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श्री कृ ष्ण कृ पा कटाक्ष स्तोत्र

25 February 2024 by sunderkand.online

श्रीकृ ष्ण कृ पाक टाक्ष स्तोत्र एक हिन्दू धार्मिक स्तोत्र है जो भगवान श्रीकृ ष्ण की स्तुति में गाया जाता है। इस स्तोत्र
का पाठ करने से भक्तों का मानना है कि उन्हें भगवान श्रीकृ ष्ण की कृ पा प्राप्त होती है और उनके जीवन में सुख,
शांति, और समृद्धि आती है। यह स्तोत्र भक्तों को भगवान श्रीकृ ष्ण के निकट लाता है और उनके चरणों में अनन्य
भक्ति और समर्पण की भावना को जगाता है।

।। श्रीकृ ष्ण प्रार्थना ।।


मूकं करोति वाचालं पंगु लंघयते गिरिम्।
यत्कृ पा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्।।
नाहं वसामि वैकु ण्ठे योगिनां हृदये न च।
मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद।।

।। अथ श्री कृ ष्ण कृ पा कटाक्ष स्तोत्र ।।


भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं,
स्वभक्तचित्तरंजनं सदैव नन्दनन्दनम्।
सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं ,
अनंगरंगसागरं नमामि कृ ष्णनागरम्॥

मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं,
विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम्।
करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं,
महेन्द्रमानदारणं नमामि कृ ष्ण वारणम्॥

कदम्बसूनकु ण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं,


व्रजांगनैकवल्लभं नमामि कृ ष्णदुर्लभम्।
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया,
युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम्॥

सदैव पादपंकजं मदीय मानसे निजं,


दधानमुक्तमालकं नमामि नन्दबालकम्।
समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं,
समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम्॥

भुवो भरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं ,


यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम्।
दृगन्तकान्तभंगिनं सदा सदालिसंगिनं,
दिने-दिने नवं-नवं नमामि नन्दसम्भवम्॥

गुणाकरं सुखाकरं कृ पाकरं कृ पापरं,


सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनं।
नवीन गोपनागरं नवीनके लि-लम्पटं,
नमामि मेघसुन्दरं तडित्प्रभालसत्पटम्।।

समस्त गोप मोहनं, हृदम्बुजैक मोदनं,


नमामिकुं जमध्यगं प्रसन्न भानुशोभनम्।
निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं ,
रसालवेणुगायकं नमामिकुं जनायकम्।।

विदग्ध गोपिकामनो मनोज्ञतल्पशायिनं,


नमामि कुं जकानने प्रवृद्धवह्निपायिनम्।
किशोरकान्ति रंजितं दृगंजनं सुशोभितं,
गजेन्द्रमोक्षकारिणं नमामि श्रीविहारिणम्।।
अथ स्त्रोत्रम शुभ फलम्
यदा तदा यथा तथा तथैव कृ ष्णसत्कथा,
मया सदैव गीयतां तथा कृ पा विधीयताम्।
प्रमाणिकाष्टकद्वयं जपत्यधीत्य यः पुमान्,
भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान॥

Shri Krishna Kripa Kataksh Stotra | Mahalakshmi Iyer | Krishna Mantra | …

स्तोत्र के विभिन्न श्लोकों में भगवान श्रीकृ ष्ण के दिव्य गुणों, उनकी लीलाओं, और उनकी कृ पा के महत्व का वर्णन
किया गया है। यह भक्तों को आत्मिक उन्नति की ओर मार्गदर्शन करता है और उनके हृदय में भक्ति और प्रेम की
भावना को उत्पन्न करता है।

इस स्तोत्र का पाठ या जप करने से भक्तों को अध्यात्मिक लाभ और आंतरिक शांति का अनुभव होता है, और
उनका मन विश्वास और समर्पण से भर जाता है। यह स्तोत्र भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक अभ्यास और साधना
का मार्ग प्रशस्त करता है, जिससे वे भगवान श्रीकृ ष्ण के अधिक निकट आ सकते हैं।

