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पाठ - 1

दो बै कथा

पाठ का सार

लेखक के अनुसार गधा एक सीधा और रापद जानवर । वह सुख- ख , हा -लाभ, सी


भी दशा कभी न बदलता। उस ऋ -मु के गुण होते , र भी आदमी उसे
बेवकू कहता । बैल गधे के छो भाई जो कई री से अपना असंतोष कट करते ।

री काछी के पास हीरा और मोती नाम के दो और सुंदर बैल थे। वह अपने बै से


ब त म करता था। हीरा और मोती के बीच भी घ संबंध था। एक बार री ने दो को
अपने ससुराल के खे काम करने के ए भेज या। वहाँ उनसे खूब काम करवाया जाता
था ले न खाने को खा-सूखा ही या जाता था। अत: दो र तु कर री के पास
भाग आए। री उ खकर ब त खुश आ और अब उ खाने-पीने कमी न रही। दो
ब खुश थे। मगर री को उनका भागना पसंद न आया। उसने उ खरी-खोटी और
मजूर रा खाली सूखा भूसा लाया गया। स न री का साला रउ लेने आ गया।
रउ क मेहनत करनी प पर खाने को सूखा भूसा ही ला।

कई बार काम करते समय मोती ने गा खाई रानी चाही तो हीरा ने उसे समझाया। मोती
ब गु ल था , हीरा धीरज से काम लेता था। हीरा नाक पर जब खूब डं बरसाए गए
तो मोती गु से हल लेकर भागा, पर गले ब र याँ होने के कारण पक गया। कभी-
कभी उ खूब मारा-पीटा भी जाता था। इस तरह दो हलत ब त खराब थी।

वहाँ एक छोटी-सी बा का रहती थी। उस माँ मर चु थी। उस सौतेली माँ उसे मारती
रहती थी , इस ए उन बै से उसे एक कार आ यता हो गई थी। वह रो दो को
चोरी- पे दो रो याँ डाल जाती थी। इस तरह दो दशा ब त खराब थी। एक न उस
बा का ने उन र याँ खोल दी। दो भाग ख ए। री का साला और स लोग उ
पक ने दौ पर पक न सके। भागते-भागते दो नई गह प च गए। री के घर जाने का
रा वे भूल गए। र भी ब त खुश थे। दो ने खे मटर खाई और आ दी का अनुभव
करने लगे। र एक साँड से उनका मुकाबला आ। दो ने लकर उसे मार भगाया , ले न
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खेत चरते समय मा क आ गया। मोती को फँसा खकर हीरा भी खुद आ फँसा। दो
काँजीहौस बंद कर ए गए। वहाँ और भी जानवर बंद थे। सब हालत ब त खराब थी।
जब हीरा-मोती को रात को भी भोजन न ला तो ल ह ला भ क उठी। र
एक न दीवार राकर दो ने स जानव को भगा या। मोती भाग सकता था पर हीरा
को बँधा खकर वह भी न भाग सका।

काँजीहौस के मा क को पता लगने पर उसने मोती खूब मर त और उसे मोटी र


से बाँध या। एक स ह बाद कँजीहौस के मा क ने जानव को कसाई के हा बेच
या। एक द यल आदमी हीरा-मोती को ले जाने लगा। वे समझ गए अब उनका अंत
समीप । चलते-चलते अचानक उ लगा वे प त राह पर आ गए । उनका घर
न दीक आ गया था। दो उ होकर उछलने लगे और दौ ते ए री के र पर आकर
ख हो गए। री ने खा तो खुशी से फूल उठा। अचानक द यल ने आकर बै र याँ
पक ली। री ने कहा वे उसके बैल , पर द यल र- बरद करने लगा। तभी
मोती ने ग चलाया और द यल को र तक ख या। थो र बाद ही दो खुशी से
खली-भूसी-चूनी खाते खाई प । घर माल न ने भी आकर दो को चूम या।

लेखक प चय

मचंद
इनका ज सन 1880 बनारस के लमही गाँव आ था। इनका मूल नाम धनपत राय
था। बी.ए. तक करने के बाद उ ने भाग नौकरी कर ली परंतु
असहयोग आं दोलन स य भाग लेने के ए नौकरी से गप या और लेखन का
के पूरी तरह सम त हो गए। सन १९३६ इस महान कथाकार का हांत हो गया।

मुख का

उप स – सेवासदन , मा म , रंगभू , कायाक , ला , गबन , क भू , गोदान।


प का – हंस , जागरण , माधुरी आ प काओं का संपादन।

क नश के अ

• रापद – सुर त
• पछा – पालतू पशुओ ं एक न
• गो – जो
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• षाद – उदासी
• पराका – अं म सीमा
• पग या – पशु बाँधने र
• गराँव – फुँ दार र जो बैल आ के गले पहनाए जाती
• टकार – मुँह से क वाला क- क का श
• मसहलत – तकर
• रगेदना – ख ना
• सा का – वा /सरोकार
• काँजीहौस – मवेशी खाना
• व – पशुओ ं का ड
• थान – पशुओ ं बाँधे जाने गह
• उछाह – उ व/आनंद
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