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मास्टर ऑफ आर्ट् स (शिक्षा)

सेमेस्टर IV
की शिग्री के पुरस्कार के शिए आं शिक पूशत् के शिए प्रस्तुत पररयोजना
द्वारा प्रस्तुत

कु. सुधा
अनुक्रमाांक:(22083002384)

के मार्गदर्गन में

नीतू यादव

एम.ए. में विषय की आिश्यकता की आां वर्क पूवतग में

छत्रपवत र्ाहू जी महाराज यूवनिवसगटी, कानपुर


विपाटग मेंट ऑफ़ आटग

वर्क्षक- वर्क्षण सांस्थान

झाऊलाल र्जोधर प्रसाद महाविद्यालय, रसूलाबाद, कानपुर दे हात

र्ैक्षवणक िषग: 2023-2024


अनुक्रमवणका

क्रमाांक सामग्री

1. पररचय

2. उद्दे श्य

3. बाल पत्रकाररता का इवतहास

4. बाल पवत्रकाररता के क्षेत्र में नए युर् का प्रारम्भ

5. वनष्कषग

6. सांदर्ग
पररचय

बाि पत्रकाररता का औपचाररक प्रारम्भ भारतेन्दु काि से माना जा सकता है ।

1882 में भारतेन्दु हररश्चन्द्र की शििे ष प्रेरणा से 'बाि दपण्' पशत्रका का इिाहाबाद

से प्रकािन हुआ। इसके बाद भारतेन्दु हररश्चन्द्र ने 'बािा बोशिनी' पशत्रका का

प्रकािन प्रारम्भ शकया। इन पशत्रकाओं में नै शतक मूल्ों को केन्द्र में रखकार

उपदे िात्मक बाि साशहत्य प्रकाशित हुआ। इन आरम्भम्भक बाि पशत्रकाओं के बाद

शनरन्तर बाि साशहत्य की पशत्रकाएँ प्रकाशित होती रहीं। 1891 में िखनऊ से 'बाि

शहतकर' पशत्रका प्रकाशित हुई। 1906 में अिीगढ़ से 'छात्र शहतैषी' पशत्रका

प्रकाशित हुई। इसी िष् 1906 में ही बनारस से 'बाि प्रभाकर' पशत्रका का प्रकािन

हुआ। 1910 में इिाहाबाद से 'शिद्यार्थी' पशत्रका प्रकाशित हुई। 1912 में 'मानीर्र'

पशत्रका नरशसंहपुर से प्रकाशित हुई।

इन शििे षंकों के अशतररक्त समय-समय पर साशहम्भत्यक पशत्रकाएँ बाि साशहत्य पर

केम्भन्द्रत िेखों को प्रकाशित करती रहती हैं । 'कादं शबनी', 'निनीत', 'हररगं िा', 'पंजाब

सौरभ', 'समकािीन भारतीय साशहत्य', 'मिुमती', 'उत्तर प्रदे ि' आजकि आशद

पशत्रकाओं में प्रकाशित िेखों में बाि साशहत्य पर शिशभन्न कोणों से शिचार शकया गया

है । 'साप्ताशहक शहन्दु स्तान' पशत्रका अपने समय में बाि साशहत्य पर अच्छी सामग्री
प्रकाशित करती रही है । बाि पत्रकाररता के क्षे त्र में दै शनक समाचार पत्रों के

साप्ताशहक पररशिष्ों में बाि-साशहत्य प्रकाशित कर रहे हैं । बाि पाठक इन अं कों

की प्रतीक्षा करते रहते हैं । ऐसे समाचार पत्रों में 'अमर उजािा', 'आज', 'दै शनक

जागरण', 'राष्रीय सहारा', 'जनसत्ता', 'िे िी शमिाप', 'स्वंतत्र भारत', 'निभारत

र्ाइम्स', 'दै शनक निज्योशत', 'राजस्र्थान पशत्रका', 'शहन्दु स्तान', 'दशक्षण समाचार', 'नई

