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विदे ह रिीन्द्रनाथ ठाकुर विशे ष ां क || 27

स्पि घोषण िल जे मै छथलीमे गजल अिश्य लीिल ज सकैत अछि | ई


एकट क्र न्न्द्त िल वकएक त ओवह समय वकिु स वहत्यक र कहै त िल ह जे
मै छथलीमे गजल त्रलिले नवह ज सकैत अछि | एवह ध रण क िण्डन िल
ई सां ग्रह | रचन क रक गीते जक ँ तथ कछथत वकिु शे र सभ लोककें
आकर्षिंत केलक | शब्द सभमे गीतवह जक ँ िै ह छमछथल क म वट-प वन आ
बस तक सुगन्न्द्ध ! छमछथल छमवहरमे पढल वकिु शे र सभ हमरो बहुत
आकर्षिंत केलक:

‘हम जे मै छथल छथकहुँ से मूिव क त्रलद स सन


जतय बै सल िी सै ह ड रर क वट रहल िी’

‘चली जिनसँ सददिन सोची एिन दवहन की ब म चलै िी


र िू अपने विश्व-नगर भरर, हम त अपन ग म चलै िी’

‘सुिकेर हो वक दुिक बीतै ये घड़ी सभट


हो ब ँ स आ वक बें तक टु टैये िड़ी सभट ’

एवह सां ग्रहक रचन सभक जन्द्म अस्पत लमे भे ल िल | अस्पत लसँ ब हर
आवब ई शे र सभ दह ड़ म ररक’ छचकरल :

‘गजल मै छथलीक ममव आब ज वन ले ने िै क


गजल छमछथल मे घर अपन ब खन्द्ह ले ने िै क’

जे सभ कहै त िल ह जे मै छथलीमे गजल नवह त्रलिल ज सकैत िै क, सभ


श न्द्त भ’ गे ल ह | गीतक मह र जक अश्वमे घक घोड़ वनकत्रल गे ल गजलक
28 ||गजेन्द्र ठाकुर

मै द नमे | लि-कुशक ह थें पकड़ल गे ल घोड़ | र मक कृत्यक स थवकत


से हो अहीमे अछि जे घोड़ पकड़ल ज ए लि-कुश द्व र | अनछचन्द्ह र आिरक
स इटपर गजे न्द्र ठ कुर आ आशीष अनछचन्द्ह र द्व र गजल श स्ि एल क ब द
ज ँ च-पड़त ल हुअ’ ल गल जे गजलक न मपर जे वकिु त्रलि रहल अछि से
गजल अछियो वक नवह | ई प ि ँ मूहें घुसक’ बल ब त नवह भे लै | ई पछिल
पीढ़ीक कृत्यकें आग ँ ल’ जे ब क, गौरि प्रद न करब क,ओकर पररपूणव
करब क, स्िस्थ आ समृद्ध करब क ददश मे आन्द्दोलन भे लै | हमहूँ त भक्क्त
–भ िसँ सभ रचन कें गजल म वनए ने ने रही | अनछचन्द्ह र आिर स इटपर
उपलब्ध व्य करणसँ पररछचत भे ल क ब द ई पोथी पवढ़ जे वकिु नीक –बे ज ए
दे िब मे आएल अछि त वहसँ अिगत करयब क प्रय स क’ रहल िी :
(1) 109 ट गजलमे 587 ट शे र अछि | एवह सां ग वकिु ‘कतआ’ अछि |
(2) 26 ट वबन रदीफक गजल अछि |
(3) 5 ट गजलमे मतल क अभ ि अछि ( गजल क्रम ां क
35,42,45,54,90 )
(4) 4 ट गजलमे रदीफ मतल मे अछि मुद ओकर प लन सभ शे रमे नवह
भे ल अछि ( गजल क्रम ां क :49,62,81,82 )
(5) 9 ट गजलक कयट शे रमे सम न क वफय बल शब्द अछि (गजल
क्रम ां क :65,68,72,77,89,103,105,107,108)
(6) 10 ट गजलक मतल िोवड़ सभ शे रमे अनुपयुक्त क वफय बल शब्द
अछि ( गजल क्रम ां क :5,10,11,23,41,43,62,70,83,93 )
(7) 7 ट गजलक मतल मे क वफय वनयछमत नवह अछि ( गजल क्रम ां क
:48,50,63.99,100,101,106 )
(8) 16 ट गजलक एक अथि अछधक शे रक क वफय बल शब्द सभ
उपयुक्त नवह अछि ( गजल क्रम ां क :
15,21,25,29,30,31,46,49,59,75,86,87,88,94,97,109 )
(9) रचन सभ ओवह समय त्रलिल गे ल अछि जिन रचन क रक पयरमे
विदे ह रिीन्द्रनाथ ठाकुर विशे ष ां क || 29

प्ल स्टर पड़ल िलवन, ओ अस्पत लमे िल ह |


(10) भररसक मै छथली गजलक न मपर एते क सां ख्य मे रचन क ई पवहल
सां कलन अछि |
(11) कतहु-कतहुसँ वकिु गजलक अिलोकनसँ पत चलै त अछि जे बहरक
उपे क्ष भे ल अछि |
(12) वकिु ए रचन कें िोवड़क’ सभक अां छतम दू-प ँ तीमे रचन क रक न म
अछि |
(13) नमहर भूछमक द्व र प ठककें आतां वकत करब क अथि रचन क
िुवटकें झ ँ पन दे ब क प्रय स नवह कयल गे ल अछि, रचन सभमे प ठककें
गुद्गदु यब क, आनन्द्द प्रद न करब क आ जीिनक वित्रभन्द्न पक्षक रहस्यकें
श लीनत क सां ग प्रस्तुत करब क स मथ्यव िै क | उद हरणस्िरूप वकिु प ँ ती
प्रस्तुत कएल ज रहल अछि :

