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96 ||गजेन्द्र ठाकुर

जे कोनो रचन क र कोनो समय-क्षे त्र हिशे षक िोइतो हुनक रचन क गमगमी
दग् -ददगां तमे पसरै त अपन स ितक अनुभूथत कर ज इत अथछ। ईिो सत्य अथछ
जे र मलोचन ठ कुर दे खल-भोगल अनुभथू तक थचत्रण करै त छथि। तें रचन
सभमे अपन स ितकत क बोध करबै त छथि। किब जे कोनो रचन क रकेँ
अपन आत्मकि क बोध नहि करे ब क च िी जे ओ करौने छथि। ई ओ एहि
क रणे केने छथि जे हिनक व्यक्ततत्ि अपन कृथतत्िक सां गहि अथछ जकर ओ
दे ख र केने छथि। ओ क ज केने छथि से स हित्यधर्मित ओ आन्द्दोलनधर्मित
हनि ति करै त केने छथि। ई हुनक थमथिल -मै थिलीक प्रथत पूणततः समपतण भ ि
थिक। ओ हिशुद्ध कहि छथि। िमर जनै त नीक कहित शलखब बड्ड कदठन
क ज िोइत अथछ। क रण,नीक कहित ओ िोइत अथछ जकर अित म त्र
कहिते मे सीथमत भऽ कऽ नहि रहि ज इत अथछ। प्रत्युत ओकर ममत प ठकीय
अन्द्तमतन धरर पै शस कऽ ओहि प ठकीय म नशसकत केँ सदै ि ि ौं डैत रिै त अथछ।
जते क खे प पढ़ब तते क नीक आस्ि द ग्रिण करै त ज एब। ईिो कहि दे ब
अनगतल नहि िएत जे कोनो कहिक सभि कहित नीके नहि िोइत अथछ।
तखन अनुप तमे सम्म न दे बेए पडै ए। ईिो सत्य अथछ जे क लजयी कृथत
अबस्से जहिल स्तरपर आधृत िोइत अथछ जे बे र-बे र पढ़ल पर नि आस्ि द
करबै त अथछ। र मलोचन ठ कुर सभ तरिक आ सभ ियसक ले ल कहित
शलखलहन। तें ब लसँ लऽ कऽ बूढ़ धररक कहित आएल अथछ। एहिमे हकछु
नीक कहित अबस्से अथछ। हकछु मे आिोशमूलक स्िर हिशे षे भऽ आएल
अथछ। ख ौं झ िहिमे शलखल गे ल कहित कने क हिशे षे उग्र भऽ आएल अथछ।
हकछु कहित मे बौशद्धकत क त प अथछ। जे गां भीरत ले ने आएल अथछ।
थमथिल क आच र-हिच र ओ सभ्यत -सां स्कृथत से िो कथतपय कहित मे
अशभव्यतत भे ल अथछ। सृथि हिस्त रक िममे हिनक कहित सभ
उत्ि नपरक अथछ। कैकि कहित क सरलत ओ सिजत जे
अशभध त्मकत मे अथछ तँ से िो त हि िां गे ज हि शशल्पमे रथचत अथछ से हिशे षे
बनै त अथछ। ओ स्ियां स्िीक रने छथि जे –
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 97

--
िमर सभकेँ अपने शलखब क अइ
अपन इथति स
जे सररपहुँ थिक सां घषतक
िगत सां घषतक

(इथति सिां त -सम नधम तक न म)

हिनक छोि-थछन कहित सभ से िो सां घषतक चुनौती दै त अथछ। कहित छोि


िो ि हक पै घ से तते क मित्ि नहि खै त अथछ। मित्ि अथछ जे जन-सां िेदन केँ
झकझोडब मे कोन की जीिन सत्यसँ स क्ष त् करबै त अथछ। सम जक
हिडां बन , हिसां गथत, हिरपू त आददकेँ को तरिें आ कोन कऽ प्रस्तुथत कएल
गे ल अथछ जे जन-जनक हियमे पै शसक कऽ अपन सम थ्यतबोध दे खबै त अथछ।
समयबोध अबस्से हनरखरर उठए एहि सभ ब तकेँ र मलोचनक कहि हृद्य नीक
जक ँ जनै त-बुझैत छथि। ओ नीक जक ँ जनै त छथि जे हबनु हिच रें रचन भै ए
नहि सकैत अथछ। हिनक रचन मे हिच र आएल अथछ से रथच-पहढ़ कऽ। कतहुँ
जँ अलगलो अथछ तँ ते न भऽ कऽ नहि। तें रचन हिशे षे मूतत अथछ, अमूतत
नहि। ओ उद रीकरणपर चोि करे त शलखै त छथि-
"ई हगद्ध सभ नहि ख इछ म ँ स
म ँ सक दू िू क ल उहड ज इछ
दूर दे श
हबन कोनो रोक-िोक हनय तत
उद रीकरण

(एहि मि श्मस नमे - ल ख प्रश्न अनुत्तररत)


98 ||गजेन्द्र ठाकुर

ओ स्ियां न िकक र छथि। न िकीय कल -कौशल छहन। एहि न ट्य तत्िकेँ


से िो अपन रचन क म ध्यम बनौलहन अथछ। न िकीय गुण िे ब क फलस्िरूप
हिनक कथतपय रचन उत र-चढ़ ओक िममे अथछ। ओ अपन जझिनक
खूजल पन्द्न पढ़ब क ले ल 'स गर लिरर सम न '(२०१७) शलखलहन अथछ जे
जीिनक पृष्ठ दर पृष्ठ अां हकत भऽ आएल अथछ। ई पोिी सां स्मरण त्मक िोइतो
आत्मकि क बहुतो अां शकेँ समे िने -बिोरने अथछ। तें ओ आत्मकि त्मक पोिी
किल ज सकैत अथछ। एहिमे थमथिल -मै थिलीक गथतहिथधक बहुतो ब त
आएल अथछ। स ां स्कृथतक क यतिम, आन्द्दोलनपरक ब त सभ आएल अथछ।
लोकक चररत्रकेँ न ँ गि-उघ र करै त ओ स्ियां शलखलहन अथछ-
हकछु लोक कूपक बें ग सन
सां स रकेँ जनै त अथछ
इथति सकेँ आरां भ अपने
जन्द्मसँ म नै त अथछ
ओ समय आ सम जपर कि क्ष करै त बहुतो ब त सभक जीिां त चररत्र थचत्रण
केलहन अथछ। आपकत केँ बच कऽ रखब क थचन्द्त सदै ि रिलहन अथछ। ओ
जखन कोनो दरां गी नीथतकेँ दे खलहन आ से स हित्यक रगणमे मिां िी
स हित्यक रक कुक्त्सत हिय कल पकेँ दे खलहन तकर ओ खुजज कऽ उघ र
करबे केलहन। एकि ब त ईिो कहि दे ब आिश्यक बुझैत ची जे मे थिलीक
बहुतो उजतस्ि रचन क र लोकहन मै थिलीक मिां ि लोकहनक खडयां त्रक री
नीथतसँ उहबय कऽ मै थिली शलखन इ छोहड दे लहन। फल भे ल जे ओिन
रचनक रक अमूल्य ले खन रत्न-मां जूष सँ सजग प ठक िगत िां थचत रिल आ
भ्रि गोलौसीि द मिां ि लोकहनक अपन सडल-गलल रचन लऽ पुजबै त
रिल ि, सम्म हनत िोइत रिल ि आ स्ि िति दी नीथतमे प ठककेँ अपन रचन
पढ़ब क ले ल ब ध्य करै त रिल ि। यै ि सभ र मलोचन ठ कुरक रचन क रकेँ
ा रो धधकबै त रिल। ओ स्ियां पजरै त रिल ि आ बहुत हकछु शलखब क ले ल
ब ध्य िोइत रिल ि।
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 99

ओ सफल अनुि दक छथि। ज सकै छी हकन्द्तु हकए ज उ, पद्म नदीक म ँ झी,


नां ददतनरके आददक सफल अनुि द केलहन। हिनक जनसम्म न अबस्से
बे िलहन। एहिमे भ ष -भ रती सम्म न, प्रबोध स हित्य सम्म न हकरण स हित्य
सम्म न आ आनो सां स्ि सभक सम्म नसँ ओ समलां कृत भे ल ि अथछ।
अते क तँ अिश्य किल ज एत जे ओ शलतख ड छथि। ओ जे हकचु शलखलहन
से अबस्से अपन जीिनमे भोगल यि ितकेँ उभ रलहन। सां बांधक बदलै त
दि बमे सम जजक मुद्द सभकेँ उठ कऽ रखलहन। हिनक दूरदृथि अबस्से रिल
अथछ जे सभ सम जजक दि बमे शलखल गे ल किी तँ प्रखर चे तन क स्िर लऽ
आएल अथछ। एकि ब त ईिो किब अनगतल नहि िएत जे िीत-मीतसँ बे शसए
ओ शत्रु बनौलहन। तै यो जे ओ िपन नि जमीन ले खनक उितर शक्ततसँ
बनौलहन से अबस्से किल ज सकैत अथछ आ यै ि ब त िमर नीक लगै त
अथछ।

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


100 ||गजेन्द्र ठाकुर

शशिशं कर श्रीवनिास- सां पकत-9470883301

रामलोचन ठाकु रक 'बे तालकिा'

'बे त लकि ' र मलोचन ठ कुरक व्यां ग्य रचन थिक, जकर ओ "ि स्य-
व्यां ग्य" हिध क रूपमे शलखलहन अथछ। र मलोचन ठ कुरक अन्द्य न म अथछ-
अग्रदूत, कुम रे श क श्यप ओ मजतब अली। उतत न म सभ ओ अपन पोिी
'ल ख प्रश्न अनुत्तररत (कहित सां ग्रि)' मे दे ने छथि। बे त ल कि कुम रे श
क श्यपक न मसँ शलखने छथि टकितु हकएक से एहि प्रसां ग हुनक कोनो मां तव्य
प्र प्त नहि अथछ। एहि पोिीक प्रक शन 'हिदे ि पबशलकेशन्द्स' कलकत्त सँ
1981 मे भे ल अथछ। व्यां ग्य स हित्त्यकहिक हिध थिक, जकर अित िोइछ
कि क्ष करब जे शब्दक व्यां जन शक्ततसँ प्र प्त िोइत अथछ। ि स्यक अित
उपि स िोइत अथछ जे कतौ ने कतौ व्यां ग्यबोधक अथछ। ओन ि स्य िँ सब क
ले ल, मनोरां जन ले ल से िो प्रयुतत िोइत अथछ। थमथिल मे सां बांधनक अनुस र
ि स्यक पररप िी रिल अथछ ज हिमे उपि स कम सां बांधबोधक मधुरत बे सी
रिै त अथछ। एिन ि स्यमे मनोरां जनक उद्ये श्य रिै त अथछ।मै थिली स हित्यमे
प्रो. िररमोिन झ क हिशभन्द्न हिध मे शलखल ि स्य-व्यां ग्य भे िैए। हिनक
स हित्यमे िमर सभ ददन ओहि हिध क शशल्पमे ि स्य बोडल भे िल मुख्य
व्यां ग्य अथछ ज हि म ध्यमे ओ (िररमोिन झ ) सम जमे सुध रक आक ां क्षी
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 101

रिल ि आ लोकथप्रय भे ल ि।

थमिल मे केकरोपर व्यां ग्य करब क िे तु म न चढ़ कऽ बजब क से िो स्िभ ि


रिल अथछ। जे न हक कहि रिल छी केकरो हिषयमे आ ओकर अित खुजज
रिल छै केकरोपर। िमर जनै त एहि पोिीक रचन मे कुम रे श क श्यप अि तप
र मलोचन ठ कुर एहि स्िभ िक अनुस र कि क रचन करै त अपन रचन क
उद्ये श्यक पूर्ति कयलहन अथछ। आ ई ब त हिनक िररमोिन झ सँ फूि करै त
छहन।

एहि पोिीक न म अथछ "बे त ल कि '।

सां स्कृत स हित्यमे बे त ल भट्ट द्व र शलखखत 'बे त लपञ्चटििशथतक ' कि


सां ग्रि प्र प्त िोइत अथछ। एहि पोिीक पचीसो कि मे हििम ददत्यक न्द्य य
प्रथत हुनक दृढ़त दे ख ओल गे ल अथछ। टििदी स हित्यमे से िो अने क अपन -
अपन िां गक बे त ल कि हिशभन्द्न न मसँ अथछ। र मलोचन ठ कुरक
'बे त लकि ' पोिीमे प ँ च ि बे त ल कि , एकि तोत -मै न सां ि द अि कि
चमच पुरण प्रसां ग ओ एकि ल लबुझतकर हिद्य पथतक बखी' कुल स त ि
कि अथछ। 'तोत -मै न सां ि द अि कि चमच पुरण प्रसां ग ' उतत सां ग्रिक
पहिल कि थिक। एहिमे रचन क र अपन भ ष क थचन्द्त करै त छथि, हिनक
किब अथछ जे ज ित मै थिली क यतलयक भ ष पढ़ौनीक भ ष नहि िएत
त बत हिशभन्द्न सां स्ि मे म त्र स्िीकृथत भे ल सँ मै थिलीक उथचत हिक स सां भि
नहि अथछ। आ ई क ज तखने िएत जखन जनत ज गत हकन्द्तु से कोन
िएत? एहि भूथमक ने त एहि भूथमक रहितो ददल्ली दरब रक पूज मे रिै त
अथछ आ सम जक लोक बहन गे ल अथछ दरब री जकर ओ चमच किलहन
अथछ। िततम न स्स्िथत (रचन क ल आ एखनो जे ओहिन हिद्यम न अथछ)केँ
दे ख कि क र अपन कि क इथत करै त छथि। उतत ब त हनखित रूपें सम ज
ओ एकर र जनीथतक पृथष्ठभूथमपर व्यां ग्य अथछ। अपन भ ष क प्रथत अते क
102 ||गजेन्द्र ठाकुर

आस्ि रखहनि र र मलोचन ठ कुर एहि कि क न ममे सूग बदल तोत


शलखलहन। ओन सूग आनो भ ष मे प्रयोग िोइत अथछ हकन्द्तु मै थिलीमे
"सूग ", "सुग्ग " शब्द सएि प्रयोगमे रिल अथछ। िँ , इम्िर आहब
कऽ हिशभन्द्न प्रभ िे 'तोत ' से िो किल ज इत अथछ। हकन्द्तु र मलोचन जी
'सूग ' नहि लीखख 'तोत ' शलखलहन , ई नीक नहि लगै त अथछ। भऽ सकैए
जे हिन्द्दी भ ष मे "तोत -मै न "क कि जे गद्य ओ पद्यमे प्रशसद्ध अथछ से
हिनक से िो न म दे ब मे प्रभ हित केने िोइन।

