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विदे ह रामलोचन ठाकुर


विशेषाांक
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gachh.html केर रूपमे इन्टरनेटपर मैछथिीक प्रवचीनतम उपस्थितक रूपमे तर्द्यमवन अछि (तकिु ददन िेि
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अछि।
(c)२०००- २०२३. तर्दे ि: प्रथम मैछथिी पवक्षिक ई-पतिकव (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004).
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VIDEHA RAMLOCHAN THAKUR SPECIAL ISSUE: Editor Gajendra Thakur


ISBN No: 978-93-5967-988-4
समवनवन्तर परम्परवक तर्द्यवपतत- मैछथिीक आददकतर् तर्द्यवपतत ( तर्द्यवपततक छचि: तर्दे ि छचिकिव
सम्मवनसँ पुरस्कृत पनकिवि मण् ि द्ववरव)। कर्ीश्वर ज्योततरीश्वर(िगभग १२७५-१३५०)सँ पूर्ा (कवरण
ज्योततरीश्वरक ग्रन्थमे तिनक चचा अछि), मैछथिीक आदद कतर्। संस्कृत आ अर्िट्ठक तर्द्यवपतत ठक्‍टकुरःसँ
क्षभन्न। सम्भर्तः तिस्फी गवमक िविार कवस्टक श्री मिेश ठवकुरक पुि। समवनवन्तर परम्परवक तिदवपत नवचमे
तर्द्यवपतत पदवर्िीक (ज्योततरीश्वरसँ पूर्ासँ) नृत्य-अक्षभनय िोइत अछि।ज्योततरीश्वर पूर्ा तर्द्यवपतत:-
कश्मीरक अक्षभनर् गुप्त (दशम शतवब्दीक अन्त आ एगवरिम शतवब्दीक प्रवरम्भ)- ग्रन्थ “ईश्वर प्रत्यवक्षभज्ञव-
तर्भर्षिंणी” मे तर्द्यवपततक उल्िेि करै िछथ। श्रीिर दवसक सदुस्थक्‍टतकणवामृत, (रचनव ११ फरिरी १२०६,
मध्यकविीन धमछथिव, तर्.कु. ठवकुर)- श्रीिर दवस तर्द्यवपततक पवँच टव पद उद्धृत केने िछथ जे तर्द्यवपततक
पदवर्िीक भवषव िी। "जवर् न मवितो कर परगवस/ तवर्े न तवति मिुकर तर्िवस।" आ "मुन्दिव मुकुि
कतय मकरन्द।" ज्योततरीश्वर (१२७५-१३५०) षष्ठः कल्िोि- ॥अथ तर्द्यवर्न्त र्णानव॥ अष्टमः कल्िोिः-
॥अथ रवज्य र्णानव॥ मे उल्िेि।

मैछथिी भवषव जगज्जननी सीतवयवः भवषव आसीत्। िनुमन्तः उक्‍टतर्वन- मवनुषीधमि संस्कृतवम्।

अक्खर खम्भा (आखर खाम्ह)

ततहअन िेत्तति कवञि तसु तकक्षत्तर्स्थल्ि पसरेइ। अक्‍टिर िम्भवरम्भ जउ मञ्चो िन्धि न दे इ॥ (कीर्तिंितव
प्रथमः पल्िर्ः पतिि दोिव।) मवने आिर रूपी िवम्ि तनमवाण कऽ ओइपर (गद्य-पद्य रूपी) मंच जँ नै िवन्िि
जवय तँ ऐ तिभुर्नरूपी िेिमे ओकर कीर्तिंरूपी ित्ती केनव पसरत।

शुक्‍टि यजुर्ेद (२६.२)-यथेमवं र्वचं कल्यवणीमवर्दवतन जनेभ्यः। ब्रह्मरवजन्यवभ्यवं शूरवय चवयवाय च स्र्वय
चवरणवय च।।िम सभ गोटेकें ई पतर्ि र्वणी (र्ेदर्वणी) सुनविी। ब्रवह्मणकें , ितियकें, शूरकें आ आयाकें;
अपन िोककें आ अपररछचतकें सेिो (मवने सभकें)। मुदव ऐ र्ेदर्वक्‍टयक तर्परीत मनुस्मृतत र्ेदर्वणीक
अध्ययन/ श्रर्णकें समवजक तकिु गोटे िेि तनषेि करऽ चवििक, मुदव स्मृतत सेिो र्ेदर्वक्‍टयकें प्रमवण मवनैत
अछि (शब्द प्रमवण) तें तकर तर्रुद्ध दे ि ओकर तनदे श स्र्यं अमवन्य भऽ जवइत अछि।

Do not judge each day by the harvest you reap but by the seeds that you plant.
-Robert Louis Stevenson

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Videha: Maithili Literature Movement


𑒀

ॐ द्यौ: शवन्न्तरन्तररि ग्र्ंग शवन्न्त:

𑓇 𑒠𑓂𑒨𑒾 : 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒢𑓂𑒞𑒩𑒢𑓂𑒞𑒢𑓂𑒞𑒱𑒩𑒏𑓂𑒭 𑓅 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒢𑓂𑒞:


𑒀

ॐ द्यौ: शान्तिरतिररक्ष ग्वंग शान्तििः पथ्


ृ वी शान्तिराप:
शान्तिरोषधय: शान्ति वनस्पिय: शान्तिर्वश्ि वे दे वा:
शान्तिर्ब्िह्म

𑓇 𑒠𑓂𑒨𑒾 : 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒢𑓂𑒞𑒩𑒢𑓂𑒞𑒢𑓂𑒞𑒱𑒩𑒏𑓂𑒭 𑓅 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒢𑓂𑒞 𑒣𑒵𑒟𑓂𑒫𑒲 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒢𑓂𑒞𑒩 𑒣𑒵: 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒢𑓂𑒞𑒠𑓂𑒨𑒾𑒩 𑒭𑒡𑒨: 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒢𑓂𑒞


𑒫𑒢𑒮𑓂𑒣𑒞𑒨: 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒢𑓂𑒞𑒢𑓂𑒞𑒱𑒫𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒫 : 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒢𑓂𑒞𑒩𑓂𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧

ब्रह्मणसँ प्रवथानव जे द्युिोकमे, अंतररिमे, पृथ्र्ीपर, जिमे, औषिमे,


र्नस्पततमे, तर्श्वमे, सभ दे र्तवगणमे आ ब्रह्ममे शवंतत हअय।

ॐ-ब्रह्मण, द्यौ-सूया-तरेगण, अंतररि- पृथ्र्ी आ द्यूिोकक िीच, आप:-


जि, तर्श्वेदेर्व- सभ दे र्तव, ब्रह्म- सजाक।

𑒩𑓂𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧𑒝𑒮𑒿 𑒣𑓂𑒩𑒰 𑒩𑓂𑒟𑒢 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒏𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒁𑓀𑒞𑒢𑓂𑒞𑒱𑒩𑒏𑓂𑒭𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒣𑒵𑒟𑓂𑒫𑒲 𑒣𑒵𑒩, 𑒠𑓂𑒨𑒾 ,
𑒎𑒭𑒡𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒫𑒢𑒮𑓂𑒣𑒢𑓂𑒞𑒱𑒞𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒫 𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒮𑒿𑒦 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒫𑒞 𑒑𑒝𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒂 𑒩𑓂𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒞
𑒯𑒳𑒁𑓀𑒨।
𑓇-𑒩𑓂𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧𑒝, 𑒠𑓂𑒨𑒾 -𑒮𑒿𑒨-𑒞𑒠𑓂𑒨𑒾𑒩𑒑𑒝, 𑒁𑓀𑒞𑒢𑓂𑒞𑒱𑒩𑒏𑓂𑒭- 𑒣𑒵𑒟𑓂𑒫𑒲 𑒂 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒏𑒏 𑒥𑒲 𑒔,
𑒂𑒣𑒵:- , 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒫𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒫 - 𑒮𑒿𑒦 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒫𑒞 , 𑒩𑓂𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧- 𑒮𑒿 𑒏।
𑒀
ॐ, स॒िस्र॑शीषवा॒ पुरु॑षः। स॒ि॒स्रव॒िः स॒िस्र॑पवत्।

𑓇, 𑒮𑒿↓𑒯𑒮𑓂𑒩↑𑒬𑒰 𑒭 ↓ 𑒣𑒳𑒩𑒳↑𑒭 । 𑒮𑒿↓𑒯↓𑒮𑓂𑒩 ↓𑒏𑓂𑒭 𑒮𑒿↓𑒯𑒮𑓂𑒩↑𑒣𑒵 𑒞𑓂।

स भूममिं ॑ ग्र्ंग तर्॒श्वतो॑ र्ृत्र्व।


॒ अत्य॑ततष्ठद् दशवङगुिम्
॒ ॥

𑒮𑒿 𑒦𑒴𑒢𑓂𑒞𑒱 ↑𑓅 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒫↓ 𑒠𑓂𑒨𑒾𑒞 ↑ 𑒫↓𑒞𑓂𑒫𑒰 । 𑒁𑓀𑒞𑓂𑒨↑𑒢𑓂𑒞𑒱𑒞𑒭𑓂𑒚𑒠𑓂 𑒬𑒰 𑒓𑓂𑒑𑒳↓ 𑒧𑓂॥

िजवर मवथ, िजवर आँखि, िजवर पएर संग तर्श्वकेँ आच्छवददत केने
अछि, दस आंगुरक गनतीक र्शमे नै अछि ओ।

प॒दभ्् यवग्ँ ॑ शूरो


॒ अ॑जवयत॥

𑒣𑒵↓𑒠𑓂𑒦𑓂𑒨𑒰 𑒑𑓂�↑ 𑒬𑒰↓𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒁𑓀↑ 𑒨𑒞॥

पएरसँ शूरक उत्पक्षत्त भेि॥

प॒दभ्् यवं भूधम॒र्दिंशः॒ श्रोिव᳚त्।

𑒣𑒵↓𑒠𑓂𑒦𑓂𑒨𑒰 𑒦𑒴𑒢𑓂𑒞𑒱 ↓𑒢𑓂𑒞𑒱 𑒬𑒰 ↓ 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒞𑓂𑒩𑒰 ↑↑𑒞𑓂।

मुदव पएरेसँ भूधमयोक उत्पक्षत्त।


𑒀

❀ (White Florette- innocence and purity)


☸ (Wheel of Dharma)
࿕(Swastik)
𑓅 (Gwang ग्र्ंग- two small circles connected by u and a dot placed over it, used
in reference of Vedic texts)
꣼ (छसञद्धरस्तु, छसद्धम 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒮𑒿𑒢𑓂𑒞𑒱 𑒩𑒮𑓂𑒞𑒳, 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒮𑒿 Devanagari Anji)
ঀ (Bengali Anji, Siddham)
𑒀 (Tirhuta Anji, Ankush of Ganeshji, placed at the beginning of something)

सोशल मीडिया, अन्तर्ााल आ दूरदशानक कायाक्रम सभमे वे दमे ई ललखल अछि, ई वर्णित अछि, शूद्रक प्रछत, स्त्रीक
प्रछत, शूद्रक स्त्रीक प्रछत अपमान र्नक गप ललखल अछि; ई सभ सूडन कऽ डकयो डवकीपीडिया आ आन आन ठाम
अन्तर्ाालपर ले ख सभमे पररवतान कऽ दे ने रहछि। एक गोटे अं ग्रेर्ीमे ललखलडन- “अिवावेदमे शूद्रक पत्नीकेँ डिना
स्त्वीकृछतक डकयो हाि पकडि लऽ र्ा सकय, िला वक्तव्य अछि।” हम कुरुक्षे रम् अन्तमानक, खण्ि-८; प्रिन्ध
डनिन्ध समालोचना भाग-२, २०१४ मे अपन आले ख “डवद्यापछत: डकिु प्रचललत कुप्रचारक डनवारण” मे ललखने रही-
“.. ई ओडहना भे ल र्े ना अिवावेदमे शूद्रक पत्नीकेँ डिना स्त्वीकृछतक डकयो हाि पकडि लऽ र्ा सकए िला
वक्तव्य।”
मुदा अिवावेद िा कोनो वे दमे ओइ तरहक वक्तव्य कत्तौ नै आयल अछि। तकर डवपरीत शुक्ल यर्ुवेद ई कहै त
अछि:-
शुक्ल यर्ुवेद (२६.२)-यिे मां वाचं कल्याणीमावदाडन र्ने भ्यः। ब्रह्मरार्न्याभ्यां शूद्राय चायााय च स्त्वाय चारणाय
च।।हम सभ गोटे कें ई पडवर वाणी (वे दवाणी) सुनािी। ब्राह्मणकें , क्षलरयकें, शूद्रकें आ आयाकें; अपन लोककें आ
अपररछचतकें से हो (माने सभकें)। मुदा ऐ वे दवाक्यक डवपरीत मनुस्मृछत वे दवाणीक अध्ययन/ श्रवणकें समार्क
डकिु गोटे ले ल डनषे ध करऽ चाहलक, मुदा स्मृछत से हो वे दवाक्यकें प्रमाण मानै त अछि (शब्द प्रमाण) तें तकर डवरुद्ध
दे ल ओकर डनदे श स्त्वयं अमान्य भऽ र्ाइत अछि।
वे द मे उपलब्ध शूद्र शब्दक उल्ले खखत अं शक सं ग्रह नीचााँ दे ल र्ा रहल अछि। शूद्रक अपमानर्नक उल्ले ख ताँ नडहये
अछि, वरन् पएरसाँ पडवर पृथ्वीक र्न्मक उल्ले ख अछि आ तही उत्पलत्तक सादृश्यताक कारणसाँ मानव समुदायक
पालक शूद्र कहल गे ल िछि।
प॒द्भ्याग्ाँ ्ँ॑ शूू॒द्रो अ॑र्ायत॥

पएरसाँ शूद्रक उत्पलत्त भे ल॥

प॒द्भ्यां भूछम॒र्दिश॒ःि श्रोरा᳚त्।

मुदा पएरे साँ भूछमयोक उत्पलत्त।


REFERENCE OF SHUDRAS IN VEDAS [Dr Tulsi Ram, 2013, Atharveda:
Samaveda: Yajurveda: Rigveda; English Translations]

ATHARVA VEDA (3 references)

