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विषय - हिन्दी दिल्ली पब्लिक स्कूल वाराणसी कक्षा - 8

पाठ – लाख की चड़ि ू याँ – HANDOUT FOR PA-1


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सारांश- ‘लाख की चड़ि


ू याँ’ कहानी को लिखा है कामतानाथ जी ने, जिसमें लेखक ने मशीनों द्वारा छिनते
कारीगरों के रोजगार को तो दर्शाया ही हैं साथ ही एक कुशल कारीगर के स्वाभिमान को भी दिखाया है |लेखक
बचपन में गर्मियों की छुट्टियों में अपने ननिहाल अपने मामा के पास जाया करते थे और एक-डेढ़ महीना रहकर
आते थे। वहाँ पर उसे बदलू नाम का व्यक्ति सबसे अच्छा लगता था चँकि
ू वह लेखक को लाख की गोलियाँ दे ता
था। वह पेशे से मनिहार यानी चड़ि
ू याँ बनाने वाला था। वह लाख की सन्
ु दर-सन्
ु दर चड़ि
ू याँ बनाया करता था। बदलू
का मकान गाँव में कुछ ऊँचाई पर था, जिसके सामने नीम का पेड़ था। उसी की बगल में बनी भट्ठी पर बदलू लाख
पिघलाया करता था। लाख को मग
ंु ेरियों पर चढ़ाकर वह उन्हें चडि
ू य़ों का आकार दे ता था|
लेखक अन्य बच्चों की तरह उसे बदलू काका कहते थे| आसपास की औरतें भी चड़ि
ू याँ बदलू काका से ही ले
जाती थीं। हालांकि वह चड़ि
ू यों के बदले पैसे ना लेकर अनाज लिया करता था| परन्तु शादी-ब्याह के मौकों पर वह
चड़ि
ू यों का मँह
ु माँगा दाम लेता था। वह स्वभाव से बहुत सीधा सादा था।
बदलू को काँच की चडि
ू य़ों से बहुत चिढ़ थी। वह किसी महिला की कलाई पर काँच की चडि
ू य़ाँ दे खकर गस्
ु सा हो
जाता था। वह बचपन में लेखक से उसकी पढ़ाई के बारे में पछ
ू ता। लेखक उसे बताता कि शहर में सभी औरतें काँच
की चडि
ू य़ाँ पहनती हैं। वह लेखक को रं ग-बिरं गी लाख की गोलियों के अलावा गाय के दध
ू की मलाई तथा आम की
फसल के समय खाने को आम दिया करता था।

पिता की बदली दरू शहर में होने के कारण लेखक आठ-दस वर्षों तक गाँव न जा सका| वह लगभग आठ दस

साल के बाद गाँव गया। अब बड़ा होने पर उसे इसमें कोई रुचि नहीं थी। लेखक ने दे खा कि गाँव की सभी स्त्रियाँ

अब काँच की चड़ि
ू याँ पहनने लगी थीं।
एक दिन उसके मामा की लड़की फिसलकर गिर गई और काँच की चडि
ू य़ों के चभ
ु ने से उसकी कलाई में घाव
हो गया, जिसकी पट्टी लेखक को कराने जाना पड़ा। इस घटना से लेखक को बदलू का ध्यान आ गया। वह बदलू

से मिलने उसके घर गया। आज भी वह उसी नीम के पेड़ के नीचे चारपाई बिछा लेटा था। बदलू काका का शरीर बढ
ु ा
हो चक
ु ा था उसे खाँसी भी थीं। बदलू ने लेखक को पहचाना नहीं। तब लेखक ने उसे अपना परिचय दिया जिससे
लेखक ने उसे पहचाना|
बदलू की लाख की चड़ि
ू यों का काम बंद हो गया था। उसकी गाय भी बिक चक
ु ी थी| बदलू काका ने लेखक को
बताया कि आजकल सभी काम मशीन से होते हैं। मशीनी काँच की चड़ि
ू याँ लाख की चड़ि
ू यों से अधिक सन्
ु दर होती
हैं।

इसी बीच बदलू की बेटी, रज्जो डलिया में आम ले आई। लेखक की दृष्टि रज्जो की कलाई पर सद
ंु र लग रही

लाख की चडि
ू य़ों पर गई। यह दे ख बदलू ने लेखक को बताया यही उसके द्वारा बनाया गया आखिरी जोड़ा है , जिसे
उसने जमींदार की लड़की के विवाह के लिए बनाया था। जमींदार इस जोड़े के दस आने दे रहा था। इस दाम पर

बदलू ने उसे चडि


ू य़ों का जोड़ा नहीं दिया और शहर से लाने को कह दिया। बदलू की इस बात में लेखक ने उसका
स्वाभिमान दे खा|इस कहानी से यह संदेश मिलता है कि मशीनी यग
ु के दौर में हमें हाथ से बनी वस्तओ
ु ं
को भी अपनाना चाहिए। ... 'मशीनी यग
ु ने कितने ही हाथ काट दिए हैं' -इस पंक्ति के माध्यम से लेखक
यह कहना चाहते है कि हाथ से किए जाने वाले उद्योग- धंधे मशीनों द्वारा किए जाने लगे हैं।
अतः कहानी के रचनाकार का मख्
ु य उद्दे श्य है शहरीकरण व मशीनीकरण के कारण गाँवों के लघु
कुटीर उद्योगों के विलप्ु त होने का वर्णन करना है ।
कठिन शब्दों के अर्थ —-
• चाव - चाह, रुचि, तीव्र इच्छा

• सलाख - सलाई, धातु की छड़

• मँग
ु री - गोल, मठि
ु यादार लकड़ी जो ठोकने-पीटने के काम आती है
• पैतक
ृ - पर्व
ू जों का, पिता से प्राप्त या पश्ु तैनी
• खपत - माल की बिक्री

• वस्तु विनिमय - पैसों से न खरीदकर एक विनिमय वस्तु के बदले दस


ू री वस्तु लेना
• कसर - घाटा परू ा करना, कमी

• नाजक
ु - कोमल
• पगड़ी - सिर पर लपेट कर बाँधा जाने वाला लंबा कपड़ा, पाग

• मरहम-पट्टी- जख्म का इलाज, घाव पर दवा लगाकर पट्टी बाँधना

• मचिया - बैठने के उपयोग में आने वाली सत


ु ली आदि से बन
ु ी छोटी चारपाई से बनी चारपाई
• मख
ु ातिब - दे खकर बात करना
• डलिया - बाँस का बना एक छोटा पात्र

• फबना - सजना, शोभा दे ना

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