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84 ||गजेन्र ठाकुर

विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 85


86 ||गजेन्र ठाकुर
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 87
88 ||गजेन्र ठाकुर

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विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 89

सुरेन्र ठाकु र

मै थिली से िी कलमक शसपािी: श्रीमान राजनन्दन लाल दास

मोत्रस स भरल दि त आ ले िनी त्रशजक्षत सम जक एकट प्रि न अां ग रहल


िखन्द्ह।ज वह स ओ जन-जीिन स सां बांछित वित्रभन्द्न पक्षकें युग नुकुल त्रलवपिद्ध
करै त आवब रहल िछथ।ब्र म्हण िणशक अछतररतत क यस्थ लोकवन से हो उतत
उपकरण कें अपन- अपन जीविक अजशन करब क ले ल प्रमुि आि र
बनौलखन्द्ह।आ,अतीतमे र ज -मह र ज क दरब र मे मुांशी-पटि रीक तत्क त्रलन
प्रछतछष्ठतपद पर आसीन होइत रहल ह।आिुवनक युग मे से हो क यस्थ
लोकवनसरक री-असरक री विभ ग मे ले ि त्रलवपक,ले ि प ल आ
च टशडशएक उण्टें ट आदद पद पर क ज करै त आवब रहल िछथ।एां कर अछतररतत
ई लोकवन स म जजक ,स वहत्त्यक,स ां स्कृछतक र जनै छतक क ज स से हो
जुव़ित रहल ह ।एवह क्रममे श्रद्धेय श्री म न् र जनन्द्दन ल ल द स जी से हो
िां छचत नवह रहल ह। श्रीम न र जनन्द्दन ल ल द स त्रशक्ष अजशन करब क
उदे श्ये कोलक त गे ल ह।क ल-क्रमें ण ओ कलकत्त विश्व विद्य लय
सर जनीछत श श्ि मे स्न तकोत्तर परीक्ष उत्तीणश कयलखन्द्ह,आ एकट प्रछतछष्ठत
इां जजवनयररिंग कम्पनी मे 'से हस प्रछतवनछि/अछिक रीक रुपमे क ज करय
लगल ह।अन्द्ततोगत्ि ओ से ि वनिृतो भे ल ह। मुद ,श्रीम न् द स जी अपन
जीिन कें म ि च करी जीिन ससां बांछित नवह रिल ह।ओ र जनीछत श श्ि मे
म तशश-ले वननक विच र- त्रसद्ध न्द्त आ गछतविछिक सां ग रूसी क्र न्न्द्त ब
सिशह र कसमस्य ग्रस्त जीिनक से हो अध्ययन कयने िल ह।तकर
प्रभ िहुनक स म जजक जीिन पर से हो प़िलखन्द्ह।आ,ओ स म जजक-
र जनै छतक आ आर्थिंक सुि रक दृछष्टकोण ल'क' अपन अछतररततसमय मे
क ज करय लगल ह।मुद ,ओ हमर जनतबे ,कलकत स्थकोनो र जनै छतक
दल विशे ष क' कोनो स म्यि दी दल स जुवडतनवह रहल ह।मुद ,ओ
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स म जजक स्तर पर ओ छमछथल -मै छथलीकसे ि क हे तु क ज करय लगल ह।


श्री म न् द स जी कोलकत स्थ अपन ि ि िस्थ क लपहिं मे मैछथली
आां दोलनी(स्ि०)पां ० दे िन र यण झ (दरभां ग ) क सम्पकशमे
अयल ह।आ,अ०भ ०छमछथल सां घ(पूिशक मै छथल सां घ) मे प्रिे शक'अब ि
गछतएां क ज करय लगल ह।ओत्तपहिं वहनक भे ट भे लरहछथन्द्ह सिश श्री
पां ०हररिन्द्र छमश्र 'छमछथले न्द्दु', उददत न र यण झ (बसौली) ,मह िीर
झ (शुभांकरपुर,दरभां ग ), सहप ठी
पीत म्िरप ठक(िकजरी,मिुिनी)दे िक न्द्त ठ कुर(दुग शपट्टी,मिुिनी)
आ,ब द मे व्रम्ह न र यण झ (ग म-दुहह ,मिुिनी)आ युगन र यण झ (
सररसो,मिुिनी) आदद-२ सदस्य लोकवन। ड ०(स्ि०)लक्षमण झ क'आह्व न
पर छमछथल र ज्यक समथशन मे मै छथल सां घक दजक्षण कलकत्त क श ि अपन
मूलसां गठन स अलग भ'गे ल आ,'छमछथल लोक सां घ'क न म स क जकरय
ल गल।ओही मे प्रमुि रुपें ण िल ह:-सिशश्री ब बू स हे बचौिरी,ड ०प्रिोि
न र यण ससिंह,पां ० दे ि न र यण झ ,िै द्यन थ झ (डु मर ,मिुिनी)आदद-
२लोक।आ,छमछथल लोक सां घ उत्तरोत्तरछमछथल र ज्यक समथशन मे बष ों िरर
ग ज -ब ज क सां ग कलकत क'र जपथ पर प्रदशशन करै त रहल,क ज सभ
करै त रहल।मुद ,श्रीम न र ज नन्द्दन ल ल द स जी त त्क त्रलक भूलिश
श्रद्धेय' श्रीछमछथले न्द्दु जीक सां ग अपन मूल सां गठन 'मै छथल सां घ'मे रवह गे ल ह।
पूिश मे मूल सां गठन'मै छथल सां घ' छमछथल र ज्य वनम शणक प्रश्नपर एकमत
नवह िल।मुद , ई०सन् :-१९५८ क-२६ जनिरी क'ददन दुनू सां गठन छमत्रल क'
एकीकरण कयलक आ,नि न म:-अखिल भ रतीय छमछथल सां घ क' न म सां
क ज करय ल गल।एकीकरणक श्रे य िलखन्द्ह सिशश्री :-ड ० लक्षमण झ ,
ड ०व्रज वकशोरिम श 'मजणपद्म'आ ड ०हररमोहन झ क'।ब द मे सां घ
अपनम त्रसक पत्रिक 'छमछथल दशशन'क प्रक शन ड ०प्रिोि न र यणप्रय स
स शुरु कयलक।ओकर ले ल छमछथल दशशन प्र ०त्रल०न मक कांपनीक स्थ पन
कयल गे ल।जकर पवहल सछचि श्री म न्र ज नन्द्दन ल ल द स जी एां कें
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बन ओल गे ल िल। ईम्हर नि गदठत अ०भ ०छमछथल सां घ मे पुन: वकिु


मत न्द्तरक क रणें 'गुटब जी'शुरु भ'गे ल।दुनू ग्रूप परस्पर अपन आप कें
असली छमछथल सां घ घोवषत क'स्ितां ि रुपें ण क ज करयल गल। ओम्हर
ड ०प्रिोि न र यण ससिंह ,श्री िै द्यन थ झ क'सल ह पर उतत सां घ कें
'रजजष्रे शन' चुपेच प करबौलखन्द्ह।तथ वपदुनू ग्रूप क ज करै त रहल।मुद ,ब द
मे ई०सन् १९६५ मे मह ज छतसदनक प्रेक्ष गृह मे ड ०प्रिोि न र यण ससिंह
'सां घ'क रजजष्रे शनकसां बांि मे िुल श कयलखन्द्ह।विरोिी ग्रूप पुन: सवक्रय
भे ल।म छमल कलकत्त ह ई कोटश मे पहुॅचल।मुद ,ड ०प्रिोि ब बू क'ग्रूप
केंपूिशपहिं स रजजष्रे शन करयब क क रणें 'वडग्री'भे टलखन्द्ह।तदुपर न्द्तविरोिी
ग्रूप पूिशक आॅई० मै छथल सां घ कें पुन:जीवित कयलखन्द्ह।श्री म न् र ज नन्द्दन
ल ल द स जी पुन:ओतपहिं िूब जोर-सोर सक ज करय लगल ह।ओ उतत
सां घ मे समय-समय पर छमछथल -मै छथली हे तु आन्द्दोलन,प्रदशशन,मै छथली
पुस्तकक प्रक शन आदद-आदद क ज सभ सदस्यक सां ग करय लगल ह।अपन
सां घी जीिनमे श्री म न् द स जी सछचि/अध्यक्ष पद कें से हो बे श सुशोत्रभत
कयलखन्द्ह।छमछथल -मै छथली क' ले ल क ज करब कें ओ आजीिन उदे श्यपूणश
रुपें ण एकट 'मोटो' बन ले ने िल ह। श्री म न् द स जी कलकत्तपहिं स
प्रक त्रशत 'आिर'पत्रिक क'प्रक शन से हो शुरु कयने िल ह।प्रेरक आ
सल हक र िलछथन्द्हमै छथलीक सुपररछचत हस्त क्षर (स्ि०)र जकमल
चौिरी।सहयोगीिृन्द्द मे िलछथन्द्ह सिश श्री कीर्तिं न र यण छमश्र,पीत म्िर
प ठक,ड ०िीरे न्द्र मल्हलक आदद-आदद। ई०सन् :-१९८३ अबै त-अबै त आॅई०
मै छथल सां घ क' गछत अिरुद्ध भ' गे लैक।सिशश्री छमछथले न्द्दु जी, मह िीर
झ ,उददतन र यण झ ,पीत म्िर प ठक,युग न र यण झ ,व्रम्ह न र यण
झ सवहत श्रीम न् द स जी आदद से हो त त्क त्रलक असवक्रय भ' गे ल ह।व्रम्ह
न र यण झ दजक्षण कलकत्त मे 'मै छथल नि ज गरण सां घ' न मक एकट
अलग सां स्थ बनौलखन्द्ह।पीत म्िर प ठक टे कनीकली आॅई० मै छथल सां घ कें
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अखिल भ रतीय छमछथल सां घ मे श्री युग न र यण झ आददक सां ग विलयन


