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श्री ललितासहस्रनाम स्तोत्र

श्रीललितासहस्रनामस्तोत्र (श्री ललिता के 1000 नाम) ब्रह्माण पुराण


का भाग है जिसमें हयग्रीव और ऋषि अगस्त्य के मध्य का संवाद है
जो संभवतः दक्षिणी भारतीय उपासकों के लिए प्रस्तुत किया गया हे |
यह परमात्मा के निर्देशन में हयग्रीव ओर ऋषि अगस्त्य के संवाद के
माध्यम से आठ वाक् ‌देवियों के द्वारा मूलतः रचित है। यह देवी
ललीता त्रिपुरासुन्दरी की स्तुति में लिखा गया है जिसमें उनके गुणों,
विजय, संघो, विभिन्‍न पहलुओं, महानता, परिपूर्णता, शक्तियों तथा
अभिव्यक्तियों के बारे में बताया गया हे | सहस्रनाम का हिन्दु धर्म में
बहुत बड़ा महत्त्व हैं। क्योंकि इनमें लगभग सभी देवियों - पार्वती,
दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती, भगवती आदि की पूजा तथा आध्यत्मिक
पूजा करने में भी इनका महत्त्व है। इनका प्रयोग पाठ, अनुष्ठान-पूजा,
ध्यान और चिंतन आदि में किया जाता है। ये अपनी संरचनात्मक -
संगठन में सूक्ष्म सौंदर्य, परम्‌शक्ति की अभिव्यक्तियों तथा अनगिनत
शक्तियों को जानने में इनका आध्यात्मिक मूल्य बहुत अधिक है |

यह पाठ पढ़ने के बाद आप सक्षम होंगे:

® श्रीललितासहस्रनामस्तोत्र में दिये गये मंत्रों का शुद्ध उच्चारण

कर पाने में; और
० देवी ललीता के नामों का अर्थ जान पाने में |

2. श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र (-2)

श्री ललिता मातृ देवी है। जो दूर्गा रूप है और कामेश्वर (शिवजी) की


अर्धाडिगनी है जो अपने आप मं पारलौकिक ओर आसन्न शक्तियों को
जोडती हैं। जो मेरू पर्वतमाला की चोटी पर नगर में पवित्र स्थान
रहती हैं। इन्हें त्रिपुरासुन्दरी, तीन शहरों की सुन्दरी के रूप में प्रसिद्धि
प्राप्त है जो अपने लम्बे तथा लहराते के श, कमल जैसे नयन, चपल
तथा अत्यधिक तेजवान शरीर के साथ अपनी चरम सुन्दरता और गति
के लिए जानी जाती है। ये के वल स्त्रीतुल्य सुन्दर, घरेलू, प्यारी और
नाजुक रूप में ही नहीं है बल्कि बहुत भयानाक, गौरववान, भय
उत्पन्न करने वाले तथा बहुत साहसी भी हैं। ये देवी अपने भक्तों,
देवी-देवताओं, आध्यत्मिक गुरूओं, विद्यार्थीयों तथा सामान्यजनों के
हृदय और मन पर अधिकार रखती हैं।

पुराणों का मानना है कि वे अपने उपासकों की पूजा-अर्चना, तथा


भक्ति से शीघ्र ही प्रसन्न हो जाती हैं, और अपनें भक्तों को वरदान
देती हें | उन्होनें शिवजी के गणों की महासेवा - नित्य देवता, अवर्णं
देवता तथा महान शक्तियों जैसे - चांदनी, अनिमा, महिमा, ब्रह्मी,
कु मारी, ज्वालमालीनी, बाला, वैण्ठवी, वराही, महेन्द्री, चामुण्डी, महालक्ष्मी
आदि का नेतृत्व करते हुए बाणासुर का वध किया था। ये देदीप्यमान
देवी हैं जो कु ण्डली के सभी चक्रों में स्थित है। निम्नलिखित प्रार्थना में
उन्हें दोनो सर्वोच्च देवी तथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश के रूप में स्वयं ब्रह्मा
(परमशक्ति) से उच्च शक्ति के रूप में संबोधित किया गया है। श्री
ललितासहस्रनाम स्तोत्र बहुत ही सुन्दर प्रार्थना है जिसमें 482 श्लोकों
(मंत्रों) में ॥000 नाम दिये गये है।

|| न्यासः ।।

अस्य श्रीललितासहस्रनामस्तोत्रमाला मन्त्रस्य | वशिन्यादिवाग्देवता


ऋषयः। अनुष्टुप्‌छन्दः । श्रीललितापरमेश्वरी देवता ।
श्रीमद्वाग्भवकू टेति बीजम्‌। मध्यकू टेति शक्ति: । शक्तिकू टेति

कीलकम्‌। श्रीललितामहात्रिपुरसुन्दरी- प्रसादसिद्धिद्वारा


चिन्तितिफलावाप्त्यर्थे जपे विनियोगः ।

ये श्रीललितासहस्रनाम स्तोत्र के मंत्र हे | वशिन्यादि वाक् ‌देवता ऋषि


हे । अनुष्टुप्‌छंद है श्रीललितापरमेश्वरी देवता हैं |

(५
|| ध्यानम्‌।।
| सिन्दूरारुण विग्रहां त्रिनयनां माणिक्यमौलि स्फ़रत्‌
टिपणी | तारा नायक शेखरां स्मितमुखी मापीन वक्षोरुहाम्‌।
पाणिभ्यामलिपूर्णं रत्न चषकं रक्तोत्पलं बिभ्रतीं
सौम्यां रत्न घटस्थ रक्तचरणां ध्यायेत्‌परामम्बिकाम्‌||

ध्यान की स्थिति।

आओ हम उस देवी माँ का ध्यान करें, जिनके शरीर पर सिदुर का


लाल चढ़ा हैं, जिनके तीन नेत्र है, जसे माणिक जडित ताज पहने हुए
हैं, जो चन्द्रमा के आभामण्डल से सुशोभित हैं, जिनके मुख पर सुन्दर
चपल मृस्कु राहट है जो उनको दयावान रूप में इंगित कर रही हैं,
उनके अंग बहुत सुन्दर हे, उनके हाथ में रत्न-जग एक सुनहरा बर्तन
है जिसमें अमृत भरा है तथा दुसरे हाथ में कमल पुष्प है |

|| अथ श्रीललितासहस्ननामस्तोत्रम्‌।।

श्रीमाता श्रीमहाराज्ञी श्रीमत्‌-सिंहासनेश्वरी ।


चिदग्नि-कण्ड-सम्भूता देवकार्य समुद्यता || १।।

4) श्रीमाता माँ जो अपार धन देती है जौ सभी दुखों को


दूर करती है ओर के वल सुख देती हे |

2) श्रीमहाराज्ञी वह कौन है जो ब्रह्मांड की देखभाल करने


वाली महारानी है-- उसकी सुरक्षा की भूमिका
को इंगित करती हैं |

3) श्रीमत्सिंहासनेश्वरी जो शेरों के सिंहासन पर बैठता है, वह


उसकी विनाश की भूमिका को दर्शाता है

4) चिद्गनिकु ण्डसुम्भुता - वह जो ज्ञान की अग्नि से उठ गया और


वह परम सत्य है

5) देवकार्यसमुद्यता - वह जो देवों की मदद करने में रुचि रखता है

उद्यद्‌भानु-सहस्राभा चतुर्बाहु-समन्विता ।
रागस्वरूप-पाशास्या क्रोधाकाराङ् कू शोज्ज्वला || २।।

6) त्रिबंगुसहस्राभा - वह जो हजार उगते सूरज की तरह चमकता


है
7) चतुर्बहुस्मृति - वह जिसके चार हाथ हों
8) रागुंतपाशाढ्या ~ वह जिसे रस्सी (पासा) के रूप में सभी के
लिए प्यार है-उसके पास उसके बाएं हाथ
में एक है

9) क्रोधाकरङ् कु शोज्ज्वला - वह जो दाहिने हाथों में से एक


अंगुसा के रूप में चमकती है और क्रोध
करती है।|

मनोरूपेक्षु-कोदण्डा पञ्‌चतन्मात्र- सायका |


निजारुण-प्रभापूर-मज्जद्‌ब्रह्माण्ड- मण्डला || ३।।

10) मानसूपेक्षुकोदण्डा -- वह जिसके पास मीठे बेंत का धनुष है,


उसका मन उसके बाएं हाथ में है

11) पञचतन्मात्रिका - वह जिसके पास स्पर्श, गंध, श्रवण, स्वाद


और दृष्टि के पाँच धनुष हैं

12) निजारूणप्रभापूरमज्जद्ब्रह्माण्डमण्डला - वह जो सारे ब्रह्मांड


को अपने लाल रंग में डुबो देता है जो भोर
के सूरज की तरह है

चम्पकाशोक- पुन्नाग-सौगन्धिक-लसत्कचा ।
कु रुविन्दमणि--श्रेणी-कनत्कोटीर-मण्डिता || ४।।

13) चम्पकाशोकपुन्नागसौगन्धिकलसत्वा - वह जो अपने बाल


फू लों में पहनती है जैसे चंपक, पुन्नागा ओर
सौगंधिका

14) कु रुविन्मनमिश्रणीकताको तारामण्डिता -- जिसका मुकु ट कीमती


पत्थरों (पद्मराग पत्थर) की पंक्तियों के साथ
चमकता है

अष्टमीचन्द्र-विश्राज-दलिकस्थल-शोभिता ।
मुखचन्द्र-कलड्काभ-मृगनाभि-विशेषका || ५।।
15) अष्टमीचन्द्रविभ्राजदलिकस्थलशोभिता -- वह जिसके पास आधा
चोद जैसा सुंदर माथा है (अमावस्या से आठवें
दिन दिखाई देता है)

16) मुखचन्द्रकलड्काभामृगनाभिविशेषक - वह जिसके माथे में


मस्क का थिलाका (बिंदी) है जो चंद्रमा में काली छाया की तरह है

वदनस्मर-माड्गल्य-गृहतोरण-चिल्लिका |
वक्तलक्ष्मी-परीवाह--चलन्मीनाभ-लोचना ।। ६।।

17) वदनस्मरमागलगल्याग्ृहतोरणचिल्लिका - वह जिसके पास


सुंदर पलक हैं जो उसके चेहरे पर आभूषणों
की तरह दिखती हैं जो कि घर की तरह है

18) वक्तलक्ष्मीपरवाहलन्मीनाभलोहन - वह जिसके पास सुंदर आँखें


हैं जो उसके चेहरे के तालाब में मछली की
तरह दिखती हैं

नवचम्पक- पुष्पाभ-नासादण्ड--विराजिता ।
ताराकान्ति-तिरस्कारि-नासाभरण-मासुरा || ७।।

19) नवचम्पकपुष्पाभासनासादविराजिता - वह जो ताजे खुले फू लों की तरह चंपक है

20) ताराकांतितिरकारिनासाभरणभासुरा - वह जिसके पास एक नाक की अंगूठी है जो तारे से अधिक चमकती है

कदम्बमञज्‌जरी-कृ ल्प्त- कर्णपूर मनोहरा ।


ताटङ् क-युगली-मूत-तपनोडुप- मण्डला || ८।।

21) कदम्बमञ्‌जरिकृ ल्प्तकर्णुरमनौहरा - वह जिसके पास कदंब के


फू लों की तरह सुंदर कान हैं

22) ताटडकयुगलीभूततपनोडुपमण्डला - वह जो सूरज और चाँद


को अपने कानों में लगाती है

पद्मराग-शिलादश-परिभावि-कपोलमू: ।
नवविद्रुम-विम्बश्री- न्यक्कारि-रदनच्छदा || ६।।

23) पद्मरागशिलादशपरिभाविकपोलभू: - वह जिसके पास गाल हैं


जो पद्मराग से बने दर्पण से अधिक चमकते हैं

24) नवविद्रुमबिम्बश्रीन्यक्कारिरदनच्छदा - वह जिसके होंठ सुंदर


नए मूंगे के समान हैं
शुद्ध-विद्याडकु राकार-द्विजपद्िक्ति-द्वयोज्ज्वला ।
कर्पूर-वीटिकामोद--समाकर्षि--दिगन्तरा || १०।।

25) शुद्धविद्याडकु राकारद्विजपडिक्तद्दयोज्ज्वला - वह दाँत हैं जो


अंक्रित सच्चे ज्ञान की तरह दिखते हैं

26) कर्पूरवीटिकामोदसमाकर्षिदिगन्तरा - वह मसाले के साथ सुपारी


चबाता है जो सभी दिशाओं में इत्र देता है

निज-सल्लाप- माधुर्य विनिर्भर्तिसित- कच्छपी ।


मन्दस्मित-प्रभापूर-मज्जत्कामेश-मानसा || ११।।

27) निजसल्लापमाधुर्यविनिर्भर्तसतकच्छपी - वह जौ सारावती देवी

वीणा द्वारा निर्मित नोटों की तुलना में मधुर


आवाज हे (इसे कचाभी कहा जाता है)

28) मन्दस्मितप्रभापूरमज्जत्कामेशमानसा - जिसके पास प्यारी सी


मुस्कान है, जो नदी के समान है, जिसमें
कामदेव का मन खेलता है

अनाकलित-सादृश्य-चुबुकश्री- विराजिता ।
कामेश-बद्ध-माङ् गल्य- सूत्र शोभित- कन्धरा || १२।।

29) अनाकलितसादृश्यवुबुकश्रीविराजिता - वह जिसके पास एक


सुंदर ठोडी है जिसकी तुलना करने के लिए
ओर कु छ नहीं है

30) कामेशबद्धमाङ् गल्यसूरत्रशोभितकन्धरा - वह जो भगवान कामेश्वर


द्वारा बंधी हुईंगर्दन में पवित्र धागे के साथ
चमकता है

कनकाङ् गद-के यूर-कमनीय-भुजान्विता |

रत्नग्रैवेय चिन्ताक-लोल- मुक्ता-फलान्विता || १३ ।।

31) कनकाङ् गदके यूरकमनीयभुजान्विता - वह जो गोल्डन आर्मलेट


पहनती है

32) रल्नग्रैवेयचिन्ताकलोलमुक्ताफलान्विता -- वह जो मोतियों के


साथ चलती मोती और डॉलर जड़ा हुआ हार
>>चनो पहनती हे

कामेश्वर- प्रमरत्न-मणि- प्रतिपण- स्तनी ।

नाभ्यालवाल-रोमालि-लता-फल-कचद्वयी || १४ ।।

33) कामेश्वरप्रेमरत्नमणिप्रतिपणस्तनी - उसने अपने स्तनों को दिया


जो रत्ना (कीमती पत्थरों) से बने बर्तन की
तरह हे ओर कामेश्वर का प्यार प्राप्त किया है

34) नभ्यालवालरोमालिलताफलकचद्वयी - वह जिसके दो स्तन हैं


जो उसके पेट से उठने वाले छोटे बालों के
लता पर पैदा हुए फलों की तरह हँ |

लक्ष्यरोम-लताधारता-समुन्नेय- मध्यमा |
स्तनभार-दलन्मध्य- पट बन्ध--वलित्रया || १५ ।।

35) लक्ष्यरोमलताधरतासमून्नेयमध्यमा - उसे वहाँ से उठने वाले


बाल जैसे लता की वजह से कमर पर शक है

36) स्तनभारदलन्मध्यपट्टन्धवलित्रया - वह जिसके पेट में तीन


धारियाँ हैं जो ऐसा लगता है कि उसकी
कमर को उसके भारी स्तनों से बचाने के
लिए बनाया गया है

अरुणारुण-कौसुम्भ-वस्त्र-भास्वत्‌-कटीतटी ।
रत्न-किडिकणिका-रम्य-रशना-दाम-भूषिता || १६ ।।

37) अरुणारुणकौसुम्भवस्त्रभास्वतृकटीतटी - वह जो अपनी छोटी


लाल कमर पर पहने हुए हल्के लाल रेशमी
कपड़े में चमकती है

38) रत्नकिडिकणिकारम्यरशनादामभूषिता - वह जो कीमती पत्थरों


से बनी घंटियों से सजी अपनी कमर के नीचे
एक सुनहरा धागा पहनती है

कामेश-ज्ञात-सौभाग्य-मार्दवोरु-द्वयान्विता |
माणिक्य-मुकु टाकार-जानुद्बय-विराजिता || १७ ।।

39) कामेशज्ञतसौभागयमार्दवोरुद्दयान्विता - वह जिसके पास सुंदर


और कोमल जांघें हैं, वह के वल अपनी पत्नी
कामेश्वर को जानती है

40) माणिक्यमुकु टाकारजानद्वयविराजिता - वह जिसके घुटने घुटने

जैसे हैं, उसकी जाँघों के नीचे माणिक्य से


बना हुआ ताज

इन्द्रगोप-परिक्षिप्त-स्मरतूणाम-जछ्िघका ।
गूढगुल्फा कू र्मपृष्ठ-जयिष्णु-प्रपदान्विता || १८ ||

41) इन्द्रगोपपरिक्षिप्तस्मरतूणाभजडिघका -- वह जिसके पास इंद्र के


कोपा नामक मधुमक्खी के बाद बाणों के

(म त) गुच्छे के मामले की तरह है

42) गूढगुल्फा - वह जिसके पास टखने हैँ

43) कू र्मपृष्ठजयिष्णुप्रपदान्विता ~ विह जो कछु ए की पीठ की तरह


ऊपरी पैर रखता हे

नख- दीधिति- संछन्न-नमज्जन- तमोगुणा ।


पदद्वय-प्रमाजाल-पराकृ त-सरोरुहा || १६ ।।
44) नखदीधितिसंछन्ननमज्जनतमोगुणा -- वह जो अपने भक्तों के

मन में नाखूनों की चमक से अंधेरा दूर करती है

45) पदद्वयप्रभाजलपराकृ तसरोरुहा - वह जिसके दो पैर हैं जो


कमल के फू ल से बहुत अधिक सुंदर है

शिज्‌जान-मणिमज्‌ृजीर-मण्डित-श्री-पदाम्बुजा ।

मराली-मन्दगमना महालावण्य-शेवधिः || २० |।

46) शिंज्‌जानमणिजृजीरमण्डितश्रीपदाम्बुजा - वह जिसके पास मणि


पत्थर से भरे हुए संगीतमय पायल पहने हुए
पैर हैं

47) मरालीमन्दगमना -- वह जिसके पास हंस की तरह धीमी चाल है

48) महालावण्यशेवधि: -- वह जिसके पास परम सौंदर्य का भण्डार है


सर्वारुणाऽनवद्याङ् गी सर्वाभरण-भूषिता ।

शिव-कामेश्वराङ् कस्था शिवा स्वाधीन- वल्लभा || २१। |

49) सर्वारुणा - वह जो उसके सभी पहलुओं में भोर का


हल्का लाल रंग है

50) अनवद्याड़गी - वह जिसके पास सबसे सुंदर अंग हैं जिसमें


सुंदरता के किसी भी पहलू की कमी नहीं है

54) सर्वभरणभूषिता - वह जो सभी आभूषण पहनती है


52) शिवकामेश्वराड्स्था - वह जो कामेश्वर (शिव) की गोद में बैठती है
53) शिवा - वह जो शिव की पहचान है

54) स्वाधीनवल्लभा - वह जिसका पति उसकी बात मानता हे

सुमेरु-मध्य-शृङ् गस्था श्रीमन्नगर- नायिका |

चिन्तामणि- गृहान्तस्था पञ्‌च- ब्रह्मासन- स्थिता || २२ ।।

55) सुमेरुमध्यशृङ् गस्था - वह जो मेरु पर्वत के कें द्रीय शिखर में


रहती है

56) श्रीमन्नगरनायिका - वह जो श्रीनगर का प्रमुख है (एक कस्बा)

