पंचकर्म - वस्ति notes

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बस्ति(Basti)

बस्ति परिचय (Introduction)

स्िस प्रकाि आयुर्वेदीय स्चककत्सा में पंचकमम का एक स्र्वस्िष्ट तथान है उसी प्रकाि पंचकमम में बस्ति
स्चककत्सा का ऐसा ही अस्र्वज्ञय महत्त्र्वपूर्म तथान है। बस्ति यह िब्द बस्तिदान में प्रयुक्त यंत्र के नाम से
प्रचस्िि हुआ है

अ. द.- बस्तिना दीयिे इस्ि बस्तििः। (अ. ह. सू. 19/1 पि)

बस्तिस्िदीयिे यतमाि ितमाि् बस्तिरिस्ि तमृििः। (िा. उ. ख. 5/1)

बस्ति अथामि् प्रास्र्यों के मूत्रािय के द्वािा औषस्ियों का आभ्यंिि प्रस्र्वष्ट किाने की इस स्र्वस्ि को
बस्ति नाम कदया गया है।

िब्द स्नष्पस्ि(Etymology)

र्वसुिः स्नर्वासे बस्-आच्छादने र्वस्-र्वासने सुिस्िकिर्े।

अथामि् र्वस-िब्द-स्नर्वास किने के अथम में, आच्छादन किने के अथम में या सुंगिी कािकिा के अथम में उपयोगी
है।

बस्ति-र्वतिे; आर्वृर्ोस्ि मूत्र। र्वस्- स्िच्। नािेििोिागे मूत्रािािे तथाने (पु.)।

औषि दानाथे द्रव्यिेद।े ।

बस्ति िब्द- यह पुल्लिगी िब्द है। र्वस् में स्िच् प्रत्यय से बना है। बस्ति िो मूत्र को आर्विर् कििा है। बस्ति
को नास्ि के अिो िाग में िहने र्वािे मूत्रािाि तथान के स्िए िथा औषिदान के सािन के स्िए प्रयुक्त है।
बस्ति परििाषा (Definition) :-

बस्ति बह प्रकिया है स्िसमें प्रायिः गुदमागम से औषस्ि, स्सद्ध क्वाथ, स्नेह, क्षीि, मांसिस, िक्ताकद
द्रव्यों को पक्वािय में प्रस्र्वष्ट ककया िािा है।

यहााँ पि प्रायिः िब्द का प्रयोग का कािर् गुदमागम के अस्िरिक्त मूत्रमागम िथा अपत्यपथ से िी बस्ति
दी िा सकिी है। स्िसे उिि बस्ति कहा िािा है।
व्रर् में िी बस्ति दी िािी है स्िसे व्रर्-बस्ति कहिे हैं। इस प्रकाि गुदा से पक्वािय में, मेढ़ से मूत्रािय में,
योस्न से गिामिय में औि व्रर् मुख से व्रर् में बस्ति दी िािी है।

प्राचीन काि में िब िबि का आस्र्वष्काि नहीं हुआ था, िब इस कायम हेिु गाय, बैि, बकिे , िैंस
इत्याकद यों के मूत्रािय (बस्ति) का उपयोग एक संकोचक प्रसिर्िीि थैिी के रूप में ककया िािा था
स्िससे यह कमम बस्ति कहा िाने िगा औि बस्ति नाम ढ हो गया।

नास्ि प्रदेिं करिपार्श्म कु स्क्ष गत्र्वा िकृ द्दोषचयं स्र्विोड्य ।

संस्नह्य
े कायं सपुिीष दोषिः सम्यग सुखन
े स्ै िच यिः स बस्ति: । (च. स्स. 1/40)

िो बस्ति नास्ि प्रदेि-करि-पार्श्म-कु स्क्ष िक िाकि सम्पूर्म मिसंिाि को आिोस्िि कि िथा ििीि को
स्स्नग्ि कि मि िथा दोषों के साथ आसानी से स्नकि आिी है उसे बस्ति का सम्यक योग िानना चास्हए।

बस्ति कमम की उपयोस्गिा एर्वं महत्त्र्व (Utility & importance of Basti)

बस्तिर्वामिच स्पिेच कफे िक्ते च ितयिे।

संसगम संस्िपािे च बस्तििे र्व स्हििः सदा।। (सु. स्च.- 35/6)

(1) बस्ति र्वािि िोगों की सर्वोिम स्चककत्सा होने के साथ-साथ स्पिि, कफि, संसगमि, सस्िपाि औि
िक्ति िोगों में िी स्हिकि है।

िाखागिािः कोष्ठगिाश्च िोगािः ममोर्धर्वमसर्वामर्वयर्वाङ्गिाश्च|

ये संस्ििेषां नस्ह कास्श्चदन्यो र्वायोिः पिं िन्मस्न हेििु स्ति।।

स्र्वण्मूत्रस्पिाकद मिाियानां स्र्वक्षेपसंतािकििः स यतमाि्।

ितयास्िर्वृद्धतय िमाय नान्यद् बस्ति स्र्वना िेषिमस्ति ककस्चि्।

ितमास्िककत्साथमस्मस्ि ब्रूर्वस्न्ि सर्वाम स्चककत्सामस्प बस्तिमेके।। (च. स्स. 1/38-39)

(2) िाखा, ममम औि कोष्ठ इन िीन मागों में होने र्वािे िोग का प्रसाि किने में र्वाि प्रमुख है क्योंकक तर्वेद,

मि, मूत्र, स्पि, कफ आकद के संहनन िथा स्र्वक्षेपर् का कायम र्वायु ही ििीि में कििा है औि उस र्वायु के
स्िए बस्ति श्रेष्ठिम स्चककत्सा कही गयी है।

इह खिु बस्तिनामनास्र्वि द्रव्यसंयोगाि् दोषार्ां संिोिन संिमन संग्रहास्र् किोस्ि। क्षीर्िुिर्वािीकिोस्ि,

कृ िं बृह
ं यस्ि, तथूिं किमयस्ि, चक्षुिः प्रीर्यस्ि, र्विीपस्ििमपहंस्ि, र्वयिः तथापयस्ि । ििीिोपचयं र्वर्म

बिमािोग्यमायुषिः। कु िे परिर्वृल्द्धश्च बस्ति: सम्यगुपास्सििः। (सु. स्च. 35/3-4)


(3) अनेक औषस्ियों के संयोग के कािर् बस्ति दोषों का िोिन कििी है संिमन कििी है मिों की संग्राही

िी होिी है क्षीर्-िुि र्वािे आिुिों का िुि िी बढािी है, कृ िों को तथूि कििी है तथूिों को कृ ि कििी है,

नेत्रो की ज्योस्ि बढािी है, र्वयिः तथापन कििी है, बुढापे को देि से िािी है, र्वर्म को उज्जर्वि कििी है
आयुष्य को कायम िखकि आिोग्य की र्वृस्द्ध कििी है।

(4) ििीि या मन के आिे से अस्िक िोग र्वाि के कािर् होिे हैं िथा दुसिे दोषों से होने र्वािे िोगों में िी
एक सहकािी कािर् होिा है र्वाि की स्चककत्सा किना िी एक दुष्कि कायम है। उस प्रबििम र्वाि दोष की
स्चककत्सा बस्तिकमम द्वािा की िािी है। अििः बस्ति को स्चककत्सािम कहा गया है िथा कु छ बस्ति को सम्पूर्म
स्चककत्सा िी कहिे है।

बस्तिर्वमय तथापस्यिा सुखायुबि


म ास्िमेिा तर्वि र्वर्म कृ ि।

सर्वामथक
म ािी स्ििुर्वद्ध
ृ ायूनां स्नित्यािः सर्वमगदापहश्च।।

स्र्विश्लेष्मस्पिास्नि मूत्रकषी दाढयामर्वहिः िुिबिप्रदश्च।

स्र्वर्श्गस्तथिं दोषचय स्नितय सर्वामन् स्र्वकािान् िमयेस्िरूहिः।। (च. स्स. 1/27-28)

1.स्नरूह बस्ति र्वयतथापन कििी है अथामि् िािुओं को दूि कि ििार्वतथा को िोकने में सहायक है। (2)

आयुष्य को बढ़ािी है। (3) अस्ि औि मेिा को िीक्ष्र् कििी है। (4) तर्वि को प्रसाकदि कििी है। (5) र्वर्म का

प्रसादन कििी है। (6) बािकों में, र्वृर्धहों में िथा स्ििुओं में सब में स्बना कष्ट के देय है। (7) युस्क्तपूर्वमक

उपयोग किने से सिी िोगों को दूि कििी है। (8) मि, र्वाि, स्पि, कफ, मूत्र इनका िोिन कििी है। (8)

ििीि को दृढ कििी है। (10) िुि औि बि को बढािी है। (11) सम्पूर्म ििीि में स्तथि दोष संचय को बाहि
स्नकाििी है।

देहे स्नरूहेर् स्र्विुद्ध मागे संस्नह


े नं बिर्वर्मप्रदश्च ।

न िैिं दानाि् पिमस्ति ककस्चि् द्रव्यं स्र्विेषर्


े समीिर्ािें ।

स्नेहन
े िोक्ष्यम ितुिां गुरूत्र्वामदौष्ण्याि िैत्यं पर्वनतय हत्र्वा|।

िैिं ददात्यािु मनिः प्रसादं र्वीयम बिं र्वर्ममथास्न पुस्ष्टिः।। (च. स्स. 1/29-30)
आचायम चिक ने अनुर्वासन की प्रिस्ति कििे हुए कहा है कक

(1) यह र्वर्म औि बि को बढ़ािा है।

2.) र्वाि को दूि किने के स्िये िैिदान के अस्िरिक्त कोई िी श्रेष्ठ उपाय नहीं है।

3.) िैि स्स्नगििा से र्वाि की क्षिा को दूि कििा है, गु िा से र्वाि की ितुिा को िथा उष्र्िा से र्वाि का
िैत्य दुि कििा है।

(4) मन का प्रसादन कििा है।

(5) र्वीयम, बि, र्वर्म िथा अस्ि को बढ़ािा है।

स्ििुनामास्ििुनांच बस्तिकमाममि
ृ ं यथा।। (क.स्स. 1/19)

काश्यप ने कहा है कक स्ििुओं िथा बडों के स्िये बस्ति अमृि के समान गुर्कािी है।

बस्ति यंत्र (Basti Instrument)

स्िस यंत्र से बस्ति दी िािी है उसे "बस्तियंत्र" कहिे हैं। इसके दो िाग होिे हैं

(1) बस्ति नेत्र (2) बस्तिपुिक

1. बस्तिनेत्र (Basti netra)

सुर्वर्म िौप्यत्रपुिाम्रिीस्ि कांतयास्तथ िस्त्र द्रुम र्वेर्ु दंि।ै

निैिः स्र्वषार्ैमस्म र्स्िश्च िैतिैनत्र


े ास्र् कायामस्र् सुकर्णर्कास्न।।

षड्द्द्वादिाष्टांगि
ु सस्न्मिास्न षइल्र्विस्ि द्वादि र्वषमिानां।

तयुमुमद्ग ककम न्िु सिीन र्वास्ह स्छद्रास्र्र्वत्यामऽस्पस्हिास्न चैर्व।।

यथार्वयोंगुष्ठ कस्नस्ष्ठकाभ्यां मूिाग्रयों: तयुिः परिर्ाहर्वंस्ि।

ऋिूस्न गोपुच्छ समाकृ िीस्न श्लक्ष्र्ास्न च तयुगस्ुम िका मुखास्न ।।

तयाि् कर्णर्कै काग्रचिुथि


म ामगे मूिास्श्रिे बस्तिस्नबंिने द्वे । (च. स्स. 3/7-9)
नेत्र से यहााँ नस्िका का अथम है। स्िस िाग को गुदा में प्रस्र्वष्ट कि बस्ति दी िािी है बस्तिनेत्र कहिािा है।
यह नस्िका सोने, चांदी, िांब,े कांसा, पीिि, िांगा, अस्तथ आकद की बनायी िािी थी। र्विममान काि में

तिीि, पीिि या प्िास्तिक की नस्िका का प्रयोग ककया िािा है। अि: यह एक प्रकाि का नस्िका यन्त्र है।

यह नस्िका गोपुच्छाकाि एर्वं मोिाई में उिाि चढार्व र्वािी होिी है मूििाग (िहााँ से पुिक बांिा
िािा है) में अंगुष्ठ िैसी मोिी िथा अग्रिाग (गुद प्रर्वेि र्वािा िाग) में कस्नस्ष्ठका िैसी पििी होिी है। आयु
के अनुसाि नस्िका की िम्बाई िथा स्छद्र का प्रमार् होिा है।

आचायम चिकानुसाि बस्तिनेत्र के स्छद्र का प्रमार् (च.स्स.3/8)

आयु स्छद्र प्रमार्


6 र्वषामयु मुंग के आकि का
12 र्वषामयु मिि के प्रमार् का
20 र्वषामयु ककम न्िु (बेि) के प्रमार् का

आचायम सुश्रि
ु ानुसाि बस्तिनेत्र के स्छद्र का प्रमार् (सु.स्च.35/7)

र्वय बस्ति नेत्र स्छद्र


मूि िाग अग्र िाग
1 र्वषम कं क पक्षी नािी प्रर्वेि योग्य मुंग
8 र्वषम श्येन पक्षी नािी प्रर्वेि योग्य माष
16 र्वषम मयूि नािी प्रर्वेि योग्य किाय (मिि)
25 र्वषम से ऊपि की आयु गृि नािी प्रर्वेि योग्य फु िे हुए मिि

बस्ति नेत्र का प्रमार्

आचायम चिकानुसाि (च.स्स.3/8)

आिुि आयु नेत्र िम्बाई


6 र्वषामयु 6 अंगुि
12 र्वषम आयु 8 अंगुि

20 र्वषम आयु के ऊपि 12 अंगुि

यहााँ आचायम ने 6 र्वषम से 12 र्वषम िक की आयु हेिु 1/3 अंगुि प्रस्िर्वषम िम्बाई अस्िक िेनी चास्हये िथा 12

से 20 र्वषम िक की आयु हेिु 1/2 अंगुि प्रस्िर्वषम िम्बाई अस्िक िेनी चास्हए।
आचायम सुश्रि
ु ानुसाि (सु.स्च.35/7)

आिुि आयु नेत्र िम्बाई (अंगि


ु प्रमार्)
1 र्वषम 6
8 र्वषम 8
16 र्वषम 10
25 र्वषम से ऊपि की आयु 12

उिि बस्ति नेत्र प्रमार्-

पुष्पनेत्रं िु हैमतं याि् श्लक्ष्र्मौिि बस्तिकम्।

िात्यर्श्हन र्वृि
ं न
े समं गोपुच्छसंस्तथिम्। िौप्य र्व सषमप स्छद्र स्द्वकर्म द्वादिांगि
ु म।। (च. स्स. 9/50-51)

चिुदि
म ांगि
ु ं नेत्रमािुिांगि
ु सस्म्मिं | माििीपुष्प र्वृि
ं ाग्रं स्छद्रं सषमप स्नगममम्।।

(सु. स्च. 37/101)

स्नस्र्वष्टकर्णर्कं मर्धये नािीर्ा चिुिंगि


ु े|

मुत्रस्रोि: परिर्ाहं मुद्गर्वाही दिांगि


ु म||

(सु.स्च.37/103)

उिि बस्ति के नेत्र को स्र्वस्िष्ट संज्ञा "पुष्प नेत्र" दी गई है।

आकाि:- 1. िास्ि पुष्प (चमेिी के फू ि) या कनेि पुष्प समान

2. नेत्र सीिा र्व स्चकना होना चास्हए।

िम्बाई :- 12 अंगुि, िथा सुश्रुिानुसाि 14 अंगुि (पु ष) 10 अंगुि (स्त्री)

नेत्र स्छद्र प्रमार् - सिसों के आकाि का (पु ष), मूंग के समान (स्त्री)
व्रर् बस्ति नेत्र प्रमार् :

व्रर्नेत्रमष्टांगि
ु ं मुद्गर्वाही स्रोििः।

व्रर्मर्वेक्ष्य यथातर्वं स्नेहकषाये स्र्वदिीि। (सु. स्च. 35/11)

िम्बाई-8 अंगुि

अग्रस्छद्र परिमार्- मूंग सदृि

बस्ति नेत्र दोष (Demerits of Basti netra)

8 प्रकाि के होिे हैं

हतर्वं दीतम िनु तथूिं िीर्म स्िस्थिबंिनम्। पार्श्मस्च्छद्रं िथा र्विमष्टौं नेत्रास्र् र्विमयि
े ।् ।

अप्राप्त्यस्िगस्ि क्षोि कषमर् क्षर्न स्रर्वािः। गुदपीिा गस्िर्णि्ा िेषां दोषािः यथािमम्।।

(च. स्स. 5/4-5)

अ.ि. बस्तिनेत्र दोष व्यापद


1 हृर्श्िा (छोिा होना) अप्राप्यगस्ि
2 दीतमिा (अस्िक िम्बाई) अस्िगस्ि से द्रव्य िािा है
3 िनुिा (पििा) गुदक्षोि

4 तथूििा (मोिा) गुदिागी कषमर्


5 िीर्मिा गुदक्षि होने की सम्िार्वना

6 स्िस्थि बंिनिा(बंिन का ढीिा होना) स्रार्व


7 पार्श्म स्छद्र गुदपीडा
8 र्वििा (िेढ़ा होना) गस्ि ल्िहमा

2. बस्ति पुिक (Basti putak)

यह र्वह िाग है स्िसमें बस्ति दी िाने र्वािी औषत िखी िािी है िो संकोच-प्रसिर्िीि थैिी की
ििह होिी है। प्राचीनकाि में इसको पिुओं के मूत्रािय से बनाया िािा था। िबि का आस्र्वष्काि होने के
बाद आिकि िबि प्िास्तिक का बनाया िािा है अथर्वा फु िबाि के ब्िैिि में िी एक अस्िरिक्त स्छद्र किके
काम में स्िया िा सकिा है
बस्ति पुिक में औषि ििकि इसे बस्तिनेत्र के अग्रिाग की कर्णर्का से िोि कि, िागे से अच्छी
ििह बाि हैं। बस्ति देिे समय बस्ति पुिक को समान दाब से िगािाि अलप बस्ति द्रव्य पुिक में िेष िहने
िक दबाकि बस्ति दी िािी है। इस प्रकाि से उपद्रर्व िस्हि बस्ति प्रयोग ककया िािा है।

बस्ति पुिक के दोष (Demerits of Basti putaka)

बस्ति पुिक के आठ प्रकाि के दोष माने िािे हैं, इन दोषों से िस्हि बस्ति पुिक का प्रयोग किना चास्हए।

स्र्वषममांसि स्छि तथूि िास्िक र्वाििा:। स्स्नग्ििः स्क्ििश्च िानष्टौ बस्तिन् कममसु र्विमयि
े ।् ।

गस्िर्वैषम्य स्र्वस्त्रत्र्व स्रार्व दौग्राह्य स्नस्रर्वािः। फे स्निच्युत्यिायमत्र्वं बतिेिः तयुबस्म तिदोषििः। (च. स्स. 5/6-7)

अ.ि. बस्ति पुिक दोष व्यापद


1 स्र्वषमाकाि गस्िस्र्वषम
2 मांसि स्र्वस्रगंि

3 स्छद्रयुक्त औषस्ि का बाहि आना


4 तथूि दाब देने में करठनाई

5 िाियुक्त औषि का बाहि स्रार्व


6 र्वािि औषि के साथ र्वायु का गुदा में िाने की संिार्वना
7 स्स्नग्ि हाथो का कफसिना

8 स्क्िििा पुिक को व्यर्वस्तथि पकडने में करठनाई

प्रचिीि बस्ति यंत्र:

1. नेत्र - Rubber Catheter No. 8-10

पुिक - Syringe 100 ml

उपयोग – मात्राबस्ति के स्िए उपयोगी

(2) पािं पारिक िास्त्रोक्त बनाया हुआ पीिि का नेत्र

पुिक – बडी प्िास्तिक थैिी 1½ स्ििि

उपयोग - स्नरूह बस्ति देने के स्िए


(3) Enema Can:

उपयोग - यापन बस्ति, क्षीि बस्ति िथा अस्िक मात्रा स्नरूह बस्ति देने के स्िए

4. नेत्र - Rubber Catheter

पुिक - Hot fomentation bag.

उपयोग - स्नरूह बस्ति देने के स्िए

5. नेत्र- Scalp vein (आगे Needle िोिकि/Catheter

पुिक – 10-20 ml Syringe

उपयोग – छोिे बिो को मात्रा बस्ति देने के स्िए

- उििबस्ति के स्िए

बस्ति प्रकाि (Types of Basti)

बस्ति के अनेक प्रकाि है। औि अनेकस्र्वि आिािों पि अनेक िेद ककये िा सकिे हैं, िो स्नम्न है-

1. अस्िष्ठान िेद (According to site of administration) - बस्ति स्िस अस्िष्ठान में दी िािी है उस

आिाि पि बस्ति के स्नम्नस्िस्खि 4 िेद है

(i) पक्वाियगि- िो गुदमागम से दी िािी है औि औषि द्रव्य का अस्िष्ठान पक्वािय होिा है।

(ii) गिामियगि- स्स्त्रयों में गिामिय के दोषों को दूि किने के स्िए दी िाने र्वािी, अपत्यपथ से गिामिय में
औषस्ियों को पहुंचाने र्वािी बस्ति गिामियगि बस्ति होिी है।

(iii) मूत्राियगि-मूत्रमागम (मेे़ढ् या योस्न) से मूत्रािय में औषिों को पहुंचाने र्वािी बस्ति है। गिामियगि
औि मूत्राियगि बस्ति को "उिि बस्ति" की संज्ञा दी िािी है।

(iv) व्रर्गि- व्रर्ों में व्रर्मुख िोिन, िोपर्ाथम औषस्ि द्रव्यों को पहुाँचाना ब्रर्गि बस्ति है।
2. द्रव्य िेद से (According to content)- बस्ति में प्रयुक्त द्रव्य क्वाथ है या स्नेह है इस आिाि पि बस्ति के
दो प्रकाि है

ित्र स्द्वस्र्विो बस्तििः नै स्हक: स्नेस्हकश्च (सु. स्च. 35/18)

(i) स्नरूह बस्ति

(ii) अनुर्वासन बस्ति

(i) स्न ह बस्ति-स्िस बस्ति के स्नमामर् में क्वाथ की प्रिानिा होिी है उसे स्नरूह बस्ति कहिे है इसका अन्य
नाम आतथापन बस्ति है।

स दोष स्नहमिर्ाि् ििीि नीिोहर्ाद्वा स्नरूहिः।

र्वयिः तथापनाि् आयुिः तथापनाि् र्वा आतथापनम्।। (सु. स्च. 35/18)

दोषों को ििीि से बाहि स्नकाि देने के कािर् अथर्वा िोगों को हिने के कािर् इसे स्नरूह कहा
िािा है औि तथापन अथामि् आयु तथापन किने के कािर् इसे आतथापन बस्ति कहा िािा है।

स्न ह बस्ति र्वयिः तथापन, सुखायुष्य, अस्िर्विमक, तर्विर्वर्म प्रसादन, युर्वा-बाि-र्वृद्ध इन सबके स्िए

स्न पद्रर्व सर्वमिोगनािन दोष, मि, मूत्र िोिन, दृढिाकिर्, िुिबिर्विमन औि ििीि के सिी संस्चि मिों
का स्नहमिर् कििी है |

पयामय- आतथापनं स्नरूह इत्यनथामििम्। ितय स्र्वकलपो मािु िैस्िकिः,

ितय पयामय िब्द यापनो, युक्तिथिः, स्सद्ध बस्तिरिस्ि ।। (सु. स्च. 35/18)

स्न ह का एक स्र्वकलप "मािुिैस्िक बस्ति" है इसके स्नमामर् में मिु औि िैि प्रिान द्रव्य होिे है।
इसके पयामय - यापन बस्ति, युक्तिथ बस्ति औि स्सद्ध बस्ति हैं।

यापनाश्च बतियिः सर्वमकािं देया:। (च. स्स. 12/15)

च.पा.- आयुषो यापनं दीतमकािानुर्विमनं कु र्वमन्िीस्ि यापना बतियिः।।

(क) यापन बस्ति-िो सिी काि में दी िा सकिी है औि आयु को बढािी है।

(ख) युक्तिथ बस्ति-युद्धाकद के स्िए िथ में बैठकि िाना हो, हाथी, तोिे की सर्वािी कििे समय या
यात्रा किनी हो ऐसी अर्वतथा में िी िो बस्ति स्नस्षद्ध नहीं हो।

(ग) स्सद्ध बस्ति- यह ििीि में बि उत्पि कििी हो, र्वर्म प्रसादन कििी है सैंकडो िोगों को स्मिािी
है।
(ii) अनुर्वासन बस्ति-स्िस बस्ति के स्नमामर् में स्नेह की प्रिानिा होिी है उसे अनुर्वासन बस्ति कहिे
हैं।

स्न स्क्त अनु + र्वास्

अनुर्वसस्ि,अनुर्वासिं दीयिे र्वा | ( र्वाचतपत्यम)

अनुर्वसन् अस्प न दुष्यत्यनुकदर्वसं र्वा दीयि इत्यनुर्वासनिः।। (सु. स्च. 35/18)

अनुर्वासन की परििाषा इस ििह की गयी है- िो अनुर्वासन-अंदि िहिे हुए िी कोई दोष उत्पि
नहीं कििी िथा प्रस्िकदन दी िा सकिी है र्वह अनुर्वासन बस्ति है।

आचायम सुश्रुि ने अनुर्वासन को स्नैस्हक बस्ति का एक प्रकाि माना है। स्नैस्हक बस्ति के 3 िेद मात्रा
के आिाि पि ककए िािे हैं

ि.- िंत्रांििे प्युक्तं "षट्पिी िु िर्वेच्रेष्ठा स्त्रपिी मर्धयमा िर्वेि।्

कनीयतयिम पस्िका स्त्रिा मात्रानुर्वासने।

अर्धयाष्दिामर्वकृ ष्टातिािः कायाम इस्ि अन्यं पठस्न्ि।

ित्रास्प अद्धमतयाद्धमश्चिुथों िाग एर्वस्ि स एर्वाथमिः।। (सु. स्च. 37/4 पि)

यथार्वयो स्नरूहार्ां यािः मात्रािः परिकीर्णििािः।

पादार्वकृ ष्टातिा: कायामिः स्नेहर्वस्तिषु देस्हनाम्।। (सु. स्च. 37/4)

(क) स्नेह बस्ति- इसकी मात्रा 6 पि होिी है िो स्न ह बस्ति की एक चिुथामि है।

स्नेहबस्ति स्र्वकलपो अनुर्वासनिः पादार्वकृ ष्टिः।। (सु. स्च. 35/18)

(ख) अनुर्वासन बस्ति - इसकी मात्रा 3 पि होिी है।

ितयास्प (अनुर्वासनतयास्प) स्र्वकलपो अिामद्धम


म ात्रार्वकृ ष्टोऽपरिहायो मात्रा बस्तिरिस्ि ।

(सु.स्च.35/18)

(ग) मात्रा बस्ति - इसकी मात्रा 11/2 पि होिी है। िथा चिक ने स्नेहपान की हतर्व मात्रा कही है।
3. कामुक
म िा के आिाि पि िेद (According to mode of action)

(i) िोिन बस्ति -यह दोषों एर्वं मिों का िोिन कििी है। मृद ु एर्वं िीक्ष्र् िेद से दो प्रकाि की है |

(ii) िेखन र्वस्ति- यह मेद को कम कििी है िथा ििीि को कृ ि कििी है।

(iii) उत्क्िेिन बस्ति- यह स्चपके हुए दोषों एर्वं मिों को अपने तथान से हिा कि द्रर्वीिूि प्रमार् बढाकि
उनका स्नमूमिन कििी है।

(iv) िमन बस्ति- यह कु स्पि दोषों का िमन कििी है।

(v) बृहर् बस्ति-यह िािुओं को बढाकि ििीि को पुष्ट कििी है।

(vi) िसायन बस्ति- यह बि-र्वर्म आयुर्विमक एर्वं िोगहि है।

(vii) र्वािीकिर् बस्ति-पह बीयम को बढाकि पौरूष िस्क्त प्रदान कििी है।

(viii) कषमर् बस्ति- यह तथौलय र्व मेद को दूि कििी है।

(ix) स्नेहनीय बस्ति - यह ििीि का स्नेहन कििी है। स्नेह प्रिान बस्ति है।

(x) चक्षुष्य - यह नेत्र के स्िए स्हिकि है।

(xi) संग्राही बस्ति- यह संग्राहक होिी है।

(xi) र्वर्मप्रसादन-ििीि के र्वर्म का प्रसादन कििी है।

आचायम सुश्रि
ु ानुसाि कामुक
म िा आिाि पि िेद

(i) िोिन बस्ति (ii) स्नेहन बस्ति (iii) िेखन बस्ति (iv) बृहर् बस्ति

आचायम र्वाग्िट्ट अनुसाि िेद

(i) उत्क्िेिन बस्ति

(ii) दोषहि बस्ति

(iii) िमन बस्ति


4. संख्या िेद से 3 प्रकाि (According to number of Basti)

(1) कमम बस्ति (ii) काि बस्ति (iii) योग बस्ति

स्त्रिन्मिािः कममसु बतियो स्ह काितििोऽिेन ििश्च योगिः।

सान्र्वासना: द्वादि र्वै स्नरूहािः प्राक्स्नेह एकिः पििश्च पंच।।

कािे त्रयोऽन्िे, पुितिथैक: स्नेहास्नरूहांिरििा श्च षि् तयु: ।

योगे स्नरूहा: त्रय एर्व देयािः स्नेहाश्च पंचेर्व पिाकदमर्धयािः ।। (च. स्स. 1/47-48)

(i) कमम बस्ति- इसमें 30 बस्तियााँ होिी है। पहिे 1 अनुर्वासन, कफि अनुर्वासन औि स्नरूह का िम से अथामि्

अनुर्वासन के बाद स्नरूह कफि अनुिासन के अनुसाि दी िािी है िथा दोनों 12-12 दी िािी है औि अंि में