KANDA-14
(MARRIAGE AND FAMILY) Kanda 14/Sukta 1 (Surya’s Wedding)
Devata: Dampati; Rshi: Surya Savitri
60. Bhagastataksha caturah padanbhagastataksha catvaryuspalani. Tvasta
pipesa madhyatonu vardhrantsa no astu sumangali.
Bhaga, lord sustainer and ordainer of life, has framed the value orders of
life: Dharma, Artha, Kama and Moksha; four social orders: Brahmana,
Kshatriya, Vaishya and Shudra; four stages of personal life: Brahmacharya,
Grhastha, Vanaprastha and Sanyasa. Tvashta, lord maker and organiser of
life, has placed the woman as partner of man in matrimony in this order and
organisation. May the bride be good and auspicious for us.
भाग- पालनकताा आ र्ीवनक अछधष्ठाता- र्ीवनक मूल्य क्रम तै यार केने िछिः धमा, अिा, काम आ मोक्ष; चारर
सामाजर्क क्रम- ब्राह्मण, क्षलरय, वै श्य आ शूद्र; व्यक्क्तगत र्ीवनक चारर चरण- ब्रह्मचया, गृहस्त्ि, वानप्रस्त्ि आ
सन्यास।त्वष्टा- स्त्वामी डनमााता आ र्ीवनक आयोर्क- एडह क्रममे आ सङ्गठनमे स्त्रीकेँ डववाहमे पुरुषक सािीक
रूपमे रखने िछि। से वधू हमर सभक ले ल नीक आ शुभ होछि।
Kanda 19/Sukta 6 (Purusha, the Cosmic Seed)
Purusha Devata, Narayana Rshi
6. Brahmano sya mukhamasid bahu rajanyo bhavat. Madhyam tadasya
yadvaishyah padbhyam sudro ajayata.
Brahmana, (man of knowledge, divine vision and the Vedic Word in the
human community) is the mouth of the Samrat Purusha. Kshatriya, man of
justice and polity, is the arms of defence and organisation. The middle part
is the Vaishya who produces and provides food and energy. And the
ancillary services that provide sustenance and support with auxiliary labour
are the feet, the Shudra that bears the burden of society.
ब्राह्मण (ज्ञानी, ददव्य दृछष्ट आ मानव समुदाय ले ल वै ददक शब्द) सम्राट पुरुषक मुख अछि। क्षलरय -न्याय आ
रार्नीछतक लोक- रक्षा आ सङ्गठनक हाि िछि। मध्य भाग वै श्य िछि र्े भोर्न आ ऊर्ााक उत्पादन आ आपूर्ति
करै त िछि। आ सहायक से वा र्े सहायक श्रमक सङ्ग डनवााह आ सहायता प्रदान करै त अछि, ओ अछि पै र, शूद्र
र्े समार्क भार वहन करै त िछि।

Kanda 19/Sukta 32 (Darbha)


Darbha Devata, Bhrgu Ayushkama Rshi
8. Priyam ma darbha krunu brahmarajanyabhyam sudraya charyaya cha.
Yasmai ca kamayamahe sarvasmai cha vipasyate.
O Darbha, destroyer and preserver, eternal sanative, render me dear and
loving to and loved by all Brahmanas, Kshatriyas, Vaishyas, Shudras,
whoever we love and desire, and all those who have the eye to see (and
discriminate right and wrong).
हे दभाा, डवनाशक आ सं रक्षक, शाश्वत डववे कशील; हमरा सभकेँ ब्राह्मण, क्षलरय, वै श्य, शूद्र, सभक छप्रय आ प्रे मी
िना ददअ। सं गे ओ सभ हमरा सभसाँ प्रे म् करछि जर्नका साँ हम प्रे म करी िा जर्नकर कामना करी; आ ओ सभ
जर्नका लग दे खिाक दृछष्ट अछि (आ सही आ गलतमे भे द िुझैत िछि)।

SAMAVEDA (o reference)

YAJURVEDA (7 references)
CHAPTER- VIII
30. (Dampati Devata, Atri Rshi)
Purudasmo visuruupa indurantarmahimanamanaja dhirah. Ekapadim
dvipadim tripadim chatupadimastapadim bhuvananu prathantam svaha.

The man of mighty deeds, who eliminates suffering and creates joy, of
versatile attainments, bright and honourable, constant and resolute, should
wait for the great new arrival. Men of the household, cultivate the vaidic
culture of one, two, three, four and eight steps of attainment: one: Aum; two:
worldly fulfilment and the freedom of moksha; three: the joy of the truth of
word and the health of body and mind; four: the attainment of Dharma,
wealth, fulfilment of desire, and moksha; eight: the joy of all the four classes
and all the four stages of life (Brahmana, Kshatriya, Vaishya and Shudra,
Brahmacharya, Grihastha, Vanaprastha and Sanyasa). Build homes for the
people and advance in life.
शक्क्तशाली कमाक पुरुष, र्े दःखकेँ समाप्त करै त अछि आ आनन्द उत्पन्न करै त अछि, िहुमुखी उपलब्ब्धक,
उज्जज्जवल आ सम्मानर्नक, ब्स्त्िर आ दृढ़ सं कब्ल्पत, ओकरा महान नव आगमनक प्रतीक्षा करिाक चाही। घरक
लोक, उपलब्ब्धक एक, दू, तीन, चारर आ आठ चरणक वै ददक सं स्त्कृछत डवकलसत करै त िछिः एकः ओम; दइः
सां साररक पूर्ति आ मोक्ष रूपी स्त्वतन्रता; तीनः वचनक सत्यक आनन्द आ शरीर आ मब्स्त्तष्कक स्त्वास्त्थ्य; चाररः
धमाक प्राप्प्त, धन, इच्छाक पूर्ति, आ मोक्ष; आठः र्ीवनक चारर वगा आ चारर चरणक आनन्द (ब्राह्मण, क्षलरय,
वै श्य आ शूद्र, ब्रह्मचया, गृहस्त्ि, वनप्रस्त्ि आ सन्यास)। लोकक ले ल घर िनाउ आ र्ीवन मे प्रगछत करू।

CHAPTER- XVIII
48. (Brihaspati Devata, Shunah-shepa Rshi)
Rucham no dhehi brahmanesu rucham rajasu naskrudhi. Rucha vishyesu
shudreshu mayi dhehi rucha rucham.
Brihaspati, lord of the universe, eminent teacher and master of vast
knowledge, inspire our Brahma section of the community—scholars,
scientists, teachers and researchers with brilliance and love. Infuse
brilliance, love and justice into our Kshatrias, defence, administration and
justice section of the community. Bless with light, love and generosity our
Vaishyas, producers and distributors among the community. And bless our
Shudras, the ancillary services, with light, love and loyalty. Bless me with
light and love toward us all.
िृहस्त्पछत- ब्रह्माण्िक स्त्वामी, प्रख्यात लशक्षक आ डवशाल ज्ञानक स्त्वामी- समुदायक ब्रह्म वगा- डवद्वान, वै ज्ञाडनक,
लशक्षक आ शोधकताा- केँ प्रछतभा आ प्रे म साँ प्रे ररत करू। हमर क्षलरय-रक्षा, प्रशासन आ न्याय- समुदायक वगामे
प्रछतभा, प्रे म आ न्यायक सं चार करू। हमर वै श्य-समुदायक डनमााता आ डवतरक- सभकेँ प्रकाश, प्रे म आ उदारतासाँ
आशीवााद ददयौ। आ हमर सभक शूद्र -समुदायक सहायक से वी- केँ प्रकाश, प्रे म आ डनष्ठा साँ आशीवााद ददयौ। हमरा
सभ केँ प्रकाश आ प्रे म साँ आशीवााद ददयौ।

CHAPTER- XXV
23. (Dyau etc. Devata, Prajapati Rshi)
Aditirdyauraditirantarikshamaditirmata sa pita sa putrah. Vishve deva
aditih pancha jana aditirjatamaditirjanitvam.
In the essence: Light is indestructible; sky is indestructible; mother Prakriti
(matter-energy-thought) is indestructible; Father, the Cosmic Spirit is
indestructible; Son, the soul (jiva), is indestructible; all the divinities of
nature and humanity are indestructible; five people, Brahmana, Kshatriya,
Vaishya, Shudra, others, are indestructible; whatever is born is
indestructible; whatever will be born is indestructible. (All that was, is and
shall be is indestructible in the essence.)
सारमे : प्रकाश अडवनाशी अछि; आकाश अडवनाशी अछि; माता प्रकृछत (पदािा-ऊर्ाा-डवचार) अडवनाशी अछि;
डपता, ब्रह्मां िीय आत्मा अडवनाशी अछि; पुर, आत्मा (र्ीव) अडवनाशी अछि; प्रकृछत आ मानवताक सभ दे वत्व
अडवनाशी अछि; पााँ च व्यक्क्त, ब्राह्मण, क्षलरय, वै श्य, शूद्र आ आन अडवनाशी अछि; र्े डकिु र्न्मल अछि से
अडवनाशी अछि; र्े डकिु र्न्मत से अडवनाशी अछि। (र्े डकिु िल, अछि िा रहत/ आओत से सार मे अडवनाशी
अछि।)

CHAPTER- XXVI
2. (Ishvara Devata, Laugakshi Rshi)
Yathemam vacham kalyanimavadani janebhyah. Brahmarajanyabhyam
Shudraya charyaya cha svaya charayaya cha. Priyo devanam dakshinayai
daturiha bhuyasamayam me kamah samrudhyatamupa mado namatu.
Just as this blessed Word of the Veda I speak for the people, all without
exception, Brahmana, Kshatriya, Shudra, Vaishya, master and servant,
one’s own and others, so do you too. May I be dear and favourite with the
noble divinities and the generous people for the gift of the sacred speech.
May this noble aim of mine be fulfilled here in this life. May the others too
follow and come my way beyond this life.
र्े ना वे दक ई धन्य वचन हम डिना कोनो अपवादक, ब्राह्मण, क्षलरय, शूद्र, वै श्य, स्त्वामी आ से वक, अपन आ अन्य
लोकक ले ल कहै त िी, तडहना अहााँ से हो करै त िी। पडवर भाषणक ऐ उपहारक ले ल हम महान दे वत्व आ उदार
लोक सभक छप्रय आ मनभावन रही। हमर ई महान उद्देश्य ऐ र्ीवन मे पूर हुअय। आन सभ से हो हमर मागाक
अनुसरण करै त िढ़ै त र्ाय आ से ऐ र्ीवनसाँ आगााँ धरर िढ़य।

CHAPTER- XXX
5. (Parameshvara Devata, Narayana Rshi)
Brahmane brahmanam kshatraya rajanyam marudbhyo vaishyam tapase
Shudram tamase taskaram narakaya virahanam papmane
klibamakrayayaayogum kamaya punshchalumatikrustaya magadham.
Give us, we pray, the Brahmanas for education and research, culture and
human values; the Kshatriyas for governance, defence and administration;
the Vaishyas for economic development, and the Shudras for assistance and
labour in the ancillary services. Remove, we pray, the thief roaming in the
dark, the murderer bent on lawlessness, the coward disposed to sin, the
armed terrorist bent on destruction, the harlot out for pleasure of flesh, and
the bastard fond of scandal.
Note: In mantras 5-22 in which various aspects of organised life are listed,
there is repetition of ‘asuva’ and ‘parasuva’ from mantra 3, which means:
‘Give us, we pray, what is good’, and, ‘Remove, we pray, what is evil’. This is
the prayer. Also, there are echoes of ‘havamahe’ from mantra 4, which
means: ‘We invoke and develop’, and, ‘we challenge and fight out’. This is
the call for action under the divine eye.
लशक्षा आ शोध, सं स्त्कृछत आ मानवीय मूल्यक ले ल ब्राह्मण; शासन, रक्षा आ प्रशासनक ले ल क्षलरय; आर्ििक
डवकासक ले ल वै श्य; आ सहायक से वामे सहायता आ श्रम ले ल शूद्र हमरा ददअ से हम प्रािाना करै त िी। हम प्रािाना
करै त िी र्े अन्हारमे घुमैत चोर, अरार्कता पर डिता खूनी, पाप पर डिता कायर, डवनाश पर डिता सशस्त्र आतं कवादी,
दै डहक सुख ले ल िाहर गे ल वे श्या, आ कलं कक शौकीन नार्ायर्केँ हटा ददयौ।
नोटः मं र 5-22 मे , र्इमे सं गदठत र्ीवनक डवलभन्न पक्ष सूचीिद्ध अछि, मं र 3 साँ 'आशुवा' आ 'परशुवा' क
पुनरावृलत्त होइत अछि, र्कर अिाः 'हमरा सभ केँ ददअ, हम प्रािाना करै त िी, र्े नीक अछि', आ, 'हटाउ, हम
प्रािाना करै त िी, र्े अधलाह अछि'। ई प्रािाना अछि। सङ्गडह, मं र 4 साँ 'हवामाहे ' क प्रछतध्वडन अछि, र्कर
अिाः 'हम आह्वान करै त िी आ आगू िढ़िै िी', आ, 'हम मााँ डट दइ िी आ लिै िी'। ई ददव्य दृछष्टक अन्तगात कार्
करिाक आह्वान अछि।

CHAPTER- XXX
22. (Rajeshvarau Devate, Narayana Rshi)
Athaitanastauau virupanalabhateitidirgham chatihrasvam chatisthulam
chatikrusham chatishuklam chatikrushnam chatikulvam chatilomasham
cha. Ashudra abrahmanaste prajapatyah. Magadhah punshchali kitavah
kliboshudra abrahmanaste prajapatyah.
The good human being accepts and works with these eight classes of people
of different forms and colours: too tall, too short, too fat, too thin, too white,
too dark, too hairless, too hairy. Also they are neither Brahmanas nor
Shudras (nor the others). They too, all of them, are children of God,
Prajapati. Even the bastard and the ‘despicable’, the wanton, the gambler,
and the coward and the eunuch, neither Shudras nor Brahmanas (nor the
others), they too are children of God, Prajapati, father of all.
नीक लोक डवलभन्न रूप आ रङ्गक ऐ आठ वगाक लोकक सं ग स्त्वीकार करै त अछि आ कार् करै त अछिः खूि
लम्िा, िड्ड िोट, िड्ड मोट, खूि पातर, िड्ड गोर, िड्ड कारी, िहुत कम केशिला, खूि केशिला। ओ सभ ने ब्राह्मण
िछि, नडहये शूद्र (आ नडहये आन डकयो)। ओ सभ से हो भगवान प्रर्ापछतक सन्तान िछि। एतऽ धरर र्े नार्ायर्
िा 'घृजणत', ऊधमी, र्ुआरी, आ कायर आ नपुंसक, ने शूद्र, नडहये ब्राह्मण (नडहये आन डकयो), ओ सभ से हो
भगवान प्रर्ापछतक सन्तान िछि, प्रर्ापछत- सभक डपता।