57) चिन्तामणिग्रहान्तस्था - वह जो पूरी इच्छा से घर में रहती है

58) पञचब्रह्मासनस्थिता - वह जो पाँच ब्रह्मों पर विराजमान है |,


ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, एसाना ओर सदाशिव

महापद्माटवी-संस्था कदम्बवन-वासिनी ।

सुधासागर मध्यस्था कामाक्षी कामदायिनी || २३।।

59) महापद्माटवीसंस्था - वह जौ कमल के फू लों के जंगल में


रहती है

60) कदम्बवनवासिनी -- वह जो कदम्भा (मदुरई शहर को कदम्भा


वाना कहा जाता है) के जंगल में रहती है

64) सुधासागरमध्यस्था - वह जो अमृत के समुद्र के बीच में रहती है


62) कामाक्षी - वह जो अपनी दृष्टि से इच्छाओं को पूरा
करती है

63) कामदायिनी - वह जो चाहती है वह देती है

देवर्षि--गण-संघात-स्तूयमानात्म-वैभवा |

भण्डासुर-वधोद्युक्त-शक्तिसेना-समन्विता || २४ ||

64) देवर्षिगणसंघातस्तूयमानात्मवैभवा -- वह जिसके पास सभी गुण

हैं वह ऋषियों और देवों द्वारा पूजने योग्य है

65) भण्डासुरवधोद्युक्तशक्तिसेनासमन्विता - वह सेना से घिरा हुआ

है जो बंदसुरा को मारने के लिए तैयार है

सम्पत्करी-समारूढ-सिन्धुर-ब्रज-सेविता ।
अश्वारूढाधिष्ठिताश्व-कोटि-कोटिभिरावृता । | २५ ।।

66) सम्पत्करीसमारुढसिन्धुरव्रजसेवीता - वह संपतकारी (जो धन


देता है) हाथी ब्रिगेड से घिरा हुआ है

67) अश्वारूढाधिष्ठिताश्वकोटिकोटिभिरावृता - वह जो करोड़ों घोड़ों


की घुड़सवार सेना से घिरा हुआ है

ताराकान्ति-तिरस्कारि- ........................ -भासुरा


कर्पूर- .......................... -समाकर्षि दिगन्तरा ||
वि -प्रेमरत्न-मणि-प्रतिपण-स्तनी ।

५ननिननिननिनननिनतननन- -कौसुम्भ-वस्त्र-भास्वत्‌ृ-कटीतटी ।

महापदमाटवी- ......................... कदम्बवन-वासिनी |

चक्रराज-रथारूढ-सर्वायुध-परिष्कृ ता ।
गेयचक्र-रथारूढ-मन्त्रिणी-परिसेविता ।। २६ ।।

68) चक्रराजरथारूढसर्वायुधपरिष्कृ ता - वह जो पूरी तरह से सशस्त्र


है और नौ कहानियों के साथ श्रीचक्र रथ में
सवार है
69) गेयचक्ररथारूढमन्त्रिणीपरिसेवीता - वह सात कहानियों के
साथ रथ में सवार होती है और उसे मंथरिनी
द्वारा सेवा दी जाती है जो संगीत की देवी
है

किरिचक्र-रथारूढ-दण्डनाथा-पुरस्कृ ता ।

ज्वाला-मालिनिकाक्षिप्त-वहिप्राकार-मध्यगा || २७ |।
70) किरिचक्ररथारूढदण्डनाथापुरस्कृ ता - वह जो शक्ती से बच
जाती है, जिसे दाणासनथ कहा जाता है,

ह्नि बैठा हे | किरीचक्र रथ मेंवह जो पाँच कहानियों


के साथ रथ में सवार होती है ओर देवी वरही
द्वारा सेवा की जाती है अन्यथा धघा नाथ
कहलाती हे
7) ज्वालामालिनिकानक्िप्तवह्िप्राकारमध्यगा - वह जिसने किले के
कें द्र में स्थान लिया हो देवी द्वारा बनाई गई

आग, ज्वालामालिनि वह देवी ज्वालामलिनी द्वारा निर्मित अग्नि के किले के बीच में है

भण्डसैन्य-वधोद्युक्त-शक्ति-विक्रम-हर्षिता ।
नित्या-पराक्रमाटोप-निरीक्षण-समुत्सुका || २८ ।।

72) भण्डसैन्यवधोद्युक्तशक्तिविक्रमहर्षिता - वह शक्तियों की वीरता


पर आनन्दित होती है जो आशय रखते हैं
इींछकनतं की सेनाओं को नष्ट करने परवह
जो विभिन्‍न शक्ति (सचमुच ताकत लेकिन
एक देवी) से प्रसन्‍न था जिसने भांडासुर की
सेना को मारने में मदद की

73) नित्यापराक्रमाटोपनिरीक्षणसमुत्सुका- वह जो नित्य देवता (सचमुच


हर दिन की देवी) की वीरता को देखने में
रुचि रखता है और खुश है

भण्डपुत्र-वधोदयुक्त-बाला-विक्रम-नन्दिता |
मच्त्रिण्यम्बा- विरचित- विषङडग- वघ तोषिता ।। २६ ।।

74) भण्डपुत्रवधोद्युक्तबालाविक्रमनन्दिता -- वह जो बांदा के बेटों को


नष्ट करने में बाला देवी (उनकी बेटी) की
वीरता से प्रसन्न था

75) मच्त्रिण्यम्बाविरचितविषुङ् गवधतोषिता - वह देवी मंथरिनी को


देखकर खुश हो गई कि वह विशांगा को मार
डाले

विशुक्र- प्राणहरण-वाराही-- वीर्य नन्दिता |


कामेश्वर-मुखालो क-कल्पित- श्री गणेश्वरा ।। ३० ।।

76) विशुक्रप्राणहरणवाराहीवीर्यनन्दिता - वह जो विशुका को मारने में


वरही की वीरता की सराहना करता है

77) कामेश्वरमुखालोककल्पितश्रीगणेश्वरा - वह जो कामेश्वरा के


मुख से एक निगाह द्वारा गणेश को जन्म
देती ह उसने अपने भगवान, कामेश्वर के
मुख के दर्शन मात्र से भगवान गणेश की
रचना की

महागणेश निर्भिन्न- विघ्नयन्त्र- प्रहर्षिता ।


भण्डासुरेन्द्र-निर्मुक्त-शस्त्र- प्रत्यस्त्र- वर्षिणी ।। ३१ ।।

78) महागणेशनिर्भिन्‍नविघ्नयन्त्रप्रहर्षिता - जो भगवान गणेश को

देखकर प्रसन्न हो गए, उन्होने विष्णु द्वारा

कस बनाए गए विघ्न यंत्र (देरी का मतलब) को


नष्ट कर दिया

79) भण्डासुरेन्द्रनिमुक्तशस्त्रप्रहर्षित - वह जिसने बाणासुर के विरुद्ध


बाणों की वर्षा की और तीरों से उत्तर दिया

कराडगुलि-नखोत्पनन-नारायण-दशाकृ ति: ।
महा-पाशुपतास्त्राग्नि-निर्द ग्धासुर-सैनिका || ३२ ।।

80) कराद्गुलिनखोत्पनननारायणदशाकृ तिः -- उसने अपने नाखूनों


की नोक से नारायण के दस अवतारों का
निर्माण किया

8) महापाशुपतास्त्राग्निनिर्दग्धासुरसैनिका -- वह जिसने महा पशुपति


बाण द्वारा असुरों की सेना को नष्ट कर
दिया |

कामेश्वरास्त्र-निर्दग्ध-समण्डासुर-शुन्यका ।
ब्रह्मोपेन्द्र-महे न्द्रादि-देव-संस्तुत-वैभवा ।। ३३ ।।

82) कामेश्वरास्त्रनिर्दग्धसमभण्डासुरशून्यका - उसने बांदासुर और


उसके शहर को नष्ट कर दिया जिसे कामेश्वर
बाण द्वारा सूर्याका कहा गया |
83) ब्रह्मोपेन्द्रमहेन्द्रादिदेवसंस्तुत वैभवा -- वह जो भगवान ब्रह्मा,
विष्णु, इंद्र और अन्य देवों द्वारा प्रार्थना की
जाती है

हर-नेत्राग्नि-संदग्ध-काम-सजूजीवनौषधि: |
श्रीमद्दाग्भव-कू टैक-स्वरूप-मुख-पछ्कजा |। ३४ ।।

84) हरनेत्राग्निसंदग्धकामसज्‌जीवनौषधि: -- वह जो प्रेम के देवता


मनमथा को जीवन में वापस लाया, जो शिव
की आँखों से आग से जलकर राख हो गया
था

85) श्रीमद्वाग्भवकु टैकस्वरूपमुखपड्कजा - वह जिसका कमल मुख


विघ्न कू ट है

कण्ठाधः-कटि-पर्यन्त-मध्यकू ट- स्वरूपिणी ।
शक्ति-कू टे कतापन्न-कट्यधोभाग-धारिणी || ३५ ।।
86) कण्थाघःकटिपर्यन्तमध्यकू टस्वरूपिणी - वह जिसकी गर्दन से
कू ल्हों तक का हिस्सा माद्य कू टा है

87) शक्तिकु टेकतापन्नकट्यधोभागधारिणी - जिसके कू ल्हों के नीचे


का भाग वह शक्ति कू टा है

मूल-मन्त्रात्मिका मूलकू टत्रय-कलेबरा |


कु लामृतैक-रसिका कु लसंके त-पालिनी ।। ३६ ।।

88) मूलमन्त्रमिका - वह जो मूल मंत्र (मूल मंथरा) का अर्थ है या वह जो इसका कारण है

89) मूलकू टत्रकयकलेबरा - वह जिसका शरीर मूल मन्त्र के तीन


भाग हैं प। इ। पंच दशाक्षरी मंथरा

90) कु लामृतैकरसिका -- वह जो किसी को देखने, देखने और जो


देखा जाता है, उसकी पवित्रता की चरम
स्थिति का आनंद लेती है या वह जो मस्तिष्क
के नीचे हजार पंखुड़ियों वाले कमल से बहते
हुए अमृत को पीने में आनंद प्राप्त करती हे |

91) कु लसंके तपालिनी - वह जो शक्तिशाली सत्य को अनुपयुक्त


लोगों में गिरने से बचाता है

कु लाडगना कु लान्तस्था कौलिनी कु लयोगिनी ।


अकू ला समयान्तस्था समयाचार-तत्परा || ३७ ।।
92) कु लाङ् गना - वह जौ सुसंस्कृ त परिवार से जुड़ी महिला है
या वह श्रीविद्या जैसी है, के वल उसी से जानी जाती है, जिसका वह है

93) कु लान्तस्था - वह जो किसी भी स्थान पर पूजित होने लायक हो

94) एकीकरण है
95) कु लयोगिनी - वह जो परिवार से संबंधित है या वह जो
अंतिम ज्ञान से संबंधित है

96) अकु ला - वह जो कू ला से परे है या वह जो किसी


ज्ञान से परे है

97) समयान्तस्था - वह जो शिव और शक्ति की मानसिक पूजा


के भीतर है

98) समयाचारतत्परा- वह जो समयाचार मैं पसंद करती है |`

मूलाधारैक-निलया ब्रह्मग्रन्थि-विभेदिनी ।
मणि-पूरान्तरुदिता विष्णुग्रन्थि-विभेदिनी || ३८ ।।

99) मूलाधारैकनिल्या - वह जो मूलाधार में मौजूद है मूलाधार में,


जो चार पंखुड़ियों वाले कमल के रूप में
कुं डल सोता है।

100) ब्रह्मग्रन्थिविभेदिनी -- वह जो ब्रह्मा दादी में टाई तोड़ता है |

104) मणिपूरान्तरूदिता - वह मणि बेचारा चक्र में मौजूद है जिसने


अपने वित्त में पूरे कपड़े पहने थे

102) विष्णुग्रन्थिविभेदिनी -- वह जो विष्णु दादी के संबंधों को तोड़ता


आज्ञा-चक्रान्तरालस्था रुद्रग्रन्थि-विभेदिनी ।
सहस्राराम्बुजारूढा सुधा-साराभिवर्षिणी || ३६ ।।

103) आज्ञाचक्रान्तरालस्था-वह जो आदेश देता है, उसके रूप में दो


नेत्रों के बीच रहता है

104) रुद्रग्रन्थिविभेदिनी - वह जो रुद्र दादी के संबंधों को तोड़ती हे |

105) सहस्राराम्बुजारूढा - वह सहस्रार जिस पर चढ़ा है वह हजार


पंखुड़ियों वाला कमल है जो परम जागृति
का बिंदु है।

106) सुधासाराभिवर्षिणी -- वह जो सहस्रार प से हमारी सभी नसों में


अमृत प्रवाह बनाता है।

तडिल्लता-समरुचिः षट्चक्रोपरि-संस्थिता ।
महासक््तिः कू ण्डलिनी बिसतन्तु-तनीयसी || ४० ।।

107) तडिल्लतासमरुचिः - वह जो बिजली की लकीर की तरह


चमकता है

108) षट्चक्रोपरिसंस्थिता - वह जौ मूलाधार से शुरू होने वाले छह पहियों में सबसे ऊपर है

109) महासक्ति:-- वह जो अपने भक्तों द्वारा पूजा करना पसंद


करती है

110) कु ण्डलिनी - वह जो कुं डलिनी के रूप में है


111) बिसतन्तुतनीयसी -- वह जो कमल से धागे के समान पतला हे

भवानी भावनागम्या भवारण्य--कु ठारिका |


मद्रप्निया भद्रमूर्ति भक्त-सौभाग्यदायिनी || ४१ ||

112) भवानी - वह जो मनुष्य के नियमित जीवन को जीवन


देती है या वह जो भगवान शिव की पत्नी है

113) भावनागम्या - वह जो सोचकर प्राप्त किया जा सकता है

114) भवारण्यकु ठारिका - वह जो कु ल्हाड़ी की तरह है वह दुनिया


के दयनीय जीवन को काटने के लिए उपयोग किया जाता है

115) भद्रप्रिया - वह जो अपने भक्तों की भलाई करने में रुचि


रखती है

116) भद्रमूर्तिं - वह सब अच्छा है

117) भक्तसौभग्यदायिनी - वह जो अपने भक्तों को सभी सौभाग्य


और सौभाग्य प्रदान करती है

भक्तिप्रिया भक्तिगम्या भक्तिवश्या भयापहा ।


शाम्भवी शारदाराध्या शर्वाणी शर्मदायिनी || ४२ ||

118) भक्तिप्रिया - वह जौ (भक्ति से प्रसन्न ओर प्रसन्न) हो


119) भक्तिगम्या - वह जो के वल भक्ति से प्राप्त होता है
120) भक्तिवश्या - वह जौ भक्ति द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है
121) भयापहा - वह जो भय को दूर करती है
122) शाम्भवी - वह जो शंभू (शिवा) से विवाहित है
123) शारदाराध्या - वह जो शरद ऋतु के दौरान मनाए जाने
वाले नवरात्रि के दौरान पूजा की जानी है
124) शर्वाणी - वह जो सरवर के रूप में भगवान शिव की
पत्नी है

125) शर्मदायिनी - वह जो सुख देता है

शाडकरी श्रीकरी साध्वी शरच्चन्द्र-निभानना |


शातोदरी शान्तिमती निराधारा निरञ्‌जना ।। ४३ ।।

126) शाङ् करी - वह शंकर की पत्नी है


127) श्रीकरी - वह जो धन और खुशी के सभी रूपों को देती है
128) साध्वी - वह जो अपने पति के लिए सदा समर्पित है

129) शरच्चन्द्रनिभानना - वह जिसके पास शरद ऋतु में चाँद जैसा


चेहरा है

130) शातोदरी - वह जिसके पास एक पतला पेट है

131) शान्तिमती - वह जो शांतिप्रिय है

132) निराधारा - वह जिसे अपने लिए किसी सहारे की आवश्यकता नहीं है

133) निरञजना - वह जो किसी दोष या निशान से रहित हो

निर्लेपा निर्मला नित्या निराकारा निराकु ला |


निर्गुणा निष्कला शान्ता निष्कामा निरुपप्लवा || ४४ ||

134) निर्लपा - वह जिसे कोई लगाव नहीं है

135) निर्मला - वह जो स्पष्टता की पहचान है या वह जो किसी गंदगी से रहित है

136) नित्या - वह जो स्थायी रूप से स्थिर है

137) निराकरा - वह जिसका कोई आकार नहीं है


138) निराकु ला - वह जो भ्रमित लोगों द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है

139) निर्गुणा - वह जो किसी भी विशेषता से परे है

140) निष्कामा - वह जिसकी कोई इच्छा नहीं है

141) शान्ता - वह जो शांति है


142)
143) निरूपप्लवा - वह जो कभी नष्ट नहीं होता

नित्यमुक्ता निर्विकारा निष्प्रपञ्‌चा निराश्रया |


नित्यशुद्धा नित्यबुद्धा निरवद्या निरन्तरा || ४५ |।

144) नित्यमुक्ता - वह जो हमेशा के लिए दुनिया के बंधनों से


मुक्त हो

145) निर्विकारा - वह कभी भी परिवर्तन से नहीं गुजरी

146) निष्प्रपज्‌चा - वह जो इस दुनिया से परे हे

147) निराक्षया - वह जिसे सहारे की जरूरत नहीं है


148) नित्यशुद्धा - वह जो हमेशा के लिए साफ हो
149) नित्यबुद्धा - वह जो हमेशा के लिए है

150) निरवद्या - वह जो कभी आरोपी नहीं हो सकता


151) निरन्तरा - वह जो निरंतर है

निष्कारणा निष्कलङ् का निरुपार्धि निरीश्वरा ।


नीरागा रागमथनी निर्मदा मदनाशिनी || ४६ ।।

152) निष्कारणा -
53) निष्कलङ् का -
151) निरुपार्धिं -
155) निरीश्वरा -

156) नीरगा -
157) रागमथनी -
158) निर्मदा -

159) मदनाशिनी -
वह जिसके पास कारण नहीं है
वह जिसके पास दोष नहीं है 6

वह जिसके पास आधार नहीं है

वह जो किसी को नियंत्रित करने वाला नहीं


है

वह जिसकी कोई इच्छा नहीं है

वह जो हमसे इच्छाओं को दूर करता है


वह जिसके पास कोई दृढ़ विश्वास नहीं है
वह जो विश्वासों को नष्ट कर देता है

निश्चिन्ता निरहंकारा निर्मोहा मोहनाशिनी ।


निर्ममा ममताहन्त्री निष्पापा पापनाशिनी || ४७ ।।

160) निश्चिन्ता -
161) निरहंकारा -
162) निर्मोहा -
163) मोहनाशिनी -
161) निर्ममा -

65) ममताहन्त्री -

वह जो चिंतित नहीं है

वह जिसके पास अहंकार नहीं है


वह जिसे कोई जुनून नहीं है

वह जोश को नष्ट कर देता है

वह जो स्वार्थी भावना नहीं रखता है

वह जो स्वार्थ का नाश करता है


166) निष्पापा - वह जिसके पास कोई पाप नहीं है

167) पापनाशिनी - वह जो पाप को नष्ट करता है

निष्क्रोधा क्रोधशमनी निर्लोभा लोभनाशिनी ।


निःसंशया संशयघ्नी निर्भवा भवनाशिनी |। ४८ ।।

168) निष्रोधा - वह जो क्रोध से रहित है

69) क्रोधशमनी - वह जो क्रोध का नाश करता है


170) निर्लोभा - वह जो दुखी नहीं है

171) लोभनाशिनी - वह जो दुख दूर करता है

172) निःसंशया- उसे कोई संदेह नहीं है


73) संशयघ्नी - वह जो संदेह को दूर करता है
171) निर्भवा - वह जिसके पास दूसरा जन्म नहीं है

