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Hindi News / Db original / West Bengal Famine 1943 Story
Explained; Causes, History, Tragedy And Facts

अंग्रेजों ने भूखे मारे 30 लाख


भारतीय: कु त्ते-गिद्ध खा रहे थे लाशें; चर्चिल
के फै सले से पड़े बंगाल अकाल की कहानी
19 घंटे पहले
लेखक: अनुराग आनंद

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साल 1943, पश्चिम बंगाल के पश्गुरा थाना का शाहपुरा
पोटा गांव। एक बुनकर अपने परिवार को दो वक्त की रोटी
तक मुहैया नहीं करा पा रहा था। भूख उसके सिर पर ऐसे
सवार हो गई कि वो पागलों की तरह भटकने लगा।

एक दिन उसकी लाश बंगाल की कांसाई नदी में मिली।


उसकी पत्नी जब कई दिनों तक अपने 2 बेटों का पेट न
भर सकी तो उसने अपने छोटे बेटे को भी कांसाई नदी में
बहा दिया।

पूर्वी बंगाल के 30 लाख लोग इसी तरह तड़प-तड़प कर


भूख से मरने के लिए मजबूर हो गए। खेतों में लाशें पड़ी
थीं। नदियों में मरे हुए लोगों की लाशें तैर रही थीं। कु त्ते और
गिद्ध शवों को नोंच-नोंच कर खा रहे थे।

ऐसा माना जाता है कि भारत में ये सब कु छ उस समय के


ब्रिटिश पीएम विंस्टन चर्चिल के एक गलत फै सले की वजह
से हुआ।

अंग्रेजोंहोम
की 'डिनायल पॉलिसी’
वीडियोसे बंगाल में हुईसर्च
भुखमरी वेब ई-
की शुरुआत स्टोरीज पेपर

दिसंबर 1941 में जापानी सेना ने ब्रिटिश उपनिवेश


सिंगापुर और बर्मा (म्यांमार) पर कब्जे के लिए हमला
किया। अगले 5 महीने तक चली जंग के बाद मई 1942 में
जापानी सेना ने दोनों ही जगहों को जीत लिया। इसके बाद
जापान की सेना भारत की ओर बढ़ी।

जल्द ही अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर भी जापानी


सैनिकों ने कब्जा कर लिया। यह माना जाने लगा कि
जापान अब बंगाल पर हमला कर देगा। दूसरे विश्वयुद्ध के
समय कलकत्ता (कोलकाता) अंग्रेजों के वॉर प्लान का
अहम सेंटर हुआ करता था। इसी वजह से ब्रिटिश सेना को
जापानी नौसेना के हमले की उम्मीद थी।

ऐसे में ब्रिटिश सरकार ने बंगाल के चटगांव और मिदनापुर

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जैसे तटीय इलाकों में 'डिनायल पॉलिसी' लागू कर दी।
ऐसा माना जाता है कि अंग्रेजों की इसी पॉलिसी की वजह
से बंगाल में भुखमरी की शुरुआत हुई थी।

'डिनायल पॉलिसी' के तहत अंग्रेज सैनिक इस इलाके के गांवों में जाकर


लोगों के घरों से अतिरिक्त चावल और नाव जब्त करने लगे। (स्के चः मंसूर
नकवी)

इस पॉलिसी के पीछे अंग्रेजों की सोच थी कि जापानी


नौसैनिक अगर यहां पहुंचते हैं तो उन्हें खाने के लिए कु छ
भी नहीं मिल पाए। बंगाल के उस समय के सीएम फजलुल
हक ने अंग्रेज सरकार की इस पॉलिसी की आलोचना की
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और 'सबके लिए दाल भात' का नारा दिया। स्टोरीज पेपर
दूसरी तरफ ब्रिटेन के हजारों-हजार सैनिक कलकत्ता पहुंच
रहे थे। उनके खाने-पीने के लिए बड़ी मात्रा में अनाज की
जरूरत थी। अंग्रेज सैनिकों को खाने की किल्लत न हो,
इसके लिए अंग्रेज सरकार ने ऐसी नीति तैयार की, जिससे
अनाजों की आपूर्ति सैनिक कैं पों और शहरों की ओर हो
गई।

