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विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 49

चन्रे श

मै थिल शशरोमजर् राजनन्दन लालदास


50 ||गजेन्र ठाकुर
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 51
52 ||गजेन्र ठाकुर
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 53
54 ||गजेन्र ठाकुर
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 55

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56 ||गजेन्र ठाकुर

जजते न्र नाि दत्त

सं स्मरर्- माछक रस

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विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 57

कंचन कण्ठ

आदरर्ीय श्री राजनं दन लाल दास

श्री र जनां दन द स सदै ि आदरणीय व्यक्ततत्ि िछथ। बहुत र स िन्द्यि द दै


छियवन *विदे ह पत्रिक * केँ वक एहन उत्तम विच र ओ क यश के सां पन्द्न
करयकेँ बी़ि उठौलवन। त ह सँ बे शी वक हमर हुनक ब रे मे वकिु त्रलिब क
सुअिसर दे लवन! ह ल ँ वक हम अपन मे कोनो एहन गुण नवह बुझैत िी वक
एहन विश ल व्यक्ततत्ि के बि न क सकी! आदरणीय श्री द सजीकेँ जते क
अनुभि िखन्द्ह ओते क त हमर उमररयो नवह अछि। तथ वप एवहमे वकिु िुवट;
जे हे बे करतै , तकर अपने सभ हमर अछतउत्स ह एिां अनत्रभज्ञत बुजझ क्षम
करब।हम बचपनसँ प प क मुँहेँ सददिन आदरणीय च च जी क चच श सुनैत
रहलहुँ । ओ बर बरर बतबै त रहल ह वक श्री द स जी एकदम *श्री रविन्द्र न थ*
के *एकल चलो* के त्रसद्ध ां त पर िछथ। *कण शमृत* मे पुज्य प प के
आले ि सभ अबै त रहलखन्द्ह।2012 ईमे मुांबई कणशगोष्ठीक पै त लीसम िषशग ां ठ
पर सम्म न सम रोह आयोजजत भे ल ज वहमे *श्री र जनां दन ल ल द स*,
*श्रीमती शे फ त्रलक िम श* एिां हमर वपत *ड वनत्य नन्द्द ल ल द स* केँ
सम्म वनत कएल गे ल! पु प प हमर ओवहठ म शे फ त्रलक आां टीसँ भेँ ट
करौलवन,मुद च च जी अपन स्िस्र्थयसां बांिी परे श नीसँ नवह आवब सकल ह!
हमर दुभ शग्य वक हम हुनकर दशशन-स न्न्द्नध्य नवह प्र प्त कए सकलहुँ । ओतहु
हम आदरणीय शे फ त्रलक आां टी ओ प प क सां ग सम रोहमे ितत सभकेँ
आदरणीय च च जीक ब रे मे उद्ग र सुवन अत्रभभूत भऽ गे लहुँ ।

ओ लोककल्य णक री क यश ले ल सददिन प्रयत्नशील रहै त िछथ; विशे षकर


छमछथल -मै छथलीक ले ल! हुनक क यशक्षेि क ब रे मे कवह त ओ *सां तो* आ
*छचि विछचि * आदद कयै क गोट पोथी त्रलिलवन अछि ज वह मे *सां तो*
के तऽ कते को बे रर मां चन भ' चुकल अने क ठ म!
58 ||गजेन्र ठाकुर

हुनक आलोचन तीक्ष्ण होइतहुँ कल्य णक री होइत िखन्द्ह।अपन सां प दकीय


द्व र दे श दुवनय के स्स्थछत पररस्स्थछतकेँ ब रे में पै नी नजरर रिै त िछथ। आ
समय समय पर ओकर अत्रभव्यक्तत प्रद न करै त िखन्द्ह। छमछथल -मै छथलीक
ओ समर्पिंत क यशकत श रहल ह अछि! त वह ले ल ओ र जनीछत, ज छतप ँ छत
सभसँ , कोनो गुटबां दीमें ओझरे ने वबन अपन रस्त चलल ज रहल िछथ।
मै छथलीक सां रक्षण, सां िद्धशन ओ विक सक ले ल ओ तन मन िन सँ एिनहुँ
ल गल िछथ। एवहकेँ सभसँ ब़िक प्रम ण अछि *कण शमृत* िै म त्रसक
पत्रिक , जकर ओ सम जक न्द्यूनतम सहयोगक म ध्यमे लग त र च लीस
िषशसँ वनक त्रल रहल ह! सरक री अथि आन कोनो सहयोग त नगण्ये ! जिन
वक ब़िक ब़िक पस्ब्लकेशन ह उस सभ तरह - तरहक समस्य क क रणेँ य
तऽ समझौत कऽ ले लक य सम प्त भऽ गे ल! एवह पत्रिक में हुनकर
सां प दकीय,आ समय - समय पर त्रभन्द्न आले ि सभ हुनक तीक्ष्ण दृछष्टक
पररच यक अछि। कण शमृतक श रदीय अां क भव्य होइत अछि; जकर सुछि
प ठक सभ व्यग्रत सँ प्रतीक्ष करै त िछथ। एवह पत्रिक में जतय िररष्ठ
स वहत्यक र सभक आले ि भे टैत अछि; ओतवह नितुररय सभकेँ से हो
पय शप्त स्थ न भे टैत अछि।

कते क बे र हुनकर आलोचन कएल गे ल की वकिु हहलुक रचन सभके से हो


स्थ न भे ट ज इि। मुद त वह सँ विचत्रलत भे ने वबन ओ अपन दृछष्टकोण रिै त
िछथ, की त्रलिै -िपै सँ नितुररय सभ उत्स वहत हे त ह तिनवह ओ आगू
सुि रक ले ल अग्रसर हे त ह! अन्द्यथ त्रलिबे िोव़ि दे त ह - ई हुनकर
ि त्सल्यसँ भरल प्रोत्स हन आ दूरदृछष्टए कहल ज सकैि, मै छथली के प्रच र-
प्रस र के ले ल; जे आइक पररदृश्यमे अत्यां त समीचीन अछि।

हमर सन कते क ले िक-ले खिक के ओ एवहन पीठ ठोवककय बढ़ ि दे लवन!