CHAPTER- XXXI
11. (Purusha Devata, Narayana Rshi)
Brahmanosya mukhamashid bahu rajanyah krutah. Uru tadasya
yadvaishyah padbhyam Shuudro ajayata.
The Brahmana, man of divine vision and Vedic Word, is the mouth of the
Samrat Purusha, the human community. The Kshatriya, man of justice and
polity, is created as the arms of defence. The Vaishya, who produces food
and wealth for the society, is the thighs. And the man of sustenance and
support with labour is the Shudra who bears the burden of the human
family.
ददव्य दृछष्ट आ वै ददक वचनक लोक ब्राह्मण, सम्राट पुरुष-मानव समुदाय-क मुख िछि। न्याय आ लशष्टताक लोक
क्षलरयकेँ रक्षाक हछियारक रूपमे िनाओल गे ल अछि। वै श्य, र्े समार्क ले ल भोर्न आ धन उत्पन्न करै त िछि,
र्ां घ िछि। आ श्रमक सङ्ग डनवााह आ सहारा दे िऽिला व्यक्क्त शूद्र िछि र्े मानव पररवार सभकक भार वहन
करै त िछि।

RIG VEDA (2 references)


Mandala 10/Sukta 90
Purusha Devata, Narayana Rshi
12. Brahmano sya mukhamasidbahu rajanyah kritah. Uru tadasya
yadvaisyah padbhyam sudro ajayata.
The Brahmana, man of divine vision and the Vedic Word, is the mouth of the
Samrat Purusha, the human community. Kshatriya, man of justice and
polity, is created as the arms of defence. The Vaishya, who produces food
and wealth for the society, is the thighs. And the man of sustenance and
ancillary support with labour is the Shudra who bears the burden of the
human family as the legs bear the burden of the body.
ददव्य दृछष्ट आ वै ददक वचन िला ब्राह्मण, सम्राट पुरुष-मानव समुदाय- क मुख िछि। क्षलरय- न्याय आ रार्नीछतक
लोक- केँ रक्षाक हछियारक रूपमे िनाओल गे ल अछि। वै श्य, र्े समार्क ले ल भोर्न आ धन उत्पन्न करै त िछि,
र्ां घ िछि। आ र्ीडवकोपार्ान आ श्रमक सङ्ग सहायक व्यक्क्त शूद्र िछि र्े मानव पररवारक भार वहन करै त िछि
र्े ना पै र शरीरक भार वहन करै त अछि।

Mandala 10/Sukta 124


Devata: Agni (1); Rshi: Agni, Varuna, Soma
1. Imam no agna upa yajnamehi panchayamam trivritam saptatantum. Aso
havyavaluta nah puroga jyogeva dirgham tama ashayishthah.
Agni, yajnic light of life, come to this life yajna of ours: which has five
divisions, i.e., Brahma-yajna, Deva-yajna, Pitr-yajna, Atithi-yajna, and
Balivaishvadeva-yajna; conducted by five people, i.e, four socioeconomic
classes of Brahmans, Kshatriyas, Vaishyas and Shudras and others like
chance visitors from other groups there might be; which is threefold, i.e.,
paka yajna, haviryajna and somayajna; and which has seven extensions, i.e.,
Agnishtoma, Atyagnishtoma, Ukthya, Shodashi,Vajapeya, Atiratra and
Aptoyami. You are our leader and pioneer, Agni, and you are the carrier of
our yajna to the divinities as well as harbinger of the fruits of yajna to us.
Pray come and be our all-time dispeller of the cavern of deep darkness from
life. (Yajna is a creative process of development in life from the individual
to the social, national, global and environmental level of life. The
explanation above is related to the social level. Swami Brahmamuni explains
the yajna at the individual level, and that is also suggested in Rgveda 10, 7,
6: ‘Svayam yajasva’, and yajurveda 4, 13: “Iyam te yajniya tanu”, which
means: Develop yourself by yajna according to the seasons of your growth,
and remember your life in body, mind and soul is worthy of yajnic service
for your personal development, your body being the first instrument of your
wider yajna of life. This personal yajna is fivefold, for the elemental balance
of earth, water, heat, air and ether; threefold for the balance of vata, pitta
and kaf, and also for balanced growth of body, mind and soul; sevenfold for
the growth of rasa, rakta, mansa, meda, asthi, majja and virya. Thus yajna is
the process of growth beginning with the individual, accomplished at the
cosmic level.)

अप्नन -र्ीवनक यज्ञक प्रकाश- हमर सभक ऐ र्ीवन-यज्ञमे आउ, र्इमे पााँ च डवभाग िै , अिाात, ब्रह्म-यज्ञ, दे व-यज्ञ,
डपतृ-यज्ञ, अछतछि-यज्ञ, आ िललवै श्वदे व-यज्ञ; पााँ च लोक द्वारा सं चाललत, अिाात, ब्राह्मण, क्षलरय, वै श्य आ शूद्र क
चारर सामाजर्क-आर्ििक वगा आ पााँ चम आन समूह कखनो काल आयल आगं तुक। आ से तीनटा िै - अिाात, पाक
यज्ञ, हडवयाज्ञ आ सोमयज्ञ; आ र्कर सात डवस्त्तार िै , अिाात, अप्ननष्टोम, अत्यप्ननष्टोम, उक्त्या, षोिषी, वार्पे य,
अछतरार आ अप्तोयमी। अप्नन, अहााँ हमरा सभक ने ता आ अग्रगामी िी, आ अहााँ दे वत्व ले ल हमर यज्ञक वाहक
िी आ सङ्गडह हमरा सभक ले ल यज्ञक फलक अग्रदूत िी। प्रािाना अछि र्े आउ आ हमरा सभक र्ीवन तरहरर
सन अन्हार सदाक ले ल दूर करै िला िनू। (यज्ञ व्यक्क्तगतसाँ र्ीवनक सामाजर्क, राष्रीय, वै जश्वक आ पयाावरणीय
स्त्तर धरर र्ीवनक डवकासक एकटा रचनात्मक प्रडक्रया अछि। उपरोक्त व्याख्या सामाजर्क स्त्तरसाँ सम्िन्न्धत अछि।
स्त्वामी ब्रह्ममुनी व्यक्क्तगत स्त्तर पर यज्ञक व्याख्या करै त िछि, आ ई ऋनवे द 10,7,6 मे से हो सुझाओल गे ल अछिः
'स्त्वयं यज्ञ'; आ यर्ुवेद 4,13: 'इयम ते यज्ञीय तनू', र्कर अिा अछि- अपन डवकासक ऋतुक अनुसार यज्ञ द्वारा
अपना केँ डवकलसत करू, आ मोन राखू र्े शरीर, मन आ आत्मा युक्त अहााँ क र्ीवन यज्ञक से वाक ले ल अछि, आ
तइसाँ अहााँ क व्यक्क्तगत डवकास हएत; अहााँ क शरीर अहााँ क र्ीवनक व्यापक यज्ञक पडहल साधन अछि। ई
व्यक्क्तगत यज्ञ पााँ च प्रकारक अछि, पृथ्वी, र्ल, ऊष्मा, वायु आ आकाशक मौललक सं तुलनक ले ल; तीन प्रकारक-
वात, डपत्त आ कफक सं तुलनक ले ल; आ शरीर, मन आ आत्माक सं तुललत डवकासक ले ल से हो; सात प्रकारक
माने रस, रक्त, मानस, मे धा, अब्स्त्ि, मज्जर्ा आ डवयाक डवकासक ले ल। ऐ तरहेँ यज्ञ व्यक्क्तसाँ शुरू होइत डवकासक
प्रडक्रया अछि, र्े ब्रह्मां िीय स्त्तर पर सम्पन्न होइत अछि।)
आब आउ यूरोपक विद्वान लोकवन द्वारा िे दक गलत अनुिादक वकछु उदाहरण दे ख:ू -
EXAMPLES OF SOME MISTRANSLATIONS OF VEDAS BY WESTERN
SCHOLARS

W.D. Whitney’s translation of the Atharvaveda (7, 107, 1) edited and revised
by K.L. Joshi, published by Parimal Publications, Delhi, 2004:

Namaskrutya dyavapruthivibhyamantarikshaya mrutyave.


Mekshamyurdhvastisthaan ma ma hinsishurishvarah.

“Having paid homage to heaven and earth, to the atmosphere, to Death, I


will urinate standing erect; let not the Lords (Ishvara) harm me.” I give
below an English rendering of the same mantra translated by Pundit
Satavalekara in Hindi:

“Having done homage to heaven and earth and to the middle regions and
Death (Yama), I stand high and watch (the world of life). Let not my masters
hurt me.”

An English rendering of the same mantra translated by Pundit Jai Dev


Sharma in Hindi is the following:

“Having done homage to heaven and earth (i.e. father and mother) and to
the immanent God and Yama (all Dissolver), standing high and alert, I move
forward in life. These masters of mine, pray, may not hurt me.”

I would like to quote my own translation of the mantra now under print:

“Having done homage to heaven and earth, and to the middle regions, and
having acknowledged the fact of death as inevitable counterpart of life
under God’s dispensation, now standing high, I watch the world and go
forward with showers of the cloud. Let no powers of earthly nature hurt and
violate me.”

‘Showers of the cloud’ is a metaphor, as in Shelley’s poem ‘the Cloud’: “I


bring fresh showers for the thirsting flowers”, which suggests a lovely
rendering.

The problem here arises from the verb ‘mekshami’ from the root ‘mih’
which means ‘to shower’ (sechane). It depends on the translator’s sense and
attitude to sacred writing how the message is received and communicated
in an interfaith context with no strings attached (or unattached).

[Dr Tulsi Ram, 2013, Atharveda: English Translation; Page xxvi]


II

The idea that there was slavery in the Vedic Society originated with the
Western Indologists with their intentional or careless translation of a
Sanskrit word into “slave”. For example, in the Taittiriya Samhita (Krishna
Yajurveda), [7.5.10] [kanda 7,prapathaka 5, verse 10], a part of translation
by Keith reads “slave girls dance around the fire”. But in a footnote in the
same page [pg., 628, Vol. 2] the author Keith says that the verse describes the
dance of maidens. Suddenly the maidens have become “slave girls”. Both
Paranjape and Avinash Bose point to the mistranslation of the word ‘yosha’
as courtesan by the indologist Pischel [Bose, Hymns from the Veda, p. 36].

[Veda Books,SRI AUROBINDO KAPALI SHASTRY INSTITUTE OF VEDIC


CULTURE, page 240]

III

In 1795, H.T. Colebrooke, then a young scholar, wrote his maiden paper, “On
the Duties of a Faithful Hindu Widow,” for the Asiatic Society (Asiatic
Researches IV 1795: 205-15). He cited the hymn from the Rig Veda as
sanctioning widow burning, which William Jones immediately contested
(Canon 1993 I:lxx). Colebrooke translated the end of the hymn as “let them
pass into fire, whose original element is water.” A quarter of a century later,
the Orientalist, H.H. Wilson pointed out that the hymn had been distorted
(Wilson 1854: 201-14; Cassels 2010: 89). Wilson translated the verse as per
the reading corroborated by Sayana, the authoritative medieval
commentator on the Vedas, and demonstrated that it did not refer to widow
burning (Rocher and Rocher 2012: 24-25).

[Meenakshi Jain,2016; Sati: Evangelicals, Baptist Missionaries; and the


Changing Colonial Discourse, Page 5)

𑒀
Do not judge each day by the harvest you reap but by the seeds that you
plant. -Robert Louis Stevenson

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Videha: Maithili Literature Movement


'विदे ह' ३१९ म अांक ०१ अप्रैल २०२१ (िषष १४ मास १६० अांक
३१९)

रामलोचन ठाकुर विशेषाांक

'विदे ह' ३२० म अांक १५ अप्रैल २०२१ (िषष १४ मास १६० अांक
३२०)

रामलोचन ठाकुर श्रद्ाांजलल विशेषाांक

अनुक्रम

'विदे ह' ३१९ म अांक ०१ अप्रैल २०२१ (िषष १४ मास १६० अांक
३१९)

रामलोचन ठाकुर विशेषाांक

२.१.ठवकुरजीक संक्षिप्त पररचय (पृ. ३-१३)

२.२.प्रस्तुत तर्शेषवंकक संरचनवक संदभामे (पृ. १४-१५)


२.३.एिन जतड़आयि समवजमे मतििव कोनव उतरतीि मैछथिी
रंगमंचपर: रवमिोचन ठवकुर प्रवक्षिक- व. र्न्दनव कुमवरी (आि व.
र्न्दनव तकशोर) (पृ. १६-२५)

२.४.रवमिोचन ठवकुर जीक अनुर्वद- अमरकवन्त िवि (पृ. २६-२८)

२.५.गीतकवर रवमिोचन ठवकुर- प्रदीप पुष्प (पृ. २९-३१)

२.६.एकटव िवँटी मैछथि : रवमिोचन ठवकुर आ हनकर कवव्य संसवर-


शैिेन्र धमश्र (पृ. ३२-४२)

२.७.िचव ददअ भवइकेँ- भीमनवथ झव (पृ. ४३-४७)

२.८.मवदट परिक िोक- मिवकवन्त ठवकुर (पृ. ४८-५०)

२.९.अपूणातव जितन तनयतत हअए [सन्दभा:रवमिोचन ठवकुरक कवव्य-


रचनवक मूल्यवंकनक अपूणा प्रयवस]- अरतर्न्द ठवकुर (पृ. ५१-८४)

२.१०.सत्यक एकपेररयव पर कवव्य तर्तवन- आमोद झव (पृ. ८५-९१)

२.११.प्रततरोिी सवतित्यकवर रवमिोचन ठवकुर- चन्रे श (पृ. ९२-९९)

२.१२.रवमिोचन ठवकुरक 'िेतविकथव'- छशर्शंकर श्रीतनर्वस (पृ.


