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विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 19

गीि गाऊ।

अपन सफलिाक आकलन अनका प्रति कएल से िासाँ नापू नणि की ओवह
िस्िुसाँ जे अहााँ अनका हावन पहुाँ चा कऽ प्राप्ि केने छी। धोखा दे नाइ खराप
गप तछयै् धोखा खे नाइ नवह। साक्षात्कार केना ले बाक चाही ओवहमे की की
आिकयक वबन्द्दु छै से अिकय सीखू। अफिाह सुनू मुदा अपना द्वदससाँ ओवहमे
कोनो िृत्रद्ध िा योगदान नवह दे ल करू। अपन बच्चाक तचन्द्िा िा भएपर ध्यान
दे ल करू। अपन माएक सां ग बहस नवह करू। सभटा सुनलाहा चीजपर विर्श्ास
नवह करू। अहााँ लग जिे क पाइ अतछ ओवहमे साँ वकछु बचा कए खचट करू।
बूढ़-पुरानक सां ग भर व्यिहार करू। बुराइ आ अन्द्यायकेँ कखनो बदाटस्ि नवह
करू। प्रशां सात्मक पिकेँ सम्हाररकेँ राखू। कोनो से मीनारमे भाषण दे लाक बादे
छपल भाषण वििररि करू। वबयाहक बादे साँ अपन बच्चाक त्रशक्षा ले ल पाइ
बचे नाइ शुरू कऽ द्वदअ। मािा-वपिा अपन बच्चाकेँ आत्मवनभटर रहनाइ सिटदा
त्रसखाबथु। अहााँ िखने मानत्रसक रूपसाँ स्ििां ि भऽ सकब जखन अपन
समस्याक समाधान ले ल दोसराक मुाँहिक्की नवह करब। वििाह िा बच्चाक
पोषण ओिे क भररगर चीज नवह छै क। जखन अहााँ हाँ सब िाँ स्ििः अहााँ सुन्द्दर
दे खा पड़ब, खूब हाँ सू।जाधरर अहााँ नि-नि काज नवह करब िाधरर नि-नि
चीज कोना सीखब? जे अहााँ कोनो काज वबना िुवटक करए चाहब िाँ ओ
काज कवहयो नवह भऽ सकि। कोनो खराप भे ल सम्बन्द्धकेँ सुधारबा ले ल
किबो दे री भे लाक बादो प्रयास करबाक चाही। मानिीय भािना कोनो काज
करबामे आ किबो कद्वठन पररस्स्थतिकेँ पार पएबामे सफल होएि। कोनो
मागटक,कोनो विचारक आ कोनो कायटक जानकारी ओवहपर आगााँ बढ़लासाँ
पिा चलि, ओवहपर बहस कएलासाँ नवह। एकटा दोस िै ह अतछ जे अहााँ क
सभ गुण-दुगुटणसाँ अिगि रहलाक बादो अहााँ केँ पत्रसन्द्न करै ि अतछ।

अपन ज्ञान आ अनुभिकेँ सिटदा बााँ टू आ अपन िाक्, कमट आ वनणटयमे हरदम
20 ||गजे न्द्र ठाकुर

नम्र रह। अहााँ क तमिक ले ल जे वकयो नीक शब्दक प्रयोग करै छतथ िाँ िकर
जनिब तमिकेँ अिकय कराऊ। जे अहााँ बुझने सही काज छै क िकरा अिकय
करू। पवहचान बनबए ले ल काज नवह करू िरन् िे हन काज करू जकरा लोक
चीन्न्द्ह सकए आ मोन राखए। जीिनक पै घ-पै घ पररििटन वबना कोनो चे िौनीक
अबै ि छै क। अपन बच्चाकेँ ई त्रसखाऊ जे कोनो व्यकक्िक कमीकेँ कम कऽ
कए नवह मूल्ाां कन करए। जे कोनो काज अहााँ करै छी िकरा मोनसाँ करू।
कोनो नाटक खिम भे लापर थोपड़ी बजबै मे सिटदा आगू रह। सोचू, ओवहपर
विर्श्ास करू, सपना दे खू आ ओकरा पूणट करबाक साहस राखू।

किा ८

आब प्रस्तुत अथछ िमर २००८-०९ मे ललखल समीक्षा जे विदे िमे ई-


प्रकालशत भे ल आ फेर िमर पोिी "कु रुक्षे त्रम् अन्द्तममनक" (२००९) मे
सां कललत भे ल।

केदारनाथ चौधरीक उपन्द्यास- "चमे ली रानी" आ "माहुर"

केदारनाथ चौधरी जीक पवहल उपन्द्यास चमे ली रानी २००४ ई. मे आएल ।


एवह उपन्द्यासक अन्द्ि एवह िरहेँ आकषटक रूपेँ भे ल जे एकर दोसर भागक
प्रबल मााँ ग भे ल आ ले खककेँ एकर दोसर भाग माहुर त्रलखए पड़लन्न्द्ह।
धीरे न्द्रनाथ तमश्र चमे ली रानीक समीक्षा करै ि विद्यापति टाइम्समे त्रलखने
रहतथ- "...जे ना हास्य-सम्राट हररमोहन बाबूकेँ "कन्द्यादान"क पश्चाि्
"द्वद्वरागमन" त्रलखए पड़लवन िवहना "चमे लीरानी"क दोसर भाग
उपन्द्यासकारकेँ त्रलखए पड़िन्न्द्ह"। ई दुनू खण्ड कैक िरहेँ मै तथली उपन्द्यास
ले खनमे मोन राखल जएि। एक िाँ जे ना रामलोचन ठाकुर जी कहै ि छतथ-
"..पारस-प्रतिभाक एवह ले खकक पदापटण एिे विलन्गम्बि वकएक?" ई प्रकन
सत्ये अनुत्तररि अतछ। ले खक अपन ऊजाटक सां ग अमे ररका, ईरान आ आन
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 21

ठाम पढ़ाइ-त्रलखाइमे लागल रहतथ रोजगारमे रहतथ मुदा ममिा गाबए गीिक
वनमाटिा घुतम कऽ दरभां गा अएलाह िाँ अपन समस्ि जीिनानुभि एवह दुनू
उपन्द्यासमे उिारर दे लन्न्द्ह। राजमोहन झासाँ एकटा साक्षात्कारमे हम एवह
सम्बन्द्धमे पुछने रवहयन्न्द्ह िाँ ओ कहने रहतथ जे वबना जीिनानुभिक रचना
सां भि नवह, णजनकर जीिनानुभि जिे क विस्िृि रहिन्न्द्ह से ओिे क बे शी
वित्रभन्द्निा आ नूिनिा आवन सकिाह। केदारनाथ चौधरीक "चमे ली रानी"
आ "माहुर" ई त्रसद्ध करै ि अतछ। चमे ली रानी वबक्रीक एकटा नि कीर्ििमान
बने लक। माि जनकपुरमे एकर ५०० प्रति वबका गे ल। ले खक "चमे ली
रानी"क समपटण - "ओवह समग्र मै तथली प्रेमीकेँ जे अपन सम्पूणट णजनगीमे
अपन कौंचा खचट कऽ मै तथली-भाषाक कोनो पोथी-पत्रिका वकनने होतथ"- केँ
करै ि छतथ, मुदा जखन अपार वबक्रीक बाद एवह पोथीक दोसर सां स्करण
२००७ मे एकर दोसर खण्ड "माहुर"क २००८ मे आबए साँ पूिटवह वनकालए
पड़लन्न्द्ह, िखन दोसर भागमे समपटण स्िां भ छोड़नाइये ले खककेँ श्रे यस्कर
बुझेलन्न्द्ह। एकर एकटा वित्रशष्टिा हमरा बुझबामे आएल २००८ केर अन्गन्द्िम
कालमे , जखन हररयाणाक उपमुख्यमां िी एक मास धरर वनपत्ता रहलाह, मुदा
राजनतयक वििशिाक अन्द्िगटि जाधरर ओ घुरर कऽ नवह अएलाह िािि
हुनकापर कोनो कायटिाही नवह कएल जा सकल। अपन गुलाब तमश्रजी िाँ
से हो अही राजनीतिक वििशिाक कारण वनपत्ता रहलोपर गद्दीपर बै सले
रहलाह्, क्यो हुनका हाँ टा नवह सकल। चाहे राज्यक सां चालनमे किे क झां झवट
वकएक नवह आएल होअए।

उपन्द्यास-ले खकक जीिनानुभि, एकर सम्भािना चारर साल पवहनवहए त्रलन्ख


कऽ रान्ख दे लक। भविष्यिक्िा भे नाइ कोनो टोना-टापरसाँ सां भि नवह होइि
अतछ िरन् जीिनानुभि एकरा सम्भि बनबै ि अतछ।

एवह दुनू उपन्द्यासक पाि चमत्कारी छतथ, आ सफल से हो । कारण


22 ||गजे न्द्र ठाकुर

उपन्द्यासकार एकरा एवह ढां गसाँ सृणजि करै ि छतथ जे ना सभ िस्िुक हुनका
व्यकक्िगि अनुभि होइन्न्द्ह।

"चमे ली रानी" उपन्द्यासक प्रारम्भ करै ि ले खक एकर पवहल परीक्षामे उत्तीणट


होइि छतथ जखन एकर लयात्मक प्रारम्भ पाठकमे रुतच उत्पन्द्न करै ि अतछ।
-कीर्ििमुखक पााँ च टा बे टाक नामकरणक ले ल ओकर णजगरी दोस कन्द्टीरक
विचार जे "पााँ चो पाण्डि बला नाम बे टा सबहक रान्ख दहक। सुत्रभिा हे िौ"।
फेर एक ठाम ले खक कहै ि छतथ जे जिे क गतिसाँ बच्चा होइि रहै क से
कौरिक नाम राखए पवड़िै क। नातयका चमे ली रानीक आगमन धरर
कीर्ििमुखक बे टा सभक िणटन फेर एवह क्रममे अां ग्रेज डे म्सफोडट आ
रूपकुम्मररक सन्द्िान सुनयनाक वििरण अबै ि अतछ। फेर रूपकुम्मररक बे टी
सुनयनाक बे टी शवनचरी आ ने िाजी रामठें गा ससिह "तचनगारी"क वििाह आ
ने िाजी द्वारा शवनचरीकेँ कनही मोद्वदयावन लग लोक-लाजक द्वारे रान्ख पटना
जाएब, ने िाजीक मृत्यु आ शवनचरी आ कीर्ििमुखक वििाहक िणटन फेरसाँ
न्खस्साकेँ समे वट लै ि अतछ।

िकर बाद चमे ली रानीक िणटन अबै ि अतछ जे बरौनी ररफाइनरीक स्कूलमे
बोर्डिगमे पढ़ै ि छतथ आ एवह कनही मोद्वदयावनक बे टी छतथ। कनही
मोद्वदयावनक मृत्युक समय चमे ली रानी दसमाक परीक्षा पास कऽ ले ने छतथ।
भूखन ससिह चमे ली रानीक धमट वपिा छतथ। डकैिीक वििरणक सां ग
उपन्द्यासक पवहल भाग खिम भऽ जाइि अतछ।

दोसर भागमे विधायकजीक पाइ आवक खजाना लुटबाक वििरण, जे वक पूिट


वनयोणजि छल, एवह िरहेँ दे खाओल गे ल अतछ जे ना ई विधायक नाां गटनाथ
द्वारा एकटा आधुवनक बालापर कएल बलात्कारक पररणामक फल रहए।
आब ई नाां गटनाथ रहतथ मुख्यमां िी गुलाब तमत्रसरक खबास जे राजनीतिक
दााँ िपें चमे विधायक बवन गे लाह।
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 23

ई चररि २००८ ई.क अरविन्द्द अवडगक बुकर पुरस्कारसाँ सम्मावनि अां ग्रेजी
उपन्द्यास "द ह्वाइट टाइगर"क बलराम हलिाइक चररि जे चाहक दोकानपर
काज करै ि द्वदल्लीमे एकटा धवनकक ड्राइिर बवन फेर ओकरा मारर स्ियां
धवनक बवन जाइि अतछ, साँ बे श तमलै ि अतछ आ चारर बरख पूिट ले खक एवह
चररिक वनमाटण कऽ चुकल छतथ। फेर के.जी.बी. एजे न्द्ट भाटाजीक आगमन
होइि अतछ जे उपन्द्यासक दोसर खण्ड "माहुर" धरर अपन उपस्स्थति बे श
प्रभािी रूपेँ रखबामे सफल होइि छतथ।