‘जतय सभ वकिु दे ि र, जकर सभ वकिु नुकैल


गजल ग गरमे स गर तम श छथकैक’

‘मोट मडु आकेर रोटीपर रैं चीकेर स ग


गजल जीिन केर स्ि दहु ठे क वन ले ने िै क’

‘मनसँ मनकेर सां च र-से तु ओवह मह से तुकेर न म गजल


कहलहुँ से गजल, सुनलहुँ से गजल, कहब मे कहू की शे ष रहल’

‘रिीन्द्र’ प्रेम-पां थी से िां दक र ज नछथ


वकिु ए गजल एहन जे पढ़ब ले ’ होइत अछि’
30 ||गजेन्द्र ठाकुर

‘रिीन्द्र’ रह-रह ँ एतय होइत अछि एहन


वक जै ह क’र मूँह धरी, त हीमे केस’

‘द ग चे हर क हो वक िस्िक, सब द ग छथकै द गे
स धूकें िोवड़ चट-पट सब चोरकें धरक च ही’

‘आैं ठ ने कटय ध्य न रहय, एवह ब तकेर


वक कोन गुरु केर अह ँ त्रशष्ट्य बनल िी’

‘अख्ित क प्रश्न अछि त एक भ’ ‘रिीन्द्र’


प्रगट होइत ज उ जे अदृश्य बनल िी’

‘धवकय य आगू गे ल जे , बुछधय र िल सब लोक से


न ि एिनहुँ अछि हमर, ओवहन पड़ल मझध रमे ’

‘वकिु ओ ने बच सकलहुँ वकिु ओ ने बच प यब


सूझय ने ज ल ले वकन, जां ज लमे फसल िी’

‘ददव अपन गुपचुप सह्ब ले होइत अछि


हरे क ब त नवह हरे ककें कहब ले होइत अछि’

‘आँ चर रहयसमे टल,बरु केस रहयफूजल


वकिु ब त त चौपे छतक’ धरब ले ’ होइत अछि’

‘ई ब त ि नगीमे कहब क मोन होइि


बै द्य एहन के जे चीन्द्हैये जड़ी सबट ’
विदे ह रिीन्द्रनाथ ठाकुर विशे ष ां क || 31

‘ब त केर ब त अछि त एक ब त हम कवह दी


वक ब त, ब त-ब तमे हो, ब त से जरूरी नवह’

‘गुल ब जलक शीशी भरर, पयर धोइत शोषक


नोरक इन्द्होरमे नह इत अछि लोक’

‘ग इयो हँ , बड़दो हँ , एहने व्यिस्थ मे


आँ ट क सङे घून सन वपस इत अछि लोक’

(14) सां कलनक कोनो रचन मे मै छथलीसँ इतर कोनो आन भ ष क शब्द नवह
ले ल गे ल अछि |एवह दृछिसँ ई सां कलन मै छथली गजल-ले िन ले ल पथ-
प्रदशवकक योग्यत रिै त अछि |मै छथली गजलक बहुमां जजल भिनकक
वनम वणमे एवह सां कलनक आध रक उपयोग कयल ज सकैत अछि |

प्रक शनक ित्तीस बरिक ब द एवह सां कलनक समीक्ष वक आलोचन क


प्रस्तुछत एकट स दर आ सविनय आश्वख्स्त अछि जे ‘ले िनी एक रां ग अने क’
पढल गे ल अछि, गुनल गे ल अछि आ आदरणीय रिीन्द्र न थ ठ कुर जी द्व र
रोपल गे ल ग ि आब फुल रहल अछि |

ऐ रचनापर अपन
मां तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।
32 ||गजेन्द्र ठाकुर

नारायणिी- सां पकभ-9431836445

आधुवनक मै थिली गीतक सिग उन्द्नायक

सां स रक सभ भ ष मक स वहत्य पद्यसँ आरम्भ भे ल अछि। पद्यमे गे यधर्मिं त


रहै त अछि जे िन्द्दक बलें प ओल ज इत अछि, जे गीतक वनजी विशे षत
छथक जे पद्यमे सृजन करब क ले ल सृजनकत वकेँ सभ ददनसँ विशे ष प्रभ वित
करै त रहल अछि, आ तँ इ कोनो भ ष -स वहत्यक आदद रचन पद्यमे भे टैत
अछि। स्पि रूपसँ पद्य विध लोकगीतसँ रसग्रहण कऽ स क र होइत अछि
अथि अपन पथ प्रशस्त करै त अछि।
लोकगीत अन म धम व स वहत्य छथक से मह कवि विद्य पछत धररकेँ रचन शील
होएब क ले ल प्रेररत कएने रहवन, तकर एकट उद हरणस्िरूप दे िल ज
सकैि, विद्य पछत पद िलीमे सां ग्रहीत विद्य पछतक गीत ...."मोर रे अँ गनम
चनन केर गछिय .."एहन म नल ज इत हछि जे मह कवि विद्य पछत तँ इ
कते को लोकगीतक सां प दन ट कएलवन। आ मै छथली स वहत्यक आरम्भ जे
कवि शे िर च यव ज्योछतरीश्वर ठ कुरसँ म नल ज इत अछि, से ि स्तिमे गीते सँ
आरम्भ भे ल हएत जे त्रलखित रूपमे नि भए गे ल हएत। मह कवि विद्य पछतक
गीछतध र क भ ि, भ ष ,विषय, विध ओ र गक प्रबल िे गमे एकट कृत्रिम
क व्यभ ष क जन्द्म भे ल भऽ गे ल जकर न म "ब्रजबुत्रल" पवड़ गे ल। से छथक
विदे ह रिीन्द्रनाथ ठाकुर विशे ष ां क || 33

