VIDEHA_Ravindra_SPECIAL-21-40

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the individual level, and that is also suggested in

Rgveda 10, 7, 6: ‘Svayam yajasva’, and yajurveda 4,


13: “Iyam te yajniya tanu”, which means: Develop
yourself by yajna according to the seasons of your
growth, and remember your life in body, mind and
soul is worthy of yajnic service for your personal
development, your body being the first instrument
of your wider yajna of life. This personal yajna is
fivefold, for the elemental balance of earth, water,
heat, air and ether; threefold for the balance of
vata, pitta and kaf, and also for balanced growth of
body, mind and soul; sevenfold for the growth of
rasa, rakta, mansa, meda, asthi, majja and virya.
Thus yajna is the process of growth beginning with
the individual, accomplished at the cosmic level.)

अप्नन -र्ीवनक यज्ञक प्रकाश- हमर सभक ऐ र्ीवन-यज्ञमे आउ, र्इमे पााँ च
डवभाग िै , अिाात, ब्रह्म-यज्ञ, दे व-यज्ञ, डपतृ-यज्ञ, अछतछि-यज्ञ, आ
िललवै श्वदे व-यज्ञ; पााँ च लोक द्वारा सं चाललत, अिाात, ब्राह्मण, क्षलरय, वै श्य
आ शूद्र क चारर सामाजर्क-आर्ििक वगा आ पााँ चम आन समूह कखनो काल
आयल आगं तुक। आ से तीनटा िै - अिाात, पाक यज्ञ, हडवयाज्ञ आ सोमयज्ञ;
आ र्कर सात डवस्त्तार िै , अिाात, अप्ननष्टोम, अत्यप्ननष्टोम, उक्त्या, षोिषी,
वार्पे य, अछतरार आ अप्तोयमी। अप्नन, अहााँ हमरा सभक ने ता आ अग्रगामी
िी, आ अहााँ दे वत्व ले ल हमर यज्ञक वाहक िी आ सङ्गडह हमरा सभक ले ल
यज्ञक फलक अग्रदूत िी। प्रािाना अछि र्े आउ आ हमरा सभक र्ीवन
तरहरर सन अन्हार सदाक ले ल दूर करै िला िनू। (यज्ञ व्यक्क्तगतसाँ र्ीवनक
सामाजर्क, राष्रीय, वै जश्वक आ पयाावरणीय स्त्तर धरर र्ीवनक डवकासक
एकटा रचनात्मक प्रडक्रया अछि। उपरोक्त व्याख्या सामाजर्क स्त्तरसाँ
सम्िन्न्धत अछि। स्त्वामी ब्रह्ममुनी व्यक्क्तगत स्त्तर पर यज्ञक व्याख्या करै त
िछि, आ ई ऋनवे द 10,7,6 मे से हो सुझाओल गे ल अछिः 'स्त्वयं यज्ञ'; आ
यर्ुवेद 4,13: 'इयम ते यज्ञीय तनू', र्कर अिा अछि- अपन डवकासक
ऋतुक अनुसार यज्ञ द्वारा अपना केँ डवकलसत करू, आ मोन राखू र्े शरीर,
मन आ आत्मा युक्त अहााँ क र्ीवन यज्ञक से वाक ले ल अछि, आ तइसाँ अहााँ क
व्यक्क्तगत डवकास हएत; अहााँ क शरीर अहााँ क र्ीवनक व्यापक यज्ञक पडहल
साधन अछि। ई व्यक्क्तगत यज्ञ पााँ च प्रकारक अछि, पृथ्वी, र्ल, ऊष्मा, वायु
आ आकाशक मौललक सं तुलनक ले ल; तीन प्रकारक- वात, डपत्त आ कफक
सं तुलनक ले ल; आ शरीर, मन आ आत्माक सं तुललत डवकासक ले ल से हो;
सात प्रकारक माने रस, रक्त, मानस, मे धा, अब्स्त्ि, मज्जर्ा आ डवयाक
डवकासक ले ल। ऐ तरहेँ यज्ञ व्यक्क्तसाँ शुरू होइत डवकासक प्रडक्रया अछि, र्े
ब्रह्मां िीय स्त्तर पर सम्पन्न होइत अछि।)
आब आउ यूरोपक विद्वान लोकवन द्वारा िे दक गलत अनुिादक वकछु
उदाहरण दे ख:ू -
EXAMPLES OF SOME MISTRANSLATIONS OF
VEDAS BY WESTERN SCHOLARS

W.D. Whitney’s translation of the Atharvaveda (7,


107, 1) edited and revised by K.L. Joshi, published
by Parimal Publications, Delhi, 2004:
Namaskrutya dyavapruthivibhyamantarikshaya
mrutyave.