उपन्द्यासक िे सर भागमे अहमदुल्ला खााँ क अत्रभयान से हो बे श रमनगर अतछ


आ ििटमान राजनीतिक सभ कुरूपिाकेँ समे टने अतछ। उपन्द्यासक चाररम
भाग गुलाब तमत्रसरक खे रहा कहै ि अतछ आ फेरसाँ अरविन्द्द अवडगक बलराम
हलिाइ मोन पड़ै ि छतथ। भुखन ससिहक सां गी पन्द्नाकेँ गुलाब तमत्रसर बजबै ि
अतछ आ ओकरा भुखन ससिहक नाां गटनाथ आ अहमदुल्ला अत्रभयानक
विषयमे कहै ि अतछ। सां गवह ओकरा मारबाक ले ल कहै ि अतछ से ओ मना
कऽ दै ि छै । मुदा गुलाब तमत्रसर भुखन ससिहकेँ छलसाँ मरबा दै ि अतछ।

पााँ चम भागमे भुखन ससिहक रस्टक चरचा अतछ, चमे ली रानी अपन अड्डा छोवड़
बै द्यनाथ धाम चत्रल जाइि छतथ। आब चमे ली रानीक राजनीतिक महत्िाकाां क्षा
सोझााँ अबै ि अतछ। स्स्टां ग ऑपरे शन होइि अतछ आ गुलाब तमत्रसर घे रा जाइि
छतथ।

उपन्द्यासक छठम भाग मुख्यमां िीक वनपत्ता रहलाक उपरान्द्िो माि फैक्ट
फाइां टडिग कमे टी बनाओल जएबाक चरचा होएबाक अतछ, जे कोत्रलशन
पोत्रलवटक्सक वििशिापर वटप्पणी अतछ।

उपन्द्यासक दोसर खण्ड "माहुर"क पवहल भाग से हो घुररयाइि-घुररयाइि


चमे ली रानीक पाटीक सां गठनक चारू काि आवब जाइि अतछ। स्िीपर
24 ||गजे न्द्र ठाकुर

अत्याचार, बाल-विधिा आ िै कयािृत्रत्तमे ठे लबाक िे हन सां गठन सभकेँ ले खक


अपन वटप्पणी ले ल चुनैि छतथ।

माहुरक दोसर भागमे गुलाब तमत्रसरक राजधानी पदापटणक चरचा अतछ।


चमे ली रानी द्वारा अपन अत्रभयानक समथटनमे नक्सली ने िाक अड्डापर
जएबाक आ एवह बहन्द्ने समस्ि नक्सली आन्द्दोलनपर ले खकीय दृतष्टकोण,
सां गवह बोनक आ आद्वदिासी लोकवनक सतचि-जीिन्द्ि वििरण ले खकीय
कौशलक प्रिीक अतछ। चमे ली रानी लग फेर रहस्योद्घाटन भे ल जे हुनकर
माए कनही मोद्वदयाइन बड्ड पै घ घरक छतथ आ हुनकर सां ग पटे ल द्वारा
अत्याचार कएल गे ल, चमे ली रानीक वपिाक हत्या कऽ दे ल गे ल आ बे चारी
माए अपन णजनगी कनही मोद्वदयाइन बवन वनिाटह कएलन्न्द्ह। ई सभ गप
उपन्द्यासमे रोचकिा आवन दै ि अतछ।

माहुरक िे सर भाग फेरसाँ पचकौड़ी तमयााँ , गुलाब तमत्रसर, आइ.एस.आइ. आ


के.जी.बी.क षडयन्द्िक बीच रहस्य आ रोमाां च उत्पन्द्न करै ि अतछ।

माहुरक चाररम भाग चमे ली रानी द्वारा अपन माए-बापक सां ग कएल गे ल
अत्याचारक बदला ले बाक िणटन दै ि अतछ, कैक हजार करोड़क सम्पत्रत्त
अएलासाँ चमे ली रानी सम्पन्द्न भऽ गे लीह।

माहुरक पााँ चम भाग राजनै तिक दााँ ि-पें च आ चमे ली रानीक दलक विजयसाँ
खिम होइि अतछ।

वििे चन: उपन्द्यासक बुजुटआ प्रारम्भक अछै ि एवहमे एिे क जवटलिा होइि
अतछ जे एवहमे प्रतिभाक नीक जकााँ परीक्षण होइि अतछ। उपन्द्यास विधाक
बुजुटआ आरम्भक कारण सिां िीजक "डॉन कक्िक्जोट", जे सिहम
शिाब्दीक प्रारम्भमे आवब गे ल रहए, केर अछै ि उपन्द्यास विधा उन्द्नैसम
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 25

शिाब्दीक आगमनसाँ माि वकछु समय पूिट गम्भीर स्िरूप प्राप्ि कऽ सकल।
उपन्द्यासमे िाद-वििाद-सम्िादसाँ उत्पन्द्न होइि अतछ वनबन्द्ध, युिक-युििीक
चररि अनै ि अतछ प्रेमाख्यान, लोक आ भूगोल दै ि अतछ िणटन इतिहासक,
आ िखन नीक- खराप चररिक कथा सोझााँ अबै ि अतछ। कखनो पाठककेँ ई
हाँ सबै ि अतछ, कखनो ओकरा उपदे श दै ि अतछ। माक्सटिाद उपन्द्यासक
सामाणजक यथाथटक ओकालति करै ि अतछ। फ्ायड सभ मनुक्खकेँ
रहस्यमयी मानै ि छतथ। ओ सावहश्त्यक कृतिकेँ सावहत्यकारक विश्ले षण ले ल
चुनैि छतथ िाँ नि फ्ायडिाद जै विकक बदला साां स्कृतिक ित्िक प्रधानिापर
जोर दै ि दे खबामे अबै ि छतथ। नि-समीक्षािाद कृतिक विस्िृि वििरणपर
आधाररि अतछ। एवह सभक सां ग जीिनानुभि से हो एक पक्षक होइि अतछ
आ िखन एिए दबाएल इच्छाक िृश्प्िक ले ल ले खक एकटा सां सारक रचना
कएलन्न्द्ह जावहमे पाठक यथाथट आ काल्पवनकिाक बीचक आवड़-धूरपर
चलै ि अतछ।

किा ९

साकेतानन्द्द प्रकरि

साकेिानन्द्दक १२ निम्बर २००९ केर पोस्ट,

http://saketanands.blogspot.com/2009/11/blog-
post_12.html

ओ त्रलखै ि छतथ:

"हमरा लगै ये जे जे ना ने िा सब के भीड,मां च आ माइक के दे न्खिे वकछु


26 ||गजे न्द्र ठाकुर

सबसबाय लगै ि छै , िवहना वकछु ले खको होइ छवन। कवहया कि' दू_चारर
टा रचनाक की चचाट भे लवन, बस भ' गे ला स्थावपि । िवहया स' जाँ कोनो
सावहश्त्यक मां च नज़रर एलवन, वक कुसी हतथये बालय िृिोश्ष्म भे टिा। पटना
मे मुन्द्नतिद पुस्िक मे ला मे नामिर सां गे आलोकधन्द्िा के बै सल दे न्ख लागल
जे ले खन आ सावहत्यक राजनीति, दुनू दू छोरक चीज छै क, जे एक सां गे भै ये
ने सकैि अतछ। मै तथलीमे एखन िक अपन माां वटि उदारिा, अयाचीिृत्रत्तक
तछकार छै के। एखनो वबना विचारने _त्रसचारने , जे ई के छापि आ वक िह स'
बवढ क' जे एकरा के पढि ? लोक त्रलखै ये, त्रलन्खिे जारहल अतछ।

हमरा जनै ि पढै क िस्िु( कोन आ केहे न ?) भे टिै ि' लोक पढबे करिै ।

िौं वक आब लोक 'चमे ली रानी' त्रलखय ?"

किा १०

ई कोनो किा नै

साकेिानन्द्द विद्वान लोक रहतथ ईष्याटिश त्रलन्ख गे ला आ से प्रिारणा हररमोहन


झाकेँ से हो सहऽ पड़ल रहन्न्द्ह। ने हररमोहने झा आ नवहये केदार नाथ चौधरी
सुभावषि माि रटने छला। दत्त-चटजीक "इण्रोडक्शन टू इस्ण्डयन
वफलोसोफी"क वहन्द्दी अनुिाद ओ अनुिाद-पुरस्कार ले ल नै िरन् अपन
दशटनशास्िक प्रोफेसरत्रशपकेँ त्रसद्ध करय ले ल केने छला। सां स्कृिक श्लोक
सभ ओ अपन पाि खट्टर-ककाकेँ से हो रटे ने छला प्रयोगमे अन्द्िर मुदा भे टि।

लोक मै तथली ले ल अपन सिटस्ि लुटेने अतछ, डॉ कल्पना मणणकान्द्ि तमश्र आ


केदारनाथ चौधरी माि उदाहरण छतथ। लोक ठकहरबा सभसाँ डे राइि अतछ
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 27

खास कऽ रां गमां च आ वफल्मक नामपर टण्डे ली मारर रहल लोक सभसाँ ।
भ्रमरजीक िाँ सी.डी.ये लोक अपन नामसाँ वनकलबा ले लक। सएह हाल
सावहत्योमे छै ।

जाँ उपरका कथा सभ अहााँ केँ त्रसहरे लक िाँ समानान्द्िर धाराक सां ग चत्रल पड़ू
आ जाँ से नै िाँ हमर प्रयास जारी रहि, आ िइ ले ल विशे षाां क सभ वनकलै ि
रहि।

अपन मां तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


28 ||गजे न्द्र ठाकुर

प्रस्तुत विशे षाां कक सां दभममे

निम्बर 2021 केँ विदे ह "केदारनाथ चौधरी विशे षाां क" प्रकात्रशि करबाक
सािटजवनक घोषणा केलक आ प्रस्िुि अतछ ई विशे षाां क। एवह सूचनाकेँ एवह
सलिकपर दे न्ख सकैि छी-घोषणा।

मै तथलीमे एकटा वितचि स्स्थति छै टहिदीसाँ विचारधारा आयाि करबाक। आ


एहने एकटा विचार छै "गां भीरिा बनाम लोकतप्रयिा"। टहिदी आ मै तथली छोवड़
आन भाषामे ई बे मारी नै भे टि। उदूटमे जािे द अख्िर अपन वफल्मी डायलाग
ले ल, अपन वफल्मी गीि ले ल त्रसने मा केर पुरस्कार पाबै छतथ िाँ अपन गजल
ले खन ले ल सावहत्य अकादे मी पुरस्कार से हो। टहिदी केर नकलक कारणे
मै तथलीमे ई स्स्थति कवहयो नै आवब सकि। िस्िुिः "गां भीरिा बनाम
लोकतप्रयिा" केर िाद वकछु अगां भीर ओ अलोकतप्रय ले खक सभ
द्वारा "गां भीर मुदा लोकतप्रय" ले खक केर विरुद्ध रचल षडयन्द्ि छै । चां दा झा
गां भीर ओ लोकतप्रय छतथ िाँ हररमोहन झा से हो। सीिाराम झा होतथ, वकरणजी
होतथ िा वक मधुपजी। ई सभ गां भीर आ लोकतप्रय दूनू छतथ। जे लोकवन
लोकतप्रयिाकेँ गां भीरिासाँ अलग मानै छतथ तिनकर रचनाकेँ नीकसाँ वििे चना
करू िाँ हाथमे सुन्द्ने-सुन्द्ना आएि।

केदारनाथ चौधरी मै तथलीमे एहन नाम छतथ णजनका लग गां भीरिा से हो छवन
आ लोकतप्रयिा से हो। लोकतप्रयिा िे हन जे वहनका तछटकी मारबाक
ले ल 2004 साँ धरर एखन धरर बारर दे ल गे ल (अपिादमे प्रबोध सावहत्य
सम्मान ओ एक-दू स्थानीय सम्मान समारोह मानू)।

एहन नै छै जे केदारजीपर त्रलखल नै गे लै मुदा ओ सभ एकट्ठा नै भऽ सकल


विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 29

छै िाँ इ ओकर प्रभाि हे ड़ा गे ल छै । एवह सां दभटमे हम कवह सकै छी जे विदे हक


ई प्रस्िुि विशे षाां क एहन पवहल प्रयास अतछ जावहमे ई बुझबाक प्रयास कएल
अतछ जे केदारनाथजीक रचना केिक गां भीर आ किे क लोकतप्रय अतछ। ई
अलग बाि जे हम सभ किे क सफल िा असफल भे लहुाँ से पाठक कहिा।
एवह विशे षाां क केर शुरूआि विदे हक आने विशे षाां क जकााँ नि आलोचक-
समीक्षक सभहक आले खसाँ कएल जा रहल अतछ। सां गे-सां ग ई क्रम ने िाँ
उम्रक िररष्ठिा केर पालन करै ए आ ने रचनाक गुणित्ताक। हाँ , एिे क धे आन
जरूर राखल गे ल छै जे पाठकक रसभां ग नवह होइन आ से विर्श्ास अतछ जे
रसभां ग नै हे िवन।

