरर्े क़ु व्वत व ताकत उम्मत के पास ही होती है
और ररयासत इसका मज़हर होती है। पस इस्लामी निज़ाम को िाफिज़ करिे का तरीक़ा
ररयासत है। अगरर्े इसका असल ऐतमाद भी अल्लाह तआला के खौि पर होता है, जो
उस िदे मोनमि में पाया जाता है, जो इस्लामी अहकाम को बजा लाता है। मजीद इसके
नलए वह क़ािूि भी लाज़मी है, नजसे ररयासत िाफिज़ करे । और मोनमि िदच के नलये
नहदायतो-रे हिुमाइ नमले ताके वह तक़वा के जज़्बे के तहत इस्लाम पर र्ल सकें ।

3.10.3 इस्लाम एक अक़ीदा भी है और फनज़ामें हयात (system


of life) है
इस्लाम एक अक़ीदा भी है और निज़ामें हयात (system of life) भी। इस्लाम एक ऐसा
मब्दा (ideology) है जो ‘फिकरा (idea - ‫ )فكره‬भी है और ‘तरीक़ा’ (‫ )طريقه‬भी है। जो

निज़ामुल इस्लाम - 61 -
फिकराह की जजांस से ही है। इस्लाम का निज़ाम इस्लाम के अक़ीदे से जन्म लेता है। इस
तरह इसकी तहज़ीब भी इक मखसूस तज़े हयात पर मबिी है।

3.10.4 इस्लामी दावत को पेश करने का तरीक़ा


इस्लाम में दावत को आगे पेश करिे का तरीके कार यह है फक इस्लाम को ररयासत की
जानिब से िाफिज़ फकया जाये और फिर इस्लाम को फिक्री फक़यादत (वैर्ाररक िेतृमव)
के तौर पर दुनिया के सामिे पेश फकया जाये जो इस्लाम को समझिे और इस पर अमल
करिे की बुनियाद पर बिे। लोगों पर हुकू मत के ज़ररये से इस्लाम को िाफिज़ करिा ही
इस्लाम की दावत को पेश करिा है। क्योंफक ग़ैर-मुनस्लमों पर इस्लामी निज़ाम को लागू
करिा ही इस्लाम की दावत के नलए अमली तरीक़े -कार होता है। आलमें इस्लाम को पैदा
करिे में इस तन्िीज़ (implementation) का बहुत बडा असर है जो आज दूर-दूर तक
िै ला हुआ है।
खुलासा कलाम ये है फक दुनिया में तीि मबादी (ideologies) मौजूद है।
सरमायादाररयत, इनततराफकयत (समाजवाद) और तीसरा मब्दा इस्लाम है। इिमें से हर
एक मब्दा का अपिा अक़ीदा है नजससे निज़ाम जन्म लेता है। हर एक के पास नज़न्दगी में
इां सािी आमाल (कमों) को जाांर्िे के नलये एक मेंयार है और हर एक का मुआशरे के बारे
में एक खास िुकताए िज़र और निज़ाम को िाफिस करिे का खास तरीक़ा है।

3.11 सरमायादाफरयत और इख्ततराक़ी मब्दे का


अक़ीदा
जहाां तक अक़ीदे की बात है तो इनततराक़ी मब्दे की राय ये है फक माद्दा ही तमाम वस्तुओं
की असल है और तमाम वस्तुएां पदार्थचक तरक्की (इरतेका) के ज़ररये ही से वजूद (अनस्तमव)
में आती हैं’ यािी डायलेनक्टकल मेंटेररयानलज्म के ज़ररये। सरमायादारािा मबदा का
िज़ररया यह है फक 'दीि का दुनिया से जुदा' होिा ज़रूरी है। र्ुिााँर्े ितीजे के तौर पर
दीि ररयासत से भी जुदा हो जाता है। नलहाज़ा सरमायादार इस बहस में पडिा ही िहीं
र्ाहते फक कोई ख़ानलक़ है या िहीं? अलबत्ता ये ज़रूर कहते हैं फक ख़ानलक़ का नज़न्दगी

निज़ामुल इस्लाम - 62 -
में कोई अमल दखल िहीं होिा र्ानहए। र्ुिााँर्े खानलक़ के वजूद पर सहमनत और इां कार
उिके नलये बराबर है। यही वजह है फक इिके अक़ीदे की रूह से ख़ानलक़ के वुजूद को
माििे वाला और इसका उसका इन्कार करिे वाला दोिो बराबर है’ और यही दीि को
दुनिया से जुदा कर देिे का अक़ीदा है।

3.12 इस्लाम का अक़ीदा


इस्लाम का अक़ीदा है फक अल्लाह तआला ही तमाम मौजूदात का ख़ानलक़ है और इसी
िे बिी िू इां साि के नलये अपिे अनम्बया और रसूलों को दीि के साथ मबऊस िरमाया
है। वही क़यामत के फदि इां साि से इसके आमाल का नहसाब फकताब लेगा। र्ुिााँर्े इस्लाम
का अक़ीदा अल्लाह पर ईमाि, िररततो पर ईमाि, फकताबों पर ईमाि, रसूलों पर ईमाि,
यौमें आनखरत पर ईमाि, और कज़ा व क़दर के ख़ैर व शर के नमि जानिब अल्लाह होिे
पर मुततनमल है।

3.13 कम्यूफनज़्म, पूंजीवाद और इस्लाम से


फनज़ाम कैसे िूटता है
3.13.1 कम्यूफनज़्म के अक़ीदे से फनज़ाम (व्यवस्था) कैसे िूटता
है
अब रहा सवाल की अक़ीदे से निज़ाम फकस तरह िू टता है? तो कम्युनिज़्म की राय है फक
निज़ाम 'ज़राऐ पैदावार' से माखूज़ (प्राप्त) है। क्योंफक जागीरदारािा मुआशरे में कु ल्हाडा
पैदावार का जररया था और इसी से जागीरदारी निज़ाम वजूद में आया। र्ुिााँर्े इस
फकस्म का समाज सरमायादाररयत की तरि तरक्की करता है तो मशीिरी 'ज़ररयाऐ
पैदावार' बि जाती है। नलहाज़ा इससे सरमायादारािा निज़ाम प्राप्त होता है’ क्योंफक
निज़ाम 'माद्दी इरतक़ा' (materialistic evolution/पदार्थचक नवकास) के ज़ररये वजूद
में आता है।

निज़ामुल इस्लाम - 63 -
3.13.2 सरमायादाफरयत के अक़ीदे से फनज़ाम (व्यवस्था) कैसे
िूटती है
सरमायादारािा आयनडयोलोजी की राय है फक जब इां साि िे दीि को दुनियावी मामलात
से अलग कर फदया तो इसके नलये ज़रूरी है फक वो इस हयात ही से अपिे नलये बज़ाते
खुद निज़ाम बिाये। र्ुिााँर्े इस तरह इां साि िे अपिा निज़ाम खुद बिािा शुरू कर फदया।

3.13.2 इस्लाम के अक़ीदे से फनज़ाम (व्यवस्था) कैसे िूटती है


लेफकि इस्लाम की राय ये है फक निज़ाम अल्लाह तआला की तरि से होिा र्ानहए और
अल्लाह तआला िे सय्यदिा मुहम्मद ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬को इस निज़ाम के साथ मबऊस
िरमाया और आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬िे इसे इां सािों तक पहुर्ााँ फदया है। अब इां साि पर
लानज़म है फक वह इस निज़ाम पर र्ले। मुसलमाि को र्ानहए फक वह पहले अपिी
मुनतकलात को समझें, फिर फकताब और सुन्नत से इस मुनतकलात का हल निकालें।

3.14 फज़न्दगी में आमाल (कमफ) के फलए कसौटी


नज़न्दगी में आमाल के नलए मेंयार का जहााँ तक तआल्लुक़ है तो कम्युनिज़्म की राय यह
है फक माफद्दयत (भौनतकवाद /materialism) यािी माद्दी निज़ाम ही नज़न्दगी में आमाल
की कसौटी है और माद्दे के नवकास से मेंयार तरक्की करता है सरमायादारािा मब्दा की
राय यह है फक नज़न्दगी में आमाल (कायो) का मेंयार मििअत (िायदे) है। आमाल को
जार्ाँिा और आमाल को अांजाम देिा मििअत(िायदे) के नमयार की बुनियाद पर होगा।
इस्लाम कहता है नज़न्दगी में अमाल का मेंयार हलाल व हराम यािी अल्लाह तआला के
अवानमर व िवाही हैं। पस हलाल काम को फकया जाऐगा और हराम काम करिे से बर्ा
जाऐगा। इस मेंयार की िा तो तावील हो सकती है और िा ही यह तब्दील हो सकता है
और िा इसमें मििअत का कोई असर है। र्ुिााँर्े अहनमयत नसिच शरीअत को हानसल है
और हुक्म शरीअत ही का है।

निज़ामुल इस्लाम - 64 -
3.14.1 मुआशरे (समाज) के बारे में कम्युफनज़्म का नु िा-ए-
नज़र
जहाां तक मुआशरे (society/समाज) से सम्बनन्धत दृनिकोण का तआल्लुक़ है तो
कम्युनिज़्म की राय है फक मुआशरा एक आम मजमुआ है। इसमें ज़मीि, जराये पैदावार,
फितरत (प्रकृ नत) और इां साि तमाम के तमाम माद्दा होिे के ऐतबार से ‘‘शेय-वानहद”
(एक वस्तु /single entity) है’ और फितरत और जो कु छ उसमें है, तरक्की करते है, तो
उिके साथ इां साि भी तरक्की करता है। र्ुिााँर्े पूरा मुआशरा भी तरक्की करता है। नलहाज़ा
मुआशरा माद्दी (पदार्थचक) तरक्की का मोहताज और ताबे है। इां साि का काम नसिच इतिा
है फक वह तिाकु जात (इनख्तलािात/नववाद) को पैदा करता रहे, ताफक यह तरक्की तेज
तर हो सके । फिर जब मुआशरा तरक्की करता है तो िदच भी उसके साथ तरक्की करता है
यािी वह मुआशरे के नगदच इस तरह गर्दचश करता है, जैसे नगरारी पनहए के साथ।

3.14.2 मुआशरे (समाज) के बारे में पूंजीवाद का नु िा-ए-नज़र


पूांजीवादी व्यवस्था की इसके बारे में राय यह है फक मुआशरा अिराद से नमलकर बिता
है। इसनलए जब एक िदच के मामलात मुिज्ज़म (सुव्यवनस्थत) हो जाते है तो मुआशरे के
मामलात भी मुिज्ज़म हो जाते है इसनलए नसिच िदच पर िज़र रखिे की ज़रूरत है, जबफक
हुकू मत नसिच िदच के नलए ही काम करती है इसनलए इस मब्दा को इनन्िराफदयात
(व्यनक्तवाद/individualism) का िज़ररया कहा जाता है।

3.14.3 मुआशरे (समाज) के बारे में इस्लाम का नु िा-ए-नज़र


इस्लाम कहता है फक नजस बुनियाद पर मुआशरा क़ायम होता है, वह अक़ीदा, अफ्कार
(नवर्ार/ thoughts), एहसासात (भाविाओं /sentiments and emotions) और
इससे जो निज़ाम िू टता है, वोह उसमें शानमल होता है। पस इस्लामी मुआशरा तब वजूद
में आता है जब इस्लामी अफ्कार व एहसासात हावी हों और इस्लामी निज़ाम लोगों पर
लागू हो। मुआशरा इां सािी नवर्ारों व भाविाओं के मजमुऐ (सांघठि) को कहते हैं।
नलहाज़ा एक इां साि दूसरे इां साि के साथ नमलकर जमाअत तो बिा सकता है, लेफकि एक
मुआशरे का वजूद लोगों में एक ही तरह के अफ्कार व एहसासात और एक ही निज़ाम के
बग़ैर िहीं होता जो उि पर िाफिज़ (लागू) हों। वह र्ीज़ जो इां सािो के बीर् ताअल्लुकात

निज़ामुल इस्लाम - 65 -
पैदा करती है, वह मुततररका मसनलहत (common interest/समाि लाभ) है। अगर
इस मसनलहत (नहत / लाभ) पर नवर्ार एक हो जाएां और इस तरह उस पर एहसासात
भी एक हो जाऐ, तो रज़ामांदी और िाराज़ी भी एक हो जाएगी। इसी तरह वह निज़ाम जो
मुनतकल को हल करता है वह भी अगर एक हो तो इां सािो के दरनमयाि तआल्लुक़ात पैदा
हो जाते है। लेफकि अगर मसनलहत की वजह से अफ्कार (नवर्ार) मुख्तनलि हो जाए या
एहसासात मुख्तनलि हो तो रज़ामांदी और िाराजी भी कभी एक िहीं होंगे। यह उस सूरत
में भी होता है, जब वह निज़ाम मुख्तनलि हो जो इां सािो की मुनतकलात को हल करता
है और जो तआल्लुक़ात, एहसासात और निज़ाम का मजमुआ होता है। अगर तआल्लुक़
पैदा िा होगा तो मुआशरा क़ायम िा होगा। नलहाज़ा समाज अिराद, अफ्कार,
अहसासात और जज़बात और निज़ाम पर मुततनमल (आधाररत) है इसनलए अगर फकसी
मुआशरे के तमाम लोग मुसलमाि हो लेफकि वह पूांजीवादी लोकतांत्र के नवर्ारों के हानमल
और अलमबरदार हों, उिके जज़्बात रूहानियत, वतिपरस्ती, और क़ौनमयत पर क़ायम
हों और वह निज़ाम जो उि पर िाफिज़ हो सरमायादारािा जम्हूररयत हो, तो वह
मुआशरा ग़ैर-इस्लामी मुआशरा है। अगरर्े उसके बेशतर अिराद मुसलमाि ही क्यों िा
हों।

3.15 फनज़ाम को नाफिज़ करना


3.15.1 कम्यूफनज़्म मे फनज़ाम को नाफिज़ करना
जहााँ तक निज़ाम को िाफिज़ (फक्रयानन्वत/ लागू) करिे का तआल्लुक़ है, तो कम्यूनिज़्म
की राय है फक ररयासत ही इसको ताक़त और क़ािूि के जोर पर िाफिज़ करिे का मजाज़
(बाध्य) है। इसके अिराद और जमाआत की समस्याओं और मुआमलात का भी वही
नज़म्मेदार है और निज़ाम की तरक्की भी ररयासत ही के ज़ररये से होती है।

3.15.2 सरमायादाफरयत मे फनज़ाम को नाफिज़ करना


सरमायादाररयत की राय में हुकू मत का काम हुर्रच यात (आज़ाफदयों) की निगरािी है। सो
कोई शख्स फकसी दूसरे शख्स की आज़ादी में दस्तदराजी करे तो उसे मिा फकया जाऐगा

निज़ामुल इस्लाम - 66 -
क्योंफक ररयासत का वजूद ही आज़ाफदयों की ज़माित (guarantee / नज़म्मेदारी) है।
ताहम अगर कोई शख्स दूसरे की आज़ादी को छीिे बग़ैर उसका इस्तहसाल (शोषण) करे
और उसके हुक़ू क़ छीि ले, लेफकि यह सब उसकी रज़ामांदी से हो तो, इसको आज़ादी पर
दस्तदराज़ी िहीं कहा जाऐगा और ररयासत (राज्य) उसमें मुदानखलत (हस्तक्षेप) िहीं
करे गी। र्ुिााँर्े ररयासत का वजूद नसिच आजाफदयों की ज़माित के नलए है।

3.15.3 इस्लाम मे फनज़ाम को नाफिज़ करना


इस्लाम की राय है फक फकसी निज़ाम को एक िदे-मोनमि के तक़्वे (खौिे खुदा) के बल
बूते पर क़ायम फकया जाता है और ररयासत निज़ाम को मुआशरे में इस्लाम की अदालत
और इां साि पसांदी के शऊर, अम्र नबल मारुि और िहीं अनिल मुांकर ( ‫امر بالمعروف ونہی‬
‫ )عن المنکر‬के नलये हुक्मराि के साथ उम्मत के तआवुि (सहयोग) और अपिी क़ु व्वत के
ज़ररये िाफिज़ करती है। ररयासत जमातों के मामलात की निगरािी करती है। यह िदच
के मामलात की निगरािी नसिच उस वक्त करती है जब वह िदच खुद अपिी निगरािी और
नहिाज़त के िाक़ानबल हो। यह निज़ाम कभी तरक्की िहीं करता। ररयासत को अहकामें
शरीअत को ‘‘तबन्नी’’ (अपिािे) का इनख्तयार हानसल है, जब फकसी मुआमले के
मुतानल्लक़ एक से ज़्यादा इज्तेहाद पाये जाते हों।

निज़ामुल इस्लाम - 67 -
3.16 इस्लाम की फिक्री फक़यादत इंसानी
फितरत के मुवाफिक कैसे हैं ?
इस्लामी आयनडयोलोजी की फिक्री फक़यादत (वैर्ाररक िेतृमव) इां सािी फितरत के साथ
पूरी तरह हमआहांग है। यह अपिे अन्दर गहराई रखिे के बावजूद समझिे में आसाि है।
इां साि के फदल और फदमाग़ इसे तेज़ी से क़ु बूल करते है, इां साि इसकी समझ हानसल करिे
की तरि जखांर्ता है और इसकी बारीफकयों को समझिे की कोनशश करता है। क्योंफक
‘‘नजनबल्लते तदय्युि’’ (पूज्यभाव की मूलप्रवृनत) इां साि का एक नहस्सा है और हर इां साि
फितरी ऐतबार से ‘‘मुतादय्यि’’ (धमच को माििे वाला) है। कोई भी क़ु व्वत इस फितरत
(प्रकृ नत / nature) को हटािे की ताकत िहीं रखती इसनलए फक इसकी जडे इां साि के
अांदर निहायत गहरी है। इां साि तबई (प्राकृ नतक) तौर पर यह शऊर रखता है फक वह
िाफक़स (अधूरा) है, और इससे बडी कोई क़ु व्वत है, जो तक़दीस (पूजा) की मुस्तनहक़ है।
तदय्युि इां साि की वह हाजत (आवतयकता) हैं जो वह अपिे खानलके -मुदनब्बर के नलए
महसूस करता है। यह इां साि की ज़ात (व्यनक्तमव) के अांदर पाऐ जािे वाले अज्ज़ (दुबचलता)
से पैदा होता है यह नजनबल्लते तदय्युि एक नस्थर र्ीज़ है और इसका मखसूस इज़हार
तकद्दुस (प्रशांसा और अर्चिा) है। इसनलए इां साि हर जमािे में धमच को मािता रहा है
और फकसी िा फकसी र्ीज़ की इबादत करता रहा है। इां साि खुद इां साि की, आसमािों
की, पमथरों की, हेवािात और आग वगैरा की परनस्तश (पूजा) करता रहा है।
इस्लाम अपिे अक़ीदे के साथ इसनलए ज़ानहर हुआ फक वह इां साि को मखलूक़ात
(प्रानणयों) की इबादत से निकालकर एक अल्लाह की इबादत में लगाऐ, नजसिे हर वस्तु
को पैदा फकया। जब इस 'माद्दी मब्दा' (पदार्थचक नवर्ारधारा) का जहूर हुआ है, जो
अल्लाह तआला और रूह का इां कार करता है, तो वह भी इां साि में मौजूद इस 'फितरी
तदय्युि' को खमम िा कर सका। बनल्क उसिे इां साि के अांदर अपिे से बडी क़ु व्वत के
तसव्वुर और उस क़ु व्वत के तकद्दुस (पनवत्रता) को, अपिे मब्दा के हानमलीि (माििे
वालों) की क़ु व्वत के तसव्वुर की तरि मुन्तफकल (पररवर्तचत) कर फदया। गोया इस तरह
वह पीछे की तरि लौट गया, और इां साि में पाये जािे वाले इस जज्बाऐ तकद्दुस को
अल्लाह तआला की इबादत की तरि से इां सािो की इबादत की तरि कर फदया। इसको
अल्लाह की आयात के तकद्दुस से िे र कर मख़लूक़ (रर्िा / creation) के कलाम के

निज़ामुल इस्लाम - 68 -
तकद्दुस की तरि डाल फदया। इस तरह यह िज़ररया एक फकस्म का रजत पसांदािा
(नपछडा हुआ / backward) िज़ररया है जब यह फितरते तदय्युि को खमम िा कर सका
तो इसको रजत पसांदािा तौर पर एक नसम्त में मोड फदया। इसनलए इस मब्दे की फिक्री
फक़यादत फितरते इां सािी के नखलाि है और एक सलबी िोइयत की फक़यादत है। मालूम
हुआ फक कम्यूनिज़्म की फिक्री फक़यादत इां सािी फितरत को नसिच मैदे (पेट) के इदच नगदच
घूमाती है और नसिच भूखों, खौिज़दा लोगों और मायूस अिराद को अपिी लपेट में ले
लेती है नसिच पस्त नहम्मत अिराद इसको इनख्तयार करते हैं। नज़न्दगी में पीछे रह जािे
वाले और दूसरो को जलि और ररकाबत (प्रनतस्पधी के तौर) से देखिे वाले अक्ल के कोरे
इां साि ही इस भौनतक िज़ररये को इनख्तयार करते हैं ताफक जब वह डाइलेक्टरीकल
िज़ररये नजसका अक्ल व नहस की रूह से बानतल और िानसद तरीि र्ीज़ होिा सानबत
हो र्ुका है के साथ बाछें खोले, तो उन्हे अरबाबे फिक्र में से माि नलया जाऐ। इसनलए
यह िज़ररया अपिे मब्दा (नवर्ारधारा) के सामिे लोगों को झुकािे के नलए क़ु व्वत व
ताकत का सहारा लेता है। र्ुिााँर्े शोररश, तबाही ,परे शािी, ज़ुल्म और हांगामें उसके
अहमतरीि सांसाधि हैं।

3.17 पूंजीवादी फिक्री फक़यादत इंसानी फितरत


के फवपरीत कैसे हैं ?
इसी तरह पूांजीवादी फिक्री फक़यादत भी इां सािी नजनबल्लते तदय्युि के नवपरीत है।
क्योंफक नजनबल्लते तदय्युि का इज़हार, नजस तरह तकद्दुस में होता है उसी तरह नज़न्दगी
में इां सािी अमाल की तदबीर में भी होता है। इस इनख्तलाि का उस वक्त इज़हार होता
है, जब इस तदबीर को छोडा जाए, और यह इां साि की आनजज़ी (असक्षमता) की अलामत
है। इसनलए ज़रूरी है फक नज़न्दगी में इां साि जुमला आमाल का मुदनब्बर नसिच दीि होिा
र्ानहए जो 'वही' के जररए ख़ानलक़ की तरि से हो। धमच को नज़न्दगी से अलग कर देिा
फितरते इां सािी के नखलाि है लेफकि जहााँ तक इस बात का तआल्लुक़ हैं फक नज़न्दगी में
दीि के वजूद का क्या मतलब है ? तो हमें मालूम होिा र्ानहए फक इसका हरनगज यह
मािी िहीं की दुनिया की नज़न्दगी को िाफिज़ करिे का अल्लाह तआला िे हुक्म फदया है
और उसी के अमाल को इबादत बिा फदया जाऐ। बनल्क नज़न्दगी में दीि के वजूद के मािी

निज़ामुल इस्लाम - 69 -
यह हैं फक वह निज़ाम िाफिज़ फकया जाए नजसके ज़ररये नज़न्दगी की तमाम मुनतकलात
को हल फकया जाए और यह निज़ाम उस अक़ीदे से िू टता हो जो इां साि की नजनबल्लते
तदय्युि के मुतानबक़ हो। इस निज़ाम को उस अक़ीदे से प्राप्त करिा जो दीि की नज़न्दगी
से जुदाई की फिक्र पर क़ायम हो और नजनबल्लते तदय्युि के अिुसार िा हो इां सािी
फितरत के नखलाि है। इसनलए सरमायादारािा निज़ाम की फिक्री फक़यादत फितरत के
पहलू के एतबार से इां तेहाइ पस्त और मायूसकु ि है क्योंफक यह दीि को नज़न्दगी से जुदा
करिे फितरते दीि हयात से दूर करिे, दीि को इां साि का व्यनक्तगत मसला बिा देिे और
इस निज़ाम को दूर कर देिे, नजसके मुतानबक़ इां सािी मुनतकलात को हल करिे का अल्लाह
तआला िे हुक्म फदया है, फक वजह से एक 'सलबी फक़यादत' है।
इस्लामी फितरी फक़यादत एक मुसबत (सानबत शुदा) फक़यादत है। क्योंफक यह अल्लाह
तआला के वजूद पर ईमाि लािे के नलए अक्ल को बुनियाद बिाती है और इसके नलए
इां सािी िज़र को कायिात, इां साि और हयात की तरि मुतावज्जेह करती है। नलहाज़ा
इां साि तमाम मखलूकात (Creations/रर्िाओं) के नलए एक ख़ानलक़ के वजूद पर क़तई
यकीि के साथ मुतमईि हो जाता है। यह फक़यादत इां साि की इस हवाले से मुईि और
मददगार होती है फक वह खुद अपिी फितरत से उस कमाल (पूणचता) का मुतआलाशी
(खोजकताच) हो जाता है जो िा इां साि में पाया जाता है िा कायिात में, िा हयात में, यह
फक़यादत उस ज़ात की तरि अक्ले इां सािी की रहिुमाई करती है और अक्ले इां सािी
इसका इदराक़ (बोध/Perception) करिे के बाद उसके वजूद पर ईमाि लाती है।

3.18 कम्यूफनज़्म की फिक्री फक़यादत इंसानी


फितरत के फवपरीत कैसे हैं ?
कम्यूनिज़्म (साम्यवाद) की फिक्री फक़यादत मबिी बर अक्ल िहीं, बनल्क वह मबिी बर
माद्दा है, अगरर्े अक्ल ही उसको उस तरि ले जाती है। क्योंफक इसका कहिा है फक माद्दा
पहले है और फिक्र बाद में यह ही वजह है फक यह माद्दे को तमाम वस्तुओं का असल करार
देती है। इसनलए यह 'खानलस माद्दी' फिक्र (शुद् पदार्थचक नवर्ार) है सरमायादारी
(पूाँजीवाद) की फिक्री फक़यादत ‘‘हले वस्त’’ पर मबिी है जो कलीसा के मज़हबी तबक़े

निज़ामुल इस्लाम - 70 -
और फिलोनसिर के दरनमयाि सफदयों तक जारी जबदस्त कशमकश के ितीजे में यहा
तक पहुाँर्ी यह आनखरकार इस हल पर पहुाँर्ी फक दीि ररयासत से जुदा है इससे मालूम
हुआ फक यह दोिों फिक्री फकयादतें कम्यूनिज़्म (साम्यवाद) और सरमायादारी इन्तेहाइ
पस्ती में हैं क्योंफक यह दोिों फितरते इां सािी फितरत से नवपरीत और मबिी बर अक्ल
(अक्ल पर आधाररत) िहीं हैं।

3.19 इस्लामी फिक्री फक़यादत ही सही फिक्री


फक़यादत है
हानसले कलाम यह है फक नसिच इस्लामी फिक्री फक़यादत ही सही फिक्री फक़यादत है और
इसके अलावा जो भी फिक्री फकयादतें हैं वह िानसद हैं इसनलए इस्लामी फिक्री फक़यादत
मबिी बर अक्ल है, जबफक दूसरी फिक्री फकयादतें मबिी बर अक्ल िहीं। इसनलए फिक्री
फक़यादत फितरते इां सािी के साथ हम आहांग और मुत्तफिक (सहमत) है और दूसरी फिक्री
फकयादतें फितरते इां सािी के मुख्तनलि हैं। इसकी तिसील कु छ यों है :

3.19.1 कम्यूफनज़्म के मुताफबक फिक्र (फवचार) फदमाग पर माद्दे


का प्रफतफबम्ब (अक़्स) होता है
कम्यूनिज़्म की फिक्री फक़यादत मबिी बर अक्ल िहीं बनल्क मबिी बर माफद्दयत
(भौनतकवाद पर आधाररत) है क्योंफक यह िज़ररया कहता है फक 'मब्दा फिक्र' यािी
'अक्ल' से ज्यादा महमवपूणच है क्योंफक जब माद्दा फदमाग पर मुिअफकस (प्रनतनबम्ब/
reflect) होता है तो फिक्र वुजूद में आती है फिर फदमाग इस माद्दे के बारे में यों गौरो
फिक्र करता है जो इस पर मुिअफकस हो र्ुका होता है लेफकि फदमाग पर पदाथच के
इिइकास (reflection/ प्रनतनबनम्बत होिे) से पहले कोई फिक्र िहीं पाई जाती इसनलए
हर र्ीज़ माद्दे पर मबिी है पर कम्यूनिज़्म की फिक्री फक़यादत की असल माद्दीयत
(भौनतकवाद / materialism) है फिक्र िहीं।
लेफकि यह िज़ररया दो कारणों की नबिा पर ग़लत है पहली वजह यह है फक प्रदाथच और
फदमाग के दरनमयाि कोई प्रनतनबम्ब / reflect िहीं पाया जाता है इसनलए िा तो फदमाग

निज़ामुल इस्लाम - 71 -
माद्दे पर प्रनतनबनम्बत/ reflect होता है और िा माद्दा फदमाग पर क्योंफक प्रनतनबम्ब नजस
र्ीज़ में प्रनतनबनम्बत हो रहा हो उसके अांदर प्रनतनबम्ब की कु बूनलयत की सलानहयत का
मोहताज है। जैसे फक आइिा फक उसके अांदर इिइकास (प्रनतनबनम्बत होिे) की कानबलयत
है। लेफकि यहााँ यािी फदमाग और माद्दे में इस फकस्म की कोई नसफ्ित िहीं क्योंफक िा
माद्दा फदमाग पर मुिअफकस है और िा उसकी तरि मुन्तफकल होता है बनल्क माद्दे का
एहसास हवासे खम्सा (इनन्रयों/ senses) के ज़ररये फदमाग की तरि मुन्तफकल होता
है यह माद्दे का फदमाग पर इिइकास िहीं है बनल्क यह तो माद्दे का नसिच एहसास है और
इस नलहाज़ से आाँख और दूसरी इनन्रयों के बीर् कतअि कोई िक़च िहीं। पस नजस तरह
सूघाँिे, छू िे, और सुििे से एहसास होता है उसी तरह देखिे से भी होता है। मालूम हुआ
फक जो कु छ वस्तुओं के बारे में फदमाग में आता है फदमाग पर उिका प्रनतनबम्ब िहीं, बनल्क
वह अनशया (वस्तुओं) के बारे में नसिच एहसास है। र्ुिााँर्े इां साि पाांर् इनन्रयों (senses)
के ज़ररये र्ीज़ों को महसूस करता है, िा फक र्ीज़ें फदमाग पर प्रनतनबनम्बत होती हैं।

3.19.2 फिक्र (फवचार / अवधारणा) पैदा होने के फलये साफबक़ा


मालूमात (previous information) का होना ज़रूरी है
इस िज़ररये के ग़लत होिे की दूसरी वजह यह है फक नसिच इन्री (हवास) से फिक्र हानसल
िहीं हो सकता, बनल्क इिसे नसिच एहसास ही हो सकता है, यािी फकसी हक़ीक़त का
एहसास फकसी एहसास के र्ाहे करोड गुिाह बढ़ा फदया जाऐ, उससे नसिच वाफकया
हक़ीक़त का एहसास ही हानसल होगा। फिक्र फकसी कीमत पर हानसल िहीं होगी। फिक्र
के नलए इां साि को पास 'सानबका मालूमात' (Previous information/ नपछली
जािकारी) होिी र्ानहए, ताफक उिके ज़ररये वह उि वाफकआत की तोजीह (पुनि /
prove) कर सके , नजन्हें वह महसूस करता है और इस तरह उसे फिक्र हानसल हो सके ।
हम फकसी इां साि को पकडकर उसे सुरयािी फकताब दे दें और उसे सुरयािी ज़बाि के बारे
में कु छ मालूमात िा हो और हम उससे कहें फक वह अपिी इनन्रयों को इस फकताब पर
डालें उसे देखे और छु एां। वह अपिी इनन्रयााँ (senses) एक करोड दिा भी इस पर डाले,
इसको देखे और छु ए तब भी वह एक कलमें को िहीं समझेगा। जब तक की हम उसे
सुरयािी ज़बाि और उसके मुतानल्लक़ दूसरी र्ीज़ो के बोर में मालूमात मुहय
ै ा िा कर दें।
जब हम उसे मुतानल्लका मालूमात पहुर्ााँएगे, और वह उसके बारे में गौरो फिक्र शुरू

निज़ामुल इस्लाम - 72 -
करे गा तो फिर वह इसका इदराक (ज्ञाि / बोध) करिे लगेगा। इसी तरह एक और नमसाल
लीनजए। हम एक ऐसे बच्चे को लेते है नजसके पास हवास तो पाए जाते है लेफकि 'सानबका
मालूमात' (previous information) कु छ भी िा हो! हम उसके सामिे सोिे, पीतल और
पमथर का एक -एक तुकडा रख दें और कहें फक वह अपिे तमाम हवास (senses) इि अनशया पर
डाले! उसके नलए इि वस्तुओं को समझिा फिर भी मुमफकि िा होगा र्ाहे वह फकतिी ही बार
इन्हे देखे और देखिे का तरीक़ा कु छ भी हो! अलबत्ता जब हम उसे उिके बारे में मालूमात दे देंगे,
तो वह महसूस करे गा और उि मालूमात को काम में लाते हुए, इिकी समझ हानसल कर लेगा।
लेफकि इस बच्चे को अगर मालूमात िा दी जाऐ और उसकी उम्र बढ़ कर बीस साल भी हो जाए,
तब भी वह पहले फदि जैसा ही रहेगा र्ाहे उसका फदमाग फकतिा ही बडा क्यों िा हो जाए वह
इिका ज्ञाि हाांनसल िहीं कर सके गा क्योंफक इदराक़ (समझ) नसिच फदमाग के ज़ररये िहीं होता,
बनल्क उसके साथ सानबका मालूमात और वस्तु (object) का एहसास होिा लाज़मी है।

3.19.3 फजफबफल्लयाती बताव (instinctual behavious) और


बौफिक प्रफकया मे िकफ
जहााँ तक नजनबनल्लयाती बताचव (instinctual behavious) का ताल्लुक़ है तो यह
अक़्ली तरीक़ाऐ अमल (बौनद्क प्रफकया / intellectual process) से अलग र्ीज़ है, तो
यह नजनबल्लतों और नजस्मािी हाजात की पैदावार है। यह मुआमला हेवािो में भी है
और इां सािो में भी यह पाया जाता है। इां साि भी बार -बार देिे से सेब खाता है और
पमथर को िहीं खाता। गधा भी नमट्टी िहीं खाता बनल्क घााँस खाता है। इस तमीज़ को
फिक्र िहीं कहा जाता और यह इदराक़ भी िहीं है, बनल्क यह तो नजनबल्लतें और नजस्मािी
हाजात है। इसमें इां साि और हैवाि सब बराबर हैं। मालूम हुआ फक फिक्र सानबका
मालूमात और वाक़े ए के एहसास को फदमाग की तरि मुन्तफकल (transfer) फकये बग़ैर
हानसल िहीं होती। गोया अक्ल, फिक्र या इदराक़ से तामपयच फकसी वाक़े ए के एहसास का
हवास के जररए फदमाग की तरि मुन्तफकल होिा, और नपछली मालूमात का पाया जािा,
नजिके जररए से इस वाक़े ए की तोजीह (पुनि) की जा सके । र्ुिााँर्े कम्यूनिज़्म की फिक्री
फक़यादत ग़लत और िानसद है। क्योंफक यह मब्नी बर अक्ल िहीं। इसके अलावा वह फिक्र
और अक्ल के मायिो को भी सही तरह से िहीं समझ सके , और उन्होिे जो मायिे पेश
फकये है वह िानसद (अप्रमानणत) हैं।

निज़ामुल इस्लाम - 73 -
3.19.4 सरमायादाराना (पूंजीवादी) फिक्री फक़यादत मबनी बर
अक़्ल नही है
इस तरह से सरमायादारािा (पूांजीवादी) फिक्री फक़यादत, ररजाले कलीसा (पॉप) और
मुिक्केरीि (बुनद्जीनवयों) के दरनमयाि हलेवस्त (दरनमयािा हल) की बुनियाद पर
क़ायम है। क्योंफक र्र्च और मुिक्करीि के दरनमयाि एक लांबी और जबरदस्त कतमकश के
बाद वह इस ‘‘हलेवस्त’’ (दरनमयािी हल) पर पहुाँर्े फक 'दीि नज़न्दगी से अलग है' । गोया
फक इसमें दीि का नज़मिी (आाँनशक) तौर पर एतराि है, लेफकि यह नज़न्दगी से अलग
होिे का अक़ीदा है। नलहाज़ा यह फिक्री फक़यादत मबिी-बर-अक्ल िहीं, बनल्क नसिच
‘‘हलेतरफदया’’ (रज़ामन्दी का हल) या ‘‘हलेवस्त’’ (दरनमयािी हल) है। यह ही वजह है
हम देखते हैं ‘‘हलेवस्त’’ की जडे उिके अांदर बहुत गहरी है। यह लोग हक़ को बानतल के
करीब लािा र्ाहते है, ईमाि व कु फ्र और रोशिी और अधांकार के बीर् ‘‘हलेवस्त’’ के
जररए निकटता तलाश करते हैं। हालाांफक इि हकाइक (तथ्यो/Facts) के दरनमयाि
‘‘हलेवस्त’’ हो ही िहीं सकता। क्योंफक हक़ व बानतल में ईमाि व कु फ्र में और रोशिी
और तारीकी में से नसिच एक ही हो सकता है। लेफकि वह ‘‘हलेवस्त’’ नजसकी बुनियाद
पर उिका अक़ीदा और उिकी फिक्री फक़यादत क़ायम है, वह हक़, ईमाि और रोशिी से
बहुत दूर है। नलहाज़ा उिकी फिक्री फक़यादत, मबिी बर अक्ल िा होिे की वजह से,
िानसद और ग़लत है।

3.19.5 इस्लामी फिक्री फक़यादत ही मबनी बर अक्ल (अक़्ल पर


आधाफरत है
इस्लामी फिक्री फक़यादत मबिी बर अक्ल है। यह मुसलमाि पर अल्लाह, मुहम्मद और
कु रािे करीम पर अक्ली तरीक़े से ईमाि लािे को िज़च करार देती है। इसी तरह वह गैब
से सम्बनन्धत मामलात पर ईमाि को भी िज़च करार देती है, वह एक ऐसी र्ीज़ से पैदा
होते हैं, नजिका वजूद अक्ल से सानबत है यािी क़ु रआि या हदीसे मुतवानतर। र्ुिााँर्े
मालूम हुआ फक यह फिक्री फक़यादत मबिी बर अक्ल है।
यह गुफ्तुगू इस्लामी फिक्री फक़यादत के मबिी बर अक्ल होिे के हवाले से थी। जहााँ तक
फितरत (nature / प्रकृ नत) का तआल्लुक़ है, तो इस्लामी फिक्री फक़यादत फितरत के भी

निज़ामुल इस्लाम - 74 -
ऐि मुतानबक़ है। क्योंफक फितरते इां सािी दीि के वजूद को क़ु बूल करती है, नज़न्दगी में
उसकी ज़रूरत को, नज़न्दगी को अल्लाह तआला के अवानमरो िवाही (commands
and prohibition ) के मुतानबक़ र्लािे को ज़रूरी समझती है। ‘‘तदय्युि’’
(religiousness) एक फितरी और क़ु दरती र्ीज़ है क्योंफक यह दूसरी नजनबल्लतों
(instincts) की तरह एक नजनबल्लत है और इसका अपिा एक खास असर है। र्ुिााँर्े
दीि पर ईमाि रखिा और इां सािी अमाल का अल्लाह तआला के अवानमरो िवाही के
मुतानबक़ होिा एक नजनबल्ली फितरी (instinctive) र्ीज़ है। यह ही इां सािी फितरत के
अिुसार और उससे हमआहांग है। इसके नवपरीत दोिों फिक्री फकयादतों, यािी कम्यूनिज्म
(साम्यवाद) और पूांजीवाद के , यह दोिो इां सािी फितरत के नबल्कु ल नवपरीत हैं। र्ूाँफक
कम्यूनिज्म फिक्री फक़यादत 'नसरे ही से दीि के वजूद' का इां कार करती है, और दीि के
क़ु बूनलयत के नखलाि उसिे एक जांग बरपा कर दी, र्ुिााँर्े यह फितरत के नबल्कु ल
मुखानलि है। सरमायादारािा (पूाँजीवादी) फिक्री फक़यादत दीि पर सहमत है और िा
उसका इां कार करती है । वह इस बात को बहस का नवषय भी िहीं बिाती। हााँ! वह दीि
के दुनियावी नज़न्दगी से जुदा होिे को ज़रूरी समझती है और र्ाहती है फक नज़न्दगी की
गाडी को नसिच िायदे की बुनियाद पर र्लिा र्ानहए। दीि का इसमें नबल्कु ल कोई अमल
दखल िहीं होिा र्ानहए। र्ुिााँर्े यह फितरत के नवपरीत और उससे बहुत दूर है।
इस तमाम बहस से मालूम हो गया फक नसिच इस्लामी फिक्री फक़यादत ही एक सही फिक्री
फक़यादत है। क्योंफक यह फितरते इां सािी और अक्ले इां सािी के मुआफिक (अिुसार) हैं
इसके अलावा बाकी तमाम फिक्री फकयादतें बानतल हैं। पस नसिच इस्लामी फिक्री फक़यादत
ही सही तरीि और कामयाब तरीि फिक्री फक़यादत है।

निज़ामुल इस्लाम - 75 -
3.20 क्या मुसलमानों ने कभी इस्लाम को
अमलन नाफिज़ भी फकया?
अब सवाल नसिच यह है, फक क्या मुसलमािों िे कभी इस्लाम को अमलि िाफिज़ भी
फकया? यह तो िहीं था फक वह इस अक़ीदे को क़ु बूल तो करें , लेफकि उिका निज़ाम और
हुकू मत ग़ैर इस्लामी हो? इसका जवाब यह है फक मुसलमािों िे रसूलल्लाह (सल्ल0) की
नहजरते मदीिा से लेकर1336 नहजरी बामुतानबक़ 1918 ई० तक जब इस्तेमार
(साम्राज्यवाद/Colonialist) के हाथों आखरी इस्लामी ररयासत का सुकूत (खाममा) हो
गया इस अरसे में नसिच और नसिच इस्लाम ही िाफिज फकये रखा। यह नििाज इस कर
हमागीर और जामेंअ था फक इस्लामी ररयासत का इस नसलनसले में इां तेहाई कामयाबी
हानसल हुई। जहााँ तक मुसलमािों का इस्लाम को अमलि िाफिज़ करिे का तआल्लुक़ है।
तो यह बात ज़हििशीि कर लेिी र्ानहए फक इस्लाम को नसिच ररयासत ही िाफिज़ कर
सकती है फिर ररयासत में इस्लाम को िाफिज़ करिे वाले दो शख्स होते हैं :
(1) क़ाज़ी, जो लोगों के दरनमयाि िै सले करता है।
(2) हाफकम (शासक), जो इि िै सलों के मुतानबक़ लोगों पर हुकू मत करता है।
जहााँ तक क़ाज़ी का तआल्लुक़ है, तो यह बात तवातुर (मुसलसल श्रोत) से मालूम है फक
क़ाज़ी रसूलुल्लाह (सल्ल0) के ज़मािे से लेकर इस्तमबोल में नख़लाित के खाममें तक,
लोगों के दरनमयाि तमाम िै सले, र्ाहे मुसलमािों के बीर् थे या मुसलमािों और काफिरों
के दरनमयाि, शररयते मुतानहरा ही के मुतानबक़ करते रहे। वह अदालत, जो तमाम
खुसुमात, अनधकारों, जजा और आहवाले शनख्सया से मुतानल्लक़ िै सले करती थी, नसिच
एक ही अदालत होती थी। यह अदालत नसिच शररयते इस्लामी की रू से िै सले करती
थी। इस बारे में कोई एक ररवायत भी िहीं फक फकसी एक मसले का हल भी शरीअत के
नखलाि हुआ हो। ऐसी भी कोई ररवायत िहीं फक इस्तेमार (साम्राज्यवाद) के जेरे असर
शरई और निजामी अदालतों के अलग-अलग हो जािे से पहले आलमें इस्लाम में पाई
जािे वाली फकसी अदालत िे भी इस्लाम से हट कर फकसी ग़ैर-इस्लामी बुनियाद पर कोई
िै सला फदया हो। इसकी बेहतरीि और कवीतरीि शरई आदलतों के वह ररकाडच हैं, यहााँ
तक की कदीम दौर में यहूद व िसारा िा नसिच फिक्हे इस्लामी को पढ़ते थे, बनल्क इसमें

निज़ामुल इस्लाम - 76 -
तसिीि (सांपादि) व तालीि (लेखि) भी फकया करते थे, जैसा फक सलीम अलबाज़,
नजसिे “अल-मुजल्ला” की शरह नलखी है। यह उि ग़ैर मुनस्लमों में से है, नजन्होंिे आखरी
दौर में फिक्हे इस्लामी में तसिीि व तालीि का काम फकया। जहााँ तक इस बात का
सवाल है फक बाज़ ग़ैर इस्लामी क़वािीि को इस्लामी क़वािीि के हल्के में दानखल फकया
गया, तो इसका जवाब यह है फक इि क़वािीि को सीधे तौर पर दानखल िहीं फकया गया,
बनल्क इन्हें औलमा-ए-इस्लाम के उि ितवों की बुनियाद पर दानखल फकया गया, फक यह
अहकाम इस्लाम से अलग िहीं हैं। र्ुिााँर्े ‘‘क़ािूि अल जज़ाउल उस्मािी’’ 1275 नह०
बामुतानबक़ 1857 ई० में दानखल फकया गया। इस बुनियाद पर ‘‘क़ािूि हुक़ू क़ व
नतजारत’’ 1276 नह० बामुतानबक़ 1858 ई० में दानखल फकया गया।
1288 नह० बामुतानबक़ 1870 ई० में अदालतों को दो नहस्सो में तक़सीम फकया गया,
यािी शरई अदालतें और निजामी अदालतें। फिर 1295 नह० बमुतानबक़ 1877 ई० में
निजामी अदालतों की ततकील के नलए एक प्रोग्राम तैयार फकया गया। जब औलामा नसनवल
लॉ को ररयासत में दानखल कर देिे के हवाले से अपिे यहााँ कोई जवाज़ िा पा सके तो
1286 नह० में अलमुजल्ला को लेि देि के मुआमलात के नलये बतौर ए क़ािूि जारी फकया
गया और सूल ला को मांसूख (निरस्त) कर फदया गया। इि सब क़वािीि को इस हैनसयत
से वजा फकया गया फक इस्लाम इिकी इजाज़त देता है। फिर उस वक्त तक इि पर अमल
दर आमद िहीं फकया जा सकता जब तक फक उिके नलये बाकायदा ितवों के ज़ररये
इजाज़त िा हानसल कर ली गई हो और शेखउल इस्लाम इिकी रुखसत इजाज़त िा दे।
यह हक़ीक़त उि शाही िरामीि से पूरी तरह स्पष्ट हो जाती है जो इस नसलनसले में
जारी फकये गए थे। यह भी एक हक़ीक़त है फक अगरर्े इस्तेमार (साम्राज्यवाद) िे इस्लामी
इलाक़ो पर क़ब्ज़ा जमा कर 1918 ई० से इस्लामी इलाक़ो में लोगों के मुआमलात के
मुताअनल्लक शरीअते इस्लामी के बरनख़लाफ़ िै सले देिे शुरू कर फदये है, लेफकि वह
इस्लामी देश, नजिमें इस्तेमार अपिी िौजों के ज़रीये बराहे रास्त दानखल िहीं हुआ,
अगरर्े अपिे असर व िुिूज के ऐतबार से वहााँ भी दानखल हो र्ुका है, नजिमें अदालती
सतह पर आज भी िै सले इस्लाम के मुतानबक़ फकये जा रहे हैं। पस जजीरतुल अरब,
नहजाज़, िज्द, कु वैत और अिगानिस्ताि जैसे देशों में अदालती सतह पर आज 1383
नह० बामुतानबक़ 1955 ई० तक इस्लाम ही को िाफिज फकया जा रहा है और अदालती
दायरो में नसिच इस्लामी शरीअत के मुतानबक़ ही हुकू मत की जा रही है। इससे वाज़ेह

