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जीवाजीव विवेचन - 12
जीवाजीव विवेचन - 12
जीवाजीव विवेचन - 12
✍️ ….. इदिर्ास के स्वदणह म पृष् ों पर कई उत्तम आत्माओों के चररत् ों का आलेखि हुआ र्ै । मिुष्य
भव में ज आत्माएँ सोंपूणह कमों का क्षय कर दे िी र्ैं , वे आत्माएँ ि दे र् त्याग कर सीधी म क्ष में चली
जािी र्ैं , जर्ाँ वे आत्माएँ सदा काल के दलए रर्िी र्ैं , वे आत्माएँ जन्म-जरा- मृत्यु, आदध-व्यादध-
उपादध, र ग-श क-भय् आदद से सवहथा मुक्त र् जािी र्ैं , परों िु ज आत्माएँ सवह कमों का क्षय िर्ीों
करिी र्ै, उि आत्माओों क ि पुिः जन्म धारण करिा र्ी पड़िा र्ै।
● इस दवराट दवश्व में ज अिोंिािोंि आत्माएँ र्ै , वे जन्म-मरण क धारण करिी हुई दे व, मिुष्य,
िरक और दियहच इि चार गदिय ों में भ्रमण करिी र्ैं ।
● ज आत्माएँ अत्यदधक पाप करिी र्ै , वे आत्माएँ भव पररविहि कर िरक व दियंच गदि में जािी
र्ैं।
● ज आत्माएँ अत्यदधक पुण्य करिी र्ैं , वे आत्माएँ दे व व मिुष्य गदि में जािी र्ैं।
● ल कस्थिदि र्ी ऐसी र्ै दक क ई भी दे व पुिः दू सरे र्ी भव में दे व िर्ीों बििा र्ै और िरक के
जीव भी दे व ल क में उत्पन्न िर्ीों र् िे र्ैं । इससे स्पष्ट र्ै दक मिुष्य और दियेच र्ी भव पररविहि
कर दे वल क में पैदा र् िे र्ैं ।
● दे वगदि और म क्ष में बहुि बड़ा अोंिर र्ै। दे वगदि के दे व भी इस सोंसार में र्ी र्ैं। उिके भी
जन्म-मरण के चक्कर चालू र्ी र्ै। दे वगदि के दे व भी पूणह रूप से सुखी िर्ीों र्ैं। राग-द्वे ष, ल भ-
ईष्याह आदद से वे भी दु ः खी र् िे र्ैं। आयुष्य पूणह र् िे पर उन्हें भी दे वल क की ददव्य दु दिया का
त्याग कर मिुष्य या दियंच गदि में जािा र्ी पड़िा र्ै।
दे वल क की प्रास्थप्त यर् ि पुण्य की लीला र्ै और यर् पुण्य ि कभी भी ध खा दे सकिा र्ै। अिः
दे वल क की प्रास्थप्त भी र्मारे जीवि का लक्ष्य िर्ीों र् िा चादर्ए।
यद्यदप सभी दे विा पोंचेस्थिय कर्लािे र्ैं , परों िु उिका जन्म मिुष्य या पोंचेस्थिय दियहच की िरर् गभह
से िर्ीों र् िा र्ै , पुण्य के उदय से उन्हें गभह की पीड़ा सर्ि करिी िर्ीों पड़िी र्ै। दे वल क में कुछ
िल ों पर दवदशष्ट शय्याऐों र् िी र्ैं , दजिमें दे व अपिे शरीर की ऊँचाई, काोंदि व युवाविा के साथ
र्ी जन्म लेिे र्ैं। दे विाओों क बाल्यकाल बचपि िर्ीों र् िा र्ै , वे सदै व युवाविा में र्ी रर्िे र्ैं।
दे व शय्या में दे विाओों के इस जन्म क 'उपपाि' कर्िे र्ैं। एक अन्तमुहहूिह में र्ी दे विाओों का शरीर
िैयार र् जािा र्ै।
● वृिाविा के कारण दजस प्रकार मिुष्य का शरीर दशदथल कमज र र् जािा र्ै , ऐसी वृिाविा
दे विाओों क िर्ीों र् िी र्ै।
● मिुष्य और दियंच ों का शरीर औदाररक वगहणा के पुद्गल ों से बिा र् िा र्ै। मािव दे र् में र्ड्डी,
माोंस, खूि, चबी आदद अशुदचकारक पदाथह र् िे र्ैं , मािव दे र् की उत्पदत्त भी अशुदच में र्ी र् िी
र्ै, जबदक दे विाओों का शरीर वैदिय वगहणा के पुद्गल ों से बिा र् िा र्ै। औदाररक वगहणा के
पुिल ों की अपेक्षा वेदिय वगहणा के पुद्गल अत्योंि शुभ और सूक्ष्म र् िे र्ैं।
● दे विाओों के शरीर में दकसी प्रकार की अशु दच, मल-मूत्, माोंस- चबी, र्ड्डी आदद िर्ीों र् िे र्ैं ।
● मािव दे र् के साथ ज्वर, खाोंसी, दसरददह , पेट का ददह , सदी, जुखाम, टी.बी. डायबीटीस, कैंसर,
एड् स आदद अिेक प्रकार की बीमाररयाँ जुड़ी हुई र्ैं जबदक दे विाओों के शरीर में दकसी प्रकार के
शारीररक र ग िर्ीों र् िे र्ैं ।
मिुष्य क र ग दिवारण के दलए र्ॉस्पीटल में जािा पड़िा र्ै , यर्ाँ अिेक ददों के दिवारण के दलए
अिेक प्रकार की र्ास्थस्पटलें र्ैं , दे वल क में र ग का र्ी अभाव र् िे से दकसी भी प्रकार की र्ास्थस्पटल
िर्ीों र्ैं। सामान्य मािव के आयुष्य पर दकसी भी समय उपघाि लग सकिा र्ै , क् दों क उिका
आयुष्य स पघािी र् िा र्ै , र्ाँ, िीथहकर, गणधर चरम शरीरी आदद मिुष्य ों का आयुष्य दिरुपघािी
