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Videha_Ramlochan_Thakur_Special_Issue-121-180
Videha_Ramlochan_Thakur_Special_Issue-121-180
जे कोनो रचन क र कोनो समय-क्षे त्र हिशे षक िोइतो हुनक रचन क गमगमी
दग् -ददगां तमे पसरै त अपन स ितक अनुभूथत कर ज इत अथछ। ईिो सत्य अथछ
जे र मलोचन ठ कुर दे खल-भोगल अनुभथू तक थचत्रण करै त छथि। तें रचन
सभमे अपन स ितकत क बोध करबै त छथि। किब जे कोनो रचन क रकेँ
अपन आत्मकि क बोध नहि करे ब क च िी जे ओ करौने छथि। ई ओ एहि
क रणे केने छथि जे हिनक व्यक्ततत्ि अपन कृथतत्िक सां गहि अथछ जकर ओ
दे ख र केने छथि। ओ क ज केने छथि से स हित्यधर्मित ओ आन्द्दोलनधर्मित
हनि ति करै त केने छथि। ई हुनक थमथिल -मै थिलीक प्रथत पूणततः समपतण भ ि
थिक। ओ हिशुद्ध कहि छथि। िमर जनै त नीक कहित शलखब बड्ड कदठन
क ज िोइत अथछ। क रण,नीक कहित ओ िोइत अथछ जकर अित म त्र
कहिते मे सीथमत भऽ कऽ नहि रहि ज इत अथछ। प्रत्युत ओकर ममत प ठकीय
अन्द्तमतन धरर पै शस कऽ ओहि प ठकीय म नशसकत केँ सदै ि ि ौं डैत रिै त अथछ।
जते क खे प पढ़ब तते क नीक आस्ि द ग्रिण करै त ज एब। ईिो कहि दे ब
अनगतल नहि िएत जे कोनो कहिक सभि कहित नीके नहि िोइत अथछ।
तखन अनुप तमे सम्म न दे बेए पडै ए। ईिो सत्य अथछ जे क लजयी कृथत
अबस्से जहिल स्तरपर आधृत िोइत अथछ जे बे र-बे र पढ़ल पर नि आस्ि द
करबै त अथछ। र मलोचन ठ कुर सभ तरिक आ सभ ियसक ले ल कहित
शलखलहन। तें ब लसँ लऽ कऽ बूढ़ धररक कहित आएल अथछ। एहिमे हकछु
नीक कहित अबस्से अथछ। हकछु मे आिोशमूलक स्िर हिशे षे भऽ आएल
अथछ। ख ौं झ िहिमे शलखल गे ल कहित कने क हिशे षे उग्र भऽ आएल अथछ।
हकछु कहित मे बौशद्धकत क त प अथछ। जे गां भीरत ले ने आएल अथछ।
थमथिल क आच र-हिच र ओ सभ्यत -सां स्कृथत से िो कथतपय कहित मे
अशभव्यतत भे ल अथछ। सृथि हिस्त रक िममे हिनक कहित सभ
उत्ि नपरक अथछ। कैकि कहित क सरलत ओ सिजत जे
अशभध त्मकत मे अथछ तँ से िो त हि िां गे ज हि शशल्पमे रथचत अथछ से हिशे षे
बनै त अथछ। ओ स्ियां स्िीक रने छथि जे –
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 97
--
िमर सभकेँ अपने शलखब क अइ
अपन इथति स
जे सररपहुँ थिक सां घषतक
िगत सां घषतक
'बे त लकि ' र मलोचन ठ कुरक व्यां ग्य रचन थिक, जकर ओ "ि स्य-
व्यां ग्य" हिध क रूपमे शलखलहन अथछ। र मलोचन ठ कुरक अन्द्य न म अथछ-
अग्रदूत, कुम रे श क श्यप ओ मजतब अली। उतत न म सभ ओ अपन पोिी
'ल ख प्रश्न अनुत्तररत (कहित सां ग्रि)' मे दे ने छथि। बे त ल कि कुम रे श
क श्यपक न मसँ शलखने छथि टकितु हकएक से एहि प्रसां ग हुनक कोनो मां तव्य
प्र प्त नहि अथछ। एहि पोिीक प्रक शन 'हिदे ि पबशलकेशन्द्स' कलकत्त सँ
