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Shiv Chalisa in Hindi with Meaning

श्री शिव चालीसा पाठ शवशि

श्री Shiv Chalisa का पूर्ण फल प्राप्त करने के शलए प्रात: काल

शनत्यकर्ण से शनवृत्त होकर स्नान आशि करके िंकर भगवान की


र्ूशतण के आगे आसन पर बैठ जाएं । पूजन की सार्ग्री- चन्दन,

चावल, सफ़ेि आक के फूल, बेलपत्र, भां ग, काली शर्चण, तथा

िूप-िीप शिवजी के सार्ने रखें । अब र्न हीं र्न भोलेनाथ का

स्मरर् करते हुए िीप प्रज्वशलत करें व शनम्न श्लोक पढ़कर पुष्प
अशपणत करें ।

कपूणरगौरं करुर्ावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारर््।

सिा बसन्तं हृियारशबन्दे भबं भवानीसशहतं नर्ाशर्।।

अब श्री शिव चालीसा का पाठ प्रारम्भ करें । पाठ पूर्ण करने के


पश्चात ‘ॐ नर्ः शिवाय’ र्ंत्र का 108 बार सफ़ेि चन्दन की

र्ाला से जाप करें ।


Shiv Chalisa

श्री शिव चालीसा पाठ शहन्दी अथण सशहत

॥ िोहा ॥
जय गर्ेि शगररजा सुवन, र्ंगल र्ूल सुजान।
कहत अयोध्यािास तुर्, िे हु अभय वरिान॥
॥ चौपाई ॥
जय शगररजा पशत िीन ियाला।
सिा करत सन्तन प्रशतपाला॥
भाल चन्द्रर्ा सोहत नीके।
कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये।
र्ुण्डर्ाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
छशव को िे खख नाग र्न र्ोहे ॥
र्ैना र्ातु की हवे िु लारी।
बार् अंग सोहत छशव न्यारी॥
कर शत्रिूल सोहत छशव भारी।
करत सिा ित्रुन क्षयकारी॥
नखन्द गर्ेि सोहै तहँ कैसे।
सागर र्ध्य कर्ल हैं जैसे॥
काशतणक श्यार् और गर्राऊ।
या छशव को कशह जात न काऊ॥
िे वन जबहीं जाय पुकारा।
तब ही िु ख प्रभु आप शनवारा॥
शकया उपद्रव तारक भारी।
िे वन सब शर्शल तुर्शहं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ।
लवशनर्ेष र्हँ र्ारर शगरायउ॥
आप जलंिर असुर संहारा।
सुयि तुम्हार शवशित संसारा॥
शत्रपुरासुर सन युद्ध र्चाई।
सबशहं कृपा कर लीन बचाई॥
शकया तपशहं भागीरथ भारी।
पुरब प्रशतज्ञा तासु पुरारी॥
िाशनन र्हँ तुर् सर् कोउ नाहीं।
सेवक स्तुशत करत सिाहीं॥
वेि र्ाशह र्शहर्ा तुर् गाई।
अकथ अनाशि भेि नशहं पाई॥
प्रकटी उिशि र्ंथन र्ें ज्वाला।
जरत सुरासुर भए शवहाला॥
कीन्ही िया तहं करी सहाई।
नीलकण्ठ तब नार् कहाई॥
पूजन रार्चन्द्र जब कीन्हा।
जीत के लंक शवभीषर् िीन्हा॥
सहस कर्ल र्ें हो रहे िारी।
कीन्ह परीक्षा तबशहं पुरारी॥
एक कर्ल प्रभु राखेउ जोई।
कर्ल नयन पूजन चहं सोई॥
कशठन भखि िे खी प्रभु िंकर।
भए प्रसन्न शिए इखित वर॥
जय जय जय अनन्त अशवनािी।
करत कृपा सब के घटवासी॥
िु ष्ट सकल शनत र्ोशह सतावै।
भ्रर्त रहौं र्ोशह चैन न आवै॥
त्राशह त्राशह र्ैं नाथ पुकारो।
येशह अवसर र्ोशह आन उबारो॥
लै शत्रिूल ित्रुन को र्ारो।
संकट ते र्ोशह आन उबारो॥
र्ात-शपता भ्राता सब होई।
संकट र्ें पूछत नशहं कोई॥
स्वार्ी एक है आस तुम्हारी।
आय हरहु र्र् संकट भारी॥
िन शनिणन को िे त सिा हीं।
जो कोई जां चे सो फल पाहीं॥
अस्तुशत केशह शवशि करैं तुम्हारी।
क्षर्हु नाथ अब चूक हर्ारी॥
िंकर हो संकट के नािन।
र्ंगल कारर् शवघ्न शवनािन॥
योगी यशत र्ुशन ध्यान लगावैं।
िारि नारि िीि नवावैं॥
नर्ो नर्ो जय नर्ः शिवाय।
सुर ब्रह्माशिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे र्न लाई।
ता पर होत है िम्भु सहाई॥
ॠशनयां जो कोई हो अशिकारी।
पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इिा जोई।
शनश्चय शिव प्रसाि तेशह होई॥
पखण्डत त्रयोििी को लावे।
ध्यान पूवणक होर् करावे॥
त्रयोििी व्रत करै हर्ेिा।
ताके तन नहीं रहै कलेिा॥
िूप िीप नैवेद्य चढ़ावे।
िंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे।
अन्त िार् शिवपुर र्ें पावे॥
कहैं अयोध्यािास आस तुम्हारी।
जाशन सकल िु ः ख हरहु हर्ारी॥
॥ िोहा ॥
शनत्त नेर् कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुर् र्ेरी र्नोकार्ना, पूर्ण करो जगिीि॥
र्गसर छशठ हे र्न्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुशत चालीसा शिवशह, पूर्ण कीन कल्यार्॥
Shiv Chalisa Meaning in Hindi

