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Voting Behaviour
Voting Behaviour
org © 2023 IJCRT | Volume 11, Issue 3 March 2023 | ISSN: 2320-2882
साराोंश:
चुनाि लोकिां तिक शासन प्रणाली की आत्मा होिी है । मिदािा राष्ट्रीय एिं क्षेिीय मुद्ों सतहि अन्य कारकों से
संचातलि होकर समय-समय पर सरकार का तनिाा चन करिे हैं । मिदान व्यिहार चुनािी व्यिहार का एक रूप
कैसे और क्ों तलए गए। सामान्यिः भारि में , मिदान करिे समय मिदािा व्यक्ति की कायाकुशलिा,
नैतिकिा, पार्टी तसद्ां ि, चररि अतद को महत्त्व दे ने की िजाय जाति, धमा, क्षेि और धन को महत्त्व दे िे हैं ।
पररचय:-
मिदान व्यिहार प्रत्येक दे श की राजनीति में महत्वपूणा भूतमका तनभािा है । मिदािाओं का मिदान व्यिहार
तकसी दे श की राजनीतिक दशा ि तदशा िय करिा है । मिदान व्यिहार तितभन्न कारकों पर तनभार करिा है ,
जो समय, स्थान ि पररक्तस्थतियों के अनुसार िदलिा रहिा है । मिदान व्यिहार को लेकर तितभन्न तिद्वानों ने
अलग-अलग मि व्यि तकए हैं । भारि में सािाभौतमक ियस्क मिातधकार की अिधारणा को अपनाया गया
है । इसका अथा है तक भारि के नागररकों को मिदान करने के तलए तकसी तिशेष योग्यिा की आिश्यकिा
नहीं होगी, िक्ति एक तनतिि आयु पूणा कर लेने के िाद उन्हें मिदान करने के तलए पाि माना जाएगा।
पहले भारि में मिदान करने की न्यूनिम आयु 21 िषा तनधाा ररि की गई थी, लेतकन 61 िें संतिधान संशोधन
अतधतनयम के माध्यम से मिदान करने की न्यूनिम आयु 21 िषा से घर्टाकर 18 िषा कर दी गई है । यानी
अि 18 िषा की आयु पूरी कर लेने िाला प्रत्येक भारिीय नागररक मिदान करने के तलए पाि होिा है ।
मिदान व्यिहार का सामान्य अथा मिदािाओं की उस मनः क्तस्थति से होिा है , तजससे प्रभातिि होकर कोई
मिदािा मिदान करिा है । यानी मिदान व्यिहार इस िाि को इं तगि करिा है तक लोगों ने क्ा सोचकर
मिदान तकया है । मिदािाओं का मिदान व्यिहार सािाजतनक चुनािों के पररणाम में महत्वपूणा भूतमका तनभािा
– “मिदान व्यिहार मिदािाओं का ऐसा व्यिहार होिा है , जो उनकी पसंद, िरीयिाओं, तिकल्ों,
तिचारधाराओं, तचंिाओं, समझौिों इत्यातद को स्पष्ट् रूप से प्रतितिंतिि करिा है । ये कारक समाज ि राष्ट्र के
तितभन्न मुद्ों से संिंतधि होिे हैं ।” दू सरे शब्ों में , मिदान व्यिहार एक ऐसा अध्ययन क्षेि है , तजसके िहि
इस िाि का अध्ययन तकया जािा है तक सािा जतनक चुनाि में लोग तकस प्रकार मिदान करिे हैं । यानी
मिदान के समय व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा मिदान के माध्यम से अतभव्यि तकया जाने िाला
भारिीय लोकिं ि के प्रमुख पहलू के रूप में जनिा को सािाभौतमक ियस्क मिातधकार तदया गया है । जनिा
ने अपने मिातधकार में तकस दृतष्ट्कोण का प्रयोग तकया है यह एक महत्वपूणा िैज्ञातनक पहलू है जो तक
भारिीय लोकिं ि को आम चुनाि के माध्यम से एिं राजनीतिक दलों की प्रतििद्िा एिं तनष्ठा िोध के द्वारा
यह प्रतिपातदि करने का प्रयास करिा है तक भारिीय जनिा की लोकिंि के प्रति आस्था, रुतच क्ा है । िह