1981 मे भे ल अथछ। व्यां ग्य स हित्त्यकहिक हिध थिक, जकर अित िोइछ
कि क्ष करब जे शब्दक व्यां जन शक्ततसँ प्र प्त िोइत अथछ। ि स्यक अित
उपि स िोइत अथछ जे कतौ ने कतौ व्यां ग्यबोधक अथछ। ओन ि स्य िँ सब क
ले ल, मनोरां जन ले ल से िो प्रयुतत िोइत अथछ। थमथिल मे सां बांधनक अनुस र
ि स्यक पररप िी रिल अथछ ज हिमे उपि स कम सां बांधबोधक मधुरत बे सी
रिै त अथछ। एिन ि स्यमे मनोरां जनक उद्ये श्य रिै त अथछ।मै थिली स हित्यमे
प्रो. िररमोिन झ क हिशभन्द्न हिध मे शलखल ि स्य-व्यां ग्य भे िैए। हिनक
स हित्यमे िमर सभ ददन ओहि हिध क शशल्पमे ि स्य बोडल भे िल मुख्य
व्यां ग्य अथछ ज हि म ध्यमे ओ (िररमोिन झ ) सम जमे सुध रक आक ां क्षी
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 101
रिल ि आ लोकथप्रय भे ल ि।
कि किै त छथि जे कोन ससििक ' प्र इिे ि से िेिरी चमच प्रध न श्रीम न
शृां ग ल शम त मां त्रण सँ बकरीक अपिरण कऽ ओकर म रर ख एल गे ल पुनः
िररणक अपिरण कऽ म रल गे ल आ स्ियां शे र ससिि एहिपर दुख प्रगि करै त,
भ षण दै त ज निर सभक सि नुभूथत पौलहन। र जसत्त क एहि भयां कर
खे लकेँ उघ र करै त उतत कि सत्त पर व्यां ग्य तँ कररते अथछ सम जकेँ से िो
सतकत करै त अथछ, जे ध्य न योग्य अथछ।
भ रतीय प्रज तां त्रक इथति समे इमरजें सी (आप तक ल) २५ जून १९७५ सँ
२१ म चत १९७७ धरर २१ म सक अिथधक बीच छल। एहि बीच भ रतीय
न गररक स्ितां त्रत थछन गे ल छलै क। हिरिी ने त , पत्रक र ओ जनपक्षक
लोककेँ जे ल भऽ गे ल छलहन। सत्त क हिरोधमे ब जबकेँ दां डनीय अपर ध
बूझल ज इत छल। दे शरोि बुझल ज इत छल। ई ब त िततम न समयमे से िो
कते क प्र सां हगक अथछ सिजहि बूझल ज सकैत अथछ।
टकितु र मलोचन ठ कुर 'बे त ल कि ' मुख्य रूपसँ र जनीथतपर अपन रचन केँ
केंहरत कऽ ि स्यकेँ उपि ाेसक रूपमे व्यां ग्यमे सम हित करै त अपन रचन केँ
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 107
व्यां ग्य हिध मे क यम केलहन अथछ तें िम पहिनहुँ किलहुँ अथछ जे ई िररमोिन
झ क रचन सँ फूि अपन रचन केँ स्िरूप प्रद न केलहन।
हिख्य त भुिनत्रयम्
हबसरल हक ज इत अथछ।
सररपहुँ कहि की शलखथि? हकये क शलखथि? तकर हनणतय नहि क' पबै त
छथि क रण स्पि छै ।दे श सम ज ददन- ददन ओझ रइते ज रिल अथछ।अपने
ग ममे िमसभ अनदठय अनथचन्द्ि र भ' गे ल छी।जकर कोनो पत ठे क न
नहि ब ँ चल अथछ।सररपहुँ कते क असिनीय पीड िोइछ कोनो सां िेदनशील
व्यक्ततक ले ल जखन ओकर पररथचथत सम प्त िोब' लगै त छै क।मुद त हि
ले ल कहि किै त छथि एकर सम ध न बै शस क' कनल सँ नहि िै त।एकर ले ल
करय पडत उद्यम।थचन्द्िय पडत अपन शक्ततकें।ज हिसँ एकि समृद्ध ओ