श्री शिव चालीसा का शहन्दी अनुवाि

॥िोहा॥

जय गर्ेि शगररजा सुवन, र्ंगल र्ूल सुजान।

कहत अयोध्यािास तुर्, िे हु अभय वरिान॥

अथण- पावणती सुत, सर्स्त र्ंगलो के ज्ञाता श्री गर्ेि की जय हो।

र्ैं अयोध्यािास आपसे वरिान र्ां गता हँ ।

॥चौपाई॥

जय शगररजा पशत िीन ियाला। सिा करत सन्तन प्रशतपाला॥

अथण- पावणतीजी के स्वार्ी, आपकी जय हो! आप िीन लोगों पर

कृपा करते हैं और सािु-संतजनों की रक्षा करते हैं ।

भाल चन्द्रर्ा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥

अथण- हे शत्रिूलिारी, नीलकण्ठ! आपके र्स्तक पर चन्द्रर्ा

सुिोशभत है औ कानो र्ें नागफनी के कुण्डल िोभायर्ान हैं ।

अंग गौर शिर गंग बहाये। र्ुण्डर्ाल तन क्षार लगाए॥

अथण- आप गौर वर्ी हैं और शसर की जटाओं र्ें गंगाजी बह रही

हैं , गले र्ें र्ूण्डों की र्ाला है और िरीर पर भस्म लगा रखी है ।


वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छशव को िे खख नाग र्न र्ोहे ॥

