(सरोज) -अश्वस्थामा-आशुतोष गर्ग

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आशुतोष गग का ज म 1973 म द ली म आ। हमाचल दे श व व ालय से एम.ए.

( हद ) तथा द ली से नातको र ड लोमा (प का रता एवं अनुवाद) ा त करने के प ात्


इं दरा गाँधी मु व व ालय से एम.बी.ए (मानव संसाधन) क ड ी ा त क । कूल के
दन से ही क वताएँ और कहा नयाँ लखने का सल सला आरंभ हो गया था और अब तक
आपके ारा लखी और अनू दत लगभग 15 कताब का शत हो चुक ह।
आप अं ेजी और हद दोन भाषा पर समान प से अ धकार रखते ह तथा अनुवाद के
े म एक प र चत नाम ह। दशराजन्, ौपद क महाभारत, आनंद का सरल माग, ी
हनुमान लीला आ द हद म आपके ारा कये गए मुख अनुवाद ह, ज ह काफ़ सराहा
गया है। आशुतोष नय मत प से समाचार-प व प का म लखते ह। वतमान म, रेल
मं ालय म उप- नदे शक के पद पर कायरत ह।
पु तक क शंसा म
व. मै थलीशरण गु त ने उपे त नायक-ना यका को संदभ म लाने का यास अपने
सा ह य म लगातार जारी रखा। इसी तरह र मरथी कण को स दभ म लाने का ेय रा क व
दनकर को जाता है। सा ह य के क ध पर यह ज़ मेदारी है क वह व मृत नायक-
ना यका को पुन था पत करे। ऐसा इस लए भी मह वपूण है क इ तहास और यहाँ तक
क कवदं ती के पा कह न कह जीवन म का एक ह सा होते ह और इस लए सदा
ासं गक रहते ह। ‘अ थामा’ इस ेणी म एक आव यक और महनीय यास है।
अ थामा का च र रोचक पर तु कम ात है, ऐसे म ी आशुतोष गग का यह यास एक
शंसनीय क़दम है। उ ह इस पु तक के लए बधाई स हत शुभकामनाएँ।
—डॉ. कुमार व ास
क व एवं राजनेता
‘नर या कुंजर…’ मनु य स दय से इ ह श द म उलझा है। अ स य, मनु य के लए सदै व
ख का कारण और आ म-मंथन का वषय रहा है। स य क खोज और कई अ थामा
हमारे अवचेतन मन का ह सा ह। ‘अ थामा’ का पा इसी ं का तीक है।
जब आशुतोष क कताब मुझे पढ़ने के लए द गई तो मुझे सबसे अ छ बात यह लगी
क उ ह ने अपने पहले ही उप यास म ऐसे पा को चुना है, जो न अ छा है न बुरा! अ छे या
बुरे को अलग करके दे खना शायद असंभव है। या अ छा है और या बुरा, यह अपने आप
म ता कक है, इस लए इसका व ेषण ज़ री है। य द उप यासकार हर संग म अ छाई या
बुराई ढूँ ढेगा तो या वह सही अथ म च र के साथ इंसाफ़ कर पाएगा?
आशुतोष गग का अ थामा संग के बारे म लखना अपने आप म ट पणी है। आप
इस कताब को पढ़, य क अ सर हम बड़ी आसानी से कसी को सही या गलत कह दे ते ह
और इससे महाभारत के यु के ासं गक होने क वजह ख म हो जाती है।
मेरी तरफ़ से आशुतोष को ढे र शुभकामनाएँ! उ मीद है वे इसी तरह नए एवं क ठन
वषय पर लखते रहगे।
—सुतपा सकदार
ले खका एवं फ़ म नमाता
अ थामा
महाभारत का शा पत यो ा

आशुतोष गग

मंजुल प ल शग हाउस
मंजुल प ल शग हाउस
कॉरपोरेट एवं संपादक य कायालय
तीय तल, उषा ीत कॉ ले स, 42 मालवीय नगर, भोपाल—462003
व य एवं वपणन कायालय
7/32 , अंसारी रोड, द रयागंज, नई द ली-110002
वेबसाइट: www.manjulindia.com
वतरण के
अहमदाबाद, बगलु , भोपाल, कोलकाता, चे ई,
हैदराबाद, मु बई, नई द ली, पुणे
कॉपीराइट © 2017 आशुतोष गग
यह सं करण 2017 म पहली बार का शत
ISBN 978-81-8322-806-0
आशुतोष गग इस पु तक
के लेखक होने क नै तक ज़ मेदारी वहन करते ह
यह पु तक इस शत पर व य क जा रही है क काशक क ल खत पूवानुम त के बना इसे या इसके कसी भी ह से को
न तो पुनः का शत कया जा सकता है और न ही कसी भी अ य तरीक़े से, कसी भी प म इसका ावसा यक उपयोग
कया जा सकता है। य द कोई ऐसा करता है तो उसके व कानूनी कारवाई क जाएगी।
सम त अ भलाषा
के ाता
भगवान कृ ण के
ीचरण म
वषय-सूची
आभार
भू मका
1
2
3
4
5
6
7
8
9
10
11
12
13
14
15
16
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28
उपसंहार
आभार
य हकरतेमेरीकाफ़
पहली कृ त नह है य क मुझे अनुवाद तथा संपादन आ द से संबं धत काय
समय बीत चुका है और इस बीच मेरे नाम से अनेक पु तक का शत हो गई
ह। परंतु मौ लक उप यास के संदभ म, यह अव य मेरा थम यास है।
लेखक क या ा, सव के समान होती है य क लेखक को अपनी पु तक के काशन
से वही आनंद और संतोष ा त होता है, जो ी को संतान के ज म के बाद मलता है!
लेखक क इस आनंद द या ा म अनेक लोग उसके हमसफ़र होते ह, जो क़दम-क़दम पर
उसके लेखन को सँभालते और साधते ह। वे उसके दमाग़ म चल रही उधेड़-बुन को सुलझाते
ह, अपने सुझाव ारा कथा क पेचीद गय को र करते ह और बीच-बीच म उ प हताशा
और मायूसी के ण म लेखक को ेरणा दे ते ह। वे लोग, लेखक को उसके अंतमन क
गहराइय से भावना के लभ मो तय को चुनने और उ ह काग़ज़ पर उतारने म सहायता
करते ह। यही वे लोग ह, जो लेखक को दरअसल, लेखक बनाते ह!
मुझे भी इस उप यास क संक पना से लेकर इसके काशन और फर आपके हाथ म
इसके प ँचने तक क या ा म अनेक लोग ने े रत कया है।
सव थम, म अपने माता- पता को णाम करता ,ँ जनका आशीवाद मुझे सदै व ा त
आ है। मेरे पताजी डॉ. ल मी नारायण गग ने, जो वयं एक स लेखक व अनुवादक ह,
ह पौरा णक सा ह य से मेरा कुछ इस तरह प रचय करवाया क पौरा णक कथाएँ, मेरे ान
और चतन का ह सा बन ग । मेरी माताजी, ीमती आशा गग, सदा मेरे लए साहस और
संघष का काश- तंभ रही ह। उ ह ने मुझे सखाया है क संघषशील , कभी उदास
नह हो सकता! उनका यही गु -मं मुझे बना थके, काय करते रहने क असीम ऊजा दे ता
है। म अपनी प नी गुंजन का दय से ध यवाद करता ,ँ जो मेरे काय म मुझे सतत सहयोग
दे ती ह, मेरे लखे मसौद को बार-बार धैयपूवक सुनती ह और जनके सुझाव से मेरा लेखन
खर होता चलता है। म अपने यो य पु , अ और चाँद-सी पु ी, अ पूणा को भी हा दक
ध यवाद दे ता ँ य क वे ेम-भरी खल खलाहट और अपने अनंत नेह ारा, मेरे त
जीवन म आनंद और उ लास के छोटे , कतु अनमोल ण भरते ह।
म अपने उन सम त म को ध यवाद दे ना चाहता ँ, ज ह ने हमेशा मेरे लखे को
सराहा; म उ ह क शंसा और ो साहन से आज इस पड़ाव तक प ँच पाया ँ। म अपने
उन सभी म का भी आभारी ँ, जनके साथ मने इस पु तक क वषय-व तु पर अनेक
बार व तार से चचा क और उ ह ने इसम मह वपूण सुझाव दे कर, इसे प र कृत प दे ने म
ब मू य योगदान दया है।
म अपने काशक, मंजुल प ल शग हाउस, और वशेषकर, ी वकास रखेजा तथा
ी क पल सह का दय से आभारी ँ, ज ह ने इस कथा के पौरा णक एवं सामा जक
मह व को समझा तथा इसे पु तक प म, पाठक के सम तुत करके समाज के त
अपने दा य व का शंसनीय नवहन कया है।
म अंत म, ीह र व णु के अवतार, भगवान ीकृ ण को बारंबार णाम करता ,ँ जो
मेरे भीतर सहज- ा एवं अनंत ऊजा के ोत ह!
भू मका
पौ रामहाभारत।
णक सा ह य म दो ंथ सबसे अ धक लोक य माने जाते ह - रामायण और
जहाँ एक ओर रामायण भाइय के बीच अटू ट ेम को दशाती भ - धान
रचना है, वह महाभारत राजतं और कूटनी त पर आधा रत चचेरे भाइय के बीच ए
र रं जत यु क महागाथा है।
महाभारत ह का एकमा ऐसा ंथ है, जो धा मक, पौरा णक, ऐ तहा सक और
दाश नक सभी कोण से मह वपूण माना जाता है। व का सबसे लंबा महाका होने
के कारण, महाभारत को ह धम म ‘पंचम वेद’ भी कहा गया है। ह क एक अ य
प व पु तक ‘ ीम गव ता’ भी महाभारत का ही अंश है। संपूण महाभारत म एक लाख
से अ धक ोक ह। वेद ास ारा र चत महाभारत क एक अ य वशेषता उसक
वशालता है। इसका अनुमान उसके थम पव के एक ोक से लगाया जा सकता है,
जसका आशय यह है:
जो यहाँ (महाभारत म) है वह आपको संसार म
कह न कह अव य मल जाएगा,
कतु जो महाभारत म नह है, वह संसार म
आपको अ य कह नह मलेगा!
महाभारत म अ ारह क सं या का वशेष मह व है। कौरव और पांडव के बीच आ यु
अ ारह दन चला। दोन प क सेना का स म लत सं या बल अ ारह अ ौ हणी था,
जसम यारह अ ौ हणी कौरव क और सात अ ौ हणी पांडव क थी। संपूण महाभारत
ंथ भी अ ारह पव म वभ है और महाभारत के भी म पव के अ तगत व णत
ीम गव ता म भी अ ारह अ याय ह। कुल मलाकर, रामायण क तुलना म, महाभारत
के त लोग के मन म कौतूहल और च अ धक दे खने को मलती है। महाभारत का
अचं भत कर दे ने वाला रोचक कथानक तथा और उसके वल ण एवं गु पा पाठक को
अंत तक बाँधे रखते ह।
महाभारत यु को धम-यु भी कहा जाता है य क इसम कौरव तथा पांडव, मशः
अधम एवं धम के तीक ह और रामायण क भां त, महाभारत का अंत भी अ याय पर, याय
क वजय तथा धम क पुन थापना के साथ आ है। य धन के नेतृ व म यु रत सभी
कौरव अहंकार और हठ क वेद म वाहा हो गए और अंत म पांडव वजयी ए।
धम-अधम क ऐसी कथा म, पा का अ छे और बुरे खेम म बँट जाना वाभा वक
होता है। धम का साथ दे ने वाले को अ छा, और अधम के प धर को बुरा ही माना जाता है।
महाभारत म भी ऐसा ही आ। अधम य धन का साथ दे ने वाले सभी पा को राचारी
मान लया गया, फर चाहे वे कत - न ा के तीक गंगा-पु भी म ह , यु -कौशल म
पारंगत ोणाचाय अथवा अपने अ त व क तलाश करता महारथी कण! इ तहास सा ी है
क संसार ने इन महान यो ा एवं नी त- नपुण लोग को सदाचारी होने के बावजूद भी,
य धन के प म यु करने के अपराध के लए कभी मा नह कया।
कौरव प के इन लभ पा के बीच, एक पा ऐसा भी है जसके व क आभा
अ य पा क चकाच ध म मंद पड़ गई। एक ऐसा पा , जो तन से जीवन-भर कपट य धन
के साथ रहा, ले कन जसका मन नै तकता से नह डगा। उस पा ने क मय के बीच रहते
ए भी अपनी आ मा को छल और कपट क काली व षत छाया से सदै व र रखा। एक
ऐसा अनूठा व, जसने अपने नी त- य दय को य धन क मूढ़ हठध मता के
नरंतर आघात से बचाए रखा। महाभारत के यु के दौरान, उस पा से दो ऐसे अपराध हो
गए, जनके कारण भगवान ीकृ ण ने उसे शाप दया क उसके शरीर के घाव कभी नह
भरगे और वह अपने सड़े ए, जजर तन को लए चरकाल तक पृ वी पर भटकता रहेगा!
ऐसा माना जाता है क वह , ीकृ ण ारा दए गए दं ड क पीड़ा आज तक भोग रहा
है । महाभारत का वह अनूठा पा है - अ थामा! कहते ह, कृ ण ारा दए गए शाप के
कारण, अ थामा हज़ार वष के बाद, आज भी जी वत है और अपने पाप का प रणाम
भोग रहा है।
यह स य है क अ थामा ने यु के अंत म ऐसे कुकम कए, ज ह ने उसक जीवन-
भर क शु चता और सौ यता को छ - भ कर डाला। म यह भी मानता ँ क उसके ये
कम अ य अपराध क ेणी म आते ह। यह भी स य है क य धन जैसे कपट और
कुबु वाले का साथ दे ने के कारण अ थामा नदनीय है। परंतु फर यह भी स य है
क ये सारी बात अ -स य ह!
कोई भी , पूरी तरह न अ छा होता है और न बुरा। येक मनु य के भीतर
अ छाई और बुराई दोन का समावेश होता है और महाभारत के अ य पा क भां त,
अ थामा म भी उसी तरह क चा र क बलताएँ मौजूद थ , जैसा क अ य मनु य म
होती ह। य धन के त न ा के फल व प, प र थ तवश, अ थामा ारा कए गए
अनु चत कम क बात करते समय, हम यह भी मानना पड़ेगा क वह एक अद य यो ा था
और उसके भीतर स दयता एवं नी तवान होने के ल ण भी व मान थे। उसके व के
स ण को समझे और जाने बना ही, उसे य धन के समक , राचारी व समझा जाता
है। केवल इस लए क उसने हताशा व ोधा तरेक क थ त म ूण-ह या जैसा घनौना एवं
धम व अपराध कया, उसके व के अ य गुण तथा चा र क वशेषता क सरे
से उपे ा कर दे ना उस महान यो ा के साथ अ याय है। महाभारत के यु म ऐसे अनेक पा
ह जो अ थामा क भां त छलपूण र पात के दोषी ह, कतु सबसे अ धक क दायक और
द घका लक दं ड केवल अ थामा को मला।
यहाँ, भगवान ीकृ ण के दं ड वधान को चुनौती दे ना मेरा ल य नह है य क
ीकृ ण वयं ई र का अवतार ह और ई र के वधान म ु ट होने क क पना करना थ
है। इसी त य को यान म रखते ए, अ थामा भी उस शाप से उ प क को भोगने के
दौरान, आ म-मंथन तथा न प ता से अपने वहार का व ेषण करता रहता है। वह
अपने जीवन क अ छ -बुरी घटना को याद करता है तथा कृ ण ारा दए गए उस अ यंत
द घका लक शाप के कारण को खोजने का यास करता है। अंत म, वह कृ ण के उस
वकट शाप का औ च य समझने म सफल हो जाता है। उसे पता लगता है क कृ ण ने उसे
भयंकर दशा म जी वत छोड़कर, आधु नक मानव समाज को मह वपूण संदेश दया है!
मने बचपन से आज तक, जब भी महाभारत क कथा को पढ़ा-सुना, मेरे मन म
अ थामा के त सदा सहानुभू त व क णा के भाव ही जा त ए। इस लए मने सोचा था
क य द कभी महाभारत के कसी पा पर कुछ लखने क इ छा ई तो म अ थामा पर
अव य लखूँगा य क म चाहता ँ क लोग अ थामा के व को प रपाट से थोड़ा
हटकर समझने का यास कर। यही कारण है क मने इस उप यास म, महाभारत क गाथा
को अ थामा के कोण से तुत करके, उसके स दय प को उकेरने और ीकृ ण का
स दय पहले दया संदेश अपने सुधी व आधु नक पाठक तक प ँचाने का यास कया है।
इस काय से ीकृ ण ारा शा पत अ थामा के तन के घाव बेशक न भर सक, कतु उसक
न कपट आ मा पर लगे हजार वष पुराने आघात पर मरहम अव य लगेगा!
आजकल अनेक ट वी चैनल और सोशल मी डया आ द म अ थामा के ाचीन
मं दर और जंगल म दखाई दे ने क ख़बर भी दे खने-सुनने म आती ह। यहाँ तक क
अ थामा को खोजने के यास भी कए जाते रहे ह। अ थामा को अमर मानकर, उसक
खोज करने वाले लोग के लए भी इस उप यास म एक संदेश है, जसे समझने और उस पर
अमल कए जाने क आव यकता है।
एक बात और! लोग ायः चीज़ को प प से दे खना चाहते ह कतु हमेशा ऐसा
संभव नह होता। आपके और मेरे कोण के अलावा एक और कोण होता है, जो
तट थ रहता है; वह इधर या उधर नह झुकता। कसी के च र के वषय म ज द -से
नणय दे ना ब त सरल है ले कन हम इस वृ से बचना चा हए य क इस ज दबाजी से,
उस के साथ अ याय होने क संभावना बढ़ जाती है। म जानता ँ क अ थामा के
बारे म लोग क आम धारणा कैसी है। य द यह उप यास अ थामा के वषय म आपके
कसी पूवा ह को चुनौती दे ता है या आपको उसके वषय म दोबारा सोचने पर ववश करता
है, तो म इसे अपनी रचना मक सफलता समझूँगा।
चूं क यह मेरा पहला मौ लक उप यास है, ब त संभव है क मुझसे अ ानतावश, बीच-
बीच म अ भ अथवा त य-संबंधी ु टयाँ ई ह । म अपने सुधी पाठक से उन -
अ भूल के लए मा माँगता ँ तथा अनुरोध करता ँ क वे बे हचक, मुझे अपने
सुझाव और त याएँ भेज, ता क म अपनी आने वाली पु तक म उन सुझाव का यान
रख सकूँ।
तो आइए, म अब आपको अ थामा के पास लए चलता ँ, जो कसी अ ात नजन
वन म आपको अपने कोण से महाभारत क ऐ तहा सक कथा और अपने मन क था
सुनाने को उ सुक बैठा है!
—आशुतोष गग
नई द ली
ईमेल: ashutoshgarg343@gmail.com
1
क हते ह, मनु य के ज म के साथ ही उसक मृ यु का समय भी नधा रत हो जाता है,
ले कन मेरे साथ ऐसा कुछ नह आ। जहाँ तक मेरे ज म का है, वह तो अपने
पूव नयो जत समय पर ही आ, कतु मेरे ज म के हज़ार वष बाद भी नय त ने मेरी मृ यु के
समय और थान के वषय म अभी तक कोई नणय नह लया है। हालां क, मेरे जीवन क
दशा दे खकर इस बात क संभावना भी बनती है क वधाता ने नयमानुसार, मेरे ज म क
भां त, मेरी मृ यु का समय तो नधा रत कया था कतु, मेरी प र थ तय और मेरे कम
( ज ह शायद अब कम क जगह, कम कहना बेहतर होगा) के फल व प, नय त ने उसे
अ न त काल के लए थ गत कर दे ना उ चत समझा। मेरे समय म कुछ ऐसे समकालीन
ानी व त व-वे ा लोग भी थे जो, य द आज जी वत होते तो शायद मुझे मेरी मृ यु के
वषय म कुछ बता पाते। परंतु यह भी मेरा ही भा य है क वह सब एक-एक करके
शता दय पूव वग या नरक - कौन जाने कहाँ - गमन कर गए और म आज भी अपनी मृ यु
क ती ा म पृ वी पर अकेला, बेसहारा और बेहाल भटक रहा ँ।
मुझे अपनी जजर शारी रक अव था तथा हेय मनोदशा का वणन करने क इ छा तो
नह है, कतु आपको यह बताना इस लए अ नवाय है य क इस कथा के अंत म आपको
मेरे कम और उनके लए मुझे मले दं ड का न प व ेषण करना है। इसके बाद ही आप
यह समझ पाएँगे क मेरे बारे म आपने अब तक जो कुछ पढ़ा है, सुना है, और आप जो कुछ
मेरे वषय म सोचते ह, या वह सचमुच सही है!
मेरा तन ल लुहान हो गया है और म अनेक असा य आ ध- ा धय से त ँ। मेरे
शरीर पर लगे घाव से नरंतर मवाद का ाव होता रहता है, जसके कारण मेरे तन से
भयंकर गध आती है। इस कारण नान कए बना तो चैन मलने का ही नह , और
नान करने के बाद थ त और बगड़ जाती है य क पानी पड़ने से मेरे घाव गीले हो जाते
ह, फर उनसे हो रहा मवाद का ाव और उससे उ प गध भी बढ़ जाती है। मेरी दशा क
चरम सीमा यह है क मुझे वयं नह पता क अब मेरे तन म र क मा ा अ धक है अथवा
मवाद क ! मेरे तन के कसी भी अंग क बात कर तो यही थ त है। मेरे बाल मूँज से भी
यादा कड़े हो चुके ह। मेरे भीतर अब उ ह न तो सुलझाने क ह मत शेष है और न ही धैय।
मेरे नाख़ून इतने बड़े और काले हो चुके ह क उ ह यदा-कदा दे खकर म वयं भयभीत हो
जाता ँ। साधारण मनु य के दाँत कुछ ही वष म गरने लगते ह और फर उसे खाने-पीने म
परेशानी होती है, ले कन मेरी थ त भयावह है। आपको यह जानकर शायद आ य होगा क
मेरे अ धकतर दाँत अभी तक ह, कतु समय के साथ वे इतने काले, स त और टे ढ़े हो गए ह
क मुझे कसी व तु के खाने का एहसास नह होता और ायः मुझे यह भी पता नह लगता
क मेरे मुँह म फल ह या कंकड़! अपनी पैनी और वण-श पर कभी मुझे इतना गव
था क श द-भेद बाण चलाने म पांडु-पु अजुन के अ त र मेरा कोई सानी नह था।
तथा प, आज मेरी थ त ऐसी है क मेरे ने कु वंश क महारानी गांधारी के ने क तरह
अथहीन हो चुके ह य क मुझे आँख होते ए भी साफ़ दखाई नह दे ता। जहाँ तक बोलने
व सुनने का है, तो यहाँ भी मुझसे यादा अभागा कोई नह य क ीकृ ण के शापवश
कई शता दय से मुझे इन बीहड़ व नजन वन म बात करने वाला कोई नह मला है।
मेरा मन जब ब त खी हो जाता है, तो सामा य मनु य क भां त, मेरा भी रोने का मन
करता है। म चाहता ँ क मेरी आँख से आँसू नकल ता क मेरा मन हलका हो सके, ले कन
मेरा भा य अपनी चरमाव था म है और वह मुझे ऐसी अव था म ले आया है जहाँ अब मेरी
आँख से अ ु भी नह नकलते। उनके थान पर भी ने से र क बूँद ही टपकती ह।
पछले लगभग पाँच सौ वष से मने दन के काश म वचरण करना छोड़ दया है य क
सूय क गम से मेरी वचा पुराने चथड़े क तरह, जगह-जगह से फटने लगी है। एक नजन
बीहड़ क गहन गुहा अब मेरा नवास थान है। ब त वष पूव म जब कभी हलके काश म
बाहर जाया करता था तो मने यान दया क जंगल के व य एवं ह पशु-प ी तक मेरे
नकट आने से डरते थे। मुझे दे खकर उनक आँख म भय क छाया मँडराने लगती थी। धीरे-
धीरे मुझे इस बात म कोई संदेह नह रहा क मेरा प उन ख़तरनाक जीव-जंतु से भी
अ धक वीभ स हो चुका है। इसी कारण अब म केवल अमाव या के गहन अँधकार म ही
बाहर आता ँ जससे क म और वे एक- सरे को दे ख नह पाते तथा हमारे संसार म पर पर
कसी कार के टकराव क थ त उ प नह होती। ऐसे म, ब त-से नशाचर ा णय को
मेरी अनुप थ त का लाभ मलता है और उन दन उस े म उनका एकछ शासन होता
है। परंतु म जब कभी एक माह म एक बार, अपनी बारह हाथ ऊँची वशाल कतु जीण काया
को कसी तरह ढोते ए अपनी गुहा से बाहर नकलता ँ तो नशाचर जगत के वे सब ह
पशु भयभीत होकर अपनी-अपनी माँद म बक जाते ह और ास रोके मेरे भोजन से नवृ
होने क ती ा करते ह। इतने वष के एकाक तथा व य जीवन ने मुझे अनोखे पशु म
प रव तत कर दया है। मेरे लए जीवन क इस अप र मत अव ध के दौरान, फल और मांस
का अंतर मट गया है और वाद अपना मह व खो चुका है। म फल के रस और पशु के
र का अंतर भूल चुका ँ। जो आनंद मुझे कसी रसदार फल को चूसने म आता है, वही
तृ त मांस के लोथड़े को कुतरने म मल जाती है।
मेरे तन के इन घाव से कह अ धक पीड़ादायक, पाँच अबोध बालक क ह या और
नद ष उ रा के गभ थ बालक के वध से उ प ला न का दं श है। मेरे उसी कम के दं ड
व प ीकृ ण ने मुझे यह शाप दया क मेरे तन के घाव कभी नह भरगे और म इस सड़ी
काया को लए हज़ार वष तक इसी कार पृ वी पर भटकता र ँगा। उ ह ने यह भी शाप
दया क म जब तक जी वत र ँगा, मेरी कसी से बात नह हो सकेगी। ीकृ ण यह
शाप दे कर ही नह के, उ ह ने मेरे अपने छु रे से काटकर, मेरे म तक क वह द म ण भी
नकाल ली, जो ज म के समय मेरे म तक म लगी ई थी। वही म ण मेरी असाधारण बु ,
श और साम य का ोत थी। उस म ण का घाव मेरे माथे से आज भी रसता है।
कृ ण के उसी दय- वदारक शाप के फल व प म हज़ार वष से इस म यलोक म
भां त-भां त के असा य क के साथ अपने पाप का बोझ उठाकर घूमने को बा य ँ। कुल
मलाकर, मेरा जीवन पशु से बदतर हो गया है और म वयं जी वत होकर भी कसी सड़े-गले
शव से अ धक कुछ नह ँ! यूँ कहने को, म चरंजीवी ँ, अमर ँ कतु पूण स य यह है क
म शा पत ँ, कलं कत ँ और इस वशाल पृ वी पर कोई ऐसा मनु य नह जो मेरे ख को
कम कर सके। यह मेरे अपयश क पराका ा है क समूची पृ वी पर आपको मेरे नाम का
कोई सरा नह मलेगा।
जी हाँ, मेरा नाम अ थामा है और म अभी ज़दा ँ!
2
ा परहालांयुगकमउ हएअमरता,
महाभारत यु के समय से एक और
मेरी तरह शाप के प म नह , ब
है जसे अमर व ा त है।
क वरदान व प ा त ई
थी। मेरी तरह मेरे मामा कृप भी, ज ह संसार कृपाचाय के नाम से अ धक जानता है, अब
तक जी वत ह। महाभारत के यु के बाद और पांडव के हमालय म महा थान के कुछ
समय बाद तक कृप मामा और मेरी मुलाक़ात होती रही। परंतु ीकृ ण के शापवश मेरे
सामा जक संबंध भी कटने लगे थे और लोग ने मुझसे मलना-जुलना और बातचीत करना
लगभग बंद कर दया था। शायद यही कारण था क उस घटना के कुछ ही वष बाद मेरे मामा
ने भी मेरा साथ छोड़ दया। कृपाचाय शायद जानते ह क म कहाँ ँ, कतु मुझे उनके वषय
म अब कोई जानकारी नह है।
यह कथा म सुना रहा ँ इस लए वैसे तो मेरा और मेरे माता- पता का उ लेख पहले
होना चा हए, परंतु चरंजीवी का संदभ नकल आया तो मने अपने मामा कृपाचाय का
उ लेख कर दया। अब जब कृपाचाय क बात उठ ही गई है, तो म इस महागाथा का आरंभ
भी उ ह क कथा से करता ँ। वैसे भी, इस नजन बीहड़ म बैठकर मेरे पास इन बात को
मरण करने के अ त र कोई अ य वक प भी नह है। कृपाचाय वभाव से अ यंत सौ य
और सहनशील थे। उनके नाम क भां त उनके ज म क कथा भी ब त रोचक है।
अं गरस वंश म एक तेज वी बालक ने ज म लया जो बाद म मह ष गौतम के नाम से
व यात आ। गौतम मु न तथा उनक प नी अह या के घर एक वल ण बालक ने ज म
लया। ज म के समय ही, उसके तन पर शर (बाण) बँधे थे तथा वह ब ल काया से यु था।
अपने पु का यह अद्भुत प दे खकर मह ष गौतम क स ता क ठकाना न रहा और
ब त वचार करने के उपरांत उ ह ने अपने शरयु बालक का नाम शर ान रख दया।
बालक शर ान का मन आरंभ से ही वेदा यास म कम और धनुवद म अ धक लगता था। एक
मह ष क संतान क व ा ययन म अ च होना मह ष गौतम के लए नराशा के साथ-साथ
अचरज का वषय था। परंतु जस बालक का ज म ही बाण के साथ आ हो, उसके
धनु व ा के पूव सं कार कतने बल रहे ह गे, इसक सहज ही क पना क जा सकती है!
अपने पु क तभा को यान म रखते ए गौतम ऋ ष ने व ध के वधान म ह त ेप न
करने का नणय कया और अपने पु शर ान को धनुवद को अंगीकार करने क सहष
अनुम त दे द । इसका प रणाम वही आ, जो होना चा हए था।
समय के साथ, शर ान ने ब ल व ओज वी युवक का प धारण कर लया और वह
धीरे-धीरे धनु व ा म पारंगत हो गए। शर ान क काया यो ा क अव य थी कतु एक
मह ष का पु होने के नाते तप या का गुण भी शर ान को नैस गक प से ा त आ था।
उ ह ने अपने पता के मागदशन म कठोर तप ारा एक-एक करके सभी कार के अ -
श ा त कर लए और वह एक े तप वी के साथ-साथ असाधारण यो ा भी बन गए।
वल ण धनु व ा और तपोबल क म हमा से शी ही पृ वीलोक म, शर ान क क त
पताका फहराने लगी।
शर ान जब धनु व ा का अ यास करते तो दे वतागण भी उसे ऊपर से दे खा करते थे
और जब वह धनुष को कंधे से उतारकर, कुशासन पर तप या के लए बैठते तो भी दे वलोक
म उथल-पुथल आरंभ हो जाती थी। इ तहास सा ी है, पृ वी पर जब-जब कसी यो ा या
तप वी के यश का डंका बजता है, तो उसके नाद से य द कसी को अपने भु व पर सबसे
पहले आँच आने का भय उ प होता है, तो वह दे वराज इं ह! ऐसी वषम प र थ तय म
इं हमेशा से जो करते आए ह, उ ह ने इस बार भी उसी कृ य क पुनरावृ क । य ही इं
ने शर ान का यशोगान सुना, उ ह ने शर ान के तप म व न डालने तथा क त को कलं कत
करने के उ े य से जानपद नाम क दे वक या को शर ान के पास भेज दया। शर ान जस
समय अपने आ म म तप या म लीन थे, जानपद ने उनके आ म म वेश कया। दे वक या
क अलौ कक सुगंध से शर ान का आ म महक उठा। वहाँ वचरण कर रहे पशु-प ी भी
ककर जानपद को दे खने लगे। जानपद धीमे क़दम से शर ान के समीप प ँच गई। उसके
कामुक तन क मादक सुगंध य ही शर ान तक प ँची, उसने अपना जा ई भाव ऋ ष पर
छोड़ दया। द सुगंध से भा वत होकर शर ान ने धीरे-से आँख खोली तो जानपद को
सामने खड़ा दे खकर हत भ रह गए। शर ान के ने म सहसा उ प ई चमक से प था
क जानपद के प एवं लाव य ने उ ह स मो हत कर दया था।
“तुम कौन हो दे वी? तुम मेरे आ म म कस योजन से आई हो?”
“मेरा नाम जानपद है! म मण करती ई इधर से नकल रही थी क तभी आपके
ऊपर पड़ गई। आपका अ यंत भावशाली प दे खकर म वयं को रोक न सक और
भीतर चली आई। आपक चौड़ी छाती, पु कंधे तथा सुंदर ब ल काया से आपके शरीर म
दौड़ रहे य र का आभास मलता है, कतु आपके मुख के तेज एवं ने म तप या क
चमक से आपके तप वी होने का भी संकेत मल रहा है। कृपया आप वयं बताएँ क आप
ऋ ष ह अथवा य?” जानपद ने अपना असली योजन छपाते ए नाटक य ढं ग से
पूछा।
“दे वी, म मह ष गौतम का पु शर ान ँ। ज म से तो ऋ ष-पु ही ँ कतु मेरा मन
धनु व ा म अ धक रमता है और यही कारण है क यु -कौशल के सतत अ यास ने मेरी
काया को य जैसा प व सौ व दान कर दया है। आप अपने ववेक के आधार पर
जो चाह, समझ ल, कतु मेरी एक वनती है क आप यहाँ से त काल थान कर ता क म
अपनी तप या जारी रख सकूँ।”
“ऋ षवर, मुझे आपके ऋ ष अथवा यो ा होने से कोई सरोकार नह है। मुझे तो
आपके प ने मो हत कर लया है। मेरे लए अब यहाँ से लौट पाना संभव नह है। कृपया
मुझे अपनी दासी के प म वीकार कर।” ऐसा कहकर जानपद ने शर ान को झुककर
णाम कया और उनके अ यंत समीप आ गई। शर ान ने ब त यास कया ले कन वह
अपनी जानपद के अलौ कक स दय से हटा नह पाए। जस कार ाध के जाल म
फँसा पंछ छटपटाता है, उसी कार शर ान क इं याँ जानपद के स दय जाल म उलझकर
ाकुल होने लग । इं क चाल सफल हो गई थी। शर ान का युवा तन-मन पूरी तरह
जानपद के य स दय के वशीभूत हो गया था।
शर ान ने जस धनुष के ारा सम त संसार म अपने नाम का डंका बजाया था, उस
धनुष क यंचा चढ़ाना भी उनके लए संभव नह था। जानपद के प पर मो हत शर ान
के संयम का बाँध ढहने को ही था क अचानक उनका तप वी ववेक पुनः जा त हो गया
और उ ह ने अ यंत क ठनाई से कसी कार वयं को सँभाल लया। हालां क मन म उ प
ए वकार के चलते उनका ओज वी तन उ े जत हो चुका था। वयं को रोक लेने के
बावजूद शर ान का वीय ख लत हो गया और नीचे पड़े सरकंड पर गर गया। अपने मन
क चंचलता को दे खकर शर ान को अ य धक ला न ई और उ ह ने अपने धनुष, बाण और
मृगचम का सदा के लए याग कर दया तथा आ म छोड़कर चले गए। शर ान ने आ म तो
छोड़ दया, कतु उनके वीय क बलता से नीचे पड़ा सरकंडा दो भाग म वभ हो गया।
सरकंडे के उन दो भाग से दो शशु का ज म आ। एक बालक था और एक बा लका थी।
उधर दे वक या जानपद इं के ारा दए गए काय को पूण करने के प ात वहाँ से
अंतधान हो गई कतु शर ान के वीय से उ प बालक-बा लका का युगल वह धरती पर लेटा
रोता रहा। सामा य तौर पर, ऐसी थ त म वन के बीच थत आ म म असहाय व नवजात
शशु का जी वत बच पाना असंभव है, कतु य द ऐसा हो जाता तो यह कथा आगे कैसे
बढ़ती? इस लए, ऐसा कुछ नह आ!
संयोग से, उसी समय महाराज शांतनु आखेट पर नकले ए थे और वे घूमते ए
शर ान के आ म के नकट आ प ँच।े वहाँ उ ह नवजात शशु का क ण ं दन सुनाई
पड़ा तो वह तुरंत आ म के भीतर गए। बलखते ए ब च का ओजमयी प दे खकर शांतनु
को यह समझते दे र न लगी क उन दोन शशु म कसी तेज वी पु ष का अंश था। उ ह ने
दोन ब च पर कृपा करने का नणय कया और उ ह उठाकर अपने साथ महल म ले आए।
वहाँ शांतनु ने दोन ब च का पालन-पोषण अपनी संतान क भां त कया। उ चत समय पर
ब च के नामकरण का अवसर आया तो शांतनु ने इस काय के लए अपने गु एवं अ य
ा ण को बुलवाया।
य एवं पूजा-अचना समा त होने के बाद शांतनु ने अपने गु से कहा, “गु दे व, इन
दोन शशु के लए कोई उ चत नाम बताइए?”
गु जी ने अपनी आँख बंद क और कुछ पल सोचने के बाद बोले, “महाराज, चूं क इन
दोन ब च को आपक कृपा के कारण जीवनदान मला है, इस लए इनका नाम भी इसी गुण
के आधार पर रखना उ चत होगा। मेरा सुझाव है क आप बालक का नाम ‘कृप’ तथा
बा लका का नाम ‘कृपी’ रख।”
“जो आ ा, गु दे व! कृपया आप कृप और कृपी के भ व य के वषय म भी कुछ
बताएँ।”
“महाराज! भ व यवाणी करना ई र के वधान म व न डालने के समान होता है,
इस लए म इनके भ व य के वषय म कुछ नह क ँगा, कतु आपने पूछा है इस लए इतना
बता सकता ँ क यह बालक कृप अ यंत भा यशाली होगा और यह भारतवष के सबसे
श शाली वंश का कुलगु बनेगा।”
“अ त उ म!” शांतनु ने ह षत होकर कहा, “और गु दे व, कृपी? उसका भ व य कैसा
होगा?”
“कृपी का भा य व च होगा। इसका जीवन तप वनी के प म बीतेगा। यह अ -
श के सव े ाता क प नी बनेगी और एक अ यंत वीर पु को ज म दे गी कतु…”
“ कतु या गु दे व?” शांतनु के माथे पर चता क लक र उभर आ ।
“… मने कहा था महाराज क म अ धक कुछ नह क ँगा। अब चलता ँ। ई र इन
दोन ब च का क याण कर!” राजा शांतनु के माथे पर चता क लक र को छोड़कर,
गु दे व राजमहल से बाहर नकल गए।
इस बीच, आ म छोड़कर वन म तप या करने चले गए शर ान को अपने तपोबल से
अपनी दोन संतान तथा उनके ज म क कथा का बोध हो गया। वे भावुक हो गए और वयं
को उ ह दे खने से रोक न सके। शर ान त काल राजा शांतनु के पास जा प ँचे और वहाँ
उ ह ने शांतनु को अपने आ म म जानपद क पूरी कथा व तार से कह सुनाई। शर ान क
कथा सुनकर राजा शांतनु का कोमल दय ब त खी आ। उ ह ने शर ान से आ ह कया
क वे वयं बालक कृप को श ा-द ा, धनु व ा तथा सम त शा -वेद का ान दान
कर। अपने पु को श य के प म पाकर शर ान अ यंत स ए और उ ह ने शांतनु का
ताव सहष वीकार कर लया।
अपने परम ानी पता व गु के सा य म कुछ ही समय म कृप सभी वषय के
आचाय हो गए। राजा शांतनु के गु क भ व यवाणी के अनुसार, यही कृप आगे चलकर
कु वंश के कुलगु कृपाचाय के प म व यात ए।
यह मा संयोग है क कृपाचाय मेरे मामा ह और वह भी मेरी तरह चरंजीवी ह!
3
स चअकके लाँ तोबैठामेअपने
रा उ े य अपनी कथा सुनाना नह है। म तो यहाँ इस वीरान जंगल म
पाप का बोझ ढो रहा ँ। मेरे पास जो भी पुरानी मृ तयाँ ह उ ह
कभी-कभी याद करके अपना मन हलका कर लया करता ँ और यही कारण है क इस
कथा म घटना के कसी न त म म होने क संभावना कम है। इससे पहले क मुझे
कोई अ य बात मरण हो आए और मेरा कथानक भटक जाए, म आपको अपने पता के
ज म और फर अपने ज म के वषय म बताता ँ।
यह एक व च संयोग है क मेरे मामा कृपाचाय क भां त मेरे पता ोण का ज म भी
एक महान तप वी क उ े लत कामवासना के फल व प आ था। एक अ य भा यपूण
संयोग यह है क मेरे पता के ज म म भी दे वराज इं ने वही कु टल भू मका नभाई थी जो
उ ह ने मेरे मामा कृप के ज म के संदभ म नभाई थी।
कहते ह, उस समय गंगा ार नाम के एक थान पर मह ष भर ाज का आ म था।
उ ह ने अपने तशील वभाव से संपूण संसार म यश अ जत कया था। ऐसा माना जाता था
क उस काल म पृ वी पर मह ष भर ाज क गनती उन गने-चुने ऋ ष-मु नय म होती थी
ज ह ने अपने तप और संयम से अपनी सम त इ छा और कामना पर वजय ा त कर
ली थी। जैसा क मने पहले भी कहा है और आप भी यह बात जानते ह क पृ वीलोक पर
कसी भी मनु य के आ म-संयम एवं तप क वजय-गाथा का चार सुनकर दे वराज इं का
सहासन त काल डोलने लगता था और उनके पास ऋ ष-मु नय के आ या मक वजय-रथ
को रोकने का एकमा साधन था — अ सराएँ और उनका कामा ! इं के दरबार म एक से
बढ़कर एक अ सराएँ और दे वक याएँ थ , जनका उपयोग इं अपने मनोरंजन करने तथा
मनु य व दै य क तप या म व न डालने के लए कया करते थे। इं के दरबार क लगभग
सभी अ सराएँ कामुकता क तमाएँ होने के साथ-साथ पु ष-वशीकरण क कला म इतनी
द थ क उनके पात मा से ऋ ष-मु नय तथा बड़े-बड़े धुरंधर तप वय का य
संयम चूर हो जाता था और कुछ का तो शु पात भी हो जाया करता था!
शर ान क भां त भर ाज मु न क या त ने भी इं को आ ांत कया आ था।
भर ाज कोई साधारण ऋ ष नह थे और उनके संयम क श एवं तपोबल से भयभीत होने
के कारण अ धकतर अ सरा ने उनक साधना भंग करने क चुनौती को वन ता से
अ वीकार कर दया। तब इं ने ब त सोच- वचार के उपरांत अपने दरबार म उप थत
घृताची नाम क एक अ यंत कामुक और पवती अ सरा को बुलाया।
“ या आ ा है दे वराज?” घृताची ने इं को णाम करते ए पूछा।
“आह, घृताची!” इं ने मु ध होकर घृताची को दे खा और कहा, “तुम मेरे दरबार क
े अ सरा म से हो। तुम सम त कला म नपुण हो और तु हारे अलौ कक स दय के
मोहजाल से बच पाना कसी साधारण मनु य के लए असंभव है। म चाहता ँ क तुम
पृ वीलोक पर जाओ और अपने प से भर ाज मु न के तपोबल को ीण कर दो।”
“परंत,ु ” घृताची ने सकुचाते ए कहा, “भर ाज मु न साधारण मनु य नह ह।”
“जानता ँ,” इं ने कहा, “परंतु तुम भी तो साधारण अ सरा नह हो, घृताची! तु हारे
लए भर ाज मु न को अपने माग से डगाना सरल नह कतु असंभव भी नह है। मुझे
व ास है क तुम इस काय म अव य सफल हो जाओगी। इसके अ त र , हमारे पास तक
करने का समय नह है। इसे हमारी राजा ा समझो!” घृताची ने इं को णाम कया और
भर ाज का तप भंग करने के लए गंगा ार चल पड़ी।
न य-कम से नवृ होकर मह ष भर ाज गंगा नान के उपरांत अपने आ म क ओर
लौट रहे थे क तभी उनक घृताची पर पड़ी जो नद से नान करके बाहर नकल रही
थी। भीगे व म उसके कामुक तन और भरे-पूरे अंग को दे खकर मह ष भर ाज क गए।
उ ह ने अपने ने बंद करके वयं को नयं त करने का यास कया। अगले ही ण उनक
आँख फर से घृताची के प का रसपान करने लग । उ ह ने ब त चाहा कतु वे घृताची के
ऊपर से अपनी हटा नह पाए। सर से पैर तक भीगे ेत व म लपट घृताची के
उ म कर दे ने वाले यौवन ने भर ाज के तपोबल क चंड अ न पर अपनी कामुकता का
मंद व सुखद छड़काव करना आरंभ कर दया था। कुछ ही ण म घृताची को दे खते-दे खते
ही भर ाज ख लत हो गए!
खलन का एहसास होते ही भर ाज सँभल गए, कतु उनसे भूल हो चुक थी। उ ह ने
अपने ओजपूण वीय को धरती पर नह गरने दया और उसे अपने य पा म रख लया।
उनके य पा का नाम ोण था। नयत समय पर, उस पा म से एक तेज वी बालक ने ज म
लया। मह ष भर ाज ने अपने य पा के नाम पर ही अपने पु का नाम ोण रखा।
भर ाज को पता था क उनके वीय से उ प पु , उ ह क भां त वल ण एवं तभावान
होगा। मह ष भर ाज ने अपने पु को अपना श य बना लया और सभी वेद-वेदांग क
श ा द । इसी के साथ, ोण को अ -श क भी श ा द गई। एक समय आया जब
पृ वी पर अ -श क व ा के संदभ म ोण से अ धक े कोई नह था। भर ाज मु न
अपने यो य पु को आ नेया नाम के एक वशेष अ का ान भी दे ना चाहते थे। परंतु
उ ह ने वह ान, ोण के ज म से पूव ही, अ नवे य को दे दया था, इस लए ोण को
आ नेया क श ा दे ने का काय अ नवे य ने संपूण कया। आगे चलकर, ोण कौरव
और पांडव के गु ोणाचाय कहलाए। मह ष भर ाज के लीन हो जाने के बाद ोण ने
अपने पता के आ म म रहना आरंभ कर दया। कालांतर म, ोण ने शर ान क पु ी कृपी
से ववाह कर लया। कृपी बड़ी धमशीला एवं जत या ी थी। ोण और कृपी के संयोग से
मेरा ज म आ। इसी संबंध के चलते मेरी माता कृपी के भाई कृपाचाय मेरे मामा हो गए।
मेरे ज म क कथा तो इतनी ही है। जहाँ तक मेरे नाम का है, तो उस नाम का
रह य मुझे बाद म मेरे माता- पता ने बताया था। ज म के समय सभी ब चे रोते ह और उनका
दन अ यंत सामा य दन होता है, कतु जब मेरा ज म आ तो मने उस समय अपने मुख
से उ चैः वा नामक अ के समान वर उ च रत कया था। इसी अ जैसे वर के कारण
मेरे पता ोण ने मेरा नाम ‘अ थामा’ रख दया।
4
बा तअ उनयंत दन क है जब म कोई आठ-दस वष का था। मेरे पता ोण क आ थक थ त
दयनीय थी और हम लोग को ब त क ठनाई से दो समय का भोजन मल पाता
था। मेरे पता अ यंत वा भमानी पु ष थे। उ ह ने अ य धक बु मान एवं वल ण धनु व ा
के ाता होने के बावजूद कभी कसी से कसी कार के अनु ह क अपे ा नह क ।
भ ाटन से ही हमारा जीवन- नवाह होता था। यही कारण था क हमारी आ थक थ त म
ब त समय तक कोई सुधार नह आ।
एक दन म अपने कुछ साथी बालक के साथ खेलने के लए बाहर प ँचा तो दे खा क
उनके ह ठ पर कोई सफ़ेद पदाथ लगा आ था। मने उनसे पूछा तो पता लगा क वे सब
अपने-अपने घर से ध पीकर आए थे।
“ ध! भला यह या होता है?” मने कौतूहल वश अपने एक म से पूछा।
“अरे अ थामा, तुझे ध नह पता?” यह कहते ए सब लोग मुझ पर हँसने लगे। मने
यह बात अपनी माता को बताई तो उनक आँख भर आ । म उस समय उनके रोने का कारण
समझ नह सका।
मने माँ से कहा, “माँ, मुझे भी ध पीना है।”
माँ ने नम आँख से णभर के लए कुछ सोचा और फर रसोईघर म चली ग । कुछ ही
दे र म वे ध-जैसा ेत मीठा पतला घोल लेकर आ और मुझे पला दया। चूं क मने असली
ध कभी दे खा नह था और न पया था, इस लए वह सफ़ेद मीठा घोल पीकर मुझे लगा क
मने ध पी लया। म जब अपने सा थय के साथ खेलने गया बाहर गया तो वे मुझे दे खकर
फर हँसने लगे।
एक ने कहा, “अरे अ थ! यह आटे का घोल कहाँ से लगा लया मुँह पर?”
“यह आटे का घोल नह है; म ध पीकर आया ँ!” मने गव से कहा।
“अरे दे खो, अपना अ थ भी ध पीकर आया है!” सब साथी फर हँसने लगे।
म चढ़ गया और रोता आ घर लौट आया। कुछ दे र बाद पताजी घर आए। उ ह ने
जब यह घटना सुनी तो खी भाव से मेरी माँ को दे खने लगे।
माँ ने कहा, “द र ता का एहसास द र होने से भी अ धक क दायक होता है!”
“ब त आ! मुझे कुछ करना ही पड़ेगा!” पताजी क भँव तन ग थ , “इस तरह
द र ता का दं श सहना अब क ठन है।”
माता कृपी ने संयमपूवक पता से कहा, “य द छोट -छोट व तु के लए हम त दन
इसी तरह ल जत होना पड़ा तो कुछ दन बाद अ थामा का भरण-पोषण करना भी हमारे
लए क ठन हो जाएगा। आप कहते थे क गु कुल के समय का आपका म पद,
आजकल पंचाल दे श का राजा है। आप उसके पास जाकर सहायता य नह माँगते?”
मने पहले भी बताया क मेरे पता ब त वा भमानी थे। कसी के सामने साथ फैलाने
का वचार उ ह व म भी न आता, परंतु प नी व पु के उ रदा य व के भार और दन दन
बढ़ती द र ता ने आ ख़र ोण के आ म-स मान को व त कर दया।
अगले ही दन ोण पंचाल के लए रवाना हो गए। उ ह माग म पद के साथ गु कुल म
बताए दन याद आ रहे थे। बचपन क मीठ मृ तय से उनका मन व ां त महसूस कर रहा
था। उन सुखद मृ तय के सहारे पाँच घंटे क लंबी या ा को मानो पंख लग गए और जब
ोण वतमान म लौटे तो उ ह ने वयं को पद के राजमहल के सामने खड़ा पाया। उ ह ने मन
ही मन यह मान लया था क पद अपने बचपन के सखा को दे खते ही पहचान लेगा और
दौड़कर उससे लपट जाएगा। ोण को भरोसा हो गया क उनके बुरे दन समा त होने वाले
थे।
आ म व ास से भरे ोण ने गव के साथ सर उठाकर पद के दरबार म वेश कया।
जहाँ एक ओर अनेक वष क द र ता ने ोण क काया को जीण और उनके प को ीण
कर दया था, वह शासन और भोग- वलास ने पद के व म संप ता और वैभव क
चमक भर द थी। दोन ने एक- सरे को दे खा। ोण को दे खते ही पद के ने म नेह क
झल मलाहट उभर आई। ोण का अनुमान सही था क पद ने दे खते ही उ ह पहचान लया
था। फर वह ोण को गले लगाने के लए अपने सहासन से भी उठ गया। सबकुछ ोण क
क पना के अनुसार ही हो रहा था। सहसा पद को लगा, जैसे उसके सर पर रखा मुकुट
भारी हो गया था और वह उसके बोझ से उठ नह पा रहा था। राज-ग रमा ने पद को जकड़
लया और दरबा रय क उ सुक ने पद के पाँव म संकोच क बे ़डयाँ डाल द ।
“आप कौन ह और मुझसे या चाहते ह?” पद ने ल जा के पद के पीछे से छपकर
पूछा।
ोण अचं भत रह गए। परंतु वष के कटु अनुभव से उ ह यह समझते दे र न लगी क
उनके सामने गु कुल का सखा पद नह , ब क पंचाल नरेश पद खड़ा था। पद के छ
प से ोण के चेहरे पर आ य, अ व ास और नराशा के म त भाव उभर आए। यह
जानते ए क पद सबकुछ जानकर भी नासमझ बनने का ढ ग कर रहा था, ोण ने पुरानी
म ता और राज- त ा का स मान करते ए पद को एक और अवसर दे ने का फ़ैसला
कया।
“राजन! म आपका म ोण ।ँ आपको मरण होगा क हम दोन मेरे पता भर ाज
मु न के आ म म एक साथ पढ़ते थे। जब हमारी श ा-द ा समा त हो गई तो गु कुल से
थान करते समय आपने मुझसे कहा था, “ ोण! तुम मेरे सबसे अ छे म हो और म जब
राजा बन जाऊँगा तो उस समय तुम जो चाहोगे, तु ह मलेगा!”
पद ने अपने मृ त-पटल को टटोला। उसे ोण को दया यह वचन प दखाई दे रहा
था, परंतु अहंकार और राज त ा ने पद क बु पलट द ।
वह बोला, “अरे भ !ु लगता है तेरा मान सक संतुलन बगड़ गया है और तेरी बु ने
तेरा साथ छोड़ दया है। या तुझे इतना भी नह पता क म ता बराबर वाल म होती है?
अगर भूल से धनवान क म ता नधन से हो भी जाए तो वह अ धक नह चलती और शी
ही मट जाती है।”
मेरे पता को पद पर कतना ोध आया होगा, इसका अनुमान लगाना क ठन नह है!