सुसांस्कृत भ रत ओ थमथिल क हनम तण क' सकी।
भ रत ग मक दे श थिक
आ स ँ झ मे
112 ||गजेन्द्र ठाकुर
ब ध -बोनसँ भ सल अबै त
ब रिम स क स्िर
आङनसँ
लगनीक स्िर
कहियो थतरहुत जे
सत्त-सत्त कहिि'
ज थत आ धमत शक म ध्यमसँ सत्त प्र प्त करब एखन दे शमे बडक खे ल भ'
गे ल अथछ।आम लोकक मौशलक आिश्यकत क कोनो मोल नहि।आब
मनुतखसँ बे सी जरुरी अथछ ज थतक हिक स,धमतक हिक स।लोक से िो आब
अपन -अपन ज थतक हिस बें मतद न करै त आथछ। स ँ च बजब क आ स ँ च
सुनब क स िस प्र य: सम प्ते जक ां भ'गे ल अथछ,तें जे ि ल -च ल अथछ
एखन आज दीक न मपर से लगभग एहिन चलै त रित।स ितक हिरोध
करब क स िस नै रिलै ।आब य त्री,र मलोचन ठ कुर सन ठ ँ हि-पठ ँ हि
किै िल ,कहित रचै िल तँ से िो हिरले छथि।अन्द्ध हिरोध आ अन्द्ध समितकक
बीच प्रथतयोहगत त्मक दौड चशल रिल अथछ।ते िने पररस्स्िथतमे र मलोचन
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 115
आर अपन सम च र?
केन अथछ ड ां ड?
बि न म त्र सूयम
त ुखख केर
रित ज धर -ध म थमथिल क
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 117
प हन गां ग -कोशी-कमल क
िमर हिश्व स अइ
आइ ने क शल
िोएतै क नब पल्लि
तखन
िमहूँ शलखब
िसन्द्त गीत जे
आक शक नहि
'ओन , िम दे खने छी
स ँ झक मे घ च्छन्द्न आक श
िम दे खने छी।
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विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 119
िम दे खने छी
डबरी-चबच्च मे
कहि भ दिक अन्द्िररय र थतमे ,पछु आरक बसहबट्टी आ करज नमे अनहगनत
भोगजनीकें चमकैत दे खने छथि। कहिक आँ खख एिने - एिन दृश्य सब
दे खब क ले ल औन इत छहन।एिन सौन्द्दयत छि जे जन स ध रण हबनु
कोनो खचतकें दे खख सकैत अथछ।
कते क प्रश्न उत्तर भे िल? कते क एखनो अनुत्तररत अथछ? कते क नि प्रश्न
सभ ठ ढ़ भे ल अथछ? से सभक पडत ल करब हनखितरुपसँ िततम न सम जक
अथछ से स हित्त्यक सम ज ले ल से िो ।िँ ,जे श सन सत्त क िर लग त र जोथत
रिल ि अथछ।जजनक लग सत्त क सभि कां ु जी छहन हुनक सँ त'
स्ि भ हिके।
“बन्द्धु !
एन िोइत छै क
एन िोइत छै क कहियो क ल
म घक शीतलिरी
कोनो नि ब त नहि
रिै छ अगोचर
ओ िमर सबकें सचे तक' दै त छथि - हिश्व-ब ज र केर चशल रिल खे ल केर
हिषयमे , एहि तरिेँ -
ज रज सां त न िै श्वीकरण
िृित हिश्विकें ब ज र बन दे ब क ले ल
यद्यवप श्री ठाकुरजीिँ पूिव पररछचत िलहुँ मुदा हुनकर स्ने ह-िान्न्द्नध्य १९९०
ई.मे मै छिली नाट्य िां स्िा 'कोवकल मां च' के स्िापनाक पश्चात हमर
िवक्रयतािँ प्रगाढ़ भे ल। हम वहनक मै छिलीक प्रछत िमपवणिँ बहुधा प्रेररत
होइत रहलहुँ । तावह ददन कोनो एहन कायवक्रम नै िल जावहमे िलता ओ नै
