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156 ||गजेन्द्र ठाकुर

आन्द्दोलनक ओ पृिभूथम जक ँ लगै त अथछ । भ ष आन्द्दोलनक चचत जखन


दे शसल ियन क पृि पर दे खैत छी त एखनो ओकर औथचत्य बूजझ पडै त
अथछ – आि ई स्पि भऽ गे ल अथछ जे मै थिलक दूि िगत अथछ–समर्पित
से िीक आ सौद गरक । दुनूक अलग अलग उदे श्य छै क । मै थिलीके अपने
बपौती बुझबल सौद गर िगत सददखन मधुर झडब क त कमे बकध्य न लगौने
रिै त अथछ त दोसर ददस समर्पित लोक ददन र थत रचन त्मक क जमे व्यस्त ।
... सौद गर िगत समस्त सुख–सुहिध िथिय अपन स्ि ित शसद्ध कऽ रिल
अथछ ।”

(बै द्यन ि हिमल, दै खखल ियन , िषत १, अां क ३, ददसम्िर १९८१)

‘दे शसल बयन ’क पृिपर अपन ि स्तहिक न मसँ उभरै त र मलोचन ठ कुर
कखनो क ल अत्यन्द्त कठोर भऽ उठै त छथि । अपन ग मसँ , अपन सपन क
िृन्द्द बनसँ जखन अित आजतन व्यिे शिर पकडब पर ब ध्य िोइत छथि त
स म चकेि खे ल इत बहिनक भ इक अनुपस्स्िथत बोधसँ िोइत पीड क
अनुभूथतके मिशूस कररतो ग्र म्य र जनीथत प्रथत अपन मोनमे बै सल
अिस दके एन कऽ व्यतत करै त छथि–

“बहिन द ई !

िम ज नै त छी जे अि ँ एहु बे र

बनओने िएब श म –चकेि

तकने िएब िमर ब ि

लगल पर आहग हिरद बनमे

आ नहि प हब िमर
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 157

भे ल िएब उद स

बिल िएत आँ खखसँ दिो–बिो नोर ।

हकन्द्तु बहिन द ई !

अि ँ म नी हक नहि म नी

थिक धरर ई सत्य

जे कुनो द ि नलके नहि थमझ ओल ज सकैछ

सोबन त लोि सँ

आ, जे न अि ँ शलखने छी–

ठीके िम बड बदशल गे लौिें

िम बुझैछी÷जे हिरद बन÷ओ हबरद िन नहि रहि गे ल–ए

आइ, एकि नहि

िज रक िज र चुहगल जनथम गे लए । आ

इएि हबरद बन थिक ओकर सभक आि स... ।”

एकर पुर न ग छ सभक धोधररमे एकसँ एक अबोध हिषधर करै ए हनि स

आइ

अइठ मक बस तो अइ हिषयुतत
158 ||गजेन्द्र ठाकुर

स ां सो ले ब क अनुपयुतत

तै

िमर हिच रे । एकर जररए गे न इ थिक नीक

थमझे ब क प्रय स सिति अनुथचत...।”

(दे शसलियन िषत १ अकां २, निम्िर १९८१)

‘दे शसल ियन ’सँ दे सकोस धररक य त्र पर फूिसँ कहियो शलखब । एखन एहि
पशत्रक मे र मलोचन ठ कुरक व्यक्ततत्िके खोजब क प्रय स कएल अथछ ।
एहिमे स िध नी इएि जे अने को कठोर आ प्रथतरोधी हिच रक प्रस्तुथत सभ
आएल अथछ, ज हिमे हिनक न म नहि छखन्द्ि, तएँ िम उल्ले ख नहि कएल
अथछ । ओहुन ओ व्यिस्ि प्रथत कठोर, अां ि छनीय गथतहिथध प्रथत अनुद र
रि बल लोक छथि, आ ई कोनो दुगुतण नहि, हिरले भे िबल गुण िोइछ । जे
हिनक मे छखन्द्ि ।

से एहि तरिे अपन सत्य तथ्यसँ लोकके तरां हगत कैहनि र कहि व्यक्ततत्ि
कखन सरस बहन प्रकृथतके सौन्द्दयतमे अपन के समर्पित कऽ दै त छथि दे खी
एकि ब नगी, हिनक च ररगोि थमनी कहित मे –

१. सूय े दय

– म इक आां चर तरसां

बि र क क मुि अपन
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 159

हबहुशस दे लक

शशशु अबोध !

२ र थत

–दुरगमहनय कहनय ां बहन

बन्द्न स ँ झ मिफ मे

बे िी प्रत्ये क ददन

चशल ज इछ

दे ने हिछोि, व्यि

पस रर मन हपरिी पर

क री धन अन्द्धक र !

३ चन्द्रम

–परदे शी प हुन केर

जोिै त िोथि ब ि जे न

खखडकी लग ठ हि

कुनू र थधक !

४ बख न्द्त
160 ||गजेन्द्र ठाकुर

इिो िषत

ओहिन बीथत गे ल

बुि अिबल सूयत

बस गै रेजक

पछु आरमे डु हब गे ल !

(दे शसल ियन , िषत २, अकां ४ जनिरी १९८२)

एहि तरिे दे शसल ियन आ दे सकोस पशत्रक क म ध्यमसँ अपन युि आ


उज ति न व्यक्ततत्िक छ प हिशभन्द्न रचन मे छोडने छथि–र मलोचन ठ कुर ।
दोसर तरिें किी त एहि दुनू पशत्रक क पृिपर र म लोचन ठ कुरक प्रथतहबम्ब
झलकैत अथछ ।

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 161

जगदीश चन्द्र ठाकु र ‘अवनल’-सां पकत-8789616115

अपूिाभ

मै थिलीक पद्य स हित्यमे प्रक शशत पोिी सबिक सूचीमे एकि पहित्र न म
अथछ ‘अपूि त’ जे चर्चित स हित्यक र-सम्प दक श्री र म लोचन ठ कुर जीक
1970सँ 1995 धररक रचन क एक सां कलन अथछ | ‘अपूि त’क प्रक शन
‘थमथिल सम द’,कलकत्त द्व र 23 निम्बर 1996 क’ भे ल अथछ |
‘अपूि त’ एकि िहुमुखी प्रथतभ क कहि-गीतक र-थचन्द्तककेँ पुनः लोकक
सोझ ां अनलक | अइसँ पहिने हिनक स त ि पोिी आहब चुकल छलहन |
उन सी पृष्ठक एहि पोिीमे उन्द्ित्तरर पृष्ठमे पद्य-रचन अथछ जकर हनम्नशलखखत
भ गमे ब ँ िल ज सकैत अथछ :

(1)दोि

(2)छओ प ँ थतक छन्द्दमय कहित

(3)आठ प ँ थतक छन्द्दमय कहित

(4)गीत

रचन क हिषयकें हनन्म्नखखत िगतमे र खल ज सकैत अथछ :


162 ||गजेन्द्र ठाकुर

(1) थमथिल ,मै थिली,मै थिल, मै थिलीक स हित्यक र, मै थिलीक समस्य |

(2) दे श, दे शक समस्य ,दे शक व्यिस्ि ,दे शक जनप्रथतहनथध |

दोि कसँ ख्य 110 अथछ | 25 ि दोि मे ग मसँ ददल्ली धररक ब त,


र जनीथत आ स म जजक सरोक रक ब त अथछ | हकछु दोि / हकछु प ँ थत
दे खल ज ए :

‘च लहन दूसय सूपके जकर भूर िज र

पोिी के नहि म न अथछ िोिी चलय बज र’

‘क न छै क पर सोन नहि सोन छै क नहि क न

ि जणक पूत झखै त छथि उल्लू लक्ष्मीि न’

‘भ इ-भ इमे शत्रुत पुज रिल आइ स र’

‘हिद्य पथत केर पितमे हिद्य पथत ि ब द

सभ अपै त पथत मां चपर व्यितक ि द हिि द’

‘र जनीथतसँ नीथतकें कहियो भे ल न मे ल

हिजयश्री तें प ित लए कणत पर जजत भे ल’

कोनो स हित्यक रकें एकि दोि मे व्यतत करब कदठन क ज अथछ, ति हप


ओहि समय तक चर्चित 85 ि स हित्यक रकें एक-एक दोि मे व्यतत
करब क प्रय स कएल गे ल अथछ ज हिमे कतहु-कतहु ि स्य-हिनोद आ कतहु
व्यां ग्य से िो अथछ | स हित्यक र लोकहनक एहि सूचीमे मि मिोप ध्य य
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 163

मुरलीधर थमश्र,भ ष हिद थग्रयसतन, नगे न्द्रन ि गुप्त, जीिन झ सँ ल’ क’


प्रदीप, हियोगी, रमे श, चन्द्रेश, हिभूथत आनां द,अरहिन्द्द ठ कुर,न र यणजी,
केद र क नन, सुस्स्मत प ठक धरर छथि | दोि मे स हित्यक रक कोनो पोिी
अिि हुनक सम्बन्द्धमे कोनो घिन क सां केत म त्र अथछ | ब नगीक रूपमे
हकछु दोि प्रस्तुत अथछ :

‘न चू िे पृथ्िी अि ँ जीिक न्द्त केर िस्तु

ध र मुतत नहि िोइत अथछ नहि कतहु नहि अस्तु |’

एहि दोि मे ‘न चू िे पृथ्िी’ आ ‘ध र नहि िोइछ मुतत’ जीिक न्द्तजीक कहित


सां ग्रि, ‘िस्तु’ कि सां ग्रि आ ‘नहि कतहु नहि’ उपन्द्य सक न म अथछ |

‘िमर लग रिबै अि ँ पुछने हफरथि प्रभ स

कि प्रभ सक की किी भे ल ितो-प्रत्य श |’

प्रभ स कुम र चौधरी पर एहि दोि मे हुनक चर्चित उपन्द्य स ‘िमर लग


रिब’क चचत अथछ |

‘र जमोिनक मोिमे आरां भक अथछ अन्द्त

गलतीन म जपै छथि कि जगत के सन्द्त |’

एहि दोि मे ‘आरम्भ’ र जमोिनजी द्व र सँ प ददत पशत्रक क न म अथछ आ


हुनक आलोचन त्मक हनबन्द्धक एक पोिीक न म अथछ ‘गल्तीन म ’ |

‘छोडल जे आनन्द्दकेँ जोडल भ रद्व ज

तोड-जोडमे अनिरत मोिन भ रद्व ज |’


164 ||गजेन्द्र ठाकुर

मोिन भ रद्व जक मूल न म छहन आनन्द्द मोिन झ , यै ि एहि दोि मे किल


गे ल अथछ |

‘बुशद्धन ि थमश्रक सकल रचन अित प्रध न

हिन्द्दीमे तें गबै छथि सोिर आ समद उन |’

सभकें बुझल अथछ जे थमश्रजी हिन्द्दी आ मै थिली दुनू भ ष मे गीत रचन करै त
छथि |

स हित्यक र रमे श आ मिे न्द्र मलां हगय क ले ल शलखल दोि दे खू :

‘सँ च मां च भ’ मां च तजज ले खन करथि रमे श

गीत-गजल-कहित -कि हनत नूतन सन्द्देश’

‘नसबन्द्दी के डरसँ ते जज मलां हगय ग म

ब रिम स गबै छथि बै सल धनुष ध म’

‘ओकर आां गनक ब रिम स ’ न िकक र मिे न्द्र मलां हगय जीक चर्चित कृथत
अथछ |

कतहु-कतहु बहुत कांजूसी कएल गे ल अथछ, एकर उद िरण अथछ ई दोि :

‘शलली रे उष हकरण श न्न्द्त सुमन नहि िोड

नीत पुहन शे फ शलक पसरल निल इजोर |’

एतय च ररि स हित्यक रकें एक दोि मे व्यतत कएल गे ल अथछ |


हनम्नशलखखत स हित्यक रकें छओ-छओ प ँ थतक छन्द्दमे व्यतत कएल गे ल
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 165

अथछ :जयोथतरीश्वर, मि कहि ड क,हिद्य पथत,चन्द्द झ , ल ल द स, कहि


शे खर, सीत र म झ ,भोल ल ल द स,सुमन जी,मधुप जी, हकरण जी, य त्री
जी,मजणपद्म जी, िरर मोिन ब बू, आरसी प्रस द
ससिि,र घि च यत,लशलत,हकसुन आ र जकमल |

दोि क तुलन मे छओ प ँ थतक कहित सभ द्व र सम्बन्न्द्धत स हित्यक रकें


बे शी नीक जक ँ प्रस्तुत कएल ज सकल अथछ | ब नगीक रूपमे प्रस्तुत अथछ
िररमोिन ब बू पर ई कहित :

‘िररमोिन िरर ले ल मन ि स्य-व्यां ग केसँ ग

कन्द्य द न दद्वर गमन खट्टर कक तरां ग

खट्टर कक तरां ग रां गश ल क रां ग मे

पिु आ अपढ़ जुआन बूढ़ सभ सम दपतण मे

कि लोचन कहिर य युग पुरुष युग मनमोिन

ि स्य-व्यां ग्य सम्र ि अमर स्रि िररमोिन’

हिशशि छन्द्दमे लीखल एहि तरिक रचन सबिक प ां चम प ँ थतमे ‘कि लोचन
कहिर य’ नीक लगै त अथछ | कहि थमथिल कसँ स्कृथतक अनमोल धनक
स्मरण करै त िततम न स्स्िथतपर दुख प्रकि करै त किै त छथि :