य द वे चाहते तो अपने तपोबल से पद को शाप दे कर त काल दं डत कर सकते थे। परंतु
भर ाज ऋ ष का पु होने के नाते उ ह ात था क ोध को तुरंत कर दे ने से उसक
ती ता न केवल मंद पड़ जाती है अ पतु वह अनायास ही मादान क संभावना भी उ प
कर दे ता है। इसके वपरीत, य द ोध क चगारी को धैय एवं संयम क पत क नीचे छपा
लया जाए तो वह समय के साथ चंड अ न का प धारण कर लेती है और फर तशोध
ही उसके शमन का एकमा उपाय रह जाता है!
ोण ने कसी तरह संयम रखा और ोध को मन म ही दबा लया। वे नह चाहते थे क
पद को शाप ारा त काल दं डत करके उनका ोध शांत हो जाए। कहते ह, शूल को
नकालने के लए भी शूल क आव यकता होती है। ोण का आहत मन उस अपमान के
शूल को नकालने तथा उससे उ प पीड़ा का शमन करने हेतु कोई अ य उ चत तशोध
पी शूल खोजने लगा। उ ह ने पद पर एक तीखी डाली और मन म उसके सवनाश
का कठोर संक प लेकर चुपचाप राजमहल से बाहर नकल गए।
5
ो ण येतेकज़ क़दम
क़दम से चलते ए पंचाल रा य क सीमा से बाहर नकल आए थे। आगे बढ़ते
के साथ, उनके दय का ोभ बढ़ रहा था तथा तशोध क चंडता ती
होती जा रही थी। वह घूमते ए एक थान पर आ प ँच।े वहाँ ोण ने दे खा क कुछ बालक
एक कुएँ के अंदर झाँक रहे थे। वे उनके पास प ँचे और पूछा, “ब च , तुम कौन हो और इस
कुएँ म या दे ख रहे हो?”
“हम लोग कु वंश के राजकुमार ह, ऋ षवर! इस कुएँ म हमारी गद गर गई है। हम
सोच रहे ह क इसे बाहर कैसे नकाला जाए।” एक बालक ने कहा।
बालक का प रचय पाते ही ोण कुछ सोचने लगे। वे धीरे-से मु कराए। वे समझ गए थे
क उन बालक क सम या के नदान ारा ही उनक अपनी सम या का नवारण संभव था।
“बस, इतनी सी बात के लए परेशान हो?” ोण ने हँसते ए कहा। “जाओ और
ज द से आस-पास पड़े कुछ सरकंडे ले आओ। हम अभी तु हारी गद बाहर नकाल दे ते
ह।”
यह सुनकर बालक स हो गए। उ ह ने शी ही ोण के सामने ब त-से सरकंडे
लाकर रख दए और फर कौतूहल से ा ण क ओर दे खने लगे। ोण ने झटपट कुछ
सरकंडे उठाए और फर बाण क तरह नशाना साधकर, उ ह एक के बाद एक कुएँ म फकने
लगे। बालक ने दे खा क ोण ारा फके गए पहले सरकंडे ने गद को म य से ब ध दया था
तथा बाद म फके गए सरकंडे एक- सरे से जुड़ते जा रहे थे। कुछ ही पल म ोण ने अं तम
सरकंडा पकड़कर ऊपर ख चा तो उसके साथ गद स हत सभी सरकंडे कुएँ से बाहर नकल
आए। ोण का यह अद्भुत चम कार दे खकर बालक के आ य का ठकाना न रहा। वे
ख़ुशी-ख़ुशी अपनी गद लेकर राजमहल लौट आए। वहाँ जब उ ह ने अपने पतामह, भी म
को यह बात सुनाई तो भी म को यह समझते दे र न लगी क उनके राजकुमार को अ -श
क व ा दान करने हेतु उससे बेहतर गु नह मलेगा! भी म ने त काल राजक मय को
उस वल ण ा ण को राजमहल लेकर आने का आदे श दया। उधर ोण को भी भली-
भां त पता था क गद वाली बात सुनते ही उनक खोज आरंभ हो जाएगी और शी ही कोई
उ ह लेने आएगा। ऐसा ही आ!
राजक मय के साथ ोण राजमहल प ँच गए। भी म ने अ यंत आदर-स कार के साथ
मेरे पता का वागत कया और कहा, “ऋ षवर! म आपसे वनती करता ँ क आप यह
ह तनापुर म रहकर कु राजकुमार को धनुवद तथा अ -श क श ा द जए। आज से
कौरव का धन, रा य तथा वैभव आपका है। आपका आगमन हमारे लए अहोभा य है!”
यह कहकर भी म ने कु राजकुमार क श ा का दा य व ोण को स प दया।
इस बात से मुझे भी य लाभ आ। चूं क मेरे पता अब कु राजवंश के
उ रा धका रय के गु बन गए थे, तो यह वाभा वक था क मेरी श ा-द ा भी अपने
पता के सा य म राजसी ठाठ-बाट से होने लगी। इस बीच, मुझे पांडव और कौरव को
नकट से दे खने और उनके वभाव एवं च र को समझने का भी अवसर मला। म समय-
समय पर उनके वषय म भी बात क ँ गा।
भी म के साथ ई भट ने हमारे प रवार क द र ता को पलक झपकते र कर दया।
य प मेरे पता के लए उससे भी अ धक संतोष क बात यह थी क उ ह पद के साथ
तशोध का खेल खेलने के लए अब न सफ़ बसात मल गई थी, अ पतु अबोध कु
राजकुमार के प म मोहरे भी उपल ध हो गए थे। भा य से, म भी उन मोहर म स म लत
हो गया था। हालां क म इस बात को मानता ँ क पद ने मेरे पता ोण के साथ अपने
राजदरबार म जो कया वह सवथा अनु चत और अभ था, फर भी मेरा मानना है क पद
को सबक़ सखाने का जो तरीक़ा मेरे पता ने चुना, वह अ धक वकृत एवं अशोभनीय था।
अपनी हठ कामना क पू त हेतु मेरे पता, मुझे भी अपने वैमन य क आग म झ कने का
नणय ले चुके थे।
भी म ारा ोण क राजसी नयु से उनक मह वाकां ा पु होने लगी। अब उनके
पास अपने नजी यु -कौशल और ान के अ त र कु राजवंश का अवलंब भी उपल ध
था। उ ह ने पूरी न ा और लगन से कौरव तथा पांडव कुमार को धनु व ा एवं अ -श
का ान दे ना आरंभ कर दया। यूं तो सभी श य मेहनती थे, कतु पांडव राजकुमार अजुन म
कुछ व श था जसके कारण वह हम सबसे अलग एवं े था। न संदेह, अजुन म े
धनुधर बनने के सभी गुण थे। वह लगन, प र म और एका ता म हम सबसे आगे था। उसके
इ ह गुण के कारण वह शी ही मेरे पता ोण का सबसे य श य भी बन गया।
ोण को आचाय क पदवी मल चुक थी, कतु वे राजकुमार के गु होने के साथ-
साथ मेरे पता भी थे। गु होने के नाते सबको एक साथ पढ़ाना उनक ववशता था परंतु यह
वाभा वक था क उनका पतृ-मन सदा यह यास करता रहता क कैसे भी, वे मुझे पांडव
व कौरव से अ धक ान दान कर द। यहाँ तक क ऐसा करने के लए उ ह ने एक यु भी
खोज ली। अ यास के बीच म वह अपने श य को पानी लाने के लए भेज दे ते थे। पानी के
लए सबको एक-एक पा दया जाता था। ोण अपने अ य श य को पानी लाने के लए
सँकरे मुँह वाला पा दे ते थे, जब क मुझे जो पा मलता था, उसका मुँह चौड़ा था। इसके
फल व प मेरा पा अ य लोग के पा से पहले भर जाता था और म पानी लेकर ज द
लौट आता था। इतनी दे र म, मेरे पता अ य श य के प ँचने से पहले, मुझे अ - व ा का
कोई न कोई नया गु त रह य सखा दे ते थे जससे उनके अ य श य वं चत रह जाते थे।
अपने पता के इस वभाव म घुले छल से मेरा पहली बार तभी सामना आ जब
उ ह ने यह पा वाली यु अपनाई थी। उनके त मेरे मन म अ तशय स मान था, कतु
मुझे जब उनके च र क इस बलता का भान आ तो मुझे मन म ोभ तो आ। परंतु मुझे
भी उस समय जीवन का अनुभव कम था और मेरे भीतर भी कु राजकुमार से े बनने
क इ छा ा त थी। मेरी इसी मह वाकां ा ने ोण के इस छलपूण वहार को अनचाहे ढं ग
से मूक सहम त दान कर द ।
कुछ समय तो इस तरह चलता रहा, कतु एक दन अजुन को इस बात का पता लग
गया। उसे अपने गु के प पातपूण वहार पर ोध तो अव य आया होगा कतु ोण और
मेरे बीच गु - श य के अ त र पता-पु का भी संबंध था, इस लए हम दोन म से कसी
को कुछ भी कह पाना अजुन के लए क ठन था। सबकुछ जानते ए भी अजुन ने न तो इस
बात को अपने मन पर हावी नह होने दया और न ही उसने अपने गु के त मन मैला
कया। इसी लए मने पहले भी कहा और फर कहता ँ क अजुन हम सबसे अलग था।
उसने ोण क नदा अथवा शकायत करने के बजाय, उनक चाल क काट खोज ली और
वयं को ोण का स चा श य स कया। अजुन ने वशेष साधना ारा ोण से व णा
का योग सीख लया था, जसके ारा जल-वषा क जा सकती थी। अजुन अपना जल-पा
भरने के लए इस अ का योग करने लगा और वह भी अपना पा भरकर मेरे साथ ही
लौट आता था। पता नह य , ले कन अपने पता क कु टलता को असफल होते दे ख मुझे
अ छा लग रहा था। म च र क शु चता को धनु व ा से बढ़कर मानता ँ। यह बात वैसे तो
इतनी बड़ी नह थी ले कन जस कार न बू क सफ़ एक बूंद पड़ जाने से ध फट जाता है
और फर पीने यो य नह रहता, उसी तरह ोण के इस ु कपट के कारण मेरे न छल मन
म अपने पता के लए जो आदर था, उसक आधार शला को ठे स प ँची थी।
6

इ स घटना के तुरंत बाद, अजुन ने आचाय ोण से श द-भेद बाण चलाने क व ा


सीखना शु कर दया। अ य लोग जब सो जाते थे तो रा के गहन अंधकार म बाहर
नकलकर अजुन श दभेद बाण चलाने का अ यास कया करता था। धीरे-धीरे ोण के
मन म अजुन के त ेम गाढ़ होता गया। एक दन अजुन क धनु व ा से भा वत होकर
भावावेश म ोण ने उसे यह वचन दे डाला, “अजुन! म यास क ँ गा क संसार म तु हारे
समान कोई अ य धनुधर न हो!” यह वचन सुनने म बड़ा सुखद लगता है, कतु इस क ठन
वचन के अनुपालन के लए ोण ने जाने-अनजाने कई अपराध भी कए और भा य से, म
उन सब अपराध का सा ी रहा ।ँ
जैस-े जैसे हम लोग का श ण आगे बढ़ा, ोण के श ा-कौशल क क त च ँ ओर
फैलने लगी। र- र से अनेक राजकुमार उनके पास श ा-द ा के लए आते थे परंतु श य
बनाने से पहले ोण आगंतुक को धनुष दे कर उसक परी ा लेत,े तथा उसक पा ता जाँचने
के बाद ही अं तम नणय लेते थे। ोण क कसौट पर खरा उतरना सह के मुँह से उसका
भोजन चुराने के समान था। एक दन एक युवक ोण के पास आया।
“ णाम गु वर!” युवक ने आदर स हत कहा, “म आपसे धनु व ा सीखना चाहता ँ।
कृपया मुझे अपना श य बना ली जए।”
“तुम कौन हो व स?” ोण ने पूछा।
“म नषादप त हर यधनु का पु एकल ँ,” वह बोला। “मने आपका ब त यश
सुना है। य द आप मुझे अपना श य बना ल तो मेरा जीवन ध य हो जाएगा।”
“म अव य तु ह श ा दे ता व स,” ोण बोले, “ कतु मुझे खेद है, तु ह कोई सरा गु
तलाशना होगा।”
“ कतु मेरा दोष या है, गु वर?” एकल ने ाकुल वर म पूछा।
“एकल , तु हारा संबंध नषाद जा त से है और म केवल य कुमार को श ा
दे ता ँ। तु ह श य बनाना मेरे स ांत के व है।”
एकल के चेहरे पर उदासी छा गई। उसने एक और यास कया और कहा, “गु वर,
आप एक बार धनुष पर मेरे अ यास क जाँच कर ली जए और य द म आपक परी ा म
उ ीण न हो पाऊँ तो म वयं ही यहाँ से चला जाऊँगा।” एकल के आ म व ास को
दे खकर प था क वह धनुष चलाने म वीण था और ब त आशा लेकर ोण के पास
आया था। ोण ने उसके ताव को अनसुना कर दया और उसे हाथ के इशारे से चले जाने
को कहा।
“आप मुझे अपना श य भले ही न बनाएँ आचाय,” एकल ने हाथ जोड़कर कहा,
“ कतु म दय से आपको अपना गु मान चुका ँ! आ ा द जए, चलता ँ।” एकल ने
ोण को णाम कया और वहाँ से चला गया।
एकल ने जाते समय मुड़कर मेरी ओर दे खा। उसक म छपे भाव ने मुझे भीतर
तक ब ध दया। य राजकुमार के साथ चल रही मेरी श ा या ोण के स ांत के
अनुकूल थी? या एक बार फर पु —मोह ने गु —धम को ल जत नह कर दया था?
उसके जाने के बाद मने दे खा क मेरे पता ह ठ दबाकर मुसकरा रहे थे। मने उ ह इस
तरह मु कराते पहले कभी नह दे खा था। उनक मु कराहट के पीछे या छपा था? या
इसम भी कोई चाल थी जसका उ ाटन होना शेष था। अ यापन के कुशासन पर बैठकर
ोण अपने श य को बताया करते थे क ज म से नह अ पतु कम से बड़ा होता है।
परंतु उ ह ने वयं ही एकल क तभा और उसके सीखने क मता का आकलन उसके
ज म के आधार पर कर लया था।
एकल वाली घटना को ब त समय बीत गया। एक बार हम सभी गु ोण के साथ
आखेट पर नकले। उस समय एक कु ा भी हमारे साथ चल रहा था। घूमते-घूमते, वह कु ा
थोड़ा आगे नकल गया। थोड़ी दे र म, हमने उस कु े क ज़ोर—ज़ोर से भ कने क आवाज़
सुनी। कुछ पल बाद, भ कने क आवाज़ बंद हो गई और वह भागता आ वापस लौट आया।
उसक दशा दे खकर हम सभी दं ग रह गए। कु े का मुँह तीर से बधा आ था कतु उसके
शरीर पर कोई घाव नह था। दे खने से लगता था क कसी कुशल धनुधर ने कु े के शरीर को
कोई त प ँचाए बना, ब त द ता से उसका मुँह बाण से ब धकर बंद कर दया था। मूक
पशु पर ए इस अ याचार को दे खकर राजकुमार को ोध आ गया। उनका यर
उबाल खाने लगा और हम सब उसी दशा म दौड़े जहाँ से कु ा लौटा था।
हमने दे खा क मृगचम पहने और सर पर जटाएँ बाँधे एक युवक हमारी ओर पीठ
करके खड़ा था। सामने पेड़ पर उसका ल य बँधा आ था। उसक दा ओर एक ऋ ष क
म से बनी तमा था पत थी और तमा के गले म पु प-हार लटका आ था।
“कौन हो तुम?” अजुन ने र से च लाकर युवक से पूछा। उसक पीठ अब भी हमारी
ओर थी और वह धनुष पर चढ़ा बाण छोड़ने वाला था।
अजुन क आवाज़ सुनकर, युवक ने धनुष क डोर ढ ली छोड़ द और बाण हाथ म
लेकर हमारी ओर मुड़ा।
“अरे, यह तो एकल है!” मने उ े जत होकर कहा।
हमारे साथ आए ोणाचाय को दे खते ही एकल ने अपने धनुष-बाण धरती पर रख
दए और झुककर उ ह णाम कया।
“एकल , तुम!” ोण ने अचं भत होकर कहा। उनक म क तमा पर पड़ी
तो दे खा क वह उनक अपनी तमा थी।
“जी गु दे व!” एकल ने कहा, “मने आपसे कहा था क आप मुझे अपना श य भले
ही न बनाएँ कतु म दय से आपको अपना गु मान चुका ँ। आपने जब मुझे अपना श य
बनाने से मना कर दया तो मने यहाँ वन म आपक तमा बना ली और इसी से ेरणा लेकर
धनु व ा का अ यास करता रहा। आज म आपक कृपा एवं आशीवाद से धनु व ा म
पारंगत हो गया ँ और वयं को आपके कसी भी श य से बेहतर स कर सकता ँ!”
एकल को व ास था क ोण उसक भ व न ा से स हो जाएँग।े वह भाव- वभोर
से ोण को दे खने लगा।
ोण के अ त र , वहाँ मौजूद सभी पांडव एवं कौरव राजकुमार क आँख म
एकल क तभा के लए शंसा थी। सभी एकल क लगन और प र म से अ यंत
भा वत थे और उसक धनु व ा ने सबको रोमां चत कर दया था। तथा प, अजुन कुछ
उ न दखाई दे रहा था। वह समझ गया क एकल के रहते उसके लए संसार का
सव े धनुधर बन पाना सरल नह होगा। जो द ता और फुत एकल के पास थी, वही
अजुन के पास भी थी कतु अजुन यह सोचकर डर गया क जो गु क तमा से
ेरणा पाकर इतना कुछ सीख सकता है, वह सचमुच गु के सा य म रहने से या कुछ
नह कर सकता! यह वचार अजुन क भावी योजना को धराशायी करने के लए पया त
था।
अजुन ने कातर भाव से ोणाचाय को दे खा। अजुन के चेहरे के भाव दे खकर ोण ने
अजुन के मन क हताशा को भाँप लया। उ ह अपना वचन याद आ गया जो उ ह ने अजुन
को दया था: “अजुन! म यास क ँ गा क संसार म तु हारे समान कोई और धनुधर न हो!”
ोण क भँव तन ग । वह शांत खड़े अपनी तमा को एकटक दे खते रहे। म अपने पता क
सू म से सू म भाव—भं गमा से भली—भां त प र चत था। उ ह इस तरह शांत दे ख म समझ
गया क उनके इस भी मौन के पीछे एक भयानक तूफ़ान पनप रहा था। उ ह ने दो ण से
भी कम का समय लया और फर उनके भाव एकदम बदल गए। उनके उ न चेहरे पर
मु कान छा गई।
“एकल !” ोण ने एकल से कहा, “तुम सचमुच मेरे स चे श य हो। मुझे तुम पर
गव है।”
उनक यह बात सुनकर अजुन के अ त र सबके चेहरे पर स ता छा गई। ोण क
वनयशीलता ने सबके अंतर को छू लया था। उ ह लगा क थोड़ा दे र से ही सही, कतु
आचाय ोण ने एकल को पहले अपना श य वीकार न करने क भूल का प रमाजन कर
लया था। परंतु मुझे अपने पता के वभाव म यह प रवतन कुछ व च लगा। मेरा मन कह
रहा था क ोण ने अभी अपनी बात पूरी नह कही है।
“… परंतु एकल ,” ोण ने तमा क ओर दे खते ए कहा, “य द तुमने सचमुच मुझे
अपना गु मानकर यह व ा सीखी है तो नयमानुसार तु ह गु द णा भी दे नी चा हए!”
“अव य गु दे व!” एकल ने नतम तक होकर कहा, “जो कुछ मेरे पास है, वह
आपका ही दया आ है। आप न संकोच अपनी द णा माँ गए। म अपना वचन पूरा
क ँ गा।”
“ब त अ छा! मुझे गु -द णा म तु हारे दा हने हाथ का अँगठ
ू ा चा हए!” ोण ने
अ यंत ठं डे वर म एकल से कहा।
मेरा अनुमान ठ क था। मेरे पता ने अपना दाँव खेल दया था। सभी राजकुमार अपने
गु क इस कठोर माँग को सुनकर त ध रह गए।
ोणाचाय ने एक झटके म अजुन को दए वचन क र ा हेतु उसक राह म सहसा उग
आए एकल नामक संभा वत शूल का समूल नाश कर दया था। अजुन का तन एक पल
को तो काँप उठा, कतु फर उसका अ भलाषी मन फु लत हो गया। अजुन का मन दो
भाग म बँट गया। उसका एक मन अपने गु का जीवनभर के लए ऋणी हो गया था, कतु
सरा मन एकल के लए वत था। वह जानता था, य द एकल ने अपने गु क माँग
पूण कर द तो वह फर कभी बाण नह चला पाएगा।
एकल ने अपनी गदन झुका ली ता क कोई उसके अ ुपू रत ने न दे ख सके। वह
ोण के नकट आया और उनके सामने घुटने टे ककर बैठ गया और सर उठाकर अपने गु
को दे खा। फर उसने अपने बाएँ हाथ से कमर म लटका छु रा नकाला तथा अगले ही पल
उसके दा हने हाथ का अँगठ
ू ा कटकर धरती पर लुढ़क गया। धनुधर एकल के र क बूँद
ोण के पैर और ेत व पर छटक ग । एकल ने ोण को अं तम बार णाम कया
और फर कभी न लौटने के लए वहाँ से चला गया।
या मेरे पता पर लगे, नद ष एकल के र के वे दाग़ कभी धुल पाएँग?
े या संसार
ोणाचाय को उनके इस नृशंस कृ य के लए कभी मा कर पाएगा? कम से कम म तो नह
कर सकूँगा!
7
ो णाचाय रा म सोने से पहले कभी—कभी मुझसे बात कया करते थे।
“पु अ थ, म चाहता ँ क तुम शी ही अपनी श ा पूण कर लो।”
“जी, पताजी! म यास कर रहा ँ क आपके दए ान को शी ा तशी आ मसात
कर लूँ। या आप कसी वशेष बात से च तत ह?” मने पूछा।
“नह … नह … ऐसा कुछ नह है, पु । अ छा एक बात बताओ।”
“पू छए पताजी!”
“य द कोई म या नकट संबंधी तु हारा अपमान कर दे तो तुम या करोगे? उससे
बदला लोगे या फर उसे मा कर दोगे… या करोगे?” ोण ने मुझसे पूछा।
“ पताजी, आपने मुझे अ —श क श ा इस लए द है क म आव यकता पड़ने
पर उसका उपयोग कर सकूँ। य धम म अपमान का तशोध अपमान से लया जाना ही
ेय कर माना गया है, कतु मानव—धम अपमान के घाव को मा के मरहम से भरना
बेहतर मानता है। म यु —कौशल म नपुण अव य ँ कतु मेरा मन मुझे मानव—धम
नभाने को कहता है। इस लए, मुझे सरा वक प ही अ धक उपयु जान पड़ता है य क
मादान से न केवल तशोध का भाव सदा के लए शांत हो जाता है, अ पतु यह
आ मो थान का भी े माग है।”
“उ म!” ोण ने मेरे सर पर हाथ फेरते ए कहा, “मुझे तु हारा उ र पसंद आया।
अ छा पु , अब सो जाओ!”
म उस समय समझ नह सका क मेरे पता के मन म या चल रहा था।
दो दन बाद, ोणाचाय ने सब श य को अपने पास बुलाया।
“तुम लोग क श ा अब पूण हो चुक है। मेरे पास जो भी ान था, मने वह सब तु ह
दे दया है। अब तुम लोग राजमहल लौटने क तैयारी कर लो।”
“गु दे व!” ोण के य श य अजुन ने कहा, “आपको गु द णा दए बना हम
कैसे जा सकते ह? कृपया आ ा कर।”
ोण ने अजुन क बात सुनी तो अपनी स ता को दय म रोक न सके। उनका चेहरा
ऐसे खल उठा मानो उ ह इस ण क वष से ती ा थी।
“ य अजुन, मुझे तुमसे यही अपे ा थी,” ोण ने र तज क ओर दे खते ए
कहा। “तुमने पंचाल नरेश पद का नाम तो सुना ही होगा। म चाहता ँ क तुम पंचाल रा य
पर आ मण करो और पद को बंद बनाकर मेरे पास ले आओ!”
गु ारा माँगी गई द णा सुनकर सब राजकुमार त ध रह गए। पद ने अपने दरबार
जस समय मेरे पता का अपमान कया था, म उस समय बालक था और मुझे भी उस घटना
के वषय म नह पता था। इतने वष म कसी ने ोण के मुख से पद का नाम नह सुना था,
फर सहसा गु दे व के मन म पद को बंद बनाने का वचार य आया? ोण का पद से
या संबंध था? सबके मन म कौतूहल जाग गया परंतु ोणाचाय ने अपने श य को गु के
आदे श का औ च य पूछना नह सखाया था। अपने गु क आ ा शरोधाय करने के
अतर श य के पास कोई वक प नह था। पद वाली घटना से अंजान होने के
बावजूद, म दे ख रहा था क मेरे पता ोण ारा कु टल एवं भीषण गु -द णा माँगने का
नृशंस खेल अभी समा त नह आ था।
पंचाल नरेश पद के दरबार म ए अपमान के दं श का घाव पक चुका था। ोणाचाय ने
इतने वष तक मन म जल रही तशोध क आग को बुझने नह दया। वष पहले कुएँ म से
कु राजकुमार क गद नकालकर जो बसात ोण ने बछाई थी, आज उस पर उ ह ने
अपने मोहरे आगे बढ़ा दए थे। य धन और अजुन के नेतृ व म पांडव व कौरव ने मलकर
पद पर आ मण कर दया और दे खते-दे खते पद क सेना म हाहाकार मच गया। ब त ही
कम समय म, अजुन ने पद के धनुष बाण काट डाले और उसे पकड़कर बंद बना लया।
“तुम कौन हो? इस तरह अचानक मुझ पर आ मण करने और मुझे बंद बनाने का
या योजन है?” बे ़डय म जकड़े पद ने अजुन से पूछा।
“म पांडव राजकुमार अजुन ँ। मेरी आपसे कोई श ुता नह है। म केवल अपने गु
क आ ा का पालन कर रहा ँ। उ ह ने मुझे आपको बंद बनाकर लाने का आदे श दया है।”
“कौन ह तु हारे गु और वह मुझे बंद य बनाना चाहते ह?” पद ने कया।
“मेरे गु का नाम ोण है।” अजुन ने गव से कहा, “उनक आपके साथ या श ुता है,
मुझे न तो इसक जानकारी है और न ही यह जानने म मेरी कोई च है। उनका श य होने
के नाते मुझे केवल उनक आ ा का पालन करना है। मेरी आपसे वनती है क आप कृपया
बना वरोध कए मेरे साथ च लए।”
ोण का नाम सुनते ही पद के पैर के नीचे से धरती सरक गई। अनेक वष पूव, अपने
दरबार म ोण के साथ कया वहार उसे मरण हो आया। काल ने अपना च पूरा कर
लया था और अब बाज़ी ोण के हाथ म थी। पद को व ास था क ोण उसे केवल
अपमा नत करना चाहता था य क य द पद क ह या करनी होती तो अजुन ने यह काय
ब त पहले कर दया होता।
पद कुछ पल अजुन को दे खता रहा। वह अजुन के साहस एवं यु —कौशल से
अ य धक भा वत था। “काश, अजुन के समान, मेरा भी एक पु होता!” पद के मन म
वचार उठा।
कुछ ही दे र म, ोण के आ ाकारी श य ने पद को बंद बनाकर ोण के सम
तुत कर दया।
य बदल चुका था। अब ोण सर उठाकर खड़े थे और पद क पलक ल जा से
इतनी भारी हो ग थ क वह उठाकर ोण को दे खने का साहस नह जुटा पा रहा था।
“याद है पद, कुछ वष पूव तुमने मुझे भ ु कहकर संबो धत कया था? अब बताओ,
भ ु कौन है?” ोण ने कटा कया।
पद का सर अब भी झुका आ था और उसक ोण के पैर पर टक ई थी।
वह सोच रहा था क शायद ज द ही उसे उन पैर पर गरकर ोण से मा क भीख माँगनी
पड़ेगी।
“यु म मेरी वजय ई है,” ोण ने बोलना जारी रखा, “तु हारा रा य, तु हारी संप ,
तु हारा वैभव और यहाँ तक क तु हारा जीवन भी अब मेरे अधीन है। म चा ँ तो शेष जीवन
तु ह अपना दास बनाकर अपमा नत कर सकता ँ, कतु म तु हारी तरह अहं के वश होकर,
अपने ा ण व को कलं कत नह करना चाहता। मुझे पता है क अपमान ारा अपमान का
तकार ब त सरल है, कतु मनु य का धम यह है क अपमान के घाव को मा के मरहम से
भरने का य न करे य क मा से न केवल तशोध क अ न शांत हो जाती है, अ पतु
यही आ मो थान का एकमा और े माग है।”
अपने पता का उ र सुनकर म ठठक गया। दो दन पूव हमारे बीच जो वातालाप आ
था, उसक जड़ मुझे अब दखाई पड़ रही थ । मेरे पता मुझे दे खकर मु करा रहे थे।
“तु ह याद होगा पद,” ोण क बात अभी समा त नह ई थी, “तुमने वयं कहा था
क म ता बराबर वाल म होती है। आज तु हारे पास कुछ नह है य क तु हारा रा य अब
मेरा है। परंतु म तुमसे वष पुरानी म ता तोड़ना नह चाहता। इस लए म न केवल तु ह मा
कर रहा ँ, अ पतु तु हारी ही बात को मह व दे ते ए पंचाल रा य का, जो अब पूरी तरह मेरे
अधीन है, आधा भाग तु ह लौटाता ँ! आज से तुम गंगा के द णी भाग म रा य करोगे और
गंगा के उ री भाग पर मेरे आ धप य होगा। इस बराबरी के चलते अब हम फर से म हो
गए ह।”
यह सुनते ही अजुन ने आगे बढ़कर पद क बे ़डयाँ खोल द और ोण ने पद को
गले लगा लया।
अपने पता के वभाव म इतनी वषमताएँ दे खकर म दं ग था। कोई ोध, मा
और छल म एक साथ इतना पारंगत कैसे हो सकता है? इस घटना से ोण के अपमान का
घाव तो भर गया ले कन ोण के हाथ ई पराजय ने राजा पद के मन म अमष का नया
बीज बो दया था।
8
कौ रव“महाराज,
और पांडव क
म चाहता
श ा संप हो चुक थी। ोणाचाय ने राजा धृतरा से कहा,
ँ क इतने वष मेरे पास रहकर इन राजकुमार ने जो अ - व ा
मुझसे सीखी है, उसका कौशल सबके सामने द शत कया जाए।” सभी को ोण का
सुझाव अ छा लगा।
राजा ा से नगर म उ चत थान दे खकर रंगभू म का नमाण कया गया। नयत दवस
पर समूचा ह तनापुर रंगभू म म राजकुमार का रण-कौशल दे खने के लए एक त हो गया।
राजा धृतरा , पतामह भी म, मेरे पता ोणाचाय, मामा कृपाचाय तथा अ य सब लोग ने
अपने-अपने आसन हण कर लए। राज-प रवार क म हला और दा सय के लए बैठने
क अलग व था थी। कौरव और पांडव राजकुमार ने वेश कया तो लोग उ सा हत
नज़र से उ ह दे खने लगे।
कुछ ही समय म, कौशल- दशन आरंभ हो गया। अपने राजकुमार क द ता दे खकर
धृतरा और भी म आ द भाव- वभोर हो उठे । उनके कौशल को दे खकर न केवल राज-
प रवार को अ पतु सम त नगरवा सय को यह व ास हो गया क ऐसे े एवं वीर
यो ा के हाथ म ह तनापुर क सीमाएँ पूणतः सुर त थ । हालां क मने भी अ - व ा
हण क थी कतु नयमानुसार रंगभू म म कौशल दशन का वशेषा धकार केवल
राजकुमार का था, इस लए ा ण-पु होने के नाते मुझे यह अवसर नह मल सका। अजुन
के अ त र , सभी ने अपना-अपना कौशल दखा दया था। अंत म, मेरे पता ने गव से
अजुन क ओर संकेत करते ए घोषणा क । “अब म अपने सव य श य अजुन को यु -
कौशल के दशन हेतु रंगभू म म आमं त करता ँ।”
मेरे वचार से राजा एवं जा के सम खुले म य प से राजकुमार के बीच भेद-
भाव करना और कसी एक श य को अ य से बेहतर बताना एक गु के लए सवथा
अनु चत था। मुझे नह पता क ऐसी बात, मेरे पता के मुख से अनजाने म नकल जाती थ
अथवा वे इस तरह के काय कसी सोची-समझी रणनी त के अंतगत कया करते थे। जो भी
हो, परंतु मुझे उनका यह आचरण ठ क नह लगा। मने बाद म महसूस कया क कौरव- ये
य धन के मन भी यही बात उठ रही थी य क ोण ारा अजुन क शंसा सुनते ही
य धन के चेहरे का रंग बदल गया और उसने गदन को ज़ोर से झटककर पास बैठे शासन
के कान म कुछ कहा।
अजुन ने रंगभू म म उतरते ही अपना रंग जमा दया। उसने सबसे पहले अपनी
धनु व ा का शानदार दशन कया तथा अपने अचूक नशाने से लोग का मन मोह लया।
उसके बाद, अजुन ने आ नेया का योग करके अ न उ प क और जब लोग घबराकर
च लाने लगे तो व णा चलाकर जल-वषा कर द । वषा से भीगे लोग अभी ठ क से बैठ
भी नह पाए थे क अजुन ने वायवा का योग कया जससे रंगभू म म भीषण आँधी
चलने लगी। वह धीरे-धीरे इतनी तेज़ हो गई क हाथ को हाथ नह सूझ रहा था। अजुन ने
दे खा क आँधी से घबराकर लोग रंगभू म से भागने लगे तो उसने पज या चलाकर बादल
पैदा कर दए। आकाश म बादल के छा जाने से आँधी त काल थम गई। इसके बाद, अजुन
ने ऐसे अनेक व च अ के योग से वहाँ बैठे लोग को अचं भत कर दया। रंगभू म लोग
क ता लय क गड़गड़ाहट से गूँज रही थी। दशन से पूव ोण को अजुन क शंसा करनी
चा हए थी अथवा नह , इस बात पर ववाद हो सकता था, कतु अजुन ारा अपनी धनु व ा
के दशन के बाद इस बात म कसी तरह के ववाद क कोई संभावना नह थी क न संदेह,
अजुन एक वल ण धनुधर था और हम सबम े भी! इसी कारण से वह मेरे पता का
सबसे य श य भी था। अंत समय तक, अजुन के त उनका नेह कम नह आ।
“शाबाश अजुन!” ोण ने हषपूवक कहा। “मुझे तुम पर गव है। न संदेह, इस संसार
म तुमसे े धनुधर कोई नह है।” यह सुनते ही कु राजकुमार के चेहर पर अवसाद के
भाव उभर आए। य धन ने फर से शासन के कान म कुछ कहा। मुझे पता है क उसने
शासन से या कहा होगा! मेरी तरह, सबको आचाय ोण के मुख से वह बात सुनकर
कसी क याद आ गई जो न संदेह अजुन से अ धक नह , तो कम से कम उसके समान
तभावान अव य था। काश, उस दन रंगभू म म एकल होता! मेरे पता ने गु -द णा
के नाम पर उसे सदा के लए अ म बेशक कर दया, कतु वे हम लोग के मन से एकल
क छ व को धू मल नह कर पाए! एकल को याद करके मेरे मन म आज भी उसके लए
क णा एवं अपने पता के लए भावना के भाव जा त हो जाते ह। एकल अपने दा हने
हाथ के अँगठ
ू े के बना, धनुधर बनना तो र, पता नह नत- त दन के काय भी ठ क से कर
पाता होगा अथवा नह । जो भी हो, मेरा मन आज भी एकल को ही अजुन से े मानता
है!
दशक अब भी अजुन के लए ता लयाँ बजा रहे थे। तभी ता लय क गूँज को चीरती
ई एक आवाज़ आई।
“ कए!” उस गरजदार आवाज़ को सुनकर लोग शांत हो गए और पूव दशा क ओर
दे खने लगे जहाँ से वह आवाज़ आई थी। म उस समय अपने पता के समीप खड़ा था। हमने
दे खा क लंबी-चौड़ी एवं ब ल काया वाला एक तेज वी युवक हाथ म धनुष और बाण लए
रंगभू म के भीतर चला आ रहा था। उसके तन पर बँधा कवच और कान के कुंडल वण क
भां त चमक रहे थे। उसक चलने का अंदाज़ राजसी था जससे पता लगता था क वह कोई
साधारण युवक नह था। हालां क उसके तन के व दे खने से लग रहा था क वह कसी
उ च कुल का नह है। उसके असाधारण व तथा सामा य व से एक व च कार
का वरोधाभास उ प हो रहा था। इसी बीच, उसने रंगभू म म खड़े अजुन के नकट
प ँचकर, ऊपर दे खा और राजा धृतरा को णाम कया।
“तुम कौन हो युवक? इस तरह रंगभू म के बीच म य आए हो?” ोण ने पूछा।
“आचाय, मेरा नाम कण है। इस तरह तयो गता के बीच म आने के लए मा चाहता
ँ। य द आपने अजुन को संसार का सव े धनुधर न कहा होता, तो म यह धृ ता कभी नह
करता। म रंगभू म म अजुन को चुनौती दे ता ँ। य द वह मुझे धनु व ा म परा त कर दे गा तो
म ह तनापुर छोड़कर सदा के लए चला जाऊँगा।”
कण के वर म आ म- व ास के अ त र एक यो ा का साहस भी झलक रहा था।
उसक बात सुनकर राज-प रवार के सभी लोग आ यच कत हो गए। कण क बात सुनकर
य धन, जो सदा से पांडव को नीचा दखाने क ताक म रहता था, अचानक मु कराने लगा
मानो उसने कोई हारी ई बाजी जीत ली हो। कण का पौ ष और उसक नभ कता दे खकर
य धन का मन कसी अ ात अ भलाषा से ह षत हो गया। वह इस बात से स था
ह तनापुर म ही क पांडव को ट कर दे ने वाला भी कोई मौजूद था।
कण क बात सुनकर अजुन भी उसे अचरज से दे खने लगा। मने ोणाचाय क ओर
दे खा तो वे ब त यान से कण का वण कवच दे ख रहे थे। उनके मुख पर चता का वही भाव
उभर आया था जो एकल को दे खकर उभरा था। म समझ गया क उ ह कण म एकल
क छ व दखाई दे रही थी। ोण ने एकल को तो नममता से अजुन के माग से हटा दया
था, कतु वे कण से न तो गु द णा माँगने के अ धकारी थे और न ही उ ह कण ारा अजुन
को द गई खुली चुनौती क कोई काट सूझ रही थी। उनक अनुभवी ने त काल भाँप
लया क उनके सबसे य श य अजुन का माग अब भी पूरी तरह न कंटक नह आ था।
मेरे पता ने अचानक घूमकर नी त नपुण कृप को दे खा। उ ह ने कृपाचाय को आँख से या
संकेत दया, म उसे समझ नह सका, कतु मेरे मामा कृपाचाय ने ोण क मंशा जान ली थी।
अगले ही पल ोण पीछे हट गए और उनका थान कृपाचाय ने ले लया।
“ य कण, हम यह दे खकर ब त स ता हो रही है क हमारे रा य म अजुन को
चुनौती दे ने वाला भी कोई है। परंतु अपना कौशल दखाने से पूव तु ह अपने कुल का प रचय
दे ना होगा। रंगभू म म तु हारा सामना कु वंश के राजकुमार से होने जा रहा है। तु ह शायद
पता न हो, कतु राजकुमार कसी अ ात या न न कुल के के साथ मुक़ाबला नह
करते। इस लए आगे आओ और इस रंगभू म म एक त लोग को अपने कुल का प रचय
दो।”
म अपने पता क इस नई चाल से त ध रह गया। उ ह ने कण के व को दे खकर
यह भाँप लया था क वह कसी न न कुल का होगा। मेरे लए यह आज भी रह य है क मेरे
पता ने अजुन के लए इतने अपराध य कए!
कृपाचाय क बात सुनकर अचानक कण का मुख कां तहीन हो गया। उसका ीहीन
चेहरा दे खकर य धन तुरंत समझ गया क न त ही कुल के संदभ म कण क थ त
शोचनीय थी, और इसी लए कण न सा हत दखाई दे रहा था। कण क हताशा, य धन
क भावी मह वाकां ा का गला घ ट रही थी। य धन के लए इस घुटन का शी नदान
करना अ नवाय हो गया था।
इससे पहले क कण कुछ कह पाता, य धन ने कृपाचाय को संबो धत करते ए कहा,
“आचाय, य द अजुन से यु करने के लए कण का राजवंशी होना अ नवाय है, तो म कण
को अपना अंग रा य दान करता ँ और इसे वहाँ का राजा नयु करता ँ। आज से, कण
मेरे म ह तथा ये अंगराज के नाम से जाने जाएँग!े ”
ोणाचाय के इशारे पर आचाय कृप ने कण के जस वंश-संबंधी घाव को कुरेदकर
अपमान का ाव नकालने का यास कया था, य धन ने उस घाव को अपनी उदारता से न
केवल ढँ क दया अ पतु अपने मधुर वचन से उस पर मै ी का मरहम भी लगा दया। कण ने
य धन क ओर दे खा। मै ी क भाषा, चाहे य हो अथवा सांके तक, अ यंत सश होती
है तथा उसम से सहज ही ेम एवं व ास का ज म हो जाता है। कण ने य धन क भाषा
को सहजता से हण कर लया। दोन एक- सरे को दे खकर मु कराए। कौरव प क ओर
से जयघोष होने लगा, “महावीर कण क जय! अंगराज कण क जय!”
इस बीच, मने दे खा क महाराज धृतरा का मुख सारथी अ धरथ धीरे-धीरे चलता
आ रंगभू म म आ गया। म अभी यह सोच ही रहा था क अ धरथ का रंगभू म म या काम,
क तभी अ धरथ कण के समीप आकर खड़ा हो गया। उसे दे खते ही कण ने अपना धनुष-
बाण धरती पर रख दया और झुककर अ धरथ के चरण छू लए। सब लोग यह य दे खकर
अचरज म पड़ गए। “महाराज क जय हो!” अ धरथ ने कहा, “महाराज, कण मेरा पु है!
यह अ यंत तभाशाली है और मुझे इस पर गव है।”
यह सुनते ही पांडव खेमे से भीम क गजना सुनाई द , “सूतपु ! सूतपु कण!” भीम
का यह संबोधन सुनकर य धन ने तुरंत पलटवार करते ए कहा, “भीम, तुम वयं महावीर
हो, इस लए तु ह कण जैसे वीर के वषय म ऐसी बात करना शोभा नह दे ता। बल और
साहस के अ त र य के यश का कोई अ य मापदं ड नह हो सकता। शूरवीर और
न दय का उ म उतना सहज नह होता, जतना दखाई पड़ता है। इस तेज वी और सवगुण
संप कण क ओर यान से दे खो! या यह तु ह न न कुल का वंशज लगता है? मुझे
व ास है क कण अपने बा बल और मेरे सहयोग से अंग दे श तो या, सम त पृ वी पर
शासन कर सकता है!”
जहाँ एक ओर य धन ने कण को अंग दे श का रा य दान म दे कर अपने लए
राजनी तक मै ी था पत कर ली थी, वह सरी ओर दान म मले रा य को वीकार करके
कण ने भी अपने मन म सूतपु होने क कुंठा का दमन कर लया था। सूया त होने वाला
था। रंगभू म के काय म को आगे बढ़ाना संभव नह था।
कण ने गहरी ास ली और फर उसक अनायास ही अ त होते सूय क ओर चली
गई। वह, न जाने य , ब त दे र तक प म दशा म तज क ओर दे खता रहा। कण जब
भी ह तनापुर आता था तो मने अनेक बार उसे नद -तट पर सूय दय एवं सूया त को तकते
ए पाया। म इस रह य पर से भी बाद म पदा उठाऊँगा क उसे सूय इतना आक षत य
करता था।
9
य हाँक सेकुआगे, इस कथा म ब त-से रोचक मोड़ आएँग,े इस लए, आपको कु राजप रवार
छ मह वपूण बात एवं घटना के वषय म बताना अ नवाय है, जससे क आप
कथा को सही प र े य से आ मसात कर पाएँ।
कु वंश का ये पु होने के नाते, ह तनापुर के राज सहासन पर धृतरा का ही
अ धकार था, कतु वह अ यंत बलवान होने के अ त र ज म से ने हीन था। इस कारण,
रा या भषेक का जब समय आया तो ने हीन धृतरा राजनी त के नयम एवं स ांत से
मात खा गया और उसक वकलांगता उसके माग क बाधा बन गई। फल व प, धृतरा के
छोटे भाई पांडु को ह तनापुर का राजा घो षत कर दया गया।
एक बार पांडु आखेट पर गया आ था। वहाँ उसे सरोवर के नकट कुछ आवाज़ आई
तो उसे जंगली पशु क आवाज़ समझकर पांडु ने श द-भेद बाण चला दया। उसे बाद म
पता लगा क वह बाण भूल से कदम ऋ ष को लग गया, जो उस समय अपनी प नी के साथ
र त- या म संल न थे। बाण लगने से कदम मु न क मृ यु हो गई। पांडु ने मु न क ह या का
ाय त करने के उ े य से ह तनापुर रा य का याग कर दया और अपनी दो प नय
कुंती और मा के साथ सं यास लेकर वन म चला गया। कुछ समय बाद, यह समाचार मला
क वन म पांडु क मृ यु हो गई और मा उसक चता के साथ सती हो गई। वन म रहते ए,
पांडु के अपनी दोन प नय , कुंती और मा से पाँच पु ए थे, ज ह लेकर बाद म कुंती
ह तनापुर लौट आई।
अनुज पांडु क मृ यु के बाद, ने हीन धृतरा को संयोगवश ह तनापुर का सहासन
ा त हो गया। अक मात राजा बने धृतरा को राज सहासन और राजमुकुट से ऐसी आस
ई क वह रा को सोते समय भी मुकुट पहनने लगा। उसे हर पल यही भय सताता था क
कह कोई उसका मुकुट छ न न ले। नय त के व च संयोग तथा अ यंत क ठनाई से मले
रा या धकार को वह कसी क़ मत पर गँवाना नह चाहता था। ने हीनता ने उसके अंदर
ा त इस भय को और बढ़ा दया। धृतरा का जब ववाह आ तो मं ीगण एवं जा को
यह सोचकर राहत मली क धृतरा क प नी गांधारी, अपने ने हीन प त के जीवन को
दशा दे सकेगी और ह तनापुर का राज-काज बेहतर ढं ग से चल सकेगा। परंतु नय त ने
यहाँ भी धृतरा तथा ह तनापुर के साथ व च मज़ाक कया।
गांधारी को यह वीकार नह था क उसका प त ने हीनता का अ भशाप सहन करता
रहे और वह वयं राजसी सुख भोगती रहे। इस लए, उसने अपने प त के ख को साझा करने
का अनोखा तरीक़ा नकाला। गांधारी ने यह ण लया क कृ त ने जस सुख से उसके प त
को वं चत कया है, उसका भोग वह वयं भी नह करेगी! उसने अपनी आँख पर प बाँध
ली और आजीवन अपने प त क तरह हीन रहने का ढ़ संक प कर लया।
मेरा यह मानना है क गांधारी, य द चाहती तो, अपने ने हीन प त क आँख बनकर
जीवनभर उसका मागदशन कर सकती थी तथा रा य के काम-काज को सुचा ढं ग से
चलाने म मह वपूण योगदान दे सकती थी, परंतु उसने ऐसा नह कया। आँख पर प
बाँधकर गांधारी ने राज-काज म अपने प त का कतना साथ दया, इसका आकलन कर
पाना क ठन है। समय बीतता गया और इस बीच, गांधारी और धृतरा ने सौ पु एवं
शला नाम क एक पु ी को ज म दया। धृतरा के सौ पु म, ज ह कौरव कहा जाता है,
य धन ये था।
पांडव और कौरव एक साथ बड़े होने लगे और उनक श ा-द ा भी साथ म होने
लगी। उसके बाद, उनके और अपने बचपन क कथा म आपको पहले सुना चुका ँ। इस
बीच, काफ़ समय बीत गया। हम लोग युवा भी हो गए।
इधर, मेरे पता ोण ने पद को आधा रा य लौटाकर उससे फर से म ता कर ली थी,
कतु उन दोन क मूल वृ याँ भ थ । मेरे पता ोण वभाव से ा ण थे। माशीलता
के मह व और उसक श को समझते थे। इसके वपरीत, पद राजा था, वभाव से य
था और ोण के हाथ अपमा नत हो चुका था। ोण ने जो रा य का आधा भाग पद को
अ छे मन से म ता के कारण लौटाया था, उस रा य को पद ने कलु षत मन से भ ा के
प म वीकार कया था! पद के दरबार म ए अपमान को मेरे पता ने समय रहते भुला
दया था, परंतु ोण के हाथ ए अपमान का घूँट, पद के गले म अटका रहा गया। उसने
एक हाथ से ोण से म ता तो कर ली, कतु उसका सरा हाथ उनके अ भमान का गला
घ टने के लए छटपटाने लगा। परंतु यह भी स य था क कौरव तथा पांडव जैसे महावीर
श य के रहते, पद म इतना साहस नह था क वह अपने दम पर अकेले ोण से बदला ले
सकता। अजुन ारा पद को बंद बनाते समय भी, पद के मन म यह इ छा उ प ई थी
अजुन के समान उसका भी कोई वीर पु होता, तो वह ोण से उसके अपमान का तशोध
ले सकता था। समय बीतने के साथ, पद के गले म अटका अपमान का घूँट कड़वा होता
गया तथा साथ ही, उसके मन म ोण से बदला लेने हेतु एक वीर संतान क कामना बलवती
होती गई।
पद क कोई संतान नह थी, इस लए उसने संतान- ा त के लए पु कामे य
करने का नणय कया। ब त यास करने के बाद, पद ने याज नाम के एक गुणी ा ण
को य करने के लए तैयार कर लया। शी ही, य संप हो गया, जसके फल व प
अ नकुंड म से एक द बालक और कृ ण वण क एक अ यंत सुंदर बा लका का ज म
आ। उस बालक क वचा का रंग धधकती अ न के समान था और उसने ज म लेते ही
भीषण गजना आरंभ कर द । ा ण ने दोन ब च के प और वभाव को यान से दे खा
और कहा, “यह बालक वभाव से बड़ा धृ लगता है और इसक उ प अ न क ु त से
ई है, इस लए इसका नाम ‘धृ ु न’ रखना उ चत होगा और यह बा लका अपने कृ ण वण
के कारण ‘कृ णा’ कहलाएगी।”
एक दन ोणाचाय घर लौटे तो उनके चेहरे पर चता ा त थी। मने उनसे कारण पूछा
तो उ ह ने कहा, “ पद के यहाँ एक पु और एक पु ी ने ज म लया है। पद क पु ी के
लए यो त षय ने कहा है क उसका भ व य ब त उ वल है। उसके भा य म रा य का
सुख तो है, परंतु वह भारतवष के इ तहास म होने वाले सबसे भीषण यु का कारण
बनेगी।”
“ओह! यह तो अ छ बात नह है, कतु इस बात से आप य ह, पताजी?” मने
कया।
“ यअ थ, मेरी चता का कारण पद का पु है!” पताजी बोले।
“ य , पताजी?”
“ यो त षय ने यह भी भ व यवाणी क है क पद का पु , जसका नाम उ ह ने
धृ ु न रखा है, मेरे लए घातक स होगा।” पताजी ने उ र दया।
“ पताजी, आप चता न कर! धृ ु न तो अभी नवजात शशु है। उसे बड़ा होने म
समय लगेगा, और फर मेरे रहते ए आपके ऊपर कोई संकट आ जाए, तो ध कार है मेरे
जीवन को!” मने उ ह आ त करते ए कहा।
म नह जानता क मेरे ऐसा कहने से मेरे पता क ाकुलता कम ई अथवा नह ,
कतु उ ह ने मेरे सर पर नेहपूवक हाथ फेरा, और मुझे यह संकेत अव य दया क उ ह मेरे
साम य पर पूरा भरोसा था।
10
सौ तेकौरव
ले भाइय के बीच मधुर संबंध कम ही बन पाते ह। समय के साथ, पांडव और
के बीच भी मतभेद बढ़ने लगे। राजमहल के भीतर चचेरे भाइय म लड़ना-
झगड़ना और वाद- ववाद सामा य बात हो गई थी। धृतरा को दखाई तो नह दे ता था, कतु
वह मन म जानता था क पांडु के पाँच पु उसके अपने सौ पु से अ धक यो य एवं
श शाली थे। वह हर ण, अपने पु य धन को पांडु-पु भीमसेन से े स करने के
अवसर खोजता रहता था। पांडु का ये पु यु ध र, धृतरा के अपने पु य धन से बड़ा
था, इस लए धृतरा को यह डर भी रहता था क उसके बाद ह तनापुर क राजग य धन
के थान पर पांडु-पु यु ध र को मल जाएगी और नय त ने वष पहले जो अ याय उसके
साथ कया था, दोबारा वही अ याय उसके पु य धन के साथ दोहराया जाएगा।
ोध क तरह लोभ और ई या भी के आचरण को कर दे ते ह। ने हीन
धृतरा का दशाहीन दमाग़ यु ध र स हत सभी पांडव को य धन के माग से हटाने क
कु सत योजना बुनता रहता था। उन दन राजा के पास अपने माग के काँटे हटाने के
अनेक तरीक़े आ करते थे, कतु पांडव को हटाना सरल नह था। इसके तीन मु य कारण
थे। एक, पांडव श शाली होने के साथ-साथ अ यंत चतुर और ववेकशील थे। सरा, उ ह
प रवार के सम त वृ जन का समथन एवं नेह ा त था। तीसरा, राजप रवार के सद य
होने के नाते वे वयं भी कु टल योजना व ष ं के नयोजन को भली-भां त पहचानते
थे। उ ह मारने के लए धृतरा को कुछ भ , कुछ ऐसा करने क आव यकता थी जो
अक मात हो जाए और घटना जैसा लगे!
