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VIDEHA LaxmanJha Sagar Special-91-120
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VIDEHA LaxmanJha Sagar Special-91-120
पररवार, बात कवचार, सां युर्कत पररवारक कवघटन, वृद्धजनक उपे क्षा अपनै तीक
कमी, उच्छखृांलता, अनुशासनहीनता, सामाजजक आ जातीय
कुरीथत, सामाजजक पररवतगन आठद कहनकर ले खनक हमरा जनै त मूल कवषय
रहै त अथछ।
ु सम्पन्दन सागरजी
२.१०.नबोनारायण थमश्र- सिषगण
ु सम्पन्दन सागरजी
सिषगण
सागरजी परां पराक सां ग आधुकनक सोच राखै त छथि एकर प्रमाणमे थमथिला-
मै थिलीक प्रत्ये क कायगक्रममे ई युगलजोड़ी अवश्य सममललत होइत छथि से
प्रशां सनीय। नारी शक्र्कतकेँ डे गसाँ डे ग थमला कऽ चले नाइ कहनक दूरदृथिक
पररचायक अथछ।
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कते को ठदनक पिात गौहाटीसाँ कहनक प्रिम काव्यसां ग्रह "उचरर बै सू कौआ"
प्रकालशत भे ल ताकहमे सागरजीकेँ जते क प्रसतनता भे ल छलकन ताकहसाँ
थमलसयो भरर कम हमरा नकह भे ल छल। ओकह काव्यसां ग्रहसाँ सागरजीकेँ
मै थिली साकहत्य जगतमे नीकसाँ मूल्याकांन प्रारां भ भे ल। सागरजी बहुकवधावादी
रचनाकार छथि। ककवता, किा, कनबां ध, समीक्षा, साक्षात्कार आठद सभ
कवधामे हाि अजमौने छथि आ लोकथप्रयता भे टल छकन।
ककछु ए ठदन पूवग कहनक सद्यः प्रकालशत तीन टा महत्वपूणग पोिी प्रकालशत भे ल
छल जे एना अथछ- "एकह गदहबे रमे " (काव्यसां ग्रह), "कनसोह" (मै थिली
वाताग किा), आ "जे ना ओ कहलकन" (मै थिली साक्षात्कार सां ग्रह)। एकह
पोिीक प्रकाशनसाँ सागरजीकेँ सुयश प्राप्त भे लकन अथछ। कहनक ले खनी
अबाधगथतसाँ चलल रहल छकन तकर प्रमाणमे आधा दजगन पोिीक पाां डुललकप
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2015 मे कोककल मां च दू ठदवसीय रजत जयां ती वषग मना रहल छल। पकहल
ठदन गीत नादक कायगक्रममे बौं गलोरसाँ सुपररथचत गाथयका रजनी पल्लवी तिा
दरभां गासाँ चर्चित गायक माधव रायक गीत प्रस्तुत भे ल आ दोसर ठदन श्री
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सागरजी केहन सां वदे नशील व्यक्र्कत छथि तकर एकटा बानगी जे हमर
व्यक्र्कतगत जीवनसाँ सां बांथधत अथछ तकर उल्ले ख करब हमर नै थतक कतगव्य
अथछ। कायागवथधमे 2003 ई. मे हमरा अपन कमपनीक माललकसाँ मताां तर भऽ
गे ल छल आ हम कायग छोकड़ कऽ गाम चलल गे ल रही। मोन बना ले ने रही जे
आब गामे पर रकह कऽ खे ती करब मुदा कोककल मां चक सथचव पदपर रहै त
कलकत्ताक मोह से हो ग्रलसत केने छल। कोककल मां चक वार्षिक कायगक्रमसाँ
ककछु ठदन पकहने हमर परम शुभप्चितक नाट्य कनदे शक गां गा बाबूक फोन