‘जइसँ छल हिख्य त हकछु नै थमथिल मे

िसुध एि कुिु म्ब घोषण भे ल जतय

भ इ-भ इ ददन-र थत लडै ए थमथिल मे


166 ||गजेन्द्र ठाकुर

सुग्गो श स्त्रक गप्प करै छल के म नत

ल ठी-बम-बन्द्दूक चलै ए थमथिल मे

कुल दे िी बहन पुज रिल अथछ सुपने ख

मै थिलीक कौचयत िोइत अथछ थमथिल मे ’

थमथिल क महिम क िणतन करै त एकठ म कहि किै त छथि :

‘एकर शसय थधय के बल पर

र म क ल भगि न |’

दोसर ठ म दे श-दश मे थमथिल क िततम न स्स्िथत पर दुखी िोइत किै त छथि:

‘नहढ़य –कुकुर तीन कोहि छइ

ससििक न म हबल गे लै

ठोहि प रर कै कनइ मै थिली

की छलै आ की भे लै’

थमथिल -मै थिलीक ले ल कततव्यक बोध करबै त किै त छथि :

‘िम नि थमथिल हनम तण करब’

एहि ले ल िै च ररक ि न्न्द्तक ब त करै त किै त छथि :

‘ि न्न्द्तक आह्व न थिक


विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 167

श न्न्द्तक सम्म न िे तु’

ई सां कलन ओहि समयक थिक जखन मै थिलीकें सां हिध नमे स्ि न नहि भे िल
छलै आ थमथिल -क्षे त्रमे एहि ब त ले ल अपन ने त -स्ि नीय ने त सभपर
आां गुर उठ ओल ज इत छल | लोकक खीझकें स्िर दे ल गे ल अथछ ‘हकछु
लोक’ शीषतक रचन मे :

‘हकछु लोक मै थिलीकें धन्द्ध बन ले ने अथछ

चन्द्द उग हि प शल रिल पे ि हकछु लोक

बज रमे हनल म करै म इक जे ल ज

तकरे हिभूथत म हन रिल पूजज रिल लोक

िख े सँ ठहक रिल जे स ां सद, िमर हिध यक

तकरे पर फूल म ल बररस रिल-ए लोक’

कहिकें ओिे न पढ़ल-शलखल मै थिल लोक सबसँ दुःख िोइत छहन जे


मै थिलीक शब्द सभकें हबसरल ज रिल छथि | दे खल ज रिल अथछ जे
‘जलखै ’ शब्दक स्ि नपर लोक ‘न श्त ’ शब्दक उपयोग क’ रिल छथि |
अहिन और शब्द सभ अथछ जकर उपयोग कम भ’ रिल अथछ | एहिपर
‘छु बुध लगै ए’ रचन मे किल गे ल अथछ :

‘पिु आ शलखुआक एिे न अिस्ि की पुछै छी

सोथच भहिष्य मै थिलक सररपहुां छु बुध लगै ए’

ई क व्य-सां कलन दे शमे ओहि समयक जे स म जजक, आर्ििक,र जनीथतक


168 ||गजेन्द्र ठाकुर

स्स्िथत रिै , तकर गि ि अथछ | दे शमे गरीबी, मिगी,बे रोजग री छल,मां डल


आयोगक हिय न्द्ियनसँ सम जमे उिल -पुिल छल |‘थचत्र-
हिथचत्र’ शीषतकसँ एहि सभ हिषयपर छओ-छओ प ँ थतक चौदिि रचन
अथछ|

मिगीपर एहि छन्द्दमे शलखल एकि रचन दे खू :

‘जनत ले ’ ई दे ल अथछ नि बखतक उपि र

कोयल च उर गहूमके द म बढ़ सरक र

द म बढ़ सरक र बन्द्द केलक कत ग डी

हिद नीथत के तित बन्द्द उद्यम सरक री

कि लोचन कहिर य दे श के भ ग्य हिध त

की की खे ल दे खौत जीत ज ौं दे खत जनत ’

अिी छन्द्दमे दे शमे लोकतन्द्त्रक स्स्िथतपर किल गे ल एक कहित क दू प ां ती


दे खू :

‘कि लोचन कहिर य र ज ई ल ठी तन्द्त्रक

लल्लू पप्पू चल रिल ग डी गणतां त्रक’

स्ितां त्रत प्र त्प्तक ब द जते क प्रगथतकेर आश लोक करै त छल,से नहि भ’
सकल छल|

‘चरै िे थत’ शीषतक रचन किै त अथछ :


विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 169

‘फूशस सभ प्रगथत कि , फुशसय िी ई हिक स

अन्द्न-िस्त्र जुि प एब, एखनो त ब ां की अथछ’

स म न्द्य जनक किक ले ल दे शक ने त सभकें दोखी म नै त ‘ने त आ जनत ’


शीषतकसँ किल गे ल अथछ :

‘ने त लोकहनक नजरर हिदे शी नोिपर

जनत क आँ खख नचै ए रोिी-भ त लए’

हिक सक स्स्िथतपर ‘के हिस ब दे त’ शीषतक रचन मे किल गे ल अथछ :

‘दसमिल -हबसमिल बनय रोज सत्य ब त

खोपहड कते क रोज खसय के हिस ब दे त’

‘ने त किै छ दे श उन्द्नथत के शशखर चढ़ल

अिनथत ककर कते क भे ल के हिस ब दे त’

लोक ने त चुनैए, आश करै ए जे िमर आि जसँ सदमे उठौत ि,मुद


ज ौं ने त सँ सदमे लोकक व्यि कें व्यतत नहि करत ि, तां कहिक शब्द
ब जत,से किल गे ल अथछ :

‘न ां गरर दब रिै छथि दुबकल जे सँसदमे

सएि चुन िक बे र ग ममे गरजज रिल अथछ’

‘उद र नीथत’ शीषतकसँ व्यिस्ि पर जे किल गे ल अथछ, से दे खू :


170 ||गजेन्द्र ठाकुर

‘अरिी अितक आज दीकेर क न्द्ि उठौने

कीततहनय ां दल र म न मक’ सत्य चलल अथछ

िपरी झशलबजज िोलबजज पोन हपिै ए

थचकहड गबै ए भ ां ि सूयत ददस दे श बढ़ल अथछ’

ज हि समयक गि ि अथछ ई सां कलन ओहि समयमे दे शमे र जनीथतमे जे दू


ि ध र जोर पकडने छल, तकर एन व्यतत कएल गे ल अथछ :

‘मण्डल आर कमण्डल केर एहि र जनीथतमे

जनत भे ल तब ि आ ने त मौज करै ए

भ इ-भ इ केर ज नी दुश्मन घ त लगौने

घृण द्वेष जि ल मे ग मक ग म जरै ए’

हबि रक जे स्स्िथत ओहि समय छल तकर स क्ष्य अथछ रचन ‘फेर


प िशलपुत्र’|

कहित किै त अथछ :

‘िसुध एि कुिु म्ब सगित जतए घोहषत छल

िगति द के अगर िीमे आइ जरै त’थछ

अत्य च री श सकसँ मुक्ततक हनथमत्त तें

फेर प िशलपुत्र कोनो च णतय तकैत’थछ’


विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 171

ज हि समयक ई सां कलन अथछ ,ओहिमे एिनो एकि क ल-खण्ड आएल


छल, जे लोककें बौक बन दे ने छल आ तकर अभ्य स बहुत ददन ल गल रह्लै|
’अद्भत
ु दे श’ शीषतकक अन्द्तगतत ई प ँ थत दे खू :

‘शब्द ब्रह्म थिक हकन्द्तु अितपर अिहक ज इत अथछ

आइ सत्यके सत्य किब अपर ध भे ल अथछ’

पोिीमे व्यिस्ि पर आां गुर उठबै त पीहडत िगतक िीसकें ‘धनकिनीक गीत’
शीषतक रचन मे व्यतत कएल गे ल अथछ:

‘िम सभ कम एब आ ख एत हकयो आन

लगै ए छगुन्द्त ई छै केिे न हिध न’

आ अथधक र ले लसँ घषतकसँ कल्पक ध्िहन से िो व्यतत भे ल अथछ :

‘रोपने छी किबै आ घर अपन भरबै

अन्द्नक अभ िे ने आब िम मरबै ’

‘चै त कबड्डी’,’हुतक लोली,दीप जर उ’,’अिकन-मिकन’,’उठ रौ बौआ’,


’जझजझर कोन ’,’कररय झु म्मरर’,’फेर कनुआइ छौ तोरे पर’,’आम छू
अमरोर छू ’,’छै तकरे इथति स’, ‘त क थधन थधन’,’उट्ठी गोिी मोर
पच स’,’थमथिल क महिम ’,’थमथिल क िसँ त’,’दे श मि न छै ’,’इथति स
युग निीन के’,’िम थमथिल ि सी’ आदद गीत मे थमथिल क मि नत , सम्पूणत
दे शक मि नत ,सँ स्कृथतक हिशे षत , आपसी स्ने ि आ मे ल-जोलक
आिश्यकत ,जन -जनक सुख आ समृशद्धक क मन आदद ब तक उल्ले ख
बहुत सुन्द्दर आ सरल शब्द सबिक म ध्यमसँ भे ल अथछ | ‘ले हनन’केँ बहुत
172 ||गजेन्द्र ठाकुर

सम्म नपूितक अशभनन्द्दन कएल गे ल अथछ | एहि सां कलनमे कयि रचन
एिे न अथछ जे गजल जक ँ लगै त अथछ, हकन्द्तु गजल बहन नहि सकल अथछ|
हकछु रचन मे पहिलुक शे रमे गजलक गुण अथछयो त ब दक प ँ थत सभमे
तकर अभ ि अथछ | ब नगीक ले ल दे खल ज ए ई रचन :

‘हकछु गीत एिन िोइ छइ ग ओल ने ज इ छइ

हकछु चीज एिन िोइ छइ प ओल ने ज इ छइ

ििकैत रिै छै क क ें ढ़मे करे जमे

हकछु घ ि एिन िोइ छइ दे खल ने ज इ छइ’

क व्य-दृथिक हिहिधत क क रणे एहि सां ग्रिकें कोनो एक ‘ि द’मे नहि र खल


ज सकैछ | ई सां कलन मै थिली स हित्यमे उपलब्ध पद्य सां कलन सबिक
मध्य एकि हिशशि स्ि न पर रिब क पय तप्त योग्यत रखै त अथछ |

हिनक रचन सां स रमे गीत अथछ, कहित अथछ, कि अथछ, ि स्य-व्यां ग्य
अथछ, अनुि द अथछ, सां कलन-सां प दन अथछ । थचन्द्तन ले ल थमथिल अथछ,
मै थिली-आन्द्दोलन अथछ, दे श अथछ, दे शक र जनीथतमे नै थतक आन्द्दोलन
अथछ। 'म हि-प हनक गीत'क ब द हिनक एहि सां ग्रिमे हिनक गीत रचन
सभ अथछ। गीत सभमे हिनक थचन्द्तन, सुन्द्दर सरल, लोकथप्रय शब्द
सभ,स्िच्छ आ स्िस्ि दृथि दे खख किल ज सकैछ जे 'लोचन'जी ज ौं गीते ि
शलखखतथि तँ मै थिली भ ष क गीत क रक प्रिम प ां थतमे हिनक स्ि न सुरजक्षत
रहितहन ।

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 173

सं तोषी कु मार-सं पकक -7562878005

भाषा-सं स्कृथतक आस्िा आ नव-कनमाकणक सं कहप

‘‘ईषाव-द्वेष हटाबै िी
घृणा विभे द मे टाबै िी
बुत्रि वििे कक दीप ले त्रि हम
प्रेमक ज्योछत पिारै िी
कररया झु म्मरर िे लै िी।’’

छमछिला िां स्कृछत मे आस्िा आ नि-वनमावणक िां कल्पक िमन्द्िय करै त कवि
रामलोचन ठाकुरक पाँ ती मै छिल जन-मन ले ल प्रेरणादायक अछि। मै छिली
िावहयय जगतक कवि-वनबां धकार (रामलोचन ठाकुर), किाकार (अग्रदूत)
आ व्यां ग्यकार (कुमारे श काश्यप) मै छिल िामान्द्य लोक ले ल ‘‘मावट पावनक
गीत’’ आ गे य-काव्य ‘‘अपूिाव’’ िन कविता-िां ग्रह त्रलिै त िछि। दोिर ददि
‘अत्ग्नले िन’ धमी बवन ‘‘इछतहािहां ता’’, ‘‘दे शक नाम िलै िोन छचड़ै या’’
आ ‘‘लाि प्रश्न अनुत्तररत” कविता-िां ग्रहक रचना करै त िछि, जावह मे
यिास्स्िछतक प्रछत अिवहष्ट्णु, आक्रोशक तीक्ष्ण भािक अत्रभव्यक्लत,
मालिविादी चचिंतन िँ िम्पृलत, िां घषव चे तनाक वनमावता आ स्ि-वनमावणक प्रछत
174 ||गजेन्द्र ठाकुर

