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बी.

ए पार्ट 1, पेपर 1 (हििंदी साहित्य का इतििास),

विषय- विद्यापति-काव्य में राधा

लेक्चर सिंख्या-9

गेस्र् र्ीचर- उपासना झा

विद्यापति की राधा अपूिव सुंदरी हैं जिसको विधािा ने पथ्


ृ िी के लािण्य के अुंश को लेकर रचा
है और जिसको दे खिे ही कवि का मन अधीर हो िािा है और उन के चरन िल में ककिनी ही
लक्ष्मी न्योछािर कर दे ना चाहिे हैं और इिने विभोर हैं कक उनकी अभभलाषा होिी है कक िे
इस पद कमल को ददन राि अगोर कर रखें।

दे ख दे ख राधा रूप अपार।

अपरूब के बबदह आतन मेराओल खखि-िल लाितन सार॥

अुंगदह अुंग अनुंग मरछाएि हे रए पड़ए अथीर।

मनमथ कोदि-मथन करू िे िन से हे रर मदह-मधध गीर॥

कि-कि लखखभम चरन िल नेओछये रुं धगतन हे रर बबभोरर।

करु अभभलाख मनदह पदपुंकि अदहनभस कोर अगोरर॥ (विद्यापति पदािली, पद सुंख्या 2 पष्ृ ठ:
36)

राधा के रूप िर्वन में विद्यापति ने अत्युंि रूधच ली है. शैशि से यौिनास्था के विकास के
क्रम में शरीर में होने िाले पररििवनों को िो दिव ककया है, जिसमें अत्युंि माुंसलिा है और
िर्वन अत्युंि प्रकृििादी हो िािा है लेककन सौंदयव िर्वन इसभलये विलक्षर् हो उठिा है क्योंकक
िय पररििवन की अिस्था में राधा के मनोभािों को प्रकि ककया गया है, सौंदयव केिल उपजस्थति
नहीुं है िह उसके प्रकिीकरर् में भी है कक िह ककस िरह प्रकि होिा है िब उसके प्रति कवि
का ध्यान िािा है।
खने-खने नयन कोन अनसरई;खने-खने-बसन-घूभल िन भरई॥

खने-खने दसन छिा हास, खने-खने अधर आगे करु बास॥

चऊुंकक चलए खने-खने चल मुंद, मनमथ पाठ पदहल अनबुंध॥

दहदवय-मकल हे रर हे रर थोर, खने आुंचर देअ खने होए भोर॥

बाला सैसि िारुन भेि, लखए न पाररअ िेठ कनेठ॥

विद्यापति कह सन बर कान, िरुतनम सैसि धचन्हए न िान॥ (पदािली पद सुंख्या-2, पष्ृ ठ


सुंख्या-39)

एक ही शब्दों की आितृ ि (िैसे खने, हे रर) से विद्यापति ने पद में ही सौंदयव नही रचा राधा के
तनश्छल सौंदयव की भी व्युंिना की है। राधा ऐसी तनश्छल है कक िह अपने आय में पररििवन
के इस धचह्न को नहीुं पहचान पा रही है और इस दशा में अपने शरीर की भाि भुंधगमा को
भी तनयुंबिि नहीुं कर पा रही है। उसके स्िाभाि में एक विचलन आ गया है िो उम्र के िय
सुंधध की ििह से है। विद्यापति ने इस आयगि मनोभाि को खूब पकड़ा है।

चानन भेल विषम सर रे , भूषर् भेल भारी।

सपनहुं नदह हरर आएल रे , गोकल धगरधारी॥

एकसरर ठादि कदम-िर रे, पथ हे रधथ मरारी।

हरर बबन दे ह दगध भेल रे , झामर भेल सारी॥ ( विद्यापति पदािली, पद सुंख्या- 206 पष्ृ ठ
सुंख्या -139)

राधा के नख भशख िर्वन में भी उन्होंने खब


ू रूधच ली है। नख भशख िर्वन के विविध पक्ष
दरअसल नातयका िर्व की रूदि के अुंग है इसमें, नोंक झोंक, सद्य: स्नािा, भमलन, विरह
इत्यादद के समय भी राधा के रूप से उनकी निर नहीुं हिी है। कृष्र् के नहीुं आने से राधा
बेहाल हो गई है। चुंदन भी िीर की िरह बेध रहा है ,आभूषर् भी उसके शरीर पर भारी लग
रहे हैं, िह कृष्र् की बाि एक पैर पर खड़ी दे ख रही है और इस दशा में उसे अपने शरीर के
िस्िों की भी सधध नहीुं है िो फिने को हो गये हैं।
कुं ि-भिन सएुं तनकसभल रे, रोकल धगरधारी।

एकदह नगर बस माधब रे, ितन करू बिमारी॥

छाड़ कान्ह मोरा आुंचर रे , फ़ािि नि –सारी।

अपिस होएि िगि भरर हे , ितन करऊ उघारी॥ (विद्यापति पदािली, पद सुंख्या- 59 पष्ृ ठ
सुंख्या -67)

उपरोक्ि पद में राधा को अपनी साड़ी की ही नहीुं उसके फिने से होने िाले अपयस की धचुंिा
है। कृष्र् ने उसका मागव रोक भलया है िह अकेली पड़ गई है इसभलये िह उसे बिमार कह कर
सुंबोधधि करिी है। सौंदयव की यह सहििा यह तनदोषिा ही विद्यापति की राधा और उनके
सौंदयव िर्वन की विशेषिा है।

िहाुं िहाुं पग-िग धरई, िुंदह िदह सरोरूह भरई।

िहआुं िहआुं झलकि अुंग िुंदह िुंदह वििरी िरुं ग।

राधा िहाुं िहाुं पैर रखिी है िहाुं िहाुं सरोिर बन िािा है, िैसे ही उसके शरीर का अुंग
झलकिा है िो लगिा है कक बबिली दमक रही है। राधा के इस पारस रूप को विद्यापति ने
सम्पर्
ू व श्रद्धा और हृदय की पविििा से तनभमवि ककया है, इसमें िो लोग शुंग
ृ ार का पाधथवि
रूप धचिर् माि खोिना चाहे , उन्हें कौन रोक सकिा है” ककुं ि विद्यापति का यह िर्वन राधा
के सौन्दयव की ददव्यिा का प्रकाशक भी है, इसमें सुंदेह नहीुं’।

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