गामपर पहुाँ चल छल। गां गा बाबूक कहब छलकन जे कलकत्ता आकब जाउ एतऽ
पाटग टाइममे तात्काल कायग भऽ जाएत आ ककछु ठदनक बाद फुलटाइम कायग
से हो भऽ जे तै। हम गामसाँ आकब पाटग टाइम कायगमे लाकग गे ल रही मुदा
फुलटाइम कायगमे कवलां ब भऽ रहल छलै क। एकह बातसाँ सागरजी प्चिथतत
छलाह आ हमरा कबनु कहने अपन सत्प्रयाससाँ फुलटाइम कायगमे हमरा लगबा
दे लाह। वस्तुतः एकह कायगसाँ हमरा आर्ििक रूपे जीवनदान भे टल। मनुष्यकेँ
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कृतज्ञ हे बाक चाही कृतघ्न नकह। हमरा जनै त सागरजी बहुतो लोककेँ समयपर
टका दऽ मदथत करै त आएल छथि।
जे ना ओ कहलवन
मै थिलीमे साक्षात्कार कवषयक पोिी, बहुत बे सी नकह ताँ आब बहुत कमो नकह
अथछ। 1971मे प्रकालशत हां सराजक 'ओ जे कहलकन'मे दस साकहत्यकारक
साक्षात्कार अथछ, 1998मे प्रकालशत डा. रमानतद झा रमणक 'भेँ टघाट 'मे
सोलह टा साक्षात्कार अथछ, 2001मे प्रकालशत कवश्वनािक 'अक्षर-अक्षर
अमृत' तिा 'युगाततर' दुनू पोिी थमला सोलह टा साक्षात्कार अथछ, 2021मे
प्रकालशत लक्ष्मण झा 'सागर'क जे ना ओ कहलकन मे सात टा साक्षात्कार
अथछ, एक टा आर साक्षात्कारक पोिी अथछ जे हमरा लग उपलब्ध नकह अथछ
एवां एक डा. जयकातत थमश्रसाँ ले ल गे ल साक्षात्कारक पोिी अथछ, जकर
समपादक पां चानन थमश्र छथि जे 2020मे प्रकालशत छकन, जाकहमे एगारह
साकहत्यकार द्वारा ले ल गे ल डा. जयकातत थमश्रक साक्षात्कार छकन। एकर
अथतररर्कत कवलभतन पत्र-पलत्रका, स्माररका, पोिीमे ले ल गे ल सयसाँ ऊपरे
साक्षात्कार सभ प्रकालशत अथछ।
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साक्षात्कार करब साधारणतया ओते क सरल नकह अथछ, जते क लोक बुझैत
छै क। हमरा जनै त सागर जीक ले ल गे ल साक्षात्कार सफल, उपयोगी जे
इथतहास-पुराणक काज करत, जे भूगोलक कनधागरणमे सहायक है त, अने क
कवद्वानक उक्र्कत सां दभगमे ले ल जै त, हुनका लोककनक कैल जाय वला कायग आ
तत्कालीन साकहत्य, राजनीथतसाँ लोक पररथचत भय सकत। "वृिा न होइ दे व-
ऋकष वाणी" केँ माकन कवलभतन क्षे त्रक ऋकषसाँ साक्षात्कार ले ल गे ल ई पुस्तक
महत्वपूणग लसद्ध होयत, से हमरा पूणगतः कवश्वास अथछ।
पीतामबर पाठक 1952मे कलकत्ता अयलाह आ मै थिली आां दोलन साँ कोना
जुड़लाह, एकह कवषयक एक साक्षात्कार कणगमृतमे छपल दे न्ख ककछु छू टल
बातक जजज्ञासा हे तु ओकह समय अस्वस्ि चलल रहल पाठक जी लग
पहुाँ चलाह। कोलकाताक प्रारस्मभक आतदोलनीमे छलाह
पाठकजी, दे वनारायण बाबू, बाबू साहे ब चौधरी, राजनतदन लाल दास, प्रबोध
बाबू, सत्यनारायण बाबू, उठदत बाबू, थमथिले तदुजी प्रभृथत मै थिलीक झां डा