१००-१०७)
२.१३.एिनो मवँतग रििए उत्तर -' िवि प्रि अनुत्तररत'- ददिीप कुमवर
झव (पृ. १०८-१२०)

२.१४.रवमिोचन - िमर नजररमे- नछचकेतव (पृ. १२१-१२५)

२.१५.िमरव नजररमे: श्री रवमिोचन ठवकुर- निोनवरवयण धमश्र (पृ.


१२६-१३०)

२.१६.रवम िोचन ठवकुरक कतर्तव पढै त- अशोक (पृ. १३१-१४४)

२.१७.तर्रोि आ अनुरोिक कतर्तव-नवरवयणजी (पृ. १४५-१४९)

२.१८.दे छसि ियनवक ििन्ने रवमिोचन ठवकुर प्रसंग- भ्रमर (पृ. १५०-
१६०)

२.१९.अपूर्वा- जगदीश चन्र ठवकुर ‘अतनि’ (पृ. १६१-१७२)

२.२०.भवषव-संस्कृततक आिव आ नर्-तनमवाणक संकल्प- संतोषी कुमवर


(पृ. १७३-१७९)

२.२१.एक सुच्चव कतर्ः रवमिोचन ठवकुर-केदवर कवनन (पृ. १८०-१८७)

२.२२.संर्ेदनवक सीढी पर ठवढ-" तवि िेतवि- मुन्नवजी (पृ. १८८-१९१)


२.२३.मैछथिी सेर्ी कतर् श्री रवमिोचन ठवकुर जी- सुरेन्र ठवकुर (पृ.
१९२-१९८)

२.२४.रवमिोचन ठवकुरक व्यस्थक्‍टतत्र् : एक दृधष्टकोण- तर्योगी (पृ. १९९-


२०३)

२.२५.मशवि िेने चिैत अग्रदूत- तििवरी (पृ. २०४-२०९)

२.२६.श्री रवमिोचन ठवकुर आ हनक व्यवपक कवव्य संसवर: कवमेश्वर झव


"कमि" (पृ. २१०-२१८)

२.२७.रवमिोचन ठवकुरक मैछथिी िोककथव: एक तर्र्ेचनव- ॉ कैिवश


कुमवर धमश्र (पृ. २१९-२२७)

२.२८.मैछथिी कतर्तवक तर्रोिी स्र्र रवमिोचन ठवकुर- रमण कुमवर


लसिंि (पृ. २२०-२३५)

२.२९.कोिकवतव पररसरक मैछथिीक मक्षण श्री रवमिोचन ठवकुर: ॉ


अनमोि झव (पृ. २३६-२४२)

२.३०.रवमिोचन ठवकुरक कवव्य-युद्ध- रमेश (पृ. २४३-२४८)

२.३१.पवरंपररक-प्रगततशीि- आशीष अनछचन्िवर (पृ. २४९-१७२)


'विदे ह' ३२० म अांक १५ अप्रैल २०२१ (िषष १४ मास १६० अांक
३२०)

रामलोचन ठाकुर श्रद्ाांजलल विशेषाांक

२.१.मिेन्र िजवरी- से िछथ रवमिोचन (पृ. २५६-२५७)


२.२.नवरवयणजी- श्रद्धे य रवमिोचन ठवकुरकें स्मरण करैत (पृ. २५८-
२६०)

२.३.तर्नोद कुमवर झव- रवम िोचन िमर प्रेरणव (पृ. २६१-२६३)

२.४.तिनय भूषण- रवमिोचन ठवकुरक ञझञझरकोनव आ... (पृ. २६४-


२७९)

२.५.आशीष अनछचन्िवर- अनछचन्िवर िेि रवमिोचन ठवकुर (पृ. २८०-


२८३)

२.६.जगदीश चन्र ठवकुर ‘अतनि’- रवम िोचन ठवकुर प्रसंग (पृ. २८४-
२८५)
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 1

गजे न्द्र ठाकुर विदे ह ई पत्रिका http://www.videha.co.in/


ISSN 2229-547X क सम्पादक छथि आ आइ काल्हि ददहलीमे रिै
छथि।


2 ||गजेन्द्र ठाकुर

'विदे ह' ३१९ म अांक ०१ अप्रैल २०२१ (िषष १४ मास १६० अांक
३१९)

रामलोचन ठाकुर विशेषाांक


विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 3

ठाकु रजीक सं क्षिप्त पररचय

त्रितम्बर 2020केँ विदे ह 'रामलोचन ठाकुर विशे षाां क’ प्रकात्रशत करबाक


िािवजवनक घोषणा केलक आ प्रस्तुत अछि ई विशे षाां क। एवह घोषणाकेँ एवह
ललिंकपर दे खि िकैत िी-घोषणा एवहठाम प्रस्तुत अछि ठाकुरजीक िां क्षिप्त
पररचय। वनच्चा वहनकर नामपर क्ललक करबै तँ वहनकर विकीपीविया पृष्ठ
िुक्षज जाएत।

नाम : रामलोचन ठाकुर


अन्द्य िावहत्ययक नाम : अग्रदूत, कुमारे श काश्यप, मुजतबा अली
माता-स्ि. शारदा दे िी
वपता-स्ि. िुरछत ठाकुर (िुरछत ठाकुर नाम रे कािवमे अछि। इएह नाम
नबोरायाण छमश्रजीकेँ रामलोचनजीक बालक पुछि केलखिन ।तँ इ ई प्रमाक्षणक
अछि।)
जन्द्म 18 माचव 1949, जन्द्म भूछम : ग्रा.+पिा. - बाबूपाली (पाली मोहन),
िजौली, मधुबनी, छमछिला, हुनक प्रारां त्रभक त्रशिा िां स्कृत टोल पाठशालामे
भे लवन। 1963 मे कलुआही हाइस्कूलिँ मौविक पाि केलाक बाद ओ
नोकरीक िोजमे कलकत्ता चत्रल एलाह। तिन ओ पां रहे बिवक िलाह।
कतहुँ -कतहुँ वहनक जन्द्म बिव 1948 त्रलिल जाइत अछि। मुदा नबोरायाण
4 ||गजेन्द्र ठाकुर

छमश्रजीकेँ रामलोचनजीक बालक बिव 1949 पुछि केलखिन ।तँ इ ई


प्रमाक्षणक अछि। िावहययिँ पवहने रामलोचनजीक रां गमां च आ रां गमां चिँ पवहने
मै छिली आां दोलनिँ जुड़ल िलाह। आ एकर विस्तृत चचव िभ प्रकात्रशत अछि।
अन्द्य पाररिाररक िदस्य-
पयनी-श्रीमती िीता दे िी
िां तान-तीन पुि ओ दू पुिी (पुि-स्ि. उगन ठाकुर, श्री अरुण ठाकुर एिां श्री
ललन ठाकुर), (पुिी-स्ि. कविता ठाकुर एिां श्रीमती िविता ठाकुर)
ितवमान पता- 2M, छचराग अपाटवमेंटि् , 4, इटालगािा रोि, कोलकाता-
700028
ले िन /प्रकाशन (एवहमे िँ बहुत राि पोिी विदे ह पोिी िाउनलोिपर रािल
गे ल अछि आ तकर ललिंक जे पोिी िै ताहीमे िै ओकरा क्ललक करबै तँ पोिी
िुक्षज जाएत)
1) इछतहािहां ता (मौत्रलक, कविता ,1977)
2) बे ताल किा (मौत्रलक, व्यां ग्य, 1981)
3) प्रछतध्िवन (अनुिाद, काव्य, 1982)
4) जादूगर (अनुिाद, नाटक, 1982)
5) मै छिली लोककिा (िां कलन-िां पादन ,1983) पुणमुवरण-2006
6) आजुक कविता (िां पाददत, कविता,1984)
7) मावट-पावनक गीत (मौत्रलक, कविता ,1985)
8) दे शक नाम िलै िोन छचड़ै या (मौत्रलक, कविता ,1986)
9) अपूिाव (मौत्रलक, कविता ,1996)
10) फाँ ि (अनुिाद , नाटक, 1997)
11) जा िकै िी वकन्द्तु वकयै जाउ (अनुिाद , कविता, 1999, भाषा-भारती
िम्मानिँ िम्मावनत)
12) कविपछत विद्यापछत मछतमान (िां ग-िां पादन , आले ि , 2000)
13) लाि प्रश्न अनुत्तररत (मौत्रलक, कविता , 2003)
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 5

14) स्मृछतक धोिरल रां ग (मौत्रलक, आले ि, 2004)


15) ररहिवल (अनुिाद , नाटक, 2004)
16) आँ खि मुनने आँ खि िोलने (मौत्रलक, आले ि, 2005)
17) युगप्रितवक किीश्वर चन्द्दा झा (िां पाददत, आले ि, 2007)
18) पद्मा नदीक माँ झी (अनुिाद , उपन्द्याि , 2009)
19) नखन्द्दतनरके (अनुिाद , उपन्द्याि, अां छतकामे 2009, पोिी-
2011,मै छिलीमे ) नखन्द्दतनरके (बया-2009,पोिी 2010-हहिंदीमे ),
20) जयकाां त छमश्र िमज्ञा (िां ग-िां पादन , आले ि , 2016)
21) कठपुतरी नाचक इछतकिा (अनुिाद, उपन्द्याि , 2016)
22) िागर लहरर िमाना (आयमकिा-आयमिां स्मरण, 2017)
23) अयाची िां धान (अनुिाद , उपन्द्याि, मूल विभूछत भूषण मुिोपाध्याय,
प्रकाशक वकिुन िां कल्प लोक, 2018),
24) रानी गाइददन्द्यू (अनुिाद , उपन्द्याि , मूल जगदम्बा मल्ल, प्रकाशक
ने शनल बुक िस्ट- 2020)
25) चारर पहर (अनुिाद ,नाटक, मां छचत, अप्रकात्रशत)
26) वकशुन जी विशुन जी (अनुिाद, नाटक, मां छचत, अप्रकात्रशत)
27) बाह रे बच्चा राम (अनुिाद, नाटक, मां छचत, अप्रकात्रशत)
एकर अछतररलत बहुत राि रचना ओ वित्रभन्द्न पत्रिकाक िां पादकीय िवन
जकरा पोिी रूपमे आनब बाँ की िै ।
सं पादन-
1) अत्ग्नपि (1973, िा. िीरे न्द्र मक्ल्लक आ िुकान्द्त िोम िां ग)
2) मै छिली रां गमां चक मुिपि "रां गमां च" (1974)
3) "िुल्फा" नामिँ हस्तत्रलखित पत्रिका (1975)
4) "मै छिली दशवन" (पुनः प्रकाशन जनिरी 2005िँ माचव 2006 धरर)
5) छमछिला दशवन (मई-जून 2009 िँ लऽ कऽ जनिरी 2020 धरर)
6 ||गजेन्द्र ठाकुर

एकर अछतररलत "दे िकोि" (1981) जकर िां पादकमे नाम िल विनोद
कुमार झाक मुदा िां पादन केर अछधकाां श काज रामलोचन ठकुरजी द्वारा
िां पाददत होइत िल। एहने एकटा आर पत्रिका िलै "दे त्रिल बयना" (Oct-
1981) जकर िां पादकमे नाम िलखन्द्ह जनादवन झाक मुदा काज रामलोचने
जी करै त िलखिन।
सम्मान-
1) CIIL द्वारा अनुिाद ले ल “भाषा-भारती िम्मान” (2003-4)
2) विदे ह पत्रिका द्वारा िां चात्रलत 2011-2012 केर “विदे ह िम्मान
(िमानान्द्तर िावहयय अकादे मी पुरस्कार)”क अनुिाद पुरस्कार
3) प्रबोध िावहयय िम्मान (2012,चां रभानु लििंहजीक युग्म रूपे ),
4) वकरण मै छिली िावहयय शोध िां स्िान, उजान द्वारा “वकरण िावहयय
िम्मान” 2015
5) चे तना िछमछत, पटना द्वारा “यािी-चे तना पुरस्कार”-2017 आददिँ
िम्मावनत।
6) विशे ष िम्मान- त्रितम्बर 2020मे वहनक नामक उपर मै छिली गजलमे
आएल एकटा नि बहरक नाम "बहरे लोचन" रिबाक घोषणा भे ल। ई
घोषणा दे िबाक ले ल क्ललक करू 'बहरे लोचन' ई बहरे लोचन की िै एकर
पूरा जानकारी ले ल क्ललक करू "बहरे लोचन"
एकर अछतररलत कलकत्ताक वकिु िां स्िा द्वारा अत्रभनां दन िे हो भे ल िवन जे ना
छमछिला िाां स्कृछतक पररषद् ओ अन्द्य।
लगभग 2019 िँ रामलोचन ठाकुर अल्जाइमर वबमारीक चपे टमे िछि,
एवहमे लोक वबिरए लागै त िै आ िे िभ चीज जे ना अपन पररचय, पता-
ठे काना िभ। 12 फरिरी 2021, शुक्र ददन त्रभनिर 9.30 बजे रामलोचन
ठाकुरजी अपन घरिँ कतहुँ वनकत्रल गे लाह आ तकर बाद एहन धरर हुनकर
कोनो पता नै चत्रल रहल अछि। ठीक एहने दुर्दिंनमे हमरा लोकवन ई विशे षाां क
प्रकात्रशत कऽ रहल िी। बहुत आले ि एवह घटनािँ पवहने आवब गे ल िल तँ
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 7

वकिु आले ि एवह घटनाक बाद आएल अछि।


रामलोचनजीक फोटो (पाररिाररक िवहत) आ बहुत राि जानकारी
नबोनारायण छमश्रजीिँ प्राप्त भे ल अछि)।

