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प्रेम आचार्य प्रशांत - converted
प्रेम आचार्य प्रशांत - converted
आचाय शांत
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अनु म णका
1. मुह बत है या चीज़…
2. ेम या है और या नह ?
4. ेम – आ मा क पुकार
5. स ब या ह?
7. झूठा ेम
8. ाहीन र ते
9. े मय का ेम अ सर हसा मा है
10. ेम बेहोशी का स ब नह
15. आन द हो स ब का आधार
22. सफ़ एक वक सत मन ही दो ती कर सकता है
30. ेम बेगार नह है
31. ेम और ववाह
32. ेम थम या यान
34. इ क़ है बेपरवाही
35. शा त उ म ता ेम क
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36. स ा ेमी कौन?
41. वह मलेगा ेम
✿✿✿✿
मुह बत है या चीज़...
ये सब जो हम यार के प दे खते ह सबसे पहले तो ये जानना ज़ री है क ये यार नह है। यार जो होगा सो होगा।
हमने ब त ग़लत बात को ेम का नाम दे दया है। हमने ब त बे दा बात के ऊपर ेम का नाम चपका दया है। वो ेम है
ही नह । ेम ब कु ल एक सरी चीज़ है जसको हमम से ब त कम लोग जानते ह।
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सबसे पहले हमने लखा अ व ेम, उससे ऊपर आता है व ेम। अब उससे भी ऊपर आता है सावभौ मक ेम
(यू नवसल लव)।
सावभौ मक ेम मेरे मन क एक वशेष त है जसम म आन द अनुभव करता ँ, बना कसी कारण के ।इस आन द का
वभाव है सर तक प ँचना, इस आन द का वभाव है बँटना। 'म इतना ख़ुश ँ क मेरी ख़ुशी बँटती है, म इतना खुश ँ क
सर को भी ख़ुश करता 'ँ -ये आन द जब सर म बँटता है, सब म बँटता है, तो इसका नाम ' ेम' है। ये असली ेम है।
हमम से यादातर पहले तल पर बैठे ह। अ व ेम। तो पहला काम तो है वहाँ से व ेम क ओर आना क -- 'मुझे
अपनी परवाह नह है, तु हारा भला होना चा हए, तु हारी बेहतरी होनी चा हए'।
और उसके आगे अगला तल है, सावभौ मक ेम, उसको भी जान पाना। पर उसको अभी भूल जाओ। तीसरे को अभी भूल
जाओ, अभी सरे को समझो। जो पहले पर बैठा हो उसको सरे क सोचनी चा हए, तीसरे क नह ।
........
(उ र दे श, 2013)
ेम या है और या नह ?
कता: ेम या है?
आचाय शांत: एक संगीत था। उसके पास दो लोग सीखने के लये आए। दोन से उसने पूछा, “ कतना सीखा है? अतीत म
संगीत कतना है? कतना सीख कर आए हो?”
पहले वाले ने कहा, “कु छ नह जानता, ब कु ल अनाड़ी ,ँ संगीत का ‘स’ भी नह पता।” तो उसने कहा, “ठ क है, तीन साल
लगगे तु ह सखाने म, दस हज़ार मार् स तुमसे म लूँगा।” जमनी क बात है ये।
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सरे से पूछा क अपना बताओ, तो वो बोलता है, “मने पाँच साल तक संगीत सीखा है और ऐसे-ऐसे महान गु ह, उनके
सा न य म सीखा है। वो सब मेरे गु थे, इतना मुझे आता है।” तो वो संगीत उससे बोलता है, “तु ह सखाने म लगगे पाँच
साल, और तुमसे लूँगा पचास हज़ार।”
वो सरा वाला बोला, “ या पागल जैसी बात कर रहे ह? वो अनाड़ी जसको कु छ आता नह उसको आप कह रहे ह क तीन
साल म सखा ँगा, और उससे पैसे भी माँग रहे ह कु ल दस हज़ार। और म जो पहले से ही इतना सीखा आ है, जसने इतने
महान गु के साथ रह कर जाना है, जो रोज रयाज़ करता है पुराने सीखे ए का, मुझसे आप कह रहे ह क पाँच साल
लगगे और पैसे भी मुझसे माँग रहे ह पाँच गुने।”
तो संगीत बोले, “तुझे सखाने म मुझे सफ़ एक ही साल लगेगा। चार साल लगगे वो सब भुलवाने म जो तूने पहले से सीख
रखा है। सखाने म तो कु ल एक साल ही लगेगा।”
सखाना कोई मु कल काम नह है। जो पहले से मन म भर रखा है उसे भुलवाना मु कल काम है।( कता से पूछते ए)
य ? य क वो या बन जाता है? आदत। तुम रोज़ उसी का रयाज़ कर रहे हो, तुमने उसी को मान रखा क यह बड़े ऊँ चे
दज़ का संगीत है। तुमसे कै से भुलवाया जाए वो सब?
ेम के बारे म बड़ा आसान होता मेरे लए बोलना अगर तु ह उसक कोई ख़बर ना होती, अगर तुमने मन म ेम के बारे म कोई
धारणाएँ ना बना रखी होत , अगर तु हारे मन म कोई छ व ही ना होती क ेम या है। पर तु हारे मन म तो ज़बरद त तरीके
से छ वयाँ भरी ई ह।
यहाँ कोई ऐसा नह है, एक भी ऐसा नह है, जो ये कहे, ” ेम, हम तो पता ही नह , हम तो जानते ही नह ।” यहाँ सब ेमगु
बैठे ह। (हँसी) सब के पास अपनी-अपनी धारणाएँ ह, वचार ह, मा यताएँ ह। हम म से हर एक के पास कु छ न कु छ है ेम के
बारे म बोलने के लए।
आचाय: ये दे खो! (हँसते ए) ये तो तुमने बड़े सं ेप म बोल दया एक ही वा य म। अभी म क ँ नब लखो ेम पर, तो
तुम वो भी लख दोगे, वो भी कम से कम दो पृ ।
: जी सर!
आचाय: और पहले ही बोल दया, “ ेम है ाचार,” तो अब म कै से बोलूँ ? वो बोल रहा है, “ षण है,” तुम बोल दोगे,
“उ ेजना है।”
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सबसे पहले हम ये समझना होगा क ेम या नह है। जो हमारी धारणाएँ ह, उनको तोड़ना पड़ेगा।
“कोई मेरा हो गया” - इस बात का नाम नह है ेम। चाहे वो हो, चाहे व तु हो या जानवर ही य ना ही हो।
हॉरमोनल या नह है ेम क एक ख़ास उ हो गयी है, शरीर म कु छ रसायन नकलने लगे ह, जनका नाम है ‘हॉरम स’,
इस कारण जो यौन उ ेजना होती है, वो नह है ेम।
“शाद करके वंश आगे चलाने क ज मेदारी है मेरी,” इसका नाम नह है ेम।
“म पूरे तरीके से तुम पर नभर हो गया ँ, तुम मेरी ज़दगी हो,” इसका नाम नह है ेम। नभरता नह है ेम।
पेड़ के चार ओर कू दना भी नह है ेम। पेड़ के ऊपर चढ़कर बंदर क तरह बैठ जाना भी नह है ेम। रोमांचक ेम कथा
भी नह है ेम क वो दौड़ती ई चली आ रही है, सूखे प पर पाँव रखती ई, और आसमान से गु बारे बरस रहे ह, और
वाय लन क आवाज़ आ रही है। ह क -सी हवा चल रही है और बाल उड़ रहे ह, और ब कु ल सुहाना मौसम है।
स ा ेम तु हारी ही मनो त है जसम न ही कोई ववाद है, न ही कोई हसा। बस एक ह का-सा आन द है, और तुम
बाँटना चाहते हो इस आन द को। ये बाँटना ही कहलाता है ‘ ेम’।
“मुझे खुद कु छ
मला है, और जो मला है वो इतना यारा है क बाँटने को मन करता है”, ये बाँटना ही कहलाता है ‘ ेम’।
जसको पहले अभी मला ही नह है वो बाँटेगा या? ेम सव थम तु हारी अपनी आ त रक त है, इसका कसी सरे
से कोई लेना-दे ना नह है।
बात समझ म आ रही है? नह आएगी, पर फर भी बोलना ज़ री है, ता क कु छ नया ही सही, कान पर पड़े तो।
इस ‘अपने पास’ होने क या का नाम ही ‘ ेम’ है, उसके बाद उसका बँटना नैस गक प से, वाभा वक प से हो जाता
है।
ेम तु हारी अपनी आ त रक त है, ेम तु हारी अपनी मनो त है जसम कोई उलझन नह है – न तनाव, न तु ता, न
माँगना, न इक ा करना।
ेम तु हारी वह मनो त है जसम मन पूण महसूस करता है, और ये पूणता है आन द। जब मन वयं पूण है तो फर ये उस
आन द को सभी के साथ बाँटना चाहता है। तुम ेमपूण हो जाते हो।
द क़त आ गयी! अब तुम कहोगे, “सर आपने जो बोल दया, ये तो बड़ी अ वहा रक बात है। फ़र तो हम कभी ज़दगी म
ेम नह मलेगा!”
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ब कु ल नह मलेगा, जब तक तुम अपनी वो पुरानी धारणाएँ पकड़ कर बैठे ए हो। जैसे ही उनको छोड़ोगे, तो मल भी
सकता है। बस इतना ही समझ लो क पहले ख़ुद पाना है, फर ही कसी और को दे पाओगे। इस लए सर क ओर दे खना
बंद करो क मेरी ज़दगी म ेम नह है, कह और से मल जाए। क – ‘आओ और मेरे जीवन के सूनेपन को भर दो।’
मुझे ये आशा नह है क ये बात पूरी तरीके से समा ही गयी होगी, जतनी प ँची है तुम तक उतना ही काफ़ है।
.........
(उ र दे श, 2013)
~ गु नानक
आचाय शांत: “कु रबाणु क ता तसै वट ज न मो मीठा लाइआ,” म उस पर कु रबान जाता ँ जसने मोह को मीठा बना
दया है।
मोह हमेशा कड़वा होता है। ‘मोह’ का अथ है- अपने से बाहर कसी से जुड़ना, वो हमेशा ही कड़वा होता है। मीठा मोह
असंभव है। तो जब मीठे मोह क बात क जा रही है, तो अथ है क - जसने मोह का कड़वा होना असंभव कर दया।
यहाँ ‘ जससे’ जुड़ना कसी से जुड़ना नह है, ले कन इसको सरे अथ म पढ़ना ब त आसान है।
इसका जो अंगेज़ी अनुवाद है, वो है, “आई ऍम सै फ़ाइ ड, सै फ़ाइ ड टू द वन, हैस मेड इमोशनल अटैचमट्स वीट,”
बड़ा आसान है इसको यह पढ़ लेना क - जो भ लोग होते ह वो वीट, इमोशनल अटैचमट्स (मीठे , भावुक मोह) म रहते
ह।
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ब त आसान है इसका ये अथ कर लेना, और ये अथ का अनथ है।
दे खये, संत ब त-ब त गहरे यान से बोलता है। उसक बात का यूँ ही चलते- फरते अथ मत कर लया क जये। अ ै त के
फे सबुक पेज पर एक पो टर है जसम लखा है, “कृ ण को समझने के लए, कृ ण जैसा ही होना पड़ेगा।”
कृ ण को जब पढ़ रहे ह , गीता को जब पढ़ रहे ह , तो थोड़ा ठहर कर, पूरे यान म आइए, और ये सवाल पू छए अपने आप
से, “ या म कृ ण व के आसपास ?ँ ” अगर ज़रा भी आसपास नह ह, तो आप बड़ा नुकसान कर रहे ह अपना, गीता
पढ़कर।
जो अनुवाद कर रहा है, उसने ये पता नह कस ण म उसने ये अनुवाद कया है। कौन-सी उसक मनोदशा है? ले कन ये
प का है क नानक के आसपास भी नह था वो, जब वो ये कह रहा था। र- र तक उसके पास नानक नह थे, जब उसने ये
अनुवाद कया है।
“आई ऍम सै फ़ाइ ड, सै फ़ाइ ड टू द वन, हैस मेड इमोशनल अटैचमट्स वीट,” नानक या कह रहे ह और तुम
उसका या अथ कर रहे हो? तुम हो कहाँ? तुम हो कहाँ? कहने वाले ह गे नानक, अथ करने वाला कौन है? तुम। और या
कर दया तुमने?
तुमने उसको नयाभर के गृह का और ममता भरी ना रय का खलौना बना दया। वो तो पूजगी इस पं को, और
कहगी, “ ब कु ल ठ क! नानक ने वही कहा है जो मुझे हमेशा से लगता था। म तो जानती ही थी इस बात को क - ‘ई र
मीठा, भावुक मोह है’ और नानक ने दे खो इसक पु कर द ।”
वो कह रहे ह, ‘तुमने तो जतने मोह जाने ह, वो कड़वे ही ह। अब एक मोह ऐसा भी जानो जो मीठा हो सकता है, जो असंभव
मोह है, ज़रा उसम उतरो। ‘असंभव’ मतलब - जो ै त क नया म संभव ही नह है। तु हारे सारे मोह ै त क नया के ह -
व तु से मोह करते हो, य से मोह करते हो।
अगर तुमने ‘मीठा’ को मीठा बनाया तो वो कड़वे जैसा ही हो जाएगा, य क मीठा और कड़वा एक ह - दोन ै त क नया
के ह।
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यहाँ पर ‘मीठा’ श द के दो अथ हो सकते ह। अगर ै त क भाषा म लोगे तो ‘मीठे’ का अथ होगा - वो मीठा जो कड़वे का
,
ै त यु म है जो हमेशा कड़वे के साथ रहता है।
और यहाँ पर जब कहा जा रहा है ‘मीठा’, तो उसका अथ है- वो मीठा, जो कड़वा नह है। और कड़वा इस तरह नह है क न
,
कड़वा न मीठा।
ख़ा रज कर सकता ँ क ये बड़ा बेकार सरा है। तो मने या कया ? मने वपरीत सरा पकड़ लया। ये काम ैत क नया
,
म होता है ये हमारा साधारण मोह है।
इस साधारण मोह म एक सरा मीठा होता है और , सरा उतना ही कड़वा। तो एक सरे को ख़ा रज करने के लए हम या
करते ह ? उसके ,
सरे सरे को पकड़ लेते ह। ये एक तरीका है एक सरे को छोड़ने का।
सरा तरीका ,
या है एक सरे को छोड़ने का ? दोन सर को ही फक दया , ,
य क दोन एक साथ ह एक के साथ सरा
जुड़ा आ है।
,
एक को छोड़ना है तो दोन को छोड़ो।
,
कड़वे को छोड़ना है तो कड़वे और मीठे दोन को छोड़ो , य क दोन हमेशा एक साथ ह। मूख ह वो जो एक सरे को
छोड़कर सरे को पकड़ते ह , य क सरा पहले के साथ ही है। वपरीत क तलाश हमेशा तु ह फँसाकर रखेगी।
,
नानक को कड़वे को छोड़ना है कह रहे ह क मीठा चा हये। पर नानक ने कड़वे को ऐसे छोड़ा क कड़वे और मीठे दोन को
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(अ ै त बोध ल, 2014)
ेम – आ मा क पुकार
उठा बगूला ेम का, तनका चढ़ा आकाश। तनका तनके से मला, तनका तनके पास।।
~ संत कबीर
आचाय शांत: ेम से मन बचता ही इसी लये है, उसको तमाम सीमा , वजना म बाँधता ही इसी लये है, उससे संबं धत
नफ़े -नुकसान के तमाम क से गढ़ता ही इसी लए है, य क अद य होता है ेम - एक व ोट क तरह। ऐसी उसक असीम
श होती है, क उसके आगे न मन ठहर सकता है, न मन के तमाम तक।
जो हमारा साधारण ेम होता है, आदमी-औरत के त, जो खचाव होता है मान-स मान के त, जो आकषण होता है
व तु के त, इसी म बड़ी ताकत आ जाती है। जब क ये वा त वक ेम क छाया भर भी नह है ।
ले कन दे खा है, जब कसी ी से, पु ष से, ेम क लहर उठती है, तो जीवन म कै सी ख़ुशबू, बहार जैसी आ जाती है? कै सी
ताज़गी, कै सी ऊजा, जैसे चार तरफ़ एक उ सव हो। और ये बड़ा साधारण ेम है।
पूरा अ त व लगता है जैसे नाच रहा हो, फू ले नह समाते, अघाये-अघाये फरते हो। ऐसा लगता है जैसे मु म आकाश कै द
कर लया हो, जैसे सब कु छ मल गया हो। ये अनुभव तो आ ही होगा? कभी गुज़रे ही ह गे इससे। तो ये तो साधारण
आकषण है, इसी म इतनी ती ता होती है।
तु हारा साधारण ेम तो एक सीमा के बाद दबाया जा सकता है, कु चला जा सकता है। तुम जानते हो, तु ह अ े से पता है
ेम क ताक़त का। उसके आगे तु हारे सारे तक हार जाते ह। असल म ‘हारना’ कहना भी अ त यो होगी।
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व ोट के सम बंधन हारते नह है, ण भर म टूट जाते ह। हार और जीत तो ऐसा लगता है जैसे, कम से कम घमासान
क , यु क , खचाव क , कोई स ावना हो। जैसे कु छ हद तक बराबरी का सौदा हो। यहाँ तो ेम ऐसा क उसके आगे सारे
बंधन समझ ही नह आ रहा क गए कहाँ।
तो कबीर कह रहे ह – ‘भव के जैसा उठता है। “उठा बगूला ेम का,” एक ऐसी लहर, जसम पूरा सागर समां गया हो, इतनी
बड़ी लहर। तो सागर क वशालता, और लहर क ग त। सागर क अनंतता और लहर-सा पागलपन - इन दोन को मला दो,
इसका नाम है ‘ ेम’।
अब कहाँ बंधन-वंधन का ज़ भी अ ा लगता है, बात ही पीछे छू ट । इस आवेग को, इस लहर को, इस उ म ता को, कै से
करोगे काबू म? भ -सू कहते ह, “म ो भव त, आ मारामो भव त।” म त हो जाते हो, आ माराम हो जाते हो, ब कु ल
म त-मौला।
और इसी लए तो तनका डरता है, य क जब अपनी सी मत से, अपनी तनके जैसी से तनका जब वयं को
दे खता है, तो उसे यक न ही नह होता क वो आकाश पर चढ़ सकता है। तनका ही तो है। तक उठता है, “अरे तनके ,
है सयत म रह, अपनी औकात दे ख। तू आकाश पर चढ़े गा?” तनका डरता है। कहता है, “पता नह या नुकसान हो जाए,
मेरी या स ा? पता नह या खो बैठँू ?”
कबीर कहते ह, “ ेम तो बस, उसी सूरमा के बस का है, जो जात बरन कु ल खोने को तैयार है।”
ये कै सी अजीब बात है? बाहर से दे खो तो ‘ तनका’ और उसका दल खोलो तो ‘आकाश’। सरा तनका दे खे तो यही कहे क
“ तनका है,” और आकाश क से दे खो तो पता चले क आकाश हो गया। तनका ‘मन’ है, तनका ‘दे ह’ है, आ मा
‘आकाश’ है।
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और जब तनका खचता है, तो इसका ‘ तनका’ होना मट जाता है। ऐसे-ऐसे काम होने लगते ह, जो तनका कभी कर ही
नह सकता था।
अनंत आकाश म तनका? हो ही नह सकता था। तनके क जगह तो पाँव तले है। वा तव म फर वो ‘ तनका’ रह नह
जाता। यही उसक परम उपल है, और यही उसका परम डर भी है।
परम उपल ये क चढ़ जाएगा आकाश पर, और परम डर ये क जो आकाश पर चढ़े गा, वो अब ‘ तनका’ नह कहा जा
सकता। तनका मर गया। ब त डरता है, कहता है, “ब त कु छ पा लूँगा, पर वयं को खो ँगा।”
जतना ब त कु छ पाने का आकषण है, उतना ही अपने आप को खो दे ने का डर भी। मामला बराबरी का बना रहता है, एक
तरह का टेलमेट, उहापोह। और कु छ होता नह जीवन भर। बस आ मा क पुकार और संसार क आस , इनके बीच म
इंसान का जीवन थ होता रहता है।
कबीर का ‘ तनका’ अ नणय से मु हो गया है, वो गया राम के पास। अब वो राम ही हो रहा। जैसे कबीर अपने लये कहते
ह, “ या अब राम क पूजा अचना क ँ , अब तो राम ही हो रहा, या आरती क ँ ? कसको मरण क ँ ?”
तनका तनके से मला, ऐसे मला क - तनका, तनके पास। तनके ही तनके ह। ‘ तनका’ होने का अथ ही है, इतना ज़रा-
सा होना, क तु हारे जैसे ब त सारे ह गे। ‘ तनका’ होने का अथ ही है - भीड़ म एक होना। भीड़ ही भीड़ है, तनके ही तनके
ह, वै व य ही वै व य है। और तनका उलझा आ है, वैसे ही अ नणय म है जैसे तुम अ नणय म हो ।
बता रहे ह कबीर हम क ये अस ा घटना घट कै से। तनका चढ़ा कै से आकाश पर? तो तनक क भीड़ म एक हमारा भी
तनका है - उलझा, डरा, शं कत, बंटा। पुकार रहा है, “आकाश,” पर बंधा आ है धरती से। आकाश का ेम ख चता है, पर
धरती का बंधन बड़ा सघन है।
ऐसे म तनका एक सरे तनके से मलता है। ये तनका भी दखता तनके जैसा है, पर इसके दय म आकाश का वास है।
“ तनका, तनका से मला”, अब ये कोई साधारण मलन नह है, ये बड़ी वरल घटना है। कोई ऐसा मल जाए तुमको, जो
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,
दखने म तु हारे जैसा हो पर जो अपने भीतर आकाश समेटे ए हो। और जब ऐसा हो जाता है तब , , “ तनका, तनके
”
पास । तब जसका था उसको ,
तुम जो हो मा ,
वही तु हारा स य है वो नह जो तुम दखते हो।
तनका , ‘ तनका’ ,
दखता भर है है वो आकाश ही। तनका भी आकाश , तनके को ख चने वाली पृ वी भी आकाश। यही
,
कारण है क तनका जब आकाश चढ़ भी जाता है तो भी दखता वो बाहर से तनके के ही समान है और उसे इसम कोई
,
दख या न दख उसम भी कोई परेशानी नह । मृ यु का खौफ़ भी गया। दखने से संबं धत जो कुछ था अब वो मह वपूण ,
रहा नह ,इ ,
यतगत जो कुछ था अब वो मह वपूण रहा नह । अब तो बस मौज है। ”
,
तनका मल गया आकाश से सेवक मल गया साहब से।
~ संत कबीर
अ य तनके दे खगे तो कहगे क ये एक तनके का सरे तनके पर असर है ये गु, तनके का श य तनके पर असर है। इससे
,
गया दे खो तनका होकर आकाश पर चढ़ने क थ चे ा कर रहा है। ,
ःसाहसी है मरेगा। ”
,
अनंत जब अनंत से मले तो कौन कसे भा वत करेगा ? और कौन कससे मला ? कोई घटना घट ही नह है। जो जैसा था
,
वैसा ही है बस कुछ म र हो गए ह।
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सब कु छ वैसा ही है, बस कु छ म र हो गए ह। साफ़ हो गयी है। के साफ़ होने भर से, ऐसी ऊजा, ऐसा उ सव,
ऐसी म ती, ऐसा पागलपन आया क वो चढ़ा जा रहा है, चढ़ा जा रहा है।
और नीचे से बाक तनके मचाते ह गे शोर, हो सकता है नीचे से वारंट भेज दे ते ह , समन भेज दे ते ह । फ़ौज और पु लस भी
लगा दे ते ह क दे खो, “सीमाएँ तोड़ रहा है। बना वीसा के आसमान पर चढ़ा जाता है, उ लंघन कर रहा है वजना का।”
पर अब वो तो कर रहा है। “उठा बगूला ेम का”, उसे रोक ही नह पाओगे तुम।
जसके कदम ेम म उठते ह वो वयं भी नह रोक सकता अपने कदम को, ज़माना या रोके गा!
नया तुमसे कहने आए, “ क जाओ,” तो कहना, “ क सकता तो क जाता, तु हारे रोके या कूँ गा? अरे, म अपने रोके
नह क पा रहा। तुम मुझसे या परेशान हो, म ख़ुद अपने आप से ब त परेशान ँ। म कब चाहता था जाना? मने तो भरसक
को शश क , क न हो। मेरे बस म जतना था, मने सब कर डाला, अपना सारा ज़ोर आज़मा लया। अपनी ओर से जतने
दाँव-पच, हथकं डे हो सकते थे, अपनी सारी कु टलता लगा द । अब तो फँ स गया, अब तो छल लया छ लया ने।”
“तुम आए हो मुझे रोकने, म कह रहा ,ँ मेरी मदद कर सकते हो तो कर दो। अरे, म ख़ुद नहजाना चाहता। कौन-सा तनका
आकाश पर चढ़े ? मुझे रोक सकते हो तो रोक लो, मदद करो मेरी। लो हाथ पकड़ो मेरा। या पता तु ह रोक लो।” और य
ही ये कहोगे, तनका, तनके से मल जाएगा, एक और तनका भी आकाश प ँच जाएगा। (हँसते ए) ऐसा ही होता है। या
कै से होना है, तुम जानते नह ।
जो तुमसे कहते हो क यहाँ न आओ, उनसे कहो, “तुम भी आओ, और जो बाक लोग ह, उ ह भी वापस लेकर चले जाओ।
असल म वो पूरी सभा ही मु क तलाश म ह। फँ से ए लोग ह, तुम आओ और उ ह मु दे दो। मुझ एक को या मु
कराते हो, म ही भर थोड़े ही फँ सा ?ँ और भी कई ह जो बेचारे फँ स गए ह। आओ, सबको बचा लो, हाथ पकड़ो मेरा।”
हाथ पकड़ ज़ र लेना ज़ोर से, उड़ान के समय सीट-बे ट बाँधनी पड़ती है। फ़र भागने न पाए। तु हारे साथ-साथ वो भी
आकाशीय हो जाएगा। और वा तव म कु छ आ भी नह होगा। होने को है या? थ का सपना, वो भी खौफ़नाक - हट
जाएगा।
और तुम इसे पकड़े बैठे हो। अरे! कोई मधुर सपना हो, और दे ख रहे हो, तो समझ म भी आता है। बड़ा ज़ा लम सपना है, पट
रहे हो तुम, हालत ख़राब है, पर सपना दे खे जा रहे हो। अब ये सपना य द टूटे, तो कु छ आ है या वा तव म? बस - तनका,
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तनके पास। जो जैसा था, वैसा दख गया है। यथाथ सामने है - तथाता। कोई घटना घट नह है वा तव म। ये महा ां त, अ-
ां त है।
ेम का बगूला उठता है, तब चढ़ा जाता है। सीढ़ नह गनी जात , ेम के पंख पर आते ह।
..........
(अ ै त बोध ल, 2015)
सब या ह?
आचाय शांत: पहले यह समझना पड़ेगा ‘स ब ’ माने या? यह श द जब हमारे दमाग म आता है तो इसके दो अथ हो
सकते ह।
यान से सम झएगा।
और मुझे ऐसा लग रहा है क रो हत जब कह रहे ह, “स ब को कै से बनाए रख?” तो ‘बनाए रख’ से मतलब ही यही है क
इस तरह के जो स ब ह, उनको कै से वैसा ही रखा जाए जैसा उनको होना चा हए।
‘होना चा हए’ का या अथ है? क हम पहले ही पता है क अगर माँ है और बेटा है तो उनम ‘इस’ कार का स ब होना
चा हए। थोड़ा ब त दाएँ-बाएँ हो सकता है, पर अगर यादा वचलन हो, तो हम वीकार नह होगा।
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अगर दो दो त ह तो उनम ‘ऐसा’ ही स ब होना चा हए। और जैसा पहले से ही नधा रत है क ‘ऐसा’ स ब दो दो त के
बीच म होता है, उससे हटकर अगर कोई स ब बन रहा है तो हमको बड़ी अजीब बात लगेगी। हम वीकार नह कर पाएँगे।
स ब एक सरे कार के भी होते ह। थोड़ा उसको दे खगे। वह सरा कार होता है क—अभी जब तुम यहाँ बैठे ए हो
और तु हारे हाथ म एक कॉपी है और एक पेन है, तो तुम उस से स ब त हो।
न त प से स ब त हो!
तुम यहाँ पर बैठे हो, मेरे साथ हो, मेरी बात सुन रहे हो, तुम मुझसे स ब त हो। म तुमसे बात कर रहा ँ, तो म तुमसे
स ब त ँ। और ज़ री नह है क यह जो स ब त होना है, यह पहले से ही प रभा षत हो।
बड़ा मु कल है पहले से ही प रभाषा कर पाना क अभी यह जो घट रहा है, यह या है। इसको तुम एक श द म कै द नह कर
पाओगे। ठ क-ठ क दे खा जाए तो इसम कु छ-कु छ दो ती जैसा भी है, कु छ-कु छ श ा जैसा भी है, कु छ ऐसी आ मीयता है
जो घर म पाई जाती है, तो तुम कह सकते हो क म बड़ा भाई ँ अभी। तुम एक श द म इसको सी मत कर ही नह पाओगे।
म पूछूँ क जो तु हारे पास कताब है, उससे तु हारा या र ता है, तो तुम उसको कस श द म सी मत करोगे? और सी मत
कर नह पाओगे य क उस कताब से तु हारा र ता नरंतर बदल भी रहा है। जब तुम उसे नह पढ़ रहे, जब तुम उसे
दर कनार कर रहे हो, तो तु हारा उससे एक र ता है। पूरे सेमे टर उसे हाथ नह लगाते तो एक र ता है। और परी ा के दन
म वही कताब या हो जाती है? बड़ी मह वपूण!
यादातर समय उस ही कताब के साथ बीतने लगता है जसको तुमने पछले कु छ दन म ब त यान से दे खा भी नह था।
र ता बदल गया। या नाम दोगे? और मज़े क बात यह है क साल पूरा होते ही वही कताब बंद होकर कह रख द जाती
है। र ता फर बदल गया। या नाम दोगे?
तो एक स ब तो वह है जो अतीत से आ रहा है—घर, प रवार, रा , दो ती-यारी। और वह पूव नधा रत है। पहले से ही पता
है क ऐसा है।
“यह मेरी बहन है, यह मेरा भाई है, और इनका साथ ऐसा र ता होता ही है। नया म हर भाई का हर बहन से यही र ता
होना है,” बात प क ।
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सरा तरीका है र त को दे खने का क— र त म कोई अतीत नह होता। र ता ठ क अभी का होता है। अगर तुम मुझे अभी
यान से सुन रहे हो तो ब ढ़या र ता है, बड़ा अ ा स ब है। अगर अभी कु छ लख रहे हो कताब पर, तो उस कताब से
तु हारा बड़ा गहरा और घ न स ब है।
और इसी तरीके से दो कार का जीवन होता है। एक जीवन तो वह क मुझे पहले से ही पता है क मेरा कससे या र ता है
और उसको जीना कै से है, और म उसको उसी तरीके से जए जा रहा ँ। कोई मेरा भाई है, तो मुझे पता है भाई के साथ अ े
से रहना चा हए, भाई मुसीबत म हो तो मदद करनी ही पड़ेगी। य ? य क ऐसा सखाया ही गया है। और यह बात अतीत से
चली आ रही है।
या करना चाहोगे? अपने भाई क मदद इस लए करना चाहोगे य क वह तु हारा भाई है, या इस लए करना य क तु ह
वह ब त पसंद है, और भाई नह भी होता तो ब त अ ा दो त होता?
और सरा वक प क—यह भाई नह भी होता तो भी मेरी इससे म ता इतनी गहरी है क मुझे इसके साथ होना ब त
अ ा लगता है। फ़ कसको है क भाई है या नह । भाई कम है दो त यादा है।
: सरा।
आचाय: तो इसका मतलब है क आप अभी साथ ह मेरे। ब ढ़या! ( कता से पूछते ए) रो हत, स ब समझ म आ रहे ह?
एक चीज़ होती है ‘ रलेशन- शप’, पहले से ही बनी ई है। जब पहले से ही सोच कर बैठे हो क इस से मेरा ऐसा
स ब होना ही है, तो उस स ब म कु छ नया नह रह जाता। कोई ताज़गी नह रह जाती, कोई जीवन ही नह रह जाता।
सरी चीज़ होती है—ठ क अभी-अभी स ब त होना। उसको हम रलेशन- शप क जगह ‘ रले टग’ कह सकते ह, य क
वह ठ क अभी हो रहा है। इसम कु छ सरी बात होती है। इसम जान होती है।
अब एक साथ डाल ही दए गए ह तो एक साथ रहना ही है। उनका कोई ेम नह है आपस म, उनक कोई मै ी नह है आपस
म। एक व च -सी मजबूरी भर है। नभा रहे ह!
म अगर तुमसे स ब त ँ तो मुझे अ ा लग रहा है तुमसे बात करके । और म चा ँ तो नभा भी सकता ँ। ब त मौके ऐसे
दे खे ह गे क दखता होगा क बस र ता ढोया जा रहा है। जब र ता ढोया जाता है तो बड़ी मुदा चीज़ हो जाती है। फ़र उसम
बो रयत होती है, फ़र उस से छोड़ने का मन करता है।
एक शायर क पं याँ ह, “ यार को यार ही रहने दो, कोई नाम न दो,” और हम नाम दए बना मानते नह ह।
हम अ े से पता है क यह तो भाई है। सगा भाई! इससे इतनी री तक जाया जा सकता है। और यह है चचेरा भाई। तो इस
से इतनी ही री तक जाऊँ गा। फ़र कोई और र का भाई है। और कोई बस दो त है। पता है क इतनी ही री तक जा सकते
ह।
हमने हज़ार नाम दे रखे ह, हमारे जो र ते ह वह नाम म कै द ह। फ़र इसी कारण छटपटाहट होती है, य क हम को
दे खते ही नह ।
को दे खना असली बात है। और उस के अतीत को दे खना एक श द को दे खने क बात है। म तुमसे बात कर रहा
ँ। यह पहली बार नह है क तुमसे बात कर रहा ँ। म अभी यह दे खूँ क अभी तुम कै से हो, और अभी तुम सुन रहे हो बड़े
यान से, या म यह याद क ँ क अतीत म तुम कै से थे?
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तुमसे जो मेरा स ब है, म उसको अतीत से बाँधकर नह रख सकता। म यह नह कह सकता क अतीत म यह कै से थे, उसी
से नधा रत होगा क मेरा इनसे र ता या है, और उसी से नधा रत होगा क अभी मेरा इनसे वहार या है।
तुम अभी जैसे हो मेरे लए ब त अ े हो, और इतना काफ़ है। कसी अतीत क आव यकता नह है। तु हारे सामने जो
बैठा है उसे दे खो। उससे तुम अपने स ब का नाम मत दे खो। वह काफ़ है!
घर जाते हो तो यही मत करो क मुझे पता है यह लोग कौन ह—माता ह, पता ह, यह बहन बैठ है और वह भाई बैठा है, वह
नौकरानी है, वह पड़ोसी है, यह दो त ह। तुमने कसी इंसान को नह दे खा। तुमने सफ़ लोग के माथे पर र त का ठ पा लगा
दया। तुम उस को दे ख ही नह पा रहे ठ क से य क तुमने पहले ही कह दया—“‘यह पता है।” जब तक पता को
दे खोगे, इंसान को नह दे ख पाओगे।
.........
(उ र दे श, 2013)
आचाय शांत: तु हारे लए पढ़ने का मतलब ही यही है – पढ़ाई से कु छ और पाना। और उसम भी फ़र तु हारा दोष नह है,
ये बात ही भाव क है।
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बचपन से कभी यह तो बोला ही नह गया न क इस लए पढ़ो य क पढ़ने म ख़ूबसूरती है। हमेशा यही कहा गया, “पढ़ोगे,
लखोगे तो बनोगे नवाब।” अब यह तो नह कहा गया, “पढ़ो- लखो य क पढ़ने म मौज है।” ब क यह कहा गया,
“इस लए पढ़ो, लखो ता क नवाब बन सको।”
अब अगर बना पढ़े - लखे ही कोई नवाब बन सकता हो, तो कोई य पढ़े - लखे? य क असली चीज़ या है? नवाब
बनना। पढ़ना- लखना तो बस एक तरीका है, एक मा यम है, नवाबी का। अगर नवाबी बना पढ़े - लखे ही मल जाए, तो फर
य पढ़े - लखे? आप सड़क पर चलते हो, कह प ँचने के लए। अगर उड़कर ही वहाँ प ँच जाओ, तो सड़क क ज़ रत ही
या है?
तु हारे लए पढ़ाई एक सड़क क तरह है, जसका तुम योग कर रहे हो कह और प ँचने के लए। इसी लए तु ह पढ़ाई से
यार नह है, य क आज तक कसी को सड़क से यार नह आ है। सड़क का तो बस उपयोग कया जाता है, और उपयोग
करके उसे छोड़ दया जाता है। तुम पढ़ाई का बस उपयोग करते हो, शोषण करते हो, क कु छ नंबर आ जाएँगे, उन नंबर से
नौकरी लग जाएगी, नौकरी से पैसा मल जाएगा, और फर पता नह तु हारी या- या क पनाएँ ह।
अपनी पुरानी कताब को दे खो तुमने उनके साथ या कया है। पछले सेमे टर क कताब को दे खो, तुमने उनके साथ या
कया? तुम ब कु ल समझ जाओगे। तुमने क़रीब-क़रीब शोषण कया है उन कताब का। तो यार थोड़ी ही है पढ़ाई से, तु ह
कताब क संग त अ थोड़ी ही लगती है।
आज तु ह पता चल जाए क बना पढ़े भी तु हारे नंबर आ जाएँगे, तुम पढ़ोगे नह । आज तु ह पता चल जाए क बना
कॉलेज जाए भी तु ह ड ी मल जाएगी, तुम कहोगे, “ठ क! ड ी लेने भी नह आऊँ गा, को रयर कर दे ना।”
( ोता हँसते ह)
तो जब तु हारी नज़र पढ़ाई पर है ही नह , तो तु ह पढ़ाई से ेम कै से हो सकता है। पढ़ रहे हो यहाँ, नज़र है वहाँ। वहाँ या
है? वहाँ प रणाम है, वहाँ नौकरी है।
तुम पढ़ने के लए कभी पढ़ो तो। आज तु ह पता चल जाए क कसी एक अ याय से परी ा म कोई नह आएगा, तो तुम
उस अ याय को पढ़ोगे नह । अब तुम मुझे बता दो क तु हारा र ता या है पढ़ाई से?
कताब भी कभी पूछती होगी तुमसे, “ये तो बताओ तुम मेरे कौन हो?” तो तुम कहते ह गे, “शोषक।” बुरा लग रहा है न सुनने
म? सोचो तु ह सुनने म बुरा लग रहा है, कताब को कतना बुरा लगता होगा? तुम उनको कै से घृणा क नज़र से दे खते हो।
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“ फर सामने आ गयी,”
और जैसे ही नज़र से हटती है, कै से खुश हो जाते हो। “समय ख़ म आ पढ़ने का, चल हट।”
कोट म कन मु पर तलाक के मुकदमे आते ह, जानते हो? “ कसी ने मेरी प नी के ऊपर ए सड डाल दया, अब रात म
इसक श ल दे खता ,ँ तो मुझे न द नह आती। चीख मारकर उठ जाता ।ँ मुझे तलाक चा हए।”
उसके शरीर से ही ये संपृ था, उसके शरीर का ही उपयोग कर रहा था, जब वो शरीर ही नह रहा, तो इसके साथ अब य
रहेगा? बेचारे वृ के लए इतने सारे वृ ा म बने ए ह। कॉलेज म लड़के वो ट -शट पहनकर घूमते ह जस पर लखा
होता है - “माई डैड इस एन ए.ट .ऍम. (मेरा बाप पैसा दे ने वाली मशीन है)।”
अभी कु का मेला आ था इलाहबाद म। हर साल इलाहबाद म कतने ऐसे मामले होते ह क ब े बूढ़े माँ-बाप को लेकर
आते ह क कु के मेले म गंगा नान कराएँगे, और उ ह वह छोड़कर भाग जाते ह। कोई उनसे पूछे क य छोड़कर भाग
आए, तो बोलते ह, “गंगा कनारे मरेगा, तो वग जाएगा बूढ़ा।”
और तुमने भाषा सफ़ ापार क सीखी है क जहाँ फ़ायदा हो रहा हो, बस वह जाओ। ेम फ़ायदा नह दे खता।
तुम तो कताब के पास भी बस फ़ायदे के लए जाते हो। जस दन कताब के पास ेम से जाओगे, उस दन दे खना पढ़ने म
कतना मज़ा आएगा। जब तक फ़ायदे क , नफ़े -नुकसान क भाषा तु हारे मन पर छायी रहेगी, तब तक तुम ेम नह जान
पाओगे।
और तु ह लगातार उसका ही श ण मल रहा है। हर कोई तुमसे यही कह रहा है क दे खो तु हारा फ़ायदा कहाँ है। हर कोई
तु ह ऐसे ही आक षत कर रहा है। जब तक तुम उसी भाषा को सुन रहे हो, और उसी भाषा म बात कर रहे हो- नफ़ा-
नुकसान, लाभ-हा न- तब तक तु हारी ज़दगी नरक जैसी ही रहेगी, य क उसम ेम नह रहेगा।
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समझ रहे हो?
(मौन)
मौज करो! और कु छ करने क ज़ रत ही नह है। चुप बैठ जाओ, जो होना है, हो रहा है। जीवन उ सव है, जीवन ेम है।
( ोता हँसते ह)
..........
(उ र दे श, 2013)
झूठा ेम
कता: आपने अभी कहा क जससे जतना यार करोगे उससे उतनी यादा नफ़रत भी करोगे। और आपने अभी ये भी
बोला क एक बेट है, उसका पता उससे ब त य़ादा यार करता है, य द वो भाग जाएगी तो पता उसको मार भी डालेगा।
ले कन वो यार नह है। य सर, ये यार य नह है?
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मुझे तुमसे एक आकषण हो गया य क मेरी एक ख़ास उ ,
है और तु हारी भी एक ख़ास उ ,
है और इस उ म शरीर क
ं थयाँ स -
य हो जाती ह। सीधे सीधे ये एक शारी रक आकषण है यौन आकषण है। और म इसको , या नाम दे दे ता ?म
ँ
इसी तरीक़े से जब ब ,
ा पैदा होता है माँ का उससे मोह होता है उस मोह को , ‘ममता’ का नाम दे दया जाता है। ‘मम’ श द
का अथ समझते हो ? ‘मम’ माने मेरा। ‘ममता’ का अथ भी ेम कतई नह है। ‘ममता’ का अथ है—चीज़ मेरी है इस लए मुझे
पसंद है। पर हम उसे या नाम दे दे ते ह ? हम कह दे ते ह क माँ का बेटे से ेम है।
वो ेम नह है !
वही ब ,
ा जससे आज उसको इतनी ममता है छः महीने बाद य द पता चले क ब ा अ ताल म बदल गया था तो वो माँ ,
या करेगी ? वो इसी ब े को उठाकर कहेगी , “मेरा ब ा बदल कर लाओ। ” ऐसा होगा या नह होगा ? या ऐसा नह होता
:
आचाय ईमानदारी से दे खो। छः महीने तक वो ब ा उसके साथ था।
:
आचाय नह होगा ना ऐसा नह होगा। ,
:
आचाय ये सब मथक कहा नयाँ ह। हम उनक बात नह कर रह ह यहाँ।
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तुम जीवन को अपनी से दे खते हो, चार ओर लोग ह, वहाँ दे खो और जवाब दो। अपने घर को दे खो, अपने प रवेश को
दे खो, और जवाब दो। सारा यान इस पर चला जाएगा, उससे जतने भी तार थे, टूट ही जाएँगे। ये वही बात है क जैसे तुम
कहते हो, “मेरा पेन।”
(एक कलम क ओर इं गत करते ए) यहाँ इतने पेन रखे ए ह, तुम कस पेन के साथ सयुं हो? इसके साथ। इस पेन म
और उस पेन म मूलत: कोई अंतर है या? कोई अंतर नह है ना? पर तुम इससे सयुं हो य क—‘ये मेरा है।’ इस ब े म
और उस ब े म मूलत: कोई अंतर नह था, पर माँ जाएगी और बदल दे गी य क—‘मेरा है।’
आचाय: और ‘मेर’े का जो भाव है इसी को ‘ममता’ इस लए कहा जाता है। ‘ममता- मेरा’। पर हम बचपन से ही बता दया
जाता है क ये ेम है। ये ेम नह है, ये तो माल कयत क भावना है—‘ये मेरा है।’
ये वही भावना है क—मेरी साइ कल, मेरी कू टर, मेरा धम। और जब तुम कसी चीज़ के मा लक होते हो, तो फ़र तुम उससे
अपे ाएँ भी करते हो। तुम कहते हो, “मेरे हो तो मेरे ही रहना।” फ़र इस लए सास-ब के झगड़े भी होते ह—“मेरे थे, कसी
और के कै से हो गए?”
“मेरे हो तो अब मेरे होने का फज़ भी अदा करो, उसको तुम चाहे ध का क़ज़ बोल लो या जो भी बोल लो।”
हमने यार वाला ढं ग कभी जाना नह , हमने ापार का ढं ग ही जाना है—‘तू मेरे लए ये कर और म तेरे लए वो क ँ गा।’
हर चीज़ से हमारी अपे ा है। हम तो अपने आप से भी बड़ी अपे ाएँ ह, ये भूलना मत। और तुम अपने आप को कतनी
गा लयाँ दे ते हो जब अपनी अपे ाएँ पूरी नह कर पाते, य क तुम अपने आप से भी ेम नह करते। तुम ये नह कहते, “म
जैसा ,ँ सो ।ँ ”
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तुम कहते हो, “म जब कु छ हो जाऊँ गा तब म अपने आप को वीकार कर सकता ँ, अभी तो म जैसा ँ तो घृणा द ँ,
अभी मुझम ऐसा कु छ भी नह जो ेम के का बल हो।”
और यही तु ह लगातार बताया भी जाता है, “तुम हो ही या, पहले इंजी नयर बन जाओ, कु छ बन जाओ तब तु हारा जीवन
जीने लायक होगा। अभी तो तुम बेकार हो, थ है तु हारा जीवन, अभी तो तुम यही करो क ल य के पीछे भागो, कु छ बन
जाओ”—अपे ा।
तो ये सब नकली ेम है, जसको हमने ‘ ेम’ का नाम दे दया है। ये सब नकली ेम है। और जब ये नकली ेम होते ह, तो
घृणा कह र नह होती, वो आसपास ही होती है, इस लए वो झट से आ जाती है।
प त-प नय म दे खा है कतने ज़बरद त झगड़े होते ह? और झगड़े ना ह तो उनक गृह ी आगे ही ना बढ़े । उस ेम म घृणा
अंत म त होती है जैसे ध और पानी मले-जुले रहते ह। कह ही नह सकते क ेम कहाँ है और घृणा कहाँ है।
कभी दे खा है प नी कसी और क तरफ़ दे खने लग जाए तो प त का या हाल होता है? और प नी को पता चल जाए क प त
कसी और के साथ घूम रहा है, तो उसका या हाल होता है? ेम तुरंत घृणा म त द ल हो जाता है।
ये कै सा ेम है?
आचाय: नह ।
: ऐसा य सर?
आचाय: कोई और ज़ रत होती है अ सर। दे खो, संभव तो है ही क जो असली ेम है, वो भी जीवन म आ सके । इसक
संभावना तो है ही। पर होता ऐसा लाख म से कसी एक आदमी के साथ है। तुम पूछ रहे हो क और या वजह होती है?
: या समझेगा?
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आचाय: “मुझे वो आक षत कर रही है। मुझे नह आक षत कर रही, मेरे होम स को आक षत कर रही है।” बस समझ
जाओ।
आचाय: मेरे बताने क आव यकता नह थी। अगर तुम अपने जीवन पर यान दे ते, तुम ख़ुद भी समझ जाते। तुम जान जाते
क लड़ कय को दे खकर मुझे जो होता है, वो आज से दस साल पहले तो नह होता था। तुमने अगर अपने जीवन पर यान
दया होता तो तुम ख़ुद ही समझ जाते ना।
द क़त ये है क हम बेहोशी का जीवन जीते ह, हम अपने ही जीवन पर यान दे ते नह है क हो या रहा है। अगर यान दे ते
तो ख़ुद ही जान जाते क ये जो हो रहा है, वो पूरे तरीके से एक शारी रक या है। शारी रक या के अलावा भी कु छ
चीज़ होती ह।
: आप कहते ह
क चेतना को दे खो, अपने शरीर को दे खो, शरीर या है? आपका शरीर जब आपके ेमी के साथ है, तो फ़र
हम उसके साथ य न जाएँ?
शरीर जो ये कु छ कर रहा है, ये यां क चीज़ है, और यं होना तु हारा वभाव नह है।
तुमने वही अभी पूछा था ना क—हम य समझ? य क तु हारा वभाव है समझना। तु हारा वभाव नह है यं होना।
यं कु छ नह समझता। ये यं है, इसे तो कृ त ने मशीन क तरह उपयोग कर रखा है सफ़ और सफ़ आबाद बढ़ाने के
लए।
शरीर बस ये चाहता है क खुद ज़ दा रहे और मरने से पहले अपने जैसे कु छ और पैदा करके जाए। कृ त तुमसे बस यही
चाहती है, और कु छ भी नह चाहती। कृ त चाहती है क एक तो तुम ख़ुद जदा रहो, अपने शरीर क दे खभाल करो और
मरने से पहले तुम ख़ूब सारे ब े पैदा कर जाओ। यही काम हर जानवर करता है।
...........
(उ र दे श, 2013)
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ाहीन र ते
शांत हो जाती ह।
~अ ाव गीता (अ याय १८ , ोक ९ )
:
कता म पहचान म जी रही ,
ँ संबंध म ँ। या म अपना वभाव जानकर जीवन नभा सकती ,
ँ या इसक क पना
बस मन क चालाक है ?