कयलखन्द्ह। आ,श्री म न र ज नन्द्दन ल ल द स जी 'कणश गोष्ठी' न मक सां स्थ
मे अपन सहयोग दे बय लगल ह। श्री म न द स जी स वहत्त्यक कमश स से हो
जु़िल ह।ओ,न टकक रक रुप में 'सन्द्तो' न मक क्र न्न्द्तक रीन टक ले िन
कयलखन्द्ह।कलकत्त में ओकर मां चन से हो कयलखन्द्ह।बहुत िषशक ब द ओकर
एकट प्रछत हमरो उपह र स्िरुप दे ने िछथ।एकर अछतररतत ओ' छचि -विछचि
न मक पोथी से हो सम्प दन कयने िछथ।कछथत पुस्तक 'कण शमृत' पत्रिक
में त्रलिल- िपल सम्प दकीय सभक सां ग्रह अछि।ओ ते सर पोथी त्रलिने
िछथ-'कणशगोष्ठी आ कलकत्त्त '।ज वह मे 'कणशगोष्ठीक अछतररतत
कलकत्त क मै छथली गछतविछिक चचश अछि। श्री म न् र ज नन्द्दन ल ल द स कें
हम विशे ष रुपें णजनै त छियखन्द्ह'कण शमृत'क यशस्िी सम्प दक रुप
में ।ओलगभग ४० िषश िरर ओकर सफल सम्प दन करै त
दोसर'कीर्तिंम न'(रे क ॅडश )स्थ वपत कयलखन्द्ह।एवह स पूिश 'छमछथल छमवहर'
अपन कीर्तिंम न स्थ वपत कयने अछि।ओन अछिक ां श मै छथली पत्रिक सभ
अहप युए रहल अछि।मुद , श्री म न् द स जी जिन स्ियां श ररररक आ
म नत्रसक रुपें ण असवक्रय भ' गे ल ह रिने 'कण शमृत'कप्रक शन बन्द्द
भ'गे ल।ओन ओ नवह च है त िल ह जे उतत पत्रिक बन्द्द भ'ज इक।बीच-२
बीच में ओ श्री चन्द्रेश जी( दरभां ग ) सन स वहत्यक र कें 'अछतछथ'सम्प दक
से ि से हो लै त रहल ह।चन्द्रेश जी एक बे र 'कण शमृत'क ले लने प ली विशे ष ां क
ले ल से हो अछतछथ सम्प दक मनोनीत भे ल िछथ।श्री म न् द स जी अन्द्त-अन्द्त
तक 'कण शमृत' कले ल पूणशक त्रलक सम्प दक िोज में ल गल
रह ।मुद ,ओअसफल रहल ह। 'कण शमृत'पत्रिक में सिशस्तरीय रचन सभ
िपै त रहल।पवहले ओवह में 'छमछथल छमवहर' आ 'छमछथल मोद'जक ॅ वहन्द्दी
रचन सभ से हो िपै त रहल।एक बे र हम श्री म न् द स जी केंअनुरोि कयने
रवहयखन्द्ह जे अपने वहन्द्दीकरचन वकएक िपै त छियै क? ओ तुरत्ते हमर उत्तर
दे ने रवह एिन'कण शमृत' के जव़ि मजबूत करब क अछि।शनै -शनै वहन्द्दीक
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रचन नवह िपतै क।आ,ब द में सै ह भे लैक।'कण शमृत'पूणशक लीन मै छथली


पत्रिक भ'गे ल। ' कण शमृत'पत्रिक म दे हमर एकट महत्िपूणश घटन मोन
प़िै त अछि।ओकर प्रक शनक ब दे कलकत्त मै छथली जगत में ई चच शक विषय
बवन गे ल जे उतत पत्रिक 'कणश क यस्थ'सभक ज छतक पत्रिक भ'गे ल
अछि। अ०भ ०छमछथल सां घ में एकर िूब प्रछतवक्रय भे लैक।मुद ,मै छथली
से न नी ब बू स हे ब चौिरी एकरजोरद र समथशन कयलछथन्द्ह।ओ 'कणश गोष्ठी'
द्व र आयोजजत एकट अनुष्ठ न में अपन विच र व्यतत कयलखन्द्ह:-"हम
ज छति दक समथशक नवह िी।भ रत िषशस ज छति द शीघ्रे सम प्त नवह
है त।ज िरर ई रोग सम प्तनवह है त,त िरर यदद छमछथल क सभ ज छत ज ैं अपन
म तृभ ष मै छथली में अपन-अपन पि-पत्रिक प्रक त्रशत करछथ त हजे की
िै क?एवह स छमछथल -मै छथलीक सिशस्तरीय आन्द्दोलन सफल हैं त!!!बस्सकी
िल,'सां घ'में से हो 'कण शमृत'विरोिी स्िर सम प्त भ' गे ल।आनो सां स्थ
सभक स्िर बदत्रल गे लैक।आ,बहुत ें सदस्य सभ'कण शमृत'क ग्र हको बवन
गे ल ह। श्री म न् र ज नन्द्दन जी मै छथलीक एकट सफल सम्प दक रहल ह।ओ
अपन पत्रिक में सतत् नि-निरचन क र कें प्रोत्स वहत करै त रहल ह।एते तक
की ओस्तरहीन वकिु रचन के से हो यद कद प्रक त्रशत करै त रहल ह।एक बे र
हम हुनक स अनुरोि करने रवहयखन्द्ह जे अपने एवह तरहक रचन सभ के
वकये क प्रक त्रशत करै तछियै क? पत्रिक क स्तर ददन नुददन कछम ज एत।ओ
चोट्टवह उत्तर दे ने रहछथ:-"सुरेन्द्र जी ! नि रचन क रकें प्रोत्स हन दे न ई
आिश्यक होइत िै क।ब द में एहने रचन क र सभ त्रलिै त-त्रलिै त चमवक
जे त ह।आ, हम तिन वनरुत्तर भ'गे ल रही। प्रसां गिश, हमर एकट आरो
घटन मोन प़िै त अछि। हम एक बे र ब बू स हे ब चौिरी जी'क वनिनक बहुत
ब दअपन एकट रचन ल'क' श्रद्धेय द स जी लग गे ल रही।प्रक त्रशत करब क
अनुरोि कयने रवहयखन्द्ह।ओ कहने रवह:-"सुरेन्द्र जी!आां ह ॅ म ि एकट
मै छथली क यशकत श िी।हमर ई नजि बुझल अछि जे आां ह ॅ मै छथली में रचन
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करै त िी।'हम उत्तर दे ने रवहयखन्द्ह:-"द स जी ! अपने ठीके कहल अछि।हम


