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𑒀

विदे ह केदारनाथ चौधरी


विशे षाां क
ISBN: 978-93-340-2015-1
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ई मैछथिीक पतिि इंटरनेट पतिकव छथक जकर नवम िवदन मे १ जनर्री २००८ स, ’तर्दन े ि’ पड़िै। इंटरनेटपर मैछथिीक प्रथम उपस्थिततक
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आि “भविसररक गवि” जविर्ृत्त 'तर्दन े ि' ई-पतिकवक प्रर्क्‍टतवक संग मैछथिी भवषवक जविर्ृत्तक ए्रहीगेटरक रूपमे प्रयुक्‍टत भऽ रिि
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VIDEHA KEDARNATH CHAUDHARY SPECIAL ISSUE: Editor Gajendra Thakur


समवनवन्तर परम्परवक तर्द्यवपतत- मैछथिीक आददन कतर् तर्द्यवपतत ( तर्द्यवपततक छरि: तर्दन े ि छरिकिव
सम्मवनस, पुरस्कृत पनकिवि मण् ि द्ववरव)। कर्ीश्वर ज्योततरीश्वर(िगभग १२७५-१३५०)स, पूर्ा (कवर
ज्योततरीश्वरक ्रहन्थमे तिनक ररा अछि), मैछथिीक आददन कतर्। संस्कृत आ अर्िट्ठक तर्द्यवपतत ठक्‍टकुरःस,
क्षभन्न। सम्भर्तः तिस्फी गवमक िविार कवस्टक श्री मिेश ठवकुरक पुि। समवनवन्तर परम्परवक तिदन वपत नवरमे
तर्द्यवपतत पदन वर्िीक (ज्योततरीश्वरस, पूर्ास,) नृत्य-अक्षभनय िोइत अछि।ज्योततरीश्वर पूर्ा तर्द्यवपतत:-
कश्मीरक अक्षभनर् गुप्त (दन शम शतवब्दन ीक अन्त आ एगवरिम शतवब्दन ीक प्रवरम्भ)- ्रहन्थ “ईश्वर प्रत्यवक्षभ्व-
तर्भर्षिं ी” मे तर्द्यवपततक उल्िेि करै िछथ। श्रीिर दन वसक सदुस्थक्‍टतक वामृत, (ररनव ११ फरिरी १२०६,
मध्यकविीन धमछथिव, तर्.कु. ठवकुर)- श्रीिर दन वस तर्द्यवपततक पव,र टव पदन उद्धृत केने िछथ जे तर्द्यवपततक
पदन वर्िीक भवषव िी। "जवर् न मवितो कर परगवस/ तवर्े न तवति मिुकर तर्िवस।" आ "मुन्दन िव मुकुि
कतय मकरन्दन ।" ज्योततरीश्वर (१२७५-१३५०) षष्ठः कल्िोि- ॥अथ तर्द्यवर्न्त र् ानव॥ अष्टमः कल्िोिः-
॥अथ रवज्य र् ानव॥ मे उल्िेि।

मैछथिी भवषव जगज्जननी सीतवयवः भवषव आसीत्। िनुमन्तः उक्‍टतर्वन- मवनुषीधमि संस्कृतवम्।

अक्खर खम्भा (आखर खाम्ह)

ततहअन िेत्तति कवञि तसु तकक्षत्तर्स्थल्ि पसरेइ। अक्‍टिर िम्भवरम्भ जउ मञ्रो िन्धि न दन े इ॥ (कीर्तिंितव
प्रथमः पल्िर्ः पतिि दन ोिव।) मवने आिर रूपी िवम्ि तनमवा कऽ ओइपर (गद्य-पद्य रूपी) मंर ज, नै िवन्िि
जवय त, ऐ तिभुर्नरूपी िेिमे ओकर कीर्तिंरूपी ित्ती केनव पसरत।

शुक्‍टि यजुर्ेदन (२६.२)-यथेमवं र्वरं कल्यव ीमवर्दन वतन जनेभ्यः। ब्रह्मरवजन्यवभ्यवं शूरवय रवयवाय र स्र्वय
रवर वय र।।िम सभ गोटे कें ई पतर्ि र्व ी (र्ेदन र्व ी) सुनविी। ब्रवह्म कें , ितियकें, शूरकें आ आयाकें;
अपन िोककें आ अपररछरतकें सेिो (मवने सभकें)। मुदन व ऐ र्ेदन र्वक्‍टयक तर्परीत मनुस्मृतत र्ेदन र्व ीक
अध्ययन/ श्रर् कें समवजक तकिु गोटे िेि तनषेि करऽ रवििक, मुदन व स्मृतत सेिो र्ेदन र्वक्‍टयकें प्रमव मवनैत
अछि (शब्दन प्रमव ) तें तकर तर्रुद्ध दन े ि ओकर तनदन े श स्र्यं अमवन्य भऽ जवइत अछि।

Do not judge each day by the harvest you reap but by the seeds that you plant.
-Robert Louis Stevenson

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Videha: Maithili Literature Movement


𑒀

ॐ द्यौ: शवन्न्तरन्तररि ग्र्ंग शवन्न्त:

𑓇 𑒠𑓂𑒨𑒾 : 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱 𑒩 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒩𑒏𑓂𑒭 𑓅 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱 :


𑒀

ॐ द्यौ: शान्तिरतिररक्ष ग्वंग शान्तििः पथ्


ृ वी शान्तिराप:
शान्तिरोषधय: शान्ति वनस्पिय: शान्तिर्विश्वे दे वा:
शान्तिर्ब्िह्म

𑓇 𑒠𑓂𑒨𑒾 : 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱 𑒩 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒩𑒏𑓂𑒭 𑓅 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱 �� 𑒣𑒵𑒟𑓂𑒫𑒲 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱 𑒩 𑒣𑒵: 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱 𑒠𑓂𑒨𑒾𑒩 𑒭𑒡𑒨: 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱
𑒫𑒢𑒮𑓂𑒣𑒞𑒨: 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒫𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒫 : 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱 𑒩𑓂𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧

ब्रह्म स, प्रवथानव जे द्युिोकमे, अंतररिमे, पृथ्र्ीपर, जिमे, औषिमे,


र्नस्पततमे, तर्श्वमे, सभ दन े र्तवग मे आ ब्रह्ममे शवंतत हअय।

ॐ-ब्रह्म , द्यौ-सूय-ा तरेग , अंतररि- पृथ्र्ी आ द्यूिोकक िीर, आप:-


जि, तर्श्वेदन ेर्व- सभ दन े र्तव, ब्रह्म- सजाक।

𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧𑒝𑒮𑒿 𑒣𑓂𑒩𑒰 𑒩𑓂𑒟𑒢 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒏𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒁𑓀𑒞𑒢𑓂𑒞𑒱𑒩𑒏𑓂𑒭𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒣𑒵𑒟𑓂𑒫𑒲 𑒣𑒵𑒩, 𑒠𑓂𑒨𑒾 ,
𑒎𑒭𑒡𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒫𑒢𑒮𑓂𑒣𑒢𑓂𑒞𑒱𑒞𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒫 𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒮𑒿𑒦 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒫𑒞 𑒑𑒝𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒂 𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒞
𑒯𑒳𑒁𑓀𑒨।
𑓇-𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧𑒝, 𑒠𑓂𑒨𑒾 -𑒮𑒿𑒨-𑒞𑒠𑓂𑒨𑒾𑒩𑒑𑒝, 𑒁𑓀𑒞𑒢𑓂𑒞𑒱𑒩𑒏𑓂𑒭- 𑒣𑒵𑒟𑓂𑒫𑒲 𑒂 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒏𑒏 𑒩𑓂𑒥𑓂 𑒔,
𑒂𑒣𑒵:- , 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒫𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒫 - 𑒮𑒿𑒦 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒫𑒞 , 𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧- 𑒮𑒿 𑒏।
𑒀
ॐ, स॒िस्र॑शीषवा॒ पुरु॑षः। स॒ि॒स्रव॒िः स॒िस्र॑पवत्।

𑓇, 𑒮𑒿↓ 𑒯𑒮𑓂𑒩↑ 𑒬𑒰 𑒭 ↓ 𑒣𑒳𑒩𑒳↑ 𑒭�। 𑒮𑒿↓ 𑒯↓ 𑒮𑓂𑒩 ↓ 𑒏𑓂𑒭�


𑒮𑒿↓ 𑒯𑒮𑓂𑒩↑ 𑒣𑒵 𑒞𑓂।

स भूममिं ॑ ग्र्ंग तर्॒श्वतो॑ र्ृत्र्व।


॒ अत्य॑ततष्ठदन ् दन शवङगुिम्
॒ ॥

𑒮𑒿 𑒦𑒴𑒢𑓂𑒞𑒱 ↑ 𑓅 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒫↓ 𑒠𑓂𑒨𑒾𑒞 ↑ 𑒫↓ 𑒞𑓂𑒫𑒰 । 𑒁𑓀𑒞𑓂𑒨↑ 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒞𑒭𑓂𑒚𑒠𑓂 𑒬𑒰 𑒓𑓂𑒑𑒳↓ 𑒧𑓂॥

िजवर मवथ, िजवर आ,खि, िजवर पएर संग तर्श्वकेँ आच्छवददन त केने
अछि, दन स आंगुरक गनतीक र्शमे नै अछि ओ।