ही रहेगा। आप कुछ हो ही नह सकते बना कुछ अ वीकार कए। पहचान बनाने का अथ ही यही होता है क - एक खंड के
साथ संयु ,
हो गए और सरे से र हो गए।
इसी कारण जब आप ‘ने त-ने त’ क या से गुज़रते ह तो भी आ ख़री कदम बचा रह जाता है - ‘ने त-ने त’ करने वाला
बचा रह जाता है। जब आप यह कह रहे होते ह क - “म ये नह ,
ँ म ये नह ,ँ म ये नह ,ँ ” तो ब त शुभ घटना घट रही
होती है।
, ,
ब त कुछ जो नकली है घातक है उसको आप अ वीकार कर रहे होते ह ले कन अंत म ज़रा सा कुछ रह जाता है, - , फर
रही होगी।
सरी बात —कुछ भी होने का भाव या है ? हमने ये तो दे ख ही लया है क कुछ भी ‘न होने’ का भाव, कुछ भी ‘होने’ का
,
भाव एक ही है। तो इन दोन को हम एक ही नाम दे दगे - ‘कुछ भी होने का भाव’।
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‘कुछ भी होने’ का भाव या है ?
‘कुछ भी होने’ का भाव मूलतः डर से नकलता है , ‘कुछ भी होने’ का भाव मूलतः एक खाली ान से नकलता है। ये खाली
, ,
दे ते ह। जब वो जगह वो आसन वो सहासन खाली हो जाता है तब आप उसको , नया भर के पंच से , य से ,
व तु से और संबंध से भरने क को शश करते ह।
आपक जगह है जस पर मा ,
स य को वराजना चा हए उसके अलावा वो ,
ान वो आसन कसी और को दया ही नह जा
ले कन स य को आपने ख़ुद ही अ व ावश भुला दया है। वो कह चला नह गया है बस माया का अ व, , ा का ऐसा ज़ोर है
दे ने क ।
, ,
राजा कह चला नह गया है खो नह गया है मर नह गया है। राजा मौजूद है आपक आँख साफ़ नह ह आपको दख नह , ,
रहा। तो आप या को शश कर रहे ह ? आप को शश कर रहे ह क उसके सहासन पर कसी और को बैठा द। वो राजा आप
,
वयं ह आपक स ा ही वो स य है जसको उस आसन पर होना चा हए। उसको आपने भुला रखा है उसको आप दे खते ,
नह ।
जब आप उसको दे खते नह तो मन म बड़ा नधनता का भाव रहता है। मन म बड़ा डर बना रहता है क कुछ कमी है जैसे ,
क य प से कोई कमी हो कोई छोट, -मोट कमी नह । फ़र आपको उस कमी को भरने के लए हज़ार लोग का सहारा
,
लेना पड़ता है उसी को चाहो तो आप ‘अकेलेपन’ का भी नाम दे सकते हो।
, ,
हमारे जो संबंध होते ह आमतौर पर वो और कुछ नह होते वो हमारी अधूरेपन क कहानी होते ह। वो हमारे अकेलेपन का
य चा हए संबंध का सहारा ? य ,
कसी क आव यकता है मन म बैठाने के लए जब मन म जसको वराजना है वो सदा
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जब आसन खाली ही नह है, तो इधर-उधर नयाभर के लोग को आमं त ही य करना? य कहना, “तुम आ जाओ,
तु हारे बना हम अधूरे ह?” तो जसको हम आमतौर पर कहते ह, ‘स बं धत होना’, वो और कु छ नह है वो हमारा
आ या मक दवा लयापन है।
ेम तो सफ पूणता म ही संभव है, ेम तो सफ़ अ या म म ही संभव है। हमारे सारे संबंध नकलते ह अपूणता से, तो अब
इसम ता ुब या है क हमारे संबंध म ेम कह होता नह ।
घर होते ह यार नह होता, संबंध होते ह ेम नह होता। इसम ब कु ल कोई ता ुब नह है, ये दोन एक ही बात ह, य क
वो संबंध नकला ही आपक आंत रक अपूणता के भाव से था।
सहासन खाली है, कसी को बैठाना है, इसी कारण आपने संबंध बनाया।
जो संबंध उपजा ही बीमारी से है, वो वा य कै से दे सकता है आपको? जो आपके जीवन म आया ही पंचवश है, वो
ेम कै से दे सकता है आपको?
‘म पहचान म जी रही ँ, संबधं म जी रही ँ, संबंध और पहचान के रहते ए भी म या अपने वभाव को जान सकती ँ
और उसे जीवन म नभा सकती ?ँ ’ - ये वैसा ही सवाल है क कोई भली-चंगी टांग वाला कहे, “म बैसा खय पर चल रहा
ँ। या इन बैसा खय के साथ भी म मैराथन दौड़ सकता ?ँ ”
भले मानुष, पहली बात—बैसा खय के साथ मैराथन दौड़ी नह जाती। और सरी बात—जो ब त बड़ा चुटकु ला है, वो ये है
क तु ह बैसा खय क ज़ रत नह है।
पहली बात—जब तक बैसा खयाँ ह, तब तक मैराथन दौड़ नह सकते। पर तुमने सवाल म यही कहा है क बैसा खय से तो
लगाव हो गया है, बैसा खय के साथ मैराथन दौड़नी है, चालीस कलोमीटर, बयालीस कलोमीटर। बैसा खय के साथ मैराथन
नह दौड़ी जाती।
और सरी बात—तु हारा ही बेतुका है य क तु ह बैसा खय क ज़ रत नह । तु हारे पास व मज़बूत पाँव ह, तुम
उ ह भुलाए बैठे हो। ठ क वैसे ही जैसे तुम सहासन पर जसको आसीत होना चा हए, उसको भुलाए बैठे हो।
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अपनी मता का ान तु ह सफ़ इसी लए नह है य क तु ह स य का ान नह है। तुम अपनी ताक़त को तब तक नह
जान पाओगे जब तक तुम स य के समीप नह आ जाते - दोन एक ही बात ह। हम ले कन असंभव क माँग करते ह। हम
कहते ह , “स य का हम कुछ पता नह ले कन हम जीवन आ मबल म जीना है तो जीवन म ताक़त होनी चा हए बल होना , ,
चा हए। ”
एकमा ,
ोत जो है ताकत का वो स य है। उस ोत से र हो तो तु हारे जीवन म मा नबलता रहेगी। कोई और ोत होता
आप अगर पाएँ क आपके जीवन म कमज़ोरी ब त है , कसी भी कार क , हर कमज़ोरी अंततः मान सक कमज़ोरी ही है,
-
तो इसका एक सीधा सीधा न कष नकाल ली जएगा क स य से र ह , य क ताक़त का ोत तो वही होता है। उसके
,
हज़ार तरीके के बल होते ह पर आप दे खगे उनके मूल क ओर तो आप पाएँगे क हर बल के मूल म आ मबल है - ‘म’ का
,
बल अपने होने क स ,
ा का बल स य का बल।
“म कुछ ,ँ म बेट , ,
ँ मेरी कुछ पहचान है म प नी ,
ँ म माँ , ,
ँ मेरे और हज़ार संबंध ह दा य व ह क , ह” - ये तो
व उठेगा ही तभी जब आप भूल गय ह क आप कौन ह। जो अपने आप को भूला बैठा है , सफ़ वही कह सकता है क -
“म तो माँ ।
ँ ”
एक बार इंटर ू ले रहा था। एक उ मीदवार आया। मने पूछा , “कौन हो? प रचय दो।” तो बोलता है, “म इंजी नयर ” मने
ँ।
कहा , “तय कर लो क इंसान हो या इंजी नयर हो ”, उसको ये बात बड़ी अजीब-सी लगी। उसने सोचा होगा क इंटर ू लेने
,
वाला बेवक़ूफ़ है पर आप एक उथली पहचान म जी रहे हो और उससे गहरी पहचान भूल गए हो।
म ये नह कह रहा ँ क अंततः इंसान है य क अगर म क ँ , “इंसान है”, तो इससे यही अथ नकलेगा क एक शरीर है ,
इंसान का शरीर। पर हम इतनी उथली पहचान क ओर चले जाते ह क अपनी वा त वक पहचान को भूल जाते ह।
-
अब एक साधारण सी बात पर वो अटक गया जवाब ही नह दे पाया। मने कहा , , “तय करो। इंजी नयर हो या इंसान हो?”
और उसे ब त सोचना पड़ा हज़ार तरीके के हसाब , - कताब उसने कए , फ़र बोला , “म एक ऐसा इंसान ँ जो इंजी नयर
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यही म हर माँ से पूछना चाहता ँ, “माँ हो या इंसान हो?” साधारण अव ा म अगर आप हज़ार माँ से सवाल करगे, तो नौ
सौ न यानवे कहगी, “माँ ।ँ ” वो भूल ही गई ह क इंसान ह, उ ह याद ही नह है क माँ वगैरह तो ठ क है, ऊपर-ऊपर क
बात है।
और इंसान होना भी कोई आ ख़री पहचान नह , य क इंसान से जैसा मने अभी कहा, हम अथ यही लेते ह क - शरीर ँ,
इंसान का।
आपने दे खा ही होगा क जब भी कोई कहे, जब भी कोई ऐसा व हो जसम ‘म’ श द आ रहा हो, और आप कसी से
पूछो, “‘म’ माने कौन?” तो वो तुरंत अपनी ओर उंगली दखा कर कहता है, “’म’ माने म”, अपने शरीर क ओर उंगली
दखाता है, शरीर के अलावा उसक कोई पहचान बची नह है।
और वो घ टया वक प है - शरीर।
मुझे दे खना बोध का एक घ टया वक प है। मुझे आप सफ़ तब दे खोगे जब उस सहासन पर आपको कसी शरीर को बैठाना
होगा।
और शरीर को हक़ नह है वहाँ बैठने का। वहाँ पर तो मा परम चैत य क स ा ही वराज सकती है। पर उसक ओर से मन
अन भ है, तो वहाँ पर हम कु छ भी और हम रखते जाते ह - व तु, वचार, शरीर, संबंध।
व तु, वचार, शरीर, संबंध - ये ब त ओछे ह। ये नह वो बन पाएँगे जो स य है, ब कु ल नह बन पाएँगे। इनम कोई दम नह ,
इनक कोई ताक़त नह ।
(मौन)
और फ़र जब बैसाखी पर पकड़ छू टेगी, तो पाँव और स य ह गे - इस तरह से च आगे बढ़े गा। ले कन पहला क़दम तो
यही होगा क वो जाने क पाँव ह, और पाँव मुदा नह ह।
आप जब तक सहासन पर उसके असली हकदार को नह बैठाएँगी तब तक उस पर चोर, लुटेर,े जेबकतरे, यही आ आकर
बैठते रहगे। घर के नौकर होते ह उप वी, छछोरे, कई बार जब मा लक नह होता तो उसक चीज़ को इ तेमाल करना शु
कर दे ते ह। मा लक के सामने उनक ह मत नह पड़ेगी।
आपक आँख ऐसी हो ग ह क वो आपको दख नह रहा क वो मौजूद है। उसक जगह पर छोटे-मोटे लोग को मत
बैठाइये।
आप उनके साथ भी अ याय करते हो, उनको परम क जगह पर बैठाकर। वो बेचारे ख़ुद असहज हो जाते ह, वो ख़ुद नह
चाहते क उनको वहाँ बैठाया जाए।
आप गा दे ते हो, “तुझम रब दखता है”, अब वो फं स गया बेचारा। आपने तो गा दया, “तुझ म रब दखता है”, अब वो अपना
माथा पीट रहा है, “ य इतना उ मीद रख रहे हो? मेरी है सयत ही नह क तू मुझे वहाँ बैठा रही है।” पर जब रब नह दखता
अपनी सही जगह पर, तो इधर-उधर के लोग म रब दखता है। और फ़र हमने हज़ार तरीके के बहाने नकाल रखे ह।
तुमने कभी दे खा है - प त परमे र होता है, माँ-बाप ई र होते ह, ब े बाल-गोपाल होते ह? भगवान ही भगवान भरे ए ह।
हर छोटा-मोटा संबंध भगवान है। इससे सफ़ यही पता चलता है क जो वा त वक है, वो नह है। तो जो ही मल रहा है उसी
को कहते हो, “तू होगा, या पता तू हो?” इनम से कोई नह है। और आप य उप व खड़ा करते हो इनको वो बनाकर जो ये
ह नह ?
ज मा मी आती है और इतने-इतने से ब े घूम रहे होते ह, उ ह आप कृ ण-क हैया बना दे ते हो। अब वो परेशान है क
उसके माथे पर मुकुट चपका दया है और उसको खुजली हो रही है। उसके मुँह म बाँसुरी डाल द है, कमर पर कसनी कस द
है - “तु हारा बालगोपाल, परमे र”। उसके लए भी बोझ है, उसको ब दो, असली कृ ण क तलाश करो न, ये
बालगोपाल या खड़े कर रहे हो?
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पर असली कृ ण क तलाश तुम करोगे नह , तुम स ते वक प ढूँ ढ़ते हो। असली रब क तलाश करो न। ये वासना से भरे ए
औरत और मद म या रब ढूँ ढ रहे हो क—“तुझ म रब दखता है”?
असली रब नह दखता न? फर जो चकना चेहरा सामने आ रहा है, उसम रब दख रहा है।
कन झंझट म फँ से ए हो, इसम कसी क भलाई नह है। या ाएँ नकलती ह, उसम दे खा ह गाय-बैल बाँध दए, हाथी को
ले लया। और हाथी को या कर रखा है? हाथी को इतना बड़ा तलक लगा दया है, या बैल को तलक लगा दया है, और
उसके ऊपर एक छ लगा दया है। दे खा है? उसके ऊपर कपड़ा रख दया है और घं टयाँ बाँध द ह उसके गले म, और
उसक पूजा कर रहे ह क यही तो है महेश का वाहन, तो महेश ही आ। अब वो बैल बेचारा फँ स गया है।
आप भी अपने बैल को मु दो। वो बैल ही है, उसको य महेश बना रखा है? फँ स गया है बेचारा। और बना ही नह रखा है,
फ़र जब ज़बरद ती कसी को तुम आसन पर बैठाते हो तो उसके लए कु छ आचारसं हता भी लाते हो, कु छ वजनाएँ भी लाते
हो। और वो जो है नह तुम उससे वो सब भी करा रहे हो।
वो हाथी है, एक साधारण हाथी। तुम या बोल रहे हो, “ये तो इं का ऐरावत है। तो या करता है? ये उड़ता है।” अब तुम उसे
उड़ा रहे हो और वो उड़ नह पा रहा।
“ या ये बैल है?”
इसी लए हर ेम कहानी लगातार तनावपूण होती है, लगातार असफल होती है, य क तुम उसम जो ख़ोज रहे होते हो, वो
तु ह मल नह सकता। तुम रब ख़ोज रहे हो उसम, वो तु ह मलेगा नह । तुम ग़लत जगह तलाश रहे हो।
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हर ेम कहानी को असफल होना ही होना है। तुम ग़लत जगह, ग़लत व तु क तलाश कर रहे हो। नह मलेगा, ब कु ल नह
मलेगा!
(मौन)
आपम कोई कमी नह है, आपम कोई खोट नह है। आपको कोई आव यकता नह क आप मकान के लए कराएदार
तलाश। मकान का मा लक मौजूद है। आपने य बाहर लगा रखा है क—‘खाली है’? और हमारा पूरा जीवन ऐसे ही बीतता
है। हम माथे पर चपका कर घूमते ह, या..?
: खाली है।
आचाय शांत: मा लक मौजूद है और आप, “खाली है!” च ला रहे हो - इससे बड़ी बेवकू फ या हो सकती है। उसके बाद
आप सवाल पूछते हो, “जब तक मकान म कराएदार ह तब तक या म वभाव को जान सकती ँ?” अरे मकान म
कराएदार बाद म है, मकान मा लक पहले मौजूद है। मा लक को आवाज़ दो, कराएदार साफ़ हो जाएँगे।
और कराएदार भी परेशान ह। इसम कराएदार के साथ कोई अ याय नह हो रहा, ज़बरद ती के कराएदार पकड़ लए ह
आपने। वो कभी आना नह चाहते थे मकान म। पहले तो उनको रझा- रझा कर बुलाया क मकान बड़ा अ ा है, आ जाओ।
फँ साया है आपने कराएदार को, “मेरा मकान दे खा? मेरी कान दे खी? ये कमरा ऐसा है, ब त ब ढ़या है। या बेड म है,
या रसोई है, आओ तो।”
अब वो आ गया है तो पूछते हो क कराएदार आ गया है, मा लक के लए जगह बची है या। कराएदार को घुसाया कसने ये
बताओ? य घुसाया कराएदार को? ‘खाली है’। आईने म अपनी श ल दे खएगा, दे खएगा क माथे पर या लखा आ है
बड़ा-सा…
: खाली है।
मकान खाली नह है, मकान खाली हो नह सकता। म त र हए, मकान भरा आ है। जब मकान भरा होता है न, तो आप
इधर-उधर के लोग से भी ेमपूण संबंध रख सकते हो। म उनके त हसा करने को नह कह रहा। हसा तो हम करते ही ह।
“तुझ म रब दखता है”, इससे बड़ी हसा नह हो सकती कसी के त। जसको जस ान पर होना चा हए, उसको उस
ान से उठाकर आपने पता नह कहाँ बैठा दया है - ये गहरी हसा है।
माँ-बाप को ई र बोल दे ना माँ-बाप के त गहरा अ याय है। वो ई र नह ह, वो हाड़-माँस के पुतले ह। वकार से,
वकृ तय से भरे ए, आप ही के जैसे। य उनसे अपे ा रख रहे हो ऊँ ची-ऊँ ची?
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-
हम सबके जीवन म इधर उधर के लोग मौजूद ह हम सब , -
वयं भी इधर उधर के ही ह। उन सबके साथ ेम का एक ही सू
है। या ? उनको ,
कराएदार जानो उनको मकान के मा लक क जगह मत दो। मकान का मा लक मकान का मा लक है ,
आपक स ा आपक अपनी स ा है।
और याद क रये एक समय था जब कोई नह था। उनके साथ अपने आप को इतना जोड़कर कर मत दे खये। ये सब पल दो
,
पल के साथी ह इनका कुछ नह है।
, ,
जो आपका असली साथी है जो असली प त है उसके साथ हो जाइए। ये सब तो ऐसे ही ह नौटं क , , पंच , वांग , क जैसे
कोई तरीका है ? इनका कुछ नह है , ‘असली’ को याद र खए, असली को। आप परम क ,
या ह छ गूमल क नह । आप
कबीर कहते ह न -
ले कन फ़र दोहरा रहा ,
ँ कहना पड़ रहा है ऐसे वर म क लग रहा है जैसे कसी का अपमान हो रहा हो , क जैसे हसा हो।
बाक सबसे संबंध ेमपूण सफ़ तब ह गे जब आप स य के आसन पर बैठे ह गे। फलहाल तो हम जैसा जीवन जीते ह हम ,
सबके साथ अ याय करते ह।
: सर, हम भूल कैसे जाते ह? जसके पैर सही ह गे वो बैसा खय पर नभर नह होगा ले कन , …
:
आचाय इसका कोई कारण नह होता।
माया को ‘अना द’ कहा गया है, इसका कोई कारण नह होता। य क तुम जानते ही हो न क हर कारण अंततः उसी कारण
या तो उसे ये कह दो क अ ,
त व ही ऐसा चाहता है या ये कह दो क अकारण है - दोन एक ही बात ह। उसके कारण क
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बस इतना जानना काफ़ है क जहाँ से भी आई है, उसका नवारण है। कारण मत पूछो, नवारण है, इतना काफ़ है।
:अ तवक।
..........
(अ ै त बोध ल, 2014)
े मय का ेम अ सर हसा मा है
कता: हमारा वभाव इतना हसक य है? हम कु छ भी दे खते ह तो यादा सोचते नह , सीधे उ हो जाते ह। जैसे रा ते म
प र पड़ा है, तो उसे लात मारनी है, यह बड़ी आम बात है।
ऐसा य ?
: जब हम गु सा हो।
आचाय: जब गु सा हो, तो स ावना बढ़ जाती है क एक प र ही पड़ा आ है तो उसे लात मार दोगे। तो या पता चलता है
इससे? क हसा का ोध से स ब है। प र को लात इसी लए मारी य क ो धत थे। ो धत य थे? कोई सरा था
जससे कोई उ मीद थी, वो उ मीद पूरी नह ई, तो ोध आया।
नया अब और ऐसी होती जा रही है जसम भोगने पर ज़ोर है। ज़दगी से और यादा वसूल लेने पर ज़ोर है, है न? ‘ जतना
यादा ज़ दगी से नोच खसोट सकते हो, नोच खसोट लो’—तु ह लगातार यही श ा द जा रही है – ‘भोग लो, चूस लो, एक
बूँद भी छू ट ना जाए।’ है न?
तुम माण प यह दे ख लो क तुम सबसे यादा हसक उनके त होते हो जनसे तु हारा कभी ना कभी स ब मोह का
रहा होता है। उस मोह को कभी-कभार तुम ‘ ेम’ का नाम दे दे ते हो— ेम होता नह है।
पर जो ेम वाले र ते होते ह उनम जब हसा का व ोट होता है, तो बड़ा भयानक होता है, य क चाहते ब त कु छ थे न।
जो र के ह उनसे तो फ़र भी कम चाहते हो, जो तु हारे क़रीबी ह उनसे तो तुम सभी कु छ चाहते हो। और जो चाहते हो वो हो
नह पाएगा—नतीजा हसा है। हो सकता है उस हसा का एक बार म व ोट ना हो। अगर एक बार म नह होगा तो फर वो
एक पुराने घाव क तरह ट स दे ता रहेगा। एक सतह के नीचे चलने वाली नरंतर हसा लगातार बनी रहेगी।
तुम अगर संवेदनशील नह हो तो तु ह लगेगा हसा नह है, पर सतह के नीचे हसा लगातार है। जतना तु हारी पा लेने क
इ ा, जतना तु हारी भोगने क अभी सा, जतना तु हारा हीनता का भाव, जतना तु हारा लालच, उतना ही तु हारा ोध
और तु हारी हसा।
ेम का स ब ब कु ल सरी बात होती है। ेम के स ब म बु नयाद चीज़ होती है अपनी आतं रक प रपूणता।
‘म तुमसे इस लए नह
जुड़ा ँ क मुझे तुमसे कु छ चा हए। म तुमसे तुमको भोगने के लए नह जुड़ा ँ। म तुमसे इस लए नह
स ब त आ ँ क म तु ह भोग लू,ँ तुमसे कु छ पा लूँ’—यह ेम है। बड़ी सीधी सी बात है न?
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‘ ेम ’ माने जब कसी से यूँ ही बना वजह अकारण , , ,
नः वाथ जुड़ गए हो। वजह कुछ नह ,स ब फर भी है।
,
है थोड़ी सु वधा हो जाती है क ‘आएँगे’ माने, भ व य म आएँगे।
आएँगे नह आए ही ए ह !
व ,
ोट हो सकता है भ व य म हो पर जतनी बीमा रयाँ ह , जतने पैथोजन (रोगज़नक़) ह उनक मौजूदगी अभी है। हसा
,
बढ़े गी और बढ़े गी , य क ये जो तु हारा पूरा समाज है पूरी , ,
नया है ये और यादा भोगवाद होती जा रही है। और यादा
इसे सबकुछ भोग लेना है। इसे इंसान को भोग लेना है इसे अपनी दे ह को भोग लेना है इसे , , ,
नया ज़मीन आसमान तारे , , ,
नद , प ी, सब भोग लेना है। इसके भीतर ये भाव गहराई तक बैठा दया गया है क जीवन का अथ ही है —भोग। ब त
,
पहले तु ह यह एहसास दलाया जाता है क तुम कमज़ोर हो अधूरे हो हीन हो। फ़र तुमसे कहा जाता है क चूं क तुम हीन ,
,
हो इस लए भोगो भोगने से तु हारी हीनता शायद थोड़ी कम हो जाए। कैसा बेवकूफ़ का तक है।
और वो र ता और का हो यह ज़, री नह है।
कस ,
से दे खते हो तुम अपने आप को या समझते हो , या जानते हो।
तु हारी य द प रभाषा ही यही है क ‘म’—वो जो भूखा है, नंगा है, द र है। तो तुम पूरी नया को सफ़ कंज़ शन
(उपभोग) क नगाह से दे खोगे। ‘म’ कौन? म भखारी। तो पूरी नया या ? ‘मेरी मा लक, जससे म कुछ ले लूँ और ना ,
मले तो नोच खसोट लूँ। - ’
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जनक भी आँख म भूख दे खो, समझ लेना बड़े हसक लोग ह। ासद यह है क इस भूख को बड़ी उपल घो षत कर
दया गया है। आज तुमसे कह दया गया है क मह वकां ा ब त बड़ी बात है – मह व—आकां ा। और कोई नह है जो तु ह
यह बता सके क तुम जतने मह वाकां ी हो तुम उतने ही हसक होगे।
तु हारे गणमा य लोग आते ह और तु ह ऐसी बात बोलकर चले जाते ह क—दे खो तु हारे भीतर मह वकां ा तो होनी ही
चा हए।
(एक ोता को संबो धत करते ए) म तुमसे साफ़-साफ़ कह रहा ँ स यम, ये तु हारे मन ह। और ऐसी बात पर ज़रा भी
कान मत धरना। जो भी तु ह ये बताए क तुम कमज़ोर हो, तुम नाक़ा बल हो, तु हारे जीवन म क मयाँ ह, और इन-इन रा त
पर चलकर तुम उन क मय को पूरा कर सकते हो, उनक बात क ज़रा परवाह मत करना। ये वो लोग ह जो खुद तड़प रहे ह,
बेचैन ह, ये सर को सफ़ बेचैनी ही दे सकते ह। इनका तो तुमसे कहना ही एक कार क हसा है। य क जो आदमी शांत
हो, उसे अशांत कर दे ना बड़ी हसा है।
तुम आज के नौजवान हो, और लोग प रप व होने का दं भ भर कर, अनुभव को अपना अ बना कर तु हारे सामने आते ह,
और ये तुमसे कहते ह, “हमारी सुनो हमने नया दे खी है। हम अनुभवी ह।” और फर ये तु हारे मन म ज़हर भरते ह। ये तुमसे
कहते ह, “इस रा ते चलो तो इतना पाओगे, उस रा ते चलोगे तो उतना पाओगे,” और तु हारे मन म ये कामना के बीज डाल
दे ते ह।
और याद रखना ये जस भी रा ते पर तु ह चला रहे ह, उस रा ते पर ये ख़ुद खड़े ह गे, जैसे क कोई उच का तु ह गलत रा ते
भेजे और फर उस रा ते ख़ुद ही तु ह लूट ले—ये ऐसे लोग ह। ऐसा ख़ूब होता है।
पहले तो ब त होता था क राहगीर जा रहे ह, उनको ग़लत रा ते भेज दो, और जब वो ग़लत रा ते चल द तो उनको लूट लो।
ये यही काम कर रहे ह।
पछले सौ साल म हँसने पर जतना ज़ोर दया गया है, उतना मानवता के इ तहास म कभी नह दया गया है। तुम अपने
दे वी-दे वता क मू तयाँ दे खना, तु ह कोई हँसती ई नह दखाई दगी।
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तुम बु ,
का चेहरा दे खो तु ह उस पर सफ़ एक झीनी सी - ,
मता दखाई दे गी बस ठहाका मारते नह दखाई दगे। यहाँ तक
,
ह मजाल है क तु ह इनक कोई शांत फोटो दख जाए। ये तु ह हमेशा कैसे दखाई दे ते ह ? हँसते ए। इनका ये हँसना सफ़
जो रो नह रहा उसे इतना हँसने क ज़ रत नह पड़ेगी। इस पर कहा नयाँ भी ह। कहते ह क जीसस कभी हँसे ही
नह । महावीर के बारे म भी यही कहा जाता है —कभी हँसे नह । हँसे नह , य क उ ह ने रोना ब त पीछे छोड़ दया था।
,
और जो ख़ूब हँस रहा है यही समझ लो क रोना उसके साथ लगा आ है।
,
और खूब ज़ोर दया जाता है न इसपर क तुम हँसो। और ये जतने हँसने वाले ह उनके हँसने का कारण सफ़ एक होता है -
,
भोग पा लेना उपल , !
। इनसे बचना ये हँसकर सफ़ हसा छुपा रहे ह। ये हँसकर सफ़ अपने आँसू अपनी कुंठा अपना , ,
ःख छपा रहे ह।
और ये हँसने वाली जमात अलग दखाई दे ती है। तुम र से ही दे ख के समझ जाओगे। असल म ऐसा समझ लो क दो ही
तरह के धम ह – एक हँसने वाल का और एक शांत रहने वाल का। और जो हँसने वाल का धम है —ये तु ह दख जाएगा क
ये हँसने वाल क जमात है। वहाँ से तुमको ख़ूब शोर शराबे क - , नकली चेहर क , थ क बात क ख़ूब गूँज आ रही होगी ,
ख़ूब महक आ रही होगी।
उनके बीच म य द तुम शांत और मौन हो जाओ तो वे असहज हो जाते ह। उनके बीच जाने क शत ही यही है क तुम भी
हँसो। ये हँसना सफ़ इसी लए है म दोहरा रहा, ,ँ ता क तुम छपा सको क तुम कतने बेचैन और हसक हो।
म यह भी नह कह रहा ँ क रोने वाल क ओर चले जाना। ये हँसने वाले और रोने वाले एक ही ह। जो सब के सामने हँस
,
रहा है वो एकांत म रो रहा है। यह एक ही जमात है।
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बात आ रही है समझ म?
दे खो, अभी म तु हारे सामने बैठा ँ, बैठा ँ? ऐसे समझ लो क म तुमसे जुड़ा ही इस लए ँ य क म सबसे पहले अपने
साथ ँ। असल म मुझे तुमसे बार-बार बोलना पड़ रहा है क ‘ सर ’ को ज़ दगी से हटाओ, पर सर को जदगी से हटाने
का असली अथ होता है, सर के साथ ेमपूण स ब बनाना—ये दोन एक ही बात ह। सुनने म बड़ी वरोधाभासी लगगी,
पर इ ह समझो यान से।
जब तक तुमने सरे का भाव अपने ऊपर से हटाया नह , तब तक तु हारा सरे से ेमपूण स ब नह हो सकता।
यह बात बड़ी व च है, पर समझना। सरे से ेम हो सके इसके लए तु ह सरे से मु होना पड़ेगा। तो म तु हारे सामने
बैठा ँ, म तुमसे जुड़ा तो आ ँ, पर म तुमसे मु ँ। इस व म तुमसे पूरे ेम से जुड़ा आ ँ, तुम परम स ा हो अभी मेरे
लए, ले कन म तुमसे मु ँ।
अपने म पूरे रहो, फर तु हारे सारे स ब व ह गे, उनम ेम होगा। फ़र वो नभरता के और शोषण के स ब नह ह गे।
म तु हारे साथ ,ँ पर म तुम पर नभर तो नह ँ न, इस लए अभी जो घटना घट रही है वो बड़ी सु दर घटना है- साथ ह, पर
साथ होते ए भी हम मु ह।
अगर म ये करने लग जाऊँ क तुम नभर हो गए मुझ पर, तो तुम पाओगे क शोषण शु हो गया है। और अगर म नभर हो
गया तुम पर तो तुम पाओगे क स य छु प गया है। म जो बोल रहा ँ उस बात म उतना दम नह रह जाएगा।
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तो सरे से ेम हो, इसके लए आव यक है सरे से मु हो।
.........
(उ र दे श, 2015)
ेम बेहोशी का स ब नह
कता: सर, मेरा ये है क कसी को चाहने से हमारी ज़दगी इतनी अ त- त य हो जाती है? असर य पड़ता है
हमारे जीवन पर? अ सर नकरा मक असर ही होता है।
य होता है ऐसे?
आचाय शांत: ऐसा इस लए होता है य क ‘कोई’ नह है जो तु हारी ज़ दगी म आता-जाता है। जो आता-जाता है, तुम
उसको ही ज़ दगी बना लेते हो।
तुम य द ये कहते क ज़ दगी अपनी जगह है, कोई मेहमान क तरह आया और फ़र मेहमान क तरह रह कर चला गया, तो
कोई अंतर नह पड़ता। पर यहाँ तो होता ये है क मेहमान आता है और फ़र जब जाता है तो अपने साथ घर ही लेकर चला
जाता है। अब तुम खड़े हो अनर कह रहे हो, “घर कहाँ गया? अरे! मेहमान ही घर लेकर चला गया।”
अगर ज़ दगी अपनी जगह हो और लोग उसम आएँ-जाएँ तो कोई बुराई नह है – “आप आइये आपका वागत है। कु छ
समय बाद अब आप जा रहे ह, नम कार, वदा।”
यहाँ तो होता ये है क जो आता है वही ज़ दगी बन जाता है। य , वो गाने नह सुने ह? “ ज़ दगी बन गए हो तुम!”
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अब वो आदमी ही ज़ दगी बन गया, वो ही ज़ दगी बन गया, या जो भी है वो व तु या वचार, वो ज़ दगी बन गया। तो
जब वो जाएगा, तो या चला जाएगा?
: ज़ दगी। आचाय: ज़ दगी ही चली गयी! अब मुदा-मुदा से घूम रहे हो य क ज़ दगी तो चली गयी। अब जब ज़ दगी
चली गयी, तो तु ह कसका इंतज़ार है? ज़ दगी का। ज़ दगी चली गयी है तो अब इंतज़ार भी ज़ दगी का ही है। तो अब
कोई और आता है, और जब कोई और आता है तो तुम या बोलते हो?
: ज़ दगी आ गयी।
आचाय: ज़ दगी आ गयी, पर इस ज़ दगी के तो पाँव लगे ह। अब ये जैसे आयी है, वैसे चली भी जाएगी, और फर रोना! हो
गई न द कत! इसी च म फ़र आदमी लगा रह जाता है- ज़ दगी आयी, ज़ दगी गयी।
ज़ दगी आंत रक हो। जीवन अपना है, बा क पूरा तं चार ओर पसरा आ है। उसम ब त सारी घटनाएँ ह जो घट रह ह।
सब कु छ आ रहा है, सब कु छ वीकार है, ले कन कु छ भी इतना मह वपूण नह है मेरे लए क मेरे जानने से, मेरे जीवन से,
यादा मह वपूण हो जाए।
अगर होश म रहोगे तो झटके नह खाओगे। और होश का मतलब होता है, ‘जानना’। ये प का समझ लो। अ ा, इसम भूल
मत कर बैठना। म जब कह रहा ँ क होश म रहोगे, तो उससे मेरा ये मतलब नह है क हमेशा सोच- वचार म पड़े रहो।
‘होश’ से मेरा मतलब ये है क समझने क क़ा ब लयत रखो।
जो बात सीधी है, उसे सीधा दे ख पाओ। त य से भागो नह , डरे-डरे नह रहो, त य के पास जाओ। सवाल पूछने से
सकु चाओ नह । पूछ लो क - “हाँ, बात तो आप ठ क कह रहे हो क आप बड़ा यार करते हो मुझसे, आप मेरी ज़ दगी हो,
पर थोड़ा ये तो बता दो... ।” पूछ लो, फ़र झटके नह लगगे।
दे खो, संबंध अगर कसी से बनाना है, मे म भी य द उतरना है, तो बेहोशी का कौन सा ेम होता है? दो शराबी ह और दोन
का दावा है क हम यार करते ह एक सरे से, और दोन ब कु ल धु ह।
(सभी हँसते ह)
अब वो गले भी मलने जा रहे ह, तो कोई दाएँ जा रहा है, कोई बाएँ जा रहा है, और दोन द वार से अपना सर फोड़ रह है।
और उनका दावा है क हम आपस म गले मल रह ह। और तीन-चार बार जब उ ह ने सर फोड़ लया द वार से, तो उ ह ने
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तय कया क इस बार ज़रा सावधानी से मलगे। तो सावधानी से एक सरे के पास आए और पास आते ही आपस म माथा
!
फोड़ लया। भड़ाक ये गले मले ह !
या हमारा ेम ऐसा ही नह है ? -
ेम म माथा फोड़ी ही नह होती है , क आ तो रहे थे पास गले मलने और फोड़ दया
कपाल ?
(सभी हँसते ह)
ेम के लए भी तो होश चा हए न ? क बेहोश हो , ,
क सोए पड़े हो और उस समय कोई तुमसे यार क चार बात बोल भी दे ,
तो तु ह या समझ म आएँगी ? तु ह या आनंद है ? या आनंद है ?
जो ,
ेम जो संबंध बेहोशी का हो वो सफ़ तु ह , ःख दे गा।
,
वो तु हारा चाहे तु हारी कताब से संबंध हो चाहे पालतू जानवर से चाहे पौध से पेड़ से संबंध हो पूरे अ , , , त व से हो या
कसी से हो।
संबंध जागृ त का रखो। ये नह क बस जुड़ गए ह। य जुड़ गए ह वो पता नह , एक आदत-सी थी। या क कोई रासाय नक
,
कुलबुलाहट उठ थी शरीर म तो जुड़ गए। एक ख़ास उ ,
हो गई उसके बाद हॉम न स ,
य हो जाते ह तो जाकर जुड़ गए !
ऐसे नह । सो डयम पर पानी पड़ गया और वो जुड़ गए सो डयम हाइ , -
ो ऑ साइड बन गया।
इसम कसको या आनंद मल गया ? बस बदबू-बदबू हो गयी, धुआ-ँ धुआँ फैल गया, इतना ही आ है।
(सभी हँसते ह)
और धमाका ज़ोर का !
आ इसम या आनंद है ? ये बेहोशी का मलन है। सो डयम और पानी मल गए बेहोशी का मलन हो ,
गया। मलन हो भी गया और कसी को पता भी नह क या हो गया ? या लोहा है और वो चु बक क तरफ खचा चला आ
,
रहा है अब है स ब । स ब ही तो है। य खचा चला आ रहा है कुछ पता नह , पर दावा उसका या है ? “आई एम इन
लव *(म ेम म )*।”
ँ
(सभी हँसते ह)
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कु छ रखा है इसम? ऐसा ही तो तु हारे साथ होता है, ख़ासतौर पर इस उ म। एक के मकल (रसायन) इधर से कु लबुला रहा
है, एक उधर से बुदबुदा रहा है। दोन एक सरे को आवाज़ दे रहे ह, और तु ह म हो गया है क तु ह इ क़ हो गया है।
के मकल जैसे उठा है, वैसे गर भी जाएगा। ख़ म भी हो जाएगा।
जो के मकल के रा ते जीवन म आये ह, वो उ ह के मकल रा त से वापस भी चले जाएँगे। तु हारे भीतर कब तक उ ेजना
ज़ोर मारेगी, कभी तो शांत होओगे। और जब शांत होओगे, तब कहोगे, “चल नकल!”
(सभी हँसते ह)
ेम करने म डरता य ँ?
कता: सर, अगर हम अपने दल क बात कसी से जाकर कहते ह तो डर लगता है क कह उसने वीकार नह कया तो
या होगा। तो आप ही बताइए क हम कै से जान क वो या सोचेगी?
( ोता हँसते ह)
: सर, अ ण!
आचाय: अब शांत हो जाओ तो कु छ क ँ। अ ण ने कहा, “ऐसा लगता है कसी से ेम है, पर ह मत नह पड़ती कु छ कहने
क । तो बताइए या करना चा हए?” एहसान करो अपने आप पर और उस पर क कु छ ना कहो, य क वो ेम है ही नह
जो डरता हो।
ये कोई नकली-सी चीज़ है, कोई वासना होगी, कोई वाथ होगा, इसी कारण डर है।
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उसम डर तो नह लगेगा। डर तब ज़ र लगता है जब कसी से चोरी करने जा रहा ँ। न त प से कोई चाह होगी, कु छ
माँगने जा रहे होगे, तब डर लग सकता है। दे ने म तो डर नह होता, माँगने म डर होता है।
हम ेम नह जानते, ेम के नाम पर आकषण जानते ह। और आकषण ब कु ल मुदा चीज़ है। मे से यादा ज़दा कु छ नह
और आकषण से यादा मुदा कु छ नह । आकषण तो वैसा ही है जैसा क दो रसायन आपस म मल जाएँ। उनम भी आकषण
होता है आपस म, ख़ूब आकषण होता है।
लोहे और चु बक म आकषण होता है, वो ेम तो नह है, वो ेम तो नह है। एक ख़ास उ म आते हो, शरीर म कु छ
रासाय नक याएँ शु हो जाती ह, हॉम स ए टव(स य) हो जाते ह, इस कारण तु हारा शरीर कसी सरे शरीर क
तरफ आक षत होना शु हो जाता है। तो ये ेम तो नह है। ये तो इधर के रसायन ह जो उधर के रसायन से मल जाना चाहते
ह। और एक के मकल रए न (रासाय नक या) हो जाए, बस यही कृ त क इ ा है।
पर तु हारी इसम कोई ख़ास गलती नह , य क तुमने बचपन से और कु छ दे खा ही नह । एक जवान लड़का, एक जवान
लड़क के पास जाता है और पीछे से गाना बजना शु हो जाता है, “ दल- वल यार- ार” और तुमने समझ लया क यही
यार है। ये यार नह है, फू हड़पन है। गुलाल उड़ेगा और ढपली बजेगी और लड़का और लड़क दोन आकषक ह गे। तु ह
बड़ा आन द आता है, तु ह लगता है क शायद इसी को ‘ यार’ कहते ह।
आचाय: आज से आठ साल पहले, या दो महीने पहले भी, हर के मकल(रसायन) हर सरे के मकल से थोड़े ही रये ट करता
है। तु हारी भी अपनी कं डीश नग है, तु हारे भी अपने सं कार ह। तुम हर कसी क तरफ़ थोड़े ही ना आक षत होओगे।
भारत म पैदा ए हो, यहाँ गोरी चमड़ी पर ब त ज़ोर है, अं ेज़ क गुलामी। तो तु हारा मन पहले ही इस सं कार से भरा आ
है क इस तरीके का शरीर दखेगा तो उसके त आक षत हो जाना है। दख गया तो हो गए आक षत।
अभी तक नह दखा था, या दखा भी था तो सं कार ये ह क इतनी पढ़ - लखी होनी चा हए, या इस जा त क होनी चा हए,
इस धम क होनी चा हए, इस उ क होनी चा हए। वो अभी तक नह मली होगी। वो मल गयी तो चल दए उधर को।
पूछो अपने आप से—ये वाकई ेम है? हमारे मन म पहले ही ख़ाका खचा आ है क हम कै से लोग आकषक लगते ह।
इसका माण जानना चाहते हो? जतने शाद के मै मो नयल पोट स होते ह, वो तुमसे पूछते ह क कै सा लड़का, कै सी
लड़क चा हए, और लोग उसम पूरा भर दे ते ह क उ ह कै सी लड़क या लड़का चा हए।
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-
उ ह ठ क ठ क पता है इतनी उ : ,
हो इतनी आमदनी हो। घरवाल के साथ रहता है क नह रहता ये पहले से पता हो। इस ,
,
धम का हो इस जा त का हो इस गो , , ,
का हो खाल का रंग ऐसा हो शाकाहारी हो क मांसाहारी हो।
तु हारे मन म तु हारे सं कार ने पहले ही बात बैठा द है। उससे मलता जुलता जैसे ही तु ह कोई मलेगा तुम नकल लोगे - , ,
और कहोगे ,“ ेम हो गया है। ” ेम नह हो गया है रसाय नक , या हो रही है। एक रसायन उ े जत हो रहा है सरे से
: जी सर।
:
आचाय तो जब पता ही है क ेम या है , फ़र य पूछ रहे हो ? ेम तो तुम जानते ही हो। ह मत इस लए नह पड़ रही
,
जो पाने जा रहे हो वो ना मले उससे तो छः महीने म उसे छोड़ दोगे।
आकषण का अथ ही है —इ ,
ा। हम चा हए होता है कुछ वो ना मले तो गए। ,
प मी दे श म तलाक हो जाते ह इसी बात पर क मने जससे शाद क थी वो आदमी पसठ कलो का था और दो साल म ये ,
हो गया है प ानवे कलो का। और इस बात को एक वैध कारण माना जाता है तलाक दे ने का —“हाँ ठ क! आपने जो पैकेज
खरीदा था वो कुछ और था। दो साल म वो कुछ और नकला हटाओ। , ”
तुम जस चेहरे के , ,
त आक षत हो रहे थे वो चेहरा आज बदल जाए तु हारा आकषण ख़ म हो जाना है। जस चहरे के त
,
आक षत हो रहे हो उस पर कोई तेज़ाब डाल दे —ब त बेवक़ूफ़ घूम रहे ह करते ह यही काम, , हसक पशु क कमी नह ,
वो यही करते घूमते ह —और ये काम अगर हो जाए, तो जसको अपनी ,
े मका कह रहे हो उसी से -
र र भागोगे।
ये तो हमारे ेम क अस लयत है , य क तु ह चा हए ही यही —शरीर। यही शरीर अगर उजड़ जाए, तो फर कुछ नह बचा।
को होता है क एक उ ,
आने पर एक मौसम आने पर ...सड़क पर, ेम ही !
ेम
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हमारे यहाँ एक कु ा था, उसको बाँध कर रखते थे। रात म रोए ख़ूब, समझ म ही नह आया। फ़र एक ने बताया क इनका
मौसम चल रहा है, रात म छोड़ दया करो। अब ये ेमी कु ा है, सुबह वापस आए, ब कु ल तर—“जीवन आनंदपूण है, और
हम ेमी ह। हम उससे अलग, यादा कु छ नह चा हए, हम भी वही सब चा हए।” ेम अगर मल गया एक बार, तो कसी
‘ सरे’ क तलाश छोड़ दोगे।
ेम कसी म न हत नह होता, ेम कोई तलाश नह है क कोई मल जाए। ‘ सरे’ क तलाश का बंद हो जाना ही ेम
है। ेम का अथ है क—‘म इतना भर गया ँ आन द से क अब सफ़ बाँट सकता ।ँ ’
और तुम ऐसे भरे ए हो क तु हारे जीवन म जो भी कोई आता है, तुम उसी से ेमपूण हो जाते हो। तु ह कताब से ेम है,
तु ह जीवन से ेम है, तु ह तपल ेम है, तुम ेमपूण हो गए हो। और वो सी मत नह है कसी या व तु के त। ेम
ऐसा नह होता क—‘तू तो मेरी े मका है और बाक सारी नया से म लड़ रहा ँ तलवार लेकर।’
ेम का तो अथ है — जीवन म पूरी ां त आ गई। सब बदल गया। कु छ पाने को नह है अब। इतना पा लया है क सफ़ बाँट
सकता ँ। ”
ेम याचना करने नह जाता क मेरी े मका बन जाओ, ये लो फू ल,’ और उसने मना कर दया तो घूम रहे ह बनकर दे वदास।
ये ेम है?
और दल धड़का जा रहा है, सहमा जा रहा है क हाँ करेगी, या ना करेगी। और यही हाल सरी तरफ़ भी है क—‘पड़ोसन को
तो तीन-चार ताव आ चुके ह, मुझे एक भी नह ।’ ये ेम है? फू हड़ता है। ये तुमने दो कौड़ी क चीज़ को ब त अ ा-सा
नाम दे दया है— ेम।
ेम तो तु हारी आतं रक मौज है। जो तु हारे संपक म आएगा उसी तक प चँ ेगी। बस म जा रहे हो, बगल म कोई बैठा है,
उसके साथ स ब ेमपूण बताओगे। सड़क पर जानवर भी है तो उसको प र नह मारने लगोगे। इतना ज़ र करोगे क
भूखा है तो रोट दे दोगे।
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और जब तक ेम गत है, पसनल है, कसी ख़ास आदमी के त है, तो समझना क ये ेम नह है, आकषण है। जब
तक बेचैनी है, रो रहे हो और तड़प रहे हो, वरह क आग जलाए दे ती है, वो ेम नह है, वो कु छ और चल रहा है। ेम म कोई
आग नह होती।
: जस लड़क से म यार करता ँ अगर कोई उसको कु छ बोल दे , तो म उससे लड़ने को तैयार हो जाता ँ। या यह ेम
नह ?
तुम जसको ेम कह रहे हो उसका अथ है दावेदारी। कोई चीज़ तु हारी हो गई। जो चीज़ तु हारी हो जाए, उसम तुम बदा त
थोड़े ही करोगे क उस पर कोई उंगली उठाए। या तु ह अ ा लगता है जब कोई तु हारी बाइक को ख़राब बोलता है? या
तु ह अ ा लगता है जब कोई तु हारी पट को ख़राब बोलता है? तो जैसे अपनी पट क परवाह करते हो, वैसे ही अपनी
े मका क परवाह कर रहे हो, ‘मेरी है ! ये पट मेरी है, ये े मका मेरी है, तो परवाह कर रहे हो।’ इस परवाह का नाम ेम नह
है। ये माल कयत है, ये दावेदारी है।
..........
(उ र दे श, 2013)
म लड़ कय से बात य नह कर पाता?
कता: मने आमतौर पर दे खा है क म लड़ कय से सामने से बात नह कर पाता ।ँ पर कसी और मा यम से कर लेता ँ,
जैसे वाट्सैप मैसेज आ द के ारा।
ऐसा य ?
आचाय शांत: अपने सामने जब तुम कसी अपने-जैसे को पाते हो, तो उसको दे खना कु छ हद तक अपने आप को दे खने
जैसा हो जाता है। नया का अवलोकन करने के पीछे यही समझ है क नया को दे खोगे, तो आईने क तरह अपनेआप को
दे ख लोगे। दे ख कसको रहे हो?