अवनयछमत रुपें ण रचन सभ से हो त्रलिै त िी।हमर वनकटिती वकिु ए लोक
कें ई ब त बुझल िखन्द्ह।एक ि रचन हमर प्रक त्रशतो भे ल अछि।िै र,जे
वकिु ।स्ि०ब बू स हे ब चौिरी जी पर केखन्द्रत हम अपन एकट कवित ' घूरर
आउ-घूरर आउ'बन्द्द त्रलफ फ मे हुनक हस्तगत कर ओल।ओ हमर
कहलखन्द्ह:-ठीक िै कब द में हम एकर दे िबै क।एिन कण शमृत'क सां भ व्य
अां क प्रक त्रशत होअ-होअ पर िै क।एकोट पन्द्न ब ॅचल नजि हे तैक। दोसर
अां क मे हम पूणश प्रय स करब।" आ हम च ह पील क ब द हुनक वनि स स
सहषश विद भ'गे लहुॅ। अवह रे ब ! ठीक दोसरे ददन श्रद्धेय श्रीम न् द स
जीहमर क य शलय मे फोन कयलखन्द्ह:-सुरेन्द्र जी! आां ह ॅक रचन प्रस्तुत अां क
में िवप रहल अछि।(स्ि०)चौिरी जी पर नीक कवित त्रलिल अछि।तैं हमहॅ
ब ध्य भ'क' प्रेस बल के आग्रह केत्रलयखन्द्ह।ओ, एकट पन्द्न ि ली
हे ब कब त कहलखन्द्ह।हम कहत्रलयखन्द्ह अबस्से ि वप ददयौक।तकर ब द हमर
ओ बहुत प्रशां श कयलखन्द्ह।आ,वनरन्द्तरत्रलिब क आग्रह से हो कयलखन्द्ह।हम
हुनक िन्द्यि द दे ने रवहयखन्द्ह।ब द में जिन 'कण शमृत'हमर हस्तगत भे ल त
उतत कवित कें प्रक त्रशत दे खि हम बे श हर्षिंत भे ल रही।आ,हम तुरन्द्ते श्री
म न् द स जी कें पुन:अशे ष िन्द्यि द दे ल। श्री म न् द स जी समय नुस र
'कण शमृत'क विशे ष ां क वनक ल करछथ।स्ि०ब बू स हे ब चौिरी परएकट
स्ितां ि विशे ष ां क प्रक त्रशत कयलखन्द्ह।स्ि०सुरेन्द्रझ 'सुमन'जी आ
स्ि०पीत म्िर प ठक जी पर सां युततविशे ष ां क से हो प्रक त्रशत कयलखन्द्ह।एवह
तरहें आरो मै छथली मवनषी सभ पर ओ विशे ष ां क सभ प्रक त्रशत करै त रहल ह।
प्रसां गिश हमर आरो एकट अविस्मणीय घटन मोनप़िै त अछि।श्री म न र ज
नन्द्दन ल ल द स जी'कणश गोष्ठी'क ददत्रश स 'छचि -विछचि 'न मक उत्कृष्ट
पोथीकप्रक शन कयलखन्द्ह।ओ अपन वनि स पर बज क' हमर उतत पोथीक
एकट प्रछत हस्तगत करौलखन्द्ह।पोथीक कभर पृष्ठ कें उनवट क'हम
दे िल।ओकर स मने क दोसरपृष्ठ पर त्रलि िल:-'रचन क र सुरेन्द्र ठ कुर जी
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कें स दरभें ट।' ओह्! हम तिन बहुत भ ि-विह्वत्रलत भ'गे ल रही।आ,हम


हुनक पुन:अशे ष िन्द्यि द दे ने रवहयखन्द्ह। हमर प्रछत श्रद्धेय श्री म न् र ज नन्द्दन
ल ल द स जी क' आदर-स्ने ह आ प्रेम हमर मोन कें सतत् आनां ददत करै त
रहै त अछि।ईश्वर स प्र थशन जे ओ छमछथल -मै छथलीसे ि थश सशरीर स्िस्र्थय
रहछथ आ दीघशजीिी होछथ!!!

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96 ||गजेन्र ठाकुर

सुर्ीर

श्रीयुत् राजनन्दन लाल दास जी ओ मै थिली


विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 97

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कामे श्वर झा ’कमल’

कर्ाभमृत पशिका आ सम्पादक श्री राजनन्दन लाल दास


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100 ||गजेन्र ठाकुर
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प्रदीप वबिारी

सं स्मरर् : राजनन्दन लाल दास::अपने घरमे परगोिी

भ इ र जनन्द्दन ल ल नवह रहल ह। हुनक नवह रहब सम्पूणश मै छथली जगतकें


दुिी क' गे ल। आशीष अनछचन्द्ह र जी हुनक श्रद्ध ां जत्रल दै त हुनक पर
सां भ वित अां कक म दे त्रलिै त िछथ जे हुनक जीबै त ओ अां क बह र नवह क'
सकल ह। ठीके, समय पर रचन नवह द' सकब क हुनक एकट वडफॉहटर
हमहां िी।

भ इ र जनन्द्दन ल ल द स जीसां हमर पररचय 1986 ई. मे भे ल िल। त वहसां


पवहने न मट सुनने रही। अपन उपन्द्य स विसूवियस त्रलिल क ब द म स्सै ब
(जीिक न्द्त)क कथन नुस र कणशगोष्ठी कलकत्त कें प ण्डु त्रलवप पठ दे ने
रवहयवन। दू-तीन म सक ब द र जनन्द्दन ल ल जीक पोस्टक डश भे टल। ओ
त्रलिने रहछथ जे सां स्थ पोथी िपब ले ल तै य र अछि, मुद सां स्थ कें थो़िे क
अथ शभ ि िै क। तें िप इक िचश ि क गतक मूल्य जां अह ां जोग र क' ददयै क,
तां पोथी िवप ज यत। हम एकर एवह तरहें बुझलहुां पोथी प्रक शनक पूर
िचशकें दू भ गमे ब ां टल गे ल अछि । क गतक मूल्य आ तकर ब द िप इ
सम्बन्न्द्ित अन्द्य िचश। पोथी प्रक शन सम्बन्द्िी हमर पवहल अनुभि िल। हम
तां बुझैत रही जे प्रक शक स्ियां सभट िचश करै त िछथ। करब को च ही।
तिन ने प्रक शक। दोसर गप ई जे हमर नि-नि नोकरी िल। पररि रमे म य
िलीह, पत्नी िलीह, जे ठक बे ट क जन्द्म भ' चुकल िलै , ह इ स्कूल मे पढ़ै त
िोट भ इ िल। हम एते क द छयत्ि-वनिशहनक सां ग एवह स्स्थछतमे नवह रही जे
पोथी िपयब मे अपन ट क िचश क' सकी। हम हुनक पि त्रलिने रवहयवन
जे प्रक शककें अपन िचश क' पोथी िपयब क च ही। जां सां स्थ एवह स्स्थछत
मे नवह अछि तां कृपय प ण्डु त्रलवप घुर दी, क रण हम पोथी प्रक शनमे ट क
लगयब क स्स्थछतमे नवह िी।
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 103

ओ उत र दे ने रहछथ जे अह ां क मोनमे प्रक शकक जे िवि अछि,


मै छथलीमे ते हन प्रक शक नवह िै क। मै छथलीमे सां स्थ सभ पोथीक प्रक शन
करै त आयल अछि आ बे सी सां स्थ चन्द्देसां चलै त अछि। वकिु स मर्थयशि न
ले िक िछथ, जे स्ियां प्रक शक-वितरक िछथ। ओ त्रलिने रहछथ जे सछमछतक
तीनट सदस्य प ण्डु त्रलवप पढ़लवन अछि, कण शमृत पत्रिक क सहयोगी विद्व न
ब्रह्म नन्द्द जी (ब्रह्म नन्द्द ससिंह झ ) से हो पढ़लवन अछि। वनणशय िै क जे
प ण्डु त्रलवप नवह घुर ओल ज य। से प ण्डु त्रलवप हम सभ नवह घुम यब। तिन
इहो वनस्तुकी नवह कहब जे एवहबे र हमसभ ि वप सकब वक नवह।
'कण शमृत'क अां क पठौलहुां अछि। एकर सदस्य बवन ज यब तां वनयछमत भे टैत
रहत।

हम सोचलहुां , भने सां स्थे लग र िल रहय। हमहां थो़िे िप रहल िी। हम


'कण शमृत' पत्रिक क सदस्य बवन गे लहुां ।

मुद , वकिु ए ददनक ब द पि आयल जे 'विसूवियस' िवप रहल अछि।


हमर मोन मयूर न छच उठल। पुस्तक क र पवहल पोथी िल, तकर प्रसन्द्नत
त्रलिल नवह, अनुभिे ट कयल ज सकैि।