जनभ ष मे गीछत क व्यक अतुल स मथ्यव आ से बीसम शत ब्दीक पूि वधव धरर
मै छथलीमे त्रलि इत रहल आ जनम नस गीछत क व्यक रससँ आलोवड़त होइत
रहल ह। एहन वित्रशि परां पर सँ त्रभन्द्न से हो मै छथलीमे त्रलिल ज इत रहल
हएत, आ से लोक द्व र अत्रभनय कएल ज इत र मलील आ मह र समे ,
न चमे , ज वहमे जन-जीिनक र ग आ ह स्य अिश्य िल हएत, जकर सभकेँ
सुसांस्क ररत गीतक परां पर मे फूहड़ बूझल गे ल हएत आ ज वह गीत सभकेँ
सां कत्रलत कए त्रलखित रूप नवह दे ल गे ल हएत। मुद मै छथली गीतमे नित क
प्रिे श भे ल, जिन अपन मे श्रव्य आ दृश्य-क व्य समे टने अत्रभनय कएल
ज इत लील , मनोरां जन ले ल होइत न चसँ फूट त्रसने म क पद पवण भे ल आ
त्रसने म क गीतक लोकमे छप्रय होबए ल गल आ ग ओल ज इत मै छथली गीतक
लोकछप्रयत घटए ल गल। मधुपजी लोकम नसमे पसरै त रोग अथ वत घटै त
लोकछप्रयत केँ अक वन त्रसने म गीत सभक भ सपर मै छथलीमे गीत रचए
लगल ह आ से सभ बे स लोकछप्रय भे ल। यद्यवप, मधुपजीक सां ग वकिु आर
गीतक र सभ गीत रचन केलवन मुद हुनक लोकवनक िविमे ओ वनि र नवह
आवब सकल जे मधुपजीमे रहलवन। यद्यवप, प्रदीपजी वकिु मौत्रलक गीतक
अिश्य रचन केलवन जे सभ अपन समयमे अने क मां चसँ ग ओल ज इत रहल,
मुद हुनकर रचल गीत सभ त्रसने म क गीतक सोझ ँ झूस होइत िल तथ
नित क म ँ ग करै त िल एिां ओ गीत सभ त्रसने म क भ सपर रछचत मधुपजीक
गीतक आगू हल्लुक लगै त िल। मै छथली गीतक ले ल व्य प्त एहने द रुण
समयमे मै छथलीक गीछत-स वहग्त्यक आक शमे मै छथलमे पसरल आ परसल
ज इत गीत सभमे प ओल ज इत िुवटकेँ सां पूणव सजगत सँ अक वन मै छथली
गीतकेँ लोकछप्रयत क त्रशिर धरर लए जे ब क ले ल समस्त नित -बोधसँ युक्त
उन्द्न यक बवन, गीतक रक रिीन्द्र न थ ठ कुर जे प्रकट होइत िछथ से मै छथली
गीतक स्िणवक ल लए जे ब क एकट चवकत करै त घटन छथक।
34 ||गजेन्द्र ठाकुर

गीतक र रिीन्द्रन थ ठ कुर, दे िलवन जे त्रसने म क गीतक भ सक आध रपर


जिन लोक मै छथली गीत पत्रसन्द्न करै त अछि तिन मै छथलीक त्रसने म केँ से हो
पत्रसन्द्न करत, तँ इ ओ मै छथलीमे त्रसने म से हो बनौलवन जकर न म "ममत
ग बए गीत" छथक जकर लोकछप्रय बने ब क ले ल, हहिंदी त्रसने म क चर्चिंत
अत्रभने िी अजर केँ त्रसने म मे रिलवन तथ चर्चिंत ग छयक सँ गीत गबौलवन,
जकर गीतक र आ सां गीतक र, हमर थोड़ जनतबमे अछि आ स्िां य रहछथ।

रिीन्द्र न थ ठ कुर मै छथलीमे गीत रचन क ले ल एवह क्षे िक जनजीिनकेँ गीतक


विषय बनौलवन ज वहमे दुःिे -दुःि आएल। कद छचत् हुनकर म नब िलवन जे
दुःि लोक सूनए च है त अछि। हमर तँ म नब अछि जे विद्य पछतक गीत
"किन हरब दुि मोर हे भोल न थ" आइयो लोक गबै त अछि आ लोकछप्रय
अछि जे ओवहमे दुःिक गप्प भे ल अछि। आ हहिंदीक कवि मदन कश्यपक
कवित क तँ एकट प ँ छत अछि जे "मुझको
विद्य पछत क दुि च वहये "।

गीतक र रिीन्द्रन थ ठ कुर अपन गीत रचन क ले ल एक ददस जँ एवह क्षे िक


जनजीिनक विषयक चुन ि केलवन तँ दोसर ददस ओ अपन गीत ले ल अपन
लयक से हो अविष्ट्क र केलवन। एवह दूनूक सां गे रिीन्द्रन थ ठ कुर छमछथल मे
प्रचत्रलत पौर जणक प िकेँ अपन गीत ले ल ले लवन, ज वह ले ल हुनक
जगज्जननी ज नकी, हुनकर किमय जीिन आ हुनकर िे दन मय ि णीसँ
बहर एल सम द पय वप्त िलवन। हुनकर गीतक प ँ छत रिव्य अछि--

कने ब जू हे प्र ण अह ँ ई की केलहुँ


कोन सोन के अह ँ म वन सीत ले लहुँ
हम विदे हक छधय तें विदे ही भे लहुँ
तथ्य र िब नुक य हमर सन्द्त न सँ ।।
विदे ह रिीन्द्रनाथ ठाकुर विशे ष ां क || 35

छमछथल क सभ ददनसँ मुख्य व्यिस य िे ती रहल। िे ती, पररि रक सभ


सौि-से हांत पूर्तिं नवह कऽ सकैत िल तँ इ एवहठ मक लोक सभ ददनसँ
कमे ब क ले ल परदे स ज इत रहल िछथ। मह कवि विद्य पछतक गीतमे से हो
एवहठ मक लोकक परदे स कम ए ले ल जे ब क िणवन भे टैत अछि। गीतक र
रिीन्द्रन थ ठ कुरक रछचत गीतमे एवहठ मक लोकक परदे स जे ब क जे चचव
भे ल अछि तकर मूलमे अभ ि छथक। से एवहठ मक लोक कते क अभ िमे
जीिन वबतबै त िल तथ जनस ध रण कते क बे सी अपम वनत आ वनधवनत क
जीिन जजबै त िल तकर हृदय विदीणव करए बल एकट ब नगी दे िू--

बरद एक्केट िल, से हो पवहने मरल


िे त अनके दिल, तै पर करज लदल
तँ जै ह-सै ह आवब , जै ह-सै ह कवह ज इि
सवहते -सहै त आब भछथ गे ल इन र बुझु
क य लच र बुझु, िै दक उध र बुझु
कते क ब त त्रलिब की आफत हज र बुझु...