5 अनुर्वासन बस्ति दी िािी है।

इस प्रकाि 1+12+12+5=30 बस्तियों दी िािी है इसमें 18 अनुर्वासन 12 स्न ह बस्तियों दी


िािी है।

(ii) काि बस्ति-इसमें 16 बस्तियााँ दी िािी है। पहिे एक अनुर्वासन कफि िम से 6 अनुर्वासन 6 स्न ह िथा

अंि में 3 अनुर्वासन बस्तियााँ दी िािी है इस प्रकाि 1+6+6+3=16 बस्तियोाँ दी िािी है इसमें 10

अनुर्वासन िथा 6 स्नरूह बस्तियााँ दी िािी है। आचायम र्वाग्िट्ट ने 16 के तथान पि 15 बस्तिया बिाई है।

(iii) योग बस्ति-इसमें 8 बस्तियााँ दी िािी है। पहिे एक अनुर्वासन कफि िम से 3 अनुर्वासन 3 स्नरूह िथा

अंि में 1 अनुर्वासन बस्तियााँ दी िािी है। इस प्रकाि 1+3+3+1=8 बस्तिया दी िािी है इसमे 5
अनुर्वासन औि 3 स्न ह बस्तियों दी िािी है।

5. आनुषस्ङ्गक िेद से 9 प्रकाि (According to nomenclature/other basis)

1. यापन बस्ति- यह बिर्वर्म, आयुर्विमक एर्वं स्निापद बस्ति है। इसमें क्वाथ, दूि, गुि, तृि, आकद का प्रयोग
ककया िािा है। यह मांस एर्वं िुिर्विमक है। िथा बतिी परिहाि काि में मैथुनाकद अपथ्य स्र्वहाि किने से
उत्पन व्यापद की स्चककत्सा हेिु स्नदेस्िि है।

2. स्सद्ध बस्ति – यह ककसी स्र्विेष िोग को दूि किने के स्िए होिी है अथामि् स्र्वस्िष्ट िोग को स्सद्ध किने
हेिु।
3. प्रासृियौस्गकी बस्ति- एक प्रसृि प्रमार् में (8 िोिा) बस्ति दी िािी है।

4. द्वादि प्रासृस्िकी बस्ति- इसमें बस्ति द्रव्य का प्रमार् 12 प्रसृि (96 िौिा) होिा है। इसका उदाहिर्
मािुिैस्िक बस्ति है।

5. पादहीन बस्ति- इसमें बस्ति द्रव्य एक चौथाई कम द्वादि प्रासृस्िकी बस्ति से अथामि् 9 प्रसृि की बस्ति
दी िािी है।

6. िीक्ष्र् बस्ति - क्षाि, मूत्र, िर्वर्, ऊष्र्-िीक्ष्र् द्रव्यों से िो बस्ति दी िािी है र्वह िीक्ष्र् बस्ति होिी है।

7. मृद ु बस्ति - यह बस्ति मिुि तकन्ि की औषस्ियों से दूि-ती आकद मृद ु द्रव्यों से स्नर्णमि होिी हैं िथा
बाि, र्वृद्ध एर्वं सुकुमािों में दी िािी हैं।

8. स्पच्छा बस्ति- यह संग्राही बस्ति है इसका प्रयोग िक्तस्रार्व के अर्विोि के स्िए, अिम, अस्िसाि आकद में
कििे हैं। स्पच्छि द्रव्यों से स्नमामर् के कािर् इसे स्पच्छा बस्ति कहिे हैं।

9. िक्त बस्ति - िक्तक्षय होने पि उसकी पूर्णि के स्िए पिुओं के िक्त की बस्ति दी िािी है।

आतथापन बस्ति के अयोग्य िोग औि िोगी (Contraindication of Asthapana Basti)

अनातथाप्यातिु-अिीण्यमस्िस्स्नग्िपीिस्नेहोस्त्क्िष्टदोषालपास्ि यानक्िांिास्िदुबि
म क्षुिष्ृ र्ा श्रमािामस्िकृ ि
िुक्तिक्त पीिोदकर्वस्मिस्र्वरिक्तकृ िनतििः कमम िु द्ध िीि मि मुर्णच्छि प्रसक्तछर्दद स्नष्ठीस्र्वका र्श्ासकास
स्हक्काबद्ध स्छद्रोदकोदिार्धमानािसक स्र्वसूस्चकामप्रिािामास्िसाि मिुमह
े कु ष्ठािामिः।।(च. स्स. 2/14)

ित्रोन्माद िय िोक स्पपासािोचकािीर्ामििःम पांिुिोग भ्रममद मूच्छाम छर्दद कु ष्ठ मेदोदि तथौलय र्श्ासकास
कं ठिोष िोफोपसृष्ट क्षिक्षीर् चिुस्स्त्रमास गर्णिर्ी दुबि
म ाग्न्यसहा बािर्वृर्धदौ र्वाििोगादृिे क्षीर्ानानुर्वातया
नातथापस्यिव्यािः । (सु. स्च. 35/21)

1.अिीर्म (indigestion) 2.अस्िस्स्नग्ि 3.पीिस्नेह,

4.उत्क्िीष्ट दोष 5.अलपािी, 6.यानक्िांि(Tired by journey),

7.अस्िदूबमि(weak) 8.क्षुिािम(hungry) 9.िृष्र्ािम(thirsty)

10.श्रमािम(tired) 11.अस्िकृ ि(chachexic) 12.िूक्तिक्त(taken meal)

13.पीिोदक(just taken water)14.र्वस्मि(र्वमन स्िया हुआ)15. स्र्वरिक्त(स्र्विे चन स्िया हुआ)

16.कृ िनतय(नतय स्िया हुआ) 17.िोिीि(angry) 18.ियिीि(feared) 19.मिा(delirium)


20.मुर्णच्छि(unconscious) 21.प्रतक्तच्छदी(heavy vomiting) 22.प्रतक्तस्नष्ठीस्र्वक(expectoration)

23.प्रतक्तर्श्ास(dyspnic) 24.प्रतक्तकास(continuous cough) 25.प्रतक्तस्हक्का(hiccup)

26.बर्धदगुदोदि(intestinal obstruction) 27.स्छद्रोदि(intestinal perforation)

28.दकोदि(ascites) 29.आर्धमान(flatulence) 30.अिसक(pyloric obstruction),

31.स्र्वसूस्चका(cholera) 32.आमदोष 33. आमास्िसाि(amoebic dysentry)

34.मिुमेह(condition like diabetes) 35. कु ष्ठ(skin disease) 36. अिम(piles) 37.आमप्रिािा

38.पांिु(anaemia) 39.भ्रम(vertigo) 40.अिोचक(anorexia) 41.उन्माद(insanity)

42. िोकार्वतथा(in grief) 43.तथौलय(obesity) 44.कं ठिोष(dryness of throat)

45.क्षिक्षीर्(emaciation due to injury) 46.गर्णिर्ी(pregnant) 47.बाि,र्वृद्ध

48.अलपर्वचम(less stool) 49.गुदिोथ(inflammation)

अनातथाप्यों में आतथापन देने से सम्िास्र्वि स्र्वकाि-

(1) अिीर्म िोगी स्िसका स्नेहन ककया है िथा स्िसने अिी अिी स्नेह स्पया है (स्नेह पीि) उसे आतथापन

बस्ति देने से दुष्योदि, मूच्छाम औि िोथ िोग उत्पि हो सकिे है क्योंकक आभ्यंिि स्नेहपान से दोषों का
उत्क्िेि होिा है औि बस्ति में िेि आकद स्नेह का प्रयोग होिे है स्िससे उत्क्िेि बढ सकिा है औि
दूष्योंदिाकद के स्िये यह अर्वतथा हेिु का कायम कििी है।

(2) यान क्िान्ि (िो सर्वािी कि थके हुए हों) को बस्ति देने से ििीि सूख िािा है।

(3) अत्यंि दुबमि, क्षुिािम, िृषािम िथा श्रम से थके हुओं में बस्ति कमम से उत्पि क्षोि सहन किने की क्षमिा
नहीं होने से प्रार्ोपिोि होिा है। अत्यंि कृ िो में दी हुई बस्ति काश्यम को बढ़ािी है िोिन पश्चाि् स्नरूह
बस्ति दी िाने पि, दोषों का उत्क्िेि कि, अत्यस्िक स्र्वकािों को उत्पि कििी है।

(4) स्िसे र्वमन या स्र्विे चन किाया गया है, उसके ििीि में रूक्षिा उत्पि होिी है, इस अर्वतथा में बस्ति,
क्षि में क्षाि के समान दाह उत्पि (ििन) कििी है नतय के बाद बस्ति देने से स्र्वभ्रंि औि स्रोिोिोि होिा
है।

(5) िु द्ध औि ियिीि को कदया हुआ स्नरूह कोष्ठ में अस्िक ऊपि िक पहुंच िािा है।

(6) मि औि मुर्णच्छि को बस्ति संज्ञा नाि कि हृदयोपताि कििी है।

(7) छर्दद स्नष्ठीस्र्वका, र्श्ास, कास में र्वायु उर्धर्वीिूि होकि बस्ति को ऊपि िे िािी है।

(8) बर्धदगुदोदि, स्छद्रोदि, दकोदि औि आर्धमान में दी हुई बस्ति िीव्र आर्धमान उत्पि कि प्रार्नाि कििी
है।
(9)अिसक में मि प्रर्वृस्ि या छर्दद दोनों बंद होने से उदि में िीव्र आर्धमान होिा है। स्र्वसूस्चका में छर्दद औि
अस्िसाि दोनों एक साथ होकि िीव्र आमदोष उत्पि होिा है इन दोनों अर्वतथाओं में दी हुयी बस्ति पुनिः
आमदोष को उत्पि कििी औि व्यास्ि को बढ़ािी है।

(10) मिुमेह औि कु ष्ठ में बस्ति व्यास्ि को अस्िक बढ़ा देिी है।

आतथापन बस्ति के योग्य िोग एर्वं िोगी (Indication of Asthapana Basti)

िेषातत्र्वातथाप्यािः, स्र्विेषितिु सर्वाांगक


ै ांग कु स्क्षिोग र्वािर्वचो मूत्र िुिसंग बि मांस िेििः क्षयदोषार्धमानां
गसुस्िकिस्म कोष्ठोदार्विम िुद्धास्िसाि पर्वमिद
े ास्ििापप्िीह गुलम िूिहद्रोग िगंदिोन्माद ज्र्वि ब्रघ्न स्िििः कर्म
िूि हृदयपार्श्मपष्ठ
ृ किीग्रह र्वेपनाक्षेपक गौिर्वास्ििातर्विििः क्षयािम स्र्वषमास्ि स्तफग् िानु िंतो गुलफ
पार्ष्ष्र् प्रपदयोस्न बाह्र्वंगि
ु ी तिनांिदंिनखपर्वामस्तथ िूििोष तिंिांत्रकू ि परिकर्णिकालपालप
सिब्दोग्रगंिोत्थानादयो बािव्याियो स्र्विेषेर् महािोगार्धयायोक्ताश्च, एिेषु आतथापनं प्रिानिमस्मत्युक्तं

र्वनतपस्ि मूिच्छेदर्वि्।। (च. स्स. 2/16)

िथा ज्र्विास्िसाि स्िस्मि प्रस्िश्याय स्ििोिोगास्िमंथार्ददिाक्षेप पक्षातािैकांग सर्वामग िोगार्धमानोदि


योस्निूि िकम िािूिर्वृर्धदयुपदंिानाह मूत्रकृ च्र गुलमर्वाििोस्र्ि मूत्र पुिीषोदार्विम िुिािमर्वतिन्यनाि
हृद्हनुमन्याग्रह िकम िाश्मिी मूढगिम प्रिृस्िषु चात्यथममप
ु युज्यिे। (सु. स्च. 35/5)

1.सर्वाांग िोग (Neurological disorder) 2. एकांगिोग (Neurological disorder)

3.कु क्षी िोग (Related to Abdomen) 4. र्वाििोग (obstruction to flatus)

5. मुत्रसंग(Obstruction to urine) 6.मिसंग (Constipation)

7. िुिसंग (Obstruction in ejaculation) 8. बिक्षय( Loss of physical stage)

9. मांसक्षय (Emaciation) 10. दोषक्षय 11. िुिक्षय (Oligospermia)

12. आर्धमान (Abdominal distension) 13.अन्गसुिी(Numbness)

14. कृ स्मकोष्ठ (Worm infestation) 15. उदार्विम( Retrograde intestinal movement)

16 िुर्धदास्िसाि (Diarrhoea) 17.पर्वमिेद (Arthralgia) 18. अस्ििाप (Increased temperature)

19 प्िीहा दोष (Disease of spleen) 20. गुलम (tumour, lump in intestine)


21.िूि (Abdominal pain) 22.हृद्रोग (Heart disease) 23.िगंदि (Fistula)

24. उन्माद (Psychological disorder) 25. ज्र्वि (Fever) 26.ब्रध्न (Scrotal swelling)

27. स्िििःिूि (Headache) 28. कर्मिूि (Earache) 29. हृदिूि (Cardiac pain)

30. पार्श्मिूि (Body pain (side) 31 पृष्ठ िूि (Backache) 32 किीिूि (Low Backache)

33. र्वेपथु(Parkinson's disease) 34.आक्षेप (Convulsions)

35 अस्िगौिर्व (Heaviness of body) 36 अस्ििातर्व (Lightness of body)

37.ििक्षय(Decreased menstrual flow) 38.स्र्वषमास्ि

39.स्तफकिूि (Pain in buttocks) 40.िानुिूि (Knee joint pain) 41.िंतािूि (Pain in legs)

42.उरूिूि (Pain in thighs) 43.गुलफिूि (Painful ankle joint)

44.पार्ष्ष्र्िूि (Pain in heel/Spur calcaneus) 45.पादिूि (Pain in feet)

46.योस्निूि (Vaginal pain) 47.बाहुिूि (Pain in arms) 48.उं गिी िूि (Pain in fingers)

49.तिन िूि (Breast Pain) 50.दंििूि (Toothache) 51. नखिूि (Pain in nails)

52 पर्वम-अस्तथ िूि (Bone pain) 53.िोष (Muscle wasting) 54. तिम्ि (Stiffness)

55.आंत्रकू िन (Sound in abdomen) 56.परिकर्णिका(anal pain) 57.ज्र्वि(fever)

58. स्िस्मि (Refractive error) 59. प्रस्िश्याय (Rhinitis) 60. र्वािव्यास्ि

61.अस्िमंथ (Glaucoma) 62. अर्ददि (Facial paralysis/Bell's' palsy)

63 पक्षाताि (Hemiparesis) 64 िकम िा िूि (Urolithiasis) 65. उपदंि (Ulceration in penis)

66. र्वाििक्त (Gouty arthritis) 67. अिम (Hemorrhoids)

68.तिन्यक्षय (Reduction in breast milk) 69. मन्याग्रह (Stiffness of neck)

70 हनुग्रह (Lockjaw) 71 मुढ गिम 72. मूत्रकृ च्छ(Painful micturation) 73.अश्मिी (Calculus)
आतथाप्य में सामान्यि: इन बािो का स्र्वचाि ककया हुआ स्मििा है-

(1) र्वाििोग या र्वािप्रिान िोग


(2) र्वाि के आश्रय में िहने र्वािे िोग
(3) िोिनाहम िोग
(4) बृहर्ाकद बस्तििेद िो कहे गए है उनके स्िए अनुकूि िोग
(5) मििोिन के तथास्नक क्षेत्र के िोग

र्वय अनुसाि स्नरूह बस्ति मात्रा:

स्नरूहमात्रा प्रसृिािममाद्ये र्वषम ििोऽिम प्रसृिास्िर्वृस्द्धिः।

आद्वादिाि् तयाि् प्रसृिास्िर्वृस्द्धिष्टादिाद् द्वादिििः पिं तयुिः।।

आसििेतिद् स्र्वस्हिं प्रमार्मििः पिं षोिषर्वद् स्र्विेयम्।

स्नरूहमात्रा प्रसृि प्रमार्ाबािेच र्वृद्धे च मृदर्णु र्विेषिः । (च. स्स. 3/31-32)

स्नरूहमात्रा प्रथमे प्रकुं चों र्वत्सिे पिं ।

प्रकुं च र्वृस्द्धिः प्रत्यब्दं यार्वत्षि् प्रसृिातिििः।

प्रसृिं र्विमयद
े र्धू र्वम द्वादिाष्टादितय िु।

आसिेरिदं मानं दिैर्व प्रसृिािः पिम्।। (अ. ह. सू. 19/18-19)

र्वय के अनुसाि स्नरूह मात्रा- स्नरूह की मात्रा 1 र्वषम के बािक के स्िये अिम प्रसृस्ि होिी है

ित्पश्चाि् प्रस्ि र्वषम आिी प्रसृस्ि अस्िक िेनी चास्हए। इस ििह 12 र्वषामयु िक कििे हैं, ित्पश्चाि् प्रस्िर्वषम

एक प्रसृस्ि बढ़ाकि 18 र्वषामयु िक मात्रा स्नर्मय कििे हैं। यही प्रमार् 70 र्वषामयु िक िेना चास्हए है औि

70 र्वषम पश्चाि्, 16 र्वषामयु के प्रमार् में बस्ति देनी चास्हये। र्वाग्िि ने र्वही प्रमार् प्रकु च में कदया है। (दो

प्रकुं च = 1 प्रसृस्ि)
ि. र्वय चिकोक्त मात्रा र्वाग्ििोक्त मात्रा मात्रा
प्रसृस्ि में प्रकु च में िोिे में
1 1 र्वषम हेिु ½ प्रसृस्ि 1” 4 िोिा = 40g
2 2 र्वषम हेिु 1 प्रसृस्ि 2” 8 िोिा = 80g
3 3 र्वषम हेिु 1.5 प्रसृस्ि 3” 12” =120g
4 4 र्वषम हेिु 2” 4” 16” =160g
5 5 र्वषम हेिु 2.5” 5” 20” =200g
6 6 र्वषम हेिु 3” 6” 24” =240g
7 7 र्वषम हेिु 3.5” 7” 28” =280g
8 8 र्वषम हेिु 4” 8” 32” =320g
9 9 र्वषम हेिु 4.5” 9” 36” =360g
10 10 र्वषम हेिु 5” 10” 40” =400g
11 11 र्वषम हेिु 5.5” 11” 44” =440g
12 12 र्वषम हेिु 6” 12” 48” =480g
13 13 र्वषम हेिु 7” चिकर्वि प्रसृस्ि में 56” =560g
उक्त
14 14 र्वषम हेिु 8” ” 64” =640g
15 15 र्वषम हेिु 9” ” 72” =720g
16 16 र्वषम हेिु 10” ” 80” =800g
17 17 र्वषम हेिु 11” ” 88” =880g
18 18र्वषम हेिु 12” ” 96” =960g
19 19र्वषम हेिु 70 12” ” 96” =960g
20 70 र्वषम हेिु 10” ” 80” =800g
12 प्रसृस्ि या 96 िोिा यह बस्ति का पिम प्रमार् है |

िेषु त्र्वातथापन द्रव्यप्रमार्मािुि हतिप्रमार् संस्मिेन प्रसृिन


े संस्मिौ द्वौ चत्र्वािाष्टौ च स्र्विेयािः।

( सु.स्च. 35/7)

सुश्रुि ने आतथापनबस्ति का प्रमार् आिुि के हति प्रमार् से दो प्रसृस्ि, चाि प्रसृस्ि औि आठ प्रसृस्ि

िमििः हीन मर्धयम औि उिम प्रमार् बिाया है। िथा आतथापन का पिम प्रमार् 12 प्रसृस्ि का कहा है।

स्न हत्य प्रमार्ं िु प्रतथिः पादोिि मि। मर्धयम प्रतथमुकद्दष्ट हीनं च कु िर्वं त्रयं ।। (िा. उ. ख. 6/3)

िािं गिि औि िार्वप्रकाि ने स्नरूह की उिम मात्रा 11/4 प्रतथ (80 िौिा) मर्धयममात्रा 1 प्रतथ (64 िोिा)

औि हीनमात्रा 3 कु िर्व (48 िोिा) कही है।


बस्ति द्रव्यों में स्नेह की मात्रा –

िागािः कषायतय िु पंच, स्पिे स्नेहतय षष्टिः प्रकृ िौ स्तथिे च।

र्वािे स्र्वस्ब्रर्धदे िु चिुथम िागो मात्रा स्नरूहेषु कफे ऽष्ट िागिः।। (च. स्स. 3/30)

स्न ह बस्ति में स्नेह की मात्रा बाि प्रिान दोषों में क्वाथ की चिुथाांि स्पिप्रिान दोषों में िथा तर्वतथ पु षो
मे क्वाथ से षष्ठांि, औि कफ प्रिान दोषों में अष्ठाि स्नेह िथा सर्वमत्र सिी दोषों में पंचमांि स्नेह िेनी चास्हये। यह

प्रमार् द्वादि प्रसृस्ि बस्ति का है, स्िससे र्वाि के स्र्वकाि में 3 प्रसृि (24 िो.) स्पि स्र्वकाि में 2 प्रसृि (16 िो.) औि ।

कफ स्र्वकाि में 11/2 प्रसृि (12 िो.) िथा सर्वमत्र िगिग 2.4 प्रसृि (18 िो.) स्नेहमात्रा होिी है

द्वादि प्रसृि बस्ति(चिक)


बस्ति द्रव्य र्वािप्रिानिा मे स्पिप्रिानिा मे कफप्रिानिा मे तर्वतथ मे
मिु 1½ प्रसृि 2 प्रसृि 3 प्रसृि 2 प्रसृि
सैन्िर्व 1 िोिा 1 िोिा 1 िोिा 1 िोिा
स्नेह 3 प्रसृि 2 प्रसृि 1½ प्रसृि 2 प्रसृि
(स्न ह का 1/4) (स्न ह का 1/6) (स्न ह का 1/6)
(स्न ह का 1/8)
कलक 1 प्रसृि 1 प्रसृि 1 प्रसृि 1 प्रसृि
क्वाथ 5 प्रसृि 5 प्रसृि 5 प्रसृि 5 प्रसृि
आर्वापद्रव्य 1½ प्रसृि 2 प्रसृि 1½ प्रसृि 2 प्रसृि

बस्तितिक र्व उनकी उपयोस्गिा -

मास्क्षक –

 मिुि, कषाय, छेदन, क्ष, उष्र्र्वीयम, कफहि, व्रर्िोिक, योगर्वाही(catalyst), सुक्ष्ममागम


अर्ुसारित्र्व(penetration).
 बस्ति मे मिु की मात्रा अस्िक होने से अस्िर्वृष (च. स्स. 12/28)
 Contains mono sachharide, protein, fat, 18-amino acids, Vit B 12, B 6, folic

acid, Vit C & many minerals like Fe, Ca, Zn, K, P, Mg.

 It has healing properties.

 Most of the micro-organism do not grow in honey.

 Antioxidant properties.
सैन्िर्व –

 सूक्ष्म, िीक्ष्र्, ितु गुर् से स्रोिों मे पहुचाने का कायम,


 िीन दोष बाहि स्नकािने हेिु स्स्नग्ि गुर् से दोष स्र्वियन,
 बस्ति स्नगमम मे मदि
 कम मात्रा मे िर्वर् होने से अयोग (अ.हृ.सू.15/42)
 Having 74 traces of minerals. It has properties that help nerves.

 It is helpful in regulating acid-Alkaline balance maintaining osmosis.

 If promotes elimination of ontogenist animal proteins from the body which are

difficult to degrade.

 It has property of stimulation of clonic action potential helpful basti action.

 Combination of madhu and saindhav helpful to maintain glucose and

electrolytes.

स्नेह –

 स्स्नग्ि गुर् से मृदक


ु ि,
 र्वायु दुस्ष्टनािक
 मि बाहि स्नकािने मे उपयोगी
 स्रोिसो का संग (Obstruction) दूि कििा है (च.स्र्व. 1/7)

कलक –

 बस्ति का कायम कलक द्रव्य पि अर्विंस्बि होिा है


 कलक बस्ति की िस्क्त बढाने का कायम कििा है
 मि का स्र्वश्लेष कायम के अनुसाि , व्यास्िनुसाि कलक द्रव्य बदििा है
 Helpful in increasing permeability of the basti drug.

क्वाथ –

 बस्ति कायम कषाय द्रव्य पि अर्विंस्बि होिा है


 मात्रा मे अस्िक होने से ििीि मे फै ििा है
 ििीि से दोषों को आंिो मे िाकि स्नहमिर् कििा है,द्रव्यों का र्वीयम सर्वमििीि मे कायम कििा है
बस्ति स्नमामर् स्र्वस्ि (Method of preparation of Basti)

आचायम चिक र्व र्वाग्िि ने स्नरूह बस्ति स्नमामर् का एक स्र्वस्िष्ट िम कदया िो स्नम्न प्रकाि है।

पूर्वम स्ह दद्यात्मिू सैंिर्व िु स्नेहं स्र्वस्नममथ्य ििोऽनु कलकम्।

स्र्वमथ्य संयोज्य पुनद्रमर्वते ि्ं बतिौ स्नदर्धयान्मस्थिं खिेन।।

(च.स्स. 3/23)

मास्क्षकं िर्वर्ं स्नेहं कलक क्वाथस्मस्ि िमाि्।

आर्वपेि स्न हार्ां ह्येष संयोिने स्र्वस्ि:।।

( अ. ह. सू. 11/45)

सर्वमप्रथम मास्क्षक (मिु) औि सैन्िर्व िर्वर् को िेकि अच्छी ििह तोिे। िब यह एक स्मश्रर्( Emulsion)

के रूप मे हो िाये िो कफि इसमें स्नेह (तृि, िैि आकद) स्मिािे है औि पुन: तोििे हैं िब यह िी अच्छी
ििह स्मस्श्रि हो िािा है िो कलक स्मिाकि पुन: तोििे हैं।

पूिो यर्वानी फिस्बलर्व कु ष्ठर्वचा ििाह्ना तन स्पप्पिीनां (अ. ह. क. 4/ 2 )

यकद कहीं कलक का उलिेख न हो िो अष्टांगहृदय के पूिो यर्वानी कलक-(अिर्वायन, मदनफि,

स्बलर्व, कु ष्ठ, र्वचा, सौफ, नागिमोथा िथा स्पप्पिी एर्वं मिु, तृि, गुि, िैि औि िर्वर् का सुखोष्र् प्रयोग
किना चास्हए।) प्रयोग में िेिे हैं (अ. ह. कलप 4/2-3) िब यह सिी अच्छी ििह स्मस्श्रि हो िाए िो अंि में
क्वाथ को स्मिाकि अच्छी ििह मथना चास्हए।

प्रथम चिर् (1) मिु + सैंिर्व स्द्विीय चिर् (2) स्नेह

िृिीय चिर् (3) कलक चिुथम चिर् (4) क्वाथ।

कलक को आद्रम किके अथर्वा िुष्क (सूखा) िी प्रयोग कि सकिे हैं।

सर्वम िदेकििः। उष्र्ाबुं कुं िी बाष्पेर् ििं खि समाहिं।। (अ. ह. सू. 19/41)

सिी प्रकाि की बस्तियों के द्रव्य को गमम किने की एक स्र्वस्िष्ट स्र्वस्ि है बस्ति द्रव्य को सीिे अस्ि
पि गमम नहीं ककया िािा है इस हेिु बस्ति द्रव्य को एक पात्र में िखकि अन्य बडे पात्र स्िसमें उष्र् िि ििा
होिा है में िख कि गमम कििे हैं
स्न ह बस्तिदान स्र्वस्ि (Method of administration of Niruh Basti ) -:

स्न ह/आतथापन बस्ति स्नरूह बस्ति की सम्पूर्म प्रकिया िीन िागों में स्र्विक्त होिी है।

1. पूर्वमकमम (Poorvakarma)

2. प्रिान कमम (Pradhana karma)

3. पश्चाि् कमम (Paschat karma)

1. पूर्वम कमम (Poorva karma)

(i) पिीक्ष्य िार्व - दोष, औषि, देि, काि, सात्म्य, अस्ि, सत्र्व, ओक, बय िथा बि इन सिी पि स्र्वचाि किके ही
बस्ति दी िािी है ििी सफििा की प्रास्ि होिी है।

(1) दोष की समीक्षा-र्वाि स्र्वकाि के स्िए बतिी सर्वोिम स्चककत्सा है। िथास्प कफ-स्पि के स्र्वकािों में िी
बतिी िािकािी है, अििः सिी दोषों के क्षय, र्वृस्द्ध समत्र्व, ऊर्धर्वमदेहगमन, अिोदेहगमन, स्ियमग्गमन, िाखा-कोष्ठा

मर्धयममागामश्रस्यत्र्व, तर्वदेिगमन, पिदेिगमन, तर्विन्त्रत्र्व, पििन्त्रत्र्व, अंिांिकलपना, िािुस्र्विेषाश्रस्यत्र्व औि


कािप्रकृ स्ि आकद का स्र्वचाि कि िोिन, िेखन या बृंहर् आकद उपयुक्त बस्ति को चयन किना चास्हए।

(2) औषि की समीक्षा- औषि के ि र्त्र्व, र्वृद्धत्र्व, आद्रमत्र्व, िुष्कत्र्व, द्रव्यान्ििसंयक्त


ु त्र्व, तर्विसाकद
कलपनायोस्गत्र्व िथा िस-र्वीयम-स्र्वपाक की दृस्ष्ट से आिुि िोग या दोष में प्रयोग के अयोग्य या योग्य है, यह सब
स्र्वचाि किना आर्वश्यक है।

औषि द्रव्यों के 11 दोष बििाये गये हैं उन दोषों से मुक्त होने पि ही उन्हें बस्ति द्रव्यों हेिु प्रयोग किना
चास्हए-1 आमिा. 2. हीनमात्रिा. 3. अस्िमात्रिा, 4. अस्ििीििा, 5. अस्िउष्र्िा, 6. अस्ििीक्ष्र्िा,

7.अस्िमृदिा. 8. अस्िस्स्नग्ििा, 9. अस्ि क्षिा, 10. अस्िसान्द्रिा औि 11. अस्िद्रर्विा।

