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साखी

- कबीर

सार : इन साखियों में कबीर ईश्वर प्रेम के महत्त्व को प्रस्तुत कर रहे हैं। पहली साखी में कबीर मीठी भाषा का प्रयोग करने की सलाह देते हैं
ताकि दूसरों को सुख और और अपने तन को शीतलता प्राप्त हो। दूसरी साखी में कबीर ईश्वर को मंदिरों और तीर्थों में ढूंढ़ने के बजाये अपने
मन में ढूंढ़ने की सलाह देते हैं। तीसरी साखी में कबीर ने अहंकार और ईश्वर को एक दूसरे से विपरीत (उल्टा ) बताया है। चौथी साखी में
कबीर कहते हैं कि प्रभु को पाने की आशा उनको संसार के लोगो से अलग करती है। पांचवी साखी में कबीर कहते हैं कि ईश्वर के वियोग में
कोई व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता, अगर रहता भी है तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है। छठी साखी में कबीर निंदा करने वालों को
हमारे स्वभाव परिवर्तन में मुख्य मानते हैं। सातवीं साखी में कबीर ईश्वर प्रेम के अक्षर को पढने वाले व्यक्ति को पंडित बताते हैं और अंतिम
साखी में कबीर कहते हैं कि यदि ज्ञान प्राप्त करना है तो मोह – माया का त्याग करना पड़ेगा।

शब्दार्थ
बाँणी – बोली आपा – अहम् (अहंकार )
खोइ – त्याग करना सीतल – शीतल ( ठंडा ,अच्छा )
औरन – दूसरों को होइ – होना
कुं डली – नाभि मृग – हिरण
घटि घटि – कण कण मैं – अहम् ( अहंकार )
अरु – अज्ञान रूपी अंधकार सोवै – सोये हुए
बिरह – बिछड़ने का गम भुवंगम – भुजंग , सांप
बौरा – पागल निंदक – निंदा करने वाला
नेड़ा – निकट सुभाइ – स्वभाव

भावार्थ :
1. ऐसी बाँणी बोलिये ,मन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करै ,औरन कौ सुख होइ।।
व्याख्या -: इसमें कबीरदास जी कहते है कि हमें अपने मन का अहंकार त्याग कर ऐसी भाषा का प्रयोग करना
चाहिए जिसमे हमारा अपना तन मन भी सवस्थ रहे और दूसरों को भी कोई कष्ट न हो अर्थात दूसरों को भी सुख
प्राप्त हो।
2. कस्तूरी कुं डली बसै ,मृग ढूँ ढै बन माँहि।
ऐसैं घटि- घटि राँम है , दुनियां देखै नाँहिं।।
व्याख्या -: कबीरदास जी कहते है कि जिस प्रकार एक हिरण कस्तूरी की खुशबु को जंगल में ढूंढ़ता फिरता है
जबकि वह सुगंध उसी की नाभि में विद्यमान होती है परन्तु वह इस बात से बेखबर होता है , उसी प्रकार संसार
के कण कण में ईश्वर विद्यमान है और मनुष्य इस बात से बेखबर ईश्वर को देवालयों और तीर्थों में ढूंढ़ता है।
कबीर जी कहते है कि अगर ईश्वर को ढूंढ़ना ही है तो अपने मन में ढूंढो।
3. जब मैं था तब हरि नहीं ,अब हरि हैं मैं नांहि।
सब अँधियारा मिटी गया , जब दीपक देख्या माँहि।।
व्याख्या -: कबीर जी कहते हैं कि जब इस हृदय में ‘मैं ‘ अर्थात मेरा अहंकार था तब इसमें परमेश्वर का वास नहीं
था परन्तु अब हृदय में अहंकार नहीं है तो इसमें प्रभु का वास है। जब परमेश्वर नमक दीपक के दर्शन हु ए तो
अज्ञान रूपी अहंकार का विनाश हो गया।
