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इ ने सफ़

नीले पिर दे

स पादक
नीलाभ

अनुवादक
चौधरी ज़या इमाम

हापरकॉ लं स प लशस इं डया


इमरान सीरीज़
6
नीले पिर दे
लौट आये है ं इ ने सफ़
इमरान सीरीज़ के पहले
सात उप यास लेकर

1. ख़ौफ़नाक इमारत
2. च ानों मे ं आग
3. बह ु पया नवाब
4. ख़ौफ़ का सौदागर
5. जह म ु क अ सरा
6. नीले पिर दे
7. सापँ ों के शकारी
वषय-सू ची
दो श द
नीले पिर दे





१०

११
१२
१३
१४
१५
१६
१७
१८
दो श द
‘नीले पिर दे’ मे ं इ ने सफ़ के क़लम से जुम क और उसके पदाफ़ाश क एक और
हैरत-अं गेज़ दा तान पेश है।
जुम का ता क़ ु इ सान से है और इ सान का ता क़ ु समाज से, इस लए जुम क
तहक़ क़ात मे ं समाज क छान-बीन और जाच ँ -परख शा मल है। इसके साथ ही
पछली सदी-डे ढ़ सदी के अस मे ं पूरी दु नया क सू रत और सीरत जस तरह बदली है,
उसमे ं अपराध क पिरभाषा भी बदल गयी है। अब अपराध कसी य क अपनी
ख़रा बयों ही का नतीजा नहीं है, ब क इसमे ं कई बार दु नया क बड़ी ताक़तो के भी
हाथ नज़र आते है।ं इ ने सफ़ ने ऐसे मुजिरमों पर भी नज़र डाली है जो सफ़ अपने
मुनाफ़े क फ़ करते है,ं फर चाहे समाज या दु नया तबाह हो जाय; ऐसे लोग जो
अपना माल बेचने के लए ग़ैरक़ानू नी तरीक़े इ तेमाल करते है ं और कई बार
ग़ैरक़ानू नी माल बेचने के लए हर क़ म क अ छाई को ताक पर धर देते है।ं मसाल
के लए इमरान सीरीज़ का ताज़ातरीन उप यास ‘नीले पिर दे’ जसमे ं इ ने सफ़ ने उन
लोगों का पदाफ़ाश कया है जो ज़हरीले वाइरस क ईजाद करते है।ं
जासू सी उप यास के सल सले मे ं सबसे पहला फ़ैसला जो उप यासकार को
करना होता है, वह खलनायकों क पहचान और उनके चिर - च ण से ता क़ ु रखता
है। अपराध और अपरा धयों क बात कसी बु नयाद के बना स भव नहीं। इस लए
जुम के और उ हे ं अं जाम देने वाले मुजिरमों के ख़ाके उप यासकार से बहत
ु ख़ास
क़ म क फ़नकारी चाहते है,ं ता क जुम मे ं मु तला लोग कसी नक़ली बनावटी
दु नया के अबू झ खलनायक न लग कर, हमारी ही दु नया के, हमारे ही समाज के,
भटके हएु लोग जान पड़े ं। इ ने सफ़ के उप यासों मे ं इस लहाज़ से हैरत-अं गेज़
व वधता नज़र आती है। हर मुजिरम को जुम क तरफ़ मायल करने वाली, उसे
ग़ैरक़ानू नी हरकतों के लए उकसाने वाली ताक़ते ं अलग-अलग है।ं
‘नीले पिर दे’ क बु नयाद मे ं तो जायदाद का लालच है ही, ले कन इसके साथ-
साथ वै ा नक आ व कारों को जुम के लए इ तेमाल करने वाला दमाग़ भी है।
आम-तौर पर मुजिरम बचने के लए कई तरह क हकामते ं आज़माते है।ं सबसे
सरल उपाय है दोष को कसी दू सरे के म थे मढ़ देना। स जाद अपनी बेटी सईदा क
शादी मालदार और तेल के कु ओं के मा लक जमील से कराके ख़ुद भी मालदार बनना
चाहता है। ले कन जमील का िर ता अपने ही जैसे मालदार जावेद मज़ा क बेटी
परवीन से तय हो चुका है। परवीन का भाई शौकत साइ सदान है और तरह-तरह के
वाइरस ईजाद करता रहता है। स जाद उसके यहा ँ से ऐसा वाइरस चुरा लाता है
जससे शरीर पर सफ़ेद दाग़ पड़ जाते है ं और उ हे ं जमील के बदन मे ं दा ख़ल करा
देता है। फर वह ख़ुद ही डपाटमेट
ं ऑफ़ इ वे टगेशन के कै टन फ़ैयाज़ को इसक
ख़बर दे देता है और अपना जुम शौकत के म थे मढ़ने क चाल चलता है।
ले कन इमरान, जो फ़ैयाज़ के कहने पर इस मामले को सुलझाने आया है, कसी
सबू त या सुराग़ का पता नहीं लगा पाता। तब वह ‘तू डाल डाल मै ं पात पात’ वाली
मसल पर चलता हआ ु असली मुजिरम को औचक मे ं कैसे गर तार करता है? नीले
पिर दों क हक़ क़त या है? सईदा के चेहरे पर भी सफ़ेद दाग़ कैसे उभर आते है?ं
शौकत का अ स टेट ं सलीम चोरी का झू ठा इ ज़ाम यों कबू ल करता है? शौकत
अपनी योगशाला मे ं नीले पिर दे यों जलाता है? इन सारे सवालों के जवाब इमरान
क ताज़ा पेशकश ‘नीले पिर दे’ मे ं मौजू द है।
तो आइए देख,े ं या सँदेसा लाये है ं ‘नीले पिर दे’।
–नीलाभ
नीले पिर दे


चौदहवीं क चादनी पहा ड़यों पर बखरी हईु थी....स ाटे और चादँ नी क रोशनी मे ं
नहायी और पहाड़ों मे ं च र खाती हईु काली सड़क कसी बल खाये हएु सापँ जैसी
लग रही थी। और इसी सड़क पर एक ल बी-सी कार दौड़ती चली जा रही थी।
तभी अचानक वह कार एक जगह क गयी....और टीयिरं ग के सामने बैठा हआ ु
आदमी बड़बड़ाने लगा। ‘‘ या हो गया है....? भई!’’
उसने उसे दोबारा टाट कया....इं जन जागा....एक छोटी-सी अगँ ड़ाई ली और फर
सो गया....!
कई बार टाट करने के बावजू द इं जन होश मे ं न आया....
‘‘यार, ध ा लगाना पड़े गा।’’ उसने पीछे मुड़ कर कहा। मगर पछली सीट से
ख़राटे ही बुल द होते रहे....
उसने दोनों घुटने सीट पर टेक कर बैठते हएु , सोने वाले को बुरी तरह झं झोड़ना
शु कर दया....
ले कन ख़राटे बराबर जारी रहे।
आ ख़र जगाने वाला सोने वाले पर चढ़ ही बैठा।
‘‘अरे....अरे....बचाओ....बचाओ!’’ अचानक सोने वाले ने गला फाड़ना शु कर
दया। ले कन जगाने वाले ने कसी-न- कसी तरह खींच-खाच ँ कर उसे नीचे उतार ही
लया।
‘‘हायँ ! मै ं कहा ँ हू!’’
ँ जागने वाला आख
ँ े ं मल-मल कर चारों तरफ़ देखने लगा।
‘‘इमरान के ब े, होश मे ं आओ।’’ दू सरे ने कहा।
‘‘ब े....ख़ुदा क़सम एक भी नहीं है.ं ...अभी तो मग अ डों ही पर बैठ हईु
है....सुपर फ़ैयाज़....!’’
‘‘कार टाट नहीं हो रही है।’’ कै टन फ़ैयाज़ ने कहा।
‘‘जब चले थे तब तो शायद टाट हो गयी थी।’’
‘‘चलो, ध ा लगाओ।’’
इमरान ने उसके क धे पकड़े और धकेलता हआ ु आगे बढ़ने लगा।
‘‘यह या बेहूदगी है? मै ं थ पड़ मार दू ग ँ ा।’’ फ़ैयाज़ पलट कर उससे लपट
गया....

‘‘हाय....हाय....अरे, मै ं हू....मद हू.ँ ...!’’
‘‘कार ध ा दये बग़ैर टाट नहीं होगी।’’ फ़ैयाज़ गला फाड़ कर चीख़ा।
‘‘तो ऐसा बोलो न....मै ं समझा शायद....वाह यार....!’’
फ़ैयाज़ टीयिरं ग के सामने जा बैठा....और इमरान कार को आगे से पीछे क
तरफ़ धकेलने लगा।
‘‘अरे....अरे....!’’ फ़ैयाज़ फर चीख़ा। ‘‘पीछे से!’’
इमरान ने मुहँ फेर कर अपनी कमर कार के अगले ह से से लगा दी और ज़ोर देने
लगा।
‘‘अरे ख़ुदा ग़ारत करे....सुअर....गधे!’’ फ़ैयाज़ दातँ पीस कर रह गया।
‘‘अब या हो गया....?’’ इमरान झ ायी हईु आवाज़ मे ं बोला।
फ़ैयाज़ नीचे उतर आया। कु छ पल खड़ा इमरान को घू रता रहा, फर बेबसी से
बोला।
‘‘ यों परेशान करते हो?’’
‘‘परेशान तुम करते हो या मै!ं ’’
‘‘अ छा....तुम टीयिरं ग सभँ ालो! मै ं ध ा देता हू।ँ ’’ फ़ैयाज़ ने कहा।
‘‘अ छा बाबा!’’ इमरान माथे पर हाथ मार कर बोला।
वह अगली सीट पर जा बैठा और कै टन फ़ैयाज़ कार को धकेल कर आगे क
तरफ़ बढ़ाने लगा।
कार न सफ़ टाट हईु , ब क फ़राटे भरती हईु आगे बढ़ गयी।
‘‘अरे....अरे....रोको....रोको....!’’ फ़ैयाज़ चीख़ता हआ
ु कार के पीछे दौड़ने लगा।
ले कन वह अगले मोड़ पर जा कर ग़ायब हो गयी। फ़ैयाज़ बराबर दौड़ता रहा....उसके
पास इसके अलावा और कोई चारा भी नहीं था....वह दौड़ता रहा....यहा ँ तक क
ताक़त जवाब दे गयी....और वह एक च ान से टेक लगा कर हाफ ँ ने लगा। चढ़ाई पर
दौड़ना आसान काम नहीं होता। वह एक प थर पर बैठ कर हाफ ँ ने लगा।
इस व त इस हरकत पर वह इमरान क बो टया ँ भी उड़ा सकता था। ले कन
सासँ ों के साथ ही उसक दमाग़ी हालत भी ठकाने पर आती गयी।
इमरान पर ग़ु सा आना कु दरती बात थी। ले कन उसके साथ ही फ़ैयाज़ को इस
बात का भी एहसास था क आज उसने भी इमरान को काफ़ परेशान कया है।
आज शाम को वह इमरान को सैर के बहाने कार मे ं बठा कर कसी अनजान
मं ज़ल क तरफ़ ले उड़ा था। इमरान को बताये बग़ैर वह शी से उसका सामान
पहले ही हा सल कर चुका था और वह सब कार क डक मे ं ठूँस दया गया था।
वह जानता था क इमरान आजकल काम के मूड मे ं नहीं है, इस लए यह हरकत
करनी पड़ी और फर जब यह टू र बढ़ता ही गया, तो फ़ैयाज़ को यह बताना पड़ा क
उसे सरदारगढ़ ले जा रहा है। इस पर इमरान एक ल बी सास ँ खींच कर ख़ामोश हो
गया। उसने यह भी नहीं पूछा क इस तरह सरदारगढ़ ले जाने का मतलब या है?....
फर उसने कोई बात ही नहीं क थी। कु छ देर यू ँ ही बैठा रहा। फर पछली सीट
पर जा कर ख़राटे लेने शु कर दये थे।
ज़ा हर है क ऐसी सूरत मे ं फ़ैयाज़ का ग़ु सा यादा ज़ोर न पकड़ सका होगा। वह
उसी प थर पर घुटनों मे ं सर दये बैठा रहा। सगरेटों का ड बा और कॉफ़ का थमस
गाड़ी ही मे ं रह गया था, वरना वह इसी सुकुन-भरे माहौल का आ द लेने क को शश
ज़ र करता।
वैसे उसे इ मीनान था क इमरान का यह मज़ाक़ ल बा नहीं होगा और वह ज द
ही वापस आयेगा और कोई ता जुब नहीं क वह क़रीब ही कहीं हो।
फ़ैयाज़ घुटनों मे ं सर दये इमरान ही के बारे मे ं सोचता रहा। उसे उसक बहत
ु -सी
हरकते ं याद आ रही थीं। ऐसी हरकते ं जन पर हस ँ ी और ग़ु सा साथ ही आते थे और
ँ ही रहे ं या इमरान को मार बैठें।
दूसरों क समझ मे ं नहीं आता था क वे हसते
बेवक़ूफ़ उसक फ़तरत का दू सरा ह सा बन चुका था और वह कसी मौक़े पर
भी उससे बाज़ नहीं आता था....वह उनके सामने भी बेवकूफ़ों जैसी हरकते ं करता जो
उसे बेवक़ूफ़ नहीं समझते थे। मसाल के तौर पर ख़ुद कै टन फ़ैयाज़ के लए इमरान
ने एक नहीं, दजनों केस नपटाये थे। काम उसने कये थे और नाम फ़ैयाज़ का हआ ु
था। ज़ा हर है क वह ऐसे आदमी को बेवक़ूफ़ नहीं समझ सकता था, ले कन इसके
बावजुद इमरान के बेवक़ूफ़ाना रवैये मे ं कोई त दीली नहीं हईु थी।
लगभग पाच ँ मनट बीत गये और फ़ैयाज़ उसी तरह बैठा रहा....ले कन कब
तक.... आ ख़र उसे सोचना ही पड़ा क कहीं सचमुच इमरान जुल न दे गया हो,
यों क वह भी तो उसे गोली दे कर ही सरदारगढ़ ले जा रहा था।
फ़ैयाज़ उठा और दल-ही- दल मे ं इमरान को गा लया ँ देता हआ ु सड़क पर चलने
लगा....ले कन जैसे ही अगले मोड़ पर पहच ु ँ ा उसे सामने से कोई आता दखाई दया।
चलने का अ दाज़ इमरान का-सा ही था....फ़ैयाज़ क मुि या ँ बध ँ गयीं।
इमरान ने दूर ही से हाक ँ लगाई। ‘‘क ान साहब! वह फर क गयी है....चलो,
ध ा लगाओ....!’’
फ़ैयाज़ क र तार तेज़ हो गयी। वह क़रीब-क़रीब दौड़ने लगा था। इमरान के
क़रीब पहच ु ँ कर उसका हाथ घू मा ज़ र, ले कन घू म कर ही रह गया, यों क इमरान
बड़ी फु त से बैठ गया था।
‘‘हाय....! या हो गया है तु हे?ं ’’ इमरान ने उठ कर उसके दोनों हाथ पकड़े हएु
कहा। ‘‘अभी तो अ छे -भले थे....’’
ँ ा।’’ फ़ैयाज़ दातँ पीस कर बोला।
‘‘मै ं तु हे ं मार डालू ग
‘‘अब यहा ँ अकेले मे ं जो चाहो कर लो....कोई देखने आता है!’’ इमरान ने
शकायती अ दाज़ मे ं कहा। ‘‘अगर वह साली टाट नहीं होती तो इसमे ं मेरा या
क़सू र है?’’
‘‘हाथ छोड़ो!’’ फ़ैयाज़ ने झटका दे कर कहा। ले कन इमरान क पकड़ मज़बू त
थी। वह हाथ न छुड़ा सका।
‘‘वादा करो क मारोगे नहीं।’’ इमरान बड़ी सादगी से बोला।
‘‘मुझे ग़ु सा न दलाओ।’’
‘‘अ छा तो इसके अलावा जो कु छ कहो, दला दू ।ँ टॉ फ़या ँ लोगे?’’
फ़ैयाज़ का मू ड ठ क होने मे ं बहत
ु देर नहीं लगी....वह करता भी या; इमरान पर
ग़ु सा उतारना भी एक तरह से व त क बबादी ही थी।
वैसे इस बार हक़ क़त मे ं कार को ध ा देने क ज़ रत नहीं पेश आयी।
इमरान ने अपने कई मनट उसके इं जन पर बेकार कये थे। वह यादा दूर नहीं
गया था....क़रीब ही एक जगह कार रोक कर इं जन क मर मत करने लगा था। उसे
उ मीद थी क फ़ैयाज़ बेतहाशा दौड़ता हआु वहा ँ तक पहच
ु ँ ही जायेगा, ले कन जब
कई मनट बीत जाने के बावजू द फ़ैयाज़ न आया तो वह ख़ुद ही उसक तलाश मे ं
चल पड़ा।
थोड़ी देर बाद वे फर उसी च र खाती हईु सड़क पर सफ़र कर रहे थे। ले कन
ँ ाल ली थी।
कार फ़ैयाज़ ही चला रहा था....और इमरान ने फर पछली सीट सभ
फ़ैयाज़ बड़बड़ाने लगा। ‘‘उस व त तु हारी जगह अगर कोई और होता तो....!’’
‘‘चैन से घर पर पड़ा सो रहा होता।’’ इमरान ने ज दी से जुमला पूरा कर दया।
‘‘बकवास मत करो।’’ फ़ैयाज़ ने कहा। ‘‘मामला पचास हज़ार पर तय हआ ु है।’’
‘‘कैसा मामला?’’
‘‘सरदारगढ़ मे ं तु हारा नकाह नहीं होगा।’’ फ़ैयाज़ ने कहा।
‘‘हाय.... फर या....यू ँ ही मु त मे ं मेरा व त बबाद कर रहे हो?’’
‘‘एक बहत ु ही दलच प केस है।’’

‘‘यार फ़ैयाज़! मै ं तं ग आ गया हू।’’
‘‘तु हारी ज़बान से पहली बार इस क़ म का जुमला सुन रहा हू।ँ ’’ फ़ैयाज़ ने हैरत
ज़ा हर क ।
‘‘सैकड़ों बार कह चुका हू ँ क ल ज़ केस मेरे सामने न दोहराया करो। केस
लाहौल वला क़ूवत। मैनं े अ सर दाइयों के ब ा पैदा कराने को भी केस ही कहते
सुना है।’’
‘‘सुनो इमरान....बोर न करो....ऐसा दलच प....!’’
‘‘मै ं कु छ नहीं सुनना चाहता। ख़ म करो, मुझे नींद आ रही है।’’ इमरान ने अपने
ऊपर क बल डालते हएु कहा।
‘‘ फ़लहाल मै ं सफ़ यह कहना चाहता हू ँ क उन लोगों के सामने कोई ऐसी
हरकत न करना जससे वे बुरा मान जाये.ं ...मामला ऐसा है क वे सरकारी तौर पर
कोई कारवाई नहीं कर सकते....! अगर करना भी चाहे ं तो कम-से-कम मेरा डपाटमेट ं
उसे हसँ कर ही टाल देगा।’’
फ़ैयाज़ बड़बड़ाता रहा....और इमरान के ख़राटे कार मे ं गू जँ ते रहे, इतनी ज दी सो
जाने का मतलब था क इमरान कु छ सुनना नहीं चाहता था। ख़राटे इस बात क
गवाही दे रहे थे।

सरदारगढ़ पहाड़ी इलाक़ा था। अब से पचास साल पहले यहा ँ ख़ाक उड़ती रहती थी,
ले कन म ी के तेल का भ डार मलने के बाद यहा ँ अ छा-ख़ासा शहर बस गया था।
शु मे ं यहा ँ सफ़ ग़रीब लोगों क आबादी थी। धीरे-धीरे यह आबादी फैलती
गयी और फर एक दन सरदारगढ़ आधु नक शहर बन गया। पहले सफ़ म ी के तेल
के कु ओं क वजह से उसक अह मयत थी, ले कन अब इसक गनती मशहूर हल
टेशनों मे ं भी होने लगी थी....और यहा ँ के नाइट लब दू र-दू र तक मशहूर थे....
कै टन फ़ैयाज़ ने कार एक लब के सामने रोक दी। टाउन हॉल के लॉक टावर
ने अभी-अभी यारह बजाये थे और यह नाइट लबों के जागने का व त था....मगर
इमरान के ख़राटे शबाब पर थे....फ़ैयाज़ जानता था क वह सो नहीं रहा है, ख़राटे
बलकु ल बनावटी है,ं ले कन वह उसका कु छ बगाड़ नहीं सकता था। यह और बात
है क वह कार के क़रीब से गुज़रने वालों से आख ँ े ं मलाते हएु शमा रहा था। वे कार
के क़रीब से गुज़रते व त पल भर क कर ख़राटे सुनते और फर मु कु राते हएु आगे
बढ़ जाते।
‘‘ओ मदू द!’’ फ़ैयाज़ झ ा कर उसे झं झोड़ने लगा।
पहले तो उस पर कोई असर नहीं हआ ु । फर अचानक बौखला कर उसने खुले
हएु दरवाज़े से छलागँ लगा दी, मगर इस बार चोट उसी को लगी। मक़सद शायद यह
था क सड़क पर गरने क सूरत मे ं फ़ैयाज़ नीचे होगा और वह ख़ुद ऊपर....मगर
फ़ैयाज़ बड़ी फु त से एक तरफ़ हट गया और इमरान जो झोंक मे ं था, औंधे मुह ँ सड़क
पर चला आया....
अलब ा उसक फु त भी क़ा बले-तारीफ़ थी। शायद ही कसी ने उसे गरते देखा
हो....दूसरे पल मे ं वह इतने सुकुन के साथ फ़ैयाज़ के क धे पर हाथ रखे खड़ा था
जैसे कोई बात ही न हईु हो।
‘‘हा,ँ तो अब हम कहा ँ है?ं ’’ इमरान ने ऐसे अ दाज़ मे ं पू छा जसमे ं न तो
श म दगी थी और न बेइ मीनान....फ़ैयाज़ पर हस ँ ी का दौरा पड़ गया था।
इमरान आराम से खड़ा रहा।
आ ख़र फ़ैयाज़ बोला, ‘‘कपड़े तो झाड़ लो....’’
और इमरान बड़ी हो शयारी से फ़ैयाज़ के कपड़े झाड़ने लगा।
‘‘अब झेंप न मटाओ।’’ फ़ैयाज़ फर हस ँ पड़ा।
‘‘तुम हमेशा ऊट-पटागँ बाते ं कया करते हो।’’ इमरान बगड़ गया।
‘‘चलो-चलो!’’ फ़ैयाज़ उसे धकेल कर इमारत क तरफ़ बढ़ा। वे दोनों हॉल मे ं
दा ख़ल हएु । अभी बहतु -सी मेज़े ं ख़ाली थीं। फ़ैयाज़ ने चारों तरफ़ नगाह दौड़ा कर
एक मेज़ चुन ली....और वे दोनों कु सयों पर जा बैठे।
एक वेटर ने क़रीब आ कर उ हे ं सलाम कया।
‘‘वालेकुम अ सलाम!’’ इमरान ने उठ कर उससे हाथ मलाते हएु कहा। ‘‘ब े
ख़ैिरयत से तो है?ं ’’
‘‘जज....जी....साहब....ही-ही-ही....!’’ वेटर बौखला कर हसँ ने लगा और फ़ैयाज़ ने
इमरान के पैर मे ं बड़ी बेदद से चुटक ली....इमरान ने ‘‘सी’’ करके वेटर का हाथ
छोड़ दया।
‘‘खाने मे ं जो कु छ भी हो, लाओ।’’ फ़ैयाज़ ने वेटर से कहा और वेटर चला गया।
जन लोगों ने इमरान को वेटर से हाथ मलाते देखा था, वे अब भी उन दोनों को
घू र रहे थे।
फ़ैयाज़ को फर उस पर ताव आ गया और ग़ु से मे ं बोला, ‘‘तु हारे साथ वही रह
सकता है, जसे अपनी इ ज़त का पास न हो।’’
‘‘आजकल पास और क सेशन बलकु ल ब द है।ं ’’ इमरान ने सर हला कर
कहा और होंट सकोड़ कर चारों तरफ़ देखने लगा।
‘‘फ़ैयाज़! परवाह न करो।’’ इमरान ने थोड़ी देर बाद सं जीदगी से कहा। ‘‘मै ं
जानता हू ँ क तुम मुझे यहा ँ यों लाये हो। या मै ं नहीं समझता क ये पेिर सयन नाइट
लब है?’’
‘‘मै ं कब कहता हू ँ क तुम सरदारगढ़ पहली बार आये हो।’’ फ़ैयाज़ बोला।
अचानक उसका मू ड बदल गया था। हो सकता है क ये इमरान क सं जीदगी का
असर रहा हो।
‘‘मै ं रोज़ बाक़ायदा तौर पर अख़बार पढ़ता हू।’’ ँ इमरान ने कु छ सोचते हएु कहा।
‘‘ फर!’’
‘‘आज से एक ह ता पहले इसी हॉल मे ं एक छोटा-सा नीला पिर दा उड़ रहा
था।’’ इमरान धीरे से बोला।
‘‘ओ हो....! तो तुम समझ गये!’’ फ़ैयाज़ क आवाज़ मे ं दबी हईु ख़ुशी थी।
‘‘मगर तुम इससे यह न समझना क मुझे कसी ऐसे पिर दे के वजू द पर यक़ न
भी है।’’
‘‘तब फर या बात हईु ?’’ फ़ैयाज़ ने मायू सी से कहा।
‘‘मतलब यह है क अपने तौर पर पता लगाये बग़ैर मै ं ऐसे कसी पिर दे के वजू द
पर यक़ न नहीं कर सकता।’’
‘‘और तुम पता लगाये बग़ैर मानोगे नहीं।’’ फ़ैयाज़ ने चहक कर कहा।
‘‘मुझे पागल कु े ने नहीं काटा।’’ इमरान ने टाइट होते हएु कहा। ‘‘मुझे या पड़ी
है क बेकार मे ं अपना व त बबाद क ँ ।’’
‘‘वह तो तु हे ं करना ही पड़े गा।’’
‘‘ज़बद ती....?’’
‘‘तु हे ं करना पड़े गा!’’
‘‘ या करना पड़े गा?’’ इमरान क खोपड़ी फर आउट ऑफ़ ऑडर हो गयी।
‘‘कु छ भी करना पड़े गा।’’
‘‘अ छा मै ं क ँ गा। मगर नहीं, वेटर खाना ला रहा है। मै ं फ़लहाल खाना खा कर
एक कप चाय पयू ग ँ ा....इस लए बकवास ब द।’’
खाने के दौरान सचमुच ख़ामोशी रही। शायद फ़ैयाज़ भी बहत ु यादा भू खा
था....खाने के बाद चाय के दौरान फर वही बात शु हो गयी।
‘‘जमील का बयान यही है। मैनं े वही मेज़ चुनी है जस पर उस दन जमील था।’’
‘‘ या?’’ इमरान उछल कर खड़ा हो गया। ‘‘यानी यही मेज़ जो हम इ तेमाल कर
रहे है।ं ’’
‘‘हा ँ यही। और ख़ुदा के लए सं जीदगी से सुनो। बैठ जाओ।’’
‘‘वाह रे, आपक सं जीदगी!’’ इमरान चढ़ कर हाथ नचाता हआ ु बोला। ‘‘सापँ
के फन पर बठा दो मुझे। लानत भेजता हू ँ ऐसी दो ती पर....!’’
फ़ैयाज़ ने उसे खींच कर बठा दया और कहा, ‘‘तु हे ं यह काम करना ही पड़े गा,

