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Lalita Sahasranama Hindi Arth Sahit
Lalita Sahasranama Hindi Arth Sahit
कर पाने में; और
० देवी ललीता के नामों का अर्थ जान पाने में |
2. श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र (-2)
|| न्यासः ।।
(५
|| ध्यानम्।।
| सिन्दूरारुण विग्रहां त्रिनयनां माणिक्यमौलि स्फ़रत्
टिपणी | तारा नायक शेखरां स्मितमुखी मापीन वक्षोरुहाम्।
पाणिभ्यामलिपूर्णं रत्न चषकं रक्तोत्पलं बिभ्रतीं
सौम्यां रत्न घटस्थ रक्तचरणां ध्यायेत्परामम्बिकाम्||
ध्यान की स्थिति।
|| अथ श्रीललितासहस्ननामस्तोत्रम्।।
उद्यद्भानु-सहस्राभा चतुर्बाहु-समन्विता ।
रागस्वरूप-पाशास्या क्रोधाकाराङ् कू शोज्ज्वला || २।।
चम्पकाशोक- पुन्नाग-सौगन्धिक-लसत्कचा ।
कु रुविन्दमणि--श्रेणी-कनत्कोटीर-मण्डिता || ४।।
अष्टमीचन्द्र-विश्राज-दलिकस्थल-शोभिता ।
मुखचन्द्र-कलड्काभ-मृगनाभि-विशेषका || ५।।
15) अष्टमीचन्द्रविभ्राजदलिकस्थलशोभिता -- वह जिसके पास आधा
चोद जैसा सुंदर माथा है (अमावस्या से आठवें
दिन दिखाई देता है)
वदनस्मर-माड्गल्य-गृहतोरण-चिल्लिका |
वक्तलक्ष्मी-परीवाह--चलन्मीनाभ-लोचना ।। ६।।
नवचम्पक- पुष्पाभ-नासादण्ड--विराजिता ।
ताराकान्ति-तिरस्कारि-नासाभरण-मासुरा || ७।।
पद्मराग-शिलादश-परिभावि-कपोलमू: ।
नवविद्रुम-विम्बश्री- न्यक्कारि-रदनच्छदा || ६।।
अनाकलित-सादृश्य-चुबुकश्री- विराजिता ।
कामेश-बद्ध-माङ् गल्य- सूत्र शोभित- कन्धरा || १२।।
नाभ्यालवाल-रोमालि-लता-फल-कचद्वयी || १४ ।।
लक्ष्यरोम-लताधारता-समुन्नेय- मध्यमा |
स्तनभार-दलन्मध्य- पट बन्ध--वलित्रया || १५ ।।
अरुणारुण-कौसुम्भ-वस्त्र-भास्वत्-कटीतटी ।
रत्न-किडिकणिका-रम्य-रशना-दाम-भूषिता || १६ ।।
कामेश-ज्ञात-सौभाग्य-मार्दवोरु-द्वयान्विता |
माणिक्य-मुकु टाकार-जानुद्बय-विराजिता || १७ ।।
इन्द्रगोप-परिक्षिप्त-स्मरतूणाम-जछ्िघका ।
गूढगुल्फा कू र्मपृष्ठ-जयिष्णु-प्रपदान्विता || १८ ||
शिज्जान-मणिमज्ृजीर-मण्डित-श्री-पदाम्बुजा ।
मराली-मन्दगमना महालावण्य-शेवधिः || २० |।
महापद्माटवी-संस्था कदम्बवन-वासिनी ।
देवर्षि--गण-संघात-स्तूयमानात्म-वैभवा |
भण्डासुर-वधोद्युक्त-शक्तिसेना-समन्विता || २४ ||
सम्पत्करी-समारूढ-सिन्धुर-ब्रज-सेविता ।
अश्वारूढाधिष्ठिताश्व-कोटि-कोटिभिरावृता । | २५ ।।
५ननिननिननिनननिनतननन- -कौसुम्भ-वस्त्र-भास्वत्ृ-कटीतटी ।
