Professional Documents
Culture Documents
नमक का दारोगा Class 11 Hindi Sumamry
नमक का दारोगा Class 11 Hindi Sumamry
Menu
CCL Chapter
NCERT Solution for Class 1 to 12 Students
Menu
NCERT Class 11 Hindi Chapter 1 नमक का दारोगा / Namak ka Daroga Lekhak Summary /
Path ka sar of chapter 1 in Aroh Bhag 1 Solution.
नमक का दारोगा नामक कहानी प्रसिद्ध लेखक प्रेमचंद की बहुचर्चित कहानियों में से एक हैं। इस कहानी में
लेखक प्रेमचंद ने धन पर धर्म की जीत को दिखाया है।
जब नमक का विभाग बनाया गया तो लोग चोरी-छिपे नमक का व्यापार करने लगे। नमक में काम करने वाले
अधिकारियों को सबसे अधिक घुस खाने को मिलती थी। पटवारी का सर्वसम्मानित पद छोड़-छोड़कर लोग इस
विभाग में जाने लगे थे। इसी दौरान मुंशी वंशीधर भी रोजगार की तलाश में निकले। उनके पिता एक अनुभवी
पुरुष थे और उसको समझाते हैं कि तुमको एक ऐसी नौकरी ढूंढनी है जहां पर ज्यादा घुस मिले। तुम्हें नौकरी के
ओहदे पर ध्यान नहीं देना है। उनके पिता का मानना था कि ऊपरी आय भगवान देता है और इसी से बरकत
होती है। पिता की यह बात सुनने के पश्चात मुंशी वंशीधर रोजगार की तलाश में निकल पड़े। जाते ही उसकी
नौकरी नमक विभाग के दारोगा पद पर लग गई। ऊपरी आय का तो कोई ठिकाना ही नहीं था। वृद्ध मुंशी जी को
जब यह बात का पता चला तो वे फू ले नहीं समाए।
जाड़े की एक रात के समय मुंशी वंशीधर अपने कु छ सिपाहियों के साथ अपनी चौकी में आराम से सोए हुए थे।
मुंशी वंशीधर को यहां आए अभी छह महीनों से अधिक समय नहीं हुआ था। अफसर उन पर विश्वास करने लगे
थे। नमक के दफ्तर से 1 मील पूर्व की ओर जमुना बहती थी। उस पर नामों का एक पुल बना हुआ था। अचानक
उनकी आंख खुली तो देखा की नदी के प्रवाह की जगह उसको गाड़ियों की गड़गड़ाहट की आवाज सुनाई दे रही
थी। उन्होंने तुरंत उठ कर अपनी वर्दी पहनी तमंचा जेब में रखा और घोड़े पर बैठकर पुल पर आ पहुंचे। उनको
गाड़ियों की एक लंबी कतार पुल के पार जाती दिखाई पड़ी और पूछने पर उनसे कोई जवाब ना मिला। छानबीन
करने के बाद पता चला कि यह गाड़ियां पंडित अलोपीदीन की है और इनमें गैरकनूनी तरीके से नमक ले जाया
जा रहा है।
पंडित अलोपीदीन उस इलाके के सबसे प्रतिष्ठित जमीदार थे। लाखों रुपए का लेनदेन किया करते थे। छोटे से
लेकर बड़े तबके तक के लोगों को उन्होंने अपना ऋणी बना रखा था। जब मुंशी जी ने गाड़ी वालों से पूछा कि यह
गाड़ियां कहां जाएंगे तो जवाब में उनको पता चला कि यह गाड़ियां कानपुर जाएंगी। दरोगा साहब ने गाड़ी आगे
ले जाने से मना कर दिया। पंडित अलोपीदीन भी अपने रथ पर सवार चले आ रहे थे। पंडित अलोपीदीन का
लक्ष्मी जी पर अखंड विश्वास था उनका मानना था कि संसार का तो कहना ही क्या, स्वर्ग में भी लक्ष्मी का ही
राज्य है।
पंडित अलोपीदीन मुंशी वंशीधर के पास आकर बोलते हैं कि बाबूज हमसे ऐसा कौन सा अपराध हुआ कि आपने
गाड़ियां रोक दी हैं। जवाब में वंशीधर ने कहा — सरकारी हुकु म! इसी बात पर पंडित अलोपीदीन ने हंसते हुए
कहा कि हम सरकारी हुकु म को नहीं जानते और ना ही सरकार को। उसकी कोशिश यह थी कि किसी न किसी
तरीके से गाड़ियां यहां से निकल जाए। मुंशी वंशीधर पर लक्ष्मी का कोई प्रभाव न पड़ा क्योंकि अभी उनमें
ईमनदारी की नई उमंग थी। मुंशी वंशीधर ने अपने जमादार बदलू सिंह से पंडित अलोपीदीन को हिरासत में लेने