प॒दन भ्् यवग्, ॑ शू॒रो अ॑जवयत॥

𑒣𑒵↓ 𑒠𑓂𑒦𑓂𑒨 𑒑𑓂�↑ 𑒬𑒰↓ 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒁𑓀↑ 𑒨𑒞॥

पएरस, शूरक उत्पक्षत्त भेि॥

प॒दन भ्् यवं भूधम॒र्दन िंशः॒ श्रोिव᳚त्।

𑒣𑒵↓ 𑒠𑓂𑒦𑓂𑒨 𑒦𑒴𑒢𑓂𑒞𑒱 ↓ 𑒢𑓂𑒞𑒱 𑒬𑒰�↓ 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒞𑓂𑒩𑒰 ↑ ↑ 𑒞𑓂।

मुदन व पएरेस, भूधमयोक उत्पक्षत्त।


❀ (White Florette- innocence and purity)
☸ (Wheel of Dharma)
࿕(Swastik)
𑓅 (Gwang ग्र्ंग- two small circles connected by u and
a dot placed over it, used in reference of Vedic texts)
꣼ (छसञद्धरस्तु, छसद्धम 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒮𑒿𑒢𑓂𑒞𑒱 𑒩𑒮𑓂𑒞𑒳, 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒮𑒿 Devanagari Anji)

ঀ (Bengali Anji, Siddham)


𑒀 (Tirhuta Anji, Ankush of Ganeshji, placed at the
beginning of something)
सोशल मीडिया, अन्तर्ााल आ दूरदशानक कायाक्रम सभमे वे दमे ई ललखल अछि, ई वर्णित अछि, शूद्रक प्रछत, स्त्रीक
प्रछत, शूद्रक स्त्रीक प्रछत अामान र्नक ा ललखल अछि; ई सभ सूडन कऽ डकयो डवकीाीडिया आ आन आन ठाम
अन्तर्ाालार ले ख सभमे ाररवतान कऽ दे ने रहछि। एक ोटे अं ग्रेर्ीमे ललखलडन- “अिवावेदमे शूद्रक ात्नीकेँ डिना
स्त्वीकृछतक डकयो हाि ाकडि लऽ र्ा सकय, िला वक्तव्य अछि।” हम कुरुक्षे रम् अन्तमानक, खण्ि-८; प्रिन्ध
डनिन्ध समालोचना भा -२, २०१४ मे अान आले ख “डवद्यााछत: डकिु प्रचललत कुप्रचारक डनवारण” मे ललखने रही-
“.. ई ओडहना भे ल र्े ना अिवावेदमे शूद्रक ात्नीकेँ डिना स्त्वीकृछतक डकयो हाि ाकडि लऽ र्ा सकए िला
वक्तव्य।”
मुदा अिवावेद िा कोनो वे दमे ओइ तरहक वक्तव्य कत्तौ नै आयल अछि। तकर डवारीत शुक्ल यर्ुवेद ई कहै त
अछि:-
शुक्ल यर्ुवेद (२६.२)-यिे मां वाचं कल्याणीमावदाडन र्ने भ्यः। ब्रह्मरार्न्याभ्यां शूद्राय चायााय च स्त्वाय चारणाय
च।।हम सभ ोटे कें ई ाडवर वाणी (वे दवाणी) सुनािी। ब्राह्मणकें , क्षलरयकें, शूद्रकें आ आयाकें; अान लोककें आ
अाररछचतकें से हो (माने सभकें)। मुदा ऐ वे दवाक्यक डवारीत मनुस्मृछत वे दवाणीक अध्ययन/ श्रवणकें समार्क
डकिु ोटे ले ल डनषे ध करऽ चाहलक, मुदा स्मृछत से हो वे दवाक्यकें प्रमाण मानै त अछि (शब्द प्रमाण) तें तकर डवरुद्ध
दे ल ओकर डनदे श स्त्वयं अमान्य भऽ र्ाइत अछि।
वे द मे उालब्ध शूद्र शब्दक उ्ले खखत अं शक सं ग्रह नीचााँ दे ल र्ा रहल अछि। शूद्रक अामानर्नक उ्ले ख ताँ नडहये
अछि, वरन् ाएरसाँ ाडवर ाृथ्वीक र्न्मक उ्ले ख अछि आ तही उत्ालत्तक सादृश्यताक कारणसाँ मानव समुदायक
ाालक शूद्र कहल े ल िछि।
ा॒द्भ्या ्ाँ ्ँ॑ शूू॒द्रो अ॑र्ायत॥

ाएरसाँ शूद्रक उत्ालत्त भे ल॥

ा॒द्भ्यां भूछम॒र्दिश॒ःि श्रोरा᳚त्।

मुदा ाएरे साँ भूछमयोक उत्ालत्त।

REFERENCE OF SHUDRAS IN VEDAS [Dr Tulsi Ram, 2013, Atharveda:


Samaveda: Yajurveda: Rigveda; English Translations]

ATHARVA VEDA (3 references)

KANDA-14
(MARRIAGE AND FAMILY) Kanda 14/Sukta 1 (Surya’s Wedding)
Devata: Dampati; Rshi: Surya Savitri
60. Bhagastataksha caturah padanbhagastataksha catvaryuspalani. Tvasta
pipesa madhyatonu vardhrantsa no astu sumangali.
Bhaga, lord sustainer and ordainer of life, has framed the value orders of
life: Dharma, Artha, Kama and Moksha; four social orders: Brahmana,
Kshatriya, Vaishya and Shudra; four stages of personal life: Brahmacharya,
Grhastha, Vanaprastha and Sanyasa. Tvashta, lord maker and organiser of
life, has placed the woman as partner of man in matrimony in this order and
organisation. May the bride be good and auspicious for us.
भा - ाालनकताा आ र्ीवनक अछधष्ठाता- र्ीवनक मूल्य क्रम तै यार केने िछिः धमा, अिा, काम आ मोक्ष; चारर
सामाजर्क क्रम- ब्राह्मण, क्षलरय, वै श्य आ शूद्र; व्यक्क्त त र्ीवनक चारर चरण- ब्रह्मचया, ृहस्त्ि, वानप्रस्त्ि आ
सन्यास।त्वष्टा- स्त्वामी डनमााता आ र्ीवनक आयोर्क- एडह क्रममे आ सङ् ठनमे स्त्रीकेँ डववाहमे ाुरुषक सािीक
रूामे रखने िछि। से वधू हमर सभक ले ल नीक आ शुभ होछि।
Kanda 19/Sukta 6 (Purusha, the Cosmic Seed)
Purusha Devata, Narayana Rshi
6. Brahmano sya mukhamasid bahu rajanyo bhavat. Madhyam tadasya
yadvaishyah padbhyam sudro ajayata.
Brahmana, (man of knowledge, divine vision and the Vedic Word in the
human community) is the mouth of the Samrat Purusha. Kshatriya, man of
justice and polity, is the arms of defence and organisation. The middle part
is the Vaishya who produces and provides food and energy. And the
ancillary services that provide sustenance and support with auxiliary labour
are the feet, the Shudra that bears the burden of society.
ब्राह्मण (ज्ञानी, ददव्य दृछष्ट आ मानव समुदाय ले ल वै ददक शब्द) सम्राट ाुरुषक मुख अछि। क्षलरय -न्याय आ
रार्नीछतक लोक- रक्षा आ सङ् ठनक हाि िछि। मध्य भा वै श्य िछि र्े भोर्न आ ऊर्ााक उत्ाादन आ आाूर्ति
करै त िछि। आ सहायक से वा र्े सहायक श्रमक सङ् डनवााह आ सहायता प्रदान करै त अछि, ओ अछि ाै र, शूद्र
र्े समार्क भार वहन करै त िछि।

Kanda 19/Sukta 32 (Darbha)


Darbha Devata, Bhrgu Ayushkama Rshi
8. Priyam ma darbha krunu brahmarajanyabhyam sudraya charyaya cha.
Yasmai ca kamayamahe sarvasmai cha vipasyate.
O Darbha, destroyer and preserver, eternal sanative, render me dear and
loving to and loved by all Brahmanas, Kshatriyas, Vaishyas, Shudras,
whoever we love and desire, and all those who have the eye to see (and
discriminate right and wrong).
हे दभाा, डवनाशक आ सं रक्षक, शाश्वत डववे कशील; हमरा सभकेँ ब्राह्मण, क्षलरय, वै श्य, शूद्र, सभक छप्रय आ प्रेमी
िना ददअ। सं े ओ सभ हमरा सभसाँ प्रेम् करछि जर्नका साँ हम प्रेम करी िा जर्नकर कामना करी; आ ओ सभ
जर्नका ल दे खिाक दृछष्ट अछि (आ सही आ लतमे भे द िुझैत िछि)।

SAMAVEDA (o reference)

YAJURVEDA (7 references)
CHAPTER- VIII
30. (Dampati Devata, Atri Rshi)
Purudasmo visuruupa indurantarmahimanamanaja dhirah. Ekapadim
dvipadim tripadim chatupadimastapadim bhuvananu prathantam svaha.