चक्रराज-रथारूढ-सर्वायुध-परिष्कृ ता ।
गेयचक्र-रथारूढ-मन्त्रिणी-परिसेविता ।। २६ ।।
किरिचक्र-रथारूढ-दण्डनाथा-पुरस्कृ ता ।
ज्वाला-मालिनिकाक्षिप्त-वहिप्राकार-मध्यगा || २७ |।
70) किरिचक्ररथारूढदण्डनाथापुरस्कृ ता - वह जो शक्ती से बच
जाती है, जिसे दाणासनथ कहा जाता है,
आग, ज्वालामालिनि वह देवी ज्वालामलिनी द्वारा निर्मित अग्नि के किले के बीच में है
भण्डसैन्य-वधोद्युक्त-शक्ति-विक्रम-हर्षिता ।
नित्या-पराक्रमाटोप-निरीक्षण-समुत्सुका || २८ ।।
भण्डपुत्र-वधोदयुक्त-बाला-विक्रम-नन्दिता |
मच्त्रिण्यम्बा- विरचित- विषङडग- वघ तोषिता ।। २६ ।।
कराडगुलि-नखोत्पनन-नारायण-दशाकृ ति: ।
महा-पाशुपतास्त्राग्नि-निर्द ग्धासुर-सैनिका || ३२ ।।
कामेश्वरास्त्र-निर्दग्ध-समण्डासुर-शुन्यका ।
ब्रह्मोपेन्द्र-महे न्द्रादि-देव-संस्तुत-वैभवा ।। ३३ ।।
हर-नेत्राग्नि-संदग्ध-काम-सजूजीवनौषधि: |
श्रीमद्दाग्भव-कू टैक-स्वरूप-मुख-पछ्कजा |। ३४ ।।
कण्ठाधः-कटि-पर्यन्त-मध्यकू ट- स्वरूपिणी ।
शक्ति-कू टे कतापन्न-कट्यधोभाग-धारिणी || ३५ ।।
86) कण्थाघःकटिपर्यन्तमध्यकू टस्वरूपिणी - वह जिसकी गर्दन से
कू ल्हों तक का हिस्सा माद्य कू टा है
94) एकीकरण है
95) कु लयोगिनी - वह जो परिवार से संबंधित है या वह जो
अंतिम ज्ञान से संबंधित है
मूलाधारैक-निलया ब्रह्मग्रन्थि-विभेदिनी ।
मणि-पूरान्तरुदिता विष्णुग्रन्थि-विभेदिनी || ३८ ।।
तडिल्लता-समरुचिः षट्चक्रोपरि-संस्थिता ।
महासक््तिः कू ण्डलिनी बिसतन्तु-तनीयसी || ४० ।।
108) षट्चक्रोपरिसंस्थिता - वह जौ मूलाधार से शुरू होने वाले छह पहियों में सबसे ऊपर है
152) निष्कारणा -
53) निष्कलङ् का -
151) निरुपार्धिं -
155) निरीश्वरा -
156) नीरगा -
157) रागमथनी -
158) निर्मदा -
159) मदनाशिनी -
वह जिसके पास कारण नहीं है
वह जिसके पास दोष नहीं है 6
160) निश्चिन्ता -
161) निरहंकारा -
162) निर्मोहा -
163) मोहनाशिनी -
161) निर्ममा -
65) ममताहन्त्री -
वह जो चिंतित नहीं है
183) निष्परिग्रहा -
वह जो मरती नहीं है
181) निस्तुला -
85) नीलचिकु रा -
186) निरपाया -
187) निरत्यया -
188) दुर्लभा -
189) दुर्गमा -
]. ...>» स्थारूढ-सर्वायुध-परिष्कृ ता ।
1. हरजनेत्राग्नि-संदग्ध-काम--................ |
€>पाठात प्रश्न
8) परिष्कृ ता
0) प्रहर्षिता
०) कलयोगिनी
५) मूलकू टत्रय
€) ब्रह्मग्रन्थि
7) भयापहा
श्रीललितासहस्रनामस्तोत्र-ा
। 3 उत्तराता।
| 3.]
