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क्या बताती है हमें हमारी कब्रें

❖ वेद :-
➢ वेदों की संख्या 4 है।
✓ ऋग्वेद
✓ सामवेद
✓ यजवु ेद
✓ अथवववेद
➢ ऋग्वेद की रचना लगभग 3500 साल पहले हुई है , जजसमे 1000 से ज्यादा प्राथवनाएँ है जजन्हें “सक्त ू ” कहा
जाता है।
➢ “सक्त
ू ” का अथव होता है – अच्छी तरह से बोला गया।
➢ ये “सक्तू ” जवजभन्न देवी-देवताओ ं की स्तजु त में रचे गए हैं।
➢ इनमें 3 देवताओ ं को प्रमख ु बताया गया है : -
✓ अजग्न – आग के देवता
✓ इन्र – यद्ध ु के देवता
✓ सोम – यह एक पौधा है जजससे एक खास पेय बनाया जाता है।
➢ वैजदक प्राथवनाओ ं की रचना – ऋजियों ने की थी।
➢ अजधकांश सक्त ू ों के रचजयता , सीखने-जसखाने वाले परुु ि थे लेजकन कुछ की रचना मजहलाओ ं ने भी की
थी।
➢ ऋग्वेद की भािा प्राक् सस्ं कृ त या वैजदक सस्ं कृ त कहलाती है।
❖ संस्कृ त व अन्य भािाएँ : -
➢ संस्कृ त भािा जहस्सा है – “भारोपीय” (भारत+यरू ोपीय) भािा-पररवार का
✓ भारत की कई भािाएँ – असजमया , गजु राती , जहन्दी , कश्मीरी और जसन्धी व एजशयाई भािाएँ जैसे फ़ारसी
तथा यरू ोप की बहुत सी भािाएँ जैसे अग्रं ेजी , फ्ासं ीसी ,जमवन , यनू ानी , इतालवी , स्पैजनश आजद इसी
पररवार से जड़ु ी है।
✓ इन्हें भािा-पररवार इसजलए कहा जाता है क्योंजक आरंभ में इनके काफी शब्द एक दसू रे से जमलते जल ु ते थे।
जैसे संस्कृ त में – मातृ, जहन्दी में –माँ , अंग्रेजी में – mother
✓ पवू ोत्तर प्रदेशों में – “जतब्बत-बमाव” पररवार की भािाएं बोली जाती है।
✓ रजवड पररवार की भािाएँ – तजमल , तेलगु ु , कन्नड , मलयालम
✓ झारखंड व मध्य भारत में – आस्रो-एजशयाजिक पररवार की भािाएँ
➢ ऋग्वेद के कुछ सक्त ू वातावलाप के रूप में है ।
✓ जजसमें एक प्रजसद्ध है – जवश्वाजमत्र और देजवयों के रूप में पजू जत 2 नजदयों (व्यास व सतलजु ) के बीच की
बाते।
➢ ऋग्वेद की एक पांडुजलजप (manuscript) का पन्ना बुजव वृक्ष की छाल पर जलखा हुआ पाया गया – कश्मीर
में
✓ लगभग 150 साल पहले ऋग्वेद को सबसे पहली बार छापने के जलए इसका उपयोग जकया गया था।
✓ इसी manuscript को देखकर अग्रं ेजी अनवु ाद तैयार जकया गया था।
✓ यह पांडुजलजप (manuscript) पणु े (महाराष्ट्र) के एक पस्ु तकालय में सरु जक्षत है।
➢ ऋग्वेद में “व्यास व सतलुज” नजदयों के साथ-साथ अन्य नजदयों जैसे सरस्वती , जसंधु व उसकी सहायक
नजदयों का भी उल्लेख है।
✓ “गगं ा व यमनु ा” का उल्लेख जसफव एक बार हुआ है।
✓ उस समय “गायों व घोड़ों” का बहुत महत्व होता था इसजलए नजदयों की तल ु ना ‘घोड़ों व गायों” से की गई
है।
❖ मवेशी , घोड़े व रथ : -
➢ ऋग्वेद में मवेजशयों , बच्चों (खासकर पत्रु ों) और घोड़ों के जलए अनेक प्राथवनाएँ है।
➢ घोड़ों का काम होता था - लड़ाई में रथ खींचना
➢ लड़ाइयाँ होती थी :-
✓ मवेजशयों के जलए
✓ जमीन के जलए
✓ पानी के स्त्रोतों के जलए
✓ लोगों को बंदी बनाने के जलए
➢ यद्धु ों में जीता गया धन सरदार , परु ोजहत व आम लोगों में बाँि जदया जाता था।
✓ कुछ धन यज्ञ करने के जलए प्रयोग जकया जाता था।
✓ यज्ञ में घी , अनाज , जानवरों की आहुजत दी जाती थी देवी-देवताओ ं को
✓ कोई स्थायी सेना नहीं होती थी , अजधकांश परुु ि यद्ध ु में भाग लेते थे।
➢ उस समय में लोगों का वगीकरण काम , भािा , पररवार या समदु ाय , जनवास स्थान या सांस्कृ जतक परंपरा
के आधार पर जकया जाता था
➢ परु ोजहत (ब्राह्मण ,जो यज्ञ करते थे) व राजा का वगीकरण – काम के आधार पर जकया गया था।
➢ जनता या परू े समदु ाय के जलए 2 शब्द प्रयोग जकए जाते थे – “जन” व जवश् (जजससे वैश्य शब्द जनकला)
इसजलए ऋग्वेद में जवश् और जनों के नाम जमलते है। जैसे – परू ु जन या जवश् , भरत जन या जवश् , यदु
जन या जवश् आजद ।
➢ जजन लोगों ने इन प्राथवनाओ ं की रचना की थी वे कभी-कभी खदु को “आयव” कहते थे तथा अपने जवरोजधयों
को “दास या दस्य”ु कहते थे।
✓ “दास या दस्य”ु वे लोग होते थे जो यज्ञ नहीं करते थे और दसू री भािाएँ बोलते थे।
✓ बाद में धीरे -धीरे समय के साथ “दास” का मतलब – गल ु ाम हो गया।
✓ “दास” वे स्त्री या परुु ि होते थे जजन्हें यद्ध
ु में बंदी बनाया जाता था, उन्हें उनके माजलक की जायदाद माना
जाता था। जो भी काम माजलक चाहते थे , उन्हें वह सब करना पड़ता था।

