दो कलाकार

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दो कलाकार -

मन्नू भंडारी
अनुक्रमणिका

1. आभार

2. लेखक पररचय

3. साणित्यिक पररचय

4. णकानी का साराााांश

5. णकानी का उद्दे श्य

6. शीर्षक की सार्षकता

7. चररत्र-िचणत्र

8. लेखन
आभार
लेखिका पररचय

श्रीमती मन्न भाांडारी का जन्म 3 अप्रैल, 1931 को भानपुरा राजस्थान में हुआ था। इनके णपता सम प्रणतणित
महाणिद्वान श्री सुख साांपतराय भाांडारी, जो णहन्दी-पाररभाणर्क कोर् आणि के णनमाष ता है , इनकी अणतत्यिक णशक्षा
अजमेर में हुई, इन्ोाांने णहन्िू णिश्वणिद्यालय से णहन्दी में एम०ए० णकया।
साणिखिक पररचय

मन्नू भाांडारी णि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं एक प्लेट सैलाब', 'मैं हार गई', 'तीन णनगाहोाां की एक तस्वीर', 'यही सच है
कुछ पर णिल्में भी 'महाभोज'। इनकी अनेक रचनाओाां का भारतीय भार्ाओाां में भी बनी हैं । णहन्दी कहानी में
आजािी के बाि के िशक में जो अनुिाि हुआ है और नया मोड़ आया, उसमें मन भाांडारी का णिशेर् योगिान रहा
है । इनकी कहाणनयोाां में रूणियोाां के प्रणत णिद्रोह तथा एक स्वस्थ आधुणनकरि यह भाांडारी का िशषन होते हैं . अपनी
रचनाओाां में घटना तत्व का अनािश्यक णिस्तार न करके इनोाांने पाई के मनोिैज्ञाणनक णिश्लेर्ि पर अणधक ध्यान
णिया है ।

मन्नू भाांडारी की भार्ा साांस्कृतणनि, महािरे िार णहन्दी है . णजसमें तत्सम शब्ोाां का बाहल्य स्थान-स्थान पर मुहािरे
और प्रचणलत िारसी के शब् भी कहीाां-कहीाां िे खे जा सकते हैं
किानी का सारांश

िो कलाकार कहानी िो सहे णलयोाां की कथा है जो हॉस्टल में रहती हैं , एक है णचत्रा और िू सरोाां अरुिा। णचत्रा अरुिा
को प्यार र से रूनी कहकर बुलाती है । णचत्रा णचत्रकार है और आधुणनक णचत्र कान (Modern Art) पर आधाररत
णचत्र बनाना उसका शौक है । िह अरुिा को अपना णचत्र णजसे उसने अभी-अभी पूरा णकया है , णिखाने के णलए
जगाती है पर अरुिा को िह णचत्र समझ नहीाां आता। णचत्रा का कहना है णक उसे इस णचत्र पर पहला इनाम जरूर
णमलेगा। पर अरुिा का कहना है णक िह उसके णचत्र को णकसी भी प्रकार समझ नहीाां पा रही है । उसका कहना है
णक चौरासी लाख योणनयोाां में से आत्यखर यह णकस जीि की तस्वीर है शायि ही कोई समझ जाएगा। उसे उस णचत्र में
सड़क, आिमी, टर ाम, बस, मोटर, मकान सब एक-िू सरे पर चढ़ते णिखाई िे ते हैं । िह णचत्रा

का बात-बात में मजाक भी उड़ाती है । अरुिा का स्वभाि णचत्रा के णिपरीत है । िह गरीब, बेसहारा बच्ोाां को णशक्षा
प्रिान करती है और एक प्रकार से समाज सेिा का काम करती है । रणििार के णिन िह एक मैिान में गरीब बच्ोाां
को पढ़ाती थी। एक णिन चार बज गए पर अरुिा हॉस्टल नहीाां लौटी, णचत्रा चाय पर उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। जब
णबत्रा लौटी तो उसने बताया णक आज उसके णपताजी का पत्र आया है णजसिे णलखा है णक यहीाां का कायष समाप्त
होते ही िह णििे श जा सकती है । अरुिा उसे कहती है णक हाँ भई िह धनीया है णक यहाँ का बेटी है उसको तो
हर इच्छा पूरी होगी ही। िोनोाां सहे णलयोाां में कला और जीिन कोनरी बाप की इकलौती चरसे चलती रहतीाां। णपछले
पाँ च िर्ों से इसी प्रकार का क्रम चल रहा था। हर िस-बीस णिनबी मैं अपने-अपने उद्दे श्य को लेकर, अपनी-
अपनी णिनचयाष को लेकर एक गरमागरम बहस हो ही जात