4. सुखिया सब संसार है , खायै अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है , जागै अरु रोवै।।
व्याख्या -: कबीर जी कहते हैं कि संसार के लोग अज्ञान रूपी अंधकार में डू बे हु ए हैं अपनी मृत्यु आदि से भी
अनजान सोये हु ये हैं। ये सब देख कर कबीर दुखी हैं और वे रो रहे हैं। वे प्रभु को पाने की आशा में हमेशा चिंता
में जागते रहते हैं।
5. बिरह भुवंगम तन बसै , मंत्र न लागै कोइ।
राम बियोगी ना जिवै ,जिवै तो बौरा होइ।।
व्याख्या -: कबीरदास जी कहते हैं कि जब मनुष्य के मन में अपनों के बिछड़ने का गम सांप बन कर लोटने
लगता है तो उस पर न कोई मन्त्र असर करता है और न ही कोई दवा असर करती है। उसी तरह राम अर्थात
ईश्वर के वियोग में मनुष्य जीवित नहीं रह सकता और यदि वह जीवित रहता भी है तो उसकी स्थिति पागलों
जैसी हो जाती है।
6. निंदक नेड़ा राखिये , आँगणि कु टी बँधाइ।
बिन साबण पाँणीं बिना , निरमल करै सुभाइ।।
व्याख्या -: इसमें कबीरदास जी कहते हैं कि हमें हमेशा निंदा करने वाले व्यक्तिओं को अपने निकट रखना चाहिए।
हो सके तो अपने आँगन में ही उनके लिए घर बनवा लेना चाहिए अर्थात हमेशा अपने आस पास ही रखना
चाहिए। ताकि हम उनके द्वारा बताई गई हमारी गलतिओं को सुधर सकें । इससे हमारा स्वभाव बिना साबुन और
पानी की मदद के ही साफ़ हो जायेगा।
7. पोथी पढ़ि – पढ़ि जग मुवा , पंडित भया न कोइ।
ऐकै अषिर पीव का , पढ़ै सु पंडित होइ।
व्याख्या -: कबीर जी कहते है कि इस संसार में मोटी – मोटी पुस्तकें (किताबें ) पढ़ कर कई मनुष्य मर गए परन्तु
कोई भी मनुष्य पंडित (ज्ञानी ) नहीं बन सका। यदि किसी व्यक्ति ने ईश्वर प्रेम का एक भी अक्षर पढ़ लिया
होता तो वह पंडित बन जाता अर्थात ईश्वर प्रेम ही एक सच है इसे जानने वाला ही वास्तविक ज्ञानी है।
8. हम घर जाल्या आपणाँ , लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि।।
व्याख्या -: कबीर जी कहते हैं कि उन्होंने अपने हाथों से अपना घर जला दिया है अर्थात उन्होंने मोह -माया रूपी
घर को जला कर ज्ञान प्राप्त कर लिया है। अब उनके हाथों में जलती हु ई मशाल ( लकड़ी ) है यानि ज्ञान है।
अब वे उसका घर जलाएंगे जो उनके साथ चलना चाहता है अर्थात उसे भी मोह – माया से मुक्त होना होगा जो
ज्ञान प्राप्त करना चाहता है।
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. संत समाज में किस ज्ञान की महत्ता है ?
A) अनुभव ज्ञान की B) बाहरी ज्ञान की C) मायावी ज्ञान की D) सांसारिक ज्ञान
2. कबीर की साखियों में किन भाषाओं का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है ?
A) अवधी B) राजस्थानी C) भोजपुरी और पंजाबी D) सभी
3. गुरु शिष्य को तत्त्व ज्ञान की शिक्षा कै से देता है ?
A) सत्य की साक्षी देता हुआ B) व्यवहारिक ज्ञान देकर
C) असत्य की साक्षी देता हुआ D) सत्क्ष देता हुआ
4. ईशवर कण कण में व्याप्त है , पर हम उसे देख क्यों नहीं पाते ?
