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Videha_Ramlochan_Thakur_Special_Issue-1-60
Videha_Ramlochan_Thakur_Special_Issue-1-60
मैछथिी भवषव जगज्जननी सीतवयवः भवषव आसीत्। िनुमन्तः उक्टतर्वन- मवनुषीधमि संस्कृतवम्।
ततहअन िेत्तति कवञि तसु तकक्षत्तर्स्थल्ि पसरेइ। अक्टिर िम्भवरम्भ जउ मञ्चो िन्धि न दे इ॥ (कीर्तिंितव
प्रथमः पल्िर्ः पतिि दोिव।) मवने आिर रूपी िवम्ि तनमवाण कऽ ओइपर (गद्य-पद्य रूपी) मंच जँ नै िवन्िि
जवय तँ ऐ तिभुर्नरूपी िेिमे ओकर कीर्तिंरूपी ित्ती केनव पसरत।
शुक्टि यजुर्ेद (२६.२)-यथेमवं र्वचं कल्यवणीमवर्दवतन जनेभ्यः। ब्रह्मरवजन्यवभ्यवं शूरवय चवयवाय च स्र्वय
चवरणवय च।।िम सभ गोटेकें ई पतर्ि र्वणी (र्ेदर्वणी) सुनविी। ब्रवह्मणकें , ितियकें, शूरकें आ आयाकें;
अपन िोककें आ अपररछचतकें सेिो (मवने सभकें)। मुदव ऐ र्ेदर्वक्टयक तर्परीत मनुस्मृतत र्ेदर्वणीक
अध्ययन/ श्रर्णकें समवजक तकिु गोटे िेि तनषेि करऽ चवििक, मुदव स्मृतत सेिो र्ेदर्वक्टयकें प्रमवण मवनैत
अछि (शब्द प्रमवण) तें तकर तर्रुद्ध दे ि ओकर तनदे श स्र्यं अमवन्य भऽ जवइत अछि।
Do not judge each day by the harvest you reap but by the seeds that you plant.
-Robert Louis Stevenson
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𑒩𑓂𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧𑒝𑒮𑒿 𑒣𑓂𑒩𑒰 𑒩𑓂𑒟𑒢 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒏𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒁𑓀𑒞𑒢𑓂𑒞𑒱𑒩𑒏𑓂𑒭𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒣𑒵𑒟𑓂𑒫𑒲 𑒣𑒵𑒩, 𑒠𑓂𑒨𑒾 ,
𑒎𑒭𑒡𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒫𑒢𑒮𑓂𑒣𑒢𑓂𑒞𑒱𑒞𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒫 𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒮𑒿𑒦 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒫𑒞 𑒑𑒝𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒂 𑒩𑓂𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒞
𑒯𑒳𑒁𑓀𑒨।
𑓇-𑒩𑓂𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧𑒝, 𑒠𑓂𑒨𑒾 -𑒮𑒿𑒨-𑒞𑒠𑓂𑒨𑒾𑒩𑒑𑒝, 𑒁𑓀𑒞𑒢𑓂𑒞𑒱𑒩𑒏𑓂𑒭- 𑒣𑒵𑒟𑓂𑒫𑒲 𑒂 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒏𑒏 𑒥𑒲 𑒔,
𑒂𑒣𑒵:- , 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒫𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒫 - 𑒮𑒿𑒦 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒫𑒞 , 𑒩𑓂𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧- 𑒮𑒿 𑒏।
𑒀
ॐ, स॒िस्र॑शीषवा॒ पुरु॑षः। स॒ि॒स्रव॒िः स॒िस्र॑पवत्।
िजवर मवथ, िजवर आँखि, िजवर पएर संग तर्श्वकेँ आच्छवददत केने
अछि, दस आंगुरक गनतीक र्शमे नै अछि ओ।
सोशल मीडिया, अन्तर्ााल आ दूरदशानक कायाक्रम सभमे वे दमे ई ललखल अछि, ई वर्णित अछि, शूद्रक प्रछत, स्त्रीक
प्रछत, शूद्रक स्त्रीक प्रछत अपमान र्नक गप ललखल अछि; ई सभ सूडन कऽ डकयो डवकीपीडिया आ आन आन ठाम
अन्तर्ाालपर ले ख सभमे पररवतान कऽ दे ने रहछि। एक गोटे अं ग्रेर्ीमे ललखलडन- “अिवावेदमे शूद्रक पत्नीकेँ डिना
स्त्वीकृछतक डकयो हाि पकडि लऽ र्ा सकय, िला वक्तव्य अछि।” हम कुरुक्षे रम् अन्तमानक, खण्ि-८; प्रिन्ध
डनिन्ध समालोचना भाग-२, २०१४ मे अपन आले ख “डवद्यापछत: डकिु प्रचललत कुप्रचारक डनवारण” मे ललखने रही-
“.. ई ओडहना भे ल र्े ना अिवावेदमे शूद्रक पत्नीकेँ डिना स्त्वीकृछतक डकयो हाि पकडि लऽ र्ा सकए िला
वक्तव्य।”
मुदा अिवावेद िा कोनो वे दमे ओइ तरहक वक्तव्य कत्तौ नै आयल अछि। तकर डवपरीत शुक्ल यर्ुवेद ई कहै त
अछि:-
शुक्ल यर्ुवेद (२६.२)-यिे मां वाचं कल्याणीमावदाडन र्ने भ्यः। ब्रह्मरार्न्याभ्यां शूद्राय चायााय च स्त्वाय चारणाय
च।।हम सभ गोटे कें ई पडवर वाणी (वे दवाणी) सुनािी। ब्राह्मणकें , क्षलरयकें, शूद्रकें आ आयाकें; अपन लोककें आ
अपररछचतकें से हो (माने सभकें)। मुदा ऐ वे दवाक्यक डवपरीत मनुस्मृछत वे दवाणीक अध्ययन/ श्रवणकें समार्क
डकिु गोटे ले ल डनषे ध करऽ चाहलक, मुदा स्मृछत से हो वे दवाक्यकें प्रमाण मानै त अछि (शब्द प्रमाण) तें तकर डवरुद्ध
दे ल ओकर डनदे श स्त्वयं अमान्य भऽ र्ाइत अछि।
वे द मे उपलब्ध शूद्र शब्दक उल्ले खखत अं शक सं ग्रह नीचााँ दे ल र्ा रहल अछि। शूद्रक अपमानर्नक उल्ले ख ताँ नडहये
अछि, वरन् पएरसाँ पडवर पृथ्वीक र्न्मक उल्ले ख अछि आ तही उत्पलत्तक सादृश्यताक कारणसाँ मानव समुदायक
पालक शूद्र कहल गे ल िछि।
प॒द्भ्याग्ाँ ्ँ॑ शूू॒द्रो अ॑र्ायत॥
KANDA-14
(MARRIAGE AND FAMILY) Kanda 14/Sukta 1 (Surya’s Wedding)
Devata: Dampati; Rshi: Surya Savitri
60. Bhagastataksha caturah padanbhagastataksha catvaryuspalani. Tvasta
pipesa madhyatonu vardhrantsa no astu sumangali.
