VIDEHA_KEDARNATH_CHAUDHARY_SPECIAL-161-218

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विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 139

ले लवन, जने उ पवहरब छोवड़ दे लवन। ई सभ समाजिादी मानसक प्रिीकात्मक


प्रयोग सभ रहए। एकर प्रभाि साँ ित्कालीन मै तथल लोकवन से हो नवह बचल
छला। से माि युिे िगट टा नवह, स्ििां ििा सां ग्राम साँ दे खौटी िौर पर जुड़ल
बुजुगटहु सभ अवह प्रभाि कें ग्रहण कएलवन, भने ई जोश स्थायी नवह भए
सकल, वकछु ए द्वदन िक वटकल। बादक दौर मे जाए कए फरक एिबे टा
रहलए जे मै तथले िर िगट ि ओवह पररििटन सभक सां ग अत्रभन्द्निा रान्ख
आधुवनकिा आ प्रगतिशीलिाक ड़गर पर आगू बवढ़िवह रवह गे ल, वकन्द्िु
मै तथल िगट ओवह दौरक नशा उिररिवह फेर साँ अपन कमटकाां डीय खोल मे
काछु जकााँ िापस घुरर गे ल, बस्ल्क ओवह खोल कें और सक्कि कए ले लक।
टीक कटाए कए गाम जाएब आ िे करा गमछा साँ झााँ पने रहबाक प्रसां ग इएह
आ एहने द्वैध सभ कें उजागर करबाक ले ल पोथी मे आएल अतछ।
अवहना "उदी पर भाां ग खाएब" आ ओकरा नशा नवह मानब माि पािगि
नवह अतछ। ई िवह कालक (कमोबे स आइओ) मै तथल पररिे श आ
मानत्रसकिाक सूि-तचिण अतछ। मे हनि-मशक्कि करब, उद्यम करब, घाम
बहाएब आ िवह पुरुषाथट साँ अपन आ पररिारक भरण-पोषण करब
यजमान लोकवनक काज रहए, पुरवहि लोकवनक नवह। पुरवहि लोकवनक
मानब रहवन जे हुनका श्रम सन तघनाष्टक काज नवह करबाक छवन, हुनक
भरण-पोषणक णजम्मे दारी यजमान लोकवनक छवन, िें श्रम करब
हुनके सभक काज छवन। पुरवहि सभक काज तछअए लोकक जन्द्म साँ मरण
िक वित्रभन्द्न कमटकाां डीय सां स्कार सभक रचना-स्थापना करब, ओवह
सां स्कार सभक आयोजन मे उपस्स्थि भए विकृि उच्चारण मे दे िभाषाक
वकछु मां ि बुदबुदाए दे ब, पूजा-पाठ कराए दे ब आ िदोपराां ि दतछनाक रूप मे
टका-िस्ि-अन्द्नाद्वद प्राप्ि कए घर घुरर आएब आ शे ष समय मे भाां ग पीयब,
पुष्टाां ग मािा मे भकसब आ फाें फ काटब। "उदी पर भाां ग खाएब" अवह
पुरवहिी अलसपना, परजीवििाक मानत्रसकिा कें दे खार करबाक प्रसां ग अतछ।
140 ||गजे न्द्र ठाकुर

एहने एक टा प्रसां ग अतछ पनबाड़ीक टाट मे कनवटरबाक फाँसबाक चलिे


वगरफ्िार भए जाएब, जे ल जाएब आ जे ल साँ बाहर आवब ने िा-विधायक भए
जाएब। जाँ इमानदारी साँ शोध हुअए ि आजादीक उपराां ि एहने सन दुघटटना,
एहने सभ प्रपां च सभक फलस्िरूप स्ििां ििा-से नानी बवन गे ल, ने िृत्िक
किार मे चत्रल आएल अने काने क ने िा सभक पदाटफाश भए जाएि।
दे शक प्रत्ये क भूभाग मे एहन अने क रास उदाहरण भे वट जाए सकैि अतछ।
एकटा उदाहरण ि हमरे सुपौलक अतछ। एकटा हजाम काां ग्रेस आवफस मे
आवब ने िा सभक केश-दाढ़ी बनबै ि रहए। अपन श्रद्धा वनिे द्वदि करबाक ले ल
ओ ई काज मोफि मे करए। स्ििां ििा-से नानी पें शन योजनाक घोषणा भे ला
पर ओ वबहार सरकारक एकटा लब्ध-प्रतितष्ठि मां िी कें कहलकवन जे
"सरकार! अहााँ सभक एिे क से िा कएल। ई पें शन हमरा नवह भे वट सकए
छै ?" मां िी कें मसखरी सुझलवन आ ओ अपन एकटा चे ला साँ फारम माँ गाए
हजामक नाम साँ ओकरा भरबएलवन, स्ियां ओकरा ररकोमें ड़ कए पठबाए
दे लवन। वकछु ए द्वदनक बाद आिे दन स्िीकृि भए गे लए। हजाम जी
िाम्रपिधारी स्ििां ििा-से नानी भए आजीिन पें शन पाबै ि रहला। कनवटरबाक
कथाक माध्यम साँ स्िािां त्र्योत्तर भारिक ओ कलां वकि अध्याय सोझााँ आबै ि
अतछ, जवह मे अने क जोगारी, अने क जालसाज मुख्यधारा मे चत्रल आएल आ
अपन सिटस्ि गमै वनहार अने क सां घषटकत्ताट लोकवन राष्रीय पररदृकय साँ बाहर
कए दे ल गे ला।
दे श पर चीनी आक्रमण, ओवह साँ हिाश-वनराश भे ल दे शक मानस आ
िद्जवनि ने हरूक प्रति जनाक्रोशक चचाट से हो कथाक्रम कें आगू बढ़ै बाक ले ल
माि नवह, सोद्देकय अतछ। ई ऐतिहात्रसक घटना-क्रम ि अतछए, एकर माध्यम
साँ ित्कालीन भारिीय मानस-भाि प्रकट भे ल अतछ, वकन्द्िु "अबारा
नवहिन"क मूल कथाक सां ग एकर िार से हो जुड़ैि अतछ। ई राष्रीय सां स्कार
आ मै तथल सां स्कारक बीच िुलनात्मक अध्ययन से हो अतछ। चीन साँ
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 141

पराजयजवनि हिाशा आ असहायिाक मानत्रसकिा मे रवहिहु अवह दे शक ई


सां स्कार अतछ जे ने हरूक प्रति अपन आक्रोश वबसरर राष्र उन्द्नयन ले ल, राष्र
कें सशक्ि बनएबाक ले ल राष्रीय चे िनासम्पन्द्न प्रत्ये क भारिीय स्िी-पुरुष
अपन नागररक किटव्यक पालन करै ि दे शक प्रतिरक्षा-कोष मे अपन
यथासां भि योगदान दै ि अतछ। दोसर द्वदस अतछ मै तथल सां स्कार, जे करा
बबुआनी करबाक ले ल तमतथला राज्य चाही, से "ममिा गाबए गीि"क
वनमाटण मे कोनो आर्थिक सहयोग ि नवहए करै ि अतछ, ओकर वििरण-
प्रदशटनहु ले ल कोनो दै वहक िा भािनात्मक सहयोग दए साँ विरि अतछ। विरिहु
की अतछ, वफल्म वनमाटणक रूप मे मै तथलीक ले ल एकटा वित्रशष्ट आ
ऐतिहात्रसक काज भे ल अतछ, िे कर चचाट कए दोसरहु कें सहयोग दे बाक ले ल
उत्सावहि करबा साँ दूर भािक अभािक मारल एकदम मतिशुन्द्य जकााँ भे ल
अतछ मुांदहुां आां ख, किहु कछु नाहीं।
"अबारा नवहिन"क अध्याय दू आ िीन अवह रोचक कथा-यािाक बीच कोनो
सून-सपट स्टे शन पर रे नक अनपे णक्षि ठहराि जकााँ बुझाइि अतछ। तमतथला-
मै तथलीक एहन कथा सभ किे कहु बे र किे कहु लोक द्वारा घोसल गे ल अतछ,
असरहीन भए गे ल अतछ, मन मे खीझ उत्पन्द्न करै ि रहल अतछ। जाँ अवह
प्रसां ग कें बोर करए साँ नवहओ जोड़ी, िखवनओ ई अवह रोचक पोथीक बीच मे
एकटा अिाां तछि व्यिधान जकााँ लागै ि अतछ। िे कर बादहु अवह दुनू अध्यायक
प्रासां वगकिा ि छै हे पोथीक मूल क्यक सां दभट मे । ई दुनू अध्याय अवह बाि
कें दे खार ि कररिवह अतछ जे अवह तमतथलान्द्दोलनजीवििा साँ जुड़ल
लोक सभ जे हन बे दरमतिया आइ छतथ, िे हने बे दरमतिया िवहओ रहतथ। ओ
सभ प्रौढ़ हएबाक ले ल िै यार नवह छतथ। पररपक्ि हएब हुनका सभ कें
स्िीकार नवह छवन। वबहार कें तमतथला, भोजपुर आ सां थाल आद्वद में बााँ टब ि
घोर िायिीय आ हास्यास्पद पररकल्पना अतछ। ओवहना िायिीय आ
हास्यास्पद, जे ना भारि आ ने पालक िथाघोवषि तमतथला राज्य कें एकवह
142 ||गजे न्द्र ठाकुर

ठाम एकत्रिि करबाक फूहड़ सपना। ई दुनू अध्याय प्रायः बाद मे क्षे पक जकााँ
प्रविष्ट कएल गे ल बुझाइि अतछ। उद्देकय दू टा भए सकैि अतछ पोथीक वकछु
पृष्ट बढ़ाएब िा थोड़-बहुि आत्मरति करब आ बे र-बे र प्रयुक्ि भे ल "मै तथलीक
प्रेम-रोग" शब्दािली कें जस्टीफाइ करब। कोनो ले खक ले ल अवह दुनू िरहक
रोग िा कमजोरी अस्िाभाविक नवह छै । वकन्द्िु केदारनाथ चौधरी अपन
ले खनक अन्द्ििटस्िु, ओकर क्य आ प्रस्िुतिकरण मे बहुि प्रगतिशील छतथ,
िें ई बाि कनी खटकए जरूर छै । अवह प्रसां ग कें आठ-दस पां कक्ि मे फररआएल
जाए सकैि छल। प्रसन्द्निाक गप जे "अबारा नवहिन"क कथा-वििान आ
हुनक व्यकक्िगि जीिन-शै ली अवह बािक प्रमाण अतछ जे ओ अवह
बे दरमतिया तमतथलान्द्दोलनजीवििाक सहरजमीनी यथाथट कें समय रहै ि
चीन्न्द्ह गे ला, अवह तमथकीय सस्सरफानी साँ बतच कए बाहर आवब गे ला आ
अपन जीिन कें एकर फेर मे व्यथट नवह कएलवन।

"अबारा नवहिन" घोवषि रूप साँ मै तथलीक पवहल वफल्म "ममिा गाबए
गीि"क वनमाटण-यािाक रोचक कथा तथक। वकन्द्िु अवह पोथीक वििान
किर-पृष्ट पर दे ल अवह घोषणा माि िक सीतमि नवह रवह गे ल अतछ। हमरा
दृतष्ट मे "अबारा नवहिन" मै तथली-समुर-मां थन-गाथा अतछ, जवह मे दे ि-
दानिलोकवन अपन-अपन वहिसाधन, स्िाथट-साधन आ व्यकक्िगि
लोलुपिािश समस्ि भौतिक-आतधभौतिक सां साधन-उपादान सभ कें लूवट
ले बाक हीिोड़ प्रयास मे लूझल छतथ आ अवह मां थन-क्रम मे बहराएल हलाहल
दे िातधदे ि महादे िक वहस्सा मे छोवड़ दए छतथ। दे िातधदे ि महादे िक भूतमका
मे महां थ मदनमोहन दासक हएब स्पष्ट अतछ। अन्द्य दे ि-दानि (जे सहोदरा
द्वदति आ अद्वदतिक सां िान छतथ) कें पाठकजन अपन सुविधानुसार चीन्न्द्ह
सकए छतथ, नातमि कए सकए छतथ। अवह पोथीक गढ़न होतमयोपै थी पद्धति
जकााँ अतछ, एलोपै थी पद्धति जकााँ नवह। दे हक कोनो भाग मे गूड़़़ (व्रण /
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 143

पीज साँ भरल गुलठी) भे ला पर एलोपै थी मे ओकर उपचार माि शल्-वक्रया


छै । प्रभाविि स्थल कें चीर कए पीज बहाए दए छै ,वकन्द्िु ई प्रवक्रया पीड़ादायक
होइ छै । एकर विपरीि होतमयोपै थी मे अवह व्रण कें फोड़बाक ले ल मड़ुआ
साइजक उज्जर-उज्जर मीठ-मीठ गोली मे तमलाए कए एकटा दिाइ दे ल जाइ
छै वहप्पर-सल्फर। ई दिाइ पे ट मे गे लाक बाद भीिरे -भीिर अपन काज करए
छै , ददटक ले श नवह हुअए दए छै , रोगी कें पिो नवह लागए छै आ द्वदन-रातिक
कोनो क्षण मे गूड़ स्ििः फूवट जाइ छै , ओकर पीज बवहकए बाहर वनकत्रल
जाइ छै । "अबारा नवहिन" एहने तमठका होतमयोपै थी गोली अतछ, जे वबना
कोनो प्रत्यक्ष ददट, वबना कोनो टहिसक प्रवक्रयाक तमतथला-मै तथल-मै तथलीक
प्रपां चियी व्रण कें फोवड़ ओकर पीज कें बहएलक अतछ। ई पोथी शुद्ध
गााँ धीिादी-सह-होतमयोपै थ प्रणाली साँ ओवह वपजहा मानत्रसकिा कें बे नांगन
कएलक अतछ जे कोनो योजना-पररयोजनाक नींि पवड़िवह अवह वफराक मे
लावग जाइि अतछ जे अवह योजना-पररयोजना मे लुटबाक भााँ ज किय-किय
छै , किे क छै आ ओवह मे किे क सुिारल जाए सकैि अतछ, किे क हाँ सोथल
जाए सकैि अतछ। अवह वपजहा मानत्रसकिा लग एिबहु धै यट नवह छै जे कोनो
योजना-पररयोजना भविष्य कें ध्यान मे रान्ख शुरू होइि अतछ, िें पवहने एकर
अस्स्ित्ि कें सहरजमीन पर उिरए दी, स्िरूप ग्रहण करए दी, स्थावपि हुअए
दी आ ई जखवन स्िचात्रलि गति पकवड़ त्रलअए, लाभ कमाबए लागए, िखवन
ओवह प्रतिफल मे अपन वहस्सा अपन श्रम िा योगदानक अनुपाि मे वनधाटररि
करी। नवह, एिे क धै यट नवह। ई धै यट श्रमजीविक काज तछअए, जन-बोवनहारक
काज तछअए, गै र-मै तथलक काज तछअए, दतछनाजीिी मै तथलक नवह। ओकर
भााँ ज बै त्रस गे लए ि ओ मूलाधारवह कें, मूल पूाँजीए कें कुिरब-तचबाएब शुरू
कए दे ि कोनो मूस जकााँ । मूसक अपन मजबूरी छै । ओकर दााँ ि वनरन्द्िर बढ़ै ि
रहए छै । कोनो िस्िु कें कुिरै ि रहबा साँ ओकर दााँ िक िृत्रद्ध थम्हल रहए छै ।
अवह कुिरब मे पसन्द्दगी-नापसन्द्दगीक कोनो मापदां ड़ नवह छै , जे भे वट गे ल,
144 ||गजे न्द्र ठाकुर

िे करे कुिरब। कुिरनाइ बां द करि ि ओकर दााँ ि ओकर मूाँह आ दे हहु साँ नमहर
भए जाएि आ ओ मरर जाएि। मरबाक विकल्प साँ बे सी नीक छै कुिरबाक
विकल्प, भने अवह कुिरब साँ आनक जान चत्रल जाइ। अवह क्षे िक इतिहास
गिाह अतछ, जे "ममिा गाबए गीि" सां ग भे लए, सएह अशोक पे पर तमल,
रै याम आ लोहट चीनी तमल सां ग भे लए आ सएह "तमतथला आिाज" अखबार
सां ग भे लए। मूषक-सां स्कृतिक अनन्द्ि त्रसलत्रसला छै , एकर त्रशकार भे ल िस्िु,
व्यकक्ि, विचार सभक नमहर सूची छै ।
ई पोथी सां स्मरणक तथक, वकन्द्िु हास्य-व्यां लय आ तचिमयिाक सां ग ई अपन
पररिे शक पयटिेक्षण, अन्द्िेषण, विश्ले षण आ आलोचना ि कररिवह चलै ि
अतछ, एकटा काल-विशे षक इतिहास से हो रचै ि अतछ। अवह क्रम मे किे कहु
चररि, किे कहु प्रिृति अनािररि होइि अतछ ि किे कहु अनाम व्यकक्ित्िक
बलुआही आ सोडािाटरी प्रतिष्ठा-प्रतिमा ध्िस्ि से हो होइि अतछ। अचरज नवह
जे अवह पोथी आ पोथीकार कें कट्टर मै तथलिादीलोकवन आ हुनकर
तचरकुवटया वगरोह मौन्खक िौर पर खूब गररअएलवन। ( सां भि अतछ जे केदार
जी पर आयोणजि "विदे ह"क विशे षाां क मे से हो ओवह न्खधाां स -गाथाक
हुलकी-झलकी दे खाइ पड़ए।) खबोत्तर-पीठक स्िघोवषि तचरकुवटया
मठाधीश लोकवनक पवहल प्रयास ई होइ छवन जे गै र-मै तथल कें वकछु विशे ष
करबाक अिसरवह नवह दे ल जाए, जाँ ओ प्रयास करए ि ओकरा हिोत्सावहि
कएल जाए, ओकर ड़गर कें कांटकाकीणट कए बाधा ठाढ़ कएल जाए, ये न-
केन-प्रकारे ण ओकरा कोनो उपलस्ब्ध हात्रसल करए साँ रोकल जाए आ जां
कोनो उपलस्ब्ध हात्रसल कए ले लक ि ओकर अिमूल्न कए ओकर उपहास
उड़ाएल जाए। अवह खबोत्तर-पीठक कबां ध मानस कें ई बाि बदाटस्ि नवह होइ
छै जे मै तथलीक विकास, एकर स्थापना, एकर सशकक्िकरण मे आन कोनो
जातिक व्यकक्िक योगदान कें पहचान भे टए, ओकरा सकारल जाए आ
ओकरा दस्िािे जीकृि कएल जाए। हुनकर सभक ई मानब छवन जे एहन
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 145