हमर पवहल रचन दूगोट लघुकथ *लघुकथ विशे ष ां क*मे स्थ न पओलक !
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 59

त वह सँ आत्मविश्व स प्रबल भे ल।

*कण शमृत* में समय नुस र सभ विषय के समे वकत स्थ न भे टल अछि। च हे
ओ स्िी विमशश हो ि वक ददिां गत स वहत्त्यक व्यक्ततत्ि सभसँ सां बांछित
विशे ष ां क! ओ अने क ने क मै छथली सां ग सां बद्ध आयोजन सभक अध्यक्षत क
चुकल ह। मै छथली के दश ददश आ उत्थ न-पतनक ओ एकट सशतत गि ह
िछथ।

ओ बतबै त िछथ वक मै छथली के सां विि नमे स्थ न ददय बय ले ल आदरणीय


मजणपद्म जी प्रथम प्रि नमां िी श्री ने हरू के आग ँ वनरां तर ि र प्रि ह मै छथलीक
समृद्ध् अतीत, पौर जणकत , आजुक समयमे उपयोवगत ,ओवह क्षे िमे
सि शछिक ब दल ज यबल बोली अछि-- आददक ब रे में अपन ब त अां ग्रेजीमे
रिल ह! जे सुवन प्रथम प्रि नमां िी सन्द्न रवह गे ल ह आ मै छथलीके सां विि नमे
स्थ न भे टल।

आगू श्री मजणपद्म जीक वनश्िल व्यक्ततत्िक ब रे मे , हुनकर कल -


कल क रक,मवहल क प्रछत दृछष्टकोणक चच श करै त ओ एक घटन क उहले ि
करै त िछथ: जिन #कण शमृतक अां क ओ श्री मजणपद्म के दे िौलवन तऽ ओ
मुिपृष्ठ के छमछथल पें पटिंग सँ चवकत रवह गे ल ह!

हुनक पत चललवन वक कल क र र ँ टी ग मक बे टी श्रीमती सुनांद चौिरी,


जजनक स सुर र मपट्टी िखन्द्ह; ओ कलकत्ते मे रहै त िछथ, तऽ ओ भें ट करब क
इच्छ व्यतत केलवन। श्री द सजी श्री मजणपद्म के स्तरके छिय नमे रिै त
कहलखिन, "हम बजब लै छियवन हुनक !"

त वह पर श्री मजणपद्म बजल ह,"ओ मवहल भऽ कऽ आवब सकैत िछथ आ


हम की कल क र सँ भें ट करय नवह ज सकैत िी! चलू ने हमहीं सभ भऽ
आवब!" एकट स क्ष त्क रमे श्री द स जी सँ पुिल गे लवन; "अपने क अां छतम
60 ||गजेन्र ठाकुर

इच्छ की अछि!" हुनकर जि ब िलवन,"हम मजणपद्म जी पर एकट शत ब्दी


अां क वनक लय च है त िी!" आ ओ अपन ई इच्छ सफलत पूिशक 2018 ईमे
पूणश केलवन। छमछथल -मै छथलीक ले ल एवह समपशण केँ हमर नमस्क र,
प्रण म!

एवहन अने क ने क स वहत्यक र, छमछथल छचिकल क र सभकेँ सां बांल दै त


एल ह। पोथीके मुिपृष्ठ पर कते को बे र छमछथल क्षर के स्थ न दे लवन। आ
छमछथल पें पटिंग तऽ रवहते िखन्द्ह। पृष्ठ भ ग पर तऽ छमछथल क्षर िणशम ल सदै ि
विद्यम न रहै ि। पोथी मे वित्रभन्द्न समस मछयक पबिंदू सँ ल कऽ निीन पुर न
स मग्री, मह मन सभक उपलस्ब्ि,अिस न, वित्रभन्द्न तरहक लोकवहतमे
सहयोग करौन य आदद एक एक आिर जे न हुनकर अपन व्यक्ततत्िक स फ
स्िच्छ दपशण प ठककें समक्ष र खि दै त िै क! अपन कष्टक चचिंत कएने वबन
लोकवहत केँ जीिन ि र बने ने चलल ज रहल िछथ। हुनक मिुर स्िभ ि,
आिे श ओ आछतर्थयक ; हमर म ँ श्रीमती म लती द स, जिन चचश करै त िछथ
तऽ एकट म िुयश मुि पर आवब ज इत िखन्द्ह ! च च जी अपने क स्िस्थ रवह
हमर सभक एवहन म गशदशशन करै त रवह आ हम सभ यथ स ध्य एवह क ज के
आगू बढ़ बी तकर ईश्वरसँ क मन !

वनिे ददक : कांचन कांठ, न म: कांचन अरविन्द्द कांठ, प ित : स्न तक

भ ष : पहिंदी, मै छथली, अां ग्रेजी

त्रलवप: दे िन गरी,छमछथल क्षर,रोमन

अत्रभरुछच: ले िन,त्रसल ई कढ़ ई,छमछथल क्षर इन एम्ब्र यडरी,स म जजक


क य ों में रुछच
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 61

सम्म न ि िषश:

#पहिंदी स वहत्य लहर2019

#कृष्ण कलम मां च द्व र िषश 2019ई में

#कणशछप्रय लत्रलत क व्य प्रछतभ सम्म न 2020

ले िन:लघुकथ एिां आले ि प्रक त्रशत:

#समय सां केत#कण शमृत#घरब हर,#जिन-तिन,

#कणशछप्रय#समन्द्िय,# अरुणोदय,#सृजनोन्द्मुि#
सदीन म ,*स्पशश:च तुम शत्रसक पत्रिक *#स ां झ सां ग्रह: िो दे िती र हें ,
#स ां झ सां ग्रह: छमछथल क सां स्कृछत

