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Videha_Ramlochan_Thakur_Special_Issue-181-240
Videha_Ramlochan_Thakur_Special_Issue-181-240
‘दे शसल बयन ’क पृिपर अपन ि स्तहिक न मसँ उभरै त र मलोचन ठ कुर
कखनो क ल अत्यन्द्त कठोर भऽ उठै त छथि । अपन ग मसँ , अपन सपन क
िृन्द्द बनसँ जखन अित आजतन व्यिे शिर पकडब पर ब ध्य िोइत छथि त
स म चकेि खे ल इत बहिनक भ इक अनुपस्स्िथत बोधसँ िोइत पीड क
अनुभूथतके मिशूस कररतो ग्र म्य र जनीथत प्रथत अपन मोनमे बै सल
अिस दके एन कऽ व्यतत करै त छथि–
“बहिन द ई !
िम ज नै त छी जे अि ँ एहु बे र
आ नहि प हब िमर
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 157
भे ल िएब उद स
हकन्द्तु बहिन द ई !
अि ँ म नी हक नहि म नी
सोबन त लोि सँ
आ, जे न अि ँ शलखने छी–
िज रक िज र चुहगल जनथम गे लए । आ
आइ
अइठ मक बस तो अइ हिषयुतत
158 ||गजेन्द्र ठाकुर
स ां सो ले ब क अनुपयुतत
तै
‘दे शसल ियन ’सँ दे सकोस धररक य त्र पर फूिसँ कहियो शलखब । एखन एहि
पशत्रक मे र मलोचन ठ कुरक व्यक्ततत्िके खोजब क प्रय स कएल अथछ ।
एहिमे स िध नी इएि जे अने को कठोर आ प्रथतरोधी हिच रक प्रस्तुथत सभ
आएल अथछ, ज हिमे हिनक न म नहि छखन्द्ि, तएँ िम उल्ले ख नहि कएल
अथछ । ओहुन ओ व्यिस्ि प्रथत कठोर, अां ि छनीय गथतहिथध प्रथत अनुद र
रि बल लोक छथि, आ ई कोनो दुगुतण नहि, हिरले भे िबल गुण िोइछ । जे
हिनक मे छखन्द्ि ।
से एहि तरिे अपन सत्य तथ्यसँ लोकके तरां हगत कैहनि र कहि व्यक्ततत्ि
कखन सरस बहन प्रकृथतके सौन्द्दयतमे अपन के समर्पित कऽ दै त छथि दे खी
एकि ब नगी, हिनक च ररगोि थमनी कहित मे –
१. सूय े दय
– म इक आां चर तरसां
बि र क क मुि अपन
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 159
हबहुशस दे लक
शशशु अबोध !
२ र थत
बन्द्न स ँ झ मिफ मे
बे िी प्रत्ये क ददन
चशल ज इछ
दे ने हिछोि, व्यि
पस रर मन हपरिी पर
क री धन अन्द्धक र !
३ चन्द्रम
जोिै त िोथि ब ि जे न
खखडकी लग ठ हि
कुनू र थधक !
४ बख न्द्त
160 ||गजेन्द्र ठाकुर
इिो िषत
ओहिन बीथत गे ल
बस गै रेजक
पछु आरमे डु हब गे ल !