'हिद्य पथतक बखी' मे ले खक िततम न समयमे शशक्ष जगतमे िोइत शोध-


क य तददपर व्यां ग्य केलहन, जे बहुत म र्मिक अथछ। हिद्य पथत पद िलीमे जे मूल
ब त अथछ, ज हि क रणे ओ जन-जनक कहि छथि ओहि सभसँ फफूि हुनक
युग-चे तन क रूपमे नहि अन्द्य हिशभन्द्न रूपमे हुनक छहिकेँ आध र म हन शोध
प्रस्तुत करै त पी.एच.डी प्रद न कएल ज रिल अथछ। ले खक अपन रचन क
बलपर नहि अन्द्य क रणे मि न घोहषत कएल ज रिल िे । एहि सभपर हिनक
व्यां ग्य हनखित रूपसँ सचे तक अथछ। एहिठ म एकि ब त आरो िम किी जर
व्यां ग्य रचन जहिन स ध रण प ठक ले ल बहुत रुथचप्रद ओ प्रेरक िोइत अथछ
ओहिन हिसां गथतक री ले ल असह्य ओ त्य जय। प्रो. िररमोिन झ पर से िो
परां पर ि दी लोकहन हिशभन्द्न तरिेँ अपन िोध प्रगि केने छथि।र मलोचन
ठ कुरक रचन व्यां ग्य रूपमे एते क तीक्ष्णत सां ग आपकत रखने टकितु हिनक
व्यां ग्यक र रूपमे नहि चीन्द्िल गे ल से आियत, जखन हक हिनक रचन मे
समयक अद्भत
ु पकड अथछ आ व्यां ग्यक सिीक चमत्क र।

उतत दूनू कि क ब द हिनक शुरू िोइत अथछ- बे त ल कि । पहिल कि


अथछ कुसीक मि त्म्य।

हिनक बे त ल कि प रां पररक बे त ल कि सँ फूि अथछ। एहि कि मे


हििम ददत्य छथि, बे त ल छथि टकितु दूनू चररत्र पूणततः आजुक समय नुस र
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 103

नि पररध न ओ नि प्चितनमे अथछ। 'कुसीक मि त्म्य'मे हििम अपन कुसीक


सुरक्ष च िै त छथि।

एहि कि मे रचन क र िततम न समयमे जे सत्त सीन ने त क चररत्र अथछ ओ


हििम ददत्यमे आरोहपत केलहन अथछ। एिन हििम ददत्य अपन परमथप्रय
सल िक र बे त लसँ मां त्रण करै त छथि जे हुनक ससिि सन कोन ब ँ चल रित।
आ बे त ल हुनक युक्तत बुझ रिल ि अथछ। सत्त शसन व्यक्तत स्ि भ हिक
रूपसँ स मां ती मनोस्स्िथतक िोइत छथि। एिन लोक सम जमे हपछडल लोकक
उत्ि नसँ डे र इत छथि। उतत कि मे दुस धक बे ि न्द्य य-प्रहिय ओ
सम जक ओहि ददस ज इत रुखखसँ हििम डे र इत छथि। आ, ओहिसँ प्चिथतत
भऽ अपन ससिि सनक सुरक्ष क उप य बै त लसँ पुछैत छथि। उतत कि किै त
अथछ जे िततम न समय एिन भऽ गे ल अथछ जे र जने त सत्त पबै क ले ल
सां पूणत दे शक लोकमे मि न बनब क न िक करै त अपन सुख -भोगमे शलप्त
रिै त अथछ आ सददखन अपन कुसीक सुरक्ष िे तु अपन चमच द्व र अपन
महिम क ग न करबै त रिै त अथछ। उतत कि अतीतसँ िततम न अबै त अथछ
आ किै त अथछ जे एकि समय आओत जे ई कुसी ददल्ली (भ रतक
र जध नी)मे रित आ एहिपर बै सहनि र प्रध नमां त्री कि ओत। एहि तरिे
लोकतां त्र श सनमे व्यक्तत-पूज क खे लपर भय नक व्यां ग्य अथछ जे प ठककेँ
समयसँ स क्ष त्क र करे ब मे समित िोइत सचे त करै त अथछ।

कि अथछ 'हिप्लि'। 'हिप्लि' केर अित िोइत अथछ-ि ां थत, हिरोि।


र जसत्त केखनो अपन सम जजक हिरोि नहि च िै त अथछ। ओ एकर दबे ब क
ले ल सम जक बीच एिन चुप-चुप क ां ड करै त अथछ ज हिसँ सम जक ध्य न
ओहि ददस बँ हि ज इत छै क आ र जसत्त स्ियां क ां ड कऽ कऽ ओहि घहित
क ां डकेँ टनिद करै त सम जक सि नुभूथत लै त अपन प्रथत िोइत हिरोिक
ध र केँ बदशल दै त अथछ। एहि ब तकेँ बे त ल हििम ददत्यसँ िनर ज ससििक
104 ||गजेन्द्र ठाकुर

कि किै त छथि जे कोन ससििक ' प्र इिे ि से िेिरी चमच प्रध न श्रीम न
शृां ग ल शम त मां त्रण सँ बकरीक अपिरण कऽ ओकर म रर ख एल गे ल पुनः
िररणक अपिरण कऽ म रल गे ल आ स्ियां शे र ससिि एहिपर दुख प्रगि करै त,
भ षण दै त ज निर सभक सि नुभूथत पौलहन। र जसत्त क एहि भयां कर
खे लकेँ उघ र करै त उतत कि सत्त पर व्यां ग्य तँ कररते अथछ सम जकेँ से िो
सतकत करै त अथछ, जे ध्य न योग्य अथछ।

र मलोचन ठ कुर ज हि रूपेँ जन-म नशसकत सँ अपन व्यां ग्यमे र जसत्त क


चररत्रपर चोि करै त छथि ओ अत्यां त मित्िक अथछ। हिनक खूबी अथछ जे ओ
बहुत सिजे प्र चीन युगक प त्रकेँ िततम न समयक र जने त क चररत्रमे
आरोहपत कऽ अपन व्यां ग्य त्मक हिरोिक स्िर स्पि करै त छथि जे अत्यां त
मित्िपूणत ओ तथ्यपरक अथछ। हिनक रचन क आर खूबी अथछ जे ई अपन
व्यां ग्यमे ने तँ ल िथधक न म लै त छथि आ ने ने त क टकितु हिनक कि क लक
ओ ख स र जने त केँ से िो इां हगत करै त अथछ।

भ रतीय प्रज तां त्रक इथति समे इमरजें सी (आप तक ल) २५ जून १९७५ सँ
२१ म चत १९७७ धरर २१ म सक अिथधक बीच छल। एहि बीच भ रतीय
न गररक स्ितां त्रत थछन गे ल छलै क। हिरिी ने त , पत्रक र ओ जनपक्षक
लोककेँ जे ल भऽ गे ल छलहन। सत्त क हिरोधमे ब जबकेँ दां डनीय अपर ध
बूझल ज इत छल। दे शरोि बुझल ज इत छल। ई ब त िततम न समयमे से िो
कते क प्र सां हगक अथछ सिजहि बूझल ज सकैत अथछ।

एिन समय िे ब क क रणमे ज हि रूपेँ 'ब्रह्म क श्र प' मे इां रक त न -श िी,


ॠहष-मुहनक क र ग र ओ अन्द्य ब त दे ख ओल गे ल ओ अद्भुत रूपेँ दे शमे भे ल
'आप तक ल'केँ मोन प हड दै त अथछ। ओ समय आप तक ले थिक से आइ
स्पि िोइत अथछ जखन ब्रह्म हुनक आगूक जन्द्म न री िे ब क श्र प दै त छथि।
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 105

उतत कि मे आप तक लक जन-दुदतश केँ ज हि रूपेँ बे त ल-हििम ददत्यकेँ


कि सुन रिलै ए ओ इां रक प्रश सनमे चलै त अथछ। टकितु इां रकेँ न रीक श्र प
ज हि कुशलत सँ ओकर भे िैत छै क ओ सद्यः आप तक लक स्स्िथतक भऽ
ज इत छै क। कोनो व्यां ग्य अपन व्यां जन शक्ततक ई हिशे षत थिक जकर
किबी सां ग कहि सकैत छी जे 'घ ओ' कत्तौ आ पि कत्तौ' आ से
र मलोचनजीक रचन मे बहुत सिजत सां ग 'घ ओ आ पि' दूनू थचन्द्ि र िोइत
अथछ।

एहि रूपेँ , अद्भुत रूपेँ आप तक लक हिषम स्स्िथतपर हिप्पणी करै त उतत कि


जन-चे तन केँ झकझोहड कऽ जगे ब क क ज करै त अथछ जे हुनक व्यां ग्यकेँ
स ितक ऊँच इ प्रद न करै त अथछ। कोन लोक न यककेँ खलन यक, सद्गण
ु ीकेँ
दुगुतणी लोक कहि अपन अनुस र समयकेँ दे खख कऽ करै ए तकर उत्तम
उद िरण अथछ हिनक व्यां ग्य 'उत्तर मि भ रत'। ज हिमे बे त ल प ां डिकेँ
अन्द्य यी, कृष्णकेँ कुहिच ली सां बोधन कऽ कि किलहन अथछ। ओन
र जनीथतमे सभ हकछु केँ अपन हितमे शसद्ध करब क ब तकेँ सफल र जनीथत
किल ज इत अथछ, िमर जनै त प्रकर न्द्तरसँ बे त ल सएि किै छथि।

'अमर िती उपकि ' अद्भुत कि अथछ। एहि दे शमे आप तक लक ब द छठम


आमचुन ि भे ल। ज हिमे जनत प िी जीतल। किल गे लै जे भ रतीय
जनत केँ आब असल स्ितां त्रत भे िलै क टकितु की भे ल? तकरे व्यां ग्य कि
अथछ उतत कि । उतत कि किै त अथछ जे पुनः जनत ठकल गे ल। चुन िसँ
पहिने ने त लोकहन बहुतो आश्व सन दे ने छलखहन टकितु सभ हबसरर ज इ
गे ल ि। बे त लक शब्दमे "क रण तखन ई लोकहन कुसी हबिीन छल ि। कुसी
भे हिते हबसरर गे न इ स्ि भ हिक । आब कैसी ते री रां ग ! दोसर ब त जे इिो
लोकहन त कुनू ने कुनू रूप मे पुरने दल सां सम्बद्ध छल ि। रतत सम्पके ओिी
िां शक छथि ! आ ते सर ब त जे हबल हड जां म छक रखब र िो त पररण मक
106 ||गजेन्द्र ठाकुर

कल्पन सिजहि कएल ज सकैए।"

एत ित ईिो लोकहन जनत केँ भ्रथमत करै त अपन स्िगत भोगमे ल हग गे ल ि।


कि स्पि रूपसँ किै त अथछ जे एहि दे शक जनत ज ित स्ियां नहि ज गत,
त ित ओकर कल्य ण सां भि नहि छै क। एहि ब तकेँ किब क ले ल कि ज हि
तरिेँ व्यां ग्य त्मक रूपें अपन ब त किै त भ रतीय र जनीथतक दुदतश केँ समक्ष
करै त अथछ, ओकर प्रस्तुथतक हिलक्षणत बहुत प्रभ िी अथछ।

कि मे ने त क िे श-भूष ओ ओकर प्रिृथतकेँ समक्ष रखब मे रचन क र अत्यां त


सफल भे ल ि अथछ ततबे नहि ओ जनत क सहिष्णु स्िभ िकेँ से िो आलोचन
केलहन अथछ। हिनक किब अथछ जे जनत केँ अपन सिब क सीम केँ से िो
बूझक च िी। अन्द्य य ओ शोषणक हिरोधमे ठ ढ़ िे ब क च िी। ओतबे नहि
कि अपन प्रसां गसँ स्पि किै त अथछ जे जनत स्ियां अपन शोषणकेँ रोहक
सकैत अथछ, अपन स्ितां त्रत क द्व रर खोशल सकैत अथछ।

एहिठ म एकि ब त िमर किब आिश्यक बुझ इए ओ ई जे मै थिली


स हित्यमे व्यां ग्यपरक रचन मे कते को रचन क रक रचन छहन ज हिमे प्रो.
िररमोिन झ , अमरजी, छ त्र नां द आदद लोकहन प्रमुख छथि टकितु ई लोकहन
कोनो ख स हिध मे व्यां ग्यक सम िे श केलहन अथछ। िँ , एहिमे िररमोिन झ क
'खट्टर खक क तरां ग' केँ छोहड कऽ। 'खट्टर कक क तरां ग' हिशभन्द्न हिषयपर
शलखल सां ि द त्मक ि स्य (मनोरां जन िे तु, ि स्य उत्पन्द्न करब क िे तु)-व्यां ग्य
रचन थिक जे कोनो ख स हिध क अां तगतत नहि रहितो अत्यां त म र्मिक अथछ।
एहिठ म िम ईिो कहि सकैत छी जे िररमोिन झ उतत रचन व्यां ग्यकेँ स्ितां त्र
हिध क रूप दे लहन अथछ।

टकितु र मलोचन ठ कुर 'बे त ल कि ' मुख्य रूपसँ र जनीथतपर अपन रचन केँ
केंहरत कऽ ि स्यकेँ उपि ाेसक रूपमे व्यां ग्यमे सम हित करै त अपन रचन केँ
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 107

व्यां ग्य हिध मे क यम केलहन अथछ तें िम पहिनहुँ किलहुँ अथछ जे ई िररमोिन
झ क रचन सँ फूि अपन रचन केँ स्िरूप प्रद न केलहन।

हिनक पोिीक न म थिक 'बे त ल कि '। िम से िो हिनक रचन क व्य ख्य


करै त कएक ठ म कि शब्दक प्रयोग केलहुँ अथछ टकितु हिनक रचन कि
नहि थिक। ओ सभ थिक व्यां ग्य त्मक गद्य जकर 'व्यां ग्य रचन ' किल ज एत।
तकर क रण अपन हिध मे ज हि रूपें अपन घिन क सम पन सां ग कथ्यकेँ
दे ख र करै त अथछ से हिनक रचन मे नहि अथछ। कि मे जँ कतौ मूल घिन सँ
फर क लगै त हिषय दे ख इत अथछ तँ ओ अां ततः मूले घिन केँ स्पि करै त ओहि
सां ग सम हित भऽ ज इत अथछ।

टकितु र मलोचन ठ कुरक उतत रचन मे घिै त घिन ने कि जक ँ िमशः


सम्यक रूपें चलै त अथछ ने कथ्य धरर ज इत अथछ , अस्तु हिनक रचन प्र रां भे सँ
अपन कथ्य किै त पुनः चलै त आगू बढ़ै त अथछ जे हिनक रचन केँ कि नहि
बनए दै त अथछ, कतहुँ सां ि द कतहुँ कोनो घिन क िणतन, कतहुँ कोनो
सूचन त्मक िृत ां त हिनक रचन केँ म त्र व्यां ग्य रूपमे आगू बढ़बै त अथछ। आ
व्यां ग्यक ख स हिध केँ जनपक्षधरत क दृथिएँ आगू बढ़बै त अथछ जे हिनक
मित्िपूणत व्यां ग्यक रक रूपमे मित्िपूणत बनबै त अथछ।

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


108 ||गजेन्द्र ठाकुर

ददलीप कु मार झा-सां पकत-6207627509

एखनो मााँ वग रहलए उत्तर -' लाख प्रनन अनुत्तररत'

