VIDEHA LaxmanJha Sagar Special-91-120

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विदे ह ३८२ म अं क १५ निम्बर २०२३ (िर्ष १६ मास १९१ अं क ३८२)|| 71

पररवार, बात कवचार, सां युर्कत पररवारक कवघटन, वृद्धजनक उपे क्षा अपनै तीक
कमी, उच्छखृांलता, अनुशासनहीनता, सामाजजक आ जातीय
कुरीथत, सामाजजक पररवतगन आठद कहनकर ले खनक हमरा जनै त मूल कवषय
रहै त अथछ।

मै थिली नवयुवा साकहत्यकारकेँ प्रेररत-प्रोत्साकहत करबामे सतत लागल रहै त


छथि मुदा एकरा सां ग-सां ग अपन पुरान ठदवां गत साकहत्यकारगणक प्रथत श्रद्धा
आ सममान अर्पित करबामे से हो कोनो कसरर बााँ की नकह रखै त छथि।

प्रगथतशीलताक पक्षधर होइतो प्राचीनताक प्रथत मोह अवस्स छकन।


सागरजीक जतम कतहुाँ भे लकन, पचपन कतहुाँ कबतलकन, चाकरी कतहुाँ केलकन
मुदा सभ ठाम ओ अपन भाषा आ समाजक थचततामे लागल रहलाह। आसाम
हो कक बां गाल लक्ष्मण झा सागरकेँ अपना स्तरसाँ जते क भऽ पे लकन ताकहमे
कोनो कसरर बााँ की नकह रखलकन अथछ। बाबू साहे ब चौधरी सन दधीथचक
अलभनां नदन ग्रांि हुनकर महत्वपूणग योजना अथछ। प्रवासी अनमोल रत्नपर
हुनकर फेसबुक लसरीज खूब लोकथप्रय रहल अथछ। सागरजीक ककवता से हो
खूब मारुख होइए।

एकह सां जक्षप्त कटप्पणीमे सागरजीक सभ काज वा एक काजक हम कवस्तार नै


कऽ सकल छी मुदा कवश्वास अथछ जे पाठक लग हमर भावना पहुाँ थच सकतकन।
72 || http://www.videha.co.in/ ISSN 2229-547X VIDEHA लक्ष्मण झा ’सागर’ विशे र्ां क

ु सम्पन्दन सागरजी
२.१०.नबोनारायण थमश्र- सिषगण

नबोनारायण थमश्र- सं पकष-9330173348

ु सम्पन्दन सागरजी
सिषगण

सारस्वत साकहत्यकार, मै थिली अलभयानी श्री लक्ष्मण झा 'सागर' जीसाँ


ककहया प्रिम बे र भों ट भे ल छल से तारीख स्मरण नकह अथछ। हम 1983 ई.
मे कलकत्ता आएल रही। जीवीकोपाजगनमे रहै त "कोककल मां च" मै थिली
नाट्य सां स्िासाँ 1990 ई. मे जुकड़ गे ल रही। एकह अवथध सभमे मै थिली पत्र-
पलत्रकामे रचनाकार लक्ष्मण झा 'सागर' नाम दे न्ख प्रसतनता होइत छल मुदा
भों ट-घााँ ट नकह भे ल छल तकर कारण जे 1983 ई. मे हम कलकत्ता एलहुाँ आ
सागरजी चाकरीक क्रममे स्िानाततररत भऽ कलकत्तासाँ आसाम चलल गे ल
छलाह। पुनः हुनका कलकत्ता एलापर प्रायः कवद्यापथत स्मारक मां च केर
कायगक्रममे सागरजीसाँ प्रिम बे र पररचय 1998 ई. मे भे ल छल। साकहम्त्यक
रुथचक कारणे क्रमशः हमरा लोककनक भों ट कवलभतन कायगक्रम सभमे होइत
रहल।
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ककछु ए ठदनमे हमरा ई बुझबामे आएल जे सागरजी मात्र साकहत्यकारे टा नकह


छथि एकर अथतररर्कत थमथिला-मै थिलीक हे तु कहनका हृदयमे बहुत आदर-भाव
से हो छकन। कहनकर सां पूणग पररवार मै थिलीमय छकन। अथधकाां श साकहत्यकार
मात्र मां चपर मै थिलीक प्रयोग करै त छथि आ घरमे अतय भाषाक मुदा
सागरजीक घरक भाषा मात्र मै थिली छकन से अनुकरणीय। कहनका यशस्वी
हे बाक अने क कारणमे प्रमुख कहनकर व्यक्र्कतत्व छकन। हमरा लोककनक समान
कवचारधारा हे बाक कारणे ककहया थमत्रताक बां धनमे हम सभ बतहा गे ल रही
से हो स्मरण नकह भऽ रहल अथछ। ओना एकटा बात स्पि करऽ चाहै त छी जे
थमत्रता तऽ समान लोकमे शोभनीय होइत छै ताकह दृथिसाँ हम हुनका समक्ष
अपना आपकेँ कतहुाँ नकह पाकब रहल छी। मात्र कवचारधाराक कारणे ई सखा-
भाव एखन धरर कायम अथछ, आशा करै त छी जे सदा-सवगदा बनल रहत।
रामकृष्ण महाकवद्यालय, मधुबनीमे स्नातक कक्षामे एककह साल हम दूनू गोटे
अाययनमे लागल रही। ओ कामसगमे हम साां इसमे मुदा तकहया पररचय नकह
छल। ई बात पाछा बुझलहुाँ ।

इथतहास साक्षी रहल अथछ जे कोनो सफल व्यक्र्कतक सफलतामे स्त्रीक


योगदान से हो महत्वपूणग रहल अथछ। ई स्वीकार करबामे हमरा कोनो दुकवधा
नकह होइत अथछ जे सागरजीक सफलतामे कहनक धमगपत्नी श्रीमती शै ल झा
'सागर' जीक प्रमुख योगदान रहलकन अथछ। श्रीमती शै ल झा 'सागर' से हो
मै थिलीमे रचना करै त छथि सां गकह मै थिली साकहत्य केर सजग पाठठका से हो
छथि।

सागरजी परां पराक सां ग आधुकनक सोच राखै त छथि एकर प्रमाणमे थमथिला-
मै थिलीक प्रत्ये क कायगक्रममे ई युगलजोड़ी अवश्य सममललत होइत छथि से
प्रशां सनीय। नारी शक्र्कतकेँ डे गसाँ डे ग थमला कऽ चले नाइ कहनक दूरदृथिक
पररचायक अथछ।
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थमथिला-मै थिलीक युगपुरुष गोलोकवासी बाबू साहे ब चौधरीजीक


अनुप्रेरणासाँ सागरजी मै थिली से वा क्षे त्रमे पदापगण केलकन। ताकह अवथधमे
चौधरीजीक कायगक्षेत्रमे अने क रूपसाँ सागरजी योगदान दै त रहलाह।साकहत्य-
सां स्कृथतसाँ अिाह प्रेमक कारणे आसाम प्रवासमे रहै त गौहाटी स्स्ित मै थिल
सां स्िा "थमथिला साां स्कृथतक समतवय सथमथत" केर कनमागणमे से हो कहनक
महत्वपूणग योगदान रहल छकन। ओकह अवथध केर प्रमुख कताग-धताग स्व.
सत्यानां द पाठक आब हमरा लोककनक बीच नकह छथि मुदा श्री प्रेमकाां त
चौधरीजी एखनहुाँ एकह सभ बातक साक्षी छथि।

सागरजी सत्तररक दशकसाँ ले खन प्रारां भ केलकन आ अस्सीक दशकसाँ


तात्कालीन मै थिली साप्ताकहक पलत्रका थमथिला थमकहरमे अकनक रचना
प्रकालशत होइत छलकन। अने को पत्र-पलत्रकामे आले ख सभ थछकड़आएल छकन
मुदा पोिी एकहुटा प्रकालशत नकह रहबाक कारणे कहनकर समग्र मूल्याकांनमे
कबलां ब भऽ रहल छल से जाकन हम पोिी प्रकाशन हे तु से हो चकड़अबै त रहलहुाँ ।

कते को ठदनक पिात गौहाटीसाँ कहनक प्रिम काव्यसां ग्रह "उचरर बै सू कौआ"
प्रकालशत भे ल ताकहमे सागरजीकेँ जते क प्रसतनता भे ल छलकन ताकहसाँ
थमलसयो भरर कम हमरा नकह भे ल छल। ओकह काव्यसां ग्रहसाँ सागरजीकेँ
मै थिली साकहत्य जगतमे नीकसाँ मूल्याकांन प्रारां भ भे ल। सागरजी बहुकवधावादी
रचनाकार छथि। ककवता, किा, कनबां ध, समीक्षा, साक्षात्कार आठद सभ
कवधामे हाि अजमौने छथि आ लोकथप्रयता भे टल छकन।

ककछु ए ठदन पूवग कहनक सद्यः प्रकालशत तीन टा महत्वपूणग पोिी प्रकालशत भे ल
छल जे एना अथछ- "एकह गदहबे रमे " (काव्यसां ग्रह), "कनसोह" (मै थिली
वाताग किा), आ "जे ना ओ कहलकन" (मै थिली साक्षात्कार सां ग्रह)। एकह
पोिीक प्रकाशनसाँ सागरजीकेँ सुयश प्राप्त भे लकन अथछ। कहनक ले खनी
अबाधगथतसाँ चलल रहल छकन तकर प्रमाणमे आधा दजगन पोिीक पाां डुललकप
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प्रेसमे प्रकाशन हे तु दे ल छकन से यिाशीघ्र पाठकक हािमे आएत आ तकर