निज़ामुल इस्लाम - 77 -
होता है फक इस्लामी ररयासत के पूरे दौर में नसिच इस्लाम ही को िाफिज फकया गया और
फकसी नखलािे इस्लाम हुक्म या र्ीज़ को िाफिज िहीं फकया गया।
जहााँ तक शासक की तरि से इस्लाम के नििाज का तआल्लुक़ है तो यह पााँर् र्ीजों पर
बिा है :
(1) सामानजकता से सम्बनन्धत अहकामें शरइया,
(2) अथचव्यवस्था से सम्बनन्धत,
(3) नशक्षा से सम्बनन्धत,
(4) नवदेशी नसयासत से सम्बनन्धत,
(5) शासि प्रणाली से सम्बनन्धत ।
इि पााँर् र्ीजों को इस्लामी ररयासत की जानिब से िाफिज़ फकया जाता है।
(1) मुआशरती निज़ाम (सामानजक निज़ाम) में मदच और औरत के ताअल्लुकात और इि
ताअल्लुकात के ितीजे में जन्म लेिे वाले मुआमलात यािी शख्सी अहवाल का ताय्युि
फकया जाता है। सामानजक निज़ाम में इस्लामी अहकामात को अब तक साम्राज्यवादी
और काफिरािा हुकू मत होिे के बावुजूद िाफिज़ फकया जाता रहा और फकसी ग़ैर-इस्लामी
हुक्म को िाफिज़ िहीं फकया गया।
(2) जहााँ तक इनक्तसादी निज़ाम (अथचव्यवस्था) का ताअल्लुक है, तो इसके दो पहलू हैं :
(अ) लोगों की मुनतकलात को हल करिे के नलए ररयासत का आवाम से माल हानसल
करिा।
(ब) इस माल को खर्च करिे की कै फियत।
जहााँ तक दौलत को हानसल करिे की बात है तो इस्लामी ररयासत जमीिों और मवेनशयों
पर बतौरे इबादत ज़कात वुसूल करती है और उसे नसिच उि आठ असिाि (श्रेणीयों) पर
खर्च करती है नजिका कु रआि में नजक्र हुआ है। ररयासत अमवाले ज़कात को हुकू मती
मुआमलात र्लािे के नलए इस्तेमाल िहीं करती। ररयासत और उम्मत के मुआमलात
र्लािे के नलए ररयासत शरीयते इस्लामी की रूह से दूसरे तरीक़े से अम्वाल हानसल
करती है। ताहम इस्लामी ररयासत िे टैक्सों के नलए कोई और निज़ाम इनख्तयार िहीं
फकया था, बनल्क वह इस्लाम ही को िाफिज फकया करती थी। र्ुिााँर्े जमीिों पर नखराज

निज़ामुल इस्लाम - 78 -
(एक तरह का टेक्स) लगाती थी और उसे वसूल फकया करती थी या फिर ग़ैर-मुनस्लमों
से नजनज़या वसूल फकया करती थी। खाररजा (नवदेशी) और अांदरूिी व्यापार पर वह
उसकी निगरािी करिे की वजह से टैक्सेस हानसल करती थी बरहाल ररयासत जो भी
अम्वाल हानसल करती थी नसिच शररयते इस्लामी की रूह से हानसल करती थी।
जहााँ तक अम्वाल की तक़सीम का सवाल है तो ररयासत आनजज (असक्षम/लार्ार) के
नलए िाि व ििके का बन्दोबस्त करती थी। ‘‘सफिह’’ (बेसमझ) और ‘‘मुबनज़्ज़र’’ (जो
माल हराम पर खर्च करे ) पर हजर का क़ािूि िाफिज़ करती थी और उि पर वसी
(निगराि) मुकरच र करती थी। हर शहर में मुसाफिरों और हानजयों के नलये रास्ते पर ऐसी
जगह क़ायम की जाती, जहााँ पर िकीर, नमसकीि और मुसाफिर को खािा और ररहाइश
मुहय
ै ा फकये जाते थे आज तक बडे-बडे शहरों में उिके आसार मौजूद हैं। हानसले कलाम
यह है फक ररयासत की जानिब से जो भी माल खर्च होता था वह शरीअत के नखलाि
िहीं, बनल्क शरीअत के ऐि मुतानबक़ हुआ करता था। अगरर्े कोई कमी िज़र आती है
तो वह शरीअत की ग़ैर मोज़ूदगी से िहीं बनल्क उसकी नििाज में कोताही की वजह से
थी।
(3) रही तालीम की बात तो इसकी बुनियाद भी इस्लाम पर रखी गई थी, और इस्लामी
सक़ाित (सांस्कृ ती) ही तरीका-ऐ-तालीम की बुनियाद थी। ग़ैर-इस्लामी ताकत अख्ज
(प्राप्त) करिे का रुझाि, खास तौर पर जबफक वह इस्लाम से मुतािाफकज (नवपरीत) हो,
नबल्कु ल िहीं था। मदाररस (मदरसे) खोलिे में कोताही नसिच नखलाित ए उस्मानिया के
आखरी दौर में तमाम इस्लामी इलाकों में िज़र आती है। इसका कारण वह फिक्री
इिनहतात (वैर्ाररक पति/Intellectual downfall) था जो उस वक्त तक अपिी आखरी
हद को पहुाँर् र्ुका था। इसके अलावा बाकी तमाम दौर के बारे में तो यह बात बहुत
मशहूर है फक नसिच इस्लामी ररयासत ही औलमा और तानलबे इल्मों की आखों का तारा
थी दुनियााँ में इल्म को आम करिे में जानमया कु रतबा, बगदाद, दनमतक, स्कां दररया और
कानहरा का बहुत बडा फकरदार है।
(4) इस्लामी ररयासत की खाररजा नसयासत भी इस्लाम की बुनियाद पर आधाररत थी।
ररयासत दूसरी ररयासत के साथ तमाम सम्बांध इस्लामी असास (आधार/बुनियाद) पर
क़ायम करती थी और दूसरी ररयासतें भी इस ररयासत को एक इस्लामी ररयासत की
िज़र से देखती थीं। तमाम खाररजा ताअल्लुकात (नवदेशी सम्बन्धों) की बुनियाद इस्लामी

निज़ामुल इस्लाम - 79 -
असास और मुसलमािों की मसलेहत व िायदे पर क़ायम थी इस्लामी ररयासत की
खारज़ा नसयासत (नवदेशी राजिीनत) इस्लामी होिे के नलए उसकी आलमी शोहरत ही
कािी है जो इस वक्त उसके साथ खास थी, मजीद फकसी दलील की ज़रूरत िहीं।
(5) जहााँ तक निज़ामें हुक्मरािी (शासि प्रणाली) का तआल्लुक़ है तो यह इस्लामी
ररयासतों के ढााँर्ें में आठ अरकाि (members) शानमल होते है :
(1) ख़लीिा जो ररयासत का सरबराह होता है , (2) मुआनविे तिवीज़,
(3) मुआनविे तििीज़, (4) वाली,
(5) क़ाज़ी, (6) िौज,
(7) इन्तेजामी ढााँर्ा और (8) मजनलसे उम्मत।
यह ढााँर्ा इस्लामी ररयासत में मौजूद था। जब तक इस्तेमार काफिर िे 1342 नह०
बामुतानबक़ 1924 ई० में मुस्तिा कमाल के ज़ररये नख़लाित का खाममा िहीं फकया था।
इससे पहले मुसलमाि कभी भी बग़ैर ख़लीिा के िहीं रहे। जब एक ख़लीिा मर जाता
या माज़ूल (बखाचस्त) फकया जाता तो दूसरा ख़लीिा आ जाता, यहााँ तक फक आखरी दौर
तक, जब इनन्हतात (पति) उरूज पर था तब भी यही होता रहा। हक़ीक़त यह है फक जब
ख़लीिा मौजूद हो तो इस्लामी ररयासत भी वजूद में आ जाती है। क्योंफक इस्लामी
ररयासत दरअसल ख़लीिा से ही इबारत है। मुआवेिीि नसिच तििीज़ के नलए हुआ करते
थे यह वुज़रा (मांनत्रयों) की तरह िहीं होते अगरर्े अब्बानसयों के दौर में वुज़रा (मांत्री)
का लक़ब भी इस्तेमाल फकया गया। लेफकि यह हर सूरत में मुआवेिीि हुआ करते हैं।
जम्हूरी निज़ाम (लोकताांनत्रक व्यवस्था) में मांनत्रयों को जो इनख्तयार हानसल हैं, इन्हे यह
नबल्कु ल िहीं होते उिका काम नसिच मुआनवित (सहयोग) और तििीज़ (क़ािूि लागू
करिा) है। इनख्तयारात नसिच ख़लीिा के पास होते हैं।
वानलयों, काजजांयो और इन्तेजामी ढ़ााँर्े का जहााँ तक ताअल्लुक है तो जब तक नख़लाित
थी तो यह भी उसके साथ हर दौर में मौजूद थे, जब तक इस्तेमारी कु व्वतें (साम्राज्यवादी
ताक़तें) मुनस्लम इलाक़ो में दानखल िहीं हुई। बाकी रही इस्लामी िौज की बात, तो
नख़लाित की िौज वाक़ई एक इस्लामी िौज हुआ करती थी और पूरी दुनिया यह जािती
थी फक इस्लामी िौज कभी मगलूब िहीं होती मजनलसे उम्मत (शूरा) का जहााँ तक
ताअल्लुक है तो खुलािा-ए-रानशदीि के बाद इस पर कोई खास तवज्जो िहीं दी गई ।

निज़ामुल इस्लाम - 80 -
इसकी वजह यह थी फक शूरा इस्लामी निज़ामें हुक्मरािी के कायदो में से कोई क़ायदा
िहीं है। अगरर्े यह ररयासती ढ़ााँर्े में शानमल है और राइ (हाफकम) पर जो रे यत (जिता)
के अनधकार हैं, उिमें से एक हक़ यह भी है, लेफकि अगर कोई राय पर ख़लीिा अमल
िा करे तो यह उसकी कोताही ज़रूर है, ताहम उसकी हुकू मत इस्लामी हुकू मत
कहलाएगी। क्योंफक शूरा राय हानसल करिे के नलए होती है िा फक हुक्मरािी (शासि)
के नलए। जम्हूरी निज़ाम (लोकताांनत्रक व्यवस्था) में जिप्रनतनिधी का मामला इससे
नबल्कु ल अलग है। खुलासा ऐ कलाम यह है फक इस्लामी निज़ामें हुक्मरािी हमेंशा िाफिज़
रहा।
ख़लीिा के बैअत (समथचि/मत) के मसले में यह बात क़तई है फक इसमें निज़ामें नवरासत
का अमल दखल नबल्कु ल िहीं। यािी नवरासत ररयासत के अांदर कोई पायदार हुक्म िहीं
है, नजस पर निज़ामें हुक्मरािी के हवाले से अमल फकया जाऐ। यािी ररयासत की
सरबराही हानसल करिे का यह जररया िहीं था, जैसा फक आज कल बादशाही निज़ाम
में हो रहा है। ररयासत के नलए जो र्ीज़ पाएदार थी, वो बैअत थी, और यह कु छ दौर में
मुसलमािों से ली जाती थी और कु छ दौर में अहले हल ओ अक्द से। दौरे ज़वाल में यह
नसिच शेखुल इस्लाम से ली जाती थी। बहरहाल ख़लीिा को मुकरच र (नियुक्त) करिे का
जो तरीका हमेंशा से रहा है, वह बैअत का है। इस बारे में कोई एक ररवायत भी िहीं फक
बगैर बैअत के नसिच नवरासत से कभी कोई ख़लीिा बिा हो। हााँ! यह बात दुरूस्त है फक
बैअत लेिे का तरीका बाज़ दिा ग़लत इस्तेमाल हुआ हो। मसलि कभी ख़लीिा िे लोगों
से अपिी ही नज़न्दगी में अपिे बेटे, भाई या र्र्ा के बेटे या अपिे खािदाि के फकसी िदच
के नलए बैअत का ग़लत नििाज या इस्तेमाल फकया। लेफकि ख़लीिा की मौत के बाद िऐ
ख़लीिा की बैअत दोबारा ली जाती थी। इसका नवलायते एहद या नवरासत से कोई
ताअल्लुक िहीं। यह ऐसा ही है जैसा जम्हूरी निज़ाम (लोकताांनत्रक व्यवस्था) िे
इन्तेखाबात (र्ुिाव) का ग़लत इस्तेमाल होिा। नजसमें मजनलसे िुमाइां दागाि
(जिप्रनतनिधी) के नलए कोई शख्स धाांधली के ज़ररये भी र्ुिा जाऐ तो उसे र्यनित ही
कहा जाता है, िामज़दगी िहीं कहा जाता। अगरर्े इसमें वह लोग ही कामयाब हो जाएां
जो हुकू मत र्ाहते है। बहरहाल इस तमाम बहस से यह बात स्पष्ट हो जाती है और हमें
तस्लीम कर लेिा र्ानहए की तमाम अदवार (काल/दौर) में इस्लामी निज़ाम ही इस्लामी

निज़ामुल इस्लाम - 81 -
ररयासत में िाफिज़ रहा और फकसी भी दौर में फकसी ग़ैर-इस्लामी र्ीज़ को िाफिज िहीं
फकया गया।

इस्लामी फिक्री फक़यादत की अमली कामयाबी


जहााँ तक इस्लामी फिक्री फक़यादत की अमली कामयाबी का ताअल्लुक है तो यह
कामयाबी बेिजीर (बेनमसाल) है। खास तौर से दो पहलूओं सें इिमें से पहला पहलू तो
यह है फक इस्लामी फिक्री फक़यादत िे पूरी अरब क़ौम को, फिक्री इन्हेतात (वैर्ाररक
पति) की इस हालत से, फक वह कबाइली साांप्रदानयकता के अांधेरों और घटाटोप
तारीफकयों (अांधकार) में टामकटू इया मार रहीं थी निकालकर उन्हे फिक्री निशातेसानिया
(वैर्ाररक पुिचजागरण) के रास्ते पर ला खडा फकया। फिर अरब क़ौम उस िूरे इस्लामी से
जगमगा रही थी फक नजसके सूरज की अिवार-ऐ-तजनल्लयात नसिच अरबों तक सीनमत
िा थीं बनल्क वह पूरी दुनियााँ पर छाई हुइ थीं। इसके बाद मुसलमाि पूरे कु रच -ए-अज़च पर
छा गऐ, और उन्होंिे पूरी दुनियााँ तक इस्लामी दावत को पहुाँर्ाया। यहााँ तक फक
मुसलमाि िारस, इराक, शाम, नमस्र और उमतरी अिरीका पर भी छा गऐ। इि देशों की
क़ौमें और उिकी जबािें मुख्तानलि थीं। िारसी रोनमयों से मुख्तनलि थे। इसी तरह नमस्र
के फकब्ती नशमाली अफ्रीका की 'बरबर क़ौम' से मुख्तनलि थे। उिकी आदत, तकालीद
और ज़बािें, अलगजच हर र्ीज़ अलग थी। लेफकि ज्योंही यह हुक्मे इलाही के साए तलें
आए और इस्लाम को समझ नलया, तो यह सब उम्मते वानहदा और नमल्लते इस्लानमया
में ढ़ल गए। इसनलए वह कामयाबी, जो इस्लामी फिक्री फक़यादत को इि क़ौमों और
कबीलों को अपिे कानलब (फदलों) में ढालिे के नसलनसले में हुई, वह बेनमसाल है। हालााँफक
इसके पास अपिी दावत को आगे पहुर्ााँिे के नलए िकल व हमल(यातायात ) के सांसाधि
में से नसिच ऊाँट और घोडे और िशर व इशाअत(लेखि और प्रकाशि) के सांसाधि में से
नसिच ज़बाि और क़लम हानसल थे। जहााँ तक िु तूहात (नवजयों) का ताल्लुक़ है तो वह
नसिच क़ु व्वत को क़ु व्वत से जाइल करिे और माद्दी (पदार्थचक) रूकावटों को दूर करिे के
नलए थीं ताफक इां साि खाली-उज-ज़हि होकर अपिी अक्ल की रे हिुमाई और फितरत की
नहदायत के मुतानबक़ िै सले कर सके । यूाँ इसके ितीजे में लोग जोक दर जोक अिवाज
(िौज) बिकर हलका-ए-इस्लाम में दानखल हो गए।

निज़ामुल इस्लाम - 82 -
जहााँ तक ज़ानलमािा िु तूहात (नवजये) का ताल्लुक़ है तो हमें इल्म होिा र्ानहए फक ऐसी
िु तूहात तो िातेह (नवजेता) और मितूह (परानजत) और ग़ानलब और मगलूब के
दरनमयाि दूरी पैदा करती हैं। जरा इस मग़ररबी इस्तेमार (पनतर्मी साम्राज्यवाद) पर
निगाह डाले, नजसिे दसयों साल तक मशररक (पूरब) को अपिे र्ुगांल में नगरफ्तार फकये
रखा लेफकि फदलों की तब्दीली के नलहाज़ से वह अदिा दरजे की कामयाबी भी हानसल
िा कर सके । अगर आज गुमराह करिे वाली सक़ाित (सांस्कृ नत) का असर व िुिूज और
मग़ररबी एजेंटों का जब्र व आतांक िा होता जो की जल्द खमम होिें वाला है ,तो इस्लाम
की आइडीयोलाजी और निज़ाम का दौबारा नििाज़ आाँख झपकिे से ज़्यादा वक़ू पज़ीर
हो जाता ।
हम अपिी बात को दोहराते हुए कहते हैं फक इि क़ौमों व कबीलों को इस्लामी सााँर्े में
ढ़ालिे के नसलनसले में इस्लामी फिक्री फक़यादत को जो कामयाबी हुई वह बेिजीर
कामयाबी थी। यह क़ौमें व कबीले आज तक मुसलमाि र्ले आ रहे हैं। बावुजूद इसके फक
इस्तेमार (साम्राज्यवाद) की हांगामा आराइयााँ, उसकी खबासतें (गन्दी र्ालें) और उसका
मक्र-ओ-िरे ब अकाइद को नबगाडिे और अफ्कार (नवर्ारों) को मसमूम (दूनषत) करिे के
नलए जोर व शोर से जारी है। यह अवाम (जिता) और अकवाम (क़ौम) ता फक़यामत
उम्मते वानहदा और उम्मते मुसनलमा बि कर रहेंगे। जबसे इि क़ौमों व कबीलों िे इस्लाम
क़ु बूल फकया, उिमें से कोई एक नगरोह भी दायरा-ए-इस्लाम से निकल कर मुरतद िहीं
हुआ।
उन्दलुस के मुसलामािों की ‘‘मुहाफकम ए तितीश (निरक्षण अधीकारी)’’ के हाथों तबाही
व बरबादी उिके घरों को आग लगािा, और जल्लादो के हाथों उन्हे िानसयााँ देिा। इसी
तरह बुखारा (रूस), वस्ते एनशया (मध्य एनशया) और तुरफकस्ताि के मुसलमािों पर
लरज़ा देिे वाले मज़ानलम और मुसीबतों के बावुजूद इि क़ौमों का इस्लाम लािे और
उम्मते वानहदा में ढल जािे और अपिे अक़ीदे की सख्त नहिाज़त से इस फिक्री फक़यादत
की कामयाबी, और नििाजे इस्लाम में इस्लामी ररयासत की कामयाबी और कामरािी
का अांदाजा लगाया जा सकता है।
इस्लामी फिक्री फक़यादत की कामयाबी की दूसरी दलील यह है फक नमल्लते इस्लानमया
दुनिया भर में तहज़ीब, तमद्दुि, सक़ाित और साांइस में सब क़ौमों से आला व बाला
थी। इस्लामी ररयासत पूरी दुनिया में बारह सौ साल तक यािी छटी सदी इसवी से

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अठारवीं सदी के निस्ि (आधे) तक सबसे अजीम और कव्वीतर थी। यह ही ररयासत
तमाम दुनिया की आबो ताब की जानमि थी और तमाम दुनियााँ में इसी ररयासत का
सूरज र्मकता रहा। यह बात इस फक़यादत (लीडरशीप/िेतृमव) की कामयाबी की दलील
है और इस्लाम के निज़ाम और अकाइद के नििाज की कामयाबी की दलील है। लेफकि
जैसे ही इस्लामी ररयासत और उम्मते मुसनलमा इस्लामी फिक्री फक़यादत को आगे बढ़ािे
और दावते इस्लामी का िरीजा सर अांजाम देिे से दस्तबरदार हो गई, और इस्लाम को
समझािे और उसको िाफिज़ करिे में कोताही की मुरतफकब हुई, तो यह दुनिया की पस्त
तरीि क़ौम बि कर रह गई।
इसीनलए हम कहते है फक इस्लामी फिक्री फक़यादत ही सालेह फक़यादत (शुद्/िेक
लीडरशीप) है और नसिच यह ही इस पूरी दुनिया तक पहुाँर्ाई जाए, और इस फिक्री
फक़यादत को दुनिया के सामिे पेश करिे के नलए अलमबरदार पहले एक ररयासत वजूद
में लाए, तो आज भी जब इस्लामी ररयासत वजूद में आऐगी, इसको वैसी ही कामयाबी
हानसल हो सकती है।
इस्लाम अपिे अक़ीदे के साथ और उससे िू टिे वाला निज़ाम इां सािी फितरत (प्रकृ नत) के
मुआफिक (अिुसार) है। इसनलए फक इस्लाम इां साि को कोई मशीिी वजूद िहीं समझता,
जो फकसी िक्शे पर पाया जाता है और नजस पर फकसी निज़ाम को गनणत के नसद्दाांतो की
तरह, बग़ैर फकसी कमी बेसी के , िाफिज़ फकया जा सकता हो। बनल्क इां साि को, नजस पर
निज़ाम को िाफिज़ फकया जा रहा है, एक ऐसा इनज्तमाई वजूद समझिा र्ानहए, नजसके
अांदर कु व्वतों और खानसयतो का िक़च और तिावुत पाया जाता है। इसनलए एक पहलू से
यह नबल्कु ल तबई (प्राकृ नतक) है फक अगर इां सािो की कई क़दरे (मूल्य) एक सी हैं तो
दूसरी तरि वह सब मुकम्मल तौर एक जैसे भी िहीं हैं । लेफकि इस अम्र (बात) के
बावुजूद सबका सुकूि और इनममिाि की ज़माित (गारां टी) नमलिा ज़रूरी है। इस तरह
एक और पहलू से यह भी तबइ है और इस वक्त इस पहलू से बहस करिा दरकार है, फक
इस निज़ाम की तििीज़ (फक्रयानन्वत) के दौराि इसके बहुत से पहलूओं से नवनभन्ि प्रकार
के अिराद (लोग) इिनहराि (नवमुखता) भी इनख्तयार करें गे और वह इसका नवरोध
करिे लगेंगे। इसी तरह कु छ अिराद इस निज़ाम को क़ु बूल िहीं करें गे और कु छ अिराद
इस निज़ाम से मुाँह मोडेंगे। र्ुिााँर्े यह लाज़मी है फक मुआशरे के अांदर िु स्साक़, िु ज्जार,
कु फ्िार, मुतचद (दीि से फिर जािे वाले) , मुिाफिक (पाखांडी) और मुलनहद (िानस्तक)

निज़ामुल इस्लाम - 84 -
भी पाए जाएां। लेफकि मुआशरे का असल ऐतबार उसकी मजमुई हैनसयत से हुआ करता
है, फक मुआशरा िाम है अफ्कार, जज्बात, निज़ामें हयात और इां सािो का। फकसी मुआशरे
को नसिच उस वक्त इस्लामी मुआशरा कहा जा सकता है जब इसमें इस्लाम िाफिज़ हो,
इि तमाम र्ीज़ो में वह जानहर भी हो रहा हो।
इसकी दलील यह है फक फकसी इां साि के नलए भी उस तरह इस्लामी निज़ाम को िाफिज़
करिा मुमफकि िहीं है फक नजस तरह मुहम्मद (सल्ल0) िे उसे िाफिज़ फकया था। लेफकि
इसके बावुजूद हम देखते है फक आप (सल्ल0) के दौर में कु फ्िार भी मौज़ूद थे और मुलनहद
भी। मुिाफिक और िु स्साक़ भी पाए जाते थे और िु ज्जार और मुतचद भी लेफकि इसके
बावुजूद कोई शख्स यह नबल्कु ल िहीं कह सकता फक आप (सल्ल0) के दौर में कानमल
और मुकम्मल तौर पर इस्लामी निज़ाम का नििाज िहीं हुआ और यह फक वह मुआशरा
इस्लामी मुआशरा िहीं था। बात वही है फक इस्लाम को नजस इां साि पर िाफिज़ फकया
जाता है, वह एक इनज्तमाई वुजूद हुआ करता है, िा फक मशीिी वुजूद।
बहरहाल पूरी नमल्लते इस्लानमया पर ख्वाह वह अरब थी या अजम, नसिच और नसिच
इस्लाम ही को िाफिज़ फकया जाता रहा। नििाजे इस्लाम का यह अमल रसूल (सल्ल0)
की नहजरते मदीिा से लेकर मुनस्लम इलाक़ों पर इस्तेमार (साम्राज्यवाद) के गलबे
(प्रभुमव) तक जारी रहा, नजसिे इस्लामी निज़ाम की जगह सरमायादारािा निज़ाम को
जारी फकया। इस बुनियाद पर हम कह सकते है फक नहजरत के पहले साल से लेकर 1336
नह० बामुतानबक़ 1918 ई० तक अमली तौर पर नसिच इस्लाम ही िाफिज़ रहा। इस पूरे
अरसे में उम्मते मुनस्लमा िे इस्लामी निज़ाम के अलावा फकसी और र्ीज़ को िाफिज़ िहीं
फकया।
बावजूद यह फक मुसलमािों िे अरबी ज़बाि में अजिबी िलसिे , साइां स और मुख्तनलि
(नवनभन्ि) अज़िबी सकाितों (सांस्कृ तीयों) के तजुचमें फकये। लेफकि उन्होंिे फकसी क़ािूि
या फकसी भी उम्मत या क़ौम के फकसी कािूिी निज़ाम का नबल्कु ल अरबी में तजुचमा िहीं
फकया। अमली तौर पर और िा तदरीसी मक़ानसद( सबक़ हाांनसल करिे) के नलए। अलबत्ता
ये सही है की बहैनसयत एक इनज्तमाई निज़ाम के कु छ लोगों िे इस्लाम को सही तरीक़े
से लागू फकया और कु छ लोगों िे इसे लागू करिे में कमी व बेशी का मुजानहरा (प्रदशचि)
फकया । इसका इनन्हराि (निभचरता) इस्लामी ररयासत की क़ु व्वत व जोि या इस्लाम को
सही तौर पर समझिे या िा समझिे और इस्लामी फिक्री फक़यादत को आगे पहुाँर्ािे के

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नलए उम्मत के अांदर क़ु व्वत व ताकत या उसमें गिलत व सुस्ती की नबिा पर होता है।
यही वजह है फक बाज़ अदवार (दौर) में इस्लामी निज़ाम की तििीज में जब सुस्ती और
गलती का इरनतकाब फकया गया तो इस्लामी समाज इन्तेहाई तिज्जुल (पति) का नशकार
हो गया। लेफकि इस कमजोरी से तो कोई निज़ाम भी बर् िहीं सकता। क्योंफक निज़ाम
ख्वाह कोई भी हो, उसके नििाज के नलए इां सािो ही पर निभचर रहिा पडता है। र्ुिााँर्े
यह याद रखिा र्ानहए फक इस्लाम के नििाज में अगर कोताही हुई तो इसका मतलब
यह िहीं फक इस्लाम को िाफिज़ िहीं फकया गया। बनल्क इससे तो यह सानबत होता है
फक इस्लाम ही को िाफिज़ फकया गया। क्योंफक तििीज़ में असल भरोसा उि क़वािीि
और जीवि व्यवस्था का होता है, नजि पर अमल करिे का ररयासत हुक्म देती है। इस
नलहाज़ से ररयासत िे कोई भी क़ािूि या निज़ामें हयात जो इस्लाम से अज़िबी था
इनख्तयार िहीं फकया। इि तमाम दौर में कभी कभी नसिच इतिा हुआ फक बाज़ हाफकमों
िे इस्लामी निज़ाम के बाज़ अहकाम को ग़लत अांदाज में िाफिज़ फकया। इससे ज्यादा और
कु छ िहीं हुआ।

इस्लाम की तारीख (इफतहास) के मुताले से पहले


फकन चीज़ो को ध्यान मे रखे
हमारे नलए जो र्ीज़ अहम है, वह यह फक जब हम तारीख (इनतहास) में इस्लाम के
नििाज का मुताला (अध्ययि) करें तो दो र्ीज़ो का ज़रूर ख्याल रखें :
पहली: यह फक हम तारीख को दुतमिािे इस्लाम और इस्लाम से ििरत रखिे वालों से
अख्ज (प्राप्त) ि करें । बनल्क जब हम उसे मुसलमािों से भी हानसल करें तो बडी एहनतयात
और बारीक बीिी से हानसल करें ताफक हम कही इसकी नबगडी हुइ सूरत को िा ले लें।
दूसरी: र्ीज़ यह फक हमें अिराद या मुआशरे के फकसी एक पहलू की तारीख पर तमाम
मुआशरे को आम तौर पर फक़यास करिे से गुरेज करिा र्ानहए। मसलि हम उमवी दौर
की तारीख को यजीद के दौर से हानसल करें , या इसी तरह अहदे अब्बासी के खुलिा की
तारीख को हम उस दौर के खुलिा के बाज़ वाक़े आत (घटिाओं) से हानसल करें , या अहदे
अब्बासी में मौजूद मुआशरे पर “फकताबुल अग़ािी” को पढ़कर हुक्म लगाएां जो बज़लासांज

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(र्ुटुकलों) और लतीिा गो शायरों और अदीबों की खबरें जमा करिे के नलए तालीि
(प्रकानशत) की गई थी, या फकसी दौर की तारीख को उस दौर में नलखी जािे वाली कु तुबे
तसव्वुि और उि जैसी दूसरी फकताबें पढ़कर हानसल करें । यह तमाम र्ीज़ें पढ़कर फकसी
दौर पर यह हुक्म लगा दें फक यह फिस्क़ व िु जूर का दौर था या जुहद व तकवा का दौर
था। बनल्क हम पर लानज़म है फक हम मुआशरे को बहैनसयती मजमूई (सामूनहक रूप से)
लें और उसकी तदरीस एक आम तरीक़े से िा हो बनल्क एक जामें (नवस्तृत) तरीक़े से हो।
इस नसलनसले में यह बात भी बडी अहम है फक फकसी भी दौर में इस्लामी मुआशरे की
कोई बाजाब्ता तारीख िहीं नलखी गई। इस नसलनसले में जो कु छ नलखा गया है वह नसिच
बाज़ हाफकमों और हुक्मरािो की खबरे हैं और नजि लोगों िे यह खबरे तहरीर की (नलखी)
हैं, वह खुद भी कानबले ऐतमाद और मोतबर िहीं। र्ुिााँर्े यह सब फकसी शुमार और
कतार में िहीं हैं और उिके अकवाल (कथि) कानबले भरोसा और कानबले क़ु बूल िहीं है।
जब हम इस बुनियाद पर इस्लामी मुआशरे का अध्ययि करें , यािी हर पहलू से और खूब
तहक़ीक़ (छािबीि) से तो इसको तमाम मुआशरों से बेहतर पाते हैं। यह मुआशरा पहली,
दूसरी और तीसरी सदी नहजरी तक अपिी इस हालत पर क़ायम रहा और इसके बाद
बारवी सदी नह० तक उसकी यही हालत थी हत्ताफक दौरे उस्मानिया के आखरी दौर तक
मुआशरा इस्लामी ही था क्योंफक इस्लाम ही को इस्लामी ररयासत िे िाफिज़ कर रखा
था।

फनज़ाम को समझने की बुफनयाद तारीख और


फिक़ह नही है बख्ल्क कानूनी मसदर (स्त्रोत) है
इस नसलनसले में एक अहम बात यह भी याद रखिा र्ानहए फक फकसी निज़ाम और
'फिक़्ह' के नलए तारीख को बुनियाद या मसदर (स्त्रोत) िहीं बिाया जा सकता। बनल्क
निज़ाम को क़ािूिी मसाफदर से हानसल फकया जािा र्ानहए िा फक तारीख से क्योंफक
इनतहास फकसी व्यवस्था का स्त्रोत िहीं हो सकता। मसलि अगर हम कम्यूनिज़्म को
समझिा र्ाहे तो हम उसे उसकी तारीख से हानसल िहीं करें गे बनल्क हम कम्यूनिज़्म की
बुनियादी फकताबों से हानसल करें गे। इसी तरह हम अांग्रेजी इल्मे क़ािूि समझिा र्ाहें तो,

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उसे इां नग्लस्ताि की तारीख से हानसल िहीं करें गे बनल्क अांग्रेजी इल्मे क़ािूि का अध्ययि
करें गे। यह उसूल हर निज़ाम (व्यवस्था) और हर क़ािूि पर लागू होता है।
इस्लाम एक मब्दा (आइनडयोलाजी) है नजसका अपिा एक अक़ीदा और अपिा निज़ाम
है पस हमें इसकी मारे ित (पहर्ाि), इसको इनख्तयार करिे और इसके अहकाम का
इनस्तमांबात (deduce/प्राप्त करिे) करिे के नलए तारीख को नबल्कु ल मजदर (स्त्रोत)
िहीं बिािा र्ानहए।
इस्लाम के निज़ाम को पहर्ाििे या समझिे की बुनियाद 'इस्लामी'-फिक़्ह की फकताबे हैं
और इसके अहकाम के इनस्तमबात के नलए मसदर (स्त्रोत) ‘‘अफदल्ला तिसीनलय्या’’ हैं।
इसनलए इस्लामी निज़ाम के नलए तारीख को मसदर बिािा नबल्कु ल सही िहीं। 'मारित'
(समझ) हानसल करिे के नलए और िा इनस्तदलाल (दलील बिािे) के नलए। इस बुनियाद
पर हम कह सकते है फक यह दुरूस्त िहीं की अहकामें इस्लानमया के नलए हम उमर इब्ने
खत्ताब(रनज़0) या उमर इब्ने अब्दुल अजीज या हारूि अर रशीद की तारीख या उिके
दौर के हवाफदस (घटिाओं) या उिकी तारीख (इनतहास) के हवाले से तालीि शुदा (छपी
हुई) कु तब को माखज़ करार दे दें।
नलहाज़ा जब फकसी वाफकये (घटिा) के हवाले से उमर (रनज़0) की राय की इत्तेबा इस
तरह करिा र्ानहए फक गोया यह वह हुक्मे शरई है, नजसे उमर िे मुस्तनम्बत
(प्राप्त/Deduct) फकया और िाफिज फकया नबल्कु ल इसी तरह हम फकसी ऐसे हुक्मे शरई
की इत्तेबा करे नजसे इमाम अबु हिीिा (रह0) या इमाम शािई (रह0) या इमाम जािर
(रह0) या उि जैसे दूसरे अइम्मा फकराम िे मुस्तांनबत फकया हो। बहरहाल फकसी
ऐनतहानसक हादसे को कानबले इत्तेबा िहीं समझिा र्ानहए। र्ुिााँर्े यह समझिा र्ानहए
फक इस्लामी निज़ाम को इनख्तयार करिे या उसकी मारित हानसल करिे के नलए तारीख
का कोई वुजूद (अनस्तमव) िहीं। इसी तरह अगर यह मालूम करिा हो फक कोई निज़ाम
िाफिज़ फकया गया या िहीं, तो इसको मालूम करिे के नलए तारीख कोई बुनियाद िहीं
बनल्क इसको समझिे के नलए फिक़्ह ही को पडिा र्ानहए। इसनलए फक हर दौर की अपिी
कु छ िा कु छ मुनतकलात होती है और उि मुनतकलात का फकसी ि फकसी निज़ाम के ज़ररये
हल फकया जाता रहा है। र्ुिााँर्े अगर हमें फकसी ऐसे निज़ाम की समझ की ज़रूरत हो,
नजसके ज़ररये उस दौर की मुनतकलात का तदारूक (उपाय/हल) फकया जाता रहा हो, तो
उसके नलए हमें उस अहद के तारीखी हवाफदस (हादसों) की तरि रूजू िहीं करिा

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र्ानहए। क्योंफक इिमें तो नसिच खबरो को िक़ल फकया जाता है। बनल्क उसके नलए उस
निज़ाम यािी इस्लामी फिक़्ह की तरि रूजू करिा र्ानहए जो उस दौर में िाफिज़ रहा
हो।
जब हम इस िज़र से फकसी अहद को देखते हैं तो 'वाज़ेह' (स्पष्ट) िक़च मालूम होता है फक
मुसलमािों िे फकसी भी दौर में फकसी ग़ैर-इस्लामी निज़ाम को इनख्तयार फकया और िा
उन्होंिे अपिे तौर पर फकसी निज़ाम को घड कर इनख्तयार फकया बनल्क मुसलमािों िे
नजस र्ीज़ को भी इनख्तयार फकया वह शरई दलील से मुस्तिनबत (ली गई) थी हर दौर
के मुसलमािों फक यह तमन्ना थी फक इि फक फिक़्ह ‘अकवाले जइिा’ (कमज़ोर इस्तम्बात)
से पाक साि रहें हत्ता की फकसी मुज्तनहदे मुतलक का क़ौल भी जइि हो तो इस पर
अमल करिे से लोगों को रोका जाता था।
इसनलए तमाम आलमें इस्लामी में फिक्हे इस्लामी के अलावा फकसी कािूिी िस का वजूद
िहीं है। इस तमाम आलमें इस्लाम में जो कु छ भी हैं वह नसिच फिक्हे इस्लामी हैं। उम्मत
के अन्दर नसिच एक तरह की क़ािूिी िसूस का पाया जािा और इिके अलावा फकसी और
क़ािूिी 'िुसूस' का िा होिा इस बात पर दलालत करते हैं फक क़ािूि साजी में फिक्ही
िुसूस के अलावा फकसी और र्ीज़ को इस्तेमाल िहीं फकया जाता था।
हम तारीख को इस हवाले से पड सकते हैं फक हमें फकसी निज़ाम फक तििीज़ की कै फियत
का अन्दाजा हो सके । क्योंफक मुमफकि है तारीख में ऐसे नसयासी हवाफदस का नजक्र हो,
नजिसे निज़ाम के नििाज़ की क़ै फियत का अन्दाज़ा हो सके । लेफकि इसमें भी इन्तेहाइ
एहनतयात और तहक़ीक़ की ज़रूरत है फक हम नसिच मुनस्लम लेखकों को ही पडे। याद रहे
फक तारीख के तीि स्त्रोत हैं, 1.कु तुबे तारीख 2.आसार-ए-क़दीमा (प्रार्ीि अवशेष) और
3. ररवायत।
(1) कु तुबे तारीख को स्त्रोत के तौर पर इनख्तयार करिा जायज़ िहीं क्योंफक यह हर
ज़मािे में नसयासी हालात के तहत नलखी गई और इिमें झूठ की गुांजाईश भी होती है।
क्योंफक यह या तो फकसी के अहद में नलखी गई हैं या इिके मुखानलि (नवरोधी) के अहद
हैं। इसकी बेहतरीि नमसाल नमस्र के मुहम्मद अली पाशा के खािदाि की तारीख हैं जो
1952 ई. से पहले बडी शािदार थी और इसके बाद यह तारीख इन्तेहाई भयािक शक्ल
इनख्तयार कर गई इसी तरह आज के दौर के या माज़ी के नसयासी वाक़े आत की तारीख

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का भी यही हाल है। र्ुिाांर्े तारीख के वाक़े आत को मसदर बिािा नबल्कु ल जायज़ िहीं
ख्वाह वो उस दौर के लोगों की सवािेह उमरी (जीविी) ही क्यों िा हो
(2) जहााँ तक आसार-ए-क़दीमा का ताल्लुक़ है तो अगर ग़ैरजानिबदारी (निस्पक्षता) से
इिका मुताअला फकया जाए तो यह फकसी र्ीज़ के बारे में उसकी हकीकी तारीखी का
पता दे सकते हैं अगरर्े यह मुसलसल तारीख िहीं होती। इसके अलावा ये कु छ घटिाओं
के सबूत पर दलालत भी कर सकते हैं। मुसलमाि मुमानलक में पाए जािे वाले आसार-
ए-क़दीमा का मुताअला करिे से ख्वाह वो इिकी इमारतों फक शक्ल में हो या आलात
(औज़ार) या और कोई र्ीज़ हो नजन्हें तारीखी तौर पर मोतबर समझा जाता हो। इस
बात का यक़ीिी और क़तई सबूत नमलता है फक आलमें इस्लाम में इस्लामी अहकाम और
निज़ाम के अलावा फकसी दूसरे निज़ाम या अहकाम का कोई वजूद िहीं था। मुसलमािों
की नज़न्दगी और इिके तसरूिात नसिच और नसिच इस्लामी थे।
(3) जहााँ तक ररवायात का ताल्लुक़ है तो इस पर भी भरोसा फकया जा सकता है बशते
के ररवायात सही हों और इसमें उसी तरीक़े को इनख्तयार फकया गया हो नजस पर ररवायते
हदीस में अमल फकया गया है। तारीख को भी उसी असलूब पर नलखिा र्ानहए। यही
वजह है फक जब मुसलमािों िे तालीि (book publishing) का आगाज फकया तो वह
इस तरीक़ए ररवायत पर र्ले। र्ुिाांर्े पुरािी तारीख की फकताबें मसलि “तारीखुल
नतबरी”, “सीरत इब्ने नहशाम” और इि जैसी दूसरी तारीख की फकताबों को, इसी असलूब
पर तालीि फकया गया। र्ुिााँर्े मुसलमािों पर लानज़म है फक वह अपिे आपको और
अपिे बच्चों को इि फकताबों से तालीम दे, जो मुन्दजाच बाला तरीक़े से तेहरीर की गई हो।
उि कु तुब से बर्ें नजि का असलूब इि से मुख्तनलि हों। इसी तरह इस्लामी निज़ाम की
नििाज़ का जाइजा लेिे के नलए भी तारीख पर इन्हेसार (भरोसा) िा करें ।
मुन्दजाच बाला बहस से मालूम हुआ फक गुनजतता तमाम दौर में इस्लाम ही िाफिज़ था।
हत्ता के पहली जांग अजीम (first world war) के इख्तेताम (खाममें) पर जब नख़लाित
खमम हो गई तो ‘लाडच एलि बी’ िे जो बैतुल मुक़द्दस की ितह के दौराि नसपह सालार
था इस जांग के इख्तेताम का एलाि इि अल्िाज़ में फकया फक “आज सलीबी जांगों का
इख्तेताम हुआ” उस वक्त से अब तक नज़न्दगी के तमाम मसाइल और मामलात में काफिर
इस्तेमार हम पर अपिे सरमाया दारािा निज़ाम को िाफिज़ करता र्ला आ रहा है और
इस गल्बे को वह दाएमी (नस्थर) बिाता र्ला जा रहा है। नलहाज़ा इस िानसद और

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बौसीदा निज़ाम, नजस को इस्तेमार िे हमारे मुल्कों पर िाफिज़ फकया है, जड से उखाड
िे किे के अलावा और कोई र्ारा िहीं ताकी इस्लामी नज़न्दगी का िये नसरे से आगाज हो
सके ।
यह बहुत सतही िक़च है फक हम इस्लामी निज़ाम फक जगह कोई दूसरा इां तेजाम इख्तेयार
कर लें या ये के अक़ीदे के बग़ैर निज़ाम को िाफिज़ करिे से मसाइल का हल हो जायांगे
।बनल्क इसके नसवा कोई र्ारह िहीं फक पहले अक़ीदे को इख्तेयार फकया जाए फिर इससे
िु टिे वाले निज़ाम को िाफिज़ फकया जाए। इसी सूरत ही में उम्मत फक निजात मुमफकि
है।
यह सब कु छ इस उम्मत के बारे में है नजसका कोई मब्दा हुआ हो और नजस की ररयासत
इस मब्दे फक बुनियाद पर क़ायम हो। जहाां तक दूसरे नगरोह या अकवाम का ताअल्लुक
है तो इि पर इस्लाम को िाफिज़ करिे के नलए इस बात फक कोई कै द िहीं फक वह पहले
इस मब्दा को इख्तेयार करें फिर उि पर इस मब्दा का नििाज हो बनल्क इस मब्दा फक
हानमल और अलमबर दार उम्मत फकसी भी नगरे ाह या अक़वाम पर इस निज़ाम को
िाफिज़ कर सकती है नजसिे अगरर्े अभी तक इस मब्दा को इख्तेयार िा फकया हो
क्योंफक इसके नलए यह नििाज िई नज़न्दगी का सबब बि जाएगा और आनखर कार यही
बात इसे उस अफकदे को इख्तेयार करिे पर मजबूर कर देगी। नलहाज़ा नजस पर इस
निज़ाम को िाफिज़ फकया जा रहा हो उसे पहले उस मब्दा को इख्तेयार करिा ज़रूरी
िहीं हााँ जो इस निज़ाम को िाफिज़ कर रहा हो उसे पहले इस मब्दे को इख्तेयार करिा
पडेगा।
उस तरह क़ौनमयत को इशतेराकी निज़ाम के साथ इख्तेयार करिा इसनलए खतरिाक है
फक उसको इसकी माद्दी फिकर से जुदा करके इख्तेयार करिा मुमफकि िहीं क्योंफक ऐसा
करिे फक सूरत में िा तो वह असरकारक होगा और िा ितीजाखेज इससे इसकी माद्दी
फिकर के साथ भी इख्तेयार करिा मुमफकि िहीं क्योंफक यह एक ऐसी मििी फिकर है
जो फितरत इां सािी के मुखानलि है। यह इस बात का तकाज़ा करती है फक पहले इस्लामी
अक़ीदे को तकच फकया जाए फिर इसको इख्तेयार फकया जाए इसनलए इसकी कोई
गुन्जाइश और जवाज़ मौजूद िहीं की हम इशतराफकयत को इख्तेयार करें और साथ-साथ
इस्लाम के रूहािी पहलू को भी महिू ज रखें। इस सूरत में हम इस्लाम को इख्तेयार कर
सकें गे और िा इशतराफकयत को क्योंफक यह दोिों एक दूसरे के नवपरीत हैं। हमारे नलए

निज़ामुल इस्लाम - 91 -
यह भी जायज़ िहीं फक हम इस्लामी निज़ाम को तो ले लें और अक़ीदे को पशेपुतत डाल
दें, नजससे यह निज़ाम निकलता है, क्योंफक इस सूरत में यह निज़ाम मुांजनमद (जाम) और
रूह से खाली हो जायेगा बनल्क हमारे नलए ज़रूरी है फक हम मुकनम्मल इस्लाम को इस
के अक़ीदे और पूरे निज़ाम के साथ लें और जब हम इसकी दावत दूसरे को दें तो खुद
इसकी फिक्री कयादत (वैर्ाररक िेतृमव) के हानमल और अलमबरदार हों।
पस हमारे नलए निशातेसानिया का एक ही रास्ता है और वह यह फक हम इस्लामी
नज़न्दगी का िये नसरे से अगाज करें और इस्लामी नज़न्दगी का आगाज इस्लामी ररयासत
के बग़ैर मुमफकि िहीं यह नसिच इस सूरत में मुमफकि है फक हम पूरे के पूरे इस्लाम को
इख्तेयार करें जब हम इसके अक़ीदे को इख्तेयार करें गे तो इसके ितीजे में सब से बडा
अक़ीदा खुद बा खुद हल हो जायगा और इस पर नज़न्दगी के बारे में िुक़्ता-ए-िज़र को
मुरतफकज़ (के नन्रत) हो जायगा इस अक़ीदे से जो निज़ाम िु टते हैं इिकी असास
फकताबुल्लाह, सुन्नत-ए- रसूल (स0) और उसका सकािती दौलत इस्लामी सक़ाित है
फक नजसमें फिक़्ह, हदीस ,तिसीर और लुगत वगैरा पाए जाते हैं र्ुिााँर्े इसके नसवा
दूसरा रास्ता िहीं फक हम इस्लामी फिक्री कयादत के मुकमल तौर पर अलमबरदार बि
जाएां यािी इस्लाम की तरि दावत देिे से और हर जगह इस्लाम को दोबारा कानमल
िाफिज़ कर लें यहााँ तक फक जब फिक्री कयादत और उम्मत मजमुइ तौर पर और इसी
तरह इस्लामी ररयासत भी इसकी अलमबरदार बि जाए तब हम पूरी दुनिया के सामिे
इस्लाम की फिक्री कयादत को पेश करिे के अहल हो सकें गे।
निशाते सानिया का नसिच यही एक तरीका है यािी इस तरह के मुसलमाि इस्लामी
नज़न्दगी का अज़ सरे िो अगाज करिे के नलए इस्लामी फिक्री कयादत के पहले
अलमबरदार बिें और फिर इस्लामी ररयासत के जररए इस इस्लामी फिक्री कयादत को
सब इन्सानियत के सामिे पेश कर दें।

निज़ामुल इस्लाम - 92 -
4. इस्लामी दावत को पे श
करने की कैफियत

मु सलमाि दुनिया की इमामत (फक़यादत) से अपिे दीि पर कारबन्द रहिे की वजह


से पीछे िहीं रहे बनल्क उि के ज़वाल का आगाज उस रोज से हुआ जब उन्होंिे
अपिे दीि से वाबस्तगी को छोड फदया और दीि के ताल्लुक़ से सुस्ती का
मुज़ानहरा फकया। अजिबी तहज़ीब (culture) को अपिी सरज़मीि में दानखल होिे की
इजाज़त दी और मग़ररबी िज़ररयात को अपिे ज़हिों में जगह बिािे का मौका फ़राहम
फकया। वह उसी फदि इस्लाम की फिक्री फक़यादत (intellectual leadership) से
दस्तबरदार हो गए जब उसकी तरि दावत देिे में ग़िलत बरती और उन्होिे इस्लाम के
अहकामात िाफिज़ करिे में कजी (लापरवाही) का मुज़ानहरा फकया। नलहाज़ा तरक्की की
राह पर गामज़ि होिे के नलए इस्लामी नज़न्दगी के फिर से आग़ाज के नसवा कोई र्ारा
िहीं। और मुसलमाि उस वक्त तक इस्लामी नज़न्दगी का िए नसरे से आगाज िहीं कर
सकते जब तक फक वह इस्लामी फिक्री फक़यादत के ज़ररये इस्लामी दावत के अलमबरदार
िा बि जाएां और इसी दावत के ज़ररये उस इस्लामी ररयासत को माररज़े वुजूद (अनस्तमव)
में िा ले आऐं जो इस्लाम को दुनिया के सामिे पेश करिे के नलए उसकी फिक्री फक़यादत
की अलमबरदार हो।