दु शनया', आशद प्रमुख हैं ।

बाि साशहत्य की शिशभन्न पत्र-पशत्रकाओं के प्रकािन िष् एिं उनके नामोल्लेख करने

के उपरान्त शिगत िषों में प्रकाशित होते रहे बाि साशहत्य के प्रमुख काव्ां िों को

उद्धत करना प्रटरासं शगक प्रतीत हो रहा है , क्ोंशक समय-समय पर प्रकाशित बाि

साशहत्य के इन अं िों से यह सहज अनु मान िगाना संभि हो सकेगा शक बाि

साशहत्यकारों ने बािमन की संिेदनाओं को कहाँ तक समझा है ।शहन्दी बाि

पत्रकाररता के क्षे त्र में इसी समय एक महत्त्वपूण् घर्ना हुई, िह यह शक मद्रास से

'चन्दामामा' का प्रकािन प्रारम्भ हुआ। १९४८ में अशहन्दी भाषी क्षे त्र से अपना

प्रकािन प्रारम्भ करने िािी 'चन्दामामा' आज तक शनरन्तर प्रकाशित होती चिी

आई है । यह पशत्रका समूचे दे ि में अत्यन्त िोकशप्रय है । पर्ना से 'चु न्नू मुन्नू' पशत्रका

का प्रकािन िु रू हुआ और यह भी अपने समय में िोकशप्रय पशत्रका बनी रही।

१९५१ में प्रो॰िेखराज उल्फत के संपादन में दे हरादू न से 'नन्ी ं दु शनया' का प्रकािन
प्रारम्भ हुआ। िखनऊ से एस.एम. िमीम अनहोनिी से संपादन में 'कशियाँ '

पशत्रका शनकिनी प्रारम्भ हुई। १९५५ में शदल्ली से िक्ष्मी चन्द्र र्ी. रूप चं दानी के

संपादन में 'बाि शमत्र' का प्रकािन प्रारम्भ हुआ। इसी कािािशि में 'िानर' पशत्रका

का प्रकािन जयपुर से प्रारम्भ हुआ।


उद्दे श्य

बाि-मन स्वभाितः शजज्ञासु और सरि होता है । जीिन की यह िह अिस्र्था है

शजसमें बच्चा अपने माता-शपता, शिक्षक और चारो तरफ के पररिेि से ही सीखता

है । यही िह उम्र होती है शजसमें बच्चे के माम्भस्तष्क पर शकसी भी घर्ना या सूचना

की आशमर् छाप पड़ जाती है । बच्चे के आस-पास की पररिेि उसके व्म्भक्तत्व

शनमा् ण में महत्त्वपूण् भू शमका शनभाता है ।

एक समय र्था जब बच्चों को परीकर्थाओं, िोककर्थाआ पौराशणक, ऐशतहाशसक,

िाशम्क कर्थाआेेें के माध्यमसे बहिाने -फुसिाने के सार्थ-सार्थ उनका ज्ञानिर्धद् न

शकया जाता र्था। इन कर्थाआेेें का बच्चों के चाररशत्रक शिकास पर भी गहरा प्रभाि

होता र्था।

आज संचार क्ां शत के इस यु ग में बच्चों के शिए सूचनातंत्र काफी शिस्तृत और अनं त

हो गया है । कंेंप्यू र्र और इं र्रने र् तक उनकी पहुँ च ने उनकी शजज्ञास को

असीशमत बना शदया है । ऐसे में इस बात की भी आिं का और गुं जाइि बनी रहती है

शक बच्चों तक िे सूचनायें भी पहुँ च सकती हैं , शजससे उनके बािमन के भर्काि या

शिकृती भी संभि है । ऐसी म्भस्र्थती में बाि पत्रकाररता की सार्थ् क सोच और शदिा

बच्चों को सही शदिा की ओर अग्रसर कर सकती है । बाि पत्रकाररता की शदिा में


शप्रंर् और शिजु अि मीशिया (द्दश्य-माध्यम) के सार्थ-सार्थ इं र्रने र् की भी अहम और

शजम्मेदार भू शमका हो सकती है ।

पररकल्पनाएँ - प्रस्तुत र्ोध के वलए वनवमग त पररकल्पनाएँ वनम्नवलखित हैं

01. शनयं शत्रत एिं प्रायोशगक समूहों के शिद्याशर्थ् यों के पढ़ने की आदतों पर क्षे त्र का