मै थिली कहित क जे प्रगथति दी ध र भुिनजीसँ प्र रां भ भे ल से य त्रीजी लग


अबै त-अबै त बे स भकर र भ' गे ल।र मलोचन ठ कुर ज हि प्रगथति दी ध र क
प्रथतहनथधत्ि करै त छथि से हिश्वमे हनत- नूतन िोइत पररिततनसँ प्रभ हित तँ
अथछये ,थमथिल क जे आर्ििक ,स म जजक दुदतश अथछ से हिनक कहित क
केन्द्र हबन्द्दुमे रिल अथछ।एहि म थमल मे य त्रीजीक मै थिली कहित से िो
थमथिल क स म जजक ,आर्ििक परस्स्िथतकक गिन हिश्ले षण करै त दे ख इत
अथछ।र म लोचन ठ कुरक कहित क अशभि एकि सुन्द्नर दुहनय ँ दे खब क
अशभल षी अथछ,ज हिमे म नि मूल्यक कीमतपर कोनो समझौत
नहि। हुनक कहित क केन्द्रमे एकि हिकशसत,शशजक्षत थमथिल क
पररकल्पन से िो रिलहन अथछ।कहिक रुपमे कहित शलखलहन, त हुसँ आग ँ
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 109

थमथिल क भ ष - सां स्कृथतक रक्ष क ले ल, थमथिल क अस्स्तत्िक फर क


पररथचथत बनल रिय त हि ले ल दरभां ग ,पिन सँ कोलक त धरर अने को
आन्द्दोलनमे भ ग ले लहन। एकि आन्द्दोलनी व्यक्ततत्ि छथि कहि र मलोचन
ठ कुर।कहित शलखख क' सुथत नहि रिल ि।अपन कहित कें हिय शीलनक
अिस्ि मे अनब क जे कोनो प्रय स सां भि छलहन से ओ करै त रिल ि ख िे
ओ रां गमां चक म ध्यमसँ िो ि पत्र -पशत्रक क सां प दनक म ध्यमसँ ।सम्प्रथत
हकछु ददन पूिततक थमथिल दशतन पशत्रक क सां प दन करै त रिल ि अथछ।अपन
प्रश्न सभक उत्तर िे रैत रिल ि अथछ।एकि ते ज छ त्र अिसर भे हितहि
शशक्षकसँ अने को प्रश्न करय लगै त अथछ से र मलोचन ठ कुर अपन कहित क
म ध्यमसँ ल ख ें प्रश्न करै त छथि।िम ब त क' रिलहुँ अथछ हुनक कहित क
सां ग्रि 'ल ख प्रश्न अनुत्तररत' के प्रसां ग।एहि आले खमे , सां ग्रिमे सां ग्रहित हुनक
कहित पर हकछु ब त तँ करबे करब।िम एहु ब तक पडत ल करय च िब जे
एखन धरर हुनक प्रश्न सभक हकछु ओ उत र भे िलहन की नहि!

कहि शलखब लए बै सैत छथि गां ग अितरणक कि ,शलखने चशल ज इत


छथि कोसी- प्र ां गणक व्यि । कहिकें थमथिल क लोकक पीड कखनो दोसर
िस्तु सोचब ले ल पलखथत नहि दै त छहन।ओ हिश्वक प्चितन करै त
छथि।दुहनय ँ मे अने क रां गक सां कि उपस्स्ित छै क त हिपर कहि अपन प्चित
व्यतत करै त छथि मुद फेर अनचोके ब जज उठै त छथि-
रततिीन,म ां सिीन/कांक लक दे श/िमर म तृभथू म /थमथिल ई

हिख्य त भुिनत्रयम्

हबसरल हक ज इत अथछ।

कहि अपन दे शमे प्रसन्द्नत तकै छथि।आज दीक ब द भ रत कते क तरतकी


केलक? भ रतक हिक समे थमथिल क की ि लथत छै क तकर से िो सां गे -सां ग
110 ||गजेन्द्र ठाकुर

पडत ल करै त छथि।कहि कहि उठै त छथि- शलखब ले बै सै छी

कि आज दी के/ब्यि बे रब दी के शलख यल चशल ज इत अथछ।

सररपहुँ कहि की शलखथि? हकये क शलखथि? तकर हनणतय नहि क' पबै त
छथि क रण स्पि छै ।दे श सम ज ददन- ददन ओझ रइते ज रिल अथछ।अपने
ग ममे िमसभ अनदठय अनथचन्द्ि र भ' गे ल छी।जकर कोनो पत ठे क न
नहि ब ँ चल अथछ।सररपहुँ कते क असिनीय पीड िोइछ कोनो सां िेदनशील
व्यक्ततक ले ल जखन ओकर पररथचथत सम प्त िोब' लगै त छै क।मुद त हि
ले ल कहि किै त छथि एकर सम ध न बै शस क' कनल सँ नहि िै त।एकर ले ल
करय पडत उद्यम।थचन्द्िय पडत अपन शक्ततकें।ज हिसँ एकि समृद्ध ओ
सुसांस्कृत भ रत ओ थमथिल क हनम तण क' सकी।

र म लोचन ठ कुरक जन्द्म ग ममे भे लहन। ने नपनसँ हकशोर िस्ि धरर ग मे मे


रिल ि मुद दरररत थमिल क ले ल सभददन अशभश प रिलै क से युि
र मलोचन ठ कुर चशल गे ल ि कलकत्त ओतय जे न - ते न हकछु उप जतनक
सां ग अपन आग ँ क अध्ययन से िो करै त रिल ि।थमथिल क सोन्द्िगर म हिक
सुगन्न्द्धसँ शशतत एहि कहिक मोन- प्र ण नहि रमलहन कोनो आन ब िपर ओ
सददखन ठ ढ़ भे िल ि अपने म हिपर।ओ कलकत्त मे से िो मै थिली हबषय
पढ़लहन।त हि ददन कलकत्त हिश्वहिद्य लयमे मै थिली पढ़ इ िोइत छलै ।सां गे
सां ग मै थिलीमे ले खन ददस से िो उन्द्मूख भे ल ि।भ रत ग मक दे श अथछ आओर
थमथिल ग मक प्रदे श ,से ग म र मलोचन ठ कुरकें सभददन आकर्षित करै त
रिलहन।कहिक मोनमे जे अने क प्रश्न उमरै त - घुमरै त रिलहन अथछ त हिमे
ईिो एकि प्रश्न रिलहन जे भ रत ग मक दे श अथछ तँ भ रतक हिक सक
म नथचत्रपर ग म कतहुँ हकये क नहि दे ख इत अथछ? सभठ ां नगरे क चच त -
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 111

िच त अथछ।नगरे क हिक स ले ल सां सद आ हिध नसभ मे योजन क हनम तण


िोइत अथछ ।तखन ख ली जब नी जम खचत सँ ग मक हिक स
कोन िै त?ग म लग त र हिक सक दौडमे हपछहड रिल अथछ।ग मक लोक
पर क' शिरमे शरण गत भ' रिल अथछ।त हि स्स्िथतमे कहिक मोनमे ई प्रश्न
घुररआयब स्िभ हिके छहन। जखन कहि अपन कहित मे ब जज उठै त छथि-

' टकितु श्रीम न्

अपने त' किने रहिअइ

भ रत ग मक दे श थिक

आ एहिठ म त' अगबे शिरे - शिर छै

ग म कि ँ छै ,अपन सभक ग म...'

कहिक मोनसँ एको पलक ले ल ग म ब िर नै भ' पबै त छहन।रिै त छथि नगरमे ,


ग म बषतमे एक दू बे र आहब ज इत िे त ि सएि बहुत।च िी तँ अि ँ हुनक
न स्िे ज्ल्जक बुजझ सकैत छी,मुद से अपने जे बुजझ कहिक मोनमे ग म रचल
- बसल छहन।कहिक म नस पिलपर अपन ग मक अने क रां गक थचत्र उभरै त
छै क।हुनक मोन पडै त छहन अपन ग मक शशि मां ददर,डीिब रक
स्ि न,मसजजद। म ने सभ ज थत धमतक सदभ िसँ बनल ,बसल ग म।हुनक
मोन पडै त छहन-' पसरमे ज इत चरब िक पर ती

आ स ँ झ मे
112 ||गजेन्द्र ठाकुर

दूर नदी क तसँ

ब ध -बोनसँ भ सल अबै त

ब रिम स क स्िर

आङनसँ

िे की ज ँ तक सां गीतक सां ग

लगनीक स्िर

कहियो सोिर, कहियो समद ओन

कहियो थतरहुत जे

कहियो थमथिल क ग मक पररथचथत छल'

एतबे नहि हुनक म नस पिलपर ग मक सां स्कृथतक सभि रां ग दे ख इत


छहन।गमै य पूज क सडोर,

जि-जहिनक खे ल,तजजय क सां ग झरनी गीत,फगुआ ,जुडशीतल सहित


सभि प बहन थति रक पुरन स्िरुप आ ग मक लोकक मे ल थमल पक सां ग
जीिन हबत यब ।।ग मक स म जजकत ,एक दोसर क सां ग पुरब।सुख- दुखमे
सां ग रिब सभि मोन पडै त छहन।

कहि त हक रिल ि अथछ अपन ओिे न ग म।

एहि भूमांडलीकरणक दौडमे आब ओ ग म भे िब मोशहकल छहन। एहि सां ग्रिक


अथधक ां श कहित भ रतमे भूमांडलीकरणक आरां शभक समयमे शलखल गे ल
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 113

अथछ।आइ तीस बखतक ब द कहित क अशभि हनजगुत बुझ रिल अथछ।जां -


जां ददन हबतै त ज एत समय आर फरीछ िोइत ज एत ।एहि भुमांडलीकरणमे
स ां स्कृथतक हिहिधत क लोप भ' रिल अथछ।ओन तँ सगरे सां स र एहि
स ां स्कृथतक ओ आर्ििक आिमणक शशक र भे ल अथछ मुद थमथिल एकि
तन्द्नुक मनोस्स्िथतिल प्रदे श अथछ, जे बहुत तीव्रत सँ दोसर क दे ख ँ उस करै त
अथछ।कहि एहि प्रिृथतसँ दुखी छथि,प्चिथतत से िो।आनक थछछ उत रब मे
मस्त रिै त अथछ।

'अए िओ बुढ़ब त ें आज दी दे खने छिक?

सत्त-सत्त कहिि'

ओ बकर- बकर त कय ल गल िमर मुि

'आज दी िओ आज दी दे खने छिक?

िम ओकर बुझबै त ब जल रिी

आ एगो दीघत हनस स छोडै त ब जल छल र मल ल--

'बौआ ,एहि अस्सी बरखक ियस मे

िम त'ख ली बे रब दीए दे खैत आयल छी

कहियो रौदी ,कहियो द िी

कहियो िै ज ,कहियो मै य पहपय िी

कहियो जप्मिद रक जुलूम आ


114 ||गजेन्द्र ठाकुर

आब त' ओकर सां ग पुरैत छै ि न क शसप िी'

से आज दी के पचित्तरर बरखक ब दो की ि लथत छै क दे शक?


आइ भीतररय आ बिररय दुनू क तसँ दे शपर आिमण छै क।दे शक
सां स धनपर सीथमत लोकक अथधक र छै क।र जनीथतज्ञ, अपर धी ओ
व्यिस थयक तीन तरफ गठजोड सँ आम लोक त्रस्त अथछ।पचित्तरर बरखक
आज दीक ब दोआइ भ रतक बच्च सभकें गुणित्त पूणत सम न शशक्ष क
अथधक र नै भे हि सकलै ।भ रतक शशक्ष केिे गरीमे बिल छै क।अमीरक ले ल
अलग शशक्ष आ गरीबक ले ल अलग।एखन धरर सभक ले ल स्ि स्थ्य सुहिध
सपने अथछ।तखन एकि आज दी तँ अिश्य भे िलै क अथछ से बजब क
आज दी।जकर जे फुर रिल छै क से ब जज रिल अथछ ।से लोकतां त्र आ
दे शक म य तद क उल्लां घन करब से िो कोनो सां िेदन त्मक ब त नहि
रिलै क। दे श प्रेमक अथति द से िो छै क तँ दे शक हिरोधमे , हिरोधमे न र
लगे ब सँ से िो कोनो बन्द्िेज नहि,कोनो परिे ज नहि।दे शरोिी आ दे शभततक
पहिच न करब एखनुक समयमे बड कदठन ि अथछ।तें र मल ल बुढ़ब क ब त
एखनो प्र स ां हगके अथछ।

ज थत आ धमत शक म ध्यमसँ सत्त प्र प्त करब एखन दे शमे बडक खे ल भ'
गे ल अथछ।आम लोकक मौशलक आिश्यकत क कोनो मोल नहि।आब
मनुतखसँ बे सी जरुरी अथछ ज थतक हिक स,धमतक हिक स।लोक से िो आब
अपन -अपन ज थतक हिस बें मतद न करै त आथछ। स ँ च बजब क आ स ँ च
सुनब क स िस प्र य: सम प्ते जक ां भ'गे ल अथछ,तें जे ि ल -च ल अथछ
एखन आज दीक न मपर से लगभग एहिन चलै त रित।स ितक हिरोध
करब क स िस नै रिलै ।आब य त्री,र मलोचन ठ कुर सन ठ ँ हि-पठ ँ हि
किै िल ,कहित रचै िल तँ से िो हिरले छथि।अन्द्ध हिरोध आ अन्द्ध समितकक
बीच प्रथतयोहगत त्मक दौड चशल रिल अथछ।ते िने पररस्स्िथतमे र मलोचन
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 115

ठ कुरक ल ख बे र मोन पडत ल ख प्रश्न अनुरत्तररत!

र मलोचन ठ कुर अप दमस्तक मै थिल छथि।मै थिली भ ष पर आसन्द्न


सां किक हनि रण ले ल ओ सदथत सां घषत करै त रिल ि। एकि हिपन्द्न पररि रमे
जन्द्म भे ल छलहन।अभ ि कें ल'ग सँ भोगने ओ दे खने छल ि। थमथिल क
जनगणक पीड कें अक नै त सदथत थमथिल क उन्द्नथत,प्रगथतक क मन क
ले ल प्चिथतत कहि ,न िकक र र मलोचन ठ कुर कहित मे एिने रां ग भरै त
छल ि ज हिमे सीददत पीडडत थमथिल क लोकक स्िर दे ब क सदथत चे ि क
सां ग ओहि हिपन्द्न सम जकले ल सशतत स्िर छथि ,जे िज रो बषतसँ सीददत
अथछ,पीहडत अथछ।भ ष क ले ल से िो एकि मुखर स्िर छल ि। एकि
कहित छहन एहि सां ग्रिमे ' अपन सम च र'।हकयो पररथचत मै थिल व्यक्तत
हुनक सम च र पुछैत छथिन।उत र मे किै त छथि-" सम च र तँ तत्क ल
एतकेि

मै थिलीकें लोकसे ि आयोगक परीक्ष सँ क' दे लकयै ब िर

लल्लू सरक र.....

बे स सिजत क सां ग ब जल ओ--

"िँ ,अखब र मे दे खलए

आर अपन सम च र?

केन अथछ ड ां ड?