स्वागत हे बाक चाही। सागरजी गौहाटीसाँ प्रकालशत "पूवाे त्तर मै थिल"
त्रै मालसक पलत्रकाक कोलकाता कवशे षाां कक दू बे र अथतथि सां पादक रहल
छथि। सां प्रथत बाबू साहे ब चौधरीपर कोंकरत स्मृथत ग्रांिक सां पादन हे तु तत्पर
भे ल छथि। ई स्मृथत ग्रांि जखन प्रकालशत हएत तखन कहनक सुयश आकाश
चकढ़ बाजत आ कोलकाता हे तु एकटा महत्वपूणग काज हएत।

आइयो कते को पत्र-पलत्रकाक कनयथमत ग्राहक छथि। मधुबनीसाँ प्रकालशत


मै थिलीक दै कनक पत्र "मै थिल पुनजागगरण प्रकाश"केँ आर्ििक सहायतािग
'सां जीवनी मै थिली कोष' मे सवगप्रिम बारह हजार टका दे लकन। सागरजी
सवगगुण समपतन छथि जे कहनका भीड़साँ फराक करै त अथछ। कोककल मां च
प्रत्ये क वषग मै थिली नाटकक मां चन करै त छल आ तत्पिात स्माररका से हो
प्रकालशत करै त छल। नाटक दे खबाक हमर आग्रह स्वीकार करै त प्रत्ये क वषग
सपत्नीक प्रेक्षागृहमे उपस्स्ित होइत रहलाह आ तकहना स्माररका हे तु प्रत्ये क
अां कमे अपन रचना कनन्ित रूपे दै त रहलाह। प्रत्ये क वषग फगुआक अवसरपर
कोककल मां च "फगुआ ठहर्कका" केर नामसाँ आयोजन करै त छल जाकहमे
सामथयक गीत-सां गीतक अथतररर्कत ककव सममे लन से हो रहै त छल। उर्कत ककव
सममे लनमे सागरजीक सामाजजक रचनाक सस्वर पाठ करै त छलाह जे बे स
चर्चित होइत छल।कोककल मां च गै र राजनीथतक मां च छल अस्तु कोनो ने ता-
अलभने तासाँ नकह अकपतु कोनो साकहत्यकार वा मै थिली से वीसाँ कायगक्रमक
उद्घाटन प्रत्ये क वषग करबै त छल ताकहमे ककछु कबलां बकहसाँ हम ईहो दाथयत्वपूणग
कायग हुनके कर-कमलसाँ करबौने रही।

2015 मे कोककल मां च दू ठदवसीय रजत जयां ती वषग मना रहल छल। पकहल
ठदन गीत नादक कायगक्रममे बौं गलोरसाँ सुपररथचत गाथयका रजनी पल्लवी तिा
दरभां गासाँ चर्चित गायक माधव रायक गीत प्रस्तुत भे ल आ दोसर ठदन श्री
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योगे तर पाठक कवयोगीजीक नाटक "बूढ़ भे ल बलाय" केर मां चन भे ल छल।


ज्ञातव्य जे कवयोगीजीक ई प्रिम नाटक कृथत छल से प्रिम बे र अही मां चपर
दशगक द्वारा बे स प्रशां लसत भे ल छल।

ज्ञातव्य जे उर्कत अवसरपर लगभग दू दजगनसाँ बे लसये मै थिली से वी आ


साकहत्यकार लोककनक सममान कएल गे ल छल। दू दशक धरर कोककल मां चक
सथचव रहबाक कारणे ई हमर अां थतम कायगकाल छल से हम पूवगकह घोकषत कऽ
चुकल रही। सागरजीसाँ मधुर सां बांध रकहतो एकटा खास बातसाँ रुि भऽ
कलकत्तामे रकहयो कऽ ओ ओकह दू ठदवसीय कायगक्रममे अनुपस्स्ित छलाह।
यद्यकप अपन अनुपस्स्िथत रहबाक बात हमरा पूवगकहमे ककह दे ने छलाह जे
कनताां त व्यक्र्कतगत बात छलै क मुदा हमरा आइयो एकह बातक कचोट होइते
अथछ।

सागरजी केहन सां वदे नशील व्यक्र्कत छथि तकर एकटा बानगी जे हमर
व्यक्र्कतगत जीवनसाँ सां बांथधत अथछ तकर उल्ले ख करब हमर नै थतक कतगव्य
अथछ। कायागवथधमे 2003 ई. मे हमरा अपन कमपनीक माललकसाँ मताां तर भऽ
गे ल छल आ हम कायग छोकड़ कऽ गाम चलल गे ल रही। मोन बना ले ने रही जे
आब गामे पर रकह कऽ खे ती करब मुदा कोककल मां चक सथचव पदपर रहै त
कलकत्ताक मोह से हो ग्रलसत केने छल। कोककल मां चक वार्षिक कायगक्रमसाँ
ककछु ठदन पकहने हमर परम शुभप्चितक नाट्य कनदे शक गां गा बाबूक फोन
गामपर पहुाँ चल छल। गां गा बाबूक कहब छलकन जे कलकत्ता आकब जाउ एतऽ
पाटग टाइममे तात्काल कायग भऽ जाएत आ ककछु ठदनक बाद फुलटाइम कायग
से हो भऽ जे तै। हम गामसाँ आकब पाटग टाइम कायगमे लाकग गे ल रही मुदा
फुलटाइम कायगमे कवलां ब भऽ रहल छलै क। एकह बातसाँ सागरजी प्चिथतत
छलाह आ हमरा कबनु कहने अपन सत्प्रयाससाँ फुलटाइम कायगमे हमरा लगबा
दे लाह। वस्तुतः एकह कायगसाँ हमरा आर्ििक रूपे जीवनदान भे टल। मनुष्यकेँ
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कृतज्ञ हे बाक चाही कृतघ्न नकह। हमरा जनै त सागरजी बहुतो लोककेँ समयपर
टका दऽ मदथत करै त आएल छथि।

साकहत्यसाँ इतर एकटा महत्वपूणग बातक उल्ले ख एकहठाम आवश्यक बुझाइत


अथछ जे सागरजीकेँ रामलोचन ठाकुरजीसाँ छत्तीस केर आाँ कड़ा छलकन। ई
बात सागरजी प्रसां ग गप्पक क्रममे रामलोचनजीसाँ ज्ञात भे ल आ पुनः सागरजी
से हो तकर पुथि करै त बहुत पुरान बात सभ कहलकन जे हमरा कलकत्ता एबासाँ
पकहने ओ घकटत भे ल छलै क। हम दूनू गोटे अथतथप्रय रहबाक कारणे हमरा ई
बात अनसोहााँ त लगै त छल। दूनू गोटे केँ मे ल-थमलाप करे बाक ले ल दृढ़
सां कस्ल्पत भऽ मोनमे ठाकन ले लहुाँ । बहुत पापड़ बे ललाक पिात हमर
सत्प्रयाससाँ दूनू गोटे सां बांध छत्तीससाँ बदलल कऽ थतरसठठ रूपमे भऽ गे लकन
ताकह बातक स्मरण केलासाँ हमर मोन आइयो प्रसतन भऽ जाइत अथछ।
फगुआक अवसरपर प्रत्ये क वषग साकहत्यकार आ मै थिली से वी हे तु हम
प्रेमोपहारक दू शब्द ललखै त छलहुाँ मुदा ताकहसाँ लभतन आजुक शब्द थमत्रवर
सागरजीक ले ल प्रेकषत करै त आह्लाठदत छी।

समानधमाग रचनाकार माय, जे पौलन्तह सठदखन आदर

से थमथिला-मै थिलीक वरदपुत्र श्री लक्ष्मण झा 'सागर'


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२.११.वहतनाि झा- जे ना ओ कहलवन

वहतनाि झा-सं पकष-09430743070

जे ना ओ कहलवन

मै थिलीमे साक्षात्कार कवषयक पोिी, बहुत बे सी नकह ताँ आब बहुत कमो नकह
अथछ। 1971मे प्रकालशत हां सराजक 'ओ जे कहलकन'मे दस साकहत्यकारक
साक्षात्कार अथछ, 1998मे प्रकालशत डा. रमानतद झा रमणक 'भेँ टघाट 'मे
सोलह टा साक्षात्कार अथछ, 2001मे प्रकालशत कवश्वनािक 'अक्षर-अक्षर
अमृत' तिा 'युगाततर' दुनू पोिी थमला सोलह टा साक्षात्कार अथछ, 2021मे
प्रकालशत लक्ष्मण झा 'सागर'क जे ना ओ कहलकन मे सात टा साक्षात्कार
अथछ, एक टा आर साक्षात्कारक पोिी अथछ जे हमरा लग उपलब्ध नकह अथछ
एवां एक डा. जयकातत थमश्रसाँ ले ल गे ल साक्षात्कारक पोिी अथछ, जकर
समपादक पां चानन थमश्र छथि जे 2020मे प्रकालशत छकन, जाकहमे एगारह
साकहत्यकार द्वारा ले ल गे ल डा. जयकातत थमश्रक साक्षात्कार छकन। एकर
अथतररर्कत कवलभतन पत्र-पलत्रका, स्माररका, पोिीमे ले ल गे ल सयसाँ ऊपरे
साक्षात्कार सभ प्रकालशत अथछ।
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लक्ष्मण झा सागर साकहत्यकारक सां ग-सां ग