धृतरा क बेचैनी इतनी बढ़ गई क उसने एक दन य धन को अपने मन क बात
कह डाली। य धन को पहले तो अपने ने हीन पता क बात सुनकर कान पर व ास नह
आ, ले कन वा तव म, य धन भी यही चाहता था। ब त सोच- वचार करने के बाद य धन
ने धृतरा से कहा, “ पताजी, आप केवल पांडव को वहार के लए वारणावत भेज द जए।
उसके आगे, म सब सँभाल लूँगा!”
धृतरा ने पांडव को बुलाया और उनके सामने वारणावत तथा वहाँ लगने वाले मेले
क भरपूर शंसा क । उसके बाद, उसने पांडव को वहार के लए वारणावत जाने का
ताव भी दे डाला।
“आपक इ छा हमारे लए आ ा है, तात ी!” यु ध र के इस वा य को सुनकर
य धन और धृतरा ऐसे ख़ुश ए जैसे कसी कृषक ने अनेक वष के भ के बाद
आकाश म घरते काले वषा मेघ दे ख लए ह ।
इधर पांडव ने अपनी माता कुंती के साथ वारणावत जाने क तैयारी कर ली और उधर
य धन ने अपने मं ी और व ास-पा पुरोचन को बुलवाया और उसे तुरंत वारणावत
जाकर पांडव के रहने के लए एक वशेष भवन बनवाने का नदश दया।
“पुरोचन! राल, लकड़ी, तेल, चब और लाख को मलाकर ऐसा भवन बनवाओ, जो
केवल एक चगारी लगने से जलकर भ म हो जाए।” य धन ने पुरोचन के कान म कहा।
एक बार तो पुरोचन के होश ही उड़ गए कतु फर उसे यान आया क वह य धन से
बात कर रहा था, जो न केवल छल-कपट का पयाय था अ पतु ह तनापुर का भावी स ाट
भी था और उसक इ छा पर लगाने का अथ अपनी जान गँवाना हो सकता था।
“जी, राजकुमार! भवन का नमाण तो म करवा ँ गा, कतु आग? वह कैसे लगाई
जाएगी?” पुरोचन ने पूछा।
“तुम ब त करते हो, पुरोचन!” य धन ने मु कराते ए कहा। “सुनो, वारणावत म
पांडव के रहने क व था उसी ला ागृह म क जाएगी और फर रा म अवसर पाकर,
जब सब लोग सो रहगे तो उस शानदार भवन को अ न के सुपुद कर दया जाएगा।”
“वाह! यह तो ब त शानदार योजना है कुमार!” पुरोचन ने आँख घुमाते ए कहा।
“परंत,ु इस काय को कौन करेगा?”
“तुम करोगे!” य धन ने तपाक से उ र दया। “यह काय भी तु ह पूण करोगे, य
पुरोचन! यान रहे, तु ह इस बात को गु त रखना है। काय के सफलतापूवक पूरा हो जाने पर
म वयं तु ह पुर कृत क ँ गा। जाओ पुरोचन, ज द करो… महामं ी का पद तु हारी ती ा
कर रहा है!” पुरोचन क आँख म चमक आ गई। उसने दे खा क उसके और महामं ी के पद
के बीच अब केवल ला ागृह खड़ा था!
“जो आ ा, राजकुमार!” पुरोचन ने मु कराते ए य धन के सम सर झुकाया और
वहाँ से सीधे वारणावत के लए रवाना हो गया।
धृतरा का ववाह जब गांधारी के साथ आ तो गांधारी का भाई शकु न भी ह तनापुर
म आकर रहने लगा था। शकु न र ते म य धन का मामा था, कतु उसने य धन को छल,
धूतता, ष ं और ूत- ड़ा के अ त र कुछ नह सखाया। शकु न के हाथ म ूत के
पाँसे ऐसे रहते थे जैसे कसी भ के हाथ म माला के मनके! मुझे आज भी लगता है क
य द गांधारी के साथ शकु न न आया होता, अथवा समय रहते उसे गंधार वापस भेज दया
गया होता तो शायद वह सब न होता जो उसके रहते आ और फर अंत समय तक होता ही
रहा!
य धन के कु टल व ई यालु वभाव के बावजूद म उसका शंसक था य क वह
अ यंत साहसी तथा उदार च था। य प, उसके वभाव म एक गुण भी था क उसके पेट
म कोई बात अ धक दे र तक पचती नह थी याने वह कसी भेद को छपाकर नह रख पाता
था। पांडव क ह या क योजना क जानकारी पहले केवल तीन लोग को थी - य धन,
धृतरा और पुरोचन। परंतु, बाद म अपनी बुरी आदत के चलते, य धन ने यह बात अपने
मामा शकु न को भी कह द ।
“ब त ब ़ढया, भांजे! यह तो तुमने कमाल क योजना बना डाली। मेरे साथ रहकर
तुमने आ ख़र ये सारे हथकंडे सीख ही लए!” शकु न ने एक हाथ से य धन क पीठ
थपथपाई और सरे हाथ म पकड़े पाँस को हवा म उछाला और फर उ ह लपक लया।
“जी मामाजी, यह सब आपके आशीवाद का प रणाम है!” यह कहकर य धन मूख
क तरह हँसने लगा।
पांडव के वारणावत जाते समय, उ ह नगर क सीमा तक छोड़ने का दा य व धृतरा ने
मुझे स पा। चलते समय, धृतरा के अनुज और नी त महामं ी व र ने अचानक हमारे
साथ नगर क सीमा तक साथ चलने क इ छा कर द । म, पछले दो दन से, उनके
चेहरे पर भय और ख के मले-जुले भाव दे ख रहा था। उ ह ने जब नगर सीमा तक साथ
चलने क बात कही तो सबको आ य आ य क इस कार के वहार पर जाना
राजकुमार के लए सामा य बात थी और व र ने पहले कभी इस तरह का ताव नह
कया था। मुझे ऐसी अंत रणा ई क महा मा व र पांडव से अव य कुछ गु त एवं गूढ़
बात कहना चाहते थे, जसे राजमहल म कहना संभव नह था। म इस रह य को समझने के
लए आतुर हो गया, कतु मने अपनी उ सुकता को छपाए रखा।
शी ही हम सब ह तनापुर क सीमा पर प ँच गए। नगर के कई अ य लोग भी पांडव
को वदाई दे ने साथ म आए थे, इस लए व र को ये पांडव, यु ध र से बात करने का
अवसर नह मल रहा था। आ ख़र, उ ह ने सांके तक भाषा म यु ध र से बात क । व र क
कही वह बात मुझे आज सैकड़ साल बाद भी श दशः याद है।
व र बोले, “व स, तुम वयं धम के अवतार हो और अधम क त नक-सी आहट भी
तु ह सतक कर दे ती है, फर भी तु हारा शुभ चतक होने के नाते यह मेरा कत है क म
तु ह कसी अ ात थान पर जाने से पूव, कुछ बात समझा ँ । य द कोई सहसा तु हारे त
उदार हो जाए तो तु ह सावधान हो जाना चा हए।” व र ने अब तक कोई वशेष बात नह
कही थी। म कुछ और सुनने क ती ा कर रहा था।
उसके बाद, व र ने आगे कहा, “एक व तु ऐसी है जो लोहे क नह है, कतु शरीर को
न कर सकती है। पंच त व म से एक त व ऐसा है जो समूचे जंगल, घास-फूस आ द को
सरलता से न कर सकता है, ले कन बल म रहने वाले ाणी, उस त व के कोप से बच जाते
ह। अंधे को माग और दशा का ान नह होता, कतु जस मनु य क पाँच इं याँ
उसके वश म ह , उसका कोई कुछ नह बगाड़ सकता!” इतना कहकर व र शांत हो गए
और यु ध र को नेहपूवक दे खने लगे।
“आप चता न कर, तात ी! म आपक सब बात भली-भां त समझ गया !ँ ” यु ध र
ने कहा और फर व र को णाम कर पाँच पांडव भाई वारणावत क ओर चल पड़े।
चूं क म य धन और पुरोचन क कपट योजना से अवगत नह था, इस लए म उस
समय यह नह समझ सका क व र ने यु ध र को या समझाया और यु ध र ने उनक
बात को कैसे समझा। तथा प, व र के सा य म कभी-कभी रहने से मुझे यह लाभ आ
क म इतना तो समझ गया क वारणावत म कुछ घ टत होने वाला था तथा व र ने यु ध र
को संकेत से उस संकट क तथा उससे बच नकलने क यु बता द थी।
मने, नगर क ओर लौटते समय, व र से माग म उनक सांके तक भाषा का प
आशय जानने का य न कया, कतु उ ह ने यह कहकर बात को टाल दया, “अ थामा,
समय क ती ा करो। तु ह वयं ही सब पता लग जाएगा।” म उ ह दे खता रहा और वे र
तज म दे खते रहे।
कुछ पल ककर, व र ने फर कहा, “अ थ, मुझे इस बात का ब त संतोष है क
यु ध र को वह बात समझाते ए तुम मेरे साथ थे। जब भी इ तहास सुनाने का समय
आएगा तो तुम कह सकोगे क ह तनापुर के राजमहल म पांडव के व जो ष ं रचा
गया था, उसम इस दासी-पु व र क कोई भू मका नह थी और उसने अधम का कभी
साथ नह दया।” व र ने यह बात भी सांके तक ढं ग से कही थी। म समझ गया क इस पूरे
करण को जानने-समझने के लए मुझे वारणावत से आने वाले अगले समाचार क ती ा
करनी होगी।
लगभग एक वष बाद, अचानक यह समाचार मला क वारणावत म जस भवन म
पांडव अपनी माता कुंती के साथ रह रहे थे, उसम आग लग गई। इस घटना म पाँच पांडव
एवं कुंती जलकर भ म हो गए! उनके आवास-भवन से सात लोग के जले ए कंकाल ा त
ए थे। बुरी तरह जल जाने के कारण शव क पहचान नह हो सक , कतु ऐसा बताया गया
क उन सात म, एक कंकाल पुरोचन का भी था!
पांडव क असमय व भा यपूण मृ यु का समाचार सुनकर ह तनापुर म शोक क
लहर दौड़ गई। जो लोग यु ध र के वारणावत से लौटकर उसके युवराज बनने क ती ा
कर रहे थे, उनके लए इससे बुरा समाचार कोई नह हो सकता था। कु वंश म ई इस
ासद से संपूण राजप रवार शोक म डू बा आ था, हालां क य धन और धृतरा का ख
केवल ऊपरी था। दोन , मन ही मन, अ यंत स थे और शकु न से तो उसक ख़ुशी सँभल
ही नह रही थी। धृतरा क आ ा से वारणावत म ही पाँच पांडव तथा उनक माता कुंती
क अं ये कर द गई। इतना कुछ हो जाने के बाद भी, मेरा मन इस बात को वीकार नह
कर रहा था क पांडव जैसे शूरवीर और ववेकशील पु ष इस तरह क घटना का शकार हो
सकते थे। म इसी बात को सोचकर परेशान था क व र ारा यु ध र को द गई चेतावनी
थ कैसे जा सकती थी।
म ब त दन शांत रहा कतु मुझसे यह अवसाद सहन नह आ। म एक दन अवसर
पाकर व र के पास गया और बोला, “महा मा व र, आप जो दे ख सकते ह, उसे दे खना या
समझना यहाँ कसी के लए संभव नह है। कृपया स य कह, या सचमुच पांडव और उनक
माता कुंती ला ागृह म मारे गए ह?”
व र ने मेरी आँख म दे खा। उ ह ने एक ण म न केवल मेरे भीतर के आवेग को पढ़
लया, अ पतु यह भी जान लया क पांडव क मृ यु के वषय म मेरी शंका शी शांत होने
वाली नह थी। वह बोले, “अ थामा, म भ व य ा तो नह ँ, ले कन इतना अव य जानता
ँ क पांडव ने सदा धम का पालन कया है और अधम कतना भी कु टल, कतना भी
नदयी य न हो जाए, वह धम को परा त करना तो र, उसे पश भी नह कर सकता!”
सांके तक ढं ग से बात कहने म व र का सानी नह था। उनसे इससे अ धक प उ र क
आशा करना थ था।
मेरे संदेह क पु हो चुक थी। पांडव जी वत थे और मेरे लए उस समय इतना जान
लेना पया त था! यह प था पांडव वेश बदल, वारणावत छोड़कर कसी अ य सुर त
थान पर चले गए ह गे ता क य धन उ ह मरवाने के लए दोबारा कोई ष ं न रचने लगे।
वह रात मेरे लए असमंजस से भरी थी। मेरा मन अधम य धन के त न ा और
धमपरायण पांडव के त सहानुभू त के बीच लोलक क तरह झूल रहा था। य द म य धन
का प लेकर पांडव के जी वत होने का भेद उसके सम कट कर दे ता तो वह त काल
अपने सै नक को पांडव क खोज म वारणावत भेज दे ता और उ ह फर से मारने का य न
करता। सरी ओर, य द म पांडव का प लेकर उ ह बचाने का यास करता तो यह
य धन के साथ व ासघात करने के समान था य क म सदा उसक कृपा का पा रहा ँ।
भीषण ऊहापोह क थ त के बीच, आ ख़र मने य धन के सम पांडव के जी वत
होने का रह य कट नह कया। म नह जानता क इ तहास मेरे इस कृ य को य धन के
साथ कया गया व ासघात समझेगा अथवा, मुझे पांडव के जीवन क र ा करने के लए
धमपरायण मानेगा। म यह नणय व ध के हाथ लखे जा रहे इ तहास पर छोड़ रहा ँ।
11
पद क क या कृ णा, जसे ौपद भी कहते थे, ववाह-यो य हो चुक थी। पद को
उसके लए ऐसे वर क तलाश थी, जो ौपद को ख़ुश रखने के साथ-साथ पद क
राजनी तक मह वाकां ा म भी सहभागी बन सके। पद, इतने वष बीत जाने पर भी ोण के
उस परा मी श य अजुन को, जसने पद को णभर म बे ़डय म बाँध लया था, भुला
नह सका था। इसी कारण, अपनी पु ी ौपद के लए, महार थय से भरे संसार म पद को
अजुन से बेहतर कोई नाम नह सूझ रहा था।
उन दन क या के ववाह के लए वयंवर रचाने क था थी जसम क या अपने पता
के राजदरबार म उप थत राजकुमार म से अपनी पसंद का वर चुनने के लए वतं होती
थी। इसम एक सम या यह थी क ौपद और अजुन क पहले कभी भट नह ई थी और
पद को डर था क वयंवर के दौरान, ौपद कसी अ य पु ष को अपना वर न चुन ले।
इस लए, पद ने अपने पु धृ ु न के साथ मलकर ौपद के वयंवर के लए एक अ यंत
क ठन तयो गता का आयोजन कया। वह तयो गता इतनी क ठन थी क कसी
साधारण के लए तो उसम भाग लेना ही संभव नह था और पद को मन म यह
व ास था क उस तर तयो गता म अजुन के अ त र कोई अ य वजयी नह हो
पाएगा!
तयो गता क शत यह थी क उसम भाग लेने वाले तभा गय को वयंवर-क क
छत पर घूमती ई धातु- न मत मछली क आँख को भेदना था ले कन इसम भी दो शत थ ।
पहली शत यह थी क तभागी अपने ल य को सीधे नह दे ख सकते थे। उ ह यह नशाना
मछली के ठ क नीचे रखे जल-पा म मछली क परछा को दे खकर लगाना था। सरी शत,
पहली से भी अ धक क ठन थी क नशाना लगाने के लए वे अपने साथ लाए श का
योग नह कर सकते थे। ल य-भेदन के लए उ ह संसार के सबसे भारी कधार नामक
धनुष का योग करना था, जसे चलाने से पूव उसक यंचा चढ़ाना आव यक था। ल य-
भेदन के लए उ ह अ धक से अ धक पाँच बाण चलाने क अनुम त थी! कुल मलाकर, यह
प था क पद अपनी क या के लए वर नह , अ पतु अपनी सहायता हेतु संसार का
सव े धनुधर खोज रहा था।
वयंवर के नमाण के लए पंचाल नगर का ईशान कोण चुनकर, वहाँ एक समतल व
सुंदर थल तैयार कया गया। उसके चार ओर बड़े-बड़े भवन, परकोटे और फ़ाटक बने ए
थे जनके कनारे- कनारे बंदनवार लटकाने का बंध था। भीत क ऊँचाई और उन पर बनी
ई रंग- बरंगी च कला के चलते, सभी भवन एवं महल, हमालय-से वशाल जान पड़ रहे
थे। वयंवर से पूव चल रहे उ सव का यह सोलहवां दन था।
वयंवर म भाग लेने के उ े य से य धन स हत उसके ब त-से भाई, कण, अनेक
तापी राजा, बृह ल, भोज, म णमान, सहदे व, जय सेन, वराट, सुशमा, चे कतान, पौ क,
भगद , श य, शशुपाल, जरासंध आ द आए ए थे। मने दे खा, ौपद ब त सुंदर थी और
शायद इसी कारण सभा म आमं त राजा व राजकुमार के अ त र ब त-से ा ण
और अ य जा त के लोग भी वहाँ वराजमान थे। म वयं ौपद के प पर मु ध था और
अपना भा य परखने हेतु पद के दरबार म प ँच गया था। चूं क मने कु राजकुमार के साथ
रहते ए धनु व ा सीखी थी, इस लए मुझे पता था क हम सबम केवल अजुन ही उस क ठन
ल य को भेद सकता था। हालां क जस आ म- व ास से रंगभू म म कण ने अजुन को
ललकारा था, उसे दे खते ए कण भी संभा वत याशी हो सकता था। वारणावत क घटना
के बाद, केवल म जानता था क पांडव जी वत ह कतु मुझे भी उनके वषय म कोई
जानकारी नह थी। अजुन क अनुप थ त म कण के जीतने क संभावना बढ़ गई थी, परंतु
भगद , श य, शशुपाल और जरासंध को भी कम आँकना सही नह था।
तभी सबक पद-कुमारी कृ णा पर पड़ी जो अ त सुंदर व तथा आभूषण से
सजी हाथ म सोने क वरमाला लेकर क म वेश करते ए मंदग त से रंग-मंडप क ओर
आ रही थी। वह धीमे-से अपने भाई धृ ु न के समीप आकर खड़ी हो गई। धृ ु न ने
अपनी पवती बहन को दे खा और फर गंभीर कतु मधुर वाणी म सभासद को संबो धत
करते ए कहा, “ वयंवर के उ े य से समागत नरप तय एवं राजकुमार ! म पद-पु
धृ ु न आप सभी का हा दक वागत करता ँ। आप सभी कृपया यान से सुन। जैसा क
आप सब जानते ह क यह वयंवर पंचाल नरेश महाराज पद क क या तथा मेरी बहन
कृ णा के ववाह हेतु रचा गया है। कृ णा के इस वयंवर म एक तयो गता रखी गई है। यह
स कधार धनुष है तथा इसके समीप कुछ बाण रखे ए ह। आपको अपनी बारी आने
पर ऊपर उस ढाल के म य बने छ म से बाण मारकर उसके पार घूमती ई मछली क
आँख को भेदना है। यही आपका ल य है। इसम दो शत और ह। पहली यह क तभागी
अपने ल य को सीधे नह दे ख सकते। उ ह यह नशाना नीचे रखे जल-पा म मछली क
परछाई को दे खकर लगाना है। सरी शत यह है क नशाना लगाने के लए आप अपने
अ -श का योग नह करगे। इसके लए आपको कधार धनुष एवं यहाँ रखे बाण का
ही योग करना है। ल य-भेदन के लए अ धक से अ धक पाँच बाण मारने का अवसर दया
जाएगा। जो कुलीन पु ष इस काय को संप करेगा, मेरी य बहन ौपद उस े पु ष
का प त- प म वरण करेगी।”
धृ ु न ने य ही वयंवर क इस तयो गता के नयम बताए, सभी तभा गय ने
ऊपर छत पर घूमती ई मछली क ओर दे खा। “इसे भेदना तो असंभव है!” शशुपाल
च लाया। सरे राजा, जो मन म यही बात सोच रहे थे, अपनी बलता छपाने के लए
मुसकराए मानो शशुपाल का उपहास कर रहे ह । जहाँ एक ओर ौपद के प को दे खकर
सभा म बैठे राजा क बाँछ खल रही थ , वह छत पर घूमती ई मछली तथा सामने रखे
भारी-भरकम कधार धनुष को दे खकर उनके हौसले प त ए जाते थे। म भी उस भीड़ म
बैठकर अपने जीतने क संभावनाएँ तलाश रहा था। म धनु व ा म अजुन से अ धक पीछे
नह था, कतु कधार पर यंचा चढ़ाकर और फर सफलतापूवक ल य भेदने क संभावना
मुझे कम ही नज़र आ रही थी। अपनी मता का मुझे भली-भां त अंदाज़ा था। ऐसे ल य को
भेदने के लए ज़बरद त आ म- व ास, उ कृ कौशल तथा वक के समान एका ता क
आव यकता थी। मेरी जानकारी म ये गुण अजुन के अ त र कसी अ य के लए संभव
नह था।
तयो गता आरंभ ई। एक-एक करके तभागी, ल य साधने क आशा म अपने
आसन से उठकर आए, कतु ल य भेदना तो र क बात थी, वहाँ उप थत अ धकतर राजा
कधार धनुष को उठा तक नह पाए। जब शशुपाल, जरासंध और य धन जैसे महाबली
राजा भी वफल हो गए तो, मेरा मन ख हो उठा। मुझे वह धनुष उठाने का यास करने
और फर हँसी का पा बनने से अ धक, तयो गता छोड़ दे ना बेहतर लग रहा था। परंतु
महार थय क सभा म ऐसा करना धनुष उठाने म वफल होने से भी अ धक हीन समझा
जाता। इस लए, म अपना तथा सभा का मान रखने के उ े य से उठकर गया। कधार को
हाथ लगाते ही मुझे लगा मानो उस चम कारी धनुष ने मेरे भीतर का सम त बा बल को
अपने भीतर ख च लया। म जान गया क कधार को उठाना मेरे लए संभव नह था। मने
उस महान धनुष को णाम कया और उसे उठाने का यास कए बना ही, म अपने आसन
पर वापस लौट आया। मेरे पता ने बाद म ऐसा करने के लए मेरी शंसा क थी। अपने
साम य का सही अनुमान होना यो ा के लए नतांत आव यक होता है।
मेरे बाद कण क बारी थी। मुझे कण के बा बल और उसक धनु व ा पर पूरा भरोसा
था। य ही कण अपने आसन से उठकर धनुष क ओर बढ़ा, धृ ु न ने उसे रोक दया।
“ को कण!” धृ ु न बोला, “तुमने शायद मेरी बात ठ क से नह सुनी। मने आरंभ म
ही कहा था क जो कुलीन पु ष इस महान काय को संप करेगा, उससे ौपद का ववाह
होगा। या तुम कुलीनता के मानदं ड पर वयं को उ चत ठहरा सकते हो? मने सुना है क
तु ह रंगभू म म भी भाग नह लेने दया गया था य क तुम सूत-पु हो! सूत-पु कुलीन
कैसे हो सकता है?”
कण क आँख ोध से लाल हो ग । उससे यह सावज नक प से आ अपमान सहन
नह आ, कतु उसने अपने वर को नयं त करते ए कहा, “राजकुमार धृ ु न! आपको
शायद यह पता नह है क म अब सूतपु नह , अ पतु अंगराज कण ँ और एक रा य का
शासक होने के नाते मुझे राजकुमारी कृ णा के वयंवर म भाग लेने का पूण अ धकार है!”
धृ ु न ने कण पर पैनी डाली और फर अपमानजनक ढं ग से कहा, “कण! मुझे
तो सबकुछ पता है, कतु तुम शायद यह भूल रहे हो क जस अंग दे श का शासक बनकर
तुम इस सभा म बैठे हो, वह तु ह न तो वरासत म मला है और न ही तुमने उसे अपने
परा म से जीता है। वह रा य तु ह राजकुमार य धन से भ ा म ा त आ है। दान म
मली व तु तु हारी द नता भले ही र कर दे , कतु वह तु ह कुलीन नह बना सकती!
इस लए, पीछे लौट जाओ और अपना आसन हण करो, सूतपु कण!”
कुल के नाम पर, कण का यह सरी बार तर कार आ था। कण क आँख ोध एवं
अपमान से जल रही थ । उसका दा हना हाथ कमर म बा ओर बँधी तलवार क मूठ पर
प ँच गया था। मने दे खा क धृ ु न ने भी अपनी तलवार थाम ली थी। तभी य धन ने कण
को संकेत से वापस लौट आने को कहा। कण चुपचाप अपने थान पर आकर बैठ गया। मुझे
यह सोचकर ख हो रहा था क य धन क अनुकंपा ने कस कार सह के समान
बलशाली एवं नभ क कण को बकरी-सा बल एवं असहाय बना दया था! य द कण
य धन के कृपा-सू से बँधा न होता तो पंचाल राजसभा म उस दन ौपद क डोली के
थान पर दो-चार महार थय क अ थयाँ उठ जात !
पद क सभा म कसी को खोज रही थी। म जानता था क पद को अजुन क
ती ा थी। परंतु अजुन वहाँ कैसे हो सकता था! पद हताश हो रहा था क तभी सभा क
पछली पं म से ा ण वेश म ऊँचे कद और ब ल काया वाला एक युवक उठा और
रौबदार ढं ग से चलता आ धनुष के पास आकर खड़ा हो गया। उसके व धूल से सने थे
और दे खने से लगता था क उसने कई दन से अपने केश नह सँवारे थे। वह नंगे पाँव था
और उसके पैर म लगी धूल से सभा का फ़श गंदा हो गया था।
“चूं क ा ण कुलीन वंश के होते ह, इस लए म इस तयो गता म भाग लेने का
अ धकारी ँ!” उसने अचं भत कर दे ने वाले आ म व ास से कहा। उसक बात सुनकर सभा
म ठहाका गूँज उठा। लोग क हँसी से यह प था क वे उस ा ण का उपहास कर रहे थे।
ा ण ने एक बार घूमकर पूरी सभा को दे खा और फर हाथ जोड़कर धनुष को णाम
कया। इसके बाद, उसने बजली क तेज़ी से धनुष को उठाया और उस पर यंचा चढ़ा द ।
फर उसने धनुष के नकट रखा बाण उठाया और अगले ही ण, नीचे रखे जल-पा म
मछली क परछा को दे खकर ऊपर घूमते अपने ल य पर बाण चला दया। इससे पहले क
वहाँ बैठे लोग कुछ दे ख अथवा समझ पाते, छत से लटक ई मछली तीर से बधकर नीचे
गर गई और सबने दे खा क उस ा ण का बाण मछली क आँख को भेदकर पार नकल
गया था।
पद क सभा म स ाटा छा गया। पद स हत सभी राजा और सभासद हैरान थे क
उस असंभव काय को एक ा ण ने इतने कौशल एवं फुत से पूण कर दया था।
“आपक पु ी कृ णा आज से मेरी प नी ई,” ा ण ने कहा, “कृपया इसक वदाई
क तैयारी कर!” य वातावरण म पली-बड़ी कृ णा, एक ा ण को प त- प म पाकर
हैरान रह गई। परंतु वयंवर के नयम के अनुसार, उसके सामने खड़ा धनुषधारी ा ण अब
उसक वरमाला का अ धकारी एवं उसका जीवनसाथी बन चुका था। उसने अ ुपू रत ने से
अपने असहाय पता तथा भाई धृ ु न को दे खा और फर धीरे-से ा ण के समीप जाकर
वरमाला उसके गले म डाल द ।
“इस राजदरबार म, यह या अनथ हो रहा है?” राजा भगद ने च लाकर कहा, “हम
कुलीन राजा के रहते ए पद अपनी पु ी का ववाह कसी अनजान वंश के ा ण के
साथ कैसे कर सकते ह?”
“यह हम सबका अपमान है। हम इसे बदा त नह करगे।” ऐसा कहते ए चे कतान
और सुशमा अपनी तलवार ख चकर उठ खड़े ए। उ ह दे खकर अ य राजा के साथ,
य धन और उसके भाइय क ह मत भी जाग उठ । वे सब अपने-अपने आसन छोड़कर
उस अकेले ा ण पर झपटे । उनम से कुछ ने पद एवं धृ ु न का ख कर लया।
य धन ने मेरी ओर भी अपे ा से दे खा। वह चाहता था क म उठकर थ के झगड़े म
उसका साथ ँ । परंतु मेरे जीवन के अपने कुछ नयम ह। मेरी म ा ण ने कोई अपराध
नह कया था और उसे कृ णा का प त बनने का नै तक अ धकार था। मने य धन को
दे खकर मुँह फेर लया और अपने थान पर बैठा रहा।
तभी कुछ ऐसा आ जसक कसी ने क पना नह क थी। भीड़ म से ा ण-वेश म
एक और भीमकाय उठा और कृ णा के प त के बचाव म सामने आ गया। वहाँ बैठे
लोग ने शायद यान न दया हो, मने दे खा था क उसी तरह के ा ण वेश म ेत व पहने
तीन और ब ल ा ण पीछे क पं म बैठे ए थे।
मेरे मन म वचार आया, “ या ये पाँच ा ण, पांडव ह?”
तभी एक ज़ोरदार आवाज़ आई, “तुम पीछे हट जाओ, कृ णा!” बाण चलाने वाले
ा ण ने ौपद को पद के पीछे धकेलते ए कहा।
इसके बाद, उन दोन ा ण ने वहाँ वरोध कर रहे राजा क मार-मारकर जो दशा
क उसे यहाँ करना क ठन है और थ भी! उ ह ने कसी को सँभलने का अवसर ही
नह दया। दे खते-दे खते, गले म वरमाला पहने वह ा ण ौपद का हाथ पकड़कर, उसे
अपने साथ राजमहल से बाहर ले गया। सहसा मची हलचल के बीच लोग ने यान ही नह
कया क शेष चार ा ण भी उसके पीछे -पीछे चले गए।
न संदेह, वे पाँच पांडव ही थे! पांडव भरे-दरबार म आकर, य धन के सामने से
ौपद को लेकर जा चुके थे। शायद यह इ तहास म पहली बार आ था क क या के प रवार
को यह भी पता नह लगा क उनक पु ी का वर कौन था, कहाँ से आया था और कहाँ चला
गया!
12
पद ने शी ही अपने गु तचर से यह पता करवा लया क वे पाँच ा ण, पांडव ही थे
जो वेश बदलकर नगर से बाहर रहते थे और भ ावृ करके जीवनयापन करते थे।
पांडव वयंवर से ौपद को लेकर सीधे अपनी माता कुंती के पास प ँच।े उस समय
कुंती खाना पका रही थी। कुंती को य ही अपने पु क पदचाप सुनाई पड़ी, उसने बना
उनक ओर दे खे पूछा, “आज भ ा लाने म ब त दे र लगा द !”
अजुन ने कहा, “माँ, आज हम भ ा म कुछ वशेष ा त आ है! आप दे खगी तो
ब त स ह गी।”
कुंती अपने काम म इतनी त थी क उसने लापरवाही म कह दया, “दे खना या है
पु , जो कुछ लाए उसे पाँच भाई आपस म बाँट लो!”
कृ णा पीछे खड़ी थी। कुंती क बात सुनकर मानो उसका र जम गया। कुंती क बात
का अथ था क वह पाँच भाइय म बँटने वाली थी!
“ या मुझे पाँच प तय के साथ रहना होगा? वह सोचने लगी। “पाँच प तय क प नी
बनने से तो मर जाना बेहतर होगा!” ौपद का सोचना ठ क था। उस युग म पु ष को एक से
अ धक प नयाँ रखने का अ धकार होता था, कतु एक से अ धक प त होने पर ी को
वे या मान लेने क संभावना बल थी! ौपद ने पाँच भाइय क प नी बनने पर कड़ी
आप जताई, ले कन मातृ-भ पांडव ने उस अबला क एक नह सुनी।
मेरे वचार से ौपद पर केवल अजुन का अ धकार था। मुझे लगता है, य द अजुन
अपनी माता कुंती को पूरी बात प करके बताता तो वह ौपद को अपने पाँच पु क
प नी बनने के लए कदा प ववश नह करती। यहाँ पांडव से भारी भूल ई तथा ौपद के
साथ घोर अ याय आ।
पांडव से ववाह के उपरांत कृ णा उनके साथ रहने लगी। कुछ ही दन म, यह समाचार
ह तनापुर प ँच गया। जहाँ एक ओर ह तनापुर क जा तथा भी म, ोण, कृप और व र
आ द लोग इस समाचार से अ यंत ह षत थे, वह इसी समाचार से धृतरा , य धन तथा
शकु न क कपट-मंडली पर शोक छा गया। पांडव क ह या करने क योजना बुरी तरह
वफल हो गई थी।
“भांज!े ” शकु न ने य धन से कहा, “यह सब या हो गया? यह कैसी योजना बनाई
थी तुमने?”
“म या कर सकता ँ, मामा ी,” य धन ने ख होकर कहा, “मने तो पांडव क
ह या का पूरा बंध कर दया था। मुझे वयं यह समझ म नह आ रहा क हमारे प म घूम
रहा नय त-च इस तरह अचानक उ ट चाल य चलने लगा! आप भी तो पहले मेरी इस
योजना क शंसा कर रहे थे। अब त नक गड़बड़ हो गई, तो आप मुझे ताना मारने लगे!”
“तुम लोग आपस म झगड़ना बंद करो और आगे क सोचो,” धृतरा ने अपना मुकुट
सँभालते ए कहा, “अब जब पांडव वापस ह तनापुर लौटगे तो उ ह जा का पहले से भी
अ धक नेह ा त होगा और सबसे पहले मेरे मुकुट के छन जाने का संकट सामने है!
यु ध र ये पांडव है और आयु म य धन से बड़ा है, इस लए युवराज के पद पर पहला
अ धकार उसी का बनेगा।” तीन दे र रात तक इसी सम या पर चचा करते रहे।
अगले दन सुबह राजदरबार म, इससे पहले क धृतरा कुछ कह पाता, भी म पतामह
ने बोलना शु कर दया। “हम सबके लए यह अ यंत स ता भरा समाचार है क पाँच
य पांडव जी वत व सकुशल ह। यही नह , ई र क कृपा से पंचाल नरेश पद क पु ी
कृ णा के वयंवर म वजयी होने के फल व प, उनका ववाह भी स प हो गया है। मेरे
वचार से अब समय आ गया है क यु ध र को ह तनापुर का कायभार स प दया जाए।”
भी म का व इतना गौरवशाली एवं उदा था क ह तनापुर तो या, समूचे
भारतवष म कसी म इतना साहस नह था क उनक बात का खंडन करने क धृ ता
अथवा मूखता करता। य धन, य प, इसका अपवाद था! ने हीन धृतरा के पु -मोह के
चलते य धन आव यकता से अ धक हठ एवं धृ हो गया था। वह भी म क बात पर आंख
तरेरते ए बोला, “ पतामह! ने हीनता के चलते जो अ याय मेरे पता के साथ आ, वही
अब आप मेरे साथ करना चाहते ह? यान र खए, म वकलांग नह ँ!”
“नह पु य धन,” भी म बोले, “तु हारे साथ कसी कार का अ याय नह कया
जाएगा। तु हारा अ धकार तुमसे छ नने क मेरी कोई मंशा नह है। मेरा ताव यह है क
ह तनापुर का वभाजन करके आधा रा य पांडव को दे दया जाए और शेष आधे रा य पर
कौरव का अ धकार रहेगा। इसम तो कसी को कोई आप नह होनी चा हए। य द अब भी
कसी को आप है तो म केवल इतना क ँगा क इस प रवार का ये होने का नाते यह
मेरा आदे श है और इसका पालन कया जाना चा हए। पांडव को त काल ह तनापुर
आमं त कया जाए!”
भी म के वर म इतनी ढ़ता थी क उनक बात पर हामी भरने के अ त र कसी के
पास कोई वक प नह था। य धन जानता था क कुछ और कहने से भी म कु पत हो
सकते थे। उसने सर झुकाकर अपनी मौन वीकृ त कट कर द । हालां क मने कण और
य धन क आँख म े ष क लौ जगमगाती दे ख ली थी और मुझे पता था क वे पांडव को
आधा रा य भले ही लेने द कतु उ ह सुखपूवक जीने नह दगे। परंतु म नह जानता था क
मेरा अनुमान इतनी ज द सच हो जाएगा!
पांडव को ह तनापुर लेकर आने का काय महा मा व र को स पा गया। कुछ ही
समय म, व र पाँच पांडव के साथ ौपद और कुंती को लेकर ह तनापुर लौट आए। बड़े
आदर के साथ उन सबका वागत कया गया। उ चत समय दे खकर, व ध- वधान के साथ
ह तनापुर का वभाजन करके आधा रा य यु ध र को दे दया गया। यु ध र ने बड़े य न
से, अपने भाइय के साथ मलकर अपना रा य था पत कया और उसे नाम दया -
इं थ।
ह तनापुर और इं थ के बीच लोग तथा रा या धका रय का आना-जाना लगा
रहता था। एक बार मुझे समाचार मला क अजुन अचानक वनवास के लए चला गया।
य धन के साथ मेरी नकटता अव य थी, कतु सर क गत बात पर यान दे ने
अथवा उन पर अनाव यक चचा करने म मेरी कोई च नह थी। परंतु अजुन का अकेले
वनवास जाना सचमुच आ य क बात थी और उसे लेकर कौतूहल जागना वाभा वक था।
म इस तरह क पूछताछ अ धकतर व र से कया करता था। धम का अंश होने के नाते, ान
और ववेक के े म व र का मुक़ाबला नह था। यही कारण था क उनके ारा साधारण
प से कही बात म भी ान का काश झल मलाता था।
व र से अजुन के वनवास का कारण पूछने पर एक नई और रोचक बात पता लगी।
पाँच प तय के साथ एक ी का रहना कोई सहज बात नह थी। इस व च व था
को सुचा ढं ग से चलाने के लए तथा ौपद के लए उन पाँच को यथो चत समय दे ने हेतु
मह ष वेद ास ने कुछ वशेष नयम बनाए थे। कुछे क सामा य बात के अ त र , मु य
नयम यह था क ौपद एक वष तक एक भाई क प नी बनकर रहती थी और फर अगले
वष वह सरे भाई क प नी बन जाती थी। इस तरह, एक बार म एक ही पु ष, ौपद का
प त बनकर रहता था। अनेक पु ष के संसग म आने के कारण यह वाभा वक था क
ौपद के मन म कसी एक क अपे ा सरे के लए अ धक नेह उ प हो सकता था, परंतु
वेद ास ने इसका भी समु चत बंध कर दया गया था। उ ह ने ौपद को यह वरदान दया
क उसके मन म सभी भाइय के लए समान नेह बना रहेगा। प त-प नी के म य एकांत का
भी यान रखना आव यक था। इस लए, एक नयम यह भी बनाया गया क जब ौपद
अपने कसी प त के साथ उसके क म होगी तो उस समय, कोई अ य भाई क म वेश
नह करेगा। इस नयम का उ लंघन करने वाले को बारह वष का वनवास भोगना पड़ेगा!
अजुन ने यही भूल कर द थी। कसी ा ण क र ा हेतु अपने अ -श लेने वह यु ध र
के क म तब घुस गया, जब क ौपद उस क म यु ध र के साथ बैठ थी। नयमानुसार,
अपनी इस भूल के लए अजुन को बारह वष के का वनवास भोगना पड़ा। मेरी जानकारी म,
यह भारतवष के इ तहास म एकमा अनूठ नयम- व था थी!
वनवास के दौरान अजुन अनेक थान पर रहा। इन बारह वष म न त ही अजुन के
साथ ब त-सी घटनाएँ घट ह गी, कतु मुझे उनके वषय म अ धक जानकारी नह है।
य प, मुझे एक घटना अव य याद है य क उसक ब त चचा ई थी।
वनवास के समय, संयोग से रैवतक पवत पर अजुन क भट ीकृ ण से हो गई जो उसे
अपने साथ ारका ले गए। पांडव क माता कुंती, कृ ण क बुआ थी। उस नाते कृ ण और
अजुन म भाइय जैसा नेह था। एक, इस संबंध के कारण और सरा, पता नह य , कृ ण
को भी ोणाचाय क भां त, अजुन अ त य था। म पहले भी कह चुका ँ क अजुन म कुछ
वशेष आकषण अव य था जसके कारण वह हम सबसे भ था। कृ ण के साथ घ न ता
के चलते ारका म अजुन का हष लास से वागत आ। कृ ण क एक बहन थी। उसका
नाम सुभ ा था। अजुन ने सुभ ा को दे खा तो बस, दे खता ही रह गया! कृ ण ने उसके मन
क बात पढ़ ली।
अजुन क बढ़ती बेचैनी को दे खते ए, ीकृ ण ने एक दन अजुन को सुझाव दया।
“अजुन,” कृ ण बोले, “मुझे पता है क तु ह सुभ ा से ेम हो गया है और तुम उससे ववाह
करने के इ छु क हो। परंतु, तु ह तो पता क क या का ववाह वयंवर ारा होता है। ऐसे
म, य द सुभ ा के लए वयंवर आयो जत कया जाए तो यह आव यक नह क वह तुमको
ही अपना वर चुनेगी।”
“जी केशव! तो मुझे या करना चा हए?” अजुन ने पूछा।
“तुम सुभ ा का अपहरण य नह कर लेत?
े ” कृ ण ने तपाक से वाचक उ र
दया।
“ कतु केशव…” कृ ण के उ र से हैरान होकर अजुन बोला, “यह तो अधम है। इस
तरह कायर क भां त सुभ ा का अपहरण क ँ गा तो लोग या कहगे क संसार का सव े
धनुधर एक क या को उठाकर ले भागा! नह , नह ! यह मुझसे नह होगा।”
“यह धनुष उठाने का अवसर नह है,” कृ ण ने हँसते ए कहा, “हर जगह धनुधर
बनने क आव यकता नह होती, अजुन! कभी-कभी धनुष छोड़कर साधारण पु ष क तरह
भी सोचा करो। य द तुम सुभ ा से सचमुच ेम करते हो और उससे ववाह करने के इ छु क
हो तो यही एक माग है। सुभ ा त दन रैवतक पवत पर पूजा के लए जाती है। बस, म
इससे अ धक कुछ नह क ँगा। आ ख़र सुभ ा मेरी ब हन है! म अपनी बहन के अपहरण म
तु हारी इससे अ धक सहायता नह कर सकता!” कृ ण ने ं य-बाण चलाया। इसके बाद,
ीकृ ण मु कराते ए अजुन को उसके वचार के साथ छोड़कर चले गए। कौन यह मानेगा
क एक भाई अपनी बहन के अपहरण के लए अपने ही म को उकसा सकता है? परंतु
ीकृ ण के वषय म या कहा जा सकता है। उनक भां त उनक लीलाएँ भी अनंत ह!
अजुन रात-भर कृ ण क बात पर वचार करता रहा और अगले दन सुबह वह रैवतक
पवत पर जा प ँचा। उसने अवसर पाते ही सुभ ा का अपहरण कर लया तथा उसे रथ पर
बैठाकर भाग नकला। पल-भर म सुभ ा-हरण का समाचार ारका म आग क तरह फैल
गया। समूचे यादव कुल म हाहाकार मच गया। कृ ण के बड़े भाई बलराम तो गु़ से से आग-
बबूला हो उठे । बलराम को शेषनाग का अवतार कहा जाता था। उ ह ने आवेश म आकर
अपना गदा एवं हल उठा लया और अजुन को मारने उसके पीछे दौड़ पड़े। परंतु उ चत समय
पर कृ ण ने वहाँ प ँचकर बात सँभाल ली। ीकृ ण इतने वा पटु और वहार-कुशल थे क
उ ह ने न केवल बलराम को समझा-बुझाकर शांत कर दया अ पतु अजुन को उनसे
आशीवाद दलवाकर सुभ ा के साथ उसका ववाह भी संप करवा दया। इसी बीच, अजुन
के बारह वष का वनवास काल भी पूरा हो चुका था। शी ही, वह सुभ ा को अपने साथ
लेकर इं थ लौट आया। सुभ ा और ौपद म ज द ही अ छा सामंज य था पत हो
गया।
मेरी इस जीवन-गाथा म नी त- नपुण कृ ण क यु य और चाल के उदाहरण भरे पड़े
ह। उ ह ने धमपरायणता के नाम पर अ यंत चतुराई और कभी-कभी छल का सहारा लेकर
पांडव पर आजीवन कृपा बनाए रखी। म सचमुच अंत समय तक उनका शंसक रहा! म
कृ ण के च र को समझ नह पाया और यह भेद बाद म कट आ क उनको समझना
संभव था ही नह य क वह वयं ई र का प एवं नारायण का अवतार थे!
13
व ह कालखंड, पांडव कुल क वंश-वृ को सम पत था।
अजुन से ववाह के कुछ समय बाद, सुभ ा ने अ भम यु नाम के बालक को ज म
दया जो अपने पता क भां त वीर, कुशल धनुधर और तेज वी था। सुभ ा के बाद, ौपद ने
भी अपने पाँच प तय से एक-एक पु को ज म दया। इन बालक के नाम इनके वशेष गुण
के आधार पर रखे गए थे।
ा ण ने यु ध र के पु के लए कहा क यह बालक श ु का हार सहने म
व याचल पवत के समान अटल होगा, इस लए उसका नाम ‘ त व य’ रखा जाए। भीम ने
संतानो प से पूव एक हज़ार सोमयाग कए थे, इस लए उसके पु का नाम ‘सुतसोम’ रखा
गया। अजुन ने अपने बारह वष के वनवास के दौरान अनेक वण यो य काय कए थे, अतः
ा ण ने अजुन के पु का नाम ‘ ुतकमा’ रखना उ चत समझा। नकुल से जब पूछा गया
तो उसने कहा क वह कु वंश के एक तापी राजा शतानीक से अ यंत भा वत था और
अपने पु का नाम उ ह के नाम पर रखना चाहता था। उसक इ छा का आदर करते ए
नकुल के पु का नाम ‘शतानीक’ रखा गया। सहदे व का पु कृ तका न म पैदा आ था,
इस लए उसका नाम ‘ ुतसेन’ रख दया गया। कु वंश क कथा म यूँ तो इन बालक का
कोई य योगदान नह है, कतु मेरे अ भश त जीवन से इन पाँच बालक का ब त गहरा
संबंध है। इसके बारे म समय आने पर व तार से बताऊँगा।
ीकृ ण क कृपा तथा अपने बा बल से पांडव ने कुछ ही समय म इं थ रा य को
समृ और ऐ यवान बना लया। अपने पौ ष से पाँच भाइय ने द वजय या ा पूरी क
और इं थ के वैभव का चार दशा म व तार हो गया।
एक दन हम लोग धृतरा के क म बैठकर ह तनापुर के राज-काज पर चचा कर रहे
थे। तभी एक सेवक ने आकर संदेश दया, “महाराज क जय हो! पांडव कुमार नकुल आए
ह और आपसे मलना चाहते ह।”
पांडव का नाम सुनते ही कण और य धन क यो रयाँ चढ़ जाती थ और धृतरा के
माथे पर बल पड़ जाते थे। शकु न क आँख म उठता वार तो कसी से छप ही नह पाता
था। परंतु भी म तथा ोणाचाय क उप थ त म पांडव के व कोई कुछ कहने का साहस
नह करता था।
“ णाम तात ी!” नकुल ने क म वेश करके भी म को णाम कया।
“आयु मान भव!” भी म ने उठकर नकुल को गले लगा लया। पांडव के त भी म
का नेह दे खते ही बनता था। कौरव के साथ रहते ए भी उनका मन पांडव म बसता था।
“यहाँ कैसे आना आ व स?” भी म ने पूछा।
“यु ध र ने आपके चरण म णाम भेजा है, पतामह!” नकुल ने कहा। “दरअसल,
अपनी द वजय या ा पूण करने के बाद वे राजसूय य करने के इ छु क ह और इसके लए
उ ह ने आप सबको इं थ आमं त कया है।”
“अ त उ म!” पतामह अपनी खु़शी को सँभाल नह पा रहे थे। “यु ध र से कहना,
हम राजसूय य म अव य आएँगे।”
नयत समय पर, हम लोग ह तनापुर से चलकर इं थ प ँच गए। पांडव ने सबका
यथो चत वागत कया। सभी अ त थय के सहयोग से वह य भली-भां त संप हो गया।
य के अंत म, अ भषेक होना बाक़ था। उस दन स कार क परंपरा थी। सम त ा ण,
मह ष और पू यगण वहाँ एक त थे। स कार से पहले, यु ध र के सम एक वधा उ प
हो गई।
वहाँ उप थत सभी लोग वंदनीय थे, इस कारण यु ध र के लए यह तय कर पाना
क ठन हो गया क उन सब लोग म कसक अ पूजा क जाए! ब त सोच- वचार के बाद
भी जब यु ध र कसी नणय पर नह प ँच पाया तो उसने भी म के सम अपनी वधा
क।
“ पतामह! कृपया आप बताइए क इन समागत स जन म आप कसे सव े एवं
अ पूजा के यो य समझते ह? मुझे सबसे पहले कसक पूजा करनी चा हए?”
गंगा-पु भी म ने न संकोच उ र दया, “धमराज! यहाँ समागत सद य म एक ही
है, जो छोटे -छोटे तार के बीच सूय क भां त दे द यमान है!”
“म समझा नह पतामह! आप कसक बात कर रहे ह?” यु ध र ने इधर-उधर से
दे खते ए पूछा।
“पु यु ध र,” भी म ने कृ ण क ओर दे खते ए कहा, “मेरे वचार से य वंश
शरोम ण ीकृ ण यहाँ उप थत सद य म सव े ह और वही अ पूजा के उपयु पा
ह!”
मने दे खा, लगभग सभी लोग ने भी म क बात पर अपनी वीकृ त क । भी म
के उ र से स एवं संतु होकर य ही यु ध र पूजा क साम ी लेकर कृ ण क ओर
बढ़ा, तभी चे दराज शशुपाल, चढ़कर अपने आसन से उठ खड़ा आ।
“यु ध र! बड़े-बड़े महा मा और राज षय क उप थ त म कृ ण क अ पूजा
करने का या औ च य है? कृ ण राजा न होते ए भी राजा के बीच स मान पाने का
अ धकारी कैसे हो सकता है? यह आयु म वृ नह है और अभी इसके पता वसुदेव भी
जी वत ह, तो फर इसक अ पूजा य हो रही है? य द तुम इसे अपना हतैषी मानकर
कृ ण क अ पूजा कर रहे हो तो या यह तु हारे लए राजा पद से भी बढ़कर है? य द तुम
कृ ण को अपना आचाय मानते हो तो भी ोणाचाय क उप थ त म इसका स मान सवथा
अनु चत है। य द ऋ वज क से दे ख तो सबसे पहले पूजा मह ष वेद ास क होनी
चा हए। और अं तम बात यह क पतामह भी म के रहते, कृ ण क अ पूजा करने का
वचार भी तु हारे तु छ दमाग़ म कैसे आया?”
शशुपाल क इस आप ने वहाँ उप थत लोग को चता म डाल दया। भी म
पतामह का चेहरा ोध से तमतमा गया। उ ह ने ग़ से से शशुपाल क ओर दे खा कतु
शशुपाल नल ज बना बैठा रहा। जब उसने दे खा क उसक बात का कोई भाव नह पड़ा
तो उसने मेरा नाम ले लया।
“यु ध र!” शशुपाल गरजा, “शा -पारदश और महावीर अ थामा क उप थ त
म कृ ण क अ पूजा सम त महावीर का अपमान है। म इसक घोर नदा करता ँ!”
शशुपाल धृ होने के साथ-साथ मूख भी था। उसने मेरा नाम बीच म डालकर, मुझे भी
उस ववाद म घसीट लया। मेरे पता ोण व मामा कृपाचाय समेत सब लोग अचानक व च
ढं ग से मेरी ओर दे खने लगे। कृ ण का अ पूजा के यो य होना अथवा न होना ववाद का
वषय हो सकता था, कतु उस समय मुझे लगा क मेरी न ा दाँव पर थी। मुझे डर था क
कह लोग को यह म न हो जाए क शशुपाल ारा मेरे नाम के ताव म मेरी भी सहम त
है। इस लए मेरे लए वहाँ अपनी थ त को प करना अ नवाय हो गया।
मने धीरे से उठकर उतना ही कहा, जतना उस ण के लए आव यक था। “म
चे दराज शशुपाल क बात से सहमत नह ँ। मुझे वासुदेव कृ ण क अ पूजा पर कोई
आप नह है!” इतना कहकर म अपने थान पर बैठ गया। मेरे पता मुझे दे खकर धीमे-से
मु कराए। मने उनक मु कान म अपने त गव का पुट दे ख लया था। मने जो कया, उससे
म स था।
शशुपाल, अपना दाँव बेकार जाता दे खकर तल मलाया और बोला, “यु ध र, या
तु ह राजा धराज य धन, भरतवंश के कुलगु कृपाचाय, सवगुण संप आचाय म दखाई
नह दए? य द तु ह इस कार वे छा से ही कृ ण क अ पूजा करनी थी तो इन सब
राजा और महा मा को बुलाकर तुमने इनका अपमान य कया? तुम जैसे धमा मा
को या इस तरह धम क राह से भटकना शोभा दे ता है?” शशुपाल, उप थत सद य को
यु ध र के व भड़काने का हर संभव यास कर रहा था।
यु ध र ने शशुपाल को आ य से दे खा। शशुपाल का ोध बढ़ता जा रहा था। जब
उसने दे खा क इतना बोलने पर कसी ने उसक बात पर यान नह दया तो उसने सीधे
कृ ण का ख कया।
“अरे कृ ण!” वह चीख़ा, “य द यु ध र ने कायरतावश तु हारी पूजा का ताव कर
दया तो भी, तु ह वयं सोचना चा हए क तुम इसके यो य हो भी अथवा नह ! जस तरह
कु ा लुक- छपकर कह से त नक घी चाट ले तो वयं को ध य समझने लगता है, उसी तरह
या तुम भी इन मूख पांडव के हाथ अ पूजा ारा वयं को वंदनीय समझ रहे हो? या
गंगापु भी म क तरह तु हारी भी बु कुं ठत हो गई है?”