#स ां झ सां ग्रह: अ स्ब्लसफुल सोल,#ग्र उां ड ररयत्रलटी ऑफ इां वडय ,#समन्द्िय:

#ब्ल गर@bejodindia,

#ब्ल गर@mithilani.in

#विदे ह@videh.in

Mo:-9175059970

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62 ||गजेन्र ठाकुर

लक्ष्मर् झा ’सागर’

राजनन्दन लालदास: एक उदारचे ता सम्पादक


विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 63
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विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 69

रमे श लाल दास


मामा श्री राजनन्दन लाल दास जी
आइ कोलक त स श्री सुिीर भै य क फोन आयल जे कोलक त क मै छथल
सम ज “वबदे ह” मै छथली पत्रिक क आग मी अां क “श्री र जनन्द्दन विशे श ां क”
वनक लय च है त िछथ ज वह में परम पूज्य म म श्री र जनन्द्दन ल ल द स जी
क “मै छथली आां दोलन आ स वहत्त्यक सम्ििशन में योगद न” पर ले ि आमां त्रित
केलवन अछि I हमरो वकिु स ल कोलकत प्रि सक अिसर प्र प्त अछि. श्री
नबो न र यण जी क आदे श अछि जे हमह श्री र जनन्द्दन ल ल द स जी क
व्यक्ततत्ि आ कृछतत्ि पर वकिु त्रलिी. कदठन क यश अछि. हम कोनो
ले िक, कवि, स वहत्यक र नवह िी. पे श स बैं कर िी. कोलकत िो़िन 40
िषश भ गे ल. कते क घटन , सां स्थ क न म, पूज्य मै छथल प्रेमी लोकवनक न म
विस्मरण भ गे ल अछि. तथ वप वकिु प्रय स क रहल िी.
भगिती मै छथलीक अने को सपूत छमछथल मै छथलीक आध्य त्त्मक, स ां स्कृछतक
आ स वहत्त्यक िरोहर आ परम्पर क सां रक्षण, सम्बिशन में अपन योगद न
करै त आयल िछथ I ओही कडी में ितशम न में छमछथल मै छथलीक
उन्द्नयन, स वहत्त्यक सम्ििशन आ मै छथली भ ष क प्रछत स मजजक दृछष्टकोण
में आमूल पररितशनक प्रय स मे परम पूज्य श्री र जनन्द्दन ल ल द स जीक
योगद न सहजवह सब के मोन में अभरै त िखन्द्ह I
सौभ ग्य स हम हुनकर भ वगन छियखन्द्ह I वकिु िषश कोलकत प्रि स में हुनकर
वनकटतम सवनध्य में म म , अत्रभभ िक, गुरु आ छमि रूप् में रह्ब क सौभ ग्य
प्र प्त अछि I सां गवह हमर वकिु बषशक कोलकत प्रि स में म म सां गे मै छथली
सां स्थ सबहक गछतविछि,पुस्तकक प्रक शन, ि र्षिंक सम्मे लन आ सि े परर
पूज्य म म श्री र जनन्द्दन ब बूक बहुआय मी व्यक्ततत्ि के नजदीक स
दे िब क, गुनब क अिसर रहल I
थोरे क प्र रस्म्भक चच श जे करी त म म क जन्द्म पटोरी (सहरस ) आ पै त्रिक
70 ||गजेन्र ठाकुर

ग ि गोनौन, घनश्य मपुर के सभ् ां त सां युतत पररि र में भे लखन्द्ह I गोनौनक
प्रत्रसद्ध दुग श स्थ न म म क पुरि लोकवन द्व र स्थ वपत अछि I आइ जिन
सां युतत पररि र लगभग एक पररकहपन म ि रवह गे ल िै क, हमर मत्रिक
पररि र एिनो सां युतत पररि र िै क. परस्पर प्रेम आ प ररि ररक मय शद
आइयो परम्पर गत िै क जे कर पूनश श्रे य म म श्री र जनां दन ब बू के िखन्द्ह.
समग्र रुपे न पररि र के आपसी प्रेम आ सद्भ िन क सां ग हुनकर ने त्रित्ि
अनुकरनीय िखन्द्ह. अगर सम ज एवह गुणक अनुकरण करय त सम ज में
वनखित प ररि ररक स्ने ह, प्रेम आ सद्भ ि प्रछतस्थ वपत भ ज यत.
प ररि ररक जजम्मे द री वकशोरे िस्थ में आवब गे लखन्द्ह. ओवह क ल में कोलकत
मह नगर रद्योवगक दृष्ट स बर समृद्ध रहै क आ वबह रक लोक के जजविक क
स िन उप्लब्ि हे ब क अिसर भे टैत रहै क. पां डोल ह इ स्कूल स मै वरक प स
केल क ब द म म श्री र जनां दन ब बू कोलकत आवब गे ल ह आ र जें र
ि ि ब स, क ले ज स्रीट में अन्द्य वबह री ि ि सबहक सां ग रहय लगल ह.
ट्यश
ू नक कम इ स विद्य स गर क ले ज में न म त्रलि त्रशक्ष आरम्भ केलखन्द्ह.
कह्ब क आिश्यतत नवह जे एवह में कोनो आर्थिंक सह्जोग पररि रक नवह
िलखन्द्ह. ददन में ट्यूशन, सां ध्य में क ले ज तल स . अथ े प जशनक म ध्यम म ि
ट्यश
ू न ज वह स अपन आ प ररि ररक द छयत्िक दुनूक वनबशहन करै त िल ह.
विद्य स गर क ले जक चप्रिंत्रसपल अत्यां त सविदय आ मे ि िी ि िक परम
वहतै षी आ सह्योगी िल ह. कोलकत विश्वविदय लय स र जनीछत श स्ि मे
एम.ए. वडग्री प्र प्त केल उपर ां त कोलकत विश्वविद्य लय के स्कूल ओफ
वबजजने स मैं नेजमै ट स से हस मै नेजमै ट एां ड म केट रीसचश में वडप्लोम ह त्रसल
केलवन. तुरतवह एक प्रछतछष्ठत वनजी कांस्ितसन इक़ुइप्मेंत कम्पनी में से हस
आवफसरक नौकरी प्र रम्भ केलवन. र जें र ि ि ब स में अछिक ां श मै छथल ि ि
रहै त िल ह. शै तिवनक पररचच शक अछतररतत मै छथली भ ष क उन्द्नयन आ
स म जजक चे तन क विक स पर से हो चच श होइते रहै त िल जे म म श्री
र जनां दन ब बू के छमछथल क सां स्कृछत आ मै छथली भ ष के उन्द्नयन आ
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 71