चाहे कु छ हो। मै ं उन लोगों से वादा कर चुका हू....’’
‘‘ कन लोगों से?’’
‘‘जमील के ख़ानदान वालों से!’’
‘‘अ छा तो शु हो जाओ....मै ं सुन रहा हू।ँ ’’
‘‘जमील इसी मेज़ पर था।’’
‘‘ फर मूड ख़राब कर रहे हो मेरा।’’ इमरान डरी हईु आवाज़ मे ं बोला। ‘‘बार-बार
यही जुमला दोहरा कर....’’
‘‘ह ु त....! दजनों आद मयों ने उस पिर दे को हाल मे ं च र लगाते देखा था। वह
कु छ पल हवा मे ं चकराता रहा फर अचानक जमील पर गर पड़ा....और अपनी
बारीक-सी चोंच उसक गदन मे ं उतार दी। जमील का बयान है क उसे उसक चोंच
अपनी गदन से नकालने के लए काफ़ ताक़त भी लगानी पड़ी थी। बहरहाल उसने
उसे खींच कर खड़क से बाहर फेंक दया था। दूर बैठे हएु लोग उसका मज़ाक़
उड़ाने के लए हसने ँ लगे। उनके साथ वह भी हस ँ ता रहा। ले कन वह यादा देर तक
यहा ँ नहीं बैठ सका, यों क उसे ऐसा लग रहा था जैसे गदन मे ं ब छू ने डंक मार
दया हो....ले कन फर यह तकलीफ़ एक घ टे से यादा न रही। रात भी वह सुकुन से
सोया और जब दूसरी सुबह जागा तो अपने सारे ज म पर बड़े -बड़े ध बे पाये....ख़ास
तौर पर चेहरा बलकु ल ही ख़राब हो गया था....अब अगर तुम उसे देखो तो पहली
नज़र मे ं वह सफ़ेद दाग़ का कोई बहतु पुराना मरीज़ मालू म होगा....’’
‘‘कहने का मक़सद ये है क वह दाग़ उसी पिर दे के हमले का नतीजा है।’’
इमरान बोला।
‘‘यक़ नन।’’
‘‘ या डॉ टरों क राय यही है।’’
‘‘डॉ टर उसे सफ़ेद दाग़ मानने से हच कचा रहे है.ं ...जमील का ख़ू न टे ट कया
गया है और उसी क बना पर डॉ टर कोई साफ़ राय देते हएु भी हच कचा रहे है।ं ’’
‘‘ख़ू न के बारे मे ं िरपोट या है?’’
‘‘ख़ू न मे ं बलकु ल नयी क़ म के वाइरस पाये गये है ं जो डॉ टरों के लए
बलकु ल नये है।ं ’’
‘‘ओह! अ छा! िरपोट क एक कॉपी तो मल ही जायेगी....!’’
‘‘ज़ र मल जायेगी।’’ फ़ैयाज़ ने सगरेट सुलगाते हएु कहा।
‘‘मगर उसके ख़ानदान वाले डपाटमेट ं ऑफ़ इ वे टगेशन से यों मदद चाहते
है।ं इस बीमारी का सुराग़ तो डॉ टर ही पा सकेंगे।’’
‘‘हालात कु छ इसी क़ म के है।ं ’’ फ़ैयाज़ सर हला कर बोला। ‘‘अगर वाक़ई
यह कोई बीमारी है तो उस पिर दे ने जमील ही को यों चुना था जब क पू रा हॉल भरा
हआ ु था।’’
‘‘यह दलील बेतक ु है।’’
‘‘पू री बात भी तो सुनो।’’
‘‘अगर अचानक उस दन वह इस बीमारी मे ं न फँस गया होता तो उसक मग
ँ नी
तीसरे ही दन एक बहत ु ऊँचे ख़ानदान मे ं हो जाती।’’
‘‘आच....छा....! हू!ँ ’’
‘‘अब तुम ख़ुद सोचो।’’
‘‘सोच रहा हू!ँ ’’ इमरान ने लापरवाही से जवाब दया। फर कु छ देर बाद बोला।
‘‘गदन के ज़ म के बारे मे ं डॉ टर या कहते है।ं ’’
‘‘कैसा ज़ म? दू सरी सुबह उस जगह सफ़ एक नशान दख रहा था जैसे गदन
मे ं पछले दन इं जे शन दया गया हो और अब तो शायद ख़ुद जमील भी यह न बता
सके क पिर दे ने कस जगह चोंच लगायी थी।’’
‘‘ख़ू ब....!’’ इमरान तरछ नज़रों से एक तरफ़ देखता हआ
ु बड़बड़ाया। कु छ देर
तक ख़ामोशी रही फर इमरान ने पूछा।
‘‘अ छा सुपर फ़ैयाज़! तुम मुझसे या चाहते हो?’’
‘‘यह क तुम इस सल सले मे ं जमील के ख़ानदान वालों क मदद करो।’’
‘‘ले कन इससे या फ़ायदा होगा। जमील क मग ँ नी तो होने से रही। तुम मुझे उन
लोगों का पता बताओ जनके यहा ँ जमील क मगँ नी होने वाली थी।’’
‘‘उससे या होगा?’’
‘‘मेरी मग ँ नी होगी। या तुम यह चाहते हो क मै ं शादी के बग़ैर ही मर जाऊँ?’’
‘‘मै ं नहीं समझा।’’
‘‘तुम मग ँ नी और शादी नहीं समझते! उ ू कहीं के! हा!’’

‘‘इमरान काम क बात करो....!’’
‘‘फ़ैयाज़ साहब....! पता....!’’
‘‘अ छा तो या तुम यह समझते हो क यह उ हीं लोगों क हरकत है?’’
‘‘अगर उनका ता क़ ु पिर दों क कसी न ल से है तो यक़ नन उ हीं क होगी
ु ही ख़ुशी होगी अगर मै ं कसी बहे लए का दामाद बन जाऊँ।’’
और मुझे बहत
‘‘तुम फर बहकने लगे।’’
‘‘फ़ैयाज़.... डयर....पता....!’’
फ़ैयाज़ कु छ पल कु छ सोचता रहा फर बोला। ‘‘वह यहा ँ का एक बहत ु बड़ा
ख़ानदान है....नवाब जावेद मज़ा का ख़ानदान....परवीन....जावेद मज़ा ही क
इकलौती लड़क है और जावेद मज़ा बेपनाह दौलत का मा लक है।’’
ु बोला। ‘‘तब तो अपनी चादँ ी है।’’
‘‘आहा....’’ इमरान अपनी राने ं पीटता हआ
‘‘बकवास ब द नहीं करोगे।’’
‘‘अ छा! ख़ैर हटाओ!’’ इमरान ने कु छ सोचते हएु कहा। ‘‘जमील कस है सयत
का आदमी है?’’
‘‘ज़ा हर है क वह भी दौलतम द ही होगा, वरना जावेद मज़ा के यहा ँ िर ता कैसे
होता....और अब तो जमील क दौलत मे ं यादा इज़ाफ़ा हो जायेगा, यों क अभी हाल
ही मे ं उसक एक पु तैनी ज़मीन मे ं तेल का बहत
ु बड़ा ज़ख़ीरा मला है।’’
‘‘ या जमील उस ज़मीन का अकेला मा लक है?’’
‘‘सौ फ़ सदी! ख़ानदान के दू सरे लोग हक़ क़त मे ं उसक पकड़ मे ं है ं या दू सरे
अलफ़ाज़ मे ं उसके नौकर समझ लो। तीन चचा, दो मामा....चचेरे भाई कई अदद....!’’
‘‘और चचेरी बहने?ं ’’
‘‘बहत
ु सारी....!’’
‘‘उनमे ं से कोई ऐसी भी है जसक उ शादी के क़ा बल हो?’’
‘‘मेरा ख़याल है क ख़ानदान मे ं ऐसी तीन लड़ कया ँ है।ं ’’
‘‘जमील के कारोबार क तफ़सील?....’’
‘‘तफ़सील के लए और पू छताछ करनी पड़े गी। वैसे यहा ँ उसके दो बड़े कारख़ाने
है।ं एक ऐसा है जसमे ं म ी के तेल के बैरल ढाले जाते है।ं दू सरे मे ं म ी के तेल क
सफ़ाई होती है।’’
‘‘तो क हए वह भी काफ़ मालदार है।’’ इमरान सर हला कर बोला। ‘‘ले कन
या ख़ुद जमील ही ने तुम से बातचीत क थी?’’
‘‘नहीं! उसने तो लोगों से मलना-जुलना ही ब द कर दया है। अब वह घर से
बाहर ही नहीं नकलता है।’’
‘‘तो या मै ं उसे न देख सकूँगा?’’
‘‘को शश यही क जायेगी क तुम उसे देख सको....वैसे वह मेरे सामने भी नहीं
आया था।’’
‘‘तुमने यह नहीं बताया क यह केस तुमको कससे मला?’’
‘‘उसके चचा....स जाद से....उससे मेरी पुरानी जान-पहचान है।’’
‘‘अब हम कहा ँ चलेग ं े?’’
ु ँ ा दू ।ँ ले कन ख़ुदा के लए
‘‘मेरा ख़याल है क मै ं तु हे ं जमील क कोठ मे ं पहच
बहत
ु यादा बोिरयत न फैलाना....तु हे ं अपनी इ ज़त का भी ख़याल नहीं होता।’’
‘‘मेरी फ़ तो तुम कया ही न करो। मेरी इ ज़त ज़रा वॉटर ू फ़ क़ म क है।’’
‘‘मै ं नहीं चाहता क लोग मुझे उ ू समझें।’’
‘‘हाला ँ क तुमसे बड़ा उ ू आज तक मेरी नज़रों से नहीं गुज़रा।’’ इमरान ने
सं जीदगी से कहा। ‘‘लाओ, एक सगरेट मुझे भी दो। मै ं भी अब बाक़ायदा तौर पर
सगरेट शु कर दू ग ँ ा। कल ही एक बुज़गु फ़रमा रहे थे क जन पैसों का घी-दू ध
खाते हो, अगर उ हीं के सगरेट पयो तो या हरज है।’’
‘‘अ छा, अब बकवास ब द करो।’’ फ़ैयाज़ उसक तरफ़ सगरेट केस बढ़ाता
हआ
ु बोला....और इमरान ने सगरेट केस ले कर अपनी जेब मे ं रख लया....वे दोनों
कु सयों से उठ गये।
‘‘ या मतलब....?’’ फ़ैयाज़ ने कहा।
‘‘तु हारे पास काफ़ सगरेट है।ं अब मै ं आज तो सगरेट ख़रीदने से रहा....’’
फ़ैयाज़ होंटों-ही-होंटों मे ं कु छ बड़बड़ा कर ख़ामोश हो गया।

जमील क कोठ बड़ी शानदार थी और उसका फ़ैलाव बहत ु यादा था। शायद हो
सकता है क उसक बनावट इस अ दाज़ मे ं क गयी हो क पूरा ख़ानदान उसमे ं रह
सके। लगभग प ीस कमरे ज़ र रहे होंगे।
फ़ैयाज़ इमरान को पछली रात ही यहा ँ पहच ु ँ ा गया था और फर फ़ैयाज़ वहा ँ
इतनी ही देर ठहरा था जतनी देर मे ं उसने स जाद और उसके दू सरे भाइयों से इमरान
का पिरचय कराया था। इमरान ने बाक़ रात सुकुन से गुज़ारी यानी सुबह तक
इ मीनान से सोता रहा।
दन के उजाले मे ं लोगों ने इमरान के बारे मे ं कोई अ छ राय नहीं क़ायम क ,
यों क वह सू रत ही से एक न बर का बेवक़ूफ़ लगता था।
चाय उसने अपने कमरे मे ं अकेले पी....और फर बाहर नकल कर एक-एक से
‘‘अमजाद साहब’’ के बारे मे ं पू छने लगा। ले कन सबने इस नाम को पहली बार सुना
था। कोई अमजाद साहब के बारे मे ं उसे न बता सका। आ ख़र स जाद आ टकराया।
इमरान ने उससे भी ‘‘अमजाद साहब’’ के बारे मे ं पू छा।
‘‘यहा ँ तो कोई भी अमजाद नहीं है।’’ स जाद ने कहा....
वह एक अधेड़ उ आदमी था। और उसके चेहरे पर सबसे यादा बड़ी चीज़
उसक नाक थी।
‘‘तब फर शायद मै ं ग़लत जगह पर हू।ँ ’’ इमरान ने मायू सी से कहा। ‘‘कै टन
फ़ैयाज़ ने कहा था क अमजाद साहब मेरे पुराने साथी है ं और उनके भतीजे....!’’

‘‘अमजाद नहीं स जाद,’’ स जाद ने कहा। ‘‘मै ं ही स जाद हू।’’
‘‘नहीं साहब मुझे अ छ तरह याद है। अमजाद....अगर आप स जाद कहते है ं तो
फर यही सही होगा। आपके भतीजे साहब....मै ं उनसे मलना चाहता हू।ँ ’’
‘‘बहतु मु कल है जनाब!’’ स जाद बोला। ‘‘वह कमरे से बाहर नकलता ही
नहीं....हम सब ख़ुशामद करते-करते थक गये!’’
‘‘मुझे वह कमरा ही दखा दी जए।’’
‘‘आइए.... फर को शश करे।ं हो सकता है क....मगर मुझे उ मीद नहीं।’’
ग लयारों से गुज़रने के बाद वे एक कमरे के सामने क गये इमरान ने दरवाज़े को
ध ा दया, ले कन वह अ दर से ब द था।
स जाद ने आवाज़ दी, ले कन अ दर कोई सफ़ खास ँ कर रह गया....इतने मे ं
इमरान ने जेब से सगरेट केस नकाल कर एक सगरेट स जाद को पेश कया और
दूसरा ख़ुद सुलग लया....स जाद ने सगरेट सुलगा कर फर दरवाज़े पर द तक दी।
‘‘ख़ुदा के लए मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो!’’ अ दर से एक भरायी हईु आवाज़
आयी।
‘‘जमील बेटे! दरवाज़ा खोल दो। बाहर आओ....देखो, मैनं े एक नया इ तज़ाम
कया है। हमारे दु मनों क गदने ं नाली मे ं रगड़ दी जायेग
ं ी।’’
‘‘चचा जान मै ं कु छ नहीं चाहता....मै ं कु छ नहीं चाहता।’’
‘‘हम तो चाहते है!ं ’’
‘‘बेकार है....इस कमरे से मेरी लाश ही नकलेगी....!’’
‘‘देखा आपने!’’ स जाद ने धीरे से इमरान से कहा और इमरान सफ़ सर हला
कर रह गया।
फर स जाद ख़ामोश हो कर कु छ सोचने लगा। साथ ही वह सगरेट के ल बे-
ल बे कश ले रहा था। अचानक उसके चेहरे के क़रीब एक धमाका हआ
ु और सगरेट
क ध जया ँ उड़ गयीं।
‘‘अरे, या हआ
ु !’’ स जाद चीख़ मार कर जमीन पर ढे र हो गया।
‘‘ या हआ
ु ।’’ अ दर से कोई चीख़ा। फर दौड़ने क आवाज़ आयी और दरवाज़ा
झटके के साथ खुल गया। दूसरे पल मे ं इमरान के सामने एक ल बा-चौड़ा नौजवान
खड़ा था जसके चेहरे पर बड़े -बड़े सफ़ेद ध बे थे।
उसने झपट कर स जाद को ज़मीन से उठाया और स जाद इमरान क तरफ़ देख
कर दहाड़ा।
‘‘यह या....बेहूदगी थी?’’
‘‘अरे....खु....ख़ुद....ख़ुदा क क़सम....!’’ इमरान हकलाने लगा।
‘‘यह या हआ ु ....’’ जमील ने स जाद को झं झोड़ कर कहा। ‘‘यह या था।’’
‘‘कु छ नहीं,’’ स जाद इमरान को ग़ु से से घू रता हआ
ु हाफँ रहा था।
‘‘आप कौन है?ं ’’ जमील इमरान क तरफ़ मुड़ा, ले कन फर दू सरे ही पल मे ं दोनों
हाथों से अपना चेहरा छपा कर कमरे मे ं चला गया। दरवाज़ा फर ब द हो चुका था।
‘‘मुझे बताइए क इस बेहूदगी का या मतलब था?’’ स जाद इमरान के चेहरे के
क़रीब हाथ हला कर चीख़ा। घर के कई दू सरे लोग भी वहा ँ पहच ु ँ गये थे।
‘‘दे खए! कहता हू!’’ ँ इमरान घबरायी हएु आवाज़ मे ं बोला। ‘‘यह कै टन फ़ैयाज़
क हरकत है। उसने मेरे सगरेट केस से अपना सगरेट केस बदल लया है,
दे खए.... सगरेट केस पर उसका नाम भी मौजू द है।’’
‘‘इमरान ने सगरेट केस उसे पकड़ा दया।’’
‘‘यह सगरेट दरअसल मेरे लए था।’’ इमरान फर बोला। ‘‘मुझे बहत ु अफ़सोस
है। लाहौल वला क़ूवत। आप जले तो नहीं।’’
वह आगे झुक कर उसके चेहरे का जायज़ा लेने लगा।
‘‘अगर यह मज़ाक़ था तो मै ं ऐसे मज़ाक़ पर लानत भेजता हू।ँ ’’ स जाद नाख़ुश
होते हएु बोला। ‘‘मै ं नहीं जानता था क फ़ैयाज़ अभी तक बचपने ही के दायरे मे ं है।’’
ँ ा।’’ इमरान अपनी मुि या ँ ब द करके बोला।
‘‘मै ं फ़ैयाज़ से सुलट लू ग
दूसरे लोग स जाद से धमाके के बारे मे ं पूछने लगे और स जाद ने सगरेट फटने
क बात दोहराते हएु कहा। ‘‘इस तरह अचानक हाट-फ़ेल भी हो सकता है। फ़ैयाज़
को ऐसा मज़ाक़ नहीं करना चा हए था। उसने उसके सगरेट केस से अपना सगरेट
बदल लया है। अब सोचता हू,ँ कहीं फ़ैयाज़ ने मुझसे भी तो मज़ाक़ नहीं कया है।’’
‘‘ज़ र कया होगा।’’ इमरान बेवक़ूफ़ के अ दाज़ मे ं पलकें झपकाता हआ ु
बोला।
‘‘आपका ओहदा या है?’’ स जाद ने उससे पू छा।
‘‘शोहदा....मेरा कोई शोहदा नहीं है। लाहौल वला क़ु वत.... या आप मुझे लफ़ंगा
समझते है।ं लफ़ंगा होगा वही साला फ़ैयाज़। एक बार फर लाहौल वला क़ूवत।’’
‘‘आप ऊँचा भी सुनते है!ं ’’ स जाद उसे घू रने लगा।
‘‘मै ं ऊँचा-नीचा सब कु छ सुन सकता हू!ँ ’’ इमरान बुरा-सा मुह ँ बना कर बोला
और सगरेट केस से दूसरा सगरेट नकालने लगा.... फर इस तरह चौंका जैसे धमाके
वाली बात भू ल ही गया हो उसने झ ाहट के साथ सारे सगरेट तोड़ कर फेंक दये
और सगरेट केस को ज़मीन पर रख कर पहले तो उस पर घू स ँ े बरसाता रहा.... फर
खड़ा हो कर जू तों से रौंदने लगा। नतीजा यह हआ ु क सगरेट केस क श ल ही
बगड़ गयी।
कु छ लोग मु कु रा रहे थे और कु छ उसे हैरत से देख रहे थे।
‘‘मैनं े आपका ओहदा पूछा था।’’ स जाद बोला।
‘‘मै ं आपके कसी सवाल का जवाब नहीं दू ग ँ ा।’’ इमरान क आवाज़ कु छ अजीब
थी। ‘‘मै ं अभी वापस जाऊँगा। फ़ैयाज़ क वैसी-क =ऐसी....ऐसी-क -ऐसी....लाहौल
वला क़ूवत.... या कहते है इसे....वैसी-क -जैसी....!’’
‘‘ऐसी-क -तैसी!’’ एक लड़क ने हसते ँ हएु उसक बात पू री क ।
‘‘जी हा!ँ ऐसी-क -तैसी....शु या....!’’ इमरान ने कहा और ल बे-ल बे क़दम
उठाता हआ ु वहा ँ से चला गया। लड़क ने स जाद का हाथ पकड़ा और एक दू सरे
कमरे मे ं ले आयी।
‘‘ये आदमी बड़ा घाघ मालू म होता है।’’ उसने स जाद से कहा।
‘‘ बलकु ल गधा।’’
‘‘नहीं डै डी! मै ं ऐसा नहीं समझती....जमील भाई को कमरे से नकालने क एक
बेहतरीन तदबीर थी....यह बताइए क पहले भी कोई इसमे ं कामयाब हो सका था।
ख़ुद फ़ैयाज़ साहब ने भी तो को शश क थी।
स जाद कु छ न बोला। उसके माथे पर लक रे ं उभर आयीं। उसने थोड़ी देर बाद
कहा।
‘‘तुम ठ क कहती हो सईदा! बलकु ल ठ क! मगर कमाल है....सू रत से
बलकु ल गधा मालू म होता है।’’
‘‘ डपाटमेट
ं ऑफ़ इ वे टगेशन मे ं ऐसे ही लोग यादा कामयाब समझे जाते है।ं ’’
इमरान ग लयारे से कु छ इस अ दाज़ मे ं सत हआु था जैसे अपने कमरे मे ं
ु ँ ही वहा ँ से रवाना हो जाने क तैयािरया ँ शु करेगा।
पहचते
‘‘अब या कया जाये!’’ स जाद ने सईदा से कहा।
‘‘आप जा कर उसे रो कए।’’
‘‘मै.ं ...मै ं नहीं, तुम जाओ....!’’
‘‘अ छा....मै ं ही रोकती हू!ँ ’’
सईदा उस कमरे मे ं आयी जहा ँ इमरान का हआ ु था। दरवाज़ा अ दर से ब द
नहीं था। उसने द तक दी। ले कन जवाब नहीं मला। आ ख़र तीसरी द तक के बाद
उसने ध ा दे कर दरवाज़ा खोल दया। कमरा ख़ाली था। ले कन इमरान का सामान
वैसे ही मौजू द था। फर नौकरों से पूछने पर मालू म हआु क इमरान ख़ाली हाथ बाहर
गया है।