यु ध र से भी म और कृ ण का अपमान सहन नह आ। वह बोला, “राजा
शशुपाल! अब आप अपनी सीमा का उ लंघन कर रहे ह। यहाँ पतामह भी म से बड़ा त व-
वे ा कोई नह है। जब उ ह ने वयं कृ ण क अ पूजा का ताव रखा है तथा कसी को
कोई आप नह है तो फर आपको इसम आप य है? आपको यह पता होना चा हए
क इस संसार म ान एवं बल म कृ ण से बढ़कर कोई नह है। वह सम त सृ क उ प
एवं लय के थान ह। वे ज म लेने तथा मृ यु को ा त होने वाले पदाथ से परे ह। वे हमारे
आचाय, पता और गु भी ह।” इसके बाद भी म और सहदे व ने भी कृ ण के प म अपनी-
अपनी बात रखी।
इसी बीच मेरी नज़र य धन पर गई। उसके चेहरे के भाव बतला रहे थे क वह कृ ण
और यु ध र के हो रहे अपमान पर स था हालां क उसम इतना साहस नह था क वह
सावज नक प से खड़ा होकर शशुपाल क बात का समथन कर पाता।
शशुपाल क आँख से वाला नकल रही थी। उसके सर पर ख़ू़न सवार था। वह
भी म क ओर मुड़ा और च लाने लगा, “इस मूख और घमंडी कृ ण क शंसा करते-करते
तु हारी जीभ नह थकती? जसने बचपन म ही एक ी (पूतना) क ह या कर द , एक
नद ष प ी (बकासुर), एक घोड़े (केशी दै य) और एक बैल (वृषभासुर) को मार डाला, तुम
उसे जगतप त कहते हो? तुम ऐसे नमम ह यारे क पूजा करना चाहते हो? इस ने
अपने मामा कंस का नमक खाया और फर उसी को मार डाला। ऐसे कृत न क
अ पूजा के लए तुम इतने लाला यत य हो? तुम वयं को चारी कहते हो, कतु काशी
नरेश क एक, दो नह अ पतु तीन-तीन क या का एक साथ हरण कर लाए! सच तो यह है
क तु हारे जैसा नपुंसक, पु षाथहीन और वृ सलाहकार होने के कारण ही पांडव क म त
हो गई है और इसी लए वे इस वाले क पूजा करना चाहते ह!”
“बस करो शशुपाल!” ीकृ ण के कठोर वर से सभा गूँज उठ । ीकृ ण ने सम त
सभासद को संबो धत करते ए कहा, “सच या है, म आप सबको बताता ँ! सच यह है
क यह शशुपाल ज म से ही वकृत है। जब यह पैदा आ तो इसके तीन ने थे और
चार भुजाएँ थ । पैदा होते ही यह गधे क तरह रकने लगा था। उस समय यह भ व यवाणी
ई थी क जसक गोद म इसक दोन भुजाएँ तथा तीसरी आँख हट जाएँ, उसी के हाथ
इसक मृ यु होगी। इसके ज म के समय, म अपने बड़े भाई बलराम के साथ इसे दे खने गया
था। संयोग से मेरी ही गोद म इसके दोन हाथ और तीसरी आँख हटे । तब इसक माँ तथा
मेरी बुआ ने मुझसे इसके ाण क भ ा माँगी थी। मने तब उ ह यह वचन दया क म इसे
एक सौ ऐसे अपराध के मा कर ँ गा, जनके लए इसे मृ यु-दं ड मलना चा हए!”
शशुपाल ने यह सुना तो ठठाकर हँस पड़ा। “तो कृ ण, अब तुम मुझे यह कहकर
डराना चाहते हो क तुम मुझे मारोगे?”
कृ ण ने शशुपाल को संबो धत करते ए अपनी बात जारी रखी, “ शशुपाल! तुमने
य वं शय का सवनाश करने म कोई कसर नह छोड़ी। मेरे ा यो तषपुर जाने के बाद,
तुमने पीछे से ारकापुरी को जलाकर न करने का यास कया। तुमने मेरे पता के अ मेध
य के अ को पकड़कर उनका य भी भंग करने क को शश क । तुमने य वंशी तप वी
व ु क प नी का हरण कया। तु हारी अपनी ममेरी ब हन भ ा तप या कर रही थी, कतु
तुमने छल से प बदलकर उसका भी हरण कर लया। म तु हारी नीच बात ब त दे र से सुन
रहा ँ। शशुपाल, म तु ह डरा नह रहा, अ पतु चेतावनी दे रहा ँ क तुम अब तक पतामह
भी म स हत ब त-से वृ एवं वंदनीय लोग का घोर अपमान कर चुके हो। इस कार, अब
तक तुमने न या वे ऐसे अपराध कर लए ह जनके लए तु ह मृ यु-दं ड दया जा सकता था।
एक सौ क गनती पूण होने म अब केवल एक अपराध शेष है। य द तुमने एक भी ऐसा
अपराध और कया तो…!”
“मूख कृ ण!” शशुपाल ने हँसते ए कृ ण क बात काट द । “म तुझ जैसे घमंडी
वाले के ोध से भयभीत होने वाला नह ँ…” अभी शशुपाल क बात पूरी भी नह ई थी
क कृ ण के हाथ से उनका सुदशन च नकला और अगले ही ण शशुपाल का कटा आ
सर लुढ़कता आ मेरे पैर के पास आ गया। मने उठाकर दे खा तो च उनके हाथ म
लौट चुका था। यह सब इतनी ज द आ क अ धकतर लोग ने केवल शशुपाल के सर को
धरती पर गरते दे खा होगा। अगले ही पल, शशुपाल के धड़ से सूय के समान चमचमाती
यो त नकली और दे खते-दे खते कमल-लोचन ीकृ ण म वलीन हो गई। मेरे लए यह
ीकृ ण के ई रीय प का थम दशन था!
य धन इस य से त ध था। उसके चेहरे पर आ य का भाव आया और फर
अचानक वह शांत हो गया। उसने अव य सोचा होगा क अ छा आ जो उसने शशुपाल क
बात का समथन नह कया! कुछ ही दे र म शा ो चत व ध से यु ध र ने कृ ण क अ पूजा
एवं अचना पूरी कर द ।
14
यु धख भीर कोथाजहाँक एक ओर राजसूय य संप करने क ख़ुशी थी, वह उसे इस बात का
य का अंत शशुपाल-वध जैसी भा यपूण एवं र -रं जत घटना से
आ। य पूण होने के बाद शेष राजागण तो अपने-अपने रा य को लौट गए कतु य धन
और शकु न ने कुछ दन इं थ म ककर पांडव का राजमहल तथा उनके वैभव का
आकलन करने का न य कया।
यु ध र का राजमहल, साधारण महल नह था। उसम राजमहल म सामा यतया
दखने वाले वैभव एवं संप ता क चमक होने के अ त र , कुछ ऐसा भी था जो य धन ने
पहले नह दे खा था। महल म रखी चीज़ के रंग और थान अपने आप बदल जाया करते थे।
इस कारण वह महल त दन उ ह नया-सा तीत होता था। महल के ग लयारे दन म र न
क द त से चमचमाते थे और रा म वहाँ कसी अ त र रोशनी क आव यकता नह
होती थी य क उन र न से नकलने वाला काश ग लयार को रोशन कए रखता था।
इससे पूरे महल म छोटे -छोटे द पक के जलने का शानदार आभास होता था। महल क
द वार पारदश फ टक क बनी थ । उस व यास से अनजान कसी के लए चलते-
चलते उन द वार से टकरा जाना सामा य बात थी। महल के म य म बना आंगन भी फ टक
का था, जो पानी का बब तुत करता था। पहली बार आने वाला येक आंगन म
पैर रखने से पहले, इस डर से अपने व उठा लेता था क उसके व गीले न हो जाएँ!
इसके वपरीत, महल के पछले भाग म एक उ ान था जसम एक भाग ऐसा था जो ठोस
प थर का बना दखाई पड़ता था, कतु वा तव म उस थान पर एक छोटा-सा सरोवर था।
इसका प रणाम यह होता था क वहाँ आने वाला उस जगह को प थर का समझकर
आगे बढ़ता और बेचारा वहाँ बने सरोवर म गर जाता था। उ ान के सामने बने बुज पर खड़ी
रा नयाँ तथा उनक दा सयाँ अनजान लोग को सरोवर म गरते दे खकर हँसती थ । महल के
नमाता ने येक व तु और थान पर मानो तल म क पत चढ़ा रखी थी। वह पत तो कसी
को नह दखती थी कतु उसके मायावी भाव से कोई नह बच पाता था। पांडव का वह
महल, वहाँ रहने वाले लोग के लए त दन के मनोरंजन का साधन बन गया था।
य धन और शकु न दन-भर घूमते रहते और उस महल क आ यच कत करने वाली
वशेषता को दे खकर मन-ही-मन कुढ़ते थे। ऐसे ही एक दन, जब ौपद अपनी स खय
के साथ उ ान म टहल रही थी तो उसने दे खा क य धन और शकु न, भूल से उ ान म बने
छ सरोवर म गर पड़े और उनके व गीले हो गए।
यह य दे खकर ौपद को हँसी आ गई और उसने खल खलाते ए अपनी स खय
से कहा, “दे खो, अंधे का पु भी अंधा है!” य प ौपद को ऐसा कहने के बाद, अपनी भूल
का एहसास अव य आ होगा कतु उसने इसे अ धक गंभीरता से नह लया और इस लए,
उसके मन म य धन से उन अपमानजनक श द के लए मा माँगने का वचार भी नह
आया।
पानी म गरने से गीले ए व तो बदले जा सकते थे कतु ौपद के मुँह से जो बात
नकल गई थी, उसे लौटा पाना संभव नह था। ौपद के कटा ने य धन के दय को
भीतर तक छलनी कर दया।
“इस महल म ककर हम अपना अपमान नह करवाएँगे और कल ही ह तनापुर लौट
जाएँग,े ” य धन ने ो धत होकर शकु न से कहा।
“ बलकुल भांज!े ” शकु न बोला, “अब यहाँ कने का कोई औ च य नह है।”
य धन ने कुछ सोचते ए कहा, “ले कन मामाजी, जाने से पूव मेरी यह जानने क
इ छा है क यु ध र का यह व च मायावी महल कसने बनाया है?”
अगले दन, वे दोन यु ध र के पास गए। य धन बोला, “महाराज यु ध र, यहाँ
रहकर हम लोग ने ब त आनंद से दन बताए ह। अब हम आ ा द जए। हम ह तनापुर
लौटना चाहते ह। परंतु जाने से पहले, कृपया यह बताएँ क आपका यह शानदार और
आ यजनक महल कसने बनाया है?”
यु ध र मु कराया मानो य धन को वदा करने के लए तैयार ही बैठा था।
“ य य धन,” यु ध र बोला, “य द तुम यहाँ कुछ दन और रहते तो मुझे ब त
अ छा लगता कतु म जानता ँ क ह तनापुर म तु हारे बना तात ी भी अकेले हो जाएँग,े
इस लए म तुमसे कने का आ ह नह क ँ गा। जहाँ तक इस महल का है, इसे दानव
के व कमा और धान श पकार मय नामक दानव ने बनाया है। कुछ समय पूव, कृ ण
और अजुन ने मलकर अ नदे व का अजीण र करने के लए खांडव वन का दाह कया था।
उस समय मय दानव उसी वन म छपा आ था। तब अजुन ने मय के ाण क र ा क थी।
कृ ण ने भी अ नदे व को इं के कोप से बचाया था। उसी उपकार के बदले म मय ने हमारे
लए इस महल का नमाण कया तथा अ नदे व ने अजुन से स होकर उसे गांडीव धनुष
दया। अ नदे व ने ही कृ ण को वह सुदशन-च भी दया था जसक धार, तुम राजसूय य
म शशुपाल पर दे ख चुके हो।”
य धन तथा शकु न को पांडव क उपल धय को दे खकर बुरी तरह ई या हो रही थी।
उ ह ने यु ध र को णाम कया और बना कुछ कहे ह तनापुर के लए कूच कर गए।
इं थ से लौटते समय, य धन अपने साथ दो इ छाएँ ले जा रहा था - एक, ौपद ारा
ए अपमान क पीड़ा का तशोध लेने क इ छा तथा सरी, पांडव का रा य और मायावी
महल हड़पने क इ छा!
शकु न ूत के पाँसे डालने म जतना मा हर था, वह सामने वाले के भाव पढ़ने
म भी उतना ही तेज़ था। उसने य धन क मु ा और उसके चेहरे के हाव-भाव दे खकर
त काल यह जान लया क य धन के मन म अपमान क फाँस चुभ चुक थी। वह समझ
गया क य धन क बु करने का यही उ चत अवसर था।
यहाँ एक यह उठ सकता है क शकु न को य धन से कम करवाने अथवा उसे
भड़काने से या लाभ आ होगा। इस संदभ म, मेरा अपना यह मानना है क शकु न को
अपनी बहन गांधारी का अंधे धृतरा से ववाह कया जाना पहले दन से ही पसंद नह आया
था और य धन को भड़काकर पा रवा रक लेश एवं भाइय के बीच झगड़ा करवाने से
कपट शकु न के मन को कुछ शां त मली होगी। गांधारी और धृतरा के ववाहोपरांत जब
शकु न, ह तनापुर आ गया और उसने पहली बार, य धन के भीतर पांडव के व जल
रही चगारी को महसूस कया, उसने तभी से उस चगारी को भड़काकर वाला का प दे ना
आरंभ कर दया। अपनी बहन के साथ ए अ याय का बदला लेने का यह कपट शकु न
का ब त व च और घनौना तरीक़ा था!
शकु न अपनी उ लू जैसी गोल आँख नचाते ए बोला, “ य धन! म तु हारे मन म
ा त ोभ को समझ सकता ँ परंतु तुम बलकुल चता मत करो। मने तु हारे ख को
ख़ुशी म बदलने का उपाय सोच लया है। तुम जन दो इ छा को मन म लेकर आए हो, वह
शी ही पूरी हो जाएँगी।”
“छो ड़ए मामाजी,” य धन ने चढ़ते ए कहा, “आप सफ़ बात करते ह, आपसे कुछ
होता तो है नह !”
“ य य धन,” शकु न ने अपना गु़ सा दबा लया, “तुम कसी तरह अपने ने हीन
पता से कहलवाकर पांडव को एक बार ह तनापुर म ूत खेलने के लए बुलवा लो। फर
दे खना, मेरा कमाल!”
“… कतु मामाजी, म पांडव के साथ ूत कैसे खेलूँगा? मुझे तो ठ क से पाँसे डालना
भी नह आता।”
“म ँ न!” शकु न ने ह ठ दबाते ए कहा, “दाँव तुम लगाना और म तु हारे लए पाँसे
फकूँगा!”
य धन मूख तो था कतु इतना भी नह , जो शकु न क इस बात का आशय न समझ
पाता! यह सुझाव सुनते ही उसके चेहरे पर स ता छा गई।
ह तनापुर प ँचते ही शकु न और य धन ने पांडव के वैभव और ौपद क धृ ता
क बात बढ़ा-चढ़ाकर धृतरा को कह सुनाई और साथ-साथ ूत वाली योजना भी बता द ।
धृतरा वयं भी पांडव से चढ़ता था। उसे शकु न क कपट-भरी चाल पसंद आ गई। उसने
तुरंत व र को बुलाकर इं थ जाने तथा पांडव को ूत के लए आमं त करने को कहा।
यह ताव व र को पसंद नह आया कतु वे राजा क आ ा के सामने ववश थे। मुझे
व ास है क पांडव के हतैषी होने के नाते, व र ने अव य ही यु ध र को धृतरा के
नमं ण के पीछे छपे ष ं से अवगत करवाया होगा परंतु सरल- दय यु ध र के लए
धृतरा क अव ा अधम से कम नह थी! पांडव अ न छा से ह तनापुर आ प ँचे और ूत
के लए बसात बछ गई।
य धन ने खेल शु होने से पहले ही धृतरा को प कह दया, “महाराज, म इस
खेल म दाँव लगाऊँगा कतु मेरे लए पाँसे शकु न मामा डालगे।” ऐसा कोई नयम नह था,
कतु ऐसा न करने का भी कोई नयम नह था! धृतरा ने गदन हलाकर य धन को
अनुम त दे द और ववशता म, इसी शत पर वह खेल आरंभ हो गया।
शकु न पाँस का जा गर था। वह जैसे चाहता था, पाँसे वैसे ही गरते थे। शकु न पाँसे
डालता गया और यु ध र हारता चला गया। यु ध र ने पहले अपने म णमय हार और वण
मुहर को दाँव पर लगाया और उ ह हार गया। फर उसने अपना धन-भंडार दाँव पर लगा
दया, और उसे भी हार बैठा। शकु न ने अपने पाँस क श से कुछ ही दे र म यु ध र को
कंगाल बना दया। उसका धन, वैभव, संप सब य धन ने जीत लए।
खेल चलता रहा। यु ध र क हालत मरणास जैसी हो गई। अपना सव व
हारने के बाद, यु ध र य ही उठने को आ तो शकु न ने उसे फर उकसाया, “यु ध र,
यह ूत का खेल है। इसम कभी भी, कुछ भी हो सकता है। जो धन तुम इस खेल म हार गए
हो, उसे इसी खेल से वापस जीत भी सकते हो!”
“परंतु,” यु ध र ने कहा, “मेरे पास अब दाँव पर लगाने के लए कुछ शेष नह है।”
“ऐसा मत कहो, य यु ध र!” शकु न क कु टलता चरम पर थी। “अभी तो तु हारे
पास वो शानदार मायावी-महल है, इतना बड़ा इं थ रा य है!”
भीम ने यु ध र को इशारे से रोका। परंतु यु ध र कु टल शकु न क चाल म फँस चुका
था। उसने हामी भर द । शकु न ने बना दे र कए पाँसे फक दए। यु ध र अपना महल और
इं थ रा य भी गँवा बैठा। भीम ने अपना सर पकड़ लया। य धन क एक इ छा पूरी हो
गई थी!
ू का खेल धीरे-धीरे वकराल प लेता जा रहा था। व र और भी म ने अनेक बार

यु ध र को समझाया क वह खेल को छोड़कर उठ जाए कतु यु ध र क बु भी कुछ
समय के लए हो गई। वह बैठकर दाँव खेलता रहा। व र ने धृतरा से भी खेल को बंद
करवाने का आ ह कया, कतु यह पहला मौक़ा था जब धृतरा , बंद आँख से अपने पु क
ख़ुशी दे ख पा रहा था!
शकु न ने बड़े ेम से यु ध र के सर पर हाथ फेरा और कहा, “यु ध र, यूँ ह मत न
हारो! तुम एक महान और तापी राजा हो। ूत म वजय उसी क होती है, जसके पास धैय
होता है और तुम तो धैय क तमा हो, व स!”
यु ध र ने शकु न को दे खकर पूछा, “ले कन अब मेरे पास दाँव पर लगाने के लए
कुछ नह है, म खेलूँ कैसे?”
शकु न ने मु कराते ए य धन को दे खा और यु ध र से कहा, “अपने इन भाइय को
दे खो, यु ध र! जब तक ये तु हारे पास ह, तुम हार नह सकते। तुम चाहो तो अपने भाइय
को दाँव पर लगा सकते हो। य द जीत गए तो तु ह सबकुछ वापस मल जाएगा।”
अजुन ने झटके से अपने भाई यु ध र को दे खा, ले कन तब तक दे र हो चुक थी।
यु ध र हामी भरकर दाँव लगा चुका था। शकु न ने पाँसे डाले और फर वही आ जो इतनी
दे र से हो रहा था। यह दाँव भी यु ध र हार गया। इस कार, यु ध र ने वयं को तथा अपने
चार भाइय को दाँव पर लगा दया और एक-एक करके वे पाँच य धन क संप का
ह सा बन गए।
“म अपनी पराजय वीकार करता ँ। आज से, म और मेरे चार भाई य धन के दास
ए!” यु ध र ने ब त चे ा क ले कन वह अपने आँसू नह रोक पाया।
“ नराश य होते हो य यु ध र!” शकु न बोला, “यह तो खेल ही ऐसा है। इसम
परा जत होकर भी जीत जाता है… और फर तुम अब भी सबकुछ नह हारे हो!
ौपद को भूल गए या?”
इसके बाद जो आ, उसे बताते भी मुझे ल जा आती है। गले तक हताशा म डू बे
यु ध र ने कसी अ या शत प रणाम क आशा म ौपद को दाँव पर लगाकर अं तम दाँव
खेल दया। जब तक पाँसे शकु न के हाथ म थे, तब तक ूत के खेल म कुछ भी अ या शत
नह था। यु ध र दाँव हार गया और ौपद भी य धन क संप बन गई। उस समय,
यु ध र से अ धक कंगाल शायद संसार भर म कोई नह था।
म कदा प उस कु टल और गंदे खेल का ह सा नह बनना चाहता था कतु कसी कृ य
के ा का उ रदा य व भी उस कृ य के कता के लगभग समान होता है। इस लए, म
चाहकर भी वयं को उस ासद य से अलग करके नह दे ख सकता।
“ शासन, जाओ और ौपद को सभा म घसीट लाओ!” य धन गरजा। पांडव
समेत सारा राजदरबार त ध रह गया। इससे पहले, कोई कुछ कह पाता, शासन र नवास
क ओर दौड़ पड़ा।
ौपद और शासन के म य, र नवास म या बात ई यह तो मुझे नह पता कतु
कुछ ही दे र बाद मने दे खा क शासन बेचारी ौपद को बाल से पकड़कर नल जता से
घसीटता आ कु राजसभा म ले आया। ौपद का रोम-रोम काँप रहा था। उसका शरीर
झुक गया था और वह खची जा रही थी।
“अरे रा मा शासन! म रज वला ँ और इस समय एक ही व पहने ए ँ। मूख,
कुछ तो शम कर!” कृ णा चीख़ रही थी।
ौपद का आत वर सुनकर भीम खड़ा हो गया। उससे ौपद का अपमान सहन नह
हो रहा था, परंतु यु ध र ने हाथ पकड़कर उसे भी रोक लया। “हम अब य धन के दास ह
भीम! बैठ जाओ।”
“चुप रह घमंडी औरत!” य धन च लाया, “तूने सबके सामने मुझे अंधे का पु अंधा
कहा था! तब तुझे शम नह आई? तेरा यह मूख प त तुझे ूत म हार चुका है। अब तू
रज वला हो या एकव ा, तू मेरी दासी है। शासन! इस अहंकारी ी के तन का यह
आ ख़री व भी उतार लो और इसे न न करके मेरी जँघा पर बैठाओ। म ब त दन से इसके
हाथ ए अपमान क अ न म जल रहा ँ। इसके प को ज़रा नकट से दे खूँगा, तो मेरी यह
जलन शांत होगी!” शकु न ने अपने पाँस क सहायता से य धन क सरी इ छा भी पूरी
कर द थी!
य धन का इतना कहना था क शासन ने ौपद का चीर पकड़ लया। वह चीख़ती
रही, च लाती रही परंतु शासन ने उसका व नह छोड़ा। शासन चीर को जतना ज़ोर
से ख च रहा था, ौपद भी उसे उतने ही ज़ोर से थामे ए थी। उस एक व पर ौपद और
कु वंश क , मयादा टक ई थी!
भी म पतामह क नम आँख के बीच, धृतरा क राजसभा य धन, कण और शकु न
के नल ज ठहाक से गूँज रही थी। व र रो रहे थे और धृतरा से बार-बार इस जघ य कृ य
को रोकने क ाथना कर रहे थे। पु -मोह और राजमुकुट के त अ तशय लगाव ने ने हीन
धृतरा को गूँगा और बहरा भी बना दया था! वह अपनी अयो यता को ने हीनता के पद के
पीछे छपाने का असफल यास कर रहा था। यथा राजा, तथा जा! म, मेरे पता ोण और
मामा कृपाचाय मन-ही-मन खी होने के सवाय या कर सकते थे!
ौपद ने जब भी म और ोण जैसे महावीर को सर झुकाए असहाय अव था म बैठे
दे खा तो उसके पास अपने सखा ीकृ ण को पुकारने के अ त र कोई वक प नह था।
अपने शील को बचाने के लए जो व उसने पकड़ रखा था, उसने वह छोड़ दया। वह पूण
प से ीकृ ण के चरण म सम पत हो गई।
कहते ह, ई र केवल समपण चाहता है। मनु य अगर वयं को पूरी तरह ई र के
ीचरण म सम पत कर दे , तो दस य धन मलकर भी उसका कुछ नह बगाड़ सकते। कु
राजसभा म यही आ! जैसे ही ौपद ने व छोड़ा तथा हाथ जोड़कर ीकृ ण का मरण
कया, तो मने और पूरी सभा ने वह दे खा जसक क पना करना भी संभव नह है।
शासन दोन हाथ से ौपद क साड़ी ख चता जा रहा था और साड़ी खुलती जा रही
थी। ौपद अपने थान पर खड़ी ‘हे कृ ण, हे कृ ण’ बोलती ई घूम रही थी। शासन
ख चता रहा… साड़ी खुलती रही परंतु उसका अंत नह आ। ख चते-ख चते शासन के
हाथ खने लगे, माथे से पसीना ऐसे टपक रहा था मानो वह तेज़ धूप म हल चलाकर आया
हो, कतु साड़ी समा त होने का नाम नह ले रही थी। सभा म व का अंबार लग गया था।
आ ख़रकार, शासन थककर नीचे बैठ गया। ई र के त समपण क श का यह बेजोड़
य था। मने उस दन सरी बार ीकृ ण को ई र प म दे खा!
भीम का तन ोध से काँप रहा था। “सुन शासन!” वह गरजा, “म आज यह ण
करता ँ क समय आने पर रणभू म म तेरी छाती चीरकर तेरे ल से अपनी यास
बुझाऊँगा!” भीम क त ा सुनकर सबका दल दहल गया परंतु भीम का ग़ सा अभी थमा
नह था। वह बोला, “ य धन! तूने जस जँघा पर ौपद को बैठने के लए कहा था, मने य द
यु म उस जँघा को नह तोड़ा तो मुझे कभी स त न ा त हो!” भीम क इन भीषण
त ा को सुनकर य धन और शासन भयभीत होकर उसे दे खने लगे। थ त बगड़
रही थी। भीम का ोध उफ़ान पर था और सब लोग पांडव को नरंतर मल रहे कृ ण के
सहयोग से हत भ थे।
ऐसे म भी म के ज़ोर दे ने पर धृतरा को ह त ेप करना पड़ा। उसने ौपद से उसके
अपमान के लए मा माँगी और पूछा, “पु ी, इस सभा म तु हारा अतुलनीय अपमान आ
है। यह पाप केवल मा से नह मटे गा। तुम जो चाहो माँग लो। म तु ह वचन दे ता ँ क
तु हारी इ छा पूण होगी।”
“महाराज!” ौपद ने ँ धे गले से कहा, “आपक राजसभा म आप ही के पु के
हाथ आपक ही पु वधू क लाज हरने का घनौना यास आ है। इस अपमान के बदले म
य द आपके पु को अपने प त त के तपोबल से शाप दे कर भ म कर ँ तो भी मेरे अपमान
क भरपाई नह हो सकती! परंतु आप मेरे लए पता-तु य ह इस लए आप केवल इतना कर
द जए क मुझे व मेरे प तय को अपने कपट पु के दास व से मु कर द जए और हमारा
रा य लौटा द जए।”
“इं थ क महारानी ौपद क इ छा का त काल पालन कया जाए!” धृतरा ने
ऐलान कर दया। मने पहली बार धृतरा को सावज नक प से भयभीत दे खा था।
मेरी म यह ौपद का सौज य और कौरव का सौभा य था क उसने य धन व
शासन जैसे नकृ लोग को उनके अ य अपराध के बावजूद जी वत छोड़ दया था।
जस सभा म राजप रवार क पु वधू का उसके प तय के सामने अपमान आ हो, जस
सभा म राजा और वृ के सम एक धमपरायण और रज वला ी के बाल ख चकर उसे
घसीटा गया हो और उसे न न करने का यास कया गया हो, उस सभा म बैठे सब लोग क
छाती के ल से भी य द उस अबला के केश धोए जाते तो भी उस दय- वदारक घटना को
भारतवष के इ तहास के प से मटा पाना असंभव था!
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भी पांमडकवे दबाव और कृ ण क चम कारी लीला के चलते उस कपट- ड़ा के अंत म
को उनका रा य आ द वापस मल गया और वे लोग शां तपूवक इं थ लौट
गए, कतु मेरे मन म दो शेष रह गए थे - पहला, या कौरव-सभा म अपने और ौपद
के अपमान को पांडव भुला दगे? सरा, या य धन और शकु न ूत म जीतने के बाद
भी म ारा उन पर थोपी गई हार का कड़वा घूँट सहजता से पी सकगे? मेरे दोन का
उ र एक ही था - नह !
उधर, इं थ प ँचते ही भीम क भुजाएँ य धन क जँघा तोड़ने तथा शासन
क छाती का ल पीने के लए फड़कती रहती थ और इधर, य धन और शकु न, अंधे
धृतरा के साथ बैठकर दन-रात पांडव को दोबारा छलने व परा जत करने क धूततापूण
योजनाएँ बनाते रहते थे।
एक दन मुझे पता लगा क यु ध र अपने भाइय के साथ फर से ूत खेलने
ह तनापुर आ रहा है। यह भी पता लगा क पछली बार ई घटना को यान म रखते ए,
इस बार खेल के नयम प रव तत कए गए थे। यह न य कया गया क धन, रा य अथवा
कसी को दाँव पर नह लगाया जाएगा अ पतु, हारने वाले को बारह वष का वनवास
और फर एक वष का अ ातवास काटना होगा। य द अ ातवास के दौरान उसे पहचान
लया गया तो फर से बारह वष का वनवास वीकार करना होगा!
मुझे बाद म पता लगा क यु ध र को य प अ छे पाँसे डालने नह आते थे, तथा प
उसे ूत खेलना ब त पसंद था। य धन ने यु ध र क इस कमज़ोरी का फ़ायदा उठाकर
उसे फर से ूत के लए आमं त कर लया था। यह भी प था क य धन ने यह शत
इस लए रखी थी य क वह जुए म जीतकर, पांडव को वनवास भेजकर उनका रा य हड़प
लेना चाहता था। मुझे व ास नह आ क यु ध र इतनी बड़ी मूखता कैसे कर सकता है
क य धन के हाथ बुरी तरह हारने तथा अपमा नत होने के बाद भी उसे बु नह आई
और वह दोबारा खेलने आ प ँचा जब क वह पहले से जानता था क शकु न के रहते ूत
म कसी और के लए जीतना संभव ही नह था।
म पूरी रात यही सोचता रहा क यु ध र ने ूत खेलने क यह शत वीकार य क ,
परंतु जब मुझे इसका उ र नह सूझा तो म अगले दन व र के पास प ँच गया। हम दोन
के बीच कौरव तथा पांडव को लेकर बातचीत होती रहती थी। य प मने प तौर पर
व र से कुछ नह कहा, कतु व र क पारखी जानती थी क उनक भां त, म भी
य धन का साथ दे ने के लए ववश था य क गु ोणाचाय का पु होने के नाते मेरी भी
न ा ह तनापुर के राज सहासन से बँधी ई थी। व र मेरे का उ र दे ने तथा मेरी
आशंका एवं वधा का समाधान करने म हच कचाते नह थे और संकेत ारा ही,
पांडव के त अपना नेह कर दया करते थे।
मेरे पता ोणाचाय और तथा मामा कृपाचाय, धृतरा के उपकार के नीचे इतने दब
चुके थे क उनसे राजसी मामल के अ त र , कसी भी कार के गत संवाद के ार
लगभग बंद हो चुके थे। मुझे याद है जब कभी म उनसे अंधे धृतरा और उसके मूख पु के
व कुछ कहने का यास करता तो वे राजा के त न ा और कत परायणता का लंबा
पाठ पढ़ाकर मुझे शांत कर दया करते थे। यही हाल व र का भी था। अनेक अवसर पर
उनके साथ ई वाता से मुझे यह प हो चुका था क उ ह कौरव का आचार- वचार पसंद
नह था तथा प, वे धृतरा के अनुज होने के कारण खुलकर कौरव-प के व बोलने से
झझकते थे। यही मु य कारण था क समान सोच- वचार होने के कारण, हम दोन कभी-
कभी सांके तक भाषा म बातचीत करके अपना मन हलका कर लेते थे। मने न संकोच व र
के सम अपनी वधा रख द और पांडव के दोबारा ह तनापुर आकर य धन क चाल म
फँसने का कारण पूछा।
व र मुझे दे खकर मु कराए और शांत भाव से बोले, “समय ब त बलवान होता है,
अ थामा! उसक ग त बेशक धीमी होती है कतु वह अपने येक क़दम के साथ धरती पर
व वंस और नमाण के नशान साथ-साथ छोड़ता चलता है। जहाँ कुछ लोग उसक
वशालता के नीचे दबकर इ तहास बन जाते ह, वह उसके पद- च कुछ नवीन स यता
का उ म- थल बनकर भी उभरते ह। मुझे व ास है क यु ध र इस बात को समझता है
और वह इसी लए ह तनापुर वापस आया है। समय का च करवट ले रहा है, पु ! म और
तुम, ह तनापुर म होने वाले व वंस तथा नव नमाण के केवल ा ह। बस, दे खते रहो
अ थामा!”
व र के कथन और शकु न क चाल को समझ पाना सरल नह था। म केवल इतना
जान पाया क ूत क यह सरी बाजी लंबे समय से चल रहे व ध के पूव नयो जत नाटक
का एक अंश मा थी और यु ध र को पता था क उसे इस अंश म अपनी मह वपूण
भू मका नभानी है।
ह तनापुर क सभा म एक बार फर ूत खेला गया। वहाँ कसी अ या शत घटना के
होने क उ मीद नह थी। ऐसा कुछ आ भी नह ! यु ध र को हारना था और वह हार गया।
उसने अपने भाइय तथा प नी ौपद के साथ बारह वष का वनवास सहष वीकार कर
लया। य धन, शकु न और धृतरा अ त स थे य क उ ह इस बात क कदा प आशा
नह थी क उनक कपटपूण चाल इतनी सरलता से सफल हो जाएगी।
यह सबकुछ मंच पर खेले जाने वाले कसी नाटक क भां त हो रहा था, जहाँ येक
कलाकार अपनी भू मका तथा संवाद से भली-भां त प र चत होता है। या य धन क चाल
सचमुच कामयाब हो गई थी? या यु ध र ने जान-बूझकर इस कपट चाल म फँसना
वीकार कया था? समय का च कसका व वंस और कसका नमाण करने को आतुर
था? व र के अनुसार, इन के उ र जानने के लए मेरे पास ती ा करने के अ त र
कोई अ य वक प नह था।
पांडव के वनवास चले जाने के बाद भी य धन एवं धृतरा के मन म पांडव के त
ई या व े ष का भाव कम नह आ। य धन के गु तचर उसे नय मत प से पांडव क
खोज-ख़बर दे ते थे। उन दन पांडव ै तवन म कु टया बनाकर रहते थे। एक दन य धन ने
आमोद- मोद के लए ै तवन जाने क इ छा क । उसने मुझे और कण को भी अपने
साथ चलने के लए कहा। मुझे लगा क य धन वहाँ जाकर पांडव को फर परेशान करेगा।
इस बात से म मन-ही-मन ब त ख था कतु मने कभी अपनी इ छा को अपने पता क
इ छा और राजा क आ ा से अ धक मह व नह दया। हम य धन के साथ ै तवन चलने
को तैयार हो गए।
ै तवन प ँचकर हमने दे खा क वहाँ एक अ यंत सुंदर सरोवर था। य धन सरोवर म
नान और ड़ा क इ छा से क गया कतु उस सरोवर म गंधवराज च सेन पहले से जल-
ड़ा कर रहा था। च सेन के गंधव सै नक ने य धन को रोकने का यास कया तो
य धन उनसे ववाद करने लगा। च सेन के सै नक भी अपने वामी के त पूण न ावान
थे। उ ह ने य धन को सरोवर म उतरने से साफ़ मना कर दया। य धन म अनेक गुण थे।
उनम से एक यह था क वह घमंडी होने के कारण, छोट -छोट बात को त ा का बना
लेता था।
य धन वहाँ भी अड़ गया और च सेन के सै नक से बोला, “ च सेन से कहो, य द
उसे सरोवर म नान करना है तो पहले बाहर आकर मुझसे यु करे!”
मुझे य धन क मूखता पर ब त ग़ सा आया। मने उससे धीरे-से समझाया, “ य धन!
हम लोग मनोरंजन के लए आए ह। इस सरोवर को छोड़ो, हम कसी अ य सरोवर पर चलते
ह।”
परंतु य धन को इतनी समझ होती तो फर बात ही या थी! य धन क अकड़ से
गंधव चढ़ गए और अगले ही पल च सेन के सै नक ने हम पर आ मण कर दया। चूं क
हम लोग ै तवन म वहार के लए गए थे, तो हमारे पास न तो अ धक अ -श थे और न
ही हम कसी अक मात् यु के लए तैयार थे। गंधव ने दे खते ही दे खते हमारे छोटे -से सै य-
दल क दशा कर द । च सेन के कहने पर उ ह ने य धन को, मुझे और कण को बंद भी
बना लया। इस बीच, हमारे दल के कुछ लोग वहाँ से बचकर भाग नकले और त काल
पांडव क शरण म गए तथा उनको सारी बात बताई।
मेरा अनुमान है क यु ध र को छोड़कर सभी पांडव भाइय ने कहा होगा, “ य धन
जैसे कु टल और धूत इंसान के साथ यही होना चा हए! उसे वह गंधव के हाथ मरने दो!”
परंतु यु ध र क सदाशयता तथा माशील वभाव के कारण य धन हर बार अपने घमंड
और कम के बावजूद जी वत बच जाता था। कुछ ही दे र म पाँच पांडव अपने अ -श
लेकर आ प ँचे और उ ह ने गंधव को ज़रा-सी दे र म परा त कर दया। यु ध र के अनुरोध
पर च सेन ने हम सबको छोड़ दया।
गंधव से अपमा नत होने के बाद य धन अ यंत ख था। उसके अपमान के घाव म
अ धक पीड़ा इस लए थी य क जन पांडव के ाण हरने का उसने अनेक बार यास
कया, उ ह पांडव ने अपनी वीरता से य धन के ाण क र ा क थी। वह मन-ही-मन
अपनी शारी रक और मनोवै ा नक पराजय पर उ न था कतु वह अपने झूठे अ भमान क
धमक म उस पराजय के पाठ को सुन नह सका। घमंड व ल जा ने य धन को इतना संत त
कर दया क उसने वह ै तवन म अ -जल यागकर अपने ाणांत करने का न य कर
लया। म, कण और शासन ब त मु कल से समझा-बुझाकर उसे वापस ह तनापुर लेकर
आए। मने लौटकर व र को यह घटना सुनाई तो हम दोन ब त दे र तक य धन क मूखता
और उसक दशा पर चचा कर हँसते रहे। हम व ास था क इतना कठोर सबक़ मलने के
बाद य धन दोबारा पांडव के व कोई काय नह करेगा।
इस घटना के कुछ दन बाद, मह ष वासा अपने ब त-से अनुया यय के साथ
ह तनापुर आए। मह ष वासा अपने ोधी वभाव के लए स थे और उ ह स
करना हथेली पर सरस जमाने जैसा था। शाप उनक ज ा क नोक पर रखा रहता था। वे
इधर ो धत ए और उधर शाप दया! ऐसे ऋ षगण जतनी ज द शाप दे ते थे, स होने
पर, उतनी ही ज द उनसे वरदान मलने क संभावना भी रहती थी। वासा को दे खकर
य धन क कु टल बु ने पांडव को त प ँचाने के लए फर एक कुच क रचना शु
कर द । उसने पांडव के वनाश के लए ोधी वासा को मोहरा बनाने का जो ़खम-भरा
नणय ले लया।
य धन ने अपने पूरे साम य से वासा का आदर-स कार करके उ ह स कर लया।
वासा ने चलते समय य धन से कहा, “पु य धन! म तु हारी सेवा से अ त स ,ँ तुम
जो चाहो, मुझसे माँग लो!”
य धन के मानो भा य खुल गए! उसे इसी ण क ती ा थी।
“ऋ षवर!” य धन ने कु टल मु कान छपाते ए कहा, “यह मेरा सौभा य है क
आपने मुझे सेवा का अवसर दया। आप तो जानते ह क हमारे कुल म यु ध र मेरे ये
भाई ह। वे इन दन अपने भाइय के साथ ै तवन म रहते ह। मुझे इस बात का ख हो रहा है
क वे वनवास के कारण आपक सेवा के पु य-काय से वं चत रह गए ह। आप य द मेरी सेवा
से सचमुच स ह और मुझे आशीवाद दे ना चाहते ह तो मेरी केवल यही इ छा है क आप
अपने श य के साथ एक बार मेरे बड़े भाई यु ध र के पास भी जाएँ तथा उ ह भी अपनी
सेवा का सुअवसर दान कर!”
“अव य य धन!” वासा ने भोलेपन से कहा।
“ऋ षवर!” य धन बोला, “मेरी एक और ाथना है क आप यु ध र के पास उस
समय पधार जब ौपद अपने प तय को भोजन परोसकर, वयं भी भोजन से नवृ हो
चुक हो। ता क वे लोग भली-भां त आपका आ त य-स कार कर सक।”
“तुम बड़े सौ य वभाव के हो य धन!” वासा बोले, “मुझे यह दे खकर ब त अ छा
लगा क तुम अपने पांडव भाइय से इतना नेह करते हो। म तु हारी इ छा अव य पूरी
क ँ गा और यहाँ से सीधे ै तवन जाऊँगा! तु हारा क याण हो!” ऐसा कहकर ऋ ष वासा
अपने श य के साथ ह तनापुर से थान कर गए।
य धन क ख़ुशी का ठकाना नह था। वह जानता था क वन म रहने के कारण
यु ध र के लए वासा का आ थ य-स कार करना संभव नह होगा और इसके फल व प
वासा पांडव से हो जाएँगे तथा उ ह शाप दे दगे। इससे य द पांडव क अ धक हा न
नह होगी तो भी उनका मनोबल अव य टू ट जाएगा। वासा के जाते ही य धन ज़ोर-ज़ोर से
हँसने लगा। उसे व ास था क अब पांडव को वासा के कोप से कोई नह बचा सकता
था।
व कपट मनु य क यही पहचान होती है क वह अवसर मलने पर अपने लए
सुख-शां त से पूव अपने श ु क हा न क इ छा करता है! मुझे यह दे खकर ब त आ य
आ क वासा जैसे यश वी एवं परम ानी को य धन क नीयत पर त नक भी संदेह नह
आ!
य धन ने पांडव क भावी दशा का वृ ांत जानने के लए अपने गु तचर वासा के
पीछे भेज दए। गु तचर ने ै तवन से लौटकर जो कुछ बताया उसे सुनकर य धन तथा
अ य सभी त ध रह गए।
य धन को दए वचन के अनुसार वासा ने ै तवन प ँचकर अपने श य से पता
करवा लया क पांडव दोपहर के भोजन से नवृ हो चुके थे। वे उसी समय सब श य को
लेकर यु ध र के ार पर जा प ँच।े वासा के दशन होना कसी वप से कम न था!
यु ध र समेत सभी पांडव भाइय ने उ ह णाम कया और अपनी दशा छपाने का
यास करते ए कहा, “ऋ षवर! यह हमारा सौभा य है क आपके ीचरण से हमारी
कु टया प व ई है।”
वासा बोले, “तु हारा मंगल हो यु ध र! य धन के घर पर अ त थ रहने के बाद
उसके कहने पर ही म अपने श य के साथ यहाँ आया ँ ता क य धन क इ छानुसार, तु ह
भी मेरे स कार का अवसर मल सके। इस समय हम ब त ज़ोर से भूख लगी है।”
यु ध र समझ गया क य धन ने इस बार ब त चतुराई से उ ह फँसाने क योजना
बनाई थी। परंतु वह घबराया नह और बोला, “आप नान करके वापस आइए! हम आपके
व आपके श य के लए भोजन क व था करते ह।”
“ब त अ छा!” वासा ने स होकर कहा और श य को लेकर नद -तट क ओर
चल दए। उनके जाते ही पाँच भाइय ने एक- सरे क ओर दे खा जससे प था क वे
वधा म थे। परंतु ़फलहाल, चता का वषय यह था क इतने कम समय म वासा और
उनके श य को भोजन खलाकर तृ त कैसे जाए। उ ह यह भी भली-भां त पता था क य द
वासा उनके स कार से संतु न ए तो इसका प रणाम या होगा!
“हमने य धन को गंधव के कोप से बचाया,” भीम ने दाँत पीसते ए कहा, “ले कन
उसके नीच वहार म कोई सुधार नह आ है। दे खो, उसने हम कस संकट म डाल दया!”
यु ध र ने ौपद से पूछा, “ ौपद , या तु हारा अ य पा इस समय हमारी सहायता
कर पाएगा?”
“नह महाराज!” ौपद ने खी वर म कहा, “वह अ यपा मुझे सूयदे व ने दया था
और कहा था क उसम पकाए गए भोजन से एक दन म असं य लोग का पेट भरा जा
सकता है कतु ऐसा करना केवल तब तक संभव है, जब तक म वयं भोजन न कर लू।ँ मेरे
भोजन से नवृ हो जाने के बाद, वह पा भोजन दान नह कर सकता। भा य से, मने
अभी कुछ दे र पहले ही भोजन समा त कर पा धोकर रखा है।”
“ओह! यह तो संकटपूण थ त है और अब हमारे पास तुरंत वन से फल-स ज़ी लाकर
पकाने के अ त र कोई वक प नह है।” ऐसा कहकर पांडव वन क ओर दौड़ पड़े।
ौपद ने चू हा जलाना शु कर दया और अपने सखा कृ ण को याद करने लगी। वह
अपने पाँच महाबली प तय क तरह घबराई नह य क उसके सखा ीकृ ण हर संकट म
उसक सहायता करते थे। कौरव-सभा म चीर-हरण क घटना ने ौपद का यह व ास
अ यंत ढ़ कर दया था। उसके इसी अखंड व ास का प रणाम था क पांडव के नकलते
ही, कुछ ही ण बाद ीकृ ण वहाँ आ गए।
“अरे!” ौपद कृ ण को दे खकर आ यच कत रह गई। “आप यहाँ कैसे आए?” उसने
पूछा।
“म ै तवन से गुज़र रहा था। अचानक मुझे ब त तेज़ भूख लगी, तो मने सोचा क
आज तुम लोग के साथ भोजन कर लया जाए!” कृ ण ने मु कराते ए उ र दया।
“प रहास मत करो कृ ण,” ौपद ने खीजते ए कहा, “म नह जानती क आपको
हमारी परेशानी के बारे म पता है अथवा नह कतु, इस समय मेरे पास आपको खलाने के
लए भोजन का एक दाना भी नह है।”
“म तु हारी परेशानी के वषय म बाद म सोचूँगा, मगर पहले मुझे खाने को कुछ
चा हए। एक बार मुझे अपना पा तो दखाओ। हो सकता है, उसम कुछ भोजन शेष हो।”
“आपको मुझ पर व ास नह है तो लो, वयं दे ख लो।” यह कहते ए ौपद ने
अपना अ यपा कृ ण के हाथ म थमा दया।
“आह! दे खा, तु हारा झूठ पकड़ा गया!” कृ ण ने उस पा के कनारे पर चपका,
चावल का एक दाना उठाते ए कहा, “तुम तो कह रही थ क तु हारे पास एक भी दाना नह
है, तो फर यह कहाँ से आया?”
“ कतु… मगर… मने तो…” ौपद से कुछ बोलते नह बन रहा था।
ीकृ ण ने चावल का वह दाना अपने म मुँह म रखा और उसे चबाने लगे। उसके बाद
उ ह ने थोड़ा जल पया और ज़ोर से डकार लेते ए बोले, “वाह! मज़ा आ गया! संसार के
सभी ाणी मेरी तरह तृ त हो जाएँ!”
ौपद के चेहरे पर आ य और ोध के मले-जुले भाव थे। उसे समझ नह आया क
ीकृ ण सचमुच तृ त हो गए थे अथवा वह केवल उसका मन बहला रहे थे।
“मह ष वासा के ोध क क पना से मेरी जान नकल रही है और आपको
प रहास…!” ौपद क बात अभी पूरी भी नह ई थी क पांडव ने कु टया म वेश कया।
उनके हाथ म सूखी लक ़डयाँ और ब त-से फल इ या द थे।
“मह ष वासा को कहाँ छोड़ आए, भीम?” कृ ण ने मु कराते ए पूछा।
ौपद ने अचं भत होकर कृ ण को दे खा, कतु कृ ण मु कराते ए भीम के उ र क
ती ा कर रहे थे।
“आज ब त व च बात ई!” भीम ने कहा। “वन से लौटते समय हम फर से ऋ ष
वासा व उनके श य मले थे। वे हमारी कु टया से र कसी अ य दशा म जा रहे थे। मने
उनसे वापस जाने का कारण पूछा और भोजन के लए आमं त भी कया। परंतु वे बोले क
उनका पेट भर गया है। फर उ ह ने ब त ज़ोर से डकार ली और हम आशीवाद दे कर अपने
श य के साथ आगे बढ़ गए!” ौपद को अपने कान पर व ास नह आ।
एक बार फर ीकृ ण ने पांडव पर आई ब त बड़ी वपदा को टाल दया था। मने जब
यह करण सुना तो जहाँ एक ओर ीकृ ण के त मेरी आ था पहले से भी अ धक बल
हो गई, वह सरी ओर, मेरा मन य धन के त और अ धक मैला एवं नकारा मक हो गया
था।
16
उ नऐसादनयोमहारथी कण ह तनापुर आया आ था। मेरी म कौरव-प म कण एकमा
ा ऐसा था जसने य धन के धूत वभाव से प र चत होने के बाद भी य धन
का एक बार भी वरोध नह कया, अ पतु य धन के येक कम म उसका साथ भी
दया।
एक दन म नद -तट पर अकेला बैठा पांडव -कौरव के बीच बनते- बगड़ते समीकरण
पर वचार कर रहा था क मने कुछ री पर कण को नान करके नद से बाहर नकलते
दे खा। कण के तन पर वण-कवच और कान म वण-कुंडल सूय के समान चमक रहे थे।
कहते ह, कण का ज म उन कवच और कुंडल के साथ ही आ था। वे दोन व तुएँ अमृतमय
थ , जसके कारण कण के तन पर उन व तु के रहते उसे मार पाना असंभव था। कण के
वषय म यह भी यात था क वह अ यंत दानवीर था और नान से लौटते समय उससे
कोई कुछ भी माँगता तो वह मना नह करता था। इस कारण नान के बाद उसे माग म ायः
याचक मल जाते थे जो कण से मुँह-माँगी व तुएँ पाकर संतु होकर लौटते थे।
उस दन भी कुछ ऐसा ही आ। याचक को दान दे ने के बाद कण आगे बढ़ गया। उसे
माग म एक ा ण मला। कण ने ा ण को णाम कया और पूछा, “ ा ण दे वता,
क हए म आपके लए या कर सकता ? ँ ”
“यश वी भव!” ा ण ने कहा, “मने सुना है क तुम कसी याचक को नराश नह
करते। म इसी आशा म तुमसे कुछ माँगने आया ँ।”
“आदे श कर ा ण दे वता!” कण ने कहा। “म यास क ँ गा क आपको नराश न
क ँ ।”
“म तु हारे द कवच और कुंडल क कामना लेकर आया ँ!” ा ण ने त काल
अपनी इ छा कर द । या मेरी यह इ छा पूण होगी?”
“ मा कर!” कण च क गया। “परंत… ु ” उसने संकोच करते ए कहा, “ये कवच-
कुंडल ज म से मेरे तन का ह सा ह। म इ ह आपको कैसे दे सकता ँ? आप इ ह छोड़कर
और कुछ भी माँग ली जए।”
ा ण ने कहा, “मने सुना था क इस पृ वी पर तुमसे बड़ा दानी कोई नह है। संभवतः
मने ग़लत सुना था। मुझे और कुछ नह चा हए। कोई बात नह , कण! म चलता ँ।”
“ कए ा ण दे व!” कण ने ण-भर सोचने के बाद कहा, “मने आपको पहचान
लया है। आप न य ही इं दे व ह और मेरे कवच-कुंडल लेकर आप मुझे श हीन बनाना
चाहते ह। म चा ँ तो आपको कवच-कुंडल दे ने से मना कर सकता ँ, कतु म नह चाहता क
संसार उपहास करे और कहे क कण को अपने ाण अपने वचन से अ धक य थे और
इस लए उसने एक ा ण को नराश कर दया।” यह कहकर कण ने कमर म बँधा छु रा
नकाला और अपने द कवच-कुंडल को तन से काटकर अलग कर दया। कण का तन
ख़ून से लथपथ हो गया। उसे दे खकर इं क आँख म आँसू आ गए।
इं ने कहा, “म तुमसे ब त स ँ, दानवीर कण! मेरा व छोड़कर तुम मुझसे कुछ
भी माँग सकते हो।”
“ भु,” कण बोला, “मने अपनी ाण-र क व तुएँ आपको दान म दे द ह। इसके
बदले आप मुझे कोई अचूक द ा द जए!”
“तथा तु!” इं बोले, “म तु ह अपनी अमोघ श दे ता ँ। यह अचूक है और इससे
श ु का अंत न त है। परंतु यान रहे क तुम यु म इसका योग केवल एक बार कर
सकते हो।” कण को अमोघ श दान करके, और उसके कवच-कुंडल लेकर इं
अंत यान हो गए।
मुझे यह समझते दे र न लगी क इं ने यह कपटपूण कृ य इस लए कया य क यु
म केवल अजुन ही कण को परा त कर सकता था कतु कण के तन पर कवच-कुंडल होते
ए उसे परा जत करना असंभव था। इं ने अजुन क वजय सु न त करने के उ े य से
कण के अभे कवच और द कुंडल उससे छ नने हेतु यह कु टल चाल चली थी। अब
यह था क इं क अजुन से ऐसी या नकटता थी जसके कारण इं ने छलपूवक कण से
ऐसा वकट काय करवाया और अजुन क सहायता क ? इस उ र को खोजने के लए मेरे
पास एक ही थान था!