छमछथल क स म जजक चे तन क विक स हे तु प्रेररत करै त


िलखन्द्ह. छमछथल ां चल में मै छथली लोक भ ष त िल पकिंतु ि रण िलै क जे
ई मै छथल ब्र ह्मण आ कणश क यस्थक भ ष छथक . म म श्री र जनां दन ब बू
मै छथली के ज छतब दी भ ष स्िरूपक सां कीण्त श स उठ के समग्र
छमछथल ां चलक भ ष के रूप मे दे त्रशल बयन के रूप में स्थ वपत करअ च है त
िल ह. मै छथली भ ष क लीवप, व्य करण, समृद्ध सवहत्य आ छमछथल क
समृद्ध स ां स्स्क्रछतक िरोहर के दे िैत एकर ज छतब दी/ िे िब दी बां िन स
मुतत कय के आन भ रतीय भ ष ज ें क र ष्रव्य पी भ ष क रूप में
प्रछतष्ठ , सत्म्िि न के अष्टम सूची में म न्द्यत ददयबै क अकुल हछत विदय में
वहलोर म रै त रहखन्द्ह.
सम ज में सम नत , भ ष आ सां स्कृछत पर सब िगशक सम न अछिक र हे तु
सतत चचिंतनशील रहै त िल ह. सवहत्य सम ज के प्रछतवबन्म्बत करै त िै क.
एकर मध्य में र खि प्रत्रसद्ध न तक “ सां तो “ त्रलिलछथ. एवह में केंर में मुख्य
प ि सां तो महतो के र िल्हिन्द्ह जे ज छतब दी सां कीणशत स पृथक िै क.
छमछथल ां चलक सवहत्त्यक जगत मे एकर बहुत प्रछतष्ठ भेँ टलवह आ एकर
उद रब दी दृछष्टकोण सम ज के एते क प्रभ वित केहकैक जे सम्पूनश
छमछथल ां चल में रर वबत्रभन्द्न शहर में प्रि सी मै छथल सां स्थ सब एकर सफल
मां चन क सम ज में सम नत आ समे वकत आां दोलनक चे तन क सां देश
दे ल्हिन्द्ह. स म जजक चे तन ज छग्रत करब में सां तो न तकक भूछमक सफल
रह्लैक. सन्द्त ें क दोसर अां कक सप्तम वरश्य में आां दोलन ज छत, सम्प्रद य के
पररछि के तोरर के जन स ि रण के आां दोलन बवन गे लैक अछि. एअह त श्री
र जनां दन ब बूक उद्देश्य आ अकुल हछत िखन्द्ह.
हमर व्यक्ततगत विच र अछि जे छमछथल मै छथली के प्रछतछष्ठत करब में प्रि सी
मै छथल सां स्थ सभक भूछमक महत्िपूनश िखन्द्ह त ह में कोलकत क सां स्थ आ
प्रि सी सबवहक योगद न अग्रणी िखन्द्ह. कते क मनीषी पूज्य सिश श्री ब बू
72 ||गजेन्र ठाकुर

स हे ब चौिरी, वपत म्बर प ठक, सत्य न र यण ल ल द स, उददत न र यन


झ , मह िीर झ , गणे श शां कर झ , मदन चौिरी, प्रबोि न र यण ससिंह, नबो
न र यण छमश्र , नरे श झ , दय नां द ठ कुर, ब्रहम नां द झ , र म कृष्ण
ठ कुर , अजुशन ल ल कणश ररो कते क समर्पिंत न म अछि. सां स्थ में आल
इां वडय मै छथल सां घ, छमछथल स ां स्कृछतक पररषद, आदद सां स्थ सवक्रय िल.
ह ि़ि समस्तीपुर रे नक न म छमछथल एतस्प्रेस रख्नन इ, सत्म्िि नक अष्टम
अनुसूछच में मै छथली के शछमल करे ब क जु लूस, मां िी/ मां ि लय सां ग
पि च र, पोस्टर, बै नर आदद कते क गछतविछि सब होइत रहै त िल. एवह सब
में श्री र जनां दन ब बूक सवक्रय भूछमक रहै त िलखन्द्ह.
श्री र जनां दन ब बू आल इां वडय मै छथल सां घक अध्यक्ष , सछचि आदद पद पर
रहै त मै छथली आां दोलन के सफल ने तृत्ि केलखन्द्ह. एकर ि र्षिं क अछििे सन में
मुख्य अछतछथ य मुख्य बतत के रूप में वनखित रूपे ब्र ह्मण क यस्थ स अलग
जे न श्री वबलत प सि न वबहां गम, श्री फज़्लूर रह्म न ह शमी आदद के वनमां त्रित
करै त रस्ह्थन्द्ह. एक अत्रभज त्य बगश स पृथक बगश के मां च पर आमां त्रित आ
सम्म वनत केल स स म जजक सम नत सहजवह प्रभ वित भ मुिर भ ज इक.
समस्त छमछथल ां चल के एक सूि मे समे वकत क लई. मै छथली आ विद्य पछत
वबन बां गल सवहत्य आ पहिंदी सवहत्य दूनू अपूनश अछि. ि र्षिंक सम्मे लन में
बां ग ली विद्व न सब के से हो अमां त्रित करै त रस्ह्थन्द्ह ज वह स बां ग ली विद्व न
सब में मै छथली क प्रछत जजग्य श , ज गरूकत होइत िलखन्द्ह.
मै छथली सवहत्त्यक पिक ररत क्षे ि में छमछथल छमवहरक योगद न
अविस्मर्निंय िै क. छमवहर के बां द भे ल क ब द कते को पत्रिक मै छथत्रल में
वनकलल पकिंतु बहुत ददन तक नवह चत्रल सकल. श्री र जनां दन ब बूक ह र्दिंक
वबच र िलखन्द्ह जे मै छथली में एकट एहन पत्रिक हे ि क च ही जे छमछथल
छमवहर के कमी के भरर सकय. ओ सतत चचिंतनशील रहै त िल ह. आन शहर
जें क कोहकतो में कणश क यस्थक सां स्थ “कणश गोष्ठी कोलकत ” अछि जे कर
सदस्य लोकवन कण शमृत पत्रिक पहिंदी में वनक लै त िल ह. सां योग स
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 73

