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पूस की रात
पूस की रात
ू की यात
हल्कू ने आकय स्त्री से कहा- सहना आमा है, राओ, जो रुऩमे यखे हैं, उसे दे दॉ ,ू ककसी तयह गरा तो छूटे ।
भुन्नी झाडू रगा यही थी। ऩीछे कपयकय फोरी- तीन ही तो रुऩमे हैं, दे दोगे तो कम्भर कहाॉ से आवेगा ? भाघ-ऩूस की यात हाय भें
कैसे कटे गी ? उससे कह दो, पसर ऩय दे दें गे। अबी नहीॊ ।
हल्कू एक ऺण अननश्चित दशा भें खडा यहा । ऩूस ससय ऩय आ गमा, कम्भर के बफना हाय भें यात को वह ककसी तयह नहीॊ जा
सकता। भगय सहना भानेगा नहीॊ, घुडककमाॉ जभावेगा, गासरमाॉ दे गा। फरा से जाड़ों भें भयें गे, फरा तो ससय से टर जाएगी । मह
सोिता हुआ वह अऩना बायी- बयकभ डीर सरए हुए (जो उसके नाभ को झूठ ससद्ध कयता था ) स्त्री के सभीऩ आ गमा औय
खुशाभद कयके फोरा- रा दे दे , गरा तो छूटे । कम्भर के सरए कोई दस
ू या उऩाम सोिॉग
ू ा।
भुन्नी उसके ऩास से दयू हट गमी औय आॉखें तये यती हुई फोरी- कय िुके दस
ू या उऩाम ! जया सुनॉू तो कौन-सा उऩाम कयोगे ? कोई
खैयात दे दे गा कम्भर ? न जाने ककतनी फाकी है, ज़ों ककसी तयह िुकने ही नहीॊ आती । भैं कहती हूॉ, तुभ क्म़ों नहीॊ खेती छोड दे ते
? भय-भय काभ कयो, उऩज हो तो फाकी दे दो, िरो छुट्टी हुई । फाकी िुकाने के सरए ही तो हभाया जनभ हुआ है । ऩेट के सरए
भजूयी कयो । ऐसी खेती से फाज आमे । भैं रुऩमे न दॉ ग
ू ी, न दॉ ग
ू ी ।
भगय मह कहने के साथ ही उसकी तनी हुई बौहें ढीरी ऩड गमीॊ । हल्कू के उस वाक्म भें जो कठोय सत्म था, वह भानो एक
बीषण जॊतु की बाॉनत उसे घयू यहा था ।
उसने जाकय आरे ऩय से रुऩमे ननकारे औय राकय हल्कू के हाथ ऩय यख ददमे। कपय फोरी- तुभ छोड दो अफकी से खेती । भजूयी
भें सुख से एक योटी तो खाने को सभरेगी । ककसी की धौंस तो न यहे गी । अच्छी खेती है ! भजूयी कयके राओ, वह बी उसी भें
झ़ोंक दो, उस ऩय धौंस ।
हल्कू ने रुऩमे सरमे औय इस तयह फाहय िरा भानो अऩना हृदम ननकारकय दे ने जा यहा हो । उसने भजूयी से एक-एक ऩैसा काट-
कऩटकय तीन रुऩमे कम्भर के सरए जभा ककमे थे । वह आज ननकरे जा यहे थे । एक-एक ऩग के साथ उसका भस्त्तक अऩनी
दीनता के बाय से दफा जा यहा था ।
ऩूस की अॊधेयी यात ! आकाश ऩय ताये बी दठठुयते हुए भारूभ होते थे। हल्कू अऩने खेत के ककनाये ऊख के ऩत़ों की एक छतयी के
नीिे फाॉस के खटोरे ऩय अऩनी ऩुयानी गाढे की िादय ओढे ऩडा काॉऩ यहा था । खाट के नीिे उसका सॊगी कुत्ता जफया ऩेट भे भॉह
ु
डारे सदी से कॉू -कॉू कय यहा था । दो भें से एक को बी नीॊद न आती थी ।
हल्कू ने घुटननम़ों क़ों गयदन भें चिऩकाते हुए कहा- क्म़ों जफया, जाडा रगता है? कहता तो था, घय भें ऩुआर ऩय रेट यह, तो महाॉ
क्मा रेने आमे थे ? अफ खाओ ठॊ ड, भैं क्मा करॉ ? जानते थे, भै महाॉ हरुवा-ऩूयी खाने आ यहा हूॉ, दौडे-दौडे आगे-आगे िरे आमे ।
अफ योओ नानी के नाभ को ।
हल्कू ने हाथ ननकारकय जफया की ठॊ डी ऩीठ सहराते हुए कहा- कर से भत आना भेये साथ, नहीॊ तो ठॊ डे हो जाओगे । मह याॉड
ऩछुआ न जाने कहाॉ से फयप सरए आ यही है । उठूॉ, कपय एक चिरभ बरॉ । ककसी तयह यात तो कटे ! आठ चिरभ तो ऩी िक
ु ा ।
मह खेती का भजा है ! औय एक-एक बगवान ऐसे ऩडे हैं, श्जनके ऩास जाडा जाम तो गयभी से घफडाकय बागे। भोटे -भोटे गद्दे,
सरहाप- कम्भर । भजार है, जाडे का गुजय हो जाम । तकदीय की खूफी ! भजूयी हभ कयें , भजा दस
ू ये रूटें !
