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Shiv Chalisa PDF
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जय गणेश गगरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान | कहत अयोध्यादास तुम, दे हु अभय
विदान ||
|| चौपाई ||
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पूजन िामचन्द्र जब कीन्हा | जीत के लंक गवभीषण दीन्हा ||
सहस कमल में हो िहे धािी | कीन्ह पिीक्षा तबगहं पुिािी ||
|| दोहा ||
गनत्त नेम कि प्रातः ही, पाठ किौं चालीसा | तुम मेिी मनोकामना, पूणि किो
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जगदीश ||
मगसि छगठ हे मन्त ॠतु, संवत चौसठ जान | अस्तुगत चालीसा गशवगह, पूणि कीन
कल्याण ||
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