सम्प दक महोदय के कोलकत स ब हर ज इ परलखन्द्ह आ कण शमृतक


सम्प दनक समस्य सां गवह आग मी अां कक समस्य आवब गे लखन्द्ह. कणश गोष्ठी
कोलकत क सम्प दक श्री र जनां दन ब बू स सम्पकश क कण शमृतक सम्प दन
हे तु वनिे दन केल्हिन्द्ह. श्री र जनां दन ब बू वनिे दन केल्हिन्द्ह जे हम सम्प दनक
भ र स्िीक र करै त िी. पत्रिक क न म कण शमृत रहत पकिंतु भ ष मै छथली
रहत. आइ लगभग 40 िषश स अछिक क ल स कण शमृत वनब शि श्री र जनां दन
ब बूक सम्प दन में वनकत्रल रहल अछि. एवह प्रक रे कण शमृत क यस्थ ज छत
विशे ष आ वहन्द्दीक पररछि स ब हर आवब गे ल आ समस्त
छमछथल ां चलक पत्रिक बवन गे ल. समस्त छमछथल ां चलक सुिी प ठकगण
ग्र हक बवन आ वबद्वत ले िकगण अपन ले ि स पत्रिक के अनुप्र वनत करै त
रहल ह आ कण शमृत वनब शि गछतये बै च ररक क्र ां छत आ आां दोलनक सां ब हक
बवन छमछथल मै छथलीक से ि करै त रहल. कते को बे र श्री र जनां दन ब बू के
सफल सम्प दन आ पिक ररत हे तु वबत्रभन्द्न मै छथली सां स्थ सब पु रस्कृत क
चुकल िखन्द्ह.
श्री र जनां दन ब बूक विद्वत , ओजस्िी ले ि आ कमशठत स प्रभ वित भ
स वहत्य अक दमी वकिु पुस्तकक अां ग्रेजी स पहिंदी मे अनुब द्क द छयत्ि से हो
दे हकखन्द्ह जे कर सफलत पूिक
श वनस्प ददत केलखन्द्ह. वहनकर स वहत्त्यक
योगद न, प्रगछतशील चचिंतन एिम अन्द्य भ रतीय भ श क प्रछत समभ ि
दछॄ ष्टकोण स प्रभ वित भय के स वहत्य एक दमी स वहत्त्यक मीपटिंग
स वहत्त्यक पररचच श आदद में आमां त्रित करै त रहै त िलखन्द्ह.
प्रक शनक क्षे ि में से हो श्री र जनां दन ब बूक योगद न अतुलनीय िखन्द्ह. आल
इां वडय मै छथल सां घ आ कणश गोष्ठी क तत्ि ब्ि न में अने क पुस्तकक प्रकशन
श्री र जनां दन ब बूक वनदे शन में भे ल अछि जवह में ड . ब्रज वकशोर बम श
मवनपद्मक अिशन रीश्वर आ अन्द्य पुस्तक मुख्य अछि. पत्रिक आ स वहत्यक
म केपटिंग आ विक्री महत््पूनश होइत िै क. श्री र जनां दन ब बू कम्पनी क यश स
74 ||गजेन्र ठाकुर