लोकक मूाँह पोछबाक ले ल कोनो आयोजन मे जाँ कनी काल ले ल कोनो आसन
दए दे ल गे लए, मां च पर ओकरा पाग पवहरा दे ल गे लए, ओकर मौन्खक प्रशां सा
मे वकछु शब्द कवह दे ल गे लए ि ओवह गै र-मै तथल मानुस कें एिबे मे तिरवपि
भए जएबाक चाही, जनम सोगारथ बुझबाक चाही आ अवह प्रदत्त कृपा ले ल
खबोत्तर-पीठक स्ियां भू लोकवनक प्रति आत्मा आ हृदय साँ कृिज्ञ हएबाक
चाही। त्रलन्खि रूप मे कोनो गै र-मै तथलक योगदानक उल्ले खक गप जाए
द्वदअ, कोनो त्रलन्खि सूची मे ओकर नामक उल्ले ख िक नवह हुअए, िे करा
सुवनन्श्चि करबाक हर सां भि प्रयास ई खबोत्तर-पीठ करै ि रहल अतछ, करै ि
आएल अतछ। आन जाति मे खास कए जाँ भूतमहार ब्राह्मण हुअए, िखवन ि
अवह खबोत्तरजीिी सभ कें जे ना तमगी चवढ़ जाइि अतछ। जे लोकवन अवह
खबोत्तरजीिी ित्ि सभक द्वदनचयाट पर नजरर राखए छतथ, तिनका सभ कें
ई बुझल छवन जे डा. योगानन्द्द झा द्वारा कवपलदे ि ठाकुर "स्ने हलिा"क
मोनोग्राम त्रलखला पर, केदारनाथ चौधरी द्वारा "अबारा नवहिन"क माध्यम
साँ महां थ मदनमोहन दासक मवहमा आ योगदान कें दस्िािे जीकृि कएला पर,
बै जनाथ चौधरी "बै जू" द्वारा डा सी पी ठाकुर कें "तमतथला विभूति" सम्मान
प्रदान कएला पर िा अणजि आजाद द्वारा अरविन्द्द ठाकुर कें "तमतथला
आिाज"क सम्पादक बनएला पर ई खबोत्तरजीिी ित्ि सभ तमगीक चारू
पहरक रोगी िा िृषोत्सगट सराध ले ल दागल सााँ ढ़ जकााँ केना सनकल रहतथ,
कोन हद िक रुष्ट-क्ष ब्ध भे ल रहतथ आ एकर प्रतिवक्रया मे केहन-केहन
अपशब्द सभ साँ अवह महानुभाि लोकवन कें विभूवषि कएने रहतथ। ई अलग
गप जे मूाँहामूाँही, आमना-सामनी एना करबाक/कहबाक साहस वक भप्प ने
वहनका सभ कें कवहओ भे लवन आ ने हएिवन। भूतमहार ब्राह्मण लोकवनक
प्रति वहनकर सभक भयजवनि घृणा किे क िीव्र अतछ, िे कर वकछु आभास
पां वडि गोविन्द्द झा त्रलन्खि "तमतथलाक सामाणजक इतिहास" केर
असामाणजक अत्रभव्यकक्ि मे दे खल जाए सकैि अतछ। खबोत्तरजीिी-
146 ||गजे न्द्र ठाकुर

सम्प्रदायक अवह कुप्रिृतिक एकटा सकारात्मक आ इजोररया अथट -पक्ष से हो


अतछ। हुनकर सभक ई प्रिृति अवह भय साँ उपजल अतछ जे धपचट मे भने
ओ सभ खबोत्तर हड़वप ले ने छतथ, वकन्द्िु खतियानी मात्रलक लोकवनक
जागृि होइिवह ई खबोत्तर हुनकर सभक चाां गुर साँ वनकत्रल जाएि। ओ सभ
अजुका यथाथट कें बुणझ रहल छतथ जे आन िगटक लोक अपन श्रम, अपन
पुरुषाथट आ वनरन्द्िर सशक्ि होइि अपन बौत्रद्धक क्षमिाक बल पर
हुनका सभ साँ बे सी सबल आ सक्षम छतथ आ जाँ एक बे र ओ लोकवन अपन
साम्यट कें चीन्न्द्ह अवह क्षे ि मे अबरजाि शुरू कए दे लवन ि वहनकर सभक
अपन अयोलयिा दे खार भए जएिवन आ दे खार होइिवह वहनकर सभक
िचटस्ि से हो समाप्ि भए जएिवन, तछनाए जएिवन।
"अबारा नवहिन"क सिाटतधक आकषटक, प्रभािशाली आ उद्वेलक ओ
अां श सभ अतछ जवह मे महां थ मदनमोहन दास (केदार जीक मदन भाइ)
उपस्स्थि रहए छतथ। रचनाकारक उद्देकय से हो हुनका अवह रचनाक केन्द्र मे
राखबाक अतछ आ ओ प्रत्यक्ष िा परोक्ष रूप मे सभ ठाम उपस्स्थि छतथओ।
महां थ मदनमोहन दास, णजनका रचनाकार "मदन भाइ" कवह सम्बोतधि कएने
छतथ, के युिकोतचि उत्साह-भाि, पुरुषाथटक समपटण-भाि, दुख मे रष्टाभाि,
कमट मे यज्ञ-भाि आ "कमटण्ये िातधकारस्िे मा फले षु कदाचन"क उत्सगट-
भाि खूब जगणजयार भए कए पोथी मे आएल अतछ। मदन भाइ अल्पभाषी
छतथ, जे बाजए छतथ से नावप-िौल कए बाजए छतथ, हुनक बाजब मे युग-
सत्य आ िै चाररक पररपक्ििा उपस्स्थि रहै ि अतछ आ एकटा धार्मिक-
स्थलक प्रधान होइिहु आधुवनकिा आ व्यािहाररकिाक गुण साँ लै स छतथ।
जिय कत्तहु ले खक कहए छतथ "मदन भाइ मौन रवह गे ला", ि ओ मौन से हो
अने क रास गाथा-महागाथा कवह जाइि अतछ। मदन भाइ स्थै यटक प्रतिमूर्िि
छतथ केहनो स्स्थति मे विचत्रलि नवह होइ छतथ, समुर जकााँ गां भीर रहै ि छतथ।
सामने बलाक चिुर-चलाकी, अिसरपरस्िी, क्ष रिा आद्वद हुनका शीशा जकााँ
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 147

साफ-साफ दे खाइि छवन, वकन्द्िु हुनक पुरुषोत्तम वनकृष्टिमहु के "दीन जानी


प्रभु वनज पद दीन्द्हा"क भाि साँ क्षमाशील रहै ि छवन। अवह पोथीक सम्पूणट
कथाक्रम मे मदन भाइ एकवह बे र क्रोधािे ग मे आवब िमिमाएल छतथ,
आक्रामक भे ल छतथ आ से भे ल छतथ "त्रभखमां गा" कहल गे ला पर। ई
क्रोधािे ग, ई आक्रामकिा स्िात्रभमान आ आत्मगौरिक प्रिीक, ओकर
प्रकटीकरण अतछ। कल्पना करब कद्वठन अतछ जे , जे व्यकक्ि एकटा पुनीि
लक्ष्य लए कए आगू बढ़ल अतछ, अग्रगामी भे ल अतछ, वनधाटररि उद्देकयक ले ल
अपन सिटस्ि स्िाहा करबाक साहस राखै ि अतछ, साहसवह टा नवह करै ि
अतछ, ओकरा वक्रयान्गन्द्िि करबाक ले ल उत्तम-अधम सभ िरहक लोकक
सहयोग लै ि अतछ, सहयोगक िाां तछि-अिाां तछि मूल् चुकिा करै ि अतछ,
िे करा कोनो "िृषोत्सगट सराधक दागल सााँ ढ़" सन प्रतिगामी-कीट एहन क्ष र
बाि कहबाक पतििपना कए सकैि अतछ। वकन्द्िु मै तथल समाज एहन
"अकल्पनीय", एहन "पतििपना" आ एहन "िृषोत्सगट सराधक दागल
सााँ ढ़" सभ साँ भरल अतछ। तमतथला(?)क अने काने क रत्न, बां धु, सखा,
विभूति आ वबड़ला लोकवन तमतथला(?)क गामे -गाम, टोले -टोल अाँ टल पड़ल
अतछ, सहसह करै ि अतछ आ अवह भूतम कें धााँ त्रस-धााँ त्रस, खोतध-खोतध धन्द्य-
धन्द्य कए रहल अतछ। एना नवह छै जे बाबू साहे ब चौधरी नवह छतथ, ओहो
छतथ, अाँ गुरी पर वगनल जाएबला सां ख्या मे छतथ, वकन्द्िु एक ि अल्पसां ख्यक
छतथ आ दोसर "िृषोत्सगट सराधक दागल सााँ ढ़" सभक बहुमिक गोल साँ
घे राएल छतथ आ िें एन मौका पर हुनक सभक मूाँह मे िाला लावग जाइ छवन,
पे ट मे मरोड़ पड़ए लागए छवन। ई अल्पसां ख्यक बाबू साहे ब चौधरी लोकवन
गाहे -बगाहे कुवपि से हो होइ छतथ। वकन्द्िु कुवपि होइ छतथ ि "मै तथली सखा"
लग साँ "मै तथल वबड़ला" लग, "मै तथल रत्न" लग साँ "मै तथल विभूति" लग
जाइ छतथ, फेर िएह मूाँह मे िाला, फेर िएह पे ट मे मरोड़़़ आ एहने व्यथट सन
तिरपे च्छन मे बाबू साहे ब चौधरी लोकवनक जीिनक शकक्ि-साम्यट बे जाय
148 ||गजे न्द्र ठाकुर

भए जाइि अतछ। तिरवपि- लोकवनक कबां ध-सम्प्रदाय सदी-सदी साँ अवह


पािन धरा पर उपस्स्थि अतछ, वनरन्द्िर अपन सां ख्या-बल बढ़ै ने जाए रहल
अतछ, एकर अक्षौवहणी से ना खोराकी दे न्खिवह ओवह पर धाबा बोत्रल दै ि
अतछ, दे न्खिवह-दे न्खिवह सभवकछु चावट-हबवक जाइि अतछ, तिरवपि नवह
होइि अतछ, अिृप्िक अिृप्िवह रवह जाइि अतछ। मदन भाइ हाँ सैि कहए
छतथ "मै तथली भाषा मे जाँ तिरवपि बाबू कें चररि-नायक बनाए कए त्रसने मा
बनाओल जाइ ि केहन वफल्म बनिै ? ओ वफल्म अबस्से बाक्स आवफस मे
वहट वफल्म हे िैक।" वकन्द्िु मदन भाइ आ केदार भाइ दुनू कें सहरजमीनी
मै तथल-यथाथट बुझल छवन, नवह बुझल रहवन ि "ममिा गाबए गीि"क वनमटम,
श्रमसाध्य वनमाटणानुभि दुनू गोटे कें यथाथट बुझाए दे ने छवन। मूल णजज्ञासा ि
ई अतछ जे तिरवपि कें चररि-नायक बनाए कए जे वफल्म बनि, िे करा
बनएबाक ले ल ि फेर कोनो मदन भाइ अििररि भए जएिा, ई मही बे सी
द्वदन िक िीर विहीन नवह रहए छै , ओकरा वििररि-प्रदर्शिि करबाक ले ल
रिीन्द्र सन कोनो भजारी से हो चत्रल अएिा, वकन्द्िु ओवह वफल्म कें वटकट
कटाए कए दे खबा ले ल दशटक किय साँ आएि? वगनिीक वकछु बाबू साहे ब
चौधरी वटकट कटाए कए त्रसने मा हाल मे प्रिे श कए जएिा, वकन्द्िु तिरवपि-
समुदाय कें ि फ्ीक वटकट चाही। आ जाँ फ्ीए मे त्रसने मा दे खाएल गे ल ि
बाक्स आवफस पर ओकर वहट हएबाक कोनो रत्तीअहु-भरर सां भािना किय
छै ? जवह तिरवपि बाबूक एन मौका पर अपन जे बी मे हाथ घुत्रसआवबिवह
हुनक हाथ फाटल जे बी साँ वनकत्रल ठे हुन पर पहुाँ तच जाइ छवन, िे कर जे बी
भरब मदन भाइ सन अििारहु साँ सां भि नवह अतछ। जे गै र-मै तथल मै तथली मे
अएिा, हुनका चालीस हजारक अनुमावनि खचटक बादहु फेर-फेर चालीस
हजारक चोट खाइए पड़ि ़़ वन, माइक मै न कें बीस टका, ठे ला भाड़ाक दस
टका, त्रसने मा हाल मै नेजर कें सत्तरर टका, प्रोजे क्टर चालक कें पाँ चटकही
आद्वदक दोहरी भुगिानक अनन्द्ि त्रसलत्रसलाक अनन्द्ि बोझा अपन माथ पर
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 149

ले बवहए पड़िवन। तिरवपि घुरर कए नवह अएिा, से सां िोष करै ए पड़िवन आ
अवह सभ लुज्झातिरीक यथाथट कें बुणझिहुाँ अपन मुांह साँ हाँ सीक फुलझड़ी
बहराबै ए पड़िवन, ठठाए कए हाँ सैए पड़िवन िमाशा-ए-अहल-ए-करम
दे खबाक ले ल। एिबे धरर वकऐ? अपन पूाँजी लगाए कए स्टाम्प-पे पर पर
रुपै याक छह आनाक वहस्से दार उदयभानु ससिह कें बनबै ए पड़िवन। जवह
रिीन्द्रनाथ ठाकुर कें नोनी लागल दे बाल, चालीक भुरभुरी साँ भरल फशटबला
बलभरपुर मोहल्ला स्स्थि मावट साँ ले बल घरक अखरा चौकी पर साँ उठाए
कए मायानगरीक चकाचाौं ध आ सुख-समृत्रद्धक दुवनयााँ दे खबए लए जएिा,
अपन फनकारी दे खएबाक अिसर दे िा, िएह रिीन्द्रनाथ कें त्रलन्खि
अतधकार-पिक माध्यम साँ अपन सभटा कएल-घएल, अपन कीर्िि साौं वप
द्वदअए पड़िवन। मै तथल-कथा हरर-कथा अतछ, अनन्द्ि अतछ हरर अनन्द्ि, हरर-
कथा अनन्द्िा!
स्ििां ििा प्राश्प्िक बाद जे दौर अएलए, िवह मे वित्रभन्द्न दलीय ने िृत्ि पर
मै तथल लोकवनक िचटस्ि जकााँ रहवन। सत्ताधारी काां ग्रेसवह टा नवह,
समाजिादी आ िामपां थी दल सभ पर से हो मै तथलवह लोकवन कब्जा
कएलवन। आमजन मे सजगिा नवह रहए, मै दान एकदम साफ रहए। अवह
शून्द्य-काल मे मै तथल लोकवन अगुअएला आ खाली पड़ल स्थान सभ पर
आसीन भए गे ला। राजनीतिक दल जखवन हाथ मे हुअए ि व्यकक्ि अपना कें
परम शकक्िशाली बुझए लागै ि अतछ आ ओवह शकक्िक प्रदशटन ले ल अिीि
व्याकुलिा साँ भरर जाइि अतछ। ई व्याकुलिा विशे ष कए मै तथल िामपां थी
लोकवन कें गै रकानूनी िरीका साँ आक्रामक आ अतिक्रमणकारी हएबाक ड़गर
पर लए गे लवन। वहनकर सभक वनशाना पर धार्मिक स्थल सभ से हो आएल,
वकन्द्िु चयनक दोहरा मानदां ड़क सां ग। जवह मन्न्द्दर आद्वदक बागडोर पुरवहि
लोकवनक हाथ मे रहए, िे करा बकत्रस दे ल गे ल। मूल वनशाना बनल
महां थाना सभ, जे कर अतधकाां श पर भूतमहार ब्राह्मण लोकवन कावबज रहतथ।
150 ||गजे न्द्र ठाकुर

से अवह छद्म जने उधारी-िामपां थी लोकवनक िक्र-दृतष्ट महां थ मदनमोहन


दासक महां थाना पर से हो पड़ल ़़ रहवन आ ई महां थाना हुनकर सभक
कमटकाां डीय-क्राां तिकाररिाक क्रीड़ा़़ भूतम बनल रहवन। बत्तीस सय बीघाक
णजराि स्ििां ििा प्राश्प्िक काल िक आबै ि-आबै ि एक हजार बीघा िक
त्रसमवट चुकल छल। इलाहाबादक क्िींस काले जक आधुवनक िािािरण मे
रवह त्रशक्षा-दीक्षा ग्रहण करवनहार मदनमोहन दास स्िाभाविक रूप साँ
आधुवनकिा साँ अनुप्राणणि रहतथ। अां ग्रेजी, वहन्द्दी आ बाां लला भाषा जानवनहार,
पढ़वनहार मदनमोहन जी मे युिकोतचि उत्साह रहवन, स्िािां त्र्योत्तर भारिक
सामाणजक सां रचनाक वनि बदलै ि रूप-स्िरूप पर हुनक दृतष्ट रहवन आ िवह
सां ग िालमे ल बै सएबाक हुनर आ बुत्रद्ध से हो रहवन। ई हुनर बहुि मोल मााँ गए
छै । महां थानाक धार्मिक परम्परा साँ आएल मूल तमजाटपुर आ आन-आन
णजलाक वित्रभन्द्न मौजा मे सां चात्रलि मां द्वदर, ओकर रख-रखाि, वनयतमि पूजा-
अनुष्ठान आ दररर-भोजन आद्वदक वक्रयाकलाप यथािि चलै ि रहए, जे कर
असीतमि खचट-िचटक भार अनुमान कएल जाए सकैि अतछ। एकरा सां ग
आधुवनक समाज-बोध आ ओकर दातयत्ि अवह व्यय-भार कें वनरन्द्िर बढ़ै ने
चत्रल जाइि रहए। आमदनी िएह, वकन्द्िु खचटक नि-नि बाट, नि-नि
द्वार खुलैि। अवह सभक उपर रे त्रलजस बोडटक वित्रभन्द्न िरहक प्रतिबां ध आ
िवह पर उपरोक्ि िर्णिि िामपां थी लोकवन द्वारा महां थानाक जमीन पर ठाम-
ठाम लाल झां डा गावड़ ओकरा हड़पबाक कृत्य। स्स्थतिक विकरालिाक
अनुमान लगाएल जाए सकैि अतछ। िखवनओ मै तथलीक वहि मे एकटा
वफल्म बनएबाक विचार आ िे करा कायट-रूप दए मे िन-मन-धन साँ वनछािर
हएबाक काज िएह व्यकक्ि कए सकैि अतछ, जे करा मे आधुवनकिा-बोधक
सां ग-सां ग अटू ट साहस, अचल वनष्ठा, असीतमि धै यट आ अपररतमि पुरुषाथट
हुअए। अवह सभ अतिमानिीय (सूपर ह्युमैनेवटक) गुण सभ साँ वनर्मिि छला
महां थ मदनमोहन दास। सभटा विरुद्धक सामां जस्य कए ओ वफल्म-वनमाटणक
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 151