(3) देि समीक्षा- देि दो प्रकाि का है।

A. िूस्मदेि औि B. आिुिदेि

(A) िूस्मदेि- 1. िांगि, 2. अनूप औि 3 सािािर् िेद से देि िीन प्रकाि का होिा है | िांगि
र्वािदोषकि, आनूप कफदोषकि औि सािािर् समदोष होिा है इनका स्र्वचाि कि देि-गुर् के स्र्वपिीि गुर्र्वािे द्रव्यों
के योग से बस्ति की कलपना किनी चास्हए।
(B) आिुिदेि- आिुि के ििीि सम्बन्िी सिी स्र्वचाि

(4) काि समीक्षा-ऋिु औि िोगार्वतथा के अनुसाि, स्र्वचाि कि बस्ति देनी चास्हए।

1. ऋिूनुसाि- र्वषामऋिू मे बस्ति देना प्रिति होिा है


2. स्न ह बस्ति देने का काि अिूक्त अर्वतथा है
3. बस्ति कमम स्र्विे चन के 7 कदर्वस के बाद किने का स्र्विान है

इन सिी बािो का पंचकमम स्र्विेषज्ञ स्र्वचाि किे |

(5) सात्म्य समीक्षा-स्नरूह देने की अनुकूििा का स्र्वचाि किना चास्हए। िैसे- पूर्वम के िोिन के पच िाने पि िथा

स्बना िोिन ककये (अिुक्त िक्त) ही स्नरूह कदया िािा है, क्योंकक िोिन के बाद दी गयी स्नरूहबस्ति छर्दद औि
स्र्वसूस्चका को उत्पि कििी है,

(6) अस्ि समीक्षा- अस्ि मन्द होने पि पहिे दीपन, पाचन एर्वं अस्िर्विमन किके स्नरूहबस्ति देनी चास्हए।

(7)सत्र्व समीक्षा-सत्र्व का अथम मन से है। र्वह प्रर्वि, मर्धयम औि अर्वि िेद के अनुसाि मृद या िीक्ष्र् बस्ति देनी

चास्हए। प्रर्विसत्त्र्व को िीक्ष्र्, मर्धय को मर्धयम औि अर्वि को मृद बस्ति देनी चास्हए।अथामि मात्रा िेिे समय द्रव्यों के
उष्र्, िीक्ष्र्, िेखन इत्याकद का स्र्वचाि किे . उदा.- अलपसत्र्व तथूि िोगी को िेखन बस्ति की उिम मात्रा देने से
अनथम होने की संिार्वना होिी है

(8) ओक-समीक्षा- ओक का अथम अभ्यास से है. िोगी िाकाहािी है या मासाहािी िथा िोिन ती, िैि आकद की मात्रा
के अनुसाि सौम्य या िीक्ष्र् बस्ति का स्निामिर् कििे हैं।

(9) र्वय समीक्षा - आयु अनुसाि बस्ति नेत्र की िम्बाई िथा मात्रा का चयन कििे हैं।

(10) बि-समीक्षा- िोगी के बि के अनुसाि स्स्नग्ि, मृदु या उष्र्, िीक्ष्र् गुर्युक्त बस्ति देनी चास्हए।

बस्ति चाहे स्नरूह या अनुर्वासन या उििबस्ति देनी हो, प्रत्येक स्तथस्ि में उपिोक्त दि स्र्वषयों पि स्र्वचाि
किना आर्वश्यक है, अन्यथा व्यापद की सम्िार्वना होिी है।

(ii) उपकिर् – द्रव्य संकिन:

कमिा (Room Attached With Toilet 12 x 12 ft.)

a. द्रोर्ी
b. बस्तिनेत्र र्व पुिक
c. तिीि पात्र
d. गैस
e. कोष्र् िि
f. मापक (measuring glass)
g. कॉिन
h. ग्िव्स
i. िेि – अभ्यंग के स्िए

j. खिि
k. स्न ह के स्िए आर्वश्यक औषस्ि:- (i) िर्वर् (ii) िैि (iii) क्वाथ (iv)मिु (v) कलक
l. पंचकमम सहायक – 2

(iii) संमस्ि पत्रक (Written Consent) : आिुि के समझने र्वािी िाषा मे पंचकमम स्र्वस्ि से होने
र्वािे फायदे औि संिास्र्वि व्यापद को समझाकि स्िस्खि पत्र मे आिुि/ रिश्िेदाि की तर्वाक्षिी/ अंगूठा िेर्व.े

(iv) आिुि पिीक्षर् : आिुि मे अिम िगंदि परिकर्णिका इ. गुद्तथान मे व्यास्ि की पिीक्षा के स्िए गुद्गि
पिीक्षर् किार्वे, आिुि का िापिम, ह्रदय गस्ि, र्विन , र्श्सन गस्ि , िक्तचाप आकद को सूचीबद्ध कि िेिे है|

 Biochemical investigation

 Radiological investigation X-ray, MRI, ECG

(v) मात्रा स्निामिर् :

र्वय के अनुसाि स्नरूह मात्रा-(आचायम चिक अनुसाि च.स्स.3/31,32)

स्नरूह की मात्रा 1 र्वषम के बािक के स्िये अिम प्रसृस्ि होिी है ित्पश्चाि् प्रस्ि र्वषम आिी प्रसृस्ि

अस्िक िेनी चास्हए। इस ििह 12 र्वषामयु िक कििे हैं, ित्पश्चाि् प्रस्िर्वषम एक प्रसृस्ि बढ़ाकि 18 र्वषामयु िक

मात्रा स्नर्मय कििे हैं। यही प्रमार् 70 र्वषामयु िक िेना चास्हए है औि 70 र्वषम पश्चाि्, 16 र्वषामयु के प्रमार्

में बस्ति देनी चास्हये। र्वाग्िि ने र्वही प्रमार् प्रकु च में कदया है। (दो प्रकुं च = 1 प्रसृस्ि)

िास्त्रकाि हीन मात्रा मर्धयम मात्रा उिम मात्रा


सुश्रुि 160 ml (2 प्रसृि) 320 ml (4 प्रसृि) 640 ml (8 प्रसृि)
िािं गिि र्व िार्वप्रकाि 480 ml (6 प्रसृि)/ 640 ml (8 प्रसृि)/ 800 ml (10
3 कु िर्व 1 प्रतथ प्रसृि)/सव्र्वा प्रतथ
अन्यमि 160 ml 320 ml 460 ml
द्वादि प्रसृि बस्ति(चिक)

बस्ति द्रव्य र्वािप्रिानिा मे स्पिप्रिानिा मे कफप्रिानिा मे तर्वतथ मे


मिु 1½ प्रसृि 2 प्रसृि 3 प्रसृि 2 प्रसृि
सैन्िर्व 1 िोिा 1 िोिा 1 िोिा 1 िोिा
स्नेह 3 प्रसृि 2 प्रसृि 1½ प्रसृि 2 प्रसृि
(स्न ह का 1/4) (स्न ह का 1/6) (स्न ह का 1/8) (स्न ह का 1/6)
कलक 1 प्रसृि 1 प्रसृि 1 प्रसृि 1 प्रसृि
क्वाथ 5 प्रसृि 5 प्रसृि 5 प्रसृि 5 प्रसृि
आर्वापद्रव्य 1½ प्रसृि 2 प्रसृि 1½ प्रसृि 2 प्रसृि

(vi) बस्ति औषस्ि स्नमामर् : पहिे मिु औि नमक तोिे कफि स्नेह स्मिाकि मथानी से मथे कफि कलक
औि अंि मे क्वाथ स्मिाकि अच्छी ििह से मथ िेिे है |

बस्ति द्रव्य िैयाि कि एक छोिे से पात्र मे िखिे है िथा उसे बडे पात्र के गमम िि मे िखकि गमम
कििे है

बस्ति द्रव्य िैयाि होने पि बस्ति द्रव्य पुिक मे िेकि बस्ति पुिक से बस्ति नेत्र को िोडे बस्ति नेत्र मे
र्वायु न िहे इसका स्र्विेष र्धयान िखे |

(vii) आिुि स्सद्धिा :

 स्न ह बस्ति िोिन से पूर्वम अथामि खािी पेि (रिक्त कोष्ठ) होने पि दी िािी है बस्ति दान का काि
सुबह 9-10 am या िोिन के पच िाने पि सायं 4-6 pm
 िोगी की र्वेििूषा न िो अस्िक िंग , न अस्िक ढीिी हो िथा आिामदायक होनी चास्हए
 मि मूत्र स्र्वसिमन किार्वे
 स्नेहन तर्वेदन ; बस्ति से पहिे स्नेहन (अभ्यंग) एर्वं तर्वेदन पूर्वमकमम स्हिकि होिी है
 अनुर्वासन बस्ति – अस्िक क्षिा होने पि अनुर्वासन बस्ति देने के पश्चाि ही स्न ह बस्ति देर्वे .
ककसी िी िोिन के स्िए स्नेह आर्वश्यक होिा है इसस्िए अनुर्वासन से ही आर्वश्यकिा पूर्म ककया
िािा है |
2. प्रिान कमम (pradhan karma)- इसके अंिगमि बस्ति देने से िेकि र्वापस आने िक के सिी कमम
समास्र्वष्ट है :-

यह स्नम्न चिर्ों में पूर्म होिा है-

(i) बस्ति दान

(ii) बस्ति-प्रत्यागमन एर्वं स्निीक्षर्

(iii) सम्यक योग, अयोग र्व अस्ियोग िक्षर्ों का स्निीक्षर्

(i) बस्तिदान- आर्वश्यक सिी सामग्री एकस्त्रि किके िोगी को मिमूत्र स्र्वसर्णिि किाकि उसका अभ्यंग
तर्वेदन किार्वकि बस्ति िेबि पि स्ििा देिे।

र्वाम पार्श्म श्यन :िोगी को बाएाँ किकि स्ििाकि बस्ति देनी चास्हए।

िोगी अपने हाथ का ही िककया िगाकि सोए औि बायां पैि एकदम सीिा औि दास्हना पैि
िानुसंस्ि िथा र्वंक्षर् संस्ि संकुस्चि कि झुकाकि िखना चास्हए। गुदा में िात्याकद िैि/बिा िैि या तृि
िगाकि उसे स्स्नग्ि किें । यहााँ तृि/िेि िगाने का उददेश्य के र्वि स्स्नग्ि (Lubricate) किना है िथा

बस्तिनेत्र को िी स्स्नग्ि कि गुदा में 4" से 6" इंच िक िीिे िीिे पृष्ठर्वंि के समानान्िि िखिे हुए, प्रस्र्वष्ट
किर्वायें। बस्ति नेत्र प्रर्वेि के समय क्षि न हो यह सार्विानी िखनी चास्हए। (ित्पश्चाि enema can होने
पि nozzle lock खोिे इस समय enema can बस्ति दािा ऊाँचा उठाकि पकडे ) बस्तिपुिक को समान
दाब से दबार्वे औि बस्ति द्रव्य को पक्वािय मे प्रस्र्वष्ट किार्वे. बस्तिनेत्र गुदा मे प्रर्वेि कििे समय दािा के
हाथों मे कम्पन नही होंना चास्हए इस समय आिुि को दीतम र्श्ास िेने को कहे |

सार्विेषं च कु र्वीि र्वायुिः िेषे स्ह स्िष्ठस्ि।। (अ. ह. सू. 19/26)

सम्पूर्म बस्तिद्रव्य को पक्वािय में प्रस्र्वष्ट नहीं किना चास्हए अथामि् अलप मात्रा में बस्ति पुिक में
िेष िहने दे हैं। अन्यथा र्वायु ििीि में प्रस्र्वष्ट हो सकिी है स्िससे अनेक उपद्रर्व होने की सम्िार्वना िहिी है।

दिेिि
ू ानदेहतय पास्र्ना िाियेस्त्तफिौ।। (अ. ह. सू. 19/27)

बस्तिनेत्र को सार्विानी से स्नकािकि 1 या 2 स्मनि र्वैसे ही िेिे िखा िािा है साथ-साथ स्निम्ब
को थप- थपािे िहिे हैं। िोगी को स्नदेि देिे है कक र्वह अपनी यथािस्क्त अनुसाि कु छ अस्िक समय िक
बस्ति को अंदि ही िोकने का प्रयास किे । पिन्िु यह िी र्धयान िहे कक बस्ति र्वापस आने का काि अस्िकिम
48 स्मनि है। कफि मि र्वेग की इच्छा होने पि कु क्कु िासन (उकिू ) बैठाकि मिस्र्वसिमन के स्िए
कहना चास्हये। यकद बैठने में पिे िानी हो िो स्बतिि पि ही (मि पात्र) बैिपैन का प्रयोग किना चास्हए।

स्र्वड्द्र्वािर्वेगो यकद चािम दिे स्नष्कृ ष्य मुक्ते प्रर्येदिेषम्।

उिानदेहश्च कृ िोपिानिः तयाद्वीयममाप्नोस्ि िथातय देहम्।। (च. स्स. 1/25)

यकद बस्तिप्रयोगकाि में ही र्वेग की प्रर्वृस्ि हो िो बस्ति नेत्र को स्नकाि िेना चास्हए। िथा मि
स्र्वसिमन पश्चाि् दूसिी बस्ति देनी चास्हए। स्निम्ब के नीचे उपिान (िककया) िगाकि उसे कु छ ऊाँचा कि
देिे हैं स्िससे बस्ति द्रव्य अस्िक समय िक िीिि िहकि अपना कायम अच्छी ििह से कि सकें ।

र्वाम पार्श्म श्यन का कािर्

र्वामाश्रये स्ह ग्रहर्ी गुदच


े ित्पार्श्मसतं थतय सुखोपिस्ब्ििः।

िीयंि एर्वं र्वियश्च ितमाि् सव्यं ियनोऽहमस्ि बस्तिदानम्।। (च. स्स. 3/24)

क्योंकक गुदा की र्वस्ियााँ, मिािय, पक्वािय एर्वं ग्रहर्ी ये अर्वयर्व र्वाम पार्श्म में ियन किने से
समानान्िि स्तथस्ि में होिे हैं। स्िससे बस्ति इन अर्वयर्वों में पहुाँच कि अपना कायम कि आसानी से िौि आिी
है। बस्ति के कु छ द्रव्य िैि, तृि, दूि, मांसिस आकद स्नेह के अर्ु प्रर्वर् िार्व से ग्रहर्ी िक पहुाँचकि उसकी
सकियिा में र्वृस्द्ध कििे हैं।

(ii) बस्ति प्रत्यागमन औि देख-िे ख- बस्ति िौिने के काि को प्रत्यागमनकाि कहिे हैं।

आगिौ पिमिः कािो मुहूिों मृत्यु र्वे पिम्।। (अ.हृ.सू, 19/47)

स्नरूह प्रत्यागमन काितिु मुहूिो िर्वस्ि।। (सु. स्च. 38/5)

प्रत्यागमनकाि एक मुहूिम (िगिग 48 स्मनि) का कहा गया है। यकद उक्त काि में बस्ति बाहि नहीं

आिी िो आर्धमान, पक्वाियिूि, स्र्वष्टम्ि, ज्र्वि आकद उपद्रर्व होिे हैं।

अनायांि मुहूिामिु स्नरूहं िोिनैहिम े ि् ।

िीक्ष्र्ैर्णनरूहैमस्म िमान् क्षािमूत्राम्ि संयि


ु िःै ।। (सु. स्च. 38 / 17)

ित्रानुिोस्मकं स्नेह क्षािमूत्राम्ि कस्लपिम्।

त्र्वरििं स्स्नग्ि िीक्ष्र्ोष्र्ं बस्तिमन्यं प्रपीियेि।् ।

स्र्वद्यात्फि र्वर्णि र्वा तर्वेदनोत्रासनाकद च।। (अ.ह.सू. 19/47-48)


ऐसी स्तथस्ि में

 िीक्ष्र् बस्ति – यर्वक्षाि, गोमूत्र, अम्लद्रव्य, र्व स्मश्रर् द्रव्य युक्त

 फिर्विी –

 तर्वेदन – उदि, स्तफक, र्वंक्षर् प्रदेिी

 त्रासन – िोगी को िय कदखाकि

 स्र्विे चन – स्त्रर्वृि, हिीिकी, या एिं ि स्नेह

(iii) सम्यक् योग, अयोग, अस्ियोग िक्षर्ों का स्निीक्षर्

सम्यक् योग िक्षर् (Symptoms of adequate Nirhu Basti)

प्रसृष्ट स्र्वण्मूत्र समीिर्त्र्वं च्यस्ि र्वृद्धयािय िातर्वास्न।

िोगोपिांस्ििः प्रकृ स्ितथिा च बिंच ित्तयाि् सुस्नरूढस्िङ्गम्।। (च. स्स. 3/41)

यतयिमेर् गच्छंस्ि स्र्विस्पिकफर्वायर्विः।

िातर्वं चोपिायेि सुस्नरूढ िमाकदिेि।् । (सु. स्च. 38/10)

(1) मि-मूत्र अिोर्वाि की सम्यक् प्रर्वृस्ि (2) िोिन में स्च

(3) अस्ि की र्वृस्द्ध (4) पक्वािय आकद आियों में ितुिा

(5) िोग का िमन (6) िोगी को तर्वतथ होना (प्रकृ स्ितथिा)

(7) बि की र्वृस्द्ध होना (ये चिकानुसाि है।) (8) िमि: मि-स्पि-कफ-र्वायु का स्र्वसगम

(9) ििीि में हलकापन (ये सुश्रुिानुसाि है)

अयोग िक्षर् (Symptoms of inadequate Nirhu Basti)

तयाद्रुस्ग्ििोहृद गुदर्वस्ति ल्िगे िोफ: प्रस्िश्याय स्र्वकर्णिके च।

हृलिास्सका मा ि मूत्रसंगिः र्श्ासो न सम्यग् च स्नरूस्हिे तयुिः।। (च. स्स. 1/42)

यतयतयाद्वस्तििलपोलपर्वेगोहीन मिास्नििः।

दुर्णनरूढ: स स्र्वज्ञेयो मूत्रात्यम स्च िाड्यर्वान् ।। (सु. स्च. 38/8)


(1)स्िि-हृदय-गुद-बस्ति-मेंढृ में र्वेदना

(2) िोथ

(3) प्रस्िश्याय का होना

(4) स्र्वकर्णिका- गुदा में कै ची से कािने समान पीिा

(5) हृलिास (िी स्मचिाना)

(6) अिोर्वायु िथा मूत्र की कार्वि - (ये चिकानुसाि है।)

(7) र्श्ासकृ च्रिा

(8) बेग कम आिे है।

(9) बस्ति द्रव्य का अलप मात्रा में स्नकिना

(10) मिस्र्वसिमन अलप मात्रा में होना

(11) ििीि में िडिा होना

(12) िोिन में अ स्च

स्चककत्सा-बस्ति प्रत्यागमकािक स्चककत्सा किनी चास्हए।

अस्ियोग िक्षर् (Symptoms of excessive Nirhu Basti)

ल्िग यदेर्वास्ि स्र्विे स्चितय िर्वेिदेर्वास्ि स्नरूस्हितय। (च. स्स. 1/43)

स्र्विे चन के अस्ियोग के िक्षर् औि स्न ह अस्ियोग के िक्षर् समान है (चिकानुसाि)

1. कफक्षयि स्र्वकाि 2. िक्तक्षयि स्र्वकाि

3. र्वािक्षयि स्र्वकाि 4. सुस्ि (ििीि में िून्यिा)

5. अंगमदम 6. क्िम

7. र्वेपथु (कम्प) 8. स्नद्रा नाि


9. बिािार्व 10. िम प्रर्वेि (आाँखों के सामने अंिेिा छाना)

11. उन्माद 12. स्हक्का (1 से 12 िक चिकानुसाि है)

स्चककत्सा- दीपन, पाचन, ग्राही स्चककत्सा किनी चास्हए।

3. पश्चाि् कमम (Paschat karma) बस्ति देने के बाद बस्ति के िौिने औि िोगी को पथ्य देने एर्वं
अपथ्य से पिहेि किना ये सिी पश्चाि् कमम में आिे हैं

(i) बस्ति देने के बाद ित्काि किमव्य

(ii) पथ्य आहाि र्व स्र्वहाि

(i) बस्ति देने के बाद ित्काि किमव्य

(1) िोगी का िैस्र्वक मापन (Vital recording) िापिम, र्श्ासगस्ि, िक्तचाप आकद को सूचीबद्ध
किके पहिे से िुिना कििे हैं।

(2) बस्ति देकि उसके प्रत्यागम का स्निीक्षर् कििे है ।

(3) यकद के र्वि बस्तिद्रव्य ही स्नकिे िो दूसिी स्न ह बस्ति उसी समय दी िा सकिी है| या
अस्िकिम चाि या सम्यक स्नरूह िक्षर् िक दे सकिे हैं पिन्िु अस्िक स्नरूह से पक्वािय क्षोि की
सम्िार्वना के कािर् अनुर्वासन कि कफि स्नरूह प्रयोग किना चास्हए।

(ii) पथ्य आहाि एर्वं स्र्वहाि –

(1)बस्ति का सम्यक् योग होने पि स्र्वश्राम किाकि उसके बाद सुखोष्र् िि से स्नान किाना चास्हए।

प्रत्यागिे िन्र्विसेन िोज्यिः समीक्ष्य र्वा दोषबिं यथाहमम।्


नितििो स्नश्यनुर्वासनाहो नात्यास्िििः तयादनुर्वासनीयिः।। (च. स्स. 1/21-22)
सुस्नरूढ़ ििो िंिु स्नािर्वंिं िु िोियेि।्
स्पिश्लेष्मास्निास्र्वष्टं क्षीि यूषिसैिः िमाि् ।।
सर्वम र्वा िांगििसैिोिदस्र्वकारिस्ििः।। सु. स्च. 38/11-12)

(2) स्न ह से आमािय या पक्वािय में क्षोि नहीं होिा अि: इसमें ससिमन िम आर्वश्यक नहीं होिा।
िोगी को िांगि पक्षु-पस्क्षयों के मांसिस के साथ िोिन देना चास्हए अथर्वा िोगी में दोष र्व बि को र्धयान
में िखिे हुए िो आहाि उसके स्िए उस्चि हो र्वह खाने के स्िए देना चास्हए।
(3) (a) स्पि प्रिान दोष हो िो दूि।

(b) कफ प्रिान दोष हो िो यूष

(c) र्वाि प्रिान ही िो मांसिस युक्त िोिन देना चास्हए।

परिहाि काि

काितिु बतत्याकदषु यास्ि यार्वातिार्वान् िर्वेस्द्ध परिहािकाि:

अत्यासनतथान र्वचांस्स यानं तर्वप्नं कदर्वा मैथन


ु र्वेगिोिान्।

िीिोपचािािप िोक िोषां त्यिेदकािास्हि िोिनं च।। (च. स्स. 1/54-55)

स्ििने कदन बस्ति दी िाए उससे दुगने कदनों िक संयम-स्नयम का पािन किना चास्हए। स्नम्न का
परित्याग किना चास्हए

1. देि िक बैठना या खिे िहना 2. अस्िक बोिना

3. यान आकद की सर्वािी किना। 4. कदन में सोना

5. मैथुन किना 6. र्वेगों को िोकना

7. िीिि आहाि-स्र्वहाि का सेर्वन किना 8. िूप में बैठना

9. िोक या िोि किना 10. अकाि में र्व अस्हिकि िोिन किना।
बस्ति व्यापद र्व स्चककत्सा(Complication & Treatment) :

बस्ति कमम कििे हुए सार्विानी न िखने पि उपद्रर्व का स्नमामर् होिा है उसे बस्ति व्यापद कहिे है|
यह यंत्रो से , स्चककत्सको से , औषि से , या आिुि से संिर्व हो सकिा है| प्रमुख व्यापद स्नम्नस्िस्खि प्रकाि
से स्र्विास्िि ककया िा सकिा है|

1.बस्ति नेत्र व्यापद : पूर्वम मे र्वर्मन ककया है|

स्चककत्सा :-

a. दोष युक्त बस्तिनेत्र को त्यागना ही उिम स्चककत्सा है|


b. अप्राप्य गस्ि मे दुसिे नेत्र से पुन: बस्ति दे|
c. अस्िगस्ि मे बस्ति प्रत्यागम िक स्नरिक्षर् किे , प्रत्यागमन हो िाये िो कु छ ल्चिा का कािर्
नहीं है| अप्रत्यागमन मे फिर्विी, िोिन, िीक्ष्र् बस्ति का प्रयोग किे |
d. गुदा मे क्षोि, अस्िकषमर्, क्षर्न, औि पीडा हो िो िात्यादी िैि, िात्यादी तृि, पद्म्कादी
िैि, पद्म्कादी तृि, िुद्ध तृि,अिोिामक मिहि इ. का िेपन किे |
e. स्िस्थि बंिन से स्रार्व हो िो उसे खोिकि, पुिक को दो कर्णर्का के बीच मे अच्छी ििह कस
कि बांिकि पुन: बस्ति दे|
f. पार्श्म स्छद्र र्व र्वि नेत्र को पहिे से ही र्वज्यम किे |

2. बस्तिपुिक व्यापद : पूर्वम मे र्वर्मन ककया है|

स्चककत्सा :-

a. दोषयुक्त पुिक बदिे|


b. गस्िर्वैषम्य मे प्रत्यागमन देखकि यथायोग्य उपाय किे |
c. र्वािि बस्ति से झाग औि र्वािप्रकोप हो िब िाक्षस्र्क स्चककत्सा किे |

3. प्रर्ेिािन्य (बस्तिदािा) व्यापद : बस्तिदािा स्िस्क्षि न हो, औि अच्छी ििह बस्ति नही दी िाये िो
स्नम्नस्िस्खि व्यापद उत्पि होिे है –

सर्वािास्िद्रुिोस्त्क्षिस्ियमग उलिुिकस्म्पिा:|

अस्िबाह्यगमन्दास्िर्वेगदोषा: प्रर्ेिि
ृ :|| (च.स्स.5/8)
बस्ति-स्नमामिा के दस दोष-

I. सर्वाि
II. अस्िद्रुि
III. उस्त्क्षि
IV. स्ियमग
V. उलिुि
VI. कस्म्पि
VII. अस्ि
VIII. बाह्यग
IX. मन्द
X. अस्िर्वेग
 सर्वाि बस्तिदान – बस्तिद्रव्य के साथ र्वायु प्रस्र्वष्ट. इसस्िए बस्ति सार्विेष देने का स्र्विान है|

िक्षर् – िूि र्व िोद

स्चककत्सा – क्षीिबिा, पंचगुर् िैि से अभ्यंग


मृद ु तर्वेदन
Modern – Hot water bag fomentation

 अस्िद्रुिप्रर्ीि बस्ति एर्वं उस्त्क्षि बस्ति – बहुि िलदी से बस्ति नेत्र प्रस्र्वष्ट किाना, िलदबािी से
स्नकाि िेना, एर्वं सहसा (एकाएक) नेत्र का मुख ऊपि को उठाकि गुद के िीिि औषि प्रर्वेि किाना
िक्षर् – गुदा, र्वंक्षर्, िंता, उ िथा किी मे र्वेदना, बस्तितिंि, मूत्राताि

स्चककत्सा – र्वािघ्न अिपान, मांसिस, तृि,दुग्ि


अभ्यंग , तर्वेदन, अनुर्वासन बस्ति

 स्ियमग प्रस्र्िान – बस्तिनेत्र को स्ििछा प्रस्र्वष्ट किने से

िक्षर् – बस्ति द्रव्य अंदि प्रस्र्वष्ट होिा नहीं

स्चककत्सा – बस्ति नेत्र बाहि स्नकािकि, उसको साफ कि पुन: सीिा अनुपृष्ठर्वंि प्रस्र्वष्ट किार्वे|
 उलिुि बस्तिदान – बस्तिदान के समय बस्तिपुिक बाि-बाि दबाने से
िक्षर् - बाि-बाि दबाने से गुदा मे र्वायु का प्रकोप, र्वंक्षर् िूि, स्िि:िूि , उ साद
स्चककत्सा – बस्ति (स्बलर्व, मदनफि श्यामास्त्रर्वृिादी + गोमूत्र)

 सकं प बस्तिदान – बस्तिदािा का बस्ति देिे समय हति कम्पन होने से

िक्षर् – गुदा िोथ, दाह

स्चककत्सा – बस्ति – कषाय, मिुि िस स्सद्ध(िोध्र, स्त्रफिा,आिग्र्वि, मोचिस, िाय, बदि, खकदि)
गुदापरिषेक - कषाय, मिुि द्रव्यों के क्वाथ (द्राक्षाकद)

 अस्िप्रर्ीि बस्ति – बाि – बाि बस्ति नेत्र को गुद मे िीिि िगाने औि स्नकािने से
िक्षर् – गुद्व्रर्, िूि, दाह, िोंद, गुदभ्रंि

स्चककत्सा – स्पच्छा बस्ति, गमम दूि से परिषेक

स्पचुिािर् – गिम तृि

 अस्िबाहय र्व अस्िमंद बस्ति – बस्तिनेत्र गुदा मे पूर्मि: प्रस्र्वष्ट न किने या मंद गस्ि से बस्ति देने से

िक्षर् – बस्ति अप्रास्ि र्व अयोग िक्षर्

स्चककत्सा – पुन: बस्ति

 अस्िर्वेग बस्ति – िीव्र र्वेग से दी हुई बस्ति

िक्षर् – बस्तिद्रव्य का अप्रत्यागमन,


च्छदी (बस्ति द्रव्य का उर्धर्वमगमन)
स्चककत्सा – पुन: बस्ति

स्र्विे चन – स्त्रर्वृि चूर्म, अस्र्वपस्िकि चूर्म


िीि िि से परिषेक
सूििेखि िस 2ििी + िंख ितम 4 ििी स्मिाकि 3 से 4 बाि मिु से चिार्वे
िंखर्विी 2 गोस्िया 3 बाि मुह मे िखकि चुसे
Modern – Metaclopramide (Perinorm)

Rest
बस्ति व्यापद :

नास्ियोगौ क्िमार्धमाने स्हक्का हृत्प्रास्ि रूर्धर्वमिा ।

प्रर्वास्हका स्ििोङ्गार्णि परिकिम: परिस्रर्विः ।।

द्वादि व्यापदो बतििसम्यग्योग संिर्वा|(च.स्स. 7/5-6)

चिपार्ी ने अस्ियोग र्व अयोग को छोडकि 10 व्यापद माने है

(1) अयोगिः हेिू - गुरू कोष्ठी, र्वाि बहुि, अस्ि क्ष ििीि र्वािे, र्वाि प्रिान आिुि मे अनुष्र्,

िीि, अलप स्नेह, हीन गुर्युक्त बस्ति प्रयोग,

िक्षर् - बस्ति प्रत्यागमन न होने, उदि गौिर्व, मि-मूत्र संग, नािी, बस्ति रूिा, हृदोयोपिेप,

िोथ, गुद्कं िू , स्पस्िका, र्वैर्वण्यम, अ स्च, अस्िम्मंद


स्चककत्सा: ऊष्र् प्रमथ्या (दीपनपाचक कषाय)
तर्वेदन, फिर्विी

बस्ति (स्बलर्वमूि, स्त्रर्वृि, देर्वदा , कोि, यर्व, कु ित्थ इनका क्वाथ , सुिा, गोमूत्र).