पाठक जखन एवह विशे षाां ककेँ पढ़िाह िाँ हुनका ििटनी ओ मानकिाक अभाि
लगिवन। ििटनीक गलिी जे तथक से सोझे -सोझ हमर सभहक गलिी तथक
जे हम सभ सां शोधन नै कऽ सकलहुाँ मुदा ई धे आन रखबाक बाि जे विदे ह
शुरुएसाँ हरे क ििटनी बला ले खककेँ स्िीकार करै ि एलै ए। िाँ इ मानकिा
अभाि स्िाभाविक। एकर बादो बहुि ििटनीक गलिी रहल गे ल अतछ जे वक
हमरे सभहक गलिी अतछ। मै तथलीमे वकछु ए एहन पत्रिका अतछ जकर ििटनी
एकरां गक रहै ि अतछ आ ई हुनक खूबी छवन मुदा जखन ओहो सभ कोनो
विशे षाां क वनकालै छतथ िखन ििटनी िाँ ठीक रहै ि छवन मुदा सामग्री
अतधकाां शिः बत्रसये रहै ि छवन। ऐतिहात्रसकिाक दृतष्टसाँ कोनो पुरान सामग्रीक
उपयोग िर्जिि नै छै मुदा सोतचयौ जे 72-80 पन्द्नाक कोनो प्प्रिट पत्रिका
होइि छै िावहमे लगभग आधा सामग्री साभार रहै ि छवन, िे सर भागमे ले खक
केर वकछु रचना रहै ि छवन आ चाररम भागमे वकछु नि सामग्री रहै ि छवन।
मुदा हमरा लोकवन नि सामग्रीपर बे सी जोर दै ि तछयै । एकर मिलब ई नवह
जे ििटनीमे गलिी होइि रहै । हमर कहबाक मिलब ई जे सां पादक-सां योजककेँ
कोनो ने कोनो स्िरपर समझौिा करहे पड़ै ि छै से चाहे ििटनीक हो वक, मुराक
हो वक विचारधारक हो वक सामग्रीक हो। हमरा लोकवन ििटनीक स्िरपर
30 ||गजे न्द्र ठाकुर

समझौिा कऽ रहल छी मुदा कारण सवहि। प्प्रिट पत्रिका एक बे र प्रकात्रशि


भऽ गे लाक बाद दोबारा नै भऽ सकैए (भऽ िाँ सकैए मुदा फेर पाइ लावग
जे िै) िाँ इ ओकर ििटनी यथाशकक्ि सही रहै ि छै । इां टरने टपर सुविधा छै जे
बीचमे (इां टरने टसाँ प्प्रिट हे बाक अितध) ओकरा सही कऽ सकैि छी मुदा
समातग्रए बत्रसया रहि िाँ सही ििटनी रवहिो नि अध्याय नै खुणज सकि िाँ इ
हमरा लोकवन ििटनी बला मुद्दापर समझौिा केलहुाँ । हमरा लोकवन
कएलवन, कयलवन ओ केलवन िीनू शुद्ध मानै ि छी, एिे क शुद्ध मानै ि छी एकै
रचनामे िीनू रूप भे वट जाएि। आन शब्दक ले ल एहने बूझू।

उम्मे द अतछ जे पाठक विदे हक आने विशे षाां क जकााँ एकरा पढ़िाह आ पवढ़
एकर नीक-बे जाएपर अपन सुझाि दे िाह। विदे ह अरविन्द्द ठाकुर विशे षाां क
केर पोथी रूप "स्ििां िचे िा" केर नामसाँ प्रकात्रशि भे ल उम्मे द जे भविष्यमे
केदारनाथ चौधरीजीपर केंवरि एवह विशे षाां क केर पोथी रूप से हो आएि।

विदे ह द्वारा "जीबै ि मुदा उपे णक्षि" शृखां लामे प्रकात्रशि भे ल आन विशे षाां क
सभहक त्रलस्ट एना अतछ (एवहठाम जे अां कक त्रलस्ट दे ल गे ल अतछ िावह
अां कपर ल्क्लक करबै िाँ ओ अां क खुणज जाएि)-
1) अरविन्द्द ठाकुर विशे षाां क 189 म अां क 1 निम्बर 2015 (ई
विशे षाां क 2020 मे पोथी रूपमे से हो आएल अतछ(
2) जगदीश चन्द्र ठाकुर अवनल विशे षाां क 191 म अां क 1 द्वदसम्बर 2015
3) रामलोचन ठाकुर विशे षाां क 319म अां क
4) राजनन्द्दन लाल दास विशे षाां क 333म अां क
5) रिीन्द्र नाथ ठाकुर विशे षाां क 15 जून 2022

अपन मां तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 31

केदारनाि चौधरीजीक सां णक्षप्त पररचय

एवहठाम प्रस्िुि अतछ केदारनाथ चौधरीजीक सां णक्षप्ि पररचय। एवह पररचयक
अतधकाां श ि्य अरविन्द्द गुप्िाजी एिां कामे र्श्र चौधरीजीसाँ भे टल अतछ।

विशे ष पररचय- मै तथलीक पवहल वफल्म 'ममिा गाबय गीि' केर वनमाटिा
द्वयमे साँ एकटा वनमाटिा छतथ केदारनाथ चौधरी आ दोसर मदनमोहन दास।
बादमे आर्थिक मजबूरीिश िे सर सहवनमाटिा भे लन्खन उदयभानु ससिह।

नाम : केदारनाथ चौधरी


मािा-स्ि. कुसुमपरी दे िी
32 ||गजे न्द्र ठाकुर

वपिा- स्ि. वकशोरी चौधरी


जन्द्म: 03/01/1936
ग्रा.+पिा. ने हरा (दरभां गा)
अन्द्य पाररिाररक सदस्य-
पत्नी-श्रीमिी कुमुद चौधरी
सां िान- प्रथम पुिी-श्रीमिी वकरण झा, द्वद्विीय पुिी-श्रीमिी अचटना चौधरी

त्रशक्षा- 1958 ई.मे अथटशास्िमे स्नािकोत्तर, 1959 ई.मे लॉ। 1969 ई.मे
कैत्रलफोर्निया वि.वि.साँ अथटस्थास्ि मे स्नािकोत्तर, 1971 ई.मे माकेटटिग एां ड
वडस्रीब्यूशन विषयमे गोल्डे न गे ट यूवनिर्सिटी, सानफ्ाां त्रसस्को, USA साँ
एम.बी.ए., 1978मे भारि आगमन। 1981-86क बीच िे हरान आ
प्रौंकफुिटमे। फेर बम्बई, पुणे होइि ररटायरमें टक बाद 2000 साँ
लहे ररयासराय, दरभां गामे वनिास।

ििटमान पिा- वहडे न काटे ज, बां गाली टोला, लहे ररयासराय, दरभां गा-
846001

ले खन /प्रकाशन (एखन धरर केदारजीक जिे क पोथी प्रकात्रशि भे लवन से


विदे ह पोथी डाउनलोडपर राखल गे ल अतछ आ एवहठाम जे पोथीक त्रलस्ट दे ल
गे ल अतछ िावहमे पोथीक नामपर ल्क्लक करबै िाँ ओ पोथी खुणज जाएि)
1) चमे लीरानी (विधा-उपन्द्यास, प्रकाशन िषट- 2004, दोसर सां स्करण-
2007, प्रकाशक-इां वडका इां फोमीवडया, द्वदल्ली, एवह पोथीक चाररम
सां स्करण हे बाक से हो सूचना अतछ मुदा हम िे सर ओ चाररम सां स्करण नवह
दे न्ख सकल छी)
2) करार (विधा-उपन्द्यास, प्रकाशन िषट- 2006, प्रकाशक-इां वडका
इां फोमीवडया, द्वदल्ली)
3) माहुर (विधा-उपन्द्यास, प्रकाशन िषट- 2008, प्रकाशक-इां वडका
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 33

इां फोमीवडया, द्वदल्ली, ई पोथी चमे ली रानीक दोसर भाग छै )


4) अबारा नवहिन (विधा- सां स्मरणात्मक उपन्द्यास, प्रकाशन िषट-
2012, दोसर सां स्करण-2013 प्रकाशक-इां वडका इां फोमीवडया, द्वदल्ली। ई
पोथी बखट 2015 मे ने शनल बुक रस्टसाँ से हो छपल।)
5) हीना (विधा-उपन्द्यास, प्रकाशन िषट- 2013, दोसर सां स्करण-
2020, प्रकाशक-इां वडका इां फोमीवडया, द्वदल्ली)
6) अयना (विधा-उपन्द्यास, प्रकाशन िषट- 2018, प्रकाशक-इां वडका
इां फोमीवडया, द्वदल्ली)

सम्मान- (एवहठाम जावह सम्मानक त्रलस्ट दे ल गे ल अतछ िावहमे सम्मानक


नामपर ल्क्लक करबै िाँ ओवह सम्मानक सोसट खुणज जाएि)
1) विदे ह सावहत्य सम्मान, बखट-2013 (झारखां ड मै तथली मां च, रााँ ची द्वारा)
2) प्रबोध सावहत्य सम्मान, बखट-2016
3) केदार सम्मान, बखट-2016,'अबारा नवहिन' ले ल

4) ििटमानमे लत्रलिनारायण तमतथला विर्श्विद्यालयसाँ िीन छाि द्वारा


केदारनाथ चौधरीजीक सावहत्यपर शोधरि छतथ।

ऐ रचनापर अपन
मां तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।
34 ||गजे न्द्र ठाकुर

कहपना झा, पटना

इएि गूड़ खे ने,कान छे दौने

विदे हक सम्पादक द्वारा जखन केदारनाथ चौधरी विशे षाां क वनकालबाक


घोषणा भे ल िखन णजज्ञासा भे ल जे आन्खर ई कोन महान सावहत्यकार छतथ
जवनका उपर विशे षाां क वनकात्रल रहल अतछ विदे ह। णजज्ञासा शान्द्ि करबा ले ल
जखन वहनकर पोथी सभ पढ़ब शुरू केलहुाँ िाँ एकक बाद एक लगािार
चमे लीरानी,करार,माहुर आ अबारा नवहिन, चारर गोट उपन्द्यास पवढ़ गे लहुाँ ।
पोथी सभ पवढ़ एक टा अपराध बोध सन लागए लागल,एहन उत्कृष्ट रचना
सभक रचनाकारक नामसाँ हम एखन धरर अनत्रभज्ञ छलहुाँ ,िावह ले ल। जखन
वक 'ममिा गाबए गीि' त्रसने मा जकर वनमाटणक कथा अतछ "अबारा
नवहिन" से दे खने छलहुाँ अस्सीक दशकमे ,प्रायः १९८३िा १९८४मे । मुदा
वनमाटिाक नामसाँ अनत्रभज्ञ छलहुाँ । दस-बारह बरखक बएसमे ओिबा उवह नवह
रहै ि छै लोककेँ जे त्रसने माक वनमाटिा-वनदे शकक जनिब भे टैक। िावह द्वदन
परदाक पाछााँ क लोक ििे क चचाटमे रवहिो नवह छल।

एहन रोचक उपन्द्यास सभक रचतयिाक नाम पयटन्द्ि नवह सुनल छल


हमरा,जखन वक हम अपनाकेँ सावहत्य प्रेमी लोक बुझैि रहल छलहुाँ ,नवह
जावन कोना,वकएक?
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 35

मै तथली सावहत्य माने महाकवि विद्यापति, हररमोहन झा, यािीजी,मधुप


जी,वकरण जी,उपे न्द्रनाथ झा'व्यास'जी,त्रलली रे , प्रभास कुमार
चौधरी,राजकमल,लत्रलि,एिबे सुनल/बूझल छल। माने वकछु सावहत्य
अकादमी विजे िा सावहत्यकारक नामसाँ आ हुनकर कृत्य सभसाँ अिगि
छलहुाँ ,बस। केहन कूपमां डूकिा छल,आब सोशलमीवडयाक कृपासाँ घर बै सल
दुवनआाँ दे न्ख/सुवन रहल छी,िे हेन सन लागै ए।वनन्श्चि रूपसाँ इां टरने ट एक
अत्यन्द्ि उपयोगी आविष्कार अतछ विज्ञानक।

केदारनाथ चौधरी जीकेँ मै वरकसाँ एम ए धररक अध्ययन कालमे जे मै तथली


प्रेम रोग लगलवन, हुनक ओवह मै तथली प्रेम रोगकेँ जाँ मै तथल समाजसाँ समुतचि
सहयोग भे वटिवन,उत्साहिधटन कएवनहार लोक भे वटिवन िाँ मै तथल
समाज, मै तथली भाषाक किे क उत्थान भे ल रहै ि। मुदा मै तथल समाजक
असहयोगी प्रिृत्रत्तक कारणेँ एक टा प्रतिभासां पन्द्न व्यकक्ित्ि 'वहडे न
कॉटे ज'क सीमारे खामे सीतमि भ' क' रवह गे लाह। हुनक व्यतथि मोन मै तथल
लोक आ मै तथल समाजसाँ विरक्ि सन भए गे ल हे िवन,िे हेन सन लागै ि
अतछ।ओ मै तथली प्रेमी िन मन धन लगा दे लवन मै तथली त्रसने मा "ममिा गाबए
गीि"क वनमाटणमे ,आ बदलामे हुनका प्रोत्साहन, सराहना ओ प्रशां साक
जगहपर बस सां घषट, हिोत्साह टा भे टलवन।

