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14 ||गजेन्र ठाकुर

विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 15


16 ||गजेन्र ठाकुर
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 17

ददलीप कु मार झा

मै थिली माध्यमसँ प्रािथमक शशक्षा िोइ सएि छलवन स्ि. राजनन्दन


लालदासक अं थतम इच्छा

र जनन्द्दन ल लद स आइ हमर सभक बीच नवह िछथ। सबकें एक ददन एवह


िर ि मकें िो़िब क िै । हुनक एते क म तृभ ष से ि क' क' एवह िर ि मकें
िो़िब वनखिते आजुक युगमे बहुत सुिद आियश अछि।अपन जीिनकें कृत थश
करब छथक। मै छथलीमे समय -समयपर एहन -एहन म तृभ ष से िी,मनीषी
सब होइत रहल ह अछि ,हुनके सबहक से ि आओर हठयोगक
पररण मस्िरुप एते क अन्द्हर- वबह ररक अिै तो मै छथली स वहत्य फरर -फूल
रहल अछि। जे न वक सिशविददत अछि र जनन्द्दन ल लद स कणशगोष्ठीक
कण शमृत पत्रिक क म ध्यमसँ लग त र उनच त्रलस बषशसँ मै छथली भ ष
स वहत्यक से ि करै त रहल ह।रचन मे नब लोकक प्रिे शक आग्रही
िल ह।समक लीन मै छथली स वहत्यमे अने को एहन रचन क र िछथ जजनक
पवहल रचन कण शमृतमे प्रक त्रशत भे ल िवन। जवहय सँ हम मै छथली जगतकें
बुझ' लगलहुँ ,मै छथली म ध्यमसँ त्रशक्ष हुए से जतय कतहुँ अिसर ल गल
उठबै त रहलहुँ अछि।एवह य ि मे हमर तीनट एहन मनीषीसँ स क्ष त्क र भे ल
जे ओ लोकवन कहलवन वबनु प्र थछमक प ठश ल मे श छमल भे ने मै छथलीकें
भविष्यमे सां रजक्षत र िब सां भि नवह अछि। ओवहमे हमर सिशप्रथम भे टल ह
स्िन मिन्द्य ड .जयक न्द्त छमश्र जे स्ियां एवह अत्रभय नक ने तृत्ि करै त रहल ह
आओर कतहुँ ने कतहुँ सम्प्रछत जे आन्द्दोलन चत्रल रहल अछि तकर प्रेरण स्रोत
िछथ।दोसर,िछथ र जनन्द्दन ल लद स जे प्रेररत तँ कररते रहल ह।स्ियां अस्सी
बषशक अिस्थ क प र रवहतो एवह मुद्द कें सरक र समक्ष उठबै त
रहल ह।पत्रिक मे एवह वबषयपर लग त र त्रलिै त रहल ह।ते सर िल ह
पां .चन्द्रन थ छमश्र 'अमर'।जजनक सँ हम जवहय - जवहय भे ट कयल ओहो
18 ||गजेन्र ठाकुर

इएह ब त कहलवन जे आब म ि एक उप य अछि,प्र थछमक त्रशक्ष क म ध्यम


बनय मै छथली।

र जनन्द्दन ल लद स चौर सी बषशक अिस्थ मे १४फरिरी २०१७क' भ रतक


मह महीम र ष्ट्पछतकें मै छथली म ध्यमसँ त्रशक्ष क ले ल पि त्रलिलवन।भ रतक
र ष्रपछत वबह रक मुख्य सछचिकें एवह वबषयपर सां ज्ञ न ले ब क आदे श दे लवन
मुद वबह र सरक रक ले ल िनसन।आदरणीय द सजी हमर पिक प्रछतत्रलवप
पठौलवन ।हम मै छथली स वहत्त्यक एिां स ां स्कृछतक सछमछत,मिुबनीक
म ध्यमसँ यथ सां भि प्रय स कयल।वबह रक मुख्यमां िीकें से हो से ि य ि क
क्रममे मिुबनीमे एवह पिक प्रछतत्रलवप आओर ज्ञ पन ह थ ें ह थ
दे त्रलयवन।म ननीय मां िी विनोदन र यण झ ,विि यक श्री र मदे ि महतोक
म ध्यमसँ से हो प्रय स कयल।चे तन सछमछतक मां चपर से हो उठ यल गे ल।मुद
िनसन। मै छथली त्रशक्ष क म ध्यम बनय।से विच र र जनन्द्दन ल लद सक
मोनमे वकयै अबै त रहलवन? र जनन्द्दन ल लद स मै छथलीक अनन्द्य उप सक
िल ह.बां ग लमे रहै त िलिह।ओतय बां गभ षीक म तृभ ष प्रेम दे खि क'
अत्रभभूत िल ह। बां गभ षी समुद य अपन भ ष क विक सक प्रछत सदछत
स क ां क्ष रहल ह अछि।जे हमर सबहक ले ल प्रेरक अछि।अने क बां गभ षी
विद्व न मै छथली भ ष स वहत्यक वहत चचिंतक रहल ह।मै छथली भ ष स वहत्यक
विक समे से हो सहयोग केलवन। दे खि - दे खि क' बहुतो मै छथल जे म तृभ ष
प्रेमी रहछथ ओहो सब अपन म तृभ ष क सम्म न ले ल अने क तरहक क ज
सब कयलवन।ज वहमे स वहत्य ले िन ,न टक मां चन,स ां स्कृछतक क यशक्रमक
आयोजन, प्रक शन, मह विद्य लय ओ विश्वविद्य लय सबमे मै छथलीक
पढ़ इ।ज्ञ तव्य अछि जे सिशप्रथम कोलक त विश्वविद्य लयमे 1919ई. मे
मै छथलीक पढ़ इ आरां भ भे ल।ओतय ब बू स हे ब चौिरी,छमछथले न्द्दुजी,प्रबोि
न र यण ससिंहक प्रभ ि र जनन्द्दन ल लद सपर प़िलवन ओ कण शमृत पत्रिक
प्रक शन करय लगल ह सां गवह प्र थछमक त्रशक्ष मे मै छथली ल गू होअए से हो
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 19