प्रभाि नहीं पाया जाएगा।

02. शनयं शत्रत एिं प्रायोशगक जनों के शिद्याशर्थ् यों के पढ़ने की आदतों पर शिंग का

प्रभाि नहीं पड़े गा।

03. शनयं शत्रत एिं प्रायोशगक समूहों में शिद्याशर्थ् यों की शिक्षा पर प्रभाि नहीं पड़े गा।

04. शनयं शत्रत एिं प्रायोशगक समूहों के शिद्याशर्थ् यों की शिक्षा पर शिं ग का प्रभाि नहीं

पड़े गा।

05. शनयं शत्रत एिं प्रयोगात्मक काय् क्मों के शिद्याशर्थ् यों की िै शक्षक उपिम्भियां तर्था

पढ़ने की आदत में सह संबंि नहीं पाया जा सकेगा।


06. शनयं शत्रत एिं प्रयोगात्मक समूहों में बाि पुस्तकों के उपयोग के पररप्रेक्ष्य में

शिद्याशर्थ् यों की पढ़ने की आदत में पूि् एिं अनु िती परीक्षण में सार्थ् क अं तर नहीं

पाया जा सकेगा । 07. साशहम्भत्यक एिं शिज्ञान संबंिी बाि पुस्तकों के उपयोग तर्था

छात्रों की पढ़ने की आदतों में सह संबंि नहीं पाया जा सकेगा।


बाल पत्रकाररता का इवतहास

बाि पत्रकाररता का औपचाररक प्रारम्भ भारतेन्दु काि से माना जा सकता है ।

1882 में भारतेन्दु हररश्चन्द्र की शििेष प्रेरणा से 'बाि दपण्' पशत्रका का

इिाहाबाद से प्रकािन हुआ। इसके बाद भारतेन्दु हररश्चन्द्र ने 'बािा बोशिनी'

पशत्रका का प्रकािन प्रारम्भ शकया। इन पशत्रकाओं में नैशतक मूल्ों को केन्द्र

में रखकार उपदे िात्मक बाि साशहत्य प्रकाशित हुआ। इन आरम्भम्भक बाि

पशत्रकाओं के बाद शनरन्तर बाि साशहत्य की पशत्रकाएँ प्रकाशित होती रहीं।

1891 में िखनऊ से 'बाि शहतकर' पशत्रका प्रकाशित हुई। 1906 में अिीगढ़

से 'छात्र शहतैषी' पशत्रका प्रकाशित हुई। इसी िष् 1906 में ही बनारस से 'बाि

प्रभाकर' पशत्रका का प्रकािन हुआ। 1910 में इिाहाबाद से 'शिद्यार्थी' पशत्रका

प्रकाशित हुई। 1912 में 'मानीर्र' पशत्रका नरशसंहपुर से प्रकाशित हुई।

पररकल्पना क्मां क – 05 “शनयंशत्रत एिं प्रायोशगक समूहों में शिद्याशर्थ्यों की

िैशक्षक उपिम्भि तर्था पढ़ने की आदत में सहसंबंि नहीं पाया जायेगा ।"
बाल पवत्रकाररता के क्षेत्र में नए युर् का प्रारम्भ

बाि पशत्रकाररता के क्षेत्र में नए यु ग का प्रारम्भ 'शििु ' पशत्रका से हुआ। १९१४-१५ में

'शििु ' पशत्रका के प्रकािन प्रारम्भ हुआ। इसके संपादन पं.सुदि् नाचाय् र्थे । 'शििु '

पशत्रका के प्रकािन के कुछ समय उपरान्त एक ऑर उत्कृष् पशत्रका ने बाि

साशहत्य के क्षे त्र में पदाप्ण शकया। इस पशत्रका ने बाि साशहत्य के क्षे त्र में क्ां शत िा

दी। १९१७ में बं गाशियों की प्राइिेर् शिशमर्े ि संस्र्था 'इं शियन प्रेस' ने 'बािसखा'