कोलकाता, गुआहाटी, दरभां गा, ठदल्ली आ आनो सां स्िा सभसाँ जुड़ल छथि।
कनभीक आ स्पिवादी छथि। मै थिली भाषाक सरकारी मातयता, साकहत्यक
भां डार भरबाक हे तु साकहत्यकारक अवदान आ मै थिली सां स्िा, सां गठनक
कायग-कलापपर कहनक ायान सदै व रहलकन अथछ आ एखनो सकक्रय आ
साकाां क्ष छथि।

साक्षात्कार करब साधारणतया ओते क सरल नकह अथछ, जते क लोक बुझैत
छै क। हमरा जनै त सागर जीक ले ल गे ल साक्षात्कार सफल, उपयोगी जे
इथतहास-पुराणक काज करत, जे भूगोलक कनधागरणमे सहायक है त, अने क
कवद्वानक उक्र्कत सां दभगमे ले ल जै त, हुनका लोककनक कैल जाय वला कायग आ
तत्कालीन साकहत्य, राजनीथतसाँ लोक पररथचत भय सकत। "वृिा न होइ दे व-
ऋकष वाणी" केँ माकन कवलभतन क्षे त्रक ऋकषसाँ साक्षात्कार ले ल गे ल ई पुस्तक
महत्वपूणग लसद्ध होयत, से हमरा पूणगतः कवश्वास अथछ।

बाबू साहे ब चौधरी सन आतदोलनीक 1976 मे ले ल गे ल साक्षात्कार, ओकह


समय कलकत्ता मै थिलीक अने क गथतकवथधक मुख्य केतर छल, बहुत
सूचनाप्रद अथछ, मै थिली ले ल कैल गे ल कायगक दस्तावे ज अथछ। बाबू साहे ब
चौधरी सां स्िाकेँ इां कगत करै त कहै त छथिन "जे सां स्िा ने आतदोलन करै त अथछ
आ ने साकहत्य-सृजन करै त अथछ, तकरा हम मात्र "कीतगकनयााँ -मां डली बुझैत
थछयै क।" कोलकाताक मै थिली सां स्िाक एकीकरणपर से हो बे बाक कटप्पणी
छकन।

डॉ0 जयकातत थमश्रसाँ 1979मे ले ल गे ल साक्षात्कार, मै थिलीकेँ साकहत्य


अकादे मीमे मातयता, साकहत्य अकादे मीक कायग-कलाप, कहस्ट्री ऑफ मै थिली
ललटरे चरक अनुवाद प्रसां ग, सां स्िाक गुटबतदीक बात सभ आ अने क प्रसां ग
अथछ, जे महत्वपूणग अथछ। ठदसमबर1963क पुस्तक प्रदशगनीक कवषयमे
80 || http://www.videha.co.in/ ISSN 2229-547X VIDEHA लक्ष्मण झा ’सागर’ विशे र्ां क

सकवस्तार अथछ। प. ने हरूक प्रसां ग से हो आयल अथछ जे ओ पकहने मै थिलीकेँ


कोन रूपमे लै त छलाह आ जखन पुस्तक प्रदशगनी मे अयलाह, तखन कोना
धारणा बदललकन।

पीतामबर पाठक 1952मे कलकत्ता अयलाह आ मै थिली आां दोलन साँ कोना
जुड़लाह, एकह कवषयक एक साक्षात्कार कणगमृतमे छपल दे न्ख ककछु छू टल
बातक जजज्ञासा हे तु ओकह समय अस्वस्ि चलल रहल पाठक जी लग
पहुाँ चलाह। कोलकाताक प्रारस्मभक आतदोलनीमे छलाह
पाठकजी, दे वनारायण बाबू, बाबू साहे ब चौधरी, राजनतदन लाल दास, प्रबोध
बाबू, सत्यनारायण बाबू, उठदत बाबू, थमथिले तदुजी प्रभृथत मै थिलीक झां डा
उठौकनहार लोक जे अपन अस्स्मतक ले ल कहथि --"यस वी आर
मै थिल ...।" अन्खल भारतीय थमथिला सां घक लक्ष्यक कवषयमे सकवस्तार
अपन साक्षात्कारमे कहलथिन। पटनो रहलाह, ओतय से हो मै थिली
आतदोलनमे सकक्रय रहलाह। कोलकाताक साां गठकनक जनतब हे तु कहनक ई
साक्षात्कार लाभकारी अथछ। साक्षात्कार 2001मे ले ल गे ल अथछ।

कणगमृत आओर राजनतदन लाल दास एक दोसरक पूरक रहथि। कहनकर


सां पादकीयमे करीब 150 अां क प्रकालशत छकन। ई पलत्रका एक जाथत कवशे ष
नामपर अथछ, तौं ककहयो अलभयोग से हो लगलकन, ले खकक कनमनस्तरीय
रचनाक प्रकाशनक बात से हो लगलकन। सीताराम झाक एक ककवताक पााँ ती
पकढ़ मै थिली साकहत्य व भाषा ठदस आकृि जे भे लाह से आजीवन रहलाह, से
समपूणग समपगणक सां ग। दासजीक पारवाररक पृथष्ठभूथम, कलकत्ताक
साां गठकनक कक्रयाकलाप, साकहम्त्यक यात्रा, सहयोग, असहयोग आठदक
कवषयमे सागरजी जे स्वयां साक्षी रकह चुकल छथि द्वारा पूछल गे ल प्रश्न आ
उत्तर कनन्ित रूपसाँ मै थिली साकहत्यक, पत्रकाररताक, आतदोलनक दस्तावे ज
अथछ, इएह ताँ साक्षात्कारकतागक मुख्य ाये य रहै त छै क।
विदे ह ३८२ म अं क १५ निम्बर २०२३ (िर्ष १६ मास १९१ अं क ३८२)|| 81

वररष्ठ साकहत्यकार वीरे तर मक्ल्लक एवां सुप्रलसद्ध नाटककार महे तर मलां कगयासाँ
ले ल गे ल साक्षात्कार दूनूक साकहम्त्यक अवदानक कवषयमे ताँ
अथछए, समकालीन साकहत्य एवां नाटकक कवषयमे बहुत नव जानकारी अथछ।
आां दोलन, रां गमां च, कलाकार, कोलकातासाँ सरोकार आठद कवषयपर प्रश्न
पूथछ सागरजी द्वारा ले ल गे ल साक्षात्कार कवकवधतामे समग्रता समे टने अथछ।

अशोक झाक ने तृत्वमे 1983 मे कोलकातामे थमथिला कवकास पररषदक


स्िापना भे ल, ताँ अशोक झा चचागमे अयलाह। मै थिलीक कहतमे , राजनीथतक
जीवन रकहतहु, समपगणमे कतौ कमी नकह अयलकन आ से सागरजी 36 पृष्ठक
साक्षात्कारमे अशोक झा जीक पृष्ठभूथम सकहत हुनक पूणग पररचय वा ई कही
जे हुनक जीवन चररतक समग्र जनतब साक्षात्कारक रूपमे पाठक तक
अनलकन से आधुकनक कोलकाताक गथतकवथधक स्वरूपसाँ से हो पररचय
करयलकन। साकहत्य अकादे मीक सलाहकार सथमथतक सदस्य से हो भे लाह।
नाटक ललखलाह। ककवता रचलकन आ सवाे परर मै थिलीक गथतकवथिमे
कनरततरताक सां ग अपनाकेँ सकक्रय रखलकन।

चूाँकक सागरजी स्वयां अपनहुाँ थमथिला-मै थिलीक आतदोलनसाँ जुड़ल रहलाह


अथछ, से उपयुगर्कत साक्षात्कारमे कोनो ने कोनो रूपमे सभक साक्षात्कारमे
प्रश्न आकबये गे ल छकन, से उथचते । साक्षात्कारकतागक मूल उद्देश्यो
वै ह, पाठकोक पढ़बाक लक्ष्यो सै ह। एकह साक्षात्कारक पोिीमे कोलकाताक
अथधकाां श गथतकवथधक पूणग पररचय भे कट जायत, ई सगरजीक पै घ सफलता
छकन। जे ना ओ कहलकन, पाठकक ज्ञानवधगन करतकन, से कवश्वास अथछ।
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२.१२.विरे न्ददर कु मार झा- लक्ष्मण झा 'सागर'

विरे न्दद्र कु मार झा, सं पकष-9934727073

लक्ष्मण झा 'सागर'

आाँ गनक दजक्षण भर पााँ च कोठललक कोठाक घर, ओइ समय गाम मे जकरा
कोठाक घर रहै क , सुखी सां पतन मानल जाइत छल। हमर बाबा
जमानाक (अां गरे जक समयक) ग्रैजुएट छलाह, रमौली (तमुररया) उच्च
कवद्यालय मे प्रधानाायापक रहथि, नामी कवद्वान, हुनके बनाओल घर छल।
घरक सबसाँ पुबररया घर मे एकटा कुसी, टे बुल आ चौकी पर कबछौना लागल
छल।

हमर कपथतयौत आदरणीय भै या, लक्षमण झा 'सागर' टे बुल कुसी पर ककछु


ककछु ललखै त रहै त छलथि। हम ओइ समय ने ना रही,शायद 1973-74 क
गप थिक, बे र-बे र हम घर जाइ आ हुनका पढ़ै त-ललखै त दे न्खयै तह, पत्र-
पलत्रका, पोिी टे बुल आ बाकस मे राखल रहै त छल। हुनका साँ ल' हमहूाँ पढ़ल
करी। एक ठदन हम कहललयै तह, भै या हमर कोनो रचना 'थमथिला थमकहर' नै
छपतै क? कहलथि, हाँ -हाँ ककएक नकह, अवश्य छपतै क, अहााँ नीक जकााँ ललखू
मुतना (हमर गाम घरक नाम मुतना छी)। हम ललखल, मोन नकह अथछ की
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ललखल, भै याक दे ललयै तह, पलत्रका मे पठा दे लन्खतह, हमर रचना छपल
थमथिला थमकहर मे ।

