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बड़े भाई साहब

1. लेखक के बडे भाई उनसे पााँ च वर्ष बडे थे लेककन पढाई में केवल तीन कक्षा आगे थे।
2. भाई बहुत अध्ययनशील था और उसकी नाक हमेशा ककताब ों में दबी रहती थी।
3. उनके प्रयास ों के बावजूद, भाई अक्सर परीक्षा में असफल ह जाते थे, जबकक लेखक उत्तीर्ष ह
जाते थे।
4. भाई लेखक क खूब मन लगाकर पढाई न करने और खेलने में समय बबाष द करने के कलए
डाों टता था।
5. लेखक द र्ी महसूस करे गा और पढने की क कशश करे गा, लेककन उसका मन भटक जाएगा
और वह बाहर खेलने लगेगा।
6. भाई की असफलताओों और लेखक की सफलताओों ने उनके बीच द वगों का अोंतर पैदा कर
कदया।
7. भाई अक्सर लेखक क कडी मेहनत के महत्व और अनुभव के मूल्य पर व्याख्यान दे ते थे।
8. एक कदन भाई ने लेखक क बाहर खेलते हुए पकड कलया और डाों टते हुए कहा कक भले ही वह
पढाई में आगे है , कफर भी उसका अनुभव सीकमत है ।
9. लेखक क कवनम्रता महसूस हुई और उसे अनुभव और कडी मेहनत के महत्व का एहसास
हुआ।
10. भाई की बात ों का लेखक पर गहरा प्रभाव पडा और वह कशक्षा और कडी मेहनत के मूल्य क
समझने लगा।

हरिहि काका
1. कहानी का साि: कमथलेश्वर की कहानी एक बुजुगष आदमी हररहर काका की है , ज गााँ व में
सरल जीवन कबताता है , लेककन अोंकतम समय में लाचार और बेबस महसूस करता है ।

2. ल़ेखक का संबंध: ले खक, ज कुछ समय पहले गााँ व लौटा है , हररहर काका का सम्मान
करता है और उनके जीवन से गहराई से जुडा है ।

3. गााँव का ववविण: गााँ व आरा शहर से 40 ककल मीटर दू र है , जनसोंख्या ढाई से तीन हजार
है , और वहााँ ठाकुर जी का महत्वपूर्ष मोंकदर है ।
4. परिवाि: हररहर काका के तीन शादीशुदा भाई हैं और वे सब साथ में रहते हैं । काका की
अपनी क ई सोंतान नहीों है ।

5. खिाब स्वास्थ्य: हररहर काका के खराब स्वास्थ्य के कारर् पररवार ने उनकी दे खभाल
करना बोंद कर कदया, कजससे वे अकेलेपन और उपेक्षा का कशकार ह गए।

6. महं त का प्रभाव: महों त जी ने हररहर काका क अपनी जायदाद ठाकुरबारी के नाम करने
के कलए मनाने की क कशश की।

7. भाइय ं का व्यवहाि: भाइय ों ने हररहर काका से माफी माों गी और उनका ध्यान रखना शुरू
ककया, लेककन बाद में उनकी जायदाद हकथयाने का प्रयास करने लगे।

8. अपहिण: महों त ने हररहर काका का अपहरर् करवाया और उनसे क रे काज पर अोंगूठे के


कनशान ले कलए।

9. पुवलस हस्तक्ष़ेप: पुकलस ने हररहर काका क छु डाया और उन्हें भाइय ों के घर ले गई,


लेककन भाइय ों ने कफर से उनकी जायदाद हकथयाने की क कशश की।

10. अंवतम स्थिवत: महों त ने पुकलस की मदद से हररहर काका क कफर से बचाया, लेककन
गााँ व में अफवाहें फैल गईों कक महों त उनकी जायदाद हकथया लेंगे।

समास
पररभार्ा - द या द से अकिक शब् ों के मेल से एक नए शब् बनाने की कवकि क समास
कहते हैं ।
सामाकसक शब् ों में द पद ह ते हैं । पहले पद क पूवषपद, दू सरे पद क उत्तरपद और समास
प्रकिया से बने पूर्ष पद क समस्तपद कहते हैं | जैसे-