घोर आस्िािान, तैँ विध्िां ि केँ वनमावणक आिश्यकता मानै त िछि। हुनक
मां तव्य अछि जे मै छिली आन्द्दोलन आ अफ्रीका िा वफत्रलस्तीनक मुक्लत
आन्द्दोलन मे कोनो पािवलय नवह िै क। िभ ठामक जनता अपन भाषा-
िां स्कृछत आ जातीय मुक्लत ले ल एकरां ग आकुल-व्याकुल आ िां घषवरत अछि।
आ तैँ अफ्रीका हो िा वफत्रलस्तीन, पावकस्तान िा छमछिला िभक कविताक
कर्थय आ स्िर एलके िै क। एवह पृष्ठभूछम मे अन्द्यान्द्य दे शक/भाषाक कविक
कविताक मै छिली अनुिाद ओ ‘‘प्रछतध्िवन’’ मे कएने िछि। ििवहारा ओ
शोवषतक पि मे अपन ले िनी केँ प्रछतबि रिै त िछि। ििवहारा ओ शोवषतक
ले ल तऽ विश्व-बां धुयिक अिधारणा रिै त िछि, मुदा व्यििायीक िै श्वीकरण
अनुबांधक प्रछतरोध स्िरूप अपन कविता-िां ग्रह ‘‘लाि प्रश्न अनुत्तररतकेँ
िमर्पिंत करै त िछि।
ठाकुरजी छमछिला-मै छिली प्रेम ले ल प्रछतबि िछि, जे हुनक कविता मे स्मृछत,
पररचय, िणवन िा कटाि रूप मे प्रछतछचत्रित भे ल अछि। नि-वनमावण ले ल
ध्िां ि केँ आिश्यक मानवनहार कवि, छमछिला मे पिरर गे ल अिां ख्य कुक्यित
प्रिृछतक लोक िँ अपविि भे ल वबरदाबनक जड़नाइ उछचत बुझैत िछि। एकरा
िम्हारब व्यिव मानै त िछि। िां गवह अपन श्रम िँ नि वबरदाबन (नि
छमछिलाक) कल्पना करै त िछि, जावह मे िभक आश पूर करबाक िमता हो

‘‘हजारक हजार चुवगला जनछम गे ल-ए आ


इएह वबरदाबन छिक ओकरा िभक स्िायी आिाि
एकर पुरान गाि िभक धोधरर मे
एक िँ एक विषधर करै यै वनिाि
...... एकरा जररए गे नाइ छिक नीक
छमझे बाक प्रयाि ििविा अनुछचत
शक्लतक अपव्यय
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 175

जे करबाक छिक िां चय


आगामी कात्रलक वनछमत्त
जिन वक हमरा लोकवन लगाएब
वनखश्चते लगाएब/एगो नि वबरदाबन
पटाएब/कुनू िबरीक पावन िँ नइां
अपन घाम िँ / आ फुलाएब
रां ग-वबरां गक फूल/अपन आशाक अनुकूल
अपन कल्पना कें दे ब िास्ति रूप।’’

अपन आशा-आकाां िाक प्रछतपुर्तिं करबा योग्य छमछिलाक कल्पना मे ओ


युिकक भूछमका महती मानै त िछि। मै छिली युिा ले िनक िां कलन िँ
प्रकात्रशत पत्रिका ‘‘अत्ग्नपि’’क िम्पादन कएने िलाह। मै छिली भाषा केँ
िां विधानक अिम अनुिूची मे िां लग्न करबाक आन्द्दोलनक िमय त्रलिल गे ल
हुनक पाँ ती कोना वबिरा िकैत अछि -
‘‘िां विधान वबनु मै छिलीक आ
मानछचि वबनु छमछिला धाम
िावह-जारर िुड्डाह करब
हम छमछिलाक जुआन।’’
हम श्री ठाकुरजी केँ ‘‘छमछिला दशवन’’ पत्रिकाक िम्पादक रूप मे िम्पादकीय
आले ि पढ़ै त छचन्द्हबाक-जनबाक प्रयाि कएने िी। ‘छमछिला दशवन’क
क्षजज्ञािु पाठकक रूप मे हुनक आले ि गां भीर चचिंतनक हे तु अग्रिर करै त
रहल। कोलकाता प्रिािक िमय हुनका िँ पवहल व्यक्लतगत भें ट ‘‘िम्पकव’’
मे भे ल िल। ओतवह ओ अपन ‘त्रभक्षजहटिंग-कािव’ दे ने िलाह जावह पर हुनक
पररचय मे कवि (poet) अां वकत िल। पश्चात् हुनक कविता िभ पढ़बाक
िुयोग भे ल। ित्ते ओ नै िर्गिंक कवि िछि क्षजनक शब्द आ काव्य अपना मे
176 ||गजेन्द्र ठाकुर

ििवहाराक दुःि प्रछतछचत्रित करै त व्यिस्िा िँ िां घषव करै त अछि। काव्य
‘‘ििवहारा टी स्टॉल’’क नाम िँ त्रलिाइत अछि। हुनका ले ल िावहययक
िाौं दयव-बोध, अिहाय-नचारक स्स्िछतक िणवन-विश्ले षण मे अछि।
अपन नाट्य िावहययक अध्ययन-अनुशीलनक क्रम मे कोलकाता मे मै छिली
नाटक आ रां गमां च ले ल कएल गे ल कायवक पयावलोचन करै त िी, तऽ ओवह मे
श्री ठाकुरजीक नाम श्रे ष्ठ स्िान मे दे िाइत अछि। कलकत्ता(आधुवनक
कोलकाता) आरां भवह िँ छमछिला-मै छिली आन्द्दोलन ले ल अग्रिर रहल अछि।
आन्द्दोलनाकार लोकवन िामान्द्य मै छिल जन केँ एकत्रित आ िां गदठत कऽ
प्रारूप पर कायव करै त िलाह। लोकक आमां िण आ िां गठन ले ल िावहययक
िशलत विधा नाटक रहल अछि। नाट्य-मां च केँ लोकरां जनक प्रमुि आ िहज-
िुबोध िाधन बूक्षझ मै छिली आन्द्दोलन आहूत कएवनहार िभ मै छिली नाटकक
प्रणयन कलकत्तामे प्रारां भ कएलवन, जावह मे वकिु प्रहिन आ अल्पािछधक
नाटक मां छचत भे ल। पिाछत हुनका िभक चचिंतन-चे तना मे आभात्रित भे ल,
जे मै छिली आन्द्दोलन भाषा आन्द्दोलन छिक आ एकर िफलताक आधार
प्राचीन िावहययक भां िारे टा नवह, ओकर अविरल-अविस्च्छ परां परा ओ िमृि
िमकालीन िावहययक आगारो प्रयोजनीय अछि आ ई िमृत्रि नाट्य विधाक
ले ल िे हो िाां छित अछि। एही क्रम मे कलकत्तामे वित्रभन्द्न नाट्य िां स्िा िभक
स्िापना भे ल। एवह िां स्िा िभक प्रिछमकता िल मां चोपयोगी नाटक
त्रलिाएब आ ओकर प्रदशवन ले ल मै छिलीभाषी कलाकारक जुटान करब।
ठाकुरजी एवह दुनू कायवक भार िां िहन मे पिु एलाह नवह। अपन ले िकीय
धमवक वनिवहन करै त बहुभाषी प्रछतभाक धनीक ठाकुरजी बाां गला िँ मै छिली
मे नाटकक अनुिाद कएलवन। हुनक अनूददत नाटक मे बाां गला रां गमां चक
प्रत्रिि ले िक-वनदे शक शै लेश गुह वनयोगीक ‘‘फाँ ि’’ आ ‘‘ररहिवल’’
आओर श्यामल तनु दािगुप्ताक ‘‘जादूगर’’ (बाां गला - जादूकर) अछि, जे
नाटक िभ प्रदर्शिंत-प्रकात्रशत भे ल अछि। वकरण मै िक ‘‘चारर-पहर’’ आ
मनोज छमिक ‘‘वकशुनजी-विशुनजी’’ (बाां गला - ‘केनाराम-बे चाराम’) वहनक
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 177

अनूददत नाटक अछि, जे प्रदर्शिंत भे ल अछि, मुदा अप्रकात्रशत रहल अछि।


पुस्तकाकार रूप मे प्रकात्रशत हो िा अप्रकात्रशत, वहनक अनूददत नाटक िभ
मै छिली िावहययक आगार मे वनछध रूप मे िां छचत भे ल अछि।
कलकत्तामे मै छिली नाट्य मां चक आरां त्रभक काल मे कलाकारक आिश्यकता
आ वहनक नाट्य अत्रभरुछच, एवह िुयोग िँ कते को नाटकक प्रिम रात्रिक
मां चन मे पािक अत्रभनय करै त रहलाह। उदय नारायण लििंह ‘‘नछचकेता’’
जीक नाटकक पाि ‘शुभांकर’ (एक िल राजा), ‘अवनरुि’ (नाटकक ले ल)
आ ‘निल’ (नायकक नाम जीिन)क भूछमका मे ठाकुरजीक अत्रभनय
अविस्मरणीय रहल अछि। वबना प्रत्रशिण प्रप्त रां गकमी रवहतहुँ , वहनका द्वारा
कएल गे ल अत्रभनय आ वनदे शन ले ल मै छिली रां गमां चक प्रत्रिि ले िक-
वनदे शक कुणाल वहनका मै छिली रां गमां चक उत्तम अत्रभने ता-वनदे शक मानै त
िछि। वहनका वनदे शन मे मै छिली नाटक प्रदर्शिंत होएबाक िूचना तऽ अछि,
मुदा तकर मान्द्य आ त्रलखित िाक्ष्य नवह रहबाक कारणे ओकर चचव नवह कऽ
रहल िी।
नाटक केँ दृश्य-काव्य मानल गे ल अछि, मुदा नाटक केँ विषय-िस्तु बना काव्य
त्रलिब फराक अछि। ओ नाटक केँ काव्यक विषय बना ‘‘नाटक, वनदे शक
आ एकटा कविता’’ शीषवक िँ कविता त्रलिलवन, जावह मे नाटकक नाम पर
प्रस्तुत भऽ रहल उयक्षृांिलता आ अश्लीलताक प्रछतिाद करै त िछि। नाटकक
िफलताक आधार दशवकक उपस्स्िछत िा ओकर िोपड़ीये टा नवह, अवपतु
कर्थय-किानकक गाां भीयवक प्रमुिता मानै त िछि। मै छिली नाट्य मां च केँ
िमर्पिंत पत्रिका ‘‘रां गमां च’’ जे कलकत्तािँ प्रकात्रशत भे ल िल, ओकर
िम्पादक िे हो श्री रामलोचन ठाकुर िलाह। कछतपय कारण िँ एवह पत्रिकाक
एलकवह टा अां क प्रकात्रशत भे ल। नाट्य िां बांधी वहनक आले ि कलकत्ताक
मै छिली नाट्यकार’’, ‘‘कलकत्तामै छिली रां गमां च आ श्रीकाां त मां िल’’,
‘‘कलकत्तामै छिली रां गमां चक मवहला कलाकार’’, ‘‘नाट्य-मां चक विकाि मे
178 ||गजेन्द्र ठाकुर

पत्रिकाक योगदान’’, ‘‘छमछिला नाटक आ मुांशी रघुनन्द्दन दाि’’,


‘‘िमकालीन मै छिली रां गमां चक विकाि मे कलकत्ताक योगदान’’ आदद
पठनीय अछि, जे वित्रभ पत्रिका मे प्रकात्रशत भे ल िल। एवह िमस्त
आले िक िां कत्रलत रूप मे प्रकाशन िां स्मरण ‘‘आँ खि मुनने , आँ खि िोलने ’’
आ ‘‘स्मृछतक धोिरल रां ग’’ मे प्रकात्रशत अछि।
मै छिली आन्द्दोलनक ‘अत्ग्नले िन’ धमी कवि रामलोचन ठाकुरजी अपन
ले िन आ रचनाक माध्यम िँ युिा िगव केँ िम्बोछधत करै त रहलाह, मुदा
आधुवनक युिाक इच्छा-आकाां िा आ विमुि होइत छमछिला-मै छिली िँ विचार
केँ दे खि, आहत होइत त्रलिै त िछि –

‘‘दूरक ढ़ोल िोहािन, कहबी िै क पुरान


वकन्द्तु माि कहबीए नवह, िुवनयो रहलहुँ कान
िुवनयो रहलहुँ कान, आँ खि िँ दे खि रहल िी
मै छिलीक दुदवशा हाल छमछिलाक कहब की
कह लोचन कविराय, वििे क एहन नितूरक
वनखश्चत पतनक मूल, प्रगछत बात त दूरक।।’’

वकयो कवि रूप मे जानए िा किाकार ‘अग्रदूत’ रूप मे । वकयो ‘‘बे ताल-
किा’’ पवढ़ ‘कुमारे श काश्यप’ केँ जानए िा ‘‘पद्मा नदीक माझी’’ पवढ़
अनुिादक केँ। वकयो िम्पादक बूझए िा रां गमां चक कलाकार। रामलोचनजी
िभ ठाम िशलत हस्तािर बवन उपस्स्ित िछि। हुनक अस्िस्िताक िूचना
अछि। हुनक शीघ्र स्िस्र्थयक कामना करै त िी। मै छिली आन्द्दोलनी रूप मे
ओ िां देश दै त िछि, जे आयमिात् करबा योग्य अछि –

‘‘वनज भू-भाषा वहत मरय


मरय ने , अमर बनै त अछि
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 179

तकरे गािा विश्व ई


गाओत, िदा गबै त अछि।’’