र् िे से उिके आयुष्य पर दकसी भी प्रकार का उपघाि िर्ीों लगिा र्ै ।
● दे विाओों का आयुष्य ि दिरुपघािी र्ी र् िा र्ै अथाह ि् वे अपिे आयुष्य का पूणह उपय ग करिे
र्ैं, उिकी अकाल मृत्यु िर्ीों र् िी र्ै ।
● उत्पदत्त के प्रथम समय से शरीर पयाहस्थप्त की पूणहिा िक ग्रर्ण दकए जा रर्े पुद्गल ों के आर्ार
क ओजार्ार कर्िे र्ैं ।
● शरीर की पयाहस्थप्त पूणह र् िे पर स्पशहदिस्थिय द्वारा ज पुगल ों का लेिे र्ैं , उसे ल मार्ार कर्िे र्ैं।
● कवल से ज आर्ार लेिे र्ैं , उसे कवलार्ार कर्िे र्ैं। दे विाओों क कवलार्ार िर्ीों र् िा र्ै।
● दजििे सागर पम स्थिदि र् िी र्ै , उििे र्जार वषह के बाद आर्ार की इच्छा र् िी र्ै।
☝️ दे विाओों के आर्ार सोंबोंधी उपयुहक्त समय-दिदे श ल मार्ार सोंबोंधी र्ैं। ल मार्ार के द प्रकार
र्ैं–
(1) आभ ग और (2) अिाभ ग।
● इरादे पूवहक ज ल मार्ार दकया जािा र्ै , उसे आभ ग ल मार्ार कर्िे र्ैं और दबिा इरादे के र्ी
ज प्रदिसमय ल मार्ार र् िा र्ै , उसे अिाभ ग ल मार्ार कर्िे र्ैं।
● यर्ाँ दे विाओों के आर्ार का अोंिर आभ ग ल मार्ार की अपेक्षा से समझिा चादर्ए।
(1) पररगृदर्िा– दकसी दे व की पत्नी रूप में रर्ी हुई दे वी पररगृदर्िा कर्लािी र्ै ।
(2) अपररगृदर्िा - ज सवह सामान्य दे व के उपभ ग में आिेवाली अपररगृदर्िा कर्लािी र्ै।
वेदना
दे विाओों क लगभग शािा वेदिीय का र्ी उदय र् िा र्ै , बीच-बीच में अशािा का भी उदय र् िा
र्ै । सिि शािा वेदिीय का उदय छर् मास िक रर्िा र्ै , दफर अशािा का उदय र् िा र्ै , ज
उत्कृष्ट से अन्तमुहहुिह िक रर्िा र्ै। दफर पुिः शािा का उदय चालू र् जािा र्ै ।
दे विाओों के दवमाि
● दे विाओों के दवमाि ल कस्थिदि से र्ी आकाश में दबिा दकसी आधार के रर्े हुए र्ैं ।
● िीथहकर के जन्मादभषेक, केवलज्ञाि, दिवाहण आदद के प्रसोंग पर इि ों के आसि स्विः र्ी कोंदपि
र् िे र्ैं।
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'दे व्योंदि स्वरूप इदि दे वा'
● अपिे स्वरूप से ज दीस्थप्तमाि र्ै , उसे दे व कर्िे र्ैं ।
● दे व िामकमह के उदय से ज उत्पन्न र् िे र्ैं , उसे दे व कर्िे र्ैं ।
दे व ों के पाँच पयाहस्थप्त -
आर्ार, शरीर, इस्थिय, श्वास च्छ्वास पयाहस्थप्त ि यथावि् र्ै , भाषा और मिः पयाहस्थप्त का कायह युगपि्
र् जािा र्ै, इसदलए दे व ों के पयाहस्थप्त पाोंच मािी गई र्ैं।
रत्नप्रभा िरकभूदम के वणहि में बिाया गया र्ै दक उसके एक लाख अस्सी र्जार य जि के पृथ्वी
दपण्ड में से ऊपर के एक र्जार और िीचे के एक र्जार य जि क छ ड़कर शेष एक लाख
अठर्िर र्जार य जि के पृथ्वीदपण्ड में बारर् अन्तर र्ै। ऊपर के द अन्तर ों क छ ड़कर शेष
दस अन्तर ों में असुरकुमार आदद दस भविपदि दे व रर्िे र्ैं। असुरकुमार जादि के दे व प्रायः
आवास ों में और कभी भवि ों में बसिे र्ैं िथा िागकुमार आदद सब प्राय भवि ों में र्ी बसिे र्ैं।
आवास रत्नप्रभा के एक लाख अठर्त्तर र्जार य जि के भाग में सब जगर् र्ै पर भवि ि रत्नप्रभा
के िीच 90 र्जार य जि के भाग में र्ी र्ै। आवास बड़े मण्डप जैसे र् िे र्ैं और भवि िगर के
समाि। भवि बार्र से ग ल भीिर से समचिुष्क ण और िल में पुष्कर कदणहका जैसे र् िे र्ैं ।
ये भविपदि दे व इसदलये कुमार कर्े जािे र्ैं दक ये कुमार की िरर् मि र्र िथा सुकुमार ददखिे
र्ैं। उिकी गदि मृदु व मि र्र र् िी र्ै िथा वे िीड़ाशील र् िे र्ैं। दस प्रकार के भविपदि दे व ों
की दचन्हाददस्वरूप सम्पदत्त जन्मिा अपिी-अपिी जादि में दभन्न-दभन्न र्ै।
जैसे–असुरकुमार ों के मुकुट में चूड़ामदण का, िागकुमार ों के िाग का, दवद् युिकुमार ों के वज्र का,
सुपणहकुमार ों के गरूढ़ का, अदिकुमार ों के घट का, वािकुमार ों के अश्व का।
(सोंग्रर्णी ग्रन्थ में उददधकुमार ों के अश्व का और वािकुमार ों के मकर का दचह्न उस्थिस्थखि र्ै)
स्तदििकुमार ों के वधहमाि (सक रा सोंपुट) का, उददधकुमार ों के मकर का, द्वीपकुमार ों के दसोंर्
