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ह िंदी हिभाग

क्लास :- बी.ए. तृ तीय वर्ष


सत्र – 5
कथे तर गद्य सावित्य
स्तर :- सामान्य (G – 3 ) (सिंस्मरण और रे खावित्र)
ववर्य का नाम :- कथेतर गद्य सावित्य

ववर्य कोड :- 35093

वििं दी ववभागाध्यक्ष :- प्रा. समद जमादार सिंपादक


प्रो. डॉ. सदानिं द भोसले
कथेतर गद्य सावित्य
सिंस्मरण और रे खावित्र

सिंपादक :- प्रो. डॉ. सदानिंद भोसले

 बी.ए तृ तीय वर्ष सत्र – 5 वििं दी सामान्य ( G – 3 ) का पाठ्यक्रम िै - इकाई –


1 में सिंस्मरण और इकाई – 2 में रे खावित्र िै |
इकाई – 3 में पाठ्यपुस्तकेतर पाठ्यक्रम :
1) सभा इवतवृत्त लेखन
2) वाताष लेखन
सिंस्मरण सावित्य -
1) अमृतलाल नागर – शरत : एक याद
2) मिादे वी वमाष – प्रेमििंद : एक स्मरण
3) कृष्ण सोबती – िमिशमत : वमयााँ नसीरुद्दीन
4) वशवपूजन सिाय – पूज्य वनराला जी

रे खावित्र सावित्य –
1) सच्चिदानिंद विरानिंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’- पीपल
2) ववनय मोिन शमाष – डबली बाबू
3) जगदीश ििंद्र माथुर – अमृत के स्त्रोत जवािरलाल नेिरू
4) रामवृ क्ष बेनीपुरी – रवजया
सिंस्मरण हिसे ि ते ै ? सिंस्मरण िा क्या अर्थ ैं
 सिंस्मरण शब्द दो शब्दोिं से वमलकर बना िै , सम् + स्मरण। इसका अथष सम्यक् स्मरण अथाषत् वकसी
घटना, वकसी व्यच्चि अथवा वस्तु का स्मृवत के आधार पर कलात्मक वणषन करना सिंस्मरण किलाता
िै । इसमें स्वयिं अपेक्षा उस वस्तु की घटना का अवधक मित्व िोता िै वजसके ववर्य मे ले खक
सिंस्मरण वलख रिा िोता िैं । सिंस्मरण की सभी घटनाएिं सत्यता पर िी आधाररत िोती िैं । इसमें
ले खक कल्पना का अवधक प्रयोग निी करता िै ।
ले खक के स्मृवत पटल पर अिं वकत वकसी ववशेर् व्यच्चि के जीवन की कूछ घटनाओिं का रोिक
वववरण सिंस्मरण किलाता िै । इसमें ले खक उसी का वणषन करता िै जो उसने स्वयिं दे खा या अनुभव
वकया िो। इसका वववरण सवषथा प्रामावणक िोता िै । सिंस्मरण ले खक जब अपने ववर्य मे वलखता िै
तो उसकी रिना आत्मकथा के वनकट िोती िै और जब दू सरे के ववर्य मे वलखता िै तो जीवनी के|
अत: स्पष्ट िै वक सिंस्मरण वकसी व्यच्चि ववशेर् के जीवन की घटनाओिं का रोिक ढिं ग से प्रस्तुत
वववरण सिंस्मरण किलाता िै , वणषन प्रत्यक्ष घटनाओिं पर आधाररत िोता िैं ।
रे खाहित्र हिसे ि ते ैं ? रे खा हित्र िा क्या अर्थ ोता ै ?
 रे खावित्र शब्द अिं ग्रेजी के" स्केि" शब्द का अनु वाद िै । तथा दो शब्द रे खा और वित्र के योग से बना िै । इस ववधा

में क्रम बिंधुता को ध्यान में रखकर वकसी व्यच्चि की आकृवत उसकी िाल ढाल या स्वभाव का शब्दोिं द्वारा सजीव

