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संवाद लेखन

दो या दो से अधिक लोगों के बीच होने वाले वार्ाालाप या सम्भाषण को संवाद कहर्े हैं।

दस
ू रे शब्दों में- संवाद का सामान्य अर्ा बार्चीर् है । इसमें दो या दो से अधिक व्यक्तर् भाग लेर्े है ।
अपने ववचारों और भावों को व्यतर् करने के ललए संवाद की सहायर्ा ली जार्ी है।

संवाद लेखन काल्पननक भी हो सकर्ा है और ककसी वार्ाा को ज्यों का त्यों ललखकर भी ।

भाषा बोलने वाले के अनुसार र्ोडी-र्ोडी लभन्न होर्ी है ।

उदाहरण के रूप में एक अध्यापक की भाषा छात्र की अपेक्षा ज्यादा संर्ुललर् और सारगलभार् (अर्ापूणा)
होगी। एक पुललस अधिकारी की भाषा और अपरािी की भाषा में काफी अन्र्र होगा। इसी र्रह दो लमत्रों
या महहलाओं की भाषा कुछ लभन्न प्रकार की होगी। दो व्यक्तर्, जो एक-दस
ू रे के शत्रु हैं- की भाषा अलग
होगी। कहने का र्ात्पया यह है कक संवाद-लेखन में पात्रों के ललंग, उम्र, काया, क्थर्नर् का ध्यान रखना
चाहहए।

अच्छी संवाद – रचना के ललए ननम्नललखखर् बार्ों का ध्यान रखना चाहहए –

(1) संवाद छोटे , सहज र्र्ा थवाभाववक होने चाहहए।

(2) संवादों में रोचकर्ा एवं सरसर्ा होनी चाहहए।

(3) इनकी भाषा सरल, थवाभाववक और बोलचाल के

ननकट हो ।

(4) संवाद पात्रों की सामाक्जक क्थर्नर् के अनुकूल होने चाहहए। अनपढ़ या ग्रामीण पात्रों और लशक्षक्षर्
पात्रों के संवादों में अंर्र रहना चाहहए।

(5) संवाद क्जस ववषय या क्थर्नर् के ववषय में हों, उस ववषय को थपष्ट करने वाले होने चाहहए।

(6) प्रसंग के अनुसार संवादों में व्यंग्य-ववनोद (हँसी

मजाक का समावेश भी होना चाहहए।

(7) यर्ाथर्ान मुहावरों र्र्ा लोकोक्तर्यों के प्रयोग करना चाहहए इससे संवादों में सजीवर्ा आ जार्ी है।
और संवाद प्रभावशाली लगर्े हैं

(8) संवाद बोलने वाले का नाम संवादों के आगे ललखा होना चाहहए ।
(9) यहद संवादों के बीच कोई धचत्र बदलर्ा है या ककसी नए व्यक्तर् का आगमन होर्ा है, र्ो उसका
वणान कोष्टक में करना चाहहए।

(10) संवाद बोलर्े समय जो भाव वतर्ा के चेहरे पर हैं, उन्हें भी कोष्टक में ललखना चाहहए।

(11) यहद संवाद बहुर् लम्बे चलर्े हैं और बीच में जगह बदलर्ी हैं, र्ो उसे दृश्य एक, दृश्य दो करके
बांटना चाहहए।

(12) संवाद लेखन के अंर् में वार्ाा पूरी हो जानी चाहहए।

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