मै छथली स वहत्यक समपवण आ प्रेम सभ ददनसँ मुख्य स्िर रहल अछि। प्रेमक
अविरल ध र मे बहे ब मे मै छथली स वहत्य अग्रग मी रहल अछि ज वहमे परकीय
प्रेमक स्िर सि वछधक मुिर रहल अछि। मुद द म्पत्य-प्रेमक जीिनमे अप्रछतम
महत्ि सथ व रहलै क अछि। गीतक र रिीन्द्रन थ ठ कुरक एकट गीतक
अधोत्रलखित प ँ छतक अिलोकन करू ज वहमे मै छथल सां स्कृछतक ओवह विछधकेँ
उज गर कएल ज इत अछि जे दद्वर गमनक पूिव हज म अबै त अछि, तकर
छचि त्मक अत्रभव्यक्क्त कते क सहजत सँ दे लवन अछि जे मुग्ध आ मोवहत
करै त अछि-
36 ||गजेन्द्र ठाकुर

बन्द्हने ित्रलयै केश फलकौआ


क ें च बल नुआ िलै आँ चर घुमौआ
ले लक अझक्के मे दे खि मुँहझ ैं स
अहीँ के ग मक बुढ़ब हज म
वपररये वपर नन थ स दर परन म।

गीतक र रिीन्द्रन थ ठ कुरक गीत सभमे नित क प्रिे श हुनकर अपन प्रछतभ ,
मै छथली गीतक प्रछत सि े त्तम समपवणक बले भे ल अछि ज वहमे भ ष आ ओवह
प्रचत्रलत शब्दक अप्रछतम योगद न अछि जे शब्द सभ उदूव-फ रसीक छथक आ
मै छथल सम जमे ब जल ज इत अछि।

गीतक र रिीन्द्रन थ ठ कुर मै छथली गीतकेँ, गीतक लोकछप्रयत केँ ध्य नमे
र खि जे स्तरोन्द्नयन केलवन त वह ब टकेँ प्रशस्त करब मे अने क गीतक र
ल गल िछथ ज वहमे ड . चां रमजण प्रमुि िछथ।

अपन मां तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


विदे ह रिीन्द्रनाथ ठाकुर विशे ष ां क || 37

लक्ष्मण झा सागर, सां पकभ-9903879117

थमथिलाक मुकुटमजण रिीन्द्र

तवहय हम मधुबनी मे पढ़ै त रही। 1971- 72 केर घटन छथक। सुनल जे


लहे ररय सर यमे मै छथलीक कोनो क यवक्रममे रबीन्द्र जी म रर-पीट कऽ ले लवन
आयोजक लोकवनसँ । कथी ले ल त द रू ले ल। रिीन्द्र जी कह ँ दन कहै
िलखिन जे हमर ले ल बोतलक इां तज म वकयै ने भे ल? नै भे ल त ट क ददअ
हम कीवन ले ब। तहीपर ब त -ब ती भऽ गे ल िल। आ से तिने श न्द्त भे ल
जहन हुनक बोतलक द म भे टलवन। हमर नजररमे रबींर जीक प्रछत बहुत
ददन धरर नीक ध रण नै रहल।

तकर ब द हम जहन उच्च त्रशक्ष ले ल 1974 मे कलकत्त गे लहुँ त चौधरी


जीक (स्ि ब बू स हे ब चौधरी) प्रेस खिल त घोष ले नमे अखिल भ रतीय
छमछथल सां घक वकिु पद छधक री सभसँ सुनल जे ऐ बे र रबींर-महे न्द्रक
जोड़ीकेँ बजौल ज य। हमर क न ठ ढ़ भऽ गे ल। नि-नरस गे ले रही। वकनको
वकिु पुिब क स धां स नै भे ल। दू तीन ददनक ब द चौधरी जी अपने हमर
कहलवन जे विद्य पछत पिव सम रोहमे रबींर- महें रक जोड़ीक उपख्स्थत भे न य
अवनि यव रूपेँ आिश्यक भऽ गे ल अछि। सभ ग रमे दशवक लोकवनक भीड़
म ि एवह जोड़ीक न म सुवन उमरर पड़ै त अछि। मै छथली आन्द्दोलन ि ल ब त
हम सब भीड़क म ध्यमसँ बे सीसँ बे सी प्रि सी मै छथल बां धु सभ लग पहुँ च
पबै त िी।
38 ||गजेन्द्र ठाकुर

ई ब त हमर मोनमे जे रबींर जीक प्रछत अरुछच उत्पन्द्न भऽ गे ल िल तकर


आदर आ श्रद्ध मे बदत्रल दे लक। छमछथल छमवहर आ मै छथली दशवन दुनू
पत्रिक क वनयछमत प ठक रहल करी। दुनू पत्रिक क प्रक शन सुच रू रूपेँ
होइत रहल करै । दुनू पत्रिक क अां छतम दू-तीन पृष्ठ सभ - सां स्थ क गछतविछध
सब ि पै त रहै । हम से सब िूब गहहिंकी नजररसँ पढ़ल करी। दे िैत रही जे
छमछथल आ प्रि सी मै छथली से िी अछधक ां श सां स्थ सभ रबींर- महें रकेँ बजबै त
रहल िलवन। िूब लोकक जुट न भे ल करै । दुनू युगल जोड़ीक लोकछप्रयत
उठ न पर रहै ।