अपन सां कल्प कें अपन व्यकक्िगि प्रयास साँ सफल ि कए लए छतथ, वकन्द्िु
जिय सामूवहक सहयोगक मामला आबै ि अतछ, ििय ओकर अभाि मे ओ
असफलिाक साक्षी भए जाइ छतथ। ई दुख, ई पीड़ा असह्य अतछ, वकन्द्िु ओ
िे करहु सहए छतथ।
सीिाहरण साँ व्यतथि राम कलवप सकए छतथ। पशु-पक्षी साँ अपन व्यथा-
कथा कवह सकए छतथ। अनुज लक्ष्मण साँ अपन पीड़ा़़ क बखान कए सकए
छतथ। वकन्द्िु मदन भाइ अपन व्यथा, अपन पीड़ा़़ केकरा लग व्यक्ि करिा?
बाली राम साँ पुतछ सकैि अतछ अिगुण किन नाथ मोही मारा? मदन भाइ ई
प्रकन केकरा साँ करिा? हुनक लक्ष्मण हुनका बीचवह मे छोवड़ सै नफ्ाां त्रसस्को
उवड़ गे ला। जे करा साँ प्रकन पुछबाक छवन, ओ एकटा व्यकक्ि नवह अतछ, विराट
समुदाय अतछ। िें "ममिा गाबए गीि"क वनमाटण-क्रमक सभटा अतप्रय
अनुभि, वनमाटणक बाद "ममिा गाबए गीि"क हरणक सभटा व्यथा कें
मदनमोहन दासक पुरुषोत्तम समुर-मां थन साँ प्राप्ि हलाहल मावन दे िातधदे ि
महादे ि जकााँ घाें वट कए अपन कांठ मे रोवक लए छतथ।
रािणक कैद मे रहै ि सीिा कें छोड़ए
़़ बाक ले ल राम सभ सां भि प्रयत्न करए
छतथ। वकऐ? वकऐ ि हुनका अपन समथटनक भरोस छवन। हुनका लग बानर-
से ना छवन जे हुनका ले ल िन-मन-धन साँ समर्पिि अतछ। वकन्द्िु मदन भाइ!
ओ अपन सीिाक रािणक खतियान मे चत्रल जाएब कें अपन वनयति मावन
लए छतथ। वकऐ? वकऐ ि हुनका मै तथल समुदायक यथाथट बुझाए गे ल छवन।
ओ बुणझ गे ल छतथ जे हुनक पीठ पर कोनो सै न्द्य-दल नवह, परजीिी कीटाणष -
विषाणष सभक हें ज अतछ आ ओकरा भरोसे ओ जे िबे लड़बाक प्रयास करिा,
िे िबे क्षीण आ अबल होइि जएिा।
हुनक व्यकक्ित्िक उच्चिाक ई पराकाष्ठा छै जे पिकारक खोध-बीन पर
जखवन ओ केदार जी कें कहए छतथ, " केदार भाइ, पतछला िीन-चारर बखट
साँ हम-अहााँ वनत्य एक ठाम बै सैि छी, गप्प-सप्प करै ि छी। िथावप हम
152 ||गजे न्द्र ठाकुर

अहााँ क लग "ममिा गाबए गीि" वफल्मक चचाट नवह केलहुाँ । अहााँ क


चोखायल घािक पपड़ी मे टकुआ भाें कैक इच्छा हमरा नवह भे ल।------"
धन्द्य! धन्द्य!
एिे क भे लहु पर मदन भाइ कें अपन तचन्द्िा नवह, केदार भाइक चोखायल
घािक पपड़ी उखवड़ जएबाक तचन्द्िा छवन।
पोथी समाप्ि होइि-होइि सां िेदनशील पाठकक माथ पर ओवह व्यकक्ित्िक
समस्ि आां िररक पीड़ा सिार भए जाइि अतछ, और घनीभूि भए जाइि
अतछ, जे करा केन्द्र मे रान्ख ई पोथी त्रलखल गे ल अतछ। अवह कृतिक सभटा
पाि अपन-अपन भूतमकाक वनिटहन करै ि ने प्य मे विलीन भए जाइ छतथ
आ "द एण्ड" रूप मे महां थ मदनमोहन दास जीक अतिमानि छवि स्स्थर आ
स्थायी रूप मे सां रणक्षि रवह जाइि अतछ। कहबाक ले ल ई "द एण्ड" हुअए,
वकन्द्िु असल मे ई शुरुआि अतछ, "द वबगटनिग" अतछ। आशािादी आ
पुरुषाथी लोकवन अवह बाि साँ सहमि हएिा।
दुवनयााँ मे सभ काज श्रे यवह ले बाक ले ल नवह कएल जाइ छै ।
गां गा-स्नान कए, "हर-हर-गां गे"क नारा दए अपन-अपन पाप धोवनहार किे क
लोक भगीरथ आ हुनक पुनीि प्रयास कें मन राखै ि अतछ? जे वनष्पाप छतथ,
ओ गां गा नवहओ नहएिा, िखवनओ भगीरथ हुनकर स्मृति मे रहिवन।

(१५ अगस्ि २०२२)

अपन मां तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 153

आशीष अनथचन्द्िार-सां पकम-8876162759

मै थिली उपन्द्यासक 'केदारनाि युग'


1
मै तथल जाति अतधकाां शिः द्वैधमे जीबए बला जाति अतछ। एक बाि, एकमि,
एक डाररपर रहब एवह जाति ले ल कद्वठन। हम अपन एकटा व्यां लयमे त्रलखने
छी जे मै तथल वकए पां च दे ि उपासक छतथ। मै तथल बहुदे िक उपासना करै छतथ
मुदा हुनका एकौ दे िक आशीिाटद सहीसाँ नवह भे वट पाबै छवन। दे िो सभ सवहए
करै छतथन। ओहो सभ बुझै छतथ जे ई मै तथल सभ सभहक घर पकड़ने अतछ
आ हरे क घरमे जाइिे दे री दोसरक बुड़ाइ कररिे अतछ। िाँ इ दे ििो सभ चलाक
भऽ गे ल छतथ।
मै तथलक एकटा द्वैधक उदाहरण ई अतछ जे जखन कोनो विद्याथी गुलशन
नां दाक उपन्द्यास पढ़ै ि पकड़ल जाइि छै िखन ओकरा उच्चिम सजा दे ल
जाइि छै मुदा जाँ िएह विद्याथी गुलशन नां दाक उपन्द्यासपर बनल वफल्म दे खैि
छै िाँ ओकरा कमसाँ कम सजा भे टैि छै आ ओकर गार्जियनो ओवह वफल्मकेँ
दे खैि अतछ। जानकार लोक जानै छतथ जे राजे श खन्द्नाकेँ सुपरस्टार
बने बाकमे गुलशन नां दाजीक उपन्द्यास, कथा एिां आइवडया छवन। आराधना
नामक वफल्ममे राजे श खन्द्नाक डबल रोल गुलशन नां दाक आइवडयासाँ सां भि
भे लै। गुलशनजीक उपन्द्यास आ कहानीपर बनल वकछु वहट वफल्म त्रलस्ट एना
अतछ "काजल" (1965), सािन की घटा" (1966), "पत्थर के
सनम"(1967), "नील कमल" (1968), "न्खलोना" (1970), "कटी
154 ||गजे न्द्र ठाकुर

पिां ग" (1970), "शमीली" (1970), "नया ज़माना" (1971), "दाग़"


(1973), "झील के उस पार" (1973), "जुगनू" (1973), "जोशीला"
(1973), "अजनबी" (1974), "भां िर" (1976), "महबूबा" (1976)
आद्वद आद्वद जे वक वित्रभन्द्न कलाकारक अत्रभनयसाँ सजल अतछ (सोसट-
विकीपीवडया एिां जानकीपुल)।
टहिदी वफल्ममे आनो भाषक रचनापर वफल्म बनल छै जे ना विमल तमिक
उपन्द्यासपर 'साहब बीबी और गुलाम' जावहमे गुरूदत्त आ मीना कुमारी मुख्य
भूतमका छलवन।, रिीन्द्रनाथ टै गोरक काबुली िाला जावहमे बलराज साहनी
छलाह। केशि प्रसाद तमश्रजीक उपन्द्यास 'कोहबर की शिट'पर 'नद्वदया के
पार' बनलै आ एही नद्वदया के पार केर रीमे क अतछ 'हम आपके हौं कौन'।
एकर अतिररक्ि बहुि रास रचनापर वफल्म बनल अतछ। मुदा हरे क रचना
वफल्म बने बाक ले ल उपयुक्ि नै होइि छै । प्रेमचां द जीक रचनापर से हो वफल्म
बनल छै मुदा ओ लोकतप्रय नै भऽ सकलै ।
लोकतप्रय वकए ने भऽ सकलै िकर अने को कारण भऽ सकैए मुदा एकटा
कारण प्रमुख ई अतछ जे टहिदीमे कोनो लोकतप्रय रचनाकेँ सावहत्य मानले नै
जाइि छै । टहिदीमे कननी-न्खजनी बला रचनाक दजाट प्राप्ि छै । ओवह ठाम
रचनाक मिलबे बूझल जाइि छै जे ले खक केहनो हो मुदा जाँ ओकर रचनामे
घाम ओ लाल झां डा त्रलखल छै िाँ ओ ले खक भे ल। एकर प्रभाि आन प्राां िीय
भाषापर से हो पड़ल जावहमे मै तथली प्रमुख अतछ।
टहिदीक कमले र्श्र वफल्म नगरीमे बसल रहलतथ आ 'वकिने पावकस्िान' ले ल
सावहत्य अकादे मी पुरस्कार भे टलवन। मनोहर कयामजोशी जी टहिदी सीरीयलमे
मानक स्थावपि केलाह आ सां गवह सावहत्यकार से हो रहतथ। उदूटक क्राां तिकारी
कथाकार सआदि हसन मां टो वफल्म कथा त्रलखबाक काजसाँ जुड़ल छलाह।
उदूट समे ि आन सभ भाषामे लोकतप्रयिा ओ गां भीरिा केर झगड़ा नै । ई बहस
टहिदीमे छै आ िाही ठामसाँ मै तथलीक सावहत्यकार लऽ ले लाह अपन अयोलयिा
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 155

नुकेबा ले ल।
2
मै तथली लग बहुि एहन 'लोकतप्रय मुदा गां भीर' रचना छै जावहपर लोकतप्रय
वफल्म बवन सकैए। एवहमे कथा, उपन्द्यास एिां आन विधा सभ अतछ। वकछु
उदाहरण एना अतछ- योगानां द झा (सीनीयर) केर कथा 'आम खयबाक मूाँह',
हररमोहन झाजीक सभ रचना (प्रसां गिश कहै ि चली जे 2010 मे ररलीज
भे ल अजय दे िगन ओ परे श रािल केर वफल्म 'अतितथ िुम कब जाओगे ' केर
फस्टट हाफ हररमोहन जीक 'विकट पाहुन' केर बहुि लगीच छै । जाँ मै तथली
ले खक सभ साकाां क्ष रवहितथ िाँ कोटट जा कऽ हररमोहन जीकेँ क्रेवडट द्वदया
सकैि छल मुदा एवहठाम िाँ सभकेँ अपन क्रेवडि ले ल प्चििा छै )। ब्रजवकशोर
िमाट 'मणणपद्म'जीक सभ उपन्द्यास जे वक लोकगाथापर आधाररि अतछ,
मनमोहन झा (सीवनयर) केर सभ रचना, प्रभास कुमार चौधरीजीक सभ
कथा-उपन्द्यास, गजे न्द्र ठाकुरजीक सभ कथा-उपन्द्यास आ सां गे राजदे ि
मां डलजीक सभ उपन्द्यास वफल्म ले ल उपयुक्ि छवन। "रां जना" ई उपन्द्यास
छवन ले खनाथ तमश्रजीक जे वक लगभग 1970 मे प्रकात्रशि भे ल रहै । ई
उपन्द्यास वफल्म ओ सीररयल दूनू ले ल उपयुक्ि अतछ। एही क्रममे राजकमल
चौधरीजीक-ललका पाग (एवह कथापर बनलो छै ), वकरणजीक-मधुरमवन,
त्रशिशां कर श्रीवनिास जी कथा-त्रसनुरहार, प्रदीप वबहारीजीक कथा-सरोकार,
कयाम दररहरे जीक कथा-वबअहुिी नूआ, अशोकजीक कथा- डे रबुक, अरविन्द्द
ठाकुरजीक कथा-विष पान ई सभ कथा वफल्म ले ल उपयुक्ि छै । िे नावहिे
लल्लन प्रसाद ठाकुरजी नाटक से हो उपयुक्ि छै ।
कोन रचना वफल्म ले ल उपयुक्ि छै आ वक नै छै से जनबाक ले ल हम एकै
रचनाकारक दू कथाक नाम दऽ रहल छी, से पवढ़ बूणझ जे बै जे वफल्मक ले ल
कोन रचना नीक कोन नै नीक। ई दू रचना तथक राजकमल चौधरी जीक-
पवहल रचना भे ल 'ललका पाग' आ दोसर रचना भे ल 'सााँ झक गाछ'।
156 ||गजे न्द्र ठाकुर

उपरमे हम जिे क नाम दे लहुाँ िावहमे एकटा आर नाम अतछ आ से छतथ-


केदारनाथ चौधरी।
3
मै तथलीमे केदारनाथ चौधरीजीक आगमन वफल्मक माध्यमे भे ल, वफल्मे ले ल
भे ल। आ िाँ इ वहनकर रचनामे ओ सभ ित्ि सायास-अनायास चत्रल अबै ि
अतछ जे वक वफल्म ले ल अवनिायट छै ।
जे ना वक हम पवहने त्रलखलहुाँ जे लोकतप्रयिा एिां गां भीरिा एकै बािकेँ कहबाक
दू िरीका अतछ। िाँ इ जे आलोचक लोकतप्रय पोथीकेँ अगां भीर मावन लै छतथ
से अवनिायट रूपें केदारजीक रचना पढ़तथ। चमे लीरानीमे जिे क राजनीतिक
यथाथट वनकत्रल कऽ आएल छै िकर चौथाइयो यथाथट कोनो कतथि 'गां भीर'
रचनाकारक रचनामे नै अतछ। गूढ़ दशटनक सरल रूप पवहल बे र मै तथलीमे
आएल से हो केदारजीक रचना 'करार'मे । िास्िविकिा ई अतछ जे मै तथलीमे
अतधकाां श ले खक अपनाकेँ सुपीररयर मावन लै ि अतछ। ओकरा अपनामे कोनो
कमी नै दे खाइि छै । आ िाँ इ ओकरा लग जखन कोनो एहन रचना अबै छै
जावहमे माि अपनापर, अपन असफलिापर हाँ सल गे ल हो, ओकरा
सािटजवनक कएल गे ल हो िाँ ओहन रचनासाँ ओ सभ दूरी बना लै ि छै । दूरी
बने बाक कारण ई जे ओवह रचनाकेँ पवढ़ ई िाँ बुझा जाइि छै एहन कमी हमरोमे
अतछ मुदा से स्िीकार करबाक ओकरामे क्षमिे नै छै । दोसर बूणझ जे िै िाँ फेर
साधारण जनिा ओ 'कवि'मे अां िर की रहिै । आ इएह कारण छै जे अपनापर
हाँ त्रस, अपन असफलिा केर कथा जखन केदारनाथजी 'अबारा नवहिन'मे
त्रलखला िाँ एक बे र फेर कतथि प्रगतिशील सभ ओकरा लोकतप्रय कवह टारर
दे लक।
केदारजीक रचनाक बहन्द्ने सभ कतथि प्रगतिशील आलोचककेँ ई विचार
करबाक चाही जे कतथि गां भीर ओ प्रगतिशील रचना ले ल पाठक वकए ने छै ?
एहन आलोचक सभ ई कवह सकै छतथ जे पाठक ले ल अिाां तछि रचना नै
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 157

एबाक चाही। ईहो बाि ठीक मुदा आलोचकक काजे छै अिाां तछि ित्िक
िाक-हे र करब। आ से ओ आगू बवढ़ केदारजीक रचनाकेँ खराप सावबि
करतथ। द्वदक्कि की छै ? हमरा बहुि बे र लगै ए जे माि चाौं काउ बाि कवह दे ब
'कतथि प्रगीिशील रचना' केर मानक अतछ। जखन वक सरल बाि कहै ि
रचना (से ओ बाि किबो नीक वकए ने हो)केँ खराप मावन ले ल जाइि छै ।
मै तथलीमे िाँ ई हाल छै जे 'वबकाएब सावहत्य केर पै माना नै छै ' सन नारा दे बए
बला कचरा ले खक सभ हमर पोथी पढ़ू कवह पाठककेँ जबरदस्िी वकनबाक
ले ल कहै ि छै ठीक िाही मै तथलीमे केदारोनाथ चौधरी सन ले खक छतथ
णजनकर पोथी पाठक िावक कऽ कीवन लै ि अतछ।
एहनो नै छै जे केदारनाथजी रचना सभ अकाससाँ खसल छै आ ओवहमे कोनो
कमजोरी नै हे िै फेर अहीठाम प्रकन उठै ि छै जे कोन भाषाक कोन ले खक केर
रचना बे दाग रहै ि छै (छान्न्द्दक रचना छोवड़, कारण छान्न्द्दक रचनामे पवहल
अवनिायट ित्ि छन्द्द छै )। पाठक अपन-अपन अनुभि केर अधारपर केकरो
नीक िा खराप कहै ि छै । आ िाँ इ जिे क महान यािीजीक रचना िा
लत्रलिजीक उपन्द्यास, िा धुमकेिु सवहि मायानां द तमश्रजीक उपन्द्यास अतछ
ििबे महान केदारनाथ चौधरीजीक उपन्द्यास से हो अतछ। केदारनाथजीक
उपन्द्यास अपन कालखां डकेँ गां भीरिा ओ वबक्री दूनू मानकपर अतिक्रमण कऽ
दे ने अतछ।
आ अही कारणसाँ ............
हम मै तथली उपन्द्यासमे 2004 केर बाद बला समयकेँ "केदारनाथ युग"
कहबाक अत्रभलाषी छी।