ध्य न दे बय लगल ह।एवह सम्बन्द्िमे हमर विच र अछि मै छथल सब पित रोटी
ियने िछथ।पवहने प्र थछमक प ठश ल मे मै छथली ल गू होअए से कोनो प्रय स
नवह कयलवन।तें मै छथली विश्वविद्य लयमे तँ ल गू भ' गे ल मुद प्र थछमक
त्रशक्ष मे आइ िरर उपे जक्षय अछि।एवह सम्बन्द्िमे ब दे मे सही ड .जयक न्द्त छमश्र
बहुत प्रय स कयलवन ब दमे र जनन्द्दन ल लद सक से हो एवह अत्रभय नमे
योगद न िवन।हमसब जे 'मिुबनीसँ प ठश ल मे मै छथली'अत्रभय न आरां भ
कयलहुँ तिनो ओ उत्स ह बढ़बै त रहल ह।आइ ड .जयक न्द्त छमश्र ओ
र जनन्द्दन ल ल द सक प्रेरण सँ हमसब एवह अत्रभय नमे ल गल िी एवह
विश्व सक सां ग जे हमर पूबशज सब भ ष क ले ल जे त्य ग तपस्य कयने िछथ
तकर प्रछतफल भटबे करत।जरुरछत अछि सकल सम ज एवहमे योगद न
दे छथ।र जनन्द्दन ल लद सक सपन कें स क र करछथ।िै श्वीकरण ओ
बज रब दक एवह आन्द्हर दौरमे लोक भ ष ,लोक सां स्कृछत ते जीसँ विलोवपत
भ' रहल अछि।सां स रक अने क भ ष लुप्त भ' गे ल।मै छथत्रलयोपर गां भीर
सां कट उत्पन्द्न िै क।अने क रां गक षडयां ि मै छथली भ ष क सां ग भ' रहल
िै क।वहन्द्दी भ ष क स म्र ज्यि दी स्िरुप मै छथलीकें घोवट जयब पर वितश
अछि।जिन वक वहन्द्दी स्ियां अने क लोकभ ष क छमश्रण अछि। लोकभ ष क
छतरोवहत भे न य वहखन्द्दयोक छतरोवहत भे न य िी।से एिन भ ष विद नवह बुजझ
रहल िछथ।िै र जे से ।नीछतक कहब िै क जिन सबट डु बैत हुए तँ जै ह बच
ले ब सै बहुत तें म तृभ ष क ले ल जे गोटे ज वह मोच शपर क ज क' रहल िछथ
सब प्रणम्य िछथ।हम आदरणीय द सजीक म तृभ ष क ले ल कयल गे ल
क जक ले ल श्रद्ध वनिे ददत करै त छियवन।हमर ले ल सब ददन प्रणम्य रहत ह।

ददलीप कुम र झ , आदशशनगर,निटोली रोड, मिुबनी मो.6207627509

ऐ रचनापर अपन
मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।
20 ||गजेन्र ठाकुर

अजजत झा
िन मै न आमी : श्रद्धे य राज नन्दन लाल दास
मै छथली ई पत्रिक विदे ह मे श्रद्धेय र म लोचन ठ कुर विशे ष ां कक उपर न्द्त
वकनक पर अवगल विशे ष ां क वनक लल ज य से आशीष जी अपन फेसबुक
ि ल मे जजज्ञ स व्यतत केने िलछथ। एतकवह क्षण मे हमर मोन मे श्री र ज
नन्द्दन ल ल द स जी केर न म आयल आ हम आशीष जी केर पोस्ट मे हुनक
न म त्रलखि दे ल। ओवह केँ उपर न्द्त अने को गोटे ओवह न म केँ समथशन
कयलवन। हमर आनन्द्दक सीम नवह रहल जिन आशीष जी अपन फेसबुक
ि ल पर घोषण कयलवन जे विदे हक अवगल सां स्करण र ज नन्द्दन ल ल
द स जी केँ समर्पिंत रहतन। हम अवह पर अपन प्रसन्द्नत व्यतत कैल आ
प्रत्युत्तर मे आशीष जी त्रलिलवन जे अवह अां क हे तु हमरो योगद न अपे जक्षत
अछि। हमर मे ओ स मर्थयश कह ँ जे हम हुनकर स वहत्य ओ कृछतत्ि पर वकिु
त्रलखि सकी तिन हम आशीष जी केर आग्रह नवह ट रर सकैत िी आ श्रद्धेय
द स जी सँ जु़िल अपन वकिु सां स्मरण त्रलिब क लोभ से हो सां िरण नवह क'
प वब रहल िी। कृछतत्ि नवह त' व्यक्ततत्िे सही वकिु चे ष्ट क' रहल िी।
हमर जन्द्म कलकत्त मे भे ल िल आ त्रशक्ष दीक्ष से हो ओत्तवह सँ । मै छथलीक
लगभग समस्त क यशक्रम दे िब क ले ल ब बूजी आ पररि रक अन्द्य सब
सदस्य सबहक सां ग उपस्स्थत रहै त िलहुँ । ओवह समय त' गीत न द िोव़ि
अन्द्य कोनो चीज आकर्षिंत नवह करै त िल मुद जिन होश भे ल आ ब त सब
बूझय लगत्रलयै तिन समझ मे आयल जे म ँ मै छथली केर से ि मे समर्पिंत ओ
व्यक्ततत्ि सब जजनकर भ षण सँ दूर भ गै त िलहुँ छतनकर सबहक वक मोल
िखन्द्ह? एहन वकिु व्यक्ततत्ि जजनकर सम्पकश मे वबत ओल वकिु क्षण हमर
ले ल अमूल्य िरोहर अछि आ हमर जीिन केँ एकट नब ददश प्रद न कयलवन
त वह मे सँ एक िछथ श्रद्धेय र ज नन्द्दन ल ल द स जी।
कोलक त क दुग श पूज प्रत्रसद्ध िै क आ ओत्तह रहय ि ल सब अवह उत्सि
केँ दौर न उत्स ह सँ ओतप्रोत रहै त िछथ। ओहने उत्सि केँ उमां ग कोलक त
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 21