अथण- हे शत्रलोकी! आपके वस्त्र बाघ की खाल के हैं । आपकी

िोभा को िे खकर नाग और र्ुशनजन र्ोशहत हो रहे हैं ।

र्ैना र्ातु की हवे िु लारी। बार् अंग सोहत छशव न्यारी॥

अथण- र्ाता र्ैना की शप्रय पुत्री पावणतीजी आपके बाईं ओर

सुिोशभत हैं इनकी िोभा अत्यंत शनराली और न्यारी है ।

कर शत्रिूल सोहत छशव भारी। करत सिा ित्रुन क्षयकारी॥

अथण- आपके हाथ र्ें शत्रिल अपनी उत्तर् छशव से िोभार्ान हो

रहा है शजससे आप सिै व ित्रुओं का संहार करते रहते हैं ।

नखन्द गर्ेि सोहै तहँ कैसे। सागर र्ध्य कर्ल हैं जैसे॥

अथण- आपके पास आपका वाहन नन्दी और गर्ेिजी कुछ इस

प्रकार िोभायर्ान हो रहे हैं जैसे सर्ुद्र के बीच र्ें कर्ल खखले
हों।

काशतणक श्यार् और गर्राऊ। या छशव को कशह जात न


काऊ॥

अथण- काशतणकेयजी और उनके गर् वहां पर शवराजर्ान हैं । इस

दृश्य की िोभा का वर्णन कोई नहीं कर सकता।

िे वन जबहीं जाय पुकारा। तब ही िु ख प्रभु आप शनवारा॥


अथण- हे शत्रपुरारी! िे वताओं ने जब भी सहायता की पुकार की,

हे नाथ! आपने शबना शवलम्ब शकए उनके िु :ख िू र शकए।

शकया उपद्रव तारक भारी। िे वन सब शर्शल तुर्शहं जुहारी॥

अथण- जब ताड़कासुर ने बहुत अत्याचार करने आरं भ शकए तो

सभी िे वताओं ने आपसे रक्षा करने की प्राथणना की।

तुरत षडानन आप पठायउ। लवशनर्ेष र्हँ र्ारर शगरायउ॥

अथण- आपने उसी सर्य काशतणकेयजी को वहां भेजा और

उन्होने पलक झपकने की िे री र्ें उस राक्षस को र्ार शगराया।

आप जलंिर असुर संहारा। सुयि तुम्हार शवशित संसारा॥

अथण- आपने जलंिर नार्क भयंकर राक्षस का संहार शकया।

उससे आपका जो यि फैला उससे सारा संसार पररशचत है ।

शत्रपुरासुर सन युद्ध र्चाई। सबशहं कृपा कर लीन बचाई॥

अथण- शत्रपुर नार्क राक्षस से युद्ध करके आपने सभी िे वताओं

पर कृपा की और उनको उस िु ष्ट के आतंक से र्ुि शकया।

शकया तपशहं भागीरथ भारी। पुरब प्रशतज्ञा तासु पुरारी॥

अथण- राजा भगीरथ के तप के बाि आपने अपनी जटाओं र्ें

वास करती गंगा को जाने की आज्ञा िी। भगीरथ की प्रशतज्ञा


आपके कारर् ही पूरी हुई।
िाशनन र्हँ तुर् सर् कोउ नाहीं। सेवक स्तुशत करत सिाहीं॥

अथण- आपकी बराबरी करने वाला कोई िानी नहीं है । भि

लोग सिा ही आपका गुर्गान व यिोगान करते रहते हैं ।

वेि र्ाशह र्शहर्ा तुर् गाई। अकथ अनाशि भेि नशहं पाई॥

अथण- वेिों र्ें भी आपकी र्शहर्ा का वर्णन है । परं तु अनाशि होने

के कारर् आपका रहस्य कोई भी नहीं पा सका।

प्रकटी उिशि र्ंथन र्ें ज्वाला। जरत सुरासुर भए शवहाला॥

अथण- सर्ुद्र र्ंथन से जो शवषरूपी ज्वाला शनकली उससे िे वता

और राक्षस िोनों जलने लगे और शवह्वल हो गए।

कीन्ही िया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नार् कहाई॥

अथण- हे नीलकंठ! तब आपने उस ज्वालारूपी शवष का पान

करके उनकी सहायता की। तभी से आपका नार् नीलकंठ पड़


गया।

पूजन रार्चन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक शवभीषर् िीन्हा॥