विसूवियस िपल। कलकत्त मे लोक पशण भे ल। लोक पशण करब ले ल


सां स्थ द्व र रम नन्द्द रे णु आमां त्रित िल ह। हम त वह समय तइस बरिक रही।
ह ि़ि टीसन पर पहुां चलहुां तां सां स्थ क वकिु सदस्यक सां ग श्रद्धेय ब बू स हे ब
चौिरी आ वकशोरी क न्द्त ब बू हमर दुनू गोटक स्ि गत ले ल प्रस्तुत रहछथ।
हमर एवह तरहक पवहल अनुभि िल। हमर आच यश रम न थ झ क िततव्यक
ओ अां श मोन प़िल ज वहमे ओ कहने िछथ जे कलकत्त मै छथलक तीथश अछि।
हमरो ल गल रहय जे तीथे कर' आयल िी।

लोक पशणक प्रसां ग एतबे । अन्द्य वििरण सभ कहने विषय न्द्तर भ'
104 ||गजेन्र ठाकुर

ज यत।

आइ हमहां अपन ट क सां पोथी िपबै िी, मै छथलीक बे सी ले िक िपबै त


िछथ। सां स्थ सभ पवहने सन उद र नवह अछि। पठनीयत एते क घवट गे लैए जे
पवहने गद्यक पोथी कम-सां -कम एग रह सय िपय, आब तीन सय िपै ए।
एवहमे वकिु अपि द भ' सकैत िछथ।पवहने कवितोक पोथी तीन सय नवह
िपय। एहन अिस्थ मे र जनन्द्दन ल ल द स मोन प़िै त िछथ। हुनक गे ल
बे सी समय नवह भे लवन अछि। मुद ओ अपन जजविते क लमे प्रक शन आ
पठनीयत क ई स्स्थछत दे िलवन।

कणशगोष्ठी, कलकत्त द्व र प्रक त्रशत पत्रिक क सां प दक र जनन्द्दन ब बू


िल ह । प्रि न सां प दक अजुशन ब बू (अजुशन ल ल करण) िल ह। मुद ,
पत्रिक क सां प दन ले ल सां स्थ हुनक स्ितां ि कयने िलवन। पत्रिक क प्रछत
हुनक अनुर ग, समपशण आ व्यिह रक क रणे कलकत्त क रचन क रलोकवन
जे न , ब बू स हे ब चौिरी, लूटन ठ कुर, ब्रह्म नन्द्द ससिंह झ , श्रीक न्द्त
मां डल, िीरे न्द्र मल्हलक, निीन चौिरी, र मलोचन ठ कुर, लक्ष्मण झ
'स गर' प्रभृछत ले िकलोकवनक सिशविि सहयोग कण शमृतकें भे टैत रहलै क।

र जनन्द्दन ब बू मै छथलीक अल िे वहन्द्दी, ब ां ग्ल आ अां ग्रेजीक अछिकृत


जनतब रिवनह र लोक िल ह। ओ म तसशि दी चचिंतनक लोक िल ह।
कलकत्त क कतोक आन्द्दोलन मे ज्योछत बसुक सहयोगीक रूपमे सवक्रय
रहल ह, मुद से रवह नवह सकल ह। एकर क रण ओ कहने रहछथ जे पररि रक
द छयत्ि िल, छिय पुत क त्रशक्ष आ कैररयर िल, कोनो पै घ आ समृद्ध
प ररि ररक पृष्ठभूछमक लोक नवह रही, तें र जनीछतमे बे सी दूर िरर जयब क
ब त नवह सोचलहुां । मुद , हुनक छचन्द्तन, इम नद री आ सहजत मे कोनो अां तर
नवह भे लवन। स द जीिन आ उच्च विच र बल लोक िल ह।
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 105

र जनन्द्दन ल ल मै छथलीक सुच्च अनुर गी िल ह। हुनक ले िनी


कण शमृतक सां प दकीयमे दे िी तां कवहयो नीक ल गय आ कवहयो बे ज य से हो।
जे सां प दकीय नीक नवह ल गय, म ने सां प दकीय सन नवह ल गय तां हुनक सां
पि च र होअय, कवहयोक ल फोनो पर गप होअय, त वहमे नीक नवह लगब क
गप कवहयवन, क रण से हो। अचरज जे हुनक प्रसन्द्नत होवन आ ओ अपन
पक्ष इम नद रीपूिशक र िछथ। हुनक ई व्यिह र अनुकरणीय ल गल हमर ।

मै छथली आ छमछथल ले ल जीबै त आ ओही ले ल स्ियां कें होमक सछमि


बनै त र जनन्द्दन ल ल मै छथलीक प्र य: सभ सां स्थ आ मां च पर सम दृत
रहल ह।

विसूवियसक लोक पशणमे पवहल भें टक ब द हमर दुनू गोटे क 'भै य री'
भ' गे ल। ओन हुनक ज्ये ष्ठ जम य आ हमर बयसमे बे सी तरपट नवह अछि।
बयसें हम हुनक पुिित होइतहुां , हुनक अनुज सन िलहुां । तें ओ 'भ इ'
कहछथ, हमहां 'भ इ' कवहयवन। किनो क' 'ब उ' से हो कहछथ- बुझलहुां ब उ।
ओन कोनो-कोनो पिमे 'छप्रय प्रदीप जी' से हो त्रलिछथ।

अपन नोकरीक क रणें हुनक बरोबरर भ्मण मे रह' प़िवन। वबह र


आबछथ, तां बे गूसर य अबस्से आबछथ। कतोक बे र समस्तीपुर अयल ह, तां
बे गूसर य से हो अयल ह। हमहां कलकत्त ज इ तां हुनके घर पर रही।

आग्रही आ अनुर गी एहन जे हुनक ओवहठ म ज इ तां प्रफुल्हलत भ'


ज छथ। होवन कत' र िी आ कत' उस री। आ से सभक ले ल। स्थ नीय
स वहत्यक र सभ हुनक ओवहठ म ज छथ, तां हुनको ले ल तवहन आह्ल ददत।

हुनक एकट न टक िवन - सन्द्तो। ई आन्द्दोलनक री न टक छथक। एवहमे


र जनन्द्दन ल ल द स जीक िै च ररक प्रछतबद्धत दे िल ज सकैि। ई न टक
पढ़ल क ब द हमर एकर न यक सन्द्तो आ सुतिी (िजौली)क कम्युवनस्ट
106 ||गजेन्र ठाकुर

ने त सन्द्तु महतो मे स म्य भे टल। सन्द्तु महतो िजौली क्षे िक उदीयम न ने त


िल ह। लोकछप्रय से हो। हम पुित्रलयवन, "भ इ! अह ां क न टकक न यक
हमर ग म लग सुतिीक सन्द्तु महतोक चररिसां ब़ि मे ल ि इए। की हुनके
अह ां एवह न टकक न यक बनौत्रलयवन अछि?"

ओ मुस्स्कआइत ब जल रहछथ, "जां हां कही, तां ?"

"तां की? कोनो हजश नवह।"

एवह पर ओ ब जल रहछथ जे ओ हमर नीक आ प्रछतबद्ध लोक लगै त िछथ।


एहन लोकक ब त सम ज लग अयब क च ही। हमर सभकें अपन न यककें
छचन्द्हक च ही। अपन लोककें पवहने अपने लोक नवह छचन्द्हतै , तां आन कोन
छचन्द्हतै ?

ओ अपन क य शलयी क जसां टू र पर रहै त िल ह, तिनो मै छथली आ


कण शमृत हुनक सां गे रहै त िल। एकबे रक सां दभश जे ओ कहलवन, से अछि -
ओ विश ि पट्टनम (प्र य:) गे ल रहछथ। आवफसक क जक ब द घुरैत क ल
कोनो मोहहल क एकट घरक गे ट पर ने मप्ले ट दे िलवन। ओवह पर कोनो
'झ ' त्रलिल िल। ओ सोचलवन, ई अबस्से मै छथली होयत ह। वबनु पररचयक
हुनक ओवहठ म पहुां छच गे ल ह। एकट कन्द्य बहरयलीह। हुनक मै छथलीमे
गृहपछतक म दे पुिलवन, तां ओ एवह तरहें भीतर चत्रल गे त्रल जे न वहनक ब त
बुझनवह ने होछथन। र जनन्द्दन ल ल जी चुपच प ठ ढ़ । तिने ओ कन्द्य म यक
सां ग अयलीह, तां अपन पररचय दे लवन। अपन न म कहै त कहलवन जे कण शमृत
पत्रिक क सां प दक िी, छमछथल सां आयल िी, अह ां क गे ट पर न ममे 'झ '
दे िलहुां तां ल गल जे अपन लोक िी, तें भें ट कर' आवब गे लहुां । दुनू म य- िी
हतप्रभ।

गृहपछत घरमे नवह रहछथ। मवहल क कथन नुस र र तुक आठ बजे फेर
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 107