कहां िक जागरूक है । इन सभी िािों को मिदान व्यिहार से जाना जािा है । मिदान व्यिहार का अथा है
तक मिदािा अपने मिातधकार का प्रयोग करने में तकन-तकन िािों से प्रभातिि होिा है मिातधकार करने में
कौन से कारक व्यक्ति को प्रेररि करिे हैं और कौन से कारक हिोत्सातहि करिे हैं और कौन से कारक
व्यक्ति को एक तिशेष उम्मीदिार या दल तिशेष के पक्ष में मि दे ने के तलए प्रेररि करिे हैं ।
मिदान व्यिहार का अध्ययन िीसिी ं सदी की ही प्रतिया है सिाप्रथम फ्ां स में सन 1913 में मिदान व्यिहार
का अध्ययन तकया गया। इसके िाद अमेररका में दो तिश्व युद्ों के िीच के काल में और तिर्टे न में महायुद्
के िाद मिदान व्यिहार का अध्ययन तकया गया। भारि में तद्विीय आम चुनाि के िाद इस प्रकार के
अध्ययनों को अपनाया गया है और अभी हाल के िषों में इस तिषय पर प्रचुर सातहत्य प्रकातशि हुए हैं जो
अनुभातिक एिं िस्तुतनष्ठ सिेक्षणों पर आधाररि है ।
भारि में चुनािी सिेक्षण की शुरुआि कोई हाल-तिलहाल की घर्टना नहीं है । भारिीय मिदािाओं के मि
और रुझानों को मापने के तलए संस्थात्मक स्तर पर तकये जाने िाले जनमि सिेक्षण की पहली शु रुआि 1950
के दशक में ही शुरू हो चुकी थी। डॉ. एररक डा कोस्टा ने अमेररकी सोंस्था अमेररकन इों स्टीट्यूट ऑफ
पब्लिक ओवपवनयन की िजा पर 1950 के दशक के प्रारम्भ में ही इों वियन इों स्टीट्यूट ऑफ़ पब्लिक
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ओवपवनयन (आई.आई.पी.ओ) की स्थापना की थी। उन्हें भारि में चुनाि का अध्ययन करने िालों में
अगुआ होने का श्रेय तदया जािा है िथा भारि में जनमि सिेक्षण का तपिा कहा जािा है । िे पेशे से एक
अथाशास्त्री थे तजनकी प्राथतमक रुतच उपभोिा से संिंतधि अध्ययनों में थी। लेतकन उन्होंने भारि में आतथाक
और राजनीतिक मुद्ों पर जनमि सिेक्षण भी प्रारम्भ तकया। आई.आई.पी.ओ. ने तदल्ली, पतिम िंगाल और
केरल में कुछ राजनीतिक अध्ययन तकये थे। इन अध्ययनों के निीजे उस संस्था के प्रथम जनाल मंथली पक्तिक
ओतपतनयन स्टडीि (एम. पी.ओ.एस.) में 1995 में प्रकातशि हुए थे। इस प्रकार भारि में चुनािी सिेक्षण
कराने का मागा प्रशस्त हुआ। आई.आई.पी. ओ. भारि का पहला सं गठन था तजसने चुनािी सिेक्षण तकया
था। 1957 में दू सरे लोकसभा चुनाि के पूिा अक्तखल भारिीय स्तर पर पहला जनमि सिेक्षण कराया गया।
इस जनमि सिेक्षण के आधार पर पहली चुनािी भतिष्यिाणी की गयी जो एकदम सर्टीक सातिि हुई। इस
सिे ने भारिीयों के मिदान व्यिहार पर केंतिि तकया था और यह तदखाने का प्रयत्न तकया था तक मिदािाओं
द्वारा मिदान करने के तनिय में तकस प्रकार उनकी आय, धमा और व्यािसातयक पृष्ठभूतम के आधार पर
आई.आई.पी.ओ. द्वारा कराये गये चुनािी सिेक्षण का मुख्य फोकस इस िाि पर था तक मिदािा मिदान
करने का तनिय तकस प्रकार करिे हैं और उनके िोर्ट दे ने के तनणाय को जाति, समुदाय, दे श के प्रमुख
राजनीतिक मुद्े, नेिाओं की लोकतप्रयिा आतद तकस प्रकार प्रभातिि करिे हैं ।
एररक डा कोस्टा ने आई. आई.पी.ओ. द्वारा कराये गये सिेक्षण की समीक्षा करिे हुए 1980 में कहा था
