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मल

ू अधिकारों से सम्बंधित केस-

केस- पश्चिम बंगाल राज्य बनाम अनवर अली (1952)- मख्


ु य न्यायाधीश
पतंजलि शास्त्री ने कहा कि विधियों का समान संरक्षण, विधि के समक्ष
समानता का ही उपसिद्धांत है ।

केस- ई पी रॉयप्पा बनाम तमिलनाडु राज्य (1974)- समानता एक गतिशील


धारणा है इसे परं परागत सिद्धांतवाद की सीमाओं से नहीं बांधा जा सकता है ।

केस- अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट अथॉरिटी (1979)- नए सिद्धांत की आलोचना की


गयी और परु ाने सिद्धांत यक्ति
ु यक्
ु त बोधगम्य वर्गीकरण का समर्थन दिया।

केस- डी एस नकारा बनाम भारत संघ (1983)- सेंट्रल सर्विस पें शन रूल 1972 का
अविधिमान्य घोषित किया गया।

केस- एयर इंडिया बनाम नरगिस मिर्जा (1981)- एयर इंडिया और इंडियन
एयरलाइंस द्वारा बनाए गए विनियमों को असंवध
ै ानिक घोषित कर दिया।

केस- राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ (2014)- उच्चतम
न्यायालय ने कहा कि अनच्
ु छे द 14 में व्यक्ति शब्द के अंतर्गत परालंगी
व्यक्तियों को भी शामिल किया जा सकता है ।
केस- प्रगति वर्गीज बनाम सीरिल जॉर्ज वर्गीज (1997)- बॉम्बे उच्च न्यायालय
ने भारतीय तलाक अधिनियम 1869 की धारा 10 को इस आधार पर
असंवध
ै ानिक घोषित कर दिया।

केस- जॉन वलामटोम बनाम भारत संघ (2003)- उच्चतम न्यायालय ने


उत्तराधिकार अधिनियम 1925 की धारा 118 को अनच्
ु छे द 14 का उल्लंघन करने
के कारण असंवध
ै ानिक ठहराया।

केस- मद्रास राज्य बनाम चंपाकम दोराइजन (1952)- मद्रास सरकार ने एक


आदे श जारी करके राज्य के मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज में विभिन्न
जातियों और समद
ु ायों के विद्यार्थियों के लिए कुछ स्थानों का निश्चित
अनप
ु ात निर्धारित किया था।

केस- जगवंत कौर बनाम बम्बई राज्य (1952)- बॉम्बे उच्च न्यायालय ने राज्य
द्वारा हरिजन कॉलोनी बनाने के लिए भमि
ू के अधिग्रहण को अनच्
ु छे द 15 खंड
(1) के अधीन शन्
ू य घोषित कर दिया।

केस- बालाजी बनाम मैसरू राज्य (1963)- इस मामले में सरकार ने अनच्
ु छे द 15
(4) के अधीन मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजो में प्रवेश हे तु पिछड़े वर्गों को
28%, अधिक पिछड़े वर्गों के लिए 22% और अनस
ु चि
ू त जातियो और अनस
ु चि
ू त
जनजातियों के लिए 18% आरक्षण कर दिया था।
केस- इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ (1993)- आरक्षण की अधिकतम सीमा
50% के नियम को वैध माना।

केस- अशोक कुमार ठाकुर बनाम भारत संघ- अनच्


ु छे द 15 (5) को संवध
ै ानिक
घोषित किया।

केस- वलसम्मा पाल बनाम कोचिंग विश्वविद्यालय (1996)- उच्चतम


न्यायालय ने कहा कि यदि उच्च जाति की कोई महिला किसी पिछड़ी जाति के
व्यक्ति से विवाह कर लेती है तो उसे अनच्
ु छे द 16 (4) और अनच्
ु छे द 15 (4) के
अधीन दी गई आरक्षण की सवि
ु धा नहीं मिलेगी।

केस- मीरा कनवरिया बनाम सन


ु ीता (2006)- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि
जब उच्च जाति का परु
ु ष अनस
ु चि
ू त जाति की महिला से विवाह कर लेता है तो
उसे अनच्
ु छे द 15 (4) और 16 )4) के अंतर्गत आरक्षण का लाभ नहीं मिल
सकता।

केस- पीपल्
ु स यनि
ू यन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम भारत संघ (1982)-
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनच्
ु छे द 17 में दिया गया मल
ू अधिकार केवल
राज्य के विरुद्ध ही नहीं बल्कि प्राइवेट व्यक्तियों के विरुद्ध भी प्राप्त है ।

