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VIDEHA_KEDARNATH_CHAUDHARY_SPECIAL-161-218
VIDEHA_KEDARNATH_CHAUDHARY_SPECIAL-161-218
VIDEHA_KEDARNATH_CHAUDHARY_SPECIAL-161-218
ठाम एकत्रिि करबाक फूहड़ सपना। ई दुनू अध्याय प्रायः बाद मे क्षे पक जकााँ
प्रविष्ट कएल गे ल बुझाइि अतछ। उद्देकय दू टा भए सकैि अतछ पोथीक वकछु
पृष्ट बढ़ाएब िा थोड़-बहुि आत्मरति करब आ बे र-बे र प्रयुक्ि भे ल "मै तथलीक
प्रेम-रोग" शब्दािली कें जस्टीफाइ करब। कोनो ले खक ले ल अवह दुनू िरहक
रोग िा कमजोरी अस्िाभाविक नवह छै । वकन्द्िु केदारनाथ चौधरी अपन
ले खनक अन्द्ििटस्िु, ओकर क्य आ प्रस्िुतिकरण मे बहुि प्रगतिशील छतथ,
िें ई बाि कनी खटकए जरूर छै । अवह प्रसां ग कें आठ-दस पां कक्ि मे फररआएल
जाए सकैि छल। प्रसन्द्निाक गप जे "अबारा नवहिन"क कथा-वििान आ
हुनक व्यकक्िगि जीिन-शै ली अवह बािक प्रमाण अतछ जे ओ अवह
बे दरमतिया तमतथलान्द्दोलनजीवििाक सहरजमीनी यथाथट कें समय रहै ि
चीन्न्द्ह गे ला, अवह तमथकीय सस्सरफानी साँ बतच कए बाहर आवब गे ला आ
अपन जीिन कें एकर फेर मे व्यथट नवह कएलवन।
"अबारा नवहिन" घोवषि रूप साँ मै तथलीक पवहल वफल्म "ममिा गाबए
गीि"क वनमाटण-यािाक रोचक कथा तथक। वकन्द्िु अवह पोथीक वििान
किर-पृष्ट पर दे ल अवह घोषणा माि िक सीतमि नवह रवह गे ल अतछ। हमरा
दृतष्ट मे "अबारा नवहिन" मै तथली-समुर-मां थन-गाथा अतछ, जवह मे दे ि-
दानिलोकवन अपन-अपन वहिसाधन, स्िाथट-साधन आ व्यकक्िगि
लोलुपिािश समस्ि भौतिक-आतधभौतिक सां साधन-उपादान सभ कें लूवट
ले बाक हीिोड़ प्रयास मे लूझल छतथ आ अवह मां थन-क्रम मे बहराएल हलाहल
दे िातधदे ि महादे िक वहस्सा मे छोवड़ दए छतथ। दे िातधदे ि महादे िक भूतमका
मे महां थ मदनमोहन दासक हएब स्पष्ट अतछ। अन्द्य दे ि-दानि (जे सहोदरा
द्वदति आ अद्वदतिक सां िान छतथ) कें पाठकजन अपन सुविधानुसार चीन्न्द्ह
सकए छतथ, नातमि कए सकए छतथ। अवह पोथीक गढ़न होतमयोपै थी पद्धति
जकााँ अतछ, एलोपै थी पद्धति जकााँ नवह। दे हक कोनो भाग मे गूड़़़ (व्रण /
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 143
िे करे कुिरब। कुिरनाइ बां द करि ि ओकर दााँ ि ओकर मूाँह आ दे हहु साँ नमहर
भए जाएि आ ओ मरर जाएि। मरबाक विकल्प साँ बे सी नीक छै कुिरबाक
विकल्प, भने अवह कुिरब साँ आनक जान चत्रल जाइ। अवह क्षे िक इतिहास
गिाह अतछ, जे "ममिा गाबए गीि" सां ग भे लए, सएह अशोक पे पर तमल,
रै याम आ लोहट चीनी तमल सां ग भे लए आ सएह "तमतथला आिाज" अखबार
सां ग भे लए। मूषक-सां स्कृतिक अनन्द्ि त्रसलत्रसला छै , एकर त्रशकार भे ल िस्िु,
व्यकक्ि, विचार सभक नमहर सूची छै ।
ई पोथी सां स्मरणक तथक, वकन्द्िु हास्य-व्यां लय आ तचिमयिाक सां ग ई अपन
पररिे शक पयटिेक्षण, अन्द्िेषण, विश्ले षण आ आलोचना ि कररिवह चलै ि
अतछ, एकटा काल-विशे षक इतिहास से हो रचै ि अतछ। अवह क्रम मे किे कहु
चररि, किे कहु प्रिृति अनािररि होइि अतछ ि किे कहु अनाम व्यकक्ित्िक
बलुआही आ सोडािाटरी प्रतिष्ठा-प्रतिमा ध्िस्ि से हो होइि अतछ। अचरज नवह
जे अवह पोथी आ पोथीकार कें कट्टर मै तथलिादीलोकवन आ हुनकर
तचरकुवटया वगरोह मौन्खक िौर पर खूब गररअएलवन। ( सां भि अतछ जे केदार
जी पर आयोणजि "विदे ह"क विशे षाां क मे से हो ओवह न्खधाां स -गाथाक
हुलकी-झलकी दे खाइ पड़ए।) खबोत्तर-पीठक स्िघोवषि तचरकुवटया
मठाधीश लोकवनक पवहल प्रयास ई होइ छवन जे गै र-मै तथल कें वकछु विशे ष
करबाक अिसरवह नवह दे ल जाए, जाँ ओ प्रयास करए ि ओकरा हिोत्सावहि
कएल जाए, ओकर ड़गर कें कांटकाकीणट कए बाधा ठाढ़ कएल जाए, ये न-
केन-प्रकारे ण ओकरा कोनो उपलस्ब्ध हात्रसल करए साँ रोकल जाए आ जां
कोनो उपलस्ब्ध हात्रसल कए ले लक ि ओकर अिमूल्न कए ओकर उपहास
उड़ाएल जाए। अवह खबोत्तर-पीठक कबां ध मानस कें ई बाि बदाटस्ि नवह होइ
छै जे मै तथलीक विकास, एकर स्थापना, एकर सशकक्िकरण मे आन कोनो
जातिक व्यकक्िक योगदान कें पहचान भे टए, ओकरा सकारल जाए आ
ओकरा दस्िािे जीकृि कएल जाए। हुनकर सभक ई मानब छवन जे एहन
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 145
लोकक मूाँह पोछबाक ले ल कोनो आयोजन मे जाँ कनी काल ले ल कोनो आसन
दए दे ल गे लए, मां च पर ओकरा पाग पवहरा दे ल गे लए, ओकर मौन्खक प्रशां सा
मे वकछु शब्द कवह दे ल गे लए ि ओवह गै र-मै तथल मानुस कें एिबे मे तिरवपि
भए जएबाक चाही, जनम सोगारथ बुझबाक चाही आ अवह प्रदत्त कृपा ले ल
खबोत्तर-पीठक स्ियां भू लोकवनक प्रति आत्मा आ हृदय साँ कृिज्ञ हएबाक
चाही। त्रलन्खि रूप मे कोनो गै र-मै तथलक योगदानक उल्ले खक गप जाए