पशत्रका का प्रकािन प्रारम्भ शकया। इसके संपादक पं.बदरीनार्थ भट्ट र्थे । शद्विेदी

यु ग की यह पशत्रका सिा् शिक िोकशप्रय रही। 'बािसखा' सबसे अशिक समय

अर्था् तट ५३ िष् तक प्रकाशित होती रही। इस पशत्रका ने बाि पाठकों को बहुत

प्रभाशित शकया तर्था बाि साशहत्यकारों की अच्छी-खासी संख्या तैयार की। इसी

प्रकािन प्रारम्भ शकया श्ृंखिा में १९२० में जबिपुर से 'छात्र सहोदर' का प्रकािन

प्रारम्भ हुआ। १९२४ में शदल्ली से मािि जी के संपादन में 'िीर बािक' का प्रकािन

हुआ। पर्ना से १९२६ में आचाय् रामिोचन िरण के संपादन में 'बािक' पशत्रका

का प्रकािन प्रारम्भ हुआ। १९२७ में पं.रामजी िाि िमा् के संपादन में इिाहाबाद

से 'म्भखिौना' पशत्रका का प्रकािन प्रारम्भ हुआ। इिाहबाद से ही 1913 में 'चमचम'

का प्रकािन हुआ। इसके संपादक र्थे 'शिश्व प्रकाि' १९३१ में एक और पशत्रका
इिाहाबाद से प्रकाशित हुई, जो आगे चिकर बाि साशहत्य के क्षे त्र में मीि का

पत्थर साशबत हुई। यह पशत्रका र्थी पं .रामनरे ि शत्रपाठी के संपादकत्व में प्रकाशित

'िानर' पशत्रका। पं.रामनरे ि शत्रपाठी के श्ेष्ठ बािगीत इस पशत्रका के माध्यम से ही

बाि पाठकों तक पहुँ चकर िोकशप्रय बने । १९३२ में कािाकां कर से कुँिर सुरेि

शसंह से संपादन में 'कुमार' पशत्रका का प्रकािन हुआ। इिाहबाद से १९३४ में

'अक्षय भै या' का प्रकािन हुआ। रमािं कर जै तिी के संपादन में मुरादाबाद से

१९३६ में 'बाि शिनोद' का प्रकािन प्रारम्भ हुआ। १९३८ में पं.राम दशहन शमश् से

संपादन में पर्ना से 'शकिोर' पशत्रका का प्रकािन हुआ। १९४४ में प्रेम नारायण

र्ण्डन से संपादन में िखनऊ से 'होनहार' पशत्रका का प्रकािन हुआ। १९४६

में व्शर्थत हृदय से संपादन में इिाहबाद से 'शततिी' का प्रकािन प्रारम्भ हुआ।

१९४६ में ही इिाहाबाद से ठाकुर श्ीनार्थ शसंह के संपादन में 'बािबोि' पशत्रका का

प्रकािन हुआ। स्वतंत्रता प्राम्भप्त से पहिे प्रकाशित इन पशत्रकाओं ने बाि पत्रकाररता

में अपना स्र्थान बना शिया र्था। पशत्रकाओं ही संख्या शनरन्तर बढ़ती गई। कुछ बन्द

हुईं, तो कुछ नई पशत्रकाएँ भी प्रकाशित होती रहीं। इन पशत्रकाओं में कहानी,

बािगीत, नै शतक कहाशनयाँ और हास्य की कहाशनयाँ प्रमुखता से प्रकाशित होती

र्थीं। िोक जीिन में प्रचशित बाि गीत, बाि कर्थाएँ आशद भी इन पशत्रकाओं में

समय-समय पर प्रकाशित होती रहीं। स्वतंत्रता प्राम्भप्त से पूि् तक बाि साशहत्य के


प्रकािन की म्भस्र्थशत संतोषजनक कही जा सकती है । इस समय तक बाि साशहत्य

की िगभग तीस मुशद्रत पशत्रकाएँ प्रकाशित हो रही र्थी तर्था सोिह हस्तशिखत

पशत्रकाएँ प्रकाशित होती र्थीं। १९४७ में दे ि स्वतंत्र हुआ। व्िस्र्था पररिशत् त हुई।

ऐसे में साशहत्य के क्षे त्र में भी एक मोड़ आया। बाि साशहत्य में दे ि प्रेम, खु िी ओर