Bhaga, lord sustainer and ordainer of life, has framed the value orders of
life: Dharma, Artha, Kama and Moksha; four social orders: Brahmana,
Kshatriya, Vaishya and Shudra; four stages of personal life: Brahmacharya,
Grhastha, Vanaprastha and Sanyasa. Tvashta, lord maker and organiser of
life, has placed the woman as partner of man in matrimony in this order and
organisation. May the bride be good and auspicious for us.
भाग- पालनकताा आ र्ीवनक अछधष्ठाता- र्ीवनक मूल्य क्रम तै यार केने िछिः धमा, अिा, काम आ मोक्ष; चारर
सामाजर्क क्रम- ब्राह्मण, क्षलरय, वै श्य आ शूद्र; व्यक्क्तगत र्ीवनक चारर चरण- ब्रह्मचया, गृहस्त्ि, वानप्रस्त्ि आ
सन्यास।त्वष्टा- स्त्वामी डनमााता आ र्ीवनक आयोर्क- एडह क्रममे आ सङ्गठनमे स्त्रीकेँ डववाहमे पुरुषक सािीक
रूपमे रखने िछि। से वधू हमर सभक ले ल नीक आ शुभ होछि।
Kanda 19/Sukta 6 (Purusha, the Cosmic Seed)
Purusha Devata, Narayana Rshi
6. Brahmano sya mukhamasid bahu rajanyo bhavat. Madhyam tadasya
yadvaishyah padbhyam sudro ajayata.
Brahmana, (man of knowledge, divine vision and the Vedic Word in the
human community) is the mouth of the Samrat Purusha. Kshatriya, man of
justice and polity, is the arms of defence and organisation. The middle part
is the Vaishya who produces and provides food and energy. And the
ancillary services that provide sustenance and support with auxiliary labour
are the feet, the Shudra that bears the burden of society.
ब्राह्मण (ज्ञानी, ददव्य दृछष्ट आ मानव समुदाय ले ल वै ददक शब्द) सम्राट पुरुषक मुख अछि। क्षलरय -न्याय आ
रार्नीछतक लोक- रक्षा आ सङ्गठनक हाि िछि। मध्य भाग वै श्य िछि र्े भोर्न आ ऊर्ााक उत्पादन आ आपूर्ति
करै त िछि। आ सहायक से वा र्े सहायक श्रमक सङ्ग डनवााह आ सहायता प्रदान करै त अछि, ओ अछि पै र, शूद्र
र्े समार्क भार वहन करै त िछि।
SAMAVEDA (o reference)
YAJURVEDA (7 references)
CHAPTER- VIII
30. (Dampati Devata, Atri Rshi)
Purudasmo visuruupa indurantarmahimanamanaja dhirah. Ekapadim
dvipadim tripadim chatupadimastapadim bhuvananu prathantam svaha.
The man of mighty deeds, who eliminates suffering and creates joy, of
versatile attainments, bright and honourable, constant and resolute, should
wait for the great new arrival. Men of the household, cultivate the vaidic
culture of one, two, three, four and eight steps of attainment: one: Aum; two:
worldly fulfilment and the freedom of moksha; three: the joy of the truth of
word and the health of body and mind; four: the attainment of Dharma,
wealth, fulfilment of desire, and moksha; eight: the joy of all the four classes
and all the four stages of life (Brahmana, Kshatriya, Vaishya and Shudra,
Brahmacharya, Grihastha, Vanaprastha and Sanyasa). Build homes for the
people and advance in life.
शक्क्तशाली कमाक पुरुष, र्े दःखकेँ समाप्त करै त अछि आ आनन्द उत्पन्न करै त अछि, िहुमुखी उपलब्ब्धक,
उज्जज्जवल आ सम्मानर्नक, ब्स्त्िर आ दृढ़ सं कब्ल्पत, ओकरा महान नव आगमनक प्रतीक्षा करिाक चाही। घरक
लोक, उपलब्ब्धक एक, दू, तीन, चारर आ आठ चरणक वै ददक सं स्त्कृछत डवकलसत करै त िछिः एकः ओम; दइः
सां साररक पूर्ति आ मोक्ष रूपी स्त्वतन्रता; तीनः वचनक सत्यक आनन्द आ शरीर आ मब्स्त्तष्कक स्त्वास्त्थ्य; चाररः
धमाक प्राप्प्त, धन, इच्छाक पूर्ति, आ मोक्ष; आठः र्ीवनक चारर वगा आ चारर चरणक आनन्द (ब्राह्मण, क्षलरय,
वै श्य आ शूद्र, ब्रह्मचया, गृहस्त्ि, वनप्रस्त्ि आ सन्यास)। लोकक ले ल घर िनाउ आ र्ीवन मे प्रगछत करू।
CHAPTER- XVIII
48. (Brihaspati Devata, Shunah-shepa Rshi)
Rucham no dhehi brahmanesu rucham rajasu naskrudhi. Rucha vishyesu
shudreshu mayi dhehi rucha rucham.