गे ल ह। झ स हे बसां भें ट कयलवन। गपसप कयलवन आ हुनक पत्रिक क


ग्र हक बन दे लवन।

कण शमृतक प्रच र-प्रस र आ सां च लन ले ल ओ एहन क ज वित्रभन्द्न शहरमे


करछथ। पवहल बे र बे गूसर य अयल ह तां कहलवन जे चलू , ररफ इनरी
ट उनत्रशपमे बहुत मै छथल िछथ। अह ां क पररचयक होयबे करत ह, जां नवहयो
होयत ह तां की हजश? भें टघ ां ट कयल ज य, पररचय कयल ज य। आ से ज छथ,
कण शमृतक ग्र हक बन लै छथ। हमहां सां ग होइयवन। भ ष -से ि क एवह विरल
से िकक प्रय स दे खि हम नतमस्तक भ' ज इ। एिनो भ' ज इत िी।

जे न हमर बुझल अछि, ओ वबह रक कोनो शहरमे ज छथ, तां मै छथलीए


ब जछथ। हुनक सां ग वकिु ठ म हम गे ल रही, कथ -ि त्त शक सां दभशमे, तिन
हम ई अनुभि कयने रही।

आरोप-प्रत्य रोपक सां स्कृछतसां कोनो स वहत्य आ सम ज नवह ब ां चल


अछि, मै छथली स वहत्य आ मै छथल सम ज त वहमे अपि द नवह अछि।
कण शमृत पत्रिक पर आरोप लगलै क जे ई कणश क यस्थक पत्रिक अछि। ई
आरोप एकबे र नवह, बे र-बे र लगलै क। एवह क रणें पत्रिक कें वकिु घ ट से हो
भे लैक। कण शमृत आ र जनन्द्दन भ इक व्यिह र आ क यशत्रशहप हमर ते हन
कवहयो ने ल गल। तथ वप हम पुिने रवहयवन, तां अपन छचरपररछचत मुस्कीक
सां ग कहने रहछथ जे एवह भ्मकें मजणपद्म तोव़ि दे ने िछथन- कण शमृत म ने
क नकें जे अमृत सम न ध्िन्द्य त्मक स्ि द ददअय। कहलवन जे एवह म दे
ब्रह्म नन्द्द ससिंह झ क ले ि से हो कण शमृतक कोनो अां कमे िपल िवन। तिनो
जजनक भ्म हे तवन, से रहवन। हम त वह पर नवह सोचै िी।

कण शमृतमे मै छथलीक प्र य: सभ रचन क रलोकवनकें ि पलवन। रचन


म ां वग-म ां वग क' ि पलवन, तगे द क पोस्टक डश पठ -पठ क'। मै छथलीक
108 ||गजेन्र ठाकुर

ददिां गत रचन क र सभ पर विशे ष ां क से हो बह र कयलवन। त ह सभमे वहनक


सां प दकीय दृछष्ट मोवहत करै त अछि।

र जनन्द्दन भ इ कमशठ लोक िल ह। ठ पहिं-पठ पहिं कह'बल से हो।

एक बे र हुनक कन्द्य क हे तु कथ -ि त शमे हम दुनू गोटें एकट त्रशक्षकक


ओवहठ म गे लहुां । त्रशक्षक महोदय पररचयक क्रममे जिन वहनक ग मक न म
बुझलवन तां बजल ह जे अह ां क ग मक मिुसूदन ब बू हमर ब़ि मदछत कयने
िछथ। जिन हमर नोकरी भे ल तां एवहठ मक लोक हमर ज्ि इने ने कर'
ददअय। मिुसूदन ब बू हमर सभक अछिक री िल ह। ब़ि मदछत कयलवन।
हुनके प्रय सें हम एत' ज्ि इन क' सकलहुां ।

र जनन्द्दन भ इ कहलखिन जे ओ हमर वपत्ती िल ह। अगले -बगल दुनू


गोटे क आां गन अछि।

जिन कथ क गप चललै क तां ओ त्रशक्षक कहलखिन- "यौ ! अह ां क


ग ममे तां हमर ग मसां विय ह-द न होइते ने िै । म वन त्रलअ' जे हम प ां जजक
प त नवहयो म नब, मुद हमर जे ठ ब लक जे लहे ररय सर यमे िछथ, प्र य:
तै य र नवह होयत ह। गृहस्थक ओवहठ म कथ करब ले ल ग ममे पवहल डे ग
प्र य: नवह उठौत ह ओ। आ, आब हम भे लहुां बूढ़। िरक जे ठ भ इ भे ल ह ओ।
आब हुनके सभक जूछत चलतवन ने । तथ वप अह ां सन व्यक्ततत्िक ले ल हम
अपन ददससां कहबवन। इहो कहबवन जे ओ मिुसूदन ब बू अह ां क वपत्ती
होयत ह।"

बूढ़ चुप भ' गे ल ह। त मसे हमर दे ह तन रहल िल। हम वकिु बजब ले ल


भे लहुां , से र जनन्द्दन भ इ बूजझ गे ल ह। ओ नहुएां सां हमर ब ां वह पर थपकी दे लवन
आ बजल ह, "म स्टर स हे ब। अपने क गप हम बुझलहुां । अपन जे ठजनसां नवह
पुछियनु। हमर वपत्ती अपन सहृदयत क क रणें अह ां क मदछत कयने होयत ह।
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 109

स्िज छतक क रणें से हो कयने होछथ। एिवन हमर वपत्ती रवहतछथ तां पित ि
होइतवन जे ज छतकें छचन्द्ह'मे हुनक बुतें ब़िक गलती भ' गे लवन।" हमर
ददस तकैत बजल ह, "चलू प्रदीप। उठू ।"

हम दुनू गोटें वबद भे लहुां । हुनक डे र क क्षे िसां बहर इते भ इ अपन
मुस्कीक सां ग बजल ह, "बुझलहुां प्रदीप! ई ज छत...सभ फस दक जव़ि
होइए..."

हम दे िलहुां जे ओ मुस्स्कय क' अपम न पीवब गे ल ह आ म स्टर स हे बकें


प्र य: म फ क' दे लवन। मुद , हमर सन्द्तु महतोक सां दभशमे हुनक ब त मोन
प़ि' ल गल- "हमर सभकें अपन न यककें छचन्द्हक च ही।"

"मुद कोन छचन्द्हत? आां खि होइ, तिन ने ।"

हम एवह आघ तकें कतोक बरि िरर वबसरर नवह सकलहुां आ ओ एहन-


एहन आघ त सहै त रहल ह आ मुस्स्कय क' ददश पीबै त रहल ह।

-----------

--- बे गूसर य/15 अतटू बर 2021/ विजय दशमी

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


110 ||गजेन्र ठाकुर

अरविन्द ठाकु र

“थचिा-विथचिा” सं प्रदर्शित िोइत मै थिल थप्रथमवटविज्म

मै छथली स वहत्यक विविि रचन आ ओकर रचन क र कें प्रक श मे आनब मे


कलकत्त सां प्रक त्रशत ‘कण शमृत’ पत्रिक क अमुल्य योगद न रहल अछि।
मै छथलीक प्र यः ई एकम ि पत्रिक अछि जे अनिरत तीन दशक सां बे सी
अिछि तक बहर इत रहल अछि आ एकर अवह वनरन्द्तरत क एकम ि श्रे य जां
वकनको िवन त से र जनन्द्दन ल ल द स िछथ।कण शमृत आ कणश गोष्ठी तक
पहुां चए सां पवहने र जनन्द्दन जी छमछथल दशशन आ आिर सां से हो
जु़िल ।पत्रिक प्रक शनक हुनक जजद एहन रहवन जे ओ शुरुआती विरोिक
ब िजूद ज तीय सां गठन सां जु़िब क समझौत से हो कएलवन।तीन दशक सां
बे सी अिछि तक कण शमृतक म ध्यम सां मै छथली पत्रिक प्रक शनक वनरन्द्तरत
क यम र खि र जनन्द्दन जी मै छथली मे एकट इछतह स बनै वनह र अनन्द्य
व्यक्ततत्ि िछथ।अवह म मल मे हुनक कमशठत , हुनक लगन,हुनक पुरुष थश
पर कोनो सां देह नवह कएल ज ए सकैत अछि,ि स तौर पर ई दे िैत जे ओ ने
कोनो शुद्ध स वहत्यक र रहछथ आ ने कोनो मौत्रलक छचन्द्तक।