अपन मां तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


158 ||गजे न्द्र ठाकुर

गजे न्द्र ठाकु र

केदार नाि चौधरी- हुनकर आ हुनकर उपन्द्यासक पुनपामठ

मै वरकक परीक्षामे फेल भे लाक बाद सुगम स्थल एकमी पुलसाँ बागमिीक
प्रचण्ड िे गमे कूद्वद प्राणत्याग करबाक वनणटयमे शुद्ध दे सी घीमे छानल णजले बी-
कचौड़ीक सुगन्द्धो व्यिधान नै दऽ सकल हाँ मुदा ई वनणटय भे ल जे आत्महत्यासाँ
पवहने एक िोड़ णजले बी-कचौड़ी खा ले ल जाय।

आ भोजनालयमे णजले बी-कचौड़ी खाउ आ एकमी पुल जाउ आ बाि खिम।

मुदा ओिऽ खट्टर ककाक सहोदर छोटका कका विद्यमान छतथ। फेर
बै कग्राउण्ड जे दे श स्ििां िो आ गणिां िो भऽ गे ल रहै , ओइ समयक घटना छी।

फेर जे दू टा मे साँ एक गोटे वबयाहलो छला, घटानाक समय पवहने दे ल अतछ


से बालवििाह आद्वदबला मातमले खिम।

आ फेर सां गीक मामाजी एला। आब ओ िे हेन रोजगारमे भावगनकेँ लगे तथन्द्ह
जे ओ टाकाक मोटरी बापकेँ पठे तथन। माने आिम्हत्याक िाँ मातमले खिम।
ओ वबदा भे ला हाबड़ा आ आत्मकथात्मक शै लीक उपन्द्यासक "हम" वबदा
भे ला गाम। पवहल अध्याय समाप्ि।
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 159

दोसर अध्यायमे एम.ए. अथटशास्ि पास भऽ गे ला अपन "हम"। आ फेर


प्रिे श भे ल इां गलै ण्डसाँ पी.एच.डी. कयल प्रबुद्धक, दोसर अध्याय समाप्ि। एिे
जल्दी समाप्ि नै होइ छै मुदा जइ वहसाबे पवहल अध्याय चललै िवहना दोसर
से हो चलल हे िै िकर अां दाजा भऽ गे ल हएि। "तमतथला" पत्रिकाक चचट आ
से हो त्रलखल जे तमतथले जकााँ कावह कटै ि छल ओकर कागि आ आखर।

िे सर अध्यायमे कलकत्तामे जीविकोपाजटन शुरू। चाररम अध्यायमे जानकी


नन्द्दन ससिह वगरफ्िार आ इां गलै ण्डसाँ पी.एच.डी. कयल, सम्भििः नै सत्ये -
लक्ष्मण झा प्रत्रसद्ध लखन झा, केँ भुइयााँ क लोकक ठोकल बाि कहब। आ
अपन "हम" प्रस्थान केलतथ महां थ मदन दास जीक डे रा। माने असली खे ला
शुरू।

अध्याय पााँ चमे मै तथली ले ल काज आ ओइ ले ल वफल्म-वनमाटण आ ओइ ले ल


पूाँजी सां ग नौकरीसाँ इस्िीफा दे मऽ पड़िन्न्द्ह अपन "हम"केँ।

१९३६मे जन्द्म आ १९६१ क ई गप्प, गदह-पचीसी बला समै । नोकरीसाँ


इस्िीफा, अध्याय छ समाप्ि।

अध्याय ७ मे बम्बइ आगमन।

अध्याय ८ वफल्मी स्टाइलक परमानन्द्द चौधरी। आब वफल्मक पौराणणक


कथानक हुअय आवक सामाणजक िइपर घमथटन।

अध्याय ९ वफल्मक पटकथा िै यार। गीिकार भे ला रिीन्द्र। गीि गे िा के?


लिा आ रफी केर फीस िीन हजार टाका प्रति गाना। सुमन कल्ाणपुर दू
गीिक फीस ले लवन चौदह सय टाका आ हुनकर पति रसीद दे लन्खन्द्ह िीन
सय टाकाक। गीिा दत्त द्वदन-रति नशामे बुत्त, पति गुरुदत्तसाँ समस्या रहन्न्द्ह,
बादमे गुरुदत्त आत्महत्या कऽ ले लवन, पााँ च द्वदनमे गाना टे क केलवन गे िा दत्त।
160 ||गजे न्द्र ठाकुर

म्यूणजकक कुल खचट १४ हजार टाका। फणीर्श्र नाथ रे णष मै तथलीमे वफल्म


बनबाक सूचनासाँ भाि विह्वल भऽ गे ला।

अध्याय दस राजनगरमे सूवटङ्ग।

अध्याय एगारह २ मास िे रह द्वदनुका बाद सूटटिग समाप्ि, अल्मुवनयमक २०


पे टीमे वफल्मक वनगे वटि लऽ कऽ "हम" आ मदन भाइक बम्बइ प्रस्थान।

अध्याय बारह वफल्म माि अदहासाँ कवनये बे शी बनल अतछ, िइ सूचनासाँ


हड़कम्प।

अध्याय िे रह पााँ च टा एवडट कयल रीलक सङ्ग कलकत्ता आगमन। गणे श


टॉकीजमे एकर प्रदशटन भे ल आ "भरर नगरी मे सोर, बौआ मामी िोहर गोर"
सभकेँ भाि-विभोर कऽ दे लक।

अध्याय चौदह अमे ररकन विर्श्विद्यालयमे अपन "हम" एडतमशन ले ल


चयवनि होइ छतथ।

अध्याय १५ मे १९७७ मे भारि घुरै छतथ। रिीन्द्रनाथ ठाकुर केदारनाथ


चौधरीसाँ राइट लऽ कऽ वफल्म पूरा करबे लन्न्द्ह, ई प्रदर्शििो भे ल, ओ नीक
नफा कमे लवन।

जे गप ऐ पोथीमे नै त्रलखल अतछ से ई जे ई वफल्म दूरदशटनपर से हो एकातधक


बे र दे खाओल गे ल।

िाँ आब बुणझये गे ल होयब जे ई कोनो उपन्द्यास नै , ऐमे कोनो स्थान-पािक


काल्पवनक हे बाक कोनो कैप्शन नै लागल अतछ। मुदा हररमोहन झा केर
"ग्रेजुएट पुिोहु" सन एकर अन्द्ि मार्मिक कोना भऽ गे ल। आ उपन्द्यास छी
की? सभक णजनगी उपन्द्यासे िाँ छी, सभ आत्मकथा त्रलखै जाउ आ उपन्द्यास
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 161

बनै ि जायि।

िाँ ई आत्मकथात्मक शै लीमे त्रलखल पोथी छी, एकर "हम" छतथ केदारनाथ
चौधरी। मै तथली आ तमतथलाक नामपर होइबला कायटक्रमक रस्िो साँ लोक
वकए भावग जाइ छतथ, ई िकर कथा थीक।

आ यएह कारण छी जे केदारनाथ चौधरी जीक समस्ि सावहत्यकेँ हम


प्रतियोगी परीक्षाथी सभ ले ल अवनिायट रखने छी। रिीन्द्र नाथ टै गोरक बाल
नाटकक सावहत्य अकादे मी जे मै तथली अनुिाद केने अतछ िकर मां चन िाँ
बच्चाक बापो नै कऽ सकि। जे जिबी भऽ रहल छै से ई नाट्य-सावहश्त्यक-
तमतथला-अत्रभयानी सां स्थे सभ कऽ रहल छै - िेँ सभ सही, ई िकट हमरा
स्िीकायट नै ।

ई उपन्द्यास आत्मकथात्मक आ सां स्मरणात्मक केर श्रे णीमे अबै ि अतछ।

जाँ अहााँ अपन णजनगीकेँ "सूट" कऽ सकी िाँ अहााँ केँ लागि जे ले न्द्ससाँ दे खल
णजनगी बे शी मारुख होइ छै । रां गमां चसाँ वफल्ममे आयल कलाकारकेँ आाँ न्खमे
नोर आनै ले स्ललसरीन नै लगबऽ पड़ै छै । अहााँ केँ लागि जे खाली रोडपर बखाटमे
हम जे ड्राइि कऽ रहल छी, से ले न्द्ससाँ सूट केलापर "त्रसने माक हीरो" सन
हम भऽ जायि। मुदा हम धै नसन ओकरा कोनो मोजर नै दै छी। हमरा विचारे
प्रतियोगी परीक्षाथीये नै िरन् सावहत्यकारो सभकेँ ई पोथी सभ पढ़बाक
चाही। हम िाँ सभकेँ सलाह दै तछयन्न्द्ह जे सभकेँ फोटोग्राफीक कोनो "समर
कोसट" अिकये करबाक चाही। एकटा आर सलाह हम लोककेँ दै ि तछयन्न्द्ह जे
आइ-कास्ल्ह मोबाइलमे कैमरा आवब गे ल छै , अहााँ प्रतिद्वदन ५-१० तमनटक
िीवडयो रे कार्डिग करू, दुवनयााँ केँ चौखुट, आयिाकार, त्रिभुजीय आद्वद फ्ेममे
दे खू आ अनुभि करू जे कोनो भररगरो विषय लोक केना नीकसाँ बुझैि अतछ।
भौतिकी विज्ञानक प्रोफेसर फेनमे न (फेनमे न्द्स ले क्चसट) ऐ ले ल प्रत्रसद्ध अतछ,
162 ||गजे न्द्र ठाकुर

वफणजक्सकें रुतचगर ढ़ां ग साँ पढ़े बा ले ल। आ एिऽ िाँ िे हेन भूप सभ छतथ जे
"वफक्शनो" "वफणजक्स" सन त्रलखै ि छतथ।

कला वफल्म वकयो वकए नै दे खैि अतछ, कारण ले खक-वनदे शककेँ होइ छै जे
कला वफल्मक सब्जे क्ट माि ओकरा पुरस्कार द्वदया दे िै। िास्िविकिा ई छै
जे कला वफल्म से हो वहट होइ छै , "द ककमीर फाइल्स" वफल्म डोक्यूमेण्री-
वफल्म भे लाक बादो वहट भे लै, कारण डाइरे क्टर आ स्स्क्रप्ट राइटर बे इमान नै
छलै , त्रसण्डलसट त्रलस्टमे "पोत्रलस" सभ कहै छै "गो ज्यू, गो" िकर माने ओ
एकिरफा तचिण भे लै? आ आब हम एकटा नीक लोक जे पोत्रलस
(पोले ण्डक) छतथ िकरा आनी आ स्स्क्रप्टमे घुसाबी। ने १८० तमनटक
(विदे शमे १०० तमनटक) वफल्ममे सभ बौस्िु दे ल जा सकैए ने सय-सिा
पन्द्नाक सां स्मरणमे । वकयो कवह सकै छतथ जे केदारनाथ चौधरी वफल्म छोवड़
कऽ चत्रल गे ला, रिीन्द्र नाथ ठाकुर ओकरा पूरा केलन्न्द्ह। मुदा ई पोथीयो िाँ
सएह कवह रहल अतछ।

सरल भाषा ले ल बे शी प्रतिभा चाही। ऐ छोटसन पोथीमे छतथ तमतथला


अत्रभयानी, णजनका सभ आदर करै छन्न्द्ह मुदा सएह टा। मै तथलक सभ
सां स्थामे जे हाल छै से हो भे टि िेँ की लोक जुआ छोवड़ पड़ा जाय। नै , मुदा
अहााँ अपनाकेँ फ्ेममे दे खू, कोन काज ले ल अहााँ बनल छी।

मुदा केदारनाथ चौधरीक कलममे जे धार छन्न्द्ह से माि प्रतिभाक कारण नै


छन्न्द्ह। ओ जे अनुभि बम्बइमे ले लन्न्द्ह, जे फ्ेममे "सूट" आ "एवडट" करबाक
कला त्रसखलन्न्द्ह-दे खलन्न्द्ह, से हुनकर सभ रचनामे दे खाइि अतछ। लोक
"सूट" करै ि रवह जाइ छतथ आ "एवडट" करबा कल कम-बे शी भऽ जाइ
छन्न्द्ह।

रचनामे धार अतछ, धरगर बला धार आ बहै बला धार, दुनू। आ िेँ सां स्मरण
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 163

उपन्द्यास बवन गे ल अतछ।

अनुलग्नक: विदे ह सदे ह ३२ मे (ऐ सलिकपर


उपलब्ध http://videha.co.in/new_page_89.htm) सां कत्रल
ि श्री शै लेन्द्र मोहन झा जी केर रचना, दे खू केना नि-पीढ़ीमे "ममिा गाबय
गीि" ले जेण्ड बवन गीिमे पै त्रस गे ल अतछ।

शै लेन्द्र मोिन झा

सौभालयसाँ हम ओवह गोनू झाक गाम, भरिारासाँ छी, णजनका सम्पूणट भारि,
हास्यत्रशरोमणणक नामसाँ जनै ि अतछ। ििटमानमे हम टाटा मोटसट फाइने न्द्स
त्रलतमटे ड, सम्बलपुरमे प्रबन्द्धकक रूपमे कायटरि छी।

सपना

सुिल रही दुपहररयामे िाँ दे खलौ हम एक सपना


भयल वििाह हमर यै भौजी कवनया चान्द्द के जे ना
हम्मर, टु वट गे ल सपना ये भौजी, भरल दुपहररयामे ...

जहन भेँ ट भे ल हुनकर हम्मर, भे लहुाँ हम प्रसन्द्न


दे न्ख कऽ हुनकर रूप हे भौजी, भय गे लाैँ हम दङ
नाम पुछत्रलयवन हुनकर हम िाँ कहलवन ओऽ जे रजनी
164 ||गजे न्द्र ठाकुर

स्िप्न सुन्द्दरी ओऽ बवन गे त्रल हम्मर हृदयक रानी

हमरा पुछली कहु हे साजन केहन हम लगै छी?


हम कहत्रलयवन सुनु हे सजनी आहााँ चान्द्द लगै छी
चन्द्दामे िाँ दागो छणि, आहााँ बे दाग लगै छी
आाँ न्ख अहााँ क ऐर्श्याट जे हन नाक अतछ जुही चािला
केश अहााँ क अतछ नीलम जे हन गाल िै जन्गन्द्िमाला

एवह के बाद पुछत्रलयवन हमह केहन हम लगै छी?


कहय लगत्रल खराब छी, छी अहाँ ठीक-ठाक
ले वकन एवह यौिनमे साजन भे लहुाँ कोन टाक*
कवनक लगै छी सन्द्नी जे ना, वकछु -वकछु राहुल राय
वकछु -वकछु गुण गोविन्द्दा बाला, यै ह अतछ हम्मर राय

िहन कहत्रलयवन चलु हे सजवन घुरए ले ल दरभां गा


आहााँ ले ल हम सारी वकनब, अपनो ले ल हम अां गा
दू टा वटकट अतछ उमा टाकीजक, अगले -बगले सीट
दुनू गोटे बै स कऽ दे खब "ममता गाबय गीत"**
हुनक हाथ ले ल अपन हाथमे उद्वठ विदाय हम भे लहुाँ
हुनक हाथ ले ल अपन हाथमे उद्वठ विदाय हम भे लहुाँ
िखने जगा दे लक टपिटूआ, िखने जगा दे लक टपिटुआ***, नीन्द्दसाँ हम उद्वठ
गे लहुाँ
हम्मर टू वट गे ल सपना ये भौजी, भरल दुपहररयामे ......

*= हमर केश वकछु बे शी कम अतछ


विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 165

**= प्रलसद्ध मै थिली लसने मा


***= हमर छोट भाई

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166 ||गजे न्द्र ठाकुर

अचमना चौधरी

िमर वपताः श्री केदारनाि चौधरी

हम अत्यां ि सौभालयशात्रलनी छी जे हमरा सिटश्रेष्ठ वपिा भे टलाह। ओ हमर


वपिा माि नवह अवपिु हमर त्रशक्षक, हमर मागटदशटक एिां तप्रय तमि छतथ।
ने नपनक अतधकाां श समय, हम हुनकवह सां ग वबिौलहुाँ । थोड़े क शब्दमे हुनकर
व्यकक्ित्िक सां बांधमे त्रलखनाइ कद्वठन अतछ।

हमर वपिा जीक व्यकक्ित्ि अत्यां ि प्रभािशाली छवन। अपन साफ मन एिां
सरल स्िाभािक कारणे ओ सहजवह सभसाँ तमििि् भऽ जाइि छतथ। हुनकर
सां ग रवह हम जीिनक वित्रभन्द्न आयामकेँ नीक जकााँ बुझलहुाँ । कोनो कद्वठन
समयकेँ शाां ि रवह, सां यमसाँ पार पाबी से हुनकवहसाँ त्रसखलहुाँ ।

हमर त्रशक्षामे हुनकर बहुि पै घ योगदान छवन। ने ना सभकेँ त्रशक्षा सां ग उतचि
सां स्कार दे ब हुनकर लक्ष्य छलवन। जीिनकेँ सकारात्मक रूपे दे खबाक प्रेरणा
हमरा हुनकवहसाँ भे टल।

हमर वपिाजी अपन मािृभाषा मै तथलीक से िा, प्रचार एिां प्रसारमे से हो अपन
योगदान कय रहल छतथ। मै तथली ले खनक एकटा नि रूप प्रस्िुि केलवन जे
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 167

मनोरां जक एिां प्रेरणादायक अतछ। मै तथल समाज द्वारा हुनकर प्रयासकेँ


सराहना एिां सम्मान भे वट रहल छवन से दे न्ख हम गौरिान्गन्द्िि छी।

अपन मां तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर


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168 ||गजे न्द्र ठाकुर

डॉ कैलाश कु मार थमश्र


केदारनाि चौधरी रथचत मै थिली उपन्द्यास: करार (पोिी समीक्षा)
आजुक कालखण्ड मै तथली सावहत्य ले खन आ मुरण ले ल स्िर्णिम अतछ।
सावहत्यक विविध विधा, विशे ष रूप साँ पद्य मे ि’ क्रान्गन्द्िक शां खनाद भ’ रहल
अतछ। सिाे त्तम बाि ई जे अवह क्रान्गन्द्ि केर सहयािी केबल पुरुखे नवह
मै तथलानी से हो छतथ। अगर एवह क्रान्गन्द्ि सां वकयोक वपछडल छतथ ि’ गां भीर
पाठक। ओना कोनो पाठक नवहये जकााँ मै तथली पढ़ै ि छतथ? अतधकाां श पोथी
पर समीक्षा पढ़ब ि’ लागि जे ना पे ड समीक्षा पढ़ै ि होई। वकछु -वकछु समीक्षा
तमििा हे िु एक्सचें ज ऑफर जकााँ अथिा ‘अहााँ हमरा नीक कह हम अहााँ कें
नीक कहब’ एहनो मनोिृत्रत्त साँ त्रलखल रहै ि छै क। जे सावहत्यकार नवह छपा
सकैि छतथ, से सब सोशल साइट पर अपन सावहत्य पोस्ट क’ ले ि छतथ।
एवह िमाम प्रवक्रया मे मारल जाईि अतछ वनष्पक्ष पाठक जकरा उत्तम पद्य,
गद्य टकििा सावहत्यक आन विधा केर पोथी पढबाक ले ल चाही। कोना चयन
करि अवह महासमुर मे साँ अपन काजक पोथी? डे टा माइटनिग असम्भि जकााँ
लगै ि छै क।
केदारनाथ चौधरी केर रचना पर वकछु त्रलखबाक छल। लागल, कवन पढ़ी अवह
सावहत्यकार केँ। फेर पिा चलल जे चौधरी जी केर उपन्द्यास करार पर
वकयोक नवह त्रलखने छतथ। हम िुरि वनणटय ले ल जे िखन करार पढ़ब आ
ओवह पर त्रलखब। अवह पोथी केँ पवढ़ जे अनुभूति भे ल से अति साधारण
पाठक केर मादे त्रलख रहल छी।
करार मै तथली सावहत्य केर अनुपम वनतध अतछ। एकर भाषा, क्य,
विश्ले षण, सोच, वफक्शन केर इतिहास, लोक व्यिहार, धमट, दशटन, िां ि, आ
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 169