समाराजी आश्रम रहै क, भै या पढ़ाइ सां ग घर-गृहस्िीक काज मे लागल रहै त


छलथि। खररहान मे करजान धानक बोझ राखल रहै त छल, ताकह हे तु भै या
बे सी काल खररहान जाइि, ककहयो ककहयो भै या ओइठाम चौकी गे कट सां गी
सब सां गे नाटक खे लाइत छलथि। कहनका कातह पर हर दे न्खयै तह, कते क लोक
कहै क लछु मन बौआ बड़ ठदब नाटक खे लाइत अथछ। हमरा सबहक समाराजी
आश्रम मे एकटा मबहिस से हो छल, चरबाहाक अबै मे कवलमब भे ला पर भै या
अपने मबहिस दूकह लै ि। ओना खे त पिार साँ कमे मतलब रहकन, मुदा गाम पर
रहै त तऽ जौन हरबाहा साँ काज अढ़ाबै ि।

भोला उच्च कवद्यालय डे बढ़, घोघरडीहा साँ भै या मै कट्रक केलथि, प्रिम श्रे णी साँ
पास केलकन, ओ समय मे भै या गामक पकहल व्यक्र्कत छथि जे प्रिम श्रे णी मे
मकट्रक पास केलथि, बी.कॉम के जखन पररणाम आएल, तऽ कहनका सां गे
हमर दू गोट कपत्ती से पास कयलथि, हमरा कने अनसोहात लागल छल जे
तीनू गोटे क एर्कके श्रे णी कोना भ' गे ल। कारण भै या पढ़ऽ मे चां सगर रहथि।
एकह खुशी मे दलान पर कीतगन भे ल, प्रसाद मे घरक बनाओल पे ड़ा छल।

एक ठदन भै या पोखरर मे बां शी खे लाइ हे तु भोरकह साँ सुरसार करथत


छलथि, बे ररया पहर बां शी ल' पोखररक दजक्षण बररया महार पर गे लाह, बां शी
पिलै ि, हमहूाँ महार पर ठाड़ छलहुाँ । कने कालक बाद दे खल, भै या बां शी
थछपलथि आ बड़की टा गागर माछ कनकलल, हमरा बड़ खुशी भे ल।
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एक ठदन अनचोके सुनल जे भै याक आइ कववाह थछयै तह, मोन गदगद भे ल जे


बररयाती जाएब, मुदा ई की भै या कनपत्ता, बाद मे बुझल जे भै या एकह कववाहक
कवरुद्ध छथि, तेँ गाम साँ पड़ा गे लाह, सााँ झ मे भै या गाम पर अयलाह, तखन
कते क ककह सुकन कववाह भे लकन, कववाह मे बररयाथत र्कयो नकह गे ल, हमरा
सबके बररयाथत हुलस गे ल। कववाह बे लौचा गाम भे ल जे भै याक मामा गाम
से हो छै तह। भै याक कोजगरा मामा गाम मे भे लकन, हमहूाँ छलहुाँ बे लौचा मे ।
ओइ टोल साँ अइ टोल हािे -पािे भार आएल, मधुर, थमष्ठान खूब रहै क, हमहूाँ
सब कैक ठदन खाइत रहलहुाँ । एक ठदन हम सब बे लौचाक चौबट्टी पर
गे लहुाँ , लगे मे एकटा पुस्तकालय छल, तत' हम सब गे लहुाँ । रां ग कवरां गक पोिी
ओ पलत्रका सब छल, 'भै या साँ पूछल गे लकन,' अपने क की चाही? भै या
कहलथि " थमथिला थमकहर' पलत्रका ल' भै या ककनकाल दे खलकन, पढ़ले
रहै न, अपने डाक साँ मां गबै त छलथि। पलत्रका हमरा हाि आएल, ककनकाल
हमहूाँ पढ़ल। मुनहारर सााँ झ मे हम सब घुरलहुाँ , भै या अपना सासुर गे लाह आ
हम दीदी-कपसा एकहठाम, कारण भै याक एकटा मामा साँ हमरा सबहक दीदीक
कववाह रहै तह, ककह सकैत छी जे गोलट भे ल छल। भै याक दुरागमन
भे ल, समाराजी आश्रम मे कोबर घरक अभाव छल, मुदा बर-ककनयााँ ले ल
कोबर घर तऽ चाही छल, र्कयो अपन घर छोड़ै क ले ल तै यार नकह छल, कते क
कववाद भे ल, अां त मे भै या-भौजी के बाबाक बानाओल घर मे कोबर नकह
भ' सकल। तखन आाँ गन मे एकटा फरीक साँ घर माँ गनी कएल गे ल से कोबर
घर भे ल। हमरा बड़ अनसोहााँ त लागल जे कोबर अनका घर मे भे ल । ककछु ए
ठदनक बाद भै या कोलकता चलल गे लाह सी.ए करै क हे तु। भौजी गामे मे रकह
गे ललह। ककछु ए ठदनक बाद बाबाक बनाओल घर मे गे लीह। भौजी जावत धरर
गाम मे रहलीह, भै याक गाम अबरजात बनल रहकन। गाम अबै ि त हमरा
हुनका साँ घर, पररवार आ समाजक नीक बे जा गप सब हुअए। भौजी जखन
भै या सां गे कोलकता गे लीह तऽ भै याक गाम अबरजात कम भ' गे लकन आ
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कोलकताक साकहत्य समाज साँ ओत-प्रोत भ' गे लाह। फोनक जुग आएल त
भै या साँ थमथिला, मै थिल आ साकहम्त्यक खूब गप-सब होइत छल आ एखनो
होइत अथछ। 2017 ई मे भै याके थमथिला साकहम्त्यक साां स्कृथतक सां स्िा
मधुबनी सममाकनत केने रहकन, ताकह कायगक्रम मे हमहूाँ रही, भै या जाकह होटल
मे रूकल रहथि, हमरो ओही होटल मे ठहरबाक ले ल बजा ले लथि।
ककव, उपतयासकार, समीक्षक ठदलीपजी खूब आगत सत्कार केलथि अपना
खचग साँ । कायगक्रम मे खूब आनद आएल। ओइठाम आदरणीय उदय चतर
झा 'कवनोद' जी भों ट भे लाह, हुनको साँ गप-सप भे ल। स्माररका हमरो भे टल।
भोर मे हम दुनू भाइक जलपान आदरणीय स्व हे मचां र झाक आवास पर
व्यवस्िा छल आ भोजन आदरणीय ठदलीपजीक ओत'। भै या साँ झुका गाड़ी
साँ कोलकता कवदाह भे लाह, हम सकरी तक हुनक सां ग रही, ओइठाम साँ हमरा
दोसर गाड़ी फेरर कऽ गाम जे बाक छल। भै या कोलकता चलल गे लाह।

आब हमरो दुनू भाइ केर आाँ गन फराक भ' गे ल अथछ। भै या जखन गाम अबै त
छथि हमरा बड़ आवे श करै त छथि, कखनो हम हुनका आाँ गन चलल जाइत
छी, कखनो ओ हमरा आाँ गन आकब जाइत छथि। खूब गप-सब होइत अथछ।
गामक चौक पर आ गाम मे सां गे सां ग बुलैत छी। एखनो भै याके गाम घर
साँ , समाज साँ बड़ लगाव रहै त छै तह।
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२.१३.चं देर श- पािरपर दूशर् उपजाबै त राग-


र्ािक अन्दिेर्क लक्ष्मण झा 'सागर'

चं द्रेश-सं पकष-9430640883
पािरपर दूशर् उपजाबै त राग-र्ािक अन्दिेर्क लक्ष्मण झा 'सागर'

लक्ष्मण झा 'सागर' थचर-पररथचत रचनाकार छथि। ओ कोनो पररचयक


मोहताज नकह छथि। ओ जे ललखै त छथि से जथम कऽ ललखै त छथि। फेसबुक
होअए वा कक पोिी। पत्र-पलत्रका सभमे कहनक रचना 1968 ई. साँ प्रकालशत
होइत अथछ। ओ थमथिला थमकहरसाँ अपन रचना प्रकालशत भे नाइ प्रारां भ
केलकन। ककवता, किा, सां स्मरण, भों ट-वाताग, कटप्पणी इत्याठद ओ ललखलकन।
युगक अनुकूलों समयकेँ दे खैत टटका-टटकी कवलभतन कवषयाठदपर कहनक
रचना आएल अथछ। ओ प्चितन-मनन कऽ सचे त ढां गे कागतपर रचनाकेँ उतारै त
छथि। जवलां त मुद्दापर कलम चलाएब कहनक ले खनीक कवशे षता कहल जाएत।
कहनक जीवन पारदशी अथछ। स्वच्छ अयनामे अां ककत होइत छकव जकााँ
झलकैत। मुदा रचनामे गथतमयता अथछ आ जीवनक स्पतदन कहनक
रचनाकारकेँ ऊजगस्स्वत करै त अथछ। जाँ कहनक रचनाकेँ पढ़ै त जाएब ताँ
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अनायासे कहनक व्यक्र्कतत्व ओ कृथतत्व सां बांधी कवषय-वस्तु सभ झलककये