उल्लास से िबािब साशहत्य पशत्रकाओं में प्रकाशित होने िगा भारत सरकार के

प्रकािन शिभाग ने स्वतंत्रता प्राम्भप्त से 'बािभारत'का प्रकािन प्रारम्भ हुआ। यह

पशत्रका अद्यतन शनरन्तर अत्यन्त िोकशप्रय बनी हुई है । १९४८ में पंजाब से 'प्रकाि'

नामक पशत्रका का प्रकािन प्रारम्भ हुआ। १९४९ में शदल्ली से 'अमर कहानी' एिं

इिाहाबाद से 'मनमोहन' पशत्रकाओं का प्रकािन प्रारम्भ हुआ, परन्तु दु भा् ग्य से

कुछ अं क शनकि कर ये दोनों पशत्रकाएँ काि के गाि में समा गईं।

शहन्दी बाि पत्रकाररता के क्षे त्र में इसी समय एक महत्त्वपूण् घर्ना हुई, िह यह शक

मद्रास से 'चन्दामामा' का प्रकािन प्रारम्भ हुआ। १९४८ में अशहन्दी भाषी क्षे त्र से

अपना प्रकािन प्रारम्भ करने िािी 'चन्दामामा' आज तक शनरन्तर प्रकाशित होती

चिी आई है । यह पशत्रका समूचे दे ि में अत्यन्त िोकशप्रय है । पर्ना से 'चु न्नू मुन्नू'

पशत्रका का प्रकािन िु रू हुआ और यह भी अपने समय में िोकशप्रय पशत्रका बनी

रही। १९५१ में प्रो॰िेखराज उल्फत के संपादन में दे हरादू न से 'नन्ी ं दु शनया' का

प्रकािन प्रारम्भ हुआ। िखनऊ से एस.एम. िमीम अनहोनिी से संपादन में


'कशियाँ ' पशत्रका शनकिनी प्रारम्भ हुई। १९५५ में शदल्ली से िक्ष्मी चन्द्र र्ी. रूप

चं दानी के संपादन में 'बाि शमत्र' का प्रकािन प्रारम्भ हुआ। इसी कािािशि में

'िानर' पशत्रका का प्रकािन जयपुर से प्रारम्भ हुआ।

१९५७ में तस्रटणभाई के संपादन में 'जीिन शिक्षा' पशत्रका का प्रकािन प्रारम्भ हुआ।

इसी िष् शदल्ली से 'स्वतंत्र बािक'का प्रकािन यत्न प्रकाििीि के संपादन में

प्रारम्भ हुआ। ये पशत्रकाएँ बाि पाठकों के बीच अपनी खास पहचान नहीं बना

सकीं। १९५८ में शदल्ली से 'पराग' पशत्रका का प्रकािन प्रारमट भ हुआ। इस पशत्रका ने

अशत िीघ्र बाि पाठकों एिं बाि साशहत्य के पाठकों के बीच अपनी पहचान बना

िी। िम्बे समय तक अच्छी प्रसार संख्या होने के बािजू द भी पराग का प्रकािन

बन्द हो गया।

िुशियाना से सन्तराम के संपादन में १९५८ में 'िोभा' पशत्रका का प्रकािन प्रारम्भ

हुआ। १९५८ में ही उमेि मल्होत्रा के संपादन में जािंिर शसर्ी से 'नन्ें -मुन्ने' पशत्रका

का प्रकािन प्रारम्भ हुआ। िाराणसी से राजकुमार िाही के संपादन में १९५८ में

'राजा बे र्ा' का प्रकािन िु रू हुआ। इसी िष् मुरादाबाद से िां शत प्रसाद दीशक्षत के

संपादन में 'बािबं िु' का प्रकािन प्रारम्भ हुआ। १९५९ में 'मीनू -र्ीनू ' पशत्रका

रमाकान्त पाण्डे य के संपादन में चक्िर (शबहार) से शनकिी। दयािं कर शमश् 'दद्दा'

ने शदल्ली से 'राजा भैया' पशत्रका शनकािी। अमृतसर से गु स्रटचरण शसंह साखी से


संपादन में 'बाि फुििारी' का प्रकािन हुआ। १९६० में भगिानदास दत्ता से

संपादन में करनाि से 'बाि जीिन' का प्रकािन हुआ। श्ीमती सुमन एिं जे .एन.

