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VIDEHA_RAJNANDAN_SPECIAL-36-70
VIDEHA_RAJNANDAN_SPECIAL-36-70
ददलीप कु मार झा
ध्य न दे बय लगल ह।एवह सम्बन्द्िमे हमर विच र अछि मै छथल सब पित रोटी
ियने िछथ।पवहने प्र थछमक प ठश ल मे मै छथली ल गू होअए से कोनो प्रय स
नवह कयलवन।तें मै छथली विश्वविद्य लयमे तँ ल गू भ' गे ल मुद प्र थछमक
त्रशक्ष मे आइ िरर उपे जक्षय अछि।एवह सम्बन्द्िमे ब दे मे सही ड .जयक न्द्त छमश्र
बहुत प्रय स कयलवन ब दमे र जनन्द्दन ल लद सक से हो एवह अत्रभय नमे
योगद न िवन।हमसब जे 'मिुबनीसँ प ठश ल मे मै छथली'अत्रभय न आरां भ
कयलहुँ तिनो ओ उत्स ह बढ़बै त रहल ह।आइ ड .जयक न्द्त छमश्र ओ
र जनन्द्दन ल ल द सक प्रेरण सँ हमसब एवह अत्रभय नमे ल गल िी एवह
विश्व सक सां ग जे हमर पूबशज सब भ ष क ले ल जे त्य ग तपस्य कयने िछथ
तकर प्रछतफल भटबे करत।जरुरछत अछि सकल सम ज एवहमे योगद न
दे छथ।र जनन्द्दन ल लद सक सपन कें स क र करछथ।िै श्वीकरण ओ
बज रब दक एवह आन्द्हर दौरमे लोक भ ष ,लोक सां स्कृछत ते जीसँ विलोवपत
भ' रहल अछि।सां स रक अने क भ ष लुप्त भ' गे ल।मै छथत्रलयोपर गां भीर
सां कट उत्पन्द्न िै क।अने क रां गक षडयां ि मै छथली भ ष क सां ग भ' रहल
िै क।वहन्द्दी भ ष क स म्र ज्यि दी स्िरुप मै छथलीकें घोवट जयब पर वितश
अछि।जिन वक वहन्द्दी स्ियां अने क लोकभ ष क छमश्रण अछि। लोकभ ष क
छतरोवहत भे न य वहखन्द्दयोक छतरोवहत भे न य िी।से एिन भ ष विद नवह बुजझ
रहल िछथ।िै र जे से ।नीछतक कहब िै क जिन सबट डु बैत हुए तँ जै ह बच
ले ब सै बहुत तें म तृभ ष क ले ल जे गोटे ज वह मोच शपर क ज क' रहल िछथ
सब प्रणम्य िछथ।हम आदरणीय द सजीक म तृभ ष क ले ल कयल गे ल
क जक ले ल श्रद्ध वनिे ददत करै त छियवन।हमर ले ल सब ददन प्रणम्य रहत ह।
ऐ रचनापर अपन
मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।
20 ||गजेन्र ठाकुर
अजजत झा
िन मै न आमी : श्रद्धे य राज नन्दन लाल दास
मै छथली ई पत्रिक विदे ह मे श्रद्धेय र म लोचन ठ कुर विशे ष ां कक उपर न्द्त
वकनक पर अवगल विशे ष ां क वनक लल ज य से आशीष जी अपन फेसबुक
ि ल मे जजज्ञ स व्यतत केने िलछथ। एतकवह क्षण मे हमर मोन मे श्री र ज
नन्द्दन ल ल द स जी केर न म आयल आ हम आशीष जी केर पोस्ट मे हुनक
न म त्रलखि दे ल। ओवह केँ उपर न्द्त अने को गोटे ओवह न म केँ समथशन
कयलवन। हमर आनन्द्दक सीम नवह रहल जिन आशीष जी अपन फेसबुक
ि ल पर घोषण कयलवन जे विदे हक अवगल सां स्करण र ज नन्द्दन ल ल
द स जी केँ समर्पिंत रहतन। हम अवह पर अपन प्रसन्द्नत व्यतत कैल आ
प्रत्युत्तर मे आशीष जी त्रलिलवन जे अवह अां क हे तु हमरो योगद न अपे जक्षत
अछि। हमर मे ओ स मर्थयश कह ँ जे हम हुनकर स वहत्य ओ कृछतत्ि पर वकिु
त्रलखि सकी तिन हम आशीष जी केर आग्रह नवह ट रर सकैत िी आ श्रद्धेय
द स जी सँ जु़िल अपन वकिु सां स्मरण त्रलिब क लोभ से हो सां िरण नवह क'
प वब रहल िी। कृछतत्ि नवह त' व्यक्ततत्िे सही वकिु चे ष्ट क' रहल िी।