पुनःश्च- ई अां क अपन िमय 1 अप्रैल 2021 केँ प्रकात्रशत भे ल मुदा 6 अप्रैल
2021 केँ कलकत्ता पुत्रलि द्वारा रामलोचनजीक पररिारकेँ िूचना दे ल गे लै
जे नीलरतन िरकार अस्पतालमे एकटा शि िै । पररिारक लोक ओवहठाम
पहुँ चलाह आ ओवह शिकेँ रामलोचन ठाकुरजीक रूपमे चीन्द्हल गे ल।
अस्पतालक रे कािव मोतावबक वहनक मृययु 25 माचव, 2021 केँ भे लवन आ
मृययु प्रमाणपिमे इएह 25 माचव त्रलिल िवन। 6 अप्रैल 2021 केर राछतमे
वहनक िां स्कार कलकत्ताक वनमतल्ला घाट (भूतनाि मां ददर)मे भे लवन।
उपरोलत िूचना विदे ह द्वारा 14 अप्रैल 2021केँ जोड़ल गे ल अछि।
8 ||गजेन्द्र ठाकुर

रामलोचनजीक ककछु पाररवाररक थचत्र


विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 9
10 ||गजेन्द्र ठाकुर
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 11
12 ||गजेन्द्र ठाकुर

अां क प्रकाशन केर घोषणा


विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 13

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


14 ||गजेन्द्र ठाकुर

प्रस्तुत विशे षां कक सं रचनाक सं दर्भमे

एहि हिशे ष ां क केर शुरूआत एिन स क्ष त्क रसँ कऽ रिल छी जे हक ले ल गे लै


बहुत पहिने मुद एखन धरर अप्रक शशत छल, तकर ब द तीन एिन नि
समीक्षकसँ आले ख खां ड केर शुरुआत कऽ रिल छी जे हक मूलतः मै थिली
समीक्ष -आलोचन क्षे त्रमे नै छथि। त हूमे अमरक ां त ल ल तँ एिन रचन क र
छथि जे मै थिलीक कोनो पहिल पोिी पढ़लथि से िो र मचलोनजीक पोिी आ
र मलोचनजीक अनुि द अमरक ां तजीकेँ केिन लगलहन त हिपर हुनक हिच र
छहन। दोसर ले ख प्रदीप पुष्पजीक छहन आ ई मूलतः गीतक र-गजलक र
छथि। ते सर शै लैन्द्र थमश्र छथि। उम्मे द जे भहिष्यमे ई तीनू समीक्ष क्षे त्रमे
सहिय रित ि। तकर ब द नि-पुर नक फेंहि कऽ िम बन एल गे ल अथछ।
सां गे-सां ग ई िम ने तँ उम्रक िररष्ठत केर प लन करै ए आ ने रचन क
गुणित्त क। िँ , एते क धे आन जरूर र खल गे ल छै जे प ठकक रसभां ग नहि
िोइन आ से हिश्व स अथछ जे रसभां ग नै िे तहन।

प ठक जखन एहि हिशे ष ां ककेँ पढ़त ि तँ हुनक िततनी ओ म नकत क अभ ि


लगतहन। िततनीक गलती जे थिक से सोझे -सोझ िमर सभिक गलती थिक
जे िम सभ सां शोधन नै कऽ सकलहुँ मुद ई धे आन रखब क ब त जे हिदे ि
शुरुएसँ िरे क िततनी बल ले खककेँ स्िीक र करै त एलै ए। तँ इ म नकत
अभ ि स्ि भ हिक। एकर ब दो बहुत िततनीक गलती रिल गे ल अथछ जे हक
िमरे सभिक गलती अथछ। मै थिलीमे हकछु ए एिन पशत्रक अथछ जकर िततनी
एकरां गक रिै त अथछ आ ई हुनक खूबी छहन मुद जखन ओिो सभ कोनो
हिशे ष ां क हनक लै छथि तखन िततनी तँ ठीक रिै त छहन मुद स मग्री
अथधक ां शतः बशसये रिै त छहन। ऐथति शसकत क दृथिसँ कोनो पुर न स मग्रीक
उपयोग िर्जित नै छै मुद सोथचयौ जे 72-80 पन्द्न क कोनो प्प्रिि पशत्रक क
िोइत छै त हिमे लगभग आध स मग्री स भ र रिै त छहन, ते सर भ गमे ले खक
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 15

केर हकछु रचन रिै त छहन आ च ररम भ गमे हकछु नि स मग्री रिै त छहन।
मुद िमर लोकहन नि स मग्रीपर बे सी जोर दै त थछयै । एकर मतलब ई नहि
जे िततनीमे गलती िोइत रिै । िमर किब क मतलब ई जे सां प दक-सां योजककेँ
कोनो ने कोनो स्तरपर समझौत करिे पडै त छै से च िे िततनीक िो हक, मुर क
िो हक हिच रध रक िो हक स मग्रीक िो। िमर लोकहन िततनीक स्तरपर
समझौत कऽ रिल छी मुद क रण सहित। प्प्रिि पशत्रक एक बे र प्रक शशत
भऽ गे ल क ब द दोब र नै भऽ सकैए (भऽ तँ सकैए मुद फेर प इ ल हग जे तै)
तँ इ ओकर िततनी यि शक्तत सिी रिै त छै । इां िरने िपर सुहिध छै जे बीचमे
(इां िरने िसँ प्प्रिि िे ब क अिथध) ओकर सिी कऽ सकैत छी मुद सम थग्रए
नीक नै रित ि बशसय रित तँ सिी िततनी रहितो नि अध्य य नै खुजज सकत
तँ इ िमर लोकहन िततनी बल मुद्द पर समझौत केलहुँ । िमर लोकहन
कएलहन, कयलहन ओ केलहन तीनू शुद्ध म नै त छी, एते क शुद्ध म नै त छी एकै
रचन मे तीनू रूप भे हि ज एत। आन शब्दक ले ल एिने बूझू।

जे न हक उपर पररचय बल पन्द्न पर सूथचत केलहुँ जे फरिरीमे र मलोचनजी


अपन घरसँ जे हनकलल ि से फेर घूथम कऽ एखन धरर नै एल ि अथछ। एहि
हिशे ष ां क केर हकछु ले खपर एकर असरर भे हि सकैए।

ऐ रचनापर अपन
मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।
16 ||गजेन्द्र ठाकुर

िं दना वकशोर

सम्पकत : हिभ ग ध्यक्ष , मै थिली हिभ ग, ए.एन. कॉले ज, पिन मो.:


8789819363 / ह्व ि् सएप : 9430082208

एहन जव़िआयल समाजमे मवहला कोना उतरतीह मै थिली रं गमं चपर:


रामलोचन ठाकु र

प्राश्ननक- डा. िन्दना कु मारी (आब डा. िन्दना वकशोर)

थमथिल ां चलसँ ब िर कलकत्त (कोलक त ) ओ पहिल स्ि न अथछ, जतए


आधुहनक भ ि-बोधक समस मथयक मै थिली न िकक मां चन प्र रां भ भे ल।
स्ितां त्र न ट्य सां स्ि सब अस्स्तत्िमे आयल। हनरन्द्तर न ट्य-गथतहिथध चलल,
जे आइयो चशल रिल अथछ। मूलतः प्रि सी मै थिल लोकहनकेँ एकजुि करब
ति मै थिली आन्द्दोलनकेँ आगू बढ़ यब तहिय एकर लक्ष्य छल। कलकत्त क
मै थिली न ट्य आन्द्दोलनक आब सुदीघत इथति स अथछ। कतोक स्िर्णिम
उपलस्ब्धक गि ि अथछ कलकत्त । ब दक समयमे एकरे दे ख -दे खी दे शक
आन शिर आ ग म सबमे से िो मै थिली न िकक सां स्ि सब बनल ति
रां गमां चीय गथतहिथध सहिय भे ल। कलकत्त मे मै थिली रां गमां चक न्द्य ें रखहनि र
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 17

ति हनरन्द्तर सहिय रखहनि रमे ज हि हकछु न मक उल्ले ख अहनि यत भऽ


ज इछ, त हिमे एकि प्रमुख न म अथछ-र मलोचन ठ कुरक, जे ब दमे न िक
छोहड कि -कहित आ स हित्यमे रथम गे ल ि। परां च परोक्ष रूप ओ एखनो
कलकत्त क मै थिली रां गमां चसँ सम्पृतत छथि। र मलोचन ठ कुर अशभनय तँ
करबे करथि, कतोक न िकक अनुि द आ हनदे शन से िो कयलहन। मुद हुनक
योगद न के एतबे धरर सीथमत नहि कयल ज य सकैत अथछ। ओ एकि
मित्िपूणत सां गठनकत त आ समन्द्ियक से िो रिथि जकर योगद न गथतहिथधक
सहियत आ तकर हनरां तरत बनौने रखब क ले ल जरूरी अथछ।

८ म चत २००५ केँ र मलोचन ठ कुर पिन मे रिथि। ओ प्रबोध स हित्य सम्म न


२००४क हनण तयक मां डलक बै स रमे आएल रिथि। अां तरर ष्रीय महिल ददिस
आ मि शशिर शत्र प बहनक हूशल-म शलक बीच सां ध्य ८ बजे फ्रेजर रोड स्स्ित
प्रेसीडें ि िोिलक कमर न. ४०५मे हुनक सँ ध्िन्द्य ां हकत स क्ष त्क र कएल
गे ल। ई स क्ष त्क र िस्तुतः "न िक आ न री" हिषयक िृिद शोधक िममे
कएल गे ल छल। शोध क यत पूर भऽ अपन हनष्पशत्त प्र प्त कऽ चुकल अथछ।
मुद ई स क्ष त्क र आद्य िथध अप्रक शशत छल। आब पां रि िषत ब द एहि
हिशे ष ां क ले ल ई उपलब्ध कर ओल गे ल अथछ। कृप्य प ठक गण एहि
स क्ष त्क रमे आएल तथ्य आ हिच र आददकेँ स क्ष त्क रक समय-थतथि
दपतणमे दे खब क प्रय स करथि। प्रस्तुत अथछ ४० थमनिक एहि ध्िन्द्य ां हकत
स क्ष त्क रक प्रमुख अां श--

अपने कलकत्त क मै थिली रां गमां चमे खूब सहिय रिलहुँ अथछ। लगसँ एकर
गथतहिथध दे खैत रिलहुँ अथछ। कहू जे कलकत्त क मै थिली रां गमां च मे महिल
कल क रक केिन भूथमक रिल अथछ? सुनल अथछ जे बां गल भ षी स्त्रीगण
लोकहन मै थिली न िकमे अशभनय करै त रिल छथि ?

कलकत्त क मै थिली रां गमां चकेँ दू भ गमे ब ां िू-1953सँ 1976 धरर आ फेर
18 ||गजेन्द्र ठाकुर

1983सँ अद्य िथध। 1976मे िम सब न िक करब छोहड दे ल ौं । तहिय धरर


िमर सबकेँ जते क महिल कल क र भे िलीि, सब बां गल रां गमां चक कल क र
छलीि, एहिमे कोनो शक नै । मै थिल नी मां चपर नै उतरै छलीि, आइयो नै उतरै
छथि। एकर एन बुजझयौ जे सय िषत पहिने जखन हगरीश घोष बां ग लमे न िक
शुरू केने रिथि, तखन पुरूषे महिल क रोल करै त छल। ब दमे एकि िे श्य
के प्रिम बे र ओ मां चपर उत रलहन, न म रिै क निी हिनोददनी। यि स्स्िथत कम
की बे सी मै थिली न िकक आइयो अथछ। 1976क ब द बां ग लमे मै थिली
न िकमे ब्रेक ल हग गे लै। 1983सँ फेर दोसर चरण शुरू भे लै। एहि खे प हकछु
मै थिल नी मां चपर अयलीि। दू-एक ि क न म किब, नीक अशभने त्री छथि
(न म मोन प डै त, परां च मोन नहि पडै छहन), मिे श झ क ननहकरबी रिै ।
हिि ि भे लै तँ न िक छू हि गे लै। स म जजक बां धन छलै । पथतदे ि न िकमे नै
उतरय दे लथिन। दोसर श्रीमती िन्द्दन झ , बड नीक अशभने त्री, एखनो करै त
छथि। मुद हुनक रां गमां चसँ कम प्रेम छहन-ग्रुप (सां स्ि )सँ बे सी। ज हि ग्रुपसँ
ओ जुडल छथि-तकरे ि क सां ग न िक करै त छथि- दोसर ठ म नै करै त छथि।
एकि आर घिन किब। भररसक 1983क ब त िीक। िम सब मुांशी
रघुनन्द्दन द सक न िक 'थमथिल न िक' कलकत्त मे खे ल यल रिी। एहिमे
स त ि महिल रिै , प्रस्तुतकत त रिै -कणत गोष्ठी-क यस्िक सां स्ि थछयै , बुजझते
थछयै । स त ि महिल आयल रिथि, न िक कयलहन। तकर ब द दोसर
न िक ले ल उपलब्ध नै भे लीि। ई तँ हिडम्बने ने भे ल।

बां गल भ षी अशभने त्री रिल सँ मां चनमे ददतकत नै िोइत रिए ?, प्रस्तुथतक
गुणित्त नै प्रभ हित िोइ ?

खूब ब ध िोइ। ि लमे 6 म चत के कलकत्त मे एकि न िक भे ल-'भफ इत


च िक जजनगी'(ले खक-सुध ां शु 'शे खर' चौधरी)। एहिमे बां गल भ षी
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 19

अशभने त्री छलीि। ठीकसँ उच्च रण तक नै कऽ सकलीि। आब अि ँ न िकमे


ठीकसँ बजबे नै करबै तँ ......?

अपन व्यिि ररक अनुभि कहू ? अि ँ लोकहन कोन तै य र कररयै बां गल


भ षी अशभने त्री के?