पुस्तक मे ल क से हो रहै त िै क। स वहत्यक प्रछत बां ग ली सबहक प्रेम आ


समपशण दे खि मोन मे ल लस होइत अछि जे म ँ भगिती मै छथल सब केँ से हो
आशीष दे थुन ज वह सँ हमर सबहक सूतल चे तन पुनः ज गृत भ' ज य। घटन
सन् 1987 केँ अछि । हम अपन छमि मां डलीक सां ग कलकत्त क पुस्तक मे ल
मे स्ट ॅले -स्ट ॅले घूछम रहल िलहुँ वक अच नक मै छथली पुस्तकक स्ट ॅल
दे खि मोन गदगद भ' उठल। कहब क प्रयोजन नवह जे ओ स्ट ॅल कण शमृतक
सौजन्द्य सँ िल। पवहल बे र श्रद्धेय र ज नन्द्दन ल ल द स जी सँ गप्प करब क
अिसर भे टल। कोनो भ ष क ले ल विपुल स वहत्यक भां ड र रहब कते क जरुरी
िै क से ओवह ददन हुनक सुन ओल कथ सँ बूझय मे आयल। अवहन स वहत्य
अक दछमक सूची मे मै छथली केँ स्थ न नवह भे टल िलै । भ रतिषशक तत्क लीन
प्रि नमां िी ने हरु जी मै छथली केँ स वहत्य अक दमी मे स्थ न दे बय सँ पूिश
मै छथली पुस्तक सबहक एक प्रदशशनी दे िय च है त िलछथ। ड ० जयक ां त ब बू
कोन ओवह प्रदशशनीक आयोजन ले ल घरे घरे घूछम मै छथली पुस्तक सबहक
ओररआओन केने िलछथ से खिस्स कहलवन। पवहलबे र सहयोग र त्रश द' हम
कण शमृतक ग्र हक बनलहुँ ।
भ रतीय ि यु से न मे से ि सम त्प्तक उपर न्द्त जिन मुजफ्फरपुर अयलहुँ
आ पुनः भ रतीय जीिन बीम वनगम केर समस्तीपुर श ि मे पदस्थ वपत
भे लहुँ ओ हमर समस्तीपुर आ मुजफ्फरपुर मे सदस्य सबहक मध्य
कण शमृतक वितरण करब क अिसर दे लवन आ हम हुनक आज्ञ केँ त्रशरोि यश
कैल।
एक ददनक घटन अछि हम रे न मे िलहुँ आ वहनकर फोन आयल। हम रे न मे
िी ज वन हुनक भे लन जे हम ड्यूटीक उपर न्द्त समस्तीपुर सँ मुजफ्फरपुर
घुरर क' ज रहल िी तैँ ओ कहलवन जे घर पहुँ छच क' फोन करु। हुनक सँ
फूत्रस नवह ब जज सकैत िी तैँ हम कहत्रलयन जे वकिु व्यक्ततगत जरुरी क ज
सँ दू ददनक हे तु कोलक त ले ल रे न पक़िने िी। हमर ब त सुवन कहलवन जे
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कोलक त आवब रहल िी त' क स्हह डे र पर आऊ। हुनक आग्रह केँ हम