अपूिाभ
मै थिलीक पद्य स हित्यमे प्रक शशत पोिी सबिक सूचीमे एकि पहित्र न म
अथछ ‘अपूि त’ जे चर्चित स हित्यक र-सम्प दक श्री र म लोचन ठ कुर जीक
1970सँ 1995 धररक रचन क एक सां कलन अथछ | ‘अपूि त’क प्रक शन
‘थमथिल सम द’,कलकत्त द्व र 23 निम्बर 1996 क’ भे ल अथछ |
‘अपूि त’ एकि िहुमुखी प्रथतभ क कहि-गीतक र-थचन्द्तककेँ पुनः लोकक
सोझ ां अनलक | अइसँ पहिने हिनक स त ि पोिी आहब चुकल छलहन |
उन सी पृष्ठक एहि पोिीमे उन्द्ित्तरर पृष्ठमे पद्य-रचन अथछ जकर हनम्नशलखखत
भ गमे ब ँ िल ज सकैत अथछ :
(1)दोि
(4)गीत
सभकें बुझल अथछ जे थमश्रजी हिन्द्दी आ मै थिली दुनू भ ष मे गीत रचन करै त
छथि |
‘ओकर आां गनक ब रिम स ’ न िकक र मिे न्द्र मलां हगय जीक चर्चित कृथत
अथछ |
हिशशि छन्द्दमे लीखल एहि तरिक रचन सबिक प ां चम प ँ थतमे ‘कि लोचन
कहिर य’ नीक लगै त अथछ | कहि थमथिल कसँ स्कृथतक अनमोल धनक
स्मरण करै त िततम न स्स्िथतपर दुख प्रकि करै त किै त छथि :
र म क ल भगि न |’
ससििक न म हबल गे लै
की छलै आ की भे लै’
ई सां कलन ओहि समयक थिक जखन मै थिलीकें सां हिध नमे स्ि न नहि भे िल
छलै आ थमथिल -क्षे त्रमे एहि ब त ले ल अपन ने त -स्ि नीय ने त सभपर
आां गुर उठ ओल ज इत छल | लोकक खीझकें स्िर दे ल गे ल अथछ ‘हकछु
लोक’ शीषतक रचन मे :
स्ितां त्रत प्र त्प्तक ब द जते क प्रगथतकेर आश लोक करै त छल,से नहि भ’
सकल छल|
पोिीमे व्यिस्ि पर आां गुर उठबै त पीहडत िगतक िीसकें ‘धनकिनीक गीत’
शीषतक रचन मे व्यतत कएल गे ल अथछ:
‘िम सभ कम एब आ ख एत हकयो आन
अन्द्नक अभ िे ने आब िम मरबै ’
सम्म नपूितक अशभनन्द्दन कएल गे ल अथछ | एहि सां कलनमे कयि रचन
एिे न अथछ जे गजल जक ँ लगै त अथछ, हकन्द्तु गजल बहन नहि सकल अथछ|
हकछु रचन मे पहिलुक शे रमे गजलक गुण अथछयो त ब दक प ँ थत सभमे
तकर अभ ि अथछ | ब नगीक ले ल दे खल ज ए ई रचन :
हिनक रचन सां स रमे गीत अथछ, कहित अथछ, कि अथछ, ि स्य-व्यां ग्य
अथछ, अनुि द अथछ, सां कलन-सां प दन अथछ । थचन्द्तन ले ल थमथिल अथछ,
मै थिली-आन्द्दोलन अथछ, दे श अथछ, दे शक र जनीथतमे नै थतक आन्द्दोलन
अथछ। 'म हि-प हनक गीत'क ब द हिनक एहि सां ग्रिमे हिनक गीत रचन
सभ अथछ। गीत सभमे हिनक थचन्द्तन, सुन्द्दर सरल, लोकथप्रय शब्द
सभ,स्िच्छ आ स्िस्ि दृथि दे खख किल ज सकैछ जे 'लोचन'जी ज ौं गीते ि
शलखखतथि तँ मै थिली भ ष क गीत क रक प्रिम प ां थतमे हिनक स्ि न सुरजक्षत
रहितहन ।
‘‘ईषाव-द्वेष हटाबै िी
घृणा विभे द मे टाबै िी
बुत्रि वििे कक दीप ले त्रि हम
प्रेमक ज्योछत पिारै िी
कररया झु म्मरर िे लै िी।’’
छमछिला िां स्कृछत मे आस्िा आ नि-वनमावणक िां कल्पक िमन्द्िय करै त कवि
रामलोचन ठाकुरक पाँ ती मै छिल जन-मन ले ल प्रेरणादायक अछि। मै छिली
िावहयय जगतक कवि-वनबां धकार (रामलोचन ठाकुर), किाकार (अग्रदूत)
आ व्यां ग्यकार (कुमारे श काश्यप) मै छिल िामान्द्य लोक ले ल ‘‘मावट पावनक