केस- दे वराजी बनाम पद्मन्ना (1958)- अनच्


ु छे द 17 छुआछूत जैसी सामाजिक
बरु ाई का निवारण करता है जो जाति प्रथा की दे न है ।
केस- बालाजी राघवन बनाम भारत संघ (1996)- उपाधि का किसी व्यक्ति
द्वारा अपने नाम के पहले या पीछे प्रयोग नहीं किया जा सकता है ।

केस- लावेल बनाम ग्रिफिन (1938)- अनच्


ु छे द 19 (1) में दिए गए वाक और
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत संकेतो, अंकों, चिन्हो तथा ऐसी ही किसी
अन्य कार्य द्वारा किसी व्यक्ति के विचारों की अभिव्यक्ति शामिल है ।

केस- रोमेश थापर बना मद्रास राज्य (1950)- वाक और अभिव्यक्ति की


स्वतंत्रता के अंतर्गत अपने विचारों के प्रसार की स्वतंत्रता भी शामिल है ।

केस- मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978)- न्यायालय ने कहा कि अनच्
ु छे द
19 में दिए गए अधिकारों का प्रयोग नागरिक केवल भारत में ही नहीं बल्कि
विदे श में भी कर सकता है ।

केस- बिजो बनाम इमें नए


ु ल (1986)- अनच्
ु छे द 19 (1) उपखंड (क) में वाक और
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत चप
ु रहने का अधिकार भी शामिल है ।

केस- इंडियन एक्सप्रेस न्यज


ू पेपर्स बनाम भारत संघ (1958)- उच्चतम
न्यायालय ने कहा कि कोई भी ऐसी विधि जो समाचार पत्रों पर पर्व
ू अवरोध का
प्रावधान करती है या उसके आरं भ किए जाने को रोकती हैं तो वह अनच्
ु छे द 19
(1) में प्रदत्त स्वतंत्रता का अतिक्रमण है और अवैध है ।
केस- साकल पेपर्स लिमिटे ड बनाम भारत संघ (1962)- न्यायालय ने कहा कि
वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रेस की स्वतंत्रता भी शामिल है , क्योंकि
समाचार पत्र विचारों को अभिव्यक्त करने के माध्यम है ।

केस- अजय कानू बनाम भारत संघ (1988)- न्यायालय ने आंध्र प्रदे श मोटर
वाहन नियम 494ख को विधिमान्य ठहराया। यह नियम स्कूटर चालकों के लिए
हे लमेट पहनना अनिवार्य कर रहा था।

केस- परीद बनाम नीलाम्बरन (1967)- जो कार्य पहले अपराध नही था उसे बाद
में विधि बनाकर अपराध घोषित नहीं किया जा सकता।

केस- केदारनाथ बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1953)- यदि पहले कम दण्ड से
दं डित हो तो बाद में संशोधन करके दण्ड बढ़ा दिया जाए तो बढ़ा हुआ दण्ड नही
मिलेगा।

केस- मकबल
ू हसन बनाम मब
ंु ई राज्य (1953)- इस मामले में अभियक्
ु त पर सी
कस्टम एक्ट के अधीन अभियोग चलाया गया था और उसे दं डित किया गया
था। बाद में उस पर भारतीय दं ड संहिता के अधीन किये गये अपराध के लिए
अभियोग चलाया गया न्यायालय ने निर्णय दिया की दस
ू री कार्यवाही वर्जित
नहीं थी क्योंकि यह एक दस
ू रे अपराध के लिए चलाई गई थी जो पहले वाले से
बिल्कुल भिन्न थी।
केस- एम पी शर्मा बनाम सतीशचंद्र (1954)- न्यायालय ने कहा कि अनच्
ु छे द 20
का संरक्षण एक ऐसे व्यक्ति को भी मिल सकता है जिसका नाम पलि
ु स की
प्रथम सच
ू ना रिपोर्ट में दर्ज है और मजिस्ट्रे ट ने जांच का आदे श दिया है ।

केस- नंदिनी सतपति बनाम पी एल धनी (1978)- उच्चतम न्यायालय ने कहा


कि अनच्
ु छे द 20 (3) का संरक्षण केवल न्यायालय में ही नहीं बल्कि वहां भी
प्राप्त है जहां पलि
ु स अभियक्
ु त से पछ
ू ताछ करती है । हालांकि अपराध की जांच
करते समय पलि
ु स अधिकारी द्वारा पछ
ू े गए सामान्य प्रश्नों से दबाव का गठन
नहीं होता।

