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VIDEHA_Ravindra_SPECIAL-61-80
VIDEHA_Ravindra_SPECIAL-61-80
एवह सां ग्रहक रचन सभक जन्द्म अस्पत लमे भे ल िल | अस्पत लसँ ब हर
आवब ई शे र सभ दह ड़ म ररक’ छचकरल :
‘द ग चे हर क हो वक िस्िक, सब द ग छथकै द गे
स धूकें िोवड़ चट-पट सब चोरकें धरक च ही’
(14) सां कलनक कोनो रचन मे मै छथलीसँ इतर कोनो आन भ ष क शब्द नवह
ले ल गे ल अछि |एवह दृछिसँ ई सां कलन मै छथली गजल-ले िन ले ल पथ-
प्रदशवकक योग्यत रिै त अछि |मै छथली गजलक बहुमां जजल भिनकक
वनम वणमे एवह सां कलनक आध रक उपयोग कयल ज सकैत अछि |
ऐ रचनापर अपन
मां तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।
32 ||गजेन्द्र ठाकुर
जनभ ष मे गीछत क व्यक अतुल स मथ्यव आ से बीसम शत ब्दीक पूि वधव धरर
मै छथलीमे त्रलि इत रहल आ जनम नस गीछत क व्यक रससँ आलोवड़त होइत
रहल ह। एहन वित्रशि परां पर सँ त्रभन्द्न से हो मै छथलीमे त्रलिल ज इत रहल
हएत, आ से लोक द्व र अत्रभनय कएल ज इत र मलील आ मह र समे ,
न चमे , ज वहमे जन-जीिनक र ग आ ह स्य अिश्य िल हएत, जकर सभकेँ
सुसांस्क ररत गीतक परां पर मे फूहड़ बूझल गे ल हएत आ ज वह गीत सभकेँ
सां कत्रलत कए त्रलखित रूप नवह दे ल गे ल हएत। मुद मै छथली गीतमे नित क
प्रिे श भे ल, जिन अपन मे श्रव्य आ दृश्य-क व्य समे टने अत्रभनय कएल
ज इत लील , मनोरां जन ले ल होइत न चसँ फूट त्रसने म क पद पवण भे ल आ
त्रसने म क गीतक लोकमे छप्रय होबए ल गल आ ग ओल ज इत मै छथली गीतक
लोकछप्रयत घटए ल गल। मधुपजी लोकम नसमे पसरै त रोग अथ वत घटै त
लोकछप्रयत केँ अक वन त्रसने म गीत सभक भ सपर मै छथलीमे गीत रचए
लगल ह आ से सभ बे स लोकछप्रय भे ल। यद्यवप, मधुपजीक सां ग वकिु आर
गीतक र सभ गीत रचन केलवन मुद हुनक लोकवनक िविमे ओ वनि र नवह
आवब सकल जे मधुपजीमे रहलवन। यद्यवप, प्रदीपजी वकिु मौत्रलक गीतक
अिश्य रचन केलवन जे सभ अपन समयमे अने क मां चसँ ग ओल ज इत रहल,
मुद हुनकर रचल गीत सभ त्रसने म क गीतक सोझ ँ झूस होइत िल तथ
नित क म ँ ग करै त िल एिां ओ गीत सभ त्रसने म क भ सपर रछचत मधुपजीक
गीतक आगू हल्लुक लगै त िल। मै छथली गीतक ले ल व्य प्त एहने द रुण
समयमे मै छथलीक गीछत-स वहग्त्यक आक शमे मै छथलमे पसरल आ परसल
ज इत गीत सभमे प ओल ज इत िुवटकेँ सां पूणव सजगत सँ अक वन मै छथली
गीतकेँ लोकछप्रयत क त्रशिर धरर लए जे ब क ले ल समस्त नित -बोधसँ युक्त
उन्द्न यक बवन, गीतक रक रिीन्द्र न थ ठ कुर जे प्रकट होइत िछथ से मै छथली
गीतक स्िणवक ल लए जे ब क एकट चवकत करै त घटन छथक।
34 ||गजेन्द्र ठाकुर
मै छथली स वहत्यक समपवण आ प्रेम सभ ददनसँ मुख्य स्िर रहल अछि। प्रेमक
अविरल ध र मे बहे ब मे मै छथली स वहत्य अग्रग मी रहल अछि ज वहमे परकीय
प्रेमक स्िर सि वछधक मुिर रहल अछि। मुद द म्पत्य-प्रेमक जीिनमे अप्रछतम
महत्ि सथ व रहलै क अछि। गीतक र रिीन्द्रन थ ठ कुरक एकट गीतक
अधोत्रलखित प ँ छतक अिलोकन करू ज वहमे मै छथल सां स्कृछतक ओवह विछधकेँ
उज गर कएल ज इत अछि जे दद्वर गमनक पूिव हज म अबै त अछि, तकर
छचि त्मक अत्रभव्यक्क्त कते क सहजत सँ दे लवन अछि जे मुग्ध आ मोवहत
करै त अछि-
36 ||गजेन्द्र ठाकुर
गीतक र रिीन्द्रन थ ठ कुरक गीत सभमे नित क प्रिे श हुनकर अपन प्रछतभ ,
मै छथली गीतक प्रछत सि े त्तम समपवणक बले भे ल अछि ज वहमे भ ष आ ओवह
प्रचत्रलत शब्दक अप्रछतम योगद न अछि जे शब्द सभ उदूव-फ रसीक छथक आ
मै छथल सम जमे ब जल ज इत अछि।