"अबारा नवहिन" पोथीक माध्यमसाँ अपन सां घषटक एहन रोचक वििरण
दे लवन अतछ,जे एकहु क्षण ले ल पाठकक मोन द्वदक नवह भ' सकैि अतछ,जे
ई की अपन दुखनामा त्रलन्ख क' प्रकात्रशि करा ले लवन अतछ ले खक।
सां स्मरणात्मक उपन्द्यास रवहिहुाँ , एवह उपन्द्यासमे सभ ित्िक समािे श
अतछ,जे एक टा उपन्द्यास विधाक ररक्िायरमें ट होइि छै । माने गामसाँ
ल' क' शहर धररक सामाणजक पररस्स्थतिक तचिण,ओवह समयक
राजनीतिक पररस्स्थति,गाम घरक आपसी
36 ||गजे न्द्र ठाकुर

िै मनस्यिा, कुटचात्रल,भ्रष्टाचार, चीन ओ पावकस्िान द्वारा भारिपर


आक्रमणक चचाट,प्रिासी मै तथल समाजक दृतष्टकोण अपन तमतथला-मै तथली
ले ल,सभ टा समटै ि अपन व्यथा कथा कहने छतथ आ रोचक ढां गसाँ कहने
छतथ। अपन मै तथली प्रेम रोगक चचाट किे क सहज,सरल रूपेँ कएलवन अतछ
ले खक,से एवह छोट सन अां शमे दे खल जा सकैछ-"रोगक नाम भे ल मै तथली
प्रेम रोग।अपन व्यथाक वििरण द्वदअ पड़ि।अहााँ केँ हमर व्यथा राग केहन
लागल िकर प्चििा हमरा कवनकबो नवह अतछ। हमर मोनक सां िाप अबस्से
कम भ' जाएि िैँ हमरा बड़बड़ाए द्वदअ।" अपन मोनक सां िाप कम करबाक
क्रममे एहन उत्कृष्ट पोथी पाठकक सोझााँ परसब साधारण गप्प नवह।

"अबारा नवहिन" उपन्द्यास पवढ़ जे त्िररि प्रतिवक्रया हमर छल, जे हम मोने


मोन बड़बडे लहुाँ , "अरे ! एक टा वफल्म िाँ एवह पोथीक कथानकपर से हो बवन
सकैि अतछ।" 'ममिा गाबए गीि' वफल्म बने बाक क्रममे वफल्मक
वनमाटिाद्वय केदारनाथ चौधरी आ महां थ मदन मोहन दास द्वारा भोगल एवह
व्यथा-कथापर 'सुपरवहट' वफल्म बवन सकैि अतछ । ई गप्प हम हास्य-
विनोदमे नवह,गां भीरिासाँ कवह रहल छी। एवह वफल्मक नाम "इएह गूड़ खे ने
कान छे दौने " राखल जे बाक चाही। हमर अनुमाने टा नवह,पूणट विर्श्ास अतछ
जे एवह वफल्मकेँ 'ममिा गाबए गीि' वफल्मसाँ बे सी पत्रसन करिाह मै तथली-
प्रेमी दशटक।कारण एवहमे जे त्रलखल अतछ से यथाथट अतछ,काल्पवनक वकछु
नवह। आ सत्य घटनापर आधाररि,ररयल हीरो बला कथापर बनल वफल्म बे सी
पत्रसन कएल जा रहल अतछ,एखनुक समयमे । चाहे ओ कोनो व्यकक्िक
जीिनपर आधाररि होअए टकििा कोनो ऐतिहात्रसक घटनापर।

मै तथल समाजक सिटश्रेष्ठ उपातध "अबारा नवहिन" ग्रहण क' आ अपन मान-
सम्मान एिां अत्रभमानकेँ थुरी-थुरी होइि दे न्ख,जखन ले खक आ हुनकर तमि
मदन भाइ कलकत्तासाँ आपस दरभां गा एबाक वनश्चय केलवन,िखन वनन्श्चि
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 37

इएह फकड़ा मोनमे आएल हे िवन "इएह गूड़ खे ने,कान छे दौने ।" जखन वक
मै तथली भाषामे वफल्म बना क' लाभ होएि, यश भे टि आकी मै तथल
समुदायक बीच प्रशां साक पाि बनब,िावह द्वदश वहनका लोकवनक ध्यान गे ले
नवह रहवन।माि मै तथली भाषाक रक्षाथट वफल्म बने बाक आयोजन कएने
रहतथ,जे ना वक ले खक त्रलखलवन अतछ एवह उपन्द्यासमे । एवह पोथीमे
मै तथलीक पवहल त्रसने माक वनमाटण-यािाक बहन्द्ने मै तथल समाजमे यि-िि
उपलब्ध पां वडि, बुतधआर,बुत्रद्धजीिी,विद्वान, जे कहल जाए,िवनकर सभक
मानत्रसकिाक सटीक आ वनभीक तचिण से हो कएल गे ल अतछ। उपन्द्यासक
मुख्य पाि महां थ मदन मोहन दास जीक मुहेँ कहल गे ल िक्िव्य दे खल जा
सकैछ-"तमतथलामे पां वडि छतथ,बुतधआर छतथ,बुत्रद्धजीिी छतथ,मुदा सभटा
विद्वान एकटा खास सां भ्राां ि जातिक छतथ। सभहक दुआररपर अहां कारक माला
टााँ गल छवन। ओ भाषण दे बामे कुशल छतथ, कवििा कर'मे वनपुण छतथ, कथा
त्रलख'मे पटु छतथ आ आन आन गुणसाँ से हो विभूवषि छतथ। मुदा िमाम
पां वडिक बीच प्रतिस्पधाट छवन। वकयो वकनकोसाँ छोट नवह।सभटा पां वडिकेँ एक
मां चपर आनब असां भि। एक दोसराक आलोचना करै ि करै ि अपन अपन
अलग अलग मां डली बना क' अपन त्रभिरका इखाटक पूजे टा क' रहल छतथ।
आब विचाररयौ जे एवह ठामक पां वडिक एहन स्िभाि वकएक छवन।एकर
जिाब अतछ जे अत्यतधक सां स्कारी,अत्यतधक पाां वडत्य एहन विरल स्िभािकेँ
जन्द्म दै ि अतछ। ित्रशष्ठ एिां विर्श्ातमि दुनूक िकट वििकट आ एक दोसराकेँ
पछाड़ै क जन्द्मजाि प्रिृत्रत्त। िकरे प्रतिफल अतछ जे सभटा पां वडि अपन अपन
अहां कारक ओढ़नामे नुकाएल छतथ। तमतथलाक पाां वडत्य फूल नवह कााँ ट बवन
गे लैए। ई कााँ ट जाबे िक अवगला पााँ िमे बनल रहिै क,विद्यापति समारोह होइि
रहिै क। मुदा तमतथलाक सामाणजक, आर्थिक एिां राजनीतिक प्रगतिमे
मुख्यिः की बाधक छै क, िकर सही सही जानकारी कवहयो नवह भे टिै ।"
38 ||गजे न्द्र ठाकुर

तमतथलाक महान िथाकतथि हाइप्रोफाइल व्यकक्ित्िक मानत्रसकिाक


विश्ले षण करै ि एकटा दोसर प्रसां ग से हो मोन पड़ै ए। बां बइमे वफल्म "ममिा
गाबए गीि" ले ल वििरकक खोजमे अपत्रसआाँ ि भे ल ले खक,मदन मोहन जी
आ भानु बाबूक पाला जखन पड़ै ि छवन इनकम टै क्स महकमाक कमीकनर
साहबसाँ । महाराष्र सरकारमे चीफ ड्रग कांरोलर जीक नाम लै िे दे री हुनकर
तमजाजक पलटी मारब,महान मै तथलक प्रतिद्वांद्वद्विाक पोल खोलै ि प्रकरण
अतछ। दू गोट महान मै तथल आत्मा, एक दोसराक एहन प्रतिद्वांद्वी ? दुखद
अतछ ई स्स्थति। एवह प्रतिद्वांद्वदिाक फेरामे प्रिासी मै तथल दू खे मामे बाँ वट जाइि
अतछ। दुनू महान मै तथलक माथपर सोनाक पाग। सोनाक पागमे कलयुगक
िास। कलयुगक त्रसपहसलार भे ल अहां कार। अहां कारक पुििधू भे लीह इखाट।
िोरासाँ हम कोन बािमे छोट। िाेँ बड़ पै घ, िाँ सड़ अपन घरमे । दू फााँ क भे ल
मै तथल समुदायक एकवह टा कायटक्रम छलै । अपन भाषा अथाटि मै तथली
भाषामे एक दोसराकेँ गावड़ पढ़ब।जे होउक,िन-मन-धनसाँ बनाएल मै तथलीक
पवहल वफल्म "ममिा गाबए गीि" प्रिासी मै तथल महासां घक दू फााँ क भे ल
चक्कीमे वपसा गे लवन।

एहन भयािह स्स्थतिमे केहनो मै तथली प्रेमी, मै तथल समाजक उपकार ले ल


कोनो काज करबाक सहास कोना क' सकिाह। िैँ बे र बे र ले खक अपन
कपारकेँ कोसै ि सन चचाट करै ि छतथ अपन मै तथली प्रेम रोगक। एहन सन
जे ना मति मारल गे ल छलवन जे ई असाध्य रोग लगलवन। ले खकक शब्दसाँ
स्पष्ट बुझबामे आवब रहलए,जे मै तथली प्रेम रोगसाँ ग्रत्रसि होएब,दुभाटलयक
गप्प-"सरल तचत्त एिां मै तथली भाषाले ल पूणटि: समर्पिि दीपक जीक
सम्पकटमे रहै ि रहै ि हमरा मै तथली प्रेम रोग नीक जकााँ जकवड़ ले लक। ियसक
सां ग रोगमे विस्िार होइि गे ल।" ई मै तथली प्रेम रोग सौभालयक गप्प बवन
सकैि छलवन, जाँ समाजक प्रतितष्ठि, बुत्रद्धजीिी, बुतधआर
लोकसाँ , एहन मै तथली प्रेम रोगीकेँ उतचि मान सम्मान आ समथटन भे वटिवन।
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 39

मुदा एकरा विडम्बने कहल जा सकैछ जे ले खकक मै तथली प्रेम,हुनका माि


ददे टा दे लकवन। हुनकर ददट शब्दक माध्यमसाँ कोना बहराएल छवन से दे खल
जाए - "मै तथली प्रेम रोगक सां बांध कोनो ले न-दे न,नफा-नोकसानसाँ नवह,माि
हृदयक ओवह िन्द्िुसाँ छै क जिए केिल ददट छै क। ददटमे पीड़ामे रोगी फुइस
नवह बाजै ि अतछ।"

मै तथली सावहश्त्यक जगिमे व्याप्ि अराजक स्स्थतिक भयािहिाक चचाट एवह


पोथीक एक टा प्रसां गमे वहन्द्दी सावहत्यक सफल ओ प्रभािशाली ले खक
फणीर्श्रनाथ रे णष जीक िक्िव्यक माध्यमसाँ राखल गे ल अतछ,जखन "ममिा
गाबए गीि" वफल्मक म्युणजक डाइरे क्टर कयाम शमाट ले खककेँ कहै ि छतथन,
"मुहिट ि' कास्ल्ह होएि। आजुक काज शे ष भ' गे लए। की हजट हमसभ
फणीर्श्रनाथ रे णष साँ भें ट करए चली ? हुनका कल्हुका मुहिटक वनमां िण दे बवन
आ थोड़े क गप्प-सप्प से हो करब।"

रे णष जी गप्पक क्रममे कहै ि छतथन, "हमहाँ तमतथले क छी आ हमरो मािृभाषा


मै तथलीए अतछ। ने नामे हम जखन ने पालक विराटनगरमे रहै ि रही,िखन
मै तथली भाषामे कइएक-टा कथा त्रलखने छलहुाँ । मुदा मै तथली भाषाक क्षे ि
सकुचल ,समटल आ एक विशे ष जातिक एकातधकारमे । अपने त्रलखू,अपने
पढ़ू।श्रोिाक अभाि,खै र छोड़ू ओवह प्रसां गकेँ। समय बदललै ए आ आब
मै तथली भाषामे वफल्म बवन रहलै ए,ई हमरा प्रसन्द्न क' रहलए।" (पृष्ठ सां ख्या-
८१)