Brihaspati, lord of the universe, eminent teacher and master of vast
knowledge, inspire our Brahma section of the community—scholars,
scientists, teachers and researchers with brilliance and love. Infuse
brilliance, love and justice into our Kshatrias, defence, administration and
justice section of the community. Bless with light, love and generosity our
Vaishyas, producers and distributors among the community. And bless our
Shudras, the ancillary services, with light, love and loyalty. Bless me with
light and love toward us all.
िृहस्त्पछत- ब्रह्माण्िक स्त्वामी, प्रख्यात लशक्षक आ डवशाल ज्ञानक स्त्वामी- समुदायक ब्रह्म वगा- डवद्वान, वै ज्ञाडनक,
लशक्षक आ शोधकताा- केँ प्रछतभा आ प्रे म साँ प्रे ररत करू। हमर क्षलरय-रक्षा, प्रशासन आ न्याय- समुदायक वगामे
प्रछतभा, प्रे म आ न्यायक सं चार करू। हमर वै श्य-समुदायक डनमााता आ डवतरक- सभकेँ प्रकाश, प्रे म आ उदारतासाँ
आशीवााद ददयौ। आ हमर सभक शूद्र -समुदायक सहायक से वी- केँ प्रकाश, प्रे म आ डनष्ठा साँ आशीवााद ददयौ। हमरा
सभ केँ प्रकाश आ प्रे म साँ आशीवााद ददयौ।
CHAPTER- XXV
23. (Dyau etc. Devata, Prajapati Rshi)
Aditirdyauraditirantarikshamaditirmata sa pita sa putrah. Vishve deva
aditih pancha jana aditirjatamaditirjanitvam.
In the essence: Light is indestructible; sky is indestructible; mother Prakriti
(matter-energy-thought) is indestructible; Father, the Cosmic Spirit is
indestructible; Son, the soul (jiva), is indestructible; all the divinities of
nature and humanity are indestructible; five people, Brahmana, Kshatriya,
Vaishya, Shudra, others, are indestructible; whatever is born is
indestructible; whatever will be born is indestructible. (All that was, is and
shall be is indestructible in the essence.)
सारमे : प्रकाश अडवनाशी अछि; आकाश अडवनाशी अछि; माता प्रकृछत (पदािा-ऊर्ाा-डवचार) अडवनाशी अछि;
डपता, ब्रह्मां िीय आत्मा अडवनाशी अछि; पुर, आत्मा (र्ीव) अडवनाशी अछि; प्रकृछत आ मानवताक सभ दे वत्व
अडवनाशी अछि; पााँ च व्यक्क्त, ब्राह्मण, क्षलरय, वै श्य, शूद्र आ आन अडवनाशी अछि; र्े डकिु र्न्मल अछि से
अडवनाशी अछि; र्े डकिु र्न्मत से अडवनाशी अछि। (र्े डकिु िल, अछि िा रहत/ आओत से सार मे अडवनाशी
अछि।)
CHAPTER- XXVI
2. (Ishvara Devata, Laugakshi Rshi)
Yathemam vacham kalyanimavadani janebhyah. Brahmarajanyabhyam
Shudraya charyaya cha svaya charayaya cha. Priyo devanam dakshinayai
daturiha bhuyasamayam me kamah samrudhyatamupa mado namatu.
Just as this blessed Word of the Veda I speak for the people, all without
exception, Brahmana, Kshatriya, Shudra, Vaishya, master and servant,
one’s own and others, so do you too. May I be dear and favourite with the
noble divinities and the generous people for the gift of the sacred speech.
May this noble aim of mine be fulfilled here in this life. May the others too
follow and come my way beyond this life.
र्े ना वे दक ई धन्य वचन हम डिना कोनो अपवादक, ब्राह्मण, क्षलरय, शूद्र, वै श्य, स्त्वामी आ से वक, अपन आ अन्य
लोकक ले ल कहै त िी, तडहना अहााँ से हो करै त िी। पडवर भाषणक ऐ उपहारक ले ल हम महान दे वत्व आ उदार
लोक सभक छप्रय आ मनभावन रही। हमर ई महान उद्देश्य ऐ र्ीवन मे पूर हुअय। आन सभ से हो हमर मागाक
अनुसरण करै त िढ़ै त र्ाय आ से ऐ र्ीवनसाँ आगााँ धरर िढ़य।
CHAPTER- XXX
5. (Parameshvara Devata, Narayana Rshi)
Brahmane brahmanam kshatraya rajanyam marudbhyo vaishyam tapase
Shudram tamase taskaram narakaya virahanam papmane
klibamakrayayaayogum kamaya punshchalumatikrustaya magadham.
Give us, we pray, the Brahmanas for education and research, culture and
human values; the Kshatriyas for governance, defence and administration;
the Vaishyas for economic development, and the Shudras for assistance and
labour in the ancillary services. Remove, we pray, the thief roaming in the
dark, the murderer bent on lawlessness, the coward disposed to sin, the
armed terrorist bent on destruction, the harlot out for pleasure of flesh, and
the bastard fond of scandal.