।। श्रीकृ ष्ण प्रार्थना ।।

मूकं करोति वाचालं पंगु लंघयते गिरिम्।


यत्कृ पा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्।।
नाहं वसामि वैकु ण्ठे योगिनां हृदये न च।
मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद।।

यह प्रार्थना भगवान श्रीकृ ष्ण के असीम कृ पा और भक्ति के महत्व को दर्शाती है। इसकी व्याख्या निम्नलिखित है:

मूकं करोति वाचालं पंगु लंघयते गिरिम्। यत्कृ पा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्।।
अर्थ: जिसकी कृ पा से मूक व्यक्ति वाचाल (बोलने वाला) बन जाता है और लंगड़ा व्यक्ति पहाड़ को
पार कर लेता है, ऐसे परमानंद रूपी माधव (भगवान श्रीकृ ष्ण) को मैं नमन करता हूँ।
व्याख्या: यह पंक्ति भगवान श्रीकृ ष्ण की असीम कृ पा को दर्शाती है, जिससे असंभव प्रतीत होने वाले
कार्य भी संभव हो जाते हैं।
नाहं वसामि वैकु ण्ठे योगिनां हृदये न च। मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद।।
अर्थ: मैं (भगवान श्रीकृ ष्ण) न तो वैकु ण्ठ में रहता हूँ और न ही योगियों के हृदय में; जहाँ मेरे भक्त
गान करते हैं, मैं वहाँ विराजमान हूँ, हे नारद।
व्याख्या: यह पंक्ति भगवान श्रीकृ ष्ण के भक्तों के प्रति उनके प्रेम को दर्शाती है। भगवान कहते हैं कि
वे उस स्थान पर उपस्थित रहते हैं, जहाँ उनके भक्त उनकी भक्ति में लीन होकर गान करते हैं। यह
उनके भक्तों के प्रति उनके अनन्य समर्पण और प्रेम को दर्शाता है।

इस प्रार्थना में नारद मुनि भगवान श्रीकृ ष्ण की कृ पा को प्राप्त करने की गहरी इच्छा व्यक्त करते हैं। उन्होंने बताया
कि भगवान श्रीकृ ष्ण की कृ पा से हर कोई अपने अवगुणों को विजयी बना सकता है और सभी को उनका
आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है। उनका स्थान उनके भक्तों के हृदय में होता है, जो उनकी भक्ति और प्रेम से उन्हें
स्तुति करते हैं।

।। अथ श्रीकृ ष्ण कृ पाकटाक्ष स्तोत्र ।।

भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं,


स्वभक्तचित्तरंजनं सदैव नन्दनन्दनम्।
सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं ,
अनंगरंगसागरं नमामि कृ ष्णनागरम्॥

यह श्रीकृ ष्ण कृ पाकटाक्ष स्तोत्र का पहला श्लोक है, जो भगवान श्रीकृ ष्ण की महिमा और उनके भक्तों के प्रति कृ पा
को व्यक्त करता है। इसकी व्याख्या निम्नलिखित है:

भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं, स्वभक्तचित्तरंजनं सदैव नन्दनन्दनम्।