ओन तँ सब गोिे मुद हिशे ष रूपसँ - िमर सबिक बीच लक्ष्मीन र यण थमश्र


न मक एक व्यक्तत रिथि, जे आहफससँ छु ट्टी लऽ लऽ भरर ददन अशभने त्रीक
डे र ज हुनक मै थिली ब जब शसख बथि, प ित घोखबथिन। मै थिली सां ि द के
बां गल शलहपमे लीखख कऽ दे थिन। तखन हुनक मे कोनो ब तक पत नै चलै ।
िमर सबिक सां ग जे -जे बां गल भ षी अशभने त्री क ज कयलहन से एहिन । दू
ि क न म ले ब- श्रीमती िीण र य आ चन्द्रकल हकरण। ओकर िम सब
थचन्द्िै छशलयै जे ओ मै थिली भ षी नहि अथछ, अि ँ नै थचखन्द्िथतयै । शसखब क
िममे दुनू के मै थिलीपर तते क कम ां ड भऽ गे ल रिै । ओ दुनू िमर सबसँ
मै थिलीये मे गप्प-सप्प करै त छलीि। आब एखन ओते क मे िनथत िोइते नै छै ।
िमर सबमे प्रथतबद्धत छल। शसखब क प्रय स करै छशलये । स ँ झ कऽ अड्ड
ददयै । एक िक क हिकि कीहन-कीहन बां गल न िक ज -ज कऽ दे खखयै ,
बां गल मे की नब भऽ रिलै ए। मिे न्द्र मलां हगय के पुछबहन, ओ कित ि।
कलकत्त मे हुनक पकहड-पकहड िम सब न िक दे ख बी-चलू फल्ल ां न िक
दे ख । एखनुक कल क रमे ओ प्रथतबद्धत नै छहन। करऽ के अथछ, कऽ शलयऽ
एकि न िक। नै हकछु अथछ तँ एकि न िके कऽ शलअ।

मै थिल नी न िक करए मां चपर नै अबै त छथि तकर की क रण अि ँ के लगै ए?

स म जजक हिडम्बन छै । िमर सबिक जे सां स्क र अथछ, गीतन द-नृत्य-


न िककेँ िम सब िे यदृथिसँ दे खैत रिशलयै । आब यद्यहप नृत्यमे मै थिल नी
आहब रिल छथि। िम न म नै किब, कलकत्त क एकि बड पै घ श्रे ष्ठ
20 ||गजेन्द्र ठाकुर

आन्द्दोलनी-स हित्यक र छथि, थतनकर ननहकरबी के एक बे र इच्छ भे ल छलै


न िक करब क-मुद ओ अपन बथचय के न िक नै करय दे लथिन। अपने ओ
भ षण दै त छथिन मां चपर महिल के अयब क ले ल। आइयो िम-अि ँ भ षण
दै त थछयै , ले हकन अपन बे िी-स्त्रीकेँ मां चपर उत रब से स िस िम सब नै करै
छी। िमर लोकहनक सम ज एखनो पुरुष श शसत अथछ। जँ पुरुष Alow नै
करथिन तँ महिल कोन मां चपर अओतीि? एहि स्स्िथतमे एखनो पररिततन नै
अयलै ए- िम सब भ षण जते क झ डी।

अि ँ स्ियां न िक करै त रिी, प्रगथतशील हिच रध र क लोक रिी, अि ँ अपन


पत्नीकेँ हकएक नै मां चपर अनलहुँ ?

िम एहि प्रश्नक अपे क्ष करै त रिी अि ँ सँ। दे खखयौ, िमर पत्नी के पढ़िो नै
अबै त रिहन। ब जिो-भुकिो नै अबै त रिहन। हकए तँ पढ़ल-शलखन नै रिथि।
हबय ि भे ल तँ किशलयहन-थचट्ठी-पुजी लीखू। तँ म त्र छोहड अक्षर लीखब
सीखख ले लहन। ओ जे एकि किबी छ जे एकि पत्नी अपन स्ि मी के थचट्ठी
शलखलथिन-ि क प ठ ब त प ठ ब न त स ब म र ब (ि क पठ यब तँ पठ उ
नै तँ सब मरब)। ते िने शलखब शसखलहन िमर पत्नी-म त्र ज्ञ न नै भे लहन,
हुनकर स्स्िथत आ स्तरक अनुम न कऽ शलयौ। दोसर अपने कमजोरी हकए ने
कहि दी। अपने िम मै हरक प स कऽ कऽ ग मसँ कलकत्त गे ल रिी। नोकरी
ल गल। मुद कॉले जोमे न म शलखौलौ। िमर म य के बड इच्छ पढ़ऽ-शलखऽ
के। पत्नी जे सुनलहन कॉले ज ज य िल ब त तँ किलहन-'एि आब थधय पुत
पढ़तै , तँ अपने कॉले जमे न म शलखौत ि।' तँ ओहि पत्नी के िम कते क दूर
धरर आहन सकैत छलहुँ ? नै आहन सकलहुँ , िमरो कमजोरी अथछ। एकि
ब त आर किब। कोनो प्रोग्र म िोइ छै , न िक िोइ छै तँ ओहिमे कैक ि दशतक
स्त्रीगण रिै त छै क ? िम सब,सब, गोिे पररि रक सां गे रिै छी, मुद पररि र
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 21

लऽ कऽ प्रोग्र ममे हकए नै ज इ छी ?

कलकत्त क मै थिली रां गमां चक इथति स लगभग पच स िषतक भऽ गे ल। ति हप


स्स्िथत नै बदलल?

जहडआयल स म जजक सां स्क र ज धरर नै बदलत, त धरर....। आब दे खखयौ


जे िमर घरमे कोनो महिल आई.ए.एस. छथि तै यो भ नसक द थयत्ि हुनके
रितहन। नोकरी ओिो करै त छथि- स्ि थमयो करै त छथिन, मुद भ नस स्त्रीये
करतीि, पथतकेँ च ि बन कऽ िै ि दे थिन। स्ि मी हकएक ने करथिन ? एकि
स्त्री मृदुल गगतक 'रुकोगी निीं र थधक ' सन उपन्द्य स पढ़तीि, मुद मां चपर
नै उतरतीि। िम सब (पुरूष िगत) Allow नै करै थछयहन। पिन मे िम किब
जे िमर लोकहनक सौभ ग्य अथछ जे प्रेमलत जी (प्रेमलत थमश्र 'प्रेम') सन
िरे ण्य आ सम्म हनत अशभने त्री एखनो सहिय छथि। ओ स िस कऽ कऽ
मां चपर अयलीि।

मै थिलीक न िक सबमे सां ख्य क दृथिसँ स्त्री चररत्र कम रिै ए। एकर की क रण


? की महिल कल क रक अभ ि म त्र एहि ले ल जि बदे ि अथछ ?

तँ आर की ? महिल कल क र छै के नै तँ न िकक र शलखखये कऽ की


करत ि? मां चने नै िोयतहन। िम कहि सकैत छी जे कमसँ कम कलकत्त क
न िकक र जे न िक शलखलहन से ओिी हिस बे । िम एकि न िक खे ल यल
रिी- ज दूगर आ ररिसतल। अनुि द न िक छल। तँ िम तकैत-तकैत ओिन
न िक तकलहुँ आ अनुि द कयलहुँ , ज हिमे महिल कल क र छलै के नहि।
नथचकेत क न िक 'एक छल र ज 'मे तीन ि महिल रिै । मुद िमर सब
22 ||गजेन्द्र ठाकुर

लग रिथि दू ि महिल कल क र। एक गोिे केँ डबल रोल दे शलयै । तँ लोक


चे िर नै दे खख सकै त एकि रोलमे ओकर चे िर घुम प छू मुांि बै स दे शलयै -
अपन गीत ग उ आ चशल ज उ। ई तँ स्स्िथत अथछ। कोन नीक न िक
शलख यत आ कोन तकर नीक मां चन िोयत ? िमर स्पि मत अथछ जे महिल
कल क रक अभ ि अथछ तें न िकक र कम महिल चररत्र रखलहन, नै
रखलहन। हबनु महिल प त्रक न िक िो तँ उत्तम। आइयो जे न िक शलख इए-
त हूमे दू-तीनि सँ फ जजल न री चररत्र कि ँ रिै ए ? ई सां कि सब ठ मक छै क।

आब गोिपगरे सिी, मै थिल हनयो घरसँ बिर रिल छथि। नोकरी, व्य प र,
फैशन, खे ल-पुशलस सब क्षे त्रमे । गबै छथि-नृत्य करै त छथि। तखन न िक नहि
करब क प छू की क रण लगै ए रां गमां चक स्ियां केर स्स्िथत एहि ले ल कते क
दोषी लगै ए?

िम फेर किब स म जजक अिस्ि दोषी अथछ। त हूमे पुरूष िगत दोषी अथछ।
स्त्रीक इच्छ रहितो छै क तँ पुरूष ओकर Allow नै करै छ। तँ ओ नै अगुआइ
छथि। ओहुन बां ग लमे हक दजक्षण भ रतीय भ ष सबमे कल क प्रथत जते क
आकषतण छै तते क िमर सबमे नै अथछ। एकदम्मे नै अथछ। थमथिल पें टििग
बां ग ली सब बन -बन बे थच रिल अथछ िम सब नै । मै थिल नी घर-घरमे पें टििग
बनौतीि-मुद प्रदशतनीमे नै जे तीि, हकए तँ पररि र Allow नै करै छहन।
न िको ले ल सै ि ब त अथछ। एखनो िमर सबिक म नशसकत मे कि ँ
पररिततन भे लए जे न िक एकि कल थछयै । स हित्यक सबसँ सशतत हिध
छै न िक, न िक म त्र पोिी नै । एकि समन्न्द्ित कल छै । एकर जे प्रभ ि
दशतक-श्रोत पर पडै छै - से कि -कहित क कहियो भइये नै सकै छै । मुद िमर
सबमे तकर इम नद री आ हिच रक अभ ि अथछ। आब मल्ल क लक स्स्िथत
तँ िम नै किब। मुद ओहू क लक न िक सबमे निी-सूत्रध रक पररकल्पन
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 23

छै , तँ महिल कल क र रिल िे तै-से िमर लगै ए। ई बीचमे आहब कऽ


मुसलम नी आि मणक ब द पद त प्रि आयल। िमर लोकहनपरम्पर ि दी
सोचक लोक, ओकर रूहढ़ बन दे शलयै ।

जते क न िक अि ँ पढ़लहुँ , कयलहुँ अिि दे खलहुँ -त हि आध रपर कहू जे


मै थिल न रीक केिन छहि न िक सबमे आयलि अथछ ?

पुरुष आशश्रत न रीक छहि। हनयमसँ ब िल, भनस घरमे घ ें शसय यल, घरक
क ज करै त, पुरुषक से ि करै त न रीक छहि। बहुत-बहुत पछु आयल न रीक
छहि। पुरुषक समकक्षोक छहि नै बनल अथछ। स्त्रीक स्ितां त्र अस्स्तत्ि कि ँ
कोनो न िकमे आयलए ? अगुआयल चररत्र कि ँ आयलए? स्ि िलां बनक
भ िन िल न री कि ँ अनलहनिें न िकक र लोकहन न िकमे ? िँ , गुणन ि
जी 'प िे य' न िकमे न रीक कने क नीक छहि दे खौलथिन।

की यि अथछ मै थिल न रीक सम्पूणत छहि?

सम्पूणत छहि म ने की ? थमथिल क न रीक दू िगत अथछ ग्र मीण स्त्री आ शिरी
स्त्री। हिडम्बन अथछ जे थमथिल मे कलकत्त हक पिन सन शिर नै छै ।
शशजक्षत-बुशद्धजीिी ग म छोहड शिर आहब गे ल। मुद ग मक स्त्री एखनो गोबर
पिै ए। शिरमे से तँ नै करै ए, मुद ग्र मीण सां स्क रसँ एखनो मुतत नै भे लैए।
आब दे खू, िमर लोकहनक अथधक ां श न िकक र शिरी छथि। ग्र मीण
पृष्ठभूथमपर मलां हगय जी ि न िक शलखै छथि। आब शिरमे रहि कऽ ग मक
न िक शलखबै तँ से केिन िे तै ? शिररय क म त्र स्मृथतमे ग म छै क। कैक ददन
ग म ज इ छी िमर लोकहन ? तें ग मक ब रे मे प्चितन सतिी िोयत-तँ से
स्ि भ हिके। तें न रीक जे यि ित छहि अयब क च िी न िकमे - से नै अबै ए।
24 ||गजेन्द्र ठाकुर

मलां हगय क न िक 'ओकर आां गनक ब रिम स , नसबां दी, जुआयल


कनकनी'मे यद्यहप अयलै ए।

स्त्रीक दुदतश ले ल स्ियां स्त्री कते क दोषी छथि ?

स्ियां स्त्री के सि ां शतः दोषी नै म नल ज सकैए। िमर लोकहनक सम ज


पुरुष श शसत रिलए। िमरपरम्पर बहुत जहडआयलपरम्पर अथछ। एतय
बुझब क अथछ जे परम्पर नीक िस्तु अथछ,परम्पर बनै छै मनुतखे ले ल-
सम जक उन्द्नथत ले ल। ले हकन िमर सबिक स हित्यमे परम्पर क गलत
व्य ख्य कयल गे लए। जे रूहढ़ छै तकर िम सबपरम्पर म हन ले शलयै ए। एहि
रूहढ़सँ ज बे िमर सब के मुक्तत नै भे ित-त बे न रीक स्स्िथत , नै सुधरतहन।
न ररयो सम जमे ज बे बिस हित्रीक पूज िोइत रितै आ मधुश्र िणीमे ठे हुन
दग इत रितै -त बे तक भररसक न री आगू नै आहब सकतीि। न िकोमे यि
स्स्िथत अथछ। आखखर ले खको तँ ओिी िगत आ सम जसँ अबै त छथि- प्र यः
ओिो न री के स मने नै आनय च िै त छथिन। िमर जनै त मलां हगय जी हिशशि
िगतक न िके शलखै त रिल ि। ओहि हिशशि हपछड िगतमे न री के हिशे ष
स्ि धीनत छै । जकर फ रिडत किै त थछयै , त हि िगतक न रीमे बड कम
स्ि धीनत छै । जखन हक फ रिडतमे न री कम हक बे सी पढ़बो-शलखबो
कयलहन। परां च सां स्क र समक लीन नै भे लहन। सोच आधुहनक नै भे लहन।
आधुहनकत क प्रभ िसँ प छू रिलीि।

की अि ँ के लगै ए जे महिल न िकक रक अभ ि रिल सँ न िकमे महिल क


उथचत प्रथतहबम्ब....