कोन ट रर सकैत िलहुँ ? सी आइ टी रोड ि ल पुरन डे र त' दे िल िल
मुद नबक डे र क कोनो ज नक री नवह िल। ओ हमर ब गुईह टी सँ
सम्भितः 45 नम्बर बस पक़िय ले ल कहने िलछथ। ठीक सँ मोन नवह अछि।
हम हुनक बत ओल बस स्टैं ड पर उतरर जिन फोन केत्रलयन तिन हमर
प ँ च छमनट प्रतीक्ष करय ले ल कहलवन। हमर भे ल जे वकनको पठ रहल
हे छथन मुद हमर आियशक ठे क न नवह रहल जिन ओ स्ियां ओत्तह उपस्स्थत
भे ल ह। सच पुिू त' हम लज गे ल िलहुँ क रण वकिु महीन पूिशवह हुनक
ब्रेन है मरे ज भे ल िलवन। म ँ भगितीक कृप सँ ओ अपन बीम री केँ म त दय
पुनः म ँ मै छथलीक से ि मे एक ग्र छचत्त भ' ल वग गे ल िल ह। िै र घर पहुँ छच
ह थक इश र सँ हमर बै सय ले ल कहलवन आ प ँ च छमनट केर समय मङल ह
क रण हुनकर दम फूत्रल रहल िलवन। प ँ च छमनटक उपर न्द्त पुनः कथ
ि त शक दौ़ि शुरु भे ल। कण शमृतक भविष्य केँ ल' क' छचन्न्द्तत िलछथ।
मै छथली केँ अष्टम सूची मे स्थ न त' भे टलै मुद एिनिरर प्र रस्म्भक त्रशक्ष क
पढ़ौनी मै छथली मे प्र रां भ नवह भ' सकल अछि त वह ले ल से हो छचन्न्द्तत िलछथ।
अपन आग मी पुस्तक " छमछथल -मै छथलीक विक स मे कणश गोष्ठी एिां
कण शमृतक योगद न (1974-2011) " केर प्रक शन पर विस्तृत चच श भे ल।
मुम्बई केर कणश गोष्ठी सां स्थ वहनक अपन क यशक्रम मे सम्म वनत करब ले ल
उत्सुक िलछथ मुद कोनो सम्म न सम रोह मे िचश करय सँ नीँक ओवह र त्रश
सँ कोनो पुस्तक केर प्रक शन भ' ज इ से वहनक उपयुतत बुझेलवन। अवह
ब त केँ ज वन प्रसन्द्नत होयत जे मुम्बई केर कणश गोष्ठी सां स्थ वहनक ब त सँ
सहमत भ' गे ल ह आ उपयुशतत पुस्तक केर प्रक शन ओवह सां स्थ द्व र सां भि
भे ल। छमछथल -मै छथली अत्रभय नी द्व र प्रस्तुत कयल ई एक अद्भत
ु उद हरण
अछि ज वह सँ प्रेरण ले ब क प्रयोजन अछि। कोनो सम्म वनत मां च पर प ग
दोपट पवहरर क' सम्म वनत होबय सँ बे सी छप्रय वहनक ले ल पुस्तकक
प्रक शन रहलवन अछि। बहुत र स गप्प भे ल आ लगभग दू घां ट क उपर न्द्त
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 23

हम ओत्तह सँ विद होबय च है त िलहुँ मुद हुनक द्व र सां ग मे बै त्रस भोजन
करब क आग्रह नवह ट रर सकलहुँ । हुनकर नछतनी हमर सब केँ परोत्रस क'
भोजन करौलवन। र छत जिन हमर सँ गप्प कय फोन रिने िलछथ तिन
हमर विषय मे चच श केलखिन आ हुनक समस्य केँ सम ि न हे तु ओ बछचय
ओवह ददन कॉले ज नवह गे ल िलीह। हमर सन एक अछत स ि रण व्यक्तत
ले ल हुनकर मोनक उद्ग र वनखित रूप सँ हमर ले ल अविस्मरणीय क्षण अछि।
ओन हुतो पछिल तीस-पैँ तीस बरि सँ ओ कते को नि ां कुर केँ प्रस्फुवटत
होयब क अिसर प्रद न कयलवन अछि आ वनरन्द्तर सबकेँ प्रोत्स वहत करै त
रहलवन अछि। के कते क आगू बढ़ल ह से आब हुनक प्रछतभ , लगन, मे हनत
आ समपशण पर वनभशर करै त अछि।
सन् 1987 सँ हम कण शमृतक प ठक िी। बीच मे किनो क ल क्रम भां ग
से हो भे ल मुद से फौजी जीिन मे स्थ न न्द्तरण केँ क रण मुद मौक भे वटते
पुनः सहयोग र त्रश पठ वनयछमत भ' ज इत िलहुँ । वहनकर क्र न्न्द्तक री
न टक "सन्द्तो" पढ़लहुँ । " छचि विछचि " पढ़ब क अिसर भे टल आ अन्द्त
मे " छमछथल -मै छथलीक विक स मे कणश गोष्ठी एिां कण शमृतक योगद न
(1974-2011)" से हो पढ़लहुँ । सब एक सँ बवढ़ एक आ अवह पर अने को
गोटे अपन दृछष्टकोण रित ह। वहनकर सम्प दकीय एिां छमछथल क
समस मछयक विषय पर आले ि मोन केँ िू वब लै त अछि। छमछथल एिां
मै छथलीक सि ां गीण विक स कोन होयत त वह ले ल वनरन्द्तर अपन सां प दकीय
स्तम्भ केर म ध्यम सँ वनसभे र सूतल मै छथल केँ ज गृत करब क प्रय स करै त
रहलवन। म ि मै छथली ले िने ट नवह अवपतु छमछथल क्षर आ छमछथल
छचिकल क प्रच र प्रस र मे ल गल रहलवन। य िी जी केर कहब िलवन जे
आब नितुररए आगू आबौ आ वहनको प्रतीक्ष िखन्द्ह जे कोनो नितुररय आगू
बवढ़ वहनकर विर सत केँ सम्ह रर लौ। आजीिन ज वह प्रछतबद्धत केर सां ग म ँ
मै छथली केर से ि केलवन से वनस्सां देह प्रशां सनीय अछि आ हमर कहब मे
24 ||गजेन्र ठाकुर

कवनको सां कोच नवह भ' रहल अछि जे श्रद्धेय र ज नन्द्दन ल ल द स जी " िन
मै न आमी " िछथ। वहनकर सम्प दकीय स्तम्भक एक शीषशक हम एत्तह उद्धतृ
करय च हब क रण लगभग 85 बरिक अिस्थ मे वहनकर इच्छ िखन्द्ह- "
मै छथली केँ एकट आर भवगरथ च ही।"