Modern - Hot fomentation

Glycerine suppository

Cyclopam on severe spasmodic pain

(2) अस्ियोग हेिू - स्स्नग्ि-स्तर्वि, मृदक


ु ोष्ठी आिुि मे अस्ि िीक्ष्र् र्व अस्ि उष्र् बस्ति देने से
िक्षर् – स्र्विे चन के अस्ियोग िक्षर्
स्चककत्सा - बस्ति (पृस्िपर्ी, स्तथिा, कमि, द्राक्षा, गंिािी, बिा, यस्ष्टमिु इनका कलप+
िंदि
ु ोदक+दुग्ि+तृि)
संिीर्वनी र्विी, सूििेखि िस, िंखर्विी

Modern-IV fluid

Inj. Atropine

Tab. Loperamide

Inj. Dexona
(3) क्िम (Tiredness): हेिु - आमदोष िहने पि मृद ू स्न ह बस्ति देने से अलप दोष स्नहमिर्
र्वायू का आम, स्पि, कफ से मागामर्विोि होने से अस्िमांद्य .
िक्षर् - स्र्वदाह, हृदिूि, गौिर्व, स्पस्ण्िकोद्वेष्टन

स्चककत्सा:आमपाचन, स्र्व क्षर्- (स्चत्रकाकद र्विी)


तर्वेदन
कषाय - (गंििृर्, उिीि, देर्वदारू, मूर्वाम, सौर्वचमि िर्वर्)

बस्ति -i ) गोमूत्र र्व क्षाियुक्त ii) दिमूि क्वाथ+ गोमूत्र

(4) आर्धमानिः हेिू - दोषास्िक्य होने पि िू ि कोष्ठी र्व क्ष आिुि मे अलपर्वीयम की र्वस्ति देने से
िक्षर् - गुदिूि, स्र्वदाह, र्वंक्षर्िूि, हृदिूि
स्चककत्सा: फिर्वर्णि
बस्ति (स्बलर्वाकद स्नरूह पश्चाि अनुर्वासन)
Modern - Suppository

Omez, Cisapride

Hot fomentation

(5) स्हक्का: हेिू - मृदक


ू ोष्ठ, हीनबि आिुि मे अस्ििीक्ष्र् र्वस्ति

िक्षर् - िोिन अस्िक, स्हक्का


स्चककत्सा: बृहर् स्चककत्सा
स्त्री तिन्य नतय, िूमपान, अनुर्वासन बस्ति

र्वासार्विेह, कं िकािी अर्विेह

मयुिस्पच्छामिी, सुििेखि

(6) हृदप्रास्ि हेि-ु अस्ि िीक्ष्र् द्रव्य की बस्ति, र्वािि बस्ति या पुिक पीिन व्यर्वतथीि न किने से
िक्षर्- हृदय प्रदेि मे िकडाहि
स्चककत्सा:बस्ति (अम्ि र्व िर्वर् तकं ि स्सद्ध)
अनुर्वासन (दिमूि स्सर्धद िैि, बिा िैि)

Modern Immediate ECG to exclude cardiac disease


(7) उर्धर्वमप्रास्ि: हेिु - बस्ति देने के पश्चाि् आिुि द्वािा मि-मूत्र र्वेग िािर्
बस्तिपुिक अस्िक दाब से दबाने से
िक्षर्- बस्ति अिीर्वेग से उर्धर्वम मागम मे िाने,
मूच्छाम
स्चककत्सा:नतय मूच्छाम होने पि िीक्ष्र् नतय, िीिि िि परिषेक, िीिि र्वायू
ल्हग्र्वाष्टक चूर्म (अनुिोमन के स्िए)
Modern due to vasovagal syncope

Head low

Dexamethasone

Atropine, adrenaline SOS


(8) प्रर्वास्हकािः हेिु - स्स्नग्ि-स्तर्वि दोषास्िक्य आिुि मे मृद-ू अलप औषि युक्त बस्ति देने से
िक्षर् - प्रर्वास्हका, गुदिोथ, िंतासाद
स्चककत्सा: बस्ति - अभ्यंग तर्वेदन पश्चाि स्नरूह बस्ति
स्र्विे चन - (गंिर्वम हिीिकी 2 gm)
िंतन

(9) स्ििोऽर्णि(Headache): हेि-ू िु िकोष्ठी, दुबमि, िीव्र दोष युक्त आिुि मे िीि-मृद ू बस्ति देने से
िक्षर् - बस्ति दोषों से आर्वृि होकि र्वायू प्रस्ििोम
स्िििःिूि, पीनस, कर्मनाद, नेत्रस्र्वभ्रम, बास्ियम
स्चककत्सा:अभ्यंग (िर्वर् युक्त िैि से)
प्रिमन, िूम नतय
स्र्विे चन
अनुर्वासन (स्स्नग्ि िोिन पश्चाि)
सुििेखि िस
Modern-Analgesic

Antacid
(10) अंगार्णि (bodyache): हेिु - अभ्यंग र्व तर्वेदन न कििे हुए िीक्ष्र् द्रव्यों की उिम मात्रा से
र्वस्ति देने से अस्िमात्रा मे िोिन र्व र्वायू प्रकोप होिा है.
िक्षर् - ििीि िूि, िोद-िेद, तफु िर्, िृम्िा

स्चककत्सा:अभ्यंग, परिषेक, अर्वगाहन

स्नरूह-स्बलर्वाकदिैि+िर्वर्+यर्व, कु ित्थ, दिमूि क्वाथ

अनुर्वासन (बिा िैि, िर्वर् िैि)

Modern - Analgesic

Antacid

(11) परिकर्णिका: हेिू मृदक


ु ोष्ठी र्व अलपर्वियुक्त आिुि मे रूक्ष,िीक्ष्र् र्व अस्िमात्रा की बस्ति देने

से िक्षर् - स्त्रक, बस्ति, र्वंक्षर्, अिोनािी प्रदेिी िूि


स्र्वबंि के साथ अलप मि प्रर्वृिी
स्चककत्सा: मिुि र्व िीि द्रव्य स्चककत्सा
दुग्ि, इक्षु िस सेर्वन
अनुर्वासन (क्षीि+मिुयष्टी+स्ििकलक स्सर्धद िैि से)
क्षीिबस्ति (सिमिस, मिुयष्टी, अंिन स्सद्ध दुग्ि)

अम्ि, िर्वर् िोिन


अर्वगाहन
Modern - NSAID-SOS

(12) परिस्रार्व: हेिू - स्पिप्रिान व्यािी मे उष्र्, िीक्ष्र्, अम्ि, िर्वर् द्रव्य की बस्ति देने से

िक्षर् – गुदा का िेखन होकि गुददाह, िक्तयुक्तस्रार्व, मूच्छाम


स्चककत्सा स्पच्छाबस्ति - (i) पंचर्वलकि, यर्व. स्िि, सौर्वचमि, कांचनाि स्सद्ध

(ii) िालमिी िंठि (र्वृंि)+अिादुग्ि से स्सर्धद कि

मिूि, िक्त, स्पिघ्न स्चककत्सा


गुदिाग मे मिूि र्व िीि द्रव्यों का परिषेक र्व िेप गुदतथान मे िात्यादी िैि र्वा तृि
Modern - Emergency condition, treatment of per rectal bleeding or

peritonitis as per the condition


बस्ति-व्यापस्ियााँ

1. नेत्रप्रस्र्िान िन्य- 6 व्यापस्ियााँ होिी हैं - िैसे - (1) नेत्र चास्िि (स्हिना), (2) नेत्रस्र्वर्वर्णिि (मुड

िाना) (3) नेत्रपार्श्म पीस्िि (पार्श्म दबना) (4) नेत्रात्युस्त्क्षि (ऊपि उठना), (5) नेत्रर्वसि (नीचे दबना) औि

(6 स्ियमकस्क्षि नेत्र (स्ििछा प्रस्िसृ)

2. नेत्र दोष-11 प्रकाि के होिे हैं यथा- (1) अस्ितथूि, (2) ककम ि, (3) अर्वनि (नीचे को झुका होना)(4)

अर्ु, (5) स्िि, (6) सस्िकृ ष्ट कर्णर्का युक्त, (7) स्र्वप्रकृ ष्ट कर्णर्का युक्त, (8) सूक्ष्म, (9) अस्िस्च्छद्र, (101

अस्िदीतम औि (11) अस्िहृतर्विः।

3. बस्तिदोष-5 प्रकाि के होिे हैं यथा- (1) बहुििा, (2) अलपिा, (3) सस्च्छद्रिा, (4) प्रतिीर्मिा (स्नायु

िाि युक्त होना) औि (5) दुबमद्धिा (ठीक न बंिने र्वािा)।

4. बस्तिपीिन दोष-4 प्रकाि के होिे हैं िथा-(1) अस्िपीिनिा, (2) स्िस्थिपीिनिा, (3)

िूयोिूयोर्वपीिनिा (बाि-बाि पीिन) औि (4) कािास्ििम (पीिन काि का अस्ििमर् किना)।

5. द्रव्य दोष-11 प्रकाि के होिे हैं िैस-े (1) आमिा, (2) हीनिा, (3) अस्िमात्रिा, (4) अस्ििीििा

(5) अस्ि उष्र्िा, (6) अस्ििीक्ष्र्िा, (7) अस्िमृदि


ु ा, (8) अस्िस्स्नग्ििा, (७) अस्ि क्षिा,

(10) अस्िसान्द्रिा िथा (11) अस्िद्रर्विा।

िय्या दोष-7 प्रकाि के होिे हैं िैस-े (1) अर्वाक्िीषम (स्िि नीचे िखना), (2) उच्छीिषम (स्सि ऊंचा िखना),
(3) न्युब्ििीषम (पेि के बि िेिना) (4) उिानिीषम (पीठ के बि िेिना), (5) संकुस्चि (ििीि स्सकोि कि

िखना), (6) देहस्तथििा (बैठे िहना) िथा (7) दस्क्षर्पार्श्मिायी

ये उपयुमक्त 44 व्यापस्ियााँ र्वैद्य की असार्विानी से होिी हैं। इनके अस्िरिक्त िोगी के कािर् िी 15

व्यापस्ियााँ होिी है िो इस प्रकाि है- (1) िोि, (2) आयास, (3) िोक, (4) मैथुन, (5) कदर्वातर्वप्न, (6)

उिसम्िाषर्, (7) यानायान, (8) स्चिासन (9) अस्िचंिमर्, (10) िीिोदकसेर्वन, (11) स्चितथान, (12)

र्वािािप सेर्वन, (13) स्र्व द्धार्धयिन, (14) असात्म्य िोिन औि (15) अप्रमार् िोिन।

इसी प्रकाि बतिी प्रयुक्त स्नेह स्नम्नस्िस्खि आठ दोषों से बाहि स्नकि आिे हैं िैसे- (1) िीनों

दोषों के स्र्वकािर्वि, (2) अिनास्ििूि होने से (िोिन द्वािा दबाये +िाने पि) (3) मिव्यास्मश्र होने से,

(4) दूिानुप्रस्र्वष्ट होने से, (5) अस्तर्वि होने से (6) अनुष्र् होने से, (7) अलप िोिन से िथा (8) अलपस्नेह से।
इनके अस्िरिक्त र्वैद्य की असार्विानी से 9 व्यापस्ियााँ औि होिी हैं िैस-े (1) अयोग, (2) आर्धमान,

(3) परिकर्णिका, (4) परिस्रार्व, (5) प्रर्वास्हका, (6) हृदयोपसिर्, (7) अङ्ग्रह, (8) अस्ियोग औि (9)
िीर्वादान ।

इस प्रकाि कु ि स्मिाकि 76 व्यापस्ियााँ होिी हैं स्िनमें 44+9 =53 व्यापस्ियााँ र्वैद्य की

असार्विानी के कािर्, 15 व्यापस्ियााँ िोगी की असार्विानी से िथा 8 व्यापस्ियााँ आहाि-स्र्वहाि िथा दोषों

के कािर् होिी हैं। अििः स्चककत्सक प्रमादिस्हि हो बस्ति, बस्ति नेत्र, बस्ति द्रव्य, िय्या आकद की पिीक्षा
कि सार्विानी पूर्वमक बस्ति का प्रयोग किना चास्हए साथ ही प्रयोगकाि में बतिी प्रस्र्िान बस्तिपीिन में
िी सिकम िहना चास्हए स्िससे उक्त दोष होने की सम्िार्वना िेष नहीं िहे। स्िस पु ष को बस्ति देनी हो
उसे ििी िााँस्ि समझा देना चास्हए औि उक्त दोषों के स्िये सार्विान कि देना चास्हए। (सु. स्च.33-33)

अनुर्वासन बस्ति के अयोग्य िोग एर्वं िोगी (Contra-indication of Anuvasana Basti)

य एर्वानातथाप्याति एर्वाननुर्वातयािः तयुिः, स्र्विेषितत्र्विुक्तिक्त नर्वज्र्वि पांिुिोगकामिा प्रमेहािम:


प्रस्िश्यायािोचक मंदास्िदुबि
म -प्िीहा कफोदिो तिंि र्वचोिेद स्र्वषगिपीि स्पिकफास्िष्यंद गु कोष्ठ
श्लीपदगिगंिापस्च किस्म कोस्ष्ठनिः।। (च. स्स. 2/17)

1. अनातथाप्य 2. अिुक्तिक्त 3. नर्वज्र्वि

4. पाण्िु 5. कामिा 6. प्रमेह

7. अिम 8. प्रस्िश्याय 9.अिोचक

10. मन्दास्ि 11. दुबमि 12. प्िीहोदि


13. कफोदि 14.उ तिम्ि 15. र्वचोिेद (अस्िसाि)

16. स्र्वषपीि 17. गिपीि(कृ स्त्रम स्र्वष पीि)18. स्पिि िथा कफि अस्िष्यन्द

19. गु कोष्ठ 20. श्लीपद 21. गि गण्ि

22. अपची 23. कृ स्म कोष्ठ


अनुर्वासन अयोग्यों में अनुर्वासन देने से सम्िस्र्वि स्र्वकाि –

(1) स्िनको अनुर्वासन बस्ति स्नर्णषि है उनको अनुर्वासन बस्ति देने पि उनके िोगों की र्वृस्द्ध होिी
है औि र्वे िोग असार्धय बन िािे हैं। औि ििीि िूिने िैसी (गात्र सदन) र्वेदना होना यह प्रमुख िक्षर् उत्पि
होिा है। (सु. स्च. 35/23)

(2) यकद अिुक्त िक्त (स्िसको िोिन न ककया हो) को अनुर्वासन कदया िाये िो आंत्र में मागम
आर्वृि न होने के कािर् र्वह ऊपि िक पहुाँच िािा है। अनुर्वास (स्नेह) बस्ति िोिनोपिान्ि ही दी िािी है
कक िोिन के बाद आमािय िथा आंत्र में पच्यमान अि का दबार्व होिा है। इसस्िये स्नेह की व्यास्ि पक्वािय
में िीिे िीिे होिी है औि रिक्तमागम हो िो स्न:संिय र्वेग से ग्रहर्ी िक आ सकिा है स्िससे आर्धमान, हृदग्रह,

स्हक्का, िथा छर्दद उत्पि हो सकिी है

(3) नर्वज्र्वि, कामिा, पाण्िु , प्रमेह में अनुर्वासन दोषों को उस्त्क्िष्ट कि उदि िोग उत्पि कििा है
इन िोगों में स्रोिोिोि का प्रिान्य िहिा है। अि: स्नेहगस्ि में अर्विोि से दोषों का उत्क्िेि होिा है। इन
चािों िोगों में स्नेहपान का िी स्नषेि है।

(4) अिम में अनुर्वासन, अिामकुिों को स्क्िि कि आर्धमान उत्पि कििा है।

(5) अिोचक में अरूस्च को औि बढ़ा देिा है।

(6) अस्िमांद्य िथा दुबमिों में अनुर्वासन से अस्िमांद्य की र्वृस्द्ध होिी है।

(7) प्रस्िियाय प्िीहाकद िोगों में दोषोत्किेि से िोग र्वृस्द्ध होिी है।

(8) कृ स्म कोष्ठ में कृ स्म स्नहमिर् पूर्वम स्नेह बस्ति देने से, कृ स्म बाहुलय के कािर् िथा स्नहमिर् नहीं
होने के कािर् कृ स्म ऊपि की ओि गमन कि हृदयापकषमर् कििे है।

(9) आढ्यर्वाि में स्नेह बस्ति से आमर्वृस्द्ध होिी है।

अनुर्वासन बस्ति योग्य िोग एर्वं िोगी (Indication of Anuvasana Basti)

य एर्वातथाप्यातिएर्वानुर्वातयािः, स्र्विेषितिु क्ष िीक्ष्र्ाियिः के र्वि र्वाििोगािामश्च।

एिेषु स्ह अनुर्वासनं प्रिानिमस्मत्युक्तं मूिे द्रुमप्रसेकर्वि् । (च. स्स.2/19)

िो आतथापन योग्य होिे है र्वो ही अनुर्वासन योग्य होिे है | स्र्विेष रूप से क्ष ििीि र्वािे , के र्वि
र्वािि व्यास्ि से पीस्डि व्यस्क्त है उन्हें अनुर्वासन बस्ति देनी चास्हए|
र्वयानुसाि अनुर्वासन बस्ति मात्रा

स्न हपादांिसमेन िैिन


े ाम्िास्निघ्नौषिसास्ििेन | (च.स्स.3/28)

यथार्वयो स्नरूहार्ां यािः मात्रािः परिकीर्णििािः।

पादार्वकृ ष्टातिा: कायामिः स्नेहर्वस्तिषु देस्हनाम्।। (सु. स्च. 37/4)

स्न ह बस्ति का ¼ (पादांि) यह मात्रा स्नेह बस्ति की है, र्वयानुसाि मात्रा स्निामिर् कििे हुए

र्वयानुसािस्न ह मात्रा का ¼ (पादांि) यह मात्रा होिा है

ि. र्वय चिकोक्त स्न ह स्न ह मात्रा स्नेह मात्रा


मात्रा प्रसृस्ि में िोिे में (स्न ह का पादांि ¼)
1 1 र्वषम हेिु ½ प्रसृस्ि 4 िोिा = 40g 1 िोिा = 10 ml
2 2 र्वषम हेिु 1 प्रसृस्ि 8 िोिा = 80g 2 िोिा = 20 ml
3 3 र्वषम हेिु 1.5 प्रसृस्ि 12” =120g 3 िोिा = 30 ml
4 4 र्वषम हेिु 2” 16” =160g 4 िोिा = 40 ml
5 5 र्वषम हेिु 2.5” 20” =200g 5 िोिा = 50 ml
6 6 र्वषम हेिु 3” 24” =240g 6 िोिा = 60 ml
7 7 र्वषम हेिु 3.5” 28” =280g 7 िोिा = 70 ml
8 8 र्वषम हेिु 4” 32” =320g 8 िोिा = 80 ml
9 9 र्वषम हेिु 4.5” 36” =360g 9 िोिा = 90 ml
10 10 र्वषम हेिु 5” 40” =400g 10िोिा=100ml
11 11 र्वषम हेिु 5.5” 44” =440g 11िोिा=110ml
12 12 र्वषम हेिु 6” 48” =480g 12िोिा=120ml
13 13 र्वषम हेिु 7” 56” =560g 14िोिा=140ml
14 14 र्वषम हेिु 8” 64” =640g 16िोिा=160ml
15 15 र्वषम हेिु 9” 72” =720g 18िोिा=180ml
16 16 र्वषम हेिु 10” 80” =800g 20िोिा=200ml
17 17 र्वषम हेिु 11” 88” =880g 22िोिा=220ml
18 18र्वषम हेिु 12” 96” =960g 24िोिा=240ml
19 19र्वषम हेिु 70 12” 96” =960g 24िोिा=240ml
20 70 र्वषम हेिु 10” 80” =800g 20िोिा=200ml

र्वयानुसाि र्वृस्द्ध – 1 र्वषम की आयु से िेकि 12 र्वषम की आयु िक प्रत्येक र्वषम 1 िोिे की र्वृस्द्ध होगी
औि उसके पश्चाि 18 र्वषम की आयु िक 2 िोिे की र्वृस्द्ध होगी 18 र्वषम से िेकि 70 र्वषम की आयु िक 18
र्वषम के प्रमार् मे मात्रा होगी 70 र्वषम औि उसके पश्चाि की आयु मे 16 र्वषम के प्रमार् मे मात्रा होगी |
अनुर्वासन बस्ति द्रव्य स्नमामर्

स िु सैन्िर्वचूर्न
े ििाह्र्वेन च योस्िििः ।

देयिः सुखोष्र्श्च िथा स्निे स्ि सहसा सुखम् ॥ (सु.स्च.37/63)

स्नेह में सेंिा नमक िथा सौंफ स्मिाकि सुखोंष्र् बतिी देने से र्वह सुखपूर्वमक सहसा बाहि आिी है ॥

अनुर्वासन प्रयोग के स्र्विेष स्नयम

1. दोषानुसाि अनुर्वासन प्रयोग :

एकं िथा त्रीन् कफिे स्र्वकािे स्पिात्मके पंच िु सिर्वास्प।

र्वािे नर्वैकादि र्वा पुनर्वाम बतिीनयुग्मान कु ििो स्र्वदर्धयाि्।। (च. स्स. 1/25)

कफि स्र्वकािों में 1 से 3 स्नेह बस्ति स्पिि स्र्वकािों में 5 से 7 स्नेह बस्ति र्वािि स्र्वकािों में 9 से 11
स्नेह बस्ति देनी चास्हए।

2. आचायम सुश्रि
ु ने (सु. स्च. 37/71-76) पि, स्नेह बस्ति की कामूक
म िा स्नम्न प्रकाि बिाई है:

दितिु प्रथमो बस्तििः स्नेहयेत्र्वस्ति र्वंक्षर्ौ।


सम्यक् दिो स्द्विीयतिु मूितम यमस्निं ियेि।्
िनयेिबिर्वर्ों च िृिीयतिु प्रयोस्िििः।
िसं चिुथो िक्तं िु पंचमिः स्नेहयेिथा ।
षष्ठतिु स्नेहयेत्मांसं मेदिः सिम एर्व च।
अष्टमो नर्वमश्चास्तथ मज्जानं च यथािमम्।
एर्वं िुि गिान् दोषान् स्द्वगुर्िः सािु साियेि।्
अष्टादिाष्टदिकान् बतिीनां यो स्नषेर्विे।
यथोक्ते न स्र्विानेन परिहाििमेर् च।
सकुं िि बिोऽर्श्तय िर्वैतिुलयोऽमि प्रििः ।। (सु.स्च. 37/71से 76)
1- र्वंक्षर् को स्स्नग्ि कििी है। 2 - स्ििोगिर्वाि िीििी है। 3 - बि र्व र्वर्म िनन है।

4 - िस को स्स्नग्ि कििी है। 5 - िक्त को स्स्नग्ि कििी है। 6 - मांस को स्स्नग्ि कििी है।

7 - मेद को स्स्नग्ि कििी है। 8 - अस्तथ को स्स्नग्ि कििी है। 9- मज्जा को स्स्नग्ि कििी है।

इस ििह 9 बस्तियााँ देकि इसी िम में पुनिः परिहाि िम में 9 बस्तियााँ - इस प्रकाि 18 बस्ति देने को कहा
है स्िसके सेर्वन पश्चाि् व्यस्क्त हाथी समान िस्क्तिािी िथा तोडे के समान र्वेगर्वान हो िािा है।
3.
न चैर्व गुद कं ठाभ्यां दद्यास्नेहमनन्ििम्।

उियतमाि् समं गच्छन् र्वािमल्ि च दूषयेि।् । (च. स्स. 4/49)

एक साथ दो मागम अथामि् मुख र्व गुद मागम से स्नेहन किने से र्वाि र्व अस्ि दृष्ट होिी है इसस्िए िब
स्नेहपान प्रयोग कि िहे हो िो अनुर्वासन बस्ति का प्रयोग नहीं किना चास्हए।

4.

स्नेहबस्ति स्नरूहं र्वा नैकमेर्वास्ि िीियेि।्

उत्क्िेिास्िर्विौस्नेहास्िरूहाि् पर्वनाद् ियं।

ितमास्िरूढिः संस्नह्य
े ो स्नरूहाश्चानुर्वास्सििः ।। (च. स्स. 4/50-51)

िथा सु स्च. 37/77-78 िथा अ. ह. सू. 19/65-66 (ककस्चि पाठिेद)

के र्वि स्नरूह या के र्वि अनुर्वासन अस्िक प्रयोग नहीं किना चास्हए क्योंकक के र्वि अस्िक
अनुर्वासन से अस्िमांद्य िथा स्न ह अस्िक प्रयोग से र्वाि प्रकोप होिा है।

पिन्िु यकद अत्यंि रूक्ष ििीि, िीक्ष्र् अस्ि, स्नत्य व्यायाम िीि, र्वक्षंर्-श्रोस्र् में र्वाि आस्िक्य,
उदार्विम है िो प्रस्िकदन अनुर्वासन दी िा सकिी है। इस प्रकाि के आिुिों में स्नेह का पाचन ठीक उसी प्रकाि
होिा है। िैसा बािुका पि िि िोस्षि हो िािा है।

5. अनुर्वासन प्रयोग काि

िीिे र्वसंिे च कदर्वानुर्वातयो िात्रौ ििद ग्रीष्म तनागमेषु ।।

च. पा.- िीि िब्देन स्िस्ििहेमि


ं योिस्प ग्रहर्म्।। (च. स्स. 1/22)

स्िस्िि, हेमन्ि औि बसंि ऋिु में कदन में िथा ग्रीष्म, र्वषाम औि ििद ऋिु में िास्त्र में अनुर्वासन
बस्ति देनी चास्हए

स्पिेऽस्िके कफे क्षीर्े क्षे र्वाि गर्ददिे ।

निे िात्रौ िु दािव्यं कािे चोष्र्ेऽनुर्वासनम् ॥(सु.स्च.37/49)

अर्वतथा स्र्विेष में िास्त्र में िी अनुर्वासन की स्र्वस्ि - स्पि की अस्िकिा िथा कफ के क्षीर् होने
पि एर्वं उष्र् काि में, र्वाि िोग से पीस्डि क्ष मनुष्य को िास्त्र में अनुर्वासन देना चास्हए
संसष्ट
ृ िक्तं नर्वमेऽस्ह्न सर्णपतिं पाययेिाप्यनुर्वासयेद्वा।। (च. स्स. 1/20)

स्र्विे चनाि् सििात्रे गिे िाि बिाय र्वै।

कृ िान्र्वायानुर्वातयाय सम्यग् देयोऽनुर्वासनिः।। (सु. स्च. 37/3)

र्वमन आकद पूर्वमक िब बस्ति का प्रयोग किना हो िो स्र्विेचन के बाद 9 बें कदन अनुर्वासन का
प्रयोग किना चास्हए। िथा आचायम सुश्रुि ने स्र्विे चन के बाद 7 र्वे कदन, बि की उत्पस्ि िथा संसिमन िम
पूर्म कि प्राकृ ि िोिन पि आने के बाद देने को कहा है।

न चािुक्तर्वि: स्नेह प्रस्र्िेयिः कथञ्चन।

िुद्धत्र्वाि् िून्य कोष्ठतय स्नेह-उर्धर्वम समुत्पिेि।्

सदानुर्वासयेिास्प िोिस्यत्र्वाद्रपास्र्नम्।। (सु. स्च. 37/53-54)

अनुर्वासन बस्ति िोिन के बाद ही देनी चास्हए। अथामि् आद्रमपास्र्- िोिन कि हाथ िोये हुए/गीिे
( आद्रम) हाथ हो िब देनी चास्हए।

अनुर्वासन बस्तिदानस्र्वस्ि –

अनुर्वासन की सम्पूर्म प्रकिया िीन चिर्ों में पूिी होिी है

1. पूर्वमकमम 2. प्रिान कमम 3. पश्चाि् कमम

1. पूर्वक
म मम (Poorva karma)

I. पिीक्ष्य िार्व – स्न ह बस्ति मे र्वर्णर्ि पिीक्ष्य िार्व के समान ही अनुर्वासन बस्ति के पिीक्ष्य िार्व
का स्र्वचाि किे | अनुर्वासन बस्ति के काि के सन्दिम मे र्वर्मन स्र्विेष स्नयम मे र्वर्णर्ि है|
II. उपकिर् र्व द्रव्य संकिन –

a) द्रोर्ी
b) स्सरिि 100 ml औि ल्सपि िबि कै थेिि
c) तिीि पात्र
d) गैस
e) कोष्र्िि
f) िॉर्वि
g) मापक
h) हैण्ि ग्िव्स
i) कॉिन
j) बस्ति के स्िए आर्वश्यक िैि उदा.बिा िैि माष िैि इ.
k) अभ्यंग के स्िए िैि िान्र्वंिि िैि बिा िैि इ.
l) पंचकमम सहायक -2 .
III. संमस्ि पत्रक - आिुि के समझने र्वािी िाषा मे पंचकमम स्र्वस्ि से होने र्वािे फायदे औि संिास्र्वि
व्यापद को समझाकि स्िस्खि पत्र मे आिुि/ रिश्िेदाि की तर्वाक्षिी/ अंगूठा िेर्वे.
IV. आिुि पिीक्षर् : आिुि मे अिम िगंदि परिकर्णिका इ. गुद्तथान मे व्यास्ि की पिीक्षा के स्िए गुद्गि
पिीक्षर् किार्वे, आिुि का िापिम, ह्रदय गस्ि, र्विन , र्श्सन गस्ि , िक्तचाप आकद को सूचीबद्ध
कि िेिे है|
 Biochemical investigation