िां दभव-िां केत

1 कररया झु म्मरर, अपूिाव, पृ॰41


2 आजुक कविता (भूछमका), प्रछतध्िवन, पृ॰10
3 बवहन दाइक नाम एगो छचट्ठी, लाि प्रश्न अन ुु ुाररत, पृ॰9
4 प्रछतध्िवन
5 िमकालीन किाक िाौं दयव बोध, आँ खि मुनने , आँ खि िोलने
6 इछतहािहां ता
7 नाटक, वनदे शक आ एकटा कविता, इछतहािहां ता, पृ॰13
8 दे त्रिल बयना
9 आिर आले ि, स्मृछतक धोिरल रां ग

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


180 ||गजेन्द्र ठाकुर

केदार कानन-िां पकव-7004917511

एक िुच्चा कविः रामलोचन ठाकुर

रामलोचन ठाकुर िां घषवशील कवि िछि। ओ बहुत श्रम आ िाधनािँ कविताक
िमीप पहुँ चल िछि। हुनक जीिन तते क कांटकाकीणव आ ित-विित रहलवन
जे ओ कविता नै त्रलितछि तँ कलकत्ता िन महानगरमे अने क िमान्द्य मै छिल
जकाँ , अन्द्हारमे वबलायल रवहतछि। ओ कविताक ममव बुझलवन आ ओवह
ममवकेँ अपन िै चाररकताक िां ग काव्यायमक अत्रभव्यक्लत दे लवन।
कवि लग छमछिलाक महान परां पराक पूरम्पूर अत्रभज्ञान िवन। ओवह महान
परां पराक िूि ओ िदै ि धयने रहै त िछि। ओ अपन कवितामे कतहुँ हुिै त नवह
िछि। हुनका अिनुक क्रूरतम िमयक िािवक बोध िे हो िवन। एवह दूनूक
छमश्रणिँ ओ बे ि बे धक आ बे िप कविताक िृजन कऽ िकलाह अछि।
आइ कविताकेँ तते क गां जन िहय पड़ रहल अछि तकर ले िा नवह। कविताकेँ
िे लौर बुझवनहार कवि लोकवन लग रामलोचन ठाकुरक कविता अयनाक
काज करै त अछि। हुनका िभकेँ वनखश्चत रूपिँ रामलोचन जीक कविता
पढ़बाक चाही आ तकर ममवकेँ स्पशव करबाक चाही। रामलोचनजी प्रचार-
प्रिारिँ दूर रवह अपन कवि-कमवमे लागल रहलाह आ िै ह कारण छिक जे ओ
कविताकेँ एक उद्ये श्य धरर लऽ जा िकलाह।
हुनक जीिन िुच्चा रहलवन। अययां त िािधानी आ इमानदारीिँ ओ अपन
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 181

जीिनक वनिावह कयलवन। ठीक तवहना ओ कवितोमे बहुत िािधान आ


इमानदार िछि। ओ जिन जे अनुभि कयलवन, अपन िां िेदनाक धरातलपर
आवब तकर अत्रभव्यक्लत कयलवन। यै ह कारण छिक जे हुनक कविताने टटका
स्पन्द्दन िवन, िुिाि िवन। हुनक कविता मै छिलीक वित्रशि काव्य-परां परामे
एक िािवक हस्तिे प छिक।
हुनक कविता एक ददि छमछिलाक गाम आ ओवहठामक जीिन अछि तँ दोिर
ददि महानगरीय जीिनक यिािव आ िलकत-पिराह भूछम िे हो अछच। ओ
कवितामे अपन बात वबना कोनो िल-िद्मक, वबना कोनो लाग-लपे टक कवह
िकलाह अछि। तें ओ कविताकेँ एक वनखश्चत उद्ये श्य धरर लऽ जा िकलाह
अछि।
हुनका ले ल िभिँ महयिपूणव रहलवन अछि। अां छतम विपन्द्न आदमी। जकरा
लग अपन कहबाक वकिु नवह िै क। जकरा भारतक स्ितां िताक बाद एिन
धरर लुलुआयले गे ल िै क, तें अस्िाभाविक नवह जे ओ मनुलिक जय चाहै त
िछि, जीिनक जय केर आकाां िा रिै त िछि आ मुक्लत िां घषविँ प्रेररत
जीिनक दोहाइ दै त िछि।
मै छिलीमे रामलोचन ठाकुर एक वित्रशि आ तिाकछित िड़ल-गन्द्हाएल
परां पराक भां जक कवि िछि। हुनक कविता पढ़ै त काल कतहु-कतहु ई बोध
होइत िै क जे हुनक कविता िलतव्य भऽ जाइत अछि अििा नारा िन लगै त
अछि। मुदा ओहू कविता िभमे कविक िुच्चापन आ इमानदारी झलकैत
अछि।
जे छमछिला िाौं िे भुिनमे विख्यात रहल अछि िे आब रलतहीन, माां िहीन
कांकालक भूछम बनल अछि। मुदा कविक वििशता िवन जे ओ मातृभूछम
छमछिलाकेँ वबिरर नवह पबै त िछि।
ओ अपन कवितामे घनघोर वनराशा आ उदािीकेँ फटकय नवह दै त िछि। ओ
िदै ि आशा-उल्लाि आ जीिनक बात करै त िछि। जीिनमे िफलताक बात
182 ||गजेन्द्र ठाकुर

करै त िछि। ओ एक िुिद भविष्ट्यक बात करै त िछि। अपन कविता


"बहीवनदाइक नाम एगो छचट्ठी"मे कहै त िछि-
आगामी कात्रलक वनछमत्त
जिन वक हमरा लोकवन लगाएब
वनखश्चते लगाएब / एगो नि वबरदाबन पटाएब /
कुनू िबरीक पावन िां नवह अपन घाम िां /
आ फुलाएब रां ग-वबरां गक फूल/
अपन आशाक अनुकूल अपन कल्पना कें दे ब िास्ति रूप
हुनक अछधकाां श जीिन मै छिली आां दोलन ले ल िमर्पिंत रहलवन। मातृभाषापर
होइत कोनो प्रहारकेँ ओ बरदास्त नवह कयलवन आ मै छिलीक वहत ले ल जे
हुनकािँ िां भि भे लवन िे ओ वनरां तर करै त रहलाह। आिश्यक भे लापर ओ
मै छिली ले ल नारा िे हो त्रलिलवन जे बहुत अिवगभाव आ व्यां जक िवन।
छमछिलाक गामक ओवह िमृि परां परा आ प्रीछत, िौजन्द्य-िौमनस्यकेँ ओ
तकैत रहै त िछि। जतय कोनो भे दभाि नवह िल। जाछतपात नवह िल। िभ
एक-दोिराक पिव-ययोहारमे िुजल आ उन्द्मुलत मोनिँ ित्म्मत्रलत होइत िल।
मुदा िे गाम आइ वनपत्ता भे ल अछि। जीिन बदत्रल रहल िै क, िभ्यता-
िां स्कृछत बदत्रल रहल िै क। आयाछतत विचारक प्रदूषणिँ , अपना-अपनीिँ ,
स्िािवक महाजालिँ िां पूणव पररिे श अनदठया बवन गे ल िै क। ओ अपन गामक
अन्द्िेषणमे लागल कहै त िछि—
पिरमे जाइत चरिाहक पराती
आ िाँ झमे दूर नदी कातिँ
बाध-बोनािां भािल अबै त
चौमािा-बारहमािाक स्िर
आँ गनिँ
िे की जाां तक िां गीतक िां ग
लगनीक स्िर
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 183

कवहयो िोहर, कवहयो िमदाओन


कवहयो छतरहुत, कवहयो मलार
हमर गामक पररछचछत िल

बरिामे विलम्ब दे खि
गमै या पूजाक िँ गोर
जट जवटन िे लेबामे व्यिस्त
मवहला िमाज
तक्षजयाक िां ग
झड़नी पर झु मैत वकशोर/तरूण दल
फगुआक अबीर
आ जूड़शीतलक कादो-मवटक िां ग
हमर गाम जीबै त िल
.................
हम तावक रहल िी िएह गाम
अपन गाम

कवि मानै त िछि जे शब्द जे कवहयो पूिवजक अनुिारे ब्रह्म िल िे आइ अपन


मुक्लत ले ल िटपटाइत िाल्मीवक, विद्यापछत, कृछतिािक बाट तावक रहल
अछि। वकयै क तँ बीिम शताब्दीमे मनुलि ओवह शब्दकेँ अस्ि बना ले लक
अछि, ओकर अिव बदत्रल गे ल िै क, अपन िां पूणव अिवित्तामे ओ भयाओन भऽ
गे ल िै आ ओकरािँ िाधारण लोककेँ िर होइत िै । कविता कते क अिवपण
ू व
अछि िे दे िी--
184 ||गजेन्द्र ठाकुर

हमरा लोकवन
अिावत् एकैिम शताब्दीक
िभ्य िुत्रशक्षित मनुलि
शब्दकें बना ले ने िी अस्ि
अस्ि विभाजनक
अस्ि शोषणक
अस्ि िां हारक
आइ शब्द स्नहे -िां िेदना नवह
घृणा-द्वेषक करै त् अछि िृछि-िां चार

शब्द आइयो अछि


िां िद-िां विधानमें
बक्षणकक छतजोरीमे
स्तािक लोकवनक ठोर पर
कलमक नोक पर
शब्द आइयो अछि
माि बदत्रल गे ल िै क ओकर अिव
तें लगै त अर्थि अनछचन्द्हर-अनभोआर
लगै ि भयाओन
लोक, िाधारण लोक
आइ शब्दिां िे राइत अछि
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 185

भारतक आजादीक पिाछत गणतां ि ददिि आ स्ितां िता ददििक अििरपर


िां पूणव दे हक रोमाां छचत होयब, एकटा अिां ि विश्वािक लहररक दौगब आ मोन
प्राणक उयफुल्ल होयब, िमय-िाल बदललाक कारण , दे श-दशाक स्स्िछतक
विरूपताक कारण आ िमान्द्य जनताक इच्छा-आकाां िा आ ओकर िमस्त
भविष्ट्यपर लगाओल गे ल पै घ प्रश्नछचह्नक कारण, अां ततः स्स्िछत कते क बदत्रल
गे ल अछि तकरा कविक १५ अगस्त कवितामे दे िल जा िकैत अछि-
१५ अगस्त आब रोमाां छचत नवह करै ि
फहराओल जाएब छतरां गाक शहीदक शोक्षणत,
ओकर बत्रलदानक किाक स्मरण नवह करबै ि
छतरां गाक केिररया रां ग लालक बदला --
एक पै ध िुछचन्न्द्तत षियां िक प्रछतफलन बुक्षझ पड़ै ि
आ श्वे त िां िक बीचो बीच चक्र
एक पै घ कलां कक टीकाक प्रतीक
जाइ मे बोफर िां शे यर धरर
हिाला िां गिाला धरर कते को
अपकमव, कुकमवक किा गािा
ित्तािीन भारत भाग्य विधाताक िमावहत हो
कवि रामलोचन ठाकुर अपन 'हम चाहै िी' कवितामे कहै त िछि-
कविता हमर
कोनो मां ददर मिक्षजद िा
कोठा िँ नवह, मजूरक झोपड़ी िँ
कारिानाक जरै त छचमनी िँ िे त जोतै त हरक फार िँ
धीपल लोहा पर पड़ै त लोहारक हिौड़ा िँ
कुम्हारक चाक िँ चमारक टाकु िँ जनमओ
हम चाहै िी
186 ||गजेन्द्र ठाकुर

रामलोचन ठाकुर विराट फलकक कवि िछि। मै छिलीमे , अपन धाराक एकिर
कवि जकाँ , अपन िां घवष-पिपर अविराम चलै त, अनिक यािाक िभटा मोल
चुकबै त ई कवि अपन कविता िभमे एक वित्रशि अिव भरै त रहलाह। आइ
वहनक कविता िभ मै छिली कवितामे एक धड़कैत आ विचारोत्ते जक आयाम
दै त अछि। एते क िहज आ िां प्रेवषत जे कविताक अिव ताकबा ले ल कतहुँ
दूरक यािा नवह करय पड़त अवपतु तकर अिव एते क िरल आ िुजल रहै त
अछि जे ओ अहाँ के िमान्द्य मै छिल आ हहिंदुस्तानी जीिनमे अनायािवह भे वट
जाइत अछि। कोनो दीहन-हीम, कोनो मजूर, कोनो ररलिा आ ठे ला बलाक
जीिनक िां घषवमे हुनक कविताक पाँ छत फड़कैत, अपन बात कहै त भे वट
जाएत। ई हुनक कविताक एक महयिपूणव आयाम छिक।

रामलोचन ठाकुर एक श्रे ष्ठ कविक अछतररलत श्रे ष्ठ अनुिादक ओ विचारक
िे हो िछि। अपन अनुिाद कमव आ तकर गुणित्तािँ ओ मै छिलीक मान
बढ़ौलवन अछि। ओ मै छिल मनक वित्रशि रचनाकार िछि आ हुनक कवितामे
आ अन्द्यो रचनामे िां पूणव छमछिलाक जीिन स्पां ददत करै त अछि। धमव,
िमाक्षजक जीिन प्रणाली, राजनीछत, िभ्यता आ िां स्कृछतपर हुनक एते क
िां तुत्रलत आ िमधानल व्यां ग्य िवन जे हुनक रचनाक कलायमक िां यम आ
तकर उयकषव मनकेँ मोवह लै त अछि। छमछिलाक िां ग-िां ग बां गालक जीिन एक
िां ग हुनक रचनामे अबै त अछि। एक दोिरािँ जुड़ल आ अन्द्तरां ग रूपमे ।