अजजत कुम र झ , यजुआर, मुजफ्फरपुर


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विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 25

अशोक

सम्पादक राजनन्दन लाल दास आ कर्ाभमृत


26 ||गजेन्र ठाकुर
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 27
28 ||गजेन्र ठाकुर

ऐ रचनापर अपन
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विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 29

जगदीश चन्र ठाकु र’ ’अवनल’

सावित्यकार-सम्पादक श्री राज नन्दन लाल दास

र्ाषा सावित्यक विकासमे पशिका सबिक योगदान मित्िपूर्भ िोइत अथछ |


पशिका आं दोलनक काज करै त अथछ | नि ले खक-िगभ तै यार करै त अथछ |
नि पाठक िगभ तै यार करै त अथछ | ले खक सबिक रचनाक माध्यमसं
समाजक अतीतक मूल्ां कन करै त अथछ, ितभमानक समीक्षा करै त अथछ,
र्विष्य ले ल वकछु लक्ष्य वनर्ाभररत करै त अथछ | ई सर् करबाक ले ल एकटा
कु शल ने तृत्िक आिश्यकता िोइत अथछ, जे सम्पादक िोइत छथि |
मै छथलीमे पत्रिक प्रक शनक इछतह स सय बरिसां अछिकक अछि |

दरभां ग , पटन क अछतररतत छमछथल ां चलसां ब हर ज वह-ज वह ठ म वकिु


रचन त्मक क ज भे ल ओवहमे कोलक त क स्थ न महत्िपूणश रहल अछि
जत’सां छमछथल दशशन आ ‘कण शमृत’ पत्रिक क प्रक शन होइत रहल अछि |

कण शमृतक च रर दशकसां बे शीसां वनयछमत प्रक त्रशत होइत आवब रहल अछि
| एवह पत्रिक क वनयछमत प्रक शनक श्रे य वनखित रूपसां सम्प दक श्री र ज
नन्द्दन ल ल द सजीकें दे ब’ प़ित |

पत्रिक क वनयछमत प्रक शनक ले ल जते क कौशलक आिश्यकत होइत अछि


त वहसां लगै त अछि जे एवह क यशक ले ल अनुभिी कुशल सम्प दकक वनदे शनमे
क ज करब क आिश्यत होइत अछि | हमर नवह बूझल अछि जे आदरणीय
श्री र ज नन्द्दन ल ल द स जीकें कोन ई कौशल प्र प्त भे लवन | पत्रिक क
कोनो अां क उठ क’ दे िू त वहनक कौशल दृछष्टगोचर होइत अछि |

हमहँ कण शमृतक वनयछमत प ठक रहल िी | वकिु अां कमे हमरहु वकिु कवित
30 ||गजेन्र ठाकुर

प्रक त्रशत भे ल अछि | हम एिनहु एवह पत्रिक क प्रशां सक िी | पत्रिक क


वकिु पुर नो अां क सभ सुरजक्षत रिने िी |

पत्रिक क श रदीय विशे ष ां क आ अन्द्य विशे ष ां क सभ बे श लोकछप्रय आ


सां ग्रहणीय होइत अछि | हमर समक्ष श रदीय विशे ष ां क अतटू बर-
2010 अछि | मुिपृष्ठपर प्रकृछतक कल त्मक अत्रभव्यक्ततक रूपमे मनोहर
दृश्यक ि य ां कन अछि | एकर भीतरक पृष्ठपर ‘कणशगोष्ठी’ द्व र प्रक त्रशत
बीसट महत्िपूणश पोथी सबहक मुिपृष्ठक ि य ां कन अछि |

पवहल पृष्ठ एकट विलक्षण सूक्ततक सां ग आरम्भ होइत अछि :

सम ज, स वहत्य,सां स्कृछतक पुनर्निंम शणक पत्रिक

कण शमृत

छमत्रल जुत्रल रही िटी कम इ, जे वकिु ल बी ब ां वट चुवट ि इ |

सां घे शक्तत, शक्ततसां जीिन, एवहमे सबहक बुझी भल इ ||

दोसर पृष्ठपर न री अां कक प्रक शनक योजन क सम च र दै त स वहत्त्यक


वनबन्द्ि, लत्रलत वनबन्द्ि आ विवििक अन्द्तगशत चौबीसट महत्िपूणश वबन्द्दु सभ
पर विद्वत पूणश आले ि एिां अन्द्य उपयोगी रचन सभ आमत्न्द्ित कयल गे ल
अछि |

ज वह वबन्द्दु आ विषयपर रचन -आले ि आमत्न्द्ित कयल गे ल अछि, से


सम्प दक महोदयक सुरुछच, विद्वत आ वित्रशष्ट सम्प दकीय वनष्ठ क द्योतक
अछि |
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 31

ते सर पृष्ठपर ‘अमृति णी’क अन्द्तगशत एवह अां कमे कवि द मोदर ल ल द स


‘विश रद’क आठ प ँ तीक रचन अछि | एवह स्तम्भक अन्द्तगशत सभ अां कमे
कोनो-ने -कोनो मह पुरुषक श्रे ष्ठ िचन रहै त अछि |

च ररम पृष्ठपर सम्प दकीय स्तम्भ ‘हमर कहब’ मे ‘वबह रक निवनि शछचत
सरक र एिां छमछथल -मै छथली’ शीषशक सां म तृभ ष क म ध्यमसां ने न सभकें
त्रशक्ष क अछिक रक वक्रय न्द्ियनक ले ल मै छथली क्षे िक विि यक लोकवनसां
अनुरोि कयल गे ल अछि जे एवह क यश हे तु सरक रकें ब ध्य करछथ |