मुसलमानों की फनशातेसाफनया इस्लामी फिक्री क़ायदे


(ideology) को अपनाने से ही मुख्म्कन है
इस अम्र की वज़ाहत ज़रूरी है फक मुसलमािों की निशातेसानिया के नलए इस्लामी फिक्री
फक़यादत का अलमबरदार बििा नसिच इस्लामी दावत ही के ज़ररये ही मुमफकि है, क्योंफक
यह नसिच इस्लाम ही है जो दुनिया की इस्लाह कर सकता है। क्योंफक हक़ीक़ी
निशातेसानिया इस्लाम के बग़ैर मुमफकि ही िहीं ख्वाह यह निशातेसानिया इनख्तयार

निज़ामुल इस्लाम - 93 -
करिे वाले मुसलमाि हो या ग़ैर-मुनस्लम । र्ुिााँर्े इसी बुनियाद पर लाज़मी है की
इस्लामी दावत का अलमबरदार बिा जाए।

इस्लाम की दावत के फलये इस्लाम को वैचाफरक ने तृत्व


(intellectual leadership) के तौर पर पेश करना ज़रूरी है
यह भी ज़रूरी है फक इस दावत को दुनिया के सामिे ऐसे वैर्ाररक िैतृमव के तौर पर पेश
करिे की भरपूर कोनशश की जाए नजस से निज़ामें नज़न्दगी िू टते हों। तमाम अफ्कार की
बुनियाद इसी वैर्ाररक िैतृमव पर हो और इन्हीं नवर्ारों से वह तमाम तसव्वुरात जन्म
लेते हों जो नज़न्दगी के बारे में हर िुक्ता-ऐ-िज़र पर असर अांदाज होते हैं।

दावत पहु ंचाने मे ज़माने और क़ौमों की तब्दीली का कोई फलहाज़


नही है - इस्लामी फिक्र से टकराने वाले हर तरह के नज़फरयात
को चेलेंज फकया जायेगा
आज इसी इस्लामी दावत को उस तरह पेश फकया जािा र्ानहए जैसा फक उसे पहले पेश
फकया गया। और दावत में रसूलुल्लाह ‫ صَلُاهللُعليهُوسلم‬की मुकम्मल इनत्तबा होिी र्ानहए।
इस दावत के पेश करिे के तरीक़े की कु नल्लयात (पूणच रूप से) और जुज़इयात (आांनशक
रूप से) में बाल बराबर कमी-बैशी िहीं होिे र्ानहए और िा ही ज़मािे के इनख़्तलाफ़ का
कु छ नलहाज़ करिा र्ानहए। क्योंफक जो र्ीज़ तबदील हुई वह अशकाल (शक्लें) और
वसाइल (साधि) हैं िा फक मआिी (अथच) व जौहर (प्रदशचि)। मआिी और जौहर में अब
तक िा कोई तब्दीली हुई है और िा आइन्दा कभी होगी। र्ाहे जमािे पे-दर-पे गुज़रते
र्ले जाए और अक़वाम (क़ौमों) वा मुमानलक मुख़तनलफ़ होते र्ले जाएां। इसनलए
इस्लामी दावत को पेश करिे के नलए वज़ाहत, जुरअत, क़ु व्वत और फिक्र की ज़रूरत है,
िताईज और हालात को िज़र अांदाज करके इस्लामी फिक्र और तरीक़े से जो र्ीज़ भी
टकराती हो उसे र्ेलेंज फकया जाए और उसमें पाए जािे वाले झूठ और खोट को खोलकर
बयाि फकया जाए। इस बात से क़तअ-िज़र के हालात कै से हैं और उस के िताईज क्या
होंगे।

निज़ामुल इस्लाम - 94 -
दावत पहु चाने मे लोगों की मुवाफिक़त और मुखाफलित का
फलहाज़ नही है - मब्दा पर इख्स्तक़ामत ज़रूरी
इस्लामी दावत को पेश करिा इस अम्र का तक़ाज़ा भी करता है फक मुकम्मल बालादस्ती
इस्लामी मब्दा को हानसल हो, इस बात को िज़र अांदाज़ करते हुए फक यह लोगों के
मुआफिक है या मुखानलि। लोगों की आदत के साथ र्लता है या उिका नवरोधी है, लोग
इस को क़ु बूल करते हैं या रद्द करते हैं और इसकी मुख़ालित करते हैं। पस एक दाई िा
तो क़ौम की र्ापलूसी करता है और िा ही ख़ुशामद से काम लेता है। वह अरबाबे
इनक़्तदार (सत्तापक्ष) की भी ररआयत िहीं करता। इसी तरह वह लोगों की आदत, उिकी
ररवायात की कोई परवाह करता है िा ही लोगों की क़ु बूनलयत या उि के इन्कार को
फकसी नगिती में लाता है। वह नसिच मब्दा को मज़बूती से थामता है। मब्दा के अलावा
फकसी दूसरी र्ीज़ को फकसी शुमार व कतार में समझे बग़ैर मब्दा ही को वज़ाहत से बयाि
करता है। र्ुिााँर्े दूसरे मबादी के हानमल अिराद को यह िहीं कहा जाएगा फक तुम अपिे
ही मब्दा पर क़ायम रहो बनल्क फकसी फक़स्म की जबरदस्ती के बग़ैर उन्हें अपिे मब्दा की
तरि दावत दी जाएगी ताफक वोह इस को क़ु बूल करें ; क्योंफक दावत इस बात का तक़ाज़ा
करती है फक इस मब्दा के अलावा कोई दूसरा मब्दा िा हो और बालादस्ती नसिच इस्लामी
मब्दा (Islamic ideology) को ही हानसल हो।
अल्लाह का सूरे तौबा में इरशाद है:

ُ‫ح َِّقُلِي ْظ ِه َرهُع َََلُال َّ ِدي ِنُكُلَِّه َُِو ل َْو‬


ُ َ ْ‫ىُو ِدي ِنُال‬‫د‬ ‫ْه‬ ‫ل‬ ‫ا‬ ‫ُب‬ ‫َه‬ ‫ل‬‫و‬‫س‬‫ُر‬ ‫ل‬
َ ‫س‬ ‫ر‬َ ‫﴿هوُالََّذيُأ‬
َ َ ِ َ َ ْ ِ َ
ُ َ ‫َك ِرهَُالْم ْش ِرك‬
﴾‫ون‬
“अल्लाह वो ही तो है नजसिे अपिे रसूल को नहदायत और दीिे हक़ के साथ
भेजा ताफक वोह उसको तमाम अदयाि पर ग़ानलब कर दे अगरर्े यह बात
मुशररकों को िापसांद ही क्यों िा हो।”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे तौबा, आयत: 33)

निज़ामुल इस्लाम - 95 -
रसूलुल्लाह ‫ صَلُاهللُعليهُوسلم‬ने तने तन्हा तमाम मबादी को चेलेंज फकया
और अपने मब्दे पर क़ायम रहे
जब रसूलुल्लाह ‫ صَلُاهللُعليهُوسلم‬इां सानियत की तरि यह पैगाम लेकर आए तो आप ُ‫صَل‬
‫ اهللُعليهُوسلم‬िे नजस हक़ की तरि दावत दी, आप ‫ صَلُاهللُعليهُوسلم‬इस पर कानमल ईमाि
रखते थे। आप ‫ صَلُاهللُعليهُوسلم‬िे पूरी दुनिया को र्ेजलांज फकया और लोगों की आदात,
ररवायात, अदयाि और अक़ाइद, हुक्काम और ररआया का नलहाज़ फकये बग़ैर हर सुखच
और स्याह के नखलाि जांग का ऐलाि कर फदया। आप ‫ صَلُاهللُعليهُوسلم‬िे इस्लाम के पैगाम
के नसवा और फकसी र्ीज़ को क़ानबले तव्ज्जो िहीं समझा। आप ‫ صَلُاهللُعليهُوسلم‬िे दावत
का आगाज क़ु रै श के माबूदों के नज़क्र और उिके ऐब (बुराइयाां) नगिवािे से फकया। आप
‫ صَلُاهللُعليهُوسلم‬िे उिके ऐतक़ाद और उिमें पाए जािे वाले बोदेपि को बेिक़ाब फकया
हालाांफक आप ‫ صَلُاهللُعليهُوسلم‬उस वक्त तिे-तिहा थे। वह इस्लाम नजस की तरि आप ُ‫صَل‬
‫ اهللُعليهُوسلم‬दावत दे रहे थे, उस पर मज़बूत और ग़ैर-मुतज़लज़ल (नस्थर) ईमाि के अलावा
आप ‫ صَلُاهللُعليهُوسلم‬के पास कोई साज़ो-समाि, मददगार या असलेहा (हनथयार) िा था।
आप ‫ صَلُاهللُعليهُوسلم‬िे अरबों की आदात और ररवायात की कोई परवाह िा की और िा
ही उिके अदयाि और अक़ाइद की। इस मुआमले में उिके साथ िा कोई िरमी बरती और
िा फकसी फकस्म की कोई ररआयत रवा रखी।

दावत का अमल मौजूदा (प्रचफलत) राय आम्मा, अक़ाईद और


अदयान को चेलेंज है
इसी तरह इस्लामी दावत का अलमबरदार भी बेबाक और हर र्ीज़ को ललकारिे वाला
होता है; वोह आदात, ररवायात, बीमार अफ्कार, ग़लत तसव्वुरात को निशािा बिाता
है हत्ता की अगर राय आम्मा भी ग़लत हो तो वोह उसको भी ललकारता है, ख्वाह उसे
राय आम्मा के नख़लाि जद्दोजहद ही क्यों िा करिी पडे। इसी तरह वोह अक़ाइद और
अदयाि को भी र्ैलेंज करता है, र्ाहे इसके ितीजे में से उसे तआस्सुब या गुमराही पर
जमिे वालों के इां तकाम का निशािा ही क्यों िा बििा पडे।

निज़ामुल इस्लाम - 96 -
इस्लाम की दावत काफमल अक़ीदा और मुकम्मल इस्लाम के
फनिाज़ की दावत हो
इस्लामी दावत को पेश करिे का तक़ाज़ा यह भी है फक इस्लाम के मुकम्मल नििाज़ को
लक्ष्य बिाया जाये और फकसी छोटे से छोटे हुक्म को भी कोई ररयायत िा दी जाए। दावत
का अलमबरदार इस मामले में फकसी फकस्म की िज़र-अांदाज़ी या सुस्ती और कमी या
ताख़ीर को क़ु बूल िा करे । वोह एक अम्र (हुक्म) को मुकम्मल तौर पर इनख्तयार करे और
उसको जल्द अज़ जल्द पूरा करे । वोह हक़ के मुआमले में फकसी की नसिाररश को क़ु बूल
िा करे । रसूलुल्लाह ‫ صَلُاهللُعليهُوسلم‬िे बिुसक़ीि के वफ्द (प्रनतनिनध मांण्डल) की इस
दरख्वास्त को हरनगज़ क़ु बूल िहीं फकया की उि के बुत लात को तीि साल तक तोडे बग़ैर
छोड फदया जाए। और िा ही इस्लाम लािे के नलये उिकी इस शतच को क़ु बूल फकया गया
की उन्हें िमाज़ माि होगी। आप ‫ صَلُاهللُعليهُوسلم‬िे उिके इस मुतालबे को भी क़ु बूल िहीं
फकया की लात को दो साल या कम-अज़-कम एक महीिे के नलये छोड फदया जाए बनल्क
आप ‫ صَلُاهللُعليهُوسلم‬िे इसका क़तई तौर पर इां कार िरमाया। इस इां कार में फकसी फक़स्म
का नलहाज़ या िरमी िा थी, बनल्क यह एक अटल िै सला था। क्योंफक इां साि या तो
ईमाि लाए या िा लाए और इसका ितीजा भी जन्नत या जहन्नम है। अलबत्ता रसूलुल्लाह
‫ صَلُاهللُعليهُوسلم‬िे यह क़ु बूल िरमाया फक वोह बज़ाते खुद अपिे हाथों से बुत लात को
मुिहफदम (िि) िा करें और आप ‫ صَلُاهللُعليهُوسلم‬िे अबू सुियाि ‫ رضي اهلل عنه‬और मुग़ीरा
नबि शोबा ‫ رضي اهلل عنه‬को इस काम की नज़म्मेदारी दी। जी हााँ !
आप ‫ صَلُاهللُعليهُوسلم‬िे नसिच कानमल अकीदा और उसके मुकम्मल नििाज़ को क़ु बूल
िरमाया। अक़ीदा इसी बात का तक़ाज़ा करता है। अलबत्ता जहाां तक इसके नििाज़ के
नलये मुख़्तनलफ़ ज़राये और वसाइल का तआल्लुक़ तो रसूलुल्लाह ‫ صَلُاهللُعليهُوسلم‬िे इन्हें
इनख्तयार िरमाया क्योंफक इिका अक़ीदे की हक़ीक़त से कोई तआल्लुक़ िहीं। र्ुिााँर्े
इसीनलये इस्लाम की दावत के नलये मुकम्मल फिक्र की नहिाज़त लाज़मी है। और फिकराह
(idea) या तरीक़ा (method) में फकसी फकस्म की िज़र-अन्दाज़ी फकये बग़ैर इसके
मुकम्मल नििाज़ की नहिाज़त ज़रूरी है। अलबत्ता बक़दरे ज़रूरत ज़राये (माध्यम) के
इस्तेमाल में कोई िुक़साि िहीं।

निज़ामुल इस्लाम - 97 -
दावत से जु डा हु आ हर अमल एक मुतय्यन नसबुल-ऐन के फलये
होना चाफहये
इस्लाम की दावत को पेश करिे का तक़ाज़ा यह भी है फक इससे तआल्लुक़ रखिे बाला
हर अमल एक मुतय्यि (निनित) िसबुलऐि (उद्देतय) के नलए होिा र्ानहए। दावत देिे
वाला हमेंशा इस िसबुलऐि का तसव्वुर ज़हि में रखे और उसके हुसूल (प्रानि) के नलये
मुसलसल कोनशश में लगा रहे। मक़सद के हुसूल के नलये इस कोनशश में आराम का
तसव्वुर भी ज़हि में िा लाए। र्ुिााँर्े यही वजह है फक दावत देिे वाला अमल के बग़ैर
नसिच फिक्र पर राजी िहीं होता और िा उसे मदहोश करिे वाला ख़याली िलसिा
समझता है। इस तरह वह बे-मक़सद फिक्र और अमल पर राज़ी िहीं होता है और िा वह
इस दावत को कोल्हू के बैल की गर्दचश के मानिन्द समझता है, जो िा-उम्मीदी पर खमम
होती है। बनल्क वोह फिक्रो अमल के इनम्तज़ाज के ज़ररये एक मुतय्यि मक़सद को अमली
तौर पर हानसल करिे और उसे आलमें वजूद में लािे की कोनशश करता है।
र्ुिााँर्े रसूलुल्लाह ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬िे मक्का में इस्लाम की फिक्री फक़यादत को पेश फकया,
यहााँ तक फक आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬समझ गए फक मक्के का मुआशरा इस्लाम को एक
निज़ामें हयात के तौर पर क़ु बूल करिे के नलये तैयार िहीं। र्ुिााँर्े आप ‫صىل اهلل عليه وسلم‬
िे फिर मदीिे के मुआशरे को तैयार िरमाया, वहााँ एक इस्लामी ररयासत क़ायम की और
इस्लाम को िाफिज़ फकया। उसके बाद इस दावत को दूसरों के सामिे पेश फकया। फिर
आप िे अपिी उम्मत को तैयार िरमाया ताफक वोह आप के बाद इस दावत की
अलमबरदार बिे और आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬के तय करदा रास्ते पर र्ले।

इस्लाम की तरि दावत (1) इस्लामी फरयासत के ज़फरये इस्लाम


का फनिाज़ करने , (2) इस्लामी फज़न्दगी की नये फसरे से आग़ाज़
करने और (3) पूरी दु फनया तक इस्लाम के पैगाम को ले जाए के
फलये हो
इसनलये इस वक्त जब फक मुसलमािों का ख़लीिा मौजूद िहीं, यह बात बेहद लाज़मी है
फक इस्लामी दावत इस्लाम की तरि दावत और इस्लामी नज़न्दगी की िये नसरे से आग़ाज़
करिे के नलये ऐसी इस्लामी ररयासत को वुजूद में लािे की तरि हो जो इस्लाम को

निज़ामुल इस्लाम - 98 -
िाफिज़ करे और पूरी दुनिया तक इस्लाम के पैगाम को ले जाए। यूां यह दावत उम्मत के
अांदर इस्लामी नज़न्दगी की फिर से शुरूआत करिे की दावत से ररयासत की जानिब से
दुनिया के सामिे इस्लामी दावत को पेश करिे की तरि मुन्तफक़ल (transfer) हो जाती
है और आलमें इस्लाम में अन्दरूिी दावत से आलमी दावत की तरि मुन्तफक़ल हो जाती
है।

दावत - ग़लत तसव्वुरात को सही करना और लोगों की


मुख्तकलात का हल पेश करने वाले तमाम फनज़ामें फज़न्दगी पर
आधाफरत हो
यह ज़रूरी है की इस्लाम की दावत के दौराि नज़न्दगी के मुतानल्लक़ ग़लत तसव्वुरात को
सही करिा और अल्लाह के साथ मज़बूत तआल्लुक़ पैदा करिे को वाज़ह तौर पर बयाि
फकया जाए। और लोगों को उिकी मुनतकलात का हल भी बताया जाए ताफक यह दावत
नज़न्दगी के तमाम मैदािों में एक जजांदा और कामयाब दावत की सूरत इनख्तयार करे ।
र्ुिााँर्े नजस तरह रसूलुल्लाह ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬मक्के में लोगों के सामिे इस आयत की
नतलावत िरमाया करते थे:

﴾‫ب‬ َ
ََّ ‫ب َُو َت‬
ٍ ‫﴿ َت َبَّ ْت َُي َداُأ ِبُل ََه‬
“अबू लहब के दोिाां हाथ तबाह हो जाएां (टू ट जाएां)”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे अल-मसद, आयत:1)
उसी वक्त आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬इि आयात फक भी नतलावत िरमाया करते थे:

ُ َ ‫لُ َشا ِع ٍرُقَلِيالُ َماُت ْؤ ِمن‬


﴾‫ون‬ ُ ِ ‫يمُ۞ ُ َو َماُه َوُبِق َْو‬ ٍ ‫﴿إِ َنَّهُلَق َْول َُرس‬
ٍ ‫ولُ َك ِر‬
“बेशकयह एक सानहबे करामत रसूल का क़ौल है, और यह फकसी शायर का
क़ौल िहीं, मगर तुम बहुत कम ईमाि लािे वाले हो।”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे अल-हाक्क़ा, आयत:41-42)
और उसी तरह आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬उसी वक्त इस आयत की भी नतलावत फ़रमाते:

निज़ामुल इस्लाम - 99 -
ُ‫ونُ۞ َُوإِ َُذا‬ ِ ‫ي ُ۞ُالََّ ِذي َنُإِ َذاُا ْك َتالواُ ُعَ ََلُال َن‬
ُ َ ‫َّاسُ َي ْس َت ْوف‬ َ ‫﴿ َو ْي ٌلُلِل ْم َط ِ َّف ِف‬
﴾ُ‫ون‬ ‫ر‬ ‫س‬ ِ ‫خ‬
ْ ‫ُي‬ ‫م‬ ‫وه‬ ‫ن‬ ‫ز‬ ‫ُو‬ ‫و‬ َ ‫ك َالوهمُأ‬
َ ْ َ َ ْ ْ
“िाप तौल में कमी करिे वालों के नलये हलाकत हो, जब वोह लोगों से लेते है
तो पूरा िाप लेते हैं और जब उन्हें तौल कर देते हैं तो कम देते है।”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे मुतनफ्ििीि, आयत:1-3)
आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬यह भी िरमाया करते थे :

ُ‫َّاتُ َت ْج ِريُ ِم ْنُ َت ْح ِت َها‬


ٌ ‫ُج َن‬
َ ‫م‬ُ ْ ‫اتُلَه‬ ََّ ‫﴿إِ ََّنُالََّ ِذي َنُآ َمنوا َُو َع ِملوا‬
ِ ‫ُالصا لِ َح‬
َ ْ‫كُالْف َْوزُال‬
﴾ُ‫ك ِبِي‬ َ ِ‫األ ْن َهارُ َذ ل‬
“बेशक जो लोग ईमाि लाए और िेक आमाल फकये, उिके नलये बाग़ात हैं नजिके
िीर्े िहरें बहती हैं यह बहुत बडी कामयाबी है।“
तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे अल-बुरूज, आयत:11)
और मदीिे में लोगों के सामिे यह नतलावत िरमाया करते थे :

ََّ ‫﴿ َوأ َ ِقيمُوا‬


﴾َ‫ُالصالةَ َُوآتواُال ََّزك َاة‬
“िमाज़ क़ायम करो और ज़कात फदया करो।”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे अल-बक़रा, आयत:43)
इसी तरह यह भी नतलावत िरमाया करते थे :

ُِ ََّ ‫واُبأ َ ْم َوا ُلِك ْم َُوأ َ ْنف ِسك ْم ُِِفُ َس ِبي ِل‬
﴾ُ‫ُاَلل‬ ِ ‫َاالُو َجا ِهد‬ ََُّ ً‫﴿ُِا ْن ِفرواُ ِخفَا ف‬
َ ‫اُوثِق‬
“निकलो नजहाद के मैदाि में ख्वाह (तुम्हारी तबीयत में) हलकापि हो या
भारीपि (दोिों हालतों में निकलो) और अल्लाह के रास्ते में अपिे अम्वाल और
अपिी जािों से नजहाद करो।”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे अत-तौबा, आयत:41)

निज़ामुल इस्लाम - 100 -


रसूलुल्लाह ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬यह भी नतलावत िरमाया करते थे :

﴾ُ‫د ْي ٍنُإِ ََلُأ َ َج ٍلُم َس ً ًَّمُفَا كْتبُوه‬


ُ َ ‫﴿ َياُأَيَّ َهاُالََّ ِذي َنُآ َمنواُإِ َذاُ َت َدا َي ْنت ْم ُِب‬
“ऐ ईमाि वालों! जब तुम फकसी मुकरच रा मुद्दत के नलये कोई कज़ाच दो तो उसे
नलख नलया करो।”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे अल-बक़रा, आयत:282)
और रसूल ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬उिके सामिे यह भी नतलावत िरमाया करते थे :

َ ‫﴿ َك ْيُالُ َيك‬
َ ْ ‫ونُدو لَ ًةُ َب‬
﴾‫يُاأل ْغ ِن َيا ِءُ ِم ْنك ْم‬
“ताफक दौलत नसिच तुम्हारे मालदारों के बीर् गर्दचश िा करती रहे।”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे अल-हशर, आयत: 7)
आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬इि आयत की नतलावत िरमाया करते थे :

ُ‫َّار َُوأ َ ْص َحاب ُالْ َج َنَّ ِةُ ُأ َ ْص َحابُالْ َج َنَّ ِةُهم‬


ِ ‫ن‬
َ ‫ُال‬ ‫اب‬ ‫ح‬ ‫ص‬َ ‫﴿الُيس َتويُأ‬
َ ْ ِ ْ َ
ُ َ ‫الْفَائِز‬
﴾‫ون‬
“अहले जहन्नुम और जन्नत (हरनगज़) बराबर िहीं, अहले जन्नत ही कामयाब
होिे वाले है।”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे अल-हशर, आयत:20)

इसनलये इस्लामी दावत उि तमाम निज़ामें नज़न्दगी पर आधाररत हो जो नज़न्दगी की


तमाम तर मुनतकलात को हल करती हैं। क्योंफक इस्लामी दावत की कामयाबी का राज़
उसके इस तरह नज़न्दा होिे में है फक वोह इां साि की, इां साि होिे की बुनियाद पर, तमाम
मुनतकलात को हल करे और उसके अांदर एक हमागीर इन्क़लाब बरपा करे ।

निज़ामुल इस्लाम - 101 -


फसफ्िाते हाफमल्लीने दावत - (1) अपने नु िूस के अंदर कमाल का
हु सूल (2) हक़ीक़त की खोज लगाना (3) हर अजनबी फिक्र से
अपने आप को पाक-साि रखना (4) अपने अफ्कार साि और
शफ्िाि रखना
इस दावत के हानमलीि उस वक्त तक दावत की नज़म्मेदारी िहीं उठा सकते और इस के
तक़ाज़ो से ओहदा बरआ िहीं हो सकते जब तक की वोह अपिे (िुिूस के ) अांदर कमाल
के हुसूल का अलाव िा जलाएां और हर वक्त हक़ीक़त की खोज िा लगाते रहें। जब तक
फक वोह अपिी मालूमात की जााँर् पडताल िा करते रहें ताफक अपिे इल्म को हर अजिबी
मैल कु र्ेल से पाक-साि कर दें। और इि अफ्कार से हर उस र्ीज़ को दूर करें नजस के
मुतानल्लक़ शक हो के कही यह अपिी मुशानबहत (समािता) की वजह से इि अफ्कार से
नर्मट िा जाए ताफक हानमलीिे दावत के अफ्कार साि और शफ्िाि हों और बेशक
अफ्कार का साि और शफ्िाि होिा ही कामयाबी है।

फसफ्िाते हाफमल्लीने दावत - (5) फज़म्मे दारी को अल्लाह की तरि


से िज़फ समझना (6) उन्हे अल्लाह की रज़ा के खाफतर क़ुबूल
करना (7) अपने आमाल का बदला फसिफ अल्लाह से चाहना
फिर इस दावत के हानमलीि के नलये यह भी ज़रूरी है फक वोह अपिी नज़म्मेदाररयों को
यह समझ कर पूरा करें फक इन्हें अल्लाह तआला िे हम पर िज़च फकया है और अल्लाह
तआला की रज़ा की खानतर खांदा पेशािी और खुशी से उन्हें क़ु बूल करें । अपिे आमाल का
बदला िा माांगे और लोगों की जानिब से शुफक्रये का इन्तज़ार भी िा करें और नसिच अल्लाह
तआला की खुशिूदी के तलबगार हों।

निज़ामुल इस्लाम - 102 -


5. इस्लामी तहज़ीब
5.1 हदारा (तहज़ीब या culture) और मदफनय्या (तमद्दु न या
material progress) फक तारीि

ह दारा (तहज़ीब या culture) और मदनिय्या (तमद्दुि या material progress)


के माबेि िक़च है। तहज़ीब नज़न्दगी के बारे में तसव्वुरात के मजमुए (समूह) को
कहते है जबफक तमद्दुि अनशयाऐ महसूसा (महसूस करिे वाली र्ीज़ो) की उि
माद्दी अतकाल (शक्लो) को कहा जाता है जो नज़न्दगी के मुआमलात में इस्तेमाल आती
है। तहज़ीब नज़न्दगी के बारे में िुक्ताऐ िज़र के नलहाज़ से खास होती है जबफक तमद्दुि
खास भी होती है और आम भी। पस तमद्दुिी अनशया (र्ीज़े) जो तहज़ीब से जन्म लेते
हैं, जैसे मुजनस्समें (statue), तो वो खास हैं। वोह तमद्दुिी अनशया जो साांइस (नवज्ञाि)
अैर सिअत (उद्योग) की तरक्की से जन्म लेती है, वोह आम होती है; यह फकसी क़ौम के
साथ मखसूस िहीं होती बनल्क यह सिअत (उद्योग) और साइां स की तरह आलमी होती
है।

5.2 साईंस और टे क्नोलोजी पर मब्नी तमद्दु न को अपनाना जाईज़


है जबफक तहज़ीब पर मब्नी तमद्दु न को अपना हराम है
हदारा और मदनिय्या के माबेि पाऐ जािे वाले इस िक़च को हमेंशा मद्देिज़र रखिा
र्ानहए जैसा फक उस िक़च का नलहाज़ रखिा ज़रूरी है जो उि तमद्दुिी अनशया के
दर्मचयाि है जो तहज़ीब से जन्म लेती है जो साइां स और टेकिोलोजी की तरक्की से जन्म
लेती है। इसनलए तमद्दुि को अख्ज़ (ग्रहण) करते वक्त उिकी शक्लो के िक़च और तमद्दुि
और तहज़ीब के दरनमयाि िक़च का नलहाज़ रखिा ज़रूरी है। र्ुिााँर्े वोह मगरीबी
तमद्दुि, जो साइां स और टेकिोलोजी की पैदावार है, उसको अपिािे में कोइ रूकावटें
िहीं। वोह मग़ररबी तमद्दुि, जो उिकी तहज़ीब से पैदा होता है, तो उसको फकसी हाल
में अपिािा जाइज़ िहीं।

निज़ामुल इस्लाम - 103 -


5.3 फकसी भी गैर-इस्लामी तहज़ीब को अपनाना जाईज़ नही है
मग़ररबी तहज़ीब को इनख्तयार करिा नबल्कु ल जाइज़ िहीं, इसनलये फक यह अपिी
बुनियाद, नज़न्दगी के बारे में तसव्वुर, िीज़ खुशी और सआदत के तसव्वुर के नलहाज़ से
इस्लामी तहज़ीब से नबल्कु ल मुतासाफदम (टकराती) है।

5.4 मगफरबी तहज़ीब - (1) दीन से दु फनया के मामलात को अलग


करने पर बनी है
मग़ररब की तहज़ीब दीि के दुनियावी उमूर (मामलात) से अलग होिे की बुनियाद पर
क़ायम है और वोह इस बात की भी मुिफकर है फक नज़न्दगी में दीि का कोइ अमल व
दखल है। र्ुिााँर्े इसके ितीजे के तौर पर दीि की ररयासत से अलहेदगी की फिक्र पैदा
हुइ। क्योंफक यह उस शख्स के नलये एक स्वाभानवक बात है जो दीि को नज़न्दगी से जुदा
करता है और नज़न्दगी में दीि के वुजूद का इन्कार करता है। इस बुनियाद पर नज़न्दगी
और नज़न्दगी के निज़ाम की इमारत खडी है।

5.5 मगफरबी तहज़ीब - (2) मनिअत (िायदे ) और लज़्ज़तों को


हााँफसल करना ही पूरी फज़न्दगी का मक़्सद है और आमाल का
मे यार है
मग़रबी तहज़ीब की रू से मििअत (लाभ) का हुसूल ही तमामतर नज़न्दगी है। नलहाज़ा
यही आमाल (actions) का मेंयार है। इसीनलये इस निज़ाम की बुनियाद महज़ मििअत
पर है और यही इस तहज़ीब की बुनियाद है। र्ुिााँर्े इस निज़ाम और तहज़ीब में सब से
िुमाया (manifest/उज्जवल) तसव्वुर मििअत (िायदा) है क्योंफक इसके िज़दीक
नज़न्दगी का तसव्वुर मििअत के नसवा कु छ िहीं। यही वजह है फक इिके िजदीक खुशी
और सआदत यह है फक इां साि को ज्यादा से ज्यादा नजस्मािी लज्ज़तें और उसके असबाब
मुहय्या फकये जाऐ। इसनलये मग़ररबी तहज़ीब एक खास मििअत परस्तािा तहज़ीब है

निज़ामुल इस्लाम - 104 -


और इसमें मििअत के अलावा फकसी और र्ीज का कोई वज़ि िहीं। यह नसिच मििअत
का ऐतराि करती है और इसको आमाल का मेंयार करार देती है।

5.6 मगफरबी तहज़ीब - (3) रूहानी क़द्र (values) िदफ तक


महदूद (4) अखलाक़ी और इंसानी क़द्र का कोई वजूद नहीं
रूहािी पहलू इसमें इनन्िरादी िोय्यत का है नजसका जमाअत के साथ कोइ तआल्लुक़
िहीं और यह रूहािी अमूर र्र्च और र्र्च के लोगो तक ही सीनमत है। यही वजह है फक
मग़ररबी तहज़ीब में अख़लाक़ी या रूहािी या इां सािी क़रो-क़ीमत का कोइ वजूद िहीं।
इसमें नसिच माद्दी क़दरो-क़ीमत का तसव्वुर पाया जाता है। इसी वजह से इसमें इां सानियत
के नलए फकये जािे वाले आमाल को उि तांजीमों के ताबे बिाया गया है जो ररयासत से
जुदा है, जैसे रे ड क्रास (Red Cross) और इसाई तबलीगी नमनशिरी और माद्दी क़दरो-
क़ीमत यािी िायदे के अलावा नजन्दगी से हर क़ीमत को दूर कर फदया गया है। पस
मग़ररबी तहज़ीब नज़न्दगी के बारे में इन्ही तसव्वुरात का मजमुआ है।

5.7 इस्लामी तहज़ीब फक रूहानी बुफनयाद - (1) अल्लाह की


खालफक़यत और सय्यदना मुहम्मद ‫ صلى هللا عليه وسلم‬फक
फरसालत
इस्लामी तहज़ीब ऐसी बुनियाद पर क़ायम है जो मग़ररबी तहज़ीब की असास के मुतज़ाद
(contradictory/नवपरीत) है और इसके िजदीक नज़न्दगी का िक्शा मग़ररबी तहज़ीब
की नज़न्दगी के िक्शे से नबल्कु ल मुख़तनलि है। इस्लामी तहज़ीब में खुशी और सआदत
का मिहूम मग़ररबी तहज़ीब में उसके मिहूम से नबल्कु ल जुदा है। इस्लामी तहज़ीब
अल्लाह पर ईमाि रखिे की बुनियाद पर क़ायम है और इस बात पर फक अल्लाह तआला
िे कायिात, इां साि और हयात का एक निज़ाम बिाया है और इस बात पर ईमाि फक
अल्लाह तआला िे सय्यदिा मुहम्मद ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬को दीिे इस्लाम के साथ मबऊस
िरमाया, यािी इस्लामी तहज़ीब इस्लामी अक़ीदे की बुनियाद पर क़ायम है जो अल्लाह
तआला, मलायका (िररतते), आसमािी फकताबों, रसूलों, आनखरत के फदि पर, और
कजा व कदर के खैर व शर के अल्लाह तआला की तरि से होिे पर ईमाि लािा हैं।

निज़ामुल इस्लाम - 105 -


र्ुिााँर्े यह अकीदा ही इस्लामी तहज़ीब की बुनियाद है और यह एक रूहािी बुनियाद
पर क़ायम है।

5.8 इस्लामी तहज़ीब - (2) रूह (spirit) और माद्दे (matter) से


फमल कर बनी है
इस्लामी तहज़ीब में नज़न्दगी का िक्शा इस्लाम के उस िलसिे से वाज़ह होता है जो
इस्लामी अक़ीदे से िू टता है और नजस पर नज़न्दगी और नज़न्दगी में इां साि के आमाल
क़ायम है। यह िलसिा माद्दा (material) और रूह से मुरक्कब (नमला कर बिा) है। यािी
आमाल को अल्लाह तआला के अवानमर व िवाही (commands and prohibitions)
के मुतानबक सरअन्जाम फदया जाऐ यही नज़न्दगी के िक्शे की बुनियाद है। र्ुिााँर्े इां सािी
अमल माद्दा है और इां साि का अमल को सरअांजाम (execute) देते वक्त इस बात का
इदराक़ (अिुभव) करिा फक इस अमल के हलाल या हराम होिे की वजह से अल्लाह
तआला इसका बदला देगा, रूह है। नलहाजा यह रूह और माद्दे का मुरक्कब है।

5.9 इस्लामी तहज़ीब - (3) आमाल का मुहर्ररक (प्रेरक) अम्रो


नवाही और अल्लाह की रज़ा है
यूां मुसलमाि के आमाल का मुहर्रच क (प्रेरक) अल्लाह तआला के अवानमर व िवाही है और
अल्लाह तआला के अवानमर व िवाही के मुतानबक आमाल की अांजामदेही का असल
मक़सद अल्लाह तआला की रज़ा है, और यह मििअत नबल्कु ल िहीं।

5.10 आमाल के इरादे का इन्हे सार क़ीमतों (values) पर है -


रूहानी, इन्सानी, माद्दी और अखलाक़ी
अलबत्ता फकसी अमल को सरअांजाम देिे के इरादा का इन्हेसार (निभचरता) उस अमल की
अांजमादेही से हानसल होिे वाली क़ीमत (value) पर होता है और यह क़दरो-क़ीमत
आमाल के ऐतबार से मुख्तनलि होती है।

निज़ामुल इस्लाम - 106 -


5.11 क़ीमत माद्दी
कभी तो यह क़ीमत माद्दी होती है जैसे ििे के इरादे से नतजारत करिा। क्योंफक इां साि
का नतजारत करिा एक माद्दी अमल है और इसमें अल्लाह तआला की खुशिूदी का हुसूल
उसे अल्लाह तआला के अवानमर व िवाही के मुतानबक इस अमल को सर-अांजाम देिे पर
आमादा करता है। और वोह क़ीमत, नजसे इां साि इस अमल की अांजाम देही से हाांनसल
करिा र्ाहता है वोह िायदे का हाांनसल है जो की एक माद्दी क़ीमत है।

5.12 रूहानी और इंसानी क़ीमत


कभी अमल की क़ीमत रूहािी होती है जैसे िमाज़, ज़कात, हज, रोज़ा बगैरा और कभी
यह क़ीमत अख़लाक़ी होती है जैसे सच्चाई, अमाितदारी और विादारी। बाज़ दिा क़ीमत
इां सािी होती है जैसे डू बिे वाले को बर्ािा या मुसीबत ज़दा की मदद करिा। इां साि जब
कोइ अमल सर-अांजाम देता है तो इन्ही क़ीमत को पेश-े िज़र रखता है, मगर यह आमाल
की असल मुहर्रच क (motivation) िहीं होती और यह वोह आला मैयार िहीं फक नजि
को आमाल की अांजाम देही के वक्त हदि बिाया जाए। बनल्क यह आमाल की अन्जामदेही
की क़ीमत होती है जो आमाल की िोइय्यत के ऐतबार से मुख़तनलि होती है।
जबफक खुशी व सआदत तो अल्लाह तआला की रज़ा का हुसूल है िा फक इां साि की हाजात
को पूरा करिा। क्योंफक इां साि की तमाम हाजात यािी अज़नवयाती हाजात (नजस्मािी
ज़रूरत) या नजनबल्लतों (मूल प्रवती) की हाजात को पूरा करिा इां साि की ज़ात की
नहिाज़त का ज़ररया है, और यह सआदत फक ज़माित िहीं।

5.13 इस्लामी तहज़ीब की बुफनयाद है मग़फरबी तहज़ीब की


बुफनयाद से फबल्कुल फवपरीत है - तस्वीर साज़ी और औरत की
फमसाल
यह है नज़न्दगी का िक्शा! और यह है वोह बुनियाद नजस पर यह िक्शा क़ायम है। यह
इस्लामी तहज़ीब की बुनियाद है और मग़ररबी तहज़ीब की बुनियाद से नबल्कु ल नवपरीत
है जैसा फक इस्लामी तहज़ीब से निकलिे वाली तहज़ीबी अतया (साांस्कृ नतक वस्तुएां)
पिमी तहज़ीब से निकलिे वाली साांस्कृ नतक वस्तुओं से नबल्कु ल नवपरीत है। मसलि

निज़ामुल इस्लाम - 107 -


तस्वीर एक साांस्कृ नतक शक्ल है और मग़ररबी तहज़ीब एक ऐसी उरयााँ निसवािी (निवचस्त्र
औरत की) तसवीर को एक तमद्दुिी (साांस्कृ नतक) शक्ल करार देती है नजसमें निस्वािी
आज़ा (औरत के शारीररक अांग) के हुस्न व जमाल को खूब िुमाया फकया गया हो और यह
औरत के मुतानल्लक़ उिके नज़न्दगी के तसव्वुरात से नबल्कु ल मेल खाती है। इसनलये एक
मग़ररबी इां साि इसे एक िन्नी शयपारा (कलाममक वस्तु) समझता है और एक साांस्कृ नतक
वस्तु के तौर पर इस पर िख्र करता है अगर इसमें िन्नी कमाल की तमाम शरायत पूरी
तरह पाई जाएां। लेफकि यह तमद्दुिी शय इस्लामी तहज़ीब से मुतज़ाद (नवरोधी) है और
औरत के बारे में उसके तसव्वुरात के नबल्कु ल नखलाि है, नजिकी रू से औरत एक आबरू
है और इसकी नहिाज़त िज़च है। इसनलये इस्लामी तहज़ीब ऐसी तस्वीर कशी को ममिू
(गैरक़ािूिी) करार देती है क्योंफक यह नजनबल्लते िो (कामेंच्छा) को भडकािे और
अख़लाक़ी नगरावट की तरि ले जािे का सबब बिती है। इसी तरह जब मुसलमाि घर
बिािे का इरादा करता है जो एक तमद्दुिी शक्ल है, तो वोह इस बात का ख़याल रखता
है फक औरत जब घर में मुखतनसर नलबास पहि कर काम काज कर रही हो तो उस पर
बाहर के लोगों की िज़र िा पडे। र्ुिााँर्े वोह घर के नगदच र्ार दीवारी बिाता है, इसके
बरनख़लाफ़ मग़ररबी शख्स इि र्ीजों का ख़याल िहीं रखता और यह मग़ररबी तहज़ीब
के मुतानबक है।

5.14 आम तमद्दु नी अफशया जाईज़ है जबफक खास तमद्दु नी


अफशया को अपनाना हराम है
इसी का इत्तलाक़ उि तमाम तमद्दुिी अनशया (madaniyya objects) पर होता है जो
मग़ररबी तहज़ीब से ितीजे के तौर पर निकलती है जैसे मुजनस्समें बगैरा। इसी तरह अगर
नलबास कु फ्िार (non-Muslim) के साथ उिके कु फ्िार होिे के ऐतबार से खास हों, तो
मुसलमाि के नलये ऐसा नलबास पहििा जायज़ िहीं। क्योंफक वोह कपडे एक खास िुक्ताएां
िज़र के हानमल है। अगर कपडे इस तरह के हों फक नजिसे उिकी मखसूस काफिरािा
नशिाख्त िा झलकती हो, बनल्क वोह उसे जरूरत के तौर पर या ज़ीित के नलये उिको
इस्तेमाल कर रहे हो तब यह नलबास आम तमद्दुिी अनशया में शुमार होंगा और उिका
इस्तेमाल जायज़ होगा।

निज़ामुल इस्लाम - 108 -


5.15 सांइस और टे कनोलोजी से वजूद मे आने वाली तमद्दु नी
अफशया को अपनाना जाईज़ है क्योंकी यह फकसी खास तहज़ीब
की पैदावार नहीं है
जहााँ तक उि तमद्दुिी अनशया का तआल्लुक़ है जो साांइस और टेकिोलोजी की तरक्की
की वजह से वजूद में आई हैं, जैसे लेबोरे रियो के आलात (उपकरण), नतब्बी आलात,
ििीर्र और कालीि और इसी फकस्म की दूसरी र्ीजे, यह सब आलमी तमद्दुिी अनशया
है। इिको इनख्तयार करिे में कोइ अम्र मािे (रूकावट) िहीं। क्योंफक यह फकसी खास
तहज़ीब की पैदावार िहीं और िा फकसी खास तहज़ीब से मुतानल्लक है।

5.16 मग़फरबी तहज़ीब : (अ) दु फनयावी उमूर की दीन से जु दाई


को अपनी बुफनयाद करार दे ती है जो इंसानी फितरत के फबल्कुल
फखलाि है (ब) मनिअत ही को एक इंसान का दूसरे इंसान से
तआल्लुक़ गरदानती है
यह मग़ररबी तहज़ीब, जो आज पूरी दुनियााँ पर हुकू मत कर रही है, इस पर एक सरसरी
निगाह डालिे से िज़र आता है फक यह तहज़ीब इां सानियत को इनममिाि की ज़माित देिे
से नबल्कु ल क़ानसर है। बनल्क इसके बरअक्स यह तहज़ीब ही इां सानियत के नलये उस
बदबख्ती और तबाही का सबब है नजससे आज पूरी इां सानियत दो-र्ार है, नजसकी
सुलगाई हुई आग में पूरी इां सानियत जल रही है। यह तहज़ीब जो दुनियावी उमूर की दीि
से जुदाई को अपिी बुनियाद करार देती है, इां सािी फितरत के नबल्कु ल नखलाि है। ऐसी
तहज़ीब जो नज़न्दगी में रूहानियत को कोइ वज़ि िहीं देती और नजसके िजदीक नज़न्दगी
का तसव्वुर नसिच मििअत है, जो नसिच मििअत ही को एक इां साि का दूसरे इां साि से
तआल्लुक़ गरदािती है, इसका ितीजा नसिच बदबख्ती और दाइमी परे शािी ही हो सकता
है।

निज़ामुल इस्लाम - 109 -


5.17 मग़फरबी तहज़ीब : (5) इस्तेमाफरयत (imperialism) भी
एक स्वभाफवक बात है (6) इसमे अखलाक हमेंशा डांवाडोल रहते
है
पस जब तक मििअत इसकी बुनियाद है, तिाज़ात (झगडों) का उठिा, इां सािो के बीर्
तआल्लुक़ात के क़याम के नलये क़ु व्वत पर भरोसा करिा इस तहज़ीब की रू से एक
स्वभानवक बात है। इसी वजह से इस तहज़ीब के हानमल अिराद के िजदीक इस्तेमार
(imperialism) भी एक स्वभानवक बात है। र्ुिााँर्े इस तहज़ीब के यहााँ अखलाक भी
हमेंशा डाांवाडोल रहेंगे क्येाफक इसके िज़दीक़ नसिच मििअत ही नज़न्दगी की बुनियाद
है। नलहाजा यह स्वाभानवक बात है फक नज़न्दगी से अखलाक़े -करीमा और रूहािी कीमतों
को निकाल फदया गया और यूां नज़न्दगी मुकाबले, झगडे, दुतमिी और क़ब्जे की बुनियाद
पर उस्तवार हो गई। पस आज दुनियााँ में इां सािों के अांदर पाया जािे वाला रूहािी
बोहराि (crisis/सांकट ), दायमी (नस्थर) बेर्ैिी और िै ली हुई बुराई इस मग़ररबी
तहज़ीब से पैदा होिे वाले िताइज की बहतरीि नमसाले है। क्योंफक आज पूरी दुनियााँ पर
यही तहज़ीब छाई हुई है और इसी िे इि खतरिाक िताइज को पैदा फकया है और यह
तहज़ीब आज पूरी दुनियााँ के नलये खतरा सानबत हो रही है।

5.18 इस्लामी तहज़ीब - (4) मुसलमानों और ग़ैर-मुख्स्लमो में


कभी िक़फ नहीं फकया (5) जो तमाम क़ीमतों को पूरा करती है (6)
खुशी व सआदत के मायनी अल्लाह तआला की खुशनूदी का
हु सूल है
अगर हम इस्लामी तहज़ीब पर िज़र डाले, जो छठी सदी ईसवी से लेकर अठ्ठारवीं सदी
ईसवी तक दुनियााँ पर हुकू मत करती रही, तो हम यह देख सकते है की यह तहज़ीब
इस्तेमार (साम्राज्यवादी) तहज़ीब िहीं थी बनल्क इस्तेमाररयत इसकी तनबयत में भी
शानमल िहीं है। क्योंफक उसिे मुसलमािों और ग़ैर-मुनस्लमो में कभी िक़च िहीं फकया।
पस अपिे तमाम मुद्दते हुक्मरािी में इि तमाम अक़वाम को अदल (न्याय) की ज़माित

निज़ामुल इस्लाम - 110 -


हानसल थी, जो उसके ज़ेरे साया थे। क्योंफक यह एक ऐसी तहज़ीब है जो उस रूहािी
बुनियाद पर क़ायम है जो तमाम क़ीमतों को पूरा करती है यािी माद्दी, रूहािी, अख़लाक़ी
और इां सािी कीमतों को। अक़ीदे को इस तहज़ीब में बुनियादी वज़ि हानसल है। इस
तहज़ीब के िज़दीक नज़न्दगी का तसव्वुर अल्लाह तआला के अवानमर व िवाही के
मुतानबक र्लिा है और खुशी व सआदत के मायिी अल्लाह तआला की खुशिूदी का हुसूल
है। पस यह इस्लामी तहज़ीब पहले की तरह जब दुनियााँ पर हुक्मरािी करे गी तो दुनियााँ
के तमाम बोहरािों के हल के नलये कािी होगी और पूरी इां सानियत की खु शहाली की
ज़माित होगी।

निज़ामुल इस्लाम - 111 -


6. इस्लामी फनज़ाम
6.1 इस्लाम के आने का मक़सद इंसान के अपने ख़ाफलक़, अपने
नफ़्स और दूसरे इंसानो के साथ तआल्लुक़ात को मुनज्ज़म
(व्यवख्स्थत) करना है

इ स्लाम ही वोह दीि है जो अल्लाह तआला िे सय्यदिा मुहम्मद ‫صىل اهلل عليه وسلم‬
पर इसनलये िानज़ल िरमाया फक इसके ज़ररये उि तआल्लुक़ात को मुिज्ज़म
फकया जाए, जो इां साि के अपिे ख़ानलक़, अपिे िफ़्स और दूसरे इां सािो के साथ
है। इां सािो का अपिे ख़ानलक़ के साथ तआल्लुक़ अकाइद और इबादात पर मुततनमल
(आधाररत) है। और अपिे िफ्स के साथ तआल्लुक़ अखलाक, खािे पीिे और नलबास से
मुतानल्लक़ है। दूसरे इां सािो के साथ उसके ताल्लुक़ मुआमलात और उक़बात
(punishments/सजाओं ) पर मुततनमल है। इां साि का अपिे ख़ानलक़ के साथ तआल्लुक़
अकाइद और इबादत पर आधाररत है और अपिे िफ्स के साथ तआल्लुक़ मुआमलात और
उकू बात पर आधाररत है।

6.2 इस्लाम में मजहबी (धार्रमक) लोग और दु फनयावी लोग के


नाम की फगरोह बन्दी नहीं है
पस इस्लाम वोह मब्दा (नवर्ारधारा/ideology) है जो नज़न्दगी के तमाम मसाइल और
मुआमलात से मुतानल्लक़ है। यह कोई ख़ािक़ाही दीि िहीं और िा इसका पापाईयत
(papacy) से कोई तआल्लुक़ है, बनल्क यह तो मजहबी अशराफियत (धार्मचक
तािाशाही) को जड से उखाड िें कता है। इसनलये इस्लाम में मजहबी लोग और दुनियावी
लोग के िाम की नगरोह बन्दी िहीं होती, बनल्क वोह तमाम अिराद जो इस्लाम को
इनख्तयार करते है, मुसलमाि कहलाते है और दीि की िज़र में यह सब बराबर होते है।
इसनलये इस्लाम में दीिदार और दुनियादार अलग-अलग अिराद िहीं होते।

निज़ामुल इस्लाम - 112 -


6.3 रूहाफनयत - खाफलक़ के साथ मखलूक़ के ताल्लुक़ात की
समझ को कहते है
रूहािी पहलू से मुराद यह है फक तमाम अनशया अल्लाह तआला की मख़लूक़ है और वोह
पूरी कायिात के तमाम उमूर की तदबीर करता है। क्योंफक इां साि जब कायिात, हयात,
और खुद इां साि पर और अपिे माहौल व मुतानल्लक़ात पर गहरी िज़र डाले तो वोह
लाज़मी तौर पर इस ितीजे पर पहुांर्ेगा की तमाम अनशया िाफक़स, आनजज़ और
मोहताज है। जो इस अम्र की क़तई दलील है फक यह अनशया फकसी ख़ानलक़ की मख़लूक़
है और वोह ही इि सब के उमूर (मामलात) की तदबीर करता है।

6.4 इंसान का बनाया हु आ फनज़ाम आपसी तवािुत (टकराव),


इख्ततलािात और तज़ाद (परस्पर फवरोध) का फशकार होता है
इां साि को नज़न्दगी के मैदाि में र्लिे के नलये एक निज़ाम (व्यवस्था) की ज़रूरत है,
नजससे वोह अपिी नजनबल्लतों और नजस्मािी हाजात को सांघरठत कर सके । इां साि
कमज़ोर और सीनमत होिे की वजह से यह निज़ाम खुद िहीं बिा सकता। क्योंफक इस
निज़ाम को बिािे के नलये इां साि का फ़हम तवािु त (िासला), इनख्तलािात और तज़ाद
(परस्पर नवरोध) से दो र्ार होता रहता है। नलहाज़ा वोह एक ऐसा मुतिाफकज़
(contradictory/नवरोधाभासी) निज़ाम होगा जो इां साि की बदबख़्ती पर मुांतज होगा
इसनलये निज़ाम लाज़मी तौर पर अल्लाह की तरि से होिा र्ानहए।

6.5 इस्लामी तहज़ीब : रूह (spirit) के माद्दा (matter/पदाथफ) के


साथ इख्म्तज़ाज (फमलान) है
इां साि पर लानज़म है फक वोह अपिे तमाम आमाल को अल्लाह तआला के निज़ाम के
मुतानबक़ सरअांजाम दे। अगर इस निज़ाम पर र्लिा मििअत (िायदों) की बुनियाद पर
हो, और इस पर र्लिे की बुनियाद यह िा हो की यह निज़ाम अल्लाह की तरि से है,
तो इसमें रूहािी पहलू मौजूद िहीं होगा। इसनलये इां साि के नलये ज़रूरी है फक वोह
अल्लाह तआला के साथ अपिे ताल्लुक़ के इदराक़ (बोध/समझ) की बुनियाद पर नज़न्दगी
में अपिे आमाल को अल्लाह तआला के अवानमर व िवाही के मुतानबक़ मुिज्ज़म कर ले

निज़ामुल इस्लाम - 113 -


ताफक उसके आमाल में रूह मौजूद हो। क्योंफक रूह के मािे इां साि का अल्लाह के साथ
ताल्लुक़ और इदराक़ है और रूह के माद्दा (matter/पदाथच) के साथ इनम्तज़ाज (नमलाि)
के मािी आमाल की अांजामदेही के वक्त अल्लाह के साथ ताल्लुक़ का इदराक़ करिा है।

6.6 अमल माद्दा (matter) है और उस अमल की अंजाम दे ही के


वि अल्लाह तआला के साथ ताल्लुक़ का इदराक़ रूह (spirit) है
इसीनलए इां साि अल्लाह तआला के साथ इसका तआल्लुक़ के इदराक़ की वजह से अपिे
आमाल को अल्लाह तआला के अवानमर व िवाही के मुतानबक़ सरअांजाम देता है पस
अमल माद्दा है और उस अमल की अांजाम देही के वक्त अल्लाह तआला के साथ ताल्लुक़
का इदराक़ रूह है। र्ुिााँर्े अमल को अल्लाह तआला के अवानमर व िवाही के मुतानबक़
अांजाम देिा अल्लाह तआला के साथ ताल्लुक़ के इदराक़ की वजह से होता है। यह ही
माद्दा और रूह का आपस में नमलिा है। इसीनलये अगर एक ग़ैर-मुनस्लम अपिे आमाल
को क़ु रआि और सुन्नत से अख्ज़शुदा (प्राि) अहकामें शररया के मुतानबक़ सरअांजाम देता
है तो उसमें कोइ रूह मौजूद िहीं और िा हम इस को रूह और माद्दे का इनम्तज़ाज कहेंगे।
र्ूांफक वोह इस्लाम को मािता ही िहीं, इसनलये उसे अल्लाह के साथ तआल्लुक़ की समझ
ही िहीं। बनल्क उसिे अहकामें शररया को बतौरे निज़ाम इसनलए इनख्तयार फकया के वह
उसे पसन्द आया, और उसिे अपिे आमाल को उसके ज़ररये मुिज्ज़म फकया। इसके
बरनख़लाफ़ एक मुसलमाि का अपिे आमाल को अल्लाह तआला के अवानमर व िवाही
के मुतानबक़ सरअांजाम देिा अल्लाह तआला के साथ अपिे तआल्लुक़ के इदराक़ की वजह
से है और अल्लाह तआला के अवानमर व िवाही के मुतानबक़ अपिे आमाल को सरअांजाम
देिे से उसका मक़सद अल्लाह तआला की रज़ा का हुसूल है, नसिच निज़ाम से िायदा
उठािा िहीं। इसनलये अनशया में रूहािी पहलू का वुजूद ज़रूरी है और आमाल का
अांजामदेही के वक्त रूह का मौजूद होिा लाज़मी है।

6.7 रूहानी पहलू, रूह और रूहाफनयत का मिहू म


अनशया के रूहािी पहलू से मुराद अनशया का एक ख़ानलक़ की मख़लूक़ होिा है; यािी
मख़लूक़ का ख़ानलक़ के साथ तआल्लुक़ और रूह इस तआल्लुक़ के इदराक़ को कहते है,
यािी इां साि का अपिे ख़ानलक़ के साथ तआल्लुक़ का इदराक़। रूहािी पहलू, रूह और

निज़ामुल इस्लाम - 114 -


रूहानियत का नसिच यही मिहूम है। इसके अलावा तमाम तसव्वुरात नबल्कु ल ग़लत है।
कायिात, हयात और इां साि पर गहरी और रोशि िज़र ही सही िताईज तक पहुाँर्ाती
है, और इसी के ितीजे में यह सही मिहूम हानसल हुआ।

6.8 गैर-इस्लामी तहज़ीब - कायनात के दो अजज़ा (तत्व) : (1.)