एहि कहित क म ध्यमसँ मै थिल सम जक असां िेदनशीलत नीकसँ दे ख र


थचन्द्ि र भे ल अथछ।एहि कहित मे कहि र मोलचन ठ कुरक भीतर म तृभ ष क
अपम नक कते क आहग छहन तकरो नीकसँ उभ र भे ल अथछ? कहि
116 ||गजेन्द्र ठाकुर

र मलोचन ठ कुरक म दे हुनक अग्रज पीढ़ीक स हित्यक र जीिक न्द्त शलखै त


छथि," पच्चीस बषत पहिने र मलोचन ठ कुर भ ष क स्ियां सेिक छल ि।हुनक
सां गतुररय मै थिलीक अने क लोक मिां ि भे ल छथि। ओिो मिां ि भे ल रहितथि
तँ हुनक प्रथतष्ठ घिल रहितहन।"

से र म लोचन ठ कुर अद्य िथध मै थिली भ ष आओर भ ष क ले ल क ज


केहनि र मनीषी लोकहनक सम्म न करै त रिल ि।कहि आरसी प्रस द ससििक
ले ल एकि कहित अथछ एहि सां ग्रिमे 'मै थिली -मां ददरमे दीप ले सैत'

" मै थिली मां ददरमे दीप ले सैत

दीप,फूलड लीमे सजबै त।

फूल पूज क मै थिली केर

प्रतीक्ष ब ल रहिक हबहुँ सैत

बि न म त्र सूयम
त ुखख केर

हबसरर की सकत मै थिली पूत

रत्न थमथिल क अनमोल अनूप

मि कहि आरसीक छहब,कृथत

सौम्य सुन्द्दर आकषतक रुप

करत सब बे र-बे र आिृथत

रित ज धर -ध म थमथिल क
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 117

प हन गां ग -कोशी-कमल क

रित त न म अमर कहि तोर

कृथत चमकैत च न-पुहनम क

म त्र आशीष तोर, प्रण मोर।

र म लोचन ठ कुर श्रमजीिी लोकहनक सां घषत ओ पीड कें उज गर


करै िल मित्िपूणत कहि छथि मुद कहिक क ज ख ली आहगए उगलब तँ
नहि थिक।प्रकृथतमे परसल नीक - नीक िस्तुकें दे खब।पय तिरणमे उपस्स्ित
सौन्द्दयत छि कें हनि रब ओहिमे श्रृांग र ओ सौन्द्दयत बोधकें त कब- िे रब से िो
कहित क क ज थिक,से कहि र मलोचन ठ कुर से िो कहित मे सौन्द्दयतबोध
अनब क चे ि केलहन अथछ ओ एहिमे कते क सफल भे ल ि अथछ से प ठकक
दृथिपर हनभतर करै त छै क।ओ िसां त गीत शलखय च िै त छथि मुद कखन?

'िमर लोकहन सां ग थमशल पि बी

ग छ सब एखनो अइ प्र णिां त आ

िमर हिश्व स अइ

आइ ने क शल

िोएतै क नब पल्लि

रां ग हबरां गक फूल

जकर म दक गां धसँ मिमि करत पररिे श


118 ||गजेन्द्र ठाकुर

पीहब मधु म तल मधुप गुांजन करत

तखन

िमहूँ शलखब

िसन्द्त गीत जे

आक शक नहि

पररिे शक उपज थिक।

कहि सौन्द्दयत बोधक सां िेदन क ले ल आर्ििक रुपसँ लोक स मथ्यति न िे बे


करय से नहि म नै त छथि।ओ श्रथमक िगतक स ौं दयतबोधक अलगे पररभ ष
गढ़ै त छथि।जकर स्स्िथत हनति कमे न य आ हनति खे न य छै क से कतयसँ
त जमलक सै र करब ले ल ज यत।खजुर िो ि कोण कतक सूयतमांददर दे खब क
ले ल ज यत मुद सौन्द्दयत बोध गरीबक ले ल से िो िोइत छै क,जकर प्रकृथतसँ
बहुत सन्न्द्नकित सँ सम्बद्ध रिै छ।

कहि शलखै त छथि-

'ओन , िम दे खने छी

स ँ झक मे घ च्छन्द्न आक श

घर घुरल ज इत कोनो स रस- दम्पशत्त

िम दे खने छी।

--------------
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 119

िम दे खने छी

डबरी-चबच्च मे

जलहिि र करै त डु बैत -उगै त

िां स-दम्पशत्त िम दे खने छी।

कहि भ दिक अन्द्िररय र थतमे ,पछु आरक बसहबट्टी आ करज नमे अनहगनत
भोगजनीकें चमकैत दे खने छथि। कहिक आँ खख एिने - एिन दृश्य सब
दे खब क ले ल औन इत छहन।एिन सौन्द्दयत छि जे जन स ध रण हबनु
कोनो खचतकें दे खख सकैत अथछ।

ओ अपन कहित क अलग सौन्द्दयतश स्त्र गढ़लहन अथछ।हुनक कहित कें


पिल क पछ थत प ठककें एकि ख स तरिक सौन्द्दयत बोधक आभ स िोइत
छै क।जखन हुनक कहित मे िे हक ज ँ तक आब ज,कनस रहनक ल डहन,िट्ठ मे
आ पौरपर चलै त बडदक गरद मीक बजै त घां िी -ध्िहन

लोि डक ििौड आ मशीनक आब जमे ध्िहनक स ौं दयत बोध भे िैत अथछ तँ


हनखिते एकि फर क सौन्द्दयतक पररभ ष गढ़ै त अथछ।

एत ित िम दे खैत छी जे कहि र मलोचन ठ कुरक कहित क स ौं दयतबोध से िो


एकदम फर क अथछ।हनस्सन अथछ आ श श्वत से िो।

एहि तरिें कहित सां ग्रि पढ़ल क पछ थत ई नहिकहि सकैत छी जे कहित


अप्र स ां हगक भे ल अथछ।बीस बरखक ब दो कहित सभ समक लीन स्िरसँ
ओत -प्रोत अथछ।कहित क म ध्यमसँ उठ ओल गे ल अने क प्रश्न एखनो उत्तर
िे रर रिल अथछ। कहिक आज थिक आम जनक हितक ले ल सां ि द करब।प्रश्न
उठ यब।से एहि कहित सां ग्रिमे कहि सफलत पूितक उठौलहन अथछ।ज हिमे सँ
120 ||गजेन्द्र ठाकुर

कते क प्रश्न उत्तर भे िल? कते क एखनो अनुत्तररत अथछ? कते क नि प्रश्न
सभ ठ ढ़ भे ल अथछ? से सभक पडत ल करब हनखितरुपसँ िततम न सम जक
अथछ से स हित्त्यक सम ज ले ल से िो ।िँ ,जे श सन सत्त क िर लग त र जोथत
रिल ि अथछ।जजनक लग सत्त क सभि कां ु जी छहन हुनक सँ त'
स्ि भ हिके।

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विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 121

उदयन र यण ससिि 'नथचकेत '-सां पकत-9434050218

रामलोचन - हमर नजररमे

भ रतीय निज गरणक पृष्ठभूथममे अप्पन दे स-कोसक भ ष और स हित्यकें


प्र िथमकत दे ल गे ल छल। ई त' िम सब जहनते छी जे मै थिली आ’ ब ां गल
– दुनू केर स हित्यक मध्य युगेमे िै ष्णि और श तत सम्प्रद य – दुनू सम्प्रद य
केर रचन क प्रभ िसँ स म न्द्य जनसँ ल’ कय कहि-हिद्व न रचन क र सब तयो
प्रभ हित भे ल छल । ज थत प्रि और भे द भ िकें मे ि दे ब क ि णी बजै त
तकर पहिनहि चै तन्द्यदे ि आर हुनक ध र्मिक आन्द्दोलनक प्रभ ि समग्र पूिी
स हित्यपर पडल छल। हिद्य पथतसँ एिन समन्द्िय केर थचन्द्त शुरू भे ल
छलहन। उन्द्नैसम शतकमे आबै त-आबै त तकर सुदूर-प्रस री प्रभ ि िमर सोच-
हिच रपर पडत आ' िमर नि तरिसँ सोचै ले ' ि ध्य करत - से कोनो
अन पे जक्षत घिन त' नहिये छल। दे खल ज इत अथछ जे प्र रां शभके समयमे
र ष्रीय चे तन क जे न जि र नजरर आयल छल – जकर प्रभ ि समग्र भ रतीय
जन-जीिनपर पडल – ई त' िम सब जहनते छी। उन्द्नैसम शतकमे , जखन
बां ग ल ज हग रिल छल आ’ जखन िमर पडोसे मे स हित्यक इथति समे एकि
निीन चे तन आहब रिल छल, तकर प्रभ ि थमथिल पर पडत त हिमे आियत
122 ||गजेन्द्र ठाकुर

की? थमथिल क स म जजक, र जनै थतक और ध र्मिक जीिनपर तकर बड्ड


प्रभ ि पडल। ओन त' थमथिल मे एहि हिषयपर तत्ते क शोध आ’ चच त भे ल
नहि अथछ – मुद र मलोचनजीक सां गे िमर हनकित अिि उदूतमे किी त
'नज़दीकी' जे कैकि क रणें भे ल छल तकर मे प्रमुख ई छल जे िम दुनू
बां ग लमे रहि कय मै थिलीक चच त करै त क ल इथति सक एहि समझ अिि
'प ठ'पर सिमत छलहुँ । सद प्रय स ई रिै त छल जे कोन िमर लोकहनकें
इथति सक गभीरत धरर ल' ज यब सां भि िोयत। तौं आियत नहि जे हुनकर
ि िसँ 'इथति सिन्द्त ' सनक मि प ठक हनम ण
त िे तहन।

ओन त' र मलोचन ठ कुर म तसति दी हिश्वदृथिसँ सम्पन्द्न रचन क र छथि,


जहनक क व्य-शशल्प लोकधमी छहन । अत्ग्नजीिी क व्यध र क प्रिततक कहि,
अशभने त -हनदे शक एिां कमतठ भ ष आां दोलनी रिल छथि। हुनक ले खनी
कत्ते क शक्ततश ली छहन तकर एकि अां द ज हकछु पां क्ततसँ भे हि सकैत अथछ
-

“बन्द्धु !

एन िोइत छै क

एन िोइत छै क कहियो क ल

भदि ररक सतहिय

म घक शीतलिरी

कोनो नि ब त नहि

जखन ददनपर ददन सूयतक अस्स्तत्ि


विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 123

रिै छ अगोचर

तें म हन ले ब सूयतक अिलुत्प्तकरण

आलोकपर अन्द्धसक रक िचतस्ि

कत' क' बुशद्धम नी थिक

स मथयक सत्यस िोइतहुां

श श्वत नहि िोइछ अन्द्धक र”

ओ िमर सबकें सचे तक' दै त छथि - हिश्व-ब ज र केर चशल रिल खे ल केर
हिषयमे , एहि तरिेँ -

“जखन पूांजीि दी हिस्त नर शलप्स क'

ज रज सां त न िै श्वीकरण

िृित हिश्विकें ब ज र बन दे ब क ले ल

अथछ उद्धत अपस्य ां त

आिश््के नहि अहनि यत भ' ज इछ

प्रथतक र शब्द-स धक ले ल…”

थमथिल , मौथिली आ मौथिल सां स्कृथतक प्रथत अग ध प्रेम हुनक थमथिल क


पीड आ आक ां क्ष कें कहित मे करब ले ल प्रेररत कयने छहन। व्यां ग्य, करुण ,
हिरोध आ ललक र हुनक प्रमुख क व्य-स्िर थिकहन। हुनक क व्य-शशल्प
लोकधमी अथछ।
124 ||गजेन्द्र ठाकुर

पनरिे बखतक उमरमे जखन ओ नोकरीक खोजमे कलकत्त चशल आयल


छल ि, जखन हुनकरआँ खखमे कते को सपन छलहन, तखनहि हुनक सां ग
पररचय आ' थमत्रत भे ल छल – जे अिू ि रिल। शशक्ष क प्रथत जे अनुर ग
हुनक मे छलहन से चै न नहि ले बऽ दे लकहन। स्ि यी नौकरी शुरू कररते ओ
स ां ध्यक लीन छ त्रक रूपमे च रुचन्द्र कॉले जमे प्रिे श ले लथि। ओ कलकत्त
हिश्वहिद्य लयक एिन स्न तक छ त्र भे ल ि, जजनक मौथिली पढ़ब ले ल
सां घषत करए पडलहन। ओ आयकर हिभ गसँ 2009 मे से ि हनिृत्त भे ल ।
तखनहि िमहुँ सब 'थमथिल दशतन'क पुनरुजजीिनक योजन बन रिल
छलहुँ , जकर ओ क यतक री सम्प दनक द थयत्ि ग्रिण कयने छल ।

र मलोचन ठ कुर जखन छठमे मे पढ़ै त छल ि तखने गीत शलखब शुरू


कयलहन। नौ ि मौशलक पोिीक अथतररतत दूि सां प ददत ति अनुि दक
स त ि पोिी प्रक शशत आ कैकि अप्रक शशत से िो छहन। प ँ च ि प्रक शशत
क व्य सां ग्रि भे लहन : ‘इथति सिां त ’ (1977), ‘म हि-प हनक
गीत’ (1985), ‘दे शक नम छल सोन थचडै य ’ (1986),
‘अपूि त’ (1996) एिां ‘ल ख प्रश्न अनुत्तररत’ (2003)।`बे त ल कि `
न मक एकि ि स्य-व्यां ग्य कि -सां ग्रि से िो कुम रे श क श्यपक छद्म न मसँ
1981 मे छपल छलहन। एम्िर र मलोचनक दूि सां स्मरण त्मक पोिीअयलहन
- `स्मृथतक धोखरलरां ग` (2004)मे आ `आँ खख मुनने : आँ खख खोलने `
(2005)। 1983 आ पुन: 2006 मे ओ `मौथिली लोककि ` छपौलहन जे
लोकस हित्यक पुनरतचन अथछ। अनुि द ले ल हुनक प्रथतथष्ठत `भ ष भ रती
सम्म न`सँ अलां कृत कयल गे ल छलहन ति हिदे ि सम्म न से िो प्र प्त भे ल
छहन। िषत 2012क ले ल िररष्ठ कहि एिां गीतक र चां रभ नु ससििक सां ग युग्म
रूपमे र मलोचन ठ कुर कहित कें से िो मै थिली स हित्यक क्षे त्रमे सजतन त्मक
आ' अनुि दक क ज ले ल प्रबोध स हित्य सन्द्म न भे िल छलहन।
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 125