 Radiological investigation X-ray, MRI, ECG

V. आिुि स्सद्धिा – अनुर्वासन बस्ति िोिन के बाद कदया िािा है इसके स्िए िोिन के बाद अलप
व्यायाम के बाद , ऋिुनुसाि काि का स्र्वचाि कि सुबह या संर्धयां को बस्ति देर्वे| बस्ति यह अभ्यंग
तर्वेदन के बाद देर्वे इसके स्िए स्नम्नस्िस्खि प्रकाि से आिुि को िैयाि किे
a) िोिन – आिुि का आहाि अस्िस्स्नग्ि नही होना चास्हए अन्यथा बस्ति के बाद मूच्छाम
उत्पि हो सकिा है आिुि का आहाि अस्ि क्ष नही होना चास्हए उससे बि औि र्वर्म का
नाि होिा है . िोिन पूर्मि: पक्व हो औि उसकी मात्रा बहुि अस्िक नही हो .
र्वािव्यास्ि मे – मांसिस युक्त िोिन

स्पिव्यास्ि मे – दुग्ि

कफव्यास्ि मे – युष

b) चंिमर् – िोिन के बाद आिुि को ििपार्विी किने को कहे. अस्िव्यायाम या िािीरिक


श्रम र्वज्यम है
c) मि-मूत्र स्र्वसिमन – चंिमर् के बाद मि-मूत्र स्र्वसिमन किने को कहे स्िससे बस्ति अस्िक
काि िक अंदि िहेगा
d) अभ्यंग-तर्वेदन – र्वंक्षर् ,पृष्ठ र्व उदि प्रदेि मे िैि से अभ्यंग किे उसके बाद बाष्प या
अर्वगाह तर्वेद देर्वे
VI. मात्रा स्निामिर् - स्न ह बस्ति का ¼ (पादांि) यह मात्रा स्नेह बस्ति की है,

स्नेह बस्ति – 24 िोिे = 240 ml ,अनुर्वासन बस्ति – 3 पि = 120 ml

र्वयानुसाि मात्रा स्निामिर् कििे हुए र्वयानुसािस्न ह मात्रा का ¼ (पादांि) यह मात्रा होिा है

स्न हपादांिसमेन िैिन


े ाम्िास्निघ्नौषिसास्ििेन | (च.स्स.3/28)

यथार्वयो स्नरूहार्ां यािः मात्रािः परिकीर्णििािः।

पादार्वकृ ष्टातिा: कायामिः स्नेहर्वस्तिषु देस्हनाम्।। (सु. स्च. 37/4)


VII. अनुर्वासन बस्ति द्रव्य स्नमामर्
स िु सैन्िर्वचूर्न
े ििाह्र्वेन च योस्िििः ।
देयिः सुखोष्र्श्च िथा स्निे स्ि सहसा सुखम् ॥ (सु.स्च.37/63)
स्नेह में सेंिा नमक(3-4gm) िथा बािीक़ स्पसा हुआ सौंफ(1-2gm) स्मिाकि सुखोंष्र् कि बतिी
देने से र्वह सुखपूर्वमक सहसा बाहि आिी है ॥

प्रिान कमम –

1. बस्तिप्रस्र्िान – बस्ति प्रस्र्िान कमम स्न ह के प्रस्र्िान के समान ही है | र्वाम पार्श्म पि , बायां

पांर्व सीिा दस्हना पांर्व र्वंक्षर् औि िानू मे मोडकि ककस्चि झुकाकि िख, अपने हाथ का स्सिाहना
कदये हुए, िेिे हुए आिुि को गुदा में िैि िगाकि बस्ति नेत्र को स्स्नग्ि कि अनुपृष्ठर्वंि नेत्र प्रर्वेस्िि
कि एकग्रह से पुिक को दबाकि स्नेह प्रस्र्वष्ट किार्वे। र्वस्ति देने के बाद एक सौ अंक स्गनने िक उिान
स्तथस्ि में स्ििाकि िखें। हाथ औि पार्व सीिे फै िा देर्वें खाि या िेबि को पांर्व की ओि से ऊपि उठा
र्वे, या िो स्तफग के नीचे िककया िख दे। पांर्व के ििर्वे पि मृद ु मदमन किें । स्तफग पि मृद ु अभ्यंग कि
थपथपी िगार्वें। थपथपी िगाने का उद्देश्य स्नेह को िलदी र्वास्पस आने से िोकना है। स्नेह अंदि िह
कि ही अच्छी ििह से कायम कि सकिा है। अनुर्वासन के बाद आिुि ििा िी परिश्रम न किें ।
2. बस्ति प्रत्यागमन - स्नेह बस्ति को र्वापस आने की कािमयामदा िीन याम अथामि ९ तंिे की है। यकद
९ तंिे िक स्नेह अंदि िहे िो ही उसका कायम ठीक हुआ ऐसा समझना चास्हये। इससे िलदी यकद स्नेह
र्वास्पस स्नकिा िाय िो दूसिी स्नेह बस्ति देनी चास्हए।
यतयेह यामनुर्विमिे त्रीन् स्नेहो नििः तयाि् स स्र्विुद्ध देह:।
आर्श्ागिे अन्यतिु पुनर्णर्विेयिः स्नेहो न संस्नह
े यस्ि ह्यस्िष्ठन्।। (च. स्स. 1/46)
अगि स्नेह ९ तंिे में र्वास्पस न आर्वे िो कु छ ल्चिा न किें २४ तंिे िक स्नेह र्वास्पस आने की िाह
देखे। २४ तंिे के बाद फिर्वर्णि अथर्वा िीक्ष्र् बस्ति का प्रयोग कि स्नेहर्वस्ति को प्रत्यार्वर्णथि किा दे।
स्नर्वृस्ि काििः पिमिःस्त्रयो यामातिििः पिम्।
अहोिात्रमुपक्ष
े ि े पिि: फिर्वर्णिस्ि||
िीक्ष्र्मर्वाां बस्तिस्ििः कु यामि् यत्नं स्नेह स्नर्वृिये।। (अ. ह. सू. 19/32-33)
स्नेहबस्ति यकद २४ तंिे के बाद र्वास्पस न आिे हुए कु छ िकिीफ न कििी हो िो उसकी उपेक्षा
किनी चास्हये। के र्वि उस िास्त्र को िोिन नहीं देर्वे र्व सुबह कोष्र् िि या िुण्ठी स्सर्धद या िान्यक
स्सर्धद िि देर्वे |
3. िक्षर् स्नरिक्षर् औि स्चककत्सा - र्वाि औि पुिीष के साथ स्बना दाह के उस्चि काि में स्नेह र्वास्पस
आये िो उसे अच्छी ििह अनुर्वासन हुआ ऐसा समझना चास्हये।
सस्नि: सपुिीषश्च स्नेहिः प्रत्येस्ि यतय िु।
ओष चोष स्र्वना िीघ्रं स सम्यगनुर्वास्सििः।। सु. स्च. ३७-६७
यकद अस्िक उष्र् होने से, अस्िक, िीक्ष्र् होने से, र्वाि के दबार्व के कािर्, सर्वाि कदये िाने के

कािर्, मात्रा में अस्िक होने से अथर्वा िािी होने से िुिन्ि र्वास्पस आ िाये, िो उस िोगी को पहिे
की अपेक्षा कम प्रमार् में पुनिः अनुर्वासन देना चास्हये।
यतय नुर्वासनो दििः सकृ दन्र्वक्षमाव्रिेि।्
अत्यौष्ण्यादस्ििैक्ष्ण्याद्वा र्वायु ना र्वा प्रपीस्िििः।
सर्वािोऽस्िकमात्रो र्वा गु त्र्वाद र्वा सिेषि: ।
ितयान्योऽलपििो देयो न कक स्स्नह्यत्यस्िष्ठस्ि।।सु. स्च.३७-६३ से ६५
अनुर्वासन बाद िािम गात्रों पि िीिे िीिे मदमन किें औि िय्यापि आिाम कििे हुए स्सिाहना देिे
हुए सुिा देर्वे।

पश्चात्कमम – परिहाि स्र्वषय र्व परिहाि काि स्न ह िैसा

िोिन िम - बस्ति प्रत्यागम के बाद दूसिे कदन दोपहि में अच्छा िोिन देर्वे औि सायंकाि उस्चि
(यूष िसाकद) िोिन देकि पुन: अनुर्वासन दे। यकद िीसिे कदन या पांचर्वे कदन िी अनुर्वासन देना हो
िो इसी िम से स्न ह देकि अनुर्वासन दे|

प्रत्यागिे चाप्यनुर्वासनीये कदर्वा प्रदेयं व्युस्षिाय िोज्यम्।

सायं च िोज्यं पििो द्वयहे र्वा त्र्यहेऽनुर्वातयोऽहस्न पंचमे र्वा।।

त्र्यहेत्र्यहे-र्वाऽप्यथ पंचमे र्वा दद्यास्िरूहादनुर्वासनं च।। च. स्स. १-२३,२४

प्रर्वृि औि अनुपद्रुि स्नेह बस्ति में-आिुि को आिाम किार्वे। िास्त्र में सुखपूर्वमक स्नद्रा ककये
हुए आिुि को दूसिे कदन िस्नया औि िुंठी इससे स्सद्ध िि पीने के स्िये दे। अथर्वा के र्वि गिम
पानी पीने के स्िये दे। िस्नयां िुंठी का िि या गिम िि स्नेह को पचािा है, कफ का छेदन कििा

है, औि र्वाि का अनुिोमन कििा है। इसस्िये र्वमन, स्र्विे चन, स्न ह औि अनुर्वासन के बाद गिम
पानी स्पिाना श्रेयतकि होिा है (च.स्स. 4/43-45)

अनुर्वासन के सम्यग् योग, अयोग, र्व अस्ियोग िक्षर्


अनुर्वासन के सम्यग् योग िक्षर्
प्रत्येत्यसक्तं सिकृ ि िैिं िक्ताकदबुद्धीस्न्द्रपसम्प्रसादिः ।
तर्वप्नानुर्वस्ृ िितुिा बिं च सृष्टाश्च र्वेगािः तर्वनुर्वास्सिे तयुिः।। (च.स्स.1/44)
अनुर्वासनर्वस्ति के सम्यग्योग के िक्षर्-यकद अनुर्वासन र्वस्ति का प्रयोग स्र्वस्ि पूर्वमक हुआ हो िो
ककसी प्रकाि की कार्वि के स्बना मि के साथ िेि (स्िसे अनुर्वासनर्वस्ति द्वािा गुदद्वाि से िीिि प्रर्वेि
किाया गया था) गुदद्वाि से बाहि चिा आिा है िदनन्िि िक्त आकद िािुए, बुर्धदी िथा इस्न्द्रयां प्रसि
(तर्वच्छ) हो िािी है। नींद ठीक प्रकाि से आने िगिी है, ििीि में हिकापन आ िािा है, िािीरिक बि की
र्वृस्द्ध हो िािी है औि मि आकद बेगों में ककसी प्रकाि की कार्वि नहीं होिी, ये सिी िक्षर् सम्यक्
अनुर्वास्सि पु ष में देखे िािे हैं। इसी को अनुर्वासन र्वस्ति का सम्यग्योग कहिे हैं।
अनुर्वासन के अयोग िक्षर्
अििःििीिोदिबाहुपृष्ठपार्श्ेषु ग्रूक्षखिं च गात्रम् ।
ग्रहश्च स्र्वण्मूत्रसमीिर्ानामसम्यगेिान्यनुर्वास्सितय ।। (च.स्स.1/45)
अनुर्वासन के अयोग के िक्षर्-अनुर्वासनर्वस्ति का यकद समुस्चि प्रयोग न हो सका हो अथर्वा
अनुर्वासन के स्िए प्रयुक्त द्रव्य िीिि िाकि अपना प्रिार्व पूर्मरूप से न कदखा सके हो िो स्नम्नस्िस्खि
स्र्वकाि कदखिायी देिे है ििीि के स्नचिे िाग उदि, बाहु, पीठ िथा पसस्ियों में पीडा होने िगिी है,
ििीि रूखा औि खुिदुिा हो िािा है (पाठिेद के अनुसाि यहााँ 'र्वचम: कदया है. इस स्तथस्ि में रूक्ष िथा खि
ये दो स्र्विेषर् मि के हो िािे है, न कक ििीि के ), मि, मूत्र िथा अपानर्वायु में अर्विोि उत्पि हो िािा
है।
अनुर्वासन के अस्ियोग िक्षर्
हलिासमोहक्िमसादमूच्छाम स्र्वकर्णिका चात्यनुर्वास्सितय ।
अनुर्वासन र्वस्ति के अस्ियोग के िक्षर्-इसमें िी-स्मचिाना, मोह क्िम ( थक िाना), ििीि में स्िस्थििा,
मूच्छाम िथा स्र्वकर्णिका ( गुद-प्रदेि में कैं ची से कािने के समान पीडा) ये िक्षर् होिे है।

स्नेहबस्ति के उपद्रर्व औि उनका प्रस्िकाि

स्नेहबस्ति देने में सार्विानी के कािर् छ: प्रकाि के उपद्रर्व होिे हैं।

र्वािस्पिकफात्यिपुिीषैिार्वृितय च।
अिुक्ते च प्रर्ीितय स्नेहबतिेिः षिापदिः।। (च. स्स. 4/25)

1. स्नेह का र्वाि से आर्वृि होना।2. स्नेह का स्पि से आर्वृि होना।

3. स्नेह का कफ से आर्वृि होना।4. स्नेह का अि से आर्वृि होना।

5. स्नेह का मि से आर्वृि होना। 6. अिुक्त स्नेह बस्ति उपद्रर्व

(1) र्वािार्वृि स्नेह-

कािर्- र्वाि िोग में अलप एर्वं िीि स्नेहबस्ति कु स्पि बाि से आर्वृि हो िािी है औि उसका

िक्षर् - प्रत्यागमन यथाकाि नहीं होना ,अंगमदम, ज्र्वि, आर्धमान, तिम्ि,उ िूि, पार्श्मिुि,
कषायआतयिा,िृम्िा,कं प

स्चककत्सा-

स्न ह बस्ति 1 ) िास्ना, स्पिदारू, िोध्र इनका क्वाथ +सौर्वीि,कोि,कु ित्थ,यर्व, िर्वर्, कांिी+िैि

2) पंचमूि क्वाथ, िास्नाकद िैि, गोमूत्र+ क्वाथ।


अनुर्वासन, स्नरूह से िोिन हो िाने पि सायंकाि िोिन के पश्चाि् िास्नाकद िैि अनुर्वासनबस्ति देनी
चास्हए।

(2) स्पिार्वृि स्नेह-स्पि प्रिानिा में अत्युष्र् स्नेहबस्ति कु स्पि स्पि से आर्वृि हो िािी है,

िक्षर्- दाह,िृष्र्ास्िक्य, मोह, ज्र्वि, िम:प्रर्वेि, किुआतयिा, तर्वेदास्िक्य,नेत्र-मूत्र-अंग पीििा

स्चककत्सा- इसमें मिुि तकन्ि िथा स्िक्त तकन्ि की औषस्ि के स्सद्ध स्नरूहबस्ति देनी चास्हए।स्पििामक
स्चककत्सा

(3) कफार्वृि स्नेह-कफ दोष की प्रिानिा में अस्ि मृद ु द्रव्य संयुक्त बस्ति कु स्पि कफ से आर्वृि हो िािी है
िक्षर् - िन्द्रा, िीिपूर्वमकज्र्वि, आितय,प्रसेक, अ स्च,गौिर्व, मूच्छाम, मिुिातयिा

स्चककत्सा- स्नरूह बस्ति - कषाय तकन्ि, मदनफि, गोमूत्र युक्त बस्ति, कफिामक स्चककत्सा

(4) अिार्वृि स्नेह- अत्यस्िक िोिन के बाद बस्ति देने पि र्वह अि से आर्वृि होिीहै,

िक्षर् – बस्तिप्रत्यागमन नहीं होिा , छर्दद, मूच्छाम, अ स्च, िूि, स्नद्रा, अंगमदम, दाह, आम के िक्षर्,
हृद्िुि,मुखर्वैितय,र्श्ास,भ्रम

स्चककत्सा- स्त्रकिु चूर्,म सैन्िर्व िर्वर् स्मश्रर् आमपाचनाथम , स्चत्रकाकद र्व िसोनादी र्विी, मृद ु स्र्विे चन उदा.
गंिर्वम हिीिकी चूर्म 2 ग्राम/अस्र्वपस्िकि चूर्म देकि स्र्विेचन किना चास्हए।

(5) पुिीषार्वृि स्नेह- बस्ति देने के पहिे यकद मूत्र-पुिीष के र्वेगों से स्नर्वृि नहीं की गई हो िो स्नेह पुिीष से
आर्वृि हो िािा है।
कािर्- मि-मूत्र-अिोर्वायु की कार्वि, पक्वािय में िािीपन, आर्धमान, हृद्ग्रह, र्श्ास औि िूि होिा हैं।

स्चककत्सा- अभ्यंग-तर्वेदन किना चास्हए। गुदा में फिर्वर्णि का प्रयोग किना चास्हए। श्यामास्त्रर्वृि् स्बलबाकद
स्सद्ध स्नरूहबस्ति देकि पुनिः अनुर्वासन देनी चास्हए. दीपन-पाचन (स्चत्रकादीर्विी, स्िर्वाक्षािपाचन) का
प्रयोग किना चास्हए।

(6) अिुक्त प्रर्ीि स्नेह - स्बना िोिन किाये बस्ति देने से गुदा से पक्वािय िक का मागम रिक्त होने से, कदया
हुआ स्नेह र्वेगपूर्वमक कण्ठ में आकि बाहि आ सकिा है।
िक्षर् - अंगग्रह, अर्वसाद, मुख में स्नेहगन्ि, कास-र्श्ास औि अ स्च- ये िक्षर् उत्पि होिे है।

स्चककत्सा- श्यामा स्त्रर्वृि आकद बस्ति में यर्व, कोि, कु ित्थ स्मिाकि स्नरूहबस्ति देनी चास्हए। गिे को हाथ

से मृद ु सहिायें, स्र्विे चन दें िथा छर्ददनािक स्चककत्सा किनी चास्हए। (च. स्स. 4/40)

1 से 3 स्नेह आर्वृस्ि मे स्र्वश्लेषर् किने से यह र्धयान आिा है कक िीनो स्नेह आर्वृि मे ज्र्वि यह
सामान्य िक्षर् है पिन्िु र्वािार्वृि स्नेह मे िूि युक्त ज्र्वि,स्पिार्वृि स्नेह मे दाह युक्त ज्र्वि,कफार्वृि स्नेह मे
िीियुक्त ज्र्वि ये िक्षर् आिे है औि मुख का तर्वाद र्वाि मे कषाय, स्पि मे किु ,र्व कफ मे मिुि िहिा है
सुश्रुिोक्त स्नेह बस्ति व्यापद- सुश्रुि ने अिूक्त प्रर्ीि स्नेह्व्यापद के तथान मे स्र्विे चानाकद से िुद्ध आिुि मे स्नेह
बस्ति देने से होने र्वािी व्यापद का र्वर्मन ककया हैं स्िसका िक्षर् औि स्चककत्सा अिूक्त प्रर्ीि व्यापद के
समान है

इन व्यापदो के अस्िरिक्त 2 अस्िक व्यापदो का र्वर्मन आचायम सुश्रुि ने ककया है

(a) स्िस आिुि को स्नेहन तर्वेदन , र्वामन-स्र्विे चन न कदया हो ऐसे आिुि मे मृद ु औि अलप मात्रा मे स्नेह
बस्ति देने से
िक्षर् – 1.स्नेह एक साथ र्वास्पस न आकि िीिे -िीिे थोडा- थोडा र्वास्पस आिा है
2.पक्वािय िूि
3.आर्धमान , र्वायु अर्विोि
स्चककत्सा – अनुर्वासन के बाद आतथापन बस्ति दे

(b) अलप मात्रा मे िोिन देकि आिुि को अलप मात्रा मे बस्ति देने से
िक्षर् – 1.बस्ति प्रत्यागस्मि नहीं होिा
2.अिस्ि
3.क्िम
4.उत्क्िेि
स्चककत्सा- िोिनीय स्नेह के साथ स्न ह बस्ति उदा.- दिमूि क्वाथ + एिं ि िैि

बस्ति कामुक
म िा-

र्वायु यंत्र िंत्र ति है ििीि के सिी कियाओं में िर्वाबदाि र्वायु िहकि अगि रूक्ष ितु सि स्र्विद
इत्याकद गुर्ों से आहाि स्र्वहाि से ििीि में दुस्ष्ट होने से र्वायु के स्नयस्मि कायम में स्र्वकृ स्ि होिी है र्व व्यास्ि
का स्नमामर् होिा है र्वाि स्र्वि श्लेष्मा स्पि र्व औि अन्य मिोका स्र्वक्षेप र्व संहाि(transit/expulsion)
किने र्वािा होिा है(अ.हृ. सु.19/86)

कफ र्व स्पि दोष संचाि के स्िए र्वायु पि स्निमि िहिे हैं कोई िी दोष से संप्रास्ि िैयाि होने में
र्वायु ही िर्वाबदाि िहिा है इसस्िए स्चककत्सा कििे समय र्वायु पि स्नयंत्रर् किने से स्चककत्सा सफि होिी
है

िीनों दोषों में र्वायु प्रिान िहने से िैसे समुद्र में आया िूफान के र्वि समुद्र की िहिें ही सहन कि
सकिी है र्वैसे बतिी ही र्वायु का प्रकोप सहन कि सकिी है (सु.स्च.35/38)

गुद यह ििीि का मूि तथान है गुद तथान में प्रचुि मात्रा में स्सिा(vessel & nerves) िहिी है
स्िससे गुदगि दी गई बतिी सर्वम ििीि में फै ि कि र्वाि िमन का कायम कििी है (च.पा.च.स्स.1/31मे)
आपादििमूितम थान दोषान पक्वािये स्तथि:|

र्वीयेर् बस्तििादिे खतथोऽको िूिसास्नर्व || च.स्स.7/64

बतिी का कामुमकत्र्व तपष्ट कििे हुए आचायम ने कहा है कक बतिी द्रव्य स्सफम ििीि में िोस्षि ही नहीं
बस्लक बतिी द्रव्यों के र्वीयम से स्रोिों के द्वािा सर्वम ििीि में फै ि कि उसका कायम पैि से िेकि स्सि िक िहिा
है

िैसे र्वृक्ष मूि का ल्सचन किने पि पोषक ित्र्व सर्वम िाखा पत्र पुष्प को स्मििा है उसी ििह
पक्वाियगि दी गई बतिी सर्वम ििीि पि कायम कििी है (सु.स्च.35/25, च.स्स.1/31)

स्िस ििह सूयम अपनी उष्र्िा से पृथ्र्वी पि िि का िोषर् कििा है उसी ििह पक्वाियतथ बस्ति
िी अपने र्वीयम से किी पृष्ठ कोष्ठ तथान से दोषों का स्र्विोिन कि प्रत्यागमन के समय द्रव्य मि अपानर्वायु
की सहायिा से समूि दोषों को बाहि स्नकाििी है(सु.स्च.35/27-28)

र्वाि का तथान पक्वािय है औि र्वायु इस व्यास्ि का मूि है बतिी र्वायु को साम्यार्वतथा में िखने का
कायम कििा है र्वायु साम्यार्वतथा में िहने पि व्यास्ि का अपने आप िमन होिा है िैसे एक र्वृक्ष का मूि
कािने पि उस र्वृक्ष की िाखा पत्र पुष्प फि नष्ट होिा है उसी ििह बतिी द्वािा स्र्वकृ ि र्वायु का िमन होने
से ििीि के व्यास्ि का िी िमन होिा है(च.सु.20/15)

इसके उिि र्वृक्ष के मूि मे िि देने से पुष्प, फि योग्य काि मे उत्पि होिे है उसी ििह अनुर्वासन
बतिी से ििीि का पोषर् होकि बि र्व र्वर्म प्रास्ि होिी है

बतिी द्रव्य उसके र्वीयम के कािर् प्रथम पक्वाियतथ अपान र्वायु का पोषर् कििा है कफि समान र्वायु
िक पहुंचकि समान र्वायु का पोषर् कििा है कफि व्यान र्वायु का कफि उदान र्व प्रार् र्वायु का पोषर् कििा
है पांचर्वी र्वायु के पोषर् के बाद र्वायु प्राकृ ि अर्वतथा में िहकि ििीि किया में तर्वच्छिा िाने का कायम बस्ति
द्वािा ककया िािा है उसके बाद बतिी द्रव्यों का कायम स्पि र्व कफ दोष ऊपि होकि उनको सम्यक अर्वतथा में
िािा है बतिी द्रव्यों का र्वीयम स्रोिस द्वािा सर्वम ििीि में उर्धर्वम स्ियमक र्व अि: गस्ि से फै िाने का कायम अनुिम
से प्रार् व्यान र्व समान र्वायु द्वािा होिा है यह पोषर् के दाि कु लया न्याय द्वािा होिा है(अ.स.क.5/68-72)
िैसे र्वस्त्र िि का िं ग िोस्षि कििा है उसी ििह बतिी द्रर्वीकृ ि ििीि का मि िोषर् कि बाहि स्नकाििी
है

बतिी द्रव्यों के र्वीयम ग्रहर्ी िक पहुंचिे हैं स्िसे बतिी से अस्िर्वृस्द्ध होिी है(च.पा.च.स्स.3/14)
बतिी का कायम समान र्वायु का पोषर् किना है समान र्वायु िठिास्ि को प्रदीि किने का कायम कििी है
व्यास्ि के संप्रास्ि का स्र्वचाि किने पि प्रत्येक व्यास्ि मे िठिास्िदुस्ष्ट होिी है स्चककत्सा का अथम िठिास्ि की
दुस्ष्ट दूि किना िो बस्ति से सार्धय की िािी है

बतिी का कायम पक्वािय पि अस्िक है पक्वािय यह पुिीषििाकिा का आश्रय तथान है उसी ििह
ग्रहर्ी स्पिििाकिा का आश्रय है बतिी का पुिीषििाकिा औि स्पिििाकिा पि कायम तपष्ट है ििहन ने
पुिीषििाकिा अस्तथििाकिा एक ही माना है उसी ििह स्पिििाकिा र्व मज्जाििाकिा एक है (ििहन
सु.क.4/40) इसस्िए बतिी अस्तथ संबंिी / नाडीर्वह संतथान/ मस्तिष्क संबंिी व्यास्ि में प्रिार्वी कायम किने
का अनुिर्व होिा है इसस्िए बतिी अिम स्चककत्सा मानी िािी है औि कु छ र्वैद्य इसे पूर्म स्चककत्सा मानिे है
बतिी के र्वि र्वाि की स्चककत्सा है ऐसा नहीं है बतिी स्पि , कफ संसगम र्व सस्िपाि व्यास्ि की िी
स्चककत्सा है

Modern view :

As on now only hypothetical data available regarding action of basti. The

action of basti includes theory of action through vascular route, nervous route,

Biofeedback mechanism. mechanism of transport across intestine by transcellular

and paracellular pathway include, passive diffusion, facilitated diffusion, active

transport, carrier mediated transport endocytosis, pinocytosis. The rectum has rich

blood supply and basti drugs easily cross the rectal mucosa. Short chain fatty acid

can be absorbed into the blood as they are more water soluble and allow direct

diffusion from epithelial cells into capillary blood of villi. Basti Dravya- Honey

saindhav, sneha, kalka, kashay form emulsion by making the churning in the specific

manner described in the text, the large and middle chain fatty acid may break into

small chak fatty acid which can get easily absorbed. As Ayurved texts mentioned,

the active principles of drugs used in Basti get absorbed in system circulation by

passing hepatic metabolism. Swapnil. 2011 reported in his study that triphaladi basti
containing biomarker-garlic acid found in the circulation.

Anuvasan basti in the rectum and colon causes secretion of bile from the

galbladder which leads to the formation of conjugate micelles, they are absorbed

through passive diffusion (Gyanendra D. Shukla et al 2010)

Systemic biology concept: Action of basti on this concept reported by

Gyanendra D.Shukla et al 2010 in their review article. The organs are inter

connected at molecular level,Molecular incident is transformed at cellular level to

tissue level and then organ level. Each molecule of the body is connected with

mother molecule of the body by direct or indirect way.


When Basti in large intestine, it will affect another system. In another study it

is proved that, basti nourishes the bacterial flora which helps in production of vit B,

and to K and inhibits the production of pyruvic acid. This helps in prevent

degeneration of myelin sheath spinal cord. Another drugs in basti like honey

saindhav, milk are reach source of minerals as described earlier which get absorbed

through large intestine and transferred to other system and helps to cure the disease

of other systems e.g. ulcerative colitis.

Vagbhata described in his theory one types of vayu nourishes the other type

of vayu i.e. apana to prana.

Basti may act by pinocytosis mechanism [Kadlimatti S et al, 2009].

Pinocytosis is mechanism for transport of molecules across membranes. The

absorption of emulsion of Basti by diffusion i.e. transport of molecule from higher

concentration to lower concentration. There are many factors responsible for

absorption like solubility of basti dravya, temperature of the drug, body (purvakarma

like snehan-swedan), size of molecules, quantity concentration, surface area of

absorption, vascularity, PH

It is considered that Niruha Basti is hyper osmotic which causes movement

from cells of colon to lumen and facilitates the absorption of endotoxins into the

solution and produce detoxification by elimination (Dr. Vasudeven et al)

Anuvasana Basti is hypo osmotic which may be absorbed into the blood.

Sneha basti are responsible to regulate sympathetic activity. it decreases adrenaline

and non adrenaline to balance ANS. (Dr. Vasudeven et al)

In other view of researcher the action of basti is described in other way. As

the time passed, the waste begins to stick on the wall of colon and block the

intestinal wall opening and slow the elimination process which leads to intestines get
distended and cause pressure on mesenteric blood flow. This pressure diminishes

the oxygenated blood to the organs deoxygenated blood to heart. This phenomenon

leads to many diseases including IHD, Basti facilitate the lubrication as well clearing

of intestinal wall and ensures normalized blood circulation which leads to minimize

the ischemia of the organs (Vora MS, 2011).