अर्थ: मैं व्रज के एकमात्र आभूषण, सभी पापों को नष्ट करने वाले, अपने भक्तों के चित्त को प्रसन्न
करने वाले, सदैव नंद के पुत्र (श्रीकृ ष्ण) की भक्ति करता हूँ।
व्याख्या: इस पंक्ति में भगवान श्रीकृ ष्ण को व्रज का सर्वोच्च आभूषण और भक्तों के हृदय को
आनंदित करने वाले के रूप में वर्णित किया गया है। यह उनके दिव्य गुणों और उनके भक्तों के प्रति
उनकी असीम कृ पा को दर्शाता है।
सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं , अनंगरंगसागरं नमामि कृ ष्णनागरम्॥
अर्थ: जिनके सिर पर सुंदर मोर पंख का गुच्छा है, जिनके हाथ में मधुर वेणु (बांसुरी) है, जो कामदेव
के अनुराग के सागर हैं, उन कृ ष्णनागर (श्रीकृ ष्ण) को मैं नमन करता हूँ।
व्याख्या: इस पंक्ति में भगवान श्रीकृ ष्ण की दिव्य सौंदर्यता और उनके द्वारा विभोर करने वाले वेणु
नाद का वर्णन है। उन्हें अनुराग का सागर बताया गया है, जो सभी को अपनी भक्ति में बांधे रखता है।
इस प्रकार, श्रीकृ ष्ण के भक्त उनकी इस दिव्यता का गुणगान करते हैं और उन्हें नमन करते हैं।

यह श्लोक भगवान श्रीकृ ष्ण के चरित्र, उनकी दिव्यता, और उनके भक्तों के प्रति उनके प्रेम और कृ पा की गहराई
को व्यक्त करता है।
मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं,
विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम्।
करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं,
महेन्द्रमानदारणं नमामि कृ ष्ण वारणम्॥

यह श्रीकृ ष्ण कृ पाकटाक्ष स्तोत्र का दूसरा श्लोक है, जो भगवान श्रीकृ ष्ण के दिव्य गुणों और उनके लोक-सुधारक
कार्यों को प्रकाशित करता है। इसकी व्याख्या निम्नलिखित है:

मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं, विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम्।


अर्थ: जो मन (कामदेव) के अहंकार को नष्ट करते हैं, जिनकी बड़ी और चंचल आँखें हैं, जो गोपों के
दुःख को दूर करते हैं, ऐसे पद्मनाभ (श्रीकृ ष्ण) को मैं नमन करता हूँ।
व्याख्या: यह पंक्ति भगवान श्रीकृ ष्ण की दिव्य शक्तियों का वर्णन करती है, जैसे कि वे कामदेव के
अहंकार को नष्ट करने में सक्षम हैं और उनकी आँखें लोटस की पत्तियों की तरह सुंदर हैं। वे गोपों के
दुखों को दूर करते हैं, जिससे उनकी दयालुता और करुणा का पता चलता है।
करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं, महेन्द्रमानदारणं नमामि कृ ष्ण वारणम्॥
अर्थ: जिनके हाथ कमल के फू ल की तरह सुंदर हैं, जिनकी मुस्कान और दृष्टि अत्यंत मनोहारी है, जो
इंद्र के अहंकार को तोड़ते हैं, ऐसे कृ ष्ण को मैं नमन करता हूँ।
व्याख्या: यह पंक्ति भगवान श्रीकृ ष्ण की सुंदरता और उनकी दिव्यता को दर्शाती है। उनकी मुस्कान
और उनकी दृष्टि भक्तों के हृदय को मोह लेती है। इंद्र के अहंकार को तोड़कर, वे दिखाते हैं कि
वास्तविक शक्ति और सम्राज्य उनकी दिव्य इच्छा में है।

इस श्लोक के माध्यम से भगवान श्रीकृ ष्ण की अद्भुत शक्तियाँ, उनके सौंदर्य और उनकी दयालुता का वर्णन किया
गया है, जो उन्हें उनके भक्तों के लिए अत्यंत प्रिय और पूजनीय बनाता

कदम्बसूनकु ण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं,


व्रजांगनैकवल्लभं नमामि कृ ष्णदुर्लभम्।
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया,
युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम्॥

यह श्रीकृ ष्ण कृ पाकटाक्ष स्तोत्र का तीसरा श्लोक है, जो भगवान श्रीकृ ष्ण के सौंदर्य और उनके व्रजवासियों के प्रति
प्रेम को वर्णित करता है। इसकी व्याख्या निम्नलिखित है:

कदम्बसूनकु ण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं, व्रजांगनैकवल्लभं नमामि कृ ष्णदुर्लभम्।