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: नया को।
आचाय: नया को। पर नया को दे खोगे य द, तो अपने आप को दे ख लोगे। नया क आँख म झाँकना काफ़ हद तक
अपनी आँख म झाँकने जैसा होता है, और उसम कृ त भी तु हारी सहायता करती है। तुम जसको दे ख रहे हो, उसका हाव-
भाव तु हारे जैसा होगा, उसक आँख तु हारे जैसी ह गी, उसके सं कार भी तु हारे जैसे ह गे।
अपने ही जैसे कसी को दे खना, अपनी ओर वापस मुड़ जाने जैसा है।
अब तु हारे सामने कोई जी वत बैठा हो, उसक आँख म आँख डाल कर बात करना बड़े साहस क बात होती है।
य क उसको दे खने का मतलब होगा अपनी स ाई से -ब– होना। झूठ बोलना मु कल हो जाता है।
ये गौर कया है? आँख म आँख डालकर झूठ बोलना मु कल हो जाता है। हाँ, कं यूटर न पर झूठ बोलना आसान होता
है।
इसी लए कसी लड़क को, या कोई भी और हो जसे तुम धोखा दे ना चाहते हो, उसके सामने तुम ज़रा नवस हो जाओगे,
घबरा जाओगे। तुम जसको भी धोखा दे ने जा रहे होगे, उसक आँख म आँख डालकर नह दे ख पाओगे। म दोहरा रहा ँ-
कसी को दे खना यान से, तु ह तु हारी ओर मोड़ता है, कसी को भी यान से दे खना। उसी अथ म समूचा जगत गु बन
जाता है।
गु का भी काम यही है। या? तु ह, तु हारी ओर मोड़ दे ना क चलो संसार को छोड़ो, अपनी ओर वापस जाओ। और संसार
म भी व तु से हटकर जब तुम जी वत य को दे खते हो, तो उस दे खने क गुणव ा सरी होती है।
कभी गौर कया है क जानवर क भी आँख म दे खो तो अचानक कु छ होता है? वो वही है। जानवर क आँख म दे खना
क़रीब-क़रीब अपनी आँख म दे खने जैसा है, य क हम सब एक ह। जगत आईना है।
वासना ेम नह है। ठ क है? तु हारे सं कार ने उसको ‘ ेम’ का नाम दे दया है, या जो भी कर दया है, ले कन बैठा है कोई
तु हारे भीतर जो ये जानता है क वासना ेम नह है। इस कारण कतराते हो जब वो सामने पड़ती है।
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ये तो तु ह अ े से पता है क जसे तुम ‘ ेम’ कह रहे हो, वो एक कार का आ मण है। और जस पर तुम आ मण करने
जा रहे हो, उसके सामने थोड़ी शम आती है। तुम जसे लूटने जा रहे हो, उसके सामने नज़र झुक जाती ह, य क तु ह पता है
क तुम अपराध करने जा रहे।
तुमने नाम ‘ ेम’ का दया है, पर इरादे बला कार के ह। हज़ार म से नौ-सौ न यानवे ये जो ेमी घूमते रहते ह, ये ेम क आड़
म मा बला कार क फ़राक म रहते ह। होता ही यही है ‘ ेम’ के नाम पर।
तो बुरा लगता है, य क स ाई जानते हो। तु हारे भीतर है कोई जो तु ह बता दे ता है क ये ठ क नह है। - ेम ब त
सुलभ हो गया है जबसे ेम का स ेषण कं यूटर न करने लगी है, जब से े मय क यादा चचा फ़ोन पर होने लगी है।
आमने-सामने बैठ कर उतनी मूखतापूण बात कर पाना संभव नह होता है जतनी फ़ोन पर हो जाती ह।
तुम जस वय म हो, तु हारे आसपास ेमीजन भी ह गे, उनक बात भी कान म पड़ ही जाती ह गी जब वो फ़ोन पर होते ह। वो
इतनी मूखता ऐसे आमने-सामने बैठ कर नह कर सकते जैसे अभी यहाँ पर बैठे हो मेरे सामने।
सोचो, ेमी- े मका आमने-सामने बैठे ह, और यान म ह, और वहाँ चॉकलेट क , बाब डॉल क , रंग क , बहार क , प
क , और ततली के पंख क बात चल रही है। कर नह पाओगे। उसके लए तो नशे का, धोखे का, और री का माहौल
ज़ री है।
इससे एक बात और भी समझना - जब आमने-सामने बैठना इतनी कारगुज़ारी कर जाता है क जहाँ तुम स य दे खना नह
चाहते वहाँ भी दखा जाता है। यही हो रहा है ना, क तुम स य नह जानना चाहते, पर आँख म जहाँ दे खते हो उसक , तो कु छ
दख जाता है, और तुम परेशान हो जाते हो, तु ह सर इधर-उधर करना पड़ता है?
सवाल को समझो।
और यहाँ म मुमु ु क बात कर रहा ँ, उनक बात कर रहा ँ जो स य जानना चाहते ह। वो इस धोखे म ना रह क
वाट्सपै से काम चल जाएगा। वो इस धोखे म ना रह क र रहकर बात बन जाएगी।
और आ ख़री तल पर आ कर, जहाँ तुम आ मा- पी हो जाते हो, वहाँ पर फ़र फ़क नह पड़ता क तुम कहाँ पर अव त
हो। तुम नया म कह भी हो, कोई फ़क नह पड़ता, तुम गु के पास ही हो। तुम गु ही हो गए।
कहते ह न कबीर-
मेरा मन सु मरै राम को, मेरा मन राम ह आ ह। अब मन राम ही हो रहा, सीस नवाव का ह।।
“अब राम को या भजने जाऊँ म। म नह भजता राम को।” अब कबीर राम भ नह ह। कबीर कह रह ह, “अब मन राम
ही हो रहा।”
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पर उससे पहले थ गुमान म मत पड़ जाना, उससे पहले ये कु तक मत धारण कर लेना क – ‘दे खये हम भी तो राम प ह,
और ये जगत तो धोखा है। आकाश तो कु छ होता ही नह , आप ही ने बताया है, तो फ़र हम उठकर य आएँ। जब आकाश
कु छ नह है, तो या ा करने का या मतलब।’
ऐसे लोग से बचना ज ह आँख बचा कर बात करने क आदत हो। और ब त ह ऐसे। ऐसे ण से भी बचना जसम सहज
भाव से, नमल भाव से, सरल होकर, नद ष होकर कसी को दे ख ना पाओ। ऐसे ण से भी बचना।
एक नज़र होती है जो समपण म झुकती है, यारी है वो नज़र। और एक नज़र होती है जो ला न म और अपराध क तैयारी म
झुकती है, उस नज़र से बचना।
आमतौर पर वो तु ह दे खगे ही नह , यान ही नह दगे। तु हारा उनके क़रीब जाना, उनह ब त सुहाता नह है। पर अगर कभी
जाओ कसी जानवर के क़रीब, तो दे खो वो तु ह कै से दे खता है- कु छ भी नह , खाली, अबोध।
यह वो है जसम स य साफ़ दखाई दे ता है, जब त य ही स य बन जाता है। वैसे दे खना सीखो, क़रीब-क़रीब पशु क
तरह। और वैसी भी ना रखो जैसी कसी बला कारी क होती है, क जैसे कसी के शरीर म सध लगा रहे हो, और कहने
लगो, “सर, आपने ही तो कहा था क यान से दे खा करो।” सहज, नमल रखो। ऐसी नह क लगे क घूर रहे हो।
..........
(अ ै त बोध ल, 2015)
हमारे र -रं जत स ब
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कता: सर, हम पर इतना नवेश कया जा रहा है, तो हम से कु छ प रणाम क भी उ मीद क जाएगी।
“मने तुम पर इतना पैसा लगाया है और अब वसूलने का समय आ गया,” – ये यार क नह , ापार क भाषा है।
ये जो इस कार का ेम है इसी म ूण ह या होती है न? भारत म जब हज़ार लड़के पैदा होते ह तो उसके पीछे सौ लड़ कयाँ
पैदा होती ह। तो लगा लो क कतनी लड़ कयाँ ह जो गायब हो गयी ह। वो इसी तरह गायब हो गयी ह य क उनसे वसूली
नह हो पाएगी। वो इस नवेश का रटन नह दे पाएँगी न, तो उनका पहले ही क़ ल कर दया जाता है।
और अभी एक स न ने कहा क यार और ापार एक साथ चलते ह। जब एक साथ चलते ह तो क़ ल होता है। और तुमम
से कई ऐसे बैठे ह गे क तु हारे पैदा होने से पहले कतनी लड़ कय क लाश गरी होगी, नह तो तुम पैदा ही ना होते। ये है
तु हारे ेम का सच। फ़र ऐसा ही ेम वसूलना चाहता है क लड़का पैदा कया था, इस लए तो कया था क वसूली हो सके ।
अगर सफ़ दे ना ही दे ना था तो लड़क भली थी। लड़का पैदा ही इस लए कया है क इससे वसूलगे भी तो।
.........
(उ र दे श, 2013)
आचाय शांत: बेटा, जब बाहर से कोई बताए क “ऐसा करो,” तो उसका नाम होता है - ‘कत ’। और जब पता के त
ेम हो और तुम करो, तो वह ‘कत ’ नह कहलाता।
पता बीमार ह और तुम जाकर उनक सेवा कर दो या दवा दे दो, तो यह कत नह है, यह ेम है। और तुम सफ़ कत के
नाते पता को दवा दे रहे हो, तो ब त दन तक नह दे पाओगे।
आचाय: पता भी अगर सफ़ कत के नाते कर रहा है, तो उतना ही करेगा, जतना उसको सखा दया गया है क यह
तु हारा कत है। और य द पता ेम के नाते कर रहा है, तो वह बात सरी होगी।
जब तुम वयं जानते हो क तु ह या करना चा हए, तो वह कत नह कहलाता। तब वह ‘धम’ कहलाता है। धम पर चलो,
कत पर नह ।
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कत ब त छोट और बड़ी छु चीज़ है। और य क हम सफ़ कत जानते ह, इसी लए नया इतनी बेरौनक है।
‘मेरा कत या था? छ: बजे तक कना। अब यह चोर घुसा जा रहा होगा, इसे रोकना तो पु लस का कत है, मेरा थोड़ी
ही है। मने अपना कत पूरा कया। पु लस अपना कत पूरा करे।’
: कत म वाथ होता है या नह ?
आचाय: कत म वाथ बलकु ल रहता है। जहाँ कह भी ‘म’ क भावना है—‘मेरा कत ’—वह पर ‘ व’ मौजूद है। और
जहाँ ‘ व’ मौजूद है, वह पर वाथ है।
आचाय: य द पता-पु म र ता वाथ का है, तो नया फर वैसी ही रहेगी, जैसी आपको दखाई दे रही है। वाथ का है
र ता, ब कु ल है। नया भी तो फर वैसी ही है न।
और दे खये, बात पता और पु क नह है। जब पता का पूरी नया से र ता वाथ का है, तो बेटे से भी तो उसका र ता
वाथ का होगा ही न।
मन तो एक ही है।
: हम तो यह समझते ह क पता का वाथ, एक साथक वाथ होता है पु के लए। मान के च लए क संसार है, और इसे
चलाना ही पता का धम है। तो उसका उ े य जो होता है, वह साथक होता है।
आचाय: दे खए! नया पता से और पु से भरी पड़ी है, और कत सबको पता ह। और नया कै सी है आप दे ख ही रहे
ह। और वो ऐसी इसी लए है…
आचाय: न, न!
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संसार झूठा नह है। संसार बड़ा कत -परायण है। सब अपने-अपने कत क पू त कर रहे ह, और मा कत क ही पू त
कर रहे ह, इसी लए संसार ऐसा है।
यह जतने लोग अभी ाचार म आपको ल त दखाई दे ते ह, या यह अनाथ ह? पता सबके थे। ले कन जब पता को मा
कत पता होते ह, और उसके भीतर वह श नह होती क वह वयं अपना धम जान सके , तो फर नया भी वैसी ही
रहती है — बेरौनक, सफ़ आदे श पर चलने वाली।
और यह ब कु ल मत सो चयेगा क हमारा बाक जीवन जैसा है, हमारे अपने ब से स ब उससे हटकर कु छ हो सकते
ह।
जो जीवन के एक-एक मोड़ पर बेहोश है, जसके और कह ेम के स ब नह ह, उसका अपने नजी प रवार से भी
ेम नह हो सकता। कृ पा करके इस बात को समझ।
तो यह छो ड़ये क पता का पु से साथक स ब होता है। पता सबसे पहले एक इंसान है। यह दे खना पड़ेगा क वह इंसान
कै सा है। अगर वह इंसान बोधयु है, तो उसके सारे स ब अ े ह गे। और अगर वह इंसान बोधयु नह है, तो उसके सारे
ही स ब खराब ह गे - भले ही वह बाप-बेटे का हो, या भले ही वह पड़ोसी के साथ हो - य क सारे स ब नकल तो
आपके ही मन से रहे ह न।
जब मने नया म हर चीज म गणना ही क , वाथ ही दे खा, तो म एक स ब को कै से छोड़ ँगा बना वाथ दे ख?े और
अगर मने कसी के साथ गणना नह क , कसी के साथ वाथ नह दे खा, तो ज़ा हर-सी बात है, म अपने बेटे के साथ भी
वाथ नह दे खूँगा।
ले कन हम ऐसा सोचते ह क ‘भले ही म पूरी नया के त असंपृ र ँ, वैमन य रखूँ, यहाँ तक क हसक र ँ, पर म अपने
प रवार के लए भला हो सकता ’ँ ।
आप नह हो सकते।
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हमम से जो भी लोग अपने प रवार क भलाई चाहते ह , जो क म समझता ँ क सभी चाहते ह, हमम म से जो भी लोग
अपने प रवार क भलाई चाहते ह , वह सव थम अपनी भलाई कर और अपना शोधन कर।
जब आप सबके लए भले ह गे, तब आप अपने प रवार के लए भले हो पाओगे, अ यथा नह । जो सबके लए भला नह है,
वह अपने प रवार के लए भला नह हो सकता।
: अलग ह।
ेम महाधम है।
तुम जब द तर म जाते हो, तु हारे कत बता दये जाते ह क ‘दे खए आप यहाँ यह सब करगे’। जो जानता हो, उसे सूची
थोड़ी ही थमानी पड़ेगी!
: उसका धम बन जाएगा।
वह ख़ुद समझेगा क उसे या करना चा हए। और फर उसे जो करना होगा, वह बात असी मत होगी। वह कह के गी नह
जाकर। वह यह नह कहेगा, “दे खए यहाँ तक मुझे करना था, इसके आगे थोड़ी ही मुझे करना था।”
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: वो अपने काम को बड़े ेम से करेगा।
: धम और ेम साथ म ह।
आचाय: दे खो कोई भी - मामा, या पता, या बेटा, या बेट - बाद म होता है। सबसे पहले तो वह इंसान होता है न।
इंसान पहले था या पता पहले बना?
: इंसान।
आचाय: इंसान।
आचाय: पूरी नया के लए। पूरी नया के लए शुभ हो जाओगे, पहले अ े इंसान बनो!
..........
(अ ै त बोध ल, 2015)
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आन द हो स ब का आधार
आचाय शांत: बात सुनने म थोड़ी वरोधाभासी लगेगी पर यान दोगे तभी समझ आएगी। यान नह दोगे तो कहोगे क सर
आप बड़ी वप रत बात कर रहे ह।
जसने अपने अके लेपन म ख़ुश रहना सीख लया सफ़ वही पाट (उ सव) म मज़े मार सकता है।
और जो अपने अके लेपन म खी है और पाट म इसी लए जा रहा है ता क पाट म अके लापन मटा सके , वो पाट म भी त हा
ही रहेगा। ‘ सरे’ इस लए नह होते ह क सरे तु हारे अके लेपन को र कर।
पहले ये क – ‘म बड़ा अके ला ,ँ मेरे दल म ग ा है और तू उस ग े को भर दे ।’ यादातर लोग क यही वजह रहती है।
सरी वजह होती है क – ‘म इतना खुश ँ क तेरे पास आया ।ँ म ख़ुश पहले से ही ँ और इतना ँ क तेरे पास आ गया
ँ।’
पहली वजह कहती है क – ‘म इतना खी ँ क तेरे पास आ गया ँ।’ और सरी वजह कहती है क – ‘म इतना ख़ुश ँ क
म तेरे पास आ गया ।ँ ’ बात समझ म आई?
: ख़ुश होकर।
आचाय: पर हम ऐसे नह जाते न। हम जाते ह क – ‘अगर तू न मला तो म खी हो जाऊँ गी।’ हम ये नह कहते, “तू हो, न
हो, ख़ुश तो म ँ ही, और अपनी ख़ुशी म तेरे पास आयी ।ँ ” हम ये कहते ह, “तू मलेगा तो म खुश होऊँ गी।”
ये बड़ी गड़बड़ है, य क अब सरा तु हारी ज़ रत बन गया है, अब तुम उसको पकड़ कर रखना चाहोगे और हज़ार तरह
क बीमा रयाँ नकलगी। तुम मा लकाना हक़ जताओगे उसपर, तुम अ धकारा मक हो जाओगे। वो कसी और क तरफ़
जाएगा, तो तु हारे अंदर से ई या उठे गी, गहरी ई या, क वो कसी और के पास य जा रहा है।
: ःख के।
आचाय : “तू भी खी म भी , ,
खी। तू मेरे कंधे पर सर रख कर रो और म तेरे कंधे पर सर रख कर रोता ”
ँ। ःख को ःख
भ डार।
पहला कदम है क - सबसे पहले अपने आप को पाना है। सबसे पहले अपने अकेलेपन म ख़ुश होना सीखना है। और जब म
अपने अकेलेपन म ख़ुश होना सीख लूँगा तब , सर से मेरे स ब भी बड़े यारे बनगे। पहले तो अकेले म ही खुश होना
-
हमम बड़ी नभरता रहती है। अगर दो चार घंटे अकेले रहना पड़ जाए तो हम पगला जाते ह। इधर उधर मोबाइल दे खोगे क -
कसको कॉल कर , कसको न कर। और जब कॉल करोगे तो कोई कह दे ,
क समय नह है तो तुम कहोगे , “ग !
ार म त हा
, ,
जो एकदम ख़ाली है कुछ नह है करने को इधर तुमने फ़ोन मलाया और वो भी इसी तलाश म था वो कहे क बस तेरे जैसे ,
क ज़ ,
रत थी तो मला अँधे से अँधा और शु , हो गया वा ालाप। फ़ोन बेचने वाली कंपनी को ये पता है। तभी तो वो रात
ये बात मन म मत लाना क म कह रहा ँ क समाज से स ब काट लो। कोई ऐसा नह कह रहा है। कहना बस ये है क
स ब ,
हष से नकले अकेलेपन से नह ।
...........
(उ र दे श, 2013)
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असंब ता वभाव है तु हारा
कता: ‘असंब ’ होने का भाव महसूस होने लगा है। चाहे वो कसी जगह से हो, लोग से हो, या अपने ही मन के भाव से
हो। खोया-खोया सा महसूस करती ँ। कह भी अपनेपन का भाव नह महसूस नह होता। अपने आप को कह से, या कसी
भी चीज़ से संब नह महसूस करती ँ। ऐसा य ?
आचाय शांत: अब तुम कसी चीज़ से संब नह हो पाती हो, यह तो साधारण-सी बात है। पहले तो यह बताओ क पहले
संब कै से महसूस कर लेती थ ? वो यादा बड़ा चम कार है। कै से संब महसूस कर लेती थ ? या लगता था?
आचाय: जस नया म हम रहते ह, इसक तो कृ त ही यह है क ये कसी क सगी नह है। ‘ बलौ ग नेस(संब ता)’
जैसी कोई चीज़ हो ही नह सकती इस नया म।
आज म जस द तर म गया था, वहाँ मने सकड़ लोग दे ख— े बड़ा द तर था। वहाँ एक भी ऐसा नह था, जो वहाँ
बलौ ग करता हो, वहाँ से संब हो। लोग अपने साधे-सधाय र ते से चल रहे थे, आ रहे थे, जा रहे थे। कसी का कसी और
चीज़ से मतलब ही नह था।
ये तो कृ त ही है क कोई बलौ ग करता ही नह यहाँ कसी को। बलौ ग (संब ) करने का अथ ही यही है—नज़द क या
नकटता। वो तो है ही नह कह । यह बताओ क बलौ ग करने का म कहाँ से आ जाता है? यह तो तय ही है क कोई
कसी को बलौ ग नह करता, पर ये म कहाँ से आ जाता है? कौन कसको बलौ ग करता है?
बलौ ग नेस, संब ता, तो बड़ी असली बात होती है। तु ह ये लगता भी कै से था, कभी भी, क तु हारा उनसे कोई र ता भी
है? कोई मुझसे एक दन आकर कहता है क, “पहले जनके साथ रहते थे, उनके साथ अब रहना नकली-सा लगता है।” तो
मने कहा, “नकली तो था ही हमेशा से, तुम मुझे समझाओ क तु ह असली कै से लग गया था?”
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तु ह असली कै से लग गए? तुम ये बताओ। और वही मह वपूण सवाल है, य क वही बीमारी है। उसको जानना ज़ री है
क—वो बीमारी या है, और कै से लग जाती है? इस पर वचार करना क – धोखा कै से हो गया था?
अभी जो हो रहा है, वो ब त साधारण बात है। वो तो आँख खोलकर दे ख रही हो, तो दख रहा है क या कै सा है। साफ़-
साफ दख रहा है। वचार ये करो क – पहले धोखा कै से हो गया था? य ऐसा लगता था क – ‘ये सब ह, और मेरे ह, और
असली ह’? यहाँ कोई कसी का नह है। बाद म उदास होकर न खड़े हो जाया करो क – ‘म साल तक इन लोग को, इन
जगह को, इन सं ान को, इन वचार को, इन भावना को ‘अपना’ समझता था, ये सब तो झूठे नकले, नकली नकले,
मेरे नह ह।’
वो कभी नह थे तु हारे। अभी ऐसा नह है क कोई नई ताज़ा घटना घट है। वो कभी नह थे, कसी के नह ए। तु हारे या,
कसी के कभी नह ए। यूँ ही नह कह रहे थे कबीर—“ये संसार कांटन क झाड़ी, उलझ उलझ मर जाना है। ये संसार
कागज़ क पु ड़या, बूँद पड़े घुल जाना है”।
कोई आकर ये न बोला करे, “मेरे र ते म खटास आ गयी है।” ये बोलो, “ र ता कभी था ही नह ।” था कब? जब तुम बोलते
हो, “खटास आ गयी है,” इसका मतलब यह है क अभी भी तुम जगे नह हो, चेते नह हो। तु ह लग रहा है क अब खटास
आ गयी है, पहले मधुर था।
वह पहले भी ख ा ही था, मधुर कभी नह था। हाँ, पहले तुम यादा ही अंधे थे, एकदम ही नशे म थे, तो तु ह पता ही नह
चल रहा था।
कोई भी व तु, , इकाई, अपनी कृ त के वपरीत थोड़े ही जा सकता है। तेल और पानी मल सकते ह या? अब तेल
आकर शकायत करे, “आजकल पानी मुझसे मलता नह ,” तो उससे पूछो, “भाई मलता कब था?” उनक तो कृ त ही
यही है – अलग-अलग रहना।
“दो त से धोखा मल गया,”—तुमने कोई और उ मीद लगाई थी? धोखा मल गया, ये तो साधारण-सी बात है। ये तो होना ही
था। जाँच तो इस बात क होनी चा हये क तुमने उ मीद कै से लगाई क धोखा नह मलेगा। जाँच इस बात क होनी चा हए।
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: सर, ऐसे तो हम कसी पर कभी व ास कर ही नह पाएँगे।
नया से ेमपूण स ब बनाने के लए…यहाँ तो जो कु छ है, उसके क पर ‘वही’ बैठेगा। तु हारे क पर अगर ‘वो’ नह
बैठा है, तो नया तो काँट क झाड़ी ही है। याद रखना जो मने कहा था, वो बात भी मलावट है।
मने कहा था, “’ नया’ से ेमपूण स ब के लए…,” तो मने ‘ नया’ को उसम क य बना दया।
जो वशु स य है, वो यह है क ‘एक’ को याद रखना पड़ता है, बाक को भूल जाना पड़ता है।
जब बाक को भूल जाते हो, तब तुम पाते हो क अक मात, संयोगवश, बा कय से भी ेमपूण स ब ह। बा कय से भी—
एक तफल क तरह।
जो परम को भुलाकर संसार क ओर जाएगा, वो संसार म मा चोट खाएगा। जो संसार को भूल कर, परम क ओर जाएगा,
वो परम को तो पाएगा ही, संसार को भी पा जाएगा।
तुम संसार के गुलाम बने बैठे हो – “ये पा लू,ँ वो पा लूँ।” संसार कतना भी हावी हो रहा हो, आँख बंद करो, परमा मा का
नाम लो, और इंकार कर दो। समझ म आ रही है बात? लालच कतना भी सर चढ़ रहा हो, दल कड़ा करो, इंकार कर दो।
कतना भी डराया जा रहा हो, ज़रा ताक़त जुटाओ, और इंकार कर दो।
कतना भी अपने आसपास पाओ क बड़ा दबाव पड़ रहा है, ब त हावी हो रही है नया, ज़रा ह मत रखो। ये जो लोग तुम
पर हावी हो रहे ह, ये स य क ताक़त के आगे या ह? इनम या दम है? ये जीतगे कभी?
आते ह न ऐसे ण, जब हालत ब कु ल ख़ ता हो जाती है, जब नया सर चढ़कर बोल रही होती है, और कु छ समझ नह
आता है, जब काँपने लग जाते हो ब कु ल? बस तब मं क तरह मु याँ बंद करो, मन कड़ा करो, और बोलो, “नह ”।
तुम ताकत माँगो, वो ताकत दे गा। तुम माँगो, वो दे गा, ताकत मलती है।
.........
(अ ै त बोध ल, 2014)
य समझूँ? य ेम जानू?ँ
आचाय शांत: ये बात वहार म उतारने क ह, ब क अपने आप उतरगी अगर तु ह समझ म आ जाए। समझ म नह
आएँगी तो डरे-डरे रहोगे। और जो डरा आ आदमी होता है, उसको हर चीज़ अ वहा रक लगती है।
तुम अगर अभी बच पर खड़े हो जाओ, और डरे ए हो, और म क ँ क, “कू द जाओ,” तो तुम कहोगे क—“आप पागल ह,
ये तो असंभव बात है।” अ सर हम जन बात से डरे ए होते ह, उ ह असंभव, अ वहा रक बोल दे ते ह। ये मत बोलो क
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असंभव है, ये बोलो क—“हम डरे ए ह।”
हम ये नह कहते क मेरा मन डरा आ है। हम कहते ह क बात असंभव है, अ वहा रक है। अरे तुम समझ ही जाओगे तो
कर ही डालोगे। फ़र या बचेगा असंभव? पर एक डर है, पता नह कस बात का डर है। और थ का डर है। डरने को कु छ
है ही नह ।
याद रखना,
और लालच भी बेकार है, य क जस चीज़ का लालच कर रहे हो, वो तो नकली है। तो वो लालच कसी काम का नह । वो
लालच थ है, और उस लालच क वजह से डर और पाल लया है तुमने।
: अगर मुझे कु छ समझ नह आ रहा तो मुझे बुरा लगता है। तो ऐसा य लगता है? ऐसा तो नह लगना चा हए।
आचाय: ऐसा ब कु ल लगना चा हए, य क समझना तु हारा वभाव है। बचपन से ही है। तु हारे होने का मतलब ही है—
समझना। मुद म और जी वत म बस इतना ही अंतर होता है क—मुद को कु छ समझ नह आता।
अभी न समझ पाए, तो बेचैन रहोगे। जब तक जवाब नह मल जाता, आदमी बेचैन रहता है। वो बेचैन इस लए रहता है
य क—समझना हमारा वभाव है। समझना कोई वक प नह है क हम नह समझे तो या हो जाएगा। जब पूछ रहे हो ना
क ‘ या हो जाएगा?’ तब भी समझना ही चाहते हो क— या हो जाएगा? तुम हर हाल म समझना चाहते हो।
आँख लगातार कधर को दे ख रही ह? बाहर को। ये आँख समझना चाहती ह क ये सब या चल रहा है। कान या कर रहे
ह? ये समझना चाहते ह क या कहा जा रहा है। मन लगातार या कर रहा है? अथ करने क को शश कर रहा है।
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तु हारा ये पूरा शरीर है, ये समझने के लए ही है। और जो नह समझेगा वो बड़ी तड़प म रहेगा। समझ रही हो? बना समझे
चैन नह पाओगी। इसी लए ये जो चीज़ ह ना, ये जीवन म ब त मूलभूत ह। इनको ये नह कह पाओगे क ये नह मला तो
या आ।
: सच।
आचाय: तो समझने का अथ यही है—सच जानना। अभी म तुमसे झूठ बोलता र ँ लगातार, तो तु ह कै सा लगेगा? गु सा आ
जाएगा। इस लए हर आदमी झूठे से कतनी नफ़रत करता है। और तुम भी जब झूठ बोलते हो तो बड़ी ला न उठती है। इसका
कारण यही है य क सच जीवन क बड़ी क य चीज़ है।
(मौन)
आनंद—वो भी इतनी ही क य चीज़ है। ऐसा कोई है जो चाहता हो क सब उससे नफ़रत कर? तो ेम भी क य चीज़ है।
तो ेम, आनंद और स य, ये सब एक ही चीज़ के अलग-अलग नाम ह। और वो ब कु ल क य चीज़ है।
आचाय: ये लालच नह है, ये तु हारा वभाव है। तु ह कु छ चा हए—ये तब होता है जब वो तु हारे पास न हो। ‘ वभाव’ का
मतलब समझ रहे हो? ‘जो मेरे पास है, म वो ही ँ।’ लालच का या अथ है? क—‘मेरे पास नह है, तो मुझे चा हए।’ जो
तु हारे पास होता है उसका भी लालच करती हो या? लालच होता ही है तब जब कु छ अपने पास न हो। और वभाव वो, जो
अपने पास हमेशा है। तो इसी लए समझना पड़ेगा, नह समझोगी तो परेशान रहोगी। इस लए ेम म जीना पड़ेगा ही। ेम म
नह रहोगी, तो उलझी-उलझी रहोगी।
: कसी और का ेम य चा हए हम?
ब कु ल ठ क कहा तुमने क ेम, स य, आनंद ये माँग कर पाने वाली चीज़ नह ह। ये सब वभाव म है, इस लए अपना है। ये
अपना है, तो बंटता है। जो माँगे वो ेम नह है। ेम भखारी नह होता। पर हमारा ेम वैसा ही है। दे खा होगा जो ेमी घूमते ह
आसपास, ये महा भखारी होते ह। ये कहते ह, “थोड़ा-सा मलेगा या?” ये परम भखारी होने के ल ण ह।
ेम अपने आप म पूरा होता है। वो दे ना जानता है, और वो सबम बंटना जानता है।
जो आदमी ेमपूण जीता है, वो ये नह कहता क माँ-बाप ह, यार-दो त ह, बस इ ह को ँगा, इ ह म बाटूँगा, इ ह के काम
आऊँ गा। वो सबको ेम दे ता है। वो सड़क पर एक जानवर को भी दे खता है, तो उसके त भी ेमपूण होता है। वो अनजाने
के त भी ेमपूण होता है। वो अ त व से माँग नह कर रहा होता क—“म बेचारा ँ, खाली हाथ ँ, मुझे दे दो।”
हम कहते ह, “म तु ह इतना यार करती ,ँ तो तुम मेरे लए थोड़े-से पये नह खच कर सकते।” वो ऐसे बात नह करता क
—“हमने तु ह पाल-पोस कर बड़ा कया है, और अब तुम हमारे कसी काम नह आ रहे।” ये ेम नह है, ये सब घ टया
सौदे बाज़ी है।
सर पर नभरता न त प से ेम नह है। अपनी ही चीज़ है ेम, जो अपने आप बंटती है। जहाँ रहते हो वहाँ मौज का
वातावरण रहता है। ये है ‘ ेम’।
होर क मँगना द ा सबकु छ, सजदा करां म तेरा, वाहे गु कै द न अं खया, कै दे ने आंस,ू शु ाना तेरा, वाहे गु । ल ज़ म
कै से कोई बताये, चचा जो तेरी हो, दन बीत जाए बात म जैसे सागर समाये, न कु छ बोल पाएँ, वाहे गु । ठं डी हवा का झ का
भी तू है, मेरे मन दा मा लक, दाता भी तू है दामन बछाके मंगदे आवां, सानु छड् के न जाना, वाहे गु ।
अगर आपका ‘उसके ’ साथ कोई र ता नह है, तो आपक अनाथ जैसी हालत रहेगी।
‘अनाथ’ समझते हो? ‘अनाथ’ मतलब - वही जसका नाथ से कोई र ता नह । म सबसे एक सवाल पूछ रहा ँ— या
आपका कोई र ता है, गत र ता, परम के साथ? कोई दो ती-यारी? कै सा भी र ता - माँ जैसा, बाप जैसा, भाई जैसा,
ेमी जैसा। कोई र ता है? र ता नह है तो बड़ी द क़त हो जाएगी।
आचाय: जब होगा तब बड़ा अ ा, बड़ा भरा-भरा लगेगा, मन एकदम भरा-सा रहेगा। सबसे गहरा वही र ता होता है। अगर
वह र ता नह है, तो कोई और र ता कसी काम का नह है। संत का वो र ता ऐसा हो जाता है क वह बात ही करते ह। तो
आपका कोई है ऐसा र ता? वो मौन का भी हो सकता है। वह कै सा भी हो सकता है, वो आपक मन क संरचना के ऊपर है
क आप कै सा र ता बनाते ह।
आप उसे ‘ ेमी’ भी बोल सकते ह, ‘ े मका’ भी बोल सकते ह, आप उसे ‘ नगुण ’ बोल सकते ह। आप उसे नराकार प
म दे ख सकते ह, आप उसे मूत म दे ख सकते ह। उसको आप ‘म’ बोल सकते ह, उसको आप ‘तू’ बोल सकते ह। पर एक
र ता होना ब त ज़ री है। बड़ी ग द हालत होगी अगर आपके पास ऐसा कोई र ता ही नह है।
जानते ह ना तक कौन होता है? वही होता है ना तक जसके पास ये वाला र ता नह है। ना तक वही नह है जो बोल दे
क “ई र नह है।”
जब कहा जा रहा है, “तेरा राम जी करगे बेड़ा पार,” तो ‘रामजी’ कोई व तु नह हो सकते क ‘रामजी’ कोई क पना ह।
‘रामजी’ सा ात् होने चा हए। अब वो ‘रामजी’ कोई भी हो सकते ह, फर वो धनुष वाले राम जी भी हो सकते ह, और चाहो
तो नराकार रामजी भी हो सकते ह। वो आपके मन क चंचलता के ऊपर है क आप उसे कौन-सा प दे ते हो।
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‘मौला’ बोलते ही ‘मौ’ और ‘ला’ नहरह जाना चा हए, ‘मौला’ फर सा ात होना चा हए। यह नह क गा तो दया ‘मौला’,
पर मौला या? एक श द है ‘मौला’? ‘मौला’ या? और या र ता है तु हारा मौला से? जो य हो, जो आप कह क और
सब तो झूठ हो सकता है, पर वह नह जो इतना य हो। और सफ़ य नह , य म तो अनजाने का भाव भी आ
सकता है। य भी है और मेरा भी है, सामने भी है और मेरा भी है।
तो र ता होना ब त ज़ री है।
सोचो क कतने अफ़सोस क सी बात है क उन लोग क ज़द गयाँ बीतती कै से ह गी, जनके पास वह र ता नह है। वही
जसको फ़रीद ने गाया है क—“म तो बस एक रात पया के साथ नह थी तो मुझे बड़ी तकलीफ़ ई, और वो अभा गन कै सी
होती ह गी जनको पया का साथ ही नह मला।”
तो वैसे ही या हालत होती होगी जो हम ायी अनाथ बन बैठे ह। ‘ पया’ कह लो, या ‘माँ’ कह लो, एक क ही ओर इशारे ह
सारे। ‘साक़ ’ बोल लो, या ‘ ोत’ बोल लो, वो इशारा एक ही और है। बड़ी बेसहारा-सी हालत।
अनाथ ब े दे ख ह?
उनक बड़ी ाइ सस रहती है। यही नह क बाहर क दे खभाल कौन करे, उनक अंदर क बड़ी ाइ सस रहती है। मन को
सहारा दे ने वाला कोई नह होता। ये भाव नह होता क बुरे से बुरा भी हो जाए, तो भी कोई बचा लेगा। उनको फर अपनी
चाला कय पर नभर रहना रहता है। वह या तो बड़े डरे ए नकलगे, या बड़े कु टल नकलगे।
जब आपका उस परम के साथ गहरा, स ा र ता नह होता है, तो यही दोन आपके ह होते ह। आप डरे- डरे भी रहोगे,
आप म चाला कयाँ भी आ जाएँगी, ई या आएगी, नया भर क बीमा रयाँ आ जाएँगी, जैसे माँ से बछड़ा आ कोई ब ा।
फर वो ग ए ड ट हो जाता है, फर वो मनल भी नकलता है, फर एक भावना मक ग ा-सा बना रहता है। यह मत होने
द जए। ये सबसे यादा भा यपूण बात है जो कसी के साथ भी हो सकती है - बेसहारा होने क , अनाथ होने क भावना।
आप कतना अनाथ अनुभव करते ह, यह इससे पता चलता है क आप अपने लए कतनी को शश म लगे ए ह। बात
समझ रहे ह? जो सबसे यादा को शश म लगा है क कु छ पा लूँ, वो सबसे यादा अनाथ अनुभव करता है।
बाहर हमारे बाग़ीचे म गुलाब ह, उनमे कु छ नयी चमकती ई प याँ आय ह। दे खये कु छ नयी प याँ ऐसी चमक रही ह क
पू छए मत, य क वो जुड़ी ई ह अभी ोत से। और कु छ झड़ी ई प याँ ह, वो झड़ गय ह, उनका ोत से कोई संपक
नह रहा। तो झड़ी ई प य जैसी हालत हो गयी है हमारी।
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जब तक आप ोत से जुड़े रहगे आप चमकगे ।
आप कु छ भी कह ली जए आपका मन है, ‘यू आर माई टेडी बेयर’ चलेगा, पर र ता तो हो। परम आपसे आकर शकायत
नह करेगा क आपने टेडी बयर ही य बोला। आपको पूरा हक़ है, आप बो लए।
कसी ने कहा है क जब भी म दे खता ँ इन ये बड़े-बड़े राजनेता को, ापा रय को, जो ख़ूब लगे ए ह अपना व तार
करने म, तो उनम मुझे एक बलखता आ ब ा दखायी दे ता है जसको माँ क गोद नसीब नह हो रही है। म दे खता ँ, तो
मुझे पचास वष का बजनेसमैन नह दखायी दे ता। पाँच साल का ब ा दखायी दे ता है, जो माँ से बछु ड़ गया है, और
ब कु ल रो रहा है, बुरी तरह बलख रहा है। वैसी हालत अपनी मत होने द जये क जीवन ही बलख रहा है और उसी
बलखने के कारण ही आपने बड़ी चीज़ इक ा कर ली ह।
.........
(अ ै त बोध ल, 2014)
: द न द, जता दे ते ह।
यहाँ कृ ण ने, जतना सुदामा अपे ा कर सकता था, उससे कई गुना दे दया और ज़ तक नह कया। जतना सुदामा क
अपे ा हो सकती थी उससे कई गुना, और ज़ तक नह कया। और सुदामा कै सा? क भूख मर रहा था, पर मुँह खोलकर
कु छ माँगा नह । उसके लए इतना ही ब त था क म ने ेम से गले लगा लया। उसके लए इतना ही काफ़ था। तो यह
मै ी के दो पहलू ह। दोन एक ही चीज़ है, पर दो दशाएँ ह मै ी को दे खने क ।
पहली, बना माँगे उसम सब कु छ मल जाता है। यह सुदामा क दशा है। पहली - य द मै ी स ी है, और स ी मै ी और
ेम म कोई वशेष अंतर नह है, अगर स ी है, तो उसम बना माँगे मलेगा। माँग-माँग कर अगर कु छ मल रहा है, तो उसम
कु छ है नह ।
आपक क पना म जो कु छ है, उससे अलग कु छ मलेगा। आपने जो उ मीद बाँधी है, उसके अनु प नह मलेगा। उससे
हटकर कु छ मलेगा। यह सुदामा क दशा है - म ता क , या ेम क ।
और गनना नह है क कभी सुदामा लौटाएगा या एहसान मानेगा। सुदामा वापस आएगा भी या नह , इसका भी कोई पता
नह है। और ज़ आता नह है। कृ ण के जीवन म उसके बाद सुदामा का फर कोई ज़ नह आता। बड़ा मज़ेदार है कृ ण
का जीवन। जब कसी से स बं धत होते ह, तो ऐसे जैसे उसके अलावा कोई है ही नह ।
जब गोपी के साथ ह, तो गो पय के अ त र कृ ण के लए कोई नह है। माँ के साथ ह तो माँ के अलावा नया खाली। बस
माँ ह, बस माँ। राधा, तो बस राधा। जब अजुन के साथ गीता म ह, तो मज़ाल है क कोई बीच म.. और यु का माहौल है,
इधर-उधर से हज़ार वधान रहे ह गे। पर जब अजुन के साथ ह, तो बस अजुन के साथ ह। बीच म इधर-उधर कु छ नह ।
और जब सुदामा के साथ ह तो बस सुदामा। उसके बाद सुदामा का कोई अता-पता नह । कहाँ गया? कौन? कु छ नह पता।
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समझ रहे ह?
ठ क है?
“अगर ज़ रत पड़ी तो मेरी जतनी मता है उतना भी दे सकता ँ। अगर ऐसी त आ गई। त होगी तो म चूकूँगा
नह ” - नबध का यह अथ है। त अगर आएगी तो मुझे कमज़ोर नह पाएगी।
आचाय: हाँ! उसक मृ त भी मुझे बंधन म नह रख पाएगी। और माँगा, तो फ़र उसम म एहसान भी नह मानूँगा अगर तूने दे
दया। यह बात भी है। म ता म अगर कसी से मल गया तो एहसान भी नह मानना होता। अपनी ओर से तो नह अपे ा
करनी होती। म ता का एहसान चुकाने का एक ही तरीका होता है।
म ता का एहसान ऐसे नह चुकाया जाता क एहसान माना जाए, उसका एहसान चुकाने का एक ही तरीका होता है। या?
और गाढ़ म ता।
ेम अगर ापार है तो उसम लेन-दे न एक ही तरीके से कया जा सकता है। कै से? और ेम दो। और, और ेम मलेगा भी।
उसम और कोई लेन-दे न नह हो सकता। अगर वो ापार है, तो भी। तो कसी ने मुझे ब त कु छ दया, दो त है मेरा, उससे
ब त कु छ मला, और मुझे उसका एहसान चुकाना भी है, तो उसका एक ही तरीका है। वो दो ती और गहरी हो जाए, और
गहरी हो जाए।
आचाय: हाँ, ब त ब ढ़या। यह सब दान के बारे म बड़ी कु छ अ कहा नयाँ ह। अकबर के नौ र न म से कोई एक थे, जो
हर साल अपनी पूरी जायदाद दान म दया करते थे। तो वो जब दे ते थे दान, तो सर झुका कर दे ते थे लगातार।
उनका यह रहता था क - जसको दे रह ह, उससे आँख नह मलनी चा हए। “ जसको दे रहा ँ, म उसको दे खूँ भी नह ,”
य क उनको मन का पता था, “दे ख भी लूँगा अगर तो मन म यह ख़याल आ जाए शायद क इसे दया, इस पर एहसान
कया। तो बलकु ल ही सर झुकाकर दे ते थे क जानूँ भी नह क कसको दया।
तो इसी तरीके से समु गु त, राजा ए ह, वो और उनक बहन दोन , साल म एक बार अपना सब कु छ दान कर दे ते थे। सब
कु छ! “ले जाओ,” आ ख़र म कपड़े तक दे दे ते थे, “यह भी ले जाओ।”
दे ने का भाव जीवन म ब त मह वपूण है, य क अहंकार पलता है अ जत करने पर, क—‘मेरे पास कु छ है’। जसने दे ना
सीख लया, वो पाएगा क अहंकार भी दे दया।
आप जतना भंडार करोगे उतना उस भंडार से ल त भी होओगे। जतना आप संचय करोगे उतना ही उस सं चत साम ी से
स ब भी जोड़ोगे।
जीसस जो बोलते ह न क, “यहाँ जो खाली बैठ ह वो मेरे भु के रा य म सबसे आगे ह गे,” मामला यही है ब कु ल। यहाँ
सबसे पीछे कौन होता है? जसके पास कु छ नह । पर जसके पास कु छ नह , उसके पास फ़र या नह ?
: अहंकार नह ।
यान आपको मु करता है वचार से, और दान मु करता है व तु से। तो जब यान और दान एक साथ हो जाते ह तो आप
वचार और व तु दोन से मु हो जाते ह।
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यान कससे मु कर दे गा?
: वचार से।
:व तु से।
आचाय: हाँ, हाँ, वचार नह ह। असल म असल चीज़ तो वचार ही है। जस चीज़ को छोड़ना हो, वो वचार ही है। व तुएँ रही
भी आ रह ह पर उन व तु से आप असंबं धत हो, तो व तु म कोई बुराई नह ।
~ कबीर साहब
आचाय: बु कहते ह क जब इक ा हो जाए तो उसको दोन हाथ उलीचो। वो नाव का पक दे ते ह। कहते ह क जैसे जब
नाव म इक ा होने लग जाता है, या...?
: पानी।
आचाय: तो कहते ह क जतना तुम इक ा कर रहे हो वो तु हारी नाव म इक ा हो रहा है! नाव ह क रखो तभी पार जाओगे।
‘पार जाने’ का अथ?
: मु होना।
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आचाय: तो कह रह है क नाव से अगर पार जाना है तो उस नाव को ह का रखो। जैसे ही तुमने इक ा कया, नाव डू ब
जाएगी। दोन हाथ से उलीचो। (दोहराते ए) दोन हाथ से उलीचो।
.........
(अ ै त बोध ल, 2013)
म ता बेशत होती है
आचाय शांत: रा ल का सवाल है: या स ब म कोई आशा रखनी चा हए? म ता के स ब क ख़ासतौर पर बात क
है।
नह , कभी भी नह ।
आशा का, अपे ा का, अथ होता है— ापार। मने तु ह दस पए दए ह, अब मेरी अपे ा है क तुम मेरी सेवा करोगे या तुम
मुझे फलाने क म का माल दोगे।
ेम बेशत होता है। ेम म कोई शत नह रखी जाती। म ता म अगर शत ह क – ‘अगर तुम मेरे दो त हो तो मेरे लए ये सब
करोगे, और अगर नह करते हो तो मेरे दो त नह ’—तो समझ लेना क ये म ता नह है, मामला कु छ और है।
“फ़लाने जात क लड़क से शाद कर ली तो मेरे घर म मत रहना”—तो जान लो क ये ेम नह है, मामला कु छ और है।
(सभी हँसते ह)
और याद रखना क पड़ोसी नह मारते, बाप और भाई ही मारते ह इन ऑनर क लग के क स म। तो समझ लेना क ये ेम
नह था, मामला कु छ और ही था हमेशा से। हो सकता है क शारी रक तरीक से कोई तु हारी जान न ले, ले कन सरे तरीक
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से तु हारी जान ले लेगा।
: सर, एक बार आपने बताया था क आप जससे जतना यार करते हो, उससे उतनी नफ़रत करते हो। और हम एच.आई.
डी. पी. लास म बताया गया है क हमको वही काम करना चा हए जससे हमको ेम हो। तो सर, यार और नफ़रत एक
साथ—ये तो ज टल हो गया है। या मतलब है इसका?
आचाय: ठ क से पढ़ो या कहा जा रहा है। उसको पूरा- पूरा समझो। जब म कह रहा ँ क मे घृणा के साथ आता है, तो म
‘हमारे ेम’ क बात कर रहा ँ। हमने जसको ‘ ेम’ का नाम दे रखा है, वो धूप-छाँव है, वो ेम नह है—वो घृणा क छाया
मा है।
तभी तो जससे तुम ेम करते हो, अगले ही ण घृणा कर लेते हो। और याद रखना बना ेम कये तुम घृणा कर भी नह
पाओगे।
जससे तुमने जतना यादा ेम करोगे, उससे तुम उतनी ही घृणा करोगे। ये ेम ‘हमारा ेम’ है,
..........
(उ र दे श, 2013)
,
रो हत हमने लगाव जाना है। ‘लगाव’ मतलब—लग जाना, अटै चमट। ेम हमने जाना ही नह । जन लोग के त ये डर है
जी वत ,
या है व मान या भ व य ?
:व मान।
आचाय भ व य क: चता करना बड़ा सु वधापूण है , “मेरे मरने के बाद मेरे बीवी-ब का ,
या होगा चलो इं योरस (जीवन
बीमा ) ख़रीद लेता ँ। ” बड़ी ,
चता लगी बड़ी फ़ ,
लगी डर उठा तो मने , या समाधान नकाला …?
: इं योरस *(बीमा)*।
:
आचाय इं योरस ख़रीद लेता ँ। मने ये दे खा क आज मेरे या संबंध ह मेरे ब से और मेरी बीवी से ? मने ये दे खा या ?
म ख़ूब पैसा इक ा कर रहा ,ँ कसके लए ? अपने बेटे के लए। ख़ूब पैसा इक ा कर रहा ँ क भ व य म इसके काम
का त य …?
:व मान का त य।
:
आचाय ये मने कभी दे खा नह क आज या चल रहा है। भ व य म या होगा , या नह होगा वो मुझे बड़ा मह वपूण लगा।
“पूत कपूत तू य धन संचय ”—और अगर लड़का बेकार ही नकल गया तो उसे पैसा दे मत दे ना। वो तु हारे पैसे से बम
ेम होता तो अभी छलकता न, अभी तो कह छलकता दखाई नह दे ता। तो तुम एक वक प लेकर आते हो क – ‘अब
इसके त म अपने कम का नवाह तो कर ही रहा ँ न, कै से? लड़क के नाम बीस लाख क फ ड डपा जट करवा द है,
दहेज़ ँगा।’
तु ह वाकई ेम है? ेम होता तो ये हरकत करते तुम? तु ह ेम होगा, तो घर म लड़क पैदा होगी तो फ ड डपा जट
खुलवाओगे उसके नाम क ? ये ेम का ल ण है? यान से दे खना, लगता यही है क यही ेम है। और ये सारी औलाद जो
नकलती ह घर से, इ ह से न नया ऐसी हो गई है।
हम तो कहते ह क नया बड़ी ख़राब है, ग े म जा रही है, ये तो सोचो क नया कससे बनी है…?
: हमसे।
आचाय: उ ह लोग से बनी है न जो हमारे घर से, हमारे कॉलेज से नकल रहे ह, उ ह से तो बनी है न?
