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Father
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"बेटा तू बच्ो का नाशत बना इतने मै इनह तैयार कर दे ता हू फिर तू वतल का लंच लगा दियो मै इनह बस तक छोड आऊंगा!" नरे श
जी अपनी बह दिवय से बोले।
" नही ं नही ं पापा जी मै कर लूंगी आप बैठिए मै बस अभी आपकी चाय बनाती हू!" दिवय बोली।
" अरे बेटा बन जाएगी चाय मुझे कौन सा कही ं जाना है तू पहले इन सब कामों से फ् हो तब तक मै इन शैतानों को रे डी करता हू!"
नरे श जी हंसते हए बोले।
दिवय हैरान थी जो पापा जी मां के रहने पर एक गलस पानी खुद नही ं लेते थे आज उनके जाने के पंदह दिन बाद ही उसकी हर काम
मे मदद कर रहे है।
असल मे दिवय के परिवार मे दिवय के पति , सास - ससुर और दो बचच छः साल का काव और तीन साल की आवय थे। जबसे
दिवय शादी होकर आई उसकी सास ने उसे बेटी की तरह रखा घर के कामों मे सहयोग दिया यूं तो दिवय के ससुर नरे श जी भी
बहत पयर करते थे उसे पर उसने कभी अपने ससुर को खुद से कोई काम करते नही ं दे खा।अभी पंदह दिन पहले दिवय की सास का
अचानक हदय गति रकने से दे हांत हो गया था तब बचच की छु टटयां थी और दिवय के पति वतल ने अवकाश लिया था आज सभी
वापिस से जा रहे थे। क्ोकि वतल का ऑफिस दू र था तो उसे जलद निकलना पडता था। और नरे श जी रिटायर हो चुके थे तो घर मे
ही रहते थे।
" लाओ बेटा बचच का दू ध दो !" नरे श जी बच्ो को तैयार करके बोले।
बच्ो का दू ध और टिफिन दे दिवय वतल का खाना पैक करने लगी साथ साथ उसका नाशत भी तैयार कर रही थी और एक गैस पर
चाय चढ़ दी उसने।
" लो वतल तुमहरा नाशत पापाजी आपकी चाय... आप नाशत तो अभी दे र से करोगे!" दिवय बोली।
" दे ही दो बेटा तुमहरा भी काम निमटे वरना दु बारा रसोई चढ़नी पड़ गी!" नरे श जी बोले।
नरे श जी रोज दिवय की ऐसे ही मदद करने लगे दिवय को कभी कभी बुरा भी लगता और वो मना करती पर वो पयर से उसे कहते
कोई बात नही ं बेटा।
"सुनो आप पापाजी से बात करो ना कोई बात है जो उनह परे शान कर रही!" एक रात दिवय वतल से बोली।
" नही ं पर जो इं सान एक गलस पानी भी नही ं लेता था खुद से वो मेरे साथ इतने काम कराए कुछ तो गडबड है!" दिवय बोली।
"अरे तुमह कोई परे शानी हो तो तुम खुद पूछ लो ना !" वतल बात टालता हआ बोला।
वतल तो सो गया पर दिवय को नी ंद नही ं आ रही थी वो उठ कर बाहर आई तो दे खा पापा के कमरे की लाईट जल रही है।
" पापाजी आप सोए नही ं अब तक तबियत तो ठीक है आपकी!" दिवय कमरे का दरवाजा खटखटा कर बोली।
" अरे दिवय बेटा अंदर आ जाओ ... कय बात है तुम इस वक जाग रही हो आओ बैठो!" नरे श जी बोले।
" मुझे नी ंद सी नही ं आ रही थी तो सोचा थोड़ टहल लूं पर आप क्ो जगे है!" दिवय बोली।
" हां बेटा बोली संकोच क्ो कर रही हो!" नरे श जी बोले।
"पापाजी मुझसे कोई गलती हई है कय आप मुझसे नाराज है या मेरी कोई बात बुरी लगी आपको ?" दिवय बोली
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" नही ं तो बेटा पर क्ो पूछ रही तुम ऐसा!" नरे श जी हैरानी से बोले।
" पापा जी इतने दिन से दे ख रही हू आप मेरी हर काम मे मदद करते है जबकि मममजी के सामने आप एक गलस पानी भी नही ं
लेकर पीते थे!" दिवय सिर नीचा कर बोली।
" हाहाहा तो तुमह लगा मै तुमसे नाराज हू... दे खो बेटा जब तक तुमहरी सास थी वो तुमहरी मदद को थी अब वो नही ं है तो मुझे दोहरी
जिममदारी निभानी है मेरे लिए जैसे वतल वैसे तुम जैसे मै उसकी सुख सुविधाओं का धयन रखता हू तुमहरा रखना भी मेरा फर् है!"
नरे श जी पयर से बोले।
" हां बेटा अब मां और बाप दोनों की जिममदारी मुझे उठानी है तुमह सुबह इतने काम होते वतल भी मदद नही ं कर पाता है तो मेरा
फर् है कि मै अपनी बेटी की थोड़ मदद कर उसकी कुछ परे शानी तो हल कर सकूं, समझी बुदध मै नाराज नही ं हू तुमसे!" नरे श जी
पयर से दिवय का सिर पर हाथ फेरते बोले।
दिवय अपने ससुर के गले लग गई आज उसमे अपने ससुर मे अपने मृत पिता नजर आ रहे थे। सच मे पिता पिता ही होता फिर चाहे
ससुर के रप मे क्ो ना हो।
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