()
. चक्रराज
2. वधोद्युक्त
3. विघ्नयन्त्र
1. सजजीवनौषधि:
5. कलेबर
6. कौलिनी
7. निलया
8. तडिल्लता
9. भक्तिप्रिया
0. श्रीकरी
. निराकारा
कक्षा - 8
प्रिय शिक्षार्थी, पिछले पाठ में आपने देवी ललिता के 1000 नामों में से
कु छ नामों के विषय में जाना | इस पाठ में उनके अन्य नामों के विषय
में जानेंगे |
कक्षा - 8
72 वेद स्तर-ग
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-ाा
कक्षा - 8
`
सर्व- यन्त्रातमिका सर्व तन्त्ररूपा मनोन्मनी |
करती हे
कक्षा - 8
212) महारूपा - वह जौ बहुत बड़ी है
23) महापूज्या ~ वह जौ महान लोगों द्वारा पूजा जाने लायक
है
है
25) महामाया - वह जो महान भ्रम है
216) महासत्त्वा- वह बहुत ज्ञानी है
217) महाशक्तिं - वह जो बहुत बलवान है
हा । वेद स्तर-ग
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-ाा
कक्षा - 8
महेश्वर-महाकल्प-महाताण्डव- साक्षिणी |
महाकामेश- महिषी महात्रिपुर-सुन्दरी || ५७।।
ह्पषणी
चतु:षष्ट्युपचाराढ्या चतु:षष्टिकलामयी ।
महाचतु:-षष्टिकोटि-योगिनी-गणसेविता || ५८।|
235) चतु:षष्ट्युपचाराढ्या - वह जो चौंसठ यज्ञ के साथ पूज्य हौ
236) चतु:षष्टिकलामयी - वह जो चौंसठ खंड हैं
76 वेद स्तर-ग
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-ाा
कक्षा - 8
वेद स्तर न हा |
श्रीललितासहस्नामस्तोत्रनाा
कक्षा - 8
ध्यान-ध्यातृ-ध्येयरूपा धर्माधर्म-विवर्जिता ।
विश्वरूपा जागरिणी स्वपन्ती तैजसात्मिका || ६२ ।।
परे है
256) विश्वरुपा - वह जिसके पास ब्रह्मांड का रूप है
257) जागरिणी - वह जो हमेशा जागता है
वेद स्तर-ग
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-ाा
कक्षा - 8
वेद स्तर न _ ह
272) सदाशिवा - वह जो सदाशिव रूप है
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-ा
कक्षा - 8
| षे
उन्मेष-निमिषोत्पन्न-विपन्न-भुवनावली ।
सहस्र-शीर्षवदना सहस्राक्षी सहस्रपात्।। ६६।।
श्रुति-सीमन्त-सिन्दूरी-कृ त-पादाब्ज-धूलिका ।
सकलागम-सन्दोह-शुक्ति-सम्पुट-मौक्तिका || ६८ ।।
वेद स्तर न _ शा
श्रीललितासहस्नामस्तोत्रनाा
कक्षा - 8
का पुरुषार्थ देता है
292) पूर्णा - वह जो पूर्ण हो
293) भोगिनी - वह जो सुख भोगता है
नहीं है
वेद स्तर-ग
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-ाा
कक्षा - 8
रही है
306) राज्ञी - वह कामेश्वर की रानी है
307) रम्या - वह जो दूसरों को खुश करता है
वेद स्तर न हि 83 |
| 309) रज्जनी -
310) रमणी -
311) रस्या -
313) रामा -
311) राके न्दुवदना -
315) रतिरूपा -
316) रतिप्रिया -
317) रक्षाकरी -
38) राक्षसघनी -
वह जो लक्ष्मी के समान है
श्रीललितासहस्नामस्तोत्रनाा
वेद स्तर-ग
कक्षा - 8
वेद स्तर न ही ।5 |
श्रीललितासहस्नामस्तोत्रनाा
(ब्पाठात प्रश्न
8)
०)
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©)
॥
2)
दोषवर्जिता
महारूपा
महामन्त्रा
मनुविद्या
जगन्नाथा
भेरदी
नारायणी
वेद स्तर-ग
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-ाा
(मे उत्तराता।
1.]