गीत’’ आ गे य-काव्य ‘‘अपूिाव’’ िन कविता-िां ग्रह त्रलिै त िछि। दोिर ददि
‘अत्ग्नले िन’ धमी बवन ‘‘इछतहािहां ता’’, ‘‘दे शक नाम िलै िोन छचड़ै या’’
आ ‘‘लाि प्रश्न अनुत्तररत” कविता-िां ग्रहक रचना करै त िछि, जावह मे
यिास्स्िछतक प्रछत अिवहष्ट्णु, आक्रोशक तीक्ष्ण भािक अत्रभव्यक्लत,
मालिविादी चचिंतन िँ िम्पृलत, िां घषव चे तनाक वनमावता आ स्ि-वनमावणक प्रछत
174 ||गजेन्द्र ठाकुर
घोर आस्िािान, तैँ विध्िां ि केँ वनमावणक आिश्यकता मानै त िछि। हुनक
मां तव्य अछि जे मै छिली आन्द्दोलन आ अफ्रीका िा वफत्रलस्तीनक मुक्लत
आन्द्दोलन मे कोनो पािवलय नवह िै क। िभ ठामक जनता अपन भाषा-
िां स्कृछत आ जातीय मुक्लत ले ल एकरां ग आकुल-व्याकुल आ िां घषवरत अछि।
आ तैँ अफ्रीका हो िा वफत्रलस्तीन, पावकस्तान िा छमछिला िभक कविताक
कर्थय आ स्िर एलके िै क। एवह पृष्ठभूछम मे अन्द्यान्द्य दे शक/भाषाक कविक
कविताक मै छिली अनुिाद ओ ‘‘प्रछतध्िवन’’ मे कएने िछि। ििवहारा ओ
शोवषतक पि मे अपन ले िनी केँ प्रछतबि रिै त िछि। ििवहारा ओ शोवषतक
ले ल तऽ विश्व-बां धुयिक अिधारणा रिै त िछि, मुदा व्यििायीक िै श्वीकरण
अनुबांधक प्रछतरोध स्िरूप अपन कविता-िां ग्रह ‘‘लाि प्रश्न अनुत्तररतकेँ
िमर्पिंत करै त िछि।
ठाकुरजी छमछिला-मै छिली प्रेम ले ल प्रछतबि िछि, जे हुनक कविता मे स्मृछत,
पररचय, िणवन िा कटाि रूप मे प्रछतछचत्रित भे ल अछि। नि-वनमावण ले ल
ध्िां ि केँ आिश्यक मानवनहार कवि, छमछिला मे पिरर गे ल अिां ख्य कुक्यित
प्रिृछतक लोक िँ अपविि भे ल वबरदाबनक जड़नाइ उछचत बुझैत िछि। एकरा
िम्हारब व्यिव मानै त िछि। िां गवह अपन श्रम िँ नि वबरदाबन (नि
छमछिलाक) कल्पना करै त िछि, जावह मे िभक आश पूर करबाक िमता हो
–
ििवहाराक दुःि प्रछतछचत्रित करै त व्यिस्िा िँ िां घषव करै त अछि। काव्य
‘‘ििवहारा टी स्टॉल’’क नाम िँ त्रलिाइत अछि। हुनका ले ल िावहययक
िाौं दयव-बोध, अिहाय-नचारक स्स्िछतक िणवन-विश्ले षण मे अछि।
अपन नाट्य िावहययक अध्ययन-अनुशीलनक क्रम मे कोलकाता मे मै छिली
नाटक आ रां गमां च ले ल कएल गे ल कायवक पयावलोचन करै त िी, तऽ ओवह मे
श्री ठाकुरजीक नाम श्रे ष्ठ स्िान मे दे िाइत अछि। कलकत्ता(आधुवनक
कोलकाता) आरां भवह िँ छमछिला-मै छिली आन्द्दोलन ले ल अग्रिर रहल अछि।
आन्द्दोलनाकार लोकवन िामान्द्य मै छिल जन केँ एकत्रित आ िां गदठत कऽ
प्रारूप पर कायव करै त िलाह। लोकक आमां िण आ िां गठन ले ल िावहययक
िशलत विधा नाटक रहल अछि। नाट्य-मां च केँ लोकरां जनक प्रमुि आ िहज-
िुबोध िाधन बूक्षझ मै छिली आन्द्दोलन आहूत कएवनहार िभ मै छिली नाटकक
प्रणयन कलकत्तामे प्रारां भ कएलवन, जावह मे वकिु प्रहिन आ अल्पािछधक
नाटक मां छचत भे ल। पिाछत हुनका िभक चचिंतन-चे तना मे आभात्रित भे ल,
जे मै छिली आन्द्दोलन भाषा आन्द्दोलन छिक आ एकर िफलताक आधार
प्राचीन िावहययक भां िारे टा नवह, ओकर अविरल-अविस्च्छ परां परा ओ िमृि