पृष्ठ 5 सां 10 िरर ‘स मछयक’क अन्द्तगशत ‘िरोहर’ मे कवि द मोदर ल ल


द स ‘विश रद’ जीक ‘शरद िणशन’ अछि जे श्रीकृष्ण चररत मृतसां उद्धतृ अछि,
सते न्द्र न र यण द सजीक दूट गीत अछि, ‘विद्य पछत उि च’ शीषशकसां
वित्रभन्द्न पोथी सभसां विद्य पछतक सूक्तत सां चयनक प्रस्तुछत भे ल अछि,
‘छमछथल क शक्तत स िन ’ शीषशकसां पां वडत शत्रशन थ झ क वनबन्द्ि प्रक त्रशत
भे ल अछि, ‘ईश्वर स्तुछत’ शीषशकसां ड . वनत्य नां द ल ल द सजीक दसट दोह
प्रस्तुत भे ल अछि |

पृष्ठ 11 सां 19 िरर ‘कवित समग्र’क अन्द्तगशत श रद नां द दस


पररमल,आच यश सोमदे ि,रम क ां त रय ‘रम ’, ड. शे फ त्रलक
िम श,जीिक न्द्त,ड . जनक वकशोर ल ल द स, गजे न्द्र ठ कुर, योग नां द हीर ,
कल नां द भट्ट, प्रत प पर त्पर, कमल वकशोर कणश रर र जदे ि मां डलजीक
रचन प्रक त्रशत भे ल अछि | कल नां द भट्ट जीक जे गजल प्रक त्रशत भे ल
अछि ओकर टां कण कविते जक ँ भे ल अछि, गजल जक ँ नवह, से नीक नवह
लगै त अछि |

पृष्ठ 20 सां 39 िरर ‘कथ समिे त’क अन्द्तगशत श्री चन्द्रेश, ड . उष चौिरी,
कुम र मनोज कश्यप,सुनीछत, र िे श्य म झ क कथ , अनमोल झ , सत्ये न्द्र
32 ||गजेन्र ठाकुर

कुम र झ रर छमछथले श कुम र झ क लघु कथ आ ड .रमे शचन्द्र िम शक


एक ां की प्रक त्रशत भे ल अछि |

पृष्ठ 40 सां 46 िरर ‘िरोहर’ स्तम्भक अन्द्तगशत ददने श्वर ल ल ‘आनन्द्द’क


आले ि िखन्द्ह : मै छथलीक अमर सपूत : अच्युत नां द दत्त आ श्री भोल ल ल
द स जीक आले ि-स्मृछत िखन्द्ह : पुलवकत ल ल द सजी ‘मिुर’ |

पृष्ठ पृष्ठ 47 सां 49 िरर ‘स्ि स्र्थय चच श’ स्तम्भक अन्द्तगशत ड . क ली प्रस द


कणशक महत्िपूणश आले ि िखन्द्ह : स्ि स्र्थय आओर आह र |

पृष्ठ 50 सां 65 िरर ‘आले ि एिां वनबन्द्ि’ स्तम्भमे स्ियां सम्प दक श्री
र जनन्द्दन ल ल द स,त्रशि न र यण मल्हलक,लक्ष्मण झ ‘स गर’,सुरेन्द्र न थ
रर जगदीश प्रस द मां डलक महत्िपूणश आले ि-वनबब्ि प्रक त्रशत भे ल िखन्द्ह
|

पृष्ठ 66 सां 69 िरर य ि -प्रसां ग स्तम्भक अन्द्तगशत ‘िे ल, पयशटन ओ


पय शिरण-वहम चल य ि क प्रसां ग’ शीषशकसां ड . विद्य न थ झ क य ि िृत न्द्त
िखन्द्ह |

पृष्ठ क्रम ां क 70 सां 87 िरर आलोचन िण्डमे ‘मै छथली बल


क व्यि र ’,’हररमोहन झ क रचन मे ह स्य-व्यां ग्यक महत्ि’,’त्रशहपक दृछष्टये
प्रौढ़ भ’ गे ल अछि मै छथली लघुकथ ’,’गोविन्द्द द स –भजन िलीक क व्य
िै त्रशष्टय’ आ ‘तिन आ अिन’ शीषशकक अन्द्तगशत प्रो. प्रेम शां कर ससिंह,उपे न्द्र
प्रस द य दि, मुन्द्न जी, ड . न र यण झ रर सते न्द्र न र यण द स द्व र
विलक्षण आले ि प्रस्तुत कयल गे ल अछि |

पृष्ठ 88 सां 94 िरर पोथी-समीक्ष क ले ल अछि | एवह िण्डमे दे िक ां त


झ ,ड . नबोन थ झ आ अमरन थ झ द्व र क्रमशः उपन्द्य स ‘भ रती’,
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 33

‘इछतह स दपशण रर ‘मै छथली गीत गोविन्द्द’ पर सुन्द्दर समीक्ष प्रक त्रशत भे ल
अछि |

पृष्ठ क्र.95 सां 99 िरर ‘स्मृछत-शे ष’ स्तम्भक अन्द्तगशत ड . श्रीपछत ससिंह द्व र
ब बू उम पछत ससिंह पर ‘ब बू उम पछत ससिंह : व्यक्ततत्ि ओ कृछतत्ि’ शीषशकसां
सां स्मरण प्रक त्रशत भे ल अछि |