द्वदअ, कोनो त्रलन्खि सूची मे ओकर नामक उल्ले ख िक नवह हुअए, िे करा
सुवनन्श्चि करबाक हर सां भि प्रयास ई खबोत्तर-पीठ करै ि रहल अतछ, करै ि
आएल अतछ। आन जाति मे खास कए जाँ भूतमहार ब्राह्मण हुअए, िखवन ि
अवह खबोत्तरजीिी सभ कें जे ना तमगी चवढ़ जाइि अतछ। जे लोकवन अवह
खबोत्तरजीिी ित्ि सभक द्वदनचयाट पर नजरर राखए छतथ, तिनका सभ कें
ई बुझल छवन जे डा. योगानन्द्द झा द्वारा कवपलदे ि ठाकुर "स्ने हलिा"क
मोनोग्राम त्रलखला पर, केदारनाथ चौधरी द्वारा "अबारा नवहिन"क माध्यम
साँ महां थ मदनमोहन दासक मवहमा आ योगदान कें दस्िािे जीकृि कएला पर,
बै जनाथ चौधरी "बै जू" द्वारा डा सी पी ठाकुर कें "तमतथला विभूति" सम्मान
प्रदान कएला पर िा अणजि आजाद द्वारा अरविन्द्द ठाकुर कें "तमतथला
आिाज"क सम्पादक बनएला पर ई खबोत्तरजीिी ित्ि सभ तमगीक चारू
पहरक रोगी िा िृषोत्सगट सराध ले ल दागल सााँ ढ़ जकााँ केना सनकल रहतथ,
कोन हद िक रुष्ट-क्ष ब्ध भे ल रहतथ आ एकर प्रतिवक्रया मे केहन-केहन
अपशब्द सभ साँ अवह महानुभाि लोकवन कें विभूवषि कएने रहतथ। ई अलग
गप जे मूाँहामूाँही, आमना-सामनी एना करबाक/कहबाक साहस वक भप्प ने
वहनका सभ कें कवहओ भे लवन आ ने हएिवन। भूतमहार ब्राह्मण लोकवनक
प्रति वहनकर सभक भयजवनि घृणा किे क िीव्र अतछ, िे कर वकछु आभास
पां वडि गोविन्द्द झा त्रलन्खि "तमतथलाक सामाणजक इतिहास" केर
असामाणजक अत्रभव्यकक्ि मे दे खल जाए सकैि अतछ। खबोत्तरजीिी-
146 ||गजे न्द्र ठाकुर
ले बवहए पड़िवन। तिरवपि घुरर कए नवह अएिा, से सां िोष करै ए पड़िवन आ
अवह सभ लुज्झातिरीक यथाथट कें बुणझिहुाँ अपन मुांह साँ हाँ सीक फुलझड़ी
बहराबै ए पड़िवन, ठठाए कए हाँ सैए पड़िवन िमाशा-ए-अहल-ए-करम
दे खबाक ले ल। एिबे धरर वकऐ? अपन पूाँजी लगाए कए स्टाम्प-पे पर पर
रुपै याक छह आनाक वहस्से दार उदयभानु ससिह कें बनबै ए पड़िवन। जवह
रिीन्द्रनाथ ठाकुर कें नोनी लागल दे बाल, चालीक भुरभुरी साँ भरल फशटबला
बलभरपुर मोहल्ला स्स्थि मावट साँ ले बल घरक अखरा चौकी पर साँ उठाए
कए मायानगरीक चकाचाौं ध आ सुख-समृत्रद्धक दुवनयााँ दे खबए लए जएिा,
अपन फनकारी दे खएबाक अिसर दे िा, िएह रिीन्द्रनाथ कें त्रलन्खि
अतधकार-पिक माध्यम साँ अपन सभटा कएल-घएल, अपन कीर्िि साौं वप
द्वदअए पड़िवन। मै तथल-कथा हरर-कथा अतछ, अनन्द्ि अतछ हरर अनन्द्ि, हरर-
कथा अनन्द्िा!
स्ििां ििा प्राश्प्िक बाद जे दौर अएलए, िवह मे वित्रभन्द्न दलीय ने िृत्ि पर
मै तथल लोकवनक िचटस्ि जकााँ रहवन। सत्ताधारी काां ग्रेसवह टा नवह,
समाजिादी आ िामपां थी दल सभ पर से हो मै तथलवह लोकवन कब्जा
कएलवन। आमजन मे सजगिा नवह रहए, मै दान एकदम साफ रहए। अवह
शून्द्य-काल मे मै तथल लोकवन अगुअएला आ खाली पड़ल स्थान सभ पर
आसीन भए गे ला। राजनीतिक दल जखवन हाथ मे हुअए ि व्यकक्ि अपना कें
परम शकक्िशाली बुझए लागै ि अतछ आ ओवह शकक्िक प्रदशटन ले ल अिीि
व्याकुलिा साँ भरर जाइि अतछ। ई व्याकुलिा विशे ष कए मै तथल िामपां थी
लोकवन कें गै रकानूनी िरीका साँ आक्रामक आ अतिक्रमणकारी हएबाक ड़गर
पर लए गे लवन। वहनकर सभक वनशाना पर धार्मिक स्थल सभ से हो आएल,
वकन्द्िु चयनक दोहरा मानदां ड़क सां ग। जवह मन्न्द्दर आद्वदक बागडोर पुरवहि
लोकवनक हाथ मे रहए, िे करा बकत्रस दे ल गे ल। मूल वनशाना बनल
महां थाना सभ, जे कर अतधकाां श पर भूतमहार ब्राह्मण लोकवन कावबज रहतथ।
150 ||गजे न्द्र ठाकुर
अपन सां कल्प कें अपन व्यकक्िगि प्रयास साँ सफल ि कए लए छतथ, वकन्द्िु
जिय सामूवहक सहयोगक मामला आबै ि अतछ, ििय ओकर अभाि मे ओ
असफलिाक साक्षी भए जाइ छतथ। ई दुख, ई पीड़ा असह्य अतछ, वकन्द्िु ओ
िे करहु सहए छतथ।
सीिाहरण साँ व्यतथि राम कलवप सकए छतथ। पशु-पक्षी साँ अपन व्यथा-
कथा कवह सकए छतथ। अनुज लक्ष्मण साँ अपन पीड़ा़़ क बखान कए सकए
छतथ। वकन्द्िु मदन भाइ अपन व्यथा, अपन पीड़ा़़ केकरा लग व्यक्ि करिा?
बाली राम साँ पुतछ सकैि अतछ अिगुण किन नाथ मोही मारा? मदन भाइ ई
प्रकन केकरा साँ करिा? हुनक लक्ष्मण हुनका बीचवह मे छोवड़ सै नफ्ाां त्रसस्को
उवड़ गे ला। जे करा साँ प्रकन पुछबाक छवन, ओ एकटा व्यकक्ि नवह अतछ, विराट
समुदाय अतछ। िें "ममिा गाबए गीि"क वनमाटण-क्रमक सभटा अतप्रय
अनुभि, वनमाटणक बाद "ममिा गाबए गीि"क हरणक सभटा व्यथा कें
मदनमोहन दासक पुरुषोत्तम समुर-मां थन साँ प्राप्ि हलाहल मावन दे िातधदे ि
महादे ि जकााँ घाें वट कए अपन कांठ मे रोवक लए छतथ।
रािणक कैद मे रहै ि सीिा कें छोड़ए
़़ बाक ले ल राम सभ सां भि प्रयत्न करए
छतथ। वकऐ? वकऐ ि हुनका अपन समथटनक भरोस छवन। हुनका लग बानर-
से ना छवन जे हुनका ले ल िन-मन-धन साँ समर्पिि अतछ। वकन्द्िु मदन भाइ!