The man of mighty deeds, who eliminates suffering and creates joy, of
versatile attainments, bright and honourable, constant and resolute, should
wait for the great new arrival. Men of the household, cultivate the vaidic
culture of one, two, three, four and eight steps of attainment: one: Aum; two:
worldly fulfilment and the freedom of moksha; three: the joy of the truth of
word and the health of body and mind; four: the attainment of Dharma,
wealth, fulfilment of desire, and moksha; eight: the joy of all the four classes
and all the four stages of life (Brahmana, Kshatriya, Vaishya and Shudra,
Brahmacharya, Grihastha, Vanaprastha and Sanyasa). Build homes for the
people and advance in life.
शक्क्तशाली कमाक ाुरुष, र्े दःखकेँ समाप्त करै त अछि आ आनन्द उत्ान्न करै त अछि, िहुमुखी उालब्ब्धक,
उज्जज्जवल आ सम्मानर्नक, ब्स्त्िर आ दृढ़ सं कब््ात, ओकरा महान नव आ मनक प्रतीक्षा करिाक चाही। घरक
लोक, उालब्ब्धक एक, दू, तीन, चारर आ आठ चरणक वै ददक सं स्त्कृछत डवकलसत करै त िछिः एकः ओम; दइः
सां साररक ाूर्ति आ मोक्ष रूाी स्त्वतन्रता; तीनः वचनक सत्यक आनन्द आ शरीर आ मब्स्त्तष्कक स्त्वास्त्थ्य; चाररः
धमाक प्राप्प्त, धन, इच्छाक ाूर्ति, आ मोक्ष; आठः र्ीवनक चारर व ा आ चारर चरणक आनन्द (ब्राह्मण, क्षलरय,
वै श्य आ शूद्र, ब्रह्मचया, ृहस्त्ि, वनप्रस्त्ि आ सन्यास)। लोकक ले ल घर िनाउ आ र्ीवन मे प्र छत करू।

CHAPTER- XVIII
48. (Brihaspati Devata, Shunah-shepa Rshi)
Rucham no dhehi brahmanesu rucham rajasu naskrudhi. Rucha vishyesu
shudreshu mayi dhehi rucha rucham.
Brihaspati, lord of the universe, eminent teacher and master of vast
knowledge, inspire our Brahma section of the community—scholars,
scientists, teachers and researchers with brilliance and love. Infuse
brilliance, love and justice into our Kshatrias, defence, administration and
justice section of the community. Bless with light, love and generosity our
Vaishyas, producers and distributors among the community. And bless our
Shudras, the ancillary services, with light, love and loyalty. Bless me with
light and love toward us all.
िृहस्त्ाछत- ब्रह्माण्िक स्त्वामी, प्रख्यात लशक्षक आ डवशाल ज्ञानक स्त्वामी- समुदायक ब्रह्म व -ा डवद्वान, वै ज्ञाडनक,
लशक्षक आ शोधकताा- केँ प्रछतभा आ प्रेम साँ प्रेररत करू। हमर क्षलरय-रक्षा, प्रशासन आ न्याय- समुदायक व ामे
प्रछतभा, प्रेम आ न्यायक सं चार करू। हमर वै श्य-समुदायक डनमााता आ डवतरक- सभकेँ प्रकाश, प्रेम आ उदारतासाँ
आशीवााद ददयौ। आ हमर सभक शूद्र -समुदायक सहायक से वी- केँ प्रकाश, प्रेम आ डनष्ठा साँ आशीवााद ददयौ। हमरा
सभ केँ प्रकाश आ प्रेम साँ आशीवााद ददयौ।

CHAPTER- XXV
23. (Dyau etc. Devata, Prajapati Rshi)
Aditirdyauraditirantarikshamaditirmata sa pita sa putrah. Vishve deva
aditih pancha jana aditirjatamaditirjanitvam.
In the essence: Light is indestructible; sky is indestructible; mother Prakriti
(matter-energy-thought) is indestructible; Father, the Cosmic Spirit is
indestructible; Son, the soul (jiva), is indestructible; all the divinities of
nature and humanity are indestructible; five people, Brahmana, Kshatriya,
Vaishya, Shudra, others, are indestructible; whatever is born is
indestructible; whatever will be born is indestructible. (All that was, is and
shall be is indestructible in the essence.)
सारमे : प्रकाश अडवनाशी अछि; आकाश अडवनाशी अछि; माता प्रकृछत (ादािा-ऊर्ाा-डवचार) अडवनाशी अछि;
डाता, ब्रह्मां िीय आत्मा अडवनाशी अछि; ाुर, आत्मा (र्ीव) अडवनाशी अछि; प्रकृछत आ मानवताक सभ दे वत्व
अडवनाशी अछि; ाााँ च व्यक्क्त, ब्राह्मण, क्षलरय, वै श्य, शूद्र आ आन अडवनाशी अछि; र्े डकिु र्न्मल अछि से
अडवनाशी अछि; र्े डकिु र्न्मत से अडवनाशी अछि। (र्े डकिु िल, अछि िा रहत/ आओत से सार मे अडवनाशी
अछि।)

CHAPTER- XXVI
2. (Ishvara Devata, Laugakshi Rshi)
Yathemam vacham kalyanimavadani janebhyah. Brahmarajanyabhyam
Shudraya charyaya cha svaya charayaya cha. Priyo devanam dakshinayai
daturiha bhuyasamayam me kamah samrudhyatamupa mado namatu.
Just as this blessed Word of the Veda I speak for the people, all without
exception, Brahmana, Kshatriya, Shudra, Vaishya, master and servant,
one’s own and others, so do you too. May I be dear and favourite with the
noble divinities and the generous people for the gift of the sacred speech.
May this noble aim of mine be fulfilled here in this life. May the others too
follow and come my way beyond this life.
र्े ना वे दक ई धन्य वचन हम डिना कोनो अावादक, ब्राह्मण, क्षलरय, शूद्र, वै श्य, स्त्वामी आ से वक, अान आ अन्य
लोकक ले ल कहै त िी, तडहना अहााँ से हो करै त िी। ाडवर भाषणक ऐ उाहारक ले ल हम महान दे वत्व आ उदार
लोक सभक छप्रय आ मनभावन रही। हमर ई महान उद्देश्य ऐ र्ीवन मे ाूर हुअय। आन सभ से हो हमर मा ाक
अनुसरण करै त िढ़ै त र्ाय आ से ऐ र्ीवनसाँ आ ााँ धरर िढ़य।

CHAPTER- XXX
5. (Parameshvara Devata, Narayana Rshi)
Brahmane brahmanam kshatraya rajanyam marudbhyo vaishyam tapase
Shudram tamase taskaram narakaya virahanam papmane
klibamakrayayaayogum kamaya punshchalumatikrustaya magadham.
Give us, we pray, the Brahmanas for education and research, culture and
human values; the Kshatriyas for governance, defence and administration;
the Vaishyas for economic development, and the Shudras for assistance and
labour in the ancillary services. Remove, we pray, the thief roaming in the
dark, the murderer bent on lawlessness, the coward disposed to sin, the
armed terrorist bent on destruction, the harlot out for pleasure of flesh, and
the bastard fond of scandal.
Note: In mantras 5-22 in which various aspects of organised life are listed,
there is repetition of ‘asuva’ and ‘parasuva’ from mantra 3, which means:
‘Give us, we pray, what is good’, and, ‘Remove, we pray, what is evil’. This is
the prayer. Also, there are echoes of ‘havamahe’ from mantra 4, which
means: ‘We invoke and develop’, and, ‘we challenge and fight out’. This is
the call for action under the divine eye.
लशक्षा आ शोध, सं स्त्कृछत आ मानवीय मूल्यक ले ल ब्राह्मण; शासन, रक्षा आ प्रशासनक ले ल क्षलरय; आर्ििक
डवकासक ले ल वै श्य; आ सहायक से वामे सहायता आ श्रम ले ल शूद्र हमरा ददअ से हम प्रािाना करै त िी। हम प्रािाना
करै त िी र्े अन्हारमे घुमैत चोर, अरार्कता ार डिता खूनी, ााा ार डिता कायर, डवनाश ार डिता सशस्त्र आतं कवादी,
दै डहक सुख ले ल िाहर े ल वे श्या, आ कलं कक शौकीन नार्ायर्केँ हटा ददयौ।
नोटः मं र 5-22 मे , र्इमे सं दठत र्ीवनक डवलभन्न ाक्ष सूचीिद्ध अछि, मं र 3 साँ 'आशुवा' आ 'ारशुवा' क
ाुनरावृलत्त होइत अछि, र्कर अिाः 'हमरा सभ केँ ददअ, हम प्रािाना करै त िी, र्े नीक अछि', आ, 'हटाउ, हम
प्रािाना करै त िी, र्े अधलाह अछि'। ई प्रािाना अछि। सङ् डह, मं र 4 साँ 'हवामाहे ' क प्रछतध्वडन अछि, र्कर
अिाः 'हम आह्वान करै त िी आ आ ू िढ़िै िी', आ, 'हम मााँ डट दइ िी आ लिै िी'। ई ददव्य दृछष्टक अन्त ात कार्
करिाक आह्वान अछि।

CHAPTER- XXX
22. (Rajeshvarau Devate, Narayana Rshi)
Athaitanastauau virupanalabhateitidirgham chatihrasvam chatisthulam
chatikrusham chatishuklam chatikrushnam chatikulvam chatilomasham
cha. Ashudra abrahmanaste prajapatyah. Magadhah punshchali kitavah
kliboshudra abrahmanaste prajapatyah.
The good human being accepts and works with these eight classes of people
of different forms and colours: too tall, too short, too fat, too thin, too white,
too dark, too hairless, too hairy. Also they are neither Brahmanas nor
Shudras (nor the others). They too, all of them, are children of God,
Prajapati. Even the bastard and the ‘despicable’, the wanton, the gambler,
and the coward and the eunuch, neither Shudras nor Brahmanas (nor the
others), they too are children of God, Prajapati, father of all.
नीक लोक डवलभन्न रूा आ रङ् क ऐ आठ व ाक लोकक सं स्त्वीकार करै त अछि आ कार् करै त अछिः खूि
लम्िा, िड्ड िोट, िड्ड मोट, खूि ाातर, िड्ड ोर, िड्ड कारी, िहुत कम केशिला, खूि केशिला। ओ सभ ने ब्राह्मण
िछि, नडहये शूद्र (आ नडहये आन डकयो)। ओ सभ से हो भ वान प्रर्ााछतक सन्तान िछि। एतऽ धरर र्े नार्ायर्
िा 'घृजणत', ऊधमी, र्ुआरी, आ कायर आ नाुंसक, ने शूद्र, नडहये ब्राह्मण (नडहये आन डकयो), ओ सभ से हो
भ वान प्रर्ााछतक सन्तान िछि, प्रर्ााछत- सभक डाता।