म महा मा व र के पास प ँच गया। मने व र को यह घटना सुनाई और इं क अजुन
से घ न ता के वषय म पूछा तो वह मुझे साथ लेकर महल से बाहर चले आए। जब कभी
ऐसा होता तो इसका अथ यह था क वे कुछ गोपनीय बात कहना चाहते थे। महल के उ ान
को पार करने के बाद व र के और मुझे दे खकर उ ह ने कहा, “अजुन, वा तव म दे वराज
इं का पु है! इं ने छल से कण का द कवच-कुंडल लेकर अपने पु क वजय का माग
श त कर दया है, अ थामा!”
ऐसा न जाने य होता था क मेरे कसी के उ र म व र कुछ ऐसा कह दे ते थे
जससे फर कसी नए का ज म हो जाता था जसका उ र भी मुझे व र ही से मलता
था। म सोचने लगा क कुंती का प त पांडु था तो फर अजुन के पता, इं दे व कस कार हो
सकते ह। मने व र से यह कया तो उ र म मुझे ऐसी बात जानने को मली जसक म
क पना भी नह कर सकता था।
व र ने बताया क पांडु के बाण से जब र त- या म संल न कदम मु न क मृ यु ई
थी तो कदम ने पांडु को शाप दया था क उसक मृ यु भी अपनी प नी के साथ संभोग
करने से ही होगी! बाद म, कदम मु न क ह या का ाय त करने के लए पांडु वन म रहने
लगा। वहाँ रहते ए एक दन उसके मन म संतान क इ छा उ प ई कतु शाप के भय से
वह अपनी प नय के नकट नह जा सकता था। इस वधा से पांडु खी रहने लगा। एक
दन पांडु को उदास दे खकर कुंती उसके पास आई और उसने बताया क उसक क याव था
म मह ष वासा ने स होकर उसे यह वरदान दया था क वह जब चाहे, कसी भी दे वता
का आ ान कर सकती है। यह सुनकर पांडु ब त स आ और उसने कुंती से आ ह
कया क वह वासा के दए वरदान का लाभ उठाकर कसी दे वता का आ ान करे और
उनसे पु माँग ले। तब उस वषम प र थ त म, वयं पांडु के कहने पर कुंती ने धमराज का
आ ान करके पु प म यु ध र को पाया और उसके बाद, एक-एक करके पवनदे व से
भीमसेन, दे वराज इं से अजुन का ज म आ। इसके बाद, पांडु क सरी प नी, मा ने
कुंती से वह वरदान उधार माँग लया और उसके फल व प मा को भी अ नीकुमार
ारा नकुल और सहदे व क ा त ई। इस कार कुंती से तीन तथा मा से दो पु के
ज म के बाद, पांडु भी पाँच पु का पता बन गया। पु क कामना पूण होने से पांडु का
मान सक तनाव समा त हो गया। एक दन कामास होने पर पांडु ने मा के साथ संसग
करने का यास कया और तभी कदम के शाप के भाव से पांडु क मृ यु हो गई। मा ने
वयं को पांडु क मृ यु का दोषी माना और वह पांडु क चता के साथ सती हो गई। इसके
बाद, कुंती के पास अपने पाँच अबोध बालक को लेकर ह तनापुर लौटने के अ त र कोई
वक प नह था।
व र का यह अनुमान था क कदम मु न ारा दए शाप वाली बात शायद कसी को
पता नह थी इस लए जब कुंती अपने नवजात पु के साथ ह तनापुर लौट तो कसी ने
उससे यह नह कया क मु न के शाप के कारण पांडु के लए संभोग करना अंसभव था
तो फर कुंती के पाँच बालक का ज म कैसे आ!
कुंती ारा वरदान क सहायता से इं और अजुन का संबंध प हो गया। हालां क,
वरदान कभी-कभी अ भशाप भी बन जाते ह, यह बात मुझे तब समझ म आई जब पांडव के
ही ज म से जुड़ा एक और रह य मुझे ब त बाद म पता लगा। म उस रह य को भी बाद म ही
कट क ँ गा य क वह इस कथा क अ यंत मह वपूण कड़ी है, ले कन यहाँ उसका
उ लेख करने से कथा का रोमांच समा त हो जाएगा।
17
मुझे सहसा एक घटना याद आ रही है। हालां क इसम मेरी मूखता ही प रल त होती है,
कतु जीवन के इस पड़ाव पर, जब मुझे अपने ऊपर हँसने वाले लोग भी ढूँ ढ़ने से नह मलते
और म वयं ही अपने अ छे -बुरे कृ य को आपके साथ साझा कर रहा ँ, तो ऐसे म उस
घटना का उ लेख करना इस महागाथा के सागर म एक घट से अ धक नह है!
जन दन पांडव वन म थे, उस बीच म कुछ समय के लए ारका म वृ णवं शय के
साथ रहने गया आ था। उ ह ने मेरा ब त स कार कया। वहाँ रहते ए एक दन मेरे मन म
वचार उठा क इस संसार म ीकृ ण के अ त र कोई भी अजेय नह है और कृ ण के
अजेय होने का कारण उनका द सुदशन च है जसे वे हर पल अपनी तजनी म धारण
कए रखते ह। मने सोचा, य द वह च मुझे मल जाए तो म भी अजेय हो सकता ँ! यह
वचार मन म आते ही म उस च को पाने क मूखतापूण कामना लेकर ीकृ ण के पास जा
प ँचा।
“गो वद!” मने अ यंत मधुर वाणी म कृ ण से कहा, “मेरे पता ोणाचाय ने भीषण
तप या ारा महामु न अग य से ा ा त कया था। वह अ अब मेरे पास है और मेरे
पता ने उसे चलाने क व ा भी मुझे सखाई है कतु साथ ही उसे योग न करने क
चेतावनी भी द है य क उसके योग से सम त पृ वी न हो सकती है। मुझे नह लगता
क कभी कोई ऐसी थ त उ प होगी जब मुझे उस अ को योग करने क आव यकता
पड़ेगी और इस लए मेरे लए उस ा का कोई लाभ नह है।”
ीकृ ण मु कराते ए बोले, “म जानता ँ अ थामा। वह सचमुच ही द और
श शाली अ है। तुम अ यंत भा यशाली हो क वह महान अ तु हारे पास है और तु ह
उसके उपयोग क व ध भी ात है। परंतु तुम यह सब मुझे य बता रहे हो?”
मने कृ ण से अपना असली मंत छपाते ए कहा, “माधव! म यह आपको इस लए
बता रहा ँ य क आपके पास तो ऐसे अनेक द और चम कारी अ ह, जनके ारा
श ु को सरलता से परा जत कया जा सकता है। इस लए, मेरी इ छा है क आप अपने उन
अ म से अपना द सुदशन च मुझे दे द जए और उसके बदले म य द आप चाह तो म
आपको अपना ा दे सकता ँ!”
मेरी बार सुनकर एक ण के लए ीकृ ण के चेहरे के भाव गंभीर हो गए, फर अगले
ही पल वे दोबारा सहज हो गए। मुझे ऐसा आभास आ क वे मेरी चाल समझ गए थे। परंतु
अब तो मुझे केवल उनक “हाँ” क ती ा थी।
“ य अ थ!” वे अ यंत सौ य वाणी म बोले, “हालां क तुम य धन के प म हो
और तुम जानते ही हो क मुझे पांडव अ धक य ह, इस लए वैसे तो मुझे तु हारी ाथना
तुरंत अ वीकार कर दे नी चा हए य क तु ह अपना सुदशन च दे ना, पांडव के लए
घातक हो सकता है, कतु यह मेरी बलता है क म समपण भाव से आए कसी को
ख़ाली हाथ नह लौटा सकता। मुझे तु हारी इ छा पूरी करनी ही होगी। मेरे पास धनुष, श ,
च और गदा - ये चार मु य अ ह। तुम इनम से जो चाहो, ले सकते हो!”
मेरी स ता का ठकाना न रहा। मने आगे बढ़कर तुरंत अपने बाएँ हाथ से च को
उठाना चाहा। परंतु वह इतना भारी था क मुझसे हला भी नह । मने अपने दा हने हाथ से
यास कया कतु च नह हला। मने दोन हाथ से अपना पूरा ज़ोर लगाया। मेरे माथे से
पसीने क बूँद टपक रही थ , चेहरा लाल हो गया था, कतु ीकृ ण का वह हज़ार अर तथा
व क ना भ वाला सुदशन च टस से मस न आ! म अपने जीवन काल म पहली बार
इतना ल जत महसूस कर रहा था। म नराश होकर पीछे हट गया और झुकाए ीकृ ण
के सामने खड़ा रहा।
“अ थामा!” ीकृ ण बोले, “मने हमालय म बारह वष तक कठोर चय- त का
पालन करने के उपरांत इस च को ा त कया है और यही कारण है क यह तुमसे हला
तक नह ! परंतु म तुमसे एक बात पूछना चाहता ँ क गांडीवधारी अजुन ने, जसक वजा
पर वानर का च सुशो भत है और जसने ं म दे वा धदे व उमाप त भगवान शंकर को भी
संतु कर दया था, कभी मेरे च को पाने क इ छा नह क । यहाँ तक क मेरी
सहध मणी मणी के गभ से उ प ु न ने भी, जो वा तव म सन कुमार का अंश है,
मुझसे यह च नह माँगा। तुम भरतवंशी आचाय ोण के पु हो और सभी यादव तु हारा
स मान करते ह, तो फर तु हारे मन म इस च को पाने क इ छा य जा त ई? तुम यह
च लेकर कसके साथ यु करना चाहते थे?”
म पहले ही अपनी असमथता के कारण ल जत था, ऊपर से कृ ण ने यह पूछकर
मेरे शेष आ म-स मान को भी उधेड़ दया। मुझे उ र तो दे ना ही था, सो मने सच कह दया,
“माधव! म जानता ँ क आप अजेय ह और इसम आपके सुदशन च का भी योगदान है।
यही कारण था क म आपका च ा त करके आप ही से यु करता और फर आपको
परा त करके अजेय बनना चाहता था!” यह कहकर मने ीकृ ण को णाम कया और उ ह
मेरी मूखता पर मु कराता छोड़ ारका से लौट आया।
18
ू तदनम वनहारनेम कघूे मबाद, पांडव के बारह साल के वनवास का अं तम वष चल रहा था। एक
ते ए पांडव को यास लगी तो वे एक पेड़ के नीचे बैठ गए। ौपद ने
नकुल से पानी लेकर आने को कहा। कुछ दे र बीत जाने पर जब नकुल नह लौटा तो सहदे व
उसे खोजने गया। जब वे दोन ही ब त दे र तक नह आए तो यु ध र ने अजुन को भेजा।
आ य क बात थी क अजुन भी गया तो फर वापस नह आया। अब भीम क बारी थी
कतु हज़ार हा थय जतना बलशाली भीम भी नह गया और लौटकर नह आया तो ौपद
और यु ध र को चता ई।
ौपद ने कहा, “यु ध र! संसार के सव े धनुधर और पृ वी के सबसे श शाली
पु ष को एक कटोरा पानी लाने म इतना वलंब य हो रहा है? मुझे ब त चता हो रही है।
आप कृपया जाइए और दे खए, मुझे लगता है क वे चार कसी संकट म ह।”
यु ध र को ौपद क बात सही लगी। वह अपने चार भाइय क खोज म नकल
पड़ा। अपने भाइय को खोजता आ यु ध र एक सरोवर के पास प ँचा तो उसने दे खा क
उसके चार भाई धरती पर अचेत पड़े थे। वह उनके नकट गया तो आ य से उसका र
जम गया। चार पांडव मर चुके थे! यु ध र का दय ख से वद ण हो गया। वह अपने
भाइय क अक मात मृ यु का कारण जानने के लए आतुर हो गया। उसने इधर-उधर दे खा
और फर तालाब के पानी म उतरने लगा।
“ठहरो!” तालाब के भीतर से आवाज़ आई। “म य ँ और इस तालाब का र क ँ।
मने ही तु हारे चार भाइय को मारा है!”
“ कतु मेरे भाइय का अपराध या था?” यु ध र ने ँ धे गले से पूछा।
“मने इ ह तालाब से पानी पीने से रोका था, कतु उसके बावजूद, इ ह ने पानी पीने का
यास कया, और इस लए मने अपनी अव ा के अपराध म इन चार को मार दया!”
“म इनके अपराध के लए आपसे मा माँगता ँ। कृपया इ ह जी वत करने का माग
बताएँ।” यु ध र ने कातर भाव से कहा।
“तुम य द मेरे के सही उ र दोगे तो म इ ह जी वत कर ँ गा, अ यथा तु ह भी
इनके साथ यमलोक प ँचा ँ गा,” य ने कहा। “य द तुम चाहो तो अपने भाइय को मृत
छोड़कर यहाँ से वापस लौट सकते हो और अपने ाण क र ा कर सकते हो।”
हालां क, ान क से यु ध र के लए यह चुनौती क ठन नह थी कतु इसम एक
ख़तरा यह था क य द वह कसी का उ र दे ने से चूक जाता तो उसे भी अपने ाण
गँवाने पड़ते। परंतु जैसे ही उसक अपने भाइय पर पड़ी तो उसने य क चुनौती को
वीकार कर लया।
“सूय को कौन उ दत करता है?” य ने पहला कया।
“सूय को उ दत करता है,” यु ध र ने आ म व ास से पहला उ र दया।
“सूय के चार ओर कौन चलते ह?”
“सूय के चार ओर दे वता चलते ह।”
“सूय को अ त कौन करता है?” य के गंभीर होते जा रहे थे।
“सूय को धम अ त करता है।” यु ध र ने सहजता से उ र दया।
“सूय कसम त त है?”
“सूय, स य म त त है” धमराज के अंश, यु ध र ने कहा।
इसके बाद, य ने आ या मकता के गूढ़तम से लेकर सामा य ान तक सब तरह
के पूछे।
“पृ वी से अ धक भारी कौन है? आकाश से भी अ धक ऊँचा या है? वायु से भी
अ धक तेज़ कौन है? वह या है जो सं या म घास के तनक से भी अ धक है?”
“पृ वी से अ धक भारी माता है,” जतनी शी ता से य पूछ रहा था, यु ध र भी
लगभग उतने ही व रत उ र दे रहा था। “ पता आकाश से भी ऊँचा है। मन क ग त, वायु से
अ धक तेज़ है और मनु य के मन म ा त चताएँ, घास के तनक से भी अ धक ह।”
य के धीरे-धीरे पेचीदा होते जा रहे थे। ले कन यु ध र अ यंत धैय और बु से
सभी के उ र दे रहा था। इस तरह य ने न यानवे पूछने के बाद कहा, “यह मेरा
अं तम है यु ध र! ब त सोच-समझकर जवाब दे ना।”
“जी! आप पू छए,” यु ध र ने कहा।
“इस संसार का सबसे बड़ा आ य या है?”
यु ध र ने एक पल के लए सोचा और फर कहा, “ त दन असं य लोग मृ यु को
ा त होते ह, कतु फर भी जो लोग बच जाते ह, वे सदा जी वत रहने क कामना रखते ह।
यही इस संसार का सबसे बड़ा आ य है!”
“अ त सुंदर यु ध र! तुमने मेरे सभी के उ र बलकुल ठ क दए ह। म तुमसे
ब त स ँ। म तु हारे चार भाइय को तो जी वत कर ही ँ गा, साथ ही म तु ह दो वरदान
दे ना चाहता ँ। माँगो, या चा हए?”
ब त दे र तक सोचने के बाद यु ध र बोला, “हम लोग का वनवास-काल समा त होने
वाला है और हम एक वष अ ातवास म बताना है। य द कसी ने हम इस बीच पहचान लया
तो हम फर से बारह वष का वनवास बताना होगा। इस लए आप मुझे यह वरदान द जए
क उस एक वष के अ ातवास के दौरान हम कोई न पहचान सके।”
“तथा तु!” य ने कहा, “अब सरा वर माँगो!”
“मुझे सरा वर यह द जए क म लोभ, मोह और ोध को जीत सकूँ तथा दान, तप
और स य, सदा मेरे मन क वृ बने रह!”
“तु हारी इ छा पूण हो!” इसके बाद य ने चार पांडव भाइय को जी वत कर दया
और अंत यान हो गया।
अपने तेज वी प और वल ण तभा के कारण पांडव के लए एक वष तक
छपकर रहना असंभव था, कतु य का वरदान, इस क ठन समय म उनके लए अभे
कवच बन गया। उ ह ने अ ातवास का एक वष बताने के लए म यदे श का चयन कया
य क वहाँ का राजा वराट अ यंत बलशाली होने के साथ-साथ पांडुवंश के त नेह
रखता था। पाँच पांडव और ौपद अलग-अलग समय पर वराट के दरबार म गए और उसे
स करके अपने-अपने लए काय माँग लया। अजुन के अ त र , चार भाइय और
ौपद को उनक यो यता एवं पसंद के अनुसार वराट के महल म काय मल गया।
यु ध र को पाँसे खेलने का शौक था, तो उसने ‘कंक’ नामक ा ण के प म राजा
वराट का सभासद बनकर उसके साथ ूत खेलने एवं उसका मनोरंजन करने का नणय
लया। भीमसेन को भोजन पकाना और खाना ब त पसंद था, इस लए उसने अपने लए
‘व लभ’ नाम चुना और वराट के रसोइये का काय उसे पसंद आया। नकुल को अ - व ा
का ब त अ छा ान था, तो उसने ‘ ं थक’ नाम के अ पाल के प म काय सँभालने का
वचार बनाया। सहदे व को गाय क अ छ जानकारी थी, इस लए उसने ‘तं तपाल’ नाम
चुना और राजा वराट क गौशाला म काम करने का नणय लया। ौपद ने न य कया क
वह वयं को ‘सैरं ी’ नाम से ौपद क दासी बताकर वराट क प नी क से वका बन
जाएगी। परंतु अजुन यह नणय नह कर पा रहा था क वह अपने लए कौन-सी भू मका का
चयन करे।
कुछ दे र बाद अजुन ने कहा, “मुझे भी समझ म आ गया। म ‘बृह ला’ नाम से नपुंसक
बनकर एक वष तक वराट के र नवास क य को नृ य एवं संगीत क श ा ँ गा और
उनका मनोरंजन भी क ँ गा!”
“नपुंसक!” यु ध र ने उ नता से पूछा, “अजुन, यह तुम या कह रहे हो? तुम
नपुंसक बनकर कैसे रह सकते हो?” संसार के सव े धनुधर के मुख से नृ य-संगीत क
बात सुनना अपने आप म व च बात थी।
“भैया!” अजुन ने यु ध र से कहा, “इसम भी एक रह य है जो मने आपको नह
बताया था। म जन दन द ा क खोज म इं लोक गया आ था, मने वहाँ गंधव
च सेन से गाना-बजाना भी सीख लया था। वह रहते ए एक दन मेरी भट च सेन क
एक अ सरा से ई। उसका नाम उवशी था। वह मेरे प पर मो हत हो गई और उसने ेम का
ताव कर दया। मने उन दन चय त ले रखा था, इस लए मने उवशी को कहा क म
उसका आदर करता ँ और म उससे ववाह करने म अ म ँ।” यह सुनकर वह हँसी और
बोली, “हम अ सराएँ ववाह नह करत । म आपके आकषक व पर आस हो गई
ँ। म काम से पी ड़त ँ और आपसे वनती करती ँ क आप मेरा क र क जए।”
अजुन ने आगे बताया, “मने उवशी को कई कार से समझाने क को शश क । मने
उससे यह भी कहा क जस कार कुंती, मा और इं क प नी शची मेरी माताएँ ह, उसी
तरह आप भी मेरी माता के समान ह तथा मेरे लए वंदनीय ह!”
यह सुनते ही उवशी को ोध आ गया और वह बोली, “अजुन! म कामातुर होकर
तु हारे पास आई थी कतु तुमने ी का क र करने के बजाय उसे और बढ़ा दया है। म
तु ह शाप दे ती ँ क तु ह य क तरह नतक बनकर रहना पड़ेगा। तु ह अपने जस पौ ष
पर इतना घमंड है, उसे खोकर तु ह नपुंसक का जीवन जीना पड़ेगा!”
यह बात सुनकर यु ध र को घोर आ य आ। उसने अजुन से आगे क बात बताने
का आ ह कया। तब अजुन बोला, “उवशी के शाप का भाव त काल आरंभ हो गया। मुझे
लगा क कोई अ य श मेरे पौ ष को र द रही थी। म अपने भीतर प रवतन महसूस
करने लगा। म घबराकर च सेन क शरण म गया और उ ह पूरी बात बताई। मेरी बात
सुनकर च सेन धीमे-से मु कराए। इं लोक म शायद इस तरह क घटनाएँ सामा य होती
ह गी।”
च सेन ने कहा, “घबराओ मत अजुन! म उवशी ारा दए शाप को पूरी तरह समा त
तो नह कर सकता कतु इसक अव ध घटाकर एक वष कर सकता ँ और तु ह यह एक
सु वधा भी दे ता ँ क शाप का वह एक वष तुम वे छा से नधा रत कर सकोगे!”
“ओह!” यु ध र के चेहरे पर हष और अवसाद के म त भाव थे, “ फर तो तु हारा
नणय सही है! वराट के र नवास म नतक बनकर उस शाप को भोगने का यही सबसे
उपयु समय है।”
इस कार, पांडव ने ौपद के साथ म यदे श म वेश कया और जो कुछ तय आ
था, उसके अनुसार सबने अपना-अपना कायभार सँभाल लया। वे सब अपने काय म इतने
पारंगत थे क राजा वराट को कसी तरह का संदेह नह आ। एक ओर, यु ध र, राजा
वराट के साथ ूत खेलकर समय बताना और उसका मनोरंजन करना आरंभ कर दया तथा
सरी ओर, सैरं ी के प म ौपद ने भी अपनी ंगार-कला और सेवा से वराट क प नी
महारानी सुदे णा का दल जीत लया। इसी तरह, भीमसेन, नकुल और सहदे व भी अपना-
अपना काय करने लगे।
पांडव म सबसे अ धक दयनीय अव था अजुन क थी। शाप के भाव से रात -रात
उसके सर के बाल लंबे होकर पीठ तक आ गए थे और चेहरे पर से उसक रौबदार मूँछ
सहसा ग़ायब हो गई थ । वह रेशमी साड़ी व हाथ म कंगन पहनकर चलता तो उसका एक
हाथ कमर पर और सरा हाथ हवा म लहराता रहता था। माथे पर बड़ी-सी बद और बाल
म वेणी बाँधकर जब वह य क तरह लचकता आ र नवास म वेश करता तो ौपद के
मन म क-सी उठती और वह अपने आँसू छपा नह पाती थी।
म अजुन के वषय म सोचता ँ तो मुझे लगता है मेरे लए तो ऐसे जीवन क क पना
करना भी क ठन है। कोई साधारण मनु य होता तो इस शाप के दं श से संत त रहकर एक वष
म अपने साथ, अपने भाइय तथा अपनी प नी का जीवन भी नरक बना दे ता, कतु अजुन
साधारण मनु य नह था य क उसने अपनी बु और धैय क सहायता से शाप को भी
वरदान म प रव तत कर लया था। उसने उवशी के शाप तथा उससे ज नत पीड़ा को न केवल
हँसकर झेला अ पतु, अ ातवास के दौरान अपने लाभ के लए उस शाप का उपयोग कया।
अजुन जैसे वीर धनुधर ने पु ष होते ए भी नपुंसक का जीवन भोगा और उससे जुड़े
उपहास एवं उपे ा को सहन कया। न संदेह, अपने इसी अद्भुत एवं वल ण व के
कारण वह ोणाचाय, पतामह भी म तथा ीकृ ण के दय म बसता था!
पांडव का अ ातवास पूरा होने वाला था। एक दन म, कण और य धन यह सोच रहे
थे क अ ातवास से लौटते ही पांडव अपना रा य वापस माँगने आ जाएँग।े तभी त ने
समाचार दया क म य नरेश वराट के रसोइये व लभ ने रानी सुदे णा के भाई क चक को
मार डाला। बाद म पता लगा क क चक ने सुदे णा क दासी सैरं ी पर कु डाली तथा
उसे अपमा नत कया जसके कारण व लभ ने ोध म आकर क चक क ह या कर द । यह
साधारण समाचार नह था य क राजा के सेवक ारा रानी क से वका के साथ ए
वहार के लए रानी के भाई क ह या करना कोई सहज बात नह थी!
हम जानते थे क क चक इतना बलशाली था क उसे मारना तो र, उससे लड़ने के
वषय म सोचना भी सहज नह था। य धन को संदेह हो गया क यह न य ही कसी
असाधारण का काम था! कुछ समय बाद, य धन के गु तचर ने, जो पछले एक वष
से पांडव को खोजने म जुटे ए थे कतु य के वरदान के कारण सफल नह हो पाए थे,
य धन के संदेह क पु कर द क म यनरेश वराट का वशालकाय रसोइया व लभ
वा तव म भीमसेन ही है।
य धन का मन राज-काज से अ धक इस बात म लगता था क कससे, कब और कैसे
बदला लया जाए! उसक मूढ़ बु म यह वचार नह आता था क के जीवन म
शां त से अ धक कसी बात का मू य नह होता। उसने हम सबको तुरंत म यदे श पर हमला
करने का आदे श दया। भी म और ोणाचाय ने उसे समझाने का ब त यास कया क
पांडव का अ ातवास पूण हो चुका है और अब शत के अनुसार उनका रा य उ ह लौटा दे ना
चा हए, कतु लोभी और मूढ़ य धन त उठाकर भी अपने हठ को पूरा करता था। मने
अपने पता ोण क ओर असहाय से दे खा कतु रा य- न ा के भार से उनक आँख
बो झल थ ।
ह तनापुर के राज सहासन और उसके त न ा से बँधे सम त लोग ने अपने अ -
श सँभाले और वराट पर आ मण के लए कूच कर दया। मुझे भी ववशता म भी म,
ोण, कृप, कण, य धन, शासन के साथ जाना पड़ा। हम य ही म यदे श क सीमा तक
प ँच,े हमने दे खा क एक रथ हमारी ओर चला आ रहा था। रथ के ऊपर म यदे श क
पताका लहरा रही थी कतु आ य क बात यह थी क सारथी के थान पर वराट का पु
उ र बैठा था और पीछे अ -श से सुस जत अजुन खड़ा था! अ ातवास पूरा हो जाने
के कारण पांडव ने अपना असली प वराट के सम कट कर दया था।
ह तनापुर क रंगभू म म तो अजुन का यु -कौशल सबने दे खा था कतु यह रंगभू म
नह थी। यह रण-भू म थी! अजुन ने अपने धनुष क जो एक बार यंचा चढ़ाई तो फर
कसी को सँभलने का अवसर नह मला। हम जसका भय था, वही आ। सारे यो ा एक
के बाद एक धराशायी होते गए। ह तनापुर के सव े यो ा को इतना असहाय मने पहले
कभी नह दे खा था। अजुन ने उ र के साथ मलकर कुछ ही दे र म हमारी दशा कर द ।
ल जा के आवरण से पराजय का मुँह ढँ ककर हम लोग ह तनापुर लौट आए।
म सोचता रहा, य धन के कुबु -ज नत हठ के हाथ अभी और न जाने कब तक
कौरव का इसी तरह अपमान होता रहेगा! उधर कौरव-सेना को परा त करके उ र और
अजुन, जब राजा वराट के पास लौटे तो उनका अ भनंदन होना वाभा वक था। बाद म,
वराट ने अजुन क सहम त से अपनी पु ी उ रा का ववाह अजुन-पु अ भम यु से कर
दया।
19
म और व र एक दन उ ान म टहलते ए यु क संभावना पर चचा कर रहे थे।
सहसा हमने दे खा क य धन अपने सफ़ेद घोड़े पर दौड़ता आ हमारे नकट आकर
का। वह ह ठ तरछे कर मु करा रहा था मानो कोई ब त बड़ा काय पूण करके लौटा हो।
वह केवल कपटपूण योजनाएँ बनाते समय ही इस तरह मु कराता था इस लए, उसे ऐसे
मु कराता दे ख मुझे शंका होने लगी।
“अ थामा!” य धन अपनी भारी आवाज़ म बोला, “आज तु ह मेरी बु का लोहा
मानना ही पड़ेगा।”
“म और व र जी तो सदा तु हारी बु म ा क शंसा करते ह!” मने ं य कया जो
क य धन को समझ नह आया, “ कतु तुम इस समय कहाँ से लौट रहे हो, य धन?”
“म पांडव के साथ होने वाले यु के लए सहायता माँगने वासुदेव कृ ण के पास गया
था!” य धन ने व र को दे खकर कहा।
“ ीकृ ण के पास य , युवराज?” व र ने आ य से पूछा।
“मुझे अपने गु तचर से सूचना मली थी क अजुन, ीकृ ण के पास यु के लए
मदद माँगने जाने वाला है, तो मने सोचा क इस काय म म पीछे य र ँ। इस लए म अजुन
के प ँचने से पहले ही कृ ण के पास प ँच गया। अ थ मेरे म , अब इस यु म हमारी
वजय न त है!”
“अरे वाह! यह तो ब त शुभ समाचार है य धन, कतु पहले यह तो बताओ क कृ ण
ने तु ह ऐसा या कह दया जो तुमने यु से पहले ही यु का नणय भी जान लया?” मने
हँसते ए पूछा। सच क ँ तो मुझे व ास नह हो रहा था क य धन जैसा जड़म त और
अहंकारी ीकृ ण के ार पर सहायता माँगने चला गया और फर वहाँ से वजयी होने
का आशीवाद भी ले आया!
य धन ने अपनी मूँछ पर ताव दया और कहा, “म जब कृ ण के पास प ँचा तो मने
दे खा वे सो रहे थे और अजुन तब तक वहाँ नह प ँचा था। म ब त ख़ुश आ और ज द से
कृ ण के सर के समीप बैठ गया ता क वे उठते ही मुझे दे ख। मेरे प ँचने के कुछ दे र बाद,
अजुन भी वहाँ आ गया। मुझे पहले बैठा दे खकर अजुन का चेहरा उतर गया। म कृ ण के
सराहने बैठा था तो वह कृ ण के पैर के पास बैठ गया और फर हम दोन कृ ण के उठने क
ती ा करने लगे। शी ही, ीकृ ण क न ा टू ट तो उ ह हम दोन को वहाँ बैठा दे ख थोड़ा
अचरज आ।”
“अरे, अजुन और य धन! तुम दोन कब आए? आज यहाँ कैसे आना आ?”
ीकृ ण ने हमसे वहाँ आने का योजन पूछा।
“कृ ण, म आपसे आगामी महायु के लए सहायता माँगने आया ।ँ ” मने तपाक से
उ र दया।
“और अजुन, तुम यहाँ य आए हो?” कृ ण ने अजुन से पूछा।
अजुन ने पहले कृ ण को णाम कया और फर आदरपूवक कहा, “केशव! म तो यु
से पहले केवल आपका आशीवाद लेने आया ँ। हमारे लए इतना ही पया त है!”
कृ ण मु कराए और बोले, “तुम दोन ही मुझे य हो और म तुम दोन क सहायता
करना चाहता ।ँ म तुम दोन म से एक को अपनी नारायणी सेना दे सकता ँ और सरी
ओर, म अकेला र ँगा, कतु म न तो यु क ँ गा और न ही श उठाऊँगा! मेरी चूं क
अजुन पर पहले पड़ी थी, इस लए म उसे पहला अवसर दे रहा ँ।”
य धन ने बताया, “यह सुनकर मने सोचा क अजुन न त प से कृ ण से उनक
नारायणी सेना माँगेगा, कतु मुझे लगता है क तेरह वष वन म कंद-मूल खाने से उसक बु
कुं ठत हो गई है। उस मूख ने कृ ण से कहा, ‘केशव! मुझे तो बस आपका साथ चा हए। म
चाहता ँ क यु म आप मेरे सारथी बन।’ ीकृ ण ने मु कराकर हामी भर द । वाभा वक
प से, मुझे वह मल गया जो म लेने गया था। कृ ण क नारायणी सेना अब हमारी है!”
व र और मने एक- सरे को दे खा। हमारा संदेह सही था। य धन ने पहली मूखता यह
क थी क वह ीकृ ण के चरण के नकट न बैठकर उनके सर के पास जा बैठा था। इसके
बाद, कृ ण को खोकर, तथा उनके थान पर उनक नारायणी सेना ा त करके स होना
य धन क सरी और अ धक बड़ी मूखता थी! मन म ा त अहंकार और कपट के कारण
य धन यह नह समझ पाया क कृ ण का पांडव के प म होने का सीधा-सा अथ यह था
क हम लोग अधम के प म थे।
नर और नारायण के व यु करके हम कौन-सी वजय का व दे ख रहे थे?
रा य- न ा का फंदा मेरे गले म कसता जा रहा था। मुझे अब कसी कार के ाण क आशा
नह थी।
कौरव और पांडव के म य संभा वत यु क पदचाप सुनाई दे ने लगी थी। इसे लेकर
य धन के मन म तरह-तरह के वचार आते थे। वह अ धकतर यु को लेकर उ सा हत
दखाई दे ता था, कतु जब कभी उसे म य दे श क सीमा पर अजुन और उ र के साथ ए
यु क याद आती थी तो उसका उ साह ठं डा पड़ने लगता था। उस दन अकेले अजुन ने
सम त कौरव यो ा के हौसले प त कर दए थे, तो य द पाँच पांडव और उनके साथ
ीकृ ण भी आ जाएँगे तो यु का प रणाम कौरव प म होने क संभावना वाभा वक तौर
पर नह के बराबर थी।
मुझे कभी-कभी ऐसा लगता था क य धन को पांडव के साथ हो रहे अ याय एवं
वहार पर मन म खेद तो होता था और वह यु को टालना भी चाहता था, परंतु उसका
हठ व रा ही वभाव उसे धम के स माग पर आगे बढ़ने नह दे ता था।
इसी बीच एक दन ह तनापुर म ीकृ ण के आगमन का समाचार आया। हालां क
कृ ण का कु वंश के साथ पुराना संबंध था और उनका ह तनापुर म आना कोई अनहोनी
घटना नह थी कतु ऐसे समय म जब क उ ह ने वयं को पांडव-प म और अपनी नारायणी
सेना को कौरव-प म होने का वचन दे दया था, उनका सहसा ह तनापुर आना
अ वाभा वक था। उनके आने के समाचार से य धन के मन म हष क लहर दौड़ गई।
उसक ख़ुशी दे खकर मुझे लगा क वह इस अवसर पर अपनी भूल को सुधारने का यास
करेगा और कृ ण से मा माँगने को उ सुक होगा परंतु य धन के संदभ म मेरा अनुमान
हमेशा ग़लत होता था! इसके वपरीत, उसक मंदबु म न जाने कैसे, यह वचार आ गया
क य द कृ ण को राजसी स कार से स कर लया जाए तो शायद वे स कार के बोझ से
दबकर अपनी नारायणी सेना के साथ वयं भी कौरव-प म आ जाएँ। कुल मलाकर, यह
भी य धन क अनेक कु टल योजना म से एक थी।
उसने स ता और आदर का छ ावरण लपेटा और कृ ण को रझाने के लए उ ह
अपने महल म अ त थ बनने के लए आमं त कर लया। य धन डाल-डाल था तो कृ ण
पात-पात चलते थे! उ ह ने तुरंत य धन का ताव अ वीकार कर दया और राजसी
स कार को छोड़कर महा मा व र के घर म सामा य ढं ग से रहना पसंद कया। य धन क
कपट-लीला वफल हो गई। वह ऊपर से तो सामा य बना रहा कतु इस बात पर कृ ण से
चढ़ गया।
अगले दन सुबह ही कृ ण मु कराते ए धृतरा के राजदरबार म आ गए और सबको
णाम करके अपनी बात कह द , “महाराज धृतरा ! म यहाँ वासुदेव कृ ण बनकर नह ,
अ पतु पांडव का त बनकर आया ँ और यु ध र क ओर से एक सं ध- ताव लाया ँ।
पांडव नह चाहते क भारत का सबसे भु वशाली कु वंश आपसी भेद-भाव और अहंकार
क लड़ाई क भट चढ़ जाए। य द दोन प मलकर रह तो पृ वी पर कोई ऐसा थान नह
जहाँ वे आ धप य था पत नह कर सकते। यु का प रणाम केवल वनाश होता है, इस लए
उ ह ने मुझे आपके पास भेजा है ता क आप अपने पु य धन को समझाएँ क वह अपना
अनु चत हठ छोड़ दे और पांडव को शां तपूवक उनका रा य लौटा दे ।”
य प, धृतरा कुछ अलग चाहता था, कतु प र थ त को कौरव के तकूल पड़ते
दे ख उसने भी सम त वयोवृ सभासद क भां त ीकृ ण के इस शां त- ताव का
अ भनंदन कया। म इस ताव से ब त स था य क उस यु के फल व प होने वाला
संभा वत वनाश कसी से छपा नह था। उसी समय, शकु न ने य धन के कान म कुछ
कहा जसे सुनकर य धन अपने आसन से उठ खड़ा आ।
“कदा प नह वासुदेव!” य धन गरजा, “ जस इं थ रा य को पाने क आशा म
उस कायर यु ध र ने आपको त बनाकर मेरे पास भेजा है, उस रा य को मने ूत म जीता
है। इस कार वह रा य, प र म ारा अ जत संप है। यु ध र अब इं थ पर अपना
अ धकार खो चुका है। उसे व म भी इं थ को वापस लेने का वचार नह करना
चा हए।”
“म जानता ँ य धन,” ीकृ ण ने य धन को समझाते ए कहा, “तुमने और तु हारे
मामा शकु न ने इं थ को कस तरह छल से जीता है कतु यह मत भूलो क यु ध र न
केवल तु हारा ये भाई है, अ पतु तुमने ूत म हारने का जो दं ड तय कया था, उसे
यु ध र ने नयमपूवक और पूरी न ा के साथ भोगा है। अब उसका रा य उसे लौटाना
तु हारा कत है।”
“नह कृ ण!” य धन के तेवर तीखे होते जा रहे थे, “म एक बार जो नणय ले लेता ,ँ
वह अं तम होता है। मने कह दया क म पांडव को उनका रा य नह ँ गा। अब अ छा यही
होगा क आप मेरा यह संदेश यु ध र को प ँचा द।”
“यु ध र अ यंत मृ और माशील है,” ीकृ ण ने फर समझाया, “वह कसी
भी थ त म तुमसे भू म के लए यु नह करना चाहता। उसे शायद इस बात क आशंका
पहले से है क तुम इं थ रा य लौटाने के लए सहजता से तैयार नह होगे इस लए उसने
तु ह एक अ य वक प भी दया है। यु ध र अ धक भू म क कामना नह करता। उसने
कहा है य द तुम पूरा इं थ रा य उसे नह लौटाना चाहते तो यु ध र को उसम भी कोई
आप नह है। वे पाँच भाई ह और इस लए वे अपने रहने के लए तुमसे केवल पाँच गाँव
वापस माँग रहे ह। तुम उ ह अ व थल, वृक थल, माकंद , वारणावत और उनक पसंद का
कोई एक अ य गाँव दे दो। इं थ का शेष रा य तुम चाहो तो अपने पास रख सकते हो।
बस, यह झगड़ा यह समा त हो जाएगा!”
यह सुनते ही मने राहत क साँस ली य क मेरे वचार से यु ध र का यह ताव
अ यंत सहज था और मुझे व ास था क उसे मान लेने म य धन को कोई आप नह
होगी। सभी लोग य धन क ‘हाँ’ सुनने के लए उ सुकता से उसक ओर दे खने लगे।
“कृ ण!” य धन के तीखे वर म त नक भी प रवतन नह आ था, “तुम त हो,
अपनी सीमा का उ लंघन मत करो! या तु ह बार-बार ‘नह ’ सुनना और अपमा नत होना
अ छा लगता है? जाओ, और जाकर अपने य यु ध र से कह दो क पाँच गाँव तो या, म
उसे सुई क नोक के बराबर भी भू म नह ँ गा! और तुम यह भी सुन लो, य द तुमने एक
श द भी और कहा तो म भूल जाऊँगा क तुम हमारे संबंधी अथवा पांडव के त हो और
मुझे ववश होकर तु ह बंद बनाना पड़ेगा!”
य धन क बात सुनकर सारा राजदरबार स रह गया। य प ीकृ ण को य धन से
ऐसी ही हठध मता क आशा थी, फर भी अमया दत होने क भी कोई सीमा होती है!
ीकृ ण के चेहरे के भाव बदलने लगे। वे बोले, “ य धन! यह तो मुझे पता है क तुम
अ ानी हो परंतु तुम अहंकारवश इस तरह अपनी मयादा भूल जाओगे, यह मने नह सोचा
था। य द तुम समझते हो क म अकेला ँ और तुम मुझे बंद बना लोगे तो यह तु हारी भूल
है। सुनो य धन, सम त पांडव, वृ ण और अंधकवंशीय यादव यह मेरे साथ ह। वे ही नह
सारे आ द य, , वसु और सम त मह षगण भी यह मेरे साथ उप थत ह!”
इतना कहते ही कृ ण ने एक ज़ोरदार अ हास कया और उनके सब अंग से बजली-
सी कां त फूटने लगी। मने दे खा क उनका आकार बढ़ता जा रहा था। फर उनके शरीर से
इतना ती काश नकला क वहाँ बैठे सब लोग ने अपनी आँख मूँद ल । म दे ख नह पाया
क वहाँ उस समय या घ टत आ कतु बाद म, मुझे पता ोण ने बताया क उ ह ने कृ ण
का वराट और अद्भुत ई रीय प अपने द ने से दे खा था। उ ह ने बताया क
ीकृ ण के तन पर अंगु ाकार दे वता दखाई दे रहे थे। उनके ललाट पर ा, व थल पर
, भुजा म लोकपाल और मुख म अ नदे व थे। आ द य, सा य, वसु, अ नीकुमार, इं
और उनके म ण, व दे व तथा सम त य , गंधव और रा स भी वह मौजूद थे। उनक
दोन भुजा से बलभ और अजुन कट ए। उसी समय कृ ण क अनेक भुजाएँ कट हो
ग जनम उ ह ने शंख, च , गदा, श , शारंग, धनुष, हल और नंदक खड् ग धारण कए
ए थे। उनके ने , ना सका और कणरं से बड़ी भीषण आग क लपट तथा रोमकूप म से
सूय-सी करण नकल रही थ । काश, म कृ ण के वराट एवं द प के दशन कर पाता!
कृ ण का यह प कुछ ही पल के लए रहा और उसके बाद, वे अपने सामा य प म
लौट आए। य धन के माथे से पसीना टपक रहा था। यह प दखाई दे रहा था क ीकृ ण
क द ता ने उसके रोम-रोम को आ ांत कर दया था और उसक वाणी मौन हो गई थी।
वह चुपचाप खड़ा कृ ण को दे खता रहा। य धन को इस तरह भयभीत दे खकर ीकृ ण
हलका-सा मु कराए और केवल इतना बोले, “यु क तैयारी कर लो, य धन!” इससे पहले
क भी म, ोण और व र उ ह रोक पाते, ीकृ ण कौरव-राजसभा से जा चुके थे। म समझ
गया क ीकृ ण के साथ, कौरव का भा य भी उनक पराजय क भू मका लखकर कु
राजसभा से सदा के लए वदा हो चुका था!
इस घटना के बाद यह तय हो गया क य धन ने पांडव का रा य वापस न दे ने का
न य कर लया था। इसका अथ यह था क कु वंश एक महान यु क ओर अ सर हो
रहा था जसम भाई एक- सरे के र के यासे हो चुके थे। भारतवष का सबसे श शाली
राजप रवार अपने ने हीन राजा के अधम पु के मोह का शकार होकर बाण से बधे हरण-
सा आहत, अपने अंत समय क ती ा कर रहा था!
20
कौ नराजपजानता था क कु े के भू म-खंड पर भारतवष के सवा धक श शाली
रवार के वनाश क गाथा लखी जा रही थी? कौरव क यारह अ ौ हणी और
पांडव क सात अ ौ हणी सेना ने आमने-सामने पड़ाव डाल दए थे। कौरव सेना क
कमान जहाँ उसके सबसे वयोवृ यो ा पतामह भी म के हाथ म थी, वह कृ ण के परामश
पर धृ ु न को पांडव का सेनाप त नयु कया गया था।
म भी म को सव े यो ा के अ त र एक सुलझा आ भी मानता था।
हालां क जब य धन ने उनसे सेनाप त बनने का आ ह कया तो उसके उ र म भी म ने
ऐसी बात कह द , जसे सुनकर सब वच लत हो गए। वे बोले, “वैसे तो मने अपने य पांडु
के पु से यु करने का सदा ही वरोध कया है, कतु अब जब इस हठ और अ भमानी
य धन के कारण यह यु हमारे ऊपर थोप दया गया है, तो म इसका नेतृ व करने के लए
तैयार ँ। परंतु इसके लए मेरी एक शत है। म यु म तभी भाग लूँगा य द यह सूतपु कण
रणभू म से बाहर रहेगा!”
गंगापु भी म भीषण त ाएँ लेने और उ ह न ापूवक नभाने के लए व यात थे।
परंतु ऐसे समय म, जब क यह यु समूचे कु वंश के अ त व का बन गया था, पतामह
क यह शत मुझे सवथा अनु चत जान पड़ी। म वयं य धन के कपट और कम का
वरोधी था, कतु मने कभी मुखर होकर उसका वरोध नह कया। तथा प इस अवसर पर
मुझसे चुप नह रहा गया।
मने भी म से कहा, “ पतामह! आप इस प रवार म सबसे अनुभवी एवं पूजनीय ह
इस लए म आपक येक बात का दय से स मान करता ँ, कतु आपक यह शत मुझे
उ चत नह लगती। आपका कण से कसी भी बात पर अथवा कतने भी वषय पर वैचा रक
मतभेद हो सकता है, कतु अभी हम यु भू म म खड़े ह और इस समय, हम संग ठत होकर
लड़ने क आव यकता है। या इस तरह आपसी मतभेद को बीच म लाने से हमारी श
का रण नह होगा? या उन मतभेद पर यु के बाद वचार नह कया जा सकता?”
“यु के बाद…?” भी म ने मुझे बीच म टोका, “अ थामा! इस महायु के बाद
कसी बात पर वचार करने के लए न तुम जी वत रहोगे, न म, न य धन और न ही यह
सूतपु कण! इसने य धन का साथ दे कर न केवल उसके साहस को ढ़ कया है, अ पतु
उसे कई अनु चत काय के लए जाने-अनजाने े रत भी कया है!”
“यह बात ठ क है, पतामह!” मने फर से अपनी बात रखी, “हो सकता है कण से
भूल ई हो, यह भी हो सकता है क कण के साम य के भरोसे ही य धन इस यु को लड़ने
का साहस कर रहा हो, फर भी अब इन सब बात के लए दे र हो गई है। मेरा मानना है क
कण अ यंत वीर और कुशल यो ा है और कण क सहायता के बना हमारे लए यह वकट
यु जीतना संभव नह होगा। इस लए मेरा आपसे आ ह है क इस कार क शत रखकर
इस क ठन यु को कौरव के लए और अ धक कर मत बनाइए!”
“अ थामा!” भी म का वर पहले से भी यादा तीखा था, “ य के लए यु
सरल या क ठन नह होता, वह बस यु होता है। म चा ँ तो इस पृ वी को अकेला ही जीत
सकता ँ और इसके लए न मुझे तु हारे परामश क आव यकता है और ही इस सूतपु क
सहायता क ! य द तुम मुझे कौरव का सेनाप त बनाना चाहते हो तो यही मेरी शत है क
कण को रणभू म म उतरने से पूव मेरी मृ यु क ती ा करनी होगी!” यह कहकर भी म ने
इस वधा को और पेचीदा बना दया य क भी म क मृ यु उनके अपने हाथ म थी! उ ह
आजीवन चारी रहने क अपनी भीषण त ा के लए उनके पता महाराज शांतनु ने
उ ह इ छा-मृ यु का वरदान दया था।
या इसका अथ यह था क कण का यु -कौशल कौरव- श वर म बैठकर भी म क
मृ यु क ती ा करते-करते य होने वाला था? ऐसे संकट के समय म भी म को कण से
इतनी वतृ णा य थी? या भी म के मन के कसी कोने म कण के त ई या ा त थी?
या अपने से आधी आयु के महारथी को यु -कौशल म अपने समक दे खकर भी म के
अहं को ठे स लगती थी? या उ ह अपना बा बल ु जान पड़ रहा था? मेरे पता ोण ने
मुझे संकेत से शांत कर दया। मने पहली बार परा मी भी म के वकट व म बलता
का पुट दे खा था!
य धन के चेहरे पर उदासी छा गई। उसने जस उ े य से कण को अंग दे श का राजा
बनाया था, वह उ े य वफल होने जा रहा था और कण के सहारे क जस आशा का संबल
थामकर वह पांडव के साथ भीषण यु म उतरने जा रहा था, वह संबल यु से पूव ही
लड़खड़ा गया था।
य धन को भी म के नेतृ व तथा कण के बा बल म से कसी एक का चयन करना था।
मने महसूस कया क य धन को वधा म फँसा और कण को ववशता म जकड़ा दे ख
भी म को एक कार से नमम सुख मल रहा था। भी म ने अपनी स ता को छपाते ए
य धन से कहा, “हताश न होओ, पु ! म जानता ँ क तुम यु भू म म कण क
अनुप थ त से श ु को मलने वाले लाभ को लेकर च तत हो, कतु म तु ह वचन दे ता ँ क
म त दन पांडव के असं य सै नक का वध क ँ गा और यह यास क ँ गा क तु ह
यु भू म म कण का अभाव न महसूस हो! य प, पांडव मुझे अ त य ह, म तु ह यह वचन
भी दे ता ँ क रणभू म म कसी कार का भेदभाव नह क ँ गा तथा शखंडी के अ त र
मेरे सामने जो भी आएगा, म उसे यमलोक प ँचा ँ गा!”
शखंडी! मने यह नाम पहली बार सुना था, परंतु मुझे छोड़कर वहाँ उप थत कसी भी
के चेहरे पर आ य का भाव नह आया। इसका अथ था क वहाँ केवल मुझे ही
शखंडी के वषय म पता नह था। आ ख़र यह शखंडी कौन था, जससे धरती के सव े
यो ा भी म ने यु करने से पहले ही हार मान ली थी? शखंडी ने मेरा कौतूहल जगा दया।
यु - श वर म, मेरे रहने क व था अपने पता ोण के साथ क गई थी। मने उसी
रात शखंडी के वषय म अपनी ज ासा को शांत करने का न य कर लया।
“ पताजी!” मने पूछा, “ या आपने पतामह भी म को यह कहते सुना था क वह
शखंडी के अ त र , कसी श ु को जी वत नह छोड़गे?”
“हाँ पु , मने सुना था,” ोण ने कहा।
“… ले कन यह शखंडी कौन है? भी म के साथ उसका ऐसा या संबंध है क भी म
यु से पहले ही शखंडी के सामने समपण करने का न य कए बैठे ह?”
“यह ब त लंबी और पुरानी कथा है अ थ!” पताजी ने एक द घ न ास के साथ
कहा, “म तु ह सं ेप म बता दे ता ँ। भी म का शखंडी के साथ पूवज म का संबंध है। उस
समय, काशी के राजा क तीन क याएँ थ - अंबा, अं बका और अंबा लका। काशी नरेश ने
उन तीन का एक साथ ववाह करने का नणय लया और एक वयंवर रचा जसम
त कालीन सभी पड़ोसी राजा को आमं त कया गया ता क तीन राजकुमा रयाँ, अपनी-
अपनी पसंद से अपना वर चुन सक। उन दन गंगापु भी म युवा थे, कतु वे अपने पता
शांतनु क ख़ुशी के लए आजीवन चारी रहने और ह तनापुर के राज सहासन क र ा
का वचन दे चुके थे। हालां क शांतनु और स यवती का पु व च वीय ववाह-यो य था, परंतु
काशी नरेश ने उस वयंवर म क ह कारण से ह तनापुर के युवराज को आमं त नह
कया। इस अपमान से होकर भी म अकेले ही वयंवर म प ँच गए। उ ह ने काशी नरेश
और सम त राजागण के सम न केवल ह तनापुर के अपमान का वरोध कया, अ पतु
सबके सामने से बलपूवक तीन राजकुमा रय को अपने रथ म बैठाकर ह तनापुर ले आए
ता क व च वीय से उनका ववाह कया जा सके।
“काशी नरेश क तीन पु य म से अं बका और अंबा लका ने भयभीत होकर भी म
के दबाव म व च वीय से ववाह कर लया, कतु तीसरी बहन अंबा, पहले से शा वराज से
ेम करती थी और मन म उसे अपना प त मान चुक थी। इस कारण, उसने व च वीय के
साथ ववाह करने से मना कर दया। जब भी म को इस बात का पता लगा तो उ ह अपने
कए पर ख आ और उ ह ने अंबा को त काल आदरपूवक शा वराज के पास भेज दया।
अंबा जब शा वराज के पास गई तो उसने कहा क चूं क भी म उसे बलपूवक अपने साथ ले
गए थे, इस लए अब अंबा पर उसका कोई अ धकार नह है और अंबा को भी म के ही पास
जाना चा हए। अंबा ने शा वराज को समझाने का ब त यास कया कतु शा वराज ने
उसक एक न सुनी। ववश होकर, खी मन से अंबा दोबारा भी म के पास आई और उसने
भी म को सारी बात बताई तथा अपनी दशा के लए भी म को दोषी ठहराया। अंबा ने यह
भी कहा क उसक मयादा और त ा क र ा करना भी म का दा य व है। अंबा ने भी म
के सामने ववाह का ताव रख दया। परंतु भी म चय- त क त ा से बँधे ए थे,
इस लए उ ह ने भी अंबा को अपनाने से मना कर दया। इस कार भी म ारा आवेश म ई
भूल के कारण अंबा बार-बार अपमा नत ई और उसका जीवन न हो गया।”
“ कतु पताजी,” मने ोण को बीच म टोकते ए कहा, “अंबा क यह बात ठ क थी
क भी म के उ माद और आवेश के चलते ही अंबा का जीवन न आ। मेरे वचार से उस
समय भी म का नै तक दा य व यह था क वे अपनी त ा क आ त दे कर नरपराध अंबा
क ल जा पर लगे कलंक को मटा सकते थे एवं शा वराज ारा याग दए जाने के बाद
अंबा से ववाह कर सकते थे। … फर या आ पताजी?”