पेिर सयन नाइट लब दन मे ं भी आबाद रहता था....वजह यह थी क वहा ँ रहने के
लए वाले कमरे भी मलते थे....और वहा ँ कने वाले पमानेट ं मे बर कहलाते थे और
फर चू ँ क यह सीज़न का ज़माना था, इस लए यहा ँ चौबीस घ टों क स वस चलती
थी।
इमरान ने डाइ नं ग हॉल मे ं दा ख़ल हो कर चारों तरफ़ देखा और फर एक कोने मे ं
जा बैठा। उसके पीछे खड़क थी। उसने वेटर को बुला कर आइस म का ऑडर
दया। हाला ँ क भीड़ इस व त भी अ छ -ख़ासी थी....
वह थोड़ी देर तक आइस म खाता रहा.... फर अचानक इस तरह उछला क
सीने के बल मेज़ पर आ गरा। वहा ँ से फसल कर ज़मीन पर गरा और फर वह इस
तरह कपड़े झाड़-झाड़ कर उछल-कु द कर रहा था जैसे कपड़ों मे ं शहद क म खया ँ
घुस गयी हों।
हॉल मे ं उस व त यादा आदमी नहीं थे। बहरहाल, जतने भी थे वह अपनी
जगहों पर बैठे तो नहीं रह सकते थे।
‘‘ या बात है.... या हआ ु ?’’ कसी ने पू छा।
ँ ता हआ
‘‘प....पा....पिर....पिर दा....!’’ इमरान एक कु स पर हाफ ु बोला फर
उसने उस खड़क क तरफ़ इशारा कया जसके क़रीब बैठ कर उसने आइस म
खायी थी।
‘‘पिर दा!’’ एक लड़क ने डरी हईु आवाज़ मे ं दोहराया।
और फर लोग अलग-अलग तरह क बाते ं करने लगे। वेटरों ने झपट-झपट कर
सारी खड़ कया ँ ब द कर दीं।
ले कन इतने मे ं एक भारी-भरकम आदमी इमरान के क़रीब पहच ु ँ गया और वह
सूरत से कोई अ छा आदमी नहीं मालू म होता था। उसका चेहरा कसी बुलडॉग के
चेहरे से मलता-जुलता था।
‘‘पिर दा!’’ वह इमरान के क धे पर हाथ मार कर ग़ुराया। ‘‘ज़रा मेरे साथ
आइए!’’
‘‘ क-क.... यों?’’
‘‘इस लए क मै ं यहा ँ का मैनेजर हू!’’ ँ उसने इमरान क बग़लों मे ं हाथ दे कर उसे
कु स से उठा दया।
इमरान को उसके इस रवैये पर हैरत ज़ र हईु , ले कन वह ख़ामोश रहा और
उसने उसे इस बात का मौक़ा नहीं दया क वह बग़लों मे ं हाथ दये हएु ही उसे अपने
साथ ले जाता।
मैनेजर ने उसे अपने कमरे मे ं खींच कर दरवाज़ा अ दर से ब द कर लया। इमरान
उस व त पहले से भी यादा बेवक़ूफ़ दख रहा था।
‘‘हू!ँ या क़ सा था पिर दे का!’’ वह इमरान को घू रता हआु ग़ुराया।
‘‘ क़ सा तो मुझे याद नहीं!’’ इमरान ने बड़ी सादगी से कहा, ‘‘ले कन पिर दा
ज़ र था....! नीला....!’’
‘‘और वह तु हारी गदन मे ं लटक गया! यों?’’
‘‘नहीं लटक सका....! मै ं दावे से कहता हू.ँ ...!’’
‘‘तु हे ं कसने भेजा है। उसने मेज़ का दराज़ खोल कर लोहे का एक दो फ़ु ट ल बा
एक ल नकालते हएु कहा।
‘‘ कसी ने नहीं! मै ं घर वालों से छप कर यहा ँ आया था....!’’ इमरान ने
लापरवाही से जवाब दया, ले कन उसक नज़रे ं लोहे के उस ल पर थीं।
‘‘मै ं तु हारी हि या ँ भू सा कर दू ग
ँ ा।’’ मैनेजर गदन टाइट करके बोला।
‘‘ या वा लद साहब ने ऐसा कहा है?’’ इमरान ने डरी हईु आवाज़ मे ं पू छा।
‘‘तु हे ं यहा ँ कसने भेजा है?’’
‘‘अ छा, तुम ही बताओ क कौन भेज सकता है?’’ इमरान ने सवाल कया,
ले कन मैनेजर ल सभ ँ ाल कर उस पर टू ट पड़ा।
इमरान ‘‘अरे’’ करता हआ ु एक तरफ़ हट गया.... ल दीवार पर पड़ा और मैनेजर
फर पलटा....दू सरा हमला भी ख़तरनाक था। ले कन इस बार मैनेजर अपनी ही झोंक
मे ं मेज़ से जा टकराया और फर मेज़ के साथ ही ख़ुद भी उलट गया। मौक़ा था इमरान
चाहता तो इतनी देर मे ं दरवाज़ा खोल कर कमरे से बाहर नकल सकता था....! मगर
वह बेवकूफ़ों क तरह खड़ा....‘‘अरे अरे’’....ही करता रहा।
‘‘आपके कहीं चोट तो नहीं आयी?’’ इमरान ने उस व त पू छा जब वह दू सरी
तरफ़ हाथ टेक कर उठ रहा था। उसके इस जुमले पर मैनेजर को इतना ज़बद त
ग़ु सा आया क वह एक बार फर उलटी हईु मेज़ पर ढे र हो गया....!
ँ ा!’’ मैनेजर दोबारा उठने क को शश करता हआ
‘‘मै ं तु हे ं ज़ दा नहीं छोड़ूग ु
ग़ुराया।
‘‘आप बेकार मे ं नाराज़ हो रहे है,ं चचा जान!’’ इमरान ने बहत ु ही सादगी से
कहा। ‘‘आप यक़ नन वा लद साहब के दो त मालू म होते है!ं अगर आपक यही
वा हश है तो आइ दा मै ं यहा ँ नहीं आऊँगा!’’
मैनेजर सामने खड़ा उसे घू र रहा था और उसका सीना सास ँ के उतार-चढ़ाव के
साथ फूल- पचक रहा था...
‘‘जी हा!’’ँ इमरान बेवकूफ़ों क तरह सर हला कर बोला। ‘‘वा लद साहब
कहते है ं क जहा ँ औरते ं भी हों, वहा ँ न जाया करो....जी हा.ँ ...कान पकड़ता हू.ँ ...अब
कभी न आऊँगा।’’
मैनेजर फर भी न बोला। वह एक कु स पर बैठ कर इमरान को घू रने लगा।
इमरान भी सर झुकाये खड़ा रहा....उसके इस रवैये ही ने मैनेजर को उलझन मे ं डाल
दया, वरना यह बात वह भी सोच सकता था क इमरान अगर भागना चाहता तो वह
उसे रोक न पाता।
ँ ों से देखा था....?’’ उसने थोड़ी देर बाद पू छा।
‘‘पिर दा! तुमने अपनी आख
‘‘वह मेरी गदन से टकराया था....! मुझे परों क ह क -सी झलक दखाई दी
थी.... फर मै ं नहीं जानता क वह कधर गया।’’
‘‘बकवास.... बलकु ल बकवास....मेरे लब को बदनाम करने क एक सोची-
समझ सा ज़श....!’’
‘‘मै ं बलकु ल नहीं जानता क आप या कह रहे है।ं ’’
‘‘तुम बस यहा ँ से चुपचाप चले जाओ और कभी यहा ँ तु हारी श ल न दखाई दे!
समझे!’’
इमरान कु छ सोचने लगा। फर सर हला कर बोला। ‘‘यह कोई दू सरा मामला
मालू म होता है....आप वा लद साहब के दो त नहीं है।ं यों?’’
‘‘चले जाओ!’’ मैनेजर गला फाड़ कर बोला।
‘‘तुम मेरी बेइ ज़ती कर रहे हो दो त!’’ इमरान अचानक सं जीदा हो गया।
‘‘तुम कौन हो?’’

‘‘मै ं सैलानी हू....और मैनं े उस नीले पिर दे के बारे मे ं अख़बारों मे ं पढ़ा था।’’
‘‘सब बकवास है!’’ मैनेजर गुराया....! ‘‘वह पिर दा उस कु े जमील के अलावा
और कसी को नहीं दखाई दया था.... लब को बदनाम करने का एक ग़लत तरीक़ा
है!’’
‘‘तब तो ज़ र यही बात हो सकती है....और मै ं सच कहता हू ँ क मुझे भी इस
कहानी पर यक़ न नहीं आया है।’’
‘‘अभी तुमने या वागँ भरा था।’’ मैनेजर फर झ ा कर खड़ा हो गया।
‘‘बैठो, बैठो! यह मेरा पेशा है!’’ इमरान हाथ उठा कर बोला।
‘‘ या पेशा....?’’
‘‘मै ं अख़बार का िरपोटर हू....च ँ दर नगर का मशहूर अख़बार....? ‘भोर
हईु ’....नाम सुना होगा तुमने....मै ं सही बात मालू म करने के लए यहा ँ आया हू।ँ ’’
‘‘तुम झू ठे हो!’’ मैनेजर ग़ुराया।
‘‘तु हारे पास या सबू त है क मै ं झू ठा हू.ँ ...मुझे सही मालू मात हा सल करनी है,ं
वरना मै ं अब तक यहा ँ ठहरता यों....? मेरा सर इतना मज़बू त नहीं है क लोहे क
रॉड से मोह बत कर सके।’’
‘‘तो तुमने पिर दे का नाम इस तरह यों लया था?’’
‘‘ सफ़ इस लए क तुम मुझसे खुल कर बातचीत कर सको....! तुमने सफ़ ग़ु से
मे ं इस बात का इज़हार कर दया क यह तु हारे लब को बदनाम करने के लए एक
सा ज़श है.... या तुमने दू सरे अख़बार के िरपोटरों से भी यही कहा होगा।’’
‘‘नहीं!’’ मैनेजर अपने होंटों पर ज़बान फेर कर बोला।
‘‘ यों?’’
ले कन मैनेजर ने इस ‘‘नहीं’’ का कोई जवाब नहीं दया।
इमरान ने सर हला कर कहा, ‘‘तुमने इस लए इस बात का इज़हार नहीं कया
क जमील शहर का एक बहतु बड़ा आदमी है....’’
इस पर मैनेजर ने शहर के उस बहत
ु बड़े आदमी को ग दी-सी गाली दी और फर
ख़ामोश हो गया।
‘‘ठ क है! तुम खु म-खु ा नहीं कह सकते। ज़ा हर है क तु हारा लब उ हीं
बड़े आद मयों क वजह से चलता है।’’
मैनेजर ने तमाम बड़े आद मयों के लए भी वही गाली दोहरायी और अपने जेब मे ं
हाथ डाल कर सगरेट का पैकेट तलाश करने लगा।
‘‘ठ क है!’’ इमरान मु कु रा कर बोला। ‘‘मै ं तुमसे हमदद रखता हू,ँ ले कन मुझे
सही बात का जानना ज़ री है।’’
‘‘मै ं दावे से कह सकता हू ँ क वह पिर दा जमील के अलावा और कसी को नहीं
दखाई दया था।’’
‘‘ले कन जमील तु हारे लब को बदनाम यों करना चाहता है?’’
‘‘मैनं े इले शन मे ं उसके ख़लाफ़ अपना कैंडीडे ट उतारा था!’’ मैनेजर बोला।
‘‘मगर मेरा ख़याल है क उसने इले शन मे ं ह सा नहीं लया था।’’ इमरान ने
कहा।
‘‘वह ख़ुद ह सा नहीं लेता, मगर अपने उ मीदवार खड़े करता है....और उसक
यही को शश होती है क इस इलाक़े से उसके उ मीदवार के अलावा और कोई
कामयाबी न हा सल कर सके।’’
‘‘अ छा ख़ैर....हा ँ मगर इले शन का नतीजा या नकला था?’’
‘‘उसके दो उ मीदवार कामयाब न हो सके।’’
‘‘और वह इसके बावजू द भी तु हारे लब मे ं आता रहा था?’’ इमरान ने कहा।
‘‘हा.ँ ...इसी पर तो मुझे हैरत थी, ले कन उस पिर दे वाले मामले ने मेरी आख ँ ें
खोल दीं। वह इस तरह बदला लेना चाहता है। आधे से यादा पमानेट ं मे बरों ने
लब मे ं आना छोड़ दया है....और रोज़ाना के ाहकों मे ं भी कमी आ गयी है।’’
‘‘अ छा, अगर यह सा ज़श है तो मै ं देख लू ग ँ ा!’’ इमरान बोला। ‘‘और मै ं यहा ँ से
उस व त तक न जाऊँगा जब तक क हक़ क़त न मालू म कर लू ।ँ ’’
मैनेजर कु छ नहीं बोला। उसके चेहरे पर यक़ न और शक क कशमकश के
आसार दख रहे थे।

शाम बड़ी सुहानी थी, सूरज दूर क पहा ड़यों क तरफ़ झुक रहा था और कापती ँ हईु
लाली जैसी धू प हरी-हरी च ानों पर बखरी हईु थी।
इमरान चलते-चलते अचानक मुह ँ के बल गर पड़ा पहले तो छोटी-छोटी ब यों
ने ठहाका लगाया, ले कन जब इमरान उठने के बजाय चुपचाप औंधा पड़ा ही रहा तो
ब यों के साथ वाले उसक तरफ़ दौड़ पड़े ....उनमे ं से दो जवान लड़ कया ँ थीं और
तीन मद। एक ने इमरान को सीधा कया....और फर अपने सा थयों क तरफ़ देख
कर बोला।
‘‘बेहोश हो गया है....!’’
‘‘दे खए, सर तो नहीं फटा!’’ एक लड़क बोली....और वह आदमी इमरान का
सर टटोलने लगा।
ये लोग अपने कपड़ों क वजह से अमीर घराने के मालू म हो रहे थे।
‘‘नहीं, सर महफ़ूज़ है।’’ नौजवान बोला। ‘‘यह शायद कसी क़ म का दौरा
है.... या कहते है ं उसे.... मग .... मग ....!’’ वह इमरान को होश मे ं लाने क को शशे ं
करने लगा।
सामने ही एक आलीशान इमारत थी और यहा ँ से उसक दूरी यादा नहीं थी....यह
नवाब जावेद मज़ा क कोठ थी....
‘‘अब या करना चा हए?’’ नौजवानों मे ं से एक ने कहा। ‘‘यह बेचारा कब तक
पड़ा रहेगा.... यों न हम इसे उठा कर कोठ मे ं ले चले।ं ’’
लड़ कयों ने भी इस बात पर हामी भरी, ले कन तीसरा जो सबसे अलग-थलग
ँ बना कर बोला। ‘‘मेरा ख़याल है क इसक ज़ रत नहीं।’’
खड़ा था, मुह
‘‘ यों?’’ एक लड़क झ ा कर उसक तरफ़ मुड़ी।
‘‘यह मुझे कोई अ छा आदमी नहीं मालू म होता।’’
ँ बना कर मे ं कहा। ‘‘दु नया का कोई आदमी
‘‘बुरा ही सही!’’ लड़क ने मुह
फ़िर ता नहीं होता।’’
इमरान को ज़मीन से उठाया गया, ले कन वह तीसरा अलग ही रहा।
हाला ँ क वे दोनों उसक मदद क ज़ रत महसू स कर रहे थे.... यों- यों करके
वह कोठ मे ं दा ख़ल हएु और सबसे पहला कमरा जो उनक पहच ु ँ मे ं था, उसमे ं
इमरान को लटा दया गया। वे उसे होश मे ं लाने के लए तरह-तरह क को शशे ं करते
रहे, ले कन सब बेकार। आ ख़र थक-हार कर उ हे ं डॉ टर को फ़ोन करना पड़ा....
‘‘यह बन रहा है!’’ उस आदमी ने कहा जसने उसे बुरा आदमी कहा था।
‘‘तुम बेवक़ूफ़ हो!’’ लड़क बोली।
‘‘हो सकता है शौकत का ख़याल ठ क हो?’’ दू सरे ने कहा।
‘‘तुम भी बेवक़ूफ़ हो!’’
पहले ने कु छ नहीं कहा। दूसरी लड़क भी ख़ामोश हो गयी।
ँ शौकत आगे बढ़ कर बोला।
‘‘अ छा, मै ं इसे होश मे ं लाता हू।’’
‘‘नहीं.... बलकु ल नहीं!’’ लड़क ने कड़ी आवाज़ मे ं कहा। ‘‘डॉ टर आ रहा है।’’
‘‘तु हारी ज !’’ शौकत बुरा-सा मुहँ बनाते हएु पीछे हट गया।
इतने मे ं एक बू ढ़ा कमरे मे ं आया। उसक उ स र के आस-पास रही होगी।
ले कन सेहतम द था। सफ़ेद बालों मे ं भी वह जवान लगता था।
‘‘ या बात है....? यह कौन है?’’
‘‘एक राहगीर!’’ लड़क ने कहा। ‘‘चलते-चलते गरा और बेहोश हो गया।
‘‘ले कन है कौन?’’
‘‘पता नहीं! तब से अब तक बेहोश है!’’
‘‘ओह....तुम लोगों को बलकु ल अ ल नहीं! हटो उधर, मुझे देखने दो।’’
ँ के क़रीब पहच
बू ढ़ा पलग ु ँ कर बोला। ‘‘आदमी है सयत वाला मालू म होता है।
उसक जेब मे ं व ज़ टं ग काड ज़ र होगा। तुम लोग अब तक झक मारते रहे हो।’’
उसने इमरान क जेबे ं टटोलने के बाद आ ख़रकार एक व ज़ टं ग काड नकाल
ही लया....और उस पर नज़र डालते ही उसने ठहाका लगाया।
‘‘हाहा....देखा परवीन! मै ं न कहता था क कोई है सयत वाला आदमी है....ये
देखो....! राजकु मार सतवत जाह!’’
‘‘राजकु मार सतवत जाह!’’ शौकत ने बुरे अ दाज़ मे ं दोहराया।
परवीन बू ढ़े के हाथ से काड ले कर देखने लगी।
‘‘हो सकता है क यह मुझसे मलने ही के लए इधर आया हो!’’ बू ढ़े ने कहा।
शौकत दूसरी लड़क के क़रीब खड़ा धीरे-धीरे कु छ बड़बड़ा रहा था।
अचानक वह लड़क बू ढ़े से बोली। ‘‘शौकत भाई का ख़याल है क यह श स
बेहोश नहीं है!’’
‘‘तु हारा या ख़याल है?’’ बू ढ़े ने लड़क से पूछा।
‘‘बात यह है क अब तक होश मे ं आ जाना चा हए था।’’ लड़क ने कहा।
‘‘यानी तुम भी यही समझती हो क यह बन रहा है।’’
‘‘जी हा!ँ मेरा भी यही ख़याल है।’’
‘‘अ छा, तो इस मामले मे ं जसे भी शौकत क बात ठ क लगती हो, वह अपने
हाथ उठा दे!’’ बू ढ़े ने उनक तरफ़ देख कर कहा। परवीन के अलावा और सब ने
हाथ उठा दये।
‘‘ यों, तुम उन लोगों से सहमत नहीं हो?’’ बू ढ़े ने उससे पू छा।
‘‘नहीं! अ बा हज़ु ू र....!’’
‘‘अ छा, तो तुम यहीं ठहरो....और तुम सब यहा ँ से दफ़ा हो जाओ!’’ बू ढ़े ने हाथ
झटक कर कहा। परवीन के अलावा बाक लोग चले गये।
नवाब जावेद मज़ा अपनी बातों मे ं झ था....और उसके ज़ेहन मे ं जो बात
बैठती, प थर क लक र हो जाती... जो लोग उससे कसी बात पर सहमत न होते,
उ हे ं आम तौर पर नुक़सान ही मे ं रहना पड़ता था। उसके तीनों भतीजे शौकत, इरफ़ान,
सफ़दर और भां जी रेहाना उस व त धोखे ही मे ं रहे....इस लए उ हे ं उसके ग़ु से का
शकार होना पड़ा....उ हे ं यह नहीं मालू म था क नवाब जावेद मज़ा क राय अलग
होगी।
‘‘मेरा ख़याल भी कभी ग़लत नहीं होता।’’ जावेद मज़ा ने परवीन क तरफ़ देख
कर कहा, ‘‘या होता है!’’
‘‘कभी नहीं।’’
इतने मे ं डॉ टर आ गया....वह काफ़ देर तक इमरान को देखता रहा।
फर जावेद मज़ा क तरफ़ देख कर कहा। ‘‘आपका या ख़याल है?’’
‘‘नहीं, तुम पहले अपना ख़याल ज़ा हर करो।’’
‘‘जो आपका ख़याल है, वही मेरा भी है।’’
‘‘यानी....!’’
डॉ टर कशकमश मे ं पड़ गया। वह यहा ँ का फ़ै मली डॉ टर था और यहा ँ से उसे
सैकड़ों पये महीना आमदनी होती थी। इस लए वह बहत ु ख़ामोश रहता था.... वह
जावेद मज़ा के सवाल का जवाब दये बग़ैर एक बार फर इमरान पर झुक गया।
‘‘हा,ँ हा!ँ ’’ जावेद मज़ा सर हला कर बोला। ‘‘अ छ तरह इ मीनान कर
लो.... फर ख़याल ज़ा हर करना।’’
जावेद मज़ा टहलने लगा थोड़ी देर के लए उसक पीठ उनक तरफ़ हईु और
परवीन ने इशारे से डॉ टर को समझा दया....
जावेद मज़ा टहलता रहा....वह धीरे-धीरे बड़बड़ा रहा था। ‘‘राजकु मार सतवत
जाह....राजकु मार सतवत जाह....वाह नाम ही से शान टपकती है। पुरानी अज़मतों का
एहसास होता है....!’’
‘‘जनाबे आली....! डॉ टर सीधा खड़ा होता हआु बोला। ‘‘बेहोशी! गहरी
बेहोशी....मगर यह कोई ज नहीं मालू म होता।’’
‘‘ख़ू ब! तो तुम भी मुझसे सहमत हो!’’
‘‘ बलकु ल जनाब....!’’
‘‘ फर....! यह होश मे ं कैसे आयेगा।’’
‘‘मेरा ख़याल है....ख़ुद-ब-ख़ुद....दवा क ज़ रत नहीं!’’
‘‘मगर मेरा ख़याल है क दवा क ज़ रत है।’’
‘‘अगर आपका ख़याल है तो फर होगी....आप मुझसे यादा तज बेकार है।ं ’’
डॉ टर ने कहा।
‘‘नहीं भई! भला मै ं कस क़ा बल हू।ँ ’’ जावेद मज़ा ने मु कु रा कर कहा।
‘‘ फ़लहाल मै ं एक इं जे शन दे रहा हू।ँ ’’
ँ बनाया। ‘‘पता नहीं.... या हो गया है
‘‘इं जे शन,’’ जावेद मज़ा ने बुरा-सा मुह
आजकल के डॉ टरों को....इं जे शन के अलावा और कोई इलाज ही नहीं है।’’
‘‘ फर आप या चाहते है?ं ’’ डॉ टर ने उकताये हएु अ दाज़ मे ं पू छा।
‘‘कोई नया....तरीक़ा....एक बार ना दर शाह दुरानी ने....’’
अचानक इमरान बौखला कर उठ बैठा।
‘‘गेट आउट....आल ऑफ़ यू।’’ उसने झ ाये हएु अ दाज़ मे ं कहा और फर चारों
तरफ़ देख कर श म दा हो जाने के अ दाज़ मे ं होंटों पर ज़बान फेर फेर कर थू क
नगलने लगा।
‘‘अब कैसी तबीयत है?’’ जावेद मज़ा ने पू छा।
‘‘वह तो ठ क है....मगर....!’’ इमरान आख ँ े ं फाड़-फाड़ कर चारों तरफ़ देखने
लगा।
‘‘मै ं जावेद मज़ा हू.ँ ...यह परवीन है....और यह डॉ टर फ़तरत!’’
‘‘इशरत!’’ डॉ टर ने अपना नाम ठ क करके दोहराया।
‘‘और मै.ं ...!’’
‘‘हा-ँ हा!ँ तुम सतवत जाह....हो! शहज़ादा सतवत जाह!’’
‘‘हायँ ....!’’ इमरान आख
ँ े ं फाड़ कर बोला। ‘‘आप मेरा नाम कैसे जान गये?’’
इस पर जावेद मज़ा सफ़ मु कु रा कर रह गया।
‘‘मैनं े अभी तक कसी पर अपनी अस लयत ज़ा हर नहीं क थी....आपको
कैसे....?’’
‘‘परवाह मत करो....!’’ जावेद मज़ा ने कहा....‘‘अब तु हारी तबीयत कैसी है।’’
‘‘मगर मै ं यहा ँ कैसे आया....!’’
‘‘तुम चलते-चलते गर कर बेहोश हो गये थे!’’ जावेद मज़ा बोला।
‘‘हायँ !’’ इमरान के मुहँ पर हवाइया ँ उड़ने लगीं। ‘‘कोई ऐ सडे ंट तो नहीं हआ
ु ?’’
‘‘ऐ सडे ंट!’’ जावेद मज़ा ने हैरत ज़ा हर क । ‘‘मै ं तु हारा मतलब नहीं समझा।’’
‘‘मेरी कार कहा ँ है?’’
‘‘कार,’’ परवीन उसे घू र कर बोली। ‘‘आप तो पैदल थे....हमने कोई कार नहीं
देखी।’’
‘‘मज़ाक़ न क जए!’’ इमरान घ घया कर बोला।
‘‘नहीं, ब-ख़ुदा वहा ँ कोई कार नहीं थी।’’
‘‘मेरे ख़ुदा....! या मै ं वाब देख रहा हू?ँ ’’ इमरान अपना माथा रगड़ने लगा।
‘‘ या मामला है?’’ जावेद मज़ा ने पू छा।
‘‘मै ं अपनी कार ख़ुद चला रहा था।’’ इमरान ने कहा।
इस बात का नतीजा यह हआु क घर के सारे लोग उसक कार ढू ढ ँ ने के लए
नकल पड़े । ले कन काफ़ भाग-दौड़ के बाद भी कार न मली। बड़ी दू र-दू र तक कार
तलाश क गयी। मगर....वहा ँ था या....? थोड़ी देर बाद सब वापस इक े हएु ।
शौकत, इरफ़ान, सफ़दर और रेहाना सभी मौजू द थे।
शौकत बार-बार इमरान को अजीब नज़रों से घू रने लगता था.... ऐसा लग रहा था
क जैसे वह उन सबसे नाराज़ हो.... उसने इस दौरान एक बार भी हैरत ज़ा हर नहीं क
थी।
‘‘सरदारगढ़....भूतों का अ ा बन गया है!’’ जावेद मज़ा बड़बड़ाया।
‘‘रोज़ एक अनहोनी बात सामने आती है....वैसे सतवत जाह तुम ठहरे कहा ँ
हो?’’
‘‘रॉयल होटल मे.ं ...!’’
‘‘सरदारगढ़ कब आये हो?’’
‘‘परसों!’’
‘‘ फर तुम अपनी कार के लए या करोगे?’’
‘‘स क ँ गा....!’’
‘‘आप कहा ँ के राजकु मार है ं जनाब?’’ तभी शौकत ने पू छा।
‘‘ ं स ऑफ़ ढ प!’’ इमरान अपनी गदन स त करके बोला।
‘‘ये ढ प या बला है?’’
‘‘न शे मे ं तलाश क जए! आप हमारी तौहीन कर रहे है!ं ’’
‘‘शौकत, बाहर जाओ!’’ जावेद मज़ा बगड़ गया।
‘‘शौकत चुपचाप उठा और बाहर चला गया।
‘‘तुम कु छ ख़याल न करना।’’ जावेद मज़ा ने इमरान से कहा। ‘‘यह ज़रा
बद दमाग़ है।’’
‘‘आप भी मेरी तौहीन कर रहे है!ं ’’ इमरान ने नाख़ुश होते हएु कहा। ‘‘न आप, न
जनाब....तुम....यह भी कोई बात हईु ....!’’

‘‘मै ं नवाब जावेद मज़ा हू!’’
‘‘अ छा!’’ इमरान उछल कर खड़ा हो गया.... फर आगे बढ़ कर उससे हाथ
मलाता हआु बोला, ‘‘आपसे मल कर बड़ी ख़ुशी हईु ....!’’
‘‘मुझे भी हईु !’’
‘‘और ये सब हज़रात....और....औरते.ं ...!’’
‘‘यह इरफ़ान है! यह सफ़दर है....यह परवीन....यह रेहाना....!’’