दुष्टदूरा
सर्वमङ् गला
महापातक
महासना
मध्यगा
चक्रराज
प्राज्ञात्मिका
संहारिणी
भानुमण्डल
४ 9 ० जज का &@ >+ ~ ^ £
. वर्णाश्रम
= +~
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नादरूपा
वेद स्तर-ग
कक्षा - 8
त
प्रिय शिक्षार्थी, पिछले पाठ में आपने देवी ललिता के 1000 नामों में से
कु छ नामों के विषय में जाना। इस पाठ में उनके अन्य नामों के विषय
में जानेंगे।
वेद स्तरग
श्रीललितासहस्ननामस्तो त्र-५
5. श्रीललितासहस्रननामस्तो त्र (76-87) ८
वेद स्तर र _ हा
_
भक्तिमत्-कल्पलतिका पशुपाश-विमोचिनी ।
संहताशेष--पाखण्डा सदाचार--प्रवर्तिका || ७८।।
तापत्रयाग्नि-सन्तप्त-समाहलादन-चन्द्रिका ।
वेद स्तरग
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र- ५
कक्षा - 8
वेद स्तरग
ओड्याणपीठ-निलया बिन्दु-मण्डलवासिनी ।
कक्षा - 8
वेद स्तर-ग
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र- ५
कक्षा - 8
कब्जा करता है
96 वेद स्तर-ग
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र- ५
कक्षा - 8
भक्त-हार्द-तमोभेद-भानुमद्भानु-सन्तति: ।
शिवदूती शिवाराध्या शिवमूर्ति: शिवकरी || ८८ ||
101) भक्तहार्दतमोभेदभानुमद्भानुसन्तति: - वह जो सूर्य की किरणों
की तरह है जो भक्तों के दिल से अंधेरे को
दूर करता है
वेद स्तर र ह ।9 ० |
127) अये - वह जो माँ है
( ट्प्पिणी
129) निस्सीममहिमा - वह जिसके पास असीम प्रसिद्धि है
मदघूर्णित-रक्ताक्षी मदपाटल-गण्डमू: ।
चन्दन-द्रव-दिग्धाडगी चाम्पेय-कु सुम-प्रिया || ६२।।
नामक शक्ति है
है
151) विघ्ननाशिनी - वह जो बाधाओं को दूर करती है
कै द स्तर
कक्षा - 8
विशुद्धिचक्र-निलयाऽऽरक्तवर्णा त्रिलोचना ।
खट्वाङ् गादि- प्रहरणा वदनै क-समन्विता || ६८।।
अमृतादि-महाशक्ति-संवृता डाकिनीश्वरी || ६६ ।।
3ग
180) पायसान्नप्रिया - वह जो मीठा चावल पसंद करती है (पयसाम)
कक्षा - 8
].