Action by enteric nervous system (ENS)

The gut has its own mind 'Enteric Nervous System (ENS) just like larger brain.

This system sends and receives impulses, records experiences and responds to

emotions. This brain consists of sheaths of neurons embedded in the gut wall and

contains 100 millions neurons which are more than the spinal cord, peripheral

nervous system (Michael Carson)A. big part of our emotions are probably influenced

by the nerves in the gut. Basti may act all over the body by this system.

95% of the body's serotonin found in the bowel Serotonin (5-Hydroxy

tryptamine/5HT) is neurotransmitter that has tremendous influence over brain for

many functions like sleep appetite, memory, mood behaviors (including sexual and

hallucinogenic) pain (science daily.com, 2010) Basti may act on serotonin levels and

helps to pacify the diseases related neurological, psychological, pain ete.

स्र्वस्िष्ट बस्तियााँ

1. एिण्िमुिाकद स्नरूह बस्ति

एिण्िमूिं स्त्रपिं पिािा ह्रतर्वास्न मूिास्न च यास्न पञ्च ॥ ३८ ॥


िास्नार्श्गन्िास्िबिागुिूचीपुननमर्वािग्र्विदेर्वदा |
िागािः पिांिा मदनाष्टयुक्ता ििस्द्वकं से क्वस्थिेऽष्टिेषे ॥ ३९ ॥
पेष्या: ििाह्र्वा हपुषा स्प्रयङ्गुिः सस्पप्प्िीकं मिुकं बिा च ।
िसाञ्जनं र्वत्सकबीिमुतिं िागाक्षमात्रं िर्वर्ांियुक्तम् ॥ ४०॥
समास्क्षकतिैियुििः समूत्रो बस्तिनृर्
म ां दीपनिेखनीयिः ।
िङ्तो पादस्त्रकपृष्ठिूिं कफार्वृस्ि मा िस्नग्रहं च ॥ ४१ ॥
स्र्वण्मूत्रर्वािग्रहर्ं सिूिमार्धमानिामश्मरििकम िे च |
आनाहमिोग्रहर्ीप्रदोषानेिण्िर्वस्तििः िमयेि् प्रयुक्तिः ॥४२॥(च.स्स.3/38-42)
एिण्ि मूिाकद स्न ह र्वस्ति-िे ड की िड ३ पि ( १२ िोिा ) पिािा (कचूि), ितुपञ्चमूि

(िािपर्ी, पृस्िपर्ी, बडीकिेिी, ििकै िया, गोखरू), िास्ना, असगंि, अस्िबिा, गुरूच, पुननमर्वा,

अमििास, देर्वदा , प्रत्येक द्रव्य १-१ पि । मैनफि संख्या में आठ (िो सुपुष्ट हो औि तुने हुए न हो), िि २

कं स (५१२ िोिा) इनको स्र्वस्िपूर्वमक पकायें, िब अष्टमांि िि िेष िह िाय िब उसे उिाि िे। कलकद्रव्य

सोया, हाऊबेि, फू िस्प्रयंगु, स्पप्पिी, मुिेठी, बिा (या बािर्वच), िसौि, इन्द्रिौ, नागिमोथा, प्रत्येक द्रव्य

१-१ अक्ष (िोिा), सेंिा नमक १ िाग पीसकि स्मिा दें िथा उसमें मिु, स्िििैि, गोमूत्र िी स्मिा दें। इस
प्रकाि िैयाि किके प्रयोग की गयी यह स्न ह र्वस्ति िठिास्ि की िस्क्त को बढ़ािी है औि दोषों का िेखन
कििी है, अथामि दोषों को खुिचकि बाहि स्नकाि देिी है| िंता ऊ , पैि, स्त्रकसस्न्ि (स्तफक सस्क्थ पृष्ठ

र्वंिास्तथ के सस्न्ि-तथि) िथा पृष्ठिूि, कफ के आर्विर्, सामान्य र्वायु की कार्वि, मि, मूत्र, अपानर्वायु की

कार्वि, िूि युक्त आर्धमान (अफािा), अश्मिी (पथिी), िकम िा, आनाह, अिम (बर्वासीि) एर्वं ग्रहर्ी-स्र्वकाि-
इन सिी स्र्वकािों को एिण्ि मूिाकद स्न ह र्वस्ति दूि कि देिी है|

एिण्ि मूिाकद बस्ति (अ.ह.क. 4/7-10, च.स्स.3/38-42)

योग्य (Indications):

1. उ िूि (Pain in thighs)

2. िंतािूि (Pain in calf muscles)

3.पादिूि (Pain in lower limbs)

4.स्त्रक-पृष्ठिूि (Pain in lumbosacral region)

5. कफार्वृिर्वाि

6.पूिीष, मूत्र, र्वायू ग्रह

7. आर्धमान (Distension)

8. आनाह

9.अश्मिी (Calculus)

10. अिम (Piles)


11. ग्रहर्ी दोष

12. Peripheral Vascular disorders

द्रव्य मात्रा
मास्क्षक 160 स्मिी
िर्वर् 10 ग्रॅम
स्नेह 240 स्मिी
कलक 80 ग्रॅम
क्वाथ 320 स्मिी
गोमूत्र 160 स्मिी
एकत्र 960 स्मिी

स्नेह - सहचिाकद िैि, गुिुच्याकद िैि, िन्र्वंिि िैि अर्वतथानुसाि

कलक - ििपुष्पा, हपुष, स्प्रयंगु, स्पप्पिी, िेष्ठमि, बिा, िसांिन, र्वत्सक बीि (इंद्रयर्व), मूतिा

क्वाथ - एिं ि मूि (िीन िाग) पिाि, ितु पंचमूि, िास्ना, अर्श्गंिा, अस्िबिा, गुिूची, पुननमर्वा, आिग्र्वि,

देर्वदा (प्रत्येकी एक िाग), मदनफि -8

(व्यर्वहाि मे गोमूत्र की मात्रा को कम कि क्वाथ की मात्रा बढ़ार्वे).

गुर्िमम - दीपन, पाचन, र्वाििमन

2. स्पच्छा बस्ति
स्पच्छार्वस्ति-स्नरूहर्र्वस्ति का ही एक नाम स्पस्च्छिर्वस्ति या स्पच्छार्वस्ति िी है। इसके अन्य नाम
इस प्रकाि है-दोपहि, संिमन, िोिन, िेखन। इसमें र्वे द्रव्य िािे िािे हैं, िो स्चपस्चपाहि युक्त या
िुआबदाि हों। यह र्वस्ति िक्तास्िसाि में स्र्विेष रूप से प्रयुक्त की िािी है।
यर्वासकु िकािानां मूिं पुष्पं च िालमिम् । न्यग्रोिोदुम्बिार्श्त्थिुङ्गाश्च स्द्वपिोस्न्मिािः॥२२५॥
स्त्रप्रतथं सस्िितयैिि् क्षीिप्रतथं च साियेि् । क्षीििेषं कषायं च पूिं कलकै स्र्वर्णमश्रयेि् ॥२२६।
कलकािः िालमस्िस्नयामससमङगा चंदनोत्पिम् । र्वत्सकतय च बीिास्न स्प्रयङ्गुिः पद्मके ििम् ॥
स्पच्छार्वस्तिियं स्सद्धिः सतृिक्षौद्रिकम ििः । प्रर्वास्हकागुदभ्रंििक्तस्रार्वज्र्विापहिः ॥२२८।।
(च.स्च.14/225-228)
स्पच्छार्वस्ति-यर्वास की िड, काि की िड, सेमि का फू ि, बिगद की ििा के अंकुि या िुंग, गूिि

के अंकुि, पीपि के अंकुि, ये प्रत्येक द्रव्य २-२ पि (८-८ िोिा) िे, इनको िौकु ि किके िि ३

प्रतथ (१९२ िोिा ) औि दूि १ प्रतथ ( ६४ िोिा) में िािकि इन्हें यथास्र्वस्ि पकायें, िब पकिे-

पकिे दूि मात्र िेष िह िाय िब उस क्वाथ को छान िे। िदनन्िि िालमिी स्नयामस (मोचिस),

मिीठ, िािचन्दन, नीिकमि (नीिोफि ), र्वत्सकक बीि (इन्द्रिौ ), फू िस्प्रयंगु, कमि का के सि,

इन सिी द्रव्यों को समान िाग िेकि इनका कलक िैयाि किें , इस कलक को ऊपि िैयाि ककये गये

क्वाथ िस में स्मिा दें, इसी में ती, मिु, चीनी िी स्मिा दें। इस प्रकाि यह स्पच्छार्वस्ति िैयाि हो

िािी है। इसका प्रयोग प्रर्वास्हका, गुदभ्रंि, िक्तस्त्रार्व िथा ज्र्वि की िास्न्ि के स्िए किना चास्हए
यह उक्त िोगों का िीघ्र िमन कििी है।
बदयैिार्विीिेिि
ु ालमिीिन्र्वनाङ्कु िािः । क्षीिस्सद्धािः क्षौद्रयुिािः सास्रािः स्पस्च्छिसंस्ज्ञिा: ॥ ८५॥
र्वािाहमास्हषौिभ्रबैिािैर्य
े कौक्कु िम् । सद्यतकममृगािं र्वा देयं स्पस्च्छिबस्तिषु ॥८६॥
(सु.स्च.38/85-86)
स्पच्छाबस्ति कलपना-बेि, ऐिार्विी (नागर्विा), िेिु (स्िसोढ़ा), सेमि औि िामन के कोमि पिों

को दूि में पकाकि मिु िथा िक्त स्मिा बनाई गई बस्ति, स्पस्च्छि बस्ति कहिािी है । स्पस्च्छि

बस्तियों में सूअि, िैंस, िेडा, स्बिाि, कृ ष्र्मृग, मुगाम औि बकिे का िािा िक्त स्मस्श्रि किना
चास्हए ॥ ८५-८६ ॥
योग्य (Indication)

अस्िसाि (Diarrhoea)

प्रर्वास्हका (Dysentery)

ग्रहर्ी (IBS)

गुदगि िक्तस्त्रार्व (Per rectal bleeding)

गुद्भ्रंि (Prolapsed rectum)


बस्ति गुर् - स्पस्च्छि
द्रव्य मात्रा
मास्क्षक 160 स्मिी
िर्वर् 10 ग्राम
स्नेह 160 स्मिी
कलक 20 ग्राम
क्वाथ 300 स्मिी
एकत्र सािािर्: 620 स्मिी
स्नेह- चांगेिी तृि (अ.हृ.) क्षीिषिफितृि (िै. ि.)

क्वाथ 1 - मिुयष्टी, बदि, नागबिा, िन्र्व(िामन)अंकुि, िालमिी, श्लेष्मान्िक स्सद्ध क्षीि

क्वाथ 2 - यर्वासामूि र्व पुष्प कु ि, कािमूि, िालमिी, न्यग्रोि, उदुब


ं ि, श्रुंग, अर्श्त्थिुंग स्सद्ध क्षीि

कलक - मोचिस, समांग, चंदन, उत्पि, र्वत्सक बीि, स्प्रयंगु, पद्म के सि

3. यापन बस्तियां - नीचे स्िखी हुई सिी बस्तियां यापन बस्ति कहिािी हैं। ये र्वीयम को बढ़ािी हैं,

बि, मांस को बढ़ािी हैं। ये िसायन एर्वं बािीकिर् दोनों प्रकाि की होिी हैं।

यापनाश्च र्वतियिः सर्वमकािं देयािः; िानुपदेक्ष्यामिः—मुतिोिीिबिािग्र्वििास्नामस्ञ्जष्ठाकिु -


िोस्हर्ीत्रायमार्ापुननमर्वास्बिीिकगुिूचीस्तथिाकदपञ्चमूिास्न पस्िकास्न खण्िििः क्िृिान्यष्टौ च
मदनफिास्न प्रक्षालय ििाढके परिक्वाथ्य पादिेषो िसिः क्षीिस्द्वप्रतथसंयुक्तिः पुनिः श्रृििः क्षीिार्विेषिः
पादिाङ्गििसतिुलयमिुतृििः ििकु सुमामिुककु ििफििसाञ्जनस्प्रयङ्गुकलकीकृ ििः ससैन्िर्विः सुखोष्र्ो
र्वस्तििः िुिमांसबििननिः क्षिक्षीर्कासगुलमिूिस्र्वषमज्र्विबध्न (र्वर्धमम)कु ण्ििोदार्विमकुस्क्षिूिमूत्र-
कृ च्रासृग्रिोस्र्वसपमप्रर्वास्हकास्ििो िािानू िङ्तार्वस्तिग्रहाश्मयुन्मादािमिःप्रमेहार्धमानर्वाििक्तस्पिश्ले
ष्मव्यास्िहििः सद्यो बििननो िसायनश्चेस्ि (१);

यापनार्वस्तियों का प्रयोग-यापना-बस्तियों सिी कािों ( ऋिुओं) में दी िा सकिी हैं। उन बस्तियों का हम


यहााँ उपदेि कि िहे है।

मुतिाकद यापन-बस्ति-नागिमोथा, खि, बरियािा की िड, अमििास की गुदी, िास्ना, मिीठ, कु िकी,

त्रायमार्ा, पुननमर्वा, बहेडा, गु च, स्तथिाकद पञ्चमूि (िास्िपर्ी, पृस्िपर्ी, छोिी किेिी, बडीकिेिी,

गोखरू), इन सिी द्रव्यों को अिग-अिग १-१ पि ( ४-४ िोिा ) की मात्रा में िेकि िौकु ि किके िख िें,
आठ मैन फिों को िेकि िुकडे कि सबको अच्छी ििह िो िें। इनको १ आढक (२५६ िोिा ) िि में
िािकि নিस्थर्वृि् क्वाथ किें । िब पकिे-पकिे चिुथाांि िि िेष िह िाय िो उसे उिाि कि छान िे, उस
क्वाथिस में २ प्रतथ (१२८ िोिा) गाय का दूि स्मिाकि उसे पुनिः पकाये िब दूि मात्र िेष िह िाय िो उसे
उिािकि िख िें। उस दूि में से चिुथाांि िाग ३२ िोिा दूि िे, उिना ही िांगि पिु-पस्क्षयों का मांसिस

िे िथा उसी के बिाबि अिग-अिग मिु िथा ती स्मिा दे। उसके बाद ििकु सुमा (सोया), मुिेठी, कु िि

फि (इन्द्रिौ), िसाञ्जन ( िसर्वि), स्प्रयंग,ु सेंिा नमक इन सबको िेकि आर्वश्यकिानुसाि इनका कलक
बनाकि सबको एक साथ ििी-िााँस्ि स्मिाकि गुनगुना किके र्वस्ति का प्रयोग किें ।
फिश्रुस्ि-इसका प्रयोग किने से िुि, मांस िथा बि की र्वृस्द्ध होिी है। इससे क्षिक्षीर् (उििःक्षि के कािर्

कमिोि), कास, गुलम, उदििूि, स्र्वषमज्र्वि, ब्रध्न( र्वृस्द्ध ) िोग, र्वस्तिकु ण्िि अथर्वा र्वािकु ण्िि, उदार्विम,

कु स्क्ष िूि, मूत्रकृ च्र , िक्त िस्नि स्र्वकाि, ििोस्र्वकाि, स्र्वसपम, प्रर्वास्हका, स्िििःिूि, िानुिूि, ऊििूि,

िंतािूि, र्वस्तिग्रह, अश्मिी (पथिी), उन्माद, अिम (बर्वासीि), प्रमेह, आर्धमान (अफािा), र्वाििक्त िथा
स्पिि एर्वं कफि िोगों का नाि होिा है। इसका सेर्वन किने से िीघ्र ही बि की िथा िसायन-औषिो के
सेर्वन से होने र्वािे गुर्ों की प्रास्ि होिी है।

एिण्िमूिपिािाि् षट्पिं िास्िपर्ी पृस्िपर्ी र्वृहिी कण्िकारिका गोक्षुिको िास्नार्श्गन्िा गुिूची


र्वषामिूिािग्र्विो देर्वदार्णर्वस्ि पस्िकास्न खण्िि: क्िृिास्न फिास्न चाष्टौ प्रक्षालय ििाढके क्षीिपादे पचेि् ।
पादिेषं कषायपूिं 'ििकु सुमाकु ष्ठमुतिस्पप्पिीहपुषास्बलर्वर्वचार्वत्सकफििसाञ्जन-
स्प्रयङ्गुयर्वास्नप्रक्षेपकस्लकिं मिुतृििैिसैन्िर्वयुक्तं सुखोष्र्ं स्न हमेकं द्वौ त्रीन् र्वा दद्याि् । सर्वेषां प्रितिो
स्र्विेषिो िस्ििसुकुमािस्त्रीस्र्वहािक्षीर्क्षितथस्र्विस्चिािमसामपत्यकामानां च (२);

एिण्िमूिाकद यापना-र्वस्ति-िे ड की िड िथा पिाि (ढाक) की छाि ६ पि अथामि् प्रत्येक द्रव्य ३-


३ पि (१२-१२ िोिा ), िास्िपर्ी, पृस्िपर्ी, र्वृहिी (बडीकिेिी), कण्िकारिका (छोिीकिेिी), गोखरू

(इसे ितुपश्मूि कहिे है),िास्ना, असगंि, गु च, पुननमर्वा, अमििास की गु्दी, देर्वदा -हन ग्यािह द्रव्यों को

एक-एक पि (४-४ िोिा) िेकि इं िौकु ि कि िें, आठ संख्या में मैनफिों को िेकि िुकडे कि िि से िोकि
१ आढ़क (२५६ िोिा) िि औि उससे चौथाई (१ प्रतथ) गाय के दूि मे स्मिाकि उक्त द्रव्यों को क्वाथ-स्र्वस्ि
से पकाएं। िब उक्त क्वाथद्रब चिुथामि िेष िह िाय िब उसे छानकि उसमें सोया, कू ठ, नागि मोथा,

स्पप्पिी, हाऊबेि, बेि की गुद्दी र्वच, र्वत्सक फि ( इन्द्रंिौ ), िसबि, स्प्रयंगु, अज्ञर्वाइन- इन सब द्रव्यों को

िेकि आर्वश्यकिानुसाि कलक बनाकि स्मिा दें औि उसी में मिु, ती, िेि, सेंिानमक िािकि ििी-िांस्ि

स्मिाकि गुनगुने द्रर्व से एक, दो या िीन स्नरूहर्वस्तियााँ देनी चास्हए। यह एिण्िमूिाकद यापना-बस्ति सिी

प्रकाि के व्यस्क्तयों के स्िए स्हिकि होिी है, स्र्विेष किके िस्िि, सुकुमाि, स्त्री-सहर्वास कििे िहने के

कािर् िो पु ष क्षीर् हो गये है, स्िन्हें उििःक्षि हो गया है, िो गर्वृद्ध हो चुके हैं, िो स्चिकाि से अिम के

िोगी है औि िो सन्िान-प्रास्ि के इच्छु क है, उनके स्िए स्हिकि होिी है।

िद्वि सहचिबिादिममूिसारिर्वास्सर्धदेन पयसा (३);

सहचिाकद यापना-बतिी-उसी प्रकाि सहचि (किसिै या), बरियािा की िड, दिम (िाि) की िड िथा

सारिर्वा ( अनन्िमूि) इन द्रव्यों के कलक से पकाये गये दूि में मिु,तृि, सेंिानमक स्मिाकि बस्ति देनी
चास्हए।
िथा र्वृहिीकण्िकािीििार्विीस्च्छि हाश्रृिेन पयसा मिुकमदनस्पप्पिीकस्लकिेन पूर्वमर्वदर्वस्तििः (४)
र्वृहत्याकद यापना-र्वस्ति-बडीकिेिी, छोिीकिेिी, ििाबि िथा गुरूच के क्वाथ िथा मुिठ
े ी, मैनफि,

स्पप्पिी इनके कलक द्वािा स्र्वस्ि पूर्वमक पकाये गये गाय के दूि में मिु, ती, िेि, सेंिानमक स्मिाकि
र्वस्ति देनी चास्हए। र्वस्तिद्रर्व का प्रयोग कििे समय उसे गुनगुना होना चास्हए। इसके गुर् िी
उपयुक्त र्वस्तियों के समान ही समझना चास्हए।

िथाबिास्िबिास्र्वदािीिास्िपर्ीपृिीपर्ीर्वृहिीकण्िकारिकादिममूिप षककाश्मयमस्बलर्वफ
ि- यर्वस्सर्धदेन पयसा मिुकमदनकस्लकिेन मिुिृिसौर्विचमियुक्तेन
कासज्र्विगुलमप्िीहार्ददिस्त्रीमद्यस्क्िष्टानां सद्योबििननो िसायनश्च (५)
प्रथम बिाकदयापना-र्वस्ति-बरियािा की िड, अस्िबिा, स्र्वदािीकन्द, िास्िपर्ी(सरिर्वन),

पृिीपर्ी(स्पठर्वन), बडी किेिी, छोिी किेिी, िाि की िड, फािसा, गम्िाि की छाि, बेि की

गुद्दी, िौ इन सिी द्रव्यों को समान िाग िेकि आर्वश्यकिानुसाि इनका कलकिैयाि किे । इस कलक

द्वािा पकाये गये गाय के दूि में मुिेठी िथा मैनफि का कलक, मिु, तृि िथा स्पसा हुमा

सोंचिनमक स्मिाकि र्वस्ति देनी चास्हए। इसके प्रयोग से कास, ज्र्वि, गुलम, प्िीहा, अर्ददि (मुख-
प्रदेि का िकर्वा) िोग िान्ि हो िािे है िथा अस्िक स्त्री-सहर्वास किने एर्वं अस्िक मद्यपान किने
से पीस्डि पु षों को िीघ्र बि देने र्वािी िथा िसायनगुर्ों को देने र्वािी यह बस्ति होिी है।

बिास्िबिािास्नािग्बिमदनस्बलर्वगुिूचीपुननमर्वैिण्िार्श्गन्िासहचिपिािर्वदेर्वदा सस्द्वपञ्चमूिास्न
पस्िकास्न यर्वकोिकु ित्थस्द्वप्रसृिं िुष्कमूिकानां च ििद्रोर्स्सदिं स्न हप्रमार्ार्विेषं कषायं पूिं
मिुकमदनििपुष्पाकु ष्ठस्पप्पिीर्वचार्वत्सकफििसाञ्जनस्प्रयङ्गुयर्वानीकलकीकृ िं
गुितृििैिक्षौद्रक्षीि- मांसिसाम्िकास्ञ्जकसै्िर्वयुक्तं सुखोष्र्ं र्वस्ति दद्याच्छु िमूत्रर्वचम:सङ्गेऽस्नििे
गुलमहृद्रोगार्धमानब्रघ्नपार्श्म पृष्ठ किीग्रह संज्ञानािबिक्षयेषु च ( ६);

स्द्विीय बिाकद यापना -बतिी-र्विा (बरियािा ) की िड अस्िबिा, िास्ना, अमििास की गुद्दी,


मैनफि, बेि की गुद्दी, गु च, पुननमर्वा, एिण्िमूि, असगंि, सहचि (किसिै या), पिाि ( ढाक) की

छाि, देर्वदारू, दोनों पञ्चमूि (र्वृहत्पञ्चमूि-बेि की गुद्दी, सोनापाठा, गम्िाि, पाढि, गस्नयािी ।

ितुपञ्चमूि- िास्िपर्ी,पृिीपर्ी बृहिी =बडीकिेिी, कण्िकािी =छोिी किेिी, गोखरू), इन सिी

द्रव्यों को अिग अिग १-१ पि (४.४ िोिा) िे । िौ, कोि (बेि), कु िथी िथा सूखी मूिी इन
द्रव्यों को अिग-अिग दो-दो प्रसृि (१६.१६ िोिा)िे। इन सबको उक्त मात्रा में िेकि िौकु ि कि
िे, िदनन्िि इन्हें १ द्रोर् (१२ सेि १२ छिाक ४ िोिा) िि में क्वाथ-स्र्वस्ि से पकाएं, िेष उिना

ही िखें स्ििना एक बाि में र्वस्ति द्वािा प्रयोग ककया िा सके , उस क्वाथिस को छानकि उसमें

मुिेठी, मैनफि, सोया, कू ठ, स्पप्पिी, र्वच, इन्द्रिौ, िसर्वि, स्प्रयंगु िथा अिर्वाइन का कलक
आर्वश्यकिानुसाि स्मिा दे, उसी में गुड, ती, िेि, मिु, गाय का दूि, मांसिस, खट्टीकांिी, सेंिा

नमक स्मिाकि गुनगुना िहने पि र्वस्ति देनी चास्हए। स्र्विोम र्वायु के कािर् िब िुक, मूत्र िथा

मि के स्नकिने में रूकार्वि हो िब इसका प्रयोग किना चास्हए, साथ ही गुलमिोग, हृदयिोग,

आर्धमान (अफािा), ब्रघ्न (र्वृस्र्धद) िोग, पसस्ियों, पीठ एर्वं कमि के िकड िाने पि, संज्ञानाि

(बेहोिी), िािीरिक बि का क्षय होने पि किना चास्हए।

हपुषािमकुिर्वो स्द्वगुर्ािमक्षुण्र्यर्विः क्षोिोदकस्सद्धिः क्षीििेषो मिुतृिैििर्वर्युक्तिः सर्वामङ्ग-


स्र्वसृिर्वाििक्तसक्तस्र्वण्मूत्रस्त्रीखेकदिस्हिो र्वािहिो बुस्द्धमेषास्िबििननि (७);

हपुषाकद यापना-र्वस्ति-आिा कु िर्व ( ८ िोिा) हाऊबेि, इससे दूने कु िे हुए िौ, अथामि ऐसे

िौ िें स्िनके दो-दो िुकडे कि कदये गये हों, इन्हें चौगुने दूि औि िि में िािकि पकायें। यहााँ
चौगुने से िात्पयम है कक दो िाग दूि औि उिना ही पानी होना चास्हए। िब पानी ििकि के र्वि
दूि िेष िह िाय, िब उसे छानकि िख िें, िब उसमें मिु, ती, िेि, सेंिा नमक स्मिाकि िब द्रर्व
पदाथम गुनगुना हो ििी बस्ति का प्रयोग किा दे। इसके प्रयोग से सम्पूर्म ििीि में फै िा हुआ
र्वाििक्त-स्र्वकाि िथा मि, मूत्र की कार्वि दूि हो िािी है। अत्यस्िक स्त्री-सहर्वास किने से क्षीर्

हुए पु षों के स्िए यह िािदायक होिी है, सिी प्रकाि के बाि-स्र्वकािों का िमन कििी है िथा

बुस्द्ध, िािर् िस्क्त एर्वं अस्ि के बि को बढ़ाने र्वािी होिी है।


हृतर्वपञ्चमूिीकषायिः क्षीिोदकस्सद्धिः स्पप्पिीमपिुकमदनकलकीकृ ििः सगुडतृििैििर्वर्िः
क्षीर्- स्र्वषमज्र्विकर्णिितय र्वस्तििः (८);

ितुपञ्चमूिाकद यापना-र्वस्ति-ितुपञ्चमूि (िास्िपर्ी, पृिीपर्ी, बृहिी=बडी किेिी, कण्ि

कारिका छोिी किेिी, गोखरू), इन द्रव्यों को दूि औि िि में पकाकि क्वाथ िैयाि किें । (यहााँ दूि

औि िि को स्मिाकि क्वाथ्य द्रव्यों की मात्रा से चौगुना िेना चास्हए ), पकिे पकिे िन दूि मात्र

िेष िह िाय, िब उसे छानकि िख िे। उसमें स्पप्पिी, मुिेठी िथा मैनफि का कलक, गुड, ती,

िेि, सेंिानमक स्मिाकि गुनगुना िहने पि बस्ति देनी चास्हए। इस र्वस्ति के प्रयोग से ककसी िी
कािर् से क्षीर् हुआ पु ष पुनिः तर्वातथ्य िाि कििा है िथा स्र्वषमज्र्वि के कािर् कृ ि हुए पु ष की
दुबमििा िी इससे दूि हो िािी है।

बिास्िबिापामागामत्मगुिाष्टपिािमक्षुण्र्यर्वाञ्जस्िकषायिः सगुडतृििैििर्वर्युक्तिः पूर्वर्व


म द् बस्तििः
तथस्र्विदुबि
म क्षीर्िुि स्ििार्ा पथ्यिमिः (९);

िृिीय बिाकद यापना-बतिी बरियािा की िड, अस्िबिा, अपामागम की िड, ककर्वाच के बीि-इन

चािों द्रव्यों को दो-दो पि (८.८ िोिा) की मात्रा में कु ि स्मिाकि ८ पि ( ३२ िोिा ) िें, अिकु िे
िौ १ अंिस्ि (१६ िोिा) इन सब द्रव्यों को िेकि िौकु ि किके पहिे की िााँस्ि दूि औि िि
स्मिाकि इस चौगुने द्रर्व को क्वाथस्र्वस्ि से पकायें। िब दूि मात्र िेष िह िाय िब उसे उिािकि
छान िे। इस क्वाथिस मे गुङ, ती, िेि, सेंिा नमक स्मिाकि गुनगुना िहने पि पूर्वमर्वि् र्वस्ति का

प्रयोग किें । इसका प्रयोग र्वृद्धों, दुबमिो, क्षीर् िुि िथा क्षीर् िक्त र्वािे पु षों के स्िए अत्यंि
स्हिकि होिा है।
बिामिुकस्र्वदािीदिममूिमृद्वीकायर्वै: कषायमािेन पयसा पक्त्र्वा मिुकमदनकस्लकिं समिुतृि
सैन्िर्वम् ज्र्वािािेभ्यो र्वस्ति दद्याि् (१०);

चिुथम बिाकद यापना-बतिी- बरियािा की िड, मुिेठी, स्र्वदािीकन्द, िाि की िड, मुनक्का, िौ इन
सिी द्रव्यों को समान िाग िेकि िौकु ि कि यथास्र्वस्ि क्वाथ बनायें इस क्वाथ को छानकि पुनिः
बकिी का दूि िािकि पकाएं, िब कषायिस ििकि दूि मात्र िेष िह िाय िब उसमें मुिेठी औि

मैनफि का कलक, मिु, ती, स्पसा हुआ सेंिा नमक स्मिाकि उस गुनगुने द्रर्व की बस्ति दें। यह र्वस्ति
ज्र्वि-पीस्डिों के स्िए स्हिकि होिी है।