समास क़े भ़ेद

1. अव्ययीभाव समास
2. तत्पुरुर् समास
3. कमषिारय समास
4. किगु समास
5. िों ि समास
6. बहुव्रीकह समास
अव्ययीभाव समास
जहााँ प्रथम पद या पूवष पद प्रिान ह तथा समस्त पद किया कवशेर्र् अव्यय ह , उसे
अव्ययीभाव समास कहते हैं ।अव्ययीभाव समास के पहले पद में अनु, आ, प्रकत, यथा, भर,
हर आकद आते है ।

तत्पुरुष समास
तत्पुरुर् समास में उत्तरपद प्रिान ह ता है , पूवषपद अप्रिान ह ता है । इसी के साथ द न ों
पद ों के मध्य में कारक का ल प रहता है , त इस प्रकार के समास क तत्पुरुर् समास
तत्पुरुर् समास (Tatpurush samas) कहते हैं । तत्पुरुर् समास में कवशेर्र्ीय पद और
मुख्य पद का सोंबोंि एक कनकित भावना क प्रकट करता है।

कममधािय समास
कजस समास में कवशेष्य और कवशेर्र् का मेल ह ता है , उसे कमषिारय समास कहते हैं ।
जैसे-नीलकमल (नीला है ज कमल), महापुरुर्, चरर्कमल, महाजन आकद।

विगु समास
वह समास कजसका पहला पद सोंख्यावाचक कवशेर्र् ह ता है तथा समस्तपद ककसी समूह
या कफर ककसी समाहार का ब ि करता है त वह किगु समास कहलाता है ।

िं ि समास
समास का एक प्रकार है -िों ि समास। इसमें द न ों शब् प्रिान ह ते हैं । जब द न ों भाग
प्रिान ह ग
ों े त एक-दू सरे में िों ि (स्पिाष , ह ड) की सोंभावना ह ती है । क ई ककसी से पीछे
रहना नहीों चाहता, जैस - चरम और परम = चरम-परम, भीरु और बेबस = भीरू-बेबस।

बहुव्रीवह समास
कजस समास में प्रथम पद एवों कितीय पद द न ों की प्रिानता न ह बल्कि क ई तीसरा पद
की प्रिानता ह , उसे बहुव्रीकह समास कहते हैं । चन्द्रशेखर में बहुव्रीकह समास है , इसका
समास कवग्रह चोंद्र है कसर पर कजसके अथाष त् कशव, इसमें अन्य पद 'कशव' की प्रिानता
बताई गई है ।

मुहावि़े
ऐसे वाक्ाों श, ज सामान्य अथष का ब ि न कराकर ककसी कवलक्षर् अथष की प्रतीकत कराये,
मुहावरा कहलाता है ।
दू सि़े शब् ं में – मुहावरा भार्ा कवशेर् में प्रचकलत उस अकभव्यल्किक इकाई क कहते हैं ,
कजसका प्रय ग प्रत्यक्षाथष से अलग रूढ लक्ष्याथष के कलए ककया जाता है ।
साधािण अिम में – मुहावरा ककसी भार्ा में आने वाला वह वाक्ाों श है , ज अपने शाल्कब्क
अथष क न बताकर ककसी कवशेर् अथष क बताता है ।

• च़ेहिा उजाडना

अिम: ककसी की खुशी क नष्ट करना

• आाँ ख ं का तािा ह ना

अिम: ककसी क बहुत प्यार करना

• आप भी वगिें ग़े, हम भी वगिें ग़े

अिम: सबक समान रूप से परे शानी कमलेगी

• आपसी बैि बढाना

अिम: द ल ग ों के बीच दु श्मनी या असोंगकत क बढाना

• अपना घि में सब ब़ेडा पाि किना

अिम: ककसी मुल्किल क सफलता से पार करना

• अपऩे पैि ं पि खडा ह ना

अिम: स्वयों सहारे के कबना अपने आप में ल्कथथर रहना

अपऩे मुह वमयााँ वमट् ठू बनाना

अिम: खुद क गलत साकबत करना

• आवािा बीमाि सी ंग चढाना

अिम: आत्ममुग्ध ह जाना

• अब पछताए ह त क्या जब वचवडया चुग गई ख़ेत

अिम: क ई काम अवसर चूक जाने के बाद पछताना


• अपना िाज ख लना

अिम: गुप्त बात ों क सावषजकनक करना

• अंध़ेि़े में न चहुाँँाँि लगाना

अिम: समस्या से बचने के कलए ज़्यादा खुद क समझाना या समािान ढू ों ढना

• अब पानी में िहकि मगि स़े बैि नही ं ह ती

अिम: डर या असुरक्षा महसूस करना

• अनद़े खा अनवगनत सबही

अिम: बहुत सारी चीज ों क उपेक्षा करना

• अंगूठा वदखाना

अिम: स्पष्ट या सत्यता क साकबत करना

• अब जब जाग तब सव़ेिा

अिम: काम शुरू करने के कलए समय पर उठना

• अाँधा कौन िाजा?