CHAPTER- XXXI
11. (Purusha Devata, Narayana Rshi)
Brahmanosya mukhamashid bahu rajanyah krutah. Uru tadasya
yadvaishyah padbhyam Shuudro ajayata.
The Brahmana, man of divine vision and Vedic Word, is the mouth of the
Samrat Purusha, the human community. The Kshatriya, man of justice and
polity, is created as the arms of defence. The Vaishya, who produces food
and wealth for the society, is the thighs. And the man of sustenance and
support with labour is the Shudra who bears the burden of the human
family.
ददव्य दृछष्ट आ वै ददक वचनक लोक ब्राह्मण, सम्राट ाुरुष-मानव समुदाय-क मुख िछि। न्याय आ लशष्टताक लोक
क्षलरयकेँ रक्षाक हछियारक रूामे िनाओल े ल अछि। वै श्य, र्े समार्क ले ल भोर्न आ धन उत्ान्न करै त िछि,
र्ां घ िछि। आ श्रमक सङ् डनवााह आ सहारा दे िऽिला व्यक्क्त शूद्र िछि र्े मानव ाररवार सभकक भार वहन
करै त िछि।

RIG VEDA (2 references)


Mandala 10/Sukta 90
Purusha Devata, Narayana Rshi
12. Brahmano sya mukhamasidbahu rajanyah kritah. Uru tadasya
yadvaisyah padbhyam sudro ajayata.
The Brahmana, man of divine vision and the Vedic Word, is the mouth of the
Samrat Purusha, the human community. Kshatriya, man of justice and
polity, is created as the arms of defence. The Vaishya, who produces food
and wealth for the society, is the thighs. And the man of sustenance and
ancillary support with labour is the Shudra who bears the burden of the
human family as the legs bear the burden of the body.
ददव्य दृछष्ट आ वै ददक वचन िला ब्राह्मण, सम्राट ाुरुष-मानव समुदाय- क मुख िछि। क्षलरय- न्याय आ रार्नीछतक
लोक- केँ रक्षाक हछियारक रूामे िनाओल े ल अछि। वै श्य, र्े समार्क ले ल भोर्न आ धन उत्ान्न करै त िछि,
र्ां घ िछि। आ र्ीडवकोाार्ान आ श्रमक सङ् सहायक व्यक्क्त शूद्र िछि र्े मानव ाररवारक भार वहन करै त िछि
र्े ना ाै र शरीरक भार वहन करै त अछि।

Mandala 10/Sukta 124


Devata: Agni (1); Rshi: Agni, Varuna, Soma
1. Imam no agna upa yajnamehi panchayamam trivritam saptatantum. Aso
havyavaluta nah puroga jyogeva dirgham tama ashayishthah.
Agni, yajnic light of life, come to this life yajna of ours: which has five
divisions, i.e., Brahma-yajna, Deva-yajna, Pitr-yajna, Atithi-yajna, and
Balivaishvadeva-yajna; conducted by five people, i.e, four socioeconomic
classes of Brahmans, Kshatriyas, Vaishyas and Shudras and others like
chance visitors from other groups there might be; which is threefold, i.e.,
paka yajna, haviryajna and somayajna; and which has seven extensions, i.e.,
Agnishtoma, Atyagnishtoma, Ukthya, Shodashi,Vajapeya, Atiratra and
Aptoyami. You are our leader and pioneer, Agni, and you are the carrier of
our yajna to the divinities as well as harbinger of the fruits of yajna to us.
Pray come and be our all-time dispeller of the cavern of deep darkness from
life. (Yajna is a creative process of development in life from the individual
to the social, national, global and environmental level of life. The
explanation above is related to the social level. Swami Brahmamuni explains
the yajna at the individual level, and that is also suggested in Rgveda 10, 7,
6: ‘Svayam yajasva’, and yajurveda 4, 13: “Iyam te yajniya tanu”, which
means: Develop yourself by yajna according to the seasons of your growth,
and remember your life in body, mind and soul is worthy of yajnic service
for your personal development, your body being the first instrument of your
wider yajna of life. This personal yajna is fivefold, for the elemental balance
of earth, water, heat, air and ether; threefold for the balance of vata, pitta
and kaf, and also for balanced growth of body, mind and soul; sevenfold for
the growth of rasa, rakta, mansa, meda, asthi, majja and virya. Thus yajna is
the process of growth beginning with the individual, accomplished at the
cosmic level.)

अप्नन -र्ीवनक यज्ञक प्रकाश- हमर सभक ऐ र्ीवन-यज्ञमे आउ, र्इमे ाााँ च डवभा िै , अिाात, ब्रह्म-यज्ञ, दे व-यज्ञ,
डातृ-यज्ञ, अछतछि-यज्ञ, आ िललवै श्वदे व-यज्ञ; ाााँ च लोक द्वारा सं चाललत, अिाात, ब्राह्मण, क्षलरय, वै श्य आ शूद्र क
चारर सामाजर्क-आर्ििक व ा आ ाााँ चम आन समूह कखनो काल आयल आ ं तुक। आ से तीनटा िै - अिाात, ााक
यज्ञ, हडवयाज्ञ आ सोमयज्ञ; आ र्कर सात डवस्त्तार िै , अिाात, अप्ननष्टोम, अत्यप्ननष्टोम, उक्त्या, षोिषी, वार्ाे य,
अछतरार आ अप्तोयमी। अप्नन, अहााँ हमरा सभक ने ता आ अग्र ामी िी, आ अहााँ दे वत्व ले ल हमर यज्ञक वाहक
िी आ सङ् डह हमरा सभक ले ल यज्ञक फलक अग्रदूत िी। प्रािाना अछि र्े आउ आ हमरा सभक र्ीवन तरहरर
सन अन्हार सदाक ले ल दूर करै िला िनू। (यज्ञ व्यक्क्त तसाँ र्ीवनक सामाजर्क, राष्रीय, वै जश्वक आ ायाावरणीय
स्त्तर धरर र्ीवनक डवकासक एकटा रचनात्मक प्रडक्रया अछि। उारोक्त व्याख्या सामाजर्क स्त्तरसाँ सम्िन्न्धत अछि।
स्त्वामी ब्रह्ममुनी व्यक्क्त त स्त्तर ार यज्ञक व्याख्या करै त िछि, आ ई ऋनवे द 10,7,6 मे से हो सुझाओल े ल अछिः
'स्त्वयं यज्ञ'; आ यर्ुवेद 4,13: 'इयम ते यज्ञीय तनू', र्कर अिा अछि- अान डवकासक ऋतुक अनुसार यज्ञ द्वारा
अाना केँ डवकलसत करू, आ मोन राखू र्े शरीर, मन आ आत्मा युक्त अहााँ क र्ीवन यज्ञक से वाक ले ल अछि, आ
तइसाँ अहााँ क व्यक्क्त त डवकास हएत; अहााँ क शरीर अहााँ क र्ीवनक व्यााक यज्ञक ाडहल साधन अछि। ई
व्यक्क्त त यज्ञ ाााँ च प्रकारक अछि, ाृथ्वी, र्ल, ऊष्मा, वायु आ आकाशक मौललक सं तुलनक ले ल; तीन प्रकारक-
वात, डात्त आ कफक सं तुलनक ले ल; आ शरीर, मन आ आत्माक सं तुललत डवकासक ले ल से हो; सात प्रकारक
माने रस, रक्त, मानस, मे धा, अब्स्त्ि, मज्जर्ा आ डवयाक डवकासक ले ल। ऐ तरहेँ यज्ञ व्यक्क्तसाँ शुरू होइत डवकासक
प्रडक्रया अछि, र्े ब्रह्मां िीय स्त्तर ार सम्ान्न होइत अछि।)
आब आउ यूरोपक विद्वान लोकवन द्वारा िे दक गलत अनुिादक वकछु उदाहरण दे खू:-
EXAMPLES OF SOME MISTRANSLATIONS OF VEDAS BY WESTERN
SCHOLARS

W.D. Whitney’s translation of the Atharvaveda (7, 107, 1) edited and revised
by K.L. Joshi, published by Parimal Publications, Delhi, 2004:

Namaskrutya dyavapruthivibhyamantarikshaya mrutyave.

Mekshamyurdhvastisthaan ma ma hinsishurishvarah.

“Having paid homage to heaven and earth, to the atmosphere, to Death, I


will urinate standing erect; let not the Lords (Ishvara) harm me.” I give
below an English rendering of the same mantra translated by Pundit
Satavalekara in Hindi:

“Having done homage to heaven and earth and to the middle regions and
Death (Yama), I stand high and watch (the world of life). Let not my masters
hurt me.”

An English rendering of the same mantra translated by Pundit Jai Dev


Sharma in Hindi is the following:

“Having done homage to heaven and earth (i.e. father and mother) and to
the immanent God and Yama (all Dissolver), standing high and alert, I move
forward in life. These masters of mine, pray, may not hurt me.”

I would like to quote my own translation of the mantra now under print:

“Having done homage to heaven and earth, and to the middle regions, and
having acknowledged the fact of death as inevitable counterpart of life
under God’s dispensation, now standing high, I watch the world and go
forward with showers of the cloud. Let no powers of earthly nature hurt and
violate me.”
‘Showers of the cloud’ is a metaphor, as in Shelley’s poem ‘the Cloud’: “I
bring fresh showers for the thirsting flowers”, which suggests a lovely
rendering.