स्थानीयिा साँ जोड़बाक विलक्षण काज केदारनाथ चौधरी केने छतथ। कोना
तमतथलाक आम जीिन मे धमटक आ दशटन केर गूढ़ रहस्य व्याप्ि छै क, िकर
प्रमाण अिय डे गे -डे गे भे टि। ज्ञान आ दशटन केर सब गां भीर बाि एक
टायरगाड़ी केर बहलमान कन्द्हाइ मण्डल साँ सुनब नीक लगै ि छै क।
अवह साँ पवहने जे पोथी पर वकछु त्रलखी, एकर सां क्षेप जानकारी द’ दे ब
आिकयक।
उपन्द्यास केर प्रारम्भ दररभां गा शहर केर बावढ़ साँ आ एक घर मे उपस्स्थि दू
भाई िीर बाबू आ पां कज साँ होइि छै क। दुनू बावढ़क बढै ि जल स्िर साँ परे शान
िािाटलाप क’ रहल छतथ आ प्राण बचे बाक युकक्ि िावक रहल छतथ। ििबे मे
एक व्यकक्ि दहाईि हुनका सब लग अबै ि छतथ। आगां िुक “पचपन-साद्वठ
बयस, छः फीट लम्बा, एखनहुाँ स्िस्थ आ गठल शरीर, सशक्ि िावह पर भव्य
मुखमां डल, चौरगर ललाट, पै घ-पै घ आां न्ख, गौरिणट, तछवड़यायल, भीजल आ
कान िक कें झां पने कारी-कारी केश। (पृष्ट 7)। आगां िुक हुनका सबकें कहै ि
छतथन जे विनय जे अिय रहै ि छतथ तिनकर छोटका काका जटाधर केर
अत्रभन्द्न तमि पां वडि राज शे खर दत्त छतथ। विनय हुनका पां वडि काका कवह
सम्बोतधि करै ि छतथन। पां वडि राज शे खर दत्त वहनका दुनु भाई साँ वनिे दन
करै ि छतथन जे राति भररक आश्रय दे तथ। िीर बाबू आ पां कज दुनू काि साँ
पां वडि राज शे खर दत्तक दुनू हाथ धय हुनका िरामदा पर ल’ जाईि छतथन।
अां ििः पां वडि राज शे खर दत्त केर सुझाि साँ बगल केर िीन महला मकान
जकर मात्रलक अपन मकान मे िाला लगा अयोध्या गे ल छलाह मे िाला िोवड़
अपन जान बचे बाक जोगार मे जाईि छतथ ।
राज शे खर दत्त पां कज आ िीर केँ अपन झोरी साँ वनकात्रल रोटी िरकारी खे बा
ले ल दे ि छतथन। बावढ़ केर भय बनल रहै क। कखन की विकराल स्िरुप ल’
ले ि िकर कोनो ठे कान नवह। अिएि राति भरर जागरण आिकयक। यएह
सब सोचै ि दुनू भाई आगां िुक साँ वनिे दन करै ि कहै ि छतथन: “हमर ई सोचब
170 ||गजे न्द्र ठाकुर

अतछ जे अहााँ साधारण लोक नवह वित्रशष्ट व्यकक्ित्िक स्िामी छी। िें अपने
साँ आग्रह जे अहााँ अपन जीिन मे घटल कोनो सुरुतचपूणट घटनाक िणटन
कररयौक जावह साँ मोनो लागल रहय आ रातियो कवट जाए।” (पृष्ट 8)
आब पां वडि काका अपन कथा कहनाइ प्रारम्भ करै ि छतथ ।
पां वडि काका अथाटि पां वडि राज शे खर दत्त बहुि कम अिस्था मे नै नीिाल गे ल
छलाह। ओिय एक विस्मयकारी घटना घवटि भे लवन । नै नीिाल मे फुलक
गाछक मध्य एक अति सुन्द्दर गौरिणट युििी ठार छलीह आ अपलक राज
शे खर द्वदस दे न्ख रहल छलीह। राज शे खरक समस्ि चे िना ओवह युििी मे
समर्पिि भ’ गे लवन। िकरा बाद बहुिो द्वदन धरर ओ युििी नवह प्रकट भे लीह।
राजक मोनक वनशा क्रमशः समाप्ि भ’ गे लवन। ओ ओवह फुल कुमारी केँ
नीक जकााँ वबसरर गे लाह। फेर बै शाख मास मे ऋवषकेश जयबाक क्रम मे
समस्िीपुर रे लिे स्टे शन लग राज केँ एकाएक िएह मनमोहनी युििी उभरर
गे कल्थन। राजक सम्पूणट गि झनझना उठलवन। ओ ठमवक क’ ठार भ’
गे लाह। एक बूढ आ भयािन मनुखक पाछा-पाछा ओ युििी जा रहल छलीह।
युििी बूढा सां ग राज शे खर लग अबै ि एकटा त्रलिािा खसा दे लतथन्द्ह ।
युििीक भाि पढ़ै ि राज शे खर दत्त ओ त्रलिाि उठा ले लवन। ित्काल
युििीक मोिी सन दाां ि चमवक उठलवन, ठोर वबहुाँ त्रस गे लवन आ आाँ न्खक भाि
एहन भ’ गे लवन जे ना ओ राज कें धन्द्यिाद कवह रहत्रल होतथ।
राज शे खर प्ले टफामट पर एक ठाम बै स उत्कांद्वठि भ’ तचट्ठी पढ़ब शुरू करै ि
छतथ:
“मदति चाही िाँ पि त्रलखलहुाँ अतछ। आगू-आगू बुढ सन जे मनुक्ख गे ल अतछ
ओ कापात्रलक तथक. कापात्रलक मे ई अघोर पन्द्थीक िामसी पूजा केवनहार
िाां त्रिक अतछ आ एकरा अने को एकरा अने काें त्रसत्रद्ध प्राप्ि छै । स्िभाि, प्रिृत्रत्त
आ आचरण साँ ई धूिट, दुष्ट आ मक्कार अतछ। हम पूणटिः एकर कैदी छी।
अवगला अमािस्याक बाद िां ि मागटक वितध विधान साँ ई हमरा पत्नी बनाओि
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 171

आ भोग करि। िकर वकछु मवहना बाद ई हमर भै रिीक आगा बत्रल द’ दे ि।
अने काें सुन्द्दरर कन्द्याक बत्रल एकरा हाथे पवड़ चुकल छै क। जकरा ई डाकनी,
योवगनी, प्रेिनी बना क' अश्लील आ िीभत्स िां िक होम-जाप क’ अपन
अभीष्ट पूरा करै ि अतछ।
अहााँ हमर मदति कोना करब से सुनू। हमर गाम चननपुरा मे हमर बाल सखा -
एिां प्रेमी गोिधटन रहै ि अतछ। गोिधटन साहसी, बलबान आ हमर प्रेम मे मााँ िल
अतछ। पुजारी बाबा साँ प्राप्ि मां ित्रसक्ि अष्ट धािुक त्रसत्रद्ध बला मट्ठा ओकर -
हाथ मे छै क। विशम्भरी मािाक मां िायल हाथी दााँ ि बला कबच ओकर गरदवन
मे झष लै छै क। िाँ गोिधटन अवह कापात्रलकक िां ि प्रहार साँ परे अतछ। अहााँ
गोिधटन केँ हमर सोचनीए स्स्थतिक सूचना दे बै । ओ हमर सहायिा कर' ले ल
शीघ्र िै यार भ' जायि।

अहााँ गोिधटन केँ तचन्द्हबै कोना? गामक पूब मे सघन आम्र कां ु ज आ िकर सटल
बड़ी टा परिी मै दान भे टि। हजारो गाय आ िकर बाछा एिां बाछी केँ चरै ि
दे खबै क। अही स्थान पर अहााँ केँ भे टिाह गोिधटन। गौर िणट , ऊाँच कद,
आौं द्वठया कारीकारी केश-, चे हरा पर दे ििाक सुन्द्दरिा, दावहना हाथक पहुाँ चा
लग लहसुवनयााँ क दाग आ सभ साँ पै घ चे न्द्ह जे हमर वियोग मे िरासल पाषाण
मूर्िि बनल उदास कोनो गाछक डारर पर बै सल। सै ह भे लाह हमर गोिधटन।

गोिधटन केँ हमर सभटा अिापिा दे बवन। कहबवन जे ओ अमािस्या साँ दू -


अतछ। राति होम करै ि-द्वदन पवहनवह अवह शहर मे आबतथ। कापात्रलक द्वदिा
िेँ ओवह मकानक ओ खोज करतथ जिए होमक धुआाँ आकाश मे जाइि
होइक। अवह िरहें ओ मकान केँ िावक ले िाह जिय हम कैद छी। अमॅािास्या
तितथ मे कापात्रलक भरर राति कमशान मे रहै ि अतछ। कापात्रलकक
अनुपस्स्थति मे रात्रिक दोसर पहर वबिला पर गोिधटन एिय आवब बााँ सुरी
बजाबतथ। बााँ सुरी मे विहगक ओ धुन बजबतथ जकरा सुनला साँ एहन अनुभूति
होइि छै जे ना कोनो चां चल नदी सागर मे डु बैि काल अन्गन्द्िम आबाज दै ि
172 ||गजे न्द्र ठाकुर

होइक -हमरा बचा त्रलअ। हम ि' डु वब रहल छी। बााँ सुरीक धुन मे डु बैि नदीक
चीत्कार सुवन हम बुणझ जे बै जे हमर प्राणनाथ आवब चुकल छतथ। हम कहुना
ने कहुना गोिधटन लग अिस्से पहुाँ तच जायब। अवह िरहें हमर प्राण बााँ तच
जायि।

चननपुरा गाम जे बाग मागटक ब्योरा अवह तचट्ठीक पृष्ठ पर अां वकि अतछ। शे खर !
हमर अटल विर्श्ास अहााँ मे ओवह सीमा िक अतछ जिय िकट शून्द्य भ' जाइि
छै । (14-13)

राज शे खर आब स्िे िाक प्राण रक्षा ले ल चननपुरा ले ल विदा भे लाह। तचट्ठी मे


रस्िाक सां केि दे ल छलवन। पवहल पड़ाि धमटकाां टा छलवन।

एक जजटर बस जकर नाम सुपर िास्ट रहै क मे बै स धमटकाां टा ले ल प्रस्थान


केलाह राज शे खर। सां योग सां बस धमटकाां टा पहुां चे साँ वकछु काल पवहने भाां गठ
भगे लवन। राज शे खर केर बगल मे एक युिक बै सल छलतथन । ओ ’
“ :कहलतथनबां धुिरअहााँ धमटकाां टा िक जायब। हमहुाँ ओही ठाम िक ,
जायब। जां मॅुख्य सड़क छोवड एक पे ररया पकवड़ ली िधमटकाां टा मुस्स्कल ’
सां आध कोस।) ”पृष्ठ (21

राज शे खर युिक सां ग वबदा भे लाह । हुनका पाछापाछा ओही बसक दू आर -


पत्रसन्द्जर आवब रहल छलतथन्द्ह। दुनू आपस मे उच्च स्िर मे िािाटलाप करै ि।
हमर‘ – पतछला यािी आगााँ बला कें तचतचयाति कहलक“ एकाएक बहु
ड्राइभर सां गे उरहरर गे ल िाें से बजबें । िोहर एिे क टा मजाल? ठहर रौ सार,
िोरा आइ णजबै ि नवह छोड़बौ। अवगला पड़ायल आ पतछला न्खहारलक।
पतछलाक हाथ मे चमचमाइि बड़ी टा छु रा रहै क। रस्िा एकपे ररया रहै क िइयो
राज शे खर केर सहयािी हुनक बगल मे आवब गे ल छला। आगााँ पड़ायल
आब'बला व्यकक्ि िीनचारर हाथ दूरवह एकपे ररया साँ ओघरा क-' खे ि मे
लुढ़वक गे ल। छु रा बला व्यकक्ि छु रा िनने दौड़िे रहल। ओकरा सोझ राज
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 173

शे खरक छािी मे छु रा भोकै ले ल िृत्त भ' गे ल। ठीक िाही काल हुनक


सहयािी राज शे खर केँ एक काि ठे ल दे लतथन्द्ह । छु राबला मनुक्ख एकपे ररया
रस्िाक ऊपरे लटपटा क' मुांहे भरे खसल। मुदा ओ अपन सां िुलन काँ दुरुस्ि
करै ि ठार भ' गे ल आ खे ि मे उिरर क' एक द्वदस भागल। आश्चयट जे दोसर
व्यकक्ि जे पवहने साँ खे ि मे आें घरायल छल। से हो उद्वठ ओकरे पाछााँ दौड़'
लागल।

राजक प्राणरक्षक कहलतथन्द्ह योजना बना क -' दुकमन आक्रमण कयने छल।
हम सािधान छलहुाँ आ दुनूक मां सा पवहने साँ भााँ वप ने ने छत्रलयै । धमटकाां टा िक
हम सां गे रहब िाँ कोनो तचन्द्िा नवह।

ओवह इलाका ले ल राज शे खर दत्त पूणटिः नि लोक रहतथ। कने काल िक


दुविधा मे ठार रहलाह । दुविधा ग्रस्ि मोन क अजब उलझन होइि छै । वकछु
वनणटय ले ब मुस्स्कल । फेर धमटकाां टा द्वदस डे ग उठौलवन। यािाक उद्देकय की
छलवन? स्िे िाक प्राण रक्षा ले ल हुनक सम्बाद केँ गोिधटन िक पहुाँ चेनाइ।
स्िे िाक अधीर भे ल छवि राज शे खरक हृदय मे अां वकि छलवन। मोन स्िे िा मे
नीक जकााँ समर्पिि छलवन। मोन के स्स्थर करै ि चलै ि रहलाह।

धमटकाां टा लग साँ बसक सहयािी अलग भगे लतथन्द्ह। आब राज शे खर ’


अवगला पड़ाि द्वदस पै दल वबदा भे लाह।

आधा कोस रस्िा पार केला पर एकटा मोड़ छलै क। मोड़ लग एक टायरगाड़ी
ठार। राज केँ आश जगलवन। गाड़ी लग गे लाह। बहलमान मन्द्दमन्द्द मुस्की -
जे गाड़ी घे तघ“ साँ स्िागि करै ि उत्तर दे लतथन्द्हया जे िैक। हम अहााँ क वहि
तचन्द्िक छी आ अही ले ल टायरगाड़ी केँ ठार कयने छी।(24) ”

उल्लत्रसि मोने राज शे खर टायरगाड़ी पर बहलमान केर बगल मे बै स गे लाह।


बहलमानजी त्रसद्ध पुरुष साँ कम नवह छलाह। हुनक सत्सां ग साँ राज शे खर
मुद्वदि छलाह। भरर रस्िा ओ राज केँ अने क गूढ़ दाशटवनक आ धार्मिक प्रकनक
174 ||गजे न्द्र ठाकुर

उत्तर दे ि रहकल्थन्द्ह। बहलमानजी अपन बरद केर नाम माधि आ तिलकेसर


रखने छलाह। टायरगाड़ी पर धमटवनष्ट से ठ त्रसयाशरण झष नझष निालाक अन्द्न
लादल रहै क जकरा दोसर धमाटत्मा से ठ बनबारीलालक घे तघयाक गद्दी िक
लभु ,प्रेि ,पाप पुन्द्य ,मृत्यु ,जएबाक रहै क। बहलमानजी जन्द्म ’िसब पर ,
बजै ि रहलवन। ओ अपन उमे रर साँ बहुि कम लगै ि छलाह। बरदो साँ गप्प
करै ि छलाह। अध्यात्म केर गूढ़ बाि लोक भाषा आ उदाहरण साँ बुझा रहल
छलाह। बहलमान जी सां यि छलाह आ हुनकर िाणी मे गम्भी रिा छलवन ।
नाम कन्द्हाइ मां डल छलवन। अपन पररचय के विस्िार दे ि कहलतथन जे ओ
प्रारस्म्भक त्रशक्षा प्राप्ि केला के बाद एक सां स्कृि विद्यालय केर छािािास मे
खाना बने बाक आ अन्द्य िरहक काज केँ नौकरी कले लाह। समय पर वििाह ’
गे लवन। ’भे लवन रे शमा नामक एक बे टी से हो भे लवन। रे शमा पाां च िषट के भ
एक द्वदन सां िाद एलवन जे हुनक मािा मृत्यु स्या पर छतथन। गाम
पहुां चलॅाक दोसरे द्वदन मािाक वनधन भगे लवन। मायक द्वादशा द्वदन कन्द्हाइ ’
गे लवन। आब कन्द्हाइ मां डल ’मां डल केर पत्नी केर वनधन सााँ प कटला साँ भ
भगििी आराधना करै ि रहलाह। महामाया हुनका द्वदव्य ज्ञान दे लतथन्द्ह आ
गे ल छलाह। ओ अपन द्वदव्य ’कान मे मन्द्ि। आब ओ ऋत्रद्ध त्रसत्रद्धक स्िामी भ
दृतष्ट सॅाँ अवह सां सारक िथा दृतष्ट साँ परे सम्पूणट ब्रह्माां डक गति वितध दे ख
सकैि छलाह। कन्द्हाइ मां डल पां वडि राज शे खर दत्त केँ जनै ि छलतथन्द्ह। आ
जावह प्रयोजन साँ ओ चननपुरा जा रहल छलाह से हुनका ज्ञाि छलवन।

टायरगाड़ी आब घे तघया पहुाँ च गे ल रहै क। कन्द्हाइ मां डल राज शे खर कें एक


आश्रम पर उिारर दे लतथन्द्ह जे कर स्िामी ओ स्ियां छलाह। एक व्यकक्ि राज
केँ भीिर लगे लवन। ओकर नाम पां जा रहै क। आश्रम मे ओकर पत्नी ’
रहै क। केर सां ग रहै ि ,सुकुमारी जे नाम ज्ञाने अति कोमल आ सुन्द्दर रहै क
दुनूक जोड़ी बे मेल रहै क मुदा सुकुमारी पां जा साँ प्रेम वििाह केने छलीह। कन्द्हाइ
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 175

मां डल पुनः राज शे खर दत्त केर दुनू बरद माधि आ तिलकेसर केर पूिट जन्द्मक
कथा कहै ि छतथन्द्ह ।

घे तघया सां अवगला पड़ाि भां भरा छलवन। पां जा राज कें घाट ले ल ल गे लवन। ’
’नाि पर जखन बै स गे लाह िाँ पां जा एक अां गूठी द नाि साँ यािा शुरू केलाह।
दे लकवन। ओ अां गूठी कन्द्हाइ मां डल दे ने छलतथन। कवन काल बाद पिा
चललवन जे नाविक एक युििी छतथ। युििी केर सौन्द्दयट राज शे खर के बहसी
बनाबय लागल छलवन। युििीक स्िरुप कहन“ ?तधपाओल सोनाक सूखट
रां गबला हुनक काां तिकान मे झष मैि चानीक ,केशक लट पै घ-तछड़ीयाएल पै घ ,
पसीना मे भीजल ,मींचल ठोर ,नाक मे सटल नतथया ,झष मकालाल ,लाल-
लहां गा आ ब्लाउज मे अपत्रसयाां ि हुनक यौिन। युििी ग़जब कें सुन्द्नरर
(56) ”छलीह।

युििी केर नाम उलपी रहै क। ओ राज शे खर कें काम ले ल आमां त्रिि केलकवन।
राज से हो उद्यि भे लाह। मुदा फेर वकछु एहे ण सां योग भे लैक जे स्िे िाक स्मरण
करै ि बढल डे ग रोवक ले लवन। अनायास नाि कादो मे फांत्रस। गे लैक। उलपी
नाि केँ ठीक करय लागत्रल। अवह बीच राज शे खर कें नींद आवब गे लन्न्द्ह।
दे खैि छतथ जे एक भव्य राज महल मे िे दी लग मवहला समूहक भीड़ स्थान
कें छे कने छै क। रानी आ राजा नि पररधान मे बै सल छतथ। मुदा सभक आाँ न्ख
मे उदासी रहै क। से वकयै क ?