सम्पूनश भ रतक भ्मण करै त िल ह. ज वह शहर में ज छथ ददन में कम्पनीक


प्रोडतट आ सां ध्य में कण शमृत आ प्रक त्रशत पोथीक म केपटिंग आ वबक्री करै त
िल ह. कण शमृत के ग्र हकक कमी कवहयो नई भे लैक. म म कोलकत क
अने क तन्द्स्ितसन इक़ुइप्मेंत कम्पनी मे से हस मै नेजर पद पर क यशरत
रहछथन्द्ह. म केपटिंग अनुभि आ आत्म विस्ि स एते क जे द ब स कहै त
िक्हथन्द्ह ”कोलकत प्रोडतट कांस्ितसन इक़ुइप्मेंत सम्पूनश भ रत में कम्पनी
के ब्र ां ड से नही आर. एल.द स के न म से वबकत है ”. हम अछत विश्व स आ
द ब स कवह सकैत िी जे कण शमृत रर मै छथली स वहत्य श्री र जनां दन ब बू
के सम्पकश स वबकैत िल. से हस में नौकरी सम्पूनश भ रत के भ्मण के सुयोग
दे हकखन्द्ह जे मै छथली आां दोलनक अलि जग बय आ स वहत्य रर पत्रिक क
वबक्री में सब र ज्य आ शहर में सह यक भे लखन्द्ह. एक बे र में एक एक महीन क
दौर रहै त िलखन्द्ह. तूरक क्रम में कोनो र ज्य,कोनो शहर में प्रि सी मै छथल स
सम्पकश करब, मै छथली सवहत्य, पत्रिक क प्रछत रुछच आ प्रेम ज ग्रत करब
वहनकर अजें द में रहै त िलखन्द्ह. कोलकत स ब हर अन्द्य शहर मे कण शमृतक
ग्र हक सां ख्य आ स वहत्यक वबक्री वहनकर अथक पररश्रम के प्रम जणत करै त
अछि. तूर पर ज इ क ल हम ह ि़ि तक ज वबद करै त ित्रलयखन्द्ह आ ि पस
एल पर सम्पूनश य ि छब्रत ां त हमर सां ग शे यर करै त रस्ह्थन्द्ह जे कोन शहर में
वकनक स भें ट भे ल, के सब कण शमृत के ग्र हक बनल रर कते क पोथी
बीकल. अपन कते क म केपटिंग तक्तनक आ अनुभि से हो चच श करै त रहै त
छ्ल ह जे हमर सतत म गश दशशन करै त रहल. उपर हम कवह आयल िी जे श्री
र जनां दन ब बू हमर म म , ग र्जिंयन, मे न्द्टर आ छमि िछथ. एक ब्यक्तत स
म म क स्ने ह, ग र्जिंयनक सख्ती, मे न्द्टरक म गश दशशन आ छमिक अनौपच ररक
िुल पन सब भे टल. हम अपन के िन्द्य म नै त िी जे हम बहु आय मी
ब्यक्ततत्ि ब ल म म क भवगन िी आ वकिु िषश म म क वनकट स वनध्य में
रह्ब क अिसर भे टल. हमर ग्रजुएशनक ब द अपन लग कोलकत बज
ले लखन्द्ह आ हुनकर इतश हमर च टशडश अकॉण्टे ट बने ब क रहखन्द्ह जे कछतपय
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 75

क रण स नवह भ सकल पकिंतु ओ हमर सतत प्रेररत करै त रहल ह आ प्र इिे ट
अथि बैं क के नौकरी मे म गशदशशन करै त रहल ह. श्री र जनां दन ब बूक
आडम्बरहीन वनश्क म,वनष्कलुष भ िे न प्रेममय व्यिह र सबके आकर्षिंत
करै त िलै क. ओ मै छथल, बां ग ली, अफसर सब बगश में सम न रूपे न स्िीकृत
आ प्रछतछष्ठत िल ह.
श्री र जनां दन ब बूक मृदु भ त्रशत , कमशठत कांस्रतशन एतयूपमें ट उद्योगक
विक स में वहनकर योगद न के कोलकत क उद्योगपछत सब स्िीक र कय
कोलकत वबस्हडां ग एसोत्रसएशन क ि इस प्रेत्रसडें टक पद पर सम्म वनत
केहकखन्द्ह.
म म सवक्रय सहभ वगत क ब दो सतत अपन प्रच र प्रस र आ आगू बवढ़ के
कोनो क जक सफलत क श्रे य अपन न मे ले ब क पक्ष में नवह रहै त िछथ. ओ
एकट वनश्क म कमशयोगी िछथ.
म म क ब्यक्ततत्िक बणशन पूजनीय म मीक ब्यक्ततत्िक चच श वबन अपूणश
रवह ज यत आ कचोटै त रहत. एक म ि आयक श्रोत आ विश ल सन्द्युतत
प ररि ररक दछयत्ि . त्रशक्ष , विि ह, बीम री, सर-कुतुम्ब आददक अछतररतत
कोलकत वनि स पर अनवगनत अन्द्य सम्बां िी, छमि लोकवन के क यशिश
आि गमन आ अस्थ यी वनि स. म म क क कुरग िीक वनि स, अने को के
लोकल पत िल आ म म लोकल ग र्जिंयन िल ह से वबन पूजनीय म मी
के सहयोगक सम्भि नवह िल. र म क ल में जे न भगबती सीत अपन अद्म्य
िै यश,स हस आ सां त न वनम शणक सां कहप स र म के मय शद पुरूषोत्तम बन बय
में सह यक रहछथन्द्ह, कृष्ण क ल में जे न भगिती र ि सबके कृष्ण आ
चर चर जगत के प्रेम में सर बोर केने रहछथन्द्ह. कृष्ण क लीन युद्ध, गीत क
ग्य न में कतहु र ि क जजक्र य न म नवह भे टत पकिंतु चर चर प्रेम में र ि वबन
सब बे क र. अगर आध्य त्त्मक दृछष्टकोने दे िी त आनां दमय कोश स उपर र ि
एक अह्ल ददवन शक्तत रूपे ण कृष्ण आ चर चर जगत के प्रेम में सर बोर करय
76 ||गजेन्र ठाकुर

ब ली शक्तत िछथ. तवहन पूजनीय म मी भगिती सीत जे क म म के सब


प ररिररक द छयत्ि आ कतशव्य के वनबशहन में िै यश आ स हस स म म के
मय शद क रक्ष करै त रहक्हथन्द्ह आ भगिती र ि जे क सबके अपन प्रेम स
सर बोर केने रिल्हिन्द्ह. तते क प्रेममय रस्ह्थन्द्ह जे हमर म ँ अपन िोट भ उज
अथ शत म मी के प्रेमस गरर कहै त रस्ह्थन्द्ह. म म अतसर दौर पर ज इते रहै त
िक्हथन्द्ह. म मी िै यश पूिशक असग़र सब बच्च क सां ग कोलकत में
रवह त्रशक्ष , वबम री अन्द्य प ररि ररक समस्य आदद समग्र छग्रहस्ती के वनब शह
करै त म म के उछचत सह्योग दै त रहक्हथन्द्ह. सां योग स आइ हमर म ँ आ म मी
दूनू नवह िछथ. हम दूनू के स दर नमन आ भ िपूणश विनम्र श्रि ां जली अर्पिंत
करै त छियखन्द्ह.
म म क व्यक्ततत्ि के मोन प रै त त्रलिै त हमर ALEXANDER
POPE क कवित “ODE ON SOLITUDE” मोन परै त अछि. ओ बस
अपन पै तृक िन पर सां तुस्त िछथ. कोनो प्रच र प्रस रक कम न रवहत.
अजस्र श ां छत सुिक अनुभि करै त िछथ. जे लोक के मे वडटे शन स भे तैत िै क
से हुनक सहजवह प्र प्त िखन्द्ह . कवित क अां छतम दू स्तें ज