इंसान क गहरी से गहरी यास होती है ेम क । वो जब मलती नह है तो दमाग ब कु ल खा-सूखा और हो जाता है।
ेम कल क परवाह नह करता। वो समझदार होता है, वो अ े से जानता है क कल आज से ही नकलेगा।
ेम कहता है, “आज म पूरी तरह से डू बो, आज अगर सु दर है तो कल क चता करने क ज़ रत ही नह ”—ये ेम का
अ नवाय ल ण है क ेम आज म जएगा। तुमने लगाव क बात क थी न, इस लए कह रहा ँ, ये ेम का अ नवाय ल ण है
क ेम आज म जएगा, कल क फ़ करेगा नह , य क ेम ब त समझदार है और वो अ े से जानता है क जसने
आज को पूरा-पूरा जी लया, पी लया उसका कल अपने आप ठ क रहेगा, बना फ़ कये।
आज क अवहेलना, कल क क पना ।
या आज को अगर दे खा भी जाता है, तो सफ़ इस तरह क कल क क पना पूरी करने का मा यम बन जाए आज। “मेरी
क पना है क जनसे मुझे लगाव है, जो मेरे यजन ह, वो ऐसे-ऐसे हो जाएँ। उनको भ व य म वैसा बनाना है, इस लए आज
म कु छ कर रहा ँ।” ऐसे लोग के लए आज, ‘आज’ नह रहता, आज सफ़ मा यम बन जाता है कल क ा त का। कल
कु छ पाना है उसके मा यम के तौर पर आज को इ तेमाल करो।
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जहाँ कल होगा वहाँ चता होगी ही होगी। चता माण है इस बात का क संबंध म ेम नह है। जहाँ ेम है वहाँ कल नह है,
और जहाँ कल नह है वहाँ चता नह है।
अगर तु ह चता करनी पड़ रही है कसी के बारे म, तो साफ़-साफ़ जान लेना क तु ह यार नह है उससे, लगाव है।
और यार और लगाव वपरीत ह, उनको आसपास का भी मत समझ लेना। लगाव और ेम वपरीत ह। ेम म चता नह
होती, ेम म कल क क पना ही नह होती।
ेम ये नह कहता, “चलो कु छ ऐसा आयोजन कर क हम तुम कभी जुदा ही न ह । तीन महीने से मल रह ह, अब शाद क
बात क जानी चा हए ता क ज़ दगी भर के लए गारंट हो जाए, इं योरस।”
मन जब कल क चता से भरे, तो पूछो: अभी या है जो करना उ चत है? य द अभी ठ क वो कर रहे हो जो अभी होना
चा हए, तो कल क चता कर नह सकते।
कल क चता बार-बार उठ रही है तो ये सा ी है इस बात का अभी वो नह हो रहा जो अभी होना चा हए। य द अभी ठ क वो
हो रहा हो जो होना चा हए, तो कल क चता उठ नह सकती।
“समय कसके पास है सोचने का? हम तो डू बे ए ह उसम जो अभी है, आगे क सोचने का समय कसके पास है? आगे क
सोचगे तो अभी को खोएँगे और अभी को अगर खो दया तो आगे भी कै से कु छ मलेगा?”
बीज को अगर खो दया तो पेड़ मल सकता है या? अभी को खो दया तो आगे मल सकता है या? आगे क सोचनी पड़
रही है तो जान लेना यार नह करते हो। डर रहे हो तो जान लेना यार नह है, लगाव है।
और ‘लगाव’ होता या है? ज़हरीला होता है लगाव। चता, डर, कलह, लेश, हसा—यही दे ता है।
...........
(उ र दे श, 2014)
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सफ़ एक वक सत मन ही दो ती कर सकता है
कता: पापा कहते ह दो त कु छ नह होते। दो त पर यान मत दया करो। इनके साथ मत घूमा करो। पर मुझे लगता है क
दो त भी होने ज़ री ह। पर एक तरफ़ म भी सोचता ँ क व ास कै से क ँ , य क काफ़ बार मुझे लगा क मुझे धोखा
दया गया है और मेरी इ ा क पूत नह ई है। फ़र लगता है पापा भी सही कहते ह।
: कु णाल।
आचाय: कु णाल, पापा बलकु ल ठ क कहते ह। पापा ग़लत नह कहते, पर पापा अधूरी बात कह रहे ह। अधूरी बात इस लए
कह रहे ह य क इंटरवल के बाद क कहानी एक वय क कहानी है। इंटरवल से पहले क कहानी का ‘यू’ माणप है, तो वो
उ ह ने तु ह सुना द । इंटरवल से बाद क कहानी का ‘ए’ माणप है।
पापा को पूरी कहानी पता है, पर अभी तु ह सुनाएँगे नह वो। जब तक तुम सा बत नह करोगे क—पापा म समझदार ँ।
: आप सुना द जए सर।
आचाय: म सुना ँ? पापा को पता लग गया तो मेरी पटाई करगे। कहगे मेरे ब े को वय क कहानी सुना द ।
आचाय: सुना ँ?
छोटे ब े को सुर ा क ज़ रत होती है। बड़े से बड़ा कॉलर भी, नया का सबसे समझदार आदमी भी, बड़े से बड़ा संत भी
जब एक साल का था न, तो कसी को आकर उससे कहना पड़ता था, “उधर मत जा, उधर ग ा है, गरेगा तो टांग टूटेगी।”
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और अगर वो आजकल के ज़माने का है , - ,
पछले सौ दो सौ तो कसी को आकर उससे कहना पड़ता है क “वो जो है न, वो
,
बजली का सॉकेट है उसम उं गली अगर डाल द तूने तो बेटा एक साल का ही रह जाएगा। ”
ये कहानी का उ ,
राथ है पहला ह सा।
,
करेगा म भी उसका बुरा कर ँ गा , य क मुझम अभी इतनी प रप वता ही नह है क मुझे दो ती का कुछ भी पता हो।
मने तो ये मान लया है क जो मुझे मनोरंजन दे वो मेरा दो त है। म उप व करने नकलूँ जो मेरा साथ दे , , वो मेरा दो त है।
,
जतने म कारी और नालायक के काम ह वो करने म जो मेरी मदद करे मुझे लगता है मेरा दो त है। तो पापा बलकुल ठ क ,
कहते ह क बचो ऐसी दो ती से।
म पढ़ रहा ँ और जो आकर कहे , “अरे! पढ़ रहा है? कुछ बुरा हो गया या आज तेरे साथ ? मूड़ ख़राब है या?” वो मेरा
दो त है। म अकेला बैठा ,
ँ म शांत ,
ँ म यान से सुन रहा ,
ँ और जो मुझे पीछे से परेशान करना शु कर दे , वो मेरा दो त
है। तो पापा तुमसे कह रहे ह , “सावधान! य क तुम नासमझ हो इस लए तुमने , नया भर के नासमझ को अपना दो त
जैसे तुम हो वैसे ही लोग से तो दो ती करते हो न ? तु ह पता ही नह है क तु हारा हत कहाँ है। इसी कारण नयाभर का
सारा कचरा तुमने अपने आसपास जमा कर लया है और उ ह तुम अपने दो त का नाम दे ते हो। और जो आदमी वाकई
,
तु हारा हत करेगा तुम उससे र भागते हो।
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जो असली दो त है वो तु ह ब त बुरा लगता है य क वो तु ह समझाता है क, “अरे! या कर रहे हो, अँधे आदमी! गरोगे।”
तुम कहते हो, “ये दे खो, अँधा बोला। और ये और बोल दया क ग ँ गा! अरे म कभी गरा ँ आजतक? और अगले ही सेकंड
गर जाते हो।” तो फ़र या बोलोगे? “म गर ही इस लए गया य क परेशान कर रहा था। म गरता थोड़े ही। मारो इसको।”
एक नासमझ आदमी या ख़ाक दो ती करेगा! और दो ती से आगे यार? सब उस उ म आ चुके हो जहाँ ‘ यार- यार’
च लाते हो। अब ब ा बन कर तो कभी यार नह पाओगे, ब ा बनकर तो फर वही यार पाओगे क कोई तु हारे गाल
पकड़ कर कहे “उ लू लू लू लू, चबी ची स।”
(सभी हँसते ह)
सोचो न, डेट पर जा रहे हो और गल ड पकड़ कर, गल ड तो ख़ैर ई नह , वो पकड़ के तु ह कह रही है (गाल पकड़ने का
इशारा करते ए) “हाउ यूट, बेबी चॉकलेट खाएगा?”
(हँसी)
अब तुम कहोगे, “सर वो तो चा हए”, तो बड़े हो जाओ। दो ती और यार ब त अलग-अलग चीज़ नह ह, एक ही बात है।
दोन सफ़ एक प रप व मन को मलती ह। तो पापा अपना टेटमट(कथन) पूरी तरह बदल दगे जस दन तुम दखा दोगे क
तुम प रप व हो। उस दन वो कहगे, “दो ती सब कु छ है , यार ज़ दगी है,” पर अभी नह कहगे।
: सर ऐसे दो
त ह मेर,े जो मेरा समथन करते ह जब म पढ़ते ँ। जैसे वॉट्सऐप पर अगर बात हो रही है, तो मुझे उस समय
बोलगे क पहले पढ़। पर पापा को कै से बताऊँ क ऐसे दो त भी ह मेर?े वो समझते नह ह इस बात को।
आचाय: ये गड़बड़ मत करना। दे खो ये कतना बड़ा अहंकार है क – ‘म समझदार ,ँ वो समझते नह ह।’ अपनी ज़ दगी को
यान से दे खना, तुमसे यादा समझदार भले ही हो न ह , पर तु हारे जतनी समझ तो रखते ही ह गे। अपनी ज़ दगी को यान
से दे खना, कह न कह तुम इस बात का माण दे रहे होगे क म अभी ब ा ही ।ँ वो माण दे ना बंद करो।
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तुम दे खो क तुम घर पर कौन से ट .वी. चैन स दे खते रहते हो। तुम दे खो क या तुम अपनी ज़ दगी के नणय खुद ले पाते
हो। तुम दे खो क घर से बाहर भी या तुम समझदारी भरे तरीक से नकल पाते हो। इन सब बात को गौर से दे खो। अपने
आप से पूछो, “आज से चार साल पहले जो म था और आज जो म ँ, या उसम वाकई कोई अंतर आया है? या वाकई मेरी
प रप वता बढ़ है?”
नया म उन लोग को दे खो ज ह ने जवानी म ही बड़े काम कर डाले, और फर पूछो अपने आप से, “अगर वो प रप व थे
तो या म प रप व ँ?” सब दखेगा, सबको सब दखेगा। और बात पापा-म मी तक ही नह है बेटा, पूरी नया को दखेगा।
फू ल खलता है न तो उसक सुगंध चार ओर फै लती है। पूरी नया को समझ म आ जाएगा क फू ल खल गया। फू ल को
घोषणा नह करनी पड़ती है क आओ दे खो म खल गया ँ।
कसी क नाक बंद हो तो वो आँख से दे ख लेता है। कसी क आँख भी बंद हो तो वो छू कर पा लेगा क ख़ल गया। सुगंध भी
है, प भी है, नज़ाकत भी है—सब है फू ल के पास। तुम खलो तो सही, पूरी नया को पता चल जाएगा, पापा को भी पता
चल जाएगा। और नह पता चले तो फ़र या फ़क़ पड़ता है।
असली बात या है— कसी को पता चलना या फ़र खलना? असली बात तो ये है क हम खल, उसके बाद अगर उ ह नह
भी पता चल रहा तो तुम कहोगे, “कोई बात नह ।
जब भी ‘दो त’ कहते हो, तो तु हारा आशय हमेशा कसी ‘ सरे’ से होता है। है ना? तो चलो, वह से शु करते ह। कोई
सरा कब मानूँ क मेरा दो त है? जो सरा है, उसको कब दो त कहा जा सकता है, और कब कह क वो हमारा दो त, नह
है?
तो हम सर के बीच म रहते ह। लगातार हम सर से घरे ए रहते ह। है ना? हम जानना चाहते ह क सरे म, कै से परख
क हमारे लये भला कौन और बुरा कौन। जसको हम अपने लये भला मानते ह, उसको हम ‘दो त’ का नाम दे दे ते ह। ठ क
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है?
तो ब त सीधा हो गया है क – ‘हम एक नया म रहते ह, जहाँ हम चार ओर सरे ही सरे दखाई दे ते ह। इन सर म,
कै से जानूँ क मेरे लये हतकर कौन है?’ ठ क है ना? और जो ही हतकर है, उसी का नाम ‘दो त’ हो गया। दो त कौन है, ये
समझने के लये पहले मुझे ये दे खना पड़ेगा क मेरा हत कसम है। फ़र जो मुझ,े मेरे हत क तरफ़ ले जाए, वही कौन आ?
: दो त।
आचाय: हाँ, ब कु ल।
तु हारा हत कसम है, और तु ह य या है—ये दोन ब त अलग अलग बात ह। तुम कभी अपना हत नह दे खते हो, तुम
हमेशा ये दे खते हो क तु ह य या है। और जो तु ह य है, उसने तु ह इतना जकड़ रखा है क जब म कहता ँ, “अपना
हत दे खो,” तो भी तुरंत तु ह सुनाई ये दया क जो तु ह य लगे, वो तु हारा दो त है।
मने ये तो नह कहा था। हत अपना जानते हो या? हम अपना हत जानते ही नह , इसी कारण हम ये जानते ही नह क
हमारा दो त कौन आ। हम ये तो अ े से जानते ह क हम य या लगता है, हमारा मन उ े जत कन बात पर होता है,
हम मनोरंजन कै से मलता है—ये सब तो हम जानते ह। पर हम ये ब कु ल भी नह जानते क हमारा हत कहाँ पर है।
फँ स गए न?
जसे तुम ‘ वाथ’ कह रहे हो, वो साधारण वाथ, वो तो य-अ य का खेल है। जस वाथ क तुमने बात क , उसम जो
‘ व’ है, वो नकली व है। वो हत को समझता ही नह । या तुम जानते हो तु हारा हत कहाँ है? य द तुम ये जान गए क
तु हारा हत कहाँ है, तो फ़र तुम ये भी तुरंत समझ जाओगे क तु हारा दो त कौन आ। एक ण क दे री नह लगेगी।
आज अगर हम दो त के नाम पर मन से घरे ए ह, तो उसका कारण यही है क हम ही नह पता क हमारा हत कहाँ है।
और हम ये नह पता क हमारा हत कहाँ है, य क हम यही नह जानते क हम कौन ह। जसे अपना नह पता, उसे दो त
का या पता होगा?
और याद रखना, जो बेहोशी क तरफ़ जा रहा होता है, उसे बेहोशी बड़ी य लगती है। शराबी को शराब, बड़ी य लग रही
होती है। तो कौन आ दो त? जो तु हारे साथ बैठ कर शराब पीए? पर तु हारे अनुसार तो तु हारा दो त वही है।
कतने लोग ह यहाँ पर जो मन के साथ बैठकर पीते ह? नया म तुमने जसको भी पीते दे खा होगा, दो त के साथ ही
पीते दे खा होगा। उसका दावा यही होगा क दो त के साथ ज़रा पी रहा था| पर वो तु हारा दो त हो कै से सकता है, अगर
उसके साथ तुम पी रहे थे? तु हारा दो त या तु ह बेहोश होने दे गा? जसने भी आज तक जाकर लड़ाई क , उप व कये,
यु कया, उसके दावे यही रहे ह क ये दो त के लए, और दो त के साथ कया।
सच तो ये है क अगर तथाक थत दो त का समथन ना मले, तुम एक भीड़ जुटा ना पाओ, तो तुम उप व कर नह सकते।
पर जो उप व म तु हारी सहायता कर रहा है, वो तु हारा दो त आ कहाँ? तु ह अपने हत का पता कहाँ है? ले कन दावा
तु हारा यही होता है क – ‘ये मेरे दो त थे।’ और सारे उप व दो त के ही साथ और दो त के ही संर ण म ही कये जाते ह।
मन के साथ तो नह कये जाते। या ये कहते हो क मन को साथ लेकर म गया था, लड़ाई करने? संग ठत तो सब
आपस म दो त ही होते ह। क नह होते?
(मौन)
तो दो त दो तरह के हो सकते ह।
एक वो, जो तु हारे अहंकार को और बढ़ाएँ, जो तु हारी धारणा को और मजबूत करे, जो तु हारी बीमा रय को और गहरा
करे। जो तु ह लगातार इस म म रखे क सब ठ क है, तुम ब ढ़या हो, तुम म कु छ गड़बड़ नह है, तुम दौड़े चलो, जाओ
भ व य क ओर, और वहाँ से कु छ उठाकर ले आओ, कु छ जीत लाओ। ये वो दो त ह जनके साथ तु हारा अहंकार बड़ी ख़ुशी
पता है, बड़ी ख़ुशी पाता है।
म तुमसे कह रहा ँ, ये तु हारे दो त नह ह, यही तु हारे जीवन का बोझ ह। इनसे ज द से मु हो जाओ, तुरंत। और एक
सरा दो त भी होता है।
एक सरा दो त भी होता है, जो तु हारे अहंकार को बढ़ाता नह , उसे गला दे ता है। ये दो त तु ह पसंद नह आएगा, य क ये
दो त तु हारे सामने जब भी पड़ेगा, ये तु हारे मुँह पर आईना रख दे गा।
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ये कहेगा , “अपनी असली श ल दे खो। ” ये तुमसे झूठ नह बोलेगा। ये तुमसे ये नह कहेगा , “तुम जैसे हो ब त ब ढ़या हो। ”
ये तुमसे कहेगा , “दो त, अभी तो तुमने अपने आप को जो पाल रखा है, अभी तो तुमने अपने आप को जो मान रखा है, वो
बड़ा अ व , ,
है वो बड़ा झूठा है। हाँ आ यां तक ,
प से संभा के ,
प म तुम ब त कुछ हो। पर फ़लहाल तुम अपने उस ,
संभा से ब त र हो। ”
,
ये दो त तुमको सपन म नह रखेगा। ये तुमको हक क़त म ला दे गा और इसी कारण ये तुमको पसंद आएगा नह ।
,
अहंकार से जुड़े बैठे हो इस कारण तु ह लगता है क तु ह ःख दे रहा है। तु ह ःख दे ही नह रहा ये।
तु हारा हत है मु ,
म तु हारा हत है आन द म और े म म।
,
जकड़ता जा रहा है। तु हारा हत है होश म जागृ त म। दे खो क जनको तुम अपना दो त बोलते हो , या वो ख़ुद जगे ए ह ?
य क सोता सरे को नह जगा सकता। दे खो क जसको तुम अपना म ,
बोलते हो जब तुम उसके साथ होते हो ,
,
तो तु हारा होश बढ़ जाता है या तुम और बेहोश से हो जाते हो।
,
इनको अपना हत जान लोगे तो तुम तुरंत दे ख लोगे क कौन तु हारा दो त है और कौन तु हारा दो त नह है। ,
जो तु हारा वा त वक म ,
होगा म दोहरा रहा ,
ँ वो तुमको कुछ समय के लये बड़ा क द लगेगा , य क जब अहंकार पर
,
चोट पड़ती है तो मन तल मलाता है। जब आईना सामने रख दया जाता है तो मन उसे दे खना नह चाहता। ,
|
मन तो अपने नकली सपन म ही खोया रहना चाहता है तु हारा असली दो त तु ह भाएगा नह | पर ज़रा जगो, होश से काम
,
लो समझदार रहो। जीवन इतना स ता तो नह है क उसे यूँ ही बस , बखरा - बखरा सा, बंटा-बंटा सा, जये जाओ।
,
तु हारी समझ तु हारा असली दो त है। तु हारा अहंकार तु हारा परम , मन है।
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तु हारा ऊँ चे से ऊँ चा दो त है, तु हारा होश, तु हारी जागृ त। और तु हारा परम श ु है, तु हारा अहंकार। तो अहंकार के चलते
जो भी लोग तु हारे जीवन म, तुमसे जुड़े ए ह, वो तु हारे मन ए। और समझ और ेम से जो भी लोग तु हारे जीवन म
आए ह, वो तु हारे दो त ए। ठ क?
.........
(उ र दे श, 2014)
पाना और बाँटना ही है ेम
कता: सर, आप जब पछली बार आए थे तो आपने बताया था क यार ये नह , ये नह और ये नह है। पर आपने ये नह
बताया क यार या है, और अगर हम कसी से यार करते ह तो हम उसे सा बत करने क ज़ रत य पड़ती है।
आचाय शांत: हम इतनी अजीब हालत म प ँच चुके ह क जो सबसे क़रीबी है, हम उसी को नह जानते।
या है ेम?
जब तुम म त होते हो, तो नया भली-भली सी लगती है। कोई शकायत नह रहती ना? कोई ख़ास चाह भी नह बचती, जब
मौज म होते हो। या तब ये कह रहे होते हो क आज से पाँच साल बाद ये पाना है? म ती म हो, चहक रहे हो, तो या
आकां ाएँ तब भी सर उठा रही होती ह क अब ये पा लूँ या वो पा लूँ?
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जब तुम म त-मगन होते हो, तो तु हारे आसपास जो भी होता है, वो भी तु हारी म ती म भागीदार हो जाता है। तुम ऐसे हँस
रहे होते हो, मु कु रा रहे होते हो, चहक रहे होते हो क वो भी चहकना शु कर दे ता है। यही ेम है
“म जससे भी संबं धत हो रहा ँ, उसम ना शकायत है, ना हसा है और ना ही अपे ा है,” यही ेम है।
जो ेम से खाली आदमी होता है, वो जब कोई कताब भी उठाता है, तो गु से म उठाता है। दे खा है लोग को क कताब उठा
रहे ह और फ़र पटक रहे ह? वो जूता भी पहन रहा है तो उस जूता पहनने म भी हसा है। शट के बटन भी बंद कर रहा है, तो
हाथ ऐसे काँप रहे ह उ ेजना म और ोध म क बटन ही टूट गया। उसका एक बटन जैसी चीज़ से भी हसा मक संबंध है।
एक छोटे से बटन के त भी हसा है उसके मन म।
वो कसी जानवर को भी दे ख रहा है तो उसके मन म बस ये ख़याल आ रहा होगा क इसका माँस ऐसा होगा, इसको मार कै से
ँ। वो सड़क पर चल रहा है तो अकारण ही कु को प र मार रहा है, और उसके पास ये करने क कोई वजह नह है।
उसके पास एक छोटा कु ा आ गया है और कु छ नह कर रहा है, उसके पाँव के पास आकर उसको सूँघ रहा है, और वो
उसको घुमाकर एक लात मारता है, और कु ा च चयाता आ भाग जाता है।
इससे हटकर जो होगा वो एक ेमपूण मन है क—वो एक पेड़ को भी छू रहा है तो आ ह ता छू रहा है क इसे चोट न लगे।
उसने जानवर को खाने क , उपभोग क व तु नह समझ रखा है। उसने नया को अपन और पराय म नह बाँट रखा है क
ये तो मेरे अपने ह, तो इनके साथ ज़रा ठ क से वहार करना है, और बाक सब पराए ह तो भाड़ म जाएँ।
उसक मौज अखंड है, पूरी है, और इतनी यादा है क उस तक सी मत रह नह सकती, इस लए सर तक भी प चँ ती है।
वो कु छ पा नह लेना चाहता, वो कु छ बाँट दे ना चाहता है। वो कह रहा है क इतना सारा तो मल रहा है। अब वो वाथ नह
हो सकता, य क वाथ तो वही होगा जसे कमी लगेगी, जसे अधूरापन लगेगा।
उसे कमी और अधूरापन लगता ही नह । वो यही महसूस करता है क म बड़ा अमीर ।ँ वो कहता है क अपनी या उलझन है
सुलझाने के लए, चलो सर क है तो उ ह सुलझा दे ते ह। और बेशत सुलझा रहे ह। ऐसे नह सुलझा रहे क कोई हमारा
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ध यवाद करे। वो अपने आप को दये- दये फरता है। वो अपने आप से भाग नह रहा है। उसने अपने आप को पूरा पा लया
है।
याद रखना क—पहले अपने आप को पाया है, पहले ख़ुद अपनी मौज म म न आ है, उसके बाद सर म बाँट रहा है।
य क सर म बाँटा नह जा सकता, जब तक पहले तु ह ख़ुद ना उपल हो जाये—ये है ेम।
फ़र सरी जो सीढ़ है उस तक अपने आप प ँच जाते हो, छलांग यूँ ही लग जाती है, य क तु ह जब मलेगा तो सर तक
तो प ँचकर रहेगा।
सूरज जब का शत होगा तो पूरी नया को रोशनी मलकर रहेगी। अब सूरज को कोई वशेष योजन नह करना है, और न
सूरज को नया को अपने और पराय म बाँटना है क मेरी रोशनी नकलेगी तो सफ़ इस दे श म पड़ेगी। या इतने लोग
सूयवंशी ह तो इ ह ही मलेगी, म चं वं शय को नह ँगा। या क ह को मलेगी, मुसलमान को नह मलेगी। या पु ष
को मलेगी, य को नह मलेगी, या आद मय को तो मलेगी, पर जानवर को नह मलेगी य क आदमी सबसे ऊँ चा है,
सव े है।
ेम कभी कसी को अपने उपभोग क व तु नह मान सकता। उसके लये मुग और बकरे उसके खाने क चीज़ नह हो
सकते। ये ेमपूण दय बड़ा संवेदनशील हो जाता है। य क वो चोट अनुभव ही नह करता, तो वो कसी को चोट अब दे भी
नह सकता।
जसको चोट अनुभव होती है, वही सर को चोट दे ने म लगा रहता है। इस को चोट लगनी बंद हो गयी है, तो इसी
कारण इसने चोट दे ना भी बंद कर दया है, ये हसा कर ही नह सकता। ये आ एक ेमपूण मन।
दे खो क या तु ह रोक रहा है मौज म आने से। दे खो क या है जो तु हारे मन को तनाव म रखता है। उससे मु हो जाओ,
उसके यथाथ को जानो। और जैसे ही जानोगे, मु हो जाओगे। जन बात को तुमने बड़ा मह वपूण समझ रखा है, जनके
बारे म तुम बड़े गंभीर हो, उनको ज़रा करीब से दे खो। जहाँ करीब से दे खोगे, वो सब उड़ जाएँगी।
मौज उपल है ही, तुमने उसे र कर रखा है। तु ह मलेगी, सर म बँटेगी, यही ेम है।
........
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(उ र दे श, 2014)
बाहर से जो तु ह मलता है, वो हमेशा बाहरी ही होगा। याद रखना, बाहर से अगर मलता है तो ‘ कसी’ को मलता होगा।
जसको मलता है वो बाहरी नह हो सकता। तुम ख़ुद बाहरी नह हो सकते। इस कारण बाहर से जो भी मलेगा उसका मह व
हमेशा तुमसे कम है।
बाहर से सब कु छ आ सकता है तु हारे पास, पर तुम ख़ुद बाहर से थोड़े ही आओगे अपने पास। ब कु ल ता कक बात कर रहा
,ँ समझना।
ब त सारी चीज़ आएँगी तु हारे पास, पर या तुम कहोगे क तुम ख़ुद आए हो बाहर से अपने पास? बाहर से जो भी कु छ आ
रहा है, य द तु हारे पास आ रहा है तो तुम वयं तो बाहर से नह आ रहे ना? क बाहर से जो भी आ रहा है वह हम नह ह,
और इस कारण बाहर से आने वाली चीज़ का मह व हमसे यादा नह है।
जो भी कु छ बाहर से आ रहा है वह मह वपूण हो सकता है, पर हमसे यादा तो नह हो सकता ना? जो बाहर से आता है वह
हमारे साथ दो काम कर सकता है। पहला ये क - शरीर है इसको चलने म मदद करे।
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, ,
ऐसा ढक लया इसने तुमको ऐसा बाँध लया इसने तुमको इतना हावी हो गया ये तुम पर क तुम अब कह नज़र ही नह
, -
आते जैसे गुड़ का एक छोटा सा ढे ला हो और उसके चार तरफ म खयाँ लपट ह ।
,
हम सब वय क लोग ह हम सबको यह समझना होगा क नया से हम स ब कैसा रखना है। तु हारा जो सवाल है वह
मूलतः सवाल यही है। जब तुम अकेलेपन क बात करते हो तो तुम पूछ यही रहे हो , “ये जो पूरी नया है इस से हमारा
य द यह स ब है नया से क ,
नया से ही शरीर चलता है तो बात ठ क है। य द ये स ब है नया से क य द नया है
तभी तो ेम क स ,
ावना है तो ब त ठ क है। पर जो तीसरे कार का स ब है क भीड़ आकर के हावी हो गयी है तुम
पर म , खयाँ ही म ,
खयाँ ह और तुम कह नज़र ही नह आते वो ठ क नह है। ,
,
अपनी मज़ से अपनी नजता म तुम अपनी मठास कसी को बाँट दो वो अलग बात है वो , , ेम का स ब है। पर इतने भी
,
जड़ न जो जाओ क तु हारा बस ही नह चल रहा कोई भी आकर तुम पर बैठ गया है और तुमको ग दा कर रहा है और ,
तु हारा बस ही नह चल रहा। वो नह होना चा हए।
अपनी इ ा से तुम बाँटते फरो ब त अ , बात है। जब म कहता ँ क झु ड म तु हारा वकास नह हो सकता ईमानदारी ,
से बताओ तुम , य हो उस झु ड म ? या ेम के कारण ? पाँच लोग चपके ए ह एक ,
सरे से या इस लए य क उनम
आपस म बड़ा ेम है ? ऐसा तो नह है , ब कुल नह है। अगर ऐसा होता तो कोई द क़त नह थी , ब कुल कोई द क़त
नह थी।
आनंद जीवनभर बु ,
के साथ रहे पर वहाँ गुड़ और म खीवाला स ब नह था। हमेशा साथ रहे। जीवनभर और अन गनत ,
कससे ऐसे होते ह जसम कुछ लोग जीवन भर साथ रह जाते ह। वो जीवनभर साथ रहना ब त सु दर हो सकता है अगर उन
जब म कहता ँ क झु ड म वकास नह हो सकता तो , ‘ वकास’ का अथ समझते हो? आदत का हटना ही ‘ वकास’ है। यूँ
समझ लो क वकार का हटना ही वकास है। ‘ वकास’ का यह अथ नह होता क तुमने कुछ और है जो पा लया है।
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‘ वकास’ का इतना ही अथ होता है क जो ग दगी जमा है, जो आदत इक ा ह, जन ढर पर चले आ रहे हो, उनसे मु हो
गए, उनको हटा दया।
झु ड हमारी आदत है। अके लापन, और जब म ‘अके लेपन’ श द का योग करता ँ तो उस से डर मत जाना। ‘अके लेपन’ का
अथ सूनापन नह है, ‘अके लेपन’ का अथ बंजर हो जाना नह है, ‘अके लेपन’ का अथ है - जगा आ होना है।
पर सर के साथ होने म और सर से बंधे होने म अंतर है। अपने साथ होना सीखो! सफ़ दो मु ही एक सरे के
साथ हो सकते ह। जेल म बंद दो कै द यह दावा नह कर पाएँगे क दे खो हम दोन एक ही कोठरी म बंद ह तो इस कारण हम
साथ ह। या वो साथ ह? ये मजबूरी है उनक , वो बंधे ए ह।
ये वशु हमारी नजता है क हम साथ ह। हम चाह तो अलग भी हो सकते ह पर हम साथ ही होना है। यह हमारी आदत नह
है, यह हमारा ेम है।
अब तुम दे खो क तुम जब कसी भी कसी के साथ होते हो या कसी वचार के साथ होते हो, तो उसम समझ कतनी
है और आदत कतनी है। जैसे हम और कार के नशे क लत लगती है ना, कसी को चार बार चाय पीने क लत है, तो या
उसका अथ ये है क उसे चाय से ेम हो गया है?
वैसे ही ये एक आदत है क तीन-चार लोग से घरे रहना है, लत लग गयी है। म इस लत से मु होने क बात कर रहा ँ।
अके लेपन से घबराने क ज़ रत नह है। ‘अके लेपन’ का यह अथ नह है क – “सब मुझे छोड़-छाड़ कर चले गए और म
तनहा हो गया।” और रो रहे हो माथा पकड़कर, क अब जीवन म कु छ बचा नह ।
झु ड के पास कोई अ ल नह होती। झु ड के पास कोई चेतना नह होती, तो वहाँ या बातचीत, या स ब , या संवाद!
अगर तुम झु ड हो तो म तुमसे बात कै से क ँ गा। बात भी म तब कर सकता ँ य द तुम, अके ले हो। झु ड क तो कोई चेतना
नह होती।
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तुम म से वही लोग मेरी बात समझ पा रहे ह गे जो मान सक तौर पर अके ले हो पाए ह। ब त सारे अभी भी यहाँ ऐसे ह गे
जनके मन पर भीड़ बैठ ई है। जनके भी मन पर भीड़ बैठ ई है, तो उ ह कु छ समझ नह आ रहा है य क भीड़ कु छ
नह समझ सकती। तुमको एक तरीका दे ता ँ यह जाँचने का क ‘तुम’ हो या भीड़ है।
तुम जो भी कु छ अभी कर रहे हो, चाहे सोच रहे हो या कह रहे हो, तु हारी एक-एक ग त व ध, बस अपने आप से यह पूछो
क या यह ऐसी ही रहती य द यहाँ पर सरे मौजूद ना होते।
य द वो वैसी ही रहती तब तो समझना क ‘तुम’ हो, अ यथा भीड़ भर है। प का समझ लो।
हम म से अ धकाँश लोग, य द यहाँ सरे न ह , तो बदल जाएँगे। कु छ जो बोल रहे ह, य द वो अके ले ह तो उनक बोलती बंद
हो जाएगी। और कु छ जो अभी नह बोल रहे ह, सवाल पूछना चाहते ह पर पूछ नह रहे ह, य द वो यहाँ अके ले ह तो सवाल
पूछ लगे।
या ऐसा हमारी हर मुलाक़ात के बाद नह आ है क ब त सारे लोग इंतज़ार करते ह क जब भीड़ छं ट जाए तो वह एकांत
म आकार सवाल पूछगे। य द भीड़ न होती तो वह पूछ लेते। वो अके ले नह हो पाए, भीड़ उन पर हावी रही, उनके मन म भीड़
समाई थी।
इसी कार कु छ लोग बोलते ही सफ़ इस लए ह य क यहाँ भीड़ मौजूद है। तो वो मुझसे नह बात कर रहे होते, वो भीड़ से
बात कर रहे होते ह। लगता ऐसा है क बात उ ह ने मुझसे क है, पर उ ह ने मुझसे नह क है, वो तो उनके भीतर क भीड़
बाहर क भीड़ से बात कर रही है। वो ह ही नह , वो मौजूद ही नह ह। भीतर क भीड़, बाहर क भीड़ से बात कर रही है।
तो ईमानदारी से परखो अपने आप को, क तुम बैठे हो या भीतर से एक झु ड बात कर रहा है। और उसका तरीका यही है क
पूछो अपने आप से क - या म ये अके ले होकर भी कर पाता, या अभी इस लए कर पा रहा ँ य क आसपास भीड़ है और
म भीड़ म छु प सकता ?ँ
जो यान म है, वह न त प से भीड़ म नह है, य क यान भीड़ का नह होता, अपना होता है। उनको अंतर ही नह
पड़ेगा क यहाँ कतने बैठे ह और कतने नह ।
और ये बड़ी खौफ़नाक बात है क हम जसको बोलते ह क हम कर रहे ह, वो पूरा का पूरा एक भीड़ का कृ य होता है।
कतना हावी हो जाती है ना भीड़, हम पता भी नह चलता। हमसे या- या नह करवा ले जाती! ब त सारे रये लट शो
दे खना, उसम दो मनट क स के लए, क भीड़ से ता लयाँ मल जाएँ, लोग आकर अपना बेवक़ू फ़ बनवा कर चले जाते
ह सफ़ इस लए ता क भीड़ से थोड़ी मा यता मल जाए, भीड़ का अनुमोदन मल जाए। उसके लए वह कु छ भी करने को
तैयार ह।
आज तु ह बता दया जाए क न न होकर चौराहे पर नाचो तो नयाभर म हम उसे चा रत कर दगे क ये बड़े बहा र आदमी
ह, तो ब त सारे लोग ह जो ऐसा कर जाएँगे। वो अ यथा ये नह करते, पर य क भीड़ उनको वाहवाही दे गी, भीड़ क नज़र
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म उनको वीकृ त मलेगी, इस कारण वह कु छ भी ऊटपटांग करने को राज़ी हो जाएँग,े ऐसा जो वो अपने अके लेपन म कभी
कर नह पाते, भीड़ क अनुप त म कभी कर नह पाते।
कसी ने कहा है क कभी पागल नह होता, कभी हसक नह होता, भीड़ ही हसक होती है। जब भी कभी
कसी को हसक दे खना तो समझ लेना क उसके भीतर भीड़ घुस चुक है। अके ला आदमी कभी आजतक
पागल नह आ। पागलपन का अथ ही है क तुम अके ले अब रहे नह , तु हारे भीतर भीड़ ने क ज़ा कर लया है - यही
पागलपन है।
पागलपन के लए जो श द है ‘ व तता’, वह भी भीड़ क तरफ़ ही इशारा करता है। ‘ व पे ’ मतलब ख़लल, तु हारी नजता
म ख़लल पड़ा है, बाधा आई है, यही व तता है, यही पागलपन है।
अब उसम गड़बड़ ये हो जाती है क इतनी आदत लग गयी है बीमार रहने क , घरे- घरे रहने क , क जब अके लापन मलता
है, तो वो बड़ा असहज-सा लगता है। जैसे एक आदमी हमेशा बैसा खय पर चलता रहा हो य क कभी लगी थी चोट, कभी
द गयी थ बैसा खयाँ, और फर बैसा खयाँ हटा दो तो उसे बड़ा अजीब सा लगे। वो कहे, “नह नह , दोबारा चा हए, वापस
चा हए।”
वैसे ही हम जब थोड़ा अके लापन मल जाता है तो हम अजीब-सा लगने लगता है, मन तुरंत कहता है क मोबाइल फ़ोन
लाओ, बात कर ल। या कोई पड़ोस म बैठा है उसे दे ख ल। सफ़ सरे को दे खकर मन को आ ासन मलता है क सरे ह
यहाँ पर – “कह म अके ला तो नह हो गया?”
जो चीज़ उ सव हो सकती है, वो डरावनी लगने लगती है – “कह म अके ला तो नह हो गया।” उससे घबराओ मत, उससे
डरो मत, पुरानी आदत है जसके कारण डर लगता है। और कोई बात नह है।
अभी म एक छोटा-सा योग क ँ तु ह बात बड़ी साफ़ दे खने को मलेगी। जैसे बैठे हो, अगर एक-एक कु स छोड़कर बैठो,
तो तु हारा वहार बदल जाएगा। और यही थोड़ा और सटकर बैठो तो वहार बदल जाएगा। अभी एक कॉ फ़गरेशन म बैठे
हो, और म कह ँ क दो लोग के बीच म एक कु स खाली होनी चा हए, तो तुम पाओगे क माहौल बदल गया, एकदम बदल
गया। इतना असर होता है।
‘मन’ माने भीड़ - भीड़ कम ई, मन साफ़ आ। और अभी यहाँ पर दो सौ, ढाई सौ लोग और आ जाएँ तो माहौल अचानक
बदल जाएगा।
अ ा चलो, अब तुम लोग के सामने एक बात रख रहा ।ँ तुम जतना भी मूवमट करते हो ना, वो पूरा मूवमट सर के लए
भी एक बाधा बनता है। तो ये मुड़-मुड़ कर इधर-उधर दे खना, य क जब भी तुम ये करते हो, तो यह एक कार का
आ मण है सरे पर।
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वो चुप बैठा है, वो यान म है, वो सुन रहा है, और तुम हल रहे हो, तो तुम इस पूरे माहौल के लए ठ क नह हो। या तुमने
यह नह दे खा है क तुम यहाँ बैठे हो और र से भी अगर कोई तुमको दे ख रहा हो, तो पता चल जाता है क कोई दे ख रहा है।
या ऐसा होता है या नह ?
कई बार तो यहाँ तक भी होता है क पीछे कोई है, और वो तु ह वहाँ से लगातार घूर रहा है, तो तुमको पता चल जाता है। तुम
पलटकर दे खते हो और पता चल जाता है क वह तु ह ही दे ख रहा था। ये आ मण मत करो।
‘लु ा’ श द सुना है? ‘लु ा’ श द का अथ जानते हो या होता है? आँख के पयायवाची या ह? नयन, लोचन। जो आँख
से अकमण करे, जो लोचन से आ मण करे, वही ‘लु ा’ कहलाता है।
........
(कानपुर, 2014)
आचाय: या होता है इ क़? इतने खाली तो नह हो क पता नह है। कु छ तो पता होगा ही। कोई मूवी आएगी और उसम ये
लखा होगा क ये लव टोरी है, तो बोलोगे या क पता नह ये कस बारे म है?
: सर, जहाँ तक दे खा है, समझा है ‘लव’ तब है जब, आप अपने बारे म कम और सर के बारे म यादा सोचते ह ।
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आचाय: वो तो तब भी होता है जब कसी ने तु हारे पैसे उधार ले लए ह ।
(सब हँसते ह)
: लव इज़ डम ( ेम मु है) ।
आचाय: या?
: एक त है जसम म आपके बारे म सोच रहा ँ। वो कब से सोच रहा ,ँ य सोच रहा ँ, नह पता। पर म आपके बारे
म सोच रहा ँ ।
: हाँ।
आचाय: तुम सोचो क तुम कसी और के बारे म सोच रहे हो, कसी दो त के बारे म सोच रहे हो, पर वो दो त कसका होगा ?
: मेरा
: अपने लए।
आचाय: तो अगर तुम कसी के लए सोच रहे होगे तो फ़ायदा कसका दे ख रहे ह गे ?
: अपना। आचाय: तुम भले ही ये कहो क “मुझे तु हारी याद आ रही है”, पर उसम मह वपूण या है?
‘मुझ’े ।
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‘मुझ’े कु छमल नह रहा है जो म चाहता ँ, क म तु ह यहाँ चाहता ।ँ ‘तु ह’ का मतलब तु हारा शरीर और कोई इ ा है
जो पूरी नह हो पा रही है। और हम कहते ह, “आई एम म सग यू।”
इस वाथ को यार कहना है या कु छ और है मामला? ये प का हो पा रहा है क जससे यार करोगे उसके बारे म सोच नह
सकते। फ़र और अगर कसी के बारे म ब त सोचना पड़ रहा है तो वो यार नह है कु छ और है। कौन-कौन लोग अपने यार
के बारे म ब त सोचते ह —गल ड, बॉय ड?
: ब कु ल नह ।
आचाय: पर तुम तो बड़े खुश हो जाते हो जब कोई बताता है, “पता है सारी रात तेरे बारे म सोचता रहा।”
(सब हँसते ह)
आचाय ( ं य से) : आह, सो यूट! “तुझे पता है, वो सारी रात न मेरे बारे म सोचता है।”
(सब हँसते ह)
आचाय: या है यार?
: थॉट *( वचार)*।
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आचाय: थॉट!
द लेज़र ऑफ़ ज ट फटसाइ ज़ग, एंड इमै ज नग, एंड है वग द फ़ोटो ाफ़ इन ं ट ऑफ़ यू, एंड द मेमोरी इन ं ट ऑफ़ यू।
दै ट्स द एंटायर अ ै न ऑफ़ लव*(वो याद, वो वचार, वही तो सारा आकषण है यार का)*। वो आकृ त है, एक मनोहर
आकृ त, और वो आकृ त ेम हो नह सकती।
आकृ त तो वचार है। और वचार म तुम कर तो ख़ुद से ही यार रहे हो। इसको नार स स म बोलते ह। और अहंकार और
कसी से यार कर भी नह सकता। वो सफ़ अपने से ही यार करता है। तो घूम फर कर हम ख़ुद से ही यार करते ह। हम
व- ेमी ह, और ये बड़ी ख़तरनाक बात है। शा दक प से और शारी रक प से भी – सफ़ वयं को ेम करना, येक
तल पर।
: शाद पर।
आचाय: कभी ये सवाल पूछा है क ये ख़ म य हो गयी? आगे का य नह दखा रहे वो? एक पं लखकर छोड़ दे ते ह।
“… एंड दे ल ड है पली एवर आ टर… ।
फ़र या है यार ?
:ए सेपटस( वीकार) !
आचाय: तुम सोच-सोच कर ही ए से ट( वीकार) करते हो। कभी बना सोचे ए से ट कया है ?
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: (हँसते ए ) सर ए से टस मतलब कसी चीज़ से यार नह है, कोई वषय-व तु नह है, कसी शरीर मा से यार नह है।
आचाय: कसको?
(सभी हँसते ह)
आचाय: ब त यान से दे खो – “मुझे इसक उप तअ लगती है।” थोड़ी दे र म, “अब मुझे इसक उप तअ
नह लगती,” तो बड़ा कौन आ, ये या म?
: म।
: नह लगता।
आचाय: तो राजा कौन? म। “हम तुम अ े लगे, सामने बैठो। अ े नह लगे, पीछे बैठो।” तो ये य कहते हो क मुझे तुमसे
यार है? ये बोलो न क मुझे अपने आप से यार है, मुझे अपने आकषण से यार है। या है यार फ़र? मामला या है? अगर
सोच नह सकते, अगर अहंकार नह हो सकता उसम, तो फ़र वो या है?
: आज़ाद ।
आचाय: कै सी आज़ाद ?
: वचार क ।
आचाय: सोचने क आज़ाद । सोचो, फ़र क पना करो। आज़ाद ही आज़ाद है। उसम कौन आ सकता है?
: सर यार या होता है, ये तो मुझे नह पता। पर इस बात पर म प का ँ क ये तो नह क कौन बड़ा है, कौन छोटा है। ये
तो ‘ यार’ नह है।
आचाय: कौन बड़ा और कौन छोटा म अपनी और उसक तुलना हो रही है?
: ‘अपना’ और ‘उसका’ ही हो रहा है। क ‘मेरी’ ही बात हो रही है न क ‘म’ बड़ा ँ। सब घूम फर के म ही बड़ा हो रहा ँ
आचाय: जब तुम ये कहते भी हो क कोई बड़ा नह और कोई छोटा नह , तो यह घोषणा कौन कर रहा है?
: म।
आचाय: तु हारा सोचना, तु हारा होना तो बना ही आ है न? कल को तु हारी सोच बदल गयी तो?
तुम मेरे जीवन म आए और हमने तय कया क हम बराबर के सहयोगी ह गे। एक साल बाद म कहता ँ क नह हम बराबर
के नह , स र-तीस के ह सेदार ह गे। और फ़र तुम कहते हो क तुमने ही कहा था क हम बराबर के ह सेदार ह गे, हम एक
सरे का स मान करगे। और अगर म क ँ क मने ही तो बोला था न, मने ही बदल दया।
वो आता है न क सोच कभी भी बदल सकती है। जो सोच है वो तो कभी भी बदल सकती है। तो कभी कसी क इस बात पर
तारीफ़ मत कर दे ना क मुझे उसके वचार बड़े अ े लगते ह। वचार का या है, कभी भी बदल जाएँगे। वचार तो कभी भी
बदल जाएँगे।
: सर, तो ‘म’ हैया? ‘म’ जो पहचान है, वो वचार ही तो है। और है या? सर, तो ऐसे तो हम कु छ भी नह ह। अगर मुझे
आपको प रभा षत करना है क आप कै से आदमी हो, तो म ये क गँ ा क वो ऐसा सोचते ह इस लए मुझे उनके पास बैठना
पसंद है। म उनका अनुसरण करता ँ।
आचाय: तुम म से जो भी लोग यहाँ पर बैठकर मेरी बात सुन रहे हो, वो कु छ भी नह सुन रहे हो। और जो लोग कु छ भी नह
सुन रहे और कु छ भी उनको समझ नह आ रहा है, बस चुपचाप बैठ गए हो, बस उ ह ही समझ आ रहा है। जो भी लोग थोड़े
भी ए टव (स य) ह, यहाँ बैठकर कु छ भी कर रहे ह, मेरी आवाज़ का कु छ भी मतलब ले रहे ह, उ ह कु छ भी समझ नह
आ रहा है।
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अ ै त म मेरे पास तीस-चालीस लोग ह गे जो महीन से मेरे साथ ह। कु छ लोग तो साल से ह जनको म ऐसे ही बोलते रहता
ँ, जैसे अभी बोल रहा ।ँ ऐसे ही बोलूँगा, कल सुबह भी ऐसे ही बोलूँगा। तो लोग ह जो साल से मुझे ऐसे ही सुन भी रहे ह,
और उनको कु छ नह मला है, य क वो सुन रहे ह। वो समझदार ह, वो सुन रहे ह। और कु छ लोग ह जनको सब कु छ मल
गया है—ये यार है। ये बात ब कु ल बेवकू फ क लगी न, ब कु ल वरोधाभासी लगी?
आचाय: समझ म नह आयी न। ऐसे ही जो ब कु ल समझ न आए, वो यार है। और उसी म सबकु छ समझ म आता है। पर
वो समझ, सोच नह पकड़ पाती, इसी लए सोच कहती है,“तुझे कु छ समझ नह आया।” बात समझना।
सोच और समझ दो बलकु ल अलग-अलग चीज़ ह। जो भी लोग कहते ह क उनको समझ आ गया, उ ह कु छ समझ नह
आता। समझ म आ गया होता तो उ ह पता कै से चलता?
जहाँ भी, जैसे भी, जस हालत म भी एक गहरी क शश उठती हो, एक अकथनीय मौज आती हो, वचार चाहे कु छ भी बोले,
वहाँ यह समझना क यार है।
आचाय जी ( सर हला कर) : और कसी से भी नह हो सकता। और ये भी हो सकता है क तुम पाओ क तुम ऐसी जगह
खड़े हो जहाँ पर खुला आसमान है, चार तरफ म है, रेत है, कोई ब ग नह है, कु छ भी ऐसा नह है जसे तुम दावा कर
सको क इस चीज़ से मुझे यार है।
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आचाय: हाँ, ब कु ल हो सकता है, पर उन पहचान को कनारे रखे ए हो। बीच म हो, बीच म तो रहोगे ही। अभी भी तो हम
सब ‘पहचान’ ही तो बैठे ह पर वो पहचान कनारे बैठ ह। तो ये भी हो सकता क कोई न मले और तुम फालतू ही च ला रहे
हो, “आई लव यू” और पीछे से एक छोटा-सा चूहा आकर पूछ रहा है, “‘यू’ माने कौन?”