मरई (अदृतय) जो रुह है (2) गैर-मरई (स्पष्ट) जो माद्दा है
बाअज़ मज़ानहब का िज़ररया यह है फक कायिात के दो अजज़ा है। नजसमें एक मरई
(invisible) है और दूसरा ग़ैर-मरई (visible) इसी तरह इां साि में रूहािी ज़ुहद भी है
और माद्दी ख्वानहशात भी और नज़न्दगी में एक रूहािी पहलू है और एक माद्दी। वोह यह
गुमाि करते है की कायिात का मरई जुज़, ग़ैर-मरई जुज़ की नज़द (नवरोधी) है, रूहािी
ज़ुहद नजस्मािी ख्वानहशात से मेंल िहीं खाता और इसी तरह माद्दा रूह से अलग है।
उिके खयाल में यह दोिों पहलू एक दूसरे से जुदा-जुदा है। क्योंफक इि के दरनमयाि
बुनियादी तौर पर तआरुज़ (परस्पर नवरोध) है। नलहाज़ा इि दोिों का इकट्ठा होिा
मुमफकि िहीं। इि में से एक की ज्यादती दूसरे की कमी का बाइस है। र्ुिााँर्े आनख़रत के
तलबगार को रूहािी पहलू पर तरजीह देिा र्ानहए।

6.9 इसाईयत में सत्ता का दो अथोफरटीस मे बटवारा - रुहानी


(पोप) और दु फनयावी (क़ैसर)
इसी बुनियाद पर इसाईयत में दो अथोररटीयो के तसव्वुर िे जन्म नलया। रूहािी
अथोररटी, और ज़मािी (दुनियावी) अथोररटी। यािी क़ै सर का क़ै सर को दो और अल्लाह
का अल्लाह को दो। रूहािी अथोररटी के हानमल अिराद ररजाले दीि (मज़हबी तबक़ा)
थे। यह लोग दुनियावी अथोररटी के हुसूल की भरपूर कोनशश करते थे, ताफक नज़न्दगी में
लोगों पर रूहािी अथोररटी भी मुसल्लत कर सके । यहााँ से दुनियावी अथोररटी और
रूहािी अथोररटी के माबेि जांग शुरू हुई और नजसिे नबलआनख़र ररजालेदीि (धार्मचक
वगच) को रूहािी अथोररटी (मज़हबी मामलात) तक महदूद (सीनमत) कर फदया।

निज़ामुल इस्लाम - 115 -


6.10 मगफरबी तहज़ीब का अक़ीदा यानी 'सेक्यूलफरज़्म' का जन्म
रुहानी और दु फनयावी अथोफरटी के बीच अलैदगी के नतीजे से
हु आ
र्ुिााँर्े इसके बाद उन्होंिे दुनियावी अथोररटी में फकसी फकस्म का अमल-दखल बन्द कर
फदया और यूां दीि को दुनियावी उमूर से अलग कर फदया। क्योंफक ऐसा करिा पापाइयत
है, दीि और दुनिया की यह जुदाई ही सरमायादारािा मब्दा (पूांजीवादी आइनडयोलोजी)
का अक़ीदा है। यही मग़ररबी तहज़ीब की असास है, ओर यही वो फिक्री फक़यादत है,
नजसका इस्तेमारी मग़ररब अलमबरदार है और पूरी दुनिया को इसी की दावत देता है।

6.11 सेक्यूलफरज़्म का दाई साम्राज्यवाद का ऐजेंट (प्रफतफनधी) है


मग़ररब िे इसे अपिी सक़ाित (सांस्कृ नत) का बुनियादी सुतूि (pillar/स्तम्भ) बिाया है
और अपिे इस अक़ीदे के ज़ररये वोह मुसलमािों के अक़ीदे को मुतज़लज़ल करिे
(डगमगािे) की कोनशश करता है। वोह इस्लाम को इसाईयत पर क़यास करता है। र्ुिााँर्े
जो शख्स भी दुनियावी उमूर से दीि की जुदाई, या दीि की ररयासत या नसयासत से
जुदाई की दावत का अलमबरदार है, वोह दरअसल इसी अजिबी फिक्री फक़यादत
(वैर्ाररक िेतृमव) का ताबे और पैरोकार है। वोह साम्राज्यवाद का एजेन्ट है, ख्वाह वोह
अच्छी नियत से हो या बदिीयती से। वोह या तो इस्लाम से नबल्कु ल िावाफक़ि है या
इस्लाम का दुतमि है। इस्लाम का यह िज़ररया है फक वोह तमाम अनशया, नजिका हवास
इदराक़ करते है, माद्दा है। उिके रूहािी पहलू से मुराद यह है फक वोह सब की सब एक
ख़ानलक़ की मख़लूक़ है। रूह से मुराद इां साि का अल्लाह तआला के साथ अपिे तआल्लुक़
का इदराक़ है।

6.12 इंसान के अंदर रूहानी ज़ुहद (बुलंदी / ascension) और


माद्दी (भौफतक) रुझानात नही बख्ल्क फजस्मानी हाजात और
फजफबल्लतें है
इसनलये रूहािी पहलू माद्दी पहलू से अलग र्ीज़ िहीं, और िा इां साि के अांदर रूहािी
ज़ुहद (बुलांदी / ascension) और माद्दी (भौनतक) रुझािात पाए जाते है। बनल्क इां साि

निज़ामुल इस्लाम - 116 -


के अांदर नजस्मािी हाजात और नजनबल्लतें है। इि नजस्मािी हाजात को पूरा करिा
लाज़मी है। नजनबल्लतों में से एक नजनबल्लते तदय्युि (इबादत की मूलप्रवती) भी है, यािी
एक ख़ानलक़े मुदनब्बर (तदबीर करिे वाला) का मोहताज होिा। यह इां साि के अन्दर पाई
जािे वाली फितरती इज्ज़ (नविम्रता) से पैदा होती है। इि नजनबल्लतों को मुतमईि
(सांतुि) करिे को ि तो रूहािी पहलू और िा माद्दी पहलू िाम फदया जा सकता है, क्योंफक
यह तो बस ज़रूररयात को पूरा करिा है।

6.13 रूह के सही मायने


अलबत्ता इि नजस्मािी हाजात और नजनबल्लतों को अल्लाह के निज़ाम के मुतानबक़ और
अल्लाह तआला के साथ तआल्लुक़ का इदराक़ करते हुए पूरा फकया जाए, तो यह रूह है।
अगर इन्हें फकसी निज़ाम के बग़ैर, या अल्लाह के निज़ाम के अलावा फकसी और निज़ाम
के मुतानबक़ पूरा फकया जाए, तो यह नजनबल्लतों और नजस्मािी हाजात को नसिच माद्दी
तौर से पूरा करिा होगा, जो इां साि की बदबख़्ती पर जाकर खमम होगा।

6.14 फज़फबल्ल्तो को अल्लाह के फनज़ामे के मुताफबक पूरा करना


ही रूह या रूहानी पहलू है
र्ुिााँर्े नजनबल्लते िो (sexual instinct) को बग़ैर फकसी निज़ाम के , या अल्लाह के
निज़ाम के अलावा फकसी और निज़ाम के मुतानबक़ पूरा फकया जाए तो यह इां साि की
बदबख़्ती का सबब होगा। अगर इस नजनबल्लत को निकाह करके इस्लामी निज़ाम के
ज़ररये पूरा फकया जाए, तो यह इां साि के नलये तस्कीि और इनममिाि का बाइस बिता
है। इसी तरह इां साि अगर नजनबल्लते तदय्युि को बग़ैर फकसी निज़ाम के , या अल्लाह के
निज़ाम के अलावा फकसी और निज़ाम के मुतानबक़, बुतों या इां सािो की इबादत के ज़ररये
पूरा करें , तो यह नशकच और कु फ्र होगा। अगर इसको इस्लामी अहकामात के मुतानबक़
पूरा करे तो यह इबादत होगी। इसनलये अनशया में रूहािी पहलू का नलहाज़ रखिा ज़रूरी
है।
तमाम आमाल को अल्लाह तआला के अवानमर व िवाही के मुतानबक़, उसके साथ
तआल्लुक़ का इदराक़ करते हुए, यािी रूह के साथ सरअांजाम देिे र्ानहए। र्ुिााँर्े एक
अमल में दो र्ीज़े िहीं हैं बनल्क एक ही र्ीज़ यािी 'अमल' है। यह कहिा गलत है की

निज़ामुल इस्लाम - 117 -


अमल या तो नसिच माद्दी है या रूहिी, बनल्क अमल को बजा लािा (या मुहर्रच क) उसे या
तो इस्लामी अहकामात के मुतानबक़ सरअांजाम देिा है या िहीं देिा है।

6.15 मुसलमान के फलये आमाल के अंजामदे ही मे रूह (अल्लाह


से ताल्लुक़) का फलहाज़ ज़रूरी है
र्ुिााँर्े मुसलमाि अगर जांग में अपिे दुशमि को क़मल करे तो इसको नजहाद कहा जाता
है और उसे इसका सवाब नमलता है। क्योंफक यह अमल इस्लामी अहकामात के ऐि
मुतानबक़ है। और अगर मुसलमाि फकसी बेगुिाह मुनस्लम या ग़ैर-मुनस्लम को िाहक़ क़मल
करे तो यह बहुत बडा जुमच है नजसकी उसे सज़ा नमलेगी। क्योंफक उसका यह अमल
अल्लाह तआला के अवानमरो िवाही के नखलाि है। अमल तो दोिों जगह एक ही है,
यािी क़मल और करिे वाला भी एक ही इां साि है। लेफकि क़मल उस वक्त इबादत बि
जाता है, जब इसमें रूह हो, और क़मल उस वक्त जुमच बि जाता है, जब बग़ैर रूह के हो।
नलहाज़ा मुसलमाि पर लानज़म है फक वोह अपिे आमाल को रूह का नलहाज़ करते हुए
सरअांजाम दें।

6.16 माद्दा और रूह को फमलाना िज़फ है


माद्दा और रूह को नमलािा कोई इमकािी बात िहीं, बनल्क यह एक िज़च है। माद्दे (पदाथच)
का रूह से जुदा होिा जायज़ िहीं। यािी कोई भी अमल अल्लाह तआला के अवानमरो
िवाही और उसके साथ तआल्लुक़ के इदराक़ के बग़ैर िहीं होिा र्ानहए। नलहाज़ा हर
उस र्ीज़ को खमम करिा लाज़मी है, नजससे रूहािी पहलू की माद्दी पहलू से जुदाई िज़र
आती हो।

6.17 इस्लामी फनज़ाम को मुल्लाईयत (spiritual authority / धमफतंत्र)


और दु नयवी हु कूमत (temporal authority) मे बांटना हराम है
यही वजह है फक इस्लाम में कोई मज़हबी तबक़ा (ररजाले दीि) िहीं होता, और िा उसमें
मुल्लाइयत (theocracy / spiritual authority) के िाम पर कोई दीिी इनक़्तदार है,
और िा दीि से अलग दुनियावी इनक़्तदार (temporal authority) का कोई तसव्वुर
मौजूद है। बनल्क इस्लाम वोह दीि है नजसे अांदर से ररयासत जन्म लेती हैं। ररयासत से

निज़ामुल इस्लाम - 118 -


मुतआनल्लक़ अहकामें शररया की भी वही हैनसयत है, जो िमाज़ के अहकाम की है।
ररयासत का कयाम ही इस्लामी अहकामात को िाफिज़ करिे और इस्लामी दावत को
दुनिया के सामिे पेश करिे का तरीका है। र्ुिााँर्े हर उस र्ीज़ को खमम करिा वानजब
होता है, नजससे दीि के रूहानियत में महदूद होिे, या नसयासत और हुकू मत के दीि के
जुदा होिे का एहसास होता है। नलहाज़ा उि इदारों को खमम करिा र्ानहए, जो नसिच
रूहािी पहलुओं की निगरािी करते है। इसनलये शोबाऐ मसानजद को खमम करिा र्ानहए
और मनस्जदें शोबाऐ तालीम (नशक्षा नवभाग) के ताबे होिा र्ानहए। इसी तरह शरई
अदालतों और निज़ामी (civil / िागररक / दीवािी) अदालतों की तक़्सीम को खमम करिा
र्ानहए। नसिच एक ही अदालत होिी र्ानहए, जो नसिच इस्लामी अहकामात के मुतानबक़
िै सला करें । क्योंफक इस्लाम में इनक़्तदार एक ही है।
इस्लाम का अक़ीदा भी है और निज़ाम भी। अक़ीदा अल्लाह तआला, फ़ररततों, फकताबों,
रसूलों, आनख़रत के फदि पर ईमाि और कज़ा व क़दर के ख़ैर व शर के अल्लाह की तरि
से होिे पर ईमाि को कहते है। यह उि बातों पर ईमाि है नजिका अक्ल समझ सकती
है। जैसे अल्लाह पर ईमाि, मुहम्मद ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬की िबुव्वत पर ईमाि, क़ु रआि
मजीद पर ईमाि, और यह ऐसी र्ीज़ो पर ईमाि भी है नजि का अक़्ल इदराक़ िहीं कर
सकती। मसलि क़यामत का फदि, मलायका, जन्नत व जहन्नम वग़ैरा। इि र्ीज़ों पर
ईमाि रखिे की बुनियाद यह है फक इिके माखज़ (श्रोत), यािी क़ु रआि और मुतवानतर
अहादीस, अक्ल से सानबत है। इस्लाम िे अक्ल ही को तकलीद की बुनियाद बिाया।

6.18 क़ुरआने करीम और हदीस शरीि, इंसान के मुआमलात


को बहैफसयते इंसान के हल करने के फलये आम मआनी पर
मुततफमल है
निज़ाम वोह शरई अहकामात है, जो इां साि के मुआमलात को मुिज्ज़म करते है। इस्लाम
का निज़ाम तमाम मुआमलात का इहाता करता है। इस्लाम िे इि तमाम मुआमलात का
इहाता आम मआिी और आम शक्ल के साथ फकया है और तिसीलात को इि आम मआिी
से मुस्तनन्बत (deduce) करिे के नलये छोड फदया है के िाफिज़ करते वक्त इि तिसीलात
को अख़ज़ कर नलया जाए। र्ुिााँर्े क़ु रआिे करीम और हदीस शरीि, इां साि के मुआमलात
को बहैनसयते इां साि के हल करिे के नलये आम मआिी पर मुततनमल है।

निज़ामुल इस्लाम - 119 -


6.19 इस्लामी फनज़ाम तफ्सीली अहकामात को अख़ज़ करने का
काम मुज्तहे दीन पर छोड़ा गया है
इि आम मआिी से तफ्सीली अहकामात को अख़ज़ करिे का काम इस्लाम िे मुज्तहेदीि
पर छोडा है और वोह उि मआिी की रोशिी में इि मुनतकलात का हल निकालते हैं, जो
जमािे के गुजरिे और जगहों की तबदीली से पैदा होती है। मुनतकलात को हल करिे के
नलये इस्लाम का एक ही तरीका है। वोह मुज्तनहद को दावत देता है फक वोह पहले िई
पैदा शुदा मुनतकल की अच्छी तरह तहक़ीक़ करें ताफक उसको समझ सके ।

6.20 मुजतफहद का काम : (1) पैदा-शु दा मुख्तकल की अच्छी


तरह तहक़ीक़ (2) मुख्तकल से मुताफल्लक़ शरई नु सूस का मुताला
(3) शरई दलाईल से हु क्मे शरई का इख्स्तम्बात

फिर इस मुनतकल से मुतआनल्लक़ शरई िुसूस का मुताला करे और फिर इि िुसूस से इस


मुनतकल का हल निकाले। यािी इस मसले के नलये शरई दलाइल में से शरई हुक्म
मुस्तिनबत करे और इसके अलावा फकसी और रास्ते को नबल्कु ल इनख्तयार िा करे ।

6.21 इस्लाम इंसानी मसाईल (समस्याओं) को फसिफ इंसानी


मानता है ना की इक़फतसादी (आर्रथक) मसला या इजफतमाई
(सामुफहक) या हु कूमती मसला (समस्या)
वोह (मुजतनहद) जब फकसी मसले का जायज़ा ले तो नसिच यह समझ कर जायज़ा ले फक
यह एक इां सािी मसला है। िा फक यह कोई इक़नतसादी (आर्थचक) या इजनतमाई
(सामुनहक) या हुकू मती मसला है, बनल्क यह एक ऐसा मसला है नजसके बारे में हुक्मे
शरई की ज़रूरत है ताफक इसके बारे में अल्लाह का हुक्म मालूम हो सके ।

निज़ामुल इस्लाम - 120 -


निज़ामुल इस्लाम - 121 -
7. हु क्मे शरई
7.1 हु क्मे शरई की तारीि

बां
दो के अिआल से मुतानल्लक़ शारे (legislator) के नखताब को हुक्मे शरई कहते
है। यह नखताब कभी क़तई अस्सबूत (definitive in evidence) होता है जैसे
क़ु रआि करीम और हदीसे मुतवानतर या ज़न्नी उस्सबूत (speculative in
evidence) जैसे ग़ैर-मुतवानतर हदीसें। अगर यह नखताब क़तई (definitive) हो तो
देखा जाऐगा की यह क़तई उद दलाला (definitive in meaning) भी है या िहीं। अगर
यह क़तई उद दलाला भी हो तो इसमें मौजूद हुक्म क़तई हुक्म होगा।

7.2 क़तई हु क्म मो दो राय नही होती यानी इख्ज्तहाद नहीं फकया
जाता
मसलि िजच िमाज़ों की तमाम रकअतें, क्योंफक यह मुतवानतर हदीसो के ज़ररये मिक़ू ल
है। इसी तरह सूद की हुरमत, र्ोर का हाथ काटिा, जािी को सांगसार करिा, यह सब
क़तई हुक्म है। इिका दुरुस्त होिा यक़ीिी है। इिमें एक क़तई राय के नसवा कोई दूसरी
राय है ही िहीं।

7.3 ज़न्नी हु क्म मे एक से ज़्यादा राय होती है यानी इख्ज्तहाद


होता है
अगर शारे का नखताब सबूत के ऐतबार से तो क़तई हो लेफकि दलालत के (meaning)
ऐतबार से ज़न्नी हो, मसलि नजनज़या की आयत, फक यह सबूत के ऐतबार से क़तई है,
लेफकि दलालत के नलहाज़ से ज़न्नी है। और इस ज़ि की वजह से अहिाि (हििी मस्लक
को माििे वाले) शतच लगाते है फक इसको नजनज़या ही कहा जाऐगा। और नजनज़या देते
वक्त नजनज़या देिे वाले की महकू मी का इज़हार भी ज़रूरी है। लेफकि शवािे (इमाम
शािई को माििे वाले ) यह शतच िहीं लगाते बनल्क इिके िजदीक इसको दुगिी ज़कात

निज़ामुल इस्लाम - 122 -


के िाम से भी वुसूल फकया जा सकता है और देिे वाले की महकू मी का इज़हार भी कोई
ज़रूरी िहीं। बनल्क इसका इस्लामी अहकामात के सामिे झुकिा ही कािी है।

7.4 फरवायत या दलालत मे से फकसी एक मे भी ज़न आने से हु क्मे


शरई ज़न्नी हो जाता है फजसमे राय के इख्ततलाि की गुंजाईश
होती है
अगर शारे का नखताब ज़न्नी (अस्पि) उस्सबूत हो, जैसे ग़ैर-मुतवानतर अहादीस, तो इसमें
मौजूद हुक्म भी ज़न्नी होगा, इस बात से क़तअ िज़र की वोह अपिी दलालत के ऐतबार
से क़तई हो। मसलि शव्वाल के छह रोजे, या उसकी दलालत ज़न्नी है जैसे ज़मीि को
फकराये पर देिे की मुमानियत (मिाही) , क्योंकी यह सुन्नत से सानबत है ।

7.5 हु क्मे शरई (शरीअत या शारे का हु क्म) फसिफ इख्ज्तहाद से


ही मालूम होता है
शारे के नखताब से हुक्मे शरई को समझिा हो तो इज्तेहाद ही इसका ज़ररया है। पस
मुज्तहेदीि के इज्तेहाद से शरई हुक्म का इज़हार होता है। यह ही वजह है फक हर मुज्तनहद
के नलये अल्लाह का हुक्म वोह होता है नजसे वोह इज्तेहाद के ज़ररये मालूम करता है,
और मुज्तनहद को उसके सही होिे का ग़ानलब गुमाि होता।

7.6 मुजतफहद के अपने इजफतहाद के अखज़ करने के बाद फकसी


दूसरे की तक़लीद करन जाईज़ नही फसवाऐ कुछ खास सूरतों
के
नलहाज़ा अगर फकसी मुकल्लि (आफक़ल व बानलग़) के अांदर फकसी मसले या तमाम
मसाइल में इज्तेहाद करिे की सलाहीयत पाइ जाऐ और वोह इज्तेहाद करे और हुक्म
तक पहुाँर् जाऐ, तो इस सूरत में सबका इत्तेिाक है फक इस मुज्तनहद के नलये अपिे ज़ि
के बरनख़लाफ़ कोई और मुज्तनहद की तक़लीद करिा जायज़ िहीं। उसके नलये अपिे ज़ि
को छोडिा भी जायज़ िहीं, नसवाऐ इि र्ार सूरतों के :

निज़ामुल इस्लाम - 123 -


7.6.1 अव्वल: दूसरे मुज्तफहद की दलील के क़वी होने के ज़ाफहर
होने के बाद
जब इस पर यह ज़ानहर हो जाऐ की नजस दलील को उसिे अपिी इनज्तहाद की बुनियाद
बिाया है वोह कमज़ोर है और दूसरे मुज्तनहद की दलील उससे ज्यादा क़वी है। इस हालत
में उस पर वानजब है की वोह उस हुक्म को छोड दे नजस पर वोह अपिे इनज्तहाद के
ज़ररये से पहुांर्ा था और क़वी दलील की बुनियाद पर मबिी हुक्म को इनख्तयार कर ले।

7.6.2 दोम: दूसरे मुजतफहद की 'हक़ीक़त से ज्यादा आगही' या


'शरई अफदल्ला के मुताफल्लक़ उसका िहम ज्यादा क़वी' होने के
एहसास के बाद
जब एक़ मुज्तनहद पर यह बात ज़ानहर हो जाऐ की दूसरा मुज्तनहद रब्त में उससे बढ कर
है या उसे हक़ीक़त से ज्यादा आगही हानसल है और शरई अफदल्ला के मुतानल्लक़ उसका
िहम ज्यादा क़वी है या समई दलाईल (शरई मसाफदर) से ज्यादा मुतला है तो उस सूरते
हाल में उसके नलये जायज़ है के वोह उस हुक्म को तकच कर दे नजस पर वोह खुद इनज्तहाद
के ज़ररये पहुांर्ा और उस मसले में उस मुज्तनहद की तक़लीद कर ले नजसका इनज्तहाद
उसके िज़दीक उसके अपिे इनज्तहाद से ज्यादा क़ानबले मज़बूत है।

7.6.3 सोम: मुसलमानो को जमा करने वाकी राय के मुक़ाबले मे


जब कोई राय मुसलमािो को जमा करिे का सबब हो नजसमें मुसलमािो की मसनलहत
हो तो उस हालत में मुज्तनहद के नलये जायज़ है की वोह अपिी राय को तकच कर दे नजस
पर उस के इनज्तहाद िे उसे पहुर्ाांया और उस हुक्म को इनख्तयार कर ले जो मुसलमािो
को जमा करिे का सबब हो। जैसा की बैत के वक्त उसमाि (रनज़अल्लाहो अन्हो) िे फकया।

7.6.4 चहारम: ख़लीिा के तबन्नी-शु दा शरई हु क्म की इताअत


मुजतफहद पर भी लाफज़म है
अगर ख़लीिा फकसी शरई हुक्म की तबन्नी करे और ख़लीिा का यह हुक्म उस हुक्म के
मुखानलि हो नजस पर वोह मुज्तनहद अपिे इनज्तहाद के ज़ररये से पहुांर्ा है। उस सूरत

निज़ामुल इस्लाम - 124 -


उस पर वानजब है की वोह उस राय पर अमल तकच कर दे नजस पर वोह अपिे इनज्तहाद
के ज़ररये से पहुांर्ा और उस हुक्म पर अमल करें नजस की इमाम (ख़लीिा) िे तबन्नी
(adoption) की है। क्योंफक इस बात पर सहाबा (ररज़वािुल्लाहे अलैयनहम अजमईि)
का इज्मा है की :
“इमाम का हुक्म इनख्तलाि को दूर करता है”
और यह के इमाम का हुक्म तमाम मुसलमािों पर िाफिज़ (लागु) होता है।

7.7 ग़ैर-मुजतफहद के फलये तक़लीद जाईज़ है


कोई ऐसे शख्स, नजसके अांदर इज्तेहाद की सलानहयत तो पाई जाती है, लेफकि वोह खुद
इनज्तहाद िहीं करता, बनल्क फकसी और मुज्तनहद की तक़लीद करता है, तो यह उसके
नलये जायज़ है। क्योंफक इस पर सहाबा (ररज़वािुल्लाहो अलैयनहम अजमईि) का इज्मा
है फक फकसी मुज्तनहद के नलये दूसरे मुज्तनहद की तक़लीद करिा जायज़ है।
नजस शख्स के अन्दर इनज्तहाद की सलानहयत िा पाई जाती हो, वह मुक़नल्लद है।

7.8 मुक़फल्लद की दो फकस्में हैं : मुत्तबीअ और


आम्मी।
7.8.1 मुत्तबीअ : दलील की मारित के बाद मुज्तफहद की
तक़लीद (अनु सरण) करता है
मुत्तबीअ वह है नजसिे इज्तेहाद के नलए मोतबर उलूम में से बाज़ उलूम हानसल फकये हो।
मुत्तबीअ दलील की मारित के बाद मुज्तनहद की तक़लीद (अिुसरण) करे गा। इस
मुत्तबीअ के नलये अल्लाह का हुक्म मुज्तनहद का वोह कौल है नजसकी यह पालिा करे गा
है।

निज़ामुल इस्लाम - 125 -


7.8.2 आम्मी : दलील को समझे बग़ैर ही मुज्तफहद की तक़लीद
करने वाला
आम्मी वोह शख्स है नजसिे इज्तेहाद के नलये मोतबर उलूम में से कोई इल्म हानसल िा
फकया हो। पस वह दलील को समझे बग़ैर ही मुज्तनहद की तक़लीद करे गा। इस आम्मी
पर लानज़म है की वोह मुज्तहेदीि के कौल की तक़लीद करें और उि अहकामात को
इनख्तयार करे नजन्हे मुज्तहेदीि िे मुस्तांनबत फकया हो। क्योंकी उसके हक़ में हुक्मे शरई
वही होगा नजसका उस मुज्तनहद िे इजस्तांबात ( क़ु रआि व सुन्नत से परीणाम प्राि) फकया
हो। र्ुिाांर्े हुक्मे शरई वोह हुक्म है, नजसको ऐसे मुज्तनहद िे मुस्तांनबत फकया हो, जो
इज्तेहाद की सलानहयत रखता हो। वोह इस आम्मी के हक़ में अल्लाह का हुक्म है। उसका
मुखानलि अमल या उसे छोड कर दूसरे मुज्तनहद की तक़लीद आम्मी के नलये जायज़
िहीं। इसी तरह यह उस शख्स के हक़ में भी अल्लाह का हुक्म है, जो उस मुज्तनहद की
तक़लीद करता है। उस शख्स के नलये इसके मुखानलि अमल करिा जायज़ िहीं।

7.9 मुक़फल्लद एक मसले के सारे िुरूअ पर एक ही मुजतफहद


(मज़हब) की तक़लीद कर सकता है और इसमे दूसरे मुजतफहद
की तकलीद जाईज़ नहीं
मुक़नल्लद जब िऐ मसाइल में से फकसी एक मसले में फकसी मुज्तनहद की तक़लीद करे
और उसके कौल पर अमल शुरू कर दे तो अब उस हुक्म में इस मुज्तनहद को छोड कर
फकसी और इनज्तहाद की तरि रुजू करिा उसके नलये नबल्कु ल जायज़ िहीं।

7.10 मुक़फल्लद का मुततफलि मसाईल पर अलग अलग


मुजतफहदीन (मज़ाफहब) की तक़लीद करना जाईज़ है
अलबत्ता वोह इस मसले के अलावा फकसी दूसरे मसले में फकसी भी मुज्तनहद की तक़लीद
कर सकता है क्योंफक यह इजमाऐ सहाबा (ररज़वािुल्लाहो अलैयनहम अजमईि) से
सानबत है फक मुक़नल्लद मुख्तनलि उलेमा की राय मुख्तनलि मसाइल में तलब कर सकता
है। जब एक मुक़नल्लद एक खास मज़हब (मस्लक) पर र्लिा शुरू करे , मसलि वो कह दे
फक मैं शािई (रहमतुल्लानह अलैह) के मज़हब पर हूाँ, तो इसकी यह तिसील है: हर वोह

निज़ामुल इस्लाम - 126 -


मसला नजस पर उसिे इस मज़हब के मुतानबक़ अमल फकया, नजसका वह मुक़नल्लद है,
तो उस मसले में फकसी दूसरे मज़हब की तक़लीद नबल्कु ल जायज़ िहीं। और वोह मसाइल
नजिमें उसिे इस मज़हब के मुतानबक़ अमल िहीं फकया, इिमें वोह दूसरे फकसी भी मज़हब
की राय को इनख्तयार कर सकता है।

निज़ामुल इस्लाम - 127 -


8. अहकामे शफरया की
फक़स्में
8.1 अहकामें शरई - िज़फ, हराम, मंदूब, मकरूह, मुबाह

अ हकामें शरई यह हैं :


*
*
*
िज़च,
हराम,
मांदब
ू ,
* मकरूह
* मुबाह।
शरई हुक्म या तो फकसी िै ल को करिे के बारे में नखताब होगा, या िै ल को तकच करिे के
बारे में।

8.2 िज़फ की तारीि - िैल के करने मे तलब जाफज़म (खास तौर


से ज़ोर दे कर मााँग) का पाया जाना
पस अगर इस नखताब में फकसी िै ल के करिे की तलब मौजूद हो और यह तलब तलबे
जानज़म (क़तई मााँग) हो, तो यह िै ल या अमल िज़च और वानजब होगा। िज़च और वानजब
का एक ही मआिी है।

निज़ामुल इस्लाम - 128 -


8.3 मंदूब की तारीि - िैल के करने मे तलब गैर-जाफज़म (आम
अंदाज़ मे मााँग) का पाया जाना
अगर इस नखताब में फकसी िै ल के करिे की तलब ग़ैर-जानज़म हो तो यह अमल मांदब

होगा।

8.4 हराम की तारीि - िैल को तकफ करने (छोडने ) मे तलब


जाफज़म (खास तौर से ज़ोर दे कर मााँग) का पाया जाना
अगर नखताब में फकसी िे ल के तकच की तलब मौजूद हो और यह तलबे जानज़म (निनच्शत
मााँग) हो तो इस अमल को हराम और महज़ूर कहते है। इि दोिों के भी एक ही मायिे
है। अगर यह तलब ग़ैर-जानज़म हो तो यह मकरूह है।
नलहाज़ा िज़च और वानजब वोह है नजसके करिे वाले की तारीि की जाऐ और िही करिे
वाले की मज़म्मत की जाऐ, या इसके छोडिे वाला सज़ा का मुस्तनहक़ करार पाऐ। हराम
वोह है नजसके करिे वाले की मज़म्मत की जाए और छोडिे वाले की तारीि की जाए या
करिे वाला सज़ा का मुस्तनहक़ हो। मांदब
ू वोह अमल है नजसके करिे वाले की तारीि की
जाए, और छोडिे वाली की मज़म्मत िा की जाए। यािी करिे वाला सवाब का मुस्तनहक़
(हक़दार) हो और छोडिे वला सज़ा का मुस्तनहक़ िा हो। मकरूह वोह अमल है नजसके
छोडिे की तारीि की जाए, या नजसका अमल का छोडिा उस िै ल को करिे से बेहतर
हो। मुबाह वोह अमल है नजसके मुतानल्लक़ समई दलील यह ज़ानहर करें की यहाां शारे ह
का नखताब इां साि को यह इनख्तयार दे रहा है फक ख्वाह वोह यह अमल करे या िा करे ।

निज़ामुल इस्लाम - 129 -


9. सुन्नत
लु ग़त में सुन्नत के मािे हैं तरीका। लेफकि जहााँ तक शरीअत का ताल्लुक़ है तो इस
में सुन्नत से मुराद वोह आमाल हैं जो बतौरे निफ्ल रसूलुल्लाह ‫صىل اهلل عليه وسلم‬
से मिक़ू ल है मसलि सुन्नत रकअतें। इि को िज़च से िक़च करिे के नलये सुन्नत कहा
ज़ाता है। इि को सुन्नत कहिे का मतलब यह िहीं फक यह रकअतें िबी ‫صىل اهلل عليه وسلم‬
की जानिब से है, और िज़च अल्लाह तआला की तरि से। बनल्क सुन्नत और िज़च दोिों
अल्लाह तआला की जानिब से है। रसूलुल्लाह ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬तो नसिच अल्लाह तआला
की तरि से मुबनल्लग़ (पैग़म्बर) है। वोह अपिी ख्वानहशात से कु छ िहीं बोलते बनल्क
यह सब अल्लाह की तरि से वही (revelation) है। पस अगरर्े सुन्नत र्ूांफक िबी ‫صىل اهلل‬
‫ عليه وسلم‬से मिक़ू ल है लेफकि यह आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬बतौरे निफ्ल मिक़ू ल होता है,
इसनलए उसे सुन्नत कहा जाता है। नजस तरह के िज़च आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬से बतौरे िज़च
मिक़ू ल होता है इसनलए उसे िज़च कहा जाता है। र्ुिााँर्े िज्र की दो रकअतें बतौरे िज़च
आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬से मुतवानतर ररवायात के साथ मिक़ू ल है और िज्र की दो सुन्नतें
बतौर सुन्नत िबी ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬से मुतवानतर ररवायात के ज़ररये मिक़ू ल हैं। और यह
दोिों (िज़च और सुन्नत) अल्लाह तआला की तरि से है, रसूललुल्लाह ‫صىل اهلل عليه وسلم‬
की तरि से िहीं। पस इबादत से मुतानल्लक़ अम्र (हुक्म) िज़च या निफ्ल होता है। इबादत
के अलावा दूसरे मुआमलात में कोई अम्र (हुक्म) िज़च या मन्दूब या मुबाह होता है। निफ्ल
और मन्दूब एक ही र्ीज़ है, इसे निफ्ल कहा जाता है और इस पर लफ्ज़ सुन्नत का भी
इतलाक़ होता है।
इसी तरह सुन्नत का इतलाक़ रसूलुल्लाह ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬से साफदर होिे वाले उि शरई
अफदल्ला (evidences/शरई दलील) पर भी होता है, जो क़ु रआि के अलावा है। इसमें
आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬के अक़वाल, अिआल, और इकरार (तक़ारीर) यािी आप ‫صىل اهلل‬
‫عليه وسلم‬का सुकूत (खामोशी) भी शानमल हैं।

निज़ामुल इस्लाम - 130 -


10. रसूलुल्लाह ‫صلى هللا‬
‫ عليه وسلم‬के अिआल को
बतौरे नमूना इख्ततयार
करना

र सूलुल्लाह ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬िे जो अिआल सर अांजाम फदये उि की दो फक़स्में हैं
1: नजनबल्ली (instinctive या फितरी) अिआल, 2: ग़ैर नजनबल्ली अिआल।
जहााँ तक नजनबल्ली अिआल जैसे उठिा, बैठिा, खािा, पीिा वग़ैरा तो इि
अिआल के आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬और उम्मत के नलये मुबाह होिे में फकसी को इनख्तलाि
िहीं। यह ही वजह है फक यह अिआल मन्दूबात में दानखल िहीं।
जहााँ तक ग़ैर नजनबल्ली अिआल का ताल्लुक़ है तो यह या तो रसूल ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬के
साथ खास होंगे यािी यह फकसी दूसरे के नलये िहीं होंगे, और या फिर यह अिआल आप
‫ صىل اهلل عليه وسلم‬के साथ मख़सूस िहीं होंगे। अगर यह अिआल आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬के
साथ मख़सूस हों, जैसे सोमें-नवसाल (फदि रात रोजा रखिा) का आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬के
नलये मुबाह होिा या र्ार से ज्यादा औरतों से आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬का निकाह का
जायज़ होिा वग़ैरा, तो यह अिआल आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬की ख़ुसूनसयात में से हैं। इि
अिआल का करिा हमारे नलये जायज़ िहीं। इि अिआल का आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬के
साथ मख़सूस होिा इज्माऐ सहाबा (रनज़अल्लाहो अन्हुमा) से सानबत है। नलहाज़ा इि
अिआल को बतौरे उसवा (िमूिा) इनख्तयार करिा जायज़ िहीं।

निज़ामुल इस्लाम - 131 -


जो िै ल आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬िे हमारे नलये बयाि फकया हो तो उस िै ल की दलील
होिे में कोई इनख्तलाि िहीं। यह बयाि या तो आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬के सरीह क़ौल की
सूरत में होगा, जैसे आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬िे इरशाद िरमाया :
“िमाज़ इस तरह पढ़ो नजस तरह फक तुम मुझे पढ़ते हुए देखते हो”।
और
“मुझ से अपिे मिानसक (हज वगैरा का तरीका) सीखो”।
यह इस बात की दलील है फक आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬का िै ल हमें बतािे के नलये है, ताफक
हम आप की इनत्तबा करें । या फिर यह हो सकता है फक आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬का बयाि
सरीह क़ौल की सूरत में ि हो, बनल्क अमल के क़रीिे के ज़ररये से हो। जैसा की अल्लाह
तआला के इस इरशाद की बुनियाद पर :

‫فَاق َْطعواُأ َ ْي ِد َيه َما‬


“उि दोिों के हाथ काट दो”
(सूरे अलमायदा)
र्ोर का हाथ कलाई से काटिा, आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬के िै ल में, कौल या कराइिे अहवाल
के ज़ररये बयाि हुआ है। यह वानजब, मांदब
ू या मुबाह होिे से दलील के मुतानबक़ मुबय्यि
का ताबेअ है।
आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬के वोह अिआल, नजि में कोई ऐसी र्ीज़ मौजूद िा हो जो इस
बात पर दलालत करे की आप ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬का यह िै ल हमें समझािे के नलये है, िा
ििी की सूरत में और िा ही इस्बात (जुमच सानबत होिे ) की सूरत में, तो देखा जाएगा
की इि अिआल में (अल्लाह से) क़ु रबत का क़स्द (इरादा) है या िहीं है। अगर इि
अिआल में (अल्लाह की) क़ु रबत का इरादा हो तो वोह मन्दूब में दानखल होंगे। इि
अिआल की अांजाम देही पर इां साि को सवाब नमलेगा और तकच करिे पर सज़ा िहीं होगी,
मसलि र्ातत की निफ्ल िमाज़। अगर इि अिआल में क़ु रबत का इरादा िा हो, तो वोह
मुबाहात में शुमार होंगे।

निज़ामुल इस्लाम - 132 -


निज़ामुल इस्लाम - 133 -
11. अहकामें शफरया की
तबन्नी (Adoption)

स हाबाऐ इकराम (रनज़अल्लाहो अन्हुम) के जमािे में मुसलमाि बज़ाते खुद


फकताब और सुन्नत से शरई अहकाम अख्ज़ फकया करते थे और क़ाज़ी लोगों के
माबेि झगडों का िै सला फकया करते थे, वोह हर पेश आिे वाले वाक़ये से
मुतानल्लक़ शरई अहकामात का बजाते खुद इजस्तांबात करते थे। हुक्मराि भी,
अमीरुलमोनमिीि से लेकर वानलयों तक, िीज़ फदगर हुक्काम, हुक्मरािी के दौराि पेश
आिे वाली फकसी भी मुनतकल को हल करिे के नलये बज़ाते खुद शरई अहकाम को
मुस्तनन्बत फकया करते थे। अबुमूसा अशअरी और शुरीह दोिों काज़ी थे। यह दोिों अहकाम
का इजस्तांबात फकया करते थे और अपिे इनज्तहाद से िै सला करते थे। मआज़ नबि जबल
(रनज़0) रसूलुल्लाह ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬के एहदे मुबारक में वाली थे। वह भी खुद अहकामात
का इजस्तांबात फकया करते थे और अपिी नवलाया (सूबा) में अपिे इनज्तहाद के मुतानबक़
िै सले फकया करते थे। इसी तरह अबुबक्र (रनज़0) और उमर (रनज़0) भी अपिी नख़लाित
में अहकाम का बज़ाते खुद इजस्तांबात करते थे और अपिे-अपिे इजस्तांबात करदा
अहकामात के मुतानबक़ लोगों पर हुकू मत फकया करते थे। इसी तरह माअनवया (रनज़0)
और अम्र नबि आस (रनज़0) वाली थे, यह दोिों भी अहकाम का इजस्तांबात करते थे और
अपिी-अपिी नवलायत में अपिे इनज्तहाद करदा अहकामात के मुतानबक़ लोगों पर
हुकू मत करते थे।
वानलयों और क़ानज़यो के इस इनज्तहाद के साथ-साथ ख़लीिा कु छ खास अहकामात की
भी तबन्नी (adoption) फकया करता था और लोगों को उि पर अमल करिे का हुक्म
देता था। लोग अपिी-अपिी राय और अपिे इनज्तहाद को छोड कर उि पर अमल करते
थे। क्योंफक यह एक शरई हुक्म है फक ख़लीिा का हुक्म ज़ानहरि और बानतिि िाफिज़
होता है। इसी बुनियाद पर अबुबक्र (रनज़अल्लाहो अन्हो) िे यह तबन्नी की फक तीि तलाके
देिे से एक ही वाक़े होती है। आप िे यह भी तबन्नी की फक माल मुसलमािों में मसावी

निज़ामुल इस्लाम - 134 -


(एक जैसे) तौर पर तक़सीम फकया जायगा और तक़सीम के दौराि यह िक़च िहीं फकया
जाएगा के कोइ शख्स पहले मुसलमाि हुआ था या बाद में। र्ुिााँर्े तमाम मुसलमािों िे
आप फक इनत्तबा की और काज़ी और वाली भी आप की इस राय पर र्लते रहे।
फिर उमर (रनज़अल्लाहो अन्हो) िे अपिे दौर में इि दोिों मसाइल में दूसरी राय
इनख्तयार की, जो अबुबक्र (रनज़अल्लाहो अन्हो) की राय के नखलाि थी। उमर िे तीि
दिा तलाक देिे को एक फक बजाय तीि करार फदया और माल को मुसलमािों के
दरनमयाि बराबर तक़सीम करिे के बजाय पहले इस्लाम लािे और फकसी िनज़लत के
मौजूद होिे को मलहूज़ (ध्याि) रखा। र्ुिााँर्े मुसलमािों िे इस मसले में उमर की राय
का अिुसरण फकया और काज़ी और वानलयों िे भी इसी राय के मुतानबक़ अमल फकया।
फिर आप िे यह तबन्नी भी की फक जो ज़मीि जांग में मालेग़िीमत के तौर पर हानसल हो
जाए, उसे उसके मानलकों के पास ही रहिे दी जाए। इसे लडिे वालों या मुसलमािों में
तक़सीम िहीं की जाए। नलहाज़ा क़ाज़ी और वाली आप की इस राय में आप की पैरवी
करते रहे और इस तबन्नी के मुतानबक़ िै सले करते रहे।
इस से मालूम हुआ फक इस पर सहाबाए फकराम का इज्मा हो र्ुका था फक ख़लीिा कु छ
मुतय्यि अहकामात की तबन्नी कर सकता है और उि पर अमल करिे का हुक्म भी दे
सकता है। मुसलमािों पर उसकी इताअत िज़च है अगरर्े यह उिके अपिे इनज्तहाद के
नखलाि हो। र्ुिााँर्े यह मशहूर शरई क़वाइद है फक :
“इमाम का हुक्म इनख्तलाि को खमम करता है”
और :
“इमाम का हुक्म ज़ानहरी और बानतिी तौर पर िाफिज़ होता है”
इसी तरह:

“सुल्ताि िये मसाइल के नलये बक़दरे ज़रूरत िया हल तलाश करता है”.