हमर जन्द्म कलकत्त मे भे ल िल आ त्रशक्ष दीक्ष से हो ओत्तवह सँ । मै छथलीक
लगभग समस्त क यशक्रम दे िब क ले ल ब बूजी आ पररि रक अन्द्य सब
सदस्य सबहक सां ग उपस्स्थत रहै त िलहुँ । ओवह समय त' गीत न द िोव़ि
अन्द्य कोनो चीज आकर्षिंत नवह करै त िल मुद जिन होश भे ल आ ब त सब
बूझय लगत्रलयै तिन समझ मे आयल जे म ँ मै छथली केर से ि मे समर्पिंत ओ
व्यक्ततत्ि सब जजनकर भ षण सँ दूर भ गै त िलहुँ छतनकर सबहक वक मोल
िखन्द्ह? एहन वकिु व्यक्ततत्ि जजनकर सम्पकश मे वबत ओल वकिु क्षण हमर
ले ल अमूल्य िरोहर अछि आ हमर जीिन केँ एकट नब ददश प्रद न कयलवन
त वह मे सँ एक िछथ श्रद्धेय र ज नन्द्दन ल ल द स जी।
कोलक त क दुग श पूज प्रत्रसद्ध िै क आ ओत्तह रहय ि ल सब अवह उत्सि
केँ दौर न उत्स ह सँ ओतप्रोत रहै त िछथ। ओहने उत्सि केँ उमां ग कोलक त
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 21
हम ओत्तह सँ विद होबय च है त िलहुँ मुद हुनक द्व र सां ग मे बै त्रस भोजन
करब क आग्रह नवह ट रर सकलहुँ । हुनकर नछतनी हमर सब केँ परोत्रस क'
भोजन करौलवन। र छत जिन हमर सँ गप्प कय फोन रिने िलछथ तिन
हमर विषय मे चच श केलखिन आ हुनक समस्य केँ सम ि न हे तु ओ बछचय
ओवह ददन कॉले ज नवह गे ल िलीह। हमर सन एक अछत स ि रण व्यक्तत
ले ल हुनकर मोनक उद्ग र वनखित रूप सँ हमर ले ल अविस्मरणीय क्षण अछि।
ओन हुतो पछिल तीस-पैँ तीस बरि सँ ओ कते को नि ां कुर केँ प्रस्फुवटत
होयब क अिसर प्रद न कयलवन अछि आ वनरन्द्तर सबकेँ प्रोत्स वहत करै त
रहलवन अछि। के कते क आगू बढ़ल ह से आब हुनक प्रछतभ , लगन, मे हनत
आ समपशण पर वनभशर करै त अछि।
सन् 1987 सँ हम कण शमृतक प ठक िी। बीच मे किनो क ल क्रम भां ग
से हो भे ल मुद से फौजी जीिन मे स्थ न न्द्तरण केँ क रण मुद मौक भे वटते
पुनः सहयोग र त्रश पठ वनयछमत भ' ज इत िलहुँ । वहनकर क्र न्न्द्तक री
न टक "सन्द्तो" पढ़लहुँ । " छचि विछचि " पढ़ब क अिसर भे टल आ अन्द्त
मे " छमछथल -मै छथलीक विक स मे कणश गोष्ठी एिां कण शमृतक योगद न
(1974-2011)" से हो पढ़लहुँ । सब एक सँ बवढ़ एक आ अवह पर अने को
गोटे अपन दृछष्टकोण रित ह। वहनकर सम्प दकीय एिां छमछथल क
समस मछयक विषय पर आले ि मोन केँ िू वब लै त अछि। छमछथल एिां
मै छथलीक सि ां गीण विक स कोन होयत त वह ले ल वनरन्द्तर अपन सां प दकीय
स्तम्भ केर म ध्यम सँ वनसभे र सूतल मै छथल केँ ज गृत करब क प्रय स करै त
रहलवन। म ि मै छथली ले िने ट नवह अवपतु छमछथल क्षर आ छमछथल
छचिकल क प्रच र प्रस र मे ल गल रहलवन। य िी जी केर कहब िलवन जे
आब नितुररए आगू आबौ आ वहनको प्रतीक्ष िखन्द्ह जे कोनो नितुररय आगू
बवढ़ वहनकर विर सत केँ सम्ह रर लौ। आजीिन ज वह प्रछतबद्धत केर सां ग म ँ
मै छथली केर से ि केलवन से वनस्सां देह प्रशां सनीय अछि आ हमर कहब मे
24 ||गजेन्र ठाकुर
कवनको सां कोच नवह भ' रहल अछि जे श्रद्धेय र ज नन्द्दन ल ल द स जी " िन
मै न आमी " िछथ। वहनकर सम्प दकीय स्तम्भक एक शीषशक हम एत्तह उद्धतृ
करय च हब क रण लगभग 85 बरिक अिस्थ मे वहनकर इच्छ िखन्द्ह- "