Note: In mantras 5-22 in which various aspects of organised life are listed,
there is repetition of ‘asuva’ and ‘parasuva’ from mantra 3, which means:
‘Give us, we pray, what is good’, and, ‘Remove, we pray, what is evil’. This is
the prayer. Also, there are echoes of ‘havamahe’ from mantra 4, which
means: ‘We invoke and develop’, and, ‘we challenge and fight out’. This is
the call for action under the divine eye.
लशक्षा आ शोध, सं स्त्कृछत आ मानवीय मूल्यक ले ल ब्राह्मण; शासन, रक्षा आ प्रशासनक ले ल क्षलरय; आर्ििक
डवकासक ले ल वै श्य; आ सहायक से वामे सहायता आ श्रम ले ल शूद्र हमरा ददअ से हम प्रािाना करै त िी। हम प्रािाना
करै त िी र्े अन्हारमे घुमैत चोर, अरार्कता पर डिता खूनी, पाप पर डिता कायर, डवनाश पर डिता सशस्त्र आतं कवादी,
दै डहक सुख ले ल िाहर गे ल वे श्या, आ कलं कक शौकीन नार्ायर्केँ हटा ददयौ।
नोटः मं र 5-22 मे , र्इमे सं गदठत र्ीवनक डवलभन्न पक्ष सूचीिद्ध अछि, मं र 3 साँ 'आशुवा' आ 'परशुवा' क
पुनरावृलत्त होइत अछि, र्कर अिाः 'हमरा सभ केँ ददअ, हम प्रािाना करै त िी, र्े नीक अछि', आ, 'हटाउ, हम
प्रािाना करै त िी, र्े अधलाह अछि'। ई प्रािाना अछि। सङ्गडह, मं र 4 साँ 'हवामाहे ' क प्रछतध्वडन अछि, र्कर
अिाः 'हम आह्वान करै त िी आ आगू िढ़िै िी', आ, 'हम मााँ डट दइ िी आ लिै िी'। ई ददव्य दृछष्टक अन्तगात कार्
करिाक आह्वान अछि।
CHAPTER- XXX
22. (Rajeshvarau Devate, Narayana Rshi)
Athaitanastauau virupanalabhateitidirgham chatihrasvam chatisthulam
chatikrusham chatishuklam chatikrushnam chatikulvam chatilomasham
cha. Ashudra abrahmanaste prajapatyah. Magadhah punshchali kitavah
kliboshudra abrahmanaste prajapatyah.
The good human being accepts and works with these eight classes of people
of different forms and colours: too tall, too short, too fat, too thin, too white,
too dark, too hairless, too hairy. Also they are neither Brahmanas nor
Shudras (nor the others). They too, all of them, are children of God,
Prajapati. Even the bastard and the ‘despicable’, the wanton, the gambler,
and the coward and the eunuch, neither Shudras nor Brahmanas (nor the
others), they too are children of God, Prajapati, father of all.
नीक लोक डवलभन्न रूप आ रङ्गक ऐ आठ वगाक लोकक सं ग स्त्वीकार करै त अछि आ कार् करै त अछिः खूि
लम्िा, िड्ड िोट, िड्ड मोट, खूि पातर, िड्ड गोर, िड्ड कारी, िहुत कम केशिला, खूि केशिला। ओ सभ ने ब्राह्मण
िछि, नडहये शूद्र (आ नडहये आन डकयो)। ओ सभ से हो भगवान प्रर्ापछतक सन्तान िछि। एतऽ धरर र्े नार्ायर्
िा 'घृजणत', ऊधमी, र्ुआरी, आ कायर आ नपुंसक, ने शूद्र, नडहये ब्राह्मण (नडहये आन डकयो), ओ सभ से हो
भगवान प्रर्ापछतक सन्तान िछि, प्रर्ापछत- सभक डपता।
CHAPTER- XXXI
11. (Purusha Devata, Narayana Rshi)
Brahmanosya mukhamashid bahu rajanyah krutah. Uru tadasya
yadvaishyah padbhyam Shuudro ajayata.
The Brahmana, man of divine vision and Vedic Word, is the mouth of the
Samrat Purusha, the human community. The Kshatriya, man of justice and
polity, is created as the arms of defence. The Vaishya, who produces food
and wealth for the society, is the thighs. And the man of sustenance and
support with labour is the Shudra who bears the burden of the human
family.