िखन दे खैि छतथ जे िे दीक एक काि भयािह आकृतिबला, कारी चाें गा


पवहरने , लाललाल आाँ न्ख-, कपार पर त्रसन्द्दूरक ठोप आ दे न्खिे भय उत्पन्द्न
होइक िे हन एक व्यकक्ि जानिरक छालक आसनी पर बै सल अतछ। ओ
वनश्चय कोनो कापात्रलक अथिा अघोरी छल। ओकरा आगााँ नरमुण्ड पर दीप -
जरर रहल छलै । कापात्रलकक त्रशष्य मां डली ओकर पाछॅाॅाँ कारी िस्ि
176 ||गजे न्द्र ठाकुर

पवहरने पााँ ि मे ठार छलै । कापात्रलक छोटछोट लकड़ी केँ कोनो रव्य मे -
त्रसक्िक' िे दीक बीच ठाम बनल कां ु ड मे आहुति दै ि छल आ क्षणवहक्षण
हुाँ कार करै ि छल। कापात्रलक चे हरा साँ क्रूरिा बरत्रस रहल छलै ।

िे दीक एक काि मवहला साँ घे रल एक सुन्द्दर बात्रलका बै सत्रल छलीह। हुनक


दुनू हाथ कूशक जौर साँ बान्द्हल छल आ ओवह पर लाल अरहुलक फूल राखल
छलै । बालाक बयस चौदहपन्द्रह बखटक आ िस्ि एहन पवहरने जे ना -
राजकुमारी होतथ।

ओ बात्रलका स्िे िा छलीह। हुनक समस्ि मुख मां डल साँ क्षोभ आ घृणाक
कुकत्सि भाि झहरर रहल छलवन।

कां ु ड लग जे ना कापात्रलक पूणाटहुति कयने होअय, िे ना ओ रव्य त्रसक्ि लकड़ी


क कां ु ड मे आहुति द' भयां कर गजटना केलक जकर ध्िवन प्रतिध्िवन बवन समस्ि
राजभिन मे झनझना दे लकै। ठीक ओही काल कोनो अदृकय शकक्ि साँ प्रेररि
भ' अपन हाथक जौरक रस्सी काँ िोवड़, अरहल फूल काँ भूतम पर फेंवक स्िे िा
उठलीह आ राजभिनक फूजल ससिहदरबज्जा द्वदस दौवड़ पड़लीह। भागै ि -
भगै ि स्िे िा एक खर सां छाडल बाड़ा लग अबै ि छतथ आ ओिय ठार एक
सुसांस्कृि छलाह ,युिक केर दे ह मे ले पटा जाइि छतथ। युिक बहुि भव्य
दे ल अष्ट धािुक मन्द्ि त्रसक्ि मट्ठा छवन। ओ वकयोक आ हाथ मे पुजारी के
आर नवह अवपिु गोिधटन छलाह। स्िे िा गोिधटन सां अपन रक्षा के वनिे दन
करै ि छतथ। हुनका बुझल छवन जे मट्ठा सां कपाली के कोनो िां ि हुनका पर
दुस्प्रभाि नवह करिवन आ अवह िरहे स्िे िा कपालीक सां ग वििाह सां बतच
सकैि छतथ। आ हुनकर प्राण रक्षा भ जे िवन।

राज सपना दे न्खिे रहलाह। दे खैि छतथ जे आब स्िे िा आ गोिधटन दुनू एक


द्वदस दौड़ी रहल छतथ। अनुभूति ई भे लवन जे ना प्रेम अपन उत्सगट ले ल अपन ,
त्याग ले ल जे ना दुनू बालक आ बात्रलका मे एिे क ने उजाट भरर दे ने होतथ जावह
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 177

सां दुनू हिा मे उतधया रहल छतथ। दुनू एक नदी पार करै ि छतथ। बीचवह मे
कपाली आवब जाइि छै क आ रस्सी काटी दे ि छवन। आब गोिधटन आ स्िे िा
बहै ि नदी केर िे ग मे खसै ि छतथ। आ धार मे उब डू ब करै ि पावन मे डू वब
गे लाह। स्िे िा के नदी मे डू बैि दे न्ख रानी आ राजा हा स्िे िा कहै ि कूद्वद पडै ि
छतथस्िी पुरुष। सब अपन प्राण त्यावग दे लक। िकर बाद समस्ि से ना आ ,
?ई की भे ल

ििबे मे राज कें उलपी उठबै ि छवन जे नाि ठीक भ गे ल। सपना दे न्ख अहााँ
एना वकयै क करावह रहलहु अतछ। की अहााँ क प्रेतमका नदी मे डु वब मरलीह ?
स्िे िा तचतचयाइति अहााँ िे ना ने आक्रोश ,स्िे िा ?स्िे िा अहााँ क के छतथ
वनन्द्न िोडू । नाि िबे ि ,कयलहु जे एखन िक नाि काां वप रहल अतछ। जागू
धरर अपन गां िव्य पर आवब गे ल छल। राज शे खर दत्त अपन झोरा ल आगा
बवढ़ गे लाह। ।

आब राज शे खर दत्त चननपूरा हे िु वबदा भगे ल रहै क ’चुकल छतथ। सााँ झ भ ’


आ एकपे ररया रस्िा मे झष ण्डक झष ण्ड बनै ्या सुलगर ठार आ राज द्वदस िकैि।
मे घ से लावग गे लैक। अन्द्हार सां बचबा ले ल एक पुरान घर द्वदस गे लाह। मुदा
घरक लोक आशॅ्रय नवह दे ि छवन। लाचार भे ल एकटा गाछक नीचा मे
बनल गहिर मे नुकेबा केर यत्न केलाह। िषाट होइि रहलै क। अन्द्हार मे टोचट
बारर दे खैि छतथ ि एक अजोद्ध गहुमन सााँ प वहनका द्वदस फफकर कटने –
सााँ पक फन उठल आ णजह्वा लपलपा रहल छलै क। बज्जर भे ल ई अपन समय
कटै ि रहला। मृत्यु जे ना लगे मे ठार होवनथोड़े काल मे ओिय एक बनै ्या !
’सुलगर आवब गे लैक आ वहनका पर आक्रमण कएलकवन। आक्रमण चुक भ
गे लैक। सुलगर ’गे लैक। आब सााँ प आ बनै ्या सुलगर मे मल्ल युध्ह शुरू भ
आ सााँ प केर युद्ध दे न्ख वहनका ने नपन केर सुनल एक कथा याद आवब जाईि
“ :छवनसां सार मे माि साढ़े िीन टा िीर छतथ। पवहल सााँ प, दोसर बनै या
सुलगर, िे सर भौं सा आ नुका क' बात्रल कें मारलवन िें आधा रामचन्द्र। सााँ प "
178 ||गजे न्द्र ठाकुर

लडै ि पोखरर द्वदस बढलै क। राज शे खर दत्त जान बचा ओिय -आ सुलगर लडै ि
गे लाह से पिे ने चललवन। ’सां पडे लाह। चलै ि चलै ि रस्िा मे कोना बे होस भ

जखन होश मे अएलाह ि एक युिक आ युििी हुनका लग ठार।

युिक आ युििी केर नाम चन्द्रकाां ि आ पािटिी छलवन। आब ओ आचायट


प्रभुक आश्रम मे छलाह। प्रभु वहनका जमीन पर खसल बे होश दे खलवन। प्रभु
िनोषतध उपचारक परम आदरणीय गुरु से हो छतथ। औषतध एिां मां ि त्रशक्ि
जलक तछड़काि साँ वहनक उपचार क’ प्रभु वनन्श्चन्द्ि भे लाह आ वहनक पूणट
विश्राम हे िु एिय अनबाक ले ल आदे श दे लवन। राज भरर द्वदन शयन केने
छलाह । राज शे खर चन्द्रकाां ि सां गे कुवटया साँ बाहर अबै ि छतथ । सभ वकछु
बदलल-बदलल जकााँ दे खाय पड़लवन। कुवटयाक बनाबट वकछु वितचिे रहै क।
बाहरी दे बाल तचकनी मावट साँ छछारल आ ओवह मे पशु-पक्षीक अद्भि
ष तचि
बनाओल रहै क। अति साधारण तचिकलाक अलौवककिा एिां सजीििा कोनो
सभयिा काँ मुखररि क' रहल छल। ने किहु प्रदूषण दे खल आ ने प्रकृतिक
कुवटलिा। सभ वकछु सहज, सरस, नै सर्गिक एिां पविि। सरोिर साँ स्नान
क' बाहर अएलाह । चां रकाां ि नि िस्ि पवहरक हे िु दे लतथन्द्ह आ पािटिी
उत्कृष्ट भोजनक इां िजाम केने छलीह।
आब राज शे खर दत्त अपन गां िव्य स्थान पर आवब गे ल छलाह। चां रकाां ि आ
पािटिी सां ग ओ आश्रम आवब गे लाह। आचायट केर दशटन भे लवन। मोन िृप्ि
भ’ गे लवन। आचायट हुनका कहै ि छतथन जे अहााँ क चननपूरा िक केर यािा
पूणट भे ल। कास्ल्ह प्रािः काल अही ठाम अहााँ कें गोिधटन स सशरीर भे ट होयि।
आब अहााँ सहज भ’ जाउ। आचायट सां पिा चलै ि छवन जे चननपूरा िे रह सए
बखट पूिटक चन्द्दनपुर तथकै।
राज शे खर दत्त के आचायट बिबै ि छतथन जे िे रह सए बखट पूिट तमतथला केर
एवह भाग मे कोनो राजा नवह रहै क। िीन चौथाई भाग जां गल रहै क। जां गल मे
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 179

जां गली जातिक बहुिो समुदाय केर अपन वनयम रहै क। िाां त्रिक बौध लोकवन
केना ब्राहम्णक श्रे ष्ठिा भां ग केने छलाह िकर िृिाां ि से हो सुनला राज शे खर।
शान्गन्द्ितप्रय मै तथल िां ििादी सां अशाां ि भ’ गे ल रहतथ। िावह समय मै तथल
पुरोवहि राम बल्लभ उपाध्याय केर वनिे दन पर कणाटटकक महाराज अपन
अनुज रूर प्रिाप ससिह कें तमतथला भे जैि छतथ। चननपुरा हुनक राजधानी
बनल। रूर प्रिाप ससिह कानून व्यिस्था स्थावपि केलाह। स्िे िा महाराजा केर
पुिी छलीह। स्िे िा ने ने साँ पुरोवहि जीक बालक गोिधटन सां ग खे लय लगलीह।
यौिन एला पर से हो स्िे िा केर त्रसने ह गोिधटन सां ग बनल रहलवन। गोिधटन
सब गुने सां पन्द्न छलाह। िाटहि राजा रानी वनणटय ले लवन जे दुनूक वििाह
अग्रहण शुक्ल पां चमी क भ जे िवन।
आचायट कहै ि रहलतथन्द्ह। ओहने सुखद समय मे दणक्षण भारि सां चां डचूर
नामक कपाली पुजारी भजनानां द केर मां द्वदर मे अपन खां िी गारर दे लक।
पुरोवहि रम बल्लभ उपाध्याय के ज्ञाि छलवन जे दणक्षण भारि केर कपाली
उदां ड, भयां कर आ पापाचारी होइि अतछ। अवह सन्द्देश सां ओ अवनष्ट केर
आशां का सां कापय लगलाह। चां डचूर अति दुष्ट िाममागी कापात्रलक छल।
चां डचूरक अवबिटहि पुजारी बाबा विर्श्ांभरी मािाक मां द्वदर मे चल गे लाह।
चां डचूरक िामसी पूजा अति पर पहुां तच गे लैक। ओ शि साधना करय लागल।
जां गली जातिक कुमारी कन्द्या सां ग काम आ पुनः ओकर बत्रल दे मय लागल ।
बाद मे चां डचूर कें भोग दे बा ले ल स्िे िा साँ नीक वकयोक नवह दे खेलैक। एकर
सुचना से हो पुरोवहि राम बल्लभ उपाध्याय केँ लावग गे लवन।
हुनका मां द्वदर केर पुजारी साँ ज्ञाि भे लवन जे चण्डचूर राजकुमारी स्िे िाक प्राश्प्ि
साँ पवहने िां िक चक्राचटन पूजा करि, फेर साँ भै रिी लग अपन प्रण केँ
दोहराओि। अवह काज मे ओकरा पन्द्रह द्वदन साँ कम समय नवह लगिै । ओहुना
अवगला अमािस्याक आइ साँ चौबीस द्वदन वबलम्ब छै क। मािा विशम्भरीक
आशीिाटद साँ कोनो महामुनीक सां ग ल' पुजारी मानसरोिर सां समय साँ पवहने
180 ||गजे न्द्र ठाकुर

घुतम क' आवब जे िाह।

पुजारी बाबा अपन आगााँ राखल थार साँ एकटा कबच आ एकटा मट्ठा
पुरोवहिक हाथ मे दै ि कहलवन हम अपन समस्ि िप अर्पिि क' मािा साँ मां ि
त्रसक्ि हाथी दााँ िक बनल कबच िथा योग त्रसद्ध अष्ट धािुक मट्ठा प्राप्ि केलहुाँ
अतछ। कबच आ मट्ठा ल' अहााँ चननपुरा जाउ। उतचि व्यकक्ि के कबच आ
मट्ठा पवहरा दे बवन। अवह कबच आ मट्ठा पर ित्काल चण्डचूरक िां िक कोनो
प्रभाि नवह पड़िै क। अहााँ अवबलम्ब घुतम काँ आउ। िखन हम दुनू मानसरोिर
झील हे िु शीघ्रतिशीघ्र प्रस्थान करब।
पुरोवहि राम बल्लभ उपाध्याय कबच आ मट्ठा ल' क' चननपुरा अयलाह।
वकछु काल िक ओ विचार केलवन महाराज आ महारानी, से ना आ से नापति
िथा चननपरा साम्राज्यक समस्ि प्रजाक स्ने ह राजकमारी स्िे िा मे आरोवपि
अतछ। स्िे िाक प्राण ि' गोिधटन छतथ। िाँ सभ साँ उत्तम जे कबच आ मट्ठा
गोिधटनक शरीर मे रहए।
आचायट कहै ि रहला: “शून्द्य, अति शून्द्य, महाशून्द्य एिां सिटशून्द्य जे क्रमशः
कायात्मक, िचनात्मक, मानसात्मक िथा ज्ञानात्मक सुख अतछ िकरा पार
क' हम सहजानन्द्द सुखधाम पहुाँ तच योग वनरा मे विश्राम क' रहल छलहुाँ ।
बाबा भजनानन्द्द आ पुरोवहि राम बल्लभ उपाध्यायक पीड़ा भरल विनिी
हमरा लग पहुाँ चल। योगबल साँ हम दुनूक प्राथटनाक उद्देकय एिां चण्डचूर द्वारा
चननपुरा पर आनल विपत्रत्तक ज्ञान प्राप्ि कयलहुाँ । िस्िुस्स्थति मौं बुणझ आ
विधािा साँ आदे त्रशि भ' हम दुनूक समक्ष प्रगट भे लहुाँ । फेर पुजारी आ पुरोवहि
के सां ग ल' आकाश मागट साँ सोझे चननपुराक बे गबिी नदीक कछे र मे
पहुाँ चलहुाँ । मुदा, हमरा िीनूक पहुाँ चबा साँ पूिटवह जे विनाश हे बाक रहै क से वकछु
घड़ी पवहने भ' चुकल रहै । स्िे िा आ गोिधटन सां गवह समस्ि चननपुरा
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 181

साम्राज्यक प्राणी कालग्रस्ि भ' चुकल रहतथ। जे भे लै से बड़ दुखद भे लै।“


(96)