A) मन में छु पे अहंकार के कारण B) आँखें बंद होने के कारण
C) आँखों पर चश्मा होने के कारण D) मन के कारण
5. बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागे कोय | का भाव स्पष्ट कीजिये |
A) जब शरीर में किसी से बिछु रने का दुःख हो तो कोई दवा या मन्त्र काम नहीं करता
B) मन्त्र जपने से सेहत अच्छी होती है
C) जब दुःख हो तो मन्त्र काम करते हैं
D) कोई नहीं

6. निम्नलिखित वाक्यों को ध्यानपूर्वक पढ़कर पद्यांश से मेल खाते वाक्यों को चुनिए ?


(क) इस संसार में मोटी – मोटी पुस्तकें (किताबें) पढ़ कर कई मनुष्य मर गए परन्तु कोई भी मनुष्य पंडित (ज्ञानी) नहीं बन
सका
(ख) अब कबीर जी के हाथों में जलती हुई मशाल (लकड़ी) है यानि ज्ञान है
(ग) यदि किसी व्यक्ति ने ईश्वर प्रेम का एक भी अक्षर पढ़ लिया होता तो वह पंडित बन जाता
(घ) उपरोक्त सभी
7. निम्नलिखित वाक्यों को ध्यानपूर्वक पढ़कर पद्यांश से मेल खाते वाक्यों को चुनिए ?
(क) हमें हमेशा निंदा करने वाले व्यक्तिओं को अपने निकट रखना चाहिए
(ख) ताकि हम उनके द्वारा बताई गई हमारी गलतिओं को सुधर सकें
(ग) इससे हमारा स्वभाव बिना साबुन और पानी की मदद के ही साफ़ हो जायेगा
(घ) उपरोक्त सभी
8. ‘ बिन साबण पाँणीं बिना , निरमल करै सुभाइ ‘ से आशय है ?
(क) हमें हमेशा निंदा करने वाले व्यक्तिओं को अपने निकट रखना चाहिए
(ख) हो सके तो निंदा करने वाले व्यक्तिओं के लिए अपने आँगन में ही घर बनवा लेना चाहिए अर्थात हमेशा अपने आस
पास ही रखना चाहिए
(ग) निंदा करने वाले व्यक्तिओं को अपने निकट रखने से हमारा स्वभाव बिना साबुन और पानी की मदद के ही साफ़ हो
जाता है
(घ) उपरोक्त सभी
9. किस व्यक्ति पर कोई मन्त्र और दवा असर नहीं करती है ?
(क) जब मनुष्य के मन में अपनों के बिछड़ने का गम सांप बन कर लोटने लगता है
(ख) जिस व्यक्ति का मन अहंकार से भरा हुआ हो
(ग) जो व्यक्ति अपनी मृत्यु आदि से भी अनजान सोये हुये हैं
(घ) जो किसी भयंकर बिमारी से पीड़ित हो
10. ‘ सुखिया सब संसार है ‘ से आशय है ?
(क) पूरा संसार सुखी है
(ख) संसार के लोग अज्ञान रूपी अंधकार में डूबे हुए हैं , जिस कारण सुखी हैं
(ग) कबीर जी संसार को देख कर सुखी हैं
(घ) संसार के लोग ईश्वर भक्ति में लीन हैं इसलिए सुखी हैं
वस्तूपरक प्रश्न
1. ” साखी ” पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – कबीर जी ने अपनी साखियों में ईश्वर प्रेम के महत्त्व को प्रस्तुत किया हैं। कबीर जी सभी को मीठी भाषा का प्रयोग करने की सलाह
देते हैं ताकि दूसरों को भी सुख और मीठी भाषा का प्रयोग करने वाले तन को भी शीतलता प्राप्त हो। क्योंकि जब हम दूसरों के साथ मीठी
भाषा का उपयोग करते हैं तो उन्हें आपसे कोई शिकायत नहीं रहेगी। वे सुख का अनुभव करेंगे और जब आपका मन शुद्ध और साफ़ होगा
परिणामस्वरूप आपका तन भी शीतल रहेगा। कबीर जी ईश्वर को मंदिरों और तीर्थों में ढूंढ़ने के बजाए अपने मन में ढूंढ़ने की सलाह देते हैं।