वित्रण वकया िै रे खावित्र किलाती िै।

 रे खािं वकत शब्द वित्रकला का िै वजसका अथष ऐसा खाका वजसमें क्रमबद्ध ब्योरे ना वदए गए िो। उसी के अनु करण

पर वलखना रे खा वित्र किलाता िै। इसी प्रकार थोडे से शब्दोिं में वकसी व्यच्चि घटनाएिं स्थान या वस्तु को विवत्रत

कर दे ना कुशल रे खावित्र कार का िी काम िैं। रे खा वित्र में लेखक कम से कम शब्दोिं में सजीवता भर दे ने का

प्रयास करता िै और उसके छोटे -छोटे पैने वाक्य एविं ममषस्पशी िोते िैं। मिादे वी वमाष ने अपने आवित सेवकोिं को

िी निीिं बच्चि पशुओिं को भी रे खा वित्र के माध्यम से अमर बना वदया िै। रे खावित्र गद्य सावित्य के आधुवनक ववधा

िै। इस ववधा में लेखक रे खा वित्र के माध्यम से शब्दोिं को ढािंिा तैयार करता िै। लेखक वकसी सत्य घटना की वस्तु

का या व्यच्चि का वित्रात्मक भार्ा में वणषन करता िै। इसमें शब्द वित्रोिं का प्रयोग आवश्यक िै। रे खा वित्रकारोिं में

मिादे वी वमाष ,कन्हैयालाल वमि प्रभाकर ,बनारसीदास ितुवेदी ,रामवृक्ष बेनीपुरी एविं डॉ नागेंद्र ववशेर् रूप से

उल्लेखनीय िैं।
सिंस्मरण साह त्य –
1. अमृ तलाल नागर – शरत : एक याद
सिंस्मरण िा सार –
यि सिंस्मरण बािंग्ला के मशहूर लेखक शरतििंद्र िटजी से हुई मुलाकातोिं पर आधाररत िै| अमृतलाल नागर ने
शरतििंद्र के प्रेम,भोलेपन,सिजता और मस्त मौला छवव को अपनी बातोिं के माध्यम से दशाष या िै| वे वलखते िैं
वक, शरत बाबू वििंदी मजे की बोल लेते थे, उन्होिंने मुझे सीख दी थी, जो वलखना अपने अनुभव से वलखना और
पिले फील करो, वफर वलखो| अमृतलाल नागर वलखते िैं वक कई बार बातोिं िी बातोिं में अनुभव हुआ शरद बाबू
में स्नेि की मात्रा अवधक थी| वे नागर से अपने बिोिं की तरि प्रेम करते थे| अनेक बार जीवन के अनुभव साझा
करते थे| अमृतलाल नागर ने शरतििंद्र के जीवन में घवटत दो बडे दु खोिं के अनुभव को भी इस सिंस्मरण में साझा
वकया िै| पिली घटना जब 1910 में मकान में आग लगने के कारण उनकी लाइब्रेरी और एक अधूरा वलखा
हुआ उपन्यास जलकर नष्ट हुआ| दू सरी घटना 1915-16 में उनके कुत्ते द्वारा लगभग पूरा वलखा जा िुका
उपन्यास फाडकर नष्ट कर वदया गया था| अमृतलाल नागर शरतििंद्र से बहुत प्रभाववत थे | इस सिंस्मरण के
माध्यम से जीवन से कोई वशकायत निीिं रखने वाले शरतििंद्र िटजी के मिान व्यच्चित्व और अच्छे कलाकार की
छवव को सामने लाने का प्रयास वकया गया िै| यि सिंस्मरण अमृतलाल नागर की ओर से शरतििंद्र िटजी के प्रवत
आदर और िद्धा का पररिायक िै |
2. मिादे वी वमाष – प्रेमििंद : एक स्मरण
सिंस्मरण िा सार –
प्रस्तुत सिंस्मरण के अिंतगषत वििंदी सावित्य की प्रवतभावान लेच्चखका मिादे वी वमाष ने प्रवसद्ध कथाकार मुिंशी
प्रेमििंद्र के साथ हुए अपने प्रथम पररिय और प्रथम मुलाकात का वणषन वकया िै| वजसमें उन्होिंने मुिंशी
प्रेमििंद के सिंवेदनशील व्यच्चित्व, आत्मीयता तथा सिजता को विवत्रत वकया िै| वे वलखती िैं प्रेमििंद ने
उस समय अपनी कलम की जादू गरी का प्रयोग वकया, जब वििंदी कथा सावित्य जासूसी और वतवलस्मी
दु वनया तक िी सीवमत था| इस सिंस्मरण में प्रेमििंद की युग प्रवतषक छवव को उन्होिंने उभरकर सामने रखा
िै| उन्होिंने कवव और कथाकार की तुलना करते हुए कथाकार की वववशष्टता को प्रकट वकया िै| प्रेमििंद
ने जीवन में अनेक सिंघर्ष वजले पर कभी पराजय निीिं मानी| नवीनता की शैली में डूबकर आम जीवन के
सिंघर्ष पर अनेकोिं किावनयािं प्रेमििंद ने वलखी िैं| मिादे व जी ने प्रेमििंद एक स्मरण में मुिंशी प्रेमििंद के
साविच्चत्यक गुणोिं की प्रशिंसा के साथ िी सामावजक ववर्मताओिं के प्रवत आक्रोश को प्रकट वकया िै| यि
सिंस्मरण बहुत रोिक िै| यि प्रेमििंद के सिंघर्षशील जीवन और प्रभावशाली साविच्चत्यक पक्ष को प्रस्तुत
करता िै |
3. कृष्ण सोबती – िमिशमत : वमयााँ नसीरुद्दीन
सिंस्मरण िा सार –