तीन णिन से मूसलाधार बाररश हो रही थी। िर्ाष थमने का नाम नहीाां ले रही थी। अखबारोाां में खबर - आती है
बाढ़-पीणड़तोाां की िशा णबगड़ती जा रही थी अरुिा णिन भर चन्दा इकट्ठा करती और उनकी मिि करने में व्यस्त
रहती थी। एक णिन णचत्रा ने कह ही णिया णक तेरे इत्यिहान णसर पर है , तू पड़ती-णलखती नहीाां, बस सारे णिन
भटकती रहती है , िेल हो गई तो..... तो अरुिा ने उसकी बात को अनसुनी करते हुए कहा णक िह आज शाम
को स्वयाां सेिकोाां के िल के साथ जा रही है , उसने णप्राांणसपल साणहबा से अनुमणत ले ली है।

अरुिा पन्द्रह णिन बाि लौटी तो उसकी हालत कािी खस्ता थी, बहुत थकान थी। णचत्रा अपने गुरुिे ि के पास
गई हुई थी। अरुिा की नजर णचत्रा के बनाए तीन णचत्रोाां पर गई। तीनोाां बाढ़ के णचत्र थे, िही दृश्य था णजसे यह
आँ खोाां से िे खकर आ रही थी। उसका मन णिचणलत हो गया। उसने सोचा णक िहाँ लोगोाां के जीने के लाले पड़
णिशाां रहे हैं और इसे उसमें भी णचत्रकारी सूझती है । णिर जब णचत्रा ने बताया णक िह अगले बुधिार को घर चली
होजाएगी और उसके एक सप्ताह बाि णहन्िु स्तान से बाहर चली जाएगी। तब अरुिा ने कहा णक िह उसके णबना
और कैसे रहे गी तो णचत्रा ने चुटकी ली णक िो महीने बाि तेरी शािी हो जाएगी णिर तू क्ोाां मुझे याि करे गी।

णचत्रा के जाने िाले णिन उसके णििाई समारोह का आयोजन णकया गया था। उसमें णचत्रा िे र से पहुँ ची। कारि
यह था णक गुरुजी के घर से लौटते हुए गगष स्टोसष के सामने जो णभखाररन रोज बैठी रहती थी एक उस णिन
उसका िे हान्त हो गया था और उसके िोनोाां बच्े उसकी सूखी हणियोाां से णचपककर सुबक-सुबक कर रो रहे थे।
उस दृश्य को िे खकर िह खुि को रोक न सकी और स्केच बना डाला। स्केच बनाने में ही उसे िे र हो गई थी।
शाम के साढ़े चार बजे णचत्रा हॉस्टल से णनकल पड़ी अपनी पाँ च बजे की टर े न पकड़ने
के णलए। उसकी आँ खें अरुिा को उस िक्त ढू ँ ढ़ रही थी पर िह उसे णिखाई न िी। णििे श जाकर णचत्रा तन-मन
से अपने काम में जुट गई। उसकी लगन से उसकी कला णनखरती