अपनी साखी में कबीर जी ने अहंकार और ईश्वर को एक दूसरे के बिलकु ल विपरीत अर्थात उल्टा बताया है। और कहा है कि जहाँ अहंकार
होता है वहाँ ईश्वर नहीं होते और जहाँ ईश्वर होते हैं वहाँ अहंकार नहीं होता। कबीर जी अपने आप को संसार के लोगो से अलग बताते है
और इसका कारण वे प्रभु को पाने की आशा बतलाते है। कबीर जी कहते हैं कि ईश्वर के वियोग में कोई व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता और
अगर कोई जीवित रहता भी है तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है। कबीर जी निंदा करने वालों को हमारे स्वभाव परिवर्तन में मुख्य
मानते हैं। और कहते हैं कि अगर हमें अपने स्वभाव को बदलना है तो निंदा करने वालों को हमेशा अपने आस – पास ही रखना चाहिए।
कबीर जी ईश्वर प्रेम के अक्षर को पढने वाले व्यक्ति को पंडित बताते हैं और बताते हैं कि यदि हमें ज्ञान प्राप्त करना है तो हमें मोह – माया
का त्याग करना पड़ेगा।
2. निंदक किसे कहा गया है ? वह व्यक्ति के स्वभाव का परिष्करण किस तरह करता है ?
अथवा
कबीर निंदक को अपने निकट रखने का परामर्श क्यों देते हैं ?
उत्तर – कबीर जी के अनुसार निंदक वह व्यक्ति है जो अपने आसपास रहने वालों की स्वाभाविक कमियों को अनदेखा नहीं करता है। वह
उन कमियों की ओर व्यक्ति का ध्यान बार – बार आकर्षित कराता है। उसकी इस आलोचना से व्यक्ति गलतियों और अपनी कमियों के प्रति
सजग हो जाता है। वह उन्हें दूर करने या भगाने का प्रयास करता है और सुधार के लिए उन्मुख हो जाता है। आत्मसुधार की भावना पनपते ही
व्यक्ति धीरे – धीरे अपने दुर्गुणों और कमियों से मुक्ति पा जाता है। ऐसा करने में व्यक्ति को कु छ खर्च भी नहीं करना पड़ता और उसका
स्वभाव भी निर्मल हो जाता है। इस तरह निंदक अपने आसपास रहने वालों के स्वभाव का परिष्करण करता है।
3. ‘ मन का आपा खोइ ‘ से कबीर जी क्या कहना चाहते हैं ? इससे क्या लाभ है ?
अथवा
मन का आपा खोने का आशय बताइए।
उत्तर – प्रत्येक मनुष्य की इच्छा होती है कि वह सांसारिक सुखों का अधिक से अधिक उपयोग करे। इन सुखों की प्राप्ति के लिए वह धन
और बल का स्वामी भी बनना चाहता है। इसी कारण मनुष्य के मन में आपा अर्थात अहंकार उत्पन्न हो जाता है। ‘ मन का आपा खोइ ‘ में
कबीर जी इसी अहंकार का त्याग कर ऐसी भाषा का प्रयोग करने को कह रहे हैं , जिसमें हमारा अपना तन मन भी सवस्थ रहे और दूसरों को
भी कोई कष्ट न हो अर्थात दूसरों को भी सुख प्राप्त हो। क्योंकि जब हम मीठी वाणी का प्रयोग करते हैं तब मन का अहंकार समाप्त हो जाता
है। इससे हमारे तन को तो शीतलता प्रदान होती ही है तथा सुनने वालों को भी सुख की तथा प्रसन्नता की अनुभूति होती है इसलिए सदा
दूसरों को सुख पहुँचाने वाली व अपने को भी शीतलता प्रदान करने वाली मीठी वाणी बोलनी चाहिए और अहंकार का त्याग करना चाहिए।
4. ‘ ऐसैं घटि घटि राँम है ’ के माध्यम से कबीर जी मनुष्य को संसार के किस सत्य से परिचित कराना चाहते हैं और ईश्वर हर
प्राणी में है , यह समझाने के लिए कबीर जी ने क्या उदहारण प्रस्तुत किया है ?