इसकी वजह से बंगाल के गांवों में अनाज की कमी पड़


गई। इस दौरान ब्रिटिश सरकार ने के वल उन लोगों तक
अनाज पहुंचने दिया, जो युद्ध लड़ने के लिहाज से
महत्वपूर्ण थे। गांवों में भूख से मरने वालों की संख्या तेजी
से बढ़ने लगी।

सरकारी गोदामों में अनाज की कमी न हो, इसके लिए

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पुलिस लोगों के घरों से चावल जब्त कर ले जाने लगी। इस
समय चावल का दाम लगभग आठ और दस गुना तक बढ
गया। गांवों के बाजारों में चावल पूरी तरह से खत्म हो गए।

किसानों से जो चावल सरकार और पुलिस नहीं जब्त कर


पाई, उसे कारोबारी और कालाबाजारी करने वाले व्यापारी
ऊं चे दामों में खरीद ले गए।

इस तरह बड़ी संख्या में लोगों को बगैर कोई खोज-खबर


लगे मरने के लिए छोड़ दिया गया था। परिणाम ये हुआ कि
कलकत्ता की सड़कों, पूर्वी बंगाल के गांवों और खेतों में
इंसानी लाशें दिखाई देने लगीं।

अंग्रेजी सेना के अधिकारी और फोटोग्राफर विलोबी वालेस हूपर ने बंगाल


अकाल के समय ये तस्वीर अपने कै मरे में कै द की थी। (Source:
Wellcome Library Image Catalogue)

उस समय के हालात इतने बदतर थे कि इतिहासकार


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माइक डेविस ने अपनी किताब 'लेट विक्टोरियन स्टोरीज पेपर
होलोकॉस्ट' में बंगाल में भूख से मरने वाले लोगों की तुलना
नाजी शिविरों और हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु
बम से मरने वाले लोगों से की है।

उन्होंने अपनी किताब में लिखा था कि बंगाल में


औपनिवेशिक काल के दौरान भूख से मर रहे लोगों की
हालत करीब-करीब 18,000 फु ट की ऊं चाई से हिरोशिमा
और नागासाकी में गिराए गए परमाणु बमों से मरने वाले
आम लोगों जैसी ही थी।

अनाज की कमी से नहीं, सरकार के फै सलों से मर रहे थे


बंगाल के लोग
'पॉवर्टी एंड फे मिंस' किताब के लेखक और नोबेल पुरस्कार
विजेता अमर्त्य सेन के मुताबिक 1943 में जब बंगाल में

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भूख से लोग सड़कों पर मर रहे थे, तब हर इंसान को
खिलाने के लिए सरकारी गोदामों में चावल तो काफी था,
लेकिन बहुत कम लोगों के पास इस चावल को खरीदने का
पैसा था।

16 अक्टूबर 1942 में आए चक्रवात की वजह से


मिदनापुर और इसके आसपास का इलाका पूरी तरह से
तबाह हो गया था। समुद्र के किनारे करीब 20 फु ट उंची
लहरें उठ रही थीं। बंगाल में 225 किलोमीटर प्रति घंटा की
रफ्तार से हवा चल रही थी।

इस तूफान की वजह से बंगाल में करीब 40 हजार लोगों


की मौत हुई। तूफान से किसी तरह बचे लोग अपने घर
छोड़ हावड़ा और कलकत्ता जैसे शहरों में जाने के लिए
मजबूर हो गए। चक्रवात की वजह से पश्चिम मेदिनीपुर और
आस-पास के इलाके में फसलों की पैदावार अच्छी नहीं हो
पाई, लेकिन इसके बावजूद बंगाल के दूसरे हिस्सों में
1941 की तुलना में इस साल चावल की अच्छी पैदावार
हुई थी।
जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स ने भी अपने रिसर्च पेपर में
बताया था कि 1943 में बंगाल का अकाल भारतीय
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उपमहाद्वीप में एक मात्र ऐसा अकाल था, जो सूखे की स्टोरीज पेपर
वजह से या फसलों के नष्ट होने की वजह से नहीं था।