अर्थ: जिनके कानों में कदम्ब के फू लों की सुंदर कु ण्डलें हैं, जिनके गालों की गोलाई अत्यंत मनोहर है,
जो व्रज की गोपियों के एकमात्र प्रियतम हैं, ऐसे दुर्लभ कृ ष्ण को मैं नमन करता हूँ।
व्याख्या: इस पंक्ति में भगवान श्रीकृ ष्ण के अद्वितीय सौंदर्य का वर्णन किया गया है। उन्हें व्रज की
गोपियों के प्रियतम के रूप में दर्शाया गया है, जो उनके प्रेम और भक्ति के कें द्र में हैं।
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया, युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम्॥
अर्थ: जो यशोदा, गोपियों, ग्वालों और नंदजी के साथ आनंद में रहते हैं, जो सुख के एकमात्र दाता हैं,
ऐसे गोपों के नायक (श्रीकृ ष्ण) को मैं नमन करता हूँ।
व्याख्या: इस पंक्ति में भगवान श्रीकृ ष्ण के व्रजवासियों के साथ उनके आनंदपूर्ण संबंधों का वर्णन
किया गया है। उन्हें सभी के लिए सुख के एकमात्र स्रोत के रूप में वर्णित किया गया है। उन्हें गोपों का
नायक भी कहा गया है, जो उनकी रक्षा करते हैं और उनके मार्गदर्शक हैं।

यह श्लोक भगवान श्रीकृ ष्ण के अनुपम सौंदर्य, उनके प्रेमपूर्ण संबंधों, और उनके भक्तों के प्रति उनकी कृ पा की
महिमा को प्रकट करता है।

सदैव पादपंकजं मदीय मानसे निजं,


दधानमुक्तमालकं नमामि नन्दबालकम्।
समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं,
समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम्॥

यह श्रीकृ ष्ण कृ पाकटाक्ष स्तोत्र का चौथा श्लोक है, जो भगवान श्रीकृ ष्ण की दिव्यता, उनके भक्तों के प्रति कृ पा
और सम्पूर्ण जगत के पोषण की भावना को व्यक्त करता है। इसकी व्याख्या निम्नलिखित है:

सदैव पादपंकजं मदीय मानसे निजं, दधानमुक्तमालकं नमामि नन्दबालकम्।


अर्थ: मैं हमेशा अपने मन में उनके चरण कमलों को धारण करता हूँ, जो मुक्ता की माला पहने हुए हैं,
ऐसे नंद के बालक (श्रीकृ ष्ण) को मैं नमन करता हूँ।
व्याख्या: यह पंक्ति भक्त की अनन्य भावना और श्रीकृ ष्ण के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा को दर्शाती है।
भक्त अपने मन में सदैव भगवान श्रीकृ ष्ण के चरण कमलों का ध्यान करते हैं, जो उन्हें आध्यात्मिक
संतोष और मुक्ति की ओर ले जाता है।
समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं, समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम्॥
अर्थ: जो सभी दोषों का नाश करते हैं, समस्त लोकों का पोषण करते हैं, और सभी गोपों के मन में
वास करते हैं, ऐसे नंदलाल (श्रीकृ ष्ण) को मैं नमन करता हूँ।
व्याख्या: इस पंक्ति में भगवान श्रीकृ ष्ण की विश्वव्यापी कृ पा और उनकी जगत के पोषण करने की
दिव्य शक्ति का वर्णन है। वे सभी दोषों को दूर करते हैं और सभी जीवों को आध्यात्मिक और भौतिक
रूप से पोषित करते हैं। वे गोपों के मन में भी विशेष स्थान रखते हैं, जो उनके अनन्य भक्त हैं।

यह श्लोक भगवान श्रीकृ ष्ण की अद्भुत शक्तियों, उनके भक्तों के प्रति उनके अनन्य प्रेम, और समस्त सृष्टि के पोषण
करने की उनकी दिव्य क्षमता को प्रकट करता है।