गई। णििे शोाां में उसके णचत्रोाां की धूम मच गई। णभखाररन और िो अनाथ बच्ोाां के उस णचत्र की प्रशाांसा में तो
अखबारोाां के कॉलम के कॉलम भर गए। शोहरत के कगार पर बैठी णचत्रा जैसे अपना णपछला सब कुछ भूल गई।
पहले साल तो अरुिा से णनयणमत पत्र व्यिहार चला, णिर कम होते-होते एकिम बाांि हो गया। णपछले एक साल
से तो उसे यह भी नहीाां मालूम णक िह कहाँ है । नई कल्पनाएँ और नए-नए णिचार उसे निीन सृजन की प्रेरिा िे ते
और िह उन्ीाां में खोई रहती। उसके णचत्रोाां की प्रिशषणनयाँ होतीाां। अनेक आप्रणतयोणगताओाां में उसका अनाथ
शीर्षक' िाला णचत्र प्रथम पुरस्कार पा चुका था। णचत्रा कािी प्रणसद्ध हो लौटी उसका शानिार स्वागत हुआ। णपता
अपनी इकलौती णबणटया की कामयाबी पर गद्गि थे। णिल्ली चुकी थी। अखबारोाां में उसकी कला पर, उसके
जीिन पर अनेक लेख छपे। तीन साल बाि िह भारत में उसके णचत्रोाां की णिराट प्रिशषनी का आयोजन णकया
गया। उि् घाटन करने के णलए उसे ही बुलाया गया था। उसके णचत्रोाां की भूरर-भूरर प्रशाांसा हो रही थी। णचत्रा के
सारे सपने ही साकार हो गए।

उसी भीड़ में उसकी मुलाकात अरुिा से हो गई। िोनोाां सहे णलयाँ एक-िू सरे के गले से भीड़ णलपट गई। णचत्रा ने
उसके आने का कारि पूछा तो अरुिा ने की उपत्यस्थणत भूलकर णचत्रा को िे खने आई हँ । अचानक चित्रा ने िे खा
णक िो प्यारे -प्यारे बच्े अरुिा से सटे खड़े थे। लड़के की उम्र िस साल और लड़की की उम्र कोई आठ साल
थी। णचत्रा ने पूछा णक ये बच्े णकसके है तो अरुिा ने बताया णक ये उसके अपने बच्े हैं । बच्ोाां ने बड़े प्रेम से
णचत्रा को नमस्ते णकया। णचत्रा अिाक् थी। उसे कुछ भी समझ नहीाां आ रहा था। णचत्रा को िोनोाां बच्े बड़े प्यारे
लगे। अरुिा ने अपनी पणत को बुलाकर कहा णक िे बच्ोाां को प्रिशषनी णिखाएाां । बच्ोाां के ओझल होते ही उसने
अरुिा से णिर पूछा णक सच-सच बता णक बच्े णकसके हैं । णचत्रा के अिणधक अनुग्रह के पश्चात् अरुिा ने उस
णभखाररन िाले णचत्र के िोनोाां बच्ोाां पर उँ गली रखकर कहा णक ये ही िे िोनोाां बच्े हैं । णिस्मय से उसकी आँ खें
खुली की खुली रह गई। उसके शब् उसके णिचारोाां में ही खो गए।

लेत्यखका ने िास्तणिक कला को स्पष्ट कर णिया िह कला जो आटष के रूप में णचत्रोाां को अपनी तूणलका से कई राां गोाां
से भरकर सजीिता लाती है उन्ें स्वाभाणिक बना िे ती है णक िे णचत्र अभी होठ णहलाएाां गे और बोल पड़ें गे। और
एक कला औरोाां को जीिन िे कर उनके जीिन में राां ग भरकर उन्ें स्वाभाणिक रूप, यथाथष का धरातल िे कर स्वयाां
में तथा अपने जीिन की खुणशयोाां को औरोाां में बाँ टने की कला समाज में णबखेरती है , अनाथ बच्ोाां को जीने की
कला णसखाकर कलात्मकता का राां ग भर िे ती है ।
किानी का उद्दे श्य