ददव्य दृछष्ट आ वै ददक वचनक लोक ब्राह्मण, सम्राट पुरुष-मानव समुदाय-क मुख िछि। न्याय आ लशष्टताक लोक
क्षलरयकेँ रक्षाक हछियारक रूपमे िनाओल गे ल अछि। वै श्य, र्े समार्क ले ल भोर्न आ धन उत्पन्न करै त िछि,
र्ां घ िछि। आ श्रमक सङ्ग डनवााह आ सहारा दे िऽिला व्यक्क्त शूद्र िछि र्े मानव पररवार सभकक भार वहन
करै त िछि।
अप्नन -र्ीवनक यज्ञक प्रकाश- हमर सभक ऐ र्ीवन-यज्ञमे आउ, र्इमे पााँ च डवभाग िै , अिाात, ब्रह्म-यज्ञ, दे व-यज्ञ,
डपतृ-यज्ञ, अछतछि-यज्ञ, आ िललवै श्वदे व-यज्ञ; पााँ च लोक द्वारा सं चाललत, अिाात, ब्राह्मण, क्षलरय, वै श्य आ शूद्र क
चारर सामाजर्क-आर्ििक वगा आ पााँ चम आन समूह कखनो काल आयल आगं तुक। आ से तीनटा िै - अिाात, पाक
यज्ञ, हडवयाज्ञ आ सोमयज्ञ; आ र्कर सात डवस्त्तार िै , अिाात, अप्ननष्टोम, अत्यप्ननष्टोम, उक्त्या, षोिषी, वार्पे य,
अछतरार आ अप्तोयमी। अप्नन, अहााँ हमरा सभक ने ता आ अग्रगामी िी, आ अहााँ दे वत्व ले ल हमर यज्ञक वाहक
िी आ सङ्गडह हमरा सभक ले ल यज्ञक फलक अग्रदूत िी। प्रािाना अछि र्े आउ आ हमरा सभक र्ीवन तरहरर
सन अन्हार सदाक ले ल दूर करै िला िनू। (यज्ञ व्यक्क्तगतसाँ र्ीवनक सामाजर्क, राष्रीय, वै जश्वक आ पयाावरणीय
स्त्तर धरर र्ीवनक डवकासक एकटा रचनात्मक प्रडक्रया अछि। उपरोक्त व्याख्या सामाजर्क स्त्तरसाँ सम्िन्न्धत अछि।
स्त्वामी ब्रह्ममुनी व्यक्क्तगत स्त्तर पर यज्ञक व्याख्या करै त िछि, आ ई ऋनवे द 10,7,6 मे से हो सुझाओल गे ल अछिः
'स्त्वयं यज्ञ'; आ यर्ुवेद 4,13: 'इयम ते यज्ञीय तनू', र्कर अिा अछि- अपन डवकासक ऋतुक अनुसार यज्ञ द्वारा
अपना केँ डवकलसत करू, आ मोन राखू र्े शरीर, मन आ आत्मा युक्त अहााँ क र्ीवन यज्ञक से वाक ले ल अछि, आ
तइसाँ अहााँ क व्यक्क्तगत डवकास हएत; अहााँ क शरीर अहााँ क र्ीवनक व्यापक यज्ञक पडहल साधन अछि। ई
व्यक्क्तगत यज्ञ पााँ च प्रकारक अछि, पृथ्वी, र्ल, ऊष्मा, वायु आ आकाशक मौललक सं तुलनक ले ल; तीन प्रकारक-
वात, डपत्त आ कफक सं तुलनक ले ल; आ शरीर, मन आ आत्माक सं तुललत डवकासक ले ल से हो; सात प्रकारक
माने रस, रक्त, मानस, मे धा, अब्स्त्ि, मज्जर्ा आ डवयाक डवकासक ले ल। ऐ तरहेँ यज्ञ व्यक्क्तसाँ शुरू होइत डवकासक
प्रडक्रया अछि, र्े ब्रह्मां िीय स्त्तर पर सम्पन्न होइत अछि।)
आब आउ यूरोपक विद्वान लोकवन द्वारा िे दक गलत अनुिादक वकछु उदाहरण दे ख:ू -
EXAMPLES OF SOME MISTRANSLATIONS OF VEDAS BY WESTERN
SCHOLARS
W.D. Whitney’s translation of the Atharvaveda (7, 107, 1) edited and revised
by K.L. Joshi, published by Parimal Publications, Delhi, 2004:
“Having done homage to heaven and earth and to the middle regions and
Death (Yama), I stand high and watch (the world of life). Let not my masters
hurt me.”
“Having done homage to heaven and earth (i.e. father and mother) and to
the immanent God and Yama (all Dissolver), standing high and alert, I move
forward in life. These masters of mine, pray, may not hurt me.”
I would like to quote my own translation of the mantra now under print:
“Having done homage to heaven and earth, and to the middle regions, and
having acknowledged the fact of death as inevitable counterpart of life
under God’s dispensation, now standing high, I watch the world and go
forward with showers of the cloud. Let no powers of earthly nature hurt and
violate me.”
The problem here arises from the verb ‘mekshami’ from the root ‘mih’
which means ‘to shower’ (sechane). It depends on the translator’s sense and
attitude to sacred writing how the message is received and communicated
in an interfaith context with no strings attached (or unattached).
The idea that there was slavery in the Vedic Society originated with the
Western Indologists with their intentional or careless translation of a
Sanskrit word into “slave”. For example, in the Taittiriya Samhita (Krishna
Yajurveda), [7.5.10] [kanda 7,prapathaka 5, verse 10], a part of translation
by Keith reads “slave girls dance around the fire”. But in a footnote in the
same page [pg., 628, Vol. 2] the author Keith says that the verse describes the
dance of maidens. Suddenly the maidens have become “slave girls”. Both
Paranjape and Avinash Bose point to the mistranslation of the word ‘yosha’
as courtesan by the indologist Pischel [Bose, Hymns from the Veda, p. 36].
III
In 1795, H.T. Colebrooke, then a young scholar, wrote his maiden paper, “On
the Duties of a Faithful Hindu Widow,” for the Asiatic Society (Asiatic
Researches IV 1795: 205-15). He cited the hymn from the Rig Veda as
sanctioning widow burning, which William Jones immediately contested
(Canon 1993 I:lxx). Colebrooke translated the end of the hymn as “let them
pass into fire, whose original element is water.” A quarter of a century later,
the Orientalist, H.H. Wilson pointed out that the hymn had been distorted
(Wilson 1854: 201-14; Cassels 2010: 89). Wilson translated the verse as per
the reading corroborated by Sayana, the authoritative medieval
commentator on the Vedas, and demonstrated that it did not refer to widow
burning (Rocher and Rocher 2012: 24-25).