भुवो भरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं ,


यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम्।
दृगन्तकान्तभंगिनं सदा सदालिसंगिनं,
दिने-दिने नवं-नवं नमामि नन्दसम्भवम्॥

यह श्रीकृ ष्ण कृ पाकटाक्ष स्तोत्र का पांचवां श्लोक है, जो भगवान श्रीकृ ष्ण के दिव्य गुणों, उनकी अनुपम सौंदर्यता
और उनके भक्तों के प्रति उनके अद्वितीय प्रेम को वर्णित करता है। इसकी व्याख्या निम्नलिखित है:
भुवो भरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं , यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम्।
अर्थ: जो पृथ्वी के भार को कम करने के लिए अवतरित हुए, जो भवसागर के नाविक हैं, जो यशोदा
के किशोर पुत्र हैं, उन चित्त चोर (श्रीकृ ष्ण) को मैं नमन करता हूँ।
व्याख्या: यह पंक्ति भगवान श्रीकृ ष्ण के विभिन्न रूपों और कार्यों का वर्णन करती है। वे पृथ्वी पर
बढ़ते हुए भार को कम करने के लिए अवतार लेते हैं, भक्तों को संसार के भवसागर से पार कराने में
सहायता करते हैं, और उनकी मनमोहक लीलाओं से सबके चित्त को चुरा लेते हैं।
दृगन्तकान्तभंगिनं सदा सदालिसंगिनं, दिने-दिने नवं-नवं नमामि नन्दसम्भवम्॥
अर्थ: जिनकी आकर्षक दृष्टि से अंत नहीं है, जो सदैव सुदामा जैसे भक्तों के साथ हैं, जो प्रतिदिन
नया और अद्वितीय हैं, ऐसे नंद के पुत्र (श्रीकृ ष्ण) को मैं नमन करता हूँ।
व्याख्या: यह पंक्ति भगवान श्रीकृ ष्ण की अनंत सौंदर्यता, उनके भक्तों के साथ उनके अनन्य संबंध
और उनकी नित्य नवीनता को दर्शाती है। वे अपने दिव्य रूप और लीलाओं के माध्यम से प्रतिदिन
भक्तों के लिए नई आध्यात्मिक ऊर्जा और उत्साह का स्रोत बनते हैं।

इस श्लोक में भगवान श्रीकृ ष्ण के दिव्य गुणों, उनके लोकोत्तार सौंदर्य, और उनके भक्तों के प्रति उनके अद्भुत प्रेम
का गान किया गया है।

गुणाकरं सुखाकरं कृ पाकरं कृ पापरं,


सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनं।
नवीन गोपनागरं नवीनके लि-लम्पटं,
नमामि मेघसुन्दरं तडित्प्रभालसत्पटम्।।

यह श्रीकृ ष्ण कृ पाकटाक्ष स्तोत्र का छठा श्लोक है, जो भगवान श्रीकृ ष्ण की दिव्य गुणों, उनके सौंदर्य, और उनके
लीलाओं की अद्भुतता को वर्णित करता है। इसकी व्याख्या निम्नलिखित है:

गुणाकरं सुखाकरं कृ पाकरं कृ पापरं, सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनं।


अर्थ: जो गुणों का सागर हैं, सुख के दाता हैं, कृ पा के स्वामी हैं, और अपार कृ पा वाले हैं, देवताओं के
शत्रुओं को नष्ट करने वाले, ऐसे गोपों के आनंद (श्रीकृ ष्ण) को मैं नमन करता हूँ।
व्याख्या: इस पंक्ति में भगवान श्रीकृ ष्ण के अनेक दिव्य गुणों का वर्णन है। वे सभी के लिए सुख के
स्रोत हैं, उनकी कृ पा असीम है, और वे देवताओं के शत्रुओं का विनाश करने में सक्षम हैं।
नवीन गोपनागरं नवीनके लि-लम्पटं, नमामि मेघसुन्दरं तडित्प्रभालसत्पटम्।।
अर्थ: नए गोपीयों के प्रेमी, नवीन लीलाओं में अद्वितीय, मेघ के समान सुंदर, और बिजली के प्रकाश
से उज्ज्वल, ऐसे (श्रीकृ ष्ण) को मैं नमन करता हूँ।
व्याख्या: यह पंक्ति भगवान श्रीकृ ष्ण की लीलाओं की नवीनता और उनके अद्वितीय सौंदर्य को
दर्शाती है। वे गोपियों के साथ अपनी नवीन लीलाओं में लिप्त रहते हैं, और उनका रूप मेघ और
बिजली की चमक के समान अद्भुत है।

