Professional Documents
Culture Documents
अन्वय लेखन उदा.
अन्वय लेखन उदा.
* अन्वय- रसासङ्
ृ मासमेदोऽस्थिमज्जशक्र
ु ाणि सप्त धातवः दष्ू याः, मत्र
ू शकृत्स्वेदादयः मलाः अपि च (दष्ू याः)।
* शब्दार्थ - रसासङ् ृ घमासमेदोऽस्थिमज्जशक्र ु ाणि = रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि मज्जा एवं शक्र ु सप्त = सात,
घातवः = धातए ु ँ, दष्ू याः = दष्ू य हैं। मत्र
ू शकृत्स्वेदादयः अपि च मला : = और मत्र
ू , परु ीष, स्वेद आदि मल भी,
(दष्ू याः = दष्ू य) हैं।
* व्याकरणांशाः-
समास
रसासङ्ृ गांसमेदोऽस्थिमज्जशक्र
ु ाणि - रसः च असक
ृ ् च मांसं च मेदः च अस्थि च मज्जा च शक्र
ु ं च
(इतरे तरइन्द्र)
मत्र
ू ं च शकृत ् च = मत्र
ू शकृत ् (समाहारद्वन्द्वः)
संधि
मला मत्र
ू शकृत्स्वेदादयः - मलाः + मत्र
ू शकृत्स्वेदादयः (विसर्गसन्धिः)
स्पष्टीकरण:-’धारणात ् धातवः' तथा 'मालिनिकरणात ् मलाः'। इस प्रकार धातु और मल संज्ञा बन गये। शरीर
में विभिन्न अंगों की संरचना धातओ
ु ं से बनी होती है । धातए ु ं शरीर को धारण करती हैं, और मल लंबे समय तक
शरीर में रहकर शरीर को दषिू त करता हैं, तो उन्हें 'दष्ु य' कहा जाता है । जो दोषों से दषि
ू त अर्थात विकृत हैं उन्हें
'दष्ु य' कहा जाता है ।