ओ अपन सीिाक रािणक खतियान मे चत्रल जाएब कें अपन वनयति मावन
लए छतथ। वकऐ? वकऐ ि हुनका मै तथल समुदायक यथाथट बुझाए गे ल छवन।
ओ बुणझ गे ल छतथ जे हुनक पीठ पर कोनो सै न्द्य-दल नवह, परजीिी कीटाणष -
विषाणष सभक हें ज अतछ आ ओकरा भरोसे ओ जे िबे लड़बाक प्रयास करिा,
िे िबे क्षीण आ अबल होइि जएिा।
हुनक व्यकक्ित्िक उच्चिाक ई पराकाष्ठा छै जे पिकारक खोध-बीन पर
जखवन ओ केदार जी कें कहए छतथ, " केदार भाइ, पतछला िीन-चारर बखट
साँ हम-अहााँ वनत्य एक ठाम बै सैि छी, गप्प-सप्प करै ि छी। िथावप हम
152 ||गजे न्द्र ठाकुर
नुकेबा ले ल।
2
मै तथली लग बहुि एहन 'लोकतप्रय मुदा गां भीर' रचना छै जावहपर लोकतप्रय
वफल्म बवन सकैए। एवहमे कथा, उपन्द्यास एिां आन विधा सभ अतछ। वकछु
उदाहरण एना अतछ- योगानां द झा (सीनीयर) केर कथा 'आम खयबाक मूाँह',
हररमोहन झाजीक सभ रचना (प्रसां गिश कहै ि चली जे 2010 मे ररलीज
भे ल अजय दे िगन ओ परे श रािल केर वफल्म 'अतितथ िुम कब जाओगे ' केर
फस्टट हाफ हररमोहन जीक 'विकट पाहुन' केर बहुि लगीच छै । जाँ मै तथली
ले खक सभ साकाां क्ष रवहितथ िाँ कोटट जा कऽ हररमोहन जीकेँ क्रेवडट द्वदया
सकैि छल मुदा एवहठाम िाँ सभकेँ अपन क्रेवडि ले ल प्चििा छै )। ब्रजवकशोर
िमाट 'मणणपद्म'जीक सभ उपन्द्यास जे वक लोकगाथापर आधाररि अतछ,
मनमोहन झा (सीवनयर) केर सभ रचना, प्रभास कुमार चौधरीजीक सभ
कथा-उपन्द्यास, गजे न्द्र ठाकुरजीक सभ कथा-उपन्द्यास आ सां गे राजदे ि
मां डलजीक सभ उपन्द्यास वफल्म ले ल उपयुक्ि छवन। "रां जना" ई उपन्द्यास
छवन ले खनाथ तमश्रजीक जे वक लगभग 1970 मे प्रकात्रशि भे ल रहै । ई
उपन्द्यास वफल्म ओ सीररयल दूनू ले ल उपयुक्ि अतछ। एही क्रममे राजकमल
चौधरीजीक-ललका पाग (एवह कथापर बनलो छै ), वकरणजीक-मधुरमवन,
त्रशिशां कर श्रीवनिास जी कथा-त्रसनुरहार, प्रदीप वबहारीजीक कथा-सरोकार,
कयाम दररहरे जीक कथा-वबअहुिी नूआ, अशोकजीक कथा- डे रबुक, अरविन्द्द
ठाकुरजीक कथा-विष पान ई सभ कथा वफल्म ले ल उपयुक्ि छै । िे नावहिे
लल्लन प्रसाद ठाकुरजी नाटक से हो उपयुक्ि छै ।
कोन रचना वफल्म ले ल उपयुक्ि छै आ वक नै छै से जनबाक ले ल हम एकै
रचनाकारक दू कथाक नाम दऽ रहल छी, से पवढ़ बूणझ जे बै जे वफल्मक ले ल
कोन रचना नीक कोन नै नीक। ई दू रचना तथक राजकमल चौधरी जीक-
पवहल रचना भे ल 'ललका पाग' आ दोसर रचना भे ल 'सााँ झक गाछ'।
156 ||गजे न्द्र ठाकुर
एबाक चाही। ईहो बाि ठीक मुदा आलोचकक काजे छै अिाां तछि ित्िक
िाक-हे र करब। आ से ओ आगू बवढ़ केदारजीक रचनाकेँ खराप सावबि
करतथ। द्वदक्कि की छै ? हमरा बहुि बे र लगै ए जे माि चाौं काउ बाि कवह दे ब
'कतथि प्रगीिशील रचना' केर मानक अतछ। जखन वक सरल बाि कहै ि
रचना (से ओ बाि किबो नीक वकए ने हो)केँ खराप मावन ले ल जाइि छै ।
मै तथलीमे िाँ ई हाल छै जे 'वबकाएब सावहत्य केर पै माना नै छै ' सन नारा दे बए
बला कचरा ले खक सभ हमर पोथी पढ़ू कवह पाठककेँ जबरदस्िी वकनबाक
ले ल कहै ि छै ठीक िाही मै तथलीमे केदारोनाथ चौधरी सन ले खक छतथ
णजनकर पोथी पाठक िावक कऽ कीवन लै ि अतछ।
एहनो नै छै जे केदारनाथजी रचना सभ अकाससाँ खसल छै आ ओवहमे कोनो
कमजोरी नै हे िै फेर अहीठाम प्रकन उठै ि छै जे कोन भाषाक कोन ले खक केर
रचना बे दाग रहै ि छै (छान्न्द्दक रचना छोवड़, कारण छान्न्द्दक रचनामे पवहल
अवनिायट ित्ि छन्द्द छै )। पाठक अपन-अपन अनुभि केर अधारपर केकरो
नीक िा खराप कहै ि छै । आ िाँ इ जिे क महान यािीजीक रचना िा
लत्रलिजीक उपन्द्यास, िा धुमकेिु सवहि मायानां द तमश्रजीक उपन्द्यास अतछ
ििबे महान केदारनाथ चौधरीजीक उपन्द्यास से हो अतछ। केदारनाथजीक
उपन्द्यास अपन कालखां डकेँ गां भीरिा ओ वबक्री दूनू मानकपर अतिक्रमण कऽ
दे ने अतछ।
आ अही कारणसाँ ............
हम मै तथली उपन्द्यासमे 2004 केर बाद बला समयकेँ "केदारनाथ युग"
कहबाक अत्रभलाषी छी।
मै वरकक परीक्षामे फेल भे लाक बाद सुगम स्थल एकमी पुलसाँ बागमिीक
प्रचण्ड िे गमे कूद्वद प्राणत्याग करबाक वनणटयमे शुद्ध दे सी घीमे छानल णजले बी-
कचौड़ीक सुगन्द्धो व्यिधान नै दऽ सकल हाँ मुदा ई वनणटय भे ल जे आत्महत्यासाँ
पवहने एक िोड़ णजले बी-कचौड़ी खा ले ल जाय।
मुदा ओिऽ खट्टर ककाक सहोदर छोटका कका विद्यमान छतथ। फेर
बै कग्राउण्ड जे दे श स्ििां िो आ गणिां िो भऽ गे ल रहै , ओइ समयक घटना छी।
आ फेर सां गीक मामाजी एला। आब ओ िे हेन रोजगारमे भावगनकेँ लगे तथन्द्ह
जे ओ टाकाक मोटरी बापकेँ पठे तथन। माने आिम्हत्याक िाँ मातमले खिम।
ओ वबदा भे ला हाबड़ा आ आत्मकथात्मक शै लीक उपन्द्यासक "हम" वबदा
भे ला गाम। पवहल अध्याय समाप्ि।
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 159
बनै ि जायि।
िाँ ई आत्मकथात्मक शै लीमे त्रलखल पोथी छी, एकर "हम" छतथ केदारनाथ
चौधरी। मै तथली आ तमतथलाक नामपर होइबला कायटक्रमक रस्िो साँ लोक
वकए भावग जाइ छतथ, ई िकर कथा थीक।
जाँ अहााँ अपन णजनगीकेँ "सूट" कऽ सकी िाँ अहााँ केँ लागि जे ले न्द्ससाँ दे खल
णजनगी बे शी मारुख होइ छै । रां गमां चसाँ वफल्ममे आयल कलाकारकेँ आाँ न्खमे
नोर आनै ले स्ललसरीन नै लगबऽ पड़ै छै । अहााँ केँ लागि जे खाली रोडपर बखाटमे
हम जे ड्राइि कऽ रहल छी, से ले न्द्ससाँ सूट केलापर "त्रसने माक हीरो" सन