यि समरण वििं दी की वववशष्ट लेच्चखका कृष्णा सोबती के ‘िम-िशमत’ नामक सिं ग्रि से वलया गया िै | इस सिं स्मरण के द्वारा

लेच्चखका ने वमयािं नसीरुद्दीन के व्यच्चित्व रुवियािं एविं स्वभाव का वणष न वकया िै | एक दोपिर जब ले च्चखका घूमती हुई जामा

मच्चिद के वनकट वनकट मोिल्ले में एक अिं धेरी दु कान के पास आती िैं तो पता िलता िै वक वि दु कान खानदानी नानबाई वमयााँ

नसीरुद्दीन की िै | जो वक 56 वकस्म की रोवटयािं बनाने के वलए मशहूर िै | आरिं भ में तो वमयााँ उन्हें ग्रािक समझ ले ते िैं | पर बाद में

पता िलता िै वक, वि पत्रकार िैं | ले च्चखका उनसे पू छती िै आपने इतने वकस्म की रोवटयााँ बनाने का गु ण किााँ से सीखा? बोले -

यि उनका खानदानी पे शा िै | उन्होिंने बताया वक एक बार बादशाि ने उनके बुजुगों से किा, ऐसी िीज बनाओ जो आग से न

पके, न पानी से बने | उन्होिंने ऐसी िी िीज बनाई| किने लगे, खानदानी नानबाई कुए में भी रोटी बना सकते िैं | इस किावत पर

प्रश्न करने पर वे भडक उठे | लेच्चखका ने जब बादशाि के सिं दभष में जानने का प्रयत्न वकया, तो वि च्चखझकर बोले वक आपको

बादशाि के नाम विट्ठी भे जनी िै | लेच्चखका से पीछा छु डाने की गरज से उन्होिंने बब्बन वमयााँ को भट्टी सु लगाने का आदे श वदया|