“पु , तुम ठ क कहते हो। भी म का नै तक कत यही था और ई र ने उ ह अपने
कम के प र कार का अवसर भी दया था। भा य से भी म को अपनी त ा, अंबा के
अपमान से अ धक य थी, इस लए उ ह ने न केवल अपनी भूल वीकार करने से मना कर
दया, अ पतु अंबा को न अपनाकर उसका जीवन न करने का घोर पाप भी कया। शा व
ारा याग दए जाने से अंबा ब त खी थी, कतु भी म के हाथ मली ल जा और अपमान
के शूल ने अंबा के दय को छलनी कर दया था। उसने शा व को तो भुला दया कतु वह
भी म को उनके अपराध के लए मा नह कर सक । उसने भी म से तशोध लेने का ढ़
न य कर लया।”
“अंबा को कसी ऐसे महारथी क तलाश थी जो उस अबला के लए व - वजेता
भी म से ट कर ले पाता। वह एक थान से सरे थान, एक रा य से सरे रा य म भटकती
रही। जो भी उसक था को सुनता, वह वच लत हो जाता तथा अंबा क सहायता के लए
उसक बाँह फड़कने लगत , कतु भी म को परा त करने का वचार मन म आते ही भीतर
का साम य ऐसे तरो हत हो जाता मानो जल से भरे बतन म अचानक छे द हो जाने से उसम
से पानी नकल जाता है!”
“अंत म अंबा अपने नाना हो वाहन के सुझाव पर भी म के गु तथा ऋ ष जमद न के
पु , परशुराम के पास सहायता माँगने गई। परशुराम ा ण थे कतु अ यंत ोधी थे और
य से यु करने को सदा आतुर रहते थे। उ ह ने अंबा क था सुनी तो वे त काल
उसक मदद के लए तैयार हो गए। उ ह ने पहले भी म से आ ह कया क वे अंबा को
वीकार कर ल। परंतु भी म के मना करने पर परशुराम ो धत हो गए और फर बात ऐसी
बगड़ी क यु तक प ँच गई!”
“परशुराम और भी म के बीच यु आ?” मने आ य से पूछा।
“हाँ!” पताजी बोले, “उन दोन महार थय के बीच घमासान यु आ जसे दे वता
समेत पूरे संसार ने दे खा। अंत म, जब कई दन के बाद भी हार-जीत का नणय नह हो सका
तो भी म क माता गंगा के ह त ेप के बाद इसे रोक दया गया। परशुरामजी भी अंबा को
याय नह दलवा सके। अंबा के धैय का बाँध टू ट चला था। समय ने उसके घाव भरने के
बजाय और गहरे कर दए थे। भी म से तशोध क उसक इ छा ने रौ प धारण कर
लया और वह भी म को परा जत करने का नह , अ पतु उनके वध का उपाय खोजने लगी।
जब मनु य को मनु य से सहायता क आशा नह रहती तो वह ई र क शरण म जाता है।
अंबा ने भी अपने उ े य क पू त हेतु यमुना-तट पर क ठन तप आरंभ कर दया। छह माह
तक केवल वायु पर और फर एक वष तक नराहार रहकर उसने यमुना जल म तप कया।
इसके बाद उसने एक वष तक वृ से गरे ए प े खाकर और पैर के अँगठ ू े पर खड़े रहकर
अपनी तप या जारी रखी। उसने बारह वष क क ठन तप या से आकाश और पृ वी को
संत त कर दया। उसके घोर तप के भाव से उसका आधा शरीर अंबा नाम क नद हो गया
और शेष आधे शरीर से उसने व सदे श के राजा क क या के प म ज म ले लया। अपने
उस ज म म भी उसने तप नह छोड़ा तो आ ख़र उमाप त भगवान शंकर ने उसको दशन
दए। उसने वरदान म भगवान शव से भी म का वध करने का उपाय पूछा। तब भगवान
शंकर ने अंबा से कहा क भी म को इ छा-मृ यु का वरदान ा त है, इस लए वे अंबा को
भी म के वध का वरदान तो नह दे सकते कतु उ ह ने अंबा को यह वचन दया क वह
अपने अगले ज म म, यु के दौरान भी म के वध का कारण बनेगी!”
“परंतु फर अंबा का या आ?” मेरी उ सुकता को पंख लग चुके थे और म उस कथा
को पूरा सुने बना सोना नह चाहता था।
“ शव से वरदान पाकर अंबा को यह व ास हो गया क उसे भी म का अंत करने के
लए अगला ज म लेना पड़ेगा और इसके लए अपने वतमान जीवन का अंत करना
आव यक था। अंबा अपने उ े य के त इस सीमा तक सम पत थी क उसने एक ण क
दे र कए बना वयं अपने लए चता तैयार क तथा उसम जलकर भ म हो गई।”
“ फर या अंबा ने दोबारा ज म लया, पताजी? वह अब कहाँ है?” मने पूछा।
“हाँ पु ! अंबा ने अपना अगला ज म पंचाल नरेश पद के घर म लया।”
“राजा पद?” मेरी अधीरता बढ़ती जा रही थी, “ कतु पद क तो दो ही संतान ह -
धृ ु न और ौपद ! तो फर अंबा…?”
“धैय रखो पु , बता रहा ँ!” ोणाचाय बोले, “यह अ स य है क पद क दो संतान
ह। पूण स य यह है क धृ ु न और कृ णा से पहले, अंबा ने पद के घर म क या- प म
ज म लया था। उसी क या का नाम शखंडी है!”
“तो या शखंडी ी है? परंतु पतामह भी म तो कह रहे थे क वो यु म शखंडी
पर वार नह करगे… शखंडी ी होकर यु म कैसे भाग लेगी?” मेरी ज ासा अपनी
सीमाएँ लाँघ चुक थी।
“यह भी एक रह य है, पु !” पता ोण ने कहा, “ शखंडी का ज म क या के प म
ही आ था, कतु पद के अंदर पु - ा त क इ छा इतनी बल थी क उसने लोग के बीच
यह चार कया क शखंडी क या नह , पु है। इसके अ त र , अपने झूठ को स य स
करने के लए पद ने शखंडी को आरंभ से ही पु के सं कार दए और पु क ही भां त
उसका पालन-पोषण कया। इसका प रणाम अ यंत भयंकर आ।”
“कुछ समय बाद शखंडी ववाह-यो य हो गई कतु पद के अपने चार के कारण
लोग शखंडी को युवक ही समझते थे। इस बीच, दशाणराज हर यवमा ने शखंडी ( जसे
वह युवक समझता था) के साथ अपनी क या के ववाह का ताव भेजा। पद वधा म
पड़ गया परंतु उसके लए अपनी त ा और लोक-लाज का बोझ इतना अ धक हो चुका था
उसने ववशता म हर यवमा का ताव वीकार कर लया!”
“ या! पद ने ऐसी मूखता कर डाली? ी का ी से ववाह हो गया?” मुझे इस
कथा पर मानो व ास नह हो रहा था।
“हाँ पु , नय त क यही इ छा थी!” ोण बोलते रहे। “ ववाह के उपरांत जो अपे त
था, वही आ। शखंडी क प नी ने अपने पता दशाणराज को सच बता दया, जसके
फल व प दशाणराज ने शखंडी को बुरी तरह अपमा नत कया। शखंडी ने ल जत होकर
घर याग दया तथा वन म जाकर रहने लगी। वह उसक भट थूणाकण नाम के एक य से
ई। शखंडी ने उसे अपनी था सुनाई तो य को उसके ऊपर दया आ गई। उसने शखंडी
का ी- प लेकर, उसे कुछ समय के लए अपना पु ष व दे दया ता क शखंडी,
दशाणराज को अपने पु ष होने का व ास दलाकर अपने ऊपर लगे अपमान का ध बा
मटा सके। य और शखंडी म यह समझौता भी आ क काय पूरा होने के बाद शखंडी
लौटकर य को उसका पु ष व लौटा दे गी। इसके बाद य ने शखंडी का ी- प ले लया
और दे खते ही दे खते अबला शखंडी ने युवा पु ष का प धारण कर लया!”
“यह तो लग प रवतन का अद्भुत उदाहरण है, पताजी!” मने आ य से कहा,
“उसके बाद या आ?”
“इसके बाद,” ोण ने कथा आगे बढ़ाते ए कहा, “ शखंडी सीधा दशाणराज के पास
आया और अपनी पौ ष-परी ा उ ीण करके उसने दशाणराज के संदेह को ग़लत स कर
दया। य से ई सं ध के अनुसार, शखंडी जब दोबारा वन म लौटा तो उसने दे खा क य
थूनाकण वलाप कर रहा था। शखंडी ने उससे कारण पूछा तो य बोला क एक दन
य राज कुबेर उस वन म आया था और थूनाकण को ी- प म दे खकर उसे ब त हैरानी
ई और जब उसे शखंडी के साथ कए लग प रवतन का पता लगा तो उसने गु़ से म
थूनाकण को शाप दे दया क उसे अब ी बनकर ही रहना पड़ेगा तथा शखंडी क मृ यु
के बाद ही उसे अपना पु ष व वापस मल पाएगा। थूनाकण को ई असु वधा के लए
शखंडी खी तो आ कतु वह असहाय था। इसके बाद, युवक शखंडी अपने पता पद के
पास पंचाल लौट आया।”
“… कतु आपको यह सब कैसे पता है?” मुझे लगा मने यह अपने पता से ब त
दे र म पूछा।
“ शखंडी के पंचाल वापस लौटने पर पद ब त स आ और उसने धृ ु न के
साथ शखंडी को धनु व ा सीखने मेरे पास भेजा था। तु ह यह सब इस लए नह पता
य क उन दन तुम कु वंश के राजकुमार के साथ वास पर गए ए थे और तु हारे वापस
आने से पूव, शखंडी तथा धृ ु न अपनी श ा पूरी करके लौट चुके थे।”
“ओह! तो भी म पतामह, शखंडी पर इस लए वार नह करगे य क वे जानते ह क
पु ष- प म शखंडी वा तव म ी है?”
“हाँ पु !” ोण बोले, “और शायद इसी तरह भी म क मृ यु का न म बनकर
शखंडी के प म अंबा अपना तशोध पूण कर पाएगी!” पता ोण ने रह य क अं तम
पत हटाते ए कहा।
हम सब भी तो अपने पूवज म म ी या पु ष रह चुके ह तो या कसी पु ष को, जो
पूवज म म ी था, पु ष न मानकर ी ही मानते रहना बु म ा है? अतीत व पूवज म के
तंतु पर पर गुँथकर कस कार वतमान के व यास एवं भ व य क रचना करते ह? या
शखंडी के लए भी म के इ छा-मृ यु के कवच को भेद पाना संभव होगा? यही सब सोचते-
सोचते मेरी आँख लग गई।
21
अ गले दन ातः यु आरंभ होने वाला था। उस महायु
यह न य कया गया क सूया त के बाद यु रोक
के कुछ नयम तय कए गए थे।
दया जाएगा और दोन प के
लोग एक- सरे से नभय होकर मल सकगे; सेना छोड़कर बाहर जाने वाल को ऐसा करने
क अनुम त द जाएगी; भयभीत अथवा अचेत य पर वार नह कया जाएगा; ऐसे
लोग पर, जनके अ -श और कवच न हो गए ह , जो शरणागत ह अथवा जो यु
छोड़कर भाग रहे ह , वार नह कया जाएगा। यह भी प कया गया क जसने अ -श
नीचे रख दए ह , उस पर हार नह कया जाएगा।
रणभू म म जब यु के नयम नधा रत कए जा रहे थे, उस समय धृतरा अपने
राजमहल म ाकुल हो रहा था। कु वंश म होने वाले उस महायु क न व रखने म उसक
भी मह वपूण भू मका थी, कतु वकलांगता के चलते, यु म भाग लेना तो र, कृ त ने
उसे यु क घटना को दे खने से भी वं चत कर दया था। सबको पता था क यु म
वजय उसी क होगी जसके साथ धम होगा। ानीजन यह भी जानते थे क वासुदेव कृ ण,
सदा धम के साथ होते ह और उसी धम का साथ दे ने के लए उस यु म कृ ण ने अपनी
नारायणी सेना तक को याग दया था और वे अकेले पांडव के साथ खड़े हो गए थे। धृतरा
को छोड़कर अ य सभी को कौरव-प क पराजय का पूवाभास था, कतु पु -मोह और
राजभोग क ल सा ने अंधे धृतरा को ववेक से वं चत कर दया था। उसे व ास था क
भी म, ोणाचाय, कृपाचाय, कण और कृ ण क नारायणी सेना के सहयोग से उसके उ माद
पु य धन के लए वह यु जीतना क ठन नह होगा।
य प धृतरा जानता था क उसे अपनी मह वाकां ा क पू त हेतु अपने तथा
अपने अनुज पांडु के पु के र पात के अ त र कुछ नह मलने वाला था, तथा प उसके
मन म उस भीषण र पात को दे खने क इ छा थी। उसने कालदश वेद ास को मरण
कया और उनसे उस यु को दे खने क इ छा क । वेद ास ने धृतरा से कहा क
य द उसक इ छा हो तो वे उसे यु को दे खने के लए द दे सकते ह। परंतु अचानक
धृतरा को लगा क उसे पांडव के साथ-साथ न जाने अपने भी कतने पु के शव और
व त तन दे खने पड़गे इस लए सोच- वचार के बाद, उसने वेद ास से कहा क वे उसके
मं ी संजय को द - दान कर द ता क संजय महल म बैठकर यु दे ख सके और
धृतरा को वहाँ हो रही वनाश-लीला का आँख दे खा हाल सुना सके। वेद ास ने उसक
ाथना वीकार कर ली और फर संजय ने ही धृतरा को महाभारत के यु का पूरा वणन
व तार से सुनाया था।
इस यु के वषय म पहले भी ब त कहा-सुना जा चुका है और मुझे लगता है क उन
सब बात को यहाँ दोहराने का कोई अथ नह है। हालां क कुछ घटनाएँ मेरे अपने जीवन से
जुड़ी ई ह, इस लए इस कथा को आगे बढ़ाने के लए उनका उ लेख करना आव यक है।
संजय ने धृतरा को बताया क रणभू म म यु के नयम- नधारण के बीच शंखनाद
आ और फर कौरव तथा पांडव के बीच वह महासं ाम आरंभ हो गया। रणभू म म, अ
क हन हनाहट, हा थय क चघाड़ और सै नक क चीख़-पुकार के अ त र कुछ सुनाई
नह दे रहा था। रथी से रथी, महारथी से महारथी और अ तरथी से अ तरथी लड़ रहे थे।
भी म, ोण और कृपाचाय के रथ, पूरे मैदान म आँधी क भां त घूम रहे थे। बाण क वषा से
यु के पहले दन ही रणभू म शव से पट गई। ऐसा लग रहा था मानो आकाश से र क
वषा ई थी, जससे भू म का रंग लाल हो गया था। कौरव यो ा क तरह, पांडव क ओर
से भी भयंकर बाण-वषा हो रही थी। पांडव क ओर से, अजुन के यु -कौशल तथा भीम के
भीषण गजना के सामने कसी का टक पाना मु कल हो गया था। पहले ही दन दोन ओर
से सकड़ो सै नक एवं यो ा मारे गए और उससे भी अ धक सं या म गंभीर प से घायल हो
गए। यु इसी कार चलता रहा और त दन सकड़ो क सं या म यो ा घायल होते और
मरते रहे। उस महासं ाम ने इतना भीषण प धारण कर लया क मृतक क गनती करना
अथवा उनके वषय म वचार करना भी थ था।
आपको यु क एक मह वपूण घटना सुनाता ँ। भी म अपनी त ानुसार पांडव
क सेना पर कहर बनकर टू ट पड़े थे। उनके सामने बड़े-बड़े महारथी, असहाय और हतबु
द ख रहे थे। यहाँ तक क अजुन, जसके रथ का संचालन वयं भगवान ीकृ ण कर रहे थे,
भी म को रोक नह पा रहा था। एक समय तो ऐसा आया क भी म के नेतृ व म अनेक
यो ा और महार थय ने एक साथ अजुन को घेर लया। ीकृ ण ने अजुन को संकट म
फँसा दे खा तो सहसा न जाने या आ, कृ ण बजली क फुत से रथ से नीचे कूद पड़े और
अगले ही ण मने दे खा क उनके हाथ म सुदशन च चमक रहा था। उनके पैर क धमक
से भू म काँपने लगी। उनके याम तन पर फहराता आ पीत व काले वषा-मेघ के बीच
व ुत- करण के समान चमक रहा था। उनका रौ प दे खकर सबके मन म शशुपाल-वध
क मृ त ताज़ा हो आई और भय ने रणभू म म अपने पैर पसार दए।
कृ ण का व वंसकारी प दे खकर सब लोग आतं कत दख रहे थे। परंतु भी म त नक
भी नह घबराए। उ ह ने हाथ जोड़कर कृ ण से कहा, “हे च धारी माधव! आप इस संपूण
जगत के वामी ह और सबको शरण दे ते ह। आपके हाथ से य द म मारा गया तो मेरे लए
इससे अ धक सौभा य क बात या होगी! आइए भु, मेरे ाण लेकर मेरा गौरव बढ़ाइए!”
हज़ार सै नक को त दन मार गराने वाले भयंकर भी म क स दय आँख भ व ेम से
गीली हो गई थ । कृ ण के हाथ म सुदशन च अब भी घूम रहा था और उनका चेहरा ोध
से लाल था।
मुझे कृ ण क त ा याद आ गई जो उ ह ने अजुन और य धन के सम ली थी क
वे यु म अ -श नह उठाएँगे। तो फर उ ह ने अपनी त ा य तोड़ी? म अभी इस
बारे म सोच ही रहा था क तभी अजुन रथ से कूदा और उसने कृ ण के पैर पकड़ लए। वह
कातर वर म बोला, “केशव! कृपया शांत हो जाइए। आपने श नह उठाने का त ा क
है। इसे मत तो ड़ए भु! मेरे लए अपनी छ व को कलं कत मत क रए, माधव!”
“नह !” ीकृ ण का ोध थमने का नाम नह ले रहा था, “अधम के व इस यु
म मुझे अपने वचन या अपनी छ व क कोई चता नह है। गंगापु भी म को अगर नह रोका
गया तो तु हारा वनाश न त है, पाथ! तुम मुझे वयं से भी अ धक य हो और तु हारे
ाण क र ा के लए म ऐसी एक सह त ाएँ तोड़ सकता !ँ ”
“केशव!” अजुन ने कहा, “म आपको वचन दे ता ँ क अपने पु षाथ का भरपूर
उपयोग क ँ गा और पतामह को रोकने के लए गांडीव म नई ऊजा का संचार क ँ गा।
आपको मेरी सौगंध है, आप क जाइए!” भ ने अपने ेम के क चे सूत से भगवान को
बाँध लया था। कृ ण क गए और दोबारा रथ पर जा बैठे।
मुझे अपने का उ र मल गया था। इस घटना ने मुझ पर ब त गहरा भाव डाला।
म यु के बीच खड़ा उस रणभू म म दो वकट व क नजी त ा क तुलना कर
रहा था। एक ओर पतामह भी म थे, जो अपनी त ा क र ा हेतु, धम को दाँव पर
लगाकर य धन क ओर से अधम के प म यु कर रहे थे। सरी ओर ीकृ ण थे, जनके
लए धम के सामने उनक नज व त ा का कोई मू य नह था। भी म के लए जहाँ उनक
त ा ही सव प र थी, वह कृ ण ने धम क अ ु णता तथा अपने भ क र ा के लए
अपनी त ा तोड़ने म पल-भर का भी वलंब नह कया!
कृ ण जानते थे क पांडव क थ त को सँभालने के लए भी म को मारना अ नवाय
था। उ ह ने सूया त के बाद, श वर म बैठकर अगले दन क रणनी त पर चचा करते ए
अजुन से कहा, “ शखंडी को यु म उतारने का समय आ गया है!”
वह यु का दसवाँ दन था और उस दन का सूय कौरव प के लए बड़े अ न क
आशंका लेकर उदय आ था। अजुन के रथ के आगे एक रथ चल रहा था। इस रथ पर
शखंडी सवार था। मने उस दन अजुन को पहली बार रण म छपकर आते दे खा। यु भू म
म आते ही शखंडी और अजुन ने भी म क ओर ख कर लया। भी म ने शखंडी को दे खा
तो वे त काल भाँप गए क वह उनके यु का अं तम दन था। वे जान-बूझकर अपना मुँह
सरी दशा म घुमाकर यु करने लगे तथा प, उनका यान शखंडी पर क त था। उ ह पता
था क शखंडी कह न कह से घूमकर उनके सम आ ही जाएगा। और यही आ! कुछ ही
दे र म शखंडी भी म के सामने आ प ँचा।
“ शखंडी!” सहसा उसे कान म कृ ण क आवाज़ आई। “तु हारे तशोध का यही
ण है! वार करो!” शखंडी ने पीछे मुड़कर दे खा। परंतु कृ ण तो पीछे वाले रथ म बैठे
अजुन का सार य कर रहे थे, तो फर यह आवाज़ कसक थी? “ शखंडी, या सोच रहे हो?
भी म पर बाण चलाओ!” उसके कान म फर से ीकृ ण का वर गूँजा। शखंडी भाँप गया
क यह कृ ण का ही गु त संदेश था। उसने तुरंत अपने धनुष पर बाण चढ़ाया और भी म पर
चला दया। उसका बाण भी म क बाँह के ऊपरी ह से पर लगा था। सामने शखंडी को
दे खकर भी म धीमे से मु कराए। यह व च बात थी क कुछ पल पूव श ु पर व पात
करने वाले भी म, शखंडी के हार के बावजूद शांत खड़े थे। शखंडी ने भी म पर एक के
बाद एक अनेक तीर चलाए और उ ह आं शक प से घायल कर दया। उ ह ने शखंडी पर
बाण न चलाने क त ा क थी और इसी बात का लाभ लेने के लए ीकृ ण, शखंडी को
सामने लेकर आए थे। उस महासमर म एक बार नह , अ पतु अनेक बार ीकृ ण क
चातुयपूण यु याँ दे खने को मलती रह । हालां क वे य प से यु नह लड़ ले रहे थे,
तथा प पाँच पांडव, कृ ण क द ता क छ -छाया म कौरव क यारह अ ौ हणी सेना के
व सहजता से यु लड़ रहे थे।
शखंडी ने सामने आकर भी म को थोड़ा आहत तो कर दया ले कन उसके बाण म
इतनी श नह थी क वह इ छा-मृ यु वरधारी भी म का वध कर पाते! वह साम य तो
केवल अजुन के बाण म था। कृ ण ने अजुन को भी म पर वार करने का इशारा कया।
अजुन ने नशाना साधा और बाण चला दया। ऐसा तो कोई कवच ही नह था, जसम अजुन
के बाण को रोक पाने का साम य था।
ख च!
अजुन के बाण ने अपना ल य बेध दया था। वह तीर पतामह क छाती के पार हो
गया। वह लड़खड़ाए कतु गरे नह । अजुन को सामने दे ख ह तनापुर के त उनक
कत न ा सजग हो गई कतु तब तक, दे र हो चुक थी। वे जतनी दे र म सँभलकर अपना
धनुष उठा पाते, अजुन दजन बाण चला चुका था। एक भी तीर ल य- नह आ।
आ ख़र अजुन संसार का सव े धनुधर था! अगले ही पल भी म का वृ कतु ब ल शरीर
अजुन के तीर से छलनी हो गया। सभी तीर इतनी सट क और संतु लत श से चलाए गए
थे क वे भी म के शरीर के अ भाग से पार होकर पृ भाग से बाहर नकले ए दखाई दे रहे
थे और बाहर नकले ए ह स क लंबाई भी बलकुल एक समान थी जो अजुन क
धनु व ा का एक और अ तम उदाहरण था।
भी म अ यंत पीड़ादायक वर के साथ धरती पर गर पड़े। उनका पूरा शरीर नीचे गरते
समय अजुन के बाण पर ही टक गया। अजुन, अपने जन पतामह क गोद म खेलकर बड़ा
आ था, उ ह के शरीर को नममता से ब धने के बाद अजुन के हाथ से धनुष छू ट गया और
वह नीचे बैठकर फूट-फूटकर रोने लगा। गंगापु भी म के गर जाने से रणभू म म स ाटा छा
गया। पल-भर के लए सभी यो ा लड़ना छोड़कर शर-श या पर लेटे उस महान यो ा को
दे खने लगे। शखंडी और कृ ण एक- सरे को दे खकर मु करा रहे थे।
यु क यह वशेषता है क वह वनाश का अ त होने के बावजूद, एक ही समय पर
स ता और ख के भाव उ प कर सकता है। इसम भाग लेने वाले यो ा अपने सगे-
संबं धय तथा बंध-ु बांधव के र से रं जत भू म पर उ ह के शव को नममता से र दते ए
लोलक क भां त वजय और पराजय के बीच झूलते रहते ह।
जब द - ा त संजय ने भी म के भू म पर गर जाने क बात धृतरा को बताई
तो वह भयभीत हो गया। भी म क मृ यु या कह, उनक यह न यता ह तनापुर के
राज सहासन के लए अशुभ ल ण थी। यु म जीत का पलड़ा, कसी भी ण पांडव के
प म झुक सकता था। धृतरा ने सहसा दोन हाथ से अपना मुकुट थाम लया। यह भीषण
महायु ने हीन धृतरा क दशाहीन मह वाकां ा तथा उसके बु हीन सर पर रखे मुकुट
क र ा के लए ही तो लड़ा जा रहा था!
22
प छले कई दन से अजुन के र का यासा कण, कौरव श वर म बैठा बाण क नोक
को छू कर और अपने धनुष क डोर को सहलाकर अपनी ता को दबाए, ाकुलता
से यु म अपनी भू मका नभाने क ती ा कर रहा था। भी म क रखी शत क अनुसार,
उनके गर जाने के बाद अब कण के लए कु े क रणभू म का ार खुल चुका था। वह
यु म उतरते ही श ु पर भारी वपदा क तरह टू ट पड़ा। इतने दन तक ‘सूतपु !’ सुन-
सुनकर उसके कान पक चुके थे। नरंतर अपमान के घृत ने उसके मन के भीतर सुलगते
अंगार को और भड़का दया था। कण के रण म आने से मानो वहाँ वनाश क आँधी चल
पड़ी। पांडव क सेना ततर- बतर होकर भागने लगी। भी म के हट जाने से यु भू म म जो
र ता उ प हो गई थी, उसे कण ने अपने परा म से सहज ही भर दया।
ोणाचाय और कण के रण म उतरने के बाद यु का पलड़ा फर से कौरव के प म
झुकने लगा था। पांडव के लए यह न त ही चता क बात थी। उ ह इस समय कसी ऐसे
वीर यो ा क आव यकता थी, जो कण के साहस का यु र बन पाता। अजुन अपनी ओर
से पूरा यास कर रहा था ले कन कण और ोण क संयु श के काले मेघ, अजुन के
परा म क ु त को ढँ क तो नह सके, तथा प कुछ पल के लए उसे फ का अव य कर
दया। परंतु अजुन तो फर अजुन था! शी ही वह अपने रौ प म लौट आया। उसके ारा
क जा रही भीषण बाण-वषा ने कौरव सेना के बड़े-बड़े रणबाँकुर को धूल चटा द ।
सहसा मने दे खा क कण ने एक मं ो चारण कया और अगले ही पल उसके हाथ म
इं ारा द गई अचूक ‘श ’ आ गई। उसे दे खते ही कृ ण ने तेजी से अजुन का रथ घुमाया
और उसे कण से ब त र द ण दशा म ले गए। अजुन को ीकृ ण के इस तरह अचानक
डरकर रथ भगा ले जाने का कारण समझ म नह आया, कतु उसे कृ ण के ववेक और
चातुय पर लेश-मा भी संदेह नह था। उन दोन के बीच भ -भगवान का र ता कम और
मै ी का संबंध अ धक गाढ़ था और इसका एकमा आधार था, अजुन का ीकृ ण के
चरण म पूण समपण! तथा प, अजुन ने ीकृ ण से पूछ ही लया, “केशव! म इस तरह रण
से भाग नकलने का आशय नह समझा।”
“श !” कृ ण ने एक श द म उ र दे ते ए कहा, “कण ने जो अचूक श इं से
ा त क थी, वह अब उसका योग करने का नणय कर चुका है और अजुन, उसका वह
ल य तुम हो! वा तव म, कण ने तु हारा वध करने के उ े य से ही इं से वह श माँगी है।
इसी कारण, म तु ह वहाँ से र ले आया ँ य क इं क श क काट कसी के पास नह
है। वह जसे पश करेगी, उसक मृ यु न त है!”
“अब या होगा कृ ण? या मेरे ाण का कोई उपाय है या फर…?”
ीकृ ण कुछ पल सोचते रहे। उ ह कण के हाथ इतनी सहजता से अपने सखा अजुन
का वध होने दे ना वीकाय नह था।
“पाथ!” कृ ण ने अजुन के कंधे पर हाथ रखकर, उसे दलासा दे ते ए कहा, “तुम
न त रहो। य द मेरे रहते ए तु हारा अ न हो गया, तो मेरे होने का अथ ही या है? हम
कण क श के लए शी ही कोई उ चत ल य खोजना होगा।” ीकृ ण के उ र से
न त होकर अजुन ने भावुक से वासुदेव क ओर दे खा और फर अपना गांडीव
उठाकर यु म रत हो गया।
कृ ण को अब अजुन क र ा के लए कसी ऐसे यो ा क तलाश थी जो कण क
श के व अजुन का कवच बन सकता था। सं या-काल के समय कृ ण ने भीम से
पूछा, “भीम, तुम इतना मह वपूण और महान यु लड़ रहे हो, कतु मने अभी तक तु हारे
पु , घटो कच को नह दे खा। या उसे इस समय अपने पता के साथ नह होना चा हए
था?”
घटो कच का उ लेख आ तो मुझे याद आया क मने अब तक आपको घटो कच के
वषय कुछ नह बताया। पांडव, जस समय वनवास काट रहे थे, उ ह दन वन म भीम क
मुठभेड़ ह डब नाम के रा स से ई थी और भीम ने उसका वध कर दया था। इसके बाद,
भीम ने ह डब क बहन, ह डबा से ववाह कया और कुछ समय बाद ह डबा ने भीम के
पु को ज म दया जसम रा स एवं मनु य के गुण का अद्भुत समावेश था। वह आकार
और श म रा स के समान अ त वशाल और बलशाली था, कतु उसके वहार म सभी
कार के मानवीय गुण भी व मान थे। ह डबा ने उसका नाम घटो कच रखा था। घटो कच
ने अपना अ धकांश जीवन वन म अपनी माँ ह डबा के साथ अपने समुदाय के बीच रहकर
ही बताया था।
कृ ण का संकेत पाते ही, भीम ने ह डबा के पास अपना एक त भेजा। भीम का
संदेश मलते ही, ह डबा ने घटो कच को तुरंत अपने पता क सहायता हेतु कु े भेज
दया। अगले दन सूया त के कुछ ही दे र बाद, रणभू म म घटो कच का आगमन हो गया।
मनु य के बीच हो रहे उस यु म घटो कच दै य को पांडव के प म खड़ा दे खकर कौरव
सेना म हाहाकार मच गया। भीम के अ त र , पांडव अथवा कौरव म से कसी ने घटो कच
को पहले कभी नह दे खा था। उसक काया इतना ऊँची थी क उसके समीप खड़े होकर,
उसके वा त वक आकार का अनुमान लगा पाना असंभव था।
कौरव सेना ने घटो कच पर बाण क वषा कर द । उनके तीर घटो कच के तन से
टकराते अव य थे, कतु घास के तनक क तरह टू टकर गर जाते थे। यहाँ तक क उस पर,
ोण और कृपाचाय ारा चलाए गए बाण का भी कोई भाव नह आ। उसके अ हास से
कौरव यो ा के कान फट रहे थे और उ ह समझ म नह आ रहा था क वे उस भीमकाय
रा स से बचकर कस तरफ़ भाग! वे कसी भी दशा म भागते, तो घटो कच लंबे डग भरकर
उ ह तुरंत ही पकड़कर मार डालता था। वह एक ही बार म श ु के दजन सै नक को अपने
वशाल हाथ से मसलकर मार दे ता था। उसके पैर के नीचे सैकड़ सै नक अपने ाण गँवा
बैठे। घटो कच के आगमन के कुछ ही घंट के भीतर, कौरव सेना का मनोबल प त होने
लगा। घटो कच क वनाश-लीला को दे खकर ोणाचाय, कृपाचाय, आ द सम त कौरव प
के यो ा ने यह न कष नकाला क य द घटो कच को तुरंत नह रोका गया तो दस दन
से चल रहे उस भीषण यु को वह अकेला एक ही दन म समा त कर दे गा।
कुछ ण सोचने के बाद ोण ने कण से कहा, “कण! अब इस महा वपदा को केवल
तुम रोक सकते हो!”
“म?” कण ने आ य से पूछा, “म तो यास कर चुका ँ आचाय, परंतु घटो कच पर
मेरे श शाली बाण का भी कोई भाव नह हो रहा है।”
“कण, म तु हारे साधारण बाण क बात नह कर रहा। उस तरह के बाण तो हमारे
पास भी ह। तु हारे पास एक ऐसा द ा है, जो हम घटो कच से बचा सकता है।”
“कौन-सा द ा आचाय?” कण ने अचं भत होकर पूछा।
“इं ारा द गई अमोघ श ही अब हम घटो कच से बचा सकती है!” ोण ने प
कया।
“आचाय, वह श मने अजुन को मारने के लए बचा रखी है!” कण प बात करने
के लए स था।
अजुन का नाम सुनते ही ोणाचाय क मु ा बदल गई। घटो कच को मारना अ नवाय
था और उसके लए श का योग भी आव यक था, कतु ोण को य ही पता लगा क
कण ने उस श को अजुन के वध के लए बचा रखा है, उनका दय वच लत हो गया।
उनका आ ह, सहसा हठ म बदल गया।
“तु हारा ऐसा सोचना ग़लत है, कण!” ोण ने कहा, “तुम जब जी वत बचोगे, तभी तो
अजुन को मार पाओगे। म तु हारे एक हठ के लए सम त कौरव सेना के ाण को संकट म
नह डाला जा सकता, इस लए म कौरव का सेनाप त होने के नाते, तु ह घटो कच पर उस
द श का योग करने का आदे श दे ता !ँ ” म ोण क यह बात सुनकर आ य म पड़
गया। कौरव सेनाप त के मन म पांडव के लए इतना नेह, हमारे लए न य ही घातक
स होने वाला था।
“आपक जैसी आ ा, सेनाप त!” कण के श द वनीत थे, कतु उसका वर अ यंत
कठोर था।
कण ने धनुष उठाया और श वर से बाहर नकल गया। कण के जाने के बाद मने अपने
पता के चेहरे पर वही कु टल मु कान दे खी, जो उनके मुख पर एकल से उसका अँगठू ा
माँगते समय दे खी थी। म अजुन के त अपने पता के अटू ट ेम का रह य कभी नह जान
पाया, कतु इतना कह सकता ँ क अजुन के त उनके मोह क वेद म एकल और कण
जैसे वल ण धनुधर क द ता अव य वाहा हो चुक थी!
सहसा रणभू म म भीषण कतु ददनाक गजना ई। कुछ पल के लए यु थम गया।
ऐसा लगा मानो ब त दे र से व वंस मचा रहा तूफ़ान थम गया हो! हम नकट प ँचे तो दे खा
क घटो कच का न ाण शरीर भू म पर पड़ा था। कण ारा चलाई गई श , घटो कच क
छाती के पार हो गई थी और उसका गहरा लाल र रणभू म पर अ वरल बह रहा था।
उसक वशाल काया के नीचे दोन प के सैकड़ सै नक दबकर मर गए थे।
घटो कच क मृ यु से पांडव सेना म शोक और चता क लहर दौड़ गई। तभी मेरी
ीकृ ण पर पड़ी और म यह दे खकर हैरान रह गया क उनके चेहरे पर अवसाद क जगह
हष के भाव थे जससे यह प था क कृ ण को घटो कच के वध के ख से अ धक, अजुन
क र ा होने क ख़ुशी थी। मने जैसा क पहले भी कहा था क यु म दोन प , वजय एवं
पराजय के म य लोलक क भां त झूलते रहते ह। कसी एक क त, सरे का लाभ बन
जाती है। घटो कच क मृ यु से पांडव प क मानो कमर टू ट गई और कौरव प फर से
बल हो उठा। कु े के मैदान म एक बार फर यु क आँधी चलने लगी और र पात
का वही सल सला फर आरंभ हो गया।
इस महायु को चलते लगभग बारह दन बीत चुके थे। वभाव से अधीर य धन क
ाकुलता बढ़ती जा रही थी। वह बार-बार ोणाचाय से पांडव को परा जत करके यु
समा त करने पर बल दे ने लगा। उसके इस कार के रा ही और हठ वहार से ोण चढ़
गए। उ ह ने कहा, “तुम ब च क तरह हठ मत कया करो, य धन। म अपनी ओर से हर
संभव यास कर रहा ँ। पांडव को परा जत करना कोई हँसी-खेल नह है।”
“ मा कर गु दे व,” य धन ने अपनी खीज छपाते ए कहा, “ कतु य द ज द ही
पांडव को समा त नह कया गया तो हमारी पराजय होने म अ धक समय नह लगेगा।”
“म जानता ँ,” ोणाचाय ने कहा, “आज म एक च ूह क रचना करने जा रहा ँ।
इसे अजुन क अ त र कोई नह भेद सकता। य द तुम अजुन को कसी तरह चालाक से
यहाँ से र ले जा सको तो उसक अनुप थ त म मेरा बनाया आ च ूह पांडव के लए
मृ यु का ार बन जाएगा।”
“उ म, आचाय!” य धन का चेहरा स ता से खल उठा। “यह तो ब त शानदार
योजना है। म अभी संश तक से कहता ँ क वे सब मलकर अजुन को यु के लए
ललकार और इस बहाने से उसे द ण दशा क ओर ले जाएँ। उसके चले जाने के बाद आप
ूह-रचना आरंभ कर द जए।”
योजना के अनुसार, य धन के कहने पर संश तक ने अजुन को यु के लए
ललकारा, जसे सुनकर अजुन को उनके साथ यु के लए जाना पड़ा। वे धीरे-धीरे अजुन
को द ण दशा म रणभू म से र ले गए, ोण ने उधर कु े म ूह-रचना आरंभ कर द ।
इधर पांडव के खेमे म ोण के बनाए च ूह को दे खकर खलबली मच गई। मेरे माथे पर
जस घटना के कारण कलंक का ट का लगा, उसका आरंभ भी ोण ारा र चत इसी
च ूह से आ था।
“अब या होगा?” ूह को दे खकर, भीम ने च तत वर म यु ध र से पूछा, “आचाय
ोण के बनाए इस ूह को भेदना केवल अजुन को आता है और वह संश तक से यु
करता आ यहाँ से ब त र चला गया है। ोण का ूह हमारी सेना को नगलता आ तेज़ी
से आगे बढ़ रहा है और अगर इसे तोड़ा नह गया तो अजुन के आने तक हम सब इसम
समाकर काल का ास बन जाएँगे।”
“म भी इस बात से ाकुल ँ, भीम!” यु ध र ने कहा। “अजुन क अनुप थ त म,
आ ख़र इस ूह को कौन तोड़ेगा?”
“म तोडँगा इस ूह को!” एक युवा वर कान म गूँजा तो सभी ने मुड़कर दे खा। यह
अजुन के स ह वष य पु अ भम यु क आवाज़ थी।
“तुम!” भीम ने कहा, “व स अ भम यु, तुम इस च ूह को कैसे तोड़ोगे? तु हारे
पता अजुन के अ त र कोई इसे भेदना नह जानता!”
“आप ठ क कह रहे ह तात ी,” अ भम यु ने मु कराते ए कहा, “परंतु जब म अपनी
माँ के गभ म था तो एक दन पताजी माँ को च ूह-भेदन का तरीक़ा समझा रहे थे। मने
वह तकनीक उसी समय अपनी माँ के गभ म ही सीख ली थी!”
“शाबाश पु !” यु ध र ने स तापूवक कहा, “अब हम चता करने क कोई
आव यकता नह !”
“ कतु एक सम या है,” अ भम यु ने कुछ संकोच से कहा, “मने ूह के भीतर घुसना
तो सीख लया था, ले कन जस समय पताजी च ूह से बाहर नकलने क व ध माँ को
बता रहे थे, उस बीच माँ को न द आ गई और म बाहर नकलने क व ध सुन नह पाया।”
“ओह!” यु ध र के माथे पर चता क लक र फर उभर आ । “यह तो सचमुच चता
क बात है। परंतु तुम घबराओ मत, अ भम यु! तुम जैसे ही च ूह को भेदकर इसके भीतर
घुसोगे, हम लोग भी तु हारे पीछे -पीछे अंदर आ जाएँगे और फर तुम अकेले नह रहोगे।
भीतर घुसने के बाद हम सब मलकर आसानी से इस ूह को छ - भ कर दगे।”
योजना के अनुसार, वीर अ भम यु ोण के बनाए च ूह के सामने आ खड़ा आ
और शेष पांडव एवं अ य वीर यो ा भी उसका साथ दे ने के लए उसके पीछे -पीछे चल पड़े।
कुछ ही दे र म अ भम यु ने अपने पता से सीखे कौशल क सहायता से ूह का ार तोड़
दया और उसे भेदता आ भीतर वेश कर गया। शेष चार पांडव और अ य यो ा भी
अ भम यु के पीछे ूह के अंदर घुसने ही वाले थे, क उससे पहले ही सधुराज जय थ ने
फुत से अपने सै नक क सहायता से ूह का माग बंद कर दया। च ूह का माग बंद
होने से अ भम यु के अ त र कोई भी पांडव यो ा च ूह म वेश नह कर सका। श ु
ारा ूह भेदने के यास को वफल करने हेतु मेरे साथ ूह के भीतर कण, ोणाचाय,
कृपाचाय, बृह ल और कृतवमा भी खड़े थे। अब ूह के अंदर हम छह महार थय के बीच
स ह वष का अ भम यु अकेला फँस गया था। इसके बाद जो कुछ आ, म आज भी उस
य क क पना करता ँ तो मेरा मन घृणा व ला न से सहर उठता है।
अ भम यु भीतर अकेला था, ले कन उसने ह मत नह हारी। वह अपने पता अजुन क
ही भां त अ यंत परा मी था और वह साहसपूवक अकेला लड़ता रहा। जस तरह नजन वन
म ाध क टोली से घरा मृग छौना तेज दौड़ने और कुलाँचे भरने के बाद भी कुछ ही दे र म
नढाल हो जाता है, उसी तरह छह-छह महायो ा से अकेले लड़ते-लड़ते वीर अ भम यु
भी शी ही थक गया। उसका तन हमारे बाण व तलवार के हार से छलनी हो गया था। वह
लड़खड़ाता आ ज़मीन पर गर पड़ा। उसके कंध , बाँह और मुँह से ख़ून बह रहा था। तीन
बाण उसक दा जाँघ को चीरकर पार नकल गए थे जसके कारण उसके लए उठना
मु कल था। तभी कृतवमा ने पीछे से उसक पीठ पर तलवार से वार कया। अ भम यु के
शरीर से र का फ़ वारा फूट पड़ा।
“कायर !” अ भम यु ने दद से च लाते ए कहा, “य द साहस है तो सामने से वार
करो।”
इतना सुनते ही कौरव सेना के हम छह महार थय ने अकेले और नह थे अ भम यु को
घेर लया। इसके बाद, एक-एक करके सबने उस बालक पर तलवार से हार कया। उसका
युवा तन त- व त हो गया था। उसके शरीर से र ब त तेज़ी से बह रहा था। अ भम यु के
तन के नीचे क भू म म, जो पछले बारह दन म असं य यो ा का र -पान कर चुक
थी, अ भम यु का ल सोखने क मता नह बची थी। भयंकर पीड़ा से अ भम यु क आँख
बाहर नकल आ थ । वह अं तम ास ले रहा था।
“तुम सब अपने आपको महारथी समझते हो?” अ भम यु ब त मु कल से बोल
पाया। “तुम लोग महारथी नह , अ पतु महाकायर हो। संसार म जब-जब इस महासमर क
गाथा का उ लेख होगा, तुम छह लोग के नाम पर मुझ नह थे और अकेले यो ा को घेरकर
कायरतापूण ढं ग से मारने का लगा कलंक कभी साफ़ नह होगा। कायर ! इस कुकृ य के
लए इ तहास तु ह मा नह करेगा!” इ ह अं तम वचन के साथ अ भम यु के ाण नकल
गए।
मने यु म अन गनत सै नक को मार गराया था, कतु उस यु म अ भम यु के वध
से अ धक नमम शायद ही कुछ आ हो। ूह के भीतर छह सश यो ा के हाथ
नह थे अ भम यु क ह या, नममता क पराका ा के साथ-साथ कायरता क चरमसीमा भी
थी। मरते समय अ भम यु ने जो कुछ कहा, म उसका समथन करता ँ। इ तहास सा ी है क
संसार ने हम छह यो ा को इस कम के लए कभी मा नह कया!
इस बीच, अजुन संश तक को परा जत करके जब सायंकाल यु भू म म लौटा तो उसे
अ भम यु क मृ यु का समाचार मला।
“अ भम यु के च ूह तोड़ने के बावजूद आप लोग उसक सहायता के लए भीतर
य नह जा पाए?” अजुन ने कुछ दे र बाद यु ध र से पूछा।
“ य अजुन!” यु ध र ने कहा, “अ भम यु ने जब ूह का ार तोड़ दया तो उसके
पीछे हम लोग भी लगभग वेश कर चुके थे, कतु तभी सधुराज जय थ ने हमारा माग रोक
लया और उसके साथ उसके ब त-से सै नक थे। उ ह ने ूह का वेश-माग पूरी तरह रोक
दया। इसी कारण, हम लोग भीतर नह जा सके और हमारा य अ भम यु, जय थ क
कु टल चाल का शकार हो गया। य द जय थ ने हमारा माग न रोका होता तो आज
अ भम यु जी वत होता!” इतना कहते ही यु ध र क आँख शोक से नम हो ग ।
अजुन ने जब अपने वीर पु क कायरतापूण ढं ग से क गई ह या क बात सुनी तो
ोध से उसका तन आँधी म सूखे प े क तरह काँपने लगा। उसके नथुने फूल गए और बाँह
फड़कने लग । सहसा अजुन के अ -ु पू रत ने म ोध क ला लमा उभर आई।
“जय थ!” वह श ु के श वर क दशा म दे खते ए च लाया, “म यह त ा करता
ँ क य द मने कल सूया त होने से पूव तेरा का वध करके अपने अ भम यु क ह या का
तशोध नह लया तो म आ म-दाह कर लूँगा!”
अजुन क इस भीषण त ा से जहाँ एक ओर पांडव के खेमे म हलचल मच गई, वह
सरी ओर कौरव के लए इससे अ छा समाचार और या हो सकता था! पांडव म
सवा धक वीर और ख़तरनाक अजुन था और उसे समा त करने का यह व णम अवसर था।
उ ह केवल अगले दन, सूया त होने तक जय थ को अजुन क से छपाकर रखना था!
पांडव, जस समय, अजुन क त ा पर चता और पूवाभासी शोक कर रहे थे,
उस बीच कृ ण अपने य सखा अजुन के ाण क र ा का उपाय सोच रहे थे। उ ह पूरा
व ास था क य धन कसी भी थ त म जय थ को अजुन के सामने नह आने दे गा।
अगले दन सूय दय आ तो कौरव सेना म वल ण उ साह था। उ ह पता था क सूया त
होने के साथ, अजुन का अंत हो जाएगा और उसी के साथ पांडव क पराजय भी लगभग
तय हो जाएगी।
अजुन अपनी सम त ऊजा के साथ रणभू म म उतरा और आते ही जय थ को खोजने
लगा। वह इतना उ े जत और परेशान था क ीकृ ण से कहकर अपना रथ इधर-उधर,
यहाँ-वहाँ दौड़ा रहा था। उसक रणभू म को अ यंत यान से छान रही थी। हालां क
कृ ण जानते थे क य धन इतनी बड़ी भूल कदा प नह करेगा क वह जय थ को रण म
जाने दे ने क अनुम त दे दे गा। ीकृ ण ने अनेक बार अजुन को यह समझाने का यास भी
कया क वह जय थ को खोजने म अपनी ऊजा य न करे और जतना भी समय उसके
पास शेष है, उसम अपने क का पालन करते ए अ धक से अ धक श ु का संहार
करने का यास करे। परंतु आवेश और ोध से अजुन हतबु हो गया। वह उ म होकर
इधर-उधर दौड़ रहा था। अजुन का रथ रणभू म म इतनी तेज़ ग त से घूम रहा था क रथ के
नकल जाने के बाद सफ़ रथ के प हय से उड़ी धूल दखाई दे ती थी!
इसी भाग-दौड़ म पूरा दन नकल गया कतु जय थ का कह पता न लगा। अजुन
अपने ल य को पाने के लए इतना हो गया था क उसे यह भी यान नह रहा क
सूया त होने म कुछ ही समय शेष था। सरी ओर, कृ ण के हाथ रथ चला रहे थे कतु उनक
तेज़ी से ढलते सूय पर टक ई थी। दवस का अवसान नकट था। सूय क मंद होती
येक करण के साथ अजुन का अंत नकट आता था।
सहसा कुछ आ जसने सव हलचल पैदा कर द । अचानक चार ओर अँधकार छाने
लगा, नभ म उड़ रहे प ी अपने-अपने नीड़ को लौटने लगे और आकाश सं याकाल क
ला लमा से र म हो उठा। सामा य ढं ग से दे खने पर यही लगा मानो सूया त हो गया था।
सहसा यु भू म म शां त छा गई और नयमानुसार, सूया त होने पर यु थम गया। मने दे खा
क अजुन का रथ य धन के श वर के ठ क सामने खड़ा था।
इसी बीच, जय थ ख़ुशी से उछलता आ य धन के श वर से बाहर आया और हँसते
ए बोला, “अजुन! दे खो, सूया त हो गया और तुम मुझे मार पाने म असफल रहे। मुझे ख
है क तु हारा यह सखा कृ ण भी मुझे खोज पाने म असफल रहा। अब रथ से नीचे उतर
आओ और आ म-दाह करके अपनी त ा पूण करो!”
“जय थ!” ीकृ ण ने मु कराते ए कहा, “इतना अधीर होना अ छ बात नह है।
तु ह अ य धक उ ेजना के कारण म हो रहा है। यह अँधेरा तो सहसा घने बादल के कारण
हो गया था। वह दे खो, सूय अ त होने म अभी कुछ पल बाक़ ह!”
ीकृ ण क बात सुनकर जय थ और अजुन समेत सब लोग आकाश क ओर दे खने
लगे। यह सचमुच अद्भुत य था। आकाश म छाए बादल पूरी तरह छँ ट चुके थे और सूय
अपनी पूण ओज वता के साथ प म दशा म डू बने क तैयारी कर रहा था।
“अजुन, तु ह अब कस बात क ती ा है?” कृ ण ने अजुन से कहा। “तु हारा ल य
तु हारे सामने है। अपनी त ा पूण करो और अ भम यु क ह या का तशोध ले लो!”
अभी ीकृ ण का वा य पूरा भी नह आ था, क मने दे खा अजुन अपने वशाल गांडीव
धनुष पर बाण साधे तैयार खड़ा था। कृ ण ने अजुन को फर टोका, “एक बात का यान
रखना। जय थ के पता वृ ने यह भ व यवाणी क ई है क जो उसके पु
जय थ का सर काटकर पृ वी पर गराएगा, उसके अपने सर के सौ टु कड़े हो जाएँग!े
इस लए तुम अपने बाण को इस तरह चलाओ क जय थ का सर कटकर उसी के पता क
गोद म गर जाए। उसके पता वृ , इस समय सं यावंदन म लीन ह। ज द करो, पाथ!
सूया त होने को है।”
ीकृ ण क बात सुनते ही अजुन ने धनुष क डोर ख ची और फर पूरी श से उसे
छोड़ दया। अजुन का बाण व ुत ग त से उड़ा और अगले ही पल जय थ का सर, उसके
धड़ से अलग हो गया। अजुन ने अपना बाण, कृ ण क चेतावनी को यान म रखते ए
चलाया था। इस कारण, जय थ का कटा सर, हवा म उड़ता आ उसके पता वृ क
गोद म जाकर गरा। अपनी गोद म अपने पु का कटा सर दे खकर वृ उठ खड़े ए
और इससे जय थ का सर उनक गोद से लुढ़ककर धरती पर गर गया। सर के नीचे गरते
ही, अपनी ही भ व यवाणी के चलते, वृ के सर के सौ टु कड़े हो गए।
ीकृ ण जानते थे क यु के नयम से चलते ए तथा दै वी माया का उपयोग कए
बना, अजुन के ाण क र ा करना संभव नह था। वह महायु , जो पांडव ारा धम क
र ा हेतु आरंभ आ था, अब धीरे-धीरे छल-कपट के माग से वजय क ओर अ सर हो रहा
था!
23
र णभू म म जैस-े जैसे मरने वाल क सं या बढ़ती जा रही थी, यु अ धक नृशंस होता जा
रहा था। जय थ क छलपूवक मृ यु से कौरव प म हाहाकार मच गया। य धन,
ोणाचाय और कृपाचाय म बात-बात पर ववाद होने लगे। उ ह शायद होने वाली हार का
अंदेशा होने लगा था और इसी लए वे एक- सरे पर खीज रहे थे।
“गु वर!” य धन ने रोष भरे वर म ोणाचाय से कहा, “ऐसा जान पड़ता है क
कौरव के प म यु लड़ते ए भी आपका मन, अपने य श य अजुन म ही रमा आ है!
वह एक के बाद एक हमारे यो ा को मार रहा है और इतने सारे द ा होने के बाद भी
आप शां त से सबकुछ दे ख रहे ह। कह ऐसा न हो क हम आपके ही कारण यह यु हार
जाएँ!”