(सब हँसते ह)
उसको लग रहा है कह मुझे ही बोल रही हो। अके ले यहाँ घूमता रहता ँ, और तुम कहो क ये तो मुझे भी नह पता क ‘आई
लव यू’ म ‘यू’ कौन है। पर है बस ‘आई लव यू’। तो कोई कहे, “अ ा आसमान क तरफ़ मुँह करके बोल रही है, शायद
आसमान से कह रही है।”
अब चूहा भी तकड़मी है, इंजी नयर होगा। सोचो ज़रा, कोई तो होगा। चूहा लगा है पता लगाने। तुम कह रहे हो क सोच-सोच
के परेशान हो गए, तुम कह रहे हो क हम नह पता क ‘यू’ माने कौन, पर ‘आई लव यू’ है ये प का है। अब चूहा बोल रहा है
क दे खो ‘लव’ माने ये होता है, ‘लव’ माने वो होता है, ऐसा है वैसा है। चूहा इंजी नयर ही नह , एच.आई.डी.पी. भी कये ए
है। और आ आकर के बता रहा है क यार ये नह है, यार वो नह है।
तुम कह रहे हो, “अरे लव बोलना ही नह है, म इसको ‘हकू को’ बोलने को तैयार ँ। ‘लव’ श द म भी या रखा है, “आयी
हकू को यू,” तब समझना क यार आ है। जब ‘ यार’ श द भी कसी वज़न का न रह जाए, और तुम कहो, “हाँ ठ क है। हम
कहना ही नह क मुझे यार है।श द म या रखा है?
तुम अगर इतने ही हो शयार हो क हमसे कहने आए हो क दे खो यार तो वही होता है क जसम ये हो, और ये न हो, तो हम
तु हारी बात ही नह माननी। ठ क है, हम यार नह है। हम ‘हकू को’ है, और हम मौज म ह। तुम यार रखो, हम मौज लेने दो।
‘ यार’ श द तुमको मुबारक हो, हम तो मौज चा हए। तुम रखो, कॉपीराइट है। यार हमारा नह है, हम तो मौज मल रही है।
हम खुश ह, और वो मौज तुम हम से छ न नह सकते।”
आचाय: पर मौज बड़ी होती है। और मौज भी वैसी नह होती जैसी हम जानते ह। वो मौज ऐसी होती है क जान नकल
जाए। उस मौज क अपनी कसी पुरानी मौज से तुलना मत कर लेना क एक बार शराब पी थी और बड़ी मौज आयी थी, वो
होता है यार। नह वो नह होता है।
या फर बॉय ड के साथ बाइक पर बैठती ँ पीछे , और वो ऐसे भगाता है, तो बड़ी मौज आती है। नह ये सब कु छ नह । वो
मौज ऐसी होती है क लगता है क जान नकली, दम घुट गया।
: दम कै से घुट गया ?
आचाय: ख़ म।
और लोग आएँगे और कहगे क तेरी हालत बड़ी ख़राब है, और तुम मलाओगे उनक हाँ म हाँ क बड़ी हालत ख़राब है। और
झूठ नह बोल रहे, सही म हालत ख़राब है। पर जब उनसे हाँ म हाँ भी मला रहे हो, कह रहे हो क मुझे तो ये चीज़ ही नह
पसंद है, मुझे काम ही नह करना, कह न कह यह भी पता है क पसंद तो नह , फ़र भी बड़ा अ ा लगता है। करना तो
नह है, पर करे जाएँगे।
: पागलपन नह है ये?
आचाय: कह लो।
आचाय: तब समझ जगी है। इनटेलीजे स शाइ स रएली इन लव *(समझ ेम म चमकती है)*।
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: ेम म चमकती है?
: तो या एक समझदार मन अपने आप को इस तरह से बबाद होने दे गा? क हालत ख़राब है, फ़र भी मज़े आ रहे ह।
आचाय: तुमने पूछा भी तो या। समझदार मन होता है या? जब मन बबाद हो जाता है तभी तो समझ जगती है।
आचाय: ये मामला ही ऐसा है जो बबाद के बाद आबाद होता है। इसी लए तो इतने कम लोग को यार पता चल पाता है।
इसी लए तुम हम ये सेशन कर रहे ह। नह तो या ज़ रत है?
यहाँ पर तो पहले बबाद ही होती है। जो बबाद होने को तैयार नह ह, उसका यार से या लेना दे ना? फ़ालतू। तुम जाओ, घर
बसाओ अपना। यहाँ तो बबाद पहले ही आएगी और ऐसे कहोगे, “यार बबाद हो गया, बड़ा मज़ा आ रहा है।” और ये नह
क झूठ ही झूठ कह रहे हो। सही म बबाद ही हो गए।
आँख रो भी रही ह गी क मेरी आँख के सामने सब जा रहा है, और पीछे जाकर थोड़ा हँस कर भी आ जाते ह गे क मज़ा
बड़ा आ रहा है। तब समझना क बात बनी। दोन चीज़ एक साथ ह गी। कह ख़ूब जमकर आग भी लगेगी, और कह उतनी
बा रश भी होगी। तब समझना यार है।
अगर सफ़ सु वधा है, तो यार नह है। ये कु छ और ही चल रहा है। जहाँ ब त सुकून हो, जहाँ ब त आसान हो मामला – “म
प त ँ, तू प नी है। मुझे रोज़ घर आना है, तु ह रोज़ खाना बनना है,” वह यार हो ही नह सकता। सीधी-सी बात है – जहाँ
इतना सुकून है वह यार कै से हो गया।
(उ र दे श, 2013)
ेम नभाने से क ठन और या?
आ ग आं च सहना सुगम, सुगम खडग क धार। नेह नबाहन एक रस, महा क ठन योहार।।
~ संत कबीर
आचाय शांत: "आ ग आं च सहना सुगम, सुगम खडग क धार। नेह नबाहन एक रस, महा क ठन योहार।"
: चल पाना उस पर।
‘ नभाना’, और साथ म लखा है, ‘एक रस’। ‘ नभाने’ से या अथ होता है? जब आप कहते हो, “ नभा रहा ँ”, तो उसम
या आ जाता है?
‘ नभाने’ मया आ जाता है? एक तो ये है क अभी तुमसे ेम है, और इसको हमने अनुभव कया है ब त बार क - झलक
मली। और एक ये है क नभा रहे ह।
: समपण, एक नरंतरता।
: समयातीत।
ख़ुद को ही जो दख रहा था, उस पर चल नह पाए। वयं ही जो समझा था, उसको, जी नह पाए। ये है – न नभाना।
समझना तो होता है व मान म, अभी, डू बकर के । ‘ नभाने’ का अथ ही है क – अब या आ गया? समय आ गया, संसार
आ गया, नया भर के भाव आ गए। “उन भाव क मौजूदगी म भी हम वही रहगे, जो उस ेम के ण म थे,” ये अ त
ह है। इसी लए कबीर कह रहे ह, “महा क ठन योहार”- ये बड़ा मु कल है। इस कमरे म आप जो हो, आधे घंटे बाद भी
यही रह लो, ये महा क ठन है, महा क ठन है। और ये आपने अनुभव कया है।
आप जब तक यहाँ बैठे हो, आप कु छ और हो, और एक-दो घंटे बाद आप कु छ और हो। नभा नह पा रहे - बेवफ़ाई है। प त
के सामने कु छ और ह, और र हो जाते ही कु छ और ह – ‘बेवफ़ाई’ इसी को कहते ह। एकरसता नह है। या कहते ह
कबीर?
हमारी ासद ये है क सबकु छ जानते-बूझते भी, हम ठोकर खाते रहते ह। आप य द अंधे होते, और ठोकर खा-खा के गरते
होते, तो कोई बड़ी बात नह । हमारी ासद ये है क हम अंधे ह नह । आँख ह, और दखता भी है क हमारे रा ते गड़बड़ ह।
पर उसके बाद भी उ ह पर चले जाते ह, गरते रहते ह, ल लुहान ह।
नभा नह रहे ह।
कर नह सकते, य क जो दख गया है, उसको अनदे खा कै से करोगे? पर को शश हमारी पूरी यही है, क जो दख भी गया
है, उसे पूरी तरह अ वीकार कर दो। स य स मुख खड़ा है, पर उसक ओर पीठ कर दो।
नभा नह रहे ह।
.........
(अ ै त बोध ल, 2014)
तुम सब जवानी म ही एक गाँठ बाँधकर बैठ गए हो, वो ये है क - जीवन एक सं ाम है। तुमसे कह दया गया है क तुम यु
भू म म पैदा ए हो और चार तरफ़ बम-गोले बरस रहे ह, गो लयाँ चल रही ह, भाले ह, खून क न दयाँ ह, और तु ह इन
सबका सामना करना है।
भाषा दे खो न कै सी रहती है—‘जीवन का सामना करो’। अरे जीवन या कोई खुंखार जानवर है? करना नह पड़ता है, तुम
उसको ऐसा बना दे ते हो, जैसे क कोई साधारण-सी चीज़ हो और तुम उस पर दो स ग लगा दो, उसके दांत उगा दो और फर
कहो, “अरे डर गया।”
जैसे इस कमरे म एक द वार है, तुम जाओ और इस पर एक भूत क त वीर बनाओ और फ़र उसको दे खकर ख़ुद ही डर
जाओ, रोना शु कर दो क त वीर कतनी भयानक है।
ज़दगी भयानक है या तुमने बनाई है? ये बात हम भूल चुके ह क ज़दगी को भयानक हमने ही बना लया है, उसम कु छ है ही
नह भयानक। बड़े-बड़े आते ह और नसीहत दे ते ह क भ व य बड़ा चुनौ तपूण है और तु ह उन सभी चुनौ तय का सामना
करना पड़ेगा और तुम कहते हो, “वाह! ये हमारा शुभ चतक है, ये चाहता है क हम तर क कर,” और तुम नह दे ख रहे हो
वो तु हारे दमाग म ज़हर भर रहा है।
आचाय: या ेरणा है? “अब म ज़दगी का सामना क ँ गा।” बं क़ लाए ह, और चला रहे ह हवा म। उ साह बढ़ गया, तो
कु छ तो करना पड़ेगा। कभी दे खना अपने आप को जब उ साह बढ़ता है तो या करते हो। जीवन कह से यु - भू म नह है
पर बात-बात म तुमको नसीहत यही द गयी है क ख़तरा ब त है, बचकर रहना।
आचाय: फूँ क-फूँ क कर क़दम रखना, घर से बाहर मत नकलना। नतीजा ये आ है क क़दम तो कह नह रखे जाते, पर
फूँ क ब त है जीवन म। तुम सब भ व य क तैयारी म जुटे ए हो।
एक बात बताओ, अगर भ व य म ख़तरा न होता तो या तैयारी म जुटते? तुम सब भ व य से आशं कत हो, तु हारे मन म ये
बात डाल द गयी है क भ व य मतलब ख़तरा और अपने आप को तैयार करो ता क उस ख़तरे का सामना कर सको। तुम
ख़तरा न बोलो, उसे चुनौती बोल लो।
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आचाय: बात एक ही है। लगातार तैयारी म जुटे ए हो, “खतरा! कु छ आ रहा है,” और अगर तुम लड़क हो तब तो पूछो मत।
घर से बाहर मत नकलना ल कड़ब घा, गीदड़ पता नह या- या घूम रहा है। और जो भी घूम रहा है वो रात को सात बजे
के बाद यादा घूमता है।
फ़र दे खो वो लड़क ऐसी सहमी-सहमी दखाई दे गी। माँ ने पछले प ीस साल से यही बोला है क एक ल कड़ब घा
आएगा और उठाकर ले जाएगा। और तुम कहते हो क इस लड़क क बड़ी-बड़ी आँख ह। तुम समझ नह रहे हो क वो सफ़
डरी ई आँख ह।
ग बर को भी पता था क जब यहाँ से पचास कोस र कोई रोता है, तो माँ कहती है, “सो जा नह तो…”
:ग बर आ जाएगा।
आचाय: और नया क हर माँ ने यही काम कया है। तु हारे मन म ग बर का डर भरा है। माता को ग बर से वशेष
आकषण है। ख़ुद तो आस रहती ही ह और ब े के मन म भी डर ज़ र भरगी क कु छ गड़बड़ ज़ र है। और उसको नाम
दे दया जाता है ‘ ेम’ का। इतना यार है क हम तु हारी परवाह है।
यार म तुम कसी के मन म डर भरते हो या? ये उ टा ग णत कसको बता रहे हो? ये या फ़ज़ूल क बात है? तुम जससे
ेम करते हो उसका भला चाहते हो, उसको मु दे ते हो। तुम उसको डर नह दे ते।
ये सारी मनी जानबूझ कर नह क जा रही है, बात बस इतनी-सी ही है क जो लोग तु हारी ज़दगी म मौजूद ह वो बेचारे
ख़ुद भी नह जानते। ऐसा नह है क वो जानबूझ कर नुक़सान प ँचा रहे ह। वो ख़ुद नासमझ ह, उ ह ने ख़ुद जीवन भर सफ़
पीड़ा झेली है, वो ख़ुद डरे सहमे रहे ह, और वही डर तुमको वरासत म दे रहे ह।
ये जो हमारी पूरी श ा व ा है, ये कर या रही है? ये लगातार भ व य क तैयारी ही तो कर रही है। वो इसके अलावा
और कु छ जानते ही नह । ये व ा लगातार तुमको बाहर क चीज़ क जानकारी दे रही है।
: या वो समझना ही नह चाहते।
आचाय: हम जसको इ ज़त बोलते ह वो डर के अलावा और या है? तुम जस भी चीज़ को ‘इ ज़त’ बोलते हो, वो डर के
अलावा और या है? वरना ेम काफ़ है। तु ह कसी क इ ज़त य करनी है? ेम काफ़ नह है या? ेम से हट कर
इ ज़त या होती है? तुम सर झुका दो, सुबह-शाम णाम करो, ये इ ज़त है? ये या चल रहा है?
जो असली चीज़ होती है, जो क ह दो व लोग के संबंध क बु नयाद हो सकती है, वो है ेम।
ेम क कोई बात नह करेगा, और वो नह भी हो तो कोई फ़क नह पड़ता। हम कोई अंतर नह पड़ता क तुम हमसे यार
करते हो क नह , हमारी इ ज़त ज़ र करना। यार कब का ख़ म हो गया कोई फ़क नह पड़ता, इ ज़त ख़ म क तो तु हे
मार डालगे। बात यही है क नह ?
: ब कु ल सर।
आचाय: यार कब का ख़ म हो चुका है, पर इ ज़त होनी चा हए। और तु ह ऐसे ब त लोग मलगे। “हम बुरा ही नह लगता,
हम इतने सु त हो गए ह क हम ये अंतर ही नह पड़ता क ेम है या नह , पर अहंकार इतना बड़ा है क इस बात से ब त
फक पड़ता है क …”
:इ ज़त है क नह ।
आचाय: इ ज़त है क नह ।
जो असली आदमी होगा वो रो पड़ेगा अगर ेम नह पाएगा। जो नकली आदमी होता है उसे सफ इ ज़त चा हए। असली
आदमी इ ज़त क परवाह नह करेगा। वो कहेगा क इ ज़त दो कौड़ी क चीज़ होती है, इसम रखा या है। जो असली ाण
ह, जीवन को वो मलना चा हए।
हम उसक तो कभी बात ही नह करते। इ ज़त हमने यारी चीज़ बना द है और यार पर हज़ार तरह क बं दश लगा द ह।
तुम दे ख रहे हो अपनी पागल नया को? तु ह सबसे यादा रोका उसी पल जाएगा, जस पल तुम ऐसा कु छ पाओगे जहाँ
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वा तव म ेम है। तुम क़दम यार क दशा म बढ़ाओ, फ़र दे खो क नया या करती है।
हाँ, इ ज़त क दशा म कदम बढ़ाओ फ़र दे खो नया या करती है। “इ ज़तदार भ व य! हम फ है अपने ब े पर, अपने
छा पर, या अपने भाई पर, हम नाज़ है।”
: हम यार नह है।
ये सारी बात, जो पूरी कं डश नग(सं कार) ई है, उसका नतीज़ा ह। यह सब मन म भर दया गया है। ब ा नह पैदा होते ही
कहता है क मेरी इ ज़त करो। वो तो म त नाचता है। और न वो कसी क इ ज़त करता है। इ ज़त क परवाह नह करता
वो। तुम कु छ भी हो उसे फ़क नह पड़ता।
तु ह इ ज़तदार होना है। ब त लोग यह बात बड़े अ धकार से कहते ह क—‘शम-हया बेचकर खा गया, बड़ा अ ा कया’।
पर म ये जानने के लए उ सुक ँ क—शम और हया को ख़रीदा कसने? फ़र इसी पल के साथ मन म एक भाव पैदा होता
है, ला न का।
शम हमेशा सफ़ सर के सामने ही नह आती, अपने सामने भी आती है। दे खा है? तुम अपनी आँख म गर जाते हो, और
तुम कहते हो, “ये मेरी अंतरा मा है।” ये अंतरा मा वगैरह कु छ नह है, ये वही ो ा मग ही चल रही है।
तु हारी ऐसे ो ा मग कर द गयी है क तु ह बता दया गया है क कब अ ा अनुभव करना है और कब ख़राब। उसको तुम
से फ- र े ट (आ म-स मान) भी बोलते हो। तुम जो ख़ुशी अनुभव करते हो, कहते हो क आज मुझे ब त अ ा लग रहा
है, म अपनी नज़र म उठ गया ँ, वो तुम अपनी नज़र म नह उठे हो, ये वही ो ाम चल रहा है।
तु हारी नज़र तो अभी खुली ही नह है, तो अपनी नज़र म उठने या गरने का ही पैदा नह होता। अभी तो ो ाम ही चल
रहा है, उसने तुमको बता रखा है क अ दर ‘अ’ जाएगा तो अ ा लगेगा, अ दर ‘ब’ जाएगा तो रोना शु , अ दर ‘स’ जाए
तो आ मह या, और तुम उसी पर चलते हो। प का पता है क—‘ये घटना हो जाएगी तो म ये कर डालूँगा।’
: पहले से?
आचाय: पूव योजना। या सभी कु छ पूव नयो जत है? कु छ ऐसा भी है जो पूव नयो जत न हो? या यह भी पूव नयो जत है
क एक दन इस कमरे म बैठकर इस तरह बोलोगे और करोगे?
: नह ।
आचाय: तो ये बात कहाँ से आ रही है? जहाँ से भी आ रही है, वो ोत बड़ा क मती है, उसको पकड़ो। वो या है जो योजना
के बाहर है? वो या है जो ो ा मग के बाहर है? उसको जानो तब कु छ मज़ा आएगा।
.......
(उ र दे श, 2013)
अपणे संग रलाँई पआरे, अपणे संग रलाँई। पहलां ने ं लगाया सी त, आपे चाँई चाँई; म पाया ए या तुध लाया, आपणी तोड़
नभा ।
बु ले शाह
आचाय शांत: बु ले शाह ाथना कर रहे ह क नभाना’। “अपणे संग रलाँई यारे, अपणे संग रलाँई”- नभाना।
ऋचा पूछ रही ह, “बात थोड़ी वपरीत लग रही है, परम से य कहा जा रहा है क तुम नभाना? उसके नभाने म शक है
या? कहना तो यह चा हए था क म नभाता र ँ। तो ये बात कु छ वपरीत लग रही है क बु ले शाह ाथना कर रहे ह क
—‘ भु तुम नभाना’। बु ले शाह य कह रहे ह ऐसा?”
जो आपने बात कही, सुनने म यारी है, पर दे खये क अहंकार के रा ते कतने सू म होते ह। कबीर कहते ह न, “मन को
मरतक दे ख के , म त माने व ाश” अहंकार जब लू होता है, तो कहता है, “ य नभाऊँ म कसी से, और नभाने क
आव यकता या है?
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,
जो है मेरे सामने है और उसको परखने के लए जानने के लए मेरे पास बु , है। कोई वादा नह , कोई नभाने क बात नह ,
कोई सुर त नह , कोई यान नह , कोई न ा नह , कोई आ ा नह , कोई समपण नह , ज़ रत या है नभाने क ?”
,
यहाँ से बात आगे बढ़ती है तो कुछ राज़ खुलते ह। मन को यह होता है क नभाना तो पड़ेगा य क तु हारी बु
नाकाफ़ है , य क तुम मूख हो। तुम नह नभाओगे तो तु हारा काम नह चलेगा बड़ा , ःख पाओगे।
“मन को मृतक जान के, मत क जै ब बास ”—बात कुछ खुली? मन पहले या कहता था ? “म नह नभाऊँगा। ” मन अब
या कहता है ? “म नभाऊँगा। ” बु लेशाह इस लए कह रहे ह —“तुम नभाओ। ”
“म पहले बोध-स ,
म नह जाता था अब लगातार जाता ,
ँ बना नागे के जाता । !
ँ अरे म सुधर गया ,ँ म बेहतर हो गया
” कुछ-कुछ बात
ँ। दख रही है ? और फ़र एक सरा भी होता है जो कहता है , , “बुलाया जाता है तो चले जाते ह।”
वो कहता है , “हम नह जानते क कुछ करना है। हम तो बस इतनी ाथना कर सकते ह क जब तु ह उ चत लगे बुला लेना।
, ,
हम तो बस मौन होकर खड़े हो जाएँगे बुलाना हो तो बुलाना ना बुलाना हो तो ना बुलाना। हाँ हमसे कोई बाधा ना पाओगे। ,
,
हम खाली रहगे हम उपल ,
रहगे हमसे गूँज उठेगी। ”
,
कभी खाली भवन म जाकर दे खना वहाँ गूँज उठती है , य क वो खाली होते ह। ‘गूँज’ का अथ जानते हो? जो तुमने कहा,
ठ क वही ,
आ वही वापस आया। तुमने कहा , “आओ”, तो ‘आओ’ ही वापस आया। हम खाली थे, हम उपल थे सुनने के
,
य द आने का फैसला मने कया है तो मने अपने पास यह अ धकार अभी सुर त रखा है क कसी दन कह ँ , “अब नह
आऊँगा। ” य द म ‘आने वाला’ ,ँ तो ‘न आने वाला’ भी हो सकता ँ। म ही तो बैठकर तय करता ँ न क आज आना है तो ,
म ही बैठकर ये भी तय कर सकता ँ क —आज नह आना है।
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बु लेशाह ठ गनी को ठगना जानते ह। वो मन के इन पुराने दाँव-पच म फँ सने वाल म नह ह। तो वो ये कहगे ही नह , ‘ भु
तुझसे ीत म नभा रहा ँ’। वो कह रहे ह, “तू नभा, तू। तुझ पर छोड़ा, और तुझ पर छोड़ना ही मेरा नभाना है, इसके
अ त र कोई नभाना होता नह ।” बात क सू मता को पक ड़ये।
जीव का नभाना, नभाना नह है। उसका नभाना है, अपनी ओर से न नभाना – “नह , म नह नभा रहा, तू नभा। अपनी
ओर से जो म कर सकता था, वो मने सब तुझ पर छोड़ दया, यही मेरा नभाना है। हमारा तु हारा जो वादा आ था, उस वादे
म जो करना है वो तु ह करना है, और जो कु छ नह करना है वो हम करना है। हमारा तु हारा अनुबधं ही यही है।”
कृ ण कहते ह गीता म, “एकमा कता म ।ँ अजुन, तेरा-मेरा र ता ही यही है क म क ँ गा। तीत भले हो क तू कर रहा
है। हाँ ठ क, बाण तेरे गा डीव से चलगे, शरीर तेरा ग त करेगा, पर चलाने वाला म ँ।” और जो जानते ह, वो अ े से जानते
ह क बाण अजुन ने नह कृ ण ने ही चलाये थे। धनुष रहा होगा अजुन का, कला रही होगी अजुन क , कौशल रहा होगा
अजुन का, और शरीर रहा होगा अजुन का, पर चलाने वाले तो कृ ण ही थे। बाण खाने वाले भी कृ ण ही थे। चला भी रहे थे,
खा भी रहे थे।
कु े हो या मथुरा-वृदं ावन हो, दोन जगह कोई अलग-अलग घटना थोड़ी ही घट रही है। जो लीला वो गो पय के साथ कर
रहे थे, वही लीला तो कु े म भी हो रही थी न। हाँ, वहाँ ऐसा लगता था क रास है, और यहाँ ऐसा लगता था क यु है। हो
या रहा था? हो कु छ नह रहा था, दोन जगह कृ ण का नृ य था।
तो बु लेशाह नह फँ सने वाले क – ‘हम नभाएँगे’। उ ह ने कहा, “हम समझ गए ह। तु हारा हमारा र ता या है, वो हम
समझ गए ह। तु हारा हमारा र ता वही है—तुम पया हो और हम पया क यारी ह। जो करोगे, सब कु छ तुम करोगे।”
“जो करोगे वो तुम करोगे, हम कु छ नह करना है।” या आशय है इस बात का क – ‘जो करोगे सो तुम करोगे, हम कु छ नह
करना है’? अथ या आ? बात सम झयेगा। ‘जो करोगे सो तुम करोगे’—ये बड़ा वधायक वा य है। ‘ वधायक’ माने कसी
बात को ज़ोर दे कर कहा जा रहा है, पु क जा रही है, पॉ ज़ टव टेटमट। ‘हम कु छ नह करना है’—ये पूरे तरीके से
नषेधा मक वा य है, नेगे टव टेटमट। और जीवन यही है, इन दोन को एकसाथ लेकर चलना।
‘जो करोगे सो तुम करोगे’—ये है गहरे से गहरा समपण। ‘हम कु छ नह करना है’—ये गहरे से गहरा वरोध है।
शरीर के तल पर, मन के तल पर, जीना ही ऐसे है क संसार हावी न हो जाए, य क संसार य द हावी हो गया तो संसार के
त मा हसा रहेगी। जो तुम पर हावी होता है, तुम उसके मन हो जाते हो। होते हो या नह ? तो संसार का गहरा वरोध
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करना ज़ री है, ता क संसार से मनी न हो जाए और तुम संसार से ेम म जी सको। इस बात को समझना, भूल हो जाएगी
अगर यान नह दया।
म कहता ँ—संसार का वरोध करो, करो, करो और ज़ र करो, जान चली जाए तो भी करो।
कबीर कहते ह-
और कबीर ये भी कहते ह, “फु लवा भार न ले सकै ,” क ज़रा हमारे ऊपर भार अगर डालोगे तो अभी टूट जाएँगे, अभी मुरझा
जाएँग,े जयगे नह । हम बंधक बनाने क को शश ना करना।
तुम पैदा होते हो तो पहले ही ण से संसार तु हारे साथ या कर रहा होता है? वो तु ह सं का रत करने के , नयो जत करने के
य न म लग जाता है। संसार का वरोध करो ता क संसार तुम पर हावी न हो जाए। य द हावी हो गया, तो तुम उसके श ु हो
जाओगे।
गौर से परखो इस बात को क ऐसा ही है या नह । नया म जो भी कोई है, वो या संसार का श ु ही नह है? हम सब नया
को कै से दे खते ह? क नया हमारी बैरी है। ऐसे ही दे खते ह ना? तभी तो लगातार अपनी सुर ा क को शश म लगे रहते ह।
अगर नया को हम बैरी क तरह ना दे ख रहे होते, तो हम इतनी द वार य खड़ी करते?
आप तपल अपनी सुर ा क चता म जीते हो। इसका अथ या है? आपने संसार को या बना रखा है? मन बना रखा
है। और संसार को मन आपने बना ही इस लए रखा है य क पहले आपने संसार को अपने ऊपर हावी होने दया। जो
आपके ऊपर हावी होगा वो आपका मन हो जाएगा। अब आप अपनी सुर ा करोगे और उससे कभी ेम म नह जी
सकोगे।
म कहता ँ क संसार का वरोध करो ता क तुम संसार म ेम म जी सको। जो संसार का वरोध नह करेगा, वो कभी संसार
से ेम नह कर सकता।
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हर ब े को व ोही होना चा हए और हर जवान के भीतर आग जलनी चा हए क – ‘नह वीका ँ गा, गहरा वरोध है। नह
वीका ँ गा।’
और नह वीकारने म भूलना नह , हसा नह है, ेम है। जब भी कोई तुम पर यह आरोप लगाए या तु हारे ही मन के कसी
कोने से यह शंका उठे क – ‘ या म नया का मन ?ँ ’, तो याद रखना क तुम नया के मन नह हो, तुम तो नया से
ेम म ही जीना चाहते हो, और जतना गहरा तु हारा ेम होगा उतना ही गहरा तु हारा वरोध होगा।
ये सारी मा यताएँ, ये ढर, ये जीने के तरीके , ये तु हारे आसपास के लोग, म कहता ँ, म ब कु ल कहता ँ क जान दे कर भी
इनका वरोध करो। और म ये इस लए कहता ँ य क म चाहता ँ क तु हारा इनसे ेम रहे। जब म कहता ँ क तु हारे
प रवार म जो कु छ हो रहा है उसका वरोध करो, तो म ये ब कु ल भी नह कह रहा ँ या चाह रहा ँ क तु हारा प रवार टूट
जाए। म चाहता ँ क तु हारे र ते ेमपूण र ते रह, म चाहता ँ क तु हारे र ते व र ते रह।
तुम झूठ बोलते हो जब तुम कहते हो हमारे घर म वैसे तो ब त ेम था, पर इन स या हय ने आग लगा द है। ेम था ही
नह । शरीर और शरीर के म य थोड़ी ही ेम होता है क मयाँ-बीवी घर म रह रहे ह तो उससे ेम हो जाएगा। शरीर कोई ेम
जानता है? तु हारे हाथ म ेम बैठा है? तु हारा पेट ेम जानता है? तु हारी नाक़ और तु हारे घुटने क ह ी, यहाँ से ेम होगा?
या तु हारी आँत म ेम बसता है?
ेम का घर तो आ मा है।
आ मा को तुमने कभी जाना नह तो ेम कहाँ से आएगा? पर तुम इस भा य को कभी वीकार नह करोगे क हमारे घर म,
प रवार म, समाज म, पूरे व म ेम कह है ही नह । ेम आएगा कहाँ से? ेम तो आ या मकता का फू ल है।
आ या मकता नह है तो ेम कै सा? तो गहरा वरोध करो, ेम क ख़ा तर लड़ो।
“लड़ रहा ँ तुझसे य क आ शक़ ँ तेरा। तुझसे ेम न करता होता तो इतनी ऊजा कहाँ से आती मुझम क तुझसे लड़
जाऊँ । जान दए दे रहा ँ य क ेम करता ँ तुझसे, और तेरी भी जान ले लूँगा य क ेम करता ँ तुझसे।”
ये कु छ ख़ास तरह का ेम है। ये वो ेम नह है क तुम मेरे मुँह पर मलाई मलो और म तु हारे मुँह पर म खन। ये वो नह है
क आओ, आओ अ -अ बात कर और मीठा-मीठा करके सो जाएँ। ये तो वो ेम है जो ल क धार से स चा जाता है।
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तो गहरा वरोध होना चा हए, गहरा वरोध। और उस गहरे वरोध के लए आ मा म गहरा समपण ज़ री है, य क वो ऊजा
तु हारी अपनी नह हो सकती।
तु हारी ऊजा उठती है तु हारे तक से, और तु हारे तक ज द हार जाएँगे। तुम कोई भी तक दो, तक पर आधा रत तुम जतनी
लड़ाईयाँ लड़ोगे, ज द ही पाओगे क अब उनम ऊजा नह बची है। तुम थक जाओगे, तुम हार जाओगे, तु ह हारना पड़ेगा।
वो ऊजा तो सफ़ गहरे समपण से उठ सकती है।
सु दर से सु दर छ व संत क वो रही है जसम संत के एक हाथ म धम- होता है, सरे हाथ म तलवार होती है। और दोन
एक सरे के प रपूरक ह। धम- के बना तलवार चल नह पाएगी—थक जाएगी, डर जाएगी, हार जाएगी, या फर
आततायी हो जाएगी, हसक हो जाएगी। और तलवार के बना जो धम है, वो पाख ड है।
जस धम म वरोध के लए जगह नह है और जस धम से तु हारे भीतर से गहरे से गहरा वरोध नह उठता, वो धम झूठा है।
तुम कहोगे, “ वरोध ज़ री य है? समायो जत हो कर भी तो रह सकते ह?”, तो तुमने ज़रा यान नह दया। तुम समझ ही
नह रहे हो क संसार क कृ त या है। संसार क कृ त ही है तु ह सं का रत करना। तु ह वरोध करना ही पड़ेगा, वरोध
के अ त र कोई रा ता नह है।
तुमम से जो लोग ये सोचते ह क – ‘नह -नह , नह -नह , संसार से सु दर, सुमधुर, औपचा रक र ते बनाकर भी तो रखा जा
सकता है,’ वो झूठ बोलते ह। उ ह पता ही नह है। संसार से कोई सुमधुर र ता नह हो सकता। संसार सफ़ सबको गुलाम
बनाना जानता है।
संसार का अथ ही है, ढर, और ढर मा ये चाहते ह क तुम उनपर ही चलो, उनसे हटो नह । संसार का अथ है ढर, और ढर
का अथ होता है – ‘हम पर चलो, हमसे हटना नह । हमसे अगर हटे, तो हम तु ह अपराधी घो षत कर दगे’।
तो व ोह तो करना ही पड़ेगा न!
दो-तीन बात कह रहा ।ँ ये व ोह श ुता या हसा नह है, ये व ोह ेम क कं ार है। जसके त व ोह कर रहे हो, उसके
तुम मन नह हो। उसी का गहरा ेम तु ह ऊजा दे रहा है। और ये बात घो षत करते ए लजाना नह क – “तुझसे यार
करता ँ इस लए ही तेरे वरोध म खड़ा ँ। तुझसे कु छ कम यार करता होता, तो कब का तुझे वीकार कर लया होता। य द
मेरे यार म ज़रा भी अपूणता होती, तो म य इतनी जान जलाता? म कहता, ‘ठ क है जैसा चल रहा है वैसा चलने दो ना।
या फ़क पड़ता है?’”
“तो तुझे येम ना रह जाए क मेरे दल म तेरे लए जगह नह । दल साफ़ है, दल धड़कता है, स य के लए, ेम के लए ही
धड़कता है, इस लए हाथ म तलवार है”—ये होता है अकता का भाव।
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“जो करेगा तू करेगा”—ये है समपण।
“हम कुछ नह करना है ”—ये है वरोध , य क संसार लगातार तुमसे करवाना चाहता है।
‘ वरोध’ का अथ यह नह है क कुछ नया करके दखाएँगे। ‘ वरोध’ का अथ बस इतना ही है क – ‘वो नह करगे जो तुम
को दे द है। तु हारी आ ा ,
का पालन नह करगे यही वरोध है। ’
‘ वरोध’ का अथ समझ रहे हो ना? “तेरी कैसे मान लूँ? मुझे जसक माननी है वो कोई और है ”—ये वरोध है। “सम पत ँ
कसी और को। ” इसी को कबीर कहते ह—सती होने का भाव। यही कबीर क सती है – ‘मेरा प त कोई और है, तेरी कैसे
मान लूँ ? तू जब भी सामने आएगा, तेरा तो वरोध ही क ँ गी। ’
‘सती’ से अथ सम झयेगा। कसी औरत को सती नह कह रहे ह कबीर। और कबीर ने सती को लेकर के खूब बात करी है।
‘सती’ मन क वो अव ा है जसम मन सम पत है मा -
उस परम प त को। और मन कह रहा है , “ना कसी और के लए
आप कहगे , “ वरोध य ? उसे छोड़ा भी तो जा सकता है, उसे नज़रंदाज़ भी तो कया जा सकता है। ” ब कुल कर ली जये ,
पर यही तो वरोध हो जाएगा। इसी का नाम तो ‘ वरोध’ है।
कबीर कह रहे थे न -
स ,
न जन वही है ढाल सरीखा होय । ,
ःख म आगे रहे सुख म पाछे होय।।
हटगे ’—यही वरोध है। अपनी जगह खड़े रहने के लए ही तलवार चा हए कुछ हा सल करने के लए नह । ,
,
संत म और लुटेरे म यही अंतर होता है लुटेरा तलवार उठाता है कह प ँचने के लए और संत तलवार उठाता है अपनी जगह
,
खड़े रहने के लए अपने क पर आसीत् रहने के लए।
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तलवार दोन ही उठाते ह।
‘हम कु छ चा हए नह नया से, हम बस ये चाहते ह क हम जैसे ह वैसा हम रहने दो। हमारा व ोह बस इस ख़ा तर है’—
और वही असली व ोह है। तु हारी नह सुन सकते। बात महीन है, यान से नह सुनोगे तो अथ का अनथ कर बैठोगे। और
अथ का अनथ खूब आ है, इस लए तो अब धम के नाम पर इतनी लड़ाईयाँ चल रही ह, जनका धम से कोई लेना-दे ना नह
है। और इस लए वहाँ लड़ाईयाँ नह हो रही ह जहाँ हो जानी चा हए थ ।
जहाँ लड़ाईय का कोई योजन नह , वहाँ रोज़ लड़ाईयाँ हो रह ह। और जहाँ इसी ण व ोह हो जाना चा हए, वहाँ सब मुद
बैठे ए ह, वो व ोह जानते नह ।
लड़ाईयाँ कहाँ चल रही ह? लड़ाईयाँ चल रही ह इराक़ म और सी रया म। कोई योजन नह , थ। और लड़ाईयाँ कहाँ होनी
चा हए थ ? लड़ाई होनी चा हए एक-एक द तर म, लड़ाई होनी चा हए इन सारे भरे बाज़ार म, यहाँ व ोह क आग उठनी
चा हए।
व ोह करना चा हए हर ख़रीददार को जसे लुभाया जा रहा है। व ोह करना चा हए हर उस सामा य गृह को जसे धके ल
दया गया है च क म। वहाँ व ोह का कोई ल ण नह । वहाँ हम ऐसे जीते ह क हम तो ब कु ल समु चत प से
समायो जत ह, वैल-एडज टेड।
लड़ाईयाँ चल कहाँ रही ह? अंतरा ीय सीमा पर, जहाँ लड़ाईय का कोई अथ नह । एक दे श का सै नक सरे दे श के
सै नक को मार रहा है, और दोन एक सरे को जानते नह । कस बात पर मार दया? पता नह । और जहाँ अभी इसी समय
यलगार हो जानी चा हए, वहाँ लोग मुद पड़े ह।
बेटा बाप से सवाल नह कर रहा है क तुम ये कै सी ज़दगी जी रहे हो। बाप बेटे को आईना दखाने को तैयार नह है। वहाँ
कोई व ोह है ही नह । सड़क पर व ोह होना चा हए, हमारे महानगर म व ोह होने चा हए।
और म समझता ँ इन सबसे यादा बड़ा व ोह होना चा हए हमारे व ालय म क- ‘तुम ये या कर रहे हो? मेरे मन म ये
कै से सं कार भरे रहे हो?’ पर वहाँ कोई व ोह नह है।
तो मूखता और कै सी होती है? जहाँ लड़ने क कोई ज़ रत नह , वहाँ लड़ रहे हो। और जहाँ ाण दे कर लड़ जाना चा हए,
वहाँ तुम ज़ंजीर पहने बैठे ए हो।
.........
(लखनऊ, 2014)
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ेम बेगार नह है
कता: सर, अगर म कसी के साथ कोई स ब या दो ती रखूँ, तो या हर बात को पूरा करने क ज़ मेदारी मेरी ही बनती
है या उसम सरे क भी कु छ सहभा गता होनी चा हए?
आचाय शांत: दे खो, सामने वाले को पूरा समझा जाता है, पूरा जाना जाता है। ठ क है? जब जानते हो, समझते हो क
मामला या है, उसके बाद तुम शत नह रखते। यह नह कहते हो, “म इतना कर रहा ,ँ तुझे भी इतना करना है।” तुम अपनी
ओर से पूरा करते हो य क वो पूरा करने म तु ह ख़ुद ही मज़ा आ रहा है। तुम यह उसक ख़ा तर भी नह कर रहे हो।
तुम इस लए नह कर रहे हो क तु हारा दा य व है दो ती म कसी क मदद करना। तुम यह कर रहे हो य क तु हारी अपनी
मौज है।
दे ने म मेरा अपना आनंद है। अगर म तुझे कु छ दे ता भी ँ, तो उसम मज़ा मेरा ही है।”
ले कन ये जो दे ना है न, यह बेहोशी म न हो। इस लए मने पहली बात यही कही थी क समझा जाता है। ‘ दया जाता’ तो
गुलामी म भी है, गुलाम भी दे ता है। ‘बेगार’ जानते हो या होती है? ‘बेगार’ श द सुना है?
: हाँ, सर।
आचाय: ‘बेगार’ का अथ होता है - अपना म दए जाना, और उसके बदले म एक पैसा भी नह मलना! यह बेगार होती है।
ेम म भी दया जाता है, और बेगार म भी दया जाता है पर ेम बेगार नह है! दया दोन म जाता है, और बना कु छ मले
दया जाता है। ेम म भी दया जाता है।
कु छ नह मला ऐसा।
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बेगार म भी यही होता है। “मने दनभर तेरे लए काम कया, प र तोड़े, महनत क , मज री क । बदले म मुझे या मला?
कु छ नह !”
ेम और समझ दो अलग-अलग चीज़ नह हो सकत । और जहाँ ेम म समझ नह है, वो फर अंधापन है। वो होगा कोई
आकषण, होगी कोई मजबूरी, उसे आप ेम कह भी नह सकते! तो करो, अपनी ओर से पूरा दो।
मु म दे ना कहलाता है, ‘समपण’, और मजबूरी म दे ना कहलाता है, ‘बंधन’। एक, एक कार का स संग है, नज़द क है,
अपनापन है। और सरा बला कार जैसी घटना है! जैसे मजबूर हो बस! ठ क है?
..........
(उ र दे श, 2014)
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ेम और ववाह
कता: ेम या है और उसका शाद से या स ब है?
ये सबसे नचले तल का ेम है। ये इतना नचला है क इसको ‘ ेम’ कहना भी उ चत नह होगा, पर चलो कहे दे ते ह य क
हम अ सर ‘ ेम’ श द का योग यहाँ भी कर जाते ह। हम कह दे ते ह क—‘मुझे अपनी बाइक से यार है’। वो सफ़ एक
आकषण है, पर हम कह दे ते ह क मुझे अपनी बाइक से यार है।
तो ये पयोग ही है उस श द का, पर चलो, ठ क। तुम करते हो, कोई बात नह । ये सबसे नचले तल का ेम है, इसम कोई
समझ नह है। तुम ब कु ल नह जानते या हो रहा है, ब कु ल बेहोशी है। उससे थोड़ा-सा ऊपर एक सरा ेम होता है
जसम तु ह झलक तो मलती है—समझ क भी, जानने क भी, असली अपनेपन क भी, जसम तुम व तु म भी व तु के
पार कु छ दे खते हो, जसम तुम म भी के पार कु छ और दे खते हो, पर बस झलक मलती है।
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जो सबसे नचले तल का ेम होता है, वो शोषण भर होता है। कु छ तु हारा फ़ायदा हो रहा होता है, इस लए आकषण है।
बाइक से उसी दन तक आक षत हो जस दन तक वो अ दखती है और अ चलती है। वही बाइक अभी कू ड़ा बन
जाए तो तु ह आकषण नह रहेगा। वही मोबाइल जस दन काम करना बंद कर दे ता है, जस दन उसक उपयो गता नह
रहती है। तुम उसे फक दे ते हो, बेच दे ते हो या दे ही दे ते हो कसी को। वो सबसे नचला तल था।
आदमी कभी-कभी उससे ऊपर उठता है, जहाँ पर वो ये कहना शु करता है, “मुझे उपयो गता नह दे खनी, मुझे शोषण नह
करना। म अपनी ख़ुशी नह चाह रहा ँ इस चीज़ से। बस है! यह जो कु छ है, बस म इससे एक ँ।”
तुम अपने मुनाफ़े के लए उसके पास चले गए हो। हो सकता है क तु हारे मन म तया ये ख़याल भी ना हो क मुनाफ़े के
लए जा रहा ँ, पर जा तुम मुनाफ़े के लए ही रहे हो।
मने कु छ दन पहले दे खा, एक लड़का ट -शट पहन कर घूम रहा था, जस पर लखा था, ”माई डैड इस एन एट ऍम।” अब
उससे पूछो, तो वो कहेगा क ये तो मज़ाक है, ये बस यूँ ही लखा आ है। पर ये मज़ाक है नह । और म उसी लड़के क बात
नह कर रहा ँ। हम सबक ज़ द गय म ये मज़ाक है नह ।
हमारे सारे स ब लाभ पर आधा रत ह। कभी-कभी वो लाभ पार रक होता है, वो ापार होता है। तु ह उससे लाभ है,
उसे तुमसे लाभ है, पर वो ेम है नह ।
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वो तो ापार हो गया ना? म तु ह कु छ दे रहा ँ, तुम मुझे कु छ दे रहे हो, ापार हो गया ना? तो जहाँ पर आपको पता होता
है क मुनाफ़े के लए जा रहे हो, तो तुम कह भी दे ते हो। अ सर हमारे स ब होते फ़ायदे के लए ही ह, पर हम पता नह
होता। ये म कह रहा ँ, ये सबसे नचले तल का है। जहाँ पर बस एक खचाव है।
उससे ऊपर के तल क बात शु क थी। मने कहा इस ेम म झलक तो मलती है, कसी ब त गहरी चीज़ क , कु छ ऐसी
चीज़ क जो बड़ा सुकून दे जाती है, पर वो झलक बड़ी अ ायी होती है- ली टग( णक) , टे ररी*(अ ायी)*। और जब
वो झलक चली जाती है, तो हम डर जाते ह क वो झलक कह छन ना जाए।
पहले तल म तो डर भी नह होता, जैसे मने कहा था क लोहा चु बक क तरफ़ आक षत हो रहा है, उसम डर भी नह है।
कु छ नह है, बस एक मुदा-सी या है, उसम कु छ नह है। तुम बाइक क तरफ़ जा रहे हो, तुमने कभी जानने क को शश
भी नह क है क बाइक य यारी है। दावा बस है क बाइक अ लगती है।
कई लोग होते ह जनके साथ रहो तो बड़ी कसमसाहट महसूस होती है। लगता है भागो, मु मले कसी तरीके से। और
कोई ऐसा भी हो सकता है, म ये नह कह रहा ँ क अगर लड़क है तो लड़के का ही साथ होगा, या लड़का है तो लड़क का
ही साथ होगा, वो कोई भी हो सकता है। वो माँ-बाप भी हो सकते ह, वो अपना गु हो सकता है, वो कोई कताब भी हो
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सकती है, पर बात इतनी है क जब उसके साथ होते हो, तो अपने पास आ जाते हो। पर वो अपने पास का होना ले कन,
जैसा मने कहा - णभंगुर होता है, टे ररी।
होता बड़ा यारा है। वो कु छ ण, जब तुम उस कताब के साथ हो, या उस के साथ हो, इतने मीठे होते ह, इतने सुकून
के होते ह, जो तु ह कह और अ यथा मलता नह है। तो वाभा वक-सी बात है क मन कहता है क इन ण को बाँध के
रख लूँ। ये कह जाने ना पाएँ।
मन डर जाता है। मन कहता है, “ये जो सुकून मला था, ये इस क उप त म ही मला था, म इस उप त को
प का बना लूँ। या कर लू?ँ प का द वार म कै द कर के रख लूँ।” ऐसी ब त सारी द वार होती है। ये जतने हमारे र ते-नाते
होते ह, वो एक तरीके क द वार ह।
कु छ मल गया है, वो छू ट ना जाए, उसको प का कर ँ। ववाह के मूल म एक डर बैठा आ है। या डर? कु छ छू ट ना जाए।
तो कसम खाते ह, आग के चार ओर फे रे लेकर के क—‘म तु हे नह छोडू गँ ा और तुम मुझे नह छोड़ोगे’। अगर डर ना हो तो
इन कसम क कोई ज़ रत नह है।
तो आ इतना ही है क कु छ ब त वशेष है जसक अनुभू त है, ले कन उसक अनुभू त सरे पर नभर है। उस ‘ सरे’ को
तुम बाँध लेना चाहते हो। अब उसक अनुभू त अपनी नह है। तुम कहते हो, “जब तू सामने होता है, तो सुकून होता है, नह
तो फर से बेचैनी।”
तो ये जो सुकून है, ये नभर करने लग गया है कसी और पर। तो अब तु हारे लए ज़ री हो गया है उसको बाँध लेना। ले कन
इस बाँध लेने म तुम ये ख़याल नह करते हो क उसका या होगा। तुम वाथ हो गए हो, तु ह अपने सुकून क चता है
—“मेरा सुकून बना रहे।”
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“ये च ड़या मुझे पस द है, म इसे पजरे म कै द कर लूँगा। इसम म ये नह दे ख रहा क च ड़या का या हो रहा है। हाँ, म उसे
दाना ँगा, उसे पानी ँगा, उसक सुर ा क ँ गा। हो सकता है क म पजरा सोने का बनवा ँ। हो सकता है क म च ड़या के
गले म हीर का हार डाल ँ।” पर जो भी कया है, कै द करके तो रख ही लया है च ड़या को, कै द तो उसको कर ही लया
है।”
तो ववाह एक बड़ी ही अजीब-सी चीज़ है - मूल म उसके ेम है, पर अ भ डर क है। मूल म तो ेम है, तु ह कु छ दखा
है ऐसा जसको तुम खोना नह चाहते, ले कन वो अ भ डर क ही है य क तु ह डर है क खो सकता है।
अगर पूरा-पूरा पा लया होता, तो ये डर नह होता क खो जाएगा। आधा-अधूरा सा पाया है, एक झलक भर है।
इन दोन के ऊपर एक तीसरा तल भी होता है जहाँ पर अब तुम कसी और पर नभर नह हो उस चैन के लए, उस सुकून के
लए, उस अपनेपन के लए। वो अब पूरे तरीके से तु हारा हो चुका है। अब उसके लए कसी और क उप त क
आव यकता नह है।
इतना तु हारा हो चुका है क प र तय पर नभर नह है। प र तयाँ कोई भी रह, तुम मज़े मे रहते हो। और इतने मज़े म
रहते हो क वो मज़ा फू टता है, और सर को भी मलता है। तुम भखारी नह हो, याचक नह हो। तुम कहने नह जा रहे क
थोड़ा-सा यार दे दो। तुम भरे ए हो, अपने आप म ही पूरे हो।
तु ह बार-बार पोज़ नह करना पड़ रहा क—“आओगी मेरे साथ? अ ा थोड़ा-सा आ जाओ, एक घ टा।”
(सभी हँसते ह)
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“इतना-सा तो देदो” - ये अब भखारी होना बंद आ, ब कु ल बंद आ। और जो हमारा साधारण ेम है, वो भीख से ब त
आगे कु छ नह होता। तुम दे खो ना कस- कस तरीके से भीख मांगी जाती है।
“जान दे ँगी।”
(हँसी)
“हमने तु
ह बीस साल पाला-पोसा, इतना बड़ा कया, फ स द , इतना सब कया तु हारे लए, तुम कु छ वसूली नह दोगे
वापस?” ये सब भीख ही माँगी जा रही है।
“तुम हमारा ज़रा भी एहसान नह मानते? हमने बड़ा यार कया, वो बेवफ़ा नकले,” ये सब ये ही बता रहा है क कटोरा
खाली है। कोई एक पया डाल दे , कोई दो पया डाल दे , बस इसी हसरत म ज़ दगी बीत रही है। कह से तो मल जाए।
दे खो ना तु हारे फ़ मी गाने कै से होते ह। यही तो होते ह, कोई तो मल जाए, कै सा भी चलेगा।
“नकली स का ही सही, डाल तो दो मेरे कटोरे म, फे सबुक पर लगा ँगा, उ ह थोड़े ही पता चलेगा क नकली है।” और कई
तो ऐसे होते ह क जनका दख भी रहा होता है नकली, फर भी लगा दगे। मॉल म जाएँगे, वहाँ वो मैनेक वन (पुतला) खड़ी
होती है, पुतले खड़े होते ह, कपड़े पहन कर। उनके गले म हाथ डालकर फोटो ख चगे।
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और फर जब भखारी होते हो तब वो सुना है ना—“बे गस कै ननोट बी चूसस।” जो भखारी है उसे तो जो मा लक बोलेगा वो
करना पड़ेगा। (गाते ए) “जो तुम को हो पस द वही बात कहगे, तुम दन को कहो रात तो रात कहगे,” अब मरो!