उठत। ओ घकटत घटनाकेँ आधार बना कऽ लोकक सोझााँ प्रस्तुत करै त छथि।
सामातय लोकक अलभव्यक्र्कत कहनक रचनामे प्रस्फुकटत होइत अथछ। लोक
व्यवहारक भाषाकेँ उठा कऽ लोक माायमे जन-समिगन दे ब कहनक कवशे षता
छकन। ताँ इ जन सामातयक प्रथत कहनक लोक व्यवहारपरकतामे साकारात्मक
आ भावनात्मक रहल अथछ। कही तऽ योग्य कपताक प्रभाव योग्य पुत्रपर पड़बे
कएल अथछ। कहनक नाम लक्ष्मण झा थिककन। 'सागर' तऽ ओ ले खक-बां धु
लोककनक दे खा-दे खी वा कही तऽ श्रद्धेय साकहत्यकार जीवकाां तजीसाँ प्रेररत
भऽ रखलकन। भे ल ई जे थमथिला थमकहरमे कथतपय ले खक जनकेँ अपन नामक
सां ग उपाथध रखबाक चलन बे स भऽ आएल छल। ओहो अपन उपाथध रखबाक
हे तु लुसफुसे लाह। जीवकाां तजीक साफ कहब रहकन जे अहााँ ऊजगस्व
रचनाकार, अपन पकहचान बोध करे बाक ले ल एकटा स्वतां त्र उपाथध राखू।
ओ 1969 ई. मे रमानां द सागर"साँ प्रभाकवत भऽ कऽ अपन
उपाथध 'सागर' रखलकन। दोसर ईहो प्रमाजणक तकग छलकन जे एक गाममे एक
नामक आनो लोक रहै त छथि। ताँ इ लोक नै धोखाए एकह हे तु ओ लक्ष्मण
झा 'सागर' नाम रान्ख रचनारत भऽ गे लाह। ई नाम ले खनमे जगजजयार होइत
चर्चित भऽ गे ल अथछ।

कहनक गाम ठढ़कबथतया छकन जे घोघरडीहा प्रखां डमे


मधुबनी (कबहार) जजलाततगगत अथछ। एकह गाम चौहद्दी अथछ-उत्तर
साां गी, दजक्षण-कपरोजगढ़, पूब-थतलाठ, आ पन्िममे सुदइ। कहनक जतम मामा
गाम बे लाौं चा जे मधे पुर, मधुबनी अां तगगत अथछ ताकह
ठाम 1 अप्रैल 1953 ई. केँ भे ल छलकन। ओ अपन मामाक ओकहठाम रकह
कऽ बे लाौं चासाँ प्रािथमक लशक्षा- दीक्षा ग्रहण केलकन आ कपरोजगढ़
मायकवद्यालयसाँ होइत भोला उच्च कवद्यालय ड्योढ़साँ 1969 ई. मे मै कट्रक
उतीणग भे लाह। 1962 ई. जखन ओ पााँ चम वगग छात्र रहथि तही समयमे
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भारत-चीन युद्ध भे ल छल। मारवाड़ी समाजक धीया-पूता से हो कपरोजगढ़


मायकवद्यालयक छात्र छल। ओ सभ अपन फोटो न्खचबौलक। बालक लक्ष्मण
झा मोन से हो फोटो थघचएबाक ले ल ललचा गे ल। ओ अपन माएसाँ चारर आना
कौंचाक मााँ ग केलकन। कहनक माए गां गा दे वी अपन पथत तारकेश्वर झाकेँ पाइ
ले ल कहलन्खन। कहनक बाबूजीक स्पि उत्तर छलकन-"फोटो थघचएबाक एहन
सौख छै क तऽ एहन कूबत हालसल करए जे लोक अनायासे फोटो थघचबाक
ले ल उद्धत होअए। ताँ इ कहनका पकहने ककछु बनबाक छकन से बात सुकनते
लक्ष्मण झाक जीवनमे एकटा नव मोड़ एलकन जे ओ आब फोटो नकह थघचे ताह।
ओ ते हन बनताह जे आने लोक कहनक फोटो घीचत। कहनक जीवनमे घकटत ई
अकवस्मरणीय घटना आइयो हुनका मोन छकन आ अरबथध कऽ अपन फोटो
समातयतः थघचएबासाँ परहे ज रखै त छथि। ओ लकीरक फकीर नकह बनलाह
आ पठन-मननमे अपन ायान कोंकरत कऽ ले लकन। ओ अपन बाबू जीक कहल
बातकेँ गों ठ बान्तह ले लकन जे जीवन भररमे आठ-दस टा लसने मा दे खने होथि
तऽ सएह बहुत। 2017 ई. मे जखन अन्खल भारतीय थमथिला सां घ
द्वारा "बाबू साहे ब चौधरी सममान" दे ल गे लकन तऽ हुनका अपन बाबू जीक
कहल बात मोन पकड़ते आाँ न्ख नोरा गे लकन से बाबू जीक स्वाभवक चलते ।
जीवनमे केखनो कोनो एहन घटना भऽ जाइत छै क जे अकवस्मरणीय होइत
छै क। लोक चाकहयो कऽ नकह कबसरर सकैत अथछ। एक समयक कचोट कहनका
चोट की पहुाँ चेलककन जे यदा-कदा आइयो मनोमस्स्तष्कमे झां कृत भऽ जाइत
छकन। कहनका ताँ इ ककहयो ते ना भऽ कऽ अपन फोटो थघचएबाक ते हन सौख-
मनोरि नकह रहलकन एवां आइयो ओकह सभमे समय नकह गमबै त छथि। एक
तऽ नौकरीक व्यस्तता दोसर पठन-मनन, ले खनमे समय व्यतीत करबाक धुन
मािपर सवार छकन। ओ फेसबुक धड़ा-धड़ चलबै त छथि, मोबाइलक भरपूर
उपयोग करै त छथि मुदा हृदयक सां वेदनशीलता आ तरलता जे प्रवाकहत भऽ
रचनाक माायमे उभारै त छथि से सौख ओ अबस्से पोसने छथि। लक्ष्मण झा
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जखन भोला उच्चकवद्यालय, ड्योढ़क छात्र छलाह 1967 ई. मे


तखन 'वनभोज' शीषगकपर कनबां ध ललखबाक प्रथतयोकगता भे ल। आध घां टाक
समय छल। ओ सहषग भाग ले लकन। लोचन बाबू (महरै ल, मधुबनी) आ
पशुपथत बाबू (मााँ उबे हट, मनीगाछी) लशक्षक छलाह। लोचन बाबू लग
मूल्याकांन हे तु कॉपी जमा भे ल। कहनक कॉपी दे खबाक भार पशुपथत बाबूकेँ
भे टलकन। ओ गदगद भऽ 92 अां क दऽ कहनक कनबां धकेँ सवगप्रिम घोकषत
केलकन। बात ई भे लैक जे लोचन बाबू कहनक कॉपी एकह द्वारे पशुपथत बाबूकेँ
दे ने रहथिन जे ओ सत्य-सहज आ सुबोध भाषामे ललखने रहथि। गमै या बोली-
चालीक भरपूर प्रयोग केने रहथि। लोचन बाबू साकहम्त्यक भाषाकेँ महत्व दे थि
आ पशुपथत बाबू ठे ठ मै थिलीक पक्षपाती रहथि। जे ककछु गुरुक आशीवागद
कही तऽ कहनक प्रथतभाक लोहा माकन ओ नीक अां क दे ने छलथि।

कहनकामे सहयोगक भाव बे स प्रबल अथछ। से केते को स्तरपर। ओ ले खन


कायगमे नीकसाँ नीक ललखबाक हे तु प्रकालशत करबाक हे तु यदा-कदा नव
ले खक-ले न्खकाकेँ मागग प्रदशगन करै त छथि तऽ नौकरी ककनको नौकरी धरे बामे
से हो सहयोग करै त छथि। ओ जनै त छथि जे पे टक समस्या पकहने लोककेँ
कूटै त छै । ताँ इ कहनक सहयोग भाव ओहन साकहम्त्यक लोकक ले ल प्रबल भऽ
जाइत छकन। श्री नबोनारायण थमश्र एवां आजजत आजाद आठद तऽ उदाहरणे
बनल छथि जे ओ अपन ले खकनमे व्यर्कत केने छथि। तकहना अपन सहयोगी
छात्र लशव चां र झा 'लशव'केँ क्राां थतकारी ककवता पढ़बाक उकसौने की छलाह
जे सभाकक्षमे िपड़ीक गड़गड़ाहकट गूाँजज उठल।

ओ भावुक हृदयक लोक छथि ताँ इ भावनाक उथधयानमे उथधयाइत छथि। एकह
क्षण ओ जीवन यिािगक वास्तकवकतासाँ दूर चल जाइत छथि। कखनो कऽ
कवरोही उफान से हो जोर मारै त छकन। आवे श आ भावुकतामे ले ल गे ल कनणगय
कहनक जीवनक अां त कऽ दे त से हो ओ कबसरर जाइत छथि। ओ जाकन-बूजझ
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कऽ पािरपर दूलभ उपजाबऽ चाहै त छथि कारण 1969 ई. मै कट्रकक परीक्षा


समयमे कहनका मात्र एकल पै जामा पकहरबाक ले ल छलकन। तमोररया हाइ
स्कूल परीक्षाक कोंर रहकन। ओ दोसरो पै जामा चाहै त छलाह मुदा आर्ििक
कववशता जे दोसर पै जामा नकह भे कट सकलकन तऽ आत्मकनणगय ले लकन।
भागल-पड़ाएल कनछोहे बाते ओ ट्रेनमे कटबाक ले ल ओ दौगल जाइत छलाह।
बाट बीच कहनक सां गी अली हुसै नक बाप खट्टर कहनका हकासल-कपयासल
धड़फड़ाइते दे खलककन तऽ पूथछ बै सलकन-"कतऽ पड़ाएल जाइत छह?"