The problem here arises from the verb ‘mekshami’ from the root ‘mih’
which means ‘to shower’ (sechane). It depends on the translator’s sense and
attitude to sacred writing how the message is received and communicated
in an interfaith context with no strings attached (or unattached).

[Dr Tulsi Ram, 2013, Atharveda: English Translation; Page xxvi]

II

The idea that there was slavery in the Vedic Society originated with the
Western Indologists with their intentional or careless translation of a
Sanskrit word into “slave”. For example, in the Taittiriya Samhita (Krishna
Yajurveda), [7.5.10] [kanda 7,prapathaka 5, verse 10], a part of translation
by Keith reads “slave girls dance around the fire”. But in a footnote in the
same page [pg., 628, Vol. 2] the author Keith says that the verse describes the
dance of maidens. Suddenly the maidens have become “slave girls”. Both
Paranjape and Avinash Bose point to the mistranslation of the word ‘yosha’
as courtesan by the indologist Pischel [Bose, Hymns from the Veda, p. 36].

[Veda Books,SRI AUROBINDO KAPALI SHASTRY INSTITUTE OF VEDIC


CULTURE, page 240]

III

In 1795, H.T. Colebrooke, then a young scholar, wrote his maiden paper, “On
the Duties of a Faithful Hindu Widow,” for the Asiatic Society (Asiatic
Researches IV 1795: 205-15). He cited the hymn from the Rig Veda as
sanctioning widow burning, which William Jones immediately contested
(Canon 1993 I:lxx). Colebrooke translated the end of the hymn as “let them
pass into fire, whose original element is water.” A quarter of a century later,
the Orientalist, H.H. Wilson pointed out that the hymn had been distorted
(Wilson 1854: 201-14; Cassels 2010: 89). Wilson translated the verse as per
the reading corroborated by Sayana, the authoritative medieval
commentator on the Vedas, and demonstrated that it did not refer to widow
burning (Rocher and Rocher 2012: 24-25).

[Meenakshi Jain,2016; Sati: Evangelicals, Baptist Missionaries; and the


Changing Colonial Discourse, Page 5)

𑒀
'विदेह' ३५२ म अंक १५ अगस्त २०२२ (िर्ष १५ मास
१७६ अंक ३५२)
(विदेह www.videha.co.in )

केदार नाथ चौधरी विशेर्ांक


अनुक्रम

केदार नाथ चौधरी विशे षाां क

१.केदारनाथ चौधरी विशे षाां क सम्पादकीय- गजे न्ददर ठाकु र (पृ. २-२७)

२.प्रस्तुत विशे षाां कक सां दर्भमे (पृ. २८-३०)

३.केदारनाथ चौधरीजीक सां क्षिप्त पररचय (पृ. ३१-३३)

४.कल्पना झा- इएह गूड़ खे ने,कान छे दौने (पृ. ३४-४४)


५.वनमभला कणभ- केदारनाथ चौधरी व्यक्तित्ि एिां कृततत्ि (पृ. ४५-४७)

६.आर्ा झा- प्रे मक अद्वैतक अद्भत


ु आख्यान –हीना (पृ. ४८-५२)

७.शशिशां कर श्रीवनिास- चमे ली रानी (पृ. ५३-५८)

ु - मै तथली सावहत्यक "कबीर"- हमरा सर्क केदार बाबू


८.दीपक मां जल
(पृ. ५९-६३)

९.कामे श्वर चौधरी- अां ग्रेक्षजए पढ़ल लोक मै तथलीकेँ उबारर सकत (पृ.
६४-६६)

१०.लक्ष्मण झा सागर- अबारा नवह...तन! (पृ. ६७-७०)

११.अक्षजत कु मार झा- अबारा नवहतन : एक अनुपम कृतत (पृ. ७१-८०)

१२.र्ीमनाथ झा- तोर समान एक तोहेँ माधि (पृ. ८१-८४)

१३.वहतनाथ झा- ह्रास होइत सभ्यता सां स्कृततक इततिृशिक अयना :


"अयना" (पृ. ८५-८८)
१४.अमरनाथ झा- अपररतचतसँ पररतचततक यात्ााः केदारनाथ चौधरी (पृ.
८९-९३)

१५.अशोक- केदार नाथ चौधरीक उपन्दयास (पृ. ९४-९८)

१६.जगदीश चन्ददर ठाकु र "अवनल"- चुम्बकीय ले खनक दृष्टान्दत "अबारा


नवहतन" (पृ. ९९-१०४)

१७.योगे न्ददर पाठक "वियोगी"- अपररतचत सावहत्यकारक नुकाएल गप


(पृ. १०५-११४)

१८.प्रदीप वबहारी- मुख्य पात्क गौण व्यथा : अबारा नवहतन (पृ. ११५-
११९)

१९.आशीष चमन- मधुबाला नवह नवह लालदाय (पृ. १२०-१३१)

२०.अरविन्दद ठाकु र- विलिणकेँ व्याख्यातयत करब: अबारा नवहतन (पृ.


१३२-१५२)

२१.आशीष अनतचन्दहार- मै तथली उपन्दयासक 'केदारनाथ युग' (पृ. १५३-


१५७)
२२.गजे न्ददर ठाकु र- केदार नाथ चौधरी- हुनकर आ हुनकर उपन्दयासक
पुनपाभठ (पृ. १५८-१६५)

२३.अचभना चौधरी- हमर वपतााः श्री केदारनाथ चौधरी (पृ. १६६-१६७)

२४. डॉ कैलाश कु मार तमश्र- केदारनाथ चौधरी रतचत मै तथली उपन्दयास:


करार (पोथी समीिा) (पृ. १६८-१९३)

विदे ह: ३५३ म अां क ०१ शसतम्बर २०२२ (िषभ १५ मास १७७ अां क ३५३)-
अां क ३५२ पर विप्पणी (पृ. १९४-१९५)
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 1

गजे न्द्र ठाकुर विदे ह ई पत्रिका http://www.videha.co.in/


ISSN 2229-547X क सम्पादक छथि आ आइ काल्हि ददहलीमे रिै
छथि।
2 ||गजे न्द्र ठाकुर

केदारनाि चौधरी विशे षाां क सम्पादकीय- गजे न्द्र ठाकु र

किा १-१०

नाइट ड्यूटीमे छलाौं , दू बजे राति मे हमर फोन टनटना उठल। हमर गप हमर
कलीग, जे ितमल भाषी रहतथ, सुवन रहल छली। फोन खिम भे लापर वहन्द्दीमे
पुछलन्न्द्ह:

"कोन भाषामे अहााँ एक घण्टा गप कऽ रहल छलाौं , बड्ड मीठ भाषा अतछ"।

ऐ तमठासक खटास हुनका की बुझवबिाौं अहााँ केँ बुझायब। मुदा िइ ले ल


अहााँ केँ िै यार होमय पड़ि। से पवहने भाग-१ मे स्टाटटर आ फेर दोसर भागसाँ
१००, २०० आ ५०० एम.जी. अवहना डोज बढ़ै ि रहि।

किा १

केदारनाथ चौधरी (१९३६- ), मै तथलीक पवहल वफल्म 'ममिा गाबय गीि'


केर वनमाटिा द्वयमे साँ एकटा वनमाटिा छतथ केदारनाथ चौधरी आ दोसर
मदनमोहन दास। बादमे आर्थिक मजबूरीिश िे सर सहवनमाटिा भे लन्खन
उदयभानु ससिह।
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 3

मािा-स्ि. कुसुमपरी दे िी, वपिा- स्ि. वकशोरी चौधरी, जन्द्म: ०३/०१/१९३६

ग्रा.+पिा. ने हरा (दरभां गा), अन्द्य पाररिाररक सदस्य-पत्नी-श्रीमिी कुमुद


चौधरी, सां िान- प्रथम पुिी-श्रीमिी वकरण झा, द्वद्विीय पुिी-श्रीमिी अचटना
चौधरी, त्रशक्षा- १९५८ ई.मे अथटशास्िमे स्नािकोत्तर, १९५९ ई.मे लॉ। १९६९
ई.मे कैत्रलफोर्निया वि.वि.साँ अथटस्थास्ि मे स्नािकोत्तर, १९७१ ई.मे माकेटटिग
एां ड वडस्रीब्यूशन विषयमे गोल्डे न गे ट यूवनिर्सिटी, सानफ्ाां त्रसस्को, USA साँ
एम.बी.ए., १९७८ मे भारि आगमन। १९८१-८६ क बीच िे हरान आ
प्रौंकफुिटमे। फेर बम्बई, पुणे होइि ररटायरमें टक बाद २००० साँ लहे ररयासराय,
दरभां गामे वनिास।६ टा उपन्द्यास- चमे लीरानी २००४, करार २००६, माहुर
२००८, अबारा नवहिन २०१२, हीना २०१३, अयना २०१८. सम्मान- १) विदे ह
सावहत्य सम्मान, बखट-२०१३ (झारखां ड मै तथली मां च, रााँ ची द्वारा), २) प्रबोध
सावहत्य सम्मान, बखट-२०१६ आ ३) केदार सम्मान, बखट-२०१६,'अबारा
नवहिन' ले ल

किा २

डॉ कहपना मणिकान्द्त थमश्र

वपिा डॉ त्रशि कुमार झा, गाम राटी, सासुर- गजहारा। मे वडकल त्रशक्षा जे . जे .
हॉस्पीटल/ ग्रान्द्ट हॉस्पीटलसाँ सम्पन्द्न कय स्िी-रोग विशे षज्ञ। मुम्बइसाँ
१९८०-८२ मे प्रकात्रशि होइबला मै तथली पत्रिका "विदे ह"क पति डॉ
4 ||गजे न्द्र ठाकुर