~
<>
. त्वासना
वेद स्तरग
. नीचे दिये गये पदों के अर्थ लिखिए-
8)
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5.।
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|ऋ
चर
वेद स्तर ग
वन्दारु
प्राणनाडी
साक्षिवर्जिता
परमेश्वरी
विविधाकारा
शिष्टपूजिता
मे उत्तरमाता।
क्षेत्रस्वरूपा
विमला
चिदेकरस-रूपिणी
कामपूजिता
बिन्दु-मण्डलवासिनी
विश्व-साक्षिणी
प्रभारूपा
व्यापिनी
शिवपरा
तत्त्वमयी
कक्षा - 8
^
श्रीललितासहस्ननामस्तो त्र-५
प्रिय शिक्षार्थी, पिछले पाठ में आपने देवी ललिता के 1000 नामों में से
कु छ नामों के विषय में जाना | इस पाठ में उनके अन्य नामों के विषय
में जानेंगे |
6. श्रीललितासहस्रनामस्तोत्र (0-3)
मणिपूराब्ज-निलया वदनत्रय-संयुता ।
वजरादिकायुधोपेता डामर्यादिभिरावृता || १०२ |।
स्वाधिष्ठानाम्बुज-गता चतुर्वक्त-मनोहरा ।
शूलाद्यायुध-सम्पन्ना पीतवर्णाऽतिगर्विता || १०४ ।।
मूलाधाराम्बुजारूढा पञच-वक्ताइस्थि-संस्थिता ।
अड्कु शादि-प्रहरणा वरदादि-निषेविता || १०६ | |
स्वमी ¢
अग्रगण्या$चिन्त्यरूपा कलिकल्मष-नाशिनी ।
कात्यायनी कालहन्त्री कमलाक्ष-निषेविता || ११३।।
553) अग्रगण्य - वह जो सबसे ऊपर है
551) अचिन्त्यरूपा - वह जो विचार से परे है
555) कलिकल्मषनाशिनी - वह जौ अन्धकार युग की बीमारियों को
दूर करता है
कक्षा - 8
स्वमी ¢
श्रीललितासहस्रनामस्तोत्र-\
है
561) मृगाक्षी - वह जिसकी मृग जैसी आँखें हों
562) मोहिनी - वह जो करामाती है
563) मुख्या - वह जो प्रमुख है
561) मृदानी - वह जो सुख देता है
कक्षा - 8
स्वमी ¢
श्रीललितासहसनामस्तोत्र-\
कक्षा - 8
कटाक्ष-किड्करी-भूत-कमला-कोटि-सेविता ।
शिर:स्थिता चन्द्रनिमा भालस्थेन्द्र-धनु:प्रभा || ११६।।
590) कटाक्षकिड्करीभुतकमलाकोटिसेविता -- वह जो करोड़ों लक्ष्मीओं
द्वारा भाग लेती है जो अपनी सरल नजर के
लिए तरसती है
कक्षा - 8
।४(६
स्वमी ¢
सचामर--रमा-वाणी--सव्य-दक्षिण-सेविता || १२३।।
कलात्मिका - वह की आत्मा ¢
61) त्मका - वह कला की आत्मा है
का कारण हैं
66) अमेय - वह जो मापा नहीं जा सकतौ
617) आत्मा - वह आत्मा हे | वह जो सभी में स्व है
618) परमा - वह जो अन्य सभी से बेहतर है
619) पावनाकृ तिः - वह जौ पवित्रता की पहचान है
620) अनेककोलिवब्रह्माण्डजननी- वह जो अरबों ब्रह्मांडो की जननी है
621) दिव्यविग्रह -- वह जो खूबसूरती से बनाया गया है
।
श्रीललितासहस्रनामस्तोत्र-४
(ब्पाठात प्रश्न
पुण्यलभ्या
विमर्शरूपिणी वी
दाडिमी
नित्यतृप्ता
कक्षा - 8
(३)
४ @ < ©, (४ #५
निलया
{0. कलानाथा
कक्षा - 8
श्रीललितासहसखनामस्तोत्र-
प्रिय शिक्षार्थी, पिछले पाठ में आपने देवी ललिता के 1000 नामों में से
कु छ नामों के विषय में जाना | इस पाठ में उनके अन्य नामों कं विषय
में जानेंगे।
है `
पि अष्टमूर्तिर्अजाजैत्री लोकयात्रा-विधायिनी ।
वेद स्तर-ग
कक्षा - 8
63
श्री ललीता सहस नाम स्तोत्र-/शा
है
686) राज्यवल्लभा - वह जो सभी प्रभुत्वों की रक्षा करे
687) राजत्कृ पा - वह जिसकी दया हर जगह चमकती है
688) राजपीठनिवेशितनिजाश्रिता - वह राजाओं के रूप में लोगों से
संपर्क करता है
राज्यलक्ष्मी: कोशनाथा चतुरङ् ग-बलेश्वरी |
साम्राज्य-दायिनी सत्यसन्धा सागरमेखला || १३५।।
689) राज्यलक्ष्मी:-- वह राज्य का धन है
&>
कक्षा - 8
सर्वोपाधि-विनिर्मुक्ता सदाशिव-पततिब्रता ।
सम्प्रदायेश्वरी साध्वी गुरुमण्डल-रूपिणी || १३८॥।।
[2
रही है
भवदाव-सुधावृष्टिः पापारण्य-दवानला ।
कक्षा - 8
[2
करती है
मार्ताण्ड-भैरवाराध्या मन्त्रिणीन्यस्त-राज्यधू: ।
त्रिपुरेशी जयत्सेना निस्त्रैगुण्या परापरा ।। १५०।।
9. देश-कालापरिच्छिन्ना सर्वगा
€>पाठांत प्रश्न
7.॥
।.