'िो कलाकार' कहानी के माध्यम से लेत्यखका मन्नू भण्डारी ने स्पष्ट णकया है णक मानि जीिन में कला और साांस्कृणत
का बहुत महत्त्व है । कला के णिणभन्न रूपोाां के माध्यम से मानि-जीिन में आिशष और यथाथष का णमलन साांभि होता
है । कला के णिणभन्न रूपोाां की साथषकता सिम्-णशिम्-सुन्दरम् में ही णनणहत है । साांगीत, नृि, णचत्रकला, मूणतषकला
आणि कला के कई रूप हैं णजसमें जीिन के सि को मानि कल्याि अथाष त् णशिम् के रूप में प्रस्तुत करना
चाणहए, तभी िह कला सुन्दर मानी जाएगी और उसके कलाकार को समुणचत सम्मान प्राप्त होगा। प्रस्तुत कहानी
में णचत्रा ने मृत णभखाररन और उसके िो अनाथ बच्ोाां की तस्वीर बनाकर जीिन के कटु सि को तो अणभव्यक्त
कर णिया णकन्तु उन बच्ोाां की अनिे खी कर उसने कला के सबसे महत्त्वपूिष णहस्से णशिम् की अिहे लना कर िी।
अत: णचत्रा को प्रणसि् णध तो प्राप्त हो गई लेणकन िह श्रेि कलाकार नहीाां बन सकी। िहीाां िू सरी ओर अरूिा ने िोनोाां
बच्ोाां के जीिन को एक नया रूप प्रिान कर, उसे जीिन के सि को मानि कल्याि अथाषत् णशिम् के रूप में
प्रस्तुत णकया है । अतः यहाँ आकर कला का उद्दे श्य पूरा हुआ और इसे बताना ही लेत्यखका प्रमुख उद्दे श्य रहा है ।
शीर्षक की सार्षकता

'िो कलाकार' मन्नू भण्डारी द्वारा णलत्यखत एक प्रणसद्ध कहानी है । प्रस्तुत कहानी में कथानक शुरू से लेकर अाांत
तक िो कलाकार सहे णलयोाां के आस-पास घूमता रहता है । एक णचत्रकार है , तो िू सरी समाज सेणिका। एक कला
के प्रणत समणपषत है और जीिन के राां गोाां को कैनिास पर उतारना चाहती है , जबणक िू सरी जीिन का सार सेिा-भाि
में खोजती है । इसतरह िोनोाां की रुणचयोाां को, उनके लक्ष्य को कहानी में स्पष्ट णकया गया है। कहानी के अाांत में
िोनोाां सहे णलयोाां की मुलाकात जब होती है , तब णचत्रा एक णचत्रकार के रुप में प्रणसत्यद्ध पा चुकी होती है । णजस
णभखाररन के बच्ोाां िाली णचत्र ने णचत्रा को प्रणसत्यद्ध के उच् णशखर पर पहुँ चा णिया था, उन्ीाां बच्ोाां का पालन-
पोर्ि अरुिा करती है । अतः यह प्रश्न उभरकर सामने आता है णक कौन कलाकार है ? िह णजसने णचत्र बनाया है
या िह णजसने पालन-पोर्ि णकया है ? अतः िोनोाां कलाकार णमलकर कहानी के शीर्षक की साथषता को णसद्ध
करते हैं ।
चररत्र-णचत्रि

➢ अरूिा

अरुिा कहानी की प्रमुख पात्रा है और णचत्रा की घणनि णमत्र है । िह होस्टल में रहकर पढ़ाई करती है , णकन्तु
उसका मन समाज-सेिा में ज्यािा लगता है । िह हर समय समाज-सेिा में व्यस्त रहती है । िह गरीब बच्ोाां को
पढ़ाना अपना कर्त्षव्य समझती है । िह भािुक, साांिेिनशील, ियालु, िू सरोाां के िु ख को अपना िु ख समझने िाली,
िू सरोाां की समस्या ि साांकट में स्वयाां को भुला िे ने िाली लड़की है । एक णभखाररन की मृिु होने पर उसके अनाथ
बच्ोाां को अपनाकर अरुिा उन्ें अपनी ममता की छाया प्रिान करती है ।

➢ णचत्रा

णचत्रा अरूिा की घणनि णमत्र है । िह धनी णपता की एकमात्र साांतान है । िह होस्टल में रहकर पढ़ाई करती है ,
णकन्तु उसका मन णचत्रकला में ज्यािा लगता है । िही उसका साांसार है । िह महत्त्वाकााां क्षी तथा कलाजगत में यश
प्राप्त करने की इच्छु क है । समाज-कल्याि के कायों में उसकी रूणच नहीाां है । समाज से न जुड़ पाने के कारि ही
णचत्रा का चररत्र अरूिा के सामने बौना लगता है ।
लेिन : “मन के िारे िार मन के जीते जीत”