‘‘यह परवीन....’’ इमरान सफ़दर क तरफ़ इशारा करके बोला। फर अपना मुह
पीटने लगा....‘‘लाहौल वला क़ूवत....भूल गया....!....यह यह!’’
जावेद मज़ा ने एक बार फर उनके नाम दोहरा कर इमरान को समझाने क
को शश क ।
‘‘उन सब क रगों मे ं आपका ख़ू न है?’’ इमरान ने पू छा।
‘‘हा,ँ ये दोनों मेरे भतीजे है।ं यह भां जी और यह बेटी!’’
‘‘और....वो साहब जो चले गये?’’
‘‘वह भी भतीजा है!’’
‘‘एक बार फर बड़ी ख़ुशी हईु !’’ इमरान ने फर जावेद मज़ा से बड़ी गमजोशी के
साथ हाथ मलाया।
‘‘मगर आपक कार का या होगा?’’ जावेद मज़ा ने अफ़सोस ज़ा हर करते हएु
कहा। ‘‘एक बार फर याद क जए क आपने उसे कहा ँ छोड़ा था।’’
‘‘पता नहीं मैनं े उसे छोड़ा था या उसने मुझे छोड़ा था....मुझे सबसे पहले इस पर
ग़ौर करना चा हए।’’
अचानक नवाब जावेद मज़ा ने नाक सकोड़ कर बुरा-सा मुह ँ बनाया।
‘‘सचमुच....! मै ं उस शौकत को यहा ँ से नकाल दू गँ ा।’’ उसने कहा।
‘‘नहीं, मै ं ख़ुद ही जा रहा हू!ँ ’’ इमरान ने उठते हएु कहा।
‘‘अरे, अरे....आपके लए नहीं कहा गया!’’ जावेद मज़ा उसे क धों से पकड़ कर
बठाता हआ ु बोला। ‘‘वह तो मै ं शौकत को कह रहा था। या आप कसी क़ म क
बू नहीं महसू स कर रहे है?ं ’’

‘‘कर रहा हू....! वाक़ई ये या बला है!’’ इमरान अपने नथुने ब द करके
मन मनाया।
‘‘उसे साइ ट ट कहलाये जाने का ख़ त है...इस व त शायद वह अपनी
लेबोरेटरी मे ं है और यह बदबू कसी गैस क है। ख़ुदा क पनाह....ऐसा मालू म होता है
जैसे भं गयों क फ़ौज कहीं क़रीब ही माच कर रही हो।’’
‘‘कम-से-कम शाही ख़ानदान के लोगों के लए तो यह मुना सब नहीं है!’’ इमरान
ने होंट सकोड़ कर कहा।
‘‘आपके ख़यालात बहत ु अ छे है.ं ...बहत
ु अ छे ....’’ जावेद मज़ा उसे तारीफ़
नज़रों से देखता हआु बोला। फर परवीन क तरफ़ मुड़ कर बोला ‘‘देखा....! मै ं न
कहता था। आज भी शाही ख़ानदानों मे ं ऐसे नौजवान मौजू द है। ज हे ं आम लोगों से
नफ़रत है....! ये साइ ट ट-वाइ ट ट होना हमारे ब ों के लए मुना सब नहीं है।
डॉ टर इशरत! तुम जा सकते हो!’’
जावेद मज़ा ने आ ख़री जुमला डॉ टर क तरफ़ देखे बग़ैर कहा था। डॉ टर
चला गया।

उसी शाम को शी भी इमरान क टू-सीटर कार ले कर सरदारगढ़ पहच ु ँ गयी। इमरान
ने सुबह ही उसे उसके लए तार दया था और उसे उ मीद थी क शी दन डूबते-
डूबते सरदारगढ़ पहच ु ँ जायेगी। उसे डपाटमेट ं ऑफ़ इ वे टगेशन का एक आदमी
जमील क कोठ तक पहचा ु ँ गया था....
इमरान अपना काम करने का तरीक़ा तय कर चुका था....और क म के तहत
उसे रॉयल होटल मे ं ठहरना था। वहा ँ कमरे लेने मे ं कोई द क़त नहीं हईु और यह
हक़ क़त है क उसने वहा ँ के र ज टर मे ं अपना नाम शहज़ादा सतवत जाह ही
लखवाया....और शी, शी ही रही। उसे शहज़ादे साहब क ाइवेट से े टरी क
है सयत हा सल थी।
रात का खाना उ होंने डाइ नं ग हाल मे ं खाया....और फर इमरान शी को यहा ँ के
हालात बताने लगा....अचानक उसक नज़र शौकत और इरफ़ान पर पड़ी जो उनसे
काफ़ दूरी पर बैठे उन दोनों को घू र रहे थे।
इमरान ने हाल पू छने के अ दाज़ मे ं अपने सर को हलाया और इरफ़ान अपनी
मेज़ से उठ कर तीर क तरह उनक तरफ़ आया। ले कन शौकत ने मुह ँ फेर लया।
‘‘बै ठए.... म टर परवान!’’ इमरान ने ख़ुशी के अ दाज़ मे ं बोला।
‘‘परवान नहीं इरफ़ान....!’’ उसने बैठते हएु कहा।
‘‘आप कु छ ख़याल न क जएगा!’’ इमरान ने श म दगी ज़ा हर क । ‘‘मुझे नाम
अ सर ग़लत ही याद आते है।ं ’’
‘‘आपने इरफ़ान और परवीन को गडमड कर दया।’’ इरफ़ान हसने ँ लगा।
‘‘अ सर ऐसा भी होता है। क हए आपक गाड़ी मली....?’’
‘‘लाहौल वला क़ूवत! या कहू!ँ ’’ इमरान और यादा श म दा नज़र आने लगा।
‘‘ यों, या हआ ु ?’’
‘‘वह कमब त तो यहा ँ गैराज मे ं ब द पड़ी थी और मुझे याद आ रहा था क मै ं
गाड़ी ही पर था।’’
‘‘ख़ू ब!’’ इरफ़ान उसे अजीब नज़रों से देखने लगा, ले कन वह बार-बार नज़रे ं चुरा
कर शी क तरफ़ भी देखता जा रहा था। जो सचमुच ऐसे अ दाज़ मे ं बैठ थी जैसे
कसी शहज़ादे क ाइवेट से े टरी हो।
‘‘से े टरी!’’ अचानक इमरान उसक तरफ़ मुड़ कर अं ेज़ी मे ं बोला। ‘‘मै ं अभी
या याद करने क को शश कर रहा था।’’
‘‘आप....आप....मेरा ख़याल है....उस आदमी....हा ँ आदमी ही का नाम याद करने
क को शश कर रहे थे।’’
‘‘वह....वह....आदमी.... जसने एक ऐकड़ ज़मीन मे.ं ...डे ढ़ मन शलग़म उगाये थे।
आहा....आहा....याद आ गया!’’ इमरान उछल कर खड़ा हो गया.... फर फ़ौरन ही बैठ
कर बोला, ‘‘मगर नहीं....वह तो दूसरा आदमी था.... जसने.... या कया था....लाहौल
वला क़ूवत....यह भी भूल गया.... या बताऊँ। इमरान साहब!’’
‘‘इमरान नहीं इरफ़ान!’’ इरफ़ान ने फर टोका।
‘‘इरफ़ान साहब! हा,ँ तो मै ं या कह रहा था।’’
इरफ़ान बोर हो कर उठ गया। हाला ँ क वह शी क वजह से बैठना चाहता था,
मगर उसे अ दाज़ा हो गया था, शी उस बेवक़ूफ़ आदमी क मौजू दगी मे ं उसमे ं
दलच पी नहीं ले सकती, यों क उसने इस दौरान एक बार भी इरफ़ान क तरफ़ नहीं
देखा था।
इरफ़ान फर शौकत के पास जा बैठा....
इमरान और शी भी उठ कर अपने कमरों मे ं चले आये।
‘‘वह दूसरा आदमी तु हे ं अ छ नज़रों से नहीं देख रहा था।’’ शी ने कहा।
‘‘तब वह तु हे ं देख रहा होगा।’’
‘‘शट अप!’’
‘‘ऑडर। ऑडर....तुम मेरी से े टरी हो और मै ं ं स सतवत जाह!’’
‘‘ले कन इस रोल मे ं तो अपनी बेवक़ूफ़ से बाज़ आ जाओ।’’ शी ने कहा।
मगर इमरान ने इस बात को टाल कर दूसरी बात शु कर दी।
‘‘कल तुम जेलख़ाने मे ं जाओगी....अर र....मेरा यह मतलब नहीं क....हा.ँ ...वहा ँ
एक क़ैदी है। मैनं े आज बहत ु -सी मालू मात इक ा कर ली है.ं ...हा.ँ ...वह क़ैदी....उसका
नाम सलीम है....उसे शौकत ने जेल भजवाया था। कल सुबह तु हे ं उससे मलने के
लए पर मशन काड मल जायेगा....’’ इमरान ख़ामोश हो कर कु छ सोचने लगा।
‘‘ले कन....मुझे उससे यों मलना होगा?’’
‘‘यह मालू म करने के लए क उस पर जो इ ज़ाम लगे है,ं उनमे ं कहा ँ तक
हक़ क़त है।’’
‘‘ या इ ज़ाम लगाये गये है?ं ’’
‘‘उसी से पूछना।’’
‘‘ले कन वह है कौन और इस केस से उसका या ता क़ ु है?’’
‘‘तुम इसक परवाह मत करो। उससे जो कु छ बातचीत हो मुझे उसक खबर कर
देना।’’
‘‘ख़ैर, मत बताओ....! मगर....ज़ा हर है क मै ं एक मुलाक़ाती क है सयत से वहा ँ
जाऊँगी....वह उस मुलाक़ात क वजह ज़ र पू छेगा....? वह सोचेगा....!’’
‘उँह-उँह!’’ इमरान हाथ उठा कर बोला। ‘‘तुम इसक भी परवाह न करो। उससे
कह देना क तुम कसी दू सरे शहर के अख़बार क िरपोटर हो।’’
‘‘तब तो मुझे उसके बारे मे ं थोड़ी जानकारी होनी चा हए।’’
‘‘ठ क है!’’ इमरान सर हला कर बोला। ‘‘तुम अब काफ़ चल नकली हो।
अ छा तो सुनो। सलीम, शौकत का लेबोरेटरी अ स टेट ं था! शौकत....वह
आदमी....जो तु हारी जानकारी मे ं उस व त मुझे अ छ नज़रों से नहीं देख रहा
था....वह परवीन का चचेरा भाई है....शायद तुम समझ ही गयी होगी।’’
‘‘यानी....वह ख़ुद भी परवीन के उ मीदवारों मे ं से हो सकता है।’’
‘‘वाक़ई चल नकली हो....! बहत ु अ छे ....! हा,ँ यही बात है और शौकत को
साइ ट फ़क तज बे का ख़ त है। वह एक अ छे क़ म क लेबोरेटरी भी रखता
है....और....वह या नाम है उसका....सलीम उसका लेबोरेटरी अ स टेट ं था....और
शौकत ही ने उसे जेल भजवाया।’’
‘‘ आ ख़र यों....? वजह या थी?’’ शी ने सवाल कया।
‘‘वजह देखने से ऐसी नहीं जसे उस केस के सल सले मे ं हमे ं कोई दलच पी हो
सके....ले कन हो सकता है क वजह वह न हो जो ज़ा हर क गयी है।’’
‘‘ या ज़ा हर क गयी है। मै ं वही पू छ रही हू।ँ ’’
‘‘एक मामू ली-सी रक़म इधर-से-उधर कर देने का इलज़ाम।’’
‘‘यानी उसी इलज़ाम के तहत वह जेल मे ं है।’’ शी ने पू छा।
‘‘यक़ नन।’’
तब फर ज़ा हर है क हक़ क़त भी यही होगी, वरना वह इस जुम के तहत जेल मे ं
यों होता।’’
‘‘ यों? या यह नहीं हो सकता क असली जुम लगे हएु इ ज़ाम से भी यादा
सं गीन हो, जसे न शौकत ही ज़ा हर करना पस द करता हो और न सलीम।’’
‘‘अगर यह बात है तो फर वह मुझे हक़ क़त बताने ही यों लगा।’’
‘‘ शी! शी....! इतनी अ लम द न बनो, वरना मै ं बोर हो जाऊँगा....मर
जाऊँगा! जो कु छ मै ं कह रहा हू,ँ उस पर अमल करो।’’
‘‘तब फर कोई तीसरी बात होगी जसे तुम ज़ा हर नहीं करना चाहते!’’ शी ने
लापरवाही से कहा, ‘‘ख़ैर, मै ं जाऊँगी।’’
‘‘हा,ँ शाबाश! मै ं सफ़ इतना ही चाहता हू ँ क तुम कसी तरह उससे मल लो।’’

क़ैदी सलाख़ों क दू सरी तरफ़ मौज़ू द था। शी ने उसे ग़ौर से देखा और वह उसे नीचे
से ऊपर तक एक शरीफ़ आदमी मालू म हआ ु । उसक उ तीस और चालीस के बीच
रही होगी।
आख ँ ों मे ं ऐसी चमक थी जो सफ़ ईमानदार आद मयों ही क आख ँ ों मे ं नज़र आ
सकती है।
शी को देख कर वह सलाख़ों के क़रीब आ गया।
‘‘मै ं आपको नहीं जानता।’’ वह शी को घू रता हआ
ु धीरे से बोला।
शी ने एक क़हक़हा लगाया जसका अ दाज़ चढ़ाने जैसा था। शी ने उस
व त अपने ज़ेहन को बलकु ल आज़ाद कर दया था। वह अपने तौर पर उससे
बातचीत करना चाहती थी। इमरान के बताये हएु तरीक़ों पर अमल करने का उसका
इरादा नहीं था....इमरान क बातों से उसने अ दाज़ा कर लया था क वह सफ़ इस
मुलाक़ात का असर मालू म करना चाहता है। इसके अलावा और कोई मक़सद नहीं।’’
‘‘आप कौन है?ं ’’ क़ैदी ने फर पू छा।
‘‘मै ं आहा....!’’ शी ने फर क़हक़हा लगाया और बुरी औरतों क तरह बेढंगेपन
से लचकने लगी।
‘‘मै ं समझ गया।’’ क़ैदी धीरे से बड़बड़ाया। ‘‘ले कन तुम मुझे ग़ु सा नहीं दला
सकतीं। बलकु ल नहीं। कभी नहीं।’’
बात बड़ी अजीब थी और उन जुमलों पर ग़ौर करते व त शी क अदाकारी
ख़ म हो गयी और वह एक सीधी-साधी औरत दखने लगी। क़ैदी उसे ग़ौर और
दलच पी से देखता रहा। फर उसने धीरे से पू छा, ‘‘तु हे ं यहा ँ कसने भेजा है?’’
अचानक शी का ज़ेहन फर जागा, उसने मायू सी से सर हला कर कहा, ‘‘नहीं,
तुम वह आदमी नहीं मालू म होते।’’
‘‘कौन आदमी?’’
‘‘ या तु हारा नाम सलीम है?’’
‘‘जी हा,ँ मेरा ही नाम है।’’
‘‘और तुम नवाबज़ादा शौकत के लेबोरेटरी अ स टेट
ं थे?’’
‘‘हा,ँ यह भी ठ क है।’’
‘‘ फर तुम वही आदमी हो?’’
क़ैदी के चेहरे पर फ़ म दी के आसार पैदा हो गये, ले कन उनमे ं दहशत का
दख़ल नहीं था.... वह ख़ाली ज़ेहन के अ दाज़ मे ं कु छ पल शी के चेहरे पर नज़र
जमाये रहा, फर दो-तीन क़दम पीछे हट कर बोला, ‘‘तुम जा सकती हो।’’
‘‘ले कन....अगर....तुम सलीम....!’’
‘‘मै ं कु छ नहीं सुनना चाहता। यहा ँ से चली जाओ।’’
‘‘मगर....वह....!’’
‘‘जाओ!’’ वह गला फाड़ कर चीख़ा और दो पहरेदार तेज़ी से चलते हएु सलाख़ों
ु ँ गये....इससे पहले क क़ैदी कु छ कहता, शी बोल पड़ी, ‘‘तुम फ़
के पास पहच
न करो, सलीम, मै ं तु हारे घर वालों क अ छ तरह ख़बर लेती रहूगँ ी।’’
और फर वह जवाब का इ तज़ार कये बग़ैर बाहर नकल गयी।

इमरान ने शी का बयान बहत ु ग़ौर से सुना और कु छ पल ख़ामोश रह कर बोला,
‘‘तुम वाक़ई चल नकली हो। इससे यादा मै ं भी न कर सकता....’’
‘‘और तुम मेरी इस कारवाई से मुतमईन हो?’’ शी ने पू छा।
‘‘इतना मुतमईन.... क....!’’
इमरान जुमला पूरा न कर सका, यों क कसी ने कमरे के दरवाज़े पर ह क -सी
द तक दी।
‘‘हा.ँ ...आ.ँ ...कम इन!’’ इमरान ने दरवाज़े को घू रते हएु कहा।
एक लड़क दरवाज़ा खोल कर कमरे मे ं आयी....इमरान ने उस पर एक उचटती-
सी नज़र डाली....
‘‘मै ं सईदा हू!ँ ’’ लड़क ने कहा। ‘‘आपने मुझे देखा तो होगा।’’
‘‘नहीं, अभी नहीं देख सका। से े टरी, मेरी ऐनक!’’
लड़क उस पर कु छ झुझ ँ ला-सी गयी।
‘‘मै ं स जाद साहब क लड़क हू।ँ ’’
‘‘लाहौल वला क़ूवत। मै ं लड़का समझा था....बै ठए! से े टरी! डायरी मे ं
देखो....ये अमजाद साहब कौन है?ं ’’
‘‘स जाद साहब!’’ लड़क ग़ु से मे ं बोली। ‘‘ आ ख़र आप मेरा मज़ाक़ यों उड़ा
रहे है।ं ’’
‘‘मैनं े आज तक पतं ग के अलावा और कोई चीज़ नहीं उड़ायी, आप यक़ न
क जए....यू ँ तो उड़ाने को मेरे ख़लाफ़ बेपर क भी उड़ायी जा सकती है।’’
‘‘मै ं यह कहने आयी थी क जमील भाई आपसे मलना चाहते है।ं ’’ सईदा झ ा
कर खड़ी हो गयी।
‘‘से े टरी....ज़रा डायरी....!’’
इमरान का जुमला पूरा होने से पहले ही सईदा कमरे से नकल गयी।
‘‘उस लड़क को मैनं े कहीं देखा है।’’ शी बोली। ‘‘तुमने या कह दया वह
ग़ु से मे ं मालू म होती थी।’’ इमरान ख़ामोश रहा। इतने मे ं फ़ोन क घ टी बज उठ ।
इमरान ने बढ़ कर िरसीवर उठा लया।
‘‘हैलो....हा.ँ ...हा....!
ँ हम ही बोल रहे है।ं सतवत जाह! ओह....अ छा....अ छा!
ज़ र....हम ज़ र आयेग ं े....!’’
इमरान ने िरसीवर रख कर अगड़ाई ँ ली और यू ँ ही मु कु राने लगा।
‘‘मुझे उस आदमी....सलीम के बारे मे ं बताओ....’’ शी ने कहा।
‘‘ या वह बहत ु ख़ू बसूरत था?’’ इमरान ने पूछा।
‘‘बकवास मत करो। बताओ मुझे....वह अजीब था और उसका वह जुमला....तुम
मुझे ग़ु सा नहीं दला सकतीं....और उसने पू छा था क तु हे ं कसने भेजा है।’’
‘‘ शी....! तुमने उसके बारे मे ं या सोचा है?’’ इमरान ने पू छा।
‘‘मैनं े! मैनं े कु छ नहीं सोचा। वैसे वह चोरी के इलज़ाम मे ं गर तार कया गया है।
है न!’’
‘‘यही ख़ास वाइं ट है....!’’ इमरान कु छ सोचता हआ ु बोला। ‘‘ले कन उसने जो
बातचीत तुमसे क थी....वह अजीब थी....थी या नहीं....अब तुम ख़ुद अ दाज़ा कर
सकती हो।’’
‘‘यानी उसी के सल सले मे ं हक़ क़त वह नहीं है जो ज़ा हर क गयी है।’’
‘‘बस.... बलकु ल ठ क है। इससे यादा मै ं भी नहीं जानता।’’
थोड़ी देर तक ख़ामोशी रही फर शी बड़बड़ाने लगी ‘‘और वह नीला
पिर दा....! बलकु ल कहा नयों क बाते.ं ...!’’
‘‘नीला पिर दा!’’ इमरान एक ल बी सास ँ ले कर अपनी ठोड़ी खुजाने लगा। ‘‘मेरा
ख़याल है क उसे जमील के अलावा और कसी ने नहीं देखा। पेिर सयन नाइट लब
के मैनेजर का यही बयान है। आज मै ं कु छ ऐसे लोगों से भी मलू ग ँ ा जनके नाम मुझे
मालू म हएु है।ं ’’
‘‘ कन लोगों से?’’
‘‘वही लोग जो उस शाम लब के डाइ नं ग हॉल मे ं मौजू द थे।’’
ले कन उसी दन कु छ घ टों के बाद इस सल सले मे ं इमरान ने शी को जो
कु छ भी बताया, वह मतलब का नहीं था। वह उन लोगों से मला था जो वारदात क
शाम लब मे ं मौजू द थे। ले कन उ हे ं वहा ँ कोई पिर दा नहीं दखा था। अलब ा
उ होंने जमील को बौखलाये हएु अ दाज़ मे ं उछलते ज़ र देखा था।
‘‘ फर अब या ख़याल है!’’ शी ने कहा।
‘‘ फलहाल....कु छ भी नहीं।’’ इमरान ने कहा और जेब मे ं यू इंगम का पैकेट
तलाश करने लगा.... शी मेज़ पर पड़े हएु चाकू से खेलने लगी। उसके ज़ेहन मे ं एक
साथ कई सवाल थे। इमरान थोड़ी देर तक ख़ामोश रहा फर बोला। ‘‘फ़ैयाज़ ने कहा
था क नाइट लब मे ं वह पिर दा कई आद मयों को दखा था....ले कन दूसरों के
बयान उसके उलटे है।ं ’’
‘‘हो सकता है क कै टन फ़ैयाज़ को ग़लत ख़बर मली हो।’’ शी ने कहा।
‘‘उसे ये सारी ख़बरे ं स जाद से मली थीं और स जाद जमील का चचा है।’’
‘‘अ छा....तो फर इसका मतलब यह हआ ु ख़ुद जमील ही इन ख़बरों के लए
ज़ मेदार है।’’
‘‘हा.ँ ... फ़लहाल तो यही समझा जा सकता है।’’ इमरान कु छ सोचता हआ
ु बोला।
‘‘अ छा तो मै ं चला....जमील मुझसे मलना चाहता है....!’’

जमील क कोठ मे ं सबसे पहले सईदा ही से ट र हईु ....उसने इमरान को देख कर
बुरा-सा मुह ँ बनाया और इससे पहले क इमरान जमील के बारे मे ं पू छता, सईदा ने
कहा। ‘‘ आ ख़र आप इतना बनते यों है।ं ’’
इमरान कसी सोच मे ं पड़ गया। फर उसने कहा। ‘‘हाला ँ क आपने यह बात उदू
ही मे ं पू छ है, ले कन मेरी समझ मे ं नहीं आयी।’’
‘‘आप यहा ँ यों आये है?ं ’’ सईदा ने पू छा।
‘‘ओह....आपने कहा था....शायद जमील साहब मुझसे मलना चाहते है।ं ’’
‘‘जमील साहब नहीं, ब क मै ं ख़ुद मलना चाहती थी।’’
‘‘ म लए!’’ इमरान सर झुका कर ख़ामोश हो गया।
‘‘जमील भाई कसी से नहीं मलते।’’ सईदा ने कहा। ‘‘उस दन आपक उस
तदबीर ने बड़ा काम कया था।’’
‘‘जमील साहब ने दू सरों को बेकार मे ं उ ू बना रखा है।’’ इमरान ग़ु से मे ं बोला।
‘‘ या मतलब....?’’
‘‘वो दाग़ बनाये हएु मालू म होते है.ं ...और यह मु कल काम नहीं। मै ं आपके चेहरे
पर इसी क़ म के काले ध बे आसानी से डाल सकता हू।ँ ’’
‘‘आप बेतक ु बाते ं कर रहे है।ं ’’ सईदा को भी ग़ु सा आ गया।
‘‘यक़ न क जए! अगर आप तैयार हों तो मै ं आसानी से आपको बदसू रत बना
सकता हू।’’ ँ
‘‘मै ं कह रही हू ँ क आप जमील भाई पर इ ज़ाम लगा रहे है।ं ’’
‘‘बड़े आये जमील भाई!’’ इमरान बुरा-सा मुह ँ बना कर बोला। ‘‘बेकार मे ं नाइट
लब को बदनाम करके धर दया.... आ ख़र उ हे ं इससे मला या....? लाहौल वला
क़ूवत....’’
ँ ार नगाहों से घू रने लगी।
‘‘आप शायद अपने होश मे ं नहीं है।ं ’’ सईदा उसे ख़ू ख
‘‘स ी बाते ं कहने वाले आम तौर पर दीवाने ही समझे जाते है।ं ’’ इमरान ने
लापरवाही से कहा।
सईदा कु छ नहीं बोली....शायद ग़ु सा यादा होने क वजह से उसे अलफ़ाज़ ही
नहीं मल रहे थे। इमरान ने लोहा गम देख कर दू सरी चोट लगायी।
‘‘अब मेरी ज़बान न खुलवाइए!’’ उसने कहा। ‘‘इस हरकत का मक़सद ख़ू ब

समझता हू।’’
‘‘दे खए, आप हद से यादा बढ़ते जा रहे है।ं ’’
‘‘मै ं मजबू र हू।ँ इसके अलावा और कोई चारा नहीं।’’
‘‘ आ ख़र कस बना पर....कोई वजह?’’ सईदा ने पू छा। उसक आवाज़ मे ं
स ती बद तू र क़ायम थी।
‘‘यहा,ँ ’’ इमरान चारों तरफ़ देखता हआ
ु बोला, ‘‘हमारी बातचीत दूसरे भी सुन
सकते है।ं
‘‘सुनने दी जए! आप इसी घर के एक श स पर झू ठा इ ज़ाम लगा रहे है।ं ’’
‘‘ठ क है....! ले कन जब क मै ं इस घर वालों ही के हक़ मे ं काम रहा हू,ँ इस लए
मै ं नहीं चाहता क यह बात बाहर फैले।’’
सईदा कु छ पल कु छ सोचती रही फर धीरे से बोली। ‘‘यक़ नन! आप कसी
ग़लतफहमी मे ं पड़ गये है।ं ’’
उसका मूड कसी हद तक ठ क हो गया था।
‘‘हो सकता है क वह ग़लतफहमी ही हो। मगर हालात।’’
‘‘कैसे हालात?’’
‘‘ या आपको भरोसा है क यहा ँ हमारी बातचीत कोई तीसरा आदमी नहीं सुन
सकेगा।’’
‘‘इधर कोई नहीं आयेगा।’’
‘‘अ छा तो सु नए....! मुझे अभी तक यादातर हालात कै टन फ़ैयाज़ ही क
ज़बानी मालू म हएु है।ं ज़ा हर है क उसक मालू मात भी आप ही लोगों के बयान पर
टक है।ं ’’
‘‘यहा ँ आप ग़लती पर है।ं ’’ सईदा बोली। ‘‘ यों क सारे हालात अख़बारों मे ं भी
छपे हएु थे।’’
‘‘तो या अख़बार वालों ने यह बेपर क उड़ायी थी?...’’
‘‘आप फर बहकने लगे।’’
‘‘ यों! बहकने यों लगा!’’
‘‘आप इन बातों को झू ठ यों समझते है?ं ’’
‘‘तब फर ग़लती पर नहीं था। जब आप लोग इन बातों पर अमल नहीं कर सकते
तो फ़ैयाज़ क मालू मात भी आप ही लोगों के लए बेकार समझ जायेगी।’’
‘‘च लए, यही सही।’’
‘‘अ छा! मगर सफ़ आप ही लोगों के बयान को स ाई का पैमाना नहीं बनाया
जा सकता।’’
‘‘ फर आप अपनी उसी बात पर आ गये।’’
‘‘नाइट लब का मैनेजर कहता है क यह सब कु छ लब को बदनाम करने के
लए कया गया है।’’
‘‘ आ ख़र उसे बदनाम करने क वजह? यह नहीं पू छा आपने?’’
‘‘फ़ैयाज़ का बयान है क उस नीले पिर दे को कई आद मयों ने देखा था, ले कन
मुझे अभी तक एक भी ऐसा आदमी नहीं मला जो उसका ख़ुलासा करता.... या यह
जमील साहब का बयान है क उस पिर दे को कई आद मयों ने देखा था।’’
‘‘नहीं! उ होंने कोई ऐसी बात नहीं कही।’’ सईदा कु छ सोचती हईु बोली। ‘‘यह
अख़बारों क ख़बर है। भला जमील भाई को या मालू म क दू सरों ने भी उसे देखा था
या नहीं!’’
‘‘तो मै ं उनका सही बयान चाहता हू।ँ ’’
‘‘इसके लए आप ही कोई तरीक़ा नका लए.... हम लोग उ हे ं इस बात के लए
मजबू र नहीं कर सकते।’’
‘‘उ होंने कु छ-न-कु छ तो बताया ही होगा।’’
‘‘ सफ़ इतना ही क वह उनक गदन मे ं अपनी चोंच उतार कर लटक गया था।’’
‘‘लटक गया था?’’
‘‘जी हा!ँ उसे गदन से अलग करने के लए उ हे ं थोड़ी ताक़त भी लगानी पड़ी
थी। और उ होंने उसे खींच कर खड़क के बाहर फेंक दया था।’’
‘‘पिर दे का रं ग नीला था?’’ इमरान ने पू छा।
‘‘हा,ँ उ होंने यही बताया था।’’
‘‘बड़ी अजीब बात है....अ छा ख़ैर....अब जावेद मज़ा का या ख़याल है?’’