होछि। तावह मध्य त्रशिाचारिश भें ट होइत रहल आ हम अपनाकेँ पाररिाररक
िदस्य िन पावब धन्द्य होइत रहलहुँ । कोवकल मां चक कोनो एहन कायवक्रम नै
जावहमे ओ ित्म्मत्रलत नै भे ल होछि। प्रयये क िषव स्माररकामे आले ि हे तु जिन
कहत्रलयवन िे वनरां तर महयिपूणव आले ि दै त रहलाह। हुनक परामशविँ
िां स्िाकेँ िुयश प्राप्त होइत रहल।
एकटा उल्ले िनीय काजक चचाव करब जरूरी बुझना जाइत अछि। श्री
िूयवनारायण झा 'िरि' रछचत "मै छिली श्री िीताराम चररत मानि"केँ
जिन कोवकल मां च ददििँ प्रकाशनक योजना बने लहुँ आ तकर िां पादनकेँ
गुरूतर भार हुनका दे ल तँ ओ िहषव स्िीकार केलवन जे िस्तुतः बहुत श्रमिाध्य
काज िल। तावह अिछधमे प्रेििँ प्रूफ दे िेबाक हे तु छमििर कुमरकाां त झाजी
(राघोपुर-बलाट)क िां गे अने को बे र हुनका घर जे बाक अििर भे टल।
महाजाछत िदन प्रेिागृहमे मै छिली नाटकक मां चनकेँ अििरपर एवह पोिीक
लोकापवण भे ल जावहमे मां चािीन प्रो. विद्यानां द झा आ रामचलोचन ठाकुरजीक
िारगर्भिंत िलतव्य आइयो प्रािां वगक अछि। एक ददन प्रिां गिश आग्रह
केत्रलयवन जे 'मै छिली रां गमां च आ कलकत्ता' विषयपर आले ि त्रलिू जे
कोवकल मां चक स्माररकामे दे बाक अछि। ओ कहलवन जे जते क बुझल अछि
तकर अछतररलत कलकत्ताक आ उपनगरीय िे िक मै छिली रां गमां चक
जानकारी अहाँ दे ब तिनवह िां भि अछि। हम िहयोग केत्रलयवन जे स्माररकामे
िपलै आ पश्चात जिन 'स्मृछतक धोिरल रां ग' हुनकर पोिी िपलवन तावहमे
िे हो िां कलछत केलवन।
दोिर महयिपूणव पि जे मातृभूछम आ मातृभाषाक प्रछत स्ने हक िशीभूत
128 ||गजेन्द्र ठाकुर
वित्रभन्द्न पि-पत्रिकािँ िां लग्न रवहतो एकटा ठोि िावहत्ययक मां च "िां पकव"
केर ओ प्रणे ता रहलाह अछि। ध्यातव्य जे उलत िां स्िामे एकटा पदाछधकारी
"िां योजक" प्रारां भवहिँ ओ रहलाह अछि। एवह िां स्िाक वनयमानुिार
िावहत्ययक रुछच रिवनहार आ मै छिली िे िी भाग लै त िछि। एकर कोनो
िदस्य नै बनाओल जाइत अछि। अपन रुछचकेँ अनुिार ित्म्मत्रलत व्यक्लत
ओकर िदस्य भे लाह। मािक प्रयये क दोिर रवि ददन िाँ झुक ४ बजे िँ
कायवक्रम प्रारां भ होइत अछि। िहभागी लोकवन अपन नि रचनाक िां ग
उपस्स्ित होइत िछि जावहपर उपस्स्ित लोक पदठत रचनापर मां तव्य दै त िछि।
आिाश्यकतानुिार आले िमे िां शोधन करबाक िगतापर िुझाि दै िछि।
एवह प्रवक्रयािँ िावहत्ययक रुछच ओ गुणित्तामे िृत्रि हएि स्िाभाविके। प्रयये क
िां पकवक प्रारां भमे उपस्स्ित लोक अपने मेिँ एकटा अध्यि चुनैत अछि जकर
िां चालनमे ई कायवक्रम शुरू ओ अां त होइत अछि। मने हरे क िां पकवक अध्यि
अस्िायी होइत िलाह। ध्यातव्य जे अन्द्यान्द्य िां स्िा िभमे पदाछधकारी
बनबाक ले ल प्रछतस्पधाव होइत अछि मुदा तावहिँ अलग िां पकव अपन गछतविछध