उठौकनहार लोक जे अपन अस्स्मतक ले ल कहथि --"यस वी आर
मै थिल ...।" अन्खल भारतीय थमथिला सां घक लक्ष्यक कवषयमे सकवस्तार
अपन साक्षात्कारमे कहलथिन। पटनो रहलाह, ओतय से हो मै थिली
आतदोलनमे सकक्रय रहलाह। कोलकाताक साां गठकनक जनतब हे तु कहनक ई
साक्षात्कार लाभकारी अथछ। साक्षात्कार 2001मे ले ल गे ल अथछ।
वररष्ठ साकहत्यकार वीरे तर मक्ल्लक एवां सुप्रलसद्ध नाटककार महे तर मलां कगयासाँ
ले ल गे ल साक्षात्कार दूनूक साकहम्त्यक अवदानक कवषयमे ताँ
अथछए, समकालीन साकहत्य एवां नाटकक कवषयमे बहुत नव जानकारी अथछ।
आां दोलन, रां गमां च, कलाकार, कोलकातासाँ सरोकार आठद कवषयपर प्रश्न
पूथछ सागरजी द्वारा ले ल गे ल साक्षात्कार कवकवधतामे समग्रता समे टने अथछ।
लक्ष्मण झा 'सागर'
आाँ गनक दजक्षण भर पााँ च कोठललक कोठाक घर, ओइ समय गाम मे जकरा
कोठाक घर रहै क , सुखी सां पतन मानल जाइत छल। हमर बाबा
जमानाक (अां गरे जक समयक) ग्रैजुएट छलाह, रमौली (तमुररया) उच्च
कवद्यालय मे प्रधानाायापक रहथि, नामी कवद्वान, हुनके बनाओल घर छल।
घरक सबसाँ पुबररया घर मे एकटा कुसी, टे बुल आ चौकी पर कबछौना लागल
छल।
ललखल, भै याक दे ललयै तह, पलत्रका मे पठा दे लन्खतह, हमर रचना छपल
थमथिला थमकहर मे ।
भोला उच्च कवद्यालय डे बढ़, घोघरडीहा साँ भै या मै कट्रक केलथि, प्रिम श्रे णी साँ
पास केलकन, ओ समय मे भै या गामक पकहल व्यक्र्कत छथि जे प्रिम श्रे णी मे
मकट्रक पास केलथि, बी.कॉम के जखन पररणाम आएल, तऽ कहनका सां गे
हमर दू गोट कपत्ती से पास कयलथि, हमरा कने अनसोहात लागल छल जे
तीनू गोटे क एर्कके श्रे णी कोना भ' गे ल। कारण भै या पढ़ऽ मे चां सगर रहथि।
एकह खुशी मे दलान पर कीतगन भे ल, प्रसाद मे घरक बनाओल पे ड़ा छल।
कोलकताक साकहत्य समाज साँ ओत-प्रोत भ' गे लाह। फोनक जुग आएल त
भै या साँ थमथिला, मै थिल आ साकहम्त्यक खूब गप-सब होइत छल आ एखनो
होइत अथछ। 2017 ई मे भै याके थमथिला साकहम्त्यक साां स्कृथतक सां स्िा
मधुबनी सममाकनत केने रहकन, ताकह कायगक्रम मे हमहूाँ रही, भै या जाकह होटल
मे रूकल रहथि, हमरो ओही होटल मे ठहरबाक ले ल बजा ले लथि।
ककव, उपतयासकार, समीक्षक ठदलीपजी खूब आगत सत्कार केलथि अपना
खचग साँ । कायगक्रम मे खूब आनद आएल। ओइठाम आदरणीय उदय चतर
झा 'कवनोद' जी भों ट भे लाह, हुनको साँ गप-सप भे ल। स्माररका हमरो भे टल।
भोर मे हम दुनू भाइक जलपान आदरणीय स्व हे मचां र झाक आवास पर
व्यवस्िा छल आ भोजन आदरणीय ठदलीपजीक ओत'। भै या साँ झुका गाड़ी
साँ कोलकता कवदाह भे लाह, हम सकरी तक हुनक सां ग रही, ओइठाम साँ हमरा
