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Sudha
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सेमेस्टर IV
की शिग्री के पुरस्कार के शिए आं शिक पूशत् के शिए प्रस्तुत पररयोजना
द्वारा प्रस्तुत
कु. सुधा
अनुक्रमाांक:(22083002384)
के मार्गदर्गन में
नीतू यादव
क्रमाांक सामग्री
1. पररचय
2. उद्दे श्य
5. वनष्कषग
6. सांदर्ग
पररचय
1882 में भारतेन्दु हररश्चन्द्र की शििे ष प्रेरणा से 'बाि दपण्' पशत्रका का इिाहाबाद
प्रकािन प्रारम्भ शकया। इन पशत्रकाओं में नै शतक मूल्ों को केन्द्र में रखकार
उपदे िात्मक बाि साशहत्य प्रकाशित हुआ। इन आरम्भम्भक बाि पशत्रकाओं के बाद
शनरन्तर बाि साशहत्य की पशत्रकाएँ प्रकाशित होती रहीं। 1891 में िखनऊ से 'बाि
शहतकर' पशत्रका प्रकाशित हुई। 1906 में अिीगढ़ से 'छात्र शहतैषी' पशत्रका
प्रकाशित हुई। इसी िष् 1906 में ही बनारस से 'बाि प्रभाकर' पशत्रका का प्रकािन
हुआ। 1910 में इिाहाबाद से 'शिद्यार्थी' पशत्रका प्रकाशित हुई। 1912 में 'मानीर्र'
केम्भन्द्रत िेखों को प्रकाशित करती रहती हैं । 'कादं शबनी', 'निनीत', 'हररगं िा', 'पंजाब
सौरभ', 'समकािीन भारतीय साशहत्य', 'मिुमती', 'उत्तर प्रदे ि' आजकि आशद
पशत्रकाओं में प्रकाशित िेखों में बाि साशहत्य पर शिशभन्न कोणों से शिचार शकया गया
है । 'साप्ताशहक शहन्दु स्तान' पशत्रका अपने समय में बाि साशहत्य पर अच्छी सामग्री
प्रकाशित करती रही है । बाि पत्रकाररता के क्षे त्र में दै शनक समाचार पत्रों के
साप्ताशहक पररशिष्ों में बाि-साशहत्य प्रकाशित कर रहे हैं । बाि पाठक इन अं कों
की प्रतीक्षा करते रहते हैं । ऐसे समाचार पत्रों में 'अमर उजािा', 'आज', 'दै शनक
र्ाइम्स', 'दै शनक निज्योशत', 'राजस्र्थान पशत्रका', 'शहन्दु स्तान', 'दशक्षण समाचार', 'नई
बाि साशहत्य की शिशभन्न पत्र-पशत्रकाओं के प्रकािन िष् एिं उनके नामोल्लेख करने
के उपरान्त शिगत िषों में प्रकाशित होते रहे बाि साशहत्य के प्रमुख काव्ां िों को
उद्धत करना प्रटरासं शगक प्रतीत हो रहा है , क्ोंशक समय-समय पर प्रकाशित बाि
पत्रकाररता के क्षे त्र में इसी समय एक महत्त्वपूण् घर्ना हुई, िह यह शक मद्रास से
'चन्दामामा' का प्रकािन प्रारम्भ हुआ। १९४८ में अशहन्दी भाषी क्षे त्र से अपना
आई है । यह पशत्रका समूचे दे ि में अत्यन्त िोकशप्रय है । पर्ना से 'चु न्नू मुन्नू' पशत्रका
१९५१ में प्रो॰िेखराज उल्फत के संपादन में दे हरादू न से 'नन्ी ं दु शनया' का प्रकािन
प्रारम्भ हुआ। िखनऊ से एस.एम. िमीम अनहोनिी से संपादन में 'कशियाँ '
पशत्रका शनकिनी प्रारम्भ हुई। १९५५ में शदल्ली से िक्ष्मी चन्द्र र्ी. रूप चं दानी के
संपादन में 'बाि शमत्र' का प्रकािन प्रारम्भ हुआ। इसी कािािशि में 'िानर' पशत्रका
