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Nizam Ul Islam Ebook Hindi 2024
Nizam Ul Islam Ebook Hindi 2024
Nizam Ul Islam Ebook Hindi 2024
इस्लाम
मार्च 2023
निज़ामुल इस्लाम - 2 -
Contents
1. तरीक़ुल ईमान ..........................................................................- 12 -
1.1 अल्लाह तआला पर ईमान का तरीका ......................................................... - 13 -
फजफबफल्लयात (मूल-प्रिती) इंसान को अमल करने पर मजबूर नही करती - अमल अक़्ल के िैसले
और इंसानी इरादे का नतीजा है .............................................................. - 38 -
कज़ा ि क़दर के मसले को सही तरह से समझने का िायदा - अमल मे मोहताती और तक़िा - 40 -
निज़ामुल इस्लाम - 3 -
3. इस्लाम की फिक्री फक़यादत .........................................................- 41 -
3.1 क़ौफमयत का रब्त........................................................................... - 42 -
3.2 मसफलहती रब्त और रूहानी रब्त (Bond of Interest and Spiritual Bond) ............... - 43 -
3.5.4 सेक्यूलफरज़्म का दीन का फज़मनी (आंफिक) ऐतराि मगर दु फनयािी फज़न्दगी का ज़ज़दगी से
पहले और बाद से कोई तआल्लुक़ नहीं ......................................................... - 51 -
3.5.5 लादीफनयत : दीन फसिफ िदफ और उसके ख़ाफलक़ के दरफमयान तआल्लुक़ है और दु फनयािी
मामलात से दीन (धमफ) का कोई ताल्लुक़ नही .................................................. - 51 -
3.6.1 इश्ततराक़ी मब्दा फिक्र (फिचार) को फदमाग पर माद्दे का अक़्स (प्रफतज़बब) मानता है .... - 52 -
निज़ामुल इस्लाम - 4 -
3.9.1 इंसान अपने आमाल मे अल्लाह तआला के 'अिाफमर और निाही' (commands and
prohibition) में मुक़य्यद है .................................................................. - 56 -
3.9.2 समाज की फहिाज़त के आला मक़ाफसद इंसानी अक़्ल नही बश्ल्क अल्लाह के अिाफमर ि निाही
से तैय हों .................................................................................... - 57 -
3.16 इस्लाम की फिक्री फक़यादत इंसानी फितरत के मुिाफिक कैसे हैं ? ........................ - 68 -
3.17 पूज
ं ीिादी फिक्री फक़यादत इंसानी फितरत के फिपरीत कैसे हैं ? ........................... - 69 -
निज़ामुल इस्लाम - 5 -
3.18 कम्यूफनज़्म की फिक्री फक़यादत इंसानी फितरत के फिपरीत कैसे हैं ? ...................... - 70 -
3.19.1 कम्यूफनज़्म के मुताफबक फिक्र (फिचार) फदमाग पर माद्दे का प्रफतफबम्ब (अक़्स) होता है .. - 71 -
3.19.2 फिक्र (फिचार / अिधारणा) पैदा होने के फलये साफबक़ा मालूमात (previous information)
का होना ज़रूरी है ........................................................................... - 72 -
इस्लाम की तारीख (इफतहास) के मुताले से पहले फकन चीज़ो को ध्यान मे रखे .................. - 86 -
फनज़ाम को समझने की बुफनयाद तारीख और फिक़ह नही है बश्ल्क कानूनी मसदर (स्त्रोत) है ... - 87 -
इस्लाम की दाित के फलये इस्लाम को िैचाफरक नेतृत्ि (intellectual leadership) के तौर पर पेि
करना ज़रूरी है .............................................................................. - 94 -
दाित पहु ंचाने मे ज़माने और क़ौमों की तब्दीली का कोई फलहाज़ नही है - इस्लामी फिक्र से टकराने
िाले हर तरह के नज़फरयात को चेलेंज फकया जायेगा ......................................... - 94 -
दाित पहु चाने मे लोगों की मुिाफिक़त और मुखाफलित का फलहाज़ नही है - मब्दा पर इश्स्तक़ामत
ज़रूरी ....................................................................................... - 95 -
रसूलुल्लाह صلى هللا عليه وسلمने तने तन्हा तमाम मबादी को चेलेंज फकया और अपने मब्दे पर क़ायम रहे
.............................................................................................. - 96 -
दाित का अमल मौजूदा (प्रचफलत) राय आम्मा, अक़ाईद और अदयान को चेलेंज है .......... - 96 -
इस्लाम की तरि दाित (1) इस्लामी फरयासत के ज़फरये इस्लाम का फनिाज़ करने, (2) इस्लामी
फज़न्दगी की नये फसरे से आग़ाज़ करने और (3) पूरी दु फनया तक इस्लाम के पैगाम को ले जाए के
फलये हो ...................................................................................... - 98 -
निज़ामुल इस्लाम - 6 -
दाित - ग़लत तसव्िुरात को सही करना और लोगों की मुश्तकलात का हल पेि करने िाले तमाम
फनज़ामें फज़न्दगी पर आधाफरत हो ............................................................. - 99 -
फसफ्िाते हाफमल्लीने दाित - (1) अपने नुिूस के अंदर कमाल का हु सूल (2) हक़ीक़त की खोज
लगाना (3) हर अजनबी फिक्र से अपने आप को पाक-साि रखना (4) अपने अफ्कार साि और
िफ्िाि रखना ............................................................................. - 102 -
फसफ्िाते हाफमल्लीने दाित - (5) फज़म्मे दारी को अल्लाह की तरि से िज़फ समझना (6) उन्हे अल्लाह
की रज़ा के खाफतर क़ुबूल करना (7) अपने आमाल का बदला फसिफ अल्लाह से चाहना........ - 102 -
5.2 साईंस और टे क्नोलोजी पर मब्नी तमद्दुन को अपनाना जाईज़ है जबफक तहज़ीब पर मब्नी तमद्दुन को
अपना हराम है .............................................................................. - 103 -
5.4 मगफरबी तहज़ीब - (1) दीन से दु फनया के मामलात को अलग करने पर बनी है .......... - 104 -
5.5 मगफरबी तहज़ीब - (2) मनिअत (िायदे ) और लज़्ज़तों को हााँफसल करना ही पूरी फज़न्दगी का
मक़्सद है और आमाल का मे यार है .......................................................... - 104 -
5.6 मगफरबी तहज़ीब - (3) रूहानी क़द्र (values) िदफ तक महदू द (4) अखलाक़ी और इंसानी क़द्र
का कोई िजूद नहीं ......................................................................... - 105 -
5.7 इस्लामी तहज़ीब फक रूहानी बुफनयाद - (1) अल्लाह की खालफक़यत और सय्यदना मुहम्मद صلى
هللا عليه وسلمफक फरसालत..................................................................... - 105 -
5.8 इस्लामी तहज़ीब - (2) रूह (spirit) और माद्दे (matter) से फमल कर बनी है ........... - 106 -
5.9 इस्लामी तहज़ीब - (3) आमाल का मुहर्ररक (प्रेरक) अम्रो निाही और अल्लाह की रज़ा है - 106 -
5.10 आमाल के इरादे का इन्हे सार क़ीमतों (values) पर है - रूहानी, इन्सानी, माद्दी और अखलाक़ी
............................................................................................. - 106 -
5.13 इस्लामी तहज़ीब की बुफनयाद है मग़फरबी तहज़ीब की बुफनयाद से फबल्कुल फिपरीत है - तस्िीर
साज़ी और औरत की फमसाल ................................................................ - 107 -
5.14 आम तमद्दुनी अफिया जाईज़ है जबफक खास तमद्दुनी अफिया को अपनाना हराम है ..... - 108 -
निज़ामुल इस्लाम - 7 -
5.15 सांइस और टे कनोलोजी से िजूद मे आने िाली तमद्दुनी अफिया को अपनाना जाईज़ है क्योंकी
यह फकसी खास तहज़ीब की पैदािार नहीं है ................................................. - 109 -
5.16 मग़फरबी तहज़ीब : (अ) दु फनयािी उमूर की दीन से जुदाई को अपनी बुफनयाद करार दे ती है जो
इंसानी फितरत के फबल्कुल फखलाि है (ब) मनिअत ही को एक इंसान का दू सरे इंसान से तआल्लुक़
गरदानती है................................................................................. - 109 -
5.17 मग़फरबी तहज़ीब : (5) इस्तेमाफरयत (imperialism) भी एक स्िभाफिक बात है (6) इसमे
अखलाक हमेंिा डांिाडोल रहते है ...........................................................- 110 -
5.18 इस्लामी तहज़ीब - (4) मुसलमानों और ग़ैर-मुश्स्लमो में कभी िक़फ नहीं फकया (5) जो तमाम
क़ीमतों को पूरा करती है (6) खुिी ि सआदत के मायनी अल्लाह तआला की खु िनूदी का हु सूल है . -
110 -
6.2 इस्लाम में मजहबी (धार्रमक) लोग और दु फनयािी लोग के नाम की फगरोह बन्दी नहीं है ...- 112 -
6.3 रूहाफनयत - खाफलक़ के साथ मखलूक़ के ताल्लुक़ात की समझ को कहते है ..............- 113 -
6.4 इंसान का बनाया हु आ फनज़ाम आपसी तिािुत (टकराि), इश्ख्तलािात और तज़ाद (परस्पर
फिरोध) का फिकार होता है ..................................................................- 113 -
6.5 इस्लामी तहज़ीब : रूह (spirit) के माद्दा (matter/पदाथफ) के साथ इश्म्तज़ाज (फमलान) है .- 113
-
6.6 अमल माद्दा (matter) है और उस अमल की अंजाम दे ही के िि अल्लाह तआला के साथ ताल्लुक़
का इदराक़ रूह (spirit) है ................................................................. - 114 -
6.8 गैर-इस्लामी तहज़ीब - कायनात के दो अजज़ा (तत्ि) : (1.) मरई (अदृतय) जो रुह है (2)
गैर-मरई (स्पष्ट) जो माद्दा है .................................................................- 115 -
6.9 इसाईयत में सत्ता का दो अथोफरटीस मे बटिारा - रुहानी (पोप) और दु फनयािी (क़ैसर) .- 115 -
6.10 मगफरबी तहज़ीब का अक़ीदा यानी 'सेक्यूलफरज़्म' का जन्म रुहानी और दु फनयािी अथोफरटी के
बीच अलैदगी के नतीजे से हु आ ..............................................................- 116 -
6.12 इंसान के अंदर रूहानी ज़ुहद (बुलंदी / ascension) और माद्दी (भौफतक) रुझानात नही बश्ल्क
फजस्मानी हाजात और फजफबल्लतें है ............................................................- 116 -
निज़ामुल इस्लाम - 8 -
6.13 रूह के सही मायने ......................................................................- 117 -
6.14 फज़फबल्ल्तो को अल्लाह के फनज़ामे के मुताफबक पूरा करना ही रूह या रूहानी पहलू है .....- 117 -
6.15 मुसलमान के फलये आमाल के अंजामदे ही मे रूह (अल्लाह से ताल्लुक़) का फलहाज़ ज़रूरी है - 118
-
6.18 क़ुरआने करीम और हदीस िरीि, इंसान के मुआमलात को बहैफसयते इंसान के हल करने के
फलये आम मआनी पर मुततफमल है ............................................................- 119 -
6.19 इस्लामी फनज़ाम तफ्सीली अहकामात को अख़ज़ करने का काम मुज्तहे दीन पर छोड़ा गया है . -
120 -
6.20 मुजतफहद का काम : (1) पैदा-िुदा मुश्तकल की अच्छी तरह तहक़ीक़ (2) मुश्तकल से
मुताफल्लक़ िरई नुसूस का मुताला (3) िरई दलाईल से हु क्मे िरई का इश्स्तम्बात ........... - 120 -
6.21 इस्लाम इंसानी मसाईल (समस्याओं) को फसिफ इंसानी मानता है ना की इक़फतसादी (आर्रथक)
मसला या इजफतमाई (सामुफहक) या हु कूमती मसला (समस्या) ............................. - 120 -
7.2 क़तई हु क्म मो दो राय नही होती यानी इश्ज्तहाद नहीं फकया जाता ...................... - 122 -
7.3 ज़न्नी हु क्म मे एक से ज़्यादा राय होती है यानी इश्ज्तहाद होता है ........................ - 122 -
7.4 फरिायत या दलालत मे से फकसी एक मे भी ज़न आने से हु क्मे िरई ज़न्नी हो जाता है फजसमे राय
के इश्ख्तलाि की गुंजाईि होती है .......................................................... - 123 -
7.5 हु क्मे िरई (िरीअत या िारे का हु क्म) फसिफ इश्ज्तहाद से ही मालूम होता है ............ - 123 -
7.6 मुजतफहद के अपने इजफतहाद के अखज़ करने के बाद फकसी दू सरे की तक़लीद करन जाईज़
नही फसिाऐ कुछ खास सूरतों के............................................................. - 123 -
7.6.1 अव्िल: दू सरे मुज्तफहद की दलील के क़िी होने के ज़ाफहर होने के बाद ............... - 124 -
7.6.2 दोम: दू सरे मुजतफहद की 'हक़ीक़त से ज्यादा आगही' या 'िरई अफदल्ला के मुताफल्लक़ उसका
िहम ज्यादा क़िी' होने के एहसास के बाद ................................................. - 124 -
7.6.3 सोम: मुसलमानो को जमा करने िाकी राय के मुक़ाबले मे ............................ - 124 -
7.6.4 चहारम: ख़लीिा के तबन्नी-िुदा िरई हु क्म की इताअत मुजतफहद पर भी लाफज़म है - 124 -
निज़ामुल इस्लाम - 9 -
7.7 ग़ैर-मुजतफहद के फलये तक़लीद जाईज़ है .............................................. - 125 -
7.8.1 मुत्तबीअ : दलील की मारित के बाद मुज्तफहद की तक़लीद (अनुसरण) करता है .... - 125 -
7.8.2 आम्मी : दलील को समझे बग़ैर ही मुज्तफहद की तक़लीद करने िाला ................. - 126 -
7.10 मुक़फल्लद का मुख्तफलि मसाईल पर अलग अलग मुजतफहदीन (मज़ाफहब) की तक़लीद करना
जाईज़ है .................................................................................... - 126 -
8.2 िज़फ की तारीि - िैल के करने मे तलब जाफज़म (खास तौर से ज़ोर दे कर मााँग) का पाया जाना
............................................................................................. - 128 -
8.3 मंदूब की तारीि - िैल के करने मे तलब गैर-जाफज़म (आम अंदाज़ मे मााँग) का पाया जाना ... -
129 -
8.4 हराम की तारीि - िैल को तकफ करने (छोडने) मे तलब जाफज़म (खास तौर से ज़ोर दे कर
मााँग) का पाया जाना ........................................................................ - 129 -
निज़ामुल इस्लाम - 10 -
13.7 अमीरे फजहाद ............................................................................ - 159 -
निज़ामुल इस्लाम - 11 -
1. तरीक़ुल ईमान
इां
साि अपिी फिक्र की बुनियाद पर निशातेसानिया (ُ َي ْن َهضतरक्की या revival and
progress) हाांनसल करता है जो हयात, कायिात और बिी िौ इन्साि के बारे में
और इस दुनियावी नज़न्दगी से पहले और बाद से इि तमाम के ताल्लुक़ के बारे में
रखता है। र्ुिााँर्े तरक्की (निशातेसानिया) के नलए इां साि की मौजूदा फिक्र में जामेंअ
(नवस्तृत) और बुनियादी तब्दीली लािा और उसकी जगह दूसरी फिक्र पैदा करिा
निहायत ज़रूरी है। क्योंफक फिक्र ही वोह र्ीज़ है जो अनशया (वस्तुओं) के बारे में
तसव्वुरात ) (مفاهيمपैदा करती है और उि तसव्वुरात को एक मरकज़ (के न्र) पर जमा
करती है। इां साि नज़न्दगी के बारे में अपिे तसव्वुरात के मुतानबक़ ही अपिे रवय्ये को
ढालता है। पस इां साि एक शख्स के बारे में मुहब्बत के तसव्वुरात रखता है तो उसके
साथ वैसा ही रवय्या इनख्तयार करता है। इसी तरह नजस शख्स के बारे में ििरत के
तसव्वुरात रखता है तो उसके साथ सुलूक भी उसी फकस्म का करता है। और नजस शख्स
को वोह िहीं जािता और उसके बारे में कोई तसव्वुरात िहीं रखता तो इां साि उस के
साथ रवय्या भी उसी तरह का रखेगा। गोया इां साि का रवय्या उसके तसव्वुरात के साथ
जुडा हुआ है। पस जब हम इां साि के पस्त रवय्ये को तबदील करके उसे बुलांद रवय्ये
वाला बिािा र्ाहे तो सबसे पहले हमें उसके तसव्वुरात को तबदील करिा पडेगा।
सुरह रअद : आयत 11 में इरशादे बारी तआला है:
निज़ामुल इस्लाम - 12 -
मरकू ज़ िहीं हो सकती जब तक कायिात, इां साि, हयात के मुतानल्लक़ और दुनियावी
नज़न्दगी से क़ब्ल और बाद के साथ इि सब के ताल्लुक़ के बारे में फिक्र पैदा िा हो जाऐ।
यह फिक्र कायिात, इां साि और हयात से मावरा के बारे में एक मुकम्मल फिक्र देिे से पैदा
होती है, क्योंफक यह ही मुकम्मल फिक्र वो फिक्री बुनियाद है नजस पर नज़न्दगी के बारे में
तमाम अफ्कार की इमारत तामीर होती है। इि अनशया के बारे में मुकम्मल िुक्ता-ए-
िज़र देिा ही इां साि के सब से बडे सवाल (यािी उकदतुल कु बरा या अक़ीदे) का हल है।
नजस वक्त यह सवाल हल हो जाए, बाकी सवाल भी हल हो जाएांगे क्योंफक बाक़ी सवाल
या तो इसी सवाल का जुज़ है या वोह इसकी िरोआत (peripheral) हैं। लेफकि यह हल
उस वक्त तक सही तरक्की (िहज़ा या निशातेसानिया) तक िहीं पहुाँर् सकता जब तक की
यह हल एक सही हल िा हो जो इां सािी फितरत के ऐि मुआफिक हो, अक़्ल को क़ाइल
करें और फदल को इनममिाि बख्शे।
कायिात, इां साि और हयात के बारे में फिक्रे मुस्तिीर (रोशि फिक्र) के बग़ैर इस सहीह
हल तक पहुांर्िा मुमफकि िहीं। इसनलए निशातेसानिया की ख्वानहश रखिे वालों और
तरक्की की राह पर र्लिे वालों को सबसे पहले इस सवाल को रोशि फिक्र
(फिक्रेमुसतिीर) के ज़ररये हल करिा र्ानहए। ये हल ही अक़ीदा है और यही वोह फिक्री
बुनियाद है नजस पर तज़े नज़न्दगी और नज़न्दगी के निज़ामो के बारे में हर िु रोई फिक्र की इमारत
तामीर है।
निज़ामुल इस्लाम - 13 -
ख़ानलक़ है इस बात का तक़ाज़ा करता है की वोह ग़ैर मख़लूक़ हो। यह अम्र उसके वजूद
की लाज़नमयत का तक़ाज़ा भी करता है क्योंफक तमाम अनशया अपिे वुजूद के नलये उसकी
मोहताज हैं और वोह फकसी का मोहताज िहीं।
निज़ामुल इस्लाम - 14 -
तमाम अनशया में इस अम्र का मुशानहदा फकया जा सकता है फक यह िाफक़स व आनजज़
है और फकसी ज़ात की मोहताज है, नलहाज़ा यह क़तई तौर पर मख़लूक़ हैं। यही वजह
फक इस ितीजे तक पहुांर्िे के नलये की खानलके मुदनब्बर की ज़ात मौजूद है; कायिात,
इां साि और हयात में से फकसी एक की तरि निगाह डालिा ही कािी है। पस कायिात में
मौजूद नसतारो में से फकसी एक नसतारे पर निगाह डालिा या नज़न्दगी की फकसी सूरतों
में से फकसी भी सूरत के बारे में गौरो खोज़ करिा, और इां साि के फकसी पहलू का भी
अध्ययि करिा अल्लाह तआला के वुजूद के हक़ में क़तई दलील है। र्ुिााँर्े हम देखते हैं
की कु रािे करीम इि अनशया की तरि तवज्जोहह फदलाता है और इां साि को दावत देता
है फक वोह अपिे माहौल और उस से ताल्लुक़ रखिे वाली र्ीज़ो पर िज़र डाले और यह
देखे फक फकस तरह यह अनशया फकसी ज़ात की मोहताज है, तो इसके ितीजे में इां साि
एक खानलक़े मुदनब्बर के वुजूद का मुकम्मल तौर पर इदराक़ करे । इस बारे में सैंकडो
आयात वाररद हुई है। सूरे आले इमराि आयत-190 में इरशाद है :
ُُألول
ُ ِ اتٍ ُآلي
َ ار ِ الفُا ُلل ََّ ْي ِل َُوال َن ََّه
ِ األر ِض َُوا ْخ ِت
ْ ات َُو
ِ او ََّ إِ ََّن ُِِفُ َخل ْ ِق
َ ُالس َم
ُاب
ِ األل َْب
“बेशक आसमाि और ज़मीि के पैदा करिे और फदि रात के अदल बदल कर
आिे जािे में अक़्लवालो के नलए निशानियााँ है।“
सूरे रोम, आयत-22 में इरशाद है :
निज़ामुल इस्लाम - 15 -
ُ ْ ونُإِ ََلُاإل ِب ِلُك َْي َفُخلِق َ ُ َلُالسما ِءُكَي َفُر ِفع
َت َ ت أفَالُ َي ْنظرْ َ ْ َ ََّ ُ َ َِوإِ ََلُ َوإ
ُح ْت ْ الُك َْي َفُن ِص َب ْتُ َُوإِ ََل
ُ َ ُاألر ِضُك َْي َفُس ِط ِ الْ ِج َب
“भला यह िहीं देखते फक ऊाँट कै से पैदा फकया गया? आसमािो को कै से बुलदां
फकया गया? और पहाड कै से खडे फकये गये? और ज़मीि को कै से हमवार फकया
गया?