उपन्द्यास पढ़ै ि काल फणीर्श्रनाथ जीक उपयुटक्ि िक्िव्य पवढ़ हम सोचमे


पवड़ गे लहुाँ , माने मै तथली सावहत्यक ई स्स्थति १९६३-६४ ई.साँ एखन
धरर,एकवह रां ग रवह गे ल।अपने त्रलखू,अपने पढ़ू बला स्स्थतिमे कोनो बहुि बे सी
सुधार नवहए सन बुझना जाइि अतछ।
40 ||गजे न्द्र ठाकुर

मै तथली पोथीक उपलब्धिाक समस्याक चचाट से हो आएल अतछ,माने पोथी-


पत्रिकाक वििरणक समुतचि व्यिस्था, व्यिस्स्थि नवह रहलाक कारण से हो
पाठक धरर नवह पहुाँ तच पाबै ि अतछ पोथी सभ। ओना आब ऑनलाइन
उपलब्ध होमए लागल अतछ, िथावप ऑनलाइन ऑडटर ओिबा सहज नै
बुझाइि छै बहुि लोककेँ। गामे -गाम,शहरे -शहर एक टा सुवनन्श्चि स्थानपर
मै तथली पोथीक उपलब्धिा एखनो धरर नवहए भे ल अतछ। पिा लगाबए पड़ै ि
छै , जे फलााँ पोथी किए उपलब्ध भ' सकैए। ओना वकनबाक इच्छा रहिवन
पाठककेँ,िाँ पािालोसाँ िावक ले िाह मुदा पोथी कीवन क' नवह पढ़बाक बे मारी
से हो सभद्वदना रहलवन,मै तथल समाजक लोककेँ।

उपन्द्यासमे एकर चचाट से हो भे ल अतछ।दे खल जाए-"कका कहलवन-कौंचा


खचट क' पत्रिका वकनवनहार धरिीक एवह भागमे वकयो नवह भे टिौ,िेँ हम
पत्रिका बे चै नवह छी,वबलहै छी। एक-दू द्वदनक बाद पत्रिकाक मूल् ने िाजीकेँ
पहुाँ चा दै ि तछयवन। इहो कवह आबै ि तछयवन,जे पत्रिका हाथे हाथ वबका
गे ल।" स्स्थति एखनो नवह बदलल अतछ।मै तथली भाषाक पत्रिका एखनहु
अवहना वबलहल जाइि अतछ,बहुि ठाम। पत्रिका वबलवह, प्रकाशककेँ वििरक
पाइ पहुाँ चा दै ि छतथ,ई कवह जे पत्रिका वबका गे ल।

मै तथली भाषाक ई स्स्थति दुखद। एवह भाषाक अपन त्रलवप छै ,अपन व्याकरण
छै आ सभसाँ पै घ विद्यापति सन महान कविक आशीिाटद छै क। मै तथली
भाषाकेँ ई साम्यट छै क जे ओ तमतथलाक सां स्कृति, सभयिा एिां परम्पराकेँ
अक्ष ण्ण रान्ख सकैि अतछ। मुदा ई िाक्पटु िासाँ नवह किटव्यपटु िासाँ सां भि
होएि। मै तथल आ तमतथलासाँ जे ना मोन टू वट गे ल छवन ले खककेँ, िकर कारण
से हो छै । एकठाम ले खक कहै ि छतथ,"तमतथलामे बहुि िरहक गुण
छै क,जावहमे प्रधान अतछ आलस्यक साम्राज्य। एिुक्का समस्याक वनदान
ले ल विष्णषकेँ नवह,महादे िकेँ अििार त्रलअ' पड़िवन।िाां डि नृत्य
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 41

कर' पड़िवन।" पोथीमे किे को ठाम तमतथलाक दुगुटण सभकेँ वनस्सां कोच
दे खार करै ि प्रसां ग सभ आएल अतछ। त्रभन्द्न त्रभन्द्न पािक चररि तचिण करै ि
मै तथल लोक सभक वनम्नस्िरीय मानत्रसकिाकेँ दे खार कएल गे ल अतछ। बे सी
लोक अपन स्िाथट त्रसत्रद्धमे लागल अतछ,जे दुभाटलयपूणट।

कलकत्तामे "ममिा गाबए गीि" वफल्मक वििरक िाकबाक क्रममे ले खकक


सामना भे लवन मै तथली-से िामे लागल िृश्प्ि नारायण उपाध्याय उफट तिरवपि
बाबूसाँ। वितचि कैरे क्टर मुदा एहन लोकसाँ वनन्श्चि भें ट भे ल होएि, सभकेँ
अपन जीिनमे । ले खकक शब्दमे दे खल जाए,"अप्छिजलसाँ धोअल तिरवपि
बाबूक मुखमां डलसाँ सज्जनिाक आभा प्रस्फुवटि भ' रहल छल। हुनक
जीिनक एकमाि उद्देकय रहवन तमतथला- मै तथलीक कोनो िरहक से िाक काज
होइ, अपन सिटस्ि न्द्योछािर क' ओवह पुनीि काजमे योगदान करब।
वफल्मक सभ टा समस्याकेँ जवड़साँ समाप्ि क' दे ब, िकर िचन दै ि
छी।" तिरवपि बाबू जावह िरहेँ गणे श टॉवकजक व्यिस्था करबाक नामपर
साद्वठ रुपै या आ प्रोजे क्टर चलबै बला ले ल दू बां वडल बीड़ी ले ल पाइ ठवक
अन्द्िधाटन भ' गे लाह,से हास्यास्पद, सां गवह दुखद से हो। एिबे नवह,मै तथली
भाषामे बनल वफल्मक प्रलोभन द' ओ बहुिोसाँ बहुि वकछु ठकने हे िाह,से
अनुमान छलवन बाबू साहे ब चौधरीक। बाबू साहे ब चौधरी, जे िास्ििमे
वनलाे भ, वनभीक आ तमतथला-मै तथली ले ल समर्पिि लोक छलाह,मै तथली
भाषा ओ मै तथलपरम्पराकेँ अक्ष ण्ण रखबा ले ल प्रतिबद्ध लोक।ले खक द्वारा
दे ल बाबू साहे ब चौधरीक पररचयक वहसाबसाँ । बाबू साहे ब चौधरीक सहयोगी
स्िभाि आ मै तथली सावहत्यकार लोकवनक असहयोगी प्रिृत्रत्तक तचिण बड़ा
बे जोड़ केलवन अतछ ले खक। शब्द सां योजन दे खबा योलय। दे खल जाए- "सरल
हृदय बाबू साहे ब चौधरी, हमरा दुनूक मदति ले ल अधीर छलाह। िावह क्रममे
ओ मै तथली भाषाक अने क नि-पुरान,छोट-पै घ, मोट-पािर
कवि,कथाकार, नाटककार,आलोचक, समालोचकसाँ भें ट करौलवन। मुदा
42 ||गजे न्द्र ठाकुर

सभ टा सावहत्यकार अपन अपन व्यथासाँ व्यतथि छलाह। हुनकर सभक


वनजक िे दन ििे क गहींर छलवन जे हम सभ "ममिा गाबए गीि" वफल्मक
समस्याकेँ काि टारर हुनके दुखमे सहानुभूतिक बखाट करै ि करै ि सभसाँ वपण्ड
छौड़ौलहुाँ ।" शब्द सां योजनक चमत्कार बहुि ठाम दे खबाले ल भे टल। सभहक
चचाट करब सां भि नवह मुदा जे एकदम स्मरण भ' गे ल अतछ,से एकाध टा
क्यक चचाट हम अिकय करब। एकटा क्य अतछ, " सां िादक डब कएल जा
सकैए मुदा सुन्द्दरिाक डब करब सां भि नवह छै क।" ई बाि मदन भाइ कहलवन
अतछ,ले खककेँ।जखन "ममिा गाबए गीि" वफल्मक कलाकारक चयन
करबाक क्रममे मुख्य वहरोइनक रूपमे अजराक चयनपर विचार भ' रहल
छलवन,दुनू तमिक बीच। अजराकेँ साइन करब वफल्मक बजटपर भारी
पड़ि,िकर प्रतिवक्रयामे उपरोक्ि बाि कहल गे ल छल।

िवहना लाख टाकाक एकटा गप्प कहल गे ल अतछ ले खक द्वारा, "प्रत्ये क


व्यकक्िक हृदय कूपमे रचनात्मक उजाट भरल रहै ि छै क।एकर प्रगटीकरण
अथिा स्पष्टीकरण समयानुकूल होइि छै क।"

एवह उपन्द्यासक सभ पाि एहन-एहन छतथ, जे हन चररिक व्यकक्िसाँ प्रत्ये क


मनुष्यक सामना भे ल हे िवन जीिनमे । कहबाक माने , लोक ररले ट क' पाबै ि
अतछ, कथाक पाि सभसाँ ।चाहे ओ ले खकक तमि त्रशिकाां ि होइथ टकििा
महां थ मदन मोहन दास सन धीर गम्भीर लोक।विदुर नीतिक अनुगमन
कएनहार ले खकक मै वरक फेल छोटका कका, बाबू शारदाकान्द्ि चौधरी उफट
कौआली बाबू होइथ िा लोअर फेल फवकरनाक छोटका ने ना कांवटरबा।
त्रशिकान्द्िक मामा चिुरभुज लाल दास,गामक भवगनमान टने झा,बौआ
अथाटि बाबू नारायण चौधरी, फुद्दी कका, मै तथली भाषा ले ल पूणटि: समर्पिि
दीपक जी, बै द्यनाथ बाबू,तमस्टर टमाटर जी,भानु बाबू,जवनकर अन्द्िरात्मामे
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 43

वकछु विचार, स्ियां हीरो बनी, प्रायः पवहने साँ सां तचि रहवन,जे अनुकूल समय
दे न्ख मुखररि भ' गे लवन।

कलकत्तामे वफल्मक वििरक िाकबाक क्रममे से हो रां ग- रां गक लोकसाँ सामना


भे लवन ले खक आ हुनकरपरम तमि मदन भाइकेँ। तिरवपि बाबू , बाबू साहे ब
चौधरी,रिन बाबू,कलकत्ता विर्श्विद्यालयक विख्याि प्राध्यापक, हुनक
पत्नी, सखा जी, वबड़ला जी माने छोटका वबड़ला जी, जे ले खक आ हुनकर
तमिकेँ "अबारा नवहिन"क उपातधसाँ विभूवषि केलतथन। सां गवह वफल्मक
कलाकार आ साउां ड इां जीवनयर, लाइटमै न सभकेँ तमला, कुल साद्वठ-पौं सद्वठ
गोटाक टीम। माने असां ख्य पािक समािे शसाँ िै यार भे ल ई उपन्द्यास विविध
रां गक रस,स्िादसाँ पररपूणट अतछ।

एिे क रास पाि रवहिो,किहु कोनो पािक पररचय िा गुणगाम/वनन्द्दा करै ि


ले खक बहुि शब्द खचट नवह केने छतथ। माने अने रे पन्द्नाक पन्द्ना नवह भरने
छतथ। सीतमि शब्दमे अपन बाि स्पष्ट करै ि, एक टा रोचक पोथी पाठकक
समक्ष प्रस्िुि करबाले ल ले खक साधुिादक पाि छतथ। एकठाम ले खक
कहलवन अतछ,"कमलनाथक प्रशां सामे हम वकछु पााँ िी आरो खचट
करब।" िवहना वफल्मक गीिकार रिीन्द्र नाथ ठाकुर जीक गुणगानमे से हो
सीतमि शब्दक प्रयोग करै ि गीिकारक असीतमि गुणक िणटन क' दे लवन
अतछ। माने शब्द आ पााँ िी बहुि सां यतमि िरीकासाँ खचट कएल गे ल अतछ, जे
पोथीकेँ उबाउ नवह होमए दे ने अतछ। एवह बािक जिे क सराहना कएल
जाए,कम अतछ।

मै तथली प्रेम रोगसाँ िशीभूि भ' मै तथली वफल्म वनमाटणक डे ग उठाएब बहुि
सहासक काज छलवन ले खकक मुदा वफल्म वनमाटण एिां वफल्म वििरणक
पयाटप्ि जानकारीक वबना अति उत्साहमे आवब वफल्म वनमाटण प्रारम्भ करब
एकटा व्यािहाररक िुवट भे लवन ले खकक। जकर नोकसान डे ग डे गपर उठबए
44 ||गजे न्द्र ठाकुर

पड़लवन वफल्मक वनमाटिाद्वयकेँ। आरम्भमे वफल्मक बजट चालीस हजारक


बनल छलवन,आ वफल्म वनमाटणक अन्द्िकाल धरर बजट चालीस हजारपर ठाढ़े
छलवन। ये न केन प्रकारेँ मै तथली भाषाक वफल्म बवनओ गे लवन, िकर बाि
वििरक िाकैमे नौ वडवबया िे ल जराबए पड़लवन आ वििरक नवहए भे टलवन।