होता र्था।
असीशमत बना शदया है । ऐसे में इस बात की भी आिं का और गुं जाइि बनी रहती है
शिकृती भी संभि है । ऐसी म्भस्र्थती में बाि पत्रकाररता की सार्थ् क सोच और शदिा
01. शनयं शत्रत एिं प्रायोशगक समूहों के शिद्याशर्थ् यों के पढ़ने की आदतों पर क्षे त्र का
02. शनयं शत्रत एिं प्रायोशगक जनों के शिद्याशर्थ् यों के पढ़ने की आदतों पर शिंग का
03. शनयं शत्रत एिं प्रायोशगक समूहों में शिद्याशर्थ् यों की शिक्षा पर प्रभाि नहीं पड़े गा।
04. शनयं शत्रत एिं प्रायोशगक समूहों के शिद्याशर्थ् यों की शिक्षा पर शिं ग का प्रभाि नहीं
पड़े गा।
05. शनयं शत्रत एिं प्रयोगात्मक काय् क्मों के शिद्याशर्थ् यों की िै शक्षक उपिम्भियां तर्था
शिद्याशर्थ् यों की पढ़ने की आदत में पूि् एिं अनु िती परीक्षण में सार्थ् क अं तर नहीं
पाया जा सकेगा । 07. साशहम्भत्यक एिं शिज्ञान संबंिी बाि पुस्तकों के उपयोग तर्था
में रखकार उपदे िात्मक बाि साशहत्य प्रकाशित हुआ। इन आरम्भम्भक बाि
1891 में िखनऊ से 'बाि शहतकर' पशत्रका प्रकाशित हुई। 1906 में अिीगढ़
से 'छात्र शहतैषी' पशत्रका प्रकाशित हुई। इसी िष् 1906 में ही बनारस से 'बाि
िैशक्षक उपिम्भि तर्था पढ़ने की आदत में सहसंबंि नहीं पाया जायेगा ।"
बाल पवत्रकाररता के क्षेत्र में नए युर् का प्रारम्भ
बाि पशत्रकाररता के क्षेत्र में नए यु ग का प्रारम्भ 'शििु ' पशत्रका से हुआ। १९१४-१५ में
'शििु ' पशत्रका के प्रकािन प्रारम्भ हुआ। इसके संपादन पं.सुदि् नाचाय् र्थे । 'शििु '
साशहत्य के क्षे त्र में पदाप्ण शकया। इस पशत्रका ने बाि साशहत्य के क्षे त्र में क्ां शत िा
दी। १९१७ में बं गाशियों की प्राइिेर् शिशमर्े ि संस्र्था 'इं शियन प्रेस' ने 'बािसखा'
पशत्रका का प्रकािन प्रारम्भ शकया। इसके संपादक पं.बदरीनार्थ भट्ट र्थे । शद्विेदी
प्रभाशित शकया तर्था बाि साशहत्यकारों की अच्छी-खासी संख्या तैयार की। इसी
प्रकािन प्रारम्भ शकया श्ृंखिा में १९२० में जबिपुर से 'छात्र सहोदर' का प्रकािन
प्रारम्भ हुआ। १९२४ में शदल्ली से मािि जी के संपादन में 'िीर बािक' का प्रकािन
हुआ। पर्ना से १९२६ में आचाय् रामिोचन िरण के संपादन में 'बािक' पशत्रका
का प्रकािन प्रारम्भ हुआ। १९२७ में पं.रामजी िाि िमा् के संपादन में इिाहाबाद
का प्रकािन हुआ। इसके संपादक र्थे 'शिश्व प्रकाि' १९३१ में एक और पशत्रका
इिाहाबाद से प्रकाशित हुई, जो आगे चिकर बाि साशहत्य के क्षे त्र में मीि का
पत्थर साशबत हुई। यह पशत्रका र्थी पं .रामनरे ि शत्रपाठी के संपादकत्व में प्रकाशित
बाि पाठकों तक पहुँ चकर िोकशप्रय बने । १९३२ में कािाकां कर से कुँिर सुरेि
शसंह से संपादन में 'कुमार' पशत्रका का प्रकािन हुआ। इिाहबाद से १९३४ में