िमा् से संपादन में 'हमारा शििु ' पशत्रका शनकािी। इसी िष् भोिानार्थ पुस्रटषोत्तम

सरन के संपादन में आजमगढ़ से 'शिश्व बाि कल्ाण' पशत्रका का प्रकािन हुआ। ये

पशत्रकाएँ बाि साशहत्य के पाठकों में अशिक िोकशप्रय नहीं हुइं रट। बाि पशत्रकाओं

के प्रकािन ही संख्या शनरन्तर बढ़ती रही। सार्थ-ही-सार्थ अने काने क पशत्रकाएँ बन्द

भी होती रहीं। कुछ पशत्रकाएँ तो अपने केिि प्रिेिां क ही प्रकाशित कर पायी ं।

अिीगढ़ से सन २००९ से प्रकाशित होने िािी त्रै माशसक पशत्रका ' अशभनि बािमन'

बच्चों की रचनाओं को प्रमुखता से प्रकाशित करती है .


वनष्कषग

प्रस्तुत िघु िोि हे तु संकशित आँ कड़ों के सां म्भख्यकी शिश्ले षण

से शनम्नशिम्भखत शनष्कष् प्राप्त हुए

1. शनयं शत्रत एिं प्रायोशगक समूह के शिद्याशर्थ् यों में पढ़ने की आदतों में अन्तर पाया

गया। 2. ग्रामीण शिद्याशर्थ् यों की तुिना में िहरी शिद्याशर्थ् यों में पढ़ने की आदत उच्च

पायी ।

3. शनयं शत्रत एिं प्रायोशगक समूह के छात्र एिं छात्राओं में पढ़ने की आदतों पर शिंग

का प्रभाि नहीं पाया गया । अर्था् तट छात्र एिं छात्राओं में पढ़ने की आदत िगभग

समान पायी गयी ।

4. शनयं शत्रत समूह के शिद्याशर्थ् यों की िै शक्षक उपिम्भियों पर क्षे त्र का प्रभाि नहीं

पाया गया। शकन्तु प्रायोशगक समूह के ग्रामीण एिं िहरी शिद्याशर्थ् यों को अिसर

प्रदान करने पर िहरी शिद्याशर्थ् यों में ग्रामीण की तुिना में उच्च िै शक्षक उपिम्भि

प्राप्त होती है । 5. शनयं शत्रत एिं प्रायोशगक समूह के छात्र एिं छात्राओं की िै शक्षक

उपिम्भि पर शिंग का

प्रभाि नहीं पाया गया अर्था् तट छात्र एिं छात्राओं की िै शक्षक उपिम्भि िगभग

समान होती है ।
6. शनयं शत्रत एिं प्रायोशगक समूह में शिद्याशर्थ् यों की पढ़ने की आदत एिं िै शक्षक

उपिम्भि

में सहसंबंि मध्यम स्तर का पाया गया । यह स्पष् है , शक पढ़ने की आदत के

कारण िै शक्षक उपिम्भि में उन्नशत होना संभि है ।

7. शनयं शत्रत समूह के शिद्याशर्थ् यों में पढ़ने की आदत में पूि् एिं पश्चातट परीक्षणों में

अन्तर नहीं पाया गया शकन्तु प्रायोशगक समूह में अं तर पाया गया। बाि पशत्रकाओं

के उपयोग से पढ़ने की आदत का शिकास हुआ।

8. साशहम्भत्यक एिं ज्ञान संबंिी बाि पशत्रकाओं के उपयोग का शिद्याशर्थ् यों के पढ़ने

की आदत में सहसंबंि मध्यम स्तर का पाया गया। यह प्रमाशणत होता है शक बाि

पशत्रकाओं के द्वारा छात्रों के पढ़ने की आदत में सुिार िाया जा सकता है ।

9.

बाि पशत्रकाओं के कक्षागत उपयोग एिं इसके प्रशत छात्रों को अनु प्रेररत करने के

प्रयास पढ़ने की आदत में िृम्भद्ध करते हैं ।


सांदर्ग

संतुशष् पर प्रभाि। शमसौरी शिश्वशिद्यािय, शमसौरी। बगे स, जे. (2006)। सीखने के

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