हम भऽ जायि। मुदा हम धै नसन ओकरा कोनो मोजर नै दै छी। हमरा विचारे
प्रतियोगी परीक्षाथीये नै िरन् सावहत्यकारो सभकेँ ई पोथी सभ पढ़बाक
चाही। हम िाँ सभकेँ सलाह दै तछयन्न्द्ह जे सभकेँ फोटोग्राफीक कोनो "समर
कोसट" अिकये करबाक चाही। एकटा आर सलाह हम लोककेँ दै ि तछयन्न्द्ह जे
आइ-कास्ल्ह मोबाइलमे कैमरा आवब गे ल छै , अहााँ प्रतिद्वदन ५-१० तमनटक
िीवडयो रे कार्डिग करू, दुवनयााँ केँ चौखुट, आयिाकार, त्रिभुजीय आद्वद फ्ेममे
दे खू आ अनुभि करू जे कोनो भररगरो विषय लोक केना नीकसाँ बुझैि अतछ।
भौतिकी विज्ञानक प्रोफेसर फेनमे न (फेनमे न्द्स ले क्चसट) ऐ ले ल प्रत्रसद्ध अतछ,
162 ||गजे न्द्र ठाकुर
वफणजक्सकें रुतचगर ढ़ां ग साँ पढ़े बा ले ल। आ एिऽ िाँ िे हेन भूप सभ छतथ जे
"वफक्शनो" "वफणजक्स" सन त्रलखै ि छतथ।
कला वफल्म वकयो वकए नै दे खैि अतछ, कारण ले खक-वनदे शककेँ होइ छै जे
कला वफल्मक सब्जे क्ट माि ओकरा पुरस्कार द्वदया दे िै। िास्िविकिा ई छै
जे कला वफल्म से हो वहट होइ छै , "द ककमीर फाइल्स" वफल्म डोक्यूमेण्री-
वफल्म भे लाक बादो वहट भे लै, कारण डाइरे क्टर आ स्स्क्रप्ट राइटर बे इमान नै
छलै , त्रसण्डलसट त्रलस्टमे "पोत्रलस" सभ कहै छै "गो ज्यू, गो" िकर माने ओ
एकिरफा तचिण भे लै? आ आब हम एकटा नीक लोक जे पोत्रलस
(पोले ण्डक) छतथ िकरा आनी आ स्स्क्रप्टमे घुसाबी। ने १८० तमनटक
(विदे शमे १०० तमनटक) वफल्ममे सभ बौस्िु दे ल जा सकैए ने सय-सिा
पन्द्नाक सां स्मरणमे । वकयो कवह सकै छतथ जे केदारनाथ चौधरी वफल्म छोवड़
कऽ चत्रल गे ला, रिीन्द्र नाथ ठाकुर ओकरा पूरा केलन्न्द्ह। मुदा ई पोथीयो िाँ
सएह कवह रहल अतछ।
रचनामे धार अतछ, धरगर बला धार आ बहै बला धार, दुनू। आ िेँ सां स्मरण
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 163
शै लेन्द्र मोिन झा
सौभालयसाँ हम ओवह गोनू झाक गाम, भरिारासाँ छी, णजनका सम्पूणट भारि,
हास्यत्रशरोमणणक नामसाँ जनै ि अतछ। ििटमानमे हम टाटा मोटसट फाइने न्द्स
त्रलतमटे ड, सम्बलपुरमे प्रबन्द्धकक रूपमे कायटरि छी।
सपना
अचमना चौधरी
हमर वपिा जीक व्यकक्ित्ि अत्यां ि प्रभािशाली छवन। अपन साफ मन एिां
सरल स्िाभािक कारणे ओ सहजवह सभसाँ तमििि् भऽ जाइि छतथ। हुनकर
सां ग रवह हम जीिनक वित्रभन्द्न आयामकेँ नीक जकााँ बुझलहुाँ । कोनो कद्वठन
समयकेँ शाां ि रवह, सां यमसाँ पार पाबी से हुनकवहसाँ त्रसखलहुाँ ।
हमर त्रशक्षामे हुनकर बहुि पै घ योगदान छवन। ने ना सभकेँ त्रशक्षा सां ग उतचि
सां स्कार दे ब हुनकर लक्ष्य छलवन। जीिनकेँ सकारात्मक रूपे दे खबाक प्रेरणा
हमरा हुनकवहसाँ भे टल।
हमर वपिाजी अपन मािृभाषा मै तथलीक से िा, प्रचार एिां प्रसारमे से हो अपन
योगदान कय रहल छतथ। मै तथली ले खनक एकटा नि रूप प्रस्िुि केलवन जे
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 167
स्थानीयिा साँ जोड़बाक विलक्षण काज केदारनाथ चौधरी केने छतथ। कोना
तमतथलाक आम जीिन मे धमटक आ दशटन केर गूढ़ रहस्य व्याप्ि छै क, िकर
प्रमाण अिय डे गे -डे गे भे टि। ज्ञान आ दशटन केर सब गां भीर बाि एक
टायरगाड़ी केर बहलमान कन्द्हाइ मण्डल साँ सुनब नीक लगै ि छै क।
अवह साँ पवहने जे पोथी पर वकछु त्रलखी, एकर सां क्षेप जानकारी द’ दे ब
आिकयक।
उपन्द्यास केर प्रारम्भ दररभां गा शहर केर बावढ़ साँ आ एक घर मे उपस्स्थि दू
भाई िीर बाबू आ पां कज साँ होइि छै क। दुनू बावढ़क बढै ि जल स्िर साँ परे शान
िािाटलाप क’ रहल छतथ आ प्राण बचे बाक युकक्ि िावक रहल छतथ। ििबे मे
एक व्यकक्ि दहाईि हुनका सब लग अबै ि छतथ। आगां िुक “पचपन-साद्वठ
बयस, छः फीट लम्बा, एखनहुाँ स्िस्थ आ गठल शरीर, सशक्ि िावह पर भव्य
मुखमां डल, चौरगर ललाट, पै घ-पै घ आां न्ख, गौरिणट, तछवड़यायल, भीजल आ
कान िक कें झां पने कारी-कारी केश। (पृष्ट 7)। आगां िुक हुनका सबकें कहै ि
छतथन जे विनय जे अिय रहै ि छतथ तिनकर छोटका काका जटाधर केर
अत्रभन्द्न तमि पां वडि राज शे खर दत्त छतथ। विनय हुनका पां वडि काका कवह
सम्बोतधि करै ि छतथन। पां वडि राज शे खर दत्त वहनका दुनु भाई साँ वनिे दन
करै ि छतथन जे राति भररक आश्रय दे तथ। िीर बाबू आ पां कज दुनू काि साँ
पां वडि राज शे खर दत्तक दुनू हाथ धय हुनका िरामदा पर ल’ जाईि छतथन।
अां ििः पां वडि राज शे खर दत्त केर सुझाि साँ बगल केर िीन महला मकान
जकर मात्रलक अपन मकान मे िाला लगा अयोध्या गे ल छलाह मे िाला िोवड़
अपन जान बचे बाक जोगार मे जाईि छतथ ।
राज शे खर दत्त पां कज आ िीर केँ अपन झोरी साँ वनकात्रल रोटी िरकारी खे बा
ले ल दे ि छतथन। बावढ़ केर भय बनल रहै क। कखन की विकराल स्िरुप ल’
ले ि िकर कोनो ठे कान नवह। अिएि राति भरर जागरण आिकयक। यएह
सब सोचै ि दुनू भाई आगां िुक साँ वनिे दन करै ि कहै ि छतथन: “हमर ई सोचब
170 ||गजे न्द्र ठाकुर
अतछ जे अहााँ साधारण लोक नवह वित्रशष्ट व्यकक्ित्िक स्िामी छी। िें अपने
साँ आग्रह जे अहााँ अपन जीिन मे घटल कोनो सुरुतचपूणट घटनाक िणटन
कररयौक जावह साँ मोनो लागल रहय आ रातियो कवट जाए।” (पृष्ट 8)
आब पां वडि काका अपन कथा कहनाइ प्रारम्भ करै ि छतथ ।
पां वडि काका अथाटि पां वडि राज शे खर दत्त बहुि कम अिस्था मे नै नीिाल गे ल