उत्तर – ‘ ऐसैं घटि घटि राँम है ’ के माध्यम से कबीर जी मनुष्य को संसार के उस सत्य से परिचित कराना चाहते हैं जिससे मनुष्य आजीवन
अनजान रहता है। मनुष्य ईश्वर को पाने के लिए देवालय , तीर्थ – स्थान , गुफा – कं दराओं जैसे दुर्गम स्थानों पर खोज करता रहता है ,
परन्तु वह ईश्वर को कहीं ढूँढ नहीं पता , क्योंकि वह ईश्वर को अपने मन में नहीं खोजता , जहाँ ईश्वर का सच्चा वास है। इसीलिए कबीर जी
ने कहा है ‘ ऐसैं घटि घटि राँम है ’ अर्थात ईश्वर तो घट – घट पर , हर प्राणी में यहाँ तक कि संसार के कण – कण में व्याप्त है।
कबीर जी हिरण का उदहारण दे कर समझाते हैं कि जिस प्रकार एक हिरण कस्तूरी की खुशबु को जंगल में ढूंढ़ता फिरता है , जबकि वह
सुगंध उसी की नाभि में विद्यमान होती है परन्तु वह इस बात से बेखबर होता है , उसी प्रकार संसार के कण कण में ईश्वर विद्यमान है और
मनुष्य इस बात से बेखबर ईश्वर को देवालयों और तीर्थों में ढूंढ़ता है। कबीर जी कहते है कि अगर ईश्वर को ढूंढ़ना ही है तो अपने मन में ढूंढो।
5. ‘ सब अँधियारा मिटि गया ’ यहाँ किस अँधियारे की ओर संके त किया गया है और इस अँधियारे को दूर करने का क्या
उपाय है ?
उत्तर – ‘ सब अँधियारा मिटि गया ’ के माध्यम से मनुष्य के मन में समाए अहंकार, अज्ञान, भय जैसे अँधियारे की ओर संके त किया गया
है जिसके कारण मनुष्य सांसारिक सुखों में डूबा जाता है और ईश्वर को नहीं पहचान पाता है। कबीर जी कहते हैं कि जब उनके हृदय में ‘ मैं ‘
अर्थात उनका अहंकार था तब उनके हृदय में परमेश्वर का वास नहीं था परन्तु अब हृदय में अहंकार नहीं है तो इसमें प्रभु का वास है। कहने
का तात्पर्य यह है कि अहंकार जब तक आपके अंदर विद्यमान है आप परमेश्वर को प्राप्त नहीं कर सकते। जब परमेश्वर नमक दीपक के दर्शन
आपको होंगे तो अज्ञान रूपी अहंकार का विनाश हो जाएगा। यह जो अँधियारा अर्थात अहंकार है यह प्रकाशपुंज ईश्वर रूपी दीपक को मन में
जलाने से उसी तरह मिट सकता है जैसे दीपक जलाने से अँधेरा समाप्त हो जाता है।
6. राम वियोगी की दशा को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – राम का वियोग झेल रहे व्यक्ति की दशा दयनीय हो जाती है। जब मनुष्य के मन में अपनों के बिछड़ने का गम सांप बन कर लोटने
लगता है तो उस पर न कोई मन्त्र असर करता है और न ही कोई दवा असर करती है। कोई किसी भी तरह का उपाय क्यों न कर लें , उस
वियोग से पीड़ित व्यक्ति की दशा में कोई सुधार नहीं ला सकता। उसी तरह राम अर्थात ईश्वर के वियोग में पड़ा मनुष्य जीवित नहीं रह सकता
और यदि वह जीवित रहता भी है तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है। कोई मंत्र या उपाय उसे ठीक नहीं कर पाता है। वह इस दुःख
की अधिकता को सह नहीं पाता है और अपने प्राणों से हाथ धो बैठता है। वह राम से मिलकर अर्थात प्रभु दर्शन से ही स्वस्थ हो सकता है।
इससे बढ़ कर कोई और उसके वियोग का इलाज नहीं है।
7. ‘ हम घर जाल्या आपणाँ ‘ से कबीर जी का क्या तात्पर्य है ? इससे क्या सीख देने का प्रयास किया गया है ?