पृष्ठ क्र.100 सां 104 िरर वित्रभन्द्न सां स्थ सभ द्व र आयोजजत स वहत्त्यक
क यशक्रम सबहक िणशन अछि |

पृष्ठ क्र. 105 सां 111 िरर ‘कणश गोष्ठी’क 33 आजीिन सदस्य,
‘कण शमृत’

क 26 ट सां रक्षक आ कण शमृतक 408 ट आजीिन सहयोगी सबहक न म


आ सां जक्षप्त पत अछि |

पृष्ठ क्र.112 पर छमछथल क्षर (छतरहुत ) सीिू शीषशक अन्द्तगशत सभ अां क


जक ँ छमछथल क्षरसां पररचय कर ओल गे ल अछि |

भीतरक अां छतम किर पृष्ठपर कण शमृतक वित्रभन्द्न विशे ष ां क सबहक किर
पृष्ठक ि य छचि अछि |

सम्पूणश पत्रिक मे सम्प दक श्री र ज नन्द्दन ल ल द स जीक व्यक्ततत्ि आ


कृछतत्िक दशशन होइत अछि |

ओ स्थ वपत रचन क रकें सम्म न दै त िछथ, निोददत रचन क रकें प्रोत्स वहत
करै त िछथ | नि रचन क र तै य र करै त िछथ |

पुर न प ठकक ध्य न रिै त िछथ, नि प ठक िगश से हो तै य र करै त िछथ |


34 ||गजेन्र ठाकुर

स्िस्थ परम्पर क सां बिशनक ब ट तकैत िछथ |

निीन स्िस्थ परम्पर क समथशन करै त िछथ |

अपन प ठक आ ले िकक स्ि स्र्थयक छचन्द्त करै त िछथ |

म तृभ ष क म ध्यमसां बच्च सबहक त्रशक्ष क प्रबन्द्िक छचन्द्त करै त िछथ |


छमछथल , मै छथली आ दे शक वहतक क मन करै त िछथ |

अही सभ रचन त्मक गुणक क रणे श्री र ज नन्द्दन ल ल द सजी ल िो मै छथल


आ स वहत्य जीिी लोकक मध्य अपन एकट वित्रशष्ट स्थ न बन चुकल िछथ
|

हम वहनक दीघश स्िस्थ जीिनक क मन करै त िी |

---------जगदीश चन्द्र ठ कुर ‘अवनल’ सम्पकश


: 8789616115

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विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 35

चन्दना दत्त

श्री राजनन्दन लाल दास : क्षीर्कायामे असीम उजाभन्न्ित व्यक्क्तत्ि


36 ||गजेन्र ठाकुर
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 37
38 ||गजेन्र ठाकुर
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 39
40 ||गजेन्र ठाकुर
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 41

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42 ||गजेन्र ठाकुर

अमोद झा

क्रान्न्तकारी चे तना जगबै त मै थिली नाटक ’सं तो’ (ले खक स्ि. राजनन्दन
ल दास जी)
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 43
44 ||गजेन्र ठाकुर
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 45

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46 ||गजेन्र ठाकुर

अखखले श झा
मै थिली सावित्यक एकां त सार्क राजनं दन लाल दास
मै छथली स वहत्यक एकट दे दीप्यम न नक्षि िछथ र जनां दन ल ल द स। ई
सद सँ ॅँ अपन योगद न मै छथली स वहत्यक भां ड रकेँ भरब मे दै त रहल अछि।
कते को एहन मह न विभूछत लोकवन भे ल जवनक हुनक योगद नक अनुरूप
प्रत्रसत्रद्ध आ प्रछतष्ठ आदद प्र प्त भे लवन, मुद वकिु एहनो भ ष स वहत्यक
से िक भे ल जे एक ां त स िन करै त रहल आ वनरां तर आ वनःस्ि थश म ँ
मै छथलीक से ि करै त रहल । एते क क ज केल क ब दो इछतह समे जे न कतहु
कछतय दे ल गे ल आ क लक्रममे विस्मृत क' दे ल गे ल । एहने एकट एक ां त
स िक िछथ र जनां दन ल ल द स। वहनक जन्द्म एकट स म न्द्य मध्यम िगीय
पररि र मे भे लवन। वहनक जन्द्म सँ पूिश पररि र आर्थिंक रूपेँ टू वट गे ल िल।
िे त पथ र ग िी विरिी विलवट गे ल िलै । वहनक जन्द्म 5 जनिरी 1934 मे
म तृक पटोरी पां चगछिय , सहरस मे भे लवन मुद ओ अपन ग म दरभां ग
जजल क गोनौने मे रहै त िल । वहनक वपत मनील ल द स मिुबनी कोटशमे
क रप्रद ज िल । ब दमे र ज दरभां ग क पां डौल सकशलमे लौ विभ गमे नोकरी
करय लगल । वहनक म त विद्य दे िी कुशल गृवहणी आ िमशवनष्ठ मवहल
िली। वपत्ती बुच्चील ल द स सकरीमे मुसलम न जमींद रक दीि न िलछथन।
पररि रक भरण पोषण कोनहुन होइत िलवन। हुनक प्र थछमक त्रशक्ष अपन
ग मक स्कूल आ वकिु ददन मिुबनीमे भे लवन। च ररमसँ स तम िगश िरर पां डौल
मीवडल स्कूल आ आठमसँ एग रहम िगश िरर पां डौलक S.K.H.E स्कूलमे
भे लवन। जिन ई आठम िगशमे िल त' ऐस्च्छक विषयक रूपमे मै छथली
रिलवन। एही क्रममे कवििर सीत र म झ क प ां छत ' *पवि त्रलखि जे नै बजै
िह वनज म तृभ ष मै छथली*.
...' अत्यछिक प्रभ वित केलकवन। एवह कवित क असररसँ म तृभ ष क प्रछत
अनुर ग बवि गे लवन।
1949 ई. मे द स जी मै वरक प स केलवन। घरक स्स्थछत दे िैत वपत च है
विदे ह राजनन्दन लाल दास विशे ष ां क || 47