अिम: ज नयापन नहीों दे ख सकता, वह अच्छे नेता नहीों ह सकता

• अंगूठ़े चूमना

अिम: बहुत प्रशोंसा करना

• अाँध़े की लाठी औि ब़ेहि की बांस

अिम: द अपाथी या अय ग्य व्यल्किय ों के बीच में सद्भावना का अभाव

• अपऩे मुंह वमयााँ वमट् ठू बनना

अिम: अपने गुनाह ों क कछपाना या सफाई दे ना

• अाँध़े की लाठी अवगुण ं की धूल

अिम: यह मुहावरा उस व्यल्कि के बारे में कहता है ज दू सर ों के द र् ों क दे खने की क्षमता नहीों


रखता है लेककन अपने खुद के द र् ों से अनजान रहता है ।
पदबंध
जब द या द से अकिक (शब्) पद कनयत िम और कनल्कचचत अथष में ककसी पद का
कायष करते हैं त उन्हें पदबोंि कहते हैं । दू सरे शब् ों में हम कह सकते हैं कक कई
पद ों के य ग से बने वाक्ाों श ों क , ज एक ही पद का काम करते हैं , पदबोंि कहलाते
हैं ।
मुख्य पद क़े आधाि पि पदबंध क़े पााँच भ़ेद माऩे जात़े हैं -

संज्ञा-पदबंध: वह पदबोंि ज ककसी वाक् में सोंज्ञा का कायष करता है , सोंज्ञा पदबोंि कहलाता है ।
दू सरे अथवा सरल शब् ों में कहा जा सकता है कक पदबोंि का अोंकतम अथवा मुख्य पद यकद
सोंज्ञा ह और अन्य सभी पद उसी पर आकित ह त वह ‘सोंज्ञा पदबोंि’ कहलाता है ।

(1) द ताकतवि आदमी इस भारी मेज क उठा पाए।


(2) मेहनती छात्र ही अच्छे अोंक प्राप्त कर पाते हैं ।
(3) दशिि पुत्र िाम ने रावर् क मारा था।
(4) आसमान में उडता गुब्बािा फट गया।

ववश़ेषण-पदबंध: पद ों का ऐसा बोंि ज ककसी कवशेर्र् पद के थथान पर प्रयुि ह कर वही


कायष करता है ज उस अकेले कवशेर्र् पद िारा ककया जा रहा था त उसे 'कवशेर्र् पदबोंि'
कहते हैं । वाक् में प्रयुि किया हमेशा 'पदबोंि' के रूप में ही ह ती है , अतः उसे 'किया पदबोंि'
ही कहा जाता है ।

(1) वह बहुत सूंदि ककवता कलखता है ।


(2) उस घि क़े क ऩे में लगा हुआ प़ेड आम का है ।
(3) उसका कुत्ता अत्यंत सुंदि, फुितीला औि आज्ञाकािी है ।
(4) गकमषय ों में सफ़ेद खादी कपड़े पहनना आरामदायक ह ता है ।

सवमनाम पदबंध: ज पदबोंि वाक् में सवषनाम पद का प्रकायष करते हैं , उन्हें सवषनाम पदबोंि
कहते हैं । पद ों का ऐसा बोंि ज ककसी कवशेर्र् पद के थथान पर प्रयुि ह कर वही कायष करता
है ज उस अकेले कवशेर्र् पद िारा ककया जा रहा था त उसे 'कवशेर्र् पदबोंि' कहते हैं ।

(1) हमारे द़े श क़े ऩेताओं में कुछ नेता अच्छे हैं ।
(2) शरारत करने वाले छात्र ं में स़े कुछ पकडे गए।
(3) कवर ि करने वाले ल ग ं में स़े क ई नहीों ब ला।
(4) आपके अपन ं में कौन आपका साथ दे गा?
विया पदबंध: क ई भी 'किया' शब् जब वाक् में प्रयुि ह ता है तब उसमें 'सहायक किया'
(काल, पक्ष, वृकत्त, वाच्य, कलोंग, वचन आकद) के प्रत्यय जुडते हैं । इस तरह 'मुख्य किया' तथा
'सहायक किया' से युि पूरी रचना क किया पदबोंि ही कहते हैं । अतः वाक् में प्रयुि 'किया'
सदै व पदबोंि के रूप में ही ह ती है ।