175) भवनाशिनी - वह जो हमारी मदद करता है उसका दूसरा


जन्म नहीं है

निर्विकल्पा निराबाधा निर्भेदा मेदनाशिनी ।


निर्नाशा मृत्युमथनी निष्क्रिया निष्परिग्रहा || ४६ ।।

176) निर्विकल्पा - वह जो कु छ भी नहीं करता है वह उसकी


इच्छा नहीं करता है
177) निराबाधा -
178) निर्भदा -
79) भेदनाशिनी -
180) निर्नाशा -
181) मृत्युमथनी -
182) निष्क्रिया -

183) निष्परिग्रहा -

वह जो किसी चीज से प्रभावित न हो

उसे कोई फर्क नहीं पड़ता


वह जो एकता को बढ़ावा देता है

वह जो मरती नहीं है

वह जो मृत्यु के भय को दूर करती है

वह जिसके पास कोई काम नहीं है

वह जो दूसरों की मदद स्वीकार नहीं करती

निस्तुला नीलचिकु रा निरपाया निरत्यया ।


दुर्लभा दुर्गमा दुर्गा दुःखहन्त्री सुखप्रदा || ५० ।।

181) निस्तुला -

85) नीलचिकु रा -
186) निरपाया -

187) निरत्यया -

188) दुर्लभा -

189) दुर्गमा -

वह जिसके पास तुलना करने के लिए कु छ


भी नहीं है

वह जिसके पास काले काले बाल हैं


वह जो कभी नष्ट नहीं होता

वह अपने द्वारा बनाए गए नियमों की सीमा


नहीं लांघती

वह जो प्राप्त करना मुश्किल है

वह जो आसानी से पास नहीं हो सकता


190) दुर्गा - वह जो नौ साल की लड़की है, जो दुर्गा है

191) दुःखहन्त्री - वह जौ दुखों को दूर करता हे

192) सुखप्रदा - वह जो सुख और खुशी देता है

1) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

]. ...>» स्थारूढ-सर्वायुध-परिष्कृ ता ।

2. भण्डसेन्य-..............- शक्ति- विक्रम- हर्षिता ।


3. महागणेश- निर्भिन्न... - प्रहर्षिता |

1. हरजनेत्राग्नि-संदग्ध-काम--................ |

5. मूल-मन्त्रात्मिका मूलकू टत्रय-.............. |

6. कु लाङ् गना कू लान्तस्था ................ कु लयोगिनी |


7. मूलाधारैक... ब्रह्मग्रच्थि- विभेदिनी |

8. ..............- समरुचि; षट्चक्रोपरि- संस्थिता ।

9. ................ भक्तिगम्या भक्तिवश्या भयापहा ।


श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-ा

{0. शाङ् करी ............... साध्वी शरच्चन्द्र-निभानना |


. निर्लपा निर्मला नित्या... निराकु ला |

(५ आपने वया सीखा?

# श्लोको का उच्चारण करना

देवी ललीता के लिए प्रयोग किये गये विशेषण शब्दों का


अर्थज्ञान

देवी ललीता की विशेषताएं

€>पाठात प्रश्न

) नीचे दिये गये पदों का हिन्दी का अर्थ लिखिए

8) परिष्कृ ता
0) प्रहर्षिता

०) कलयोगिनी
५) मूलकू टत्रय
€) ब्रह्मग्रन्थि
7) भयापहा
श्रीललितासहस्रनामस्तोत्र-ा

। 3 उत्तराता।

| 3.]
()

. चक्रराज
2. वधोद्युक्त
3. विघ्नयन्त्र
1. सजजीवनौषधि:
5. कलेबर
6. कौलिनी
7. निलया
8. तडिल्लता
9. भक्तिप्रिया
0. श्रीकरी
. निराकारा
कक्षा - 8

श्रीललितासहस्र नामस्तो त्रगा

प्रिय शिक्षार्थी, पिछले पाठ में आपने देवी ललिता के 1000 नामों में से

कु छ नामों के विषय में जाना | इस पाठ में उनके अन्य नामों के विषय
में जानेंगे |

यह पाठ पढ़ने के बाद आप सक्षम होंगे:

० सूकक्‍त में दिये श्लोकों का शुद्ध उच्चारण कर पाने में;


* देवी ललिता की विशेषताएं बता पाने में; और

® उनके नामों का अर्थज्ञान कर पाने में |


1. श्रीललितासहस्रननामस्तोत्र (5-61)

कक्षा - 8

दर| दुष्टदूरा दुराचार-शमनी दोषवर्जिता ।


सर्वज्ञा सान्द्रकरुणा समानाधिक- वर्जिता || ५१।।

193) दुष्टदूरा - वह जो बुरे पुरुषों से बहुत दूर रहती हे


191) दुराचारशमनी - वह जो बुरी प्रथाओं को नष्ट करता है
195) दोषवर्जिता - वह जिसके पास कु छ भी बुरा नहीं है
196) सर्वज्ञा - वह जो सब कु छ जानती है

197) सान्द्रकारुणा - वह जो दया से भरा हो

198) समानाधिकवर्जिता - वह जौ अतुलनीय है

सर्वशक्तिमयी सर्वमङ् गला सद्गतिप्रदा ।


सर्वेश्वरी सर्वमयी सर्वमन्त्र- स्वरूपिणी || ५२।।

199) सर्वशक्तिमयी - वह जिसके पास सारी ताकत है

200) सर्वङ् गला - वह जो सबका भला करने वाली है


201) सद्‌गतिप्रदा - वह जौ हमें अच्छी राह दे

202) सर्वेश्वरी - वह जो सभी की देवी है

203) सर्वमयी - वह जो हर जगह है

72 वेद स्तर-ग
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-ाा
कक्षा - 8

201) सर्वमन्त्रस्वरूपिणी - वह जो सभी मन्त्रौ का व्यक्तिकरण है |

`
सर्व- यन्त्रातमिका सर्व तन्त्ररूपा मनोन्मनी |

माहेश्वरी महादेवी महालक्ष्मीर्‌मृडप्रिया ।। ५३।।

205) सवात्रात्मिका - वह जो सभी यन्त्रं (तावीज) का प्रतिनिधित्व

करती हे

206) सर्वतन्त्ररूपा - वह भी सभी थन्श्रों की देवी है जो पूजा की


विधि है

207) मनोन्मनी - वह जो विचारों और कार्यो के मानसिक विचारों


का परिणाम है

208) माहेश्वरी - वह महेश्वरा (सब कु छ भगवान) की पत्नी है

209) महादेवी - वह माहे देव (सभी देवों के देव) का संघ है

210) महालक्ष्मी - वह जो धन की देवी महालक्ष्मी का रूप


धारण करती है

211) मृड्प्रिया ~ वह मृदा को प्रिय है (भगवान शिव का एक


नाम)

महारूपा महापूज्या महापातक-नाशिनी ।


महामाया महासत्त्वा महाशक्ति महारतिः ।। ५४ |

वेद स्तर न _ बात


श्रीललितासहस्नामस्तोत्रनाा

कक्षा - 8
212) महारूपा - वह जौ बहुत बड़ी है
23) महापूज्या ~ वह जौ महान लोगों द्वारा पूजा जाने लायक
है

211) महापातकनाशिनी - वह जो प्रमुख दुराचारियों का नाश करता

है
25) महामाया - वह जो महान भ्रम है
216) महासत्त्वा- वह बहुत ज्ञानी है
217) महाशक्तिं - वह जो बहुत बलवान है

218) महारातिः - वह जो बहुत खुशी देता है

महाभोगा महैश्वर्या महावीर्या महाबला ।


महाबुद्धिं महासिद्धिं महायो गेश्वरेश्वरी || ५५।।

219) महाभोगा - वह जौ बहुत सुख भोगता है


220) महैश्वरर्या - वह जिसके पास बहुत धन है
221) महावीर्या - वह जिसके पास बड़ी वीरता है
222) महाबला - वह जो बहुत मजबूत है

223) महाबुद्धिं वह जो बहुत बुद्धिमान है

हा । वेद स्तर-ग
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-ाा
कक्षा - 8

221) महासिद्धिं - वह जिसके पास महान सुपर प्राकृ तिक


शक्तियाँ हैं

225) महायोगेश्वरेश्वरी - वह जो महान योगियों की देवी है

महातन्त्रा महामन्त्रा महायन्त्रा महासना |


महायाग- क्रमाराध्या महाभैरव- पूजिता || ५६।।

226) महातन्त्रा ~ वह जो सबसे बड़ा थांटरा स्तोत्र है

227) महामन्त्रा - वह जिसके पास सबसे बड़ा मन्त्र है


228) महायन्त्रा वह जिसके पास सबसे बड़ा यन्त्र है
229) महासना -- वह जिसके पास सबसे बड़ी सीट है

230) महायागक्रमाराध्या - वह जो महान यज्ञँ (भवन याग ओर


चिदाग्नि कु ड याग) करके पूजे जाने चाहिए

231) महाभेरवपूजिता - वह जो महान भरव द्वारा पूजित है

महेश्वर-महाकल्प-महाताण्डव- साक्षिणी |
महाकामेश- महिषी महात्रिपुर-सुन्दरी || ५७।।

232) महेश्वरमहाकल्पमहाताण्डवसाक्षिणी - वह जो दुनिया के अंत


में महान स्वामी द्वारा किए जाने वाले महान
नृत्य का गवाह होगा

वेद स्तर न ही ।75 |


श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-ा
कक्षा - 8

233) महाकामेशमहिषी - वह महान कामेश्वर की प्रमुख पत्नी है

231) महात्रिपुरसुन्दरी -वह जो तीन महान शहरों की सुंदरता है

ह्पषणी
चतु:षष्ट्युपचाराढ्या चतु:षष्टिकलामयी ।
महाचतु:-षष्टिकोटि-योगिनी-गणसेविता || ५८।|
235) चतु:षष्ट्युपचाराढ्या - वह जो चौंसठ यज्ञ के साथ पूज्य हौ
236) चतु:षष्टिकलामयी - वह जो चौंसठ खंड हैं

237) महाचतु:षष्टकोटियोयिनीगणसेविता -- वह जो चौरासी करोड़


योगिनियों द्वारा नौ विभिन्न वर्णोमें पूजी जा
रही है

मनुविद्या चन्द्रविद्या चन्द्रमण्डल-मध्यगा |


चारुरूपा चारुहासा चारुचन्द्र-कलाधरा || ५६॥।

238) मनुविद्या - वह जो मनु द्वारा प्रतिपादित श्री विद्या का


व्यक्ति है

239) चन्द्रविद्या वह जो चंद्रमा के रूप में श्री विद्या की


पहचान है

210) चन्द्रमण्डलमध्यगा - वह जो चंद्रमा के चारों ओर ब्रह्मांड के


कें द्र में है

76 वेद स्तर-ग
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-ाा
कक्षा - 8

211) चारुरूपा - वह जो बहुत सुंदर है

212) चारुहासा - वह जो एक सुंदर मुस्कान है

213) चारुचन्द्रकलाधरा -- वह जो सुंदर अर्धचंद्र पहनती है

चराचर जगन्नाथा चक्रराज-निके तना ।


पार्वती पद्‌मनयना पद्‌मराग-समप्रभा ।। ६०।।

211) चराचरजगन्नाथा - वह जो चलती और अचल चीजों का


स्वामी है

215) चक्रराजचिके तना - वह जो श्री चक्र के बीच में रहता हे


216) पार्वती - वह जौ पहाड़ की बेटी है
217) पद्‌मनयना - वह जिसके पास कमल के समान नेत्र हों

218) पद्मरागसमप्रभा - वह जो पद्म राग गहना जितना चमकता है

पञ्‌च-प्रेतासनासीना पञ्‌चब्रह्म- स्वरूपिणी |


चिन्मयी परमानन्दा विज्ञान-घनरूपिणी || ६१।।

219) पञ्‌चप्रेतासनासीना - वह जो पाँच शवों के आसन पर बैठती


है (ये ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, ईसा ओर सदाशिव
हैं, उनकी शक्ति (संघ) के विना)

वेद स्तर न हा |
श्रीललितासहस्नामस्तोत्रनाा

कक्षा - 8

250) पञचब्रह्मस्वरुपिणी - वह जो पाँच ब्रह्माओं की पहचान है वि


अपने शक्ति के साथ अंतिम नाम में उल्लिखित

टिपणी देवता हैं)


251) चिन्मयी - वह जो हर बात में व्यक्तिकरण की क्रिया है
252) परमानन्दा - वह जो बहुत खुश है

253) विज्ञानघनरूपिणी -- वह जो विज्ञान पर आधारित ज्ञान की


पहचान है

ध्यान-ध्यातृ-ध्येयरूपा धर्माधर्म-विवर्जिता ।
विश्वरूपा जागरिणी स्वपन्ती तैजसात्मिका || ६२ ।।

251) ध्यानध्यातृध्येयरूपा - वह जो ध्यान का पात्र है, वह जो ध्यान


करता है और जो ध्यान किया जा रहा है

255) धर्माधर्मविवर्जिता - वह जो धर्म (न्याय) और धर्म (अन्याय) से

परे है
256) विश्वरुपा - वह जिसके पास ब्रह्मांड का रूप है
257) जागरिणी - वह जो हमेशा जागता है

258) स्वपनती - वह जो हमेशा सपने की स्थिति में है

259) तैजसात्मिका - वह थैजासा का रूप है जो माइक्रोबियल


अवधारणा है

वेद स्तर-ग
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-ाा
कक्षा - 8

सुप्ता प्राज्ञात्मिका तुर्या सर्वावस्था-विवर्जिता ।


सृष्टिकत्री ब्रह्मरूपा गोप्त्री गोविन्दरूपिणी || ६३॥।।
¢
260) सुप्ता - वह जो गहरी नींद में है

261) प्राज्ञात्मिका - वह जो जाग रहा है

262) तुर्या - वह जो ट्रान्स में है

263) सर्वावस्थाविवर्जिता - वह जो सभी राज्यों से ऊपर है


261) सृष्टिकर्ता - वह जो बनाता है

265) ब्रह्मरूपा - वह जो परम की पहचान है

266) गोप्त्री - वह जो बचाता है

267) गोविन्दरूपिणी -- वह जो गोविंदा का रूप है

संहारिणी रुद्ररूपा तिरोधान-करीश्वरी ।


सदाशिवाऽनुग्रहदा पञ्‌चकृ त्य-परायणा || ६४।।

268) संहारिणी - वह नष्ट हो जाता हे


269) रुद्ररूपा - वह जो रुद्र के रूप का है
270) तिरोधानकरी - वह जो हमसे खुद को छु पाती है

271) ईश्वरी - वह जो ईश्वर का रूप है

वेद स्तर न _ ह
272) सदाशिवा - वह जो सदाशिव रूप है

श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-ा
कक्षा - 8
| षे

273) अनुग्रहदा ~ वह आशीर्वाद देती है

271) पञज्‌चकृ त्यपरायण - वह जो सृष्टि, अस्तित्व, विलीन, लुप्त


और आशीर्वाद के पाँच कर्तव्यो में संलग्न है

1.2 श्री ललीता सहस्रनाम स्तोत्र (65-75)

भानुमण्डल- मध्यस्था भैरवी भगमालिनी ।

पद्मासना भगवती पद्‌मनाभ-सहोदरी || ६५।।


275) भानुमण्डलमध्यथा - वह जो सूर्य के ब्रह्मांड के बीच में है
276) भेरवी - वह जो भैरव की पत्नी है
277) भगमालिनी - वह जो देवी भगिनी मालिनी है
278) पद्मासना - वह जो कमल पर विराजमान हे
279) भगवती - वह जो सभी धन ओर ज्ञान के साथ है

280) पद्मनाभसहोदरी - वह जो विष्णु की बहन है

उन्मेष-निमिषोत्पन्न-विपन्न-भुवनावली ।
सहस्र-शीर्षवदना सहस्राक्षी सहस्रपात्‌।। ६६।।

| ]8॥ ॥ = वेद स्तर-ग


श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-ाा
कक्षा - 8

281) उन्मेषनिमिषेत्पन्नविपन्नभुवनावली -- वह जो अपनी आंखें खोलकर


और बंद करके ब्रह्मांड का सृजन और विनाश
करता है

282) सहस्रशीर्षवदना - वह जिसके हजारों चेहरे और सिर हैं


283) सहस्राक्षी -- वह जिसकी हजारो आँखें हैं

281) सहस्रपात्‌- वह जिसके हजारों पैर हों

आब्रह्म-कीट-जननी वर्णाश्रम- विधायिनी ।

निजाज्ञारूप- निगमा पुण्यापुण्य-फलप्रदा || ६७ |।

285) अब्रह्मकीटजननी - उसने सभी प्राणियों को कृ मि से भगवान


ब्रह्मा तक बनाया हे

286) वर्णाश्रमविधायिनी -- वह जिसने समाज का चार गुना विभाजन


बनाया

287) निजाज्ञारूपनिगमा - उसने वे आदेश दिए जौ वेदों पर


आधारित हैं

288) पुण्यापुण्यफलप्रदा -- वह जो पापों और अच्छे कामों का


मुआवजा देता है

श्रुति-सीमन्त-सिन्दूरी-कृ त-पादाब्ज-धूलिका ।
सकलागम-सन्दोह-शुक्ति-सम्पुट-मौक्तिका || ६८ ।।

वेद स्तर न _ शा
श्रीललितासहस्नामस्तोत्रनाा

कक्षा - 8

289 श्रुतिसीमन्तसिन्दूरीकृ तपादाब्जधुलिका - वह अपने कमल के


पैरों की धूल है, जो सिंधुर वैदिक माता के

रिप्वनी बालों के भाग में भरता है

290) सकलागमसन्दोहशुक्तिसम्पुटमौक्तिका - वह जो वेदों के मोती


धारण कवच में मोती के समान है

पुरुषार्थप्रदा पूर्णा भोगिनी भुवनेश्वरी ।


अम्बिकाऽनादि- निधना हखिब्रह्यन्द्र- सेविता ।। ६६।।

291) पुरुषार्थप्रदा - वह जो हमें दान, संपत्ति, आनंद और मोक्ष

का पुरुषार्थ देता है
292) पूर्णा - वह जो पूर्ण हो
293) भोगिनी - वह जो सुख भोगता है

291) भुवनेश्वरी - ववह ब्रह्मांड की अध्यक्षता करने वाली देवी हैं


295) अम्बिका- वह जो दुनिया की माँ है

296) अनादिनिधना - वह जिसके पास या तो अंत या शुरुआत

नहीं है

297) हरिब्रह्मोन्द्रसेविता - वह जो विष्णु, इंद्र और ब्रह्मा जैसे देवताओं


द्वारा सेवा की जाती है

वेद स्तर-ग
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-ाा
कक्षा - 8

नारायणी नादरूपा नामरूप-विवर्जिता ।


हीकारी दहीमती हृद्या हेयोपादेय- वर्जिता || ७० ।।
नारायणी जो नारायण की त्रह 63
298) नारायणी - वह जो नारायण की तरह है
299) नादरूपा - वह जो संगीत का आकार है (ध्वनि)

300) नामरूपविवर्जिता - वह जिसके पास नाम या आकृ ति नहीं है


301) हींकारी-. वह जो पवित्र ध्वनि करता है

302) हीमती - वह जो शर्मीला है

303) हृद्या - वह जो दिल में है (भक्त)