सूरे ताररक़, आयात 5-7, में इरशाद है :
ُار َُوالْفل ِْكُا ُلََّ ِِتِ الفُا ُلل ََّ ْي ِل َُوال َن ََّه ِ األر ِض َُوا ْخ ِت ْ ات َُو ِ او ََّ إِ ََّن ُِِفُ َخل ْ ِق
َ ُالس َم
ُُالس َما ِءُ ِم ْنُ َما ٍء
ََّ ُاَللُ ِم َن ََّ َّاس َُو َماُأ َ ُْن َز َلَ يُِفُال َْب ْح ِر ُِب َماُ َي ْن َفعُال َن
ِ َت ْج ِر
ُاح ُ
ي ر ل ُا يف ر ص ت
َ ُو ة
ٍ َّ ب ا د ُ ل كُ ن م
ِ
ُ ُ ا يه ف
ِ ُ ثَّ ب اُو ه ِ ت ومُ د ع ب ُ ض ُِاألر
ه اُب يح َ فَأ
ِ َ َِّ ِ ِ ْ َ َ َ َّ ِ ْ َ َ ََ َ َْ َْ ْ َ َ ِ َ ْ
ُون
َ اتُلِق َْو ٍمُ َي ْع ِقل
ٍ األر ِضُآل َي
ْ ُالس َما ِء َُو
ََّ ي ََّ ابُالْم َس
َ ْ خ ِرُ َب ِ لس َح
ََّ َوا
“इसमें कोई शक िहीं फक आसमािों और ज़मीि की पैदाइश में, रात फदि के
अदल बदल के आिे जािे में, और उि कनततयों में जो इां साि के ििे (िायदे) के
नलए समांदरो में दौडती फिरती है और उस बाररश के पािी में नजसे अल्लाह
तआला िानज़ल करता है फक नजससे ज़मीि मुदाच होिे के बाद िई नज़न्दगी
हानसल करती है, नजसकी वजह से र्ोपाए ज़मीि पर िै ले हुए हैं, और हवाओं
निज़ामुल इस्लाम - 16 -
के हैर िै र में और बादलों के आसमाि और ज़मीि के दरनमयाि मुसख्खर रहिे
में अक्ल वालो के नलए निशानियााँ है।”
इि आयात के अलावा फदगर कई आयात में इां साि को, अनशया, अपिे माहौल और मुताल्लेकात पर
गहरी िज़र डालिे की दावत दी गई है, नजिसे इांसाि खानलके मुदनब्बर के वुजूद पर इनस्तदलाल कर
सकता है, ताफक अल्लाह तआला पर उसका ईमाि पुख्ता, अक्ली और दलील पर आधाररत हो।
निज़ामुल इस्लाम - 17 -
ُُألول
ِ ات ِ الفُال ُل ََّ ْي ِل َُوال َن ََّه
ٍ ارُآل َي ِ األر ِض َُوا ْخ ِت
ْ ات َُو
ِ او ََّ إِ ََّن ُِِفُ َخل ْ ِق
َ ُالس َم
ُاب
ِ األل َْب
“बेशक आसमािो और ज़मीि की पैदाइश में और फदि रात के अदल बदल कर
आिे जािे में अक्ल वालो के नलए निशानियााँ हैं।”
निज़ामुल इस्लाम - 18 -
समझ की ताक़त सीनमत है। मालूम हुआ की इां साि अल्लाह तआला की ज़ात को समझिे
में लार्ार है। और अल्लाह तआला की हक़ीक़त को समझिे से भी लार्ार है क्योंफक
अल्लाह तआला कायिात, इां साि और हयात से परे है और इां सािी अक्ल फकसी ऐसी र्ीज़
को िहीं समझ सकती जो उस से परे हो। इसनलए वोह अल्लाह तआला की ज़ात को
समझिे में लार्ार है। लेफकि यहााँ पर यह भी िहीं कहा जा सकता फक अगर इां साि की
अक्ल अल्लाह तआला की ज़ात को समझिे में लार्ार है तो फिर इां साि अक्ली तौर पर
अल्लाह तआला पर ईमाि कै से लाए ? क्योंफक अल्लाह तआला पर ईमाि लािे का
मतलब है फक अल्लाह तआला के वुजूद पर ईमाि लािा, और अल्लाह तआला के वुजूद
का अिुभव उसकी मखलूकात (प्रानणयों) के वुजूद के अिुभव के ज़ररये होता है, और
उसकी मखलूकात कायिात, इां साि और हयात हैं, और इि मखलूकात का अिुभव अक़्ल
के दायरे में हैं। इसनलए अक्ल िे इि सब का इदराक़ (बोध) फकया और इिकी समझ के
ितीजे में अपिे ख़ानलक़ की मौजूदगी का भी इदराक़ फकया और वोह ख़ानलक़ अल्लाह
तआला है। र्ुिााँर्े अल्लाह के वुजूद पर ईमाि अक्ली और अक्ल के दायरे के अदांर है।
इसके बर नखलाि अल्लाह तआला की ज़ात का इदराक़ िा मुमफकि हैं। क्योंफक अल्लाह
तआला की ज़ात कायिात, इां साि और हयात से परे है। नलहाज़ा वोह अक्ल से भी परे है।
अक्ल के नलए यह िा मुमफकि है फक वोह अपिे से परे फकसी र्ीज़ का इदराक़ कर सके ।
अक्ल की यह आनजज़ी यािी अपिे से परे को समझिे में लार्ार होिा ईमाि को ताक़त
पहुाँर्ाती हैं। यह फकसी फकस्म के शक का सबब िहीं बि सकती। क्योंफक जब अल्लाह पर
हमारा ईमाि अक्ली हो तो उसके वुजूद का इदराक़ भी कानमल होगा। जब अल्लाह
तआला के वुजूद के बारे में हमारा शऊर अक्ली हो तो अल्लाह तआला के वुजूद के बारे
में हमारा यह शऊर यक़ीिी होगा। इससे हमें एक मुकम्मल समझ और ख़ानलक़ की तमाम
तर नसफ्िात (गुणों) के हवाले से यक़ीिी शऊर हानसल होता है नजस से हमें यह यक़ीि
होता है की हम अल्लाह पर मज़बूत ईमाि रखिे के बावजूद अल्लाह तआला की हक़ीक़त
को समझिे की हरनगज़ ताक़त िहीं रखते। पस हम पर लानज़म है की हम हर उस र्ीज़
को तसलीम करें नजसकी अल्लाह िे हमें खबर दी है और नजसको समझिे या उसकी
समझ तक पहुाँर्िे से हमारी अक्ल अयोग्य है। और यह इां सािी अक्ल की अपिी फितरी
आनजजी की वजह से है ज़ो अपिे सीनमत और निस्बती पैमािों के ज़ररये अपिे से परे को
िहीं समझ सकती। क्योंफक इसके समझ के नलए ऐसे पैमािो की ज़रूरत है जो िा तो
निज़ामुल इस्लाम - 19 -
निस्बती हो और िा सीनमत हों और यह एक ऐसी र्ीज़ है नजसका इां साि िा मानलक है
और िा कभी मानलक बि सकता है।
निज़ामुल इस्लाम - 20 -
बदबख्ती का सबब बि जाएगा। र्ुिााँर्े निज़ाम अल्लाह तआला ही की तरि से हो सकता
है।
निज़ामुल इस्लाम - 21 -
وسلمभी एक अरबी थे और एक शख्स र्ाहे फकतिा ही ज़हीि व तेज़ फदमाग़ क्यो िा हो,
वोह एक इां साि और अपिे समाज और क़ौम का एक व्यनक्त ही होता है। र्ुिााँर्े जब अरब
क़ु रआि की तरह का क़लाम िहीं ला सकते तो यह बात मुहम्मद अरबी صىل اهلل عليه وسلم
पर भी साफदक़ आती है फक आप صىل اهلل عليه وسلمभी इसकी जैसी नमसाल िहीं ला सकते।
नलहाज़ा क़ु रआि मुहम्मद صىل اهلل عليه وسلمकी जानिब से भी िहीं। इसके अलावा मुहम्मद
صىل اهلل عليه وسلمकी सही आहादीस भी मौजूद है, जो मुतवानतर ररवायात के ज़ररये से
हम तक पहुाँर्ी है और जो यकीिि सच्ची हैं। जब फकसी भी हदीस का फकसी आयत से
मुवाज़िा फकया जाए और देखा जाऐ तो मालूम होता है फक दोिों के उसलूब में कोइे
मुशानबहत (समािता) िहीं। हालाांफक आप صىل اهلل عليه وسلمनजस वक्त िानज़ल होिे वाली
आयात की नतलावत िरमाया करते थे उसी वक्त यह अहादीस भी बयाि िरमाया करते
थे। फिर भी उिके उसलूब में बहुत बडा िकच है। इां साि का कलाम, र्ाहे वोह फकतिा ही
मुतिव्वे (नभन्न) क्यों िा हो उसमें उसलूब की मुशानबहत ज़रूर होती है और क़ु रआि और
हदीस में उसलूब की मुशानबहत नबल्कु ल िहीं। तो मालूम हुआ फक क़ु रआि मुहम्मद صىل
اهلل عليه وسلمका कलाम हरनगज िहीं क्योंफक दोिों के दरनमयाि वाज़ेह और सरीह िक़च
है। बावुजूद यह के अरब वाले अरबी कलाम के असालीब (शैलीयों) के मानहर थे लेफकि
उन्होिे कभी यह दावा िहीं फकया फक यह मुहम्मद صىل اهلل عليه وسلمका कलाम है, या
आप صىل اهلل عليه وسلمकी गुफ्तगू से मुशानबहत रखता है। अलबत्ता उन्होंिे यह दावा
ज़रूर फकया फक यह क़ु रआि मुहम्मद صىل اهلل عليه وسلمएक िसरािी गुलाम जब्र से सीख
कर तैयार करते हैं। इसनलए अल्लाह तआला िे उिके इस दावे को रद्द करते हुए सूरे
िहल, आयत - 103 में इरशाद िरमाया:
ُِون ُُإِل َْيهدحِ ْ ل ي ُيذ َّ َ ل ا ُ ان س ِ لُ ر ش
َ ب ُ هَّم
ُ ِ لع ُي ا مَّ ن
َ ُإ ونول ق ُيم هَّ ن
َ َ و لَقَدُ َنعل َمُأ
َ ِ َ ٌ َ َ َ ِ َ َ ْ ْ ْ َ
َ
ُ ٌ انُ َع َر ِبٌَُّم ِب
ي ٌ أ ْع َجم ٌ َِّي َُو َهذَ اُلِ َس
“और बेशक हम जािते हैं फक वोह कहते हैं फक इसे एक इां साि क़ु रआि नसखाता
है, उस शख्स की ज़बाि नजसकी तरि यह इस क़ु रआि को मिसूब करते हैं,
अजमी हैं। हालाांफक यह क़ु रआि एक साि और वाज़ेह अरबी ज़बाि में है।”
निज़ामुल इस्लाम - 22 -
जब यह सानबत हो गया फक क़ु रआि िा तो अहले अरब का कलाम हैं और िा ही मुहम्मद
صىل اهلل عليه وسلمका तो यह यकीिि अल्लाह का कलाम है, और जो इसको लेकर आये
हैं, यह उिके हक़ में एक मोनजज़ा है।
र्ूाँफक मुहम्मद صىل اهلل عليه وسلمअल्लाह के रसूल हैं। इसको लेकर आये और यह क़ु रआि
अल्लाह का कलाम और अल्लाह की शरीअत है और अल्लाह की शरीअत को कोई िबी
और रसूल ही लेकर आता है तो क़तई तौर पर और अक्ली दलील के ज़ररये मालूम हुआ
फक मुहम्मद صىل اهلل عليه وسلمअल्लाह के रसूल हैं।
यह है अल्लाह तआला पर ईमाि, मुहम्मद صىل اهلل عليه وسلمकी ररसालत और क़ु रआि के
कलामुल्लाह होिे की अक्ली दलील! नलहाज़ा मालूम हुआ फक अल्लाह तआला पर ईमाि
अक्ल के ज़ररऐ होिा र्ानहए और और ज़रूरी है की यह ईमाि अक्ली हो। क्योंफक यही
वोह बुनियाद है नजस पर तमाम ग़ैबी उमूर (र्ीज़ों) पर ईमाि क़ायम है और हर उस
र्ीज़ पर ईमाि क़ायम है नजसकी अल्लाह तआला िे खबर दी है। जब हम अल्लाह तआला
और उसकी नसफ्िाते माबूफदयत पर ईमाि लाए है, तो लाज़मी तौर पर हमें उि र्ीज़ो
पर भी ईमाि लािा र्ानहए, नजिकी हमें अल्लाह तआला िे खबर दी है। र्ाहे अक्ल
उिको समझ सकती हो, या यह अक्ल से परे हों। क्योंफक उिके बारे में अल्लाह ही िे
खबर दी है। इसनलए उि र्ीज़ो पर भी ईमाि लािा िजच है, नजिका नजक्र क़ु रआि या
अहादीसे मुतवानतर में है। जैसा की क़यामत का फदि, जन्नत, जहन्नुम, अज़ाब, मलायका,
नजि और शयातीि, नहसाब-फकताब वगैरा। यह ईमाि अगरर्े िक़ली (transmitted)
और समई तरीक़े पर है ,लेफकि दरअसल यह अक्ली ईमाि है। क्योंफक इसकी बुनियाद
को अक्ली तौर पर सानबत फकया जा र्ुका है। यही वजह है फक हर मुसलमाि का अक़ीदा
अक्ल की बुनियाद पर या उस र्ीज़ की बुनियाद पर होिा र्ानहए, नजसकी असास अक्ल
पर हो। पस मुसलमाि को र्ानहए की वोह हर उस र्ीज़ पर ईमाि रखे, जो अक़्ल के
ज़ररये या क़तई (definitive) और यक़ीिी समाअत के ज़ररये सानबत हो। दूसरे अलिाज़ो
में वोह क़ु रआि या हदीसे मुतवानतर (क़तई अहादीस) से सानबत हो। जो र्ीज़ इि दोिों
(क़ु रआि और सुन्नते क़तई) से सानबत िा हो उस पर ईमाि रखिा हराम है। क्योंफक
अक़ीदे की दलील क़तई ही हो सकती है।
यही वजह है फक नज़न्दगी से क़ब्ल यािी अल्लाह तआला, और नज़न्दगी के बाद यािी
क़यामत पर ईमाि लािा िज़च है। अल्लाह तआला के अवानमर व िवाही (commands
निज़ामुल इस्लाम - 23 -
and prohibitions) नज़न्दगी से पहले का इस नज़न्दगी के साथ और इसी तरह मख़लूक़
के साथ ताल्लुक़ क़ायम करते है। और इां साि के दुनिया में फकये गये आमाल के मुहानसबे
से हयाते दुनिया का दुनियावी नज़न्दगी के बाद के साथ ताल्लुक़ क़ायम होता है, यािी
इस दुनियावी नज़न्दगी का क़यामत से ताल्लुक़ क़ायम होता है। क्योंफक यह यक़ीिी बात
है की इस मौजूदा नज़न्दगी का अपिे से क़ब्ल और बाद के साथ ताल्लुक़ है। और ज़रूरी
है के इां साि के आमाल इस ताल्लुक़ में बन्धे हुए हों। पस इां साि नज़न्दगी में अल्लाह तआला
के निज़ामों के मुतानबक़ र्ले और यह ईमाि रखे फक क़यामत के फदि इससे दुनियावी
आमाल के मुतानल्लक़ पूछताछ होगी।
इस बहस से कायिात, हयात और इां साि से पहले के बारे में रोशि फिक्र (फिक्रेमुस्तिीर)
पैदा हो गई है और इस तरह नज़न्दगी से क़ब्ल और बाद के बारे में और इस दुनियावी
नज़न्दगी के अपिे से क़ब्ल और बाद के साथ ताल्लुक़, के बारे में रोशि फिक्र पैदा हो गई।
और यूाँ उक़दतुल कु बरा इस्लामी अक़ीदे के ज़ररये जामें तौर पर हल हो गया।
जब इां साि इस हल तक पहुांर् जाता है, तब दुनियावी नज़न्दगी के बारे में फिक्र की तरि
मुतवज्जोह होता है। फिर उस के ितीजे में वोह सच्चे तसव्वुरात तक पहुाँर्ता है। मालूम
हुआ फक यही हल वोह बुनियाद है नजस पर वोह मब्दा (ideology) क़ायम है, जो िहज़ा
( نهضاनिशाते सानिया) के तौर पर इनख्तयार फकया जाता है। और यही वोह बुनियाद है
नजस पर इस आयनडयोलोजी की तहज़ीब (हदारा - ) حضارۃक़ायम है। यही वोह असास
(बुनियाद) है, नजस से उसके निज़ाम िू टते है और यही वोह असास है, नजस पर ररयासत
की बुनियाद बिती है। पस मालूम हुआ फक नजस असास पर इस्लाम की बुनियाद क़ायम
है, वोह फिक्र ( )فکرہऔर तरीका ) (طريقةदोिों के नलहाज़ से यही इस्लामी अक़ीदा है।
निज़ामुल इस्लाम - 24 -
पर, नजन्हें अल्लाह तआला िे इससे पहले िानज़ल िरमाया है। और जो कोई
इिकार करे गा अल्लाह तआला, उसके मालायका, उसकी फकताबों, उसके रसूलों
और आनखरत के फदि का, तो वोह बहुत दूर की गुमराही में मुबनतला हो
जाऐगा।” सूरह निसा, आयत-136:
यह बात तो सानबत हो र्ुकी है फक इस्लाम की आयनडयोलोजी पर ईमाि एक हतमी
र्ीज़ है नलहाज़ा लानज़म है फक मुसलमाि पूरी शरीअत पर मुकम्मल ईमाि लाए, क्योंफक
यह शरीअत कु रािे पाक में है और इसको मुहम्मद صىل اهلل عليه وسلمलेकर आये हैं। वरिा
इां साि काफिर होगा। नलहाज़ा अहकामें शररया ()احکام شرعيۃ, यािी उि अहकाम का जो
क़तई (निनित तौर) पर सानबत हैं, उिका इिकार कु फ्र है, र्ाहे उि अहकामात का
ताल्लुक़ इबादत से हो या मुआमलात ) (معامالتसे हो, उकु बात (सजाओं) से हो या
मतुमात (खािे पीिे की र्ीज़ों) से।
पस नजस तरह इस आयत का इां कार कु फ्र है:
﴾َواُالصال ُة
ََّ ﴿ َوأ َ ِقيم
“िमाज़ क़ायम करो।”
(तजुचमा मआिी-ए-क़ु रआि, सूरा बक़रा, आयत - 43)
नबल्कु ल इसी तरह इस आयत का इां कार भी कु फ्र है:
﴾ُاَللُال َْب ْي َع َُو َح ََّر َمُال َِّر َبا ََّ ﴿ َوأ َ َح
ََّ ل
अल्लाह िे नतजारत को हलाल कर फदया और सूद को हराम कर फदया।
तजुचमा मआिी-ए-क़ु रआि, सूरा बक़रा, आयत - 275)
और नजस तरह इस आयत का इां कार कु फ्र है फक:
निज़ामुल इस्लाम - 25 -
इस तरह इस आयत का इां कार भी कु फ्र है:
﴾ُاَلل
ُِ ََّ ِي ََّ ْني ِر َُو َماُأه
ِ ْ ِلُلِ َغ ََّ ﴿ح َِّر َم ْتُعَل َْيكمُال َْم ْي َتة َُو
ِ ْ الدم َُو لَ ْحمُا ُلْ ِخ
“तुम पर मुदाचर, खूि, नखन्जीर का गोतत और ग़ैरुल्लाह के िाम का जबीहा
हराम कर फदया गया है।”
(तजुचमा मआिी-ए-क़ु रआि, सूरा - अल मायदा, आयत - 3)
निज़ामुल इस्लाम - 26 -
2. अल कज़ा वल क़दर
निज़ामुल इस्लाम - 27 -
ُُاَللُِفَل ْ َي َت َوكُ ََّ ِل
ََّ اُوع َََل
َ ُاَللُلَ َناُه َوُ َُم ْوال َن َ ﴿ق ْلُلَ ْنُي ِص
َ يب َناُإِالُ َماُ َك َت
ََّ ب
﴾ون
ُ َ الْم ْؤ ِمن
“कह दीनजये हम पर कोई मुसीबत िहीं आती मगर वह जो अल्लाह तआला िे
हमारे नलये नलख दी हो बेशक वह अल्लाह हमारा निगेहबाि है और मोनमिो
को उसी पर भरोसा करिा र्नहये।
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे अत्तोबा: आयत-51)
सूरे सबा में इरशादे बारी तआला है :
ُُالسا َعةُق ْلُ َب ََل َُو َر ِ َّبُلَ َتأْتِ َي َنَّك ْمُ ُعَا لِ ِم ََّ َ َ ا ني ِ ت ْ ﴿وقَالُالََّذينُ َكفَرواُالُتأ
َ ِ َ َ
ُُاألر ِض َُوالُأ َ ْص َغرُُ ِم ْن ْ ات َُوال ُِِف ِ او ُ ََّ بُالُ َي ْعزبُ َع ْنهُ ِمثْقَالُ َذ ََّر ٍة ُِِف
َ ُالس َم ِ الْ َغ ْي
﴾ي ُ ٍ ابُم ِب ت
َ ك
ِ ُ ُِف الُإ ْْب ك َ َذ لِكُوالُأ
ٍ ِ ِ َ َ َ
“अल्लाह से कोई जराच बराबर र्ीज़ भी छु पी िहीं है र्ाहे वह आसमािो में हो
या ज़मीि में और िा उस जरे से भी कोई छोटी या बडी र्ीज़ है, जो फकताबे
मुबीि में िा हो।”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे सबा: आयत-3)
सूरे अिआम में है :
ِ ﴿ َوه َوُالََّ ِذي َُي َت َوفََّا ك ْم ُِبا لل ََّ ْي ِل َُو َي ْعل َمُ َُماُ َج َر ْحت ْم ُِبال َن ََّه
ُارُث ََّمُ َي ْب َُعثك ْم
ُِفيهُِلِي ْق ََضُأ َ َج ٌلُم َس ً ًَّمُث ََّمُإِل َْيهُِ َم ْر ِجعكُ ْمُث ََّمُي َن َِّبئك ْم ُِب َماُك ْنت ْم
﴾ون ُ َ َت ْع َمل
“अल्लाह तो वह है जो रात को तुम्हे मौत देता है, और जािता है जो कु छ तुम
फदि में कर र्ुके हो, और फिर तुम्हे जगा देता है ताफक नमयादे मुअय्यि पूरी
निज़ामुल इस्लाम - 28 -
कर दी जाये, फिर उसी की तरि तुम लौटाए जाओगे, फिर वह तुम्हे उस र्ीज़
की खबर देगा जो कु छ तुम करते रहे हो।”
(तजुचमा मआिी-ए-क़ु रआि, सूरे अिआम: आयत-60)
और सूरे निसा में है:
﴾ون
ُ َ اَللُ َخل َ َقك ْم َُو َماُ َت ْع َمل
ََّ ﴿ َو
“अल्लाह तआला िे तुम्हें पैदा फकया और तुम्हारे आमालों को भी।”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे: अस्सािात, आयत-96)
इसी तरह वोह कु छ अहादीसों से भी इस्तदलाल करते है जैसा फक रसूलुल्लाह (ُصَلُاهلل
)عليهُوسلمका यह कौल है,
निज़ामुल इस्लाम - 29 -
“रूहुलकु दुस िे यह बात मेंरे फदल में डाल दी के कोई ज़ीरूह उस वक्त तक िहीं मर
सकता, जब तक फक वह अपिे ररज्क़, अपिी अजल और इसी तरह जो कु छ उसके नलये
मुकरच र कर फदया गया है उसे पूरा िा कर ले।”
2.1 कज़ा
कज़ा व क़दर का मसला इस्लामी मकानतबे फिक्र में एक मारे कतुल आरा (कई राय) मसला
रहा है। इस मसले के बारे में अहले सुन्नत की राय का खुलासा यह है फक इां साि को अपिे
अिआल में कसबे इनख्तयारी हानसल है और इसी कसबे इनख्तयारी की बुनियाद पर
उसका मुहानसबा होगा। मोअतनजला की राय का सार यह है फक इां साि ही अपिे अिआल
(actions) का ख़ानलक़ है और इां साि का मुहासबा इस वजह से होगा फक वोह अपिे
अिआल का खुद मोनजद है। इस मसले में जबररया की राय का निर्ोड यह है फक अल्लाह
तआला ही बन्दे और उसके अिआल का ख़ानलक़ है। इसनलए बन्दे को अपिे अिआल
(actions) पर कोई इनख्तयारी िहीं, बनल्क वोह नसिच मजबूर है। बन्दे की नमसाल उस
(पररन्दे के ) की सी है जो फिज़ा में हो और नजसको हवाऐं नजधर र्ाहें उडा रही हों।
कज़ा व क़दर के मसले के बारे में एक बारीक बीि इस बात को जाि जाऐगा की इस
मसले के मुतानल्लक़ िहम हानसल करिे के नलये इस मसले की बुनियाद को समझा
समझिा ज़रूरी है। बन्दे के अिआल इस मसले की बुनियाद िहीं की खुद बन्दा अपिे
िे अल (action) का ख़ानलक़ है, या अल्लाह तआला उसके िे ल का ख़ानलक़ है। िा यह
बुनियाद अल्लाह तआला का इल्म है की अल्लाह पहले से यह जािता था की यह बन्दा
क्या अमल करे गा, यािी अल्लाह तआला के इल्म िे बन्दे का इहाता फकया हुआ है, िा
यह बुनियाद अल्लाह तआला का इरादा है, जो बन्दे के िे ल से मुतानल्लक़ हो, इस तरह
फक जब अल्लाह का इरादा हो तो वोह िे ल ज़रूर प्रकट होगा, िा वोह बुनियाद यह है
फक बन्दे का यह िे ल लोहे-महिू ज में नलखा हुआ है, तो बन्दा लाजमि इस काम को सर
अांजाम देगा।
जी हााँ! यह र्ीज़े इस बहस की बुनियाद हरनगज िहीं, क्योंफक सवाब व अज़ाब के हवाले
से इि मुआमलात का इस नवषय से कोई ताल्लुक़ िहीं, बनल्क इि र्ीज़ों का ताल्लुक़
निज़ामुल इस्लाम - 30 -
अमल की अांजाम देही, हर शय (र्ीज़) का इहाता करिे वाले इल्म, तमाम मुमफकिात से
मुतानल्लका अल्लाह के इरादे और लोहे महिू ज के तमाम र्ीज़ों पर आधाररत होिे से है।
यह ताल्लुक़ एक अलग नवषय है, और यह अमल के ितीजे में अज़ाब या सवाब से नबल्कु ल
जुदा नवषय है, यािी यहााँ बहस का नवषय है फक क्या इां साि अपिे अमल अांजाम देही में
मजबूर है या मुखतार, र्ाहे इस का यह अमल अच्छा हो या बुरा ? और क्या उसे अमल
की अांजाम देही या अमल को तकच करिे का इनख्तयार हानसल है या िहीं ?
निज़ामुल इस्लाम - 31 -
दायरे में उसे कोई इनख्तयार हानसल िहीं जैसा फक इां साि दुनिया में अपिे इरादे के बग़ैर
आया और यहााँ से अपिी मरज़ी के बग़ैर र्ला जाएगा। इां साि अपिे नजस्म के बल बूते
पर हवा में उड िहीं सकता है और ि ही प्राकर्तचक तौर पर पािी पर र्ल सकता है। इसी
तरह अपिी आखों का रां ग खुद िहीं बिा सकता। िा अपिे सर को जैसा र्ाहे वैसा बिा
सकता है, और िा ही अपिे नजस्म को अपिी मज़ी के मुतानबक़ जैसे र्ाहे बिा सकता है।
इि तमाम कामों को करिे वाला नसिच अल्लाह तआला है। इि कामों में मख़लूक़ (बन्दे)
का कोई अमल दखल िहीं होता। क्योंफक अल्लाह तआला ही िे निजामें कायिात को
बिाया है, और अल्लाह तआला ही िे इसको मुिज़्ज़म फकया है। र्ुिााँर्े इां साि इसके
मुतानबक़ र्लता है और इसकी नखलािवज़ी करिे की ताकत िहीं रखता ?