SOUND SLEEP BY NIGHT; STUDY AND EASE;


TOGETHER MIXED; SWEET RECREATION;
AND INNOCENCE; WHICH MOST DOES PLEASE
WITH MEDITATION
THUS LET ME Live UNSEEN UNKNOWN
THUS UNLAMENTED LET ME DIE
STEAL FROM THE WORLD AND NOT A STONE
TELL WHERE I LIE
तवहन म म असगर पररि रक सां च लन, सम ज , क्षे ि, भ ष
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 77

सवहत्यक विक स में सवक्रय सह्भ वगत के ब बजूद कोनो न म यशक क मन


स उपर वनश्क म, केकरो स अपे क्ष नवह, सबके
प्रछत वनश्क म, वनष्कलुष, वनष्पक्ष प्रेम सद्भ ि अपन में सां तुष्ट, मस्त, प्रसन्द्न.
व्यक्ततत्ि बल आिुवनक कमशयोगी िछथ.
आइ पृर्थिी पर स ां स ररक सम्बन्द्ि में म म श्री र जनां दन ब बू हमर सब
स अछिक पूज्य आ छप्रय िछथ आ हम बुझैत छियै क जे हुनको अपन सां त नक
अछतररतत हम सब स छप्रय आ त्रसने ही छियखन्द्ह. मोन करै त अछि जे एिनो
वकिु ओ ददन म म क स वनध्य में रवह हुनकर स वहत्त्यक स म जजक चे तन
के आत्म्स त क सवकतहु से कछतपय प ररि ररक समस्य क क रणे सफल
नवह भ रह ल अछि आ कचोटै त रहै त अछि.
हम अपन परम पूज्य आ परम त्रसने ही म म श्री र जनां दन ब बू के श्री चरण
में शत् शत् प्रण म अर्पिंत करै त छियखन्द्ह आ परम त्म स प्र थशन करै त छियखन्द्ह
जे म म स्िस्थ रहछथ आ हमर सब पर हुनकर आशीि शद वनरां तर बनल रहय.
एिनो मै छथली भ ष आ छमछथल ां चल कते क समस्य स ग्रत्रसत अछि. जे न
मध्य विद्य लय तक म तृभ ष में त्रशक्ष , छमछथल ां चल र ज्य आ कते क
स्थ नीय समस्य . आिश्यकत अछि जे समस्त मै छथल सां कीन्द्त शक पररछि स
ब हर आवब स मे वकत आां दोलन करी. पूज्य श्री र जनां दन ब बूक अस्िस्थत
सां कण शमृतक सम्प दन में ब ि उत्पन्द्न भ रहल अछि. हम विद्व न मै छथल
सम ज स वनिे दन करै त छियखन्द्ह जे कण शमृतक वनब शित के बनौने रहछथ.
हम कृतज्ञ िी श्री नबो न र यण छमश्र जी के जे हमर मोन र िने िछथ
आ आभ री छियखन्द्ह जे पूज्य म म श्री र जनां दन ब बू सन व्यक्ततत्ि के
स बशजवनक करब क प्रय स केलछथ आ हमरो वकिु त्रलिब क अिसर दे लछथ.
कोलकत सम ज स हमर बहुत स्ने ह आ सह्योग भे टल अछि. सबके हमर
प्रण म आ अनन्द्त मां गल क मन .
II ओम् शम II
78 ||गजेन्र ठाकुर

II जय छमछथल II II जय
मै छथली II II जय भ रत II
रमे श ल ल द स, ि र णसी, मोब ईल 8840347525
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विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 79

शारदानन्द दास पररमल

मै थिली पिकाररता मे राजनन्दनक अिदान

मै छथली पिक ररत क इछतह स मे कणशगोष्ठी-कण शमृत,कलकत्त क य ि िछि


एक एहन स्िर्णिंम अध्य य अछि जकर च त्रलस िषश सँ अछिक,लगभग अद्धश
शत न्ब्दक य ि अनिरत चलछत रहब क श्रे य श्री र जनन्द्दन ल ल द स के
न म ज इत िखन्द्ह ,जे मनस -ि च -कमशण सम्पूणश रूपे समर्पिंत भ िें
कण शमृत कें विन कोनो सुदृढ़ आर्थिंक पूँजी रवहतो अपन अध्यिस यक बलें
चलबै त रहल अछि।वहनक एवह सां घषशशील दीघश य ि पर ध्य न दै िी ,त
सहस मह मन मदन मोहन म लिीय मोन पव़ि ज इत िछथ। बन रस वहन्द्दू
विश्वविद्य लय केर स्थ पन क प्रसां ग मे ओ लम्ब भ्मण क क िन सां ग्रह कएने
िल ह श्री र जनन्द्दनक वक्रय -कल प कण शमृतक म ँ दे लगभग तवहन रहल।
इहो अपन जीिन-िृत्रत्तक त्रसलत्रसल मे नगर-नगर,डगर-डगर भ्मण करै त
कण शमृतक झोर लटकौने जनसम्पकश करै त ग्र हक बनबै त मै छथली-छमछथल क
सम्बिशन मे जुटल रहल ह अछि। सन् 1984ई०क आस-प स हमर वहनक
सम्पकश तिन भे ल जिन स्ि० सुि क न्द्त द स पररचय करौलवन आ
कण शमृतक ग्र हक बनबौलवन।
त ित तक हम क व्य रचन ददश प्रिृत्त नपहिं भे ल िलहुँ ;ओन छिट-फुट
शौछक़य तौर पर जिन-तिन वकिु त्रलखि लै त रही। तत्पि त घवनष्ठत एन
बिै त गे ल जे न -जे न हमर सँ कवबत -ले ि मँ गैत रहल आ हम यथ योग्य
स मग्री पठबए लगत्रलयवन। क्रम एहन सन बवन गे ल जे स ले -स ल नि -िषश
केर आगमन पर अत्रभनन्द्दन करै त तथ श रदीय अां क ले ल स मग्री से हो दै त
रहत्रलयवन। ओतबए नपहिं कण शमृतक आयु जे न बिै त गे ल ते न ओकर दस
िषशक भे ल पर,पुन: प्रौवि प्र प्त कएल पर तथ रजत जयन्न्द्तक प्रसां गे कवित
त्रलिै त गे लहुँ ।
80 ||गजेन्र ठाकुर