‘‘मै ं उसके बारे मे ं या कह सकती हू।’’
‘‘उस तरफ़ इस बात का असर या हआ ु है?’’
‘‘कु छ भी नहीं। उनक तरफ़ से र मी तौर पर सफ़ अफ़सोस ज़ा हर कया गया
है। बहरहाल, मेरा ख़याल है क शायद यह िर ता न हो सके।’’
‘‘ठ क है।’’ इमरान सर हला कर रह गया। थोड़ी देर तक कु छ सोचता रहा फर
बोला। ‘‘ले कन इससे फ़ायदा कसे पहचे ु ँ गा?’’
‘‘फ़ायदे क बात आप यों सोच रहे है।ं ’’ सईदा ने इमरान को ग़ौर से देखते हएु
कहा।
‘‘अगर आप उस पिर दे को ख़ुदा का क़हर समझती है,ं तो फर मुझे तकलीफ़
देने क या ज़ रत थी?’’
‘‘यह भी ठ क है। दे खए! फ़ायदे क बात तो रहने ही दी जए! यों क उससे घर
ही के कई आद मयों को फ़ायदा पहच ु ँ सकता है।’’
‘‘ओहो....अ छा!’’ इमरान ने उ ओ ँ ों को नचाया! ‘‘मै ं नहीं
ु ं क तरह अपनी आख
समझा!’’
‘‘आप नहीं समझे?’’ सईदा ने एक ज़हरीली-सी मु कु राहट के साथ कहा। ‘‘मै ं
यह कहना चाहती थी क उससे मुझे भी फ़ायदा पहच ु ँ सकता है....जावेद मज़ा कसी
सफ़ेद दाग़ वाले को अपना दामाद हर गज़ पस द न करेगा, यों क वह ख़ुद भी
मालदार है। मालदारों को मालदार मलते ही रहते है।ं एक नहीं तो दूसरा....और मै ं
इतनी मालदार नहीं हू,ँ इस लए एक मालदार कोढ़ी मुझे पस द आ सकता है....मेरा
बाप ख़ुशी से उसे अपना दामाद बना लेगा.... या समझे जनाब....मै ं आपसे इसी लए
मलना चाहती थी, ता क आप पर ये हक़ क़त साफ हो जाये।’’
‘‘ले कन मेरे सवाल का जवाब यह नहीं हो सकता....और मै ं आपक इस साफ़
बात को पस द नहीं करता....अरे तौबा....तौबा....!’’ इमरान अपना मुह ँ पीटने लगा।
‘‘ यों....?’’ सईदा ने उसे तीखी नज़रों से देखा।
‘‘कु छ नहीं!’’ इमरान ठ डी सास ँ ले कर बू ढ़ी औरतों क तरह बोला। ‘‘क़यामत
क़रीब है। बड़े -बू ढ़े कहते है ं क क़यामत के क़रीब लड़ कया ँ बड़ी ढठाई से शादी-
याह क बाते ं करेग ँ से वर मागँ ग
ं ी....अपने मुह े ं ी....तौबा तौबा....!’’
‘‘इस मामले से हटने क को शश न क जए! आप मुझे बेवक़ूफ़ नहीं बना
सकते।’’
‘‘आपक शादी के बारे मे ं मै ं कु छ नहीं सुनना चाहता।’’ इमरान ने अपने कानों मे ं
उँग लया ँ ठूँस लीं।
सईदा कु छ न बोली। वह अपना नचला होंट दातँ ों मे ं दबाये कु छ सोच रही थी।
‘‘ये सब बेकार बाते ं है।ं ’’ इमरान बोला। ‘‘कोई ऐसा तरीक़ा सो चए क जमील
साहब से बातचीत क जा सके।’’
‘‘मेरे बस से बाहर है। पता नहीं उ होंने या सोचा है।’’
‘‘ कसी तरह का कोई झगड़ा तो नहीं था?’’ इमरान ने पूछा।
‘‘मै ं इस पर रोशनी न डाल सकूँगी। वैसे परवीन अ सर हमारे घर आती रहती
है।’’
‘‘इस क़ से के बाद भी आयी थी?’’
‘‘कई बार आ चुक है।’’
‘‘बहत
ु उदास होगी?’’
‘‘मैनं े ग़ौर नहीं कया।’’
‘‘स जाद साहब आपके कौन है?ं ’’
‘‘बाप!’’

‘‘अ छा!’’ इमरान अगड़ाई लेकर बोला। ‘‘अब शायद आप मुझसे मल चुक
होंगी।’’

‘‘जी हा....आप जा सकते है!ं इस तकलीफ़ का बहतु -बहत
ु शु या!’’ सईदा
बोली और इमरान यह सोचता हआ ु वहा ँ से चल पड़ा क इस मुलाक़ात का मक़सद
या था?
१०
नवाब जावेद मज़ा के यहा ँ रात के खाने क मेज़ पर इमरान भी था। शौकत के
अलावा ख़ानदान के वो सारे लोग मौजू द थे ज हे ं इमरान पहले भी यहा ँ देख चुका
था। वह काफ़ देर से सोच रहा था क आ ख़र शौकत यों ग़ायब है। खाने के दौरान
जावेद मज़ा को अचानक अपने बाप मरहूम याद आ गये और इमरान बेकार मे ं बोर
होता रहा, ले कन उसने कोई बात नहीं चलायी। हो सकता है क वह ख़ुद ही बात
बढ़ाना न चाहता रहा हो।
ख़ुदा-ख़ुदा करके उनके वा लद साहब क दा तान ख़ म हईु .... फर दादा साहब
का बयान भी छड़ने ही वाला था क इमरान बोल पड़ा, ‘‘हा ँ वो साहब! या नाम है
यानी क साइ ट ट साहब नज़र नहीं आते....!’’
‘‘शौकत!’’ जावेद मज़ा बे दली से बड़बड़ाया, ‘‘वह लेबोरेटरी मे ं झक मार रहा
होगा।’’
‘‘लाहौल वला क़ूवत!’’ इमरान ने इस तरह होंट सकोड़े जैसे लेबोरेटरी मे ं होना
उसके नज़दीक बड़ी ज़लील बात हो।
इस पर इरफ़ान ने साइ सदानों और फ़लासफ़रों क बौखलाहट के चुटकले छे ड़
दये....इमरान अब भी बोिरयत महसू स करता रहा। आज वह कु छ करना चाहता था।
जैसे ही इरफ़ान के चुटकलों का टॉक ख़ म हआ ु इमरान बोल पड़ा, ‘‘आपक कोठ
बहत ु शानदार है....पहाड़ी इलाक़ों मे ं ऐसी अज़ीम इमारते ं बनवाना आसान काम नहीं
है!’’
‘‘मेरा ख़याल है क आपने पूरी कोठ नहीं देखी!’’ जावेद मज़ा चहक कर बोला।
‘‘जी नहीं! अभी तक नहीं!’’
‘‘अगर आपके पास व त हो। तो....’’
ँ ा....!’’ इमरान ने कहा। खाना खाने के बाद
‘‘ज़ र....ज़ र....मै ं ज़ र देखूग
उ होंने लाइ ेरी मे ं कॉफ़ पी....और फर जावेद मज़ा इमरान को इमारत के अलग-
अलग ह से दखाने लगा....इस दौरान इन दोनों के साथ मे ं और कोई नहीं था। जावेद
मज़ा पर एक बार फर बड़ पन क बकवास का दौरा पड़ा, ले कन इमरान ने उसे
यादा नहीं बहकने दया।
‘‘ये आपके शौकत साहब.... या कसी ईजाद क फ़ मे ं है?ं ’’
‘‘ईजाद!’’ जावेद मज़ा बड़बड़ाया। ‘‘ईजाद वह या करेगा! बस, व त और
पैसों क बबादी है। ले कन आ ख़र आप इसमे ं इतनी दलच पी यों ले रहे है?ं ’’
‘‘वजह है....!’’
‘‘वजह!’’ तभी जावेद मज़ा क कर इमरान को घू रने लगा।
‘‘यक़ नन आपको मह ँ गा पड़े गा!’’ इमरान ज दी से बोला। ‘‘ यों क आप पुराने
ख़याल के लोग है,ं ले कन हमारी सोसाइटी पर जो बुरा व त पड़ा है, उसको आप भी
नहीं जानते होंगे। अब हम मे ं से हर एक को पुरानी शान को बरक़रार रखने के लए
कु छ-न-कु छ करना ही पड़े गा।’’
‘‘यानी या करना पड़े गा....?’’
‘‘मैनं े एक ो ाम बनाया है....शौकत साहब से क हए क लेबोरेटरी मे ं रह कर
सर खपाना सफ़ ज़ेहनी अ याशी है! बाहर नकले ं और अपने लोगों क शान बरक़रार
रखने के लए कु छ काम करे।ं ’’
‘‘वह या करेगा?’’
‘‘ मसाल के तौर पर एक हज़ार एकड़ ज़मीन मे.ं ..’’
‘‘खेती!’’ जावेद मज़ा ज दी से बोला....‘‘बकवास है!’’
‘‘अफ़सोस, यही तो आप नहीं समझे। ख़ैर, मै ं ख़ुद ही शौकत साहब से बातचीत
क ँ गा.... उनक लेबोरेटरी कहा ँ है?’’
‘‘आप बेकार मे ं अपना व त बबाद करेग ं े!’’ जावेद मज़ा ने बे दली से
कहा....वह शायद अभी कु छ देर और इमरान को बोर करना चाहता था।
‘‘नहीं जनाब, मै ं इसे ज़ री समझता हू।ँ अगर वो मेरी मदद कर सकें....’’ इतने मे ं
जावेद मज़ा ने कसी नौकर को आवाज़ दी और इमरान का जुमला अधू रा रह
गया....!
फर कु छ ही पलों के बाद वह उस नौकर के साथ लेबोरेटरी क तरफ़ जा रहा
था।
लेबोरेटरी असली इमारत से लगभग डे ढ़ फ़रलागँ के फ़ासले पर एक छोटी-सी
इमारत मे ं थी। उसमे ं तीन कमरे थे। शौकत यहीं रहता भी था। इमरान ने नौकर को
इमारत के बाहर ही से वापस कर दया।
ज़ा हर है क वह कसी काम के लए यहा ँ आया था। दरवाज़े ब द थे और वो
सब नीचे से ऊपर तक ठोस लकड़ी के थे। उनमे ं शीशे नहीं थे। खड़ कया ँ थीं, ले कन
उनमे ं बाहर क तरफ़ सलाख़े ं लगी हईु थीं! अलब ा उनमे ं शीशे थे और वह सब
रोशन दख रही थीं जसका मतलब यह था क कोई अ दर मौजू द है....! उसने एक
खड़क के शीशों पर पल भर के लए एक साया-सा देखा। हो सकता है वह कसी
क चलती हईु परछा रही हो।
इमरान उस खड़क क तरफ़ बढ़ा....
दूसरे ही पल मे ं वह इमारत के अ दर के एक कमरे का हाल बख़ू बी देख सकता
ँ रहा था....यहा ँ कई क़ म के औज़ार थे।
था....हक़ क़त मे ं वह लेबोरेटरी ही मे ं झाक
शौकत लोहे क एक अगँ ीठ पर झुका हआ ु था। उसमे ं कोयले दहक रहे थे और
उनक परछा शौकत के चेहरे पर पड़ रही थीं।
इमरान को अगीठ ँ से धुआ ँ उठता दख रहा था....और वह शायद गो त ही के
जलने क बू थी जो लेबोरेटरी से नकल कर बाहर भी फैल गयी थी।
शौकत कु छ पल अगीठ ँ पर झुका रहा फर सीधा खड़ा हो गया।
अब वह क़रीब ही क मेज़ पर रखे हएु द ती के एक ड बे क तरफ़ देख रहा
था।
फर उसने उसमे ं हाथ डाल कर जो चीज़ नकाली वह कम-से-कम इमरान के
वाब-ो-ख़याल मे ं भी न रही होगी....ज़ा हर है क वह कसी फ़ौरन कामयाबी क
उ मीद ले कर तो यहा ँ आया नहीं था....
शौकत के हाथ मे ं एक छोटा-सा नीले रं ग का पिर दा था....और शायद वह ज़ दा
नहीं था....वह कु छ पल उसक एक टागँ पकड़ कर लटकाये उसे ग़ौर से देखता रहा
फर इमरान ने उसे दहकते हएु अगँ ारों मे ं गरते देखा....एक बार फर अगँ ीठ से गहरा
धुआ ँ उठ कर हवा मे ं बल खाने लगा....शौकत ने दो और पिर दे उस ड बे से नकाले
और उ हे ं भी अगँ ीठ मे ं झोंक कर सगरेट सुलगाने लगा।
इमरान चुपचाप खड़ा रहा। वह सोच रहा था क अब उसे या करना चा हए।
वैसे वह अब भी क़ानू नी तौर पर उसके ख़लाफ़ कोई कारवाई नहीं कर सकता था।
इमरान सोचने लगा। काश! उनमे ं से एक ही पिर दा उसके हाथ लग सकता!
मगर अब वहा ँ या था! एक बात उसक समझ मे ं न आ सक । मुदा पिर दे! उनको
जलाने का मक़सद तो यही हो सकता था क वह उ हे ं इस श ल मे ं भी कसी दू सरे
के क़ ज़े मे ं नहीं जाने देना चाहता। यानी उन मुदा पिर दों से भी जमील वाले केस पर
रोशनी पड़ सकती थी।
इमरान लेबोरेटरी क तलाशी लेने के लए बेचैन था....ले कन, वह नहीं चाहता था
क कसी को उस पर ज़रा बराबर भी शक हो सके, यों क यह एक ऐसा केस था
जसमे ं मुजिरम के ख़लाफ़ सबू त इक ा करने के लए काफ़ को शशों क ज़ रत
थी....और मुजिरम के हो शयार हो जाने पर परेशानी हो सकती थी....
शौकत अगीठँ के पास से हट कर एक मेज़ का दराज़ खोल रहा था दराज़ मे ं
ताला लगा था उसने उसमे ं से एक िरवॉ वर नकाल कर उसके चे बर भरे और जेब मे ं
डाल लया। अ दाज़ से साफ मालू म हो रहा था क वह कहीं बाहर जाने क तैयारी
कर रहा है। फर वह उस कमरे मे ं चला गया।
इमरान खड़क के पास से हट कर एक पेड़ के तने क ओट मे ं छप गया। ज द
ही उसने कसी दरवाज़े के खुलने और ब द होने क आवाज़ सुनी। फर स ाटे मे ं
ँ ने लगी। धीरे-धीरे ये आवाज़े ं भी दू र होती गयीं और फर स ाटा
क़दमों क आहट गू ज
छा गया।
इमरान तने क ओट से नकल कर सीधा मेन गेट क तरफ़ आया। उसे उ मीद
थी क वह ब द होगा....ले कन ऐसा नहीं था। हाथ लगाते ही दोनों पट पीछे क तरफ़
खसक गये।
इमरान कु छ देर के लए का....दरवाज़ा ब द न होने का मतलब ये था क
शौकत यादा दूर नहीं गया। हो सकता था क वह रात के खाने के लए सफ़ कोठ
ही तक गया हो। मगर वह िरवॉ वर.... आ ख़र सफ़ कोठ तक जाने के लए
िरवॉ वर साथ ले जाने क या ज़ रत थी। इमरान ने अपने सर को थोड़ा हलाया।
जसके मतलब यह था क चाहे कु छ भी हो, उस व त इस छोटी-सी इमारत क
तलाशी ज़ र ली जायेगी?
उसने जेब से एक काला नक़ाब नकाल कर अपने चेहरे पर चढ़ा लया। ऐसे
मोक़ों पर वह अ सर यही करता था। मक़सद यह था क कसी से मुठभेड़ हो जाने
के बावजू द भी वह न पहचाना जा सके।
यहा ँ आते व त उसने जावेद मज़ा के नौकर से शौकत क आदत के बारे मे ं
बहतु कु छ मालू म कर लया था....शौकत यहा ँ अकेला रहता था....और उसके
लेबोरेटरी अ स टेटं के अलावा बना इजाज़त कोई वहा ँ दा ख़ल नहीं हो सकता था।
चाहे वह ख़ानदान ही का कोई आदमी यों न हो.... फ़लहाल उसका लेबोरेटरी
अ स टेट ं जेल मे ं था, इस लए शौकत के अलावा वहा ँ कसी और क मौजू दगी
नामुम कन थी। ले कन इमरान ने इसके बावजू द भी एह तयात से नक़ाब इ तेमाल
ँ ेरा था....इमरान ने अपनी जेब
कया था। वह अ दर गया....इमारत मे ं चारों तरफ़ अध
से एक छोटी-सी टॉच नकाली और वह उस कम रोशनी मे ं उस कमरे क छानबीन
करने लगा।
दस मनट बीत गये ले कन कोई ऐसी चीज़ हाथ न लगी जसे शौकत के ख़लाफ़
सबू त के तौर पर इ तेमाल कया जा सकता।
ु यहा ँ भी अध
दो कमरों क तलाशी लेने के बाद वह लेबोरेटरी मे ं दा ख़ल हआ ँ ेरा

था, ले कन अगीठ मे ं अब भी कोयले दहक रहे थे....
इमरान ने सबसे पहले द ती के उस ड बे का जायज़ा लया जसमे ं से मुदा
पिर दे नकाल- नकाल कर अगँ ीठ मे ं डाले गये थे। मगर ड बा अब ख़ाली था।
इमरान दू सरी तरफ़ मुड़ा।
‘‘ख़बरदार!’’ अचानक उसने अध ँ ेरे मे ं शौकत क आवाज़ सुनी! ‘‘तुम जो कोई
भी हो अपने हाथ ऊपर उठा लो....’’
मगर उसका जुमला पूरा होने से पहले ही इमरान क टॉच बुझ चुक थी। वह
झपट कर एक अलमारी के पीछे हो गया।
‘‘ख़बरदार। ख़बरदार....’’ शौकत कह रहा था ‘‘िरवॉ वर का ख़ गेट क तरफ़
है। तुम भाग नहीं सकते।’’
इमरान ने अ दाज़ा कर लया क शौकत धीरे-धीरे वच बोड क तरफ़ जा रहा
है....अगर उसने रोशनी कर दी तो....? इस ख़याल ने इमरान के ज म मे ं बजली क -
सी लहर दौड़ गयी और वह तेज़ी से धीमे क़दमों से चलता हआ ु गेट के क़रीब पहच ुँ
गया उसे शौकत क बेवक़ूफ़ पर हस ँ ी भी आ रही थी। एक तो इतना अध ँ ेरा था क
वह उसे देख नहीं सकता था। दू सरा उस कमरे मे ं अकेला एक वही गेट नहीं
था....ले कन इमरान ने उसी गेट को भागने का रा ता बनाया जसक तरफ़ शौकत ने
इशारा कया था। वह बहत ु ही आसानी से इमारत के बाहर नकल आया और फर
तेज़ी से कोठ क तरफ़ जाते व त उसने मुड़ कर देखा तो लेबोरटरी वाली इमारत क
सारी खड़ कया ँ रौशन हो चुक थीं।
११
शी ने हैरत के अ दाज़ मे ं इमरान क तरफ़ देखा।
‘‘हा ँ मै ं ठ क कह रहा हू।’’ँ इमरान ने सर हला कर कहा। ‘‘ पछली रात शौकत
ने मुझे धोखा दया था....शायद उसे कसी तरह पता चल गया था क मै ं खड़क से
झाकँ रहा हू!’’ ँ
‘‘िरवॉ वर था उसके पास?’’
ँ ले कन उसक अह मयत नहीं। हो सकता है क वह उसका लाइसेस
हा!’’ ं भी
रखता हो।’’
‘‘और वह पिर दे नीले ही थे।’’
‘‘सौ फ़ सदी!’’ इमरान ने कहा। कु छ देर ख़ामोश रहा फर बोला। ‘‘तुम पछली
रात कहा ँ ग़ायब थीं?’’
‘‘मै ं उसी आदमी सलीम के च र मे ं गयी थी।’’
‘‘हाय शी! तुम सचमुच जासू स होती जा रही हो....बहत ु ख़ू ब....हा ँ तो
फर....तुमने शायद....!’’
‘‘ठहरो! बताती हू.ँ ...! मैनं े उसके बारे मे ं बहत
ु -सी मालू मात हा सल क है।ं ’’
‘‘शु हो जाओ।’’
‘‘उसके कु छ िर तेदारों ने उसक ज़मानत लेनी चाही थी, ले कन उसने उसे मं ज़ूर
नहीं कया। इस पर ख़ुद पु लस को भी हैरत है।’’
‘‘उससे इसक वजह ज़ र पूछ गयी होगी।’’
‘‘हा,ँ हा।ँ ले कन उसका जवाब कु छ ऐसा है जो कसी फ़ म क कहानी बन कर
यादा दलच प सा बत हो सकता है।’’
‘‘यानी....’’
‘‘वह कहता है क मै ं अपना दाग़ी चेहरा कसी को नहीं दखाना चाहता। मैनं े एक
ऐसे मा लक को धोखा दया है जो बहत ु ही नेक, शरीफ़ और मेहरबान था। मै ं नहीं
चाहता क अब कभी उसका सामना हो। मै ं जेल क कोठरी मे ं मर जाना पस द
क ँ गा।’’
‘‘अ छा!’’ इमरान बेवकूफ़ों क तरह आख ँ े ं फाड़ कर देखने लगा।
‘‘मै ं नहीं समझ सकती क बीसवीं सदी मे ं भी इतने अ छे आदमी पाये जाते होंगे।
ज़ा हर है जो इतना अ छा होगा वह चोरी ही यों करने लगा....वैसे उसके जानने वाले
कहते है ं क वह एक बहत ु अ छा आदमी है और वह चोरी जैसा काम कर ही नहीं
सकता, मगर दू सरी तरफ़ वह ख़ुद ही जुम क़बू ल करता है।’’
‘‘तो फर उसके जानने वालों मे ं कई तरह के ख़याल पाये जाते होंगे?’’
‘‘हा,ँ मैनं े भी यही महसू स कया है।’’ शी सर हला कर बोली। ‘‘कु छ लोग
कहते है ं क यह सफ़ कसी क़ म का ामा है।’’
‘‘ले कन कस क़ म का ामा? उसके मक़सद पर भी कसी ने रोशनी डाली या
नहीं?’’
‘‘नहीं, उसके बारे मे ं कसी ने कु छ नहीं कहा।’’
इमरान कु छ सोचने लगा। फर उसने कहा। ‘‘मामला काफ़ पेचीदा है।’’
‘‘पेचीदा नहीं, ब क मज़ा क़या कहो।’’ शी मु कु रा कर बोली। ‘‘सलीम,
शौकत का नौकर था। अगर शौकत को असल मुजिरम मान लया जाय तो सलीम के
जेल जाने क बात बलकु ल बेईमानी हईु ।’’
‘‘ कसी हद तक तु हारा ख़याल बलकु ल सही है।’’
‘‘ कसी हद तक या? बलकु ल सही है।’’ शी बोली।
‘‘नहीं, उस पर बलकु ल क छाप लगाना ठ क नहीं!’’ इमरान कु छ सोचता हआ