(1) वह कवद्यालय से सीिे घर की ओर आया ह गा।


(2) दादी हर रात हमें नई-नई कहाकनयााँ सुनाती िहती हैं।
(3) गायक अपना पसोंदीदा गीत गा िहा है।
(4) बच्चे मैदान में फूटबॉल ख़ेल िह़े हैं।

विया ववश़ेषण पदबंध: जब ककसी वाक् में किया कवशेर्र् का कायष करने वाले पद ह ों त वहााँ
किया कवशेर्र् पदबोंि ह ता है । दू सरे अथवा सरल शब् ों में हम कह सकते हैं कक वाक् में ज
पद किया की कवशेर्ता बताने वाले ह ों वे किया कवशेर्र् पदबोंि कहलाते हैं ।

(1) आज गाडी बहुत जल्दी आ गयी।


(2) पक्षी वपंजि़े क़े अन्दि बैठा है ।
(3) मैं इस माह क़े अंत तक आ जाऊाँगा।
(4) ल्कखलाडी मैदान की ओि गए हैं ।

अनुच्छ़ेद ल़ेखन
1. समय वकसी क़े वलए नही ं रुकता
‘समय’ कनरों तर बीतता रहता है , कभी ककसी के कलए नहीों ठहरता। ज व्यल्कि समय के म ल क
पहचानता है , वह अपने जीवन में सफलता प्राप्त करता है । समय बीत जाने पर ककए गए कायष का
क ई फल प्राप्त नहीों ह ता और पिाताप के अकतररि कुछ हाथ नहीों आता। ज कवद्याथी सुबह समय
पर उठता है , अपने दै कनक कायष समय पर करता है तथा समय पर स ता है , वही आगे चलकर सफल
व उन्नत व्यल्कि बन पाता है । ज व्यल्कि आलस में आकर समय गाँवा दे ता है , उसका भकवष्य
अोंिकारमय ह जाता है । सोंतककव कबीरदास जी ने भी अपने द हे में कहा है –
”काल किै स आज कि, आज किै स अब।
पल में पिलै ह इगी, बहुरि कि़े गा कब।।”
समय का एक-एक पल बहुत मूल्यवान है और बीता हुआ पल वापस लौटकर नहीों आता। इसकलए
समय का महत्व पहचानकर प्रत्येक कवद्याथी क कनयकमत रूप से अध्ययन करना चाकहए और अपने
लक्ष्य की प्राल्कप्त करनी चाकहए। ज समय बीत गया उस पर वतषमान समय में स च कर और अकिक
समय बरबाद न करके आगे अपने कायष पर कवचार कर-लेना ही बुल्किमानी है ।
2. ग्ल बल वावमिंग
ग्ल बल वाकमिंग शब् पृथ्वी के तापमान में ह ने वाली वृ ल्कि क दशाष ता है । यह एक ऐसी समस्या है कजस
पर अगर काबू नहीों ककया गया त यह पूरी पृथ्वी क ही नष्ट कर दे गा। सीएफसी-11 और सीएफसी-
12 जैसी ग्रीन हाउस गैस ों ने सूरज के थमषल कवककरर् क अवश कर्त करके पृथ्वी के वातावरर् क
गमष बना कदया। ये गैसें सूयष की ककरर् ों क वायुमोंडल में प्रवेश त करने दे ती हैं , लेककन उससे ह ने
वाले कवककरर् क वायु मोंडल से बाहर नहीों जाने दे ती हैं । इसी क ग्रीनहाउस प्रभाव कहा जाता है , ज
पूरे कवश्व में तापमान में वृल्कि के कलए कजम्मेदार है । तापमान में वृल्कि से वर्ाष चि, पाररल्कथथकतक सोंतुलन,
मौसम का चि आकद प्रभाकवत ह ते हैं । यह वनस्पकत और कृकर् क भी प्रभाकवत करता है । कजसके
कारर् हमें दु कनया भर में लगातार बाढ और सूखे जैसी पररल्कथथकतय ों का सामना करना पडता है ।
तापमान में वृल्कि और ग्लेकशयर ों के कपघलने के कारर् बर्फषबारी जैसी घटनाओों में भी कमी आयी है ।
तापमान में वृल्कि से आद्रता में भी वृल्कि हुई है क् कों क तापमान में वृल्कि से वाष्पीकरर् की दर में वृल्कि
हुई है । थथानीय सरकार ों क चाकहए की वह ल ग ों के बीच जागरूकता पैदा करे तथा ऐसे उपकरर् ों
और वाहन ों की कबिी क प्र त्साकहत करे ज पयाष वरर् के अनुकूल ह । पेपर, प्लाल्किक और अन्य
सामकग्रय ों की रीसाइल्कलोंग क प्र त्साकहत करना चाकहए। ऐसे प्रयास ों क ल ग ों िारा जमीनी स्तर पर
करना अत्योंत आवश्यक है , तभी हम एक प्रभावी तरीके से इस भयानक समस्या का मुकाबला कर
सकते हैं ।
3. भ्रष्टाचाि का दानव अिवा
भ्रष्टाचाि स़े द़े श क मुक्त बनाएाँ