दोसर गाड़ी फेरर कऽ गाम जे बाक छल। भै या कोलकता चलल गे लाह।
आब हमरो दुनू भाइ केर आाँ गन फराक भ' गे ल अथछ। भै या जखन गाम अबै त
छथि हमरा बड़ आवे श करै त छथि, कखनो हम हुनका आाँ गन चलल जाइत
छी, कखनो ओ हमरा आाँ गन आकब जाइत छथि। खूब गप-सब होइत अथछ।
गामक चौक पर आ गाम मे सां गे सां ग बुलैत छी। एखनो भै याके गाम घर
साँ , समाज साँ बड़ लगाव रहै त छै तह।
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चं द्रेश-सं पकष-9430640883
पािरपर दूशर् उपजाबै त राग-र्ािक अन्दिेर्क लक्ष्मण झा 'सागर'
ओ भावुक हृदयक लोक छथि ताँ इ भावनाक उथधयानमे उथधयाइत छथि। एकह
क्षण ओ जीवन यिािगक वास्तकवकतासाँ दूर चल जाइत छथि। कखनो कऽ
कवरोही उफान से हो जोर मारै त छकन। आवे श आ भावुकतामे ले ल गे ल कनणगय
कहनक जीवनक अां त कऽ दे त से हो ओ कबसरर जाइत छथि। ओ जाकन-बूजझ
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कहनक कपता V.L.W केर नौकरी छोकड़ कऽ सां युर्कत सोशललस्ट पाटीक
सकक्रय अलभकताग रहथि। ओ ने पालक जहलमे माननीय कपूगरी ठाकुर, धकनक
लाल मां डल, मधुललमये , रमानां द थतवारी, रामनारायण थतवारी आठदक सां ग
रहथि। स्वालभमानी कपताक स्वालभमानी पुत्र लक्ष्मण झा 'सागर' आइयो
इमानदारीक पिपर अग्रसाररत छथि। किनी-करनीमे हद धरर समानता छकन।
ओ ने नपनमे चां सगर छात्रमे पररगजणत होथि। मै कट्रकमे ओ पौं तीसम स्िान
पे लकन जखन कक कवद्यालयमे sent up exam मे प्रिम स्िान पे ने रहथि।
आइ.ए मे ठद्वतीय श्रे णी भे ल छलकन। तकर कारण जे ओ ट्यूशन ओकह
प्राायापकसाँ नकह पढ़लकन। प्रो. सत्यनारायण लसतहाजीक ट्यूशन केर धां धा
रहकन आ कवद्यािीकेँ नीक अां क ठदएबामे महारत हालसल छलकन।
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भाषामे नीकसाँ नीक शब्द अथछ से नकह छोड़बाक अथछ। अपन भाषाक
मूल्यपर आन भाषा वा शब्दकेँ अपनाएब गलत हएत। ले खक-साकहत्यकारक
दाथयत्व थिक जे ओ अपन भाषाक शब्दकेँ ताकक-हे रर कऽ आनथि तखने
रचनात्मक सौतदयग आ महत्ता बढ़त। कहनका आन भाषाक भाकषक आ
साां स्कृथतक गुलाम होएब से मै थिलीक मुद्दापर ककहयो पलसतन नकह छकन।
लोक भाषक प्रयोग हे बाक चाही। इएह कारण थिक जे कहनक व्यावहाररक
भाषा सामातयो जन बुझैत अथछ। कहनक भाषा अपन शब्द कवतयासक
फलस्वरूप अिगवाही आ जनबोधक अथछ ताँ इ सवगमातयो अथछ। जाँ आनो
भाषाक शब्द अथछ तऽ से हो रथच-पथच कऽ आएल अथछ। ताँ इ ओ मै थिली
भाषाकेँ उच्च स्िानपर प्रथतष्ठाकपत करै त अथछ, नकह कक दोयमपर। नव मूल्य
आ नव दृथिक स्िापनामे कहनक कनष्ठा आ प्रथतबद्धता झलकैत अथछ। ओ स्वयां