इस श्लोक में भगवान श्रीकृ ष्ण के गुणों, उनके अद्वितीय प्रेम लीलाओं, और उनके दिव्य सौंदर्य की स्तुति की गई
है।

समस्त गोप मोहनं, हृदम्बुजैक मोदनं,


नमामिकुं जमध्यगं प्रसन्न भानुशोभनम्।
निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं ,
रसालवेणुगायकं नमामिकुं जनायकम्।।

यह श्रीकृ ष्ण कृ पाकटाक्ष स्तोत्र का सातवां श्लोक है, जो भगवान श्रीकृ ष्ण के दिव्य गुणों और उनकी अतुलित
सौंदर्यता की स्तुति करता है। इसकी व्याख्या निम्नलिखित है:

समस्त गोप मोहनं, हृदम्बुजैक मोदनं, नमामिकुं जमध्यगं प्रसन्न भानुशोभनम्।


अर्थ: सभी गोपों को मोहने वाले, हृदय के कमल में आनंद देने वाले, वृन्दावन के मध्य में स्थित,
जिनका चेहरा सूर्य की शोभा से चमक रहा है, ऐसे (श्रीकृ ष्ण) को मैं नमन करता हूँ।
व्याख्या: इस पंक्ति में भगवान श्रीकृ ष्ण की अद्वितीय सौंदर्यता और उनके वृन्दावन में आनंदित
लीलाओं की स्तुति की गई है। उनकी प्रसन्नता और सूर्य की तरह चमकते चेहरे का वर्णन किया गया
है।
निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं , रसालवेणुगायकं नमामिकुं जनायकम्।।
अर्थ: सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाले, मनोहारी साजन के सान्निध्य को प्रिय जो कांच और माधुर्य
से बहीं हुई हैं, ऐसे (श्रीकृ ष्ण) को मैं नमन करता हूँ।
व्याख्या: इस पंक्ति में भगवान श्रीकृ ष्ण के आलोक में सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाले और उनकी
चमकदार लीलाओं की स्तुति की गई है। उनके साथ के समय को सुरमय और मनमोहक बताया गया
है।

इस श्लोक में भगवान श्रीकृ ष्ण के अद्वितीय गुणों और उनके सौंदर्य की स्तुति की गई है, जो उनके भक्तों के मन को
मोह लेते हैं।

विदग्ध गोपिकामनो मनोज्ञतल्पशायिनं,


नमामि कुं जकानने प्रवृद्धवह्निपायिनम्।
किशोरकान्ति रंजितं दृगंजनं सुशोभितं,
गजेन्द्रमोक्षकारिणं नमामि श्रीविहारिणम्।।

यह श्रीकृ ष्ण कृ पाकटाक्ष स्तोत्र का आठवां श्लोक है, जो भगवान श्रीकृ ष्ण के विलक्षण लीलाओं, उनके अद्भुत
सौंदर्य और उनके दिव्य कार्यों को वर्णित करता है। इसकी व्याख्या निम्नलिखित है:

विदग्ध गोपिकामनो मनोज्ञतल्पशायिनं, नमामि कुं जकानने प्रवृद्धवह्निपायिनम्।


अर्थ: गोपियों के मन को आकर्षित करने वाले, मनोरम शय्या पर विश्राम करने वाले, वृन्दावन के
कुं जों में विराजमान, और प्रज्वलित अग्नि को शांत करने वाले, ऐसे (श्रीकृ ष्ण) को मैं नमन करता हूँ।
व्याख्या: इस पंक्ति में भगवान श्रीकृ ष्ण की गोपियों के साथ उनकी लीलाओं, उनके द्वारा वृन्दावन के
कुं जों में बिताए गए क्षणों, और उनके द्वारा किए गए चमत्कारों (जैसे अग्नि को शांत करना) का वर्णन
किया गया है।
किशोरकान्ति रंजितं दृगंजनं सुशोभितं, गजेन्द्रमोक्षकारिणं नमामि श्रीविहारिणम्।।
अर्थ: जिनकी यौवन शोभा आकर्षक है, जिनकी आँखें मनमोहक हैं, जिन्होंने गजेंद्र (हाथी) का उद्धार
किया, ऐसे श्रीविहारी (श्रीकृ ष्ण) को मैं नमन करता हूँ।
व्याख्या: यह पंक्ति भगवान श्रीकृ ष्ण के युवा सौंदर्य, उनकी आँखों की चमक, और उनके द्वारा किए
गए दिव्य कार्यों (जैसे गजेंद्र का मोक्ष) की स्तुति करती है।
इस श्लोक में भगवान श्रीकृ ष्ण के लीलाओं की विविधता, उनके अद्भुत सौंदर्य, और उनके द्वारा किए गए दिव्य
कार्यों की महिमा को प्रकट किया गया है।

अथ स्त्रोत्रम शुभ फलम्

यदा तदा यथा तथा तथैव कृ ष्णसत्कथा,


मया सदैव गीयतां तथा कृ पा विधीयताम्।
प्रमाणिकाष्टकद्वयं जपत्यधीत्य यः पुमान्,
भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान॥

यह श्रीकृ ष्ण कृ पाकटाक्ष स्तोत्र का शुभ फल वर्णन करता है, जो इस स्तोत्र के पाठ या जप के लाभ को बताता है।
इसकी व्याख्या निम्नलिखित है:

यदा तदा यथा तथा तथैव कृ ष्णसत्कथा, मया सदैव गीयतां तथा कृ पा विधीयताम्।
अर्थ: जब भी, जैसे भी, वैसे ही श्रीकृ ष्ण की सच्ची कथाओं का गायन मैं सदैव करूँ , वैसी ही कृ पा
मुझ पर की जाए।
व्याख्या: इस पंक्ति में यह व्यक्त किया गया है कि भक्त भगवान श्रीकृ ष्ण की लीलाओं और कथाओं
को सदैव गाना चाहते हैं, और इस कार्य के माध्यम से वे भगवान की कृ पा की कामना करते हैं।
प्रमाणिकाष्टकद्वयं जपत्यधीत्य यः पुमान्, भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान॥
अर्थ: जो व्यक्ति इस प्रमाणित आठ श्लोकों को जपता है या पढ़ता है, वह हर जन्म में नन्दनंदन
(श्रीकृ ष्ण) का सच्चा भक्त बनता है।
व्याख्या: इस पंक्ति में स्तोत्र के जप या पाठ के शुभ फल का वर्णन किया गया है। यह बताया गया है
कि इस स्तोत्र का नियमित अभ्यास करने से भक्त हर जन्म में भगवान श्रीकृ ष्ण की अनुकं पा प्राप्त
करता है और उनके प्रति अटूट भक्ति का विकास करता है।

इस प्रकार, श्रीकृ ष्ण कृ पाकटाक्ष स्तोत्र के पाठ या जप से भक्त को भगवान श्रीकृ ष्ण की कृ पा प्राप्त होती है और
उनके प्रति गहरी भक्ति और समर्पण की भावना विकसित होती है।

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श्री कृ ष्ण कृ पा कटाक्ष स्तोत्र क्या है?