छलाह। ओिय एक विस्मयकारी घटना घवटि भे लवन । नै नीिाल मे फुलक
गाछक मध्य एक अति सुन्द्दर गौरिणट युििी ठार छलीह आ अपलक राज
शे खर द्वदस दे न्ख रहल छलीह। राज शे खरक समस्ि चे िना ओवह युििी मे
समर्पिि भ’ गे लवन। िकरा बाद बहुिो द्वदन धरर ओ युििी नवह प्रकट भे लीह।
राजक मोनक वनशा क्रमशः समाप्ि भ’ गे लवन। ओ ओवह फुल कुमारी केँ
नीक जकााँ वबसरर गे लाह। फेर बै शाख मास मे ऋवषकेश जयबाक क्रम मे
समस्िीपुर रे लिे स्टे शन लग राज केँ एकाएक िएह मनमोहनी युििी उभरर
गे कल्थन। राजक सम्पूणट गि झनझना उठलवन। ओ ठमवक क’ ठार भ’
गे लाह। एक बूढ आ भयािन मनुखक पाछा-पाछा ओ युििी जा रहल छलीह।
युििी बूढा सां ग राज शे खर लग अबै ि एकटा त्रलिािा खसा दे लतथन्द्ह ।
युििीक भाि पढ़ै ि राज शे खर दत्त ओ त्रलिाि उठा ले लवन। ित्काल
युििीक मोिी सन दाां ि चमवक उठलवन, ठोर वबहुाँ त्रस गे लवन आ आाँ न्खक भाि
एहन भ’ गे लवन जे ना ओ राज कें धन्द्यिाद कवह रहत्रल होतथ।
राज शे खर प्ले टफामट पर एक ठाम बै स उत्कांद्वठि भ’ तचट्ठी पढ़ब शुरू करै ि
छतथ:
“मदति चाही िाँ पि त्रलखलहुाँ अतछ। आगू-आगू बुढ सन जे मनुक्ख गे ल अतछ
ओ कापात्रलक तथक. कापात्रलक मे ई अघोर पन्द्थीक िामसी पूजा केवनहार
िाां त्रिक अतछ आ एकरा अने को एकरा अने काें त्रसत्रद्ध प्राप्ि छै । स्िभाि, प्रिृत्रत्त
आ आचरण साँ ई धूिट, दुष्ट आ मक्कार अतछ। हम पूणटिः एकर कैदी छी।
अवगला अमािस्याक बाद िां ि मागटक वितध विधान साँ ई हमरा पत्नी बनाओि
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 171
आ भोग करि। िकर वकछु मवहना बाद ई हमर भै रिीक आगा बत्रल द’ दे ि।
अने काें सुन्द्दरर कन्द्याक बत्रल एकरा हाथे पवड़ चुकल छै क। जकरा ई डाकनी,
योवगनी, प्रेिनी बना क' अश्लील आ िीभत्स िां िक होम-जाप क’ अपन
अभीष्ट पूरा करै ि अतछ।
अहााँ हमर मदति कोना करब से सुनू। हमर गाम चननपुरा मे हमर बाल सखा -
एिां प्रेमी गोिधटन रहै ि अतछ। गोिधटन साहसी, बलबान आ हमर प्रेम मे मााँ िल
अतछ। पुजारी बाबा साँ प्राप्ि मां ित्रसक्ि अष्ट धािुक त्रसत्रद्ध बला मट्ठा ओकर -
हाथ मे छै क। विशम्भरी मािाक मां िायल हाथी दााँ ि बला कबच ओकर गरदवन
मे झष लै छै क। िाँ गोिधटन अवह कापात्रलकक िां ि प्रहार साँ परे अतछ। अहााँ
गोिधटन केँ हमर सोचनीए स्स्थतिक सूचना दे बै । ओ हमर सहायिा कर' ले ल
शीघ्र िै यार भ' जायि।
अहााँ गोिधटन केँ तचन्द्हबै कोना? गामक पूब मे सघन आम्र कां ु ज आ िकर सटल
बड़ी टा परिी मै दान भे टि। हजारो गाय आ िकर बाछा एिां बाछी केँ चरै ि
दे खबै क। अही स्थान पर अहााँ केँ भे टिाह गोिधटन। गौर िणट , ऊाँच कद,
आौं द्वठया कारीकारी केश-, चे हरा पर दे ििाक सुन्द्दरिा, दावहना हाथक पहुाँ चा
लग लहसुवनयााँ क दाग आ सभ साँ पै घ चे न्द्ह जे हमर वियोग मे िरासल पाषाण
मूर्िि बनल उदास कोनो गाछक डारर पर बै सल। सै ह भे लाह हमर गोिधटन।
होइक -हमरा बचा त्रलअ। हम ि' डु वब रहल छी। बााँ सुरीक धुन मे डु बैि नदीक
चीत्कार सुवन हम बुणझ जे बै जे हमर प्राणनाथ आवब चुकल छतथ। हम कहुना
ने कहुना गोिधटन लग अिस्से पहुाँ तच जायब। अवह िरहें हमर प्राण बााँ तच
जायि।
चननपुरा गाम जे बाग मागटक ब्योरा अवह तचट्ठीक पृष्ठ पर अां वकि अतछ। शे खर !
हमर अटल विर्श्ास अहााँ मे ओवह सीमा िक अतछ जिय िकट शून्द्य भ' जाइि
छै । (14-13)
राजक प्राणरक्षक कहलतथन्द्ह योजना बना क -' दुकमन आक्रमण कयने छल।
हम सािधान छलहुाँ आ दुनूक मां सा पवहने साँ भााँ वप ने ने छत्रलयै । धमटकाां टा िक
हम सां गे रहब िाँ कोनो तचन्द्िा नवह।
आधा कोस रस्िा पार केला पर एकटा मोड़ छलै क। मोड़ लग एक टायरगाड़ी
ठार। राज केँ आश जगलवन। गाड़ी लग गे लाह। बहलमान मन्द्दमन्द्द मुस्की -
जे गाड़ी घे तघ“ साँ स्िागि करै ि उत्तर दे लतथन्द्हया जे िैक। हम अहााँ क वहि
तचन्द्िक छी आ अही ले ल टायरगाड़ी केँ ठार कयने छी।(24) ”
मां डल पुनः राज शे खर दत्त केर दुनू बरद माधि आ तिलकेसर केर पूिट जन्द्मक
कथा कहै ि छतथन्द्ह ।
घे तघया सां अवगला पड़ाि भां भरा छलवन। पां जा राज कें घाट ले ल ल गे लवन। ’
’नाि पर जखन बै स गे लाह िाँ पां जा एक अां गूठी द नाि साँ यािा शुरू केलाह।
दे लकवन। ओ अां गूठी कन्द्हाइ मां डल दे ने छलतथन। कवन काल बाद पिा
चललवन जे नाविक एक युििी छतथ। युििी केर सौन्द्दयट राज शे खर के बहसी
बनाबय लागल छलवन। युििीक स्िरुप कहन“ ?तधपाओल सोनाक सूखट
रां गबला हुनक काां तिकान मे झष मैि चानीक ,केशक लट पै घ-तछड़ीयाएल पै घ ,
पसीना मे भीजल ,मींचल ठोर ,नाक मे सटल नतथया ,झष मकालाल ,लाल-
लहां गा आ ब्लाउज मे अपत्रसयाां ि हुनक यौिन। युििी ग़जब कें सुन्द्नरर
(56) ”छलीह।
युििी केर नाम उलपी रहै क। ओ राज शे खर कें काम ले ल आमां त्रिि केलकवन।
राज से हो उद्यि भे लाह। मुदा फेर वकछु एहे ण सां योग भे लैक जे स्िे िाक स्मरण
करै ि बढल डे ग रोवक ले लवन। अनायास नाि कादो मे फांत्रस। गे लैक। उलपी
नाि केँ ठीक करय लागत्रल। अवह बीच राज शे खर कें नींद आवब गे लन्न्द्ह।
दे खैि छतथ जे एक भव्य राज महल मे िे दी लग मवहला समूहक भीड़ स्थान
कें छे कने छै क। रानी आ राजा नि पररधान मे बै सल छतथ। मुदा सभक आाँ न्ख
मे उदासी रहै क। से वकयै क ?