‘अग्रदूत’क छद्म न मसँ र मलोचन अने क कि एिां हनबां ध शलखलहन जे


अद्य िथध पत्र-पशत्रक मे थछडडआयल अथछ- ओकर एकशत्रत क' कय तयो
प्रक शशत करय त' आर कैकि पुस्तक बहन सकैत अथछ; ओ अने क पोिी
आ पशत्रक कसां प दन से िो कऽ चुकल छथि। `अत्ग्नपत्र`, `रां गमां च`, `मौथिली
दशतन` आ `सुल्फ ` सन स्तरीय पशत्रक क ओ यशस्िी सां प दक रिल छथि।जे
तयो अनुि द-प्रेमी छथि, थतनक लोकहनकें हिनक अनुि द-पुस्तक सब
अिश्य मोन िे तहन - ‘प्रथतध्िहन’ (अनुददत कहित ), ‘ज सकै छी, हकन्द्तु
हकए ज उ’ (अनुददत कहित ), ‘ज दूगर’ (अनुि द), आदद। ज प नी पद्धथतमे
ओ ि इकू कहित - 'हकछु क्षजणक ' केर रचन कयने छल - जे 'हिदे ि' मे
प्रक शशत भे ल छलहन –जे न हक - "भोजक प न/ स सुरक
सम्म न/ पुहनम क च न", ि "ि िीक क न/ निु आक बत न/ एक
सम न", अिि "दूरक च स/ ग मक क त ब स/ कोन हिश्व स" – जतय
पद्धथत हिदे शी अिश्य छलै क, मुद स्िर सम्पूणत रूपे ण 'मै थिली'ये क।

१९५७ मे िररमोिन झ , मजणपद्म-जी आ' लक्ष्मण झ जीक प्रेरण सँ अखखल


भ रतीय मै थिली सां घ आ' मै थिली लोकसां घक हिलय क' कय जे अखखल
भ रतीय थमथिल सां घ बनल छल – जकर पुरोध स्िरुप ब बूस िे ब चौधरी,
प्रबोधन र यण ससिि आददक सां ग र मलोचनक हपतृव्य शुकदे ि ठ कुरजी से िो
अत्यां त सहिय छल – आओर तरुण र मलोचन से िो आग ँ चशल कय भ ष
आां दोलनमे क फी सहिय भ' गे ल छल । ब दमे ओ बे सी इन्द्िोल्िड भ' गे ल
छल मै थिली न ट्य-आन्द्दोलनक सां ग। तकरहि सां गे ले खन आ' सम्प दन त
छलै ये। स्िस्ि रिथि आ' सृजनशील रिथि, सै ि क मन करब।

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


126 ||गजेन्द्र ठाकुर

नबोनारायण छमश्र- िां पकव-9330173348


हमरा नजररमे : श्री रामलोचन ठाकुर
छमछिला-मै छिलीक उयिान हे तु कलकत्ता िभ ददन अग्रगण्य रहल अछि।
एकर अतीत िस्तुतः गौरिपूणव रहल अछि। हमर अग्रज लोकवन भाषा-
िां स्कृछतक हे तु िजग रहलाह आ एिनहुँ नि पीढ़ी अपन दाछययिक पालन
करै त िछि। तावह मध्य श्री रामलोचन ठाकुर जीक नाम विशे ष लोकछप्रय रहल
अछि।
श्री रामलोचन ठाकुरजीक व्यक्लतयि आ कृछतयिक िमग्र मूयाां कन करब
हमर िामर्थयव नवह तिावप जे हम दे िल अछि िे िणवनातीत। छमछिला-
मै छिलीक प्रछत हृदयमे िे दनाकेँ ओ िाकार करै त रहलाह अछि। मूल
िमस्याकेँ वित्रभन्द्न स्तरपर रे िाां वकत करै त रहलाह अछि। तकरे वनछमत्त
मै छिली आां दोलन, मै छिली रां गमां च, काव्य आददक िजवनाकेँ माध्यम बनौलवन।
मै छिली आां दोलन हुनक मूल अत्रभव्यक्लत िलवन। मै छिलीक अछधकार हे तु
आां दलोन पि रिै त 'दे त्रिल बयना'मे हुनक िां कल्प रिव्य अछि-
िां विधान वबनु मै छिलीक ओ
मानछचि वबनु छमछिला धाम
िावह-जारर िुड्डाह करब हम
विरोही छमछिलाक जुआन
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 127

यद्यवप श्री ठाकुरजीिँ पूिव पररछचत िलहुँ मुदा हुनकर स्ने ह-िान्न्द्नध्य १९९०
ई.मे मै छिली नाट्य िां स्िा 'कोवकल मां च' के स्िापनाक पश्चात हमर
िवक्रयतािँ प्रगाढ़ भे ल। हम वहनक मै छिलीक प्रछत िमपवणिँ बहुधा प्रेररत
होइत रहलहुँ । तावह ददन कोनो एहन कायवक्रम नै िल जावहमे िलता ओ नै
होछि। तावह मध्य त्रशिाचारिश भें ट होइत रहल आ हम अपनाकेँ पाररिाररक
िदस्य िन पावब धन्द्य होइत रहलहुँ । कोवकल मां चक कोनो एहन कायवक्रम नै
जावहमे ओ ित्म्मत्रलत नै भे ल होछि। प्रयये क िषव स्माररकामे आले ि हे तु जिन
कहत्रलयवन िे वनरां तर महयिपूणव आले ि दै त रहलाह। हुनक परामशविँ
िां स्िाकेँ िुयश प्राप्त होइत रहल।
एकटा उल्ले िनीय काजक चचाव करब जरूरी बुझना जाइत अछि। श्री
िूयवनारायण झा 'िरि' रछचत "मै छिली श्री िीताराम चररत मानि"केँ
जिन कोवकल मां च ददििँ प्रकाशनक योजना बने लहुँ आ तकर िां पादनकेँ
गुरूतर भार हुनका दे ल तँ ओ िहषव स्िीकार केलवन जे िस्तुतः बहुत श्रमिाध्य
काज िल। तावह अिछधमे प्रेििँ प्रूफ दे िेबाक हे तु छमििर कुमरकाां त झाजी
(राघोपुर-बलाट)क िां गे अने को बे र हुनका घर जे बाक अििर भे टल।
महाजाछत िदन प्रेिागृहमे मै छिली नाटकक मां चनकेँ अििरपर एवह पोिीक
लोकापवण भे ल जावहमे मां चािीन प्रो. विद्यानां द झा आ रामचलोचन ठाकुरजीक
िारगर्भिंत िलतव्य आइयो प्रािां वगक अछि। एक ददन प्रिां गिश आग्रह
केत्रलयवन जे 'मै छिली रां गमां च आ कलकत्ता' विषयपर आले ि त्रलिू जे
कोवकल मां चक स्माररकामे दे बाक अछि। ओ कहलवन जे जते क बुझल अछि
तकर अछतररलत कलकत्ताक आ उपनगरीय िे िक मै छिली रां गमां चक
जानकारी अहाँ दे ब तिनवह िां भि अछि। हम िहयोग केत्रलयवन जे स्माररकामे
िपलै आ पश्चात जिन 'स्मृछतक धोिरल रां ग' हुनकर पोिी िपलवन तावहमे
िे हो िां कलछत केलवन।
दोिर महयिपूणव पि जे मातृभूछम आ मातृभाषाक प्रछत स्ने हक िशीभूत
128 ||गजेन्द्र ठाकुर

वित्रभन्द्न पि-पत्रिकािँ िां लग्न रवहतो एकटा ठोि िावहत्ययक मां च "िां पकव"
केर ओ प्रणे ता रहलाह अछि। ध्यातव्य जे उलत िां स्िामे एकटा पदाछधकारी
"िां योजक" प्रारां भवहिँ ओ रहलाह अछि। एवह िां स्िाक वनयमानुिार
िावहत्ययक रुछच रिवनहार आ मै छिली िे िी भाग लै त िछि। एकर कोनो
िदस्य नै बनाओल जाइत अछि। अपन रुछचकेँ अनुिार ित्म्मत्रलत व्यक्लत
ओकर िदस्य भे लाह। मािक प्रयये क दोिर रवि ददन िाँ झुक ४ बजे िँ
कायवक्रम प्रारां भ होइत अछि। िहभागी लोकवन अपन नि रचनाक िां ग
उपस्स्ित होइत िछि जावहपर उपस्स्ित लोक पदठत रचनापर मां तव्य दै त िछि।
आिाश्यकतानुिार आले िमे िां शोधन करबाक िगतापर िुझाि दै िछि।
एवह प्रवक्रयािँ िावहत्ययक रुछच ओ गुणित्तामे िृत्रि हएि स्िाभाविके। प्रयये क
िां पकवक प्रारां भमे उपस्स्ित लोक अपने मेिँ एकटा अध्यि चुनैत अछि जकर
िां चालनमे ई कायवक्रम शुरू ओ अां त होइत अछि। मने हरे क िां पकवक अध्यि
अस्िायी होइत िलाह। ध्यातव्य जे अन्द्यान्द्य िां स्िा िभमे पदाछधकारी
बनबाक ले ल प्रछतस्पधाव होइत अछि मुदा तावहिँ अलग िां पकव अपन गछतविछध
वनयछमत रूपें करै त अछि। मुदा आब ई कने अस्स्िर भे ल अछि। िां पकवक
तयिािधानमे जिन िावहयय अकादे मी पुरस्कार श्री कीर्तिंनारायण छमश्र आ
अनुिाद पुरस्कार श्री निीन चौधरीकेँ भे टलवन तावह उपलक्ष्यमे एकटा
उल्ले िनीय िम्मान िमारोह आयोक्षजत भे ल िल। निीन जीक चचव भे ल तँ
ई कहब उछचत जे निीनजी अपन पोिी "िणव वितान' केर भूछमकामे त्रलिै
िछि जे "....श्री रामलोचन ठाकुरक ियिां ग िँ िावहयय बुझबा आ त्रलिबाक
अिगछत भे ल। आ िां पकव (िभ मािक दोिर रवि)मे वनरां तर उपस्स्िछत िँ
िूतल रहबाक मनःस्स्िछत एिन धरर नवह आएल...."। ध्यातव्य जे तीनू
िावहययकारक कमविेि कलकत्ता रहल अछि। अतबे नवह रामलोचन ठाकुरजी
िां पकवक माध्यमिँ बहुतो नियुिाकेँ प्रेररत केलाह तावहमे एकटा आशीष
अनछचन्द्हार िे हो िछि आ अनछचन्द्हारो अपन पोिी "मै छिली गजलक
व्याकरण ओ इछतहाि" एवह बातक चचाव केने िछि। िां पकवक िमयक आि-
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 129

पाि बाहरिँ आएल कोनो िावहययकारकेँ िां पकवक बै िारमे उपस्स्ित हे बाक
आग्रह कएल जाइत रहल अछि। जावहिँ बाहरी ओ स्िानीय िावहययकार
एक-दोिरिँ पररछचत होइत रहलाह अछि। िां पकव एिनो धरर चलै त आवब
रहल अछि जकर पािू रामलोचने जीक बल िवन िां गे-िां ग आनो लोकक।
कलकत्तामे वकिु ए एहन मै छिल भे लछि क्षजनकर नाम ले लािँ कलकत्ताक
बोध होइत हो। रामलोचनजी ओवह वकिु मे िँ एकटा आइकन आ
इनिाइललोपीविया िछि िे हम वनखश्चत रूपिँ कवह िकैत िी। एहन महान
िजवक, िां पादक आ क्राां छतकारीकेँ पावब हमरा िभकेँ ितत गौरि बोध होइत
रहल अछि।

िां पादकीय नोट- नबोनारायणजी द्वारा विदे हपर रामलोचन ठाकुरजीिँ


िां बांछधत अन्द्य िामग्री।

2011 मे विदे ह द्वारा िां चात्रलत “विदे ह िम्मान (िमानान्द्तर िावहयय


अकादे मी पुरस्कार)” 2011-2012 केर अनुिाद िम्मान रामलोचन
ठकुरजीक अनुिाद पोिी पद्मा नदीक माँ झी दे बाक घोषणा भे लै।
https://www.facebook.com/groups/videha/perm
alink/147780938633376 आ एवह अििरपर हमरा लोकवन
नबोनारायण छमश्रजीिँ आग्रह केलहुँ हुनकर िािायकार ले ल। हमरा लग
िािायकार आएल आ ई विदे हक 15 जनिरी 2012 केर अां क िां ख्या 98
प्रकात्रशत भे लै। एवह िमय धरर रामलोचनजी पूरा स्िस्ि िलाह। ई आले ि
ले ल विदे ह अां क 98 िाउनलोि करू एवह ललिंकिँ
http://videha.co.in/new_page_15.htm एकरा एहू
ललिंकपर पवढ़ िकैत िी
http://esamaad.blogspot.com/2012/01/blog-
130 ||गजेन्द्र ठाकुर

post_09.html
एवह िािायकार केर अछतररलत महयि ई जे जावह िमयमे ई िािायकार ले ल
गे लै ठीक ताही िमयमे प्रबोध िावहयय िम्मान केर घोषणा िे हो भे ल रहै ।

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 131

अशोक-सां पकत-8986269001

राम लोचन ठाकु रक कविता पढै त

र मलोचन ठ कुर मै थिलीक प्रशसद्ध कहि छथि। ओ एिी सां ग आां दोलनकत त,
रां गकमी ओ अनुि दक से िो छथि। पोिी सभक सां प दन केने छथि। व्यां ग्य ओ
लोकधमी कि शलखने छथि। ओ एिन कहि छथि जजनक चे तन लोकोन्द्मुख
आ अशभल ष जनि दी अथछ। ओ ख ँ िी मै थिलीक कहि छथि। टििदीमे कहियो
नहि शलखलहन। र म लोचन ठ कुर मै थिली स हित्क रक ओहि परां पर क लोक
छथि जे परां पर क ञ्चीन ि झ 'हकरण'क अथछ। म तृभ ष क हिक स
जजनकर लक्ष्य रिलहन। म तृभ ष क हिक स एहि क रणे जे 'म तृभ ष क
हिक ससँ जन-ज गरण िोइत छै क ओ ज गरण धन-कुल-ज थतमूलक
गररम केँ चूरर दै त अथछ'। र मलोचन ठ कुरक जन्द्म थमथिल मे भे लहन आ
जीिन बां ग लमे हबतलहन। फलस्िरूप हुनक जे रचन क र-व्यकथतत्ि हनर्मित
भे ल से दूनू ठ मक स ां स्कृथतक चे तन क समन्द्ियसँ हनर्मित भे ल। ई चे तन
पररश्रमी ओ उत्प दक िगतक सां घषतशीलत सँ उपजल छल।
र मलोचन ठ कुर अपन कहित आठम दशकसँ शुरू करै त छथि। मोि मोिी
१९७० ई.क ब दसँ शलखल हुनक कहित सभ च रर सां ग्रिमे सां ग्रीित अथछ।
132 ||गजेन्द्र ठाकुर