का, और ददक्कुमार ों के र्स्थस्त का दचन्ह र् िा र्ै ।
िागकुमार आदद सब के दचह्न उिके आभरण में र् िे र्ैं। सभी के वस्तु शस्त्र भूषण आदद दवदवध
र् िे र्ैं।
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भविपदि दे व ों के दस प्रकार र्ैं
1.असुरकुमार 2.िागकुमार 3.सुपणहकुमार
4.दवद् युिकुमार 5.अदिकुमार 6.द्वीपकुमार
7.उददधकुमार 8.ददक्कुमार 9.वायुकुमार
10. स्तदििकुमार
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【1】
असुरकुमार दे व
शरीर का वणह – कृष्ण
वस्त्र का वणह – रक्त
मुकुट का दचन्ह – चुड़ामदण
रत्नप्रभा भूदम के बारर् अन्तर ों में से पर्ले और अस्थन्तम अन्तर क छ ड़कर शेष दस अन्तर ों में
से पर्ले अन्तर में असुरकुमार जादि के भविपदि दे व रर्िे र्ैं। इस अन्तर के द दवभाग र्ै।
1. ददक्षण दवभाग 2. उत्तर दवभाग
● ददक्षण दवभाग में उिके 44 लाख भवि र्ै। चमरें द्र उिके स्वामी र्ै। चमरे ि के चौसठ र्जार
सामादिक दे व द लाख छप्पि र्जार आत्मरक्षक दे व और पाँच अग्रमदर्दषयाों र्ै। प्रत्ये क
अग्रमदर्षी का भी आठ आठ र्जार का पररवार र्ै। चमरे ि की साि अिीक (सेिाएों ) र्ैं। िीि
प्रकार की पररषद् र्ै –
● आभ्यन्तर पररषद के चौबीस र्जार दे व र्ैं ।
● मध्य पररषद् के अट्ठाईस र्जार दे व र्ै और
● बाह्य पररषद् के बत्तीस र्जार दे व र्ै। इसी प्रकार....
● आभ्यन्तर पररषद की 350 दे दवयाँ
● मध्य पररषद् की 300 दे दवयाँ और
● बाह्य पररषद की 250 दे दवयाँ र्ैं।
★ दे व ों की आयु जघन्य दस र्जार वषह और उत्कृष्ट एक सागर पम की र्ै ।
★ दे दवय ों की आयु जघन्य दस र्जार वषह उत्कृष्ट 3.5 पल्य पम की र्ै।
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• विहमाि में ज चमरे ि र्ै वर् पूवहभव में पुरण िाम का िापस था। 12 वषह िक दु ष्कर िप कर
अोंि में 1 मास का पाद पगमि अिशि कर चमरे ि बिा। अपिी उत्पदत्त के बाद ज्ञािचक्षु द्वारा
उसिे अपिे ऊपर रर्े हुए सौधमह इि क दे खा, मेरे ऊपर यर् कौि र्ै ? इस प्रकार दवचार कर
उत्तर वैदिय रूप कर अपिे पररध िामक शस्त्र क साथ लेकर स धमह सभा में जाकर सौधमह इि
क ललकारिे लगा। चमरे ि की इस बादलश चेष्टा क दे ख सौधमह इि िे गुस्से में आकर उसके
पीछे वज्र छ ड़ा। वज्र क दे ख चमरे ि डर गया और अपिे रक्षण के दलए वीरप्रभु के द चरण ों के
बीच घुस गया।
शिेि िे जब चमरे ि क प्रभु की शरण स्वीकारिे हुए दे खा, िभी चार अोंगुल के अोंिर में रर्े वज्र
का शकेि िे सोंर्रण कर दलया।
●चमरे ि द्वारा सौधमह दे वल क में जाकर सौधमह इि से लड़िे की घटिा अिोंिकाल में एक
आश्चयह समझिा चादर्ए।
दू सरे िागकुमार से लेकर दसवें स्तदििकुमार िक क िवदिकाय के दे व कर्िे र्ैं। ददक्षण दवभाग ों
में दिकाय ों के प्रत्येक इि के छर्-छर् र्जार सामादिक दे व र्ैं , चौबीस-चौबीस र्जार आत्मरक्षक
दे व र्ै , छर्-छर् अग्रमदर्दषयाँ र्ै। प्रत्येक अग्रमदर्षी का छर्-छर् र्जार का पररवार र्ै। िौ र्ी इि ों
की साि-साि अिीक र्ैं । िीि-िीि पररषद् र्ैं। आभ्यन्तर पररषद् के साठ र्जार दे व र्ैं , मध्य पररषद्
के दसत्तर र्जार और बाह्य पररषद् के अस्सी र्जार दे व र्ैं। आभ्यन्तर पररषद् में 175 दे दवयाँ र्ैं ,
मध्य पररषद् में 150 दे दवयाँ और बाह्य पररषद् में 125 दे दवयाँ र्ैं। इि िौ र्ी जादिय ों के दे व ों की
आयु जघन्य दस र्जार वषह और उत्कृष्ट डे ढ़ पल्य पम की र्ै। दे दवय ों की आयु जघन्य दस र्जार
वषह और उत्कृष्ट पौि पल्य पम की र्ै।
उत्तर दवभाग के िौ र्ी इि ों के सामादिक दे व ,ों आत्मरक्षक दे व ,ों अग्रमदर्दषय ,ों अग्रमदर्दषय ों के
पररवार, अिीक और पररषद ों की सोंख्या ददक्षण दवभाग के समाि र्ी र्ै। पररषद् के दे व ों की सोंख्या
में अन्तर र्ैं। आभ्यन्तर पररषद् के पचास र्जार दे व, मध्य पररषद् के साठ र्जार दे व और बाह्य
पररषद् के सत्तर र्जार दे व र्ैं। आभ्यन्तर पररषद् की दे दवयाँ 225, मध्य पररषद् की 200, बाह्य