• भ्रष्टाचार क्ा है ?
• दे श के कलए घातक
• भ्रष्टाचार का दु ष्प्रभाव
• ल ग ों की भूकमका।

भ्रष्टाचार द शब् ों ‘भ्रष्ट’ और ‘आचार’ के मेल से बना है , कजसका अथष है -नैकतक एवों मयाष दापूर्ष
आचारर् से हटकर आचरर् करना। इस तरह का आचरर् जब सत्ता में बैठे ल ग ों या कायाष लय ों के
अकिकाररय ों िारा ककया जाता है तब जन सािारर् के कलए समस्या उत्पन्न ह जाती है । पक्षपात करना,
भाई-भतीजावाद क प्रिय दे ना, ररश्वत मााँ गना, समय पर काम न करना, काम करने के बदले अनुकचत
मााँ ग रख दे ना, भ्रष्टाचार क बढावा दे ते हैं ।

भ्रष्टाचार समाज और दे श के कलए घातक है । दु भाष ग्य से आज हमारे समाज में इसकी जडें इतनी
गहराई से जम चुकी हैं कक इसे उखाड फेंकना आसान नहीों रह गया है । भ्रष्टाचार के कारर् दे श की
मान मयाष दा कलोंककत ह ती है । इसे ककसी दे श के कलए अच्छा नहीों माना जाता है । भ्रष्टाचार के कारर्
ही आज ररश्वतख री, मुनाफाख री, च रबाजारी, कमलावट, भाई-भतीजावाद, कमीशनख री आकद अपने
चरम पर हैं ।

इससे समाज में कवर्मता बढ रही है । ल ग ों में आि श बढ रहा है और कवकास का मागष अवरुि ह ता
जा रहा है । इसके कारर् सरकारी व्यवथथा एवों प्रशासन पोंगु बन कर रह गए हैं । भ्रष्टाचार कमटाने के
कलए ल ग ों में मानवीय मूल्य ों क प्रगाढ करना चाकहए। इसके कलए नैकतक कशक्षा की कवशे र्
आवश्यकता है । ल ग ों क अपने आप में त्याग एवों सों त र् की भावना मजबूत करनी ह गी। यद्यकप
सरकारी प्रयास भी इसे र कने में कारगर कसि ह ते हैं पर ल ग ों िारा अपनी आदत ों में सुिार और
लालच पर कनयोंत्रर् करने से यह समस्या स्वतः कम ह जाएगी।

औपचारिक-पत्र

(1) ‘सेवा में’ कलख कर, पत्र प्रापक का पदनाम तिा पता कलख कर पत्र की शुरुआत करें ।
(2) ववषय – कजसके बारे में पत्र कलखा जा रहा है , उसे केवल एक ही वाक् में शब्-सोंकेत ों में कलखें।
(3) संब धन – कजसे पत्र कलखा जा रहा है - मह दय/मह दया, माननीय आकद कशष्टाचारपूर्ष शब् ों का
प्रय ग करें ।
(4) ववषय-वस्तु– इसे द अनुच्छेद ों में कलखना चाकहए-
पहला अनुच्छ़ेद – “सकवनय कनवेदन यह है कक” से वाक् आरों भ करना चाकहए, कफर अपनी समस्या
के बारे में कलखें।
दू सिा अनुच्छ़ेद – “आपसे कवनम्र कनवेदन है कक” कलख कर आप उनसे क्ा अपेक्षा (उम्मीद) रखते हैं ,
उसे कलखें।
(5) हस्ताक्षि व नाम– िन्यवाद या कष्ट के कलए क्षमा जैसे शब् ों का प्रय ग करना चाकहए और अोंत में
भवदीय, भवदीया, प्राथी कलखकर अपने हस्ताक्षर करें तथा उसके नीचे अपना नाम कलखें।
(6) प्ऱेषक का पता– शहर का मुहल्ला/इलाका, शहर, कपनक ड आकद।
(7) वदनांक।