मणणकान्द्ि तमश्र (वनमाटिा- मै तथली वफल्म- आउ वपया हमर नगरी) सां ग


सम्पादन।

अपन २००९ केर ई-पि मे ओ त्रलखै ि छतथ:

गजे न्द्र ठाकुर जी केँ हमर नमस्कार! अहााँ क पत्रिकाक हम वनयतमि पाठक
छी। अहााँ क िे बसाइटक पार्श्ट गीि हृदय-स्पशी आर मधुर लागल।

आगााँ ओ अपन सां स्मरण त्रलखै छतथ जे विदे ह सदे ह २ मे


(http://videha.co.in/new_page_89.htm) मे से हो
सां कत्रलि अतछ:

मातृभाषा

मािृभाषाक प्रेम, बहुि वकछु पढ़ल आ सुनल अतछ। अहाँ सभ सुनने होयब,
किे क बे र, मुदा स्ियां अनुभि करबाक अिसर वकछु एक लोककेँ भे टैि छन्न्द्ह।
हम सभ बम्बइ आयले रही। ओना िाँ ऐ गप्पक एक युगसाँ बे सी भय गे ल मुदा
वबसरबाक वहम्मि नै कऽ सकैि छी, आर वकएक वबसरु? महानगरीक
चकाचौन्द्ध मे हरायल रही, किौ भटवक नै जाइ से तचन्द्िा रहय। १९८०क दशक
मे सां जय गााँ धीक एकटा योजना आयल छल, बे रोजगार ग्रेजुएट ले ल बौं कसाँ
वकछु सुविधा पर २०,००० रुपया दे बय ले ल। हमहाँ बे रोजगार डाक्टर रही।
आिे दन केलाौं िाँ लोन िुरत्ते भे ट गे ल। मुदा आब ओइ पाइक हम की करु?
अपन रोजगार जे ना दिाइखाना, कोनो छोटसन घर आद्वद जिऽ भविष्यमे
अपन क्लीवनक खोत्रल सकी, जे वक ओइ समयमे अति सुलभ आर सम्भि
छल, आब िाँ से ओइ पाइमे सपना भऽ गे ल अतछ। ओइ पाइसाँ वनिे श कऽ
हम अपन भविष्य सुरणक्षि कऽ सकैि छलाौं , गहना-गुवड़या बना अपन सख-
से हन्द्िा पूरा कऽ सकैि छलाौं बा भारि भ्रमण कऽ सकैि छलाौं । मुदा नै ! हमर
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 5

पति, डा.मणणकान्द्ि तमश्रक इच्छा छलन्न्द्ह जे मै तथली भाषाक पत्रिका


वनकाली। हम दुनु गोटे तमत्रल कऽ 'विदे ह' नामक मै तथली पत्रिकाक शुरुआि
केलाौं । पत्रिका िाँ छपै , मुदा के कीनि आर के पढ़ि? ई बड पै घ समस्या छल।
कोनाहु कऽ कय अपन घरक पूाँजी लगा कऽ २ बखट िाँ पत्रिका चले लाौं । फेर
हमरा सभकेँ बन्द्द करय पड़ल वकएक िाँ दुनु गोटे डाक्टरी व्यिसायमे लागल
रही, घर-अस्पिाल-पाररिाररक झन्द्झट सम्हारै ि बड मुश्ककल छल। बम्बइमे
नबे -नबे रही। िहमे एिे क दुस्साहस कोनो साधारण आदमी नै कऽ सकैि
अतछ माि आर माि डा. मणणकान्द्ि तमश्र कऽ सकैि छलाह। वकएक िाँ
मै तथलीक प्रति हुनका जुनूनी लगाि छलन्न्द्ह। बम्बइक आपाधापी भरल जीिन
एिम् स्िास््यक उिार-चढ़ाि वकछु ओ हुनकर मै तथली-प्रेमक उत्साहकेँ कम
नै कऽ सकलन्न्द्ह।

...आर बीस-बाइस बखटक पश्चाि ओ अपन सभटा पूाँजी, शरीर-समाां ग समे ि


मै तथलीक वफल्म "आउ वपया हमर नगरी" बनौलवन। वफल्म बड सुन्द्दर बनलै ,
अहााँ सभ दे खने होयब। यद्वद नै िाँ एक बे र अिकय दे खी। वफल्म बनबयमे जे
कष्ट आर अनुभि भे ल से हम एखन िणटन नै कऽ सकै छी। फेर कखनो....!
मुदा ऐ सभ प्रकरणमे मााँ मै तथली अपन लायक पुिसाँ सदा ले ल वबछु वड़ गे ली।
अतछ कोनो मािृभाषा भक्ि-पुि जे अपन मााँ -मै तथलीक हृदयक पीड़ाक
अनुभुति कऽ हुनका ले ल अपन सभ वकछु समर्पिि कऽ द्वदअय?

किा ३

१५ अगस्ि २०२२ ई.क भारिक ७६म स्ििां ििा द्वदिसक


शुभकामना। ई सां योग छल जे विदे हक ६४म अां क भारिक ६४ म स्ििां ििा
6 ||गजे न्द्र ठाकुर

द्वदिसक अिसर पर १२ बखट पवहने १५ अगस्ि २०१० केँ ई-प्रकात्रशि भे ल


छल। ऐ बे र विदे हक ३५२म अां क सद्यः ई-प्रकात्रशि भे ल।

हमर वपिाजीक मृत्यु १९९५ ई. मे ५५ बरखमे भे लन्न्द्ह। मुदा गाममे १२ बखट


पवहने हुनकर सां गी आ ज्ये ष्ठ सभ जीविि रहतथ। परशुरामजी आ धने र्श्र जीक
बवहन झां झारपुरमे मल्ल्लकजीसाँ पढ़ै ले जाइि रहतथ िाँ धनाढ्य लोकवन द्वारा
बारर दे ल गे लाह। परशुरामजीक बवहनक पढ़ाइमे बाधा पड़लन्न्द्ह। मुदा
धने र्श्रजी जे कने क उमे रमे से हो पै घ रहतथ, अड़ल रहलाह। अां ग्रेजी पुत्रलससाँ
हुनका पकड़बाओल गे ल आ जे पकड़बओलन्न्द्ह से बादमे स्िाधीनिा पें शन
पबै ि रहलतथ। १९४२ ई.मे धने र्श्रजी सभ थानासाँ अां ग्रेज पुत्रलसकेँ भगा दे ने
रहतथ आ फेकन मुन्द्शीकेँ थाने दार बना दे ने रहतथ। हमरा बाबूजीक कहल ओ
शब्द मोन पड़ै ि अतछ जे गामक धनाढ्य एक्स एम.एल.ए. हुनका
स्कॉलरत्रशपबला फॉमटपर साइन करबासाँ मना कऽ दे ने रहतथन्द्ह मुदा िै यो ओ
एम.आइ.टी. मुजफ्फरपुरसाँ १९५९ ई. मे रॉल नां .१ लऽ सिाे च्च अां कक सां ग
अत्रभयन्द्िणमे नाम त्रलखबा ले लन्न्द्ह।

एक बे र धने र्श्रजी, परशुरामजी, हमर बाबूजी सभ गोपे शजी अवहठाम जा कऽ


खएने छलाह आ ई काज अां डा खएलापर धनाढ्यक ने िृत्िमे हुनका बारल
जएबाक विरुद्ध छल। आब ने धने र्श्रजी छतथ आ ने गोपे शजी। परशुरामजी
से हो अही बखट स्िगटिासी भऽ गे लतथ। परशुरामजी १९९८ ई. मे कोलकािासाँ
अां ग्रेजीक प्रोफेसरत्रशपसाँ से िावनिृत्त भऽ ओ अां ग्रेजीमे "इन्गन्द्ललश
पोएवटक्स"पर दूटा पोथी त्रलखने छतथ। हमर पोथी "कुरुक्षे िम् अन्द्िमटनक
समपटण

"वपिाक सत्यकेँ त्रलबै ि दे खने रही स्स्थिप्रज्ञिामे

िवहये बुझने रही जे


विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 7

त्याग नवह कएल होएि

रस्िा ई अतछ जे णजद्वदयाहिला।

-वपिाक तप्रय-अतप्रय सभटा स्मृतिकेँ समर्पिि"

पवढ़ ओ हमर दुनू गाल अपना हाथमे लऽ अपन नोर नवह रोवक सकलाह।
गाममे बहुि गोटे समपटण पवढ़ कानए लागल रहतथ आ कहने रहतथ जे ई सभ
हमर वपिाक पुण्यक पररणाम अतछ। स्ििां ििा द्वदिसपर नवह जावन कोना ई
सभ फेर स्मरण आवब गे ल।

किा ४

सावित्य अकादे मी पुरस्कार प्रसां ग

पघलै ि वहमखण्ड- डॉ त्रशि कुमार प्रसाद द्वारा अनूद्वदि कवििा सां ग्रह अतछ
(मूल वहन्द्दी - रजनी छाबड़ा- वपघलिे वहमखण्ड)। अां तिम रे स धरर ई पहुाँ चल-
ओिऽ हारर गे ल। दे खी अवगला साल की होइए। विदे हमे ई धारािावहक रूपें
ई- प्रकात्रशि भे ल फेर पुस्िकाकार आयल। ऐ पोथीक कवििा सभ सां कत्रलि
भे ल विदे िःसदे ि २८ मे जे ऐ
सलिक http://www.videha.co.in/new_page_89.htm प
र डाउनलोड ले ल उपलब्ध अतछ। ले खक धोआ- धोिी नै िरन कोरा-धोिी
परम्पराक छतथ। ऐ बे र मूल पुरस्कार पवहल बे र कोरा-धोिी परां पराक
उपन्द्यासकार श्री जगदीश प्रसाद मण्डलकें हुनकर उपन्द्यास "पां गु" ले ल दे ल
गे लन्न्द्ह, आ से सावहत्य अकादे मीक इतिहासमे पवहल बे र भे लै। माि धोआ-
धोिी बला ले ल ई पुरस्कार ररजिट रहै । विदे हमे ई धारािावहक रूपें ई- प्रकात्रशि
भे ल फेर पुस्िकाकार आयल। ई पोथी सां कत्रलि भे ल विदे िःसदे ि २१ मे जे