बोला।
‘‘अ छा, फर तुम ही बताओ क उसे जेल यों भजवाया गया।’’
‘‘हो सकता है क उसने सचमुच चोरी क हो।’’
‘‘ओहो! या तु हे ं वह बातचीत याद नहीं जो जेल मे ं मेरे और उसके बीच हईु
थी।’’
‘‘मुझे अ छ तरह याद है।’’
‘‘ फर!’’
‘‘ फर कु छ भी नहीं! मुझे सोचने दो। हा,ँ ठ क है उसे यू ँ ही समझो। मान लो क
सलीम शौकत के जुम के बारे मे ं जानता है, इसी लए वह उस पर चोरी का इ ज़ाम
लगा कर उसे जेल भजवा देता है।’’
‘‘अगर यही बात है!’’ शी ज दी से बोली। ‘‘तो वह बहत ु ही आसानी से
शौकत के जुम का राज़ फ़ाश कर सकता था। अदालत को वह बता सकता था क
उसे कस लए जेल भजवाया गया है।’’
‘‘आ.ँ ...हा!’’
ँ इमरान हाथ नचा कर बोला। ‘‘तुम बलकु ल बु ू हो....अदालत मे ं
शौकत भी यही कह सकता था क वह अपनी गदन बचाने के लए उस पर झू ठा
इ ज़ाम लगा रहा है.... आ ख़र उसने गर तार होने से पहले ही उसके जुम क पु लस
को यों नहीं इ ला दी....साफ़ रहे क सलीम क गर तारी जमील वाले वाक़ये के
तीन दन बाद हईु थी।’’
‘‘चलो, मै ं इसे मान लेती हू।ँ ’’ शी ने कहा। ‘‘सलीम ने मुझसे यह यों कहा था
क तुम मुझको ग़ु सा नहीं दला सकतीं।’’
‘‘तुम ख़ामोशी से मेरी बात सुनती जाओ!’’ इमरान झुझ ँ ला कर बोला। ‘‘बात
ख़ म होने से पहले न टोका करो....मै ं तु हे ं सलीम के उन अलफ़ाज़ का मतलब भी
समझा दू ग ँ ा और उसी रोशनी मे ं क शौकत ही मुजिरम है, वैसे एक बात साफ़ है क
सलीम शौकत से भी यादा घाघ है। मान लो, सलीम ने सोचा हो क वह जेल ही मे ं
यादा महफ़ूज़ रह सकेगा, वरना हो सकता है क शौकत अपना जुम छपाने के लए
उसे क़ ल ही करा दे। शौकत ने उसे इस उ मीद पर चोरी के इ ज़ाम मे ं जेल भजवाया
होगा क वह उसका राज़ ज़ र उगल देगा, ले कन ख़ुद भी शा मल होने क बना पर
अदालत को उसका यक़ न दलाने मे ं कामयाब न होगा। शौकत के पास इस सू रत मे ं
सबसे बड़ा एतराज़ यही होगा क उसने गर तार होने से तीन दन पहले पु लस को
इसक ख़बर यों नहीं दी।’’
‘‘मै ं समझ गयी....ले कन सलीम के वो जुमले....’’ शी ने फर टोका।
ँ ी
‘‘अरे, ख़ुदा तु हे ं ग़ारत करे....सलीम के जुमलों क ऐसी-क -तैसी....मै ं ख़ुद फास
पर चढ़ जाऊँगा। तु हारा गला घोंट कर....! हा....मुँ झे बात पूरी करने दो। शी क
ब ी!’’
इमरान ने कु छ इसी क़ म के मज़ा क़या अ दाज़ मे ं झ ाहट ज़ा हर क थी क
शी हसँ पड़ी।
‘‘अरे, उस उ ू के प े ने बलकु ल ख़ामोशी अपना ली....यानी शौकत के जुम का
मामला बलकु ल ही घोंट कर अपना जुम क़बू ल लया....अब तुम ख़ुद सोचो, शैतान
क ख़ाला, क शौकत पर उसका या असर हआ ु होगा? ज़ा हर है उसने यह ज़ र
चाहा होगा क सलीम के उस रवैये क वजह मालू म करे....और दू सरी तरफ़ सलीम ने
भी यह सोचा होगा क शौकत उसक वजह मालू म करने क को शश ज़ र
करेगा.... फर तुम वहा ँ जा पहच ु ँ ीं! सलीम समझा क तुम शौकत ही क तरफ़ से
उसक टोह मे ं आयी हो। इस लए उसने तु हे ं उड़नघाइया ँ बतायीं और यहा ँ तक कह
दया क तुम उसे ग़ु सा दला कर भी अस लयत नहीं उगलवा सकतीं....हो सकता है
क उसने अपनी जानकारी मे ं शौकत को और यादा डराने के लए तुमसे इस क़ म
क बातचीत क हो।’’
‘‘मगर!’’
‘‘मगर क ब ी! अब अगर तुमने कोई नया पेच ं नकाला तो मै ं एक बोतल
कोकाकोला पी कर हमेशा के लए ख़ामोश हो जाऊँगा।’’
‘‘तु हारा नज़िरया ग़लत भी हो सकता है।’’ शी ने सं जीदगी से कहा।
ँ इमरान गला फाड़ कर चीख़ा। ‘‘मुझसे कभी कोई
‘‘नहीं....मै ं जे स बॉ ड हू!’’
ग़लती नहीं हो सकती....मै ं जू ते का चमड़ा देख कर बता सकता हू ँ क कबू तर क
खाल का है या मेढ ं क क खाल का है....अभी मुझे डॉ टर वॉटसन जैसा कोई चुग़द
नहीं मला। यही वजह है क मै ं तेज़ी से तर क़ नहीं कर सकता!’’
‘‘अ छा, मान लो अगर नाइट लब के मैनेजर ही क बात सच हो तो!’’
‘‘मुझे बड़ी ख़ुशी होगी! ख़ुदा हर एक को सच बोलने क सला हयत अता करे!’’
‘‘मुझसे बेतक ु बाते ं न कया करो!’’ शी झ ा गयी।
‘‘ऐ.... शी तुम अपना ह ु लया ठ क करो। मै ं तु हारा शौहर नहीं हू.ँ ...हा!ँ ’’
‘‘तु हे ं शौहर बनाने वाली कसी गधी ही के पेट से पैदा होगी।’’
‘‘ख़बरदार, अगर तुमने गधी क शान मे ं कोई ग़लत बात मुह ँ से नकाली!’’
इमरान गरज कर बोला और शी बुरा-सा मुह ँ बनाये हएु कमरे से बाहर नकल गयी।
१२
इमरान का एक-एक पल बड़ी मु कल से बीत रहा था। उसक जानकारी मे ं मुजिरम
सामने मौजू द था। बस, उसके ख़लाफ़ ऐसे सबू त हा सल करना बाक़ रह गया था
ज हे ं अदालत मे ं पेश कया जा सके।
उसने शौकत के पास मुदा पिर दे देखे थे ज हे ं वह आग मे ं जला रहा
था....ले कन इस बात का कोई सबू त उसके पास नहीं था और अदालत सबू त मागँ ती
है।
परवीन शौकत क चचेरी बहन थी और नवाब जावेद मज़ा क इकलौती बेटी।
ज़ा हर है क नवाब के बाद उनक जायदाद क मा लक वही होती। शौकत भी कभी
जायदाद का मा लक था, ले कन उसक जायदाद साइ ट फ़क तज बे मे ं घुस गयी....
इस लए वह दोबारा अपनी माली हालत सुधारने के लए परवीन से शादी के
वाब देख सकता था। इमरान ने अपना यह ख़याल कै टन फ़ैयाज़ पर ज़ा हर कया
जसे उसने तार दे कर ख़ास तौर से सरदारगढ़ बुलाया था।
‘‘मगर! इमरान!’’ फ़ैयाज़ ने कहा था। ‘‘यह ज़ री नहीं क परवीन क शादी इस
वाक़ये के बाद शौकत ही से हो जाये। अगर जावेद मज़ा को उसक शादी अपने
ु ँ ती।’’
भतीजों ही मे ं से कसी के साथ करनी होती हो बात जमील तक कैसे पहच
‘‘तुम अपनी जगह ठ क कह रहे हो!’’ इमरान बोला। ‘‘ले कन मेरे पास और भी
दलीले ं है ं जनक बना पर मेरा नज़िरया वही रहेगा।’’
‘‘अ छा, मुझे बताओ....अब तु हारी दलीले ं या है।ं ’’
‘‘इ सानी फ़तरत क रोशनी मे ं इसे देखने क को शश करो। यह इ सानी फ़तरत
होती है क हम नजी सुख–चैन चाहते है ं हर मामले मे!ं ले कन हालात के साथ ही
उससे हा सल करने का तरीक़ा भी बदलता रहता है। शौकत अगर परवीन से शादी
कर लेगा तो उससे उतना ही सुकून मलेगा जतना उसको उसके दू सरे मग ँ ेतरों क
श ल बगाड़ने पर मलता है।’’
फ़ैयाज़ कु छ देर कु छ सोचता रहा फर धीरे से बोला। ‘‘तुम ठ क कहते हो।’’
‘‘मै ं झक मार रहा हू।ँ और तुम बलकु ल गधे हो।’’ तभी इमरान का मू ड बगड़
गया।
‘‘ या!’’ फ़ैयाज़ उसे हैरानी से घू रने लगा।
‘‘कु छ नहीं मै ं सफ़ यह कहना चाहता था क तुम इस वभाग के लए ठ क नहीं
हो। इ तीफ़ा दे कर मेरी फ़म मे ं नौकरी कर लो। तलाक़ के हसाब से कमीशन
अलग....यानी उससे और तन वाह से कोई मतलब न होगा।’’
‘‘इमरान यारे, काम क बात करो!’’ फ़ैयाज़ बड़ी श म दगी से बोला। ‘‘मै ं
चाहता हू ँ क तुम इस मामले को ज द-से-ज द नपटा कर वापस चलो....वहा ँ भी कई
मुसीबते ं तु हारा इ तज़ार कर रही है।ं ’’
‘‘हायँ ! कहीं मेरी शादी तो नहीं तय कर दी....!’’
‘‘ख़ म करो!’’ फ़ैयाज़ हाथ उठा कर बोला। ‘‘शौकत वाले नज़िरये के अलावा
कसी और का भी इमकान है या नहीं....!’’
‘‘है यों नहीं....ये हरकत जमील के चचा या मामू क भी हो सकती है।’’
‘‘हा,ँ हो सकती है! मगर मै ं इस पर यक़ न करने के लए तैयार नहीं।’’
‘‘ सफ़ इस लए क स जाद से तु हारे दो ताना ता क़ ु ात है।ं यों?’’
‘‘नहीं! यह बात नहीं! उनमे ं से हर एक मेरे लए खुली हईु कताब है। उनमे ं कोई
भी इतना अ लम द नहीं है....’’
‘‘ख़ैर, मुझे इससे बहस नहीं है। मैनं े जस काम के लए बुलाया है, उसे सुनो।’’
इमरान ने कहा और फर ख़ामोश हो कर कु छ सोचने लगा।
थोड़ी देर बाद फर बोला। ‘‘सलीम का क़ सा सुन ही चुके हो। मै ं चाहता हू ँ क
कसी तरह उसे जेल से बाहर लाया जाये।’’
‘‘भला यह कैसे हो सकता है?’’
‘‘कोई सूरत नकालो!’’
‘‘ आ ख़र उससे या होगा?’’
‘‘ब ा होगा और तु हे ं मामू कहेगा।’’ इमरान झ ा कर बोला।
‘‘नामुम कन है....यह कसी तरह नहीं हो सकता।’’
‘‘ब ा!’’ इमरान ने पू छा।
‘‘बको मत! मै ं सलीम क िरहाई के बारे मे ं कह रहा हू।ँ वह चोरी के जुम मे ं ब द
है। उसे क़ानू न के सुपदु करने वाला शौकत है। जब तक क वह ख़ुद अदालत से
उसक िरहाई क अपील न करे ऐसा नहीं हो सकता।’’
‘‘मै ं भी इतना जानता हू?ँ ’’
‘‘इसके बावजू द भी इस क़ म के बेवकूफ़ों जैसे ख़यालात रखते हो।’’
‘‘अगर वह िरहा नहीं हो सकता तो फर असल मुजिरम का हाथ आना भी
मु कल है।’’
‘‘ आ ख़र शौकत के ख़लाफ़ सबू त यों नहीं मुहैया करते....’’’
‘‘मुझे यह सब कु छ ब डल मालू म होता है....खास तौर पर पिर दों क कहानी!’’
‘‘ फर शौकत उन मुदा पिर दों को आग मे ं यों जला रहा था?’’ फ़ैयाज़ ने कहा।
‘‘वह झक मार रहा था। उसे जह म ु मे ं डालो। ले कन या तुम कसी ऐसे पिर दे
के वजू द पर यक़ न रखते हो जसके चोंच मारने से आदमी कोढ़ी हो जाय और उसके
ज म मे ं ऐसे वाइरस पाये जाये ं जो सारी दु नया के लए बलकु ल नये हों। ज़ा हर है
क सफ़ेद दाग़ों के वही वाइरस है।ं ’’
‘‘हो सकता है कसी साइ ट फ़क तरीक़े से उन पिर दों मे ं उस क़ म के असर
पैदा कये गये हों।’’
‘‘अ छा....अ छा....यानी तुम भी यही समझते हो। इसका यह मतलब हआ ु क
हर आदमी कसी ऐसे साइ ट फ़क तरीक़े के बारे मे ं सोच सकता है। तो समझो
शौकत बलकु ल बु ू है उसने जान-बू झ कर अपनी गदन फँसवायी है। सारा
सरदारगढ़ इस बात को जानता है क शौकत एक अ लम द साइ ट ट है और
वाइरस उसका ख़ास टॉ पक है।ं ’’
‘‘ फर वो मुदा पिर दे....!’’
‘‘मै ं कहता हू ँ इस बात को ख़ म ही कर दो तो अ छा है। सलीम क िरहाई के
बारे मे ं सोचो।’’
‘‘वह ऐसा है जैसे म छर के पेट से हाथी पैदा कराना?’’
‘‘तब फर असल मुजिरम का हाथ आना भी मु कल है....और मै ं अपना ब तर
गोल करता हू।’’ ँ
‘‘तुम ख़ुद ही कोई तरीक़ा यों नहीं सोचते।’’ फ़ैयाज़ झुझ ँ ला कर बोला।

‘‘मै ं सोच चुका हू।’’
‘‘तो फर यों झक मार रहे हो। मुझे बताओ या सोचा है।’’
‘‘उसके कसी िर तेदार को ज़मानत के लए तैयार कराओ।’’
‘‘मगर वह ज़मानत पर िरहा होने से इनकार करता है।’’
ँ ा और
‘‘उसके इनकार से या होता है....मै ं उसे अदालत मे ं झ सा बत करा दू ग
फर उसे इस बात क इ ला देने क ज़ रत ही नहीं है क उसक ज़मानत होने वाली
है। इतना तो तुम कर ही सकोगे क जेल से अदालत तक लाने से पहले उस पर यह
ज़ा हर कया जाये क मुकदमे क पेशी के सल सले मे ं उसे ले जाया जा रहा है।’’
‘‘हा,ँ यह हो सकता है।’’
‘‘हो नहीं सकता, ब क उसे कल तक हो जाना चा हए।’’ इमरान ने एक-एक
ल ज़ पर ज़ोर दे कर कहा।
१३
ज़मानत हो जाने के बाद भी सलीम अदालत से नहीं टला। उसके चेहरे पर परेशानी के
आसार थे। वह अदालत ही के एक बरामदे मे ं टहल रहा था और कभी-कभी
ख़ौफ़नाक आख ँ ों से इधर-उधर भी देख लेता था।
इमरान उसके लए बलकु ल अजनबी था, इस लए उससे बहत ु क़रीब रह कर भी
उसक हालत का जायज़ा कर सकता था।
शाम हो गयी और सलीम वहीं टहलता रहा। जसने उसक ज़मानत दी थी, वह
हथक ड़या ँ खुलने से पहले ही अदालत से खसक गया था।
फर वह व त भी आया जब सलीम उस बरामदे मे ं बलकु ल अकेला रह गया।
इमरान भी अब वहा ँ से हट गया था, ले कन अब वह ऐसी जगह पर था जहा ँ से वह
उसक नगरानी आसानी से कर सकता था। सलीम को शक करने का मौक़ा दये
बग़ैर।
अदालत मे ं स ाटा छा जाने के बाद सलीम वहा ँ से चल पड़ा। इमरान उसका
पीछा कर रहा था। सलीम ने टै सयों के अ े पर पहच ु ँ कर एक टै सी क । इमरान
क टू -सीटर भी वहा ँ से दूर नहीं थी।
बहरहाल, पीछा जारी रहा। ले कन इमरान महसू स कर रहा था क सलीम क
टै सी यू ँ ही बेमक़सद शहर क सड़कों के च र काट रही है। फर अध ँ ेरा फैलने
लगा। सड़कों पर बजली क रोशनी चमकने लगी। इमरान ने सलीम का पीछा नहीं
छोड़ा। वह अपना पे ोल फूँकता रहा।
जैसे ही अध ँ ेरा कु छ और गहरा हआ
ु अगली टै सी जै सन रोड पर लगी और
इमरान ने ज द ही अ दाज़ा कर लया क उसका ख़ नवाब जावेद मज़ा क हवेली
क तरफ़ है।
दोनों कारों मे ं लगभग चालीस गज़ का फ़ासला था और यह फ़ासला इतना कम
था क सलीम को पीछा कये जाने का शक ज़ र हो सकता था। हो सकता है क
सलीम को पहले ही शक हो गया हो और वह टै सी को इसी लए इधर-उधर च र
खलाता रहा हो।
जावेद मज़ा क हवेली से लगभग एक फ़रलागँ इधर ही टै सी क गयी। ले कन
इमरान ने सफ़ र तार कम कर दी....कार नहीं रोक । अब वह धीरे-धीरे रेग
ं रही थी।
सड़क सुनसान थी। टै सी वापसी के लए मुड़ी। इमरान ने उसे रा ता दे दया।
अपनी कार क अगली लाइट मे ं उसने देखा क सलीम ने बेतहाशा दौड़ना शु
कर दया है। इमरान ने अपनी र तार तेज़ कर दी....और साथ ही उसने जेब से कोई
चीज़ नकाल कर बाहर सड़क पर फेंक । एक ह का-सा धमाका हआ ु और सलीम
दौड़ते-दौड़ते गर पड़ा, ले कन फर फ़ौरन ही उठ कर भागने लगा.... फर इमरान ने
उसे जावेद मज़ा के बाग़ मे ं छलागँ लगाते देखा....
इमरान क कार फ़राटे भरती हईु आगे नकल गयी....ले कन अब उसक सारी
लाइटे ं बुझ हईु थीं।
दो फ़रलागँ आगे जा कर इमरान ने कार रोक और उसे एक बड़ी-सी च ान क
ओट मे ं खड़ा कर दया। अब वह पैदल ही बाग़ के उस ह से क तरफ़ जा रहा था
जहा ँ लेबोरेटरी वाली इमारत थी। अचानक उसने एक फ़ायर क आवाज़ सुनी जो उसी
तरफ़ से आयी थी। जधर लेबोरेटरी थी.... फर दू सरा फ़ायर हआ ु और एक चीख़
स ाटे का सीना चीरती हईु अध ँ ेरे मे ं डूब गयी....इमरान ने पहले तो दौड़ने का इरादा
कया फर क गया....अब उसने लेबोरेटरी क तरफ़ जाने का इरादा भी छोड़ दया
था वह जहा ँ था वहीं का रहा। ज द ही उसने कई आद मयों के दौड़ने क आवाज़े ं
सुनीं। उनमे ं ह का-सा शोर भी शा मल था....इमरान कार क तरफ़ पलट गया उसका
ज़ेहन बहत ु तेज़ी से सोच रहा था।
ले कन अचानक उसके ज़ेहन मे ं एक नया ख़याल पैदा हआ ु । या वह अकेले मे ं
भी बेवक़ूफ़ करने लगा है? या वह बेवक़ूफ़ नहीं थी? उसने फ़ायरों क आवाज़े ं
सुनीं और वह चीख़ भी कसी ज़ मी ही क चीख़ मालू म हईु थी। फर आ ख़र वह
कार क तरफ़ यों पलट आया था....उसे आवाज़ क तरफ़ बेतहाशा दौड़ना चा हए
था....
इमरान ने कार टाट क और फर सड़क पर वापस आ गया....कोठ के क़रीब
पहचु ँ कर उसने कार बाग़ क तरफ़ मोड़ दी और उसे सीधा पोच मे ं लेता चला गया।
जावेद मज़ा कोठ से नकल कर पोच मे ं आ रहा था। उसक र तार तेज़ थी
चेहरे पर हवाइया ँ उड़ रही थीं....और हाथ मे ं राइफ़ल थी।
‘‘ख़ैिरयत नवाब साहब!’’ इमरान ने हैरत ज़ा हर क ।
‘‘ओह.... सतवत जाह....इधर....!’’ उसने लेबोरेटरी क तरफ़ इशारा करके कहा।
‘‘कोई हादसा हो गया है....दो फ़ायर हएु थे....चीख़....भी....आओ....आओ....!’’
जावेद मज़ा उसका बाज़ू पकड़ कर उसे भी लेबोरेटरी क तरफ़ घसीटने लगा....!
कोठ के सारे नौकर लेबोरेटरी के क़रीब इक ा थे। सफ़दर, इरफ़ान और शौकत
भी वहा ँ मौजू द थे। शौकत ने जावेद मज़ा को बताया क वह अ दर था। अचानक
उसने फ़ायरों क आवाज़े ं सुनीं.... फर चीख़ भी सुनाई दी....बाहर नकला तो अधँ ेरे मे ं
कोई भागता हआ ु दखाई दया ले कन उसके सभ ँ लने से पहले ही वह ग़ायब हो चुका
था...
‘‘और....लाश!’’ जावेद मज़ा ने पूछा।
‘‘हम अभी तक कसी क लाश ही तलाश करते रहे है!ं ’’ इरफ़ान बोला।
‘‘ले कन अभी तक कामयाबी नहीं हईु ।’’
‘‘लाश!’’ इमरान धीरे से बड़बड़ा कर चारों तरफ़ देखने लगा।
‘‘तुम अब यहा ँ अकेले नहीं रहोगे समझे!’’ जावेद मज़ा शौकत क क धा
झं झोड़ कर चीख़ा।
शौकत कु छ न बोला। वह इमरान को घू र रहा था।
‘‘कोई भू त- ते ही होगा....मेरा दावा है....!’’ इमरान मु ा हला कर रह गया।
‘‘आप इस व त यहा ँ कैसे?’’ शौकत ने उससे पूछा।
‘‘शौकत तु हे ं बात करने क तमीज़ कब आयेगी!’’ जावेद मज़ा ने झ ायी हईु
आवाज़ मे ं कहा और इमरान हसने ँ लगा....अचानक उसके दाये ं गाल पर दो तीन गम-
गम बू ँदे ं फसल कर रह गयीं और इमरान ऊपर क तरफ़ देखने लगा। फर गाल पर
हाथ फेर कर जेब से टॉच नकाली। उँग लया ँ कसी चीज़ से चप चपाने लगी थीं।
टॉच क रोशनी मे ं उसे अपनी उँग लयों पर ख़ू न दखा....ताज़ा ख़ू न....सब अपनी-
अपनी बातों मे ं लगे थे। कसी का यान इमरान क तरफ़ नहीं था....
इमरान ने एक बार फर ऊपर क तरफ़ देखा वह एक पेड़ के नीचे था और पेड़
का ऊपरी ह सा अध ँ ेरे मे ं गुम था।
‘‘ले कन....हमे ं यहा ँ कसी के जू ते मले है!ं ’’ सफ़दर कह रहा था।
‘‘शायद भागने वाला अपने जू ते छोड़ गया है।’’
उसने पेड़ के तने क तरफ़ टॉच क रोशनी डाली....जू ते सचमुच मौजू द थे।
इमरान आगे बढ़ कर उ हे ं देखने लगा, ले कन सफ़दर ने टॉच बुझा दी और इमरान
को अपनी टॉच जलानी पड़ी।
‘‘ख़ म करो ये क़ सा! चलो यहा ँ से!’’ जावेद मज़ा ने कहा। ‘‘शौकत, मै ं तुमसे
ख़ास तौर पर कह रहा हू ँ तुम अब यहा ँ नहीं रहोगे।’’
‘‘मेरे लए ख़तरा नहीं है।’’ शौकत बोला।
‘‘है यों नहीं!’’ इमरान बोल पड़ा। ‘‘मै ं भी आपको यही मश वरा दू ग ँ ा।’’
‘‘मैनं े आपसे मश वरा नहीं मागँ ा है।’’
‘‘इसक परवाह न क जए। मै ं फ़ ड मे ं मश वरा देता हू।ँ ’’ इमरान ने कहा
और फर बुल द आवाज़ मे ं बोला। ‘‘मै ं उसे भी मश वरा देता हू ँ जो पेड़ पर मौजू द
है....उसे चा हए क वह नीचे उतर आये....वह ज़ मी है....आओ....आ जाओ
नीचे....मुझे यह भी मालू म है क तुम असलहे से लैस नहीं हो....और यहा ँ सब तु हारे
दो त है.ं ...आ जाओ नीचे।’’
‘‘अरे, अरे, तु हे ं या हो गया सतवत जाह!’’ जावेद मज़ा ने घबरायी हईु
आवाज़ मे ं कहा।
अचानक इमरान ने अपनी टॉच का ख़ ऊपर क तरफ़ कर दया।
‘‘मै ं सलीम हू!ँ ’’ ऊपर से एक भरायी हईु -सी आवाज़ आयी।
‘‘हक म हो या डॉ टर! इसक परवाह न करो। बस, नीचे आ जाओ।’’ स ाटे मे ं
सफ़ इमरान क आवाज़ गू ज ँ ी। बाक़ लोगों को तो जैसे सापँ सू घ
ँ गया था।
पेड़ पर अचानक कई टाच क रोशनी पड़ रही थीं....ले कन इमरान क नज़र
शौकत के चेहरे पर थी। शौकत तभी बरसों का बीमार दखने लगा।
सलीम टह नयों से उतरता हआ ु तने के सरे पर पहच ु ँ चुका था अचानक उसने
कराह कर कहा....‘‘मै ं गरा....मुझे बचाओ....!’’
एक ही छलागँ मे ं इमरान तने के क़रीब पहच ु ँ गया।
‘‘चले आओ....चले आओ....ख़ुद को सभ ँ ालो....अ छा....मै ं हाथ बढ़ाता हू ँ अपने
पैर नीचे लटका दो!’’ इमरान ने कहा।
जावेद मज़ा वग़ैरह भी उसक मदद को पहच ु ँ गये कसी-न- कसी तरह सलीम
को नीचे उतारा गया....उसके क़दम लड़खड़ा रहे थे। उसने भरायी हईु आवाज़ मे ं
कहा। ‘‘मेरे दाये ं हाथ पर गोली लगी है।’’
‘‘मगर तुम तो जेल मे ं थे....!’’ जावेद मज़ा बोला।
‘‘जज....जी हा ँ मै ं था।’’ सलीम आगे-पीछे झू लता हआ ु ज़मीन पर गर गया। वह
बेहोश हो चुका था।
१४
वे लोग बेहोश सलीम को कोठ क तरफ़ ले जा चुके थे और अब लेबोरेटरी क
इमारत के क़रीब इमरान के अलावा और कोई नहीं था। वह भी उनके साथ थोड़ी दू र
तक गया था, ले कन फर उनक बेख़बरी मे ं लेबोरेटरी क तरफ़ पलट आया था। उन
सबके ज़ेहन उलझे हएु थे और कसी को इसका होश नहीं था क कौन कहा ँ रह
गया....अलब ा नवाब जावेद मज़ा शौकत को वहा ँ से खींचता हआ ु ले गया था।
लेबोरटरी वाली इमारत का दरवाज़ा खुला हआ ु था....इमरान अ दर घुस गया।
उसक टॉच जल रही थी। अ दर घुसते ही जस चीज़ पर सबसे पहले उसक नज़र
पड़ी वह एक िरवॉ वर था जो इमरान ने पछली रात शौकत के हाथ मे ं देखा था।
इमरान ने जेब से माल नकाला और उससे अपनी उँग लया ँ ढकते हएु िरवॉ वर को
नाल से पकड़ कर उठा लया....और फर वह उसे अपनी नाक तक ले गया। नाल से
बा द क बू आ रही थी। साफ़ ज़ा हर हो रहा था क उससे कु छ ही देर पहले फ़ायर
कया गया है.... फर इमरान ने मैगज़ीन पर नज़र डाली....दो चे बर ख़ाली थे। उसने
अपने सर को थोड़ा-सा हलाया....और िरवॉ वर को बहत ु एह तयात से माल मे ं
लपेट कर जेब मे ं डाल लया। फर वह वहीं से लौट आया....आगे जाने क ज़ रत ही
नहीं थी। इतना ही काफ़ था, ब क काफ़ से भी यादा....
इमरान कोठ क तरफ़ चल पड़ा। उसका ज़ेहन ख़यालों मे ं उलझा हआ ु
था....अचानक वह क गया और फर तेज़ी से लेबोरेटरी क तरफ़ मुड़ कर दौड़ने
लगा।
‘‘कौन है? ठहरो!’’ उसने पीछे से शौकत क आवाज़ सुनी....ले कन इमरान का
नहीं, बराबर दौड़ता रहा....शौकत भी शायद उसके पीछे दौड़ रहा था।
ँ ा।’’ शौकत फर चीख़ा।
‘’ठहर जाओ....ठहरो....वरना गोली मार दू ग
इमरान लेबोरेटरी क इमारत के पास एक च र लगा कर झा ड़यों मे ं घुस गया
और शौकत क समझ मे ं न आ सका क वह कहा ँ ग़ायब हो गया।
शौकत ने अब टॉच जलायी और चारों तरफ़ उसक रोशनी डाल रहा था....ले कन
उसने झा ड़यों मे ं घुसने क ह मत नहीं क ।
फर इमरान ने उसे इमारत के अ दर जाते देखा। इमरान ठ क दरवाज़े के सामने
वाली झा ड़यों मे ं था। उसने शौकत को दरवाज़ा खोल कर टॉच क रोशनी मे ं कु छ
तलाश करते देखा।
अब इमरान शौकत को वहीं छोड़ कर धीरे-धीरे कोठ क तरफ़ जा रहा था।
उसने एक बार मुड़ कर लेबोरेटरी क इमारत पर नज़र डाली....अब उसक सारी
खड़ कयों मे ं रोशनी दख रही थीं।
१५
उस केस को तीन दन बीत गये! फ़ैयाज़ सरदारगढ़ ही मे ं ठहरा था। इमरान उससे
बराबर काम लेता रहा....ले कन उसे कु छ बताया नहीं....फ़ैयाज़ उस पर झुझ ँ लाता रहा
और उस व त तो उसे और यादा ताव आया, जब इमरान ने लेबोरेटरी मे ं पाये जाने
वाले िरवॉ वर के द ते पर उँग लयों के नशान क टडी का काम उसके सुपदु
कया....इमरान ने वादा कया था क वह टडी के नतीजे मालू म करने के बाद उसे
सब कु छ बता देगा....मगर वह अपने वादे पर क़ायम न रहा। ज़ा हर है क यह ग़ु सा
दलाने वाली बात ही थी।
फ़ैयाज़ वापस जाना चाहता था, मगर इमरान ने उसे रोके रखा। मजबू रन फ़ैयाज़
को एक ह ते क छु ी लेनी पड़ी, यों क वह सरकारी तौर पर इस केस पर नहीं
था....
आजकल इमरान सचमुच पागल दख रहा था....कभी इधर, कभी उधर....और
अपने साथ फ़ैयाज़ को भी घसीटे फरता था।
एक रात तो फ़ैयाज़ के भी हाथ-पैर फूल गये....एक या डे ढ़ बजे होंगे, चारों तरफ़
स ाटा और अधे ँ रा था....और वे दोनों पैदल सड़कें नापते फर रहे थे। इमरान या
करना चाहता है, यह फ़ैयाज़ को मालू म नहीं था....
इमरान एक जगह क कर बोला। ‘‘जमील क कोठ मे ं घुसना यादा मु कल
काम नहीं है।’’
‘‘ या मतलब?’’
‘‘मतलब यह क चोरों क तरह....!’’
‘‘इसक ज़ रत ही या है....?’’
‘‘कल रात नवाब जावेद मज़ा क कोठ मे ं मैनं े ही नक़ब लगायी थी....तुमने
आज शाम अख़बारों मे ं उसके बारे मे ं पढ़ा होगा।’’
‘‘तु हारा दमाग़ तो नहीं चल गया?’’
‘‘पहले चला था....बीच मे ं फर क गया था, अब फर चलने लगा है....हा,ँ मैनं े
नक़ब लगायी थी। उसके अलावा और कोई चारा नहीं था।’’
‘‘ यों लगायी थी?’’
‘‘बहत ु ज द मालू म हो जायेगा। परवाह न करो, हा ँ तो मै ं कह रहा था क जमील
क कोठ ...’’
‘‘बकवास मत करो?’’ फ़ैयाज़ ने बुरा-सा मुह ँ बना कर कहा। ‘‘मै ं इस व त भी
कोठ खुलवा सकता हू।ँ तुम वहा ँ या देखना चाहते हो?’’
‘‘वह लड़क ....सईदा है ना....मै ं बस उसक श ल देख कर वापस आ जाऊँगा।
तुम फ़ न करो। उसक आख ँ भी न खुलने पायेगी....और मै.ं ...’’
‘‘ या बक रहे हो?’’
‘‘मै ं चाहता हू ँ क जब वह सुबह सो कर उठे तो उसे अपने चेहरे पर उसी क़ म
के काले ध बे दखे।ं मै ं उससे शत लगा चुका हू।ँ ’’
‘‘आ ख़र तुम करना या चाहते हो?’’ फ़ैयाज़ ने पू छा।
‘‘कु छ भी नहीं। बस, मै ं उसे यक़ न दलाना चाहता हू ँ क जमील के चेहरे पर वह
सफ़ेद दाग़ सफ़ बनावटी है.ं ...यानी मेक अप। ख़ैर, तुम इन बातों को छोड़ो और
दूसरा लतीफ़ा सुनो!’’ इमरान सर हला कर बोला। ‘‘ जस दन सलीम क ज़मानत
हईु थी, उसी रात को कसी ने उस पर दो फ़ायर कये थे....एक गोली उसके दाये ं हाथ
पर लगी थी।’’
‘‘ या तुमने भागँ पी रखी है?’’ फ़ैयाज़ ने हैरान होते हएु पू छा।
‘‘फ़ायर, जावेद मज़ा के बाग़ मे ं हएु थे, ले कन सलीम ने पु लस को उसक
खबर नहीं दी।’’
‘‘यह तुम मुझे आज बता रहे हो?’’
‘‘मै!ं मेरा क़सू र नहीं....ये क़सूर सरासर उसी गधे का है....वह मरना ही चाहता है
तो मै ं या क ँ ।’’
‘‘उसका ख़ू न तु हारी गदन पर होगा। तुमने ही उसे जेल से नकलवाया है।’’