जबवक रोटीयो की वकस्मे जानने की इच्छा जताई गई तो उन्होिंने फटाफट नाम वगनवा वदए| वफर तु नककर बोले – तु नकी पापड

से ज्यादा मिीन िोती िै | वफर वि यादोिं में खो गए और किने लगे वक अब समय बदल गया िै अब खाने पकाने का शौक पिले

की तरि निी िं िै | अब न कद्र करनेवाले िी िैं | अब तो भारी तिंदूरी रोटी का बोलबाला िै |


4. वशवपूजन सिाय – पूज्य वनराला जी
सिंस्मरण िा सार –
यि सिंस्मरण वििं दी गद्य लेखक वशवपू जन सिाय की उत्तम कृवतयोिं में से एक िैं | प्रस्तुत सिंस्मरण में वनराला के जीवन के
कुछ ववशेर् प्रसिंगोिं को उद् घावटत वकया गया िै | गरीबोिं के प्रवत उनकी त्याग भावना इतनी प्रबल थी वक काफी पै सा
कमाकर भी वे फक्कड किलाए| वजस सोसाइटी में वे रिते थे, विािं मतवाला सिंपादक िी मिादे व प्रसाद सेठ उनके
भि िो गए| सेठ जी वनराला का बहुत ध्यान रखते थे | जब भी बाजार जाते तो वनराला के वलए फल ले लेते और वनराला
उन फलोिं को रास्ते में वमलने वाले किंगालो को बािं ट आते थे| वनराला ने एक बार सेठ जी के वमत्र वकशोरीलाल से उपिार
स्वरूप वमले साबु न और तेल भीख मिंगो के गिंदे कपडे कपडे साफ करने के वलए बााँ ट आए| वनराला अपने त्याग का
प्रदशषन निीिं करते थे| कभी वकसी से उसकी ििाष तक ना करते थे| कोई उनके सामने इस गुण की प्रशिंसा भी िलाता
था तो वि मौन िी रिते| मानव की मित्ता को परखने में उनके प्रवतवदन के जीवन की छोटी से छोटी बातें ववशेर्
सिायक िोती िैं | एक वदन मतवाला मिंडल प्रे स का मशीन मैन अिानक घायल िो गया| टर े डील में आधा िाथ िी पीस
गया| जब तक वि अस्पताल में रिा, वनराला ने समूिे पररवार के अन्न की मावसक व्यवस्था की| सवोपरर बात यि वक
उनके सारे कमष सदा वनष्कर्ों की भावना से वकया जाते थे| लेखक ने सिंस्मरण के अिंत में वनराला के परविताथष की ओर
इिं वगत करते हुए वलखा िै वक समाज में त्यागी और सावित्य में बागी वनराला जै सा कोई न हुआ|
रे खावित्र सावित्य –
1. सच्चिदानिंद विरानिंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’- पीपल
रे खाहित्र िा सार –
प्रस्तुत रे खावित्र में अज्ञेय ने अपनी प्राकृवतक सिंवेदनशीलता, सूक्ष्म वनरीक्षण क्षमता तथा दाशषवनकता का

पररिय वदया िै | पीपल और उस पर उडती-फुदकती विवडया सिंवेदनशील रिनाकारोिं के वलए िी स्मृवत

वस्तु िो सकती िैं | पीपल को घिंटोिं वनिारते उन्होिंने अनुभव वकया वक शािंत च्चस्थर वातावरण में भी पीपल

का एक पत्ता ििंिल रिता िै | इसी प्रकार जब घोर तूफान की च्चस्थवत में भी उनका एक पत्ता अवश्य िी

च्चस्थर और और ििंिल रिता िोगा| उन्होिंने पीपल की खूवबयोिं के साथ उसके दे वत्व को भी प्रकट वकया िै |

वे वलखते िैं वजस प्रकार पीपल अपने अिंदर च्चस्थरता और ििंिलता दोनोिं को धारण कर सकता िै , इसी