Mekshamyurdhvastisthaan ma ma
hinsishurishvarah.

“Having paid homage to heaven and earth, to the


atmosphere, to Death, I will urinate standing erect;
let not the Lords (Ishvara) harm me.” I give below
an English rendering of the same mantra
translated by Pundit Satavalekara in Hindi:

“Having done homage to heaven and earth and to


the middle regions and Death (Yama), I stand high
and watch (the world of life). Let not my masters
hurt me.”

An English rendering of the same mantra


translated by Pundit Jai Dev Sharma in Hindi is the
following:

“Having done homage to heaven and earth (i.e.


father and mother) and to the immanent God and
Yama (all Dissolver), standing high and alert, I
move forward in life. These masters of mine, pray,
may not hurt me.”

I would like to quote my own translation of the


mantra now under print:

“Having done homage to heaven and earth, and to


the middle regions, and having acknowledged the
fact of death as inevitable counterpart of life under
God’s dispensation, now standing high, I watch the
world and go forward with showers of the cloud.
Let no powers of earthly nature hurt and violate
me.”

‘Showers of the cloud’ is a metaphor, as in


Shelley’s poem ‘the Cloud’: “I bring fresh showers
for the thirsting flowers”, which suggests a lovely
rendering.

The problem here arises from the verb ‘mekshami’


from the root ‘mih’ which means ‘to shower’
(sechane). It depends on the translator’s sense and
attitude to sacred writing how the message is
received and communicated in an interfaith
context with no strings attached (or unattached).
[Dr Tulsi Ram, 2013, Atharveda: English
Translation; Page xxvi]

II

The idea that there was slavery in the Vedic Society


originated with the Western Indologists with their
intentional or careless translation of a Sanskrit
word into “slave”. For example, in the Taittiriya
Samhita (Krishna Yajurveda), [7.5.10] [kanda
7,prapathaka 5, verse 10], a part of translation by
Keith reads “slave girls dance around the fire”. But
in a footnote in the same page [pg., 628, Vol. 2] the
author Keith says that the verse describes the
dance of maidens. Suddenly the maidens have
become “slave girls”. Both Paranjape and Avinash
Bose point to the mistranslation of the word
‘yosha’ as courtesan by the indologist Pischel
[Bose, Hymns from the Veda, p. 36].

[Veda Books,SRI AUROBINDO KAPALI SHASTRY


INSTITUTE OF VEDIC CULTURE, page 240]
III

In 1795, H.T. Colebrooke, then a young scholar,


wrote his maiden paper, “On the Duties of a
Faithful Hindu Widow,” for the Asiatic Society
(Asiatic Researches IV 1795: 205-15). He cited the
hymn from the Rig Veda as sanctioning widow
burning, which William Jones immediately
contested (Canon 1993 I:lxx). Colebrooke
translated the end of the hymn as “let them pass
into fire, whose original element is water.” A
quarter of a century later, the Orientalist, H.H.
Wilson pointed out that the hymn had been
distorted (Wilson 1854: 201-14; Cassels 2010: 89).
Wilson translated the verse as per the reading
corroborated by Sayana, the authoritative
medieval commentator on the Vedas, and
demonstrated that it did not refer to widow
burning (Rocher and Rocher 2012: 24-25).

[Meenakshi Jain,2016; Sati: Evangelicals, Baptist


Missionaries; and the Changing Colonial Discourse,
Page 5)

𑒀
'विदे ह' ३४८ म अं क १५ जून २०२२ (िर्ष १५ मास १७४ अं क ३४८)

रिीन्द्रनाथ ठाकु र विशे र्ां क


अनुक्रम

रिीन्द्रनाथ ठाकुर विशेषाांक

१.प्रस्तुत विशेषाांकक सांदर्भमे/ २-५

२.श्री रिीन्द्र नाथ ठाकुर/ ६-१५

३.प्रदीप पुष्प- गीतक अप्रवतम शशल्पकार: रिीन्द्र नाथ ठाकुर/ १६-


१९

४.अजित कुमार झा- ममशथला मैशथली आन्द्दोलनक पाथेय: श्रद्धे य


रिीन्द्र िी/ २०-२५

५.िगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अवनल’-सर्टा सोनारकें नवह गढ़बाक