वनष्ट्कषवतः कहल जा िकैत अछि जे कवि रामलोचन ठाकुर प्रिमतः आ


अां ततः जनताक रचनाकार िछि। आिरी विपन्द्न आदमीक िुि-िे हांतामे
भीजल, ओकरे दुििँ दुिी होयब, ओकरे िुििँ िुिी होयबाक व्यापक
पररछधमे हुनक रचना बौआइत रहै त िवन। हुनक रचनाकार लक्ष्य जनता छिक,
िमान्द्य जनता। आ हुनक एवह महयिपूणव आ अिवव्यापी लक्ष्य लग अां ततः
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 187

प्रयये क रचनाकारकेँ जयबाक चाही।

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188 ||गजेन्द्र ठाकुर

मुन्नाजी-सं पकक -9540095340

सं वेदनाक सीढ़ीपर ठाढ-“ताल बे ताल”

जीिनक आपाधापीमे च'प-उनार हएब क्षजनगीक िां तल


ु नक स्रोत बूझू। िोट
पै घ िे ग उदठते तँ मोकाम धरर पहुँ चैए लोक। जवहना िे ग िोट-पै घ, तवहना
कमाे िोट-पै घ आ ओहने फल िे हो होइि! ओइ िोट-पै घपर जहन िे ग
लड़िराए लगै ए तहन दोिराक मूँहे उपहािक पाि बनब दे री नै ।ओ उपहाि,
िे गे नै मोन िे हो छतलछमला दे बाक ले ल पूणव होइि। ओ किनो नजरर िँ तँ
किनो शब्दिाण भऽ बे धैि।

शब्दिाण जे छतलछमला ददए, बे छध ददए उएह िावहत्ययक पररछधमे व्यां ग्यक


िां ज्ञा पबै ि! व्यां ग्य, माने प्रस्तुतकतावक त्रिरिारीपर मुस्की आ लक्ष्यपरक चोट
आ वक छतलछमलाहवट। व्यां ग्य हास्यमे िे हो प्रस्तुत होइि आ हास्यास्पद रूपमे
िे हो। व्यां ग्ये क एक रूप तँ आलोचना छिक। िावहययमे व्यां ग्यक कएटा रूप िा
िां बोधन अछि। यिा पै रोिी, प्रहिन आदद। िात दशकक मै छिली आन्द्दोलनी,
दृढ़ वनश्चयी व्यक्लतयि- श्री रामलोचन ठाकुर जी छमछिला भूछममे हास्य-
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 189

व्यां ग्यक कोना धे लवन िे नै जावन मुदा अिल नाम नुका अपन िद्मनाम
'कुमारे श कश्यप'िँ व्यां ग्य त्रलिबाक प्रयाि हुनका अनुरूप हमरा नै लागल।

ताल- बे ताल व्यां ग्य िां ग्रहमे कुल िात गोट व्यां ग्यक धार बहे लाह। जकर पवहल
शीषवक अछि-"अि किा चमचा पुराण। प्रस्तुत प्रिां गमे मै छिली आन्द्दोलनमे
भोगल अनुभिक बीच दे िल चाटु काररता, गोछधयाँ -गोधौअलिँ आहत भऽ
तोता - मै नाक िां िादे छचिणिँ िां तुि भे लाह।

"एें यौ, ऐ बे र जवहयािँ छमछिलाक ििे िण क' एलाौं तवहयािँ गुमिुम बै िल


िी। की कहू-छमछिला, मै छिलीक िछत त' हे बे करतै जे हमरो िबहक िाें ता
वबनु उजारने नै रहत। ओ! अच्छा ई कहू ई चमचा शब्द कत' भे टल, आ वक
अहींक उयपछत? " दे िू- चमचा शब्द प्रयोग भे ल अछि महर्षिं िे दव्याि द्वारा।
ओ अपन ििह पुरानमे एकर किाां त नै क' पौलाह।तहन अठारहम पुराणक
रचना कर' पड़लवन-" चमचा पुराण " ओइमे

त्रलिै िछिन- -" अिादि पुराणे व्यािाज िचनम ध्रु िमििव काले िभी िे िे
चमचा ििवि विद्यते "ओना अतबे िँ िन्द्तुि नै भे लाह। तँ चमचाक प्रमुि
प्रकार िे हो चारर भागमे बाँ वट त्रलिलाह।

1- अज्ञान िाक् -जकरा ज्ञानक िु छत नै , महन्द्िक िालयकें ब्रम्हिालय मानब।

2- िुटकुन -जकरा ज्ञानक िु छत रहै ि मुदा महन्द्िक धररया धे ने पार उतरै ि।

3- स्िवििे की -स्िािविश चमचावगरी , फेर अलोवपत।


190 ||गजेन्द्र ठाकुर

4- फँचारर-िभा , िोिाइटी दलमत्रलत केलक। महन्द्िक टोकारापर


घिकन्द्त।

विद्यापछतक बिी-विद्यापछतक िम्मानिँ बे शी जे बी भरबा लए हुनक


अििानपर चोट करै त! िलतामे िे हो गोछधयाँ -गोधौअलक प्रस्तुछत! िुनू ऐ
मां चपर बे शी बला िब बाक्षज गे लाह। हम तँ कम्मे जे पढ़ने ितमा धरर माने
िामन बुझू। पै घ ओ जे िबमे पै घ होछि। जे ना बे शी वििाह, बे शी छधया पुता,
बे शी धन िां पत्रत्त, बे शी लटारहम (टां टबां ट), बे शी गप्प हाां कय,बे शी िाय, बे शी
पचाबय।

आब अध्यिीय भाषण- अहाँ िबहक िौभाग्य जे आइ मां चपर तीन गोट


विद्यापछत विशे षज्ञ बै िल िछि िॉ. झाां िुर झा- क्षजनका विद्यापछतक नाछयका
चूड़ी पर शोधक पी.एच.िी भे टलवन।िॉ.गोबर गणे श जे विद्यापछतक नाछयकाक
नूआ पर शोध क' िम्मावनत भे लाह। ते िर-िॉ. िे िारी िबाि जे विद्यापछतक
अन्द्तिवस्िक ररिचव स्कॉलर िछि। अवहना जुत्ता, िड़ी, पाग, दोपटा महायम्यक
पररचयावमे विद्यापछतक बिी िब बे र अपन वकिु नि कीर्तिंमान स्िावपत करै ए।

कुिी महायम्य- िॉ. नाि एम.ए। त्रिपाठी.एच.िी, िीत्रलट् । अठारह पुराणक


रचना केलवन। तावहमे एक अछि कुिी पुराण।ओइपर कवहयो राम बै िल
कवहयो कृष्ट्ण आ तकर पिाछत नै जावन कते नरिां हारी। मुदा आब ओ कुिी
कोनो िाधारण जनता प्राप्त कऽ िकैए जे फकीर रहए। कोवट कोवट आ कुवट
कुवट के व्यां ग्यक वनष्ट्पादन करै त किा।ित्तामे बै िल िा पािरफुल व्यक्लत
किनो ककरो कटबाक आदे श दऽ िकैए।किन कोन विपत्रत्त ककरा पर
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 191

आइब जाए िे कहब अवनखश्चत! मुदा घें ट जोड़बामे िब व्यस्त आ िुश।-


विप्लि!

ब्रम्हाक श्राप- अइ किामे ित्ताक शताब्दीक व्याख्या कएल गे ल अछि! दुवनया


एििाां ि भऽ रहलै । ब्रम्हा जीक िां ग अां ग्रेजी िातावलाप तकरे प्रतीक छिक।

अमरािती उपकिा--कमीशनिोर िब कोना ने ताकें फँिा कऽ रिै ि। आ


काज बे र कोना अपने फँत्रि व्यस्त भऽ मालो माल होइ िछि।

िबटा किा कते को दशक पवहने क मुदा आइयो स्स्िछत पररितवन नै । तें आइयो
पूणव प्रािां वगक।

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192 ||गजेन्द्र ठाकुर

सुरेन्द्र ठाकु र- सां पकत-9903398512

मै थिली से िी कवि श्री रामलोचन ठाकु र


जी

ओि! िम की कहू नहि कहू। िम तखन बहुत मोत्श्कलमे पहड ज इत छी जखन


िम अपन सँ कहनष्ठ ब जये ष्ठ कोनो मै थिली से िीक व्यक्ततत्ि,कृथतत्ि आ
कीर्तित्िक हिषयमे हकछु शलखब क ले ल ि िमे कलम पकडै त छी।तखन
मोनमे िोइत रिै त अथछ जे ओहि मै थिली से िीक सां बांधमे कतहुँ कोनो मौशलक
तथ्य छु हि ने ज ए ब एिे न कोनो ब त नहि शलख ज ए ज हिसँ िम उपि सक
प त्र बहन ज इ! आखखर िम की करबै क? एखन तँ िमर शलखिे पहड रिल
अथछ। प्रसां गिश् , उले ख्य मि नुभ ि छथि मै थिलीक कहि-ले खक स हित्यक र
आदरणीय श्रीम न् र मलोचन ठ कुर जी। ओन िम ई०सन् --१९७५ क २६
जनिरी क' कलकत्त क धरती पर पै र रखलहुँ । िमर अजजय ससुर श्री उददत
न र यण झ आ ससुर श्री बुद्धदे ि झ जीक कलकत स्ि रिीन्द्र भ रती
हिश्वहिद्य लयक जोड स ँ को प्र ां गण स्स्ित हनि स स्ि नपर यद -कद ब छु ट्टी
ददन क' स म न्द्य मै थिलक अथतररतत हकछु मै थिली से िी यि श्री मिे न्द्र
झ (बे ल ौं ज ),श्री र जन्द्दन ल ल द स(कण तमृतक सम्प दक)आ न ट्यक र
द्वय श्री दय नन्द्द झ (न गदि) आ श्री गां ग झ (परजुआरर,डीि) आदद प्रमुख
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 193

मै थिलीसे िी सभ उपस्स्ित भ' ज थि। थमथिल -मै थिली हिषयक ि त तल पमे


हुनक सभकें सां ग दे थिन्द्ि न ट्यक र श्री कृष्णचन्द्र
झ 'रशसक'(परजुआरर,डीि)।ओिी समयसँ हुनक सभक मुँिें सुहनयखन्द्ि
आदरणीय श्री र मलोचन ठ कुर जीक न म। ओन तखन तक िम कलकत्त क
थमथिल -मै थिलीक गथतहिथधसँ सां लग्ने नहि छलहुँ । मुद ,ब दमे िम हिशे ष रुथच
ले बय लगलहुँ । ज्ञ तव्य िो हक एहिसँ पूित पिन शिरमे रिै त ओतुक मै थिलक
गथतहिथधसँ रुथच रखै त रिी। ई०सन् १९८६क एकि घिन ! िम मै थिली-
से न नी श्री ब बू स िे ब चौधरी जीक हिशे ष आग्रिपर अखखल भ रतीय थमथिल
सां घ कलकत्त्त क सदस्य बनलहुँ । आ सहिय रुपे ण सां घक ले ल क ज करय
लगलहुँ । तखन िम ररषड (हुगली)मे रिै तरिी। उपरोतत 'सां घ' आ श्रद्धेय
चौधरी जीक स हनध्यमे रिै त चच तिममे िमर ज्ञ तव्य भे ल जे आदरणीय श्री
र मलोचन ठ कुरजी 'सां घ'क सहिय सदस्य छल ि। प्र य:नब्बे दशकक प्रिम
उतर धतमे एक ददन 'अस्िस्थ्य' चौधरी जी िमर आग्रि कयने रिथि:---
"सुरेन्द्र जी! हिशे ष सूत्रसँ िमर ज्ञ त भे ल अथछ जे श्री र मलोचन ठ कुर जी
बहुत अस्िस्थ्य छथि। अपनहि लोक छथि। अपन 'सां घ'क शुभ प्चितक
छथि।जौ आि ँ सँ सम्भि िो तँ 'सां घ'क ददशशसँ , िमर ददशशसँ आ अपनहुँ
ददशशसँ कृपय भे ि क' अहबथतयखन्द्ि तँ बहुत बहढ़य ँ िोइत।।" िम हुनक
प्रस्त ि के सिषत स्िीक रल आ किने रहियखन्द्ि---"चौधरी जी,कृपय , अपने
हुनक पूर पत -दठक न दी। िम एखनहि हुनक सँ भे ि करब क ले ल ज एब।"
की कहू! िम चौधरी जीसँ प्र प्त पत -दठक न ल' क' श्री र म लोचन ठ कुर
जीक ले क ग डे न्द्स स्स्ित हनि स स्ि नपर च रर बजे बे रु पिर पहुँ थच गे ल रिी।
हुनक कोठली तक पहुँ चैत िम अजीबो गरीब स्स्िथतमे पहड गे ल रिी। दे खने
रिी जे एकि व्यक्तत अपन हिस्तरपर पडल छथि आ हुनक एकि पै रसँ
डोरीसँ ल गल -ब न्द्िल हकछु इां ि हिस्तरक फ्रेमसँ नीच लिहक रिल छै क।
िम पूि तनुम ने पूणत आश्वश्त भे ल रिी जे इएि छथि ----'श्री म न् र म लोचन
194 ||गजेन्द्र ठाकुर