प्रकार गिरी से गिरी जडता के भीतर भी गवत का एक बीज िेतनामय िोना अवनवायष िै | इसी प्रकार

व्यापक िलायमान च्चस्थती के बीि में किी-न-किी एक छोटा अिलशािंती का वद्वप, या ध्रुव वबिंदु िोना भी

उतना िी अवनवायष िै | पीपल सिंस्करण में अज्ञेय ने पवक्षयोिं परजीवोिं और वट तथा पीपल के माध्यम से

मानव जीवन में प्रकृवत के ववशाल मित्व की ओर इिं वगत वकया िै |


2. ववनय मोिन शमाष – डबली बाबू
रे खाहित्र िा सार –
ववनय मोिन शमाष द्वारा रवित डबली बाबू एक मावमषक रे खावित्र िैं | इस रे खा वित्र में उन्होिंने डबली
बाबू की कतषव्यवनष्ठा, आत्मवनष्ठा, भोले पन और वमलनसार प्रवृवत्त का बडा िी सुिंदर वित्रण प्रस्तुत
वकया िै | उनका मानना िै वक मनु ष्य केवल पढने -वलखने तथा ऊिंिा पद प्राप्त करने से िी बडा निीिं
बनता| यवद कोई भी मनु ष्य ईमानदार और कमष वनष्ठ िो और सिी ढिं ग से मानवता का पालन करें तो
साधारण से साधारण मनु ष्य भी मिान बन सकता िै | डबली बाबू ऐसे िी उदार व्यच्चि थे जो अपनी
व्यविार कुशलता, कमष वनष्ठा से वकसी का भी वदल जीत ले ते थे| इसवलए ले खक को निीिं जानते हुए
भी डबली बाबू ले खक की सिायता करते िैं और उनके प्रवत बडी आत्मीयता का भाव रखते िैं |
ले खक ने इस रे खावित्र के माध्यम से यि समझाने का प्रयास वकया िै | यवद सभी मनु ष्य मानवता के
प्रवत उवित व्यविार तथा सिाई रखते हुए अपने काम के प्रवत सजग रिते िैं तो वे भी एक आदशष
जीवन का उदािरण प्रस्तुत कर सकते िैं | यि रे खावित्र अत्यिंत मावमष क और हृदयस्पशी िैं |
3. जगदीश ििंद्र माथु र – अमृत के स्त्रोत जवािरलाल नेिरू
रे खाहित्र िा सार –
प्रस्तुत रे खावित्र छायावादी सिंवेदना के प्रवसद्ध रिनाकार जगदीशििंद्र माथुर द्वारा वलच्चखत िै | इस
रे खावित्र के अिं तगषत जवािरलाल नेिरू के बहुमु खी व्यच्चित्व, उनके आधु वनक भारत के वशल्पकार
एविं स्वप्नदृष्टा स्वरूप को कुछ प्रसिंगो द्वारा उजागर वकया िै| ले खक पिंवडतजी की काव्य ले खनी को
ववशेर् मित्व दे ता िै | प्रधानमिं त्री आडिं बरो पर ववश्वास निीिं करते थे| लेखक प्रधानमिं त्री के साथ कई
सरकारी समारोि में अवधकारी के तौर पर शावमल रिे| प्रधानमिं त्री के दपषशील रूप को भी उन्होिंने कई
बार दे खा| इस रे खावित्र के माध्यम से उन्होिंने प्रधानमिं त्री की कई वदलिस्प यादोिं को साझा वकया िै |
जैसे कायषक्रमोिं के बाद अवतवथयोिं की िुटकी ले ना िो, उनके साथ िास- पररिास करना, सिज मु स्कान
रखकर कलाकारोिं के साथ फोटो च्चखिंिवाना, बिोिं के बीि जाकर विल -वमल जाना उन्हें प्यार करना|
इस रिना के माध्यम से ले खक ने जवािरलाल ने िरू के सिज व्यच्चित्व और जीवन जीने की कला
को अपने अनु भव के आधार पर विवत्रत वकया िै | यि रे खावित्र जवािरलाल ने िरू के जीवन के
अववस्मरणीय पलो को वफर से वजविंत करता िै |
4. रामवृक्ष बेनीपुरी – रवजया
रे खाहित्र िा सार –
वििं दी सावित्य के शुक्लोत्तर युग के प्रवसद्ध सावित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी ने इस रे खावित्र में रवजया के
माध्यम से अपने समाज एविं गााँव का वित्रण वकया िै | रवजया उनके बिपन की पररवित पात्र िैं |
वजसका व्यवसाय घर-घर जाकर िूडी बेिना िै | इस रे खावित्र में ले खक ने रवजया के बालपन से
ले कर बुढापे तक जीवन के िर पक्ष को किानी में वपरोया िै | ले खक के मन में बालपन से िी रवजया
के प्रवत किीिं ना किीिं एक प्रेमभाव िै | इसवलए रवजया का व्यच्चित्व उसे बहुत प्रभाववत करता िै
और इसवलए वि िमे शा रवजया के प्रवत जुडाव मिसूस करता िै | इस रे खावित्र के माध्यम से ले खक
ने रवजया की स्मृवतयोिं को प्रस्तुत वकया िै | साथ िी उसकी सुिंदरता, बिपन, व्यवसाय, जावत,
राजनीवत, धमष , सािंप्रदावयकता, सौिादष आवद सभी वबिंदुओिं को उजागर वकया िै | यि रे खावित्र कई
दृष्टीयोिं से मित्वपूणष िै | रे खावित्र के ले खक, नावयका, वातावरण, घटनाएिं तथा पररवेश एक दू सरे से
इस प्रकार जुडे िैं वक इसका िर घटनाक्रम पाठक को बााँध लेता िै | यि रे खावित्र व्यिंजना की गिन
तथा मावमष क अनु भूवत को प्रस्तुत करता िै |
इकाई – 3 पाठ्यपुस्तकेतर पाठ्यक्रम :
सभा – इवतवृ त्त लेखन