कला होइछ (गिलक समीक्षा : पोथी ‘लेखनी एक रांग अनेक’)/
२६-३१

६.नारायणिी- आधुवनक मैशथली गीतक सिग उन्नायक/ ३२-३६

७.लक्ष्मण झा सागर- ममशथलाक मुकुटमणण रिीन्द्र/ ३७-४३

८.डॉ. कैलाश कुमार ममश्र- रिीन्द्रनाथ ठाकुर, हुनक रचना आ


िनमानस केर उदासीनता/ ४४-५०
९.िगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अवनल’- र्रर नगरीमे शोर/ ५१-५६

१०.आशीष अनशचन्द्हार- रिीन्द्रनाथ ठाकुर िीक "कशथत गिल"/


५७-६५
विदे ह रिीन्द्रनाथ ठाकुर विशे ष ां क || 1

गजे न्द्र ठ कुर विदे ह ई पत्रिक http://www.videha.co.in/


ISSN 2229-547X क सम्पादक छथि आ आइ काल्हि ददहलीमे रिै
छथि।
2 ||गजेन्द्र ठाकुर

प्रस्तुत विशे षाां कक सां दर्भमे

निम्बर 2021 केँ विदे ह 'रिीन्द्र न थ ठ कुर विशे ष ां क’ प्रक त्रशत करब क
स िवजवनक घोषण केलक आ प्रस्तुत अछि ई विशे ष ां क। एकर एवह ललिंकपर
दे खि सकैत िी-घोषणा। वकिु आले ि एल क ब द एकट वनखित त रीि
केर घोषण अप्रैल 2022 केँ केलक। एकर एवह ललिंकपर दे खि सकैत
िी घोषणा।

रिीन्द्र न थ ठ कुरजीक रचन सां गे सभसँ बड़क विडां बन ई रहलै जे ओ


अछति दक त्रशक र भे लै। से अछति द च हे हुनक मवहम मां वडत कऽ
"अत्रभनि विद्य पछत" कहब क प्रय समे दे खि सकै िी तँ दोसर ददस हुनकर
रचन केँ मां चीय कवह ि ररज करब मे से हो अछति दे िै । हमर अपन मत अछि
जे जिन कोनो रचन क रकेँ इग्नोर करब क हो तिन ओवह रचन क रक
समक लीन द्व र कोनो ने कोनो नीक तगम , विशे षण दऽ दे ल ज इत िै । आ
हम रिीन्द्रजीकेँ "अत्रभनि विद्य पछत" कहब क अत्रभय नकेँ अही सां दभवमे दे िै
िी। आ अहँ सभ अनुभि केने हे बै तँ अत्रभनि विद्य पछत कवह दे ल गे लवन मुद
ओवह ले ल जे विमशव च ही से रिीन्द्रजीक रचन -सां स रसँ ग एब रहल। एिन
धरर ई बुझब क प्रय स भे बे नै केलै जे रिीन्द्रजी गीतक र जकुम र वकए िछथ
ि हुनकर रचन मां चीय वकए िै । भक्त सभ मां चक वनच्च क थपड़ी ग वन,
ओकरे म नक म वन कऽ िुश होइत रहल ह तँ प्रगछतशील आलोचक सभ
हुनकर लोकछप्रयत सँ डे र इत रहल । भक्त आ प्रगछतशील आलोचक दूनूक
बीचमे रिीन्द्रजीक प्रछतभ मरै त गे लवन। एवह सां दभवमे हम कवह सकै िी जे
विदे हक ई प्रस्तुत विशे ष ां क एहन पवहल प्रय स अछि ज वहमे ई बुझब क
प्रय स कएल अछि जे रिीन्द्रजीक रचन वकए मह न ि वकए अधम अछि। ई
अलग ब त जे हम सभ कते क सफल ि असफल भे लहुँ से प ठक कहत ।
एवह विशे ष ां क केर शुरूआत विदे हक आने विशे ष ां क जक ँ नि आलोचक-
विदे ह रिीन्द्रनाथ ठाकुर विशे ष ां क || 3

समीक्षक सभहक आले िसँ कएल ज रहल अछि। सां गे-सां ग ई क्रम ने तँ
उम्रक िररष्ठत केर प लन करै ए आ ने रचन क गुणित्त क। हँ , एते क धे आन
जरूर र िल गे ल िै जे प ठकक रसभां ग नवह होइन आ से विश्व स अछि जे
रसभां ग नै हे तवन।