तक ‘उस समय िास्ति में यह भी पिा नहीं था तक अक्तखल भारिीय स्तर पर जनमि सिेक्षण करना सच में
सम्भि है भी या नहीं। तनरक्षरिा की समस्या और भारि के कई क्षेिों में रै ण्डम सैम्पल के सं चालन में आ
रही समस्याओं के कारण यह िहुि मुक्तिल लग रहा था। सच्चाई यह है तक यह प्रयोग असाधारण रूप से
सिल तसद् होगा यह िि िक प्रमातणि नहीं हुआ जि िक तक 1957 में पहला राष्ट्रीय सिे क्षण प्रकातशि
नहीं हो गया।‘ आई.आई.पी. ओ. ने अक्तखल भारिीय स्तर पर पहला जनमि सिेक्षण ही संचातलि नहीं
तकया िक्ति उसने चुनाि पररणामों की भतिष्यिाणी भी प्रारम्भ की। डॉ. कोस्टा ने कहा था तक ‘जनमि की
महान शक्ति पर शोध करके तिदे शों में मिदान के तनियों और पररणामों की भतिष्यिाणी की जािी थी या
तिर अनेकों संिदे नशील तिषयों पर तिचारों को जाना जािा था। 1957 में पहली िार भारि में उसका प्रयोग
तकया गया। यह कमोिेश एक नये भारिीय आतिष्कार के रूप में प्रकर्ट हुआ था।
मिदान व्यिहार का अध्ययन चुनाि अध्ययनों का एक तहस्सा है । चुनािों के अध्ययन के तिषय को सेिोलोजी
कहिे हैं । इसका उद्े श्य चुनािों के दौरान मिदािाओं के व्यिहार के िारे में प्रश्ों का तिश्लेषण करना होिा
हैं । मिदािा तकसी उम्मीदिार को िोर्ट क्ों दे िे हैं ? या िे चुनाि में एक ही पार्टी को क्ों पसंद करिे हैं ?
क्ा ये आतथाक कारक ? क्ा यह मजिूि नेिृत्व या कररशमाई नेिृत्व हैं ? ये कुछ सिाल हैं तजन पर मिदान
के तनधाा रकों के संिंध में अध्ययन तकया जािा है । भारि में राजनीतिक तिद्वान, समाजशास्त्री, मानितिज्ञानी,
मीतडया हाउस और राजनीतिक दल चुनािी अध्ययनों में लगे हुए हैं । स्विं ििा प्राक्ति के िाद भारि में 1951-
52 के प्रथम आम चुनािों के समय से 1950 के दशक से चुनाि अध्ययन शुरू हुए थे। लेतकन व्यिक्तस्थि
िरीके से चुनािी अध्ययन 1960 के दशक से शु रू हुए थे। रजनी कोठारी और मायरन िीनर जैसे राजनीतिक
िैज्ञातनकों ने इसका आरं भा तकया था। 1980 के दशक में प्रणय रॉय और अशोक लातहरी की पु स्तक ने इस
लेतकन 1990 के दशक से ही चुनािी अध्ययनों का तनयाा ि िरीके से अध्ययन हो रहा है । इसका प्रमुख कारण
लोक सभा था राज्ों की तिधान सभाओं के चुनाि में हो रही तनरं िर िृक्तद् है । 1990 के दशक में भारि में
चुनािी अध्ययन की पहल को शुरू करने का श्रेय जाने माने तशक्षातिद योगेन्द्र यादि को जािा है जो तक
सी.एस.डी.एस से संिंतधि रहे । यह ठीक लोकनीति के नाम से जाने िाले एक संगठन के िैनर िले चुनाि
के अध्ययन का आयोजन करिी है । सी. एस. डी. एस. र्टीम के सदस्यों के रूप में दे श में तितभन्न
तिश्वतिद्यालायों के तिद्वानों ने चुनाि अध्ययन की व्यिस्था थी। चुनाि अध्ययन करने के िरीकों में मुख्य रूप
से सिेक्षण शातमल हैं । इन सिेक्षणों को राष्ट्रीय चुनाि सिेक्षण कहा जािा है । चुनाि से पहले या िाद में,
शोधकिाा चुनाि प्रभाि के तितभन्न पहलुओं को जानने के तलये सिेक्षण के अध्ययन के महत्वपूणा पहलू हैं । इन
अध्ययनों के निीजों को कई पुस्तकों, लेखों, पतिकाओं में प्रकातसि भी तकया जािा है । सी.एस. डी. एस.