वनयछमत रूपें करै त अछि। मुदा आब ई कने अस्स्िर भे ल अछि। िां पकवक
तयिािधानमे जिन िावहयय अकादे मी पुरस्कार श्री कीर्तिंनारायण छमश्र आ
अनुिाद पुरस्कार श्री निीन चौधरीकेँ भे टलवन तावह उपलक्ष्यमे एकटा
उल्ले िनीय िम्मान िमारोह आयोक्षजत भे ल िल। निीन जीक चचव भे ल तँ
ई कहब उछचत जे निीनजी अपन पोिी "िणव वितान' केर भूछमकामे त्रलिै
िछि जे "....श्री रामलोचन ठाकुरक ियिां ग िँ िावहयय बुझबा आ त्रलिबाक
अिगछत भे ल। आ िां पकव (िभ मािक दोिर रवि)मे वनरां तर उपस्स्िछत िँ
िूतल रहबाक मनःस्स्िछत एिन धरर नवह आएल...."। ध्यातव्य जे तीनू
िावहययकारक कमविेि कलकत्ता रहल अछि। अतबे नवह रामलोचन ठाकुरजी
िां पकवक माध्यमिँ बहुतो नियुिाकेँ प्रेररत केलाह तावहमे एकटा आशीष
अनछचन्द्हार िे हो िछि आ अनछचन्द्हारो अपन पोिी "मै छिली गजलक
व्याकरण ओ इछतहाि" एवह बातक चचाव केने िछि। िां पकवक िमयक आि-
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 129
पाि बाहरिँ आएल कोनो िावहययकारकेँ िां पकवक बै िारमे उपस्स्ित हे बाक
आग्रह कएल जाइत रहल अछि। जावहिँ बाहरी ओ स्िानीय िावहययकार
एक-दोिरिँ पररछचत होइत रहलाह अछि। िां पकव एिनो धरर चलै त आवब
रहल अछि जकर पािू रामलोचने जीक बल िवन िां गे-िां ग आनो लोकक।
कलकत्तामे वकिु ए एहन मै छिल भे लछि क्षजनकर नाम ले लािँ कलकत्ताक
बोध होइत हो। रामलोचनजी ओवह वकिु मे िँ एकटा आइकन आ
इनिाइललोपीविया िछि िे हम वनखश्चत रूपिँ कवह िकैत िी। एहन महान
िजवक, िां पादक आ क्राां छतकारीकेँ पावब हमरा िभकेँ ितत गौरि बोध होइत
रहल अछि।
post_09.html
एवह िािायकार केर अछतररलत महयि ई जे जावह िमयमे ई िािायकार ले ल
गे लै ठीक ताही िमयमे प्रबोध िावहयय िम्मान केर घोषणा िे हो भे ल रहै ।
अशोक-सां पकत-8986269001
र मलोचन ठ कुर मै थिलीक प्रशसद्ध कहि छथि। ओ एिी सां ग आां दोलनकत त,
रां गकमी ओ अनुि दक से िो छथि। पोिी सभक सां प दन केने छथि। व्यां ग्य ओ
लोकधमी कि शलखने छथि। ओ एिन कहि छथि जजनक चे तन लोकोन्द्मुख
आ अशभल ष जनि दी अथछ। ओ ख ँ िी मै थिलीक कहि छथि। टििदीमे कहियो
नहि शलखलहन। र म लोचन ठ कुर मै थिली स हित्क रक ओहि परां पर क लोक
छथि जे परां पर क ञ्चीन ि झ 'हकरण'क अथछ। म तृभ ष क हिक स
जजनकर लक्ष्य रिलहन। म तृभ ष क हिक स एहि क रणे जे 'म तृभ ष क
हिक ससँ जन-ज गरण िोइत छै क ओ ज गरण धन-कुल-ज थतमूलक
गररम केँ चूरर दै त अथछ'। र मलोचन ठ कुरक जन्द्म थमथिल मे भे लहन आ
जीिन बां ग लमे हबतलहन। फलस्िरूप हुनक जे रचन क र-व्यकथतत्ि हनर्मित
भे ल से दूनू ठ मक स ां स्कृथतक चे तन क समन्द्ियसँ हनर्मित भे ल। ई चे तन
पररश्रमी ओ उत्प दक िगतक सां घषतशीलत सँ उपजल छल।