301) हेयोपादेयवर्जिता - वह ऐसे पहलू नहीं हैं जिन्हें स्वीकार या


अस्वीकार किया जा सकता है

राजराजार्चिता राज्ञी रम्या राजीवलोचना ।


रञ्‌जनी रमणी रस्या रणत्किङिकणि-मेखला || ७१।।

305) राजराजार्चिता - वह जो राजाओं द्वारा राजा की पूजा की जा

रही है
306) राज्ञी - वह कामेश्वर की रानी है
307) रम्या - वह जो दूसरों को खुश करता है

308) राजीवलोचन - वह जो कमल का नेत्र हैं

वेद स्तर न हि 83 |
| 309) रज्‌जनी -
310) रमणी -
311) रस्या -

वह जो अपने लाल रंग से शिव को लाल


बनाती है

वह जो अपने भक्तों के साथ खेलती है


वह जो हर चीज का रस पिलाती है

312) रणत्किङ््किणिमेखला - वह सोने की कमर की पट्टी पहनती है

जिसमें बेल-बूटे होते हैं

रमा राके न्दुवदना रतिरूपा रतिप्रिया ।

रक्षाकरी राक्षस घनी रामा रमणलम्पटा || ७२।।

313) रामा -
311) राके न्दुवदना -

315) रतिरूपा -

316) रतिप्रिया -
317) रक्षाकरी -

38) राक्षसघनी -

वह जो लक्ष्मी के समान है

वह जो पूर्णिमा की तरह एक चेहरा है

वह अपनी विशेषताओं के साथ दूसरों को


आकर्षित करती है जैसे राठी (प्रेम-मनमाथा
के देवता की पत्नी)

वह जो राटी को पसंद करता है


वह जो रक्षा करे

वह जो स्वर्गं से विमुख होकर रक्षासूत्र-


ओगराती है
वेद स्तर-ग
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-ाा
कक्षा - 8

319) रामा - वह जो स्त्री है

320) रमणलम्पटा - वह जो अपने स्वामी से प्रेम करने में रुचि


रखती है

काम्या कामकलारूपा कदम्ब-कु सुम-प्रिया ।


कल्याणी जगतीकन्दा करुणा-रस-सागरा || ७३।।

321) काम्या - वह जो प्रेम का रूप है

322) कामकलारूपा - वह जो प्रेम की कला का परिचायक है

323) कदम्बकु सुमप्रिया - वह जो कदंब के फू ल पसंद करती है

321) कल्याणी - वह जो अच्छा करता है

325) जगतिकन्दा - वह जो दुनिया के लिए एक जड़ की तरह है

326) करुणारससागरा - वह जो दया के रस का समुद्र है

कलावती कलालापा कान्ता कादम्बरीप्रिया ।

वरदा वामनयना वारुणी-मद- विह्वला ।। ७४ ।।

327) कलावती - वह जो एक कलाकार है या वह है जिसके


पास अपराध है
328) कलालापा - वह जिसकी बात मुखर है

वेद स्तर न ही ।85 |


श्रीललितासहस्नामस्तोत्रनाा

329) कान्ता - वह जो चमकता है

330) कादम्बरीप्रिया - वह जो कादम्बरी नामक शराब पसंद करती


है या वह जिसे लंबी कहानियाँ पसंद है

331) वरदा - वह जो वरदान देती है

332) वामनयना - वह जिसके पास सुंदर आँखें हैं

333) वरुणीमदविह्वला - वह जो शराब से नशे में चूर हो जाता है


जिसे वरुणी कहा जाता है (खुशी की शराब)

विश्वाधिका वेदवेद्या विन्ध्याचल-निवासिनी ।


विधात्री वेदजननी विष्णुमाया विलासिनी ।। ७५।।

331) विश्वाधिका - वह जो समस्त ब्रह्मांड से ऊपर है

335) वेदवेद्या - वह जिसे वेदों द्वारा समझा जा सकता है


336) विन्ध्याचलनिवासिनी - वह जो विंध्य के पहाड़ों पर रहती है
337) विधात्री - वह जो दुनिया को ढोती है

338) वेदजननी - वह जिसने वेदों की रचना की

339) विष्णुमाया - वह जो विष्णु माया के रूप में रहती है

310) विलासिनी - वह जिसे प्यार करने में मजा आता है

वेद स्तर-ग
कक्षा - 8

रिक्त स्थानों की पूर्तिं कीजिए-

]. .......0 ततततननत७णनत?७णणत७णिण+- दुराचार-शमनी दोषवर्जिता ।

2. सर्वशक्तिमयी .............................. सदगतिप्रदा |

3. महारूपा महापूज्या - नाशिनी ।

1. महातन्त्रा महामन्त्रा महायन्त्रा ................................... |


5. मनुविद्या चन्द्रविद्या चन्द्रमण्डल. |
6. चराचर-जगन्नाथा ............................... -निके तना |
7. सुप्ता...............................- तुर्या सर्वावस्था-विवर्जिता ।
8. ...................................- रुद्ररूपा तिरोधान-करीश्वरी |
9. .................................००..००- -मघ्यस्था भैरवी भगमालिनी ।

0. आव्रह्म-कीट- जननी -विघायिनी |

]]. नारायणी .................................. नामरूप- विवर्जिता ।

वेद स्तर न ही ।5 |
श्रीललितासहस्नामस्तोत्रनाा

@- आपने क्या सीखा?

० एलोकों का शुद्ध उच्चारण करना।

» देवी ललिता के लिए प्रयोग किये गये विशेषक शब्दों का अर्थज्ञान |

» देवी ललिता की विशेषताएं |

(ब्‌पाठात प्रश्न

1) नीचे दिये गये पदों का हिन्दी का अर्थ लिखिए

8)
०)
०)
0)
©)

2)

दोषवर्जिता
महारूपा
महामन्त्रा
मनुविद्या
जगन्नाथा
भेरदी

नारायणी

वेद स्तर-ग
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-ाा

(मे उत्तराता।

1.]

दुष्टदूरा
सर्वमङ् गला
महापातक
महासना
मध्यगा
चक्रराज
प्राज्ञात्मिका
संहारिणी
भानुमण्डल

४ 9 ० जज का &@ >+ ~ ^ £

. वर्णाश्रम

= +~
"~ >

नादरूपा

वेद स्तर-ग

कक्षा - 8

श्रीललितासहस्र नामस्तो त्र-५

प्रिय शिक्षार्थी, पिछले पाठ में आपने देवी ललिता के 1000 नामों में से

कु छ नामों के विषय में जाना। इस पाठ में उनके अन्य नामों के विषय
में जानेंगे।

यह पाठ पढ़ने के बाद आप सक्षम होंगे:

० सूकक्‍त में दिये श्लोकों का शुद्ध उच्चारण कर पाने में;


® देवी ललिता की विशेषताएं बता पाने में; और

® उनके नामों का अर्थज्ञान कर पाने में |

वेद स्तरग
श्रीललितासहस्ननामस्तो त्र-५
5. श्रीललितासहस्रननामस्तो त्र (76-87) ८

क्षेत्रस्वरूपा क्षेत्रेशी क्षेत्र-क्षे त्ज्ञ-पालिनी |


क्षयवृद्धि-विनिर्मुक्ता क्षेत्रपाल-समर्चिंता ।। ७६ | ।

311) क्षेत्रस्वरूपा - वह जो क्षात्र या शरीर की पहचान हो

312) क्षेत्रेशी - वह जो देह की देवी है

313) कषत्रक्षेत्रज्ञपालिनी - वह जो देह और उनके स्वामी को देखता है


311) क्षयवृद्धिविनिर्मुक्ता - वह जो न तो घटती है और न ही बढ़ती है

315) क्षेत्रपालसमर्चिता- वह जो शरीर की देखभाल करते हैं, उनकी


पूजा की जाती है

विजया विमला वन्द्या वन्दारु-जन-वत्सला ।

वाग्वादिनी वामके शी वह्निमण्डल- वासिनी || ७७।।

316) विजया - वह जो सदा विजयी रहे


317) विमला - वह जो अज्ञान ओर भ्रम से रहित है
318) वन्द्या - वह जो हर शरीर द्वारा पूजित है

319) वन्दारुजनवत्सला - ववह जो उन सभी कं प्रति स्नेह रखता


है जो उसकी पूजा करते हैं

वेद स्तर र _ हा
_

350) वाग्वादिनी - वह जो तर्को में बहुत प्रभाव के साथ शब्दों


का उपयोग करता है

351) वामके शी - वह जिसके सुंदर बाल हों

352) वहिमण्डलवासिनी - वह आग के ब्रह्मांड में रहता है जो


मूलाधार है

भक्तिमत्‌-कल्पलतिका पशुपाश-विमोचिनी ।
संहताशेष--पाखण्डा सदाचार--प्रवर्तिका || ७८।।

353) भक्तिमत्कल्पतिका - वह जो कल्पवृक्ष देने की इच्छा रखता है


351) पशुपाशविमोचिनी -- वह जो झोंपड़ियों को जीवित करता है

355) संहताशेषपाखण्डा - वह उन लोगों को नष्ट कर देता है,


जिन्होंने अपना विश्वास छोड़ दिया है

356) सदाचारप्रवर्तिका - वह जो अच्छा काम करता है, अच्छे


आचरण से होता है

तापत्रयाग्नि-सन्तप्त-समाहलादन-चन्द्रिका ।

तरुणी तापसाराध्या तनुमध्या तमोऽपहा ।। ७६।।

357) तापत्रयाग्निसन्तप्तसमाह्लादनचन्द्रिका - वह जो तीन प्रकार


के कष्टों से पीडित चंद्रमा को सुख देने
वाला है

वेद स्तरग
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र- ५
कक्षा - 8

358) तरुणी - वह जो कभी जवान हो

359) तापसाराध्या - वह जो ऋषियों द्वारा पूजा की जा रही है

360) तनुमध्या - वह जिसके पास एक संकीर्णं मध्य (कू ल्हा) है

361) तमोऽपहा - वह जो अंधेरे को नष्ट कर देता है

चितिस्तत्पद-लक्ष्यार्था चिदेकरस- रूपिणी |


स्वात्मानन्द लवीभूत-ब्रह्माद्यानन्द- सन्ततिः || ८०||

362) चित्‌(चितिरू) - वह जो बुद्धि का व्यक्ति है

363) तत्पद लक्ष्ार्था - वह शब्द “थाह” का सांके तिक अर्थ है जो


वेदिक का पहला शब्द है जो कहता है कि
"तुम कला

361) विडकरसरूपिणी -- वह जो ज्ञान के माध्यम से बाहर है

365) स्वात्मानन्दलवीभूतब्रह्माद्यानन्दसन्ततिः - वह जो ज्ञान के सागर


में है, वह ब्रह्म के बारे मेँ ज्ञान को एक लहर
की तरह बनाता हे

परा प्रत्यक्वितीरूपा पश्यन्ती परदे वता ।


मध्यमा वैखरीरूपा मक्त-मानस-हसिका || २१।।

366) परा - वह जो हर बात का बाहरी अर्थ है

वेद स्तर र ह ।9; |


_

367) प्रत्यक्चित्तरूपा -वह जो हमें अंदर ज्ञान की तलाश करता हे

368) पश्यन्ति - वह जो अपने भीतर सब कु छ देखती है


369) परदेवता - वह जो सभी देवताओं को शक्ति देता है
370) मध्यमा - वह जो सब कु छ बीच में है

371) वैखरीरूपा - वह जो शब्दों के साथ रूप का हो

372) भक्तमानसहंसिका - वह झील में एक हंस की तरह है जिसे


मन कहा जाता है

कामेश्वर-प्राणनाडी कृ तज्ञा कामपूजिता ।


शूडगार-रस-सम्पूर्णा जया जालन्धर-स्थिता || ८२।।

373) कामेश्वरप्राणनाडी - वह कामेश्वर का जीवन स्रोत है

371) कृ तज्ञा - वह जो हर एक के सभी कार्यो को देखता है


या वह जो सभी को जानता है

375) कामपूजिता - वह जो मूलाधार चक्र-काम के काम गिरी पीता


में प्रेम के देवता के रूप में पूजे जा रहे हैं।

376) शूडगारससम्पूर्णा - वह प्यारी है


377) जया - वह जो विजय का अधिकारी है

378) जालन्धरस्थिता - वह जो जलंधर पीठ पर है या वह जो


शुद्धतम है

वेद स्तरग
ओड्याणपीठ-निलया बिन्दु-मण्डलवासिनी ।

कक्षा - 8

रहोयाग- क्रमाराध्या रहस्तर्पण- तर्पिता ।। ८२।।

379) ओड्याणपीठनिलया - वह ओडियाना पीठ पर है या वह जो

आदेशों में रहती है


380) बिंदुमण्डलवासिनी -- वह जो श्रीचक्र के कें द्र में स्थित है

381) रहोयागक्रमाराध्या - वह जो गुप्त यज्ञ संस्कार द्वारा पूजा जा


सकता है

382) रहस्तर्पणतर्पिता - वह जो इसका अर्थ जानकर मंत्रों से प्रसन्न


होता है

सद्यःप्रसादिनी विश्व-साक्षिणी साक्षिवर्जिता ।


षडड्गदेवता-युक्ता षाड्गुण्य-परिपूरिता || ८४ ।।

383) सद्यःप्रसादिनी - वह जो तुरंत प्रसन्न हो जाती है


381) विश्वसाक्षिणी - वह जो ब्रह्मांड के लिए गवाह है
385) सक्षिवर्जिता - वह जो खुद के लिए गवाह नहीं है

386) षडङ् गदेवतायुक्ता - वह जो भगवान के रूप में उसके छः


भाग हैं- दिल, सिर, बाल, लड़ाई की पोशाक,
आँखें और तीर

वेद स्तर-ग
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र- ५
कक्षा - 8

(ख 387) षाड्गुण्यपरिपूरिता -वह जौ छः विशेषताओं से परिपूर्ण है-

धन, कर्तव्य, प्रसिद्धि, ज्ञान, संपत्ति ओर त्याग

नित्यक्लिन्ना निरुपमा निर्वाण-सुख-दायिनी ।

नित्या-षोडशिका- रूपा श्रीकण्ठार्ध- शरीरिणी || ८५||


388) नित्यक्लिन्ना - वह जिसके दिल में हमेशा दया है

389) निरूपमा - वह जौ अतुलनीय हैवह जिसके पास तुलना


करने के लिए कु छ भी नहीं है

390) निर्वाणसुखदायिनी - वह जो मोचन देता है


391) नित्याषोडशिकारूपा - वह जो सोलह देवियाँ हैं
392) श्रीकाण्टार्धशरीरिणी - वह जो भगवान शिव के आधे शरीर पर

कब्जा करता है

प्रभावती प्रभारूपा प्रसिद्धा परमेश्वरी ।

मूलप्रकृ तिं अव्यक्ता व्यक्ताव्यक्त स्वरूपिणी || ८६।।


393) प्रभावती - वह जो अलौकिक शक्तियों से युक्त है

391) प्रभारूपा - वह जो प्राकृ तिक प्राकृ तिक शक्तियों द्वारा


प्रदत्त प्रकाश का व्यक्तिकरण है

395) प्रसिद्धा - वह जो प्रसिद्ध है

96 वेद स्तर-ग
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र- ५
कक्षा - 8

396) परमेश्वरी ~ वह जो परम देवी हैं

397) मूलप्रकृ र्ति - वह जो मूल कारण है |


रिप्पणी `

398) अव्यक्ता - वह जो स्पष्ट रूप से नहीं देखा जाता है

399) व्यक्ताव्यक्तस्वरुपिणी - वह जो दिखाई और दिखाई नहीं दे


रहा है

व्यापिनी विविधाकारा विद्याविद्या- स्वरूपिणी |


महाकामेश-नयन-कू मुदाहलाद-कौमुदी || ८७||

100) व्यापिनी - वह जो हर जगह फै ला हुआ हे

101) विविधाकारा -- वह जिसके कई अलग-अलग रुप हैं

102) विद्याविद्यास्वरूपिणी -- वह जो ज्ञान के साथ-साथ अज्ञान है

103) महाकामेशनयनकु मुदह्नलादकौमुदी - वह पूर्णिमा की तरह है


जो भगवान कामेश्वर की आँखों की तरह
कमल खोलता है

भक्त-हार्द-तमोभेद-भानुमद्भानु-सन्तति: ।
शिवदूती शिवाराध्या शिवमूर्ति: शिवकरी || ८८ ||
101) भक्तहार्दतमोभेदभानुमद्भानुसन्तति: - वह जो सूर्य की किरणों
की तरह है जो भक्तों के दिल से अंधेरे को
दूर करता है

वेद स्तर ग ____________________________३_ हक ।97 |


श्रीललितासहस्रनामस्तोत्र-\

भैः 105) शिवदूती - वह जिसने शिव को अपना प्रतिनिधि बनाया

ह्न 106) शिवाराध्या - वह जो भगवान शिव की पूजा करता हे

5.2 श्रीललितासहस्र नामस्तो त्र (88-00)


108) शिवङ् करी - वह जो होने के लिए अच्छा बनाता हे

शिवप्रिया शिवपरा शिष्टेष्टा शिष्टपूजिता ।

अप्रमेया स्वप्रकाशा मनोवाचामगोचरा || २६||

109) शिवप्रिया - वह जो भगवान शिव को प्रिय है

110) शिवपरा - वह जौ भगवान शिव को छोड़कर कोई अन्य


हित नहीं रखता है

111) शिष्टेष्टा - वह जो अच्छी आदतों वाले लोगों को पसंद


करता है

112) शिष्टपूजिता - वह जो अच्छे लोगों द्वारा पूजा की जा रही है


113) अप्रमेया - वह जो मापा नहीं जा सकता
111) स्वप्रकाशा - वह जिसके पास अपनी चमक है

115) मनोवाचामगोचरा - वह जो मन और वचन से परे है


श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र- ५
कक्षा - 8

चिच्छक्तिश्चेतनारूपा जडशक्ति जडात्मिका |


गायत्री व्याहतिः सन्ध्या द्विजबृन्द-निषेविता || ६०।।
116) चिच्छक्ति - वह पवित्र ज्ञान की ताकत हे
117) चेतनारूपा - वह जो कार्रवाई कं पीछे की शक्ति का
व्यक्तिकरण हे
118) जडशक्तिं - वह जो इम्मोविल की ताकत है

119) जडामिका - वह जो इम्मोबाइल की दुनिया है

120) गायत्री - वह जो गायत्री है


121) व्याहतिः - वह वर्णो से उत्पन्न व्याकरण कौन है
122) सन्ध्या - वह जो आत्माओं और ईश्वर का मिलन है

123) द्विजबृन्दनिषेविता - वह जो सभी प्राणियों द्वारा पूज्य है

तत्त्वासना तत्त्वमयी पञजच-कोशान्तर-स्थिता ।


निस्सीम-महिमा नित्य-यौवना मदशालिनी ।। ६१।।

121) तत्त्वासना - वह जो सिद्धांतों पर बैठता है


125) तब - वह कौन है

126) त्वं - वह तुम कौन हो

वेद स्तर र ह ।9 ० |
127) अये - वह जो माँ है

128) पञज्‌चकोशान्तरस्थिता - वह पाँच पवित्र भागों के बीच में है

( ट्प्पिणी
129) निस्सीममहिमा - वह जिसके पास असीम प्रसिद्धि है

130) नित्ययौवना - वह जो कभी जवान हो

131) मदशालिनी -- वह जो अपने परिश्रम से चमकता है

मदघूर्णित-रक्ताक्षी मदपाटल-गण्डमू: ।
चन्दन-द्रव-दिग्धाडगी चाम्पेय-कु सुम-प्रिया || ६२।।