बाल-सुलभ छात्र जीवनक अवस्िा। ओ चोट्टकह बाजज उठलाह "कटै ले ल


ट्रेनमे जकर एबाक समय भऽ गे ल छै क" आ ओ पै जामाक बारे मे से हो
कहलन्खन। ई सुकनते खट्टर अवाक रकह गे ल आ कहनक डे न
धरै त कहलक- एही ले ल कटबह? चल हम दोसर दै त थछयौक। खट्टर दजी
रहए। ओ परबोथध कऽ अपन घर आकन कऽ दोसर पै जामा दे लककन तऽ कहनको
नव उमे रक भूत उतरलकन।

कहनक कपता V.L.W केर नौकरी छोकड़ कऽ सां युर्कत सोशललस्ट पाटीक
सकक्रय अलभकताग रहथि। ओ ने पालक जहलमे माननीय कपूगरी ठाकुर, धकनक
लाल मां डल, मधुललमये , रमानां द थतवारी, रामनारायण थतवारी आठदक सां ग
रहथि। स्वालभमानी कपताक स्वालभमानी पुत्र लक्ष्मण झा 'सागर' आइयो
इमानदारीक पिपर अग्रसाररत छथि। किनी-करनीमे हद धरर समानता छकन।
ओ ने नपनमे चां सगर छात्रमे पररगजणत होथि। मै कट्रकमे ओ पौं तीसम स्िान
पे लकन जखन कक कवद्यालयमे sent up exam मे प्रिम स्िान पे ने रहथि।
आइ.ए मे ठद्वतीय श्रे णी भे ल छलकन। तकर कारण जे ओ ट्यूशन ओकह
प्राायापकसाँ नकह पढ़लकन। प्रो. सत्यनारायण लसतहाजीक ट्यूशन केर धां धा
रहकन आ कवद्यािीकेँ नीक अां क ठदएबामे महारत हालसल छलकन।
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हम पूवगकह ककह चुकल छी जे कहनक आर्ििक स्स्िथत नीक नकह रहकन।


बे रोजगार कपता से आतदोलनी। राष्ट्रभक्र्कतक खाथतर अपन भकवष्यकेँ दे श-
प्रेमक पीड़ीपर चढ़ौलकन। जान-मालक परवाह नकह केकनहार। ई गौरव बोध
जइाँ रहलकन ताँ इ हुनके प्रसादात् ककछु बनबाक जोर मारै त रहलकन। मै कट्रकमे
ओ छात्रावासमे रहै त छलाह। तकर कारण छल जे छात्रावासक शुल्क आ
भोजनक समस्या कहनका छात्रवृथतक कारणे माफ कऽ दे ल गे ल रहकन।
कॉले ज जीवनमे से हो अपन छात्रवृथतक भरोसे पकढ़ सकलाह। 1973 ई. मे
रामकृष्ण महाकवद्यालय, मधुबनीसाँ बी.कॉम प्रथतष्ठा उतीणग कऽ कलकत्ता
गे लाह जे ओतऽ चाटगर एकाउां टों ट बनब। ओ 1 जनवरी 1974 केँ कलकत्ता
एलाह। समस्या नाम ललखे बाक रहकन। लसफारशी पत्र जीवकाां तक रहकन। ओ
बाबू साहबे चौधरीक नामे सहयोग करबाक हे तु पत्र दे ने रहथिन।
जीवकाां तजीक कृपापात्र एकह हे तुएाँ छलाह जे एक तऽ ओ मे धावी छात्र
रहथि, दोसर गामक पड़ोलसया आ ते सर ड्योढ़ अिागत जीवकाां तक गामक
हाइस्कूलक छात्र। सवाे परर इएह भाव मोनमे एलकन जे ओ साकहत्यकार
रहथि। स्िाकपत साकहत्यकार जीवकाां तजीक ई पत्र कहनक सां बल छलकन।
ओना ए.सी.दीपक (ने हरा)क "मातृवाणी" पलत्रकामे प्रकालशत होइत छलकन
ताकहमे कहनको आ बाबू साहे ब चौधरीक रचना प्रकालशत भे ल छलकन। कहनका
तऽ चौधरीजीक नाम सुनल छलकन मुदा भों ट-घााँ ट नकह। ओना ओ अपन
श्वसुरक डे रापर राजा बजारमे रहथि। कहनक कववाह जे बे लाौं चा गाममे भे ल
छलकन माने मामे गाममे । मामा सभ जमींदार रहथिन आ श्वसुर सभ दबां ग
रहथिन गामक। कववाह हे बाक कारण जे मामा सभ अपन स्वािग आ सुरक्षा
हे तु भाकगनक कववाह करौलकन जे सागरजी अकनच्छापूवगक कएल। दोसर, ओ
कववाहसाँ भागले रहथि। मुदा पढ़ाइक खचग वहन करबाक भार श्वसुर गछने
रहथिन। 10 माचग 1972केँ कहनक कववाह भे लकन। जे ककछु कहनक ससुर बाबू
साहे बकेँ थचतहै त रहथिन। चौधरीजी तते क लोकथप्रय रहथि जे कलकत्ताक
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मै थिल समाज कहनका तरहत्िीपर रखै त छलकन। कारण छल जे ओ दस-


उपकारी रहथि। दसगदाग लोककेँ नौकरी रखबौलकन। थमथिला-मै थिलीक
आतदोलनी रहथि आ समर्पित सां गठनकताग। कहनक ससुर जजला कनरीक्षक
रहथि से अां ग्रेज जमानाक। वएह हुनका चौधरीजीसाँ खे लात घोष
ले न, कलकत्तामे भों ट करबौलन्खन। जीवकाां तजीक पत्र छलकन- कहनका
मदथत करबकन तऽ से हमर मदथत होयत। एकटा बात ईहो ककह दे ब आवश्यक
अथछ जे सागरजीक पकहल मै थिली रचना 'कोयलाबाली' अथछ। 1969 मे
थमथिला थमकहर रचना 'बुकढ़या' प्रकालशत भे लकन। बहिदीमे ककवता 'चाय के
बाद' 1968क आयागवतगक रकववारीय अां कमे प्रकालशत भे लकन। जों कक
लक्ष्मण झा 'सागर' सचर साकहत्यकार रहथि ताँ इ चौधरीजीकेँ ई नाम सुनल-
बुझल छलकन। चौधरीजी कहनका ठाकुर एां ड कांपनीमे नाम ललखबा दे ने रहथिन
बााँ की खचग कहनक ससुर वहन करै त छलन्खन। कहनक ससुरक डे रा राजा
बाजारमे रहकन।

कहनका बाबू साहे ब चौधरीजीसाँ सां पकग की भे लकन जे चुमबकीय पदािगकेँ जे ना


कोनो चुमबक अपना ठदस आकर्षित कऽ लै त अथछ तकहना चौधरीजी कहनका
अपना ठदस आकर्षित कऽ ले लन्खन। फेर की छल, ओ थमथिला-मै थिलीमे
कनःस्वािग भावों लाकग गे लाह। थमथिला दशगनमे ओ अप्रैल 1974साँ सहयोग
करऽ लगलन्खन। 1975 ई. केर घटना थिक जे कहनक नाम सह-सां पादक
रूपमे चौधरीजी प्रकालशत करऽ चाहै त छलन्खन मुदा आरो दोसर नाम जे ना
शुकदे व ठाकुर, रामलोचन ठाकुरक पक्षमे छलाह। दूनू गोटे क बीच मत पड़ल।
सागरजीकेँ 44 आ ठाकुरजीकेँ 30 टा मत भे टलकन। बाबू साहे ब चौधरीकेँ
रामलोचन ठाकुरसाँ कनारर रहकन। ओना तऽ चौधरीजी कोनो खास पां िी नकह
छलाह मुदा ठाकुरजी वामपां िी रहथि से कवचार आ दृथि दूनूमे। जे
ककछु , सागरजी पढ़े बो करथि। सी.ए इां टर केर एकटा ग्रुप उतीणग भे लथि आ
ककछु ट्यूशन कऽ धनोपाजगन करथि। छात्रवृथतमे मात्र 60 टाका भे टकन।
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आर्ििक अभावकेँ दे खैत बाबू साहे ब चौधरी, हनुमान झा (Vice


president, Hindustan Development Corporation) मे
नौकरी धरा दे लन्खन। हनुमान झा गां गाद्वार गामक रहथिन। ओ नौकरी
पकड़लकन।