"अबारा नवहिन" पोथीक कथानक,त्रशल्प िा भाषाक गप्प करी, िाँ हम


िाकैि रवह गे लहुाँ , मुदा िुवट िे हेन वकछु भे टल नवह हमरा। बस किहु किहु
ििटनीक समस्या जे ना- किहु करिा,किहु करिाह। किहु छल,किहु छलै ।
किहु छै ,किहु छै क। किहु छला,किहु छलाह, एहन वकछु वकछु मामूली सन
िुवट दे खाइ पड़ल, सएह टा।

एकटा अनुत्तररि प्रकन जे ले खक एवह पोथीक अन्द्िमे रखने छतथ पाठकक


सोझााँ ,से झकझोरए बला अतछ, "वफल्म पूरा बवन गे लै िकर सूचना पावब
हमरा दुख नवह प्रसन्द्निा भे ल छल। मुदा एकटा णजज्ञासा मोनमे रवहए गे ल
रहए। की हम आ मदन भाइ मै तथल समाजमे अपररतचिसाँ पररतचि
भे लहुाँ ? जिाबक प्रिीक्षामे मदन भाइ सां सार त्यावग वबदा भ' गे ला। मुदा हम
एखन िक प्रिीक्षामे जीवििे घुतम- वफरर रहल छी।"

मुदा मै तथल समाज ले ल धवन सन। २०१२ ई.मे एवह पोथीक प्रथम सां स्करण
प्रकात्रशि भे ल अतछ। एवह दस बखटमे ले खकक प्रकनपर केओ कान-बाि
धरएबला नवह भे लवन, से दुखद।

ऐ रचनापर अपन
मां तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 45

वनममला किम- रााँ ची,झारखण्ड

केदारनाि चौधरी व्यक्क्तत्ि एिां कृथतत्ि

केदारनाथ चौधरी जी मै तथली भाषाक प्रत्रसद्ध उपन्द्यासकार छतथ । वहनका


मै तथली उपन्द्यास जगि के श्लाका पुरुष कहल जाइि छवन l ई अपन कृति
क आधार लोकभाषा के बनौलवन l यै ह कारण अतछ जे वहनक उपन्द्यास के
पाि आत्मा में बत्रस जाइि अतछ । वहनक उपन्द्यास नि पीढ़ी के से हो आकर्षिि
करै ि अतछ। केदारबाबू अपन रोचक उपन्द्यासक ले ल प्रत्रसद्ध छतथ l वहनक
उपन्द्यास एक बे र पढ़नाई प्रारम्भ केला उपराां ि वबना समाप्ि केने छोड़नाई
असां भि होइि अतछ पाठक केँ l
केदारनाथ चौधरी जीक जन्द्म 3 जनिरी 1936 ई .केँ ने हरा,णजला दरभां गा में
भे ल। 1958 ई.मे अथटशास्ि में स्नािकोत्तर, आ 1959 ई.मे लॉ केलतथ
।अपन पूरा जीिन केदार बाबू प्रबां धन के क्षे ि में कायट केलतथ l 1969 ई.मे
अपने पुनः कैत्रलफोर्निया वि.वि.साँ s अथटस्थास्ि मे स्नािकोत्तर,1971 ई.मे
सै न फ्ाां त्रसस्को वि.वि.साँ एम.बी.ए .केलहुाँ l एकर पश्चाि् 1978 में भारि
आगमन भे लवन । सन् 1981-86 के मध्य िे हरान आ प्रौंकफटट में रहलतथ ।
फेर मुम्बई,पुणे होइि 2000 साँ लहे ररयासराय में वनिास भे लवन ।
आ.केदारनाथ चौधरी लगभग सत्तर िषटक उम्र में ले खन प्रारम्भ
केलतथ l वहनक सावहत्य जगि में पदापटण 2004 में प्रकात्रशि
उपन्द्यास "चमे ली रानी "सs भे लवन।
46 ||गजे न्द्र ठाकुर

वहनक त्रलखल चमे लीरानी,आयना,माहुर,हीना,करार, आिारा नवहिन


पढ़िाक सौभालय भे टल l वहनक उपन्द्यासक विशे षिा शुद्ध मै तथली भाषाक
प्रयोग एिां रोचकिा,साँ गवह भाषा में प्रिाह अतछ l वहनक उपन्द्यास पढ़िा काल
बुझना जाइि अतछ जे ना तमतथलाां चल में भ्रमण कs रहल छी l िै ह
िािािरण,िै ह सां स्कृति,िै ह तमतथलाां चलक बाि व्यिहार,आाँ न्खक समक्ष
आवब जाइि अतछ l वहनक उपन्द्यास पर वहनक विचारधाराक छाप स्पष्ट
बुझाएि l सब चररिक बीच बुझाएि जे ना केदार बाबू अपने होतथ l मै तथली
भाषाक प्रचार-प्रसार हे िु भागीरथ प्रयास केलतथ केदार बाबू l मै तथली
वफल्म "ममिा गाबय गीि "के वनमाटण ओकर एकटा स्िम्भ रहल l "ममिा
गाबय गीि "के वनमाटण सन् 1966 में भे ल जे कर मदनमोहन दास आ
उदयभानु ससिहक सां ग सह वनमाटिा छलाह केदार बाबू l
वहनक उपन्द्यास "आिारा नवहिन "एक िरह सs प्रस्िािना अतछ
वफल्म "ममिा गाबय गीि "के l "ममिा गाबय गीि "के वनमाटण कोना भे ल
िै ह पूरा कथा पुस्िक में अत्यां ि रोचक ढाँ ग साँ s िर्णिि भे ल अतछ l वकनका
साँ s सां िाद-विचार कs वहनक मै तथली के प्रति स्ने ह-भाि बढ़लवन,वकनका
द्वारा वहनक भाषा प्रेम में उन्द्नति भे लवन िे कर विशद िणटन "आिारा
नवहिन "में भे ल अतछ l
िषट 2016 के ले ल मै तथली भाषा'क सिाे च्च सावहश्त्यक पुरस्कार 'प्रबोध
सावहत्य सम्मान "वहनका भे टलवन l शाां ति वनकेिन के प्रोफेसर डॉ .उदय
नारायण ससिह नतचकेिा जीक अध्यक्षिा में गद्वठि दस सदस्यीय वनणाटयक
मन्द्डली वहनक नामक चयन केने रहतथन। मै तथली आां दोलन के अग्रणी ने िा
प्रबोध नारायण ससिह के नाम पर ई सम्मान 2004 साँ दे ल जाइि
अतछ l िषट 2016 में केदारनाथ चौधरी जी के हुनक रचना "आिारा
नवहिन "के ले ल" केदार सम्मान "साँ s पुरस्कृि कएल गे लवन l
"केदार सम्मान "प्रगतिशील टहिदी कवििा के शीषटस्थ कवि केदारनाथ
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 47

अग्रिाल जीक स्मृति में केदार शोध पीठ के द्वारा दे ल जाइि अतछ l ई सम्मान
प्रति िषट भे टय बला एक प्रमुख सावहश्त्यक सम्मान अतछ l ई सावहत्य सम्मान
सृजनक उत्कृष्टिा केँ रे खाां वकि करिा हे िु केदारनाथ अग्रिाल जी क परम्परा
में लोकिाां त्रिक, प्रगतिशील, आधुवनक, वििे कसम्मि, िै ज्ञावनक प्चििन के
पक्षधर, सृजनकार के प्रदान कएल जाइि अतछ l
केदारबाबू अपन उपन्द्यासक द्वारा सद्वदखन स्मृति में रहिाह l वहनक
उपन्द्यासक सृजन नि पीढ़ी के दृतष्टगि रान्ख कएल गे ल अतछ l केदारबाबू
अपन उपन्द्यासक द्वारा मै तथली सावहत्य के नि द्वदशा दे लवन l यै ह कारण अतछ
जे "प्रबोध सम्मान "साँ s सम्मावनि वहनक कृतिक पुन :प्रकाशन ने शनल बुक
रस्ट साँ s भs रहल अतछ l ई मै तथली सावहत्य एिां सम्पूणट तमतथलाञ्चलक हे िु
गौरिक विषय अतछ l

ऐ रचनापर अपन
मां तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।
48 ||गजे न्द्र ठाकुर

आभा झा, ददहली

प्रे मक अद्वैतक अद्भत


ु आख्यान -िीना

आइ व्यािसातयकिाक एवह युगमे जखन सभ मानिीय भािना ले न-दे नक


बटखरा पर जोखल जा रहल अतछ,

रक्ि-सम्बन्द्धोक पविििा धोखररक' बे दरां ग भए गे ल अतछ, िै िावहक सां बांध


प्रेमक नवहिॅं , आर्थिक- सामाणजक- समृत्रद्धक ने आें(नींि) पर ठाढ़ कएल जा
रहल अतछ,वनष्काम मै िी आ वनःस्िाथट सम्बन्द्धक गप माि पोथीक शोभा
बवनक' रवह गे ल छै क, ओहे न समयमे श्री केदारनाथ
चौधरीजीक 'िीना' नामक उपन्द्यास पढ़ब हृदयकेँ एकटा सुखद अनुभूति
आओर आश्त्मक आनन्द्दसाँ भरर दै ि अतछ।

िस्िुि: सावहत्यकार समाजक सृतष्ट आ स्रष्टा दूह होइि अतछ।ओकरा जे हन


दुवनयाां रुचै छै ,ओहने दुवनयाां क सृजन ओ सावहत्यक माध्यमसिॅं करै ि अतछ आ
एवह िरहेँ ओ समाजक सोझाां एकटा उदाहरण से हो रखै ि अतछ। सां भििः
ले खकक हृदयकेँ समां धक नाम पर भ' रहल िणणग् िृत्रत्त आौं टैि होवन,प्रेमक
नाम पर माां सलिाक प्रसार विरक्ि करै ि होवन अथिा जाति-धमटक त्रसक्कवड़मे
कुहरै ि घावहल प्रेमक पीड़ा विह्वल बनबै ि होवन, फलस्िरूप ओ कल्पनाक
यान पर चवढ़ साश्त्िक, वनमटल, परस्पर वनिान्द्ि समर्पिि त्रसने हक यािा करबा
आ करयबा ले ल प्रस्िुि भे ल होतथ।अस्िु!
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 49

'हीना'क(वहना) शान्गब्दक अथट होइि छै क में हदी। में हदी आ प्रेमक िुलना
अत्यन्द्ि स्िाभाविक- पीसै ि कालहुमे में हदीक सुगन्गन्द्ध िािािरणमे पसरर
जाइि छै क,में हदी जकााँ प्रेमोक रां ग धीरे धीरे चढ़ै ि प्रगाढ़ होइि छै क। ओएह
में हदी जखन हाथ पर रचाओल जाइि छै क,हाथक शोभा अद्वद्विीय भए जाइि
छै क ,िवहना प्रेमक अनुभूति आ आस्िाद जीिनकेँ सुन्द्दर बनबै ि
छै क,परमानन्द्दक भूतममे ल' जाइि छै क।

केदारनाथ चौधरीजीक एवह उपन्द्यासक भािभूतम


शार्श्ि, वनमटल, वनष्काम प्रेम तथक जे भौगोत्रलक- साां स्कृतिक - धार्मिक
पररतधसिॅं मुक्ि पल्लविि- पुन्गष्पि होइि अतछ आओर अपन साौं दयट आ
सुिाससिॅं समाजमे सकारात्मक पररििटन अनबामे सफल होइि अतछ ।वकन्द्िु
प्रेमक बाट किौ आसान भे लै अतछ? वबनु तपस्यें जखन पािमतीओकेँ लशि
नवििॅं भे टलखखन, तखन सामान्द्य जनक त' किे की?