िास्िपर्ीपृस्िपर्ीगोक्षुिकमूिकाश्मयमप षकखिूमिफिमिूकपुष्पैििाक्षीिििप्रतथाभ्यां स्सर्धद:


कषायिः स्पप्पिीमिुकोत्पिकस्लकििः सतृिसैन्िर्विः क्षीर्ेन्द्रीयस्र्वषमज्र्विकर्णिितय बस्तििः ितििः
(११);

िास्िपण्यामकद यापनार्वस्ति-िास्िपर्ी, पृस्िपर्ी, गोखरू की िड, गम्िाि की छाि फािसा, खिूि

का फि, महुआ का फू ि, इन सिी द्रव्यों को समानिाग िेकि िौकु ि किके १ प्रतथ (६४ िोिा)

बकिी के दूि िथा पानी में िािकि क्वाथ स्र्वस्ि से उसे पकाएं, िब पानी ििकि के र्वि दूि िेष िह

िाय िब उसे छानकि उसमें स्पप्पिी, मुिेठी, नीिकमि इन द्रव्यों को आर्वश्यकिानुसाि िेकि
इनका कलक िेयाि कि उसी में स्मिा दें औि उसमें ती िथा सेंिा नमक पीसकि स्मिा दें। गुनगुना
िहिे इसकी बस्ति दें इसके प्रयोग से स्िसकी इस्न्द्रयााँ क्षीर् हो गयी हैं, र्वे अपने-अपने कायम में सक्षम

हो िािी हैं औि िो िोगी स्र्वषमज्र्वि के कािर् कृ ि हो गये हैं, उनके स्िए िी यह बस्ति िािकािी
होिी है।
स्तथिाकदपञ्चमूिीपञ्चपिेन िास्िषस्ष्टकयर्वगोपिूममाषपञ्चप्रसृिेन छागं पयिः श्रृिं पादिेष
कु क्कु िाण्ििससममिुतृििकम िासैन्िर्वसौर्वचमियुक्तो बस्तिर्वृमष्यिमो बिर्वर्मिननश्च इस्ि यापना
बतियो द्वादि ॥१६॥
स्तथिाकद यापना-र्वस्ति-स्तथिाकद पञ्चमूि (इसे ितुपञ्चमूि िी कहिे हैं। द्रव्य-िास्िपर्ी, पृस्िपर्ी,

बडी किेिी, छोिी किेिी, गोखरू) इन्हें पााँच पि (२० िोिा) िे, अथामि प्रत्येक द्रव्य को १-१ पि

(४.४ िोिा)िें। िास्िचार्वि, साठी के चार्वि, िौ गेहू,ाँ उडद पााँच प्रसृि ( ४० िोिा अथामि प्रत्येक
द्रव्य(८,८ िोिा ) इन सिी द्रव्यों को उक्त परिमार् में िेकि िौकु ि किके चौगुने बकिी के दूि में
िािकि पकाये, चिुथामि िेष िहने पि उसे उिािकि छानकि िख िें। उस क्वाथिस में मुगी के अंिों
का िस औि उस िस के बिाबि मिु, ती, चीनी, स्पसा हुआ सेंिा नमक िथा सोंचि नमक ििी-
िााँस्ि स्मिा दे। इसका प्रयोग गुनगुना िहिे ही किें । यह अत्यन्ि बीयमर्विमक होिी है इससे िािीरिक
बि िथा सौन्दयम की र्वृस्द्ध होिी है। इस प्रकाि यहााँ िक बािह यापनार्वस्तियों का र्वर्मन कि कदया
गया है।
कलपश्चैष स्िस्खगोनदमहस
ं सािसाण्ििसेषु तयाि् ॥ १७ ॥
िीन अन्य यापना-बस्तियााँ-ऊपि स्तथिाकद यापनार्वस्ति में मुगी के अण्िों के िस का िो स्र्विान
कहा गया है, उसी के अनुसाि मोि, गोनदम, हंस इनके अण्िों के िसों का िी प्रयोग समझना चास्हए।
ऊपि १२ यापनार्वस्तियों का स्र्विद र्वर्मन किया िा चुका है। यहााँ मोि आकद के अण्िों के िस से
िीन बस्तियों का सूत्ररूप में औि स्र्विान ककया गया गया है। इस प्रकाि ये कु ि स्मिाकि १५
यापनार्वस्तियााँ हो िािी है।
१. मयूिाण्ििस यापना-र्वस्ति-ितुपञ्चमूि के द्रव्यों िथा िास्ि, पस्ष्टक, िी, गेहू,ाँ उडद इनको उक्त

परिमार् में िेकि इनको दूि में पकाकि उसमें मोि के अण्िे का िस, मिु, ती, चीनी, सेंिानमक,
सोंचिनमक स्मिाकि, र्वस्ति दे।
२. गोनदामण्ििस यापना-र्वस्ति-मयूिाण्ििस यापनार्वस्ति की िााँस्ि उक्त द्रव्यों का उसी परिमार् में
ग्रहर् कि गोनदम पक्षी के अंिे का िस स्मिाकि मिु आकद द्रव्यों को िी उसी में िािकि बस्ति दें।
३. हंसाण्ििस यापना-र्वस्ति-मयूिाण्ििस यापनाबस्ति की िााँस्ि उक्त द्रव्यों का ग्रहर् कि उसमें हंस
पक्षी के अण्िे का िस स्मिाकि मिु आकद द्रव्यों को िी उसी मे िािकि र्वस्ति प्रयोग किें।
स्र्वस्िष्टिा- यापन बस्ति आयु का यापन कििी है औि आयु का र्विमन कििी है
1. स्न ह बस्ति प्रिान रूप से िेखन कमम कििी है औि अनुर्वासन बस्ति प्रिान रूप से बृहन कमम
कििी है पिन्िु यापन बस्ति उिय कायम किने से स्न ह के तथान पि यापन बस्ति का प्रयोग
ककया िा सकिा है औि इसमें अनुर्वासन देने की आर्वश्यकिा नहीं है
2. इस बस्ति से अस्िर्विमन होिा है
3. िसायन औि र्वािीकिर् होने से बि , मांस र्वृस्द्धकि है औि उिम िुि की उत्पस्ि मे
िािदायक है
4. इसमें सिी िोगों का प्रिमन किने की िस्क्त है
5. यापन बस्ति मे पथ्य आकद की स्र्विेष आर्वश्यकिा नहीं होिी
6. यापन बस्ति स्निापद होिी है

यापन बस्ति मे परिहाि

व्यायामो मैथुनं मद्यं मिुस्नस्िस्ििाम्बूच संिोिनं िथक्षोिोबस्तिष्र्वेिेषु गर्णहिम| (च.स्स.12/23)

1. व्यायाम
2. मैथुन
3. मद्यसेर्वन
4. मिुसेर्वन
5. िीिि िोिन
6. िथक्षोि
यापन बस्ति व्यापद-
िोफास्िनािपांिुत्र्विुिािम: परिकर्णिका:|
तयुज्र्वमिश्चास्िसािश्च यापनात्यथम सेर्वनाि || (च.स्स.12/30)
1.िोफ
2.अस्िनाि
3.पांिु
4.िूि
5.अिम
6.परिकर्णिका
7.अस्िसाि
प्रमार् की अपेक्षा अस्िक मात्रा मे र्व अस्िक संख्या मे बस्ति देने से अिम ,परिकर्णिका ये िक्षर्
उद्भर्व होने की संिार्वना होिी है
स्चककत्सा –
अरिष्टक्षीिसीर्धर्वाद्या ित्रेष्टा दीपनी किया | (च.स्स.12/31)
िोफ आकद के होने पि अरिष्टो का सेर्वन क्षीि (दूि अथर्वा पाठिेद के अनुसाि – क्षाि=
यर्वक्षाि) सीिु(मद्यिेद) आकद अस्िर्विमक पदाथो का सेर्वन किाना चास्हए| इस प्रकाि की िय
को दीपनी किया कहिे है

यापन बस्ति मे प्रमुख रूप से मांसिस, दुग्ि, तृि, मिु,गुड,सैन्िर्व होिा हैयापन बस्ति की
मात्रा 9 प्रसुि होिी है प्रत्यक्ष मे मुतिादी यापन, औि बािादी यापन बस्ति र्वैद्य र्वगम को अस्िक
स्प्रय है

मुतिाकद यापन (िाियापन बस्ति)

योग्य/उपयोस्गिा (Indications/Utility):

1. िुििनन 2. मांसबि र्वृद्धी


3. क्षिक्षीर् 4. कास (Cough)

5. िूि (Pain) 6.स्र्वषमज्र्वि(intermittent fever)

7. कु स्क्षिूि (Pain in Flanks) 8. उदार्विम (Retrograde intestinal movement)

9.मूत्रकृ च्छ (Difficulty for urination) 10. स्र्वसपम (Herpes)

11. प्रर्वास्हका (Dysentery) 12. स्ििो िा (Headache)


13. िानूसंस्ििूि (Joint pain) 14. उ , िंतािूि (Pain in thighs&calf)

15. अश्मिी (Calculus) 16. प्रमेह (Diabetes)

17. र्वाििक्त (Arthritis) 18. िसायन Rejuvenation

19. During chemotherapy to prevent complications

20. Spondylosis

21. Sub Acute combined degenerative disease


द्रव्य िास्त्रोक्त व्यर्वहािाि
½ प्रतथ 100ml
मास्क्षक
1/2 कषम 10gm
िर्वर्
½ प्रतथ 160ml
स्नेह(िेि+तृि)
मात्रा तपष्ट नहीं है 30gm
कलक
2 प्रतथ 300ml
क्षीिकषाय
½ प्रतथ 100ml
मांसिस
700ml
एकत्र

स्नेह – िैि - क्षीिबिा िैि

तृि - अर्श्गंिादी तृि, सुकुमाि तृि

कलक - मिुयस्ष्ट, कु िि, िसांिन, स्प्रयंगु, ििपुष्पा (प्रत्येक 6 gm)

कषायक्षीि - नागिमोथा, बिा, आिग्र्वि िास्ना, मंस्िप्ठा, किुकिोस्हर्ी, त्रायमार्ा, पुननमर्वा स्बस्ििक,

गुिूची, ितु पंचमूि (प्रत्येक 10 gm) मदनफि (4-8 नग)


बिाकद यापन (च.स्स. 12/16)

यह बस्ति प्रमुख रूप से कफानुबंिी र्वाि व्यािी के स्िए उपयुक्त है.

योग्य (Indications):

1. िुिसंग 2.मूत्रसंग (Retention of urine)

3. बचमसंग, आर्धमान (Distension) 4. गुलम (Tumour)

5.हृद्रोग(Heart diseases like cardiac myopathy) 6.पार्श्मग्रह

7. करिग्रह 8. पृष्ठग्रह

9. संज्ञानाि(Loss of sensation) 10. बिक्षय(General Disability, AIDS)

11. िसायन (Rejuvenation) द्

िास्त्रोक्त व्यर्वहािाि
द्रव्य
1 प्रसृस्ि 80 ml
मास्क्षक
1 कषम 10gm
िर्वर्
2 प्रसृस्ि 160ml
स्नेह(िेि-तृि)
मात्रा नहीं है 30gm
कलक
12 प्रसृस्ि 300ml
क्षीिकषाय
- 80 ml
कांिी
15प्रसृस्ि 620ml
एकत्र
स्नेह- िैि - बिा िैि, महानािायर् िेि, तृि-ििार्वयामकदतृि, अर्श्गंिाकद तृि, महास्नेह

कलक - मिुयष्टी, मदनफि, ििपुष्पा, कु ष्ठ, स्पप्पिी, र्वचा, कु िि, िसांिन, स्प्रयंगु, अिर्वायन(प्रत्येक 3
gm)
क्षीि कषाय- बिा, अस्िबिा, िास्ना, आिग्र्वि, मदनफि, स्बलर्व, गुिूची, पुननमर्वा, एिण्ि, अर्श्गंिा, सहचि,

पिाि, देर्वदा , दिमूि, यर्व, कोि, कु ित्थ (प्रत्येक 10 gm)


र्वैििर् बतिी (चिदि73/33-34, र्वन्गसेन- बतिकमामस्िकाि: 186)

पििुस्क्तकषमकुिर्वैिम्िीगुडस्सन्िुिन्मगोमुत्रै:|
िैियुिोऽयं बस्ति: िूिानाहामर्वािहि: ||
र्वैििर्: क्षािर्वस्तिमुक्त
म े चास्प प्रदीयिे || (चिदि73/33-34)

योग्य(indication)

1.किीिूि र्व िोथ (spondylitis) 2.उ िूि र्व िोथ(neuropathy)

3.पृष्ठिूि र्व िोथ (spondylitis) 4.उ तिम्ि (िीर्ामर्वतथा)

5.िानुसंकोच (knee jt. spasticity) 6.स्र्वषमज्र्वि (intermittent fever)

7.क्िैब्य (impotancy) 8.आमर्वाि (rheumatic fever)

9.आनाह (tympanitis)

द्रव्य मात्रा
गुड ½ पि = 20 gm
िर्वर् 1 अक्ष = 10 gm
स्नेह इषि मात्रा = 40 ml
अस्म्िका (इमिी)कलक 4 िोिा = 40 gm
गोमूत्र 32 िोिा = 320 ml

गुड – गुड को पानी में तोिकि मिु िैसा किे र्व छान िे

स्नेह – िन्र्वंििम िेि, सह्चिादी िेि, स्िि िेि

अस्म्िकाकलक – बीििस्हि अस्म्िका िास्त्र िि पानी में स्िगोकि िखे दुसिे कदन उसे प्िेि में दाबकि
एक समान किे र्व छान िे
र्वैििर् बस्ति िोिन कि िेने पि िी दी िािी है
क्षाि बस्ति(चिदि73/30-32, र्वंगसेन- क्षािबस्ति/ 179-181)

सैन्िर्वाक्षं समादायििाह्र्वाक्षं िथैर्व च|


गोमुत्रतय: पिान्यष्टार्वस्म्िकाया: पिद्वयम||
गुितय द्वे पिे चैर्व सर्वममिोड्य यत्नि:|
र्वस्त्रपूिं सुखोष्र् च र्वस्ति दद्यास्द्वचक्षर्:||
िूिं स्र्विसङ्गमानाहं मुत्रकृ च्र च दा र्म्|
ककम्युदार्विमगलु मादीन्सद्यो हन्यास्िपेस्र्वि:|| (चिदि73/30-32)

योग्य

1.िीर्म स्र्वबंि(chronic constipation) 2.िूि(pain)

3.आनाह(tympanitis) 4.मूत्रकृ च्छ(difficulty in urination)

5.कृ स्म(worm) 6.उदार्विम(retrograde intestinal movement)

7.गुलम(lump)

द्रव्य मात्रा
गुड 8 िोिा = 80 gm
िर्वर्(सैन्िर्व) 1 िोिा = 10 gm
स्नेह(क्षाि िेि, सह्चिादी) = 80ml
कलक(सौफ) 1 िोिा = 10 gm
गोमूत्र 32 िोिा = 320 ml
अस्म्िका 8 िोिा = 80 gm

क्षाि बस्ति िोिन कि िेने पि िी दी िािी है


मािुिैस्िक बस्ति(सु.स्च.38/100-101)
मिुिि
ै े समे तयािां काथश्चैिण्िमूिििः ।
पिािम ििपुष्पायातििोऽिम सैन्िर्वतय च ॥१००॥
फिेनक
ै े न संयक्त
ु िः खिेन च स्र्विोस्िि ।
देयिः सुखोष्र्ो स्िषिा मािुिस्ै िक संस्ज्ञििः ॥१०१॥
मािु िैस्िक बतिी
यतमान्मिु च िैिं च प्रािान्येन प्रदीयिे।
मािुिस्ै िक इत्येर्वं स्िषस्िबमस्ति च्यिे ।। सु.स्च 38/114

मिु औि िेि का इन बस्तियों में प्रिान रूप से प्रयोग होने के कािर्र्वैद्य इसे मािुिैस्िक बस्ति
कहिे है
मािु िैस्िक बस्ति यह स्न ह प्रकाि का है यापन, युक्तिथ, स्सद्धबस्ति यह पयामय है

मािुिैस्िक बस्ति िािा (उि पदतथ अस्िकािी), श्रीमंि, सुखासीन, सुकुमाि, बाि, र्वृद्ध, इनमे दोषस्नहमिर्

का कायम कििा है उनका बि, र्वर्म उिम किने के स्िए यह बस्ति उपयोगी है . अन्य बस्ति के समान

र्वाहन, मैथून, िोिन, मद्यपान इ. स्नयम का पािन किने का बंिन नही है .औि स्न ह के समान सर्वम गुर्
प्राि होिा है . यह पादहीन बस्ति (9 प्रसृि मात्रा) है.

गुर्िमम - दीपन, पाचन, बलय, र्वण्यम, बृहर्, र्वृष्य, िसायन

योग्य (Indications):

1. मेदोिोग (obesity) 2. गुलम (Lump)

3. कृ स्म (worm infestation) 4. प्िीहा (splenomegaly)

5.मिसंग (constipation) 6. उदार्विम (Retrograde intestinal movement)

7. प्रमेह (Polyurea, diabetes) 8. अिम (hemorrhoids)

9.आंत्रर्वृद्धी (Hernia)
द्रव्य मात्रा
सुश्रि
ु गयदास िाउखं 6/28
मास्क्षक 2 प्रसृि = 160 ml 1 पि = 40 ml
िर्वर् 1 कषम = 10gm ¼ पि = 10 gm
स्नेह 2 प्रसृि = 160ml 1 पि = 40 ml
कलक ½ पि= 20 gm ½ पि = 20 gm
कषाय 4 प्रसृि = 320 ml 2 पि = 80 ml
एकत्र 650 ml 160ml
स्नेह - सहचि िैि, बिा गुिूच्याकद िैि, िन्र्वन्िि िैि,
कलक - ििपुष्पा
क्वाथ - एिण्िमूि (150 ग्रॅम), मदनफि 1 नग

देने का काि - मािुिैस्िक बस्ति ककसी िी ऋिु में , ककसी िी काि में सर्वम िोग में कदया िा सकिा है .
अयोग्य - मािुिैस्िक बस्ति अिीर्म अर्वतथा में नहीं दे औि कदर्वातर्वप्न र्वज्यम किने को कहे |

िेखन बस्ति
स्त्रफिाक्काथगोमूत्रक्षौद्रक्षािसमायुिािः ।
ऊषकाकदप्रिीर्वापा र्वतियो िेखनािः तमृिािः ।।८२।। (सु.स्च.38/82)
िेखनातथापन कलपना-स्त्रफिा क्वाथ, गोमूत्र, मिु औि यर्वक्षाि िथा ऊषकाकदगर् के प्रक्षेप से युक्त बस्तिया
िेखन कहिािी हैं ॥ ८२ ॥
योग्य
1.तथौलय(obesity) 2. Hyper Thyroidisum 3. Hyper Lipidemia
द्रव्य मात्रा
गुड ½ पि=20 gm
मास्क्षक 4 पि=160 ml
िर्वर् 1 अक्ष=10 gm
स्नेह 6 पि =240 ml
कलक 2 पि =80 gm
कषाय 8 पि =320 ml
गोमूत्र 3 पि =120 ml
यर्वक्षाि 3 कषम=30 gm
एकत्र 24पि=960ml
स्नेह- मुर्णच्छि स्िि िेि , किु िस द्रव्य स्सर्धद िेि
कलक – i-उषकादी गर् ( सैन्िर्व, स्ििािीि,कासीस, पुष्पकासीस, ल्हग,िुत्थक,)
कु छ र्वैद्य र्वगम यर्वान्यादी र्वगम िेिे है
ii- यर्वानी, मदनफि, स्बलर्व, कु ष्ठ, र्वचा, ििपुष्पा, मुतिा,स्पप्पिी
कषाय द्रव्य- स्त्रफिा
आर्वाप द्रव्य- गोमूत्र,यर्वक्षाि

िेखनबस्ति (र्वंगसेन)

द्रव्य मात्रा
मास्क्षक 120 ml
िर्वर् 10 gm
स्नेह(मुर्णच्छि िेि) 120 ml
कलक 25 gm
कषाय 160 ml
गोमूत्र 80 ml
आर्वाप यर्वक्षाि 10 gm
एकत्र 480 ml
कलक - उषकादी गर् या ल्हगू र्वाचादी चूर्म
कषाय द्रव्य – स्त्रफिा

अिममास्त्रक बतिी
दिमूिीकषायेर् ििाह्र्वाक्षं प्रयोियेि् ।
सैन्िर्वाक्षं र्व मिुनो स्द्वपिं स्द्वपिं िथा ॥२४॥
िैितय पिमेकं िु फितयैकत्र योियेि् ।
अिममास्त्रकसंज्ञोऽयं बस्तिदेयो स्नरूहर्वि् ॥ २५ ॥
न च स्नेहो न च तर्वेदिः परिहाि स्र्वस्िनम च ।
आत्रेयानुमिो ह्येष सर्वमिोगस्नर्वािर्िः ॥२६॥
यक्ष्मघ्नश्च किस्मघ्नश्च िूिघ्नश्च स्र्विेषििः ।
िुि सञ्जननो ह्येष र्वाििोस्र्िनािनिः ।
बिर्वर्मकिो र्वृष्या बतिी पुस
ं र्वनिः पििः ॥ २७ ॥ (चिदि73/24-27)
दिमूि के काढे में सौंफ का चूर्म र्व सेंिा नमक का चूर्म प्रत्येक १ िोिा, िहद ८ िोिा, िैि ८

िोिा िथा मैनफि ४ िोिा- स्मिाकि स्नरूहके समान ही देना चास्हये । इसे"अद्धम मास्त्रक बस्ति" कहिे हैं।

यह आत्रेयसे अनुमि समग्र िोग नष्ट किनेर्वािा है िथा स्र्विेषकि यक्ष्मा, किस्म औि िुि को नष्ट कििा,

िुिको उत्पि कििा, र्वाििक्त नष्ट कििा िथा बि, र्वर्म उिम बनािा औि र्वृष्य िथा सन्िान उत्पि किने
र्वािा है ॥ २४-२७ ॥
इसमें यद्यस्प क्वाथ की मात्रा नहीं स्िखी, पि इसे "अद्धम- मास्त्रक कहिे हैं, अििः पूर्वोक्त मानसे आिा

क्वाथ अथामि २ िोिा छोडना चास्हये, िथा अनुक्त औपि िी (गुड आकद ) इिनी मात्रा में स्मिाना चास्हये,
स्िसमें सब स्मिकि ४८ िोिा र्वस्तिका मान हो िाय । अििः ६ िोिा गुड आकद स्मिकि होना चास्हये ।
क्योंकक ४८ िोिा उपिोक्त द्रव्य हो िािे हैं.

द्रव्य मात्रा
गुड 2 िोिा
मास्क्षक 8 िोिा
िर्वर्(सैन्िर्व) 1 िोिा
स्नेह 8 िोिा
कलक (सौफ) 1 िोिा
क्वाथ(दिमूि) 24 िोिा

मैंनफि 4 िोिा
एकत्र 48 िोिा

षिप्रासृस्िक बस्ति/ कृ स्मघ्न बस्ति


स्र्विङ्गस्त्रफिास्िग्रुफिमुतिाखुपर्णर्िाि् ॥ ९॥
कषायाि् प्रसृिािः पञ्च िैिादेको स्र्वमथ्य िान् ।
स्र्विङ्गस्पप्पिीकलको स्नरूहिः किस्मनािनिः ॥ (च.स्स.8/9-10)
षट्प्रासृस्िक-र्वस्ति- र्वायस्र्विंग, हिड, बहेडा, आाँर्विा, सस्हिन की छाि, मैनफि, नागिमोथा,

मुषाकर्ी इन सब द्रव्यों को समान िाग िेकि स्र्वस्िपूर्वमक क्वाथ िैयाि किें , उसमें से क्वाथ ५ प्रसृि, स्िििेि

१ प्रसृि, र्वायस्र्विंग िथा स्पप्पिी का कलक उसी में स्मिाकि मथनी से मथकि प्रयोग की गयी स्न ह बस्ति
कृ स्म िोग का नाि कििी है।
द्रव्य मात्रा
स्नेह 1 प्रसृि = 80 ml
कलक(तपष्ट उलिेख नहीं ) 1 पि = 40 gm
कषाय 5 प्रसृि = 400 ml
एकत्र 6 प्रसृि = 480 ml

स्नेह – मुर्णच्छि िेि


कलक - र्वायस्र्विंग िथा स्पप्पिी (प्रत्येक 20 gm)
कषाय - र्वायस्र्विंग, हिड, बहेडा, आाँर्विा, सस्हिन की छाि, मैनफि, नागिमोथा, मुषाकर्ी

क्षीि बस्ति

क्षीिाद द्वौ प्रसृिौ कायौ मिुिि


ै तृिाि त्रय:|
खिेन मस्थिो बस्तिर्वामिघ्नो बिर्वर्मकृि|| (च.स्स.8/4)
पञ्चप्रासृस्िक र्वस्ति : प्रथम-दो प्रसृि (१६ िोिा) दूि, एक प्रसृि (८ िोिा) मिु, एक प्रसृि (८
िोिा) िैि, एक प्रसृि(८ िोिा) तृि इन सब द्रव्यों को स्मिाकि मथनी से मथकि प्रयोग की गयी
स्नरूहर्वस्ति र्वािस्र्वकािों को नष्ट कििी है औि िािीरिक बि िथा तर्वािास्र्वक र्वर्म में स्नखाि िािी है यह
र्वस्ति पााँच प्रसृि (४० िोिा) की होिी है । अि एर्वं इसे 'पञ्चप्रासृस्िक' कहा गया है।
योग्य
सकु माि(बाि, र्वृद्ध,युर्विी,गर्णिर्ी, िािकु ि में उत्पि)
र्वािस्र्वकाि में
िािीरिक बि र्विमन के स्िए
तर्वािास्र्वक र्वर्म प्रसादन के स्िए

द्रव्य मात्रा
मास्क्षक 1 प्रसृि = 8 िोिा = 80 ml
स्नेह(तृि) 1 प्रसृि = 8 िोिा = 80 ml
स्नेह(िैि) 1 प्रसृि = 8 िोिा = 80 ml
क्षीिकषाय 2 प्रसृि = 16 िोिा = 160 ml
एकत्र 5 प्रसृि = 40 िोिा = 400 ml
क्षीि बस्ति में के र्वि क्षीि िेने को कहा है पिंिु व्यर्वहाि में र्व अनेक संिोिन के अनुसाि स्र्वस्र्वि
द्रव्यों से स्सद्ध दूि िेने पि अनेक व्यास्ि में उपयुक्तिा स्सद्ध होिी है कलक आर्वश्यकिा अनुसाि िेिे है

स्िक्त क्षीि बस्ति


अतथ्याश्रयार्ां व्यािीनां पञ्चकमामस्र् िेषिम् । बतियिः क्षीिसपीस्ष स्िक्तकोपस्हिास्न च ॥२७॥
(च.सु.28/27)

अस्तथि िोगों का स्चककत्सा-सूत्र-अस्तथगि िोगों की पञ्चकमम ( र्वमन, स्र्विे चन, नतय, स्नरूह,

अनुर्वासन ) स्चककत्सा है िथा स्र्वस्र्वि प्रकाि की बस्तियों का प्रयोग, स्िक्तद्रव्यों को िािकि पकाये गये दूि
एर्वम् तृिो का प्रयोग किें ।

उपयोस्गिा
1. किीिूि
2. अस्तथमज्जागिर्वाि
3. Spondylosis,spondylitis

4. Autoimmune disease like SLE etc.

स्नेह- तृि – पंचस्िक्त तृि

िैि – िन्र्वन्िि िैि , बिागुदिू च्यादी िैि


क्षीिकषाय- गुिूची या पंचस्िक्त (स्नम्ब,पिोि,गुिूची, र्वासा, कं िकािी)

पंचप्रासृस्िक बस्ति

इस बस्ति की मात्रा 5 प्रसृिी होने से यह पंचप्रसृस्िक बस्ति िानी िािी है, बस्ति की उिम मात्रा
१२ प्रसृिी है बि, प्रकृ स्ि आकद का स्र्वचाि कि बस्ति प्रमार् कक उपाययोिना की िािी है
पंचस्िक्त(पिोिस्नम्बादी) यह पंचप्रासृस्िक बस्ति है द्वादिप्रसृस्िक बस्ति में कलक कक मात्रा 2 पि है
उस प्रमार् से इस बस्ति में मात्रा तपष्ट नहीं है रिका में यह मात्रा ‘षििागोनं पिं’ऐसा र्वर्मन कि 1/6
पि यह िेने को कहा है|
पिोि स्नम्बिूस्नम्बिास्नासिच्छदाम्िसिः ।
चत्र्वाििः प्रसृिा एको तृिाि् सषमप कस्लकििः ॥८॥
स्नरूहिः पञ्चस्िक्तोऽयं मेहास्िष्यन्दकु ष्ठनुि् ।(च.स्स.8/8)

पंचस्िक्त-र्वस्ति-पिर्वि की पिी, नीम की छाि, स्नम्ब ( स्चिायिा), िास्ना, छस्िर्वन की छाि इन

सब द्रव्यों को समान िाग िेकि िौकु ि किके इनका यथास्र्वस्ि क्वाथ किें , उसमें से ४ प्रसृि क्वाथ में

१प्रसृि तृि औि सिसों का कलक, इन दोनों को स्मिाकि मथनी से मथकि स्नरूहर्वस्ति देनी चास्हए।

यह 'पंचस्िक्त र्वस्ति' प्रमेह, अस्िष्यन्द िथा कु ष्ठ िोग का स्र्वनाि कििी है। इसमें पााँचों द्रव्य स्िक्तिस-

प्रिान है, अिएर्व इसे 'पंचस्िक्त र्वस्ति कहा गया है।

योग्य
1.प्रमेह
2.अस्िष्यंद
3.कु ष्ठ

द्रव्य मात्रा
स्नेह- तृि 1 प्रसृस्ि = 80 ml
कलक 1/6 पि = 7 gm
कषाय 4 प्रसृस्ि = 320 ml
एकत्र 5 प्रसृस्ि = 400 ml