1983 साँ 1997 धरर ओ आसाममे से हो वएह नौकरी केलकन। ओकह


समयावथधमे उल्फा उग्रवादी चरमसीमापर छल। जाँ इ कक लक्ष्मण
झा 'सागर' ओकह कमपनीमे नीक पदपर छलाह, भव्य वक्र्कतत्व रहकन ताँ इ
उच्च ओहदाक व्यक्र्कत बूजझ उग्रवादी लोककन किन जे कांपनीसाँ बे सी धन
ठदयाउ नकह तऽ सपररवार काकट दे ब। कहनका धमकाओल-डे राओल गे लकन।
ओहना आसामक दुःस्स्िथत इएह जे उग्रवादी चरमकवतदुपर नृशांस काज करै त
नकह कहचकैत छल। सागरजीक सशां ककत पररवार। सां योगवश 2006 मे कहनक
कांपनी बां द भऽ गे ल मुदा कहनक कमगकनष्ठ आ इमानदार हे बाक गुणकेँ दे न्ख-
परे न्ख रामगोपाल रमगकड़या मारवाड़ी कहनका एही कमपनीक लसस्टर कांसनगमे
रखबा दे ल कलकत्तामे । ई नव कांपनी छल Neo Metaliks (रूपा
होजजयरी एकरे छै )। एकह कांपनीसाँ 2012 ई. मे से वाकनवृत होइतो आइ धरर
सागरजी सलाहकार रूपमे कायगरत छथि। ईहो कहब अथतश्योक्र्कत नकह हएत
जे ओ सी.ए केर पढ़ाइ-ललखाइसाँ बे सी बाबू साहे ब चौधरीक प्रश्रयमे पलत्रका
एवां अतय गथतकवथधमे कवशे ष समय दे बऽ लागल रहथि। स्वाभाकवक छै क जे
पठन-पाठनमे कमी बोध भे लकन आ समयाभाव कारणे सी.ए पूरा नकह कऽ
सकलथि। तों कक, जाकह ले ल जे पाटग सी.ए केर केलकन ततबे मे नीक
यश, प्रथतष्ठा आ ओहदा भे टलकन। कहनक मूाँह केखनो मललन नकह भे लकन आ
ने पछताइते रहलथि। थमथिला-मै थिलीक अखां ड जयोथत जे हृदयमे धधकैत
छलकन से आइयो छकन। कहनका सां तोष रहकन जे थमथिला-मै थिलीक ले ल ओ
ककछु कऽ रहलाह अथछ आ से करबे केलकन।
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रहरहााँ दे खल जाइत अथछ जे नीक पद आ नीक पाइ लोककेँ गौरवातध बना


दै त अथछ। ओहन लोक मदातध भऽ अपनोकेँ कबसरर जाइत अथछ।
मुदा, लक्ष्मण झा 'सागर'केँ ककहयो कोनो घमां ड नकह भे लकन। सरल हृदयक
लोक। ओना प्रशासकनक क्षमता अबस्से गुरू-गां भीर बनौने रहलकन। ओ जकहना
थमथिला-मै थिलीक ले ल अपन शोजणत सुखौलकन तकहना दक्ष भऽ कांपनीक
काज सुतारै त छथि। ओ बहुभाषी छथि। कहनका
बां गला, अां ग्रजी, बहिदी, सां स्कृतक से हो नीक ज्ञान छकन।

ओ कोनो आन भाषासाँ परहे ज नकह रखै त छथि मुदा मातृभाषा मै थिलीक


मूल्यपर कोनो समझौतावादी गप्प पलसतन नकह छकन। इएह अटू ट प्रेम कहनका
आन भाषाक प्रथत उदासीन बना दै त छकन। तों मै थिलीमे बाजब, पढ़ब-ललखब
आ उतनथतक बाट प्रशस्त करबामे अपनाकेँ झाों कक दे ने छथि। खास कऽ गमै या
ठे ठ शब्द आइयो कपयरगर छकन। ओ गाम-घरकेँ नकह कबसरल छथि। ओ अपन
रचनामे कथतपय हे राएल-भुथतआएल शब्दकेँ मोन पाकड़ कऽ प्रयोग करै त छथि
जाकहसाँ अिग-ावकनमे , छकव-छटा आरो सुरलभत भऽ अबै त छकन। ईहो कहबामे
हमरा परहे ज नकह अथछ जे मै थिलीमे जते क शब्दकोश अथछ से प्रायः कहतदी
शब्दकोशक उल्टा अथछ। ओना डा. रामदे व झा अबस्से ठे ठ मै थिलीक ककछु
शब्दकेँ सां जोगने छथि। आइयो जे मोनमे साकबकक शब्द उचरत तऽ से साइते
शब्दकोशमे भे टत। मै थिलीक अपन शब्दकोश हे बाक खगता अथछए। एकह
ले ल कहनके सन-सन आरो रचनाकारक ठे ठ मै थिली शब्दक ताक-हे र करऽ
पड़त। गाम-घरक साक्षर-कनरक्षरक मुाँहसाँ बहराइत ठे ठ शब्दकेँ लोढ़ए-बीछए
पड़त। ई श्रमसााय काज थिक। जा धरर सुच्चा मै थिलीक शब्दकोश नकह
होएत ता धरर बहुतो कबलाइत शब्दसाँ ले खक-पाठकगण अनलभज्ञ रहबे करत।
ईहो गछै त छी जे शहरुआ भाषा थमलश्रत सां स्कृथत थिक। शहरमे कवलभतन
भाषाक फोंट-फााँ ट भऽ गे लासाँ अपन मै थिली भाषा दुबगल भे ल अथछ। कहब जे
भाषामे गथतमयता हे बाक चाही, से अबस्से हे बाक चाही मुदा जखन अपन
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भाषामे नीकसाँ नीक शब्द अथछ से नकह छोड़बाक अथछ। अपन भाषाक
मूल्यपर आन भाषा वा शब्दकेँ अपनाएब गलत हएत। ले खक-साकहत्यकारक
दाथयत्व थिक जे ओ अपन भाषाक शब्दकेँ ताकक-हे रर कऽ आनथि तखने
रचनात्मक सौतदयग आ महत्ता बढ़त। कहनका आन भाषाक भाकषक आ
साां स्कृथतक गुलाम होएब से मै थिलीक मुद्दापर ककहयो पलसतन नकह छकन।
लोक भाषक प्रयोग हे बाक चाही। इएह कारण थिक जे कहनक व्यावहाररक
भाषा सामातयो जन बुझैत अथछ। कहनक भाषा अपन शब्द कवतयासक
फलस्वरूप अिगवाही आ जनबोधक अथछ ताँ इ सवगमातयो अथछ। जाँ आनो
भाषाक शब्द अथछ तऽ से हो रथच-पथच कऽ आएल अथछ। ताँ इ ओ मै थिली
भाषाकेँ उच्च स्िानपर प्रथतष्ठाकपत करै त अथछ, नकह कक दोयमपर। नव मूल्य
आ नव दृथिक स्िापनामे कहनक कनष्ठा आ प्रथतबद्धता झलकैत अथछ। ओ स्वयां
अपन पोिी आ पत्र-पलत्रकाठद कीनै त छथि आ दोसरोसाँ एहन अपे क्षा रखै त
छथि। ओ सां स्िा आ सां गठनाठदक आकाां क्षी छथि जे थमथिला-मै थिलीक कहतमे
होअए। ओ एहन कमगठ लोककेँ धन-बलसाँ सहायतो करै त छथि मुदा जखन
धनकेँ एों ठबाक वा अपव्यय हे बाक होइत अथछ, अपन घर भरबाक बात होइत
अथछ तऽ ओ फााँ ड़ बान्तह कऽ कलमसाँ ललकाररतो छथिन। प्रायः दे खल जाइत
अथछ जे गलत बात कहनका नकह सोहाइत छकन। ताँ इ लल्लो-चप्पो पलसतन नकह
पड़ै त छकन। ओ स्वािगमे आकांठ डू बल लोकसाँ घृणा करै त छथि। प्रायः दे खल
जाइत अथछ जे लोक थतकड़म बलों सममान आ पाइ केर उगाही करै त छथि।
चमचाकगरीमे एहन लोक जी-हजूरी करै त अथछ। जों कक ई सभ कहनका पलसतन
नकह छकन ताँ इ ओकह सभसाँ कतनी काकट अपने धुनमे मस्त रहै त छथि। एहन
कथतपय दुजगन लोकक आाँ न्खमे फुटललयो नकह सोहाइत छथि। सुच्चा
साकहत्य, साकहत्यकार एवां आतदोलनकारीक प्रथत कहनक हृदयमे शुद्ध प्रेम
अथछ तऽ नकलचीक प्रथत घृणा-भाव अपार। ओ जनै त छथि जे थमथिला-
मै थिलीक ले ल जे केओ काज करै त अथछ से ककछु ने न्खछु खे बे करत। पे टमे
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जुतना बान्तह कऽ काज नकह करत। मुदा सभटा भकोलस ले त अिागत धनदास
वा दासी बकन भोगवादी बनत तऽ एहन लोकसाँ ओ घृणा करै त छथि। खास
कऽ कहनक मोन आरो दुखी भऽ जाइत छकन जखन ओ दे खैत छथि आ
अनुभूथतक स्वरों ककह उठै त छथि-

"साकहम्त्यक ठीकेदार जहन जाों क भऽ जाइ छै

ताँ बड़ दुख होइ छै

छपायल पोिी जखन फाों क भऽ जाइ छै

ताँ बड़ दुख होइ छै

"बड़ दुख होइ छै " नामक ककवताां श (एकह गदहबे रमे )