मै छथली केँ एकट आर भवगरथ च ही।"
अशोक
ऐ रचनापर अपन
मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 29
कण शमृतक च रर दशकसां बे शीसां वनयछमत प्रक त्रशत होइत आवब रहल अछि
| एवह पत्रिक क वनयछमत प्रक शनक श्रे य वनखित रूपसां सम्प दक श्री र ज
नन्द्दन ल ल द सजीकें दे ब’ प़ित |
हमहँ कण शमृतक वनयछमत प ठक रहल िी | वकिु अां कमे हमरहु वकिु कवित
30 ||गजेन्र ठाकुर
कण शमृत
च ररम पृष्ठपर सम्प दकीय स्तम्भ ‘हमर कहब’ मे ‘वबह रक निवनि शछचत
सरक र एिां छमछथल -मै छथली’ शीषशक सां म तृभ ष क म ध्यमसां ने न सभकें
त्रशक्ष क अछिक रक वक्रय न्द्ियनक ले ल मै छथली क्षे िक विि यक लोकवनसां
अनुरोि कयल गे ल अछि जे एवह क यश हे तु सरक रकें ब ध्य करछथ |
पृष्ठ 20 सां 39 िरर ‘कथ समिे त’क अन्द्तगशत श्री चन्द्रेश, ड . उष चौिरी,
कुम र मनोज कश्यप,सुनीछत, र िे श्य म झ क कथ , अनमोल झ , सत्ये न्द्र
32 ||गजेन्र ठाकुर
पृष्ठ 50 सां 65 िरर ‘आले ि एिां वनबन्द्ि’ स्तम्भमे स्ियां सम्प दक श्री
र जनन्द्दन ल ल द स,त्रशि न र यण मल्हलक,लक्ष्मण झ ‘स गर’,सुरेन्द्र न थ
रर जगदीश प्रस द मां डलक महत्िपूणश आले ि-वनबब्ि प्रक त्रशत भे ल िखन्द्ह
|
‘इछतह स दपशण रर ‘मै छथली गीत गोविन्द्द’ पर सुन्द्दर समीक्ष प्रक त्रशत भे ल
अछि |
पृष्ठ क्र.95 सां 99 िरर ‘स्मृछत-शे ष’ स्तम्भक अन्द्तगशत ड . श्रीपछत ससिंह द्व र
ब बू उम पछत ससिंह पर ‘ब बू उम पछत ससिंह : व्यक्ततत्ि ओ कृछतत्ि’ शीषशकसां
सां स्मरण प्रक त्रशत भे ल अछि |
पृष्ठ क्र.100 सां 104 िरर वित्रभन्द्न सां स्थ सभ द्व र आयोजजत स वहत्त्यक
क यशक्रम सबहक िणशन अछि |
पृष्ठ क्र. 105 सां 111 िरर ‘कणश गोष्ठी’क 33 आजीिन सदस्य,
‘कण शमृत’
भीतरक अां छतम किर पृष्ठपर कण शमृतक वित्रभन्द्न विशे ष ां क सबहक किर
पृष्ठक ि य छचि अछि |
ओ स्थ वपत रचन क रकें सम्म न दै त िछथ, निोददत रचन क रकें प्रोत्स वहत
करै त िछथ | नि रचन क र तै य र करै त िछथ |
चन्दना दत्त
अमोद झा
क्रान्न्तकारी चे तना जगबै त मै थिली नाटक ’सं तो’ (ले खक स्ि. राजनन्दन
ल दास जी)
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 43
44 ||गजेन्र ठाकुर
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 45
अखखले श झा
मै थिली सावित्यक एकां त सार्क राजनं दन लाल दास
मै छथली स वहत्यक एकट दे दीप्यम न नक्षि िछथ र जनां दन ल ल द स। ई
सद सँ ॅँ अपन योगद न मै छथली स वहत्यक भां ड रकेँ भरब मे दै त रहल अछि।
कते को एहन मह न विभूछत लोकवन भे ल जवनक हुनक योगद नक अनुरूप
प्रत्रसत्रद्ध आ प्रछतष्ठ आदद प्र प्त भे लवन, मुद वकिु एहनो भ ष स वहत्यक
से िक भे ल जे एक ां त स िन करै त रहल आ वनरां तर आ वनःस्ि थश म ँ
मै छथलीक से ि करै त रहल । एते क क ज केल क ब दो इछतह समे जे न कतहु
कछतय दे ल गे ल आ क लक्रममे विस्मृत क' दे ल गे ल । एहने एकट एक ां त
स िक िछथ र जनां दन ल ल द स। वहनक जन्द्म एकट स म न्द्य मध्यम िगीय