वह अिआल जो इां साि की ताकत से बाहर हैं और वह उिको टाल भी िहीं सकता और
वो निज़ामें कायिात में से भी िहीं है यह वो अिआल हैं नजिका इां साि मजबूरि इरतेकाब
करता है या यह इां साि पर जबरि वाक़े अ होते है और इां साि इिसे बर् भी िहीं सकता
मसलि एक शख्स दीवार पर से दूसरे शख्स पर नगरे नजस के ितीजे में दूसरा शख्स मर
जाऐ या कोई शख्स फकसी पररन्दे पर गोली र्लाए लेफकि यह गोली पररन्दे के बजाए
फकसी ऐसे शख्स को जा लगे नजस को गोली र्लािे वाला शख्स जािता भी िा हो और
वह मर जाए, इसी तरह रे ल गाडी या मोटरकार का हादसा हो जाए या जहाज फकसी
ऐसी िन्नी खराबी की वजह से नगर कर तबाह हो जाए नजस का इजाला मुमफकि िहीं
था र्ुिााँर्े इस हादसे या नगरिे की वजह से उसमें सवार अिराद हलाक हो जाएां, यह
या इसी फकस्म का कोई और वाक्या पेश आ जाए तो यह अिआल ख्वाह इां साि की
जानिब से हुए हों या इां साि के ऊपर वाक़े हुए हों, और अगरर्े निज़ामें कायिात इिका
तक़ाज़ा िहीं करता लेफकि र्ूांकी यह इन्साि की जानिब से या उसके ऊपर उसके इरादे
के बग़ैर वाक़े हुए हैं नलहाजा यह इां सािी कु दरत व ताकत से बाहर हैं। पस यह अिआल
उस दायरे में दानखल हैं जो इां साि पर हावी हैं।
निज़ामुल इस्लाम - 32 -
इन्साि के नलये इि में फकतिा ही िायदा या िुकसाि और पसन्द या िापसन्दगी की बात
क्यों ि हो यािी इां साि की तिसीर के मुतानबक़ उिमें फकतिा ही ख़ैर व शर क्यों िा हो
क्योफक उि अिआल में पाए जािे वाले ख़ैर व शर को नसिच अल्लाह ही जािता है, इां साि
उि अिआल पर असरअन्दाज़ िहीं हो सकता। इां साि को तो उि अिआल का इल्म होता
है और िा ही उिके वुजूद में आिे का र्ुिााँर्े इां साि उिको रोकिे या उि से बर्िे फक
ताकत भी िहीं रखता, इां साि पर लानज़म है फक वह उस बात पर ईमाि रखे के यह कज़ा
है और अल्लाह (सुबहािहू-व-तआला) की जानिब से है।
निज़ामुल इस्लाम - 33 -
2.2 क़दर
अब रही बात क़दर की! तो यह बात ज़ानहर है के तमाम अिआल, र्ाहे वह उस दायरे
से ताल्लुक़ रखते हों जो इन्साि पर हावी हैं या उस दायरे के मातहत हों वे नजस पर
इां साि हावी है कायिात, इां साि और हयात के जररए वाक़े अ होते हैं या कायिात इन्साि
और हयात पर वाक़े अ होते हैं।
निज़ामुल इस्लाम - 34 -
यह खुसूनसयात खुद इि अनशया की पैदा करदा िहीं और िा ही बांदे को इिसे कोई
सरोकार है और िा बांदे का इसमें कोई अमल-दखल है। इां साि को इस बात पर ईमाि
रखिा र्ानहए फक नसिच अल्लाह ही िे इि अनशया के अांदर खानसयात वफदयत िरमा दी
है, इि खनसयातों के अांदर यह क़ाबनलयत है फक इां साि इिके वास्ते से अल्लाह तआला के
अहकामात के मुवाफिक़ भी अमल कर सकता है, जो के ख़ैर है अल्लाह के अहकामात के
मुखानलि भी अमल कर सकता है, जो के शर है। ख्वाह अल्लाह तआला का यह हुक्म इि
अनशया (वस्तुओं) को उिकी खुसूनसयात के मुतानबक़ इस्तेमाल करिे के हवाले से हो या
नजनबल्लतों और नजस्मािी हाजात को पूरा करिे के नलहाज़ से हो। अगर यह अिआल
अल्लाह के अवानमर व िवाही के मुतानबक़ होंगे, तो ख़ैर कहलाऐंगे, और अगर अल्लाह
के अवानमर व िवाही के नखलाि होंगे तो शर (बुराई) के ज़ुमरे में आयेंगे।
यहीं से मालूम हुआ फक वोह अिआल, जो उस दायरे में से हैं, जो इां साि पर हावी हैं, वोह
अल्लाह की तरि से हैं, ख्वाह वोह ख़ैर हो या शर । वोह खानसयतें, जो वस्तुओं ,
नजनबल्लतों और नजस्मािी हाजात में पायी जाती हैं, वोह भी अल्लाह की तरि से हैं,
ख्वाह उिका ितीजा ख़ैर हो या शर। यही वजह है के मुसलमाि को कज़ा पर ईमाि
रखिा र्ानहए कता िज़र इस बात के की वह ख़ैर हो या शर। यािी वोह यह यक़ीि रखे
फक वोह अिआल, जो इां साि के दायरे इनख्तयार से बाहर हैं, वोह अल्लाह फक तरि से
हैं, और इसी तरह क़दर के ख़ैर व शर के भी अल्लाह के तरि से होिे पर ईमाि रखे।
दूसरे शब्दों में यह ईमाि रखें फक र्ीज़ों के अांदर मौजूद खानसयते प्राकर्तचक तौर से अल्लाह
की तरि से हैं, ख्वाह उिका ितीजा ख़ैर हो या शर, और इां साि उि पर असर अन्दाज़
िहीं हो सकता। पस इां साि की अजल (मौत का मुकरच र वक्त) इसका ररज़्क और इसकी
रूह सब अल्लाह की क़ु दरत में है । नजस तरह नजनबल्लतें िो के अांदर पाया जािे वाला
जजांसी मैलाि, नजनबल्लते बका के अांदर मौजूद नमनल्कयत (सम्पत्ती) की ख्वानहश और
इसी तरह नजस्मािी हाजात जैसे के भूख और प्यास, सब के सब अल्लाह की तरि से हैं।
निज़ामुल इस्लाम - 35 -
के मुतानबक़ इनख्तयारी तौर पर र्लता है, ख्वाह यह निज़ाम अल्लाह तआला की मुकरच र
करदा शरीअत हो या कोई और निज़ाम। यही अिआल का वोह दायरा है, नजसमें
अिआल इां साि से साफदर होते हैं, या उस पर वाक़े होते हैं, और उसके अपिे इरादे से
होते हैं। पस जब वोह र्ाहता है, र्लता है, खाता है, पीता है और सिर करता है। और
अगर िा र्ाहे तो उि अिआल से रुक जाता है। वोह जब र्ाहता है आग के ज़ररये आग
लगाता है, छु री से काटता है, और नजस तरह र्ाहता है, िौ की हाजत, नमनल्कयत की
हाजत को पूरा करता है और पेट की भूख को नमटाता है। यािी वोह जो अमल र्ाहे करता
है और नजस अमल से र्ाहे, रुक जाता है। नलहाज़ा इस दायरे के अिआल के बारे में वोह
जवाबदेह होगा।
निज़ामुल इस्लाम - 36 -
और अल्लाह तआला िे इां साि में गुिाहों और तकवा के कामों का इदराक़ करिे की
सलानहयत रखी है :
सूरे शम्स में इरशाद है :
﴾اُو َتق َْوا َها هورجف ُ ا ه م ْه لَ ﴿فَأ
َ َ َ َََ
“उसिे इससे िु जूर व तकवा का इल्हाम कर फदया।”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे अल-शम्स, आयत:08)
खैर और शर की तारीि
पस जब इां साि अपिी नजनबल्लतों और नजस्मािी हाजात को अल्लाह तआला के अवानमर
व िवाही के मुतानबक़ पूरा करता है तो यह काम ख़ैर (अच्छा) होता है, और इां साि तकवा
की राह पर गामज़ि होता है। लेफकि जब इां साि अपिी नजनबल्लतो और नजस्मािी हाजात
को अल्लाह तआला के अवानमर व िवाही से मुाँह मोडकर पूरा करता है तो यह िे ल शर
(बुरा) बि जाता है और यूाँ इां साि गुिाहों के रास्ते पर र्लता है। बहरहाल इि तमाम
अिआल में इां साि ही से इस खैर और शर का ज़ुहूर होता है। इां साि जब अल्लाह तआला
के अवानमर व िवाही के मुआफिक अपिी नजनबल्लतों और नजस्मािी हाजात को पूरा
करता है तो उस का यह िे ल खैर होता है। जब इां साि अपिी नजनबल्लतो और नजस्मािी
हाजात को अल्लाह तआला के अवानमर व िवाही के बर नखलाि पूरा करता है तो उस
का यह िे ल शर बि जाता है। इस बुनियाद पर इां साि का उि अिआल के बारे में
मुहानसबा होगा, जो उस दायरे में हैं, नजस पर यह इां साि हावी है। इसके ितीजे में उसे
अज़ाब या सवाब नमलेगा, क्योंफक उसिे बग़ैर फकसी जबरदस्ती के , इनख्तयारी तौर पर
यह अिआल सर अांजाम फदये।
निज़ामुल इस्लाम - 37 -
फजफबफल्लयात (मूल-प्रवती) इंसान को अमल करने पर मजबूर
नही करती - अमल अक़्ल के िैसले और इंसानी इरादे का
नतीजा है
नजनबल्लतें और नजस्मािी हाजात की खानसयते अगरर्े अल्लाह की जानिब से हैं, उिकी
ख़ैर व शर की क़ाबनलयत भी अल्लाह ही की तरि से है, लेफकि अल्लाह तआला िे इस
खानसयतों को इस तरह िहीं बिाया फक अमल की अदायगी के वक्त यह खानसयत इां साि
को अल्लाह की रज़ा या िाराज़गी के मुतानबक़ अपिे इस्तेमाल पर मज़बूर करे , ख्वाह
इस का ताल्लुक़ खैर हो या शर। जैसा के जलािे की नसित है। यह नसित इस तरह िहीं
के इां साि को फकसी र्ीज़ को जलािे पर मजबूर करती हो, र्ाहे वोह अमल अल्लाह की
खुशिूदी का हो या उसकी िाराजी का, यािी वोह अमल ख़ैर हों या शर। यह खानसयतें
तो इस तरह है फक इां साि अमल की अांजाम देही के वक्त नजस तरह र्ाहे उिको काम में
ला सकता है। जब अल्लाह तआला िे इां साि को पैदा िरमाया और उसके अांदर यह
नजनबल्लते और हाजात पैदा िरमा दी, फिर उसे तमीज़ करिे वाली अक्ल अता कर दी,
और उसे इनख्तयार दे फदया फक वोह नजस अमल को र्ाहे करें और नजस से र्ाहे इजनतिाब
(फकिारा) करें और फकसी काम के करिे या छोडिे पर उसे मजबूर िहीं फकया, और
अनशया और नजनबल्लतों और नजस्मािी हाजात की खानसयात को ऐसा िहीं बिाया फक
िे ल को सर अांजाम देते वक्त या इससे फकिाराकशी इनख्तयार करते हुए यह खानसयत
इां साि को मजबूर करे । यूाँ इां साि फकसी िे ल को बजा लािे या उससे दस्तकश होिे में
बाइनख्तयार है, क्योंफक अल्लाह तआला िे उसे िक़च करिे वाली अक्ल से िवाज़ा है, और
उसे शरई तौर पर नज़म्मेदार कर फदया है। इसनलए अच्छा अमल करिे की सूरत में उसके
नलए सवाब है, क्योंफक उसकी अक्ल िे अल्लाह के अवानमर को इनख्तयार फकया और
उसके िवाही से इजनतिाब फकया। इसी तरह बुरा अमल करिे की सूरत में वोह सज़ा का
मुस्तनहक़ है, क्योंफक उसकी अक्ल िे अल्लाह के अवानमर की मुख़ानलित करिे को
इनख्तयार फकया और नजनबल्लतों और नजस्मािी हाजात को अल्लाह के बताऐ हुए रास्ते
से हट कर पूरा फकया। इसनलए इस अमल पर उसे सज़ा देिा ऐि अदल व इां साि है,
क्योंफक वोह अमल करिे में बाइनख्तयार था, फकसी नलहाज़ से भी मजबूर िा था। कज़ा
निज़ामुल इस्लाम - 38 -
व क़दर का इससे कोई ताल्लुक़ िहीं, बनल्क मसला यह है फक बांदे िे खुद अपिे इनख्तयार
से कोई अमल फकया और वोह अपिे अमल के बारे में जवाबदेह होगा:
َّ ﴿ك
﴾لُ َن ْف ٍس ُِب َماُك ََس َب ْت َُر ِهي َن ٌُة
“हर इां साि अपिे कसब अमल के हाथों नगरवी है।” (तजुम
च ा मआिीऐ क़ु रआिे
करीम, सूरे मुदनस्सर, आयत: 38)
निज़ामुल इस्लाम - 39 -
कज़ा व क़दर के मसले को सही तरह से समझने का िायदा -
अमल मे मोहताती और तक़वा
यह है कज़ा व क़दर का मसला! यह इां साि को अच्छे कामों को सर अांजाम देिे और बुरे
कामों से रोकिे पर अमादा करता है, क्योंफक इां साि को मालूम होता है फक अल्लाह देख
रहा है और वोह हमारी पूाँछगज करे गा, अल्लाह िे उसे अमल के करिे और छोडिे का
इनख्तयार फदया है। पस इां साि अिआल की अांजाम देही के वक़्त इस इनख्तयार को अच्छे
तरीक़े से इस्तेमाल िहीं करे गा तो उसके नलए हलाकत और शदीद तरीि अज़ाब होगा।
यही वजह है फक एक सच्चा और कज़ा व क़दर की हक़ीक़त को समझिे वाला, अल्लाह की
दी हुइ अक्ल और इनख्तयार की िेमत की हक़ीक़त को पहर्ाििे वाला मोनमि इां नतहाइ
मोहतात और अल्लाह से सख्त डरिे वाला होता है। वोह अल्लाह के अवानमर को बजा
लािे वाला और अल्लाह के अज़ाब से डरते हुए और जन्नत की उम्मीद रखते हुए, अल्लाह
के मिा फकये हुए कामों से रुकता है। इससे बढ़कर अल्लाह की खुशिुदी हाांनसल करिे के
नलए, जो अस्ल मक़सद है, हमेंशा िेक आमाल की लगि में रहता है।
निज़ामुल इस्लाम - 40 -
3. इस्लाम की फिक्री
फक़यादत
(इस्लाम का वैर्ाररक िेतमृ व /The Intellectual Leadership of
ज
Islam)
ब इां साि फिक्री पस्ती (वैर्ाररक पति) में मुनब्तला हो जाता है तो उसमें
वतिपरस्ती (nationalism- )رابطه الوطنهका जज़बा पैदा हो जाता है।
इसकी वजह यह है फक वह एक ही सरज़मीि पर रह रहे होते है और उसी के
साथ नर्मट कर रह जाता हैं। र्ुिााँर्े इां साि अपिे अांदर मौजूद नजनबल्लते बका (survival
instinct) की नगररफ्त में आ जाता है और यह नजनबल्लते बका उसे अपिे मुल्क और
सरज़मीि का फदिा (रक्षा) करिे पर मजबूर कर देती है, जहााँ पर यह नज़न्दगी गुजार
रहा होता है। यही से वतनियत का ररतता जन्म लेता है। वति के साथ यह ररतता और
तआल्लुक़ तमाम तआल्लुक़ात में कमजोर तरीि और पस्ततरीि तआल्लुक़ होता है। अपिे
वति के साथ यह सांबन्ध और नमलाि तो हैवािात और पररन्दों के अन्दर भी मौजूद होता है, और
इसका इज़हार हमेंशा जज़बाती अन्दाज़ में होता है। इस जज़बे और तआल्लुक़ का इज़हार नसिच
उस वक्त होता है जब कोई अज़िबी दुशमि वति पर हमलावर हो या वति पर क़ब्ज़ा कर लेता
है। लेफकि जब जब वति दुतमि से सलामत हो महिू ज़ हो जाये तो यह ररतता कमज़ोर पड जाता
है और इस 'तआल्लुक़ का अमल' (सम्बन्ध की प्रनतफक्रया) उस वक्त खमम हो कर रह जाता है जब
बाहरी दुतमि को मार भगाया जा र्ुका हो या बाहर निकाला जा र्ुका हो। यही वजह है फक यह
बहुत कमजोर और पस्त तआल्लुक़ और रब्त (सांबांध/Bond) है।
निज़ामुल इस्लाम - 41 -
3.1 क़ौफमयत का रब्त
इसी तरह जब इां सािी फिक्र (नवर्ार) तांग और महदूद हो जाती है तो इां साि के अांदर
कौनमयत का तआल्लुक़ ( )رابطه القوميهपरवाि र्डता है। क़ौम के साथ यह तआल्लुक़ और
लगाव खािदािी ताल्लुक़ की एक ज्यादा वसी (नवस्तृत) शक्ल है। इसकी वजह यह है फक
जब नजनबल्लते बका (survival instinct) इां साि के अांदर अपिी जडेां मज़बूत कर लेती
है, तो उसके अांदर ग़लबे (प्रभुमव) और नसयादत (सरदारी) की मोहब्बत उभर आती है।
एक पस्त फिक्र के हानमल शख्स के अांदर यह मुहव्बत व्यनक्तगत िोइय्यत की हुआ करती
है। फिर जब इस इां साि के अांदर ज़रा बेदारी और फिक्र (नवर्ारों) की बुलन्दी पैदा होती
है तो उसकी हुब्बे नसयादत में भी वुसअत (नवस्तार) आ जाती है, और यूाँ अपिे कु न्बे और
खािदाि की नसयादत और फक़यादत (िेतृमव) उसका िसबुलएि (objective/उद्देतय) बि
जाता है। फिर जब उसे यह मुकाम हानसल हो जाता है, तब वह अपिे इलाक़े पर अपिी
क़ौम की नसयादत क़ायम करिे की कोनशश करता है। फिर जब उसे यह मुकाम भी हानसल
हो जाता है तब वह अपिी क़ौम की नसयादत को दूसरी क़ौमों पर हावी करिे की सोर्ता
है। र्ुिााँर्े एक खािदाि के 'अिराद' (लोगों) के अांदर नसयादत व फक़यादत को हानसल
करिे के नलए झगडे अमुमि हो जाते हैं। फिर जब उस खािदाि का कोई व्यनक्त बाक़ी
लोगों पर ग़ानलब (हावी) आ जाता है और उसकी नसयादत मज़बूत हो जाती है तो उस
खािदाि और दूसरे खािदािों के दर्मचयाि कशमकश शुरु हो जाती है यहाां तक के एक
खािदाि या मुख्तनलि खािदािों से सम्बन्ध रखिे वाले लोगों के एक नगरोह की सरदारी
क़ायम हो जाती है। यह ही वजह है फक इस तआल्लुक़ और रब्त के हानमल अिराद के
अांदर असनबयत ) عصبيه/साांप्रदानयकता/Sectarianism) कू ट-कू ट कर भरी होती है, और
उि लोगों के अांदर बाक़ी लोगों के नखलाि कु छ लोगों की मदद करिे की ख्वानहश और
जज़्बा परवाि र्ढ़ता है। र्ुिााँर्े यह रब्त और सम्बन्ध (कौमपरस्ती) एक 'ग़ैर-इां सािी
राब्ता' और तआल्लुक़ है। नलहाज़ा इस फकस्म के रब्त में अगर बाहरी नववादो (external
conflicts) और र्ुिौनतयों का सामिा िा भी करिा पडे तो अांदरूिी नबखराव (internal
feuds) और झगडे तो हमेंशा होते ही रहते हैं।
इस बुनियाद पर कहा जा सकता है फक ‘‘रब्ते वतनियत’’ (देशभनक्त का सम्बन्ध/
patriotic bond) तीि कारणों की नबिा पर ग़लत रब्त या तआल्लुक़ है :
निज़ामुल इस्लाम - 42 -
(1) यह रब्त एक पस्त रब्त और तआल्लुक़ है। नलहाज़ा जब लोग निशाते सानिया
(पुिचअवस्था) के रास्ते पर र्लिा र्ाहे तो यह उन्हें मरबूत (अिुगृनहत/बाांधिा/bind) और
मुिज्ज़म (सांघरठत) िहीं कर सकता।
(2) यह एक जज़बाती रब्त और तआल्लुक़ है, जो अपिी ज़ात (व्यनक्तमव /personal
self) के हवाले से नजनबल्लते बका से पैदा होता है, और जज़्बाती रब्त हमेंशा तब्दीली व
पररवतचि का नशकार बिा रहता है। इसनलए यह इां सािों के दरनमयाि नस्थर रब्त व
तआल्लुक़ का कारण िहीं बि सकता।
(3) यह एक वक्ती और आरजी (अस्थाई) रब्तो तआल्लुक़ है जो फदिा (रक्षाममक) की
हालत में तो पाया जाता है, लेफकि अमि व सुकूि की हालत में िहीं पाया जाता ।
इसनलए यह बिी िो इां साि के बीर् रब्त व तआल्लुक़ बििे के क़ानबल िहीं हो सकता।
इसी तरह कौमी रब्त भी तीि कारणों से िानसद और ग़लत रब्त है :
(1) यह एक कबाइली जज़्बा है इसनलए जब इां साि निशाते सानिया
(पुिचअवस्था/Rehabilitation) के रास्ते पर र्लिा र्ाहे तो यह उन्हे जोडकर िहीं रख
सकता।
(2) यह एक जज़्बाती िोइय्यत का रब्त और ताल्लुक़ है जो नजनबल्लतें बका से पैदा होता
है और इसी से दूसरो पर ग़लबा हाांनसल करिे की मुहब्ब्त जन्म लेती है।
(3) यह एक ग़ैर-इां सािी रब्त है क्योंफक यह प्रभुमव पािे के नलए लोगों के दर्मचयाि झगडे
और तिाज़ात (नववाद) पैदा करिे का कारण बिता है इसनलए यह भी इां सािो के बीर्
'रब्ते बाहमी' बििे का अहल िहीं।
निज़ामुल इस्लाम - 43 -
दोिों इां सािो के बीर् आपसी रब्त और तआल्लुक़ का कारण हो सकते हैं, लेफकि यह
सरासर ग़लत है।
निज़ामुल इस्लाम - 44 -
3.3 फवचाराधारा का रब्त (Ideological Bond)
र्ुिााँर्े जब लोग निशातेसानिया (revival - نهضه/पुिचअवस्था/पुिचजागरण) की राह पर
र्लिा र्ाहें तो नज़क्र फकये गये तमाम रवाब्त (bonds) इां सािों को आपस में जोड िहीं
सकते इसके नवपरीत नज़न्दगी में इां सािों को आपस में जोडे रखिे का सही तरीि रब्त
नसिच उस अक़्ली अक़ीदे (rational doctrine) का रब्त हो सकता है, नजसके अांदर से
कोई निज़ाम िू टता है और यह नसिच एक मब्दा (مبداء/नवर्ारधारा ideology) का रब्त
ही हो सकता है।
मब्दा से मुराद वह अक़्ली अक़ीदा है, नजससे कोई निज़ाम िू टता है। अक़ीदा कायिात,
इां साि, हयात और उससे पहले व बाद के इस दुनियावी नज़न्दगी के साथ तआल्लुक़ के
बारे में कु ल्ली फिक्र (नवस्तृत नवर्ार/comprehensive idea) को कहा जाता है। जहााँ
तक इस अक़ीदे से िू टिे वाले निज़ाम का तआल्लुक़ है, तो यह इां साि की मुनतकलात के
हल, उस हल को िाफिज़ करिे की कै फियत, अक़ीदे की नहिाज़त और मब्दा को आगे पेश
करिा इसमें शानमल होता है। इस हल को िाफिज़ करिे की कै फियत, आयनडयोलोजी
की नहिाज़त और उसको आगे पेश करिा ‘तरीक़ा’ (method - )طريقهकहलाता है।
अक़ीदा और हल को ‘फिक्र (idea - )فكرهकहा जाता है। मालूम हुआ फक आयनडयोलोजी
'फिक्र और तरीक़े ' का नमश्रण है।
निज़ामुल इस्लाम - 45 -
इसके बानतल होिे की एक वजह यह भी है फक इां सािों में पाए जािे वाला तांज़ीमी िहम
(समझ) हमेंशा तिावुत (नभन्िता), इनख्तलाि (मतभेद) और तिाकु ज़
(नवरोधाभास/contradictions) का नशकार बिा रहता है। और यह उस मुआशरे
(समाज) से भी प्रभानवत होता है नजसमें वह रह रहा होता है। इसनलए इस िहम के
ितीजे के तौर पर पैदा होिे वाला मुतिाफकज़ निज़ाम (नवरोधाभासी व्यवस्था) इां सािी
बदबख्ती पर खमम होगा । इसनलये इां साि के ज़हि से जन्म लेिे वाली आयनडयोलोजी
अपिे अक़ीदे और इस अक़ीदे से िू टिे वाले निज़ाम के एतबार से बानतल होगी।
इसी बुनियाद पर कहा जा सकता है फक मब्दा की बुनियाद कायिात, इां साि और हयात
के बारे में कु ल्ली फिक्र (comprehensive idea -/ )الفكره الکليهहै। इस आयनडयोलोजी
में ऐसे तरीक़े का पाया जािा एक लाज़मी बात है, जो उसे नज़न्दगी के मैदाि में िाफिज़
करे और वुजूद बख्शे। इसके तरीक़े के बग़ैर कोई आयनडयोलोजी वुजूद में िहीं आ सकती।
कायिात, इां साि और हयात के बारे में कु ल्ली फिक्र आयनडयोलोजी की बुनियाद होती
है और यही कु ल्ली फिक्र इस आयनडयोलोजी का अक़ीदा है, और यही इसका फिक्री क़ायदा