प ठक जिन एवह विशे ष ां ककेँ पढ़त ह तँ हुनक ितवनी ओ म नकत क अभ ि


लगतवन। ितवनीक गलती जे छथक से सोझे -सोझ हमर सभहक गलती छथक
जे हम सभ सां शोधन नै कऽ सकलहुँ मुद ई धे आन रिब क ब त जे विदे ह
शुरुएसँ हरे क ितवनी बल ले िककेँ स्िीक र करै त एलै ए। तँ इ म नकत
अभ ि स्ि भ विक। एकर ब दो बहुत ितवनीक गलती रहल गे ल अछि जे वक
हमरे सभहक गलती अछि। मै छथलीमे वकिु ए एहन पत्रिक अछि जकर ितवनी
एकरां गक रहै त अछि आ ई हुनक िूबी िवन मुद जिन ओहो सभ कोनो
विशे ष ां क वनक लै िछथ तिन ितवनी तँ ठीक रहै त िवन मुद स मग्री
अछधक ां शतः बत्रसये रहै त िवन। ऐछतह त्रसकत क दृछिसँ कोनो पुर न स मग्रीक
उपयोग िर्जिंत नै िै मुद सोछचयौ जे 72-80 पन्द्न क कोनो प्प्रिंट पत्रिक
होइत िै त वहमे लगभग आध स मग्री स भ र रहै त िवन, ते सर भ गमे ले िक
केर वकिु रचन रहै त िवन आ च ररम भ गमे वकिु नि स मग्री रहै त िवन।
मुद हमर लोकवन नि स मग्रीपर बे सी जोर दै त छियै । एकर मतलब ई नवह
जे ितवनीमे गलती होइत रहै । हमर कहब क मतलब ई जे सां प दक-सां योजककेँ
कोनो ने कोनो स्तरपर समझौत करहे पड़ै त िै से च हे ितवनीक हो वक, मुर क
हो वक विच रध रक हो वक स मग्रीक हो। हमर लोकवन ितवनीक स्तरपर
समझौत कऽ रहल िी मुद क रण सवहत। प्प्रिंट पत्रिक एक बे र प्रक त्रशत
भऽ गे ल क ब द दोब र नै भऽ सकैए (भऽ तँ सकैए मुद फेर प इ ल वग जे तै)
तँ इ ओकर ितवनी यथ शक्क्त सही रहै त िै । इां टरने टपर सुविध िै जे बीचमे
(इां टरने टसँ प्प्रिंट हे ब क अिछध) ओकर सही कऽ सकैत िी मुद सम छग्रए
बत्रसय रहत तँ सही ितवनी रवहतो नि अध्य य नै िुजज सकत तँ इ हमर
4 ||गजेन्द्र ठाकुर

लोकवन ितवनी बल मुद्द पर समझौत केलहुँ । हमर लोकवन कएलवन,


कयलवन ओ केलवन तीनू शुद्ध म नै त िी, एते क शुद्ध म नै त िी एकै रचन मे
तीनू रूप भे वट ज एत। आन शब्दक ले ल एहने बूझू। जे न वक नीच पररचय
बल पन्द्न पर सूछचत केने िी जे 18 मइ 2022केँ रिीन्द्रजी एवह सां स रसँ
चत्रल गे ल ह आ तकर ब दो वकिु ले ि आएल अछि। तँ इ एवह विशे ष ां क केर
वकिु ले िपर एकर असरर भे वट सकैए।

आब एकट लोक प्रि दपर आबी। प्रि द एहन चीज िै ज वहसँ र म द्व र
सीत क दोसर बे र वनि वसन भऽ ज इत िै अग्ग्नपररक्ष क ब दो। तँ इ एवहपर
ब त करब उछचत। सां योग ि कुसां योग जे हो मुद विदे हक विशे ष ां क केर
घोषण होइते वकिु ले िक एवह सां स रकेँ िोवड़ दे ल ह। रिीन्द्रजीक सां गे इएह
भे ल। मुद हमर जनै त ई एकट सां योग िै । विदे हक विशे ष ां क सभ शुरू
होमएसँ पवहने आ तकर ब दो ओहन ले िक सभ सां स रसँ विद भे ल ह
जजनक पर विदे ह कोनो घोषण नै केने िल। वनच्च वकिु एहन तथ्य सभ दऽ
रहल िी ज वहसँ मै छथली स वहत्य केर असल ब त बूजझ सकबै --