केस- ए के गोपालन बनाम मद्रास राज्य (1950)- उच्चतम न्यायालय ने कहा


कि अनच्
ु छे द 21 केवल कार्यपालिका के कार्यों के विरुद्ध संरक्षण दे ता है
विधानमंडल के कार्यों के विरुद्ध नहीं।

केस- मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978)- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि
अनच्
ु छे द 21 कार्यपालिका और विधायिका दोनों के विरुद्ध संरक्षण दे ता है ।

केस- न्यायाधीश पत्त


ु ास्वामी बनाम भारत संघ (2017)- जीने के अधिकार में
निजता का अधिकार भी शामिल है ।

केस- मिस्टर एक्स बनाम हॉस्पिटल जेड - अनच्


ु छे द 21 में दिए गए जीने के
अधिकार में निजता का अधिकार आत्यंतिक नहीं है इस पर भी यक्ति
ु यक्
ु त
निर्बन्धन लगाए जा सकते हैं।
केस- ज्ञान कौर और बनाम पंजाब राज्य (1996)- जीने के अधिकार में मरने का
अधिकार शामिल नहीं है ।

केस- मोहिनी जैन बनाम कर्नाटक राज्य (1992)- उच्चतम न्यायालय ने कहा
कि शिक्षा का मल
ू अधिकार अनच्
ु छे द 21 में दिए गए जीने के अधिकार में ही
शामिल है ।

केस- नरें द्र बनाम बी बी गज


ु राल (1970)- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने
कहा कि अनच्
ु छे द 22 (5) का संरक्षण उन व्यक्तियों को भी प्राप्त है जिन्हें
विदे शी मद्र
ु ा संरक्षण और तस्करी निवारण अधिनियम 1974 के अधीन निरोध
किया जाता है ।

केस- जोगिंदर कुमार बनाम उत्तर प्रदे श राज्य (1994)- उच्चतम न्यायालय ने
अन्वेषण के दौरान किसी व्यक्ति की पलि
ु स द्वारा गिरफ्तारी के संबध
ं में
मार्गदर्शक सिद्धांत दिए जिससे निर्दोष व्यक्तियों को पलि
ु स द्वारा अवैध एवं
मनमानी गिरफ्तारी से संरक्षण दिया जा सके।

केस- गणपति केशवराय बनाम नफ़ीसल


ु हुसन
ै (1954)- किसी गिरफ्तार
व्यक्ति को 24 घंटे से ज्यादा पलि
ु स की हिरासत में नहीं रखा जाएगा।

केस- तारापद बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1951)- यदि गिरफ्तारी के कारणो
को दे री से दिया जाता है तो उसका पर्याप्त कारण होना चाहिए।
केस- बंधआ
ु मक्ति
ु मोर्चा बनाम भारत संघ (1984)- न्यायालय ने कहा कि
अनच्
ु छे द 23 बंधआ
ु मजदरू प्रणाली को समाप्त करता है ।

केस- पीपल्
ु स यनि
ू यन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम भारत संघ (1982)-
उच्चतम न्यायालय ने अनच्
ु छे द 23 केवल बेगार को ही नहीं बल्कि इसी प्रकार
के सभी बलपर्व
ू क लिए जाने वाले कार्य को वर्जित करता है ।

केस- एम सी मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य (1996)- उच्चतम न्यायालय ने


कहा कि 14 वर्ष से कम आयु के बालक को किसी कारखाने या खान में
नियोजित नहीं किया जा सकता और इस संबध
ं में कुछ दिशा निर्देश भी जारी
किए।

केस- एस आर बोम्मई बनाम भारत संघ (1994)- पंथनिरपेक्षता संविधान का


आधारभत
ू ढांचा माना है ।

केस- डाउन्स बनाम विडवेल (1921)- प्रत्येक व्यक्ति को अपने विश्वास के


अनस
ु ार किसी भी धर्म को मानने और किसी भी ढं ग से ईश्वर की पज
ू ा करने की
पर्ण
ू स्वतंत्रता होनी चाहिए।

केस- चर्च ऑफ़ गॉड इन इंडिया बनाम के के आर एम वेलफेयर एसोसिएशन


(2000)- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनच्
ु छे द 25 और 26 के अंतर्गत
धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग करते समय किसी व्यक्ति को ध्वनि
प्रदष
ू ण फैलाने का या अन्य व्यक्तियों की शांति भंग करने का अधिकार नहीं है ।