यह अकाल मानव निर्मित था और अंग्रेज सरकार की गलत


नीतियों की देन था। इस साल हाल के सालों की तुलना में
बंगाल की मिट्टी में नमी औसत से ज्यादा थी। इसका
मतलब ये हुआ कि मिट्टी अनाज की पैदावार करने में सक्षम
थी।

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1943 में खेत में भूख से मरने वाले एक इंसान की लाश, जिसे गिद्धों और
सियारों ने खा लिया था। (Source: OLD INDIAN PHOTOS)

चर्चिल का वो एक फै सला, जिससे बंगाल में लोग भूखों


मरने लगे

मधुश्री मुखर्जी अपनी किताब 'चर्चिल्स सीक्रे ट वॉर' के


मुताबिक, 27 जुलाई 1943 को आर्चीबाल्ड वेवेल ने अपनी
डायरी में लिखा था कि-

‘बंगाल के अकाल को ब्रिटेन के पीएम विंस्टन चर्चिल बड़ा


मुद्दा नहीं मानते बल्कि इसे लोकल इश्यू मानते हैं।’

4 अगस्त को ब्रिटिश पीएम चर्चिल के नेतृत्व में वॉर


कै बिनेट की बैठक हुई। इस बैठक में बंगाल में भूख से मर
रहे लोगों के लिए अनाज भेजे जाने का मुद्दा उठा।
अधिकारियों ने तत्काल 5 लाख टन गेहूं भारत भेजने की
सिफारिश की।

बैठक में चर्चिल ने यह कहते हुए भारत में अनाज भेजने से


मना कर दिया था कि-
‘खरगोश की तरह बच्चा पैदा करने वाले भारतीय लोग इस
अकाल के लिए खुद जिम्मेदार हैं।’
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वहीं, इसी बैठक में चर्चिल ने यूरोप के बाकी हिस्सों में स्टोरीज पेपर
अनाज भेजने के आदेश दिए थे। ताकि जंग के दौरान
अंग्रेज सैनिकों के लिए खाने की कमी न हो। भारत के
फील्ड मार्शल रहे आर्चीबाल्ड वेवेल ने बाद में अपनी डायरी
में लिखा था कि बंगाल का अकाल औपनिवेशिक काल के
दौरान सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक था। इससे ब्रिटिश
सरकार की इमेज को जो नुकसान हुआ, उसकी भरपाई
कभी नहीं की जा सकी।

अमेरिका और कनाडा ने मदद करनी चाही तो उसे भी


चर्चिल ने ठुकराया

नेशनल मेडिसिन लाइब्रेरी वेबसाइट ने अपनी एक रिपोर्ट में


दावा किया है कि अगस्त 1943 में कलकत्ता के मेयर सैयद
बदरुद्दुजा ने अमेरिका राष्ट्रपति फ्रैं कलिन डी रूजवेल्ट को

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पत्र लिखकर जल्द से जल्द अनाज भेजने की अपील की
थी।

ऐसा माना जाता है कि भारत को इमरजेंसी फू ड सप्लाई


करने के अमेरिकी सरकार के फै सले को विंस्टन चर्चिल ने
ठुकरा दिया था। इतना ही नहीं, कनाडा ने जब 1 लाख टन
गेहूं मदद के तौर पर भारत भेजना चाहा तो इस पर भी
ब्रिटेन की एक कमेटी ने रोक लगा दी।

ब्रिटिश सरकार से मदद नहीं मिलने पर जब भारतीय


विधानसभा के लोगों ने संयुक्त राष्ट्र राहत और पुनर्वास
विभाग से खाद्य सहायता मांगने की कोशिश की तो चर्चिल
सरकार ने उन्हें इस बात की इजाजत नहीं दी थी।
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ये तस्वीर 1943 की है, जिसमें अकाल के दौरान बच्चे अंग्रेजों के लिए