132) मदघूर्णितरक्ताक्षी - वह जो अपने अतिउत्साह के कारण लाल


आँखें घुमाती है

133) मदपाटलगण्डभू: - जो अत्यधिक क्रिया के कारण लाल गाल


रखते हैं

131) चन्दनद्रवदिग्धाड़गी - वह जो अपने शरीर पर चंदन का लेप


लगाती है

135) चाम्पेयकु सुमप्रिया - वह जो चंपक वृक्ष के फू ल पसंद करता


है

कु शला कोमलाकारा कु रुकु ल्ला कू लेश्वरी ।

कु लकु ण्डालया कौल-मार्ग-तत्पर-सेविता || ६३।।

200 वेद स्तरग


श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र- ५
कक्षा - 8

136) कु शला - वह बुद्धिमान है |


137) कोमलाकर - वह जो सुंदर सुंदर रूप है ---
138) कु रुकु ल्ला - वह कु रु कु ल्ला देवी के रूपमे है जो विमरसा
में रहती है
139) कु लेश्वरी - वह कबीले की देवी है
110) कु लकुं डलाय - वह जौ कु ला कुं ड में रहती है या वह कुं डलनी

नामक शक्ति है

111) कौलर्मात्त्परसेविता - वह जो कौला मठ का पालन करने वाले


लोगों द्वारा पूजा की जा रही है

कु मार-गणनाथाम्बा तुष्टिः पुष्टिं मतिं धृतिः ।


शान्तिः स्वस्तिमती कान्तिं नन्दिनी विध्ननाशिनी || ६४।।

112) कु मारगणनाथाम्बा - वह जो गणेश ओर सुब्रह्मण्य की माँ है

113) तुष्टिः - वह जो सुख का व्यक्ति है


111) पुर्ष्टि - वह जो स्वास्थ्य की पहचान है
115) मर्ति - वह जो ज्ञान की पहचान है
116) धृति: - वह साहस का व्यक्ति है

117) शान्ति: - वह जो शांत है

वेद स्तर-ग ही 20! |


118) स्वस्तिमती - वह जो हमेशा अच्छा करती है

119) कार्न्ति - वह जो प्रकाश की पहचान है

150) नन्दिनी - वह जो कामदेव की पुत्री नादिनी की पहचान

है
151) विघ्ननाशिनी - वह जो बाधाओं को दूर करती है

तेजोवती त्रिनयना लोलाक्षी-कामरूपिणी ।


मालिनी हंसिनी माता मलयाचल- वासिनी ।। ६५।।

152) तेजोवती - वह जो चमकता है

153) त्रिनयना - वह जिसकी तीन आँखें हों


151) लोलाक्षी - वह जो भटकती हुई आँखें हैं
155) मालिनी - वह जो माला पहनती है
156) हंसिनी - वह जो हंसों से घिरा हो

157) माता - वह जो माँ है

158) मलयाचलवासिनी - वह जो मलाया पहाड़ में रहती है

सुमुखी नलिनी सुभ्रूः शोभना सुरनायिका |


कालकण्ठी कान्तिमती क्षोभिणी सृक्ष्मरूपिणी || ६६।।

कै द स्तर
कक्षा - 8

159) सुमुखी - वह जिसके पास सुखदायक स्वभाव है

160) नलिनी - वह जिसका शरीर कमल की पंखुडियों की |


तरह कोमल ओर सुंदर है |

161) सुभ्रूः - वह जिसकी सुंदर पलकें हों

162) शोभना - वह जो अच्छी चीजें लाता है


163) सुरनायिका - वह देवताओं का नेता है
161) कालकण्ठी - वह मृत्यु के देवता को मारने वाला कं स है

165) कान्तिमती - वह जिसके पास ईथर की चमक है

166) क्षोभिणी - वह जो उच्च भावनाएँ पैदा करता है या वह


जो उत्तेजित हो जाता है

167) सूक्ष्मरूपिणी - वह जिसके पास एक माइक्रो कद है

वजे श्वरी वामदेवी वयो ऽवस्था- विवर्जिता ।


सिद्धेश्वरी सिद्धविद्या सिद्धमाता यशस्विनी ।। ६७।।

168) वज़ेश्वरी - वह जो वजेश्वरी (हीरे का स्वामी) है, जौ


जालंधर पीठ पर विराजमान है

169) वामदेवी - वह जौ वामा देवता का संघ है

170) वयोऽवस्थाविवर्जिंता - वह जौ उम्र के साथ नहीं बदलती

वेद स्तर र ह 203 |


17) सिद्धेश्वरी - वह सिद्धों की देवी हैं (सुपर प्राकृ तिक शक्तियों
वाले संत)

172) सिद्धविद्या - वह जो पंच दशा मन्त्र की पहचान है जिसे


सिद्ध विद्या कहा जाता है

173) सिद्धमाता - वह जो सिद्धों की जननी है

171) यशस्विनी - वह जो प्रसिद्ध है

विशुद्धिचक्र-निलयाऽऽरक्तवर्णा त्रिलोचना ।
खट्‌वाङ् गादि- प्रहरणा वदनै क-समन्विता || ६८।।

175) विशुद्धिचक्रनिल्य - वह जो सोलह पंखुड़ियों वाले कमल में है


176) आरक्तवर्णा - वह जौ थोड़ा लाल है

177} त्रिलोचना - वह जिसके पास तीन आँखें हैं

178) खट्वाङ् गादिप्रहरणा - वह जिसके पास तलवार की तरह


हथियार हैं

179) वदनैकरमन्विता - वह जिसके पास एक चेहरा है

पायसान्नप्रिया त्वक्स्था पशुलो क-भयङकरी ।

अमृतादि-महाशक्ति-संवृता डाकिनीश्वरी || ६६ ।।

3ग
180) पायसान्नप्रिया - वह जो मीठा चावल पसंद करती है (पयसाम)

कक्षा - 8

181) त्वक्स्तथा - वह जौ त्वचा की संवेदनशीलता में रहता है

182) पशुलोकभयड्करी - वह जो पुरुषों की तरह जानवर के लिए


डर पैदा करता है

183) अमृतादिमहाशक्तिसंवृता - वह जो अमृता, कर्शिनी, इद्राणी,


ईसानि, उमा, उरदवा के सी जैसी महाशक्तियों
से घिरा हुआ है

181) डाकिनीश्वरी - वह जो दक्षिण की देवी है (मृत्यु को दर्शाती


है)

अनाहताब्ज-निलया श्यामाभा वदनद्दया ।

दंष्ट्रोज्ज्वलाइक्ष-मालादि-धरा रुधिरसंस्थिता || १००।।


185) अनाहताब्जनिलया - वह बारह पंखुड़ियों वाले कमल में रहती है

186) श्यामाभा - वह जो हरी काली है

187) वदनद्वया - वह जिसके दो चेहरे हों


188) दंष्ट्रोज्ज्वला - वह जो लंबे-चौड़े दांतों से चमकता है
189) अक्षमालादिधरा - वह जो ध्यान श्रृंखला पहनती है

190) रुधिरसंस्थिता - वह जो खून में है

वेद स्तर र ह 205 |


(मै

| रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

].

> @ >> ~ छ ४ >

~
<>

. त्वासना

...................... क्षेत्रेशी क्षेत्र कषेत्रज्ञ- पालिनी ।

विजया .................... वन्द्या वन्दारु-जन- वत्सला ।


चितिस्तत्पद-लक्षयार्था ..................... |
कामेश्वर-प्राणनाडी कृ तज्ञा .................... |
ओड्याणपीठ-निलया ................... |
सद्यःप्रसादिनी ................ सक्षिवर्जिता ।
प्रभावती .................... प्रसिद्धा परमेश्वरी ।
............... विविधाकारा विद्याविद्या- स्वरूपिणी |
शिवप्रिया... शिष्टेष्टा शिष्टपूजिता ।

. पञ्‌च- कोशान्तर- स्थिता ।

@- आपने क्या सीखा?


* श्लोकों का शुद्ध उच्चारण करना |
* देवी ललिता के लिए प्रयोग किये गये विशेषक शब्दों का अर्थज्ञान |
* देवी ललिता की विशेषताएं |

वेद स्तरग
. नीचे दिये गये पदों के अर्थ लिखिए-

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चर

वेद स्तर ग

वन्दारु
प्राणनाडी
साक्षिवर्जिता
परमेश्वरी
विविधाकारा
शिष्टपूजिता

मे उत्तरमाता।

क्षेत्रस्वरूपा

विमला
चिदेकरस-रूपिणी
कामपूजिता
बिन्दु-मण्डलवासिनी
विश्व-साक्षिणी
प्रभारूपा

व्यापिनी

शिवपरा

तत्त्वमयी
कक्षा - 8
^

श्रीललितासहस्ननामस्तो त्र-५

प्रिय शिक्षार्थी, पिछले पाठ में आपने देवी ललिता के 1000 नामों में से
कु छ नामों के विषय में जाना | इस पाठ में उनके अन्य नामों के विषय
में जानेंगे |

यह पाठ पढ़ने के बाद आप सक्षम होंगे:

० सूकत में दिये श्लोकों का शुद्ध उच्चारण कर पाने में;


® देवी ललिता की विशेषताएं बता पाने में; और
०» उनके नामों का अर्थज्ञान कर पाने में |
कक्षा - 8

6. श्रीललितासहस्रनामस्तोत्र (0-3)

कालरार्त्यादि-शक्तयौ घ-वृता स्निग्धौ दनप्रिया ।

महावीरेन्द्र- वरदा राकिण्यम्बा- स्वरूपिणी || १०१ |।

191) कालरार्त्यादिशक्तयौघवृता - वह जौ कालरात्रि जैसे शक्तिपीठों


से घिरा हुआ है। कदिथ, गायत्री आदि

192) स्निग्धौदानप्रिया - वह जो घी मिश्रित चावल पसंद करता है

193) महावीरेन्द्रवरदा - वह जो महान नायकों को वरदान देता है


या वह जो महान ऋषियों को वरदान देता है

191) राकिण्यम्बा स्वरूपिणी - वह जिसके पास राकिनी जैसे नाम हैं

मणिपूराब्ज-निलया वदनत्रय-संयुता ।
वजरादिकायुधोपेता डामर्यादिभिरावृता || १०२ |।

195) मणिपुराब्जनिलया - वह जो दस पंखुड़ियों वाले कमल में


निवास करती है

196) वदनत्रयसंयुता - वह जिसके तीन चेहरे हैं


197) वजादिकायुधोपेता - वह जिसके पास वलरायुध जैसे हथियार हैं
198) डामर्यादिभिरावृता - वह जो दमेरी जैसी देवी से घिरी हुई है
श्रीललितासहसनामस्तोत्र-\
कक्षा - 8

रक्तवर्णा मांसनिष्ठा गुडान्न- प्रीत-मानसा ।


समस्तमक्त- सुखदा लाकिन्यम्बा-स्वरूपिणी || १०३।।
199) रक्तवर्णा- वह जो खून का रंग है

500) मांसनिष्ठा - वह जो जीवित प्राणियों में मांस की अध्यक्षता


करता है

501) गुडान्नप्रीतमानसा - वह जो गुड़ के साथ मिश्रित चावल


पसंद करती है

502) समस्तभक्तसुखदा - वह जो अपने सभी भक्तों को सुख देती है

503) लाकिन्यम्बास्वरूपिणी -- वह जो लकीनी योगिनी के नाम से


प्रसिद्धै

स्वाधिष्ठानाम्बुज-गता चतुर्वक्त-मनोहरा ।
शूलाद्यायुध-सम्पन्ना पीतवर्णाऽतिगर्विता || १०४ ।।

501) स्वाधिष्ठानाम्बुजगता - वह जो छः पत्ती वाले कमल में रहती है

505) चतुर्वक्तमनोहरा - वह जिसके चार सुंदर चेहरे हैं

506) शूलाद्यायुधसम्पन्ना - वह जिसके पास स्पीयर जैसे हथियार हैं


507) पीतवर्णा - वह जो सुनहरे रंग की है

508) अतिगर्विता -- वह जो बहुत गर्व है


मेदोनिष्ठा मधुप्रीता बन्धिन्‍न्यादि-समन्विता ।
दध्यन्नासक्त- हृदया काकिनी-रूप-धारिणी || १०५।।

509) मेदोनिष्ठा - वह जो वसायुक्त परत में है ~


510) मधुप्रीता - वह जिसे शहद पसंद है
511) बन्धिन्यादिसमन्विता - वह जो शक्ति से घिरा हुआ है उसे

बन्दिनी कहते हैं

512) दध्यन्नासक्तहदया - वह जो दही चावल पसंद करता है

513) काकिनीरूपधारिणी -- वह काकिनी जैसा दिखता है

मूलाधाराम्बुजारूढा पञच-वक्ताइस्थि-संस्थिता ।
अड्कु शादि-प्रहरणा वरदादि-निषेविता || १०६ | |

511) मूलाधाराम्बुचरूढा ` वह मूलाधार कमला या कमल पर


विराजमान है जो मूल आधार है

515) पञ्‌चवक्त - वह जिसके पाँच मुख हैं


516) अस्थिसंस्थिता - वह जो हडियों में निवास करती है

517) अड्कु शादिप्रहरणा - वह जो अंकु शा और अन्य हथियार


रखती है

518) वरदादिनिषेविता - वह जो वर्धा और अन्य शकियों से घिरा


हुआ है
श्रीललितासहसनामस्तोत्र-\
कक्षा - 8

मुद्‌गौ दनासक्त- चित्ता साकिन्यम्बा- स्वरूपिणी ।


आज्ञा-चक्रान्जन-निलया शुक्लवर्णा षडानना || १०७ । |

री 519) मुद्‌गौदनासक्तवित्ता - वह जो हरे चने की दाल के साथ

मिश्रित चावल पसंद करती है

520) साकिन्यम्बास्वरूपिणी - वह जिसका नाम सकनी है

521) आज्ञाचक्राब्जनिलया - वह कमल पर बैठती है जिसे अग्न


चक्र या आज्ञाचक्र कहा जाता है

522) शुक्लवर्णा ~ वह जो सफे द रग का है

523) षडानना - वह जिसके छह चेहरे हैँ

मज्जासंस्था हसवती-मुख्य-शक्ते - समन्विता |


हरिद्रान्नैक- रसिका हाकिनी-रूप--धारिणी || १०८ ।।

521) मज्जासंरथा - वह जो शरीर कं आसपास वसा में है

525) हसवतीमुख्यशक्तिसमन्विता - वह शमशीर से घिरा हुआ जिसे


हमसावथी कहा जाता है

526) हरिद्रान्नैकरसिका - वह जो हल्दी पाउडर के साथ मिश्रित


चावल पसंद करती हे

527) हाकिनीरूपधारिणी -- वह जिसका नाम हकीनी है


सहस्रदल-पद्मस्था सर्व-वर्णोप-शोभिता ।
सर्वायुधधरा शुक्ल-संस्थिता सर्वतोमुखी || १०६।।

स्वमी ¢

528) सहस्रदलपद्‌मस्था - वह हजार पंखुडियों वाले कमल पर


विराजमान है

529) सर्ववर्णोपशोभिता - वह जो सभी रंगों में चमकता है


530) सर्वायुधधरा - वह जो सभी हथियारों से लैस है
531) शुक्लसंस्थिता - वह जो शुक्ल या वीर्य में है

532) सर्वतोमुखी - वह जिसके पास हर जगह चेहरे हैं

सर्वौँदन- प्रीतचित्ता याकिन्यम्बा-स्वरूपिणी |


स्वाहा स्वधाश्मर्ति मेधा श्रुति: स्मृर्तिं अनुत्तमा || ११०।।

533) सर्वोदनप्रीतचित्ता - वह जो सभी प्रकार के चावल पसंद


करता है

531) याकिन्यम्बास्वरूपिणी - वह याकिनी के रूप में नामित है

535) स्वाहा - वह अंत में आह्वान 'अग्नि'का उदेश्य है


मंत्रों का जाप करते हुए अग्नि को आहुति
देते हैं।

536) स्वघा - वह जो स्वधा का रूप है


श्रीललितासहसनामस्तोत्र-\
कक्षा - 8

(भै 537) अमात्यः - वह जो अज्ञानता है


व्क 538) मेधा - वह जो ज्ञान (ज्ञान) के रूप में है
539) श्रुति: - वह जो वेदों के रूप में हो
510) स्मृतिः - वह जो वेदों का मार्गदर्शक है
51) अनुत्तमा - वह जो श्रेष्ठ है; वह जो सबसे ऊपर है

पुण्यकीर्तिः पुण्यलभ्या पुण्यश्रवण-कीर्तना ।


पुलोमजार्चिता बन्ध-मोचनी बन्धुरालका || १११।।
512) पुण्यकीर्तिः - वह अच्छे कामों के लिए प्रसिद्ध है

513) पुण्यलभ्या - वह जो अच्छे कर्मो द्वारा प्राप्त किया जा


सकता है

511) पुण्यश्रवणकीर्तना - वह जो सुनने वालों के लिए अच्छा है और


जो उसके बारे में गाते हैं

515) पुलोमजार्चिता - वह जो इंद्र की पत्नी द्वारा पूजा की जाती है

516) बन्धमोचनी - वह हमें बंधन से मुक्त करता है

517) बन्धुराकला - वह जिसके पास लहरें हैं, जो लहरों के


सदृश है
विमर्शरूपिणी विद्या वियदादि--जगत्प्रसू: ।
सर्वव्याधि-प्रशमनी सर्वमृत्यु-निवारिणी || ११२।।

518) विमर्शरूपिणी - वह देखने से छिपी है


519) विद्या - वह सीखने वाली है

550) वियदादि जगत्प्रसूः - वह जिसने पृथ्वी और आकाश का


निर्माण किया

551) सर्वव्याधिप्रशमनी -- वह जो सभी बीमारियों को ठीक करता है


552) सर्वमृत्युनिवारिणी - वह जो सभी प्रकार की मृत्यु से बचती है

अग्रगण्या$चिन्त्यरूपा कलिकल्मष-नाशिनी ।
कात्यायनी कालहन्त्री कमलाक्ष-निषेविता || ११३।।
553) अग्रगण्य - वह जो सबसे ऊपर है
551) अचिन्त्यरूपा - वह जो विचार से परे है
555) कलिकल्मषनाशिनी - वह जौ अन्धकार युग की बीमारियों को
दूर करता है

556) कात्यायनी - वह ओडियाना पीठ में कै थीनी है या वह जो


ऋषि कात्यायन की बेटी है

557) कालहन्त्री - वह जो मृत्यु के देवता को मारता है

558) कमलाक्षनिषेविता -- वह जो कमल विष्णु द्वारा पूजित है

कक्षा - 8

स्वमी ¢
श्रीललितासहस्रनामस्तोत्र-\

(भै 6.2 श्रीललितासहस् नामस्तो त्र॒ (1-25)

ह्क्नि | ताम्बूल-पूरित- मुखी दाडिमी-कु सुम- प्रभा |


मृगाक्षी मोहिनी मुख्या मृडानी मित्ररूपिणी || ११४।।

559) ताम्बूलपूरितमुखी - वह जिसका मुँह सुपारी, सुपारी और चूने


से भर गया है

560) दाडिमीकु सुमप्रभा - वह जिसका रंग अनार की कली की तरह

है
561) मृगाक्षी - वह जिसकी मृग जैसी आँखें हों
562) मोहिनी - वह जो करामाती है
563) मुख्या - वह जो प्रमुख है
561) मृदानी - वह जो सुख देता है

