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4 अकबर के दरबार के 9 रत्न - अकबर के दरबारी नवरत्न - Akbar Ke Navratna
4 अकबर के दरबार के 9 रत्न - अकबर के दरबारी नवरत्न - Akbar Ke Navratna
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अकबर के दरबार के नवर�न : अकबर के नवर�न (Nine Jewels of Akbar) एक नौ ���तय� का समूह है जो मुग़ल स�ाट
अकबर के दरबार म� मह�वपूण� नृ�यकला, सा�ह�य, �व�ान, ग�णत, तक�शा��, राजनी�त, �च�क�सा, संगीत, और �श�ा से जुड़े नौ
�व�ान� को संद�भ�त करता है। इन नवर�न� को अकबर के दरबार म� उनके साथी, संगीतकार, �व�ान, �व�मं�ी, सेनाप�त, मं�ी
और हक�म आ�द के �प म� �ान �दया गया था, �ज�ह�ने अपने-अपने �े� म� अ�य�धक �या�त �ा�त क�।
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अबुल फजल का �ारं�भक जीवन इ�तहास म� दरबार� और समाज� के बीच या�ा� से भरा �आ था। उनका ज�म आगरा म� �आ
था, और उनका पूरा प�रवार पहले �स�ध से आकर �ायी �प से राज�ान के नागौर, आस-पास के अजमेर, म� बस गया था।
अबुल फजल का बचपन से ही उदार और ��तभाशाली था। उनके �पताजी ने उनक� �श�ा का �वशेष �यान रखा और उ�ह� एक
गुणी समी�क और �व�ान बनाया।
उनक� 20 वष� क� आयु म� ही उ�ह�ने �श�क बनने का �नण�य �लया, और 1573 ई. म� उ�ह� अकबर के दरबार म� �वीकृ�त �मली।
अबुल फजल ने अपनी असाधारण ��तभा, सतक� �न�ा, और वफादारी के साथ अकबर का �व�ास �ा�त �कया और उ�ह� शी�
ही �धानमं�ी बनने का औरोध �मला।
अबुल फजल ने अपने राजनै�तक और सा�ह��यक योगदान के साथ ही इ�तहास लेखन म� भी मह�वपूण� भू�मका �नभाई। उ�ह�ने
अकबरनामा और आइने अकबरी क� रचना करके भारतीय मुग़लकालीन समाज और स�यता का �ववरण �कया और इसे लोग�
के सामने ��तुत �कया।
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फ़ैज़ी के �पता का नाम शेख मुबारक नागौरी था और वे �स�ध के �स�व�तान, सहवान के �नकट रेल नामक �ान के एक �स�ी
शेख शेख मूसा क� पांचव� पीढ़� से थे। उनका ज�म आगरा म� 954 �ह. (1547 ई.) म� �आ था। उ�ह�ने अपनी पूरी �श�ा अपने
�पता से �ा�त क� थी और उनके �पताजी सु�ी, �शया, महदवी सबसे सहानुभू�त रखते थे। फ़ैज़ी तथा अबुल फ़ज़ल ने इसी
���कोण के कारण अकबर के रा�यकाल म� सुलह कुल (धा�म�क स�ह�णुता) क� नी�त को �� �प से समथ�न �दया।
974 �ह. (1567 ई.) म� फ़ैज़ी ने शाही दरबार के क�व बनने का मौका पाया, �क�तु अब तक धा�म�क �वषय� पर अकबर ने �वतं�
�प से �नण�य लेना शु� नह� �कया था, इसके कारण शेख मुबारक, फ़ैज़ी और अबुल फ़ज़ल ने कुछ समय तक दरबार के
आ�लम� के अ�याचार का सामना करना पड़ा।
1574 ई. म� अबुल फ़ज़ल भी दरबार म� शा�मल �ए और उस समय से फ़ैज़ी क� भी उ��त �ई। 1578 ई. म� अकबर ने अपने पु�
शाहज़ादे सलीम और मुराद क� �श�ा का भार उनको स�पा। 1579 ई. म� अकबर ने फ़तहपुर क� जामा म��जद म� जो खुतबा
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990 �ह. (1581 ई.) म� इ�ह� अकबर �ारा आगरा, कालपी और क�ल�जर का सदर �नयु�त �कया गया और 11 फ़रवरी 1589 ई.