पवहरने पााँ ि मे ठार छलै । कापात्रलक छोटछोट लकड़ी केँ कोनो रव्य मे -
त्रसक्िक' िे दीक बीच ठाम बनल कां ु ड मे आहुति दै ि छल आ क्षणवहक्षण
हुाँ कार करै ि छल। कापात्रलक चे हरा साँ क्रूरिा बरत्रस रहल छलै ।
ओ बात्रलका स्िे िा छलीह। हुनक समस्ि मुख मां डल साँ क्षोभ आ घृणाक
कुकत्सि भाि झहरर रहल छलवन।
सां दुनू हिा मे उतधया रहल छतथ। दुनू एक नदी पार करै ि छतथ। बीचवह मे
कपाली आवब जाइि छै क आ रस्सी काटी दे ि छवन। आब गोिधटन आ स्िे िा
बहै ि नदी केर िे ग मे खसै ि छतथ। आ धार मे उब डू ब करै ि पावन मे डू वब
गे लाह। स्िे िा के नदी मे डू बैि दे न्ख रानी आ राजा हा स्िे िा कहै ि कूद्वद पडै ि
छतथस्िी पुरुष। सब अपन प्राण त्यावग दे लक। िकर बाद समस्ि से ना आ ,
?ई की भे ल
ििबे मे राज कें उलपी उठबै ि छवन जे नाि ठीक भ गे ल। सपना दे न्ख अहााँ
एना वकयै क करावह रहलहु अतछ। की अहााँ क प्रेतमका नदी मे डु वब मरलीह ?
स्िे िा तचतचयाइति अहााँ िे ना ने आक्रोश ,स्िे िा ?स्िे िा अहााँ क के छतथ
वनन्द्न िोडू । नाि िबे ि ,कयलहु जे एखन िक नाि काां वप रहल अतछ। जागू
धरर अपन गां िव्य पर आवब गे ल छल। राज शे खर दत्त अपन झोरा ल आगा
बवढ़ गे लाह। ।
लडै ि पोखरर द्वदस बढलै क। राज शे खर दत्त जान बचा ओिय -आ सुलगर लडै ि
गे लाह से पिे ने चललवन। ’सां पडे लाह। चलै ि चलै ि रस्िा मे कोना बे होस भ
जां गली जातिक बहुिो समुदाय केर अपन वनयम रहै क। िाां त्रिक बौध लोकवन
केना ब्राहम्णक श्रे ष्ठिा भां ग केने छलाह िकर िृिाां ि से हो सुनला राज शे खर।
शान्गन्द्ितप्रय मै तथल िां ििादी सां अशाां ि भ’ गे ल रहतथ। िावह समय मै तथल
पुरोवहि राम बल्लभ उपाध्याय केर वनिे दन पर कणाटटकक महाराज अपन
अनुज रूर प्रिाप ससिह कें तमतथला भे जैि छतथ। चननपुरा हुनक राजधानी
बनल। रूर प्रिाप ससिह कानून व्यिस्था स्थावपि केलाह। स्िे िा महाराजा केर
पुिी छलीह। स्िे िा ने ने साँ पुरोवहि जीक बालक गोिधटन सां ग खे लय लगलीह।
यौिन एला पर से हो स्िे िा केर त्रसने ह गोिधटन सां ग बनल रहलवन। गोिधटन
सब गुने सां पन्द्न छलाह। िाटहि राजा रानी वनणटय ले लवन जे दुनूक वििाह
अग्रहण शुक्ल पां चमी क भ जे िवन।
आचायट कहै ि रहलतथन्द्ह। ओहने सुखद समय मे दणक्षण भारि सां चां डचूर
नामक कपाली पुजारी भजनानां द केर मां द्वदर मे अपन खां िी गारर दे लक।
पुरोवहि रम बल्लभ उपाध्याय के ज्ञाि छलवन जे दणक्षण भारि केर कपाली
उदां ड, भयां कर आ पापाचारी होइि अतछ। अवह सन्द्देश सां ओ अवनष्ट केर
आशां का सां कापय लगलाह। चां डचूर अति दुष्ट िाममागी कापात्रलक छल।
चां डचूरक अवबिटहि पुजारी बाबा विर्श्ांभरी मािाक मां द्वदर मे चल गे लाह।
चां डचूरक िामसी पूजा अति पर पहुां तच गे लैक। ओ शि साधना करय लागल।
जां गली जातिक कुमारी कन्द्या सां ग काम आ पुनः ओकर बत्रल दे मय लागल ।
बाद मे चां डचूर कें भोग दे बा ले ल स्िे िा साँ नीक वकयोक नवह दे खेलैक। एकर
सुचना से हो पुरोवहि राम बल्लभ उपाध्याय केँ लावग गे लवन।
हुनका मां द्वदर केर पुजारी साँ ज्ञाि भे लवन जे चण्डचूर राजकुमारी स्िे िाक प्राश्प्ि
साँ पवहने िां िक चक्राचटन पूजा करि, फेर साँ भै रिी लग अपन प्रण केँ
दोहराओि। अवह काज मे ओकरा पन्द्रह द्वदन साँ कम समय नवह लगिै । ओहुना
अवगला अमािस्याक आइ साँ चौबीस द्वदन वबलम्ब छै क। मािा विशम्भरीक
आशीिाटद साँ कोनो महामुनीक सां ग ल' पुजारी मानसरोिर सां समय साँ पवहने
180 ||गजे न्द्र ठाकुर
पुजारी बाबा अपन आगााँ राखल थार साँ एकटा कबच आ एकटा मट्ठा
पुरोवहिक हाथ मे दै ि कहलवन हम अपन समस्ि िप अर्पिि क' मािा साँ मां ि
त्रसक्ि हाथी दााँ िक बनल कबच िथा योग त्रसद्ध अष्ट धािुक मट्ठा प्राप्ि केलहुाँ
अतछ। कबच आ मट्ठा ल' अहााँ चननपुरा जाउ। उतचि व्यकक्ि के कबच आ
मट्ठा पवहरा दे बवन। अवह कबच आ मट्ठा पर ित्काल चण्डचूरक िां िक कोनो
प्रभाि नवह पड़िै क। अहााँ अवबलम्ब घुतम काँ आउ। िखन हम दुनू मानसरोिर
झील हे िु शीघ्रतिशीघ्र प्रस्थान करब।
पुरोवहि राम बल्लभ उपाध्याय कबच आ मट्ठा ल' क' चननपुरा अयलाह।
वकछु काल िक ओ विचार केलवन महाराज आ महारानी, से ना आ से नापति
िथा चननपरा साम्राज्यक समस्ि प्रजाक स्ने ह राजकमारी स्िे िा मे आरोवपि
अतछ। स्िे िाक प्राण ि' गोिधटन छतथ। िाँ सभ साँ उत्तम जे कबच आ मट्ठा
गोिधटनक शरीर मे रहए।
आचायट कहै ि रहला: “शून्द्य, अति शून्द्य, महाशून्द्य एिां सिटशून्द्य जे क्रमशः
कायात्मक, िचनात्मक, मानसात्मक िथा ज्ञानात्मक सुख अतछ िकरा पार
क' हम सहजानन्द्द सुखधाम पहुाँ तच योग वनरा मे विश्राम क' रहल छलहुाँ ।
बाबा भजनानन्द्द आ पुरोवहि राम बल्लभ उपाध्यायक पीड़ा भरल विनिी
हमरा लग पहुाँ चल। योगबल साँ हम दुनूक प्राथटनाक उद्देकय एिां चण्डचूर द्वारा
चननपुरा पर आनल विपत्रत्तक ज्ञान प्राप्ि कयलहुाँ । िस्िुस्स्थति मौं बुणझ आ
विधािा साँ आदे त्रशि भ' हम दुनूक समक्ष प्रगट भे लहुाँ । फेर पुजारी आ पुरोवहि
के सां ग ल' आकाश मागट साँ सोझे चननपुराक बे गबिी नदीक कछे र मे
पहुाँ चलहुाँ । मुदा, हमरा िीनूक पहुाँ चबा साँ पूिटवह जे विनाश हे बाक रहै क से वकछु
घड़ी पवहने भ' चुकल रहै । स्िे िा आ गोिधटन सां गवह समस्ि चननपुरा
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 181
राजाक पुिी के केश पकवड़ तघत्रसया क' कापात्रलक ल' जाइक आ ककरो