गीतक र रिीन्द्रन थ ठ कुर मै छथली गीतकेँ, गीतक लोकछप्रयत केँ ध्य नमे
र खि जे स्तरोन्द्नयन केलवन त वह ब टकेँ प्रशस्त करब मे अने क गीतक र
ल गल िछथ ज वहमे ड . चां रमजण प्रमुि िछथ।
रिीन्द्र जी प्रयोगि दी गीतक र रहल ह अछि। वहनक गीतक वकिु अां शक चचव
नै केने वबन ई आले ि अधूर रवह ज यत। दे िल ज य-
ब ब दण्ड ित बच्च जय त्रसय र म।
अरव बकरी घ स िो
चलु भै य र मवह र म हो भ इ म त जे विर जे छमछथले ध म मे ।
बहुत एहन गीत सब अछि जे मनोरां जनक अछतररक्त अपन म वट अपन प वन
अपन सभ्यत सां स्कृछतक प्रछत लोकक रुछच जगबै त अछि। सचे त करै त अछि।
स्िख्स्त फ उन्द्डेशन,सहरस वहनक प्रबोध स वहत्य सम्म न दे ने िवन। उछचते
केने िवन। ह लवहमे छमछथल सकल सम ज,ददल्लीमे वहनक न गररक
अत्रभनन्द्दन भे लवन अछि। ब जजि भे ल अछि।
आब हम रबींर जीक ब रे मे अपन वकिु सां िरण कहय च हब। अस्सी दशक
के उत्तर धवमे रबींर जी कलकत्त आयल रहछथ ममत ग बय गीतक प्रीछमयर
शो करबय ले ल। हम तिन कलकत्त केल बग नक र जे न्द्र ि ि वनि समे
रहै त रही। रबींर जीक भोजन आि सक बे बस्थ सटले श्री सत्य न र यण
ल ल द स जीक घरमे भऽ गे ल रहवन। भोरे रबींर जी हमर िोज पुि रर ले ल
होस्टल आयल रहछथ। हम सी ए परीक्ष क तै य री ले ल िु ट्टीपर रही दू मवहन ।
कहलवन जे अहींक भरोसपर एतय अयलहुँ । हमर एहन क ज सबमे नीके
लगै त िल। पोथी पतर क त कऽ दे ने रही। आ ल वग गे ल रही रबींर जीक
सां ग। भोरे आठ बजे वनकली आ र छत के दस बजे धरर आवब ज यल करी।
दे ब ल सबपर मै छथलक घरक पिु आर् सबपर गली चौक सबपर ममत ग बय
गीतक पोस्टर आ बै नर स टल करी दुनू गोटे िूब उत्स ह आ उमां गसँ । अही
क्रममे तत्क लीन छमछथल मै छथलीक अनुर गी लोकवनसँ भें ट से हो कैल करी।
वकयो च ह वबस्कुट त कतहु जलिै पन वपआइ आ कैक ठ म त भोजनोक
आबे स भऽ ज य। एक ददन श्री बुत्रद्धन थ छमश्र जी जे दूरक ल टें रबींर जीक
स ढ़़ू िछथ अपन आि सपर ददनक भोजनक न ें त दऽ दे लखिन। बुद्धी भ इ
42 ||गजेन्द्र ठाकुर
वनक त्रल रहल िछथ। िूब नीक क ज भऽ रहल अछि। अां तमे हम अपन अग्रज
श्री रबींर न थ ठ कुर जीक स्िस्थ आ दीघ वयु जीिनक ले ल म ँ मै छथलीसँ
मां गल क मन कऽ रहल िी!
हमर लोकवन अपन म निीय धरोहरक सम्म न आ सत्क रमे कने कांजूस रहल
िी। ई सां स्क र आजुक नवह अछि, अदौसँ म निीय धरोहर केर प्रछत
वनन्ष्ट्क्रयत क स्थ नीय धरोहर अथि सां स्क रक रूपमे आवब रहल अछि। आब
मै छथल समुद य बहुत पोिगर अनुप तमे प्रि स आ अपन योगद नक क रणे
िै जश्वक भऽ रहल अछि। हम सब िै जश्वक सोच आ श रीररक उपख्स्थछत दुनू
रूपमे भऽ रहल िी। िै जश्वक भऽ रहल िी तँ हमर सबहक ई द छयत्ि बनै त
अछि जे हमर लोकवन िै जश्वक सां स्कृछतक नीक ब त, प्रथ , परम्पर आ
सां स्क रकेँ अां गीक र करी। ई कहब सहज िै क जे हमर सां स्कृछत, सां स्क र,
लोक व्यिह र सि े त्तम अछि, मुद ओहूसँ पै घ ब त अपन सां स्कृछतमे जे घ ि
अछि तकर ठीक करब। क य केँ वनरोग रिब ले ल रुग्ण अां गक समुछचत
छचवकत्स आ जरुरी पड़ल पर शल्यछचवकत्स से हो आिश्यक। अवहसँ भले
प्र रम्भमे कने किक अनुभूछत हो, ब दमे जीिन सुिद भऽ ज इत िै क।
रिीन्द्रन थ ठ कुर दीघव आयु जजबै त मृत्युलोकसँ अनन्द्तक य ि हे तु प्रस्थ न
कऽ गे ल ह। आब ओ हमर सबहक वनत्य िरणीय वपतर िछथ। हुनक रचन
पर वकिु त्रलिब नब नवह हएत। एक ब त अिश्य जे ओ जन-जनमे व्य प्त
गीतक र िछथ। हुनकर रचन लोक पवढ़ कऽ कम आ सुवन कऽ, दोहर कऽ,
गुनगुन कऽ, अनुकरण, अनुशरण करै त सीि लै त अछि। अगर वबन पोथी
विदे ह रिीन्द्रनाथ ठाकुर विशे ष ां क || 45