और फिक्री फक़यादत (वैर्ाररक िेतृमव/ intellectual leadership) कहा जाता है। इसकी
बुनियाद पर इां साि की फिक्री जुहत और नज़न्दगी के बारे में उसका िुक्ताए िज़र
(दृनिकोण) तय होता है। यही तमाम नवर्ारों की बुनियाद है और इसी से नज़न्दगी की
तमाम मुनतकलात का हल निकलता है। जबके फिक्र के नलए तरीक़े का होिा इसनलए
लाज़मी और ज़रूरी है फक वह निज़ाम, जो अक़ीदे से निकलता है, अगर उसमें मुनतकलात
के हल की तििीज़, अक़ीदे की नहिाज़त और दावत को पेश करिे की कै फियत शानमल
िा हो, तो यह महज़ एक िज़ी और खयाली िलसिा (mythical philosophy) बिकर
रह जाएगा, जो फकताबों के अांदर तो मौजूद होगा लेफकि नज़न्दगी के मैदाि में इसका
कोई फकरदार और असर िा होगा। र्ुिााँर्े मब्दे के अांदर अक़ीदे का होिा लाज़मी है और
समस्याओं के हल के नलए एक तरीक़े का होिा भी लाज़मी है।
निज़ामुल इस्लाम - 46 -
नसिच यह है फक वह मब्दा हो सकता है, इसका और कोई मतलब िहीं। जहााँ तक मब्दे के
सही या बानतल होिे का ताअल्लुक़ है तो इसका दारोमदार अक़ीदे पर होता है। जो र्ीज़
फकसी आयनडयोलोजी के सहीह या बानतल होिे पर दलालत करती है वोह इस
आयनडयोलोजी का अक़ीदा है क्योफक अक़ीदा ही वह फिक्री क़ायदा (intellectual
basis - )القاعده الفكريهहै जो तमाम नवर्ारों के नलए बुनियाद होता है और इसके ज़ररये
तमाम िुक़ता-ए-िज़र (दृनिकोण) तय होते है और इसी से हर मसले का हल और तरीक़ा
िू टता है। पस अगर यह 'फिक्री उसूल' (यािी अक़ीदा) दुरुस्त हो तो वोह आयनडयोलोजी
दुरुस्त आयनडयोलोजी होती है और अगर यह फिक्री क़ायदा ग़लत हो तो आयनडयोलोजी
भी ग़लत होती है। अगर फिक्री क़ायदा (उसूल) इां साि की फितरत (प्रकृ नत/Nature) के
अिुसार हो, और अक्ल पर आधाररत हो, तो वह दुरुस्त उसूल होता है। और अगर यह
उसूल इां सािी फितरत के मुखानलि हो और उसकी बुनियाद अक्ली िा हो तो यह बानतल
क़ायदा है।
इसी क़ायदे का इां सािी फितरत (प्रकृ नत) के अिुसार होिे का मतलब यह है फक यह क़ायदा
इां सािी फितरत में पाइ जािे वाली ‘नजनबल्लते तदय्युि’ के साथ समािता रखता हो।
यािी यह अक़ीदा इां साि की कमज़ोरी को और इां साि का एक खानलके मुदनब्बर की तरि
रुजू करिे की कै फियत को तस्लीम करता हो। इसके अक्ल पर आधाररत होिे का मतलब
यह है फक वह मबिी बर “माद्दा” (पदाथच पर आधाररत) या मबिी बर ‘‘हले वस्त’’
(समझौते पर आधाररत) िा हो।
निज़ामुल इस्लाम - 47 -
पहले दोिों नवर्ारधाराओं की हानमल कोई एक या एक से ज्यादा देश दुनियााँ में मौजूद
हैं। लेफकि तीसरे मब्दे की हानमल कोई देश इस वक्त दुनिया में मौजूद िहीं। अलबत्ता
मुख्तनलि क़ौमों के अांदर इसके माििे वाले और अलमबरदार अिराद (कई व्यनक्त)
मौजूद हैं। र्ुिााँर्े इस अन्दाज में यह मब्दा पूरी दुनिया में मौजूद है।
निज़ामुल इस्लाम - 48 -
तहत फक ‘‘फकसी र्ीज़ का िाम उसकी िुमायातरीि जड या नहस्से से रखा जाता है’’। इस
मब्दे का िाम सरमायादाररयत (पूांजीवाद) रखा गया।
निज़ामुल इस्लाम - 49 -
उपकरणों के तौर पर इस्तेमाल फकया करते थे नजसके ितीजे में एक खौििाक फकस्म की
कशमकश और तसादुम (टकराव) बरपा हो गया। इस दौराि ऐसे फिलोसिर और
मुिफक्कर (बुनद्जीवी/thinkers) पैदा हुए नजन्होंिे नसरे से दीि का ही इां कार कर फदया।
इिमें से कु छ लोग अगरर्े दीि का एतराि करते थे, लेफकि वह दीि को दुनियावी
मामलात (सन्साररक़ फक्रया-कलापों) से अलग करिे के क़ायल थे। यहााँ तक फक ज्यादातर
फिलोसिर और मुिक्करीि इस राय पर राज़ी हो गए फक दीि को नज़न्दगी से अलग कर
फदया जािा र्ानहए। इसका क़ू दरती ितीजा यह निकला की दीि को ररयासत से भी
अलग कर फदये जािे का िज़ररया पैदा हो गया। उिके िज़दीक यह राय पुख्ता हो गई फक
मज़हब के इक़रार या उसके इन्कार की बहस में पडिा ही िहीं र्ानहए और बात नसिच
इस िुक्ते (नबन्दु) तक सीनमत हो गई फक दीि को नज़न्दगी से जुदा कर देिा बहरहाल
ज़रूरी है। फिर यह फिक्र उि धार्मचक लोगो के , जो हर र्ीज़ को दीि के िाम पर अपिे
अधीि रखिा र्ाहते थे, और उि फिलोसिर (िलसिी) और अरबाबे फिक्र (वैर्ारक /
thinkers) के , जो दीि और मज़हबी लोगो के प्रभुमव और हुकू मत के मुिफकर थे, बीर्
एक दरनमयािी हल “हले वस्त या समझौता” करार पाई। इस तरह इसके बाद में आिे
वाले नगरोहों िे मज़हब के इन्कार पर इसरार करिा छोड फदया। लेफकि तय करा फदया
फक नज़न्दगी में इसका कोई अमल दखल िहीं होगा।
र्ुिााँर्े इस तरह अनखरकार मज़हब को नज़न्दगी से जुदा कर फदया गया। पस वह अक़ीदा
नजसको पूरे पनतर्म िे क़ु बूल कर रखा है, वह यही 'दीि का दुनियााँ से जुदा होिे' का
अक़ीदा है। यही अक़ीदा वह फिक्री बुनियाद है, नजस पर उसके तमाम अफ्कार (नवर्ार
/ thoughts) क़ायम हैं। यही अक़ीदा उस बुनियाद को तय करता है नजस पर इां साि की
फिक्री नसम्त (फदशा) तय होती है और समाज और नज़न्दगी के बारे में इन्साि का दृनिकोण
तय होता है और इसी की बुनियाद पर नज़न्दगी की तमाम मुनतकलात हल की जाती हैं।
यह ही वह 'फिक्री फक़यादत' (वैर्ाररक िेतृमव) है, नजसका पनतर्म अलमबरदार है और
इसी की तरि पूरी दुनिया को दावत दे रहा है।
निज़ामुल इस्लाम - 50 -
3.5.4 सेक्यूलफरज़्म का दीन का फज़मनी (आंफशक) ऐतराि मगर
दु फनयावी फज़न्दगी का ज़ज़दगी से पहले और बाद से कोई
तआल्लुक़ नहीं
नज़न्दगी के मैदाि से दीि के अलग होिे के अक़ीदे में नज़मिी (आांनशक) तौर पर यह
ऐतराि (सहमती) पाया जाता है फक दीि िाम की कोई र्ीज़ मौजूद है। यािी कायिात,
हयात, इां साि और क़यामत के फदि का वुजूद है। क्योंफक दीि दरअसल इसी र्ीज़ का
िाम है। यह ऐतराि ही इस कायिात, इां साि, हयात के दुनियावी नज़न्दगी से पहले और
बाद से तआल्लुक़ को एक फिक्र की शक्ल देता है। पूांजीवादी फिक्री फक़यादत दीि के वुजूद
का इन्कार िहीं करती, जब वोह दीि को दुनियावी नज़न्दगी से अलग करिे की बात
करती है तो यह दीि का नज़मिी (आनन्शक रुप से) इसका ऐतराि करती है, गोया की
जब दीि के वुजूद का ऐतराि करती है तो उसके साथ यह फिक्र भी देती है फक दुनियावी
नज़न्दगी का अपिे कब्ल और बाद से कोई तआल्लुक़ िहीं।
निज़ामुल इस्लाम - 51 -
3.6 इख्ततराक़ी मब्दा (साम्यवाद / Communist
Ideology)
जहााँ तक इनततराफक़यत (समाजवाद)1 का तआल्लुक़ है, नजससे कम्यूनिज़्म (साम्यवाद)
भी पैदा हुआ, तो उसका िज़ररया यह है फक कायिात, इां साि और हयात नसिच माद्दा
(पदाथच / matter) है और वह माद्दा ही तमाम अनशया (वस्तुओं) की बुनियाद है। इसी के
इरनतका (क्रनमक नवकासवाद/evolution) से वस्तुए अनस्तमव में आती हैं। माद्दे के अलावा
कोई दूसरी र्ीज़ है ही िहीं। यह ही माद्दा अज़ली (अिांत/eternal) और कदीम (pre-
existent) है, फकसी िे इसको वुजूद िहीं बख्शा (indispensible - )واجب الوجود। यािी
यह फकसी की मख़लूक़ (creation) िहीं। यह ही वजह है फक समाजवाद वस्तुओं के फकसी
ख़ानलक़ (रनर्यता/creator) के मखलूक (रर्िा) होिे का इां कार करते हैं। दूसरे शब्दों में
वह वस्तुओं के रूहािी पहलू (spiritual aspect) का इां कार करते हैं। बनल्क वह इसके
माििे को नज़न्दगी के नलए एक खतरा समझते हैं। र्ुिााँर्े वह दीि को क़ौमों के नलए
अिीम करार देते हैं, जो उन्हें मदहोश करके अमल से रोकती है। इिके िजदीक माद्दे के
नसवा फकसी दूसरी र्ीज़ का कोई वुजूद िहीं।
निज़ामुल इस्लाम - 52 -
3.7 सरमायादाफरयत और इख्ततराफकयत के कुछ
उसूलो मे समानता
3.7.1 कानूनसाज़ी का मनबा (स्त्रोत) इंसान और उसकी अक्ल
को मानते है
बावुजूद यह फक दोिों मबादी (ideologies) इां साि, कायिात और हयात के बारे में
बुनियादी इनख्तलाि रखती हैं, लेफकि इस बात पर मुत्तफिक़ (सहमत व राज़ी) है फक
इां साि के नलए बुलांदो-बरतर इक़दार (values/मूल्यों) के पैमािे बिािा इां साि का अपिा
काम है।
निज़ामुल इस्लाम - 53 -
3.8 समाज के बारे मे पूंजीवाद और साम्यवाद मे
अलग अलग तसव्वुर
दोिों मबादी 'िदच' (व्यनक्त) और मुआशरे (समाज) के बारे में इनख्तलाि रखती हैं।
निज़ामुल इस्लाम - 54 -
के साथ सम्बन्धों पर मुततनमल(बिा) है। यह तआल्लुक़ात हतमी और तयशुदा होते हैं,
और इिके सामिे इां सािो को हतमी और मेंकेनिकी (mechanic/तकिीकी) अांदाज में
झुकिा पडता है। यह सबका सब मजमुआ (फितरत, इां साि और तआल्लुक़ात) एक ही
इकाइ से है और यह एक मजमुआ है फक नजसके नहस्से एक दूसरे से अलग अलग िहीं है।
'फितरत' (प्रकृ नत) इन्साि की शनख्सयत का एक नहस्सा है नजसे इां साि अपिी ज़ात में
उठाए हुए है। इस नलहाज़ से इां साि जब भी तरक्की करता है तो वह अपिी शनख्सयत के
इस पहलू यािी फितरत से नर्मटा हुआ होता है। क्योंफक फितरत के साथ इां साि का
तआल्लुक़ जैसे फकसी शैय (र्ीज़) का अपिे साथ ताल्लुक़। र्ुिार्े वह पूरे मुआशरे को एक
‘‘मजमुआए वानहद’’ (one unit/एक इकाई) समझता है, नजसके तमाम पहलू एक साथ
नमलकर तरक्की करते हैं। 'िदच' समाज का ताबे होकर इस तरह गरफदश करता है नजस
तरह पनहये के तार साथ पनहये के साथ गरफदश करते है। इसनलए उिके िज़दीक 'िदच' के
नलए अक़ीदे की आज़ादी (freedom of religion) या आर्थचक आजादी (economic
freedom) का कोई वजूद िहीं। क्योंफक अक़ीदा भी ररयासत की मज़ी के साथ मुक़य्यद
है और इनक्तसाद (अथचव्यवस्था) भी। इसनलए इस मब्दा में ररयासत को मुक़द्दस समझा
जाता है। इसी माद्दी (पदार्थचक) िलसिे से निज़ामें हयात (system of life/जीवि
व्यवस्था) िू टते और इनक्तसादी निज़ाम (economic system) को तमाम निज़ामो की
बुनियाद करार फदया जाता है और तमाम निज़ामें हयात के नलए इसको ‘‘मुज़नहरे आम’’
समझा जाता है। नलहाज़ा वह इनततराक़ी मब्दा, नजसमें कम्यूनिज़्म भी है, नजस फिक्री
फक़यादत का हानमल है वह माफद्दयत (पदाथचवाद /materialism) और माद्दी (पदार्थचक)
तरक्की और इरनतका (materialistic evolution) ही है। इस माफद्दयत की बुनियाद पर
वह अपिे निज़ामें हयात के मुतानबक़ हुकू मत करता है, इसी की तरि वह दावत देता है
और इसी को हर जगह िाफिज़ करिे के नलए कोनशश में लगे हैं।
निज़ामुल इस्लाम - 55 -
3.9 इस्लाम मब्दे की रूहानी बुफनयाद: खाफलक़
का मखलूक़ से ताल्लुक़
इस्लाम का जहााँ तक तआल्लुक़ है, तो वह बताता है फक इस कायिात, हयात और इां साि
के पीछे एक ख़ानलक़ है और उसी िे इि तमाम र्ीजों को पैदा फकया है। वह अल्लाह
तआला है। इसनलए इस्लाम की बुनियाद और असास अल्लाह तआला के वजूद पर यक़ीि
रखिा है। यही अक़ीदा अनशया के रूहािी (spiritual-अध्यानममक) पहलू को तय करता
है। रूहािी पहलू से मुराद नसिच यह है फक इां साि, हयात (जीवि), और कायिात (सृिी)
एक रनर्यता की रर्िा हैं। कायिात का अपिे मखलूक़ होिे के िाते से, खानलक़ के साथ
तआल्लुक़, कायिात का रूहािी पहलू है। इसी तरह हयात का अपिे ख़ानलक़ (अल्लाह
तआला) के साथ तआल्लुक़ इसका रूहािी पहलू हैं। और इसी तरह इां साि का खानलक़ के
साथ तआल्लुक़ इां साि का रुहािी पहलू है। इससे मालूम हुआ फक रूह (आममा) से मुराद
इां साि का अपिे ख़ानलक़ के साथ पाए जािे वाले इस तआल्लुक़ को समझिा है।
अल्लाह पर ईमाि के साथ मुहम्मद صىل اهلل عليه وسلمकी ररसालत और क़ु रआि के
कलामुल्लाह होिे पर ईमाि भी वानजब है। पस हर उस र्ीज़ पर ईमाि लािा वानजब
है, नजसको क़ु रआि िे बयाि फकया है। र्ुिााँर्े इस्लाम का अक़ीदा इस बात की माांग
करता है फक जीवि से पहले फकसी ऐसी ज़ात का पाया जािा ज़रूरी है नजस पर ईमाि
लािा अनिवायच है और वह अल्लाह तआला की ज़ात है। इस तरह दुनियावी नज़न्दगी के
बाद पर भी ईमाि लािा ज़रूरी है और वह क़यामत का फदि है।
निज़ामुल इस्लाम - 56 -
(फकिाराकशी) करिे या िा करिे के हवाले से फकया जायेगा और यही दुनियावी नज़न्दगी
का अपिे बाद के साथ तआल्लुक़ है। इसनलए मुसलमाि के नलए ज़रूरी है फक वह फकसी
भी अमल को सरअांजाम देते वक़्त अपिे साथ इस रब्तो तआल्लुक़ का इदराक़
(perception/ ज्ञाि/ बोध) करे , ताफक उसके आमाल अल्लाह तआला के 'अवानमर और
िवाही' के मुतानबक़ हों। र्ुिााँर्े माद्दे (पदाथच) के साथ रूह के इमतेजाज (नमश्रण/
mixing) का यही मआिी है फक आमाल को अल्लाह तआला के अवानमरो िवाही के
मुतानबक़ बजा लाया जाए। आमाल की असल ग़ायत और मक़सूद अल्लाह तआला की
रज़ा को हानसल करिा है और आमाल के अदा करिे के दौराि इसका िोरी
(immediate) मक़सद वह कीमत है, जो इस अमल के ितीजे में हानसल होती है।
निज़ामुल इस्लाम - 57 -
ही दरअसल वह र्ीज़ है जो मुसलमािो के अांदर इनममिाि पैदा करती है। पस मालूम
हुआ फक इां साि की सआदत (कामयाबी) इसमें िहीं फक इां सािी नजस्म को खूब सेर फकया
जाए और उसे नजस्मािी लज़्ज़तों को पूरा फकया जाऐ बनल्क इां सािी खुशिसीबी नसिच
अल्लाह तआला की रज़ा में है।
निज़ामुल इस्लाम - 58 -
का जुज़ (अांग) होता है। र्ुिााँर्े इस्लाम िे िदच की निगरािी इस हवाले से की है फक ये
जमाअत का एक नहस्सा है और इससे अलग-थलग िहीं। वोह इस हैनसयत से िदच पर
तवज्जोह देता है की जमाअत की नहिाज़त हो सके । उसी वक़्त इस्लाम जमाअत की भी
निगरािी करता है और वोह उसे तवज्जोह और इिायत का नवषय इस हैनसयत से िहीं
बिाता फक ये एक कु ल है नजसके अजज़ा (नहस्से) िहीं है बनल्क इस्लाम उसे एक ऐसा कु ल
समझता है जो अपिे अजज़ा (अांगों) यािी अिराद पर मुततनमल है। इस इिायत और
तवज्जोह के ितीजे में, जमाअत का जुज़ होिे की हैनसयत से, अिराद की भी खुद-ब-खुद
नहिाज़त हो जाती है। यही वजह है फक रसूलल्लाह صىل اهلل عليه وسلمिे िरमाया :
निज़ामुल इस्लाम - 59 -
हों जो उन्हें आपस में बाांधे रखें और वह उिके मुतानबक़ नज़न्दगी गुजारें । इसी तरह यह
भी ज़रूरी है फक उि सबके पास एक जैसे मशाइर (एहसासात- )مشاعرहों, नजिसे वह
प्रभानवत भी हों और उिकी तरि नमलाि भी रखें। इसी तरह उि सब पर एक ही निज़ाम
लागू हो, जो उिकी नज़न्दगी की तमाम समस्याओं को हल करे ।
निज़ामुल इस्लाम - 60 -
साथ मुक़य्यद हैं और उसके असबाब नसिच वही हो सकते है, नजिको शरह िे मुबाह करार
फदया हो और नजिकी पररभाषा शरीअत में इिफिरादी नमनल्कयत (व्यनक्तगत सांपनत्त) मे
की है। दर हक़ीक़त यह इिफिरादी नमनल्कयत भी शारे अ ( َش َرع- legislator) की तरि
से वोह इजाज़त है, जो उसिे फकसी र्ीज़ से ििा उठािे के नलए दी है र्ुिााँर्े शरीअत
की इि हदो से निकलिा भी जुमच है, नजसकी मुख्तनलि सूरतें और फकस्में हो सकती है,
जैसे र्ोरी, ग़सब वगैरा। नलहाज़ा एक ऐसी ररयासत का पाया जािा इन्तेहाइ ज़रूरी है
जो इस िदच और जमाअत की नहिाज़त कर सकें , और जमाअत पर निज़ाम को एक जैसा
िाफिज़ कर सके । र्ुिााँर्े यह भी ज़रूरी है फक इस आयनडयोलोजी के माििे वालों पर
आयनडयोलोजी के असरात भी पाए जाते हों, ताफक नहिाज़ती अमल खुद लोगो की
जानिब से तबई (स्वाभानवक) तौर पर अांजाम पा सकें । इसनलए आयनडयोलोजी ही वह
र्ीज़ है जो मुआशरे को पाबांद और महिू ज रखती है जबफक ररयासत उि अहकामात को
लागू करती है जो इस आयनडयोलोजी से प्राप्त फकये जाते हैं।
निज़ामुल इस्लाम - 61 -
फिकराह की जजांस से ही है। इस्लाम का निज़ाम इस्लाम के अक़ीदे से जन्म लेता है। इस
तरह इसकी तहज़ीब भी इक मखसूस तज़े हयात पर मबिी है।
निज़ामुल इस्लाम - 62 -
में कोई अमल दखल िहीं होिा र्ानहए। र्ुिााँर्े खानलक़ के वजूद पर सहमनत और इां कार
उिके नलये बराबर है। यही वजह है फक इिके अक़ीदे की रूह से ख़ानलक़ के वुजूद को
माििे वाला और इसका उसका इन्कार करिे वाला दोिो बराबर है’ और यही दीि को
दुनिया से जुदा कर देिे का अक़ीदा है।
निज़ामुल इस्लाम - 63 -
3.13.2 सरमायादाफरयत के अक़ीदे से फनज़ाम (व्यवस्था) कैसे
िूटती है
सरमायादारािा आयनडयोलोजी की राय है फक जब इां साि िे दीि को दुनियावी मामलात
से अलग कर फदया तो इसके नलये ज़रूरी है फक वो इस हयात ही से अपिे नलये बज़ाते
खुद निज़ाम बिाये। र्ुिााँर्े इस तरह इां साि िे अपिा निज़ाम खुद बिािा शुरू कर फदया।
निज़ामुल इस्लाम - 64 -
3.14.1 मुआशरे (समाज) के बारे में कम्युफनज़्म का नु िा-ए-
नज़र
जहाां तक मुआशरे (society/समाज) से सम्बनन्धत दृनिकोण का तआल्लुक़ है तो
कम्युनिज़्म की राय है फक मुआशरा एक आम मजमुआ है। इसमें ज़मीि, जराये पैदावार,
फितरत (प्रकृ नत) और इां साि तमाम के तमाम माद्दा होिे के ऐतबार से ‘‘शेय-वानहद”
(एक वस्तु /single entity) है’ और फितरत और जो कु छ उसमें है, तरक्की करते है, तो
उिके साथ इां साि भी तरक्की करता है। र्ुिााँर्े पूरा मुआशरा भी तरक्की करता है। नलहाज़ा
मुआशरा माद्दी (पदार्थचक) तरक्की का मोहताज और ताबे है। इां साि का काम नसिच इतिा
है फक वह तिाकु जात (इनख्तलािात/नववाद) को पैदा करता रहे, ताफक यह तरक्की तेज
तर हो सके । फिर जब मुआशरा तरक्की करता है तो िदच भी उसके साथ तरक्की करता है
यािी वह मुआशरे के नगदच इस तरह गर्दचश करता है, जैसे नगरारी पनहए के साथ।
निज़ामुल इस्लाम - 65 -
पैदा करती है, वह मुततररका मसनलहत (common interest/समाि लाभ) है। अगर
इस मसनलहत (नहत / लाभ) पर नवर्ार एक हो जाएां और इस तरह उस पर एहसासात
भी एक हो जाऐ, तो रज़ामांदी और िाराज़ी भी एक हो जाएगी। इसी तरह वह निज़ाम जो
मुनतकल को हल करता है वह भी अगर एक हो तो इां सािो के दरनमयाि तआल्लुक़ात पैदा
हो जाते है। लेफकि अगर मसनलहत की वजह से अफ्कार (नवर्ार) मुख्तनलि हो जाए या
एहसासात मुख्तनलि हो तो रज़ामांदी और िाराजी भी कभी एक िहीं होंगे। यह उस सूरत
में भी होता है, जब वह निज़ाम मुख्तनलि हो जो इां सािो की मुनतकलात को हल करता
है और जो तआल्लुक़ात, एहसासात और निज़ाम का मजमुआ होता है। अगर तआल्लुक़
पैदा िा होगा तो मुआशरा क़ायम िा होगा। नलहाज़ा समाज अिराद, अफ्कार,
अहसासात और जज़बात और निज़ाम पर मुततनमल (आधाररत) है इसनलए अगर फकसी
मुआशरे के तमाम लोग मुसलमाि हो लेफकि वह पूांजीवादी लोकतांत्र के नवर्ारों के हानमल
और अलमबरदार हों, उिके जज़्बात रूहानियत, वतिपरस्ती, और क़ौनमयत पर क़ायम
हों और वह निज़ाम जो उि पर िाफिज़ हो सरमायादारािा जम्हूररयत हो, तो वह
मुआशरा ग़ैर-इस्लामी मुआशरा है। अगरर्े उसके बेशतर अिराद मुसलमाि ही क्यों िा
हों।
निज़ामुल इस्लाम - 66 -
क्योंफक ररयासत का वजूद ही आज़ाफदयों की ज़माित (guarantee / नज़म्मेदारी) है।
ताहम अगर कोई शख्स दूसरे की आज़ादी को छीिे बग़ैर उसका इस्तहसाल (शोषण) करे
और उसके हुक़ू क़ छीि ले, लेफकि यह सब उसकी रज़ामांदी से हो तो, इसको आज़ादी पर
दस्तदराज़ी िहीं कहा जाऐगा और ररयासत (राज्य) उसमें मुदानखलत (हस्तक्षेप) िहीं
करे गी। र्ुिााँर्े ररयासत का वजूद नसिच आजाफदयों की ज़माित के नलए है।
निज़ामुल इस्लाम - 67 -
3.16 इस्लाम की फिक्री फक़यादत इंसानी
फितरत के मुवाफिक कैसे हैं ?