१९३६ में 'बाि शिनोद' का प्रकािन प्रारम्भ हुआ। १९३८ में पं.राम दशहन शमश् से
संपादन में पर्ना से 'शकिोर' पशत्रका का प्रकािन हुआ। १९४४ में प्रेम नारायण
में व्शर्थत हृदय से संपादन में इिाहबाद से 'शततिी' का प्रकािन प्रारम्भ हुआ।
१९४६ में ही इिाहाबाद से ठाकुर श्ीनार्थ शसंह के संपादन में 'बािबोि' पशत्रका का
में अपना स्र्थान बना शिया र्था। पशत्रकाओं ही संख्या शनरन्तर बढ़ती गई। कुछ बन्द
र्थीं। िोक जीिन में प्रचशित बाि गीत, बाि कर्थाएँ आशद भी इन पशत्रकाओं में
की िगभग तीस मुशद्रत पशत्रकाएँ प्रकाशित हो रही र्थी तर्था सोिह हस्तशिखत
पशत्रकाएँ प्रकाशित होती र्थीं। १९४७ में दे ि स्वतंत्र हुआ। व्िस्र्था पररिशत् त हुई।
ऐसे में साशहत्य के क्षे त्र में भी एक मोड़ आया। बाि साशहत्य में दे ि प्रेम, खु िी ओर
उल्लास से िबािब साशहत्य पशत्रकाओं में प्रकाशित होने िगा भारत सरकार के
पशत्रका अद्यतन शनरन्तर अत्यन्त िोकशप्रय बनी हुई है । १९४८ में पंजाब से 'प्रकाि'
नामक पशत्रका का प्रकािन प्रारम्भ हुआ। १९४९ में शदल्ली से 'अमर कहानी' एिं
शहन्दी बाि पत्रकाररता के क्षे त्र में इसी समय एक महत्त्वपूण् घर्ना हुई, िह यह शक
मद्रास से 'चन्दामामा' का प्रकािन प्रारम्भ हुआ। १९४८ में अशहन्दी भाषी क्षे त्र से
चिी आई है । यह पशत्रका समूचे दे ि में अत्यन्त िोकशप्रय है । पर्ना से 'चु न्नू मुन्नू'
रही। १९५१ में प्रो॰िेखराज उल्फत के संपादन में दे हरादू न से 'नन्ी ं दु शनया' का
चं दानी के संपादन में 'बाि शमत्र' का प्रकािन प्रारम्भ हुआ। इसी कािािशि में
१९५७ में तस्रटणभाई के संपादन में 'जीिन शिक्षा' पशत्रका का प्रकािन प्रारम्भ हुआ।
इसी िष् शदल्ली से 'स्वतंत्र बािक'का प्रकािन यत्न प्रकाििीि के संपादन में
प्रारम्भ हुआ। ये पशत्रकाएँ बाि पाठकों के बीच अपनी खास पहचान नहीं बना
सकीं। १९५८ में शदल्ली से 'पराग' पशत्रका का प्रकािन प्रारमट भ हुआ। इस पशत्रका ने
अशत िीघ्र बाि पाठकों एिं बाि साशहत्य के पाठकों के बीच अपनी पहचान बना
िी। िम्बे समय तक अच्छी प्रसार संख्या होने के बािजू द भी पराग का प्रकािन
बन्द हो गया।
िुशियाना से सन्तराम के संपादन में १९५८ में 'िोभा' पशत्रका का प्रकािन प्रारम्भ
हुआ। १९५८ में ही उमेि मल्होत्रा के संपादन में जािंिर शसर्ी से 'नन्ें -मुन्ने' पशत्रका
का प्रकािन प्रारम्भ हुआ। िाराणसी से राजकुमार िाही के संपादन में १९५८ में
'राजा बे र्ा' का प्रकािन िु रू हुआ। इसी िष् मुरादाबाद से िां शत प्रसाद दीशक्षत के
संपादन में 'बािबं िु' का प्रकािन प्रारम्भ हुआ। १९५९ में 'मीनू -र्ीनू ' पशत्रका
रमाकान्त पाण्डे य के संपादन में चक्िर (शबहार) से शनकिी। दयािं कर शमश् 'दद्दा'
संपादन में करनाि से 'बाि जीिन' का प्रकािन हुआ। श्ीमती सुमन एिं जे .एन.