पररषद् की 175 दे दवयाँ र्ैं। सबकी आयु जघन्य दस र्जार वषह और उत्कृष्ट कुछ कम द पल्य पम
की र्ै। दे दवय ों की आयु जघन्य 10 र्जार वषह, उत्कृष्ट कुछ कम 1 पल्य पम की र्ै।
पूवोक्त दस ों अन्तर ों में रर्िे वाले ददक्षण ददशा के दे व ों के भवि दमलकर 4 कर ड़ 6 लाख र्ै और
उत्तर दवभाग के सब भवि िीि कर ड़ दछयासठ लाख र्ैं। इिमें छ टे से छ टा भवि एक लाख
य जि (जम्बूद्वीप के बराबर) का र्ै। मध्य भवि पैंिालीस लाख य जि (अढाई द्वीप के बराबर) के
र्ैं िथा सब से बड़ा भवि असोंख्याि द्वीप- समुद्र ों के बराबर अथाहि् असोंख्याि य जि का र्ै। सब
भवि भीिर से चौक र, बार्र से ग लाकार, रत्नमय और मर्ा प्रकाशयुक्त िथा समस्त सुख
सामदग्रय ों से भरपूर र्ैं। सोंख्याि य जि के भवि में सोंख्याि दे व-दे दवय ों का दिवास र्ै िथा असोंख्याि
य जि के भवि में असोंख्याि दे व दे दवय ों का दिवास र्ै ।
भविपदि दे व ों के दवदभन्न जादिय ों के शरीर का वणह अलग-अलग प्रकार का र्ै । वस्त्र भी उन्हें
अलग-अलग रों ग का पसन्द आिा र्ै। उिकी पर्चाि उिके एक-एक में बिे हुए दचह्न ों से र् िी र्ै।
इि सबके स्पष्टीकरण के दलए एक िादलका इस प्रकार र्ै –
भवनपतत दे व की जातत
शरीर वणह–वस्त्र का वणह–मुकुट का दचन्ह
-------------- ---- ----- --------------
1.असुरकुमार – ( कृष्ण–रक्त–चुड़ामदण )
2.िागकुमार– ( श्वेि–िील–िागफणी )
3.सुपणहकुमार– ( किक–श्वेि–गरूड़ )
4.दवद् युत्कुमार– ( रक्त–िील–वज्र )
5.अदिकुमार– ( रक्त–िील–वज्र )
6.द्वीपकुमार– ( रक्त–िील–दसोंर् )
7.उददधकुमार– ( श्वेि–िील–अश्व )
8.ददशाकुमार - ( रक्त–श्वेि–र्स्ती )
9.वायुकुमार– ( िील–गुलाबी–मगर )
10.स्तदििकुमार– ( किक–श्वेि–सक रा युगल )
● भविवासी दे व ों की आयु-स्थिदि जघन्यिः दस र्जार वषह और उत्कृष्टिः दकोंदचि् अदधक एक
सागर पम की र्ै।
● भविवासी दे व ों की दजििी आयु स्थिदि र्ै उििी र्ी उिकी जघन्य या उत्कृष्ट काय स्थिदि र्ै ।
● उिका अन्तर—अपिे-अपिे काय क छ ड़कर पुिः उसी काय में उत्पन्न र् िे का काल
जघन्यिः अन्तमुहहूिह और उत्कृष्टिः अिन्त काल का र्ै ।
● वणह, गन्ध, रस, स्पशह और सोंिाि की दृदष्ट से उिके र्जार ों भेद र् िे र्ैं।
🔹🔸🔹2️🔹🔸🔹
व्यन्तर और वाणव्यंतर
( दू सरे प्रकार के दे व )
➖➖➖➖➖➖➖➖
रत्नप्रमा भूदम के पृथ्वी दपण्ड के ऊपरी एक र्जार य जि के पृथ्वी दपण्ड में से एक सौ य जि ऊपर
और एक सौ य जि िीचे छ ड़कर बीच में आठ सौ य जि की प लार र्ै। इस प लार में असोंख्याि
ग्राम र्ैं। इिमें आठ प्रकार के व्यन्तर दे व रर्िे र्ैं। उिके िाम इस प्रकार र्ै – 1 दपशाच, 2 भूि, 3,
यक्ष, 4. राक्षस, 5 दकन्नर, 6. दकोंपुरुष, 7 मर् रग और 8 गन्धवह।
उक्त व्यन्तर ों और वाणव्यन्तर ों के ज िगर बिाये गये र्ैं उिमें छ टे से छ टा भरि क्षेत् के बराबर
(526 य जि से कुछ अदधक) मध्यम मर्ादवदे र् क्षेत् के बराबर (33624 य जि से कुछ अदधक)
और बड़े से बड़ा जम्बूद्वीप के बराबर (एक लाख य जि का) र्ै।
उक्त द ि ों प लार ों के द -द दवभाग र्ैं - ददक्षण भाग और उत्तर भाग इि दवभाग ों में रर्िे वाले
स लर् प्रकार के व्यन्तर और वाणव्यन्तर दे व ों की एक-एक जादि के द -द इि र्ैं। अिः कुल
बत्तीस इि र्ैं। प्रत्येक इि के चार-चार र्जार सामादिक दे व र्ैं । स लर्-स लर् र्जार
आत्मरक्षक दे व र्ै , चार-चार अग्रमदर्दषयाँ र्ै। प्रत्येक अग्रमदर्षी के र्जार-र्जार का पररवार र्ै।
साि अिीक र्ैं । िीि पररषद् र्ैं। आभ्यन्तर पररषद् के आठ र्जार दे व, मध्य पररषद् के दस र्जार
दे व और बाह्य पररषद के बारर् र्जार दे व र्ैं । इि दे व ों की आयु जघन्य दस र्जार वषह और
उत्कृष्ट एक पल्य पम की र्ै । दे दवय ों की जघन्य आयु दस र्जार वषह और उत्कृष्ट अधह पल्य पम
की र्ै। व्यन्तर और वाणव्यन्तर दे व चोंचल स्वभाव के र् िे र्ैं। मि र्र िगर ों में दे दवय ों के साथ
िृत्य-गाि करिे हुए पूवोपादजहि पुण्य के फल ों का अिुभव करिे हुए दवचरिे र्ैं । दवदवध अन्तर ों में