स्नेह – स्िक्तक तृि,

कलक – सिसों

कषाय- पिर्वि की पिी, नीम की छाि, स्नम्ब ( स्चिायिा), िास्ना, छस्िर्वन की छाि
उिि बस्ति

व्याख्या- उििमागमदीयमान िया ककर्वा श्रेष्ठगुर्िया उििबस्ति:| (च.पा.च.स्स.9/50)


उत्कृ ष्टार्वयर्वे दानाि बस्ति:उिि संस्ज्ञि: (र्वंगसेन)

पु ष र्व स्स्त्रयों में मूत्रमागम से र्व स्स्त्रयों में अपत्यमागम से औषस्ि देने की किया को उििबस्ति कहिे
है , उिि मागम से बस्ति दी िािी है इसस्िए यह किया उििबस्ति कहिािी हैर्वैसे िी यह श्रेष्ठ गुर्
(उिि गुर्) की होने के कािर्किया को उििबस्ति कहिे है

उििबस्ति का महत्र्व:-
1. सर्वमश्रेष्ठ गुर् की बस्ति है
2. मूत्र िोगों में उपयुक्त है
3. स्स्त्रयों के व्यास्ि में उपयुक्त है
4. र्वंर्धयत्र्व के स्िए महत्र्वपूर्म स्चककत्सा है
5. मूत्रािय र्व गिामियिोिन की स्चककत्सा है
6. मागामर्विोि(blockage) दूि किने के स्िए उिम स्चककत्सा है

उििबस्ति यन्त्र:-
उिि बस्ति यन्त्र का दो िाग होिा है- 1. बस्तिनेत्र 2. बस्तिपुिक
उिि बस्ति नेत्र प्रमार्

पुष्पनेत्रं िु हैमतं याि् श्लक्ष्र्मौिि बस्तिकम्।


िात्यर्श्हन र्वृि
ं न
े समं गोपुच्छसंस्तथिम्। िौप्य र्व सषमप स्छद्र स्द्वकर्म द्वादिांगि
ु म।। (च. स्स. 9/50-51)
आचायम चिक ने 12 अंगुि दीतम िथा उिि बस्ति नेत्र को पुष्प नेत्र की िी संज्ञा दी है

िह्िर् - िंत्रांििे प्युक्तं "िि् सौर्वर्म िािि र्वा श्लक्ष्र्ं गोपुच्छ र्वत्ससम्।
अश्मध्न कुं द सुमनिः पुष्प र्वृिाग्र मंििम् ।
स्सद्धाथमक प्रर्वेिाग्रं मूिे मर्धये सुकर्णर्काम्।
चिुदि
म ांगि
ु ं नेत्रं ित्र कायम स्र्विानिा।"
आचायम सुश्रुि ने इसका प्रमार् 14 अगुि बिाया है। यह नेत्र तर्वर्म या चांदी का बनाने के स्िए
आचायों ने स्नदेि कदया है। यह कनेि पुष्प के मूि समान, गोपुच्छ के समान मूि में चौडा औि अग्रिाग में
स्सकु िा होिा है। इसका स्छद्र का प्रमार् सिसो के दाने स्ििना प्रर्वेि योग्य होना चास्हए।

स्नस्र्वष्ट- कर्णर्कं मर्धये नािीर्ां चिुिंगि


ु ।े
मूत्रस्रोििः परिर्ाहं मुद्गर्वाही दिांगि
ु म्।
मेढ्रायाम समं के स्चकदच्छंस्ि खिु िस्द्वदिः |
िसामपत्य मागे िु स्नदर्धयाििुिङ्गुिम्।
द्वयङ्गुिं मूत्रमागे िु कन्यानां त्र्वेकमङ्गुिम्।।
(सु. स्च. 37/103-105)

2 कर्णर्काएं होिी हैं एक मूि िाग में बस्ति को बांिने हेिु िथा दूसिी मर्धय में होिी है पु षो
मेंिथास्स्त्रयोंके नेत्र में कर्णर्का 4 अंगुि िक प्रर्वेि किर्वाया िािा है स्स्त्रयों के स्िए नेत्र 10 अंगुि िम्बा
िथा तथूििा मूत्रर्वह स्छद्रानुसािमुंग के स्नकिने योग्य होनी चास्हए। अपत्यय मागम में नेत्र का प्रर्वेि 4 अगुि
िक िथा मूत्रमागम में 2 अंगुि िक किना चास्हए। कन्याओ(12 र्वषम से कं आयु) में नेत्र एक अंगुि िक ही
प्रर्वेि किना चास्हए िथा उनके अपत्य मागम में उििबस्ति नहीं देनी चास्हए।
बस्तिपुिक
औिभ्र िौकिो र्वाऽस्प बस्तििािश्च पूस्िििः ।
िदिािे प्रयुञ्जीि गिचमम िु पस्क्षर्ाम् ॥ सु.स्च.37/107 ॥
उििबस्ति के योग्य बस्ति का स्नरूपर्-औिभ्र (िेिा) सूअि अथर्वा बकिे की बस्ति इनके स्िए उिम होिी
है, उनके अिार्व में पस्क्षयों के गिचमम का प्रयोग किना चास्हए।
स्न ह बस्ति,अनुर्वासन बस्ति के प्रमार् का बस्ति पुिक प्रयोग होिा है स्सफम आकाि में छोिा होिा है|
प्रचस्िि उििबस्तियन्त्र
1. िबि कै थेिि - उिि बस्ति हेिु नेत्र िबि कै थेिि का प्रयोग सुगम एर्वं सुिस्क्षि होिा है र्विममान में
स्त्री हेिु 6 र्व 8 नं. िथा पु ष हेिु 6,7,8 न. िबि कै थेिि का प्रयोग कििे हैं।
2. Rubin Test canula - िो बन्र्धयत्र्व पिीक्षा (फीिोस्पयन निी पिीक्षर्) हेिु उपयोग होिा

3. Uterine cannula - का प्रयोग अपत्य मागम हेिु प्रयोग में िेिे हैं।

4. syringe – पुिक के रूप में उपयोग होिा है


उिि बस्ति की मात्रा
िेनाि बस्ति युग्मेन स्नेहतयािम पिं नयेि।् ।
यथार्वयोस्र्विेषर्
े स्ने्ात्रा स्र्वकलप्य र्वा ||(च. स्स. 9/52)
बकिे के मूत्रािय को स्नकािकि उसे स्र्वस्िर्विसाफ़ कि उसे पुष्पनेत्र के साथ बांिकि उसमे ½ पि (2
िोिा) स्नेह को मूत्रािय में उिि बस्ति यंत्र द्वािा प्रर्वेि किना चास्हए,अथर्वािोगी की आयु का स्र्वचाि
किके स्नेह मात्रा का स्निािर् किना चास्हए|
स्नेह प्रमार्ं पिमं प्रकुं चाश्चास्त्र कीर्णिििः।
पंचल्र्विादिो मात्रां स्र्वदर्धयाि् बुल्द्ध कस्लपिाम्।। (सु. स्च. 37/102)
उििबस्ति के द्रव्य की मात्रा-(स्नेस्हक) उििबस्ति में स्नेह की उिम मात्रा एक पि होिी है । पिीस र्वषम
से अलप आयुर्वािे व्यस्क्तयों के स्िए स्नेह मात्रा की कलपना र्वैद्य को अपनी बुस्द्ध से किनी चास्हए
स्नेहतय प्रसृिं चात्र तर्वांगि
ु ी मूि संस्मिम्।।
देयं प्रमार्ं पिममर्वामग् बुस्द्धस्र्वकस्लपिम्।। (सु. स्च. 37/106)
स्स्त्रयों की उिि बतिी में स्नेह का मान-स्स्त्रयों के स्िए स्नेह की मात्रा उनकी अंगुस्ि-मूि के बिार्वि एक
प्रसृि (अंिस्ि) िेना चास्हए औि (बिर्वान िोग में) सिी अर्वतथाओं में उक्त प्रमार् का प्रयोग किना
चास्हए िथा (मर्धयहीन बि िोग में) न्यून मात्रा की कलपना अपनी बुस्द्ध के अनुसाि किनी चास्हए
गिामिय स्र्विुद्र्धयथम स्नेहन
े स्द्वगुर्न
े िु।।
क्वाथ प्रमार्ं प्रसृिं स्स्त्रया स्द्व प्रसृिं िर्वेि।्
कन्येिितयािः कन्यायािः िद्वि् बस्ति प्रमार्कम।। (सु, स्च. 37/116-117)
स्स्त्रयों के स्नरूह िथा उििबस्ति के स्िए क्वाथ का प्रमार्-गिामिय की िुस्द्ध के स्िए स्स्त्रयों में स्नेह की
मात्रा स्नेह से स्द्वगुर् (पूर्वोक्त अङ्गुस्ि मूि-सस्म्मि प्रकृ स्ि की अपेक्षा स्द्वगुर्) होनी चास्हए िथा क्वाथ
की मात्रा (स्नरूहबस्ति के स्िए पु षों में) एक प्रसृि औि स्स्त्रयों के स्िए दो प्रसृि होनी चास्हए ॥
कन्या (बािह र्वषम से न्यून आयु) के स्िए बतिी िोिनाथम क्वाथ की मात्रा पु ष की िांस्ि िोगी को अञ्जस्ि
की माप से एक प्रसृि िेनी चास्हए।

आचायम सुश्रुि अनुसाि


स्नेह बस्ति स्न ह बस्ति
पु ष 1 प्रकुं च 1 प्रसृस्ि
स्त्री 1 प्रसृि 2 प्रसृस्ि(गिमतय िोिन हेिु)
(गिमतय िोिन हेि)ु 2 प्रसृस्ि 1 प्रसृस्ि(कन्या हेिु)

12 र्वषम से कम आयु की कन्याओ में 1 प्रसृस्ि की मूत्रािय बस्ति देनी चास्हए


उिि बस्ति योग्य िोग (Indication of Uttar Basti)
आचायम चिक मूत्रौकसाद आकद सिी मूत्र िोग में उिि बस्ति का स्नदेि कदया है।
मूत्रौकसादो िठिं कृ च्रमुत्सङ्गसङ्क्षयौ ।
मूत्रािीिोऽस्निाष्ठीिा र्वािर्वतत्युष्र्मा िौ ॥२५॥
र्वािकु ण्िस्िका ग्रस्न्थर्णर्वङ्तािो र्वस्तिकु ण्ििम् ।
त्रयोदिैिे मूत्रतय दोषातिास्लिङ्गििः श्रृर्ु ॥(च.स्स.9/25-26)
र्वस्तिमुििर्वस्ति च सर्वेषामेर्व दापयेि् । (च.स्स.9/49)
र्वस्तििोगों की गर्ना-१. मूत्रौकसाद (या मूत्रकसाद ), २. मूत्रिठि, ३. मूत्रकृ च्र, ४. मूत्रोत्संग, ५. मूत्रक्षय,

६. मूत्रािीि, ७. र्वािाष्ठीिा, ८. र्वािर्वस्ति, ९. उष्र्र्वाि, १०. र्वािकु ण्िस्िका ११. मूत्रग्रस्न्थ १२.

स्र्विस्र्वताि, १३. र्वस्तिकु ण्िि-ये िेिह मूत्र के दोष हैं इनको िक्षर् है-

१. मूत्रौंकसाद :- स्पि औि कफ दोनों से बस्ति उपहि होकि िाि, पीिा; तन, सांद्र, सफे द मूत्र ििन के
साथ स्रस्र्वि होिा है। इनको मूत्रौकसाद कहिे हैं। स्पि औि कफ से र्वतिुि: र्वायु आर्वृि होिा हैं औि उपयुमक्त
िक्षर् उत्पि होिा हैं।
२. मूत्र िठि :- बस्ति उदार्वर्णिक होकि िा के साथ मूत्रसंग, मिसंग उत्पि होिा है उसे मूत्र िठि कहिे
हैं।
३. मूत्रकृ च्र :- कृ च्छिापूर्वमक िुि प्रर्वृस्ि के साथ मुत्र आिा है।
४. मूत्रोत्संग :- मेढ्रमस्र् िक मूत्र ठीक आिा है - ित्पश्चाि् अत्यंि िीव्र िा के साथ स्नकििा है।
५. मूत्रक्षय :- र्वाि के द्वािा मूत्र का िोषर् होिा है औि क्षय से मूत्र प्रर्वृस्ि बंद होिी है।
६. मूत्रािीि :- मूत्रप्रर्वृस्ि िीिे िीिे होिी है।
७. अष्ठीिा:- मूत्रमागम का अर्विोि होकि िीव्र िा के साथ मूत्र अलपालपि: प्रर्वृि होिा है।
८. र्वािबस्ति :- र्वाि प्रकोप से बस्ति में कं िु औि मूत्र अर्विोि उत्पि होिा है।
९. उष्र्र्वाि :- कष्ट के साथ बस्ति औि उपास्तथ में दाह कििे हए िाि, पीिे िं ग की मूत्र प्रर्वृस्ि होिी है।

१०. र्वाि कुं िस्िका:- मूत्र स्र्वगुर् होकि र्वाि के द्वािा बस्ति में कुं ििीिूि होिा है स्िससे मूत्रसंग, गौिर्व,

िा, मिसंग, र्वािसंग, ये िक्षर् उत्पि होिे है।


११. ग्रंस्थ:- र्वाि औि कफ से िक्त दुस्ष्ट होकि बस्ति द्वाि पि ग्रंस्थ उत्पि होिी है। स्िससे कृ च्र पूर्वमक मूत्र
स्नकििा है। इसमें अश्मिी के समान पीडा होिी है।
१२. स्र्विस्र्वताि:- र्वाि के द्वािा उदार्वर्णिि मि बस्ति में पहुंच िािा है, िब कृ च्रिापूर्वमक, मिगंि िक्त,
पेिाब आिा है इसे स्र्विस्र्वताि कहिे हैं।
१३. बस्ति कुं िि:- इसमें िूि के साथ, दाह के साथ, बस्ति में तपंदन के साथ ल्बदु से मूत्र प्रर्वृस्ि होिी है।
िुिं दुष्टं िोस्र्िं चाङ्गनानां पुष्पोद्रेकं ितय नािं च कष्टम् |
मूत्रातािान्मूत्रदोषान् प्रर्वृद्धान योस्न व्यास्ि संस्तथस्ि चापिाया: ।।
िुिोत्सेकं िकम िामश्मिी च िूिं बतिौ र्वङ्क्षर्े मेहने च|
तोिानन्यान् बस्तििांश्चास्प िोगान् स्हत्र्वा मेहानुििो हस्न्ि बस्ति: ।।(सु.स्च.37/125-126)

र्वस्तििेषु स्र्वकािे षु योस्नस्र्वभ्रंििेषु च ॥६३॥


योस्निूिष
े ु िीव्रेषु योस्नव्यापत्तर्वसृग्दिे ।
अप्रस्रर्वस्ि मूत्रे च स्बन्दुं स्र्वन्दुं स्रर्वत्यस्प ॥६४॥(च.स्स.9/63-64)
मूत्रौंकसाद आकद सिी स्र्वकािों में िथा िकम िा, अश्मिी, बतिी िूि, र्वंक्षर्िूि, मेहन िूि, में
अर्वतथानुसाि उििबस्ति दे ।

उििबस्ति योग्य पु ष आिुि –

पु षों में िुिदोष िथा िुिोत्सेक में उिि बस्ति दे। िुि दोष में र्वाि, स्पि, कफाकद दुष्ट िुि िथा
क्िैब्य र्धर्वििंगाकद िोगों का समार्वेि होिा है।

गिामिय गि बस्ति योग्य स्त्री आिुि:-


१. योस्न भ्रंि २. ििोदोष ३. योस्नदोष ४. योस्निूि ५. िीव्र योस्न व्यापद ६. असृग्दि ७.
पुष्पनाि (अनािमर्व) ८. अकाििििःप्रर्वृस्ि ९. अपिा-द्वािा गिम स्निोि १२. बंर्धयत्र्व
इन िोगों में यथार्वतथानुसाि गिामिय गि उिि बस्ति दे। इनके अस्िरिक्त चिक ने स्चककत्सा तथान
के ३०र्वें अर्धयाय में बीस योस्न व्यापद र्वर्णर्ि ककये हैं उनमें िी उिि बस्ति देने को कहा है। योस्निोग प्रायिः
स्स्त्रयों में र्वंर्धयत्र्व िथा अन्य अर्वयर्व र्वैगुण्य में कािर् होिे हैं
योस्नव्यापि
१. र्वाििा योस्न २. स्पििा योस्न ३. श्लेष्मिा योस्न ४. स्त्रदोषिा योस्न ५. अिितका योस्न ६.
असृिा योस्न ७. अचिर्ा योस्न ८. अस्िचिर्ा योस्न ९. प्राक्चिर्ा योस्न १०. उपप्िुिा योस्न ११.
परिप्िुिा योस्न १२. उदार्वर्णिनी योस्न १३, कर्णर्नी योस्न १४. पुत्रघ्नी योस्न १५, अंिमुमखी योस्न

१६. सूस्चमुखी योस्न १७, िुष्का योस्न १८. र्वास्मनी योस्न १९, षण्िी योस्न २०. महायोस्न।
उििबस्ति के अयोग्य
1. स्स्त्रयों में-
i. गिामियग्रीर्वापाक(Cervicitis)

ii. कन्या(Child female)(गिामियगि बस्ति नहीं देना है)

iii. CA Uterus, CA Cervix


2. पु षो में
i. मुत्रमागम में िीव्र िोथ(Urethritis)

ii. ग्रस्न्थ(cyst/tumour)
उििबस्तिदान स्र्वस्ि
पूर्वक
म मम
1. आिुि पिीक्षा एर्वं उिि बस्ति का स्र्वस्नश्चय- उििबस्ति स्स्त्रयों में गिामिय िथा मूत्रािय में औि
पु षों में मूत्रािय में दी िािी हैं इसस्िये आिुि पिीक्षा कि कौनसी बस्ति देनी है इसका योग्य
स्नश्चय किना चास्हये। उसी ििह उििबस्ति-स्न ह औि स्नेह दो प्रकाि की होिी है अििः कौनसी
बस्ति श्रेयतकि है यह पहिे स्नस्श्चि किना चास्हये। स्न ह-िोिन बतिी है

2. संमिी पत्र(consent form)- आिुि के समझने र्वािी िाषा मे पंचकमम स्र्वस्ि से होने र्वािे फायदे
औि संिास्र्वि व्यापद को समझाकि स्िस्खि पत्र मे आिुि/ रिश्िेदाि की तर्वाक्षिी/ अंगूठा िेर्व.े

3. संिाि संग्रह – स्निांिुक ककये हुए सुसस्ज्जि िस्त्रागाि में उिि बस्ति के स्िए स्नम्नस्िस्खिउपकिर्
औि द्रव्य की िैयािी किनी चास्हए औि सिी को स्निांिक
ु किना चास्हए
स्स्त्रयों के स्िए-
i. बस्ति नेत्र र्व पुिक(Rubber catheter & syringe)

ii. Gloves
iii. Cotton
iv. Forceps,Sims speculum

v. Bladder & uterine sound

vi. Uterine canula


पु षो के स्िए-
i. बस्ति नेत्र र्व पुिक(Rubber catheter & syringe)

ii. Gloves
iii. Cotton
iv. Bladder sound

v. Penile clamp
औषस्ि- उििबस्ति का स्नेह या क्वाथ िुद्ध औि सुखोष्र् कि बस्ति पुिक में ििकि िैयाि िखो
पश्चात्कमम में िथा उपद्रर्वों में उपयुक्त सािनों को औि औषिीं को िैयाि िखें। इसमें स्र्विेषिा:
र्वेदनाहि योग-स्नद्रोदय, अस्हफे नासर्व, स्पप्पिीमूि िथा तथास्नक र्वेदनाहि उपायाथम अभ्यंग के
स्िये पंचगुर् िैि, िनसाि योग, तर्वेदनाथम िापतर्वेद ये िैयाि िखे। फिर्वर्णि, अन्य स्न ह बस्ति
िखनी चास्हये।

4. िोगी परिक्षर्-
a. स्त्री िोगी में – योस्न र्व मूत्रमागम परिक्षर् : उििर्वस्ति के पूर्वम िोगी का योस्न र्व मूत्रमागम

पिीक्षर् किार्वे स्िससे तथास्नक व्यािी, स्र्वकृ िी के िक्षर् ज्ञाि हो

i. HSG (Hysterosalpingography)

ii. USG (Lower Abdomen)

iii. Ovulation study

iv. Urine - Routine and microscopic

b. पु ष िोगी में- उििबस्ति देने के पूर्वम मूत्रमागम का परिक्षर् किार्वे


i. Urogram,

ii. USG,

iii. Urine - R/M,

iv. Blood Sugar: - F/PP

5. आिुि स्सद्धिा-
i. स्त्रीर्ामािमर्व कािे िु प्रस्िकमम िदाचिे ि।्
गिामसना सुखं स्नेहं िदाऽऽदिेिह्यपार्वृिा।
गिम योस्नतिदा िीघ्रं स्ििे गृह्िास्ि मा िे।। (च.स्स.9/62-63)
स्स्त्रयों में ऋिुकाि में ही उिि बस्तिदेनी चास्हये| ऋिुकाि ििोदिमन के अनंिि १६ कदन का होिा
है। ििोदिमन के चाि कदन के बाद गिामियगि बस्ति दे। इस समय गिामिय मुख स्र्वकस्सि होने से र्वस्ति
प्रर्वेि सिििा से हो सकिा है।
ii. आहाि-
आिुि को बतिी के पूर्वम यर्वागु, दुि औि ती के साथ देना थास्हये, अथर्वा मांसिस
संयुक्त िोिन दे।
iii. अभ्यंग तर्वेदन-
बतिी के पूर्वम मि मूत्र स्र्वसिमन किाकि अभ्यंग र्व तर्वेद किें । अभ्यंग र्व तर्वेद
स्र्विेषििः श्रोस्र्, स्तफग, करि, पार्श्म योस्न र्वंक्षर् पि किना चास्हये ।
प्रिान कमम -
(१) बस्ति प्रस्र्िान (२) स्निीक्षर्

(१) बस्ति प्रस्र्िान - पु ष आिुि को तुिने के बिाबि आसन पि (काष्ठ स्नर्णमि िेबि पि) स्बठाकि
पहिे िैि, तृि से अभ्यंग किें। मेढ्र को स्स्नग्ि कि प्रहर्णषि कि प्रथम ििाका को प्रस्र्वष्ट किाकि बस्ति िक

मागम की पिीक्षा कि िें। यह ििाका (Bladder Sound) मूत्रमागम के अर्विोि को िी दूि कििी है औि
आगे बस्ति नेत्र ककिने दूि िक प्रर्वेि किाना होगा इसका िी ज्ञान किािी है। ििाका िुद्ध एर्वं िंिुिस्हि
(sterile) किा िेना चास्हये। कफि बस्ति नेत्र को स्स्नग्ि कि सेर्वनी के समांिि िीिे िीिे प्रस्र्वष्ट किार्वे।
सािािर्: बस्ति नेत्र के तथान पि आिकि के िबि के थेिि का प्रयोग किना बहुि स्हिार्वह होिा है। िब नेत्र
बस्ति में पहुाँच िायेगा - िो उसका दूसिा मुख स्सिींि को संनद्ध कि िीिे -िीिे औषि अंदि प्रर्वेस्िि किार्वे।
औषि िी खूब उबािकि सुखोष्र् ककया हुआ िंििु स्हि होना चास्हये। औषस्ि बस्ति में चिे िाने के बाद
कै थेिि या नेत्र की ऋिु क्षर्न न कििे हुए स्नकाि िेना चास्हये।
स्स्त्रयों में - यकद बस्ति देना हो िो िेबि पि स्चि स्ििाकि िानु में से पांर्व को मोिकि फै िा कि
िखे। उपयुमक्त प्रकाि से र्वंक्षर् बस्ति मुखपि अभ्यंग औि तर्वेद किे औि मूत्रािय गि बस्ति देनी हो िो बस्ति
ििाका (Blader Sound) से मागम पिीक्षा किे , औि गिामिय गि बस्ति देनी हो िो गिामिय ििाका

प्रस्र्वष्ट (Uterine Sound) किाकि मागामन्र्वेषर् किे । कफि बस्ति नेत्र या स्स्त्रयों में उपयुक्त िबि के थेिि

अंदि प्रर्वेस्िि किे । िबि कै थेिि यकद गिामिय में प्रस्र्वष्ट किना हो िो संदि
ं गिामिय ग्रीर्वा (Cervix) को
पकडकि उिि किाना चास्हये। ििाका प्रर्वेि के बाद ही के थेिि प्रस्र्वष्ट हो सकिा है यह र्धयान िखे। स्स्त्रयों
में उपयोग के स्िए एक बहुि अच्छा यंत्र है - गिामिय का के न्युिा (uterine canula) इसका उपयोग

र्वंर्धयत्र्व पिीक्षा में बीि र्वास्हनी नािी के अर्विोि पिीक्षा के स्िये (patency Test) ककया िािा है। यह
के न्यूिा सुखपूर्वमक प्रस्र्वष्ट किाकि पीछे का िाग औषियुक्त स्सिींि के साथ िोडकि औषस्ि अंदि प्रस्र्वष्ट
किार्वे औि ित्पश्चाि् यंत्र या िबि कै थेिि को युस्क्तपूर्वमक स्नकाि िेर्वे|
२. स्निीक्षर् - उिि बस्ति यकद क्वाथ की हो िो िुिन्ि र्वास्पस आ िािी है। र्वास्पस आने पि र्वह
सम्यग्दि बस्ति है ऐसा समझे। इस प्रकाि दो या िीन बस्तिया दी िा सकिी है उिि बस्ति स्नेह से दी गई
हो िो र्वह िलदी र्वास्पस नहीं आिी। र्वह स्नेहर्वस्ति के समान अंदि िहकि कायमकि होिी है गिामिय में कदये
हुए स्नेहर्वस्ति का कु छ स्नेह िुिन्ि स्नकि िािा है औि पयामि मात्रा में अन्दि िहकि अनुप्रर्वर् िार्व से
अर्वयर्व में िोस्षि होिा है या िो िीिे- िीिे स्नकि िािा है। उिि बस्ति ३-३ कदन के अंिि से दो या िीन
बाि देर्वे।
नोि - पु षों में प्रहर्णषि मेंढ्र में बस्ति देने का स्र्विान ककया गया है िथास्प प्रहर्णषि मेंढ्र में बस्ति
देना करठन होिा है - अििः स्िस्थि मेंढ्र में ही बस्ति देनी चास्हए| स्स्त्रयों में ३-३ कदन के अंिि से
गिामियगि बस्ति देने के बदिे ििोदिमन बंद होने के बाद ३ से ४ कदन प्रस्िकदन देना ठीक होिा है, क्योंकक

बाद में गिामियग्रीर्वा का संकोच हो िाने पि बस्ति देना करठन होिा है, िथास्प गिामिय ग्रीर्वा ग्रह संदि

औि ििाका (Sound) को सहायिा से किी िी बस्ति दी िा सकिी है। एक साथ िीन बस्तिया दी िाने के
बाद िीन कदन स्र्वश्राम किाकि पुनिः गिामिय गि बस्ति औि िीन कदन दी िानी चास्हये। बस्ति नेत्र प्रर्वेस्िि
कििे समय सार्विानी िखनी चास्हये। यकद बहुि अस्िक नेत्र प्रस्र्वष्ट ककया िाये िो बस्ति के दीर्वािों में क्षि
कििा है, औि बहुि कम प्रस्र्वष्ट ककया िाये िो बस्ति मुख में प्रर्वेि के पहिे दी हुई बस्ति अंदि नहीं िा
सकिी। अि:-उस्चि प्रमार् में प्रस्र्वष्ट किाये िबि कै थेिि के द्वािा क्षर्न की व्यापद का िि कम हुआ है।
पश्चाि कमम- उििबस्ति र्वास्पस नहीं आनेपि २४ तंिा िक या एक िास्त्रिक (१२ तंिा) उपेक्षा
कि बस्ति प्रत्यार्विमन किाना चास्हये। यह देखा िािा है कक उिि बतिी बहुि र्वेदना कििी है। उिि बस्ति
प्रयुक्त औषस्ि अत्यंि स्र्विुद्ध (Sterile) होना चास्हए अन्यथा अर्वयर्व में िोथ कििा है बस्ति के बाद
र्वेदनाहि औषस्ि देनी चास्हए स्स्त्रयों में िगिग १२ तंिे से २४ तंिे िक िी िूि िहिा है। अििः स्नद्रोदय िस
२ ििी-२ या ३ बाि कदन में देकि आिुि को र्वेदनािस्हि िखना चास्हये। अस्हफे नासर्व औि स्पप्पिीमूि का
िी र्वेदनाहि के िौि पि अच्छा उपयोग होिा है। तथास्नक अभ्यंग औि मृद ु तर्वेद किे ।
िोिन - बस्ति प्रत्यागम के बाद दूि, युष, अथर्वा मांसिस युक्त िोिन दे।

उिि बस्ति में सम्यग् योग परिहाि काि, पश्चात्कमम के व्यापदाकद का अनुर्वासन बस्ति के समान
स्र्वचाि किना चास्हए
व्यापद –

1. बस्ति प्रत्यागस्मि नहीं होने पि- तथास्नक अभ्यंग औि मृद ु तर्वेद किे । िास्त्र में र्वर्णर्ि
फिर्विी(स्पप्पलयादी र्वर्णि,आिग्र्विादी र्वर्णि,आगाििुमादीर्वर्णि) का प्रयोग किना
चास्हए|स्त्रर्वृिादी िोिन औषस्ियोंके क्वाथ से संयुक्त स्न ह बस्ति देना चास्हए
catheterization कि स्नेह बहाि स्नकािना चास्हए
2. बस्ति में दाह- यस्ष्टमिु क्वाथ में मिु औि िकम िा स्मिाकि बस्ति दे अथर्वा न्यग्रोिादी गर् के
क्वाथ में दूि स्मिाकि बस्ति दे
3. मूच्छाम (shock)- िीि परिषेक, सुर्वर्मसूििेखि,हेमगिमपोििी िस,
head low position monitor vital
4. CYSTITIS,UTI – सूक्ष्म स्त्रफिा,गोक्षुिादी गुग्गुि,चंद्रप्रिार्विी आर्वश्यकिानुसाि
ANTIBIOTICS

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