पत्रिक प्रक शनक अवह क्रम मे ओ सम्प दकीय आ अन्द्य वटप्पणीक म ध्यम
सां जे वकिु कहलवन,से हुनक ‘छचि -विछचि ’ न मक सां ग्रह मे सां कत्रलत भे ल
अछि आ ते कर सां कलन आ सां प दन करवनह र ड प्रेमशां कर ससिंह तवह पर
एकट दीघश आले ि त्रलिने िछथ।सां ग्रहक प्रक शक कणशगोष्ठी अछि,तें एकर
प्रक शकीय मे अजुशनल ल करण से हो अपन लघु वटप्पणी कएने
िछथ।मै छथलीक जे परम्पर रहल अछि,ते कर वनिशहन करै त ले िक आ ओकर
ले िनक प्रशां स करब क क ज अवह दुनू ले िक म ध्यम सां भे ल अछि।

कोनोट मै छथली पोथीक प्रक शन सां अचल-अटल रहवनह र लीकजीिी


विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 111

बौत्रद्धकत क ले ल एते क स मग्री यथे ष्ट अछि।वकऐ त ओसभ पे टे सां पविकए


आएल िछथ आ आब हुनक वकिु पिब क बे गरत बुझ इते नवह िवन।एकरहु
नवह पित । न र ,सम रोह,हु़िदां ग आ चां द -छचट्ठ रत आन्द्दोलनजीिी
बौत्रद्धकत क ले ल त ई सां ग्रह वनत्य प र यण करब योग्य म नल ज ए सकैत
अछि।वकऐ त छमछथल -मै छथल-मै छथलीक प्रपां चियीक म ध्यम सां समय-समय
पर झूठ-स ां च,अद्धशसत्य,िद्म,ि यिीय कहपन ,छमथक आदद-इत्य ददक
सहमे ल सां यत्नपूिशक गिल प्रच र स वहत्य अवह सां ग्रह मे बहुलत सां उपस्स्थत
अछि।ओलोकवन अपन क जक िस्तु एकेठ म प वब सकए िछथ,पवि सकए
िछथ आ वित्रभन्द्न मां डली आ मां च पर एकर बे र-बे र दोहर ए सकए
िछथ।यथ थश,िस्तुसत्य आ स थशकत क आग्रही विश्ले ष्ण त्मक बौत्रद्धकत क
ले ल से हो अवह सां ग्रहक उपस्स्थछत सुविि जनक िै ।एकट िगश-विशे ष द्व र
भ ष कें अपन उपकरण बन ए ओकर म ध्यम सां अपन उपवनिे श स्थ वपत
करब क ,अपन िचशस्िि दी सां स्कृछत कें सिशह र क बहुमत पर ल दब क जे
प्रय स दीघशक ल सां चलै त आवब रहल िै ,ते कर प्र यः समग्र दस्त िे ज
र जनन्द्दन ल ल द स जीक अवह सां ग्रह मे उपस्स्थत िै ।प्रगछतशील बौत्रद्धकत
अपन अन्द्िेषण,अपन त र्किंकत क िू री-चतकू सां एकर चीरफ ़ि कए सकैत
अछि।

पखिमी मह युद्धक ब द ओतहुक बौत्रद्धक जगत मे एकट िै च ररक हि बहल


रहए,जवह मे अवह ब तक िक लत कएल ज इत रहए जे सभ्यत ददस अग्रसर
हएबे गलत अछि,बे ज य अछि आ सभ्यत हीन आददम मनुष्यलोकवन सां
आि त्रसत अां चल/क्षे ि मे ज ए नुक एबवह ि णक एकम ि रस्त अछि।प िू
ददस घुरर जएब कें श्रे यस्कर म नवनह र अवह पां थ/विच र कें
छप्रछमवटविज्म (primitivism) कहल गे ल रहए,जे कर मै छथली मे
आददमि द ि प्र चीनि द कवह सकए िी।ई पां थ त पखिमी मह युद्धक ब द
अस्स्तत्ि मे आएल रहए,वकन्द्तु मै छथलीक श श्वत प्रछत-वक्रय -पां थीलोकवन
112 ||गजेन्र ठाकुर

द्व र अवह ‘छप्रछमवटविज्म’ कें सिशक लीन सिशश्रेष्ठ मां ि म वन ले ल गे ल


अछि। ‘छचि -विछचि ’ अवह मै छथल छप्रछमवटविज्मक त्रलखित दस्त िे ज अछि।

एन नवह िै जे र जनन्द्दन ल ल द स कें तीरभुक्ततक स म जजक


सां रचन ,ओकर जीिन-पद्धछत,ओकर लोक च र आ भ ष -सां स्कृछतक यथ थशक
भ न नवह िवन। अवह सां ग्रहक अने क आले ि मे हुनक ई समझ सोझ ां आबै त
अछि आ फररच्छ भए कए आबै त अछि।वकन्द्तु हुनक अवह समझ पर
आन्द्दोलनजीवित क भ्मज ल ते न कए ह िी भए ज इत अछि जे वनष्कषश पर
पहुां चए सां पवहनवह हुनक ले िन भुतल ए कए ओझर ए ज इत अछि। अवह
भ् मकत क क रण कलकत्त क प्रि सी म नत्रसकत मे िोजल ज ए सकैत
अछि।कलकत्त गे ल छतरहुत क्षे िक सिशह र कें अपन मे हनत-मजूरी पर भरोस
रहए आ ओ अपन श्रमक बल पर अपन रोजी-रोटीक जोग र करए मे सक्षम
रहल। वनष्ठ पूिशक िटै त रहल आ तवह सां जे भे टल,ते कर पे ट मे र खि
वनखिन्द्तत क नींद सुतैत रहल। ई सुि वकन्द्तु अत्रभज त्य प्रि सीलोकवन कें
नसीब नवह भे लवन।ओसभ असुरक्ष क भ ि सां ग्रत्रसत त भे बे कएल ,अपन
श्रे ष्टत क प्रदशशन ले ल सदै ि व्य कुलत सां भरल रहल ।एकरे पररण मस्िरूप
ओतय छमछथल क पररकहपन िै च ररक अस्स्तत्ि मे आएल।एकर म ध्यम सां
ओलोकवन सां गदठत त भे बे कएल , बां ग लीसभक बीच हुनकरसभक पहच न
से हो बनलवन।एक बे र ई पहच न बनल क ब द वकिु ि स िगशक िचशस्िि दी
म नत्रसकत जोर म रए ल गल आ अपन जन्द्मस्थ नवह जक ां कलकत्त क
सम ज मे से हो अपन जन्द्मन -कुलीनत क स्थ पन क स्िप्न दे िए लगल ।
कलकत्त क समय-समय पर बनै त-टु टैत सां गठनसभ एकर प्रम ण
अछि।कलकत्तो मे िएहसभ कठिे ल चललए जे छतरहुत मे चलै त रहल
रहए।गै रमै छथललोकवन पर अपन िचशस्ि स्थ वपत करब क ले ल जे प्रोपगां ड क
त्रसलत्रसल चलल,ते कर प्रभ ि मे लक्ष्य-ज छत त अएबे केलए,एकर
रचछयत लोकवन से हो एकर दुष्प्रभ ि सां नवह बछच सकल ।झूठ जिवन बे र-बे र
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 113

अनिरत रूप सां दोहर एल ज इ िै त एकट ि स अिछिक ब द ओ सत्यक


भ्म भ स ददअए ल गए िै आ एकर उत्प दक आ उपभोतत दुनू एकर त्रशक र
बनै त अछि।ई कलकत्त मे भे लए आ एकर प्रभ ि ओतय रहवनह र आन
रचन क रलोकवनक सां ग-सां ग र जनन्द्दन जी पर स्ि भ विक रूप सां
प़िलवन।‘छचि -विछचि ’क आले ि-वटप्पणी आदद मे अवह कुप्रभ िक प्रभ ि
दे िल ज ए सकैत अछि।