ठीक पन्द्रहम द्वदन जे ठ मासक अष्टमीक सकाले चण्डचूर चननपुरा पहुाँ तच गे ल।


खूखार आ भयानक आकृति बला चण्डचूर अपन सभटा त्रशष्यक सां गे
चननपुरा राजभिनक मुख्य दरबज्जा पर आवब ठार भे ल । कापात्रलकक
आगमनक सूचना से नापति शूर से न गणपति के भे टलवन। महलक रक्षाथट
से नापति व्यूह रचना क' चण्डचूर एिां ओकर त्रशष्य मां डली के घे रर ले लवन।
िीर-कमान, भाला, िलिार साँ लै स से ना आक्रमणक ले ल िै यार भ' गे ल।
सूचना पावब महाराजा एिां महारानी से हो ओिए अयलीह।
पशुबत्रल आ नरबत्रल दे वनहार िामाचार िाां त्रिक क दे न्ख महाराजा आ महारानी
आिां वकि भ' गे ली। चण्डचूरक एक हाथ मे लोहाक चूट्टा आ दोसर हाथ मे
मद्वदरा साँ भरल नरमुांड छलै । ओ महाराजा आ महारानी केँ दे खिटहि भयां कर
अट्टाहास केलक। सम्पूणट राजमहल कााँ वप उठल। चण्डचूर नरमुांड साँ एक घाें ट
मद्वदराक कुरुर क' गजटना केलक-ने हम मां ि जानी आ ने िां ि। हम छी रमणी
साँ रमण कर'बला व्यत्रभचारी कापात्रलक चण्डचूर। अय! रुर प्रिाप ससिह दे ब!
सुन', हम िोहर पुिी राजकुमारी स्िे िा सां ग वििाह कर' एलहुाँ अतछ। शीघ्र
वििाहक िै यारी कर। नवह ि' सम्पूणट चननपुरा के जरा क' भस्म क' दे बौक।
एकोटा प्राणी के णजबै ि नवह छोड़बौ आ स्िे िा के अपहरण क' ल जे बौक।
हम शपथ ल' चुकल छी। भै रिी के स्िे िाक रुतधर साँ िृप्ि करक हमर प्रतिज्ञा
के सां सार मे वकयो ने िोवड़ सकैि अतछ।
चण्डचूरक अति ककटश प्रलाप सुवन महाराज आ महारानी वकछु पल ले ल
जड़िि भ' गे ला। िावह समय मे कापात्रलकक अत्याचार साँ सम्पू णट भारि
करावह रहल छल। साधारण गृहस्थक कोन कथा, द्वदन-दहाड़े , सभहक समक्ष
182 ||गजे न्द्र ठाकुर

राजाक पुिी के केश पकवड़ तघत्रसया क' कापात्रलक ल' जाइक आ ककरो
साहस नवह होइक जे ओकरा रोवक सवकिए। मुदा स्िे िा ि' महाराज आ
महारानी | कले जाक टु कड़ा छलतथन। िाह पर साँ चण्डचूर स्िे िाक ले ल
अपशब्द बाजल छल। महाराजक राजपूिी शोणणि मे उफान उठलवन। ओ
गरजै ि से नापति के आदे श दे लवन-गणपति, अवह बदमास िाां त्रिक पर हमला
करू। एकोटा जीवब क' िापस नवह जाए।

महाराज आ से नापति, दुनूक हाथ मे िलिार चमवक उठल। समूह मे से ना


चण्डचूर आ ओकर त्रशष्य मां डलीक नाश करबाक ले ल आगााँ बढ़ल । मुदा
चण्डचूर ि' सभ िरहक िै यारी क' क' आयल छल। ओ मां िोचार करै ि अपन
गरदवन साँ मनुक्खक हड्डीक माला वनकाललक आ माया पसारर सम्मोहन एिां
स्ििन, दुनू िरहक त्रसत्रद्ध के एकवह समय मे प्रयोग केलक। िाही क्षण
चण्डचूरक त्रसत्रद्ध अपन करिब दे खौलक। महाराज, महारानी, से नापति आ
िमाम से ना सम्मोवहि होइि अपन अवकल आ वििे क साँ अलग भ' गे ला।
भ्रतमि भे ल ओिुका जन समुदाय पोसुआ कुकुर जकााँ चण्डचूरक आगााँ नाां गरर
डोलाब' लागल।
चण्डचूर अपन त्रशष्य सां गे राजभिनक भीिरी प्राां गण मे प्रिे श केलक। ित्काल
ओकर चे ला सभ तमत्रलक' वििाह बे दी आ होम करबा ले ल कां ु ड िै यार क'
ले लक। कुशक जउर मे हाथ बान्न्द्ह क' स्िे िा के वििाह मां डप मे आनल गे ल।
स्िे िाक सभटा सखी, राज्यक कमटचारी आ महाराज-महारानी भ्रतमि भे ल
वििाह मां डप मे पहुाँ तच मूक दशटक बनल रहल। चण्डचूर कोयला सन कारी
चाें गा पवहरने छल।
ओकर आाँ न्ख करजनी जकााँ लाल-लाल भ' गे ल रहै क। ओ एक बे र स्िे िा
द्वदस िाकए ओ फेर नरमुांड साँ मद्वदरा पान करए। वििाह मां डप साँ थोड़बे हटल
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 183

से नापति शूर से न गणपति अचे ि अिस्था मे जमीन पर बै सल रहतथ। सभटा


दृकय अजीबे आ डे राओन रहै क। जे ना बुणझ पडै ि छलै जे स्ियां समय
चण्डचूरक बां दी बनल करावह रहल होअय।
एकाएक आश्चयटबला बाि भे लै। जे ना स्ियां भगििी आवब स्िे िा मे कोनो
शकक्ि भरर दे लतथन िवहना ओ चण्डचूरक माया केँ िोवड़ हाथ मे बान्द्हल
जउरक रस्सी केँ खोत्रल राजभिनक ससिहदरबज्जा द्वदस दौवड़ पड़लीह।
स्िे िाक पयर मे वबहारर पै त्रस गे ल छल। ओ ससिहदरबज्जा साँ बाहर भ' दौवड़
रहल छलीह। हुनक पाछााँ चूट्टा भां जैि चण्डचूर, ओकर त्रशष्य, महाराज,
महारानी आ बड़ी टा जन समूह दौवड़ रहल छल। चरै ि पशु, बै ल, गाय सब
बायां बायां कर लागल।
राजभिनक अवह हलचल साँ पूणटिः अनत्रभज्ञ गोिधटन गौशालाक एक काि
ठार हल्ला सुवन आश्चयट साँ एम्हरे िावक रहल छलाह। स्िे िा सोझे जा क'
गोिधटनक दे ह मे ले पटा गे लीह आ तचतचयाति बजलीह-हमरा बचाउ हे हमर
प्राणनाथ। हमर वपिा राजा होइिहुाँ कापात्रलकक भय साँ आन्द्हर भे ल छतथ।
ओ कापात्रलक सां ग हमर वबआह करा रहल छतथ। अहााँ के हम अपन स्िामी
मानने छी। अहााँ क दे ह मे पुजारी बाबाक दे ल कबच आ मट्ठा अतछ। दुष्ट
कापात्रलकक कोनो टा िश अहााँ पर नवह चलिै क। हे हमर स्िामी, अवह स्थान
साँ हमरा दूर ल' चलू।
स्िे िाक सां गवह सभ वकयो डु वब मरला। सभ के मोह ग्रत्रसि कयने छलवन। िाँ
विधािाक बनाओल वनयमक अनुसारे वनदाे ष रवहिहुाँ सभ के प्रेि योवन
भे टलवन। माि गोिधटन प्रेि बन' साँ बााँ तच गे लाह,कारण ओ अनासक्ि एिां
अनुराग हीन प्राणी छलाह। वित्रभन्द्न िरहक जीि-जन्द्िुक योवन मे णजबै ि-मरै ि
िे रह सय बखटक बाद गोिधटन पुनः मनुक्ख योवन मे जन्द्म ले लवन अतछ।
अां िि रहस्योद्घाटन ई होइि छै क जे राज शे खर दत्त गोिधटन छलाह। हुनके
184 ||गजे न्द्र ठाकुर

स्िीकृति केर इन्द्िजार मे हजाराें जीिात्मा प्रेिात्मा बनल प्रिीक्षारि छतथ।


आइये जे ठ शुक्ल अष्टमी तितथ छै क। राज शे खर वििाह करबा ले ल िै यार भ
जाइि छतथ। स्िे िाक गोिधटनक प्रति एकाां गी प्रेमक जीि भे लै। आचायट लग
एकर खबरर भे लवन। शून्द्य भे ल चननपुरा लोक सां भरर गे लैक। ढ़ोल वपपही
बाजे लगलै क। गीि नाद शुरू भे लैक।
राज शे खर कें लज्ज्ििी साँ जानकारी भे टैि छवन जे जखन ओ चननपुरा हे िु
यािा शुरू केने छलाह िखन जे हुनका पर हमला भे ल छलवन से हमलािर
बज्रे षर छल। ओ प्रेि बवन अहााँ पर आक्रमण केने छल। शे खर केर रक्षा
करयबला छलाह रूर प्रिाप ससिह केर से नापति शुर से न गणपति। गहिर मे
जखन राज शे खर फांसल छलाह िावह क्षण शुर से न गणपति सााँ प बवन वहनक
रक्षा केने छलतथन। सुलगर बनल छलाह ब्रजे र्श्र। िर केँ ल’ जे बाक ले ल
कन्द्हाइ मां डल अपन टायरगाड़ी आ माधि आ तिलकेसर बरद सां ग विराजमान
छलाह। सासुर मे खबासी केर काज पां जा के भे टल रहै क। बारािी जखन राज
दरबार पहुचै ि छै क िावह काल उलपी हुनकर वबधकरी बनल छलतथन।
अिे क न्खस्सा कहै ि कहै ि पां वडि काका अथाटि राज शे खर दत्त ठार भ’ जाइि
छतथ। िीर बाबू आ पां कज, न्खस्सा सुने मे व्यस्ि छतथ। थोड़े काल मे पां वडि
काका दुनू के कहलतथन्द्ह जे विनय शायाद आयल छतथ, दे खू। ओ सब दे खे
गे लाह। विनय ठीके आयल छलाह। जखन भीिर अयलाह ि पां वडि काका
नदारि। ई दुनू भाई विनय कें सब बाि कहलतथन। विनय आश्चयट मे अबै ि
उत्तर दे लतथन्द्ह जे पां वडि काका केर अपन वकयोक नवह छलवन। ओ कवहये ने
मरर गे लाह। हुनका शरीर के मुखाश्लन हमही दे ने रहीयवन। आब िीनू विस्मय
मे छलाह।
ई छल उपन्द्यास केर मूल कथाक साराां श। आब अवह पर थोड़े चचट करी।
ई उपन्द्यास बहुि प्रसां ग सां ग बढ़ै ि छै क। अवह मे दशटन , धमट, पाप पुण्य,
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 185

पुनजटन्द्म, प्रेि योवन, इतिहास, पुराित्ि, साौं दयट सब वकछु केर सुांदर समािे श
छै क। सबसाँ पै घ बाि समय केर बहुि खां डक अनुपम तचिण भे टि। दरभां गा
साँ चलै ि सीिामढ़ी, आ चननपुरा िक केर बाट केर १९८० दशक केर जे
सड़क, यािायाि, बावढ़, सड़क केर स्स्थति लोकक मानत्रसकिा, समाज आ
सां स्कृति केर खाां का दे ख सकैि छी। ओवह समय मुजफ्फरपुर, दरभां गा,
सीिामढ़ी िक रघुनाथ झा केर बस केर चला चलिी रहै क। कोना बस मे
दादावगरी होईक, कोना कांडक्टर बिाटि करै क सब बाि सहजिा साँ त्रलखल
छै क। शै ली सहज आ कथािस्िु सां ग िाल मे िाल तमले ने चलै ि छै क। बावढ़
केँ समय बावढ़ ग्रस्ि क्षे ि मे लोक कोना चलै ि छल िकर वििरण पाठक कें
मुलध करै ि छै क।
कथा िस्िु यद्यवप बहुि रहस्यमय छै क, िथावप प्रमाणणक बने बा ले ल बहुि
प्रमाण केर आनल गे ल छै क। एवह पोथी ले खन साँ पूिट सावहत्यकार गहन शोध
केने छतथ, धमट, िां ि, आद्वद केँ बुझने छतथ, से स्पष्ट छै क। ई पोथी अपना
आपमे एक दृष्टाां ि बनै ि छै क जे सावहत्य केिल मोनक उद्वेग, आिे ग अथिा
स्फूरन नवह, अवपिु गां भीर अध्ययन आ आिोलकन साँ रतचि सां दभट ग्रांथ से हो
होई छै क।

मै तथलाां चल मे कोना अराजकिा िां ियाणी सां ग अबै ि छै क, कोना बाम मागट
िै द्वदक मागट पर प्रहार करै ि छै क, कोना िां ि त्रसत्रद्ध केर नाम पर नारी दोहन
होईि छै क िकर बहुि सूक्ष्म आ िकटसां गि प्रमाण लोक दे खैि अतछ। उपन्द्यास
अने क काल खां ड केर सां ग-सां ग अने क भोगोत्रलक पररिे श पर चलै ि छै क।
दररभां गा साँ कथा केर आधार बनै ि छै क फेर कथा कहब वहल स्टे शन नै नीिाल
सां शुरू होइि छै क। कथाक पाि पुनः समस्िीपुर रे लिे स्टे शन लग भे टैि छै क
आ कथाक नातयका स्िे िा अपन प्राण बचे बा ले ल उपन्द्यास केर नायक राज
शे खर दत्त सां वनिे दन करै ि छै क। फेर सीिामढ़ी केर क्षे ि, आ अां ििः अने क
186 ||गजे न्द्र ठाकुर

स्थान होइि, अने क पररस्स्थति सां ग चननपुरा लग कथाक अां ि होइि छै क।


उपन्द्यास मे सब स्थानक बहुि नीक िणटन उपस्स्थि होइि छै क। अगर पाठक
ओवह स्थान मे गे ल छतथ िाँ सब छवि हुनकर मस्स्िष्क मे घुमरय लगै ि छवन।
उदाहरण ले ल नै नीिालक िणटन दे खल जाओ:
“पहाड़ मध्य विशाल घाटी, घाटी मे दूरपगडन्द्डी दूर िक-, उज्जरकारी मे घ -
साँ छाड़ल आकाश, शीि साँ बोणझल भे ल पिनक तप्रयगर झाें का, जामुन-
जमुनीक गाछ साँ घरे ल आ जमुवनआाँ रां ग साँ लबालब भरल झील, चारूकाि
दे िदारक घनघोर जां गल, जां गली फूल साँ पाटल धरिी, झष ण्डकझष ण्ड पहबा -
नामक तचडै क विचरण, सभ वकछ के दे खैि।” (10)
अिबे नवह स्थान विशे ष केर प्रकृति आ िािािरण सां ग नातयका केर िणटन
किे क सवटक आ प्रेम स भरल छै क:
“ककरो नजरर हमर बामा कपाल मे सुल्फा भाें वक रहल छै िे हन सन अनुभि
भे ल। बामा काि घुतम गे लहुाँ । सटले एकटा दोसर कॉटे ज रहै । ओकर आगााँ
थोड़े क समिल भूतम छलै जावह मे फुलायल फूल साँ लदल अने काें छोट-पै घ
गाछक पतियानी रहै । ओही फूलक गाछक मध्य एकटा युििी ठार छलीह।
ओस साँ भीजल हररयर-हररयर दुत्रभ पर ठार युििीक सिां ग शरीर उज्जर
िस्ि साँ झााँ पल छलवन। लाल-लाल फुदनाबला ओढ़नी युििीक गरदवन पर
झष त्रल रहल छलै । युििीक चे हरा गोल, आाँ न्खक ऊपर भाौं सीटल, माथक केश
जूड़ा मे ले पटाओल, दुनू कान मे झष लैि झष मका आ सूयटक लात्रलमा साँ रां गल
गाल आ ठोर अत्यतधक आकर्षिि क' रहल छल। युििी परम सुन्द्दरी छलीह
आ अपलक हमरा द्वदस दे न्ख रहल छलीह। हुनक िकबाक अन्द्दाज मे गजब
के उत्ते जना भरल छलवन। हमर शरीर झनझना उठल। मस्स्िष्क िन्द्िु मे पीपही
बाज' लागल। हमरा नारीक सौन्द्दयट मे एखन िक रुतच नवह भे ल छल।
अवििावहि रही आ कवहओ सुन्द्दर युििीक कल्पना िक नवह कयने रही। मुदा
जवनका हम दे न्ख रहल छलहुाँ ओवह मे हमर णजज्ञासा, हमर कौिुहल के एना
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 187

ने जगा दे ने छल जे हम अचै न भ' गे लहुाँ । करे जक धड़कन कान मे पहुाँ तच


गे ल।“ (10)
युििी साँ भे ट होइिे दे री प्रसां ग मे िां ि, वितचि भाि, रहस्य आद्वद प्रारम्भ भ’
जाइि छै क। प्रेम यद्यवप अपन डोर धे ने रहै ि छै क। िां िक विकट आ विकराल
प्रिृतिक वििरण आ रहस्य स्िे िाक तचट्ठी केर प्रथम वकछु लाइन मे स्पष्ट भ’
जाइि छै क:
मदति चाही िाँ पि त्रलखलहुाँ अ“तछ। आगूबूढ़ सन जे मनुक्ख गे ल आगू-
अतछ ओ कापात्रलक तथक। कापात्रलको मे ई अघोर पां थीक िामसी पूजा
केवनहार िाां त्रिक अतछ आ एकरा अने काें त्रसत्रद्ध प्राप्ि छै । स्िभाि, प्रिृत्रत्त आ
आचरण साँ ई धूिट, दुष्ट आ मक्कार अतछ। हम पूणटिः एकर कैदी छी। अवगला
अमािस्याक बाद िां ि मागटक वितधसाँ ई हमरा पत्नी बनाओि आ विधान-
भोग करि। िकर वकछु मवहना बाद ई हमर भै रिीक आगााँ बत्रल द' दे ि।
अने काें सुन्द्दरर कन्द्याक बत्रल एकरा हाथे पवड़ चुकल छै क। जकरा ई डाकनी,
योवगनी, प्रेिनी बना क' अश्लील आ िीभत्स िां िक होमजाप क-' अपन
अभीष्ट पूरा करै ि अतछ। (13) “

जे ना मे घदूिक यक्ष मे घक किरा कें अपन यक्षतप्रया लग जे बा ले ल सब बाि


विस्िार साँ बिबै ि छै क िवहना अवह तचट्ठी मे स्िे िा राज शे खर दत्त केँ बिबै ि
छतथ:

सखा एिां प्रेमी गोिधटन रहै ि अतछ। गोिधटन -हमर गाम चननपुरा मे हमर बाल“
साहसी, बलबान आ हमर प्रेम मे मााँ िल अतछ। पुजारी बाबा साँ प्राप्ि मां ि-
त्रसक्ि अष्ट धािुक त्रसत्रद्ध बला मट्ठा ओकर हाथ मे छै क। विशम्भरी मािाक
मां िायल हाथी दााँ ि बला कबच ओकर गरदवन मे झष लै छै क। िाँ गोिधटन अवह
कापात्रलकक िां ि प्रहार साँ परे अतछ। अहााँ गोिधटन के हमर सोचनीए स्स्थतिक
सूचना दे बै । ओ हमर सहायिा कर' ले ल शीघ्र िै यार भ' जायि।(13) “
188 ||गजे न्द्र ठाकुर

स्िे िा राज कें इहो युकक्ि बिा रहल छतथन्द्ह जावह साँ ओ गोिधटन कें तचन्द्ह
जातथ:
“गामक पूब मे सघन आम्र कां ु ज आ िकर सटल बड़ी टा परिी मै दान भे टि।
हजारो गाय आ िकर बाछा एिां बाछी केँ चरै ि दे खबै क। अही स्थान पर अहााँ
क भे टिाह गोिधटन। गौर िणट, ऊाँच कद, आौं द्वठया कारी-कारी केश, चे हरा पर
दे ििाक सुन्द्दरिा, दावहना हाथक पहुाँ चा लग लहसुवनयााँ क दाग आ सभ साँ
पै घ चे न्द्ह जे हमर वियोग मे िरासल पाषाण मूर्िि बनल उदास कोनो गाछक
ठारर पर बै सल। सै ह भे लाह हमर गोिधटन।“(13-14)
जखन नायक अथाटि राज शे खर दत्त यािा शुरू करै ि छतथ आ बल्ज्जका क्षे ि
मे अबै ि छतथ ि स्थानीय पाि मै तथली केर उपभाषा बल्ज्जका मे बाजब शुरू
करै ि अतछ:
“की कहली धमटकाां टा जाइबला बसक खोज मे बौआ रहली हएाँ । दे न्खऔ,
बसक किार मे लोहाक ढोल जकिी मुांहकान बला बस-, हाँ , हाँ , उहे जायि।
कब खुलि? वकिना टे म भे ल हे एाँ? ठीक एक घां टाक बाद साि बजे खुलि।
की पुछली, धमटकाां टा कब पहुाँ चि? सीरीमान, रौआ इहााँ फैल क’ गे ली।
खुलक टे म बिा सकै छी, पहुाँ चि कब िकर इनक्िायरी महािीर मां द्वदर मे होि।
पिनसुि त्रिकालदशी छथ, हुनका सभ जानकारी हवन। हम ि' मनुक्ख
हिी।“ (16)
उपरोक्ि कथन भाषा िै विध्य केर सम्मान करै ि अतछ सां गवह कोना वबहार मे
ओवह समय लोक जीबै ि छल। कोना सुविधा केर नाम पर ठकल जा रहल
छल, िकर णजिां ि प्रमाण।
स्मरण राखी जे ई उपन्द्यास ित्तटमान के लै ि भूिक यािा करबै ि छै क। ििटमान
समय केर सब बाि रखै ि चलै ि छै क। बस मे एक पति-पत्नी आपस मे िाक्
युद्ध मे लागल छतथ। हुनक िािाटलाप सुनला पर लोअर क्लास केर लोकक
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 189

जीिन केर की समस्या छै क िकर साक्ष्य भे टि:


“पत्नी-अहााँ किे क वनष्ठुर छी यौ। हम रां ज भ' क' नै हर चत्रल गे त्रल रही। अहााँ
िीन मास धरर कोनो खोज-खबरर नै कैलहुाँ । दुःख आ तचन्द्िाक पहाड़ िर हम
समय कोना क’ वबिे लहुाँ से हमही जनै ि छी।
पति-रां ज कर' ले ल के कहलक?
पत्नी- सुवनयौन वहनकर गप्प। रां ज करब िा नै करब अपना बस मे छै ? ओहुना
रां ज करब, रूसब-फूलब ि' त्रसने हक नाकक बुट्टा तथकै। पति-पत्नीक मधुर
सम्बन्द्ध बनल रहै , ओकर निीकरण होइि रहै , िाँ ने भगिान एकर इन्द्िजाम
कयने छतथन्द्ह। िकर ई अथट थोड़बे भे लै जे कठोर बवन पत्नी के वबसररए जाइ।
कने काल चुप रवह पति जिाब दे लवन-पतछला िीन मास मे की-की भे लै, हम
कोन-कोन नगरक यािा केलहुाँ , सभटा सुनबै िखन भााँ ज लागि जे हम ने
वनष्ठुर छी आने कठोर। माि भविष्यक प्रति जागरूक छी, णजम्मे दार छी।
पत्नी– फररछा क' कहबै िखन ने हम बाि बुझबै ।
पति- ि' सुनू। अहााँ क नै हर गे लाक दू द्वदन बादक गप्प तछयै । दलान पर
चुपचाप बै सल रही। दुलार कका सोर पाड़लवन। एकाां ि मे ल' जा क'
कहलवनवबआह केल' नीक केल'। आब अवगला णजनगी पर ध्यान दहक।
खे िी-बाड़ीक उपजा केहन होइि छै से ि' बुझले छह। भै या िोहर वबआह करा
दे लथुन, वनन्श्चन्द्ि भे लाह। वफवकर िोरा करै क छह । नवह ि' धरा जे बह आ
दुगटति मे पवड जे बह। पत्नीक खचट, कास्ल्ह तधया-पूिा हे िह िकर खचट कि'
साँ अनबहक? बाप साँ मां गबहुन ि' ओ कपार ढावह दे थुन्द्ह। िाँ हमर विचार जे
कोनो नौकरी-चाकरी िाकह। दुलार कका जे कहलवन से हमर आाँ न्ख खोत्रल
दे लवन। िै ह एकटा तचट्ठी दे लवन। हुनक वपतिऔि सारक दौवहि बम भोला
बाबू गुजराि राज्यक सूरि शहर मे कायटरि छतथ। मुजफ्फरपुर मे रे न धे लहुाँ
आ िे सर द्वदन सूरि शहर पहुाँ चलहुाँ । बम भोला बाबू बड़ आदर-सत्कार साँ
190 ||गजे न्द्र ठाकुर

रखलवन। दौड़-बरहा क' दरबानक जगह पर नौकरी रखा दे लवन। िाबि अखन
सुक्खा अठारह सय मात्रसक भे टि। अवगला एक िारीख साँ नौकरी शुरू है ि।
िाँ सूरि साँ घुतम काँ आवब अहााँ क वबदागरी करा क' गाम ल' जा रहल छी।“
(17)
घे तघया केर रस्िा मे जे बहलमान कन्द्हाइ मां डल भे टैि छवन से िीसरी कसम
केर वहरामन जकााँ लगै ि छै क मुदा जिे वहरामन वनकछल छै क कन्द्हाइ मां डल
ज्ञान, दशटन, धमट आद्वदक गूढ़ बुझबा मे प्रिीण। ओ अपन उपस्स्थति माि सां
मोनक सब दुवबधा समाप्ि करबाक क्षमिा रखै ि छतथ। कन्द्हाइ मां डल
अध्यात्म अन्द्िेषणक िीन गोट मागट, यथा प्रत्यक्ष, अनुमान एिां धामट ग्रन्द्थ सां
सूचना ले बाक सां दर्भिि ज्ञान दे माक साम्यट रखै ि छतथ। फेर ओकर तछलका
ओदारै ि ओकर अथट स्पष्ट करै ि छतथ। हुनक िाणी सां यि आ भाि गां भीर
छवन।
उपन्द्यासकार कन्द्हाइ मां डल केर मादे बिबै ि छतथ जे ज्ञान वबना शास्ि पुराण
पढ़ने वनत्य साधना सां से हो प्राप्ि कएल जा सकैि अतछ। िावह हुनका भुि,
भविष्य आ ििटमान केर ज्ञान छवन। तमतथला के लोक मे शास्ि बसल रहै ि
अतछ। एकर प्रमाण तथकाह कन्द्हाइ। ओ िे द, उपवनषद, पुराण, साां ख्य दशटन,
न्द्याय दशटन, मीमाां सा, शां कर अद्वैि, रामानुजक द्वैि आ रामकृष्णक वित्रशष्टाद्वैि
सब बुझैि छतथ आ अपन मां िव्य दे ि छतथ। कन्द्हाइ मां डल मोनक अतिररक्ि
शरीर मे बारह गोट इन्न्द्रय केर बाि करै ि छतथ आ चाहै ि छतथ जे मोन के सब
इन्न्द्रय पर वनयां िण राखए। कन्द्हाई कृष्णक युकक्ि, भिृहरर दशटन बिा सकैि
छतथ।
रूपक सौन्द्दयट आ विकृति केर िणटन से हो जे ना पाठक के अपना द्वदस न्खचै ि
हो। स्िे िाक स्िरुपक लघु िणटन दे खने छी, आब कवन पां जा के स्िरुप दे खी:
“ऊाँचाइ िीन, सिा िीन फीट। ठोकल आ ठसगर कद-काठी। बवहक्रम द' की
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 191

कहल जाय वकछु भ' सकैि छल। िीसी िे ल मे छानल पापड़ जकााँ घाें कचल
आ चड़कल हुनक दे हक चमड़ा, कौआ जकााँ दुनू आाँ न्ख दू द्वदस िकैि, उठल
नाक, ठाम-ठाम पर उड़ल आ भुल्ल भे ल माें छ, थथुनक नीचा तछवड़आयल
आ टे ढ़ भे ल दााँ ि, पीयर ढाबुस भे ल चे हरा आ कपार पर िे ल पोचकारल
जुल्फी। आब ककरा कहबै कुरूप? मुदा णजराफ छाप गां जी पवहरने पां जाक
बाजब मे गजब के माधुयट, विनम्रिा ककरो अपना िश मे करक ले ल पयाटप्ि
छलै ।“ (47)
नाि स जयबाक काल उलपी मलावहनक यौिन दे न्ख राज शे खर केर पुरुष
मोन जाग्रि भ जाइि छवन। एकर मनोिै ज्ञावनक िाक्य दे खल जाओ "उद्दांडिा
पुरुषक स्िाभाविक गुण तथकै। अिसर पावब ई गुण वनलटज् ज बनबा मे सां कोच
नवह करै ि अतछ । ओहुना भुखायल लोकक आगू लड्डूक थार रान्ख दे ला स जे
ने होअय।" (56)
उलपी केर दे हक िणटन करै ि काल सावहत्यकार हुनका मत्सगां धा बना दे ि
छतथ:

“तधपाओल सोनाक सूखट रां गबला हुनक काां ति, तछवड़आयल पै घ-पै घ केशक
लट, कान मे झष मैि चानीक झष मका, नाक मे सटल नतथया, मींचल ठोर,
पसीना मे भीजल लाल-लाल गाल, लहां गा आ ब्लाउज मे अपत्रसयााँ ि हुनक
यौिन। युििी गजब काँ सुन्द्नरर छलीह। ललगा साँ नािक सां िुलन सम्हारक ले ल
एक पयर मौं नािक माां ग पर टे कने छलीह। पयर अलिा साँ रां गल छलवन। पयर
मे पायल, पायल मे वबतछया आ वबतछया मे खनक सोझे हमर मति के
भत्रसयाब'क ले ल बहुि छल।“ (56)
उपली केर सौदयट कोना राज शे खर कें मादक बना रहल छवन िकर एक बानगी
आरो प्रस्िुि अतछ:
192 ||गजे न्द्र ठाकुर

“हुनक काजर साँ पोिल आाँ न्ख मे हमर आाँ न्ख ठक्कर मारलक आ िाही क्षण
हमर सत्यानाश भ' गे ल। जवहना मां डलजीक सम्पकट मे अवबिे हमर तचि मे
अध्यात्म प्रिे श क' गे ल छल, िवहना युििीक चुम्बवकए पररतध मे अवबिे हमर
मोन चटपट-चटपट कर' लागल। वबना हमर अनुमतिक हमर मोन चहक से हो
लागल। बहुि पवहने रफीक गाओल एकटा वहन्द्दी गीि मोन पवड़ गे ल –'ये
रे शमी जुल्फें, ये शरबिी आाँ खें'। शरबिीक अथट अपन भाषा मे की होइि छै
से िखने बुझा गे ल छल।“ (56)
कोना िां ियानी बौध सब तमतथला मे उत्पाि मचे ने छल हएि (?) िकर रोचक
वििरण एवह पोथी मे भे टैि अतछ। कारी िस्ि, लाल-लाल आाँ न्ख, कपार पर
ससिदूरक ठोप, नर मुांड पर दीप जरबै ि, अघोरी अथिा कापात्रलक स्िरुप,
क्रूरिा दे खबै ि, हुनकर भरै ि वकछु तचिण अवह पोथी कें विशे ष बनबै ि अतछ
आ ले खक कें गुणी। पोथी मे नाटकीयिा, आ मनोिै ज्ञावनक बाि सब सहजिा
सां कहल जा रहल छै क। स्िप्न क्य के मनोरां जक आ भयािह बने बाक साधन
बनै ि रहै ि छै क। बनै ्या सुलगर आ सााँ पक मल्ल युद्ध से हो विपरीि समय मे
रोमाां च उत्पन्द्न करै ि छै क। पाठक त्रसहरर उठै ि अतछ। स्िे िा आ गोिधटन द्वारा
नदी रस्सी के सहारे पार करब आ अां ि समय मे कापात्रलक द्वारा काटब, फेर
स्िे िा सां ग सां ग गोिधटन केर नदी केर बहै ि अगम जल मे वबला गे नाइ, रानी
आ राजा सां ग समस्ि प्रजा के हाहाकार करै ि नदी मे कुदनाइ आ सामूवहक
आत्महत्या अतिसय कारुणणक छै क।
हमरा लगै ि अतछ, शायद ले खक ई दृकय सब पाठक केर मोन पोथी मे लागल
रहवन िकरा ध्यान मे रखै ि करै ि छतथ। कारण अति धमट, िां ि, दशटन आद्वद
क्य कें बोणझल बना सकैि छलै क। चां द्चुरक व्यकक्ित्ि एक अलग द्वदशा मे
भे ल छै क जे शोधक विषय भ सकैि अतछ मुदा सावहत्य केर कल्पना मे वकछु
त्रलखल जा सकैि छै क। यािाक विस्िार महाराष्र सां होइि खां डिा आ दणक्षण
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 193

मे अथाटि आां ध्रप्रदे श केर श्री शै लम िक पसरल छै क। सब जगहक अलग


सां स्कार दे खार भ रहल छै क। योग, कुण्डलनी वकछु नवह छु टल छै क। ने पाल,
त्रसकक्कम िक केर चचाट छै क। सही अथट मे ई उपन्द्यास हमरा वहसाबे अन्खल
भारिीय स्िरुप ग्रहण करै ि अतछ।
अवह उपन्द्यास केँ रसे -रसे पढ़ब ि’ ई अहााँ कें अथाटि पाठक कें अपन
मायाजाल मे बां धने रहि।
विनय सां इहो ज्ञाि होइि छै क जे पां वडि काका विनय के अपन पोतथक
पाण्डु त्रलवप दे ने छलतथन। छापे बा ले ल। जखन हुनकर पाण्डु त्रलवप वनकलल
गे ल ि ई कथा हु-ब-हु त्रलखल रहै क।
इहो नवह कवह सकैि छी जे सब वकछु सिाे त्तम छै क। किौ-किौ कुनो प्रसां ग
अ्शयाकिा सां अतधक बोणझल आ अने ड़े ठु सल सन से हो लगै ि छै क। मुदा
सम्पूणटिा मे इ पोथी मै तथली सावहत्य ले ल अमूल् वनतध तथक। एहन पोथी कें
अने क भाषा –कम सां कम टहिदी आ अां ग्रेजी मे अनुद्वदि होबाक चाही।

अपन मां तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


194 ||गजे न्द्र ठाकुर

विदे ि: ३५३ म अां क ०१ लसतम्बर २०२२ (िषम १५ मास १७७ अां क ३५३)|
अां क ३५२ पर वटप्पिी

विद्यानन्द्द झा

केदारनाथ चौधरी जी पर जे वकछु कहल गे ल, सररपहुाँ सत्य, आइ धरर


सम्मान, सहयोगक मामलामे ग्रुपबाजी एिे क होइि अतछ जे उतचि कथाकार
अिहे लनाक त्रशकार भऽ जाइि छतथ। बहुि बे र एहन दे खऽ ले ल भे टाइए जे
सावहत्य अकादमीक सम्मानमे एहन वनम्न स्िरीय रचना केँ चुनल जाइि अतछ
जे पवढ़ कऽ आाँ न्ख नोरे -नोर भऽ जाइि अतछ। सादर नमन केदार बाबूक
ले खनी, व्यकक्ित्ि आ कृतित्िकेँ।

प्रिि झा

विदे ह समय-समयपर मै तथलीक ले खक सभक सावहश्त्यक जीिनपर


विशे षाां क वनकालै ि रहै ि अतछ जइसाँ नै खाली भाषा-सावहत्यमे वित्रभन्द्न
ले खक सभकक योगदानकेँ स्थावपि करबामे ई भूतमका वनभा रहल अतछ
अवपिु नििुररया कम जानकारी बला पाठक सभमे ऐ सभ सावहत्यकार एिां
हुनकर कृतिक पररचय प्रस्िुि कऽ ओइमे रुतच जगाबक काज से हो कऽ रहल
अतछ। एवह क्रम्मे ई केदारनाथ चौधरी विशे षाां क से हो छल। ऐ साँ पवहने हो
किे को रचनाकारक पररचय हमरा सन पाठककेँ विदे हक माध्यमसाँ प्राप्ि भे ल
अतछ।

यद्यवप पुिारर गााँ ि (ने हरा) क चौधरी खानदानसाँ हमर सां पकट रहल अतछ मुदा
एखन धरर हम श्री केदारनाथ चौधरीक सावहश्त्यक जीिन साँ पररतचि नै
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 195

छलहुाँ । विदे हक माध्यमसाँ हुनक पररचयक सां गे वकछु िृत्ताां ि आ हुनक रचना
पढ़बाक से हो अिसर भे टल।
"अबारा नवहिन" पवढ़ कऽ आजादीक ित्काल बादक अने को सामाणजक आ
राजनै तिक पररस्स्थतिक भान होइि छै क। ईहो जे तमतथला राज्यक माां ग किे क
पुराण छै क। पूिटमे एकर की कारण आ भूतमका सब रहलै अतछ।

विदे ह टीमकेँ श्री केदारनाथ चौधरी विशे षाां क ले ल बधाइ।

अपन मां िव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।

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