रर्िे के कारण इन्हें 'व्यन्तर कर्िे र्ैं। वि में भ्रमण करिे के अदधक शौकीि र् िे के कारण इन्हें
'वाणव्यन्तर' कर्िे र्ैं।
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व्यंतरों के प्रभेद
दस प्रकार के ततययक्जंभक दे व
(1) अन्नजृोंभक (2) पािजृोंभक
(3) वस्त्रजृोंभक, (4) लेणजृोंभक,
(5) पुष्पजृोंभक (6) फलजृोंभक
(7) पुष्पफल जृोंभक (8) शयिजृोंभक
(9) दवद्याजृोंभक (10) अदियि जृोंभक।
🔹🔸🔹3️🔹🔸🔹
🌞🌜ज्योततष्क दे व ✨🪐🌟
( दे विाओों का िीसरा प्रकार )
ये सभी दियहग्ल क क अपिी ज्य दि से प्रकादशि करिे र्ैं , इसदलए ज्य दिष्क दे व कर्लािे र्ैं।
ये अढाई द्वीप में गदिशील र्ैं , अढाई द्वीप से बार्र स्थिर र्ैं। ये दिरन्तर सुमेरु पवहि की प्रददक्षणा
दिया करिे र्ैं। मेरुपवहि के 1121 य जि क छ ड़ कर इिके दवमाि चार ों ददशाओों में उसकी
सिि प्रददक्षणा करिे रर्िे र्ैं। मिुष्य ल क के ज्य दिष्क मेरु के 1121 य जि चार ों ओर दू र सदा
भ्रमण करिे रर्िे र्ैं। मिुष्य ल क मे एक सौ बत्तीस सूयह और एक सौ बत्तीस चि र्ै।
● जम्बूद्वीप में द -द , लवण समुद्र में चार-चार धािकी खण्ड में बारर् बारर्, काल ददध में बयालीस
बयालीस और पुष्कराधह में बर्त्तर बर्त्तर सूयह और चि र्ै।
● एक चि का पररवार 28 िक्षत् 88 ग्रर् और 66975 क टाक दट िार ों का र्ै। यद्यदप ल कमयाहदा
के स्वभावािुसार ज्य दिष्क दवमाि सदा अपिे आप घूमिे रर्िे र्ैं , िददप समृस्थि दवशेष प्रकट करिे
के दलये और अदभय ग्य (सेवक) िामकमह के उदय से िीड़ाशील कुछ दे व दवमाि क उठािे र्ैं।
सामिे के भाग में दसोंर्ाकृदि दादर्िे गजाकृदि पीछे वृषभाकृदि और बायें अश्वाकृदि वाले दे व दवमाि
क उठाकर चलिे रर्िे र्ैं। इि ज्य दिष्क ों की गदि के कारण मिुष्य ल क में कालव्यवर्ार र् िा
र्ै।
चिमा, सूयह, िक्षत् ग्रर् और िारागण ये पाोंच प्रकार के ज्य दिष्क दे व र्ैं। ददशादवचारी (अथाहि्
मेरुपवहि की प्रददक्षणा करिे हुए भ्रमण करिे वाले) ज्य दिष्क दे व र्ैं ।
● मेरु के समिल भूभाग से साि सौ िब्बे य जि की ऊँचाई पर ज्य दिष चि का क्षेत् आरम्भ
र् िा र्ै। यर् क्षेत् ऊँचाई में एक सौ दस य जि का र्ै और दिरछे असोंख्याि द्वीप समुद्रपयहन्त र्ैं।
● इस क्षेत् के आरम्भ में िारामण्डल र्ैं।
(समिल भूदम से 790 य जि की ऊँचाई पर)
● यर्ाँ से दस य जि की ऊँचाई पर अथाहि्
(समिल भूदम से 800 य जि की ऊँचाई पर सूयह का दवमाि र्ै)
● वर्ाँ से अस्सी य जि ऊँचाई पर अथाहि्
(समिल भूदम से 880 य जि ऊपर चि का दवमाि र्ै)
● वर्ाँ से बीस य जि की ऊँचाई िक अथाहि्
(समिल भूभाग से 900 य जि ऊँचाई िक ग्रर् िक्षत् और प्रकीणह िारागण र्ैं )
....प्रकीणह िार ों से आशय यर् र्ै दक कुछ िारे ऐसे र्ैं ज अदियिचारी र् िे से कभी सूयह-चि के
िीचे चलिे र्ैं और कभी ऊपर।
●चि से चार य जि की ऊँचाई पर अथाहि्
(समिल भूदम से 884 य जि की ऊोंचाई पर िक्षत् र्ैं)
● वर्ाँ से चार य जि ऊँचे जािे पर अथाहि्
( समिल भूभाग से 888 य जि की ऊँचाई पर र्ररि रत्नमय बुध ग्रर् र्ैं)
● वर्ाँ से िीि य जि की ऊँचाई पर अथाहि्
(समिल भूभाग से 891 य जि की ऊँचाई पर स्फदटक रत्नमय शुि का दवमाि र्ै)
● शुि से िीि य जि की ऊोंचाई पर अथाहि्
(समिल भूभाग से 894 य जि की ऊँचाई पर पीि रत्नमय गुरु का दवमाि र्ै)
● गुरु से िीि य जि ऊपर अथाहि्
(समिल भूदम से 897 य जि की ऊँचाई पर रक्त रत्नमय मोंगल का दवमाि र्ै)
● और मोंगल से िीि य जि ऊपर अथाहि्
(समिल भूभाग से 900 य जि की ऊँचाई पर जामुिरों ग मय शदि का दवमाि र्ै)
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ज्य दिष (प्रकाशमाि) दवमाि में रर्िे से ये सूयह आदद ज्य दिष्क कर्लािे र्ैं । इि सबके मुकुट ों
में प्रभामण्डल जैसा उज्ज्वल दचह्न र् िा र्ै । सूयह के सूयहमण्डल जैसा चि के चिमण्डल जैसा
और िारा के िारामण्डल जैसा दचन्ह र् िा र्ै ।
िक्षत् 28–
1. अदभदजि 2 श्रवण 3 घदिष्ा 4 शिदभषा 5 पूवह भाद्रपद 6 उत्तर भाद्रपद 7 रे विी 8 अदश्विी 9.