एकर उद हरणक क्रम अवह पोथीक प्रथमवह आले ि सां शुरू भए ज इत अछि।
अवह आले ि मे ओ मै छथलीक भ ष -शै ली पर गां भीरत सां छचन्न्द्तत दे ि इ िछथ
आ अवह पर विच रणक क्रम मे वित्रभन्द्न वबन्द्दूसभ कें िु बए िछथ।
आले ि 1967क अछि,तें समय कें दे िैत अवह मे नित म नल ज ए सकैत
अछि,नवह त ईसभ बे र-बे र दोहर एल गे ल गपसभ िै ।ओ म नए िछथ जे अवह
भ ष क दू रूप अछि – एक सां स्कृत वनष्ठ पररम र्जिंत मै छथली जे ब बू-भै य
ब जए िछथ आ दोसर जन-बोवनह र लोकवनक ि ां टी मै छथली।ई ब बू-भै य
लोकवन के िछथ,से ओ स्पष्ट नवह कएने िछथ।वकन्द्तु अवह आले ि समे त
सम्पूणश सां कलन मे जवह तरहें अनवगनत बे र ‘छमछथल ’ शब्दक प्रयोग भे ल
अछि,तवह सां अनुम न लग एल ज ए सकैत अछि जे ‘ब बू-भै य ’ सां हुनक
अत्रभप्र य मै छथल ब्र ह्मण आ कणश क यस्थवह सां िवन। आम स म जजक
स्थ पन मे र जपूत,भुछमह र ब्र ह्मण आ अम्बष्ट क यस्थ से हो ‘ब बू-भै य ’क
श्रे णी मे आबए िछथ। हुनकर सभक भ ष कोन रूपक अन्द्तगशत आबै त
अछि? ब बू भै य आ जन बोवनह र सां अलग एकट िजणक-सम ज से हो
िै ,ओसभ की ब जए िछथ?स्पष्ट िै जे अवह रूप-विभ जन मे र जनन्द्दन जी
सां चूक भे ल िवन आ ओ आन्द्दोलनजीिी मै छथल आां खि सां एतहुक स म जजक
सां रचन कें दे िलवन अछि।इएह दृछष्ट-भ्म िै जे सां बांछित आले ि मे हुनक
भ ष इ एकरूपत क सन्द्दभश मे कोनो स्पष्ट क यशक्रम ि सुझ ि दे बए मे अक्षम
कएलकवन अछि। आले िक अां त मे ओ आरोप लगबए िछथ जे ‘मै छथलीक
114 ||गजेन्र ठाकुर

विरुद्ध मे वहन्द्दीक अ़िख्स अां वगक आ बल्ज्जक कें गवि कए ठ ि कएल


अछि’।एहन आरोप विकट अछि आ वनस्सां कोच ह स्य स्पदत क श्रे णी मे र खि
दे ल जे ब क जोगर अछि।कोय मुिशवह अवह ब त पर विश्व स कए सकैत अछि
जे एहनो कोनो िीर-पुांगि जनम ले ने िछथ जे दू-दू ट भ ष गविकए ठ ि
करब क उद्योग कए सकैत अछि। अवह आले िक सम पन ओ अवह आह्व न
सां करए िछथ जे ‘मै छथलीक विद्व नलोकवनक ई कतशव्य छथकवन जे मै छथली
भ ष क मौत्रलकत क रक्ष करै त एहन शै लीक प्रच र करछथ ज वह सां मै छथली
ने प ल सां सां थ लपरगन िरर आ चम्प रण सां पुरवनय िरर जनछप्रय स वहत्त्यक
भ ष बवन सकै,सां गवह आन सम जक ले ल सरल तथ आकषशक बन यब से हो
जरूरी’।ई अद्भत
ु आ भयां कर विरोि भ सी ददि स्िप्न अछि। अवह एकट
पां क्तत सां अने क ने क प्रश्न उदठ ठ ि होइत अछि। ‘मै छथलीक मौत्रलकत ’ की
छिअए? एहन विद्व नलोकवन कोन लोक सां अितररत हे त ? ने प ल सां
सां थ लपरगन आ चम्प रण सां पुरवनय बल भौगोत्रलक क्षे ि कोन ग्रह पर
अिस्स्थत िै ? ई ‘आन सम ज’ कोन सम ज छिअए? ‘सरल आ आकषशक’क
कोन पररभ ष िै ? एहन-एहन अने क ने क प्रश्नबल ई आह्व न शुद्ध वकत बी
िै ।मै छथली भ ष क स वहत्य अक दे मीय इछतह स अवह ब तक स क्षी िै जे
मै छथली सां प्र प्त सभट आमदनी एक ज छत-विशे षक झो़ि मे ज इत रहल
अछि। वहनकरसभक िश चलए त मै छथली कें अपन टोल तक सीछमत कए
ले त ।एकर क्षे िफल बि ए कए द िे द रसभक सां ख्य वकऐ
बिएत ? क्षे िफल बि एब न र ब जी छथक,प्रपां च छथक,िोि छथक आ
क्षे िफल घ ें कच एब ि स्तविकत । न र ब जजए करब क अछि त एहन सां कोच
वकऐ? एकर कश्मीर सां कन्द्य कुम री आ ददहली सां भ य क ठम ण्डू होइत
छतब्बत आ चीन तक लए ज ऊ! ईसभ गप र जनन्द्दन जी कें नवह बुझल
िवन,से ब त नवह। अवह सां ग्रहक वित्रभन्द्न आले ि मे ई ब त सभ दबलवह स्िर
मे ,वकन्द्तु उपस्स्थत अछि।ई अलग ब त जे हुनक म नस पर छमछथल -मै छथलक
प्रोपगण्ड स वहत्यक ते हन प्रभ ि िवन जे ई सभ ब त ओकर प्रभ ि मे दवब
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 115

कए मौन भए ज इत अछि। हुनकर ले िन आन्द्दोलनजीवित आ मै छथलि द


कें भने शक्तत दै त हुअए स वहत्यक ले ल नुकस नदे ह भए ज इत अछि।

‘भ रतीय जनतां ि आ मै छथली’ शीषशक आले ि मे ओ 1940क एकट


घटन क चच श करए िछथ। हुनक अनुस र वबह र सरक र द्व र गदठत प्र थछमक
त्रशक्ष व्यिस्थ क पुनगशठन ले ल बन एल गे ल सछमछतक सदस्य अमरन थ झ
मै छथली कें छमछथल ां चल मे प्र थछमक त्रशक्ष क म ध्यम बनै ब क म ां ग कएने
िल जे कर नक रर दे ल गे ल। अवह पर र जनन्द्दन जीक शब्द िवन—‘एवह
म ां ग पर सछमछतक अन्द्य िररष्ठ सदस्य लोकवन कोनो ध्य न नवह दए आस नी
सां ट रर दे लवन।क रण बूझल िलवन जे ॠवष मुवनक सां त न मै छथल लोकवन
अपन अछिक रक रक्ष करब मे पूणश अक्षम िछथ’। अवहन ‘वबसरल नवह
ज इि’ मे हुनक उद्ग र िवन – ‘म ि दे खि कए आ दही ि य कए य ि करब
छमछथल क स ां स्कृछतक परम्पर छथक।मै छथल सां स्क र।‘ स्पष्ट करब क बे गरत
नवह जे र जनन्द्दन जी मै छथल केकर म नए िछथ। अवह श्रे णी मे गै र ॠवष-
मुवनक सां त न (जे कर ॠवष-मुवनक सां त नलोकवन द्व र
च ण्ड ल,शुर,सोहहकन,र ़ि,न न्द्ह ज छत आदद-आदद सम्बोिन सां विभुवषत
कएल ज इत रहल अछि) नवह िछथ आ सएह यथ थशहु िै । अवह यथ थशक भ न
होइतहु,त्रलखित रूप मे स्िीक र कररतहु र जनन्द्दन जी अपन आन-आन ले ि
मे एकट मृत-र ज्यक क हपवनक क्षे ि मे रहवनह र समग्र जन-समुद य कें
मै छथल कवह ओकर सभ कें भ्छमत करब क अपर िक सहकमी होइ िछथ त
ई कोनो गुप्त एजें ड क ले ल जते क उपयोगी हुअए, ‘सवहतस्य भ ि
स वहत्यम’ ले ल बहुत दुिद आ अस्िीक यश। अवह आरोप सां हुनकर बरी
हएब क एकवह ट उप य बचै त अछि जे छचि -विछचि मे सां कत्रलत ले िन कें
स वहत्यक श्रे णी मे नवह र खि,प्रच र-स वहत्यक (propaganda
literature) श्रे णी मे र खि दे ल ज इ।
116 ||गजेन्र ठाकुर