हल्कू उठा, गड्ढे भें से जया-सी आग ननकारकय चिरभ बयी । जफया बी उठ फैठा ।
हल्कू ने चिरभ ऩीते हुए कहा- पऩमेगा चिरभ, जाडा तो क्मा जाता है , जया भन फदर जाता है।
चिरभ ऩीकय हल्कू कपय रेटा औय ननचिम कयके रेटा कक िाहे कुछ हो अफकी सो जाऊॉगा, ऩय एक ही ऺण भें उसके हृदम भें
कम्ऩन होने रगा । कबी इस कयवट रेटता, कबी उस कयवट, ऩय जाडा ककसी पऩशाि की बाॉनत उसकी छाती को दफामे हुए था ।
जफ ककसी तयह न यहा गमा तो उसने जफया को धीये से उठामा औय उसक ससय को थऩथऩाकय उसे अऩनी गोद भें सर
ु ा सरमा ।
कुत्ते की दे ह से जाने कैसी दग
ु ध
ं आ यही थी, ऩय वह उसे अऩनी गोद भे चिऩटामे हुए ऐसे सख
ु का अनुबव कय यहा था, जो इधय
भहीऩों से उसे न सभरा था । जफया शामद मह सभझ यहा था कक स्त्वगघ महीॊ है , औय हल्कू की ऩपवर आत्भा भें तो उस कुत्ते के
प्रनत घण
ृ ा की गॊध तक न थी । अऩने ककसी असबन्न सभर मा बाई को बी वह इतनी ही तत्ऩयता से गरे रगाता । वह अऩनी
दीनता से आहत न था, श्जसने आज उसे इस दशा को ऩहुॉिा ददमा । नहीॊ, इस अनोखी भैरी ने जैसे उसकी आत्भा के सफ द्वा य
खोर ददमे थे औय उनका एक-एक अणु प्रकाश से िभक यहा था ।
सहसा जफया ने ककसी जानवय की आहट ऩामी । इस पवशेष आत्भीमता ने उसभे एक नमी स्त्पूनतघ ऩैदा कय दी थी, जो हवा के ठॊ डें
झोक़ों को तच्
ु छ सभझती थी । वह झऩटकय उठा औय छऩयी से फाहय आकय बॉक
ू ने रगा । हल्कू ने उसे कई फाय िभ
ु कायकय
फुरामा, ऩय वह उसके ऩास न आमा । हाय भें िाय़ों तयप दौड-दौडकय बॉक
ू ता यहा। एक ऺण के सरए आ बी जाता, तो तुयॊत ही
कपय दौडता । कतघव्म उसके हृदम भें अयभान की बाॉनत ही उछर यहा था ।
एक घॊटा औय गज
ु य गमा। यात ने शीत को हवा से धधकाना शरु
ु ककमा। हल्कू उठ फैठा औय दोऩों घट
ु ऩों को छाती से सभराकय
ससय को उसभें नछऩा सरमा, कपय बी ठॊड कभ न हुई | ऐसा जान ऩडता था, साया यक्त जभ गमा है , धभननम़ों भे यक्त की जगह
दहभ फह यहा है। उसने झुककय आकाश की ओय देखा, अबी ककतनी यात फाकी है ! सप्तपषघ अबी आकाश भें आधे बी नहीॊ िढे ।
ऊऩय आ जामॉगे तफ कहीॊ सफेया होगा । अबी ऩहय से ऊऩय यात है ।
उसने ऩास के अयहय के खेत भें जाकय कई ऩौधे उखाड सरए औय उनका एक झाडू फनाकय हाथ भें सर
ु गता हुआ उऩरा सरमे
फगीिे की तयप िरा । जफया ने उसे आते दे खा तो ऩास आमा औय दभ
ु दहराने रगा ।
हल्कू ने कहा- अफ तो नहीॊ यहा जाता जफर । िरो फगीिे भें ऩश्त्तमाॉ फटोयकय ताऩें । टाॉठे हो जामेंगे, तो कपय आकय सोमेंगें ।
अबी तो फहुत यात है।
फगीिे भें खूफ अॉधेया छामा हुआ था औय अॊधकाय भें ननदघ म ऩवन ऩश्त्तम़ों को कुिरता हुआ िरा जाता था । वऺ
ृ ़ों से ओस की
फूॉदे टऩ-टऩ नीिे टऩक यही थीॊ ।
हल्कू ने कहा- कैसी अच्छी भहक आई जफर ! तुम्हायी नाक भें बी तो सुगॊध आ यही है ?