पवहल भें ट हमर दुनू गोटे क जोड़ीसँ कलकत्ते मे भे ल िल आ से विद्य पछत


सम रोहक अिसरपर। हमरो स्ि गत कछमटीक एक सदस्य रूपेँ क यव दे ल गे ल
िल अछतछथ सभक स्ि गतमे सददिन रहब क ले ल। हमर तकर ल भ भे टल
जे हम दुनू गोटे सँ पररचय प त कऽ ले ने रही। रबींर जी पूर्णिंय ँ जजल क
धमद ह ग मक िछथ। महे न्द्र जी मधुबनी जजल क जमसम ग मक लोक
िल ह। महें न्द्र जी गीत त्रलिै त िल ह। आ दुनू गोटे गीत गिै त रहछथ। लोक
के से नीक ल वग रहल िल।

पवहने त रबींर जी ि ली गीत त्रलिै त रहै त िल ह आ से अपने गवबतो रहछथ।


गल नीक नै रहवन। तही पर प्रो म य नन्द्द छमश्र जी हुनक कहने रहछथन जे
विध त सँ एकट चूक भऽ गे लवन। तोहर ि ल गुण हमर ददतछथ आ हमर
ि ल गुण तोर ददतथुन त कम ल भऽ जइतै । म य ब बु क् स्िर बड़ मीठगर
रहवन। िै र, जे से । बे गुसर यक कोनो मै छथली प्रोग्र ममे रबीन्द्र जीकें वकयो
कहलखिन जे एवह युिक के अपन सां गे लऽ जइयनु। नीक गबै त िछथ। युिक
रहछथ महे न्द्र जी जे रबींर जीक गीत के अपन स्िर दऽ मै छथली गीत के एकट
नि आय म दे लवन। सगरो तहलक मच य दे लखिन। रिीन्द्र- महे न्द्रक जोड़ी
आधुवनक छमछथल क गीतक आरम्भ छथक। मै छथली आन्द्दोलन के गछत दे ब मे
विदे ह रिीन्द्रनाथ ठाकुर विशे ष ां क || 39

एवह जोड़ीक भूछमक अप्रछतम अछि। तकर ब द सरस- रमे श, शत्रशक ां त-


सुध क ां त, पिन- गोहििंद, धीर- महे न्द्र- जयर म( तीजोरी) आ अपन दमपर
एसगर प्रदीप मै छथलीपुि, चन्द्रभ नु लसिंह आ चन्द्रमजण जीक न म आदर पूिवक
नै ले ब घोर अन्द्य य है त। कवि चूड़ मजण क शीक ां त छमश्र मधुप जी, स्ने हलत
जी आ ड . बी झ क कछतपय गीत सभ छमछथल क लोकक जीहपर एिनो
बसल अछि जे विद्य पछतक ब द मै छथली गीत स वहत्य के जीिां त रिने अछि।
हम ब त करै त रही रबींरजीक से कहय ल गल रही जे रबींर-महे न्द्रक जोड़ीसँ
हमर बे सी क ल भें ट-घ ँ ट होइत रहय ल गल। कलकत्त मे एकट स ां स्कृछतक
मां चपर दुनू गोटे रहछथ। कवि सम्मे लन से हो रहै । हमरो एकट गीत फुर यल।
गीत ग यन भे ल हमर। महे न्द्र जी हमर कहलवन जे अह ँ वकयै क गीत ग यन
कैल? अह ँ क त कवित नीक होइत अछि। रिीन्द्र जीक कहब रहवन जे
विद्य पछत आ ब ां गल क रबींर न थ ठ कुर जँ आइ विश्व कवि म नल ज इत
िछथ त गीते क बलपर। हम दुनू गोटे क ब त सुवन कऽ चुप भ गे ल रही। मुद ,
जीिन य ि क क्रममे असरर दुनू गोटे क ब तक पड़ल।

ई कहब जे रबींर जीक गीत य ि क जे ग ड़ी चललवन त वह ग ड़ीक एकट


पवहय महे न्द्र जी िल ह। महे न्द्र जीसँ अां छतम भें ट भे ल गुआह टीमे से पछिल
सदीक उत्तर धवमे। तकर ब द सुनल जे महे न्द्र जी एवह दुवनय ँ केँ ट -ट , ब इ-
ब इ कए कऽ चल गे ल ह। पत्नी वहनक सँ पवहने चल गे ल रहछथन। आब रबींर
जी एसगर भऽ गे ल िल ह। सुनयमे आयल िल जे रबींर जी वकिु ददन बहुत
आर्थिंक सां कटमे रहल िल ह। वकयो वहत अपे जक्षत घुरर कऽ िोज िबरर नै
लै त िलवन। एवह अिछधमे रबींर जी पत्रिक वनक लै त रहल िल ह। पोथी
सब त्रलिलवन। महे न्द्र जीक नवह रहने रबींर जी के कोनो स ां स्कृछतक
क यवक्रमक मां चपर नै दे िल गे ल।
जीिनक अां छतम पर ि भे लवन ददल्ली। जीिनमे जे उप जवन केलवन त वहसँ
वकिु ट क बच कऽ ददल्लीमे वकिु गज जमीन वकनने रहछथ। सै ह जमीन पै त
40 ||गजेन्द्र ठाकुर

रिलकवन। जमीनक वकिु अां श करोड़ ट क मे बे च कऽ अपन घर बने लवन।


आर मसँ गुजर-बसर हुअय लगलवन। भ इ लोकवन ब जय ल गल रहल ह जे
रबींर जी त आब धन्द्न से ठ भऽ गे ल िछथ। हमर से सुवन के िुशी होइत
िल।

