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रसासङ्

ृ ‌मासमेदोऽस्थिमज्जशक्र ु ाणि धातवः ।


सप्त दष्ू याः मला मत्र
ू शकृत्स्वेदादयोऽपि च ।। 13 ।।

* पदच्छे दः- रस- असक


ृ ् -मांस-मेदः- अस्थि मज्ज-शक्र
ु ाणि, धातवः । सप्त, दष्ू याः, मला, मत्र
ू -शकृत ् स्वेद
आदयः, अपि च।

* अन्वय- रसासङ्
ृ ‌मासमेदोऽस्थिमज्जशक्र
ु ाणि सप्त धातवः दष्ू याः, मत्र
ू शकृत्स्वेदादयः मलाः अपि च (दष्ू याः)।

* शब्दार्थ - रसास‌ङ् ृ घमासमेदोऽस्थिमज्जशक्र ु ाणि = रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि मज्जा एवं शक्र ु सप्त = सात,
घातवः = धातए ु ँ, दष्ू याः = दष्ू य हैं। मत्र
ू शकृत्स्वेदादयः अपि च मला : = और मत्र
ू , परु ीष, स्वेद आदि मल भी,
(दष्ू याः = दष्ू य) हैं।

* भावार्थ- दोषों से दषि


ू त होने के कारण रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि मज्जा एवं शक्र
ु ये 'सात धातए
ु ँ दृष्य हैं
और मत्र
ू ुप रीष आदि मल भी द ष्
ू य है ।

* व्याकरणांशाः-

समास
रसासङ्ृ गांसमेदोऽस्थिमज्जशक्र
ु ाणि - रसः च असक
ृ ् च मांसं च मेदः च अस्थि च मज्जा च शक्र
ु ं च
(इतरे तरइन्द्र)

मत्र
ू ं च शकृत ् च = मत्र
ू शकृत ् (समाहारद्वन्द्वः)

संधि
मला मत्र
ू शकृत्स्वेदादयः - मलाः + मत्र
ू शकृत्स्वेदादयः (विसर्गसन्धिः)

स्वेदादयोऽपि - स्वेदादयो + अपि । (पर्व


ू रूपसन्धिः)

स्पष्टीकरण:-’धारणात ् धातवः' तथा 'मालिनिकरणात ् मलाः'। इस प्रकार धातु और मल संज्ञा बन गये। शरीर
में विभिन्न अंगों की संरचना धातओ
ु ं से बनी होती है । धातए ु ं शरीर को धारण करती हैं, और मल लंबे समय तक
शरीर में रहकर शरीर को दषिू त करता हैं, तो उन्हें 'दष्ु य' कहा जाता है । जो दोषों से दषि
ू त अर्थात विकृत हैं उन्हें
'दष्ु य' कहा जाता है ।

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