ठ कुर जी। िम हुनक पै र छु हब गोर ल गल आ अपन पूणत पररचय दै त किने


रहियखन्द्ि----"िमर अपने क ओतय अपने क जजज्ञ स ित एखन पठौलखन्द्ि अथछ
श्रद्धेय श्री ब बू स िे ब चौधरी जी। आ, आग्रि कयलखन्द्ि अथछ जे हुनक से ि
उपलब्ध करै ब क ज ौं ब त िोई से ठ कूर जी अबस्से किथि। िम पूणत रुपे ण
तै य र छी| सां गहि ,पूणत स्िस्थ्य भे ल पर िम अबस्से भे ि करबखन्द्ि|" िमर
ब त सुहन ठ कुर जी ब ज़ल रिथि:-" ठीक छै क ।आि ँ चौधरी जीकें किबखन्द्ि
जे िम उतरोत्तर ठीक भ' रिल छी।आ,ज ौं िमर हुनक कोनो से ि ले ब क
जरुरथत पडत तँ िम हुनक अबस्से सूचन दे बखन्द्ि।पहिने ओ स्ियां स्िस्थ्य
िोथि,से िमर क मन अथछ। जे हकछु ,ठ कुर जीक घरमे हकनको नजि दे खख
िम पूछने रहियखन्द्ि:-"ठ कुर जी! अपने क घरमे िम हकनको नजि दे खैत
थछयखन्द्ि। एखन एहिठ म हकओ छथि की नजि।"ओ आग किने रिथि:-
"एखन हकओ नहि छथि। सभ हकओ ग मे पर छथि।।"िम पुहन आग पूछने
लहियखन्द्ि:-"की आि ँ अपन सां बांधमे अपन प ररि ररक लोककें ग म पर
सूचन दे ने थछयखन्द्ि।" ओ आग ब जल रिथि:-"नहि, हुनक सभकें िम कोनो
तरिक सूचन नहि दे ने थछयखन्द्ि ।आ,ने दे बखन्द्ि।िमर आग्रि अथछ ,जे आि ँ ब
चौधरी जी 'क अल बे जे हकयो िोथि ,िमर सम्बन्द्धमे ,िमर ग म पर, िमर
प ररि ररक कोनो सदस्यकें ,अपने लोकहन कोनो तरिक सूचन नहि
पठहबयखन्द्ि।क रण,ओ लोकहन सुहनतटिि घबड जयत ि आ दौडले कलकत्त
चशल औत ि। तखन िमर सभ योजन हबगहड ज एत।" ठ कुर
जीक उपरोतत ब त सुहन िम हुनक किने रहियखन्द्ि:-ठ कुर जी,एिमस्तु! िम
सभ अपने क हनदे शके अबस्से पूणत प लन करब। थचन्द्त जुहन करी।" िम
ठ कुर जीसँ पुन: पूछने रहियखन्द्ि:-"ठ कुर जी! अपने क सां ग ई दुघतिन केन
भ'गे ल।ओ ब जल रिथि:-"सुरेन्द्रजी! िडबडीमे िमर पै र 'स्लीप' क' गे ल।
ओकर ब द घरटििपर ड तिरी सल ि ले ल। एतस-रे कर ओल गे ल। पै रक
िड्डी िु हि गे ल। सां बांथधत ड तिर प्ल स्िर कयलखन्द्ि। सूई-दब ई सभ दे लखन्द्ि।
आ,किलखन्द्ि -'घरे पर आहब क' िम पुन: दे खैत-सुनैत रिब। से आि ँ दे खखते
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 195

छी,िम ' रै टकिग' पर छी।" िम पुन: आग पूछने रहियखन्द्ि:- ठ कुर जी


!अपने क हिय -कमत आ घरे लू क ज केन चशल रिल अथछ? ओ ब जल
रिथि:--"ड तिरक अल बे सभ ददन क' एकि नसत अबै त अथछ।एकर अल बे
सभ ददन क' अिी ठ मक एकि महिल (आय ) भ नस-भ त क' दै त अथछ।
कपड -लत्त ,बततन-ब सन आ घर'क सफ ई आदद क' दै त अथछ। िम स्ियां
'स्िीक'क सि रे हनत्य हिय -कमत कहुन क' खूब स िध नीक सां ग क' लै त
छी। आर की कहू,कि तँ िोडे क अथछए। 'िम तखने अनुभि कयने रिी जे
ठ कुर जी एकि बहुत जीििगर आ सां घषतशील लोक छथि। िम पुन: आग
पूछने रहियखन्द्ि-"ठ कुर जी!अपने क ई प्ल स्िर कहिय धरर कित?" ब जल
रिथि ठ कुर जी:-"िॅ , ड तिर किै त छथि जे पन्द्रि ददनक ब दे प्ल स्िर कहि
सकैत अथछ। आ,एखन धरर िमर स्स्िथत तँ ईएि अथछ।मुद ,दुख अथछ जे िम
एखन आि ँ के च िो नजि पीआ सकैत छी।क रण, च ि ल बय बल हकओ
नहि अथछ। जे च ि िरमसमे छल से िम आि ँ आबयसँ पहिनहि पीहब चुकल
छी।'"िम किने रहियखन्द्ि:-अपने एहि ले ल बे शी थचन्द्त नजि
करी।" उपरोतत ब तचीतक ब द िम प्रस्ि न करब क ले ल उद्यत भे ल
रिी हक ठ कुर जी ब ज़ र रिथि:-सुरेन्द्र जी!कने क आर ठिरू।"ई किै त
ओ िमर अपन शलखल एकि मै थिली पोिी उपि र स्िरुप दे ने रिथि।िम
किने रहियखन्द्ि:-ठ कुर जी!िम एखन उपि र स्िरुप ई पोिी नजि ले ब।िम
कोनो मै थिली पुस्तक प्र य:उपि र स्िरुपमे नजि लै त छी।कीन लै त छी। अपने
लोकहन अपन हनजी ि क सँ पोिी छपबै त छी।जौ उपि रे स्िरुप सभकें पोिी
दे बैकतँ दोसर-ते सर पोिी कोनो छप एब?आि ँ सन मै थिली ले खक सभ प्र य:
गरीबे िोइत छथि।तौं िम एखन ि क दे बे करब।अन्द्यि नजि बुझी।
ज ौं ,सम्भब िै त तँ िमर ब दे मे उपयुतत समयपर उपि र द'दे ब।" तत्क ल
िम ि क दे ल आ पोिी ल'ले ल। मुद ,ठ कुर जी िमर ति कथित उपक रकें
नहि हबसरल ि। आ,पूणत स्िस्थ्य भे ल पर कोनो उपयुतत समय पर ओ अपन
196 ||गजेन्द्र ठाकुर

शलखल एकि दोसर पोिी िमर दए दे लखन्द्ि। ओकर ब दो दोसर ले खकक


शलखल 'फ्री'मे ब ँ िय बल पोिी से िो समय-समय पर दै त रिल ि।धन्द्य छथि
िमर सभक ठ कुर जी अि तत्---श्री र म लोचन ठ कुर जी !! ओकर ब द श्री
ठ कुर जीसँ अनुमथत ल' िम पुन: हुनक पै र छु हब प्रण म करै त प्रस्ि न कयने
रिी!! ओिी ददनक प्र य: आठ बजे स ँ झक समय िम श्री चौधरी जीकें श्री
ठ कुर जीक स्ि स्थ्य सुध रक सां बांधमे सभ ब त आहब किने रहियखन्द्ि।ओ
बहुत खुशी भे ल रिथिआ किने रिथि:-"ठीक छै क । िम सभ हुनक
स्ि स्थ्यक सां बांधमे कोनो सूचन हुनक ग म पर एकदम्में नहि
पठयबखन्द्ि। ओकर ब द चौधरी जी रुकल ि नहि। अब ध गथतएां ओ किब
शुरु कयने रिथि:-सुरेन्द्र जी! श्री शुकदे ि ठ कुर जी आ श्री र म लोचन ठ कुर
जी दुनू हनज हपथतयौत भ ई छथि। श्री शुकदे ि जी कलकत्त र म
(िे ज)कांपनीमे क ज करै त छथि। आ श्री र म लोचन जी एत्तटिि इनकम िै तस
हिभ गमे क ज करै त छथि। दुनू भ ई कमतठ लोक छथि। दुनू भ ई 'थमथिल
सां घ'क लोक छथि।शुकदे ि जी 'सां घ'अध्यक्ष रिथि।आ र म लोचन जी से िो
'सां घ'क सथचि रहि चुकल छथि।ब दमे ओ 'सां घ'क न िक हिभ गक प्रभ री
बन ओल गे ल रिथि।दुनू भ ां ई न िकक म ां जल कल क र छथि।र म लोचन जी
तँ िमर सां ग िमर शलखखत न िक 'च णतय'मे चन्द्र गुप्तक भूथमक मे रिथि।
आ,िम च णतयक भूथमक मे रिी। लोक सभ एखनो धरर किै त छथि उतत
दुनूक भूथमक मे ऊतत न िक बे श मां थचत भे ल छल।जकर पुनर िृथत भहिष्यमे
पुन: िै त हक नहि,से नजि ज हन।एखन समय भ िमे दुनू भ ां ई समय नजि
द'रिल छथि।" त हि पर िम आग किने रहियखन्द्ि-"चौधरी जी! अपने ठीके
किै त छी। िम से िो कलकत्त क कते को लोकक मुँिे ई ब त सुनने छी। हिशे ष
क' िमर श्रीिै द्यन ि झ जी(डु मर बल )से िो एहि सां बांधमे किने छथि।"
श्रद्धेय श्री ब बू स िे ब चौधरी जी िमर आग किने रिथि :-सुरेन्द्र जी! र म
लोचन ठ कुर जी एकि नीक जुझ रू मै थिली ि न्न्द्तक री छथि। ओ 'मै थिली
मुक्तत मोच त बन क' पिन मे सफल आन्द्दोलन से िो कयने छथि। ओ मै थिली
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 197

जगतमे ज नल-म नल लोक छथि। िमर ओ ईिो किने रिथि जे ओ मै थिलीक


एकि नीक कहि-ले खक आ स हित्यक र छथि। ले खन िे तु जे हकओ हुनक
प्रोत्स हित कयने िे थिन्द्ि त हिमे िम से िो एकि लोक छी। ओ हकछु मै थिली
पोिीक प्रक शन से िो कयने छथि। आ,उतरोत्तर करै त रित ि। ओ मै थिली
पत्र-पशत्रक क सम्प दन से िो करै त छथि" मि मन श्रद्धेय चौधरी जी िमर
ईिो किने रिथि:-सुरेन्द्र जी! श्री शुकदे ि ठ कुर जी आ श्री र म लोचन ठ कुर
जी िमर समथध से िो छथि। िमर कहनष्ठ भ्र त र म प्रस द(चौधरी)क जये ष्ठ
ब लककें शुकदे ि ठ कुरजीक अपन एकि कन्द्य सँ हिि ि िमिीं करबौने छी।
तौं िमर सभक बीचमे एते क आपकत अथछ आ रित।" आब श्रद्धेय श्री ब बू
स िे ब चौधरी जी नहि छथि। मुद ,ओ िमर श्री र मलोचन ठ कुर जीक सां बांधमे
जे ब त सभ कहि गे ल छथि से एखनो धरर अक्षरशः थमलै त अथछ। आ,िम
पूणत अनुभि कयल अथछ जे श्री र म लोचनजी अद्य िथध थमथिल -मै थिलीक
हन: स्ि ित से ि क' रिल छथि। ओ ि ल तक बहुतो मै थिली पुस्तकक
प्रक शन क' चुकल छथि। ओ हिशभन्द्न पत्र- पशत्रक मे आले ख शलखै त
रिल ि। कखनो छद्म न मसँ त' कखनो अपनटिि न मसँ । ओ िमर सभ के
किल पर अ०भ ०थमथिल सां घ'क ले ल श्रद्धेय (स्ि०)श्री ब बू स िे ब चौधरी
जी द्व र स्ि हपत-प्रक शशत पशत्रक ' मै थिली दशतन'क पुन: सम्प दन -
प्रक शनक भ र उठौलखन्द्ि। उतत पशत्रक जनिरी २००४सॅ शुरु भे ल । आ,
ददसम्बर२००५तक प्रक शशत िोइत रिल। मुद ,सन-२००६क जनिरी म िसँ
'सां घ'क भूतपूित मुख पत्र आ म शसक पशत्रक 'थमथिल दशतन'क पुन:
प्रक शन शुरु भे ल श्री म न् उदय न र यण ससिि 'नथचकेत 'जीक प्रध न
सम्प दकत्िमे । आ ,श्री ठ कुर जी उतत पशत्रक क क यतक री सम्प दककें
रुपमे क ज करय लगल ि। फलस्िरुप 'मै थिली दशतन'क प्रक शन बन्द्द
भ'गे ल। ति हप श्री ठ कुर जीक सितस्तरीय सियोग प्रसां शनीय रिल
छल। एहि सभ उपरोतत तथ्यक अथतररतत श्री र म लोचन ठ कुर जी समय
198 ||गजेन्द्र ठाकुर