जफया को कहीॊ जभीन ऩय एक हडडी ऩडी सभर गमी थी । उसे चिॊिोड यहा था ।
हल्कू ने आग जभीन ऩय यख दी औय ऩश्त्तमाॉ फटोयने रगा । जया दे य भें ऩश्त्तम़ों का ढे य रग गमा। हाथ दठठुये जाते थे । नॊगे
ऩाॉव गरे जाते थे । औय वह ऩश्त्तम़ों का ऩहाड खडा कय यहा था । इसी अराव भें वह ठॊड को जराकय बस्त्भ कय दे गा ।
हल्कू अराव के साभने फैठा आग ताऩ यहा था । एक ऺण भें उसने दोहय उताकय फगर भें दफा री, दोऩों ऩाॉव पैरा ददए, भाऩों
ठॊ ड को ररकाय यहा हो, तेये जी भें जो आमे सो कय । ठॊड की असीभ शश्क्त ऩय पवजम ऩाकय वह पवजम-गवघ को हृदम भें नछऩा
न सकता था ।
'ऩहरे से मह उऩाम न सझ
ू ा, नहीॊ इतनी ठॊ ड क्म़ों खाते ।'
जब्फय ने ऩॉछ
ू दहरामी ।
'अच्छा आओ, इस अराव को कूदकय ऩाय कयें । देखें , कौन ननकर जाता है। अगय जर गए फच्िा,
मह कहता हुआ वह उछरा औय उस अराव के ऊऩय से साप ननकर गमा । ऩैय़ों भें जया रऩट रगी, ऩय वह कोई फात न थी ।
जफया आग के चगदघ घूभकय उसके ऩास आ खडा हुआ ।
हल्कू ने कहा- िरो-िरो इसकी सही नहीॊ ! ऊऩय से कूदकय आओ । वह कपय कूदा औय अराव के इस ऩाय आ गमा ।
ऩश्त्तमाॉ जर िुकी थीॊ । फगीिे भें कपय अॊधेया छा गमा था । याख के नीिे कुछ-कुछ आग फाकी थी, जो हवा का झ़ोंका आ जाने
ऩय जया जाग उठती थी, ऩय एक ऺण भें कपय आॉखें फॊद कय रेती थी !
हल्कू ने कपय िादय ओढ री औय गभघ याख के ऩास फैठा हुआ एक गीत गुनगुनाने रगा । उसके फदन भें गभी आ गमी थी, ऩय
ज्म़ों-ज्म़ों शीत फढती जाती थी, उसे आरस्त्म दफामे रेता था ।
उसने ददर भें कहा- नहीॊ, जफया के होते कोई जानवय खेत भें नहीॊ आ सकता। नोि ही डारे। भझ
ु े भ्रभ हो यहा है। कहाॉ! अफ तो
कुछ नहीॊ सुनाई दे ता। भुझे बी कैसा धोखा हुआ!
जफया बॉक
ू ता यहा। उसके ऩास न आमा।
कपय खेत के िये जाने की आहट सभरी। अफ वह अऩने को धोखा न दे सका। उसे अऩनी जगह से दहरना जहय रग यहा था।
कैसा दॊ दामा हुआ था। इस जाडे-ऩारे भें खेत भें जाना, जानवय़ों के ऩीछे दौडना असह्म जान ऩडा। वह अऩनी जगह से न दहरा।
हल्कू ऩक्का इयादा कयके उठा औय दो-तीन कदभ िरा, ऩय एकाएक हवा का ऐसा ठॊ डा, िुबने वारा, बफच्छू के डॊक का-सा झ़ोंका
रगा कक वह कपय फुझते हुए अराव के ऩास आ फैठा औय याख को कुये दकय अऩनी ठॊडी दे ह को गभाघने रगा ।
भुन्नी फोरी- हाॉ, साये खेत का सत्मानाश हो गमा । बरा, ऐसा बी कोई सोता है। तुम्हाये महाॉ भडैमा डारने से क्मा हुआ ?
हल्कू ने फहाना ककमा- भैं भयते-भयते फिा, तुझे अऩने खेत की ऩडी है। ऩेट भें ऐसा दयद हुआ कक भै ही जानता हूॉ !
दोऩों कपय खेत के डाॉड ऩय आमे । दे खा, साया खेत यौंदा ऩडा हुआ है औय जफया भडैमा के नीिे चित रेटा है, भानो प्राण ही न ह़ों
।
दोऩों खेत की दशा दे ख यहे थे । भुन्नी के भुख ऩय उदासी छामी थी, ऩय हल्कू प्रसन्न था ।
हल्कू ने प्रसन्न भख
ु से कहा- यात को ठॊ ड भें महाॉ सोना तो न ऩडेगा।