िमकालीन िावहययक आगारो प्रयोजनीय अछि आ ई िमृत्रि नाट्य विधाक
ले ल िे हो िाां छित अछि। एही क्रम मे कलकत्तामे वित्रभन्द्न नाट्य िां स्िा िभक
स्िापना भे ल। एवह िां स्िा िभक प्रिछमकता िल मां चोपयोगी नाटक
त्रलिाएब आ ओकर प्रदशवन ले ल मै छिलीभाषी कलाकारक जुटान करब।
ठाकुरजी एवह दुनू कायवक भार िां िहन मे पिु एलाह नवह। अपन ले िकीय
धमवक वनिवहन करै त बहुभाषी प्रछतभाक धनीक ठाकुरजी बाां गला िँ मै छिली
मे नाटकक अनुिाद कएलवन। हुनक अनूददत नाटक मे बाां गला रां गमां चक
प्रत्रिि ले िक-वनदे शक शै लेश गुह वनयोगीक ‘‘फाँ ि’’ आ ‘‘ररहिवल’’
आओर श्यामल तनु दािगुप्ताक ‘‘जादूगर’’ (बाां गला - जादूकर) अछि, जे
नाटक िभ प्रदर्शिंत-प्रकात्रशत भे ल अछि। वकरण मै िक ‘‘चारर-पहर’’ आ
मनोज छमिक ‘‘वकशुनजी-विशुनजी’’ (बाां गला - ‘केनाराम-बे चाराम’) वहनक
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 177
वकयो कवि रूप मे जानए िा किाकार ‘अग्रदूत’ रूप मे । वकयो ‘‘बे ताल-
किा’’ पवढ़ ‘कुमारे श काश्यप’ केँ जानए िा ‘‘पद्मा नदीक माझी’’ पवढ़
अनुिादक केँ। वकयो िम्पादक बूझए िा रां गमां चक कलाकार। रामलोचनजी
िभ ठाम िशलत हस्तािर बवन उपस्स्ित िछि। हुनक अस्िस्िताक िूचना
अछि। हुनक शीघ्र स्िस्र्थयक कामना करै त िी। मै छिली आन्द्दोलनी रूप मे
ओ िां देश दै त िछि, जे आयमिात् करबा योग्य अछि –
रामलोचन ठाकुर िां घषवशील कवि िछि। ओ बहुत श्रम आ िाधनािँ कविताक
िमीप पहुँ चल िछि। हुनक जीिन तते क कांटकाकीणव आ ित-विित रहलवन
जे ओ कविता नै त्रलितछि तँ कलकत्ता िन महानगरमे अने क िमान्द्य मै छिल
जकाँ , अन्द्हारमे वबलायल रवहतछि। ओ कविताक ममव बुझलवन आ ओवह
ममवकेँ अपन िै चाररकताक िां ग काव्यायमक अत्रभव्यक्लत दे लवन।
कवि लग छमछिलाक महान परां पराक पूरम्पूर अत्रभज्ञान िवन। ओवह महान
परां पराक िूि ओ िदै ि धयने रहै त िछि। ओ अपन कवितामे कतहुँ हुिै त नवह
िछि। हुनका अिनुक क्रूरतम िमयक िािवक बोध िे हो िवन। एवह दूनूक
छमश्रणिँ ओ बे ि बे धक आ बे िप कविताक िृजन कऽ िकलाह अछि।
आइ कविताकेँ तते क गां जन िहय पड़ रहल अछि तकर ले िा नवह। कविताकेँ
िे लौर बुझवनहार कवि लोकवन लग रामलोचन ठाकुरक कविता अयनाक
काज करै त अछि। हुनका िभकेँ वनखश्चत रूपिँ रामलोचन जीक कविता
पढ़बाक चाही आ तकर ममवकेँ स्पशव करबाक चाही। रामलोचनजी प्रचार-
प्रिारिँ दूर रवह अपन कवि-कमवमे लागल रहलाह आ िै ह कारण छिक जे ओ
कविताकेँ एक उद्ये श्य धरर लऽ जा िकलाह।
हुनक जीिन िुच्चा रहलवन। अययां त िािधानी आ इमानदारीिँ ओ अपन
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 181
बरिामे विलम्ब दे खि
गमै या पूजाक िँ गोर
जट जवटन िे लेबामे व्यिस्त
मवहला िमाज
तक्षजयाक िां ग
झड़नी पर झु मैत वकशोर/तरूण दल
फगुआक अबीर
आ जूड़शीतलक कादो-मवटक िां ग
हमर गाम जीबै त िल
.................