केस- रवि स्टै नील्लास बनाम मध्य प्रदे श राज्य (1977)- उच्चतम न्यायालय ने
कहा कि धर्म के प्रचार की स्वतंत्रता पर लोक व्यवस्था में निर्बन्धन भी लगाए
जा सकते हैं।

केस- टी एम ए फाऊंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य (2003)- अल्पसंख्यक का


निर्धारण राज्य की जनसंख्या के आधार पर किया जा सकता है ।

केस- डी ए वी कॉलेज भटिंडा बनाम पंजाब राज्य (1971)- न्यायालय ने कहा कि


अल्पसंख्यक वर्ग को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थानों को स्थापित और प्रकाशित
करने के अधिकार में शिक्षा के माध्यम से विकल्प का अधिकार भी शामिल है ।

केस- वामनराव बनाम भारत संघ (1981)- इस मामले में अनच्


ु छे द 31क, 31ख
और 31ग की विधिमान्यता को चन
ु ौती दी गई थी।

केस- आई आर सेलो बनाम तमिलनाडु राज्य (2007)- उच्चतम न्यायालय ने


कहा कि 24 अप्रैल 1973 के बाद संविधान की नौवीं अनस
ु च
ू ी में वर्णित किसी भी
अधिनियम को चन
ु ौती दी जा सकती है यदि वह आधारभत
ू ढांचे के उपबंधों के
उल्लंघन करता है ।
केस- कानू सान्याल बनाम जिला मजिस्ट्रे ट दार्जिलिंग (1974)- उच्चतम
न्यायालय ने कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट निरुद्ध व्यक्ति को न्यायालय के
समक्ष पेश किये बिना भी जारी की जा सकती है ।

केस- सन
ु ील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन (1980)- बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट का
प्रयोग जेल में बंद कैदी के साथ किये गये अमानवीय व्यवहार से संरक्षण के
लिए भी किया जा सकता है ।

केस- मध्यप्रदे श राज्य बनाम जी सी मंडवारा (1954)- न्यायालय ने कहा कि


संबधि
ं त अधिकारी का कर्तव्य यदि विवेकीय निर्णय पर आधारित है तो
परमादे श रिट जारी नहीं की जा सकती।

केस- संतोष सिंह बनाम भारत संघ- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि परमादे श
रिट का प्रयोग केवल मल
ू अधिकारों के उल्लंघन पर उपचार के लिए किया जा
सकता है ।

केस- ईस्ट इंडिया कमर्शियल कंपनी बनाम कलेक्टर ऑफ कस्टम्स- प्रतिषेध


रिट भी उत्प्रेषण रे ट की भांति केवल न्यायिक और अर्ध न्यायिक संस्थाओं के
विरुद्ध जारी की जा सकती है । यह कार्यपालिका प्राधिकारी और विधायिका के
विरुद्ध जारी नहीं की जा सकती।

केस- हरि विष्णु कामथ बनाम अहमद इशहाद- उत्प्रेषण रिट जारी करने के
लिए न्यायालय के निर्णय में स्पष्ट गलती होनी चाहिए और यदि कोई गलती
स्वत ही स्पष्ट नहीं होती जिसे स्पष्ट करने के लिए जांच करनी पड़े वह उत्प्रेषण
रिट का आधार नहीं होगा।

केस- कारकरे बनाम टा एल शेरडे- एक व्यक्ति काफी समय से पद पर होने के


कारण जिसके खिलाफ कोई शिकायत नहीं थी न्यायालय ने उसके विरुद्ध
अधिकार पच्
ृ छा की रिट जारी करने से इनकार कर दिया, क्योंकि यह
मक
ु दमेबाजी को बढ़ावा दे ना होगा।

केस- अखिल भारतीय रे लवे शोषित कर्मचारी संघ बनाम भारत संघ (1981)-
न्यायालय ने कहा कि एक अपंजीकृत संघ भी अनच्
ु छे द 32 के अंतर्गत रिट
दायर कर सकता है ।

केस- एस पी गप्ु ता बनाम राष्ट्रपति और अन्य (1982)- न्यायालय ने कहा कि


जनहित याचिका वाद लाने के अधिकार का अपवाद है यह किसी भी माध्यम से
दायर की जा सकती है इसके लिए किसी तकनीकी नियमों की आवश्यकता
नहीं।

केस- बोधिसत्व गौतम बनाम शभ्र


ु ा चक्रवर्ती (1996)- मल
ू अधिकार प्राइवेट
व्यक्ति और निकायो के विरुद्ध भी उपलब्ध है ।

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