िमा् से संपादन में 'हमारा शििु ' पशत्रका शनकािी। इसी िष् भोिानार्थ पुस्रटषोत्तम
सरन के संपादन में आजमगढ़ से 'शिश्व बाि कल्ाण' पशत्रका का प्रकािन हुआ। ये
पशत्रकाएँ बाि साशहत्य के पाठकों में अशिक िोकशप्रय नहीं हुइं रट। बाि पशत्रकाओं
के प्रकािन ही संख्या शनरन्तर बढ़ती रही। सार्थ-ही-सार्थ अने काने क पशत्रकाएँ बन्द
अिीगढ़ से सन २००९ से प्रकाशित होने िािी त्रै माशसक पशत्रका ' अशभनि बािमन'
1. शनयं शत्रत एिं प्रायोशगक समूह के शिद्याशर्थ् यों में पढ़ने की आदतों में अन्तर पाया
गया। 2. ग्रामीण शिद्याशर्थ् यों की तुिना में िहरी शिद्याशर्थ् यों में पढ़ने की आदत उच्च
पायी ।
3. शनयं शत्रत एिं प्रायोशगक समूह के छात्र एिं छात्राओं में पढ़ने की आदतों पर शिंग
का प्रभाि नहीं पाया गया । अर्था् तट छात्र एिं छात्राओं में पढ़ने की आदत िगभग
4. शनयं शत्रत समूह के शिद्याशर्थ् यों की िै शक्षक उपिम्भियों पर क्षे त्र का प्रभाि नहीं
पाया गया। शकन्तु प्रायोशगक समूह के ग्रामीण एिं िहरी शिद्याशर्थ् यों को अिसर
प्रदान करने पर िहरी शिद्याशर्थ् यों में ग्रामीण की तुिना में उच्च िै शक्षक उपिम्भि
प्राप्त होती है । 5. शनयं शत्रत एिं प्रायोशगक समूह के छात्र एिं छात्राओं की िै शक्षक
उपिम्भि पर शिंग का
प्रभाि नहीं पाया गया अर्था् तट छात्र एिं छात्राओं की िै शक्षक उपिम्भि िगभग
समान होती है ।
6. शनयं शत्रत एिं प्रायोशगक समूह में शिद्याशर्थ् यों की पढ़ने की आदत एिं िै शक्षक
उपिम्भि
7. शनयं शत्रत समूह के शिद्याशर्थ् यों में पढ़ने की आदत में पूि् एिं पश्चातट परीक्षणों में
अन्तर नहीं पाया गया शकन्तु प्रायोशगक समूह में अं तर पाया गया। बाि पशत्रकाओं
8. साशहम्भत्यक एिं ज्ञान संबंिी बाि पशत्रकाओं के उपयोग का शिद्याशर्थ् यों के पढ़ने
की आदत में सहसंबंि मध्यम स्तर का पाया गया। यह प्रमाशणत होता है शक बाि
9.
बाि पशत्रकाओं के कक्षागत उपयोग एिं इसके प्रशत छात्रों को अनु प्रेररत करने के
शिए ब्लॉशगं ग, ब्लॉग करना सीखना: इन: ब्रं स, ए., जै कब्स, जे. (सं पादक)। (2006)।
ब्लॉग का उपयोग। 104–114। पीर्र िैंग, न्यूयॉक्। चाप् , एस. (2000)। सहस्राब्दी
आईसीए (अं तरा् ष्रीय संचार संघ) सम्मेिन, शिकागो, इशिनोइस यू एसए
को प्रस्तुत एक पेपर। िॉरे न, ए., ब्रू नर, िी., मैयर पी., और बाने र्, एि.
(1998)। शिक्षण और सीखने में प्रौद्योशगकी: एक पररचयात्मक