अजाांता के हलचल भरे बाजार में, सुगाांणधत मसालोाां की िु कानोाां और चमचमाते रे शम व्यापाररयोाां के बीच, िो भाई,
रणि और रोहन रहते थे। िोनोाां प्रणतभाशाली बुनकर, आगामी शाही समारोह के णलए बेहतरीन टे पेस्टरी बनाने के
णलए उत्सुक थे।

आत्मसाांिेह के बोझ से िबा रणि लगातार णचाांणतत रहता। "मेरे धागे बहुत मोटे हैं ," िह परे शान हो गया। "राां ग
पयाष प्त जीिाांत नहीाां होाांगे। राजा णनणश्चत रूप से इसे अस्वीकार कर िे गा।" उनकी णचाांताएँ उनके काम में प्रकट
हुईाां। उनकी टे पेस्टरी, हालााां णक तकनीकी रूप से अच्छी थी, प्रेरिा की णचाांगारी का अभाि था।

िू सरी ओर, रोहन ने अपने कायष को अटू ट आत्मणिश्वास के साथ पूरा णकया। उन्ोाांने टे पेस्टरी की भव्यता की
कल्पना की, णजस तरह से प्रकाश इसके जणटल पैटनष पर नृि करे गा। उन्ोाांने हर गलती को सीखने के अनुभि,
अपनी कला को णनखारने के अिसर के रूप में स्वीकार णकया। उनका उत्साह उनके काम में उमड़ पड़ा और
उसमें जीिाांत ऊजाष भर गई।

जैसे ही समारोह का णिन आया, िोनोाां भाइयोाां ने अपनी टे पेस्टरी प्रस्तुत की। हालााां णक, रणि अच्छी तरह से तैयार थे,
लेणकन प्रभाणित करने में असिल रहे । राजा ने णिनम्रता से णसर णहलाया, उसकी आँ खें जल गईाां। लेणकन जब
रोहन ने अपनी रचना का अनािरि णकया, तो हॉल में हाां सी गूाांज उठी। धागे णझलणमला रहे थे, राां ग गा रहे थे और
जणटल पैटनष लुभािनी सुाांिरता का दृश्य िशाष रहे थे। राजा अचाांणभत था. रोहन ने कमीशन जीत णलया था।

णनराश रणि ने अपने भाई की कायषशाला में सााांत्वना मााां गी। "आपने ऐसा कैसे णकया?" उसने शोक व्यक्त णकया।

रोहन मुस्कुराया. "एकमात्र अाांतर, भाई, हमारे णिमाग में था। आपने डर को अपने ऊपर हािी होने णिया, जबणक
मैंने सृजन के आनाांि पर ध्यान केंणद्रत णकया। याि रखें, सबसे बड़ी लड़ाई तलिारोाां से नहीाां, बत्यि हमारे अपने
णिमाग में लड़ी जाती है ।"

आत्यखरकार रणि को समझ आ गया और उसने अपने भाई की बात को णिल पर ले णलया। िह सिलता की
कल्पना करने लगा, हर छोटी जीत का जश्न मनाने लगा। धीरे -धीरे उनके काम में बिलाि आया। उनकी टे पेस्टरी
को एक नया जीिन णमला, जो उनके भीतर त्यखले आत्मणिश्वास से भर गया।

हालाँ णक रणि िह पहली प्रणतयोणगता नहीाां जीत सके, लेणकन उन्ोाांने एक बहुत बड़ा सबक सीखा। सच्ा णिजेता
णसिष िह नहीाां था णजसके पास सबसे शानिार टे पेस्टरी थी, बत्यि िह भी था णजसने अपने णिमाग पर महारत
हाणसल कर ली थी। उस णिन से, िोनोाां भाई िले-िूले, मन के हारे हार मन के जीते जीत
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