के अलािा, कई शोधकिाा और मीतडया समूह, राजनीतिक दल मिदान व्यिहार के तनधाा रकों के अध्ययन में
संलग्न है ।
में सहायिा तमलिी है । राजनीतिक समाजीकरण से आशय उस प्रतिया से है , तजसके माध्यम से लोगों में
राजनीतिक समझ तिकतसि की जािी है । राजनीतिक समाजीकरण की प्रतिया का मूल उद्े श्य राजनीतिक
तसद्ां िों को एक पीढी से दू सरी पीढी में स्थानां िररि करना होिा है ।
2. मिदान व्यिहार के माध्यम से इस िाि की जांच की जा सकिी है तक लोगों के मन में लोकिंि के प्रति
धारणा कैसी है । इसके माध्यम से समाज के प्रत्येक िगा की लोकिंि के प्रति सोच को समझने में सहायिा
तमलिी है । यानी यतद कोई व्यक्ति अतधकार या दातयत्व िोध महसूस करिे हुए मिदान करिा है , िो उसे
लोकिंि के प्रति आस्थािान व्यक्ति समझा जािा है । उदाहरण के तलए, यतद कोई व्यक्ति नोर्टा के रूप
में मिदान करिा है , िो इसका अथा है तक िह व्यक्ति अपने मिातधकार का उपयोग िो करना चाहिा
है , लेतकन ििामान में िह तकसी भी राजनीतिक दल या उम्मीदिार या उनके द्वारा उठाए जाने िाले
मुद्ों से संिंध रखिी है । यतद गहराई से अिलोकन करें िो स्पष्ट् होगा तक प्रत्येक चुनाि में कुछ चुनािी
मुद्े हर िार लगभग समान होिे हैं । उदाहरण के तलए, गरीिी, िेरोजगारी, तिकास, महं गाई इत्यातद
मुद्ों के इदा -तगदा प्रत्येक चुनाि घूमिा है । इसका अथा है तक मिदािा इन मुद्ों से कािी हद िक प्रभातिि
होकर मिदान करिा है , इसीतलए प्रत्येक चुनाि में ये मुद्े चुनािी राजनीति का तहस्सा होिे हैं ।
ऐसे तितभन्न कारक मौजू द हैं , जो भारि में मिदान व्यिहार को प्रभातिि करिे हैं । उनमें से कुछ प्रमुख
1. जावत : भारि की सामातजक संरचना जाति व्यिस्था से अत्यतधक प्रभातिि है , इसीतलए भारिीय तनिाा चन
प्रणाली में इसका अच्छा खासा प्रभाि होिा है । राजनेिा के राजनीतिक दल जाति के आधार पर िोर्ट
हातसल करने का प्रयास करिे हैं । इसी संदभा में, रजनी कोठारी ने यह कहा भी तक भारि की राजनीति
2. धमम : तितभन्न राजनीतिक दल और राजनेिा चुनािी लाभ अतजाि करने के तलए धातमाक भािनाओं को
भड़कािे हैं और इनके िशीभूि होकर लोगों का मिदान व्यिहार प्रभातिि हो जािा है । इसके पररणाम
स्वरूप चुनािी निीजे भी प्रभातिि होिे हैं ।
3. भाषा : उत्तर भारि और दतक्षण भारि की राजनीति में ‘भाषा’ मुख्य चुनािी मुद्ा रहा है । तिशेष रूप
से, ितमलनाडु की राजनीति में तहं दी भाषी ि गैर तहं दी भाषा का मुद्ा अत्यंि प्रभािी रहिा है । भाषा भी
4. क्षेत्रवाद : उत्तर भारि, दतक्षण भारि और पूिोत्तर की राजनीति में क्षेििाद का मुद्ा िहुि अतधक प्रभािी