565) मित्ररूपिणी - वह जो सूर्य का रूप है

नित्यतृप्ता भक्तनिर्धि नियन्त्री निखिलेश्वरी ।


मैर्त्यादि-वासनालभ्या महाप्रलय- साक्षिणी || ११५।।

566) नित्यतृप्त - वह जौ हमेशा संतुष्ट रहती है

567) भक्तनिर्धिं - वह भक्तों का खजाना घर है

568) नियन्त्री - वह नियंत्रित करता है


569) निखिलेश्वरी - वह जो हर बात के लिए देवी है

570) मैतत्यादिवासनालभ्या - वह जिसे मैत्री (मित्रता) जैसी आदतों


से प्राप्त किया जा सकता है

571) महाप्रलयसाक्षिणी -- वह जो महान प्रलय का साक्षी है

परा शक्ति: परा निष्ठा प्रज्ञानघन-रूपिणी |

माध्वीपानालसा मत्ता मातृका-वर्ण-रूपिणी || ११६ ||


572) पराशक्ति: - वह जो अंतिम ताकत है

573) परनिष्ठा - वह जो एकाग्रता के अंत में है

571) प्रज्ञानघनरूपिणी - वह जो सभी श्रेष्ठ ज्ञान की पहचान है

575) माध्वीपानालसा - वह जो ताड़ी पीने के कारण किसी और


चीज में दिलचस्पी नहीं रखती है

576) मत्ता - वह बेहोश प्रतीत होती है

577) मातृकावर्णरूपिणी -- वह जो रंग और आकार का मॉडल है

महाकै लास- निलया मृणाल-मृदु-दोर्लता ।


महनीया दयामूर्तिर्‌महासाम्राज्य-शालिनी || ११७।।

578) महाकै लासनिलया - वह जो महा कै लासा पर विराजमान है

कक्षा - 8

स्वमी ¢
श्रीललितासहसनामस्तोत्र-\
कक्षा - 8

579) मृणालमृणालमृदुदोर्लता -- वह जिसके पास कमल के डंठल


के रूप में हथियार हैं

580) महनीया - वह जो मन्नत के लायक हो


581) दयामूर्तिर - वह जो दया का पात्र है

582) महासाम्राज्यशालिनी - वह सारी दुनिया की शेफ है

आत्मविद्या महाविद्या श्रीविद्या कामसेविता ।

श्री-षोडशाक्षरी-विद्या त्रिकू टा कामकोटिका || ११८।।


583) आत्मविद्या - वह आत्मा का विज्ञान है
581) महाविद्या - वह महान ज्ञान है

585) श्रीविद्या- वह जो देवी का ज्ञान है

586) कामसेविता - वह जो प्रेम के देवता काम की पूजा करता है

587) श्रीषोडशाक्षरीविद्या - वह जो सोलह- स्वरुप मंत्र के रूप में है


588) त्रिकु टा - वह तीन भागों में विभाजित है

589) कामकोटिका - वह जो कोमा कोटि पीठ पर बैठता है

कटाक्ष-किड्‌करी-भूत-कमला-कोटि-सेविता ।
शिर:स्थिता चन्द्रनिमा भालस्थेन्द्र-धनु:प्रभा || ११६।।
590) कटाक्षकिड्करीभुतकमलाकोटिसेविता -- वह जो करोड़ों लक्ष्मीओं
द्वारा भाग लेती है जो अपनी सरल नजर के
लिए तरसती है

591) शिरः:स्थिता- वह जो सिर में है

कक्षा - 8

।४(६

स्वमी ¢

592) चन्द्रनिभा - वह पूर्णिमा की तरह है


593) भालरथे - - वह जो माथे में है

591) इन्द्रधनु:प्रभा - वह जो बारिश के धनुष की तरह है

हृदयस्था रविप्रख्या त्रिकोणान्तर-दीपिका ।

दाक्षायणी दैत्यहन्त्री दक्षयज्ञ-विनाशिनी || १२०।।

595) हृदयस्था - वह जो दिल में है

596) रविप्रख्या - वह जो सूर्य देव की तरह चमकता है


597) त्रिकोणान्तरदीपिका - वह जौ त्रिभुज में प्रकाश की तरह है
598) दाक्षायणी - वह जो दक्ष की पुत्री है

599) देत्यहन्त्री - वह जो असुरों को मारती है

600) दक्षयज्ञविनाशिनी - उसने रुद्र के बलिदान को नष्ट कर


दिया
श्रीललितासहस्रनामस्तो त्र-५
दरान्दोलित-दीर्घाक्षी दर-हासोज्ज्वलन्‌-मुखी ।
गुरूमूर्तिर्‌गुणनिर्धि गोमाता गुहजन्मभू: ।। १२१।।
601) दरान्दोलितदीर्घाक्षी - वह जिसके पास लंबी आंखें हैं जिनके
पास थोड़ी सी हलचल हैं

602) दरहासोज्ज्वलनमुखी - वह अपनी मुस्कान के साथ उस


चमक का सामना करती है

603) गुरुमूर्तिर - वह जो शिक्षक है


601) गुणनिर्धि - वह जो अच्छे गुणों का भंडार है
605) गोमाता - वह जो माँ गाय है

606) गुहजन्मभूः - वह भगवान सुब्रह्मण्य का जन्म स्थान है

देवेशी दण्डनीतिस्था दहराकाश-रूपिणी ।

प्रतिपन्मुख्य-राकान्त-तिथि-मण्डल- पूजिता || १२२।।


607) देवेशी - वह जो देवताओं की देवी है
608) दण्डनीतिरथा - वह जो न्याय करती है ओर सजा देती है

609) दहराकाशरूपिणी - वह जो चौडे आकाश के रूप में है

610) प्रतिपन्मुख्यराकान्ततिथिमण्डलपूजिता - वह जौ पूर्णिमा से


लेकर अमावस्या तक सभी पंद्रह दिनों पर
पूजा जाता है
कलात्मिका कलानाथा काव्यालाप-विनोदिनी ।

सचामर--रमा-वाणी--सव्य-दक्षिण-सेविता || १२३।।

कलात्मिका - वह की आत्मा ¢
61) त्मका - वह कला की आत्मा है

612) कलानाथा - वह कला की प्रमुख हैं

613) काव्यालापविनोदिनी- वह जिसे महाकाव्यं में वर्णित किया


गया है

611) सचामररमावाणीसव्यदक्निणसेवीता - वह जो धन की देवी


लक्ष्मी ओर सरस्वती ज्ञान की देवी हैं

आदिशक्ति अमेयाऽऽत्मा परमा पावनाकृ तिः |

अनेककोटि- ब्रह्माण्ड जननी दिव्यविग्रहा || १२४ ||

65) आदिशक्ति - वह जो आदिम शक्ति है, पराशक्ति जो ब्रह्मांड

का कारण हैं
66) अमेय - वह जो मापा नहीं जा सकतौ
617) आत्मा - वह आत्मा हे | वह जो सभी में स्व है
618) परमा - वह जो अन्य सभी से बेहतर है
619) पावनाकृ तिः - वह जौ पवित्रता की पहचान है
620) अनेककोलिवब्रह्माण्डजननी- वह जो अरबों ब्रह्मांडो की जननी है
621) दिव्यविग्रह -- वह जो खूबसूरती से बनाया गया है

श्रीललितासहस्रनामस्तोत्र-४

क्लींकारी के वला गुह्या के वल्य-पद दायिनी ।


त्रिपुरा त्रिजगद्न्द्या त्रिमूर्तिंस्‌त्रिदशेश्वरी || १२५।।

622) क्लींकारी - वह क्लीम की आकृ ति है

623) के वला - वह जो पूर्ण है, जैसा कि वह पूर्ण, स्वतंत्र


और बिना किसी विशेषता के है

621) गुह्या - वह जो गुप्त रूप से जाना जाय

625) कै वल्यपददायिनी - वह जो मोचन और साथ ही स्थिति देता


है

626) त्रिपुरा - वह जो तीन पहलुओं में सब कु छ जीती है

627) त्रिजगद्वन्द्या - वह जो तीनों लोकों मेँ पूज्य है


628) त्रिमूर्तिस्‌- वह त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु ओर शिव) है
629) त्रिदशेश्वरी - वह सभी देवताओं के लिए देवी है
कक्षा - 8

(1) रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए-

. रक्तवर्णा ........................... गुडान्न-प्रीत-मानसा |

2. #......"0>0"ननमननननन मधुप्रीता बच्धिन्यादि-समन्विता |


3. मुद्गौदनासक्त-चित्ता .......................... -स्वरूपिणी |
1. सर्वोदन- याकिन्यम्बा-स्वरूपिणी |
5. पुण्यकीर्तिः .......................... पुण्यश्रवण-कीर्तना |

6. ....>तननननननन विद्या वियदादि-जगल््रसूः |

7. ताम्बूल-पूरित-मुखी ....................... -कु सुम-प्रभा |


8. #...........">>>-न---+- भक्तनिधि नियन्त्री निखिलेश्वरी |
9. महाकै लास-........................... गृणाल-मृदु-दोर्लता ।

]0. कलात्मिका ............................ काव्यालाप-विनोदिनी |


श्रीललितासहस्रननामस्तो त्र-५
(कि ©- आपने क्या सीखा?

० श्लोकों का शुद्ध उच्चारण करना |


* देवी ललिता के लिए प्रयोग किये गये विशेषक शब्दों का अर्थज्ञान |
० देवी ललिता की विशेषताएं |

(ब्‌पाठात प्रश्न

नीचे दिये गये पदों के अर्थ लिखिए-


2) पददायिनी
४) पावनाकृ तिः
०) देवेशी
96) गोमाता
९) रविप्रख्या
7? किङ् करी
6. . मांसनिष्ठा
2. मेदोनिष्ठा
3. साकिन्यम्बा
प्रीतचित्ता

पुण्यलभ्या

विमर्शरूपिणी वी
दाडिमी

नित्यतृप्ता

कक्षा - 8

(३)

४ @ < ©, (४ #५

निलया
{0. कलानाथा
कक्षा - 8

श्रीललितासहसखनामस्तोत्र-

प्रिय शिक्षार्थी, पिछले पाठ में आपने देवी ललिता के 1000 नामों में से
कु छ नामों के विषय में जाना | इस पाठ में उनके अन्य नामों कं विषय

में जानेंगे।

यह पाठ पढ़ने के बाद आप सक्षम होंगे:

० सूक्‍त में दिये श्लोकों का शुद्ध उच्चारण कर पाने में;


* देवी ललिता की विशेषताएं बता पाने में; ओर

® उनके नामों का अर्थज्ञान कर पाने में |


7. श्रीललितासहस्नामस्तोत्र (26-37) ¢ ।

त्यक्षरी दिव्य-गन्धाठ्या सिन्दूर-तिलकाजिचता |


उमा शैलेन्द्रतनया गौरी गन्धर्व-सेविता || १२६।।

630) त््यक्षरी - वह जो तीन अक्षरों का रूप है


631) दिव्यगन्धाढ्या - वह जिसके पास ईश्वरीय गंध है

632) सिन्दूरतिलकाजिचता - वह अपने माथे में सिंदूरी बिंदी लगाती


है

633) उमा - वह ओम में है


631) शैलेन्द्रतनया - वह पहाड़ों के राजा की बेटी है
635) गौरी - वह जो सफे द रंग की है

636) गन्धर्वसेवीता - वह जो गन्धर्वो द्वारा पूजित है

विश्वगर्भा स्वर्णगर्माऽवरदा वागधीश्वरी ।

ध्यानगम्याऽपरिच्छद्या ज्ञानदा ज्ञानविग्रहा || १२७ ।।

637) विष्वगर्भा - वह अपने पेट मेँ ब्रह्मांड लेती है

638) स्वर्णगर्भा - चमतेवद वह जो सोने का पात्र है

639) अवरदा - वह बुरे लोगों को सजा देता है


श्री ललीता सहस नाम स्तोत्र-/ा

610) वागधीश्वरी - वह जो शब्दों की देवी है

611) ध्यानगम्या - वह जो ध्यान द्वारा प्राप्त किया जा सकता है

612) अपरिच्छेद्या - वह एक निश्चित स्थान पर होने की


भविष्यवाणी नहीं की जा सकती
613) ज्ञानदा - वह जो ज्ञान देता है

611) ज्ञानविग्रहा - वह जो ज्ञान की पहचान है

सर्ववेदान्त- संवेद्या सत्यानन्द-स्वरूपिणी ।

लोपामुद्रार्चिंता लीला-कृ ल्प्त-ब्रह्माण्ड- मण्डला || १२८ ||

615) सर्ववेदान्तसंवेद्या - वह जो सभी उपनिषदां द्वारा जाना जा


सकता है

616) सत्यानन्दस्वरूपिणी- वह जो सत्य और आनंद की पहचान है

617) लोपामुद्रार्चिता- ववह अगस्त्य की पत्नी लोपा मुद्रा द्वारा पूजी


जाती है

618) लीलाकृ ल्प्तब्रह्माण्डमण्डला - चसंल वह जो सरल खेल द्वारा


विभिन्‍न ब्रह्मांडों का निर्माण करता है

अदृश्या दृश्यरहिता विज्ञात्री वेद्यवर्जिता ।


योगिनी योगदा योग्या योगानन्दा युगन्धरा ।। १२६।।
श्री ललीता सहस नाम स्तोत्र-/शा

619) अदृश्या- वह नहीं देखी जा सकती


650) दृश्यरहिता - वह जौ चीजों को अलग तरह से नहीं देखती ¢ ।

है `

651) विज्ञात्री -- वह जो सभी विज्ञानों को जानता है

652) वेद्यरर्जिता - वह जिसे कु छ भी जानने की आवश्यकता


नहीं है

653) योगिनी - वह जो योग की पहचान है

651) योगदा - वह जो योग का ज्ञान और अनुभव देता है

655) योग्या - वह जो योग द्वारा पहुँचा जा सकता है

656) योगानन्दा - वह जो योग से सुख पाता है

657) युगन्धरा - वह जो युगा पहनती है (समय का विभाजन)

इच्छाशक्ति ज्ञानशक्ति क्रियाशक््ति- स्वरूपिणी |


सर्वाधारा सुप्रतिष्ठा सदसद्रूप--धारिणी || १३०।।

658) इच्छाशक्तिज्ञानशक्तिक्रियाशक्तिस्वरूपिणी - वह जौ इच्छा, ज्ञान


ओर क्रिया की शक्तियों के रूप में है

659) सर्वधारा - वह जौ हर चीज का आधार है

660) सप्रतिष्ठा ~ वह जो ठहरने की सबसे अच्छी जगह है

वेद शाह ----्ननन ~ ही 220


कक्षा - 8

श्री ललीता सहस्र नाम स्तोत्र-/]

661) सदसद्रूपधारिणी - वह जो हमेशा उसके पास सच्चाई है

पि अष्टमूर्तिर्‌अजाजैत्री लोकयात्रा-विधायिनी ।

एकाकिनी भूमरूपा निर्द्‌वैता दै तवर्जिता ।। १३१।।


662) अष्टमूर्तिर्‌- वह जिसके आठ रुप हैं
663) अजाजेत्री - वह जो अज्ञानता पर जीता है

661) लोकायात्रविधायिनी - वह जो दुनिया को घुमाती है (यात्रा)

665) एकाकिनी - वह जो के वल और के वल स्वयं है

666) भूमरूपा - वह है जो हम देखते हैं, सुनते हैं और समझते


हैं

667) निर्दवैता - वह जो सब कु छ एक के रूप में बनाता है


668) द्वैतवर्जिता - वह जो द्वैत से परे है। वह एक से अधिक से
दूर है
अन्नदा वसुदा वृद्धा ब्रह्मात्मैक्य-स्वरूपिणी |

बृहती ब्राह्मणी ब्राह्मी ब्रह्मानन्दा बलिप्रिया ।। १३२।।

669) अन्नदा - वह जो भोजन देती है

670) वसुदा - वह जो धन देता है


671) वृद्धा - वह जो पुराना है

672) ब्रह्मात्मेक्यस्वरूपिणी -- वह जो खुद को ब्रह्म-परम सत्य में


विलीन कर लेती है

673) बृहती - वह जो बड़ा है

671) ब्राह्मणी - वह ईश्वर की पत्नी है

675) ब्राह्मी - वह जो ब्रह्म का एक पहलू है

676) ब्रह्मानन्दा - वह जो परम सुख है

677) बलिप्रिया - वह जो मजबूत पसंद करता है

भाषारूपा बृहत्सेना भावामाव-विवर्जिता ।


सुखाराध्या शुभकरी शोभना सुलभा गतिः || १३३।।

678) भाषारूपा - वह भाषा का व्यक्तिकरण हे

679) बृहत्सेना - वह जिसके पास एक विशाल सेना हो


680) भावाभावविवर्जिता - वह जिसके पास जन्म या मृत्यु नहीं है
681) सुखाराध्या - वह जिसकी पूजा सुख से की जा सकती है
682) शुभकरी - वह जो अच्छा करती है

683) शोभना सुलभा गति: - वह जो पाना आसान है ओर के वल


अच्छा करती है

वेद स्तर-ग

कक्षा - 8

63
श्री ललीता सहस नाम स्तोत्र-/शा

राज-राजेश्वरी राज्य-दायिनी राज्य-वल्लभा |

ख्ख | राजत्कृ पा राजपीठ-निवेशित-निजाश्रिता || १३४।।

681) राजराजेश्वरी - वह देवराज, यक्ष राजा, ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र


जैसे राजाओं की देवी है

685) राज्यदायिनी -- वह जो वैकुं ठ, कै लासा आदि जैसे राज्य देता

है
686) राज्यवल्लभा - वह जो सभी प्रभुत्वों की रक्षा करे
687) राजत्कृ पा - वह जिसकी दया हर जगह चमकती है
688) राजपीठनिवेशितनिजाश्रिता - वह राजाओं के रूप में लोगों से
संपर्क करता है
राज्यलक्ष्मी: कोशनाथा चतुरङ् ‌ग-बलेश्वरी |
साम्राज्य-दायिनी सत्यसन्धा सागरमेखला || १३५।।
689) राज्यलक्ष्मी:-- वह राज्य का धन है

690) कोशनाथा - वह जो राजकोष की रक्षा करता है

691) चतुरड्गबलेश्वरी -- वह चार गुना सेना (मन, मस्तिष्क, विचार


और अहंकार) का नेता है

692) साम्राज्यदायिनी - वह जो आपको सम्राट बनाता है


श्री ललीता सहस नाम स्तोत्र-/शा

693) सत्यसन्धा - वह जो सच्चा है


691) सागरमेखला - वह जो समुद्र से घिरा पृथ्वी है

&>

दीक्षिता दैत्यशमनी सर्वलोक-वशड्धकरी ।


सर्वार्थदात्री सावित्री सच्चिदानन्द-रूपिणी || १३६ |।

695) दीक्षिता- वह जो अग्नि यज्ञ करने का अधिकार देता है

696) दैत्यशमनी - वह विरोधी देवताओं को नियंत्रित करता है

697) सर्वलोकवशङ् करी - वह सारी दुनिया को अपने नियंत्रण में


रखती है

698) सर्वार्थदात्री वह जो सभी धन देता है

699) सावित्री - वह जो सूरज की तरह चमकता है

700) सच्चिदानन्दरूपिणी -- वह जो परम सत्य की पहचान है

देश-कालापरिच्छिन्ना सर्वगा सर्वमोहिनी |


सरस्वती शास्त्रमयी गुहाम्बा गृद्यरूपिणी || १३७।।

701) देशकल्परिच्छिन्ना - वह जो क्षेत्र या समय से विभाजित


नहीं है

702) सर्वगा - वह जो हर जगह से भरा है

वेद शाह >> 0 ७ 9 ७ ७$ ७ &&ू७ 9 ?9:& ~ _ द


703) सर्वमोहिनी -- वह जो हर चीज को आकर्षित करता है

कक्षा - 8

701) सरस्वती - वह जो ज्ञान की देवी है

705) शास्त्रमयी - वह जो विज्ञान का अर्थ है

706) गुहाम्बा - वह भगवान सुब्रह्मण्य (गुहा) की माँ हैं

707) गुह्यरूपिणी -- वह जिसका रूप सभी से छिपा है

7.2 श्रीललितासहस्ननामस्तो त्र (38-50)