इस्लामी आयनडयोलोजी की फिक्री फक़यादत (वैर्ाररक िेतृमव) इां सािी फितरत के साथ
पूरी तरह हमआहांग है। यह अपिे अन्दर गहराई रखिे के बावजूद समझिे में आसाि है।
इां साि के फदल और फदमाग़ इसे तेज़ी से क़ु बूल करते है, इां साि इसकी समझ हानसल करिे
की तरि जखांर्ता है और इसकी बारीफकयों को समझिे की कोनशश करता है। क्योंफक
‘‘नजनबल्लते तदय्युि’’ (पूज्यभाव की मूलप्रवृनत) इां साि का एक नहस्सा है और हर इां साि
फितरी ऐतबार से ‘‘मुतादय्यि’’ (धमच को माििे वाला) है। कोई भी क़ु व्वत इस फितरत
(प्रकृ नत / nature) को हटािे की ताकत िहीं रखती इसनलए फक इसकी जडे इां साि के
अांदर निहायत गहरी है। इां साि तबई (प्राकृ नतक) तौर पर यह शऊर रखता है फक वह
िाफक़स (अधूरा) है, और इससे बडी कोई क़ु व्वत है, जो तक़दीस (पूजा) की मुस्तनहक़ है।
तदय्युि इां साि की वह हाजत (आवतयकता) हैं जो वह अपिे खानलके -मुदनब्बर के नलए
महसूस करता है। यह इां साि की ज़ात (व्यनक्तमव) के अांदर पाऐ जािे वाले अज्ज़ (दुबचलता)
से पैदा होता है यह नजनबल्लते तदय्युि एक नस्थर र्ीज़ है और इसका मखसूस इज़हार
तकद्दुस (प्रशांसा और अर्चिा) है। इसनलए इां साि हर जमािे में धमच को मािता रहा है
और फकसी िा फकसी र्ीज़ की इबादत करता रहा है। इां साि खुद इां साि की, आसमािों
की, पमथरों की, हेवािात और आग वगैरा की परनस्तश (पूजा) करता रहा है।
इस्लाम अपिे अक़ीदे के साथ इसनलए ज़ानहर हुआ फक वह इां साि को मखलूक़ात
(प्रानणयों) की इबादत से निकालकर एक अल्लाह की इबादत में लगाऐ, नजसिे हर वस्तु
को पैदा फकया। जब इस 'माद्दी मब्दा' (पदार्थचक नवर्ारधारा) का जहूर हुआ है, जो
अल्लाह तआला और रूह का इां कार करता है, तो वह भी इां साि में मौजूद इस 'फितरी
तदय्युि' को खमम िा कर सका। बनल्क उसिे इां साि के अांदर अपिे से बडी क़ु व्वत के
तसव्वुर और उस क़ु व्वत के तकद्दुस (पनवत्रता) को, अपिे मब्दा के हानमलीि (माििे
वालों) की क़ु व्वत के तसव्वुर की तरि मुन्तफकल (पररवर्तचत) कर फदया। गोया इस तरह
वह पीछे की तरि लौट गया, और इां साि में पाये जािे वाले इस जज्बाऐ तकद्दुस को
अल्लाह तआला की इबादत की तरि से इां सािो की इबादत की तरि कर फदया। इसको
अल्लाह की आयात के तकद्दुस से िे र कर मख़लूक़ (रर्िा / creation) के कलाम के
निज़ामुल इस्लाम - 68 -
तकद्दुस की तरि डाल फदया। इस तरह यह िज़ररया एक फकस्म का रजत पसांदािा
(नपछडा हुआ / backward) िज़ररया है जब यह फितरते तदय्युि को खमम िा कर सका
तो इसको रजत पसांदािा तौर पर एक नसम्त में मोड फदया। इसनलए इस मब्दे की फिक्री
फक़यादत फितरते इां सािी के नखलाि है और एक सलबी िोइयत की फक़यादत है। मालूम
हुआ फक कम्यूनिज़्म की फिक्री फक़यादत इां सािी फितरत को नसिच मैदे (पेट) के इदच नगदच
घूमाती है और नसिच भूखों, खौिज़दा लोगों और मायूस अिराद को अपिी लपेट में ले
लेती है नसिच पस्त नहम्मत अिराद इसको इनख्तयार करते हैं। नज़न्दगी में पीछे रह जािे
वाले और दूसरो को जलि और ररकाबत (प्रनतस्पधी के तौर) से देखिे वाले अक्ल के कोरे
इां साि ही इस भौनतक िज़ररये को इनख्तयार करते हैं ताफक जब वह डाइलेक्टरीकल
िज़ररये नजसका अक्ल व नहस की रूह से बानतल और िानसद तरीि र्ीज़ होिा सानबत
हो र्ुका है के साथ बाछें खोले, तो उन्हे अरबाबे फिक्र में से माि नलया जाऐ। इसनलए
यह िज़ररया अपिे मब्दा (नवर्ारधारा) के सामिे लोगों को झुकािे के नलए क़ु व्वत व
ताकत का सहारा लेता है। र्ुिााँर्े शोररश, तबाही ,परे शािी, ज़ुल्म और हांगामें उसके
अहमतरीि सांसाधि हैं।
निज़ामुल इस्लाम - 69 -
यह हैं फक वह निज़ाम िाफिज़ फकया जाए नजसके ज़ररये नज़न्दगी की तमाम मुनतकलात
को हल फकया जाए और यह निज़ाम उस अक़ीदे से िू टता हो जो इां साि की नजनबल्लते
तदय्युि के मुतानबक़ हो। इस निज़ाम को उस अक़ीदे से प्राप्त करिा जो दीि की नज़न्दगी
से जुदाई की फिक्र पर क़ायम हो और नजनबल्लते तदय्युि के अिुसार िा हो इां सािी
फितरत के नखलाि है। इसनलए सरमायादारािा निज़ाम की फिक्री फक़यादत फितरत के
पहलू के एतबार से इां तेहाइ पस्त और मायूसकु ि है क्योंफक यह दीि को नज़न्दगी से जुदा
करिे फितरते दीि हयात से दूर करिे, दीि को इां साि का व्यनक्तगत मसला बिा देिे और
इस निज़ाम को दूर कर देिे, नजसके मुतानबक़ इां सािी मुनतकलात को हल करिे का अल्लाह
तआला िे हुक्म फदया है, फक वजह से एक 'सलबी फक़यादत' है।
इस्लामी फितरी फक़यादत एक मुसबत (सानबत शुदा) फक़यादत है। क्योंफक यह अल्लाह
तआला के वजूद पर ईमाि लािे के नलए अक्ल को बुनियाद बिाती है और इसके नलए
इां सािी िज़र को कायिात, इां साि और हयात की तरि मुतावज्जेह करती है। नलहाज़ा
इां साि तमाम मखलूकात (Creations/रर्िाओं) के नलए एक ख़ानलक़ के वजूद पर क़तई
यकीि के साथ मुतमईि हो जाता है। यह फक़यादत इां साि की इस हवाले से मुईि और
मददगार होती है फक वह खुद अपिी फितरत से उस कमाल (पूणचता) का मुतआलाशी
(खोजकताच) हो जाता है जो िा इां साि में पाया जाता है िा कायिात में, िा हयात में, यह
फक़यादत उस ज़ात की तरि अक्ले इां सािी की रहिुमाई करती है और अक्ले इां सािी
इसका इदराक़ (बोध/Perception) करिे के बाद उसके वजूद पर ईमाि लाती है।
निज़ामुल इस्लाम - 70 -
और फिलोनसिर के दरनमयाि सफदयों तक जारी जबदस्त कशमकश के ितीजे में यहा
तक पहुाँर्ी यह आनखरकार इस हल पर पहुाँर्ी फक दीि ररयासत से जुदा है इससे मालूम
हुआ फक यह दोिों फिक्री फकयादतें कम्यूनिज़्म (साम्यवाद) और सरमायादारी इन्तेहाइ
पस्ती में हैं क्योंफक यह दोिों फितरते इां सािी फितरत से नवपरीत और मबिी बर अक्ल
(अक्ल पर आधाररत) िहीं हैं।
निज़ामुल इस्लाम - 71 -
माद्दे पर प्रनतनबनम्बत/ reflect होता है और िा माद्दा फदमाग पर क्योंफक प्रनतनबम्ब नजस
र्ीज़ में प्रनतनबनम्बत हो रहा हो उसके अांदर प्रनतनबम्ब की कु बूनलयत की सलानहयत का
मोहताज है। जैसे फक आइिा फक उसके अांदर इिइकास (प्रनतनबनम्बत होिे) की कानबलयत
है। लेफकि यहााँ यािी फदमाग और माद्दे में इस फकस्म की कोई नसफ्ित िहीं क्योंफक िा
माद्दा फदमाग पर मुिअफकस है और िा उसकी तरि मुन्तफकल होता है बनल्क माद्दे का
एहसास हवासे खम्सा (इनन्रयों/ senses) के ज़ररये फदमाग की तरि मुन्तफकल होता
है यह माद्दे का फदमाग पर इिइकास िहीं है बनल्क यह तो माद्दे का नसिच एहसास है और
इस नलहाज़ से आाँख और दूसरी इनन्रयों के बीर् कतअि कोई िक़च िहीं। पस नजस तरह
सूघाँिे, छू िे, और सुििे से एहसास होता है उसी तरह देखिे से भी होता है। मालूम हुआ
फक जो कु छ वस्तुओं के बारे में फदमाग में आता है फदमाग पर उिका प्रनतनबम्ब िहीं, बनल्क
वह अनशया (वस्तुओं) के बारे में नसिच एहसास है। र्ुिााँर्े इां साि पाांर् इनन्रयों (senses)
के ज़ररये र्ीज़ों को महसूस करता है, िा फक र्ीज़ें फदमाग पर प्रनतनबनम्बत होती हैं।
निज़ामुल इस्लाम - 72 -
करे गा तो फिर वह इसका इदराक (ज्ञाि / बोध) करिे लगेगा। इसी तरह एक और नमसाल
लीनजए। हम एक ऐसे बच्चे को लेते है नजसके पास हवास तो पाए जाते है लेफकि 'सानबका
मालूमात' (previous information) कु छ भी िा हो! हम उसके सामिे सोिे, पीतल और
पमथर का एक -एक तुकडा रख दें और कहें फक वह अपिे तमाम हवास (senses) इि अनशया पर
डाले! उसके नलए इि वस्तुओं को समझिा फिर भी मुमफकि िा होगा र्ाहे वह फकतिी ही बार
इन्हे देखे और देखिे का तरीक़ा कु छ भी हो! अलबत्ता जब हम उसे उिके बारे में मालूमात दे देंगे,
तो वह महसूस करे गा और उि मालूमात को काम में लाते हुए, इिकी समझ हानसल कर लेगा।
लेफकि इस बच्चे को अगर मालूमात िा दी जाऐ और उसकी उम्र बढ़ कर बीस साल भी हो जाए,
तब भी वह पहले फदि जैसा ही रहेगा र्ाहे उसका फदमाग फकतिा ही बडा क्यों िा हो जाए वह
इिका ज्ञाि हाांनसल िहीं कर सके गा क्योंफक इदराक़ (समझ) नसिच फदमाग के ज़ररये िहीं होता,
बनल्क उसके साथ सानबका मालूमात और वस्तु (object) का एहसास होिा लाज़मी है।
निज़ामुल इस्लाम - 73 -
3.19.4 सरमायादाराना (पूंजीवादी) फिक्री फक़यादत मबनी बर
अक़्ल नही है
इस तरह से सरमायादारािा (पूांजीवादी) फिक्री फक़यादत, ररजाले कलीसा (पॉप) और
मुिक्केरीि (बुनद्जीनवयों) के दरनमयाि हलेवस्त (दरनमयािा हल) की बुनियाद पर
क़ायम है। क्योंफक र्र्च और मुिक्करीि के दरनमयाि एक लांबी और जबरदस्त कतमकश के
बाद वह इस ‘‘हलेवस्त’’ (दरनमयािी हल) पर पहुाँर्े फक 'दीि नज़न्दगी से अलग है' । गोया
फक इसमें दीि का नज़मिी (आाँनशक) तौर पर एतराि है, लेफकि यह नज़न्दगी से अलग
होिे का अक़ीदा है। नलहाज़ा यह फिक्री फक़यादत मबिी-बर-अक्ल िहीं, बनल्क नसिच
‘‘हलेतरफदया’’ (रज़ामन्दी का हल) या ‘‘हलेवस्त’’ (दरनमयािी हल) है। यह ही वजह है
हम देखते हैं ‘‘हलेवस्त’’ की जडे उिके अांदर बहुत गहरी है। यह लोग हक़ को बानतल के
करीब लािा र्ाहते है, ईमाि व कु फ्र और रोशिी और अधांकार के बीर् ‘‘हलेवस्त’’ के
जररए निकटता तलाश करते हैं। हालाांफक इि हकाइक (तथ्यो/Facts) के दरनमयाि
‘‘हलेवस्त’’ हो ही िहीं सकता। क्योंफक हक़ व बानतल में ईमाि व कु फ्र में और रोशिी
और तारीकी में से नसिच एक ही हो सकता है। लेफकि वह ‘‘हलेवस्त’’ नजसकी बुनियाद
पर उिका अक़ीदा और उिकी फिक्री फक़यादत क़ायम है, वह हक़, ईमाि और रोशिी से
बहुत दूर है। नलहाज़ा उिकी फिक्री फक़यादत, मबिी बर अक्ल िा होिे की वजह से,
िानसद और ग़लत है।
निज़ामुल इस्लाम - 74 -
ऐि मुतानबक़ है। क्योंफक फितरते इां सािी दीि के वजूद को क़ु बूल करती है, नज़न्दगी में
उसकी ज़रूरत को, नज़न्दगी को अल्लाह तआला के अवानमरो िवाही (commands
and prohibition ) के मुतानबक़ र्लािे को ज़रूरी समझती है। ‘‘तदय्युि’’
(religiousness) एक फितरी और क़ु दरती र्ीज़ है क्योंफक यह दूसरी नजनबल्लतों
(instincts) की तरह एक नजनबल्लत है और इसका अपिा एक खास असर है। र्ुिााँर्े
दीि पर ईमाि रखिा और इां सािी अमाल का अल्लाह तआला के अवानमरो िवाही के
मुतानबक़ होिा एक नजनबल्ली फितरी (instinctive) र्ीज़ है। यह ही इां सािी फितरत के
अिुसार और उससे हमआहांग है। इसके नवपरीत दोिों फिक्री फकयादतों, यािी कम्यूनिज्म
(साम्यवाद) और पूांजीवाद के , यह दोिो इां सािी फितरत के नबल्कु ल नवपरीत हैं। र्ूाँफक
कम्यूनिज्म फिक्री फक़यादत 'नसरे ही से दीि के वजूद' का इां कार करती है, और दीि के
क़ु बूनलयत के नखलाि उसिे एक जांग बरपा कर दी, र्ुिााँर्े यह फितरत के नबल्कु ल
मुखानलि है। सरमायादारािा (पूाँजीवादी) फिक्री फक़यादत दीि पर सहमत है और िा
उसका इां कार करती है । वह इस बात को बहस का नवषय भी िहीं बिाती। हााँ! वह दीि
के दुनियावी नज़न्दगी से जुदा होिे को ज़रूरी समझती है और र्ाहती है फक नज़न्दगी की
गाडी को नसिच िायदे की बुनियाद पर र्लिा र्ानहए। दीि का इसमें नबल्कु ल कोई अमल
दखल िहीं होिा र्ानहए। र्ुिााँर्े यह फितरत के नवपरीत और उससे बहुत दूर है।
इस तमाम बहस से मालूम हो गया फक नसिच इस्लामी फिक्री फक़यादत ही एक सही फिक्री
फक़यादत है। क्योंफक यह फितरते इां सािी और अक्ले इां सािी के मुआफिक (अिुसार) हैं
इसके अलावा बाकी तमाम फिक्री फकयादतें बानतल हैं। पस नसिच इस्लामी फिक्री फक़यादत
ही सही तरीि और कामयाब तरीि फिक्री फक़यादत है।
निज़ामुल इस्लाम - 75 -
3.20 क्या मुसलमानों ने कभी इस्लाम को
अमलन नाफिज़ भी फकया?
अब सवाल नसिच यह है, फक क्या मुसलमािों िे कभी इस्लाम को अमलि िाफिज़ भी
फकया? यह तो िहीं था फक वह इस अक़ीदे को क़ु बूल तो करें , लेफकि उिका निज़ाम और
हुकू मत ग़ैर इस्लामी हो? इसका जवाब यह है फक मुसलमािों िे रसूलल्लाह (सल्ल0) की
नहजरते मदीिा से लेकर1336 नहजरी बामुतानबक़ 1918 ई० तक जब इस्तेमार
(साम्राज्यवाद/Colonialist) के हाथों आखरी इस्लामी ररयासत का सुकूत (खाममा) हो
गया इस अरसे में नसिच और नसिच इस्लाम ही िाफिज फकये रखा। यह नििाज इस कर
हमागीर और जामेंअ था फक इस्लामी ररयासत का इस नसलनसले में इां तेहाई कामयाबी
हानसल हुई। जहााँ तक मुसलमािों का इस्लाम को अमलि िाफिज़ करिे का तआल्लुक़ है।
तो यह बात ज़हििशीि कर लेिी र्ानहए फक इस्लाम को नसिच ररयासत ही िाफिज़ कर
सकती है फिर ररयासत में इस्लाम को िाफिज़ करिे वाले दो शख्स होते हैं :
(1) क़ाज़ी, जो लोगों के दरनमयाि िै सले करता है।
(2) हाफकम (शासक), जो इि िै सलों के मुतानबक़ लोगों पर हुकू मत करता है।
जहााँ तक क़ाज़ी का तआल्लुक़ है, तो यह बात तवातुर (मुसलसल श्रोत) से मालूम है फक
क़ाज़ी रसूलुल्लाह (सल्ल0) के ज़मािे से लेकर इस्तमबोल में नख़लाित के खाममें तक,
लोगों के दरनमयाि तमाम िै सले, र्ाहे मुसलमािों के बीर् थे या मुसलमािों और काफिरों
के दरनमयाि, शररयते मुतानहरा ही के मुतानबक़ करते रहे। वह अदालत, जो तमाम
खुसुमात, अनधकारों, जजा और आहवाले शनख्सया से मुतानल्लक़ िै सले करती थी, नसिच
एक ही अदालत होती थी। यह अदालत नसिच शररयते इस्लामी की रू से िै सले करती
थी। इस बारे में कोई एक ररवायत भी िहीं फक फकसी एक मसले का हल भी शरीअत के
नखलाि हुआ हो। ऐसी भी कोई ररवायत िहीं फक इस्तेमार (साम्राज्यवाद) के जेरे असर
शरई और निजामी अदालतों के अलग-अलग हो जािे से पहले आलमें इस्लाम में पाई
जािे वाली फकसी अदालत िे भी इस्लाम से हट कर फकसी ग़ैर-इस्लामी बुनियाद पर कोई
िै सला फदया हो। इसकी बेहतरीि और कवीतरीि शरई आदलतों के वह ररकाडच हैं, यहााँ
तक की कदीम दौर में यहूद व िसारा िा नसिच फिक्हे इस्लामी को पढ़ते थे, बनल्क इसमें
निज़ामुल इस्लाम - 76 -
तसिीि (सांपादि) व तालीि (लेखि) भी फकया करते थे, जैसा फक सलीम अलबाज़,
नजसिे “अल-मुजल्ला” की शरह नलखी है। यह उि ग़ैर मुनस्लमों में से है, नजन्होंिे आखरी
दौर में फिक्हे इस्लामी में तसिीि व तालीि का काम फकया। जहााँ तक इस बात का
सवाल है फक बाज़ ग़ैर इस्लामी क़वािीि को इस्लामी क़वािीि के हल्के में दानखल फकया
गया, तो इसका जवाब यह है फक इि क़वािीि को सीधे तौर पर दानखल िहीं फकया गया,
बनल्क इन्हें औलमा-ए-इस्लाम के उि ितवों की बुनियाद पर दानखल फकया गया, फक यह
अहकाम इस्लाम से अलग िहीं हैं। र्ुिााँर्े ‘‘क़ािूि अल जज़ाउल उस्मािी’’ 1275 नह०
बामुतानबक़ 1857 ई० में दानखल फकया गया। इस बुनियाद पर ‘‘क़ािूि हुक़ू क़ व
नतजारत’’ 1276 नह० बामुतानबक़ 1858 ई० में दानखल फकया गया।
1288 नह० बामुतानबक़ 1870 ई० में अदालतों को दो नहस्सो में तक़सीम फकया गया,
यािी शरई अदालतें और निजामी अदालतें। फिर 1295 नह० बमुतानबक़ 1877 ई० में
निजामी अदालतों की ततकील के नलए एक प्रोग्राम तैयार फकया गया। जब औलामा नसनवल
लॉ को ररयासत में दानखल कर देिे के हवाले से अपिे यहााँ कोई जवाज़ िा पा सके तो
1286 नह० में अलमुजल्ला को लेि देि के मुआमलात के नलये बतौर ए क़ािूि जारी फकया
गया और सूल ला को मांसूख (निरस्त) कर फदया गया। इि सब क़वािीि को इस हैनसयत
से वजा फकया गया फक इस्लाम इिकी इजाज़त देता है। फिर उस वक्त तक इि पर अमल
दर आमद िहीं फकया जा सकता जब तक फक उिके नलये बाकायदा ितवों के ज़ररये
इजाज़त िा हानसल कर ली गई हो और शेखउल इस्लाम इिकी रुखसत इजाज़त िा दे।
यह हक़ीक़त उि शाही िरामीि से पूरी तरह स्पष्ट हो जाती है जो इस नसलनसले में
जारी फकये गए थे। यह भी एक हक़ीक़त है फक अगरर्े इस्तेमार (साम्राज्यवाद) िे इस्लामी
इलाक़ो पर क़ब्ज़ा जमा कर 1918 ई० से इस्लामी इलाक़ो में लोगों के मुआमलात के
मुताअनल्लक शरीअते इस्लामी के बरनख़लाफ़ िै सले देिे शुरू कर फदये है, लेफकि वह
इस्लामी देश, नजिमें इस्तेमार अपिी िौजों के ज़रीये बराहे रास्त दानखल िहीं हुआ,
अगरर्े अपिे असर व िुिूज के ऐतबार से वहााँ भी दानखल हो र्ुका है, नजिमें अदालती
सतह पर आज भी िै सले इस्लाम के मुतानबक़ फकये जा रहे हैं। पस जजीरतुल अरब,
नहजाज़, िज्द, कु वैत और अिगानिस्ताि जैसे देशों में अदालती सतह पर आज 1383
नह० बामुतानबक़ 1955 ई० तक इस्लाम ही को िाफिज फकया जा रहा है और अदालती
दायरो में नसिच इस्लामी शरीअत के मुतानबक़ ही हुकू मत की जा रही है। इससे वाज़ेह
निज़ामुल इस्लाम - 77 -
होता है फक इस्लामी ररयासत के पूरे दौर में नसिच इस्लाम ही को िाफिज फकया गया और
फकसी नखलािे इस्लाम हुक्म या र्ीज़ को िाफिज िहीं फकया गया।
जहााँ तक शासक की तरि से इस्लाम के नििाज का तआल्लुक़ है तो यह पााँर् र्ीजों पर
बिा है :
(1) सामानजकता से सम्बनन्धत अहकामें शरइया,
(2) अथचव्यवस्था से सम्बनन्धत,
(3) नशक्षा से सम्बनन्धत,
(4) नवदेशी नसयासत से सम्बनन्धत,
(5) शासि प्रणाली से सम्बनन्धत ।
इि पााँर् र्ीजों को इस्लामी ररयासत की जानिब से िाफिज़ फकया जाता है।
(1) मुआशरती निज़ाम (सामानजक निज़ाम) में मदच और औरत के ताअल्लुकात और इि
ताअल्लुकात के ितीजे में जन्म लेिे वाले मुआमलात यािी शख्सी अहवाल का ताय्युि
फकया जाता है। सामानजक निज़ाम में इस्लामी अहकामात को अब तक साम्राज्यवादी
और काफिरािा हुकू मत होिे के बावुजूद िाफिज़ फकया जाता रहा और फकसी ग़ैर-इस्लामी
हुक्म को िाफिज़ िहीं फकया गया।
(2) जहााँ तक इनक्तसादी निज़ाम (अथचव्यवस्था) का ताअल्लुक है, तो इसके दो पहलू हैं :
(अ) लोगों की मुनतकलात को हल करिे के नलए ररयासत का आवाम से माल हानसल
करिा।
(ब) इस माल को खर्च करिे की कै फियत।
जहााँ तक दौलत को हानसल करिे की बात है तो इस्लामी ररयासत जमीिों और मवेनशयों
पर बतौरे इबादत ज़कात वुसूल करती है और उसे नसिच उि आठ असिाि (श्रेणीयों) पर
खर्च करती है नजिका कु रआि में नजक्र हुआ है। ररयासत अमवाले ज़कात को हुकू मती
मुआमलात र्लािे के नलए इस्तेमाल िहीं करती। ररयासत और उम्मत के मुआमलात
र्लािे के नलए ररयासत शरीयते इस्लामी की रूह से दूसरे तरीक़े से अम्वाल हानसल
करती है। ताहम इस्लामी ररयासत िे टैक्सों के नलए कोई और निज़ाम इनख्तयार िहीं
फकया था, बनल्क वह इस्लाम ही को िाफिज फकया करती थी। र्ुिााँर्े जमीिों पर नखराज
निज़ामुल इस्लाम - 78 -
(एक तरह का टेक्स) लगाती थी और उसे वसूल फकया करती थी या फिर ग़ैर-मुनस्लमों
से नजनज़या वसूल फकया करती थी। खाररजा (नवदेशी) और अांदरूिी व्यापार पर वह
उसकी निगरािी करिे की वजह से टैक्सेस हानसल करती थी बरहाल ररयासत जो भी
अम्वाल हानसल करती थी नसिच शररयते इस्लामी की रूह से हानसल करती थी।
जहााँ तक अम्वाल की तक़सीम का सवाल है तो ररयासत आनजज (असक्षम/लार्ार) के
नलए िाि व ििके का बन्दोबस्त करती थी। ‘‘सफिह’’ (बेसमझ) और ‘‘मुबनज़्ज़र’’ (जो
माल हराम पर खर्च करे ) पर हजर का क़ािूि िाफिज़ करती थी और उि पर वसी
(निगराि) मुकरच र करती थी। हर शहर में मुसाफिरों और हानजयों के नलये रास्ते पर ऐसी
जगह क़ायम की जाती, जहााँ पर िकीर, नमसकीि और मुसाफिर को खािा और ररहाइश
मुहय
ै ा फकये जाते थे आज तक बडे-बडे शहरों में उिके आसार मौजूद हैं। हानसले कलाम
यह है फक ररयासत की जानिब से जो भी माल खर्च होता था वह शरीअत के नखलाि
िहीं, बनल्क शरीअत के ऐि मुतानबक़ हुआ करता था। अगरर्े कोई कमी िज़र आती है
तो वह शरीअत की ग़ैर मोज़ूदगी से िहीं बनल्क उसकी नििाज में कोताही की वजह से
थी।
(3) रही तालीम की बात तो इसकी बुनियाद भी इस्लाम पर रखी गई थी, और इस्लामी
सक़ाित (सांस्कृ ती) ही तरीका-ऐ-तालीम की बुनियाद थी। ग़ैर-इस्लामी ताकत अख्ज
(प्राप्त) करिे का रुझाि, खास तौर पर जबफक वह इस्लाम से मुतािाफकज (नवपरीत) हो,
नबल्कु ल िहीं था। मदाररस (मदरसे) खोलिे में कोताही नसिच नखलाित ए उस्मानिया के
आखरी दौर में तमाम इस्लामी इलाकों में िज़र आती है। इसका कारण वह फिक्री