-समय कोलक त आ एकर उपनगरक थमथिल -मै थिलीक हिशभन्द्न


क यतिममे सहिय रुपसँ भ ग लै त रिल ि। ओ अपन सम्प दकीय ले खन आ
भ षण सभमे प्र य: मौशलक तथ्य के सद उल्ले ख करै त रिल ि। ज हिसँ
नि गत पीढ़ीक लोक सभ थमथिल -मै थिलीक अतीत आ िततम नक समस्य
सभसँ अिगत िोइत रिथि। िमर दृथिएां श्री र म लोचन ठ कुर जी र जनै थतक
रुपसँ एकि सुच्च कम्यूहनि छथि। ओ अपन स्तरक उथचतितत आ सफल
मै थिलीि दी लोक छथि। नोकरी करब हुनकर एकि मजबूरी छलखन्द्ि। ले खन
हुनक एकि व्यसन छखन्द्ि। थमथिल -मै थिलीक हनरन्द्तर से ि करब हुनक परम
धे य छखन्द्ि। एहि अां तगतत सम्पूणत थमथिल मे प्र िथमक स्तर पर शशक्ष क म ध्यम
मै थिलीए िे ब क शसद्ध न्द्तक पक्षधर छथि। सां गहि, 'थमथिल र ज' हनम तणक
प्रबल समितक छथि। एखन 'थमथिल दशतन' पशत्रक पुन: च लू भे ल
अथछ। परन्द्तु हकछु म स पहिने एहि म शसक पशत्रक 'क प्रक शन िठ त् बन्द्द
भ' गे ल छलै क। ओिी समयमे ज्ञ तव्य भे ल छल जे श्री र म लोचन ठ कुर जी
अपन श रीररक अस्िस्थ्यत क क रणें एकर सम्प दन सियोग बन्द्द क' दे लखन्द्ि
अथछ। आ,ओ थचहकत्स करब रिल छथि।एक ददनक ब त।प्रशसद्ध न ट्य
हनदे शक श्रीगां ग झ जी फोनक कयलखन्द्ि जे िम श्री ठ कुर जीसँ भे िकरब क
िे तु हुनक हनि स स्ि न पर ज एब।कृपय अपने अबस्से आउ। एकटिि सां गे
दुनू आदमी ज एब। सै ि भे ल।दुनू आदमी हुनक भें ि केशलयखन्द्ि। दे खल जे
उत्तरोत्तर हुनक स्ि स्थ्यमे सुध र भ' रिल छखन्द्ि।हुनक सां ग प्र य:एक घां ि
ब तचीत कयल। ओ च ि पीऔलखन्द्ि। अां तमे िम दुनू व्यक्तत हुनक सुखद
स्ि स्थ्यक क मन करै त प्रस्ि न कयल।

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 199

योगे न्द्र पाठक ‘कवयोगी’-सं पकक -9831037532

रामलोचन ठाकु रक व्यक्ततत्व : एक दृथिकोण

रामलोचन ठाकुर कें हम पछिला िोलह-ििह िाल िँ जनै त छिऐवन। हुनकर


वकिु िावहत्ययक कृछत पढ़ल अछि। िावहययक मूयाां कन करबाक अिगछत
हमरा नवह अछि, माि हम हुनक व्यक्लतयिक वकिु िाि अां श पर अपन
अिलोकन एतए प्रस्तुत करै त िी।

2004 के अन्द्त अििा 2005 के शुरु के िमय, हम कलकछतया िावहत्ययक


िमाज मे घाें त्रिये बाक चे िा करै त रही आ िम्पकवक मात्रिक बै िार मे जाएब
शुरु कएने रही। ओवह िमय ई बै िार कॉले ज स्िीट बला राजे न्द्र िाि वनिाि
मे कोनो कोठरी मे भे ल करै । एहने एक बै िार मे अकस्मात रामलोचन जी
अपन एकटा पुस्तक ‘स्मृछतक धोिरल रां ग’ ले ने अएलाह आ एतबा कवह जे
‘एकर विमोचन िै ज्ञावनकजी करताह’ हमरा हािें ओकर विमोचन करबौलवन।
ओ वकताब हमरा पवहने िँ दे िल नवह िल। हम ओवह विषय पर वकिु बजबा
मे अिमिव िलहुँ , मुदा विमोचनक प्रवक्रया िम्पन्द्न भे ल। वकताब मे हमरा
पवहल बे र वकिु अटपट लागल — मुिपृि पर वकताबक नाम आ ले िकक
नाम माि छमछिलािर (जकरा हम िब बच्चा मे छतरहुता त्रलवप नामे त्रििने
200 ||गजेन्द्र ठाकुर

िलहुँ ) मे लीिल। दे िनागरी वनपत्ता। बगल के ्लै प पर जरूर दे िनागरी मे


ओएह बात लीिल िलै क, वकन्द्तु एहन व्यिहार हम पवहल बे र दे खि रहल
िलहुँ । पुरान मै छिली ले िक लोकवनक कते को पुस्तक एहन दे िने िी जावह
मे छमछिलािरक व्यिहार भे ल िलै क मुदा िां गवह दे िनागरी िे हो रवहतहहिं
िलै क, िे बरू िोटे अिर मे वकएक ने होइक।तकर बाद हुनकर आनो पुस्तक
िब दे िबाक आ पढ़बाक अििर भे टल। हुनकर पुरना वकताब िब, जे ना
‘मै छिली लोककिा’ (1983), ‘अपूिाव’ (1996), ‘लाि प्रश्न अनुत्तररत’
(2003) आदद िब मे ओएह िाठी। ‘आँ खि मुनने आँ खि िोलने ’ (2005)
मे दे िैत िी मुिपृि पर दूनू त्रलवपक व्यिहार। तकर बाद अनुिाद बला वकताब
िब मे छमछिलािर वनपत्ता।

बीिम शताब्दीक उत्तरािव मे एवह प्रयोगक की औछचयय िलै क ? वकिु गोटे


एकरा रामलोचनजीक हठधर्मिंता कवह िकैत िछि मुदा हमरा विचारें एकर
गूढ़ अिव िलै क। मै छिली िे नानी रामलोचन ठाकुरक ले ल मै छिली भाषाक
िां गहहिं त्रलवपक महत्ता िमतुये िलवन। ओ मै छिल िमाज कें इएह िन्द्देश
दे बऽ चाहै त िलखिन जे अपन त्रलवप कें वबिरब उछचत नवह। छमछिलािरक
हटा दे ब मै छिली ले ल कते क लाभदायक आ वक हावनकारक भे लैक तावह बहि
मे हम एतए नवह जाए चाहै त िी मुदा एतबा बता दे ब जरूरी बुझैत िी जे
छमछिलाक बाहर जे विद्वान मै छिली भाषा आ िां स्कृछत िँ त्रिने ह रिै त िछि
आ भाषाक िां ग त्रलवपक महयि बुझैत िछिन, हुनका नजरर मे त्रलवप कें हटा
दे ब मै छिली ले ल महान गलती भे ल। ओना तऽ अने को एहन उिरण दे ल जा
िकैत अछि, मुदा एवह प्रिां ग हम अपन अनुभि बतबै त िी। 2014 मे केन्द्रीय
विश्वविद्यालय, ते जपुर (अिाम) मे भारतीय राष्ट्िीय विज्ञान अकादमी
(INSA) के िार्षिंक मीहटिंग भे ल िलै क। ओवह मे अिछमयाक प्रत्रिि
िावहययकार प्रोफेिर नगे न िाइवकया अछतछि िलताक रूप मे अपन व्याख्यान
प्रस्तुत कएने रहछि। व्याख्यानक अन्द्त मे हमरा हुनका िां ग वकिु गप-िप भे ल
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 201

िल। ओही क्रम मे ओ ई विचार व्यलत केलवन जे त्रलवप कें हटाएब मै छिलीक
ले ल बहुत हावनकारक भे लैक।

िमयक िां ग रामलोचनजीक एवह विचार मे वकिु पररितवन भे ल। एकटा आर


अिलोकन — छमछिलािर बला वकताब िन वहनकर स्ियां प्रकात्रशत िलवन।
एकर विपरीत अनुिाद पुस्तक िब अन्द्य प्रकाशन िँ — जे ना ‘पद्मा नदीक
माझी’ (2009) छमछिला िाां स्कृछतक पररषद कलकत्ता िँ , ‘कठपुतरी
नाचक इछतकिा’ (2016) िावहयय अकादमी िँ आ ‘अयाची िां धान’
(2018) वकिुन िां कल्प लोक, िुपौल िँ । की छमछिलािरक अनुपस्स्िछत
कें प्रकाशक िँ जोवड़ िकैत छिऐक ? आ वक ले िक स्ियां एवह वनष्ट्कषव पर
आवब गे लाह जे ई व्यिहार अनुपयोगी भऽ गे लैक ? कहब कदठन कारण एवह
विषय पर हमरा हुनका िां ग चचाव नवह भे ल।
‘स्मृछतक धोिरल रां ग’ नामवह िँ बुझना जाइि जे पुस्तक िां स्मरणायमक ले ि
िबवहक िां कलन अछि। एवह मे मुख्यतः चचाव अछि मै छिली आन्द्दोलन मे
कलकत्ताक योगदान, जावह मे रामलोचनजी कोनो ने कोनो रूप मे अपने
िहभागी िलाह। पुस्तक पढ़ला िँ हम मै छिली आन्द्दोलन मे कलकछतया
मै छिल िमाजक योगदान बूक्षझ पौलहुँ ।

‘मै छिली लोककिा’ पवहल बे र िपल 1983 मे । ई कोनो मौत्रलक कृछत नवह
कहल जे तैक मुदा िमाजक धरोहरर कें िम्हारर कए एकत्रित करबाक काज
भे लैक। खिस्िा वपहानी बच्चा मे िब गोटे िुनने िी माए-बाबू, काका-काकी,
दादा-दादी, नाना-नानी अििा पररिारक आ िमाजक अन्द्य लोक िबिँ ।
विश्वक िब िमाज मे अने क रूप मे ई खिस्िा-वपहानी प्रचत्रलत िै क जावह िँ
बच्चाक ले ल मनोरां जनक अछतररलत बहुमूय त्रशिा िे हो भे टैत िै क। िब
भाषा मे एहन खिस्िा िब के िोट-पै घ िां कलन िे हो कएल गे ल िै क। ियय
202 ||गजेन्द्र ठाकुर

बजबाक नीक फल, झूठ बजबाक िराप फल, इमानदारीक महयि, पररश्रमक
फल, अछतछि ियकारक महयि, कतवव्याकतवव्यक बोध आदद अने को विषयक
पररचय आदद काल िँ बच्चा कें एवह खिस्िा िब िँ भे टैत रहलै क अछि।
लोककिाक स्िरूप दे श-कोि बदत्रल गे ला िँ बदत्रल जाएब स्िाभाविके। एके
गाम मे दूटा किा िाचक एके किा कें कले िर कने बदलै त िुनबै त भे वट जाएब
अिम्भि नवह। कतहु कने पाि बदत्रल गे ल तऽ कतहु कने दृश्य। ई खिस्िा
िब छिवड़आएल िै क आ िमयक िां ग बहुतो खिस्िा लोक वबिरर जाइत
रहल अछि। िाि कऽ कए बदलै त िामाक्षजक पररिे श मे , जतए नानी, दादी
बला िां युलत पररिार उदठ गे लैकए आ युिा पछत-पयनीक न्द्यक्ू ललयर पररिार
रवह गे लैकए, खिस्िा कहबाक ले ल पुस्तक बहुते आिश्यक बुझाइत िै क।
रामलोचनजी एवह आिश्यकता कें बुझलवन बहुत पवहनवह आ तें िां कत्रलत
केलवन लोककिा कें।

लोककिाक िां कत्रलत िावहयय िब विकत्रित भाषा मे बहुत िमृि िै क। ए.


के. रामानुजन त्रलखित अां ग्रेजी वकताब Folktales from India, जावह
मे भारतक बाइि भाषाक चूनल 110 टा लोककिा िै क, एते क उपयोगी
भे लैक जे ओकरा बां गला अनुिाद केलवन महान विदुषी ले खिका महाश्वे ता
दे िी। एकर मै छिली अनुिाद िम्भितः नवहए भे ल िै क। बां गला भाषा मे
अने को पुस्तक िै क लोककिा विषय पर। तिावप महाश्वे ता दे िी िन महान
िावहययकार ए. के. रामानुजन त्रलखित अां ग्रेजी वकताब के बां गला अनुिाद
केलवन। बाइि भाषा मे ई नवह मावन बै िबै क जे मै छिलीओ िै क। एवह अां ग्रेजी
वकताब मे मै छिलीक कोनो किा नवह िै क।
छिवड़आएल लोककिा िब कें एक ठाम लीखि कए पाठक कें परोत्रि दे ब
महयिपूणव योगदान बूझल जे बाक चाही। रामलोचनजी अपन एवह पुस्तक कें
िमर्पिंत केलवन मै छिली लोकिावहययक अनन्द्य उपािक िा० ब्रजवकशोर िमाव
‘मक्षणपद्म’, राजे श्वर झा आ अक्षणमा लििंह कें। एवह मे कुल 36 गोट किा
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 203

िै क, िब रुछचगर। विध-विधाताक खिस्िा िँ लऽ कए िमाजक प्रायः िब


िगवक प्रछतवनछधयि िै क एवह िां ग्रह मे । ठक, आलिी, चतुर, िे ठ-िाहूकार,
लोभी, दानी, विद्वान आ महामूिव िब के खिस्िा भे टत अपने कें एवह िां कलन
मे । मै छिली लोककिाक िोटमोट िां कलन पवहनहु प्रकात्रशत भे ल िलै क
वकन्द्तु एते क पै घ नवह। पाठकिगव िे हो एकर महयि कें बुझलक आ पुस्तक के
पवहल िां स्करण जल्दीए शे ष भऽ गे ल। तिन 2006 मे आएल दोिर
िां स्करण। बहुत ददन बाद 2017 मे वकिु आर बे िी खिस्िाक िां ग आएल
योगानद झा िां कत्रलत आ िावहयय अकादमी द्वारा प्रकात्रशत ‘छमछिलाक
लोककिा िां चय’।

