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VIDEHA_RAJNANDAN_SPECIAL-106-140
VIDEHA_RAJNANDAN_SPECIAL-106-140
सुरेन्र ठाकु र
सुर्ीर
प्रदीप वबिारी
लोक पशणक प्रसां ग एतबे । अन्द्य वििरण सभ कहने विषय न्द्तर भ'
104 ||गजेन्र ठाकुर
ज यत।
विसूवियसक लोक पशणमे पवहल भें टक ब द हमर दुनू गोटे क 'भै य री'
भ' गे ल। ओन हुनक ज्ये ष्ठ जम य आ हमर बयसमे बे सी तरपट नवह अछि।
बयसें हम हुनक पुिित होइतहुां , हुनक अनुज सन िलहुां । तें ओ 'भ इ'
कहछथ, हमहां 'भ इ' कवहयवन। किनो क' 'ब उ' से हो कहछथ- बुझलहुां ब उ।
ओन कोनो-कोनो पिमे 'छप्रय प्रदीप जी' से हो त्रलिछथ।
गृहपछत घरमे नवह रहछथ। मवहल क कथन नुस र र तुक आठ बजे फेर
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 107
स्िज छतक क रणें से हो कयने होछथ। एिवन हमर वपत्ती रवहतछथ तां पित ि
होइतवन जे ज छतकें छचन्द्ह'मे हुनक बुतें ब़िक गलती भ' गे लवन।" हमर
ददस तकैत बजल ह, "चलू प्रदीप। उठू ।"
हम दुनू गोटें वबद भे लहुां । हुनक डे र क क्षे िसां बहर इते भ इ अपन
मुस्कीक सां ग बजल ह, "बुझलहुां प्रदीप! ई ज छत...सभ फस दक जव़ि
होइए..."
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अरविन्द ठाकु र
पत्रिक प्रक शनक अवह क्रम मे ओ सम्प दकीय आ अन्द्य वटप्पणीक म ध्यम
सां जे वकिु कहलवन,से हुनक ‘छचि -विछचि ’ न मक सां ग्रह मे सां कत्रलत भे ल
अछि आ ते कर सां कलन आ सां प दन करवनह र ड प्रेमशां कर ससिंह तवह पर
एकट दीघश आले ि त्रलिने िछथ।सां ग्रहक प्रक शक कणशगोष्ठी अछि,तें एकर
प्रक शकीय मे अजुशनल ल करण से हो अपन लघु वटप्पणी कएने
िछथ।मै छथलीक जे परम्पर रहल अछि,ते कर वनिशहन करै त ले िक आ ओकर
ले िनक प्रशां स करब क क ज अवह दुनू ले िक म ध्यम सां भे ल अछि।
एकर उद हरणक क्रम अवह पोथीक प्रथमवह आले ि सां शुरू भए ज इत अछि।
अवह आले ि मे ओ मै छथलीक भ ष -शै ली पर गां भीरत सां छचन्न्द्तत दे ि इ िछथ
आ अवह पर विच रणक क्रम मे वित्रभन्द्न वबन्द्दूसभ कें िु बए िछथ।
आले ि 1967क अछि,तें समय कें दे िैत अवह मे नित म नल ज ए सकैत
अछि,नवह त ईसभ बे र-बे र दोहर एल गे ल गपसभ िै ।ओ म नए िछथ जे अवह
भ ष क दू रूप अछि – एक सां स्कृत वनष्ठ पररम र्जिंत मै छथली जे ब बू-भै य
ब जए िछथ आ दोसर जन-बोवनह र लोकवनक ि ां टी मै छथली।ई ब बू-भै य
लोकवन के िछथ,से ओ स्पष्ट नवह कएने िछथ।वकन्द्तु अवह आले ि समे त