𑒀
Do not judge each day by the harvest you reap but by the seeds that you
plant. -Robert Louis Stevenson
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१
'विदे ह' ३१९ म अांक ०१ अप्रैल २०२१ (िषष १४ मास १६० अांक
३१९)
'विदे ह' ३२० म अांक १५ अप्रैल २०२१ (िषष १४ मास १६० अांक
३२०)
अनुक्रम
१
'विदे ह' ३१९ म अांक ०१ अप्रैल २०२१ (िषष १४ मास १६० अांक
३१९)
२.१८.दे छसि ियनवक ििन्ने रवमिोचन ठवकुर प्रसंग- भ्रमर (पृ. १५०-
१६०)
'विदे ह' ३२० म अांक १५ अप्रैल २०२१ (िषष १४ मास १६० अांक
३२०)
२.६.जगदीश चन्र ठवकुर ‘अतनि’- रवम िोचन ठवकुर प्रसंग (पृ. २८४-
२८५)
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 1
१
2 ||गजेन्द्र ठाकुर
'विदे ह' ३१९ म अांक ०१ अप्रैल २०२१ (िषष १४ मास १६० अांक
३१९)
एकर अछतररलत "दे िकोि" (1981) जकर िां पादकमे नाम िल विनोद
कुमार झाक मुदा िां पादन केर अछधकाां श काज रामलोचन ठकुरजी द्वारा
िां पाददत होइत िल। एहने एकटा आर पत्रिका िलै "दे त्रिल बयना" (Oct-
1981) जकर िां पादकमे नाम िलखन्द्ह जनादवन झाक मुदा काज रामलोचने
जी करै त िलखिन।
सम्मान-
1) CIIL द्वारा अनुिाद ले ल “भाषा-भारती िम्मान” (2003-4)
2) विदे ह पत्रिका द्वारा िां चात्रलत 2011-2012 केर “विदे ह िम्मान
(िमानान्द्तर िावहयय अकादे मी पुरस्कार)”क अनुिाद पुरस्कार
3) प्रबोध िावहयय िम्मान (2012,चां रभानु लििंहजीक युग्म रूपे ),
4) वकरण मै छिली िावहयय शोध िां स्िान, उजान द्वारा “वकरण िावहयय
िम्मान” 2015
5) चे तना िछमछत, पटना द्वारा “यािी-चे तना पुरस्कार”-2017 आददिँ
िम्मावनत।
6) विशे ष िम्मान- त्रितम्बर 2020मे वहनक नामक उपर मै छिली गजलमे
आएल एकटा नि बहरक नाम "बहरे लोचन" रिबाक घोषणा भे ल। ई
घोषणा दे िबाक ले ल क्ललक करू 'बहरे लोचन' ई बहरे लोचन की िै एकर
पूरा जानकारी ले ल क्ललक करू "बहरे लोचन"
एकर अछतररलत कलकत्ताक वकिु िां स्िा द्वारा अत्रभनां दन िे हो भे ल िवन जे ना
छमछिला िाां स्कृछतक पररषद् ओ अन्द्य।
लगभग 2019 िँ रामलोचन ठाकुर अल्जाइमर वबमारीक चपे टमे िछि,
एवहमे लोक वबिरए लागै त िै आ िे िभ चीज जे ना अपन पररचय, पता-
ठे काना िभ। 12 फरिरी 2021, शुक्र ददन त्रभनिर 9.30 बजे रामलोचन
ठाकुरजी अपन घरिँ कतहुँ वनकत्रल गे लाह आ तकर बाद एहन धरर हुनकर
कोनो पता नै चत्रल रहल अछि। ठीक एहने दुर्दिंनमे हमरा लोकवन ई विशे षाां क
प्रकात्रशत कऽ रहल िी। बहुत आले ि एवह घटनािँ पवहने आवब गे ल िल तँ
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 7
पुनःश्च- ई अां क अपन िमय 1 अप्रैल 2021 केँ प्रकात्रशत भे ल मुदा 6 अप्रैल
2021 केँ कलकत्ता पुत्रलि द्वारा रामलोचनजीक पररिारकेँ िूचना दे ल गे लै
जे नीलरतन िरकार अस्पतालमे एकटा शि िै । पररिारक लोक ओवहठाम
पहुँ चलाह आ ओवह शिकेँ रामलोचन ठाकुरजीक रूपमे चीन्द्हल गे ल।
अस्पतालक रे कािव मोतावबक वहनक मृययु 25 माचव, 2021 केँ भे लवन आ
मृययु प्रमाणपिमे इएह 25 माचव त्रलिल िवन। 6 अप्रैल 2021 केर राछतमे
वहनक िां स्कार कलकत्ताक वनमतल्ला घाट (भूतनाि मां ददर)मे भे लवन।
उपरोलत िूचना विदे ह द्वारा 14 अप्रैल 2021केँ जोड़ल गे ल अछि।
8 ||गजेन्द्र ठाकुर
केर हकछु रचन रिै त छहन आ च ररम भ गमे हकछु नि स मग्री रिै त छहन।
मुद िमर लोकहन नि स मग्रीपर बे सी जोर दै त थछयै । एकर मतलब ई नहि
जे िततनीमे गलती िोइत रिै । िमर किब क मतलब ई जे सां प दक-सां योजककेँ
कोनो ने कोनो स्तरपर समझौत करिे पडै त छै से च िे िततनीक िो हक, मुर क
िो हक हिच रध रक िो हक स मग्रीक िो। िमर लोकहन िततनीक स्तरपर
समझौत कऽ रिल छी मुद क रण सहित। प्प्रिि पशत्रक एक बे र प्रक शशत
भऽ गे ल क ब द दोब र नै भऽ सकैए (भऽ तँ सकैए मुद फेर प इ ल हग जे तै)
तँ इ ओकर िततनी यि शक्तत सिी रिै त छै । इां िरने िपर सुहिध छै जे बीचमे
(इां िरने िसँ प्प्रिि िे ब क अिथध) ओकर सिी कऽ सकैत छी मुद सम थग्रए
नीक नै रित ि बशसय रित तँ सिी िततनी रहितो नि अध्य य नै खुजज सकत
तँ इ िमर लोकहन िततनी बल मुद्द पर समझौत केलहुँ । िमर लोकहन
कएलहन, कयलहन ओ केलहन तीनू शुद्ध म नै त छी, एते क शुद्ध म नै त छी एकै
रचन मे तीनू रूप भे हि ज एत। आन शब्दक ले ल एिने बूझू।
ऐ रचनापर अपन
मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।
16 ||गजेन्द्र ठाकुर
िं दना वकशोर
अपने कलकत्त क मै थिली रां गमां चमे खूब सहिय रिलहुँ अथछ। लगसँ एकर
गथतहिथध दे खैत रिलहुँ अथछ। कहू जे कलकत्त क मै थिली रां गमां च मे महिल
कल क रक केिन भूथमक रिल अथछ? सुनल अथछ जे बां गल भ षी स्त्रीगण
लोकहन मै थिली न िकमे अशभनय करै त रिल छथि ?