पररि र मे भे लवन। वहनक जन्द्म सँ पूिश पररि र आर्थिंक रूपेँ टू वट गे ल िल।
िे त पथ र ग िी विरिी विलवट गे ल िलै । वहनक जन्द्म 5 जनिरी 1934 मे
म तृक पटोरी पां चगछिय , सहरस मे भे लवन मुद ओ अपन ग म दरभां ग
जजल क गोनौने मे रहै त िल । वहनक वपत मनील ल द स मिुबनी कोटशमे
क रप्रद ज िल । ब दमे र ज दरभां ग क पां डौल सकशलमे लौ विभ गमे नोकरी
करय लगल । वहनक म त विद्य दे िी कुशल गृवहणी आ िमशवनष्ठ मवहल
िली। वपत्ती बुच्चील ल द स सकरीमे मुसलम न जमींद रक दीि न िलछथन।
पररि रक भरण पोषण कोनहुन होइत िलवन। हुनक प्र थछमक त्रशक्ष अपन
ग मक स्कूल आ वकिु ददन मिुबनीमे भे लवन। च ररमसँ स तम िगश िरर पां डौल
मीवडल स्कूल आ आठमसँ एग रहम िगश िरर पां डौलक S.K.H.E स्कूलमे
भे लवन। जिन ई आठम िगशमे िल त' ऐस्च्छक विषयक रूपमे मै छथली
रिलवन। एही क्रममे कवििर सीत र म झ क प ां छत ' *पवि त्रलखि जे नै बजै
िह वनज म तृभ ष मै छथली*.
...' अत्यछिक प्रभ वित केलकवन। एवह कवित क असररसँ म तृभ ष क प्रछत
अनुर ग बवि गे लवन।
1949 ई. मे द स जी मै वरक प स केलवन। घरक स्स्थछत दे िैत वपत च है
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 47
िलछथन जे ई नोकरी करछथ मुद अपन इच्छ आगू पिब क िलवन। वहनक
वपत्ती आ जे ठ भ ई से हो च है िलछथन जे ई आगू पिछथ। एवह ले ल वहनक
जे ठ भ ई अपन स र(मोदन र यण द स)केँ छचट्ठी त्रलिलवन जे कलकत्त मे रहै
िलछथन। मोदन र यण जी एकट पै घ म रि ़िीक िीयपूत केँ पिबछथन।
पिक उत्तर दे लछथन जे कलकत्त पठ ददयौन। एत्तवह कौले जमे पित आ
ट्यूशन करत । एवह पर हुनक जे ठ भ ई वहनक 115 ट क द' क' एकसरे
विद क' दे लछथन। त्रशक्ष पूर भे ल क ब द नौकरी कररतो छमछथल सां घक
क जमे सहयोग दै त रहल आ सां घक सछचि से हो बनल । ग म एल पर अपन
ग म, प ली आ रत्रसय री ह ई स्कूल पर आ ब दमे जीिक ां त जीक सहयोगसँ
िजौली ह ईस्कूल पर सभ क' मै छथली भ ष क प्रच र ले ल क ज करै त
रहल । वहनक व्यक्ततत्ि पर पां वडत दे िन र यण झ क बे सी प्रभ ि प़िलवन,
क रण जे ओ प्रत्ये क रविकेँ द स जीक भे ट करब क ले ल र जें र ि ि
वनि सपर आवब ज छथन। पि छत द स जी मै छथली पोथी सभक प्रक शन ले ल
से हो अपन महत्िपूणश योगद न दे बय लगलछथन।
जिन कणशगोष्ठी सां स्थ बनब क सूरस र होमय लगलै त' ई ओकर विरोिी
िल , क रण जे ई सां स्थ ज छतक न मपर बवन रहल िलै आ एवहमे मूल आ
प ां जज केर आि रपर भे दभ ि से हो िलै । ई ब त द स जीकेँ अनसोह ँ त
लगलवन। ब दमे पररितशन भे लै आ कण शमृत पत्रिक प्रक शनक ने य र भे लै
तिन ई सां स्थ सँ जु़िल आ पत्रिक क भ ष मै छथली रिब क विच र दे लवन।
र जनां दन ल ल द स 1967 मे 'आिर' पत्रिक क प्रक शन केलवन जे म ि
स ल भरर चत्रल सकलै , वकन्द्तु हुनक झु क ि मै छथली पिक ररत ददस बवि
गे लवन।
कणशगोष्ठीक सां स्थ पक अजुशन ल ल कणश, कण शमृत प्रक शनमे न र यण प्रस द
कणश आ र जनां दन ब बू अपन बहुमूल्य योगद न दे लवन। एक बे र द स जी पर
आरोप लगलवन जे ई म ि कणश क यस्थ लोकवनक रचन िपै िछथ मुद ब दमे
48 ||गजेन्र ठाकुर