साहस नवह होइक जे ओकरा रोवक सवकिए। मुदा स्िे िा ि' महाराज आ
महारानी | कले जाक टु कड़ा छलतथन। िाह पर साँ चण्डचूर स्िे िाक ले ल
अपशब्द बाजल छल। महाराजक राजपूिी शोणणि मे उफान उठलवन। ओ
गरजै ि से नापति के आदे श दे लवन-गणपति, अवह बदमास िाां त्रिक पर हमला
करू। एकोटा जीवब क' िापस नवह जाए।
पुनजटन्द्म, प्रेि योवन, इतिहास, पुराित्ि, साौं दयट सब वकछु केर सुांदर समािे श
छै क। सबसाँ पै घ बाि समय केर बहुि खां डक अनुपम तचिण भे टि। दरभां गा
साँ चलै ि सीिामढ़ी, आ चननपुरा िक केर बाट केर १९८० दशक केर जे
सड़क, यािायाि, बावढ़, सड़क केर स्स्थति लोकक मानत्रसकिा, समाज आ
सां स्कृति केर खाां का दे ख सकैि छी। ओवह समय मुजफ्फरपुर, दरभां गा,
सीिामढ़ी िक रघुनाथ झा केर बस केर चला चलिी रहै क। कोना बस मे
दादावगरी होईक, कोना कांडक्टर बिाटि करै क सब बाि सहजिा साँ त्रलखल
छै क। शै ली सहज आ कथािस्िु सां ग िाल मे िाल तमले ने चलै ि छै क। बावढ़
केँ समय बावढ़ ग्रस्ि क्षे ि मे लोक कोना चलै ि छल िकर वििरण पाठक कें
मुलध करै ि छै क।
कथा िस्िु यद्यवप बहुि रहस्यमय छै क, िथावप प्रमाणणक बने बा ले ल बहुि
प्रमाण केर आनल गे ल छै क। एवह पोथी ले खन साँ पूिट सावहत्यकार गहन शोध
केने छतथ, धमट, िां ि, आद्वद केँ बुझने छतथ, से स्पष्ट छै क। ई पोथी अपना
आपमे एक दृष्टाां ि बनै ि छै क जे सावहत्य केिल मोनक उद्वेग, आिे ग अथिा
स्फूरन नवह, अवपिु गां भीर अध्ययन आ आिोलकन साँ रतचि सां दभट ग्रांथ से हो
होई छै क।
मै तथलाां चल मे कोना अराजकिा िां ियाणी सां ग अबै ि छै क, कोना बाम मागट
िै द्वदक मागट पर प्रहार करै ि छै क, कोना िां ि त्रसत्रद्ध केर नाम पर नारी दोहन
होईि छै क िकर बहुि सूक्ष्म आ िकटसां गि प्रमाण लोक दे खैि अतछ। उपन्द्यास
अने क काल खां ड केर सां ग-सां ग अने क भोगोत्रलक पररिे श पर चलै ि छै क।
दररभां गा साँ कथा केर आधार बनै ि छै क फेर कथा कहब वहल स्टे शन नै नीिाल
सां शुरू होइि छै क। कथाक पाि पुनः समस्िीपुर रे लिे स्टे शन लग भे टैि छै क
आ कथाक नातयका स्िे िा अपन प्राण बचे बा ले ल उपन्द्यास केर नायक राज
शे खर दत्त सां वनिे दन करै ि छै क। फेर सीिामढ़ी केर क्षे ि, आ अां ििः अने क
186 ||गजे न्द्र ठाकुर
सखा एिां प्रेमी गोिधटन रहै ि अतछ। गोिधटन -हमर गाम चननपुरा मे हमर बाल“
साहसी, बलबान आ हमर प्रेम मे मााँ िल अतछ। पुजारी बाबा साँ प्राप्ि मां ि-
त्रसक्ि अष्ट धािुक त्रसत्रद्ध बला मट्ठा ओकर हाथ मे छै क। विशम्भरी मािाक
मां िायल हाथी दााँ ि बला कबच ओकर गरदवन मे झष लै छै क। िाँ गोिधटन अवह
कापात्रलकक िां ि प्रहार साँ परे अतछ। अहााँ गोिधटन के हमर सोचनीए स्स्थतिक
सूचना दे बै । ओ हमर सहायिा कर' ले ल शीघ्र िै यार भ' जायि।(13) “
188 ||गजे न्द्र ठाकुर
स्िे िा राज कें इहो युकक्ि बिा रहल छतथन्द्ह जावह साँ ओ गोिधटन कें तचन्द्ह
जातथ:
“गामक पूब मे सघन आम्र कां ु ज आ िकर सटल बड़ी टा परिी मै दान भे टि।
हजारो गाय आ िकर बाछा एिां बाछी केँ चरै ि दे खबै क। अही स्थान पर अहााँ
क भे टिाह गोिधटन। गौर िणट, ऊाँच कद, आौं द्वठया कारी-कारी केश, चे हरा पर
दे ििाक सुन्द्दरिा, दावहना हाथक पहुाँ चा लग लहसुवनयााँ क दाग आ सभ साँ
पै घ चे न्द्ह जे हमर वियोग मे िरासल पाषाण मूर्िि बनल उदास कोनो गाछक
ठारर पर बै सल। सै ह भे लाह हमर गोिधटन।“(13-14)
जखन नायक अथाटि राज शे खर दत्त यािा शुरू करै ि छतथ आ बल्ज्जका क्षे ि
मे अबै ि छतथ ि स्थानीय पाि मै तथली केर उपभाषा बल्ज्जका मे बाजब शुरू
करै ि अतछ:
“की कहली धमटकाां टा जाइबला बसक खोज मे बौआ रहली हएाँ । दे न्खऔ,
बसक किार मे लोहाक ढोल जकिी मुांहकान बला बस-, हाँ , हाँ , उहे जायि।
कब खुलि? वकिना टे म भे ल हे एाँ? ठीक एक घां टाक बाद साि बजे खुलि।
की पुछली, धमटकाां टा कब पहुाँ चि? सीरीमान, रौआ इहााँ फैल क’ गे ली।
खुलक टे म बिा सकै छी, पहुाँ चि कब िकर इनक्िायरी महािीर मां द्वदर मे होि।
पिनसुि त्रिकालदशी छथ, हुनका सभ जानकारी हवन। हम ि' मनुक्ख
हिी।“ (16)
उपरोक्ि कथन भाषा िै विध्य केर सम्मान करै ि अतछ सां गवह कोना वबहार मे
ओवह समय लोक जीबै ि छल। कोना सुविधा केर नाम पर ठकल जा रहल
छल, िकर णजिां ि प्रमाण।
स्मरण राखी जे ई उपन्द्यास ित्तटमान के लै ि भूिक यािा करबै ि छै क। ििटमान
समय केर सब बाि रखै ि चलै ि छै क। बस मे एक पति-पत्नी आपस मे िाक्
युद्ध मे लागल छतथ। हुनक िािाटलाप सुनला पर लोअर क्लास केर लोकक
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 189
रखलवन। दौड़-बरहा क' दरबानक जगह पर नौकरी रखा दे लवन। िाबि अखन
सुक्खा अठारह सय मात्रसक भे टि। अवगला एक िारीख साँ नौकरी शुरू है ि।
िाँ सूरि साँ घुतम काँ आवब अहााँ क वबदागरी करा क' गाम ल' जा रहल छी।“
(17)
घे तघया केर रस्िा मे जे बहलमान कन्द्हाइ मां डल भे टैि छवन से िीसरी कसम
केर वहरामन जकााँ लगै ि छै क मुदा जिे वहरामन वनकछल छै क कन्द्हाइ मां डल
ज्ञान, दशटन, धमट आद्वदक गूढ़ बुझबा मे प्रिीण। ओ अपन उपस्स्थति माि सां
मोनक सब दुवबधा समाप्ि करबाक क्षमिा रखै ि छतथ। कन्द्हाइ मां डल
अध्यात्म अन्द्िेषणक िीन गोट मागट, यथा प्रत्यक्ष, अनुमान एिां धामट ग्रन्द्थ सां
सूचना ले बाक सां दर्भिि ज्ञान दे माक साम्यट रखै ि छतथ। फेर ओकर तछलका