कलकत्त क मै थिली रां गमां चकेँ दू भ गमे ब ां िू-1953सँ 1976 धरर आ फेर
18 ||गजेन्द्र ठाकुर
बां गल भ षी अशभने त्री रिल सँ मां चनमे ददतकत नै िोइत रिए ?, प्रस्तुथतक
गुणित्त नै प्रभ हित िोइ ?
िम एहि प्रश्नक अपे क्ष करै त रिी अि ँ सँ। दे खखयौ, िमर पत्नी के पढ़िो नै
अबै त रिहन। ब जिो-भुकिो नै अबै त रिहन। हकए तँ पढ़ल-शलखन नै रिथि।
हबय ि भे ल तँ किशलयहन-थचट्ठी-पुजी लीखू। तँ म त्र छोहड अक्षर लीखब
सीखख ले लहन। ओ जे एकि किबी छ जे एकि पत्नी अपन स्ि मी के थचट्ठी
शलखलथिन-ि क प ठ ब त प ठ ब न त स ब म र ब (ि क पठ यब तँ पठ उ
नै तँ सब मरब)। ते िने शलखब शसखलहन िमर पत्नी-म त्र ज्ञ न नै भे लहन,
हुनकर स्स्िथत आ स्तरक अनुम न कऽ शलयौ। दोसर अपने कमजोरी हकए ने
कहि दी। अपने िम मै हरक प स कऽ कऽ ग मसँ कलकत्त गे ल रिी। नोकरी
ल गल। मुद कॉले जोमे न म शलखौलौ। िमर म य के बड इच्छ पढ़ऽ-शलखऽ
के। पत्नी जे सुनलहन कॉले ज ज य िल ब त तँ किलहन-'एि आब थधय पुत
पढ़तै , तँ अपने कॉले जमे न म शलखौत ि।' तँ ओहि पत्नी के िम कते क दूर
धरर आहन सकैत छलहुँ ? नै आहन सकलहुँ , िमरो कमजोरी अथछ। एकि
ब त आर किब। कोनो प्रोग्र म िोइ छै , न िक िोइ छै तँ ओहिमे कैक ि दशतक
स्त्रीगण रिै त छै क ? िम सब,सब, गोिे पररि रक सां गे रिै छी, मुद पररि र
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 21
आब गोिपगरे सिी, मै थिल हनयो घरसँ बिर रिल छथि। नोकरी, व्य प र,
फैशन, खे ल-पुशलस सब क्षे त्रमे । गबै छथि-नृत्य करै त छथि। तखन न िक नहि
करब क प छू की क रण लगै ए रां गमां चक स्ियां केर स्स्िथत एहि ले ल कते क
दोषी लगै ए?
िम फेर किब स म जजक अिस्ि दोषी अथछ। त हूमे पुरूष िगत दोषी अथछ।
स्त्रीक इच्छ रहितो छै क तँ पुरूष ओकर Allow नै करै छ। तँ ओ नै अगुआइ
छथि। ओहुन बां ग लमे हक दजक्षण भ रतीय भ ष सबमे कल क प्रथत जते क
आकषतण छै तते क िमर सबमे नै अथछ। एकदम्मे नै अथछ। थमथिल पें टििग
बां ग ली सब बन -बन बे थच रिल अथछ िम सब नै । मै थिल नी घर-घरमे पें टििग
बनौतीि-मुद प्रदशतनीमे नै जे तीि, हकए तँ पररि र Allow नै करै छहन।
न िको ले ल सै ि ब त अथछ। एखनो िमर सबिक म नशसकत मे कि ँ
पररिततन भे लए जे न िक एकि कल थछयै । स हित्यक सबसँ सशतत हिध
छै न िक, न िक म त्र पोिी नै । एकि समन्न्द्ित कल छै । एकर जे प्रभ ि
दशतक-श्रोत पर पडै छै - से कि -कहित क कहियो भइये नै सकै छै । मुद िमर
सबमे तकर इम नद री आ हिच रक अभ ि अथछ। आब मल्ल क लक स्स्िथत
तँ िम नै किब। मुद ओहू क लक न िक सबमे निी-सूत्रध रक पररकल्पन
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 23
पुरुष आशश्रत न रीक छहि। हनयमसँ ब िल, भनस घरमे घ ें शसय यल, घरक
क ज करै त, पुरुषक से ि करै त न रीक छहि। बहुत-बहुत पछु आयल न रीक
छहि। पुरुषक समकक्षोक छहि नै बनल अथछ। स्त्रीक स्ितां त्र अस्स्तत्ि कि ँ
कोनो न िकमे आयलए ? अगुआयल चररत्र कि ँ आयलए? स्ि िलां बनक
भ िन िल न री कि ँ अनलहनिें न िकक र लोकहन न िकमे ? िँ , गुणन ि
जी 'प िे य' न िकमे न रीक कने क नीक छहि दे खौलथिन।
सम्पूणत छहि म ने की ? थमथिल क न रीक दू िगत अथछ ग्र मीण स्त्री आ शिरी
स्त्री। हिडम्बन अथछ जे थमथिल मे कलकत्त हक पिन सन शिर नै छै ।
शशजक्षत-बुशद्धजीिी ग म छोहड शिर आहब गे ल। मुद ग मक स्त्री एखनो गोबर
पिै ए। शिरमे से तँ नै करै ए, मुद ग्र मीण सां स्क रसँ एखनो मुतत नै भे लैए।