'इथति सिां त ' (१९७७), 'दे शक न म छलै क सोन थचडै य ' (१९८६),
'अपूि 'त (१९९६) आ 'ल ख प्रश्न अनुत्तररत' (२००३)। ओ हिशभन्द्न शशल्प-
शै लीमे कहित शलखलहन अथछ। छां दोबद्ध ओ मुततक दूनू रूपमे हुनक कहित
उपल्बध अथछ। दोि , कां ु डशलय , मुततक कहित , थमनी कहित , क्षजणक
(ि इकू) सभ तरिक कहित । हुनक कहित सभिक क हिशे षत ईिो अथछ
जे पूितजसँ लऽ कऽ समक लीन ओ अनुज धररकेँ मोन प डै त ओ सां बोथधत
करै त हुनक बहुते र स कहित अथछ। एहिसँ हुनक जुड ओ ओ प्रथतबद्धत
प्रकि िोइत अथछ। सम नधम तक प्रथत लग ओ हुनक एक फर कसँ रे ख ां हकत
करए बल प्रिृथत अथछ। र मलोचन ठ कुरक कहित मे समयक त प ओ ध केँ
सां ग आर्ििक-सम जजक ओ र जनीथतक-स ां सकृथतक पररदृश्य ओ प्रिृथतपर
हिप्पणी, व्यां ग्य, आिोश भे िैत छै क। हुनक कहित -य त्र मे प ठककेँ ओहि
समयक स्स्िथत-पररस्स्िथत मूर्तिम न िोइत छै क जखन ओ कहित शलखल गे ल
छल।
ई दे श स्ितां त्रत ब दसँ बहुतो झां झ ि त, आलोडन-हिलोडन दे खख चुकल
अथछ। स्ि धीनत प्र त्प्तक जे उल्ल स रिै क से िमशः िोडे क िषतक ब द
हबल ए लगलै लोककेँ लगलै जे ओकर दुख-तकलीफ कम नै भऽ रिल छै ।
सत्त मे गोर अां ग्रेजक स्ि नपर क री अां ग्रेज बै शस गे ल अथछ। मोि-भां गक सां ग
स हित्यमे से िो ओकर अनुगां ज
ु सुन इ ददअ ल गल। श सन-सत्त सँ हनर श आ
ित श हिपन्द्न लोक सभ आ एक जुि हुअ ल गल। सत्त पररिततनकेँ
अनुपयोगी बूजझ व्यिस्ि पररिततन ले ल ओ कृषक-मजदूर सभिक शोषणसँ
मुक्तत ले ल सशस्त्र सां घषत बां ग लक नतसलब डीमे शुरू भऽ गे ल। र मलोचन
ठ कुर अपन कहित य त्र ओिी उिल-पुिलसँ भरल समयक सां ग शुरू
केलहन। मै थिलीमे अत्ग्नजीिी कहिक रूपमे तम म भे द-भ ि, शोषणकेँ दे खख
िगत-सां घषतक ले ल पुर तन म न्द्यत केँ अप्रयोजनीय, अस्ि यी, उजजर-क री
रचन , इथति सकेँ त त्तक ल हनरस्त कऽ शोहषतक पक्षमे नि इथति स
बने ब क ले ल सशस्त्र ि ां थतक ले ल डे ग बढ़ दै त छथि।
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 133

आ िम/ एखन नजि शलखख सकब/ कररय मोशस सां / उजर क गत पर/ कुनू
कहित / कि / इथति स /अप्रयोजनीय/ अस्ि यी / दे खैत नजि छी / िमर
ि िमे / चमकैत पां चकमहनय ां भ ल / चशल पदल छी िम/ ल ल िु ि-िु ि रतत
सां / हपरिीक हिश ल िक्ष पर / शलखब ले ल एगो कहित / एगो कि /
एगो इथति स / आ स्ियां बहन जे ब क ले ल एगो घिन / एगो न म/ एगो
इथति स"
(अग्रजक न म-इथति सिां त )
व्यिस्ि पररिततन ले ल आरां भ भे ल एहि प्रक रक सां घषतकेँ तँ त त्क लीन सत्त
द्व र बलपूितक दब दे ल गे ल मुद ई सां घषत-चे तन जनत मे पसरर गे ल। ई चे तन
स मूहिक सां घषतक छल। मै थिली स हित्यमे से िो च िे कहित िो हक कि हक
उपन्द्य स एहि चे तन क अशभव्यक्ततकेँ आठम-निम दशकमे दे खल ज सकैत
अथछ। ओहिसँ पूित मै थिली कहित क जे प्रिृथत छल से आधुहनक दृथिसँ
सम्पन्द्न रोम ां हिक , प्रगथति दी आ नि कहित क रूपमे अशभव्यतत भऽ रिल
छल। ड . िररमोिन थमश्र अपन पोिी 'आधुहनक मै थिली कहित 'मे शलखलहन
अथछ जे "रोम ां हिक कहित मे प्रमुख रूपें स ौं दयतक िणतन िोइत छल।
प्रगथति दी कहित मे सम जजक ि स्ति अि तत सम जजक हिषमत , सम जजक
कुरीथत, गरीबी, शोषण, अत्य च र आददक िणतन िोबए ल गल"। मै थिलीमे
रोम ां हिक कहित भुिनजीसँ , प्रगथति दी कहित य त्रीजीसँ आ नि कहित क
आरां भ र जकमल चौधरीसँ म नल ज इत अथछ। नि कहित क प्रितत क
रूपमे र मकृष्ण झ 'हकसुन'क योग दन मित्िपूणत रिल अथछ। ड . िररमोिन
थमश्र ओहि पोिीमे ईिो किै छथि जे "प्रगथति दी कहि अतीतक हिरोध करै त
छल ि हकन्द्तु भहिष्यक प्रथत पूणत आस्ि ि न छल ि क रण हुनक
लोककहनक समक्ष भहिष्यक कोनो एिन स्पि थचत्र छल। नि कहिक समक्ष
भहिष्यक एिन कोनो स्पि थचत्र नहि अथछ। ति हप ओ निक स्ि गत करै त
छथि क रण जे ओ िततम नसँ अत्य थधक आशां हकत ओ सां त्रस्त छथि"।
134 ||गजेन्द्र ठाकुर

प ि त्य स हित्त्यक हिशभन्द्न क व्य आां दोलनक प्रथतध्िहन भ रतीय आ हक


मै थिली कहित पर ओहि क ल हिशे षमे पडै त रिल। मोि मोिी कहित मे
बहिरां ग आ हक ब िरी यि ित आ अां तरां ग आ हक आडिक यि ित , चे तन आ
अिचे तनक अशभव्यक्ततक द्वांद प्रगथति दी आ नि कहित क मूलमे रिल
अथछ। र मलोचन ठ कुरक कहित मे अिचे तन आ हक अां तरां गक हिशभन्द्न
मोनोग्र हफक थचत्रण स ध रणतय नै भे िैत अथछ। हुनक कहित स्ि भ हिक
रूपसँ सिज भ ष ओ शशल्पमे शलखल गे ल अथछ। हुनक कहित
प्रयोजनमूलक अथछ, कल त्मकमूलक नै ।
"अइ र थतक गुजज अन्द्ि रमे
िमर सभकेँ
तय क ले ब क अइ
बहुत र स ब ि
पहुँ थच जे ब क अइ
ओइ ददबड भीड पर
जतय स
क स्ल्िक ब ल सुरुजक सां ग
दे ब क अइ न र
बडब क अइ डे ग
आजुक बुढ़ब सुयत
मरर चुकल अइ
ई अन्द्ि र रिौक अनके ले ल
हकन्द्तु आग मी क स्ल्ि
िमर सभक िएत
िमरे सभक िएत"
(आग मी क स्ल्ि िमरे सभक िएत-- दे शक न म छलै सोनथचडै य )
ई जे आस्ि आ हिश्व स अथछ जे आग मी क स्ल्ि िमरे सभक िएत अि तत
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 135

शोहषत-दशलत-पररश्रमी लोकक िएत से हबन भहिष्यक थचत्र स्पि रिने नै


भऽ सकैत अथछ। ई क रपोरे िी व्यिस्ि सम प्त कऽ उपे जक्षत, ि शशय पर
ठे लल गे ल लोकक नि, उितर ओ सम नत पर आध ररत व्यिस्ि क यम
करब क ले ल स मूहिक सां घषत ओ एकजुित पर सां भि िोयत। र मलोचन
ठ कुरक कहिकेँ ई सोच-हिच र एकदम स्पि छहन। हुनक कहित मे एहि
भ िक अशभव्यक्तत बे र-बे र िोइत अथछ।
र मलोचन ठ कुरक कहित मे एहि हिच रध रक सां ग थमथिल ओ मै थिली ले ल
सां घषत-चे तन क अशभव्यक्तत से िो भे िैत अथछ। अपन धरोिरर अपन
स ां स्कृथतक-स हित्त्यक ि तीपर गौरि-बोध अथछ तँ िततम न स्स्िथत प्रथत
असां तोष ओ आलोचन त्मक स्िर से िो अथछ। एिी सां ग भ हषक चे तन क ले ल
सां घषतक आह्व न अथछ।
"स्त्री-पुरुष-जि न-बूढ़-बच्च सभ चल
ल ठी गड ँ स भ ल मे शक्तत छै प्रबल
चूडी बजै त झन-झन नि चे तन क स्िर
जय मै थिलीक न र दए बज्र सन प्रबल
पिन दे प हि ददल्ली धरर डगमग पडै "
(इथति स युग निीनकेँ, अपूि त)
दे शमे 1990 ई. ब द िै श्वीकरण आ हक भूमांडलीकरणक प्रभ ि पडए ल गल।
श सन सत्त से िो थमशश्रत अितव्यिस्ि आ हक कल्य णक री र जयक नीथतसँ
पृिक भऽ मुतत बज र व्यिस्ि जे उद रीकरणक न मसँ ज नल ज इत अथछ,
केर रस्त पर चलए ल गल। रां गीन िी.भी आएल आ ओिी सां ग आएल रां गीन
सपन दे खबए बल जे बी किू बज रक प्रच र-तां त्र। रूढ़ि ददत क प्रच र-प्रस र
बढ़ल। आम लोकक कि आर बढ़ै त गे ल। धहनक आर धहनक आ गरीब आर
गरीब िोइत गे ल। ज थत धमत जे पहिनहिसँ जहडआएल छल से आब खूब चतरर
कऽ लोकक सां किकेँ बढ़ बए ल गल। सत्त पररिततन िोइत रिल मुद लोकक
136 ||गजेन्द्र ठाकुर

स्ि धीनत आ सत्त मे बै सल लोकक पूँजीि दी म नशसकत मे दूरी आ चौडगर


िोइत गे ल। जनत क मतसँ चुनल प्रथतहनथध ओ सरक र जनत क हितमे
हनणतय नहि कऽ पूँजीपथतक हितमे हनणतय शलअ ल गल। ई सभ िस्तुतः
हिदे शसँ आय थतत अितव्यिस्ि केँ आदशत म हन ल गू कएल ज इत रिल। हिश्व
बौं क एिां आइ.एम.एफ केर कजतक बोझ जनत पर ते जीसँ बढ़ए ल गल।
ति हप लोकक आस्ि आ हिश्व स नहि डगमग एल। नीक ददन आओत से
हिश्व स बनल रिलै क।
एहि मि न दे शक नब्बे कोहि जनत क
कमसँ कम कम निम अां श लोक
सत्त पररिततन आ स्ि धीनत क
मौशलक प िततय पर हिच रब
कऽ दे ने अथछ प्र रां भ
हिदे शसँ आय थतत स्मृथत न शक औषथध
जे कीिन शक न मे कैल ज इत रिल-ए प्रयोग
खे त-खररि नसँ चूस्ल्ि-थचनि र धरर
प्रभ ििीन प्रम जणत भऽ रिल अथछ
आ ने त लोकहनक म िमे लीख
आ कुरसी मे उडीसक सां ख्य क
ददन-प्रथतददन िृशद्ध भऽ रिल अथछ।
त त्क ल
सां तोषक ब त इएि ि अथछ।

(१५ अगस्त, ल ख प्रश्न अनुत्तररत)


एिी समयमे कांडल ओ कलां डलक आां दोलनसँ ज तीयत आ स म्प्रद थयत क
भ िन केँ र जनीथतक सत्त द्व र मजगूत कएल ज ए ल गल। स्ि धीनत
सां घज़तक जे मूल्य सभ छल से थतरोहित हुअ ल गल। दे शक बँ िि र समय
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 137

टििदू-मुसलम नक जे दां ग भे ल, ओकर मि त्म ग ँ धीक सां ग स्ि धीनत क नि


हिि नमे श सन सत्त बुशद्धमत्त पूणत ढ़ां गसँ हबन कोनो स म्प्रद थयक भे द-
भ िकेँ श न्द्त करब मे सफल रिल छल। स मप्रद थयक ओ भ िन मुद
सम प्त नहि भे ल, फलस्िरूप मि त्म ग ँ धीक ित्य भे ल। शभतरे -भीतर
सुनगै त ओ स म्प्रद थयक भ िन भूमांडलीकरणक एहि अिथधमे छू हि कऽ
खे ल ए ल गल। एिनमे कहि र मलोचन ठ कुर मि त्म ग ँ धीकेँ मोन प हड
बहुत दुखक सां ग ऐथति शसक पररप्रेक्ष्यमे िततम नक सत्त -सां पोहषत
स म्प्रद थयक दां ग केँ दे खबै त छथि। अल्ल ओ ईश्वरक बीच बिल ज इत
फ ँ कसँ ओ कर हि उठै त छथि।
अि ँ क थप्रयग न
'अल्ल ईश्वर ते रो न म'
सस्िर ग ओल ज रिल
आ बढ़ले ज रिल ददन नुदीन
अल्ल - ईश्वरक बीच व्यिध न
नोआख ली भनहि िो इथति स
बम्बई अिमद ब द थिक िततम न
िे र म!
अटििस क उप सक
(िम श्रद्ध ञ्जशल नहि द' प एब, ल ख प्रश्न अनुत्तररत)
र मलोचन ठ कुर अपन कहित मे ईश्वरक सत्त केँ नक रै नहि छथि मुद ईश्वरक
सत्त क क रण हिशभन्द्न धमत सां प्रद यकेँ बीच िोइत बँ िि र केँ मनुखत क
हिरुद्ध म नै त छथि। ओ एहि बँ िि र ओ एहि क रणे िोइत िै मनस्य, किु त ,
टििस केँ एक मनुतखक रूपमे न्द्य योथचत नहि म नै त छथि। एहिमे मनुख्त क
क्षरण दे खैत छथि। िस्तुतः आब ओ मनुतख ओिे न नै रिल जे एहि हिर ि आ
सुन्द्दर पृथ्िीपर आएल रिए। आब एहि कुरूप नृशांस भ िन सँ हिशभन्द्न
138 ||गजेन्द्र ठाकुर

कोल मे बँ हि मनुतख पृथ्िीकेँ छोि कऽ ले लक अथछ।

हपरिी पर
एहि हिर ि सुन्द्नर हपरिी पर
ईश्वर नजि छल
मनुतख स पहिने
छल जां गल पि ड
झरन नदी
पशु प खी ....
प्रयोजन नजज छलै
ओकर सभ के ईश्वरक
मनुतख के भे लै
आहिभूतत िोमय लगल ईश्वर
एकक पि त् एक
रम
कृष्ण
ईश
मुिम्मद
बुद्ध
मनुतखक कल्य ण िे तु
ईश्वर अहिनश्वर
आबय लगल
रिय लगल
आलोहपत िोइत चल गे ल मनुतख
एकक पि त् एक
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 139

