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मंत्र,Stuti,Upasna,Prarthna,
मंत्र,Stuti,Upasna,Prarthna,
परिभाषा
ऋग्वेद - सबसे प्राचीि वेद - ज्ञाि हे तु लगभग 10 हजाि मंत्र हैं। इसमें दे वताओं
के गुर्ों का वर्णि औि प्रकाश के सलए 1975 मन्त्र हैं - कषवता-छन्द रूप में हैं।
यजव
ु ेद - इसमें कायण (क्रिया) व यज्ञ (समपणर्) की प्रक्रिया के सलये 3750
गद्यात्मक मन्त्र हैं।
अथवणवेद - इसमें गुर्, धमण, आिोग्य, एवं यज्ञ के सलये 7260 कषवतामयी मन्त्र
हैं।
स्तुनत/स्तोत्र
संस्कृत सादहत्य में क्रकसी दे वी-दे वता की स्तुनत में सलखे गये काव्य को स्तोत्र
कहा जाता है । संस्कृत सादहत्य में यह स्तोत्रकाव्य के अन्तगणत आता है ।
दे वताओं को प्रसन्ि कििे हे तु वेदों, पुिार्ों तथा काव्यों में सवणत्र सूतत तथा
स्तोत्र भिे पडे हैं। अिेक भततों द्वािा अपिे इष्टदे व की आिाधिा हे तु स्तोत्र
िचे गये हैं। षवसभन्ि स्तोत्रों का संग्रह स्तोत्रित्िावल के िाम से उपलब्ध है ।
सशवताण्डव स्तोत्र
श्रीिामिक्षास्तोत्रम ्
लक्ष्मीसहस्रिामस्तोत्र
उपासिा
'अपिे इष्टदे वता के समीप (उप) जस्थनत या बैठिा (आसि)'। आचायण शंकि की
व्याख्या के अिुसाि 'उपास्य वस्तु को शास्त्रोतत षवधध से बुद्धध का षवषय
बिाकि, उसके समीप पहुाँचकि, तैलधािा के सदृश समािवषृ ियों के प्रवाह से
िह ं हाता। गुरु 'द क्षा' के द्वािा सशष्य में अपिी शजतत का संचाि किता है ।
द क्षा का वस्तषवक अथण है उस ज्ञाि का दाि जजससे जीवि का पशुत्वबंधि कट
जाता है औि वह पाशों से मुतत होकि सशवत्व प्राप्त कि लेता है ।
प्राथणिा
प्राथणिा के संबंध में कहा जाता है की :-प्राथणिा निवेदि किके उजाण प्राप्त कििे
की शजतत है औि अपिे इष्ट अथवा षवद्या के प्रधाि दे व से सीधा संवाद है ।
प्राथणिा लौक्रकक व अलौक्रकक समस्या का समाधाि है ।