र मलोचन ठ कुर अपन कहित आठम दशकसँ शुरू करै त छथि। मोि मोिी
१९७० ई.क ब दसँ शलखल हुनक कहित सभ च रर सां ग्रिमे सां ग्रीित अथछ।
132 ||गजेन्द्र ठाकुर
'इथति सिां त ' (१९७७), 'दे शक न म छलै क सोन थचडै य ' (१९८६),
'अपूि 'त (१९९६) आ 'ल ख प्रश्न अनुत्तररत' (२००३)। ओ हिशभन्द्न शशल्प-
शै लीमे कहित शलखलहन अथछ। छां दोबद्ध ओ मुततक दूनू रूपमे हुनक कहित
उपल्बध अथछ। दोि , कां ु डशलय , मुततक कहित , थमनी कहित , क्षजणक
(ि इकू) सभ तरिक कहित । हुनक कहित सभिक क हिशे षत ईिो अथछ
जे पूितजसँ लऽ कऽ समक लीन ओ अनुज धररकेँ मोन प डै त ओ सां बोथधत
करै त हुनक बहुते र स कहित अथछ। एहिसँ हुनक जुड ओ ओ प्रथतबद्धत
प्रकि िोइत अथछ। सम नधम तक प्रथत लग ओ हुनक एक फर कसँ रे ख ां हकत
करए बल प्रिृथत अथछ। र मलोचन ठ कुरक कहित मे समयक त प ओ ध केँ
सां ग आर्ििक-सम जजक ओ र जनीथतक-स ां सकृथतक पररदृश्य ओ प्रिृथतपर
हिप्पणी, व्यां ग्य, आिोश भे िैत छै क। हुनक कहित -य त्र मे प ठककेँ ओहि
समयक स्स्िथत-पररस्स्िथत मूर्तिम न िोइत छै क जखन ओ कहित शलखल गे ल
छल।
ई दे श स्ितां त्रत ब दसँ बहुतो झां झ ि त, आलोडन-हिलोडन दे खख चुकल
अथछ। स्ि धीनत प्र त्प्तक जे उल्ल स रिै क से िमशः िोडे क िषतक ब द
हबल ए लगलै लोककेँ लगलै जे ओकर दुख-तकलीफ कम नै भऽ रिल छै ।
सत्त मे गोर अां ग्रेजक स्ि नपर क री अां ग्रेज बै शस गे ल अथछ। मोि-भां गक सां ग
स हित्यमे से िो ओकर अनुगां ज
ु सुन इ ददअ ल गल। श सन-सत्त सँ हनर श आ
ित श हिपन्द्न लोक सभ आ एक जुि हुअ ल गल। सत्त पररिततनकेँ
अनुपयोगी बूजझ व्यिस्ि पररिततन ले ल ओ कृषक-मजदूर सभिक शोषणसँ
मुक्तत ले ल सशस्त्र सां घषत बां ग लक नतसलब डीमे शुरू भऽ गे ल। र मलोचन
ठ कुर अपन कहित य त्र ओिी उिल-पुिलसँ भरल समयक सां ग शुरू
केलहन। मै थिलीमे अत्ग्नजीिी कहिक रूपमे तम म भे द-भ ि, शोषणकेँ दे खख
िगत-सां घषतक ले ल पुर तन म न्द्यत केँ अप्रयोजनीय, अस्ि यी, उजजर-क री
रचन , इथति सकेँ त त्तक ल हनरस्त कऽ शोहषतक पक्षमे नि इथति स
बने ब क ले ल सशस्त्र ि ां थतक ले ल डे ग बढ़ दै त छथि।
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 133
आ िम/ एखन नजि शलखख सकब/ कररय मोशस सां / उजर क गत पर/ कुनू
कहित / कि / इथति स /अप्रयोजनीय/ अस्ि यी / दे खैत नजि छी / िमर
ि िमे / चमकैत पां चकमहनय ां भ ल / चशल पदल छी िम/ ल ल िु ि-िु ि रतत
सां / हपरिीक हिश ल िक्ष पर / शलखब ले ल एगो कहित / एगो कि /
एगो इथति स / आ स्ियां बहन जे ब क ले ल एगो घिन / एगो न म/ एगो
इथति स"
(अग्रजक न म-इथति सिां त )
व्यिस्ि पररिततन ले ल आरां भ भे ल एहि प्रक रक सां घषतकेँ तँ त त्क लीन सत्त