सम्पूणश सां कलन मे जवह तरहें अनवगनत बे र ‘छमछथल ’ शब्दक प्रयोग भे ल
अछि,तवह सां अनुम न लग एल ज ए सकैत अछि जे ‘ब बू-भै य ’ सां हुनक
अत्रभप्र य मै छथल ब्र ह्मण आ कणश क यस्थवह सां िवन। आम स म जजक
स्थ पन मे र जपूत,भुछमह र ब्र ह्मण आ अम्बष्ट क यस्थ से हो ‘ब बू-भै य ’क
श्रे णी मे आबए िछथ। हुनकर सभक भ ष कोन रूपक अन्द्तगशत आबै त
अछि? ब बू भै य आ जन बोवनह र सां अलग एकट िजणक-सम ज से हो
िै ,ओसभ की ब जए िछथ?स्पष्ट िै जे अवह रूप-विभ जन मे र जनन्द्दन जी
सां चूक भे ल िवन आ ओ आन्द्दोलनजीिी मै छथल आां खि सां एतहुक स म जजक
सां रचन कें दे िलवन अछि।इएह दृछष्ट-भ्म िै जे सां बांछित आले ि मे हुनक
भ ष इ एकरूपत क सन्द्दभश मे कोनो स्पष्ट क यशक्रम ि सुझ ि दे बए मे अक्षम
कएलकवन अछि। आले िक अां त मे ओ आरोप लगबए िछथ जे ‘मै छथलीक
114 ||गजेन्र ठाकुर
जक ां पां जीप्रथ क ओझर हवट मे पव़ि गे ल।पां जीप्रथ क द्व र ब्र ह्मण एिां
कणशक यस्थ मे ज छतगत शुद्धत कें अक्षु ण्ण रिब क ले ल एिां विदे शी प्रभ ि
सां बचे ब क असफल प्रय स कएल गे ल।क रण वहन्द्दूक एहन कोनो ज छत
नवह,ज वह मे विदे शी छमश्रण समय-समय पर नवह भे ल हो’ , ‘कणशक यस्थ
लोकवन श्रमक महत्ि कें बुझछथ,पुरोवहति दक कुचक्र सां अपन कें मुतत
करछथ,ज वह सां व्यक्ततक आर्थिंक विपन्द्नत उत्पन्द्न होइत िै क’ – ई सभ
पां क्तत अही आले िक अछि आ से कोनो उद्धरण नवह,र जनन्द्दन जीक अपन
विच र िवन। अचरज होइत अछि जे आन्द्दोलनजीिी मै छथलि दक पक्ष मे
ज इतवह र जनन्द्दन जीक ज तीय ि व्यक्ततगत विश्ले षण त्मक
बुत्रद्ध,सत्य न्द्िेषण िृत्रत्त आ प्रगछतशीलत कतय अलोवपत भए ज इ
िवन,छमछथल -मै छथल ददस ज इतवह ओ पुरोवहती म य ज लक ओझरी मे वकऐ
ओझर ए ज इ िछथ।ई समझ सां ब हरक गप अछि जे जे व्यक्तत अपन ज छतक
लोक कें अतीत आ पुरोवहति द सां मुतत भए आिुवनक आ प्रगछतशील हे ब क
आह्व न कए रहल अछि,िएह व्यक्तत अपन समग्र ले िन मे बे र-बे र आन लोक-
सम ज कें अतीतक कोनो छमथकीय िोह मे घुरर कए सखन्द्हआए जएब क आ
पुरोवहती प्रपां च मे फांत्रस जएब क ललक र केन दए सकैत
अछि,अतीतजीवित क पै रोक री केन कए सकैत अछि?भोल ल ल द स पर
त्रलिै त ‘पुरन सां स्क र आ कुरीछतक भ र सां सम जक जजशर हएब आ
कुहरब क’ चच श करवनह र आन ठ म इएह सां स्क र आ कुरीछतसभ कें भ ष क
अि मे आिुवनक युग,आिुवनक पीिी पर ल िब क अनुशांस केन कए सकैत
अछि?