छा ४ ~>४? >
> @ >> ~ ~ ~ ऐ (४
घनाघना
महाकाली
मुक्तिरूपिणी
दौर्भाग्य-तूलवातूला
चण्डिका
र्त्यम्बका
म उत्तराता
विश्वगर्भा
सत्यानन्द
विज्ञात्री
ज्ञानशक्ति
अजाजेत्री
भाषारूपा
राज्य-दायिनी
कोशनाथा
सर्वमोहिनी
. मधुमती
कक्षा - 8
(४
श्रीललितासहयनामस्तोत्र-ष
प्रिय शिक्षार्थी, पिछले पाठ में आपने देवी ललिता के 1000 नामों में से
कु छ नामों के विषय में जाना | इस पाठ में उनके अन्य नामों के विषय
में जानेंगे।
सत्य-ज्ञानानन्द-रूपा सामरस्य-परायणा ।
कपर्दिनी कलामाला कामधुक् कामरूपिणी || १५१।।
कक्षा - 8
मूर्ताऽमूर्ताऽनित्यतृप्ता मुनिमानस-हंसिका |
सत्यव्रता सत्यरूपा सर्वान्तर्यामिनी सती ।। १५४।।
¢
श्रीललितासहस्ननामस्तो त्र-शा
कक्षा - 8
॥॥
(५
श्रीललितासहस्ननामस्तो त्र- शा
श्रीललितासहसनामस्तोत्र-शा
कक्षा - 8
जन्ममृत्यु-जरातप्त-जनविश्रान्ति- दायिनी |
सर्वो पनिष-दुद्-घुष्टा शान्त्यतीत-कलात्मिका || १५६।।
जा सकता है
त्रयी त्रिवर्गनिलया त्रिस्था त्रिपुरमालिनी ।
निरामया निरालम्बा स्वात्मारामा सुधासृतिः || १६३।।
872) त्रयी - वह जो तीन वेदों अर्थात ऋक, यजुर ओर
साम के रूप में है
873) त्रिवर्गनिलया - वह जो स्वयं, संपत्ति और आनंद के तीन
पहलुओं में है
871) त्रिस्था - वह जो तीन में है
है।
कक्षा - 8
(४
श्रीललितासहस्रनामस्तो त्र-शा
संसारपडक-निर्म ग्न-समुद्धरण-पण्डिता ।
यज्ञप्रिया यज्ञकच्री यजमान-स्वरूपिणी || १६४॥।
ह्न
890) विश्वग्रासा - वह जो एक मुट्ठी में ब्रह्मांड खाती है
कक्षा - 8
(५
श्रीललितासहस्ननामस्तो त्र-शा
कक्षा - 8
।
सफे द रंग के साथ लाल मिलाया जाता है
दक्षिणा-दक्षिणाराध्या दरस्मेर-मुखाम्बुजा |
कौलिनी-के वलाइनर्घय-कै वल्य-पददायिनी || १७१।।
(५
911) मनोमयी - वह जो मन से एक है
श्रीललितासहस्ननामस्तो त्र-शा
कक्षा - 8
ट्प्षणी
है 912) व्योमके शी - वह शिव की पत्नी है, जिसके बाल आकाश हैं
सुवासिन्यर्चन-प्रीताइइशोभना शुद्धमानसा ।
स्विनः
ज्ञानज्ञेयस्वरूपिणी [9.१
।
अभ्यासातिशय-ज्ञाता षडध्वातीत-रूपिणी ।
अव्याज-करुणा- मूतिरर्अज्ञान-ध्वान्त-दीपिका || १८१।।