छोड़ दो

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BILLABONG HIGH INTERNATIONAL SCHOOL, VADODARA

‘का य-१५ छोड़ दो’


कविय ी प रचय:
नालापत बालमिण अ मा बीसव शता दी क चिचत व िति त मलयालम कवियि य म से एक ह। उनका
ज म 19 जल ु ाई 1909 को के रल के मालाबार िजला के पु नायक ु ु लम (म ास) ‘नालापत’ म हआ था। इनके
माता-िपता का नाम िच ंजरू कंु जि ण राजा और नालापत कूचक ु ु ी अ मा था। य िप उनका ज म 'नालापत'
के नाम से पहचाने-जाने वाले एक िढ़वादी प रवार म हआ, जहाँ लड़िकय को िव ालय भेजना अनिु चत
माना जाता था। इसिलए उनके िलए घर म िश क क यव था कर दी गई थी, िजनसे उ होने सं कृत और
मलयालम भाषा सीखी। नालापत बालमिण अ मा भारत क मलयालम भाषा क ितभावान और महान
किवियि य म से एक थी। बालमिण अ मा को छायावादी यगु क कविय ी महादेवी वमा के समकालीन माना
जाता है। अपने परू े जीवन म बालमिण अ मा ने 500 से अिधक किवताएँ िलख । बालमिण अ मा जी को
आधिु नक मलयालम क सश किवि य म से एक होने के कारण उ ह मलयालम सािह य क दादी के नाम से
भी जाना जाता है। 95 वष क अव था म 29 िसतबं र 2004 को कोि च म उनक मृ यु हो गई। के रल सािह य
अकादमी परु कार, सािह य अकादमी परु कार और िश ा परु कार, एन वी कृ णा वा रयर तथा देश के दसू रे
सव च नाग रक पुर कार प भषू ण पुर कार से स मािनत िकया गया। इनक मु य रचनाएँ है- कुदिु बनी,
ी दयम, भांकुरम, हमारा पैर, सोपानम,अमतृ ंगयम ,सं या ,िनवे म ,इ यािद।

का य का उ े य :
यह एक मािमक किवता है िजसम पशु -पि य क वेदना का यथाथ िच ण हआ है। ततु किवता के मा यम
से कविय ी बालमिण अ मा ने पशु और पि य क वेदना को य िकया है। उनक विृ कृित म व छंद
िवचरण करना है। मनु य जब उ ह अपनी ज रत या शौक के िलए बधं न म रखते है तब वे उ ह सख
ु न देकर
उनके िलए दख ु का कारण बन जाते है। पशु-पि य के साथ नेह भरा यवहार करना उिचत है परंतु यह
यवहार बंधन मु होना चािहए। कविय ी का मु य उ े य है िक मानव के दय म पशु और पि य के ित
सवं ेदनाएँ जागतृ कर सके तथा मनु य उनक भावनाओ ं से प रिचत हो सक ।

का य का भावाथ:-
“छोड़ दो मुझे
इस िपंजरे से,
से थोड़ा िवहार करने दो
खुले आसमान पर !”
ततु पंि याँ मलयाली किवता से ली गई ह। िजसक कविय ी बालमिण अ मा ह। ततु किवता क पंि य
म कविय ी ने एक िचिड़या के मा यम से आजादी ( वतं ता) के मह व को बताते हए कहा है िक बधं न िकसी
को अ छा नह लगता। सभी आजाद रहना चाहते ह, चाहे वह पशु प ी हो या हम मनु य अथात आजादी सभी
को ि य लगती है।
या या/अथ : ततु पिं य म एक न ही िचिड़या अपने आपको िपजं रे से आज़ाद करने के िलए कहती है िक
इस िपजं रे से मझु े आज़ाद कर दो। मझु े इस िपंजरे से आज़ाद होकर खल
ु े आसमान म घमू कर थोड़ा मनोरंजन
करने दो अथात मझु े खुले आसमान म आज़ादी से उड़ने दो।

“आ गया है विणम भात,


नभ क ओर उड़ रहे ह मे रे बंधगु ण
और म छोटी-सी िचिड़या
उषा के व छ िनमल काश म भी
अध ं कार के भीतर हँ”
या या/अथ:-
सनु हरी सबु ह हो चक
ु है और चार तरफ सूय क िकरण का काश फै ल गया है। आकाश म मेरे भाई-बंधु
अथात प ी उड़ रहे ह मझु े भी उनके साथ उड़ना है। न ह िचिड़या कहती है िक सबु ह के साफ़ और उजले
काश म भी म इस िपंजरे म कै द हँ। जहाँ मेरे जीवन म अँधेरा ही अँधेरा है। मुझे इस अँधेरे से मु कर दो मझु े
भी अपने भाई बंधओ ु ं के साथ खल
ु े आसमान म उड़ान भरने दो।

“लगता है
िपंजरे क येक सलाख
हँसती रहती है मे री ओर देखकर”
या या/अथ:- मझु े िपंजरे म बदं होकर ऐसा लगता है जैसे िपंजरे क येक सलाख मेरी ओर देखकर मेरा
मजाक उड़ाती रहती ह। जो मुझे िब कुल भी अ छा नह लगता। म इस बंधन से मु वछंद उड़ान भरना
चाहती हँ। मुझे इन सलाख म बंद करने वाले, अब मझु े मेरी वतं ता दे दो।

“मानव चाहे
िकतना ही लाड़- यार य न करे ,
मे रे अंतरंग म
अक ं ु रत नह कर सकता शांित ।
छोड़ दो मुझे इस िपजं रे से
मुझे थोड़ा िवहार करने दो
खुले आसमान पर!”
या या/अथ:- न ही िचिड़या कहती है िक मनु य चाहे मझु े िकतना ही लाड़ यार य न कर ले अथात मनु य
मझु े िकतना भी यार कर ले पर मेरे अदं र वह शांित के बीज अंकु रत (उ प न) नह कर सकता। मनु य ने तो मझु े
िपंजरे म बंद करके मेरी आजादी छीन ली है और मेरी शांित भंग कर दी है जबिक मुझे शांित तो वतं होकर ही
िमलेगी। न ह िचिड़या कहती है िक मझु े इस िपंजरे से छोड़ दो अथात मझु े इस िपंजरे से आजाद कर दो। मझु े भी
आजाद होकर इस खल ु े आसमान म घमू कर थोड़ा मनोरंजन करने दो। जो शािं त और सख ु म चाहती हँ, उसे पा
लेने दो ।
िन निलिखत के उ र दीिजए।
१“छोड़ दो मुझे
इस िपंजरे से,
मझु े थोड़ा िबहार करने दो
खल ु े आसमान पर।”

(क) उपरो पिं य का भाव प क िजए।


(ख)“ काश म भी,अधं कार के भीतर हँ।”- ततु पिं य का भाव प क िजए ।
(ग) मानव के िलए वतं ता का या अथ है ?
(घ) कविय ी ने इस किवता म िकसके दखु का वणन िकया है तथा य ?

-2” लगता है
इस िपजं रे क येक सलाख ,
हँसती रहती है
मेरी ओर देखकर ।”

(क) िचिड़या को ऐसा य लगता है िक उसे देखकर सलाख हँसती ह ?


(ख) किवता म िकस शांित क बात क जा रही है ?
(ग) ततु किवता पढ़कर आपके भीतर कौन-से भाव जागतृ हए तथा पश-ु पि य के िलए आप कर सकते है?
(घ) िन निलिखत श द का अथ िलिखए -
िवहार, विणम, उषा, िनमल, सलाख, अंकु रत

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