पटन मे मै छथली अक दमीक अध्यक्ष रहल िल ह। अपन अिछधमे रबींर जी


मै छथली गीत -सां गीतक सां िधवन ले ल अत्रभनि प्रयोग सब करै त रहल ह। िूब
न म यश भे लवन। कवह दी जे रबींर जीक च रर पुश्त मै छथलीक गीत सां गीतक
विध के अक श ठे क य दे लवन। वहनक वपत वनष्ट्ण त सां गीत स धक रहछथन।
वहनकर त कोनो ब ते नै । पुि श्री अिनीन्द्र न र यण ठ कुर ददल्लीमे सां गीतक
एकट न मी हस्ती िछथन। हमर अच नक एक ददन दू स ल पूिव वहनक फोन
आयल जे हमर पोती स -रे -ग -म प्रोग्र ममे नम्बर िन पर आवब ज यत जँ
बे सी सँ बे सी भोट करै लोक सब। से नै भे लइ मुद , दू पर त आवबये गे ल रहै ।

सहरस मे कोनो स ां स्कृछतक क यवक्रममे रबींर जी से हो दशवक रूपे आगूक


प ँ तीमे बै सल रहछथ। मां चपर एकट कल क र आवब कऽ वहनके गीत के
भोजपुरी टोनमे ग बय ल गल िल। बगलमे बै सल रहछथन ड मदने श्वर छमश्र
जी। वहनक कहलखिन जे हौ ई त तोरे गीत के भोजपुरी मे गबै त िहु। रिीन्द्र
जी विनीत भ िे उत्तर दे लखिन जे ग बय ने ददयौ अपन मै छथलीक पस र भऽ
रहल अछि। हुनक अप्पन प्रच रसँ बे सी मै छथलीक क्षे ि विस्त र नीक लगै त
रहलवन अछि। एक बे र मै छथलीक कोनो क यवक्रममे रबींर-महे न्द्र पां ज ब गे ल
रहछथ। महे न्द्र जी कहने रहछथन जे एतय त लोक सब भ ां गर बुझैत िै । रबींर
जी कहलखिन जे प्चिंत नै करह। रबींर जी आशु गीतक र रहलछथ अछि। तुरत्ते
वहनक जोड़ी शुरू भऽ गे ल रहछथ- कहू वक हम झूठ कहै िी नै यौ नै यौ......।
विदे ह रिीन्द्रनाथ ठाकुर विशे ष ां क || 41

रिीन्द्र जी प्रयोगि दी गीतक र रहल ह अछि। वहनक गीतक वकिु अां शक चचव
नै केने वबन ई आले ि अधूर रवह ज यत। दे िल ज य-
ब ब दण्ड ित बच्च जय त्रसय र म।
अरव बकरी घ स िो
चलु भै य र मवह र म हो भ इ म त जे विर जे छमछथले ध म मे ।
बहुत एहन गीत सब अछि जे मनोरां जनक अछतररक्त अपन म वट अपन प वन
अपन सभ्यत सां स्कृछतक प्रछत लोकक रुछच जगबै त अछि। सचे त करै त अछि।
स्िख्स्त फ उन्द्डेशन,सहरस वहनक प्रबोध स वहत्य सम्म न दे ने िवन। उछचते
केने िवन। ह लवहमे छमछथल सकल सम ज,ददल्लीमे वहनक न गररक
अत्रभनन्द्दन भे लवन अछि। ब जजि भे ल अछि।

आब हम रबींर जीक ब रे मे अपन वकिु सां िरण कहय च हब। अस्सी दशक
के उत्तर धवमे रबींर जी कलकत्त आयल रहछथ ममत ग बय गीतक प्रीछमयर
शो करबय ले ल। हम तिन कलकत्त केल बग नक र जे न्द्र ि ि वनि समे
रहै त रही। रबींर जीक भोजन आि सक बे बस्थ सटले श्री सत्य न र यण
ल ल द स जीक घरमे भऽ गे ल रहवन। भोरे रबींर जी हमर िोज पुि रर ले ल
होस्टल आयल रहछथ। हम सी ए परीक्ष क तै य री ले ल िु ट्टीपर रही दू मवहन ।
कहलवन जे अहींक भरोसपर एतय अयलहुँ । हमर एहन क ज सबमे नीके
लगै त िल। पोथी पतर क त कऽ दे ने रही। आ ल वग गे ल रही रबींर जीक
सां ग। भोरे आठ बजे वनकली आ र छत के दस बजे धरर आवब ज यल करी।
दे ब ल सबपर मै छथलक घरक पिु आर् सबपर गली चौक सबपर ममत ग बय
गीतक पोस्टर आ बै नर स टल करी दुनू गोटे िूब उत्स ह आ उमां गसँ । अही
क्रममे तत्क लीन छमछथल मै छथलीक अनुर गी लोकवनसँ भें ट से हो कैल करी।
वकयो च ह वबस्कुट त कतहु जलिै पन वपआइ आ कैक ठ म त भोजनोक
आबे स भऽ ज य। एक ददन श्री बुत्रद्धन थ छमश्र जी जे दूरक ल टें रबींर जीक
स ढ़़ू िछथ अपन आि सपर ददनक भोजनक न ें त दऽ दे लखिन। बुद्धी भ इ
42 ||गजेन्द्र ठाकुर