‘’उसके मुक़ र मे ं यही था....मै ं या कर सकता हू।’’
‘‘इमरान, ख़ुदा के लए मुझे बोर न करो।’’
‘‘तु हारे मुक़ र मे ं भी यही है। मै ं या कर सकता हू ँ और तीसरा लतीफ़ा सुनो।
वह िरवॉ वर मुझे लेबोरेटरी वाली इमारत मे ं मला था....और वे नशान....जो उसके
ह थे पर पाये गये है,ं सौ फ़ सदी शौकत क उँग लयों के नशान है।ं ’’
‘‘ओ....इमरान के ब े....!’’
‘‘अब चौथा लतीफ़ा सुनो....सलीम अब भी जावेद मज़ा क कोठ मे ं ठहरा है।’’
‘‘ख़ुदा तु हे ं ग़ारत करे!’’ फ़ैयाज़ ने झ ा कर इमरान क गदन पकड़ ली।
‘‘आ.ँ ...हा....!’’
ँ इमरान पीछे हटता हआ ु बोला। ‘‘यह सड़क है यारे। अगर
इ फ़ाक़ से कोई ू टी कॉ टेबल इधर आ नकला तो मुसीबत आ जायेगी।’’
‘‘मै ं अभी सलीम....क ख़बर लू ग ँ ा....!’’
‘‘ज़ र....लो....अ छा, तो मै ं चला....!’’
‘‘कहा!’’ँ
‘‘जमील क कोठ के पीछे एक पेड़ है जसक टह नया ँ छत पर झुक हईु है।ं ’’
‘‘बकवास न करो....मेरे साथ पु लस टेशन चलो। वहा ँ से हम उसी व त जावेद
मज़ा के यहा ँ जायेग ं े।’’
‘‘मै ं कभी अपना ो ाम नहीं बदलता। तुम जाना चाहो तो शौक़ से जा सकते हो।
मगर खेल बगड़ने क सारी ज़ मेदािरया ँ तुम पर ही होंगी।’’
‘‘कैसा खेल.... आ ख़र तुम मुझे साफ़-साफ़ यों नहीं बताते।’’
‘‘गु ड़यों के खेल मे ं उ गव ँ ायी....जाना है इक दन सोच न आयी!’’ इमरान ने
कहा और ठ डी सास ँ ले कर ख़ामोश हो गया....
फ़ैयाज़ कु छ न बोला। उसका बस चलता तो इमरान क बो टया ँ उड़ा देता।
‘‘अब, मै ं तु हारी कसी बेवक़ूफ़ मे ं ह सा न लू गँ ा।’’ उसने थोड़ी देर बाद कहा।
‘‘जो दल चाहे करो, मै ं जा रहा हू।ँ अब तुम अपनी हर करतू त के ख़ुद ज़ मेदार
होगे।’’
‘‘बहत ु -बहत
ु शु या! तुम जा सकते हो....टाटा....और अगर अब भी नहीं जाओगे
तो....बाटा.... हप!’’
१६
इमरान धुन का प ा था....फ़ैयाज़ के लाख मना करने के बावजू द वह चोरों क तरह
जमील क कोठ मे ं दा ख़ल हो गया। फ़ैयाज़ वहीं से वापस हो गया, ले कन उसे रात
भर नींद नहीं आयी थी....इमरान क बकवास से उसके सही ख़यालों का अ दाज़ा
करना बहत ु ही मु कल था....और यही चीज़ फ़ैयाज़ के लए उलझन बनी हईु
थी....वह सारी रात यही सोचता रहा क मालू म नहीं इमरान ने वहा ँ या हरकत क
हो....ज़ री नहीं क वह हर मामले मे ं कामयाब ही होता रहे। हो सकता है क वह
पकड़ा गया हो.... फर उसक या पोज़ीशन होगी।
सुबह होते ही सबसे पहले उसने स जाद को फ़ोन कया.... दखावटी मक़सद यू ँ
ही र मी तौर पर ख़ैिरयत मालू म करना था। उसे उ मीद थी क अगर कोई वाक़या पेश
आया होगा तो स जाद ख़ुद ही बतायेगा....ले कन स जाद ने कसी नये वाक़ये क
खबर नहीं दी। फ़ैयाज़ को फर भी इ मीनान नहीं हआ ु ....उसने स जाद से कहा क
वह कसी टॉ पक पर बातचीत करने के लए वहा ँ आयेगा और फर ना ता करके
जमील क कोठ क तरफ़ रवाना हो गया....उसे ॉइं ग- म मे ं काफ़ देर तक बैठना
पड़ा। ले कन फ़ैयाज़ सोचने लगा क उसे कस टॉ पक पर बातचीत करनी
है....बहरहाल, स जाद ॉइं ग- म मे ं मौज़ू द नहीं था, इस लए उसे सोचने का मौक़ा
मल गया....ले कन वह कु छ भी न सोच सका। उसक जानकारी मे ं अभी तक कोई
नयी बात हईु ही नहीं थी....इमरान क पछली रात क बातों को वह ज बे मे ं बह रहे
आदमी का बड़बोलापन समझता था और इसी बना पर उसने सलीम के बारे मे ं
जानकारी हा सल करने क भी ज़ रत नहीं समझ थी। इमरान का ख़याल आते ही
उसे ग़ु सा आ गया....और साथ ही इमरान ने ॉइं ग- म मे ं जा कर सलाम कया।
फ़ैयाज़ क पीठ दरवाज़े क तरफ़ थी। वह एकदम से उछल पड़ा।
‘‘ये या बेहूदगी है....!’’ फ़ैयाज़ झ ा गया।
‘‘परवाह न करो। मै ं इस व त जे स बॉ ड हो रहा हू।ँ यारे डॉ टर
वॉटसन....नीले पिर दों के बाप का सुराग़ मुझे मल गया है....और मै ं बहत ु
ज द....अ सलाम अलैकुम....’’
‘‘वालैकुम अ सलाम!’’ स जाद ने सलाम का जवाब दया जो दरवाज़े मे ं खड़ा
इमरान को घू र रहा था....
‘‘आइए....आइए....!’’ इमरान ने बेवकूफ़ों क तरह बौखला कर कहा।
स जाद आगे बढ़ कर एक सोफ़े पर बैठ गया। उसके चेहरे पर परेशानी झलक
रही थी।
‘‘ यों, या बात है?’’ फ़ैयाज़ ने कहा। ‘‘तुम कु छ परेशान दख रहे हो।’’
‘‘मै.ं ...हा.ँ ...मै ं परेशान हू।ँ सईदा भी उसी बीमारी मे ं फँस गयी है....!’’

‘‘ या?’’ फ़ैयाज़ उछल कर खड़ा हो गया।
‘‘हा.ँ ...मगर....उसके सफ़ चेहरे पर ध बे है.ं ...बाक़ ज म पर नहीं!’’
‘‘काले ध बे!’’ फ़ैयाज़ ने पूछा।
‘‘फ़ैयाज़ साहब!’’ स जाद ने नाख़ुशी मे ं कहा। ‘‘मेरा ख़याल है क यह मज़ाक़
का मौक़ा नहीं है।’’
‘‘ओह....माफ़ करना....मगर.... या कोई नीला.... पिर दा....’’
‘‘पता नहीं! वह सो रही थी....अचानक कसी तकलीफ़देह एहसास से जाग
गयी....और जागने पर उसे महसू स हआ
ु जैसे कोई चीज़ दाये ं हाथ मे ं चुभ गयी हो।’’
‘‘पिर दा लटका हआ ु था।’’ इमरान ज दी से बोला।
‘‘जी नहीं, वहा ँ कु छ भी नहीं था।’’ स जाद ने झ ायी हएु आवाज़ मे ं कहा।
‘‘अचानक उसक नज़र े सं ग टेबल के आईने पर पड़ी और बेतहाशा चीख़े ं मारती
हईु कमरे से नकल कर बाहर भागी।’’
ँ मे ं चबा कर रह गया।
‘‘ओह....!’’ इमरान अपने होंट दातों
फ़ैयाज़ इमरान को घू रने लगा और इमरान धीरे से बड़बड़ाया। ‘‘ऐसी जगह
मा ँ गा जहा ँ पानी भी न मल सके।’’ इस पर स जाद भी इमरान को घू रने लगा।
‘‘मगर....’’ इमरान ने दोनों को बारी-बारी से देखते हएु कहा, ‘‘जमील साहब को
दाग़दार बनाने का मक़सद तो समझ मे ं आता है। मगर सईदा सा हबा का मामला? यह
मेरी समझ से बाहर है.... आ ख़र शौकत को उनसे या दु मनी हो सकती है?’’
‘‘शौकत?’’ स जाद चौंक पड़ा।
‘‘जी हा!ँ उसक लेबोरेटरी मे ं ऐसे वाइरस मौजू द है ं जनका बयान डॉ टरों क
िरपोट मे ं मलता है।’’
‘‘आप इसे सा बत कर सकेंगे?’’ स जाद ने पू छा।
‘‘चुटक बजाते उसके हाथों मे ं हथक ड़या ँ डलवा दू ग ँ ा। बस, देखते रह
जाइएगा।’’
‘‘ आ ख़र या सबू त है तु हारे पास?’’ फ़ैयाज़ ने पू छा।
‘‘आहा! उसे मुझ पर छोड़ दो। जो कु छ मै ं कहू,ँ करते जाओ....उसके ख़लाफ़
हआ ु तो फर मै ं कु छ नहीं कर सकूँगा। बहरहाल, आज ामे का ॉप सीन हो
जायेगा।’’
‘‘नहीं, पहले मुझे बताओ!’’ फ़ैयाज़ ने कहा।
‘‘ यों बताऊँ?’’ अचानक इमरान झ ा गया। ‘‘तुम या नहीं जानते। ब ों क -सी
बाते ं कर रहे हो.... या सलीम पर गोली नहीं चलायी गयी थी? या िरवॉ वर के ह थे
पर शौकत क उँग लयों के नशान नहीं मले? या मैनं े उसक लेबोरेटरी मे ं नीले

पिर दे नहीं देखे ज हे ं वह अगीठ मे ं झोंक रहा था!’’
‘‘िरवॉ वर....सलीम....नीले पिर दे....यह आप या कह रहे है।ं मै ं कु छ नहीं
समझा।’’ स जाद हैरान हो कर बोला।
‘‘बस, स जाद साहब! इससे यादा अभी नहीं! जो कु छ मै ं कहू ँ करते
जाइए....मुजिरम के हथक ड़या ँ लग जायेग ं ी।’’
‘‘बताइए....जो कु छ आप कहेग ं े क ँ गा।’’
‘‘गुड....तो आप अभी और इसी व त अपने भाइयों और जमील साहब के
मामुओ ं समेत जावेद मज़ा के यहा ँ जाइए। कै टन फ़ैयाज़ भी आपके साथ होंगे....वहा ँ
जाइए और जावेद मज़ा से पू छए क अब उसका या इरादा है? जमील से अपनी
लड़क क शादी करेगा या नहीं?....ज़ा हर है क वह इनकार करेगा। फर उस व त
ज़ रत इस बात क होगी क कै टन फ़ैयाज़ उस पर अपनी अस लयत ज़ा हर करके
कहे ं क उ हे ं इस सल सले मे ं उसके भतीजों मे ं से कसी एक पर शक है और फ़ैयाज़
तुम उसे कहना क वह अपने सारे भतीजों को बुलाये....तुम उनसे कु छ सवाल करना
चाहते हो।’’
‘‘ फर उसके बाद?’’ फ़ैयाज़ ने पू छा।
‘‘मै ं ठ क उसी व त वहा ँ पहच
ु ँ कर नपट लू ग ँ ा।’’
‘‘ या नपट लोगे?’’
‘‘तु हारे सर पर हाथ रख कर रोऊँगा!’’ इमरान ने सं जीदगी से कहा।
फ़ैयाज़ और स जाद उसे घू रते रहे....अचानक स जाद ने पू छा। ‘‘अभी आपने
कसी िरवॉ वर का हवाला दया था। जस पर शौकत क उँग लयों के नशान थे।’’
‘‘जी हा.ँ ...बाक़ बाते ं वहीं होंगी! अ छा टाटा....’’ इमरान हाथ हलाता हआ

ॉइं ग- म से नकल गया....और फ़ैयाज़ उसे पुकारता ही रहा।
‘‘मै ं नहीं समझ सकता क ये हज़रत या फ़रमाने वाले है।ं ’’ स जाद बोला।
‘‘कु छ-न-कु छ तो करेगा ही। अ छा, अब उठो। हमे ं वही करना चा हए जो उसने
कहा है!’’
१७
बात बढ़ गयी....नवाब जावेद मज़ा का पारा चढ़ गया था।
उसने फ़ैयाज़ से कहा....‘‘जी हा ँ फ़रमाइए! मेरे सब ब े यहीं मौजू द है!ं यह
शौकत है। यह इरफ़ान है, यह सफ़दर है....बताइए आपको इनमे ं से कस पर शक है
और शक क वजह भी आपको बतानी पड़े गी....? समझे आप!’’