भीख माँगने गए हो तो ये थोड़े ही कहोगे क हम राजा ह। यही कहोगे क आप का भला हो, फलो-फू लो, आप महान हो,
आपक शकल पर लखा है क आप को कसी तरह थोड़ा-ही मल जाए।
ये तीसरे कार के ेम म नह होता य क उसम तुम भखारी नह होते। वहाँ तु ह कसी को बाँध के रखने क चाहत भी नह
बची है। तुम कहते हो क हम पूरे ह, अब हम बादशाह हो गए।
पहले पायदान पर हो, सोए ए- बेहोश, प र। सरे पायदान पर हो, भखारी- डरा आ, लालची। तीसरे पायदान पर हो,
जगे ए- अपनेआप म स ूण।
पहले पर भी नह आएगा। लोहा और चु बक एक सरे क तरफ़ आक षत होते रहते ह, नह सोचते ववाह क , उ ह कोई
फ़क नह पड़ता। और तीसरे तल पर भी नह आता, य क ज़ रत ही नह है—“ बन फे रे, हम तेरे। शाद कसे करनी है?
ज़ रत या है? कसको स ट फके ट दे ना है, कसको दखाना है, कसक अनुम त चा हए? समाज से डरता कौन है? नह
चाहता तु ह बाँधकर रखना और ना तुमसे बँध जाना चाहता ।ँ ”
हर ेम कहानी, तुमने कभी दे खा है, शाद के आगे भी? अब ख़ म, गयी। अब तुम प त और प नी हो, और ये एक मुदा
स ब है। प त को पता है क प नी के साथ या और प नी को पता है क प त के साथ या। अब वो तो एक बंधी-बंधाई
बात है, नया म सभी ऐसा कर रहे ह, तो बस उसी तरीके से अपना जीवन-यापन करो। बात तयशुदा है।
अब उसम कु छ नया नह है। कु छ नया नह है। अब एक बंधन भर है। अब तुम को पता है यही है, यह लौट के आना है,
अपनी मज़ से नह लौट रहे हो रोज़। ेम के कारण नह लौट रहे हो रोज़। इस लए लौट रहे हो य क प त हो, और प त को
लौटना ही पड़ेगा। क़ानून क बा यता है, समाज क बा यता है। प त को लौटना ही पड़ेगा। ेम के कारण नह लौट रहे हो।
ववाह करते तो हम इसी लए ह ता क ेम बचा रहे, ले कन उसका वपरीत हो जाता है।
जैसे लगा लो क कोई हवा को मु म कै द करने क को शश करे। तो जैसे ही हवा को मु म कै द करना चाहा, हवा कहाँ
गयी?(हाथ से इशारा करते ह) वो गयी बाहर।
ेम ऐसी-सी ही चीज़ है। जहाँ तुमने उसको बंधन म डालना चाहा वो वैसे ही गायब हो जाती है। वो बड़ी मु च ड़या है, खुले
आकाश म ही उड़ती है। ज़रा-सा उसे बंधन दोगे वो ख़ म हो जाएगी। जैसे धूप - धूप को पकड़ना चाहोगे, नह पकड़ पाओगे
य क जहाँ तुमने धूप को पकड़ने के लए कु छ भी कया, छाया आ जाएगी।
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हाँ, उस धूप म नहा सकते हो। पर उसे पकड़ने क को शश मत करना। जतना आनंद बहाना है, बहा लो, पर कै द करने क
को शश मत करना। जहाँ कै द करने क को शश क , वो फसल जाएगी।
तो मूल म तो यही है क पा लू,ँ कु छ ऐसा पा लूँ जो कभी जाए ना - इसी कारण लोग ववाह करते ह। इतना यारा कु छ मल
गया है क वो जीवन से अब कभी वदा ना हो। इसी लए ववाह करते ह, पर भूल हो जाती है, य क जैसे ही तुमने उसको
एक नाम दया और जैसे ही ये कह रहा ँ वैसे ही कु छ पं याँ याद आ गय ह।
हमने दे खी है उन आँख क महकती ख़ुशबू, हाथ से छू के उसे र त का इ ज़ाम ना दो। सफ़ एहसास है ये ह से महसूस
करो, यार को यार ही रहने दो कोई नाम ना दो।
जस दन कोई नाम दे दया, उस दन बस नाम बचता है, यार नह बचता। और हम नाम दे ने को बड़े आतुर रहते ह। आप
ज़ दगी को बहने नह दे ना चाहते। आप यार को यार नह रहने दे ना चाहते, आपको उसको बाँधना ज़ री है, एक नाम दे ना
ज़ री है। और जहाँ ये करोगे, वहाँ फँ सोगे। व ास नह है ना मन म क जो मल गया है, वो बचा रहेगा।
हम कहते ह, “मुझे कु छ करना चा हए।” और या करना चा हए? शाद कर लेनी चा हए। “कु छ मल गया है धोखे से, अब म
उसको पकड़ लूँ।” व ास नह है। मत रखो व ास, डरे ए हो, डरे रहो। डर के कु छ पाओगे नह । डर के ेम तो न त प
से नह पाओगे। स व ही नह है।
और तुम डर-डर के ही शाद करना चाहते हो। तु हारी बात नह , पूरी नया क यही बात है। चार महीने बीतगे नह और वो
लड़क च लाना शु कर दे गी क शाद कब होगी। और तुम बोल के दखाओ क ऐसा तो मेरा कोई इरादा नह है। वो
कहेगी, “मुझे करै टरलैस(च र हीन) समझ रखा है। “ फर कस नाते ये सब चल रहा है?” ऍफ़. आई. आर. और हो जाएगी।
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तुम बोल के दखाओ—“ यार को यार ही रहने दो कोई नाम ना दो।” कहेगी क सारे नाम चा हए, मुझे तु हारा नाम भी
चा हए, अपना नाम भी बदलना है।
नाराज़ मत हो, बात सफ़ लड़ कय क नह है, सबक यही है। “ये तो बताओ क तुम मेरे कौन हो?” अरे य जानना है?
व रहो, आज़ाद रहो, और ा रखो मन म क बना तु हारे कये भी तु ह ब त कु छ मलता रहेगा। आज तक भी जो
मला है, वो तु हारे कये नह मला है।
जो तु हारे लए सबसे अमू य है, जीवन भी, वो भी तु ह, तु हारे कम से नह मला है, बस मल गया है। ये हवा, ये पानी, ये
धूप, ये सब कु छ कर-कर के नह मले ह। ये बस मल गए ह। ये मले ही ए ह।
तीसरा पायदान, याद रखना, भले ही अभी तु हारे लए वो शा दक ही है, भले ही अभी बस वो एक स ांत ही है, ले कन
भूलना नह , वहाँ पर तुम कसी पर आ त नह हो। तुम ये नह कह रहे क कोई और मलेगा तो जीवन म बहार आएगी। तुम
कह रहे हो, “जीवन मेरा अपने आप म पूण है। म अके ला ँ और बड़ी मौज म ँ। अके ले होने का मतलब ये नह है क म
कसी से बातचीत नह करता, मेरे स ब नह है। म अके ला ,ँ इसी कारण मेरे बड़े अ े स ब ह। म आ म नभर ँ।”
गुलाम कोई स ब बना सकता है या कसी से? जो मु होता है, उसी के तो स ब भी ह गे ना।
“मेरे स
ब ह, और मेरे स ब मेरी माल कयत से नकलते ह, मेरे आज़ाद होने से नकलते ह। म आज़ाद ँ इसी कारण मेरे
स ब ह।” उसको जानो फ़र ब त मज़ा आएगा।
............
(उ र दे श, 2013)
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ेम थम या यान
आचाय शांत: ऐसा कै से हो गया क हर गोपी को लग रहा है क कृ ण मेरे ही पास ह?
ऐसा कै से हो गया?
हम जस ै त क नया म जीते ह, यहाँ हमारा हर संबंध कसी सरे संबंध क क मत पर होता है। माँ से संबंध ब त अ े
हो गए, तो बीवी से संबधं ख़राब होने का ख़तरा है। बीवी के ब त नकट आ गए तो माँ का ठना न त है। दो त के साथ
यादा समय गुज़ार दया तो प रवार से र हो जाओगे। बॉस क ब त सुन ली तो पता से अनबन हो जाएगी, और पता के
कहने म आ गए तो बॉस कहेगा क मुझे अपना समय दो।
“मुझे अपना समय दो,” समय तो सी मत है, एक के साथ गुज़रेगा तो सरे के साथ नह गुज़रेगा।
हमारा हर संबधं सरे कसी संबधं क क मत पर होता है, सभी संबधं जीत-हार वाले संबंध ह।
तु हारे करीब आऊँ गा तो न त ही कसी से र जाना पड़ेगा”- ये हमारे संबंध ह। और हमारे संबंध इस लए ऐसे ह य क
उनम पूणता नह है। हमारे संबंध इस लए ऐसे ह य क वो इसी बनाह पर नापे जाते ह क तुम सर से र कतने हो।
इस बात को सम झएगा।
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आपके जो क़रीबी ह, आपको ब त अ ा लगता है क वो आपके क़रीबी ह, य क वो आपके क़रीब ह - सर क अपे ा।
आपका क़रीबी आपके उतने ही करीब रहे, पर कह सर के यादा क़रीब न आ जाए। और अगर आ गया तो आपका
क़रीबी, क़रीबी नह रह जाएगा।
जनको आप अपना क़रीबी बोलते हो क ये हमारे दो त ह, संबंधी ह, प त या प नी ह, उनका आपसे वही संबंध रहे जो है,
पर अगर कसी सरे से गाढ़ संबधं हो जाए, तो आपका उनसे संबंध ख़राब हो जाएगा। समझ म आ रही है बात?
हमारे संबधं तुलना मक ह। आप मेरे कतने नकट ह, सरे क नकटता के सापे । “तुम मेरे तभी क़रीब हो जब मेरे तु हारे
बीच का फ़ासला अगर दो इकाई का है, तो बाक़ सबसे तु हारा फ़ासला कम से कम पाँच इकाई का होना चा हए। मेरा तु हारा
फ़ासला तो दो ही इकाई का है, पर तुम कसी और के इतने करीब आ गए क बस एक इकाई र हो, तो मेरा-तु हारा संबंध
टूटा।” ये बात आप समझ रहे ह?
: सर से र हो जाओ।
आचाय: क सर से र हो।
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नया क सारी ई या इसी बात पर टक ई है। “तुम मेरे क़रीब हो मुझे इससे फ़क नह पड़ता, पर कसी और के क़रीब मत
आना।”
आप समझाते हार जाएँगे। आप कहगे, “मेरे तु हारे ेम पर कोई आँच नह आई है, म तु हारे लए अभी भी वही ँ जो कल
था।” वो कहेगा, “फ़क ही नह पड़ता। तुम कसी और के क़रीब कै से हो गए?” इसका अथ यही है क वो र ता बड़ा मुदा है,
उस र ते म ‘अपना’ कु छ नह है। उस र ते म सफ़ एक तुलना मकता है - एक नापने का भाव है।
आपको इससे अंतर ही नह पड़ रहा क आपके पास कौन है, या ये क हये क आप ‘पास’ श द का अथ ही नह जानते।
आप बस नापना जानते हो। नकटता कसको कहते ह ये आपने कभी चखा ही नह है, य क जसने नकटता चख ली
उसके बाद उसे फ़क ही नह पड़ेगा। म यहाँ तक दावा करने को तैयार ँ क जस दल म ई या है, उस दल ने ेम को कभी
जाना ही नह है।
कृ ण का सभी गो पय के साथ एक-साथ होना, हर गोपी का ये अनुभव करना क ये कृ ण मेरे ह, एक छोट -सी बात बताता
है क कृ ण जसके भी साथ होते थे, पूरे होते थे। कृ ण जसके भी साथ होते थे, पूरे होते थे। और ये होकर रहेगा।
कृ त म अ यमन कता नह होती। ‘अ यमन कता’ समझते ह? आप यहाँ ह, मन कह और है- इसको कहते ह
‘अ यमन कता’। कृ त म ये होती ही नह , ये सफ़ इंसान म होती है क आप यहाँ ह और मन कह और। “बैठा तो तेरे बगल
म ,ँ मन कह और है।”
कृ त पूरी तरह ‘होना’ जानती है। जानवर अगर खाना खाता है तो म आपको आ त करता ँ क अगर वो तनाव म है, तो
खाएगा नह । पर अगर वो खा रहा है, तो बस खा रहा है। जब वो उस त म होगा क उसका मन वच लत है, उसके ऊपर
कोई ख़तरा है, तो वो खाएगा ही नह । वो मना करhttps://www.The-Gyan.in
दे गा खाने से।
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जनके पास कोई पालतू जानवर है वो ऐसा योग करके दे ख ल। आप जानवर को तनाव म रखो और फ़र उसके सामने
खाना रख दो, वो खाएगा नह । पर जब वो खाएगा, तब सफ़ खाएगा। तब वो वचार नह कर रहा होगा क कु छ गड़बड तो
नह है। अगर गड़बड़ है तो खाना खाएगा ही नह । गड़बड़ का वचार करेगा तो सफ़ गड़बड़ का ही वचार करेगा। कृ त ै त
नह जानती क शरीर कह , मन कह । कृ त यह नह जानती।यह ै त आदमी जानता है।
आचाय: ब कु ल।
जसको आप ‘स यता’ बोलते हो, वो ब त सीमा तक ाचार है। और इसी लये म कृ ण को पूरी तरह अस य कह रहा ।ँ
म जानवर कह रहा ँ कृ ण को। कृ ण अस य ह। समझ रहे ह बात को?
जहाँ वा तव म ेम होता है, वहाँ फर आपको कोई अंतर नह पड़ता क वो और कस- कस के साथ है, आप बस ये दे खते
हो क मेरे साथ है या नह ।
गो पय के लए इतना ही काफ़ है क—“कृ ण मेरे साथ ह, पूरी तरह ह, अब कोई अंतर नह पड़ रहा क सरी वाली के
साथ ह या नह , चलो दे ख कर आएँ। अरे इतना दे खने क फ़सत कसको है? मेरे पास ह, मेरे साथ ह, ब त है। इतना है क
संभाला नह जा रहा।”
पर जस मन ने ेम न जाना हो, वो लगातार ई या म उलझा रहेगा। वो ये तो नह दे खेगा क मेरी ज़दगी कतनी सूनी है,
उसको इस बात से यादा अंतर पड़ेगा क सरे के यहाँ या चल रहा है, सरे क ज़दगी म या हो रहा है।
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वो कहेगा, “मेरी ज़दगी म आग लगती हो, तो हो। मुझे ेम मले न मले, तुझे नह मलना चा हए। मेरा जीवन ेम से खाली
रहा है, तो रहा है, कसी और को ेम न मल जाए।” उसका यान अपने ऊपर नह होगा। इस लए एक बात यान से
सम झयेगा-
आप ेमपूण हो सक, आपका जीवन ेमपूण हो सके , उसके लए यान परम आव यक है। जहाँ यान नह है, वहाँ ेम नह
होगा, य क यान का अथ है- अपने आप को दे खना। यान का अथ है - सबसे पहले अपने आप को दे खना। यही है यान
- अपनी ज़दगी को दे खना।
जसके पास यान है वही ये दे ख पाएगा क मेरा या हो रहा है, मेरे जीवन म ेम है या नह । जसके पास यान नह है,
उसका मन लगातार इधर-उधर उलझा रहेगा, पूरी नया म उलझा रहेगा। उसको ये पता भी नह चलेगा क सर से ई या
करते-करते, उसका अपना जीवन कतना सूना हो गया है। सर से ई या नकालते- नकालते, सर से मनी नकालते-
नकालते, उसका अपना जीवन कै सा बंजर हो गया है, उसे इसका पता भी नह चलेगा, य क उसके जीवन म यान नह है।
वो अपनी ही ज़दगी को नह दे ख पा रहा है।
आपम से जो भी ेमपूण जीवन जीने क इ ा रखते ह , वो ेम भूल जाएँ, यान पर आएँ। ेम को ब कु ल भूल जाएँ। ेम
क तलाश बंद कर, यान पर आएँ। जीवन को दे खना शु कर।
: नह , अपना।
आचाय: अपना।
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जहाँ यान है, वहाँ ेम उतरेगा, प का उतरेगा। और यान के बना अगर ेम आ गया, तो बचो। जन लोग के जीवन म
अक मात ेम आ जाता है, यान के बना, वहाँ तो बड़ी हलचल उठती ह, बड़ी बदबू उठती है, बदबू के धमाके होते ह।
य क आपको कु छ ऐसा मल गया है जो आपसे संभाला ही नह जा रहा। आपको कु छ ऐसा मल गया है जसको संभाल
पाने क आप म क़ा ब लयत ही नह है।
ेम को तो यानी ही संभाल सकता है, वरना आपको अगर ेम मल भी जाएगा, तो आपसे संभलेगा ही नह । कु छ दन पास
रहेगा, फ़र आपसे छन जाएगा। आपक लॉटरी लग तो जाएगी, पर आप पाओगे क आपके पास टक नह ।
मला तो था, पर छन गया। य छन गया? य क तु हारे जीवन म यान क बड़ी कमी थी। तुम कभी दे ख ही नह पाए क
तुम कर या रहे हो। अपने जीवन को दे ख पाने क ताक़त तुमम कभी थी ही नह , इस लए मला भी, तो भी छन गया - ये
होगा ही।
जो लोग आपके संपक म ह, वहाँ पर भी यही यान द जए क या ये आदमी यानी है। अगर तो यानी है, तो ही ेम का
पा हो सकता है। जस के जीवन म यान न हो, उससे ेम का संबधं बनाएँगे तो आप भी क म पड़गे, और उसको
भी क म डालगे।
सफ़ एक कृ ण म ही ेम क क़ा ब लयत है।
.........
(अ ै त बोध ल, 2013)
कता: एक तरफ़ तो स मुख होने को मह व दया जाता है, सरी तरफ़ यह भी कहा जाता है क नकटता ‘जानने’ म बाधा
है। ऐसा य ?
आचाय शांत: सरे श द म, सवाल यह है क एक तरफ़ तो ये कहा जाता है क बना करीब आए जान नह पाओगे। सरी
तरफ़ ये भी कहा जाता है क ये नकटता ही जानने से रोकती है।
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कौन है? कसको करीब आना है? कस तल पर बात क जा रही है? अब अपने आसपास के लोग को दे खये, उनक
नकटता को दे खये, तो सम झये क आमतौर पर हमारे लए नकटता का या अथ होता है। दो लोग जो आपको ब त
आसपास दख, जो बड़े करीबी ह एक- सरे के , तो वहाँ पर या घटना घट रही होती है? या आपको ही कसी व तु से
नज़द क ब त पसंद है, तो वहाँ पर या घटना घट रही होती है? या तो शरीर से शरीर का आकषण है, या कोई मान सक
अनुराग है।
यही तो है न नकटता से आपका आशय? जब आप कहते हो क आप कसी के नकट हो, तो यही आपका नकटता से
आशय होता है? ये नकटता है ही नह ।
संसार के नयम स य पर लागू नह होते। जब कहा जाता है क – क़रीब आओ तो ही जान पाओगे—तो ‘इस’ क़रीब आने क
बात नह क जा रही है। अथ का अनथ मत कर ली जएगा। क़रीब वही आ सकता है जसम क़रीब आने का साम य है। शरीर
म क़रीब आने का साम य है ही नह । तुम कसी के शरीर के कतने भी क़रीब चले जाओ, यह नकटता नह है।
तुम क़रीब जाते ही इसी लए हो ता क तुम उसके शरीर को भोग सको। भोग तुम तभी सकते हो जब तु हारा शरीर भी कायम
रहे। अलग रहना ज़ री है। तो नकटता कहाँ बनी? तु हारी तथाक थत नकटता, री के बना चल ही नह सकती।
ठ क इसी तरीके से जब तुम कसी का ख़याल करते हो, कसी के बारे म सोचते हो, तो कसी के बारे म सोचने के लए
तु हारा ‘तुम’ होना बड़ा आव यक है। तु हारी पहचान का कायम रहना आव यक है। जो वचार करता है, उसका बना रहना
ब त आव यक है। य द वही नह रहा, तो तुम वचार कै से करोगे?
जब तुम कहते हो, “म फलाने का वचार कर रहा ँ, उसक याद म डू बा आ ँ,” तो तुम हो जो याद कर रहा है, और कोई
और है जो उस याद का वषय है। ये दो ह, और अलग-अलग ह, पृथक ह। ये पृथकता कायम रहनी ज़ री है, नह तो तुम
ख़याल नह कर पाओगे।
तो नकटता कहाँ है, यहाँ तो अलगाव है, यहाँ तो री है। हाँ, ऊपर-ऊपर से दे खो तो यही लगेगा क बड़ी नज़द क है। ये तो
दन-रात ख़याल म डू बा रहता है। म तुमसे कह रहा ँ क तुम जसके वषय म खूब सोचते हो, तुम उससे ब त र होते हो।
री न होती तो सोच कै से पाते?
माया माया सब कह, माया लखै न कोय। जो मन से न ऊतरे, माया क हये सोय।।
माया का काम ही यही है क वो वचार पैदा करती है, मन को पाने के ख़याल से भर दे ती है, री का भाव पैदा करती है। जो
नकट है उसको र कर दे ती है।
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तो अ मत का सवाल है क एक तरफ़ तो स मुख होने को, नकटता को मह व दया जाता है, सरी ओर आप ये भी कहते ह
क नकटता जानने म बाधा है। म ये ब कु ल कहता ँ क नकटता जानने म बाधा है। शारी रक तल पर, वैचा रक तल पर
जब भी नकटता होगी, वो नकटता, नकटता होगी ही नह , वो बाधा होगी।
तो फर वा त वक नकटता या है? वा त वक नकटता है उसके नकट आ जाना, जहाँ पर नकटता संभव है। शरीर कै से
नकट आएगा? वो तो सीमाब है। ‘सीमा’ का मतलब समझते हो? ‘सीमा’ का मतलब है – ‘इसके आगे म नह , अब और
नकट नह आ पाऊँ गा।’ कतना नकट आ सकते हो? खाल से खाल रगड़ लोगे, और या कर लोगे? उससे यादा नकट आ
सकते हो? री तो रह ही जाएगी।
तुम हो!
म कहता ँ— नकट होकर ही जाना जा सकता है। म कहता ँ—अपने को हटाकर ही जाना जा सकता है। बात ब त सीधी है
– ‘तु हारे’ होते कु छ जाना नह जा सकता। ेम हो, चाहे नकटता हो, दोन से अ भ ाय एक ही होता है—अपने को हटाना।
और जब म कहता — ँ अपने को हटाना- तो उस सब को तु ह हटाना पड़ेगा जो रोके गा तु ह करीब जाने से, जो सीमा बन कर
खड़ा हो जाएगा, जसम क़ा ब लयत ही नह है करीब जाने क ।
शरीर सीमा बन कर खड़ा हो जाएगा, उसम क़ा ब लयत ही नह है। मन भी सीमा बन कर खड़ा हो जाएगा, उसम क़ा ब लयत
ही नह है। मन तो वचार म जीता है न? वचार कै से करीब जाएँगे? क़ा ब लयत ही नह है उनम, नकट जाना उनक कृ त
ही नह है।
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मन क , शरीर क नकट आने क कृ त ही नह है। वो तो बने ही अलगाव क आधार शला पर ह। तो नकट वही आएगा
जसम क़ा ब लयत हो पास जाने क , जसका वभाव हो पास आना। उसे ‘आ मा’ कहते ह। वहाँ ही और सफ़ वहाँ ही
संभावना है नकटता क । शारी रक तल पर तो जसके जतना नकट आओगे, अ सर वहाँ उतनी यादा री पाओगे।
कई बार कह चुका ँ क जनके साथ ज़दगी बताते हो, उ ह सबसे कम जान पाओगे य क वहाँ तो तु हारा र ता ही
सीमा का है। जहाँ र ता ही सीमा का है, वहाँ सीमा का अ त मण कै से होगा। र ता ही ऐसे बना है क म पु ष, तुम
ी।
‘पु ष’ या है? पु ष एक सीमा है, पु ष एक प रभाषा है, एक सीमा है। म मेरी सीमा, तुम तु हारी सीमा और दोन सीमाएँ
एक- सरे को सहारा दे ती ह। जैसे क एक सीमा-रेखा ख ची जाए तो उसके इस पार भी एक े होता है और उसके उस
पार भी एक े होता है, और चूँ क दो अलग-अलग े ह, वही सीमा को कायम रखते ह।
सो चये कोई ऐसी सीमा हो जसके उस पार कु छ हो ही न। ऐसी कोई सीमा हो सकती है? कु छ तो होगा उस पार। और जो
उस पार है वही सीमा को कायम रखता है। पु ष का होना ी के होने से कायम है। ी का होना पु ष के होने से कायम है।
और दोन का होना सदा अलग-अलग है। नकटता कै सी! कै सी नकटता? जस दन नकटता हो गयी उस दन पु ष बचेगा
कहाँ, उस दन ी बचेगी कहाँ।
हाँ, आकषण ख़ूब रहेगा, और वो आकषण सीमा के कारण होगा, और सीमा को और बल दे गा। य द र ता आकषण का है,
तो जब ी तु हारे सामने आएगी तो तुम और पु ष हो जाओगे, तु हारा सोया पु ष व जाग उठे गा।
और य द र ता आकषण का है, तो जब तु हारे सामने पु ष आएगा तो तुम और ी हो जाओगी। वैसे तुम भले भूली रहती
हो क म औरत ँ, पर जब पु ष सामने आएँगे तो तु ह अचानक याद आ जाएगा क तुम औरत हो। इससे यही पता चलता है
क गहरे दे ह-भाव म जी रहे हो। https://www.The-Gyan.in
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नकटता तब जा नये जब आप ‘आप’ न रह, उसके अ त र कोई नकटता नह है। बाक सब आकषण है, और आकषण
री पर ही पलता है। री न रही तो आकषण कै सा! आकषण सीमा के कारण होता है, और सीमा को ही पु ता करता
है। आकषण को नकटता मत मान लेना।
ेम म और आकषण म यही मूलभूत अंतर है। आकषण तु हारे होने को और पु ता करता है, और ेम तु ह गला दे ता है।
तुम जो कु छ भी हो आकषण उसको और मज़बूत करेगा। तुम पु ष हो तो और बड़े पु ष हो जाओ। तुम लालची हो तो तुम
और लालची हो जाओगे। तुम ानी हो तो तुम और ानी हो जाओगे।
अब जानने क बात पर आते ह। ये ‘जानना’ या है? एक जानना होता है मान सक तौर पर जानना, उसे ‘ ान’ कहते ह। उस
जानने म आप जो ह, बने रहते ह। और सामने कोई वषय होता है, जसके वषय म, जसके बारे म आपको जानकारी मल
जाती है। ये वो जानना है जसे हम साधारणतया ‘जानना’ कहते ह—ये ान है। ये ान कु छ नह है बस मन क वृ य का
ही कट करण है। इसम कु छ जाना-वाना नह गया है। वृ छु पी ई है, वो छु पी ई वृ जब कट हो जाती है तो आप उसे
‘ ान’ बोलना शु कर दे ते ह।
उदाहरण के लए, ये द वार है। इसम कु छ रंग है, इसका एक आकार है, ऊँ चाई है, चौड़ाई है। ये आपने जब तक दे खी नह है
तब तक आप कहगे आपको इसका ान नह है। जब दख जाएगी तो आप कहगे आपको इसका ान हो गया, आपको
इसक त का पता चल गया, प-रंग, आकार का पता चल गया। ले कन द वार का दखना और रंग का रंग के प म
भा सत होना, आपक अपनी वृ य पर है। उसमhttps://www.The-Gyan.in
कु छ नया नह है।
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द वार है भी, इसका माण सफ़ आपका मन है। आपक अपनी संरचना, आपका अपना म त क ऐसा है जो नया को
आयामी प म दे खता है—समय को दे खता है, ान को दे खता है और पदाथ को दे खता है। तो आपको—एक द वार है—
ऐसी ती त होती है। वो जो द वार है वो खड़ी ही आपने क है, इसी लए ये अ सर कह दया जाता है क संसार मन का ही
पे ण है। द वार मन ने ही खड़ी क है। ये जो रंग दखाई दे ते ह, ये आपके मन क ही कृ त ह। तो आप पहले तो द वार को
े पत कर, आप पहले रंग को रच, और फ़र कह क मने द वार दे खी, मने रंग दे खे। तो इस बात म कोई ख़ास वज़न नह
है।
जसे हम आमतौर पर ‘ ान’ कहते ह, वो कु छ नह है, वो हमारी ही वृ का कट करण है। उसम दो बात ह। पहली—हमारी
ही वृ हमारे सामने आती है। सरी—अलग-अलग होना ब त ज़ री है।
म द वार को दे ख पाऊँ इसके लए मेरा द वार से अलग होना ब त ज़ री है। द वार, द वार को नह दे ख सकती। तो जो ान
से जानना है उसम कभी नकटता हो नह सकती, उसम तो अलगाव ब त ज़ री है। और हमारा जो कु छ भी जानना है वो
ऐसा ही जानना है क आप जसको जानते हो उससे अलग खड़े हो और उसके वषय म जानकारी इक ा कर रहे हो। ये
हमारा जानना है, ये है ै त क नया म जानना।
एक सरा जानना भी होता है। उसम जाना जाता है होकर, मलकर, गलकर। ऐसे समझ ली जये क समु को जानना है तो
वो जान रहा है कनारे पर खड़ा होकर। और कोई सरा है जसे समु को जानना है तो वो जान रहा है गोता मारकर। गोता
मारना भी ब त समु चत उदाहरण नह है य क गोता मारने म भी आप भले ही समु के भीतर होते ह ले कन अपनी
सीमा के साथ होते ह। अपने आप को कायम रखते ह, शेष होते ह।
कनारे पर खड़ा होकर समु को नह जाना जाता, समु होकर समु को जाना जाता है।
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जब कबीर कहते ह ,
“ जन ढूँ ढा ,
तन पाइयाँ गहरे पानी पैठ
,
म बौरा डू बन डरा रहा कनारे बैठ ”
पाएँगे वा तव म कभी। जानने के लए वही होना पड़ेगा। र बैठकर तो आपको बस वो दखेगा जो आपका ,
ेपण है जैसे
द वार दखती है। र रहकर आपको बस वो दखेगा जो आपका ेपण है। मन से दे खोगे तो मन ही दखाई दे गा। ‘तुम’
दे खोगे तो बस नयाभर म अपनी ही छ व दे खोगे। अपने ही ारा े पत य दे खोगे और कुछ नह दे खोगे।
इसी लए जानने वाल ने फर अंततः कह दया है क ान फ़ज़ूल है , नरथक है य क ान म कुछ जाना तो गया ही नह
गया। ,
ान तो ऐसा ही है क तुम सपना दे खो। सपना भी दे खा जाता है न उससे तु ह कुछ पता चल जाता है या ? सम त
ान व वत है। कैसे ? सपना कसका ? तु हारा। सपना कसके मन से उपजा ? तु हारे मन से। सपने म ? जो भी कुछ
या है
, , ,
तु हारे पास था तु हारे अतीत म था तु हारे मन म सं चत था वही है सपने म। और सपने को दे खा भी कसने दावा कौन कर ,
रहा है क दे खा ? तुमने दे खा।
, ,
तो एक ओर तो तु ह लग रहा है क तुमने कुछ दे खा कुछ घट रहा है कोई घटना हो रही है तुम कुछ दे ख रहे हो। , सरी ओर
ये बात भी ब कुल सही है क कुछ नह दे ख रहे हो। जो दे ख रहे हो तु हारा ही पैदा कया आ है। जैसे कोई च कार कसी
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अरे! या दे खा? जो दे खा वो तु हारा अपना बनाया आ था, तु हारा अपना रचाया आ था। तुमने कु छ दे खा थोड़े ही।
ान ऐसा ही दे खना है। जो दे खते हो वो तु हारा ही फै लाव होता है। बोध बात सरी है, वो तु हारे ‘न होने’ म होता है। वो
तु हारी सीमा के टूटने पर होता है। सीमा का उपयोग करके कभी बोध नह हो पाएगा। शरीर का उपयोग करके कभी
कु छ नह जान पाओगे, य क शरीर सीमा है। मन का उपयोग करके भी कभी कु छ नह जान पाओगे, य क मन सीमा है।
सीमा का उपयोग करके कोई असीम हो सकता है?
शारी रक नकटता तो पूरा आयोजन है सदा र बने रहने का। मान सक वचारबाज़ी क – ‘चलो सोचगे हम तु हारे बारे म,
तुम हमारे बारे म सोचो, हम तु हारे बारे म सोच’—प का ब है सदा र बने रहने का। अगर आपने ज़रा भी यान से सुना
हो तो इस बात के नतीजे आपको हैरत म डालगे। आपने तो जससे भी ेम कया है उसका खूब ख़याल कया है, और उसी
को आप ‘ ेम’ कहते भी हो। दन-रात सोचते रहते हो। और हक क़त ये है क जतना सोच रहे हो उतना र हो।
आचाय: य क हम जससे जुड़े ए ह, हमने जसको अपनी पहचान बना रखा है, वो ान के अलावा और कु छ अब हण
करता ही नह । इंसान के अलावा कसी और को ान क ज़ रत नह है, य क इंसान के अलावा कसी और को ान से
आस नह है।
इस बात को समझो। तुम ान के अलावा और कु छ हण करते हो? तो ान म कोई ख़ा सयत नह , पर ान के अलावा कोई
रा ता नह । ये ऐसी-सी ही बात है क कसी ने आदत पाल ली हो नाक के मा यम से ही खाना खाने क । अब इसम कोई
सहजता नह है, ये वभाव नह है क नाक के मा यम से खाना खाया जा रहा है, पर उसने मुँह क कु छ ऐसी बीमारी लगा ली
है क मुँह के मा यम से अब खाना उसको आता ही नह । तो उसको एक अनैस गक, अ वाभा वक माग से ान दया जा रहा
है क—लो भई!
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तो तु ह ान ही दया जा सकता है क लो ान लो। ान के अलावा तु ह और कु छ लेना आता नह । हाँ, य द सौभा य है
तु हारा, तो वो ान तु ह ऐसे दया जाएगा क वो बाक सारे ान को मटा दे । तुमने जो आदत डाल रखी है ान के अलावा
कु छ और न हण करने क , वो इस आदत के ान को भी मटा दे ।
तुमने ब त सारा उ टा-सीधा खा रखा है। फर तु ह कु छ और भी खाने को दया जाता है, जो तुमने जो भी उ टा-सीधा खा
रखा है उसको तु हारे तं से नकाल दे ता है, गमन करा दे ता है। कु छ और खा ही रहे हो, पर ये जो खाना है, ये पछले खाने से
अलग था। कस मामले म अलग है? क पहले जो कु छ खाया वो तु हारे तं के भीतर जमकर बैठ गया, और अब जो खा रहे
हो ये सब पुरानी जमी ई गंदगी को बाहर कर दे गा—ये अंतर है।
खाया दोन ही चीज़ को जा रहा है। कचरा भी खाया जाता है और दवाई भी खायी जाती है। पर दवाई का काम ये है क जब
वो भीतर जाएगी तो ख़ुद तो भीतर के गी ही नह , जो पहले से भीतर का आ है उसको भी बाहर कर दे गी।
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दोन घटनाएँ साथ घटगी। तब तुम कसी को ऐसे नह दे खोगे क इसके बारे म जानकारी ले ल तो कु छ पता चले। फर
एक अलग ही तरीका होगा तु हारा नया को, लोग को, व तु को, घटना को दे खने का।
अभी तो ऐसे ही दे खते हो क कोई मलता है, तो पूछते हो अपने बारे म कु छ जानकारी द जये। तुम ान इक ा करते हो।
तुम ान इक ा ही इसी लए करते हो य क तुमने नया को दे खने का और कोई तरीका कभी जाना ही नह । तो साहब
आप कौन ह?—ये जानने के लए तुम पूछते हो—अपना नाम बताइए, अपनी उ बताइए, कहाँ से आ रहे ह, अपनी आ थक
त बताइए, अपनी रा ीयता बताइए—ये ही सब तमाम बात।
फ़र ऐसे नह मलोगे। फ़र मलने का तु हारा अंदाज़ बदलेगा य क अब ान से तु हारा यक न हट गया है, अब नकटता
हो सकती है। अब नकटता हो सकती है। तुम जससे मले और मलते ही तुमने उसके बारे म तमाम जानकारी इक ा कर ली,
उससे नकटता कै से होगी तु हारी! अब तो तुम जानकारी से खेल रहे हो। यान दो न, अगर जानकारी सरी होती तो तु हारी
सारी बात सरी हो जात ।
कभी गौर कया है, तु ह कसी के बारे म कु छ त य पता ह, कु छ जानकारी है, वो जानका रयाँ बदल जाएँ, तु हारा नज़ रया
बदल जाता है? कसी का नाम ही बदल जाए, तु हारा पूरा नज़ रया बदल जाएगा। ‘राम सह’ अगर ‘रहीम खान’ हो जाए,
वही , सब कु छ बदल जाएगा तु हारा। तु ह य द अपने बारे म ही कु छ नयी जानकारी मल जाए, तो तु हारा अपने साथ
ही संबंध बदल जाएगा। ‘म कौन ?ँ ’ इस का जवाब ही बदल जाएगा अगर तु ह तु हारे बारे म कोई पुराने द तावेज़ मल
जाएँ। सब उलट-पुलट हो जाना है।
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तुम जो हो, तु ह ये जानने के लए एक कागज़ के पुज क ज़ रत थी। जब पचा सामने आया तो पता चला क तुम कौन हो,
और उस आधार पर तुमने अपना नज़ रया बनाया। पर अपने साथ भी नकटता नह है न।
तु हारी पूरी नया बदल जाए, अगर आज तु ह पता चले क तु हारे नाम पर कोई वसीयत छोड़ गया है पाँच-दस करोड़ क ।
सब कु छ बदल जाएगा, कु छ भी शेष नह बचेगा। दो त-यार बदल जाएँगे, भ व य के य बदल जाएँगे, आ म-छ व बदल
जाएगी, े मका बदल जाएगी, सब बदल जाएगा। कपड़े और गाड़ी तो बदलगे ही बदलगे, वो तो कहने क ही बात नह । सब
बदल जाएगा, थोड़ी सी ख़बर कु छ आ जाए इधर से, उधर से। तो, ‘म कौन ?ँ ’ जो अपने आप को ख़बर के मा यम से
जानता है।
कोई बड़ी बात नह क हम सुबह-सुबह अखबार भी इसी लए पड़ते ह क पता चल जाए म कौन ँ। कह छोटा-मोटा, कोने-
कतरे हमारा भी कोई नामलेवा हो। और ये एक मनोवै ा नक त य है, आप अखबार म कु छ और नह ढूँ ढ रहे होते, आप
अपनी पहचान ढूँ ढ रहे होते ह। जन लोग को अखबार म या ट वी पर खबर दे खने क , समाचार दे खने क ब त आदत होती
है, आपको या लगता है वो कसका समाचार ढूँ ढ रहे ह? वो अपना समाचार ढूँ ढ रहे ह, अपने बारे म कु छ पता चल जाए—म
ँ कौन?
वो ान से पता चलेगा नह । तुम कतना दे खते रहो, तुम ज़दगी भर अखबार पढ़ते रहो और कताब पढ़ते रहो, कै से कु छ पता
चलेगा?
.........
(अ ै त बोध ल, 2014)
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इ क़ है बेपरवाही
आचाय शांत: ेम न य ही एक ऐसी अव ा है जसम कोई वधा नह है। तो अगर इस ण तुम पूरी तरह उसके साथ हो
जो म कह रहा ँ, गहरे यान म रहो, और बात को समझ रहे हो, तो इस ण तु हारे और मेरे बीच म यह एक ेम संग है।
हाँ, वाकई ऐसा है।
(एक ोता क ओर दे खते ए) अब नह है, ख़ म हो गया, य क तुम उसक तरफ़ मुड़ गए।
यह ेम है, यह तु हारी सारी प रभाषा के वपरीत है, यह तु हारी ेम क सारी तथाक थत मा यता के
वपरीत है।
ेम तु हारी एक आंत रक त है, जसम तुम आनं दत हो। म त, बेपरवाह, बे फ़ – बस वही ेम है। उसके लए ज़ री
नह है क कोई और भी हो सामने। ेम तु हारी आंत रक अव ा है–यही ेम है।
इस अव ा म तुम ‘ ेमपूण’ होते हो। इस अव ा म तुम सभी से ेम करोगे - एक ख़रगोश से, एक कु े से, अपनी कताब
से, अपने माँ-बाप से, अपने ेमी से। तुम पूरी कृ त से, पूरे अ त व से ेम करोगे, नद से, पहाड़ से, सब से, य क सर पर
कोई बोझ नह है। कु छ ग़लत नह हो रहा है, कोई परेशानी नह है।
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सरे श द म –
और जब तुम समझते हो, तब तु हारे और सरे के बीच म कोई हसा नह होती, कोई द वार नह होत , र ा नह
होती। और जब अपनी र ा क परवाह नह होती, तो वही ेम है – “म पूरी तरह से उपल ।ँ ”
जब म यहाँ आया मने तुम लोग से बात कही क मुँह पर हाथ मत रखो - यह अपनी र ा का तरीका है। ेम भे ता है।
भे ता होता है क – “म र ा मक नह ।ँ मुझे चोट भी प ँचाना चाहो तो प चँ ा सकते हो,” इसका नाम ‘ ेम’ है।
टक कभी दे खा है? उसका इतना मोटा (हाथ से इशारा करते ए) कवच होता है। शायद म कम बोल रहा ँ, इससे भी मोटा
कवच होता होगा। र ा – “चोट न लग जाए कह मुझ।े ”
तो सही ेमी क तलाश करना बंद करो, यह ेम नह है। “कोई ज़ दगी म आ जाएगा, मेरे सूनेपन को भर दे गा, तो ेम
होगा,” वो सब नह होता ेम। वो तो होम नल गेम (खेल) है। खेल लो, उसम कोई बुराई नह है। शरीर मला है तो खेलो।
कोई द क़त नह है, ले कन उसको ेम मत समाजज लेना। उसको जानना वही जो वो है। ज म भाग -१, ज म भाग -२,
ज म भाग -३।
कोई बुराई नह है, ले कन ेम नह है, ये याद रखना। खेल है, ेम नह है। खेलो, अ े से खेलो, सेहत अ रहती है। (एक
ोता क ओर मु कु राते ए दे खते ए) पर ेम मत समझ लेना उसको।
ठ क है?
..........
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(उ र दे श, 2013)
शा त उ म ता ेम क
“ यार म तु हारे नशे के अलावा और कु छ भी शा त नह है! अपना जीवन लेकर तु हारे सामने आया ँ! मेरे पूरे जीवन का
प रणाम है तुम तक प ँचना, सफ़ अपने जीवन का उ सग कर दे ने के लए, सफ़ अपना जीवन तुम पर यौछावर कर दे ने के
लए! मने कहा क तुमको जानना चाहता ँ और उसके बाद ‘होने’ क कोई इ ा नह है! मट जाना चाहता ँ! उसने कहा
क मुझे जानने का अथ ‘ मट जाना’ नह है!
“यार म नह है कु छ भी शा त तु हारे नशे के सवा!” सब कु छ बदलता रहेगा। बाहर क तयाँ ह, प र याँ ह - आती-
जाती रहगी। ‘प र त’ का अथ ही है - वो जो बाहरी है। उसका काम है बदलना, हमेश बदलती रहेगी।
जीवन एक नरंतर मूवमट (बहाव) है, ल स है, कु छ भी शा त नह है उसम। पर जब वो एक आ त रक काश होता है,
आ त रक जानने क अव ा होती है, उसम एक गहरा नशा होता है। बाहर-बाहर कु छ और चल रहा होता है, और भीतर
मौज चल रही होती है।
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बाहर से हो सकता है क आप दखाई द बड़े गंभीर, और भीतर-भीतर एक सु र चढ़ा होगा। सब कु छ उस सु र म ही हो
रहा होगा। इसी का नाम ‘ ेम’ है, इसी का नाम ‘जीवन’ है, यही है जानना।
आप जानते हो। दन आएँग,े रात आएँग , पर अ दर जो नशे का मौसम है, वो नह बदलेगा। “ यार म नह है शा त कु छ भी
तु हारे नशे के सवा, अपना जीवन लेकर के आया ँ तुम तक, उसको होम कर दे ने के लए, सफ़ उसक आ त दे दे ने के
लए!”
अ ये क पं याँ ह—“वे मुद ह गे ेम ज ह स मोहनकारी हाला है, वे रोगी ह गे ेम ज ह अनुभव-रस का कटु याला है,
मने आ त बन कर दे खा, ये ेम य क वाला है!” इसी फ़ना हो जाने का मतलब है - ेम! पूरे तरीके से मट जाना, ना क
अ तसंवदे नशीलता!
या है जो गायब होगा? या है जो कट होगा? जो कट होगा उसके गायब होने क स ावना हमेशा रहेगी! जो कु छ भी
गायब हो सकता है, उसको जानने का नाम है ‘ ेम! ेम उसे जानने क या है।
ेम कट होने, गायब होने, आने-जाने के ै त से आगे जाने का नाम है। ये आना-जाना बंद नह हो जाएगा। आने-जाने के
साथ, दौरान, पीछे , एक नशा बना रहेगा।
आ रहे ह, जा रहे ह, जो होना है हो रहा है, मौसम का बदलना, घटना का घटना, ये सब चल रहा है, पूरे तरीके से चल रहा
है, पर पीछे -पीछे एक नशा बना आ है।
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उस नशे म जो कु छ भी ै ता मक है, उससे म आगे चला गया ,ँ और आगे जाने का अथ है - ‘उसको पार कर गया ँ। वो
असर नह डालता मुझ पर अब!’
उस आंत रक नशे को कोई फ़क नह पड़ता, वो नशा कायम है, प र त कै सी भी हो। प र त उस नशे को ज़रा भी
बा धत नह कर पाएगी, उसम कोई खलल नह डाल पाएगी। तो मेरे पूरे जीवन क या ा मुझे वहाँ पर लेकर आयी है, जहाँ पर
म अपने आप को अब यौछावर ही कर दे ना चाहता ँ। तो फ़र कहा मने क—‘जानना चाहता ँ तुमको और फ़र वलीन हो
जाना चाहता ,ँ डसअ पयर हो जाना चाहता ँ।’ और ऐसा ही लगता है जब पहले पहल झलक मलती है सच क , तो ऐसा
ही लगता है क इसक तुलना म बा क सब झूठा है, बस यही रहे और कु छ ना रहे।
और जब ये भाव उठता है, ये वचार उठता है, तो उसके साथ म डर भी लगता है, य क अभी तक तो यही सब कु छ जो
कट है, जो य है, जो दखाई पड़ता है, उसी नया को हमेशा सच माना है। जब ेम क झलक मलती है तो ये पूरा जगत
ख़तरे म पड़ जाता है। ेम सीधे इस पर झूठा होने क मुहर लगा दे ता है। ेम दखा दे ता है क अभी तक कै सी अधूरी ज़दगी
जी रहे थे, कै सी नकली ज़दगी जी रहे थे।
और ब त संभव है क उस नशे म ये वचार उठ ही आये क बस ेम बचा रहे, और बाक सब कु छ समा त हो जाए - एकदम
बचे ना। ऐसा लग सकता है, पर ऐसा होता नह है।
तो मने कहा, “तुमको जानना चाहता ँ और उसके उपरा त वलीन हो जाना चाहता ँ।” और उसने कहा, “मुझे जानने के
बाद या मुझे जानने के लए वलीन हो जाना आव यक नह है।” रहोगे, इसी नया म रहोगे, ऐसे ही रहोगे, ले कन अलग
रहोगे! कु छ बदल गया होगा, पूरे तरीके से बदल गया होगा! मी क इन पं य म एक तरफ तो गहरा नशा है, सरी तरफ
ज़दगी जीने क एक बड़ी यारी सीख भी है।
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ठ क कहते ह मी, साफ़ कहते ह क - ेम को जानने का अथ नया से कटना नह है। सच तो ये है क जसने स य को
जाना है, जसने ेम को जाना है, जसने जीवन को ठ क से जाना है, वही तो जीवन ठ क से जी सकता है! वपरीत बात है ये
तो। ये तो भूल ही जाओ क ग़ायब हो जाना है, हट जाना है, कट जाना है, मुझे तो और यादा जीवनो मुखी हो जाना है। मुझे
और यादा जीवन के त सजग हो जाना है। एक गहरी सजगता म जीवन जीना है ।
आचाय: हो जाता है। आगे यही कह रहे ह मी क—“मुझे जानने का ये अथ ब कु ल नह है क तुमको ख़ म हो जाना है।
और भरे तरीके से जीना है!”
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“म बचूँगा, पर अपने शु प म, अपने चैत य प म, और बाक सब बोझ जो मने मन पर लाद रखा था, वो सब हट
जाएगा।” ले कन यहाँ गलती होने क पूरी-पूरी संभावना है और उसके त सतक रहना होगा। बाक सब जल जाएगा, एक
नयी शु आत के लए। सब कु छ भ म नह हो जाना है, सब कु छ पूरी तरह ख़ म नह हो जाना है। जलेगा सब कु छ, पर एक
नयी शु आत के लए!