अपन पोिी आ पत्र-पलत्रकाठद कीनै त छथि आ दोसरोसाँ एहन अपे क्षा रखै त
छथि। ओ सां स्िा आ सां गठनाठदक आकाां क्षी छथि जे थमथिला-मै थिलीक कहतमे
होअए। ओ एहन कमगठ लोककेँ धन-बलसाँ सहायतो करै त छथि मुदा जखन
धनकेँ एों ठबाक वा अपव्यय हे बाक होइत अथछ, अपन घर भरबाक बात होइत
अथछ तऽ ओ फााँ ड़ बान्तह कऽ कलमसाँ ललकाररतो छथिन। प्रायः दे खल जाइत
अथछ जे गलत बात कहनका नकह सोहाइत छकन। ताँ इ लल्लो-चप्पो पलसतन नकह
पड़ै त छकन। ओ स्वािगमे आकांठ डू बल लोकसाँ घृणा करै त छथि। प्रायः दे खल
जाइत अथछ जे लोक थतकड़म बलों सममान आ पाइ केर उगाही करै त छथि।
चमचाकगरीमे एहन लोक जी-हजूरी करै त अथछ। जों कक ई सभ कहनका पलसतन
नकह छकन ताँ इ ओकह सभसाँ कतनी काकट अपने धुनमे मस्त रहै त छथि। एहन
कथतपय दुजगन लोकक आाँ न्खमे फुटललयो नकह सोहाइत छथि। सुच्चा
साकहत्य, साकहत्यकार एवां आतदोलनकारीक प्रथत कहनक हृदयमे शुद्ध प्रेम
अथछ तऽ नकलचीक प्रथत घृणा-भाव अपार। ओ जनै त छथि जे थमथिला-
मै थिलीक ले ल जे केओ काज करै त अथछ से ककछु ने न्खछु खे बे करत। पे टमे
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जुतना बान्तह कऽ काज नकह करत। मुदा सभटा भकोलस ले त अिागत धनदास
वा दासी बकन भोगवादी बनत तऽ एहन लोकसाँ ओ घृणा करै त छथि। खास
कऽ कहनक मोन आरो दुखी भऽ जाइत छकन जखन ओ दे खैत छथि आ
अनुभूथतक स्वरों ककह उठै त छथि-
बातकेँ रखै छथि ओ असामातय भऽ जाइत छै । ताँ इ ओ ककछु नकह ककहतो बहुत
बे सी ककह दै त छथि। ओ कवलशि ककव छथि जे सामाजजक कवसां गथतकेँ उठबै त
सामातयो भाषामे सपाट ढां गे आम जनक पीड़ा आ छटपटाहकटकेँ उधे लस कऽ
रान्ख दै त छथि।
खास कऽ सां घषग आ जजजीकवषा अबस्से प्रकट होइत अथछ। आर जे -से भखरै त
आपसी सां बांध, टू टैत पररवार, आ अपन सभ्यता-सां स्कृथतकेँ जकड़साँ उखड़बाक
बोध सां गकह सत्ता आ पूाँजीक आपसी गठजोड़ आठद उभरर कऽ कहनक
समकालीन रचनाक क्षमताकेँ आरो मारक बना दै त अथछ। ओ कुव्यवस्िाकेँ
थचरीचाों त करबाक उद्ये श्यों ललखै त छथि- हम काठी खड़रब, दीपलशखा
ले सबाक ले ल, अगरबत्तीक सुगांथध ले ल, आ मोमबत्ती जरे बाक ले ल, अपन
समस्त समानधमागक अधगशताब्दीपर (अपन अधगशताब्दीपर, उचरर बै सू
कौआ)। प्रथतरोधी साकहम्त्यक-साां स्कृथतक परां पराकेँ ओ आधुकनकतामे रान्ख
कऽ वै चाररकताक माायमे ओ ककवताक स्वर बुलांद करै त छथि। सहज भावों
ककवताक सपाटताकेँ ले बाक थिक। जाँ मात्र किनक रूपमे हएत तऽ ओ
ककवता ठीक नकह थिक। ओ बतकहीमे छोट-छोट बतकिनकेँ लऽ कऽ छोट-
छोट किा ललखै त छथि। एकहमे दै कनन्तदन जीवानाभूथतपरक घटना अबस्से