इिनहतात (वैर्ाररक पति/Intellectual downfall) था जो उस वक्त तक अपिी आखरी
हद को पहुाँर् र्ुका था। इसके अलावा बाकी तमाम दौर के बारे में तो यह बात बहुत
मशहूर है फक नसिच इस्लामी ररयासत ही औलमा और तानलबे इल्मों की आखों का तारा
थी दुनियााँ में इल्म को आम करिे में जानमया कु रतबा, बगदाद, दनमतक, स्कां दररया और
कानहरा का बहुत बडा फकरदार है।
(4) इस्लामी ररयासत की खाररजा नसयासत भी इस्लाम की बुनियाद पर आधाररत थी।
ररयासत दूसरी ररयासत के साथ तमाम सम्बांध इस्लामी असास (आधार/बुनियाद) पर
क़ायम करती थी और दूसरी ररयासतें भी इस ररयासत को एक इस्लामी ररयासत की
िज़र से देखती थीं। तमाम खाररजा ताअल्लुकात (नवदेशी सम्बन्धों) की बुनियाद इस्लामी
निज़ामुल इस्लाम - 79 -
असास और मुसलमािों की मसलेहत व िायदे पर क़ायम थी इस्लामी ररयासत की
खारज़ा नसयासत (नवदेशी राजिीनत) इस्लामी होिे के नलए उसकी आलमी शोहरत ही
कािी है जो इस वक्त उसके साथ खास थी, मजीद फकसी दलील की ज़रूरत िहीं।
(5) जहााँ तक निज़ामें हुक्मरािी (शासि प्रणाली) का तआल्लुक़ है तो यह इस्लामी
ररयासतों के ढााँर्ें में आठ अरकाि (members) शानमल होते है :
(1) ख़लीिा जो ररयासत का सरबराह होता है , (2) मुआनविे तिवीज़,
(3) मुआनविे तििीज़, (4) वाली,
(5) क़ाज़ी, (6) िौज,
(7) इन्तेजामी ढााँर्ा और (8) मजनलसे उम्मत।
यह ढााँर्ा इस्लामी ररयासत में मौजूद था। जब तक इस्तेमार काफिर िे 1342 नह०
बामुतानबक़ 1924 ई० में मुस्तिा कमाल के ज़ररये नख़लाित का खाममा िहीं फकया था।
इससे पहले मुसलमाि कभी भी बग़ैर ख़लीिा के िहीं रहे। जब एक ख़लीिा मर जाता
या माज़ूल (बखाचस्त) फकया जाता तो दूसरा ख़लीिा आ जाता, यहााँ तक फक आखरी दौर
तक, जब इनन्हतात (पति) उरूज पर था तब भी यही होता रहा। हक़ीक़त यह है फक जब
ख़लीिा मौजूद हो तो इस्लामी ररयासत भी वजूद में आ जाती है। क्योंफक इस्लामी
ररयासत दरअसल ख़लीिा से ही इबारत है। मुआवेिीि नसिच तििीज़ के नलए हुआ करते
थे यह वुज़रा (मांनत्रयों) की तरह िहीं होते अगरर्े अब्बानसयों के दौर में वुज़रा (मांत्री)
का लक़ब भी इस्तेमाल फकया गया। लेफकि यह हर सूरत में मुआवेिीि हुआ करते हैं।
जम्हूरी निज़ाम (लोकताांनत्रक व्यवस्था) में मांनत्रयों को जो इनख्तयार हानसल हैं, इन्हे यह
नबल्कु ल िहीं होते उिका काम नसिच मुआनवित (सहयोग) और तििीज़ (क़ािूि लागू
करिा) है। इनख्तयारात नसिच ख़लीिा के पास होते हैं।
वानलयों, काजजांयो और इन्तेजामी ढ़ााँर्े का जहााँ तक ताअल्लुक है तो जब तक नख़लाित
थी तो यह भी उसके साथ हर दौर में मौजूद थे, जब तक इस्तेमारी कु व्वतें (साम्राज्यवादी
ताक़तें) मुनस्लम इलाक़ो में दानखल िहीं हुई। बाकी रही इस्लामी िौज की बात, तो
नख़लाित की िौज वाक़ई एक इस्लामी िौज हुआ करती थी और पूरी दुनिया यह जािती
थी फक इस्लामी िौज कभी मगलूब िहीं होती मजनलसे उम्मत (शूरा) का जहााँ तक
ताअल्लुक है तो खुलािा-ए-रानशदीि के बाद इस पर कोई खास तवज्जो िहीं दी गई ।
निज़ामुल इस्लाम - 80 -
इसकी वजह यह थी फक शूरा इस्लामी निज़ामें हुक्मरािी के कायदो में से कोई क़ायदा
िहीं है। अगरर्े यह ररयासती ढ़ााँर्े में शानमल है और राइ (हाफकम) पर जो रे यत (जिता)
के अनधकार हैं, उिमें से एक हक़ यह भी है, लेफकि अगर कोई राय पर ख़लीिा अमल
िा करे तो यह उसकी कोताही ज़रूर है, ताहम उसकी हुकू मत इस्लामी हुकू मत
कहलाएगी। क्योंफक शूरा राय हानसल करिे के नलए होती है िा फक हुक्मरािी (शासि)
के नलए। जम्हूरी निज़ाम (लोकताांनत्रक व्यवस्था) में जिप्रनतनिधी का मामला इससे
नबल्कु ल अलग है। खुलासा ऐ कलाम यह है फक इस्लामी निज़ामें हुक्मरािी हमेंशा िाफिज़
रहा।
ख़लीिा के बैअत (समथचि/मत) के मसले में यह बात क़तई है फक इसमें निज़ामें नवरासत
का अमल दखल नबल्कु ल िहीं। यािी नवरासत ररयासत के अांदर कोई पायदार हुक्म िहीं
है, नजस पर निज़ामें हुक्मरािी के हवाले से अमल फकया जाऐ। यािी ररयासत की
सरबराही हानसल करिे का यह जररया िहीं था, जैसा फक आज कल बादशाही निज़ाम
में हो रहा है। ररयासत के नलए जो र्ीज़ पाएदार थी, वो बैअत थी, और यह कु छ दौर में
मुसलमािों से ली जाती थी और कु छ दौर में अहले हल ओ अक्द से। दौरे ज़वाल में यह
नसिच शेखुल इस्लाम से ली जाती थी। बहरहाल ख़लीिा को मुकरच र (नियुक्त) करिे का
जो तरीका हमेंशा से रहा है, वह बैअत का है। इस बारे में कोई एक ररवायत भी िहीं फक
बगैर बैअत के नसिच नवरासत से कभी कोई ख़लीिा बिा हो। हााँ! यह बात दुरूस्त है फक
बैअत लेिे का तरीका बाज़ दिा ग़लत इस्तेमाल हुआ हो। मसलि कभी ख़लीिा िे लोगों
से अपिी ही नज़न्दगी में अपिे बेटे, भाई या र्र्ा के बेटे या अपिे खािदाि के फकसी िदच
के नलए बैअत का ग़लत नििाज या इस्तेमाल फकया। लेफकि ख़लीिा की मौत के बाद िऐ
ख़लीिा की बैअत दोबारा ली जाती थी। इसका नवलायते एहद या नवरासत से कोई
ताअल्लुक िहीं। यह ऐसा ही है जैसा जम्हूरी निज़ाम (लोकताांनत्रक व्यवस्था) िे
इन्तेखाबात (र्ुिाव) का ग़लत इस्तेमाल होिा। नजसमें मजनलसे िुमाइां दागाि
(जिप्रनतनिधी) के नलए कोई शख्स धाांधली के ज़ररये भी र्ुिा जाऐ तो उसे र्यनित ही
कहा जाता है, िामज़दगी िहीं कहा जाता। अगरर्े इसमें वह लोग ही कामयाब हो जाएां
जो हुकू मत र्ाहते है। बहरहाल इस तमाम बहस से यह बात स्पष्ट हो जाती है और हमें
तस्लीम कर लेिा र्ानहए की तमाम अदवार (काल/दौर) में इस्लामी निज़ाम ही इस्लामी
निज़ामुल इस्लाम - 81 -
ररयासत में िाफिज़ रहा और फकसी भी दौर में फकसी ग़ैर-इस्लामी र्ीज़ को िाफिज िहीं
फकया गया।
निज़ामुल इस्लाम - 82 -
जहााँ तक ज़ानलमािा िु तूहात (नवजये) का ताल्लुक़ है तो हमें इल्म होिा र्ानहए फक ऐसी
िु तूहात तो िातेह (नवजेता) और मितूह (परानजत) और ग़ानलब और मगलूब के
दरनमयाि दूरी पैदा करती हैं। जरा इस मग़ररबी इस्तेमार (पनतर्मी साम्राज्यवाद) पर
निगाह डाले, नजसिे दसयों साल तक मशररक (पूरब) को अपिे र्ुगांल में नगरफ्तार फकये
रखा लेफकि फदलों की तब्दीली के नलहाज़ से वह अदिा दरजे की कामयाबी भी हानसल
िा कर सके । अगर आज गुमराह करिे वाली सक़ाित (सांस्कृ नत) का असर व िुिूज और
मग़ररबी एजेंटों का जब्र व आतांक िा होता जो की जल्द खमम होिें वाला है ,तो इस्लाम
की आइडीयोलाजी और निज़ाम का दौबारा नििाज़ आाँख झपकिे से ज़्यादा वक़ू पज़ीर
हो जाता ।
हम अपिी बात को दोहराते हुए कहते हैं फक इि क़ौमों व कबीलों को इस्लामी सााँर्े में
ढ़ालिे के नसलनसले में इस्लामी फिक्री फक़यादत को जो कामयाबी हुई वह बेिजीर
कामयाबी थी। यह क़ौमें व कबीले आज तक मुसलमाि र्ले आ रहे हैं। बावुजूद इसके फक
इस्तेमार (साम्राज्यवाद) की हांगामा आराइयााँ, उसकी खबासतें (गन्दी र्ालें) और उसका
मक्र-ओ-िरे ब अकाइद को नबगाडिे और अफ्कार (नवर्ारों) को मसमूम (दूनषत) करिे के
नलए जोर व शोर से जारी है। यह अवाम (जिता) और अकवाम (क़ौम) ता फक़यामत
उम्मते वानहदा और उम्मते मुसनलमा बि कर रहेंगे। जबसे इि क़ौमों व कबीलों िे इस्लाम
क़ु बूल फकया, उिमें से कोई एक नगरोह भी दायरा-ए-इस्लाम से निकल कर मुरतद िहीं
हुआ।
उन्दलुस के मुसलामािों की ‘‘मुहाफकम ए तितीश (निरक्षण अधीकारी)’’ के हाथों तबाही
व बरबादी उिके घरों को आग लगािा, और जल्लादो के हाथों उन्हे िानसयााँ देिा। इसी
तरह बुखारा (रूस), वस्ते एनशया (मध्य एनशया) और तुरफकस्ताि के मुसलमािों पर
लरज़ा देिे वाले मज़ानलम और मुसीबतों के बावुजूद इि क़ौमों का इस्लाम लािे और
उम्मते वानहदा में ढल जािे और अपिे अक़ीदे की सख्त नहिाज़त से इस फिक्री फक़यादत
की कामयाबी, और नििाजे इस्लाम में इस्लामी ररयासत की कामयाबी और कामरािी
का अांदाजा लगाया जा सकता है।
इस्लामी फिक्री फक़यादत की कामयाबी की दूसरी दलील यह है फक नमल्लते इस्लानमया
दुनिया भर में तहज़ीब, तमद्दुि, सक़ाित और साांइस में सब क़ौमों से आला व बाला
थी। इस्लामी ररयासत पूरी दुनिया में बारह सौ साल तक यािी छटी सदी इसवी से
निज़ामुल इस्लाम - 83 -
अठारवीं सदी के निस्ि (आधे) तक सबसे अजीम और कव्वीतर थी। यह ही ररयासत
तमाम दुनिया की आबो ताब की जानमि थी और तमाम दुनियााँ में इसी ररयासत का
सूरज र्मकता रहा। यह बात इस फक़यादत (लीडरशीप/िेतृमव) की कामयाबी की दलील
है और इस्लाम के निज़ाम और अकाइद के नििाज की कामयाबी की दलील है। लेफकि
जैसे ही इस्लामी ररयासत और उम्मते मुसनलमा इस्लामी फिक्री फक़यादत को आगे बढ़ािे
और दावते इस्लामी का िरीजा सर अांजाम देिे से दस्तबरदार हो गई, और इस्लाम को
समझािे और उसको िाफिज़ करिे में कोताही की मुरतफकब हुई, तो यह दुनिया की पस्त
तरीि क़ौम बि कर रह गई।
इसीनलए हम कहते है फक इस्लामी फिक्री फक़यादत ही सालेह फक़यादत (शुद्/िेक
लीडरशीप) है और नसिच यह ही इस पूरी दुनिया तक पहुाँर्ाई जाए, और इस फिक्री
फक़यादत को दुनिया के सामिे पेश करिे के नलए अलमबरदार पहले एक ररयासत वजूद
में लाए, तो आज भी जब इस्लामी ररयासत वजूद में आऐगी, इसको वैसी ही कामयाबी
हानसल हो सकती है।
इस्लाम अपिे अक़ीदे के साथ और उससे िू टिे वाला निज़ाम इां सािी फितरत (प्रकृ नत) के
मुआफिक (अिुसार) है। इसनलए फक इस्लाम इां साि को कोई मशीिी वजूद िहीं समझता,
जो फकसी िक्शे पर पाया जाता है और नजस पर फकसी निज़ाम को गनणत के नसद्दाांतो की
तरह, बग़ैर फकसी कमी बेसी के , िाफिज़ फकया जा सकता हो। बनल्क इां साि को, नजस पर
निज़ाम को िाफिज़ फकया जा रहा है, एक ऐसा इनज्तमाई वजूद समझिा र्ानहए, नजसके
अांदर कु व्वतों और खानसयतो का िक़च और तिावुत पाया जाता है। इसनलए एक पहलू से
यह नबल्कु ल तबई (प्राकृ नतक) है फक अगर इां सािो की कई क़दरे (मूल्य) एक सी हैं तो
दूसरी तरि वह सब मुकम्मल तौर एक जैसे भी िहीं हैं । लेफकि इस अम्र (बात) के
बावुजूद सबका सुकूि और इनममिाि की ज़माित (गारां टी) नमलिा ज़रूरी है। इस तरह
एक और पहलू से यह भी तबइ है और इस वक्त इस पहलू से बहस करिा दरकार है, फक
इस निज़ाम की तििीज़ (फक्रयानन्वत) के दौराि इसके बहुत से पहलूओं से नवनभन्ि प्रकार
के अिराद (लोग) इिनहराि (नवमुखता) भी इनख्तयार करें गे और वह इसका नवरोध
करिे लगेंगे। इसी तरह कु छ अिराद इस निज़ाम को क़ु बूल िहीं करें गे और कु छ अिराद
इस निज़ाम से मुाँह मोडेंगे। र्ुिााँर्े यह लाज़मी है फक मुआशरे के अांदर िु स्साक़, िु ज्जार,
कु फ्िार, मुतचद (दीि से फिर जािे वाले) , मुिाफिक (पाखांडी) और मुलनहद (िानस्तक)
निज़ामुल इस्लाम - 84 -
भी पाए जाएां। लेफकि मुआशरे का असल ऐतबार उसकी मजमुई हैनसयत से हुआ करता
है, फक मुआशरा िाम है अफ्कार, जज्बात, निज़ामें हयात और इां सािो का। फकसी मुआशरे
को नसिच उस वक्त इस्लामी मुआशरा कहा जा सकता है जब इसमें इस्लाम िाफिज़ हो,
इि तमाम र्ीज़ो में वह जानहर भी हो रहा हो।
इसकी दलील यह है फक फकसी इां साि के नलए भी उस तरह इस्लामी निज़ाम को िाफिज़
करिा मुमफकि िहीं है फक नजस तरह मुहम्मद (सल्ल0) िे उसे िाफिज़ फकया था। लेफकि
इसके बावुजूद हम देखते है फक आप (सल्ल0) के दौर में कु फ्िार भी मौज़ूद थे और मुलनहद
भी। मुिाफिक और िु स्साक़ भी पाए जाते थे और िु ज्जार और मुतचद भी लेफकि इसके
बावुजूद कोई शख्स यह नबल्कु ल िहीं कह सकता फक आप (सल्ल0) के दौर में कानमल
और मुकम्मल तौर पर इस्लामी निज़ाम का नििाज िहीं हुआ और यह फक वह मुआशरा
इस्लामी मुआशरा िहीं था। बात वही है फक इस्लाम को नजस इां साि पर िाफिज़ फकया
जाता है, वह एक इनज्तमाई वुजूद हुआ करता है, िा फक मशीिी वुजूद।
बहरहाल पूरी नमल्लते इस्लानमया पर ख्वाह वह अरब थी या अजम, नसिच और नसिच
इस्लाम ही को िाफिज़ फकया जाता रहा। नििाजे इस्लाम का यह अमल रसूल (सल्ल0)
की नहजरते मदीिा से लेकर मुनस्लम इलाक़ों पर इस्तेमार (साम्राज्यवाद) के गलबे
(प्रभुमव) तक जारी रहा, नजसिे इस्लामी निज़ाम की जगह सरमायादारािा निज़ाम को
जारी फकया। इस बुनियाद पर हम कह सकते है फक नहजरत के पहले साल से लेकर 1336
नह० बामुतानबक़ 1918 ई० तक अमली तौर पर नसिच इस्लाम ही िाफिज़ रहा। इस पूरे
अरसे में उम्मते मुनस्लमा िे इस्लामी निज़ाम के अलावा फकसी और र्ीज़ को िाफिज़ िहीं
फकया।
बावजूद यह फक मुसलमािों िे अरबी ज़बाि में अजिबी िलसिे , साइां स और मुख्तनलि
(नवनभन्ि) अज़िबी सकाितों (सांस्कृ तीयों) के तजुचमें फकये। लेफकि उन्होंिे फकसी क़ािूि
या फकसी भी उम्मत या क़ौम के फकसी कािूिी निज़ाम का नबल्कु ल अरबी में तजुचमा िहीं
फकया। अमली तौर पर और िा तदरीसी मक़ानसद( सबक़ हाांनसल करिे) के नलए। अलबत्ता
ये सही है की बहैनसयत एक इनज्तमाई निज़ाम के कु छ लोगों िे इस्लाम को सही तरीक़े
से लागू फकया और कु छ लोगों िे इसे लागू करिे में कमी व बेशी का मुजानहरा (प्रदशचि)
फकया । इसका इनन्हराि (निभचरता) इस्लामी ररयासत की क़ु व्वत व जोि या इस्लाम को
सही तौर पर समझिे या िा समझिे और इस्लामी फिक्री फक़यादत को आगे पहुाँर्ािे के
निज़ामुल इस्लाम - 85 -
नलए उम्मत के अांदर क़ु व्वत व ताकत या उसमें गिलत व सुस्ती की नबिा पर होता है।
यही वजह है फक बाज़ अदवार (दौर) में इस्लामी निज़ाम की तििीज में जब सुस्ती और
गलती का इरनतकाब फकया गया तो इस्लामी समाज इन्तेहाई तिज्जुल (पति) का नशकार
हो गया। लेफकि इस कमजोरी से तो कोई निज़ाम भी बर् िहीं सकता। क्योंफक निज़ाम
ख्वाह कोई भी हो, उसके नििाज के नलए इां सािो ही पर निभचर रहिा पडता है। र्ुिााँर्े
यह याद रखिा र्ानहए फक इस्लाम के नििाज में अगर कोताही हुई तो इसका मतलब
यह िहीं फक इस्लाम को िाफिज़ िहीं फकया गया। बनल्क इससे तो यह सानबत होता है
फक इस्लाम ही को िाफिज़ फकया गया। क्योंफक तििीज़ में असल भरोसा उि क़वािीि
और जीवि व्यवस्था का होता है, नजि पर अमल करिे का ररयासत हुक्म देती है। इस
नलहाज़ से ररयासत िे कोई भी क़ािूि या निज़ामें हयात जो इस्लाम से अज़िबी था
इनख्तयार िहीं फकया। इि तमाम दौर में कभी कभी नसिच इतिा हुआ फक बाज़ हाफकमों
िे इस्लामी निज़ाम के बाज़ अहकाम को ग़लत अांदाज में िाफिज़ फकया। इससे ज्यादा और
कु छ िहीं हुआ।
निज़ामुल इस्लाम - 86 -
(र्ुटुकलों) और लतीिा गो शायरों और अदीबों की खबरें जमा करिे के नलए तालीि
(प्रकानशत) की गई थी, या फकसी दौर की तारीख को उस दौर में नलखी जािे वाली कु तुबे
तसव्वुि और उि जैसी दूसरी फकताबें पढ़कर हानसल करें । यह तमाम र्ीज़ें पढ़कर फकसी
दौर पर यह हुक्म लगा दें फक यह फिस्क़ व िु जूर का दौर था या जुहद व तकवा का दौर
था। बनल्क हम पर लानज़म है फक हम मुआशरे को बहैनसयती मजमूई (सामूनहक रूप से)
लें और उसकी तदरीस एक आम तरीक़े से िा हो बनल्क एक जामें (नवस्तृत) तरीक़े से हो।
इस नसलनसले में यह बात भी बडी अहम है फक फकसी भी दौर में इस्लामी मुआशरे की
कोई बाजाब्ता तारीख िहीं नलखी गई। इस नसलनसले में जो कु छ नलखा गया है वह नसिच
बाज़ हाफकमों और हुक्मरािो की खबरे हैं और नजि लोगों िे यह खबरे तहरीर की (नलखी)
हैं, वह खुद भी कानबले ऐतमाद और मोतबर िहीं। र्ुिााँर्े यह सब फकसी शुमार और
कतार में िहीं हैं और उिके अकवाल (कथि) कानबले भरोसा और कानबले क़ु बूल िहीं है।
जब हम इस बुनियाद पर इस्लामी मुआशरे का अध्ययि करें , यािी हर पहलू से और खूब
तहक़ीक़ (छािबीि) से तो इसको तमाम मुआशरों से बेहतर पाते हैं। यह मुआशरा पहली,
दूसरी और तीसरी सदी नहजरी तक अपिी इस हालत पर क़ायम रहा और इसके बाद
बारवी सदी नह० तक उसकी यही हालत थी हत्ताफक दौरे उस्मानिया के आखरी दौर तक
मुआशरा इस्लामी ही था क्योंफक इस्लाम ही को इस्लामी ररयासत िे िाफिज़ कर रखा
था।
निज़ामुल इस्लाम - 87 -
उसे इां नग्लस्ताि की तारीख से हानसल िहीं करें गे बनल्क अांग्रेजी इल्मे क़ािूि का अध्ययि
करें गे। यह उसूल हर निज़ाम (व्यवस्था) और हर क़ािूि पर लागू होता है।
इस्लाम एक मब्दा (आइनडयोलाजी) है नजसका अपिा एक अक़ीदा और अपिा निज़ाम
है पस हमें इसकी मारे ित (पहर्ाि), इसको इनख्तयार करिे और इसके अहकाम का
इनस्तमांबात (deduce/प्राप्त करिे) करिे के नलए तारीख को नबल्कु ल मजदर (स्त्रोत)
िहीं बिािा र्ानहए।
इस्लाम के निज़ाम को पहर्ाििे या समझिे की बुनियाद 'इस्लामी'-फिक़्ह की फकताबे हैं
और इसके अहकाम के इनस्तमबात के नलए मसदर (स्त्रोत) ‘‘अफदल्ला तिसीनलय्या’’ हैं।
इसनलए इस्लामी निज़ाम के नलए तारीख को मसदर बिािा नबल्कु ल सही िहीं। 'मारित'
(समझ) हानसल करिे के नलए और िा इनस्तदलाल (दलील बिािे) के नलए। इस बुनियाद
पर हम कह सकते है फक यह दुरूस्त िहीं की अहकामें इस्लानमया के नलए हम उमर इब्ने
खत्ताब(रनज़0) या उमर इब्ने अब्दुल अजीज या हारूि अर रशीद की तारीख या उिके
दौर के हवाफदस (घटिाओं) या उिकी तारीख (इनतहास) के हवाले से तालीि शुदा (छपी
हुई) कु तब को माखज़ करार दे दें।
नलहाज़ा जब फकसी वाफकये (घटिा) के हवाले से उमर (रनज़0) की राय की इत्तेबा इस
तरह करिा र्ानहए फक गोया यह वह हुक्मे शरई है, नजसे उमर िे मुस्तनम्बत
(प्राप्त/Deduct) फकया और िाफिज फकया नबल्कु ल इसी तरह हम फकसी ऐसे हुक्मे शरई
की इत्तेबा करे नजसे इमाम अबु हिीिा (रह0) या इमाम शािई (रह0) या इमाम जािर
(रह0) या उि जैसे दूसरे अइम्मा फकराम िे मुस्तांनबत फकया हो। बहरहाल फकसी
ऐनतहानसक हादसे को कानबले इत्तेबा िहीं समझिा र्ानहए। र्ुिााँर्े यह समझिा र्ानहए
फक इस्लामी निज़ाम को इनख्तयार करिे या उसकी मारित हानसल करिे के नलए तारीख
का कोई वुजूद (अनस्तमव) िहीं। इसी तरह अगर यह मालूम करिा हो फक कोई निज़ाम
िाफिज़ फकया गया या िहीं, तो इसको मालूम करिे के नलए तारीख कोई बुनियाद िहीं
बनल्क इसको समझिे के नलए फिक़्ह ही को पडिा र्ानहए। इसनलए फक हर दौर की अपिी
कु छ िा कु छ मुनतकलात होती है और उि मुनतकलात का फकसी ि फकसी निज़ाम के ज़ररये
हल फकया जाता रहा है। र्ुिााँर्े अगर हमें फकसी ऐसे निज़ाम की समझ की ज़रूरत हो,
नजसके ज़ररये उस दौर की मुनतकलात का तदारूक (उपाय/हल) फकया जाता रहा हो, तो
उसके नलए हमें उस अहद के तारीखी हवाफदस (हादसों) की तरि रूजू िहीं करिा
निज़ामुल इस्लाम - 88 -
र्ानहए। क्योंफक इिमें तो नसिच खबरो को िक़ल फकया जाता है। बनल्क उसके नलए उस
निज़ाम यािी इस्लामी फिक़्ह की तरि रूजू करिा र्ानहए जो उस दौर में िाफिज़ रहा
हो।
जब हम इस िज़र से फकसी अहद को देखते हैं तो 'वाज़ेह' (स्पष्ट) िक़च मालूम होता है फक
मुसलमािों िे फकसी भी दौर में फकसी ग़ैर-इस्लामी निज़ाम को इनख्तयार फकया और िा
उन्होंिे अपिे तौर पर फकसी निज़ाम को घड कर इनख्तयार फकया बनल्क मुसलमािों िे
नजस र्ीज़ को भी इनख्तयार फकया वह शरई दलील से मुस्तिनबत (ली गई) थी हर दौर
के मुसलमािों फक यह तमन्ना थी फक इि फक फिक़्ह ‘अकवाले जइिा’ (कमज़ोर इस्तम्बात)
से पाक साि रहें हत्ता की फकसी मुज्तनहदे मुतलक का क़ौल भी जइि हो तो इस पर
अमल करिे से लोगों को रोका जाता था।
इसनलए तमाम आलमें इस्लामी में फिक्हे इस्लामी के अलावा फकसी कािूिी िस का वजूद
िहीं है। इस तमाम आलमें इस्लाम में जो कु छ भी हैं वह नसिच फिक्हे इस्लामी हैं। उम्मत
के अन्दर नसिच एक तरह की क़ािूिी िसूस का पाया जािा और इिके अलावा फकसी और
क़ािूिी 'िुसूस' का िा होिा इस बात पर दलालत करते हैं फक क़ािूि साजी में फिक्ही
िुसूस के अलावा फकसी और र्ीज़ को इस्तेमाल िहीं फकया जाता था।
हम तारीख को इस हवाले से पड सकते हैं फक हमें फकसी निज़ाम फक तििीज़ की कै फियत
का अन्दाजा हो सके । क्योंफक मुमफकि है तारीख में ऐसे नसयासी हवाफदस का नजक्र हो,
नजिसे निज़ाम के नििाज़ की क़ै फियत का अन्दाज़ा हो सके । लेफकि इसमें भी इन्तेहाइ