होिा है । तितभन्न चुनािों के दौरान अनेक राजनेिाओं के संिंध में दू सरे राज्ों के लोग िाहरी होने का
आरोप लगािे हैं और इस िाि का प्रयास करिे हैं तक उस राज् के लोग तकसी अन्य राज् के व्यक्ति
5. मतदाता की आवथमक ब्लस्थवत : ऐसे मिदािा चुनाि में अतधक रूतच लेिे हैं , तजनकी आतथाक क्तस्थति
िेहिर होिी है । इसके तिपरीि, तनधान मिदािा, तदहाड़ी मजदू र, रे हड़ी पर्टरी िाले लोग अपनी दै तनक
मजदू री की कीमि पर मिदान को प्राथतमकिा नहीं दे पािे हैं । यतद तनधान लोग मिदान को प्राथतमकिा
दें गे, िो इससे उनकी दै तनक मजदू री पर नकारात्मक असर पड़ सकिा है । अिः मिदािा की आतथाक
6. राजनीवतक ब्लस्थरता की इच्छा : यतद मिदािाओं को इस िाि का आभास हो जाए तक अमुक राजनीतिक
दल दे श में राजनीतिक क्तस्थरिा कायम कर सकिा है और इसके अलािा अन्य राजनीतिक दल दे श में
राजनीतिक क्तस्थरिा कायम नहीं कर सकिे हैं , िो ऐसी क्तस्थति में, मिदािा सामान्यिः राजनीतिक क्तस्थरिा
कायम करने में सक्षम राजनीतिक दल को ही अपना मि दे िे हैं । यानी यह कारक भी मिदािाओं के
मिदान व्यिहार को प्रभातिि करिा है ।
7. धन की भूवमका : चुनािों में तकया जाने िाला धन का प्रयोग भी लोगों के मिदान व्यिहार को प्रभातिि
करिा है । तिशेष रूप से, गरीि दे शों में राजनीतिक दलों द्वारा मिदािाओं को धन का लालच तदया जािा
है , तजससे प्रभातिि होकर मिदािा अपनी मिदान की प्राथतमकिा में पररििान कर दे िे हैं और इससे
8. वशक्षा : तशक्षा का स्तर भी मिदािाओं के मिदान व्यिहार को प्रभातिि करिा है । सामान्यिः अतशतक्षि
लोग अपने तहिों की परिाह तकए तिना राजनेिाओं या राजनीतिक दलों के भड़काऊ ियानों के तशकार
होकर मिदान करिे हैं । इसके तिपरीि, तशतक्षि लोग अपने तहिों के मद्े नजर मिदान करिे हैं । इसके
अलािा, आजकल मिदािा ऐसे उम्मीदिारों का तनिाा चन करना पसंद करिे हैं , जो अपेक्षाकृि िेहिर
प्रकार, जिाहरलाल नेहरू ( 14 निंिर, 1889 को जन्म ), इं तदरा गां धी, राजीि गां धी, अर्टल तिहारी
िाजपेयी और नरें ि मोदी की तिशाल छति ने मिदािाओं को अपनी पातर्टा यों के पक्ष में मिदान करने के
राज् स्तर पर भी क्षेिीय पार्टी के नेिा का कररश्माई व्यक्तित्व चुनािों में लोकतप्रय समथान का महत्वपूणा
कारक रहा है ।
10. दल का प्रदशमन: चु नािों की पूिा संध्या पर, प्रत्येक राजनीतिक दल अपना चुनािी घोषणापि जारी करिा
है तजसमें उसके द्वारा मिदािाओं से तकए गए िादे होिे हैं । सत्तारूढ पार्टी के प्रदशान को मिदािा उसके