निज़ामुल इस्लाम - 135 -


यह ही वजह है फक इसके बाद भी खुलिा मख़सूस अहकामात की तबन्नी करते रहे। र्ुिााँर्े
हारूि रशीद िे इक़नतसादी (आर्थचक) पहलू में फकताबुल नखराज की तबन्नी की, और इस
फकताब में मौजूद तमाम अहकामात पर अमल करिे को लोगों पर लाज़मी करार फदया।

निज़ामुल इस्लाम - 136 -


12. दस्तूर व क़ानून

ल फ्ज़ क़ािूि एक अजिबी इनस्तलाह (शब्दावली) है और उि लोगों के िजदीक


इसका मआिी है:
“वोह हुक्म नजसे हुक्मराि साफदर करते है ताफक लोग उस पर र्ले।“
क़ािूि की तारीि यूाँ की गई है फक:

“इां सािो के तआल्लुक़ात के बारे में क़वाइद (नियमों) का वोह मजमुआ (समूह),
नजि की पैरवी करिे पर हुक्मराि लोगों को मजबूर कर दे।”
फकसी भी हुकू मत के बुनियादी क़ािूि के नलये ‘दस्तूर’ का लफ्ज़ इस्तेमाल फकया जाता है।
दस्तूर की बुनियाद पर वुजूद में आिे वाले निज़ाम से निकलिे वाले क़ािूि (अहकामात)
पर भी लफ्ज़ क़ािूि का इतलाक़ होता है। दस्तूर की तारीि यूां की गई है :
“वह क़ािूि जो ररयासत और ररयासत के निज़ामें हुक्मरािी की शक्ल व सूरत
मुतय्यि (निधाचररत) करे , और इिमें मौजूद हर अथोररटी की हुदूद और
नज़म्मेदाररयों को स्पि करे ।” या “दस्तूर वोह क़ािूि है जो अवामी अथोररटी
यािी हुकू मत को मुिज्ज़म करता है और हुकू मत के साथ अिराद के तआल्लुक़ात
की हुदूद मुतय्यि करता है, अिराद पर हुकू मत के हुक़ू क़ और नज़म्मेदारी, और
इस तरह हुकू मत पर अिराद के हुक़ू क़ और नज़म्मेदारी की वज़ाहत
(निशािदेही) करता है।”
दस्तूर मुख़्तनलफ़ तरीक़ो से वजूद में आये। कु छ दस्तूर क़वािीि की शक्ल में मुरनत्तब फकए
गए, बाअज़ दसातीर (दस्तूरों) िे आदात और रस्मो ररवाज से जन्म नलया है, जैसा के
बरतानिया का दस्तूर। इस तरह बाअज़ दस्तूर ऐसे होते है, नजन्हें कौमी असेम्बली की
वोह कमेंटी वज़ा करती है नजसको उस वक्त यह अथोररटी हानसल होती है। वही दस्तूर
वज़ा करती है और वही इस दस्तूर में तब्दीली के तरीक़े कार का ताय्युि करती है। फिर
यह कमेंटी खमम हो जाती है और उसकी जगह वोह अथोररटी ले लेती है जो इस दस्तूर

निज़ामुल इस्लाम - 137 -


की बदौलत वुजूद में आती है, जैसा फक फ्रााँस और अमरीका में हुआ। दस्तूर और क़ािूि
को नजि मसाफदर (स्त्रोत) से अख्ज़ फकया जाता है, उिकी दो अक़साम है। पहला मसदर
(स्त्रोत) वो मिबा है, नजस से दस्तूर व क़ािूि बराहेरास्त िू टते है। जैसे मआशरती आदात,
मज़हब, क़ािूिी मानहरीि की आरा (परामशच), अदालतों के िै सले, अदल व मसावात
(समािता) के उसूल वग़ैरा। इसको क़ािूिी मसदर (legislative sources) कहा जाता
है। इसकी नमसाल मग़ररबी मुमानलक बरतानिया, अमरीका वग़ैरा का दस्तूर है। दूसरा
मसदर तारीख़ी मसदर हैं, नजस से दस्तूर या क़ािूि को अख्ज़ या िक़ल फकया जाता है।
फ्रााँस का दस्तूर और इसी तरह बाअज़ इस्लामी मुमानलक जैसे तुकी, नमस्र, इराक़, शाम
का दस्तूर इस की नमसालें है।
यह लफ्ज दस्तूर और लफ्ज़ क़ािूि की इस्तलाह का खुलासा है। इसका निर्ोड यह है फक
ररयासत मुताअफद्दद मसाफदर से, ख्वाह वोह कािूिी तशरीई मसदर हो या तारीख़ी, कु छ
तय अहकामात को इनख्तयार (तबन्नी) करती है और उि पर अमल करिे का हुक्म देती
है। ररयासत की जानिब से तबन्नी करिे के बाद यह अहकामात दस्तूर बि जाते है। फिर
अगर यह अमूमी (आम) अहकामात हो तो इि को दस्तूर कहा जाता है, और अगर यह
ख़ास अहकामात में से हो तो इि को क़ािूि का िाम फदया जाता है।
आज मुसलमािों को नजस सवाल का जवाब देिा है, वो यह है फक इस इनस्तलाह का
इस्तेमाल जायज़ है फक िहीं? इस का जवाब यह है फक वोह अजिबी अलिाज़, नजिके
इनस्तलाही मआिी हों और यह इनस्तलाह मुसलमािों की इनस्तलाह के मुखानलि हो, तब
इिका इस्तेमाल जायज़ िहीं। मसलि इनज्तमाई अदल (सामुनहक न्याय/social justice)
का लफ्ज़ क्योंफक इससे मुराद एक खास निज़ाम है, नजस का खुलासा यह है फक गरीबों
को तालीमी और नतब्बी (नर्फकनमसय) सहूनलयात की ज़माित दी जाए और मुलानज़मों
और मज़दूरों के हुक़ू क़ की नहिाज़त की ज़माित दी जाए। यह इनस्तलाह मुसलमािों के
इनस्तलाह के नखलाि है। क्योंफक मुसलमािों के िज़दीक अदल ज़ुल्म की नज़द (नवपरीत)
है और तालीम और नतब्बी सहूनलयात की ज़माित तमाम इां सािो के नलये है, र्ाहे वोह
गरीब हो या अमीर। इसी तरह मोहताज और ज़इि (बूढों) के अनधकारों की ज़माित उि
तमाम लोगों के नलये है, जो इस्लामी ररयासत के ज़ेरे साया रहते हो, र्ाहे यह लोग
मुलानज़म हो या िा हों, मजदूर हो या फकसाि या कु छ और। इस के बरअक्स अगर वोह
लफ्ज़ ऐसी इस्तलाह के तौर पर हो नजस का मािी और मिहूम मुसलमािों के यहाां मौजूद

निज़ामुल इस्लाम - 138 -


हो तो उसका इस्तेमाल जायज़ हो, मसलि लफ्ज़ ‘ज़रनबया’ (टैक्स) का लफ्ज। क्योंफक
इससे मुराद वोह माल है, जो ररयासत का इां तजाम र्लािे के नलये लोगों से नलया जाता
है और ररयासत का इां तजाम र्लािे के नलये लोगों से माल लेिे का तरीका मुसलमािों के
यहााँ भी पाया जाता है। इसनलये लफ्ज टैक्स का इस्तेमाल जायज़ है। इसी तरह लफ्ज़े
‘क़ािूि’ और ‘दस्तूर’ के मआिी है फक ररयासत कु छ मख़सूस मुतय्यि अहकामात
इनख्तयार करती है, लोगों के नलये इसका ऐलाि करती है, इस पर अमल करिा लाज़मी
करार देती है और इन्हीं अहकामात के मुतानबक़ लोगों पर हुकू मत करती है। यह
मुसलमािों के यहााँ भी पाया जाता है। र्ुिााँर्े लफ्ज ‘क़ािूि’ और ‘दस्तूर’ के इस्तेमाल में
कोई रूकावट िहीं। र्ुिााँर्े दस्तूर व क़ािूि से मुराद वो अहकाम है, नजिको ख़लीिा
अहकामें शरीया से तबन्नी करे । अलबत्ता इस्लामी दस्तूर व क़वािीि और ग़ैर इस्लामी
दस्तूर और क़वािीि के दरनमयाि बडा िक़च है। क्योंफक ग़ैर इस्लामी क़वािीि और दस्तूर
का मसदर आदात और अदालतों के िै सले वग़ैरा होते है। इिकी तासीस (बुनियाद
डालिा) वोह तासीसी असेम्बली (legislative assembly /नवधाि सभा) करती है जो
दस्तूर वज़ा (बिाती) करती है और अवाम की र्ुिी हुई असेम्बली क़ािूि वज़ा करती है।
क्योंफक इिके िज़दीक अवाम ही ताक़तो-क़ु व्वत का सरर्तमा है और इक़नतदारे -आला
(प्रभुसता) अवाम को हानसल है। जब फक इस्लामी दस्तूर और इस्लामी क़वािीि का श्रोत
नसिच फकताबुल्लाह और सुन्नते रसूलुल्लाह ‫ صىل اهلل عليه وسلم‬है, और इि की तासीस
मुज्तहेदीि के इनज्तहाद से होती है। नजिमें से ख़लीिा मुतय्यि अहकामात की तबन्नी
करता है और उिके ज़ररये हुकू मत करता है, लोगों के नलये इि की पाबांदी करिा लानज़म
होता है। क्योंफक बालादस्ती शरीअत को हानसल है और शरई अहकामात के इजस्तांबात
के नलये इनज्तहाद करिा तमाम मुसलमािों का हक़ है। इनज्तहाद िज़े -फकिाया है, और
अहकामात को इनख्तयार करिे (तबन्नी करिे) का हक़ नसिच ख़लीिा को हानसल है।
यह बहस क़ािूि और दस्तूर के अलिाज़ के इस्तेमाल होिे के हवाले से थी। जहााँ तक
अहकामात की तबन्नी की ज़रूरत के सुबूत की बात है, तो मुसलमाि अबुबक्र ‫ریض اللہ عنھ‬
के दौर से लेकर आनखरी ख़लीिा के दौर तक, मख़सूस अहकामात की तबन्नी करिे और
उि अहकामात पर अमल का हुक्म देिे के उसूल पर क़ायम रहे। हााँ। अलबत्ता यह तबन्नी
मख़सूस अहकामात की होती थी, और यह इि तमाम आम अहकामात की तबन्नी िहीं
हुआ करती थी, नजिके मुतानबक ररयासत हुकू मत र्लाती थी। ररयासत िे बाअज़ अदवार

निज़ामुल इस्लाम - 139 -


(दौर )के अलावा कभी आम अहकामात की तबन्नी िहीं की। आम अहकामात की तबन्नी
की नमसाल यह है फक अय्यूनबयों िे शािई मज़हब की तबन्नी की और उस्मािी नख़लाित
िे अबू हिीिा के मज़हब की तबन्नी की।
अब यहााँ यह सवाल पैदा होता है फक एक हमागीर दस्तूर और आम क़वािीि को
इनख्तयार करिा मुसलमािों के मिाद में हैं या उिके मिाद के नखलाि है? इस का जवाब
यह है फक एक हमागीर दस्तूर और तमाम अहकामात के बारे में आम क़वािीि बिािा
नजद्दत पसांदी और इनज्तहाद में मददगार सानबत िहीं हो सकता। यह ही वजह है फक
कु रूिे ऊला यािी सहाबा ‫ریض اللہ عمھن‬, ताबेइि (रह.) और तबेताबेइि (रह.) के ऐहद में
मुसलमाि इस बात से इजनतिाब करते रहे की ख़लीिा तमाम अहकामात की तबन्नी
करे । बनल्क वोह नसिच उि मख़सूस अहकामात की तबन्नी पर इकनतिा करते रहे, जो
वहदते हुक्म (हुकू मत के एक होिे) वहदते तशरीअ (क़ािूि के एक होिे) वहदते इदारा
(इां तेज़ामी उमूर के एक होिे) के नलये िागुज़ीर हो। इस बुनियाद पर कहा जा कसता है
फक नजद्दत पसांदी और इनज्तहाद के िरोग़ के नलये बेहतर यह है फक ररयासत के नलये कोई
ऐसा हमागीर दस्तूर ि हो, जो तमाम अहकामात पर मुततनमल हो। बनल्क ररयासत का
दस्तूर उि आम अहकामात पर आधाररत हो, जो ररयासत की शक्लो सूरत का ताय्युि
करे और उस की एकता की (बक़ा) नवद्यमािता की ज़माित दे। इनज्तहाद और इजस्तांबात
को वानलयों और क़ानज़यो पर छोड फदया जाए। यह उस सूरत में होगा फक जब इनज्तहाद
आम हो और लोग इनज्तहाद कर सकते हो। जैसे के ऐहदे सहाबा ‫ ریض اللہ عمھن‬ताबेइि
(रह.) और तबेताबेइि (रह.) में था। अगर तमाम लोग मुक़नल्लद हों और मुज्तनहद शाज़
ओ िाफदर (मुशफकल) ही पाए जाते हों तो इस सूरत में ररयासत के नलये ज़रूरी है फक वो
ऐसे अहकामात की तबन्नी करे फक नजि के मुतानबक़ ख़लीिा, वाली और क़ाज़ी बगैरा
लोगों पर हुकू मत कर सकें । क्योंफक इस के बग़ैर अल्लाह तआला के िानज़ल करदा
अहकामात के मुतानबक़ हुकू मत करिा मुनतकल हो जाएगा और वाली और क़ाज़ी
मुख्तनलि और मुतज़ाद (परस्पर नवरोधी) तक़लीद का नशकार हो जाऐंगे। तबन्नी तदरीस,
यािी वाक़ये को समझिे और दलील की माररित से हानसल करिे के बाद होगी। इसके
अलावा अगर वानलयों और क़ानज़यो को उिकी अपिे इल्म के मुतानबक़ हुकू मत करिे की
इजाज़त दे दी जाए, तो एक ही ररयासत बनल्क एक ही नवलाया में अहकामात मुख्तनलि
होंगे। बनल्क हो सकता है फक हुकू मत अल्लाह तआला के िानज़ल करदा अहकामात के

निज़ामुल इस्लाम - 140 -


मुतानबक़ ही िा हो। इसनलये इस्लामी ररयासत पर लाज़मी है फक वोह आज मुसलमािों
फक इस्लाम से अदम-आगाही (unawareness/अिनभग्यता) का इदराक़ करते हुए खास
अहकामात की तबन्नी करे । यह तबन्नी मुआमलात और उकू बात (सजाओं) के बारे में होिा
र्ानहए, िा फक अकाइद और इबादात के बारे में, और यह तबन्नी तमाम अहकामात के
नलये आम िोइय्यत की होिी र्ानहए। ताफक ररयासत के मुआमलात मुिज्ज़म हो सके
और मुसलमािों के तमाम उमूर शरई अहकामात के मुतानबक़ सरअांजाम पाए। इसनलये
ररयासत जब भी अहकाम की तबन्नी करे और दस्तूर और क़वािीि वज़ा करे , तो नसिच
और नसिच अहकामें शरीया की इत्तेबा करे । इसके अलावा फकसी और र्ीज़ को अख्ज़ ि
करें । बनल्क फकसी र्ीज़ का अध्ययि भी िा करे । नलहाज़ा अहकामें शरीया के अलावा
कोई और र्ीज़ को इनख्तयार िहीं फकया जाएगा। इससे कतए िज़र फक वो र्ीज़ इस्लाम
के नवपरीत है या इस्लाम से मुवाफिक़त (समािता) रखती है। र्ुिााँर्े ररयासत अनशया
को हुकू मती तहवील (custody/नहरासत/परीरक्षा) में ले लेिे की पानलसी को इनख्तयार
िहीं कर सकती, बनल्क वोह अवामी नमनल्कयत (जि सांपत्ती) के अहकामात को ही
इनख्तयार करे गी। इसनलये हर वोह र्ीज़ नजस का ताल्लुक़ फिक्र और तरीक़े से है उस में
वोह लाज़मी तौर पर शरई अहकामात ही की पैरवी करे गी। अलबत्ता वोह क़वािीि और
निज़ाम, जो फिक्र और तरीक़े से तआल्लुक़ िहीं रखते, और उि से नज़न्दगी से मुतानल्लक़
कोई ख़ास िुक्ता-ऐ-िज़र का इज़हार िहीं होता, मसलि इां तेज़ामी क़वािीि या इदारों
की तरतीब और ढााँर्े या इस फक़स्म की दूसरी र्ीज़े, तो यह वसाइल (सांसाधि) और
उसलूब (शैली) में शुमार होते हैं। यह साांइस, सिअत (उद्योग) और िु िूि (तकिीक) की
तरह है। ररयासत इन्हें इनख्तयार करके लोगों के उमूर की देखभाल की तांज़ीम (प्रबन्ध)
कर सकती है। जैसा फक उमर नबि खमत्ताब ‫ رضي هللا عنه‬िे फकया फक जब आप िे
दिानतर (दफ्तरों) को तरतीब देिा र्ाहा तो आपिे इस तरतीब को िारस वालों से अख्ज़
फकया। यह इन्तेज़ामी और िन्नी अनशया िा तो दस्तूर है, िा ही क़वािीिे शरीया है। यह
दस्तूर में दानखल िहीं। इसनलये यह इस्लामी ररयासत की नज़म्मेदारी है फक इसका दस्तूर
अहकामें शरीया यािी इस्लाम पर मबिी हो, और इसका दस्तूर भी इस्लामी हो और
क़ािूि भी इस्लामी हो। जब ररयासत फकसी हुक्म की तबन्नी करे , तो वोह उसकी तबन्नी
शरई दलील की मज़बूती की बुनियाद पर करे , और उसके साथ-साथ वोह मौजूदा मुनतकल
को भी सही तौर पर समझे। र्ुिााँर्े ररयासत पर लानज़म है की वोह पहले मसले को
अच्छी तरह समझिे के नलये पहले मसले की तहक़ीक़ करे क्योंफक सबसे ज़रूरी र्ीज़

निज़ामुल इस्लाम - 141 -


मसले को समझिा है। फिर इस मसले का हुक्मे शरई मालूम करे । फिर इस हुक्मे शरई
की दलील की मुताला (अध्ययि) करें और फिर दलील की मज़बूती की बुनियाद पर इस
हुक्म की तबन्नी करे । यह शरई अहकामात या तो मुज्तहेदीि में से फकसी मुज्तनहद की
राय की बुनियाद पर इनख्तयार फकये जाएां, नजस की दलील मालूम हो, और उसकी दलील
की क़ु व्वत पर इनममिाि हो। या फिर यह शरई अहकामात फकताबुल्लाह, सुन्नते
रसूलुल्लाह ‫صىل اهلل عليه وسلم‬, इज्माऐ सहाबा ‫ ریض اللہ عمھن‬और फक़यास से शरई
इनज्तहाद के ज़ररये अख़ज़ करके इनख्तयार फकये जाएां। ख्वाह यह इनज्तहाद जुज़ई हो,
यािी यह एक ही मसले पर इनज्तहाद हो। र्ुिााँर्े ररयासत जब माल के बीमा की
मुमानियत (निषेद होिे) की तबन्नी का इरादा करे , तो ज़रूरी है फक वह पहले इस अम्र
की तहक़ीक़ करे फक साज़ो सामाि का बीमा क्या होता है? इसको समझे, फिर नमनल्कयत
के हुसूल (प्रािी) के ज़राऐ की तदरीस करे , फिर नमनल्कयत से मुतानल्लक़ अल्लाह तआला
के हुक्म का बीमें के मसले पर इां तेबाक़ (नमलाि) करे और फिर इसके बारे में हुक्मे शरई
की तबन्नी करे । यह ही वजह है फक दस्तूर और हर क़ािूि के नलये एक इनब्तदाइया
(प्रस्ताविा) का होिा ज़रूरी है जो इस मज़हब (मसलक) की वज़ाहत करे नजस से वोह
क़ािूिी दिा ली गई हो और इस दलील की वज़ाहत करे नजस पर एतमाद फकया गया
हो। या इस दलील की वज़ाहत करे नजस से इस क़ािूिी दिा का दुरुस्त इनज्तहाद के
ज़ररए इजस्तांबात ( क़ु रआि हदीस से परीणाम प्राि ) फकया गया हो, ताफक मुसलमािों
को यह मालूम हो फक ररयासत दस्तूर और क़वािीि से मुतानल्लक़ नजि अहकामात की
तबन्नी करती है, वह अहकामें शरीया है और उन्हें सही इनज्तहाद के ज़ररये मुस्तिनबत
(deduce/परीणाम प्राि) फकया गया हो। क्योंफक मुसलमािों पर ररयासत के अहकामात
की इताअत इस सूरत में िज़च है जब ररयासत के तबन्नी करदा अहकामात अहकामें शररया
पर आधाररत हो। इस बुनियाद पर ररयासत दस्तूर और क़वािीि के नलये ज़ररये अहकामें
शरीया की तबन्नी करती है, ताफक वोह इि अहकामात ज़ररये उि लोगों पर हुक्मरािी
करे , जो इसके ज़ेरे साया रहते है।
बतौरे नमसाल हम मुसलमािों के सामिे आलमें इस्लाम के नलये इस्लामी ररयासत के
दस्तूर का मुजूज़ा (तयकरदा) खाका रखते हैं, ताफक वह इसे पढ़ें और उस इस्लामी
ररयासत के क़याम के नलये अमली कोनशश करें जो दुनिया के सामिे इस्लामी दावत पेश
करे गी। यहााँ यह बात पेशे िज़र रहे की यह मजूज़ा दस्तूर फकसी खास मुल्क के नलये िहीं

निज़ामुल इस्लाम - 142 -


या उस का मक़सूद कोई ख़ास इलाक़ा या ख़ास नखत्ता िहीं है, बनल्क यह दस्तूर इस्लामी
दुनिया की इस्लामी ररयासत के नलये है।

निज़ामुल इस्लाम - 143 -


13. मसौदा- ए -दस्तूर
13.1 आम अहकामात

द िा िां. 1: इस्लामी अक़ीदा ही ररयासत की बुनियाद है, यािी ररयासत की


साख्त, उसके ढ़ाांर्े, उस का मुहानसबा या कोई भी ऐसी र्ीज़ जो ररयासत से
मुतानल्लक़ हो, वो इस्लामी अक़ीदे ही की बुनियाद पर होगी। दस्तूर और शरई
क़वािीि की बुनियाद भी यह ही अक़ीदा है। दस्तूर और क़वािीि से मुतानल्लक़ नसिच
उस र्ीज़ को क़ु बूल फकया जाऐगा, जो इस्लामी अक़ीदे से प्राि फकया गया हो।
दिा िां. 2: दारूलइस्लाम वोह मुल्क है जहाां इस्लामी अहकामात िाफिज़ हो और उस
का अमि व सुरक्षा इस्लामी क़ु व्वत के बल बूते पर हो। दारूलकु फ्र वोह है जहाां कु फफ्रया
निज़ाम िाफिज़ हो या उसकी अमाि व तहफ्िु ज़ इस्लाम के अलावा फकसी और क़ु व्वत
के मरहूिे नमन्नत (अहसािमन्द) हो।
दिा िां. 3: ख़लीिा मुतय्यि शरई अहकामात की तबन्नी (adopt) करे गा जो दस्तूर और
क़वािीि होगें। ख़लीिा जब फकसी हुक्मे शरई की तबन्नी करे तो नसिच यही हुक्मे शरई
होगा नजस पर अमल करिा अवाम पर िज़च होगा। यह उसी वक्त िाफिजुल अमल क़ािूि
बि जाएगा नजस पर अमल दरआमद अवाम में से हर िदच पर जानहरि ओर बानतिि
िज़च होगा।
दिा िां. 4: ख़लीिा इबादात में से ज़कात और नजहाद के नसवाऐ, फकसी मुतय्यि हुक्मे
शरई की तबन्नी िहीं करे गा। िा वोह इस्लामी अक़ीदे से मुतानल्लका अफ्कार में से फकसी
अफ्कार की तबन्नी करे गा।
दिा िां. 5: वोह तमाम अिराद, जो इस्लामी ररयासत की शहररयत के हानमल हो, उन्हें
तमाम शरई हुक़ू क़ हाांनसल होंगे और उन्हें अपिे शरई िराइज़ पूरे करिे होंगे।
दिा िां. 6: ररयासत के नलए नबल्कु ल जायज़ िहीं फक वोह अपिे शहररयों के बीर् हुकू मती
मुआमलात, अदालती िै सलों, लोगों के मुआमलात की देखभाल और फदगर मसाइल में
से फकसी फकस्म का इनम्तयाज़ी (भेदभाव वाला) सुलूक बरते। बनल्क ररयासत की

निज़ामुल इस्लाम - 144 -


नज़म्मेदारी है फक वोह अपिे तमाम अिराद को रां ग, िस्ल और दीि से क़तअ िज़र एक
ही िज़र से देखे।
दिा िां. 7: ररयासत उि तमाम अिराद पर, जो इस्लामी ररयासत के शहरी हों, र्ाहे
वोह मुनस्लम हों या ग़ैर-मुनस्लम, हस्बे ज़ेल (िीर्े नलखे) तरीक़े से इस्लामी शरीअत
िाफिज़ करे गी:
(अ) मुसलमािों पर बग़ैर फकसी इनस्तसिा (ररयायत) के तमाम इस्लामी अहकामात
िाफिज़ करे गी।
(ब) ग़ैर-मुनस्लम जो भी अक़ीदा रखें और नजस तरह र्ाहे इबादत करे , उिसे उस के
मुतानल्लक़ पूांछताछ िहीं की जाऐगी।
(स) ररयासत मुतचदीि (दीि से फिर जािे वालों) पर मुतचद के मुतानल्लक़ अहकामात
लागू करे गी बशते के वो खुद मुतचद हुए हों। लेफकि अगर वह मुतचदीि की औलाद हो
और पैदाइशी ग़ैर-मुनस्लम हों तो उिके साथ ग़ैर-मुनस्लमों का सा मुआमला फकया
जाऐगा। यािी सूरते हाल के मुतानबक वोह मुनश्रक हैं या अहले फकताब।
(द) ग़ैर-मुनस्लमों के साथ खाि-पीि और नलबास के मुआमलात में शरई अहकामात
की हुदूद में रहते हुए उिके दीि के मुतानबक़ मुआमला फकया जाऐगा।
(इ) ग़ैर मुनस्लमों के दर्मचयाि शादी और तलाक के मुआमलात उिके अफदयाि (धमच)
के मुतानबक़ निपटाऐ जाऐंगे और मुसलमािों के साथ ग़ैर मुनस्लमों के यह मुआमलात
इस्लामी अहकामात के मुतानबक़ तय फकए जाएांगे।
(ि) बाक़ी तमाम शरई अहकामात और शरई उमूर, जैसे की मुआमलात, उक़ू बात
(सज़ायें), बयािात, निज़ामें हुकू मत और इक़नतसाफदयात (आर्थचक मुआमलात) वगैरा
को तमाम ररआया पर, ख्वाह वोह मुनस्लम हो या ग़ैर-मुनस्लम, ररयासत बराबरी की
बुनियाद पर िाफिज़ करे गी। इसी तरह मुआनहदीि (अहले मुआनहदा) मुस्तामेंिीि
(इस्लामी ररयासत की अमाि में आिे वाले) और हर उस शख्स पर जो इस्लामी
ररयासत के ज़ेरे साया रहता है, ररयासत इि अहकामात को िाफिज़ करे गी। मानसवा
सिीर (राजदूत), ऐलनर् और उसी तरह के फदगर लोग नजन्हे नसिारती अमाि
हानसल होगी (उिके मुमानलक के साथ फकये गऐ मुआनहदे के मुतानबक़ मुआमला फकया
जाऐगा)।

निज़ामुल इस्लाम - 145 -


दिा िां. 8: अरबी ज़बाि ही र्ूांकी इस्लाम की ज़बाि है, इसनलये ररयासत नसिच अरबी
ज़बाि इस्तेमाल करे गी।
दिा िां. 9: इनज्तहाद िज़े फकिाया है, हर मुसलमाि को इनज्तहाद का हक़ हानसल है
बशते फक उसके अांदर इनज्तहाद के नलये दरकार शराईत पाई जाती हो।
दिा िां. 10: इस्लाम के बारे में तमाम मुसलमाि जवाबदेह है इसनलए इस्लाम में
ररजालेदीि (clerical/धमच अधीकारी) तबक़ा िहीं होता। र्ुिााँर्े ररयासत का िज़च है फक
जब वोह मुसलमािों के अांदर इस फकस्म के रुजहािात महसूस करे तो उन्हें रोक दे।
दिा िां. 11: ररयासत का असल काम इस्लामी दावत का अलमबरदार बििा है।
दिा िां. 12: फकताबुल्लाह, सुन्नते रसूलुल्लाह, इजमाऐ सहाबा और फक़यास ही शरई
अहकामात के नलये मोतबर अफदल्लाह (प्रमाण) है।
दिा िां. 13: (अदालती मुआमलात में) असल बरी उनज्ज़म्मा होिा है, अदालती हुक्म के
बग़ैर फकसी शख्स को सज़ा िहीं दी जाऐगी। फकसी पर तशद्दुद करिा नबल्कु ल जायज़
िहीं और जो इसका मुतफच कब (मुजररम) होगा, उसे सज़ा दी जाएांगी।
दिा िां. 14: अिआल (कमों) की बुनियाद अहकामें शरईया पर अमल करिा है, नलहाज़ा
शरई हुक्म मालूम फकये बग़ैर कोई काम िहीं फकया जाऐगा। इसी तरह अनशया (र्ीज़ो)
में असल इबाहत (permissibility/इज़ाज़त) है, यहाां तक फक फकसी र्ीज़ के हराम होिे
की कोई दलील मौजूद िा हो।
दिा िां. 15: हराम का वसीला (ज़ररया) भी हराम होगा जब की ग़ानलब गुमाि हो फक
यह ज़ररया हराम तक ले जाएगा। अगर नसिच खदशा (अन्देशा) हो के यह ज़ररया हराम
तक ले जाएगा तो वोह हराम िहीं होगा।

13.2 फनज़ामें हु कूमत


दिा िां. 16: हुकू मत का निज़ाम वहदत का होगा, और यह इनत्तहादी (गठबन्धि)
िोइय्यत का िहीं होगा।

निज़ामुल इस्लाम - 146 -


दिा िां. 17: हुकू मत मरकज़ी (के नन्रय) होगी और इां तज़ामी मुआमलात ला मरकनज़यत
की बुनियाद पर होंगे।
दिा िां. 18: हुक्काम र्ार है: ख़लीिा, मुआनविे तिवीज़, वाली और आनमल। इिके
अलावा बाकी सब मुलानज़म है, हुक्काम िहीं।
दिा िां. 19: हुकू मत या हुकू मत से सम्बनन्धत नजिको हुकू मत में शुमार फकया जाता है
र्लािे वाला नसिच आजाद, बानलग़, आफक़ल, आफदल मदच और मुसलमाि ही हो सकता
है और यह की वोह इस काम की सलानहयत रखता हो।
दिा िां. 20: हुक्काम का मुहासबा मुसलमािों का हक़ भी है और यह उि पर िज़े फकिाया
भी है। ररआया के ग़ैर-मुनस्लम अिराद को हुक्मरााँ के ज़ुल्म या इस्लामी अहकामात को
ग़लत अांदाज से िाफिज़ करिे की नशकायत के इज़हार का हक़ हानसल है।
दिा िां. 21: हुक्काम के मुहासबे या उम्मत के ज़ररये हुकू मत तक पहुाँर्िे के नलये
मुसलमािों को नसयासी पारटयााँ बिािे की इजाज़त है, बशते फक यह पारटयााँ इस्लामी
अक़ीदे की बुनियाद पर हों और नजि अहकामात की इि पारटयााँ िे तबन्नी की हो वोह
शरई अहकामात हों। पाटी बिािे के नलये फकसी से इजाज़त लेिे की ज़रूरत िहीं होगी।
ग़ैर-इस्लामी बुनियाद पर हर फकस्म की पाटी साजी ममिू (निषेद) होगी।
दिा िां. 22: हुकू मत की यह र्ार बुनियादी उसूल है:
(अ)इक्ते दारे आला (प्रभूसत्ता) शरीअत को हानसल होगा िा फक अवाम को।
(ब) अथोररटी (इनख्तयार) उम्मत को हानसल होगी।
(स) ररयासत के नलये एक ही सरबराह (ख़लीिा) का तक़रुच र करिा मुसलमािों पर िज़चहै।
(द) नसिच ररयासत का सरबराह (ख़लीिा) ही अहकामें शररया की तबन्नी करे गा ओर वो
ही दस्तूर और तमाम क़वािीि मुरत्तब करे गा।
दिा िां. 23: ररयासत तेरह ढाांर्ो पर पर आधाररत होगी:
(1) ख़लीिा
(2) मोआनविीि (वुज़राऐ तिवीज़/Delegated Assistant)
(3) वुज़राय तििीज़ (Execuation Assiatant)

निज़ामुल इस्लाम - 147 -


(4) वाली (Governors)
(5) अमीरे नजहाद
(6) अन्दरुिी सलामती (Internal Security)
(7) ख़ाररजी उमूर (Foreign Affairs)
(8) सिअत (Industries)
(9) अदनलया (Judiciary)
(10) मिादे आम्मा (आम नहतों) की देखभाल का इां तज़ामी ढाांर्ा
(11) बैतुलमाल (Treasury /राजकोष)
(12) मीनडया (Media)
(13) मजनलसे उम्मत (शूरा और मुहानसबा)

13.3 ख़लीिा
दिा िां. 24: ख़लीिा ही इनख्तयार और शरीअत के नििाज़ में उम्मत का िुमाइन्दा होता
है।
दिा िां. 25:नखलाित आपसी रज़ामांदी व इनख्तयार का अक्द (सन्धी) है। नलहाज़ा फकसी
को नखलाित क़ु बूल करिे या ख़लीिा के इां तेखाब (र्यि) पर मजबूर िहीं फकया जाऐगा।
दिा िां. 26: हर आफक़ल और बानलग़ मुसलमाि को, र्ाहे वोह मदच हो या औरत, ख़लीिा
के र्ुिाव में नहस्सा लेिे और ख़लीिा की बैत करिे का हक़ हानसल है, लेफकि ग़ैर-मुनस्लमों
को र्ुिाव या ख़लीिा की बैअत का कोई हक़ हानसल िहीं।
दिा िां. 27: नजि लोगों की बैअत से नखलाित की स्थापिा होती है अगर वोह लोग
बतौरे खलीिा फकसी एक शख्स की बैअत करें तो बाकी लोगों की तरि से दी जािे वाली
बैअत बैअते इताअत होगी, िा फक बैअते इिअक़ाद (नखलाित की स्थापिा की बैत)।
र्ुिााँर्े नजस शख्स के अांदर सरकशी के इमकािात (लक्षण) िज़र आये और वोह
मुसलमािो की एकता को तोडिे की कोनशश करे तो उसे बैअत पर मजबूर फकया जाऐगा।

निज़ामुल इस्लाम - 148 -


दिा िां. 28: नसिच वही शख्स ख़लीिा हो सकता है नजसे मुसलमाि मुन्तनखब (र्यनित)
करें । फकसी भी शख्स को ख़लीिा के इनख्तयारात उस वक्त हानसल होगे जब दूसरे शरई
उक़ू द (contracts) की तरह उसकी बैअत का अक्द (contract) शरई तौर पर मुकम्मल
हो जाऐ।
दिा िां. 29: वह मुल्क या नखत्ता जो ख़लीिा के हाथ पर स्थापिा बैअते करे , के नलये
शतच है फक उस मुल्क का इनक़्तदार उस का अपिा हो, नजस का इन्हेसार (निभचरता) नसिच
मुसलमािों पर हो और फकसी काफिर ररयासत का उस इनक़्तदार में कोई अमल दखल
िा हो और उस मुल्क की दानखली (आन्तररक) और खाररजी (नवदेशी) अमाि और
मुसलमािों की अमिो सलामती इस्लाम की वजह से हो, िा फक कु फ्र के बल बूते पर। जो
इलाक़े नसिच ख़लीिा की इताअत की बैअत करें उिके नलये यह शतच लाज़मी िहीं।
दिा िां. 30: ख़लीिा के तौर पर नजस शख्स की बैअत की जा रही हो, उसके अांदर
नखलाित की स्थापिा की तमाम शरायत होिी लाज़मी है। अगरर्े उसके अांदर शते
अिज़नलयत िा भी हो, क्योंफक बुनियादी र्ीज़ स्थापिा शतच है।
दिा िां. 31: ख़लीिा के नलये 7 शरायत है और वोह यह है :
वोह मदच हो, मुसलमाि हो, आज़ाद हो, बानलग़ हो, आफक़ल हो, आफदल हो, और वोह
नख़लाित की नज़म्मेदारी को उठािे के क़ानबल हो।
दिा िां. 32: अगर ख़लीिा की मौत, उसके माज़ूल (बखाचस्त) होिे या बखाचस्त फकये जािे
की वजह से नखलाित का पद खाली हो जाऐ तो नजस तारीख को यह पद खाली हो उसके
तीि फदि (उि की रातों के साथ) के अांदर-अांदर दूसरा ख़लीिा मुकरच करिा िज़च है।
दिा िां. 33: (िये ख़लीिा के नियुनक्त के नसलनसले में) उबूरी (अस्थाई) अमीर का तक़रुच र
फकया जायेगा जो मुसलमािो के मामलात की देखभाल करे और मांसबे नखलाित के खाली
होिे के बाद िये खलीिा के तक़रुच र के अमल का आग़ाज़ करे , जो के ये होगा:
(1) मौजुदा ख़लीिा जब यह महसूस करे उस की मौत का वक्त क़रीब है या वोह
इनस्तिा देिा र्ाहता हो, तो उस सूरत में उसे हक़ हानसल है की वोह अस्थाई
अमीर का तक़रुच र करे
(2) अगर उबूरी अमीर के तक़रुच र से क़ब्ल खलीिा का इां तेक़ाल हो जाऐ या वोह
इस्तीिा दे दे या खलीिा के इां तक़ाल या इस्तीिा के अलावा फकसी और वजह

निज़ामुल इस्लाम - 149 -


से मांसबे नखलाित खाली हो जाऐ तो वोह मआनवि (secretary) जो
मआनविीि में से सब से उम्र रसीदा होगा, वोह उबूरी अमीर होगा, नसवाऐ
यह की वोह मआनवि बज़ाते खुद नखलाित का उम्मीद्वार हो। ऐसी सूरत में
वोह मआनवि उबूरी अमीर होगा जो उम्र में उस से कम हो।
(3) अगर तमाम मआनविीि नखलाित के उम्मीद्वार हों तो फिर वुज़राऐ तििीज़
में से सब से सबसे बडी उम्र का मआनवि अस्थाई अमीर होगा ।
(4) अगर तमामतर वुज़राऐ तििीज़ नखलाित के उम्मीद्वार हो, तो वुज़राऐ
तििीज़ में से सब से कम उम्र वज़ीर अस्थाई अमीर होगा।
(5) उबूरी (अस्थाई) अमीर को अहकामात की तबन्नी का इनख्तयार हानसल िहीं
होगा।
(6) उबूरी अमीर अपिी पूरी कोनशश करे गा की वोह खलीिा के तक़रुच र के अमल
को तीि फदि के अन्दर-अन्दर मुकम्म्ल करे । इस मुद्दत की तोसीअ (बढोतरी)
की इजाज़त िहीं, नसवाऐ यह की महकमाऐ मज़ानलम फकसी शदीद सबब की
नबिा पर इस मुद्दत में तोसीअ कर दे।

दिा िां. 34: खलीिा के तक़रुच र का तरीक़ा बैअत है। खलीिा की तक़रुच री और उसे बैत
देिे का अमली तरीक़ा यह है:
(1) महकमातुल मज़ानलम (Court of unjust acts) मांसबे नखलाित के खाली होिे का
ऐलाि करे गा।
(2) उबूरी (अस्थाई) अमीर अपिी नज़म्मेदारी सम्भालेगा और िौरी तौर पर
िामज़दनगयों के खुलिे का ऐलाि करे गा
(3) वोह िामज़दनगया क़ु बूल फक जाऐगीं जो इिेक़ादे नखलाित की शराइत पर पूरी
उतरती हो। इस के अलावा पेश की जािे वाली िामज़दनगयाां महकमातुल मज़ानलम के
िै सले फक नबिा पर मुस्तरद (रद्द) कर दी जाऐगीं.
(4) वोह उम्मीदवार नजि की दरखव्वास्तों को महकमातुल मज़ानलम िे क़ु बूल फकया,
मजनलसे उम्मत (ummah council) के मुसलमाि रुकि (member) इि उम्मीद्वारों
की िे हररस्त को दो मतचबा छटिी करे गें। पहले इनख्तसार (छटिी) में वोह अनक्सररयती

निज़ामुल इस्लाम - 150 -


वोट फक बुनियाद पर छ: लोगों का इन्तेखाब (र्यि) करे गें। दूसरे इनख्तसार में वोह
अनक्सररयती वोट की बुनियाद पर दो उम्मीद्वारों का र्ुिाव करे गें।
(5) उि उम्मीदवार के िाम का एलाि फकया जाऐगा और मुसलमािो को उि दो में से
एक का इां नतखाब करिा होगा।
(6) इस इां तेखाब के ितीजे का ऐलाि फकया जाऐगा और लोगों को आगाह फकया जायगा
फक दोिो में से फकसे ज्यादा लोगों के वोट हानसल हुए है।
(7) वोह शख्स नजसे ज्यादा वोट हानसल हुऐ है, मुसलमाि उसे क़ु रआि व सुन्नत पर
अमल पर बैअत देगें.
(8) बैअत के मुकम्मल होिे के बाद अवामुन्नास (जिता) के नलये इस बात का ऐलाि
फकया जायेगा की कौि मुसलमािो का खलीिा है यहाां तक के यह ख़बर पूरे मुसलमािो
तक पहुांर् जाऐ और इस खबर में खलीिा के िाम का और उि शतोंका ऐलाि फकया
जायेगा नजन्होंिे उसे इस बात का अहल बिाया की उस की नखलाित का इिेक़ाद फकया
गया।
(10) िऐ खलीिा के र्ुिाव के अमल के मुकम्मल होिे के बाद उबूरी अमीर की अथोररटी
इनख्तताम (खाममे) को पहुांर्ेगी।
दिा िां. 35: ख़लीिा के तक़रुच र का इनख्तयार उम्मत को हानसल है। लेफकि जब शरई
तरीक़े से ख़लीिा का इनन्तखाब हो जाऐ तो फिर उम्मत उसे माज़ूल (बखाचस्त) िहीं कर
सकती।
दिा िां. 36: ख़लीिा के पास दज़च ज़ेल इनख्तयारात होते है:
(1) ख़लीिा ही उि अहकामात की तबन्नी (इनख्तयार) करता है, जो लोगों के उमूर की
देखभाल के नलऐ ज़रूरी हो, और यह तबन्नी फकताबो सुन्नत से सही इजनतहाद के ज़ररये
मुसतनन्बत करदा अहकामात की होती है ताकी यह अहकामात क़वािीि बि जाये। इि
क़वािीि पर अमल िज़च होता है। इिकी मुख़ानलित जायज़ िहीं।
(2) ख़लीिा ही ररयासत की खाररजा (external/नवदेशी) और दाखली (internal
/आांतररक) पानलसी के बारे में जवाबदेह होता है। वोह ही िौज का सरबराह (प्रमुख)
होता है। वो ही ऐलािे जांग, सुलह या जांग बांदी का ऐलाि कर सकता है और तमाम
मुआनहदात का इनख्तयार उसी को हानसल होता है।

निज़ामुल इस्लाम - 151 -


(3) ख़लीिा ही बैरूिी सिीरों (नवदेशी राजदूतों) को क़ु बूल या मुस्तरद कर सकता है।
इसी तरह वोह मुसलमाि सिीरों को मुकरच र या बखाचस्त कर सकता है।
(4) ख़लीिा ही मुआनविीि और वानलयों का तक़रुर या उन्हे सुबकदोश (dismiss) कर
सकता है, नजस तरह वोह मजनलसे उम्मत (शूरा) के सामिे जवाबदेह होते है, उसी तरह
ख़लीिा के सामिे भी जवाबदेह होते है।
(5) ख़लीिा ही क़ाज़ीउलकज़ात (Chief Judge), और फदगर क़ानज़यों को मुकरच र या
माज़ूल (बखाचस्त) कर सकता है नसिच एक सूरत में खलीिा क़ाज़ी मज़ानलम (Judge of
Court of Unjust Acts) को माज़ूल िहीं कर सकता जब वोह खलीिा या मआनवि या
क़ाज़ीउलक़ज़ात के नखलाि के स का जाइज़ा ले रहा हो। इसी तरह खलीिा ही मुख्तनलि
नवभागों के डारे क्टरों, िौज के कमाांडरों और सूबों के वानलयों को नियुक्त या बखाचस्त कर
सकता है। यह सब ख़लीिा के सामिे जवाबदेह होते है। यह मजनलसे उम्मत (शूरा) के
सामिे जवाबदेह िहीं होते।
(6) ख़लीिा ही ररयासत के बजट के मुतानल्लक़ अहकामें शरीअत की तबन्नी का इनख्तयार
रखता है और वो ही बजट की मद्दात और आमद व खर्च से सम्बनन्धत रक़मों का तअय्युि
भी करता है।
दिा िां. 37: ख़लीिा क़वािीि की तबन्नी (अपिािे) में अहकामें शरीअत का पाबांद होता
है, र्ुिााँर्े फकसी ऐसे हुक्म की तबन्नी करिा उसके नलये हराम है नजसका उसिे अफदल्लाऐ
शरीआ से सहीह तौर पर इजस्तांबात ि फकया हो। वो अपिे तबन्नी फकये हुए अहकामात
और तरीकऐ इजस्तांबात का भी पाबांद है। र्ुिााँर्े उसके नलये जायज़ िहीं फक वोह फकसी
ऐसे हुक्म की तबन्नी करे नजसका इजस्तांबात का तरीका उस तरीक़े से मुतिाफक़ज़ (टकराव
रखता हो) हो नजसे खलीिा अपिा र्ुका है, और िा ही उस के नलये जायज़ है की वोह
कोई ऐसा हुक्म दे जो उसके तबन्नी करदा अहकामात से टकराता हो।
दिा िां. 38: ख़लीिा को अपिी अच्छी सलाह और अपिे इनज्तहाद के मुतानबक़ लोगों
के मुआमलात की देखभाल करिे का मुकम्मल हक़ हानसल है और उसे उि मुबाहात की
तबन्नी करिे का हक़ भी हानसल है जो ररयासत के मुआमलात को र्लािे और लोगों के
मुआमलात की देखभाल को आसाि बिािे के नलये दरकार हों। उसके नलये यह जायज़
िहीं फक वोह िायदे को दलील बिा कर फकसी हुक्मेशरई की मुख़ानलित करे । मसलि