को कहा। यह बात सुनते ही पंडित अलोपीदीन चौक गए और गाड़ी वालों में हलचल मच गई। उसने मुंशी
वंशीधर को खरीदने की पूरी कोशिश की, लेकिन वह नाकाम हो गया। दरोगा की कीमत 1000 से बढ़ते बढ़ते
20000 पर जा पहुंची। लेकिन दारोगा का ईमान नही डगमगाया। आखिरकार बदलू सिंह ने मन में दरोगा जी को
गालियां देते हुए पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार कर लिया।
अलोपीदीन के हाथों में हथकड़िया देख चारों तरफ फै ल गई और उसकी बदनामी शुरू हो गई। पंडित
अलोपीदीन की इतनी बेज्जती कभी नहीं हुई थी। मामला कोर्ट में पहुंचा। जैसे ही पंडित अलोपीदीन को कोर्ट ले
जाया गया वहां पर उनके अधिकारी वर्ग के भगत, वकील, चपरासी, चौकीदार, और बाकी सभी भी उनको
छु ड़वाने के लिए आ गए। उन सब को यकीन नहीं आ रहा था कि पंडित अलोपीदीन कानून के पंजे में कै से आ
गए। वहां के सभी अधिकारी पक्षपात करते दिखाई दिए। इसीलिए मुकदमा शीघ्र ही समाप्त हो गया। मुकदमे में
पंडित अलोपीदीन के विरुद्ध दिए गए परमाणु को निर्मूल और भ्रमात्मक बताया गया और मुंशी वंशीधर को गलत
ठहराया गया। मुंशी वंशीधर को होशियार रहने की चेतावनी देते हुए पंडित अलोपीदीन को रिहा कर दिया गया।
इस समय मुंशी वंशीधर को पता चला कि न्याय और विद्वत्ता, लंबी चौड़ी उपाधियां, बड़ी-बड़ी गाड़ियां और ढीले
चोंगे एक भी सच्चे आदर के पात्र नहीं है। वंशीधर ने धन से दुश्मनी मोड़ द थी और उसका मूल्य चुकाना जरूरी
था। कठिनता से एक ही सप्ताह बीता होगा कि मुअत्तली का परवाना आ पहुंचा।
बूढे मुंशीजी तो पहले से ही कु रकरा रहे थे कि जाते समय इस लड़के को समझाया था लेकिन यह तो अपनी
मनमानी चलाता है। घर पहुंचने पर वंशीधर को पिताजी की फटकार मिली। घर में सभी लोग दुखी थे।
इसी तरह एक सप्ताह बीत गया और एक संध्या के समय एक रथ उनके द्वार पर आकर रुका। रथ पर हरे और
गुलाबी पर्दे, पछहिएँ बैलों की जोड़ी, उनकी गर्दनओं में नीले धागे, सींगे पीतल की जड़ी हुई थी। कई नौकर
लाठियां कं धों पर लेकर आ रहे थे। देखने पर पता चला कि यह तो पंडित अलोपीदीन है। वृद्ध मुंशी अगवानी
करने के लिए दौड़े। उसने अपने बेटे की गलती पर पंडित अलोपीदीन से माफी मांगी। पंडित अलोपीदीन वंशीधर
से जाकर मिले और उन्हें उनके साथ काम करने को कहा। अलोपीदीन ने एक स्टांप लगा हुआ पत्र निकाला और
उसे वंशीधर के सामने रखकर इस पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा और इस पद को स्वीकार करने के लिए भी।
वह वंशीधर को अपनी सारी जायदाद का स्थाई मैनेजर नियुक्त करना चाहता था। जिसके लिए वह उसको
6000 वार्षिक वेतन के अतिरिक्त रोजाना खर्च अलग, सवारी के लिए घोड़े, रहने के लिए बंगला और नौकर
चाकर मुफ्त में देगा। वंशीधर की आंखें भर आई। उसने एक बार फिर पंडितजी की ओर भक्ति और श्रद्धा की
दृष्टि से देखा और कांपते हुए हाथ से मैनेजरी के कागज पर हस्ताक्षर कर दिए।
Share this:
Telegram WhatsApp
नमक का दरोगा Class 11 Hindi नमक का दारोगा ( प्रेमचंद ) Class 11 HBSE Class 11 Hindi Important
Chapter 1 MCQ Question Hindi लेखक जीवन परिचय - आरोह जीवन परिचय - आरोह भाग 1 Solution
Answer - आरोह भाग 1 NCERT भाग 1 NCERT Solution PDF
Solution
Leave a Comment
Name *
Email *
Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.
Post Comment
About us Privacy Policy Suggestion Page Terms and Conditions DMCA Contact us