सर्वोपाधि-विनिर्मुक्ता सदाशिव-पततिब्रता ।
सम्प्रदायेश्वरी साध्वी गुरुमण्डल-रूपिणी || १३८॥।।

708) सर्वोपाधिविनीर्मुक्ता - वह जिसके पास कोई सिद्धांत नहीं है

709) सदाशिवपतिव्रता - वह जो हर समय भगवान शिव के लिए


समर्पित पत्नी है

70) सम्प्रदायेश्वरी -वह जो कर्मकांड की देवी है या वह जो


शिक्षक-छात्र पदानुक्रम की देवी है

711) साध्वु - वह जो निर्दोष है


712) ई - वह "ई"अक्षर कौन है

713) गुरुमण्डलरूपिणी - वह ब्रह्मांड कं शिक्षक हैं


श्री ललीता सहस नाम स्तोत्र-/शा

कु लोत्तीर्णा भगाराध्या माया मधुमती मही ।


गणाम्बा गुह्यकाराध्या कोमलाङ् गी गुरुप्रिया ।। १३६।।
कलोत्तीर्णा इंद्रियों 6
711) कु - वह जो इंद्रियों के समूह से परे है हु

75) भगाराध्या - वह जो ब्रह्मांड में पूजा करने वाला है, वह


सूरज के चारों ओर है

716) माया - वह जो भ्रम है


717) मधुमती - वह योग में द्रान्स स्टेज (सातवीं) है
718) मही - वह है जो पृथ्वी की पहचान है

719) गणाम्बा- वह जो गणेश ओर भूता गण के लिए माँ है

720) गुद्यकाराध्या - वह जिसे गुप्त स्थानों में पूजा जाना चाहिए

721) कोमलाङ् गी - वह जिसके पास सुंदर अंग हैं

722) गुरुपिया - वह जो शिक्षकों को पसंद करती है

स्वतन्त्रा सर्वतन्त्रेशी दक्षिणामूर्ति-रूपिणी ।


सनकादि- समाराध्या शिवज्ञान- प्रदायिनी || १४० ||

723) स्वतन्त्रा - वह स्वतंत्र हे | वह जो सभी सीमाओं से मुक्त हो


721) सर्वतन्त्रेणी - वह जो सभी थश्रँ की देवी है (भगवान को
पाने के गुर)

वेद शाह ----्ननन ~ छि 235 |


कक्षा - 8

[2

श्री ललीता सहस्र नाम स्तोत्र-/]

725) दक्षिणामूर्तिरूपिणी -- वह दक्षिण का सामना करने वाले भगवान


का व्यक्तित्व है (शिव का शिक्षक रूप)

726) सनकादिसमाराध्या - वह जो सनक संतों द्वारा पूजा की जा

रही है

727) शिवज्ञानप्रदायिनी- वह जो भगवान का ज्ञान देता है

चित्कलाऽऽनन्द- कलिका प्रेमरूपा प्रियङ् करी ।


नामपारायण- प्रीता नन्दिविद्या नटेश्वरी || १४१ ||

728) चित्कला - वह सूक्ष्म शक्ति है जो भीतर ही भीतर गहरी


है

729) आनंदकलिका- वह जो प्राणियों में सुखी है


730) प्रेमरूपा - वह जो प्रेम का रूप है
731) प्रियङ् करी - वह जो पसंद करती है, करती है

732) नामपारयणप्रीता- वह जो अपने विभिन्‍न नामों की पुनरावृत्ति


पसंद करती है

733) नन्दिविद्या - वह नंदी देव द्वारा सिखाया गया ज्ञान है


(बैल देवता जिस पर शिव की सवारी होती
है)

731) नटेश्वरी - वह नृत्य की देवी है


श्री ललीता सहस नाम स्तोत्र-/शा

मिथ्या-जगदधिष्ठाना मुक्तिदा मुक्तिरूपिणी ।


लास्यप्रिया लयकरी लज्जा रम्भादिवन्दिता || १४२।।

735) मिथ्याजगदधिष्ठाना - वह जौ भ्रम की इस दुनिया कं लिए रो


किस्मत है

736) मुक्तिदा - वह जो मुक्ति देता है

737) मुक्तिरूपिणी - वह जो मुक्ति के रूप में है

738) लास्यप्रिया - वह स्त्री नृत्य पसंद करती है

739) लयकरी - वह नृत्य और संगीत के बीच का सेतु है

710) लज्जा - वह जो शर्मीला है

711) रम्भादिवन्दिता ~ वह जो खगोलीय नर्तकियों द्वारा पूजा की


जाती है

भवदाव-सुधावृष्टिः पापारण्य-दवानला ।

दौर्भाग्य-तूलवातूला जराध्वान्त-रविप्रभा ।। १४३।।

712) भवदावसुधावृष्टिः - वह जो अमृत की वर्षा के साथ नश्वर


जीवों के दुखद जीवन की वन अग्नि को
नमन करता है|

713) पापारण्यदवानला- वह जंगल की आग है जो पाप के जंगल


को नष्ट कर देती है

वेद शाह >> 0 ७ 9 ७ ७$ ७ &&ू७ 9 ?9:& ~ _ 237


श्री ललीता सहस्र नाम स्तोत्र-/]

कक्षा - 8

[2

711) दौर्भाग्यतुलवातूला - वह चक्रवात है जो बुरी किस्मत को दूर


करता हे |

टिपणी | 715) जराध्वान्तरविप्रभा वह सूरज की किरणे हैं जो बुढ़ापे के

अंधेरे को निगल जाती है

भाग्याब्धि-चन्द्रिका भक्त-चित्तके कि-घनाघना ।


रोगपर्वत-दम्भोर्लि मृत्युदारु-कु ठारिका || १४४ ।।

716) भाग्याब्यिचन्द्रिका - वह जो भाग्य के समुद्र में पूर्णिमा है

717) भक्तचित्तके किघनाघना - वह मोर का काला बादल है, जो


उसका भक्त है

718) रोगपर्वतदम्भोर्लि- वह वजर अस्त्र है जो बीमारी को तोड़ता है


जो पहाड़ की तरह है

719) मृत्युदारुकु ठारिका - वह उस कु ल्हाड़ी की तरह है जो मौत


के पेड़ को गिरा देती है

महेश्वरी महाकाली महाग्रासा महाशना ।


अपर्णा चण्डिका चण्डमुण्डासुर-निषूदिनी || १४५।।

750) महेश्वरी - वह सबसे बड़ी देवी है

751) महाकाली - वह जो महान कली है


कक्षा - 8

752) महाग्रासा - वह जो एक महान पीने के कटोरे की तरह


है।
वह ध |
753) महाशना - वह महान भक्षक है
751) अपर्णा - वह जिसने बिना पान खाए भी ध्यान किया
हे।
755) चण्डिका - वह सर्वोच्च गुस्से में है

756) चण्डमुण्डासुरनिषुदिनी -- उसने चंदा और मुंडा नामक असुरों


को मार डाला

क्षराक्षरात्मिका सर्वलोके शी विश्वधारिणी ।


त्रिवर्गदात्री सुभगा त््यम्बका त्रिगुणात्मिका || १४६ |।

757) क्षराक्षरात्मिका -वह जो कभी नष्ट नहीं हो सकता और नष्ट


भी हो सकता है

758) सर्वलोके शी - वह जो सभी लोकों की देवी है

759) विश्वधारिणी - वह जो सारे ब्रह्मांड को वहन करती है


760) त्रिवर्गदात्री - वह जो धर्म, संपत्ति और सुख देता है
761) सुभगा - वह जो देखने में प्रसन्न है

762) रत्यम्बका - वह जिसके पास तीन आँखें हैं

वेद शाह >> 0 ७ 9 ७ ७$ ७ &&ू७ 9 ?9:& ~ _ द


श्री ललीता सहस नाम स्तोत्र-/ा

763) त्रिगुणात्मिका - वह जो तीन बंदूकों की पहचान है। , थमो


(काली), राजो (दुर्गा) ओर सत्व (पार्वती)

टिपणी | स्वर्गापवर्गदा शुद्धा जपापुष्प-निभाकृ तिः ।

ओजोवती द्युतिधरा यज्ञरूपा प्रियत्रता || १४७।।

761) स्वर्गापवर्गदा - वह जो स्वर्ग ओर उसके लिए रास्ता देती


है।

765) शुद्धा - वह जो साफ है

766) जपापुष्पनिभाकृ ति: - वह जो गुड़हल के फू ल (हिबिस्कस) का


रंग है

767) ओजोवती - वह जोश से भरी है

768) द्युतिधरा - वह जिसके पास प्रकाश है


769) यज्ञरूपा - वह बलिदान के रूप में है
770) प्रियव्रता - वह जो तपस्या पसंद करता है

दुराराध्या दुराधर्षा पाटली-कु सुम-प्रिया ।


महती मेरुनिलया मन्दार-कु सुम-प्रिया || १४८ |।

77) दुराराध्या - वह जो पूजा के लिए शायद ही उपलब्ध


हो|

772) दुराधर्षा - वह जीता नहीं जा सकता


श्री ललीता सहस नाम स्तोत्र-/शा

773) पाटलीकु सुमप्रिया -- वह जो पाटली के पेड़ की कलियों को


पसंद करता है
771) महती - वह जो बड़ी है £

775) मेरुनिलया - वह जो मेरु पर्वत में रहती है


776) मन्दारकसुमप्रिया - वह मंदरा के पेड की कलियां को पसंद

करती है

वीराराध्या विराद्भूपा विरजा विश्वतोमुखी ।


प्रत्यग्रूपा पराकाशा प्राणदा प्राणरूपिणी || १४६।।

777) वीराराध्या - वह वीरों दवारा पूजी जाती है


778) विराद्भूपा - वह जो एक सार्वभौमिक देखो

779) विरजा - वह जिसके पास कोई दोष नहीं है

780) विश्वतोमुखी - वह जो हर एक की आँखों से देखता है


781) प्रत्ययमरूपा - वह जिसे अंदर देखकर देखा जा सकता है
782) पराक्राशा - वह महान आकाश है

783) प्राणदा - वह जो आत्मा देता है

781) प्राणरूपिणी - वह आत्मा है

वेद शाह ----्ननन ~ छ 21 |


श्री ललीता सहस नाम स्तोत्र-/ा

मार्ताण्ड-भैरवाराध्या मन्त्रिणीन्यस्त-राज्यधू: ।
त्रिपुरेशी जयत्सेना निस्त्रैगुण्या परापरा ।। १५०।।

785) मार्तण्डभेरवाराध्या - वह मार्तण्ड भैरव द्वारा पूजित है

786) मन्त्रिणीन्यस्तराज्यधू: - वह जिसने अपने मन्त्रिनी के रूप में


शासन करने की शक्ति दी

787) त्रिपुरेशी- वह जो तीन शहरों का प्रमुख है


788) जयत्सेना - वह जिसके पास एक सेना है जो जीतता है

789) निस्त्रेगुण्या - वह जो तीन गुणों से ऊपर है

790) परापरा - वह जो बाहर और अंदर है


कक्षा - 8

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए


]., ..............« स्वर्णगर्भाइ्वरदा वागधीश्वरी |
2. सर्ववेदान्त-संवेद्या -“स्वरूपिणी |
3. अदृश्या दृश्यरहिता ................... वेद्यवर्जिता |
1. इच्छाशक्ति... -क्रियाशक्ति-स्वरूपिणी |
5. अष्टमूतिर्‌लोकयात्रा-विधायिनी |
6. ......">ततनन-+- बृहत्सेना भावाभाव- विवर्जिता ।
7. राजराजेश्वरी ............-.....- राज्य-वल्लभा |
8. राज्यलक्ष्मीः ..................... चतुरङ् ग-बलेश्वरी |

9. देश-कालापरिच्छिन्ना सर्वगा

0. कु लोत्तीर्णा भगाराध्या माया .................... मही |

©- आपने क्या सीखा?


* श्लोकों का शुद्ध उच्चारण करना |
० देवी ललिता के लिए प्रयोग किये गये विशेषक शब्दों का अर्थज्ञान |
* देवी ललिता की विशेषताएं |
वेद स्तरग्र_ _ _ _ _ _ _ __ ___________________ ____ __ ही 213 |
कक्षा - 8

€>पाठांत प्रश्न

1) नीचे दिये गये पदों का हिन्दी का अर्थ लिखिए

7.॥

।.

छा ४ ~>४? >

> @ >> ~ ~ ~ ऐ (४

घनाघना
महाकाली
मुक्तिरूपिणी

श्री ललीता सहस्र नाम स्तोत्र-ऽ

दौर्भाग्य-तूलवातूला

चण्डिका
र्त्यम्बका

म उत्तराता

विश्वगर्भा
सत्यानन्द
विज्ञात्री
ज्ञानशक्ति
अजाजेत्री
भाषारूपा
राज्य-दायिनी
कोशनाथा
सर्वमोहिनी

. मधुमती
कक्षा - 8

(४

श्रीललितासहयनामस्तोत्र-ष

प्रिय शिक्षार्थी, पिछले पाठ में आपने देवी ललिता के 1000 नामों में से

कु छ नामों के विषय में जाना | इस पाठ में उनके अन्य नामों के विषय
में जानेंगे।

यह पाठ पढ़ने के बाद आप सक्षम होंगे:

० सूक्त में दिये श्लोकों का शुद्ध उच्चारण कर पाने में;


® देवी ललिता की विशेषताएं बता पाने में; और
® उनके नामों का अर्थज्ञान कर पाने में |
श्रीललितासहस्नामस्तोत्र-शा
8. श्रीललितासहस्नामस्तोत्र (5-61)

सत्य-ज्ञानानन्द-रूपा सामरस्य-परायणा ।
कपर्दिनी कलामाला कामधुक् ‌कामरूपिणी || १५१।।

791) सत्यज्ञानानन्दरूपा - वह जो सत्य, ज्ञान और आनंद का


परिचायक है

792) सामरस्यपरायणा - वह जो शांति से खड़ा है

793) कपर्दिनी- वह जो कपर्धी की पत्नी है (बाल वाले शिव)


791) कलामाला - वह जो कला को माला के रूप में पहनती है
795) कामधुक् ‌- वह जो इच्छाओं को पूरा करती है

796) कामरूपिणी - वह जो किसी भी रूप ले सकता है

कलानिधिः काव्यकला रसज्ञा रसशेवधि: ।


पुष्टा पुरातना पूज्या पुष्करा पुष्करेक्षणा । | १५२।।

797) कलानिधिः - वह जो सभी कलाओं का खजाना है

798) काव्यकला - वह जो लेखन की कला हे


799) रसज्ञा - वह जो कला की सराहना करती है
800) रसशेवधिः - वह जो कलाओं का खजाना है
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-शा

801) पुष्टा - वह जो स्वस्थ है

802) पुरातना - वह जो प्राचीन है

803) पूज्या - वह जो पूजने योग्य हो


801) पुष्करा - वह जो विपुल देता है

805) पुष्करेक्षणा - वह जिसके पास कमल के समान नेत्र हों

परंज्योतिः परंधाम परमाणु: परात्परा ।


पाशहस्ता पाशहन्त्री परमन्त्र- विभेदिनी || १५३ ।।

806) परंज्योतिः - वह जो परम प्रकाश है

807) परंधाम - वह परम विश्राम स्थल है

808) परमाणुः - वह जो परम परमाणु है

809) परात्परा - वह जो सबसे बेहतर से बेहतर है

810) पाशहस्ता - वह जिसके हाथ में रस्सी है

811) पाशहन्त्री - वह जो आसक्ति को काटता है

कक्षा - 8

812) परमन्त्रविभेदिनी - वह जो मंत्र के प्रभाव को नष्ट करता है

मूर्ताऽमूर्ताऽनित्यतृप्ता मुनिमानस-हंसिका |
सत्यव्रता सत्यरूपा सर्वान्तर्यामिनी सती ।। १५४।।

¢
श्रीललितासहस्ननामस्तो त्र-शा
कक्षा - 8

813) मूर्ति - वह जिसके पास एक रूप है

811) अमूर्तता ~ वह जिसके पास कोई फॉर्म नहीं है

॥॥

815) अनित्यतृप्ता - वह जो अस्थायी चीजों का उपयोग करके

प्रार्थनाओं से खुश हो जाता है

816) मुनिमानसहंसिका - वह ऋषियों के मन (झील जैसी) में हंस


है

817) सत्यव्रता - वह जिसने के वल सच बोलने का संकल्प


लिया है

818) सत्यरूपा - वह असली रूप है

819) सर्वान्तर्यामिनी- वह जो हर चीज के भीतर है


820) सती - वह दक्ष की पुत्री साठे है

ब्रह्माणी ब्रह्मजननी बहुरूपा बुधार्चिता ।


प्रसवित्री प्रचण्डाऽऽज्ञा प्रतिष्ठा प्रकटाकृ तिः ।। १५५।।

821) ब्रह्माणी - वह जो निर्माता के पीछे ताकत हे

822) ब्रह्म - वह निर्माता है


823) जननी - वह जो माँ है
821) बहुरूपा - वह जिसके कई रूप हैं
श्रीललितासहसनामस्तोत्र-शा
कक्षा - 8

825) बुधार्चिता - वह जो प्रबुद्ध द्वारा पूजा की जा रही है

(५

826) प्रसवित्री - वह जिसने सब कु छ जन्म दिया है

827) प्रचण्डा - वह जो बहुत गुस्से में है

828) आज्ञा - वह जो आदेश है


829) प्रतिष्ठा - वह जो स्थापित किया गया है

830) प्रकटाकृ ति: - वह जो स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है

प्राणेश्वरी प्राणदात्री पञूचाशत्पीठ-रूपिणी ।

विशघृङ् खला विविक्तस्था वीरमाता वियत्प्रसू- ।। १५६ ||


831) प्राणेश्वरी - वह जो आत्मा की देवी है
832) प्राणदात्री - वह जौ आत्मा देता है

833) पञ्‌चवशत्पीदरूपिणी - वह पचास शक्तिपीठों में शामिल हैं,


जैसे काम रोपा, वाराणसी | उज्जैन आदि

831) विशघुङ् खला - वह जंजीर नहीं है


835) विविक्तस्था - वह अके ली जगहों पर है
836) वीरमाता- वह हीरो की माँ है

837) वियत्प्रसुः - वह जिसने आकाश बनाया है


[2

श्रीललितासहस्ननामस्तो त्र- शा

मुक॒न्दा मुक्तिनिलया मूलविग्रह-रूपिणी ।


भावज्ञा भवरोगघनी भवचक्र-प्रवर्तिनी || १५७।।

838) मुकु न्दा - वह मोचन देता है

839) मुक्तिनिलया - वह मोचन की सीट है

81 ०) मूलविग्रहरूपिणी -- वह जो मूल प्रतिमा है

811) भावाज्ञा - वह जो इच्छाओं और विचारों को समझती है

812) भवरोगघनी - वह जन्म के पाप को ठीक करती है मिटाती


है

813) भवचक्रवर्तिनी - वह जन्म के चक्र को घुमाती है

छन्दःसारा शास्त्रसारा मन्त्रसारा तलोदरी ।

उदारकीर्तिर्‌उद्दामवैमवा वर्णरूपिणी || १५८ ||


811 छन्दःसारा - वह जो वेदों का अर्थ है
815) शास्त्रसारा - वह जो पुराणों का अर्थ है (महाकाव्य)
816) मन्त्रसारा - वह जो मंथरा का अर्थ है (मंत्र)
817) तलोदरी - वह एक छोटा पेट है