आब दे खू, िमर लोकहनक अथधक ां श न िकक र शिरी छथि। ग्र मीण
पृष्ठभूथमपर मलां हगय जी ि न िक शलखै छथि। आब शिरमे रहि कऽ ग मक
न िक शलखबै तँ से केिन िे तै ? शिररय क म त्र स्मृथतमे ग म छै क। कैक ददन
ग म ज इ छी िमर लोकहन ? तें ग मक ब रे मे प्चितन सतिी िोयत-तँ से
स्ि भ हिके। तें न रीक जे यि ित छहि अयब क च िी न िकमे - से नै अबै ए।
24 ||गजेन्द्र ठाकुर
ऐ रचनापर अपन
मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।
26 ||गजेन्द्र ठाकुर
दै त जागृत अछि।
क' जन- िमुदायक शोषण पर बे ि धरगर प्रहार अछि। िां गवह, गीतकार अइ
गीतमे मतदान करय बला िमुदायकेँ चे तौनी द' रहल िछि।
त्रशल्पक दृछििँ गीत ले ल आिश्यक िै क ओकर गे यता।तावह ले ल आिश्यक
िै क जे ओकर अां तराक मीटरमे तारतम्य होइ जावहिँ ओ प्रभािी रूपे गाओल
जा िकय।मुदा तावह दृछिकोणिँ वहनक गीत बे िी ठाम उपयुलत नै
लगै ए।उदाहरण ले ल-
"िखि हे हम की गायब गीत" शीषवक मे कोनो अां तरा तीन पाँ तीक अछि त'
कोनोमे चारर -पाँ च पाँ तीक। तवहना -" इछतहाि युग निीन के" आ "
क्राां छतक आह्वान " मे िे हो िाम्यताक अभाि। वहनक बे िी गीतक त्रशल्प
नजररए ओते क प्रभािी नै । पोिी 'अपूिाव'क प्रारां भमे आदरणीय िुनील
चौधरी ललन जीक ई किन -" रामलोचन ठाकुर लग कतोक िस्तुक अभाि
िवन। आलोचनाक वनष्ट्पि किौटी पर राखि क' दे िल जाए त' वकिु दोष
अिश्य भे टत। ठाम - ठाम हुनकर मान्द्यतािँ िहमछत होएब कदठनाह बुक्षझ
पड़त......। "िँ हमहुँ िहमछत रिै त िी। प्रगछतशीलता आ यिािविाद केँ
िमे टैत,परम्परागत गीत-शै ली केँ अनठबै त जँ अहाँ वहनक गीतक उद्देश्य आ
विषय-िस्तुक प्रािां वगकता माि धरर ध्यान रािी त' वहनक गीतकारी नीक
िवन आ छमछिला- मै छिल ले ल प्रभािोयपादक िवन। मुदा, ओइमे आन
आिश्यक गुणक अभाि। रामलोचन जी बहुतो विधा पर अपन कलम
चलौलवन।एकटा गीतकारक िां भािनाक रूपमे जँ विचार करी त' ओ विषय
- चयन आ तयकालीन पररिे श ( अिनहुँ प्राय: ओवहना) केँ छचि उपस्स्ित
करबामे िफल िछि मुदा गीतक आन तयिक अभाि कारणे ओ बे िी काल
धरर गीतकारक रूपमे आकषवक नै लगै िछि।
ऐ रचनापर अपन
मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।
32 ||गजेन्द्र ठाकुर
आदरणीय रामलोचन ठाकुर छमछिला मै छिली मध्य एकटा ध्रु ितारा बवन
चमवक रहल िछि ई कहबामे हमरा अिोकजव नै भऽ रहल अछि वकएक तँ
भाषाक प्रछत िमपवणता ओ ययाग वबरले व्यक्लतमे भे टत। ई कलकत्तामे
छमछिला-मै छिलीक पयावय बवन एकटा िाम्हक रूपमे विद्यमान िछि आ
अपनािँ कवनष्ठ पीढ़ीक कते को िावहययकारकेँ िावहयय-िाँ चामे गढ़लछि।
अपन बात–विचार स्पि रूपिँ रिै त रहलाह अछि। एकटा विरल मै छिली
आां दोलनकताव, कवि, गद्य ले िक, िमालोचक, कुशल िां पादक, नाटककार,
वनदे शक ,रां गकमी ओ िफल अनुिादकक रूपमे प्रख्यात िछि। हुनकर रचना
िां िार तते क विशाल िवन जे िम्पूणव कृछतयिकेँ एकटा ले िमे िमे टनाइ कदठन
अछि। अइ ले िमे हम हुनकर माि काव्य यािापर केंवरत करब। वहनकर
राजनीछतक विचार मालिविादी –बामपां िी रहलवन आ वहनकर कविता िभमे
िे हो मालिविादक िौन्द्दयव-शास्िक उदाहरण भे टैत अछि। ले वकन त्रिफव
ककरो राजनीछतक विचारधाराकेँ केंरभूछममे राखि कऽ मूयाां कन केनाइ
वनखश्चत रूपिँ िुवटपूणव िावबत हएत वकएक तँ अइ बातपर िबमे िहमछत िै
जे कोनो रचनाकार तिने पै घ बनै त िछि जिन ओ अपन विचारधाराकेँ
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 33