एवह प्रसां ग मे ई कहब अछतरां जन नपहिं होयत जे मै छथली ल क हमर न्द्यून छिक
सवक्रय बने ब मे र जनन्द्दन ब बूक ब़िक योगद न िनन्द्हिं।वहनक वनष्ठ आ
लग्नशीलत दे खि क आनो तरहक सां गठन त्मक वक्रय -कल प मे सां लग्न
हे ब क प्रेरण हमर वहनके सँ भें टैत रहल। जिन हम ददहली मे ” छमछथल ां गन
“ न मक सां स्थ क स्थ पन अओर सां गठन मे ल गल रही ,तिन यथ योग्य
पर मशश -ददश -वनदे श वहनक सँ भें टैत रहल। ई यद -कद ददहली अबै त िल ह
त हमर छमछथल ां गनक बै सक मे सत्म्मत्रलत भए उछचत पर मशश सँ हमर
क यशकत श लोकवन कें प्रोत्त्स वहत कै उहलत्रसत करै त िल ह।
ई त वहनक जन-सम्पकश बिे ब क कल -कौशलक िवि छथक। कण शमृत रूपी
(सकुरीक एतक )क लग म पक़िने ओकर रथ जक ँ कोन हँ कैत रहल
तकर आनो कते क पक्ष अछि। जे न कण शमृतक श रदीय अां क स ले -स ल
वनक लब, पत्रिक प्रक शनक सां गे वित्रभन्द्न ले िकक पुस्तक प्रक शन।एवह
प्रक शन मे ल गत ख़चश प ठक िगश सँ प्र प्त करब। सां गपहिं-सां ग ले िक कें
प्रोत्स वहत कए पुस्तक त्रलिब क प्रक त्रशत करब।उद हरण स्िरूप प्रत्रसद्ध
ले िक मजणपद्मक त्रलिल पुस्तक सभ त अछिए।, “मै छथली दिीछच भोल
ल ल द स” ;र म नन्द्द रे णु रछचत तथ आनो आर कते क ले िकक रचन
करणगोष्ठी द्व र प्रक त्रशत अने क पुस्तक अछि।
ई सभ क यश वहनक कृछतत्िक मह घशत त प्रम जणत कररतपहिं अछि सां गपहिं
एकर सम्प ददत करब क प ि ँ कते क प्रक रक प ररि ररक एिम िै यक्ततक
सां घषश करे त रहए पडलवन से वहनक युद्धिीर प्र णिन्द्त हएब क ठोस प्रम ण
छथक । बीच-वबच मे अने क एहन अिसर आएल जिन ई भीषण रूपें रोग-
ग्रस्त होइत रहल आ दीघश क लीन छचवकत्स उपर न्द्त स्िस्थ भए मै छथलीक
से ि च लू रिलवन। कते क बे र स मने उपस्स्थत मृत्यु पयशन्द्त के वटटक रर क
दूर भगौलवन अछि। मै छथली- पत्िक ररत के वहनक अिद न एन
छचरस्मरणीय अछि जे वहनकर सम न न्द्तर अथि समकक्ष मै छथली स वहत्यक
प्र ां गण मे दोसर केओ नपहिं दे ि इत अछि । हँ वहन्द्दीक पिक ररत मे मह िीर
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 81

प्रस द दद्विे दी नजरर अबै त िछथ। ई ि रण वहनक सां घषश-स िन केर विविि
पक्ष के ध्य न मे र खि क बनल अछि।वहनक स हसपूिशक स िन मे सहिर्मिंनी
पत्नीक दे ह िस न भे ल पर हमर आशां क िल जे एहन िज्र घ त सँ वहनक
गछतशीलत कहीं अिरुद्ध ने भए ज य।मुद वहनक सां कहप अप्रछतहत रहल।
हमर कते को बे र कलकत्त पहुँ छच वहनक भें ट करब क सां योग बवन-बवन क
य ि टरर ज इत रहल आ आब त हम िृद्ध िस्थ जन्द्य असमथशत सँ पीव़ित
िी।
स्ियम र जनन्द्दन ब बू बजबो-भुकबो सँ असमथश िछथ। पवहने जे हो वकिु
ि त शल प होइत रहइ िल आ भ िन क उष्म सँ भरर ज इ िलहुँ ,से सां भि
नपहिं।
तिन कण शमृतक भविष्यक छचन्द्त िे ह रने रहै त अछि।आगू छचिगुप्त
भगि नक जे इच्छ । श रद नन्द्द द स पररमल,
पत :-डी-००३अजमे र ग्रीन एकसश,कले न ,
अग्रह र बनरघट्ट रोड,बां गलुरु-560076

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82 ||गजेन्र ठाकुर

नबोनारायर् थमश्र

युग प्रित्तभक राज नन्दन लाल दास


विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 83

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