हम तावक रहल िी िएह गाम
अपन गाम
हमरा लोकवन
अिावत् एकैिम शताब्दीक
िभ्य िुत्रशक्षित मनुलि
शब्दकें बना ले ने िी अस्ि
अस्ि विभाजनक
अस्ि शोषणक
अस्ि िां हारक
आइ शब्द स्नहे -िां िेदना नवह
घृणा-द्वेषक करै त् अछि िृछि-िां चार
रामलोचन ठाकुर विराट फलकक कवि िछि। मै छिलीमे , अपन धाराक एकिर
कवि जकाँ , अपन िां घवष-पिपर अविराम चलै त, अनिक यािाक िभटा मोल
चुकबै त ई कवि अपन कविता िभमे एक वित्रशि अिव भरै त रहलाह। आइ
वहनक कविता िभ मै छिली कवितामे एक धड़कैत आ विचारोत्ते जक आयाम
दै त अछि। एते क िहज आ िां प्रेवषत जे कविताक अिव ताकबा ले ल कतहुँ
दूरक यािा नवह करय पड़त अवपतु तकर अिव एते क िरल आ िुजल रहै त
अछि जे ओ अहाँ के िमान्द्य मै छिल आ हहिंदुस्तानी जीिनमे अनायािवह भे वट
जाइत अछि। कोनो दीहन-हीम, कोनो मजूर, कोनो ररलिा आ ठे ला बलाक
जीिनक िां घषवमे हुनक कविताक पाँ छत फड़कैत, अपन बात कहै त भे वट
जाएत। ई हुनक कविताक एक महयिपूणव आयाम छिक।
रामलोचन ठाकुर एक श्रे ष्ठ कविक अछतररलत श्रे ष्ठ अनुिादक ओ विचारक
िे हो िछि। अपन अनुिाद कमव आ तकर गुणित्तािँ ओ मै छिलीक मान
बढ़ौलवन अछि। ओ मै छिल मनक वित्रशि रचनाकार िछि आ हुनक कवितामे
आ अन्द्यो रचनामे िां पूणव छमछिलाक जीिन स्पां ददत करै त अछि। धमव,
िमाक्षजक जीिन प्रणाली, राजनीछत, िभ्यता आ िां स्कृछतपर हुनक एते क
िां तुत्रलत आ िमधानल व्यां ग्य िवन जे हुनक रचनाक कलायमक िां यम आ
तकर उयकषव मनकेँ मोवह लै त अछि। छमछिलाक िां ग-िां ग बां गालक जीिन एक
िां ग हुनक रचनामे अबै त अछि। एक दोिरािँ जुड़ल आ अन्द्तरां ग रूपमे ।
व्यां ग्यक कोना धे लवन िे नै जावन मुदा अिल नाम नुका अपन िद्मनाम
'कुमारे श कश्यप'िँ व्यां ग्य त्रलिबाक प्रयाि हुनका अनुरूप हमरा नै लागल।
ताल- बे ताल व्यां ग्य िां ग्रहमे कुल िात गोट व्यां ग्यक धार बहे लाह। जकर पवहल
शीषवक अछि-"अि किा चमचा पुराण। प्रस्तुत प्रिां गमे मै छिली आन्द्दोलनमे
भोगल अनुभिक बीच दे िल चाटु काररता, गोछधयाँ -गोधौअलिँ आहत भऽ
तोता - मै नाक िां िादे छचिणिँ िां तुि भे लाह।
त्रलिै िछिन- -" अिादि पुराणे व्यािाज िचनम ध्रु िमििव काले िभी िे िे
चमचा ििवि विद्यते "ओना अतबे िँ िन्द्तुि नै भे लाह। तँ चमचाक प्रमुि
प्रकार िे हो चारर भागमे बाँ वट त्रलिलाह।
िबटा किा कते को दशक पवहने क मुदा आइयो स्स्िछत पररितवन नै । तें आइयो
पूणव प्रािां वगक।