➢ ये जशलाखंड महापािाण (महा – बड़ा , पािाण – पत्थर ) नाम से जाने जाते है।
✓ ये पत्थर दफन करने की जगह पर लोगों द्वारा बड़े करीने से लगाए गए थे ।
✓ महापािाण कब्रें बनाने की प्रथा शरू
ु हुई थी – लगभग 3000 साल पहले
✓ यह प्रथा प्रचजलत थी - दक्कन , दजक्षण भारत , उत्तर-पवू ी भारत, कश्मीर में
✓ इस तरह के महापािाण को ताबतू शवाधान (जसस्ि) कहा जाता है।
✓ सामान्यतः मृतकों को खास जकस्म के जमट्टी के बतवनों के साथ दफनाया जाता था जजन्हें काले-लाल जमट्टी
के बतवन (black and red वेयर) के नाम से जाना जाता था ।
✓ इन महापािाण कब्रों के साथ लौहे के औजार और हजथयार , घोड़ों के कंकाल और सामान , पत्थर और
सोने के गहने आजद जमले है।
✓ ब्रह्मजगरी (कनाविक) से एक व्यजक्त की कब्र से 33 सोने के मनके व शंख पाए गए। जो उसके अमीर होने को
दशावते है।
✓ कभी-कभी महापािाण से एक से अजधक कंकाल भी जमले है हो दशावता है जक एक ही पररवार के लोगों को
एक ही स्थान पर अलग-अलग समय पर दफनाया गया था।
➢ इनामगाँव (पणु े) : -
✓ यह भीमा की सहायक नदी घोड़ के जकनारे है।
✓ यहाँ पर 3600 से 2700 साल पहले लोग रहते थे।
✓ यहाँ वयस्क को प्रायः गड्ढे में सीधा जलिाकर दफनाया जाता था , उनका जसर उत्तर की तरफ होता था। कई
बार इन्हे घर के अंदर ही दफना जदया जाता था।
✓ यहाँ से एक आदमी की कब्र जमली है पाँच कमरों वाले मकान के आँगन में , चार पैरों वाले जमट्टी के एक
बड़े से संदक ू में दफनाया गया था, जजसके पैर मड़ु े हुए थे।
➢ परु ातत्वजवदों को इनामगाँव से जमले साक्ष्य : -
✓ यहाँ गेहं , जौ , चावल , दाल , बाजरा , मिर व जतल के बीज जमले।
✓ गाय , बैल , भैस , बकरी , भेड़ , कुत्ता , गधा , सअ ू र , सांभर , जचतकबरा – जहरण , कृ ष्ट्ण-मृग , खरहा ,
नेवला , जचजड़याँ , घजड़याल , कछुआ , के कड़ा और मछली की हड्जडयाँ जमली है।
✓ यह से ऐसे साक्ष्य जमले है जक यहाँ से बेर , आंवला , जामनु , खजरू , और कई तरह की रसभररयाँ एकत्र
की जाती थी।
❖ चरक : -
✓ लगभग 2000 साल पहले प्रजसद्ध वैध हुए थे।
✓ इन्होंने जचजकत्सा शास्त्र पर “चरक संजहता” जलखी थी।
✓ इनके अनसु ार मानव शरीर में 360 हड्जडयाँ होती है।
✓ सभवतः इन्होंने अपनी जगनती में दांत , हड्जडयों के जोड़ और कािीलेज को भी शाजमल कर जलया था।
➢ चीन की लेखन कला के सबसे परु ाने उदाहरण जमले है – 3500 साल पहले
✓ यहाँ के राजा जानवरों की हड्जडयों पर जलखवाते थे जैसे जक क्या वे यद्ध ु जीतेंगे , क्या फसलें अच्छी होंगी
, क्या उन्हें पत्रु होंगे आजद । इसजलए इन्हें भजवष्ट्यवाणी करने वाली हड्जडयाँ कहा जाता था।
✓ ये सब जलखकर इन हड्जडयों को आग में डाल जदया जाता था , आग की वजह से इनमें दरारें पड़ जाती थी
जजन्हें देखकर भजवष्ट्यवक्ता भजवष्ट्यवाणी करने की कोजशश करते थे।
✓ वेदों की रचना का प्रारंभ – लगभग 3500 साल पहले
✓ महापािाणों के जनमावण की शरुु आत – लगभग 3000 साल पहले
✓ इनामगाँव में कृ िकों का जनवास – 3600 से 2700 साल पहले
✓ चरक – लगभग 2000 साल पहले

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