उत्तर – ‘ हम घर जाल्या आपणाँ ‘ से कबीर जी यह कहना चाहते हैं कि उन्होंने अपने हाथों से अपना घर जला दिया है अर्थात उन्होंने मोह
– माया रूपी घर को जला कर ज्ञान प्राप्त कर लिया है। अब उनके हाथों में जलती हुई मशाल (लकड़ी) है यानि ज्ञान है। अब वे उसका घर
जलाएंगे जो उनके साथ चलना चाहता है अर्थात उसे भी मोह – माया से मुक्त होना होगा जो ज्ञान प्राप्त करना चाहता है। कबीर जी मोह –
माया का त्याग करने की सीख दे रहे हैं और साथ – ही – साथ यह भी बतला रहे हैं कि जब तक मोह – माया का त्याग नहीं करोगे तब
तक किसी भी प्रकार का ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता। कबीर जी स्वयं तो मोह – माया का त्याग कर ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं अब वे उनके मार्ग
पर चलने वालों अर्थात मोह – माया का त्याग करने वालों की मदद करना चाहते हैं , जो ज्ञान प्राप्त करने की चाह रखते हैं।
8. कबीर और मीरा की भक्ति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – कबीर दास भक्ति काल के निर्गुण काव्यधारा के प्रमुख कवियों में से एक है उन्होंने राम को निर्गुण रूप में स्वीकार किया है तथा वह
निर्गुण की उपासना का संदेश देते हैं उनकी राम भावना ब्रह्म भावना से सर्वथा मिलती है। कबीर पहले भक्त हैं फिर कवि है। उन्होंने जाति-
पाती, काम-धाम, चमक-दमक, दिखावा,पहनावा, अंधविश्वास, मूर्तिपूजा, हिंसा, माया, छु आछू त, आदि पर विद्रोह भावना प्रकट की हैं। इन
सब से दूर होकर भक्ति की भावना में लीन होने के लिए कबीरदास जी कहते हैंl
मीरा का काव्य जहाँ एक तरफ कृ ष्ण-भक्ति में एकनिष्ठ होकर अपनी मुक्ति का मार्ग खोजने का आख्यान है वहीं दूसरी तरफ एक नारी के
शाश्वत दुःखों का गायन भी है। मीरा के काव्य में काव्यशास्त्रों में वर्णित सिद्धान्तों का निदर्शन बहुत कम प्राप्त होता है, क्योंकि इनके काव्य में
भाव-प्रवणत्ता प्रधान है और शिल्प द्वितीयक है। ऐसा भी नहीं है कि शिल्प का बिल्कु ल अभाव हो, परन्तु कलात्मक तत्त्वों से अधिक
भावात्मक तत्त्वों का ध्यान रखने के कारण इनका काव्य शिल्प-प्रधान नहीं है।
9. कबीर के दोहों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
उतर – कबीर के दोहों की शिक्षा प्रत्येक काल में सार्थक सिद्ध हुई हैं। मिठ्ठी वाणी का प्रयोग, आपसी विश्वास , ईश्वर का प्रत्येक मन में
विश्वास , अहंकार को समाप्त करने का सन्देश , झूठे पाखंडों का विरोध , ईश्वर एक व् सभी मनुष्य समान , निंदकों को समीप रखने का
परामर्श इत्यादि सीख कबीर द्वारा समाज को दी गई हैं। कबीर के दोहों द्वारा दिए गए ऐसे मूल्यों द्वारा स्वस्थ समाज एवम समाज का विकास
संभव है।

परियोजना - गलती करने पर दंड मिलना चाहिए या क्षमा कर देना चाहिए? ( कक्षा में वाद-विवाद के रूप में चर्चा )

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