कहनक एखन धरर चारर गोट पोिी प्रकालशत छकन- उचरर बै सू


कौआ (2010), एकह गदहबे रमे (2020) ई दूनू ककवता
सां ग्रह, कनसोह (2021, मै थिली किावाताग) आ चाररम छकन जे ना ओ
कहलकन (2021, साक्षात्कार सां ग्रह)। प्रकाशन पिपर प्रेसमे
छकन- थमथिलाम (कनबां ध सां ग्रह), अक्षत चानन (सां स्मरण), जखन जे
जे ना (कटप्पणी सां ग्रह), घुघरू मट्ठा श्याम (किा सां ग्रह) आ पत्राचार (पत्र
सां ग्रह) आठद। जे ओ ललखै त छथि से गद्य आ पद्य दूनू। कहनक ललखल बे लसए
गद्य अथछ आ से गद्य कहनकर रुथचगर छकन। पद्यमे ओ तुकाां त पलसतन करै त
छथि। ओ स्वयां कहै त छथि जे अरुथचमे हम अतुकाां त ललखै छी। हमरा जनै त
ओ बात-बातमे बखलोइया छोड़बै त, बातक बतलोलामे ते ना कऽ सामातयो
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बातकेँ रखै छथि ओ असामातय भऽ जाइत छै । ताँ इ ओ ककछु नकह ककहतो बहुत
बे सी ककह दै त छथि। ओ कवलशि ककव छथि जे सामाजजक कवसां गथतकेँ उठबै त
सामातयो भाषामे सपाट ढां गे आम जनक पीड़ा आ छटपटाहकटकेँ उधे लस कऽ
रान्ख दै त छथि।

खास कऽ सां घषग आ जजजीकवषा अबस्से प्रकट होइत अथछ। आर जे -से भखरै त
आपसी सां बांध, टू टैत पररवार, आ अपन सभ्यता-सां स्कृथतकेँ जकड़साँ उखड़बाक
बोध सां गकह सत्ता आ पूाँजीक आपसी गठजोड़ आठद उभरर कऽ कहनक
समकालीन रचनाक क्षमताकेँ आरो मारक बना दै त अथछ। ओ कुव्यवस्िाकेँ
थचरीचाों त करबाक उद्ये श्यों ललखै त छथि- हम काठी खड़रब, दीपलशखा
ले सबाक ले ल, अगरबत्तीक सुगांथध ले ल, आ मोमबत्ती जरे बाक ले ल, अपन
समस्त समानधमागक अधगशताब्दीपर (अपन अधगशताब्दीपर, उचरर बै सू
कौआ)। प्रथतरोधी साकहम्त्यक-साां स्कृथतक परां पराकेँ ओ आधुकनकतामे रान्ख
कऽ वै चाररकताक माायमे ओ ककवताक स्वर बुलांद करै त छथि। सहज भावों
ककवताक सपाटताकेँ ले बाक थिक। जाँ मात्र किनक रूपमे हएत तऽ ओ
ककवता ठीक नकह थिक। ओ बतकहीमे छोट-छोट बतकिनकेँ लऽ कऽ छोट-
छोट किा ललखै त छथि। एकहमे दै कनन्तदन जीवानाभूथतपरक घटना अबस्से
दे खल-भोगल यिािागनुभूथत परक अथछ। किाकारक ई कवशे षता जे ओ
समसामातयपरक घटनाकेँ जनानुभूथतक बना दै त छथि। जाँ इ जनसमूह अपन
जीवनक किा बुझैत अथछ ताँ इ जनसां वेदना मानवीय मोनकेँ छु बै त अतल
गहराइ धरर पहुाँ थच पबै त अथछ। कही तऽ पकहचान बनबै त अथछ सां गकह
पाठकीयतामे अपन उपस्स्िथतबोध करबै त अथछ। कहनका जखन जे मौका
भे टैत छकन तकरा अपन किासूत्र बना कऽ ताकह ढां गे प्रस्तुत करै त छथि जे
सामातय लोकक थचत्तमे बै लस जाइत अथछ। कहनक व्यग्रता तखन आरो बकढ़
जाइत छकन जखन "अपन भाषा आ सां स्कार तऽ अलोकपत भऽ रहल अथछ"
(कनसोह-59)। वस्तुतः ओ साकहत्यकेँ साधना बुझैत छथि, साधन नकह। ताँ इ
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कहनक कवचार बुझबाक योग्य थिक। ओ साक्षात्कार ले ल थमथिला-मै थिलीक


कवलभतन कवभूथत, कवद्वतजन, ले खकगण आ नव भकवष्यक नवीन डे ग
उठौकनहार सभसाँ कवचार लऽ ओकरा कागतपर उतारै त रहै छथि। नव
समाज, नव राष्ट्र आ खास कऽ थमथिला-मै थिलीक उत्िानमे सहायक हुअए।
कैक ठाम ओ कैकटा कटु सत्य से हो उभारै त छथि जे ओकह साक्षात्कतागक
आत्ममुकवमुग्धताकेँ से हो प्रदर्शित होइत अथछ। तात्पयग जे कहनक रचना बहुत
ककछु ककह दै त अथछ। जाँ इ ओ जनसरोकारसाँ सां बांध रखै त छथि ताँ इ आइयो
कहनक रचनाकार सकक्रय छकन। ओ तऽ स्वयां एहन राजने ता चाहै त छथि
जकनक एक स्वरमे सां पूणग थमथिलावासी फााँ ड़ बान्तह कऽ समरमे कूठद पड़ए।

ओ केकरो ककछु कबगाड़ै नकह छथि। मुदा ठााँ कह-पठााँ कह कटु सत्य बजबाक
कारणे अपन कथतपय दुश्मनकेँ पोलस ले ने छथि। भावुक हृदयक ओ लोक
कतबो कववे कशीलताक सां ग सां यममे रहऽ चाहै त छथि, रकहतो छथि तै यो
कहनकासाँ कथतपय जन नफा उठा कऽ पीठ पाछााँ अवहे ललत करै त छथि। मुदा
सागरजी अपन काजमे मग्न-मस्त रहै त छथि। ज्ञानीजनक आगााँ
धनबल, बााँ कहबल अिागत मुाँहगर-कनगरकेँ के पूछए? धन-कवभव आ वै भव
से हो फीका भऽ जाइत अथछ। ताँ इ सागरजी उफकनतो सागर सदृश शातत भऽ
जाइत छथि। कहनक मनमे रां चमात्रो ले श नकह रकह जाइत छकन आ दुश्मनोकेँ
गरा लगा ले बाक ले ल आतुर रहै त छथि। एकटा बात ईहो ककह दे ब आवश्यक
अथछ जे ओ सामाजजक लोक छथि। समाजक लोककेँ नीक जकााँ थचतहै त-
बुझैत छथि। समाजक, दे शक सीठदत-पीकड़त लोकक मानलसकताकेँ अपन
रचनामे उभारै त छथि। बात-बातमे दुख भे लापर जाँ ओ व्यथित होइत छथि तऽ
से स्वाभाकवके। कारण अपन बाबूजीक ककछु कहल-सुनल बातपर से हो गों ठ
बान्तह कऽ भाकग पड़एबाक हे तु कववश भे ल रहथि। ताँ इ की, हुनककह प्रेरणा
स्रोत पाकब ओ ककहयो अपन स्वालभमानकेँ बतहकी नकह धे लकन आ ने
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सत्यपिक बाट छोड़लकन। ओ जनकल्याणक भाव ले ने सां पूणग पररवे श आ


वातावरणकेँ गमगमाबऽ चाहै त छथि।

ओ अपनाकेँ साकहत्यकार मानिु वा कक नकह मुदा ओ सुच्चा रचनाकार छथि।


कोनो रचनाकारक रचना जखन अपन बुत्तापर प्रकालशत होइत छै तऽ
रचनाकारक पतर्कखा ऊाँच होइत अथछ। कही तऽ अपन पकहचान बनबै त अथछ।
रचनाकारक बीच समादृत लक्ष्मण झा 'सागर' अपन रचनात्मक क्षमतासाँ
उपस्स्िथत बोध करौने छथि। थमथिला-मै थिलीक एकह ावजवाहककेँ के नकह
समादृत करत? खास कऽ हुनक यश, कीर्ति, लोकथप्रयता, यिाशक्र्कत
तिाभाव बे स प्रबल आ असीम अथछ जखन कक हुनक सोझााँ हमर कलम आ
बुलद्ध ससीम अथछ। एकहना जये ष्ठ-श्रे ष्ठ पािे य बनथि से अलभलाषा बनल रकहते
अथछ। कहनक ककछु इच्छा एना छकन- थमथिला, रहए, मै थिली पढ़ए, कृकष-
प्रधान रहए, आ सवाे परर प्रािथमक लशक्षासाँ लऽ कऽ उच्च लशक्षा धरर मै थिली
हो।
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२.१४.कामे श्वर झा 'कमल'- श्री सागरजीसँ


पवहल र्ों ि, तकर बाद आइ धरर

कामे श्वर झा 'कमल', सं पकष-9434485762

श्री सागरजीसँ पवहल र्ों ि, तकर बाद आइ धरर

प्रत्ये क व्यक्र्कत के अपन व्यवस्स्ित जजनगी जीबाक ले ल एकटा कनन्ित उद्ये श्य
होइत छै क। एकर प्रेरणा ओकरा अपन घर-पररवारक बात-कवचार, गाम-
समाजक पररवे श, आचार-कवचार आ सां स्कारसाँ स्वतः भे कट जाइत छै क।
नीक-बे जाएसाँ प्रेररत कते को लोक बगुलाक अनुशरण कऽ लै त अथछ। कपटी
बकन नदी कात घात लगा कऽ बै लस जल-जीवकेँ आजीवन धोखा दऽ अपन
काज सुतारर लै त अथछ। इएह ओकर जजनगीक ाये य बकन जाइत छै । अपन
माकट-पाकन रीथत-रे वाज, अपन मातृभाषासाँ ओकरा कोनो सरोकार नकह रहै त
छै क। ओ आजीवन अवसरवादी बकन अपन स्वािगलसलद्ध टासाँ मतलब रखै त
अथछ। दोसर ठदस कते को लोककेँ अपन खानदानक एहनो सां स्कार भे टैत छै क

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