भरणी 10 कृदत्तका 11 र दर्णी 12 मृगदशर 13 आद्राह 14 पुिवहसु 15 पुष्य 16 आश्लेषा 17 मघा
18 पूवह फाल्गुिी 19 उत्तरा फाल्गुिी 20 र्स्त 21 दचत्ा 22 स्वादि 23 दवशाखा 24 अिुराधा 25
ज्येष्ा 26. मूल 27 पूवाहषाढ़ा 28 उत्तराषाढा।
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जोंबूद्वीप–( 2 चि व 2 सूयह )
(ग्रर्-176,िक्षत्-56,िारा- 133950 क ड़ाक ड़ी)
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लवण समुद्र–( 4 चि व 4 सूयह )
(ग्रर्-352,िक्षत्-112,िारा-267900 क ड़ाक ड़ी)
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घािकीखोंड–(12 चि व 12 सूयह )
(ग्रर्-1056,िक्षत्-337,िारा-8,03,700 क ड़ाक ड़ी)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
काल दधी समुद्र–(42 चि व 42 सूयह )
(ग्रर्-3696,िक्षत्-1176,िारा-28,12,950 क ड़ाक ड़ी)
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पुष्कराधह द्बीप–
(ग्रर्-6336,िक्षत्-2,016,िारा-48,22,200 क ड़ाक ड़ी)
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★ िार ों की ऋस्थि सबसे कम र्ै िार ों से िक्षत् की ऋस्थि अदधक र्ै। िक्षत् से ग्रर् की अदधक र्ै।
ग्रर् से सूयह की ऋस्थि अदधक र्ै और सूयह से चोंद्र की ऋस्थि अदधक र्ै ।
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ज्य दिषी दे व ों की गदि–
1. चिमा की गदि सबसे मोंद र् िी र्ै।
2. सूयह की गदि उससे शीघ्र र् िी र्ै।
3. ग्रर् की गदि उससे शीघ्र र् िी र्ै।
4. िक्षत् की गदि उससे शीघ्र र् िी र्ै।
5. िारा की गदि सबसे शीघ्र र् िी र्ै ।
ज्य दिषी दे व ों की गदि में फकह क् ों र्ै ?
....ज दजििा ज्यादा ऋस्थि सम्पन्न, वैभव, ऐश्वयह सम्पन्न र् िा र्ै , उसकी चाल उििी र्ी श्रेष् एवों
मोंद-मोंद र् िी र्ै और ज सामान्य कमहचारी ल ग र् िे र्ैं , वे शीघ्र - शीघ्र इधर-उधर दौड़िे रर्िे र्ैं
। ज्य दिषी दे व ों में चोंद्रमा की ऋस्थि सवाहदधक र्ै , जबदक िारा की ऋस्थि सबसे कम र्ै। इसदलए
चोंद्रमा की गदि सबसे मोंद र्ै एवों िारा की गदि सबसे शीघ्र र्ै ।
ज्य दिष्क दे व ों में इों द्र दकििे र्ैं ?
