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शहर इंस्पायरिंग: वास्तविकता की जमीन पर खड़े भारत वेस्ट इंडी


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भास्कर रहेंगे तो ही सपनों की नींव मजबूत हो
टॉसः वेस्ट इंडीज, गेंदबाजी का
खास
पाएगी - क्रिस्टोफर नोलन फै सला
DB
ओरिजिनल 3 दिन पहले

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बिजनेस क्रिस्टोफर नोलन अपनी नई फिल्म ‘ओपनहाइमर’ के


लिए चर्चा में हैं। जानिए उनके जीवन से जुड़ी वो बातें
राशिफल
जो आपको आगे बढ़ने में मदद करेंगी...

करिअर
मैंने इंग्लिश साहित्य की पढ़ाई की है। मैं अच्छा स्टूडेंट नहीं
टेक - था। लेकिन कॉलेज में मैंने एक चीज जरूर सीखी थी, वो
ऑटो थी कॉलेज फिल्म सोसायटी के लिए फिल्म बनाना। मैं
जीवन सोचता था कि लेखकों ने कितनी आजादी के साथ सदियों
मंत्र तक लिखा है, उस आजादी का फिल्मकारों को भी आनंद
स्पोर्ट्स लेना चाहिए। फिल्मों के इतिहास पर जब मैंने निगाह डाली
तो पाया कि किसी ने उस आजादी की तरफ ध्यान नहीं
यूटिलिटी दिया। Advertise with Us | DB Reporter |
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कॉलेज के दिनों में मैंने दो फिल्में बनाईं। पहली फीचर
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|
फिल्म ‘फॉलोइंग’ तक पहुंचने में मुझे दस साल लगे।
साइंस
फे क न्यूज 1998 में रिलीज हुई इस फिल्म को महज 3000 पाउंड में Contact Us | RSS |

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एक्सपोज़ बनाया था। एक साल तक के वल वीकें ड पर शूट करके इसे
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ओपिनियन
पूरा किया था। इस फिल्म ने खूब तारीफ पाई और कई स्टोरीज
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अवॉर्ड जीते। इसी की बदौलत मुझे 2000 में रिलीज हुई
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मधुरिमा ‘मेमेंटो’ मिली। इसका बजट पांच मिलियन डॉलर था और
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यह उस साल की बेस्ट फिल्मों में शामिल थी। MoneyBhaskar.com

मैगजीन मुझे फिल्मों पर पूरा यकीन रहा। आप जो भी काम करें, HomeOnline.com

उस पर यकीन होना जरूरी है। मुझे काफी बाद में समझ BhaskarAd.com
राजस्थान
आया कि फिजिक्स, साइंस और ब्रह्मांड में मेरी रुचि थी, Copyright © 2023-24 DB Corp ltd., All
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जो साहित्य के साथ मिली और इस तरह की फिल्में मैं
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बनाने लगा। जब छोटा था तो ‘स्टार वॉर्स’ देखी थी, उसका of Ethics.

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मुझ पर असर था। मैंने पटकथा लिखने में अनुशासन का
हाथ थामा। अनुशासन चीजों को आसान बनाता है, गति
देता है। मैं जब पटकथा लिखता हूं, तो इतना अनुशासित
होता हूं कि कभी एक्टर के बारे में नहीं सोचता। आप किसी
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एक्टर के बारे में सोचकर लिखेंगे तो वही ख्याल आएंगे जो

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वो कर चुके हैं। शुद्ध किरदार रचिए और फिर उसके लायक
कलाकार ढूंढिए। पटकथा से बेईमानी फिल्म के भविष्य के
साथ खेलने जैसा है। पटकथा के कारण ही हम
‘ओपनहाइमर’ को मात्र 57 दिनों में शूट कर पाए। मैं
कोशिश करता हूं अपने विचार फिल्मों के जरिए दर्शकों की
ओर न उछालूं। मैं कोई डॉक्यूमेंट्री या एडवोके सी नहीं बना
रहा हूं। फिल्में तब काम नहीं करती हैं, जब वो लोगों को
यह बताती हैं कि उन्हें क्या सोचना चाहिए... ऐसा करने से
लोग नैसर्गिक रूप से आपके विरोध में आ जाते हैं।
अपनी सच्चाई के पीछे जाइए...
लोग अक्सर अपनी स्पीच में कहते हैं कि सपनों के पीछे
जाइए। लेकिन मैं ऐसा नहीं कहता हूं क्योंकि मैं इसे सच
नहीं मानता। मैं चाहूंगा कि आप सपनों के पीछे नहीं जाएं,
अपनी सच्चाई के पीछे जाएं। मैं आपसे यह नहीं कह रहा हूं
कि सपनों की कीमत पर सच्चाई के पीछे जाइए। मैं चाहता
हूं कि आप सच्चाई को समझें और इसे सपनों की नींव
बनाएं।
हमेशा कोशिश हो ऊपर उठने की...
किसी भी तरह का काम करें। कोशिश हमेशा यह हो कि
आपका काम पिछले से बेहतर हो। अगर बीते दिनों आपने
के वल पढ़ाई की है तो कोशिश होना चाहिए कि इस पढ़ाई
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का उपयोग काम में करें। आज के दौर में आप हर काम स्टोरीज पेपर
कर सकते हैं। रास्ते तमाम हैं, आप अपनी पसंद का चुनिए।
उस पर जब बढ़ें, तो के वल खुद को बेहतर करते चलें।
(विभिन्न मीडिया इंटरव्यूज में फिल्मकार क्रिस्टोफर नोलन)

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