द्व र बलपूितक दब दे ल गे ल मुद ई सां घषत-चे तन जनत मे पसरर गे ल। ई चे तन
स मूहिक सां घषतक छल। मै थिली स हित्यमे से िो च िे कहित िो हक कि हक
उपन्द्य स एहि चे तन क अशभव्यक्ततकेँ आठम-निम दशकमे दे खल ज सकैत
अथछ। ओहिसँ पूित मै थिली कहित क जे प्रिृथत छल से आधुहनक दृथिसँ
सम्पन्द्न रोम ां हिक , प्रगथति दी आ नि कहित क रूपमे अशभव्यतत भऽ रिल
छल। ड . िररमोिन थमश्र अपन पोिी 'आधुहनक मै थिली कहित 'मे शलखलहन
अथछ जे "रोम ां हिक कहित मे प्रमुख रूपें स ौं दयतक िणतन िोइत छल।
प्रगथति दी कहित मे सम जजक ि स्ति अि तत सम जजक हिषमत , सम जजक
कुरीथत, गरीबी, शोषण, अत्य च र आददक िणतन िोबए ल गल"। मै थिलीमे
रोम ां हिक कहित भुिनजीसँ , प्रगथति दी कहित य त्रीजीसँ आ नि कहित क
आरां भ र जकमल चौधरीसँ म नल ज इत अथछ। नि कहित क प्रितत क
रूपमे र मकृष्ण झ 'हकसुन'क योग दन मित्िपूणत रिल अथछ। ड . िररमोिन
थमश्र ओहि पोिीमे ईिो किै छथि जे "प्रगथति दी कहि अतीतक हिरोध करै त
छल ि हकन्द्तु भहिष्यक प्रथत पूणत आस्ि ि न छल ि क रण हुनक
लोककहनक समक्ष भहिष्यक कोनो एिन स्पि थचत्र छल। नि कहिक समक्ष
भहिष्यक एिन कोनो स्पि थचत्र नहि अथछ। ति हप ओ निक स्ि गत करै त
छथि क रण जे ओ िततम नसँ अत्य थधक आशां हकत ओ सां त्रस्त छथि"।
134 ||गजेन्द्र ठाकुर
हपरिी पर
एहि हिर ि सुन्द्नर हपरिी पर
ईश्वर नजि छल
मनुतख स पहिने
छल जां गल पि ड
झरन नदी
पशु प खी ....
प्रयोजन नजज छलै
ओकर सभ के ईश्वरक
मनुतख के भे लै
आहिभूतत िोमय लगल ईश्वर
एकक पि त् एक
रम
कृष्ण
ईश
मुिम्मद
बुद्ध
मनुतखक कल्य ण िे तु
ईश्वर अहिनश्वर
आबय लगल
रिय लगल
आलोहपत िोइत चल गे ल मनुतख
एकक पि त् एक
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 139
कुम्ि रक च क सँ चम रक ि कु सँ जनमओ
िम च िै छी
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िम च िै छी िमर कहित
मि नगरक कोनो शीत-त प-हनयां शत्रत
सभ ग रमे भर सुसज्जजत, सजजन समुद य
मध्य नहि पढ़ल ज य
कोनो क रख न क गे ि पर
मजूरक बीच, खे तक आररपर
झिरै त मे धक बीच स ररबद्ध
धनरोपनी करै त श्रथमकक समक्ष िम च िै छी
िम इएिि च िै छी
अपन कहित क ले ल ।
(िम च िै छी, ल ख प्रश्न अनुत्तररत)
लोकक प्रथत सां िेदन त्मक स्तरपर जुडल रिल जरूरी अथछ। तौं कहि कहि
उठै त छथि।
शलखब ले ल बै सै छी
गां ग अितरण कि
शलखने चल ज इत छी
कोशी प्र ां गणक व्यि
िसन्द्त-गीत जे
आक शक नहि
पररिे शेक उपज थिक ।
(िसन्द्त गीतक म दे , ल ख प्रश्न अनुत्तररत)
कहि र मलोचन ठ कुर िमर सभ ददनसँ आकृि करै त रिल ि अथछ। तकर
आध र हुनकर ओ सुस्पि िै च ररक ले खन थिक जे एक सां ग भ ष आ