तिन स ल्ट ले क जे अविकत्रसत इल क िलमे रहै त िल ह। रवि ददन रहै क।


दुनू गोटे गे ल रही। भोजनपर बै सल रही तीनू गोटे । गप-सरवक चलै त रहै । बुद्धी
भ इ पुिलखिन जे म ि बनलै नीक। हम चुप्पे रही। रबींर जी कहलखिन जे
हमर कने मधनोन लगइए। बुद्धी भ इ ब जल रहछथ जे एतय हमर घरमे नूनक
िचव नै होइए। एतुक्क प वनमे नून छमल एले रहै त िै क। हमर स ल्ट ले क
न मक स थवकत क बोध भे ल। रबींर जी ब जल रहछथ जे एतय लोक एक दशी
कोन प र लगबै त िछथ। भरर ददन दुनू मै छथली-पुिक ब त सब सुनैत रही।
ल गय जे न हमर परीक्ष क तै य री भऽ रहल िल। म स ददन धरर रबींर जीक
सां ग कलकत्त मे कोन वबतल से नै बूजझ सकल रही। भरर ददन पोस्टर स टी
आ स ँ झ कऽ अिब र ले ल सम च र बन बी। विश्वछमि आ सन्द्म गवमे िबरर
िपै । रिीन्द्र जी सब ददन पे पर कहटिंग रिै त ज छथ।

त ही समयक गप छथक। मह ज छत सदनमे कोशी कुसुम पत्रिक क विमोचन


सम रोह भे ल रहै । सां प ददक रहछथ श्रीमती अन्म्बक छमश्र (श्री मृत्युांजय
न र यण छमश्रक पत्नी, लत्रलत ब बूक भ िहु आ जगन्द्न थ छमश्रक भ उज)।
सब गोटे मै छथली पत्रिक क उन्द्नयनक ब त भ षणमे ब जल करछथ। रबींर जी
अपन भ षणमे बजल ह जे मै छथलीक अभ्युदय ले ल मै छथलीक त्रसने म पर
ध्य न दे ब बड़ जरूरी क ज अछि। हुनक कृतज्ञत दे िू जे अपन भ षणमे हमर
न मक चचव केलवन आ हमर पररचय मै छथलीक उज वि न पिक र रूपे दे लवन।
मै छथल सम जमे एवह गुणक तीव्रत सँ वबलौनी भऽ रहल अछि।

रिीन्द्र जीपर बहुत क ज है ब ब ँ की अछि। छमछथल विश्वविद्य लय हरही-


सुरहीपर शोध क यव करब रहल अछि मुद , रबींर जीक क जक सां ज्ञ न ले ब
उछचत नै बूजझ रहल अछि। एवहसँ दुःिद ब त आर की भऽ सकैत अछि। हम
आभ री िी विदे ह पत्रिक (http://www.videha.co.in/)क
समस्त टीमक जे रबीन्द्र जी सन छमछथल क सपूतपर एकट अपन फ़र क अां क
विदे ह रिीन्द्रनाथ ठाकुर विशे ष ां क || 43

वनक त्रल रहल िछथ। िूब नीक क ज भऽ रहल अछि। अां तमे हम अपन अग्रज
श्री रबींर न थ ठ कुर जीक स्िस्थ आ दीघ वयु जीिनक ले ल म ँ मै छथलीसँ
मां गल क मन कऽ रहल िी!

अपन मां तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


44 ||गजेन्द्र ठाकुर

डॉ. कैलाश कु मार थमश्र- सां पकभ-8076208498

रिीन्द्रनाि ठाकु र, हुनक रचना आ िनमानस केर उदासीनता

हमर लोकवन अपन म निीय धरोहरक सम्म न आ सत्क रमे कने कांजूस रहल
िी। ई सां स्क र आजुक नवह अछि, अदौसँ म निीय धरोहर केर प्रछत
वनन्ष्ट्क्रयत क स्थ नीय धरोहर अथि सां स्क रक रूपमे आवब रहल अछि। आब
मै छथल समुद य बहुत पोिगर अनुप तमे प्रि स आ अपन योगद नक क रणे
िै जश्वक भऽ रहल अछि। हम सब िै जश्वक सोच आ श रीररक उपख्स्थछत दुनू
रूपमे भऽ रहल िी। िै जश्वक भऽ रहल िी तँ हमर सबहक ई द छयत्ि बनै त
अछि जे हमर लोकवन िै जश्वक सां स्कृछतक नीक ब त, प्रथ , परम्पर आ
सां स्क रकेँ अां गीक र करी। ई कहब सहज िै क जे हमर सां स्कृछत, सां स्क र,
लोक व्यिह र सि े त्तम अछि, मुद ओहूसँ पै घ ब त अपन सां स्कृछतमे जे घ ि
अछि तकर ठीक करब। क य केँ वनरोग रिब ले ल रुग्ण अां गक समुछचत
छचवकत्स आ जरुरी पड़ल पर शल्यछचवकत्स से हो आिश्यक। अवहसँ भले
प्र रम्भमे कने किक अनुभूछत हो, ब दमे जीिन सुिद भऽ ज इत िै क।
रिीन्द्रन थ ठ कुर दीघव आयु जजबै त मृत्युलोकसँ अनन्द्तक य ि हे तु प्रस्थ न
कऽ गे ल ह। आब ओ हमर सबहक वनत्य िरणीय वपतर िछथ। हुनक रचन
पर वकिु त्रलिब नब नवह हएत। एक ब त अिश्य जे ओ जन-जनमे व्य प्त
गीतक र िछथ। हुनकर रचन लोक पवढ़ कऽ कम आ सुवन कऽ, दोहर कऽ,
गुनगुन कऽ, अनुकरण, अनुशरण करै त सीि लै त अछि। अगर वबन पोथी
विदे ह रिीन्द्रनाथ ठाकुर विशे ष ां क || 45