िलछथन जे ई नोकरी करछथ मुद अपन इच्छ आगू पिब क िलवन। वहनक
वपत्ती आ जे ठ भ ई से हो च है िलछथन जे ई आगू पिछथ। एवह ले ल वहनक
जे ठ भ ई अपन स र(मोदन र यण द स)केँ छचट्ठी त्रलिलवन जे कलकत्त मे रहै
िलछथन। मोदन र यण जी एकट पै घ म रि ़िीक िीयपूत केँ पिबछथन।
पिक उत्तर दे लछथन जे कलकत्त पठ ददयौन। एत्तवह कौले जमे पित आ
ट्यूशन करत । एवह पर हुनक जे ठ भ ई वहनक 115 ट क द' क' एकसरे
विद क' दे लछथन। त्रशक्ष पूर भे ल क ब द नौकरी कररतो छमछथल सां घक
क जमे सहयोग दै त रहल आ सां घक सछचि से हो बनल । ग म एल पर अपन
ग म, प ली आ रत्रसय री ह ई स्कूल पर आ ब दमे जीिक ां त जीक सहयोगसँ
िजौली ह ईस्कूल पर सभ क' मै छथली भ ष क प्रच र ले ल क ज करै त
रहल । वहनक व्यक्ततत्ि पर पां वडत दे िन र यण झ क बे सी प्रभ ि प़िलवन,
क रण जे ओ प्रत्ये क रविकेँ द स जीक भे ट करब क ले ल र जें र ि ि
वनि सपर आवब ज छथन। पि छत द स जी मै छथली पोथी सभक प्रक शन ले ल
से हो अपन महत्िपूणश योगद न दे बय लगलछथन।
जिन कणशगोष्ठी सां स्थ बनब क सूरस र होमय लगलै त' ई ओकर विरोिी
िल , क रण जे ई सां स्थ ज छतक न मपर बवन रहल िलै आ एवहमे मूल आ
प ां जज केर आि रपर भे दभ ि से हो िलै । ई ब त द स जीकेँ अनसोह ँ त
लगलवन। ब दमे पररितशन भे लै आ कण शमृत पत्रिक प्रक शनक ने य र भे लै
तिन ई सां स्थ सँ जु़िल आ पत्रिक क भ ष मै छथली रिब क विच र दे लवन।
र जनां दन ल ल द स 1967 मे 'आिर' पत्रिक क प्रक शन केलवन जे म ि
स ल भरर चत्रल सकलै , वकन्द्तु हुनक झु क ि मै छथली पिक ररत ददस बवि
गे लवन।
कणशगोष्ठीक सां स्थ पक अजुशन ल ल कणश, कण शमृत प्रक शनमे न र यण प्रस द
कणश आ र जनां दन ब बू अपन बहुमूल्य योगद न दे लवन। एक बे र द स जी पर
आरोप लगलवन जे ई म ि कणश क यस्थ लोकवनक रचन िपै िछथ मुद ब दमे
48 ||गजेन्र ठाकुर

तर्थय दे िल पर ई आरोप वनर ि र स वबत भे ल। ई ब त 2016 केर अप्रैल


िल कण शमृत मे लक्ष्मण झ स गर केँ दे ल स क्ष त्क रमे द स जी कहने
िछथ।(उपयुशतत पत्रिक सँ स मग्री सहयोग स भ र ले ल गे ल अछि)
द स जी कण शमृत मे स्थ वपत ले िकक रचन सँ स्तरीयत बने ब क प्रय स त'
करबे केलवन नितूरकेँ अिसर द' चमकेब क क ज से हो केलवन।
एकर अछतररतत द सजी अखिल भ रतीय छमछथल सां घ, मै छथली सां ग्र म
सछमछत, छमछथल दशशन प्र .त्रल. कम्पनी सँ जुव़ि क' छमछथल मै छथली ले ल
क यशरत रहल । वहनक मौत्रलक प्रक त्रशत कृछत िवन-: सां तो(न टक), छचि
विछचि (आले ि सां ग्रह), प्रबोि न र यण ससिंह (विवनबां ि) आ छमछथल
मै छथलीक विक समे कण शमृतक योगद न (शोिग्रांथ)
वहनक सम्प दनमे प्रक त्रशत अछि-: छमछथल दिीछच भोल ल ल द स एिां
र जे श्वर झ , व्यक्ततत्ि आ कृछतत्ि।मुांशी रघुनांदन द स,
व्यक्ततत्ि आ कृछतत्ि। कण शमृत (िै म त्रसक) 1981 सँ एिन िरर।
र जनां दन ब बू मै छथली छमछथल क कते को सां स्थ आ सां गठन द्व र सम्म वनत
आ पुरस्कृत भ' चुकल िछथ मुद सभ ददनसँ वनस्पृह आ वनःस्ि थश भ िसँ
म तृभ ष क से ि मे समर्पिंत रहै िछथ।
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ले िक-: अखिले श कुम र झ , ग्र म-ननौर(मिुबनी)

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