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श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली तृतीय अध्याय भाग २

06-05-2018, 11:27 AM
श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली तृतीय अध्याय भाग २

२५१- ॐ ह्रीं अर्हं सुत्वने नमः - आत्म सुख रूप सागर में अभिषेक करने से ,

२५२- ॐ ह्रीं अर्हं सूत्रामपूजिताय - नमः - इन्द्रों द्वारा पूजित होने से,

२५३- ॐ ह्रीं अर्हं ऋत्विजे नमः - ज्ञान रुपी यज्ञ करने में आचर्य ,

२५४- ॐ ह्रीं अर्हं यज्ञपतये नमः -यज्ञ के प्रधान अधिकारी होने से

२५५- ॐ ह्रीं अर्हं यज्ञाय नमः -पूजानीय होने से,,

२५६- ॐ ह्रीं अर्हं यज्ञांगाय नमः -यज्ञ के अंग होने से,

२५७- ॐ ह्रीं अर्हं अमृताय नमः -विषयतृष्णा के नष्ट होने से,

२५८- ॐ ह्रीं अर्हं हविषे नमः -ज्ञानयज्ञ में अपनी ही अशुद्ध परिणीति को होम करने,

२५९ - ॐ ह्रीं अर्हं व्योममूर्तये नमः -आकाश के समान निर्मल के वलज्ञान की अपेक्षा लोक-अलोक में व्याप्त होने से,,

२६०- ॐ ह्रीं अर्हं अमूर्तात्माने नमः - रूप,रस,गंध एवं स्पर्श रहित होने से,

२६१- ॐ ह्रीं अर्हं निर्लेपाय नमः -कर्म रूप लेप रहित होने से,

२६२- ॐ ह्रीं अर्हं निर्मलाय नमः - कर्म मल रहित होने से निर्मल ,

२६३- ॐ ह्रीं अर्हं अचलाय नमः -सदैव एक रूप मे विध्यमान होने से,

२६४- ॐ ह्रीं अर्हं सोममूर्तये नमः -चंद्रमा के समान शांत, कांतिमान और प्रकाशमान रहने से ,

२६५- ॐ ह्रीं अर्हं सुसौम्यात्मने नमः - की आत्मा अतिशय सौम्य होने से,

२६६- ॐ ह्रीं अर्हं सूर्यमूर्तये नमः -सूर्य समान तेजस्वी होने से ,


२६७- ॐ ह्रीं अर्हं महाप्रभाय नमः -अतिशय प्रभा के धारक होने से,

२६८- ॐ ह्रीं अर्हं मन्त्रवितदे नमः -मंत्रो के ज्ञाता होने से मन्त्रवित् ,

२६९- ॐ ह्रीं अर्हं मन्त्रकृ ते नमः -अनेक मंत्रो के करने वाले होने,

२७०- ॐ ह्रीं अर्हं मंत्रिणे नमः -मन्त्रो से युक्त होने से,

२७१- ॐ ह्रीं अर्हं मन्त्रमूर्तये नमः -मंत्र रूप होने से,

२७२- ॐ ह्रीं अर्हं अनन्तगाय नमः -अनंत पदार्थों के ज्ञाता होने से

२७३- ॐ ह्रीं अर्हं स्वतंत्राय नमः -कर्मं रहित होने से,

२७४- ॐ ह्रीं अर्हं तंत्रकृ ते नमः -शास्त्रों के करता होने से,

२७५- ॐ ह्रीं अर्हं स्वंताय नमः -उत्तम अंत:करण धारक होने से ,

२७६- ॐ ह्रीं अर्हं कृ तन्ताय नमः -यमराज की मृत्यु कर,देने से ,

२७७- ॐ ह्रीं अर्हं कृ तान्तकृ ते नमः -आगम के रचियेता होने से

२७८- ॐ ह्रीं अर्हं कृ तिने नमः -अत्यंत कु शल अथवा पुण्यवान होने से,

२७९- ॐ ह्रीं अर्हं कृ तार्थाय नमः - आत्मा के समस्त पुरुषार्थ सिद्ध करने से ,

२८०-ॐ ह्रीं अर्हं सत्कृ त्याय नमः -संसार के समस्त जीवों द्वारा सत्कार योग्य होने से,

२८१-ॐ ह्रीं अर्हं कृ तकृ त्याय नमः -समस्त कार्य सम्पन्न कर चुकने से,

२८२-ॐ ह्रीं अर्हं कृ तक्रतवे नमः -ज्ञान अथवा तपश्चरणरूपी यज्ञ सम्पन्न कर चुकने से,

२८३-ॐ ह्रीं अर्हं नित्याय नमः -सदैव विध्यमान रहने से,

२८४-ॐ ह्रीं अर्हं मृत्युंजयाय नमः -मृत्यु पर विजेता होने से,

२८५-ॐ ह्रीं अर्हं अमृत्यवे नमः -मृत्यु रहित होने से ,

२८६-ॐ ह्रीं अर्हं अमृतात्मने नमः -अमृत आत्मा शांतिदायक होने से,

२८७-ॐ ह्रीं अर्हं अमृतोद्भवाय नमः -मोक्ष में उत्कृ ष्ट उत्पत्ति होने से,

२८८-ॐ ह्रीं अर्हं ब्रह्मनिष्ठाय नमः -सदैव शुद्ध आत्मस्वरूप में लीन रहने से,
२८९-ॐ ह्रीं अर्हं परब्रह्मणे नमः -उत्कृ ष्ट ब्रह्मरूप होने से,

२९०-ॐ ह्रीं अर्हं ब्रह्मात्मने नमः -का ज्ञान अथवा ब्रह्मचर्य स्व रूप ही होने से,

२९१-ॐ ह्रीं अर्हं ब्रह्मसम्भवाय नमः - शुद्धात्मस्वरूप की प्राप्ति होने से तथा उनके द्वारा दूसरो को भी प्राप्ति कराने से,

२९२-ॐ ह्रीं अर्हं महाब्रह्मपतये नमः -गणधरादि महाब्रह्माओं के अधिपति होने से,

२९३-ॐ ह्रीं अर्हं ब्रह्मेटे नमः -के वलज्ञान के स्वामी होने से,

२९४-ॐ ह्रीं अर्हं महा ब्रह्म पदेशवराय नमः -महाब्रह्मपद अर्थात आर्हन्त्य और सिद्धत्व अवस्था के ईश्वर होने से,

२९५-ॐ ह्रीं अर्हं सुप्रसन्नाय नमः -सदैव प्रसन्न रहने से ,

२९६ ॐ ह्रीं अर्हं प्रसन्नात्मने नमः -की आत्मा में कषायों का अभाव होने से सदैव प्रसन्न रहने से,

२९७-ॐ ह्रीं अर्हं ज्ञानधर्मदमप्रभवे नमः -उत्तम क्षमादि धर्म और इन्द्रिय निग्रह रूप दम के स्वामी होने से,

२९८-ॐ ह्रीं अर्हं प्रश्मात्मने नमः -की आत्मा उत्कृ ष्ट शांति सहित होने से,

२९९-ॐ ह्रीं अर्हं प्रशान्तात्मने नमः -आत्मामें कषायों का अभाव होने से अतिशय शांत होकर

३००- ॐ ह्रीं अर्हं पुराणपुरुषोत्तमाय नमः - शलाका पुरुषों में सर्वोत्तम होने से
(This post was last modified: 06-22-2018, 10:43 AM by scjain
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