निज़ामुल इस्लाम - 152 -


उस के नलये जायज़ िहीं की वोह नग़ज़ाई (खािे पीिे की) फक़ल्लत को दलील बिा कर
लोगों को कसरे औलाद (ज़्यादा औलाद पैदा करिे) से मिा करे या वोह इनस्तेहसाल
(शोषण) को रोकिे के िाम पर यािी उस को को दलील बिा कर लोगों के नलये वस्तुओं
की कीमतें मुक़रच र करे , या वोह लोगों के मुआमलात की देखभाल या िायदे को दलील
बिा कर फकसी काफिर या औरत को वाली मुक़रच र करे । इसके अलावा उसे फकसी भी
हालात में अहकामें शरीआ की मुखानलित करिे की इजाज़त िहीं है। फकसी हलाल को
हराम या फकसी हराम को हलाल करार देिा उसके नलये जायज़ िहीं।
दिा िां. 39: ख़लीिा के नलये कोई समय सीमा तय िहीं है। जब तक वोह शरीह की
नहिाज़त, शरई अहकामात की तििीज़ और ररयासत के मुआमलात को र्लािे पर
क़ाफदर है, वोह ख़लीिा है, जब तक की उसकी हालत में कोई ऐसी तब्दीली ज़ानहर िा
हो जाऐ जो उसे मिसबे नखलाित से खाररज कर दे। पस जब उस की हालत में कोई ऐसी
तब्दीली वाके हो जाये तो िौरि उसे बखाचस्त करिा िज़च हो जाता है।
दिा िां. 40: वोह मुआमलात, नजिकी वजह से ख़लीिा की हालत बदल जाती है और
वोह मांसबे नख़लाित का अहल िहीं रहता, वोह तीि हैं :
(1) जब इिअक़ादे नखलाित की शरायत में से कोई शतच मिक़ू द (ग़ायब) हो जाऐ। जैसे
मुतचद होिा, खलीिा से फिस्क़ का ज़हूर होिा, मजिूि (पागल) होिा या इसी फकस्म की
कोई दूसरी सूरत पेश आऐ। क्योंफक यह तमाम शरायत खलीिा के इिअक़ाद की शरायत
भी है और नखलाित के बाक़ी रहिे की शरायत भी है।
(2) खलीिा फकसी भी सबब से नख़लाित के िराइज़ की अांजाम देही से आनजज़ (लार्ार)
हो जाऐ।
(3) वोह इस क़दर मग़लूब हो जाऐ फक अपिी राय से शरीअत के मुआफिक मुसलमािों
के मिादात की नहिाज़त िा कर सके । पस जब उस पर कोई इस हद तक ग़ानलब
(क़ानबज) आ जाये फक वोह अहकामें शरई की रौशिी में बजाते खुद अपिे इनख्तयार और
इरादे से अपिी राय के मुतानबक़ ररआया के नहतों की निगरािी करिे में लार्ार हो जाऐ
तो उसे हुक्मि िराइज़े नखलाित की आदाइगी से आनजज़ समझा जाऐगा। ऐसी सूरत में
वोह इस मांसब का अहल िहीं रहता। इसकी दो सूरते हो सकती है:

निज़ामुल इस्लाम - 153 -


पहली सूरत : इसके मुआनविीि (सहायकों) में से कोई एक िदच या एक से ज़्यादा अिराद
उस पर इस तरह मुसल्लत हो जाऐ फक उस पर अपिी राय ठू स दें। इस सूरत में अगर इि
लोगों से छु टकारा पािे की उम्मीद हो तो उसे एक तय समय तक मोहलत दी जाऐगी।
फिर अगर वोह इि से जाि छु डािे में कामयाब िा हो सके तो उसे माज़ूल (बखाचस्त)
फकया जाऐगा। अगर शुरू ही से छु टकारा पािे की उम्मीद िा हो तो उसी वक्त माज़ूल
फकया जाऐगा।
दूसरी सूरत : वोह फकसी ज़बरदस्त दुतमि के हाथों नगरफ्तार हो जाये। यह नगरफ्तारी
र्ाहे वास्तनवक तौर पर हो या वोह दुशमि खलीिा पर तसल्लुत (प्रभुमव) हाांनसल करले।
इस सूरत में अगर बर् निकलिे की उम्मीद हो तो उसे मोहल्लत दी जाऐगी वरिा उसको
बखाचस्त फकया जाऐगा। अगर शुरू ही से खल्लासी की कोई उम्मीद िा हो तो खलीिा को
िौरि बखाचस्त फकया जाएगा।
दिा िां. 41: नसिच महक़मतुल मज़ानलम ही िै सला कर सकता है फक क्या ख़लीिा की
हालत इस क़दर बदल र्ुकी है नजस की वजह से अब वोह नखलाित के पद के लायक़
िहीं रहा। नसिच और नसिच महक़मतुल मज़ानलम ही को ख़लीिा के हटािे या तांबीह का
इनख्तयार हानसल है।

13.4 मुआफवने तिवीज़ (Delegated


Assistant)
दिा िां. 42: ख़लीिा अपिे नलये मुआनविे तिवीज़ मुकरच र करे गा, जो हुक्मरािी की
नज़म्मेदारी उठाऐगा। पस खलीिा उसे अपिी राय के मुतानबक़ मुआमलात की तदबीर
करिे और अपिे इनज्तहाद के मुतानबक़ मुआमलात निपटािे की नज़म्मेदारी उन्हें सौंपेगा।
जब खलीिा का इां तक़ाल हो जाता है तो मुआनविे तिवीज़ की नज़म्मेदारी भी खमम हो
जाती है। वोह उबूरी (अस्थाई) दौर के खाममे तक अपिी नज़म्मेदारी क़ायम रखते हैं, यहाां
तक के अस्थाई अमीर का दौर अपिे इनख्तताम को पहुांर् जाये।

निज़ामुल इस्लाम - 154 -


दिा िां. 43: मुआनविे तिवीज़ के नलये भी वोह ही शराइत होगी जो ख़लीिा के नलये
है। यािी एक आजाद, आफक़ल, बानलग, मुसलमाि और मदच हो। इसके अलावा उसके
नलये यह शतच भी है फक वोह अपिी नजम्मेदाररयों को उठािे की सलानहयत भी रखता हो।
दिा िां. 44: मुआनविे तिवीज़ को इनख्तयारात सौंपिे की दो शतें है:
(1) उसे उमूमी (general\आम) इनख्तयारात सौंपे जाये।
(2) उसे नियाबत (िुमाईन्दी) हानसल हो। इसनलये ख़लीिा को लानज़मि यह कहिा
र्ानहए फक मैंिे अपिे तमाम इनख्तयारात में तुम्हें अपिा िायब बिाया, या वोह कोई
दूसरे अलिाज़ इस्तेमाल करे जो उमूमी इनख्तयार और नियाबत को ज़ानहर करते हों।
यह तक़रुच र खलीिा को इस बात की इजाज़त देता है के वोह मुआनविे तिवीज़ को जगहों
की तरि भेजे या उन्हे एक जगह से दूसरी जगह या दूसरे काम की तरि भेज दे, इस
अन्दाज़ से जो खलीिा को इस काम में मदद दे। और यह बात इस बात का तक़ाज़ा िहीं
करती की उि की िये नसरे से तक़रुच री फक जाये क्योंफक यह सब काम मुआनविीि के
बुनियादी तक़रुच र में शानमल है।
दिा िां. 45: मुआनविे तिवीज़ पर लानज़म है की वोह नजि मुआमलात का उपाय सुझाये
या नजि अहकाम को िाफिज़ करे , उिसे ख़लीिा को बाखबर रखे ताफक इनख्तयारात के
इस्तेमाल में ख़लीिा और उसके दरनमयाि िक़च हो। इसका काम ख़लीिा को बाखबर
रखिा और ख़लीिा नजि र्ीजों की तििीज़ का हुक्म दे, उिको िाफिज़ करिा है।
दिा िां. 46: ख़लीिा का िज़च है फक वोह मुआनविे तिवीज़ के आमाल और तदाबीर
(योजिाओं) का जायज़ा ले, ताफक उिमें सही को बरक़रार रखे ओर ग़लत का तदारुक
(निवारण) करे । क्योंफक उम्मत के मुआमलात की निगरािी ख़लीिा की नज़म्मेदारी और
उसके इनज्तहाद पर मौक़ू ि (निभचर) है।
दिा िां. 47: जब मुआनविे तिवीज़ फकसी मामले की तदबीर करे और ख़लीिा इसकी
मांजूरी दे दे तो मुआनवि को र्ानहए के वह इस को फकसी कमी पेशी के बग़ैर इस तरह
िाफिज़ करे नजस तरह के ख़लीिा िे मांजूरी दी थी। अगर ख़लीिा फिर इस मामले का
जायज़ा ले और देखे के मुआनवि िे इस अम्र के नखलाि फकया है तो देखा जायेगा के अगर
यह हुक्म फकसी ऐसे मामले से ताल्लुक़ रखता हो नजसे को मुआनवि िे ख़लीिा के िुक्ताए
िज़र के मुतानबक़ िाफिज़ फकया हो या यह हुक्म फकसी ऐसे माल से मुतानल्लक़ हो नजसे

निज़ामुल इस्लाम - 155 -


मुआनवि िे ख़लीिा के तरि से कर फदया हो तो इस सूरत में मुआनवि की राय िाफिज़
उल अमल समझी जाएगी क्योंफक यह दरअस्ल ख़लीिा की राय थी और जो अहकामात
िाफिज़ फकये गये या जो अम्वाल (funds) खर्च फकये गये ख़लीिा इसकी तलािी
(क्षनतपूर्तच) िहीं कर सकता अगर नजस मामले को मुआनवि िे निपटाया हो उस का
तआल्लुक़ ऐसे उमूर के अलावा फकसी और र्ीज़ के साथ हो मसलि फकसी को वाली
मुकरच र करिा या िौज तैयार करिा तो इस सूरत में ख़लीिा इस मुआमले को तबदील
कर सकता है। इस सूरत में ख़लीिा ही की राय िाफिज़ होगी और मुआनवि का िै सला
कालअदम (null and devoid/निरस्त) समझा जायेगा क्योंफक यह ऐसे आमाल हैं की
अगर यह खुद ख़लीिा से भी साफदर हुये हों तो तब भी वह उिका तदारुक (निवारण)
कर सकता है। नलहाज़ा ऐसे मुआमलात में खलीिा अपिे मुआनवि के िै सलों की तलािी
(क्षनतपूती) तो पहले दजे में कर सकता है।
दिा िां. 48: मुआनविे तिवीज़ को फकसी खास मकहमें (department/नवभाग) के साथ
मखसूस िहीं फकया जायेगा क्योंफक इसकी निगरािी आम है। क्योंकी जो लोग इां तज़ामी
मुआमलात को पूरा करते है वोह मुलानज़म (कमचर्ारी) होते है िा की हुक्मराि जब के
मुआनविे तिवीज़ हुक्मराि है। और उसे फकसी खास अमल की सर अांजाम देही के साथ
मखसूस करिा दुरुस्त िहीं, क्योंकी उसकी तक़रुच री आम है।

13.5 मुआफवने तनिीज़ (Execution Assistant)

दिा िां. 49: ख़लीिा अहकामात की तििीज़ के नलये एक मुआनवि मुकरच र करे गा इसका
काम इां तेजामी उमूर से मुतानल्लक़ होता है और इस का काम हुक्मरािी करिा िहीं होता।
इसके दफ्तर का काम ख़लीिा की तरि से दाखली (आांतररक) और खाररजा (बाहरी)
मुआमलात से मुतानल्लक़ जारी होिे वाले अहकामात को िाफिज़ करिा है और इि से
पैग़ामात को खलीिा तक पहुांर्ािा है। गोया मुआनविे तििीज़ ख़लीिा और दूसरों के
बीर् माध्यम का काम करता है। वोह ख़लीिा की तरि से पैगाम लाता है और ख़लीिा

निज़ामुल इस्लाम - 156 -


की तरि िीर्े नलखे मुआमलात से सम्बनन्धत पैगाम ले कर जाता है:
(1) जिता के साथ ताल्लुक़
(2) बैिुल अक़वामी ताल्लुक़ात (अांतराचनिय सम्बन्ध)
(3) िौज या लतकर
(4) फ़ौज के अलावा फदगर ररयासती नवभागों से सम्बनन्धत पैग़ाम रसािी (सांदेश
पहुाँर्ािा)

दिा िां. 50: मुआनविे तििीज़ मुसलमाि होता है क्याफक वोह ख़लीिा के क़रीबी
लोगों में से होता है।
दिा िां. 51: मुआनविे तििीज़ सीधे तौर पर ख़लीिा के साथ होता है नजस तरह के
मुआनविे तिवीज़ होता है। यह नसिच तििीज़ में सहायक होता है हुक्मरािी में िहीं।

13.6 वाली (गवनफ र)


दिा िां. 52: उि इलाक़ो को, जो इस्लामी ररयासत के मातहत हैं कईं एक इकाईयों में
तक़सीम फकया जाता है और हर इकाई को नवलाया (सूबा) कहा जाता है। फिर नवलाया
को कईं इलाक़ों में नवभानजत फकया जाता है और हर इकाई को अमाला कहा जाता है।
नवलाया के सरबराह को वाली या अमीर और अमाला के सरबराह को आनमल या हाफकम
कहा जाता है।
दिा िां. 53 : वानलयों का तक़रूचर (नियुनक्तकरण) खलीिा करता है। उम्माल (आनमलों)
का तक़रूचर खलीिा भी कर सकता है और वाली भी बशते के खलीिा ये इनख्तयार
वालीयों के हवाले करे । वालीयों और आनमलों के नलये वही शराईत हैं जो माअनविीि के
नलये हैं। र्ुिाांर्े इि का मुसलमाि, आफक़ल, बानलग़, आज़ाद , आफदल और मदच होिा
लाज़मी है जो काम इि के हवाले फकये गये हैं इन्हें पूरी तरह से निभािे की क़ाबनलयत
भी शतच है। इि लोगों का इां तेखाब तक़वा और क़ू व्वत की बुनियाद पर होगा।

निज़ामुल इस्लाम - 157 -


दिा िां. 54: वाली को खलीिा के िायब की हैनसयत से अपिे सूबे के नवभागों के तमाम
कामों पर हुक्मरािी और निगरािी का इनख्तयार हाांनसल होता है। गोया वाली को अपिी
नवलाया में वो तमाम इनख्तयारात हाांनसल हैं जो माअनविीि को ररयासत में हाांनसल हैं,
यािी वो अपिी नवलाया का अमीर है। मालयात, अदनलया और िौज को छोडकर हर
र्ीज़ पर उसकी निगरािी होगी, बनल्क पुनलस बतौरे तििीज़ इस के अधीि होगी और
बहैनसयत इदारा इस के मातहत िहीं होगी।
दिा िां. 55: वाली अपिी इमारत से मुतानल्लक़ा उमूर के बारे में नजि िै सलों या
अहकामात पर दस्तखत करे , उिके बारे में वो खलीिा को इत्तलाअ करिे का पाबन्द िहीं
। हााँ इनख्तयारी तौर पर उसे बाखबर कर सकता है । अलबत्ता जब कोई िया मसला पेश
हो तो वो खलीिा के इल्म में लाये बग़ैर उस का िै सला करिे का अनधकारी िहीं । लेफकि
अगर देरी की सूरत में फकसी मामले के नबगड जािे का खतरा हो तो उस मामले को तय
करे गा फिर खलीिा को लाज़मी तौर पर आगाह करे गा और वो असबाब भी बतायेगा
नजि की वजह से वो मुआमले को तय करिे से पहले खलीिा को खबर िहीं कर सका।
दिा िां. 56: हर नवलाया के अन्दर नवलाया में रहिे वालों में से एक कमेंटी (मजनलस)
मुांतनखब की जायेगी। नजसका सरबराह खुद वाली होगा इस कमेंटी को इां तेज़ामी उमूर से
मुतानल्लक़ अपिी राय के इज़हार का इनख्तयार होगा जबके हुकू मती मुआमलात से
मुतानल्लक़ उस के पास ये इनख्तयार िहीं होगा। इसकी इग़राज़ (उद्देशय) दो हैं:
1. मजनलस वाली को नवलाया और उसकी ज़रूररयात के मुतानल्लक़ मुआमलात पैश करे
और उि उमूर पर अपिी राय दे।
2. वाली की हुक्मरािी पर अपिी रज़ामन्दी या नशकायत के इज़हार के नलये
पहले मुआमले में (वाली के नलये) मजनलस की राय पर अमल करिा लानज़म िहीं जबके
दूसरे मुआमले में मजनलस की राय पर अमल करिा लानज़म है। पस अगर मजनलस
नशकायत करे तो वाली को माज़ूल (बखाचस्त) कर फदया जायेगा।
दिा िां. 57: एक नवलाया पर एक ही शख्स का लम्बे समय तक वाली के तौर पर नखदमत
सर अांजाम देिा मुिानसब िहीं। खास तौर जब फकसी एक नवलाया में वो मरकज़ी
(के न्रीय) शनख्सयत बि जाये या इस की वजह से लोगों के फित्ने में पडिे का खतरा हो।

निज़ामुल इस्लाम - 158 -


दिा िां. 58: वाली का एक नवलाया से दूसरी नवलाया में तबादला िहीं फकया जायेगा
क्योंफक उसे मखसूस जगह पर उमूमी (आम) इनख्तयार सोंपा जाता है। अलबत्ता उसे
माज़ूल (बखाचस्त) करके फिर दूसरी जगह पर वाली बिाया जा सकता है।
दिा िां. 59: जब खलीिा वाली को माज़ूल करिा मुिानसब समझे तो उसे माज़ूल कर
सकता है। या फिर मजनलसे उम्मत उस पर अदम एतमाद (अनवश्वास) का इज़हार कर दे
या मजनलस इस से िाराज़गी का इज़हार करें तो उसे बखाचस्त फकया जायेगा। वाली को
नसिच खलीिा ही बखाचस्त कर सकता है।
दिा िां. 60: खलीिा का िज़च है की वो वानलयों के आमाल पर िज़र रखे और उिकी
कडी निगरािी करे । वो उि पर िज़र रखिे के नलये िायब मुक़रच र करे , उिके बारे में
बराबर तितीश करता रहे, वक़्त वक़्त पर वानलयों का एक साथ या अलग अलग
इजलास (सभा) बुलाता रहे और वालीयों के बारे में ररयाया की नशकायत से उन्हें बाखबर
करे ।

13.7 अमीरे फजहाद


युद् नवभाग - अिवाज

दिा िां. 61: युद् नवभाग (शोबाऐ हबच), मुसल्लेह अिवाज (हनथयार बन्द िौज), पुनलस,
असबाब व ज़राये, िौजी मुनहम्मात और लडाई के साज़ो सामाि बग़ैराह पर नज़म्मेदार
होता है। इसी तरह असकरी (िौजी) कॉनलज, कमीशि, िौज की इस्लामी तरनबयत,
और असकरी तरनबयत और जांग या जांगी तैयारी से मुतानल्लक़ हर काम की नज़म्मेदारी
भी युद् नवभाग, के नज़म्मे है।
दिा िां. 62: नजहाद मुसलमािों पर िज़च है। र्ुिाांर्े िौजी तरनबयत लाज़मी है। नलहाज़ा
हर मुसलमाि मदच जब पन्राह साल की उम्र को पहुांर् जाये तो उस पर नजहाद की तैयारी
के नलये िौजी तरनबयत हानसल करिा िज़च है। जहाां तक िौज में भरती होिे का ताल्लुक़
है तो यह िज़े फकिाया है।
दिा िां. 63: िौज की दो फक़स्में हैं:

निज़ामुल इस्लाम - 159 -


पहली: अहनतयाती (reserve/आरनक्षत) िौज : इससे मुराद वोह तमाम मुसलमाि हैं
जो हनथयार उठा सकते हैं।
दूसरी: मुस्तफक़ल (स्थाई) िौज : मुस्तफक़ल िौज की तिख्वाहें फदगर मुलानज़मीि
(कमचर्ाररयों) की तरह ररयासती बजट से दी जाती है।
दिा िां. 64: िौज के नलये अलनवया (अलम) और रायात (झांडो) का ताय्युि फकया
जायेगा। ररयासत का सरबराह (ख़लीिा) नजसे िौज का प्रमुख बिायेगा, उसे अलम अता
करे गा, जबके झांडे नब्रगेड कमाांडसच तक़सीम करे गें।
दिा िां. 65: खलीिा िौज का भी प्रमुख होता है और वही िौज के कमाांडर-इि-र्ीि
की नियुक्ती भी करता है। इसी तरह वोह हर नब्रगेड और हर नडनवज़ि के कमाांडर का
तक़रुच र भी करता है। िौज की बाक़ी तरनबयत उसके उमरा (leaders) और नब्रगेड
कमाांडर करते है जहॉ तक िौज के स्टाि कमाांडसच का ताल्लुक़ है तो इि का तक़रुच र जांगी
तरनबयत की बुनियाद पर होगा और उन्हे कमाांडर-इि-र्ीि मुक़रच र करे गा।
दिा िां. 66: पूरी िौज एक इकाई है और उसे मुख्तनलि छावनियों में रखा जाता है। यह
छावनियाां मुख्तनलि नवलायात (सूबों/राज्यों) में होती है और कु छ छावनियाां जांगी
नहकमते अमली के स्थािों पर होती है। इसी तरह कु छ छावनियाां हमेंशा मुतहर्रच क
(active/सफक्रय) रहती हैं और यह बेपिाह जांगी क़ु व्वत की हानमल होती है। इि
छावनियों को कई मजमूओ में मुिज्ज़म (सांघरटत) फकया जाता है। फिर हर मजमूऐ का
एक खास िौजी िाम रखा जाता है और इसका एक खास िम्बर होता है जैसे यूनिट ि.
1, ि. 2, ि. 3 वग़ैराह या उन्हे सूबों और शहरों के िाम के साथ जािा जाता है।
दिा िां. 67: िौज के नलये हर मुनम्कि आला मेंयार (उच्य स्तर) की िौजी तालीम को
मुनम्कि बिािा और नजस क़दर हो सके उसे फिक्री (वैर्ाररक) तौर पर बुलांद करिा ज़रूरी
है। िौज के हर नसपाही को इस्लामी सांसकृ नत से परीनर्त फकया जािा र्ानहये ताफक
उसके अन्दर इस्लामी बेदारी हो, ख्वाह यह इजमाली (नमली जुली) शक्ल ही में क्यों िा
हो।
दिा िां. 68: यह बात इन्तहाई ज़रूरी है के हर छाविी में ऐसे कमाांडरों की कािी तादाद
मौजूद हों जो िौजी और जांगी उमूर के मानहर हों। जो जांगी मिसूबा (योजिा) बांदी और

निज़ामुल इस्लाम - 160 -


मारकों (जांगो) के बारे में महारत रखते हो। ऐसे कमाांडरों का तिासुब (नियुक्ती) िौज में
मुमफकि हद तक ज्यादा से ज्यादा होिा र्ानहए।
दिा िां. 69: िौज के पास अच्छी खासी तादाद में अस्लहा (हनथयार), आलात
(उपकरण), ज़रूरी साजो सामाि और लवाज़मात का होिा इां तेहाई ज़रूरी है ताफक एक
इस्लामी िौज के तौर पर इसके िरीज़े की अदाएगी में यह र्ीज़े इसके नलये मुआनवि
(मददगार) सानबत हों।

13.8 शोबाए दाखली अमन व सलामती


(आांतररक शाांनत और सुरक्षा नवभाग)
दिा िां.70: आांतररक शाांनत और सुरक्षा नवभाग वो शोबा है जो अम्न व अमाि से
मुतानल्लक हर र्ीज़ का नज़म्मेदार है और हर उस र्ीज़ को रोकिे का नज़म्मेदार है जो
दाखली अमि व सलामती के नलये खतरे का बाइस (कारण) हो। अमि की नहिाज़त
पुनलस के ज़रीये की जायेगी। शोबाए अमि व सलामती िौज को इस मक़सद के नलए
इस्तेमाल िहीं कर सकता, नसवाए खलीिा उसे इस बात की इजाज़त दे दे। इस शोबे का
सरबराह डायरे क्टर बराये दाखली अमि व सलामती होगा हर सूबे (राज्य) में इस
नवभाग की शाख होगी जो दाखली अमि व सलामती का इदारा कहलाएगी और उसका
प्रमुख सानहबे शुरता कहलाएगा।
दिा िां 71: पुनलस की दो फक़स्में हैं:
नमनलटरी पुनलस , जो की अमीरे नजहाद यािी युद् नवभाग के ताबे होगी। पुनलस की
दूसरी फक़स्म जो की अमि व सलामती के तहफ्िू ज़ के नलये अदनलया के हाथ में होगी
और ये आांतररक शाांनत और सुरक्षा नवभाग के ताबे होगी। पुनलस की इि दोिों फक़स्मों को
खास तरनबयत और सक़ाित (culturing) दी जाती है ताकी वो अपिी नज़म्मेदारीयों को
अच्छे तरीक़े से पूरा कर सकें ।
दिा िां. 72: आांतररक शाांनत और सुरक्षा नवभाग बुनियादी तौर पर नजि खतरात की
रोकथाम करे गा वो ये हैं: इरनतदाद (दीि से फिर जािा), बग़ावत और ररयासत के
नखलाि जांग, लोगो की माल और दौलत पर हमले लोगों की जाि और इज़्ज़त पर

निज़ामुल इस्लाम - 161 -


दस्तदराज़ी (हाथ डालिा) और मुशतबा (सांनधग्द) लोगों से निपटिा जो हबी (जांगी)
काफिर के नलये जासूसी करता है।

13.9 शोबाऐ खाफरजा (Department of


Foreign Affairs)

दिा िां. 73: शोबा ए खारजा उि तमाम खारजीउमूर (नवदेशी मुआमलात) को सर


अांजाम देता है नजिका ताल्लुक़ ररयासते नखलाित के फदगर ररयासतो के साथ ताल्लुक़
है। र्ाहे ये ताल्लुक़ात नसयासी िोइय्यत के हो या इनक़्तसादी (आर्थचक) या सिअती
(उद्योनगक) या कृ नष या नतजारती िोइय्यत (फक़स्म) के या इिका ताल्लुक़ात दूरसांर्ार
के ज़ररये सांपकच करिा हो या र्ाहे ये सांपकच डाक के ज़ररये हो या टेली कम्युनिके शि राब्ता
हो या कोई और ।

13.10 उद्योग फवभाग (Department of


Industries)
दिा िां. 74: उद्योग नवभाग (शोबा सिअत) वो महकमा है जो उद्योग से मुतानल्लक़
तमाम मुआमलात का नज़म्मेदार है ख्वाह इस का ताल्लुक़ भारी सिअत से हो जैसे इां जि
और आलात साज़ी (उपकरण बिािा) , गाडीयों के ढााँर्े इलेक्टरोनिक उपकरण और
दूसरी र्ीज़ों के उद्योग या फिर ये हल्के उद्योग हो। वो कारखािे नजिका हबी सिअत
(जांगी उद्योग) से ताल्लुक़ हो इस नवभाग के तहत आते हैं ख्वाह इि कारखािों में तेय्यार
करदा माल आम नमल्कीयत (public properties/जि सांपत्ती) से ताल्लुक़ रखता हो या
इां फिरादी (personal property/निजी सांपत्ती) नमनल्कयत से । तमाम कारखािे जांगी
पॉनलसी की बुनियाद पर आधाररत होिे र्ानहये।

निज़ामुल इस्लाम - 162 -


13.11अदफलया (Judiciary)
दिा िां. 75: अदनलया (शरई अदालत) फकसी मआमले में िै सला साफदर करती है ताकी
उसे िाफिज़ फकया जाऐ। अदनलया के ज़ररये लोगों के आपसी झगडों का िै सला फकया
जाता है या उि झगडों को िौरि रोक फदया जाता है जो समाज के हक़ में िुकसाि देह
है या हुक्मरािो के दरनमयाि पाये जािे वाले फकसी भी तिाज़े (नववाद) को दूर फकया
जाता है र्ाहे वह हाकीम हो या सरकारी मुलानज़म हो या कोई और शख्स।
दिा िां. 76: ख़लीिा फकसी ऐसे शख्स को क़ाज़ी अल-क़ज़ात मुक़रच र करता है जो मदच,
आफक़ल, बानलग़, आजाद, आफदल और मुसलमाि हो और वह िक़ीह भी हो। फिर
इां तेजामी क़वािीि के अन्दर रहते हुए दूसरे क़ानज़यो को मुकरच र करिा, उि से बाज़ पुसच
(पूछताछ) करिा और उन्हे माज़ूल (suspend) करिा क़ाज़ी अल-क़ज़ात का काम है।
जहाां तक महक़माए कज़ात के दूसरे मुलानज़मीि (कमचर्ाररयों) का तआल्लुक़ है तो यह
एक अलहेदा इां तज़ामी इदारे का काम है जो उिके मुआमलात की निगरािी करता है।
दिा िां. 77: क़ानज़यो की तीि फक़स्में है -
(1) क़ाज़ी: जो लोगों के दरनमयाि मुआमलात और उक़ू बात (सजायें) से मुतानल्लक़ झगडों
का िै सला करता है।
(2) क़ाज़ी मुहतनसब: इसका काम उि मतभेदों का िै सला करिा होता है जो समाज को
िुकसाि पहुाँर्ाती है।
(3) क़ाज़ी मज़ानलम: इसका काम अवाम और हुकू मत के दरनमयाि पैदा होिे वाले
तिाज़ात का िै सला करिा है।
दिा िां. 78: नजस शख्स को क़ाज़ी की नज़म्मेदारी सौंपी जाए उसके नलये शतच है फक वह
मुसलमाि, आज़ाद, बानलग़, आफक़ल, आफदल, िक़ीह और उि वाफक़आत से मुतानल्लक़
इस्लामी अहकामात की समझ रखिे वाला हो। क़ाज़ी मज़ानलम के नलए इि शराइत के
अलावा दो और शराइत भी हैं और वह यह फक क़ाज़ी मज़ानलम मदच और मुज्तनहद भी
हो।

निज़ामुल इस्लाम - 163 -


दिा िां. 79: यह बात जायज़ है फक क़ाज़ी और मुहतनसब को हर इलाक़े में तमाम िै सले
करिे की नज़म्मेदारी सौंपी जाए और यह भी जायज़ है फक फकसी खास इलाक़े में ख़ास
फकस्म के िै सले करिे की नज़म्मेदारी इस के हवाले की जाए।
दिा िां. 80: अदालत नसिच एक ऐसे क़ाज़ी पर आधाररत होगी नजसे मुक़दमात के िै सले
का इनख्तयार होगा, इस के साथ दूसरे क़ाज़ी भी हो सकते है, लेफकि उन्हें िै सले का
इनख्तयार हानसल िहीं होगा, बनल्क वोह नसिच मश्वरा और अपिी राय दे सकते हैं, इिकी
राय पर र्लिा भी क़ाज़ी के लाज़मी िहीं।
दिा िां. 81: क़ाज़ी के नलये अदालत के अलावा कहीं और िै सला करिा जायज़ िहीं,
िीज़ गवाही और क़सम भी वहीं मोतबर होगी जो अदालत में दी गई है।
दिा िां. 82: िै सलों की िोइय्यत के एतबार से अदालतों के दजाच बन्दी हो सकती है,
र्ुिााँर्े बाज़ क़ानज़यो को कु छ ख़ास िोइय्यत के िै सलों के नलये मख़सूस फकया जा सकता
है। इिके अलावा फदगर उमूर को दूसरी अदालतों के सुपुदच फकया जा सकता है।
दिा िां. 83: अपील कोटच, सेशि कोटच का कोई वुजूद िहीं होता, फकसी मुकदमें का िै सला
एक ही मतचबा और अटल होता है जब क़ाज़ी फकसी िै सले का ऐलाि करे तो वह उसी
वक्त िाफिज़ुल-अमल (फक्रयाांनवत) हो जाता है, फकसी भी दूसरे क़ाज़ी का िै सला इस
िै सले को खमम िहीं कर सकता। मानसवाये जब वह क़ाज़ी इस्लाम के अलावा फकसी और
बुनियाद पर िै सला दे या फकताबो सुन्नत या इज़माऐ सहाबा की क़तई िस के नखलाि
िै सला दे, या इस का िै सला वाक़ये की हक़ीक़त के नख़लाि हो।
दिा िां. 84: क़ाज़ी मुहतनसब वह क़ाज़ी होता है जो ऐसे तमाम मुकदमात पर िज़र
रखता है नजि का ताल्लुक़ हुक़ू क़े आम्मा (जि अनधकार) से हो और नजि में मुद्दइ (दावा
करिे वाला) िा हो, बशते के वह हुदूद और नजिायात (इस्लामी सजाओं) में दानखल िा
हो।
दिा िां. 85: मुहतनसब को जैसे ही फकसी वाक़ये का इल्म हो तो वह िौरि उसके बारे में
हुक्म साफदर (लागू) कर सकता है ख्वाह फकसी भी जगह हो। उसे िै सला साफदर करिे के
नलये मजनलसे अदालत की ज़रूरत िहीं, उसके अहकामात को िाफिज़ करिे के नलये
उसके मातेहत (अधीि) पुनलस के अिराद होगें और उसका हुक्म िौरी तौर पर िाफिज़ुल-
अमल होगा।

निज़ामुल इस्लाम - 164 -


दिा िां. 86: मुहतनसब अपिे नलये ऐसे िायब (secratery/सहायक) र्ुि सकता है जो
मुहतनसब होिे की शराइत पर पूरे उतरते हो, वह उन्हें मुख्तनलि इलाकों में िै ला देगा,
इि िाइबीि को अपिे-अपिे इलाक़ो या मौहल्लों में नजि उमूर के िै सले उिके सुपुदच
फकये जायेगें उिके मुतानल्लक़ मुहतनसब का िरीज़ा सरअन्जाम देिे का मुकनम्मल
इनख्तयार हानसल होता है।
दिा िां. 87: क़ाज़ी मज़ानलम वह क़ाज़ी होता है नजसका तकरुच र ररयासत के जेरे साया
जजांदगी गुज़ारिे वाले हर शख्स पर होिे वाले ररयासती ज़ुल्म का तदारूक (रोकथाम)
करिे नलए होता है ख्वाह वह शख्स ररयासत की ररयाया में से हो या िा हों। यह ज़ुल्म
ख्वाह ररयासत के सरबराह (प्रमुख) की तरि से हो या उसके अलावा फकसी और हाफकम
या सरकारी मुलानज़म की जानिब से।
दिा िां. 88: ख़लीिा या क़ाज़ी उल कज़ात क़ाज़ी मज़ानलम को नियुक्त करे गा। जहाां तक
क़ाज़ी मज़ानलम के मुहासबे (जवाब तलबी), उसकी बाज़ पुसच (पूछ गज) या उसे हटािे
का ताअल्लुक़ है तो यह ख़लीिा या क़ाज़ी अल क़ज़ात करता है, बशते फक ख़लीिा िे
क़ाज़ी अल क़ज़ात को यह इनख्तयार फदया हो, लेफकि जब वह ख़लीिा मुआनविे तिवीज़
या क़ाज़ी उलकज़ात के ज़ुल्म पर गौर कर रहा हो तो उस वक्त उसे बखाचस्त करिा दुरूस्त
िहीं। इस सूरत में ये इनख्तयार महकमतुल मज़ानलम को हाांनसल है।
दिा िां. 89: क़ाज़ी मज़ानलम कोई एक शख्स या र्ांद अिराद िहीं बिते बनल्क ररयासत
का प्रमुख मज़ानलम को खमम करिे के नलये हस्बे ज़रूरत नजतिी तादाद मुकरच र करिा
र्ाहे, कर सकता है लेफकि सीधे तौर पर िै सले के दौराि नसिच एक ही क़ाज़ी को िै सले
का इनख्तयार होगा। िै सले की मजनलस में एक से ज्यादा क़ाज़ी मज़ानलम का बैठिा
जायज़ है, लेफकि उन्हें नसिच मशवरे का इनख्तयार होगा। इस (िै सला करिे वाले क़ाज़ी)
के नलए उि की राय पर अमल करिा भी लाज़मी िहीं।
दिा िां. 90: महकमतुल मज़ानलम को ररयासत के फकसी भी हाफकम या मुलानज़म को
बखाचस्त करिे का हक़ हाांनसल है जैसा फक उसको खलीिा को बखाचस्त करिे का हक़
हानसल है और यह उस सूरत में है, जब उस ज़ुल्म को दूर करिे के नलये खलीिा को हटािा
लाज़मी हो जाये।

निज़ामुल इस्लाम - 165 -


दिा िां. 91: महकमतुल मज़ानलम फकसी भी फकस्म के ज़ुल्म का जायज़ा लेिे का इनख्तयार
रखता है र्ाहे यह ज़ुल्म ररयासती ढाांर्े के अिराद से मुतानल्लक़ हो या ख़लीिा की तरि
से अहकामें शरीअत की मुखानलित के हवाले से हो या ख़लीिा के अपिाए हुए दस्तूर व
क़ािूि या दूसरे शरई अहकामात के तअय्युि के नसलनसले में फकसी शरई िस की
मुखानलित के मुतानल्लक़ हो, या फिर इस का ताल्लुक़ टैक्स वग़ैराह के नििाज़ से हो।
दिा िां. 92: महकमतुल मज़ानलम में िा तो मजनलसे अदालत का होिा शतच है और िा
ही मुद्दई अलैय (नजस पर दावा फकया गया है) को बुलािे या फकसी मुद्दई (दावा करिे
वाले) की मौजूदगी शतच है। बनल्क महकमातुल मज़ानलम को ज़ुल्म पर िज़र रखिे का हक़
है, ख्वाह कोई भी दावा िा करे ।
दिा िां. 93: हर इां साि को झगडे (खुसूमत) और फदिा (रक्षा) दोिों सूरतों में फकसी को
अपिा वकील बिािे का हक़ है। ख्वाह वह (वकील) मुसलमाि हो या ग़ैर-मुनस्लम, मदच
हो या औरत, इस मुआमले में वकील और मोवफक्कल में कोई िक़च िहीं होगा। वकील के
नलए अपिी वकालत की उजरत लेिा जायज़ है उजरत दोिों (वकील और मोवफक्कल) की
रज़ामांदी से मुकरच र होगी।
दिा िां. 94: हर वह शख्स जो खास आमाल को अन्जाम देिे का इनख्तयार रखता हो
मसलि वसी (निगराां) और वली (सरपरस्त) या उसके पास आम आमाल की अांजाम देही
का इनख्तयार हो जैसे ख़लीिा का मुकरच र करदा सरबराह (प्रमुख) , हाफकम, मुलानज़म,
क़ाज़ी मज़ानलम और मोहतनसब, दोिो अपिे बर्ाव या झगडे (खुसूमत) के नलए फकसी
को अपिा वकील बिा सकता है, यह वकालत भी वसी, वली या ख़लीिा या हाफकम या
मुलानज़म या क़ाज़ी मज़ानलम और मोहतनसब के एतबार से होगी। इस से कोई िक़च िहीं
पडता फक वह मुद्दई हो या मुद्दई अलैय।
दिा िां. 95: वोह मुआनहदात (सनन्धयााँ), मुआमलात और मुक़द्दमात जो के नखलाित से
पहले हुए और उि से सम्बनन्धत िै सलों को नख़लाित के क़याम से पहले िाफिज़ फकया
जा र्ुका, नख़लाित की अदनलया उन्हे मांसूख िहीं करे गी और उन्हें तरामीम (सांशोधि)
की ग़रज़ से दौबारा िहीं देखेगी नसवाय:
(1) इस्लाम के नख़लाि उि का असर अब भी मौजूद हो, ऐसी सूरत में उिको सांशोधि
की ग़रज़ से दौबारा देखिा वानजब होगा।
(2) जब फकसी िै सले का ताअल्लुक़ इस्लाम और मुसलमािो को िुक़साि पहुांर्ािे से हो,

निज़ामुल इस्लाम - 166 -


जो के नपछले हुक्मरािों या उि के हवाररयो से वक़ू अ पज़ीर (प्रकट) हुये हो। ऐसी सूरत
में खलीिा को यह हक़ हानसल है की वोह दोबारा इि मुक़द्दमात की समाअत करे ।

13.12 इन्तेजामी ढााँचा )The State


Departments(
दिा िम्बर 96: ररयासती मुआमलात को र्लािे और लोगों के जिनहत की सुरक्षा करिे
के नलये मुख्तनलि महकमें, नवभाग, और इदारे होते हैं नजि की नज़म्मेदारी ररयासत के
मसाइल को हल करिा और लोगों की ज़रुररयात पूरी करिा है।
दिा िम्बर 97: मिादे आम्मा के महकमें, नवभाग और इदारे , निज़ाम में सादगी,
नज़म्मेदाररयों को जल्दी निपटािे और क़ाबनलयत की पानलसी की बुनियाद पर क़ायम
होंगे।
दिा िम्बर 98: हर उस शहरी को नजस के अन्दर क़ाबनलयत हो, ख्वाह वह मदच हो या
औरत, मुसलमाि हो या ग़ैर-मुनस्लम, मिादे आम्मा के फकसी नवभाग या फकसी इदारे का
प्रमुख मुक्करच र फकया जा सकता है और वह इस इदारे में मुलानज़म हो सकता है।
दिा िम्बर 99: हर महकमें के नलये एक मुांतनज़में आला (उच्य व्यवस्थापक) होगा। हर
नवभाग और सांस्था का एक सरबराह (director/प्रमुख) होगा जो इस नवभाग और इदारे
के मुआमलात को र्लाऐगा, और इस पर सीधे तौर पर नज़म्मेदार होगा। यह डारे क्टसच
अपिे काम के मुतानल्लक़ मुांतनज़में आला को जवाबदह होंगे जो के नवनभन्न नवभागों,
इदारों और इां तेज़ानमया पर नज़म्मेदार होते है जबके क़वािीि और आम ज़ाब्तो के
मुतानल्लक़ वोह डारे क्टसच वाली और आनमल को जवाबदेह होंगे।
दिा िम्बर 100: जि नहत के दफ्तरों, नवभागों और सांस्थाओं के प्रमुख नसिच फकसी
इन्तेज़ामी सबब की नबिा पर बखाचस्त फकये जा सके गें। अलबत्ता उन्हें एक काम से िाररग
करके दूसरे काम पर लगािा जायज़ है। उन्हें फकसी काम से रोकिा भी जायज़ है। उि का
तक़रुच र, उि की तबदीली, उन्हें काम से रोकिा, उि की बाज़पुसी करिा और उन्हें

निज़ामुल इस्लाम - 167 -


सुबुकदोश (बेताल्लुक़) करिा उि के इदारे या उि के महकमें के आला इन्तेज़ामी सरबराह
(मुन्तनजमें आला) का काम है।
दिा िम्बर 101: सरबराहों (प्रमुखों) के नसवा जो कमचर्ारी हैं, उि की नियुनक्त, उि की
तबदीली, उन्हें काम से रोकिा, उि की इस्लाह और उन्हें हटािे की नज़म्मेदारी उि के
महकमों, नवभागों या इदारों के मुन्तनज़में आला (chief administrator) के सर है।

13.13 बैतुलमाल (राजकोष /Treasury)


दिा िां. 102: बैतुलमाल का नवभाग हाांनसल होिे वाले धि और उि के खर्च का इां तेज़ाम
अहकामें शरीअत के मुतानबक़ करे गा, यािी उि का जमा करिा, उिकी नहिाज़त और
उन्हे खर्च करिा। बैतुलमाल का प्रमुख खानज़िे बैतुलमाल कहलाता है। हर नवलाया में
बैतुलमाल की शाखें होगी और हर शाख का सरबराह (प्रमुख) सानहबे बैतुलमाल
कहलाऐगा।

13.14 मीफडया (Media)


दिा िां. 103: मीनडया वोह नवभाग है जो ररयासत की मीनडया पॉनलसी जारी करता है,
और उसे िाफिज़ करता है ताफक इस्लाम और मुसलमािो के नहतों को पूरा फकया जाए।
दानखली तौर पर यह एक ताक़तवर और मुत्तनहद (एकीकृ त) व मरबूत (बन्धा हुए)
इस्लामी समाज की स्थापिा करता है, जो गन्दगी को निकाल बहार करे और पाक र्ीज़ों
को बढावा दे। बाहरी तौर पर यह इस्लाम को अमि और जांग के दौराि इस अन्दाज़ से
पेश करता है जो इस्लाम की अज़मत, उसके अदल, और उस की िौजी क़ु व्वत को ज़ानहर
करे और इां सािो के बिाऐ हुए निज़ामों के िसाद और ज़ुल्म को बयाि करे और उि की
अिवाज की कमज़ोरी को आशकार (परीनर्त) करे ।

निज़ामुल इस्लाम - 168 -


दिा िां. 104: वोह लोग नजि के पास ररयासत की शहररयत मौजूद है, उन्हे अपिा
नमनडया खोलिे की इजाज़त है। इस बात के नलये उन्हे ररयासत की इजाज़त की ज़रुरत
िहीं। बनल्क ‘इल्मो खबर’ (मीनडया नवभाग) को इनत्तला दे देिा ही कािी है की वोह फकस
तरह का मीनडया खोलिा र्ाह रहा है। इस मीनडया का मानलक और एडीटसच इस पर
िशर (छप कर जारी) होिे वाली हर मीनडया या खबर के नज़म्मेदार होंगे। और ररयासत
के फकसी भी शहरी के मानिन्द, मीनडया या िशर या शाये होिे वाली फकसी र्ीज़ के
शरीअत के नखलाि होिे पर इिका भी मुहानसबा फकया जायेगा।

निज़ामुल इस्लाम - 169 -


13.15 मजफलसे उम्मत )Ummah Council(
दिा िां. 105: वह अिराद जो राय के नलहाज़ से मुसलमािों की िुमाइन्दगी करते हैं और
नजि की तरि ख़लीिा रुजु करता है उन्हें मजनलसे उम्मत कहा जाता है। हुक्मरािों के
मज़ानलम की नशकायत या इस्लामी अहकामात को ग़लत तरीक़े से िाफिज़ करिे की
नशकायत की गरज़ से ग़ैर-मुनस्लम भी मजनलसे उम्मत के रुक्न (सदस्य /member) बि
सकते हैं।
दिा िां. 106: हर नवलाया में रहिे वाले लोग अपिी मजनलसे नवलाया के अराकीि
(िुमाईन्दे) का र्ुिाव सीधे तौर पर र्ुिाव के ज़ररये करे गें। नवलायात की मजनलस के
मेंबराि की तादाद नवलाया में रहिे वाले लोगों की तादाद फक नबिा पर होगी। मजनलसे
उम्मत के मेंम्बराि का र्ुिाव उि मजानलसे नवलायात से सीधे तौर पर फकया जाएगा।
मजनलसे उम्मत की इब्तदा और इन्तेहा की मुद्दत वही होगी जो के नवलायात की
मजानलस की होगी।
दिा िां. 107: हर आफक़ल व बानलग शख्स जो ररयासत का शहरी हो, को मजनलसे
उम्मत का सदस्य बििे का हक़ हानसल है। ख्वाह वह मदच हो या औरत, मुसलमाि हो या
काफिर, अलबत्ता ग़ैर-मुनस्लम सदस्यों का मशवरा शासको के अमयार्ारों या इस्लामी
अहकामात की ग़लत तरीक़े पर लागू करिे की नशकायत तक सीनमत होगा।
दिा िां. 108: शूरा और मशवरा का मतलब मुतलक़ (आज़ाद) अन्दाज में राय लेिा है
और जब अमली मुआमलात के मुतानल्लक़ राय ली जाये, तो उस पर अमल करिा लानज़म
है। जबके क़ािूि को मुरत्तब (जमा ) करिा, क़वािीि की तारीि, फिक्री उमूर जैसे
हक़ाईक़ से पदाच उठािा और िन्नी (टेक्नोलोजी) और साइन्सी उमूर (वैज्ञानिक मुआमलात)
के मुतानल्लक़ मश्वरे पर अमल करिा खलीिा के नलये लानज़म िहीं है।
दिा िां. 109: शूरा नसिच मुसलमािों का हक़ है। इस में ग़ैर-मुनस्लमों को कोई हक़ िहीं।
लेफकि इजहारे राय का हक़ ररआया के तमाम अिराद ख्वाह मुनस्लम हों या ग़ैर-मुनस्लम,
सब को हानसल है।
दिा िां. 110: वह मसाइल जो अमली मामलात के तहत आते हो और उि के मुतानल्लक़
मशवरे नलये जाए, तो फिर ऐसी सूरत में अक्सररयत की राय को इनख्तयार फकया जायेगा,

निज़ामुल इस्लाम - 170 -


कताअ िज़र इस के फक वह दुरूस्त है या ग़लत। वह मुआमलात नजि का ताल्लुक़
क़वािीि मुरत्तब (जमा) करिे, फिक्री मुआमलात या तारीिात से हो उि में देखा जायेगा
के दुरूस्त क्या हैं? और इस बात को िज़र अन्दाज कर फदया जायेगा के यह अक्सररयत
की राय है या अक़नल्लयत की।
दिा िां. 111: मजनलसे उम्मत को पाांर् इनख्तयारात हानसल होंगे:
(1-A) खलीिा मजनलसे उम्मत से मश्वरा करे गा और मजनलसे उम्मत खलीिा को अमली
इक़दाम और उि अमली मुआमलात और उमूर में मश्वरा देगी, नजि का ताल्लुक़ लोगों के
उमूर की देखभाल से मुतानल्लक़ अन्दरुिी पॉनलसी से हो और नजस में गहरी िज़र और
जाांर् पडताल की ज़रुरत िहीं होती। जैसे की हुकू मत को र्लािा, तालीम, सेहत,
नतजारत, सिअत व ज़राअत (कृ नष) वग़ैराह। ऐसी सूरत में खलीिा के नलये मजनलस की
राय पर अमल करिा लानज़म होगा।
(1-B) वो मुआमलात, नजस का ताअल्लुक फिक्री (वैर्ाररक) मुआमलात से है, नजि के
नलये गहरी िज़र और जाांर् पडताल की ज़रुरत होती है, और वोह मुआमलात, जो तज़ुबे
और इल्म के मोहताज हैं, िीज़ साइन्सी और टेकनिकल उमूर, मानलयाती उमूर, अिवाज
और खारे जा (नवदेशी) पॉनलसी से मुतानल्लक़ उमूर, इि तमाम मुआमलात में खलीिा
मशवरा लेिे के नलये मजनलसे उम्मत की तरि रुजूअ करे गा और इि मुआमलात में
मजनलस की राय पर अमल करिा खलीिा पर लाज़मी िहीं।
(2) खलीिा दस्तूर और क़वािीि के नलये नजि अहकामात की तबन्नी का इरादा करे तो
उसे र्ानहये की इि अहकामात को मजनलसे उम्मत के सामिे रखे। मजनलसे उम्मत के
मुनस्लम अराकीि को इि के बारे में बहस व मुबानहसे का हक़ हानसल है, और वह यह
की वोह इि अहकामात के दुरुस्त और ग़लत पहलुओं को बयाि करे । और अगर वोह
खलीिा के साथ इस बात में इनख्तलाि करे फक खलीिा का तरीक़ाए तबन्नी, अहकामें
शरीअत की तबन्नी से मुतानल्लक़ ररयासत के तरीक़े के मुखानलि है, तो यह मोआमला
महकमातुल मज़ानलम के सामिे पेश होगा और इस में महकमातुल मज़ानलम की राय पर
अमल करिा लानज़म होगा।
(3) मजनलसे उम्मत को तमाम मुआमलात में ररयासत के मुहासबे (जवाब तलबी) का
हक़ हानसल है। ख्वाह उि मुआमलात का ताअल्लुक खारीजा (नवदेशी मुआमलात) से हो
या यह दानखली उमूर (आांतररक मुआमलात) से हो, या मानलयात, िौज और फदगर उमूर