दे िने हुनकर रचन क सां कलन करब क हो तँ 45 आ 80 बरिक बीच केर


करीब एक सए स्िी पुरुष लग चचव करू, सब छमत्रल हुनक सब गीत त्रलि
दे त ह। अगर ओहूमे आलस्य भऽ रहल अछि तँ सोशल स इट पर लोक सबसँ
वनिे दन करू, वकिु ए ददनमे अह ँ क सां कलन तै य र। लोक कांठमे अवह तरहक
कमोिे श छमछथल भूछम – अवह प र, ओवह प र आ तम म भौगोत्रलक उपक्षे ि
अथि पॉकेटमे ललिंगभे द ओ ज छतक आरर तोड़ब क मोनोपोली मह कवि
विद्य पछतक ब द अगर ककरो भे टल अछि तँ ओ िछथ रिीन्द्रन थ ठ कुर। हुनक
गीत जिन महे न्द्र जीक गल क छचपमे से ट भऽ ज ईत िल तँ ओकर भ ि
दे सी र हररक द त्रलमे घी सां ग ते जपत, जीरक फोरन जक ँ भऽ ज इत िल।
छमछथल मे जन सरोक रक गीत क शीक ां त छमश्र “मधुप”, स्ने हलत (कवपल
दे ि ठ कुर), मै छथलीपुि प्रदीप आदद त्रलिलवन। सभक रचन अपन आपमे
अपूिव िल। मधुप स्ियां गबै त नवह िल ह। गीतक िे ररएशन सीछमत िलवन;
स्ने हलत र ध -कृष्ट्ण आ सीत -र म भक्क्तमे एकवनष्ठ योगी जक ँ केखन्द्रत
रहल ; प्रदीप वकिु गीत सम जजक व्यिस्थ पर केखन्द्रत करै त अन्द्ततः सीत -
र म, जगदम्ब आ भगि न भजनमे सन्द्तक डे गसँ त्रलिै त रहल । रिीन्द्रन थ
ठ कुर की नवह त्रलिलवन? वहनक रचन मे न यक –न छयक क प्रेम, तरुणक
प्रेमक उद्वेग, छमछथल भूछमक कण-कण केर ग न, सीत क बे दन क छचिण,
ओकर ओवह पर सोच, प्चिंतन, मनन, र म सां ग लड़ब क वहम्मत, पुरुि मोनमे
न री भ िक व्यिस्थ पन, ब ल गीतमे ने न मोनक अबै त ज इत मनोिै ज्ञ वनक
भ िक िोट-िोट ि टी शब्द आ कवित्तसँ प्रस्तुछतकरण भे टत। वहनक गीतमे
न टक भे टत, स्िी-पुरुषक प्रेम, नोक-झोक भे टत। वहनक गीतमे परदे त्रसय
मै छथलक ददव, म त वपत क समस्य , जनरे शन गै प, सां गतुररय मस्ती, पयवटन,
य य िरी प्रिृछत, ग मक लोकक शहर अथि नगर केर जीिनक अनुभि,
ओकर वििे चन, ग म आ नगरमे तुलन त्मक वििे चन सब वकिु भे टत । वहनकर
गीतमे अछति दी से हो लोकि दी बनल अल्हड़ बनल भे टत । वहनक गीतमे की
46 ||गजेन्द्र ठाकुर

मधुबनी, की पुरवनय , बे गुसर य, सीत मढ़ी, दवड़भां ग आ ने प लक छमछथल


सब एक क र भे टत। रिीन्द्रन थ जी शब्दक ज दूगर िल ह। भ िक आ गीत
आ िां दक पे ट र िल ह। चूँवक स्ियां स्टे ज पर गीत गबै त िल ह तँ उत र-चढ़ ि
सब ब त बुझैत िल ह। श्रोत सां ग आँ खि आ बॉडी लैं ग्िे जसँ ि त वल प करै त
तदनुकूल रचन करै त िल ह। हुनक गीतक कुनो एक उद हरणसँ हम अतए
स्थ नकेँ अने रे नवह िे कए च है त िी। त वह हम वबन उद हरणकेँ अपन ब त
त्रलिै त िी। पढ़ै त रहू।
रिीन्द्रन थ ठ कुर जी केर गीत सां ग छमछथल क हि , प वन, पोिरर, इन र,
नदी, िे त , पथ र, छचड़इ-चुनमुन सब मस्त िै क। सब हँ सै िै । सब प ि िै क।
सभक अत्रभनय िै क। एक लड़की जे स सुरसँ नै हर ज रहल िै क, आ नदी
उमट म भरल िै क, तकर ले ल मल ह म ि मल्ल ह नवह भै य िै क। िएह
ध र प र करे तै क। परदे शी छमछथल चलै त मस्त हि सँ ि त वल प करै त िै क।
तप, जप, क म सब वकिु िै क। की नवह िै क। अगर वकिु नवह िै क तँ
रिीन्द्रन थ ठ कुर ले ल उछचत सम्म न। से वकयै क ?
रिीन्द्रन थ ठ कुर केर तुलन हमर बउआइत मोन असछमय गीत ले िक आ
ग यक भूपेन हज ररक सँ करै त अछि। सां योग दे िू जे दूनु गोटे समक लीन
िल ह। छमछथल अने क प्र कृछतक आ स ां स्कृछतक िै विध्य केर आध रपर
असमसँ बहुत लगीच अछि। मल्ल ह, हि , ध र, जन म नस, स्थ नीय प्रेम आ
ि ँ टी दे शी शब्द भूपेन हज ररक आ रिीन्द्रन थ ठ कुर दुनुक रहल िवन। दूनू
अपन-अपन म तृभ ष क्रमशः असछमय आ मै छथलीसँ बहुत त्रसने ह करै त
िल ह। दूनुक रचन क ल एक रहल िवन। ओन भूपेन हज ररक रिीन्द्रन थ
ठ कुरसँ दस बरि पै घ िल ह। दस बरि पै घ िल ह तँ हुनक मृत्यु से हो
रिीन्द्रन थ ठ कुरसँ लगभग दस िषव पवहने 2011मे भे लवन। मुद दुनूमे
आसम न जमीनक स्पि अां तर िवन। की? भूपेन हज ररक स्ट र नवह सुपर
आमे ग स्ट र िछथ। हुनक फ लके पुरस्क र भे टल िवन। ओ दे शरत्न छथक ह।
असम केर लोक भूपेन हज ररक मे भगि न दे िैत िल। एिनो दे िैत अछि ।

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