कलकत्त क मनोविज्ञ न ददआ एकट ब त मशहर िै जे एतहुक रहि सी अपन


सभट दुि,अपन समग्र समस्य क सम ि न/वनद न स म्यि द मे दे िैत रहल
अछि। स्ि भ विक जे ओतय अपन वनयोजन थश गे ल लोकहु पर एकर प्रभ ि
प़िल।मूल बां ग ली कलकछतय ले ल ई मनोविज्ञ न स्ि भ विक रहए वकन्द्तु
प्रि सीसभक ले ल ई शि ि मजबूरी जक ां रहल,तें ई एकदम ओिल जक ां —
सुविि नुस र ओिी,असुविि हुअए त उत रर दी। अहुन पुरोवहती सां स्क रक
लोक ले ल ि मपां थी हएब प्र यः असां भि जक ां म नल ज इत अछि। र जनन्द्दन
जीक जीिनी कहै त अछि जे ओ 1967 तक सीपीआईक क डश -होहडर
रहल ।वकन्द्तु ‘छचि -विछचि ’क एकहु ट आले ि मे हुनक ि मपां थी रूपक
दरस नवह होइत अछि।एन बुझ इत अछि जे रोजग रजवनत पररस्स्थछत आ
मै छथलि दी तत्िक सां गछतक प्रभ ि मे हुनक त्रशक्ष आ िै च ररकत ि उर भए
गे लवन। हुनक ले िन मे व्यतत विच रसभ शुद्ध रूप सां परम्पर ि दी आ
कमशक ां डीय स्थ पन सभक पुछष्ट म ि करै त चलै त अछि। अमरक न्द्त झ होछथ
ि आन कोनो झ -ि दक प्रितत ,छतनकरसभक स्थ पन कें ि मपां थक
द्वन्द्द्वि द पर परिब क कोनोट प्रय स हुनक ले िन मे नवह दे ि इत
अछि।मै छथली कें मै छथल आ छमछथल क सां ग स वट कए जे म य िी प्रपां चज ल
पस रल गे ल अछि,ते कर ओ शब्दसः स्िीक र कए ले ने बुझ इ िछथ।शां क
करब,विश्ले षण करब आ तवह सां सत्य कें ब हर करब,तवह
प्रगछति दी,िै ज्ञ वनक बौत्रद्धक श्रमक बे गरत हुनक नवह बुझ एल िवन।एन
बुझ इत अछि जे हुनक ई त बुझ इए गे ल रहवन जे अतीति द आ प्रगछति द
कें एकवह सां ग स िब हुनक बुत्त क ब त नवह िवन आ कोनो मृतयुगक कोनो
कहपन कें अजुक युग मे स क र करब क स्िप्न दे िब,तवह ले ल हले लेले
करब क कमशक ां डीय िे लौर करब आिुवनकत क ले ल ह स्य स्पद अछि।ई
बुजझतहु ओ आिुवनक हे ब क सत्ती पुर तनपां थी हे ब क म गश चुनलवन जे
कलकत्त क अछिक ां श प्रि सी द्व र चुनल गे ल िल आ जे कलकत्त क तवह
क लक मै छथलि द कें आर्थिंक सम्पन्द्नत सां दहोबोर से हो करै त
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 117

रहए।दुवनय द र लोक सदै ि बहुमतक सां ग रहब क सुविि जनक म गश चुनए


िछथ,र जनन्द्दन जी से हो चुनलवन।सिशह र क सां ग दे ब,ओकर सां ग सम नत क
व्यिह र करै त ओकर अपन पथक सहय िी बन एब एकट दीघश आ
श्रमस ध्य प्रवक्रय िै ,जे आश्रय आ सुविि भोगी समुद य कें कवहयो पत्रसन्द्न
नवह भे ल अछि।तें र जनन्द्दन जी पवहने मै छथल मह सभ आ अां ततः कणश
क यस्थक ज तीय सभ ददस घुरर जएब क सुगम आ सरल म गश चुवन ले लवन।
अवह ले ल हुनक दोषहु नवह दे ल ज ए सकैत अछि।एहने ि त िरण रहए,िै ।
इएह चहुददस होइत रहए,भए रहल िै ।

अचरजक गप िै जे ‘परम्पर क त्रसतकव़िमे कणशक यस्थ’ सन विरोही ते िर


आ प्रगछतशील चे तन सां आप्ल वित ले ि त्रलिवनह र र जनन्द्दन जीक समग्र
ले िन एन अिोमुि वकऐ भे ल! अवह आले ि मे र जनन्द्दन जीक ले िनी
सि शछिक उन्द्मुतत,लक्ष्य-वबन्द्दू पर केखन्द्रत आ वनष्ठुर आलोचन क सां ग प्रगट
भे ल अछि।एतय हुनक ज छत-व्यिस्थ क कुचक्र,पुरोवहति द सां भे ल
स म जजक क्षछत आदद िूब फररच्छ भए कए दे ि इ प़िलवन अछि। अवह
आले ि मे ओ पुरोवहति द आ पां जी-प्रबन्द्ि व्यिस्थ कें नीक जक ां बे नांगन
करए िछथ।रम न थ झ क उक्तत ‘सभी िां श ें में कलां क है ,जो प ां जज के रूप में
व्यक्ततय ें के स थ लगे हैं । अतएि पां जी क गौरि करन अज्ञ नत है ’ कें
उद्धतृ करै त हुनक आलोचक अपन आक्र मक प्रिरत क सां ग प्रबल भे ल
अछि। ‘कणशक यस्थ लोकवन सां स्कृतक विद्व न होइत िल ह,मुद
पुरोवहति दक आग ां हुनक लोकवन कें कोनो स्थ न नवह
भे टलवन।र जदरब रक र जपां वडत तां ब्र ह्मणे भए सकैत िल ह च हे हुनक सां
अछिक योग्य कोनो कणशक यस्थ वकएक ने होछथ’, ‘पुरोवहति दक दोषपूणश
प्रभ ि सां एिनो कणशक यस्थ लोकवन मुतत नवह भे ल ह अछि’, ‘श्र द्ध आदद
मे द न दजक्षण क परम्पर एक िकोसल म ि छथक।ई सब सां पै घ हछथय र
रहल अछि कणशक यस्थक आर्थिंक शोषणक’, ‘कणशक यस्थ सम ज ब्र ह्मणे
118 ||गजेन्र ठाकुर

जक ां पां जीप्रथ क ओझर हवट मे पव़ि गे ल।पां जीप्रथ क द्व र ब्र ह्मण एिां
कणशक यस्थ मे ज छतगत शुद्धत कें अक्षु ण्ण रिब क ले ल एिां विदे शी प्रभ ि
सां बचे ब क असफल प्रय स कएल गे ल।क रण वहन्द्दूक एहन कोनो ज छत
नवह,ज वह मे विदे शी छमश्रण समय-समय पर नवह भे ल हो’ , ‘कणशक यस्थ
लोकवन श्रमक महत्ि कें बुझछथ,पुरोवहति दक कुचक्र सां अपन कें मुतत
करछथ,ज वह सां व्यक्ततक आर्थिंक विपन्द्नत उत्पन्द्न होइत िै क’ – ई सभ
पां क्तत अही आले िक अछि आ से कोनो उद्धरण नवह,र जनन्द्दन जीक अपन
विच र िवन। अचरज होइत अछि जे आन्द्दोलनजीिी मै छथलि दक पक्ष मे
ज इतवह र जनन्द्दन जीक ज तीय ि व्यक्ततगत विश्ले षण त्मक
बुत्रद्ध,सत्य न्द्िेषण िृत्रत्त आ प्रगछतशीलत कतय अलोवपत भए ज इ
िवन,छमछथल -मै छथल ददस ज इतवह ओ पुरोवहती म य ज लक ओझरी मे वकऐ
ओझर ए ज इ िछथ।ई समझ सां ब हरक गप अछि जे जे व्यक्तत अपन ज छतक
लोक कें अतीत आ पुरोवहति द सां मुतत भए आिुवनक आ प्रगछतशील हे ब क
आह्व न कए रहल अछि,िएह व्यक्तत अपन समग्र ले िन मे बे र-बे र आन लोक-
सम ज कें अतीतक कोनो छमथकीय िोह मे घुरर कए सखन्द्हआए जएब क आ
पुरोवहती प्रपां च मे फांत्रस जएब क ललक र केन दए सकैत
अछि,अतीतजीवित क पै रोक री केन कए सकैत अछि?भोल ल ल द स पर
त्रलिै त ‘पुरन सां स्क र आ कुरीछतक भ र सां सम जक जजशर हएब आ
कुहरब क’ चच श करवनह र आन ठ म इएह सां स्क र आ कुरीछतसभ कें भ ष क
अि मे आिुवनक युग,आिुवनक पीिी पर ल िब क अनुशांस केन कए सकैत
अछि?

‘कणशक यस्थ मे विि हक समस्य ’ मे ओ ‘इछतह स गि ही अछि जे छमछथल


वकऐक सां पूणश भ रतक कोनो ज छत सुच्च नवह अछि’, ’क यस्थ सम ज
मूलतः बुत्रद्धजीिी होइतहु आइ बीसम शत ब्दीक उत्तर द्धश मे से हो मध्ययुगीन
ि रण तथ कुसां स्क र सां मुतत नवह भए रहल अछि’, ‘परम्पर गत मध्ययुगीन

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