1) विदे हसँ पवहने ई बूझल ज इत िलै जे ले िक केर विशे ष ां क मरल क ब दे


प्रक त्रशत हे ब क च ही। जँ अह ँ सभ पुर न पत्रिक क ले िक केंवरत विशे ष ां क
दे िबै तँ ई ब त स वबत भऽ ज एत। पुर न वकए ितवम नोमे से हो मृत्युसँ
पवहने क चच व आ मृत्युक ब दक चच व दे िब तँ इएह स वबत हएत जे मै छथल
मूलतः मृत्युपूजक होइत िछथ। मै छथलीक मुख्यध र मे एिनो इएह म नल
ज इत िै । विदे ह एवह रूवढ़केँ तोड़लक। आ जे न वक सां स रक वनयम िै जे
अां धविश्व सकेँ टु टब क समयमे जँ कोनो घटन घटै िै तँ ओकरो तोड़हे बल सँ
जोवड़ दे ल ज इत िै । सां भितः विदे हक सां गे इएह भऽ रहल िै ।

2) विदे ह जजबै त मुद उपे जक्षत ले िकपर प्रय स करै िै आ एवह क्रममे बहुत
एहन ले िक िछथ जजनकर उम्र पूरर गे ल िवन मुद ओ उपे जक्षत िछथ। तँ इ
विदे ह रिीन्द्रनाथ ठाकुर विशे ष ां क || 5

हमर सभ लग सां कट अछि जे वकनक पर वनक लू। जँ एकट िररष्ठ उपे जक्षतकेँ
कछतय कऽ दोसर कम उम्र बल पर वनक ली तँ ईहो उछचत नै ।

3) जे न वक उपर कहने िी विदे हक विशे ष ां कमे स भ र आले ि नइ के बर बर


ले ल ज इत िै तँ इ फ्रेश आले ि पुरब मे समय लगै त िै । आ समय लगब को
च ही। नीक िस्तु, नीक रचन ले ल समय च हबे करी। हमर लोकवन जते क
सां भि भऽ सकैए ततबे कऽ रहल िी। ओन हुतो जे न हमर सभकेँ सहयोग
भे वट रहल अछि त वह वहस बें लगभग दस बिवमे विदे ह असगरे ई लक्ष्य प वब
ले त। आभ र हुनक सभकेँ जे हमर एवह क जमे कवनय ें सहयोग दै िछथ।
विदे ह आगुओ एहन विशे ष ां क केर प्रय स करत। जजनक आपत्रत्त हे तवन ओ
नै करब क ले ल कहत आ हम सभ प िू हवट ज एब। अइसँ बे सी आर की
भऽ सकैए।

अपन मां तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


6 ||गजेन्द्र ठाकुर

श्री रिीन्द्र नाि ठाकु र

एवह पररचय त्मक वििरणमे अछधक ां श तथ्य आदरणीय रिीन्द्र न थ ठ कुरजी


द्व र फेसबुकपर पोस्ट कएल वििरणसँ ले ल गे ल अछि (मूलतः हहिंदीमे िल)
जे वक सां भितः हुनकर इि-छमि ओ पररजन द्व र तै य र कएल गे ल हे तवन।
हुनक सभ लोकवनकेँ आभ र। एवह वििरणमे एक-दू ठ म हमर विसां गछत
नजरर आएल जकर हम अपन ज्ञ नसँ ठीक केलहुँ आ ओवहठ म प ठक ले ल
एकट सूचन दे लहुँ अछि। बहुत सां भि जे कोनो आन सूचन क सां बांधमे हमर
ज्ञ न नै हो आ विदे हक एवह पन्द्न पर से हो विसां गछत आवब गे ल हो से सां भि।
प ठक एकर सही करब क ले ल सहयोग करछथ से आग्रह (सां प दक)।

श्री रिीन्द्र नाि ठाकु र


वपत : स्िगीय केद र न थ ठ कुर
जन्द्म छतछथ: 08-08-1938 (आठ अगस्त सन उन्द्नीस सौ अड़तीस)
मृत्यु-18 मई, 2022 (नोएड )
स्थ यी पत : ग्र म-पोस्ट - धमद ह (मध्य), ि डव सां ख्य -7, जजल - पूर्णिंय ँ
(वबह र) ितवम न पत : A -327, सै क्टर-46, नोएड , जजल - गौतम बुद्ध
नगर, उत्तर प्रदे श ई-मे ल: abhinavvidyapati@gmail.com

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