को उ�ह� ‘म�लकु�शु अरा’ (क�वस�ाट् ) क� उपा�ध �दान क� गई। 999 �ह. (अग�त, 1591 ई.) म� उ�ह� खानदे श के राजा अली
खां और अहमदनगर के बुरहानुलमु�क के पास राज�त बनाकर भेजा गया, ले�कन एक वष� आठ महीने चौदह �दन के बाद
उ�ह�ने दरबार म� वापसी क�।
10 सफ़र, 1003 �ह. (15 अ�टू बर 1595 ई.) को द��खन से वापस लौटने के कुछ वष� बाद फ़ैज़ी को �य रोग के अ�य�धक
बढ़ने से आगरा म� उनक� मृ�यु हो गई। पहले उ�ह� आगरा के रामबाग म� दफ़नाया गया, �क�तु बाद म� �सकंदरा के पास उनके
मकबरे म� दफ़नाया गया।
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उनका जीवन भ��तकालीन का� के साथ जुड़ा �आ है, और इस�लए वे सा�ह�य के इ�तहास म� उ�लेखनीय ह�। उनके जीवन का
बड़ा �ह�सा �व�भ� �क�वदं �तय� और अनु�ु�तय� पर आधा�रत है। उनके द��ा-गु� के �प म� ��स� कृ�ण-भ�त �वामी ह�रदास
को माना जाता है, और उनके भ�ट का उ�लेख �व�भ� का� �ंथ� म� है। “चौरासी वै�णवन क� वाता�” और “दो सौ बावन वै�णवन
क� वाता�” म� इनके भ�ट क� चचा� �मलती है।
तानसेन ने ह�रदास के साथ वृ�दावन संगीत क� �श�ा �ा�त क�। उ�ह�ने मान�स�ह क� �वधवा प�नी, मृगनयनी से भी संगीत क�
�श�ा �ा�त क�। बचपन म� तानसेन ने पशु-प��य� क� �व�भ� बो�लय� क� स�ी नकल क� और वे �ह�सक पशु� क� बोली से
लोग� को डराते थे। एक �दन, �वामी ह�रदास से �मलने के दौरान उ�ह�ने अपनी अ��तीय नकल �मता का �दश�न �कया। �वामी
जी ने तानसेन को अपने �पता से संगीत �सखने के �लए माँग �लया, �जससे तानसेन को संगीत का �ान �आ। 1586 म�, तानसेन
क� मृ�यु आगरा म� हो गई, और उनक� इ�ा के अनुसार उनका मकबरा मोह�मद गौस के मकबरे के समीप बनाया गया जो
�वा�लयर म� ��त है।
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बीरबल ने अकबर का द�न-ए-इलाही अपनाया था और फ़तेहपुर सीकरी म� उनका एक सुंदर मकान था। उ�ह� मुग़ल दरबार का
�मुख वज़ीर बनाया गया था और उनका ब�त �भाव राज दरबार म� था। बीरबल क�वय� का स�मान करते थे और वह �वयं भी
�जभाषा का अ�ा जानकार और क�व थे।
राजा बीरबल का ज�म संवत 1584 �व�मी म� कानपुर �ज़ले के अंतग�त ‘���व�मपुर’ अथा�त् �तकवांपुर म� �आ था। भूषण क�व
ने अपने ज�म�ान ���व�मपुर म� ही इनका ज�म होना �लखा है। �याग के अशोक-�तंभ पर इसका लेख है- “संवत 1632 शाके
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1493 माग� बद� 5 सोमवार गंगादास सुत महाराज बीरबल �ी तीरथराज क� या�ा सुफल �ल�खतं।”
बदायूंनी ने बीरबल के उपनाम �� म� दास �मलाकर इनका नाम ��दास �लखा है। ये का�यकु�ज �ा�ण थे। अकबर ने उ�ह�
‘राजा’ और ‘क�वराय’ क� उपा�ध से स�मा�नत �कया था और उनका सा�ह��यक जीवन राजदरबार म� मनोरंजन करने तक ही
सी�मत रहा।
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�बहार के पटना �सट� के द�वान मोह�ले म�, नौजरघाट ��त �च�गु�त मं�दर का पुन�न�मा�ण, राजा टोडरमल और उनके नायब