....ज्य दिष्क दे व ों में द इों द्र र्ैं –
1. चि और 2. सूयह
अधहपुष्करद्बीप में
(72 चि और 72 सूयह)
● मिुष्यल क के बार्र के सूयह चोंद्र के दवमाि ों का प्रकाश समशीि ष्ण र् िा र्ै अथाहि सूयह के
दकरण अदििीक्ष्ण िर्ीों र् िे र्ैं और चोंद्र के दकरण अदिशीिल िर्ीों र् िे र्ैं।
प्रत्येक ज्य दिषी के स्वामी के 4 अग्र मदर्दषयाँ र्ैं। प्रत्येक अग्रमदर्षी का चार-चार र्जार दे दवय ों
का पररवार र्ै। चार र्जार सामादिक दे व र्ैं । स लर् र्जार आत्मरक्षक दे व र्ै। आभ्यन्तर पररषद
के आठ र्जार दे व र्ैं। मध्य पररषद के दस र्जार दे व र्ैं । बाह्य पररषद के बारर् र्जार दे व र्ैं
साि प्रकार की अिीक र्ै। और भी बहुि-सा पररवार र्ै ।
● िक्षत् दवमाि ों में रर्िे वाले दे व ों की आयु जघन्य पाव पल्य पम और उत्कृष्ट आधे पल्य पम की
र्ै। इिकी दे दवय ों की आयु जघन्य पाव पल्य पम और उत्कृष्ट पाव पल्य पम से कुछ अदधक र्ै।
● ग्रर् दवमािवासी दे व ों की आयु जघन्य पाव पल्य पम की और उत्कृष्ट एक पल्य पम की र्ै।
इिकी दे दवय ों की जघन्य आयु पाव पल्य पम की ओर उत्कृष्ट आयु आधे पल्य पम की र्ै ।
● ज्य दिष्क दे व ों की दजििी आयु स्थिदि र्ै उििी र्ी उिकी जघन्य या उत्कृष्ट काय स्थिदि र्ै।
● उिका अन्तर—अपिे अपिे काय क छ ड़कर पुिः उसी काय में उत्पन्न र् िे का काल
जघन्यिः अन्तमुहहूत्तह और उत्कृष्टिः अिन्त काल का र्ै ।
● वणह, गन्ध, रस, स्पशह और सोंिाि की दृदष्ट से उिके र्जार ों भेद र् िे र्ैं।
🔹🔸🔹4️🔹🔸🔹
🧜🏽♂️ वैमातनक दे व 🧜🏽♂️
( दे विाओों का चिुथह प्रकार )
➖➖➖➖➖➖➖➖
दवमाि में उत्पन्न र् िे के कारण इन्हें वैमादिक दे व कर्िे र्ैं। वैमादिक दे व ों के मुख्य द भेद र् िे
र्ैं–
(1) कि पपन्न और (2) किािीि
●जर्ाँ छ टे बड़े की मयाहदा र्ै उस दे वल क क कि कर्िे र्ैं । कि में उत्पन्न हुए दे विाओों क
कि पपन्न और जर्ाँ कि िर्ीों र्ै , ऐसे दे वल क में उत्पन्न हुए दे विाओों क किािीि कर्िे र्ैं।
● 12️ दे वल क के कि र् िे से उन्हें कि पपन्न कर्िे र्ैं उसके बाद 9 ग्रैवेयक और 5 अिुत्तर में
कि का अभाव र् िे से उि दे विाओों क किािीि कर्िे र्ैं ।
● ज्य दिष चि से ऊपर असोंख्य य जि जािे पर मेरु के ददक्षण भाग में सौधमह और उत्तर भाग में
ईशाि कि आया हुआ र्ै। ईशाि दे वल क कुछ ऊपर र्ै द ि ों समश्रेणी में िर्ीों र्ै।
● सििकुमार व मार्ेि के बीच में ऊपर ब्रह्मल क र्ै। उसके ऊपर ऊपर िमश लाोंिक
मर्ाशुि और सर्स्त्रार दे वल क र्ै ।
● उसके ऊपर सौधमह-ईशाि की िरर् आिि और प्राणि द कि आए हुए र्ैं और उसके ऊपर
आचरण और अच्युि आए हुए र्ैं।
● सौधमह ईशाि दे वल क में दवमाि पूवह-पदश्चम में लोंबे व उत्तर ददक्षण में चौड़े असोंख्य क ड़ा
क ड़ी य जि प्रमाण र्ै।
इि द ि ों दे वल क में 13 प्रिर र्ै। प्रत्येक प्रत्तर के बीच में इिक दवमाि र्ै।
िीसरे चौथे दे वल क में 12 प्रत्तर र्ै । पाँचवें दे वल क में 6 प्रिर र्ै। छठे दे वल क में 5 प्रत्तर र्ै ।
सािवें आठवें दे वल क के 4–4 प्रिर र्ै। िौवें-दसवें में 4 प्रत्तर, ग्यारर्वें-बारर्वें दे वल क में 4
प्रत्तर र्ै। 9 ग्रैवेयक के 9 प्रत्तर िथा अिुत्तर दवमाि का एक प्रत्तर र्ै।
(13+12+6+5+4+4+4+4+9+1)
इस प्रकार उर्ध्हल क में वैमादिक दे विाओों के कुल 62 प्रत्तर र्ै। प्रत्येक प्रत्तर की म टाई 3200
य जि र्ै। दजस प्रकार िरक के प्रत्तर ों में िारदकय ों के आवास र् िे र्ैं , उसी प्रकार वैमादिक के
प्रत्तर ों की भूदम के ऊपर दे विाओों के आवास र् िे र्ैं । प्रत्येक प्रत्तर सवहरत्नमय स्वच्छ एवों दशहिीय
र् िे र्ैं।
सौधमह और ईशाि दे वल क में 965 ग लदवमाि 988 दत्क ण दवमाि 972 चौरस दवमाि र्ै।
पुष्पाशकीणह दवमाि ों की सोंख्या 59, 97 075 र्ै। इस प्रकार द ि ों दे वल क में कुल 60 लाख दवमाि
र्ैं, दजिमें से 32 लाख सौधमह दे वल क के और 28 लाख ईशाि दे वल क के र्ै।
ग्यारर्वें बारर्वें दे वल क से एक रज्जू ऊपर िव ग्रैवेयक क पर्ली प्रिर र्ै। पर्ली िीि प्रत्तर थ ड़े -
थ ड़े अोंिर पर र्ै। दफर थ ड़ा ज्यादा अोंिर छ ड़कर उसी प्रकार और िीि प्रिर र्ै और दफर थ ड़ा
ज्यादा अोंिर छ ड़कर उसी प्रकार 3 प्रिर र्ै। इस प्रकार 3 प्रिर का एक दत्क, कुल 9 प्रिर के 3
दत्क कर्लािे र्ैं। यर् प्रत्तर द रज्जू लम्बे चौड़े र्ैं।