इहतिृत्त क्या ै ?
अथष की दृवष्ट से दे खा जाए तो एक घटना, प्रसिंग घवटत िोता िै तो यवद वि कुछ ववशेर् िै, और सामान्य घटना से
परे िैं, और जनता उसे जानती िैं , जानने में रुवि रखती िैं, वि इवतवृत्त िै| इवतवृत्त आरिं भ िोने से लेकर घटना
की समाच्चप्त िोने तक का वववरण िोता िै| यिािं सभा का इवतवृत्त उदािरण के तौर पर सभा का ववर्य क्या था?
वकस प्रसिंग ववशेर् पर सभा का आयोजन वकया गया था? कौन सा शिर, गािंव या स्थान ववशेर् था ? इस सभा
का क्या मित्व था? इसे आयोजन करने वाली सिंस्था, मिाववद्यालय, स्कूल, सोसाइटी, असोवसएशन, सरकारी या
गैर सरकारी सिंस्थान आवद का ब्यौरा वलखना पडता िै| साथ िी वदनािंक, वतवथ, समय, वार आवद का उल्लेख भी
जरूरी िोता िै| सभा का आरिं भ, प्रस्तावना, दीप प्रज्वलन, स्वागत, स्वागत गीत, अध्यक्ष, प्रमुख अवतवथ, इसके
अवतररि कुछ अन्य कायषक्रमोिं का समावेश इस में िै तो उसका भी और वृत्तािंत वलखना पडता िै| सुत्रसिंिालक
का नाम, उद् घाटक का नाम, ओिदा, पद, अवतवथ के बारे में जानकारी सिंपूणष सभा के प्रभाव के सिंदभष में और
उपच्चस्थत िोताओिं की प्रवतवक्रया और प्रवतसाद के सिंदभष में वलखना िाविए| सभा के इवतवृत्त का स्वरूप फॉमेट
िोता िै| यि केवल वववरण िोकर पाठकोिं को इससे जानकारी वमले और आिं खोिं दे खी घटना का या सभा का
अनुभव वमलने जैसा आनिंद और समाधान वमले |
इकाई – 3 पाठ्यपुस्तकेतर पाठ्यक्रम :
वाताष लेखन