कुवर �कशोर बहा�र ने करवाया था। इस प�रयोजना म�, कसौट� प�र क� �च�गु�त क� मू�त� को �हजरी सन 980 तदानुसार
इसव� सन 1574 म� �ा�पत �कया गया था।
उ�र �दे श रा�य के हरदोई जनपद म�, राज�व अ�धका�रय� के �लए बनाए गए एकमा� राज�व ��श�ण सं�ान का नाम राजा
टोडरमल भूलेख ��श�ण सं�ान रखा गया है, जहां आईएएस, आईपीएस, पीसीएस, पीपीएस के अलावा राज�व क�म�य� को
भूलेख संबंधी ��श�ण �दान �कया जाता है।
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मान�स�ह क� बुवा ने अकबर के साथ �ववाह �कया था, और मान�स�ह क� बहन क� शाद� 1584 म� जहांगीर सलीम के साथ �ई
थी। अकबर ने भी कई मुग़ल बेगम को मान�स�ह को द� थ�। अकबर के भाई क� बेट� मुबारक क� शाद� मान�स�ह से �ई थी।
महान इ�तहासकार कन�ल जे�स टॉड ने �लखा है – “भगवान दास के उ�रा�धकारी मान�स�ह को अकबर के दरबार म� �े� �ान
�मला था।..मान�स�ह ने उडीसा और आसाम को जीत कर उनको बादशाह अकबर के अधीन बना �दया. राजा मान�स�ह से
भयभीत हो कर काबुल को भी अकबर क� अधीनता �वीकार करनी पडी थी। अपने इन काय� के फल�व�प मान�स�ह बंगाल,
�बहार, द��ण और काबुल का शासक �नयु�त �आ था।”
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रहीम ने अकबर के दरबार म� नवर�न� म� भी अपनी जगह बनाई और उ�ह� �व�भ� �वषय� म� मा�हर बनाया गया। वे अरबी, तुक�,
फ़ारसी, सं�कृत और �ह�द� म� सुप�र�चत थे और �यो�तष के भी �ाता थे।
रहीम क� क�वताएं उनके भ��तभाव, नी�त और �ृंगार रस के साथ ��स� ह�। उनका का� आम जनता के बीच लोक��य था
और उनक� रचना� म� सामा�जक और धा�म�क संदेश होता था।
रहीम का दे हांत 70 वष� क� आयु म� 1626 म� �आ था, ले�कन उनक� क�वताएं आज भी �ह�द� सा�ह�य म� जी�वत ह� और लोग�
को उनके उदार भावना� और शैली के �लए याद �कया जाता है।
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हक़�म �माम के दो लड़के थे – पहला था हक़�म हा�जक और �सरा था हक़�म खुशहाल। हक़�म हा�जक ने अपनी पूरे जीवन म�
हक�मी �े� म� अपनी भू�मका �नभाई और हक़�म खुशहाल ने शाहजहाँ के समय म� एक हजारी मनसब पाकर द��ण का ब�ी
�नयत �आ।
महाबत ख़ाँ, जो समय के एक मह�वपूण� आदमी थे, ने हक़�म �माम पर �वशेष कृपा क� और उ�ह� अपनी सूबेदारी के समय म�
मह�वपूण� मान�सक और आ�थ�क समथ� का हक़दार माना।
इस �कार, हक़�म �माम ने अपने समय म� मुग़ल सा�ा�य के सेवा म� अपना योगदान �दया और उनके प�रवार के सद�य� ने भी
अपनी अ��त कला और सेवाएँ द�।
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अ�धकांश �व�ान इ�ह� पूण�तः का�प�नक मानते ह�। �व�ान उ�ह� मुग़ल� के वफादार सेनाप�त बैरम खान का पु� मानते ह�, �जनक�
हज पर जाते समय माहम अंगा के पु� अधम खान ने ह�या कर द� थी। बाद म� मु�ला को अकबर ने अपने दरबारी के �प म�
अपनाया और मुगल दरबार म� स�मान भी �दया।
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