मनुतख नजज रिल


रहि गे ल हकछु
हिन्द्दू
मुसलम न
शसख
हिस्त न...
एहि हपरिी पर एहि छोि-छीन हपरिी पर ।
(मनुतख आ ईश्वर,ल ख प्रश्न अनुत्तररत)
ई पृथ्िी जे मनुतखक ले ल जीिन जीब क आ प्रकृथत समग प्रगथत करब क
जगि रिए से िमशः क री-गोर, नस्लीय घृण , ज थतसम्प्रद यक प रस्पररक
टििसक व्यिि र, र ष्र-उपर ष्रमे ब ँ िए ल गल। म नित प छू छु िे त गे ल आ
र िि द-अां धर ष्रि द बढ़ै त गे ल। मनुतख टििसक िोइत गे ल, ओकर मे
हनमतमत , िीभत्स एिन बढ़ल जे लोकसँ लोक आतां हकत हुअ ल गल। हिच र
जे मनुतखकेँ सुांदर, सिज बने ब क ले ल उत्पन्द्न भे ल छल से हिच रध रक
रूपमे घृण आ टििस केँ सां पोहषत करए ल गल। दे शप्रेमकेँ स्ि नपर र ष्र आ
र ष्रि दक जि रर र ष्र सुरक्ष क न मपर युद्ध आ युद्धक आक ां क्ष केँ बढ़बै त
गे ल। अस्त्र-शस्त्रक िोड बढ़ै त गे ल। एिनमे जीिन स ौं दयतक उप सक, म नि-
हिक सक आक ां क्षी कहि छिपि उठल। म नित क पक्षमे ठ ढ़ लोकेँ सत्त
आब दे शरोिी म नए ल गल। सत्त -पुरुष आ सि े परर िोइत गे ल। सत्त द्व र
र ष्ररोिीक आरोप झे लैत एिन एक कहिक आदल तमे दे ल बय नकेँ एहि
कहित मे दे खल ज सकैत अथछ।
िे मि म न्द्य अद लत !
जे न हक किल गे लए
िम एगो कहि छी
स ौं दयतक उप सक
140 ||गजेन्द्र ठाकुर

जीिनक कहित शलखै त छी िम


मृत्युक नहि
ओकर हनमतमत बीभत्सत आतां हकत करै छ
िमर
तें ित्य र सँ घृण करै त छी
घृजणत कमत म नै त छी
ित्य के
म नित क हिरूद्ध
एगो एिन अपर ध
जकर क्षम नहि
से ित्य ---
भनहि हिच रक न मपर िो
एनक उन्द्िरक न म पर ि र ष्रक सुरक्ष क न म पर .....
(एक गोि र ष्ररोिीक िततव्य, ल ख प्रश्न अनुत्तररत)
एिन कहि स्ि भ हिक रूपसँ च िै त अथछ जे ओकर कहित उत्प दक ओ
पररश्रमी लोकक श्रमसँ अर्जित चे तन -हिच र ओ स ौं दयतबोधसँ जन्द्मय।
पुन्ष्पत-पल्लहित िो। ओ कहि ईिो नहि च ित जे ओकर एिन कोनो कहित -
गीत कोनो शीत-त प हनयां शत्रत सभ ग रमे भर सुसज्जजत सजजन समुद यमे
पडल ज ए हकएक तँ ओ लोकहन एकर हनहित ित नहि बूजझ सकत । िस्तुतः
जे लोक पररश्रमी लोकक पक्षमे नहि अथछ से हनखित रूपसँ अन्द्ततः ित्य र
प्रज थतक सां ग धऽ ले त।
कहित िमर
कोनो मां ददर मसजजद ि
कोठ सँ नहि, मजूरक झोपडी सँ
क रख न क जरै त थचमनी सँ खे त जोतै त िरक फ र सँ
धीपल लोि पर पडै त लोि रक ििौड सँ
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 141

कुम्ि रक च क सँ चम रक ि कु सँ जनमओ
िम च िै छी

XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX

िम च िै छी िमर कहित
मि नगरक कोनो शीत-त प-हनयां शत्रत
सभ ग रमे भर सुसज्जजत, सजजन समुद य
मध्य नहि पढ़ल ज य
कोनो क रख न क गे ि पर
मजूरक बीच, खे तक आररपर
झिरै त मे धक बीच स ररबद्ध
धनरोपनी करै त श्रथमकक समक्ष िम च िै छी
िम इएिि च िै छी
अपन कहित क ले ल ।
(िम च िै छी, ल ख प्रश्न अनुत्तररत)

दे श-दुहनय ँ मे चलै त आ बढ़ै त भूमांडलीकरण ि बज रि दक एिन समयमे


जतए गल क ि प्रथतयोहगत आतां कक सृथि, उध रीक नीथत, ब ब न म आ
द द न म केिलम् चशल रिल अथछ ओतए शोहषत-दशलत-पररश्रमी लोक
जीिन-य पन ले ल एम्िर-ओम्िर बौआइत, जीहिक तकैत थछथछय रिल
अथछ। एहि स्स्िथतक ब िजूद स्ने ि करए बल ग मकेँ, जीिनसँ लब लब
ग मकेँ हबसरर नहि प हब रिल अथछ। भले ग म बदशल रिल िो, शिरे भऽ
रिल िो, भले ग मसँ हिस्ि हपत लोक ले ल ग म अनथचन्द्ि र भे ल ज इत िो
ि ओ स्ियां अनठीय भऽ रिल िो, ओ अनुभि करै त अथछ जे ओकर पररचय
142 ||गजेन्द्र ठाकुर

जे न थछन रिल छै क। मै थिली स हित्यक ई ख स हिशे षत रिल अथछ जे


एहिठ मक स हित्यक र अपन रचन मे थमथिल भूथमक लोक हित-प्चित सँ
हिलग नहि भे ल अथछ। ओ च िै त अथछ जे थमथिल क सम जजक-आर्ििक
हिक स िो ज हिसँ लोक पल यन ले ल मजबूर नहि रिए। र मलोचन ठ कुरक
कहित मे से िो ई प्चित -बे गरत ग मक स्मृथतक सां ग हिशभन्द्न रूपे अशभव्यक्तत
भे ल अथछ।
बहिन द इ !
िम म नै त छी /
आ अहूां म नब जे आइ /
अपने ग म मे िम सभ छी अनदठय -अनथचन्द्ि र
जकर नजज छइ कुनू पत -ठे क न -
सररपहुां कते क असह्य थिक ई पीड मुद /
त इ ले ल किमहप उथचत नजज क नब /
िरन् चीन्द्िब अपन शक्तत
आ ब िरोक शब्द के अक नब-
आ एगो प्रण ठ नब त
क शल-आग मी क शल
िमरो एगो पररचय रित
हबरद िनक िम
िमर हबरद िन।
(बिीन द इक न म एगो थचट्ठी, ल ख प्रश्न अनुत्तररत)
िस्तुतः ई पररचय िै यक्ततक पररचयनहि थिक। स मूहिक पररचय थिक।
थमथिल क अपन धरती अपन दे श अपन ग मसँ जुडऽल रहि ओहि म हि-
प हनसँ उज त प यब थिक ज हिसँ दुहनय ँ केँ बदशल सकी। अपन केँ थचन्द्िब क
ले ल आ अपन शक्ततकेँ बूजझ सम ज व्यिस्ि मे पररिततन ले ल स मूहिक रूपे
सन्द्नद्ध िोयब िस्तुतः अपन पररचय प यब थिक। एहि ले ल शोहषत-दशलत
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 143

लोकक प्रथत सां िेदन त्मक स्तरपर जुडल रिल जरूरी अथछ। तौं कहि कहि
उठै त छथि।
शलखब ले ल बै सै छी
गां ग अितरण कि
शलखने चल ज इत छी
कोशी प्र ां गणक व्यि

हिख्य त भुिनत्रयम् , ल ख प्रश्न अनुत्तररत)


र मलोचन ठ कुरक आठम दशकसँ पथछल शत ब्दीक अां त धरर आ एहि
शत ब्दीक आरां भ धररक कहित सभकेँ पहढ़ लगै त अथछ जे एहि दे श-दुहनय ँ क
हिरपू त , िै षम्य, असम नत , शोषणपर आध ररत सम ज आ सत्त क परत
दर परत उघरै त चल ज रिल अथछ। एक आस्ि हिश्व सक सां ग व्यिस्ि
पररिततन ले ल सोच-हिच र ओ स मूहिक सां घषतक म नशसकत पररश्रमी
लोकक हित-प्चित , पक्षधरत क सां ग सां िेदन त्मक स्तरपर अपन छ प छोहड
रिल अथछ। िइए जे कहिक सां ग कहि उठी-
आउ ने
िमर लोकहन सां ग थमशल पि बी
ग छ सभ एखनो अइ प्र णिां त आ
िमर हिश्व स अइ आइ ने क शल
एहि मे िोएतै क नि पल्लि
रां ग-हबरां गक फूल
जकर म दक गां ध सां मिमि करत पररिे श
पीहब मधु म तल मधुप गुांजन करत
तखन िमहूां शलखब
आ हनखिते शलखब
144 ||गजेन्द्र ठाकुर

िसन्द्त-गीत जे
आक शक नहि
पररिे शेक उपज थिक ।
(िसन्द्त गीतक म दे , ल ख प्रश्न अनुत्तररत)

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 145

नारायर्जी- सां पकत-9431836445

विरोध आ अनुरोधक कविता

कहि र मलोचन ठ कुर िमर सभ ददनसँ आकृि करै त रिल ि अथछ। तकर
आध र हुनकर ओ सुस्पि िै च ररक ले खन थिक जे एक सां ग भ ष आ
स हित्यक प्रथत सम न भ िे एकल हनष्ठ आ समपतणकेँ दश तबैत अथछ।
स हित्य स धन क म ँ ग करै त अथछ। स धन ले ल च िी एक ां त। एक ां त
िै च ररक सुदृढ़ीकरण ले ल अत्यां त आिश्यक म नल गे ल। सां गहि एक ां त भ ि
आ शब्दक उप सन क ले ल से िो अिक श उपलब्ध करे ब मे स ियक िोइत
अथछ। मुद भ ष ले ल च िी आां दोलन। आां दोलन ले ल एक ां तसँ बिर व्यक्तत
आ व्यक्ततसँ जुहि एकि स ितक सां गठनक ख िे तँ हनम तण करब िोइत अथछ
अिि हनर्मित सां गठनक सां ग भऽ अपन गथत आ त्िर सँ सां गठनकेँ ददश दे ब
थिक। र मलोचन ठ कुरक जेँ हक मै थिली भ ष आ स हित्य ले ल सद
समर्पित रिलहन अथछ, पौर जणककेँ िततम नमे स क र करब क ले ल समर्पित
रिलहन अथछ तेँ हुनक द्व र रथचत मौशलक स हित्यकेँ भ ष आां दोलन आ
त हि ले ल उत्खहनत-अहिष्कृत हिच र सां ग जोहड दे खल ज एब आिश्यक
अथछ। िमर एखन अपन कहियोक पढ़ल मोन पहड आएल अथछ जे प हनक
146 ||गजेन्द्र ठाकुर

अभ िमे जखन ससिधुघ िी सभ्यत नि भे ल ज रिल रिै तखन ससिधु दे िी


एकि प्रथतभ श ली ति पर िमी युिकक सपन मे अितररत भऽ जलक
अहिरल प्रि ि बनौने रिब क ले ल युक्ततक ज्ञ न करबौने रिथिन। िमर ईिो
स्मरण भऽ आएल अथछ जे मगध सम्र ि अशोकसँ पर जजत भऽ कसलिग कोन
तीन सए बरखक उपर ां त ख डबे ल (त त्क लीन कसलिग र ज ) केर सपन मे
दे िी बहन प्रकि भए मुक्तत ले ल प्र ितन केने रिथि। आ ई स्मरण तँ भऽ रिल
अथछ जे ल म हकछु मां त्र हबदहबद इत छथि तकर आर जते क आ जे हकछु
िोइत हुअए मुद एकि आर अित 'थतब्बत' िोइतटिि ि अथछ। तहिन
र मलोचनजीक जते क पत्र िमर अबै त छल त हिमे िमर न म-ग म-जजल क
हनच्च मे शलखल रिै त छल 'थमथिल '। थमथिल सँ ब िर रिै त र मलोचनजीक
सपन मे 'थमथिल ' स क र िोएब क अपन सां पूणत कमनीय इच्छ क सां ग
रिलहन।
र मलोचन ठ कुर थमथिल सँ ब िर रिै त अिर्निश थमथिल ले ल प्चिप्तित
थमथिल केँ हिकशसत रूपमे दे खब क ले ल जें हक आां दोलनक समग रिल ि,
जन समुद यक सां गे रिल ि तें अपन रचन क भ ष केँ अशभज त्य िगतक
भ ष सँ यि सां भि दूर जनभ षक हनकि रखलहन जे नहि सितजन-बोधगम्य
छल अहपतु भ ष द्व र हिच रकेँ सितग्र ह्य बनएब क ले ल ति जन समुद य
ले ल, जनसमुद य द्व र अपे जक्षत उत्ते ज नक लिरर से िो उत्पन्द्न करएमे सफल
भे ल अथछ। सां गहि थमथिल क उद्ध र ले ल थमथिल क हनजी भ ष मै थिलीक
उद्ध र करब क ले ल भ हषक थचन्द्त तँ हुनकर सि े परर रिबे केलहन सभ ददन।
उपयुततत प्चित सँ प्चिथतत अने क मौशलक ति अनूददत पुस्तकक रचथयत
र मलोचन जीक १९९६ ई. मे प्रक शशत ४८ शीषतकमे हिभतत कहित सभक
सां ग्रि थिक "अपूि त" जकर ि ां थत-गीत किब बे सी उपयुतत िएत, एहि ले ल
जे एहि सां ग्रिक कहित सभमे हिलक्षण गे यधमी गुण अथछ जे कहिक हिशशि
छां द-त नकेँ उज गर करै त अथछ, ति ज हि कहित सभक प ँ थत सभकेँ
न र क रूपमे आां दोलन ले ल मां चसँ किल ज सकैत अथछ एिां दे ब लपर
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 147

शलखल-स िल ज सकैत अथछ।


र मलोचन ठ कुर थमथिल क गररम क कहि रिल ि अथछ। हुनकर कहित
सभमे प्र चीन थमथिल क ज्ञ न-िै भि अने क ठ म अने क आिृथत बहन आएल
अथछ, ज हि िै शशष्ट्यसँ पररचय करएब आजुक लोककेँ अहनि यत बुझैत
रिल ि अथछ। ओ बुझैत रिल ि अथछ जे गररम मयी अतीत जे रिल अथछ,
अपन तकर स्मरण ददअओल सँ िततम नमे एहिठ मक हनि सीमे ओहि
मूल्यक प्रथत ज गरुक बन ओल ज ए सकैत अथछ जे कहियो छल से बूझब
आिश्यक अथछ-
"लक्ष्मी के ब स जतए खे त-खररि न
घर-घरमे सरस्िती गबै छथि स म।
स्रि जत पूजक आ पूजजत िो सृथि
म हिक शशि बन पुहन प्रथतष्ठ क प्र ण।"