8 ||गजे न्द्र ठाकुर

सलिक http://www.videha.co.in/new_page_89.htm प
र डाउनलोड ले ल उपलब्ध अतछ। सावहत्य अकादे मीक टै गोर त्रलटरे चर अिाडट
२०११ मै तथली ले ल श्री जगदीश प्रसाद मण्डल केँ हुनकर लघुकथा सां ग्रह
"गामक णजनगी" ले ल दे ल गे ल छल। कायटक्रम कोस्च्चमे १२ जून २०१२केँ
भे ल रहय। मै तथली ले ल वििादक अन्द्िक कोनो सम्भािना नै दे खबामे आवब
रहल अतछ। ओह समय रे फरी जखन टै गोर त्रलटरे चर अिाडट २०११ मै तथली
ले ल ७ टा पोथीक नाम पठे लन्न्द्ह िखन से हो एकटा पोथी एहनो रहय जे
वनधाटररि अितध २००७-२००९ मे छपले नै छल, िाँ की वबनु दे खने पोथी
अनुशांत्रसि कएल गे ल छल? ऐ िरहक पोथी अनुशांत्रसि केवनहारकेँ सावहत्य
अकादे मी तचन्न्द्हि केलक? की िकर नाम सािटजवनक कयल गे ल? की
ओकरा स्थायी रूपसाँ प्रतिबन्गन्द्धि कयल गे ल? नै कयल गे ल आ िखन
मै तथलीक प्रतिष्ठा बााँ चल कोना रवह सकि।

पुरस्कार त्रशि कुमार प्रसादकें से हो दे ल जे बाक चाही छल मुदा एक्के बररख


दू-दू टा कोरा-धोिी परम्पराबला कें ई नै दे ल जा सकि। एक्के टा कोरा-धोिी
बलाकें दे ल गे लै िहीमे अगरा-वपछड़ा दुनूक धोआ-धोिीधारी आ िणटशांकर
सावहत्यकार (बायोलॉणजकल िणटशांकरिा साँ एकर कोनो सरोकार नै )
कन्द्नारोहट उठे ने छतथ।

धोआ-धोिी धारी लोकवनकें सावहत्य अकादे मीक अपन-अपन अनुिाद-


असाइनमें ट आपस कऽ दे बाक चाही आ ओ सभ असाइनमें ट नां द विलास
राय, राजदे ि मण्डल, रामवबलास साहु, धीरें र कुमार, दुगाटनांद मण्डल, मनोज
कुमार मण्डल, त्रशि कुमार प्रसाद, उमे श पासिान, सां दीप कुमार साफी, बे चन
ठाकुर, मे घन प्रसाद, वकशन कारीगर, लालदे ि महिाें , उमे श मण्डल,
शारदानां न्द्द ससिह, सुभाष कुमार कामि, मुन्द्नी कामि आद्वद कें दे ल जाय, आ
से केलासाँ मै तथली ले ल अश्लनिीरक एकटा फौज िै यार भऽ जायि। मे घन
विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 9

प्रसाद विदे ह मे अपन आले खमे ई इच्छा व्यक्ि केने छलाह मुदा िखनो हुनका
अनुिाद-असाइनमें ट नै दे ल गे ल। अशोक अविचल कें अदहा बधाइ, कारण दू
टा कोरा धोिीक बदला हुनकर कायटकालमे एक्केटा कोरा-धोिीकें पुरस्कार
भे ट पे लै। आब अगरा-वपछड़ा दुनू द्वदसुका धोआ-धोिी बला मायािी सभ
कोन-कोन बहन्द्ने की-की उकबा उड़े िन्न्द्ह आ अवगला बखटसाँ फेर साँ एकछाहा
धोआ-धोतियाइन सावहत्य अकादे मी भऽ जायि बा नै िकर उत्तर िाँ भविष्यक
कोन्खमे अतछ।

किा ५

एकटा सावित्त्यक घटना

एकटा सावहश्त्यक घटनाक वििरण दै छी। ई घटना भे लै ितमल सावहत्यक


आधुवनक कालमे ।

मूल धारा विर्श् भररसाँ विद्वानकेँ बजे लक मारिे रास प्रोग्राम-प्रचार। अस्सी-
अस्सी हाथक नम्हर-नम्हर सावहत्यकार बजाओल गे ला, एकसाँ एक कायटक्रम,
रे वडयो टी.िी. पर प्रचार, टाकाक गुड्डी उड़ा दे लक मूल धारा। एक नम्बरक
प्रोग्राम समाप्ि भे ल।

आ समानान्द्िर धारा की केलक। ओ वनकाललक समकालीन समानान्द्िर गद्य


आ पद्यक एकटा सां कलन जकर नाम छलै "कुरुक्षे िम् "। साधारण कागज
पर साधारण वडजाइन पर बहार भे ल ई "कुरुक्षे िम् " ितमल सावहत्यकेँ त्रसहरा
दे लकै। आ एकटा बहस शुरू भे लै जे ितमल सावहत्यक इतिहासमे एक्के समय
मे भे ल दू घटनासाँ ितमल सावहत्यकेँ कोन घटना बे शी फौदे लकै। टाकाक गुड्डी
उड़बै बला ितमल सावहत्यक विर्श् आवक ब्रह्माण्ड सम्मे लन आवक कुरुक्षे िम् !

आ बहुमि मानलकै जे साधारण कागज पर साधारण वडजाइन कएल


10 ||गजे न्द्र ठाकुर

"कुरुक्षे िम् " श्रे ष्ठ घटना छल।

विदे हक जीविि सावहत्यकारपर विशे षाां क मै तथली सावहत्यक "कुरुक्षे िम् "
बवन गे ल अतछ। फेसबुकपर बहसमे सावहत्यकार लोकवन मानलन्न्द्ह जे
सावहत्य अकादे मी पुरस्कारसाँ बे शी महत्त्ि विदे हक जीविि सावहत्यकारपर
विशे षाां कक भऽ गे ल अतछ। लाखक-लाख टाकाक सावहत्य अकादे मीमे
पसरै ि कन्द्नारोहट घटबाक नामे नै लऽ रहल अतछ, मुख्य धारा अपने मे जालक
ओझरी बवन गे ल अतछ, जकरा असाइनमे ण्ट भे टलै से पुरस्कार ले ल आ
जकरा पुरस्कार भे टलै से असाइनमे ण्ट ले ल आफन िोड़ने अतछ, आ जकरा
दुनूमे साँ वकछु नै भे टलै िकरा दुनू चाही िइले , आ जकरा दुनू भे वट गे लै िकर
हालि िाँ सभसाँ बे शी खराप छै , ने अकादे मीये ओकरा मोजर दऽ रहल छै आ
ओकर रचना से हो िे हेन नै छै जे समानान्द्िर धारा लग ठद्वठ सकिै । आ जाँ
वकछु अपिाद अतछ िाँ ओ वडप्रेशनमे चत्रल गे ल छतथ बा अपनाकेँ से हो
कतिआयल माने समानान्द्िर धारक घोवषि करबामे लागल छतथ।

माने कतिआयल होयब घोवषि करब बा समानान्द्िर धाराक होयब घोवषि


करब मूलधाराक (अगड़ा-वपछड़ा दुनूक अस्सी-अस्सी हाथक नम्हर-नम्हर
सावहत्यकार मूलधारामे छतथ) एकटा फैशन बवन गे ल अतछ, मुदा ई फैशन
अतछ नै ...

किा ६

विद्वान केना बनी?


विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 11

मै तथली भाषा जगज्जननी सीिायाः भाषा आसीि् - हनुमन्द्िः उक्ििान-


मानुषीतमह सां स्कृिाम्

अक्खर (अक्षर) खम्भा

तिहुअन खे त्तवह काणि िसु वकत्रत्तिल्ल्ल पसरे इ। अक्खर खम्भारम्भ


जउ मञ्चो बन्गन्द्ध न दे इ॥

[कीर्ििलिा प्रथमः पल्लिः पवहल दोहा।]- माने अक्षररूपी स्िम्भ वनमाटण कए


ओवहपर (काव्यरूपी) मां च जाँ नवह बान्द्हल जाए िाँ एवह त्रिभुिनरूपी क्षे िमे
ओकर कीर्ििरूपी लिा (िल्ल्ल) प्रसाररि कोना होयि।

गाम सभमे दे खैि हे बै वकछु लोक सां स्कृि सुभावषिक चोटगर प्रयोग करै ि
छतथ। मै तथली सावहत्योमे विदे हक पदापटणसाँ पवहने िएह मै तथली सावहत्यकार
विद्वानक श्रे णी मे अबै ि छल णजनका १० टा सुभावषि कांठस्थ रहै ि छलन्न्द्ह।
उतचिे कारण बाशो से हो कहने छतथ, जे जे वकयो जीिनमे ३ साँ ५ टा हाइकूक
रचना कएलन्न्द्ह से छतथ हाइकू कवि आ जे दस टा हाइकूक रचना कएने छतथ
से छतथ महाकवि।

प्रस्िुि अतछ अहााँ ले ल एहने ३२ टा बीछल सां स्कृि सुभावषि ऐमे साँ दसोटा
मोन रवह गे ल िाँ अहाँ भऽ गे लाौं मै तथलीक मूल धाराक वहसाबे प्रकाण्ड पस्ण्डि।
मुदा समानान्द्िर धारामे ऐ शॉटटकटक पलखति किऽ, एिऽ िाँ अढ़बै ले वकयो
नै भे टि, खटना खटऽ पड़ि।

सुभावषतम् (सुथि भावषतम् सुभावषतम् )

मािे ि रक्षति वपिे ि वहिे वनयुङ्किे कान्द्िेि चात्रभरमयत्यपनीयां खे दम् ।

लक्ष्मीं िनोति वििनोति च द्वदक्षां कीर्िि टकि टकि न साधयति कल्पलिे ि विद्या॥
12 ||गजे न्द्र ठाकुर

यस्य नास्स्ि स्ियां प्रज्ञा शास्िां िस्य करोति वकम् ?