ओदारै ि ओकर अथट स्पष्ट करै ि छतथ। हुनक िाणी सां यि आ भाि गां भीर
छवन।
उपन्द्यासकार कन्द्हाइ मां डल केर मादे बिबै ि छतथ जे ज्ञान वबना शास्ि पुराण
पढ़ने वनत्य साधना सां से हो प्राप्ि कएल जा सकैि अतछ। िावह हुनका भुि,
भविष्य आ ििटमान केर ज्ञान छवन। तमतथला के लोक मे शास्ि बसल रहै ि
अतछ। एकर प्रमाण तथकाह कन्द्हाइ। ओ िे द, उपवनषद, पुराण, साां ख्य दशटन,
न्द्याय दशटन, मीमाां सा, शां कर अद्वैि, रामानुजक द्वैि आ रामकृष्णक वित्रशष्टाद्वैि
सब बुझैि छतथ आ अपन मां िव्य दे ि छतथ। कन्द्हाइ मां डल मोनक अतिररक्ि
शरीर मे बारह गोट इन्न्द्रय केर बाि करै ि छतथ आ चाहै ि छतथ जे मोन के सब
इन्न्द्रय पर वनयां िण राखए। कन्द्हाई कृष्णक युकक्ि, भिृहरर दशटन बिा सकैि
छतथ।
रूपक सौन्द्दयट आ विकृति केर िणटन से हो जे ना पाठक के अपना द्वदस न्खचै ि
हो। स्िे िाक स्िरुपक लघु िणटन दे खने छी, आब कवन पां जा के स्िरुप दे खी:
“ऊाँचाइ िीन, सिा िीन फीट। ठोकल आ ठसगर कद-काठी। बवहक्रम द' की
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 191
कहल जाय वकछु भ' सकैि छल। िीसी िे ल मे छानल पापड़ जकााँ घाें कचल
आ चड़कल हुनक दे हक चमड़ा, कौआ जकााँ दुनू आाँ न्ख दू द्वदस िकैि, उठल
नाक, ठाम-ठाम पर उड़ल आ भुल्ल भे ल माें छ, थथुनक नीचा तछवड़आयल
आ टे ढ़ भे ल दााँ ि, पीयर ढाबुस भे ल चे हरा आ कपार पर िे ल पोचकारल
जुल्फी। आब ककरा कहबै कुरूप? मुदा णजराफ छाप गां जी पवहरने पां जाक
बाजब मे गजब के माधुयट, विनम्रिा ककरो अपना िश मे करक ले ल पयाटप्ि
छलै ।“ (47)
नाि स जयबाक काल उलपी मलावहनक यौिन दे न्ख राज शे खर केर पुरुष
मोन जाग्रि भ जाइि छवन। एकर मनोिै ज्ञावनक िाक्य दे खल जाओ "उद्दांडिा
पुरुषक स्िाभाविक गुण तथकै। अिसर पावब ई गुण वनलटज् ज बनबा मे सां कोच
नवह करै ि अतछ । ओहुना भुखायल लोकक आगू लड्डूक थार रान्ख दे ला स जे
ने होअय।" (56)
उलपी केर दे हक िणटन करै ि काल सावहत्यकार हुनका मत्सगां धा बना दे ि
छतथ:
“तधपाओल सोनाक सूखट रां गबला हुनक काां ति, तछवड़आयल पै घ-पै घ केशक
लट, कान मे झष मैि चानीक झष मका, नाक मे सटल नतथया, मींचल ठोर,
पसीना मे भीजल लाल-लाल गाल, लहां गा आ ब्लाउज मे अपत्रसयााँ ि हुनक
यौिन। युििी गजब काँ सुन्द्नरर छलीह। ललगा साँ नािक सां िुलन सम्हारक ले ल
एक पयर मौं नािक माां ग पर टे कने छलीह। पयर अलिा साँ रां गल छलवन। पयर
मे पायल, पायल मे वबतछया आ वबतछया मे खनक सोझे हमर मति के
भत्रसयाब'क ले ल बहुि छल।“ (56)
उपली केर सौदयट कोना राज शे खर कें मादक बना रहल छवन िकर एक बानगी
आरो प्रस्िुि अतछ:
192 ||गजे न्द्र ठाकुर
“हुनक काजर साँ पोिल आाँ न्ख मे हमर आाँ न्ख ठक्कर मारलक आ िाही क्षण
हमर सत्यानाश भ' गे ल। जवहना मां डलजीक सम्पकट मे अवबिे हमर तचि मे
अध्यात्म प्रिे श क' गे ल छल, िवहना युििीक चुम्बवकए पररतध मे अवबिे हमर
मोन चटपट-चटपट कर' लागल। वबना हमर अनुमतिक हमर मोन चहक से हो
लागल। बहुि पवहने रफीक गाओल एकटा वहन्द्दी गीि मोन पवड़ गे ल –'ये
रे शमी जुल्फें, ये शरबिी आाँ खें'। शरबिीक अथट अपन भाषा मे की होइि छै
से िखने बुझा गे ल छल।“ (56)
कोना िां ियानी बौध सब तमतथला मे उत्पाि मचे ने छल हएि (?) िकर रोचक
वििरण एवह पोथी मे भे टैि अतछ। कारी िस्ि, लाल-लाल आाँ न्ख, कपार पर
ससिदूरक ठोप, नर मुांड पर दीप जरबै ि, अघोरी अथिा कापात्रलक स्िरुप,
क्रूरिा दे खबै ि, हुनकर भरै ि वकछु तचिण अवह पोथी कें विशे ष बनबै ि अतछ
आ ले खक कें गुणी। पोथी मे नाटकीयिा, आ मनोिै ज्ञावनक बाि सब सहजिा
सां कहल जा रहल छै क। स्िप्न क्य के मनोरां जक आ भयािह बने बाक साधन
बनै ि रहै ि छै क। बनै ्या सुलगर आ सााँ पक मल्ल युद्ध से हो विपरीि समय मे
रोमाां च उत्पन्द्न करै ि छै क। पाठक त्रसहरर उठै ि अतछ। स्िे िा आ गोिधटन द्वारा
नदी रस्सी के सहारे पार करब आ अां ि समय मे कापात्रलक द्वारा काटब, फेर
स्िे िा सां ग सां ग गोिधटन केर नदी केर बहै ि अगम जल मे वबला गे नाइ, रानी
आ राजा सां ग समस्ि प्रजा के हाहाकार करै ि नदी मे कुदनाइ आ सामूवहक
आत्महत्या अतिसय कारुणणक छै क।
हमरा लगै ि अतछ, शायद ले खक ई दृकय सब पाठक केर मोन पोथी मे लागल
रहवन िकरा ध्यान मे रखै ि करै ि छतथ। कारण अति धमट, िां ि, दशटन आद्वद
क्य कें बोणझल बना सकैि छलै क। चां द्चुरक व्यकक्ित्ि एक अलग द्वदशा मे
भे ल छै क जे शोधक विषय भ सकैि अतछ मुदा सावहत्य केर कल्पना मे वकछु
त्रलखल जा सकैि छै क। यािाक विस्िार महाराष्र सां होइि खां डिा आ दणक्षण
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 193
विदे ि: ३५३ म अां क ०१ लसतम्बर २०२२ (िषम १५ मास १७७ अां क ३५३)|
अां क ३५२ पर वटप्पिी
विद्यानन्द्द झा
प्रिि झा
यद्यवप पुिारर गााँ ि (ने हरा) क चौधरी खानदानसाँ हमर सां पकट रहल अतछ मुदा
एखन धरर हम श्री केदारनाथ चौधरीक सावहश्त्यक जीिन साँ पररतचि नै
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 195
छलहुाँ । विदे हक माध्यमसाँ हुनक पररचयक सां गे वकछु िृत्ताां ि आ हुनक रचना
पढ़बाक से हो अिसर भे टल।
"अबारा नवहिन" पवढ़ कऽ आजादीक ित्काल बादक अने को सामाणजक आ
राजनै तिक पररस्स्थतिक भान होइि छै क। ईहो जे तमतथला राज्यक माां ग किे क
पुराण छै क। पूिटमे एकर की कारण आ भूतमका सब रहलै अतछ।