प्रेमानुभूतिक प्रबल िे गसिॅं उद्दीवपि त्रशि कुमार आ वहना िै िावहक बां धनमे बन्द्हा
ि' जाइि छतथ, मुदा ओ दुन्द्नू वबसरर गे ल छलाह सामाणजक
अनुशासन, जाथत- धममक सुदृढ़ प्राचीर, उथचत- अनुथचतक
समाज- स्िीकृत मापदां ड! पररणामो स्िाभाविके! जाही क्षण धमटक बाह्य
आिरणकेँ चरम-परम कृत्य मानवनहार त्रशबूक वपिाकेँ सत्यक पिा
चललवन,पुकि दर पुस्िक सां तचि सां स्कार आ विर्श्ाससिॅं उपार्जिि अहां कार पर
िज्रपाि भे लवन ।ओ ित्क्षण पुिकेँ शरीर- स्पशटक अतधकारसिॅं िां तचि कए
प्राण त्यावग दै ि छतथ।आब सां गीिक मधुर- मोहक- कोमल दुवनयाां मे रहवनहार
सामाणजक- व्यिहार- ज्ञान-शून्द्य त्रशबूकेँ अचक्के लागल यथाथटक कठोर
आघाि सवह नवहिॅं होइि छवन , ओ विधनाक वनमटम वनष्करुण वनणटय
दे न्ख हिबुत्रद्ध भए किौ वनरुद्देकय बहरा जाइि छतथ!
50 ||गजे न्द्र ठाकुर

एम्हर गामक सां स्कार- व्यिहारसिॅं अनत्रभज्ञ वहना अचानक भे ल एवह


कुकाण्डसिॅं हिबुत्रद्ध अिकय भे लीह वकन्द्िु किटव्य ज्ञानशून्द्य नवहिॅं । ओ धै यटपूिटक
त्रशबूक सभ किटव्य सां पाद्वदि करब अपन धमट बूणझ हुनक वपिाक
श्राद्धाद्वदकमट अप्रत्यक्ष रूपेँ त्रशबूक तमि ठक्कन आ कल्लूक सहायिासिॅं
सम्पाद्वदि करबै ि छतथ।ओ यिन वपिा आ ईरानी मायक सां िति होइिो वहन्द्दू
धमटक वििाहक एवह मां िक साकार रूप में अनै ि छतथ -

" मे हृदयां ते हृदये वनदधावन' अथाटि् ह'म अपन हृदय अहााँ क हृदयमे रखै ि
छी-जखन मम-परक भे दे थतरोवित ,तखन केिन पािमक्य?

कैत्रलफोर्नियाक सुविधापूणट णजनगीक मोह छावड़ ओ िपस्स्िनीक णजनगी


णजबै ि प्रिीक्षा करए लगलीह अपन तप्रयिमक, हुनकवह गाम आ हुनकवह
घ'रमे ! कवहयो ि' भक्क टु टिवन त्रशबूक,कवहयो ि' मोन पड़तथन
पत्नी! एत' प्रे मक पराकािा अथछ,थमलनक अधीरता अथछ,धरतीक धै यम
अथछ आ अथछ प्रतीक्षाक अनन्द्त घड़ी! पचास बरख धरर त्रशबू बिाह बनल
रहलाह,पत्नीसिॅं दूर पड़ाइि रहलाह परञ्च वहनासिॅं हीरा मौसी बनत्रल िपस्स्िनी
हुनकवह गाममे त्रशक्षाक प्रसारमे ,कमाे न्द्मुखिाक वनदशटनमे ,गामक िरक्कीक
ब्याें िमे स्िे च्छासिॅं अनाम णजनगी णजबै ि रहलीह।ओ अपन व्यकक्ित्ि ग्रामीण
सां स्कृति आ पररिे शमे माि तमज्झरे टा नवहिॅं कएलवन, अवपिु विलीन
क' ले लवन अपन स्ििां ि सत्ता! हुनक प्रेम कातयक नवहिॅं अवपिु आश्त्मक
छलवन आ िौं विकल- विषण्ण होइिो शान्द्ि छलीह,कावन-खीणझ
नवहिॅं , परोपकारमे अपन णजनगी वबिा रहल छलीह। करुणरस सम्राट् भिभूति
सां भििः प्रेमक एवह अद्वैिक अनुभि करै ि त्रलखलन्न्द्ह अतछ-

अद्वैिां सुखदु:खयोरनुगिां सिाटस्ििस्थासु यि्

विश्रामो हृदयस्य यि जरसा यस्स्मन्द्नहायाे रस:।


विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 51

काले नािरणात्ययाि् पररणिे यि् प्रेमसारे स्स्थिां

धन्द्यां िस्य सुमानुषस्य कथमप्ये कां वह िि् प्राप्यिे ।।

एम्हर सामाणजक व्यिस्थाक भां जनक प्रभािेँ वपिाक दे हाां िक आघािसिॅं


मतिविशे ष भे ल त्रशबू अपराध- बोध आ ललावनक भार ढोऐि िै िावहक सां बांध
स्िीकार करबाक साहस नवहिॅं कए सकलाह, मुदा हृदयमे प्रेमक विशुद्ध भाि
गहीरसिॅं गहीरिर होइि रहलवन,जमा होइि होइि घनीभूि भ' गे लवन आ
फूवट पड़लवन करुणाक उरे कक रूपमे ।पवहनहुाँ हुनक स्िरमे माधुयट आओर
करुणाक सां गम छलवन मुदा आब ि' हृदयसिॅं बहरायल वनछच्छ पीड़ाक उद्गार
पाथरकेँ पावन बना रहल छल।ओ बौआइत रिै त छलाि, मुदा घुरर-वफरर
अबै त छलाि ओिी गाममे ,जत' हुनक जवड़ छलवन,जत' थमत्र छलवन आ
जत' प्राििहलभा पत्नी वनष्कम्प दीपलशखा जकााँ एसकरर जरर रिल
छलीि।

कहल जाइि छै क िे दना सां गीिक उत्स होइि छै क।क्रौञ्च युगलमे सिॅं एकटाक
िध आ दोसरक करुण चीत्कार

आद्वदकवि िाल्मीवकक कवित्िक प्रस्फुटनक कारण बनल,शोके श्लोक बवन


गे ल छलै ।िवहना करुणासिॅं पोर पोर िीिल त्रशबूक सां गीिक टावह वहना आ
ठक्कन- कल्लूक सां ग समस्ि गामक लोककेँ रविि करै ि छलै ।

प्रेमक पराकाष्ठा आ अनन्द्ि प्रिीक्षाक प्रिीक एवह अनाम अपूणट प्रेमक साक्षी
छलतथ माि दू गोट व्यकक्ि- ठक्कन- यानी मात्रलक बाबा आ कल्लू!

प्रे म प्रात्प्तक ल्स्िथतमे सां कुथचत भ' जाइत अथछ मुदा विप्रलम्भमे ओएि
प्रे मक व्यात्प्त सीमािीन भए जाइत छै क,ओ सभिक भए जाइत
छै क,सभिक कल्यािक कारि बनै त छै क।
52 ||गजे न्द्र ठाकुर

उपन्द्यासक मूल विषय- िस्िु वहना ओ त्रशि कुमारक प्रेम, अनुपम


त्याग, सिटस्ि समपटणक पविि आख्यान एिां अधटनारीर्श्रक सां कल्पनाक
वनदशटन अतछ, मुदा प्रेम प्राश्प्िक पयाटय नवहिॅं बवन सकल ,ओ रहल
मौन, पविि ,वनमटल- एकदम गां गाजल सन!

अिकय उपन्द्यासक आिकयकिानुसार घटनाक्रममे आओर आनो आन पाि


सभ छतथ,साधूपुरा सन छोट गामक त्रसमानमे होइि राजनीतिक कदाचारो
अतछ, छोट- छीन स्िाथटक ले ल दोसरक जीिन सुड्डाह करबाक क्ष र प्रिृत्रत्तओ
अतछ, प्रेम आओर िासनाक घालमे ल से हो अतछ (पािटिी- गगन ,कोबी आद्वद
चररि में ), मुदा तमििाक वनमटल भािना आ दू प्रेमीकेँ तमलयबा ले ल समस्ि
युिािगटक एकिा ओवह सभ कुकत्सि भाि पर भारी पड़ै ि अतछ । त्रशबू-वहनाक
बाद जखन मां गली आ गां गाक प्रेम जाति- पातिक त्रसमानकेँ िोड़ै ि उत्फाल
होइि अतछ ि' सामाणजक कायदा- कानूनक कारण आजीिन एकाकीपनक
दां श सहबा ले ल वििश हीरा मौसीक सां ग सामाणजक िजटना आ दबािक
कारण विणक्षप्ििाक कगार पर पहुां चल त्रशिकुमारो डे रा जाइि छतथ आ दूनू
प्रेमीकेँ तमलयबा ले ल पचास बरखक बाद एकसां ग गाम िे णज दै ि छतथ। एवह
िरहेँ ले खक उपन्द्यासकेँ सुखान्द्ि बनबै ि छतथ।

सां क्षेपमे एिबवह जे उपन्द्यासक शीषटकक अनुरूप वहनामे सहज प्रेमक


रां ग, वनकछल त्यागक सुिास, साौं दयटक विलक्षणिा आ सकारात्मकिाक
तित्रलया-फुत्रलया अतछ आ एिे क गुणक कारण सहृदय पाठक ले ल सुग्राह्य
अतछ।

अपन मां तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 53

लशिशां कर श्रीवनिास- सां पकम-9470883301

चमे ली रानी

'चमे ली रानी' केदार नाथ चौधरीक चर्चिि उपन्द्यास तथक। एकर


प्रकाशन 2004 ई. मे भे ल।

एवह उपन्द्यासमे उपन्द्यासकार कहै ि छतथ जे एवह दे शक राज-सत्ता एवहठामक


जनिाकेँ लूवट रहल अतछ, दोसर द्वदस जे एवह ठाम वित्रभन्द्न डकैिक गुट अतछ
ओहो जनिाकेँ लूवट रहएलै ए। एवह स्ििां ि दे शक जनिा राजनीति केवनहार
व्यकक्ि द्वारा कोना ठकल जाइए आ लुटाइए आ दोसर द्वदस वित्रभन्द्न डकैि
द्वारा कोना लूटल जाइए। ओवहमे राजनीति केवनहारमे किे क त्रभन्द्निा ओ
समानिा अतछ, अवहकेँ बहुि कौशलसाँ दे खबै ि सम्मुख 'वबहार' राज्यकेँ
रखै ि कथा कहै ि छतथ जे बहुि बे बाक ढां गसाँ कहल गे ल अतछ। जावह कहबमे
कोनो पदाट नवह राखल गे ल अतछ जे ईहो प्रकन उठबै ि अतछ जे की एना कहल
जे बाक चाही? उक्ि प्रकन-स्थलकेँ हम आगू उठा ओवहपर वििे चन करब।
सां प्रति एकर कथापर ध्यान दी।

कथा कीिटमुखक पररिार िणटनसाँ प्रारां भ होइि अतछ। कीिटमुखक पत्नी छत्रल
शनीचरी। अां ग्रेज हावकम डन्द्सफोडटक रखै लक बे टी छलै सुनयना, ओकर बे टी
छलै शनीचरी। ओवह शनीचरीकेँ तचनगारीजी माने सोल्स्लस्ट पाटीक सदस्य
जे बादमे ने िा आ मां िी भे लाह अपन तप्रय मोद्वदयाइनक ओवहठाम ओकरा
आवन रखलवन ओ मोद्वदयाइन शनीचरीकेँ तचनगारीजीक ले ल जुगिा कऽ
रखबाक ले ल गां गा कािसाँ आवन कीिटमुखकेँ वबयावह दे लकै जकरामे
54 ||गजे न्द्र ठाकुर

पुरुषत्िक अभाि रहै । जखन तचनगारी मां िी बवन मोद्वदयाइन लग एलाह िाँ
ओ मोद्वदयाइन स्पष्ट कहलकवन-"गां गा कािसाँ एकटा मनुक्खकेँ आवन जकर
नाम छै कीिटमुख, शनीचरीक वबयाह करा दे त्रलयै । आन्खर समाजसाँ , लोक-
लाजसाँ अहााँ क रक्षा करब आिकयक छल। कीिटमुखकेँ सहिास करबाक लूवड़
नवह छै क। सनीचरीसाँ बच्चा अहााँ जन्द्माउ आओर बाप रहि
कीिटमुख।" तचनगारीजी बे सी द्वदन नवह टीवक सकलाह। रोगी भऽ मरर गे लाह
आ शनीचरी आजाद भऽ गे त्रल। मोद्वदयाइनक आमदनी बवढ़ गे लै। एवह क्रममे
ओकरा पााँ च टा बे टा भे लै-युतधतष्ठर, भीम, अजुटन, सहदे ि आ नकुल। नकुलक
जन्द्मकाल शनीचरी मरर गे त्रल। हम्मर मोद्वदयाइनक एक माि
बे टी 'चमे ली' हाइिे पर फैलसाँ घर बने लक। ओकर धमटवपिा नामी डकैि
भुखन ससिहक अत्रभभािकत्ि ओकरा भे टल छलै । ओ पढ़त्रल -त्रलखत्रल छत्रल।
फटाफट अां ग्रेजी बजै िाली, िे जिराटर आ मुाँहफट। ओकरे इशारापर भूखन
ससिहक गौं ग नचै ि छल। अही चमे ली रानीक ने िृत्िमे उक्ि उपन्द्यासक कथा
आगू बढ़ै ि अतछ।

इमहर गुलाब तमत्रसर राज्यक मुख्यमां िी छतथ। एकटा अनाथालयमे पलल


बच्चा कोना सहारा पावब ऊाँच कुल-मूल सां ग भ्रष्ट रस्िासाँ त्रशक्षाक वडग्री पावब
एकाएक राजनीतिक दलक ने िा भऽ मुख्यमां िी कुसी पावब शासन करै ि अतछ
ओकर आश्चयटजनक कथामे आएल अतछ।

