ch2 (Hindi Notes)

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पाठ - 2

सा ओर

पाठ का सार

इस पाठ रा ल जी ने अपनी पहली त या का व न या जो उ ने सन


1929-30 मे नेपाल के रा थी। चूँ उस समय भारतीयो को त या अनुम
नही थी, इस ए उ ने यह या एक खम के वेश मे थी।

लेखक या ब त व पहले जब फरी-क ङ्पोङ् का रा न बना था, तो नेपाल से


त जाने का एक ही रा था। इस रा पर नेपाल के लोग के साथ-साथ भारत लोग
भी जाते थे। यह रा पा क और सै क रा भी था, इसी ए इसे लेखक ने मु
रा बताया । त जा -पाँ , आ त का सवाल न उठता और वहाँ और
परदा न डालती । चोरी आशंका के कारण खमंगो को कोई घर घुसने नही ता
नही तो अप त होने पर भी आप घर के अंदर जा सकते और ज रत अनुसार अपनी
झोली से चाय सकते , घर ब अथवा सास उसे आपके ए पका गी।

प चीनी ले से जब वह चले तो एक को दो राहदारी कर थोङ्ला के


पहले के आ री गाँव प च गए। यहाँ सुम (मंगोल , रा ल का दो ) पहचान तथा
खारी होने के कारण रहने को अ जगह ली। पांच साल बाद वे लोग इसी रा से
लौ थे तब उ रहने जगह नही ली थी और गरीब के झप ठहरना प था
वे खारी नही ब भ या के वेश थे।

अगले न रा ल जी एवं सुम जी को एक कट डाँडा थो पार करना था। डाँ त


सबसे खत जगह थी। सोलह-स ह हजार ट उं ची होने के कारण दो ओर गाँव का
नामो शान न था। डाकुओं के पने जगह तथा सरकार नरमी के कारण यहाँ अ र
खून हो जाते थे। चूँ वे लोग खारी के वेश थे इस ए ह उ परवाह नही थी
पर उं चाई का डर बना था।
स नउ ने डाँ च ई घो से समे उ द ण-पूरब ओर ना ब और
ह याली के नंगे पहा खे तथा उ र और पहा पे कुछ ब खी। उतरते समय
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लेखक का घोडा थो पी चलने लगा और वे बाएं ओर मील आगे चल ए। बाद
पूछ कर पता चला लङ्कोर का रा दा ने के तरफ तथा ससे लेखक को र हो गयी
तथा उसुम नाराज हो गए पर ज ही गु ठं डा हो गया और वे लङ्कोर एक अ
जगह पर ठह ।

वे अब ङ्ऱी के मैदान थे जो पहा से रा टापू था सामने एक छोटी सी पहा


खाई प ती थी सका नाम ङ्ऱी-समा - री था। आसपास के गाँ सुम के ब त
प त थे वे उनसे जाकर लना चाहते थे पर लेखक ने उ मना कर या और सा
प चकर पैसे ने का वादा या। सुम मान गए और उ ने आगे ब ना शु या। उ ने
सुबह चलना शु नही या था इसी ए उ क धूप आगे ब ना प रहा था, वे पीठ पे
अपनी ची ला और हाथ डंडा ए चल र थे। सुम एक ओर यजमान से लना
चाहते थे इस ए उ ने बहाना कर शेकर हार ओर चलने को कहा। त जमीन
छो -ब जागीरदा के हा बँटी । इन जागी का ब म के हाथ ।
अपनी-अपनी जागीर हर जागीरदार कुछ खेती खुद भी करता सके ए मज र उ
बेगार ल जाते । लेखक शेकर खेती के मु या से से ले। वहां एक अ
मं र था समे बु वचन ह त 103 पो याँ रखी से लेखक प ने लग
गए इसी दौरान सुम ने आसपास अपने यजमा से लकर आने के ए लेखक से पूछा
से लेखक ने मान या, दोपहर तक सुम वापस आ गए। चूँ ङ्ऱी वहां से दा र
नही था इसी ए उ ने अपना सामान पीठ पर उठाया और से से दा लेकर चल ए।

सु त का प चय – वह लेखक को या के दौरान ला जो एक मंगोल था। उनका


नाम लो ङ्शेख था. इसका अ सुम . अतः सु धा के ए लेखक ने उसे सुम
नाम से पुकारा ।

लेखक प चय

रा ल सांकृ यन

इनका ज सन 1893 उनके न हाल गाँव प ह, ला आजमग , उ र श आ।


इनका मूल नाम केदार पा य था। इन काशी, आगरा और लाहौर ई। सन
1930 इ ने लंका जाकर बौ ध हण कर या। सन 1963 इनका हांत हो
गया।

मुख का
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मेरी जीवन या (छह भाग), द न- न, बाइस सदी, वो से गंगा, भागो नही या
को बदलो, मागी गुलाम और घुम शा ।

क नश के अ

• डाँडा – उँ ची जमीन
• थो – ती सीमा का एक न
• भी – टीले के आकार सा उँ चा न
• कं – गाय- स के गोबर से बने उपले
• थु - स या चावल के साथ मूली,ह और माँस के साथ पतली लेइ के तरह पकाया
गया खा पदा ।
• गंडा – मं प कर गाँठ लगाया आ धागा या कप
• भ या – भारवाहक
• दो क – श उप सकार सा ज के उप स ‘ डॉन ट’ का नायक।
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