दे खल-भोगल यिािागनुभूथत परक अथछ। किाकारक ई कवशे षता जे ओ
समसामातयपरक घटनाकेँ जनानुभूथतक बना दै त छथि। जाँ इ जनसमूह अपन
जीवनक किा बुझैत अथछ ताँ इ जनसां वेदना मानवीय मोनकेँ छु बै त अतल
गहराइ धरर पहुाँ थच पबै त अथछ। कही तऽ पकहचान बनबै त अथछ सां गकह
पाठकीयतामे अपन उपस्स्िथतबोध करबै त अथछ। कहनका जखन जे मौका
भे टैत छकन तकरा अपन किासूत्र बना कऽ ताकह ढां गे प्रस्तुत करै त छथि जे
सामातय लोकक थचत्तमे बै लस जाइत अथछ। कहनक व्यग्रता तखन आरो बकढ़
जाइत छकन जखन "अपन भाषा आ सां स्कार तऽ अलोकपत भऽ रहल अथछ"
(कनसोह-59)। वस्तुतः ओ साकहत्यकेँ साधना बुझैत छथि, साधन नकह। ताँ इ
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ओ केकरो ककछु कबगाड़ै नकह छथि। मुदा ठााँ कह-पठााँ कह कटु सत्य बजबाक
कारणे अपन कथतपय दुश्मनकेँ पोलस ले ने छथि। भावुक हृदयक ओ लोक
कतबो कववे कशीलताक सां ग सां यममे रहऽ चाहै त छथि, रकहतो छथि तै यो
कहनकासाँ कथतपय जन नफा उठा कऽ पीठ पाछााँ अवहे ललत करै त छथि। मुदा
सागरजी अपन काजमे मग्न-मस्त रहै त छथि। ज्ञानीजनक आगााँ
धनबल, बााँ कहबल अिागत मुाँहगर-कनगरकेँ के पूछए? धन-कवभव आ वै भव
से हो फीका भऽ जाइत अथछ। ताँ इ सागरजी उफकनतो सागर सदृश शातत भऽ
जाइत छथि। कहनक मनमे रां चमात्रो ले श नकह रकह जाइत छकन आ दुश्मनोकेँ
गरा लगा ले बाक ले ल आतुर रहै त छथि। एकटा बात ईहो ककह दे ब आवश्यक
अथछ जे ओ सामाजजक लोक छथि। समाजक लोककेँ नीक जकााँ थचतहै त-
बुझैत छथि। समाजक, दे शक सीठदत-पीकड़त लोकक मानलसकताकेँ अपन
रचनामे उभारै त छथि। बात-बातमे दुख भे लापर जाँ ओ व्यथित होइत छथि तऽ
से स्वाभाकवके। कारण अपन बाबूजीक ककछु कहल-सुनल बातपर से हो गों ठ
बान्तह कऽ भाकग पड़एबाक हे तु कववश भे ल रहथि। ताँ इ की, हुनककह प्रेरणा
स्रोत पाकब ओ ककहयो अपन स्वालभमानकेँ बतहकी नकह धे लकन आ ने
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प्रत्ये क व्यक्र्कत के अपन व्यवस्स्ित जजनगी जीबाक ले ल एकटा कनन्ित उद्ये श्य
होइत छै क। एकर प्रेरणा ओकरा अपन घर-पररवारक बात-कवचार, गाम-
समाजक पररवे श, आचार-कवचार आ सां स्कारसाँ स्वतः भे कट जाइत छै क।
नीक-बे जाएसाँ प्रेररत कते को लोक बगुलाक अनुशरण कऽ लै त अथछ। कपटी
बकन नदी कात घात लगा कऽ बै लस जल-जीवकेँ आजीवन धोखा दऽ अपन
काज सुतारर लै त अथछ। इएह ओकर जजनगीक ाये य बकन जाइत छै । अपन
माकट-पाकन रीथत-रे वाज, अपन मातृभाषासाँ ओकरा कोनो सरोकार नकह रहै त
छै क। ओ आजीवन अवसरवादी बकन अपन स्वािगलसलद्ध टासाँ मतलब रखै त
अथछ। दोसर ठदस कते को लोककेँ अपन खानदानक एहनो सां स्कार भे टैत छै क