अथण- लंका पर चढ़ाई करने से पूवण श्रीरार् ने आपकी पूजा के

बाि ही शवजय प्राप्त की और शवभीषर् को लंका का राजा बना


शिया।

सहस कर्ल र्ें हो रहे िारी। कीन्ह परीक्षा तबशहं पुरारी॥


अथण- हे र्हािे व! जब श्री रार्चन्द्रजी सहस्त्र कर्लों से आपकी

पूजा कर रहे थे तब आपने फूलों र्ें रहकर उनकी परीक्षा ली।

एक कर्ल प्रभु राखेउ जोई। कर्ल नयन पूजन चहं सोई॥

अथण- आपने अपनी र्ाया से एक कर्ल का फूल शछपा शिया।

तब रार्चन्द्रजी ने नयनरूपी कर्ल से पूजा करने की बात


सोची।

कशठन भखि िे खी प्रभु िंकर। भए प्रसन्न शिए इखित वर॥

अथण- इस प्रकार जब शिवजी ने अपने र्ें रार्चन्द्रजी की यह

दृढ़ आस्था िे खी तब आपने प्रसन्न होकर उन्हें र्नचाहा वरिान


शिया।

जय जय जय अनन्त अशवनािी। करत कृपा सब के घटवासी॥

अथण- हे शिव आप अनन्त हैं , अनश्वर हैं । आपकी जय हो, जय

हो, जय हो। आप सबके हृिय र्ें रहकर उन पर कृपा करते

हैं ।

िु ष्ट सकल शनत र्ोशह सतावै। भ्रर्त रहौं र्ोशह चैन न आवै॥

अथण- िु ष्ट शवचार सिै व र्ुझे पीशड़त कर सताते रहते हैं और र्ैं

भ्रशर्त रहता हं शजसके कारर् र्ुझे कहीं चैन नहीं शर्लता है ।

त्राशह त्राशह र्ैं नाथ पुकारो। येशह अवसर र्ोशह आन उबारो॥


अथण- हे नाथ! र्ेरी रक्षा करो, र्ेरी रक्षा करो- इस प्रकार र्ैं

आपको पुकार रहा हं । आप आकर र्ुझे संकटों व कष्टो से


उबारें ।

लै शत्रिूल ित्रुन को र्ारो। संकट ते र्ोशह आन उबारो॥

अथण- हे पापसंहारक! अपने शत्रिूल से र्ेरे ित्रुओं को नष्ट करो

और संकट से र्ेरा उद्धार कर र्ुझे भवसागर से पार लगाओ।

र्ात-शपता भ्राता सब होई। संकट र्ें पूछत नशहं कोई॥

अथण- र्ाता-शपता, भाई-बंिु सब सुख के साथी हैं । िु खों र्ें कोई

साथ नहीं िे ता, संकट आने पर कोई नहीं पूछता।

स्वार्ी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु र्र् संकट भारी॥

अथण- हे स्वार्ी! र्ुझे तो केवल आपसे ही आिा है , आप पर ही

शवश्वास है । आप आकर र्ेरा घोर संकट तथा कष्ट िू र करें ।

िन शनिणन को िे त सिा हीं। जो कोई जां चे सो फल पाहीं॥

अथण- आप सिा शनिणनों की िन द्वारा सहायता करते हैं । आपसे

शजस फल की कार्ना की जाती है वही फल प्राप्त होता है ।

अस्तुशत केशह शवशि करैं तुम्हारी। क्षर्हु नाथ अब चूक हर्ारी॥


अथण- आपकी पूजा-अचणना कैसे की जाती है , हर्ें तो यह भी

र्ालूर् नहीं। अतः हर्ारी जो भी भूल-चूक हुई हो उसे क्षर्ा कर

िें ।

िंकर हो संकट के नािन। र्ंगल कारर् शवघ्न शवनािन॥

अथण- आप ही कष्टों को नष्ट करने वाले हैं । सभी िुभ कायो को

कराने वाले हैं तथा सब शवध्न-बािाओं को िू र करके कल्यार्

करते हैं ।

योगी यशत र्ुशन ध्यान लगावैं। िारि नारि िीि नवावैं॥