फ़ैयाज़ बग़ले ं झाकने लगा। वह बड़ी बेचैनी से इमरान का इ तज़ार कर रहा था।
उस व त वहा ँ जावेद मज़ा के ख़ानदान वालों के अलावा जमील के ख़ानदान के सारे
मद मौज़ू द थे। बात जमील और परवीन क शादी से शु हईु थी। जावेद मज़ा ने एक
कोढ़ी से अपनी लड़क का िर ता करने से साफ़ इनकार कर दया....इस पर स जाद
ने काफ़ ले-दे क , फर फ़ैयाज़ ने उसके भतीजों मे ं से कसी को जमील के बीमारी का
ज़ मेदार ठहराया....
ले कन जब जावेद मज़ा ने तसदीक़ चाही तो फ़ैयाज़ के हाथ-पैर फूल गये। उसे
उ मीद थी क इमरान व त पर पहच ु ँ जायेगा....ले कन....इमरान....? फ़ैयाज़ दल-ही-
दल मे ं उसे एक हज़ार अलफ़ाज़ फ़ मनट क र तार से गा लया ँ दे रहा था।
‘‘हा,ँ आप बोलते यों नहीं। ख़ामोश यों हो गये!’’ जावेद मज़ा ने उसे
ललकारा।
‘‘अमा ँ चलो....यार....शमाते यों हो!’’ कमरे के बाहर से इमरान क आवाज़
आयी और फ़ैयाज़ क बाछे ँ ं खल गयीं।
सबसे पहले सलीम दा ख़ल हआ ु । उसके पीछे इमरान था....और शायद वह उसे
धकेलता हआ ु ला रहा था। ‘‘ सतवत जाह!’’ जावेद मज़ा झ ायी हईु आवाज़ मे ं
बोला। ‘‘यह या मज़ाक़ है....आप बग़ैर इजाज़त यहा ँ कैसे चले आये।’’
‘‘मै ं तो यह पूछने के लए हा ज़र हआ ु हू ँ क आ ख़र इन हज़रत क िरपोट यों
नहीं दज करायी?’’ इमरान ने सलीम क तरफ़ इशारा करके कहा। ‘‘आज से चार दन
पहले....!’’
‘‘आप यहा ँ से चले जाइए....जाइए!’’ नवाब जावेद मज़ा ग़ुराया।
‘‘आपको बताना पड़े गा जनाब!’’ अचानक इमरान के चेहरे से बेवक़ूफ़ के
आसार ग़ायब हो गये।
‘‘ये मुझे ज़बद ती लाये है।ं ’’ सलीम डरी हईु आवाज़ मे ं बोला।
‘‘ सतवत जाह! मै ं बहत ु बुरी तरह पेश आऊँगा!’’ जावेद मज़ा खड़ा हो गया।
उसी के साथ ही शौकत भी उठा।
‘‘बैठो!’’ इमरान क आवाज़ ने पू रे कमरे मे ं झं कार-सी पैदा कर दी। फ़ैयाज़ ने
उसक इस आवाज़ मे ं अजन बयत-सी महसूस क ....यह उस इमरान क आवाज़ तो
नहीं थी, जसे वह इतने ल बे व त से जानता था।
‘‘मेरा ता क़
ु होम डपाटमेट ं से है।’’ इमरान ने कहा। ‘‘आप लोग अभी तक
ग़लतफ़हमी मे ं फँसे थे। मुझे उन वाइरस क तलाश है जो आदमी के ख़ू न मे ं मलते ही
उसे बारह घ टे के अ दर-ही-अ दर कोढ़ी बना देते है।ं शौकत! या तु हारी लेबोरेटरी
मे ं ऐसे वाइरस नहीं है?ं ’’
‘‘हर गज़ नहीं है!ं ’’ शौकत ग़ुराया।
‘‘ या तुम बुधवार क रात को अपनी लेबोरेटरी मे ं कु छ मुदा पिर दे नहीं जला रहे
थे? नीले पिर दे?’’
‘‘हा!ँ मैनं े जलाये थे फर?’’
इमरान सलीम क तरफ़ मुड़ा, ‘‘तुम पर कसने फ़ायर कया था?’’
‘‘मै ं नहीं जानता!’’ सलीम ने सू खे होंटों पर ज़बान फेर कर कहा।
‘‘तुम जानते हो? तु हे ं बताना पड़े गा?’’
‘‘मै ं नहीं जानता जनाब....मुझ पर कसी ने अध ँ ेरे मे ं फ़ायर कया था। एक गोली
हाथ पर लगी थी....और बदहवासी मे ं मै ं पेड़ पर चढ़ गया था।’’
‘‘यह िरवॉ वर कसका है? इमरान ने जेब से एक िरवॉ वर नकाल कर सबको
दखाते हएु कहा।’’
शौकत और जावेद मज़ा के चेहरों पर हवाइया ँ उड़ने लगीं।
‘‘मै ं जानता हू ँ क िरवॉ वर शौकत का है और शौकत के पास इसका लाइसेस ं भी
है....मै ं यह भी जानता हू ँ क सलीम पर इसी िरवॉ वर से गोली चलायी गयी थी और
जसने भी फ़ायर कया था, उसक उँग लयों के नशान उसके ह थे पर मौजू द
थे....और वो नशान शौकत क उँग लयों के थे।’’
‘‘होगा, होगा....मुझे शौकत साहब से कोई शकायत नहीं है।’’ सलीम ज दी से
बोल पड़ा।
‘‘अस लयत या है सलीम?’’ इमरान ने नम से पू छा।
‘‘उ होंने कसी दू सरे आदमी के धोखे मे ं मुझ पर फ़ायर कया था।’’
‘‘ कसके धोखे मे?ं ’’
‘‘यह वही बता सकेंगे। मै ं नहीं जानता।’’
हू!ँ फ़ैयाज़! हथक ड़या ँ लाये हो?’’ इमरान ने कहा।
‘‘नहीं! नहीं....यह कभी नहीं हो सकता!’’ जावेद मज़ा खड़ा हो कर ख़ौफनाक
अ दाज़ मे ं चीख़ा।
‘‘फ़ैयाज़ हथक ड़या.ँ ...!’’
फ़ैयाज़ ने जेब से हथक ड़यों का जोड़ा नकाल लया।
‘‘ये हथक ड़या ँ स जाद के हाथों मे ं डाल दो!’’
‘‘ या....!’’ स जाद पूरे गले से चीख़ कर खड़ा हो गया।
‘‘फ़ैयाज़....! स जाद को हथक ड़या ँ लगा दो।’’
‘‘ या बकवास है?’’ फ़ैयाज़ झुझ ँ ला गया।
‘‘ख़बरदार स जाद! अपनी जगह से हलना नहीं।’’ इमरान ने िरवॉ वर का ख़
स जाद क तरफ़ कर दया।’’
‘‘इमरान मै ं बहतु बुरी तरह पेश आऊँगा।’’ फ़ैयाज़ का चेहरा ग़ु से से लाल हो
गया।
‘‘फ़ैयाज़ मै ं तु हे ं ह ु म देता हू.ँ ...मेरा ता क़
ु सीधे होम डपाटमेट
ं से है और
डायरे टर जनरल के अलावा सी.बी.आई. का हर अफ़सर मेरे मातहत है....चलो,
ज दी करो!’’
इमरान ने अपना सरकारी आई काड जेब से नकाल कर फ़ैयाज़ के सामने डाल
दया।
फ़ैयाज़ के चेहरे पर सचमुच हवाइया ँ उड़ने लगीं। उसके हाथ कापँ रहे थे। आई
काड मेज़ पर रख कर वह स जाद क तरफ़ बढ़ा और हथक ड़या ँ उसके हाथों मे ं
डाल दीं।
‘‘देखा आपने?’’ सलीम ने शौकत क तरफ़ देख कर पागलों क तरफ़ क़हक़हा
लगाया। ‘‘ख़ुदा नाइ साफ़ नहीं है!’’ शौकत के होंटों पर थोड़ी-सी मु कु राहट फैल
गयी।
‘‘तुम इधर देखो सलीम!’’ इमरान ने उसे मुख़ा तब कया! ‘‘तुमने कसके डर से
जेल मे ं पनाह ली थी?’’
‘‘ जसके हाथों मे ं हथक ड़या ँ है।ं यह यक़ नन मुझे मार डालता....हम जानते थे
क वह वाइरस हमारी लेबोरेटरी से इसी ने चुराये है,ं ले कन हमारे पास कोई सबू त
नहीं था....अ सर
लोग हमारी लेबोरेटरी मे ं आते रहे है।ं एक दन यह भी आया था....वाइरस पर
बात छड़ गयी थी....मैनं े कई वाइरस भी दखाये उनमे ं वो वाइरस भी थे जो सौ
फ़ सदी शौकत साहब क ईजाद है।ं फर एक ह ते के बाद ही वाइरस का ड बा
अचानक लेबोरेटरी से ग़ायब हो गया। उससे तीन ही दन पहले कॉलेज के साइ स के
टू डें स हमारी लेबोरेटरी देखने आये थे....हमारा ख़याल उ हीं क तरफ़
गया....ले कन जब ग़ायब होने के चौथे ही दन जमील साहब और नीले पिर दे क
कहानी मशहूर हईु तो मैनं े शौकत साहब को बताया क एक दन स जाद भी
लेबोरटरी मे ं आया था। फर उसी शाम को हमारी लेबोरेटरी मे ं तीन मुदा पिर दे पाये
गये। वो बलकु ल उसी क़ म के थे जस क़ म के पिर दे का बयान अख़बारों मे ं
कया गया था। हमने उ हे ं आग मे ं जला कर राख कर दया और फर यह बात साफ़
हो गयी क स जाद यह जुम शौकत साहब के सर थोपना चाहता है। दू सरी शाम
कसी अनजान आदमी ने मुझ पर गोली चलायी। मै ं बाल-बाल बचा। शौकत साहब ने
मुझे मश वरा दया क मै ं कसी महफ़ूज़ मुक़ाम पर चला जाऊँ ता क वे इ मीनान से
स जाद के ख़लाफ़ सबू त इक ा कर सकें। मेरा दावा है क मुझ पर स जाद ही ने
हमला कया था। सफ़ इस लए क मै ं कसी से यह कहने के लए ज़ दा न रहू ँ क
स जाद भी कभी लेबोरेटरी मे ं आया था और उसे वो वाइरस दखाये गये थे।’’
‘‘बकवास है!’’ स जाद चीख़ा। ‘‘मै ं कभी लेबोरेटरी मे ं नहीं गया था।’’
‘‘तुम ख़ामोश रहो! फ़ैयाज़ उसे ख़ामोश रखो!’’ इमरान ने कहा फर सलीम से
बोला। ‘‘बयान जारी रहे।’’ सलीम कु छ पल ख़ामोश रह कर बोला। ‘‘शौकत साहब ने
सफ़ मेरी ज़ दगी क हफ़ाज़त के ख़याल से मुझ पर चोरी का इ ज़ाम लगा कर
गर तार करा दया....ले कन स जाद ने मेरा वहा ँ भी पीछा न छोड़ा....एक अं ेज़
लड़क वहा ँ पहच ु ँ ी जो शायद स जाद ही क भेजी हईु थी और मुझे बेकार मे ं ग़ु सा
दलाने लगी ता क मै ं झ ा कर अपने जेल आने का राज़ उगल दू ।ँ ’’
‘‘ख़ैर....ख़ैर....आगे कहो!’’ इमरान बड़बड़ाया। वह समझ गया क उसका इशारा
शी क तरफ़ है।
‘‘ फर पता नहीं यों और कस तरह मेरी ज़मानत हईु ....ज़ा हर है क उस
अनहोनी बात ने मुझे बदहवास कर दया और मैनं े उसी तरफ़ का ख़ कया, ले कन
कोई मेरा पीछा कर रहा था....कोठ के पास पहच ु ँ कर उसने एक फ़ायर भी कया।
ले कन मै ं फर बच गया। यहा ँ बाग़ मे ं अधे ँ रा था....मै ं लेबोरेटरी के क़रीब
ुँ
पहचा....शौकत साहब समझे शायद मै ं वही आदमी हू ँ जो आये दन लेबोरेटरी मे ं मुदा
पिर दे डाल जाया करता था....उ होंने उसी के धोखे मे ं मुझ पर फ़ायर कर दया!’’
‘‘ यों?’’ इमरान ने शौकत क तरफ़ देखा।
‘‘हा,ँ यह बलकु ल सही है....! स जाद यह चाहता था क कसी तरह उन पिर दों
पर चचा साहब क भी नज़र पड़ जाये और वे मुझे ही मुजिरम समझने लगे।ं वैसे उ हे ं
थोड़ा-बहत ु शक तो पहले भी था!’’
इमरान ने जावेद मज़ा क तरफ़ देखा। ले कन जावेद मज़ा ख़ामोश रहा।
‘‘ या बकवास हो रही है....ये सब पागल हो गये है!ं ’’ स जाद गला फाड़ कर
चीख़ा। ‘‘अरे बदब तो! अ धो! मेरे साथ चल कर मेरी लड़क सईदा क हालत
देखो। वह भी उसी बीमारी मे ं फँस गयी है। या मै ं अपनी बेटी पर भी उस क़ म के
वाइरस....या ख़ुदा....ये सब पागल है।ं ’’
ँ पड़ा....
अचानक शौकत हस
‘‘ख़ू ब!’’ उसने कहा। ‘‘तु हे ं बेटी या बेटे से या सरोकार तु हे ं तो दौलत चा हए।
दोनों को ढ़यों क शादी कर दो। वो दोनों एक-दू सरे को पस द करेग ं े। दू सरी हरकत
तुमने सफ़ अपनी गदन बचाने के लए क है।’’
‘‘नहीं, स जाद! तुम कु छ ख़याल न करना।’’ इमरान मु कु रा कर बोला। ‘‘दू सरी
हरकत मेरी थी।’’
स जाद उसे घू रने लगा....और शौकत क आख ँ े ं भी हैरत से फैल गयी थीं। फ़ैयाज़
इस तरह ख़ामोश बैठा था जैसे उसे सापँ सू घ ँ गया हो।
‘‘दू सरी हरकत मेरी थी....और तु हारी लड़क को कोई बीमारी नहीं है। उन दाग़ों
को ख़ा लस पिरट से धो डालने पर चेहरा साफ़ हो जायेगा....!’’
‘‘ख़ैर....ख़ैर....मुझ पर झू ठा इ ज़ाम लगाया जा रहा है और मै ं अदालत मे ं
ँ ा।’’
देखूग
‘‘ज़ र देखना स जाद! वाक़ई तु हारे ख़लाफ़ सबू त पहच ु ँ ाना बड़ा मु कल
काम होगा। ले कन यह बताओ.... क पछली रात अपनी लड़क का चेहरा देख कर
तुम बेतहाशा धन के गोदाम क तरफ़ यों भागे थे....बताओ....बोलो.... जवाब दो।’’
तभी स जाद के चेहरे पर ज़द फैल गयी। माथे पर पसीने क बू द ँ े ं फूट आयीं।
आख ँ े ं धीरे-धीरे ब द होने लगीं और फर उसक गदन अचानक एक तरफ़ ढलक
गयी। वह बेहोश हो गया था।
१८
उसी शाम को इमरान, शी और फ़ैयाज़ रॉयल होटल मे ं चाय पी रहे थे। फ़ैयाज़ का
चेहरा उतरा हआ ु था और इमरान कह रहा था, ‘‘मुझे उसी व त यक़ न हो गया था
क सलीम शौकत से नाराज़ नहीं है जब उसने जेल से नकलने के बाद जावेद मज़ा
क कोठ का ख़ कया था।’’
‘‘मगर धन के गोदाम से या बरामद हआ ु है!’’ शी ने कहा। ‘‘तुमने वह बात
अधू री छोड़ दी थी....!’’
‘‘वहा ँ से एक ज़हरीला ड बा बरामद हआ ु है जस मे ं वाइरस है.ं ...और नीले रं ग
के पिर दों का एक ढे र–रबड़ के तीन पिर दे....गोंद क एक बोतल और इं जे शन क
तीन सुइया.... ँ या समझ .ं ...वह हक़ क़त मे ं पिर दा नहीं था जसे जमील ने अपनी
गदन से खींच कर खड़क के बाहर फेंका था....ब क रबड़ का पिर दा था, जस पर
गोंद से नीले रं ग के पर चपकाये गये थे। उसके पेट मे ं वह थैली भरी गयी थी जसमे ं
वाइरस थे। पिर दे क चोंच क जगह इं जे शन लगाने वाली खोखली सुई फ़ट क
गयी थी....पहले जमील पर बाहर से खड़क के ज़िरये एक पिर दा ही फेंका गया था।
जो उसके क धे से टकरा कर उड़ गया था। फर वह नक़ली पिर दा फेंका गया,
जसमे ं लगी हईु सुई उसक गदन मे ं घुस गयी। ज़ा हर है क वह बदहवास हो गया
होगा। जैसे ही उसने उसे पकड़ा होगा, दबाव पड़ने से सुई के रा ते उसक गदन मे ं
वाइरस दा ख़ल हो गया होगा.... फर उसने बौखलाहट मे ं उसे खींच कर खड़क के
बाहर फेंक दया। पहले नीले रं ग का एक पिर दा उसके क धे से टकरा कर उड़ चुका
था। इस लए उसने उसे भी पिर दा ही समझा....और पछली रात....वाह....वह भी
अजीब इ फ़ाक़ था। मै ं जमील क कोठ मे ं घुसा। सईदा को लोरोफ़ॉम के ज़िरये
बेहोश करके उसके चेहरे पर अपनी एक ईजाद आज़मायी जसे मेकअप के सल सले
मे ं और यादा तर क़ देने का ख़याल रखता हू।ँ फर लोरोफ़ॉम का असर बेकार
होने का इ तज़ार रहा। यह सब मैनं े इस लए कया था क घर वालों पर इसका असर
देख सकुँ । ख़ास तौर से स जाद क तरफ़ ख़याल भी नहीं था। जैसे ही मैनं े महसू स
कया क अब लोरोफॉम का असर बेकार हो रहा है। मैनं े उसके बाज़ू मे ं सुई चुभोई
और पलग ँ के नीचे घुस गया.... फर हं गामा खड़ा हो गया। स जाद ही सबसे यादा
बदहवास दख रहा था। ज़ा हर है क उसे कोई अह मयत नहीं दी जा सकती थी,
यों क सईदा उसक बेटी ही ठहरी....ले कन जब मैनं े उसे घर वालों को वहीं छोड़
कर एक तरफ़ भागते हएु देखा तो ....तुम ख़ुद सोचो फ़ैयाज़! भला उस व त धन के
गोदाम मे ं जाने का या तुक था। बहरहाल, स जाद ही ने बेख़बरी मे ं अपने ख़लाफ़
सबू त मुझे मुहैया कर दये। दरअसल, उसक मुसीबत ही आ गयी थी, वरना उन
चीज़ों को रख छोड़ने क या ज़ रत थी।’’
‘‘अ छा बेटा! वह तो सब ठ क है!’’ फ़ैयाज़ ने एक ल बी अगँ ड़ाई ले कर कहा।
‘‘पर तु हारा वह आई काड।’’
‘‘यह हक़ क़त है क मै ं तु हारा अफ़सर हू।ँ मेरा ता क़
ु सीधे होम डपाटमेट
ं से
है। और होम से े टरी सर सुलतान ने मुझे तैनात कया है....ले कन
ख़बरदार....ख़बरदार....इसक जानकारी डै डी को न होने पाये, वरना तु हारी म ी
पलीद कर दू ग ँ ा समझे....!’’
फ़ैयाज़ का चेहरा लटक गया। उसके लए यह नयी जानकारी बड़ी तकलीफ़देह
थी।
‘‘तुमने मुझे भी आज तक इससे बेख़बर रखा।’’ शी ने झ ायी हईु आवाज़ मे ं
कहा।
‘‘अरे, कसक बातों मे ं आयी हो शी डयर!’’ इमरान बुरा-सा मुह ँ बना कर
बोला। ‘‘यह इमरान बोल रहा है....इमरान जसने सच बोलना सीखा ही नहीं....मै ं तो
फ़ैयाज़ को घस रहा था।’’
इमरान के इस आ ख़री जुमले पर फ़ैयाज़ को भरोसा नहीं था और वह कसी सोच
मे ं डूबा हआु नज़र आ रहा था।
समा
इमरान सीरीज़ के अ य उप यास
ख़ौफ़नाक इमारत (1)
इमरान सीरीज़ क शु आत ‘ख़ौफ़नाक इमारत’ नामक उप यास से हो रही है जो इस
सीरीज़ का पहला उप यास था, जसमे ं हम पहली बार इमरान के -ब- होते है।ं
‘ख़ौफ़नाक इमारत’ क कहानी सं प े मे ं उन लोगों से ता क
ु रखती है जो पैसे क
लालच मे ं अपने ही देश से ग़ ारी पर उतर आते है।ं कु छ गोपनीय सरकारी द तावेज़
वदेश वभाग के ख़ु फया अ धकारी ले कर जा रहे होते है ं क उन पर हमला होता है।
एक अ धकारी मारा जाता है और आधे द तावेज़ दु मनों के हाथ लगते है।ं अयाज़
नाम का जो अ धकारी बच जाता है, वह बदले क आग मे ं जल रहा है, ले कन जब
तक वह दु मन का पता न लगा ले, वह अपने वभागीय अफ़सरों के सामने नहीं
आना चाहता, यों क उसे डर है क उसके अ धकारी उसे भी स द ध मान लेग ं े।
दु मनों को धोखे से लुभाने के लए यह अ धकारी या- या पापड़ बेलता है और
कैसी-कैसी हकमते ं अपनाता है। इसका बड़ा ही दलच प क़ सा इ ने सफ़ ने
बयान कया है। फर इमरान कस तरह इस रह य का पता लगा लेता है और कैसे
मुजिरमों को गर तार कराता है, इसका योरा दे कर हम आपका मज़ा ख़राब नहीं
करना चाहते, उप यास आपके सामने है ं और हम चाहेग ं े क आप ख़ुद इस सफ़र पर
उप यास के प ों से होते हएु रवाना हों। अलब ा, हम यह ज़ र चाहेग ं े क आपका
यह सफ़र इमरान क दूसरी दलच प कारगुज़ािरयों के साथ बराबर जारी रहे।
च ानो ं मे आग (2)
‘च ानों मे ं आग’ का क सा एक ऐसे म ल ी अफ़सर के इद- गद घू मता है जो दू सरे
व यु के दौरान नशीले पदाथ क त करी करने वाले गरोह का पता जान जाता
है। ज़ा हर है ऐसे गरोहों के दो ही उसूल होते है—
ं या तो ऐसे आदमी को अपने गरोह
मे ं शा मल कर लो या तो फर उसे दू सरी दु नया क तरफ़ रवाना कर दो। चू ँ क कनल
ज़रग़ाम उस गरोह मे ं शा मल नहीं होता है, इस लए बरसों बाद उसे धम कया ँ मलनी
शु हो जाती है।ं वह जानता है क जो धम कया ँ दे रहे है,ं वे कसी भी नीचता पर
उतर सकते है।ं ऐसी हालत मे ं वह परेशान हो कर कै टन फ़ैयाज़ को मदद के लए
लखता है और फ़ैयाज़ इमरान को कनल ज़रग़ाम क मदद के लए भेज देता है।
कनल ज़रग़ाम के साथ उसक बेटी सो फ़या और दो भतीजे आिरफ़ और अनवर भी है ं
जो इमरान को देख कर यह समझ नहीं पाते क वह कैसे उनक मदद करेगा यों क
उसक हरकते ं ह बमामू ल बेवक़ूफ़ाना है।ं ले कन आ ख़र मे ं असली मुजिरम इ हीं
बेवक़ूफ़ाना हरकतों के जाल मे ं फँस जाते है ं और नशीली दवाइया ँ बेचने वाले एक
गरोह का पदाफ़ाश होता है।
बह ु पया नवाब (3)
‘बह ु पया नवाब’ इस सीरीज़ का तीसरा उप यास है जो हम पाठकों के सामने पेश
कर रहे है।ं कहानी दौलत और जायदाद क हवस क पुरानी थीम पर बुनी गयी है,
ले कन लॉट बला शक इ ने सफ़ के मा हर हाथों से गढ़ा गया है। एक पुराने नवाबी
ख़ानदान क शहज़ादी दुदाना अपने सौतेले ताऊ क कैसी अजीबो-ग़रीब चालों का
शकार होती है और जब वह ताऊ उसका बाप बन कर आता है तो उसके हाथों
लगातार धोखा खाती है, इसक दा तान ‘बह ु पया नवाब’ मे ं इ ने सफ़ ने बयान क
है।
ख़ौफ़ का सौदागर (4)
ऐं लो-इ डयन लड़क शी, जसका पेशा हाई लास वे या का है—मद को
फँसाना और फर उनसे पैसा कमाना। ले कन जब इमरान शादाब नगर के मामले को
सुलझाने वहा ँ पहच
ु ँ ता है और शी उससे -ब- होती है तो उसक कठोर दल मे ं
कु छ दूसरी ही भावनाए ँ पैदा होने लगती है। और वह इमरान क मदद करने का
फ़ैसला करती है। ऐसी नेक शी को कन ख़तरों मे ं डाल देती है इसका रोमां चक
योरा तो आप उप यास मे ं पढ़े ंगे, ले कन शी का क सा यहीं ख़ म नहीं होता,
ब क जब वह अपनी पुरानी ज़ दगी को बदल कर नयी ज़ दगी जीने का इरादा
इमरान को बताती है तो वह उसे अपनी सहायक बना कर ले आता है। हमे ं व ास है
क आप जब इस क़ से से गुज़रते हएु उस आदमी के कारनामों से -ब- होंगे
जसका एक कान आधा कटा हआ ु है, जो करोड़ों क त करी करने मे ं मा हर है जो
उसक शैता नयत को और भी बढ़ा देती है ं तो आप भा वत हएु बना नहीं रहेग ं े। तो
आइए, खो लए पहला सफ़ा और तैयार हो जाइए ‘भयानक आदमी’ से मलने के
लए।
जह म
ु क अ सरा (5)
मोरीना सला नयो जो अपनी डॉ सं ग पाट के साथ ह दु तान के दौरे पर आयी है,
दरअसल इटै लयन नहीं, ब क जमन नतक है और उसका काम एक ऐसी
वचारधारा का चार करना है जो नसली भेद-भाव और ज़ु म पर टक हईु है और
इसके लए वह जासूसी भी करती है। उसक इन शैतानी सा ज़शों का पदाफ़ाश करने
के लए द ण अ का से ग़ज़ाली नाम का जो जासूस आता है वह मारा जाता है और
फर शु होता है त तीश का सल सला नःस देह ‘जह म ु क अ सरा’ का
दलच प कथानक आपको बाधे ँ रहेगा और आप इमरान क हरकतों का मज़ा लेते
रहेग
ं े।
सापँ ो ं के शकारी (7)
इरशाद तैमूर ऐ ड बाटले का ह सेदार है। जब उसे तैमूर क असली सू रत का पता
चलता है तो वह उसे क़ानू न के हवाले करने के लए अपनी हकमते ं अपनाता है।
तैमूर क सा ज़शों का पदाफ़ाश करने मे ं कई बार इमरान पर भी ख़तरा खड़ा हो जाता
है, ले कन वह अपनी हस ँ ोड़ त बयत के बल पर बच नकलता है। तो आइए, देख,े ं
कैसे है ं ये सापँ ों के शकारी।
इ ने सफ़ —इ ने सफ़ , जनका असली नाम असरार अहमद था,
२६ जुलाई, १९२८ को इलाहाबाद ज़ले के नारा क़ बे मे ं पैदा हएु
थे। बचपन ही से शायरी और क़ से-कहा नयों का शौक़ था। आगरा व व ालय से
बी.ए. क ड ी लेने के बाद वे इलाहाबाद से नकलने वाली उदू प का ‘ नकहत’ से
जुड़ गये। जब १९५२ मे ं वहीं से ‘जासूसी दु नया’ का शत होने लगी तो इ ने सफ़ ने
असरार नारवी, सनक सो जर और तुग़रल फ़रग़ान जैसे नाम छोड़ कर इ ने सफ़ के
नाम से अग त १९५२ मे ं अपना पहला जासू सी उप यास ‘ दलेर मुजिरम’ लखा और
हर महीने एक नया उप यास लखने लगे। १९५२ मे ं वे पा क तान चले आये और
कराची मे ं उ होंने अपना काशन ‘इसरार प लकेश स’ के नाम से शु कया।
१९६०-६३ के बीच मान सक रोग का शकार होने के बाद जब वे ठ क हएु तो उ होंने
‘डे ढ़ मतवाले’ नामक उप यास से अपनी दू सरी कामयाब ‘इमरान सीरीज़’ शु क
और ‘जासूसी दु नया’ वाली सीरीज़ भी लखते रहे। इन उप यासों का गुजराती और
बं गला समेत अनेक भाषाओं मे ं अनुवाद भी हआ ु । जासू सी उप यासों के अलावा इ ने
सफ़ ने शायरी, कहानी और हा य- यं य क भी रचनाए ँ क है।ं उनका देहा त अपने
ही ज म दन २६ जुलाई, १९८० को कराची मे ं हआ ु ।
चौधरी ज़या इमाम—चौधरी ज़या इमाम का ज म २८ मई, १९७९ को हआ ु । वे कई
वष से द ी और लखनऊ से का शत बहत ु से नामी समाचार प ों के लए लखते
रहे है।ं वे नाथ इ डया जन ल ट वेलफ़ेयर एसो सएशन क उपा य है,ं साथ ही
वे टन फ़ म ो ू सस एसा सएशन के एसो सएट सद य भी है।ं सं त वे सा ा हक
ह दी प भोर हईु के सं पादक पद पर कायरत है।ं
नीलाभ—१६ अग त, १९४५, ब बई मे ं ज म। श ा : एम.ए. तक इलाहाबाद मे।ं
पढ़ाई के दौरान ही लेखन क शु आत। आजी वका को लए आर भ मे ं काशन।
फर चार वष बी.बी.सी. क वदेश सारण सेवा मे ं ो ू सर। १९८४ मे ं भारत वापसी
के बाद लेखन पर नभर। ‘सं मरणार भ’, ‘अपने आप से ल बी बातचीत’, ‘जं गल
ख़ामोश है’, ‘उ रा धकार,’ ‘चीजे ं उप थत है’ं , ‘श दों से नाता अटू ट है,’ ‘ख़तरा
अगले मोड़ क उस तरफ़ है’ और ‘ई र को मो ’ (क वता-सं ह)। शे स पयर, े ट
तथा लोका के नाटकों के पा तर—‘पगला राजा’, ‘ ह मत माई’, ‘आतं क के साये’,
‘ नयम का र दा, अपवाद का फ दा’ और ‘यमा’ बहत ु बार मं च पर तुत हएु है।ं
इनके अलावा ‘मृ छक टक’ का पा तर ‘त ता पलट दो’ के नाम से। रं गमं च के
अलावा टेली वज़न, रे डयो, प कािरता, फ़ म, व न- काश काय मों तथा नृ य-
ना टकाओं के लए पटकथाए ँ और आलेख। महा मा गां धी अ तररा ीय ह दी
व व ालय के लए चार ख डों मे ं ह दी के सा ह यक ववादों, सा ह यक के ों
और मौ खक इ तहास क शोध पिरयोजना। जीवनान द दास, सुका त भ ाचाय,
एज़रा पाउ ड, े ट, ता ू श राज़े वच, ना ज़म हकमत, अरने तो कादेनाल, नकानोर
पारा और ने दा क क वताओं के अलावा लेम तोव के उप यास ‘हमारे युग का
एक नायक’ का अनुवाद। वी.एस. नायपॉल के उप यास ‘ए हाउस फ़ॉर म टर
ब वास’ और सलमान र दी के उप यास ‘ द एनचै ं ेस ऑफ़ लोरेस ं ’ के अनुवादों
के अलावा इ ने सफ़ क जासू सी उप यास माला का स पादन। ने दा क ल बी
क वता ‘मा ू प ू के शखर’ का अनुवाद बहच ु चत रहा। मं टो क कहा नयों के
त न ध चयन ‘मं टो क तीस कहा नया’ँ का स पादन। दो ख डों मे ं ग —‘ तमानों
क पुरो हती’ और ‘पू रा घर है क वता।’ वैचािरक लेखों के चार सं ह शी का य।
फ़ म, च कला, जैज़ तथा भारतीय सं गीत मे ं ख़ास दलच पी।
रज़ा अ बास—रज़ा अ बास, ज होंने जासू सी दु नया और इमरान सीरीज़ के इतने
बेहतरीन आवरण च बनाये है,ं चालीस वष से फ़ म पो टर का काम और अ य
च कला करते आ रहे है।ं उनका ज म रायबरेली ज़ले के जैस इलाके मे ं हआ
ु था।
आजकल वे राजपुर रोड, द ी मे ं रहते है।ं
हापर ह दी
(हापरकॉ लं स प लशस इं डया)
ारा 2009 मे ं का शत
© मौ लक कथा : अहमद सफ़
© अनुवाद : चौधरी ज़या इमाम
हापर ह दी हापरकॉ लं स प लशस इं डया का ह दी वभाग है
पता : ए-75, से टर-57, नौएडा—201301, उ र देश, भारत
ISBN : 978-81-7223-893-3
E-ISBN : 978-93-5136-741-3
टाइपसेटर : नओ सा टवेयर क सलटै ं स
मु क : थॉ सन स
े (इं डया) ल.
यह पु तक इस शत पर व य क जा रही है क काशक क ल खत पू वानुम त के बना इसे यावसा यक
अथवा अ य कसी भी प मे ं उपयोग नहीं कया जा सकता। इसे पुन: का शत कर बेचा या कराए पर नहीं
दया जा सकता तथा ज दबं ध या खुले कसी अ य प मे ं पाठकों के म य इसका पिरचालन नहीं कया जा
सकता। ये सभी शत पु तक के खरीदार पर भी लागू होती है।ं इस संदभ मे ं सभी काशना धकार सुर त है।ं
इस पु तक का आँ शक प मे ं पुन: काशन या पुन: काशनाथ अपने िरकॉड मे ं सुर त रखने, इसे पुन:
तुत करने के त अपनाने, इसका अनु दत प तैयार करने अथवा इलै ॉ नक, मैके नकल, फोटोकॉपी
तथा िरकॉ डग आ द कसी भी प त से इसका उपयोग करने हेत ु सम त काशना धकार रखने वाले
अ धकारी तथा पु तक तथा पु तक के काशक क पू वानुम त लेना अ नवाय है।

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