एहनतयात और तहक़ीक़ की ज़रूरत है फक हम नसिच मुनस्लम लेखकों को ही पडे। याद रहे
फक तारीख के तीि स्त्रोत हैं, 1.कु तुबे तारीख 2.आसार-ए-क़दीमा (प्रार्ीि अवशेष) और
3. ररवायत।
(1) कु तुबे तारीख को स्त्रोत के तौर पर इनख्तयार करिा जायज़ िहीं क्योंफक यह हर
ज़मािे में नसयासी हालात के तहत नलखी गई और इिमें झूठ की गुांजाईश भी होती है।
क्योंफक यह या तो फकसी के अहद में नलखी गई हैं या इिके मुखानलि (नवरोधी) के अहद
हैं। इसकी बेहतरीि नमसाल नमस्र के मुहम्मद अली पाशा के खािदाि की तारीख हैं जो
1952 ई. से पहले बडी शािदार थी और इसके बाद यह तारीख इन्तेहाई भयािक शक्ल
इनख्तयार कर गई इसी तरह आज के दौर के या माज़ी के नसयासी वाक़े आत की तारीख
निज़ामुल इस्लाम - 89 -
का भी यही हाल है। र्ुिाांर्े तारीख के वाक़े आत को मसदर बिािा नबल्कु ल जायज़ िहीं
ख्वाह वो उस दौर के लोगों की सवािेह उमरी (जीविी) ही क्यों िा हो
(2) जहााँ तक आसार-ए-क़दीमा का ताल्लुक़ है तो अगर ग़ैरजानिबदारी (निस्पक्षता) से
इिका मुताअला फकया जाए तो यह फकसी र्ीज़ के बारे में उसकी हकीकी तारीखी का
पता दे सकते हैं अगरर्े यह मुसलसल तारीख िहीं होती। इसके अलावा ये कु छ घटिाओं
के सबूत पर दलालत भी कर सकते हैं। मुसलमाि मुमानलक में पाए जािे वाले आसार-
ए-क़दीमा का मुताअला करिे से ख्वाह वो इिकी इमारतों फक शक्ल में हो या आलात
(औज़ार) या और कोई र्ीज़ हो नजन्हें तारीखी तौर पर मोतबर समझा जाता हो। इस
बात का यक़ीिी और क़तई सबूत नमलता है फक आलमें इस्लाम में इस्लामी अहकाम और
निज़ाम के अलावा फकसी दूसरे निज़ाम या अहकाम का कोई वजूद िहीं था। मुसलमािों
की नज़न्दगी और इिके तसरूिात नसिच और नसिच इस्लामी थे।
(3) जहााँ तक ररवायात का ताल्लुक़ है तो इस पर भी भरोसा फकया जा सकता है बशते
के ररवायात सही हों और इसमें उसी तरीक़े को इनख्तयार फकया गया हो नजस पर ररवायते
हदीस में अमल फकया गया है। तारीख को भी उसी असलूब पर नलखिा र्ानहए। यही
वजह है फक जब मुसलमािों िे तालीि (book publishing) का आगाज फकया तो वह
इस तरीक़ए ररवायत पर र्ले। र्ुिाांर्े पुरािी तारीख की फकताबें मसलि “तारीखुल
नतबरी”, “सीरत इब्ने नहशाम” और इि जैसी दूसरी तारीख की फकताबों को, इसी असलूब
पर तालीि फकया गया। र्ुिााँर्े मुसलमािों पर लानज़म है फक वह अपिे आपको और
अपिे बच्चों को इि फकताबों से तालीम दे, जो मुन्दजाच बाला तरीक़े से तेहरीर की गई हो।
उि कु तुब से बर्ें नजि का असलूब इि से मुख्तनलि हों। इसी तरह इस्लामी निज़ाम की
नििाज़ का जाइजा लेिे के नलए भी तारीख पर इन्हेसार (भरोसा) िा करें ।
मुन्दजाच बाला बहस से मालूम हुआ फक गुनजतता तमाम दौर में इस्लाम ही िाफिज़ था।
हत्ता के पहली जांग अजीम (first world war) के इख्तेताम (खाममें) पर जब नख़लाित
खमम हो गई तो ‘लाडच एलि बी’ िे जो बैतुल मुक़द्दस की ितह के दौराि नसपह सालार
था इस जांग के इख्तेताम का एलाि इि अल्िाज़ में फकया फक “आज सलीबी जांगों का
इख्तेताम हुआ” उस वक्त से अब तक नज़न्दगी के तमाम मसाइल और मामलात में काफिर
इस्तेमार हम पर अपिे सरमाया दारािा निज़ाम को िाफिज़ करता र्ला आ रहा है और
इस गल्बे को वह दाएमी (नस्थर) बिाता र्ला जा रहा है। नलहाज़ा इस िानसद और
निज़ामुल इस्लाम - 90 -
बौसीदा निज़ाम, नजस को इस्तेमार िे हमारे मुल्कों पर िाफिज़ फकया है, जड से उखाड
िे किे के अलावा और कोई र्ारा िहीं ताकी इस्लामी नज़न्दगी का िये नसरे से आगाज हो
सके ।
यह बहुत सतही िक़च है फक हम इस्लामी निज़ाम फक जगह कोई दूसरा इां तेजाम इख्तेयार
कर लें या ये के अक़ीदे के बग़ैर निज़ाम को िाफिज़ करिे से मसाइल का हल हो जायांगे
।बनल्क इसके नसवा कोई र्ारह िहीं फक पहले अक़ीदे को इख्तेयार फकया जाए फिर इससे
िु टिे वाले निज़ाम को िाफिज़ फकया जाए। इसी सूरत ही में उम्मत फक निजात मुमफकि
है।
यह सब कु छ इस उम्मत के बारे में है नजसका कोई मब्दा हुआ हो और नजस की ररयासत
इस मब्दे फक बुनियाद पर क़ायम हो। जहाां तक दूसरे नगरोह या अकवाम का ताअल्लुक
है तो इि पर इस्लाम को िाफिज़ करिे के नलए इस बात फक कोई कै द िहीं फक वह पहले
इस मब्दा को इख्तेयार करें फिर उि पर इस मब्दा का नििाज हो बनल्क इस मब्दा फक
हानमल और अलमबर दार उम्मत फकसी भी नगरे ाह या अक़वाम पर इस निज़ाम को
िाफिज़ कर सकती है नजसिे अगरर्े अभी तक इस मब्दा को इख्तेयार िा फकया हो
क्योंफक इसके नलए यह नििाज िई नज़न्दगी का सबब बि जाएगा और आनखर कार यही
बात इसे उस अफकदे को इख्तेयार करिे पर मजबूर कर देगी। नलहाज़ा नजस पर इस
निज़ाम को िाफिज़ फकया जा रहा हो उसे पहले उस मब्दा को इख्तेयार करिा ज़रूरी
िहीं हााँ जो इस निज़ाम को िाफिज़ कर रहा हो उसे पहले इस मब्दे को इख्तेयार करिा
पडेगा।
उस तरह क़ौनमयत को इशतेराकी निज़ाम के साथ इख्तेयार करिा इसनलए खतरिाक है
फक उसको इसकी माद्दी फिकर से जुदा करके इख्तेयार करिा मुमफकि िहीं क्योंफक ऐसा
करिे फक सूरत में िा तो वह असरकारक होगा और िा ितीजाखेज इससे इसकी माद्दी
फिकर के साथ भी इख्तेयार करिा मुमफकि िहीं क्योंफक यह एक ऐसी मििी फिकर है
जो फितरत इां सािी के मुखानलि है। यह इस बात का तकाज़ा करती है फक पहले इस्लामी
अक़ीदे को तकच फकया जाए फिर इसको इख्तेयार फकया जाए इसनलए इसकी कोई
गुन्जाइश और जवाज़ मौजूद िहीं की हम इशतराफकयत को इख्तेयार करें और साथ-साथ
इस्लाम के रूहािी पहलू को भी महिू ज रखें। इस सूरत में हम इस्लाम को इख्तेयार कर
सकें गे और िा इशतराफकयत को क्योंफक यह दोिों एक दूसरे के नवपरीत हैं। हमारे नलए
निज़ामुल इस्लाम - 91 -
यह भी जायज़ िहीं फक हम इस्लामी निज़ाम को तो ले लें और अक़ीदे को पशेपुतत डाल
दें, नजससे यह निज़ाम निकलता है, क्योंफक इस सूरत में यह निज़ाम मुांजनमद (जाम) और
रूह से खाली हो जायेगा बनल्क हमारे नलए ज़रूरी है फक हम मुकनम्मल इस्लाम को इस
के अक़ीदे और पूरे निज़ाम के साथ लें और जब हम इसकी दावत दूसरे को दें तो खुद
इसकी फिक्री कयादत (वैर्ाररक िेतृमव) के हानमल और अलमबरदार हों।
पस हमारे नलए निशातेसानिया का एक ही रास्ता है और वह यह फक हम इस्लामी
नज़न्दगी का िये नसरे से अगाज करें और इस्लामी नज़न्दगी का आगाज इस्लामी ररयासत
के बग़ैर मुमफकि िहीं यह नसिच इस सूरत में मुमफकि है फक हम पूरे के पूरे इस्लाम को
इख्तेयार करें जब हम इसके अक़ीदे को इख्तेयार करें गे तो इसके ितीजे में सब से बडा
अक़ीदा खुद बा खुद हल हो जायगा और इस पर नज़न्दगी के बारे में िुक़्ता-ए-िज़र को
मुरतफकज़ (के नन्रत) हो जायगा इस अक़ीदे से जो निज़ाम िु टते हैं इिकी असास
फकताबुल्लाह, सुन्नत-ए- रसूल (स0) और उसका सकािती दौलत इस्लामी सक़ाित है
फक नजसमें फिक़्ह, हदीस ,तिसीर और लुगत वगैरा पाए जाते हैं र्ुिााँर्े इसके नसवा
दूसरा रास्ता िहीं फक हम इस्लामी फिक्री कयादत के मुकमल तौर पर अलमबरदार बि
जाएां यािी इस्लाम की तरि दावत देिे से और हर जगह इस्लाम को दोबारा कानमल
िाफिज़ कर लें यहााँ तक फक जब फिक्री कयादत और उम्मत मजमुइ तौर पर और इसी
तरह इस्लामी ररयासत भी इसकी अलमबरदार बि जाए तब हम पूरी दुनिया के सामिे
इस्लाम की फिक्री कयादत को पेश करिे के अहल हो सकें गे।
निशाते सानिया का नसिच यही एक तरीका है यािी इस तरह के मुसलमाि इस्लामी
नज़न्दगी का अज़ सरे िो अगाज करिे के नलए इस्लामी फिक्री कयादत के पहले
अलमबरदार बिें और फिर इस्लामी ररयासत के जररए इस इस्लामी फिक्री कयादत को
सब इन्सानियत के सामिे पेश कर दें।
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4. इस्लामी दावत को पे श
करने की कैफियत
निज़ामुल इस्लाम - 93 -
करिे वाले मुसलमाि हो या ग़ैर-मुनस्लम । र्ुिााँर्े इसी बुनियाद पर लाज़मी है की
इस्लामी दावत का अलमबरदार बिा जाए।
निज़ामुल इस्लाम - 94 -
दावत पहु चाने मे लोगों की मुवाफिक़त और मुखाफलित का
फलहाज़ नही है - मब्दा पर इख्स्तक़ामत ज़रूरी
इस्लामी दावत को पेश करिा इस अम्र का तक़ाज़ा भी करता है फक मुकम्मल बालादस्ती
इस्लामी मब्दा को हानसल हो, इस बात को िज़र अांदाज़ करते हुए फक यह लोगों के
मुआफिक है या मुखानलि। लोगों की आदत के साथ र्लता है या उिका नवरोधी है, लोग
इस को क़ु बूल करते हैं या रद्द करते हैं और इसकी मुख़ालित करते हैं। पस एक दाई िा
तो क़ौम की र्ापलूसी करता है और िा ही ख़ुशामद से काम लेता है। वह अरबाबे
इनक़्तदार (सत्तापक्ष) की भी ररआयत िहीं करता। इसी तरह वह लोगों की आदत, उिकी
ररवायात की कोई परवाह करता है िा ही लोगों की क़ु बूनलयत या उि के इन्कार को
फकसी नगिती में लाता है। वह नसिच मब्दा को मज़बूती से थामता है। मब्दा के अलावा
फकसी दूसरी र्ीज़ को फकसी शुमार व कतार में समझे बग़ैर मब्दा ही को वज़ाहत से बयाि
करता है। र्ुिााँर्े दूसरे मबादी के हानमल अिराद को यह िहीं कहा जाएगा फक तुम अपिे
ही मब्दा पर क़ायम रहो बनल्क फकसी फक़स्म की जबरदस्ती के बग़ैर उन्हें अपिे मब्दा की
तरि दावत दी जाएगी ताफक वोह इस को क़ु बूल करें ; क्योंफक दावत इस बात का तक़ाज़ा
करती है फक इस मब्दा के अलावा कोई दूसरा मब्दा िा हो और बालादस्ती नसिच इस्लामी
मब्दा (Islamic ideology) को ही हानसल हो।
अल्लाह का सूरे तौबा में इरशाद है:
निज़ामुल इस्लाम - 95 -
रसूलुल्लाह صَلُاهللُعليهُوسلمने तने तन्हा तमाम मबादी को चेलेंज फकया
और अपने मब्दे पर क़ायम रहे
जब रसूलुल्लाह صَلُاهللُعليهُوسلمइां सानियत की तरि यह पैगाम लेकर आए तो आप ُصَل
اهللُعليهُوسلمिे नजस हक़ की तरि दावत दी, आप صَلُاهللُعليهُوسلمइस पर कानमल ईमाि
रखते थे। आप صَلُاهللُعليهُوسلمिे पूरी दुनिया को र्ेजलांज फकया और लोगों की आदात,
ररवायात, अदयाि और अक़ाइद, हुक्काम और ररआया का नलहाज़ फकये बग़ैर हर सुखच
और स्याह के नखलाि जांग का ऐलाि कर फदया। आप صَلُاهللُعليهُوسلمिे इस्लाम के पैगाम
के नसवा और फकसी र्ीज़ को क़ानबले तव्ज्जो िहीं समझा। आप صَلُاهللُعليهُوسلمिे दावत
का आगाज क़ु रै श के माबूदों के नज़क्र और उिके ऐब (बुराइयाां) नगिवािे से फकया। आप
صَلُاهللُعليهُوسلمिे उिके ऐतक़ाद और उिमें पाए जािे वाले बोदेपि को बेिक़ाब फकया
हालाांफक आप صَلُاهللُعليهُوسلمउस वक्त तिे-तिहा थे। वह इस्लाम नजस की तरि आप ُصَل
اهللُعليهُوسلمदावत दे रहे थे, उस पर मज़बूत और ग़ैर-मुतज़लज़ल (नस्थर) ईमाि के अलावा
आप صَلُاهللُعليهُوسلمके पास कोई साज़ो-समाि, मददगार या असलेहा (हनथयार) िा था।
आप صَلُاهللُعليهُوسلمिे अरबों की आदात और ररवायात की कोई परवाह िा की और िा
ही उिके अदयाि और अक़ाइद की। इस मुआमले में उिके साथ िा कोई िरमी बरती और
िा फकसी फकस्म की कोई ररआयत रवा रखी।
निज़ामुल इस्लाम - 96 -
इस्लाम की दावत काफमल अक़ीदा और मुकम्मल इस्लाम के
फनिाज़ की दावत हो
इस्लामी दावत को पेश करिे का तक़ाज़ा यह भी है फक इस्लाम के मुकम्मल नििाज़ को
लक्ष्य बिाया जाये और फकसी छोटे से छोटे हुक्म को भी कोई ररयायत िा दी जाए। दावत
का अलमबरदार इस मामले में फकसी फकस्म की िज़र-अांदाज़ी या सुस्ती और कमी या
ताख़ीर को क़ु बूल िा करे । वोह एक अम्र (हुक्म) को मुकम्मल तौर पर इनख्तयार करे और
उसको जल्द अज़ जल्द पूरा करे । वोह हक़ के मुआमले में फकसी की नसिाररश को क़ु बूल
िा करे । रसूलुल्लाह صَلُاهللُعليهُوسلمिे बिुसक़ीि के वफ्द (प्रनतनिनध मांण्डल) की इस
दरख्वास्त को हरनगज़ क़ु बूल िहीं फकया की उि के बुत लात को तीि साल तक तोडे बग़ैर
छोड फदया जाए। और िा ही इस्लाम लािे के नलये उिकी इस शतच को क़ु बूल फकया गया
की उन्हें िमाज़ माि होगी। आप صَلُاهللُعليهُوسلمिे उिके इस मुतालबे को भी क़ु बूल िहीं
फकया की लात को दो साल या कम-अज़-कम एक महीिे के नलये छोड फदया जाए बनल्क
आप صَلُاهللُعليهُوسلمिे इसका क़तई तौर पर इां कार िरमाया। इस इां कार में फकसी फक़स्म
का नलहाज़ या िरमी िा थी, बनल्क यह एक अटल िै सला था। क्योंफक इां साि या तो
ईमाि लाए या िा लाए और इसका ितीजा भी जन्नत या जहन्नम है। अलबत्ता रसूलुल्लाह
صَلُاهللُعليهُوسلمिे यह क़ु बूल िरमाया फक वोह बज़ाते खुद अपिे हाथों से बुत लात को
मुिहफदम (िि) िा करें और आप صَلُاهللُعليهُوسلمिे अबू सुियाि رضي اهلل عنهऔर मुग़ीरा
नबि शोबा رضي اهلل عنهको इस काम की नज़म्मेदारी दी। जी हााँ !
आप صَلُاهللُعليهُوسلمिे नसिच कानमल अकीदा और उसके मुकम्मल नििाज़ को क़ु बूल
िरमाया। अक़ीदा इसी बात का तक़ाज़ा करता है। अलबत्ता जहाां तक इसके नििाज़ के
नलये मुख़्तनलफ़ ज़राये और वसाइल का तआल्लुक़ तो रसूलुल्लाह صَلُاهللُعليهُوسلمिे इन्हें
इनख्तयार िरमाया क्योंफक इिका अक़ीदे की हक़ीक़त से कोई तआल्लुक़ िहीं। र्ुिााँर्े
इसीनलये इस्लाम की दावत के नलये मुकम्मल फिक्र की नहिाज़त लाज़मी है। और फिकराह
(idea) या तरीक़ा (method) में फकसी फकस्म की िज़र-अन्दाज़ी फकये बग़ैर इसके
मुकम्मल नििाज़ की नहिाज़त ज़रूरी है। अलबत्ता बक़दरे ज़रूरत ज़राये (माध्यम) के
इस्तेमाल में कोई िुक़साि िहीं।
निज़ामुल इस्लाम - 97 -
दावत से जु डा हु आ हर अमल एक मुतय्यन नसबुल-ऐन के फलये
होना चाफहये
इस्लाम की दावत को पेश करिे का तक़ाज़ा यह भी है फक इससे तआल्लुक़ रखिे बाला
हर अमल एक मुतय्यि (निनित) िसबुलऐि (उद्देतय) के नलए होिा र्ानहए। दावत देिे
वाला हमेंशा इस िसबुलऐि का तसव्वुर ज़हि में रखे और उसके हुसूल (प्रानि) के नलये
मुसलसल कोनशश में लगा रहे। मक़सद के हुसूल के नलये इस कोनशश में आराम का
तसव्वुर भी ज़हि में िा लाए। र्ुिााँर्े यही वजह है फक दावत देिे वाला अमल के बग़ैर
नसिच फिक्र पर राजी िहीं होता और िा उसे मदहोश करिे वाला ख़याली िलसिा
समझता है। इस तरह वह बे-मक़सद फिक्र और अमल पर राज़ी िहीं होता है और िा वह
इस दावत को कोल्हू के बैल की गर्दचश के मानिन्द समझता है, जो िा-उम्मीदी पर खमम
होती है। बनल्क वोह फिक्रो अमल के इनम्तज़ाज के ज़ररये एक मुतय्यि मक़सद को अमली
तौर पर हानसल करिे और उसे आलमें वजूद में लािे की कोनशश करता है।
र्ुिााँर्े रसूलुल्लाह صىل اهلل عليه وسلمिे मक्का में इस्लाम की फिक्री फक़यादत को पेश फकया,
यहााँ तक फक आप صىل اهلل عليه وسلمसमझ गए फक मक्के का मुआशरा इस्लाम को एक
निज़ामें हयात के तौर पर क़ु बूल करिे के नलये तैयार िहीं। र्ुिााँर्े आप صىل اهلل عليه وسلم
िे फिर मदीिे के मुआशरे को तैयार िरमाया, वहााँ एक इस्लामी ररयासत क़ायम की और
इस्लाम को िाफिज़ फकया। उसके बाद इस दावत को दूसरों के सामिे पेश फकया। फिर
आप िे अपिी उम्मत को तैयार िरमाया ताफक वोह आप के बाद इस दावत की
अलमबरदार बिे और आप صىل اهلل عليه وسلمके तय करदा रास्ते पर र्ले।
निज़ामुल इस्लाम - 98 -
िाफिज़ करे और पूरी दुनिया तक इस्लाम के पैगाम को ले जाए। यूां यह दावत उम्मत के
अांदर इस्लामी नज़न्दगी की फिर से शुरूआत करिे की दावत से ररयासत की जानिब से
दुनिया के सामिे इस्लामी दावत को पेश करिे की तरि मुन्तफक़ल (transfer) हो जाती
है और आलमें इस्लाम में अन्दरूिी दावत से आलमी दावत की तरि मुन्तफक़ल हो जाती
है।
﴾ب َ
ََّ ب َُو َت
ٍ ﴿ َت َبَّ ْت َُي َداُأ ِبُل ََه
“अबू लहब के दोिाां हाथ तबाह हो जाएां (टू ट जाएां)”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे अल-मसद, आयत:1)
उसी वक्त आप صىل اهلل عليه وسلمइि आयात फक भी नतलावत िरमाया करते थे:
निज़ामुल इस्लाम - 99 -
ُونُ۞ َُوإِ َُذا ِ ي ُ۞ُالََّ ِذي َنُإِ َذاُا ْك َتالواُ ُعَ ََلُال َن
ُ َ َّاسُ َي ْس َت ْوف َ ﴿ َو ْي ٌلُلِل ْم َط ِ َّف ِف
﴾ُون ر س ِ خ
ْ ُي م وه ن ز ُو و َ ك َالوهمُأ
َ ْ َ َ ْ ْ
“िाप तौल में कमी करिे वालों के नलये हलाकत हो, जब वोह लोगों से लेते है
तो पूरा िाप लेते हैं और जब उन्हें तौल कर देते हैं तो कम देते है।”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे मुतनफ्ििीि, आयत:1-3)
आप صىل اهلل عليه وسلمयह भी िरमाया करते थे :
ُِ ََّ واُبأ َ ْم َوا ُلِك ْم َُوأ َ ْنف ِسك ْم ُِِفُ َس ِبي ِل
﴾ُُاَلل ِ َاالُو َجا ِهد ََُّ ً﴿ُِا ْن ِفرواُ ِخفَا ف
َ اُوثِق
“निकलो नजहाद के मैदाि में ख्वाह (तुम्हारी तबीयत में) हलकापि हो या
भारीपि (दोिों हालतों में निकलो) और अल्लाह के रास्ते में अपिे अम्वाल और
अपिी जािों से नजहाद करो।”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे अत-तौबा, आयत:41)
َ ﴿ َك ْيُالُ َيك
َ ْ ونُدو لَ ًةُ َب
﴾يُاأل ْغ ِن َيا ِءُ ِم ْنك ْم
“ताफक दौलत नसिच तुम्हारे मालदारों के बीर् गर्दचश िा करती रहे।”
(तजुचमा मआिीऐ क़ु रआिे करीम, सूरे अल-हशर, आयत: 7)
आप صىل اهلل عليه وسلمइि आयत की नतलावत िरमाया करते थे :
इ स्लाम ही वोह दीि है जो अल्लाह तआला िे सय्यदिा मुहम्मद صىل اهلل عليه وسلم
पर इसनलये िानज़ल िरमाया फक इसके ज़ररये उि तआल्लुक़ात को मुिज्ज़म
फकया जाए, जो इां साि के अपिे ख़ानलक़, अपिे िफ़्स और दूसरे इां सािो के साथ
है। इां सािो का अपिे ख़ानलक़ के साथ तआल्लुक़ अकाइद और इबादात पर मुततनमल
(आधाररत) है। और अपिे िफ्स के साथ तआल्लुक़ अखलाक, खािे पीिे और नलबास से
मुतानल्लक़ है। दूसरे इां सािो के साथ उसके ताल्लुक़ मुआमलात और उक़बात
(punishments/सजाओं ) पर मुततनमल है। इां साि का अपिे ख़ानलक़ के साथ तआल्लुक़
अकाइद और इबादत पर आधाररत है और अपिे िफ्स के साथ तआल्लुक़ मुआमलात और
उकू बात पर आधाररत है।
बां
दो के अिआल से मुतानल्लक़ शारे (legislator) के नखताब को हुक्मे शरई कहते
है। यह नखताब कभी क़तई अस्सबूत (definitive in evidence) होता है जैसे
क़ु रआि करीम और हदीसे मुतवानतर या ज़न्नी उस्सबूत (speculative in
evidence) जैसे ग़ैर-मुतवानतर हदीसें। अगर यह नखताब क़तई (definitive) हो तो
देखा जाऐगा की यह क़तई उद दलाला (definitive in meaning) भी है या िहीं। अगर
यह क़तई उद दलाला भी हो तो इसमें मौजूद हुक्म क़तई हुक्म होगा।
7.2 क़तई हु क्म मो दो राय नही होती यानी इख्ज्तहाद नहीं फकया
जाता
मसलि िजच िमाज़ों की तमाम रकअतें, क्योंफक यह मुतवानतर हदीसो के ज़ररये मिक़ू ल
है। इसी तरह सूद की हुरमत, र्ोर का हाथ काटिा, जािी को सांगसार करिा, यह सब
क़तई हुक्म है। इिका दुरुस्त होिा यक़ीिी है। इिमें एक क़तई राय के नसवा कोई दूसरी
राय है ही िहीं।
र सूलुल्लाह صىل اهلل عليه وسلمिे जो अिआल सर अांजाम फदये उि की दो फक़स्में हैं
1: नजनबल्ली (instinctive या फितरी) अिआल, 2: ग़ैर नजनबल्ली अिआल।
जहााँ तक नजनबल्ली अिआल जैसे उठिा, बैठिा, खािा, पीिा वग़ैरा तो इि
अिआल के आप صىل اهلل عليه وسلمऔर उम्मत के नलये मुबाह होिे में फकसी को इनख्तलाि
िहीं। यह ही वजह है फक यह अिआल मन्दूबात में दानखल िहीं।
जहााँ तक ग़ैर नजनबल्ली अिआल का ताल्लुक़ है तो यह या तो रसूल صىل اهلل عليه وسلمके
साथ खास होंगे यािी यह फकसी दूसरे के नलये िहीं होंगे, और या फिर यह अिआल आप
صىل اهلل عليه وسلمके साथ मख़सूस िहीं होंगे। अगर यह अिआल आप صىل اهلل عليه وسلمके
साथ मख़सूस हों, जैसे सोमें-नवसाल (फदि रात रोजा रखिा) का आप صىل اهلل عليه وسلمके
नलये मुबाह होिा या र्ार से ज्यादा औरतों से आप صىل اهلل عليه وسلمका निकाह का
जायज़ होिा वग़ैरा, तो यह अिआल आप صىل اهلل عليه وسلمकी ख़ुसूनसयात में से हैं। इि
अिआल का करिा हमारे नलये जायज़ िहीं। इि अिआल का आप صىل اهلل عليه وسلمके
साथ मख़सूस होिा इज्माऐ सहाबा (रनज़अल्लाहो अन्हुमा) से सानबत है। नलहाज़ा इि
अिआल को बतौरे उसवा (िमूिा) इनख्तयार करिा जायज़ िहीं।
“सुल्ताि िये मसाइल के नलये बक़दरे ज़रूरत िया हल तलाश करता है”.