(हबच्चे मे ब त लोकैत) नै -नै , ई क रण नै छै , बस्ल्क ई गलत ध रण छै । कोनो


भ ष मे एन नै छै जे महिल ले खखके महिल क हिषयमे बहढ़य लीखख सकैत
छथि। न िकक र तँ सब भ ष मे पुरुषे बे सी छथि। महिल शलखतीि तँ महिल
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 25

कल क र भे ित अिि महिल क सम्पूणत समस्य आओत ई िम नै म नै छी।


जे न , स हित्यमे आएल दशलत स हित्य एकदम बकब स छै । स हित्य कतौ
दशलत िोइ आ स हित्यक र कतौ दशलत हुअय। स हित्यक र म त्र स्रि िोइ
छै बस। दे खू, दरअसल िमर न ट्य हिधे कमजोर अथछ। न िक शलख यत
मां चन ले ल से कते मां च (न ट्य सां स्ि ) अथछ अपन सब लग? न िक खे ल इ
िल लोक नै अथछ। मां चक (न ट्य सां स्ि ) अभ िक चलते न िक कमजोर।
कम ले खन। सय िषतक आधुहनक मै थिली न िकक इथति स अथछ-सां ख्य मे
कते क न िक अथछ ? 1953मे कलकत्त मे िम सब मै थिली न िक करब शुरू
कयलहुँ । तँ 51-52 स लमे कलकत्त मे एखन तक म त्र 51 ि मौशलक
मै थिली न िक आहब सकल-ब की अनुि द अथछ। जखन हक कलकत्त सँ िम
सब एखन धरर 250सँ 300 पोिी छपलहुँ , त हिमे म त्र 51 ि मौशलक
न िक। िमर सब लग न िकक रोक अभ ि रिल अथछ। न िक लीखब
पररश्रमक क ज अथछ। ओकर मां चक ज्ञ न िोइ। न िक एक बे र शलख यल,
प ठ िोयत, फेर क ँ ि-छ ँ ि। फेर लीखू। तखन ररिसतल। ररिसतलमे फेर चें ज
िोयत। तखन मां चन। फेर क िपीि, तखन प्रक शन। एते क पररश्रम करब क
ले ल लोक तै य रे नै छथि। डै र इ छथि। उपन्द्य सोमे िनत मां गैत छै तें मै थिलीमे
उपन्द्य सो कम छै । सबसँ बे सी कहित शलख रिलए से िो िम किब छां दक
बां धन िू हि गे लै तें । िमर सब लग प्रथतबद्ध आ पररश्रमी ले खकक अभ ि अथछ।
फेर ले खनसँ प इ तँ भे िै नै छै । तें ई 'प ित ि इम' जॉब जक ँ लोक करै ए?
िोडे न िक नथचकेत शलखलहन। आब एखन तँ मलां हगय छोहड हकयो नै । ब बू
स िे ब चौधरीक एके ि न िक अथछ-'कुिे स'। िमर बुझने दिे ज प्रि पर
मै थिलीमे सबसँ नीक न िक अथछ। हकएक तँ ओ 15-20 ि न िकमे स्ियां
अशभनयो कयने रिथि आ हनयथमत बां गल न िक दे खखतो छल ि।

ऐ रचनापर अपन
मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।
26 ||गजेन्द्र ठाकुर

अमरकां त लाल-सं पकक -7091529835

रामलोचन ठाकु र जीक अनुवाद

रामलोचन ठाकुर जीक पोिी प्रछतध्िवन पढ़बाक प्रयाि कऽ रहल िी , पवि


नवह पावब रहल िी कारण ,पिबा काल मोन िदछत पूिावग्रहिँ भरल रहै ि,
रामलोचन ठाकुर जीकेँ पिबा ले ल लगै ि जे हमरो वनद्ववन्द्द ,वनले प होयबाक
चाही। अनुिाद पवहनहु पढ़ने िी मुदा एहन अनुिाद कम्मे भे टल जावहमे ईशा
अपन आयमा जनक आ जानकीमे िमावहत कऽ दे ने होछि , ठाकुर जी के
पिबा माने ििवहारा मै छिलक िां स्कारमे िू बकी लगै ब ,जत्त दुि तकलीफ िे हो
आध्यायम आ दशवनक िमुरमे िमावहत अछि। धनकुटनी पिबाकाल "िे कीमे
धान कते क कि पबै ि" .......... विपत्रत्तक कारिानािँ रयन भऽ बाहर अबै ि
। एवह पाँ छतमे उपदे श प्रेरणा, ियय िभटा एलकवह िां ग अगल,बगल ठाढ़ भे ल
अछि, ठाकुरजीक विषयमे हल्ला िै क ओ हरा गे लाह, हमरा जनतबे ओ
मै छिली िोवड़ कत्तहु ने हरा िकै िछि। श्रीमानक रचना िदछत िे त िररहान
,िां छचतक आँ गन घर िाौं िे ठाढ़ भे टत ओ अनुिादे वकएक नवह हुए मुदा
वनर्ििंिाद रुपमे अनुिाद कत्तहुिँ अनुिाद नवह मै छिलीक िुच्चा मावट-पावन िां ग
ओही स्िादमे ठाढ़ "ििुधैि कुटुां बकम" िन ििुधैि कि एकदृिमक िूचना
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 27

दै त जागृत अछि।

बे िी काल रचना विन्द्दु आ रचनाकार एकाकार नवह भऽ पिै ि ,परां च


रामलोचन ठाकुरजीक रचना किनहुँ हुनकािँ फराक दृछिगोचर नवह होइि।
हुनक रचना बहुत िां गदठत लोकशक्लतक उदय आ‘ विस्तारक ओवह
िम्भािनािँ पररचय करे बाक प्रयाि करै त अछि जावहठाम प्रछतफल
विकािक बाटक प्रशस्त करत। विकाििँ िुि िमृत्रि आ ललान्द्त मुिमण्िल
पर िुि उझलबाक काज रचना मादे कैल जा िकै िै एकर विश्वाि वहनक
रचना कैएक बे र ददएबामे िफल रहल।तिन ईहो कहब जे ओ इछतहाि
वबिरर गे ल िलाह िे नवह तँ इ हुनका रचनामे क्रान्न्द्तक ओ घिाह स्िर िै क
जे अन्द्यि भे टब कम िां भि िा ईहो कवह िकैत छियै क जे रचनाकार बे िी
काल जावहिँ परहे ज करै ए िछि। "आर जुवन उठा माि बफव अम्बार नवह तऽ
अइिन पकड़ब हम तरुआरर" जावहमे िम्पूणव व्यिस्िाक प्रकृछतके विरुि
ठाढ़ होयबाक प्रयाि जावहमे िगव वित्रशि नवह िभक ले ल ितवमानिँ िां घषवक
घोष िै क , मै छिलीए नवह वहन्द्दीयोमे झट दऽ भे टब अिां भिे बुक्षझयौ। िमृत्रिक
फूवहआएब दे िबामे अबै ि मुदा भाषा ले ल भाषा िमृत्रिक बरिा कम्मवह
भे टैि। फूहीिँ िन्द्तोषक हररछतमाक विस्तारक आश मुदा स्िायी विस्तार ले ल
बरषा चाही ।जागरण, िां गठन, िामाक्षजक दाछययिबोध आ’ िमन्न्द्ित राष्ट्िीय
दृछिक विकािक विविध बाट आ ओवह बाटपर प्रमुि अछि, स्िर्णिंम अतीतक
अिदानक पररचय द्वारा लोककेँ उयप्रेररत करब। छमछिलाक िाां स्कृछतक
इछतहाि पराक्रमक गौरि गािािँ पररपूणव अछि। मुदा ठाकुर जी ओवह
गौरिगािािँ फराक भऽ एकटा नि दृछिकोण ठाढ़ करबामे लागल िछि जे
नवह तऽ राजनीछत प्रेररत अछि आ नवह कूनू विशे ष धारा िा विचारिँ हुनक
स्ितः स्फूतव भाि जे वकनको कम्युवनस्ट िा िामपां िी लगौन्द्ह परां च ओ िदछत
छमछिला आ मै छिलीपां िी छिकाह जावह विषयमे जनबाक अने क स्रोत अछि।
28 ||गजेन्द्र ठाकुर

ओ स्रोत िभ त्रलखित आ’ अत्रलखित दूनू अछि। जे त्रलखित अछि पढ़ल-


त्रलिल लोक तकरा पवढ़ पवढ़ िामाक्षजक बोधिँ अत्रभभूत होइत रहलाह अछि
आ जे त्रलिल नवह जा िकल, िे लोक कांठवहक माध्यमे आइ धरर िुरक्षित
रवह प्रेरणाक अजस्र स्रोत प्रिावहत करै त आवब रहल अछि। कूनू बे क्लत जिन
कमव आ दाछययि के चरम विन्द्दु तक पहुँ चबाक प्रयाि करै िछि तँ दे िार होइ
िछि। तवहना ठाकुरजीक रचना िे हो िमाजक िभ िगवक बोध पिारै त िभक
ले ल चे तौनीक काज िे हो करै ए िछि आ अपना ददििँ िां घषवघोष िे हो।
ऐ रचनापर अपन
मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 29

प्रदीप पुष्प- सं पकक -7903496553


गीतकार रामलोचन ठाकु र
मै छिलीक आने विधाक अनुरूप मै छिलीक गीतक उपर आलोचक लोकवन
कम्म ध्यान दे लवन अछि। कविताकें विशे ष महयि द' मै छिली गीतक उपे िा
कयल गे ल अछि। यद्यवप मै छिली गीतक परम्परामे महाकवि विद्यापछत जकाँ
गीछत-काव्यक पुरोधा नीक जकाँ मुिर िछि आ हुनका बाद िे हो बहुत नीक
गीतकारक श्रृांिला रहल अछि, तिावप ई कहबामे कोनो अशौकयव नहहिं जे
मै छिली गीत-विधाकें ओते क मूय नवह भे वट िकल जे ओकरा भे टबाक चाही।
यद्यवप त्रभन्द्न- त्रभन्द्न कालमे गीतकार- कवि द्वारा रचल िुमधुर गीत मै छिल
जनमानिक कांठमे अपन माधुयव िां ग लोकछप्रय होइत रहल मुदा गीतक
आलोचना पि आ अइ िास्ते अकादमीक िहयोगक दृछिकोणिँ गीत विधा
कविता जकाँ जगह नै बना िकल।
मै छिलीक प्रत्रिि कवि, रां गकमी, आां दोलनी, पि-पत्रिकाक माध्यमे मै छिलीक
जन- जागरण कएवनहार श्री रामलोचन ठाकुर जीक िावहत्ययक अिदान बे ि
व्यापक अछि। एकटा िमिव कवि, मातृभाषा अनुरागी, आन्द्दोलन कमी,
पिकार इययादद वित्रभन्द्न भूछमकाक नीक जकाँ वनिवहन कररतो ठाकुर जी
मूलतः मै छिलीक िुांदर भविष्ट्य ले ल, छमछिलाक उयिान ले ल चचिंछतत
स्िप्नरिा िछि।
रामलोचन जीक गीत मूलतः छमछिलाक िायाछचि अछि। व्यापक उद्देश्य िँ
30 ||गजेन्द्र ठाकुर

रचल गे ल गीतक कैनिाि नमहर अछि आ आने गीतकार जकाँ िस्तुवनष्ठ आ


िूक्ष्म नै भ' पबै त अछि। गीतकार ठाकुरजी वनखश्चत रूपे ण प्रगछतशीलता
प्रछतवनछध िछि। वहनक गीत यिािवक भूछम पर ठाि भे ल मजगूत घर जकाँ
अछि। अपना िमयक िमाज आ दे शक िमुछचत छचि उपस्स्ित करबाक
िफल प्रयाि ठाकुर जी कयने िछि। वहनक गीत िमाजक िगव- िां घषव केँ,
अिमानताकेँ प्रछतध्िवन छिक। ई अपन गीतमे क्रान्न्द्तक आह्वान करै त िछि।
वहनकामे िमतामूलक िमाजक प्रबल भािना दे िाइत अछि। वहनक गीत
कोनो नियुितीक प्रछत रचल गे ल उपमा- उपमे य आ श्रृांगारक िणवमाला नै ,
अवपतु वहनक गीत भूि, ब्याछध, बे कारी, शोषण आ अपन भाषा- िां स्कृछतक
प्रछत वहनक अगाध अनुरागक गान छिक। श्रछमक- मजदूर िगवक आक्रोश,
पलायन, भूिमरी, कृषकको अधोगछत वहनक मूल- विषय रहलवन अछि।
अपूिावक भूछमकामे श्री निीन चौधरी त्रलिै त िछि-"रामलोचन ठाकुर जीकेँ
यशस्िी गीतकारक पछतयानीमे दे िब कोनो आलोचककेँ नै अघरतवन। एवह
पोिीक गोटे क दजवन गीतमे ओ िामर्थयव िै ।" हम आदरणीय चौधरी जीक
एवह किनिँ िहमछत नै रिै त िी। यिािवक ते हेन स्िर ठाकुर जीक गीतमे
प्रमुिता िँ उपस्स्ित िखन्द्ह जे वनखश्चत रूपे ण वहनका अग्रणी गीतकारक रूपमे
स्िावपत करै त अछि। ठाकुर जीक गीत परम्परागत गीतिँ पृिक अछि। वहनक
गीतक कर्थय आ त्रशल्प दुनू परम्परा िँ अलग अछि। उदाहरण ले ल- वहनक
गीत " उठ - उठ रओ बौआ"मे ठाकुर जी कहै त िछि-" कास्ल्ह जनगणना
छिक गामे पर रहब, ठीक - ठीक त्रलिाएब कने जे ना - जे ना कहब, माइक
जे भाषा िे मै छिली त्रलिाएब, दे िब वहन्द्दी ने त्रलिए मुझौिा-"
एकटा दोिर गीतमे लोक गीतक शै ली त्रलिल पर ई बे ि चोटगर अछि_ "
कररया झु म्मरर िे लै िी, िील पटापट मारै िी, लीि पटापट मारै िी, शोक्षणत
पीबै जे मनुिकेँ, तकरे मारै - जारै िी,"
वहनक एकटा प्रत्रिि गीत अछि-'वबिनी कटलकौ,तुम्मा फुले लकौ, फेर
कन्द्हुआइ िौ तोरे पर'। ई गीत पाँ च बरि पर ने तालोकवन द्वारा चुनाओ जीत
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 31