818) उदारकीर्तिर - वह, जिसकी व्यापक और लंबी ख्याति है


819) उद्दामवैभवा - वह जिसके पास प्रसिद्धि है

श्रीललितासहसनामस्तोत्र-शा
कक्षा - 8

850) वर्णरूपिणी - वह जो अक्षर की पहचान है

जन्ममृत्यु-जरातप्त-जनविश्रान्ति- दायिनी |
सर्वो पनिष-दुद्‌-घुष्टा शान्त्यतीत-कलात्मिका || १५६।।

851) जन्ममृत्युजरातप्तजनविश्रान्तिदायिनी - वह जो जन्म, मृत्यु


और उम्र बढ़ने के लिए रामबाण है

852) सर्वोपनिषदुद्ष्टा - वह जो उपनिषदों द्वारा सबसे महान


घोषित किया जा रहा है

853) शान्त्यतीतकलात्मिका - वह जो शांति से भी बड़ी कला है

गम्भीरा गगनान्तस्था गर्विता गानलोलुपा ।

कल्पना-रहिता काष्ठाऽकान्ता कान्तार्ध- विग्रहा || १६०।।

851) गम्भीरा - वह जिसकी गहराई को मापा नहीं जा सकता


855) गगनान्तथा - वह जो आकाश में स्थित है
856) गर्विता - वह जो गर्व करता है

857) गानलोलुपा - वह जो गाने पसंद करती है

858) कल्पनारहिता - वह जो कल्पना नहीं करता है


श्रीललितासहस्ननामस्तो त्र-शा
कक्षा - 8

859) काष्ठ - वह जो परम सीमा में है


860) अकांता- वह जो पापों को दूर करता है

861) कान्तार्धविग्रहा - वह जो अपने पति (कांथा) से आधी है

कार्यकारण-ननिर्मुक्ता कामके लि--तरछ्गिता ।

कनत्कनकता-टड्का लीला-विग्रह-धारिणी || १६१।।

862) कार्यकारणनिर्मुक्ता - वह जो कार्रवाई और कारण से परे है

863) कामके लितरडिगता - वह जो परमेश्वर के खेल के समुद्र की


लहरें हैं

861) कनत्कनकताटङ् का- वह जो सुनहरा कानों का स्टड पहनती है

865) लीलाविग्रहधारिणी - वह जो कई रूपों को खेल के रूप में


मानती है
अजा क्षयविनिर्मुक्ता मुग्धा क्षिप्र-प्रसादिनी ।

अन्तर्मुंख- समाराध्या बहिर्मुख-सुदुर्लभा || १६२।।

866) अजा - वह जिसके पास जन्म नहीं है

867) क्षयविनिर्मुक्ता - वह जिसके पास मृत्यु नहीं है


868) मुग्धा - वह खूबसूरत है

869) क्षिप्रप्रसादिनी-- वह जो जल्दी प्रसन्न होती है


श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-शा

870) अन्तर्मुखसमाराध्या - वह जो आंतरिक विचारों से पूजी जाती है

871) बहिर्मुखसुदुर्लभा - वह जो बाहरी प्रार्थनाओं द्वारा प्राप्त किया

जा सकता है
त्रयी त्रिवर्गनिलया त्रिस्था त्रिपुरमालिनी ।
निरामया निरालम्बा स्वात्मारामा सुधासृतिः || १६३।।
872) त्रयी - वह जो तीन वेदों अर्थात ऋक, यजुर ओर
साम के रूप में है
873) त्रिवर्गनिलया - वह जो स्वयं, संपत्ति और आनंद के तीन
पहलुओं में है
871) त्रिस्था - वह जो तीन में है

875) त्रिपुरमालिनी - वह जो त्रिपुरा में श्रीचक्र के छठे खंड में


है।

876) निरामया - वह जो बिना रोगों के है

877) निरालम्बा - वह जिसे दूसरे जन्म की आवश्यकता नहीं

है।

878) स्वात्मारामा - वह जो अपने भीतर आनंद लेती है

879) सुधासृतिः - वह जो अमृत की वर्षा है

कक्षा - 8

(४
श्रीललितासहस्रनामस्तो त्र-शा
संसारपडक-निर्म ग्न-समुद्धरण-पण्डिता ।
यज्ञप्रिया यज्ञकच्री यजमान-स्वरूपिणी || १६४॥।

880) संसारपडकनिर्मग्नसमुद्धरणपण्डिता -- वह जो आज जीवन


की मिट्टी में डूबे लोगों को बचाने में सक्षम है

881) यज्ञप्रिया वह जो अग्नि बलिदान पसंद करती है


882) यज्ञकत्री - वह अग्नि यज्ञ करती है

883) यजमानस्वरूपिणी - वह जो अग्नि यज्ञ का कर्ता है

8.2 श्रीललितासहस्रननामस्तो त्र (65-82)

धर्माधारा धनाध्यक्षा धनधान्य विवर्धिनी ।


विप्रप्रिया विप्ररूपा विश्वभ्रमण- कारिणी || १६५।।

881) धर्माधारा - वह जो धर्म का आधार है- सही कार्रवाई

885) धनाध्यक्षा - वह जो धन की अध्यक्षता करता है

886) धनधान्यविवर्धिनी - वह जो धन और अनाज पैदा करता है


887) विप्रपिया - वह जो वेदों को सीखना पसंद करता है
888) विप्ररूपा - वह जो वेदों का ज्ञाता है

889) विश्वभ्रमणकारिणी- वह जो ब्रह्मांड को घूमने कं लिए बनाता है


श्रीललितासहसनामस्तोत्र-शा

विश्वग्रासा विद्रुमाभा वैष्णवी विष्णुरूपिणी ।


अयोर्नि योनिनिलया कू टस्था कु लरूपिणी || १६६ ||

ह्न
890) विश्वग्रासा - वह जो एक मुट्ठी में ब्रह्मांड खाती है

89) विद्रुमाभा- वह जिसके पास मूंगा की चमक है


892) वैष्णवी - वह जो विष्णु की शक्ति है
893) विष्णुरूपिणी -- वह जो विष्णु है

891) अयोर्नि - वह जो बिना उत्पत्ति का होवह जिसके


पास कारण नहीं है या वह जो पैदा नहीं
हुई है

895) योनिनिलया - वह जो हर चीज का कारण और स्रोत है


896) कू टस्था - वह जो स्थिर है

897) कु लरूपिणी - वह जो संस्कृ ति की पहचान है

वीरगोष्ठीप्रिया वीरा नैष्कर्मया नादरूपिणी |


विज्ञान कलना कल्या विदग्धा बैन्दवासना || १६७ |।

898) वीरगोष्ठीप्रिया - वह जो हीरो की कं पनी पसंद करती है

899) वीरा - वह जिसके पास वीरता है


श्रीललितासहस्ननामस्तो त्र- शा

900) नैर्ष्षया - वह जिसे कार्रवाई से लगाव नहीं है

901) नादरूपिणी - वह जो ध्वनि का रूप है

902) विज्ञानकलना -वह जो विज्ञान बनाता है

903) कल्य - वह जो कला में निपुण है

901) विदग्धा- वह जो एक विशेषज्ञ है

905) बैन्दवासना - वह जो हजार पंखों वाले कमल की बिंदी में


बैठती है

तत्त्वाधिका तत्त्वमयी तत्त्वमर्थ-स्वरूपिणी ।


सामगानप्रिया सौम्या सदाशिव-कु टुम्बिनी || १६८।। वत सोम्या

906) तत्त्ववाधिका - वह जो सभी तत्वमीमांसा से ऊपर है

907) तत्त्वमयी - वह जो तत्त्वमीमांसा (अध्यात्मविज्ञान) है

908) तत्त्वमर्थस्वरूपिणी -- वह जो इस और उस की पहचान है


909) सामगानप्रिया -- वह जो साम का गाना पसंद करती है

90) सौम्या - वह जो शांतिपूर्ण है या वह जो चंद्रमा की


तरह सुंदर है

911) सदाशिवकु दटुम्बिनी - वह जो सदा शिवा की पत्नी है


श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-शा
सव्यापसव्य- मार्गस्था सर्वापद्दिनिवारिणी |
स्वस्था स्वभावमधुरा धीरा धीरसमर्चिता ।। १६६।।

912) सस्यापसव्यमार्गस्था - वह जौ जन्म, मृत्यु ओर जीवन यापन


हे या वह जो पुरोहित और तांत्रिक विधियों
को पसंद करती है

913) सर्वपद्विनिवारिणी - वह जो सभी खतरों को दूर करता है

911) स्वस्था - वह जो उसके भीतर सब कु छ है या वह जो


शांत है

915) स्वभावमघुरा - वह स्वभाव से मीठा है


916) धीरा - वह साहसी है

917) धीरसमर्चिता - वह जो साहसी द्वारा पूजा की जा रही है

चौ तन्यार्घूय- समाराध्या चौ तन्य-कू सुमप्रिया ।


सदोदिता सदातुष्टा तरुणादित्य-पाटला || १७० |।

918) चौतन्यार्घयसमाराध्या - वह जौ पानी के त्याग से पूजी जाती है

919) चौतन्यकसुमप्रिया - वह जो लुप्त होती फू लों को पसंद नहीं


करती

920) सदोदिता - वह जो कभी सेट नहीं होता

कक्षा - 8

(५
श्रीललितासहस्ननामस्तो त्र-शा
कक्षा - 8

(भ 921) सदातुष्टा - वह जो हमेशा खुश रहती है


922) तरुणादित्यपाटला - वह जवान बेटे को पसंद करती है जिसे


सफे द रंग के साथ लाल मिलाया जाता है

दक्षिणा-दक्षिणाराध्या दरस्मेर-मुखाम्बुजा |
कौलिनी-के वलाइनर्घय-कै वल्य-पददायिनी || १७१।।

923) दक्षिणादक्षिणाराध्या - वह जो विद्वान और अज्ञानी है

921) दरस्मेरमुखम्बुजा - वह पूर्ण खिलने में कमल की तरह


मुस्कु राता हुआ चेहरा है

925) कौलीनीके वला - वह जो कोऊला और के वला विधियों का


मिश्रण है

926) अनर्धयकै वल्यपददायिनी - वह जो स्वर्गीय कद काटी देता है


स्तोत्रप्रिया स्तुतिमती श्रुति-संस्तुत-वैभवा ।
मनस्विनी मानवती महेशी मङ् ‌गलाकृ तिः || १७२ ।।

927) स्तोत्रप्रिया - वह जो मंत्रों को पसंद करता है

928) स्तुतिमती - वह जो उसके भजन गाती है, उसके लिए


वरदान देती है
श्रीललितासहसनामस्तोत्र-शा
कक्षा - 8

929) श्रुतिसंस्तुतवैभवा - वह जो वेदों दवारा पूजित है

(५

930) मनस्विनी - वह जिसके पास स्थिर दिमाग है

931) मानवती - वह जिसके पास बड़ा दिल है


932) महेशी - वह सबसे बड़ी देवी हैं

933) मङ् गलाकृ तिः - वह जौ के वल अच्छा करती है

विश्वमाता जगद्धात्री विशालाक्षी विरागिणी |


प्रगल्भा परमोदारा परामोदा मनोमयी || १७३ ।।

931) विश्वमाता - ब्रह्मांड की माँ


935) जगद्धात्री - वह दुनिया का समर्थन करती है
936) विशालाक्षी - वह व्यापक आंखों वाली है

937) विरागिणी - उसने त्याग किया है

938) प्रगल्भा - वह साहसी है


939) परमोदारा - वह महान दाता है
910) परामोदा - वह जिसके पास बहुत खुशी है

911) मनोमयी - वह जो मन से एक है
श्रीललितासहस्ननामस्तो त्र-शा
कक्षा - 8

व्योमके शी विमानस्था वज़िणी वामके श्वरी ।


(भ पञ्‌चयज्ञ- प्रिया पञ्‌व-प्रेत-मञ्‌चाधिशायिनी || १७४ ।।

ट्प्षणी
है 912) व्योमके शी - वह शिव की पत्नी है, जिसके बाल आकाश हैं

913) विमानस्था -- वह सबसे ऊपर है

911) व्रणी - वह एक भाग के रूप में इंद्र की पत्नी है

915) वामके श्वरी -- वह जो वाममार्ग का अनुसरण करने वाले


लोगों की देवी है

916) पञचज्ञप्रिया - वह पाँच बलिदानों को पसंद करती है

917) पञचप्रेतमञ्‌चाधिशायिनी - वह पाँच लाशों से बनी चारपाई


पर सोती है

पञ्‌चमी पञ्‌चभूतेशी पञ्‌च-संख्योपचारिणी ।


शाश्वती शाश्वतैश्वर्यां शर्मदा शम्भुमोहिनी || १७५।।

918) पञचमी - वह पंच ब्रह्मा की पाँचवीं साध्वी की पत्नी है

919) पज्‌चभूतेशी - वह पंच भुतो अर्थात पृथ्वी, आकाश, अग्नि,


वायु का प्रमुख है। ओर पानी

950) पञचसंख्योपचारिणी - वह जिसे गंध (चंदन की लकड़ी),


पुष्पा (फू ल), धोपा (धूप), धेपा (प्रकाश), नैवेद्य
भेट) के पांच तरीकों से पूजा जाना है
श्रीललितासहसनामस्तोत्र-शा

951) शाश्वती - वह जो स्थायी है

952) शाश्वतैश्वर्या - वह जो बारहमासी धन देता है न


`

953) शर्मदा - वह जो आनंद देता है

951) शम्भुमोहिनी - वह जो भगवान शिव को देखती है

धरा धरसुता धन्या धर्मिणी धर्मवर्धिनी |


लोकातीता गुणातीता सर्वातीता शमात्मिका || १७६ ||

955) धरा - वह (जो पृथ्वी की तरह प्राणी है)

956) धरसुता - वह जो पहाड़ की बेटी है

957) धन्या - वह जिसके पास सभी प्रकार का धन हो


958) धर्मिणी - वह जो धर्म को पसंद करती हे

859) धर्मवर्धिनी - वह जो धर्म को विकसित करता है

960) लोकातीता - वह जो दुनिया से परे है

961) गणातीता - वह जो गुणों से परे है

962) सर्वातीता - वह जो सब कु छ से परे है

963) शमात्मिका - वह जो शांति है


श्रीललितासहसनामस्तोत्र- शा
बन्धूक-कु सुमप्रख्या बाला लीलाविनोदिनी ।
(भ सुमङ् गली सुखकरी सुवेषाढ्या सुवासिनी || १७७ ||

961) बन्धूककु सुमप्रख्या - वह जिसके पास भंधूक फू लों की चमक है


965) बाला - वह एक युवा युवती है

966) लीलाविनोदिनी - वह जो खेलना पसंद करती है

967) सुमङ् गली - वह जो सभी अच्छी चीजें देता है

968) सुखकरी - वह जो खुशी देती है

969) सुवेषाढ्या - वह जो अच्छी तरह से बना है

970) सुवासिनी - वह जो सुगंधित है (विवाहित महिला)

सुवासिन्यर्चन-प्रीताइइशोभना शुद्धमानसा ।

बिन्दु-तर्पण-सन्तुष्टा पूर्वजा त्रिपुराम्बिका || १७८ | |

97) सुवासिन्यर्चनप्रीता - वह जिसे विवाहित महिला की पूजा


पसंद है

972) आशोभना - वह जिसके पास पूरी चमक है

973) शुद्धमानसा - वह जो एक साफ दिमाग है

971) बिन्दुतर्पणसन्तुष्टा - वह आनंद माया चक्र की बिंदी में


प्रसन्‍नता के साथ
श्रीललितासहस्रनामस्तोत्र-शा
975) पूर्वजा - वह जौ हर एक से पहले था
976) त्रिपुराम्बिका - वह तीन शहरों की देवी है |

स्विनः

दशमुद्रा-समाराघ्या त्रिपुराश्री-वशङ् ‌करी ।

ज्ञानमुद्रा ज्ञानगम्या ज्ञानज्ञेय- स्वरूपिणी || १७६।।

977) दशमुद्रासमाराध्या - वह जो दस मुद्राओं (हाथ की मुद्राएँ) से


पूजी जाती है

978) त्रिपुराश्रीवशङ् करी - वह देवी त्रिपुरा श्री को रखती है


979) ज्ञानमुद्रा - वह जो ज्ञान का प्रतीक दिखाती है

980) ज्ञानगम्या - वह जौ ज्ञान द्वारा प्राप्त किया जा सकता है

ज्ञानज्ञेयस्वरूपिणी [9.१

981) ज्ञानज्ञेयस्वरूपिणी - वह जो सोचा और सोचा गया है

योनिमुद्रा त्रिखण्डेशी त्रिगुणाम्बा त्रिकोणगा ।


अनघाइद्भुत-चारित्रा वाजिछतार्थ-प्रदायिनी || १८० |॥।

982) योनिमुद्रा - वह जो खुशी का प्रतीक दिखाता है

983) त्रिखण्डेशी - वह अग्नि, चंद्रमा और सूर्य के तीन क्षेत्रों का


स्वामी है

981) त्रिगुणा- वह तीन वर्ण हैं


श्रीललितासहस्ननामस्तो त्र-शा
कक्षा - 8

985) अम्बा - वह जो माँ है

986) त्रिकोणगा - वह जो एक त्रिकोण के सभी कोने में प्राप्त


किया है

987) अनघाट - वह जो पाप के पास नहीं है


988) अद्भुतचरित्रा -वह जो एक अद्भुत इतिहास है

989) वाजिछतार्थप्रदायिनी - वह जो चाहती है वह देती है

अभ्यासातिशय-ज्ञाता षडध्वातीत-रूपिणी ।
अव्याज-करुणा- मूतिरर्‌अज्ञान-ध्वान्त-दीपिका || १८१।।

990) अभ्यासातिशयज्ञानता - वह जो निरंतर अभ्यास से महसूस


किया जा सकता है

991) षडध्वातीतरूपिणी - वह जो नमाज के छह तरीकों का पालन


करता है

992) अव्याजकरुणामूतिर्‌- वह जो बिना कारण दया दिखाता हे |


वह जो शुद्ध दयालु है

993) अज्ञानध्वान्तदीपिका - वह दीपक है जो अज्ञानता को दूर


भगाता है
श्रीललितासहस्ननामस्तोत्र-शा

आबाल-गोप-विदिता सर्वानुल्लङ् घय-शासना ।


श्रीचक्रराज- निलया श्रीमत्‌- त्रिपुरसुन्दरी || १८२ ।।

991) आबालगोपविदिता - वह जो बच्चों और चरवाहों के सभी अषि


कार से पूजित है

995) सर्वानुल्लङ् घयशासन - वह जिसके आदेशों की कभी अवज्ञा


नहीं की जा सकती

996) श्रीचक्रराजनिल्या - वह श्रीचक्र में रहती है

997) श्रीमतुत्रिपुरसुन्दरी -- धन की सुंदर देवी जो त्रिपुरा के भगवान


की पत्नी हैँ

श्रीशिवा शिव-शक्त् ‌यै क्य- रूपिणी ललिताम्बिका ।


एवं श्रीललिता देव्या नाम्नां साहस्रकं जगुः ।।

998) श्रीशिवा - वह जो शाश्वत शांति है

999) शिवशक्तयैक्यरूपिणी - वह जो शिव ओर शक्ति का एकीकरण


है

1000) ललिताम्बिका - आसानी से स्वीकृ त माँ

| इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे उत्तरखण्डे श्रीहयग्रीवागस्त्यसंवादे


श्रीललिता सहस्रनाम स्तोत्र कथनं सम्पूर्णम्‌।।

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