“इां सािो के तआल्लुक़ात के बारे में क़वाइद (नियमों) का वोह मजमुआ (समूह),
नजि की पैरवी करिे पर हुक्मराि लोगों को मजबूर कर दे।”
फकसी भी हुकू मत के बुनियादी क़ािूि के नलये ‘दस्तूर’ का लफ्ज़ इस्तेमाल फकया जाता है।
दस्तूर की बुनियाद पर वुजूद में आिे वाले निज़ाम से निकलिे वाले क़ािूि (अहकामात)
पर भी लफ्ज़ क़ािूि का इतलाक़ होता है। दस्तूर की तारीि यूां की गई है :
“वह क़ािूि जो ररयासत और ररयासत के निज़ामें हुक्मरािी की शक्ल व सूरत
मुतय्यि (निधाचररत) करे , और इिमें मौजूद हर अथोररटी की हुदूद और
नज़म्मेदाररयों को स्पि करे ।” या “दस्तूर वोह क़ािूि है जो अवामी अथोररटी
यािी हुकू मत को मुिज्ज़म करता है और हुकू मत के साथ अिराद के तआल्लुक़ात
की हुदूद मुतय्यि करता है, अिराद पर हुकू मत के हुक़ू क़ और नज़म्मेदारी, और
इस तरह हुकू मत पर अिराद के हुक़ू क़ और नज़म्मेदारी की वज़ाहत
(निशािदेही) करता है।”
दस्तूर मुख़्तनलफ़ तरीक़ो से वजूद में आये। कु छ दस्तूर क़वािीि की शक्ल में मुरनत्तब फकए
गए, बाअज़ दसातीर (दस्तूरों) िे आदात और रस्मो ररवाज से जन्म नलया है, जैसा के
बरतानिया का दस्तूर। इस तरह बाअज़ दस्तूर ऐसे होते है, नजन्हें कौमी असेम्बली की
वोह कमेंटी वज़ा करती है नजसको उस वक्त यह अथोररटी हानसल होती है। वही दस्तूर
वज़ा करती है और वही इस दस्तूर में तब्दीली के तरीक़े कार का ताय्युि करती है। फिर
यह कमेंटी खमम हो जाती है और उसकी जगह वोह अथोररटी ले लेती है जो इस दस्तूर
13.3 ख़लीिा
दिा िां. 24: ख़लीिा ही इनख्तयार और शरीअत के नििाज़ में उम्मत का िुमाइन्दा होता
है।
दिा िां. 25:नखलाित आपसी रज़ामांदी व इनख्तयार का अक्द (सन्धी) है। नलहाज़ा फकसी
को नखलाित क़ु बूल करिे या ख़लीिा के इां तेखाब (र्यि) पर मजबूर िहीं फकया जाऐगा।
दिा िां. 26: हर आफक़ल और बानलग़ मुसलमाि को, र्ाहे वोह मदच हो या औरत, ख़लीिा
के र्ुिाव में नहस्सा लेिे और ख़लीिा की बैत करिे का हक़ हानसल है, लेफकि ग़ैर-मुनस्लमों
को र्ुिाव या ख़लीिा की बैअत का कोई हक़ हानसल िहीं।
दिा िां. 27: नजि लोगों की बैअत से नखलाित की स्थापिा होती है अगर वोह लोग
बतौरे खलीिा फकसी एक शख्स की बैअत करें तो बाकी लोगों की तरि से दी जािे वाली
बैअत बैअते इताअत होगी, िा फक बैअते इिअक़ाद (नखलाित की स्थापिा की बैत)।
र्ुिााँर्े नजस शख्स के अांदर सरकशी के इमकािात (लक्षण) िज़र आये और वोह
मुसलमािो की एकता को तोडिे की कोनशश करे तो उसे बैअत पर मजबूर फकया जाऐगा।
दिा िां. 34: खलीिा के तक़रुच र का तरीक़ा बैअत है। खलीिा की तक़रुच री और उसे बैत
देिे का अमली तरीक़ा यह है:
(1) महकमातुल मज़ानलम (Court of unjust acts) मांसबे नखलाित के खाली होिे का
ऐलाि करे गा।
(2) उबूरी (अस्थाई) अमीर अपिी नज़म्मेदारी सम्भालेगा और िौरी तौर पर
िामज़दनगयों के खुलिे का ऐलाि करे गा
(3) वोह िामज़दनगया क़ु बूल फक जाऐगीं जो इिेक़ादे नखलाित की शराइत पर पूरी
उतरती हो। इस के अलावा पेश की जािे वाली िामज़दनगयाां महकमातुल मज़ानलम के
िै सले फक नबिा पर मुस्तरद (रद्द) कर दी जाऐगीं.
(4) वोह उम्मीदवार नजि की दरखव्वास्तों को महकमातुल मज़ानलम िे क़ु बूल फकया,
मजनलसे उम्मत (ummah council) के मुसलमाि रुकि (member) इि उम्मीद्वारों
की िे हररस्त को दो मतचबा छटिी करे गें। पहले इनख्तसार (छटिी) में वोह अनक्सररयती
दिा िां. 49: ख़लीिा अहकामात की तििीज़ के नलये एक मुआनवि मुकरच र करे गा इसका
काम इां तेजामी उमूर से मुतानल्लक़ होता है और इस का काम हुक्मरािी करिा िहीं होता।
इसके दफ्तर का काम ख़लीिा की तरि से दाखली (आांतररक) और खाररजा (बाहरी)
मुआमलात से मुतानल्लक़ जारी होिे वाले अहकामात को िाफिज़ करिा है और इि से
पैग़ामात को खलीिा तक पहुांर्ािा है। गोया मुआनविे तििीज़ ख़लीिा और दूसरों के
बीर् माध्यम का काम करता है। वोह ख़लीिा की तरि से पैगाम लाता है और ख़लीिा
दिा िां. 50: मुआनविे तििीज़ मुसलमाि होता है क्याफक वोह ख़लीिा के क़रीबी
लोगों में से होता है।
दिा िां. 51: मुआनविे तििीज़ सीधे तौर पर ख़लीिा के साथ होता है नजस तरह के
मुआनविे तिवीज़ होता है। यह नसिच तििीज़ में सहायक होता है हुक्मरािी में िहीं।
दिा िां. 61: युद् नवभाग (शोबाऐ हबच), मुसल्लेह अिवाज (हनथयार बन्द िौज), पुनलस,
असबाब व ज़राये, िौजी मुनहम्मात और लडाई के साज़ो सामाि बग़ैराह पर नज़म्मेदार
होता है। इसी तरह असकरी (िौजी) कॉनलज, कमीशि, िौज की इस्लामी तरनबयत,
और असकरी तरनबयत और जांग या जांगी तैयारी से मुतानल्लक़ हर काम की नज़म्मेदारी
भी युद् नवभाग, के नज़म्मे है।
दिा िां. 62: नजहाद मुसलमािों पर िज़च है। र्ुिाांर्े िौजी तरनबयत लाज़मी है। नलहाज़ा
हर मुसलमाि मदच जब पन्राह साल की उम्र को पहुांर् जाये तो उस पर नजहाद की तैयारी
के नलये िौजी तरनबयत हानसल करिा िज़च है। जहाां तक िौज में भरती होिे का ताल्लुक़
है तो यह िज़े फकिाया है।
दिा िां. 63: िौज की दो फक़स्में हैं:
दिा िां. 112: बुनियादी तौर पर औरत मााँ है और घर की नज़म्मेदार है। वह एक ऐसी
आबरू (अस्मत) है, नजसकी नहिाज़त िज़च है।
दिा िां. 113: बुनियादी उसूल यह है के मदच और औरत अलग-अलग हों और वोह फकसी
ऐसी ज़रूरत के नसवा इकठ्ठे हो सकते हैं नजस की शरीअत िे इजाज़त दी हो, मसलि
नतजारत के नलये या नजस शरई ज़रूरत के नलये इजनतमाअ िागुज़ीर (लाज़मी) हो,
मसलि हज।
दिा िां. 114: औरत के भी वही हुक़ू क़ हैं जो मदच के है, और औरत पर भी वही िराइज़
हैं जो मदच पर हैं। नसवाय उिके जो इस्लाम िे उसके साथ खास फकये है। इसी तरह मदच के
भी कु छ खास िराइज़ हैं जो शरई दलाइल से सानबत है। र्ुिाांर्े औरत को नतजारत, कृ नष
और उद्योग का हक़ हाांनसल है। वो ऊकू द (contracts/समझोते) और मुआमलात की
निगरािी कर सकती है। उसे हर फकस्म की सांपनत्त रखिे का भी हक़ हानसल हैं। वह अपिी
दौलत को खुद या फकसी के ज़ररये तरक्क़ी दे सकती है। नज़न्दगी के तमाम मुआमलात
(मसाइल) को खुद बराहेरास्त निपटा सकती है।
दिा िां. 115: सरकारी िौकररयों पर औरत की नियुनक्त जायज़ है। महकमातुल मज़ानलम
को छोड कर अदनलया की बाकी नजम्मेदाररयाां निभािा भी उसके नलये जायज़ है। औरत
मजनलसे उम्मत के नलये अराकीि (सदस्य) र्ुि सकती है और खुद भी उस की सदस्य बि
सकती है। इसी तरह ख़लीिा के र्ुिाव और उसकी बैअत में भी शरीक हो सकती है।
दिा िां. 116: औरत हुक्मराि िहीं बि सकती। र्ुिाांर्े वो खलीिा, महकमातुल
मज़ानलम का क़ाज़ी, वाली, आनमल और कोई ऐसा ओहदा कबूल िहीं कर सकती नजस
पर हुक्मरािी का इत्तलाक़ होता हो। इसी तरह औरत के नलये क़ाज़ी अलक़ु ज़ात बििा
और अमीरे नजहाद बििा जायज़ िहीं।
दिा िां. 117: औरत की नज़न्दगी दो दायरों में है: सावचजनिक जीवि (public life) और
निजी जीवि (private life)। र्ुिाांर्े सावचजनिक जीवि में वह औरतों, महरम और ग़ैर-
महरमों के साथ नज़न्दगी गुजारती है। लेफकि उस की शतच ये है से इस सूरत में उस का
दिा िम्बर 132: नमनल्कयत में तसरुच ि (इनख्तयार) शरे ह की इजाज़त पर निभचर है।
ख्वाह यह तसरुच ि माल को खर्च करिे से मुताअनल्लक़ हो या नमनल्कयत में इज़ािा
(बडोतरी) करिे के हवाले से। र्ुिाांर्े इसराि (िू जूल खर्ी), िमूदो-िुमाइश (फदखावे की
अलामत), कन्जूसी, सरमायादारािा कम्पनियााँ, ताऊिी अन्जुमिें (कोआपरे रटव
सोसायटीज़) और तमाम नख़लािे शरअ मुआमलात ममिूअ (prohibited) हैं। इसी तरह
सूद, गबिे िानहश, ठगी, ज़खीरा-अन्दोज़ी, जुआ और इस जैसी सभी फदगर र्ीज़े
नमनल्कयत के तसरुच ि के नलय ममिूअ है।
दिा िम्बर 133: उशरी ज़मीि वह है जहााँ के रहिे वाले (मानलक) इस ज़मीि पर रहते
हुये ईमाि लायें। मसलि जज़ीराए अरब की सरज़मीि। नखराजी ज़मीि अरब को छोड
कर हर वो ज़मीि है, जो जांग या सुलह के ज़ररये ितह की गयी हो। उशरी ज़मीि और
उस से हानसल होिे वाली मििअत दोिों अिराद की नमनल्कयत होते है। नखराजी ज़मीि
ररयासत की नमनल्कयत होती है और इसका िायदा अिराद की नमनल्कयत होता है। शरई
उक़ू द (समझोतों/contracts) के तहत हर िदच को उशरी ज़मीि और नखराजी ज़मीि की
ُلش ْر َكُلَظل ٌْم ََّ َ ﴿وإِ ْذُقَا َلُلق َْمانُال ْب ِنه َُِوه َو َُي ِعظه َُياُب
ََّ نُالُت ْش ِر ْك ُِب
َّ ِ اَللُِإِ ََّنُا َ
ُُِح َمل َ ْتهُأ َّمه َُو ْه ًناُع َََل َُو ْه ٍن َُُو ِف َصاله ُِِف َ ان ُِب َوالِ َد ْيه َ ۞ُو َو ََّص ْي َناُاإل ْن َس َ يم ٌ َع ِظ
ُاكُعََلُأ َ ْنُت ْش ِر َك َ ُجا َه َد َ ُ۞ُوإِ ْن
َ ِي ص
ِ ْم
َ ل ُاَّ ل
َ ِ َ ُإ ك
َ ي
ْ دَ ِ ل ا و ِ ل ُو
َ َ ِ ْ ُل ر ك ش ْ ُا ن ِ
َ عا ميُأ
ِ َْ َ
ُاُوا َتَّ ِب ْع
َ ًُالد ْن َياُ َم ْعروف َّ اُِف ِ اُو َصا ِح ْبه َم َ َك ُِب ِه ُعِل ٌْم ُفَالُت ِط ْعه َم َ ِب ُ َماُلَ ْي َس ُل
َ سبي َلُ َمنُأ
ُن ََّ َ ونُ۞ُ َياُب
َ َْ ْ ل م ع ت
َ ُم ت ن
ْ ُكا م ُب م ك ئ ب ن
َ أ َ ف ُم
َ ِ ْ َِّ ْ ِ ْ َ ََّ ِ ََّ ََّ ِ َ ْ ك ع ج ر م ُل َ ُإ م ُث لَ ُإاب ن
َ ِ َ
ُاتُأ َ ْو ُِِفِ او م ُالس
َّ
َ َ َ ِ ْ َ َ ِ ْ ُِف و َ إ َنَّهاُإنُ َتكُ ِمثْقَا َلُحبَّ ٍةُ ِمنُ َخرد ٍلُفَ َتكنُِفُص ْخر ٍةُأ
َ ْ ْ َ َ ْ ِ َ ِ
ُُالصالةَ َُوأْم ْر ُ ِ ن ُأ َ ِق ْ األر ِض ُيأ
ََّ م ََّ َ ِي ُ۞ ُ َيا ُب ٌ ِ ب خ َ ُ يف ٌ ط
ِ َ لُ ُاَلل
َّ
ََ َ ِ َ َِ َن
َّ ُإ ُاَلل
َّ ا ه ُب ت ِ ْ
َ
ُك ُ ِم ْن ُ َع ْز ِم َ ِك ُإِ ََّن ُ َذ ل َ ْب ُع َََل ُ َما ُأ َصا َب ْ ِ اص ْ ك ِر َُو َ وف َُوا ْن َه ُ َع ِن ُالْم ْن ِ ِبا ل َْم ْعر
ُاألر ِض ُ َُه ْو ًنا َُوإِ َذا ُ َخا َط َهْبُ ْ ون ُع َََل﴿و ِع َباد ُال ََّر ْح َم ِن ُالََّ ِذي َن ُ َي ْمش َ
َ
ون ُقَالوا َُسال ًما ُ۞ َُوالََّ ِذي َن ُ َي ِبيت َ
ون ُل َُِر َِّب ِه ْم ُس ََّج ًدا َُو ِق َيا ًما ُ۞ُ الْ َجا ِهل َ
َان ُغ ََرا ًماُ۞ُ ُج َُه َن ََّم ُإِ ََّن ُ َعذَ ا َب َهاُك َ ف ُ َع َنَّاُعَذَ َ
اب َ َوالََّ ِذي َن ُ َيقول َ
ون َُر َبَّ َناُا ْص ِر ْ
إِ َنَّ َها َُسا َء ْتُم ْس َتق ً ََّرا َُومقَا ًماُ۞ َُوالََّ ِذي َنُإِ َُذاُأ َ ْنفَقواُل َْمُي ْس ِرفوا َُو ل َْمُ َي ُْقَتواُ
ُاَللُِإِل ًَهاُآ َخ َر َُوالُ َُيقْتلُ َ
ونُ ونُ َُم َع ََّكُق ََوا ًماُ۞ َوالََّ ِذي َنُالُ َي ْدع َ يُ َذ لِ ََانُ َب ْ َ
َوك َ
ك ُ َيل ْ َق ُأ َ َُثا ًماُ
ون َُو َم ْن ُ َيف َْع ْل ُ َذ لِ َ الُبا لْ َح َِّق َُوالُ َي ُْزن َ ال َنَّ ْف َس ُالََّ ِِت ُ َح ََّر َم ََّ
ُاَلل ُإِ ِ
ابُد ُ ِفي ِه ُم َها ًناُ۞ُإِالُ َم ْن ُ َت َ ضا َع ْف ُلَه ُال َْعذَ اب َُي ْو َم ُالْ ِق َيا َم ِة َُو َي ْخل ْ ُ ۞ُ ي َ
َانُا َََّللُ
ات َُوك َ
ُح َس َن ٍ
ُاَلل َُس ِ َّي َئاتِ ِه ْم َ
كُي َُب َّ ِدل ََّ ُ َوآ َم َن َُو َع ِم َلُ َع َمال َ
ُصا لِ ًحاُفَأو لَ ِئ َ
ُصا لِ ًحا ُفَ ِإ َُنَّه َُيتوب ُإِ ََل ََّ ِ
ُاَلل ُ َم َتا ًبا ُ۞ يما ُ۞ ُ َو َم ْن ُ َت َ
اب َُو َع ِم َل َ ورا َُر ِح ً
غَف ً
واُبال ُل ََّ ْغ ِو ُ َم َّرواُك َِرا ًماُ۞ُ َوالََّ ِذي َن ُُإِ َذاُ َوالََّ ِذي َن ُالُ َي ْش َهد َ
ون ُال َّز َ
ور َُوإِ َذاُ َم َّر ِ
اُوع ْم َيا ًناُ۞ َوالََّ ِذي َن َُيقول َ ُ
ونُ ات َُربَِّ ِه ْم ُل َْم َُي ِخ َّرواُعَل َْي َهاُص ًُم َّ َ
آي ِ ذ َُِّكرواُبِ َ
ي ُ ُإِ َما ًماُ۞ُ قِ َّ ت
َ ْم لِ لاُ ن ْ ل ع اج ُو ي ع ربَّناُهب ُلَناُ ِمن ُأَزواجناُوذريَّاتِناُق ُرةَ ُأ َ
َ َ ٍ َ ْ َ ْ َ َ َ َ ْ َ ْ ْ َ ِ َ َ َِّ َ َ ََّ
يهاُ َت ِح َيَّ ًة َُو َسال ًماُ۞ُ َخا لِ ِد ُي َنُ ُص َْبواُ َو يل َ ََّق ُْو َنُ ِف َ
كُي ْج َز ْو َنُالْغ ْرفَ َة ُِب َما َ
أو لَ ِئ َ
اُحس َن ْتُم ْس َتق ً ََّرا َُومقَا ًما﴾
يه َِف َ
ंे“रहमाि के (िरमाबरदार) बन्दे तो वोह है जो ज़मीि पर िरमी के साथ र्ल
और जब जानहल उिसे मुखानतब हो तो (उन्हे) सलाम करें (और अलग हो
ज़ाऐं)। और जो रातो को अपिे परवर फदगार के आगे सजदे और क़याम करें ।
खुलासाए कलाम
खुलासाए कलाम यह है फक अखलाक़ मुआशरे (समाज) को बिािे वाली र्ीज़ िहीं, बनल्क
यह िदच की तामीर करिे वाली र्ीज़ है। इसनलये मुआशरे का सुधार कभी भी अखलाक़
के ज़ररये िहीं होगा। बनल्क मुआशरे का सुधार नसिच इस्लामी नवर्ार और एहसासात
और इस्लामी निज़ाम हाए हयात के नििाज़ से होगा। िदच को भी नसिच अखलाक़ िहीं
बिाते, बनल्क अखलाक़ के साथ अकायद (आस्था), इबादात और मुआमलात भी लाज़मी
हैं। इसनलए वह शख्स मुसलमाि िहीं नजसके अखलाक़ तो बडे अच्छे हैं लेफकि अकाइद
ग़ैर इस्लामी हैं। बनल्क वह काफिर है और कु फ्र से बडा गुिाह क्या हो सकता है? इसी
तरह वह शख्स नजसके अखलाक़ तो बडे अच्छे हैं, लेफकि इबादात और मुआमलात में
वह एहकामें शरीया का नलहाज़ िहीं रखता, उसे भी अखलाके हसिा का हानमल िहीं
कह सकते, मालूम हुआ के एक िदच को बिािे के नलए अक़ीदे, इबादात, मुआमलात और
अखलाक़ सब लाज़मी हैं। यह शरअि जायज़ िहीं फक अखलाक़ की तरि खूब तवज्जोह
दी जाए और बाकी नसिात को छोड फदया जाए, बनल्क फकसी र्ीज़ को िज़रअांदाज करिा
जायज़ िहीं। सबसे पहले नजस र्ीज़ के बारे में इनममिाि कर लेिा र्ानहये, वह अक़ीदा
है। अखलाक़ के अन्दर भी बुनियादी र्ीज़ यह है फक यह इस्लामी अक़ीदे पर आधाररत
हों, और मोनमि उन्हे अल्लाह तआला के अवानमर व िवाही ( हुक्म और रोक) समझ कर
अपिाए।