जीवन वरोधी नह है ेम। जब ेम जीवन है, तो उसके जीवन वरोधी होने का कोई कारण नह है, कोई स ावना नह है।
ये ब त वशेष पं याँ ह, एक तरफ इनम गहरा सु र है, सरी ओर एक स दे श भी है क जाता बस वही है जसे जाना
है। वलीन बस वही होगा जसे वलीन होना है। और नयी शु आत एक नह है! नयी शु आत ये नह है क आज हो गयी और
सदा के लए हो गयी। हर पल क नयी शु आत - तपल चैत य, शा त सु र!
‘शा त’ का अथ पुराना नह होता! ‘शा त’ का अथ है क तपल चैत य है, कसी भी पल म जसक धारा टूट नह रही, वो
है ेम। और ेम के बारे म कोई छ व न बनाई जाए य क ेम एक आ त रक नशा है। बाहर-बाहर प बदलते रहगे, कसी
एक छ व म कै द नह कया जा सकता ेम को।
आप ये नह कह सकते क एक ेमी क हरकत इस कार क ह गी, य द ेमी होगा तो उसके वचार कु छ इस कार के
ह गे। हाँ! उनक आ त रक त एक-सी होगी और वो आ त रक त वैसे भी शू यता क है, तो उसको भी एक-सा
कहना थोड़ी व च बात होगी। सारे शू य एक से होते ह, पर जब वो कु छ होते ही नह , तो उनको एक-सा कहना भी उ चत
नह है।
बाहर-बाहर सब अलग रहेगा, पूरा वै भ य रहेगा, कोई ये ना सोचे, ये छ व ना बनाए क कु छ ख़ास कार के कृ य करने
ह गे। कसी आचरण म बाँधने क को शश ना क जाए ेम को, कोई पसना लट ( व) ना द जाए ेम को, कसी छ व
म। कसी व, कसी श द म कै द करने क को शश ना क जाए ेम को, बस एक गहरा आंत रक नशा है, और उसम
जो भी होगा, वो ेम का कम है।
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दो बात ह।
पहला - ेम भीतर का एक मौसम है। ेम, स य, आनंद, मु , जानना - ये सब भीतर के मौसम ह। पूरे तरीके से आ त रक
तयाँ ह, बाहर क तय से इसका कोई लेना दे ना नह है।
सरी बात- ये जीवन वरोधी नह है, ये जीवन ही है। जब भीतर का मौसम ेम का होता है, तो बाहर जो भी घटेगा उसे ‘शुभ’
ही कहते ह, उसी का नाम ‘शुभ’ है। बाहर कु छ भी घट सकता है, उसे कसी भी दायर म कै द नह कया जा सकता। कु छ
कहा नह जा सकता क ऐसा-ऐसा ही होगा। कु छ भी हो सकता है !
आचाय: उस अ भनय म भी एक वशेष गुणव ा रहेगी, एक वा लट रहेगी। जब भीतर मौसम ेम का होगा, तो बाहर जो
अ भनय हो रहा होगा, वो भी पहले जैसा अ भनय नह रह जाएगा, उसम भी एक नयी बात आ जाएगी।
ज़मीन पर ही चलोगे, पर कदम अलग तरीके से रखोगे। सर से बात करोगे, पर बात म कु छ और बात हो जाएगी, एक नयी
बात आ जाएगी। सब अ भनय रहेगा, उसके अलावा बाहर कु छ और है भी नह ।
............
(उ राखंड, 2013)
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स ा ेमी कौन?
~ संत रहीम
आचाय शांत: “जो तुम तोड़ो पया, म नाही तोडू ं रे”, तु हारा ही हक़ है क नाराज़ हो सको, य क तुम ही हो जो नाराज़ हो
कर भी नाराज़ नह होओगे। तुम ही हो जो ग त करते ए भी अचल रह जाओगे। तुम ही हो जो बाहर से लाल-पीले होते ए
भी भीतर रंगहीन रह जाओगे।
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ये कहती है क – ‘म अपनी सीमाएँ जानती ँ। एक ही है जो ‘सुजन’ कहलाने यो य है, उसको अपनी छोट -सी सीमा म
,
बाँधूँगी नह । वहाँ तो जो कुछ भी हो रहा होगा भला ही हो रहा होगा। वहाँ तो जो भी मुझे रा ता दखलाया जा रहा होगा वो ,
वापसी का ही रा ता होगा । ’
“र हमन ,
फ र फ र पो हए टू टे मु ”
ा हार
हार टू टता है ,
य क धागा कमज़ोर होता है मो तय म नह कोई खोट होता। और संत ने हमेशा गाया है – “तुम भये मोती
, ” , ,
पया हम भये धागा । तो हार य द टू ट रहा है तो हमारे कारण टू ट रहा होगा तु हारे कारण नह टू ट रहा है। मोती थोड़ी टू टते
,
ह धागा टू टता है।
हार टू ट रहा हो तो कोई मूख ही होगा जो मो तय को मू यहीन समझ ले। हार य द बार बार टू टता - ,
तीत हो तो अंतगमन क
ज़ रत है। अपने धागे को दे खो क उसम इतनी साम य नह है क उन मू यवान मो तय को बड़े बड़े चमकते सुद ,
ं र मो तय- -
को वो गूँथ भी पाए। अपने धागे को मज़बूत करो मो तय को हक़ है ! ठ जाने का।
,
धागा टू टेगा मोती ठगे।
“ ठे सुजन मनाइये जो ,
ठ सौ बार रहीमन फ र फ र पो हए टू टे मु हार। ”
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सोने का हार भी य द टू टता है तो कमी सोने म नह कारीगरी म होती है। कमी त ,
त म नह है कमी तु हारे अनगढ़ हाथ म
है।
:
जीवन हमारा इ ह दो का खेल है एक वो जो हम मला ही , ,
आ है और मोती क तरह सोने क तरह क मती है। और सरा
या र ता बैठा इन दोन म ?
एक होता है पगला अहंकार जो कहता है , , “जो कुछ भी आनंदपूण है, जो कुछ भी क मती है जीवन म, वो मेरे कारण है। और
जो कुछ भी ःख , , ,
लेश शोक है वो उन ताकत के कारण है जो मुझसे बाहर ह। ”
वो अपने क याण का ,
ेय ख़ुद लेता है और अपने पतन का ठ करा परमा मा के सर फोड़ता है। कुछ ठ क होता तीत होता
है तो वो कहता है , “मेरा पु षाथ। ” कुछ उप व होता दखाई दे ता है तो वो कहता है , “हे भगवान! ये तूने या कया ?” ये वो
,
है जो न मोती का मू य जानता है न धागे का। ये मोती को मू यहीन और धागे को मू यवान समझता है।
और एक सरा मन होता है। एक सरा अहंकार होता है। वो जान चुका होता है अपनी सीमा को और अपने उ चत , ान
और इससे वपरीत जो च ,
होता है वो कहता है , “मुझे दे खो। अरे! म बड़ा क मती ँ। ‘म-धागा’ बड़ा क मती !ँ दे खो म
-
कैसे कैसो के गले म वराजता ँ। ”
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अब मो तय के पास एक ही वक प रह जाता है क वो ठ जाएँ। अब मो तय का ठना प का है। मोती ठे ना तो धागे
को मो तय का मू य कै से पता चले। तो दे व तमा पर चढ़ा आ हार, और ठ गए मोती - गए मोती।
धागा अपनी अकड़ म और अपनी शान म अभी-भी ऊपर चढ़ा आ है। अब आव यक है क वो दे ख ले क संसार म उसका
या होगा। वही धागा अब पैर तले कु चला जाएगा। धागे क है सयत, धागे क क मत तभी तक है जब तक मो तय के साथ
है। और मो तय का साथ बना रह सके इसके लए मो तय क क आव यक है।
धागा जस ण मो तय क क छोड़ता है, उसी ण हार टूट जाता है। हार इस लए नह टूटता क उसे टूटा ही रहना है। हार
इस लए टूटता है ता क हार बना रह सके । हार टूटेगा तभी तो धागे को क होगी। जब क होगी तभी तो हार बना रहे सके गा
- खेल है, चलता रहता है। कहानी है न, अभी कहा था।
बराबरी क बात मत मान लेना। बराबरी क को शश मत करना। ज़रा समानता का ज़माना है, सब को ही ये लगता है क हम
कसी से कम नह । हर कानून क नज़र म बराबर है। सब को वोट डालने का हक़ है, तो धागा और मोती भी बराबर ही
होने चा हए। इस म म मत रह जाना क अ ा तुम ही ठ सकते हो, अब हम भी ठ कर दखाएँगे।
‘उसक ’ ओर से साद मले तो साद है। ‘उसक ’ ओर से वषाद मले तो भी साद है।
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समझ रहे हो न?
यही नह क साद है तो मीठा-मीठा है और वषाद है तो वष-समान है। वषाद को भी साद ही मानना, मीठा ही मीठा
मानना, सर-माथे लेना।
...........
(अ ै त बोध ल, 2014)
कता: आपने कहा था क तु ह या पता क उसे खीर पसंद है, उसे घास भी पसंद हो सकती है। जैसे क गीता म कहा है
—“प म्, पु पम्, फलम् तोयं”। तो अगर हम ेम से भोग लगा रहे ह, तो वो भी उसी ेणी क बात है या…
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अब ेम से दे ने के लए, दे खये कोई ब त बड़ी चीज़ तो नह कही गय ह। ‘प ’ माने प ा, ‘पु प’ माने फू ल—न सोना, न
चांद —फू ल-प ा! यार से फू ल प ा चढ़ा दो, ब ढ़या है, काफ़ है, ब त है। और जस समय म गीता कही गयी थी, उस समय
म चुरता थी, प म्- पु पम् क , फलम् क ।
तो जब कहा जा रहा है क—‘फू ल, प ा, फल’, तो यही कहा जा रहा है क वही चढ़ा दो जो सवा धक सुलभ है। जो यूँ ही
मल जाएगा कह चलते- फरते। फू ल, प ा, फल—चढ़ा दो! ये कहा गया है क जाकर कोई वशेष फल ले कर आओ? ये
कहा गया है क जाकर के आका पु प ले के आओ?
कोई ऐसा फू ल माँगा है कृ ण ने, जो ांस म उगता हो? “जा अजुन, ांस का फू ल लेकर आ!”
: हाँ! वो तो है। पर अगर म खीर का भोग लगा रही ,ँ तो मने अपने अहम् का
योग कया या ेम का योग कया, ये कै से
पता लगेगा? मतलब, मने ब त ेम से बनाई, ले कन न त प से, मुझे तो भगवान ने आकर नह कहा, “मेरे लए खीर
बनाओ!” फ़र? मेरा मन कया खीर का, और मेरी सोच म है क म भगवान को पहले नवे दत क ँ , तो फर कै से समझ म
आए क…
आचाय: जब ेम मुख होगा, तो फर खीर ही नह दगी आप। फर जो होगा, सब दगी। आपको जससे ेम होता
है...आपका एक नाखून बड़ा सु दर है। ख़ूब आपने उसे धोया है, चमकाया है, रंगा है। अब ेमी के पास जाती ह, उसे नाखून
दखाती रहगी? या अपना सव व दे दे ती ह?
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बात समझ म आ रही है?
: जी!
आचाय: जहाँ ेम होगा, वहाँ बस खीर ही भर नह दोगे, वहाँ तो पूरा दोगे। या ये कहोगे, “खीर मीठ है तो खीर ही लो”?
( ोतागण हँसते ह)
आचाय: जहाँ ेम होता है फ़र वहाँ लु का- छ पी नह होती। वहाँ ये नह होता क—‘ये सु दर वाली चीज़ है, इतना दे खो! ये
तो तु हारा है। आज वशेष खीर बनी है…।’
अब वशेष हो क न वशेष हो, आम हो, ख़ास हो, जो ह, जैसे ह, पूरे ह, तु हारे ह। और ख़बरदार, अगर तुमने कु छ भी
ठु कराया! और फर ये भी नह होता क साल म एक दन हम लाये ह खीर तु हारे लए।
“आज नह बना, तो भूखे रहोगे फर तुम भी।” फ़र तो जैसे हम, वैसे तुम। हाँ! इतना ठ क है क हमसे पहले खा लो! पर ये
तो नह करोगे ना क आज तु हारा ज म दन है तो आज खीर ले लो! बाक दन पर?
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वो कै लडर पर चपक ए ह, चावल के दो दाने, ध म, वो लेई जैसी बन के चपक गए ह, अगली ज मा मी तक के लए।
ऐसे ही होता है। एक ज मा मी से अगली ज मा मी तक वो चपके रहते ह।
( ोतागण हँसते ह)
.........
(अ ै त बोध ल, 2016)
-
तो सब उ टा पु टा चल रहा है काम। ेम होता है वा तव म तलवार - वो खलौना नह होता। ेमी वैसा नह होता क -
‘आओ-आओ, लो रोट खा लो। ’ वो घूस खाकर आया है, और तुम घर म उसे रोट !
खला रही हो दो जूते नह मार रह मुँह
पर !
,
ये जो तुलसीदास ह आपके इनक बड़ी एक मज़ेदार कहानी है। इनक एक प नी थी , जनका नाम र नावती था। उ ह एक
ब ा ,
आ था और वह ब ा मर गया। तो र नावती ःख म थ । उ ह दन वो अपने मायके चली गय । अब ,
ी ह उ ह
ःख होता है ब े का यादा। पर पु ष क कामो ेजना को इनसे फ़क नह पड़ता। ब ा मर गया कोई बात नह , पांच-दस
दन थोड़ा ,
खी हो लए दोबारा उनपर कामो ेजना चढ़ गयी।
, , ,
तो महीना भर ही बीता होगा। वो रात म बरसात क रात काली वो उसके मायके प ँच गए। अब प ँचे ह रात म बारह एक , -
बज रहा है। प नी पहली मं ज़ल पर ह चढ़ कैसे , ? सामने के दरवाज़े से जा नह सकते। कैसे बताएँ नया को क म तो
,
तो वो वहाँ ह पहली मं ज़ल पर। वहाँ पर एक र सी लटक रही थी और वो उस र सी पकड़ कर ऊपर चढ़ गए। चढ़ गए ऊपर ,
तो पहले तो उनक प नी ने उनको जमकर के ध कारा क - “तु ह कामो !
ेजना है अपने आप को तो बबाद कर ही रहे हो ,
मेरा जीवन भी य न कर रहे हो ?”
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उसके बाद प नी पूछती है क यहाँ चढ़े कै से? तो वह बोलते ह क वो र सी लटक रही थी, र सी पकड़कर चढ़ गया। तो प नी
बोलती ह, “दे ख ज़रा।” दे खा तो साँप लटक रहा था। तो लगाए ह गे दो-चार तगड़े हाथ। फर वह बोल , “ जतनी आस
तु हारे मन म काम के लए थी, वासना के लए थी, क घुस आए हो मेरे कमरे म, इतनी आस अगर राम के लए होती, तो
पता नह तुम कहाँ प ँच गए होते।”
और दया होगा ध का क यही साँप पकड़ कर अब उतर भी जाओ नीचे, जब चढ़ आए हो ऐसे तो। जो भी है, मतलब भगा
दया उ ह। और फ़र उसके बाद तुलसीदास - “तुलसीदास” हो गए।
बीज पहले से ही था, वो बचपन से ही कहते थे, अपना गाते भी थे, तो उनका नाम ही रख दया गया था ‘राम बोला’। पर वो
सब दबा पड़ा था।
फ़र उनक प नी ने ये नह सोचा क इतनी रात म, बा रश हो रही है, ये हो रहा है, ये आए ही पता नह कै स ह और वापस
कै से जाएँगे। उसने कहा, “ नकलो यहाँ से! जब साँप पकड़कर चढ़ सकते हो, तो साँप पकड़कर उतर भी सकते हो, तो
नकलो यहाँ से!” और यही घटना अगर आज के समय म होती, तो आज क हमारी आदश ह ी कहेगी – “आओ
महाराज, आ ही गए हो तो पहले चाय पयो, फ़र ब तर तैयार करती ँ। इतनी कामो ेजना लेकर आए हो, तो अब तु हारा
कु छ तो जुगाड़ होना चा हए।”
और यही नह , उसको बड़ा गव अनुभव होगा क मेरा प त मुझसे इतना ेम करता है क रात म आया और साँप पकड़ कर
चढ़ गया।” और अगले दन वो फे सबुक टेटस म भी यही डालेगी – “मेरा प त मुझसे ब त यार करता है।”
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आचाय: हाँ, और साँप क भी। और सांप क कु छ ऐसी शकल है क कमाल हो गया।
.........
(अ ै त बोध ल, 2013)
श द क काट म, न तक क आग म, ेम है मा अपने
प र याग म
~ संत कबीर
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आचाय शांत: ये उ मीद करना भी क समझ जाएगा, बड़ी नासमझी क बात है। सूरज इस उ मीद म नह चमकता क वो
समझ लया जाएगा। द या इस उ मीद म नह जलता क और द ए का शत ह गे। याद रखना यहाँ कॉज़ एंड इफ़े ट (काय-
कारण) चलता नह है। कॉज़ एंड इफ़े ट सफ़ मशीन म चलता है। यूँक कॉज़ एंड इफ़े ट नह चलता, इसी लए समझा
पाना बड़ा मु कल है।
कोई स ब इन दोन बात म, कोई लॉ जकल कने न(ता कक संयोजन) दखाई ही नह दे ता।तुम कह रहे हो, “म
अंतमुखी आ”—‘अंतमुखी’ मतलब अपने साथ आ। अपने साथ आ तो पड़ोसी से स ब कै से अ ा हो गया? और तुम
ये कहोगे तो हँसने वाले हँसगे, और कोई मानेगा नह ।और वो यही कहगे क तुम मत हो गए हो।
तुम अपना छु का दन, क़रीब-क़रीब पूरा आधा ही दन कसी ोड टव (उ पादक) काम म लगाओ, उससे कोई आमदनी
होती हो, उससे कोई माणप मलता हो, उससे तु हारा कल ए हांसमट (कौशल वृ ) होता हो, तो बात समझ म आती
है। कै से समझाओगे कसी को क सुबह सात बजे घर से नकलकर तीन बजे घर वापस आते हो, तो या पाते हो? पया-
पैसा तो कु छ कमाते नह , कोई स ट फके ट ( माणप ) भी नह मलता क सी.वी पॉइंट बनेगा, कै से समझाओगे? को शश
करके बताओ।
ब क पया-पैसा लगाते हो, ऑटो वाले को पैसा दे ते ह गे, तब यहाँ आते हो।कै से समझाओगे क पहले तो तुमने आराम
छोड़ा, छु का दन था कु छ न करते, आराम से सोते रहते। तुमने प रवार छोड़ा, कु छ न करते उनके साथ बैठे रहते। आज
तु हारे लए ख़ासतौर पर ट .वी वगैरह पर काय म परोसे जाते ह क र ववार है। आज ख़ास चाट बनती है, तुम कै से
समझाओगे क या करने आते हो? समझाकर दखा दो।
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ये नया का सबसे थ काम होगा - समझा पाने क चे ा करना। एक ही तरीका है समझा पाने का, सरा आ ही नह
आज तक, न होगा। वो तरीका या है? पहले भी कई बार कह चुका ँ, वो तरीका या है? ले आओ। कोई आएगा तो समझ
जाएगा। और अगर कोई बार-बार पूछे पर आने से इनकार करे, तो समझाना मत, य क वो समझा आ है।
एक जो ख़ूब आते ह, सरे ज ह ने ठान रखी है क आएँगे नह । इन दोन म बस ज़रा-सा ही अंतर है, बाक ये पूरे एक ह,
ब कु ल एक ह। कोई अंतर नह है इनम। बात पर गौर करना।
वो जो मौज म म त ख़ुद ही चला आता है, उसम, और जसने कसम खा रखी है क कभी नह जाऊँ गा, जान दे ँगा पर
जाऊँ गा नह , आकर दरवाज़े पर बैठ जाऊँ गा पर अ दर नह जाऊँ गा, ये दोन एक ह ब कु ल। जसने कसम खा रखी है क
जाऊँ गा नह , उसको इतने से ध के क ज़ रत है बस। अगर वो समझता न होता क यहाँ या हो रहा है, तो आने से इतना
डरता नह । उसे बखूबी पता है क यहाँ या हो रहा है, वो इसी लए कसम खाए बैठा है क—‘न, मुझे खतरे का भली-भाँती
पता है। म अ दर कै से कदम रख सकता ?ँ ’
वो नह आएगा। समझा ले कन नह पाओगे। चाहो तो कसी को बता दो, य क बता सफ़ तकपूण बात जा सकती ह। एक
आदमी से सरे आदमी म जो क यू नके शन (संचार) होता है न, वो दो ही तरीके का होता है। एक तो वो, जो कहने-सुनने क
ज़ रत नह । वो उस तल पर होता है जहाँ हम पहले ही एक ह - एक संवाद तो वो होता है।
रमण मह ष कहते थे क दो ही तरीके ह मुझे सुनने के - या तो मेरी आवाज़ सुनो, या मेरी ख़ामोशी सुनो।
तो एक संवाद तो वो है, और वो ब त गहरा संवाद है, वो खामोशी का संवाद है। वहाँ कु छ कहने-सुनने को कु छ है ही नह ।
कोई अपूणता ही नह है। तुम या कसी को बताओगे? ऐसा या है जो उसे पता नह , और तुम बता दोगे? बताने का तो
आशय ही यही है न क—‘तू जानता नह , मुझे तुझे अवगत कराना है’। कु छ है ही नह बताने को ।
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एक खामोशी है और सरी भी खामोशी, या बोलगे एक- सरे से? वो असली संवाद है। और एक सरा तरीका भी है संवाद
करने का। वो, वो होता है जहाँ पर मन और मन क धारणाएँ; ये आपस म बात करते ह। वहाँ पर जो दो प बात करते ह, वो
दो तक बात करते ह। वहाँ तुम जो कह रहे हो, वो सरा सफ़ इसी लए सुन सकता है य क दोन क श ा एक ही कार
के तक म ई है।
बातचीत या तो ेम म होती है, या तक म होती है। और कोई तीसरी बातचीत नह होती है। ‘तक’ का मतलब समझते हो? तुम
कै से समझ जाते हो जो भी कोई सरा तुमसे बोलता है? इस क यू नके शन(संवाद) का ोसेस( या) या है, इसपर थोड़ा
यान द जये।
जब वो कहता है, “म आ रहा ँ,” तो उसम उसने मान सक प से जस या क क पना क है, उस क पना से आप
सहमत ह। आपक साझी क पना है वो।तो आप कहोगे, “ठ क! आपने जो बात कही उसम जो कॉज़-इफ़े ट रलेशन शप है,
वो मेरे दमाग म जो कॉज़-इफ़े ट रलेशन शप है, उससे मेल खाती हैI” तो यहाँ एक समझौता आ है।
याद रखना - समझना नह आ है, उस तल पर समझना नह होता है।समझना तो खामोशी के तल पर ही होता है। उस तल
पर ए ीमट (समझौता) होते ह। यस, आई ए ी*(हाँ, म सहमत ँ)*। एक संवाद है ख़ामोशी का, वहाँ समझ होती है। एक
संवाद है मन का, तक क वहाँ सहमती होती। सफ़ या होता है?
:ए ीमट *(सहमती)*।
आचाय: बातचीत करता ँ तो दो तरह के छा होते ह, जो स नज़र आते ह। एक जो कहगे, “मुझे समझ आ गयाI” एक
सरे तरह के होते ह जो इनसे भी यादा स होते ह। वो कहते ह, “सर, हम, आप जो कह रहे ह उससे पूरी तरह सहमत
हI” इ ह ने कु छ समझा नह ।इनको बस इतना ही लगा है क इनको लगता है क मेरा तक इनके तक से मेल खाता है।वहाँ
बस इतना ही आ है।समझ रहे हो?
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अब ेम म तुम कु छ ऐसा करने जा रहे हो जो इन दोन क सीमा को तोड़ता है। खामोशी क खामोशी से बात हो जाएगी,
और कोई द क़त नह आएगी। और तक क तक से बात हो जाएगी, कोई द क़त नह आएगी। ये दोन ही संवाद ब त मज़े
म हो जाने ह।
खामोशी, खामोशी से बात करे, चलेगा। और मशीन, मशीन से बात करे, वहाँ भी कोई द क़त नह आएगी। इसका
सॉ टवेयर, उसके सॉ टवेयर से क ै टबल (संगतपूण) है, तो कोई द क़त नह आनी है।
अब ेम म तुम कु छ असंभव कया करते हो। वहाँ तुम खामोशी क आवाज़ तक को सुनाना चाहते हो। अब कै से सुनाओगे?
कबीर इसी लए बार-बार कहते ह, “गूँगे क सैन”। गूँगा अपनी कहानी सुनाना चाहता है, कै से सुनाएगा? तक समझ ही नह
पाएगा।तक या समझ सकता है? तक, ‘तक’ समझ सकता है, और यहाँ जो हो रहा है वो अता कक होगा, वो बयॉ कॉज़
एंड इफ़े टहै, काय-कारण के पार है। अता कक पूरे तरीके से।
तु हारा सब छना जा रहा है, और तुम दे ने को उतावले हो रहे हो - ये तो अता कक बात है। कै से समझाओगे? अपने
पागलपन को करने के लए या तक दोगे? कै से बताओगे क पागलपन य है? उसमे कोई ‘ य ’ नह है, बस है। और
य क उसमे कोई ‘ य ’ नह है, इस लए तो वो पागलपन जैसा लग रहा है, अ यथा पागलपन वो है ही नह ।
नया ‘पागल’ कसे कहती है? जो अता कक काम करता हो। संत तो फर महापागल है, वो पूणतया अता कक काम करता
है। तुम गलती यही कर रहे हो। तुम अता कक बात को, एक ता कक मन को समझाने क को शश कर रहे हो। तुम हारोगे,
मुँह क खाओगे। नह समझाई जा सकती।
हाँ, एक समय ऐसा आता है जब सफ़ तु हारे होने से, तु हारे कम से नह , याद रखना, तु हारे होने से बात अपनेआप फै लती
है। ए न नह ेसस *(कम नह उप त)*। तु हारी ेसस काफ़ होती है। तु हारी ‘ ेसस’ से मेरा मतलब ये नह है क
तु हारे शरीर क ेसस। त हारे करने से नह होता, तु हारे होने से होता है। और वो भी बड़े अता कक तरीक से होता है, तु ह
समझ ही नह आएगा क ये हो कै से गया।
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वो सफ़ सामने वाले को ही आ य नह दे गा, तु ह भी झटका दे दे गा। ये कै से हो गया? अरे! तु हारे ही मा यम से आ है, पर
तु हारी अनुम त लेकर नह आ है, इसी लए तु ह पता नह है। आ तुमसे ही है। अजीब, अ त घटनाएँ घटती ह - इ ह को
तो ‘जा ’ कहते ह।
सुना होगा तुमने तमाम तरीके के चम कार, जा और इस तरीके क बात? क वो कसी के घर म गए, वहाँ पर कोई व त
था, और वो एक कमरे म बंद रहता था। वो कु छ नह बस गए उनके घर म, एक घंटा के , खाना-पीना खाया, वो जो आदमी
व त था, एक कमरे म बंद था, उसको दे खा भी नह , उससे बात भी नह क । उनको बताया भी नह क इस कमरे म एक
व त आदमी कै द करके रखा आ है, खाना-पीना खा के चले गए और वो आदमी ठ क हो गया।
इसका ये नह मतलब है क आपको जो पसंद है वो आपको सु दर लगता है। उस बात का अथ ब कु ल सरा है। “ यूट
लाइज़ इन द आइज़ ऑफ़ द बहो र,” उसका ये अथ है क यूट (सु दरता) बाहर नह है। यूट कहाँ है? आतं रक है,
आँख म है। ऑ जे ट ( वषय) म नह है यूट ।है ही नह , कहाँ है?
इसका ये नह अथ है क अपनी-अपनी े मका सबको सु दर लगती है क—“ यूट लाइज़ इन द आइज़ ऑफ़ ड बहो र”।
उ टा-पु टा अथ मत कर लेना। े मय ने हमेशा बड़ी अता कक बात ही क ह। ‘लैला-मजनू’, ‘लैला-मजनू’ जो करते हो,
लैला बड़ी साधारण नैन-न क थी, जैसी अ धकाँश औरत होती ह।
अब मजनू पागल है, “लैला-लैला” कर रहा है, अड़ा आ है। तो बादशाह को भी दया आई। उसने कहा, “तू या बावला आ
जाता है, इधर-उधर सर पटकता है ‘लैला-लैला’?” और बोलता है, “म तेरा जुगाड़ कये दे ता ँI” म दे ता है क स तनत
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क जो सबसे ख़ूबसूरत लड़ कयाँ है, उ ह ज़रा ले आओ।
तो पं ह-बीस लड़ कयाँ ला ग । एक से एक चु न दा नैन-न , रंग जो साधारणतया ख़ूबसूरती के पैमाने माने जाते ह।राजा
ने मजनू से कहा, “दे ख, इसम से जो पसंद आए ले ले।लैला-लैला या च लाता है अब? गई तो गईI” मजनू ने सबको दे खा,
बोलता है, “नह , (दे ख सबको रहा है, यान से दे ख रहा है ब कु ल) ये भी ठ क नह है।”
बादशाह ने कहा, “ या, द क़त या आ रही है? या ठ क नह है?” बोलता है, “ये लैला नह है।बाक सब ठ क है इनम,
पर ये लैला नह हI” अब ये तुम कै से समझाओगे बादशाह को? कोई ये तक वाली बात है क ये लैला नह है।और ‘ये लैला’
मतलब या, तु ह या लग रहा है? वो लैला क श ल ताक़ रहा था, लैला का शरीर ढूँ ढ़ रहा था क लैला जैसी दखे? तु ह
या लगता है क लैला जैसी ब कोई आ जाती, ब कु ल लैला जैसी दखने वाली, तो मजनू वीकार लेता उसको?
नह ! ‘लैला नह है’ - इसका अथ ये नह है क लैला जैसी दखती नह है। वहाँ पर बात आ या मक होती है। लैला मजनू के
लए अब नह है, और बादशाह परोस रहा था। उसने पं ह य को खड़ा कर दया था क इनम से चुन लो।
इतना ही कह रहा है मजनू क—‘वो है ही नह । तू पं ह या, पं ह सौ खड़े कर ले’।
ेम हमेशा अता कक होगा। तु ह भी बुरा लगेगा, तुम अपनेआप को गाली दोगे क म ये बेवकू फ़ य कर रहा ँ? य क
हमारे लए हो शयारी का अथ ही या है? तक, लॉ जक। ख़ुद तु ह बात ऐसी लगेगी क वीकार नह हो रही है, इसी लए ेम
म वधा भी ख़ूब होती है।
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वो भेजा था न? “क ँ या? पया से मलने जाऊँ तो गली म क चड़ है। कपड़े गीले ह गे, क चड़ लगेगा। और न मलने जाऊँ ,
तो पया ठे गा।” वधा होती है, य क तक हमारे मन म भी गहरा बैठा है, और हम अपने ही मन को नह समझा पाते क
हम ये बेवकू फ़ य कर रहे ह।
ज ह भी ेम का वाद मलता है, उ ह ये बड़ी द क़त आती है। वो अपनेआप को भी नह समझा पाते क वो ये पागलपन
य कर रहे ह। र रहते ह, तो ख़ुद ही कसम खाते ह क—‘नह -नह अब ये पागलपन नह क ँ गा’। फ़र पास आते ह तो
अपनी ही कसम तोड़ दे ते ह।
यही था न, क—“ मलो न तुम तो हम घबराएँ, मलो तो आँख चुराएँ, हम या हो गया है”? “तु ह को दल का हाल बताएँ,
तु ह से राज़ छु पाएँ, हम या हो गया है?” जब सामने आता है, तो सारे राज़ खुल जाते ह। जब चला जाता है तो तक फ़र
हावी हो जाता है। फ़र अपनेआप से ही कहते हो, “ये या पागलपन कर दया? य सारी बात बयान कर द ? य कर दया
ऐसा? आगे से नह करगे।”
ले कन तक साथ लेकर मरोगे? करोगे या उसका? वो सां वना दे दे ता है, सां वना दे दे ता है क - बचे रहोगे।
याद रखना काय-कारण हमेशा समय म चलते ह। तक, काय-कारण है। तक पर चलकर हमेशा तु ह ये लगता है क समय
ा पत रहेगा, बचे रह जाओगे, मरोगे नह । डर से नकलते ह सारे तक।
.........
(अ ै त बोध ल, 2014)
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ेम और बोध साथ ही पनपते ह
आचाय शांत: अब लग रहा है क आप कबीर म डू ब ही गए ह, और वो भी ेम-पंथ म। पछले दन आपने पढ़ा था -
“कबीर बादल ेम का, हम पर बरसा आय।”
राता माता ेम का, पीया ेम अघाय। मतवाला द दार का, मांगे मु बलाय।।
~ कबीर साहब
(मौन) ानमाग कहता है, “मुझे वयं को पाना है,” और वयं को पाने म वो संसार को बाधा मानता है। वो कहता है, “ वयं
को इसी कारण नह पा पा रहा य क मेरी संसार क ओर लगी ई है।” वो अंतगमन माँगता है। कहता है, “जहाँ संसार
से मु मली, तहाँ अपने को पा लूँगा।” इसी कारण उसके श दकोष म, ‘ याग’ एक बड़ा मह वपूण श द हो जाता है। वो
लगातार याग क बात करेगा। वो कहेगा, “छोड़ना है।” वो अनास होने क बात करेगा, वो वैरागी होने क बात करेगा।
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ये ानमाग है। वो जानना चाहता है।
और जो सरा रा ता होता है ‘ ेम’ का, वो कहता है, “मु चा हए कसको? याग करना या है? मुझे तो डू बना है।” वो
कहता है, “ये संसार छोड़ने के लए नह है। इसी संसार के मा यम से, तो उस यारे के साथ एक हो जाऊँ गा।” उसका रा ता
मु का नह है, उसे याग नह चा हए।
मं ज़ल एक ही है, पर भाषा अलग-अलग है। एक कहेगा, “ र हो जाना है,” और सरा कहेगा, “पास ही आ जाना है।” यही
कबीर यहाँ पर कह रह ह—“मतवाला द दार का, मांगे मु बलाय”।
आप अ ाव के पास जाएँग,े वो लगातार कहगे, “मु चा हए,” पर मीरा नही कहेगी क मु चा हए। और कबीर भी यहाँ
पर नह कह रहे ह क मु चा हए। “कै सी मु , या मु ? जससे मु होना है, वो तो वही है, जो म ँ। उससे मु कै से
हो सकता ।ँ ब क मु क कामना ही बंधन है, तो मुझे मु भी नह होना है। मुझे तो डू ब जाना है, पूरे तरीके से। मुझे
कण-कण म वही दखाई दे । हर छ व म उसी क छ व हो।”
और फ़र वो क - “हर ज़रा चमकता है नूरे इलाही से”, ये बोल ह ेममाग के , ये भ के बोल ह। ानी कभी कहेगा क
—‘मुझे म त हो जाना है’? पर कबीर कह रह ह क—“मतवाला द दार माँग”े ।
ानी के श दकोष म श द होगा ‘होश’, वो कहेगा, “मुझे होश मे आना है।” और ेमी क भाषा होगी ‘बेहोशी’ क । वो कहेगा,
“मुझे म त हो जाना है।” बात दोन एक ही कह रहे ह। अगर गौर से दे खोगे तो दोन क अव ा म कोई अंतर नह है, पर
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श द वपरीत जान पड़गे।
एक कह रहा है, “मुझे होश म आना है, पूरी तरह जग जाना है, उठ बैठना है।” और सरा कह रहा है, “इतनी पलाओ क
बेहोश हो जाऊँ ।” सरा कह रहा है क इतनी पलाओ क ज़रा होश बाक न रहे। आपने सुना होगा? दोनो ही प म आपने
अ भ याँ सुनी ह गी? और आपको ता ुब आ होगा क कह तो बात होती है पूरी जागृ त क , और सरी ओर पर
सूफ ह, संत ह, ेमी ह, वो कहते ह क—‘परम का याला पीया और ऐसे बेसधु ए क सब मल गया’।
तो कसी को पूरे होश म मल रहा है, और कसी को बेसुधी म मल रहा है - ये कै से संभव है? दोनो एक ही बात कर रह ह,
दोन अलग नह कह रह ह।
वो जब ये भी कह रहे ह क मतवाला होना है, तो वो आपक साधारण शराब क बात नह कर रहे ह। वो उस मय क बात कर
रहे ह, जो दल म ही खचती है। कबीर पय कड़ नह थे क कह ठे के पर नजर आएँगे मतवाले होने के लए। पर नशे म
हमेशा रहते थे। उस मय क बात कर रहे ह, जो दल से ही उठती है। उस मय क बात नह कर रहे ह, जो आपको आप से ही
बेगाना कर दे ती है, जो आपको वषय क तरफ ले जाती है।
भ इसी भाषा म बात करता है, “पीया ेम अघाय… ।” इतना पीया, इतना पीया क…अघा गए।
ानी कहता है, “सम त छ वयाँ लु त ह जाएँ और कोई छ व अब बचे ही ना।” वो कहता है, “प रक पना , छ वय का
होना, यही मेरा बंधन है।” वो कहता है, “मुझे छ वय से मु चा हए।”
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और ेमी कहता है, “एक बार अपनी छ व दख ला जा, एक बार दरस दे दे ।” उसे द दार चा हए। दोन , बात अलग-अलग
नह कह रह ह, ले कन जसका द दार ेमी को चा हए, उसका द दार तभी मलेगा, जब सामा य इ य से जो छ वयाँ बनात
ह, मन से जो छ वयाँ बनती ह, जब वो मटगी, तब उसका दरस उठता है। वो कोई सामा य छ व नह है क आपने आँख बंद
क और आपके सामने का हा बाँसुरी लेकर नाचने लगे।
ना! ये उस छ व क बात नह हो रही है। कबीर लगातार ‘राम’ का नाम लेते ह। पर नह , धनुधारी राम क छ व से कबीर का
कोई योजन नह होगा। कबीर कहने भर को ‘छ व’ कह रह ह। कबीर कहने भर को ‘दशन’ और ‘द दार’ श द का योग कर
रह ह य क कसी श द का तो योग करना पड़ेगा। जहाँ पर वो ‘दशन’ कह रहे ह, उसका अथ यही है क ऐसा डू ब गया
अपने आप म, क - अ ये य। कु छ बोध हो गया। कोई सामा य छ व नह , कोई प नह , कोई आकार नह । ठ क है?
(मौन)
कभी जम के पी जये और कभी क हये क, “ना, मैला मत कर दे ना मुझ,े छू मत दे ना मुझ,े कसी भी तरीके से ये संसार छू ना
जाए मुझे।”
और कसी दन तै रये उसी संसार म। आप पाएँगे क अंतर नह है। कसी एक सरे को पकड़ कर मत बैठ जाइयेगा। माग
बनने क को शश मत क रयेगा क—“हम तो ानमाग ह।” ये ज़द मत पकड़ ली जयेगा। इधर को जाएँगे, तो भी मन को
सु वधा है। उधर को जाएँगे, तो भी मन को सु वधा है।
और सरी ओर भी मत बैठ जाइयेगा क अब ये साहब ेममाग ह। इसका या मतलब है? इसका मतलब है क ब कु ल
कड़वा नह बोलते कसी से, और इसका मतलब है क दन-रात टु रहते ह।
(सब हँस दे ते ह)
और इसका मतलब ये है क कभी इनसे कोई समझ क बात मत कर दे ना य क ये कहगे, “हम तो दरस के द वाने ह, हमसे
बु क बात मत कया करो। हमसे दल क बात कया करो। हम समझाने क को शश मत करना, हमारे तो बस गले लग
जाओ।”
अब ये आदमी भी ख़तरनाक हो गया है। इसके अहंकार ने भी ठकाना खोज लया है। तो आप दोन म से कसी भी तरफ़ जा
कर बैठ मत जाइयेगा। आपको सब कु छ उपल है। आप इधर भी र हये, उधर भी र हये। और कबीर भी ऐसे ही ह। ब त
अ बात है क आज शु आत ही कबीर से हो रही है। कबीर इधर भी ह, उधर भी ह।
पाने का तरीका एक ही है - जसको पाना है, वैसे ही हो जाओ, और पा लोगे। तो जैसे कबीर ह, वैसे ही हो जाओ। वो इधर
भी ह, उधर भी, आगे-पीछे , दाएँ-बाएँ। कु छ ऐसा नह है जो कबीर के लए व जत है। आपके लए भी ना रहे। े मय म ेमी
ह कबीर, और ा नय म ानी ह। वैसे ही र हये।
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खूब जम के पी जये, और ऐसा पी जये, ऐसा पी जये क पूरे होश म आ जाएँ तब बात बनी। ऐसा पीने से या फ़ायदा क
बेहोश ए। पूरा पी रहे ह, और ऐसा पी रहे ह क होश म आ जाते ह। ेमी भी ह, ानी भी। हाँ, मलते ह तुमसे गले, संसार
हमारे लए या य नह है। पूरे तरीके से तुमसे गले मलते ह, शारी रक स ब भी ह। संसार को भोग भी रहे ह, पर उस ण
म भी होश कायम है। ेम म भी ान है, और ान म भी ेम है - तब बनी बात।
एक तरफ को बैठ गए, कु छ नह पाएँगे। ान के शु तम् ण म भी मने अपने आप को काट नह दया है। एक सू म
अहंकार नह बच गया है क—‘म जानने वाला ँ।’ तो ान म ेम है। और ेम क ताकतवर धारा म, म बह नह गया ँ। होश
अभी भी कायम है। तो ेम म भी ान है। दोन मल एक साथ तो मलेगा जीवन - पूणता म। ठ क?
ान के साथ वड बना ये है क वो सब कु छ काट दे ता है, पर काटने वाले को बचा दे ता है। आप कह दोगे क—“जान गया।
ये भी यागा वो भी यागा, म समझ गया क ये सब व तुएँ ह। म जान गया क ये जो सारा फै लाव है जगत का, मा मान सक
है, तो मने इसको स य मानना छोड़ दया, याग दया।”
आप उसक स यता को ही यागते हो ना? याग दया। ले कन उसमे वड बना ये है क जो यागने वाला है, वो बच जाता है,
वहाँ ये ख़तरा है। सम झएगा ान का ख़तरा।
ान का ख़तरा ये है क जसने यागा वो बच जाता है। अहंकार को वहाँ पर ठौर मल गया। ेम म भी ख़तरा है। ेम म ख़तरा
ये है क जसके ेम म आप पड़े, भले ही वो परम य ना हो, आपने उसको एक छ व दे द , प दे दया, आकार दे दया,
और आपने उसको एक व तु बना द - ये ेम काhttps://www.The-Gyan.in
ख़तरा है।
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जहाँ ान म अहंकार शेष रहेगा, वहाँ ान ेम नह बन पाएगा। और जहाँ ेम म छ व आ गयी, वहाँ ेम म भी अहंकार को
ठकाना मल गया। अहंकार ान म भी ठकाना खोज सकता है, और अहंकार ेम म भी ठकाना खोज सकता है। य द
अहंकार ना रहे तो ान ेम बन जाएगा। य द अहंकार ना रहे तो ेम ही ान बन जाएगा।
आचाय: य क जहाँ छ व बनेगी वहाँ वभाजन होगा। जहाँ छ व बनेगी, वहाँ आपका ेम, मा वैसा ही हो जाएगा जसे आप
आस कहते हो, या आकषण। वभाजन ऐसे होगा क जसक छ व है, आप मा उसी क ओर जाएँगे। बाक नया
आपके लए अलग हो जाएगी। फ़र ये ेम नह है। अब यहाँ पर अहंकार को ठकाना मल गया।
याद र खयेगा, जब तक कसी क छ व से ेम है तब तक, ेम करने वाला ‘कोई’ मौजूद है। अहंकार को ठकाना मला आ
है। य द आप ये कह रह ह क मीरा को कृ ण क छ व से ेम था, तो आप गलत कह रही ह, य क य द मीरा कसी क
छ व से ेम कर रही है, तो फर उसे ‘मीरा’ होना पड़ेगा। फ़र उसे बोध नह ा त हो सकता। वा त वक ेम म, ‘मीरापन’ ही
वलु त हो जाएगा, गल जाएगा। मीरा, ‘मीरा’ होकर कृ ण को नह पा सकती। मीरा कृ ण को, ‘ना कु छ होकर’ ही पा सकती
है।
ान म अहंकार कहाँ पर छु पता है? क - म ानी ँ, मने यागा, मने जाना। यहाँ पर ठकाना है, ान म अहंकार का। और
ेम म अहंकार का कहाँ ठकाना है? क - मेरे ेम का कोई वषय है। साधारणतया हम ये कहते ह क मेरे ेम का वषय है,
मेरा ब ा या मेरे सगे-स ब ी या मेरे दो त-यार। पर य द ेम का वषय वो परम भी है, तो भी ेम म अभी अहंकार छु पा
आ है। अब ेम ान नही बन पाएगा।
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तो कुं दन ने कहा क ेम म होश कै से कायम रहे? ेम म ऐसे ही होश कायम रहे क सजगता रहे क ेम के नाम पर, कह म
फर उसी आकषण के खेल म तो नही फं स गया ँ? ये ेम है भी या? ऐसे होश कायम रहे।
आचाय: हाँ ब कु ल, ब कु ल बात ठ क है। इस लए दोन साथ चल। अगर अभी ये पूछने पर क ‘ कसको ये ान है?’ उ र
ये मलता है, ‘मुझको,’ तो द क़त हो जाएगी। और अब आपको एक मज़ेदार बात बताता ँ। जब तक ये पूछते रहोगे,
“‘ कसको’ ये ान?” उ र यही मलेगा क—“मुझको।” तो ेम तो उस दन जानना जब ये पूछा-पूछ ही ख़ म हो जाए।
ेम तो उस दन जानना जब ये भूल ही जाओ क अरे ये भी तो पूछना था!
आचाय: ‘ ान’ कोई सं चत संपदा थोड़े ही है क तु हारे पास होगा। ान का अथ ही यही है क - ानी कोई न रहा। तुम
पूछना चाह रहे हो क - ‘ ानी’ कहाँ रहा? ‘ ान’ का अथ ही यही है क ानी नह रहा, मा ान रहा। तो असली ेम भी
तभी जानना। या कहा था भ सू म?
“म ो भव त, त ो भव त, आ मा रामो भव त”
असली ेम तभी जानना जब ऐसी त ता आ जाए क ये पूछा-पूछ ही गई। कसको ेम आ है? कससे आ है? ऐसा
झटका लगे - ‘ त ता’। ऐसी म ती छाए, “म ो भव त”। पूछा ही नह जा रहा, “अरे! भूल ही गए पूछना। कहाँ से पूछ?
कै से पूछ? अवाक् हो गए ह। न ज़बान चल रही है, ना मन चल रहा है। तो कौन पूछे, कससे पूछे?”
,
हम कहते भर ह दावा भर करते ह क हम भोगी ह। ईमानदारी से अपने आप से पू छए - या आप भोग भी पाते हो ? आप
भोग भी तो नह पाते ना य क आपका सारा भोग इस बु नयाद पर खड़ा है क कुछ ऐसा है जो पाना है और कुछ ऐसा है ,
जो नह पाना है। तो आप भोग भी नह सकते संसार को पूणता म। ,
,
हम बात तो ख़ूब करते ह क संसार म ये मल जाए और वो मल जाए ऐसा हो जाए और वैसा हो जाए पर सच ये है क हम ,
संसार के भी नही ह। मा -
इतनी सी बात नह है क हम स य के नह ह , ,
क हम परम के नह ह हम तो संसार के भी नह ह।
द जए ?
कोई आकर आपको खा लेगा ? सड़क पर चलते हो तो कु ा काट लेगा। कोई आकर आपके पैसे चुरा ले जाएगा। कोई आकर
आपका प त या प नी चुरा ले जाएगा। कोई आकर आपक इ ज़त का हरण कर लेगा। कोई धोखा ना दे दे । और संसार म
है सू । जसने संसार को पूणता म वीकार कर लया , जसने ै त के दोन सर का वीकार कर लया वो , ै त के पार नकल
,
दरवाज़े बंद ह वो दोन के पार नकल गया।
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(मौन)
जो आप चाहे कतना स मान दे द, और चाहे जतनी बेइ ज़ती कर द, एक ही त म है, वो नकल गया, पार कर गया। ये है
संसार को भोगने का अथ। संसार को भोगने का ये अथ नह है क ब कु ल बु हीन होकर, पागल होकर इधर नोच रह ह,
उधर खसोट रह ह, उधर चाट रह ह क कु छ मल जाए। भोगने को लेकर के मन म छ व कु छ ऐसी ही उठती है। पर ये अथ
नह है भोगने का।
भोगने का अथ है- ये रहा संसार, और ये पूरा ही मेरा है। इसम से कु छ ऐसा नह है जो हणीय न हो। जो आएगा, ब ढ़या।
अब आप ए संसार के , अब आप भोगोगे।
ठ क है?
आचाय: ेमी या करते ह? आप पूछ रह ह, “ ेम म या खतरा है?” ेमी या करते ह? आप अपने चार तरफ़ लोग को
पाते ह, जनका दावा है क वो ेमी ह, वो या करते ह?
: वो बस कसी एक क तरफ़…
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: कसी एक का चुनाव।
आचाय: ‘मेरा’ ब ा।
:ए स लू सव *(के अ त र )*।
आचाय: ‘मेरा’, एक ‘खास’ ब ा। ये अहंकार आ ना? यह तो ‘म’ बचता है, ‘मेर’े क शरण पाकर ही तो?
(मौन)
: इसम प टकु लर(कु छ वशेष) नह बचता। अगर प टकु लर(कु छ वशेष) बच रहा है, तो वो कौन है?
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: सर, ये जो बता रह ह, ये उस
ेम क बात कर रह ह, हम लोग जसे समझते ह। आप मीरा के ेम क बात बता रहे थे, वो
तो फर सरी बात हो गई ना? हमारा अहंकार कहाँ फं सता है, उस चीज को समझा रहे ह ना?
