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Fundamental Rights Ke Case
Fundamental Rights Ke Case
केस- डी एस नकारा बनाम भारत संघ (1983)- सेंट्रल सर्विस पें शन रूल 1972 का
अविधिमान्य घोषित किया गया।
केस- एयर इंडिया बनाम नरगिस मिर्जा (1981)- एयर इंडिया और इंडियन
एयरलाइंस द्वारा बनाए गए विनियमों को असंवध
ै ानिक घोषित कर दिया।
केस- राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ (2014)- उच्चतम
न्यायालय ने कहा कि अनच्
ु छे द 14 में व्यक्ति शब्द के अंतर्गत परालंगी
व्यक्तियों को भी शामिल किया जा सकता है ।
केस- प्रगति वर्गीज बनाम सीरिल जॉर्ज वर्गीज (1997)- बॉम्बे उच्च न्यायालय
ने भारतीय तलाक अधिनियम 1869 की धारा 10 को इस आधार पर
असंवध
ै ानिक घोषित कर दिया।
केस- जगवंत कौर बनाम बम्बई राज्य (1952)- बॉम्बे उच्च न्यायालय ने राज्य
द्वारा हरिजन कॉलोनी बनाने के लिए भमि
ू के अधिग्रहण को अनच्
ु छे द 15 खंड
(1) के अधीन शन्
ू य घोषित कर दिया।
केस- बालाजी बनाम मैसरू राज्य (1963)- इस मामले में सरकार ने अनच्
ु छे द 15
(4) के अधीन मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजो में प्रवेश हे तु पिछड़े वर्गों को
28%, अधिक पिछड़े वर्गों के लिए 22% और अनस
ु चि
ू त जातियो और अनस
ु चि
ू त
जनजातियों के लिए 18% आरक्षण कर दिया था।
केस- इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ (1993)- आरक्षण की अधिकतम सीमा
50% के नियम को वैध माना।
केस- पीपल्
ु स यनि
ू यन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम भारत संघ (1982)-
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनच्
ु छे द 17 में दिया गया मल
ू अधिकार केवल
राज्य के विरुद्ध ही नहीं बल्कि प्राइवेट व्यक्तियों के विरुद्ध भी प्राप्त है ।
केस- मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978)- न्यायालय ने कहा कि अनच्
ु छे द
19 में दिए गए अधिकारों का प्रयोग नागरिक केवल भारत में ही नहीं बल्कि
विदे श में भी कर सकता है ।
केस- अजय कानू बनाम भारत संघ (1988)- न्यायालय ने आंध्र प्रदे श मोटर
वाहन नियम 494ख को विधिमान्य ठहराया। यह नियम स्कूटर चालकों के लिए
हे लमेट पहनना अनिवार्य कर रहा था।
केस- परीद बनाम नीलाम्बरन (1967)- जो कार्य पहले अपराध नही था उसे बाद
में विधि बनाकर अपराध घोषित नहीं किया जा सकता।
केस- केदारनाथ बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1953)- यदि पहले कम दण्ड से
दं डित हो तो बाद में संशोधन करके दण्ड बढ़ा दिया जाए तो बढ़ा हुआ दण्ड नही
मिलेगा।
केस- मकबल
ू हसन बनाम मब
ंु ई राज्य (1953)- इस मामले में अभियक्
ु त पर सी
कस्टम एक्ट के अधीन अभियोग चलाया गया था और उसे दं डित किया गया
था। बाद में उस पर भारतीय दं ड संहिता के अधीन किये गये अपराध के लिए
अभियोग चलाया गया न्यायालय ने निर्णय दिया की दस
ू री कार्यवाही वर्जित
नहीं थी क्योंकि यह एक दस
ू रे अपराध के लिए चलाई गई थी जो पहले वाले से
बिल्कुल भिन्न थी।
केस- एम पी शर्मा बनाम सतीशचंद्र (1954)- न्यायालय ने कहा कि अनच्
ु छे द 20
का संरक्षण एक ऐसे व्यक्ति को भी मिल सकता है जिसका नाम पलि
ु स की
प्रथम सच
ू ना रिपोर्ट में दर्ज है और मजिस्ट्रे ट ने जांच का आदे श दिया है ।
केस- मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978)- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि
अनच्
ु छे द 21 कार्यपालिका और विधायिका दोनों के विरुद्ध संरक्षण दे ता है ।
केस- मोहिनी जैन बनाम कर्नाटक राज्य (1992)- उच्चतम न्यायालय ने कहा
कि शिक्षा का मल
ू अधिकार अनच्
ु छे द 21 में दिए गए जीने के अधिकार में ही
शामिल है ।
केस- जोगिंदर कुमार बनाम उत्तर प्रदे श राज्य (1994)- उच्चतम न्यायालय ने
अन्वेषण के दौरान किसी व्यक्ति की पलि
ु स द्वारा गिरफ्तारी के संबध
ं में
मार्गदर्शक सिद्धांत दिए जिससे निर्दोष व्यक्तियों को पलि
ु स द्वारा अवैध एवं
मनमानी गिरफ्तारी से संरक्षण दिया जा सके।
केस- तारापद बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1951)- यदि गिरफ्तारी के कारणो
को दे री से दिया जाता है तो उसका पर्याप्त कारण होना चाहिए।
केस- बंधआ
ु मक्ति
ु मोर्चा बनाम भारत संघ (1984)- न्यायालय ने कहा कि
अनच्
ु छे द 23 बंधआ
ु मजदरू प्रणाली को समाप्त करता है ।
केस- पीपल्
ु स यनि
ू यन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम भारत संघ (1982)-
उच्चतम न्यायालय ने अनच्
ु छे द 23 केवल बेगार को ही नहीं बल्कि इसी प्रकार
के सभी बलपर्व
ू क लिए जाने वाले कार्य को वर्जित करता है ।
केस- रवि स्टै नील्लास बनाम मध्य प्रदे श राज्य (1977)- उच्चतम न्यायालय ने
कहा कि धर्म के प्रचार की स्वतंत्रता पर लोक व्यवस्था में निर्बन्धन भी लगाए
जा सकते हैं।
केस- सन
ु ील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन (1980)- बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट का
प्रयोग जेल में बंद कैदी के साथ किये गये अमानवीय व्यवहार से संरक्षण के
लिए भी किया जा सकता है ।
केस- संतोष सिंह बनाम भारत संघ- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि परमादे श
रिट का प्रयोग केवल मल
ू अधिकारों के उल्लंघन पर उपचार के लिए किया जा
सकता है ।
केस- हरि विष्णु कामथ बनाम अहमद इशहाद- उत्प्रेषण रिट जारी करने के
लिए न्यायालय के निर्णय में स्पष्ट गलती होनी चाहिए और यदि कोई गलती
स्वत ही स्पष्ट नहीं होती जिसे स्पष्ट करने के लिए जांच करनी पड़े वह उत्प्रेषण
रिट का आधार नहीं होगा।
केस- अखिल भारतीय रे लवे शोषित कर्मचारी संघ बनाम भारत संघ (1981)-
न्यायालय ने कहा कि एक अपंजीकृत संघ भी अनच्
ु छे द 32 के अंतर्गत रिट
दायर कर सकता है ।