1977 के चुनािों में कांग्रेस पार्टी की हार और 1980 के चुनािों में जनिा पार्टी की हार दशाा िी है तक
सत्तारूढ दल का प्रदशा न मिदान व्यिहार को प्रभातिि करिा है । इस प्रकार सत्ता-तिरोधी कारक (तजसका
11. पाटी की पहचान: राजनीतिक दलों के साथ व्यक्तिगि और भािनात्मक जुड़ाि मिदान व्यिहार को
तनधाा ररि करने में एक भूतमका तनभािे हैं । जो लोग तकसी तिशेष पार्टी के साथ अपनी पहचान रखिे हैं , िे
हमेशा उस पार्टी को िोर्ट दें गे चाहे उसकी चूक और कमीशन कुछ भी हो। 1950 और 1960 के दशक
में पार्टी की पहचान तिशेष रूप से मजिूि थी। हालााँ तक, 1970 के दशक से, मजिूि पार्टी पहचानकिाा ओं
12. ववचारधारा: तकसी राजनीतिक दल द्वारा प्रतिपातदि राजनीतिक तिचारधारा का मिदािाओं के तनणाय लेने
पर प्रभाि पड़िा है । समाज में कुछ लोग सां प्रदातयकिा, पूंजीिाद, लोकिंि, धमातनरपेक्षिा , तिकेंिीकरण
आतद जैसी कुछ तिचारधाराओं के प्रति प्रतििद् हैं । ऐसे लोग उन तिचारधाराओं को मानने िाले दलों द्वारा
अन्य कारक: ऊपर ििाए गए कारकों के अलािा, कई अन्य कारक भी हैं , जो भारिीय मिदािाओं के
मिदान व्यिहार को तनधाा ररि करिे हैं । इनका उल्लेख नीचे तकया गया है :
(i) चुनाि से पहले की राजनीतिक घर्टनाएाँ जैसे युद्, तकसी नेिा की हत्या, भ्रष्ट्ाचार कां ड आतद। (ii)
चुनाि के समय आतथाक क्तस्थतियााँ जैसे महं गाई, भोजन, अल् आयु , िेरोजगारी आतद। (iii) गुर्टिाजी
– तकसकी एक तिशेषिा है भारिीय राजनीति नीचे से शीषा स्तर िक (iv) आयु – िृद् या युिा (v)
तलंग – पुरुष या मतहला (vi) तशक्षा – तशतक्षि या अतशतक्षि (vii) आिास – ग्रामीण या शहरी (viii)
िगा (आय) – अमीर या गरीि (ix) पररिार और ररश्तेदारी (x) उम्मीदिार अतभतिन्यास (xi) चुनाि
वनष्कषम:
चुनाि लोकिां तिक दे श की महत्वपूणा प्रतिया है । यह भारि के िारे में भी सत्य है । 1951- 52 से भारि
में राष्ट्रीय स्तर एिं क्षेिीय स्तर पर चुनाि हुए हैं । लोग तितभन्न जाति, धमा, भाषा और तलंग से संिंध रखिे
हैं । िे इनसे प्रभातिि हुए तिना नहीं रह सकिे । चुनािों में भी ये कारक मिदान व्यिहार के प्रमुख तनधाा रक
होिे हैं लेतकन ये कारक िि िहुि अतधक प्रभािशाली िन जािे हैं जि ये लोगों की आतथा क जरूरिों से
जुड़ जािे हैं । भारि में कई प्रकार के चुनािी अध्ययन हुए हैं तजनमें मिदान व्यिहार को प्रभातिि करने िाले
कारकों का तिश्लेषण दशाा या गया है ।
सोंदभम सूची:
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1, PP-321-345
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