अनाज ले जा रही ट्रेन में लदी बोरियों में तारों के जरिए छेद करके अनाज
जमा करने की कोशिश करते दिख रहे हैं।

दोस्त के बहकावे में आकर चर्चिल ने भारतीय लोगों को


भूख से मरने दिया

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विंस्टन चर्चिल ज्यादातर फै सले अपने दोस्त फ्रे डरिक
लिंडमैन से सलाह करने के बाद लेते थे। फ्रे डरिक पीएम
चर्चिल के इतने ज्यादा करीब थे कि उन्होंने उसे वॉर
कै बिनेट का हिस्सा बनाया था।

इतना ही नहीं, फ्रे डरिक ने अलग-अलग मुद्दों पर सलाह देते


हुए 2000 से ज्यादा मेमो चर्चिल को लिखे थे। इनमें से एक
भारत में भूख से मर रहे लोगों के लिए अनाज नहीं भेजने
को लेकर भी था।

चर्चिल ने भारत के सरकारी गोदामों में जमा अतिरिक्त


अनाज को भी श्रीलंका में तैनात अंग्रेज सैनिकों के लिए
भेजने का आदेश दिया था। जब ऑस्ट्रेलिया से चलकर गेहूं
से भरे जहाज भारतीय बंदरगाहों पर पहुंचे तो अंग्रेज
अधिकारियों ने इस जहाज को यहां से सीधे मध्य-पूर्व की
तरफ भेज दिया।

अकाल को छिपाने के लिए अंग्रेजों ने सेंसरशिप का सहारा


लिया
1943 में ब्रिटिश पीएम चर्चिल के बयानों और नीतियों से
ऐसा लग रहा था कि उन्हें बंगाल में भूख से मर रहे लोगों
की चिंता नहीं थी। वह दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान सिर्फ और
सिर्फ भारतीय रिसोर्स का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना
चाहते थे। इसी वजह से उन्होंने बंगाल में मर रहे लाखों
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लोगों की खबर को दबाने के लिए सेंसरशिप और प्रोपेगैंडा स्टोरीज पेपर
का सहारा लिया।

पीएम चर्चिल नहीं चाहते थे कि भारत में भूख से मर रहे


लोगों की खबर उनके देश के लोगों तक पहुंचे। इसी वजह
से उनकी सरकार ने इस अकाल के लिए जिम्मेदार भारत
की जमींदारी प्रथा और मानसून को बताना शुरू कर दिया।

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ये तस्वीर, 1943 में द स्टेट्समैन अखबार में छपी खबरों की है। अकाल से
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जुड़ी खबरों पर सेंसर के बावजूद अखबार के ब्रिटिश संपादक इयान स्टीफें स VS
ने कलकत्ता के फु टपाथों पर बिखरी पड़ी लाशों की ये तस्वीर छापी थी।
राज्य- लाइव
(Source: @janammukharjee)
भारत वेस्ट इंडी
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मार्च 1943 से अक्टूबर 1943 तक किसी को भी अकाल 165-9 (20.0) 153-2 (
भास्कर
खास पर रिपोर्ट करने की अनुमति नहीं थी, लेकिन स्टेट्समैन वेस्ट इंडीज को 21 गेंदों में 3.71
प्रति ओवर की औसत से 13 रन
DB अखबार के संपादक इयान स्टीफें स ने कलकत्ता की गलियों
चाहिए
ओरिजिनल और सड़कों पर पड़ी लाशों की तस्वीरें छापकर अकाल की
डरावनी तस्वीरों को दिखाने की कोशिश की। इसके करीब
बॉलीवुड
छह महीने बाद ब्रिटिश संसद ने ये स्वीकार किया कि बंगाल
विनाशकारी अकाल की चपेट में है। वीडियो और देखें
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आजादी का मोल' सीरीज के तीसरे पार्ट में 14 अगस्त
वुमन यानी सोमवार को जानिए...

पटेल न मनाते तो गेटवे ऑफ इंडिया उड़ा देते: उस नौसेना


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