निज़ामुल इस्लाम - 171 -


से मुतानल्लक़ हों। इस नसलनसले में मजनलस की राय को इनख्तयार करिा लानजमी होगा,
अगर इि मुआमलात का ताल्लुक़ ऐसे उमूर से हो नजि में अक्सररयत की राय को
इनख्तयार करिा लानज़म होता है। और अगर इस मुआमले का ताल्लुक़ उि उमूर से हो
नजस में अक्सररयत की राय पर अमल करिा लानज़म िहीं होता तो मजनलस की राय
पर अमल करिा लाज़मी िा होगा।
अगर मजनलस खलीिा के साथ, फकसी ऐसे अमल पर शरई िुक़्ताऐ िज़र फक नविा पर
मतभेद करे , जो की अपिे अन्जाम को पहुांर् र्ुका है, तो फिर इस सूरत में महकमातुल
मज़ानलम की तरि रुजूअ फकया जायेगा। और महकमातुल मज़ानलम इस बात का िै सला
करे गा की यह िै सला शरई था या िहीं और महकमातुल मज़ानलम की राय पर अमल
करिा लानज़म होगा।
(4) मजनलसे उम्मत वानलयों और मोआनविीि और उम्माल (आनमलों) के बारे में
िापसन्दीदगी का इज़हार कर सकती है। इस मुआमले में उसकी राय पर अमल करिा
ज़रूरी होगा और ख़लीिा को लानज़म है की वो िौरि उन्हे माज़ूल (बखाचस्त) कर दे।
अगर इस मुआमले में मजनलसे उम्मत की राय, उस नवलाया की मजनलसे नवलाया फक
राय के नखलाि हो तो उस सूरत में मजनलसे नवलाया की राय मुक़द्दम होगी।
(5) मजनलसे उम्मत के मुसलमाि अराकीि को नख़लाित के उम्मीद्वारो की काांट-छाांट
करिे का हक़ हानसल है नजि के मुतानल्लक़ महकमातुल मज़ानलम िे िै सला दे फदया हो
की वोह शते इिअक़ाद पर पूरा उतरते हैं। इस मुआमले में मजनलस फक राय पर अमल
करिा लानज़म है और मजनलस के काांट-छाांट करदा उम्मीद्वारो के नसवा, फकसी का
इां तेखाब दुरुस्त िा होगा।

निज़ामुल इस्लाम - 172 -


13.15 सामाफजक व्यवस्था (Social System)

दिा िां. 112: बुनियादी तौर पर औरत मााँ है और घर की नज़म्मेदार है। वह एक ऐसी
आबरू (अस्मत) है, नजसकी नहिाज़त िज़च है।
दिा िां. 113: बुनियादी उसूल यह है के मदच और औरत अलग-अलग हों और वोह फकसी
ऐसी ज़रूरत के नसवा इकठ्ठे हो सकते हैं नजस की शरीअत िे इजाज़त दी हो, मसलि
नतजारत के नलये या नजस शरई ज़रूरत के नलये इजनतमाअ िागुज़ीर (लाज़मी) हो,
मसलि हज।
दिा िां. 114: औरत के भी वही हुक़ू क़ हैं जो मदच के है, और औरत पर भी वही िराइज़
हैं जो मदच पर हैं। नसवाय उिके जो इस्लाम िे उसके साथ खास फकये है। इसी तरह मदच के
भी कु छ खास िराइज़ हैं जो शरई दलाइल से सानबत है। र्ुिाांर्े औरत को नतजारत, कृ नष
और उद्योग का हक़ हाांनसल है। वो ऊकू द (contracts/समझोते) और मुआमलात की
निगरािी कर सकती है। उसे हर फकस्म की सांपनत्त रखिे का भी हक़ हानसल हैं। वह अपिी
दौलत को खुद या फकसी के ज़ररये तरक्क़ी दे सकती है। नज़न्दगी के तमाम मुआमलात
(मसाइल) को खुद बराहेरास्त निपटा सकती है।
दिा िां. 115: सरकारी िौकररयों पर औरत की नियुनक्त जायज़ है। महकमातुल मज़ानलम
को छोड कर अदनलया की बाकी नजम्मेदाररयाां निभािा भी उसके नलये जायज़ है। औरत
मजनलसे उम्मत के नलये अराकीि (सदस्य) र्ुि सकती है और खुद भी उस की सदस्य बि
सकती है। इसी तरह ख़लीिा के र्ुिाव और उसकी बैअत में भी शरीक हो सकती है।
दिा िां. 116: औरत हुक्मराि िहीं बि सकती। र्ुिाांर्े वो खलीिा, महकमातुल
मज़ानलम का क़ाज़ी, वाली, आनमल और कोई ऐसा ओहदा कबूल िहीं कर सकती नजस
पर हुक्मरािी का इत्तलाक़ होता हो। इसी तरह औरत के नलये क़ाज़ी अलक़ु ज़ात बििा
और अमीरे नजहाद बििा जायज़ िहीं।
दिा िां. 117: औरत की नज़न्दगी दो दायरों में है: सावचजनिक जीवि (public life) और
निजी जीवि (private life)। र्ुिाांर्े सावचजनिक जीवि में वह औरतों, महरम और ग़ैर-
महरमों के साथ नज़न्दगी गुजारती है। लेफकि उस की शतच ये है से इस सूरत में उस का

निज़ामुल इस्लाम - 173 -


र्ेहरा और हथेनलयों के नसवा दूसरा कोई नहस्सा ज़ानहर िा हो। िा इज़हारे ज़ीित हो
और िा बेपदचगी हो। जब के निजी जीवि में औरत के नलये नसिच औरतों और महररम के
साथ नज़न्दगी गुजारिा जायज़ है। इस सूरत में अज़िबी मदो के साथ रहिा जायज़ िहीं।
नज़न्दगी गुजारिे की इि दोिों सूरतों में वह अहकामें शरीअत की पाबन्द है।
दिा िां. 118: औरत के नलये ग़ैर-महरम के साथ नखलवत (तांहाई में रहिा) मिा है। इसी
तरह गैरों के सामिे इज़हारे ज़ीित और अपिे सतर को खोलिा भी मिा है।
दिा िां. 119: मदच और औरत दोिों को हर उस काम से रोका जायेगा जो अख्लाक के
नलये खतरिाक और समाज में िसाद का सबब हो।
दिा िां. 120: अज़्दवाजी (शादीशुदा) नज़न्दगी इतनमिाि की नज़न्दगी होिी र्ानहये और
ज़ौजैि (बीवीयों) के बीर् ररिाकत (दोस्ती) होिी र्ानहए। शौहर के औरत पर क़व्वाम
होिे का मतलब औरत की देखभाल है, िा के औरत पर हुक्मरािी करिा। बीवी पर शौहर
की इताअत िज़च है। मदच पर बीवी के नलये हलाल तरीक़े से रोटी कपडे का इां तेज़ाम करिा
भी िज़च है।
दिा िां. 121: घर के कामों में नमयाां बीवी को पूरी तरह से सहयोग करिा र्ानहये। घर
से बाहर के तमाम काम शोहर के नज़म्मे है। घर के अन्दरूिी काम हस्बे इस्तताअत (ताक़त
के अिुसार) औरत के ऊपर हैं। नजि कामों को करिे पर बीवी क़ाफदर िा हो तो उस के
नलये खाफदम (िौकर) मुहय
ै ा करिा खानवन्द की नज़म्मेदारी है।
दिा िां. 122: छोटे बच्चों की परवररश औरत का िज़च भी है और उस का हक़ भी, ख्वाह
वह औरत मुनस्लम हो या ग़ैर-मुनस्लम। जब तक बच्चे की परवररश की ज़रूरत है, ये उसकी
नज़म्मेदारी है। जब बच्चे को उसकी ज़रूरत िा रहे तो देखा जायेगा के दूध नपलािे वाली
और वली दोिों मुसलमाि है या िहीं। अगर दोिों मुसलमाि हों तो छोटे बच्चे को
इनख्तयार फदया जायेगा के वह नजस के साथ रहिा र्ाहे रहे। छोटा बच्चा र्ाहे लडकी हो
या लडका, उससे कोई िक़च िहीं पडता। अगर दूध नपलािे वाली और वली में से कोई एक
ग़ैर-मुनस्लम हो तो बच्चे को इनख्तायार िहीं होगा बनल्क उसे मुसलमाि के हवाले फकया
जायेगा।

निज़ामुल इस्लाम - 174 -


13.16 आथफव्यवस्था (Economic System)
दिा िम्बर 123: इक़नतसादी (आर्थचक) पानलसी ये है के ज़रूररयात को पूरा करते वक्त
इस बात को मद्दे-िज़र रखा जाये के फकि र्ीज़ों पर समाज का दारोमदार है। र्ुिाांर्े
ज़रुररयात को पूरा करिे के नलये इस र्ीज़ को बुनियाद बिाया जायेगा नजस पर मुआशरे
का दारोमदार है।
दिा िम्बर 124: (अस्ल) आर्थचक मसले दौलत और मुिािे को ररयासत के तमाम
अिराद में बााँटिा और अवाम को इस क़ानबल बिािा के वोह कोनशश करे के इि अम्वाल
से िायदा उठा सकें ।
दिा िम्बर 125: तमाम अिराद को िदचि-िदचि (एक एक करके ) तमाम बुनियादी
ज़रुररयात को पूरा करिे की ज़माित देिा लाज़मी है। उसी तरह इस बात की भी ज़माित
दी जायेगी की हर िदच इि ज़रुररयात को हानसल कर सके नजि के ज़ररये वह अपिे मेंआरे
नज़न्दगी को बेहतर बिा सके ।
दिा िम्बर 126: माल नसिच अल्लाह तआला की नमनल्कयत (सांपनत्त) है, उसी िे बिी-
िूउ इां साि को माल में अपिा जािशीि बिाया है और उसी आम जािशीिी की वजह से
इां साि को नमनल्कयत का हक़ हानसल है। अल्लाह तआला ही िे िदच को इस माल पर
नमनल्कयत का इनख्तयार (इजाज़त) फदया। र्ुिाांर्े इस इजाज़त की वजह से इां साि
नबलिे ल माल का मानलक बि गया।
दिा िम्बर 127: नमनल्कयत (property) की तीि इक़साम (फक़स्में) हैं। इिफिरादी
नमनल्कयत (individual property), अवामी नमनल्कयत (public property), और
ररयासती नमनल्कयत (state property)।
दिा िम्बर 128: व्यनक्तगत सांपनत्त एक शरई हुक्म है। उस का ताअल्लुक ऐि (अस्ल) या
मििअत (लाभ प्रानि) से है। उस नमनल्कयत का तक़ाज़ा है के सहाबे माल को माल से या
माल के ऐवज़ िायदा उठािे का इनख्तयार हानसल हो।
दिा िम्बर 129: जि सांपनत्त से मुराद यह है की समाज को नमले जुले तौर पर ऐि
(अस्ल) से िायदा उठािे की शरई इजाज़त है।

निज़ामुल इस्लाम - 175 -


दिा िम्बर 130: हर वो माल, नजसे खर्च करिा ख़लीिा और उसके इनज्तहाद पर मौकू ि
(निभचर) है, वह ररयासत की नमनल्कयत है, मसलि टैक्स, नखराज और नजनज़ये से हानसल
होिे वाले अम्वाल।
दिा िम्बर 131: इिफिरादी नमनल्कयत (निजी सांपनत्त), ख्वाह वह अमवाले मन्क़ू ला
(र्ल सांपनत्त) हों या ग़ैर-मन्क़ू ला (अर्ल सांपनत्त) वह इि पाांर् शरई अस्बाब (साधिों) से
हानसल की जा सकती हैं:
(1) अमल (काम)
(2) मीरास (नवरासत)
(3) जाि बर्ािे के नलये माल हानसल करिा
(4) ररयासत की तरि से अपिे धि में से जिता को देिा
(5) वह धि, नजन्हे व्यनक्त फकसी माल के बदले या जद्दोजहद के बग़ैर हानसल करें ।

दिा िम्बर 132: नमनल्कयत में तसरुच ि (इनख्तयार) शरे ह की इजाज़त पर निभचर है।
ख्वाह यह तसरुच ि माल को खर्च करिे से मुताअनल्लक़ हो या नमनल्कयत में इज़ािा
(बडोतरी) करिे के हवाले से। र्ुिाांर्े इसराि (िू जूल खर्ी), िमूदो-िुमाइश (फदखावे की
अलामत), कन्जूसी, सरमायादारािा कम्पनियााँ, ताऊिी अन्जुमिें (कोआपरे रटव
सोसायटीज़) और तमाम नख़लािे शरअ मुआमलात ममिूअ (prohibited) हैं। इसी तरह
सूद, गबिे िानहश, ठगी, ज़खीरा-अन्दोज़ी, जुआ और इस जैसी सभी फदगर र्ीज़े
नमनल्कयत के तसरुच ि के नलय ममिूअ है।
दिा िम्बर 133: उशरी ज़मीि वह है जहााँ के रहिे वाले (मानलक) इस ज़मीि पर रहते
हुये ईमाि लायें। मसलि जज़ीराए अरब की सरज़मीि। नखराजी ज़मीि अरब को छोड
कर हर वो ज़मीि है, जो जांग या सुलह के ज़ररये ितह की गयी हो। उशरी ज़मीि और
उस से हानसल होिे वाली मििअत दोिों अिराद की नमनल्कयत होते है। नखराजी ज़मीि
ररयासत की नमनल्कयत होती है और इसका िायदा अिराद की नमनल्कयत होता है। शरई
उक़ू द (समझोतों/contracts) के तहत हर िदच को उशरी ज़मीि और नखराजी ज़मीि की

निज़ामुल इस्लाम - 176 -


मुििअत तब्दील करिे का हक़ हानसल है। दूसरे अम्वाल की तरह यह ज़मीि बतौरे
मीरास (नवरसा) भी मुन्तफक़ल (transfer/स्थािाांतररत) होगी।
दिा िम्बर 134: बन्जर ज़मीि की आबादकारी और उसकी हद-बन्दी के ज़ररये उस का
मानलक बिा जा सकता है। ग़ैर-बन्जर आबाद ज़मीि की नमनल्कयत नसिच शरई कारण
यािी मीरास, खरीदारी और फकसी की तरि से नहबा ( दाि देिे) से होगी।
दिा िम्बर 135: ज़मीि ख्वाह नखराजी हो या उशरी, उसको फकराये पर देिा मिा है।
नजस तरह के मुज़ारअत (ज़मीि के ठे के देिा) निषेध है। अलबत्ता मसाक़ात (ज़मीि को
पािी देिा) मुतलकि जायज़ है।
दिा िम्बर 136: हर मानलके ज़मीि को ज़मीि से िायदा उठािे पर मजबूर फकया
जायेगा। ज़मीि से िायदा उठािे के नलये उसे फकसी फकस्म की इम्दाद की ज़रूरत हो तो
बैतुलमाल से हर मुनम्कि तरीक़े से उसकी मदद की जाएगी। हर वो शख्स, जो ज़मीि से
तीि साल तक कोई िायदा उठाये बग़ैर उसको बेकार छोडे रखे, तो ये ज़मीि उस से
लेकर फकसी और को दी जायेगी।
दिा िम्बर 137: तीि तरह की र्ीज़ें जिसम्पत्ती में शानमल है:
(1) हर वो र्ीज़ जो जमाअत की ज़रूरत हो, मसलि शहर के मैदाि।
(2) खमम िा होिे वाले ज़मीिी खज़ािे जैसे तेल के क़ु ऐ।
(3) वो र्ीज़ें जो स्वाभानवक तौर पर व्यनक्त के साथ मखसूस िहीं हो सकतीं, मसलि
िेहरें ।
दिा िम्बर 138: कारखािा बहैनसयते कारखािा इिफिरादी नमनल्कयत (निजी सांपनत्त)
होता है। कारखािे का भी वही हुक्म है जो उसकी पैदावार का है। र्ुिाांर्े कारखािे में
पैदा होिे वाली र्ीज़ व्यनक्तगत जायदाद में से हो तो कारखािा भी निजी सम्पत्ती में
होगा। मसलि कपडे का कारखािा। अगर कारखािे की पैदावार ऐसी र्ीज़ जो जि सांपनत्त
के दायरे में आती हो, तो कारखािा भी जि सांपनत्त होगा जैसे फक लोहे का कारखािा।
दिा िम्बर 139: ररयासत के नलये यह जायज़ िहीं के वह निजी सांपनत्त की फकसी र्ीज़
को आम नमनल्कयत में दे दे। क्योंफक अवामी नमनल्कयत होिा माल की फक़स्म पर निभचर
करता है और यह माल की नसफ्ित (खूबी) है, िा की ररयासत की राय।

निज़ामुल इस्लाम - 177 -


दिा िम्बर 140: उम्मत के हर िदच को अवामी नमनल्कयत (जि सांपनत्त) में दानखल हर
र्ीज़ से िायदा उठािे का हक़ हानसल है। ररयासत के नलये फकसी खास िदच को जि
सांपनत्त के नहस्से का मानलक बिािा या उससे िायदा उठािे की इजाज़त देिा जायज़
िहीं।
दिा िम्बर 141: ररयासत के नलये ररआया के मिादात (िायदों) के नलये बन्जर ज़मीि
या आम नमनल्कयत में दानखल फकसी र्ीज़ को लोगों के नलये ममिू (निषेध) करार देिा
जायज़ है।
दिा िम्बर 142: माल को जमा करके रखिा, खज़ािा बिािा ममिू है। अगरर्े उस पर
ज़कात भी क्यों िा दी जाये।
दिा िम्बर 143: मुसलमािों से ज़कात ली जायेगी। ज़कात नसिच उि अम्वाल पर ली
जायेगी नजि पर ज़कात लेिे को शरीअत िे तय कर फदया है, मसलि िकदी, नतजारती
साज व सामाि, मवेशी और गल्ला। नजि अम्वाल पर ज़कात लेिे की कोई शरई दलील
िा हो, उि पर ज़कात िहीं ली जायेगी। ज़कात हर सानहबे निसाब से ली जायेगी, ख्वाह
वह मुकल्लि (नजि पर नज़म्मेदारी आयद हो) हो जैसा के आफक़ल बानलग इां साि या वह
ग़ैर मुकनल्लि (जो नज़म्मेदारी से बरी हो) हो, जैसा के बच्चा और मजिूि। फिर इस ज़कात
को बैतुलमाल की एक खास मद (श्रेणी) में रखा जायेगा। ज़कात को कु रािे करीम में
वाररद आठ मदों में से फकसी एक या एक से जाइद मदों के अलावा कहीं और खर्च िहीं
फकया जायेगा।
दिा िम्बर 144: नज़नम्मयों से नजनज़या नलया जायेगा और नजनज़या नज़नम्मयों के बानलग
मदो से उिकी क्षमता के अिुरूप नलया जायेगा। औरतों और बच्चों से नजनज़या िहीं नलया
जायेगा।
दिा िम्बर 145: नखराजी ज़मीि पर नखराज इनस्तताअत के मुतानबक़ नलया जाएगा
और उशरी ज़मीि की पैदावार पर ज़कात ली जायेगी।
दिा िम्बर 146: मुसलमािों से वोह टैक्स वसूल फकया जाता है नजस की शरह िे इजाज़त
दी हो और नजतिा बैतुलमाल के खर्ों को पूरा करिे के नलये कािी हो। शतच इसमें यह है
के यह टेक्स उस रक़म पर वसूल फकया जाता है जो सानहबे माल के पास सही तरीक़े के

निज़ामुल इस्लाम - 178 -


मुतानबक़ अपिी ज़रुररयात को पूरा करिे के बाद बर् जाता हो और यह टैक्स ररयासत
की ज़रुररयात को पूरा करिे के नलये भी कािी हो।
दिा िम्बर 147: वह तमाम आमाल, नजि की अन्जामदही को शरीअत िे उम्मत पर
िज़च करार फदया है, अगर बैतुलमाल में उि आमाल (नजम्मेदाररयों) को अन्जाम देिे के
नलये माल िा हो तो ये िज़च उम्मत की तरि मुन्तफकल (transfer) होता है। ऐसी सूरत
में ररयासत को इस बात का हक़ हानसल है के वह इस िरीज़े (कतचव्य) से ओहदाबरा (बरी
नज़म्मे) होिे के नलये उम्मत पर टैक्स लानज़म कर दे, लेफकि नजि उमूर की अदायगी को
शरीअत िे उम्मत पर िज़च करार िहीं फदया है, उिके नलये टैक्स वसूल करिा ररयासत
के नलये जायज़ िहीं। र्ुिाांर्े ररयासत कोट िीस या दितरी िीस या अदालती टैक्स या
फकसी भी तरह का टैक्स िहीं ले सकती।
दिा िम्बर 148: ररयासती बजट की असिाि (फक़स्मे) दाइमी (स्थाई) िोइयत की होती
है, नजन्हें अहकामें शरीआ िे मुकरच र कर फदया है। उसकी मज़ीद ज़ैली मद्दात (श्रेणीयााँ)
होती हैं नजि में से हर मद (श्रेणी) के नलये खास रक़म तय की जाती है। बजट की नमक़दार
(मात्रा) और नजि मद्दात के नलये रकू म मुख्तस की जाती है, ये सब ख़लीिा की राय और
इनज्तहाद पर निभचर हैं।
दिा िम्बर 149: बैतुलमाल की आमदि के दाइमी जराये (माध्यम) ये हैं : माले िे ,
नजनज़या, नखराज, रकाज़ का पााँर्वााँ नहस्सा और ज़कात। इि अम्वाल को हमेंशा वसूल
फकया जायेगा ख्वाह उि की ज़रूरत हो या िा हो।
दिा िम्बर 150: बैतुलमाल की दाइमी आमदिी ररयासत के इखराजात ( खर्ों) के नलये
िाकािी होिे की सूरत में ररयासत मुसलमािों से ज़राइब (टैक्सेज) वसूल करे गी और यह
टैक्सेज इि मद्दात के नलये इकट्टे फकये जाऐगे:
(1) िु क़रा, मसाकीि, मुसाफिर और िरीज़ाए जेहाद की अदायगी के नलये बैतुलमाल
पर िज़च इखराजात को पूरा करिे के नलये।
(2) उि इखराजात को पूरा करिे के नलये, नजन्हे पूरा करिा बैतुलमाल के नजम्मे बतौरे
बदल वानजब है, मसलि कमचर्ाररयों के खर्े, िौनजयों का राशि और हुक्काम के मुआवज़े।

निज़ामुल इस्लाम - 179 -


(3) उि खर्ों को पूरा करिा, जो बैतुलमाल पर मिादेआम्मा (जिनहत) के नलये बग़ैर
फकसी बदल के वानजब हैं। मसलि िइ सडकें बिािा, ज़मीि से पािी निकालिा, मनस्जदें,
मदरसे और शिाखािे बिवािा।
(4) उि िुक़सािात का तदारुक (बोध) करिा, जो बैतुलमाल पर वानजब है। मसलि कोई
हांगामी हालत, कहत (अकाल), तूिाि और ज़लज़ले।
दिा िम्बर 151: वो अम्वाल भी जराए आमदािी में शुमार होते हैं जो सरहदी इलाकों
पर कस्टम (र्ुन्गी) के ज़ररये हानसल होते है और बैतुलमाल में जमा होते है। इसी तरह
अवामी नमनल्कयत या ररयासती नमनल्कयत से हानसल होिे वाले अम्वाल और वो अम्वाल
नजि का कोई वाररस िा होिे की वजह से उन्हें बैतुमाल में रखा गया हो। िीज़ मुरतदीि
(दीि से फिरिे वाले) का माल भी ज़राऐ आमदिी है।
दिा िम्बर 152: बैतुलमाल के अम्वाल को इि छ: अस्नाि (श्रेणीयों) में तक़सीम फकया
जायेगा:
(1) वो आठ अस्नाि (categories) जो अम्वाले ज़कात के मुस्तनहक़ हैं, उि पर ज़कात
की मद से खर्च फकया जायेगा ।
(2) िु करा, मसाकीि, मुसाफिर (इब्ने सबील), जेहाद, मक़रूज़ (क़ज़चदार) पर खर्च करिे
के नलये अम्वाले ज़कात में से कु छ माल मौजूद िा हो तो उि पर बैतुलमाल की दाइमी
िोइय्यत की आमदिी के ज़राय से खर्च फकया जायेगा। लेफकि इस में भी अगर कोई माल
िा हो तो कज़चदारों (ग़ारमीि) पर कु छ खर्च िहीं फकया जायेगा।
लेफकि िु करा, मसाकीि, मुसाफिर और जेहादी ज़रूरत को पूरा करिे के नलये टैक्स
लगाये जायेगें और अगर टैक्स लगािे में फकसी िसाद का खौि हो तो टैक्स की बजाय
बतौरे कज़च अम्वाल हानसल फकये जायेगें।
(3) वो अतखास (खास लोग) जो ररयासत के नलये नखदमात (सेवाएां) सरअांजाम दे रहे
हैं, जैसे मुलाज़मीि, हुक्काम और िौज, उि पर बैतुलमाल से खर्च फकया जायेगा। लेफकि
जब बैतुलमाल का माल उि के नलये कािी िा हो तो टैक्स लगा कर उि की ज़रुररयात
को पूरा फकया जायेगा और अगर टैक्स लगािे की सूरत में फकसी फक़स्म के िसाद का
खौि हो तो उस मक़सद के नलये कज़च नलये जायेगें।

निज़ामुल इस्लाम - 180 -


(4) बुनियादी मसालेह (मिादात) और ज़रुररयात जैसे रास्तों, मसानजद, अस्पतालों और
मदाररस (मदरसों) पर बैतुलमाल से खर्च फकया जायेगा। लेफकि जब बैतुलमाल में इतिा
माल ि हो तो टैक्स वसूल करके उि पर खर्च फकया जायेगा।
(5) आला सहूनलयात और ज़रुररयात पर बैतुलमाल से खर्च फकया जायेगा। जब बैतुलमाल
में उि पर खर्च करिे के नलये माल मौजूद िा हो तो उि पर खर्च िहीं फकया जायेगा
बनल्क उन्हें मुलतवी फकया (रोक फदया) जायेगा।
(6) हांगामी हालात मसलि ज़लज़ला और तूिाि वगैरह की सूरत में बैतुलमाल से खर्च
फकया जायेगा। बैतुलमाल में माल िा होिे की सूरत में उि के नलये िौरि कज़च नलया
जायेगा। फिर टैक्स जमा करके उसे अदा फकया जायेगा।
दिा िम्बर 153: ररयासत अपिे हर शहरी के नलये रोजगार की ज़माित देगी।
दिा िम्बर 154: अिराद और कम्पनियों के मुलाज़मीि तमाम िराइज़ (कतचव्य) और
हुक़ू क़ (अनधकारों) के नलहाज़ से ररयासत के मुलाज़मीि की तरह हैं। जो भी उजरत
(वेति) पर काम करता है वो मुलानज़म हैं, ख्वाह अमल (काम) और आनमल (काम करिे
वाले) की िोइयत कु छ भी हो। र्ुिाांर्े जब अजीर (मुलानज़म) और मुस्तानजर (काम
करवािे वाले) के दर्मचयाि मजदूरी पर मतभेद हो जाये तो बाज़ार की क़ीमत के आाँकलि
के मुतानबक़ िै सला फकया जायेगा। अगर उस (उजरत) के अलावा फकसी और र्ीज़ में
इनख्तलाि हो जाये तो उस का िै सला अहकामें शरीअत के मुतानबक़ मुलाज़मत के
मुआनहदात (सनन्धयों) के तहत होगा।
दिा िम्बर 155: काम के िायदे या मुलानज़म से हानसल होिे वाले ििे अ (िायदे) के
नलहाज़ से उजरत को मुक़रच र करिा जायज़ है। मुलानज़म की मालूमात या उसकी इल्मी
शहादत (अस्नाद) के नलहाज़ से उस की उजरत मुकरच र िहीं की जायेगी । मुलानज़म की
तिख्वाह में कोई सालािा इज़ािा िहीं होगा, बनल्क उन्हें उि के काम की पूरी उजरत
दी जायगी, नजस के वो मुस्तनहक़ (लायक़) हैं।
दिा िम्बर 156: नजस शख्स के पास माल िहीं या वोह काम िहीं कर सकता और िा
ही उसका कोई ऐसा ररततेदार है नजस पर उसे ििका देिा िज़च है तो ररयासत उसे ििके
की ज़माित देगी। इस तरह आनजज़ (कमज़ोर) व मोहताज को रठकािा देिा भी ररयासत
की नज़म्मेदारी है।

निज़ामुल इस्लाम - 181 -


दिा िम्बर 157: ररयासत ऐसी तदाबीर इनख्तयार करती है के माल ररआया के दर्मचयाि
गर्दचश करता (घूमता) रहे और नसिच खास तबके (वगच) के दर्मचयाि ही गर्दचश में िा रहे।
दिा िम्बर 158: ररयासत ररआया के हर िदच को इस कानबल बिािे की कोनशश करती
है के वो अपिे नलये आला मेंअयारे नज़न्दगी ( अच्छे जीवि स्तर) की ज़रूरतों को पूरा कर
सके । ररयासत दजे ज़ैल (िीर्े नलखे) तरीक़े से माअशरे में तवाज़ुि (सांतूलि) पैदा करिे
की कोनशश करती है और नजस का इन्हेसार (निभचरता) अम्वाल की दस्तयाबी पर है:
(1) बैतुलमाल में जो दौलत हों, र्ाहे वह मिकू ला (र्ल) हों या ग़ैर-मिकू ला (अर्ल) हों
और माले िे वगैरह, ररयासत उि में से ररआया को अता करे गी।
(2) नजि लोगों के पास इतिी ज़मीि िा हो नजस से उि का गुज़ारा हो सके तो ररयासत
उन्हें आबाद ज़मीि में से ज़मीि देगी। अलबत्ता नजि लोगों के पास ज़मीि तो है लेफकि
वह उसको कातत िहीं करते तो उन्हें ज़मीि िहीं दी जायेगी। जो जोग ज़राअत
(agriculture) िहीं कर सकते उन्हें माल फदया जायेगा।
(3) ऐसे कज़चदार, जो अपिा कज़च र्ुकािे से आनजज़ हों, ररयासत ज़कात के माल और
माले िे वगैरह से उि का कज़ाच र्ुकायेगी।
दिा िम्बर 159: ररयासत ज़रई उमूर (खेती बाडी के मुआमलात) और ज़रई पैदावार
की निगरािी उस ज़रई पानलसी की बुनियाद पर करे गी, नजस में ज्यादा से ज्यादा पैदावार
के ज़ररये ज़मीि से िायदा उठाया जायेगा।
दिा िम्बर 160: ररयासत सिअत (उद्योग) से मुतानल्लक़ तमाम मुआमलात की खुद
निगरािी करती है और आवामी नमनल्कयत (जिसम्पत्ती) में दानखल तमाम उमपाफदत
र्ीज़ों की देखभाल भी बराहेरास्त खुद करती है।
दिा िम्बर 161: बैरूिी (नवदेशी) नतजारत का एतबार तानजर (व्यापारी) के मुल्क के
नलहाज़ से होती है िा के साज़ व सामाि के नलहाज़ से। र्ुिाांर्े हबी मुल्क (नजससे जांग
की हालत हो) के तानजर का हमारे इलाकों में नतजारत करिा ममिू (निषेध) है, नसवाये
यह के फकसी खास तानजर या खास माल की नतजारत की इजाज़त दी गयी हो। नजि
मुमानलक के साथ हमारे मुआनहदात होगें तो उि के तानजरो के साथ हमारे और उिके
दरनमयाि तय पािे वाले मुहायदे की रू से मामला फकया जायेगा। अवाम में से जो तानजर
होंगे उन्हे उस र्ीज़ को बाहर ले जािे से रोका जायेगा, नजस की ररयासत को ज़रूरत है

निज़ामुल इस्लाम - 182 -


या नजस से दुतमि को िौजी, सिअती या इक़तेसादी क़ु व्वत हानसल होती हो। अलबत्ता
उन्हे अपिा माल ररयासत में लािे से िहीं रोका जायेगा। इि अहकामात से वो मुल्क
मुस्तसिा (बरी) होगा नजस के साथ हमारी अम्लि हालते जांग में हो, जैसा के इस्राइल,
क्योंफक उसके साथ तमाम मुआमलात, र्ाहे वह नतजारती हों या कोई और, उसे दारूल
हबी समझते हुये तय फकये जायेगें।
दिा िम्बर 162: ररआया के तमाम अिराद को नज़न्दगी के मसाइल से मुतानल्लक़ ररसर्च
लेबोरे टररयााँ बिािे का हक़ हानसल है और खुद ररयासत को भी र्ानहये के वो इस फकस्म
की तज़ुरबागाहें (प्रयोगशाला) क़ायम करे ।
दिा िम्बर 163: अिराद को ऐसी तजुरबागाहों (प्रयोगशाला) की नमनल्कयत से रोका
जायेगा, जो ऐसा मवाद (सामग्री) पैदा करें नजस का अिराद की नमनल्कयत में होिा
उम्मत या ररयासत के नलये िुकसािदेह हों।
दिा िम्बर 164: ररयासत ररआया के तमाम अिराद को तमाम नतब्बी (नर्फकमसा)
सहूलतें मुफ्त िराहम करे गी, लेफकि वह डाक्टरों को प्रायवेट प्रेनक्टस करिे और
अदनवयात (दवाओं को) िरोख्त करिे से िहीं रोके गी।
दिा िम्बर 165: इस्तेहसाल (शोषण) और ग़ैर-मुल्की सरमाये (नवदेशी दौलत) का
इस्तेमाल और ग़ैर-मुनल्क सरमायाकारी (नवदेशी पूांजीनिवेष) निषेध होगी, इसी तरह
फकसी ग़ैर-मुल्की को कोई नवशेष ररआयत िहीं दी जायेगी।
दिा िम्बर 166: ररयासत अपिी एक खास करां सी जारी करे गी और उसे फकसी अजिबी
िकदी से मुांसनलक (नमलाि) करिा जायज़ िहीं होगा।
दिा िम्बर 167: ररयासत की करां सी सोिा और र्ााँदी पर आधाररत होगी, ख्वाह उसे
ढाला गया हो या िा ढाला गया हो। सोिा और र्ााँदी के अलावा फकसी और र्ीज़ को
िकदी की हैनसयत हानसल िहीं होगी। ररयासत के नलये सोिा और र्ााँदी के बदल के तौर
पर कोई और र्ीज़ भी जारी करिा भी जायज़ होगा। बशते फक जो र्ीज़ जारी की जाये
उसके बराबर इतिी क़ीमत का सोिा या र्ााँदी ररयासत की नमनल्कयत में मौजूद हो। पस
ररयासत के नलये जायज़ है के वह उस सूरत में पीतल, काांसे या कागजी िोट वगैरह पर
अपिे िाम का ठप्पा लगा कर जारी करे । बशतेके उस के पास इतिी ही मानलयत का
सोिा या र्ााँदी मौजूद हो।

निज़ामुल इस्लाम - 183 -


दिा िम्बर 168: बराबरी के उसूल पर नजस तरह अन्दरूिी तौर पर िक़दी का तबादला
जायज़ है, उसी तरह इस्लामी ररयासत और दूसरी ररयासतों की करनन्सयों के बीर्
तबादला भी जायज़ होगा। अगर उि दोिो करनन्सयों की जजांस (बुनियाद) अलग-अलग
हो तो उस सूरत में उि के बीर् कमी-बेशी भी जायज़ होगी। लेफकि शतच यह है के ये
मुआमला िक़द हो, उधार की बुनियाद पर ऐसा करिा जायज़ िहीं। जब दोिो करन्सीयॉ
मुख्तनलि हों तो बग़ैर फकसी क़ै द (शतच) के करां नसयों की शरह तबादले में कमी बेशी हो
सकती है। अवाम का हर िदच अन्दरूिी या बाहरी करनन्सयों को खरीदिा या बेर्िा र्ाहे
तो उसे इजाज़त होगी। उसके नलये फकसी करन्सी की इजाज़त लेिे की ज़रूरत िहीं होगी।

निज़ामुल इस्लाम - 184 -


13.17 फशक्षा नीफत (Education System)
दिा िम्बर 169: ताअलीमी पानलसी को इस्लामी अक़ीदे की बुनियाद पर आधाररत
होिा िज़च है। र्ुिाांर्े तमाम तदरीसी मवाद (पाठ्यक्रम) और तरीकाये तदरीस (method
of education) को इस तरह जारी फकया जायेगा के ताअलीम में इस बुनियाद से
िज़रान्दाजी नबल्कु ल िा हो।
दिा िम्बर 170: ताअलीमी पानलसी का मक़सद इस्लामी अक़नलया और इस्लामी
ििनसया की तामीर है। नलहाज़ा वह तमाम मवाद, नजस का पाठि ज़रूरी हो, इसी
बुनियाद पर होगा।
दिा िम्बर 171: ताअलीम का मक़सद इस्लामी शनख्सयत पैदा करिा और नज़न्दगी के
मसाइल से मुताअनल्लक उलूम और माअररि से लबरे ज़ करिा है। र्ुिाांर्े तरीकाए
ताअलीम को इस तरह बिाया जायेगा के उस से ये मक़सद हानसल होगा, और हर वो
तरीक़ा ममिू होगा जो इस मक़सद से हटाता हो।
दिा िम्बर 172: उलूमें इस्लानमया और उलूमें अरनबया के हफ्तावार पीररयड मुकरच र
करिा ज़रूरी है। इस तरह वक्त और ताअदाद के ऐतबार से दूसरे उलूम के नलये भी
पीररयड मुकरच र फकये जायेंगे।
दिा िम्बर 173: ताअलीम में तजुबाचती उलूम (प्रायोनगक नशक्षा), उिसे नमले जुले उलूम
मसलि ररयाज़ी (गणीनतये) और सकािती (साांस्कर्तचक) उलूम के दरनमयाि िक़च को
ध्याि में रखिा ज़रूरी है। र्ुिाांर्े तजुबाचती और उस से नमलते जुलते उलूम ज़रूरत के
नहसाब से पढ़ाये जायेंगे। मरानहले ताअलीम में फकसी भी मरहले में उिकी पाबन्दी
लाज़मी िहीं होिी र्ानहए। जहाां तक सक़ािती माअररि का ताअल्लुक है तो उन्हें आला
ताअलीम से मुताअयि ताअलीमी पानलसी के मुतानबक़ शुरूआती दौर में इस तरह पढाया
जाऐगा के ये इस्लामी अफ्कार वा अहकामात से टकराते िा हों। आला ताअलीमी मरहले
को नसिच साइां स के तौर पर पढ़ा जायेगा। उस में भी ये शतच है के ये ताअलीमी पानलसी
और ताअलीमी मक़सद से हट कर नबल्कु ल िा हो।
दिा िम्बर 174: ताअलीम के हर मरहले में इस्लामी सक़ाित की ताअलीम लाज़मी है।
आला मरहले में नवनभन्न इस्लामी माअररि की िरुआत (disciplines) खास की जायें।
जैसा के नतब्ब, इां जीनियररां ग, नतनबयात वगैरह में खास की जाती हैं।

निज़ामुल इस्लाम - 185 -


दिा िम्बर 175: िु िूि (Arts) और सिअत (Crafts) एक पहलू से साइां स के साथ
शानमल होंगे जैसा के नतजारती िु िूि, जहाजरािी (navigation), ज़राअत
(agricultural)। इस पहलू से उन्हें बग़ैर फकसी क़ै द व शतच के हानसल फकया जायेगा उि
का एक सक़ािती पहलू भी है जब ये फकसी खास िुक्तऐिज़र से प्रभानवत हों, जैसे के
तस्वीर, सन्ग तराशी (पमथरों को तराशिा) वगैरह। र्ुिाांर्े अगर ये इस्लामी िुक्तऐिज़र
के मुखानलि हों तो उन्हें हानसल िहीं फकया जायेगा।
दिा िम्बर 176: ताअलीम का तरीक़ा एक ही होगा और ररयासत के तालीम के तरीक़े
के अलावा फकसी दूसरे तरीक़े की इजाज़त िहीं होगी। प्राइवेट स्कू लों की उस वक्त तक
इजाज़त होगी जब तक के वो ररयासत के ताअलीमी मिहज (तरीक़े ), उसकी ताअलीमी
पॉलीसी और उस के मक़सद की बुनियाद पर क़ायम होंगे। ये भी शतच भी होगी के उि में
मखलूत ताअलीम (लडकों और लडफकयों का एक साथ पढ़िा) की मिाही होगी। मदो
ज़ि (male and femal) का इनख्तलात (mixing), नशक्षक और छात्र, दोिों के
दरनमयाि मिा होगा। आगे ये शतच भी होगी के ताअलीम फकसी खास नगरोह, दीि या
मज़हब या रां ग व िस्ल के साथ मखसूस िा हो।
दिा िम्बर 177: वो ताअलीम जो नज़न्दगी के मैदाि में हर इां साि, र्ाहे वो मदच हो या
औरत, के नलये ज़रूरी है, िज़च होगी। र्ुिाांर्े पहले दो मरहलों में ताअलीम लाज़मी होगी
और ये ररयासत की नज़म्मेदारी है के वे मुफ्त ताअलीम का बन्दोबस्त करे । आला ताअलीम
को भी मुमफकि हद तक मुफ्त देिे की कोनशश की जायेगी।
दिा िम्बर 178: ररयासत स्कू लो और जामेंआत (universities) के अलावा भी
लायबेररयााँ, तजुबाचगाहें और नशक्षा और तकिीक के तमाम सांसाधि मुहय
ै ा करे गी, ताफक
वो लोग, जो नवनभन्न मुबानहस और माअररि, जैसेकी फिक़्ह, उसूले फिक़्ह, हदीस व
तिसीर, नतब्ब, इां जीनियररां ग, कीनमया (रसायिशस्त्र) वगैरह में, इसी तरह इजादात
(अनवष्कार) और दरयाफ्तों में अपिी बहस व तहक़ीक़ को जारी रखिा र्ाहें तो जारी
रखें। यूां उम्मत के पास मुज्तहेदीि, मुवज्जदीि (आनवष्कारक) और वैज्ञानिकों की एक बडी
सांख्या मौजूद हो।
दिा िम्बर 179: ताअलीम के तमाम मरानहल में तालीि (प्रकाशि) से ग़लत िायदा
उठािा ममिूअ होगा, कोई भी शख्स ख्वाह वो मुअनल्लि (फकताब नलखिे वाला) हो या
कोई और जब कोई फकताब मतबा (print) करे गा और उस को शाये (publish) करे गा

निज़ामुल इस्लाम - 186 -


तो फिर उसको कॉपीराईट (copyright) का अनधकार िहीं होगा। अलबत्ता उस के पास
ऐसे नवर्ार हों नजि को अब तक नलखा और छापा िहीं गया हो तो उसके नलये यह
जायज़ है के वो लोगों को यह नवर्ार दे कर उसकी मजदूरी ले, जैसा के वोह फकसी शख्स
को ताअलीम देकर उजरत लेता है।

13.18 फवदे श राजनीफत (Foreign Policy)


दिा िम्बर 180: नसयासत उम्मत के अन्दरूिी और बाहरी मुआमलात की निगरािी को
कहते हैं। नसयासत उम्मत और ररयासत दोिों की जानिब से होती है। ररयासत बराहेरास्त
मुआमलात की निगरािी करती है और उम्मत उस काम पर ररयासत की जवाबतलबी
करती हैं।
दिा िम्बर 181: फकसी िदच, नहज्ब (पाटी), नगरोह या जमाअत के नलये ये जायज़ िहीं
के उसके फकसी अज़िबी मुल्क के साथ फकसी फकस्म के ताअल्लुकात हों। दूसरे मुमानलक
के साथ ताअल्लुक़ात नसिच ररयासत का काम है। क्योंफक नसिच ररयासत को उम्मत की
सरपरस्ती का हक़ हानसल है। उम्मत और जमाअतें उि बाहरी ताअल्लुकात के बारे में
ररयासत की जवाब तलबी कर सकती हैं।
दिा िम्बर 182: फकसी मक़सद का िेक होिा उसके माध्यम को जायज़ िहीं बिाता
)‫ (ا َلغايتہ التربرالواسطتہ‬क्योंफक तरीक़ा फिक्र के साथ जुडा हुआ है। र्ुिाांर्े िज़च या मुबाह
तक पहुांर्िे के नलये हराम को ज़ररया िहीं बिाया जा सकता। पस वसीले की पानलसी
तरीक़े की पानलसी से कभी भी नवपरीत िहीं होिा र्ानहये।
दिा िम्बर 183: नसयासी र्ाल र्लिा नवदेश राजिीनत में एक ज़रूरी बात है, उसकी
क़ु व्वत का राज इस बात में छु पा हुआ है के आमाल का ऐअलाि फकया जाये और लक्ष्य
और मक़सद को खुफिया रखा जाये।
दिा िम्बर 184: नसयासत के अहम असालीब (styles) ये है :
ररयासतों के अपराधों को बे-िक़ाब करिे की जुरअत। झूटी पॉनलनसयों के खतरात को
बयाि करिा। गन्दी सानज़शों को बे िकाब करिा और गुमराहकु ि शनख्सयतों का हौसला
तोडिा।

निज़ामुल इस्लाम - 187 -


दिा िम्बर 185: अिराद, उम्मतों और ररयासतों के मुआमलात की निगेहदातत के
दौराि इस्लामी अफ्कार की अज़मत को ज़ानहर करिा नवदेशी राजिीनत का आला तरीक़ा
है।
दिा िम्बर 186: उम्मत का नसयासी कनज़या (मौत व हयात का मसअला) यह है के
इस्लाम इस उम्मत की ररयासत की क़ु व्वत है। और यह की इस्लामी अहकामात का
बेहतरीि तरीक़े से नििाज फकया जाऐ और दुनिया के सामिे इस्लामी दावत को अच्छे
तरीक़े से पहुांर्ाता जाये है।
दिा िम्बर 187: इस्लामी दावत को पेश करिा ही खाररज़ी नसयासत के नलये के न्र की
हैनसयत रखता है। इसी बुनियाद पर इस्लामी ररयासत के तमाम दूसरी ररयासतों से
ताअल्लुकात क़ायम होंगे।
दिा िम्बर 188: इस्लामी ररयासत के दूसरी ररयासतों के साथ तआल्लुक़ात इि र्ार
पहलूओं पर मुततनमल होंगे :
(1) आलमें इस्लाम में क़ायम तमाम ररयासतें गोया एक इलाक़े में क़ायम हैं। ये खाररजा
(नवदेशी) तआल्लुक़ात के दायरे में दानखल िहीं होंगी और इि के साथ तआल्लुक़ात को
खाररज़ा नसयासत िहीं समझा जायेगा, बनल्क उि सब को एक ररयासत की सूरत में
इकठ्ठा करिे के नलये काम करिा िज़च है।
(2) वोह ररयासते नजि के साथ हमारे आर्थचक, नतजारती, साांस्कृ नतक या अच्छी सनन्धयााँ
हैं तो उि के साथ मुआमलात को मुआनहदात (सनन्धयों) के मुतानबक़ निपटाया जायेगा।
अगर मुआनहदा इजाज़त देता हो तो उस ररयासत के लोग नशिाख्त के साथ बग़ैर पासपोटच
के इस्लामी ररयासत में दानखल हो सकें गे। लेफकि शतच यह होगी के वो भी हमारे साथ ये
मुआमला करें गे। उस के साथ आर्थचक और व्यापाररक तआल्लुक़ात सीनमत समय और
खास र्ीज़ों की बुनियाद पर होंगे और बशते की इस ररयासत की वस्तुओं की इस्लामी
ररयासत को ज़रूरत हो और यह की इन्हें बेर्े जािे वाली वस्तुएां उस ररयासत को मज़बूत
बिािे का सबब िा बिें।
(3) वह मुमानलक, नजि के और हमारे दरनमयाि फकसी फकस्म के मुआनहदात िहीं हैं।
इसी तरह साम्राज्यवादी देश, मसलि बरतानिया, अमरीका, फ्राांस और वो मुमानलक जो
मुसलमाि मुमानलक पर अपिी िज़रे जमाऐ बैठे हैं, जैसा के रूस, तो उिके साथ हालते