श्री कृ ष्ण कृ पा कटाक्ष स्तोत्र भगवान कृ ष्ण की स्तुति में गाया गया एक हिंदू धार्मिक भजन है। ऐसा माना जाता है
कि यह भक्तों पर भगवान कृ ष्ण की कृ पा प्रदान करता है, जिससे उनके जीवन में खुशी, शांति और समृद्धि आती
है। यह स्तोत्र भक्तों को भगवान कृ ष्ण के करीब जोड़ता है, उनके हृदय में भक्ति और समर्पण की गहरी भावना
जागृत करता है।
इस स्तोत्र का पाठ या जाप करने से क्या लाभ होते हैं?
श्री कृ ष्ण कृ पा कटाक्ष स्तोत्र का पाठ या जाप करने से भक्तों को आध्यात्मिक लाभ और आंतरिक शांति मिलती है।
यह उनके मन को आस्था और भक्ति से भर देता है, एक आध्यात्मिक अभ्यास के रूप में कार्य करता है जो उन्हें
भगवान कृ ष्ण के करीब लाता है।

भगवान कृ ष्ण अपने भक्तों के संबंध में अपनी उपस्थिति का वर्णन


कै से करते हैं?
भगवान कृ ष्ण कहते हैं कि वह वैकुं ठ (उनके दिव्य निवास) या योगियों के दिलों में नहीं रहते हैं, बल्कि जहां भी
उनके भक्त उनकी स्तुति गाते हैं, वहां मौजूद होते हैं। यह उनके भक्तों के प्रति उनके गहन प्रेम और प्रतिबद्धता को
उजागर करता है।

भगवान कृ ष्ण की कृ पा के संबंध में स्तोत्र का अंतिम संदेश क्या है?


स्तोत्र बताता है कि भगवान कृ ष्ण की महिमाओं और कहानियों का निरंतर पाठ या गायन उनकी कृ पा को
आकर्षित करता है। यह इस बात पर जोर देता है कि इस तरह की भक्ति हर जीवन में भगवान कृ ष्ण के प्रति प्रेम
और भक्ति का एक शाश्वत बंधन पैदा करती है, जिससे भक्त उनके दिव्य प्रेम और दया का सच्चा प्राप्तकर्ता बन
जाता है।

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2. Ashta Siddhi – अष्ट सिद्धि

अष्ट सिद्धि (Ashta Siddhi), या आठ आध्यात्मिक शक्तियाँ, वास्तव में भगवान ...

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3. संपूर्ण पुष्पांजलि मंत्र


संपूर्ण पुष्पांजलि मंत्र हिन्दू धर्म में एक विशेष स्थान रखता है। ...

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4. Ambe Tu Hai Jagdambe Kali – अम्बे तू है जगदम्बे काली


अम्बे तू है जगदम्बे काली,जय दुर्गे खप्पर वाली,तेरे ही गुण गावें ...

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5. Aarti Kunj Bihari ki – आरती कुं ज बिहारी की


“आरती कुं ज बिहारी की” एक भक्तिपूर्ण स्तुति (आरती) है जो भगवान ...

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6. पंचक

पंचक का अर्थ है ‘पांच’। पंचक का चयन चंद्रमा की स्थिति ...

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7. सिद्ध कुं जिका स्त्रोतम


॥सिद्धकु ञ्जिकास्तोत्रम्॥ शिव उवाचशृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कु ञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।येन मन्त्रप्रभावेण
चण्डीजापः शुभो भवेत॥१॥न कवचं ...

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8. संकल्प मंत्र
संकल्प मंत्र एक हिन्दू धार्मिक क्रिया है जो किसी भी पूजा ...

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9. दुर्गा सप्तशती
दुर्गा सप्तशती, जिसे देवी माहात्म्यम के नाम से भी जाना जाता ...

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10. कालसर्प योग


कालसर्प योग वैदिक ज्योतिष में एक विशेष और महत्वपूर्ण योग है, ...

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