स़ेवा में,
प्रधानाचायम,
ववद्यालय का नाम व पता………….

ववषय- (पत्र वलखऩे क़े कािण)।

मह दय जी,
पहला अनुच्छ़ेद ………………….
दू सिा अनुच्छ़ेद ………………….
धन्यवाद।

आपका आज्ञाकािी/आज्ञाकारिणी वशष्य/वशष्या,


क० ख० ग०
कक्षा………………….
वदनांक ………………….
1.
सेवा में,

प्रकत,
िीमान प्रिानाध्यापक
ग्ल बल स्कूल
मेरठ

कवर्य- अवकाश प्राप्त करने हे तु आवेदन पत्र।

मह दय जी,

कवनम्र कनवेदन है कक मैं आपके कवद्यालय की कक्षा 10वीों की छात्रा हों । मह दय, मुझे यह बताते
हुए अत्योंत खुशी ह रही है कक मेरी चचेरी बहन की शादी तय ह गई है और कववाह समार ह
कदनाों क 22/12/22 क कदल्ली में ह ना प्रस्ताकवत है । यह हमारे पररवार की पहली शादी हैं
कजसमें पररवार के सभी छ टे -बडे सदस्य आने वाले हैं , अतः मैं भी इस पाररवाररक प्रसोंग में
शाकमल ह ना चाहती हों । इसी कारर्वश मैं कदनाों क 15/12/22 से 25/12/22 तक अवकाश
लेना चाहती हों । मैं जानती हों इस बार दसवीों ब डष की परीक्षाएों नजदीक है ककोंतु मैं आपक
आश्वस्त करती हों कक कववाह समार ह से वापस आकर मैं मन लगाकर पढाई करू ों गी और
दसवीों की परीक्षा उत्कृष्ट नोंबर ों से उत्तीर्ष करू
ों गी ।

अतः आपसे कनवेदन है कक उि कदनाों क तक मुझे अवकाश प्रदान करने की कृपा करें ।
िन्यवाद

आपकी आज्ञाकारी छात्रा


कनकि
कक्षा -दसवीों A
कदनाों क- 6 November 2022

2.
सेवा में,
सम्पादक मह दय,
दै कनक जागरर्,
सेक्टर 30,
चण्डीग़ढ, कजरखपूर।
कदनाों क-26 अप्रैल, 2019

कवर्य- य ग-कशक्षा का महत्त्व।

मह दय,
जान-जान की आवाज, जान-जान तक पहुाँ चाने के कलए प्रकसि आपके पत्र के माध्यम से मैं
कवद्यालय में य ग-कशक्षा के महत्त्व क बताना चाहती हाँ और प्रत्येक व्यल्कि तक पहुाँ चाना चाहती
हाँ ।
य ग-कशक्षा के माध्यम से कवद्याथी स्वास्थ्य के प्रकत जागरूक ह ग
ों ें। य ग कशक्षा उनके स्वाथथय के
कलए बहुत अकिक लाभदायक है । य ग के माध्यम से वे अपने शरीर की नकारात्मक ऊजाष क
बाहर कनकाल सकते हैं और सकारात्मक ऊजाष क ग्रहर् कर सकते हैं । य ग के जररए वे अपने
तन-मन द न ों क स्वथथ रख सकते हैं और उनके सवािं गीर् कवकास में भी सहायता कमलती
रहे गी।
आपसे कवनम्र कनवेदन है कक आप अपने समाचार-पत्र के माध्यम से पाठक ों क य ग के प्रकत
जागरूक करे और ल ग ों क य ग-कशक्षा ग्रहर् करने के कलए आग्रह करें ।
िन्यवाद।
भवदीया
(नाम, पता, दू रभार्)

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