स हित्यक प्रथत सम न भ िे एकल हनष्ठ आ समपतणकेँ दश तबैत अथछ।
स हित्य स धन क म ँ ग करै त अथछ। स धन ले ल च िी एक ां त। एक ां त
िै च ररक सुदृढ़ीकरण ले ल अत्यां त आिश्यक म नल गे ल। सां गहि एक ां त भ ि
आ शब्दक उप सन क ले ल से िो अिक श उपलब्ध करे ब मे स ियक िोइत
अथछ। मुद भ ष ले ल च िी आां दोलन। आां दोलन ले ल एक ां तसँ बिर व्यक्तत
आ व्यक्ततसँ जुहि एकि स ितक सां गठनक ख िे तँ हनम तण करब िोइत अथछ
अिि हनर्मित सां गठनक सां ग भऽ अपन गथत आ त्िर सँ सां गठनकेँ ददश दे ब
थिक। र मलोचन ठ कुरक जेँ हक मै थिली भ ष आ स हित्य ले ल सद
समर्पित रिलहन अथछ, पौर जणककेँ िततम नमे स क र करब क ले ल समर्पित
रिलहन अथछ तेँ हुनक द्व र रथचत मौशलक स हित्यकेँ भ ष आां दोलन आ
त हि ले ल उत्खहनत-अहिष्कृत हिच र सां ग जोहड दे खल ज एब आिश्यक
अथछ। िमर एखन अपन कहियोक पढ़ल मोन पहड आएल अथछ जे प हनक
146 ||गजेन्द्र ठाकुर
तहिय िम जनकपुरध मसँ अचतन द्वैम शसक रुपें हनक लै त रिी । जे तहिय
ड क सुलभत क क रणे क फी ठ ममे ज इक, कलकत्त से िो । दोशसल
ियन मे तकर हिज्ञ पनो छपल करै क । िम प्र रां भे सँ दे खखल ियन सँ जूडलहुँ
152 ||गजेन्द्र ठाकुर
“म नै छी मीत
हकन्द्तु
िम ब ध्य छी
हनर श क हबडरो
शलखब ले बै सैछी
कि आज दीके
154 ||गजेन्द्र ठाकुर
व्यि बे रब दीके
से ओ प्रक र न्द्तरसँ स्ियां स्िीक र कयनहुँ छथि, तखन जखन दे शसल बयन
पां थयजकरणक क रणे दे सकोस न मसँ बिर यल त तकर पहिल अां कमे
सम्प दकीय शलखै त ठ कुरजी व्यि व्यतत करै त दे शसलबयन के स हित्य
हिशे ष ां क (अतिु बर १९८२) क ब द बन्द्न ियब क मूल क रण ले खकीय
असियोग किने छथि ।
‘दे शसल बयन ’ एक िषत चलल । एहि एक िषतक प्रत्ये क अां कमे र मलोचन
ठ कुरक उपस्स्िथत हिशभन्द्न रुपमे दे खब मे अबै त अथछ । कते को स्तम्भ सभ
दे खख पडै छ– सभक भ ष –बोलीमे ठ कुरजीक कलमक चमत्क र दे खख पडै छ
। मै थिली भ ष क उत्ि नक िे तु गदठत भे ल मै थिली मुक्तत मोच तक
ि न्न्द्तक री उद्बोधन एहि पशत्रक क स्िर सन्द्ध न रिलै क आ तकर सां रक्षक
प्रेरक रिल ि र मलोचन ठ कुरजी । िमिँ ाु एहि पशत्रक सँ जूडल रिलहुँ ।
मुद कि , कहित धरर म त्र नहि रहि पौलहुँ । दे शसल ियन क िषत १, अकांक
२ निम्िर १९८२ ई. क अां कमे ते सर पृिपर िमर एकि ले ख छपल–‘मै थिली
आन्द्दोलन–मै थिलक आन्द्दोलन बनब पडत ’ । आइ जखन उनच शलस िषत
पूितक अपन एहि ले खके पिै त छी त लगै ए इिो ठ कुरे जीक रँ गमे रां गल ले ख
छल, जे तहिय म ने च रर दशक पूित आन य स शलखब पर ब ध्य भे ल रिी ।
आ त हि ले खक जे भ ि अथछ ओ आइयो मै थिली भ ष , स हित्यक्षे त्रमे
ओहिन दे खल ज इछ, कोनो पररिततन नहि, बरु सां कुचन बे सी । आजुक भ ष