उपन्द्यास चमे ली रानी वगरह द्वारा सां पूणट राज्यमे जाल वबछा पूाँजीपतिकेँ लूटल
जाइि अतछ ओकर िणटन बहुि रोचक ढां गसाँ कएल गे ल अतछ, एवह वगरोहमे
स्िी-पुरुष दूनू अतछ। दूनू भे ष बदत्रल जावह रूपे मालदार यािी ओ मालदार
भ्रष्ट ने िाकेँ लुटैि अतछ ओ अद्भि
ष नाटकीय ढां गसाँ कथाकेँ पुष्ट करै ि, रोचकिा
भरै ि आगू बढ़ै ि अतछ।

डकैिक वगरह अपन डकैिी क्रममे किे को टहिसा ओ क्रूरिम काजकेँ अां जाम
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 55

दै ि आगू बढ़ै ि अतछ टकििु आश्चयट िखन लगै ि अतछ जे वगरहक नातयका एहन
व्यकक्िक चुनाि अपन पतिक रूपमे करै ि अतछ जकरा लग सां िेदना छै क।
अजुटन पवहले द्वदन चमे ली रानीक आह्वानपर ओवह वगरोहमे सम्मत्रलि भऽ रे नमे
डकैिी करै ि अतछ, ओवह लूटक क्रममे एकटा सोहावगन स्िीक विनिी
कएलापर जे मां गलसूि ओकर सोहागक वनशानी तछयै क, एकरा नवह तछनय।
अजुटन ओवह स्िीक सां िेदनासाँ सां िेद्वदि भऽ ओकर मां गलसूि नवह छीनै ि छै क।
ई बाि चमे ली रानी बुझैि अतछ। ओ दूर रहै ि सभक कायट पिा रखै ि अतछ।
ओना ओ अजुटनकेँ कहै ि अतछ जे एवह िरहक कमजोर व्यकक्ि टहिसा नवह कऽ
सकैि अतछ आ िें ओकरा आगू कोनो िरहे केकरो हत्या करबाक भार नवह
दे ल जाएि, कारण डकैिकेँ कोनो िरहक सां िेदना नवह राखक चाही। टकििु
वििाह करै ि अतछ ओही अजुटनसाँ ।

सां पूणट उपन्द्यासमे दे खाओल गे लैए जे डकैि वगरोहक बीच एक-दोसरक प्रति
िएह स्ने ह-प्रेम छै क जे कोनो पररिारमे एक-दोसराक बीच रहै ि छै क। अपन
नायक प्रति, तमिक प्रति ओ अपन कायट प्रति अद्भि
ष -अद्भि
ष वनष्ठा ओ प्रेम
छै क। ओवह वगरहक बीच कोनो िरहक विर्श्ासघािक जगह नवह छै क।
पन्द्ना, दोसर वगरहक सरदार, कोनो हालतिमे भूखन त्रसमहक अधलाह नवह
करि। वकएक िाँ ओ ओकर तमि तथक। भले ओकर वगरहो फूटै छै । टकििु
राजनीतिमे ककरो प्रति कोनो सां िेदना नवह छै क। ओवहठाम माि कुसी
महत्िपूणट छै क आ महत्िपूणट छै क ओकर कोनो लाभ अां श।

उपन्द्यासमे आएल अतछ- "राजनीतिक सिसाँ वित्रशष्ट गून तथक धूिटिा"। आ


धूिटिा गुलाब तमत्रसरमे भरल अतछ। जे भूखन ससिह ओकर वगरह द्वारा किे को
बे र गुलाब तमत्रसरक सहायक भे ल छल आ जखन अहमदुल्ला खाां क सां पूणट
खजाना लूटल जाइए। अहमदुल्ला जे दे श विरोधी छल, जनिाकेँ शोषण करै ि
छल। ओकर खजानाकेँ जखन चमे ली रानीक वगरोह लूवट लै ि अतछ
56 ||गजे न्द्र ठाकुर

आ नाां गटनाथकेँ रे नमे लुवट हत्या कऽ दै ि अतछ िखन गुलाब तमत्रसरक क्रोध
असमान छू बए लगै ि अतछ, आ ओ कोनो हालतिमे भूखन ससिहकेँ मारर दे बए
चाहै ि छतथ आ एवह ले ल दोसर वगरोहक सरदार पन्द्नासाँ भे ट करै ि अतछ आ
ओकरा आदे श करै ि छतथ जे भूखन ससिहकेँ मारर दे तथ। टकििु पन्द्ना नवह मानै ि
अतछ, ओक कहै ि अतछ- "गलि, भूखन ससिह मे रा बड़ा भाइ जै सा है । भूकन
भाइ का राजनीति से कोई ले ना-दे ना नहीं है । िुम्हारा इन्द्टेत्रलजे न्द्स गोबर टीम
है । िुम्हारे कहने से मौं अपने दे ििा समान भाइ की हत्या नहीं कर सकिा"।
राजसत्तापर बै सल लोककेँ सिि कोनो गतिवितधसाँ ओकरा पवहने राजसत्ते पर
खिरा बुझाइि छै क। चमे ली रानी द्वारा हुनक सहयोगीपर हमलाकेँ ओ अपन
कुसीपर अबै ि खिरा बुझै छतथ आ हुनका अथाटि गुलाब तमत्रसरकेँ पन्द्नाकेँ
वकछु कहबाक साहस नवह होइि छवन टकििु पन्द्नाक बाडीगाडट ध्रष िा केर बे टीक
अपहरण करबा ध्रष िासाँ कहै ि छतथ जे जाँ ओ छलसाँ जहर दऽ भूखन ससिहकेँ
नवह मारि िाँ ओकर बे टीकेँ मारर दे ल जे िै। आ पन्द्नासाँ जखन भूखन ससिह भे ट
करए अबै ि अतछ िाँ ध्रष िा ओकर शराबमे जहर तमला दै ि छै क। भूखन ससिह
िुरांि बूणझ जाइए आ ब्रजनाथकेँ कवह कवह ओिएसाँ विदा होइए। ओकर
बाडीगाडट ब्रजनाथ ओकरा बाद पहुाँ तच उिारै ि अतछ आ भूखन ससिह अपन
इच्छाइ टे प कऽ ब्रजनाथकेँ दै ि कहै ि छै क जे ई टे प ओ टे प चमे ली रानीकेँ
सुना दै क। पन्द्ना आश्चयटचवकि भऽ ध्रष िासाँ सभटा बाि बुणझ ओकर हत्या कऽ
दै ि अतछ।

चमे ली रानी अपन धमटवपिाक हत्यासाँ बहुि हिाश होइि अतछ टकििु पन्द्नाक
अत्रभभािकत्िमे आगा बढ़ै ि अतछ आ ििबा समधावन कऽ आगू बढ़ै ि अतछ
जे धूिाटिाकेँ धूिटिासाँ कटै ि सां पूणट प्रदे शमे पन्द्नाक वनदे शनमे जाल वबछा
गुलाब तमत्रसरक सत्तापर चुनािक माध्यमे पहुाँ तच जाइि अतछ। उपन्द्यासक
कथामे गुलाब तमत्रसरक अपहरण होइि अतछ, ओ अज्ञािमे चल जाइि
छतथ ,ओवह अज्ञािक पदाटसाँ बहराइ नवह छतथ िकर कारण स्पष्ट नवह होइि
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 57

अतछ। हमरा जनै ि खुजल मै दानमे गुलाब तमत्रसरकेँ पदच्युि करबासाँ पाठक
लग पारदशी सां िाद पहुाँ चैि से नवह भऽ पबै ि अतछ। ओ चमे ली रानी जनिाक
शोषण विरुद्ध अपन गतिकेँ रखै ि राजनीतिसाँ राजनीतिक धूिटिा कए कऽ
विजय प्राप्ि करै ि अतछ जे स्प्षट कहै ि अतछ जे राजनीतिमे केकरो धूिटिा
वबना परास्ि नवह कएल जा सकैए। उपन्द्यासक उक्ि दृतष्ट हमरा जनै ि
लोकपक्षीय नवह भऽ पबै ए कारण कोनो चक्रचात्रल िा षड्यां ि लोकवहिमे नवह
भऽ सकैए चाहे उपरसाँ ओ जे लागए िाँ इ उक्ि उपन्द्यास यथास्स्थतिक पररचय
िाँ दै ि अतछ टकििु पाठककेँ वनर्ििकार-पथक प्रेरणा दे बामे पाछू रवह जाइि
अतछ।

मै तथली भाषामे कोनो दै वनक पि-पत्रिका बे सी द्वदन वटकल भले वकछु -वकछु
द्वदनपर पुनः-पुनः नि दै वनक पि बहराइि रहलै ए। उक्ि पि सभ वनन्श्चि
रूपसाँ भाषा प्रेमक प्रिीक तथक, टकििु ओकर बां द होएब स्पष्ट कहै ि अतछ जे
तमतथला भूतमपर एखन िक भाषाक ले ल लोक जागरण नवह भे लैए।

एवह उपन्द्यासमे मै तथलीक दै वनक 'स्ियां प्रकाशक'क लोकतप्रयिाक चचाट


कएल गे ल अतछ जे सां पूणट रूप एवह उपन्द्यासक कल्पना सां सारक प्रकाशन
अतछ। 'स्ियां प्रकाशक'क लोकतप्रयिाक कारण अतछ जे ओवहमे नि-
नि, एहन-एहन समाचार छपै ि अतछ जे लोकमे ओकरा पढ़बाक उत्सुकिा
बवढ़ जाइि छै । ओकर लोकतप्रयिाक उदाहरण इएह छै क जे टहिदी दै वनक पि
सभ ओवह पिसाँ ईष्याट करऽ लगै ि छै क। अथाटप मै तथली दै वनक 'स्ियां
प्रकाशक'क लोकतप्रयिाकेँ दे खबै ि उपन्द्यासकार कहै ि छतथ जे मै तथली
दै वनक एवह तमतथला भूतमपर लोकतप्रय भऽ सकैए जाँ ओकरा राजनीतिक
दृतष्टसाँ चलाओल जाए। उपन्द्यासमे आएल वित्रभन्द्न प्रसां ग ििटमान समाजक
मनोदशा के जे ना कहै ि अतछ जे ििटमान समयमे समाजकेँ लाभ स्स्थति दे खा
ओकरा णजम्हर चाही तिम्हर कऽ सकैि छी, माि जनिा बूझए जे ओकर
58 ||गजे न्द्र ठाकुर

िारणहार के अतछ। एक बे र यद्वद जनिा िारणहार बुणझ गे ल िाँ अहााँ केँ छोड़ि
नवह। जे ना पवहने गुलाब तमत्रसरकेँ बुझै छल बादमे चमे ली रानीकेँ बूझए
लागल।

उक्ि सभ बाि अपन कथा प्रसां गसाँ कहै ि उपन्द्यास आजुक भ्रष्ट शासन िां ि
ओ जनिाक कोमल मानत्रसकिापर ओकर प्रभािकेँ स्पष्ट रूपे स्पष्ट करै ि
आजुक समयक भयािहिासाँ पररचय करबै ि छतथ जे महत्िपूणट अतछ।

गुलाब तमत्रसर अनाथालयसाँ सुपथपर आगू अबै ि िाँ वनन्श्चि रूपसाँ पाठककेँ
नि सने स भे वटिै क मुदा से नवह भऽ पबै ि अतछ िकर कारणो स्पष्ट अतछ जे
एवह उपन्द्यासक मुख्य उद्ये कय आजुक समयक भ्रष्ट स्स्थतिकेँ अनबाक अतछ
जावहमे उपन्द्यासकेँ बहुि हद िक सफल कहबाक चाही।

असमदुल्ला खाां क अजीब दृकय जावह अश्लीलिा पररदृकयमे दे खाओल गे लैए


ओ हमरा जनै ि उपयुक्ि नवह अतछ। ओना हम मानै छी जे कोनो दृकय ओ
शब्द यद्वद उपन्द्यासक कथाक ले ल आिकयक अतछ िाँ ओ अश्लील वकएक ने
रहए ओकर प्रयोग हे य नवह तथक से उपन्द्यास अहमदुल्ला ओ रणजयाक बीचक
अश्लील दृकय वनष्प्रयोजक लगै ि अतछ। उपन्द्यासकार मै तथलीमे उपन्द्यास
कहै ि एवह आएल वित्रभन्द्न पािक भाषाक प्रयोग कएल गे ल अतछ। हमरा
जनै ि उपन्द्यासकार सभ बाि हमरा अपन भाषामे कवह रहला अतछ िाँ इ पानक
सां िाद कहलासाँ की लाभ? हमरा जनै ि उक्ि विषय हमरा अनािकयक लगै ए।

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