निज़ामुल इस्लाम - 188 -


जांग का मुआमला फकया जायेगा। उिके बारे में मुकम्मल अहनतयात बरती जायेगी। उि
के साथ फकसी फक़स्म के राजिेनतक ताअल्लुकात क़ायम करिा दुरुस्त िहीं। उि मुमानलक
की अवाम हमारी ररयासत में उस वक्त दानखल हो सके गी अगर उि के पास पासपोटच हो,
और हर िदच को हर सिर के नलये खास इजाज़त दी गई हो।
(4) जो मुमानलक हमारे साथ अमलि हालते जांग में हैं जै से फक इस्राइल तो उस के साथ
तमाम मुआमलात को हालते जांग की बुनियाद पर निपटाया जायेगा। उसके साथ हमारा
मुआमला अम्ली जांग का होगा, ख्वाह उस के साथ अस्थाई जांग बन्दी का मुआनहदा हो
या िा हो, और उस के शहरी हमारे मुल्क में दानखल िहीं हो सकते।
दिा िम्बर 189: िौजी मुआनहदात (सनन्धयााँ) और इस तरह के फदगर मुआनहदात या
इस से जुडी दूसरी सनन्धयााँ मसलि नसयासी सनन्धयााँ , अड्डे और एयरपोट वगैरह फकराये
पर देिे के मुआनहदात, सब अवैध मािे जायेंगे होंगे। अलबत्ता अच्छी हमसायगी, आर्थचक
, नतजारती, मालयाती, सकािती मुआनहदात या अस्थाई जांग बन्दी के मुआनहदात कर
सकते है।
दिा िम्बर 190: ररयासत के नलये उि तमाम तन्जीमों में नशरकत जायज़ िहीं होगा,
नजि की बुनियाद इस्लामी िहीं या इस्लामी अहकामात को छोड कर ग़ैर-इस्लामी
अहकामात की बुनियाद पर क़ायम हैं। जैसा के बैिुल अक़वामी तन्ज़ीम (अकवामें
मुत्तहेदा-United Nations), आलमी अदालते इां साि (International Court of
Justice), आलमी मानलयाती िण्ड (International Monetary Fund) आलमी बैंक
(World Bank) इस तरह इलाकायी तिजीमें जैसे के अरब लीग (Arab League)
वगैरह।

निज़ामुल इस्लाम - 189 -


14. इस्लाम में अख़लाक़
इ स्लाम की यह तारीफ़ की गई है फक यह वह दीि है नजसको अल्लाह तआला िे
सय्यदिा मुहम्मद (स्वललल्लाहो अलैनह वसल्लम) पर इसनलये िानज़ल फ़रमया
फक इन्साि अपिे ख़ानलक़, अपिी ज़ात और दूसरे इां सािो के साथ ताल्लुक़ात को
मुिज्ज़म करे . इां साि का अपिे ख़ानलक़ के साथ ताल्लुक़ अक़ीदे व ईबादात पर मुततनमल
है. अपिी ज़ात के साथ ताल्लुक़ में अखलाक़, मतूमात (खािे पीिे की र्ीज़े) और
मलबूसात (पहििे की र्ीज़े) आती है और दूसरे इां सािो के साथ ताल्लुक़ में मामलात और
उक़बात (सज़ाऐ) शानमल है.
इस्लाम दुनिया में इां सािो की तमाम मुनतकलात व मसाइल को हल करता है. यह इन्साि
को इस िज़र से देखता है फक वह एक ऐसा कु ल है नजस को तक़सीम िहीं फकया जा
सकता. इसनलये इस्लाम इन्साि की मुनतकलात को एक ही तरीक़े से हल करता है. इस्लाम
का पुरा निज़ाम एक अक़ीदे पर मबिी है. अकीदा ही इसकी तहज़ीब और नसयासत की
बुनियाद है.
इसके बावजूद फक इस्लामी शरीयत िे इबादात, मामलात और उक़बात वगैराह को बडी
बारीक बीिी और तफ़सील के साथ बयाि फकया है लेफकि अख़लाक़ के नलये कोई
तिसीली निज़ाम िहीं बताया. अखलाक़ से मुतानल्लक़ अहकामात को नसफ़च इस नलहाज़
से बयाि फकया है फक यह अलहैदा से कोई र्ीज़ िहीं है बनल्क यह अल्लाह तआला के वो
अवानमर व िवाही है जो अमल करिे के नलये है. इस्लाम में अख़लाक़ पर इस तरह से
तवज्जोह िहीं दी गई फक उिको फदगर अहकामात के मुक़ाबले में कोई खास अहमीयत है
या वोह दूसरे अहकामात से मुम्ताज़ (unique) है. बनल्क दूसरे अहकामात के मुक़ाबले
में इिकी तफ़सील कम ही नमलती है. यही वजह है फक अख़लाक़ के िाम से िु क़हा की
फकताबों में कोई मख़सूस बाब िहीं रखा गया.
अख़लाक़ फकसी भी हालत में माअशरे पर असर अन्दाज़ िहीं होते. माअशरा तो निज़ामें-
हयात पर क़ायम होता है और माअशरे पर तो अफ़कार व अहसासात ही असर अन्दाज़

निज़ामुल इस्लाम - 190 -


होते है. अख़लाक़ का माअशरे की तरक्क़ी और इसके ज़वाल पर कोई असर िहीं पडता.
माअशरे पर असर अन्दाज़ होिे वाली र्ीज़ वह उरिे आम है जो नज़न्दगी के बारे में
तसव्वुरात से पैदा होती है. माअशरे को र्लािे वाले अख़लाक़ िहीं होते बनल्क माअशरे
का वोह निज़ाम जो उस माअशरे पर िाफिज़ होता है और वह अफ़कार व अहसासात
र्लाते है, नजिके इस माअशरे के लोग हानमल होते है. र्ुिााँर्े अख़लाक़ भी अफ़कार व
अहसासात से पैदा होते है और यह माअशरे में िाफिज़ निज़ाम का ितीजा होते है.
अख़लाक़ अल्लाह तआला के अमरो िवाही (commands and prohibition) की
इनत्तबा करिे से खुदबखुद पैदा होते है. इसनलये माअशरे में नसफ़च अख़लाक़ की दावत देिा
बहुत िुक़सािदेह है. अखलाक़ अकीदा और इस्लाम के नवस्तृत अन्दाज़ से नििाज़ के
फितरी ितीजे के तौर पर पैदा होते है. अख़लाक़ की तरफ़ दावत देिा नज़न्दगी के बारे में
इस्लामी तसव्वुरात को उलटिा, लोगों को समाज बिािे वाले अवानमल की हक़ीक़त
समझिे से दूर करिा और इिफ़रादी फ़जाइल की दावत दे कर उन्हें मदहोश बिा कर
समाज की तरक्क़ी के हक़ीक़ी सबब से ग़ाफफ़ल करिा है. यही वजह है फक इस्लामी दावत
को एक अख़लाक़ी दावत बिािा इन्तहाई ख़तरिाक बात है क्योफक इससे यह वहम पैदा
होगा फक इस्लामी दावत भी एक तरह की अख़लाक़ी दावत है और इस तरह इस्लाम की
फिक्री सूरत नबगड जाऐगी. लोगों के फ़हम के रास्ते में हाइल हो जाईगी और यह र्ीज़
उन्हे उस वानहद रास्ते से हटा देगी जो इस्लाम को िाफिज़ करिे का रास्ता है यािी
इस्लामी ररयासत का क़याम।
इस्लामी शरीयत िे इन्साि के अपिी ज़ात के साथ ताल्लुक़ के मसले को अख़लाक़ी
नसिात से मुतानल्लक़ अहकाम के ज़ररये हल फकया। उसिे इस हल को इबादात और
मामलात की तरह एक निज़ाम (system) िहीं बिाया बनल्क इसमें नसफ़च कु छ मुतय्यि
क़ीमतों के हुसूल की ररआयत रखी नजिका अल्लाह तआला िे हुक्म फदया है मसलि
सच्चाई, अमाित, धोका िा देिा और हसद िा करिा वगैरा। यह नसिात एक ही र्ीज़ से
हानसल होती है और वह अख़लाक़ी क़ीमत से मुतानल्लक़ अल्लाह तआला का हुक्म है जैसे
और फ़जाईल। पस अमाित एक ऐसा खल्क़ है नजसका अल्लाह तआला िे हुक्म फदया है।
इस अमाित की अदाईगी के वक़्त इस की अख़लाक़ी क़ीमत का नलहाज़ रखिा ज़रूरी है
र्ुिार्े इस तरह उसके ज़ररये अख़लाक़ी क़ीमत हानसल हो जाती है और उसी को
अख़लाक़ कहा जाता है। जहाां तक आमाल से ितीजे के तौर पर नसिात के हुसूल की बात

निज़ामुल इस्लाम - 191 -


है जैसा फक िमाज़ पडिे से पाकदामिी का पैदा होिा या मामलात को निमटाते वक़्त उि
मुआमुलात का खयाल करिा नजिको ध्याि में रखिा लानज़म है जैसे नतजारत के अन्दर
सर्ाई का नलहाज़ रखिा तो इि आमाल से कोई अख़लाक़ी क़ीमत हानसल िहीं होती
क्योफक आमाल की अन्जाम देही का मक़सूद यह अखलाक़ी क़ीमत िहीं थीं। बनल्क यह
नसिात आमाल के ितीजे में हानसल हो गई के वोह अखलाक़ी नसिात फक ररआयत करे
र्ाहे वोह अल्लाह की इबादत कर रहा हो या मामलात को सरअांजाम दे रहा हो। इसनलये
जब मोनमि िमाज़ से रूहािी क़ीमत का इरादा करता है और नतजारत से माद्दी क़ीमत
के हुसूल का इरादा करता है ऐि उसी वक़्त वह अख़लाक़ी नसिात का भी हानमल होता
है।
शरीयत िे उि नसिात को भी बयाि कर फदया है नजिसे दो र्ार होिे को अख़लाक़े हसिा
कहा जाता है और वोह नसिात भी बयाि कर दीं है जो अख़लाके सय्याह (बुरे अख़लाक़)
के ज़ुमरे में आती है। नलहाज़ा, शरीयत िे अख़लाक़े हसिा को इनख्तयार करिे को बढावा
फदया और अख़लाक़े सय्याह से मिा फ़रमाया है। शरीयत िे सच्चाई, अमाित,
खन्दापेशािी (मुस्कु राकर नमलिा) , हया और वालदैि के साथ िेक सुलूक़ और नसला-
रहमी की तरग़ीब दी है। इसी तरह अपिे मुसलमाि भाई को फकसी मुसीबत से निकालिे
और उसके नलये वही पसन्द करिे की तरग़ीब दी है जो खुद अपिे नलये पसन्द करता है।
शरीयत िे इि बातों में या इि जैसी दूसरी बातों की तरग़ीब अल्लाह तआला के अवानमर
की इताअत होिे के िाते दी है। इसी तरह झूठ, ख़याित, हसद, फफ़जूर (गुिाह के काम)
वग़ैराह इसनलये मिा है क्योफक अल्लाह तआला िे उिसे बर्िे का हुक्म फदया है।
अख़लाक़ शरीयत ही का एक नहस्सा है, अल्लाह तआला के अमरो व िवाही ही की एक
फक़स्म है और एक मुसलमाि के अन्दर यह अख़लाक़ी नसिात लाज़मी तौर पर होिा
र्ानहये। ताफक इस्लाम पर मुकम्मल अमल हो सके और अल्लाह तआला के अवानमर की
तकमील हो सके । अलबत्ता समाज के अन्दर इि नसिात को इस्लामी अहसासात और
इस्लामी अफ़कार को परवाि र्डा कर पैदा फकया जा सकता है। जब समाज में यह गुण
होगें तो िदच के अन्दर लाज़मी तौर पर पाई जायेंगी। नलहाज़ा यह बात वाज़ह है फक
अख़लाक़ की तरि दावत दे कर इि नसिात को पैदा िहीं फकया जा सकता है। बनल्क
माअशरे के अन्दर इि नसिात को पैदा करिे के नलऐ इस्लामी अहसासात और इस्लामी
अफ़कार पैदा करिे होगें। अलबत्ता यह जाििा भी ज़रूरी है फक इस काम का आग़ाज़

निज़ामुल इस्लाम - 192 -


करिे के नलये एक ऐसी जमात तैयार करिे की ज़रूरत होती है जो इस्लाम को मुकम्मल
तौर पर िाफिज़ करिे के उद्देतय पर क़ायम हो, नजसके अफ़राद जमात के अांगों की तरह
हों िा फक महज़ अफ़राद। ताके वोह इस माअशरे में मुकम्मल इस्लाम के दाई और
अलमबरदार बि सकें । यों वोह इस्लामी अहसासात और इस्लामी अफ़कार को समाज में
परवाि र्ढायेंगे और लोग िौज-दर-िौज इस्लाम में दानखल होिे की वजह से िौज-दर-
िौज इि अख़लाक़ी नसिात के हानमल हो सकें गे। यह बात अच्छी तरह से समझ लेिी
र्ानहऐ फक अख़लाक़ अल्लाह तआला के अवानमर (commands) और इस्लाम को
िाफिज़ करिे के नलये ज़रूरी हैनसयत रखते है। इस से एक मुसलमाि के अख़लाक़े हसिा
की नसिात से भरे होिे की ज़रूरत का भी अन्दाज़ा होता है।
अल्लाह तआला िे क़ु रआिे करीम की कई सूरतों में उि नसिात को बयाि िरमाया है
नजि से आरास्ता (आलांफकत) होिा और उिको अपिे अन्दर पैदा करिे की कोनशश करिा
इां साि के नलये ज़रूरी है। यह नसिात अक़ाइद, इबादात, अख़लाक़ और मामलात पर
आधाररत है। और ज़रूरी है की इां साि में यह र्ारों गुण सामुनहक तौर पर पाई जाये। सूरे
लुक़माि में अल्लाह तआला का इरशाद है :

ُ‫لش ْر َكُلَظل ٌْم‬ ََّ َ ‫﴿وإِ ْذُقَا َلُلق َْمانُال ْب ِنه َُِوه َو َُي ِعظه َُياُب‬
ََّ ‫نُالُت ْش ِر ْك ُِب‬
َّ ِ ‫اَللُِإِ ََّنُا‬ َ
ُ‫ُِح َمل َ ْتهُأ َّمه َُو ْه ًناُع َََل َُو ْه ٍن َُُو ِف َصاله ُِِف‬ َ ‫ان ُِب َوالِ َد ْيه‬ َ ‫۞ُو َو ََّص ْي َناُاإل ْن َس‬ َ ‫يم‬ ٌ ‫َع ِظ‬
ُ‫اكُعََلُأ َ ْنُت ْش ِر َك‬ َ ‫ُجا َه َد‬ َ ‫ُ۞ُوإِ ْن‬
َ ‫ِي‬ ‫ص‬
ِ ‫ْم‬
َ ‫ل‬ ‫ُا‬َّ ‫ل‬
َ ِ َ ‫ُإ‬ ‫ك‬
َ ‫ي‬
ْ ‫د‬َ ِ ‫ل‬ ‫ا‬ ‫و‬ ِ ‫ل‬ ‫ُو‬
َ َ ِ ْ ‫ُل‬ ‫ر‬ ‫ك‬ ‫ش‬ ْ ‫ُا‬ ‫ن‬ ِ
َ ‫عا ميُأ‬
ِ َْ َ
ُ‫اُوا َتَّ ِب ْع‬
َ ً‫ُالد ْن َياُ َم ْعروف‬ َّ ‫اُِف‬ ِ ‫اُو َصا ِح ْبه َم‬ َ ‫َك ُِب ِه ُعِل ٌْم ُفَالُت ِط ْعه َم‬ َ ‫ِب ُ َماُلَ ْي َس ُل‬
َ ‫سبي َلُ َمنُأ‬
ُ‫ن‬ ََّ َ ‫ونُ۞ُ َياُب‬
َ َْ ْ ‫ل‬ ‫م‬ ‫ع‬ ‫ت‬
َ ُ‫م‬ ‫ت‬ ‫ن‬
ْ ‫ُك‬‫ا‬ ‫م‬ ‫ُب‬ ‫م‬ ‫ك‬ ‫ئ‬ ‫ب‬ ‫ن‬
َ ‫أ‬ َ ‫ف‬ ُ‫م‬
َ ِ ْ َِّ ْ ِ ْ َ ََّ ِ ََّ ََّ ِ َ ْ ‫ك‬ ‫ع‬ ‫ج‬ ‫ر‬ ‫م‬ ُ‫ل‬ َ ‫ُإ‬ ‫م‬ ‫ُث‬ ‫ل‬َ ‫ُإ‬‫اب‬ ‫ن‬
َ ِ َ
ُ‫اتُأ َ ْو ُِِف‬ِ ‫او‬ ‫م‬ ‫ُالس‬
َّ
َ َ َ ِ ْ َ َ ِ ْ ‫ُِف‬ ‫و‬ َ ‫إ َنَّهاُإنُ َتكُ ِمثْقَا َلُحبَّ ٍةُ ِمنُ َخرد ٍلُفَ َتكنُِفُص ْخر ٍةُأ‬
َ ْ ْ َ َ ْ ِ َ ِ
ُ‫ُالصالةَ َُوأْم ْر‬ ُ ِ ‫ن ُأ َ ِق‬ ْ ‫األر ِض ُيأ‬
ََّ ‫م‬ ََّ َ ‫ِي ُ۞ ُ َيا ُب‬ ٌ ِ ‫ب‬ ‫خ‬ َ ُ ‫يف‬ ٌ ‫ط‬
ِ َ ‫ل‬ُ ‫ُاَلل‬
َّ
ََ َ ِ َ َِ َ‫ن‬
َّ ‫ُإ‬ ‫ُاَلل‬
َّ ‫ا‬ ‫ه‬ ‫ُب‬ ‫ت‬ ِ ْ
َ
ُ‫ك ُ ِم ْن ُ َع ْز ِم‬ َ ِ‫ك ُإِ ََّن ُ َذ ل‬ َ ‫ْب ُع َََل ُ َما ُأ َصا َب‬ ْ ِ ‫اص‬ ْ ‫ك ِر َُو‬ َ ‫وف َُوا ْن َه ُ َع ِن ُالْم ْن‬ ِ ‫ِبا ل َْم ْعر‬

निज़ामुल इस्लाम - 193 -


ُ‫ُاَلل ُال‬ ْ ‫َّاس َُوالُ َت ْم ِش ُِِف‬
َ ََّ ‫ُاألر ِض ُ َم َر ًحاُإِ ََّن‬ ِ ‫ور ُ۞ َُوالُت َص َِّع ْر ُ َخ ََّد َك ُلِل َن‬ ِ ‫األم‬
َ ‫كُإِ ََّنُأ َ ْن‬
ُ‫ك َر‬ َ ‫ضُ ِم ْن‬
َ ِ‫ُص ْوت‬ ْ ‫ك َُواغْض‬
َ ‫ورُ۞ُ َُواق ِْص ْد ُِِفُ َم ْش ِي‬ ٍ ‫الُفَخ‬ ٍ ‫لُم ْخ َت‬ََّ ‫بُك‬
َّ ‫ي ِح‬
﴾‫ِي‬ ِ ‫اتُل ََص ْوتُالْ َح ِم‬ ِ ‫األص َو‬ْ
“और जब लुक़माि िे अपिे बेटे को िसीहत करते हुए कहा के ‘ऐ बेटा! (फकसी
को) अल्लाह का शरीक िा ठहरािा, इसमें कोई शक िहीं की नशकच बडे ही ज़ुल्म
की बात है।’ और हमिे इां साि को उसके माां-बाप के हक़ में ताकीद की (की वोह
अपिे माां-बाप के साथ हुस्ने सुलक
ू करे )। इसकी माां िे इसे थक़-थक़ कर इसे पैट
में उठाये रखा, और दो बरस तक उसे दूध नपलाती रही। (इसनलये) हमारा
शुक्रगुज़ार रह, और अपिे वानलदैि का भी। आनखरकार हमारी ही तरि तुम
सब को लौट कर आिा है। अगर तेरे माां-बाप तुझे इस बात पर मजबूर करे की
तू हमारे साथ फकसी को शरीक ठहराये, नजसकी तेरे पास कोई दलील िहीं, तो
(इस मामले में) उिका कहा िा माििा। (मगर हाां) दुनिया में उिके साथ
सआदत मन्दी के साथ रह, और उि लोगों के तरीक़े पर र्ल, जो हर बात में
हमारी तरि रुजुअ करते है और हमारा हुक्म बजा लाते है। फिर आनखरकार
तुम सब को हमारी तरि ही लौटिा है। फिर मैं तुम्हे तुम्हारे आमाल के
मुतानल्लक़ बताउां गा। ‘बेटा! अगर कोई र्ीज़ राई के दािे के बराबर हो फिर
वोह फकसी पमथर या आसमािो में या ज़मीिो में हो, तो उसको भी अल्लाह
तआला हानज़र करे गा। बेशक अल्लाह तआला बडा बारीक बीि और बाखबर
है। बेटा! िमाज़ क़ायम करो और (लोगों को) अच्छे कामों (के करिे) की िसीहत
फकया करो और बुरे कामो से मिा कर, और तुझ पर जैसी पडे, इस पर सब्र कर,
बेशक यह (बडी) नहम्मत का काम है। और लोगों से बेरुखी िा कर और ज़मीि
पर इतरा कर िा र्ल, (क्योंफक) अल्लाह फकसी इतरािे वाले शेख़ी-खोर को
पसन्द िहीं करता। और अपिी रफ्तार में मयािारवी (इनख्तयार) कर और
अपिी आवाज़ को िीर्ा कर, क्योफक आवाज़ो में सब से बुरी आवाज़ गधे की
है।”
(तजुचमा मआिी क़ु रआिे करीम, सूरे लुक़माि, आयत - 13-19)

निज़ामुल इस्लाम - 194 -


‫‪और सूरे िु रक़ाि में अल्लाह तआला का इरशाद है:‬‬

‫ُاألر ِض ُ َُه ْو ًنا َُوإِ َذا ُ َخا َط َهْبُ‬ ‫ْ‬ ‫ون ُع َََل‬‫﴿و ِع َباد ُال ََّر ْح َم ِن ُالََّ ِذي َن ُ َي ْمش َ‬
‫َ‬
‫ون ُقَالوا َُسال ًما ُ۞ َُوالََّ ِذي َن ُ َي ِبيت َ‬
‫ون ُل َُِر َِّب ِه ْم ُس ََّج ًدا َُو ِق َيا ًما ُ۞ُ‬ ‫الْ َجا ِهل َ‬
‫َان ُغ ََرا ًماُ۞ُ‬ ‫ُج َُه َن ََّم ُإِ ََّن ُ َعذَ ا َب َهاُك َ‬ ‫ف ُ َع َنَّاُعَذَ َ‬
‫اب َ‬ ‫َوالََّ ِذي َن ُ َيقول َ‬
‫ون َُر َبَّ َناُا ْص ِر ْ‬
‫إِ َنَّ َها َُسا َء ْتُم ْس َتق ً ََّرا َُومقَا ًماُ۞ َُوالََّ ِذي َنُإِ َُذاُأ َ ْنفَقواُل َْمُي ْس ِرفوا َُو ل َْمُ َي ُْقَتواُ‬
‫ُاَللُِإِل ًَهاُآ َخ َر َُوالُ َُيقْتلُ َ‬
‫ونُ‬ ‫ونُ َُم َع ََّ‬‫كُق ََوا ًماُ۞ َوالََّ ِذي َنُالُ َي ْدع َ‬ ‫يُ َذ لِ َ‬‫َانُ َب ْ َ‬
‫َوك َ‬
‫ك ُ َيل ْ َق ُأ َ َُثا ًماُ‬
‫ون َُو َم ْن ُ َيف َْع ْل ُ َذ لِ َ‬ ‫الُبا لْ َح َِّق َُوالُ َي ُْزن َ‬ ‫ال َنَّ ْف َس ُالََّ ِِت ُ َح ََّر َم ََّ‬
‫ُاَلل ُإِ ِ‬
‫ابُ‬‫د ُ ِفي ِه ُم َها ًناُ۞ُإِالُ َم ْن ُ َت َ‬ ‫ضا َع ْف ُلَه ُال َْعذَ اب َُي ْو َم ُالْ ِق َيا َم ِة َُو َي ْخل ْ ُ‬ ‫۞ُ ي َ‬
‫َانُا َََّللُ‬
‫ات َُوك َ‬
‫ُح َس َن ٍ‬
‫ُاَلل َُس ِ َّي َئاتِ ِه ْم َ‬
‫كُي َُب َّ ِدل ََّ ُ‬ ‫َوآ َم َن َُو َع ِم َلُ َع َمال َ‬
‫ُصا لِ ًحاُفَأو لَ ِئ َ‬
‫ُصا لِ ًحا ُفَ ِإ َُنَّه َُيتوب ُإِ ََل ََّ ِ‬
‫ُاَلل ُ َم َتا ًبا ُ۞‬ ‫يما ُ۞ ُ َو َم ْن ُ َت َ‬
‫اب َُو َع ِم َل َ‬ ‫ورا َُر ِح ً‬
‫غَف ً‬
‫واُبال ُل ََّ ْغ ِو ُ َم َّرواُك َِرا ًماُ۞ُ َوالََّ ِذي َن ُُإِ َذاُ‬ ‫َوالََّ ِذي َن ُالُ َي ْش َهد َ‬
‫ون ُال َّز َ‬
‫ور َُوإِ َذاُ َم َّر ِ‬
‫اُوع ْم َيا ًناُ۞ َوالََّ ِذي َن َُيقول َ ُ‬
‫ونُ‬ ‫ات َُربَِّ ِه ْم ُل َْم َُي ِخ َّرواُعَل َْي َهاُص ًُم َّ َ‬
‫آي ِ‬ ‫ذ َُِّكرواُبِ َ‬
‫ي ُ ُإِ َما ًماُ۞ُ‬ ‫ق‬‫ِ‬ ‫َّ‬ ‫ت‬
‫َ‬ ‫ْم‬ ‫ل‬‫ِ‬ ‫ل‬‫اُ‬ ‫ن‬ ‫ْ‬ ‫ل‬ ‫ع‬ ‫اج‬ ‫ُو‬ ‫ي‬ ‫ع‬ ‫ربَّناُهب ُلَناُ ِمن ُأَزواجناُوذريَّاتِناُق ُرةَ ُأ َ‬
‫َ‬ ‫َ‬ ‫ٍ َ ْ َ‬ ‫ْ‬ ‫َ َ َ َ ْ َ ْ ْ َ ِ َ َ َِّ َ َ ََّ‬
‫يهاُ َت ِح َيَّ ًة َُو َسال ًماُ۞ُ َخا لِ ِد ُي َنُ‬ ‫ُص َْبواُ َو يل َ ََّق ُْو َنُ ِف َ‬
‫كُي ْج َز ْو َنُالْغ ْرفَ َة ُِب َما َ‬
‫أو لَ ِئ َ‬
‫اُحس َن ْتُم ْس َتق ً ََّرا َُومقَا ًما﴾‬
‫يه َ‬‫ِف َ‬
‫ंे‪“रहमाि के (िरमाबरदार) बन्दे तो वोह है जो ज़मीि पर िरमी के साथ र्ल‬‬
‫‪और जब जानहल उिसे मुखानतब हो तो (उन्हे) सलाम करें (और अलग हो‬‬
‫‪ज़ाऐं)। और जो रातो को अपिे परवर फदगार के आगे सजदे और क़याम करें ।‬‬

‫‪निज़ामुल इस्लाम - 195 -‬‬


और जो दुआऐ माांगे के ऐ हमारे परवरफदगार! अज़ाबे दोज़ख़ को हमसे दूर ही
रनखऐ, क्योफक दोज़ख का अज़ाब (बहुत भारी) मुनसबत है। वोह (थोडी देर)
ठहरिे और (हमेंशा) रहिे की बुरी जगह है। और जो खर्च करिे लगे तो फिज़ूल
खर्ी िा करें और िा बहुत तांगी करे , बनल्क उिका खर्च अिरात व तिरीत के
दर्मचयाि एक सीधी गुज़राि हो। और जो अल्लाह के साथ (फकसी) दूसरे माबूद
को िा पुकारें और िाहक़ फकसी को ज़ाि से मारें के इस बात को अल्लाह तआला
िे हराम फकया है, और िा ही वोह नज़िा का मुतफच कब हो। और जो ऐसे अमल
करे गा, वोह (अपिे) गुिाह का खनमयाज़ा भुगतेगा। क़यामत के फदि उसे दोहरा
अज़ाब फदया जाऐगा। और वोह ज़लील व रुसवा हो कर हमेंशा उसी हाल में
रहेगा। मगर नजसिे तौबा की और ईमाि लाया और िेक अमल फकये, तो
अल्लाह ऐसे लोगों के गुिाहो को िेकी में बदल देगा। और अल्लाह बडा बख्शिे
वाला और मेंहरबाि है। और जो शख्स तौबा करें और उसके बाद िेक अमल
(भी) करे तो हक़ीक़त में वोह अल्लाह की तरि रुजूअ करता है। और (अल्लाह
के िरमाबरदार बन्दों में से) वोह (भी) है जो झूठी गवाही िा दें और जो बेहुदा
मशग़लो के पास से गुज़रे तो वज़अदारी के साथ गुज़रें । और वोह लोग के जब
उन्हें उिके परवरफदगार की आयात सुिा सुिा कर िसीहत की जाऐ तो वोह
अन्धे और बहरे हो कर उि पर िा नगर पडे। और जो दुआऐं माांगते है फक ऐ
हमारे परवरफदगार! हमें हमारी बीनवयों की (तरि से) आांखो की ठां डक इिायत
िरमा और हमें परहेज़गारो का पेशवा बिा। यही लोग है नजिको उिके सब्र के
बदले (जन्नत में रहिे के नलये) बाला खािे नमलेग,े और वहाां दुआ और सलाम
के साथ उिका इस्तक़बाल फकया जाऐगा। और यह लोग जन्नत में हमेंशा हमेंशा
रहेग।ें और यह क्या ही अच्छी जगह है, ठहरिे के नलये और हमेंशा रहिे के
नलये।
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे अल-िु रक़ाि, आयत:63-76)
और सूरे अल-इसरा में इरशाद िरमाया:

निज़ामुल इस्लाम - 196 -


‫ك ُأَالُ َت ْعبدواُإِالُإِ َيَّاه َُو ِبا ل َْوالِ َد ْي ِن ُإِ ْح َسا ًناُإِ ََّماُ َي ْبل َغ ََّن ُ ِع ْن َد َكُ‬ ‫﴿وقَ ََض َُربَّ َ‬ ‫َ‬
‫ف َُوال ُ َت ْن َه ْره َما َُوق ْل ُلَه َما ُق َْوالُ‬ ‫ْب ُأ َ َحده َما ُأ َ ْو ُكِاله َما ُفَال ُ َتق ْل ُلَه َما ُأ ٍَّ‬ ‫الْ ِك َ َ‬
‫ق‬ ‫م‬
‫ِ‬ ‫ُج َناحَ َّ‬ ‫يما ُ۞ َُوا ْخف ْ‬
‫ُار َح ْمه َما ُك ََماُ‬ ‫َ َ ْ‬‫ب‬ ‫ِ‬ ‫َّ‬ ‫ُر‬ ‫ل‬‫ْ‬ ‫ُو‬ ‫ة‬
‫ِ‬ ‫م‬
‫َ‬ ‫ح‬ ‫ْ‬ ‫ر‬
‫َّ‬ ‫َ‬ ‫ل‬ ‫ُا‬ ‫ن‬
‫َ‬ ‫ُ‬ ‫ل‬
‫َّ‬ ‫ِ‬ ‫ُالذ‬ ‫ِض ُلَه َما َ‬ ‫َك ِر ً‬
‫ِياُ۞‬ ‫غ‬
‫ِ‬ ‫ُص‬ ‫اِن‬ ‫ي‬ ‫َّ‬ ‫ب‬ ‫ر‬ ‫ُ‬ ‫ه‬ ‫َّ‬ ‫ن‬
‫َ‬ ‫إ‬‫َ‬ ‫ف‬ ‫ُ‬ ‫ي‬ ‫ح‬
‫ِ‬ ‫ِ‬ ‫ل‬ ‫ا‬ ‫واُص‬ ‫ون‬ ‫ك‬ ‫ت‬ ‫ُ‬ ‫ن‬ ‫ُإ‬ ‫م‬ ‫ك‬ ‫وس‬
‫ِ‬ ‫ف‬‫ُن‬ ‫اُِف‬ ‫م‬ ‫ُب‬ ‫َم‬ ‫ل‬ ‫ع‬ ‫ربَّكم ُأ َ‬
‫َ ِ َ َ ِ َ ً‬ ‫َ‬ ‫َ‬ ‫َ‬ ‫ْ ِ ْ‬ ‫َِ ِ‬ ‫ْ‬ ‫َ ْ‬
‫لس ِبي ِل َُوالُ‬ ‫ي َُوا ْب َنُا ََّ‬ ‫ُح ََّقهُُ َوالْ ِم ْس ِك َ‬ ‫آتُ َذاُالْق ْر ََب َ‬ ‫اُ۞ُو ِ‬
‫ور َ‬ ‫يُغَف ً‬ ‫اب َ‬ ‫ألو ِ‬‫َانُلِ ََّ‬ ‫ك َ‬
‫َان ََّ‬
‫ُالش ْي َطانُ ت َب َِّذ ْر ُ َت ْب ِذي ًراُُ۞‬ ‫ي َُوك َ‬
‫ُالش َيا ِط ِ‬ ‫إِ ََّن ُالْم َب َِّذ ِري َن ُك َانواُإِ ْخ َو َ‬
‫ان ََّ‬

‫ك ُ َت ْرجو َهاُفَق ْلُ ل َِر َِّبهُِكَف ً‬


‫وراُ۞‬ ‫اء َُر ْح َم ٍة ُ ِم ْن َُر َِّب َ‬
‫َوإِ ََّماُت ْع ِر َض ََّن ُ َع ْهَن ُا ْب ِت َغ َ‬
‫ك َُوالُ َت ْبس ْط َهاُك ََّ‬
‫لُ‬ ‫اُ۞ُوالُ َت ْج َع ْل َُي َد َك ُ َم ْغلولَ ًة ُإِ ََل ُعن ِق َ‬
‫ور َ‬ ‫لَه ْم ُق َْوالُ َُم ْيس ً‬
‫ك َُي ْبسطُال َِّر ْز َقُلِ َم ْن َُي َشاء َُو َي ْق ِدرُ‬ ‫وراُ۞ُإِ ََّن َُر َبَّ َ‬ ‫ال َْب ْس ِطُفَ َتقْع َدُ َملو ًماُ َم ْحس ً‬
‫الق ُ َن ْحنُ‬ ‫َ‬
‫اُ۞ُوالُ َتقْتلواُأ ْوال َد كُ ْم ُ َخ ْش َي َة ُإِ ْم ٍ‬ ‫ِي َ‬ ‫ِياُ َب ِص ً‬ ‫َان ُِب ِع َبا ِدهِ ُ َخ ِب ً‬ ‫إِ َنَّه ُك َ‬
‫ِياُ۞‬ ‫َانُ ِخ ْط ًئاُك َِب ً‬ ‫َانُ َن ْرزقه ْم َُوإِ َيَّا ك ْمُإِ ََّنُقَ ْتل َه ْمُك َ‬ ‫َوالُ َتق َْربواُال َِّز َناُإِ َنَّهُك َ‬
‫الُبا لْ َح َِّق َُو َم ْنُ‬
‫ُاَللُإِ ِ‬ ‫يالُ۞ُوالُ َتقْتلواُال َنَّ ْف َسُالََّ ِِتُ َح ََّر َم ََّ‬ ‫َ‬ ‫اء َُس ِب‬‫فَا ِح َش ًة َُو َس َ‬
‫ف ُِِف ُالْ َق ْت ِل ُإِ َنَّه ُك َ‬
‫َانُ‬ ‫ُج َعل ْ َنا ُلِ َولِ َِّي ِه ُسل َْطا ًنا ُفَال ُي ْس ِر ْ‬ ‫ِل ُ َم ْظلو ًما ُ ُفَق َْد َ‬ ‫قت َ‬
‫الُبا لََّ ِِت ُ ِه َي ُأ َ ْح َسن ُ َح َََّت ُ َي ْبل َغ ُأَش ََّدهُ‬
‫يم ُإِ ِ‬ ‫اُ۞ُوالُ َتق َْربواُ َما َل ُال َْي ِت ِ‬ ‫ور َ‬ ‫َم ْنص ً‬
‫ك ُْي َل ُإِ َذاُكِل ْت ْم َُو ِزنواُ‬ ‫والُ۞ُوأ َ ْوفواُالْ َ‬
‫َ‬ ‫ئ‬ ‫س‬‫ْ‬ ‫م‬
‫َ‬ ‫ُ‬ ‫َان‬
‫َ‬ ‫ك‬ ‫ُ‬ ‫د‬
‫َ‬ ‫ه‬
‫ْ‬ ‫ْع‬
‫َ‬ ‫ل‬ ‫ُا‬ ‫ن‬
‫َّ‬ ‫َ‬ ‫ِ‬ ‫ُإ‬ ‫د‬
‫ِ‬ ‫ه‬
‫ْ‬ ‫ْع‬
‫َ‬ ‫ل‬ ‫ا‬ ‫واُب‬
‫ِ‬ ‫ف‬ ‫و‬‫وأ َ‬
‫َ ْ‬
‫ِي َُوأ َ ْح َسنُ َتأ ْ ِو يالُ۞‬ ‫كُ َخ ْ ٌ‬‫يمُ َذ لِ َ‬‫اسُالْم ْس َت ِق ِ‬ ‫َكُ ِبا لْ ِق ْس َط ِ‬ ‫َوالُ َتقْفُ َماُلَ ْي َسُل َ‬

‫‪निज़ामुल इस्लाम - 197 -‬‬


۞ُ‫َان ُ َع ْنه ُ َم ْسئوال‬
َ ‫ك ُك‬ َّ ‫لس ْم َع َُوال َْب َصر َُوالْف َؤا َد ُك‬
َ ‫ل ُأو لَ ِئ‬ ََّ ‫َوالُ ِب ِه ُعِل ٌْم ُإِ ََّن ُا‬
َ
ُ۞ُ‫ض َُو لَ ْن ُ َت ْبل َغ ُالْ ِج َبا َل ُطوال‬ ْ ‫ك ُلَ ْن ُ َت ْخ ِر َق‬
َ ‫ُاألر‬ ْ ‫َت ْم ِش ُِِف‬
ُ َ َّ‫ُاألر ِض ُ َم َر ًحاُإِ َن‬
﴾‫كُ َم ْكرو ًها‬
َ ‫َان َُس ِ َّيئهُ ِع ْن َد َُر َِّب‬
َ ‫كُك‬ َّ ‫ك‬
َ ِ‫لُ َذ ل‬
“और तुम्हारे परवरफदगार िे हुक्म दे फदया है की उसके नसवा फकसी की इबादत
िा करो और वानलदैि के साथ हुस्ने सुलक़ ू के साथ पेश आओ। और अगर
वानलदैि में से एक या दो तुम्हारे सामिे बुढापे को पहुांर्े तो उि के सामिे उि
भी िा करिा और िा उन्हें नझडकिा और उिसे कु छ कहिा हो तो अदब के साथ
कहिा और मुहब्बत से ख़ाक़सारी का पहलू उिके आगे झुकाऐ रखिा और उिके
हक़ में दुआ करते रहिा की ‘ऐ मेंरे परवरफदगार! नजस तरह उन्होिे मुझ छोटे
से को पाला और मेंरे हाल पर रहम करते रहे है, तू भी उिके हाल पर रहम
िरमा’, तुम्हारे फदल की बात को अल्लाह खूब जािता है। अगर तुम हक़ीक़त में
सआदत मन्द हो तो वोह तुम्हे माि कर देगा क्योंकी वोह तौबा करिे वालो की
खताओ को बख्शिे वाला है। और ररततेदार, ग़रीब और मुसाफिर (हर एक) को
उस का हक़ पहुांर्ाते रहो और दौलत को िाहक़ िा उडाओ क्योंफक दौलत को
बेजा उडािे वाले शैताि के भाई है और शैताि अपिे परवरफदगार का बडा ही
िा शुकरा है। और अगर तुम्हे अपिे परवरफदगार के िज़ल के इां तज़ार में,
नजसकी तुम्हे तवक्को हो , इि (ग़ुरबा) से मुह
ां िे रिा पडे तो िरमी से उन्हें समझा
दो। और अपिा हाथ िा तो इतिा सुकेडो के (गोया) गरदि में बन्धा है और िा
उसको नबल्कु ल िै ला दो। (ऐसा करोगे तो) तुम ऐसे बैठे रह जाओगे की लोग
भी तुम्हे मलामत करें गे और तुम तहे दस्त भी होगें। तुम्हारा परवर फदगार नजस
की र्ाहता है रोज़ी िराग़ कर देता है और नजस की र्ाहता है, िपी-तुली कर
देता है। और वोह अपिे बन्दो (के हाल) से बाखबर और (उिकी ज़रूरतों को)
देखिे वाला है। और ग़रीबी के डर से अपिी औलाद को क़मल िा करो, उन्हे भी
हम ही रोज़ी देते है तुम्हे भी। और औलाद को जाि से मारिा बडा भारी गुिाह
है। और नज़िा के पास भी िा भटकिा, क्योफक यह बेहयाई और (बहुत ही) बुरा
र्लि है। और फकसी को िाहक़ क़मल करिा अल्लाह िे हराम कर फदया है। और

निज़ामुल इस्लाम - 198 -


जो शख्स ज़ुल्म से मारा जाऐ तो हम िे उसके वाली (वाररस) को क़मल का
फक़सास लेिे का इनख्तयार फदया है, तो उसे र्ानहऐ की खूि (का बदला लेि)े में
ज्यादती िा करे , क्योफक उसकी मदद कर दी गई है। और यतीम के माल के
पास भी िा ज़ािा, मगर नजस तरह के (यतीम के हक़ में) बेहतर हो, जब तक
के वोह अपिी जवािी को पहुांर् जाऐ। और अहद को पूरा फकया करो, क्योफक
(क़यामत के फदि) अहद की बाज़-पुसच होगी। और जब माप करो तो पैमािे को
पूरा भर कर फदया करो और डांडी नसधी रख कर तोला करो। मामले का यह
बेहतर (तरीक़ा) है और (इसका) अांज़ाम भी अच्छा है। और नजस बात का तुझ
को इल्म िहीं उसके पीछे िा हो नलया कर, क्योंकी काि, आांख और फदल सब
से (क़यामत के फदि) पूछ-गछ होिी है। और ज़मीि में अकड कर िा र्ला कर
क्योफक इस से तू ज़मीि को िहीं िाड सके गा और िा (ति कर र्लिे से) पहाडो
की बुलन्दी को पहुांर् सके गा। इि सब बातो में जो बुरी है, सब ही तुम्हारे
परवरफदगार के िज़दीक़ िापसन्द हैं।
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे बिी-इसराईल, आयत: 23-38)
पस इि तीिों सूरतों की यह आयात नवनभन्न नसिात का एक मुकम्मल मजमुआ हैं। इिसे
एक मुसलमाि की सूरत उभर कर सामिे आती है और यह आयात इस्लामी शनख्सयत
को बयाि करती है जो दूसरों से मुमताज होती है, और इस दौराि इस बात का नलहाज़
रहे फक यह (नसिात) अल्लाह तआला के अवानमर और िवाही हैं। ख्वाह इिमें मौजूद
अहकामात का ताअल्लुक अक़ीदे से हो या इबादात से, मामलात से हो या अखलाक़ से।
र्ुिााँर्े इस बात का भी नलहाज़ रहे फक यह नसिात नसिच अखलाक़ी नसिात तक सीनमत
िहीं, बनल्क नजस तरह यह अख्लाफक़यात पर आधाररत हैं, नबल्कु ल इसी तरह यह
अक़ीदा, इबादात और मामलात पर भी आधाररत हैं। यह नसिात ही इस्लामी शनख्सयत
की तामीर करती हैं। नसिच अखलाक़ फकसी शख्स को कानमल और उसकी शनख्सयत को
इस्लामी िहीं बिाते। फिर यह भी लानज़म है की इिका मक़सद भी रुहािी बुनियाद,
यािी इस्लामी अक़ीदे पर आधाररत हो। इि नसिात का हानमल होिा भी इस्लामी अक़ीदे
की बुनियाद पर होिा र्ानहये। इसनलए एक मुसलमाि सच्चाई की नसफ्ित से नसिच सच्चाई
की वजह से मुत्तनसि िहीं होता। बनल्क इसनलये इस नसफ्ित को अपिे अन्दर पैदा करता
है फक यह अल्लाह का हुक्म है, अगरर्े वह सर् बोलते हुए इसकी अख्लाक़ी क़ीमत भी

निज़ामुल इस्लाम - 199 -


हानसल करता है। पस अख्लाक़ी नसिात से मुत्तनसि होिा नसिच इि नसिात की वजह से
िहीं, बनल्क उिके अवानमरुल्लाह होिे की वजह से है।
इसनलये लाज़मी तौर पर मुसलमािों को इि नसिात से मुत्तनसि होिा र्ानहए। और यह
की इि नसिात का लाज़मी होिा इताअत और िरमाबरदारी के जज्बे से हो, क्योफक
इिका ताउल्लुक तक़वे से है। यह नसिात इबादात से बतोरे िताइज पैदा होती हैं जैसे
सूरे अिकबूत में अल्लाह का इरशाद है :

َ ‫ُالصالةَُ َت ْن ََهُ َع ِنُالْ َف ْح َشا ِء َُوالْم ْن‬


ُ‫ك ِر‬ ََّ ‫إِ ََّن‬
“बेशक िमाज़ बेहयाई और बुरी बातों से रोकती है।”
इस तरह मुआमलात में भी इिकी ररआयत रखिा जरुरी है।
“दीि मुआमलात का िाम है।”
यही अल्लाह तआला के मुकरच फकये हुए अवानमर और िवाही है, और यह बात (यािी इि
का अल्लाह के अवानमर व िवाही होिा) ही इि नसिात को एक मुसलमाि के अन्दर
दानखल कर देता है और इिको एक मुसलमाि की आदते सानिया बिा देती है। इसनलये
अखलाक़ बाकी निजामें हाय हयात का नहस्सा है, अगर यह नस्थर नसिात है। यह नसिात
एक मुसलमाि को सुआलेह (अच्छा) बिािे की ज़माित देती है। क्योंफक अख्लाक़ी
नसिात से मुत्तनसि होिे का मतलब है फक अल्लाह तआला के अवानमर को पूरा करिा
और िवाही से बर्िा। इिसे मुत्तनसि होिे का हरनगज यह मक़सद िहीं फक इि से िायदा
या िुकसाि हानसल होता हैं। और यही वोह र्ीज़ है, जो फकसी शख्स को दाइमी (नस्थर)
तौर पर अखलाक़े हस्ना से मुत्तनसि कर सकती है और यहीं र्ीज़ एक मुसलमाि को
इस्लाम के नििाज फक राह में सानबत कदम कर सकती है और इस वजह ही से मुसलमाि
िायदों की बुनियाद पर गर्दचश िहीं करता रहेगा। क्योंफक मुसलमाि इि आमाल की
अन्जाम देही से मििअत (िायदों) का इरादा िहीं करता, बनल्क इस से तो बर्िा
र्ानहऐ। क्योफक इि आमाल की अिजाम देही का मक़सद अख्लाक़ी क़ीमत है, िा फक
माद्दी (भौनतक) या इां सािी या रुहािी क़ीमत। बनल्क इि कीमतों का इस दायरे में अमल
दखल िहीं होिा र्ानहए, ताफक इस तरह इस िरीज़े की अदाइगी और इि नसिात को
अपिािे में कोई खलल पैदा िा हो सके । और नजस र्ीज़ की तरि तम्बीह (र्ेताविी)

निज़ामुल इस्लाम - 200 -


निहायत ज़रूरी है वह यह है फक इां साि माद्दी क़ीमत को अखलाक़ से दूर रखे और यह की
इि की अदाइगी फकसी िुक़साि और िायदे के नलये नबल्कु ल िा हो, क्योफक यह इन्तेहाई
खतरिाक बात है।

खुलासाए कलाम
खुलासाए कलाम यह है फक अखलाक़ मुआशरे (समाज) को बिािे वाली र्ीज़ िहीं, बनल्क
यह िदच की तामीर करिे वाली र्ीज़ है। इसनलये मुआशरे का सुधार कभी भी अखलाक़
के ज़ररये िहीं होगा। बनल्क मुआशरे का सुधार नसिच इस्लामी नवर्ार और एहसासात
और इस्लामी निज़ाम हाए हयात के नििाज़ से होगा। िदच को भी नसिच अखलाक़ िहीं
बिाते, बनल्क अखलाक़ के साथ अकायद (आस्था), इबादात और मुआमलात भी लाज़मी
हैं। इसनलए वह शख्स मुसलमाि िहीं नजसके अखलाक़ तो बडे अच्छे हैं लेफकि अकाइद
ग़ैर इस्लामी हैं। बनल्क वह काफिर है और कु फ्र से बडा गुिाह क्या हो सकता है? इसी
तरह वह शख्स नजसके अखलाक़ तो बडे अच्छे हैं, लेफकि इबादात और मुआमलात में
वह एहकामें शरीया का नलहाज़ िहीं रखता, उसे भी अखलाके हसिा का हानमल िहीं
कह सकते, मालूम हुआ के एक िदच को बिािे के नलए अक़ीदे, इबादात, मुआमलात और
अखलाक़ सब लाज़मी हैं। यह शरअि जायज़ िहीं फक अखलाक़ की तरि खूब तवज्जोह
दी जाए और बाकी नसिात को छोड फदया जाए, बनल्क फकसी र्ीज़ को िज़रअांदाज करिा
जायज़ िहीं। सबसे पहले नजस र्ीज़ के बारे में इनममिाि कर लेिा र्ानहये, वह अक़ीदा
है। अखलाक़ के अन्दर भी बुनियादी र्ीज़ यह है फक यह इस्लामी अक़ीदे पर आधाररत
हों, और मोनमि उन्हे अल्लाह तआला के अवानमर व िवाही ( हुक्म और रोक) समझ कर
अपिाए।

निज़ामुल इस्लाम - 201 -

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