िल। ओही क्रम मे ओ ई विचार व्यलत केलवन जे त्रलवप कें हटाएब मै छिलीक
ले ल बहुत हावनकारक भे लैक।
‘मै छिली लोककिा’ पवहल बे र िपल 1983 मे । ई कोनो मौत्रलक कृछत नवह
कहल जे तैक मुदा िमाजक धरोहरर कें िम्हारर कए एकत्रित करबाक काज
भे लैक। खिस्िा वपहानी बच्चा मे िब गोटे िुनने िी माए-बाबू, काका-काकी,
दादा-दादी, नाना-नानी अििा पररिारक आ िमाजक अन्द्य लोक िबिँ ।
विश्वक िब िमाज मे अने क रूप मे ई खिस्िा-वपहानी प्रचत्रलत िै क जावह िँ
बच्चाक ले ल मनोरां जनक अछतररलत बहुमूय त्रशिा िे हो भे टैत िै क। िब
भाषा मे एहन खिस्िा िब के िोट-पै घ िां कलन िे हो कएल गे ल िै क। ियय
202 ||गजेन्द्र ठाकुर
बजबाक नीक फल, झूठ बजबाक िराप फल, इमानदारीक महयि, पररश्रमक
फल, अछतछि ियकारक महयि, कतवव्याकतवव्यक बोध आदद अने को विषयक
पररचय आदद काल िँ बच्चा कें एवह खिस्िा िब िँ भे टैत रहलै क अछि।
लोककिाक स्िरूप दे श-कोि बदत्रल गे ला िँ बदत्रल जाएब स्िाभाविके। एके
गाम मे दूटा किा िाचक एके किा कें कले िर कने बदलै त िुनबै त भे वट जाएब
अिम्भि नवह। कतहु कने पाि बदत्रल गे ल तऽ कतहु कने दृश्य। ई खिस्िा
िब छिवड़आएल िै क आ िमयक िां ग बहुतो खिस्िा लोक वबिरर जाइत
रहल अछि। िाि कऽ कए बदलै त िामाक्षजक पररिे श मे , जतए नानी, दादी
बला िां युलत पररिार उदठ गे लैकए आ युिा पछत-पयनीक न्द्यक्ू ललयर पररिार
रवह गे लैकए, खिस्िा कहबाक ले ल पुस्तक बहुते आिश्यक बुझाइत िै क।
रामलोचनजी एवह आिश्यकता कें बुझलवन बहुत पवहनवह आ तें िां कत्रलत
केलवन लोककिा कें।
राम लोचन ठाकुर एकटा एहन गीतकार िछि, जे अपन गीतिां छमछिलाक
वबिरल जाइत उयििकें मोन पाड़ै त िछि। वबिरल जाइत िे लकें अपन
गीतक विषय बना ओकरा क्षजअ'बै त िछि। 'मावट पावनक गीत' नामक
िां ग्रहमे दे िल जा िकैत अछि जे वहनक प्रयये क गीतक आिर-आिरिां
छमछिला आ मै छिली अनुगां क्षु जत होइत अछि। एवह िां ग्रहक िे ल शीषवकिां
206 ||गजेन्द्र ठाकुर
त्रलिल गीत हो िा कोनो आने , ऊपरिां तां िोझ-िोझ बुझाइत िवन, मुदा
भीतरिां मरिाह आ आक्रमक होइत िवन। वहनक काव्य रचना पढ़ने बुझाइि
जे ई िोझे -िोझी बात कहबाक आग्रही िछि। तिावप विषय िस्तुक अनुिार
िन्द्द गढ़बाक वहनक लूरर िहजहहिं दे िबामे अबै त अछि। कुण्ित्रलया िन्द्दमे
वहनक रचना 'कह लोचन कविराय' िूबे चर्चिंत भे ल िल।
राम लोचन ठाकुर बहुत विधामे त्रलिलवन। अग्रदूतक नामिां किा, कुमारे श