य धन क बात म स चाई थी और इसी लए, वह बात मेरे पता को चुभ गई। यह सच
था क धृतरा क राजसी कृपा का पा होने के बावजूद ोण क आस पांडव ,
वशेषकर अजुन के त, इतनी अ धक थी क वे साम यवान होते ए भी पांडव का अ न
नह कर पा रहे थे। परंतु य धन के वर म कटु ता को दे खते ए ोण के लए अब यह
नणय लेना आव यक हो गया क वह पांडव के त आस और कौरव के त क -
न ा म से कसे चुनते ह।
जीवन के अं तम ण म ोणाचाय जैसे व - व यात गु को अपने माथे पर कत
क अवहेलना का कलंक लगवाना वीकार नह था। उ ह ने अपने अ -श सँभाले और
य धन को उसी के तीखे वर म उ र दया, “ य धन, तु हारी बु हो गई है। वजय
पाने क लालसा म तु ह उ चत-अनु चत का भी भान नह रहा। म तु हारी ओर से यु लड़
रहा ँ और पूरी न ा से लड़ रहा ँ, फर भी य द तु ह मेरी न ा पर संदेह है तो म यह शपथ
लेता ँ क आज ऐसा भीषण यु क ँ गा क श ु-प के दल दहल जाएँग।े परंतु यह एक
बात अव य सुन लो क तु हारा हठ ही इतने नरपराध सै नक और यो ा क मृ यु का
कारण बना है और य द इस यु म हमारी पराजय ई तो उसके उ रदायी भी तुम होओगे।”
मने पहली बार ोण को इतनी कठोरता से य धन को फटकारते सुना था। पता नह य ,
कतु मुझे अपने पता पर गव महसूस हो रहा था।
ोणाचाय का मन य धन के आरोप से खी था। वे त काल अपने अ -श लेकर
श वर से बाहर नकल गए। कुशल यो ा क अपे ा आहत यो ा अ धक ख़तरनाक होता
है! ोण आहत थे और इस लए वे अ धक ख़तरनाक हो गए। उ ह ने समरभू म म जाकर
सचमुच भयंकर यु आरंभ कर दया। ोणाचाय ने अपने अ -श और यु -कौशल से
शी ही यु का पलड़ा फर से कौरव-प क ओर झुका दया। उनका रथ समरभू म म
व ुत से भी तेज़ ग त से घूम रहा था और वे जस भी दशा म मुड़ जाते थे, वहाँ क धरती
श ु के शव से पट जाती थी। पांडव के लए ोण को रोकना आव यक था। परंतु पृ वी
के सव े धनुधर के गु को रण म रोकना या परा जत करना कोई हँसी-खेल नह था!
अजुन ने अपने गु का ऐसा वीभ स और रौ प पहले नह दे खा था। उसे समझ नह
आया क ोण क बाण-वषा और उनके द अ -श को रोकने के लए वह या करे!
अजुन को पहली बार यु करते समय भय महसूस हो रहा था। ीकृ ण ने त काल अजुन
क शंका और उसके भय को भाँप लया।
कृ ण ने रथ रोककर अजुन से कहा, “अजुन! तुम यह भली-भां त जानते हो क
ोणाचाय धनुधा रय म सव े ह और जब तक इ ह ने अपने हाथ म धनुष पकड़ा आ है,
उ ह दे वराज इं भी परा जत नह कर सकते। य द तुम ोणाचाय को रोकना चाहते हो तो
कोई ऐसा उपाय करो क वे अपना धनुष नीचे रख द। वही ण होगा जब तुम ोण का वध
कर सकोगे!”
“माधव!” अजुन ने आ य से कहा, “यह आप या कह रहे ह? इस समय रणभू म म
आचाय ोण के अ त र कोई अ य यो ा ही नह है। मुझे तो सब तरफ़ वही दखाई दे रहे
ह। वह पूव दशा म हज़ार सै नक को मारकर अगले ही ण प म दशा म प ँच जाते ह
और फर वहाँ से कसी अ य दशा म! मने ऐसी फुत कसी यो ा म नह दे खी। मुझे तो
ऐसा लग रहा है क वे हम सबको मारकर आज ही इस यु को समा त कर दगे, और आप
कह रहे ह क म इनका धनुष नीचे रखवाने का उपाय सोचू?
ँ ”
अजुन को इतना आ ांत दे खकर कृ ण ने मु कराकर कहा, “इस तरह हताश न हो,
पाथ! तु हारे ऊपर इस यु को जीतने का दा य व है। कोई सम या इतनी बड़ी नह होती
जसका समाधान न हो सके। याद करो अजुन, जस ण तु ह अपने पु अ भम यु क मृ यु
का समाचार मला था, उस समय कैसे यह वशाल गांडीव, जसक केवल टं कार से य के
गभ गर जाते ह और यु म बड़े-बड़े यो ा को पसीना आ जाता है, तु हारे ब ल कंध
से सरककर नीचे आ गरा था। याद है, अजुन?”
“हाँ याद है, कृ ण!” अजुन ने अ भम यु के वध के ददनाक पल को याद करते ए
कहा, “म उन ण को कैसे भूल सकता ँ? अपने पु क मृ यु का समाचार सुनकर कस
पता के कंधे से उसका धनुष नह छू ट जाएगा?”
“म तु ह यही समझाने का यास कर रहा ँ पाथ क ोणाचाय के हाथ से उनका धनुष
नीचे रखवाने का अब केवल यही एक माग है क उ ह अ थामा क मृ यु का समाचार
सुनाया जाए!” ीकृ ण ने मु कराते ए कहा।
“अ थामा क मृ यु!” अजुन का मुँह खुला रहा गया। “परंतु केशव, अ थामा तो
जी वत है! वह पूव दशा म नकुल-सहदे व के साथ घमासान यु लड़ रहा है। आचाय ोण से
इतना बड़ा झूठ कौन बोलेगा? य द एक ण को मान भी लया जाए क उनसे कसी ने यह
बात कह द तो भी आचाय इस बात पर इतनी सरलता से न तो व ास करगे और न ही
अपना धनुष छोड़गे।”
“तुम ठ क कहते हो, अजुन!” कृ ण ने अपनी सौ य मु कान को बनाए रखा। “ ोण-
पु अ थामा इस समय पूव दशा म यु कर रहा है, कतु यह बात ोण नह जानते। और
फर, मने तुमसे ोण-पु अ थामा क बात कब क ? म तो मालवा के राजा इं वमा के
हाथी क बात कर रहा ँ। उसका नाम भी अ थामा है! य द इं वमा के हाथी, अ थामा
को मार दया जाए और ोण से कहा जाए क ‘अ थामा मारा गया’ तो शायद काम बन
सकता है!”
“परंतु राजा इं वमा तो हमारे प म यु कर रहे ह। हम उनके हाथी को कैसे मार
सकते ह?” अजुन ने पूछा।
“तु ह इं वमा के हाथी क चता अ धक है या ोण क ?” ीकृ ण ने तीखे वर म
सीधा कया।
“इस समय तो ोण को रोकना ही हमारी ाथ मकता है, केशव!” अजुन ने घबराकर
ज द से उ र दया।
“तो फर म जैसा कहता ँ, वैसा ही करो!” ीकृ ण बोले, “भीम से कहो वह त काल
अपनी गदा से इं वमा के हाथी का वध कर दे और फर ोण से कहे क ‘अ थामा मारा
गया।’ ज द करो, अजुन! हमारे पास गँवाने के लए समय नह है।”
कृ ण से तक करने का कोई अथ नह था। अजुन ने त काल भीम को संदेश भजवा
दया। कुछ ही दे र बाद भीम र से सनी अपनी भयंकर गदा लेकर ‘अ थामा मारा गया!
अ थामा मारा गया!’ च लाता आ ोण के सम जा खड़ा आ। म सचमुच उस समय
पूव दशा म पहाड़ी क तलहट के पास नकुल और सहदे व से यु कर रहा था।
ोण ने भीम के मुँह से ये कठोर वचन सुने तो वे त ध रह गए। उ ह ने भीम को दे खा।
उसक व णम गदा के चमचमाते शीष और मूठ से ताज़े र क बूँद टपक रही थ । ोण
उसे एकटक दे खते रहे। उनके चेहरे के भाव बदल रहे थे। उनक मु ा पहले-सी आ ामक
नह थी। उनके ोध से भरे ने के अंदर कसी कोने म उदासी ने जगह बना ली थी। उनका
सर घूम रहा था, परंतु वह सहसा सँभल गए। यु -नी त म नपुण और श ु क चाल के
वकट जानकार ोण के भीतर सहसा एक फुरण आ और उ ह ने कहा, “भीम!
अ थामा कोई क ची म का पुतला नह है, जसे तुम अपनी गदा के हार से यूँ ही व त
कर दोगे। वह मेरा पु , अ थामा है! वह ोण पु अ थामा है! उसका तन फौलाद का
बना है। तु हारी भुजा म न संदेह हज़ार हा थय का बल है, कतु अ थामा को मारने क
लए तु हारा बल भी अपया त है! मुझे तु हारी बात पर लेश-मा भी व ास नह है। म
जानता ँ क मेरा पु अ थामा अभी जी वत है!”
कृ ण ने दे खा क थ त भीम के नयं ण से बाहर जा रही थी और य द ोण को तुरंत
अ थामा क मृ यु पर व ास नह दलाया गया तो वह दोबारा यु करना आरंभ कर दगे।
वह मु कराते ए बोले, “आचाय ोण! न संदेह अ थामा अ यंत बलशाली और परा मी
था कतु यह स य है क उसका तन भीम क गदा के हार को अ धक दे र नह झेल सका।
आप वयं ही बताएँ क अ थामा क मृ यु पर आप कैसे व ास करगे!” कृ ण म यह
वल ण गुण था क वह अपने घोर श ु से बात करते ए भी मु करा लेते थे और अपनी
मधुर बात से कसी को भी अपने वश म कर सकते थे।
कृ ण क बात सुनकर ोण सोच म डू ब गए। एक लंबे वराम के बाद उ ह ने कृ ण से
कहा, “इस पूरी पृ वी पर केवल यु ध र है, जो तीन लोक का रा य पाने के लोभ म भी
कदा प झूठ नह बोल सकता। य द यु ध र अ थामा क मृ यु क पु कर दे , तो म यह
बात मान लूँगा!”
अजुन और भीम एक- सरे को दे खने लगे। उ ह ोण से इस कार क शत क अपे ा
नह थी। ोण क बात सुनकर यु ध र को आगे आना पड़ा। मने यु ध र के म तक पर
चता क ऐसी गहरी लक र इससे पहले कभी नह दे खी थ । उसे समझ म नह आ रहा था
क वह या करे। वह झूठ बोल नह सकता था और य द सच कह दे ता तो ोण के हाथ ,
भीम क मृ यु न त थी! ोण इस ऊहापोह क थ त म, अपने रथ से नीचे उतर आए।
उस समय, उनका यान ीकृ ण क ओर नह था। उस अवसर का लाभ उठाकर, कृ ण
आगे बढ़े और उ ह ने यु ध र के कान म धीरे से कुछ कहा, जसे सुनकर यु ध र क चता
लगभग मट गई।
“आचाय!” यु ध र ने बड़े आ म- व ास के साथ ोण को संबो धत करते ए कहा,
“मुझे अ यंत खेद है क अ थामा मारा गया!” यह वा य बोलने के तुरंत बाद यु ध र ने
धीरे-से जोड़ा, “मनु य नह , अ पतु हाथी!” यु ध र ने वह वा यांश इतना धीरे-से बोला क
ोण तो र, यु ध र के नकट खड़े अजुन और भीम भी उसे सुन नह सके। ोण को
व ास था क यु ध र के झूठ बोलने का कोई ही नह था। स यवाद यु ध र के मुँह से
अ थामा क मृ यु का समाचार सुनते ही ोण के हाथ-पाँव श थल पड़ गए। एक पता के
लए उसके पु क मृ यु से अ धक खद या हो सकता है! ोण ने अपना धनुष नीचे रख
दया और नीचे बैठ गए। ीकृ ण के पास हर सम या क काट थी!
बड़े-बड़े महार थय को पल-भर म धूल चटा दे ने वाला वह महान यो ा आज वयं धूल
म बैठा अ ु बहा रहा था। जन कुशल हाथ ने कतने ही राजकुमार को धनु व ा म
स ह त बना दया था, आज उन हाथ म न तो धनुष उठा पाने का साम य शेष था और न
ही यु क इ छा बाक़ रह गई थी। अ थामा क मृ यु का समाचार सुनकर, ोण अंदर से
इतने टू ट गए क उ ह ने धरती पर बैठे-बैठे आँख बंद कर ल और योग न हो गए।
अजुन उस समय ोण क पीड़ा को भली-भां त महसूस कर पा रहा था। जस महान
गु ने पांडव को सव े यो ा और कुशल धनुधर बनाने के लए अपना जीवन सम पत कर
दया, आज उसका अपना जीवन उ ह पांडव के म या-वचन के कारण संकट म था।
अजुन का मन ला न से भर आया परंतु अब दे र हो चुक थी। कृ ण के तरकश से नकला
बाण न फल नह जा सकता था। अजुन ारा यु से पूव नारायणी सेना छोड़कर, ीकृ ण
को चुनने का नणय साथक हो गया था!
ोण को हताश और नह था बैठे दे ख कृ ण ने आस-पास घुमाई। वे दे ख रहे थे क
पांडव, जो इतने लंबे समय से ोण के धनुष छोड़ने क ती ा कर रहे थे, अब अवसर आने
पर ोण के ख से खी थे। कृ ण समझ गए क कसी भी पांडव के लए अपने वषाद- त
गु पर वार कर पाना संभव नह होगा। कृ ण ने, अवसर और समय को हाथ से नकलता
दे ख, त काल धृ ु न को संकेत कर दया।
पद-पु धृ ु न के लए अपने पता क पराजय और उनके अपमान का बदला लेने
का इससे बेहतर अवसर या हो सकता था! वह अपनी तलवार लेकर आगे झपटा और बना
संकोच कए उसने एक झटके से आचाय ोण के केश पकड़ उनका सर काट दया। अगले
ही पल ोण का सर धरती पर लुढ़क गया। ोण के शरीर से र क धार फूट और उनके
आस-पास क भू म त काल र रं जत हो गई।
यु म कोई नह थे श ु पर वार नह करेगा! नह थे ोण क ह या के साथ, अ य
नयम क भां त, महायु का यह नयम भी टू ट चुका था। इस महायु क यह अनोखी
वशेषता थी क इसके आरंभ म बनाए गए लगभग सम त नयम, यु के अंत तक तोड़े जा
चुके थे।
म जब सं याकाल म यु से लौटा तो दे खा क श वर म शोक और मातम छाया आ
था। मेरे वेश करते ही सब मेरी ओर व च ढं ग से दे खने लगे। मने आस-पास दौड़ाई
तो दे खा क हमारी सेना के सभी मुख यो ा मौजूद थे। अपने पता को वहाँ न दे ख, मेरा
दल बैठ गया! म आगे को दौड़ा और फर सहसा, ठठककर क गया। मेरे पता व गु
ोणाचाय का ख़ून से लथपथ सर वहीन शव ज़मीन पर पड़ा था। मुझे याद नह क उस
समय, मुझे ोध और ख म अ धक या महसूस हो रहा था!
“यह असंभव है!” मने च लाकर कहा, “मेरे पता क मृ यु असंभव है!”
“तुम ठ क कहते हो पु !” मामा कृपाचाय ने हाथ से मेरे आँसू प छते ए कहा,
“आचाय ोण को मार पाना असंभव था। वे मानव, व ण, आ नेय, , इं और नारायण-
अ के ाता थे। वे श व ा म परशुराम से और यु म इं से समानता रखते थे। उनका
परा म कातवीय के समान था। वे बु म बृह प त के तु य थे। धम , थर व तेज वी होने
के साथ-साथ वे समु क भां त गंभीर थे। परंतु उ ह छल से पहले नह था कया गया और
फर अधम धृ ु न ने तु हारे पता का सर काट डाला।” इसके बाद कृपाचाय ने मुझे
इं वमा के हाथी अ थामा के नाम से ोण के साथ कए गए छल क पूरी घटना भी सुनाई।
मने कसी तरह अपने आँसु को रोका। परंतु ोध से मेरा तन काँप रहा था। मने
सबके सम गरजकर कहा, “मेरे पता वीर क भां त लड़ते ए मृ यु को ा त ए ह,
इस लए अब म उनके लए अ धक शोक नह क ँ गा। परंतु मेरे पता ने ह थयार डाल दए
थे, फर भी उस अधम धृ ु न ने न केवल उनके केश पकड़कर उ ह सबके सामने
अपमा नत कया, ब क नह था होने के बावजूद उनक ह या कर द । इसके लए म उस
पापी धृ ु न को कभी मा नह क ँ गा! उसे अपने पाप का प रणाम भोगना पड़ेगा!”
सहसा मेरे मेरी आँख के सामने वह य उभर आया जब हम छह महार थय ने
मलकर ोण- न मत च ूह के अंदर फँसे अकेले व नह थे अ भम यु को नममता से मार
डाला था। या नय त ने ोण को एक मान सक ूह म फँसाकर मरने पर ववश नह कर
दया था? कह ऐसा तो नह क नय त ने नह थे अ भम यु क ह या के कारण उसके पता
को ई घोर पीड़ा का तशोध मेरे पता क ह या के फल व प मुझे यह घोर पीड़ा दे कर
लया था?
जो भी हो, म अपने पता क ह या से इतना अ धक उ म हो गया क सब कुछ
जानते-समझते ए भी मने रणभू म म श ु के सवनाश क त ा क । मने अपनी भुजा
को ऊपर उठाया और कहा, “संसार के लोग पु क कामना इस लए करते ह क वह समय
आने पर इहलोक और परलोक म अपने पता क र ा कर सके। परंतु मुझ जैसे पु के होते
ए भी मेरे पता क ऐसी दशा ई। ध कार है मेरे द ा को! ध कार है इन भुजा
को और मेरे परा म को! अब मेरे जीवन का बस यही उ े य है क म अपने पता के
अपमान एवं उनक छलपूवक ई ह या का तशोध लू!ँ ”
“धृ ु न ने न त ही महापाप कया है, अ थामा!” य धन ने मेरे कँधे पर हाथ
रखकर सहानुभू त करनी चाही, “परंतु मेरे वचार से इस कुकृ य म सबसे बड़ा दोषी
यु ध र है। वह वयं को धम का अंश कहता है, ले कन उसने नीचता भरा काम कया है।
उसे अव य ही इसका दं ड मलना चा हए!”
य धन मेरी वेदना क अ न म अपने र को गम करने का यास कर रहा था! वह
धीरे-धीरे मुझे पांडव के व उकसा रहा था। वह और उसक सेना पछले पं ह दन म
पांडव का सवनाश करने म वफल रहे थे और इस लए अब य धन ने मेरी आहत भावना
को अपना अ बना लया था। म अपने पता क ह या से इतना ु ध था क मने वयं को
भावावेश म बह जाने दया।
“कल सुबह,” मने आगे कहा, “जब म रथ म बैठकर रणभू म म उत ँ गा तो मुझे
पांडव तो या, दे वता, गंधव, असुर, नाग और रा स भी नह रोक सकगे! म कल ही पांडव
क संपूण सेना को म म मलाकर रणभू म म लय क थ त पैदा कर ँ गा। ब त हो गई
ीकृ ण क लीला!” यह कृ ण के व मेरी थम ट पणी थी।
“ब त अ छा!” य धन ने कहा, “परंतु अजुन को कम न आँको, अ थ! मत भूलो
क वह सव े धनुधर ही नह , अ वे ा भी है। उससे अ धक अ -श का ान कसी
को नह है। ऐसे म या अजुन को परा जत कर पाना संभव…”
“जानता ँ,” मने य धन क बात को बीच म ही काट दया, “परंतु मेरे पास भी एक
अ है जसक काट कसी के पास नह है। यह श ु का नाश कए बना नह लौटता। इस
संसार म उस अ के लए कोई भी अव य नह है, इस लए जस पर उसका योग
कर दया जाए, उसके जी वत बचने का कोई उपाय नह है!”
“अरे वाह!” य धन अ यंत स हो गया, “ऐसा कौन-सा अ है तु हारे पास? वह
तु हारे पास कहाँ से आया?”
“नारायणा !” मने आ म ाघा से कहा, “यह द ा वयं भगवान नारायण ने मेरे
वग य पता को उनक तप या के फल व प दया था। बाद म मेरे हठ करने पर मेरे पता ने
मुझे इसका योग करना सखाया था। यही एक अ है जसका योग अजुन नह जानता।
इसी के योग से म कल सुबह पांडव और उनक सम त सेना का नाश कर ँ गा।”
वह रात, सुबह क ती ा करते कट गई। अगले दन यु आरंभ होने पर मने आचमन
एवं मं ो चारण कया। अगले ही ण वह द नारायणा कट हो गया। यह उसी अ
क ही म हमा थी क सहसा आकाश म मेघ गरजने लगे और तेज हवा बहने लगी। मौसम को
यूँ बदलता दे ख दोन ओर क सेनाएँ अ यंत हैरान थ । चार ओर से भयानक गजन सुनाई
पड़ रहा था। समु म तूफ़ान उठने लगा और बड़ी-बड़ी न दय ने अपने वाह क दशा बदल
द । पवत के शखर टू टकर बखरने लगे। कुल मलाकर, ऐसी थ त बन गई, जसे दे खने से
ही लय का एहसास होने लगा। यो ा अपनी-अपनी जगह पर क गए और सभी क
मेरे हाथ म मौजूद नारायणा पर टक गई। मुझे अचानक याद आया क भगवान नारायण
ने अपना वह अ मेरे पता ोण को दे ते ए कहा था क इसका योग उ मा दत होकर नह
करना चा हए। इस वचार ने मेरे हाथ को रोक लया। म सोच म पड़ गया।
“सोच म मत पड़ो, अ थामा!” य धन क आवाज़ मेरे कान म पड़ी। शायद उसने
मेरी वधा को भाँप लया था और वह नह चाहता था क नारायणा म छपी पांडव के
वनाश क अं तम संभावना मेरी वधा क भट चढ़ जाए। “अपने पता क मृ यु को याद
करो,” वह चीख़ा, “अ चलाओ अ थ!”
म अपने आवेश को सँभाल न सका और म कुछ सोच-समझ पाता, उससे पूव मेरे हाथ
से नारायणा छू ट गया। उसम से हज़ार बाण नकले जनके अ भाग व लत थे। उन
बाण से आकाश क सम त दशाएँ आ छा दत हो ग । उसके बाद उसम से लोहे के गोले,
च , गदा आ द अनेक अ कट होने लगे जनम छु रे लगे ए थे। ये अ -श पांडव
क सेना को तेज़ी से न करने लगे। इस भयावह अ के भाव से पांडव सेना ततर- बतर
होकर यहाँ-वहाँ भागने लगी। वह द ा अ यंत त ग त से श ु के सै नक का संहार कर
रहा था। उससे सभी को व ास हो गया क शी ही, वह यु कौरव के प म हो जाएगा।
ीकृ ण के लए यह एक बार फर चुनौती क घड़ी थी। उ ह ने त काल पांडव को
एक जगह बुलाकर कहा, “नारायणा को शांत करने का बस एक ही तरीक़ा है क इसके
सामने ह थयार डालकर सर झुका दया जाए। चूं क अ थामा ने इसका योग मु य प
से हमारे व कया है तो अब तुम सब लोग अपने-अपने रथ से नीचे उतर आओ और
अ -श छोड़कर नारायणा को णाम करो, अ यथा आज तुम सबक मृ यु न त है!”
ीकृ ण क वाणी क अवहेलना करने से बड़ी मूखता या हो सकती थी! पांडव ने
अपने-अपने श ा द छोड़ दए और वे सब त काल रथ से नीचे कूद आए। उ ह ने सर
झुकाकर उस अनोखे द ा को नमन कया। ऐसा करते ही नारायणा शांत हो गया।
म यह मानता ँ क य द य धन ने ीकृ ण क नारायणी सेना वीकार करने क
मूखता न क होती तो पांडव के लए वह यु जीत पाना असंभव था। परंतु यह भी कहाँ
संभव था! आ ख़र, धम तो पांडव के साथ ही था। जहाँ धम है, वह कृ ण ह और जहाँ
ीकृ ण ह, वह तो वजय है!
24
यु क वनाश-लीला जारी थी। चार ओर चरे-कटे और ख़ून से लथपथ शव के ढे र लगे
ए थे। रणभू म म शायद ही कोई थान शेष था, जहाँ पर भू म अपने मूल प म दखाई
दे रही थी। यु म सामा यतया ऐसी थ त तब उ प होती है जब यु अपने चरम को पार
कर अंत क ओर अ सर होता है। दोन ओर से भयंकर यु लड़ा जा रहा था। तरह-तरह के
अ -श चलाए जा रहे थे। चार तरफ़ र पात हो रहा था। एक रा ही, हठधम एवं अ त
मह वाकां ी य धन के कारण दोन ओर के असं य सै नक अब तक अपने ाण गँवा चुके
थे।
मेरे पता ोण क मृ यु के बाद कण को सेनाप त नयु कया गया था। सेनाप त
बनने के बाद कण का आ म व ास भी बढ़ गया। यु कौशल म तो वह पारंगत था ही, वह
साहस एवं परा म म भी बेजोड़ था। अजुन क भां त उसके पास भी अनेक कार के
द ा थे। वह बीच-बीच म उनका योग करता था जनका सामना करना पांडव सेना के
लए भारी पड़ जाता था। मु य प से यु उस समय अजुन और कण के बीच चल रहा था।
दोन एक- सरे के र के यासे थे। उनके बीच हो रहे संघष को दे खने से यह प था क
दोन म से एक क मृ यु के बाद ही यु थमेगा। इस बात से मुझे एक बात और याद आई।
मह ष वासा से कुंती को मले वरदान के फल व प पांडव के ज म क कथा सुनाते समय
मने कहा था क कभी-कभी वरदान भी अ भशाप बन जाते ह। मने उस समय एक रह य के
वषय म भी बात क थी। उस रह य को कट करने का अब समय आ गया है!
मह ष वासा से वरदान पाकर कुंती इतनी स हो गई क उसके मन म वरदान को
परखने का इ छा जा त हो गई। उसने सबसे पहले सूयदे व का आ ान कया। वरदान के
झूठा होने का कोई नह था! सूयदे व कट हो गए। कुंती ने उ ह णाम कया तो उ ह ने
कुंती से कुछ माँगने को कहा। तब कुंती ने उ ह सच बता दया क वह केवल वरदान को
परखना चाहती थी और फर उसने सूयदे व से मा माँगते ए उनसे लौट जाने का अनुरोध
कया था। परंतु सूयदे व के लए बना कुछ दए लौट जाना संभव नह था। इसी वधा के
बीच, सूयदे व ने कुंती को एक पु दे ने का नणय कर लया। कुंती उस समय अ ववा हता थी।
उसके लए, ववाह से पूव अपने शरीर का दान करना संभव नह था। तब सूयदे व ने अपनी
द श से, बना पश कए, कुंती के गभ म एक पु था पत कर दया। यथासमय,
कुंती के गभ से एक तेज वी बालक ने ज म लया। वह बालक अपने पता के समान
काशमान था। वह शरीर पर वण कवच और कान म वण कुंडल पहने ए था। उसके
कंधे बैल के समान ब ल तथा ने सह के समान ओज वी थे। कुल क अपक त और
लोक-लाज के भय से कुंती ने एक धाय के साथ मलकर उस बालक को टोकरी म रखकर
नद म वा हत कर दया। कुछ समय बाद, वह टोकरी बहती ई यमुना नद से गंगा नद म
जा प ँची। वह टोकरी जस समय चंपापुरी े से बहती ई जा रही थी, उसे धृतरा के
सारथी, अ धरथ ने दे ख लया। अ धरथ न संतान था, तो वह उस द बालक को भगवान
का साद मानकर अपने घर ले आया। इसके बाद अ धरथ और उसक प नी राधा ने
मलकर उस बालक का पालन-पोषण कया।
आपका अनुमान सही है! यही बालक बड़ा होकर कण कहलाया! हाँ, यही पूण स य है
क कण वा तव म कुंती-पु था और इस नाते वह पांडव का ये भाई था। इससे भी
अ धक आ य क बात यह है क कण और कुंती दोन ही इस रह य को यु आरंभ होने से
पहले से जानते थे! यु के बाद जब मेरे मामा कृपाचाय ने मुझे यह बात बताई तो मने उनसे
सबसे पहला यही कया, “ या कुंती ने कण को उसके ज म क बात बताकर उसे
पांडव के साथ रहने के लए आ ह नह कया? सब कुछ पता लगने के बाद भी कण ने
य धन का साथ य दया और अपने भाइय के व यु य कया?”
मामा कृप ने बताया, “अ थामा! कुंती जानती थी क य धन, यु म मु य प से
कण पर ही नभर था और य द कण उसका साथ छोड़ दे ता तो पराजय के भय से शायद
य धन यु को रोक सकता था। यही सोचकर एक दन कुंती ने कण से मलने का न य
कया और वह कण के नान- यान के समय गंगा-तट पर जा प ँची।”
कुंती को दे खकर कण ने उसे णाम कया और पूछा, “यह सूतपु आपक या सेवा
कर सकता है?”
“कण, वयं को सूतपु न कहो! म आज तु ह यही बताने आई ँ क तुम सूतपु नह
हो! तुम मेरे पु हो, तुम कुंती के परा मी ये पु , कण हो! तुम यश वी पांडव के ये
भाई, कण हो!”
“यह आप या कह रही ह?” कण ाकुल हो उठा, “म, और आपका पु … यह कैसे
संभव है?”
इसके बाद कुंती ने कण को वासा से मले वरदान और सूयदे व के अंश से कण के
ज म क कथा सुनाई। कुंती ने कण के सामने रो-रोकर माँ का दा य व न नभा पाने के लए
उससे मा भी माँगी।
“मुझे मा कर दो पु ,” वह बोली, “मने लोक-लाज के भय से तु ह ज म के समय
याग दया और अपने कुल क क त अ ु ण रखने के लए तु हारा भ व य और वतमान
खं डत कर दया! म अपना अपराध वीकार करती ँ और तुमसे ाथना करती ँ क तुम
अपने भाइय के साथ मलकर रहो। म तु ह वचन दे ती ँ क यु ध र और उसके अनुज तु ह
यथो चत स मान दगे और तुम इं थ के राजा बनोगे! य धन और कपट है। वह
जानता है क तु हारी सहायता के बना वह यु नह जीत सकता। उसका साथ छोड़ दो,
कण!”
कुंती ने एक ास म सबकुछ कह दया, जो इतने वष से वह अपने मन म दबाए बैठ
थी। कुंती को व ास था क अपनी वा त वक माता को सामने दे खकर कण न केवल ह षत
हो जाएगा अ पतु, त काल य धन का प छोड़कर ये पांडव बनना वीकार कर लेगा।
परंतु कण साधारण मनु य नह था। वह द था! न ा और कत परायणता से ही
उसके व क शोभा थी।
“आपने मुझे ज म दया है और इस नाते आप मेरे लए पूजनीय ह। परंतु म य कुल
म ज म लेकर भी आजीवन सूतपु कहलाया। मेरा इससे बड़ा अपमान या होगा? मेरे यश
क इससे अ धक त या होगी? रंगभू म म जस समय पांडव, आपक उप थ त म, मुझे
‘सूतपु ’ कह रहे थे और मेरा उपहास कर रहे थे, उस समय केवल य धन ही एक था
जसने मेरी पीड़ा को समझा और मुझे सहारा दया। उसने मुझे अंगदे श का रा य दे कर
राजकुमार से भरी उस रंगभू म म न केवल समान अ धकार दया, ब क मुझे अनादर व
तर कार से भी बचाया!”
“परंतु पु ,” कुंती ने मुझे टोकते ए कहा, “ य धन ने यह सब वाथ के वश कया है।
उसने पांडव से तशोध लेने के लए तु ह केवल अपना मोहरा बनाया है।”
“म जानता ँ,” कण ने दो टू क उ र दया। “परंतु य द मेरे ज म के समय आपके ारा
वाथवश मेरा याग करना उ चत है, तो य धन ारा वाथवश मुझे अपनाना अनु चत कैसे
हो सकता है? रंगभू म म पांडव मेरे वषय म कुछ नह जानते थे, परंतु य धन भी मुझसे
अंजान था, फर भी उसने एक स चे यो ा क भां त मेरा स मान कया। म आज जो कुछ ँ,
य धन के कारण ,ँ अ यथा लोग ने तो मुझे ‘सूतपु ! सूतपु !’ कहकर मेरे आ म- व ास
को चूर-चूर कर दया था। आज व तु थ त जो भी हो, कतु अब म य धन के साथ
व ासघात नह कर सकता।”
कण से स य कहकर कुंती के मन का बोझ अव य ह का हो गया था, कतु कण का
ढ़ संक प दे खकर और उसका कटा सुनकर कुंती क आ मा पर कई गुना बोझ आ पड़ा।
वह समझ गई क कण को पांडव के प म करना संभव नह होगा। तब हताश कुंती ने एक
अं तम यास कया।
“कण!” वह बोली, “म तु हारी भावना का स मान करती ।ँ तुम य द य धन का
साथ नह छोड़ना चाहते तो ठ क है, कतु तु हारी माँ होने के नाते या म तुमसे एक वचन
माँग सकती ?
ँ ”
“अव य! कण ने कभी कसी को नराश नह कया और फर आप तो मेरी माँ ह!
माँ गए!”
“तुम मुझे वचन दो क मेरे पाँच पु जी वत रहगे!” कुंती ने कण से अपने पाँच पांडव
पु का जीवन-दान माँगते ए कहा य क उसे पता था क कण से सबसे अ धक ख़तरा
कुंती के पु अजुन को था।
“ओह!” कण के चेहरे के भाव बदल गए। “मुझ पर य धन के उपकार का ऋण है
और यु म य धन के श ु का नाश करना मेरा दा य व है। परंतु म आपको भी नराश
नह क ँ गा। म आपके सभी पु को मार सकता ँ, कतु म आपको वचन दे ता ँ क अजुन
को छोड़कर म यु ध र, भीम, नकुल व सहदे व - इनम से कसी का वध नह क ँ गा। मेरा
मुक़ाबला मु य प से अजुन से है और उसके वध से ही मुझे यश व संतोष मलेगा। य द म
मारा गया तो अजुन जी वत रहेगा और य द अजुन मारा गया तो म जी वत र ँगा। इस तरह,
दोन ही थ तय म आपके पाँच पु अव य जी वत रहगे! आशा करता ँ क यह आपको
वीकाय होगा। अब मुझे आ ा द जए। णाम!” यह कहकर कण मुड़ा और कुंती को
उसक वधा के साथ वह खड़ा छोड़ चला गया।
कुंती को वह पल याद आ रहा था जब उसने न हे कण को टोकरी म लटाकर नद म
बहा दया था। उस समय कुंती ने अपने स मान क र ा हेतु अपने पु को याग दया था,
आज उसी पु ने अपने स मान एवं वचन क र ा के लए अपनी माँ का प र याग कर दया
था! या नय त कुंती से तशोध ले रही थी?
इस बीच अजुन और कण का आमना-सामना हो गया। उन दोन के बीच का वह यु ,
इस महासमर का एक मह वपूण अंश था। शी ही दोन ओर से बाण क नरंतर वषा होने
लगी। अजुन और कण दोन का प वीभ स होता जा रहा था। वे दोन जब अपने-अपने
जीवन का नणायक यु लड़ रहे थे, उसी बीच समय का प हया अपनी धुरी पर घूमता आ
ऐसे ब पर आ प ँचा था जहाँ से आगे का माग कण के लए क ठनाइय से भरा था। इसे
ठ क से समझने के लए कण के जीवन क दो अ य घटना का यहाँ उ लेख करना
अ नवाय है।
एक बार कण व ा ययन के लए गु क तलाश करता आ परशुराम के पास प ँच
गया। उसे कसी ने बताया था क परशुराम को य से चढ़ थी और वे केवल ा ण को
श ा दे ते थे। ऐसे म कण ने उनसे झूठ बोला क वह ा ण है और छलपूवक श ा हण
कर ली। एक दन दोपहर के भोजन के बाद, कण और परशुराम टहलते ए आ म से र
नकल आए। परशुराम को थकान से न द आने लगी तो वे कण क गोद म सर रखकर सो
गए। उसी समय एक क ड़ा, कण क जाँघ पर चढ़ गया और उसे काट लया। क ड़े के दं श से
कण को भयंकर दद आ और उसक जाँघ से ख़ून बहने लगा। कण को अपने गु क न ा
भंग हो जाने का डर था, इस लए उसने अपना पाँव नह हलाया। घाव से ख़ून बहने लगा,
कतु कण उस पीड़ा को सहन करके शां त से बैठा रहा और अपने गु के उठने क ती ा
करता रहा। कुछ ही दे र म कण क जाँघ से बहता आ र परशुराम के चेहरे पर टपक गया
तो उनक न द खुल गई और वह उठ बैठे। परशुराम ने दे खा क कण क जाँघ से काफ़ ख़ून
बह चुका था। उ ह ने कण से पूछा तो उसने परशुराम को बताया क उनक न ा भंग होने के
डर से, वह उस भयंकर पीड़ा को सहन करता रहा। परशुराम को यह समझते दे र न लगी क
इतनी पीड़ा सहन करना कसी ा ण के लए संभव नह है। पृ वी पर स ह बार य का
संहार करने के बाद परशुराम के लए य र क गंध पहचानना क ठन नह था! उ ह
ज़बरद त ोध आ गया और वह बोले, “मूख! तूने अपने गु को धोखा दया है। तू य
होकर वयं को ा ण बताता है?”
यह सुनकर कण ने उ ह अपना असली प रचय दया और कहा क वह न तो य है
और न ही ा ण, अ पतु वह सूतपु है। कण ने परशुराम से मा याचना क , परंतु तब तक
ब त दे र हो चुक थी। परशुराम का ोध अपनी पराका ा पार कर चुका था। उ ह ने कण क
कसी बात पर व ास नह कया और उसे शाप दे दया: “तूने, जो श ा मुझसे छल ारा
ा त क है, वह भी तेरे साथ छल करेगी और जस ण तुझे इस व ा क सबसे अ धक
आव यकता होगी, उसी पल यह तेरे म त क से व मृत हो जाएगी!”
य प मुझे लगता है क कण को मा कया जा सकता था य क उसने परशुराम से
झूठ अव य बोला था कतु उसे अपने य होने क जानकारी नह थी। परंतु मा अ यंत
लभ गुण है जसका दान दे ने से पूव मनु य को अपने अहं से मु होना पड़ता है। परशुराम
ोधी होने के साथ-साथ अहंकारी भी थे! उ ह ने कण को मा नह कया और कण अपनी
अकुलीनता के बोझ एवं परशुराम के शाप से त नराश होकर आगे चल दया।
इस घटना के बाद कण को लगा क वह अपने ल य के नकट प ँचकर, उससे ब त
र हो गया था। उसने हताश होकर फर से अपनी या ा आरंभ कर द । कुछ समय बाद, वह
घूमता आ एक गाँव के नकट प ँच गया। उस समय तक अँधेरा हो गया था तो कण ने रा
ने उसी गाँव म बताने का न य कया। रात म वह एक वृ के नीचे लेटा आ था। सहसा
उसने झा ड़य के समीप सरसराहट सुनी। वहाँ कसी जंगली पशु को खड़ा समझकर, कण ने
उस पर श द-भेद बाण चला दया। उसका नशाना अचूक था। वह पशु, क ण ची कार
करता आ नीचे गर पड़ा। कण ने नकट जाकर दे खा क उसके हाथ भूल से एक नद ष
गाय क ह या हो गई थी! कण भयभीत हो गया। वह जानता था क गाय के वामी को इस
बात का पता लगते ही वह कण को दं ड दे ना चाहेगा। कण चाहता तो वहाँ रा म से भाग
सकता था कतु वह भा यशाली अव य था, कायर नह ! वह मृत गाय के नकट बैठ गया
और उसके शरीर से बहते र को दे खता रहा। उसने सुबह होने क ती ा क । कुछ ही दे र
म, गाय का वामी जो एक ा ण था, अपनी गाय को खोजता आ वहाँ आ गया। कण ने
रा म ई घटना का व तार से उ लेख कया और अपने अपराध के लए उससे मा
माँगी। कण ने जान-बूझकर गाय को नह मारा था, तथा प ा ण अ यंत ो धत हो गया।
उसने हाथ म जल लया और कण को शाप दे दया: “तु हारे हाथ मेरी असहाय गाय क
ह या ई है। म तु ह शाप दे ता ँ क तु हारी भी मृ यु इसी कार असहाय थ त म होगी!”
कण के पास अपने ार ध पर खी होने तथा परशुराम और उस ा ण के शाप के
स य होने क ती ा करने के अ त र कोई अ य वक प नह था।
म फर से कण और अजुन के यु पर लौटता ँ। दोन ही यो ा के बीच कड़ा
मुक़ाबला था। सहसा कण का रथ झटके से क गया। उसने नीचे झुककर दे खा क रथ का
बायाँ प हया जमीन म धँस गया था जससे उसका रथ एक ओर झुकने लगा। यु म अ -
श और यु -कौशल जतने आव यक होते ह, उतना ही मह व रथ क थ त का भी होता
है। कण का रथ बाय ओर झुकता जा रहा था। उसके घोड़े लड़खड़ाने लगे। रथ के प हये को
बाहर नकाले बना कण के लए आगे बढ़ना संभव नह था। वह नीचे कूदा और पूरी श
से रथ के प हये को ख चने का यास करने लगा। ब त को शश करने के बाद भी प हया
नह हला। कण क थ त असहाय हो रही थी। कण ारा जस ा ण क गाय क ह या
हो गई थी, उसका शाप अपना भाव दखाने लगा था। कण के माथे से पसीना टपक रहा
था। उसने सम त ऊजा रथ का प हया नकालने म लगा द , कतु प हया ऐसा धँसा क फर
नकला ही नह !
इधर अजुन ने अवसर दे खकर कण पर बाण क वषा कर द । उसके बाण के हार से
कण का कवच कट गया और उसके शरीर से र बहने लगा। उसने सर उठाकर अजुन को
दे खा और बोला, “कुंतीनंदन! म जानता ँ तुम ब त बड़े धनुधर हो कतु तुम जो कर रहे हो,
वह े कुल के लोग को करना शोभा नह दे ता। या तु हारे गु ने तु ह यह नह सखाया
क ऐसे यो ा पर, जसके पास बाण न हो अथवा जसका कवच कट गया हो, वार नह
करना चा हए? य द तुम स चे यो ा हो तो त नक को और मुझे अपने रथ का प हया बाहर
नकालने दो! तुम रथ पर सवार हो और म नीचे धरती पर ,ँ इस नाते भी तु ह मुझ पर हार
नह करना चा हए। ऐसा करना यु -धम के व है!”
कण क बात सुनकर अजुन ने अ हास कया और बोला, “सूतपु कण! तु हारे जैसे
अधम के मुँह से यु -धम क बात शोभा नह दे त । तुमने य धन के साथ मलकर ला ागृह
म हम मरवाने का ष ं रचा, उस समय तु हारा धम कहाँ था? कौरव सभा म सबके सामने
तुमने रज वला ौपद का अपमान कया, तब तु ह धम याद नह आया? कपट शकु न के
साथ तुम लोग ने ूत खेलने के बहाने, हमारे साथ छल कया और हमारा रा य छ न लया,
उस समय तु हारे धम का कहाँ लोप हो गया था? जब तुम छह लोग ने मलकर मेरे नह थे
पु अ भम यु क नममता से ह या क थी, या तु हारा वह कृ य धम के अनुसार था?
तेरह वष बीत जाने के बाद भी तुमने और तु हारे कु टल म य धन ने पांडव का रा य
नह लौटाया, उस समय तु ह धम क याद नह आई? तुमने सदा से अधम का साथ दया है
और जब मृ यु तु हारे सर पर खड़ी है तो तुम धम क हाई दे रहे हो?”
कण से अजुन का कटा सहन नह आ। उसने परशुराम से ा त द ा का
आ ान करने हेतु अपना हाथ ऊपर उठाया और उन अ से संबं धत मं ो चारण आरंभ
कया कतु उसे यह जानकर ब त आ य आ क भरपूर यास के बाद भी उसे कोई मं
याद ही नह आ रहा था। अभी ा ण के शाप का भाव पूरा भी नह आ था क परशुराम
का शाप भी उसके साथ जुड़ गया। कण को लगा क वह परशुराम से ा त सम त व ा
भूलता जा रहा है। कण ने यह क पना भी नह क थी क दोन शाप उसके जीवन के सबसे
मह वपूण यु म एक साथ इस तरह भावी हो जाएँग।े वह समझ गया क उसका अंत
समय आ प ँचा था।
कण ने अपने रथ के प हये को नकालने के लए अं तम ध का लगाया और वफल
होकर वह ज़मीन पर बैठ गया। उसक अजुन पर पड़ी जो अपने चंड गांडीव पर बाण
साधे तैयार था। इससे पहले क कण सँभल पाता, अजुन ने तीर चला दया था। अजुन क
यह वशेषता थी क उसके ारा चलाए बाण का वेग इतना चंड होता था क वह कसी को
दखता भी नह था। अजुन ने जो बाण कण पर छोड़ा था, उसे भी कसी ने नह दे खा, कतु
अगले ही ण कण क ददनाक चीख़ सुनाई पड़ी। वह बाण, कण क छाती भेदकर उसक
पीठ से पार हो गया था। कण का मुँह खुला था। उसने अ ुपू रत आँख से अपने पता
सूयदे व के अं तम दशन कए और उ ह दे खते-दे खते अपने ाण याग दए। अचानक
आकाश म काले बादल छा गए। ऐसा लगा मानो सूयदे व भी कुछ ण के लए अपने पु क
मृ यु से शोकाकुल हो गए थे! कण क मृ यु से कौरव सेना, वशेषकर य धन के हौसले पूरी
तरह प त हो गए थे। य धन ने अपने जस सबसे व सनीय एवं कुशल यो ा- म के
भरोसे पर यह यु लड़ने का ख़तरा उठाया था, वही उसे अकेला छोड़कर चला गया!
य धन ने आकाश क ओर दे खा। उसे अपने ऊपर बादल मँडराते ए दखाई दए।
कह ये पराजय के बादल तो नह थे? वह घबरा गया। वह शव से पट रणभू म को ताकने
लगा। पं ह दन पहले तक यारह अ ौ हणी सेना का नायक य धन समरभू म म अकेला
खड़ा था। य धन और उसके कुछ सै नक के अ त र अब रणभू म म केवल म, कृपाचाय
और कृतवमा जी वत बचे थे!
25

इ तने दन तक नरंतर यु करने से य धन का शरीर श थल हो गया था। इसके


अ त र , अपनी सेना के संहार और सामने आस पराजय का भय उसे सताने लगा।
उसे कोई माग नह सूझ रहा था। सहसा मने दे खा क य धन पूव दशा क ओर भागने
लगा। इं थ के भावी स ाट को इस तरह रथ छोड़कर पैदल भागते दे ख मुझे उस पर दया
आ रही थी। परंतु यह सहानुभू त करने का समय नह था और वैसे भी उसके लए अब
दे र हो चुक थी। हम तीन य धन के पीछे भागे। वह थोड़ा आगे जाकर एक सरोवर के
भीतर वेश करके उसम छप गया। उसके बाद उसने अपनी माया से सरोवर के पानी का
बाँध दया ता क कोई उसम वेश न कर सके।
इधर पांडव को य धन के सरोवर म छप होने क बात का पता लगते दे र न लगी। वे
सब ीकृ ण स हत सरोवर तक आ गए। य धन अपनी योगश और माया से सरोवर के
ब त अंदर छपा आ था और दखाई नह दे रहा था। यु ध र ने बाहर से ही य धन को
ललकारा, “ य धन! कायर क भां त सरोवर के अंदर छप कर य बैठे हो? दे खो, हम सब
पांडव यह आ गए ह। बाहर आओ, और हम मारकर अपने रा य का उपभोग करो!”
कुछ पल बाद सरोवर के अंदर से य धन का वर सुनाई पड़ा, “यु ध र! तुम कस
रा य को भोगने क बात कर रहे हो? अब न मेरे भाई जी वत ह और न कोई अ य नाते-
र तेदार। मने जन लोग के लए यह यु आरंभ कया था, जब वे लोग ही नह रहे तो अब
इस यु का या औ च य है और इस रा य को भोगने म या सुख है? म चा ँ तो अकेला ही
तुम पाँच को अपनी गदा के हार से यमलोक प ँचा सकता ँ कतु अब मेरी च न इस
यु म है और न ही राज-पाट म। अ छा होगा क तुम मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो और आनंद
से अपने भाइय के साथ रहो!”
यह व च वडंबना थी क य धन, जो कसी समय अपने रा य म से सुई क नोक के
बराबर भू म भी दे ने को तैयार नह था, आज वह अपने सम त प रवार एवं यजन को
अपनी मह वाकां ा क वेद म वाहा करने के बाद उस रा य को यु ध र को दान म दे ने
क बात कर रहा था! य द हठ के साथ कु टलता का समावेश हो जाए तो यह संयोग अ यंत
ख़तरनाक हो सकता है। यु ध र पहले कई बार अपने सादगीपूण वहार के कारण य धन
के कपट-जाल म फँस चुका था। वह दोबारा ख़तरा नह उठाना चाहता था। ूत म य धन से
हारने के बाद यु ध र ने ब त कुछ सीख लया था। उसने नए तरीक़े से दाँव खेला।
यु ध र ने कहा, “ य धन! तु ह अव य ही भीमसेन से डर लग रहा है, इसी लए तुम
बाहर आकर यु नह करना चाहते। य द ऐसा है तो म तु हारा यह डर भी र कर दे ता ।ँ
तुम हम पाँच भाइय म से कसी एक से गदा-यु कर लो। य द तुम जीत गए तो म इस
महायु म अपनी पराजय वीकार कर लूँगा और यह रा य भी तु हारा हो जाएगा और य द
तुम परा जत होकर मारे गए, तब तो तु ह वगलोक मलना ही है!”
मने यु ध र क ओर दे खा। मुझे उसक बात पर व ास नह हो रहा था। य धन ने
गदा-यु कृ ण के बड़े भाई बलराम से सीखा था और इस कला म उसका मुक़ाबला करना
भीम के अ त र कसी के लए संभव नह था। तो फर, यु ध र ने ऐसी मूखता भरी बात
कैसे कह द ? इस लोभन के पीछे यु ध र क कौन-सी चाल छपी थी?
म अभी सोच ही रहा था क य धन भीषण गजना के साथ सरोवर से बाहर नकल
आया और बोला, “यु ध र! म थका आ अव य ँ कतु इतना बल नह ँ क अपने से
कसी कमज़ोर यो ा से यु क ँ । म तु हारे साथ अथवा अजुन, नकुल या सहदे व के साथ
गदा-यु करके संसार को अपने ऊपर हँसने का अवसर नह ँ गा। म इ तहास को यह कहने
का मौक़ा नह ँ गा क य धन इस लए जीत गया य क उसने अपने लए बल त ं
का चुनाव कया। म भीमसेन से ही यु क ँ गा, चाहे यह मेरे जीवन का अं तम यु ही य
न हो!”
मुझे अपने का उ र मल गया था। यु ध र जानता था हठ पु ष, अहंकारी भी
होता है। उसने य धन के अहं पर सीधी चोट क थी और उसका वार बलकुल सट क बैठा
था। अपने कपट मामा शकु न क मदद से ूत म यु ध र का सबकुछ लूट लेने वाले
य धन ने अपने अहं के चलते अपने जीवन को ही दाँव पर लगा दया था। म जानता था क
वह गदायु म भीम से जीत नह पाएगा।
कुछ ही दे र म य धन और भीम, अपने-अपने कवच पहन और गदा लेकर यु के
लए तैयार हो गए। दोन के बीच यु आरंभ हो गया। दोन क गदाएँ यमदं ड और व के
समान भयंकर थ । भीम बीच-बीच म अपनी गदा को वशेष ढं ग से घुमाता था तो उसक
आवाज़ एक मु त तक हवा म गूँजती थी जसे सुनकर य धन व मत हो जाता था।
य धन भी अपने पतरे बदलकर भीमसेन को अचरज म डाल दे ता था। दोन क गदाएँ जब
टकरात , तो चगा रयाँ फूट पड़ती थ और उनक आवाज़ से आस-पास के वृ पर बैठे
प ी अपने नीड़ छोड़कर उड़ जाते थे। दो यो ा के बीच ऐसा भयानक गदा-यु शायद
ही कभी लड़ा गया हो।
ब त समय तक लड़ते ए भीम और य धन के तन ल लुहान हो गए। ऐसा लग रहा
था, य द वह यु रोका न गया तो वह अनंत काल तक चलता रहेगा और एक- सरे के र
के यासे दोन महारथी इसी कार लड़ते रहगे। तभी मेरी कृ ण क ओर गई जो अपने
हाथ से भीम को कुछ संकेत कर रहे रहे थे। इधर ीकृ ण ने अपना बायाँ हाथ अपनी बा
जाँघ पर थपथपाया और उधर भीमसेन ने पूरी श से अपनी गदा य धन क बा जाँघ पर
दे मारी। न त प से य धन क जाँघ टू ट गई थी। वह लड़खड़ाते ए च लाया, “भीम!
तु ह ध कार है! बलराम जी का श य होकर तुमने गदा-यु के नयम को तोड़ा है! या
तु ह यह नह पता क गदा-यु म ना भ के नीचे हार करना व जत है?”