लोचनाभयाां विहीनस्य दपटणः टकि कररष्यति ॥

आत्माथट जीिलोकेऽस्स्मन को न जीिति मानिः।

परां परोपकाराथं यो जीिति स जीिति॥

गच्छन् वपपीलको याति योजनानाम् शिान्द्यवप

अगच्छन् िै निोयोवप पदमे कम् आगच्छति

िृणावन भूतमरूदकां िाक् चिुथी च सूांििा।

एिान्द्यवप सिाां गे हे नोस्च्छद्यां िे कदाचन॥

सुलभाः पुरुषाः लोके सििां तप्रयिाद्वदनः।

अतप्रयस्यय च प्यटस्य िक्िा श्रोिा च दुलटभः॥


विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 13

उपर्जििानाां वित्तानाां त्याग एकवह रक्षणम् ।

िडागोदरसां स्थानाां परीिाद इिाम्भसाम् ॥

पुस्िकष्था िु या विद्या परहस्िगिां धनम् ।

कायटकाले समुत्पन्द्ने न सा विद्या न िद्दनम् ।

बहनाम् अल्पसाराणाां सां हतिः कायटसातधका।

िृणैगुटणत्िमापन्द्नेः बध्यां िे मत्तदां तिनः॥

जलवबन्द्दु वनपािे न् क्रमशः पूण्यटिे घटः।

स हे िुः सिटविद्यानाां धमटस्य च धनस्य च॥

तचन्द्िनीया वह विपदाम् आदाििे प्रतिवक्रया।

न कूपखननां युक्िम् प्रदीप्िे ितिना गृहे॥

मािृिि् परदारे षु पररव्ये षु लोष्टिि्


14 ||गजे न्द्र ठाकुर

आत्मिि् सिटभूिेषु यः पकयति सः पस्ण्डिः।

यस्य कृत्यां न जानन्गन्द्ि मां िां िा मां त्रििां परे ।

कृिमे िास्य जानन्गन्द्ि सिै पस्ण्डिे उच्यिे ।

सदयां हृदयां यस्य भावषिां सत्यभूवषिम् ।

कायः परवहिे यस्य कत्रलस्िस्य करोति वकम् ॥

गिानुगतिकोलोकः न लोकः पारमार्थिकः

गङ्गासै क्ि त्रलङ्गे न नष्टां मे िाम्रभाजनम् ।

दाने न पाणणः न िु कङ्कणे न स्नाने न शुत्रद्धः न िु चन्द्दने न।

माने न िृश्प्िः न िु भोजने न ज्ञाने न मुकक्िः न िु मुण्डने न॥

आचायाटि् पादमादत्ते पादां त्रशष्यः स्िमे धया।

पादां सब्रह्मचाररभयः पादां कालक्रमे ण च।


विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 15

यथा तचत्तां िथा िाचो यथा िाचस्िथा वक्रया।

तचत्ते िातच वक्रयायाां च महिा मे करूपिा॥

अमन्द्िमक्षरां नास्स्ि नास्स्ि मूलमनौषधम् ।

अयोलयः पुरुषो नास्स्ि योजकस्िि दुलटभः।

आयत्याां गुणदोषज्ञः िदात्िे णक्षप्रवनश्चयः।

अिीिे कायटशेषज्ञो विपदा नात्रभभूयिे ॥

गिे शोकां न कुिीि भविष्यां नै ि तचन्द्िये ि्।

ििटमाने षु काले षु ििटयन्गन्द्ि विचक्षणाः।

छायामन्द्यस्य कुिटन्गन्द्ि तिष्ठन्गन्द्ि स्ियमािपे ।

फलान्द्यावप पराथाटय िृक्षाः सत्पुरुषाः इि॥


16 ||गजे न्द्र ठाकुर

उपकाररषु यः साधुः साधुत्िे िस्य को गुणः।

आररषु यः साधुः स सादुररति कीर्िििः॥

उद्यमनै ि त्रसध्यां ति कायाटणण न मनोरथै ः।

नवह सुप्िस्य ससिहस्य प्रविशां ति मुखे मृगा।

अयां वनजः परोिे त्रत्त गणना लघुचेिसाम् ।

उदारचररिानाां िु िसुधैि कुटु म्बकम् ॥

तप्रयिाक्य प्रदाने न सिे िुष्यन्गन्द्ि जन्द्ििः।

िस्माि् िदे ि िक्त्तव्यां िचने का दरररिा।

नात्रभषे को न सां स्कारः ससिहस्य वक्रयिे िने ।

विक्रमार्जिि सत्त्िस्य स्ियमे ि मृगेन्द्रिा।


विदे ह केदारनाथ चौधरी विशे षाां क || 17

िज्रादवप कठोराणण मृदुणण कुसुमादवप।

लोकोत्तराणाम चे िाां त्रस को वह विज्ञािुमहटति।

अन्द्नदानां परां दानां विद्यादनमिः परम् ।

अन्द्नेन क्षणणका िृश्प्िः यिज्जीिां च विद्यया॥

षड् दोषाः पुरुषे णेह ह्यािव्या भूतितमस्च्छिा।

वनरा िन्द्रा भयां क्रोधः आलस्य दीघटसूििा॥

अकृत्िा परसन्द्िापम् अगत्िा खलनमिाम् ।

अनुत्सृज्य सिाां ित्मट यि् स्िल्पमवप िद् बहु॥

अपार भूतम विस्िारम् अगम्य जन सां कुलम्

राष्रां सां घटनाहीनां प्रभिे न्द्नात्मरक्षणे ॥


18 ||गजे न्द्र ठाकुर

किा ७

आब वकछु भाषि-भाख

वकछु भाषण-भाख जे हम सां गी साथी सभकेँ गप-शपमे दै ि रहै तछयन्न्द्ह से


हुनका सभक आग्रह कारण आब एिए दऽ रहल छी।

कम िसा बला दूध सद्वदखन पीबू आ कम नोन खाउ। माउसक से िन से हो


कम करू, मााँ छ बे शी खा सकै छी। अपन आस-पड़ोसक लोकक द्वदनचयाटपर
अहााँ क ध्यान अिकय रहबाक चाही नवह िाँ घर बदत्रल त्रलअ। कोनो व्यकक्िकेँ
जे अहााँ प्रशां सा करब िाँ ओ ओकरा ले ल बड़ उत्साह बढ़बएिला हएि। अपन
पड़ोसीकेँ बवगया िा कोनो आन व्यां जन बना कए खुआऊ आ ओकर बने बाक
वितध से हो त्रलखाऊ। ककरो प्रति दुभाटिना िा पूिाटग्रह नवह राखू। कोनो मॉलमे
जाऊ िाँ कार खूब दुरगर लगाऊ आ पररिार-बच्चा सां गे टहत्रल कए आऊ।
दूरदशटनपर मारर-पीट बला धारािावहक नवह दे खू आ जे -जे कम्पनी ओकर
प्रायोजक अतछ िकर उत्पादक बवहष्कार करू। सभ लोक, पशु-पक्षीक प्रति
आदर राखू। ककरोसाँ गाड़ी मााँ गी िाँ घुरबै ि काल पे रोल िा डीजल पूणट रूपसाँ
भरबा कऽ घुराऊ, लोक वकएक िाँ एकर उल्टा करै ि छतथ, भरल पे रोल गाड़ी
लऽ जाइ छतथ आ ररजिटमे आवन कए घुरबै ि छतथ। दे खब जे ओ व्यकक्ि
अहााँ क चरचा बड्ड द्वदन धरर करि आ आगााँ साँ गाड़ी दे बामे बहन्द्ना नवह करि।
द्वदनमे पााँ च-साि गोटे केँ अत्रभिादन अिकये करू। एक-आधटा माल-जाल
राखू, जे द्वदल्ली-मुम्बै मे रहै छी िाँ िकर बदला कुकुड़ पोसू। मासमे एक बे र
सुयाे दय अिकय दे खू आ िरे गण से हो। दोसराक जन्द्म द्वदन आ नाम अिकय
मोन राखू। होटलक खे नाइ परसवनहारकेँ वटप अिकय दे ल करू। ककरोसाँ भेँ ट
भे लापर आह्लादसाँ अत्रभिादन करू, हाथ तमलाऊ आ सिटदा आाँ न्ख तमला कऽ
गप करू। धन्द्यिाद आ आदरसूचक शब्द अिकय बाजू। कोनो बाजा बजे नाइ
अिकय सीखू, नवह कोनो आर िाँ झात्रल िाँ बजाइये सकै छी। नहाइि काल

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