कश्यपक नामिां व्यां ग्य। आदद, आदद। मै छिलीमे जत'-जत' ररलतता
बुझयलवन, अपन कलमिां भरबाक प्रयाि कयलवन अछि आ िफल भे लाह
अछि। वबिरल जाइत लोक िावहययकें 'मै छिलीक लोक किा' नामक पोिीमे
विदे ह रामलोचन ठाकुर विशेषाांक || 207
परिलवन अछि।
राम लोचन ठाकुर कुशल अनुिादक िछि। अनुिादक प्राय: दि गोट पोिी
प्रकात्रशत िवन। वहनक मूल ले िक आ अनुिादक, दुनू एक पर एक। वहनका
द्वारा अनूददत कृछत िे हो मौत्रलके िन लगै त िै क। एकर प्राय: इहो कारण िै क
जे स्रोत भाषािां िोझे लक्ष्य भाषामे अनुिाद करै त िछि। एिवन मै छिली मे
बड़ कम अनुिादक िछि, जवनका अनुिादमे िां पकव भाषाक िगता नवह होइत
िवन। बाां ग्लािां अनूददत पोिी िभ िवन। जे महयिपूणव िस्तु अपना भाषामे
आनबाक िगता बुझयलवन, जे पूरे इमानदारीिां आनलवन। कहल गे लैए जे
नीक अनुिाद िै ह, जे पढ़ै त काल अनूददत िन नवह लागय। िे , वहनका द्वारा
अनूददत नाटक होअय, काव्य िां ग्रह होअय िा उपन्द्याि, उत्तम कोवटक
अनुिाद मानल जा िकैत अछि। लक्ष्य भाषामे स्रोत भाषाक लोकोक्लत आ
मुहािराक िटीक अनुिाद ताकबामे वहनक कारीगरी महयिपूणव िवन। एहन
दे िल गे लैक अछि जे स्रोत भाषाक िमाजक चलन-प्रचलनक अिव लक्ष्य
भाषाक िमाजमे उनवट जाइत िै क। ओवहठामक नीक एवहठाम अधलाह भ'
जाइत िै क। ई अनुिादकक ले ल चै लेंजक स्स्िछत भ' जाइत िै क। वकिु
अनुिादक एकर शाटवकट विकल्प तावक ििरर जाइत िछि। एहना स्स्िछत मे
अनुिादककें बे िी ितकव होयबाक िगता होइत िवन। ई कहै त हिव होइत
अछि जे राम लोचन ठाकुर अपन अनुिादमे एहन कोनो शाटवकट तावक
ििरलाह नवह अछि, जकर बानगी वहनका द्वारा अनूददत उपन्द्याि नखन्द्दत
नरके, पद्मानदीक माझी, कठपुतरी नाचक इछतकिा, अयाचीक िां धान आ
काव्य-िां ग्रह 'जा िकै िी, वकन्द्तु वकए जाउ' मे दे िल जा िकैत अछि।
राम लोचन ठाकुर एकटा कुशल िां पादक िछि। जिन बुझयलवन जे कवितामे
रजनी-िजनी त्रलिल जाइत िै क, तां 1984 ई. मे 'आजुक कविता' नामक
208 ||गजेन्द्र ठाकुर
कविताक पोिीक िां पादन क' कविताक छचि स्पि करबाक प्रयाि कयलवन
अछि। एवह पोिीमे िोमदे ििां विभूछत आनन्द्द धररक ते रह गोट कविक
कविताक िां कलन-िां पादन क' कविताकें ितवमान पररिे श प्रिूत
मानत्रिकताक प्रछतफलनक रूपमे प्रस्तुत कयलवन अछि।
बहुत राि पि-पत्रिकाक िां पादनक बाद हे बवन धरर 'छमछिला दशवन'क कुशल
िां पादन कयलवन अछि।
रहल िछि। अपन क्रान्न्द्त-यािामे मशाल बला हािकें नोतै त जीवब रहल िछि।