भीम ने कृ ण क ओर दे खा, परंतु कृ ण ने मानो य धन क बात सुनी ही नह ! इस
बार कृ ण ने वही संकेत अपने दाएँ हाथ से दा जाँघ पर कया। इससे पहले क य धन
सँभल पाता, भीम ने गदा के ज़ोरदार हार से उसक दा जाँघ भी तोड़ डाली। य धन बुरी
तरह कराहता आ धरती पर गर पड़ा। उसके हाथ से गदा छू ट गई और वह दोन हाथ से
अपनी जाँघ पकड़कर बुरी तरह रोने लगा। मने पहली बार य धन को इस तरह रोते दे खा
था। वह अ यंत ददनाक य था। भीम और कृ ण एक- सरे को दे खकर मु करा रहे थे।
य धन क दोन जाँघ टू ट चुक थ । उसका शरीर इतना ल लुहान हो गया था क उसका
जी वत बच पाना असंभव था। उसे दे खकर पांडव हँसते ए वहाँ से चले गए। उ ह हम तीन
लोग से यु करने म कोई च नह थी य क कौरव का वनाश हो गया था तथा पांडव
का कृपाचाय, मुझसे और कृतवमा से कोई गत वैर नह था। हमने भी पांडव को रोकने
अथवा उनसे लड़ने का यास नह कया य क हमारे लए उस समय य धन को सँभालना
अ धक मह वपूण था।
मने और कृपाचाय ने य धन को श वर म ले जाना चाहा, कतु उसने मना कर दया।
वह बोला, “म एक यो ा ँ और म यो ा क भां त रणभू म म ाण यागकर अपनी क त
को कलं कत होने से बचा सकूँगा। अ थामा, मुझे खु़शी है क तुम अभी जी वत हो। तुम
अव य सबको बताना क य धन यु म पीठ दखाकर नह भागा और न ही उसने कसी
बल से यु करना वीकार कया। तुम यह भी कहना क भीमसेन ने नयम के व
हार करके य धन को मारा है। मेरे साथ छल आ है अ थामा! मेरे साथ छल आ है!”
यह कहकर य धन ससकने लगा। उसका चेहरा म से सना आ था। यारह अ ौ हणी
सेना का वामी, समरभू म म धूल-धूस रत, अकेला, घायल और असहाय पड़ा ाण याग
रहा था।
अं तम ास लेने से पूव य धन ने कृपाचाय से कहकर जल का कलश मँगवाया और
अपने सामने जल से मेरा अ भषेक कर मुझे कौरव सेना का अगला सेनाप त नयु कर
दया।
सेनाप त! कसका सेनाप त? अब सेना ही कहाँ शेष थी? काल क ग त सचमुच ब त
सू म है!
मुझे अपने पता क मृ यु का समाचार सुनकर भी उतना ख नह आ जतनी य धन
क दशा दे खकर पीड़ा महसूस हो रही थी। म सचमुच ोध से भरा आ था। इसका एक
कारण यह था क म अब कौरव का सेनाप त था! य धन ने अपने अंत समय म जो व ास
मुझ पर कया, मुझे उसक र ा करनी थी। मेरे लए यु अभी शेष था!
य धन को रणभू म म तड़पता छोड़कर आगे बढ़ने के अ त र कोई वक प नह
था। हम तीन - म, कृपाचाय और कृतवमा रणभू म से काफ़ र नकल आए। आगे चलकर,
तरह-तरह के वृ व लता से भरा एक वन था। हमने चार ओर घुमाई तो एक वशाल
वटवृ दखाई दया। सं या हो चुक थी और अँधकार हो चला था। हमने रात वह बताने
का न य कया।
अ य धक थकान के कारण कृपाचाय और कृतवमा को न द आ गई। म भी सोना
चाहता था कतु मेरा मन रोष व ोध से भरा आ था। म ब त दे र तक वटवृ के प के
बीच से टम टमाते तार को दे खता रहा। सहसा मेरी एक भयंकर उ लू पर पड़ी, जो
कह से अचानक उड़ता आ आया और उसने वृ पर घ सल म सो रहे कौ को नोचना-
मारना शु कर दया। उस एक उ लू ने, दे खते ही दे खते, अनेक सोते ए कौव को मार
डाला और फर वहाँ से उड़ गया। उ लू का ऐसा कपटपूण वहार दे खकर म आ य म पड़
गया। अचानक मुझे लगा क वह उ लू मुझे कुछ संदेश दे ने आया था। रा म सोते ए श ु
पर वार करके उसे मार डालने का संदेश!
मेरे दमाग़ म तुरंत यही वचार आया क वजयो लास म चूर, पांचाल भी कौव क
तरह अपने श वर म सो रहे ह गे। उ ह मारने का यही उपयु समय है। उस उ लू क भां त
य न म भी रात म श वर म घुसकर सोते ए पांचाल को यमलोक प ँचा ँ ? मेरा मन
तशोध क अ न से इतना संत त था क धम और अधम के बीच का भेद मेरे लए समा त
हो गया। मने ब त सोच- वचार करके मामा कृपाचाय को जगाया।
“मामाजी उ ठए!” मने कृपाचाय से कहा, “मेरा मन ब त बेचैन है और मुझे न द नह
आ रही है।”
“ या आ, अ थ?” कृपाचाय ने घबराकर पूछा। “ या तु ह कसी जंगली पशु क
आवाज़ आ रही है?”
“नह मामाजी!” मने कहा, “एक पशु तो या, इस समय जंगल के सभी पशु भी यहाँ
आ जाएँ तो म उनके लए अकेला ही पया त ँ। मने आपको कसी और कारण से जगाया
है।”
“ या बात है? तुम इतने परेशान य हो?”
इसके बाद मने कृपाचाय को उ लू और कौव वाली घटना बताई और यह भी बताया
क उससे ेरणा लेकर कस तरह मेरे मन म सोते ए श ु को मार डालने का वचार आया
था।
मेरी बात सुनकर कृपाचाय त ध रह गए। ऐसा नह था क वह श ु का हत चाहते थे,
कतु शायद वे कसी सोते ए ाणी को मारने के प म नह थे।
वे मुझे नेहपूवक समझाने लगे, “ य अ थामा, म तु हारा ख समझता ।ँ जस
तरह पांडव ने छल से तु हारे पता को और फर य धन को मारा है, वह न य ही धम-
व और नदनीय है। इसके बाद भी, मेरी बात मानो और अपने मन को क़ाबू म रखो।
ऐसा कोई काय मत करो जसके कारण तु ह बाद म प ाताप करना पड़े। शा कहते ह क
जो सोया आ हो, जसने श रख दए ह , रथ और घोड़े खोल दए ह , जो शरणागत हो,
जसके बाल खुले ए ह और जसका वाहन न हो गया हो, उसका वध करना धम ारा
अ छा नह माना जाता। इस समय रा म सभी वीर न त होकर कवच उतारकर गहरी
न ा म ह गे। ऐसी थ त म उनके ऊपर वार करना अथवा उनका वध करना नरक म गरने
जैसा है।”
“ कतु म तशोध क अ न म जल रहा ँ।”
“म जानता ँ, अ थामा! एक और बात है जो तु हारे लए जानना ब त ज़ री है।”
“ या मामाजी?” मने उ सुकता से पूछा।
“तुमने इतना लंबा समय य धन के साथ बताया है, छोटे -बड़े अनेक सं ाम म उसके
प म यु कया है और इस भीषण महायु म भी तुम य धन क ओर से लड़े हो। इसके
बावजूद तु ह यह जानकर आ य होगा क संसार का कोई तु हारे ऊपर कसी तरह के
नीच आचरण का दोष नह लगा सकता। वह चाहे ौपद का चीर-हरण हो या फर ूत का
कपटपूण खेल, तुम तट थ बने रहे। परंतु तुमने य धन के अधम काय म कभी मुखर प
से उसका समथन नह कया। तुम सूय के समान तेज वी हो और श धा रय म े माने
जाते हो। म नह चाहता क तुम उ मादवश कोई ऐसा काय कर बैठो, जससे तु हारी क त
कलं कत हो जाए। इस लए मेरी सलाह मानो और अपने मन से इस पापपूण वचार को याग
दो। कल सुबह सूय दय के साथ एक स चे यो ा क भां त रणभू म म उतरो और अपने
श ु से यु करो। म तु हारे न कलंक आचरण तथा दोषर हत च र का सा ी ँ और
आजीवन र ँगा!”
कृपाचाय मेरे मामा थे कतु उ ह ने मेरी शंसा म इतना कुछ, पहली बार कहा था।
उनक बात सुनकर म एक पल के लए भाव- व ल हो गया और मुझे सचमुच लगा क सोते
ए श ु को मारना उ चत नह होगा। परंतु उस महायु के नृशंस नरसंहार ने मुझे ू र
और न ु र बना दया था।
मने कुछ दे र वचारने के बाद कहा, “मामाजी! आप जो कुछ कह रहे ह वह न संदेह
ठ क है परंतु आप जस धम और मयादा के पालन क बात कर रहे ह, उसे तो पहले ही
पांडव ने छ - भ कर दया है। भी म पतामह को अजुन ने शखंडी क ओट लेकर मारा।
धृ ु न ने सबके सामने मेरे श हीन पता का वध कर दया। इसी तरह असहाय अव था म
महारथी कण को भी अजुन ने मार डाला। यही नह , राजकुमार य धन जैसे वीर यो ा को
भीम म गदा-यु के नयम क अनदे खी कर अधमपूवक मार गराया। हमारे अ धकतर
यो ा इसी कार पांडव के हाथ छलपूवक मारे गए। म अपने म एवं संबं धय के
कपटपूण वध को इतनी सरलता से कैसे भुला ँ ? इस लए अब मुझे भले ही अगले ज म म
क ट-पतंग क यो न मले अथवा मुझे अपने कम का कुछ भी ाय त करना पड़े, कतु
मने यह नणय ले लया है क म अपने पता के ह यार को रात म सोते समय ही मा ँ गा। म
अपने तशोध के लए अब और ती ा नह कर सकता। ऐसे म, आप ही बताइए क मुझे
न द कैसे आ सकती है? मामाजी, म यह ण करता ँ क आज क रात मेरे श ु क
अं तम रात होगी!”
जीवन-मरण और हा न-लाभ क तरह यश और अपयश भी व ध के हाथ होता है।
जस तरह अंत समय नकट आने पर काल का ास बनने के लए वयं चलकर काल
के मुँह तक प ँच जाता है, उसी तरह जब अपयश मलने का समय आता है तो मनु य क
बु हो जाती है और उसे अपने शुभ चतक भी वरोधी नज़र आने लगते ह। मेरे साथ
भी ऐसा ही आ। मुझे अपने मामा का सुझाव उ चत तो लगा, कतु मेरे ार ध ने मुझे उस
सदाचारी सुझाव का पालन नह करने दया।
26
मे रेघोड़धैय कोने मेजोतकर
रा साथ छोड़ दया था। मने आधी रात म ही अपने अ -श सँभाले और
पांडव के श वर क ओर चल पड़ा। मने तो यही सोचा था क मुझे
कसी कावट का सामना नह करना पड़ेगा और उस उ लू क भां त, म सहसा श ु के
आवास म घुसकर व वंस मचा ँ गा। परंतु ऐसा नह आ।
मने पांडव के श वर तक प ँचकर दे खा क उनके श वर के ार पर सूय के समान
एक तेज वी और वशालकाय पु ष खड़ा था। उसे दे खने से ही शरीर म रोमांच हो रहा था।
उसने अपने तन के नचले भाग पर ा चम लपेटा आ था और ऊपर वाले पर मृगचम
ओढ़ रखा था। उसने गले म सप का य ोपवीत पहन रखा था। उसक वशाल भुजा म
तरह-तरह के श सुशो भत हो रहे थे और बाजूबंद के थान पर बड़े-बड़े साँप बंधे थे। बीच-
बीच म न केवल उसके मुख से, ब क कान, नाक और आँख म से भी वाला नकलती थ ।
उसका प इतना भयावह था क कसी सामा य के लए तो उसे दे ख पाना ही क ठन
था। म कुछ री से उसे दे खता रहा। मुझे आ य हो रहा था क पांडव श वर के बाहर इतना
भयावह और वकट ारपाल कौन था, जसे मने यु के दौरान पहले कभी नह दे खा था।
म जस योजन से वहाँ गया था, उसे पूण करना ही मेरा एकमा उ े य था। मुझे उस
पु ष का प दे खकर थोड़ी बेचैनी तो अव य ई, कतु म घबराया नह था। मेरा ल य
श वर के अंदर वेश करना था कतु उस ारपाल के रहते यह संभव नह था। प था क
मेरे लए उस पु ष से यु करना आव यक था। म सहसा उसके सामने जा खड़ा आ और
उसके ऊपर अ क वषा करने लगा। मुझे अपनी आँख पर व ास नह आ क वह
पु ष मेरे सभी श को नगल गया! मने जीवन म अनेक यो ा दे खे थे। कुछ ऐसे भी थे
जनसे टकराकर अ -श घास के तनक क भां त बखर जाते थे, कतु ऐसा पु ष
पहली बार दे खा था जो श को ही नगल जाए!
मेरे पास अ -श का कोई अभाव नह था। म ारपाल पर बाण चलाता गया परंतु
वह उन सबको एक-एक करके लील गया। कुछ ही दे र म म श वहीन हो गया था। वह मुझे
दे खकर मु कराने लगा। न त ही उसे एक यो ा को अपने सम श वहीन अव था म
असहाय खड़ा दे खकर आनंद आ रहा था। मेरा जीवन अब पूरी तरह उसक कृपा पर नभर
था। मुझे लगा क मेरा अंत समय आ गया है। वयं को ऐसी असहाय थ त म दे खकर मुझे
अपने ऊपर खीज भी आ रहा था। काश, मामा कृपाचाय क बात मान ली होती और इस
तरह आवेश म वहाँ न आया होता तो मुझे इस वकट पु ष के हाथ अपनी जान न गँवानी
पड़ती! न य ही, मेरी बु अधम से कलु षत हो गई थी जसके कारण मुझे यह क
भोगना पड़ रहा था। मेरे पास अब अपने आरा य भगवान शव क उपासना के अ त र
कोई माग नह था।
मने महादे व क तु त आरंभ कर द । मने तु त के उपरांत मन म संक प कया क
य द म इस तर वप से पार हो गया तो अपने शरीर क ब ल दे कर भगवान शंकर का
यजन क ँ गा! मने य ही अपने मन म यह ढ़ संक प धारण कया, सहसा मेरे सामने एक
सुवणमयी वेद कट ई और उसम अ न व लत होने लगी। उसम से ब त-से गण
कट हो गए, जनके अनेक सर और पैर थे और उनम चं मा और सूय के समान तेज था।
ऐसा लगा मानो उनम जरायुज, अंडज, वेदज और उ ज - चार कार के ा णय को न
करने का साम य था। बचपन से ही मेरे अंदर यह गुण था क कतनी भी वकट सम या या
प र थ त हो, मुझे उसम डर नह लगता था। उन भूत समान गण को दे खकर म त नक भी
भयभीत नह आ।
मुझे लगने लगा क म जस पाप कम को करने वहाँ गया था, उसे करने म वफल हो
चुका था और अब मुझे उस वेद म अपनी ब ल दे नी थी। मने इसे भी दै व का वधान मानकर
वीकार कया और अपने धनुष को स मधा, बाण को दभ तथा अपने शरीर को ह व बनाया।
अंत म, मने सोम दे वता का मं पढ़ा और प व अ न म अपनी आ त दे ने से पहले
भगवान क तु त करते ए कहा, “आप सम त भूत म थत ह, आप ही सम त भूत
के आ य ह। य द आज म अपने श ु को परा त नह कर सकता तो आप ह व य प से
अपण कए ए मेरे इस शरीर को वीकार क जए!” ऐसा कहकर म उस वेद पर चढ़ गया
और अपने ाण का मोह छोड़कर आग के बीच आसन लगाकर बैठ गया।
उसी समय, भगवान शंकर कट ए और मु कराते ए बोले, “अ थामा! च धारी
ीकृ ण ने स य, शौच, सरलता, याग, तप या, नयम, मा, भ , धैय, बु और वाणी से
मेरी आराधना क है। इस लए उनसे बढ़कर मुझे कोई य नह है और यही कारण है क म
ीकृ ण के स मान व प यहाँ ारपाल का प बनाकर पांचाल क र ा हेतु खड़ा था।
परंतु कालवश अब ये न तेज हो चुके ह तथा इनका जीवन पूण हो चुका है। म तु हारे साहस
और याग से स ँ अ थामा! समय आ गया है क तुम अपने संक प को पूण करो!”
यह कहकर भगवान शंकर ने मेरे हाथ म एक चमचमाती तलवार थमा द । म उस तलवार को
अपने हाथ म लेकर अभी दे ख ही रहा था क मेरे शरीर म एक ती उ ेजना ई।
म पूण व ास से तो नह कह सकता कतु मुझे ऐसा लगा क वयं भगवान शंकर मेरे
शरीर म लीन हो गए जसके कारण यु से श थल एवं न तेज, मेरा शरीर फर से
ऊजा वत हो गया और मेरे ओज म कई गुना वृ हो गई।
भगवान शंकर क श को अपने भीतर महसूस करने के बाद मेरे उ साह म भी कई
गुना वृ हो गई थी। मुझे पता था क पांडव उस श वर म न होकर कसी अलग श वर म
थे। म बना समय गँवाए पहले पांचाल के श वर म घुस गया। मने उस रात उ लू से े रत
होकर सम त वंश को मौत के घाट उतारने का ण कया आ था, कतु मेरी सबसे
पहले धृ ु न को खोज रही थी। मेरे पता का ह यारा धृ ु न! मुझे उसका तंबू खोजने म
अ धक समय नह लगा। वह काल क पदचाप से बेख़बर अपने रेशमी ब तर पर सो रहा
था। मने आज तक लात मारकर कसी का अपमान नह कया, ले कन अपने पता के ह यारे
को इतनी न तता से सोते दे ख मेरे ोध क सीमा न रही। मने उसे इतनी ज़ोर से ठोकर
मारी क वह अपनी श या से नीचे लुढ़क गया। नीचे गरने से उसक न ा टू ट गई और वह
घबराकर उठ बैठा। वह उठकर खड़ा हो गया कतु उसके सँभलने से पूव, मने उसे बाल से
पकड़ लया और घसीटकर धरती पर गरा दया। उसके बाद म उसक छाती पर चढ़ बैठा
और अपने घुटने से उसक गदन दबा द । मने धृ ु न को हाथ और पैर से बुरी तरह मारा।
वह छटपटा रहा था।
“मुझे इस तरह मत पीटो, मुझे शी ही मार डालो अ थामा!” धृ ु न ने छटपटाते
ए कहा।
“धृ ु न!” म ब त गु़ से म था। “तू अपने कुल का कलंक है। तूने अपने श वहीन
गु को मारने का जघ य अपराध कया है। म तुझे कसी श से मारकर यो ा का पु य
अ जत नह करने ँ गा। तेरे ारा कए गए पाप के लए म तुझे आज ऐसे ही मा ँ गा।”
इतना कहकर मने धृ ु न के मम थल पर ज़ोरदार हार कया। उसके मुख से ददभरी
एक अं तम चीख़ नकली और उसने दम तोड़ दया। मेरी आँख के सामने अब भी अपने
पता का कटा आ सर घूम रहा था। मेरा ोध कम होने के बजाय बढ़ता जा रहा था। मने
धृ ु न के मृत शरीर को भी पैर से ठोकर मारी। मुझे लगता है य द मेरे पास उस दन थोड़ा
समय होता तो मने धृ ु न के तन को त- व त कर दया होता! यह शायद भगवान शंकर
क श ही भाव था क केवल मेरे हाथ व पैर के ही हार से धृ ु न जैसे महाबली
यो ा के ाण-पखे उड़ गए!
अपने ल य क इस थम सफलता ने मुझम ह मत और उ साह का ज़बरद त संचार
कर दया। उसके बाद मने उ मौजा और उसके भाई युधाम यु का भी वही हाल कया। मेरे
सर पर इस तरह ख़ून सवार था क मेरे लए र और पानी म अंतर शेष नह था। मेरे सामने
जो भी आया मने उसे यमलोक प ँचने म ण भर क भी दे र नह क । उस दन मेरे भीतर
भगवान शंकर क दै वी श और तशोध क वाला का ऐसा समावेश आ था क मने
दे खते ही दे खते श ु के श वर म शव का ढे र लगा दया। चार तरफ़ शोर और कोलाहल मच
गया। ऐसे म वाभा वक था क सब लोग न द से उठ गए थे।
म य ही थोड़ा आगे बढ़ा, ौपद के पाँच पु ने मुझे घेर लया। मेरे सामने वही य
फर उभर आया जब उस अकेले उ लू ने पेड़ पर सोते ए ब त-से कौव को अचानक
दबोचकर मार डाला था। मुझे ौपद के पु भी उन कौव जैसे दखाई दे ने लगे।
मने अपनी द तलवार सँभाली और पूरे वेग से उन पाँच पर टू ट पड़ा। गहरी न द से
सहसा जागने के कारण उनका शरीर आल य से भरा आ था और म त क भी पूरी तरह
सचेत नह था। मुझे इसी ण क ती ा थी। मने सबसे पहले त व य पर वार कया। वह
बेचारा एक ही वार म धरती पर लेट गया। उसके बाद सुतसोम आगे आया तो मने तलवार से
उसक भुजा काट द । वह छटपटाता आ धरती पर गर गया। मने अगले ही ण अपनी
तलवार उसके व म उतार द । अपने दो भाइय को इस तरह मरता दे ख शतानीक, ुतकमा
और ुतक त ने एक साथ मुझ पर आ मण कर दया। शतानीक ने पास पड़ा रथ का
प हया उठाकर मुझ पर फका। म उसके हार के लए तैयार नह था। वह प हया मेरे दा हने
कंधे पर लगा, जसके कारण मुझे भयंकर पीड़ा ई और हाथ हलाने म ब त दद होने लगा।
मुझे घायल दे खकर उन तीन ने सोचा क मुझे मारना सहज होगा। वे भूल गए थे क
जसके पता को रणभू म म छल से असहाय थ त म मार दया गया हो, जसके दय म
र कम और तशोध क वाला अ धक हो, उसे एक प हए क मामूली चोट से रोक पाना
संभव नह था। मुझे शतानीक, ुतकमा और ुतक त को मारने म कोई समय नह लगा।
मेरे सामने गरे पाँच पांडव पु ऐसे तड़प रहे थे जैसे बाज़ के पंज म च ़डया के ब चे
छटपटाते ह। कुछ ही पल म पाँच ढे र हो गए। आस-पास ज़मीन पर र और मांस के
लोथड़े बखरे ए थे। पांडव-पु के ाणहीन शरीर को दे खकर, मेरी आँख के सामने अपने
पता ोणाचाय क मृ यु का य उभर आया। एक पु के सम अपने वृ पता का शव
और एक पता के सम अपने युवा पु का शव - ये दोन समान लगते ए भी समान
प र थ तयाँ कदा प नह ह। इन दोन म उतना ही अंतर है जतना दन और रात म होता है!
पांडव-पु के र से मेरे दय म कुछ ठं डक तो पड़ी थी ले कन यह ऐसी थी मानो
कसी धधकते ए पा म जल के कुछ छ टे आ पड़े ह । वे गरे और भाप बनकर तुरंत ही
उड़ गए। मेरे मन क ोधा न को शमन हेतु अभी और तशोध क आव यकता थी। पाँच
नद ष बालक को नममता से मारकर भी मेरे मन म जल रही तशोध क अ न म कोई
वशेष कमी नह आई थी।
म रथ पर सवार आ और हाथ म धनुष लेकर आगे बढ़ता गया। श वर म जो भी
सामने आया मने उसे त काल ही मार गराया। न ा और भय से ाकुल लोग यहाँ-वहाँ भाग
रहे थे। चार ओर धूल उड़ रही थी, जससे श वर म रा का अंधकार गुना लग रहा था।
मुझे इस बात का बलकुल अनुमान नह था क मने उ माद के ण म कतने नद ष ब च ,
य या सै नक का संहार कर डाला। म र पात और नरसंहार करता आ बाहर आया तो
मने दे खा क मामा कृपाचाय और कृतवमा भी वह मौजूद थे और श वर के अंदर से बाहर
भागने वाले लोग को बाल से पकड़कर मौत के घाट उतार रहे थे। मेरे भीतर का रा स इस
संहार को दे खकर अ यंत ह षत था। हम व ास था क अंधकार का फ़ायदा उठाकर कुछ
लोग न त प से श वर के भीतर छप गए ह गे। यह सोचकर कृतवमा ने श वर म आग
लगा द । आग लगते ही श वर म उजाला हो गया। श वर के जलने से, जो लोग भीतर छपे
बैठे थे, वे बाहर भागने लगे। वनाश एवं मृ यु का तांडव फर आरंभ हो गया। मने कसी को
तल के पौधे के समान बीच से दो ह स म काट गराया तो कसी के सर को धड़ से अलग
कर दया। कसी के पैर पर वार कया तो कसी क पीठ म तलवार भ क द । कसी का
मुख आहत कर दया तो कसी के कान काट दए और कसी का कंधा तोड़ दया।
म अपने जीवन क वह भयानक व अंधेरी रात कभी नह भूल सकता। मने अकेले ही
अनेक लोग क ह या कर द थी। पौ फटने को थी। र से सनी तलवार, मेरे हाथ से इस
तरह चपक गई मानो वह मेरे शरीर का अंग हो। मने चार ओर दौड़ाई। श वर और
उसके आस-पास क भू म ख़ून से तर हो गई थी। उस रात वहाँ नर-र का इतना छड़काव
आ क कोलाहल के दौरान उड़ने वाली सम त धूल दब गई थी। पांचाल के शव से पट
भू म दे खकर मेरा मन अ यंत स था। मने मन ही मन उस उ लू का आभार कया,
जसने मेरी इस सफलता म परो प से गु क भू मका नभाई थी।
27
मु झेरहतेमन एम भीसदाअपनी
इस बात का संतोष एवं गव रहा क मने य धन जैसे धूत के साथ
मानवता को कलु षत होने से बचाए रखा था, परंतु उस घोर नरसंहार
के बाद जब मेरा माद शांत आ तो मेरा सामना अपने ही व के एक नए और वकृत
प से आ।
म र रं जत धरती पर खड़ा पांडव के वषय म सोचने लगा। उ ह ने यु लगभग जीत
लया था। परंतु या अपने पु को खोने के बाद वे इसे वजय कह सकते थे? या उनक
वजय अब उ ह सचमुच हष तथा उ लास दे पाएगी, जसे पाने के लए वे लोग इस महासमर
म उतरे थे? या अपने पा रवा रक वनाश के घाव को रा य और वैभव के मरहम से भरा जा
सकता था? म अपनी सफलता पर ह षत था, कतु मेरे मन म उठ रहे केवल पांडव तक
सी मत नह थे। मेरा दय मुझसे भी कुछ कर रहा था।
या मेरे अंतर म ा त मानवता और मेरा स ाव, अमष-ज नत भीषण हसा क भट
नह चढ़ गए थे? या म सोते ए नद ष लोग क ह या के बाद वयं चैन से सो सकूँगा? उस
उ लू ने तो अपनी कृ त के अनु प शकार कया था, कतु या एक प ी से ेरणा लेकर
वयं हसक पशु जैसा आचरण करना उ चत है? सहसा मेरा दय मुझे ध कारने लगा था।
म मनु य से रा स हो गया था! मेरा हष धीरे-धीरे वषाद म बदलने लगा।
अमानवीय कृ य करने के उपरांत दय म वषाद क उ प इस बात का सूचक है क
म मानवता का कुछ अंश अभी सुर त है। मुझे ख़ुशी थी क म पूरी तरह अमानव
नह हो गया था। अपने मन म ला न का भाव लए, म उस कुकम के साथ उसके रेचन एवं
समाधान के उ े य से गंगा के तट पर ासजी के पास जा प ँचा। म उनके पास इस आशा
के साथ गया था क मेरे कम को यु का ही अंश माना जाएगा और जस तरह यु म
यो ा ारा हज़ार सै नक को मारना सामा य एवं य समझा जाता है, उसी तरह मेरे
इस कृ य को भी दे खा जाएगा।
या सचमुच रणभू म म सै नक को मारना और सोते ए अबोध बालक व म हला
क ह या करना एक समान है? या यु के समय क वश कया गया र पात और अमष
के कारण कसी क ह या को समान भाव से दे खा जा सकता है? मेरे भीतर उठ रहे ये
मेरे अंतर को मथ रहे थे और उस मंथन से जो ला न का गरल नकल रहा था, उसने मेरे तन
और मन को नह , अ पतु मेरी आ मा को भी वषा कर दया था। अभी मेरा दय इस
ऊहापोह से जूझ ही रहा था क मने पाँच पांडव को सहनाद करते ए अपनी ओर आते
दे खा। न त प से, उ ह मेरे जघ य कृ य का पता चल गया था। सबसे आगे भीमसेन
अपने भारी-भरकम पैर को पटकता आ मेरी ओर दौड़ा आ रहा था। उसके पैर क धमक
से आस-पास के वृ काँप रहे थे। उसके पीछे -पीछे हाथ म गांडीव धारण कए अजुन, च
हाथ म कए ीकृ ण और उनके साथ यु ध र, नकुल व सहदे व भी थे। मेरे पास सोचने के
लए न समय शेष था और न ही बु ! अपनी मृ यु को सामने दे ख मेरी शरा म बह रहा
र मानो जमने लगा था। मेरा सर भारी होने लगा। या मेरे पास अब भी कोई माग शेष
था?
ीकृ ण के हाथ म सह अर तथा व क ना भ वाला द च दे खकर मुझे वह
घटना याद आ गई जब म अपने ारका म वास काल के दौरान ीकृ ण से उनका वह द
च माँगने जा प ँचा था। मुझे सहसा याद आ गया क मने ीकृ ण को सुदशन च के
बदले उ ह अपना ा दे ने क बात कही थी।
“ ा !” यह श द यान म आते ही ऐसा लगा मानो म थल म यास से मर रहे
को पानी मल गया हो! मने य ही ा का चतन कया, वह मेरे दा हने हाथ म
कट हो गया। उसके योग के लए आव यक मं का उ चारण करते ही उसक नोक से
अ न उ प हो गई और पलक मारते ही उसने चंड वाला का प ले लया। मने उसे हाथ
म लेकर पांडव क ओर दे खा। वे ठठककर अपने थान पर क गए। मने महसूस कया क
मेरे भीतर सहज जा त ई ला न क आँच मंद पड़ने लगी थी और पांचाल श वर म
नरसंहार कर चुका रा स फर से अपना सर उठाए व वंस करने को त पर था।
श ु नकट था, कतु मृ यु उससे भी नकट थी। ा हाथ म था। अब इस ण म
उस लयकारी अ के योग के अ त र कोई वक प शेष नह था। मेरे पता ोण ने मुझे
उसे योग न करने क कड़ी चेतावनी द थी। मने मन म अपने पता से मा माँगी और यह
कहा क ‘पृ वी पांडव- वहीन हो जाए!’ यह भीषण संक प लेते ही ा के अ भाग ने
और चंड प धारण कर लया। मने बना कुछ अ धक सोचे- वचारे उस वनाशकारी अ
को पांडव क ओर छोड़ दया।
ीकृ ण ने ा को दे खा तो च तत होकर अजुन से बोले, “अजुन! इस
अ थामा ने आ ख़र ा का योग कर ही दया। आचाय ोण का दया यह ा
तु हारे दय म भी व मान है। अब उसके योग का समय आ गया है य क ा को
ा ारा ही रोका जा सकता है। तुम शी ही उसका मरण करो और पांडव क
मंगलकामना के साथ उसे छोड़ दो!”
अजुन ने आँख बंद क और ा का मरण कया। अगले ही पल उसके भी हाथ म
ठ क वैसा ही ा कट हो गया। अजुन ने उसे ऊजा वत करने हेतु मं पढ़ा और
‘पांडव का मंगल हो!’ कहकर उसने भी अपना ा छोड़ दया। हम दोन के ा
हवा म टकरा गए और उनसे भीषण गजना ई। हज़ार उ काएँ गरने लग । सव अ न क
लपट उठने लग , जनसे संत त होकर ाणी इधर-उधर भागने लगे। आचाय ोण ने कभी
व म भी नह सोचा था क कसी दन उनका पु और उनका श य इस तरह आमने-
सामने आ जाएँगे और उनके आदे शानुसार व जत अ का पयोग कया जाएगा! ा
के योग से उ प वाला तीन लोक को जलाने लगी।
तभी दे व ष नारद तथा मह ष ास आकाश म कट ए और उ ह ने कहा, “पूवकाल
म भयंकर अ -श के ाता ए ह, कतु आज तक कसी ने इन अ का योग मनु य
पर नह कया। फर तुम दोन वीर ने यह अ न कारी साहस य कया है? तु हारी इस
मूखता से पृ वी के अ त र सम त लोक म भीषण हाहाकार मचा आ है। यह हमारा
आदे श है क तुम दोन तुरंत अपने-अपने अ को लौटाओ और अपने नजी संघष म व
के अ य ा णय क आ त मत दो!”
नारदजी एवं ासजी का यह आदे श सुनते ही अजुन ने हाथ जोड़कर कहा, “ भु! मने
तो अपना ा ववश होकर चलाया था ता क इससे अ थामा ारा चलाया ा
शांत हो जाए। तथा प आपक आ ानुसार म अपने अ को वापस लेता ँ। परंतु आप
अ थामा को क हए क वह भी अपना अ वापस ले अ यथा, हम लोग का वनाश
न त है।” यह कहकर अजुन ने मं पढ़ा और उसका ा उसके पास वापस चला
गया।
मेरा ारा चलाया गया ा आकाश म ही घूमता रहा और पृ वी क थ त गंभीर
होती चली गई। नारद और ासजी ने मेरी ओर दे खा। प था क उ ह मुझसे भी अब वही
अपे ा थी। मने मं पढ़ा कतु उसका कोई भाव नह आ। ा ारा चल रही वनाश
लीला य क य जारी रही।
सब लोग व मत थे क मं ो चारण के बाद भी ा लौटकर य नह आया।
इसका कारण यह था क ा को लौटाने के लए केवल मं का ान होना पया त नह
था, अ पतु उस द अ के धारक का संयमी और सदाचारी होना भी एक अ नवाय शत
थी। मने ा का योग मादवश कया था तथा उसके योग से मानव जा त क त
क उपे ा कर द थी, जससे मेरा संयम व सदाचार व त हो चुका था। इस लए यास करने
के बाद भी म अपना ा वापस नह ले पाया था। अजुन अ यंत ती और संयमी था
तथा उसने अपना ा सचमुच मेरे अ को शांत करने के लए ही चलाया था, इस लए
वह अपना अ लौटाने म सफल हो गया।
मेरे माद के कारण सव होने वाली त को दे खकर वहाँ उप थत सब लोग मुझे
घृणा क से दे ख रहे थे। म ल जा से धरती म गड़ा जा रहा था। यह न त था क
ा को वापस लौटाने का अब कोई तरीक़ा नह था, परंतु उसे यूँ ही आकाश म घूमने
दे ना पृ वी के सवनाश को आमं त करने के समान था।
मने कुछ सोचकर ासजी से कहा, “म मानता ँ क मुझसे माद और भीषण ोध
के कारण यह अपराध हो गया है। म यह भी मानता ँ क मुझे इसके लए उ चत दं ड मलना
चा हए। परंतु अब मुझसे अपराध तो हो गया है और इस अ को लौटा पाना भी संभव नह ,
इस लए जस उ े य से मने यह अ चलाया था, म उसे आं शक प से अव य पूण
क ँ गा! मने यह ा पांडव के वनाश के लए चलाया था, परंतु म अब इसे अजुन क
पु -वधू और अ भम यु क प नी, उ रा के गभ पर छोड़ रहा !ँ ”
“नह !” अजुन च लाया, “नह ! अ थामा तुम ऐसा नह कर सकते! इस यु म
पहले ही अनेक नद ष बालक और य क ह या हो चुक है। तु ह कसी गभ थ शशु पर
ा जैसा घातक अ चलाने का कोई अ धकार नह है।”
“अजुन तुम कहते तो ठ क हो,” मने उ र दया, “ कतु म कैसे भूल जाऊँ क उ रा के
गभ म तु हारा ही वंशज है? मने ा चलाने से पहले तुम पांडव के सवनाश क कामना
क थी। म तुम लोग को मारकर उस कामना को शायद पूरा न कर पाऊँ। परंतु मेरे पास
तु हारा भावी वंश समा त करने का वक प अभी मौजूद है!” ऐसा कहकर मने ा को
उ रा के गभ पर क त कर दया।
आकाश म भीषण नाद आ और सहसा मेरे ा ने अपनी दशा बदली और पांडव
श वर म घुस गया। कुछ ण बाद, सव हो रहा वनाश थम गया। अ ने अपना ल य भेद
दया था। वह उ रा के गभ पर गरा और उसके भीतर पल रहा अजुन का वंशज न ाण हो
गया!
28
य हमनेसबकयाु छ कया?
हो जाने के बाद मुझे अपना जीवन न तेज और न े य लगने लगा। हा! यह
मुझे अपने मामा कृपाचाय के श द याद आ रहे थे, जो उ ह ने मेरी
शंसा म कहे थे। ोध और माद ने मेरा सव व लूट लया था। मने अपने ववेक, स ाव
और संयम से जो कुछ या त एवं शंसा अ जत क थी, वह सब म म मल गई। इस बोध
ने मेरे ु व द ध मन को ठं डा कर दया। मन शांत होने पर ोध का थान ला न ने लया।
ला न रेचन या का थम तथा ाय त, उसका सरा सोपान है। मुझे ला न का
पूण आभास था, कतु अब मेरा मन ाय त के लए त पर हो रहा था। मुझे लगा क इस
जघ य पाप को करने से मने अपने पता क ह या का तशोध ले लया था। तथा प हसा
ारा हसा का तकार करना और ह या ारा ह या का तशोध लेना अमानवता क
पराका ा के अ त र कुछ नह है। म यह सब सोच रहा था क तभी ीकृ ण मेरे पास आ
गए।
कृ ण ने कहा, “अ थामा! तुमने ा का पयोग करके जो अपराध कया है
उसका दं ड तो तु ह अव य ही मलेगा परंतु तुमने उ रा के गभ म पल रहे शशु क ह या का
जो जघ य पाप कया है, उसके लए कोई भी दं ड कम है! तु हारे ारा कए ा के
पयोग से अब इस दे श म बारह वष तक वषा नह होगी। इसके कारण यहाँ के नवा सय
को तरह-तरह के क झेलने पड़गे। इन सबके उ रदायी तुम हो। इसके अ त र , तीन
लोक म तु हारे मूखतापूण काय के चलते भयंकर वनाश आ है और ा ण जगत को भारी
त ई है। वह पाप भी तु हारे सर पर है! तु हारे इस माद-ज नत कृ य का यह दं ड है क
तु हारे म तक म जो यह द म ण है, वह तु ह नकालकर दे नी होगी, उसके बाद ही तु ह
पांडव से अभयदान मल सकेगा!”
“हे कृ ण,” मने आत वर म उ र दया, “पांडव और कौरव के पास जतने भी
र ना द ह, यह म ण उन सबसे अ धक मू यवान है। यह कोई साधारण म ण नह है। यह मेरे
ज म के समय से मेरे म तक म लगी ई है। इसे धारण करने वाले को अ -श और
ा धय से कोई भय नह रहता और न ही उसे ुधा सताती है। यहाँ तक क दे वता, नाग,
रा स आ द भी इस म ण के धारक का अ हत नह कर सकते। यही कारण है क इतने लंबे
और भीषण यु के बाद भी मेरे शरीर पर कसी तरह का कोई घाव नह है। परंतु म अपने
कए पाप का उ रदा य व वीकार करता ँ और इसके लए आपने जो दं ड नधा रत कया
है उसे भी वीकार करता ँ!” ऐसा कहकर मने अपनी कमर म बँधा छु रा नकाला और
अपने म तक म लगी म ण के कनारे पर चीरा लगा दया। मेरे म तक से र क धारा फूट
पड़ी। भयंकर पीड़ा से मेरा तन काँप रहा था। वहाँ खड़े दे खने वाल के मुख खुले रह गए।
मने छु रे क तीखी नोक को म तक के भीतर तक घुसा कर अपनी द म ण को झटके-से
बाहर ख च लया। वह अद्भुत म ण, जो कण के कवच-कुंडल क भां त मेरे शरीर का अंग
थी, मेरे म तक से बाहर नकल आई। मने एक हाथ से म ण को पकड़ा और उसे धीरे-से
ीकृ ण के हाथ पर रख दया।
म ण के बाहर नकलते ही मेरा शरीर तेजहीन होने लगा। मुझे लगा मानो मेरे भीतर
वष क थकान ा त थी और मुझे अब उसका एहसास हो रहा था। म अ यंत बल महसूस
कर रहा था। मेरे म तक से र क धार बह रही थी। म सर झुकाए खड़ा कृ ण के अगले
आदे श क ती ा कर रहा था य क म जानता था क मुझे अब तक सफ़ ा को
चलाने का दं ड मला था। उसे उ रा के गभ पर छोड़ने तथा पांडव के अं तम वंशज क
ह या का हसाब होना अभी शेष था!
मेरे म तक से नकली म ण, ीकृ ण के हाथ म लघु सूय क भां त जगमगा रही थी।
उ ह ने म ण पर डाली और फर उसे यु ध र को स प दया। इसके बाद वे बोले,
“अ थामा! तुमने पांचाल श वर म घुसकर नद ष सै नक , यो ा , बालक व य क
नममता से ह या क है और पांडव के पाँच नद ष पु को भी मारा है। य द यह सब करके
भी तु हारे माद व उ न मन को शां त मल जाती तो ठ क था, कतु तु ह इतने भारी
नरसंहार से भी संतोष नह आ तो फर तुमने ा चलाया और जब तुम उस द ा
क श को नयं त नह कर पाए, तो तुमने उससे एक गभ थ शशु क ह या कर डाली!
तुमने जो अ चलाया है उसका वार अमोघ है। उसक चोट से उ रा के गभ म पल रहे
अ भम यु-पु क ह या होना न त है। परंतु य द तुम सोचते हो क तुमने ऐसा करके
पांडव के वंश को समा त कर दया है तो यह तु हारी भूल है। मुझे यूं तो व ध के वधान म
ह त ेप नह करना चा हए, परंतु तुमने आवेश म आकर द ा के पयोग ारा पांडव
के कुल का नाश करने का महापाप कया है। इस लए, म उसके प रशोधन हेतु अपनी दै वी-
श के योग से उस नद ष बालक को फर से जी वत कर रहा ँ, जसक तुमने गभ म
ह या क है! यह बालक बड़ा होकर परी त के नाम से व यात होगा तथा तु हारी आँख के
सामने, पांडव कुल क क त को आगे बढ़ाएगा। म पांडव वंश को समा त करने क तु हारी
इस घृ णत यु को वफल कर रहा !ँ ”
मुझे व ास हो गया था क मेरे इस पाप के लए कृ ण मुझे अव य मृ यु-दं ड दगे, कतु
जब उ ह ने यह कहा क ‘वह बालक मेरी आँख के सामने पांडव क क त को आगे
बढ़ाएगा,’ तो मने राहत क साँस ली य क इसका अथ यह था क ीकृ ण ने मुझे
जीवनदान दे दया था। म यह सोचकर मन म स हो रहा था क म अभी कुछ समय और
जी वत रहने वाला था, क तभी मुझ पर भयंकर व पात आ।
ीकृ ण ने अपनी बात को आगे बढ़ाते ए कहा, “परंतु अ थामा, मेरी बात अभी
समा त नह ई है। यह यु है, और यु म र पात होना वाभा वक है। म तु ह पांचाल-
श वर म नमम नर-संहार और ौपद के सोते ए पु क ह या करने के लए मा कर
सकता ,ँ कतु हे अ थामा! तुमने अपने पता ारा दए गए ा क श का
पयोग कया है और उ रा के गभ म पल रहे शशु क ह या क है। पृ वी पर अपनी श
के पयोग तथा ूण-ह या करने से अ धक जघ य अपराध कोई नह ह। इनके लए तु ह
दं ड अव य मलेगा। इस लए म वासुदेव कृ ण, तु ह शाप दे ता ँ क तुम हज़ार वष तक इस
पृ वीलोक पर भटकोगे। तु हारे शरीर से नरंतर ल और पीब का रसाव होता रहेगा। घाव
के सड़ जाने से, तु हारे तन से भयंकर गध आएगी और मनु य तो या, संसार के पशु-प ी
तक तु हारे नकट आने से कतराएँगे। शी ही, संसार के लोग तुमसे बातचीत करना छोड़ दगे
और तु ह इस वशाल पृ वी पर हज़ार वष तक, अकेले, इस असहनीय क को सहन करना
पड़ेगा। तुम जजर अव था म, अपने सड़े ए तन का बोझ ढोते, गम वन म घूमते रहोगे।
इस संसार म अनेक लोग ह, जो चरंजीवी ह, अमर ह कतु उ ह वह अमरता वरदान म मली
है। तुम अकेले अपवाद हो, जसे यह शाप म मली है! अ य लोग के लए, जहाँ उनक
अमरता हष और गौरव का वषय है, वह तु हारी अमरता अ भशाप बनकर आजीवन तु हारे
साथ चलेगी!”
ीकृ ण का कठोर शाप सुनकर मेरी आ मा काँप उठ । हज़ार वष का क पूण, जजर
और एकाक जीवन! म ऐसे जीवन का या क ँ गा? म ीकृ ण के चरण म सर रखकर
रोने लगा। “हे गो वद!” मने कृ ण से वनती क , “मुझ पर दया क जए। म अपने सम त
पाप वीकार करता ँ। म आपक शरण म ँ, माधव! आप चाह तो सुदशन च से इसी
ण, मेरे ाण ले ली जए। आप जो भी दं ड दगे, म उसे सहष वीकार कर लूँगा, कतु मुझे
इस भयंकर शाप से मु कर द जए। भु, म हज़ार वष तक ऐसी दशा म जी वत रहकर
या क ँ गा? म आपसे ाथना करता ँ क मुझे सड़े ए मांस का लोथड़ा बनाकर मत
छो ड़ए, केशव…दया क जए…मुझ पर कृपा क जए!”
मने सर उठाया तो, म आ यच कत रह गया। वहाँ कोई नह था। ीकृ ण स हत
पांडव एवं अ य सब लोग जा चुके थे। वहाँ, केवल म था - अकेला! सहसा, मेरे शरीर म
प रवतन होने लगा। वह जगह-जगह से कटने- छलने लगा और उसम से र और पीब का
ाव हो रहा था। ीकृ ण के शाप का भाव आरंभ हो गया था! म फूट-फूटकर रोया,
चीख़ा- च लाया, कतु यह भी कृ ण के शाप का भाव था क कुछ दे र पहले लोग से भरा
वह थान, सहसा नजन हो गया था।
उपसंहार
उ सथोड़ा-सा
भयंकर घटना को हज़ार वष बीत चुके ह। इस बीच, मेरी जो दशा ई है, मने उसका
वणन आरंभ म कया था। अब मेरी थ त ऐसी हो गई है क म अपनी था
का पूरा वणन करने लायक़ भी नह रहा। मने तो अब यह सोचना भी छोड़ दया है क मुझे
इस दयनीय दशा म अभी और कतने वष यूं ही सड़ना है य क म इसे जीवन कह नह
सकता और मृ यु मेरे वश म नह है!
इस पीड़ादायक जीवन को भोगने पर भी मुझे इस बात का संतोष है क मने भीम को
खीर म वष मलाकर मारने के ष ं म य धन का साथ नह दया। मुझे ख़ुशी है क म
ला ागृह म पांडव को मारने क योजना म भी य धन के साथ नह था। मुझे इस बात क
भी तस ली है क जस समय मेरे पता आचाय ोण ने एकल और कण जैसे धनुधर का
अ धकार उनसे छ ना, उस समय मने भीतर से सुखद अनुभव नह कया और ऐसे सभी
अवसर पर म अपने पता के चा र क दोष का न प उ लेख करने का साहस जुटा पाया
ँ। मुझे यह सोचकर राहत मलती है क कु राजसभा म, जस समय ौपद का चीर-हरण
करके उसे अपमा नत कया जा रहा था, मने पांडव क प नी पर कु डालकर अपने
च र का पतन नह होने दया। मुझे ऐसी अनेक बात का संतोष है जब मने य धन के प
म यु करने के बावजूद अंत समय तक अपनी शु चता को बनाए रखा। इ ह कुछ बात ने
मुझे संभवतया यह साहस दान कया है क म संसार के सम अपनी बात तट थता से
रखने म सफल हो सका ँ। इन बात का उ लेख करके, वयं को नद ष स करने क मेरी
मंशा नह है। म पूण न ा के साथ यह भी वीकार करता ँ क मुझसे यु के दौरान
अपराध ए ह।
म अपने पता से अ य धक ेम करता था और इस लए म उनक छलपूण ह या सहन
नह कर पाया। उसके प रणाम व प, म अपना ववेक खो बैठा और मने पांचाल के श वर
म घुसकर नद ष का र बहाया और नमम नरसंहार कया। मेरे पता ने मुझे ा ,
जन-क याण के लए दया था परंतु मने हठ और अहंकार वश, उस श का पयोग
कया, जससे सम त पृ वी के ा णय का जीवन संकट म पड़ गया था। ीकृ ण के
समझाने के बावजूद, म अपनी उस श को नयं त नह कर सका और उस व वंसकारी
अ का संधान, एक नद ष गभवती ी के ऊपर कर बैठा तथा उसके गभ म पल रहे शशु
क ह या कर द ! म य द थोड़ा धैय रखता और वासुदेव कृ ण से मा माँगकर, अपने
ा को रोकने का उपाय पूछता तो वे अव य कोई यु सुझा दे त,े कतु वहाँ मुझसे फर
भूल हो गई। यही दो मु य कारण थे जनके लए कृ ण ने मुझे शाप दया था। मुझे इन सब
कुकम का दं ड मलना ही चा हए था।
मने इन बीते हज़ार वष म मानव स यता को अनेक बार करवट लेते दे खा है। मने
असं य यु दे खे ह, मने र पात दे खा है, म घोर नरसंहार का सा ी रह चुका ँ। मने मनु य
को रा सी कम और जघ य पाप करते दे खा है। परंतु मने आज तक कसी पापी, अधम या
ह यारे को इस तरह का रौरव-क भोगते अथवा ऐसा शा पत जीवन जीते नह दे खा। यह
मेरा भा य है क इतना कुछ दे खने और सहन कर लेने के बाद, म अब तक जी वत ँ। मुझे
अब थान, दशा और समय का कोई बोध नह है। मुझे वयं नह पता क म पृ वी के कस
भाग म, कतने समय से वचरण कर रहा ँ।
मने कृ ण ारा दए कठोर दं ड को वीकार तो कर लया परंतु एक मेरे मन म
हमेशा उठता रहा क ीकृ ण ने मुझे इतना लंबा शाप य दया? ऐसी दशा के साथ तो
कुछ समय का शाप भी मनु य के लए काटना मु कल हो सकता था, तो फर हज़ार वष
का शाप य ?
चूं क मेरे पास इन बीते वष म करने के लए कोई काम तो था नह , इस लए म इसी
पर चतन-मनन करता रहा। ब त समय तो मुझे यही लगता रहा क मुझे इस जजर और
दयनीय अव था म इतने लंबे समय तक जीने का वकट शाप दे कर ीकृ ण ने मेरे साथ
अ याय कया है। परंत,ु फर मुझे यान आया क ीकृ ण तो वयं ई र ह; उनके वधान म
ु ट होने का तो ही नह है! इसका अथ यह आ क यह शाप दे ने के पीछे कृ ण का
अव य कोई मंत रहा होगा। समय य - य क लयुग क प र ध म वेश करता गया, मेरे
सामने इस द घका लक शाप का उ े य प होता गया।
कृ ण जानते थे क वह शाप मेरे लए असहनीय होगा। परंतु ीह र व णु का अवतार
होने के कारण कृ ण ने भ व य म झाँक लया था क क लयुग म, पृ वी पर अधम बढ़े गा। वे
जानते थे क आने वाले समय म लोग तरह-तरह के व वंसक अ -श को बनाकर उनका
पयोग करगे तथा मनु य, मनु य के र का यासा हो जाएगा। ीकृ ण को इस बात का
भी पूवाभास हो गया था क क लयुग म, लोग के मन म क या क अपे ा, पु क कामना
अ धक बलवती हो जाएगी, जसके कारण समाज म गभ थ शशु , वशेषकर क या ,
क ह या म अ या शत वृ होने लगेगी। इससे कृ त का संतुलन बगड़ेगा और समाज म
वकृ त उ प हो जाएगी। इस कार, ीकृ ण ने मेरे ारा कए गए दोन अपराध क
भ व य म पुनरावृ होती दे ख ली थी। मेरा ऐसा अनुमान है क इसी कारण, भगवान मेरे
मा यम से क लयुग-वा सय को यह संदेश दे ना चाहते थे क ई र के वधान म, श के
पयोग और गभ थ शशु क ह या के लए अ यंत भयंकर और पीड़ादायक दं ड
नधा रत है!
कृ ण ने अपने इसी संदेश को क लयुग तक प च
ँ ाने के लए मुझे जी वत छोड़ दया था
ता क लोग मेरे वषय म जान और मुझसे सीख क ऐसे अपराध का प रणाम कतना
असहनीय हो सकता है।
म इतने वष के बाद, इस बात को समझ पाया क ीकृ ण, मुझे यह शाप दे ने के लए
ववश थे। परंतु उ ह ने मुझे अपना उ े य उस समय नह बताया य क वह ई र क भावी
योजना का ह सा था और साधारण मनु य को भ व य क जानकारी नह होनी चा हए!
म यह प दे ख सकता ँ क कृ ण ने मेरे साथ जो कया, वह मानव समाज को
व वंसकारी अ -श के पयोग तथा ूण-ह या जैसे जघ य अपराध से र रखने के
लए नतांत आव यक था। म चाहता ँ क उन कम के लए, मने जो पीड़ा भोगी है, वह
कसी अ य मनु य को न भोगनी पड़े। मुझे लगता है क मने इस कथा के मा यम से, ई र
का वह संदेश लोग तक प ँचा दया है, जसके लए कृ ण ने मुझे जी वत छोड़ दया था।
इस लए, म सुदशन च धारी भगवान ीकृ ण से ाथना करता ँ क अब वे मेरे ऊपर कृपा
कर और मुझे इस असहनीय क से मु कर द!
जो लोग, मुझे अमर मानते ह तथा मं दर , जंगल और नजन थान म खोजते फरते
ह, उ ह यह समझना चा हए क मनु य का शरीर नह , अ पतु उसके वचार और संदेश अमर
रहते ह। इसी लए, अ य मनु य क भां त, मेरा शरीर न र है और म भी इस म यलोक को
यागकर चला जाऊँगा, परंतु वासुदेव कृ ण का यह संदेश सदा अमर रहेगा। उनके ारा दए
शाप क कथा सदा अमर रहेगी। म ज़दा ँ और सदा ज़दा र ँगा!!

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