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श्री गुरु अष्टकं श्रील प्रभुपाद प्रणाम मंत्र

By: Vraj Lila Das (pathak.ashu@gmail.com)


(1)
नम: ॎ िवष्णु-पादाय कृ ष्ण-प्रेष्ठाय भूतले
संसार-दावानल-लीढ-लोक त्राणाय कारुण्य-घनाघनत्वम् ।
श्रीमते भिक्तवेदांत-स्वािमन् इित नािमने ।
प्राप्तस्य कल्याण-गुणाणणवस्य वन्दे गुरोोःश्रीचरणारिवन्दम् ॥
(2)
नमस्ते सारस्वते देवे गौर-वाणी-प्रचाररणे
महाप्रभोोः कीतणन-नृत्यगीत वाददत्रमाद्यन्-मनसो-रसेन । िनर्ववशेष-शून्यवादद-पाश्चात्य-देश-ताररणे ॥
रोमाञ्च-कम्पाश्रु-तरं ग-भाजो वन्दे गुरोोः श्रीचरणारिवन्दम् ॥ पंच-तत्व प्रणाम मंत्र
(3) जय श्री कृ ष्ण चैतन्य, प्रभु िनत्यानंद ।
श्रीिवग्रहाराधन-िनत्य-नाना श्रृंगार-तन्-मिन्दर-माजणनादौ । श्री अद्वैत, गदाधर, श्रीवास आदद गौर भक्त वृन्द ।।
युक्तस्य भक्तांश्च िनयुञ्जतोऽिप वन्दे गुरोोः श्रीचरणारिवन्दम् ॥ हरे कृ ष्ण महामंत्र
(4)
हरे कृ ष्ण हरे कृ ष्ण कृ ष्ण कृ ष्ण हरे हरे ।
चतुर्ववधा-श्री भगवत्-प्रसाद-स्वाद्वन्न-तृप्तान् हरर-भक्त-संङ्घान् ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥
कृ त्वैव तृप्तप्त भजतोः सदैव वन्दे गुरोोः श्रीचरणारिवन्दम् ॥
(5)
नृप्तसह आरती
श्रीरािधका-माधवयोर्अपार-माधुयण-लीला-गुण-रूप-नाम्नाम् । (1)
प्रितक्षणास्वादन-लोलुपस्य वन्दे गुरोोः श्रीचरणारिवन्दम् ॥ नमस्ते नरप्तसहाय प्रह्लाद आह्लाद-दाियने।
(6)
िहरण्यकिशपोवणक्षोः-िशला-टंक-नखालये।।
िनकु ञ्ज-युनो रित-के िल-िसद्धयै या यािलिभर् युिक्तर् अपेक्षणीया । (2)
तत्राित-दक्ष्याद् अितवल्लभस्य वन्दे गुरोोः श्रीचरणारिवन्दम् ॥ इतो नृप्तसहोः परतो नृप्तसहोः , यतो यतो यािम ततो नृप्तसहोः।
(7)
बिहनृणप्तसहोः हृदये नृप्तसहोः , नृप्तसहोः आददम् शरणं प्रपद्ये ॥
साक्षाद्-धररत्वेन समस्त शास्त्ैोः उक्तस्तथा भावयत एव सिभोः । (3)
दकन्तु प्रभोयणोः िप्रय एव तस्य वन्दे गुरोोः श्रीचरणारिवन्दम् ॥ तव कर-कमल-वरे नखम् अद्भुत-श्रृग
ं म्
दिलत-िहरण्यकिशपु-तनु-भृंगम्
(8)

यस्यप्रसादाद् भगवदप्रसादो यस्य अप्रसादन् न गित कु तोऽिप ।


के शव धृत-नरहरररूप जय जगदीश हरे ॥
ध्यायंस्तुवंस्तस्य यशिस्त्-सन्ध्यं वन्दे गुरोोः श्रीचरणारिवन्दम् ॥
जय जगदीश हरे , जय जगदीश हरे , जय जगदीश हरे ॥

श्री तुलसी प्रणाम श्री गुरु वंदना


(1)
वृन्दायै तुलसी देव्यायै िप्रयायै के शवस्यच ।
श्रीगुरुचरण पद्म, के वल भकित-सद्म, वन्दो मुइ सावधान मते।
कृ ष्ण भक्ती प्रदे देवी सत्य वत्यै नमो नमोः।।
यााँहार प्रसादे भाई, ए भव तररया याइ, कृ ष्ण प्रािप्त हय यााँहा हइते॥
श्री तुलसी-आरती (2)
(1)
गुरुमुख पद्म वाक्य, िचतेते कररया ऐक्य, आर न कररह मने आशा।
नमो नम: तुलसी कृ ष्ण प्रेयसी ।
श्रीगुरुचरणे रित, एइ से उत्तम-गित, ये प्रसादे पूरे सवण आशा॥
राधा कृ ष्ण सेवा पाबो एई अिभलाषी ।। (3)
(2)
चक्षुदान ददलो येई, जन्मे जन्मे प्रभु सेइ, ददवय ज्ञान हृदे प्रकािशत।
जे तोमार शरण लय, तार वांछा पूणण हय ।
प्रेम-भिक्त यााँहा हइते, अिवद्या िवनाश जाते, वेदे गाय यााँहार चररत॥
कृ पा करर कर तारे वृंदावनवासी।। (4)
(3)
श्रीगुरु करुणा-िसन्धु, अधम जनार बंध,ु लोकनाथ लोके र जीवन।
मोर एई अिभलाष, िवलास कु न्जे ददओ वास ।
हा हा प्रभु कोरो दया, देह मोरे पद छाया, एबे यश घुषुक ित्रभुवन॥
नयने हेररबो सदा, युगल-रूप रािश।।
(4)
गौर आरती
एइ िनवेदन धर, सखीर अनुगत कर ।
जय जय गौरचन्रेर आरित को शोभा । जाह्नवी – तटवने जगमन लोभा |1|
सेवा-अिधकार ददये, कर िनज दासी ।।
(5)
दिक्षणे िनताइचााँद , बामे गदाधर । िनकटे अद्वैत श्रीिनवास छत्रधर |2|
दीन कृ ष्णदासे कय, एइ येन मोर हय । बिसयाछे गोराचााँद रत्न प्तसहासने । आरित करेन ब्रह्मा आदद देव गणे |3|
श्री राधा गोप्तवदा प्रेमे सदा येन भािस ।। नरहरर आदद करर चामर ढु लाये । संजय मुकुन्द वासु , घोष आदद गाये |4|
श्री तुलसी प्रदिक्षणा मंत्र शंख बाजे घण्टा बाजे , बाजे करताल । मधुर मृदग
ं बाजे , परम रसाल |5|
यािन कािन च पापानी ब्रह्म हत्याददकानी च । बहु कोरट चन्र िजिन वदन उज्ज्वल । गल देशे वनमाला करे झलमल |6|
तािन तािन प्रणश्यिन्त प्रदिक्षणोः पदे पदे ।। िशव – शुक – नारद प्रेमे गदगद । भकितिवनोद देखे गोरार सम्पद |7|

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