र मलोचन ि कुर थमथिल क गररम आ ज्ञ न-िै भि ति स्िर्णिम अतीतक


करै त आजुक समयमे थमथिल कि सीक ओहि हििशत क अिि ओहि
हनधतनत क चचत से िो करै त छथि अपन कहित द्व र जे िम सभ स ग-प त
ख ए जजबै त छी की आ केिन अय ची छी?
र मलोचन ठ कुर थमथिल क समुथचत हिक स ले ल मै थिली भ ष क हिक स
बड आिश्यक म नै त छथि। एहि ले ल जे भ ष क अशभव्यक्ततक एिन म ध्यम
थिक ज हि द्व र जनसम न्द्यक नहि म त्र सुख-दुख ि बूझल ज ए सकैत अथछ
अहपतु जनसम न्द्यक स पे क्ष जीिन हिक समे ओकर इच्छ -आक ां क्ष केँ से िो
सरर भए बूझल ज ए सकैत अथछ। मुद थमथिल मे पसरल तँ अथछ टििदी जे
िमर शत्रु नियो रिै त थमत्र कखनहुँ नहि थिक। तें कहि आह्व न करै त छथि जे
148 ||गजेन्द्र ठाकुर

जनगणन मे मै थिली शलखब क-


"क स्ल्ि जनगणन थिक ग मे पर रिब
ठीक-ठीक शलख एब कने जे न -जे न किब
म इक जे भ ष से मै थिली शलख एब
दे खब टििदी ने शलखए मुद्दैय "

उपयुततत क व्य-पां क्तत थमथिल मे भ ष क प्रथत भे ल अपस ां स्कृथतक दृि ां त


उज गर करै त टििदीक हिरोधमे कहिक व्यतत हिच र थिक।
र मलोचन ठ कुर अपस ां स्कृथतकरणक हबि हडसँ थमथिल केँ बचएब क ले ल
ने केिल हनज भ ष केँ बचएब क ले ल आह्व न करै त छथि अपन कहित द्व र
अहपतु अपन परां पर सँ ग ढ़ अनुर ग दे खबै त तकर बचएब क अनुरोध करै त
छथि। मुद एहि हिलक्षण दृथिकेँ जतबे क प्रशां स कएल ज ए से िोड िएत।
ओ परां पर केँ बचएब क जे अनुरोध कएलहन अथछ से प बहन-थति र आ
भक्तत-पूज सन बुजुआत स ौं दयतबोधक प रां पररक सां स्क रक बचएब क अनुरोध
नहि, से थिक लोक-सां स्कृथतकेँ बचएब क ले ल हिकल अनुरोध। आ त हि ले ल
थमथिल मे कहियो प्रचशलत ओ खे ल आ फकड सभ थिक जे कहियो छल
जकर आइ लोप भए रिल अथछ। मुद त हि लोक-सां स्कृथतक फम तमे ओ
समयकेँ जे दे खओलहन अथछ तकर मूलमे लोकध र क लोकरसमे प हग अपन
सां देश हबलिब थिक आ तकर ब नगी दे खल ज ए सकैत अथछ--'उट्ठी गोिी
मोर पच स' शीषतक कहित , 'आम छू अमरोर छू ' कहित , ति 'फेर
कन्द्हुआइ छौ तोरे पर' कहित सभ थिक , जे सभ कहिक अपन िै च ररक
अनुरोधकेँ अपन र ग-भ समे व्यतत करब क एक प्रक रक अनुरोध थिक।
र मलोचन ि कुर ज हि सक र त्मक हनम तणक योजन क झलक सां ग
थमथिल क ओ रोग जे अपस ां स्कृथतकरणक अथछ तकर अपन कहित द्व र
हिरोध कएलहन अथछ ओतहि ओ अपन गौरिश ली परां पर केँ बचएब क ले ल
अनुरोध से िो कएलहन अथछ। आ हुनकर से सददच्छ सितत्र हुनकर कहित
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 149

सभमे मुखररत भे ल अथछ। आ अपन त हि हिच रकेँ पुनजीहित रखब क ले ल


अपन एहि करुण हिनय सां ग म र्मिक अशभव्यक्तत दे लहन अथछ-
िम रिी ि नर रिी
य द िमर ब ँ चत
मओन सुन्द्न ब ि जक ँ
ब ि अि ँ क त कत

िमर हिश्व स अथछ जे र मलोचन ठ कुर सभ ददन रित ि, हुनकर कहित सभ


ददन ब ँ चत। आ कहित मे अनुस्यूत हुनकर हिच र थमथिल ि सीकेँ सभ ददन
ददश प्रद न करै त रित।

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


150 ||गजेन्द्र ठाकुर

रामर्रोस कापवड भ्रमर-सां पकत-9854020889

दे शसल बयनाक बहन्ने रामलोचन ठाकु र प्रसं ग

ह्मर मोन नहि अथछ–र मलोचन ठ कुरसँ िमर कहिय भे ि भे ल छल । तखन


सभ सम रोिमे हनरन्द्तर कते को ठ म भे िैत रिलहूँ अथछ । आ से म त्र
औपच ररक भे िम त्र । हुनक अने रे बजै त रिब क प्र यः आदतो ने छखन्द्ि ।
नहि दे खशलयहन ते िन ।

िँ , तखन पत्र–पशत्रक क म ध्यमे क फी पहिने सँ भे ि रिल । हुनक ले खनमे


व्यिस्ि प्रथतक आिोशक हुनक ले खकीय स्िरुपकें जते क प्रखर बनबै त
छलखन्द्ि, ततबे प्रभ िक री । आ िम से रुथचसँ पिी । एहि दुआरे नहि जे िमर
कोनो ि म–दहिन हिच रध र क प्रभ ि गछडने रिे । एहि दुआरे जे खूशल कऽ
अव्यिस्ि आ शोषणके रखब क हुनक स िस िमर लग अनने छल ।

ई सम्िन्द्ध आर प्रग ि भऽ गे ल–कलकत्त सँ बिर इन त पत्र–पशत्रक क


म ध्यमे । िम हनरन्द्तर छपै त छलहुँ । दोसकोस भ ई हिनोद कुाृम र
झ क, दे शसल ियन जन दतनझ क सम्प दनमे छपै त आ एम्िर भ इ र मलोचन
ठ कुरक सम्प दनमे छपै त ‘थमथिल दशतन’क स ँ ग । ‘थमथिल दशतन’मे रचन
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 151

सभ छहपते छल, िमर एकि स्तम्भ से िो छपै त छल जे क फी समय


प्रक शशत िोइत रिल । कोनो ख स रचन क िे तु आग्रि, अिि हिशे ष रुपें
शलखल रचन क प्रक शनक हिच सम्प दक िअस्ि दुनूके हनरन्द्तर जोडै त रिल
छल ।

तकर अथतररतत भ इ र मलोचन ठ कुरक सँ ग िमर चे न्द्नईक भे िघ ि सां जक्षप्त


मुद सुखद अथछ । िम, ड . र म ित र य दिक सँ ग ठ कुरजीक सँ ग हिस्तृत
गपसप आ फेर समुद्क हकन्द्िेरमे सै र सप ि क आनन्द्द, । त हू िममे कते को
प्रसां गमे पोस्िम ितम िोइत रिल, िमर सभक िोली आग बिै त रिल ।

कम ब जब आ सिीक ब जब । लोक एकर भले कड , कठोर आ रसिीनत क


आरोप लग बे –लोक भ ष मे एकर ठ य–पि क किब किल करै त अथछ से
ठ कुर जी किै त अएल ि अथछ ।

आब आबी ब त करी दे खखलियन क जे कलकत्त सँ १९८१ ई.मे बि र भे ल


छल । ई म शसक पत्र छल जे अखब री स इजमे आठ पृष्ठक बिर इत छल ।
जँ हक ई मै थिली मुक्तत मोच तक मुखपत्र छल, तएँ एहिमे एकर सां योजक र म
लोचन ठ कुर पृि पृि आ किी त पां क्तत पां क्ततमे बजै त छल ि । सम्प दक
यद्यहप जन दतन झ रिथि । मुद दे शसल बयन क पृि पर उभरै त हिशभन्द्न न मी
आ बे न मी रचन सभक चयन र म लोचन ठ कुरजीक सोचके अधीक सँ
अधीक प्रथतहनथधत्ि करै त बुझ इक ।

तहिय िम जनकपुरध मसँ अचतन द्वैम शसक रुपें हनक लै त रिी । जे तहिय
ड क सुलभत क क रणे क फी ठ ममे ज इक, कलकत्त से िो । दोशसल
ियन मे तकर हिज्ञ पनो छपल करै क । िम प्र रां भे सँ दे खखल ियन सँ जूडलहुँ
152 ||गजेन्द्र ठाकुर

। खूब शलखलहुँ आ खूब पिलहुँ । बरु किी त र मल गे चन ठ कुर जीक


हिच रसँ त िी पशत्रक म ध्यमे अिगत भे ल रिी । ठ यँ पितक बज बल मदत
मै थिल... ।

दे शसलबयन िमर हनरन्द्तर अबै त छल । सां ग्रि अथछयो । एखन जखन


हुनक पर केखन्द्रत शलखब क िे तु हिदे िसँ आग्रि आएल तां खोजल । एक–दूि
भे िल । आर खोजब क हिम्मत नहि भे ल । आध दजतन अनब रीमे तहिआएल
पुस्तकके कतौ प तर क य अदृश्य भऽ गे ल छल । तखन हिदे िक सियोाेगे
आर हकछु प्रथत प्र प्त कएल । जकर म ध्यमे हकछु शलखब क आध र तै य र
भे ल अथछ ।

से िम दे शसल ियन क िषत २, अां क ८ सँ हकछु प्रसां ग र ख च िब । ओ ब ल


गीत बरोबरर शलखै त छल ि । िम से िो कहियो क ल ब लहगत शलखै त छलहुँ
। से हुनक ब लगीत नीक लगै त छल । बच्च के हुनके धुन आ शै लीमे अपन
भ ष –स हित्यपर ध्य न केखन्द्रत करब ले ल कयल गे ल आग्रि एत्त दे खल
ज ए–

“जझजझर कोन जझजझर कोन , कोन कोन ज उ

थमथिल के आां गनमे सभतरर खे ल उ

उत्तर हिम लय आ दजक्षणमे गां ग छइ

कोशी आ गां डकमे िे लु नि उ !

उत्तर आ दजक्षणके भे द हबसर उ

थमथिल के सन्द्तथत छी मै थिल कि उ


विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 153

कन्द्ि सँ क न्द्ि जोहड ज थत–प थत अहड तोहड

थमथिल के म हि उठ म िसँ लग उ ।।”

त िी अां कमे एकि कहित मीत क न म छपल छखन्द्ि । दे खू–

“म नै छी मीत

सत्य सररपहुँ आरोप तोिर

बीथत गे ल िमर समय

शलखख नहि सकैछी आब

व्यित करै छी प्रल प

सां कुथचत हिच र बोध गिने चशल ज इत अथछ

हकन्द्तु

िम ब ध्य छी

जरबय त च िै छी आशक आलोक नि

हनर श क हबडरो

थमझओने चशल ज इत अथछ

शलखब ले बै सैछी

कि आज दीके
154 ||गजेन्द्र ठाकुर

व्यि बे रब दीके

शलख एल चशल ज इत अथछ... ।”

आज दीक सुख नुभथू तक पृिभूथममे उहग आएल अव्यिस्ि , अर जकत क


प्रकोपे व्यथित कहब अपन ले खनीके अन य स अपन प्चितनक सां ि िक बनएब
पर हििश भऽ ज इत छथि । आ िमर जहनते जनि दी कहि र मलोचन
ठ कुरक इएि सत्य थिकै, इएि अशभि भऽ गे लै ।

‘किलोचन कहिर य’ स्तम्भमे र मलोचन ठ कुरक छि पथतय हनरन्द्तर छपल


करै न । आ त हुमे ओ मै थिल, थमथिल आ मै थिली पर हिच र, उद्वोधन
रखब सँ प छ नहि रिथि । आइयो हुनक एहि हिच रमे कोनो पररिततन भे ल
छखन्द्ि से ब त नहि । तखन समय आ अिस्ि ज्ञ ने गथत ते ज आ मशद्धम िोएब
दोसर ब त ।

ते िने एक ठ म ओ शलखै त छथि–

“ब ररक पिु आ तीत आ, िो ब ज रक मीठ

कुिरर रिल छै मै थिली, डहनय िे रय गीत

डे हनय रे रय गीत, नचै ए पखिम ग मक

चमक–दमकसँ मोहि, पुत सभ थमथिल ध मक

ति लोचन कहिर य, कलां कक ले पल क ररख

मै थिल युिजन म हन, मै थिली पिु आ ब ररक ।।”

(दे शसल बयन , िषत २, अां क ५ फरबरी, १९८२)


विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 155

बस्तिमे दे शसल बयन पशत्रक क ले खनक छ ां ि दे खल पर ई स्पि भऽ ज इछ


जे ओहिमिक बहुतो आले ख÷हिप्पणी हिशभन्द्न न मसँ ठ कुरजी स्ियां शलखै त
छल ि । ि णीमे ओज, जखन नुक यल न मोक आिरणमे पशत्रक के पन्द्न
पर उतरै त छै तां बे छप बे सी क ल नहि रहि पबै त अथछ । ओएि
प्रखरत , सुपत–कुपत किब क हिम्मत आ लोक व्यिि रसँ लोिछल
मनःस्स्िथत ।

से ओ प्रक र न्द्तरसँ स्ियां स्िीक र कयनहुँ छथि, तखन जखन दे शसल बयन
पां थयजकरणक क रणे दे सकोस न मसँ बिर यल त तकर पहिल अां कमे
सम्प दकीय शलखै त ठ कुरजी व्यि व्यतत करै त दे शसलबयन के स हित्य
हिशे ष ां क (अतिु बर १९८२) क ब द बन्द्न ियब क मूल क रण ले खकीय
असियोग किने छथि ।

‘दे शसल बयन ’ एक िषत चलल । एहि एक िषतक प्रत्ये क अां कमे र मलोचन
ठ कुरक उपस्स्िथत हिशभन्द्न रुपमे दे खब मे अबै त अथछ । कते को स्तम्भ सभ
दे खख पडै छ– सभक भ ष –बोलीमे ठ कुरजीक कलमक चमत्क र दे खख पडै छ
। मै थिली भ ष क उत्ि नक िे तु गदठत भे ल मै थिली मुक्तत मोच तक
ि न्न्द्तक री उद्बोधन एहि पशत्रक क स्िर सन्द्ध न रिलै क आ तकर सां रक्षक
प्रेरक रिल ि र मलोचन ठ कुरजी । िमिँ ाु एहि पशत्रक सँ जूडल रिलहुँ ।
मुद कि , कहित धरर म त्र नहि रहि पौलहुँ । दे शसल ियन क िषत १, अकांक
२ निम्िर १९८२ ई. क अां कमे ते सर पृिपर िमर एकि ले ख छपल–‘मै थिली
आन्द्दोलन–मै थिलक आन्द्दोलन बनब पडत ’ । आइ जखन उनच शलस िषत
पूितक अपन एहि ले खके पिै त छी त लगै ए इिो ठ कुरे जीक रँ गमे रां गल ले ख
छल, जे तहिय म ने च रर दशक पूित आन य स शलखब पर ब ध्य भे ल रिी ।
आ त हि ले खक जे भ ि अथछ ओ आइयो मै थिली भ ष , स हित्यक्षे त्रमे
ओहिन दे खल ज इछ, कोनो पररिततन नहि, बरु सां कुचन बे सी । आजुक भ ष

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