अथण- योगी, यशत और र्ुशन सभी आपका ध्यान करते हैं । नारि

र्ुशन और िे वी सरस्वती (िारिा) भी आपको नर्न करते हैं ।

नर्ो नर्ो जय नर्ः शिवाय। सुर ब्रह्माशिक पार न पाय॥

अथण- ‘ॐ नर्ः शिवाय’ इस पञ्चाक्षर र्ंत्र का जाप करके भी

ब्रह्मा आशि िे वता आपकी र्शहर्ा का पार नहीं प सके।

जो यह पाठ करे र्न लाई। ता पर होत है िम्भु सहाई॥

अथण- जो कोई भी र्न तथा शनष्ठा से शिव चालीसा का पाठ

करता है , िंकर भगवान उसकी सहायता कर उसकी सभी

इिाएं पूर्ण करते हैं ।

ॠशनयां जो कोई हो अशिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥


अथण- हे करुर्ाशनिान! कजण के बोझ से िबा हुआ वयखि

आपके नार् का जाप करे तो वह ऋर्-र्ुि हो सुख-सर्ृखद्ध

प्राप्त करता है ।

पुत्र होन कर इिा जोई। शनश्चय शिव प्रसाि तेशह होई॥

अथण- जो कोई भि पुत्र प्राखप्त की कार्ना से पाठ करता है , तो

आपकी शिपा से उसे पुत्र-रत्न की प्राखप्त होती है ।

पखण्डत त्रयोििी को लावे। ध्यान पूवणक होर् करावे॥

अथण- हर श्रद्धालु तथा भि ओ प्रत्येक र्ाह की त्रयोििी शतशथ

को शवद्वान पखण्डत को बुलाकर पूजा तथा हवन करवाना


चाशहए।

त्रयोििी व्रत करै हर्ेिा। ताके तन नहीं रहै कलेिा॥

अथण- जो भि सिै व त्रयोििी का व्रत करता है , उसके िरीर

र्ें कोई रोग नहीं रहता और शकसी प्रकार का क्लेि भी र्न र्ें
नहीं रहता।

िूप िीप नैवेद्य चढ़ावे। िंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

अथण- िूप-िीप और नैवेि से पूजन करके शिवजी की र्ूशतण या

शचत्र के सम्मुख बैठकर शिव चालीसा का श्रद्धापूवणक पाठ


करना चाशहए।
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त िार् शिवपुर र्ें पावे॥

अथण- इससे जन्म-जन्मां तर के पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त र्ें

र्नुष्य शिवलोक र्ें वास करने लगता है अथातण र्ुि हो जाता


है ।

कहैं अयोध्यािास आस तुम्हारी। जाशन सकल िु ः ख हरहु


हर्ारी॥

अथण- अयोध्यािासजी कहते हैं शक िंकर भगवान, हर्ें आपसे

ही आिा है । आप हर्ारी र्नोकार्नाएं पूरी करके हर्ारे िु खों


को िू र करें ।

॥िोहा॥

शनत्त नेर् कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।

तुर् र्ेरी र्नोकार्ना, पूर्ण करो जगिीि॥

र्गसर छशठ हे र्न्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

अस्तुशत चालीसा शिवशह, पूर्ण कीन कल्यार्॥

अथण- इस शिव चालीसा का चालीस बार प्रशतशिन पाठ करने से

भगवान र्नोकार्ना पूर्ण करते हैं । र्ृगशिर र्ास शक छ्ठी शतशथ


हे र्ंत ऋतु संवत ६४ र्ें यह चालीसा रूपी शिव स्तुशत लोक
कल्यार् के शलए पूर्ण हुई ।

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