वििंदी के आधुवनक गद्य ववधाओिं में वाताष भी अलग से अपनी पििान बना िुकी िैं| इसके वलए अनेक नाम िै|
जैसे इिं टरव्यू, साक्षात्कार, पररििाष, ववशेर् पररििाष , भेंटवाताष , आवद नाम प्रयुि वकए जाते िैं| दै वनक,
साप्ताविक, मावसक पवत्रकाओिं के माध्यम से प्रकाश में आया िै | वाताष में यि िोता िै वक, एक व्यच्चि वकसी
वववशष्ट व्यच्चि से वमलकर बातिीत करता िै| उस बातिीत द्वारा उस व्यच्चि से सिंबिंवधत जानकारी को
वलवपबद्ध करता िै| यि स्पष्ट िै लेखक पिले से लेखक की वि ली गई जानकारी सिी व प्रामावणक िोगी| कई
बार यि िोता िै वक, लेखक पिले से वकसी खास प्रश्नोिं को सोिकर जाता िै, और उन प्रश्नोिं के आधार पर
जानकारी प्राप्त कर साविच्चत्यक भार्ा में वलखता िै| इसे िी वाताष सावित्य किते िैं| मात्र सावित्य का आरिं भ
भारतेंदु युग से माना जाता िै| भारतेंदु िररश्चिंद्र की वाताष पिंवडत राधािरण गोस्वामी ने की, और वि छपी भी थी|
पिंवडत ििंद्रधर शमाष गुलेरी ने ववष्णु विदिं बरम सिंगीतकार से भेंट की वाताष और समालोिना पवत्रका में 1905 में
छपी| सन 1941 ईस्वी में भारत सावित्य में पिंवडत पदम वसिंि शमाष कमलेश्वर में इन से वमला कृवत िैं| वजसमें
कुल 22 वाताषएिं सिंकवलत िै|
प्रश्न -
 वशवपू जन सिाय जी ने वनराला के जीवन के कौन से ववशेर् प्रसिं गो को उद् घावटत वकया िै ?

 कृष्णा सोबती ने वमयााँ नसीरुद्दीन के व्यच्चित्व, रुवियो एविं स्वभाव को वकस तरि वणष न वकया िै ?

 डबली बाबू की स्वभावगत प्रवृत्तीयोिं पर प्रकाश डावलए |

 रवजया का व्यच्चित्व रामावृक्ष बे नीपु री को क्यो प्रभाववत करता िै ?

 डबली बाबू की व्यविार कुशलता |


 वनराला की गररबो के प्रवत त्याग भावना |

 “प्रे मििं द जी के व्यच्चित्व में एक सिज सिं वेदना और ऐसी आत्मीयता थी, वक प्रत्ये क सावित्यकार का
उत्तरावधकार िोने पर भी उसे प्राप्त निीिं िोता !”
 “ज्योिं-ज्योिं शिर में रिना बढता गया, रवजया से भेंट भी दु लषब िोती गई | और एक वदन वि
 भी आया, जब बहुत वदनोिं पर उसे अपने गााँव में दे खा |”
 आपके मिाववद्यालय में आयोवजत िोने वाले वावर्ष क पाररतोवर्क ववतरण समारोि के आयोजन के वलए
सिंपन्न हुई सभा का इवतवृत्त तैयार कीवजए |
 बाले वाडी, पु णे में आयोवजत राष्टरीय दौड प्रवतयोवगता पर वाताष तै यार कीवजए |
धन्यवाद !

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