1.भद्र– प्रथम ग्रैवेयक दे व ों की आयु स्थिदि जघन्यि: बाईस सागर पम और उत्कृष्टि: िेईस
सागर पम की र्ै।
2. सुभद्र– दद्विीय ग्रैवेयक दे व ों की आयु स्थिदि जघन्यि: िेईस सागर पम और उत्कृष्टिः चौबीस
सागर पम की र्ै।
4. सुमािस– चिुथह ग्रैवेयक की आयु स्थिदि जघन्यि: पच्चीस सागर पम और उत्कृष्टिः छब्बीस
सागर पम की र्ै।
5. सुदशहि– पोंचम ग्रैवेयक की आयु स्थिदि जघन्यिः छब्बीस सागर पम और उत्कृष्टिः सिाईस
सागर पम की र्ै।
8. सुप्रदिबि– अष्टम ग्रैवेयक की आयु स्थिदि जघन्यिः उििीस सागर पम और उत्कृष्टि: िीस
सागर पम की र्ै।
9. यश धर– िवम ग्रैवेयक की आयु स्थिदि जघन्यि: िीस सागर पम और उत्कृष्टि: इकिीस
सागर पम की र्ै।
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तकन्तितिक दे व
जैसे मिुष्य जादि में दिम्न स्तर के मिुष्य भी दगिे जािे र्ैं , वैसे र्ी दे व ों में भी कुछ घृणास्पद अशुभ
दवदिया वाले, दमथ्यादृदष्ट, अज्ञािी दे व भी र् िे र्ैं ज दकस्थिदषक दे व कर्लािे र्ैं । ऐसे दे व िीि
प्रकार के र्ैं 1. िीि पल्य वाले 2 िीि सागर वाले और 3 िेरर् सागर पम की आयु वाले।
● भविवादसय ों से लगाकर पर्ले दू सरे दे वल क िक िीि पल्य पि की आयु वाले दकस्थिषी र् िे
र्ैं।
● चौथे दे वल क िक िीि सागर पम की आयु वाले दकस्थिदपक दे व र् िे र्ैं ।
● छठ दे वल क िक िेरर् सागर पम की आयु वाले दकस्थिषक दे व र् िे र्ै।
....प्राय दे व गुरु धमह की दिन्दा करिे वाले और िप-सोंयम की च री करिे वाले िथा र्ास्यादद की
रुदच वाले मरकर दकस्थिदषक दे व र् िे र्ैं।
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पााँच अनुत्तर तवमान
पाोंचवाँ अिुत्तर दवमाि - समिल भूदम से कुछ कम साि रज्जु ऊपर 6½ रज्जु घिाकार दवस्तार में
चार ों ददशाओों में चार दवमाि र्ै। वे ग्यारर् सौ य जि ऊँचे , इक्कीस सौ य जि अगिाई वाले िथा
असोंख्याि य जि के लम्बे-चौड़े र्ैं। इि चार ों दवमाि ों के मध्य में एक लाख य जि लम्बा-चौड़ा
ग लाकार पाँचवा दवमाि र्ै।
उक्त पाँच ों दवमाि सवोत्कृष्ट और सब से ऊपर र् िे के कारण अिुत्तर दवमाि कर्लािे र्ैं। इि
अिुत्तर दवमािवासी दे व ों की अवगार्िा एक र्ाथ प्रमाण र्ै। इिमें से चार दवमाि ों के दे व ों की जघन्य
आयु 31 सागर पम और उत्कृष्ट आयु 33 सागर पम की र्ै। सवाहथहदसस्थि दवमािवासी दे व ों की आयु
33 सागर पम र्ै। इसमें जघन्य-उत्कृष्ट का भेद िर्ीों र्ै । सबकी आयु बराबर र्ै।
1. दवजय–(पूवह में)
2. वैजयोंि–(ददक्षण में)
3. जयोंि–(पदश्चम में)
4. अपरादजि–(उत्तर में)
5. सवाहथहदसि–(मध्य में)
उक्त पाँच ों दवमाि ों में शुि सोंयम का पालि करिे वाले , साधु उत्पन्न र् िे र्ैं। वे दे व वर्ाँ ज्ञािादद में
दिमि रर्िे र्ैं । जब उन्हें दकसी प्रकार का सोंशय र् िा र्ै , िब ये शय्या से िीचे उिरकर मिुष्य
ल क में दवचरिे हुए िीथहकर भगवाि क वन्दिा - िमस्कार करके प्रश्न पूछिे र्ैं । भगवाि उस प्रश्न
के उत्तर क पुदगल ों में पररणि करिे र्ैं। ये दे व अपिे अवदधज्ञाि से उन्हें ग्रर्ण कर लेिे र्ै और
उिके प्रश्न का समाधाि र् जािा र्ै। पाँच अिुत्तर दवमािवासी दे व एकान्त सम्यग्ददृदष्ट र्ैं।
वैमादिक दे व ों के ज छब्बीस प्रकार र्ैं , उिमें बारर् प्रकार के दे व ों में शासक- शादसि व्यविा र्ै।
वर्ाों इि का एकछत् राज्य र्ै। अिुशासि भोंग करिे वाल ों के दलये वर्ाों कठ र दण्ड की व्यविा
र्ै। ऊपर के चौदर् प्रकार ों के दे व ों (9 ग्रैवेयक व 5 अिुत्तर) में अपिी-अपिी व्यविा र्ै , सब
अर्दमि र्ैं। वर्ाों शासक-शादसि का सम्बन्ध िर्ीों र्ै।
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उत्तर त्तर अदधकिा और र्ीििा
अदधकिा– िीचे-िीचे के दे व ों से ऊपर-ऊपर के... 1.दे व-स्थिदि, 2.प्रभाव, 3.सुख, 4.द् युदि,
5.लेश्या दवशुस्थि, 6.इस्थिय दवषय और 7.अवदध दवषय में अदधक र् िे र्ैं।
र्ीििा– चार बािें ऐसी र्ैं ज िीचे की अपेक्षा ऊपर के दे व ों में कम र् िी र्ै –
1. गदि, 2. शरीर, 3. पररग्रर् और 4. अदभमाि।
प्रश्न– क्ा प्रभु मर्ावीर के शासि में क ई जीव सवाहथहदसि में गया?
उत्तर– भगवाि मर्ावीर के शासि में बहुि-सी आत्माएँ उत्कृष्ट करणी करके सवाहथहदसि में गई
र्ैं--
1. काकन्दी के धन्ना जी, 2. राजगृर्ी के शादलभद्र जी आदद।