रामलोचनजीक ई प्रयाि एकटा अमूय वनछध भे लैक मै छिली िावहयय ले ल।


अस्िस्िताक कारण ितवमान मे ओ वनन्ष्ट्क्रय भऽ गे ल िछि। ईश्वर िँ प्रािवना
जे हुनका शीध्रे स्िस्ि कराबछि जावह िँ मै छिली िावहययक भां िार मे वकिु
आर योगदान होइक।

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


204 ||गजेन्द्र ठाकुर

प्रदीप कबिाऱी-सं पकक -6202140561

मशाल ले ने चलै त अग्रदूत

राम लोचन ठाकुर मावटपावनक एकटा एहन कवि, किाकार, अनुिादक,


िम्पादक आ रां गकमी िछि, क्षजनक रचनाक कण-कणिां मातृभूछम आ
मातृभाषाक प्रछत अनुराग छिटकैत अछि। जें छमछिला आ मै छिलीक ििाां गीण
विकाि हे तु आग्रह िवन, तें छमछिला, मै छिल आ मै छिलीक प्रछत िरकारी
उपे िाक विरोध िे हो वहनक रचनामे पाओल जाइत अछि।

िन् 1987 ई. मे अपन उपन्द्याि "वििूवियि" क विमोचन िमारोहमे


कोलकाता (तावह िमयक कलकत्ता) गे ल रही। ताधरर भाइ श्री रामलोचन
ठाकुर हमरा ले ल फवड़िायल पररछचत भ' चुकल िलाह। वहनक पोिी िभ,
यिा- मावटपावनक गीत, दे शक नाम िलै िोनछचड़ै या आ आजुक कविता
(िम्पाददत) पवढ़ चुकल रही। एतबे नवह, वित्रभन्द्न पि-पत्रिका िभमे 'कह
लोचन कविराय' िे हो पढ़ने रही। 'अग्रदूत' आ 'कुमारे श काश्यप' नामिां
किा आ हास्य-व्यां ग्य िे हो पढ़ने रही आ फररिौट भ' गे ल रहय जे अग्रदूत
आ कुमारे श काश्यप केओ आर नवह, दुघवषव अत्ग्न हस्तािर राम लोचन ठाकुर
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 205

िछि। एतबे नवह, मुतवजा हुिै न िे हो यै ह िछि। वहनक िम्पादनमे बहरायल


नाट्य पत्रिका 'रां गमां च' दे खि चुकल रही आ प्रभावित भे ल रही। एहन अग्रदूत
िां भें ट आ भररपोि गप करबाक िे हन्द्ता ले ने िे हो कलकत्ता गे ल रही। मुदा,
दुखित होयबाक कारणें ओ उल्ले खित विमोचन िमारोहमे नवह आवब
िकलाह। हमहीं हुनका भें ट कर' गे ल रवहयवन। छमछिला आ मै छिलीक
वित्रभन्द्न िमस्या पर गप भे ल िल। रां गमां चक अधुनातन त्रशल्प पर गप
कयलवन।हमरा प्रिन्द्नता भे ल रहय जे हमर ताधररक अछधकाां श किाक
किािस्तु आ पािक नाम धरर मोन िलवन। जे नीक लागल रहवन, तकर बड़
आिे शिां प्रशां िा कयलवन । आ, जे नीक नवह लगलवन, जत' िुवट बुझायल
रहवन िा कोनो िै चाररक मतभे द बुझायल रहवन, तकर स्पि रूपें आलोचना
कयने रहछि। वहनक ई गुण हमरा तवहयो नीक लागल रहय आ आइयो नीक
लगै त अछि।

नीककें नीक आ बे जायकें बे जाय कहबाक वहम्मछत रामलोचन भाइमे एिनहुां


िवन। ओ मुांह दे खि मुांगबा कवहयो ने परिलवन। हुनक ई गुण हुनका बहुतोिां
बे रबै त िवन। अपन एवह गुणक कारणें बरोबरर कछतआयल जाइत रहलाह
अछि। मुदा तकर परबावह ओ कवहयो ने कयलवन अछि। हुनका ले ल अपन
िोचक मानदां ि बे िी महयिपूणव िवन। हुनका स्ियां पर भरोि िवन। आ तें ओ
अपन रचनामे आ व्यिहारमे परम्पराक रूवढ़कें तोड़ै त रहलाह अछि।

राम लोचन ठाकुर एकटा एहन गीतकार िछि, जे अपन गीतिां छमछिलाक
वबिरल जाइत उयििकें मोन पाड़ै त िछि। वबिरल जाइत िे लकें अपन
गीतक विषय बना ओकरा क्षजअ'बै त िछि। 'मावट पावनक गीत' नामक
िां ग्रहमे दे िल जा िकैत अछि जे वहनक प्रयये क गीतक आिर-आिरिां
छमछिला आ मै छिली अनुगां क्षु जत होइत अछि। एवह िां ग्रहक िे ल शीषवकिां
206 ||गजेन्द्र ठाकुर

त्रलिल गीत हो िा कोनो आने , ऊपरिां तां िोझ-िोझ बुझाइत िवन, मुदा
भीतरिां मरिाह आ आक्रमक होइत िवन। वहनक काव्य रचना पढ़ने बुझाइि
जे ई िोझे -िोझी बात कहबाक आग्रही िछि। तिावप विषय िस्तुक अनुिार
िन्द्द गढ़बाक वहनक लूरर िहजहहिं दे िबामे अबै त अछि। कुण्ित्रलया िन्द्दमे
वहनक रचना 'कह लोचन कविराय' िूबे चर्चिंत भे ल िल।

राम लोचन ठाकुर अपन कविता िभमे मातृभछू म आ मातृभाषाक विकाि आ


िमृत्रि हे तु अपन व्याकुलताक िां ग दे िाइत रहै त िछि। िां गवह, िै मनस्य आ
िै मनस्यकें प्रश्रय दे ल जाइत व्यिस्िाक विरोध करै त िछि। अपन रचना िभमे
नि वनमावण ले ल व्याकुल दे िाइत िछि। नि वनमावण ले ल रचै त िछि आ
विरोह िे हो करै त िछि।

ओ आां खि िोलने िभठाम आ िददिन ठाढ़ दे िाइत िछि। िामाक्षजक


व्यिस्िा आ िाां स्कृछतक मूयक िरण होअय िा शोवषत-प्रताररतक दुि, राम
लोचन ठाकुर िभक भां गठी ले ल कलम उठौने दे िाइत िछि। हमरा जनै त
वहनका मोनमे अभाि घुरमुररया दै त रहै त िवन। जत' अभाि दे िैत िछि,
तकर वनिारण ले ल तै यार भ' जाइत िछि, उठा लै त िछि कलम। ई गुण
वहनक रां गकमी होयबाक कारणें िे हो िवन प्राय:। प्रस्तुछतक उयकृिताक ले ल
जे ना रां गकमी नाटक आ रां गमां चक कोनहु काज ले ल तयपर रहै त अछि, तवहना
राम लोचन ठाकुर अपन कलम उठौने तयपर रहै त िछि। आ तें बहुत विधामे
रचना कयलवन अछि।

राम लोचन ठाकुर बहुत विधामे त्रलिलवन। अग्रदूतक नामिां किा, कुमारे श
कश्यपक नामिां व्यां ग्य। आदद, आदद। मै छिलीमे जत'-जत' ररलतता
बुझयलवन, अपन कलमिां भरबाक प्रयाि कयलवन अछि आ िफल भे लाह
अछि। वबिरल जाइत लोक िावहययकें 'मै छिलीक लोक किा' नामक पोिीमे
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 207

परिलवन अछि।

राम लोचन ठाकुर कुशल अनुिादक िछि। अनुिादक प्राय: दि गोट पोिी
प्रकात्रशत िवन। वहनक मूल ले िक आ अनुिादक, दुनू एक पर एक। वहनका
द्वारा अनूददत कृछत िे हो मौत्रलके िन लगै त िै क। एकर प्राय: इहो कारण िै क
जे स्रोत भाषािां िोझे लक्ष्य भाषामे अनुिाद करै त िछि। एिवन मै छिली मे
बड़ कम अनुिादक िछि, जवनका अनुिादमे िां पकव भाषाक िगता नवह होइत
िवन। बाां ग्लािां अनूददत पोिी िभ िवन। जे महयिपूणव िस्तु अपना भाषामे
आनबाक िगता बुझयलवन, जे पूरे इमानदारीिां आनलवन। कहल गे लैए जे
नीक अनुिाद िै ह, जे पढ़ै त काल अनूददत िन नवह लागय। िे , वहनका द्वारा
अनूददत नाटक होअय, काव्य िां ग्रह होअय िा उपन्द्याि, उत्तम कोवटक
अनुिाद मानल जा िकैत अछि। लक्ष्य भाषामे स्रोत भाषाक लोकोक्लत आ
मुहािराक िटीक अनुिाद ताकबामे वहनक कारीगरी महयिपूणव िवन। एहन
दे िल गे लैक अछि जे स्रोत भाषाक िमाजक चलन-प्रचलनक अिव लक्ष्य
भाषाक िमाजमे उनवट जाइत िै क। ओवहठामक नीक एवहठाम अधलाह भ'
जाइत िै क। ई अनुिादकक ले ल चै लेंजक स्स्िछत भ' जाइत िै क। वकिु
अनुिादक एकर शाटवकट विकल्प तावक ििरर जाइत िछि। एहना स्स्िछत मे
अनुिादककें बे िी ितकव होयबाक िगता होइत िवन। ई कहै त हिव होइत
अछि जे राम लोचन ठाकुर अपन अनुिादमे एहन कोनो शाटवकट तावक
ििरलाह नवह अछि, जकर बानगी वहनका द्वारा अनूददत उपन्द्याि नखन्द्दत
नरके, पद्मानदीक माझी, कठपुतरी नाचक इछतकिा, अयाचीक िां धान आ
काव्य-िां ग्रह 'जा िकै िी, वकन्द्तु वकए जाउ' मे दे िल जा िकैत अछि।

राम लोचन ठाकुर एकटा कुशल िां पादक िछि। जिन बुझयलवन जे कवितामे
रजनी-िजनी त्रलिल जाइत िै क, तां 1984 ई. मे 'आजुक कविता' नामक
208 ||गजेन्द्र ठाकुर

कविताक पोिीक िां पादन क' कविताक छचि स्पि करबाक प्रयाि कयलवन
अछि। एवह पोिीमे िोमदे ििां विभूछत आनन्द्द धररक ते रह गोट कविक
कविताक िां कलन-िां पादन क' कविताकें ितवमान पररिे श प्रिूत
मानत्रिकताक प्रछतफलनक रूपमे प्रस्तुत कयलवन अछि।

बहुत राि पि-पत्रिकाक िां पादनक बाद हे बवन धरर 'छमछिला दशवन'क कुशल
िां पादन कयलवन अछि।

अपन बे िी पोिीक प्रकाशक ओ स्ियां िछि। ओना मै छिलीमे ई बात मानल


जाइत अछि जे ले िक स्ियां प्रकाशक होइत िछि। ई बात िाां च िे हो अछि।
मुदा, पूरा-पूरी िाां च नवह। जावह िमय वहनक पोिी िभ अबै त िल, तावह
िमय कलकत्तामे बहुत राि िां स्िा िभ िल। ई िां स्िा िभ बहुत राि पोिी
िापलक। मुदा...अपन स्पििादी स्िभाि आ ठाहहिं-पठाहहिं उछचत-अनुछचत
कहै त रहबाक कारणें राम लोचन ठाकुर बहुत गोटे कें नवह पचलाह, बहुत
िां स्िो कें नवह। मुदा, एवह िभक परबावह ओ कवहयो ने कयलवन। ले िककें
अिल मान पाठके दै त िवन। िे , पाठक वहनको मान-िम्मान दे लकवन अछि।
िूब पढ़ल गे लाह अछि। अपन धुनमे मस्त अपन उद्देश्यक ले ल बढ़ै त रहलाह
अछि। िावहयय आ िमाजक गोलै िीिां फराक रहै त अिण्ि छमछिला आ
मै छिली ले ल िोचै त रहलाह अछि। मुदा, एहन-एहन गोलै िीकें इां वगत करबामे
चुकलाह नवह अछि। काव्य-िां ग्रह 'अपूिाव'क स्मृछत-छचि शीषवक कविताक ई
पद दे िल जा िकैि- िुनह वियोगी कान दय भलमानुष के बात। मै छिलीक
िावहयय मे िब िां पै घ गतात। राम लोचन ठाकुर ईमानदारीपूिक
व छमछिलाकें
छमछिला त्रलिै त िछि। क्षजनका िभकें वहनकािां पिाचार भे ल िवन, िभ एवह
बातिां िहमछत होयताह । पि पर त्रलिल ठे कान पर क्षजलाक बाद छमछिला
त्रलिै त िछि। जे ना, क्षजला-बे गि
ू राय (छमछिला)। िभ ठाम एवह तरहक
ठे कान त्रलिल दे िैत रहबाक िपनाक िां ग राम लोचन ठाकुर एिनो जीवब
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 209

रहल िछि। अपन क्रान्न्द्त-यािामे मशाल बला हािकें नोतै त जीवब रहल िछि।

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210 ||गजेन्द्र ठाकुर

कामे श्वर झा "कमल"

श्री रामलोचन ठाकु र आ हुनक व्यापक काव्य सं सार


विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 211
212 ||गजेन्द्र ठाकुर
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 213
214 ||गजेन्द्र ठाकुर
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 215

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