क' जन- िमुदायक शोषण पर बे ि धरगर प्रहार अछि। िां गवह, गीतकार अइ
गीतमे मतदान करय बला िमुदायकेँ चे तौनी द' रहल िछि।
त्रशल्पक दृछििँ गीत ले ल आिश्यक िै क ओकर गे यता।तावह ले ल आिश्यक
िै क जे ओकर अां तराक मीटरमे तारतम्य होइ जावहिँ ओ प्रभािी रूपे गाओल
जा िकय।मुदा तावह दृछिकोणिँ वहनक गीत बे िी ठाम उपयुलत नै
लगै ए।उदाहरण ले ल-
"िखि हे हम की गायब गीत" शीषवक मे कोनो अां तरा तीन पाँ तीक अछि त'
कोनोमे चारर -पाँ च पाँ तीक। तवहना -" इछतहाि युग निीन के" आ "
क्राां छतक आह्वान " मे िे हो िाम्यताक अभाि। वहनक बे िी गीतक त्रशल्प
नजररए ओते क प्रभािी नै । पोिी 'अपूिाव'क प्रारां भमे आदरणीय िुनील
चौधरी ललन जीक ई किन -" रामलोचन ठाकुर लग कतोक िस्तुक अभाि
िवन। आलोचनाक वनष्ट्पि किौटी पर राखि क' दे िल जाए त' वकिु दोष
अिश्य भे टत। ठाम - ठाम हुनकर मान्द्यतािँ िहमछत होएब कदठनाह बुक्षझ
पड़त......। "िँ हमहुँ िहमछत रिै त िी। प्रगछतशीलता आ यिािविाद केँ
िमे टैत,परम्परागत गीत-शै ली केँ अनठबै त जँ अहाँ वहनक गीतक उद्देश्य आ
विषय-िस्तुक प्रािां वगकता माि धरर ध्यान रािी त' वहनक गीतकारी नीक
िवन आ छमछिला- मै छिल ले ल प्रभािोयपादक िवन। मुदा, ओइमे आन
आिश्यक गुणक अभाि। रामलोचन जी बहुतो विधा पर अपन कलम
चलौलवन।एकटा गीतकारक िां भािनाक रूपमे जँ विचार करी त' ओ विषय
- चयन आ तयकालीन पररिे श ( अिनहुँ प्राय: ओवहना) केँ छचि उपस्स्ित
करबामे िफल िछि मुदा गीतक आन तयिक अभाि कारणे ओ बे िी काल
धरर गीतकारक रूपमे आकषवक नै लगै िछि।
ऐ रचनापर अपन
मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।
32 ||गजेन्द्र ठाकुर

शै लेंद्र थमश्र-सं पकक -7600744801

एकटा खााँ टी मै थिल:रामलोचन ठाकु र आ हुनकर काव्यसं सार

आदरणीय रामलोचन ठाकुर छमछिला मै छिली मध्य एकटा ध्रु ितारा बवन
चमवक रहल िछि ई कहबामे हमरा अिोकजव नै भऽ रहल अछि वकएक तँ
भाषाक प्रछत िमपवणता ओ ययाग वबरले व्यक्लतमे भे टत। ई कलकत्तामे
छमछिला-मै छिलीक पयावय बवन एकटा िाम्हक रूपमे विद्यमान िछि आ
अपनािँ कवनष्ठ पीढ़ीक कते को िावहययकारकेँ िावहयय-िाँ चामे गढ़लछि।
अपन बात–विचार स्पि रूपिँ रिै त रहलाह अछि। एकटा विरल मै छिली
आां दोलनकताव, कवि, गद्य ले िक, िमालोचक, कुशल िां पादक, नाटककार,
वनदे शक ,रां गकमी ओ िफल अनुिादकक रूपमे प्रख्यात िछि। हुनकर रचना
िां िार तते क विशाल िवन जे िम्पूणव कृछतयिकेँ एकटा ले िमे िमे टनाइ कदठन
अछि। अइ ले िमे हम हुनकर माि काव्य यािापर केंवरत करब। वहनकर
राजनीछतक विचार मालिविादी –बामपां िी रहलवन आ वहनकर कविता िभमे
िे हो मालिविादक िौन्द्दयव-शास्िक उदाहरण भे टैत अछि। ले वकन त्रिफव
ककरो राजनीछतक विचारधाराकेँ केंरभूछममे राखि कऽ मूयाां कन केनाइ
वनखश्चत रूपिँ िुवटपूणव िावबत हएत वकएक तँ अइ बातपर िबमे िहमछत िै
जे कोनो रचनाकार तिने पै घ बनै त िछि जिन ओ अपन विचारधाराकेँ
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 33

अछतक्रमण करै त अछि।हहिंदी िावहययमे भक्लतकालक एकर उदाहरण अछि


जायिी तँ आधुवनक कालमे मुक्लतबोध। िूफी मतिादक अछतक्रमण कइए
कऽ जायिी पद्माित िन श्रे ष्ठ रचना त्रलि िकलाह तँ मुक्लतबोध मालिविादी
विचारधाराक अछतक्रमण कऽ िफल भे लाह। आलोचनामे एकटा प्रिृत्रत्त हािी
रहलै ए जे रचनाकारकेँ व्यक्लतगत राजनै छतक विचारधाराक आधारपर
मूयाां कन केनाइ ले वकन हमर कोत्रशश अछि जे रामलोचन जीके रचनाकेँ
केंरमे राखि अपन विचार प्रस्तुत कऽ िकी। तिन ईहो बात ियय अछि जे
हुनकर कविता-िां ग्रहक अध्ययन केलाक बाद एकटा गीत स्ितः मोन पवड़
गे ल –‘दुिवह जनम भे ल, दुिवह गमाओल’ वनराशा ,कि ओ िां घषव
आदरणीय रामलोचन ठाकुर के कविताक केन्द्रीय भाि िै । जे ना भगिान बुि
कहने िछिन –‘िां िारमे दुःि िै ’ ले वकन ओ दुःिक िमाधान िे हो दे ने
िछिन। ठाकुरजीक कवितामे दुःि तँ िै ले वकन िमाधान नै िै । ई छचवकयिक
जकाँ िमाजक रोगकेँ उजागर करै त िछिन,ईहो गप्प ियय जे कवि िमाधान
दे बे करछि िे आिश्यक नै ।
रामलोचन ठाकुर जीक रचना िां िारमे िब तयि विद्यमान अछि काव्यक िब
रि भे टैत अछि , ििवगुण िम्पन्द्न हुनकर विद्वता ओ गहराइ के िाधारण
चश्मािँ वकन्द्नहु नै दे िल जा िकैत िै । हुनकर काव्य-यािा
एकटा मानि जीिन िन उभर –िाभर ओ िै विधतापूणव िवन। अपन कविता
िबमे िब बात फरीि कऽ कऽ रिने िछि। आदरणीय ठाकुरजीक व्यक्लतयि
ओ कृछतयिमे बे िी अां तर नै िै । जएह हुनकर जीिन िएह हुनकर रचना
िां िार। हुनकर ते िर अप्पन पवहलुके कवितािँ ग्रह ‘इछतहािहां ता’मे दे िल जा
िकैत अछि जतऽ ओ छमछिला मै छिली के अस्स्मताक नामपर चत्रल रहल िे ल
के अस्िीकार कऽ दै त िछि बहुत राि वबम्बक माध्यमिँ अप्पन गप रिने
िछि। जिन ओ अपन पवहलुके कविता ‘मै छिली’मे कहै त िछि “मै छिली कें
बनिँ नै /नै हरे िँ /बलजोरी छघत्रियबै त /ल गे ल िला रािि-राज /आ
34 ||गजेन्द्र ठाकुर

औिन रिने िवन /अशोक बावटका मे /शोकाकुल मै छिली जतय /कुहरर –


कुहरर /अपन जीिनक अां छतम िणक /प्रतीिा क रहल िछि /की करती
बे चारी /विदे ह बाप पहीनहहिं दे ह ययावग चुकल िछिन /राम िछिन नपुांशक
/आ /हुनकेिँ जनमल /लि आ कुश की िीर पुरुष हे छिन”।ई पिलाक बाद
कविक प्रछत आक्रोश स्िाभाविक िै वकएक तँ राम भारतीय िाां स्कृछतक
एकटा उयकषव पुरुि भे ल िलछि आ हुनका ‘नपुांिक’ कहनाइ बहुत िे दक
गप्प भे ल। ले वकन उपरोलत कविताकेँ कएक टा तह िै ितही स्तरपर जतय
एकटा िाधारण मै छिलक पीड़ा ओ आक्रोश नजरर पररलक्षित होइ िै वकएक
तँ िीता िां ग भे ल दुव्यविहारक कारणे रामकेँ लोक किा कहनाइ ,गारर पढ़नाइ
एकटा स्िाभाविक प्रछतवक्रया िै । मै छिल िां स्कृछतमे जमाए ओ ओकर
िािुरक लोककेँ हास्य-पररहाि केनाइ कोनो नब गप्प नै । तँ इ कहल जा
िकैए जे ओ आिे शमे आवब एकटा िीमाकेँ तोवड़ आगू बवढ़ गे ल िछि ,परां च
ओ नै हर पि ओ छमछिलाक लोक के िे हो नै िोड़लखिन। ले वकन यदद दोिर
तहकेँ दे िल जाए तँ ओ मै छिली भाषाक मादे िे हो बहुत वकिु कवह दे ने िछि
जे एिनो प्रािां वगक अछि लगभग 40 िषव पूिव जे मै छिली भाषाक दुदवशा िल
िएह एिनो अछि अिम िूचीमे शाछमल भे लाक बादो कते को विश्वविद्यालयक
पाठ्यक्रममे शाछमल भे लाक बादो िाली मां च ,पाग दोपटा ओ विद्यापछत पिव-
िमारोहक भाषा बवन कऽ रवह गे ल अछि। कते क विश्वविद्यालयमे विद्यािीक
अभािमे मै छिली विभाग बां द भऽ गे ल तँ कते को ठाम बां द होमए के कगारपर
अछि। ‘नै हर’ के मतलब एतय राज्य राखि दे ल जे तै यो बहुत वकि फरीि भऽ
जाइ िै ,राज्यमे मै छिली के कोनो िम्मान नै ,ओइिँ बे िी त दोिर राज्य जे ना
झारिां ि /ददल्लीमे बे िी िै ।
हुनका िन मातृभाषा प्रेमी ओ युगपुरुष मै छिली भाषा िावहययमे कम्मे भे टत
वकएक तँ ओ छमछिलाके भूगोल,िाां स्कृछतक पररदृश्य, आर्ििंक-िामाक्षजक
पररदृश्यिँ पूणव रुपें पररछचत िछि। ओ गन्द्हाइत व्यिस्िाक प्रछतिाद करै त
िछि। ‘नाटक ,वनदे शक आ एक गोट कविता’ शीषवक कवितामे माध्यमिँ
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 35

कटु ित के जगक्षजयार करै त िछि –‘जिन मां च िे उतरै ए /कुनु एक


कलाकार /दशवक दीघाव िे ल जाइए /एगो युिती कें /प्रछतिादी भाईक
हययाक पश्चात /मां चपर कएल जाइए ओकरािँ ग /िामूवहक बलायकार
/अत्रभनय के नामपर /तै यो शाां त –एकदम चुप्पी आ /आन्द्दोलनमत्त भे ल
अत्रभने ता िब /क रहलए गरां छिया नाच’। अइ कविताक माध्यमिँ रामलोचन
ठाकुर बहुत वकिु बात कवह दै त िछि ,ई कोनो मै छिले िमाज नै अवपतु
अत्रभनयक नामपर व्याप्त स्िीक शोषण, फूहड़ता ओ लोकक
अिां िेदनशीलताकेँ प्रकट केने िछि। आइयो दृश्य-पररदृश्य िएह िै अइमे
कोनो बदलाबक कल्पना केनाइ िां भि नै िै ।
अग्रजक नाम शीषवक कविता –केहन लागत अहाँ के /जे भनिाघर कुनू
/किाइ िाना-कम वकचे न –कम रे स्टोरें ट /बवन गे ल हो ,आ /अहाँ क
अनुजक ििड़ी काटल िलड़ी ओदारल /दे ह झु लैत हो पिु अछतमे /ओकर
टटका माां िक कबाब, आ /टटका रलतक शराब बे चल जाइत हो। ओ एकटा
जनिादी-प्रगछतिादी कवि के रूपमे आमजनक व्यिा–किाकेँ वनष्ट्पि आ
वबना कोनो लाइ–लपटाइ के राखि दै त िछि। ओ मालिविादक प्रभािमे िलछि
आ ‘इछतहािहां ता’मे िबटा एहने –एहने क्राां छतकारी कविता िब के िां कलन
िै । ले वकन वहनकर माि एक गोट कविता-िां ग्रहकेँ पवढ़ कोनो टै ग नै लगायल
जा िकैए, लगभग 45 बरिक काव्य िाधनामे बहुत रि ओ रां गक रचना
केलछि। ओ िब तरहक रचना चाहे तुकाां त हो िा अतुकाां त ,िब तरहक रचना
केलछि। हुनकर बादक कविता िभक विषय िस्तु िे हो त्रभन्द्न रहलवन। परां च
ई बात िे हो ियय जे हुनकर मूल विषय छमछिला ,मै छिली ओ मै छिले रहलवन।
अपन दोिर कविता –िां ग्रह ‘दे शक नाम िलै िोन छचड़ै या’ (अरुणोदय
प्रकाशन,कलकत्ता 1986 ई)मे ‘िुच्चा मै छिल’ शीषवक नामक कवितामे
मै छिलक दुदवशाक िणवन केने िछि – आइ भारती /गुदड़ीिँ झपने अां ग
/दाबापर छचपड़ी पिै त िछि /हीरामवन िुग्गा /पवहलवह मरर चुकल अइ /आ

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