आचाय: हाँ, तो यही हम जानना होगा ना क हमारा ेम ही हमारे अहंकार क शरण ली है। हम जसको ‘ ेम’ बोलते ह
साधारणतया, वह पर हम अपने अहंकार को छु पाए ए ह। कहा ना मने क ेम और ान बलकु ल साथ-साथ चल। डू बये
ेम म, म त हो जाइये और होश कायम र खये। मौज रहे ेम क , पर ये होश रहे क ये हो या रहा है। ेम के नाम पर कु छ
और ही तो नह चालू हो गया? वा तव म ये ेम है, या कु छ और? आकषण, माल कयत।
आचाय: नह दख रहा है, तो ‘तो’ का ही नह उठता। दख रहा है, तो बदल गया। एक साथ ह। य द दख ही रहा है, तो
बदल ‘ही’ गया। समय भी नह लगेगा।
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ानमाग शु होता है कौतुहल से, ान-माग ऐसे शु होता है क—‘ये है या?’ व ान ानमाग क बड़ी अ शु आत
है। “ये है या? मुझे जानना है, मुझे समझना है, मुझे मूढ़ नह रहना है,” ये ानमाग क शु आत है। और ये आपके सं कार
पर ही होता है। हर शु आत आपक कं डीश नग से ही नकलती है। आपका मन कै सा है?
तो एक मन होता है, कौतुहल वाला, इसे आमतौर पर ‘पु ष मन’ कहा जाता है। पु ष आमतौर पर ानमाग होता है। उसे
जानना है, खोजी मन है। उसे हर चीज क जानकारी चा हए। उसे भरना है और, मन को। उसे अपने आप को ये सां वना दे नी
है क—‘मेरे पास ान का बल है, म जनता ’ँ । शु आत यहाँ से करेगा।
ेम शु होता है आकषण से, ेममाग लेकर के वह जाएगा जहाँ ान-माग लेकर जाता है। पर उसक शु आत होती है
आकषण से। ान क शु आत होती है कौतुहल से, ेम क शु आत सदा आकषण से होती है। य को आमतौर पर
ेममाग माना गया है। वो आक षत ज द होती ह।
: या ये य म ही होता है?
आचाय: ऐसा कु छ नह है। पु ष और ी कोई दो शरीर नह ह, मन क दो अव ाएँ ह। एक मन होता है, जो कहता है,
“जानूँगा।” ये एक कार का आ मण होता है क—जानूँगा। वो फू ल के पास जाएगा तो कहेगा क इसको समझना है,
जानना है। वो फू ल को काट-पीट के भी जानना चाहेगा। आपने दे खे ह गे ब े जो खलौन को ब त ज द खोल दे ते ह। और
आपने दे खे ह गे ब े, जो खलौन को अपने साथ ब तर पर सुला लेते ह। ये दो अलग-अलग तरह के मन ह।
एक ब ा है जो खलौने को काटकर, उसके अंदर घुस जाना चाहता है क मामला या चल रहा है - ये ानमाग है। और
एक ब ा है, जो खलौने को सीने से लगा कर के ब तर म अपने साथ सुला लेता है - ये ेममाग है।
(मौन)
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: सर, जब हम बड़े हो जाते ह तो ये लगभेद मह व नह रखता। और फर अगर हम अपने अनुभव से, ानमाग या
ेममाग कु छ भी हो सकते ह।
आचाय: हाँ, हाँ, मने कहा तो ये शरीर क बात नह है। ये मन क दो अव ाएँ ह। और ऐसा भी नह है क आप पूर-े पूरे ही
ानमाग रहोगे। वो दोन कार के मन हर के भीतर मौजूद ह, चाहे पु ष हो या ी। चाहे पु ष हो या ी, वो दोन
मन हर एक के भीतर मौजूद है। ठ क वैसे ही, जैसे चैत य महा भु सड़क पर नाच सकते ह, और ठ क वैसे ही जैसे मैरी यूरी
वै ा नक हो सकती ह। उसी तरीके से ये दोन मन येक के भीतर मौजूद है।
आचाय: नह , आगे बढ़ते र हये। ये तो आ ख़री सवाल होता है क सब कु छ छोड़ दया पर कह अपने आप को तो नह पकड़
लया। ये तो आ ख़री सवाल है। अभी तो अगर दख रहा है क कु छ कचरा है, तो कटने द जए उसको, ानी तो काटता है।
और यही उसक ताक़त है, यही उसका बल है, यही उसक परी ा भी है क वो काट पा रहा है या नह काट पा रहा है।
ये आ ख़री सवाल होता है, जो उसे पूछना पड़ता है अपने आप से क सब कु छ तो काट दया, पर अपने आप को य ढो रहे
हो। अब इस अहंकार को भी काटो। ‘तुम कसी से अब जुड़े ए नह हो, बात ब कु ल ठ क है, तो फर अपने आप से ही य
जुड़े ए हो? उसको भी काटो,’ ये आ ख़री सवाल होता है उसका।
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: सर, अभी हमने
वचार- वमश कया क शु आत कै से होती है, अब अगर समझना है क वक सत कै से होता है, तो मेरी
समझ से, ानमाग म ग त करने से होती है।
आचाय: ान-माग म ग त होती है, संकुचन से - काट-काट कर, काट-काट कर। और ेम माग म ग त होती है व तार से,
और को अपने ेम के दायरे म ला-ला कर, ला-ला कर। ानमाग अपने जीवन से व तु को घटाता जाएगा, घटाता
जाएगा, घटाता जाएगा। और ेममाग अपने जीवन को और भरता जाएगा, और भरता जाएगा। वो कहेगा, “अब मेरा घर ही
मेरा घर नह है, ये पूरा मोह ला मेरा।” उसके दायरे बढ़ते जाएँग,े बढ़ते जाएँगे।
(मौन)
: सर, म ओशो क एक कताब पढ़ रहा था, उसम उ ह ने कहा था क समय के कसी एक ब पर आपको एक ही माग पर
होना चा हए, य क अगर आप एक रा ते पर गए और आप फर कसी और पर, तो हो सकता है…
उ ह ने ठ क कहा, एक साथ दो नाव पर पाँव रखोगे, तो कह के नह रहोगे। य द कसी या का पालन करना है, य द
कसी बंधी-बंधाई या पर चलना है, तो उसके साथ छे ड़खानी मत करो। जो उसके नधा रत कदम ह, या के , उनका
अ र- अ र पालन करो। ठ क है न? वो याhttps://www.The-Gyan.in
के लए है। ये याएँ नह ह।
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‘होश’ कोई या नह है, ‘ ेम’ कोई या नह है। ‘ ान’ या न होश। ये याएँ नही ह। ये साथ चलती ही ह।
और प का जानना क जैसे-जैसे तु हारा ान गहरा होगा, तु हारा ेम बढ़े गा। ऐसा हो नह सकता क तुम ान म गहरे होते
जाओ, और तु हारा ेम समटता जाए। ऐसा हो नह सकता।
: वो फर अहंकार है?
आचाय: हाँ, और ये भी प का जान लो क जैसे-जैसे तु हारे ेम म मठास आएगी, वैसे-वैसे तुम ऐसी बात जानने लगोगे, जो
तु ह पहले पता ही नह चलती थ ।
ान बढ़े गा, ेम बढ़े गा, और ेम बढ़े गा तो ान बढ़े गा। ये दोन एक सरे के साथ ही चलते ह। ये याएँ नह ह। ानी,
ेमी होकर रहेगा। ऐसा कोई अगर ानी मले जसके जीवन म मठास नह , तो उसे फर अहंकारी समझना, क कु छ और
नह है, ये इनसाइ लोपी डया है।
और अगर कोई ऐसा ेमी मले, जसके जीवन से सफ मूढ़ता टपकती हो, वो ये तो बार-बार बोलता हो क—“पीया याला
ेम का,” पर होश जैसा कु छ दखाई ना दे ता हो, तो उसको समझ लेना क ये ेम नह जनता, ये आस आदमी है। एक
साधारण भोगी भर है ये।
ेम और ान एक साथ ही चलते ह।
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: सर, कभी-कभी ऐसा होता है
क पढ़ने म जैसे अवधूत गीता लया या अ ाव गीता लया, तो थोड़ा-सा मन साफ़ हो
जाता है पर इतना खापन आ जाता है, अचानक मन इतना बैठ जाता है क कह मीरा को सुन, कबीर को, सुन तो एक
बदलाव होता ही रहता है।
आचाय: हाँ, हाँ, अपने आप होगा, अपने आप होगा। अगर आपने उसको पकड़ ही ना रखा हो, तो आप अपने आप समझ
जाएँगे क अब अगला क़दम या है।
.........
(अ ै त बोध ल, 2014)
वह मलेगा ेम
य द तू मु चाहता है तो वषय को वष के समान छोड़ दे और मा, आजव (सरलता), दया, संतोष और स य को अमृत के
समान हण कर।
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~अ ाव गीता (अ याय १, ोक २)
तो है: अ ाव ने दया क बात य क है? या अथ है ‘दया’ का? बातचीत अभी शु हो रही है, गु श य मले ह।
बस पहला ही सोपान है अभी, कोई ऊँ चाईयाँ नह हा सल ई ह। पहला अ याय, सरा ोक है। अभी तो अ ाव बस ये
दे ख रहे ह क, या है जो श य के मन को आ ा दत ही कये ए है, मन पर चढ़ा ही बैठा है, मन को ढ़के ए है।
तो वो कह रहे ह—“वो सब वचार, वो सारी बात, वो सारे भाव, जो तु हारे मन से उतरते ही नह ह, जनके बारे म तुम
लगातार सोचते हो, जो च कर काटते रहते ह भीतर, सबसे पहले तो ज़रा उनके त चेत जाओ।”
जनक अभी ‘मु ’ श द का आ यां तक अथ समझते भी नह ह। उनके पास तो मु का बस ख़याल है। उसको ले करके वो
आ गए ह अ ाव के पास और ाथना क है क—“गु , मु चा हए।” जब श य आता है गु के पास और कहता है,
“मु चा हए”, तो कृ या यह न समझ क कोई ख़रीददार कसी कानदार के पास आया है क दाल-चावल चा हए।
अंतर या है? ख़रीददार कानदार के पास आता है तो उसे पता होता है क उसे या चा हए, और उसे उसके अ त र कु छ
दया भी नह जा सकता। य क वो कु छ लेने आया है और वो उसको लेने के बाद भी वही रहेगा। बस उसके हाथ म एक
सामान होगा जसे वो एक व तु क भाँ त इक ा करके वापस लौट जाएगा।
गु के पास जब श य आता है तो वा तव म उसे पता भी नह होता क वो या लेने आया है। पर चूँ क कु छ तो कहना ही है,
तो कह दे ता है क मु लेने आया है। कोई यह न सोचे क मु दाल-चावल है, क वो ठ क-ठ क बता पाएगा क, “गु ,
मुझे मु चा हए,” और मु ऐसी-ऐसी होती है।
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श य अगर इतना ही जानता होता क मु या चीज़ है, तो मु ही होता। वो तो कु छ भी आकर के यूँही बोल दे ता है और
गु ब त यादा मह व भी नह दे ता क यह बोल या रहा है। वो आकर बड़बड़ा-सा रहा है—“ ेम चा हए, आनंद चा हए,
मु चा हए, ये चा हए, वो चा हए।”
(सब हँसते ह)
(मुकु राते ए) आप ये भी न सो चए क जनक को मा, या दया, या आजव, या स य का अभी आ यां तक अथ पता है।
जैसे उ ह मु का कु छ नह पता, वैसे उ ह इसका भी कु छ नह पता। अभी तो बात ऐसे चल रही है जैसे कोई आसमान से
बोल रहा हो, कसी धरती वाले से। उनके लए बात के अथ ही अलग ह, और ये धरती पर ह। संवाद हो पा रहा है, यही
चम कार है। बातचीत हो पा रही है, यही बड़ी वरलता है।
असल म ये सब भाषा का धोखा है। गु जानबूझ कर ये धोखा कायम रखता है ता क श य को लगे क उसक बात समझी
जा रही है। नह तो जब श य बोलता है ‘ ेम‘ और जब गु बोलता है ‘ ेम’, तो दोन एक ही बात थोड़े ही कह रहे ह। जब दो
अलग-अलग बात ह, तो तब दोन के लए अलग-अलग श द भी होने चा हए। पर भाषा का धोखा यह है क वो ज़मीन के
लए और आसमान के लए श द एक ही रख लेती है।
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ये बड़ा अ ा धोखा है, बड़ा यारा धोखा है, बड़ा उपयोगी धोखा है। इसी के कारण कोई कसी क मदद कर पाता है। तो
‘स य’ या है? ये जनक नह जानते। ‘शू यता’ या है? ये भी जनक नह जानते। ‘आजव’ या है? ये भी जनक नह जानते।
ले कन जनक का मन इनसे हट करके बाक चीज़ से तो भरा ही आ है ना। ‘ ेम’ या है? ये जनक नह जानगे। ले कन
‘मोह’ और ‘घृणा’ या है, ये जनक ज़ र जानगे।
जो जानता है, उसके लए ेम या है? वो जो घृणा और मोह दोन से हटकर है। जो नह जानता, उसके लए ेम या है? वो
जो घृणा का वपरीत है।
अब गु को बड़ी सु वधा है। अब गु को अगर ये कहना पड़ता क “ ै त क नया को छोड़कर तू ज़रा अ ै त म आ जा,” तो
श य को न कु छ समझ म आता, न श य को कु छ भरोसा आता, और न श य गु के पास आता। पर भाषा ने काम आसान
कया। अब गु को बस इतना बोलना है क—“तू एक काम कर, तू घृणा छोड़ दे । या तू एक काम कर, तू ेम का पान कर।”
श य को लगेगा, “ठ क। ये तो ठ क बोला। बात जो भी कही, वो मेरे े के भीतर क कही। मुझसे या कहा गया है? ेम
कर। और ेम तो म जानता ँ। और ेम या है? घृणा का वपरीत। या मुझसे या कहा गया है? घृणा छोड़ दे । घृणा या है?
वो जससे मेरा मन भरा रहता है।”
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‘ मा करने’ का अथ होता क—बदला, ृहा, म सर, ये सारे भाव जो मन म भरे ए ह, उ ह छोड़ो।
राजा ह जनक। हज़ार नयम बनाते ह। उन नयम को फ़र तोड़ने वाले भी होते ह। इतने श ु ह, इनको जीतना है। यह कह रहे
ह, “इ ह छोड़ो। सारी बात जो मन म भरी ई ह, उनको छोड़ो। मा क ओर आओ।”
जनक अगर सुन रहे ह, ‘ मा‘, तो जनक के लए ‘ मा’ का अथ है – बदले क भावना ख़ म करो। तकार नह करना है।
जनक के लए मा का यही अथ है। और अभी इतने से ही शु आत क जा सकती है क – ‘ ै त का एक सरा छोड़। एक
छोड़ेगा तो सरा अपने आप छू ट जाएगा। फ़र तू दोन से छू टकर वा त वक मा म वेश करेगा’।
अ ाव के लए मा का कु छ और अथ है।
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“तो अब कोई कतनी भी चोट प ँचाता रहे, हम बदला या लेना है? हम चोट लगती ही नह ”- पर ये अथ अ ाव के लए
है। जनक यह अथ नह जानगे। ले कन जो अ ाव के वचन ह, वो जनक के लए, नए-नवेले श य के लए सु वधापूण ह।
ये उपाय है गु का – ‘ये अभी-अभी आया है, इसको तो कोई सरल काम ही दो, जससे ये शु आत कर सके ’। तो उसको ये
काम दे दया गया है क – ‘भाई, संतोष का पान करो’। राजा है, और राजा को पता है क उसक इ ाएँ पूरी होती ह। जब
बड़ी इ ा पूरी होती है, तो इ ा और बड़े क हो जाती है। राजा को ज़ री है ये कहना क—“तुम संतोष का पान करो,”
य क राजा क इ ा का कोई अंत नह हो सकता।
तु हारी जो इ ाएँ ह गी, राजा क इ ाएँ उनसे सौ गुना बड़ी ह गी य क न यानवे तक वो पहले ही प ँचा आ है। तो
उसको बोला गया- “तू संतोष कर ले। तेरा मन इ ा से भरा आ है।”
संसारी मन के लए ‘इ ा’ होती है, नह तो ‘अ न ा’ होती है। ( ोतागण क ओर इशारा करते ए) समझो बात को! हमारे
साथ ऐसा होता है क – ‘या तो मेरा वो करने का मन है, या तो मेरा वो करने का मन नह है। मनातीत को म जानता नह ।’
तुमको कोई काम बताया जाए, तो तु हारे पास दो ही उ र ह गे। तुम कहोगे, “मुझे करने का मन है,” या तुम कहोगे, “मुझे
करने का मन नह ह।” इन दोन के अलावा एक तीसरा जवाब भी हो सकता है, उसको तुम जानते नह । गु उस तीसरे
जवाब म त होता है।
पर उस तीसरे म श य आ सके , उसके पहले उसे इ ह एक-दो म घुमाना पड़ता है। एक-दो म ऐसे घुमाना पड़ता है क ये
एक-दो ज़रा साफ़ ही हो जाएँ। फ़र उसको तीसरे म ख चा जा सकता है क – ‘अब तू आ, क तू एक-दो से मु आ। अब
ज़रा तीन म प ँच।’ यही कारण है क इस व ध का गु ने ख़ूब उपयोग कया है।
कु छ सू फ़य ने कहा क “इ क़-ए-मज़ाज़ी, इ क़-ए-हक क क सीढ़ बन जाता है। वो ऐसे ही कहा। उ ह ने कहा, “तुमसे
जब हम बोलते ह, ‘ ेम’, तो तुम ेम का एक ही अथ जानते हो – कसी सरे इंसान के त खचाव। तो चलो तुम ऐसा करो
क तुम वही कर डालो। हम नह एतराज़ करते। तुhttps://www.The-Gyan.in
म माँ-बेटे का, या भाई-भाई या दो त-यार, या ेमी- े मका का, तुम ये ही
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खेल खेलो। जतनी जान है, उतनी जान से खेलो। ये खेल तो तुम हार जाओगे, पर ये खेल तु ह थका-थका कर कह और
प ँचा दे गा।”
इ क़-ए-मज़ाज़ी हमेशा हारेगा य क जो तुम खोज रहे हो, वो तु ह कसी इंसान म मल ही नह सकता।
तो इसी लए जब तुम अपने ेम- संग बनाने नकलते हो, तो उ ह असफल होना ही होना है। ले कन वो असफलता तु ह सरे
खेल म जता दे गी। तो सूफ़ कहते ह, “ठ क! तुम जाओ। यही कर लो।”
तुम मी के वचन दे ख लो, कभी-कभी जीसस के भी। जब वो ‘ ेम’ क बात करते ह तो जो बात आदमी और परमा मा के
लए कही जानी चा हए, वो ऐसी कही होती है क आदमी और औरत के लए भी उपयु हो जाती है। यह संयोगवश नह है।
ये गु क ब त गहरे बोध से उठ ई व ध है।
या मीरा को ले लो। मीरा जस भाव से कृ ण के लए गाती ह, कोई े मका अपने शरीरी ेमी के लए भी ऐसे ही गा सकती
है। ये भी व ध ही है क—तुम इसी भाव से कसी इंसान को भी पुकार लो। पर इंसान से ब त नह पाओगे, वहाँ तो हारोगे।
ले कन कु छ और मल जाएगा।
अनाड़ी मन जो होता है उसके लए ज़मीन का ेम, ज़मीन से बंधे रहने क ज़ंजीर बन जाता है। और जो ानी होता है उसके
लए ज़मीन का ेम, आसमान म उड़ने का पंख बन जाता है।
जमीन तु हारा बंधन भी है और तु हारा अवसर भी। इसी से चपके रह गए और यान न दया और सम पत न ए, तो इससे
बड़ा बंधन नह है।
.........
(अ ै त बोध ल, 2015)
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कता :‘ ेम अधूरा होता है ’—यह या है ? ओशो जी बता रहे थे, ओशो-धारा के एक कायकम म सुना था, क ‘ ेम अधूरा
:
आचाय तु हारी उ मीद जगा रहे थे। जब वो बोल ‘अधूरा’ तो बस इतना समझ लो क पूरा नह । ‘पूरा नह ’ का अथ ये भी हो
सकता है क ‘कुछ भी नह ’।
आचाय एक : ,
सरे से जब भी खच रहे हो तो कहाँ क क सुध रहेगी ? कहाँ सुध रहेगी?
:
आचाय अलौ ककता का …
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: वही बोल रहे थे अधूरा होता है।
आचाय: य द दोन सर पर पूण बैठा आ है, तो उनका स ब अपूण कहाँ से हो जाएगा? ‘अपूणता’ का तो अथ ही है क
अपूण, और अपूण के म य का स ब । ‘अधूरा’ माने अपूण। पूण के साथ अपूण का र ता कै से रख लोगे?
: उसी तरह से कु छ खाया- पया, खाएँग-े पीएँगे तो डकार आ ही जाती है, पर ेम म ऐसा नह है।
आचाय: ेम म भी और चीज़ आ जाती ह। या अंतर है? भूख लगती है रोज़, खा-पी लेते हो, उसके बाद वायु का उ सजन
कर दे ते हो। ेम म भी रोज़ाना कतनी चीज का उ सजन करते हो, ठ क है।
: ये तो लड़ाई का
वषय हो गया। प नी से बोलगे क अधूरा ेम करता ँ तो वो तुरंत लड़ाई कर दे गी। पूरा तो होता ही नह है
—ये तो लड़ाई का वषय हो गया।
भगवन से कहगे क आधी-भ करता ँ, पूरी तो होती ही नह । ेम अधूरा होता है, तो पूरा या होता है?
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आचाय: अधूरेपन क बात अधूर से नह क जाती, अधूरेपन क बात पूर से ही क जा सकती है। इसको समझना। अधूरे से
अधूरे क बात करोगे तो वो सफ़ च के गा, थत होगा, काटने को दौड़ेगा। ‘पूरा’ माने—शांत।
अभी तुमसे कह सकता ँ क ‘अधूरे हो’ य क तुमको एक माहौल बनाकर पूरेपन म ा पत कया है। अभी सुन लोगे मेरी
बात। अभी ब त-बुरा नह लगेगा।
पर यही बात तुमसे बाज़ार म कोई बोल दे , तो उसका गला पकड़ लोगे य क वहाँ पर अधूरेपन क बात ‘अधूर’े से क जा
रही होगी। अभी अधूरेपन क बात कर सकता ँ य क पूणता म ा पत कया है तु ह, और वही मेरी बात समझ भी पा रहे
ह गे जो ा पत ए ह। जो नह हो पाए, वो मेरी बात से बस े ष रख रहे ह गे, मन ही मन मुझसे लड़ रहे ह गे, मन ही मन
वरोध कर रहे ह गे।
पूरे हो जाओगे तो अधूरापन यूँ ही खेल- खलौना, छोट -मोती बात लगेगी। और अधूरे रहोगे और कोई बोल दे गा — ‘अधूरा’,
तो ऐसा लगेगा जैसे मुँह पर तमाचा मार दया हो।
आचाय: उनके लए खेल है, मनोरंजन। अभी कहा तो उ ह कोई वर, वेदना, कु छ नह उठे गी। वो सुन लगे, वो कहगे, “हाँ
बात ठ क ही है।”
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भ का आधार या है?
ज ल थ ल महीअ ल भ रपुरी लीणा घ ट घ ट जो त तु हारी।
आचाय शांत: ( ोक का अथ पढ़ते ए) “जल म, थल म, आकाश म, तुम सव य व मान हो। जल, थल, आकाश, तुम ही
व मान हो। तु हारा काश हर दय म है।”
सवाल यह है—“‘तुम’ श द का योग कया गया है—तुम ही व मान हो, तु हारी ही यो त है—तो कसी बाहरी का नाम
लया जा रहा है ‘तुम’ कह कर। अपने से अलग कसी क ओर इशारा कया जा रहा है। तो या फ़र मू त पूजा भी ठ क
ई?”
जब ‘तुम’ कहा जा रहा है— व ध है, तरीका है। भ ‘तुम’ कहते-कहते अंत नह हो जाती। भ का अंत या है? ‘तुम’
और ‘म’ एक ए। म तुम आ, तुम म ए। उसी को फ़ना कहते ह। उसी को योग कहते ह— वलय, संयोग, मलन।
म खं डत ,ँ वो अखंड है।
म प म ,ँ वो अ प है।
म सी मत ँ, वो असीम है।
तो म उसे यह कै से कह ँ क वो म ँ?”
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भ बड़ी ईमानदारी के ब से शु होती है। भ कहती है, “वो जो कु छ है, उसके वषय म मुझे जो कु छ कहा गया है और
उसके वषय म जो भी मुझे झलक मलती ह, उनके आधार पर इतना तय है क म अपने आप को जो मानता ँ, मुझसे वो
सवथा भ है। जब वो मुझसे इतना भ है तो उ चत यही है क म उसे ‘तू’ क ।ँ म उसे ‘म’ नह कह सकता अभी, अभी तो
नह ही कह सकता। इतने अलग-अलग ह हम, म उसे कै से कह ँ ‘म’? म नह क ँगा। ‘म’ नह क ँगा, ‘तुम’ ही क ँगा।
“‘तुम’ ‘म’ उस दन बनेगा जस दन म ‘उसके ’ जैसा हो जाऊँ गा। और ‘उसके ’ जैसे होने का मतलब है क अभी म जैसा ँ,
जब ये वग लत हो जाएगा, तब म क ँगा क—‘म’ और ‘तू’ एक ए। तब तक तो मेरी इतनी है सयत नह , साहस होगा।
तो मुझे ‘तू’ ही कहने दो।”
यही भ का आधार है क— “‘तू’ क ँगा, ‘म’ नह क ँगा।” ानी या कहता है? वो शु से ही ‘म’ कहता है। भ ‘म’
कहता ही नह , भ ‘तू’ कहता है।
आचाय: ानी इतने से तो शु कर ही लेता है क ‘तू’ भी कहने के लए ‘म’ का होना आव यक है। तो, ‘तू’ से पहले कौन
आया? ानी यहाँ से शु करना चाहता है। ानी कहता है, “ठ क है! गाड़ी ख़राब है, म इसे ले जा रहा ँ मैके नक के लए,
पर गाड़ी इतनी तो चल ही रही है क इसी म बैठ कर के म मैके नक के पास जा रहा ँ।” नह समझे बात को?
“ठ क है मन ख़राब है, मन वकार से भरा आ है, पर इसी मन क सवारी करके तो म ये जान पा रहा ँ न क मन वकार
से भरा आ है। ये भी मुझे कसने बताया क मेरा मन ख़राब है? इसी मन ने बताया। इसका मतलब इस मन म इतनी शु
तो है ही क मुझे ये बता सके क म वकार से भरा आ ँ। गाड़ी ब त ख़राब है पर अभी भी इतना तो चल ही रही है क
उसी को चला कर के म...?”
भ यहाँ से शु ,
करता है भ कहता है , “यह गाड़ी इतनी यादा ख़राब है क मेरा मन ही नह करता इस गाड़ी को ‘गाड़ी’
,
क ँ। यह गाड़ी नह है यह ड बा है। इसको म गाड़ी उस दन क ग
ँ ा जस दन यह ‘गाड़ी’ जैसी लगेगी। अभी तो इ ा ही
,
चाहे इधर से चलो चाहे उधर से चलो।
: ले कन हर इंसान तो इन दोन -
तय म उतार चढ़ाव करता रहता है।
: - - ,
आचाय उतार चढ़ाव करता ही रहता है। दोन अलग अलग नह ह दोन अलग अलग नह ह। दोन मूलतः एक ही ह।-
:
आचाय ठ क है।
: आचाय जी, कल म सुबह भजन सुनने लगा था, बड़ा म त हो गया था। और फ़र मने सोचा क यही काम शाम को करता
ँ। हो यह रहा था क म वही री ,
एट करने क को शश कर रहा था और हो नह रहा था। म यह समझना चाहता ँ क
:
आचाय जब तुमने मन पर ही आधा रत एक छ व बना ली है तुमने कहा न , ‘री एट ’—पहले ,
आ था दोबारा होना चा हए।
,
जब मन पर ही आधा रत छ व बना ली है तो मन शांत कैसे होगा ? मन तो ख़ुद ही तलाश कर रहा है अब उसी पुराने अनुभव
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क —री एट। तो अब मन शांत कै से होगा?
तुमने मन को एक ज़ मेदारी दे द है क – ‘जा और पुराना अनुभव दोबारा ले कर के आ।’ और तुम कह रहे हो, “मन शांत
नह हो रहा।” कै से शांत होगा? मन या करेगा? वो पुराने अनुभव को खोजने गया आ है, ख़ोज रहा है उसको वो। कै से
शांत होगा?
.........
(अ ै त बोध ल, 2014)
गु कसको मान?
~ संत कबीर
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कता: ‘आप समाना’ कै से होए?
( कता क ओर दे खते ए) च, एक सरे मौके पर कबीर कहते ह—“स ी ी त सोई जा नये, जो सतगु से होये।”
ी त तो सारे ही करते ह, मन कह भी जाकर अटक जाता है। और इसी अटक जाने को, इसी छछोरे आकषण को हम ‘ ेम’
का नाम भी दे दे ते ह। वो सुना है न फ़ मी गाना—“हाँ! मुझे यार आ, यार आ अ लाह मयाँ”? वो अ लाह को बता रही
है क—“हाँ मुझे यार आ, यार आ।” कससे आ? अ लाह को बताने जा रही है क यार आ, तो आ कससे है
फ़र?
हमने तो यही जाना था क यार सफ़ अ लाह से होता है, और ये बताने जा रही है—“हाँ मुझे यार आ, यार आ!” यार
आ कससे है? अ नल कपूर से। (उस अ भनेता का नाम लेते ह जो इस गाने म अ भनय कर रहे ह) ! अ नल कपूर से यार
आ है, अ लाह को ख़बर द जा रही है, गज़ब हो गया! कान को बड़ा आकषक लगता है ये गाना, सुनो तुम। बीट्स (थाप)
के साथ है। ये हमारे जवान दो त बैठे ह, नाच ही दगे, ख़ासतौर पर आ शक क म के ।
(गाने के बोल गाते ए) “भरी बरसात म इकरार आ अ लाह मयाँ। हाँ! मुझे यार आ, यार आ अ लाह मयाँ!”
आचाय: ठ क है?
गु को अपनी छ वय म कै द मत करो। इंसान नह होता है गु । सू मतम प से जो बोध तु हारे भीतर अव त है, उसी का
नाम ‘गु ’ है, य क वही अके ला है जो तु ह अँधेरे से, रोशनी क ओर ले जाता है। बाहर बैठा इंसान कु छ नह कर सकता,
अगर तु हारे भीतर से वो ेरणा ही नह उठ रही।
इसी कारण कहते ह, “ थम गु आ मा है,” य क बाहर वाले के पास तुम जाओगे ही नह , अगर भीतर वाला तु ह दशा
नह दखा रहा है। बाहर वाला च लाता रहेगा, तु ह पुकारता रहेगा, तुम जाओगे नह । यहाँ जतने बैठे ह, उससे कई गुने वो ह
ज ह म बुलाता ,ँ पर आए नह । (एक ोता क ओर इं गत करते ए) य वीण? इससे पूछा मने, “सात जनवरी को
पछली बार आया था, अभी य ?” तो बोलता है, “वो कॉलेज म एक-आध घंटा तो आपसे ब हो ही जाते ह, तो ज़ रत
या है?”
जब भीतर वाला तुम पर कृ पा न कर रहा हो, तो तु हारे मन म ख़ूब ऐसे कु तक उठगे, और फर बाहर वाला तु हारी मदद कर
नह सकता। डॉ टर भी इलाज कब करता है? जब पहले तुम डॉ टर के …?
: पास जाओ।
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आचाय: पास जाओ।
जब भीतर का डॉ टर ेरणा दे ता है ना, तब तुम बाहर वाले डॉ टर के पास जाते हो। बाहर वाले डॉ टर से कह यादा
क मती और मह वपूण ये भीतर वाला होता है। इसी लए ये भी कहा गया है क जो बाहर वाला है, वो बस भीतर वाले का एक
बब है। भीतर वाला ही साकार होकर, बाहर वाला बन जाता है।
होता या है, क हमने ‘गु ’ श द को और ‘ श क’ श द को, इन सारे श द को एक म जोड़ दया है। ब कु ल खचड़ी बना
द है। तो हम पता भी नह चलता क—‘गु ’ माने या, ‘अ यापक’ माने या, ‘ श क’ माने या। ‘ श क’ और ‘ श क’
माने या। हम इन सब को एक ही बना दे ते ह।
‘गु ’ ब कु ल ही अलहदा बात है। ये कहते ए ज़रा ख़याल कर लया करो क—‘फ़लाना मेरा गु है।’ अभी नया-नया शौक
है, तो तुमम से कई लोग मुझे ही गु बोलने लग गए हो। वो भी, म कहता ँ, क ज़रा चेत जाएँ! या तुम मेरे पास अपने
भीतर वाले से मागद शत होकर आते हो? मुझे गु तब ही कहना, अगर मेरे पास अपने भीतर वाले के कारण आते हो। अगर
मेरे पास, मेरे कारण आते हो, तो म गु नह हो सकता।
बाहर ‘गु ’ उसको ही बोलो, जो तु हारे भीतर वाले जैसा हो ब कु ल। भीतर नराकार है? वो नराकार जब बाहर साकार हो
गया हो, तब जो बाहर है, उसको ‘गु ’ बोलना। https://www.The-Gyan.in
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तो तु ह हक़ तभी है मुझे ‘गु ’ बोलने का, जब म तु ह तु हारे आ मा के प जैसा लगूँ। जब तुम मेरे पास इस कारण आओ
क तु हारे भीतर कु छ है, जो तु ह मेरे पास भेज रहा है, तुम तभी मुझे अपना ‘गु ’ कहना। पर नह , ऐसा होता नह ।
तुमम से यादातर लोग यहाँ इस कारण आते हो क म तु ह ख च रहा ।ँ और ‘म’ माने? एक , एक शरीर, एक दे ह।
मने कु छ व धयाँ बना रखी ह, कु छ नयम-क़ायदे बना रखे ह, जनके कारण तुमम से यादातर लोग यहाँ आ जाते हो। म वो
व धयाँ हटा ँ, तुम आना बंद कर दोगे। तुम अपनी आ मा क पुकार से यहाँ पर नह आते। म तु हारा गु तब आ, जब म
तु हारे भीतर बैठा ।ँ
पर तुमने तो परंपरा ही बना ली है क, ‘गु ’ कसको बोलगे? जो तु हारे सामने बैठा हो, जो तुमसे बाहर बैठा हो। म तुमसे कह
रहा ँ—गु , कोई भी या म, तब आ, जब तु हारे सामने नह , तु हारे भीतर बैठा हो। और ऐसी त है नह । आज वो
नयम-क़ायदे हटा दए जाएँ, तुम कल से आना बंद कर दोगे।
गु होना तो बड़ी महीन, बड़ी दै वीय, बड़ी आ या मक, बड़े ेम क घटना है। ब कु ल दल से दल का नाता है। गु से
नयम-क़ायदे का नह , आँसु का र ता होता हैhttps://www.The-Gyan.in
। वहाँ र ता ही तब बनता है, जब आँसू ब कु ल सफ़ाई कर दे ते ह - जैसे
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दल क ज़मीन पर आँसु का प छा लगाया हो। इतनी सफ़ाई होनी चा हए। वहाँ चालाक और चतुराई नह हो सकती, वहाँ
धोखेबाज़ी नह हो सकती।
.........
(अ ै त बोध ल, 2014)
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तुम ही मीरा, तुम ही कृ ण
कता: आप मीरा जी के यार को या नाम दगे? आप उसे भ बोलगे, या उसे कृ ण के त यार कहगे?
: सर, जस ीत।
आचाय: तो जस ीत हम अपनी बात कर। मीरा ए बना, मीरा को जान नह पाओगे। बाहर-बाहर से दे खोगे, र- र से
समझने क को शश करोगे, कु छ बात बनेगी नह । जो तुम हो नह , उसको तुम जान सकते नह । मीरा या है और उसका
कृ ण से या स ब है, इसके लए मीरा ही होना पड़ेगा।
तुमने जो कभी खाया नह , उसका वाद कै से बताया जाए श द से? तुमने जो पानी कभी पीया नह , वो यास कै से बुझाएगा
तु हारी? और उसके बारे म म कु छ बता भी ँ क एच.टू.ओ. होता है, और दनभर बताऊँ और सब समझा ँ क - कौन-
कौन से ब ड होते ह, कॉवेलट ब ड या होता है, हाइ ोजन ब ड या होता है, तो या यास बुझ जाएगी?
मीरा और कृ ण के बारे म तुमको नया भर क कहानी सुना भी ँ तो होगा या? मीरा और कृ ण होना पड़ेगा ना! इसी लए
कहा क अपनी बात करो क, “हम कहाँ पर खड़े ह,” और वही असली सच है।
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आचाय: अगर-मगर का सवाल नह है। या है ऐसा?
आचाय: वैसा जान-जान के नह बना जाता। जब तुम कहते हो क ‘जान’ कर बनना है, तो तुम ये कहते हो क भ व य म
बनना है। कु छ होगा तब बनगे। और अभी या ह? आधे-अधूरे। भ व य म या हो जाएँगे? पूरे। अभी ह अधूर-े यह पर चूक
हो जाती है।
अगर म तुमसे कह रहा ँ क मीरा ए बना, मीरा को नह जाना जा सकता, तो ये इसी लए नह कह रहा ँ क उसम कोई
यो यता है। इसी लए कह रहा ँ क मीरा तुमम ही बैठ ई है और इसका तु ह पता ही नह है। उसको जब याद करेगी, तो
सब समझ जाएगी अपने आप। ये याद दलाने क को शश कर रहा ँ।
अभी मीरा है वो, तुम सब मीरा हो, और आगे मज़े क बात - कृ ण भी तु ह हो। जान बस जाओ क मीरा या, कृ ण या,
तो सब अभी होगा। वो जानना भ व य म नह है, अभी है।
मीरा कृ त है। तुम म जो कु छ तु ह कृ त से मला है, वो मीरा है। ये शरीर, ये मन, जो कु छ भी तु ह कृ त ने दया है, वो
मीरा है। कृ ण चैत य है। वो कृ त पर नभर नह करता, वो कृ त का सा ी है। वो दे खता है कृ त को, और कृ त के
साथ है - सा ी प म।
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तुम सा ी तभी हो सकते हो जब करीब आ जाओ। मुझे कसी को दे खना है, तो बड़ा करीब आना पड़ेगा। ब त ही क़रीब! इस
करीब होने को ही ‘कृ ण का रास’ कहते ह क - कृ ण कृ त के बड़े करीब आ गए। पु ष कृ त के पास आ गया। इसी को
बोलते ह—‘चैत य हो गया’।
चेतना या है? कृ ण। और मन या है? मीरा। कृ ण भी तु ह म, मीरा भी तु ह म - इन दोन को मल जाने दो। इसके बाद
ऐसे ही नाचोगे जैसे मीरा नाचती थी, उतने ही ख़ुश रहोगे जतनी मीरा ख़ुश रहती थी। तु ह मीरा हो, और तु ह कृ ण हो। पर
ये तब तक तुम समझ नह सकते, जब तक वो मीरा सोई पड़ी है, जब तक वो मीरा र है कृ ण से।
मीरा, ‘मीरा’ तभी है जब तक वो कृ ण के पास है। और कृ ण भी ‘कृ ण’ तभी ह जब मीरा उ ह याद कर रही है। राधा और
मीरा ही कृ ण पर नभर नह ह, कृ ण को भी उनका साथ चा हए।
मीरा है तु हारे हाथ, तु हारे पाँव, तु हारी ख, तु हारी जबान, तु हारा पूरा शरीर, तु हारे मन क एक-एक हरकत।
पहला, अचेतन होकर, बेहोशी म। तब तुम वरह म होते हो, तब तुम खी होते हो, बैचन होते हो। काम करते हो, पाँव चलते
ह, हाथ चलते ह, मुँह से श द नकलते ह, ख दे खती ह, पर वो सब बड़ा अ व त रहता है - जैसे हमारा रहता है। इधर
को चलते ह और उधर प ँच जाते ह। मन कभी इधर को भागता है, कभी उधर को भागता है। ये सफ़ मीरा है, जो कृ ण से
र है, और इस कारण ये मीरा पगलाई ई है। https://www.The-Gyan.in
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तु हारा मन पगलाया रहता है ना , ? कभी एक ल य क ओर भागता है और कभी सरे क ओर। कभी सोचते हो क ा म
,
जाऊँ और कभी भागने का मन करता है। कुछ जानते नह हो जीवन म क कधर को जा रहे हो नह पता , य पढ़ रहे हो ,
,
य नौकरी कर रहे हो। कभी कोई आक षत करता है कभी कोई। ये तु हारा मन है ये तु हारा शरीर है जो कृ ण के वयोग , ,
,
म है जो र है चेतना से। मलन नह हो पा रहा इसी लए ब कुल इधर उधर पगलाया - आ है - बेचैन है, भटक रहा है।
,
लगती है। तब यही मीरा बड़ी सुंदर हो जाती है। इसके गीत इसके काम ऐसे हो जाते ह क फर सकड़ साल तक याद रखे
जाते ह। इतनी ताक़त और इतना साहस आ जाता है उसम क समाज क परवाह करना छोड़ दे ती है। तुम भी छोड़ दोगी जब
बेख़ुद , जसम तुम कहते हो , “होने दो जो हो रहा है, हम मौज म ह।” जब तुम चलते भी हो, तो ऐसा लगता है क नाच रहे
जात या है।
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राजा के घराने से है, और गु कसको बनाया था? एक तथाक थत नचली जा त के को। जूते सीलते थे। वो अ े से
जान गयी है क जात-पात म कु छ नह रखा। ऐसे ही तुम भी हो जाओगे, इन सब छोट बात क परवाह करना छोड़ दोगे। पर
उसके लए समझ का जगना ज़ री है। समझ ही कृ ण है। ये वहा रक बात बता रहा ,ँ काम क , अभी क बात।
जब समझ जागेगी, तब मीरा नाचेगी। उसी का नाम ‘ मलन’ है, उसी का नाम ‘योग’ है और उसी का नाम है, ‘जीवन जीने क
कला’।
मीरा या है इसको दे खो: एक साहसी औरत और एक समझदार औरत। मीरा वो है जो समझती भी है और नाचती भी है।
गंभीर नह है वो क उदास है, मुँह लटकाकर बैठ ई है। जब वो कहती है, “ गरधर-गोपाल मलो म तड़प रही ँ,” तो उसम
भी उसका आनंद है। और वो अ े से जानती है क कृ ण को मरे हज़ार साल बीत गए। जब वो ‘ गरधर-गोपाल’ बोल रही
है, तो ये मत समझ लेना क वो उसी मुरलीधर को बुला रही है जो यमुना कनारे खेला करते थे। वो सफ़ उसका तरीका है ये
कहने का, “मुझे जीवन समझदारी म और ेम म जीना है।”
‘ गरधर-गोपाल’ समझदारी का, चेतना का सरा नाम है, ेम का सरा नाम है। मीरा होना अ नवाय है हम सब के लए।
जीवन मला ही इसी लए है क हमारी मीरा और हमारे कृ ण मल सक।
और जनके जीवन म मीरा और कृ ण नह मलते, वो ब कु ल सूख,े उदास घूमते रहते ह। वो कु छ ऐसा बाहर पाने क
को शश करते रहते ह जो सफ़ भीतर ही मल सकता है। जो योग भीतर होना चा हए था, उस योग को वो बाहर चाहते ह।
कै से? क थोड़ा पैसा मल जाए, कसी से शाद कर लू,ँ थोड़ी इ ज़त मल जाए समाज म। घर बनवा लूँ, गाड़ी ख़रीद लूँ -
बस यही सब साधारण बात। वो कु छ ऐसा बाहर तलाशते ह जो बाहर मल नह सकता, वो सफ़ भीतर ही मल सकता है।
“सर, मेरी श ल दे खो, म कृ ण जैसा लग रहा ँ? मेरे पास न मोर पंख है, न मुरली है, म कै से कृ ण?”
“सर, मुझे तो नाचना भी नह आता, म मीरा कै से हो गयी? मुझे ज़हर पीने से बड़ा डर लगता है।”
“सर, वो सड़क पर नाचने लगी थी नंगे पांव, म ए.सी. से बाहर नह नकल सकती।”
प र तयाँ अपना काम करती रहगी, पर उससे तु हारे उ सव म कोई अंतर नह पड़ेगा। तुम कहोगे, “रोज़ पाट है, लगातार
पाट चल ही रही है।” तुम ये नह कहोगे क दवाली आ जाए तो उस दन खुश हो लगे। एक सतत, लगातार नृ य चलता
रहेगा। उ सव!
मज़ेदार है ना मीरा?
“कहानी अ है, पर डरावनी है। वो सब कु छ जो मीरा ने छोड़ा था, हम तो वही चा हए। महल चा हए, पैसा चा हए, इ ज़त
चा हए - हम तो ये सब चा हए।” मीरा ने छोड़ा नह था, मीरा को कु छ मल गया था। जब हीरे मल जाते ह, तो ये छोट -मोट
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चीज़ छू ट जाती ह। जसको को हनूर मल गया हो वो इधर-उधर के प र रखेगा या? तो मीरा ने यागा नह था, उसने फ़क
दया था। उसने कहा था क अरब क चीज़ मल गयी है, तो ये दो-चार पय क चीज़ का या करना है।
तो डरो मत क पापा या कहगे? बड़ी द कत! उस ‘असली’ को पा लो, तो ये बाक जतनी नकली चीज़ ह सब छू ट जाएँगी।
तुम कै से-कै से तो सवाल करते हो। संवाद म कोई कहता है क डर ब त लगता है। कोई कहेगा, “ये आदत लग गयी है कै से
छु डाएँ?” ये सब दो कौड़ी क बात ह, ये सब छू ट जाएँगी जब मीरा बनोगे। फ़र ये इधर-उधर क बात क दो पये खो गए तो
उदास हो गए, दो परसट नंबर कम आ गए तो उदास हो गए, फ़र ये सब बात नह ह गी।
जैसे कसी पजरे म बंद ह दो खरगोश और इंच-इंच जगह के लए लड़ते ह । और जब मु हो जाते ह, और पूरा जंगल
उनका है, तो फर लड़गे या इंच-इंच जगह के लए? फ़र कहगे क हम बादशाह ह, ये एक-एक इंच क बात कौन करता
है? अभी तु ह एक-एक इंच क बात करनी ही इसी लए पड़ती है य क पजरे म बंद हो।
मल जाओ कृ ण से। र नह है कृ ण, अपने भीतर है। मं दर मत जाया करो क कृ ण के पाँव छू ने ह, ऐसे हो जाओ क
अपने पाँव छू सको। और सब वैसे ही हो। क़ा ब लयत सब म है क अपने ही पाँव छू सको। आ म-पूजा से बड़ी कोई पूजा
होती नह । आ म-पूजा तो तब करोगे न जब सर क पूजा करना बंद करो। तु हारी नज़र हीरे पर पड़े कै से, जब तु हारी
नज़र लगातार प र पर है।
उसी के कारण अभी तुम मुझे समझ पा रहे हो, वही तुम हो। उसी के कारण अभी तुम मुझे सुन पा रहे हो, वही तुम हो। उसी
के कारण अभी तुम मौन हो। उसी का नाम ‘कृ ण’ है।
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उसक अह मयत को जानो और उसी म जीना शु कर दो, फ़र सब कु छ ब ढ़या रहेगा। पढ़ोगे मौज म, खेलोगे मौज म।
बेचै नयाँ हट जाएँगी। प र तयाँ गड़बड़ हो सकती ह। शरीर भी हो सकता है बीमार हो जाए, हो सकता है कभी पया-पैसे
न रहे, ये सब चीज़ आती-जाती रहती ह, तु हारे हाथ म नह है। पर प र तयाँ कै सी भी रह, तुम मौज म रहोगे।
ये जो अभी खे रहते हो, उदास, गरी पड़ी हालत, जैसे रस नचोड़ लया गया हो, ऐसे नह रहोगे। कभी ग ा दे खा है, जब
वो रस नकालने क मशीन म से होकर बाहर आता है? तो वो जो नचुड़ा आ ग ा होता है, वैसे ही हमारी श ल है। (हँसी)
ये कु छ नह है, ये वयोग है। कसी काम म मन नह लगता है। कहने को जवान हो पर कोई जोश नह है। न मन जवान जैसा
है, न शरीर जवान जैसा है। मीरा नाच लेती थी। ऐसे नह थी क पं ह मनट नाची, और गम लग गयी, और बेहोश हो गयी।
हमम से यादातर क तो ये हालत यह है क पं ह मनट नाचने के बाद ख़ म।
दनकर क प याँ ह:
"प र-सी हो मासपे शयाँ, लोहे-से भुज-दं ड अभय, नस-नस म हो लहर आग क , तभी जवानी पाती जय!"
ऐसा कु छ हमारे पास है नह । कहाँ ह प र-सी मांसपे शयाँ? यहाँ ऊपर तीसरी मं जल पर एक जम है, उस पर धूल जमी ई
है। कतने लोग जाते हो? https://www.The-Gyan.in
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: सर, बंद है।
आचाय: अरे बंद इसी लए हो गया य क तुम जाते नह हो। जम बंद हो गया है, पर सड़क पर प र तो अभी भी ह। दो
प र ही लेने ह, उस पर कपड़ा ही बंधना है, और बस काफ़ है। और कु छ नह है तो खुला मैदान तो है न, उसम दौड़ो। या
बाँधता है तु ह? या रोकता है? उसके लए बस उ साह चा हए।
पर बुझा-बुझा मन, न खेल पाएगा, न दौड़ पाएगा, न पढ़ पाएगा, न नाच पाएगा। वो बुझा आ इसी लए है य क अपनी
समझ पर, अपने कृ ण पर, व ास नह है, ा नह है। सर के इशार पर चले जा रहा है। जो तु हारे भीतर ही है, तुम
उसके साथ नह होना चाहते हो।
तुम कहते हो, “जो सरे कह द वही ठ क।” बाहर तुमने एक हज़ार मा लक बना रखे ह। कहा था न मने क कं कर-प र
जोड़ रखे ह, और भीतर जो असली चीज़ है, उससे कोई सरोकार नह है। मीरा एक कृ ण क ओर दे खती थी, एक हज़ार से
वो नह लगी रहती थी। तु हारी जदगी म एक हज़ार ह। तुम इ ह य नह कहते क अपनी एक चेतना, एक समझ के आधार
पर चलूँगा? तु हारे एक हज़ार मा लक ह।
“पापा या कहगे?” दो त ने कु छ आकर बोल दया तो वो तु हारा मा लक बन गया। नया या कर रही है उसक ओर
दे खते रहते हो और उधर क ओर चल दे ते हो।
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